UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System (तन्त्रिका-तन्त्र या स्नायु-संस्थान) are part of UP Board Solutions for Class 12 Psychology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12  Psychology Chapter 2 Nervous System (तन्त्रिका-तन्त्र या स्नायु-संस्थान).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Psychology
Chapter Chapter 2
Chapter Name Nervous System
(तन्त्रिका-तन्त्र या स्नायु-संस्थान)
Number of Questions Solved 38
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System (तन्त्रिका-तन्त्र या स्नायु-संस्थान)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
तन्त्रिका-तन्त्र अथवा स्नायु-संस्थान से आप क्या समझते हैं? केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
केन्द्रीय स्नायु-संस्थान के भागों का उल्लेख कीजिए तथा मस्तिष्क की रचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
मस्तिष्क की रचना व कार्य बताइए। (2012, 14, 17)
या
केन्द्रीय स्नायु-संस्थान की संरचना व कार्य बताइए। (2011, 13,15)
उत्तर

तन्त्रिका-तन्त्र अथवा स्नायु-संस्थान

प्राणियों के शरीर की रचना एवं कार्य-पद्धति अत्यधिक जटिल एवं बहुपक्षीय है। शरीर के विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिए भिन्न-भिन्न संस्थान हैं। शरीर के एक अति महत्त्वपूर्ण एवं जटिल संस्थान को स्नायु-संस्थान अथवा तन्त्रिका-तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। शरीर के इस संस्थान का एक मुख्य कार्य है-व्यवहार का संचालन एवं परिचालन। शरीर का यही संस्थान वातावरण से मिलने वाली समस्त उत्तेजनाओं के प्रति समुचित प्रतिक्रियाएँ प्रकट करता है। स्नायु-संस्थान की रचना अत्यधिक जटिल है। इसका आकार एक व्यवस्थित जाल के समान होता है।

तथा इसकी इकाई को स्नायु या न्यूरॉन कहते हैं। स्नायु-संस्थान का मुख्य केन्द्र मस्तिष्क होता है। सम्पूर्ण स्नायु-संस्थान को तीन भागों में बाँटा जाता है

  1. केन्द्रीय स्नायु-संस्थान (Central Nervous System)
  2. स्वत:चालित स्नायु-संस्थान (Automatic Nervous System) तथा
  3. संयोजक स्नायु-संस्थान (Peripheral Nervous System)।
    केन्द्रीय स्नायु-संस्थान की रचना एवं कार्यों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है

केन्द्रीय स्नायु-संस्थान

केन्द्रीय स्नायु-संस्थान उच्च मानसिक क्रियाओं का केन्द्र है। यह मनुष्य की ऐच्छिक क्रियाओं का केन्द्र समझा जाता है तथा मनुष्य में पशुओं की अपेक्षा अधिक विकसित और जटिल पाया जाता है। इसी कारण से पशुओं से मनुष्यों की मानसिक क्रियाएँ उच्चस्तर की होती हैं। केन्द्रीय स्नायु-संस्थान को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है—
(1) मस्तिष्क तथा
(2) सुषुम्ना नाड़ी।

(I) मस्तिष्क की संरचना एवं कार्य (Structure and work of Brain)

मनुष्य का मस्तिष्क; खोपड़ी के नीचे तथा सुषुम्ना के ऊपर अवस्थित एक कोमल और अखरोट की मेंगी से मिलती-जुलती रचना है। विकसित मानव का मस्तिष्क 3 पाउण्ड (लगभग 1.4 किलोग्राम) भार वाला दस खरब स्नायुकोशों से बना होता है। इसमें 50% भूरा पदार्थ (Grey Matter) तथा 50% सफेद पदार्थ (White Matter) मिलता है।

मस्तिष्क के भाग- मानव मस्तिष्क के चार भाग होते हैं—

  1. वृहद् मस्तिष्क
  2. लघु मस्तिष्क
  3. मध्य मस्तिष्क या मस्तिष्क शीर्ष एवं
  4. सेतु। इनका वर्णन निम्नवत् है

(1) वृहद् मस्तिष्क (Cerebrum)- यह मस्तिष्क का सबसे ऊँचा व सबसे बड़ा भाग होने के कारण ‘वृहद् मस्तिष्क’ कहलाता है। इस भाग पर सम्पूर्ण क्रियाओं के केन्द्र स्थित होते हैं। वृहद् मस्तिष्क का बाह्य भग भूरे रंग तथा आन्तरिक भाग श्वेत रंग के पदार्थ से निर्मित है। बाह्य भूरे रंग के पदार्थ ‘प्रान्तस्था (Cortex) में भूरे रंग के स्नायुकोशों के समूह उपस्थित हैं जो मस्तिष्क के बोध एवं कर्मक्षेत्र बनाते हैं। आन्तरिक श्वेत पदार्थ आन्तरिक भाग में स्थित श्वेत रंग के स्नायु-तन्तुओं के कारण श्वेत दिखाई पड़ता है। वृहद् मस्तिष्क एक दरार से दो गोलाद्ध (Hemispheres) में विभाजित होता है–दायाँ तथा बायाँ गोलार्द्ध। दोनों गोलाद्ध का परस्पर गहरा सम्बन्ध है।
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System 1
दायाँ गोलार्द्ध शरीर के बाएँ भाग तथा बायाँ गोलार्द्ध शरीर के दाएँ भाग से सम्बन्धित होता है। वृहद् मस्तिष्क : खण्डे, दरारें एवं अधिष्ठान वृहद् मस्तिष्क के बाह्य भाग में सतह पर विद्यमान छोटी-छोटी सिकुड़नें दरारों के माध्यम से अलग की जाती हैं। यद्यपि ये दरारें आन्तरिक द्रव तक पहुँचती हैं तथापि इनसे मस्तिष्क विभक्त नहीं होता। वस्तुतः सतह के नीचे मस्तिष्क के विभिन्न भाग आपस में जुड़े रहते हैं। वृहद् मस्तिष्क में दो

बड़ी दरारें हैं। मध्य में स्थित केन्द्रीय दरार (Central Sulcus) या फिशर ऑफ रोलेण्डो (Fissure of Rolando) कहलाती है। लम्बाई में स्थित एक अन्य दरार लेटरल सलेकंस (Lateral Sulcus) या फिशर ऑफ सिल्वियस (Fissure of Silvious) कहलाती है। मस्तिष्क का यह भाग चार खण्डों में

बँटा होता है, जो निम्न प्रकार वर्णित है-

(1) अग्र खण्ड (Frontal lobe)- वृहद् मस्तिष्क के अग्र भाग में स्थित इस खण्ड में क्रियात्मक अधिष्ठान या क्षेत्र (Motor Areas) पाये जाते हैं। अग्र खण्ड चेष्टात्मक क्रियाओं को पूरा करने में सहायता करता है।

(2) मध्य खण्ड (Pariental lobe)- अग्र खण्ड के नीचे स्थित इस खण्ड में त्वचा तथा मांसपेशियों के अधिष्ठान या क्षेत्र (Somaesthetic Areas) मिलते हैं। यह खण्ड त्वचा एवं मांसपेशियों की संवेदनाओं के लिए उत्तरदायी है।

(3) पृष्ठ खण्ड (Occipital lobe)- मस्तिष्क के पिछले भाग में विद्यमान इस खण्ड में दृष्टि अधिष्ठान या क्षेत्र (Visual Areas) पाया जाता है, देखने की सम्पूर्ण क्रियाएँ इसी खण्ड के सहयोग से होती हैं।

(4) शंख खण्ड (Temporal lobe)- यह खण्ड मस्तिष्क के निचले भाग में है जिसके ऊपरी भाग में श्रवण अधिष्ठान या क्षेत्र (Auditory Areas) पाये जाते हैं। यहाँ से हमारी सुनने

