UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 4 पाचन तन्त्र

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 4 पाचन तन्त्र (Digestive System)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 4 पाचन तन्त्र

UP Board Class 11 Home Science Chapter 4 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाचन तन्त्र से क्या आशय है? मनुष्य के पाचन तन्त्र के अंगों का चित्र सहित सामान्य परिचय दीजिए।
अथवा नामांकित चित्र की सहायता से पाचन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
अथवा पाचन तन्त्र के विभिन्न अंगों का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
अथवा पाचन तन्त्र का एक नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
पाचन तन्त्र का अर्थ (Meaning of Digestive System):
व्यक्ति चाहे जिस प्रकार का आहार ग्रहण करे, परन्तु आहार के तत्त्व व्यक्ति के शरीर के उपयोग में तभी आते हैं, जब उनका समुचित पाचन हो जाता है। भोजन को पचाने, तत्त्वों को अवशोषित करने आदि के लिए हमारे शरीर में एक लम्बी (लगभग 9 मीटर लम्बी) नली जैसी रचना होती है, जो मुखद्वार (mouth) से मलद्वार (anus) तक फैली रहती है। इस नली को पाचन प्रणाली या आहार नाल (alimentary canal) कहते हैं। आहार नाल में विभिन्न अंग या भाग होते हैं, जिनके आकार तथा कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं।

आहार नाल के इन विभिन्न अंगों के अतिरिक्त मानव शरीर में कुछ अन्य अंग भी होते हैं, जो आहार के पाचन एवं शोषण में कुछ-न-कुछ सहायता प्रदान करते हैं तथा भोजन के स्वांगीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आहार नाल तथा ये सहायक अंग ही सम्मिलित रूप से मिलकर पाचन तन्त्र (digestive system) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि आहार नाल के समस्त अंग तथा आहार नाल के बाहर स्थित पाचन में सहायक अंग सम्मिलित रूप से पाचन तन्त्र कहलाते हैं।

मनुष्य की आहार नाल या पाचन तन्त्र के अवयव (Human Alimentary Canal or Organs of Digestive System):
मनुष्य की आहार नाल के मुख्य भाग निम्नवर्णित हैं-
(1) मुख व मुखगुहा (mouth and buccal cavity);
(2) ग्रसनी (pharynx);
(3) ग्रासनली (oesophagus);
(4) आमाशय (stomach) तथा
(5) आँत (intestine)।
इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है-
1. मुख व मुखगुहा (Mouth and Buccal cavity): दो चल होंठों से घिरा हुआ हमारा मुखद्वार (mouth), मुखगुहा (buccal cavity) में खुलता है। मुखगुहा दोनों जबड़ों तक, गालों से घिरी चौड़ी गुहा है। इसकी छत तालू (palate) कहलाती है। तालू का अगला तथा अधिकांश भाग कठोर होता है, तथा कठोर तालू (hard palate) कहलाता है। इसके पीछे कंकालरहित कोमल तालू (soft palate) होता है जो अन्त में एक कोमल लटकन के रूप में होता है। इसे काग (uvula) कहते हैं। काग के इधर-उधर छोटी-छोटी गाँठों के रूप में गलांकुर (tonsils) होते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 1 28
गाल, होंठ, तालू आदि मुखगुहा के अंग अन्दर से चिकने तथा कोमल प्रतीत होते हैं। ये अंग एक विशेष स्राव, श्लेष्मक (mucous) स्रावित करने वाली कोशिकायुक्त कोमल झिल्ली श्लेष्मिक कला से ढके रहते हैं। श्लेष्मक एक लसलसा तरल है और इसके साथ ही कुछ लार (saliva) भी रहती है, जो इसी झिल्ली में उपस्थित कोशिकाओं के द्वारा बनाई जाती है। किन्तु बड़ी तथा विशेष लार ग्रन्थियाँ (salivary glands) अलग से भीतरी भागों में होती हैं, जिनकी नलियाँ होंठों के पीछे तथा अन्य स्थानों में मुखगुहा के अन्दर खुलती हैं। निचले तथा ऊपरी जबड़े में कुल मिलाकर 32 दाँत (teeth) होते हैं। दाँतों की संख्या उम्र के साथ बदलती रहती है।

भोजन को दाँतों के द्वारा चबाए जाने पर मुख में उपस्थित लार इसमें मिल जाती है। लार में एक पाचक रस (एंजाइम) होता है, जिसे टायलिन कहते हैं। इस प्रकार, भोजन एक लुगदी के रूप में बदल दिया जाता है। जीभ भोजन में लार इत्यादि मिलाने में सहायता करती है।

2. ग्रसनी (Pharynx): नीचे जीभ तथा ऊपर काग के पीछे, कीप के आकार का लगभग 12 से 15 सेमी लम्बा भाग ग्रसनी (pharynx) कहलाता है। इसके तीन भाग किए जा सकते है
(क) नासाग्रसनी (nasal pharynx) जो श्वसन मार्ग के पीछे स्थित होता है;
(ख) स्वर-यन्त्री ग्रसनी, जहाँ वायुमार्ग तथा आहार मार्ग एक-दूसरे को काटते (cross) हैं तथा
(ग) मुख-ग्रसनी (oropharynx); . अर्थात् ठीक सामने वाला भाग, जो अन्त में ग्रासनली (oesophagus) में खुलता है।

3. ग्रासनली (Oesophagus): यह लगभग 25 सेमी लम्बी सँकरी नली है, जो गर्दन के पिछले भाग से प्रारम्भ होती है। यह वायु नलिका के साथ-साथ तथा इसके तल पृष्ठ पर स्थित होती है तथा पूरे वक्ष भाग से होती हुई तन्तु पट (diaphragm) को छेदकर उदर गुहा में पहुंचती है।

ग्रासनली की दीवार मोटी व मांसल होती है तथा भीतरी तल पर श्लेष्मिक कला से ढकी रहती है। यह कला एक लसलसा तरल श्लेष्मक स्रावित करती रहती है, जिससे इसकी गुहा मुलायम तथा चिकनी बनी रहती है। दीवार का भीतरी तल कई मोटी-मोटी सिलवटों में सिकुड़ा होने के कारण गुहा के रास्ते को लगभग रुंधा हुआ रखता है। जब भोजन नली में आता है तो वह काफी फैल सकती है। ग्रासनली आमाशय में खुलती है।

4. आमाशय (Stomach): आमाशय उदर गुहा में आड़ी अवस्था में स्थित एक मशक की तरह की रचना है। आहार नाल का यह सबसे चौड़ा भाग है, जिसकी लम्बाई लगभग 25-30 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है। आमाशय के स्पष्ट रूप से दो भाग किए जा सकते हैं—एक, प्रारम्भ का अधिक चौड़ा भाग, जिसमें ग्रासनली खुलती है-हृदयी भाग (cardiac part) कहलाता है; जबकि दूसरा भाग क्रमशः सँकरा होता जाता है और एक निकास द्वार के द्वारा आँत के प्रथम भाग में खुलता है। इस भाग को पक्वाशयी भाग (pyloric part) तथा निकास द्वार को पक्वाशयी छिद्र (pyloric aperture) कहते हैं।

सम्पूर्ण आहार नाल की अपेक्षा आमाशय की दीवार में सबसे अधिक पेशियाँ (muscles) होती हैं; अत: यह सबसे अधिक मोटी होती है। इसकी श्लेष्म कला में श्लेष्मक उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं के अतिरिक्त सहस्रों विशेष ग्रन्थियाँ होती हैं, जिन्हें जठर ग्रन्थियाँ (gastric glands) कहते हैं। ये जठर रस (gastricjuice) नामक पाचक रस बनाती हैं। आमाशय की दीवार में भी अनेक उभरी हुई सिलवटें होती हैं।

