UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 5 गीत / श्रद्धा-मनु

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name गीत / श्रद्धा-मनु
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 5 गीत / श्रद्धा-मनु

गीत / श्रद्धा-मनु – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता हैं। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
छायावाद के प्रवर्तक एवं उन्नायक महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के अत्यन्त प्रतिष्ठित सँघनी साहू के वैश्य परिवार में 1890 ई. में हुआ था। माता-पिता एवं बसे भाई के देहावसान के कारण अल्पायु में ही प्रसाद जी को व्यवसाय एवं परिवार के समस्त उत्तर:दायित्वों को वहन करना पड़ा। घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बांग्ला, उर्दू, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए इन्होंने अपने भीतर काव्य प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक विषम परिस्थितियों को जीवटता के साथ झेलते हुए यह युगसष्टा साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अपूर्व रचना-सुमन अर्पित करता हुआ 14 नवम्बर, 1937 निष्प्राण हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
जयशंकर प्रसाद के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य प्रमुख विषय रहा है, साथ ही उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। प्रसाद जी सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। प्रसाद जी ने कुल 67 रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

कृतियाँ
इनकी प्रमुख काव्य कृतियों में चित्राधार, प्रेमपथिक, कानन कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी आदि शामिल हैं।
चार प्रबन्धात्मक कविताएँ शेरसिंह का शस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि, प्रलय की छाया तथा अशोक की चिन्ता अत्यन्त चर्चित रहीं।
नाटक चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, धुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित आदि।
उपन्यास कंकाल, तितली एवं इरावती (अपूर्ण रचना)
कहानी संग्रह प्रतिध्वनि, छाया, आकाशदीप, आँधी आदि।
निबन्ध संग्रह काव्य और कला

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि प्रसाद जी के काव्य में श्रृंगार रस के संयोग एवं विप्रलम्भ, दोनों पक्षों का सफल चित्रण हुआ है। इनके नारी सौन्दर्य के चित्र स्थूलता से मुक्त आन्तरिक सौन्दर्य को प्रतिबिम्बित करते हैं
    “हृदय की अनुकृति बाह्य उदार
    एक लम्बी काया उन्मुक्ता”
  2. दार्शनिकता उपनिषदों के दार्शनिक ज्ञान के साथ बौद्ध दर्शन का समन्वित रूप भी इनके साहित्य में मिलता है।
  3. रस योजना इनका मन संयोग श्रृंगार के साथ साथ विप्रलम्भ श्रृंगार के चित्रण में भी खूब रमा है। इनके वियोग वर्णन में एक अवर्णनीय रिक्तता एवं अवसाद ने उमड़कर सारे परिवेश को आप्लावित कर लिया है। इनके काव्यों में शान्त एवं करुण रस का सुन्दर चित्रण हुआ है तथा कहीं कहीं वीर रस का भी वर्णन मिलता है।
  4. प्रकृति चित्रण इन्होंने प्रकृति के विविध रूपों का अत्यधिक हदयग्राही चित्रण किया है। इनके यहाँ प्रकृति के रम्य चित्रों के साथ-साथ प्रलय का भीषण चित्र भी मिलता है। इनके काव्यों में प्रकृति के उद्दीपनरूप आदि के चित्र प्रचुर मात्रा में हैं।
  5. मानव की अन्तःप्रकृति का चित्रण इनके काव्य में मानव मनोविज्ञान का विशेष स्थान है। मानवीय मनोवृत्तियों को उन्नत रूप देने वाली उदात्त भावनाएँ महत्वपूर्ण हैं। इसी से रहस्यवाद का परिचय मिलता है। ये अपनी रचनाओं में शक्ति-संचय की प्रेरणा देते हैं।
  6. नारी की महत्ता प्रसाद जी ने नारी को दया, माया, ममता, त्याग, बलिदान, सेवा, समर्पण आदि से युक्त बताकर उसे साकार श्रद्धा का रूप प्रदान किया है। उन्होंने ”नारी! तुम केवल श्रद्धा हो” कहकर नारी को सम्मानित किया है।