की सभी क्रियाओं का संचालन होता है। उपर्युक्त अधिष्ठानों या कार्यात्मक क्षेत्रों के अतिरिक्त वृहद् मस्तिष्क में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं। जिन पर आघात या चोट लगने से मस्तिष्क की क्रिया प्रभावित होती है। ये ‘साहचर्य क्षेत्र (Association Areas) हैं जो दो बड़े-बड़े भागों में बँटे हैं। ये क्षेत्र अगणित साहचर्य-सूत्रों से बने होते हैं। इन सूत्रों पर चोट लगने से मस्तिष्क में किसी-न-किसी संवेदना के क्षेत्र पर बुरा असर पड़ता है। उदाहरण के लिए-दृष्टि अधिष्ठान या क्षेत्र के नष्ट होने पर लिखी हुई भाषा को समझना सम्भव नहीं होता एवं कार्यकारी प्रान्तस्था के निकटस्थ क्षेत्र के नष्ट होने से व्यक्ति को सीखा हुआ ज्ञान विस्मृत हो जाता है।
इसी प्रकार मस्तिष्क के अग्र भागों पर अधिक आघात पहुँचने के परिणामस्वरूप बाल्यावस्था की घटनाएँ तो याद रह जाती हैं, जबकि हाल की घटनाएँ विस्मृत हो जाती हैं। |

(2) लघु मस्तिष्क (Cerebellum)- लघु मस्तिष्क; वृहद् मस्तिष्क के पिछले भाग के नीचे स्थित तथा दो भागों में विभाजित एक छोटे बल्ब या अण्डे जैसी संरचना है। अनेक स्नायु तन्तुओं द्वारा यह एक ओर तो सुषुम्ना शीर्ष से सम्बन्ध रखता है तथा दूसरी ओर सेतु के माध्यम से वृहद् मस्तिष्क से सम्बन्धित होता है। इसका मुख्य कार्य शारीरिक सन्तुलन में सहायता पहुँचाना तथा शारीरिक क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित रखना है। यह शरीर की मांसपेशियों की क्रियाओं के मध्य सहयोग भी बनाये रखता है।

(3) मध्य मस्तिष्क या मस्तिष्क शीर्ष (Mid Brain or Medulla Oblongata)- सुषुम्ना के ऊपर स्थित तन्तुओं के इस पुंज को मस्तिष्क पुच्छ भी कहते हैं। यह कॉरपस कॉलोसम (Corpus Collosum) से शुरू होकर सुषुम्ना तक पहुँचता है तथा मस्तिष्क एवं सुषुम्ना में सम्बन्ध स्थापित करता है। सुषुम्ना से मस्तिष्क की ओर जाने वाली नाड़ियाँ इसी भाग से होकर गुजरती हैं। इसमें भूरा पदार्थ श्वेत पदार्थ के अन्दर स्थित होता है तथा स्नायु-तन्तु श्वेत पदार्थ से निकलकर भूरे पदार्थ में जाते हैं। यह भाग सुषुम्ना के साथ मिलकर स्नायु-संस्थान की धुरी (Axis of Nervous System) कहलाता है। इसका कार्य शरीर की प्राण-रक्षा सम्बन्धी समस्त क्रियाओं का संचालन तथा नियन्त्रण करना है; यथा—साँस लेना, रक्त-संचार, श्वसन, निगलना तथा पाचन आदि। शरीर सन्तुलन में सहायता देने के अतिरिक्त यह अपने क्षेत्र की सहज क्रियाओं पर भी नियन्त्रण रखता है। इसके समस्त कार्य अचेतन रूप से होते हैं।

(4) सेतु (Pons Varoli)– सुषुम्ना शीर्ष के ऊपर स्थित यह स्नायु सूत्रों का सेतु (पुल) है जो लघु मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धा को जोड़ता है। वृहद् मस्तिष्क से निकलने वाले स्नायु इसमें से होकर

गुजरते हैं। बाएँ तथा दाएँ गोलार्द्धा से जो स्नायु आते हैं, वे सेतु पर ही एक-दूसरे को पार करते हैं। बाएँ गोलार्द्ध से आने वाले स्नायु इस स्थान पर मार्ग बदलकर शरीर के दाएँ भाग में जाते हैं तथा दाएँ गोलार्द्ध के स्नायु मार्ग बदलकर यहीं से शरीर के बाएँ भाग की पेशियों में जाते हैं। इसी कारण से, शरीर के दाएँ या बाएँ भाग में जब भी कोई अव्यवस्था होती है तो इसका प्रभाव तत्काल ही विपरीत भाग पर पड़ता है। सेतु शरीर तथा वातावरण के बीच उचित सामंजस्य बनाने में भी सहायक सिद्ध होता है।

(II) सुषुम्ना नाड़ी (Spinal Cord)
सुषुम्ना नाड़ी मेरुदण्ड के मध्य में स्थित केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का प्रमुख भाग है। यह मस्तिष्क से नीचे की तरफ कूल्हों तक फैली रहती है। विभिन्न नाड़ी तन्तुओं से बनी यह मुलायम मोटी रस्सी की। तरह गोल तथा लम्बी होती है। यही कारण है कि इसका एक नाम ‘मेरुरज्जु’ भी है। इसमें स्नायु तन्तुओं के लगभग 31 जोड़े सुषुम्ना के दोनों तरफ जुड़े रहते हैं तथा वहीं से निकलकर सारे शरीर में फैल जाते। हैं। सुषुम्ना में दो प्रकार की नाड़ियाँ हैं– प्रथम, संवेदना स्नायु जो संवेदना को संग्राहक से स्नायुकेन्द्र तक ले जाती है तथा द्वितीय, क्रियावाहक स्नायु जो स्नायुकेन्द्र से मांसपेशियों तक समाचार ले जाती है।

प्रश्न 2
स्वतःचालित स्नायुमण्डल क्या है? इसके मुख्य अंगों और उनके कार्यों का उदाहरण|सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर

स्वतःचालित स्नायुमण्डल या स्वतन्त्र स्नायु-संस्थान

स्वत:चालित स्नायुमण्डल (संस्थान), जिसे स्वतन्त्र स्नायु-संस्थान भी कहते हैं, स्नायु-संस्थान । का द्वितीय महत्त्वपूर्ण भाग है। इसकी क्रियाओं पर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का नियन्त्रण नहीं होता। यह स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है तथा इसके आंगिक भाग आत्म-नियन्त्रित होते हैं। वातावरण की ऐसी अनेक उत्तेजनाएँ होती हैं जिन पर तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। ऐसी उत्तेजनाओं के प्रति अनुक्रिया करने का आदेश यह स्नायुमण्डल स्वतः ही प्रदान कर देता है। दूसरे शब्दों में, स्वत:चालित स्नायुमण्डल के अन्तर्गत किये जाने वाले कार्य सुषुम्ना नाड़ी से संचालित होते हैं तथा उनमें वृहद् मस्तिष्क को कोई कार्य नहीं करना पड़ता है। इस मण्डल या संस्थान की क्रियाओं में पाचन-क्रिया, श्वसन-क्रिया, फेफड़ों का कार्य, हृदय का धड़कना तथा रक्त-संचार जैसी अनैच्छिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं।

स्वतःचालित स्नायुमण्डल के भाग तथा कार्य 

स्वत:चालित स्नायुमण्डल को दो भागों में बाँटा गया है-
(1) अनुकम्पित स्नायुमण्डल तथा
(2) परा-अनुकम्पित स्नायुमण्डल।

(1) अनुकम्पित स्नायुमण्डल (Sympathetic Nervous System)- अनुकम्पित स्नायु-मण्डल का प्रमुख कार्य, सामान्य या शान्त अवस्था में, शरीर को खतरों से बचाने के लिए तैयार करना है। इसमें स्नायुकोश समूह या तो सुषुम्ना के अन्दर होता है या उन आन्तरिक अंगों के समीप होता है जिन्हें वे उत्तेजित करते हैं। यह स्नायुमण्डल शरीर को क्रियाशील बनाता है तथा संवेग की। अवस्था में अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। शरीर को खतरे का आभास होते ही यह सक्रिय होकर कुछ शारीरिक एवं आन्तरिक परिवर्तनों को जन्म देता है। खतरे की दशा में नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, मस्तिष्क तथा मांसपेशियों में रक्त-संचार तेज हो जाता है, रक्तचाप बढ़ जाता है, आमाशय में रक्त का संचार कम होने से पाचन-शक्ति कमजोर पड़ जाती है और भूख लगनी बन्द हो जाती है।

