UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 27 Storing of Rainwater and Rearing of Water Table

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 27
Chapter Name Storing of Rainwater and Rearing of Water Table (वर्षाजल संचयन एवं भू-गर्भ जल संवर्द्धन)
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 27 Storing of Rainwater and Rearing of Water Table (वर्षाजल संचयन एवं भू-गर्भ जल संवर्द्धन)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर

भारत में जल संसाधन और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी कारक

धरातलीय जल संसाधन
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब। देश में कुल नदियों तथा उन सहायक नदियों, जिनकी लम्बाई 1.6 किमी से अधिक है, को मिलाकर 10,360 नदियाँ हैं। भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 घन किमी होने का अनुमान किया गया है। फिर भी स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन किमी (32%) जल को ही उपयोग किया जा सकता है। नदी में जल प्रवाह इसके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार अथवा नदी बेसिन और इस जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेद्रित है।

भारत में कुछ नदियाँ, जैसे-गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है। ये नदियाँ यद्यपि देश के कुल क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई भाग पर पाई जाती हैं जिनमें कुछ धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल पाया, जाता है। दक्षिणी भारतीय नदियों, जैसे-गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग काम में लाया जाता है, लेकिन ऐसा ब्रह्मपुत्र और गंगा बेसिनों में अभी भी सम्भव नहीं हो सका है।

भौम जल संसाधन
देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन किमी है। कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन का लगभग 46 प्रतिशत गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में पाया जाता है। उत्तर-पश्चिमी प्रदेश और दक्षिणी भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भौम जल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है।

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है। परन्तु कुछ राज्य; जैसे-छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल अतिद अपने भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने भौम जल संसाधनों का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।

यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है तो जल की माँग की आपूर्ति करने की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति विकास के लिए हानिकारक होगी और सामाजिक उथल-पुथल एवं विघटन का कारण हो. सकती है।

लैगून और पश्च जल
भारत की समुद्र तट रेखा विशाल है और कुछ राज्यों में समुद्र तट बहुत दतुंरित (indented) है। इसी कारण बहुत-सी लैगून और झीलें बन गई हैं। केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं। यद्यपि सामान्यतः इन जलाशयों में खारा जल है, इसका उपयोग मछली पालन और चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।

प्रश्न 2
नगरीय क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन की प्रक्रिया एवं प्रकार का विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2016]
या
भारत में वर्षा जल संचयन का विवरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत
कीजिए (अ) जल संचयन की प्रक्रिया, (ब) जल संचयन के प्रकार, (स) जल संचयन के लाभ।
उत्तर

वर्षा-जल संचयन की प्रक्रिया

नगरीय क्षेत्रों में वर्षा-जल संचयन की प्रक्रिया एवं प्रकार सामान्य उपयोग के लिए घरों में वर्षाजल संचयन के प्रति चेतना नहीं है, वर्षाजल व्यर्थ ही चला जाता है। प्रतिदिन के उपयोग के लिए बहुमंजिला इमारतों में पानी की टंकी का उपयोग किया जाता है। एक पानी की टंकी सामान्यतया एक कंटेनर होती है। यह प्लास्टिक, सीमेण्ट, पत्थर, लोहे, स्टेनलेस स्टील आदि की बनी होती है। बहुमंजिली इमारतों में इलेक्ट्रिक मोटर के माध्यम से इसमें जल संचय किया जाता है। पानी की टंकी से पाइप लाइन जोड़कर घरों में पानी पहुँचाया जाता है।
वर्षाजल के संचयन में पानी की टंकी का उपयोग वर्षा होने पर किया जा सकता है। टंकी के अतिरिक्त भूमिगत टैंक या टंकी का प्रयोग वर्षाजल संग्रह में अधिक लाभकारी रहता है। वर्षाजल संचयन की कुछ प्रमुख प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –

टाँका वर्षा-जल संचयन प्रक्रिया राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में लगभग हर घर में पीने के पानी का संग्रह करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा टाँका’ हुआ करते थे। इसका आकार लगभग एक बड़े कमरे जितना होता था। सर्वे करने पर फलोदी के एक घर में 6.1 मीटर गहरा, 4.27 मीटर लम्बा और 2.44 मीटर चौड़ा टाँका देखने को मिला। टॉका यहाँ सुविकसित छत वर्षाजल संग्रहण तन्त्र का अभिन्न हिस्सा माना जाता है जिसे घर के मुख्य क्षेत्र या आँगन में बनाया जाता था। वे घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े हुए होते थे। छत से वर्षा का जल इन नलों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता था जहाँ इसे एकत्रित किया जाता था। वर्षा का पहला जल छत और नलों को साफ करने में प्रयोग होता था और उसका संग्रह नहीं किया जाता था। इसके बाद होने वाली वर्षा के जल का संग्रह किया जाता था।