5. आँत (Intestine): आहार नाल का शेष भाग आँत कहलाता है तथा यह अत्यधिक कुण्डलित होकर लगभग पूरी उदर गुहा को घेरे रहता है। इसके दो प्रमुख भाग किए जा सकते हैं-छोटी आँत तथा बड़ी आँत।
(क) छोटी आँत (small intestine): यह लगभग 5 मीटर लम्बी अत्यधिक कुण्डलित नली है जिसको तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • ग्रहणी,
  • मध्यान्त्र तथा (
  • शेषान्त्र।

(i) ग्रहणी या पक्वाशय (duodenum): यह लगभग 25 सेमी लम्बी, छोटी आंत की सबसे छोटी तथा चौड़ी नलिका है। आमाशय इसी में पक्वाशयी छिद्र (pyloric aperture) द्वारा खुलता है। यह भाग आमाशय के साथ लगभग ‘C’ का आकार बनाता है। इसके मुड़े हुए भाग तथा आमाशय के बीच अग्न्याशय (pancreas) नामक ग्रन्थि होती है।

यकृत (liver) ग्रन्थि, जो आहार नाल के बाहर स्थित होती है, शरीर में उपस्थित सबसे बड़ी ग्रन्थि है। इससे पित्त रस बनता है। पित्त रस को लाने वाली पित्त नली (bile duct) तथा अग्न्याशय से आने वाली अग्न्याशयिक नली (pancreatic duct); पक्वाशय में ही खुलती हैं।

(ii) मध्यान्त्र (jejunum): यह लगभग 2.5 मीटर लम्बी, 4 सेमी चौड़ी नलिका है, जो अत्यधिक कुण्डलित होती है।

(iii) शेषान्त्र (ileum): यह लगभग 2.75 मीटर लम्बी व 3.5 सेमी चौड़ी कुण्डलित आँत है। छोटी आंत की दीवारें अपेक्षाकृत पतली होती हैं, किन्तु इनमें मांसपेशियाँ आदि सभी स्तर होते हैं। ग्रहणी को छोड़कर शेष छोटी आंत में भीतरी सतह पर असंख्य छोटे-छोटे उँगली के आकार के उभार आँत की गुहा में लटके रहते हैं। इनको रसांकुर (villi) कहते हैं। इनकी उपस्थिति के कारण आँत की भीतरी दीवार तौलिए की तरह रोएँदार होती है।

प्रत्येक रसांकुर की बनावट उँगली के समान होती है। यह पचे हुए भोजन को सोखने (अवशोषित करने) के लिए, अत्यधिक विशिष्ट संरचना वाली होती है। रसांकुरों के बीच-बीच में, श्लेष्म कला में आन्त्र ग्रन्थियाँ (intestinal glands) होती हैं जो एक पाचक रस, आन्त्री रस (intestinal juice) बनाती हैं।

(ख) बड़ी आँत (large intestine): छोटी आंत के बाद शेष आहार नाल बड़ी आँत का निर्माण करती है। यह लम्बाई में छोटी आंत से छोटी किन्तु अधिक चौड़ी होती है। इसमें तीन भाग स्पष्ट दिखाई देते हैं-

  • उण्डुक,
  • कोलन तथा
  • मलाशय। छोटी आँत, बड़ी आँत के किसी एक भाग में खुलने के बजाय उण्डुक तथा कोलन के संगम स्थान पर खुलती है।

(i) उण्डुक (caecum): यह लगभग 6 सेमी लम्बी, 7.5 सेमी चौड़ी थैली की तरह की संरचना है, जिससे लगभग 9 सेमी लम्बी सँकरी, कड़ी तथा बन्द नलिका निकलती है। इसको कृमिरूप परिशेषिका (vermiform appendix) कहते हैं। वास्तव में यह संरचना मानव शरीर में अनावश्यक है; अत: कई बार यह रोगग्रस्त हो जाती है और तब शल्य क्रिया द्वारा इसे निकाल दिया जाता है।

(ii) कोलन (colon): यह लगभग 1.25 सेमी लम्बी, 6 सेमी चौड़ी नलिका है, जो ‘U’ की तरह पूरी छोटी आँत को घेरे रहती है। इसका अन्तिम भाग मध्य से कुछ बाईं ओर झुककर मलाशय (rectum) में खुलता है।

(iii) मलाशय (rectum): लगभग 12 सेमी लम्बा तथा 4 सेमी चौड़ा नलिका की तरह का यह भाग अपने अन्तिम 3-4 सेमी भाग में काफी सँकरी नली बनाता है। इसे गुदा नाल (anal canal) कहते हैं। इसकी भित्ति में मजबूत संकुचनशील पेशियाँ होती हैं तथा यह एक छिद्र गुदा द्वार (anal aperture) द्वारा बाहर खुलती है। इस छिद्र को भी पेशियाँ बन्द किए रखती हैं।

उपर्युक्त विवरण द्वारा पाचन तन्त्र के मुख्य अंगों का सामान्य परिचय प्राप्त होता है। ये अंग वास्तव में आहार नाल के भाग हैं तथा इनके माध्यम से शरीर में आहार चलता है और उसका व्यर्थ भाग मल के रूप में विसर्जित हो जाता है। परन्तु पाचन तन्त्र के कुछ अन्य अंग भी हैं, जो आहार नाल से बाहर स्थित होते हैं। इस वर्ग के अंग हैं—यकृत (liver), पित्ताशय (gall bladder), अग्न्याशय या क्लोम (pancreas) तथा प्लीहा या तिल्ली (spleen)।

प्रश्न 2.
आहार नाल के एक मुख्य भाग के रूप में आमाशय की संरचना चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
अथवा आमाशय की रचना नामांकित चित्र द्वारा समझाइए। आमाशयिक रस से स्रावित होने वाले मुख्य एन्जाइम्स के नाम और कार्य लिखिए।
उत्तर:
आहार नाल का एक भाग : आमाशय (Stomach : A Part of Alimentary Canal):
आहार नाल एवं पाचन तन्त्र में आमाशय (stomach) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वास्तव में मुख द्वारा ग्रहण किया गया आहार सर्वप्रथम आमाशय में ही जाकर रुकता है तथा वहाँ उसका व्यवस्थित पाचन प्रारम्भ होता है।

आमाशय की संरचना (Structure of Stomach):
यह एक थैले के समान होता है, जो एक सिरे पर चौड़ा परन्तु दूसरे सिरे पर सँकरा होता है। निगल या भोजन नलिका (oesophagus) का अन्तिम सिरा आमाशय से जुड़ा रहता है। इसकी लम्बाई 25-30 सेमी और चौड़ाई 9-10 सेमी होती है। इसमें दो मार्ग होते हैं—एक भोजन आने का मार्ग, जो बाईं ओर हृदय के पास होता है, हृदयी द्वार या कार्डियक छिद्र (cardiac opening) कहलाता है; दूसरा मार्ग आमाशय के निचले भाग में दाहिनी ओर स्थित होता है, जो पाइलोरिक सिरा (pyloric end) है। इस सिरे के छिद्र को पक्वाशयी छिद्र या पाइलोरिक छिद्र (pyloric opening) कहते हैं। आमाशय की भित्ति में श्लेष्मिक कला का अधिच्छद होता है, जिसमें अनेक ग्रन्थियाँ होती हैं। इनसे ही जठर रस या आमाशय रस निकलता है।