इसके अतिरिक्त कुछ संवेगों की अवस्था में हृदय की गति तेज हो जाती है, लार-ग्रन्थियों से लार का स्राव नहीं होता जिससे मुंह और गला सूख जाता है, साँस लेने की गति बढ़ जाती है तथा व्यक्ति हाँफने । लगता है। भय एवं क्रोध की संवेगावस्था में ये परिवर्तन देखने को मिलते हैं। निष्कर्षतः संवेगावस्था में अनुकम्पित स्नायुमण्डल की सक्रियता के कारण व्यक्ति अपने शरीर में अधिक बल एवं स्फूर्ति का अनुभव करता है और उसका शरीर भावी खतरे के लिए अपनी रक्षा हेतु तत्पर हो जाता है।
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(2) परा-अनुकम्पित स्नायुमण्डल (Para-Sympathetic Nervous System)- परा-अनुकम्पित स्नायुमण्ड़ल का मुख्य कार्य शारीरिक शक्ति को संचित रखना तथा शरीर को पुष्ट बनाना है। इसमें स्नायुकोश समूह सुषुम्ना के अन्दर न होकर बाहरी अंगों के पास स्थित होता है। इस मण्डल की सक्रियता के कारण हृदय की धड़कन कम हो जाती है, रक्तचाप घट जाता है, लार-ग्रन्थियों से अधिक लार निकलती है जिससे भोजन का पाचन शीघ्रता से होता है तथा नेत्रों की पुतलियाँ कम फैलती हैं या सिकुड़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त शरीर से मल-मूत्र तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं और गुर्दे, आँतें एवं आमाशय स्वस्थ रहते हैं।

विद्वानों का मत है कि अनुकम्पित और परा-अनुकम्पित स्नायुमण्डल एक-दूसरे के परस्पर विरोधी कार्य करते हैं, किन्तु खोजों से पता चला है कि ये दोनों मण्डल एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं तथा परस्पर समन्वय और सहयोग के साथ काम करते हैं। इसका उदाहरण यह है। कि अनुकम्पित भाग की क्रियाशीलता के कारण हृदय की गति बढ़ जाने की अवस्था में परा-अनुकम्पित भाग ही हृदय की गति को सामान्य करता है। जैसा कि मॉर्गन नामक मनोवैज्ञानिक का कथन है, “ये दोनों संस्थान कभी एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करते, बल्कि परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न मात्राओं में सहयोग से काम करते हैं।” यह दोनों संस्थानों का सहयोग ही है कि मानव-शरीर काम और आराम की दो विपरीत परिस्थितियों में भी सन्तुलन बना लेता है। इस तरह के सन्तुलन को स्वायत्त सन्तुलन (Automatic Balance) कहा जाता है।

प्रश्न 3
संयोजक स्नायुमण्डल का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। संयोजक स्नायुमण्डल की नाड़ियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर

संयोजक स्नायुमण्डल

संयोजक स्नायुमण्डल; स्नायु संस्थान का तीसरा भाग है और संयोजन का कार्य करता है। संयोजक के रूप में यह मानव मस्तिष्क से शरीर के बाह्य तथा आन्तरिक भागों का सम्पर्क स्थापित करता है। वस्तुतः संयोजक स्नायुमण्डल दो प्रकार से सम्बन्ध स्थापित करता है—
(1) यह मस्तिष्क को ज्ञानेन्द्रियों से सम्बद्ध करता है तथा
(2) ग्रन्थियों को मांसपेशियों से सम्बद्ध करता है। इसके साथ ही इसकी भूमिका सन्देशवाहक के समान भी समझी जाती है; क्योंकि यह संग्राहकों से प्राप्त सन्देशों को केन्द्रीय स्नायुमण्डल तक पहुँचाता है और यहाँ से प्राप्त आदेशों को प्रभावकों तक पहुँचाता है। इस भूमिका के कारण ही इसे संयोजक स्नायुमण्डल (Peripheral Nervous System) कहा जाता है।

संयोजक स्नायुमण्डल के बिना केन्द्रीय स्नायुमण्डल कोई कार्य नहीं कर सकता। कार्य-संचालन के लिए यह शरीर के बाह्य त्वचीय भाग एवं शरीर के आन्तरिक भाग वे मस्तिष्क केन्द्रों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है।

संयोजक स्नायुमण्डल की नाड़ियाँ

संयोजक स्नायुमण्डल की नाड़ियाँ मस्तिष्क एवं सुषुम्ना से चलकर शरीर के बाहरी भाग पर आकर रुक जाती हैं। इन नाड़ियों के कुल 43 जोड़े होते हैं जो कपाल तथा सुषुम्ना से सम्बन्ध रखते हैं। इस भाँति ये दो प्रकार की नाड़ियाँ निम्नलिखित हैं

(1) कापालिक नाड़ियाँ (Cranial Nerves)– कापालिक नाड़ियों के 12 जोड़े होते हैं जो मस्तिष्क से प्रारम्भ होते हैं। कापालिक नाड़ियाँ सिर व गर्दन के अधिकांश भाग में फैली रहती हैं या तो ये कार्यवाही होती हैं या ज्ञानवाही या कुछ मिश्रित होती हैं। इनमें दृष्टि, श्रवण, स्वाद व सुगन्ध की नाड़ियाँ शामिल रहती हैं।

(2) सुषुम्ना नाड़ियाँ (Spinal Nerves)- 31 जोड़े सुषुम्ना नाड़ियों के सुषुम्ना से प्रारम्भ होते हैं, जो रीढ़ की पेशियों तथा शरीर के विभिन्न अंगों में फैल जाते हैं। ये नाड़ियाँ त्वचा व कर्मवर्ती मांसपेशियों, अस्थियों तथा जोड़ों को उत्तेजित करती हैं।

संयोजक स्नायु-संस्थान में संचालक तथा सांवेदनिक नाड़ियाँ भी पायी जाती हैं। ये निम्न प्रकार हैं

  • संचालक नाड़ियाँ (Motor Nerves)—ये नाड़ियाँ मस्तिष्क से बाहर की ओर लौटती हैं। और इसी कारण ये बहिर्गामी नाड़ियाँ (Outgoing Nerves) कहलाती हैं। इनके स्नायु तन्तुओं की लम्बाई सांवेदनिक नाड़ियों के तन्तुओं से काफी कम होती है। ये संख्या में भी कम होते हैं। ये नाड़ियाँ मस्तिष्क तथा सुषुम्ना से आदेश प्राप्त करती हैं।
  • सांवेदनिक नाड़ियाँ (Sensory Nerves)-सांवेदनिक नाड़ियों को अन्तर्गामी नाड़ियाँ भी कहा जाता है। ये नाड़ियाँ वातावरण से ज्ञानात्मक उत्तेजनाओं को लेकर मस्तिष्क की ओर जाती हैं। इन नाड़ियों के तन्तु प्रत्येक संग्राहक में पाये जाते हैं जो प्रत्येक केन्द्र तक जाते हैं। इन स्नायु तन्तुओं की लम्बाई काफी होती है और ये बारीक भी होते हैं। कुछ तन्तु इतने बारीक और कई फीट लम्बे होते हैं। कि इन्हें नंगी आँखों से देखा ही नहीं जा सकता।

उपर्युक्त संरचनाओं की मदद से संयोजक स्नायुमण्डल एक ओर तो शरीर की ज्ञानेन्द्रियों से सन्देश ग्रहण कर उसे केन्द्रीय स्नायु-संस्थान तक पहुँचाता है तथा दूसरी ओर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान से प्राप्त आदेशों को प्रभावकों तक प्रेषित करता है।

प्रश्न 4
नलिकाविहीन अथवा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम और कार्यों का वर्णन कीजिए। या नलिकाविहीन ग्रन्थियों की रचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मनुष्य के पूरे शरीर में भिन्न-भिन्न स्थानों पर कोशाओं की विशिष्ट संरचनाएँ पायी जाती हैं। जिनका प्रमुख कार्य अनेक प्रकार के रासायनिक रसों का स्राव करना है। ग्रन्थियों की क्रिया के कारण उत्पन्न रस-स्राव हमारे व्यवहार में अनेकानेक परिवर्तनों को जन्म देता है। यही कारण है कि ग्रन्थियों को प्रभावक अंग (Effectors) के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। ग्रन्थियाँ दो प्रकार की होती हैं

