UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 17 सामान्य घरेलू देशज औषधियाँ तथा सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थ

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सामान्य घरेलू देशज औषधियों से क्या आशय है? कुछ मुख्य घरेलू औषधियों का सामान्य परिचय दीजिए।
या
कुछ घरेलू देशज औषधियों के नाम एवं उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
सामान्य देशज औषधियाँ
रोग एवं दुर्घटनाएँ घरेलू अथवा पारिवारिक जीवन की सामान्य घटनाएँ हैं जो कि प्रायः पीड़ित व्यक्ति के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी अनेक प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक कठिनाइयों में डाल देती हैं। प्राथमिक चिकित्सा तथा घरेलू औषधियों के ज्ञान का धैर्यपूर्वक उपयोग कर इन कठिनाइयों की गम्भीरता को न केवल कम किया जा सकता है, वरन् कई बार इनका सहज ही निवारण भी किया जा सकता है। सामान्यतः घरों में प्रयुक्त होने वाले मसालों, तरकारियों एवं फलों तथा सहज ही उपलब्ध सामान्य औषधियों का देशज घरेलू औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि घर पर उपलब्ध होने वाले सामान्य पदार्थों को घरेलू देशज औषधियाँ कहा जाता है। ये पदार्थ विभिन्न शारीरिक विकारों में कष्ट-निवारक के रूप में इस्तेमाल किए (UPBoardSolutions.com) जाते हैं। इन घरेलू देशज औषधियों की जानकारी मनुष्य ने अपने दीर्घकालिक अनुभवों द्वारा प्राप्त की है तथा यह जानकारी पीढ़ी दर-पीढ़ी इसी रूप में हस्तान्तरित होती रहती है; उदाहरण के लिए–प्रायः सभी परिवारों के पेट दर्द में अजवाइन का प्रयोग किया जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अजवाइन को घरेलू देशज औषधि की श्रेणी में रखा जाता है। वैसे सामान्य रूप से अजवाइन एक मसाले के रूप में इस्तेमाल होती है। मुख्य सामान्य घरेलू देशज औषधियों तथा उनकी उपयोगिता का सामान्य परिचय निम्नर्णित है

(क) कुछ मसाले घरेलू औषधियों के रूप में
मसालों के रूप में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न पदार्थ, कई छोटे-छोटे रोगों और कष्टों के लिए लाभप्रद गुण रखते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित सूची देखिए

  1. अजवाइन: यह पेट के दर्द को कम करती है। अफारा और गैस में भी लाभदायक है।
  2. सोंठ: यह वायु के रोगों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
  3.  हींग: यह पेट के रोगों के लिए अत्यधिक लाभप्रद है। गैस, अफारा आदि में इसे पानी में घोलकर पेट पर लगाने से भी आराम मिलता है। अन्य पदार्थ; जैसे-अजवाइन, सोंठ, नमक आदि के साथ मिलाकर देने से पेट का दर्द, गैस, अफारे की शिकायत दूर हो जाती है।
  4.  काली मिर्च: यह गले को साफ करती है और कफ को हटाती है।
  5.  जीरा: यह पाचन क्रिया के लिए बहुत अच्छां पदार्थ है। भूख को बढ़ाता है।
  6.  मेथी: यह भूख को बढ़ाती है। इसके बने लड्डू वायु के दर्द में लाभप्रद हैं।
  7.  हल्दी: यह रक्त को शुद्ध करती है। इसका प्रयोग त्वचा को साफ करने में किया जाता है। यह कीटाणुनाशक है। छोटे-मोटे पेट के कीड़े इससे नष्ट हो जाते हैं।
  8.  लोंग: यह दाँत के दर्द के लिए एक अच्छी औषधि है। इसे पीसकर लगाने से दर्द बन्द हो जाता है। गले की खराश में भी लोग चूसी जाती है।
  9.  राई: मिरगी के रोगी को बारीक पिसी हुई राई सुंघाने से मूच्र्छा दूर हो जाती है।
  10.  अदरक: यह पाचन-क्रिया में सहायक है तथा वायु के रोगों को ठीक करता है।
  11.  नमक: यह घाव को साफ करने के लिए एक अच्छा पदार्थ है। गरम पानी में मिलाकर सिकाई करने से सूजन ठीक हो जाती है। गरम पानी में घोलकर गरारे करने से गला साफ होता है, कफ हटता है और सूजन कम हो जाती है।
  12.  सौंफ: यह खुनी पेचिश के लिए अत्यधिक लाभप्रद दवा है। पानी में उबालकर अर्क देने से यह बीमारी ठीक हो जाती है। इसका पानी अधिक प्यास को कम करता है तथा गर्मी के कारण होने वाले सिर दर्द को ठीक करता है।।
  13.  दाल: चीनी-दस्त और मरोड़ों में कत्था के साथ प्रयोग की जाती है।
  14.  पोदीना: सूखा हुआ पोदीना तथा उसका अर्क उल्टियों को बन्द करता है। पोदीना पाचन क्रिया में भी सहायक है।