आमाशय की अन्दर की भित्ति में चार परतें होती हैं
1. पेरीटोनियम (Peritoneum): यह सबसे बाहर की परत होती है।

2. पेशी स्तर (Muscular layer): इसमें भी दो परतें होती हैं

  • आयाम पेशी स्तर (longitudinal muscle layer): इन मांसपेशियों के तन्तु लम्बाई में लगे होते हैं।
  • वर्तुल पेशी स्तर (circular muscle layer): इन मांसपेशियों के तन्तु गोलाई में लगे होते हैं।

3. अधोश्लेष्मिक स्तर (Submucosa layer): यह तीसरा स्तर है।

4. श्लेष्मिक कला (Mucous membrane): यह आमाशय की भित्ति की सबसे अन्दर की परत या झिल्ली होती है। इस झिल्ली में अनेक रक्त केशिकाएँ फैली होती हैं, इसी कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है। इसमें जठर ग्रन्थियाँ भी होती हैं। जठर ग्रन्थि की भित्ति ऐपिथीलियम कोशिकाओं की बनी होती है। जठर ग्रन्थियाँ जठर रस बनाती हैं। यह रस ग्रहण किए गए आहार के पाचन में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। आमाशयिक रस में पेप्सिन तथा रेनिन नामक दो एन्जाइम्स पाए जाते हैं। पेप्सिन का मुख्य कार्य है—आहार की प्रोटीन को घुलनशील पेप्टोन में बदलना। इसके अतिरिक्त रेनिन के प्रभाव से दूध फट जाता है तथा उसकी प्रोटीन अलग हो जाती है अर्थात् यह प्रोटीन के पाचन में सहायक होता है।
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प्रश्न 3.
आहार के पाचन से क्या आशय है? आहार नाल के विभिन्न भागों में होने वाले पाचन का विवरण प्रस्तुत कीजिए। अथवा पाचन से क्या तात्पर्य है? पाचन तन्त्र के भिन्न-भिन्न भागों में भोजन को पचाने में सहायता देने वाले विभिन्न पाचक रसों का उल्लेख करते हुए पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पाचन (Digestion):
पाचन का अर्थ है अघुलनशील (जल में) एवं जटिल भोज्य पदार्थों को घुलनशील एवं सरल अवस्था में बदलकर उन्हें अवशोषण (absorption) के योग्य बनाना, जिससे वे रुधिर में मिलकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँच जाएँ।

पाचन क्रिया वास्तव में कुछ भौतिक और रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होती है। इन क्रियाओं में (विशेषकर रासायनिक क्रियाओं में) कुछ सूक्ष्म मात्रा में पाए जाने वाले पदार्थ विशेष महत्त्व के हैं, जो इन क्रियाओं को उत्तेजित करते हैं तथा चलाते हैं। इन्हें विकर या एंजाइम (enzyme) कहते हैं। इस प्रकार ठोस, अघुलनशील व अविसरणशील (indiffusible) खाद्य को पाचक एंजाइम्स (digestive enzymes) द्वारा घुलनशील व विसरणशील रूप में बदलने की क्रिया को पाचन (digestion) कहते हैं। पाचन वास्तव में एंजाइम जल-अपघटन (enzymatic hydrolysis) की क्रिया होती है, जिसमें एंजाइम कार्बनिक उत्प्रेरकों का कार्य करते हैं और जल का एक अणु, भोजन के एक अणु से मिलकर दो भागों में टूटता है। यही प्रक्रम होते रहने से भोजन घुलनशील व विसरणशील अवस्था में आ जाता है। इसके बाद आँत आदि की दीवारों द्वारा अवशोषण (absorption) होता है। पाचन की क्रिया मुख से प्रारम्भ हो जाती है तथा पाचन तन्त्र के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न रूप में सम्पन्न होती है। पाचन के उपरान्त व्यर्थ बचे पदार्थों का विसर्जन मल के रूप में मलद्वार द्वारा हो जाता है। पाचन क्रिया को विस्तृत रूप से निम्नलिखित पदों में समझा जा सकता है-

1. मुखगुहीय पाचन (Digestion in buccal cavity):
व्यक्ति द्वारा मुख में भोजन ग्रहण करने के बाद मुखगुहा में दाँतों द्वारा चबाया जाता है। इस समय जीभ भोजन को उलटने-पलटने में, गाल भोजन को मुखगुहा में रोके रखने में तथा लार भोजन को पचाने में सहायता करती है।

मुखगुहा में भोजन चबाते समय लार ग्रन्थियों से लार (saliva) इस भोजन में मिलती है। लार कुछ क्षारीय होती है और इसमें मुख्य रूप से टायलिन नामक एंजाइम पाया जाता है। टायलिन से मण्ड घुलनशील शर्करा (maltose) में बदलता है। लार भोजन को चिकना बनाती है जिससे भोजन सरलता से ग्रास नलिका द्वारा आमाशय में जाता है।

2. आमाशयिक पाचन (Gastric digestion):
आमाशय में जैसे ही भोजन पहुँचता है, इसकी दीवारों से गैस्ट्रिन (gastrin) नामक एक हॉर्मोन निकलता है। यह हॉर्मोन रुधिर परिसंचरण के साथ जठर ग्रन्थियों में पहुँचकर उन्हें उत्तेजित करता है। जठर ग्रन्थियों से जठर रस भोजन में मिलकर उसका पाचन करता है।

क्रमाकुंचन गति के कारण यह जठर रस, आमाशय के अन्दर भोजन में अच्छी तरह मिल जाता है। जठर रस में लगभग 90% जल और थोड़ा-सा (लगभग 1%) नमक का अम्ल (HCl) होता है। इसके अतिरिक्त इसमें पेप्सिन (pepsin) तथा रेनिन (renin) नामक दो एंजाइम्स होते हैं। HCl के कारण भोजन में उपस्थित जीवाणु आदि नष्ट हो जाते हैं और भोजन अम्लीय हो जाता है। पेप्सिन इस अम्लीय माध्यम में प्रोटीन को घुलनशील पेप्टोन (peptone) में बदल देता है।

रेनिन (renin) के प्रभाव से दूध (milk) फट जाता है। यह बच्चों में अधिक उपयोगी होता है क्योंकि बच्चों का प्रमुख भोजन दूध होता है। बच्चों के जठर रस में गैस्ट्रिक लाइपेज नाम का एंजाइम भी होता है, जो दूध में उपस्थित वसा को वसा अम्लों व ग्लिसरॉल में बदल देता है।

आमाशय के अन्दर मांसपेशियों की क्रमाकुंचन गति के कारण भोजन अच्छी तरह मथ जाता है और पानी से मिलकर लेई के समान हो जाता है। लेई के समान भोजन की इस लुगदी को काइम (chyme) कहते हैं। काइम बनने के बाद आमाशय का पाइलोरस द्वार धीरे-धीरे खुलने लगता है और काइम ग्रहणी में चला जाता है।

3. आन्त्रीय पाचन (Intestinal digestion):
ग्रहणी (duodenum) की दीवार से दो प्रकार के हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं। सीक्रीटिन रुधिर परिसंचरण द्वारा अग्न्याशय (pancreas) में जाकर उसे उत्तेजित करता है, फलतः अग्न्याशय रस (pancreatic juice) निकलकर काइम पर आ जाता है। इसी प्रकार, कोलीसिस्टोकाइनिन यकृत में पहुँचकर पित्ताशय की दीवार को उत्तेजित कर उसे पिचकाता है, फलत: पित्त रस निकलकर काइम पर आ जाता है। पित्त रस क्षारीय होता है, जिसके कारण यह काइम की अम्लीयता को नष्ट कर देता है। इसी अवस्था में अग्न्याशय रस क्रियाशील होता है।

