UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

कवि का साहित्यिक परियाय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ के जीवन एवं कृतियों (साहित्यिक योगदान) पर प्रकाश डालिए।
या
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जीवन-परिचय–सुकवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ आधुनिक ब्रजभाषा के अन्तिम प्रतिनिधि कवि थे। सुन्दर, सरस और प्रवाहयुक्त रचनाएँ प्रस्तुत करके रत्नाकर जी ने ब्रजभाषा की धूमिल ज्योति को देदीप्यमान कर दिया। रत्नाकर जी का जन्म भाद्रपद सुदी 5, संवत् 1923 वि० (सन् 1866 ई०) को काशी के एक प्रसिद्ध अग्रवाल कुल में हुआ। इनके पिता का नाम श्री पुरुषोत्तमदास था, जो अरबी-फारसी के अच्छे विद्वान् और हिन्दी-काव्य के प्रेमी थे। अपने पिता के माध्यम से रत्नाकर जी, भारतेन्दु जी के सम्पर्क में आये। रत्नाकर जी को बाल्यावस्था से ही कविता से प्रेम था। इनकी एक रचना से प्रसन्न होकर भारतेन्दु जी ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का एक दिन अच्छा कवि बनेगा’, जो अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई। रत्नाकर जी की शिक्षा काशी में हुई। प्रारम्भ में उन्हें फारसी पढ़ायी गयी, बाद में उन्होंने हिन्दी का अध्ययन किया। सन् 1891 ई० में उन्होंने क्वीन्स कॉलेज से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा एम० ए० (फारसी) का अध्ययन आरम्भ किया, किन्तु किसी कारणवश परीक्षा न दे सके। तत्पश्चात् इन्होंने दो वर्ष तक अवागढ़ में ‘कोषाध्यक्ष के पद पर कार्य किया, किन्तु वहाँ की जलवायु अनुकूल न पाकर ये काशी लौट आये। फिर ये अयोध्या-नरेश के प्राइवेट सेक्रेटरी हो गये। सन् 1903 ई० में अयोध्या-नरेश की मृत्यु के पश्चात् वहाँ की महारानी ने इन्हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बना लिया और अन्त तक ये योग्यतापूर्वक इसी पद पर कार्य करते रहे। 21 जून, 1932 ई० (संवत् 1989 वि०) को हरिद्वार में इनका देहान्त हो गया। साहित्यिक सेवाएँ-राजसेवा से मुक्ति पाकर रत्नाकंर जी ने अपना सारा समय साहित्य-सेवा में लगा दिया और ब्रजभाषा में रचना करना आरम्भ किया। रत्नाकर जी की सर्वप्रथम काव्यकृति ‘हिंडोला’ 1894 ई० में तथा ‘गंगावतरण’ सन् 1923 ई० में समाप्त हुई।

इसके अतिरिक्त रत्नाकर जी ने ‘साहित्य-सुधा-निधि’ नामक मासिक पत्र का सम्पादन प्रारम्भ किया था तथा अनेक ग्रन्थों का सम्पादन भी किया। नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यों में रत्नाकर जी का पूरा सहयोग रहता। ये सन् 1926 ई० में ओरियण्टल कॉन्फ्रेन्स के हिन्दी विभाग के सभापति हुए और सन् 1930 ई० में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के बीसवें अधिवेशन (कलकत्ता अधिवेशन) के सभापति चुने गये।

रचनाएँ—

  1. मौलिक रचनाएँ–गंगावतरण, हरिश्चन्द्र, उद्धव-शतक, समालोचनादर्श, श्रृंगार लहरी, विष्णु लहरी, रत्नाष्टक, वीराष्टक।
  2. सम्पादित रचनाएँ—हम्मीर हठ, तरंगिणी, कण्ठाभरण, बिहारी सतसई आदि।
  3. टीका ग्रन्थ-‘बिहारी सतसई’ पर आपने ‘बिहारी रत्नाकर’ नाम से विस्तृत टीका लिखी, जो काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुकी है।

