UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 सन्त कबीरदास

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name सन्त कबीरदास
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 सन्त कबीरदास

कवि का साहित्यिक परिवय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
कबीर का जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्य-कृतियों (साहित्यिक योगदान) का उल्लेख कीजिए।
या
सन्त कबीर का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों को उल्लेख कीजिए।

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एक जनश्रुति के अनुसार इनका जन्म हिन्दू-परिवार में हुआ था। कहते हैं कि ये एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने इन्हें लोक-लाज के भय से काशी के लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया था, जहाँ से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी नीमा नि:सन्तान होने के कारण इन्हें उठा लाये।

कबीर के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु अधिकतर विद्वान् इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है—काशी में परगट भये, हैं रामानन्द चेताये। इससे इनके गुरु का नाम भी पता चलता है कि प्रसिद्ध वैष्णव सन्त आचार्य रामानन्द से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। गुरुमन्त्र के रूप में इन्हें ‘राम’ नाम मिला, जो इनकी समग्र भावी साधना का आधार बना।

कबीर की पत्नी का नाम लोई था, जिससे इनके कमाल नामक पुत्र और कमाली नामक पुत्री उत्पन्न हुई। कबीर बड़े निर्भीक और मस्तमौला स्वभाव के थे। व्यापक देशाटन एवं अनेक साधु-सन्तों के सम्पर्क में आते रहने के कारण इन्हें विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का ज्ञान प्राप्त हो गया था। ये बड़े सारग्राही एवं प्रतिभाशाली थे। कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है, स्थान-विशेष के प्रभाव से नहीं। अपनी इसी मान्यता को सिद्ध करने के लिए अन्त समय में ये मगहर चले गये; क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि काशी में मरने वाले को मुक्ति मिलती है, किन्तु मगहर में मरने वाले को नरक। अधिकतर विद्वानों ने माना है कि कबीर की मृत्यु संवत् 1575 ( सन् 1519) में हुई। इसके समर्थन में निम्नलिखित उक्ति प्रसिद्ध है-

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साहित्यिक सेवाएँ—कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, किन्तु ये बहुश्रुत होने के साथ-साथ उच्च कोटि की प्रतिभा से सम्पन्न थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि, ”कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें सेंत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।” इस दृष्टि से उनके काव्य में उनके दो रूप दिखाई पड़ते हैं—(1) सुधारक रूप तथा (2) साधक (या भक्त) रूप। उनके बाद वाले रूप में ही उनके सच्चे कवित्व के दर्शन होते हैं।

  1. कबीर का सुधारक रूप—कबीरदास के समय में हिन्दुओं और मुसलमानों में कटुता चरम सीमा पर थी। कबीर ने इन दोनों को पास लाना चाहा। इसके लिए उन्होंने सामाजिक और धार्मिक दोनों स्तरों पर प्रयास किया।
  2. कबीर का साधक ( या भक्त) रूप-सुधारक रूप में यदि कबीर में तर्कशक्ति और बुद्धि की प्रखरता देखने को मिलती है तो साधक रूप में उनके भावुक हृदय से मार्मिक साक्षात्कार होता है। कबीर के अनुसार मानव-जीवन की सार्थकता ईश्वर-दर्शन में है। उस ईश्वर को विभिन्न धर्मों के

अनुयायी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। कृतियाँ-कबीर लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे। यह बात उन्होंने स्वयं कही है– मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ। उनके शिष्यों ने उनकी वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ नाम से किया, जिसके तीन मुख्य भाग हैं-साखी, सबद (पद), रमैनी। हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘बीजक’ का सर्वाधिक प्रामाणिक अंश ‘साखी’ है। इसके बाद सबद’ और अन्त में ‘रमैनी’ का स्थान है।

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साहित्य में स्थान—कबीर के जीवन और सन्देश के सदृश ही उनकी कविता भी आडम्बरशून्य है। कविता की यह सादगी ही उसकी बड़ी शक्ति है। न जाने कितने सहृदय तो उनके साधक रूप की अपेक्षा उनके कवि रूप पर मुग्ध हैं और उन्हें हिन्दी के सिद्धहस्त महाकवियों की पंक्ति में अग्र स्थान का अधिकारी मानते हैं।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

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