UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name सुमित्रानन्दन पन्त
Number of Questions 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।[2013, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-पारचय–प्रकृति के सुकुमार कवि पं० सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, 1900 ई० ( संवत् 1957 वि० ) को प्रकृति की सुरम्य क्रीड़ास्थली कूर्माचल प्रदेश के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम गंगादत्त पन्त तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था। ये अपने माता-पिता की सबसे छोटी सन्तान थे। पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में हुई। इसके पश्चात् ये अल्मोड़ा गवर्नमेण्ट हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए। तत्पश्चात् काशी के जयनारायण हाईस्कूल से इन्होंने स्कूल लीविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1916 ई० में आपने प्रयाग के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से एफ० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद ये स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करने लगे। इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी तथा बँगला का गम्भीर अध्ययन किया। उपनिषद्, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर भी इनकी रुचि रही। संगीत से इन्हें पर्याप्त प्रेम था। सन् 1950 ई० में ये ऑल इण्डिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन् 1957 ई० तक इससे सम्बद्ध रहे। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ नामक काव्य-ग्रन्थ पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत भूमि पुरस्कार’ और ‘चिदम्बरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने पन्त जी को ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया। पन्त जी 28 दिसम्बर, 1977 ई० ( संवत् 2034 वि०) को परलोकवासी हो गये।

साहित्यिक सेवाएँ–पन्त जी गम्भीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के प्रति आस्थावान एक ऐसे सहज कुशल शिल्पी थे, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय के नवम्वप्नों को मजना की। इन्होंने सौन्दर्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है, इसीलिए इन्हें सौन्दर्य का कवि भी कहा जाता है।। रचनाएँ-पन्त जी ने अनेक काव्यग्रन्थ लिखे हैं। कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं, किन्तु कवि रूप में ये अधिक प्रसिद्ध है। पन्त जी के कवि रूप के विकास के तीन सोपान हैं—(1) छायावाद और मानवतावाद, (2) प्रगतिवाद या माक्संवाद तथा (3) नवचेतनावाद।।

  1. पन्त जी के विकास के प्रथम सोपान (जिसमें छायावादी प्रवृत्ति प्रमुख थी) की सूचक रचनाएँ हैं वीणा, ग्रन्थि, पल्लव और गुंजन। ‘वीणा’ में प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति कवि का अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है। ‘ग्रन्थि’ से वह प्रेम की भूमिका में प्रवेश करता है और नारी-सौन्दर्य उसे आकृष्ट करने लगता है। ‘पल्लव’ छायावादी पन्त का चरमविन्दु है। अब तक कवि अपने ही सुख-दु:ख में केन्द्रित था, किन्तु ‘गुंजन’ से वह अपने में ही केन्द्रित न रहकर विस्तृत मानव-जीवन (मानवतावाद) की ओर उन्मुख होता है।
  2. द्वितीय सोपान के अन्तर्गत तीन रचनाएँ आती हैं-युगान्त, युगवाणी और ग्राम्या। इस काल में कवि पहले ‘गाँधीवाद’ और बाद में ‘मार्क्सवाद’ से प्रभावित होकर फिर प्रगतिवादी बन जाता है।
  3. मार्क्सवाद की भौतिक स्थूलता पन्त जी के मूल संस्कारी कोमल स्वभाव के विपरीत थी। इस कारण वह तृतीय सोपान में वे पुनः अन्तर्जगत् की ओर मुड़े। इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैंस्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, अतिमा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, किरण, पतझर-एक भाव क्रान्ति और गीतहंसः इस काल में कवि पहले विवेकानन्द और रामतीर्थ से तथा बाद में अरविन्द-दर्शन से प्रभावित होता है।

सन् 1955 ई० के बाद की पन्त जी की कुछ रचनाओं (कौए, मेंढक आदि) पर प्रयोगवादी कविता का प्रभाव है, पर कवि का यह रूप भी सहज न होने से वह इसे भी छोड़कर अपने प्राकृत (वास्तविक) रूप पर लौट आया।

साहित्य में स्थान-पन्त जी निर्विवाद रूप से एक सजग प्रतिभाशाली कलाकार थे। इनकी काव्य-साधना सतत विकासोन्मुखी रही है। ये अपने काव्य के बाह्य और आन्तरिक दोनों पक्षों को सँवारने में सदैव सचेष्ट रहे हैं। प्रकृति के सर्वाधिक सशक्त चितेरे के रूप में आधुनिक हिन्दी-काव्य में ये सर्वोपरि हैं। पन्त जी निश्चित ही हिन्दी-कविता के श्रृंगार हैं, जिन्हें पाकर माँ भारती कृतार्थ हुई है।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