(ख) कुछ सामान्य घरेलू उपयोग के पदार्थ

  1. आमाहल्दी: पिसी हुई अवस्था में चोट या मोच के रोगी को दी जाती है जो कि काफी आरामदायक है।
  2.  चूना: चोट, मोच इत्यादि पर आमाहल्दी चूने के साथ लगाने से दर्द में कमी होती है तथा मोच ठीक हो जाती है। बरौं के डंक मारने पर भी चूना लगाया जा सकता है।
  3. फिटकरी: रक्त-स्राव को रोकती है। गुलाब जल में मिलाकर आँख में डालने से दुखती हुई आँखें ठीक हो जाती हैं।
  4. कत्था: इसका चूरा मुँह के छालों को ठीक करता है।
  5.  तुलसी: तुलसी की पत्तियाँ जुकाम, बुखार आदि के लिए आराम देने वाली हैं। शहद के साथ प्रयोग करने से खाँसी ठीक हो जाती है।
  6. गोले का तेल: जले हुए स्थान पर लगाने से जलन कम होती है। घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।
  7.  गुलाब जल: अनेक नेत्र रोगों के लिए शान्तिदायक है।
  8.  मुलहटी: खाँसी को ठीक करती है। मुँह में डालने से खाँसी बन्द हो जाती है।
  9.  ईसबगोल: इसकी भूसी कब्जनाशक है। पानी या दूध के साथ लेने पर कब्ज-निवारक होती है तथा दही में अच्छी तरह से मिला कर लेने पर दस्त को रोकती है।
  10.  नीम की पत्तियाँ: कीटाणुनाशक हैं, चर्म रोगों के लिए अति गुणकारी हैं। इनके पानी से नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। सर्पदंश में इसको खिलाने से विष का प्रभाव कम हो जाता है। पानी में उबाल कर बालों को धोने से जुएँ नष्ट हो जाती हैं।

(ग) कुछ औषधियाँ तथा रासायनिक पदार्थ

  1.  पोटैशियम परमैंगनेट या लाल दवा:
    अनेक कीट पतंगों के काटने, बिच्छू के डंक मारने तथा सर्पदंश के घाव में भरने से विष को नष्ट कर देती है। संक्रामक रोगों के फैलने के समय इसे पानी में मिलाकर पीना चाहिए।
  2. स्प्रिट: घाव साफ करने तथा अन्य कामों के लिए उपयोगी है।
  3. बोरिक एसिड: घाव धोने के काम आता है। यह कीटाणुनाशक है। इसका हल्का घोल आँख । धोने के काम में लाया जाता है।
  4.  मरक्यूरोक्रोम: जल के साथ इसका घोल घाव पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है तथा इस
    पर अन्य विषों का प्रभाव नहीं होता है।
  5.  अमोनिया: इसे सुंधाने से मूच्र्छा दूर हो जाती है। इसे विषैले कीट द्वारा काटने पर अथवा डंक मारने पर प्रयोग में लाया जाता है।
  6.  अमृत धारा: जी मिचलाना, दस्त, उल्टी (वमन) आदि में महत्त्वपूर्ण घरेलू औषधि है।
  7. डिटॉल: यह कीटाणुनाशक है। घाव धोने के काम आता है।
  8.  बरनॉल:  जले स्थान पर लगाने के लिए एक अच्छी क्रीम है।
  9. आयोडेक्स: यह एक सूजन कम करने वाली औषधि है, जो मोच एवं दर्द में आराम देती है।
  10.  कुनैन: यह शुद्ध अथवा रासायनिक पदार्थों के साथ मिश्रित रूप में प्रायः गोलियों के आकार में सहज ही उपलब्ध हो जाती है। मलेरिया ज्वर के लिए यह एक उत्तम औषधि है।

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प्रश्न 2:
विष कितने प्रकार के होते हैं? विषपान किए व्यक्ति का सामान्य उपचार आप किस प्रकार करेंगी?
या
यदि किसी बच्चे ने कोई विषैला पदार्थ खा लिया है, तो उसे किस प्रकार का प्रतिकारक पदार्थ दिया जाएगा? उदाहरण दीजिए। क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
या
टिप्पणी लिखिए-विष कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
विष के प्रकार