  1. प्रणालीयुक्त या बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ (Extero or Duct Glands) तथा ।
  2. नलिकाविहीन या अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ (Ductless or Endocrine Glands)।

नलिकाविहीन या अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ अनेक ऐसी ग्रन्थियों का समूह है जिनके द्वारा न केवल हमारे शरीर की बहुत-सी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, अपितु ये हमारे व्यवहारों पर भी गहरा प्रभाव डालती हैं। इनमें किसी प्रकार की नलिका नहीं पायी जाती, इसलिए ये नलिकाविहीन कहलाती हैं। इन ग्रन्थियों द्वारा उत्पन्न रासायनिक रस-स्राव सीधे रक्त की धारा में मिश्रित हो जाता है। यह मिश्रण एक निश्चित आनुपातिक ढंग से होता है। रासायनिक रस-स्राव को हॉर्मोन्स (Hormones) कहते हैं, क्योंकि नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ संवेगों के अभिप्रकाशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; अत: इन्हें ‘संवेगात्मक या व्यक्तित्व ग्रन्थियों के नाम से भी जाना जाता है।

नलिकाविहीन ग्रन्थियों के प्रकार- मनुष्य के शरीर में कई प्रकार की नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ भिन्न-भिन्न स्थानों पर अवस्थित हैं। नाम तथा स्थान आदि के साथ उनका संक्षिप्त परिचय । निम्नलिखित है

(1) शीर्ष ग्रन्थि (Pineal Gland)- शीर्ष या पाइनियल ग्रन्थि मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित लाल-भूरे रंग की एक छोटी-सी ग्रन्थि है। यद्यपि शरीर-शास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों को अभी तक यह ज्ञात नहीं है कि शरीर को संचालित करने तथा आन्तरिक क्रियाओं को नियन्त्रित करने के लिए यह ग्रन्थि किस भाँति कार्य करती है तथापि अनुमान है कि यह शारीरिक तथा लैंगिक विकास में अपने स्राव द्वारा योग प्रदान करती है। नारी की पतली-मधुर आवाज तथा पुरुष की आवाज का भारीपन, नारी के अंगों की सुडौलता तथा पुरुष के शरीर पर बालों का आधिक्य शीर्ष ग्रन्थि के रासायनिक स्राव का परिणाम है। |

(2) पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland)- खोपड़ी के आधार पर स्थित छोटे आकार वाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पीयूष ग्रन्थि को ‘मास्टर ग्रन्थि (Master Gland) कहा जाता है। इसके दो भाग हैं-

  • अग्र खण्ड तथा
  • पश्च खण्ड। अग्र खण्ड अपेक्षाकृत बड़ा होता है तथा शरीर की वृद्धि को प्रभावित करता है। इस भाग के रस-प्रवाह की अधिकता से व्यक्ति की लम्बाई बढ़ जाती है तथा कमी से व्यक्ति बौना रह जाता है। पश्च खण्ड का सम्बन्ध रासायनिक क्रियाओं से होता है। यह भाग रक्तचाप एवं भूख के बढ़ने-घटने से सम्बन्धित है और गर्भाशय-मूत्राशय तथा पित्ताशय की मांसपेशियों को प्रभावित करता है। इस ग्रन्थि का रस-स्राव अन्य ग्रन्थियों के रसों में उचित अनुपात पैदा करता है। जिससे शरीर में एक रासायनिक आनुपातिक योग्यता’ का निर्माण होता है।

(3) गल ग्रन्थि (Thyroid Gland)– गल (थायरॉइड) ग्रन्थि गले के अग्र भाग में दोनों ओर स्थित होती है। यह थाइरॉक्सिन नामक महत्त्वपूर्ण रस उत्पन्न करती है जो मानव के व्यवहार को एक बड़ी सीमा तक प्रभावित करता है। इस ग्रन्थि का बुद्धि और व्यक्तित्व से गहरा सम्बन्ध है। बाल्यावस्था में यह ग्रन्थि यदि उचित रूप से क्रियाशील न हो पाये और शरीर का उचित विकास भी न हो सके तो बालक का शरीर दुर्बल तथा बुद्धि मन्द हो जाती है। थायरॉइड ग्रन्थि के स्राव की मात्रा अधिक हो जाने पर व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है, उसे गर्मी अधिक लगती है तथा वह बेचैनी का अनुभव करता है। ऐसी व्यक्ति पर्याप्त भोजन करके भी कमजोर बना रहता है। शरीर की आन्तरिक क्रियाओं में तेजी आने पर भी भार में कमी आ जाती है।

इसके विपरीत इस ग्रन्थि के स्राव के अभाव में व्यक्ति सुस्ती व आलस्य का । अनुभव करता है तथा उसके शरीर का तापमान गिर जाता है। वह हर समय ऊँघता रहता है। ग्रन्थि रस के कम होने पर बालक को चलना-फिरना, बोलना तथा अन्य अच्छी बातें सिखाना कठिन होता है। एक ओर जहाँ क्रोध या भय की अवस्था में यह ग्रन्थि ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती तथा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, वहीं दूसरी ओर प्रेम तथा उत्साह की अवस्था में शरीर में इस रस की अभिवृद्धि होती है, रोगों का विनाश होता है और शरीर को शीघ्रता से विकास होता है।
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(4) उपगल ग्रन्थि (Para Thyroid Gland)- गल (थायरॉइड) ग्रन्थि के समीप ही उसके पृष्ठ भाग के दोनों तरफ चार उपगल (पैरा-थायरॉइड) ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। संरचना तथा कार्य की दृष्टि से ये ग्रन्थियाँ गल ग्रन्थि से सर्वथा भिन्न हैं। इन ग्रन्थियों से होने वाले रासायनिक स्राव से शरीर शक्तिशाली बनता है, किन्तु स्राव का अभाव मांसपेशियों में ऐंठन तथा मरोड़ पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ये ग्रन्थियाँ रक्त में चूने (कैल्सियम) की मात्रा को भी नियन्त्रित करती हैं जिससे हड्डियाँ सबल तथा पुष्ट बनती हैं। स्राव का आधिक्य रक्त में चूने की मात्रा को कम करता है जिससे हड्डियाँ क्षीण होने लगती हैं और स्नायु-संस्थान पर बुरा असर पड़ता है। |

(5) थाइमस ग्रन्थि (Thymus Gland)– मानव-शरीर में थाइमस ग्रन्थि की स्थिति हृदय के ऊपर तथा सीने व फेफड़ों के मध्य होती है। इसके कार्य तथा प्रयोजन के विषय में विद्वान् अभी तक एकमत नहीं हो पाये हैं, तथापि समझा जाता है कि इस ग्रन्थि की लैंगिक विकास एवं उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह काम-इच्छा को भी प्रभावित करती है। इसका विकास बालक की दो वर्ष की आयु तक हो जाता है। जब तक बालक युवावस्था को प्राप्त नहीं होता है तब तक यह ग्रन्थि अपना कार्य सुचारु रूप से करती है। किन्तु युवावस्था आते ही यह अपना कार्य बन्द कर देती है और लुप्त हो जाती है। |

(6) अधिवृक्क ग्रन्थियाँ (Adrenal Glands)- अधिवृक्क (एड्रीनल) ग्रन्थियाँ छोटी और पीलापन लिये हुए दो छोटे त्रिकोण में प्रत्येक वृक्क के समीप अवस्थित हैं। इनसे प्रवाहित स्राव का शरीर और उसके व्यवहारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस ग्रन्थि के दो भाग हैं–

  • कॉर्टेक्स (Cortex) तथा
  • मेड्यूला (Medulla) जो संरचना एवं कार्य की दृष्टि से भिन्न होते हैं। कॉर्टेक्स बाहरी भाग है। यह यौन-क्रियाओं से विशिष्ट रूप में सम्बन्धित है। इसकी आवश्यकता से अधिक वृद्धि बालक को अवस्था से पूर्व ही असाधारण रूप से शक्तिशाली तथा यौन व्यवहारों में परिपक्व बना देती है। महिलाओं में इसका आधिक्य पुरुषोचित लक्षणों को जन्म देता है। ऐसी महिलाओं में असामान्य लक्षण; जैसे-अल्पायु में यौन व्यवहारों के लिए परिपक्वता आ जाना, चेहरे परे बाल उगना तथा