साहित्य में स्थान–रत्नाकर जी के काव्य में सरसा, स्वाभाविकता और कलात्मकता का पूर्ण परिपाक हुआ है। यही कारण है कि समग्र आलोचकों ने इन्हें आधुनिक ब्रजभाषा का प्रतिनिधि कवि कहा है। वस्तुतः ये इस काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोवर

उद्धव-प्रसंग

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़करे उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

प्रश्न 1.
भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की
सुधि ब्रज-गावॅनि में पावन जबै लगीं ।
कहैं ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि
दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं ।।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं ।
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा
हमकौं लिख्यौ है कहा कहने सबै लगीं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसके आने का समाचार पाकर गोपियों के झुण्ड-के-झुण्ड दौड़-दौड़कर नन्द जी के द्वार पर आने लगे?
(iv) गोपियों के पास श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर कौन आए थे?
(v) ‘दौरि-दौरि कन्द-पौरि आवन तबै लगीं।’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- उद्धव-प्रसग।
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या—सभी गोपियाँ उत्सुकता और बेचैनीपूर्वक उद्धव से पूछने लगीं कि हमारे लिए प्राणप्रिय कृष्ण ने क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है। प्रत्येक.कौ यही उत्कण्ठा थी कि उसके लिए कृष्ण ने क्या सन्देश भेजा है।
(iii) श्रीकृष्ण द्वारा भेजे हुए उद्धव के आने का समाचार पाकर गोपियों के झुण्ड-के-झुण्ड दौड़-दौड़कर नन्द जी के द्वार पर आने लगे।
(iv) गोपियों के पास श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर उद्धव आए थे।
(v) पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 2.
कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म-दूत है पधारे आप
धारे प्रन फेरन कौ मति ब्रजबारी की ।।
कहैं ‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना ।
ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की ।।।
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम
तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की ।।
जैहैं बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि कौं |
बूंदता बिलैहैं बूंद बिबस बिचारी की ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गोपियाँ सन्देह प्रकट करते हुए उद्धव से क्या कहती हैं?
(iv) गोपियों ने उद्धव को अनाड़ी क्यों बताया है? ।
(v) किसमें मिल जाने से बूंद का अस्तित्व मिट जाएगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नार्म- उद्धव-प्रसग।
लेखक का नाम–जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! आप प्रेम की रीति को जाने बिना हमें ब्रह्म का उपदेश दिये चले जा रहे हैं। हम तो एकमात्र श्रीकृष्ण के प्रेम में ही अनुरक्त हैं, वही हमारे सब-कुछ हैं। वे उद्धव जी से व्यंग्यपूर्ण भाव में पूछती हैं कि आप ब्रजबालाओं की बुद्धि को बदलने का प्रण लेकर और श्रीकृष्ण के दूत बनकर यहाँ आये हैं अथवा ब्रह्म के दूत के रूप में आये हैं ? कहने को तो आप श्रीकृष्ण के दूत बनकर आये हैं, फिर भी आप निरन्तर केवल ब्रह्म की ही चर्चा किये . जा रहे हैं।
(iii) गोपियाँ सन्देह प्रकट करते हुए उद्धव से कहती हैं कि आप श्रीकृष्ण के दूत बनकर आए हैं या ब्रह्म ने तुम्हें दूत बनाकर भेजा है।
(iv) योग-मार्ग का सन्देश, जो पुरुषों को दिया जाने वाला है उसे स्त्रियों को देने के कारण, गोपियों ने उद्धव को अनाड़ी बताया है।
(v) समुद्र में मिल जाने से बूंद के अस्तित्व मिट जाएगा।

