UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 8
Chapter Name Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास)
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
ग्रामीण अधिवास की मुख्य विशेषताएँ बताइए तथा उसके मुख्य प्रकारों का वर्णन कीजिए।
या
अधिवास को परिभाषित कीजिए। [2015]
या
ग्रामीण अधिवासों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 13, 14]
उत्तर

अधिवास का अर्थ Meaning of Settlement

अधिवास से तात्पर्य घरों के समूह से है जहाँ मानव निवास करता है। घर मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। अधिवास में सभी प्रकार के मकान या भवन सम्मिलित होते हैं, जो मनुष्य के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इनमें रिहायशी मकान, कार्यालय, दुकानें, गोदाम, मनोरंजन-गृह आदि सभी सम्मिलित होते हैं।

सांस्कृतिक भू-दृश्यों में मानव अधिवास सबसे प्रमुख है, जो मानव की एक आधारभूत आवश्यकता है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के मानवीय आश्रयों को सम्मिलित किया जाता है। ये अधिवास प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं-ग्रामीण एवं नगरीय। ग्रामीण अधिवास धरातल पर प्राथमिक इकाई है। इन अधिवासों का मुख्य आधार कृषि अर्थात् प्राथमिक व्यवसाय होते हैं। जिन अधिवासों में कृषक लोग निवास करते हैं तथा कृषि एवं पशुपालन द्वारा आजीविका अर्जित करते हैं, उन्हें ग्रामीण अधिवास कहते हैं।” ग्रामीण अधिवासों का आकार छोटा होता है तथा ये प्राकृतिक पर्यावरण की देन होते हैं।

ग्रामीण अधिवास की प्रमुख विशेषताएँ
Main Characteristics of Rural Settlement

ग्रामीण अधिवास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं –
1. भारतीय गाँव बड़े पुराने हैं। ये भारतीय संस्कृति के मूल आधार माने जाते हैं। महात्मा गांधी के शब्दों में, “यदि गाँव की प्राचीन सभ्यता नष्ट हो गयी तो देश भी अन्ततः नष्ट हो जाएगा। इनका मुख्य उद्यम खेती, पशुपालन एवं अनेक प्रकार के शिल्प-प्रधान कुटीर उद्योग हैं।
2. गाँवों के निर्माण में स्थानीय रूप से मिलने वाली सामग्री का ही उपयोग किया जाता है। ये प्राय: मिट्टी, ईंटों, लकड़ी, बाँस, चूना और घास-फस के बने होते हैं। पत्थर के गाँव भी अनेक क्षेत्रों में मिलते हैं।
3. भारतीय गाँव प्रायः चारों ओर के वृक्षों के कुंजों से घिरे होते हैं। समुद्रतटीय क्षेत्रों में घरों के निकट नारियल, सुपारी, केले और फलों के वृक्ष तथा अन्यत्र पीपल, नीम, शीशम आदि के वृक्ष मिलते हैं।

4. सार्वजनिक उपयोग के लिए कुएँ, तालाब, मन्दिर, सराय या पंचायतघर होता है, जहाँ गाँव से सम्बन्धित कार्यों पर निर्णय लिया जाता है।

5. भारतीय गाँवों में जाति – प्रथा एवं श्रम-विभाजन में स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई पड़ता है। वैश्य, ब्राह्मण, नाई, धोबी, कुम्हार, लुहार, जुलाहे एवं शूद्र जाति के लोग सभी अपना कार्य करते हैं तथा उनकी बस्तियाँ अलग-अलग भागों में स्थापित की जाती हैं।

6. गाँव किसी सुनिश्चित योजना के अनुसार नहीं बनाये जाते। इसीलिए इनकी गलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी। और बसावट अत्यन्त अव्यवस्थित होती है। गाँव के बाहर ही कूड़े के ढेर दिखाई पड़ते हैं तथा शौचालयों का अभाव होता है। गाँव के मध्यवर्ती भाग में प्राय: उच्च कुल वाले मनुष्यों के घर बने रहते थे। वैसे सम्पूर्ण गाँव में पारस्परिक सहयोग, भाईचारा एवं दुःख-सुख में आपस में सहायता की विशेषता पायी जाती है। यहाँ कट्टर जातिवाद या सम्प्रदायवाद को पूर्णत: अभाव पाया जाता है।