(क) पित्त रस (bile juice) में सोडियम बाइकार्बोनट (Narcos), टारोकोलेट (taurocholate), ग्लाइकोलेट (glycolate) तथा कोलेस्ट्रॉल (cholestrol) आदि कई लवण तथा पित्त रंगाएँ (bile pigments) होते हैं, जो वसाओं को महीन कर, अवशोषण के योग्य बनाते हैं। पित्त की उपस्थिति में अग्न्याशय रस क्रियाशील होकर पाचन कार्य करता है। पित्त जीवाणुनाशक होने के कारण आँत के अन्दर खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाता है।

(ख) अग्न्याशय रस (pancreatic juice) में तीन प्रकार के एंजाइम्स पाए जाते हैं

  • एमाइलोप्सिन (amylopsin): यह मण्ड पर क्रिया कर उसे शर्करा में बदल देता है।
  • ट्रिप्सिन (trypsin): यह प्रोटीन्स पर क्रिया कर उन्हें घुलनशील पेप्टोन (peptones) में बदलता है।
  • स्टीएप्सिन (steapsin) या लाइपेज (lipase)-यह वसाओं को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देता है।

4. क्षुद्रान्त्री पाचन (Digestion in ileum):
ग्रहणी में भोजन का पाचन लगभग मूर्ण हो चुका होता है। अब ये भोज्य पदार्थ इस अवस्था में क्षुद्रान्त्र (ileum) में पहुँचते हैं। यहाँ क्षुद्रान्त्र की दीवारों से आन्त्र रस आता है, जो अधपचे भोजन के साथ मिलकर इसे पचाने में सहायक होता है। इसमें कई महत्त्वपूर्ण एंजाइम्स होते हैं, जो आहार के बिना पचे प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता करते हैं। क्षुद्रान्त्र में ही भोजन के पचे हुए अवयवों; जैसे-अमीनो अम्ल, ग्लूकोज, ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्लों का अवशोषण होता है। अपच भोजन वृहदान्त्र के कोलन (colon) भाग में भेज दिया जाता है।

बड़ी आंत के कार्य (Functions of Large Intestine):
बड़ी आँत के कोलन (colon) भाग में आ जाने तक भोजन के अधिकांश पचे हुए अवयवों का अवशोषण भी हो जाता है। बड़ी आँत का प्रमुख कार्य जल, खनिज लवण तथा कुछ विटामिन्स इत्यादि का अवशोषण करना है। क्षारीय म्यूसिन (mucin) के स्रावण से बड़ी आँत के प्रारम्भिक भाग में शेष भोजन मुलायम बना रहता है तथा इसमें आए एंजाइम्स इत्यादि भोजन पर क्रिया करते रहते हैं। बड़ी आँत में किसी प्रकार का पाचक रस या एंजाइम्स स्रावित नहीं होता है। अधिकांश जल के अवशोषण से अपच भोजन मलाशय में पहुँचते-पहुँचते अर्द्ध-ठोस हो जाता है और मल का रूप ले लेता है। उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि आहार के पाचन में विभिन्न एंजाइम्स महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।

प्रश्न 4.
यकृत की संरचना स्पष्ट करते हुए इसके पाचन सम्बन्धी कार्यों का उल्लेख कीजिए। अथवा मानव शरीर में यकृत की स्थिति, बनावट और कार्यों का विवरण दीजिए। अथवा यकृत के कार्य लिखिए।
उत्तर:
यकृत की संरचना (Structure of Liver)
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 1 30
यकृत (liver) कुछ भूरे-लाल रंग की शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि होती है। यह उदर के ऊपर मध्यपट के नीचे पसलियों के पास स्थित होती है। इसके दो भाग होते हैं, दाहिना भाग बाएँ भाग से कुछ बड़ा होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के यकृत का भार लगभग 1.5 किग्रा होता है। यकृत में रुधिर दो मार्गों द्वारा आता है। एक ओर यकृत में शुद्ध रक्त दो यकृत धमनियों (hepatic arteries) के माध्यम से आता है। ये धमनियाँ महाधमनी की शाखाएँ हैं। दूसरी ओर आहार नाल के विभिन्न भागों से निवाहिका शिरा (hepatic portal vein) के माध्यम से यकृत में शुद्ध रक्त आता है। यकृत से अशुद्ध रुधिर बाहर ले जाने वाली रुधिर वाहिनियाँ, यकृत शिराएँ (hepatic veins) कहलाती हैं।

यकृत के नीचे की ओर पास में ही एक छोटी-सी थैली स्थित होती है, जिसे पित्ताशय (gall bladder) कहते हैं। यकृत में बनने वाला हरे रंग का पित्त रस (bile juice) इसमें इकट्ठा रहता है, जो यकृत से कई छोटी-छोटी नलियों द्वारा इसमें आता है।

पाचन तन्त्र में यकृत के कार्य (Functions of Liver in Digestive System):
यद्यपि यकृत शरीर के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, तथापि पाचन तन्त्र एवं पाचन क्रिया के लिए भी इसका अत्यधिक महत्त्व है। पाचन तन्त्र और शरीर में भोजन की उपस्थिति से सम्बन्धित यकृत के निम्नलिखित कार्य हैं-

1. पित्त रस का स्त्रावण करता है: यकृत पित्त रस का स्रावण करता है। यह एक क्षारीय द्रव है जिसमें पित्त लवण, कॉलेस्टेरॉल,लेसिथिल तथा पित्त वर्णक कोशिकाएँ पायी जाती हैं। पित्त रस

  • आमाशय से आए भोजन को क्षारीय बनाता है;
  • वसा के इमल्सीकरण में सहायक होता है;
  • भोजन को सड़ने से रोकता है;
  • हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है;
  • पित्त वर्णक, लवण आदि उत्सर्जी पदार्थों को यकृत से बाहर ले जाने का कार्य करता है;
  • आहार नाल में क्रमाकुंचन गति उद्दीप्त करता है।

2. ग्लाइकोजन के रूप में ग्लूकोज का संचय करता है: स्वांगीकरण के समय जब रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है तो यकृत कोशिकाएँ ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदल देती हैं। इस क्रिया को ग्लाइकोजेनेसिस (glycogenesis) कहते हैं।

3. ग्लुकोजिनोलाइसिस (glucogenolysis): इस क्रिया के अन्तर्गत जब रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है तो संचित ग्लाइकोजन पुन: ग्लूकोज में बदल जाता है।

4. ग्लाइकोनियोजेनेसिस (glyconeogenesis): इस क्रिया के द्वारा यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता पड़ने पर अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्लों आदि से भी ग्लूकोज का निर्माण कर लेती हैं।

5. वसा एवं विटामिन्स का संश्लेषण एवं संचय करता है: यकृत कोशिकाएँ ग्लूकोज को वसा में भी बदल सकती हैं। यह वसा, वसीय ऊतकों (adipose tissues) में संग्रह के लिए पहुँचा दी जाती है। इसी प्रकार विटामिन्स का भी संश्लेषण हो जाता है।

6. अकार्बनिक पदार्थों का संचय करता है: यकृत द्वारा अकार्बनिक पदार्थ संचित किए जाते हैं।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 4 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मनुष्य के दाँत कितने प्रकार के होते हैं?
उनके कार्यों का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा कृन्तक तथा चर्वणक दाँतों की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
अथवा वयस्क मनुष्य में दाँतों के प्रकार व उनके कार्य लिखिए।
उत्तर:
आहार के पाचन की प्रक्रिया में दाँतों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। दाँत ग्रहण किए गए आहार को काटने, फाड़ने तथा चबाने का कार्य करते हैं। मनुष्य के दाँत चार प्रकार के होते हैं, जिनकी संख्या एवं कार्यों का संक्षिप्त परिचय अग्रलिखित है-

