UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार (Family as a Means for Satisfying Human Needs)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। परिवार की मुख्य विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
‘परिवार’ मानव समाज की सबसे प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्था है। परिवार वह सामाजिक संस्था है, जहाँ मनुष्य शिशु के रूप में जन्म लेता है तथा विभिन्न प्रकार के आश्रय, संरक्षण एवं सहयोग द्वारा अपनी असहाय अवस्था को गुजारता है। इस शारीरिक संरक्षण के अतिरिक्त, परिवार व्यक्ति के समाजीकरण की भी प्रमुख संस्था है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में भी परिवार का योगदान असीमित होता है। यही नहीं बल्कि वृद्धावस्था की असहाय स्थिति में भी व्यक्ति परिवार में ही आश्रय प्राप्त करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि परिवार वह सामाजिक संस्था है, जिसका सदस्य प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी स्थिति में अवश्य होता है तथा सामान्य रूप से परिवार पर किसी-न-किसी प्रकार से आश्रित भी होता है।

परिवार की परिभाषाएँ (Definitions of Family) –
प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, बच्चा हो या बूढ़ा, ‘परिवार’ से भली-भाँति परिचित रहता है। परन्तु परिवार का यह परिचय एक सामान्य परिचय होता है। समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए सुनिश्चित तथा वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तुत करना अनिवार्य है। विभिन्न विद्वानों ने ‘परिवार’ की सामान्य विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए कुछ आपस में मिलती-जुलती परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नवर्णित हैं –

1. मैकाइवर एवं पेज द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – मैकाइवर एवं पेज ने परिवार की संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है – “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों को पैदा करने तथा लालन-पालन करने की व्यवस्था करता है।”

2. डी० एन० मजूमदार द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – “परिवार उन व्यक्तियों का एक समूह है, जो एक छत के नीचे रहते हैं, मूल और रक्त सम्बन्धी सूत्रों से सम्बन्धित होते हैं तथा स्थान, रुचि और कृतज्ञता की अन्योन्याश्रितता के आधार पर सम्बन्धों की जागरूकता रखते हैं।”

3. ऑगबर्न एवं निमकॉफ द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – “बच्चों सहित अथवा बच्चों रहित एक पति-पत्नी के या किसी एक पुरुष या एक स्त्री के अकेले ही बच्चों सहित एक थोड़े-बहुत स्थायी संघ को परिवार कहते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा ‘परिवार’ नामक सामाजिक संस्था का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि परिवार एक लगभग स्थायी सामाजिक संगठन है, जिसकी नींव स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्धों के नियोजन पर होती है तथा बच्चों का जन्म, लालन-पालन एवं समाजीकरण आदि मुख्य कार्य होते हैं।

परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Family) –
उपर्युक्त विवरण के आधार पर ‘परिवार’ की निम्नलिखित मुख्य विशेषताओं का वर्णन किया जा सकता है –

  • परिवार समाज की प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।
  • परिवार विश्व की एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है; अर्थात् यह संस्था सब कहीं पायी जाती है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था विवाह पर आधारित है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था में भावात्मक सम्बन्धों का विशेष महत्त्व है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था का आकार सीमित होता है।
  • प्रत्येक परिवार का एक सामान्य निवास स्थान होता है।
  • प्रत्येक परिवार का एक विशिष्ट नाम होता है।
  • परिवार एक प्रबल नियन्त्रणकारी सामाजिक संस्था है।
  • परिवार की सामाजिक संगठन में केन्द्रीय एवं महत्त्वपूर्ण स्थिति होती है।
  • परिवार के सदस्यों के असीमित कर्त्तव्य होते हैं।
  • परिवार कुछ निश्चित सामाजिक नियमों पर आधारित होता है।

प्रश्न 2.
मनुष्य की आवश्यकताओं को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है? इन आवश्यकताओं की पूर्ति में परिवार की क्या भूमिका है?
अथवा
परिवार में मनुष्य की कौन-कौन सी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है? किन्हीं दो का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
मानवीय आवश्यकताओं की परिवार में होने वाली पूर्ति का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
मानवीय आवश्यकताएँ परिवार द्वारा किस प्रकार पूर्ण होती हैं?
उत्तरः
परिवार द्वारा मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करना (Fulfilment of Human needs by Family) –
व्यक्ति के जीवन में परिवार का बहुत महत्त्व है। इसी के द्वारा वह अपने जन्म से लेकर मरण तक की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसलिए परिवार का सदस्य बने बिना, मनुष्य के सुचारु जीवन एवं विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिवार द्वारा मनुष्य की शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की प्रक्रिया को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है –