सामान्यतः शरीर को हानि पहुँचाने वाले पदार्थ विष कहलाते हैं। ये पदार्थ प्रायः मुँह के द्वारा अथवा विषैले जीव-जन्तुओं के काटने पर शरीर में अन्दर प्रवेश करते हैं। विषपान करने पर शरीर में प्रवेश करने वाले विषैले पदार्थों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) जलन उत्पन्न करने वाले विष:
ये विष शरीर के जिस भाग में प्रवेश करते हैं उसे या तो जला देते हैं अथवा उसमें जलन उत्पन्न करते हैं। कास्टिक सोडा, अमोनिया, कार्बोलिक एसिड तथा खनिज अम्ल आदि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं। इस प्रकार के विष से प्रायः जीभ, गले तथा मुखगुहा में भयंकर जलन होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई का अनुभव होता है।

(2) उदर अथवा आहारनाल को हानि पहुँचाने वाले विष:
इस प्रकार के विष उदर में पहुंचकर भयंकर उथल-पुथल पैदा करते हैं। ये कण्ठ, ग्रासनली, आमाशय एवं आँतों में जलन एवं दर्द उत्पन्न करते हैं। इनके शिकार व्यक्ति उदरशूल अनुभव करते हैं तथा उन्हें मतली आने लगती है। इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख विष हैं संखिया, पारा, पिसा हुआ शीशा तथा विषैले एवं सड़े-गले खाद्य पदार्थ।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विष:
इस प्रकार के विष को खाने पर नींद आने लगती है जो कि विष की अधिकता होने पर प्रगाढ़ निद्रा अथवा संज्ञा-शून्यता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार के विष का अत्यधिक सेवन करने से कई बार रोगियों की मृत्यु भी हो जाती है। अफीम, मॉर्फिन तथा डाइजीपाम (कम्पोज, वैलियम आदि) इत्यादि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विष:
इनका प्रभाव प्रायः स्नायुमण्डल अथवा विभिन्न नाड़ियों पर होता है; जिसके फलस्वरूप नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, मस्तिष्क चेतना शून्य हो सकता है अथवा शरीर के विभिन्न अंगों में पक्षाघात हो सकता है। भाँग, धतूरा, क्लोरोफॉर्म तथा मदिरा इसी प्रकार के प्रमुख विष हैं।

विषपान करने पर उपचार

विषपाने एक गम्भीर दुर्घटना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिदिन अनेक व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हुए अकाल ही मृत्यु की गोद में चले जाते हैं। इस समस्या का समाधान करना सम्भव है, यदि पीड़ित व्यक्ति को तत्काल चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो जाए तथा कुछ सुरक्षात्मक उपायों का (UPBoardSolutions.com) कठोरतापूर्वक पालन किया जाए। चिकित्सा सहायता सदैव समय पर उपलब्ध होनी सम्भव नहीं है; अतः विषपान करने वाले व्यक्तियों के सामान्य उपचार के उपायों की जानकारी प्राप्त करना अति आवश्यक

(क) सुरक्षात्मक उपाय:
कई बार अनेक व्यक्ति (विशेष रूप से बच्चे) अज्ञानतावश अथवा नादानी में विषपान का शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को निम्नलिखित उपायों का कठोरतापूर्वक पालन कर सहज ही टाला जा सकता है

  1.  घर में प्रयुक्त होने वाले सभी क्षारों एवं अम्लों को नामांकित कर यथास्थान रखें। ध्यान रहे कि ये स्थान बच्चों की पहुँच से सदैव दूर हों।
  2.  पुरानी तथा प्रयोग में न आने वाली औषधियों को घर में न रखें।
  3.  सभी औषधियों को उनकी मूल शीशी अथवा डिब्बी में रखें।
  4. कभी भी अन्धकार में कोई औषधि प्रयोग न करें।
  5.  चिकित्सक के पूर्व परामर्श के बिना कोई जटिल औषधि न प्रयोग करे।
  6.  पेण्ट वाले पदार्थ प्रायः विषैले होते हैं; अत: इनका प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।
  7.  कीटाणुनाशक (स्प्रिट व डिटॉल, फिनाइल) आदि तथा कीटनाशक (फ्लिट व बेगौन स्प्रे आदि) पदार्थ विषैले होते हैं। इन्हें सावधानीपूर्वक प्रयोग करें तथा प्रयोग करते समय कम-से-कम श्वालें।
  8. खाना पकाने से पूर्व दाल, शाक-सब्जियों एवं फलों को अच्छी प्रकार से धोएँ ताकि ये पूर्णरूपसे कीटनाशक रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से मुक्त हो जायें।
  9.  बच्चों को समय-समय पर प्रेमपूर्वक उपर्युक्त बातों की जानकारी दें।

(ख) प्राथमिक चिकित्सा सहायता:
योग्य चिकित्सक अथवा अस्पताल से चिकित्सा सहायता प्रायः विलम्ब से प्राप्त होती है, जबकि विषपान किए व्यक्ति का उपचार तत्काल होना आवश्यक है। अतः विषपान सम्बन्धी प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए

  1. रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष का प्रकार ज्ञात हो सके तथा उसके अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2.  विष का प्रभाव कम करने के लिए रोगी को वमन कराकर उसके उदर से विष दूर करने का प्रयास करें।
  3.  यदि रोगी क्षारक अथवा अम्लीय विष से पीड़ित है, तो वमन न कराएँ। इस प्रकार के रोगियों को विष-प्रतिरोधक देना ही उचित रहता है।
  4.  क्षारीय विष से पीड़ित व्यक्ति को नींबू का रस अथवा सिरका पिलाना लाभप्रद रहता है। अम्लीय विष से पीड़ित व्यक्तियों को चूने का पानी, खड़िया, मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना उत्तम रहता है।
  5. आस्फोटक विष के उपचार के लिए रोगी को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए। कई बार वमन कराने के बाद उसे अरण्डी का तेल पिलाना चाहिए।
  6. निद्रा उत्पन्न करने वाले विष के उपचार में रोगी को जगाए रखने का प्रयास करें। वमन कराने के उपरान्त उसे तेज चाय अथवा कॉफी पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।
  7. रोगी के हाथ व पैर सेंकते रहना चाहिए। रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना लाभप्रद रहता है।
  8. आवश्यकता पड़ने पर रोगी को कृत्रिम उपायों से श्वास दिलाने का प्रयास करना चाहिए।
  9.  रोगी को अस्पताल भिजवाने का तुरन्त प्रबन्ध करें। रोगी के साथ उसके वमन अथवा लिए गए विष का नमूना अवश्य ले जाएँ। इससे विष के सम्बन्ध में शीघ्र जानकारी प्राप्त होने से उपयुक्त चिकित्सा तत्काल आरम्भ हो सकती है।

(ग) सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थों का उपयोग:
विषपान किए व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त विष एवं उसके प्रतिरोधक पदार्थ की जानकारी होने से विषपान के रोगी का उपचार सहज ही सम्भव है। सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थ प्रायः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) जलन पैदा करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

(अ) क्षारीय विष:
क्षारीय विषों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए अम्लों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण-नींबू का रस एवं सिरका।
(ब) अम्लीय विष:
इनके प्रतिकारक पदार्थ क्षारीय होते हैं। गन्धक, शोरे व नमक के अम्लों को प्रभावहीन करने के लिए

  1.  चूना या खड़िया मिट्टी पानी में मिलाकर दें।
  2. जैतून का तेल पानी में मिलाकर दें।
  3. पर्याप्त मात्रा में दूध दें।

(2) आहार नाल को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. संखिया: यह एक भयानक विष है। टैनिक अम्ल के प्रयोग द्वारा इस विष के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  2. गन्धक: कार्बोनेट एवं मैग्नीशिया गन्धक के विष को प्रभावहीन करने के लिए उत्तम रासायनिक पदार्थ हैं।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. अफीम: इस विष से पीड़ित व्यक्ति को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए।
  2. निद्रा की गोलियाँ: इनसे प्रभावित व्यक्ति का उपचार अफीम के समान ही किया जाता है। रोगी को नमक के गरम पानी द्वारा वमन कराया जाता है तथा उसके उदर की सफाई की जाती है।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. तम्बाकू: इसमें निकोटीन नामक विष होता है। गरम पानी में नमक डालकर रोगी को वमन करायें तथा तेज चाय व कॉफी पीने के लिए दें।
  2.  मदिरा: मदिरा के प्रभाव को नष्ट करने के लिए रोगी को वमन कराएँ तथा उसके उदर की पानी द्वारा सफाई करें। नींबू व नमक मिला गरम पानी पिलाने से लाभ होता है।
  3. भाँग एवं गाँजा: पीड़ित व्यक्ति को वमन कराकर खट्टी वस्तुएँ खिलानी चाहिए। यदि रोगी होश में है, तो उसे गरम दूध पिलाया जा सकता है।
  4. क्लोरोफॉर्म: इस विष का प्रतिकारक है एमाइल नाइट्राइट जो कि इसके प्रभाव को कम करता है।
  5. धतूरा: धतूरे के बीजों में घातक विष होता है। इस विष से पीड़ित व्यक्ति को होश में लाकर वमने कराना चाहिए। इसके बाद उसे गर्म दूध में एक चम्मच ब्राण्डी मिलाकर दी जा सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घरेलू औषधियों का महत्त्व बताइए।
या
गृहिणी के लिए घरेलू औषधियों का ज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
घरेलू देशज औषधियों का महत्त्व

