UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income (राष्ट्रीय आय) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income (राष्ट्रीय आय).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 18
Chapter Name National Income (राष्ट्रीय आय)
Number of Questions Solved 34
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income (राष्ट्रीय आय)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय आय क्या है ? विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय का अर्थ एवं परिभाषाएँ
‘राष्ट्रीय आय अथवा लाभांश उत्पादन के साधनों द्वारा किसी एक निश्चित समय में (प्रायः एक वर्ष में) उत्पादन किये गये पदार्थों एवं सेवाओं की शुद्ध मात्रा होती है अर्थात् एक वर्ष की अवधि में किसी देश में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन होता है, उसे ही उस देश की वास्तविक
राष्ट्रीय आय कहते हैं। राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न प्रकार से दी है, जिनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) प्रो० मार्शल के अनुसार – ‘किसी देश के श्रम और पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर कार्य करके, प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों तथा समस्त प्रकार की सेवाओं की एक शुद्ध मात्रा उत्पन्न करते हैं। इसमें विदेशी विनियोग से प्राप्त आय भी जोड़ देनी चाहिए। यही देश की शुद्ध वास्तविक वार्षिक आय या राष्ट्रीय लाभांश है।’

शुद्ध आय से मार्शल का अभिप्राय है, कुल उत्पादन (Gross Product) में से ये राशियाँ घटा देनी चाहिए

  1. चल पूँजी का प्रतिस्थापना व्यय,
  2. अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापना के लिए किया गया व्यय,
  3. कर,
  4. बीमे की प्रीमियम आदि।

गुण – मार्शल की परिभाषा सरल और स्पष्ट है। मार्शल की परिभाषा में निम्नलिखित बातें पायी जाती हैं

  1. राष्ट्रीय लाभांश देश में उत्पन्न होने वाली वास्तविक उत्पत्ति (Net Product) का योग है।
  2.  इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं।
  3. इसमें विदेशों से प्राप्त होने वाली निबल आय भी सम्मिलित की जाती है।
  4. राष्ट्रीय लाभांश की गणना प्रतिवर्ष की जाती है।

प्रो० मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएँ

  •  राष्ट्रीय आय की गणना अत्यन्त कठिन है। प्रो० मार्शल ने पदार्थों एवं सेवाओं को राष्ट्रीय आय की गणना का आधार माना है; अत: उनकी गणना करना तथा समस्त पदार्थों का मूल्य ज्ञात करना कठिन होता है। इस कारण राष्ट्रीय आय की गणना ठीक-ठीक नहीं हो सकती।।
  • प्रो० मार्शल की परिभाषा सैद्धान्तिक दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ होते हुए भी व्यावहारिक दृष्टि से पूर्ण नहीं है।

(ii) प्रो० पीगू के विचार –  पीगू ने मार्शल की परिभाषा की कमियों को दूर करने का प्रयत्न किया। प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय लाभांश की निम्नलिखित परिभाषा दी है-“राष्ट्रीय लाभांश किसी समुदाय की वास्तविक आय (जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित है) का वह भाग है जो द्रव्य के द्वारा मापा जा सकता है।”

प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय आय में उत्पत्ति के केवल उसी भाग को सम्मिलित किया है जिसका द्रव्य में मूल्यांकन किया जा सकता है।

आलोचनाएँ

  • प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता का दोष विद्यमान है, क्योंकि प्रो० पीगू के अनुसार, राष्ट्रीय आय समस्त उत्पादन नहीं, वरन् उसका केवल वह भाग है जिसे द्रव्य में मापा जा सकता है।
  •  प्रो० पीगू की परिभाषा में विरोधाभास पाया जाता है। यदि कोई कार्य द्रव्य के बदले में किया जाए तब वह राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा और यदि वही कार्य सेव-भाव से किया जाए तो राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

गुण – प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता एवं विरोधाभास के अवगुण होते हुए भी यह अधिक व्यावहारिक है तथा इसके द्वारा राष्ट्रीय लाभांश की गणना सरलतापूर्वक की जा सकती है।
प्रो० फिशर के विचार – प्रो० मार्शल तथा प्रो० पीयू ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उत्पादन की दृष्टि से की है, जबकि प्रो० फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उपभोग की दृष्टि से की है।

