UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 7 महाकवि भूषण

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name महाकवि भूषण
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 7 महाकवि भूषण

कवि-परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

प्रश्न:
कवि भूषण का जीवन-परिचय लिखिए।
या
कवि भूषण की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
कवि भूषण का जीवन-परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का नामोल्लेख कीजिए तथा साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय: कविवर भूषण का जन्म संवत् 1670 वि० (सन् 1813 ई०) में कानपुर जिले के तिकवाँपुर (त्रिविक्रमपुर) ग्राम में हुआ था। इनके पिता पं० रत्नाकर त्रिपाठी संस्कृत के महान् विद्वान् एवं ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। भूषण का वास्तविक नाम क्या था? इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। एक दोहे से विदित होता है कि चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्रदेव ने इन्हें ‘भूषण’ की उपाधि दी थी। कदाचित् कालान्तर में ये ‘भूषण’ नाम से इतने विख्यात हुए कि इनका वास्तविक नाम ही विलुप्त हो गया। इनके जीवन का प्रारम्भिक चरण अकर्मण्यता से ग्रसित था, परन्तु भाभी के एक कटु व्यंग्य ने इनका जीवन बदल डाला। ये मर्माहत हो घर से निकल गये। कहाँ गये, कैसे रहे, इसका कुछ पता नहीं चलता, पर जब ये दस वर्षों के बाद घर लौटे तो इनमें पाण्डित्य एवं कवित्व-शक्ति का पर्याप्त विकास हो चुका था, जिसका राज्याश्रयों में उत्तरोत्तर विकास होता रहा। ये कई राजदरबारों में रहे, परन्तु इन्हें सन्तुष्टि न मिली। अन्त में मनोवांछित आश्रयदाताओं के रूप में इन्हें वीर शिवाजी व छत्रसाल मिले। इन दोनों ने भूषण को पर्याप्त सम्मान दिया। संवत् 1772 वि० (सन् 1715 ई०) के लगभग इनकी मृत्यु हो गयी।

रचनाएँ – भूषण की कीर्ति के आधारस्तम्भ इनके तीन काव्य-ग्रन्थ हैं – (1) शिवराज भूषण, (2) शिवा बावनी और (3) छत्रसाल दशक। शिवसिंह सरोज ने ‘भूषण-हजारा’ व ‘भूषण-उल्लास’ नामक दो अन्य रचनाओं को भी भूषणकृत माना है, परन्तु उनका यह मत प्रमाणपुष्ट नहीं है।

काव्यगत विशेषताएँ

भावपक्ष की विशेषताएँ

राष्ट्रीयता की भावना – भूषण के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता उनकी राष्ट्रीयता है। यद्यपि रीतिकाल के अन्य कवियों की भाँति ये भी राज्याश्रित कवि थे और इन्होंने भी अपने आश्रयदाताओं की यशोगान किया है, तथापि इनकी मनोवृत्ति उनसे भिन्न रही है। इन्होंने वीर शिवाजी तथा छत्रसाल को हिन्दू संस्कृति के रक्षक के रूप में देखा, इसीलिए उन्हें अपने काव्य का नायक बनाकर उनकी प्रशस्ति की। भूषण की कविताओं ने उस समय सम्पूर्ण राष्ट्र को चेतना प्रदान की। इनकी रचनाओं की यही विशेषता इनको ‘राष्ट्रीय कवि’ कहने के लिए बाध्य करती है।

वीर रस की मार्मिक व्यंजना – भूषण के काव्य की दूसरी विशेषता वीर रस की अभूतपूर्व व्यंजना है। वीर रस को उद्दीप्त करने वाले सम्पूर्ण तत्त्व इनकी रचनाओं में विद्यमान हैं। अनेक पद्यों में शिवाजी की वीरता एवं उनका मुगलों पर आतंक बहुत प्रभावशाली रूप में चित्रित हुआ है; जैसे

गरुड़ को दावा जैसे नाग के समूह पर,
दावा नाग जूह पर सिंह सरताज को।

युद्ध में छत्रसाल की बरछी के कमाल द्रष्टव्य हैं

भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी-सी,
खेदि-खेदि खाती दीह दारुन दलन के।