  • कृन्तक दाँत: इन्हें छेदक भी कहते हैं। इनके किनारे तेज धार वाले होते हैं। इनका मुख्य कार्य भोजन को कुतरना है। इनकी कुल संख्या 8 होती है। ये बच्चों एवं वयस्कों में समान होते हैं।
  • भेदक दाँत: इन्हें रदनक या श्वसन दाँत भी कहते हैं। ये कृन्तक दाँतों से अधिक लम्बे व नुकीले होते हैं। इनकी संख्या 4 होती है। भोजन को काटना, चीरना व फाड़ना इनका मुख्य कार्य है।
  • अग्रचर्वणक: इनकी संख्या 8 होती है। इनके किनारे चपटे, चौकोर तथा रेखाओं द्वारा बँटे होते हैं।
  • चर्वणक दाँत: इस वर्ग के दाँत केवल वयस्कों में होते हैं अर्थात् छोटे बच्चों में ये नहीं होते। ये संख्या में 12 होते हैं। इनके सिरे चौरस व तेज धार वाले होते हैं। इनका मुख्य कार्य भोजन को चबाना है।

प्रश्न 2.
दाँत की संरचना चित्र सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दात की संरचना
आकार एवं कार्यों के अनुसार हमारे दाँत चार प्रकार के होते हैं, परन्तु सभी प्रकार के दाँतों की रचना लगभग समान ही होती है। ये जबड़े की अस्थि के गड्ढों में अपने मूल वाले भाग से जमे रहते हैं। एक सीमेण्ट जैसे पदार्थ से दाँत की अस्थि के साथ पकड़ अत्यधिक मजबूत होती है। इसके अतिरिक्त इसके निचले भाग पर मसूड़े चढ़े रहते हैं। सभी दाँत डेण्टाइन नामक पदार्थ से बने होते हैं। यह पदार्थ हड्डी से भी मजबूत होता है।
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 1 31
प्रत्येक दाँत तीन भागों में विभक्त होता है-
1. शिखर (Crown): मसूड़े के आगे बाहर दिखाई देने वाला भाग ही शिखर है। यह सफेद एवं चमकदार होता है। इसकी बाहरी पर्त अत्यन्त कठोर पदार्थ की बनी होती है। इसे दन्तवल्क (enamel) कहते हैं। यह दाँतों को घिसने से बचाता है। दाँतों का यही भाग प्रमुख कार्यकारी भाग है।

2. ग्रीवा (Neck): शिखर एवं मूल के बीच का भाग ग्रीवा कहलाता है।

3. मूल (Root): यह ऊपर से दिखाई नहीं देता और मसूड़ों तथा अस्थि के अन्दर स्थित होता है। प्रत्येक प्रकार के दाँत में इनकी संख्या भिन्न-भिन्न होती है। जैसे-चर्वणक में तीन, अग्र चर्वणक में दो तथा शेष दाँतों में एक-एक मूल होती है, जो अत्यन्त मजबूती से अस्थि में जुड़ी हुई तथा मसूड़ों से चिपकी रहती है।

सभी दाँत अन्दर से खोखले होते हैं। इस खोखले भाग को दन्त गुहा (pulp cavity) कहते हैं, जो दन्त मज्जा से भरी होती है। इसमें अनेक सूक्ष्म रक्त नलिकाएँ, स्नायु जाल तथा तन्तु पाए जाते हैं। प्रत्येक दाँत के मूल में एक छोटा छिद्र होता है। इसी छिद्र से ये केशिकाएँ तथा नलिकाएँ इत्यादि दन्त मज्जा में आती हैं।

प्रश्न 3.
आमाशय के पाचन सम्बन्धी कार्यों का उल्लेख कीजिए। अथवा आमाशय में पाए जाने वाले दो मुख्य एन्जाइमों के नाम एवं कार्य लिखिए। अथवा पाचन तन्त्र में रेनिन का कार्य लिखिए। यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
आमाशय में भोजन लार व श्लेष्मक में मिला हुआ तथा काफी पिसी हुई अवस्था में आता है, जिसका कुछ मण्ड (starch) भी शर्कराओं में बदल चुका होता है। यहाँ भोजन को जठर ग्रन्थियों से निकला हुआ जठर रस (gastric juice) मिलता है। इसमें नमक का अम्ल (hydrochloric acid) होता है, जो भोजन को लेई जैसी भूरे रंग की काइम (chyme) के रूप में बदलने में अत्यधिक सहायक होता है। आमाशय में हर समय तरंग गति या क्रमाकुंचन गति (peristalsis) होती रहती है। इसके कारण भोजन जठर रस के साथ खूब मिलने के साथ-साथ पिस भी जाता है। उधर, जठर रस में उपस्थित एंजाइम्स इसे पचने में सहायता करते हैं, विशेषकर इसके प्रोटीन वाले भाग के पाचन में।

जठर रस में दो पाचक एंजाइम्स होते हैं-
(i) रेनिन (renin): यह आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रन्थियों द्वारा स्रावित जठर रस में पाया जाता है। रेनिन नामक एंजाइम दूध को फाड़कर उसकी प्रोटीन (protein) को अलग कर देता है
और इस प्रकार इसके पचने में सहायता करता है। यहाँ यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि रेनिन पहले निष्क्रिय अवस्था (प्रोरेनिन के रूप) में होता है और नमक के अम्ल की उपस्थिति में ही सक्रिय होता है।

(ii) पेप्सिन (pepsin): यह भी पहले निष्क्रिय अवस्था में होता है और अम्ल की उपस्थिति में सक्रिय होता है। यह प्रोटीन पर क्रिया करता है और उसे उसके अवयवों में तोड़ देता है। इससे बनने वाले प्रमुख सरल यौगिक पेप्टोन्स (peptones) तथा प्रोटिओजेज (proteoses) होते हैं। दूध की प्रोटीन (केसीन) पर भी यही एंजाइम क्रिया करता है।

सामान्य स्थिति में ग्रहण किया गया आहार आमाशय में 3-4 घण्टे तक रहता है। यदि व्यक्ति चिन्ता, भय या तनाव से ग्रस्त हो तो आमाशय में आहार अधिक समय तक भी रह सकता है तथा ऐसे में पाचन की क्रिया सुचारु रूप से नहीं चल पाती।

प्रश्न 4.
पाचन तन्त्र में पाए जाने वाले पाचक रसों एवं उनके एंजाइम्स का विवरण प्रस्तुत कीजिए। अथवा आहार नाल में प्राप्त होने वाले मुख्य एंजाइम्स के नाम और उनके कार्यों का वर्णन कीजिए तथा आहार नाल के जिन अंगों से इनका स्त्राव होता है, उनकी सूची तैयार कीजिए। अथवा पाचन तन्त्र में स्रावित होने वाले प्रमुख एंजाइम्स के नाम तथा कार्य लिखिए।
उत्तर:
पाचक रस तथा एंजाइम्स
आहार नाल में पाए जाने वाले विभिन्न पाचक रसों, उनके एंजाइम्स तथा उनके कार्य आदि को निम्नांकित तालिका के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है