7. कृषकों के घरों के आँगन में ही या उससे संलग्न भाग में पशुओं के लिए बाड़ा, चारा, औजार आदि रखने का स्थान होता है। दीवारों पर गोबर के कण्डे आदि सूखने को लगा दिये जाते हैं।

8. गाँव में ही प्रायः सभी आवश्यकता की वस्तुएँ महाजनों, छोटे फुटकर व्यापारियों द्वारा उपलब्ध करा दी जाती हैं; अत: गाँव अधिकांशत: स्वावलम्बी होते हैं। केवल नमक, कपड़ा, दियासलाई, कैरोसीन, सीमेण्ट आदि के लिए निकटवर्ती मण्डियों/बाजारों पर निर्भर रहना पड़ता है।

9. गाँव के अधिकांश निवासी निरक्षर, अज्ञानी एवं रूढ़िवादी होते हैं, जो नयी उत्पादन प्रणाली को बिना सन्तुष्ट हुए एकदम ही नहीं अपना लेते। प्रायः सभी परम्परा से एक ही प्रकार के कार्यों में लगे रहते हैं।

10. अब भारतीय गाँवों में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ नयी तकनीक, नये धन्धे एवं व्यावसायिक उत्पादन की मनोवृत्ति बढ़ने लगी है। अब गाँवों में भी 40 से 50 प्रतिशत घर सीमेण्ट, चूना-पत्थर व नयी तकनीक से आकर्षक ढंग से बनाये जाते हैं। यहाँ से घी, दूध, सब्जी, शिल्प की वस्तुएँ नगरों को भेजी जाती हैं एवं गाँवों से रोजगार हेतु नगरों की ओर पलायन में भी तेजी से वृद्धि होती जा रही है।

मानवीय अधिवास का वर्गीकरण
Classification of Human Settlement

मानवीय अधिवासों का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया जाता है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –

1. स्थिति के अनुसार – स्थिति के अनुसार मानवीय बस्तियाँ, मैदानी, पठारी, पर्वतीय, झीलतटीय, समुद्रतटीय, नदीतटीय, वन प्रदेशीय, मरुस्थलीय आदि होती हैं।
2. घरों के बीच की दूरी के अनुसार – घरों के बीच की दूरियों के अनुसार एकाकी, बिखरी हुई या सघन बस्तियाँ होती हैं।
3. समय के अनुसार – समय के विचार से अस्थायी, मौसमी एवं स्थायी बस्तियाँ होती हैं।

4. व्यवसाय के अनुसार – बस्तियों में निवास करने वाले व्यक्तियों के विभिन्न व्यवसायों के आधार पर बस्तियाँ कृषि तथा पशुचारण से सम्बन्धित ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं। निर्माण-उद्योग, परिवहन तथा व्यापार से सम्बन्धित बस्तियों को नगरीय बस्तियों के नाम से पुकारा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन तथा ऑस्ट्रेलिया आदि की ग्रामीण बस्तियों के निवासी कृषि एवं व्यापार आदि कार्य एक-साथ करते हैं, ऐसी ग्रामीण बस्तियों को ग्रागर केन्द्र’ (शहरी-ग्रामीण केन्द्र) (Rural-Urban) का नाम दिया गया है।

5. कार्यों के अनुसार – कार्यों के अनुसार कृषि, गाँव, पशुचारक झोंपड़ियाँ, मछुआरों के गाँव आदि ग्रामीण बस्तियाँ होती हैं, जबकि नगरीय बस्तियाँ निर्माण-औद्योगिक, व्यापारिक-प्रशासनिक आदि कार्य करने वाली होती हैं।

6. आकार के अनुसार – आकार के आधार पर छोटी-से-छोटी बस्ती एक घर की होती है। कृषकों के खेतों से अलग बसे घरों को कृषक-गृह या होमस्टेड (Homestead) या फार्मस्टेड (Farmstead) कहते हैं। आठ-दस परिवारों के घर रखने वाली बस्ती को पुरवा, नंगला, माजरा या पल्ली कहते हैं। पशुचारक या वनवासी लोगों की अस्थायी बस्ती डेरे’ कहलाती है। इनसे बड़ी बस्ती गाँव होती है। गाँव से बड़ी बस्ती कस्बा तथा नगर होते हैं। नगर भी जनसंख्या के आकार के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते हैं।