(1) शारीरिक व भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
(अ) आहार एवं पोषण-भोजन की पूर्ति परिवार द्वारा सुव्यवस्थित तथा सुचारु रूप से की जाती है। परिवार अपने सभी सदस्यों के लिए, भले ही वे रोगी, वृद्ध, अपाहिज क्यों न हों, अटूट प्रेम, श्रद्धा एवं स्नेह से ओतप्रोत होकर भोजन की व्यवस्था करता है। परिवार द्वारा आयोजित सन्तुलित आहार-व्यवस्था से ही व्यक्ति का समुचित पोषण होता है।

(ब) शारीरिक सुरक्षा-परिवार द्वारा अपने सदस्यों के लिए उपयुक्त वस्त्रों की व्यवस्था की जाती है। परिवार के किसी सदस्य को यदि शारीरिक सुरक्षा अथवा सहायता की आवश्यकता होती है तो सारे सदस्य मिलकर उसकी सहायता को तैयार हो जाते हैं।

(स) मनोरंजन-दिन भर के परिश्रम के बाद मनोरंजन की आवश्यकता होती है। इससे मनुष्य की सारी थकान दूर हो जाती है। हारा-थका पिता जब अपने बच्चों की बातों को सुनता है तो उसका मन प्रसन्न हो जाता है। परिवार में अनेक उत्सव होते रहते हैं, इनके द्वारा भी मनोरंजन होता है। परिवार के विभिन्न सदस्यों के मध्य होने वाले हास-परिहास से भी व्यक्ति का भरपूर स्वस्थ मनोरंजन होता रहता है।

(द) बालकों का पालन-पोषण-नवजात शिशु की असहायावस्था में परिवार ही उसकी सारी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए पालन-पोषण करता है।

(2) सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
(अ) मनुष्यों के मध्य रहना-कोई मनुष्य एकान्तवासी होना नहीं चाहता। यदि मनुष्य को कुछ समय के लिए एकान्त में रखा जाए तो वह व्यथित हो उठता है। परिवार ही इस आवश्यकता की सन्तुष्टि करता है।

(ब) आत्म-प्रदर्शन-बच्चे अध्ययन तथा अन्य सामाजिक कार्यों में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर अपने परिवार के सदस्यों से प्रशंसा, प्रोत्साहन और उत्साह ग्रहण करते हैं।
(स) शिशु रक्षा-परिवार शिशु के विकास तथा रक्षा के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करता है।

(3) मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति से पूर्ण सन्तुष्ट नहीं हो पाता। मनुष्य के लिए मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं का भी विशेष महत्त्व है। मनुष्य को प्रेम, स्नेह, सहानुभूति तथा आत्म-गौरव आदि की भी लालसा होती है। इन समस्त मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वोत्तम ढंग से परिवार में ही होती है।

(4) आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
परिवार के वृद्ध सदस्यों से अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक उपाख्यानों को श्रवण कर व्यक्ति अपने चरित्र को परिमार्जित तथा आदर्शमय बनाने की प्रेरणा ग्रहण करता है। परिवार में ही मनुष्य नैतिकता का सच्चा पाठ पढ़ता है और सभ्य नागरिक बनकर समाज में प्रतिष्ठित होता है।

प्रश्न 3.
परिवार की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों की चर्चा करते हुए, विकासवादी सिद्धान्त की समालोचना कीजिए।
उत्तरः
परिवार की उत्पत्ति के सिद्धान्त (Theories of Origin of Family) –
मानव समाज के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में भी किसी-न-किसी रूप में “परिवार’ नामक संस्था का अस्तित्व था तथा आज परिवार एक सुविकसित एवं सुनियोजित संस्था के रूप में उपस्थित है। परन्तु, फिर भी परिवार की उत्पत्ति के विषय में प्रश्न उठता ही है। इस विषय में मैकाइवर एवं पेज का प्रस्तुत कथन उल्लेखनीय है – “परिवार की इस अर्थ में कोई उत्पत्ति नहीं है और न ही मानव जीवन में कोई ऐसी अवस्था थी जबकि परिवार अनुपस्थित था या कोई दूसरी ऐसी अवस्था थी, जिसमें से यह निकला है।”

परिवार की इस पृथ्वी पर.उत्पत्ति किस प्रकार हुई है तथा वह अपनी वर्तमान अवस्था में कैसे पहुँचा है? इस सम्बन्ध में समाजशास्त्रियों (sociologists) ने निम्नलिखित सिद्धान्त बताए हैं –