(iii) प्रो० फिशर के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश अथवा आय में केवल वे सेवाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जो कि अन्तिम उपभोक्ताओं को प्राप्त होती हैं, चाहे वे सेवाएँ भौतिक परिस्थितियों से उत्पन्न हुई हों या मानवीय परिस्थितियों से।
प्रो० फिशर ने अपनी परिभाषा में इस बात पर विशेष बल दिया है कि राष्ट्रीय आय में वर्ष की वास्तविक उत्पत्ति का केवल वह भाग सम्मिलित किया जाता है जिसका प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि एक पियानो या ओवर कोट जो इस वर्ष मेरे लिए बनाया गया है, इस वर्ष की आय का अंश नहीं है, बल्कि केवल पूँजी में वृद्धि है। केवल वे सेवाएँ जो इस वर्ष के भीतर मुझे प्राप्त हैं, आय में सम्मिलित की जाएँगी।

आलोचना
प्रो० फिशर का मत तर्कसंगत है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से अनुपयुक्त है, क्योंकि इस आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना करना असम्भव है।
उपर्युक्त तीनों विचारकों की परिभाषाओं का विश्लेषण करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रो० मार्शल की परिभाषा ही अधिक उचित है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय आय की निम्न संकल्पनाओं का सामान्य परिचय दीजिए [2010]
(अ) सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P),
(ब) सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P),
(स) शुद्ध घरेलू उत्पाद (N.D.P),
(द) निवल राष्ट्रीय उत्पाद (N.N.P)
या
राष्ट्रीय आय की विभिन्न संकल्पनाओं की व्याख्या कीजिए। [2008, 14]
या
सकल घरेलू उत्पाद क्या है? [2012, 13]
या
सकल घरेलू उत्पाद और सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ लिखिए। [2012]
या
निवल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है? [2012]
या
सकल राष्ट्रीय उत्पाद को परिभाषित कीजिए। [2012]
या
शुद्ध घरेलू उत्पाद को परिभाषित कीजिए। [2013]
उत्तर:
(अ) सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.)
देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसमें केवल अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को ही लिया जाता है। अन्तिम वस्तु वह वस्तु है जो उपभोग कर ली जाती है तथा जिसका उपयोग अन्य किसी वस्तु के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में नहीं किया जाता। सकल घरेलू उत्पाद में यह आवश्यक नहीं कि उत्पादन देश के नागरिकों के द्वारा ही हो। उसमें कुछ भाग उन विदेशियों की उत्पादक सेवाओं का परिणाम हो सकता है जिन्होंने अपनी पूँजी तथा तकनीकी ज्ञान का उपयोग करके देश में कुल उत्पादन के कुछ भाग का उत्पादन किया है।

(ब) सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P)
सकल राष्ट्रीय उत्पाद किसी देश के नागरिकों द्वारा किसी दी हुई समयावधि में (सामान्यतया एक वर्ष में) उत्पादित कुल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है।
किसी देश की सकल उत्पत्ति (G.N.P) देश के नागरिकों द्वारा एक निश्चित समयावधि में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है। अत: सकल घरेलू उत्पाद में देशवासियों द्वारा देश के बाहर उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को भी सम्मिलित किया जाता है।
अतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद में विदेशों में निवेश एवं विदेशों में प्रदान की गयी अन्य साधन सेवाओं के लिए देश के नागरिकों को विदेशों से प्राप्त आय को सकल घरेलू उत्पाद में जोड़ देना चाहिए। इसी प्रकार देश के अन्दर विदेशियों द्वारा उत्पादित आय को सकल घरेलू उत्पाद में से घटा दिया जाना चाहिए। सकल राष्ट्रीय उत्पाद को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
G.N.P = G.D.P +X – M
उपर्युक्त समीकरण में G.N.P = सकल राष्ट्रीय उत्पाद,
G.D.P = सकल घरेलू उत्पाद,
X = देशवासियों द्वारा विदेशों में अजत आय,
M = विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।।
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि x = M है, तो G.N.P = G.D.P के होगा।

(स) शुद्ध घरेलू उत्पाद (N.D.P.)
सकल घरेलू उत्पाद में से ह्रास व्यय को घटाकरं शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जाता है।
सुत्र शुद्ध घरेलू उत्पाद = सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट

(द) निवल राष्ट्रीय उत्पाद (N.N.P)
निवल राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करने के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P) में से मूल्य ह्रास व्यय, चल पूँजी का प्रतिस्थापन व्यय, अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापना के लिए किया गया व्यय, कर, बीमे की प्रीमियम आदि को घटाना होता है।
गणितीय समीकरण – N.N.P = G.N.P – Depreciation
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय उत्पाद – ह्रास
इसे शुद्ध राष्ट्रीय आय भी कहते हैं।

प्रश्न 2
राष्ट्रीय आय की गणना-विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ? समझाइए।
या
राष्ट्रीय आय मापने की प्रमुख विधियाँ बताइए। [2009, 10]
या
राष्ट्रीय आय अनुमान की विभिन्न अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।
या
राष्ट्रीय आय क्या है? राष्ट्रीय आय के आकलन (नापने) की किसी एक विधि की विवेचना कीजिए। [2013, 14]
या
राष्ट्रीय आय क्या है? इसे मापने की उत्पादन गणना विधि अथवा आय गणना विधि में से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2013]
या
राष्ट्रीय आय मापने की किसी एक विधि को समझाइए। [2014]
या
राष्ट्रीय आय को अनुमानित करने की उत्पादन विधि का वर्णन कीजिए। [2015]
या
राष्ट्रीय आय मापने की उत्पादन विधि को समझाइए। [2015, 16]
उत्तर:
[संकेत-राष्ट्रीय आय की परिभाषा के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।

राष्ट्रीय आय की गणना-विधियाँ 
राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है

1. उत्पादन गणना-विधि – इस विधि में देश के सभी प्रकार के उत्पादकों का कुल उत्पादन ज्ञात किया जाता है। कुल उत्पादन ज्ञात करने के लिए वे समस्त वस्तुएँ व सेवाएँ जिनका विक्रय किया गया है, स्वयं प्रयोग की गयी वस्तुएँ तथा बचे हुए स्टॉक को जोड़ दिया जाता है। कुल उत्पादन में से ह्रास व अप्रचलन घटाकर शुद्ध उत्पादन ज्ञात कर लिया जाता है। सभी उत्पादकों के शुद्ध उत्पादन के योग में समस्त राष्ट्र का वास्तविक कुल घरेलू उत्पादन तथा शुद्ध विदेशी आय जोड़ देने से कुल राष्ट्रीय लाभांश ज्ञात हो जाता है। इस रीति के अन्तर्गत एक वर्ष में वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन के मौद्रिक मूल्य का योग निकाला जाता है तथा देश के वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। इस विधि को वस्तु-सेवा गणना-विधि भी कहा जाता है।
इस विधि का प्रमुख दोष यह है कि इसमें कभी-कभी वस्तुओं की दोहरी गणना हो जाती है। दूसरे, इस रीति के अनुसार सेवाओं का मूल्यांकन करना कठिन हो जाता है।

2. आय गणना-विधि – इस विधि में देश के सभी व्यक्तियों की आय ज्ञात करके उन्हें जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय आय ज्ञात हो जाती है। इस विधि को प्रयोग में लाने के लिए जो व्यक्ति आयकर देते हैं उनकी आय तो आय कर विभाग से मालूम कर ली जाती है और जो लोग आयकर नहीं देते, उनकी आय पारिवारिक बजट व अन्य सूचनाएँ एकत्रित करके ज्ञात की जाती है। परन्तु जो व्यक्ति आय कर नहीं देते उनके सम्बन्ध में वास्तविक जानकारी प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। इसलिए आय का सही ज्ञान नहीं हो पाता है।

3. व्यय गणना-रीति – इस रीति के अनुसार सभी नागरिकों द्वारा किया गया व्यय एवं बचतों को जोड़ दिया जाता है। यही जोड़ राष्ट्रीय आय कहलाता है। इस बात को हम इस प्रकार कह सकते हैं। कि व्यक्तिगत आय = उपभोग व्यय + बचते या राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय उपभोग व्यय + राष्ट्रीय बचते। किसी देश का विनियोग राष्ट्रीय बचत पर निर्भर होता है या बचतों के बराबर होता है। इसलिए इस रीति को ‘उपभोग विनियोग रीति’ भी कहा जाता है। इस विधि की सबसे बड़ी कमी यह है कि देश के सभी व्यक्तियों के उपभोग व्यय सम्बन्धी आँकड़ों व बचतों की सही जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है। इस कारण राष्ट्रीय आय की गणना करना कठिन होता है।