पुरुषों के समान भारी आवाज, अंगों की गोलाई का समाप्त होना आदि प्रकट होते हैं। मेड्यूला आन्तरिक भाग है जिससे एड्रीनेलिन (Adrenaline) नामक महत्त्वपूर्ण स्राव की उत्पत्ति होती है। यह वह शक्तिशाली रासायनिक स्राव है जो संवेगों की अवस्था में हमारे रक्त में मिश्रित होकर, हमें शक्ति प्रदान करता है। हृदय को उत्तेजित करने के अतिरिक्त अधिक पसीना आना, नेत्रों की पुतली का फैलना, उच्च रक्तचाप, पेशियों में देर तक थकान न होना आदि संकेत भी अधिवृक्क ग्रन्थि के इसी भाग के परिणाम हैं।

(7) जनन ग्रन्थियाँ (Gonads)- जनन ग्रन्थियाँ आंशिक रूप से नलिकासहित तथा नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ हैं। इन ग्रन्थियों की सहायता से पुरुष व स्त्री का भेद स्पष्ट होता है। अतः इन्हें लैगिक ग्रन्थियाँ प्रजनन ग्रन्थियाँ भी कहते हैं। पुरुष की प्रजनन ग्रन्थियाँ ‘अण्डकोश (Male Testes) हैं जिनमें शुक्रकीट (Spermatozoa) उत्पन्न होते हैं तथा स्त्रियों की प्रजनन ग्रन्थियाँ ‘डिम्ब ग्रन्थि’ (Female Ovary) हैं जिनमें रज-कीट (Ovum) उत्पन्न होते हैं। शारीरिक उत्पत्ति एवं व्यक्तित्व-विकास की दृष्टि से ये ग्रन्थियाँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। जनन ग्रन्थियों द्वारा आन्तरिक हॉर्मोन्स का स्राव भी होता है जिनके प्रभाव से पुरुष व स्त्री में यौन प्रौढ़ता की अवधि में सम्बन्धित जननेन्द्रियों का विकास होता है।

यद्यपि ये हॉर्मोन्स शरीर में बालपन से ही मौजूद होते हैं तथापि किशोर अवस्था में विशेष रूप से वृद्धि करते हैं। पुरुषों का भारी स्वर तथा दाढ़ी-मूंछ के बाल और स्त्रियों में मासिक धर्म, स्तनों का विकास तथा गर्भाधान आदि जनन ग्रन्थियों की क्रियाशीलता के कारण होते हैं। इन ग्रन्थियों का अभावं मनुष्य में यौन-चिह्नों को विकसित नहीं होने देता जिसके परिणामस्वरूप नपुंसकता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

प्रमुख तलिकाविहीन या अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि अनुक्रिया प्रक्रम में इन ग्रन्थियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ये ग्रन्थियाँ व्यक्तित्व तथा मानव-व्यबहार पर प्रभाव को स्पष्ट करती हैं। यदि एक ओर पीयूष ग्रन्थि, गल ग्रन्थि, पाइनियल ग्रन्थि तथा जननं ग्रन्थियों का स्राव शारीरिक वृद्धि के विकास पर प्रभाव रखता है तो दूसरी ओर, इन्सुलिन की उत्पत्ति करने वाले कोश ‘लैंगरहेन्स के आइलेट्स (Islets of Langerhans) तथा एड्रीनल आदि ग्रन्थियाँ शरीर की बनावट तथा भोजन के प्रयोग पर पर्याप्त प्रभाव डालती हैं।

प्रश्न 5
सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? सहज क्रियाओं की विशेषताओं तथा महत्त्व या उपयोगिता का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं का अर्थ एवं परिभाषा अर्थ–सहज यो प्रतिक्षेप क्रियाएँ (Reflex Actions) अनर्जित तथा अनसीखी क्रियाएँ हैं। जो स्वत: एवं शीघ्रतापूर्वक घटित होती हैं। ये ऐसी जन्मजात क्रियाएँ हैं जिनमें व्यक्ति की इच्छा के लिए कोई स्थान नहीं होता और न ही उनके घटित होने की अधिक चेतना ही होती है। किसी उद्दीपक से उत्तेजना मिलते ही उसके परिणामस्वरूप तत्काल प्रतिक्रिया हो जाती है; जैसे—आँखों की पलकों का झपकना, प्रकाश पड़ते ही आँख की पुतली का सिकुड़ना, छींक आना, लार बहना, खाँसना तथा अश्रुपात आदि। इस प्रतिक्रिया में मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती।

सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बाह्य एवं आन्तरिक दोनों प्रकार की उत्तेजनाओं से होती हैं। यहाँ उद्दीपक अनजाने में मिलता है तथा उद्दीपक मिलते ही अविलम्ब प्रतिक्रिया सम्पन्न हो जाती है। पैर में काँटा चुभते ही तुरन्त पैर खिंच जाता है. और आँख के पास कोई वस्तु आने पर आँख झपक जाती है। इस प्रकार की अनुक्रियाओं की गति इतनी तेज होती है कि इनमें न के बराबर समय लगता है। यदि लटकी हुई टॉग पर घुटने के नीचे काँटा चुभा दिया जाए तो टाँग खिंचने में केवल 0.3 सेकण्ड को समय काफी है। किन्तु कुछ अनुक्रियाओं में अपेक्षाकृत अधिक समय भी लगता है; जैसे—प्रकाश पड़ने पर आँख की पुतली का सिकुड़ना, स्वादिष्ट व्यंजन देखकर मुँह में लार आना तथा गर्म वस्तु छूने पर हाथ खींच लेना आदि। सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बालक के जन्म से पूर्व गर्भावस्था के पाँचवे-छठे मास में ही प्रारम्भ हो जाती हैं।

परिभाषा- सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है

वुडवर्थ के अनुसार, “सहज (प्रतिक्षेप) क्रिया एक अनैच्छिक और बिना सीखी हुई क्रिया है जो किसी ज्ञानवाही उद्दीपक की मांसपेशीय अथवा ग्रन्थीय प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।”

आइजैक के अनुसार, “प्रतिवर्ती क्रिया से अभिप्राय प्राणी की अनैच्छिक एवं स्वचालित अनुक्रियाओं से है जो वह वातावरण के परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न हुए उद्दीपकों के प्रति करता है। ये अनुक्रियाएँ प्राय: गत्यात्मक अंगों से सम्बंधित होती हैं तथा इनके फलस्वरूप मांसपेशी, पैर एवं हाथों में सहज गति का आभास होता है।”
आर्मस्ट्रांग एवं जैक्सन के अनुसार, “प्रतिवर्ती क्रियाएँ हमारी चेतनात्मक इच्छाओं के द्वारा उत्पन्न नहीं होतीं, परन्तु वातावरण में उत्पन्न हुई उत्तेजनाओं का परिणाम होती हैं।”

सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ

सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. सहज क्रियाएँ जन्मजात हैं तथा गर्भावस्था से ही इनकी शुरुआत मानी जाती है। जन्म के तुरन्त बाद से ही बालक इन्हें प्रकट करना शुरू कर देता है।
  2. ये क्रियाएँ स्नायु रचना पर आधारित तथा अनसीखी क्रियाएँ हैं। |
  3. इन्हें अचेतन मन से तुरन्त सम्पन्न होने वाली क्रियाएँ कहा जाता है जिनमें चेतन मानसिक क्रियाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता।
  4. सहज क्रियाएँ केन्द्रीय स्नायुमण्डल के नियन्त्रण से मुक्त होती हैं; जैसे छींक आने पर उसे नियन्त्रित नहीं किया जा सकता।
  5. ये अनैच्छिक तथा अचानक उत्पन्न होने वाली क्रियाएँ हैं।।
  6. इनमें अधिक समय नहीं लगता और अल्पकाल में ही पूर्ण होकर ये समाप्त भी हो जाती हैं।
  7. ये स्थानीय हैं जिन्हें करने में शरीर का एक भाग ही क्रियाशील रहता है।
  8. इन क्रियाओं की प्रबलता उद्दीपक की प्रबलता पर निर्भर होती है।
  9. इनसे शरीर को कोई क्षति नहीं होती, क्योंकि इनके करने या मानने का उद्देश्य व्यक्ति की रक्षा है।
  10. बार-बार दोहराने पर भी व्यक्ति सहज क्रियाओं में कोई सुधार नहीं ला पाता। पलक झपकने या छींकने की क्रिया बार-बार दोहराई जाती है, तथापि उसमें कोई सुधार या परिवर्तन सम्भव नहीं होता।