प्रत्येक घर-परिवार में रोगों एवं दुर्घटनाओं का होना सामान्य बातें हैं। परन्तु ये सामान्य बातें ही कई बार गम्भीर समस्याओं को जन्म दे सकती हैं। उदाहरण के लिए-रोग की प्रारम्भिक अवस्था में चिकित्सक के पास न जाने पर रोग गम्भीर रूप धारण कर लेता है। अथवा किसी रोग एवं दुर्घटना में (UPBoardSolutions.com) तत्काल चिकित्सा सहायता न उपलब्ध हो पाने पर रोगी की हालत गम्भीर हो सकती है। उपर्युक्त दोनों ही प्रकार की समस्याओं के निदान के लिए घरेलू देशजे औषधियों का व्यावहारिक ज्ञान होना आवश्यक है। इससे प्रत्येक गृहिणी निम्नलिखित प्रकार से लाभान्वित हो सकती है—

(1) तत्काल उपचार:
घरेलू देशज औषधियों का व्यावहारिक ज्ञान होने पर गृहिणी किसी भी सामान्य रोग का तत्काल उपचार कर सकती है, जिसके फलस्वरूप रोग एवं दुर्घटनाएँ गम्भीर रूप नहीं ले पाते।

(2) समय एवं धन की बचत:
घरेलू देशज औषधियों से परिचित होने पर गृहिणी को घर-परिवार में होने वाले छोटे-छोटे रोगों के लिए चिकित्सक तक दौड़ने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे (UPBoardSolutions.com) उसके समय की पर्याप्त बचत होती है। घरेलू औषधियाँ प्रायः अपेक्षाकृत संस्ती एवं सहज ही उपलब्ध होती हैं। इनका समय-समय पर उपयोग करने से अपेक्षाकृत कम व्यय होता है अर्थात् धन की. पर्याप्त बचत होती है।

(3) साहस एवं आत्मविश्वास में वृद्ध:
घरेलू औषधियों से भली प्रकार परिचित गृहिणी परिवार के किसी सदस्य के रोग अथवा दुर्घटनाग्रस्त होने पर अपना धैर्य नहीं खोती तथा उत्पन्न समस्या का साहसपूर्वक एवं आत्मविश्वास से सामना करती है।

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प्रश्न 2:
तीन घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग बताइए।
या
दो घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग बताइए।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग अग्रलिखित हैं

(1) हींग:
यह पेट के रोगों में बहुत लाभ पहुँचाती है। गैस व अफारा आदि में पानी में घोलकर पेट | पर लगाने से रोगी को पर्याप्त लाभ होता है। अजवाइन, सौंठ वे नमक के साथ मिलाकर देने से यह
अधिक प्रभावी हो जाती है।

(2) नमक:
सामान्य नमक (सोडियम क्लोराइड) घावों को साफ करने के लिए एक अच्छी औषधि का कार्य करता है। गरम पानी में मिलाकर सिकाई करने पर यह पर्याप्त आराम पहुँचाता है। जल-अल्पता या निर्जलीकरण होने पर इसे उबाल कर ठण्डा किए हुए पानी में चीनी के साथ मिलाकर बार-बार (UPBoardSolutions.com) पिलाने पर रोगी को अत्यधिक लाभ होता है। गरम पानी में नमक डालकर गरारे करने से गले के रोगों में विशेष लाभ होता है।

(3) सौंफ:
खुनी पेचिश के लिए सौंफ एक उत्तम औषधि है। इस रोग में सौंफ को पानी में उबालकर उसका अर्क दिया जाता है। यह प्यास को कम करती है तथा गर्मी के कारण होने वाले सिर दर्द में आराम पहुँचाती है।

प्रश्न 3:
कृमि रोग का उपचार आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
इस रोग में पेट में विभिन्न प्रकार के बड़े-बड़े कीड़े हो जाते हैं, जिनके कारण रोगी के पेट में दर्द रहता है, उसके मुँह से लार टपकती है तथा वह सोते समय दाँत किटकिटाता है। इस प्रकार के रोगी को पपीते के बीज (ताजे अथवा सूखे) पीसकर खिलाने से उसके पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। एक से दो माशे तक अजवाइन का चूर्ण गुड़ के साथ दिन में दो या तीन बार देने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 4:
हैजा रोग का उपचार आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
हैजा रोग में दस्त एवं वमन के कारण पीड़ित व्यक्ति के शरीर में पानी की कमी हो जाती है; अत: उसे एक लीटर उबले हुए पानी में आधा चम्मच नमक, आधा चम्मच खाने का सोडा तथा एक चम्मच चीनी अथवा गुड़ मिलाकर बार-बार पिलाना चाहिए। अब रोगी को अमृतधारा की 10-15 बूंदें पानी में (UPBoardSolutions.com) डालकर देनी चाहिए जिससे कि रोगी की वमन रुक सकें। अब हरा धनिया, पुदीना और सौंफ को समान मात्रा में लेकर तथा इसमें सेंधा नमक मिलाकर चटनी की तरह पीस लें। इसके सेवन से रोगी को पर्याप्त आराम मिलता है। समय मिलते ही रोगी को किसी योग्य चिकित्सक को दिखाएँ।