टाँका में वर्षाजल अगली वर्षा ऋतु तक के लिए संग्रह किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला जल स्रोत बनाता है। वर्षाजल अथवा पालर पानी’ जैसा कि इसे इन क्षेत्रों में पुकारा जाता है, प्राकृतिक जल का सर्वाधिक शुद्ध रूप समझा जाता है। कुछ घरों में तो टॉकों के साथ भूमिगते कमरे भी बनाए जाते हैं क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठण्डा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।

कूल प्रणाली यह प्रणाली मुख्यत: जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश में प्रचलित है। इसे नहरी तन्त्र के समान विकसित किया जाता है। पहाड़ी धाराएँ प्रायः 15 किमी तक लम्बी होती हैं। हिमनद का पिघला जल एवं अन्य जलधाराओं का जल बहकर तालाबों में संचित होता है। यह हिमपात के समय तीव्र गति से बहते हैं तथा ठण्डे समय में इसमें पानी की कम मात्री आती है। इसके जल के उपयोग हेतु बँटवारा निश्चित कर दिया जाता है।

झरना प्रणाली पूर्वी हिमालय में दार्जिलिंग नगर में झोरों (झरनों) से सिंचाई होती है। इनसे बॉस के पाइपों द्वारा पानी को सीढ़ीदार खेतों तक पहुँचाया जाता है। झोरा विधि को लेप्या, भोटिया एवं गुरूंग लोगों ने जीवित रखा है। सिक्किम में पेयजल के लिए झरनों एवं खोलों (तालाबों) का जल उपयोग में लाया जाता है। इन तालाबों में बाँस के पाइपों से जल पहुँचाया जाता है। पेयजल हेतु घरों के अहातों में जल कुण्डियाँ बनाते हैं जिन्हें खूप कहा जाता है। अरुणाचल प्रदेश में बाँस की नालियों के माध्यम से सिंचाई की जाती है। यहाँ अपर सुबनसिरी जिले में केले नदी पर अपतानी आदिवासियों द्वारा परम्परागत प्रणाली से बाँध बनाए गए हैं। यहाँ झरनों के पानी का संचय किया जाता है जिनमें मछली पालन भी किया जाता है।

उपर्युक्त दी गई प्रणालियों के अलावा नगरों में वर्षा के जल को मकानों की छतों पर एकत्रित कर लिया जाता है।
नगरों में छतों पर रखी पानी की टंकियों के द्वारा भी वर्षा जल संचयन किया जाता है।
नगरों में छतों के अलावा बड़े टेंकों को भी वर्षा के पानी संचयन के लिए बना लिया जाता है।
जल संचयन के लाभ-लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जल के गुणों का ह्रास क्या है? जल प्रदूषण का निवारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर

जल के गुणों का ह्रास

जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है। जल बाह्य पदार्थों; जैसे— सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है। इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं। जब विषैले पदार्थ झीलों, सरिताओं, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वे जल में घुल जाते हैं अथवा जल में निलंबित हो जाते हैं। इससे जल प्रदूषण बढ़ता है और जल के गुणों में कमी आने से जलीय तंत्र (aquatic system) प्रभावित होते हैं। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं। और भौम जल को प्रदूषित करते हैं। देश में गंगा और यमुना दो अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं।

जल प्रदूषण का निवारण

उपलब्ध जल संसाधनों का तेज़ी से निम्नीकरण हो रहा है। देश की मुख्य नदियों के प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों के ऊपरी भागों तथा कम बसे क्षेत्रों में अच्छी जल गुणवत्ता पाई जाती है। मैदानों में नदी जल का उपयोग गहन रूप से कृषि, पीने, घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। अपवाहिकाओं के साथ कृषिगत (उर्वरक और कीटनाशक), घरेलू (ठोस और अपशिष्ट पदार्थ) और औद्योगिक बहिःस्राव नदी में मिल जाते हैं। नदियों में प्रदूषकों को संकेन्द्रण गर्मी के मौसम में बहुत अधिक होता है। क्योंकि उस समय जल का प्रवाह कम होता है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी०पी०सी०बी०), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एस०पी०सी०) के साथ मिलकर 507 स्टेशनों की राष्ट्रीय जल संसाधन की गुणवत्ता को मॉनीटरन किया जा रहा है। इन स्टेशनों से प्राप्त किया गया आँकड़ा दर्शाता है कि जैव और जीवाणविक संदूषण नदियों में प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। दिल्ली और इटावा के बीच यमुना नदी देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। दूसरी प्रदूषित नदियाँ अहमदाबाद में साबरमती, लखनऊ में गोमती, मदुरई में कली, अड्यार, कूअम (संपूर्ण विस्तार), वैगई, हैदराबाद में मूसी तथा कानपुर और वाराणसी में गंगा है। भौम जल प्रदूषण देश के विभिन्न भागों में भारी/विषैली धातुओं, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स के संकेंद्रण के कारण होता है।