जीवन में सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की उपयोगिता या महत्त्व

सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ न केवल अनियन्त्रित, अनैच्छिक, अनर्जित तथा प्रकृतिजन्य हैं; अपितु जैविक दृष्टि से भी उपयोगी हैं। इन्हें सीखना नहीं पड़ता; इनकी क्षमता तो मनुष्य में जन्म से ही होती है। मानव-जीवन में इनका उपयोग निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है।

(1) आकस्मिक घटनाओं से रक्षा- सहज (प्रतिक्षेपी) क्रियाएँ अकस्मात् घटने वाली घटनाओं से मनुष्य की रक्षा करती हैं। ये शरीर को बाह्य खतरों तथा आक्रमणों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती हैं। आँख के निकट जब कोई वस्तु आती है, पलकें तत्काल ही झपक जाती हैं।

(2) स्वेच्छा से कार्य सम्पन्न– सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ अनैच्छिक होती हैं। इनके माध्यम से बहुत-से कार्य स्वतः ही सम्पन्न हो जाते हैं जिससे आवश्यकतानुसार शरीर को सहायता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए भोजन जब आमाशय में पहुँचता है, स्वत: ही स्राव निकलते हैं जो भोजन के पाचन में सहायता देते हैं।

(3) गतिशीलता- ये क्रियाएँ अचानक ही प्रकट होती हैं तथा कार्य की पूर्णता के साथ ही समाप्त भी हो जाती हैं। ऐच्छिक क्रियाओं की अपेक्षा इनमें गतिशीलता बहुत अधिक पाई जाती है।

(4) वातावरण से अनुकूलन- सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ मनुष्य का उसके वातावरण से अनुकूलन करने में सहायक सिद्ध होती हैं। प्रायः देखा जाता है कि वातावरण में ताप वृद्धि से पसीने की ग्रन्थियाँ पसीना निकालकर शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं। परिणामस्वरूप शरीर का तापक्रम कम हो जाता है।

(5) समय एवं आवश्यकतानुसार सहायक- ये क्रियाएँ मनुष्य की उसके जीवनकाल में उचित समय पर तथा आवश्यकतानुसार सहायता करती हैं। मानव-जीवन के विलास-क्रम में विभिन्न सोपानों पर इन क्रियाओं की परिपक्वता स्वाभाविक दृष्टि से सहायता देती है। खाँसने की सहज क्रिया जन्म के कुछ समय उपरान्त लेकिन काम सम्बन्धी सहज क्रिया किशोरावस्था में प्रकट होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1
टिप्पणी लिखिए-स्नायु-संस्थान या तन्त्रिका-तन्त्र।
उत्तर
स्नायु संस्थान (तन्त्रिका तन्त्र) स्नायुओं का एक समूह है। यह एक ऐसी नियन्त्रण पद्धति है। जिसका शरीर के विभिन्न अंगों के व्यवहारों तथा क्रियाओं पर नियन्त्रण होता है। स्नायु-संस्थान वातावरण से मिलने वाली उत्तेजनाओं के प्रति समुचित प्रतिक्रियाएँ करने का कार्य करता है। वस्तुतः इसकी जटिल संरचना एवं कार्यविधि आधुनिक एवं स्वचालित दूरभाष केन्द्र (Telephone Exchange) से मिलती-जुलती है। जिस प्रकार सन्देश लाने-ले जाने का काम ‘टेलीफोन के तार करते हैं, उसी प्रकार का काम नाड़ी फाइबर करते हैं। मस्तिष्क एवं सुषुम्ना नाड़ी केन्द्रीय एक्सचेंज’ तथा तन्तुओं तक पहुंचने वाले स्नायुओं के किनारे रिसीवर’ हैं। स्नायु संस्थान को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

व्यवहारों के शारीरिक आधार (अर्थात् अनुक्रिया प्रक्रम) की व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए स्नायु-संस्थान के निम्नलिखित भागों का अध्ययन आवश्यक है-

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System 4

    1. केंद्रीय स्नायु-संस्थान (Central Nervous System)
    2. स्वत:चालित स्नायु-संस्थान (Automatic Nervous System) तथा

प्रश्न 2
सुषुम्ना के कार्य बताइए। (2009, 14, 18)
उत्तर
केन्द्रीय स्नायु-संस्थान के एक भाग के रूप में सुषुम्ना (Spinal Cord) के मुख्य कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. प्रतिक्षेप क्रियाओं का संचालन– सुषुम्ना का एक मुख्य कार्य प्रतिक्षेप अथवा सहज क्रियाओं को संचालन करना है। प्रतिक्षेप क्रियाओं से आशय उन क्रियाओं से है जो मस्तिष्क एवं विचार शक्ति से परिचालित नहीं होतीं तथा इन्हें सीखने की भी आवश्यकता नहीं होती है; जैसे-पलकों का झपकना, काँटा चुभते ही हाथ को खींच लेना, प्रकाश पड़ते ही आँख की पुतली का सिकुड़ना आदि। ये सभी क्रियाएँ जीवन के लिए विशेष उपयोगी होती हैं तथा इनका संचालन सुषुम्ना द्वारा ही किया जाता है।

2. बाहरी उत्तेजनाओं की जानकारी मस्तिष्क को देना– सुषुम्ना नाड़ी का एक उल्लेखनीय कार्य पर्यावरण से प्राप्त होने वाली उत्तेजनाओं की जानकारी मस्तिष्क को प्रदान करना है।

(3) मस्तिष्क द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन- सुषुम्ना द्वारा जहाँ एक ओर बाहरी उत्तेजनाओं की सूचना मस्तिष्क को दी जाती है, वहीं दूसरी ओर सुषुम्ना ही मस्तिष्क द्वारा ग्रहण की गयी उत्तेजनाओं को कार्य रूप में परिणत करने का कार्य भी करती है।

(4) सुषुम्ना के नियन्त्रक कार्य- सुषुम्ना एक नियन्त्रक के रूप में भी कुछ कार्य करती है। पर्यावरण से प्राप्त होने वाली कुछ उत्तेजनाओं को सुषुम्ना मस्तिष्क तक पहुँचने ही नहीं देती तथा स्वयं ही उन उत्तेजनाओं के प्रति तुरन्त आवश्यक प्रतिक्रिया कर देती है।

प्रश्न 3
स्वतःचालित स्नायुमण्डल की रचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
स्नायु तन्त्र के एक महत्त्वपूर्ण भाग को स्वतःचालित स्नायुमण्डल या स्वतन्त्र स्नायु-संस्थान (Automatic Nervous System) कहते हैं। इसकी रचना को दो भागों में बाँटकर स्पष्ट किया जा सकता है। प्रथम भाग को बायाँ पक्ष कहते हैं। स्वत:चालित स्नायुमण्डल की रचना के बाएँ पक्ष के तीन भाग हैं–
(1) कापालिक
(2) माध्यमिक स्नायु तन्त्र तथा
(3) अनुतन्त्रिका। सबसे ऊपर के सिरे पर कापालिक है जिससे सम्बन्धित स्नायुओं को कापालिक स्नायु कहते हैं। इसके नीचे सुषुम्ना है और उससे सम्बन्धित स्नायुओं को सुषुम्ना स्नायु कहते हैं। सुषुम्ना वाला भाग माध्यमिक स्नायु तन्त्र (Thoraco Lumber) कहलाता है, क्योंकि इस भाग के स्नायु सुषुम्ना से चलकर थोरेक्स तक पहुँचते हैं। तीसरा भाग अनुतन्त्रिका कहलाता है। यह सुषुम्ना को अन्तिम भाग है। स्वत:चालित स्नायुमण्डल के दाएँ पक्ष से निकलने वाले स्नायु तथा स्नायुकोश-समूह शरीर के विभिन्न भागों से सम्बन्ध रखते हैं। ये स्नायु नेत्र, हृदय, फेफड़े, यकृत, आमाशय, क्लोम, आँत, वृक्के, पसीने की ग्रन्थियों तथा जननेन्द्रियों तक फैले होते हैं।