प्रश्न 5:
निमोनिया रोग का उपयक्तु उपचार लिखिए।
उत्तर:
इस रोग में सामान्यतः ज्वर के साथ रोगी शीत का अनुभव करता है। उसके सीने में कफ एकत्रित हो जाता है, खाँसी रहती है तथा पसलियों में दर्द रहता है। पीड़ित व्यक्ति को गर्म स्थान में रखकर उसकी पसलियों के दोनों ओर पिसी हुई अलसी लगी रुई के पैड लगाने चाहिए। फूला हुआ सुहागा, फूली हुई फिटकरी, तुलसी की पत्तियाँ, अदरक पीसकर पान के रस एवं शहद में मिलाकर रोगी को दिन में चार या पाँच बार देना चाहिए।

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प्रश्न 6:
जुकाम अथवा नजले का घरेलू उपचार बताइए।
उत्तर:
जुकाम एवं नजला सामान्य रोग हैं जो कि प्रायः ऋतु परिवर्तन के समय अथवा शीत ऋतु में अधिक होते हैं। छींक आना, आँखों एवं नाक से पानी जाना, कान बन्द हो जाना तथा खाँसी व कफ निकलना आदि रोग के सामान्य लक्षण हैं।
शीत ऋतु में हुई खाँसी एवं श्वास रोग में सहजन की जड़ की छाल को घी या तेल में मिलाकर धूम्रपान करने से लाभ होता है। जुकाम के प्रारम्भ में दूध में हल्दी डालकर (UPBoardSolutions.com) उबालकर पीने से लाभ होता हैं। अधिक सिर दर्द व नाक से पानी बहने पर लौंग का दो बूंद तेल शक्कर अथवा बताशे के साथ खाने से अत्यधिक लाभ होता है। नए जुकाम में पीपल का चूर्ण शहद में अथवा चाय में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र आराम होता है। चाय में काली मिर्च का चूर्ण डालकर पीने से भी जुकाम में पर्याप्त लाभ होता है?

प्रश्न 7:
बिच्छू एवं शहद की मक्खी के काटने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
बिच्छू के काटने पर उपचार-बिच्छू द्वारा काटने पर निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. काटने के स्थान के थोड़ा ऊपर टूर्नीकेट बाँधना चाहिए।
  2.  काटे हुए स्थान पर बर्फ रखने पर तथा नोवोकेन का इन्जेक्शन लगाने पर पीड़ा में कमी आती है।
  3.  रोग नियन्त्रित न होने पर योग्य चिकित्सक से परामर्श लें।

शहद की मक्खी के काटने पर उपचार:
पीड़ित व्यक्ति को काटने के स्थान पर सूजन आ जाती है। तथा भयंकर जलन होती है। इसके लिए निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1.  काटे स्थान को दबाकर डंक निकालना चाहिए।
  2.  घाव पर अमोनिया अथवा नौसादर एवं चूने की सम मात्रा मिलाकर लगानी चाहिए।
  3. काटे हुए स्थान पर स्प्रिट लगानी चाहिए।
  4. एण्टी-एलर्जी की गोलियाँ (एविल आदि) लेने से लाभ होता है।

प्रश्न 8:
विष कितने प्रकार से शरीर में पहुँचता है?
उत्तर:
प्राय: निम्नलिखित चार प्रकार से विष हमारे शरीर में प्रवेश करता है

  1. मुँह द्वारा-खाने-पीने की वस्तुओं में मिलाकर खाने अथवा खिलाने से विष शरीर में प्रवेश कर सकता है।
  2.  सँघने से कुछ विशेष प्रकार के विष पूँघने पर श्वास क्रिया के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। उदाहरण-पेन्ट्स, फिनिट आदि।
  3.  विषैले जीव-जन्तुओं के काटने पर-अनेक जीव-जन्तु (बिच्छू, साँप, मधुमक्खी आदि) विषैले होते हैं। ये काटने अथवा डंक मारने पर अपने विष को हमारे शरीर में प्रवेश करा देते हैं।
  4. सामान्य घाव या इन्जेक्शन के घाव द्वारा इस विधि द्वारा अनेक विषैले कीटाणु एवं विष – हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घरेलू देशज औषधियों से क्या आशय है?
उत्तर:
जब किसी रोग या कष्ट के निवारण के लिए घर पर सामान्य इस्तेमाल की वस्तुओं को उपयोग में लाया जाता है तो उन सामान्य वस्तुओं को घरेलू देशज औषधि कहा जाता है। जैसे कि पेट-दर्द के निवारण के लिए अजवाइन एक घरेलू औषधि है।