पाचक रस उनके एंजाइम्स तथा उनका पाचन क्षेत्र:
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 1 32
तालिका से स्पष्ट है कि मनुष्य की आँत में भोजन का पाचन मुखगुहा से प्रारम्भ हो जाता है तथा इसके विभिन्न अवयवों का पाचन भिन्न-भिन्न रसों में पाए जाने वाले विभिन्न एंजाइम्स के कारण होता है। भोजन को आहार नाल में आगे बढ़ाने के लिए क्रमाकुंचन नामक एक विशेष प्रकार की गति होती है, जिससे भोजन का पाचक रस के साथ मन्थन भी होता है।

प्रश्न 5.
यकृत का शरीर में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यकृत का शरीर में महत्त्व
यकृत शरीर में सबसे बड़ी ग्रन्थि है, जो पाचन क्रिया में सहायक अंग की भूमिका निभाती है। इसका शरीर के सम्पूर्ण उपापचय (metabolism) में अत्यधिक महत्त्व है। शरीर की लगभग सभी क्रियाओं में इसका कोई-न-कोई योगदान होता है अथवा क्रिया को करने में यह नियन्त्रक का कार्य करता है। इसके महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं

  • यह शरीर की अनेक उपापचयी क्रियाओं को चलाता है; जैसे— भोजन में आए विभिन्न पोषक पदार्थों को तोड़ना, जोड़ना अथवा उनका आवश्यकतानुसार स्वरूप परिवर्तित करना।
  • पित्त रस का निर्माण करना, जो शरीर की मुख्य पाचन क्रिया में सहायता करता है। (3) शरीर में आए हुए अथवा उप-उत्पादों के रूप में शरीर में बन गए विषों को नष्ट करना।
  • अनेक हानिकारक अथवा अनुपयोगी पदार्थों का स्वरूप बदलकर उन्हें अहानिकारक तथा उत्सर्जन योग्य बनाना; जैसे-अमोनिया को यूरिया या यूरिक अम्ल में बदलना।।
  • शरीर के लिए संग्राहक (store house) का कार्य करना; जैसे—ग्लाइकोजन के रूप में श्वेतसार (कार्बोज) एकत्र करना।
  • विभिन्न बेकार, मृत तथा टूटी-फूटी कोशिकाओं को नष्ट करना तथा उन्हें पित्त रस के द्वारा शरीर से बाहर निकालने का प्रबन्ध करना। जैसे-यह रुधिर के साथ आई बेकार कोशिकाओं को नष्ट करता है।
  • अनेक पाचन सम्बन्धी कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान करना।

प्रश्न 6-एक रोगी के यकृत ने काम करना बन्द कर दिया। उस व्यक्ति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि किसी व्यक्ति का यकृत कार्य करना बन्द कर दे तो उसके शरीर में अमोनिया जैसे विषैले तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है तथा शरीर की विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ भी रुक जाती हैं। ऐसे में व्यक्ति के शरीर पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगते हैं। यकृत के पूरी तरह से काम बन्द कर देने के 24 घण्टे के अन्दर ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 7.
श्वेतसार के पाचन का विवरण प्रस्तुत कीजिए। अथवा पाचन तन्त्र में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पाचन का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्वेतसार का पाचन श्वेतसार; जैसे मण्ड का पाचन मुखगुहा में लार से ही प्रारम्भ हो जाता है। टायलिन (ptylin) ‘ नामक एंजाइम यहाँ इस पर क्रिया करके इसे जटिल शर्कराओं में तोड़ देता है। बनने वाली शर्कराओं में माल्टोज, सुक्रोज आदि होती हैं।

मण्ड आदि का आमाशय में पाचन नहीं होता; शेष श्वेतसारों का पाचन ग्रहणी में अग्न्याशय रस (pancreatic juice) के एमाइलेज एंजाइम से होता है। यहाँ भी जटिल शर्कराएँ बनती हैं। जटिल शर्कराओं का पाचन छोटी आँत में आन्त्र रस (intestinal juice) के विभिन्न एंजाइम्स के द्वारा सम्पन्न होता है; जैसे–माल्टोज का माल्टेज के द्वारा, सुक्रोज का सुक्रेज के द्वारा तथा लैक्टोज का लैक्टेज के द्वारा आदि। इस प्रकार, इनके पचने से ग्लूकोज या फ्रक्टोज जैसी जल में पूर्णतः विलेय तथा कोशिकाओं द्वारा ग्राह्य शर्कराएँ बन जाती हैं।
(नोट-प्रोटीन तथा वसा के पाचन का विवरण आगामी प्रश्नों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया गया है।)

प्रश्न 8.
प्रोटीन के पाचन का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन का पाचन आहार में विद्यमान प्रोटीन का पाचन आमाशय से प्रारम्भ होता है। प्रोटीन का पाचन अम्लीय माध्यम में (HCl अम्ल की उपस्थिति में) पेप्सिन (pepsin) नामक एंजाइम द्वारा होता है। यह एंजाइम जठर रस में होता है। इसके प्रभाव से प्रोटीन्स पेप्टोन्स तथा पॉलीपेप्टाइड्स में टूट जाते हैं। सामान्यत: इससे अधिक पाचन आमाशय में नहीं होता। दूध की प्रोटीन (केसीन) पर पेप्सिन का प्रभाव तभी होता है, जब रेनिन नामक एंजाइम इसे दूध से अलग कर देता है। यह एंजाइम भी जठर रस में ही होता है।

ग्रहणी में प्रोटीन से प्राप्त अवयवों पर क्रिया, क्षारीय माध्यम (पित्त रस की उपस्थिति के कारण) में, अग्न्याशय रस के ट्रिप्सिन नामक एंजाइम से होती है। इसके द्वारा पॉलीपेप्टाइड्स, पेप्टोन्स आदि को अमीनो अम्लों में तोड़ दिया जाता है। अमीनो अम्ल ही प्रोटीन के पूर्ण पचित स्वरूप हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रोटीन के अर्द्ध-पचित अवयवों पर छोटी आँत में आने वाले आन्त्र रस को इरेप्सिन नामक एंजाइम के प्रभाव से अमीनो अम्लों में बदल लिया जाता है।

प्रश्न 9.
आहार के माध्यम से ग्रहण की गई वसा के पाचन का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वसा का पाचन
वसा का पाचन करने से पूर्व आमाशय में अम्ल के साथ क्रमाकुंचन क्रिया के द्वारा तथा बाद में पित्त रस के साथ ग्रहणी में इनका मन्थन तथा इमल्सीकरण आवश्यक होता है। इमल्सीकृत वसाओं पर लाइपेज एंजाइम क्रिया करता है, जो ग्रहणी में अग्न्याशय रस में तथा छोटी आँत में आन्त्र रस में होता है। वसा के पाचन से वसीय अम्ल (fatty acids) तथा ग्लिसरॉल (glycerol) बनते हैं। यही इसके पचे हुए (घुलनशील) स्वरूप हैं।

प्रश्न 10.
शरीर में पचे हुए भोजन के अवशोषण की क्रिया समझाइए।
उत्तर:
पचे हुए भोजन का अवशोषण
भली-भाँति पचे हुए भोजन का अवशोषण मुख्य रूप से छोटी आँत में होता है। छोटी आँत की अवशोषण सतह रसांकुरों के कारण बहुत बढ़ जाती है। घुलित अवस्था में विद्यमान पाचित आहार रसांकुरों में रुधिर केशिकाओं तथा लसीका वाहिनियों के अन्दर उपस्थित तरल अर्थात् रुधिर एवं लसीका में अवशोषित किया जाता है। कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन्स के पचे हुए अवयव-ग्लूकोज व अमीनो अम्ल आदि रुधिर में अवशोषित हो जाते हैं। वसाओं के पाचन से प्राप्त ग्लिसरॉल व वसीय अम्ल लसीका वाहिनी में अवशोषित होते हैं। बाद में वसाएँ वापस रुधिर में मिला दी जाती हैं। इस प्रक्रिया से भोजन का अवशोषण हो जाता है, शरीर का पोषण होता है तथा ऊर्जा प्राप्त होती है।

