UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद जी का जन्म 29 जनवरी, सन् 1886 को माघी पूर्णिमा के दिन वर्तमाने बांग्ला देश के फरीदपुर जिले के बाजितपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम विनोर था। इनके पिता का नाम विष्णुचरण दास तथा माता का नाम शारदा देवी था। वे बचपन से ही शांत स्वभाव (UPBoardSolutions.com) के तथा बुद्धिमान थे। वे प्रायः किसी वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न रहते थे। गाँव की पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने अंग्रेजी हाई-स्कूल में प्रवेश लिया। इस समय पढ़ाई की अपेक्षा वे साधना एवं चिंतन में अधिक सक्रिय रहते थे। वे शुद्ध शकाहारी थे तथा ब्रह्मचर्य साधना पर उनका विशेष बल था। गाँव वाले उन्हें विनोद ब्रहमचारी के रूप में जानते थे।

जब वे दश्वीं कक्षा के विद्यार्थी थे तभी उनके सन्यास की प्रबल इच्छा को जानकर उनके शिक्षक ने गोरखपुर के नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज गंभीरनाथ की शरण में जाने की सलाह दी। गोरखपुर आने के बाद इन्होंने बाबा गंभीर नाथ से दीक्षा ग्रहण की तथा वहाँ कुछ दिन साधना करने के बाद अपने गुरू की सलाह पर ये काशी चले गए और वहाँ गंगा किनारे अस्सी घाट पर साधना करने लगे। कुछ दिनो बाद गुरु के आदेश पर वे , अपने पैतृक गाँव बाजितपुर लौट आए। वर्ष 1924 में प्रयाग में इन्होंने (UPBoardSolutions.com) सन्नयास की विधि वत दीक्षा ग्रहण की तथा उनका प्रणवानंद स्वामी हो गया। अब उनका अधिकांश समय आध्यात्मिक उन्नति की साधना में बीतने लगा। वर्ष 1917 में उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। इस संस्थ ने अकाल, बाढ़ तथा अन्य प्राकृति आपदा पीड़ितो की खूब सहायता की।

उन्होंने शक्ति साधना एवं शक्तिशाली राष्ट्र गठन के प्रचार-प्रसार के लिए सन् 1929 में भारत सेवाश्रम संघ की मुख्य पत्रिका प्रलव का प्रकाशन आरंभ किया। स्वामी प्रणवानंद ने पश्चिम बंगाल को भारत के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आगे बढ़ाया और बंगाल के पश्चिमी हिस्से को भारत में सम्मिलित करने के लिए ब्रिटिश शासन को विवश कर दिया जो आज पश्चिम बंगाल के नाम से जाना जाता है। आजीवन समाज व राष्ट्र सेवा हेतु कठोर परिश्रम करते हुए इस विलक्षण महापुरुष ने 8 जनवरी, 1941 को अपना स्थूल शरीर त्याग दिया। उनके द्वारा स्थापित ‘भारत सेवाश्रम संघ निरंतर मानवजाति की सच्ची सेवा और कल्याण भावना की ओर अग्रसर हैं।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
प्रश्न 1.
विनोद ब्रह्मचारी ने प्रथम दीक्षा कब और किससे ग्रहण की?
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी ने 1913 में गोरखपुर में नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज बाबा गंभीरनाथ से प्रथम दीक्षा ग्रहण की।

प्रश्न 2.
विनोद ब्रह्मचारी के चारों महावाक्य लिखिए।
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी के चार महाकाव्य हैं।

  • यह युग महाजागरण का युग है,
  • महामिलन का युग है, (UPBoardSolutions.com)
  • महासमन्वय का युग है और
  • यह युग महामुक्ति का युग है।

प्रश्न 3.
वे ‘विनोद ब्रह्मचारी’ से ‘स्वामी प्रणवानंद’ कब और कैसे हुए?
उत्तर :
वर्ष 1924 के प्रयाग के अर्धकुम्भ मेले में विनोद ब्रह्मचारी ने स्वामी गोविंदा नंद गिरि से संन्यास की विधिवत दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे विनोद ब्रह्मचारी से स्वामी प्रणवानंद हो गए।

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प्रश्न 4.
स्वामी प्रणवानंद ने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना क्यों की?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद ने अकाल, बाढ़, प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) प्रकोप आदि से पीड़ित लोगों के सहायतार्थ भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि, मानव जाति की सेवा के लिए उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की।

प्रश्न 5.
स्वामी प्रणवानंद का क्या उद्घोष था?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद का उद्घोष था कि धर्म है- त्याग, सत्य और ब्रह्मचर्य में। धर्म है- आचार, अनुष्ठान और अनुभूति में।” स्वामी जी की यह अनमोल वाणी चिरकाल तक हमारा. मार्गदर्शक करती रहेगी।

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