कला पक्ष

  1. भाषा प्रसाद जी की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं, परन्तु शीघ्र ही वे खड़ी बोली के क्षेत्र में आ गए। उनकी खड़ी बोली उत्तर:ोत्तर परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक सौन्दर्य से युक्त होती गई। अद्वितीय शब्द चयन किया गया है, जिसमें अर्थ की गम्भीरता परिलक्षित होती है। इन्होंने भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का प्रयोग किया। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता से युक्त प्रसाद जी की भाषा में अद्भुत नाद-सौन्दर्य एवं ध्वन्यात्मकता के गुण विद्यमान हैं। इन्होंने चित्रात्मक भाषा में संगीतमय चित्र अंकित किए।
  2. शैली प्रबन्धकाव्य (कामायनी) एवं मुक्तक (लहर, झरना आदि) दोनों रूपों में प्रसाद जी का समान अधिकार था। इनकी रचना ‘कामायनी’ एक कालज कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है।
  3. अलंकार एवं छन्द सादृश्यमूलक अर्थालंकारों में इनकी वृत्ति अधिक भी है। इन्होंने नवीन उपमानों का प्रयोग करके उन्हें नई भंगिमा प्रदान की। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि के साथ मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्याय जैसे आधुनिक अलंकारों का भी सुन्दर उपयोग किया।

विविध छन्दों का प्रयोग तथा नवीन छन्दों की उदभावना इनकी रचनाओं में द्रष्टव्य है। आरम्भिक रचनाएँ घनाक्षरी छन्द में हैं। इन्होंने अतुकान्त छन्दों का प्रयोग अवैक किया है। ‘आँसू’ काव्य ‘सखी’ नामक मात्रिक छन्द में लिखा। इन्होंने ता.क, पादाकुलक, रूपमाला, सार, रोला आदि छन्दों का भी प्रयोग किया। इन्होंने अंग्रजी के सॉनेट तथा बांग्ला के त्रिपदी एवं पयार जैसे छन्दों का भी सफल प्रयोग किया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रसाद जी में भावना, विचार एवं शैली तीनों की प्रौढ़ता मिलती है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
प्रसाद जी भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से हिन्दी के युग-प्रवर्तक कवि के रूप में जाने जाते हैं। भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प आदि सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी ने युगान्तकारी परिवर्तन किए हैं। डॉ. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान का उल्लेख करते हुए लिखा है-“वे छायावादी काव्य के जनक और पोषक होने के साथ ही, आधुनिक काव्यधारा को गौरवमय प्रतिनिधित्व करते हैं।”

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

गीत

प्रश्न 1.
बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट में डुबो रही—
तारा-घट ऊषा नागरी। खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई—
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी। अधरों में राग अमन्द पिए,
अलकों में मलयज बन्द किए—
तू अब तक सोई है आली! आँखों में भरे विहाग री।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित गीत ‘बीती विभावरी जाग री’ से उधृत किया गया है।

(ii) “अम्बर-पनघट में इबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी।” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से नायिका की सखी उसे सुबह होने के विषय में बताते हुए कहती है कि ऊषा रूपी नायिका आकाश रूपी पनघट में तारे रूपी घड़े को डुबो रही है अर्थात् रात्रि का समय समाप्त हो गया है और सुबह हो गई है, लेकिन वह अभी तक सोई हुई है।

(iii) प्रभात का वर्णन करने के लिए कवि ने किन-किन उपादानों का प्रयोग किया हैं?
उत्तर:
प्रभात का वर्णन करने के लिए कवि ने आकाश में तारों के छिपने, सुबह-सुबह पक्षियों के चहचहाने, पेड़-पौधों पर उगे नए पत्तों के हिलने, समस्त कलियों के पुष्पों में परिवर्तित होकर पराग से युक्त होने आदि उपादानों का प्रयोग किया है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के कथ्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में सुबह होने के पश्चात् भी नायिका के सोने के कारण उसकी सखी उसे जगाने के लिए आकाश में तारों के छिपने, पक्षियों के चहचहाने आदि घटनाओं का वर्णन करते हुए उसे जगाने का प्रयास करती है। वह उसे बताना चाहता है कि सर्वत्र प्रकाश होने के कारण सभी अपने कार्यों में संलग्न हो गए हैं, किन्तु वह अभी भी सोई हुई हैं।

(v) प्रस्तुत गद्यांश में मानवीकरण अलंकार की योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मानवीकरण अलंकार में प्राकृतिक उपादानों के क्रियाकलापों का वर्णन मानवीय क्रियाकलापों के रूप में किया जाता है। प्रस्तुत पद्यांश में सुबह का नायिका के रूप में वर्णन, पत्तों का आँचल डोलना, लताओं का गागर भरकर लाना आदि पद्यांश में मानवीकरण अलंकार के प्रयोग पर प्रकाश डालते हैं।

