UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 राष्ट्रपिता महात्मा गन्धी (गद्य – भारती)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 4
Chapter Name राष्ट्रपिता महात्मा गन्धी (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 36
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 राष्ट्रपिता महात्मा गन्धी  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

भारतभूमि पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है। उनमें महात्मा गाँधी का नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है। सारा संसार उनके स्वदेश-प्रेम, सत्याग्रह और मानवमात्र के प्रति सहज स्नेह को देखकर आश्चर्य करता है। दुबला-पतला शरीर होने पर भी उन्होंने अपने सुदृढ़ आत्मबल से अंग्रेजों के शासन को हिला दिया था। यही कारण था कि विश्वकवि रवीन्द्र ने उन्हें महात्मा’ शब्द से सम्बोधित किया।

प्रारम्भिक जीवन-महात्मा गांधी का जन्म गुजरांत प्रान्त के पोरबन्दर नामक नगर में 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को हुआ था। इनके पिता का नाम कर्मचन्द और माता का पुतलीदेवी था। गाँधी जी की माता पुतलीदेवी सत्यनिष्ठ व धर्मपरायणा महिला थीं। गाँधी जी के जीवन पर माता के, धार्मिक जीवन (UPBoardSolutions.com) का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। सन् 1888 ई० में उच्च-शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड जाते समय माता ने उन्हें मांस न खाने और मदिरा न पीने का उपदेश दिया। वहाँ अपनी माता जी के उपदेश का पालन करते हुए, इन्होंने कानून की शिक्षा ग्रहण की और अपने देश लौट आये।

दक्षिण अफ्रीका गमन-इंग्लैण्ड से लौटकर गाँधी जी ने बम्बई में वकालत करना प्रारम्भ कर दिया। तभी अफ्रीका निवासी कुछ धनी भारतीय उन्हें एक अभियोग में पैरवी के लिए अफ्रीका ले गये। वहाँ भारतीयों पर अंग्रेजों के अत्याचारों को देखकर इनका हृदय अत्यन्त दुःखी हुआ। वहाँ कचहरियों, दफ्तरों, रेलयानों, मार्गों और सड़कों पर काले-गोरे का भेद दिखाई देता था। वहाँ गाँधी जी जब रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे, तब गोरों ने उन्हें बाहर धकेल दिया था। इस घटना से दु:खी गाँधी जी ने लोगों को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने (UPBoardSolutions.com) की प्रतिज्ञा की और सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। प्रवासी भारतीयों में अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाने के लिए एक नयी जागृति उत्पन्न हुई। अंग्रेजों ने गाँधी जी को बार-बार जेल में बन्द किया, परन्तु उनका आन्दोलन उग्रतर होता गया।

भारत वापसी-गाँधी जी सन् 1915 ई० में एक जननेता के रूप में भारत लौट आये। यहाँ उनकी गोपालकृष्ण गोखले से मुलाकात हुई। उनकी सलाह से इन्होंने भारत के विभिन्न भागों का भ्रमण करके लोगों की दीनता, दरिद्रता और अशिक्षा को प्रत्यक्ष देखा। उन्होंने अंग्रेजों के कृपापात्र ऐसे भारतीयों को भी देखा, जो श्रमिकों को अधिक-से-अधिक कष्ट दे सकते थे। इन्होंने परतन्त्रता को सब दुःखों का मूल कारण जानकर उसे नष्ट करने का निश्चय किया। | चम्पारन आन्दोलन-गाँधी जी ने बिहार के चम्पारन जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के साथ अंग्रेज भूस्वामियों के अमानवीय अत्याचारों को सम्माप्त करने के लिए आन्दोलन किया। गाँधी जी का यह भारत में प्रथम आन्दोलन था। इस आन्दोलन की सफलता से लोगों ने इन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया और राष्ट्रपिता’ कहना आरम्भ कर दिया। ‘

असहयोग आन्दोलन-भारतीयों पर अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचारों को रोकने के लिए गाँधी जी ने सन् 1920 ई० में असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार विदेशियों की नौकरियों और उपाधियों का परित्याग आदि के द्वारा इस आन्दोलन का स्वरूप निर्धारित किया। भारतीयों ने इस आन्दोलन में निर्भीकता से भाग लिया। हजारों भारतीय बन्दी बना लिये गये और गाँधी जी को भी (UPBoardSolutions.com) छह वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। गाँधी जी ने इस आन्दोलन में सत्य और अहिंसा नाम के दो अस्त्र भारतीयों को प्रदान किये। सत्याग्रहियों द्वारा ‘चौरी-चौरा’ नामक स्थान पर हुई हिंसा के कारण यह आन्दोलन स्थगित कर दिया गया।

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सविनय अवज्ञा आन्दोलन–गाँधी जी सन् 1926 ई० में जेल से रिहा हुए। सरकार द्वारा नमक पर कर लगाये जाने के विरोध में इन्होंने सन् 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन के लिए गाँधी जी के साथ-साथ उस समय के चोटी के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने गुजरात के दाण्डी ग्राम से समुद्र तक पैदल यात्रा की और समुद्र के जल से नमक बनाकर नमक-कानून का उल्लंघन किया। इस आन्दोलन का इतना व्यापक प्रभाव हुआ कि गाँव-गाँव, नगर-नगर, गली-गली में नमक बनाया जाने लगा, जिसे सरकार न रोक सकी।‘अंग्रेजो!

भारत छोड़ो आन्दोलन–अंग्रेज शासकों ने सबल भारत को विखण्डित करने के लिए हिन्दू-मुस्लिम, अस्पृश्यता, वर्ण आदि की समस्याओं को उभारा। महात्मा जी ने अनशन द्वारा भारत की अखण्डता की रक्षा की। अनेक आन्दोलन चलाये जाने पर भी अंग्रेजों द्वारा भारत को स्वतन्त्रता देने में रुचि नहीं दिखाई गयी; अतः 8 अगस्त, सन् 1942 ई० में बम्बई में कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा जी ने अंग्रेजो! भारत छोड़ो’ नारे की घोषणा की। तुरन्त ही नेहरू, आजाद आदि प्रमुख भारतीय नेताओं को बन्दी बना लिया गया। इस समाचार को सुनकर जनता में क्षोभ फैल गया। उन्होंने बिना नेता के ही देशव्यापी आन्दोलन चलाया। सरकारी भवनों और कार्यालयों (UPBoardSolutions.com) पर तिरंगा झण्डा फहराना उनका मुख्य लक्ष्य था। अपनी छाती फैलाकर यहाँ गोली मारो’, ‘यहाँ गोली मारो’ चिल्लाते हुए वीर बालक घूमने लगे। अंग्रेजों की गोलियाँ भी उनकी गति को न रोक सकीं। एक के गोली लगने पर दूसरा उसका स्थान ले लेता था, परन्तु ध्वज को नीचे न गिरने देता था। इस अनुपम बलिदान से विदेशी शासन हिल गया। 15 अगस्त,सन् 1947 ई० को अंग्रेज भारत को भारतवासियों को सौंपकर स्वदेश चले गये और भारत स्वतन्त्र हो गया।

सामाजिक और आर्थिक स्वतन्त्रता-गाँधी जी सत्याग्रह द्वारा सामाजिक और आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त कराना चाहते थे। उन्होंने अहमदनगर में साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया। बाद में यह आश्रम वर्धा के पास सेवाग्राम में लाया गया। यहाँ गाँधी जी ने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग व ग्रामोद्योगों के प्रचार द्वारा जनता को दरिद्रता से मुक्ति दिलाने हेतु उन्हें चरखे से सूत बनाना सिखाया। उन्होंने इस सबके (UPBoardSolutions.com) लिए बुनियादी शिक्षा का स्वरूप प्रस्तुत किया। उनका विश्वास था कि शिक्षा से ही सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है।

