UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 Revenue (आय) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 Revenue (आय).
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | Revenue (आय) |
Number of Questions Solved | 16 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 Revenue (आय)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
सीमान्त आय एवं औसत आय से क्या अभिप्राय है? चित्र और उदाहरण की सहायता से इनमें सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए। [2009]
या
तालिका और रेखाचित्र के माध्यम से सीमान्त आय, कुल आय और औसत आय के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
या
कुल आय, औसत आय और सीमान्त आय को परिभाषित कीजिए। इनमें परस्पर क्या सम्बन्ध पाया जाता है? [2008]
या
सीमान्त एवं औसत आगम में सम्बन्ध बताइए। [2006]
उत्तर:
आय का अर्थ
सामान्य बोलचाल की भाषा में आय (आगम) का अर्थ व्यक्ति विशेष को समस्त साधनों से होने वाली आय से लगाया जाता है। प्रत्येक फर्म या उत्पादक का उद्देश्य वस्तुओं का न्यूनतम लागत पर उत्पादन करके उनकी अधिकतम बिक्री करने का होता है जिसमें वह अधिकतम लाभ अर्जित कर सके। अर्थशास्त्र में आय या आगम शब्द का आशय प्राप्त होने वाले उस धन से होता है जो किसी उत्पादित वस्तु की बिक्री से प्राप्त होता है। अर्थशास्त्र में आय शब्द का प्रयोग तीन प्रकार से किया जाता है
- कुल आय (Total Revenue),
- औसत आय (Average Revenue) तथा
- सीमान्त आय (Marginal Revenue)।
1. कुल आय – किसी उत्पादक या फर्म के द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा को बेचकर जो धनराशि प्राप्त की जाती है, उसे कुल आय कहते हैं।
कुल आय ज्ञात करने के लिए फर्म द्वारा बेची जाने वाली इकाइयाँ तथा प्रति इकाई की कीमत ज्ञात होनी चाहिए। फर्म द्वारा बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा को कीमत से गुणा करके कुल आय ज्ञात की जा सकती है।
कुल आय = वस्तु की बेची गयी मात्रा या इकाइयों की संख्या x कीमत उदाहरण के लिए–यदि कोई फर्म र 50 प्रति इकाई की दर से 10 कुर्सियाँ बेचती है तो उसकी कुल आय = 50 x 10 = 500 होगी।
2. औसत आय – औसत आय उत्पादने की निश्चित मात्रा की बिक्री की प्रति इकाई आय है, जिसे बिक्री से प्राप्त कुल आय को वस्तु की बेची गयी कुल मात्रा (इकाइयों) से भाग देकर ज्ञात किया जाता है।
उदाहरण के लिए-10 कुर्सियों की बिक्री से ₹500 की कुल आय प्राप्त होती है, तब
औसत आय = [latex]\frac { 500 }{ 10 }[/latex] = ₹50 प्रति कुर्सी
3. सीमान्त आय – सीमान्त आय अन्तिम इकाई की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय होती है। किसी वस्तु की एक अधिक अथवा एक कम इकाई बेचने से कुल आय में जो वृद्धि अथवा कमी होती है, वह उस वस्तु की सीमान्त आय कहलाती है। उदाहरण के लिए – 10 कुर्सियों को ₹50 प्रति कुर्सी की दर से बेचने पर कुल आय में ₹500 प्राप्त हुई। यदि उत्पादक एक कुर्सी और बेचना चाहे और वह 11 कुर्सियों को ₹545 में बेच देता है, तब सीमान्त आय ₹545 – 45 हुई। अत:
सीमान्त आय = कीमत x बेची गयी इकाइयों की संख्या – पूर्व की कुल आय।
कुल आय, औसत आय और सीमान्त आय का सम्बन्ध
कुल आय, औसत आय व सीमान्त आय का सम्बन्ध निम्नलिखित तालिका द्वारा दर्शाया गया है –
बिक्री की कुल इकाइयाँ | प्रति इकाई कीमत (₹ में) |
कुल आय (₹ में) |
औसत आय (₹ में) |
सीमान्त आय (₹ में) |
1. | 17 | 17 | 17 | = 17 |
2. | 16 | 32 | 16 | (32-17)=15 |
3. | 15 | 45 | 15 | (45-32)=13 |
4. | 14 | 56 | 14 | (56-45)=11 |
5. | 13 | 65 | 13 | (65-56)= 9 |
6. | 12 | 72 | 12 | (72-65)= 7 |
7. | 11 | 77 | 11 | (77-72)= 5 |
8. | 10 | 80 | 10 | (80-77)= 3 |
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ बेची जाती हैं। वैसे-वैसे अतिरिक्त इकाइयों की कीमत कम करनी पड़ती है, क्योंकि तभी ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में वस्तुओं की कीमत घट जाने से सीमान्त आय और औसत आय घटती जाती हैं; परन्तु सीमान्त आय औसत आय की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से घटती है। कुल आय में निरन्तर 80वृद्धि होती जाती हैं, परन्तु वृद्धि की दर गति से उत्तरोत्तर कम होती जाती है।