नौका-विहार

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
जब पहँची चपला बीच धार,
छिप गया चाँदनी का कगार !
दो बाहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर
आलिंगन करने को अधीर !
अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल लगती भू-रेखा-सी अराल,
अपलक नभ नील-नयन विशाल;
माँ के उर पर शिशु-सा, समीप, सोया धारा में एक द्वीप,
उर्मिल प्रवाह को कर प्रतीप,
वह कौन विहग? क्या विकल कोक, उड़ता हरने निज विरह शोक?
छाया की कोकी को विलोक !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कब चाँद-सा चमकता हुआ रेत का कगार कवि की आँखों से ओझल हो गया?
(iv) धारा के बीच से देखने पर गंगा के दोनों तट किसके समान लगते हैं?
(v) धारा के बीच स्थित द्वीप कैसा दिखाई पड़ता है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका-विहार’ शीर्षक कविता से उद्धत है। और हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक नाम- नौका-विहार।।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-जब नौका गंगा की बीच धारा में पहुँची तो हमने देखा कि चाँदनी में चाँद-सा चमकता हुआ रेतीला कगार हमारी दृष्टि से ओझल हो गया। गंगा के दूर-दूर स्थित दोनों तट फैली हुई दो बाँहों के समान लग रहे थे, जो गंगा-धारा के दुबले-पतले कोमल नारी शरीर का आलिंगन करने के लिए अधीर थे; अर्थात् अपने में कस लेना चाहते थे।
(iii) जब नाव बीच धारा में पहुंची तब कवि ने देखा कि चाँदनी रात में चाँद-सा चमकता हुआ रेतीला कगार आँखों से ओझल हो गया।
(iv) धारा के बीच में देखने पर गंगा के दोनों तट फैली हुई दो भुजाओं के समान लग रहे हैं, जो गंगा के दुबले-पतले शरीर का आलिंगन करने के लिए अधीर हैं।
(v) धारा के बीच स्थित द्वीप ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे माँ की छाती से चिपककर कोई नन्हा बालक सोया हुआ हो।

प्रश्न 2.
ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार
उर में आलोकित शत विचार ।
इस धारा-सा ही जग का क्रम, शाश्वत इस जीवन का उद्गम,
शाश्वत है गति, शाश्वत संगम !
शाश्वत नभ का नीला विकास, शाश्वत शशि का यह रजत हास,
शाश्वत लघु लहरों का विलास !
हे जग-जीवन के कर्णधार ! चिर जन्म-मरण के आर-पार,
शाश्वत जीवन-नौका-विहार?
मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान, जीवन का यह शाश्वत प्रमाण,
करता मुझको मरत्व दान !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इस संसार की गति कवि को किसके समान लगती है?
(iv) गंगा के दोनों किनारे कवि को किसके समान लगते हैं?
(v) कवि क्या भूल गया था?
उत्तर
(i) यह पद्यांश कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका-विहार’ शीर्षक कविता से उद्धत है। और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- नौका-विहार।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-जिस प्रकार गंगा की धारा अनादि काल से प्रवाहित होती चली आ रही है, उसी प्रकार यह जगत् (संसार) भी अनादि काल से चला आ रहा है। जिस प्रकार गंगा के जल का उद्गम, प्रवाह एवं सागर में मिलना शाश्वत (निश्चित) है उसी प्रकार जीवन का उत्पन्न होना, गतिशील होना और अन्त में विराट तत्त्व में विलीन हो जाना भी सनातन ही है।
(iii) इस संसार की गति कवि को धारा के समान ही लगती है।
(iv) गंगा के दोनों किनारे जन्म और मृत्यु के समान सनातन लगते हैं।
(v) कवि जीवन का वास्तविकस्वरूप भूल गया था।

परिवर्तन

प्रश्न 1.
आज बचपन का कोमल गात
जरा को पीला पात !
चार दिन सुखदै चाँदनी रात
और फिर अन्धकार, अज्ञात !
शिशिर-सा झर नयनों का नीर
झुलस देता गालों के फूल ।
प्रणय का चुम्बन छोड़ अधीर
अधर जाते अधरों को भूल !
मृदुल होठों का हिमजले हास
उड़ा जाता नि:श्वास समीर,
सरल भौंहों का शरदाकाश
घेर लेते घन, घिर गम्भीर !
शून्य साँसों का विधुर वियोग
छुड़ाता अधर मधुर संयोग,
मिलन के पल केवल दो चार,
विरह के कल्प अपार !
अरे, वे अपलक चार नयन,
आठ आँसू रोते निरुपाय,
उठे रोओं के आलिंगन
कसक उठते काँटों-से हाय !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) बचपन का कोमल और सुन्दर शरीर वृद्धावस्था आने पर कैसा हो जाता है।
(iv) वृद्धावस्था की गहरी साँसें किसे उड़ा देती हैं?
(v) कवि ने सुःख और दुःख की क्या समयावधि बतायी है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम— परिवर्तन।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-मनुष्य को इस संसार में प्रियजनों से मिलने का सुख बहुधा कुछ ही पल मिल पाता है। अभी वह उन क्षणों को पूर्ण आनन्द भी नहीं ले पाता कि वियोग का क्षण आ पहुँचता है, जो अनन्त काल तक खिंचता चला जाता है। वस्तुत: समय की गति संयोग में अत्यधिक अल्पकालिक और वियोग में अत्यन्त दीर्घकालिक हो जाती है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। मिलन-विरह समकालिक है। मिलन के क्षण आनन्द की अनुभूति कराते हैं इसलिए वे शीघ्र बीत गये प्रतीत होते हैं, जबकि विरह के क्षण दु:खपूर्ण होते हैं। कष्ट से व्यतीत होने के कारण वे स्थायी रूप से रुक गये प्रतीत होते हैं।
(iii) बचपन का कोमल शरीर वृद्धावस्था आने पर पीले, सूखे, खुरदरे पत्ते के समान हो जाता है।
(iv) वृद्धावस्था की गहरी साँसें बचपन की होंठों पर ओस की बूंद के समान निर्मल और मोहक हँसी को उड़ा देती हैं।
(v) कवि ने सु:ख के क्षणों को दो-चार दिन यानी बहुत कम तथा दु:ख के समय को कल्पों के समान लम्बा (लगभग सम्पूर्ण जीवन) बताया है।