श्रद्धा-मनु

प्रश्न 2.
और देखा वह सुन्दर दृश्य नयन का इन्द्रजाल अभिराम।
कुसुम-वैभव में लता समान चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम।
हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया, उन्मुक्त।
मधु पवन क्रीड़ित ज्यों शिशु साल सुशोभित हो सौरभ संयुक्त।
मसृण गान्धार देश के, नील रोम वाले मेषों के चर्म,
ढक रहे थे उसका वपु कान्त बन रहा था वह कोमल वर्म।
नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ-वन बीच गुलाबी रंग।
आह! वह मुख! पश्चिम के व्योम-बीच जब घिरते हों घन श्याम;
अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) “हृदय की अनुकृति बाह्य उदार” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति से कवि का आशय यह है कि श्रद्धा आन्तरिक रूप से जितनी उदार, भावुक, कोमल हृदय की थी, उसका बाह्य रूप भी वैसा ही था। वह अपने आन्तरिक गुण से जिस प्रकार सबको मोहित कर लेती थी. उसी । प्रकार उसका रूप सौन्दर्य भी सभी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम था।

(ii) कवि द्वारा किए गए श्रद्धा के रूप सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कवि श्रद्धा के रूप सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसके नयन अत्यधिक आकर्षक थे, वह स्वयं लता के समान सुन्दर एवं शीतल थे, घने केशों के मध्य उसका मुख चन्द्रमा के समान प्रतीत होता था, उसके तन की सुगन्ध बसन्ती बयार की तरह हृदय को शीतलता प्रदान कर रही थी। अपने कोमल हृदय के समान उसका बाह्य रूप भी अत्यन्त सुन्दर था।

(iii) कवि ने पद्यांश में घनश्याम शब्द को दो बार प्रयोग किया है, उनका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने उपरोक्त पद्यांश में ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ तथा ‘बीच जब घिरते हों घनश्याम्’ के रूप में दो बार घनश्याम शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु दोनों बार उसके अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। पहले घनश्याम का अर्थ बादल तथा दूसरे घनश्याम का अर्थ शाम के समय का बादल हैं।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना किस-किस-से की गई है?
उत्तर:
पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना दो मिन्न स्थानों पर दो भिन्न उपमानों से की गई है। पहले स्थान पर ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में नायिका की तुलना बादलों के बीच दिखने वाले चाँद से की गई है। वहीं दूसरे स्थान पर ‘अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम’ में शाम के समय आकाश में छाए बादलों के बीच दिखाई देने वाले सूर्य से की गई है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अनुप्रास, उपमा, रूपकातिशयोक्ति व उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में रूपक अलंकार, ‘सुशोभित हो सौरभ संयुक्त’ में अनुप्रास अलंकार,, ‘खिला हो ज्यों बिजली का फूल’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

प्रश्न 3.
यहाँ देखा कुछ बलि का अन्न भूत-हित-रत किसका यह दान!
इधर कोई है अभी सजीव, हुआ ऐसा मन में अनुमान। तपस्वी!
क्यों इतने हो क्लान्त, वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश बताओ यह कैसा उद्वेग?
दुःख की पिछली रजनी बीत विकसता सुख का नवल प्रभात;
एक परदा यह झीना नील छिपाए है जिसमें सुख गात।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत् की ज्वालाओं का मूल;
ईश का वह रहस्य वरदान कभी मत इसको जाओ भूला”

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि श्रद्धा एवं मनु के कथनों के माध्यम से जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। कवि कहना चाहता है कि जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आएँगी, लेकिन हमें निराश होकर आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

(ii) श्रद्धा मनु के पास पहुँचने का क्या कारण बताती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा भनु को बताती है कि विराट हिमालय के इस वीरान क्षेत्र में जब उसे जीव-जन्तुओं के लिए अपने भोजन में से निकालकर अलग रखे गए भोजन के अंश दिखाई दिए, तो उसे उस प्रदेश में किसी व्यक्ति के रहने की अनुभूति हुई और इसी वजह से वह मनु के पास पहुँची।।

(iii) “दुःख की पिछली रजनी बीत, विकसता सुख का नवल प्रभात” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार रात्रि के पश्चात् सूर्योदय होता है और सम्पूर्ण जगत् प्रकाशमय हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में व्याप्त दुःखों के पश्चात् सुख का सर्य भी उदित होता हैं।

(iv) श्रद्धा मनु को किस प्रकार प्रेरित करती है?
उत्तर:
जीवन से हताश एवं निराश मनु को प्रेरित करते हुए श्रद्धा उसे जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए समझाते हुए कहती है कि जिस दुःख से परेशान होकर तुमने उसे अभिशाप मान लिया है वह एक वरदान है, जो तुम्हें सदा सुख को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता रहता

(v) ‘रजनी’ व ‘प्रभात’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द पर्यायवाची शब्द
रजनी रात, निशा
प्रभात सुबह, सवेरा