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
संलग्न चित्र में Ox-अक्ष पर बिक्री की इकाइयाँ तथा OY- अक्ष पर आये दर्शायी गयी है। चित्र में TR कुल आय वक्र, AR औसत आय वक्र तथा MR सीमान्त आय वक्र हैं। चित्र से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ बेची जाती हैं वैसे-वैसे औसत आय तथा सीमान्त आय घटती जाती हैं। परन्तु औसत आय की अपेक्षा सीमान्त
MR आय अधिक तेजी से घटती है। कुल आय निरन्तर बढ़ रही है, किन्तु वृद्धि की दर उत्तरोत्तर कम होती जा रही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
पूर्ण और अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में सीमान्त आय और औसत आय की आकृति को चित्रों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
या
सीमान्त आय वक्र, औसत आय वक्र को इसके निम्नतम बिन्दु पर नीचे की ओर से ही क्यों काटता है ? चित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार एवं अपूर्ण प्रतियोगी बाजार का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-जिस । बाजार में किसी वस्तु-विशेष के अनेक क्रेता-विक्रेता, उस । वस्तु का क्रय-विक्रय स्वतन्त्रतापूर्वक करते हैं तथा कोई एक क्रेता या विक्रेता वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता, तो ऐसे बाजार को पूर्ण प्रतियोगी बाजार कहते हैं। अपूर्ण । प्रतियोगिता पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार के बीच की है स्थिति है अर्थात् अपूर्ण प्रतियोगिता वाले बाजार में कुछ तत्त्व । पूर्ण प्रतियोगिता वाले बाजार के तथा कुछ तत्त्व एकाधिकार वाले बाजार के निहित होते हैं। वास्तविक जीवन में ऐसी ही मिश्रित अवस्था पायी जाती है जिसमें किसी वस्तु का मूल्य समान नहीं होता।
किसी फर्म के औसत आय वक्र AR और सीमान्त आय वक्र MR का आकार कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर होता है कि उस फर्म को पूर्ण प्रतियोगिता अथवा अपूर्ण प्रतियागिता में से किस प्रकार के बाजार की दशाओं में अपना माल बेचना पड़ता है। सामान्यतः प्रतियोगिता जितनी तीव्र होगी तथा वस्तु के जितने निकट स्थानापन्न होंगे, उतना ही अधिक लोचदार उस फर्म का औसत आय वक्र होगा।
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म ‘कीमत ग्रहण करने वाली’ (Price taker) होती है, कीमत-निर्धारण करने वाली (Price maker) नहीं। इस दशा में फर्म को प्रचलित कीमत को स्वीकार करना पड़ता है, क्योंकि वह इस कीमत पर इच्छानुसार माल बेच सकती है। यदि फर्म अपनी कीमत को बढ़ाती है तो वह समस्त ग्राहकों को खो देगी। यदि कीमत कम करती है तो ग्राहकों की भी भरमार हो जाएगी। अत: पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में प्रचलित कीमत ही स्वीकार करनी पड़ती है। यहाँ औसत आये सर्वदा कीमत के बराबर होगी। क्योंकि औसत आय निश्चित है, इसीलिए सीमान्त आय भी निश्चित होगी और वह औसत आय के बराबर होगी। इस प्रकार AR = MR रहती है तथा औसत आय वक्र एक सीधी पड़ी रेखा (Horizontal Straight Line) : होती है। इसका प्रमुख कारण फर्म द्वारा प्रचलित कीमत को स्वीकार करना होता है।
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म के औसत व सीमान्त आय वक्रे दोनों ही ऊपर से नीचे की ओर गिरते हैं। स्पष्ट है कि फर्म के उत्पादन के बढ़ने पर औसत आय (AR) और सीमान्त आय (MR) दोनों ही गिरती हैं, किन्तु सीमान्त आय, औसत आय की अपेक्षा तेजी से गिरती है। इसका मुख्य कारण यह है कि अपूर्ण प्रतियोगिता की है – स्थिति में विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अपेक्षाकृत कम होती है जिसके कारण विक्रेता कीमत को प्रभावित करने की स्थिति में होता है अर्थात् वे कीमत में कमी करके वस्तु की बिक्री की मात्रा को अधिकतम करके अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। इस कारण सीमान्त आय वक्र औसत आय वक्र को इसके न्यूनतम बिन्दु पर नीचे की ओर से ही काटता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
औसत आय से क्या अभिप्राय है?