प्रश्न 4
प्रतिक्षेप चाप के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर
प्रतिक्षेप चाप का सम्बन्ध प्रतिक्षेप अथवा सहज क्रियाओं से है। प्रतिक्षेप चाप (Reflex Arc) एंक़ मार्ग है जिसका उन ज्ञानवाही तथा कर्मवाही स्नायुओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। जो सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं के सम्पन्न होने में भाग लेते हैं।

वुडवर्थ ने उचित ही कहा है- “वह मार्ग जो एक ज्ञानेन्द्रिय से प्रारम्भ होकर स्नायु केन्द्र से होते हुए एक मांसपेशी तक पहुँचता है, प्रतिक्षेप चाप कहलाता है।”

वस्तुतः सहज (प्रतिक्षेप) क्रिया के होने से मस्तिष्क के उच्च केन्द्रों तक ज्ञानवाही स्नायुओं को सूचना ले जाने की आवश्यकता नहीं होती और सुषुम्ना या मस्तिष्क के निम्न केन्द्रों से ही कार्यवाही स्नायुओं को आदेश मिल जाता है। वह प्रभावक अंग तक इसे प्रेषित करती है जो प्रतिक्रिया करता है। सहज क्रिया का मार्ग एक चाप के रूप में होता है जिसे प्रतिक्षेप चाप कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि पैर में कॉटी चुभ जाए तो पैर की त्वचा से संवेदना स्पर्शेन्द्रिये से शुरू होकर सांवेदनिक स्नायुओं के मार्ग द्वारा स्नायु केन्द्र तक जाती है। कार्यवाही स्नायुओं द्वारा पैर की मांसपेशियों को पैर हटा लेने का आदेश मिलता है जिससे पैर हटा लिया जाता है। प्रतिक्षेप क्रिया का यह मार्ग ही प्रतिक्षेप चाप है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1
मानवीय क्रियाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
व्यक्ति द्वारा किसी उद्दीपन के प्रति की जाने वाली प्रतिक्रिया को मानवीय क्रिया कहते हैं। मानवीय – संवेदी तंत्रिका क्रियाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती सुषुम्ना का एक अंश हैं-
1. ऐच्छिक क्रियाएँ तथा
2. या ज्ञानेन्द्रिय अनैच्छिक क्रियाएँ । ऐच्छिक क्रियाएँ साहचर्य व्यक्ति की इच्छा-शक्ति पर निर्भर एवं गति तंत्रिका जान-बूझकर की गयी क्रियाएँ हैं। इन मांसपेशियाँ पर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का नियन्त्रण होता है। इस प्रकार की क्रियाओं के उदाहरण हैं—किसी भयानक वस्तु को देखकर भाग जाना, संकट से बचने के उपाय खोजना, किसी के वियोग में रो पड़ना आदि। इनसे भिन्न अनैच्छिक क्रियाएँ उन क्रियाओं को कहते हैं जो व्यक्ति की इच्छा शक्ति से मुक्त होती हैं तथा उन पर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का कोई नियन्त्रण नहीं होता।
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 Nervous System 5
इस वर्ग की क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

  • स्वतःसंचालित क्रियाएँ,
  • आकस्मिक क्रियाएँ तथा 
  • सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ।

प्रश्न 2
सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है

(1) शारीरिक प्रतिक्षेप (Physiological Reflexes)- ये वे सहज क्रियाएँ हैं जो स्वयं घटित होती हैं। इनके सम्पन्न होने में व्यक्ति को किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता और न ही इनके होने का ज्ञान ही होता है; जैसे—आँख पर चौंध पड़ते ही बिना किसी चेतना या ज्ञान के हमारी आँख की पुतली स्वत: सिकुड़ जाती है और आमाशय में भोजन पहुँचने के साथ-ही वहाँ ग्रन्थियों से स्राव होने लगता है।

(2) सांवेदनिक प्रतिक्षेप (Sensation Reflexes)- इन सहज क्रियाओं का ज्ञान व्यक्ति को हो जाता है; उदाहरणार्थ-आँख में धूल पड़ने पर पलक का चेतन होकर झपकना, नाक में तिनका आदि छूने से छींक आना तथा गले में खराश होने पर खाँसी उठना। सांवेदनिक प्रतिक्षेप को चेष्टा या इच्छा-शक्ति द्वारा कुछ क्षणों के लिए रोक पाना सम्भव है, किन्तु नियन्त्रण हटते ही सहज क्रिया अधिक आवेग से होने लगती है। आवश्यकता पड़ने पर खाँसी को कुछ समय के लिए इच्छा शक्ति से रोका जा सकता है, किन्तु नियन्त्रण हटते ही अधिक बल से खाँसी आती है।

प्रश्न 3
संयोजक़ स्नायुमण्डल से क्या आशय है?
उत्तर
हमारे स्नायु-संस्थान के एक भाग को संयोजक स्नायु-संस्थान (Peripheral Nervous System) कहते हैं। स्नायुमण्डल के इस भाग का मुख्य कार्य मस्तिष्क का शरीर के बाहरी तथा 
आन्तरिक भागों से सम्पर्क स्थापित करना होता है। संयोजक के रूप में इसके दो मुख्य कार्य हैं—प्रथम; यह मस्तिष्क तथा शरीर की ज्ञानेन्द्रियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है तथा द्वितीय; शरीर की ग्रन्थियों का मांसपेशियों से सम्बन्ध स्थापित करता है। संयोजक स्नायुमण्डल एक प्रकार से सन्देशवाहक की भूमिका भी निभाता है। यह संग्राहकों से प्राप्त सन्देशों को केन्द्रीय स्नायुमण्डल तक पहुँचाता है तथा केन्द्रीय स्नायुमण्डल से प्राप्त आदेशों को प्रभावकों तक पहुँचाता है। 

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न :I निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए

  1. व्यक्ति के व्यवहार के संचालन एवं नियन्त्रण का कार्य करने वाला संस्थान …………….  कहलाता है।
  2. स्नायु-संस्थान की रचना……………..
  3.  ………………. और …………… दोनों केन्द्रीय स्नायु तन्त्र के भाग हैं। (2018)
  4. स्नायु संस्थान का मुख्य केन्द्र …………….होता है।
  5. विभिन्न इन्द्रियाँ ही हमारे ……………….. हैं।
  6. संग्राहकों का कार्य बाह्य वातावरण से ……………… ग्रहण करना होता है। (2008)
  7. रासायनिक ग्राहकों द्वारा हमें …………..एवं …………. की संवेदना प्राप्त होती है।
  8. वृहद् मस्तिष्क के अग्र खण्ड में ……………क्षेत्र पाये जाते हैं।
  9. वृहद् मस्तिष्क के मध्य खण्ड में ………….. के अधिष्ठान या केन्द्र पाये जाते हैं।
  10. वृहद् मस्तिष्क के पृष्ठ खण्ड में ………….. अधिष्ठान या क्षेत्र पाया जाता है।
  11. वृहद् मस्तिष्क के शंख खण्ड में …………….. अधिष्ठान या क्षेत्रं पाया जाता है।
  12. शारीरिक सन्तुलन को बनाये रखने में ………… द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है।
  13. साँस लेना, रक्त-संचार, श्वसन, निगलना तथा पाचन आदि क्रियाओं का संचालन ….. द्वारा किया जाता है।
  14. शरीर तथा वातावरण के बीच उचित सामंजस्य बनाये रखने का कार्य मस्तिष्क के …….. नामक भाग द्वारा किया जाता है।
  15. सुषुम्ना…………. का एक भाग है।
  16. सुषुम्ना शरीर के बाह्य अंगों को …………….से जोड़ती है।
  17. अनुकम्पित तथा परा-अनुकम्पित स्नायुमण्डल …………..कार्य करते हैं।
  18. मानव मस्तिष्क तथा शरीर के बाहरी एवं आन्तरिक भागों में सम्पर्क की स्थापना……….. द्वारा होती है।
  19. प्रतिक्षेप या सहज क्रियाओं का केन्द्र ……………. है।
  20. अन्त:स्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले स्राव को ……….कहते हैं। (2010)