प्रश्न 3.
छावते कुटीर कहुँ रम्य जमुना कै तीर
गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं ।
कहैं ‘रतनाकर’ बिहाइ प्रेम-गाथा गूढ़
स्रौंन रसना मै रस और भरते नहीं ।।
गोपी ग्वाल बालनि के उमड़ते आँसू देखि
लेखि प्रलयागम हूँ नैंकु डरते नहीं ।
होतौ चित चाब जौ न रावरे चितावन को
तजि ब्रज-गाँव इतै पाँव धरते नहीं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) उद्धव यमुना-तट पर बसकर अपने कानों और जीहा से किसे रस का पान और बखान करना चाहते हैं?
(iv) उद्धव ने गोपी-ग्वालबालों के अश्रुप्रवाह को किससे भयंकर बताया है?
(v) निम्नलिखित के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
(अ) यमुना,
(ब) आँसू।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।
अथवा
पाठ का नाम- उद्धव-प्रसग
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-हे कृष्ण! यदि गोपियों की प्रेममयी दशा से अवगत कराकर आपको उनकी उपेक्षा न करके शीघ्र दर्शन देने की चेतावनी देने का विचार मेरे हृदय में न होता तो मैं ब्रजभूमि को छोड़कर इधर पैर नहीं रखता। वहीं कहीं यमुना के सुन्दर तट पर कुटिया डालकर निवास करने लगता और उस रमणीक रेती को छोड़कर अन्यत्र कहीं न जाता।
(iii) उद्धव यमुना-तट पर बसकर अपने कानों से प्रेम रस का पान और जीह्वा से उसी रस का बखान करना चाहते हैं।
(iv) उद्धव ने गोपी-ग्वालबालों के अश्रुप्रवाह को प्रलय से भी भयंकर बताया है।
(v) (अ) यमुना – कालिंदी, रवितनया।
(ब) आँसू — अश्रु, नेत्रवारि।

गंगावतरण

प्रश्न 1.
निकसि कमंडल तें उमंडि नभ-मंडल-खंडति ।
धाई धार अपार बेग सौं बायु बिहंडति ।।
भयी घोर अति शब्द धमक सों त्रिभुवन तरजे ।
महामेघ मिलि मनहु एक संगहि सब गरजे ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पद्यांश के अनुसार, गंगा जी कहाँ से निकली हैं?
(iv) किसकी धमक से तीनों लोक भयभीत हो गए?
(v) “महामेघ मिलि मनहु एक संगहि सब गरजे।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’ रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ । में संकलित ‘गंगावतरण’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- गंगावतरण
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-ब्रह्मा के कमण्डल से निकलकर गंगा की धारा उमड़कर आकाशमण्डल को भेदती तथा वायु को चीरती हुई प्रचण्ड वेग से नीचे को दौड़ पड़ी।
(iii) पद्यांश के अनुसार, गंगाजी ब्रह्म के कमण्डल से निकली हैं।
(iv) गंगाजी की प्रचण्ड धार की धमक से तीनों लोक भयभीत हो गए।
(v) अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 2.
कृपानिधान सुजान संभु हिय की गति जानी ।
दियौ सीस पर ठाम बाम करि कै मनमानी ।।
सकुचति ऐचति अंग गंग सुख संग लजानी।।
जटाजूट हिम कुट सघन बन सिमटि समानी ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसकी कोमल भावना को शिवजी जान गए?
(iv) शिवजी ने गंगाजी को कहाँ पर स्थान दिया?
(v) गंगाजी कहाँ पर सिमट कर छिप जाती हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ में संकलित ‘गंगावतरण’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- गंगावतरण।।
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) गंगा को पत्नी के रूप में स्वीकार करने पर गंगा को नारी-सुलभ संकोच की अनुभूति होती है और वह अपने शरीर को सिकोड़कर, सुख का अनुभव करती हुई लजाती है और शिव के जटाजूटरूपी हिमालय पर्वत के घने वन में सिमटकर छिप जाती है।
(iii) गंगाजी की कोमल भावना को शिवजी जान गए।
(iv) शिवजी ने गंगाजी को अपने सिर पर स्थान दिया।
(v) गंगाजी शिवजी के जटाजूट रूपी हिमालय पर्वत के घने वन में सिमटकर छिप जाती हैं।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन-परिचय और साहित्यिक प्रदेय पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र खड़ी बोली हिन्दी गद्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य को नवचेतना और नयी दिशा प्रदान की। भारतेन्दु का जन्म काशी के एक सम्पन्न और प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1850 ई० में हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र, काशी के सुप्रसिद्ध सेठ थे जो ‘गिरिधरदास’ उपनाम से ब्रज भाषा में कविता किया करते थे। भारतेन्दु जी में काव्य-प्रतिभा बचपन से ही विद्यमान थी। इन्होंने पाँच वर्ष की आयु में निम्नलिखित दोहा रचकर अपने पिता को सुनाया और उनसे सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-