या
औसत आय (आगम) का सूत्र लिखिए। [2011, 15]
उत्तर:
औसत आय उत्पादन की निश्चित मात्रा की बिक्री की प्रति इकाई आय है, जिसे बिक्री से प्राप्त कुल आय को वस्तु की बेची गई कुल मात्रा (इकाइयों) से भाग देकर ज्ञात किया जाता है।
प्रश्न 2
सीमान्त आय किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सीमान्त आय अन्तिम इकाई की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय होती है। किसी वस्तु की अधिक अथवा एक़ कम इकाई बेचने से कुल आय में जो वृद्धि अथवा कमी होती है, वह उस वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त आय कहलाती हैं।
सीमान्त आय = कीमत x बेची गयी इकाइयों की संख्या – पूर्व की कुल आय।
प्रश्न 3
सीमान्त एवं औसत आगम में सम्बन्ध बताइए। [2006]
या
कुल आय, सीमान्त आय और औसत आय में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
जैसे-जैसे कोई फर्म अतिरिक्त इकाइयों का उत्पादन करती है, कुल आगम में वृद्धि होती जाती है। धीरे-धीरे कुल आगम में वृद्धि की दर में कमी आने लगती है और एक सीमा के बाद इसमें वृद्धि होनी समाप्त हो जाती है। इस बिन्दु पर उत्पादक उत्पादन कार्य समाप्त कर देगा। औसत आय एवं सीमान्त आय में आरम्भ से ही धीरे-धीरे कमी आने लगती है किन्तु सीमान्त आय के घटने की गति औसत आय की तुलना में तीव्र होती है।
प्रश्न 4
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लिखिए सिदद कीजिए कि जब औसत आगम =
, तो औसत आगम = कीमत।
उत्तर:
कुल आगम = वस्तु की बेची जाने वाली इकाइयाँ x कीमत
अतः औसत आगम = कीमत
उदाहरण के लिए-10 कुर्सियों की बिक्री से ₹500 की कुल आगम प्राप्त होती है, तब
औसत आगम = [latex]\frac { 500 }{ 10 }[/latex] = ₹50 प्रति
औसत आगम = कीमत
औसत आगम या वस्तु की कीमत एक ही बात है।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
कुल आय किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी उत्पादक या फर्म के द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा को बेचकर जो धनराशि प्राप्त की जाती है उसे कुल आय कहते हैं। कुल आय = वस्तु की बेची गयी मात्रा या इकाइयों की संख्या x कीमत।
प्रश्न 2
यदि किसी वस्तु की 10 इकाइयों से प्राप्त कुल आय ₹ 180 है और 11 इकाइयों से प्राप्त कुल आय ₹ 187 है, तो सीमान्त आय क्या होगी ?
उत्तर:
सीमान्त आय = 187 – 180 = ₹ 7
प्रश्न 3
यदि किसी वस्तु की 1 इकाई का बाजार मूल्य ₹16 है, तो उसकी 25 इकाइयों की कुल आय कितनी होगी ?
उत्तर:
कुल आय = 25 x 16 = ₹ 400.
प्रश्न 4
औसत उत्पादकता क्या है? [2007]
उत्तर:
कुल उत्पादकता को साधन की संख्या से भाग देकर औसत आय प्राप्त कर ली जाती है। Teases
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
कुल आय बराबर है
(क) वस्तु की बेची गयी इकाइयों की संख्या x कीमत
(ख) वस्तु की बेची गयी इकाइयों की संख्या + कीमत
(ग) वस्तु की बेची गयी इकाइयों की संख्या – कीमत
(घ) वस्तु की बेची गयी इकाइयों की संख्या + कीमत
उत्तर:
(क) वस्तु की बेची गयी इकाइयों की संख्या x कीमत।
प्रश्न 2
औसत आय बराबर है
उत्तर:
प्रश्न 3
सीमान्त आय बराबर है
(क) कुल आय x पिछली इकाइयों की आय
(ख) सीमान्त आय + पिछली इकाइयों की आय
(ग) कुल आय – पिछली इकाइयों की आय
(घ) उपर्युक्त (ख) एवं (ग)
उत्तर:
(ग) कुल आय – पिछली इकाइयों की आय।
प्रश्न 4
पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में फर्म होती है
(क) कीमत ग्रहण करने वाली एवं कीमत-निर्धारित करने वाली
(ख) कीमत ग्रहण करने वाली, कीमत निर्धारित करने वाली नहीं
(ग) कीमत ग्रहण करने वाली नहीं, परन्तु कीमत निर्धारित करने वाली
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) कीमत ग्रहण करने वाली, कीमत निर्धारित करने वाली नहीं।
प्रश्न 5
आगम से तात्पर्य है।
(क) वस्तु की बिक्री से होने वाली आय
(ख) साधनों की बिक्री से होने वाली आय
(ग) सीमान्त आय
(घ) औसत आगम
उत्तर:
(क) वस्तु की बिक्री से होने वाली आय।।
प्रश्न 6
पूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय रेखा और औसत आय रेखा का स्वरूप होता है
(क) नीचे गिरती हुई
(ख) ऊपर उठती हुई
(ग) बराबर व क्षैतिज
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बराबर व क्षैतिज।
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