7. आकृति के अनुसार – रेखीय, वृत्ताकार, अरीय, त्रिभुजाकार, ब्लॉक, तीर, तारा, मधुछत्ता, सीढ़ी, पंखा एवं तटीय प्रतिरूप, आकृति के अनुसार बस्तियों के मुख्य प्रकार होते हैं।

8. अवस्था के अनुसार – ये बस्तियों के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं तथा उनके आकार एवं कार्यों में परिवर्तन होते रहते हैं। ग्रिफिथ टेलर के अनुसार बस्तियों की, विशेष रूप से नगरीय बस्तियों की, 7 अवस्थाएँ होती हैं-

  1. पूर्व-शैशवावस्था
  2. शैशवावस्था
  3. बाल्यावस्था
  4. किशोरावस्था
  5. प्रौढ़ावस्था
  6. उत्तर-प्रौढ़ावस्था एवं
  7. वृद्धावस्था।

अधिवासों के प्रकार
Types of Settlement

मानवीय अधिवास चार प्रकार के होते हैं। इन प्रकारों को किसी बस्ती में मकानों या आश्रयों या झोंपड़ियों आदि की पारस्परिक दूरी के आधार पर निश्चित किया जाता है –
1. प्रकीर्ण अधिवास Dispersed Settlement
प्रकीर्ण अधिवास को एकाकी अधिवास भी कहते हैं। ऐसे अधिवासों का विकास कृषि-क्षेत्रों या प्राथमिक व्यवसाय वाले भागों में हुआ है। ये अधिवास पगडण्डियों या रास्तों द्वारा अलग-अलग बिखरे हुए होने के कारण, एक-दूसरे से तथा खेतों से जुड़े होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रकीर्ण अधिवास अधिक पाये जाते हैं, जिन्हें ‘कृषक-गृह’ (Farmstead) कहते हैं। इसी प्रकार के अधिवास कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड में भी विकसित हुए हैं। इन अधिवासों की स्थापना प्राचीन काल में शिकारी, मछुआरों, पशुपालकों ने अपने कार्य-क्षेत्र के निकट की थी। यूरोप में खेतों का उत्पादन बढ़ाने तथा नगरों के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से ऐसे अधिवासों की स्थापना की गयी है। प्रकीर्ण अधिवास अधिकांशतः कृषि-प्रधान देशों में पाये जाते हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों, शुष्क प्रदेशों तथा दलदली भूमि वाले क्षेत्रों में भी प्रकीर्ण अधिवास ही निर्मित किये जाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे खेत होने के कारण ढालू सतहों पर प्रकीर्ण घर या आवास अधिक बनाये जाते हैं। पशुपालकों के घर भी पशुओं के बाड़ों के निकट ही स्थापित किये जाते हैं।

2. सघन अधिवास Compact Settlement
जिन अधिवासों में बस्ती के मकान या झोंपड़ियाँ एक-दूसरे के साथ-साथ सटी हुई होती हैं, उन्हें सघन या एकत्रित अधिवास कहते हैं। कुछ विद्वान् इन्हें संकेन्द्रित या पुंजित अधिवास के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रकार के अधिवासों के घर एक-दूसरे से सटकर बने होने के कारण एक ही सामाजिक इकाई का अंग प्रतीत होते हैं। इन अधिवासों के मध्य सँकरी एवं तंग गलियाँ होती हैं। संयुक्त बस्तियों की गलियाँ एवं सड़कें शरीर की रक्तवाहिनी धमनियों के समान बस्ती में फैली होती हैं। ये गलियाँ अधिवासों के केन्द्र या चौराहे से सम्बन्धित होती हैं तथा चारों ओर फैली रहती हैं। सामूहिक अधिवास किसी जलाशय या तालाब के आस-पास बनाये जाते हैं।

