UP Board Solutions for Class 7 Sanskrit chapter 12 आदिकविः वाल्मीकिः

UP Board Solutions for Class 7 Sanskrit chapter 12 आदिकविः वाल्मीकिः

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शब्दार्थाः- व्याधेन = बहेलिया द्वारा, क्रौञ्चपक्षिणम् = क्रौंच नामक पक्षी को, उच्चैः = जोर-जोर से, क्रन्दनम् = विलाप को, चीख को, कारुणिकः = दयालु, निषाद! = हे व्याध, प्रतिष्ठाम् = सम्मान, ततः प्रभृति = से लेकर, विज्ञान = जानकर, विदित्वा = जानकर, (UPBoardSolutions.com) दाक्षिण्यम् = उदारता, अनुकूलता; जीवनमूल्यानि = आदर्श जीवन के मूल्य।

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पूरा वाल्मीकिः ………………………………………………………… काममोहितम्॥

हिन्दी अनुवाद – पहले वाल्मीकि नाम के एक ऋषि थे। एक दिन ये शिष्यों सहित स्नान करने के लिए तमसा नदी पर गए। रास्ते में इन्होंने शिकारी द्वारा बिंधा हुआ एक हंस देखा। साथी के वियोग में हंसिनी व्याकुल हो गई और वह जोर-जोर से रोने लगी। उसकी रुलाई सुनकर और दुख देखकर ऋषि का हृदय द्रवित (पिघल) हो गया। क्रौंची (हंसिनी) के विलाप से पैदा हुआ ऋषि का शोक श्लोक के रूप में इनके मुख से इस प्रकार निकल (UPBoardSolutions.com) पड़ा हे निषाद! तुम्हें सत्य में निरन्तर कभी भी सम्मान और शान्ति प्राप्त न हो, क्योंकि तुमने क्रौंच के जोड़े में से काम से मोहित एक निर्दोष की हत्या की है।

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अयमेव श्लोकः ………………………………………………………… प्रसिद्धिम् उपगता।

हिन्दी अनुवाद – यही श्लोक लौकिक संस्कृत साहित्य की पहली काव्य रचना है। तब से ये ऋषि कवि बन गए। ऋषि के कवित्व को जानकर ब्रहमा ने आकाशवाणी से आदेश दिया। हे मुनि जी! आप रामायण काव्य लिखें और उसमें राम के चरित्र का वर्णन करें, जिससे भगवान राम के पावन चरित्र को जानकर लोग सन्मार्ग का अनुसरण करें। ब्रह्मा के आदेश के अनुसार इस मुनि ने श्लोकबद्ध रामायण की कथा लिखी, जो वाल्मीकि (UPBoardSolutions.com) रामायण नाम से प्रसिद्ध हुई।

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अत्र कविना ………………………………………………………… उच्यते।

हिन्दी अनुवाद – यहाँ (इसमें) कवि ने वैसे तथ्यों को लिखा है, जो मानव जीवन का पथ-प्रदर्शन करने वाले हैं। इस काव्य में वाल्मीकि ने पिता की आज्ञा का पालन करना, भातृ स्नेह, परोपकार, दया, उदारता, गरीबों की रक्षा करना इत्यादि (UPBoardSolutions.com) मानवता पोषी जीवन मूल्यों का वर्णन किया है। इन कवि को संस्कृत का आदिकवि और इनकी रचना को आदिकाव्य कहा जाता है।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) वाल्मीकिः स्नातुं कुत्र अगच्छत्?
उत्तर :
वाल्मीकिः स्नातुं तमसानद्या तीरम् अगच्छत्।।
(ख) किं श्रुत्वा किं दृष्ट्वा च ऋषि द्रवितोऽभवत्?
उत्तर :
क्रौञ्च्याः रोदनं श्रुत्वा दयनीय दशां दृष्ट्वा च ऋषिः (UPBoardSolutions.com) द्रवितो भवत्।

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(ग) ब्रह्मा आकाशवाण्या वाल्मीकिं किम् आदिशत्?
उत्तर :
ब्रह्मा आकाशवाण्या वाल्मीकिं आदिशत्-ऋषे! कुरु रामायणं काव्यम्। तत्र च रामचरितं वर्णय, येन रामस्य पुण्यं चरित्रं विदित्वा लोकाः सन्मार्गस्यानुसरणं कुर्युः।”
(घ) वाल्मीकिना श्लोकबद्धा का कथा लिखिता?
उत्तर :
वाल्मीकिः श्लोकबद्धा रामायणीकथा लिखिता।
(ङ) संस्कृतस्य आदिकवि कः? (UPBoardSolutions.com)
उत्तर :
वाल्मीकिः संस्कृतस्य आदिकविः।।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखितपदानां विभक्तिं वचनं च लिखत (लिखकर)
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प्रश्न 4.
निम्नलिखितपदेषु प्रयुक्तं उपसर्ग पृथक् कुरुत (UPBoardSolutions.com) (उपसर्ग अलग करके)
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प्रश्न 5.
संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत ( अनुवाद करके)
(क) सभी छात्र स्नान करने के लिए नदी के किनारे गए।
अनुवाद : सर्वे छात्राः स्नानाय नदी तीरे अगच्छन्।
(ख) वाल्मीकिरामायण में राम का चरित वर्णित है।
अनुवाद : वाल्मीकिरामायणे रामस्य (UPBoardSolutions.com) चरितं वर्णितम्।
(ग) वाल्मीकि ने क्रोञ्ची का रोना सुना।।
अनुवाद : वाल्मीकिः क्रौञ्च्याः रोदनं अशृणोत्।
(घ) ब्रह्मा ने वाल्मीकि को आदेश दिया।
अनुवाद : ब्रह्मा वाल्मीकिम् आदिशत्।।

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(ङ) महापुरुषों के चरित्र का अनुसरण करो।
अनुवाद : महापुरुषाणां चरित्रस्य अनुसरणं कुरु।।

प्रश्न 6.
मजूषातः पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत (पूर्ति करके)
(क) पुरा वाल्मीकिः नाम एक ऋषिः आसीत्।
(ख) व्याधेन विधम् एकं क्रौञ्चपक्षिणम् (UPBoardSolutions.com) अपश्यत्।
(ग) ततः प्रभृति ऋषिरय कविपदम् प्राप्तः।।
(घ) अयं कविः संस्कृतस्य आदिकविः उच्यते।

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प्रश्न 7. पदानि चित्वा कथा पूरयत (कथा पूरी करके)
एकस्मिन् पर्वते दुर्दान्त नामकः सिंहः निवसति स्म। सः मूषकैः पीडितः आसीत्। रात्रिकाले मूषकाः तस्य केशान् कर्तयन्ति स्म। प्रातः सिंहः केशान् अधः दृष्ट्वा दुःखी भवति स्म। एकदा सः मूषकानाम् उपायम् कर्तुम् संकल्पम् अकरोत्। चिन्तामग्नः (UPBoardSolutions.com) सः वने बिडालकम् अपश्यत्। बिडालकेन सह मित्रतां कृत्वा स्वगुहां प्रति अनयत् मूषकाः बिडालकस्य भयेन विवरेषु केवलं शब्दं कुर्वन्ति स्म। यदा क्षुधापीडया मूषकाः बहिः आगच्छन्ति, तदा बिडालकः तान् मारयतिस्म एवं शनैः-शनैः मूषका समाप्ताः। स्वार्थ सिद्धे सिंहः बिडालकस्य उपेक्षाम् अकरोत्। समाजे स्वार्थिभिः सावधानाः भवेम।

नोट – विद्यार्थी शिक्षण संकेत स्वयं करें।

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