रामराज्य की कल्पना-गाँधी जी अपने मन में कल्पित रामराज्य का साकार चित्र भारत-भूमि पर देखना चाहते थे; अतः उन्होंने भारत में कोई दुःखी, अज्ञानी, अवगुणी न रहे, श्रम की प्रतिष्ठा हो, दलितों और शोषितों के प्रति स्नेह हो आदि द्वारा रामराज्य की कल्पना की। उनके मार्ग का अनुसरण करके हम अपने देश का उत्थान कर सकते हैं।

33 वर्षों तक अंग्रेजों के साथ जूझने और देश को स्वतन्त्र कराने वाले गाँधी जी 30 जनवरी, सन् 1948 ई० को एक विक्षिप्त भारतीय की गोली से आहत होकर ‘राम-राम’ (UPBoardSolutions.com) कहते हुए परलोक सिधार गये। उनके द्वारा मानवों के कल्याण के लिए प्रज्वलित ज्योति सदा प्रकाश देती रहेगी, इसमें सन्देह नहीं है।

गघांशों का सासन्दर्भ अनुवाद

(1) बहवो महापुरुषाः स्वजन्मनाऽमुं भारतभुवं समलञ्चक्रुः। तेषु विशिष्टगुणाकरेषु श्रद्धास्पदेषु महापुरुषेषु महात्मनो गान्धिनो नाम को वी न जानाति? न केवल भारतवर्ष, समग्रं विश्वं तस्य स्वदेशानुरागं सत्यं प्रति तस्याग्रहं, मानवमात्रप्रति तस्य सहजस्नेहमवलोक्य, विस्मितमिव तिष्ठति। क्षीणकायोऽसौ महापुरुषः प्रस्तरादपि कठोरः रिक्तहस्तोऽपि स्वतपोबलेन आङ्ग्लैजातिशासनमकम्पयत्। यदासौ स्वसत्याहिंसास्त्राभ्यां स्वमातृभूमेः पारतत्र्यशृङ्खलामुच्छेत्तुं निश्चिकाय, तदाऽन्येऽनेके स्मयमाना अब्रुवन् , सत्यमहिंसाञ्चानुसृत्य क्वचित् गिरिकानने निर्जने वा प्रदेशे तपश्चरितुं कश्चित् क्षमते न तु क्रूरकुटिलनीतिकलाकलुषितैः वैदेशिकशासकैः सह योद्धं क्षमेत। परं गान्धिना तत्सर्वं कृतं यदन्येभ्यः शशशृङ्गमिवासीत्।

विश्वकविः रवीन्द्रस्तस्याप्रतिमं नूतनमिव क्रियाकौशलमात्मनः सबलत्वं च प्रत्यक्षीकृत्य . ‘महात्मा’ शब्देन तं सम्बोधितवान्।

शब्दार्थ-
अमुं = इस।
भारतभुवं = भारतभूमि को।
समलञ्चक्रुः = भली-भाँति सुशोभित किया।
विशिष्टगुणाकरेषु = विशिष्ट गुणों के भण्डारों में।
श्रद्धास्पदेषु = श्रद्धा के पात्रों में।
तस्याग्रहम् = उनके आग्रह को।
सहजस्नेहमवलोक्य = स्वाभाविक प्रेम को देखकर।
विस्मितम् =आश्चर्यचकित।
क्षीणकायः = पतले-दुबले शरीर वाला।
प्रस्तरात् = पत्थर से।
उच्छेत्तुम् = काटने के लिए।
निश्चिकाय = निश्चित किया।
स्मयमाना = आश्चर्य करते हुए।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
कानने = वन में।
क्षमते = समर्थ हो सकता है।
योदधुं = युद्ध करने के लिए।
क्षमेत = समर्थ।
शशशृंम् = खरगोश के सींग; अर्थात् असम्भव वस्तु।
प्रत्यक्षीकृत्य = साक्षात् देखकर।।

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

संकेत
इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में महात्मा गाँधी के दृढ़-निश्चयी एवं देश-प्रेमी स्वभाव के विषय में बताया गया है।

अनुवाद
बहुत-से महापुरुषों ने अपने जन्म से इस भारतभूमि को सुशोभित किया है। उन विशिष्ट गुणों के अँण्डार, श्रद्धा के योग्य महापुरुषों में महात्मा गाँधी का नाम कौन नहीं जानता है? केवल भारतवर्ष ही नहीं, सम्पूर्ण संसार अपने देश के प्रति उनके प्रेम, सत्य के प्रति उनके आग्रह, मनुष्यमात्र के प्रति उनके स्वाभाविक स्नेह को देखकर विस्मित-सा रह जाता है। दुर्बल शरीर वाले पत्थर से भी कठोर इस महापुरुष ने खाली हाथ होते हुए भी अपने तप की शक्ति से अंग्रेजों के शासन को हिला दिया। जब उन्होंने अपने सत्य और अहिंसा के अस्त्रों (UPBoardSolutions.com) से अपनी मातृभूमि की पराधीनता की जंजीर को तोड़ने का निश्चय किया, तब दूसरे अनेक आश्चर्य करते हुए बोले-“सत्य और अहिंसा का अनुसरण करके कहीं पर्वतों, वनों या निर्जन । प्रदेश में तप करने में कोई समर्थ हो सकता है, किन्तु क्रूर, कुटिल, नीति-कला में कलुषित विदेशी शासकों । के साथ युद्ध करने में समर्थ नहीं हो सकता है। परन्तु गाँधी जी ने वह सब किया, जो दूसरों के लिए खरगोश के सींग के समान अर्थात् असम्भव वस्तु था।

विश्वकवि रवीन्द्र ने उनके अनुपम और नवीन क्रिया-कौशल को और आत्मा की सबलता को प्रत्यक्ष देखकर ही उन्हें महात्मा’ शब्द से सम्बोधित किया। |

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(2) महात्मा गान्धी सौराष्ट्रमण्डले पोरबन्दरनाम्नि लघुनगरे ऊनसप्तत्युत्तराष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे अक्टूबरमासस्य द्वितीये दिनाङ्के स्वजन्मना धरणीतलमलञ्चकार। तस्य पिता कर्मचन्दः माता च पुतलीदेवी आस्ताम। पुत्रानाम्ना सह पितुर्नामापि प्रयोक्तव्यमिति। तत्रत्यपरम्परानुसारं स मोहनदासकर्मचन्दगान्धीति नाम्ना प्रसिद्धो जातः।

शब्दार्थ
ऊनसप्तत्युत्तराष्टादशशततमे = 1869 में। धरणीतलमलञ्चकार (धरणीतलं + अलं + चकार) = धरणी (पृथ्वी) तल को सुशोभित किया। प्रयोक्तव्यम् = प्रयोग करना चाहिए। तत्रत्यपरम्परानुसारं = वहाँ की परम्परा के अनुसार।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी के जन्म-स्थान और माता-पिता का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
महात्मा गाँधी ने सौराष्ट्र (गुजरात) प्रान्त में पोरबन्दर नाम के छोटे नगर में 1869 ई० में अक्टूबर मास की दो तारीख को अपने जन्म से पृथ्वीमण्डल को सुशोभित किया। उनके पिता कर्मचन्द और माता पुतलीदेवी थे। “पुत्र के नाम के साथ पिता का नाम भी प्रयोग करना चाहिए ऐसी वहाँ की परम्परा के अनुसार वे ‘मोहनदास कर्मचन्द गाँधी’ इस नाम से प्रसिद्ध हुए। |