इन अधिवासों के निर्माण में स्थानीय रूप से उपलब्ध भवन-निर्माण सामग्री; जैसे-ईंट, गारा, फूस, पत्थर तथा लकड़ियों आदि का प्रयोग किया जाता है। भारतीय ग्रामों में सामूहिक अधिवास ही अधिक पाये जाते हैं। सामूहिक अधिवास अनियोजित ढंग से अकुशल कारीगरों एवं श्रमिकों द्वारा बिना किसी योजना के बनाये जाते हैं, परन्तु ये आवास स्थायी तथा स्वावलम्बी होते हैं। इस प्रकार सघन आवासों से निर्मित बस्तियों के 2 से 4 तक पुरवे या नगले या पल्ली भी हो सकते हैं। भारतीय संस्कृति का मूल स्रोत सामूहिक अधिवास ही रहे हैं। मिस्र, चीन, अरब तथा भारत में विकसित प्राचीन सभ्यता के कारण इन देशों में सघन अधिवास ही देखने को मिलते हैं। वर्तमान समय में कृषि-कार्यों के सम्पादन, पेयजल की सुविधा तथा अन्य सामाजिक सुविधाओं की प्राप्ति के कारण सामूहिक अधिवास स्थापित किये जाते हैं। नगला या पुरवा भी सामूहिक अधिवास का एक अनुपम उदाहरण है।

3. संयुक्त अधिवास Composite Settlement
संयुक्त अधिवास से तात्पर्य ऐसे अधिवासों से है जहाँ दो अधिवास एक साथ जुड़ जाते हैं तथा देखने पर एक ही अधिवास के अंग प्रतीत होते हैं। भारत में ऐसे अनेक अधिवासों के उदाहरण हैं; जैसे- मेरठ में मीतली-गोरीपुर, बागपत में महाबतपुर-बावली तथा मुजफ्फरनगर में जीराबाद-छरौली आदि।

4. अपखण्डित अधिवास Fragmented Settlement
ये ऐसे अधिवास होते हैं जिनका अलग-अलग निवासगृह एक ही बस्ती के अन्दर एक-दूसरे के निकट बसे हुए होते हैं। भारत में पश्चिम बंगाल राज्य में इसी प्रकार के अधिवास पाये जाते हैं। इनके निवासगृह एक-दूसरे से अलग होते हुए भी, सब गृह मिलकर एक सामूहिक अधिवास की रचना करते हैं। बंगाल डेल्टा के समस्त गृहों में पारस्परिक सम्बन्ध होता है। उत्तर प्रदेश राज्य की दून घाटी में भी इसी प्रकार के अधिवास देखे जा सकते हैं।

प्रश्न 2
ग्रामीण अधिवासों के प्रमुख प्रतिरूपों का विवरण दीजिए। [2007, 09, 10, 12, 14]
या
ग्रामीण अधिवासों के प्रारूपों का वर्णन कीजिए। [2014]
उत्तर
ग्रामीण अधिवासों के प्रतिरूप Pattern of Rural Settlement
प्रतिरूप से तात्पर्य बस्ती के बसाव की आकृति अथवा बाह्य विस्तार से है। अधिवासों के प्रतिरूप बस्तियों की आकृति के अनुसार होते हैं। इनको मकानों एवं मार्गों की स्थिति के क्रम और व्यवस्था के आधार पर निश्चित किया जाता है। ग्रामीण बस्तियों के मुख्य प्रतिरूप निम्नलिखित हैं –
1. रेखीय प्रतिरूप (Linear Pattern) – किसी सड़क या नदी या नहर के किनारे-किनारे बसे मकानों की बस्तियाँ रेखीय प्रतिरूप को प्रदर्शित करती हैं। इसे रिबन प्रतिरूप या डोरी प्रतिरूप भी कहा जाता है।
2. चौक-पट्टी प्रतिरूप (Checker-board Pattern) – मैदानी भागों में जो गाँव दो मार्गों के मिलन बिन्दु या क्रॉस पर बसने प्रारम्भ होते हैं, उन गाँवों की गलियाँ मार्गों के साथ मेल खाती हुई आयताकार प्रतिरूप में बनने लगती हैं, जो परस्पर लम्बवत् होती हैं। ऐसी ग्रामीण बस्तियाँ चौक-पट्टी प्रतिरूप में विकसित होती हैं।

3. अरीय प्रतिरूप (Radial Pattern) – भारतीय गाँवों का यह एक प्रमुख प्रतिरूप है। इस प्रतिरूप में गाँव में कई ओर से मार्ग आकर मिलते हैं या उस गाँव से बाहर अन्य गाँवों के लिए कई दिशाओं को मार्ग जाते हैं। गाँव में जो चौराहा होता है, वहाँ विकसित त्रिज्याकार मार्गों पर घर बसे हुए होते हैं। चीन, भारत तथा पाकिस्तान में गाँवों की लगभग 35% संख्या इस प्रकार के अरीय प्रतिरूप ग्रामों की होती है। भारत के तमिलनाडु राज्य में यही प्रतिरूप बस्तियों का अधिक दिखाई पड़ता है।