उत्तर
1. स्नायु संस्थान, 2. अत्यधिक जटिल, 3. मस्तिष्क, सुषुम्ना नाड़ी, 4. मस्तिष्क, 5. संग्राहक अंग, 6. उत्तेजनाएँ, 7. स्वाद, गन्ध, 8. क्रियात्मक अधिष्ठान या क्षेत्र, 9. त्वचा तथा मांसपेशियों, 10. दृष्टि, 11. श्रवण, 12. लघु मस्तिष्क, 13. मध्य मस्तिष्क, 14. सेतु, 15. केन्द्रीय स्नायु-संस्थान, 16. मस्तिष्क, 17. परस्पर सहयोग से, 18. संयोजक स्नायु मण्डल, 19. सुषुम्ना नाड़ी, 20. हॉर्मोन्स।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए-

प्रश्न 1.
सम्पूर्ण स्नायु-संस्थान को किन-किन भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर
सम्पूर्ण स्नायु-संस्थान को तीन भागों में बाँटा जाता है—

  1. केन्द्रीय स्नायु संस्थान
  2. स्वत:चालित स्नायु-संस्थान तथा
  3. संयोजक स्नायु-संस्थान।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय स्नायु संस्थान को किन-किन भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर
केन्द्रीय स्नायु-संस्थान को दो भागों में बाँटा जाता है—

  1. मस्तिष्क तथा
  2. सुषुम्ना नाड़ी।

प्रश्न 3.
मानव मस्तिष्क को कुल कितने भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर
मानव-मस्तिष्क को चार भागों में बाँटा जाता है-

  1. वृहद् मस्तिष्क
  2. लघु मस्तिष्क
  3. मध्य मस्तिष्क या मस्तिष्क शीर्ष तथा
  4. सेतु।

प्रश्न 4.
वृहद मस्तिष्क किन-किन खण्डों में बँटा होता है?
उत्तर
वृहद् मस्तिष्क चार खण्डों में बँटा होता है-

  1. अग्र खण्ड,
  2. मध्य खण्ड,
  3. पृष्ठ खण्ड तथा
  4. शंख खण्ड।

प्रश्न 5.
लघु मस्तिष्क का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर
लघु मस्तिष्क का मुख्य कार्य शारीरिक सन्तुलन में सहायता पहुँचाना तथा शारीरिक क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित रखना है।

प्रश्न 6.
मध्य मस्तिष्क का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर
मध्य मस्तिष्क का मुख्य कार्य शरीर की प्राण-रक्षा सम्बन्धी समस्त क्रियाओं का संचालन तथा नियन्त्रण करना है; जैसे कि साँस लेना, रक्त-संचार, निगलना तथा पाचन आदि।

प्रश्न 7.
स्वतःचालित स्नायुमण्डल द्वारा संचालित मुख्य क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
स्वत:चालित स्नायुमण्डल द्वारा संचालित होने वाली मुख्य क्रियाएँ हैं–पाचन क्रिया, श्वसन क्रिया, फेफड़ों का कार्य, हृदय का धड़कना तथा रक्त-संचार जैसी अनैच्छिक क्रियाएँ।

प्रश्न 8.
संयोजक स्नायुमण्डल के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
संयोजक स्नायुमण्डल एक ओर तो शरीर की ज्ञानेन्द्रियों से सन्देश ग्रहण कर उसे केन्द्रीय स्नायु-संस्थान तक पहुँचाता है तथा दूसरी ओर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान से प्राप्त आदेशों को प्रभावकों तक प्रेषित करता है।

प्रश्न 9.
मानवीय क्रियाएँ मुख्य रूप से कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर
मानवीय क्रियाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं-ऐच्छिक क्रियाएँ तथा अनैच्छिक क्रियाएँ।

प्रश्न 10.
प्रतिक्षेप चाप से क्या आशय है?
उत्तर
वह मार्ग जो ज्ञानेन्द्रिय से प्रारम्भ होकर स्नायु-केन्द्र से होते हुए एक मांसपेशी तक पहुँचता है, प्रतिक्षेप चाप कहलाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
शरीर के व्यवहार के संचालन एवं नियन्त्रण के कार्य को सम्पन्न करने वाले संस्थान को कहते हैं
(क) अस्थि-संस्थान
(ख) स्नायु-संस्थान
(ग) पेशी-संस्थान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) स्नायु-संस्थान

प्रश्न 2.
स्नायु-संस्थान को भाग है
(क) केन्द्रीय स्नायु-संस्थान ।
(ख) संयोजक स्नायु-संस्थान
(ग) स्वत:चालित स्नायु-संस्थान
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 3.
मस्तिष्क तथा सुषुम्ना, स्नायु संस्थान के किस भाग से सम्बन्धित है?
(क) केन्द्रीय स्नायु-संस्थान
(ख) स्वत:चालित स्नायु-संस्थान
(ग) संयोजक स्नायु-संस्थान
(घ) ये सभी
उत्तर
(क) केन्द्रीय स्नायु-संस्थान

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन मस्तिष्क का भाग है? (2014)
(क) सुषुम्ना।
(ख) सेतु ।
(ग) थायरॉइड
(घ) स्वत:संचालित स्नायु-संस्थान
उत्तर
(ख) सेतु ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन मस्तिष्क का भाग नहीं है? (2010)
(क) सेतु
(ख) सुषुम्ना
(ग) थैलेमस
(घ) हाइपोथैलेमस
उत्तर
(ख) सुषुम्ना

प्रश्न 6.
दौड़ते समय शारीरिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क का कौन-सा भाग जिम्मेदार होता है?
(क) वृहद् मस्तिष्क
(ख) लघु मस्तिष्क
(ग) थैलेमस
(घ) सुषुम्ना शीर्ष
उत्तर
(घ) सुषुम्ना शीर्ष

प्रश्न 7.
स्मृति, कल्पना, चिन्तन आदि उच्च मानसिक क्रियाओं का नियन्त्रण करता है- (2018)
(क) सुषुम्ना शीर्ष
(ख) लघु मस्तिष्क
(ग) सेतु
(घ) वृहद् मस्तिष्क
उत्तर
(घ) वृहद् मस्तिष्क

प्रश्न 8.
थैलेमस
(क) सुषुम्ना का एक भाग है।
(ख) मस्तिष्क का एक भाग है।
(ग) नलिकाविहीन ग्रन्थियों का एक भाग है
(घ) आमाशय को एक भाग है।
उत्तर
(ख) मस्तिष्क का एक भाग है।

प्रश्न 9.
सुषुम्ना भाग है (2016)
(क) मस्तिष्क का
(ख) स्नायुकोश का ।
(ग) केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का
(घ) नलिकाविहीन ग्रन्थियों का
उत्तर
(ग) केन्द्रीय स्नायु-संस्थान का

प्रश्न 10.
ज्ञानवाही व क्रियावाही स्नायुओं के कितने जोड़े सुषुम्ना से होकर शरीर के विभिन्न भागों में जाते हैं?
(क) 10
(ख) 16
(ग) 24
(घ) 31
उत्तर
(घ) 31

प्रश्न 11.
प्रतिवर्त क्रियाओं का संचालन करता है (2010, 12)
(क) थैलेमस
(ख) सुषुम्ना
(ग) मस्तिष्क
(घ) सेतु ।
उत्तर
(ख) सुषुम्ना

प्रश्न 12.
सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं की विशेषता है
(क) जन्मजात होती है तथा गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है।
(ख) सीखने की आवश्यकता नहीं होती।
(ग) इनका उद्देश्य व्यक्ति की रक्षा होता है।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन नलिकाविहीन ग्रन्थि नहीं है।
(क) गल ग्रन्थि
(ख) पीयूष ग्रन्थि
(ग) लार ग्रन्थि
|
(घ) शीर्ष ग्रन्थि
उत्तर
(ग) लार ग्रन्थि|

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन मास्टर ग्रन्थि कहलाती है? (2010)
(क) एड्रीनल
(ख) पीनियल
(ग) थायरॉइड
(घ) पीयूष
उत्तर
(घ) पीयूष

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