4. मिश्रित विधि – इस विधि के समर्थक डॉ० वी० के० आर० वी० राव हैं। इस प्रणाली में उत्पादन गणना-रीति व आय गणना-रीति दोनों का मिला-जुला उपयोग किया जाता है। कृषि, खनिज तथा उद्योगों के क्षेत्र में उत्पादन गणना-रीति और व्यापार, परिवहन, प्रशासनिक सेवाओं व अन्य सेवाओं आदि के क्षेत्र में आय गणना-रीति का उपयोग किया जाता है। भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए राष्ट्रीय आय समिति ने इसी गणना विधि का प्रयोग किया था। इस मिली-जुली विधि का प्रयोग हमारे देश के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 3
राष्ट्रीय आय की गणना सम्बन्धी कठिनाइयों का वर्णन कीजिए। [2007, 16]
या
राष्ट्रीय आय क्या है ? भारत की राष्ट्रीय आय की गणना में मुख्य कठिनाइयों को बताइए।
उत्तर:
(संकेत–राष्ट्रीय आय की परिभाषा के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
भारत में राष्ट्रीय आय की गणना सम्बन्धी कठिनाइयाँ
भारत में राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना होता है। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं

1. वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य मुद्रा में जानने में कठिनाई  – राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा या द्रव्य में की जाती है। परन्तु हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि अनेक वस्तुएँ तथा सेवाएँ ऐसी होती । हैं जिनके मूल्य को द्रव्य में नहीं मापा जा सकता; जैसे-माँ व स्त्री की सेवाएँ, प्रेम, दया, अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को स्वयं उपभोग करना आदि। राष्ट्रीय आय की गणना के लिए समस्त उत्पादित वस्तुओं का द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अनिवार्य है। भारत में कृषक स्व-उत्पादित वस्तुओं का एक बड़ा भाग स्वयं ही उपभोग कर लेते हैं। अत: भारत में कृषि क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं का ठीक-ठीक द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अत्यन्त कठिन कार्य है।

2. आँकड़ों का विश्वसनीय न होना – राष्ट्रीय आय का अनुमान तभी ठीक प्रकार से लगाया जा सकता है, जबकि उत्पादन आय से सम्बन्धित प्राप्त होने वाले आँकड़े ठीक एवं विश्वसनीय हों। परन्तु भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अशिक्षित है। अत: वह अपने आय-व्यय का हिसाब ठीक प्रकार से नहीं रख पाता है, जिसके कारण राष्ट्रीय आय की गणना करने में कठिनाई आती है।

3. व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अभाव – हम जानते हैं कि देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है। कृषि पर जनसंख्या का भार इतना अधिक है कि कृषकों की जीविका केवल कृषि से नहीं चल पाती है। अतः अपनी जीविका को चलाने के लिए कुटीर उद्योग चलाने पड़ते हैं या लघु उद्योगों में कार्य करना होता है। इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि देश में व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अत्यन्त अभाव है जिससे देश की राष्ट्रीय आय को अनुमान करना अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता है।

4. विभिन्न क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ – भारत में विभिन्न क्षेत्रों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं। अत: किसी क्षेत्र विशेष सम्बन्धी जानकारी को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय की गणना में अनेक व्यावसायिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

5. दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहना – राष्ट्रीय आय में प्राय: दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहती है।

6. अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना का न होना – प्रायः अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना नहीं हो पाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अविकसित देशों की अर्थव्यवस्था में अनेक वस्तुओं व सेवाओं का आदान-प्रदान द्रव्य के माध्यम से नहीं होता है।

7. मूल्य ह्रास का सही अनुमान न होना – मूल्य ह्रास वे प्रतिस्थापन का अनुमान सही ने लगा पाना, क्योंकि ये अनुमानित समय के पूर्व ही घटित हो सकते हैं; अतः सही राष्ट्रीय आय की गणना कठिन है।

8. मूल्यांकन की समस्या – उत्पादन गणना विधि के अनुसार उत्पादित वस्तुओं की मात्राओं को मूल्यों से गुणा करके विभिन्न गुणनफलों के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। परन्तु इसमें यह कठिनाई है कि गणना करते समय थोक या फुटकर कौन-सी कीमत से गणना करनी चाहिए, स्पष्ट नहीं होता।