4. त्रिभुजाकार प्रतिरूप (Triangular Pattern) – इस प्रकार के गाँव उन स्थानों पर होते हैं, जहाँ कोई नहर या सड़क, दूसरी नहर या सड़क से जाकर मिले, परन्तु एक-दूसरे को पार न कर सके। ऐसे गाँवों को नहर के या सड़क के पार जाकर बसने के बजाय एक ओर फैलते रहने की सुविधा होती है। नहरों या सड़कों के द्वारा त्रिभुज की दो भुजाएँ बन जाती हैं तथा त्रिभुज के आधार की ओर खुली भूमि में बस्ती फैलती जाती है, जिसे त्रिभुजाकार प्रतिरूप कहा जाता है।

5. वृत्ताकार प्रतिरूप (Circular Pattern) – इस प्रकार के गाँव किसी वृत्ताकार झील के किनारे-किनारे बसे होते हैं। इनमें मकान एक-दूसरे से सटे होते हैं। किसी केन्द्रीय मुख्य आवास के चारों ओर या किसी प्रमुख वृक्ष अथवा तालाब के चारों ओर बसा गाँव भी वृत्ताकार होता है। ऐसी बस्तियों के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –

  1. नाभिक बस्ती, जिसके केन्द्र में मुख्य आवास होता है।
  2. नीहारिकीय बस्ती, जिसके केन्द्र में कोई तालाब या पंचायती चबूतरा या वट वृक्ष आदि होता। है, जहाँ गाँव के लोग आकर किसी मेले, उत्सव, सभा आदि के लिए एकत्र होते हैं।

6. तीर प्रतिरूप (Arrow Pattern) – इस प्रकार के गाँव किसी अन्तरीप के सिरे पर या नुकीले मोड़ पर बसे होते हैं। इनके अग्रभाग में मकानों की संख्या कम और पृष्ठ भाग में बढ़ती जाती है। दक्षिणी भारत के तटीय भागों में ऐसी बस्तियाँ अधिक देखने को मिलती हैं।
7. तारा प्रतिरूप (Star Pattern) – इस प्रकार के गाँव आरम्भ में अरीय अर्थात् त्रिज्या प्रतिरूप होते हैं तथा बाद में बाहर की ओर जाने वाली सड़कों पर मकान बसते चले जाते हैं। त्रिज्या के बाहर की ओर जाने वाले मार्गों पर आगे को फैलते मकान बनने के बाद बस्ती तारा प्रतिरूप में बदल जाती है।

8. अनियमित या अनाकार प्रतिरूप (Irregular or Amorphous Pattern) – ये इस प्रकार की बस्तियाँ हैं जो किन्हीं मार्गों के निर्माण से पूर्व ही बस गयी थीं। यहाँ पर सभी मकान अपनी सुविधानुसार बस गये थे। बाद में गलियों और मार्गों के बनने पर गाँव की आकृति अनियमित रूप से निर्मित हो गयी। दक्षिणी चीन, भारत एवं पाकिस्तान में इसी प्रकार की बस्तियाँ अधिक विकसित मिलती हैं।

9. शू-स्ट्रिग प्रतिरूप (Shoe-String Pattern) – यह बस्ती किसी नदी के प्राकृतिक पुल के बाँध पर या समुद्रतटीय कूट पर बसी हुई होती है। इनमें कूट शिखर पर बनी हुई सड़क के किसी ओर मकान बसे होते हैं। जापान में बाढ़ के मैदानों में ऊँचे उठे हुए भागों में इसी प्रतिरूप की बस्तियाँ विकसित मिलती हैं।

10. पंखा प्रतिरूप (Fan Pattern) – इस प्रतिरूप की बस्तियाँ नदियों के डेल्टाओं में मिलती हैं। महानदी,गोवरी एवं कृष्णा नदियों के डेल्टाओं में इसी प्रकार की बस्तियाँ विकसित हैं। हिमालय के पर्वतपदीय प्रदेशों में भी जहाँ-जहाँ जलोढ़ पंख हैं, वहाँ बसी बस्तियों की आकृतियाँ इसी प्रतिरूप में विकसित हैं।