वैधानिक व्यवस्थाएँ; जैसे-जल अधिनियम 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986, प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं हुए हैं। परिणाम यह है कि 1997 में प्रदूषण फैलाने वाले 251 उद्योग, नदियों और झीलों के किनारे स्थापित किए गए थे। जल उपकर अधिनियम 1977, जिसका उद्देश्य प्रदूषण कम करना है, उसके भी सीमित प्रभाव हुए। जल के महत्त्व और जल प्रदूषण के अधिप्रभावों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता है। जन जागरूकता और उनकी भागीदारी से, कृषिगत कार्यों तथा घरेलू और औद्योगिक विसर्जन से प्राप्त प्रदूषकों में बहुत प्रभावशाली ढंग से कमी लाई जा सकती है।

प्रश्न 2
जल-संभर प्रबंधन क्या है? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
उत्तर

जल संभर प्रबंधन

जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से, धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों; जैसे– अंत:स्रवण तालाब, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं। तथापि, विस्तृत अर्थ में जल संभर प्रबंधन के अंतर्गत सभी संसाधनों–प्राकृतिक (जैसे-भूमि, जल, पौधे और प्राणियों) और जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुनरुत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को सम्मिलित किया जाता है। जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच संतुलन लाना है। जल-संभर व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से संप्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।

केन्द्रीय और राज्य सरकारों ने देश में बहुत-से जल-संभर विकास और प्रबंधन कार्यक्रम चलाए हैं। इनमें से कुछ गैर-सरकारी संगठनों द्वारा भी चलाए गए हैं। ‘हरियाली’ केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को जल पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण करना है। परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।

नीरू-मीरू (जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में) और अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) के अंतर्गत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ; जैसे–अत:स्रवण तालाब ताल (जोहड़) की खुदाई की गई है और रोक बाँध बनाए गए हैं। तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक कर दिया गया है। किसी भी इमारत का निर्माण बिना जल संग्रहण सरंचना बनाए नहीं किया जा सकता है।

कुछ क्षेत्रों में जल-संभर विकास परियोजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था कायाकल्प करने में सफल हुई हैं। फिर भी सफलता कुछ की ही कहानियाँ हैं। अधिकांश घटनाओं में, कार्यक्रम अपनी उदीयमान अवस्था पर ही हैं। देश में लोगों के बीच जल-संभर विकास और प्रबंधन के लाभों को बताकर जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है और इस एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन उपागम द्वारा जल उपलब्धता सतत पोषणीय आधार पर निश्चित रूप से की जा सकती है।

प्रश्न 3
वर्षा-जल प्रबन्धन के लाभों का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर

वर्षा-जल प्रबन्धन के लाभ

  1. जहाँ जल की अपर्याप्त आपूर्ति होती है या सतही संसाधन का-या तो अभाव होता है या पर्याप्त मात्रा हमें उपलब्ध नहीं है, वहाँ यह जल समस्या का आदर्श समाधान है।
  2. वर्षा-जल जीवाणुरहित, खनिज पदार्थ मुक्त तथा हल्का होता है।
  3. यह बाढ़ जैसी आपदा को कम करता है।
  4. भूमि जल की गुणवत्ता को विशेष तौर पर जिसमें फ्लोराइड तथा नाइट्रेट हो, ध्रुवीकरण के द्वारा सुधारता है।
  5. सीवेज तथा गन्दे पानी में उत्पन्न जीवाणु अन्य अशुद्धियों को समाप्त/कम करता है जिससे जल पुनः उपयोगी बनती है।
  6. वर्षा-जल का संचयन आवश्यकता पड़ने वाले स्थान पर किया जा सकता है, जहाँ आवश्यकतानुसार इसका प्रयोग कर सकते हैं।
  7. शहरी क्षेत्रों में जहाँ पर शहरी क्रियाकलापों में वृद्धि के कारण भूमि जल के प्राकृतिक पुनर्भरण में , तेजी से कमी आई है तथा कृत्रिम पुनर्भरण उपायों को क्रियान्वित करने के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध नहीं है, भूमि जल भण्डारण का यह एक सही विकल्प है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब।