(3) गान्धिमहोदयस्य जननी ‘पुतली देवी’ सातिशयं सत्यरता, धर्मपरायणा, व्रतोपवासादिविधौ श्रद्दधाना श्रद्धेया चासीत्। गान्धिनः जीवनपद्धत्यां तस्य मातुष्प्रभावः सुस्पष्टं दरीदृश्यते। अष्टाशीत्युत्तराष्टादशशततमे वर्षे उच्चशिक्षार्थं से इङ्ग्लैण्डदेशं जगाम। प्रस्थानकाले जननी मांसादिभक्षणं न कर्तुं मदिरां न स्पष्टुम् तमनुशास्ति स्म। गान्धी मातुः शिक्षामनुसरन्नेव तत्र शिक्षा जग्राह। अधिवक्त्र्युपाधिनात्मानमलङ्कृत्य स्वदेशं प्रत्याजगाम।

शब्दार्थ-
सातिशयं = अत्यधिक।
श्रद्दधाना = श्रद्धा रखती हुई (श्रद्धा रखने वाली)।
दरीदृश्यते = दिखाई पड़ता है।
अष्टाशीत्युत्तराष्टादशशततमे = 1888 में।
स्पष्टुम् = स्पर्श करने के लिए।
अनुशास्ति स्म = उपदेश दिया।
जग्राह = ग्रहण की।
अधिवक्त्र्युपाधिनात्मानम- लङ्कृत्य (अधिवक्तृ + उपाधिनी + आत्मानम् + अलङ्कृत्य) = बैरिस्टर की उपाधि से अपने आपको सुशोभित करके।
प्रत्याजगाम = लौट आया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी पर पड़े माता के प्रभाव और उनकी शिक्षा का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
गाँधी जी की माता ‘पुतलीदेवी’ अत्यन्त सत्यनिष्ठ, धार्मिक, व्रत-उपवास आदि में श्रद्धा रखने वाली और श्रद्धा के योग्य थीं। गाँधी जी की जीवन-पद्धति पर उनकी माता का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। 1888 ईसवी वर्ष में वे उच्च-शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड देश गये। जाते समय माता ने मांसादि न खाने और मदिरा को न छूने का उपदेश दिया था। गाँधी जी ने माता की शिक्षा का अनुसरण करते हुए ही वहाँ शिक्षा ग्रहण की। वकालत की उपाधि से अपने को अलंकृत करके अपने देश लौट आये।

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(4) इंग्लैण्डदेशाद् प्रतिनिवृत्य मुम्बईनगरे अधिवक्तृकर्म प्रारब्धं स यदा सयनोऽभवद् तदैव अफ्रिकादेशे निवसन्तः कतिपये धनिनो भारतीयाः अफ्रिकादेशस्थे न्यायालये स्वन्यायपक्षस्य प्रस्तुत्यर्थं गान्धिनम् अफ्रिकादेशमनयन्। तत्र अफ्रिकादेशे आङ्ग्लजातीयानी शासनमासीत्। तत्र निवसतः भारतीयान्प्रति आङ्ग्लशासकानां तदधिकारिणाञ्च घोरमत्याचारं वीक्ष्य तस्य हृदयं भृशमयत। वयं श्वेताः (UPBoardSolutions.com) यूयं कृष्णा इत्यपूर्वो भेदः तैः प्रचारितः। न्यायालयेषु, कार्यालयेषु, रेलयानेषु पथिषु वीथीषु चैष भेदः दृश्यते स्म। एकदा गान्धिमहोदयः रेलयानस्य प्रथमश्रेण्या गच्छनासीत्। रेलयानस्य प्रथमश्रेण्यां यात्रार्थं श्वेताङ्गा एवाधिकृता आसन्। अतः श्वेताधिकारिणः रेलयानात्तं बलाबहिश्चक्रुः।

शब्दार्थ—
प्रतिनिवृत्य = लौटकर।
सयत्नः = प्रयत्नशील।
प्रस्तुत्यर्थम् = प्रस्तुत करने के लिए।
अनयत् = ले गये। वीक्ष्य = देखकर।
भृशम् = अत्यधिक।
अद्यत = दु:खी हुए। वीथीषु = गलियों .. में।
गच्छन्नासीत् = जा रहे थे।
बलाबहिश्चक्रुः = बलपूर्वक बाहर कर दिया। .

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रति गौरांगों के घोर अत्याचारों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इंग्लैण्ड देश से लौटकर मुम्बई नगर में जब वे वकालतं का काम प्रारम्भ करने के लिए प्रयत्नशील थे, तभी अफ्रीका देश के रहने वाले कुछ धनी भारतीय अफ्रीका के न्यायालय में अपने न्याय-पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए गाँधी जी को अफ्रीका देश ले गये। वहाँ अफ्रीका देश में अंग्रेज जाति का शासन था। वहाँ रहने वाले भारतीयों के प्रति अंग्रेज शासकों और उनके अधिकारियों के घोर अत्याचारों को देखकर उनका हृदय बहुत दुःखित हुआ। हम श्वेत हैं, तुम काले हो, यह अपूर्व भेद उन्होंने चला रखा था। कचहरियों, दफ्तरों, रेलगाड़ियों, (UPBoardSolutions.com) रास्तों, गलियों में यह भेद दिखाई पड़ता था। एक दिन गाँधी जी रेलगाड़ी की प्रथम श्रेणी में जा रहे थे। रेलगाड़ी की प्रथम श्रेणी में यात्रा करने के लिए गौरांग ही अधिकृत थे; अत: गोरे अधिकारियों ने उन्हें रेलगाड़ी से बलपूर्वक बाहर कर दिया।

(5) घटनैषा गान्धिनः जीवनसरणिमेव पर्यवर्त्तयत्। राज्यसभायामवमानितः कौटिल्यो नन्दवंशासनोच्छेदाय यथा सङ्कल्पं व्यधात् तथैव गान्धी अपि आङ्ग्लशासनाज्जनेभ्यो मुक्तिं प्रदापयितुं प्रतिजज्ञे। अन्यायं सोढ्वा जीवनं तदपेक्षया मरणमेव वरमित्युदघुष्यासौ स्वसत्याग्रहान्दोलनं तत्र प्रारभत। सत्याग्रहान्दोलनं सर्वथा नूतनमश्रुतपूर्वमासीत्। नूतनं जनानाकर्षयति हि। अफ्रिकादेशवासिषु (UPBoardSolutions.com) भारतीयेषु चाङ्ग्लशासनादुन्मुक्तये नवा जागर्तिः सागरे ऊर्मिमालेव समुत्थिता। आङ्ग्लशासकैर्गान्धिमहोदयः बहुबारं कारागारे निक्षिप्तः परमेतेन तस्य सङ्कल्पः दृढात् दृढतरो जीतः। अधिवक्तृरूपेणाफ्रिकादेशं गतः जननेतृ- रूपेणासौ पञ्चदशोत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे भारतं स्वमातृभूमिं प्रत्याजगामा ।