9. हस्तान्तरण आय और उत्पादक आय में भेद करना कठिन – जबे सरकार बाजार से ऋण लेकर उनका प्रयोग अनुत्पादक कार्यों में करती है, तब ऐसे ऋणों पर ब्याज ‘हस्तान्तरण आय कहलाती है। परन्तु जब उनको प्रयोग उत्पादक कार्यों में होता हैं तो उन ऋणों पर ब्याज उत्पादक आय’ कहलाती है। राष्ट्रीय आय में हस्तान्तरण आय को नहीं जोड़ा जाता, जबकि उत्पादक आय को जोड़ा जाता है। यह ज्ञात करना कठिन है कि ऋण का कितना भाग उत्पादक है और कितना अनुत्पादक, जिससे राष्ट्रीय आय का अनुमान सही नहीं होता है।

10. कुटीर उद्योगों का उत्पादन – कुटीर उद्योग प्रायः अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा संचालित होते हैं जो कि अपने व्यवसाय के ठीक-ठीक आँकड़े रखने में असमर्थ होते हैं। अत: इस क्षेत्र के उत्पादक आँकड़े अविश्वसनीय होते हैं।

11. वस्तुओं और सेवाओं का चुनाव – वस्तुओं और सेवाओं के चुनाव के सम्बन्ध में यह निर्णय करना अत्यधिक कठिन हो जाता है कि अमुक वस्तु अर्द्धनिर्मित है या अन्तिम।

प्रश्न 4
राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 14]
उत्तर:
[संकेत – शीर्षक ‘राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं?’ के लिए इसी अध्याय के विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 के उत्तर को देखिए।]

राष्ट्रीय आय का महत्त्व
1. राष्ट्रीय आय से देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है – किसी राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता उसके द्वारा प्रतिवर्ष उपार्जित आय पर निर्भर होती है। किसी देश की राष्ट्रीय आय को देखकर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति किस प्रकार की है ? यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय कम है तो इसका अर्थ है कि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने की आवश्यकता है।

2. भविष्य का विकास सम्बन्धी प्रवृत्तियों का ज्ञान – राष्ट्रीय आय से किसी देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का ही नहीं बल्कि उसके भावी विकास का भी पता लग जाता है। यदि राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है तब भविष्य में आर्थिक विकास अच्छा होगा तथा लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा। यदि देश में राष्ट्रीय आय कम है तथा उसकी विकास दर भी कम है तो इसका स्पष्ट अर्थ है। कि देश का भविष्य उज्ज्वल नहीं है।

3. देश के आर्थिक कल्याण का ज्ञान – किसी देश की राष्ट्रीय आय तथा उसके आर्थिक कल्याण में घनिष्ठ सम्बन्ध है, “राष्ट्रीय आय को आर्थिक कल्याण का मापक कहा जाता है। अन्य बातें समान रहने पर किसी देश की राष्ट्रीय आय जितनी अधिक होती है उसका आर्थिक कल्याण भी उतना ही अधिक होता है तथा राष्ट्रीय आय के कम हो जाने पर आर्थिक कल्याण घट जाता है।

4. राष्ट्रीय आय से देश के लोगों के रहन – सहन के स्तर का ज्ञान-राष्ट्रीय आय को देखकर यह पता लग जाता है कि देश के लोगों का रहन-सहन का स्तर किस प्रकार का है। देश में प्रति व्यक्ति आय जितनी अधिक होती है लोगों का ज़ीवन-स्तर भी उतना ही ऊँचा होता है। प्रति व्यक्ति आय का कम होना निम्न जीवन-स्तर का सूचक होता है।

5. भिन्न देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना – राष्ट्रीय आय के द्वारा दो विभिन्न देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना की जा सकती है तथा यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि देश के आर्थिक विकास के लिए अभी कितनी सम्भावनाएँ शेष हैं।

6. आर्थिक नियोजन में महत्त्व – राष्ट्रीय आय को देखकर ही देश के भावी विकास सम्बन्धी योजनाएँ तैयार की जाती हैं। देश के आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय आय का ज्ञान आवश्यक है।