प्रश्न 2
जल संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर
जल संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती माँग के कारण है।

प्रश्न 3
वर्षा जल संग्रहण क्या है? [2016]
उत्तर
वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है।

प्रश्न 4
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की तीन मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की तीन मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

  1. पेयजल सभी मानव जाति और प्राणियों को उपलब्ध कराना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
  2. भौमजल के शोषण को सीमित और नियमित करने के लिए उपाय करने चाहिए।
  3. जल के सभी विविध प्रयोगों में कार्यक्षमता सुधारनी चाहिए।

प्रश्न 5
लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपभोग के क्या सम्भव प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर
संदूषित जल का उपभोग करने में मनुष्यों में हैजा, पीलिया, टाइफाइड, डायरिक आदि रोग ही सकते हैं। इसके अतिरिक्त अमीबीज पेलिस, ऐस्केरियासिस आदि रोग भी हो सकते हैं।

प्रश्न 6
यह कहा जाता है कि भारत में जल संसाधनों में तेजी से कमी आ रही है। जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर
जनसंख्या बढ़ने से जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। इसके अतिरिक्त उपलब्ध जल संसाधन भी औद्योगिक, कृषि और घरेलू क्रिया-कलापों के कारण प्रदूषित होता जा रहा है। इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित होती जा रही है।

प्रश्न 7
भारत में वर्षा-जल संचयन की किन्ही दो विधियों की विवेचना कीजिए। (2016)
या
ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन की विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
वर्षा-जल संचयन की विधियाँ ‘निम्नलिखित हैं –

  1. भूमि सतह पर जल संचयन इस विधि में वर्षा के जल को झीलों व तालाबों आदि में एकत्रित किया जाता है तथा बाद में इसको सिंचाई आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
  2. वर्षा-जल का घरों की छतों तथा टंकियों में एकत्रण इस विधि में वर्षा-जल को मकानों की छतों तथा टंकियों आदि में एकत्रित कर लिया जाता है। यह विधि कम खर्चीली व बहुत प्रभावी है।

प्रश्न 8
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?
उत्तर
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवल बोए गए क्षेत्र का 85 प्रतिशत भाग सिंचाई के अन्तर्गत है। इन राज्यों में गेहूँ और चावल मुख्य रूप से सिंचाई की सहायता से उगाए जाते हैं। निवल सिंचित क्षेत्र का 76.1 प्रतिशत पंजाब में, 51.3 प्रतिशत हरियाणा में तथा 58.21 प्रतिशत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुओं और नलकूपों द्वारा सिंचित है। इस प्रकार इन राज्यों में सबसे अधिक भौम जल को प्रयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 9
देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की सम्भावना क्यों है?
उत्तर
वर्तमान में हमारे देश में उद्योगों का विकास बड़ी तीव्रता से हो रहा है। इन उद्योगों को लगाने वे बढ़ती जनसंख्या को मकान बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता पड़ती है, जिसके कारण कृषि भूमि कम होती जा रही है। हम जानते हैं कि उद्योगों एवं घरेलू कार्यों में बहुत अधिक जल व्यय होता है। इसीलिए हम यह मानते हैं कि भविष्य में देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि का हिस्सा कम होने की सम्भावना है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1
निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?
(क) अजैव संसाधन
(ख) अनवीकरणीय संसाधन
(ग) जैव संसाधन
(घ) चक्रीय संसाधन
उत्तर
(घ) चक्रीय संसाधन।

प्रश्न 2
निम्नलिखित नदियों में से, देश में किस नदी में सबसे ज्यादा पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन है?
(क) सिंधु
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गंगा
(घ) गोदावरी
उत्तर
(ग) गंगा।

प्रश्न 3
घन किमी में दी गई निम्नलिखित संख्याओं में से कौन-सी संख्या भारत में कुल वार्षिक वर्षा दर्शाती है?
(क) 2,000
(ख) 3,000
(ग) 4,000
(घ) 5,000
उत्तर
(ग) 4,000.

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प्रश्न 4
निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उपयोग (% में)। इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है?
(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) आन्ध्र प्रदेश
(घ) केरल
उत्तर
(क) तमिलनाडु।

प्रश्न 5
देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?
(क) सिंचाई
(ख) उद्योग
(ग) घरेलू उपयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क) सिंचाई।

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