लै ब्योढ़ी ठाढ़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सैन को, हनन लगे भगवान् ॥

पाँच वर्ष की आयु में माता के वात्सल्य से तथा दस वर्ष की आयु में पिता के प्यार से वंचित होने टोले भारतेन्दु की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी तथा बँगला आदि भाषाओं का अध्ययन किया। 13 वर्ष की अल्पायु में मन्नो देवी नामक युवती के साथ इनका विवाह हो गया। भारतेन्दु जी यात्रा के बड़े शौकीन थे। इन्हें जब भी समय मिलता, ये यात्रा के लिए निकल जाते थे। ये बड़े उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता और दानशीलता के कारण इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गयी और ये ऋणग्रस्त हो गये। परिणामस्वरूप श्रेष्ठि-परिवार में उत्पन्न हुआ यह महान् साहित्यकार ऋणग्रस्त होने के कारण, क्षयरोग से पीड़ित हो 35 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1885 ई० में दिवंगत हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ-हिन्दी-साहित्य में भारतेन्दु का आविर्भाव एक ऐतिहासिक घटना है। उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध राजनीतिक और सामाजिक चेतनाओं के रूप में जागरण की अँगड़ाई लेने लगा था, यद्यपि मध्ययुगीन, नीति-मूल्यों और जीवन-मर्यादाओं के मोह से उसे अभी छुटकारा नहीं मिल पाया था। साहित्य के क्षेत्र में रीतिकाल की परम्परा का अनुकरण हो रहा था, किन्तु नवोत्थान की प्रेरणा से उसकी धमनियों में भी नवीन रक्त का संचार होने लगा था। इस संक्रान्ति-काल में भारतेन्दु का उदय हुआ। इनके साहित्य में जहाँ एक ओर हिन्दी के विगत युगों की अभिव्यक्ति संचित है, वहीं दूसरी ओर युग की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रबल स्पन्दन भी मिलता है। युग के नवोन्मेष में इन्होंने भारत की वीणा में नये स्वरों की प्रतिष्ठा की।

रचनाएँ-भारतेन्दु जी द्वारा रचित प्रमुख काव्य-कृतियों के नाम निम्नलिखित हैं-
‘प्रेम माधुरी’, ‘प्रेम तरंग”प्रेमाश्रु वर्णन’, ‘प्रेम सरोवर’, ‘प्रेम मालिका’, ‘प्रेम फुलवारी’, ‘प्रेम प्रलाप’ आदि भक्ति तथा दिव्य प्रेम पर आधारित रचनाएँ हैं। केवल प्रेम को ही लेकर इनकी रचनाओं के उपर्युक्त सात संग्रह प्रकाशित हुए, जिसमें विशुद्ध श्रृंगार-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं को चिंत्रण इन्होंने प्रेमपूर्वक–‘देवी छद्मलीला’, ‘तन्मय लीला’, ‘कृष्ण-चरित’, ‘दान-लीला’ आदि रचनाओं में किया है। इनकी ‘भारत वीरत्व’, ‘विजय वल्लरी’, ‘विजयिनी’ एवं ‘विजय पताका’ नामक रचनाओं में देश-प्रेम की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं। ‘उर्दू का स्यापा’, ‘बन्दर सभा’, ‘नये जमाने की मुकरी’ आदि रचनाओं में इनकी हास्य-व्यंग्य प्रकृति के दर्शन होते हैं।