शब्दार्थ-
घटनैषा = यह घटना।
जीवनसरणिम् = जीवन के मार्ग को।
पर्यवर्त्तयत् = बदल दिया।
अवमानितः = अपमानित हुए।
व्यधात् = धारण किया।
प्रदापयितुम्= दिलाने के लिए।
प्रतिजज्ञे = प्रतिज्ञा की।
सोढ्वा = सहन करके।
उदघुष्य = घोषणा करके।
अभुतपूर्वम् = पहले कभी न सुना गया।
नवा = नयी।
जागर्तिः = जागरण।
ऊर्मिमालेव = लहरों के समूह की तरह।
कारागारे = जेल में।
निक्षिप्तः = डाला।
दृढात् दृढतरो = दृढ़ से दृढ़तर।
पञ्चदशोत्तरैकोनविंशतिशततमे = 1915 ई० में।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अंग्रेजों द्वारा अपमानित किये जाने पर गाँधी जी द्वारा अफ्रीका में सत्याग्रह आन्दोलन करने एवं वहाँ रहने वाले भारतीयों में नयी चेतना जगाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इस घटना ने गाँधी जी के जीवन-मार्ग को ही बदल दिया। उन्होंने अंग्रेजी शासन को समूल नष्ट करने का संकल्प उसी तरह ले लिया, जिस तरह चाणक्य ने राज्यसभा में अपमानित होकर

नन्दवंश के शासन को समाप्त करने का संकल्प लिया था। “अन्याय को सहकर जीने की अपेक्षा मरना । ही अच्छा है, यह घोषणा करके, उन्होंने वहाँ अपनी सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। सत्याग्रह आन्दोलन सब प्रकार से नया तथा पहले कभी न सुना गया था। नवीनता लोगों को आकृष्ट करती ही है। अफ्रीका देश में रहने वाले. भारतीयों में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के लिए नयी जागृति समुद्र में लहरों के समूह की (UPBoardSolutions.com) तरह उठ गयी। अंग्रेज शासकों ने गाँधी जी को बहुत बार जेल में डाला, परन्तु इससे उनको संकल्पे मजबूत से और मजबूत होता गया। वकील के रूप में अफ्रीका गये हुए वे जननेता के रूप में 1915 ई० में अपनी मातृ-भूमि भारत लौट आये।।

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(6) अत्रागत्य अखिलभारतीयकाङ्ग्रेसदलस्य विश्रुतस्य गोखले’ इति संज्ञया ख्यातस्य गोपालकृष्णगोखलेमहोदयस्य सान्निध्यं तेनावाप्तम्। तस्य परामर्शमनुसृत्य गान्धी भारतस्य विभिन्नभागानां यात्रां कृत्वां जनदशया प्रत्यक्षमवगतोऽभवत्। यात्राप्रसंङ्गे तेन प्रत्यक्षीकृतं यद् विशिष्टजनेषु एव राष्ट्रभावना व्यापृता तामेवाधिश्रित्य तिष्ठति।

शब्दार्थ-
अत्रागत्य (अत्र + आगत्य) = यहाँ आकर।
विश्रुतस्य = प्रसिद्ध संज्ञया = नाम से।
ख्यातस्य = विख्यात।
सान्निध्यम् = समीपता, सम्पर्क।
अवाप्तम् = प्राप्त किया।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
प्रत्यक्षमवगतोऽभवत् (प्रत्यक्षम् + अवगतः + अभवत्) = प्रत्यक्ष जानकार हुए।
व्यापता = फैली हुई थी।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत लौटे हुए गाँधी जी को भारत की प्रत्यक्ष दशा के ज्ञात होने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यहाँ आकर उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस दल के बहुत प्रसिद्ध, ‘गोखले’ नाम से विख्यात गोपालकृष्ण गोखले के सान्निध्य को प्राप्त किया। उनकी सलाह का अनुसरण करके गाँधी जी भारत के विभिन्न भागों की यात्रा करके लोगों की दशा से प्रत्यक्ष रूप से अवगत हो गये। यात्रा के समय उन्होंने प्रत्यक्ष देखा कि विशेष लोगों में ही राष्ट्रभावना फैली हुई है, (और वह) उसी का सहारा लेकर बैठी है; अर्थात् इस भावना को प्रसार नहीं हो रहा है।

(7) भारतीयेषु व्याप्तं दैन्यं, दारिद्रयमशिक्षा चासौ दृष्टवान्। श्रमिकाणामेव सततपरिश्रमेणार्जितवित्तबलेन, शैत्यतापप्रभावशून्यासु विशालासु सौधशालासु निवसन्तः किं नाम कष्टमित्यजानन्तस्तान् श्रमिकान् विविधैः क्लेशैः पीडयन्तः को वा कियत् कष्टं दातुं क्षमेतेति स्पर्धाशीलाः आङ्ग्लशासकानां प्रीतिमवाप्तुं तत्पराः आङ्ग्लानां कृपाश्रयभूताः वैभवशालिनो, भारतीयाः गान्धिनः दृष्टिपथमागताः। श्रमिकभूतानां (UPBoardSolutions.com) दैन्यपराभूतजीवनानां जीवनं धनिभिः पालितेभ्यः श्वभ्योऽपि हीनतरं गान्धिना दृष्टम्। तस्य हृदयं सहस्रधा विदीर्णम्। पारतन्त्र्यमेवैतस्य हेतुरिति हेतुरेवोच्छेद्यः स मनसि निश्चिकाय।।

शब्दार्थ-
अर्जितवित्तबलेन = कमाये हुए धन के बल से।
शैत्यतापप्रभावशून्यासु = ठण्ड और गर्मी के प्रभाव से रहित।
सौधशालासु = भवनों में कियत् = कितना।
स्पर्धाशीलाः = होड़ में लगे हुए।
प्रीतिमवाप्तुम् = प्रसन्नता को प्राप्त करने में लगे हुए।
पराभूत = पराजित, विवश।पालितेभ्यः = पालितों (आश्रितों) के लिए।
श्वभ्यः = कुत्तों से।
विदीर्णम् = टूट गया।
उच्छेद्यः = दूर करने योग्य।
निश्चिकाय = निश्चित किया।

प्रसंग
अफ्रीका से भारत लौटकर गाँधी जी ने भारतीयों की दीनता, दरिद्रता और अशिक्षा को प्रत्यक्ष देखा और उसके मूल कारण परतन्त्रता को निश्चित किया। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में किया गया है।

अनुवाद
(उन्होंने) भारतीयों में व्याप्त दीनता, दरिद्रता और अशिक्षा को देखा। मजदूरों के ही लगातार परिश्रम से कमाये हुए धन के बल से शीत और ताप के प्रभाव से रहित विशाल महलों में रहते हुए, ‘कष्ट क्या है?’ यह न जानते हुए, उन मजदूरों को अनेक कष्टों से पीड़ित करते हुए ‘कौन कितना कष्ट देने में समर्थ है?’ इस प्रकार की होड़ में लगे हुए, अंग्रेज शासकों की प्रसन्नता को प्राप्त करने में लगे हुए, अंग्रेजों के कृपापात्र, (UPBoardSolutions.com) ऐश्वर्यसम्पन्न भारतवासी गाँधी जी की दृष्टि में आये। गाँधी जी ने दीनता से व्याप्त जीवन वाले मजदूर लोगों के जीवन को धनी लोगों द्वारा पालित कुत्तों से भी बदतर देखा और उनका हृदय हजारों टुकड़ों में फट गया। उन्होंने गुलामी ही इसका कारण है; अत: कारण ही मिटाने योग्य है, ऐसा मन में निश्चय किया।

(8) बिहारप्रान्ते चम्पारणजनपदे नीलकृषकैः सह आङ्ग्लैः भूस्वामिभिः क्रियमाणममानवीयमत्याचारं समापयुितं सत्याग्रहं सः समारब्धवान्। तेन भूस्वामिनः क्रूरतरान् स्वात्याघारान् परित्यक्तुं विवशा अभवन्। गान्धिनः स्वदेशभूमावयं प्रथमः सत्याग्रहः प्रथमश्च तस्य विजयः आसीत्।।