11. सीढी प्रतिरूप (Terrace Pattern) – इस प्रकार के गाँव पर्वतीय ढालों पर बसे होते हैं। इनमें मकान सटे हुए अथवा दूर-दूर दोनों ही प्रकार से बने हैं जो ढाल के अनुसार विभिन्न ऊँचाइयों पर निर्मित हुए हैं। इनमें मकानों की पंक्तियाँ सीढ़ीनुमा होती हैं, क्योंकि ये मकान कई स्तर के होते हैं। हिमालय, आल्प्स, रॉकी, एण्डीज आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसी प्रकार के मकान बने होते हैं।

12. चौकोर प्रतिरूप (Block Pattern) – इस प्रकार की बस्तियों के प्रतिरूप मरुस्थलों या अर्द्ध-मरुस्थलों में मिलते हैं। इनमें मकान बहुत, ऊँचे-ऊँचे होते हैं। कहीं-कहीं गाँव के बाहर चहारदीवारी भी होती है। इन मकानों की ऊँचाई का प्रमुख कारण यह है कि उन्हें रेत के तूफानों, चोरों या डाकुओं एवं शत्रुओं से सुरक्षित रखा जा सकता है।

13. मधुछत्ता प्रतिरूप (Bee-hive Pattern) – दक्षिणी अफ्रीका के जुलू आदिवासी गुम्बदनुमा झोंपड़ियों के गाँव बनाते हैं। भारत में टोडा आदिवासी जनजातियों के लोग गुम्बदनुमा गाँव बनाते हैं। आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में मछुआरे भी ऐसी ही बस्तियाँ बनाते हैं।

14. अर्द्ध-वृत्ताकार प्रतिरूप (Semi-circular Pattern) – मकड़ी-जाल तथा टेढ़ा-मेढ़ा आदि प्रतिरूप की ग्रामीण बस्तियाँ बहुत-से प्रदेशों में मिलती हैं।
15. अन्य प्रतिरूप (Other Patterns) – नदियों के तटों पर बसी हुई बस्तियाँ प्रायः अर्द्धवृत्ताकार प्रतिरूप में विकसित होती हैं। भारत में गंगा, यमुना, गोमती, घाघरा, कोसी, सोन आदि नदियों के तटों पर बसे गाँव इसी प्रतिरूप में निर्मित हुए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
मानव अधिवास के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2008, 10]
उत्तर
मानव अधिवासों को दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है- ग्रामीण तथा नगरीय। ग्रामीण अधिवास वे हैं जिनकी अधिकांश जनसंख्या कृषि या इससे सम्बन्धित प्राथमिक व्यवसायों में संलग्न रहती है। ग्रामीण अधिवास स्थानीय रूप से उपलब्ध निर्माण सामग्री से बनाये जाते हैं। इन अधिवासों के मकान कच्चे तथा पक्के दो प्रकार के होते हैं। ग्रामीण अधिवासों में प्रायः एक मंजिले मकान होते हैं। ये अधिवास एकाकी, सघन या विकीर्ण (बिखरे हुए) हो सकते हैं।
नगरीय अधिवासों की अधिकांश जनसंख्या कृष्येतर कार्यों (द्वितीयक तथा तृतीयक व्यवसायों) में संलग्न रहती है।
ये अधिवास सघन होते हैं। इनके मकान प्राय: बहुमंजिले होते हैं। इन अधिवासों के अनेक प्रतिरूप विकसित होते हैं।

प्रश्न 2
ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों में अन्तर का प्रमुख आधार क्या है? [2007, 08]
या
ग्रामीण एवं नगरीय अधिवासों में विभेद कीजिए। [2011, 12, 13, 15, 16]
उत्तर
ग्रामीण एवं नगरीय अधिवासों में अन्तर का प्रमुख आधार जनसंख्या की सघनता तथा व्यवसाय है। ग्रामीण अधिवास छोटे आकार (कम जनसंख्या) के होते हैं, जब कि नगरीय अधिवासों में सघन आबादी पायी जाती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अधिवासों की अधिकांश आबादी कृषि तथा इससे सम्बन्धित व्यवसायों (जैसे- पशुपालन आदि प्राथमिक व्यवसाय) में संलग्न रहती है, जब कि नगरीय अधिवासों की आबादी गैर-कृषि कार्यों (जैसे-उद्योग, व्यापार, सेवा-कार्य आदि) में संलग्न रहती है।