साहित्य में स्थान निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारतेन्दु सच्चे अर्थों में स्रष्टा थे। एक असाधारण प्रतिभासम्पन्न कलाकार की उनके पास सृजन-शक्ति थी। उनमें प्राचीन और नवीन का सामंजस्य मिलता है। वे हिन्दी के युगद्रष्टा और युगस्रष्टा तो थे ही, हिन्दी साहित्य संसार के युगपुरुष भी थे।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रेम माधुरी

प्रश्न 1.
ब्यापक ब्रह्म सबै थल पूरन है हमहूँ पहिचानती हैं।
पै बिना नंदलाल बिहाल सदा ‘हरिचंद’ न ज्ञानहिं ठानती हैं ।।
तुम ऊधौ यहै कहियो उनसों हम और कछु नहिं जानती हैं।
पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अँखियाँ दुखियाँ नहिं मानती हैं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से क्या कहती हैं?
(iv) ‘प्यारे तिहारे निहारे’ इन शब्दों में कौन-सा अलंकार है?
(v) गोपियाँ उद्धव से श्रीकृष्ण को क्या सन्देश देने को कहती हैं?
उत्तर
(i) यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित एवं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘प्रेम-माधुरी’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- प्रेम-माधुरी।
लेखक का नाम-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-ब्रज-गोकुल की गोपियाँ श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य की उपासना करना ही नहीं चाहतीं। उन्हें ज्ञान-मार्ग नहीं, अपितु प्रेम-मार्ग भाता है। इसलिए वे ज्ञानी उद्धव से स्पष्ट कह देती हैं कि तुम श्रीकृष्ण को हमारा यह सन्देश दे देना कि तुम्हारे दर्शन किये बिना हमारी आँखों को
सन्तोष होता ही नहीं है; अत: शीघ्र ही हमें दर्शन दो।।
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव’ हमें भी पता है कि ब्रह्म कण-कण में व्याप्त है।
(iv) “प्यारे तिहारे निहारे’ इन शब्दों में २’ अक्षर की पुनरावृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(v) गोपियाँ उद्धव से श्रीकृष्ण को यह सन्देश देना चाहती हैं कि तुम्हारे दर्शन किए बिना हमारी आँखों को सन्तोष होने वाला नहीं है, इसलिए अतिशीघ्र हमें दर्शन दो।

यमुना-छवि

प्रश्न-दिए गए पद्यशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।
झुके कुल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये ।।
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा ।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा ।।
मनु आप वारन तीर कौ सिमिटि सबै छाये रहत ।।
कै हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन सुख लहत ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) जलरूपी दर्पण में अपनी शोभा देखने के लिए उचक-उचककर कौन आगे झुक गए हैं?
(iv) कवि के अनुसार किन्हें देखकर नेत्रों को और मन को सुख प्राप्त होता है?
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ किन अलंकारों से सुशोभित हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद भारतेन्दु जी द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘यमुना-छवि’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम– यमुना-छवि।
लेखक का नाम--भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-यमुना के किनारे तमाल के अनेक सुन्दर वृक्ष सुशोभित हैं। वे तट पर आगे को झुके हुए ऐसे लगते हैं, मानो यमुना के पवित्र जल का स्पर्श करना चाहते हों।
(iii) जलरूपी दर्पण में अपनी शोभा देखने के लिए तमाल के वृक्ष उचक-उचककर आगे झुक गए हैं।
(iv) तमाल के सुन्दर वृक्षों को यमुना-तट पर जले की ओर झुके देखकर नेत्रों और मन को सुख प्राप्त होता है।
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ अनुप्रास, सन्देह और उत्प्रेक्षा अलंकारों से सुशोभित हैं।