भूषण ने शिवाजी एवं छत्रसाल की वीरता का वर्णन युद्ध-क्षेत्र में ही नहीं, अपितु दया, दान, धर्म आदि क्षेत्रों में भी किया है।
वीर रस के साथ रौद्र एवं भयानक रसों का वर्णन भी स्वाभाविक रूप में हुआ है। वीभत्स रस युद्ध-स्थलों पर स्वत: आ जाता है। इनकी रचनाओं में श्रृंगार रस के भी कई छन्द मिलते हैं, पर उनमें वह सौन्दर्य नहीं, जो वीर रस के पदों में है। भूषण की कविता ओज गुण की साक्षात् मूर्ति है।

कलापक्ष की विशेषताएँ

भूषण का कलापक्ष भी इतना उच्चकोटि का है कि उनके भावपक्ष और कलापक्ष में से कौन बढ़कर है, यह कह सकना कठिन है।।
भाषा – भूषण की भाषा में इतनी व्यंजकता एवं ओजस्विता है कि उसमें वीर रस को गर्जन सुनाई पड़ता है

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाड़व सुअंभ पर,
रावण सदंभ पर रघुकुल राज है।।

भूषण के काव्य में प्रयुक्त ब्रजभाषा पूर्णतः शुद्ध ब्रजभाषा नहीं है, अपितु उसमें बुन्देलखण्डी, अवधी, अपभ्रंश, तत्कालीन अरबी और फारसी के शब्दों का भी योग है। ब्रजभाषा के अन्य कवियों की भाँति इच्छानुसार तोड़-मरोड़ एवं शब्दं गढ़ने की प्रवृत्ति भी इनमें दिखाई पड़ती है। भूषण ने लोकोक्तियों व मुहावरों के प्रयोग द्वारा भाषा एवं भाव में चमत्कार उत्पन्न किया है। , अलंकार-भूषण के काव्य में उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, यमक, व्यतिरेक, व्याजस्तुति, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप में हुआ है। यमक का एक उदाहरण द्रष्टव्य है

ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।

शब्दालंकारों के समावेश के चक्कर में इन्होंने शब्दों की तोड़-मरोड़ अवश्य की है, जिससे भाषा क्लिष्ट हो गयी है, परन्तु इनकी भाषा में ओज एवं प्रवाह निरन्तर बने रहे हैं; जैसे

पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं, खलन के।

शैली – भूषण की शैली अति प्रभावोत्पादक, चित्रमय, ओजपूर्ण, ध्वन्यात्मक एवं बहुत सशक्त है। इनकी शैली : युद्ध-वर्णन में प्रभावपूर्ण, ओजस्विनी तथा दानवीरता और धार्मिकता के चित्रण में प्रसादयुक्त है।

साहित्य में स्थान – भूषण की कविता भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है तथा हिन्दी के वीर रसात्मक काव्य में अद्वितीय स्थान की अधिकारिणी है।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

शिवा-शौर्य

प्रश्न 1:
साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं ।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलते हैं ।।
ऐलफैल खेलभैल खलक में गैलगैल,
गजन की वैल पैल सैल उसलत हैं ।।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) “सरजा’ की उपाधि से कौन सुशोभित थे?
(iv) शिवाजी की सेना कहाँ के लिए प्रयाण करती है?
(v) सूर्य तारे के समान क्यों दिखायी देने लगता है?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद महाकवि भूषण द्वारा रचित ‘भूषण ग्रन्थावली’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘शिवा-शौर्य’ शीर्षक काव्यांश से उदधृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए-
शीर्षक का नाम – शिवा-शौर्य।
कवि का नाम – महाकवि भूषण।
[संकेत-इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।]