प्रश्न 11.
पाचन तन्त्र के एक सहायक अंग के रूप में पित्ताशय का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पित्ताशय
पाचन क्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाला पाचन तन्त्र का एक अंग पित्ताशय (gall bladder) भी है। यह अंग एक थैली के रूप में होता है तथा इसका आकार नाशपाती के समान होता है। शरीर में यह यकृत नामक सबसे बड़ी ग्रन्थि के नीचे पाया जाता है तथा इसका सम्बन्ध भी यकृत से ही होता है। पित्ताशय में यकृत द्वारा बनाया जाने वाला पित्त रस (bile juice) एकत्र रहता है। यह पित्त रस आहार के पाचन में विशेष रूप से सहायक होता है। व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया गया आहार जब पक्वाशय में पहुँचता है, तब उसके पाचन के लिए पित्त रस की आवश्यकता होती है। इस अवसर पर पित्ताशय में एकत्र हुआ पित्त रस, पित्त नलिका द्वारा पक्वाशय में पहुँच जाता है।

पित्त रस के प्रभाव से पक्वाशय में पहुँचने वाला आहार क्रमशः क्षारीय बन जाता है; अर्थात् उसकी अम्लीयता समाप्त हो जाती है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि अग्न्याशय से आने वाला पाचक रस केवल क्षारीय माध्यम में ही प्रभावशाली होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भले ही पित्त रस में कोई एंजाइम विद्यमान नहीं होता, परन्तु अग्न्याशय से आने वाले एंजाइम की सक्रियता के लिए पित्त रस ही आधार प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त पित्त रस के प्रभाव से ही आहार में विद्यमान वसा जल में मिलकर इमल्शन का रूप ग्रहण करती है।

प्रश्न 12.
पाचन तन्त्र के एक सहायक अंग के रूप में अग्न्याशय या क्लोम ग्रन्थि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अग्न्याशय या क्लोम ग्रन्थि अग्न्याशय या क्लोम (pancreas) भी एक ग्रन्थि है, जो पाचन तन्त्र का ही एक अंग है। यह ग्रन्थि आमाशय के पीछे उदर की पिछली दीवार से सटी हुई होती है। यह आकार में लम्बी ग्रन्थि है। सामान्य रूप से इसकी लम्बाई 16 सेमी तथा चौड़ाई 4 सेमी होती है। इस ग्रन्थि का बायाँ भाग तिल्ली की ओर तथा दायाँ भाग ग्रहणी या पक्वाशय की ओर होता है। अग्न्याशय द्वारा जो रस बनाया जाता है; उसे अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) कहते हैं।

यह रस एक नलिका द्वारा पक्वाशय में पहुँचाया जाता है। अग्न्याशयिक रस पतला, स्वच्छ तथा खारेपन के गुण से युक्त होता है। इस रस में मुख्य रूप से तीन एंजाइम होते हैं, जो पाचन क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन एंजाइम्स के नाम हैं क्रमश: एमाइलोप्सिन, स्टिएप्सिन तथा ट्रिप्सिन। एमाइलोप्सिन एंजाइम के प्रभाव से आहार में बिना पचा मण्ड क्रमशः शर्करा में बदल जाता है। स्टिएप्सिन या लाइपेज एंजाइम वसा को क्रमशः ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल में विखण्डित कर देता है। जहाँ तक ट्रिप्सिन नामक एंजाइम का प्रश्न है, यह एंजाइम आहार में विद्यमान प्रोटीन को पेप्टोन में परिवर्तित कर देता है।

प्रश्न 13.
पाचन तन्त्र के एक सहायक अंग के रूप में तिल्ली या प्लीहा का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए। उत्तर
तिल्ली या प्लीहा पाचन तन्त्र से अप्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध एक अंग तिल्ली या प्लीहा (spleen) भी है। यह एक ग्रन्थि है। यह ग्रन्थि हमारे शरीर में आमाशय के बाईं ओर तथा अग्न्याशय के दाईं ओर पायी जाती है। इसका रंग बैंगनी होता है तथा आकार सेम के बीज जैसा होता है। इस ग्रन्थि का वजन लगभग 375 ग्राम होता है तथा यह लगभग 12 सेमी लम्बी होती है। छूने पर यह ग्रन्थि मुलायम तथा पिलपिली-सी होती है।

भले ही तिल्ली का पाचन तन्त्र से सीधा सम्बन्ध न हो, परन्तु इससे पाचन संस्थान तथा पाचन क्रिया को सहायता अवश्य प्राप्त होती है। यदि किसी कारण से तिल्ली बढ़ जाती है तो पाचन क्रिया में व्यवधान आने लगता है तथा पेट में पीड़ा भी होने लगती है। तिल्ली का मुख्य कार्य शरीर में रक्त को संचित रखना है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 4 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाचन तन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
आहार नाल के समस्त अंग तथा आहार नाल के बाहर स्थित पाचन में सहायक अंग सम्मिलित रूप से पाचन तन्त्र कहलाते हैं। पाचन तन्त्र का कार्य आहार का पाचन एवं पोषक-तत्त्वों का अवशोषण करना है।

प्रश्न 2.
पाचन तन्त्र के मुख्य अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पाचन तन्त्र के मुख्य अंग हैं-मुख व मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय तथा आँत। इनके अतिरिक्त यकृत, पित्ताशय, अग्न्याशय तथा तिल्ली या प्लीहा भी पाचन तन्त्र के ही अंग हैं।

प्रश्न 3.
आहार नाल से क्या आशय है?
उत्तर:
मुखद्वार से मलद्वार तक फैले मार्ग को आहार नाल या पाचन प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 4.
मुख में कौन-सा पाचक रस पाया जाता है तथा उसमें कौन-सा एंजाइम होता है?
उत्तर:
मुख में लार नामक पाचक रस पाया जाता है तथा लार में टायलिन नामक किण्व या एंजाइम होता है।

प्रश्न 5.
टायलिन नामक एंजाइम आहार के किस तत्त्व के पाचन में सहायक होता है?
उत्तर:
टायलिन नामक एंजाइम कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायक होता है।

प्रश्न 6.
आमाशय में कौन-सा पाचक रस बनता है तथा उसमें कौन-कौन से किण्व या एंजाइम्स पाए जाते हैं?
उत्तर:
आमाशय में जठर रस नामक पाचक रस बनता है तथा इसमें रेनिन एवं पेप्सिन नामक दो किण्व या एंजाइम्स पाए जाते हैं।

प्रश्न 7.
रेनिन कहाँ पाया जाता है? इसका मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर:
रेनिन आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रन्थियों द्वारा स्रावित जठर रस में पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य दूध को फाड़कर केसीन नामक प्रोटीन को अलग करना है।

प्रश्न 8.
आमाशय में आहार के किस तत्त्व का पाचन होता है?
उत्तर:
आमाशय में आहार के प्रोटीन नामक तत्त्व का पाचन होता है।

प्रश्न 9.
यकृत द्वारा किस रस का निर्माण किया जाता है? यह कहाँ एकत्र होता है? इसका क्या कार्य है?
उत्तर:
यकृत द्वारा पित्त रस का निर्माण किया जाता है। यह रस पित्ताशय में एकत्र रहता है। इसका मुख्य कार्य आहार के पाचन में सहायता प्रदान करना है।