  • पितृ-सत्तात्मक सिद्धान्त
  • लिंग साम्यवाद का सिद्धान्त
  • विकासवादी सिद्धान्त
  • एक विवाह का सिद्धान्त तथा
  • मातृ-सत्तात्मक सिद्धान्त।

उपर्युक्त सिद्धान्तों में विकासवादी सिद्धान्त का अधिक महत्त्व है। विकासवादी सिद्धान्त का विस्तृत विवरण निम्नवर्णित है –

परिवार की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विकासवादी सिद्धान्त –
सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रस्तुतीकरण बैकोफेन (Bechofen) द्वारा किया गया। बाद में इस सिद्धान्त का समर्थन स्पेन्सर, टायलर, मेकलेनन आदि ने किया। प्रमुख भूमिका इस सिद्धान्त के सम्बन्ध में बैकोफेन ने प्रस्तुत की, जिसका विवरण निम्नलिखित है –

1. प्रारम्भ में मनुष्य के जीवन के अन्तर्गत पति-पत्नी के सम्बन्ध बहुत ढीले थे। केवल माँ और बच्चों के सम्बन्ध कुछ मजबूत थे, लेकिन इस बात का पता नहीं था कि उन बच्चों का वास्तविक पिता कौन है। सभी समूह बनाकर रहते थे। यह परिवार का सबसे प्रारम्भिक रूप था।

2. इसके बाद परिवार का स्वरूप कुछ और स्पष्ट हुआ। उस समय लोगों को खाने-पीने की वस्तुएँ कठोर परिश्रम के बाद मिलती थीं और यह काम लड़कियाँ नहीं कर सकती थीं। इसलिए उनके पैदा होते ही उन्हें मार दिया जाता था। इस प्रकार समाज में लड़कियों की संख्या बहुत कम हो गई। परिणामस्वरूप एक स्त्री के अनेक पति होते थे। इस प्रकार इस स्तर पर बहुपति-विवाही परिवार का जन्म हुआ।

3. इसके बाद धीरे-धीरे कृषि स्तर आया और खाने-पीने की सामग्री काफी मात्रा में उपलब्ध होने लगी। लड़कियों को मारने की प्रथा बन्द हो गई और समाज में उनकी संख्या एवं अनुपात बदल गया और अब पुरुषों के लिए एक से अधिक पत्नियाँ रखना आसान हो गया। इस प्रकार बहु-पत्नी विवाही परिवार का जन्म हुआ।

4. समय एवं अनुभव के साथ लोगों के ज्ञान में वृद्धि हुई। वे सभ्य होते गए और बहु-विवाह के दोष स्पष्ट होते गए। साथ ही सामाजिक जीवन में समानता का विचार पनपा और स्त्रियों ने अपने समान अधिकारों और सामाजिक न्याय की माँग की। इन सबके फलस्वरूप एक पुरुष का विवाह एक ही स्त्री से होना प्रारम्भ हो गया और एक-विवाही परिवार का जन्म हुआ। यही परिवार का आधुनिक रूप है।

लुईस मार्गन ने परिवार के उद्विकास में पाँच स्तरों का उल्लेख किया है –

  • रक्त सम्बन्धी परिवार-इस प्रकार के परिवार मानव जीवन के प्रारम्भिक काल में पाए जाते थे। इनमें यौन सम्बन्ध स्थापित करने के विषय में कोई भी प्रतिबन्ध न था और भाइयों तथा बहनों तक में बिना संकोच इस प्रकार के सम्बन्ध स्थापित हुआ करते थे।
  • समूह परिवार—यह परिवार के विकास की दूसरी अवस्था है। इस स्तर में एक परिवार के सब भाइयों का विवाह दूसरे परिवार की बहनों के साथ हुआ करता था, जिसमें प्रत्येक पुरुष सभी स्त्रियों का पति होता था और प्रत्येक स्त्री सभी पुरुषों की पत्नी होती थी और इसलिए वे आपस में यौन सम्बन्ध भी स्थापित कर सकते थे।
  • स्डेस्मियन परिवार इस तीसरी अवस्था में एक पुरुष का विवाह तो एक ही स्त्री के साथ होता था, परन्तु उसी परिवार में ब्याही हुई सभी स्त्रियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करने की स्वतन्त्रता प्रत्येक पुरुष को रहती थी।
  • पितृसत्तात्मक परिवार इस चौथी अवस्था में परिवारों में पुरुष ही सर्वशक्तिमान होता था। इस कारण वह अपनी इच्छानुसार एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता था और उनके साथ यौन सम्बन्ध रखता था।
  • एकविवाही परिवार – यह परिवार के क्रम में अन्तिम और आधुनिक अवस्था है, इसमें एक पुरुष का एक ही स्त्री से विवाह और यौन सम्बन्ध होता है।