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प्रश्न 2:
गुलाब जल का क्या प्रयोग है? .
उत्तर:
यह नेत्रों की अत्यन्त उपयोगी औषधि है। यह नेत्र रोगों को ठीक करता है तथा नेत्रों को ठण्डक व शान्ति देने वाला होता है।

प्रश्न 3:
जल जाने पर कोई दो घरेलु औषधियों के नाम बताए।
उत्तर:
गोले का तेल या बरनॉल।

प्रश्न 4:
साँप के काटने पर अंग में बन्ध क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
अंग में बन्ध लगाने से उस स्थान से रुधिर का तेजी से इधर-उधर बहना बन्द हो जाता है। और विष पूरे शरीर में नहीं फैलता।

प्रश्न 5:
तुलसी के पत्ते का औषधि उपयोग बताइए।
उत्तर:
तुलसी के पत्ते ज्वर तथा जुकाम को शान्त करते हैं। शहद के साथ खाँसी में लाभदायक हैं।

प्रश्न 6:
आमाहल्दी का उपयोग बताइए।
उत्तर:
पिसी हुई आमाहल्दी दूध के साथ देने से चोट तथा मोच में आराम मिलता है।

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प्रश्न 7:
किन्हीं दो घरेलू औषधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अजवाइन, हींग, काला नमक आदि।

प्रश्न 8:
नकसीर छूटने पर आप कौन-सी घरेलू औषधिय प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
नाक में देशी घी डालने तथा गीली-पीली मिट्टी सुंघाने से नाक द्वारा होने वाले रक्तस्राव में कमी आती है।

प्रश्न 9:
विष की शीशियों को लेबल करने से क्या लाभ है?
उत्तर:
विष की शीशियों को नामांकित (लेबल) कर रखने से भूलवश विषपान का भय नहीं रहता।

प्रश्न 10:
औषधियों का सेवन सदैव पर्याप्त प्रकाश में करना चाहिए। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि अन्धकार में गलत औषधियाँ खा लेने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 11:
भाँग पिए व्यक्ति का आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
ऐसे व्यक्ति को खटाई (जैसे कि इमली का पानी) पिलाने से भाँग के विषैले प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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प्रश्न 12:
जी मिचलाने अथवा उल्टी आने पर प्रयुक्त होने वाली किन्हीं दो घरेलू औषधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जी मिचलाने अथवा वमन रोकने के लिए

  1.  अमृतधारा की 5-6 बूंदें पानी में डालकर पिलायें तथा
  2. पोदीना व प्याज पीसकर तथा उसमें नीबू का रस डालकर रोगी को पिलायें।

प्रश्न 13:
लू लगने पर रोगी को पीने के लिए क्या देना चाहिए?
उत्तर:
लू लगने पर रोगी को पीने के लिए आम का पन्ना देना चाहिए।

प्रश्न 14:
बेल का शर्बत क्यों उपयोगी माना जाता है ?
उत्तर:
बेल का शर्बत पेट सम्बन्धी विकार दूर करता है तथा पेचिश में विशेष लाभदायक होता है।

प्रश्न 15:
दाँतों में दर्द होने पर आप क्या औषधि प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
पिसी हुई लौंग अथवा लौंग का तेल प्रभावित दाँत के निचले भाग पर लगाने से दर्द में पर्याप्त लाभ होता है।

प्रश्न 16:
मुँह एवं जीभ पर छाले होने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
प्रभावित भाग पर ग्लिसरीन अथवा कत्थे का चूरा लगाने से पर्याप्त लाभ होता है।

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प्रश्न 17:
मलेरिया ज्वर में रोगी को कौन-सी घरेलू औषधि देनी चाहिए?
उत्तर:
तुलसी के पत्ते में काली मिर्च को सम मात्रा में पीसकर दिन में तीन या चार बार देने से मलेरिया के रोगी को लाभ होगा।

प्रश्न 18:
अफीम खा लेने पर चेहरे का रंग कैसा हो जाता है?
उत्तर:
अफीम खा लेने पर चेहरा पीला पड़ जाता है तथा नेत्रों की पुतलियाँ सिकुड़कर छोटी हो जाती हैं।

प्रश्न 19:
विभिन्न दवाएँ घर पर रखते समय आप क्या सावधानियाँ रखेंगी?
उत्तर:

  1.  घर में दवाएँ उनकी मूल शीशियों, डिब्बों अथवा रैपर में रखनी चाहिए।
  2.  दवाइयों को उनके निर्देशानुसार ठण्डे अथवा गरम तथा प्रकाश अथवा अन्धकार आदि निर्दिष्ट स्थान में रखना चाहिए।
  3.  दवाइयाँ सदैव सुरक्षित स्थान पर बच्चों की पहुँच से दूर रखी जानी चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) घरेलू देशज औषधियों के प्रयोग को उपयोगी माना जाता है
(क) आकस्मिक रोगों या दुर्घटनाओं के तुरन्त उपचार के लिए,
(ख) इनके प्रयोग से धन एवं समय की बचत होती है,
(ग) दुर्घटना घटित होने पर गृहिणी का मनोबल बना रहता है,
(घ) उपर्युक्त सभी उपयोग एवं लाभ।

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(2) सौंफ का प्रयोग किस रोग में किया जाता है?
(क) खूनी पेचिश,
(ख) निमोनिया,
(ग) कृमि रोग,
(घ) जुकाम।

(3) कृमि रोग में दिए जाते हैं
(क) धतूरे के बीज,
(ख) पपीते के बीज,
(ग) टमाटर के बीज,
(घ) खरबूजे के बीज।

(4) अमृतधारा का प्रयोग किया जाता है
(क) मलेरिया में,
(ख) कृमि रोग में,
(ग) खुनी पेचिश में,
(घ) वमन रोकने में।

(5) ईसबगोल की भूसी दी जाती है
(क) श्वास सम्बन्धी रोगों में,
(ख) हृदय रोग में,
(ग) पेचिश में,
(घ) काली खाँसी में।

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(6) जले हुए स्थान पर जलन कम करने के लिए आप क्या लगाएँगी?
(क) लौंग का तेल,
(ख) गोले का तेल,
(ग) सरसों का तेल,
(घ) अमृतधारा।

(7) नींद लाने वाला विष कौन-सा है?
(क) अफीम,
(ख) कास्टिक सोडा,
(ग) धतूरा,
(घ) संखिया।

(8) सबसे अधिक खतरनाक एवं हानिकारक विष कौन-से होता है?
(क) आहारनाल में जल उत्पन्न करने वाले विष
(ख) नींद लाने वाले विष,
(ग) मस्तिष्क तथा तन्त्रिकाओं पर बुरा प्रभाव डालने वाले विष,
(घ) मांसपेशियों में ऐंठन लाने वाले विष।

(9) निमोनिया के रोगी को आप कौन-सा पेय पदार्थ देंगी?
(क) लस्सी,
(ख) शर्बत,
(ग) चाय,
(घ) कोका कोला।

(10) साँप के काटे घाव पर कौन-सी वस्तु लगानी चाहिए?
(क) सल्फर,
(ख) बरनॉल,
(ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(घ) नमक।

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(11) बिच्छू के काटने पर तुरन्त दिया जाता है
(क) गर्म चाय,
(ख) गर्म दूध,
(ग) कहवा,
(घ) ब्राण्डी।

(12) कीटाणुनाशक पदार्थ है
(क) टाटरी,
(ख) अमृतधारा,
(ग) डिटॉल,
(घ) गोले का तेल।

(13) मुलहठी दी जाती है
(क) विष फैलने पर,
(ख) दस्तों के लिए,
(ग) खाँसी होने पर,
(घ) मलेरिया ज्वर में।

(14) पोटैशियम परमैंगनेट काम आता है
(क) चोट पर लगाने के लिए,
(ख) घाव को साफ करने के लिए,
(ग) घाव को भरने के लिए,
(घ) कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए।

(15) मलेरिया ज्वर के लिए एकमात्र दवा है
(क) सौंठ, अजवाइन तथा हींग,
(ख) कुनैन की गोलियाँ,
(ग) लौंग का पान,
(घ) पोदीने का पानी।

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(16) अम्ल तथा क्षार मुख्य रूप से उत्पन्न करते हैं
(क) जलन,
(ख) पीड़ा,
(ग) बेचैनी,
(घ) नींद।

उत्तर:
(1) (घ) उपर्युक्त सभी उपयोग एवं लाभ,
(2) (क) खूनी पेचिश,
(3) (ख) पपीते के बीज,
(4) (घ) वमन रोकने में,
(5) (ग) पेचिश में,
(6) (ख) गोले का तेल,
(7) (क) अफीम,
(8) (ग) मस्तिष्क तथा तन्त्रिकाओं पर बुरा प्रभाव डालने वाले विष,
(9) (ग) चाय,
(10) (ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(11) (क) गर्म चाय,
(12) (ग) डिटॉल,
(13) (ग) खाँसी होने पर,
(14) (ख) घाव को साफ करने के लिए,
(15) (ख) कुनैन की गोलियाँ,
(16) (क) जलन ।

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