प्रश्न 2.
मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटि जात जमुन जल ।
कै तारागने ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल ॥
कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत ।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत ॥
कै बहुत रजत चकई चलत कै फुहार जल उच्छरत ।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) क्या देखकर प्रतीत होता है, मानों यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गए हों? ।
(iv) कौन तरंगे उत्पन्न करता है?
(v) कौन उठ-बैठकर अनेक प्रकार की कसरतें करता हुआ दिखाई पइता है? ”
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद भारतेन्दु जी द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘यमुना-छवि’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम– यमुना-छवि।
लेखक का नाम–भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-यमुना के चंचल जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब कभी तो दिखाई देता है। और कभी नहीं। इससे ऐसा प्रतीत होता है, मानो यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गये हैं; अर्थात् चन्द्रमा के छिप जाने पर लगता है कि कृष्ण पक्ष आ गया है और तुरन्त निकल आने पर लगता है कि कृष्ण पक्ष समाप्त हो गया और शुक्ल पक्ष आ गया है। फिर थोड़ी ही देर में वह भी समाप्त हो जाता है। जल के अन्दर चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब अनेक प्रकार से शोभित हो रहा है अथवा इस चन्द्रमा को देखकर ऐसा लगता है कि वह तारा-समूह को ठगने के लिए कभी छिप जाता है तो कभी प्रकट हो
जाता है।
(iii) चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब देखकर लगता है, मानो यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गए हों।
(iv) यमुना का जल तैरंगे उत्पन्न करता है।
(v) चन्द्रमारूपी पहलवान उठ-बैठकरे अनेक प्रकार की कसरतें करता हुआ दिखाई पड़ता है।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 महाकवि भूषणे

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Chapter Chapter 5
Chapter Name महाकवि भूषणे
Number of Questions 4
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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 महाकवि भूषणे

कवि का साहित्यिक परिवय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
भूषण का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
या
भूषण का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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साहित्यिक सेवाएँ-भूषण मध्य युग के वीर रस के कवि हैं। विलासिता और परतन्त्रता के युग में स्वतन्त्रता, ओजस्विना, तेजस्विता एवं राष्ट्रीयता को स्वर हम भूषण के मुख से ही सर्वप्रथम सुनते हैं। अपने समकालीन कवियों की तरह भूषण ने विलासी आश्रयदाताओं के मनोरंजन के लिए श्रृंगारी काव्य की रचना न करके अपनी वीरोपासक मनोवृत्ति के अनुकूल अन्याय और संघर्ष के दमन में तत्पर, ऐतिहासिक महापुरुष शिवाजी एवं छत्रसाल जैसे वीरनायकों को अपनी ओजस्वी कविता द्वारा लोमहर्षक गुणगान किया। यद्यपि ये अपने युग की लक्षण-ग्रन्थ परम्परा तथा प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त नहीं थे, तथापि जातीय, राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति इनके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता रही है। सच तो यह है कि भूषण हिन्दी साहित्य के प्रथम राष्ट्रीय कवि हैं। भारतमाता के अमर पुत्र छत्रपति शिवाजी एवं छत्रसाल बुन्देला जैसे लोकोपकारी महापुरुषों के चरित-गायन में ही इन्होंने अपने जीवन को सार्थक समझा। इन्हीं महापुरुषों की दानशीलता, युद्ध-वीरता, दयालुता एवं धर्मपरायणता का महाकवि भूषण के द्वारा उदात्त चित्रण किया गया है। इन्हीं चरितनायकों के शौर्य-वर्णन या वीर रसात्मक उद्गार विशाल भारतीय जनता की सम्पत्ति हैं।।

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साहित्य में स्थान-भूषण की कविता भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है तथा हिन्दी के वीर रसात्मक काव्य में अद्वितीय स्थान की अधिकारिणी है।।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 कविवर बिहारी

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name कविवर बिहारी
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 कविवर बिहारी