प्रश्न 2.
अहे निष्ठुर परिवर्तन !
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन !
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन !
अहे वासुकि सहस्रफन !
लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरन्तर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर !
शत-शत फेनोच्छ्वसित, स्फीत फूत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर ।
मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर
अखिल विश्व ही विवर,
वक्र कुण्डल
दिङमंडल !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवि ने निष्ठुर किसे कहा है?
(iv) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन किसके समान दृष्टिगोचर नहीं होते?
(v) कवि ने मृत्यु को क्या बताया है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम – परिवर्तन।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि ने परिवर्तन को हजार फनों वाले नागराज वासुकि का रूप दिया है। और बताया है कि परिवर्तन रूपी सर्प के रहने का बिल (विवर) सम्पूर्ण विश्व है, क्योंकि परिवर्तन सर्वत्र ही व्याप्त है। सम्पूर्ण दिशाओं का मण्डल ही इसकी गोलाकार कुण्डली है। सभी दिशाओं और सम्पूर्ण संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं बचा है जहाँ परिवर्तन का प्रभाव न होता हो।
(iii) कवि ने परिवर्तन को निष्ठुर कहा है।
(iv) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन वासुकि सर्प के पैरों के समान दृष्टिगोचर नहीं होते।
(v) कवि ने मृत्यु को वासुकि नाग का विषैला दाँत बताया है।

बापू के प्रति

प्रश्न 1.
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष ! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण ! हे चिर नवीन !
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर ।
भावी की संस्कृति समासीन ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कौन हइडियों का ढाँचा मात्र प्रतीत होते हैं?
(iv) गाँधी जी को कवि ने चिर पुराण तथा चिर नवीन क्यों कहा है?
(v) गाँधी जी के आदर्शों पर भविष्य में किसे खड़ा होना पड़ेगा?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- बापू के प्रति।।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–हे बापू! जैसी जीवन्मुक्त योगियों की दशा होती है, वैसी ही दशा आपकी भी है। तुममें मानव-जीवन की पूर्णता (चरम आदर्श) निहित है, जिसमें (अर्थात् पूर्णता में) विश्व की समस्त असारता लीन हो जाएगी। आशय यह है कि संसार तुम्हारे मार्ग पर चलकर अपना खोखलापन दूर करके मानव-जीवन की चरम सार्थकता को प्राप्त करेगा। तुम जिन सिद्धान्तों के आधार पर खड़े हो, वे अमर हैं, शाश्वत हैं। इसलिए भविष्य की मानव-संस्कृति को तुम्हारे ही आदर्शों पर खड़े
होना पड़ेगा; अर्थात् आपके द्वारा दिये गये विचार और ज्ञान ही मानव-जाति के लिए आधार होंगे।
(iii) गाँधी जी देखने में हड्डियों का ढाँचा मात्र प्रतीत होते हैं।
(iv) गाँधी जी को शुद्ध ज्ञानस्वरूप आत्मा अर्थात् आत्मस्वरूप होने के कारण कवि ने चिर पुराण तथा चिर नवीन कहा है।
(v) गाँधी जी के आदर्शों पर भविष्य की मानव-संस्कृति को खड़ा होना पड़ेगा।

प्रश्न 2.
सुख भोग खोजने आते सब,
आये तुम करने सत्य-खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज !
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में आकर किसकी खोज में लग जाते हैं?
(iv) गाँधी जी का भौतिकवादी मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
(v) ‘तुम आत्मा के, मन के मनोज!’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- बापू के प्रति।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-वह पशुता की कीचड़ से उत्पन्न कमलवत् था। तुमने उसे मानवीयतारूपी निर्मल जल वाले सरोवर से उत्पन्न कमल बना दिया; अर्थात् तुमने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया।
(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में सुख की खोज में लग जाते हैं।
(iv) गाँधी जी ने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया अर्थात् लोगों को मानवीय गुणों के आधार पर जीना सिखा दिया।
(v) रूपक अलंकार।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Comment