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – भूषण कवि कहते हैं कि शिवाजी की सेना के युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय बहुत अधिक धूल उड़ रही थी। उड़ती हुई धूल इतनी अधिक थी कि इस धूल में सूर्य एक तारे के समान प्रतीत हो रहा था। शिवाजी की विशाल सेना के भार से पृथ्वी भी काँप उठी थी। पृथ्वी के कम्पायमान हो जाने से समुद्र आदि भी हिलने लगे थे। समुद्र के हिलने से ऐसा प्रतीत होता था मानो किसी थाली में रखा हुआ पारा हिल रहा हो। तात्पर्य यह है कि शिवाजी की सेना इतनी अधिक विशाल थी कि उसके युद्ध के लिए प्रयाण करते समय उस स्थान पर ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण पृथ्वी पर ही खलबली मच गयी थी और समस्त चराचर जगत् में अव्यवस्था का बोलबाला हो उठा था।
(iii) ‘सरजा’ की उपाधि से शिवाजी सुशोभित थे।
(iv) शिवाजी की सेना युद्ध के लिए प्रयाण करती है।
(v) शिवाजी की सेना के चलने से उड़ी धूल की विपुल राशि से सूर्य तारे के समान दिखायी देने लगता है।

प्रश्न 2:
बाने फहराने घहराने घंटा’गजन के,
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।।
नग भहराने ग्राम नगर पराने सुनि, ।
बाजत निसाने सिवराजजू नरेस के ।।
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।
दल के दरारन ते कमठ करारे फूटे,
केरा के से पात बिहराने फन सेस के ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) शिवाजी की सेना के नगाड़ों को क्या प्रभाव दिखाई पड़ता है?
(iv) बालों की लटों के समान क्या प्रतीत होते हैं?
(v) किस कारण शेषनाग के फल केले के पत्तों जैसे चिर गए हैं?

उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – पौराणिक मान्यता के अनुसार विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार कछुए को हुआ था, जिसने समुद्र मन्थन के समय मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। अन्य मान्यता के अनुसार पृथ्वी को शेषनाग (सहस्र फन वाले सर्प) ने अपने फनों पर धारण कर रखा है। इसी कछुए की कठोर पीठ शिवाजी की सेना के चलने की धमक से विदीर्ण हो गयी है और शेषनाग के फन केले के पत्तों के समान चिरकर अलग-अलग हो गये।
(iii) शिवाजी के प्रचण्ड नगाड़ों की ध्वनि से पहाड़ ढह गए और सेना के नमन-मार्ग में पड़ने वाले गाँवों के लोग भाग खड़े हुए।
(iv) हाथियों के गण्डस्थल पर मदपान के लिए एकत्रित भौंरे बालों की लटों के समान प्रतीत हो रहे हैं।
(v) शिवाजी की सेना के चलने की धमक से शेषनाग के फन केले के पत्तों के समान चिर गए हैं।

छत्रसाल-प्रशस्ति

प्रश्न 1:
भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी-सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के ।
बखतर पाखरन बीच धेसि जाति मीन,
पैरि पार जात परवाह ज्यों जलन के ।।
रैयाराव चंपति, के छन्नसाले महाराज,
भूषन सकै करि बखान को बलन के ।
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) छत्रसाल की भुजा और बरछी को किसके समान बताया गया है?
(iv) छत्रसाल की बरछी ने किनको बलहीन कर दिया है?
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ किस रस का अनुपम उदाहरण हैं?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद महाकवि भूषण की ‘भूषण-ग्रन्थावली’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘छत्रसाल-प्रशस्ति’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – छत्रसाल-प्रशस्ति ।
कवि का नाम – महाकवि भूषण।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – युद्धभूमि में महाराज छत्रसाल की बरछी गजब का कौशल दिखा रही थी। जिस प्रकार पंख कट जाने पर पक्षी भूमि पर गिर पड़ते हैं, उसी प्रकार छत्रसाल की बरछी शत्रु पक्ष के बड़े-बड़े वीरों के हाथ-पैर काटकर उन्हें असहाय पक्षियों की भाँति भूमि पर गिरा रही थी।
(iii) छत्रसाल की भुजा को शेषनाग के समान और उनकी बरछी को शेषनाग की जीवन-संगिनी नागिन के समान भयंकर बताया गया है।
(iv) छत्रसाल की बरछी ने शत्रुओं के बल-पौरुष छीनकर उन्हें सर्वथा बलहीन कर दिया है।
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ वीर रस का अनुपम उदाहरण हैं।

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