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
बिहारी के संक्षिप्त जीवन-परिचय एवं उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
या
बिहारी का जीवन-परिचय लिखिए।
या
कविवर बिहारी की जीवनी और साहित्यिक प्रदेय (योगदान) पर प्रकाश डालिए।
या
बिहारी का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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साहित्यिक सेवाएँ–बिहारी को निश्चय ही रीतिकाल का प्रतिनिधि कवि कहा जा सकता है; क्योंकि उनमें रीतिकालीन काव्य की सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ मिलती हैं। रीतिकाल में एक धारा रीतिबद्ध कवियों की थी तथा दूसरी धारा रीतिमुक्त कवियों की। बिहारी ने रीतिकाल की बँधी-बँधाई परिपाटी के अन्तर्गत भी अपने लिये एक मध्यम मार्ग का निर्माण किया। यही बिहारी की वह विशेषता है, जिसने उन्हें रीतिसिद्ध काव्यधारा का एकमात्र कवि बना दिया। उन्होंने ही इस धारा का प्रवर्तन किया और उन्हीं के साथ यह समाप्त भी हो गयी। यह बिहारी की असाधारण प्रतिभा का एक ज्वलन्त प्रमाण है।

ग्रन्थ-बिहारी ने कुल 719 दोहे लिखे हैं, जिन्हें ‘बिहारी-सतसई के नाम से संग्रहीत किया गया है। इसकी अनेक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं। ‘बिहारी-सतसई’ के समान लोकप्रियता रीतिकाल के किसी अन्य ग्रन्थ को प्राप्त न हो सकी।

साहित्य में स्थान–निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि बिहारी उच्चकोटि के कवि एवं कलाकार थे। असाधारण कल्पना-शक्ति, मानव-प्रकृति के सूक्ष्म ज्ञान तथा कला-निपुणता ने बिहारी के दोहों में अपरिमित रस भर दिया है। इन्हीं गुणों के कारण इन्हें रीतिकालीन कवियों को प्रतिनिधि कवि कहा जाता है।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 गोस्वामी तुलसीदास

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name गोस्वामी तुलसीदास
Number of Questions 10
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 गोस्वामी तुलसीदास

कति का साहित्यिक परिचय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
गोस्वामी तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं (साहित्यिक 
प्रदेय) का उल्लेख कीजिए।
या
गोस्वामी तुलसीदास का साहित्यिक परिचय दीजिए और उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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साहित्यिक सेवाएँ–तुलसीदास जिस काल में उत्पन्न हुए, उस समय हिन्दू-जाति धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक अधोगति को पहुँच चुकी थी। हिन्दुओं का धर्म और आत्म-सम्मान यवनों के अत्याचारों से कुचला जा रहा था। सभी ओर निराशा का वातावरण व्याप्त था। ऐसे समय में अवतरित होकर गोस्वामी जी ने जनता के सामने भगवान् राम का लोकरक्षक रूप प्रस्तुत किया, जिन्होंने यवन शासकों से कहीं अधिक शक्तिशाली रावण को केवल वानर-भालुओं के सहारे ही कुलसहित नष्ट कर दिया था। गोस्वामी जी का अकेला यही कार्य इतना महान् था कि इसके बल पर वे सदा भारतीय जनता के हृदय-सम्राट् बने रहेंगे।

काव्य के उद्देश्य के सम्बन्ध में तुलसी का दृष्टिकोण सर्वथा सामाजिक था। इनके मत में वही कीर्ति, कविता और सम्पत्ति उत्तम है जो गंगा के समान सबका हित करने वाली हो–“कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सबकर हित होई।।” जनमानस के समक्ष सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का उच्चतम आदर्श रखना ही इनका काव्यादर्श था। जीवन के मार्मिक स्थलों की इनको अद्भुत पहचान थी। तुलसीदास ने राम के शक्ति, शील, सौन्दर्य समन्वित रूप की अवतारणा की है। इनका सम्पूर्ण काव्य समन्वय-भाव की विराट चेष्टा है। ज्ञान की अपेक्षा भक्ति का राजपथ ही इन्हें अधिक रुचिकर लगा है।
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साहित्य में स्थान-इस प्रकार रस, भाषा, छन्द, अलंकार, नाटकीयता, संवाद-कौशल आदि सभी दृष्टियों से तुलसी की काव्य अद्वितीय है। कविता-कामिनी उनको पाकर धन्य हो गयी। हरिऔध जी की निम्नलिखित उक्ति उनके विषय में बिल्कुल सत्य है—

“कविता करके तुलसी न लसे। कविता लसी पा तुलसी की कला ।”

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

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