7. राष्ट्रीय आय का पूँजी-निर्माण में महत्त्व – पूँजी-निर्माण किसी देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। पूँजी-निर्माण बचत पर निर्भर होता है, बचत प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय से प्रभावित होती है; अतः राष्ट्रीय आय पूँजी-निर्माण को प्रभावित करती है।

प्रश्न 5
राष्ट्रीय आय के आर्थिक विकास में योगदान की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय एवं आर्थिक विकास
आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। अत: किसी देश के द्वारा अपनी वास्तविक राष्ट्रीय आय बढ़ाने हेतु सभी उत्पादन साधनों का कुशलतम प्रयोग करना ही आर्थिक विकास है।

आर्थिक विकास और राष्ट्रीय आय का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। किसी देश का आर्थिक विकास करने का अर्थ उस देश की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ देश के सर्वांगीण विकास एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना भी है, जिससे उसके प्रत्येक निवासी का जीवन-स्तर ऊँचा उठ सके तथा मानव के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके। इसी प्रकार यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है तो इसका भी यही अर्थ है कि देश के आर्थिक विकास का प्रयत्न किया जा रहा है। राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने से निर्धनता दूर होगी, देशवासियों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हो सकेंगी और उनका जीवन सुखमय होगा।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय व आर्थिक विकास एक-दूसरे के सहयोगी हैं।’ किसी देश में राष्ट्रीय आय में उत्तरोत्तर वृद्धि उसकी आर्थिक प्रगति की सूचक होती है। राष्ट्रीय आय के आधार पर ही विकसित, विकासशील व पिछड़े देशों के मध्य तुलना की जाती है। प्रायः उच्च राष्ट्रीय आय व उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को विकसित देश कहा जाता है। इसके विपरीत कम आय वाले देशों को विकासशील देश कहा जाता है। इस प्रकारे स्पष्ट है कि आर्थिक विकास व राष्ट्रीय आय में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

प्रश्न 6
भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण बताइए। [2016]
उत्तर:
भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. कृषि की प्रधानता एवं कृषि का पिछड़ा होना –  भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की लगभग जनसंख्या 58.2% जनसंख्या कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित कार्य में संलग्न है, जब कि भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान 22% तक ही है। फिर भी आज भारतीय कृषि पिछड़ी दशा में है, साथ ही कृषक रूढ़िवादी तथा भाग्यवादी हैं। अत: कृषि उत्पादन कम है तथा प्रति व्यक्ति आय आय भी नीची है।

2. औद्योगिक पिछड़ापन यद्यपि पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत पर्याप्त औद्योगिक विकास हुआ है, फिर भी भारत विकसित देशों की तुलना में औद्योगिक दृष्टि से बहुत पीछे है। फलत: प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा है।

3. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि भारत की जनसंख्या लगभग 121 करोड़ है और उसमें तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। जनाधिक्य के कारण भी प्रति व्यक्ति आय कम रहती है।

4. कम उत्पादकता भारत में प्रति श्रमिक उत्पादकता अन्य देशों की अपेक्षा कम है। इससे प्रति व्यक्ति आय भी कम रहती है।

5. साहस का अभाव भारत में विकसित देशों की अपेक्षा जोखिम उठाकर नवीन उद्योगों की स्थापना करने वाले साहसियों का अभाव है। अत: कुल उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति उत्पादन का स्तर नीचा रहता है। अतः प्रति व्यक्ति आय भी कम रहती है।

6. पूँजी का अभाव भारत में बचतें कम होने के कारण पूँजी-निर्माण कम होता है। अत: निवेश भी कम होता है। अतः प्रति व्यक्ति आय कम रहती है।

7. प्राकृतिक साधनों का समुचित प्रयोग न होना नियोजित अर्थव्यवस्था के होते हुए भी देश के प्राकृतिक साधनों का समुचित एवं पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है। अतः कुल उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति उत्पादन कम रहता है। अतः प्रति व्यक्ति आय भी कम रहती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में अन्तर बताइए। [2016]
उत्तर:
राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income 1

प्रश्न 2
सकल घरेलू उत्पाद और सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2006, 11, 15]
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद और सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income 2