शब्दार्थ-
नीलकृषकैः = नील की खेती करने वाले कृषक।
क्रियमाणम् = किये गये।
अमानवीय = क्रूर।
समापयितुम् = समाप्त करने के लिए।
समारब्धवान् = आरम्भ किया।
परित्यक्तुम् = छोड़ने के लिए।
स्वदेशभूमावयम् (स्वदेशभूमौ + अयम्) = अपने देश की भूमि पर यह।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी के प्रथम सत्याग्रह और प्रथम विजय का वर्णन है। |

अनुवाद
उन्होंने (गाँधी जी ने) बिहार प्रान्त में चम्पारन जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के साथ अंग्रेज जमींदारों के द्वारा किये गये अमानवीय अत्याचार को समाप्त करने के लिए। सत्याग्रह आरम्भ किया। उससे जमींदार अपने क्रूरता भरे अत्याचारों को छोड़ने के लिए विवश हो गये। अपने देश की भूमि पर गाँधी जी का यह प्रथम सत्याग्रह और उनकी पहली विजय थी।

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(9) चम्पारणान्दोलने तस्य नेतृत्वक्षमता प्रमाणिता जाता। समग्रोऽपि देशः स्वनेतृरूपेण समङ्गीचकार। गान्धिमहोदयोऽपि भारतमेकसूत्रे निबध्नन् देशाय राष्ट्ररूपमददात्। जनाः स्वकृतज्ञता ज्ञापयन्तस्तं राष्ट्रपितेत्यब्रुवन्।।

शब्दार्थ-
समग्रः = सम्पूर्ण।
अङ्गीचकार = स्वीकार कर लिया।
निबध्नन् = बाँधता हुआ।
ज्ञापयन्तः = जनाते (व्यक्त करते) हुए।
अब्रुवन् = बोले।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी की नेतृत्व-क्षमता की प्रामाणिकता के बारे में बताया गया है।

अनुवाद
चम्पारन (बिहार) जिले के आन्दोलन में उनकी (गाँधी जी की) नेतृत्व की योग्यता प्रमाणित हो गयी। सम्पूर्ण देश ने उन्हें अपने नेता के रूप में स्वीकार कर लिया। गाँधी जी ने भी भारत को एक सूत्र में बाँधते हुए देश को राष्ट्र का रूप प्रदान किया। लोगों ने अपनी कृतज्ञता को प्रकट करते हुए उन्हें राष्ट्रपिता’ कहा।

(10) विंशत्युत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे प्रतिदिनमेधमानानाङ्ग्लशासकानामत्याचारान् प्रतिरोद्धमसौ असहयोगाख्यमान्दोलनं प्रवर्तयामास। वैदेशिकवस्तूनि परिहर्त्तव्यानि, वैदेशिकसेवाः परित्यक्तव्याः, वैदेशिकशिक्षालयेषु न पठितव्यम् , वैदेशिकोपाधयः परिहातव्याः, राष्ट्रियविद्यालयाः स्थापयितव्यास्तेषु पठितव्यमिति तत्स्वरूपं तेन व्याख्यातम्। भारतीयजनाः तस्मिन्नान्दोलने, भूयसोत्साहन सम्मिलिता (UPBoardSolutions.com) अभवन्। महात्मन् आत्मशक्त्या निःशस्त्रिणोऽपि भारतीयाः निर्भीका अभवन्। दण्डात् तेषां किं भयं ये दण्डमेव स्वेच्छया आलिङ्गितुं सन्नद्धाः।

शाब्दार्थ-
एधमानान् = बढ़ते हुए।
प्रतिरोद्धम् = रोकने के लिए।
प्रवर्तयामास = चलाया।
परिहर्त्तव्यानि = छोड़ देनी चाहिए।
स्थापयितव्याः = स्थापना करनी चाहिए।
भूयसा = अत्यधिक।
आलिङ्गितुम् = आलिंगन (चुम्बन) करने के लिए।
सन्नद्धाः = तैयार।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
सन् 1920 ई० में अंग्रेज शासकों के प्रतिदिन बढ़ते हुए अत्याचारों को रोकने के लिए उन्होंने ‘असहयोग’ नाम का आन्दोलन चलाया। विदेश की वस्तुएँ छोड़ देनी चाहिए, विदेशियों की नौकरियों को त्याग देना चाहिए, विदेशियों के स्कूलों में नहीं पढ़ना चाहिए, विदेशियों की उपाधियों को छोड़ देना चाहिए, राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए, उन्हीं में पढ़ना चाहिए, उन्होंने उसको ऐसा स्वरूप बतलाया। (UPBoardSolutions.com) भारतवासी उस आन्दोलन में अत्यन्त उत्साह से सम्मिलित हुए। महात्मा जी के आत्मबल से शस्त्ररहित होते हुए भी भारतवासी निडर हो गये। उनको दण्ड का क्या भय है, जो दण्ड को ही अपनी इच्छा से गले लगाने को तैयार हैं।

(11) उपाधिधारिभिरुपाधयः परित्यक्तताः शिक्षार्थिभिः शिक्षकैश्च शिक्षालयाः परित्यक्ताः, वैदेशिकवस्त्राणि वह्नौ दग्धानि। सहस्रशो भारतीयाः बन्दीकृताः। महात्माऽपि राजद्रोहारोपे षड्वर्षाणि यावत् कारागारे निक्षिप्तः। जनाः वैदेशिकदमनचक्रेणाक्रान्ताः भृशमुत्पीडिताः जाताः।।

शब्दार्थ-
वह्नौ = अग्नि में दग्धानि = जला दिये।
निक्षिप्तः = डाल दिया।
भृशम् उत्पीडिताः = अत्यधिक पीड़ित।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में भारतीयों के . सम्मिलित होने का एवं अंग्रेजी सरकार द्वारा किये गये दमन-चक्र का वर्णन है। ।

अनुवाद
उपाधिधारियों ने उपाधियाँ त्याग दीं। विद्यार्थियों और शिक्षकों ने विद्यालय छोड़ दिये। विदेशी वस्त्र अग्नि में जला दिये गये। हजारों भारतवासी बन्दी बना लिये गये। महात्मा जी को भी राजद्रोह के अपराध में छ: वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। लोग विदेशियों के दमन-चक्र से आक्रान्त हुए अत्यधिक पीड़ित हो गये।

(12) आन्दोलनेऽस्मिन् महात्मना सत्याहिंसारूपे अस्त्रद्वयं भारतीयेभ्यः प्रदत्तम्। स्वराज्यापेक्षयाऽप्येते महत्त्वपूर्ण स्त इति तस्य दृढं मतमासीत्। अतएव चौरी-चौरा नामके (UPBoardSolutions.com) स्थाने सत्याग्रहिभिः प्रवर्तितां हिंसावृत्तिमाकण्र्य महात्मना सत्याग्रहः झटिति स्थगितः। इतरे भारतीया नेतारः महात्मन एतेन निश्चयेन विस्मिताः खिन्नाश्चाभूवन्। परं जना अनुशासनस्य महन्निदर्शनं प्रस्तुतवन्तः। महात्मनो माहात्म्यं तदानीं परां कोटिमवाप्नोत्।

शब्दार्थ-
प्रवर्तिताम् = चलायी जा रही।
आकर्य = सुनकर।
झटिति = तत्काल, तुरन्त।
महन्निदर्शनम् (महत् + निदर्शनम्) = बड़ा उदाहरण।
परां कोटिम् अवाप्नोत् = चरम सीमा को प्राप्त हुआ।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी के द्वारा आन्दोलन के स्थगित किये जाने का वर्णन है।’