प्रश्न 3
ग्रामीण अधिवासों के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2014, 16]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ‘अधिवासों के प्रकार’ शीर्षक देखें।

प्रश्न 4
भारत के ग्रामीण अधिवासों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। [2014, 15]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ग्रामीण अधिवास की प्रमुख विशेषताएँ’ शीर्षक देखें।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements

प्रश्न 5
ग्रामीण बस्तियों के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 11]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत ग्रामीण अधिवासों के प्रतिरूप’ शीर्षक देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
ग्रामीण अधिवास से आप क्या समझते हैं? [2009]
उत्तर
ग्रामीण अधिवास से तात्पर्य उस अधिवास से है, जिनके अधिकांश निवासी अपने जीवनयापन के लिए भूमि के दोहन (कृषि एवं पशुपालन) पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 2
वृत्तीय प्रतिरूप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
किसी पहाड़ी या झील के चारों ओर बसी हुई बस्तियाँ वृत्ताकार रूप में बसी होती हैं; जैसे- कुमाऊँ क्षेत्र में नैनी झील के चारों ओर बसा हुआ पहाड़ी शहर नैनीताल।

प्रश्न 3
अधिवास के दो प्रमुख प्रकार बताइए। [2009, 14]
उत्तर
अधिवास के दो प्रमुख प्रकार हैं-

  1. ग्रामीण तथा
  2. नगरीकरण।

प्रश्न 4
अधिवास को परिभाषित कीजिए। [2015, 16]
उत्तर
मनुष्य की तीन प्राथमिक आवश्यकताएँ भोजन, वस्त्र तथा मकान हैं। मकानों के समूह को बस्तियों अथवा अधिवास कहा जाता है। अधिवास मनुष्य के सांस्कृतिक वातावरण के अभिन्न अंग हैं। जिनका निर्माण मनुष्य अपने प्राकृतिक वातावरण के अनुसार करता है। बूंश के अनुसार, ‘मानवीय अधिवास पृथ्वी के धरातल पर होने वाली मानवीय क्रियाओं व रचनाओं में सबसे अधिक स्पष्ट, महत्त्वपूर्ण तथा ठोस रचना है।”

मानव अधिवास का अर्थ मकानों का समूह है। इसके अन्तर्गत मनुष्य के निवास-गृह, मकान, आश्रय, भवन आदि सभी प्रकार के आश्रय सम्मिलित हैं। इनमें झोंपड़ी या छप्पर से लेकर, मिट्टी, लकड़ी, ईंट आदि के बने घर तथा सीमेण्ट, कंक्रीट, पत्थर, लोहे आदि से निर्मित भव्य इमारत, अट्टालिका अथवा किला सभी सम्मिलित किए जाते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
जहाँ चारों ओर से अनेक मार्ग आकर मिलते हों तो इनके सहारे बसे बस्ती के प्रारूप को कहते हैं –
(क) त्रिभुजाकार प्रतिरूप
(ख) पंखा प्रतिरूप
(ग) सोपान प्रतिरूप
(घ) अरीय प्रतिरूप
उत्तर
(घ) अरीय प्रतिरूप।

प्रश्न 2
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में किस प्रकार के अधिवास विकसित हुए हैं?
(क) सीढ़ी प्रतिरूप
(ख) रेखीय प्रतिरूप
(ग) पंखां प्रतिरूप
(घ) तीर प्रतिरूपे
उत्तर
(क) सीढ़ी प्रतिरूप।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से कौन ग्रामीण अधिवास का प्रतिरूप है?
(क) संहत
(ख) अर्द्ध-संहत
(ग) प्रकीर्ण
(घ) रेखीय
उत्तर
(घ) रेखीय।

प्रश्न 4
किसी झील के चारों ओर बसा गाँव किस प्रतिरूप में आयेगा?
(क) अरीय
(ख) नीहारिकीय
(ग) नाभिक
(घ) तारा
उत्तर
(ख) नीहारिकीय।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Rural Settlements (ग्रामीण अधिवास), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Comment