प्रश्न 10.
अग्न्याशय या क्लोम द्वारा किस रस का निर्माण किया जाता है तथा उस रस में कौन-कौन से एंजाइम्स पाए जाते हैं? .
उत्तर:
अग्न्याशय या क्लोम द्वारा अग्न्याशयिक रस का निर्माण किया जाता है। इस रस में एमाइलोप्सिन, स्टिएप्सिन तथा ट्रिप्सिन नामक तीन एंजाइम्स पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
आहार के पाचन से क्या आशय है?
उत्तर:
आहार के पाचन का अर्थ है अघुलनशील एवं जटिल भोज्य पदार्थों को घुलनशील एवं सरल अवस्था में बदलकर अवशोषण के योग्य बनाना।।

प्रश्न 12.
पचे हुए आहार का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है? उत्तर-पचे हुए भोजन का अधिकांश अवशोषण छोटी आंत में होता है। प्रश्न 13-मनुष्य के दाँतों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य के दाँत चार प्रकार के होते हैं-(i) कृन्तकं दाँत, (ii) भेदक दाँत, (ii) अग्र चर्वणक दाँत तथा (iv) चर्वणक दाँत।

प्रश्न 14.
दाँतों के कौन-कौन से तीन भाग होते हैं? उत्तर–दाँतों के तीन भाग होते हैं-(i) शिखर, (ii) ग्रीवा तथा (iii) मूल। प्रश्न 15-इनेमल क्या है? यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
दाँतों की बाहरी सुरक्षा परत को इनेमल कहा जाता है। यह दाँतों के शिखर नामक भाग में पाया जाता है।

प्रश्न 16.
कृन्तक तथा चर्वणक दाँतों की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृन्तक दाँत खाद्य-सामग्री को कुतरने का कार्य करते हैं तथा चर्वणक दाँत खाद्य-सामग्री को चबाने तथा पीसने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 17.
एंजाइम क्या है? पाचन में इनका क्या कार्य है?
उत्तर:
एंजाइम विशेष प्रकार के जटिल पदार्थ हैं, जो सामान्यत: विशेष प्रोटीन होते हैं। ये आहार के जटिल अविलेय पदार्थों को सरल तथा जल में विलेय स्वरूप में बदलते हैं।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 4 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए- .

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा अंग पाचन तन्त्र का अंग नहीं है
(क) आहार नली
(ख) अग्न्याशय
(ग) फेफड़ा
(घ) छोटी आँत।
उत्तर:
(ग) फेफड़ा।

प्रश्न 2.
हमारे शरीर में मुँह से लेकर मलद्वार तक के मार्ग को कहते हैं
(क) आमाशय
(ख) आँतें
(ग) आहार नाल
(घ) पाचन तन्त्र।
उत्तर:
(ग) आहार नाल।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा अंग आहार नाल का भाग नहीं है
(क) मुख
(ख) ग्रसनी
(ग) आमाशय
(घ) यकृत।
उत्तर:
(घ) यकृत।

प्रश्न 4.
दाँतों को मजबूत करने वाला तत्त्व कौन-सा है
(क) प्रोटीन
(ख) कैल्सियम
(ग) कार्बोहाइड्रेट
(घ) वसा।
उत्तर:
(ख) कैल्सियम।

प्रश्न 5.
आहार नाल का सबसे लम्बा भाग होता है
(क) आमाशय
(ख) छोटी आँत
(ग) बड़ी आँत
(घ) मलाशय।
उत्तर:
(ख) छोटी आँत।

प्रश्न 6.
मनुष्य की लार में कौन-सा एंजाइम (किण्व) पाया जाता है
(क) लाइपेज
(ख) रेनिन
(ग) टायलिन
(घ) ग्लूकोज।
उत्तर:
(ग) टायलिन।

प्रश्न 7.
टायलिन नाम का एंजाइम किस रस में मिलता है
(क) जठर रस
(ख) अग्न्याशय रस
(ग) पित्त रस
(घ) लार।
उत्तर:
(घ) लार।

प्रश्न 8.
मनुष्य के मुँह में कितनी लार ग्रन्थियाँ होती हैं
(क) 6
(ख) 8
(ग) 10
(घ) 2.
उत्तर:
(क) 6.

प्रश्न 9.
मनुष्य के पाचन तन्त्र में आहार के कार्बोहाइड्रेट का पाचन प्रारम्भ हो जाता है
(क) मुखगुहा से
(ख) आमाशय से
(ग) पक्वाशय से
(घ) आँतों से।
उत्तर:
(क) मुखगुहा से।

प्रश्न 10.
आमाशय का आकार कैसा होता है
(क) लम्बा
(ख) गोल
(ग) खोखला
(घ) थैले या मशक जैसा।
उत्तर:
(घ) थैले या मशक जैसा।

प्रश्न 11.
ग्रसनी के बाद भोजन जाता है
(क) छोटी आंत में
(ख) ग्रहणी में
(ग) आमाशय में
(घ) बड़ी आँत में।
उत्तर:
(ग) आमाशय में।

प्रश्न 12.
आमाशय से स्रावित होता है
(क) नाइट्रिक अम्ल
(ख) साइट्रिक अम्ल
(ग) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
(घ) इन्सुलिन।
उत्तर:
(ग) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल।

प्रश्न 13.
आमाशयिक रस में निम्नलिखित में से कौन-सा एंजाइम पाया जाता है
(क) रेनिन
(ख) एमाइलेज
(ग) ट्रिप्सिन
(घ) टायलिन।
उत्तर:
(क) रेनिन।

प्रश्न 14.
रेनिन नामक एंजाइम जो आमाशय में बनता है
(क) प्रोटीन पर क्रिया करता है
(ख) केवल दूध की प्रोटीन पर क्रिया करता है
(ग) दूध को फाड़कर उसकी प्रोटीन को अलग करता है
(घ) मण्ड को पचाता है।
उत्तर:
(ग) दूध को फाड़कर उसकी प्रोटीन को अलग करता है।

प्रश्न 15.
पेप्सिन नामक एंजाइम पाया जाता है(क) जठर रस में
(ख) पित्त रस में
(ग) आन्त्रीय रस में
(घ) अग्न्याशयिक रस में।
उत्तर:
(क) जठर रस में।

प्रश्न 16.
यकृत का मुख्य कार्य होता है
(क) पित्त संग्रह करना
(ख) विभिन्न एंजाइम्स बनाना
(ग) पित्त रस बनाना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) पित्त रस बनाना।

प्रश्न 17.
यकृत अतिरिक्त शर्करा को किस वस्तु में परिवर्तित कर देता है
(क) ग्लाइकोजन में
(ख) सेलुलोस में
(ग) एंजाइम में
(घ) मण्ड या स्टॉर्च में।
उत्तर:
(क) ग्लाइकोजन में।

प्रश्न 18.
प्रोटीन के पाचन से बनता है
(क) ऐमीनो अम्ल
(ख) ग्लूकोज
(ग) ग्लिसरॉल व वसीय अम्ल
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ऐमीनो अम्ल।

प्रश्न 19.
वसा के पाचन से बनता है
(क) ऐमीनो अम्ल
(ख) ग्लाइकोजन
(ग) ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ग) ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल।

प्रश्न 20.
पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है
(क) आमाशय
(ख) पक्वाशय .
(ग) छोटी आँत
(घ) यकृत।
उत्तर:
(ग) छोटी आँत।

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