अनुवाद
इस आन्दोलन में महात्मा जी ने सत्य और अहिंसा के रूप में दो अस्त्र भारतीयों को प्रदान किये। अपने राज्य की अपेक्षा से भी ये दोनों महत्त्वपूर्ण हैं, ऐसा उनका पक्का विचार था। इसलिए ‘चौरी-चौरा’ नामक स्थान पर सत्याग्रहियों के द्वारा चलायी जा रही हिंसावृत्ति को सुनकर महात्मा जी ने सत्याग्रह आन्दोलन को तत्काल स्थगित कर दिया। दूसरे भारतीय नेता महात्मा जी के इस निश्चय से विस्मित और खिन्न हो गये। परन्तु लोगों ने अनुशासन का महान् उदाहरण प्रस्तुत किया। महात्मा जी का महत्त्व उस समय ‘चरम सीमा को प्राप्त हुआ।

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(13) वैदेशिकशासनेन जीवनाय परमोपयोगिनि वस्तुनि लवणे करं निर्धारितम्। एतन्निरोद्धं त्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे ‘सविनयावज्ञाख्यान्दोलनं तेन प्रारब्धम्। तदर्थं गुर्जरप्रान्तस्यै दाण्डीग्रामाद् समुद्रपर्यन्तं पदयात्रा तेन विहिता। दाण्डीग्रामादासमुद्रमेषा यात्रा ग्रामाद् ग्राम प्रेयन्ती (UPBoardSolutions.com) सहस्रशो जनान् नरान् नारीश्चात्मन्यामेलितवती समुद्रतटमुपगम्य सागरजलाल्लवणं निर्माय तैः जनैः महात्मना च तद्विधानस्य सविनयमवज्ञा कृता। ग्रामें ग्रामे नगरे नगरे वीथीषु वीथीषु लवणनिर्माणं संवृत्तम्। शासनं तन्निरोद्धं न शशाक। वायुवेगेनोन्मत्तान् सागरतरङ्गान् किं तटबन्धः रोद्धं क्षमेत? |

शब्दार्थ-
लवणे करें = नमक पर कर (टैक्स)।
एतत् निरोद्धम् = इसे रोकने के लिए।
विहिता = की।
आसमुद्रम् = समुद्र तक।
प्रेरयन्ती = प्रेरणा देती हुई।
ऑमेलितवती = मिल लिया।
निर्माय = बनाकर।
विधानस्य = कानून की।
अवज्ञा = अवहेलना।
वीथीषु = गलियों में।
संवृत्तम् = सम्पन्न हुआ।
न शशाक = समर्थ नहीं हुआ।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में विदेशी सरकार द्वारा नमक पर लगाये गये कर के विरोध में गाँधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
विदेशी सरकार ने जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी वस्तु नमक पर कर (टैक्स) लगा दिया। इसे रोकने के लिए उन्होंने गाँधी जी ने) सन् 1930 ईसवी में ‘सविनय अवज्ञा’ नाम का आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसके लिए उन्होंने गुजरात प्रान्त के दाण्डी ग्राम से समुद्र तक पैदल यात्रा की। दाण्डी ग्राम से (UPBoardSolutions.com) समुद्र तल की इस यात्रा ने गाँव-गाँव को प्रेरित करते हुए हजारों लोगों (स्त्री-पुरुषों) को अपने में मिला लिया। समुद्र के तट पर जाकर सागर के जल से नमक बनाकर उन लोगों और महात्मा जी के द्वारा उस कानून की विन

यपूर्वक अवहेलना की गयी। गाँव-गाँव, नगर-नगर, गली-गली में नमक बनाया गया। शासन के लिए उसे रोकना सम्भव न रहा। वायु के वेग से मतवाली सागर की तरंगों को क्या तट का बाँध रोक सकता है? (अर्थात् नहीं रोक सकता)।

(14) महात्मनः गान्धिनः सत्याहिंसाभ्यां भृशमुद्विग्नाः कुटिलराजनयकुशलाः वैदेशिक शासकाः हिन्दु-मुस्लिम-स्पृश्यास्पृश्यादिवर्णसमस्यामुद्घाट्य महात्मनः प्रभावादेकसूत्रे आबद्धं सबलं भारतं विखण्डयितुमुपचक्रिरे। महात्मा अनशनव्रतेन तेषां तेषां पक्षग्राहिणां च प्रयत्न निष्फलं चकार। महात्मा गान्धी स्वप्राणानपि अविगणय्य राष्ट्रस्यैकत्वमखण्डत्वरक्षत्।

शब्दार्थ-
उद्विग्नाः = परेशान हुए।
उद्घाट्य = उभारकर, फैलाकर।
चिखण्डयितुम् = खण्डित करने के लिए।
उपचक्रमे = प्रारम्भ किया।
अविगणय्य = न गिनकर, परवाह न करके।
ऐकत्वमखण्डत्वम् = एकता, अखण्डता।
अरक्षत् = बचाया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी के द्वारा अंग्रेजों की कुटिल नीति के विफल किये जाने का वर्णन है।

अनुवाद
महात्मा गाँधी की सत्य और अहिंसा से बहुत परेशान हुए कुटिल राजनीति में चतुर विदेशी शासकों ने हिन्दू-मुसलमान, छुआछूत आदि की जातीय समस्या को उभार कर महात्मा जी के प्रभाव से एक सूत्र में बँधे हुए शक्तिशाली भारत के टुकड़े करने प्रारम्भ कर दिये। महात्मा जी ने अनशन व्रत (UPBoardSolutions.com) के द्वारा उन-उन पक्ष लेने वालों (शासकों और उनके अनुयायियों) के प्रयत्न को व्यर्थ कर दिया। महात्मा गाँधी ने अपने प्राणों की भी परवाह न करके राष्ट्र की एकता और अखण्डता की रक्षा की।

(15) महात्मनो नेतृत्वे बहूनि आन्दोलनानि प्रवृत्तानि जातानि। वैदेशिकशासकैस्तथापि भारताय स्वातन्त्र्यं प्रदातुं रुचिर्न प्रदर्शिता। बहुविधं व्याजमालम्ब्य कालात्ययमेव ते कुर्वन्त आसन्। अतः द्वाचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे अगस्तमासस्याष्टमे दिनाङ्के मुम्बईनगरे सम्पन्ने काङ्ग्रेसाधिवेशने महात्मना घोषितम्-आङ्ग्ला भारतं त्यजत। त्यज भारतमिति नाम्ना विश्रुतमिदमान्दोलनं भारतमुक्तेः सरणि सरलां चकार। सद्य एव तत्रोपस्थिताः नेहरू-आजादपटेल-प्रसाद-देसाई-प्रभृतयः प्रमुखनेतारो महात्मना सह निगृहीताः कारागारे च बन्दीकृताः। वृत्तमिदं विद्युद्गत्या भारतवर्षे जनेषु प्रावर्त्तत। समग्रो देशः झञ्झावातेन विक्षुब्धसागर इव सङ्क्षुब्धः सञ्जातः। नेतृभिः विनाऽपि सम्पूर्णदेशमभिव्याप्य जनान्दोलनं प्रारब्धम्। ग्रामे ग्रामे नगरे नगरे स्वविवेकेन स्वरीतया चान्दोलनमिदं जनाः समचालयन्। राजकीयभवनेषु कार्यालयेषु च स्वत्रिवर्णध्वजारोपणमेवासीन्मुख्य लक्ष्यम्। ध्वजारोपणयज्ञे बहवः युवकाः कुमाराश्च स्वप्राणान् अत्यजन्। तेषां शरीरं गुलिकाभिः हतं भूमावपतत् किन्तु ध्वजो नाऽपतत्।