विकासवादी सिद्धान्त की आलोचना –
परिवार के विकासवादी सिद्धान्त के उपर्युक्त मतों की आलोचना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है –

  • वैज्ञानिक आधार पर यह स्वीकार करना कठिन है कि प्रत्येक समाज में परिवार की उत्पत्ति व विकास एक ही तरह से या कुछ निश्चित स्तरों में से गुजरा हुआ है, बल्कि यह सम्भव भी नहीं; क्योंकि प्रत्येक समाज की भौगोलिक, सामाजिक या सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं तो फिर प्रत्येक समाज में परिवार की उत्पत्ति एक ही ढंग से कैसे हो सकती है?
  • विकासवादी सिद्धान्त के समर्थकों की यह कल्पना भी गलत है कि यौन साम्यवाद की स्थिति कभी थी। वास्तव में अभी तक किसी ऐसी आदिवासी जाति का पता नहीं लग सका है, जिसमें यौन .. साम्यवाद या कामाचार की अवस्था पायी जाती हो या पायी गई हो।
  • विकासवादी लेखकों ने जो कुछ भी कहा है वह सब उनकी कल्पनाओं या सैद्धान्तिक आधार पर आधारित है, वास्तविक रूप में नहीं। अत: काल्पनिक सिद्धान्त वैज्ञानिक सत्य नहीं हो सकता।

उपर्युक्त आलोचना के आधार पर इस सिद्धान्त को भी अप्रामाणिक ही माना जाता है।

प्रश्न 4.
मातृसत्तात्मक परिवार से आप क्या समझती हैं?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार से आप क्या समझती हैं?
अथवा
अन्तर स्पष्ट कीजिए-पितृसत्तात्मक परिवार और मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तरः
मातृसत्तात्मक और पितृसत्तात्मक परिवार –
परिवार के वर्गीकरण का एक आधार सत्ता सम्पन्नता भी है। इस आधार के अन्तर्गत यह विचार मुख्य होता है कि परिवार में सत्ता पुरुष के हाथ में हो या स्त्री के हाथ में। इस आधार पर दो प्रकार के परिवार माने गए हैं, जिन्हें क्रमश: मातृसत्तात्मक तथा पितृसत्तात्मक परिवार कहा जाता है। इन दोनों प्रकार के परिवारों का सामान्य परिचय तथा अन्तर निम्नवर्णित है

(अ) मातृसत्तात्मक परिवार-कुछ समाजों में परिवार का संगठन इस प्रकार का होता है कि उनमें स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक सत्ता-सम्पन्न होती हैं तथा परिवार की सभी नीतियाँ और सभी अधिकार स्त्रियों के पक्ष में होते हैं। इन परिवारों को मातृसत्तात्मक परिवार (matriarchal family) कहा जाता है। मातृसत्तात्मक परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नवर्णित हैं –

  • वंश का नाम माँ के नाम से चलता है। वंश का नाम पिता से उसके पुत्रों को हस्तान्तरित नहीं होता बल्कि माता से उसकी पुत्रियों को होता है।
  • सम्पत्ति का उत्तराधिकार भी पिता द्वारा पुत्र को न प्राप्त होकर माता से उसकी पुत्री अथवा पुत्रियों को प्राप्त होता है। पुरुष को यदि उत्तराधिकार में कुछ मिल सकता है तो वह मातृपक्ष की ओर से ही सम्भव है।
  • सामान्य रूप से मातृसत्तात्मक परिवार मातृस्थानीय या मातृवंशीय परिवार ही होते हैं।

(ब)पितृसत्तात्मक परिवार-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है; इस प्रकार के परिवारों में पुरुष ही परिवार में अधिक सत्ता-सम्पन्न होता है तथा वही परिवार का मुखिया होता है। वंश का नाम पिता या पुरुष के नाम से ही चलता है तथा पिता के उपरान्त पुत्र ही वंश के मुख्य उत्तराधिकारी होते हैं। पितृसत्तात्मक परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नवर्णित हैं

  • परिवार के सन्दर्भ में समस्त सामाजिक एवं पारिवारिक पद तथा उपाधियाँ पुत्र को प्राप्त होती हैं। सामान्य रूप से पिता के उपरान्त बड़े पुत्र को सत्ता प्राप्त होती है।
  • इस प्रकार के परिवारों में पारिवारिक सम्पत्ति का अधिकार पिता से पुत्रों में हस्तान्तरित होता है। माता के परिवार की सम्पत्ति पर पुत्रों का अधिकार नहीं होता।
  • पितृसत्तात्मक परिवार में सभी बच्चों को पिता के वंश का नाम मिलता है, न कि माता के वंश का।
  • पितृसत्तात्मक परिवार पितृस्थानीय होते हैं; अर्थात् सभी बच्चे अपने पिता के स्थान पर रहते हैं।