प्रश्न 3
राष्ट्रीय आय समिति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय समिति
भारत सरकार ने सन् 1949 में एक राष्ट्रीय आय समिति की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष प्रो० महालनोबिस थे। राष्ट्रीय आय समिति का कार्य राष्ट्रीय आय सम्बन्धी आँकड़ों को एकत्रित करना और राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय के सन्दर्भ में प्रतिवेदन तैयार करना था। राष्ट्रीय आय अनुमान विधियों में सुधार हेतु सुझाव देना भी समिति का कार्य था। इस समिति ने राष्ट्रीय अनुमान की एक श्रेष्ठ विधि अपनायी। समिति ने आवश्यकतानुसार उत्पादन गणना-रीति व आय गणना-रीति दोनों का प्रयोग किया तथा राष्ट्रीय आय के अनुमान प्रस्तुत किये। राष्ट्रीय आय समिति ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट 1954 में दी थी। इस समिति के अनुसार, सन् 1948-49 में देश की कुल राष्ट्रीय आय ₹8,650 करोड़ तथा 1950 में ₹ 9,530 करोड़ थी। इस प्रकार सन् 1950-51 में भारतीय प्रति व्यक्ति आय र 266 थी।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय आय की गणना करने की किन्हीं दो विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) उत्पादन गणना-विधि तथा
(ii) आय गणना-विधि।

प्रश्न 2
प्रति व्यक्ति औसत आय की गणना कैसे की जाती है ? [2007, 38, 10, 12, 14, 15]
या
प्रति व्यक्ति आय जानने का सूत्र क्या है? [2015, 14, 15]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 National Income 3

प्रश्न 3
फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा में किस पक्ष पर विशेष महत्त्व दिया है ?
उत्तर:
प्रो० फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा में उत्पादन के स्थान पर उपभोग पक्ष को अधिक महत्त्व दिया है।

प्रश्न 4
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को परिभाषित कीजिए। [2017, 08]
उत्तर:
सकल राष्ट्रीय उत्पादन (G.N.P) में से मूल ह्रास व्यय, चल पूँजी का प्रतिस्थापन व्यय, अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापन के लिए किया गया व्यय, कर, बीमे की प्रीमियम आदि को घटाने के पश्चात् जो शेष रहता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 5
उस अर्थशास्त्री का नाम बताइए जिसने राष्ट्रीय आय की परिभाषा में उपभोग पक्ष पर बल दिया है।
उत्तर:
प्रो० फिशर।

प्रश्न 6
राष्ट्रीय आय किसी समुदाय की वास्तविक आय जिसमें विदेशों से प्राप्त होने वाली आय भी सम्मिलित रहती है, का वह भाग है, जो द्रव्य द्वारा मापा जा सकता है। यह परिभाषा किस अर्थशास्त्री की है ?
उत्तर:
प्रो० पागू की।

प्रश्न 7
राष्ट्रीय आय को परिभाषित कीजिए। [2007, 14, 15, 16]
उत्तर:
प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी देश का श्रम व पूँजी उस राष्ट्र के प्राकृतिक साधनों पर प्रयुक्त होकर प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं की निश्चित मात्रा उत्पन्न करती है। इसमें सब प्रकार की सेवाओं विदेशों द्वारा लगाई गयी पूँजी तथा राष्ट्र द्वारा विदेशों में लगाई गयी पूँजी से प्राप्त आय सम्मिलित है।”

प्रश्न 8
प्रो० फिशर द्वारा दी गयी राष्ट्रीय आय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
प्रो० फिशर के अनुसार, “वास्तविक राष्ट्रीय आय कुल उत्पादन का वह भाग है जो सम्बन्धित वर्ष में उपभोग किया जाता है।”

प्रश्न 9
कुल राष्ट्रीय उत्पाद किसे कहते हैं ? [2006, 09]
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं के अन्तिम उत्पादन के मौद्रिक मूल्य (बाजार कीमतों के आधार पर) को कुल राष्ट्रीय आय कहते हैं तथा सेवाओं के अन्तिम भौतिक उत्पादन के योग को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं।

प्रश्न 10
प्रति व्यक्ति आय क्या है? [2011, 14]
उत्तर:
किसी देश की राष्ट्रीय आय को उस देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर हमें प्रति व्यक्ति आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 11
यदि देश में प्रति व्यक्ति आय ₹60,000 हो और देश की जनसंख्या 120 करोड़ हो, तो राष्ट्रीय आय की गणना कीजिए। [2012]
उत्तर:
राष्ट्रीय आय = प्रति व्यक्ति आय x देश की जनसंख्या
= 60,000 x 12000000000 = 720000000000000
= ₹72 लाख करोड़