पततस्तस्मात्कश्चिदन्योध्वजमगृह्णात्। तदानीन्तनमद्भुतं शौर्य्यमप्रतिमं साहसं देशप्रेम्णः लोकोत्तरं निदर्शनं प्रस्तुतं भारतीयैःस्ववक्षः प्रसार्य स्वहस्तेन च प्रदश्र्य (UPBoardSolutions.com) अत्र गुलिकां मारय’ ‘अत्र गुलिकां मारय’ इति नदन्तः कुमारवीराः आसन्। आग्नेयास्त्रेभ्यः सततं प्रक्षिप्ताः गुलिकास्तेषां गतिमवरोद्धं नाऽशक्नुवन्। गुलिकया कश्चिन्निहतश्चेपरः तत्स्थानमगृह्णात्। अहिंसयाऽनुप्राणितास्ते वीराः प्रतिरोधमकुर्वाणाः मृत्योर्वरणमकुर्वन्। इत्थमासीदस्माकं युववर्गस्य छात्राणां च मरणस्पर्धा।

शब्दार्थ-
प्रवृत्तानि जातानि = शुरू (जारी) हुए।
प्रदातुम् = प्रदान करने के लिए।
व्याजम् आलम्ब्य = बहानों का सहारा लेकर।
कालात्ययम् = समय बिताना।
सरणिम् = मार्ग को।
सद्य एव = तुरन्त ही।
निगृहीताः = पकड़ लिये गये।
प्रावर्त्तत = फैल गया।
झञ्झावातेन = आँधी-तूफान से।
सङ्क्षुब्धः = व्याकुल।
सञ्जातः = हो गया।
स्वरीत्या = अपनी रीति से।
अत्यजन् = त्याग दिये।
गुलिकाभिः = गोलियों से।
स्ववक्षः = अपनी छाती।
प्रसार्य = फैलाकर आग्नेयास्त्रेभ्यः = बन्दूकों द्वारा।
प्रक्षिप्ताः = फेंकी गयीं, दागी गयीं।
नदन्तः = चिल्लाते हुए।
प्रतिरोधम् = रुकावट।
वरणम् = चमन। मरणस्पर्धा = मरने की होड़।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में महात्मा गाँधीजी के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का रोमांचक वर्णन किया गया है।

अनुवाद
महात्मा जी के नेतृत्व में बहुत-से आन्दोलन शुरू हुए, तो भी विदेशी शासकों ने स्वतन्त्रता प्रदान करने में रुचि नहीं दिखायी। अनेक प्रकार के बहाने बनाकर वे समय ही व्यतीत करते रहे। इसलिए सन् 1942 ईसवी में अगस्त महीने की 8 तारीख को बम्बई (अब मुम्बई) नगर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा जी ने घोषणा की “अंग्रेजो! भारत छोड़ो।” “भारत छोड़ो’ इस नाम से प्रसिद्ध इस आन्दोलन ने भारत की स्वतन्त्रता का मार्ग सरल कर दिया। तत्काल ही वहाँ उपस्थित नेहरू, आजाद, पटेल, प्रसाद, देसाई (UPBoardSolutions.com) आदि प्रमुख नेताओं को महात्मा जी के साथ पकड़ लिया गया और जेल में बन्दी बना दिया गया। यह समाचार बिजली की गति से भारतवर्ष के लोगों में फैल गया। सारा देश तूफान से विक्षुब्ध सागर की तरह क्षुब्ध हो गया। नेताओं के बिना भी सम्पूर्ण देश में
जनान्दोलन शुरू हो गया। गाँव-गाँव में, नगर-नगर में अपने विवेक से और अपने ढंग से लोगों ने इस ‘ आन्दोलन को चलाया। सरकारी इमारतों और दफ्तरों पर अपना तिरंगा झण्डा फहराना ही इस | (आन्दोलन) का मुख्य लक्ष्य था। ध्वज को फहराने के यज्ञ में बहुत-से युवकों और बालकों ने अपने । प्राण न्योछावर कर दिये।

उनका शरीर गोलियों से घायल होकर भूमि पर गिरा किन्तु (उनके हाथों का) ध्वज नहीं गिरा। गिरते हुए उससे (व्यक्ति से) ध्वज कोई दूसरा ले लेता था। उस समय अद्भुत वीरता और अतुल साहस को दिखाकर भारतीयों ने देश-प्रेम का अलौकिक उदाहरण प्रस्तुत किया। अपनी छाती को फैलाकर और अपने हाथ से दिखाकर “यहाँ गोली मारो, यहाँ गोली मारो” इस प्रकार वीर बालक चिल्ला रहे थे। बन्दूकों से लगातार (UPBoardSolutions.com) फेंकी (चलायी) गयी गोलियाँ भी उनकी गति को नहीं रोक सकीं। यदि कोई गोली से मरता तो दूसरा उसका स्थान ले लेता था। अहिंसा से अनुप्राणित उन वीरों ने प्रतिरोध न करते हुए मृत्यु का वरण किया। इस प्रकार यह हमारे युवावर्ग और छात्रों के मरने की होड़ थी।

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(16) अनेनाप्रतिमेनात्मोत्सर्गकर्मणा वैदेशिकशासनं प्रकम्पते स्म। सप्तचत्वारिंश| दुत्तरैकोनविंशतिशततमे अगस्तमासस्य पञ्चदशदिनाङ्के भारतस्य शासनं भारतीयेभ्यः समर्थ्य वैदेशिकाः शासकाः स्वदेशं गताः। भारतं स्वतन्त्रमभवत्।।

शब्दार्थ-
आत्मोत्सर्गकर्मणा = आत्मबलिदान के कार्य से।
प्रकम्पते स्म = काँप गया।
समर्थ्य = सौंपकर।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इस अतुलनीय आत्म-बलिदान के कार्य से विदेशियों का शासन काँप गया। सन् 1947 ईसवी में अगस्त महीने की 15 तारीख को विदेशी शासक भारत के शासन को भारतीयों को सौंपकर अपने देश को चले गये। भारत स्वतन्त्र हो गया।

(17) सः स्वसत्याग्रहेण राजनीतिकं सामाजिकमार्थिकञ्च स्वातन्त्र्यं प्राप्तुं प्रायतत। अफ्रिकादेशादागत्य स अहमदनगरस्यान्तिके साबरमतीनद्यतटे आश्रमं स्थापितवान्। तत्र त्रिविधं लक्ष्यमभिलक्ष्य नराः नार्यश्च शिक्षिताः जाताः, पश्चादसावाश्रमः वर्धासमीपं सेवाग्राममानीतः। (UPBoardSolutions.com) तत्र राजनीतिककार्यक्रमात्पृथक् रचनात्मक कार्यक्रमः तेन प्रारब्धः। स्वदेशिवस्तूनामुपयोगः ग्रामोद्योगस्य प्रचारः दारिद्रयान्मुक्तेरुपायश्च गान्धिना समुपदिष्टाः। तेन चर्खायन्त्रेण कार्पाससूत्रनिर्माणं प्रशिक्षितम्। वैदेशिकशासने भारतीयहस्तशिल्पं वस्तूनिर्माणकलाकौशलं विनष्टम्। तत्पुनरुज्जीव्यैव दारिद्रयान्मुक्तिः सम्भवेति तस्य दृढ़ो विचारः आसीत्। एतदर्थ स आधारभूत