प्रश्न 4.
समर्पण लो सेवा का सार सजल संसृति का यह पतवार;
आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार।
बनो संसृति के मूल रहस्य तुम्हीं से फैलेगी वह बेल;
विश्व भर सौरभ से भर जाए सुमन के खेलो सुन्दर खेल।
और यह क्या तुम सुनते नहीं विधाता का मंगल वरदान
‘शक्तिशाली हो, विजयी बनो’ विश्व में गूंज रहा, जय गान।
डरो मत अरे अमृत सन्तान अग्रसर है मंगलमय वृद्धि;
पूर्ण आकर्षण जीवन केन्द्र खिंची आवेगी सकल समृद्धि!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) श्रद्धा मनु के समक्ष अपनी कौन-सी इच्छा व्यक्त करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा मनु के समक्ष स्वयं को उसकी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार कर लेने की इच्छा व्यक्त करती हैं। वह उससे कहती हैं कि मनु के द्वारा उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेने से वे दोनों इस सृष्टि अर्थात् मानव जाति की सेवा कर सकेंगे।

(ii) “बनो संसृति के मूल रहस्य” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से स्वयं को पनी के रूप में स्वीकार कर इस निर्जन संसार में मानव की उत्पत्ति का मूलाधार बनने का आग्रह करती है। उसका आशय यह है कि उन दोनों के मिलन से ही इस जगत् में मनुष्य जाति की उत्पत्ति सम्भव होगी।

(iii) “शक्तिशाली हो विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से क्या कहना चाहती है?
उत्तर:
”शक्तिशाली हो विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु की एकान्त में जीवनयापन करने की इच्छा एवं निराश व हताश मनःस्थिति में परिवर्तन करके उसे अकर्मण्यता को त्यागकर कर्तव्यशील बनकर विश्व को विजय करने की प्रेरणा देना चाहती हैं।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्रबन्धात्मक शैली का प्रयोग किया है। कति ने काव्य रचना के लिए तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जो भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतःसक्षम है। भाषा सहज, सरल एवं प्रभावगयी है।

(v) ‘विगत’ व ‘आकर्षण’ शब्दों के विलोमार्थी शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विलोमार्थक शब्द
विगत आगत
आकर्षण विकर्षण

प्रश्न 5.
विधाता की कल्याणी सृष्टि सफल हो इस भूतल पर पूर्ण;
पटें सागर, बिखरे ग्रह-पुंज और ज्वालामुखियाँ हों चूर्ण।
उन्हें चिनगारी सदृश सदर्प कुचलती रहे खड़ी सानन्द;
आज से मानवता की कीर्ति अनिल, भू, जल में रहे न बन्द।
जलधि के फूटें कितने उत्स द्वीप, कच्छप डूबें-उतराय;
किन्तु वह खड़ी रहे दृढ़ मूर्ति अभ्युदय का कर रही उपाय।
शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;
समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) श्रद्धा मनु को स्वयं वरण करने हेतु क्या कहकर प्रेरित करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा मनु से कहती हैं कि यदि वह उसका वरण कर लेता है, तो वह संसार के सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं के लिए मानव-सृष्टि कल्याणकारी होगी। मानव समस्त प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, उफनते सागरों आदि पर विजय पाकर समस्त जीवों की रक्षा करेगा, इसलिए उसे उसका वरण कर लेना चाहिए।

(ii) श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख क्यों करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख मनु को यह समझाने के लिए करती है। कि इस प्रलयकारी घटना के पश्चात् भी मानवता की रक्षा एवं उत्थान हेतु नव प्रयास जारी रहे। अतः मनु को स्वयं को निरुपाय न मानकर समस्या के समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

(iii) श्रद्धा विद्युतकणों के माध्यम से क्या कहना चाहती है?
उत्तर:
श्रद्धा विद्युत कणों के माध्यम से यह कहना चाहती है कि जिस प्रकार ये अलग-अलग होने पर शक्तिहीन होते हैं, किन्तु एकत्रित होते ही शक्ति का स्रोत बन जाते हैं, उसी प्रकार मानव भी जब अपनी शक्ति को पहचानकर एकत्रित कर लेता है तो वह विश्व-विजेता बन जाता है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अलंकार किसी भी काव्य रचना के सौन्दर्य में वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रस्तुत पद्यांश में भी कवि ने विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘सदृश सदर्प’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार तथा विद्युतकणों का उदाहरण देने के कारण दृष्टान्त अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(v) अभ्युदय’ व ‘निरुपाय’ में से उपसर्ग व मूल शब्द अलग-अलग कीजिए।
उत्तर:

शब्द उपसर्ग मूलशब्द
अभ्युदय अभि उदय
निरुपाय निर् उपाय

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