प्रश्न 12
भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के मुख्य कारण बताइए। [2008, 10, 16]
उत्तर:
(1) राष्ट्रीय आय में वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि की अपेक्षा कम है।
(2) पूँजी निर्माण की गति धीमी है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय आय की गणना की रीतियाँ हैं [2012]
(क) उत्पादन गणना-रीति
(ख) आय गणना-रीति
(ग) व्यय गणना-रीति
(घ) ये तीनों
उत्तर:
(घ) ये तीनों।

प्रश्न 2
राष्ट्रीय आय में द्रव्य को सबसे अधिक महत्त्व दिया है
(क) प्रो० मार्शल ने
(ख) प्रो० पीगू ने
(ग) प्रो० फिशर ने
(घ) एडम स्मिथ ने
उत्तर:
(ख) प्रो० पीगू ने।

प्रश्न 3
कुल उपभोग को राष्ट्रीय आय की गणना के लिए आवश्यक समझते हैं
(क) प्रो० मार्शल
(ख) प्रो० फिशर
(ग) प्रो० पीगू
(घ) प्रो० शूप
उत्तर:
(ख) प्रो० फिशर।

प्रश्न 4
“राष्ट्रीय आय के योग को अन्तिम उत्पाद योग कहा जा सकता है।” यह कथन है
(क) प्रो० मार्शल का
(ख) प्रो० पीगू का
(ग) प्रो० फिशर का
(घ) प्रो० शूप का
उत्तर:
(घ) प्रो० शूप का।

प्रश्न 5
राष्ट्रीय आय एक माप है
(क) देश के कुल निर्यात की
(ख) देश के कुल आयात की।
(ग) देश के कुल उत्पाद की
(घ) देश की कुल सरकारी आय की
उत्तर:
(ग) देश के कुल उत्पाद की।

प्रश्न 6
भारत में प्रति व्यक्ति आय का अनुमान सर्वप्रथम किसने लगाया था? [2007, 09, 11]
(क) गोपालकृष्ण गोखले
(ख) दादाभाई नौरोजी
(ग) महात्मा गांधी
(घ) स्वामी विवेकानन्द
उत्तर:
(ख) दादाभाई नौरोजी।

प्रश्न 7
राष्ट्रीय आय बराबर होती है [2011]
(क) सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P) के
(ख) शुद्ध घरेलू उत्पाद (N.D.P) के
(ग) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (N.N.P) के
(घ) सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P) के
उत्तर:
(ग) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (N.N.P) के।

प्रश्न 8
निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय आय मापने की विधि नहीं है? [2012]
(क) सम्पत्ति गणना-विधि
(ख) उत्पादन गणना-विधि
(ग) व्यय गणना-विधि
(घ) आय गणना-विधि
उत्तर:
(क) सम्पत्ति गणना-विधि।

प्रश्न 9
बाजार कीमत पर निबल राष्ट्रीय उत्पाद (NNP)- अप्रत्यक्ष कर+सरकारी सहायता = ?
(क) साधन लागतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाजार कीमतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
(ग) बाजार कीमतों पर निवल घरेलू उत्पाद
(घ) साधन लागतों पर निवल घरेलू उत्पाद
उत्तर:
(क) साधन लागतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय आय को मापने की विधि नहीं है? [2014]
(क) उत्पादन गणना विधि
(ख) आय गणना विधि
(ग) व्यय गणना विधि
(घ) बचत-विनियोग गणना विधि
उत्तर:
(घ) बचत-विनियोग गणना विधि।

प्रश्न 11
निम्नलिखित में से क्या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सम्मिलित नहीं होता? [2014]
(क) एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं को मौद्रिक मूल्य
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय
(घ) मूल्य-ह्रास व्यय
उत्तर:
(ख) अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 12
निम्न में से आर्थिक कल्याण का सर्वोत्तम माप कौन-सा है? [2015]
(क) सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP)
(ख) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
(ग) शुद्ध घरेलू उत्पाद (N.D.P)
(घ) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP)
उत्तर:
(ख) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

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