कलाकौशलसम्पृक्तां शिक्षानीतिं प्रास्तौत्। अज्ञानादेवीस्पृश्यतादिदोषाः समाजे समुत्पन्नाः | शिक्षया एव तदूरीकर्तुं शक्यन्ते इति तेनोक्तम्।

शब्दार्थ-
प्रायतत = प्रयत्न किया।
अन्तिके = पास।
अभिलक्ष्य = सामने रखकर।
समुपदिष्टाः = उपदेश दिया।
कार्पाससूत्रनिर्माणम् = सूती धागा बनाना।
तत्पुनरुज्जीव्यैवे (तत् + पुनः + उज्जीव्य + एव) = उसे पुनः जीवित करके ही।
सम्पृक्तां = अच्छी प्रकार मिली हुई को।
प्रास्तौत् = प्रस्तुत किया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी द्वारा चलाये गये रचनात्मक कार्यक्रमों का वर्णन है। |

अनुवाद
उन्होंने अपने सत्याग्रह से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वतन्त्रता को प्राप्त करने का प्रयत्न किया। अफ्रीका से आकर उन्होंने अहमदनगर के समीप साबरमती नदी के किनारे एक आश्रम स्थापित किया था। वहाँ तीन प्रकार के लक्ष्य को लेकर नर-नारी शिक्षित हुए। बाद में यह (UPBoardSolutions.com) आश्रम वर्धा के पास सेवाग्राम, में लाया गया। वहाँ उन्होंने राजनीतिक कार्यक्रम से अलग रचनात्मक कार्यक्रम प्रारम्भ किया। गाँधी जी ने अपने देश की वस्तुओं का उपयोग, ग्रामोद्योग का प्रचार और गरीबी से छुटकारे के उपाय का उपदेश दिया।

उन्होंने चर्खा यन्त्र से सूती धागे का निर्माण करना सिखाया। विदेशियों के शासन में भारतीय हस्तकला, वस्तु-निर्माण का कला-कौशल नष्ट हो गया था। उसको पुनर्जीवित करके ही गरीबी से छुटकारा सम्भव हो सकता है, यह उनका दृढ़ विचार था। इसके लिए उन्होंने बुनियादी कला-कौशल से मिली शिक्षा-नीति को प्रस्तुत किया। “अज्ञान से ही छुआछूत आदि दोष समाज में उत्पन्न हुए हैं, शिक्षा से ही उन्हें दूर किया जा सकता है, ऐसा उन्होंने बताया।

(18) स्वमनसि भारतभुवः प्रकल्पिततस्या चित्रस्यानुरूपं भारतराष्ट्रं द्रष्टुं स कामयते स्म। अतस्तेन भारते रामराज्यस्य कल्पना कृता। तस्मिन् कश्चिद् दीनः, न कश्चिद् दुःखी, न कश्चिद्बुधः, न वा कश्चिद् गुणहीनः भविष्यति। श्रमं प्रति प्रतिष्ठा सर्वान्प्रति समदर्शित्वं दलितान् शोषितान्प्रति स्नेहः (UPBoardSolutions.com) साधनस्यापि पवित्रत्वं सर्वधर्मान्प्रति सहिष्णुतादिभावाः तस्य , जीवनदर्शनस्याङ्गभूता आसन्। |

शब्दार्थ
स्वमनसि = अपने मन में।
प्रकल्पितं = कल्पना किया गया।
कामयते स्म = चाहते थे।
अबुधः = अंज्ञानी।
समदर्शित्वम् = समान दृष्टित्व।
अङ्गभूताः = प्राणभूत या मुख्य आधार।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी की रामाराज्य की कल्पना का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
वे अपने मन में भारतभूमि के कल्पित चित्र के अनुसार ही भारत राष्ट्र को देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारत में रामराज्य की कल्पना की थी। उसमें न कोई दीन, न कोई दुःखी, न कोई अज्ञानी अथवा न कोई गुणहीन होगा। श्रम की प्रतिष्ठा, सबके प्रति समानदर्शिता, दलितों और शोषितों के प्रति स्नेह, साधनों की भी पवित्रता, सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता आदि का भाव उनके जीवन-दर्शन के अंगभूत (अंगस्वरूप) थे।

(19) महात्मना गान्धिना प्रदर्शितो मार्गे व्यापको वर्तते। तत्प्रदर्शितमार्गमनुसृत्यैव वयं स्वराष्ट्रस्याभ्युत्थानं विधातुं शक्नुमः।त्रयस्त्रिंशद्वर्षाणि यावद वैदेशिकैः शासकैः सह सङ्घर्षरत अष्टचत्वारिंशदूत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे जनवरीमासस्य त्रिंशे दिनाङ्के भारतीयेनैव केनचिन्मत्तेन दिल्लीनगरे हिंसितः (UPBoardSolutions.com) ‘हे राम’ इत्युच्चरन् मृत्युलोकमुत्सृज्य दिवङ्गतः। तत्प्रज्वालितं ज्योतिः विश्वस्मिन् विश्वे मानवजातेः परित्राणाय सततं प्रकाशं दास्यतीति नाऽत्र संशयलेशः।

शब्दार्थ-
अनुसृत्यैव (अनुसृत्य + एव) = अनुसरण करके ही।
अभ्युत्थानं = उन्नति।
विधातुं = करने के लिए।
शक्नुमः = सकते हैं।
त्रयस्त्रिंशद्वर्षाणि = तैंतीस वर्ष।
यावत् = तक।
उन्मत्तेन = पागल द्वारा।
हिंसितः = मारे गये।
उत्सृज्य = छोड़कर।
दिवंगत = स्वर्ग को चले गये।
प्रज्वालितं = जलाया हुआ।
विश्वस्मिन्= इस संसार में।
परित्राणाय = रक्षा के लिए।
संशयलेशः = थोड़ा-सा भी सन्देह।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी की हत्या किये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
महात्मा गाँधी के द्वारा दिखाया गया मार्ग व्यापक है। उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग का अनुसरण करके ही हम अपने राष्ट्र की उन्नति करने में समर्थ हो सकते हैं। | तैंतीस वर्ष तक विदेशी शासकों के साथ संघर्ष करते हुए सन् 1948 ईसवी में जनवरी महीने की तीस तारीख को किसी एक (UPBoardSolutions.com) उन्मत्त (विक्षिप्त) भारतवासी के द्वारा ही दिल्ली नगर में मारे गये, ‘हे राम’ का उच्चारण करते हुए मनुष्यलोक को छोड़कर स्वर्ग सिधार गये। उनके द्वारा जलाई गयी ज्योति इस संसार में मानव-जाति की रक्षा के लिए निरन्तर प्रकाश देगी, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
गाँधी जी के प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत ‘प्रारम्भिक जीवन’ शीर्षक देखें।

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प्ररन 2
महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका में किये गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों और अंग्रेजों की रंग-भेद की नीति को देखकर गाँधी जी को बहुत दु:ख हुआ। गाँधी जी ने वहाँ अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने हेतु सत्याग्रह
आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। इससे वहाँ अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जन-जागृति उत्पन्न हुई। सन् 1919 ई० में वे भारत वापस लौट आये।

प्ररन 3
गाँधी जी के चम्पारन आन्दोलन के विषय में लिखिए। या महात्मा गाँधी को ‘राष्ट्रपिता’ किस कारण कहा गया?
उत्तर
संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत ‘चम्पारन आन्दोलन’ शीर्षक देखें।

प्ररन 4
महात्मा गाँधी द्वारा ‘असहयोग आन्दोलन’, ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ और ‘ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ कब-कब किये गये? इनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
संकेत-‘पाठे-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत इन आन्दोलनों से सम्बद्ध अनुच्छेद देखें।

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