अन्तर – उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि मातृसत्तात्मक तथा पितृसत्तात्मक परिवारों में मुख्य अन्तर सत्ता के केन्द्रण से सम्बन्धित है। मातृसत्तात्मक परिवारों में पारिवारिक सत्ता स्त्री (माता) के हाथ में होती है, जबकि पितृसत्तात्मक परिवार में यह सत्ता पुरुष (पिता) के हाथ में होती है। इस अन्तर के कारण वंश का नाम, सम्पत्ति का हस्तान्तरण आदि भी मातृसत्तात्मक परिवार में माता से पुत्रियों में तथा पितृसत्तात्मक परिवार में पिता से पुत्रों में होता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि परिवार समाज की प्राचीनतम संस्था है?
उत्तरः
परिवार-प्राचीनतम सामाजिक संस्था –
परिवार एक सामाजिक संस्था है, जिसके गठन का आधार स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्ध तथा बच्चों का जन्म एवं पालन-पोषण है। परिवार के ये दोनों आधार उतने ही प्राचीन हैं जितना कि मनुष्य का अस्तित्व। जब से मनुष्य की सृष्टि हुई है, तब से इस पृथ्वी पर किसी-न-किसी रूप में परिवार का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि प्राचीन परिवार का स्वरूप वर्तमान परिवार के स्वरूप से नितान्त भिन्न रहा हो। सभ्यता के विकास के साथ-साथ परिवार के स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है, परन्तु प्राचीनता के दृष्टिकोण से परिवार समाज की प्राचीनतम संस्था है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि मानव समाज में परिवार का अस्तित्व उस समय भी था, जब ‘विवाह’ नामक संस्था अस्तित्व में नहीं आई थी।

प्रश्न 2.
विवाह-प्रणाली के आधार पर परिवार के प्रकारों या स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के गठन में विवाह द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। विवाह-प्रणाली की भिन्नता के आधार पर परिवार के अग्रलिखित प्रकार या स्वरूप हैं –

  • एक विवाही-परिवार-एक स्त्री तथा एक पुरुष के परस्पर विवाह के आधार पर गठित परिवार को एकविवाही परिवार कहा जाता है।
  • बहुपत्नी परिवार-यदि एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करके परिवार गठित करता है तो उस परिवार को बहुपत्नी परिवार कहा जाता है।
  • बहुपति परिवार-यदि एक स्त्री तथा एक से अधिक पुरुषों से विवाह करके परिवार को गठित करती हैं तो उस परिवार को बहुपति परिवार कहते हैं। हमारे देश में खस तथा टोडा जनजातियों में बहुपति परिवार पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
परिवार के मुख्य शारीरिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
परिवार के शारीरिक कार्य –

  • काम-इच्छा की पूर्ति-परिवार का प्रथम कार्य स्त्री-पुरुष की काम-इच्छा की पूर्ति करना है। व्यक्ति परिवार के बाहर भी अपनी काम-इच्छा की पूर्ति कर सकता है, परन्तु उसका यह कृत्य पूर्णतया असामाजिक माना जाता है। विवाह के द्वारा समाज; स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्धों को सामाजिक स्वीकृति प्रदान करता है। इस प्रकार परिवार में स्त्री-पुरुष अपनी काम-इच्छाओं की पूर्ति स्वतन्त्रतापूर्वक करते हैं।
  • सन्तानोत्पत्ति-सन्तान की कामना करना प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए स्वाभाविक है। परिवार मनुष्य की इस जन्मजात इच्छा को पूरी करता है। पति-पत्नी के यौन सम्बन्धों की स्थापना के पश्चात् उत्पन्न होने वाली सन्तान को ही सामाजिक एवं वैधानिक मान्यता प्राप्त होती है।
  • सन्तान का लालन-पालन-जन्म के समय शिशु पूर्णतया अबोध एवं असहाय होता है। उसके लालन-पालन और भरण-पोषण का कार्य परिवार के द्वारा ही होता है। यदि परिवार द्वारा बालक की उपेक्षा की जाए तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है। परिवार का कार्य केवल प्रजनन अथवा सन्तानोपत्ति ही नहीं है अपितु सन्तान का लालन-पालन करना भी है।
  • भोजन की व्यवस्था-परिवार अपने सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है जो कि सभी की एक मौलिक एवं आधारभूत आवश्यकता है।
  • जीवन की सुरक्षा-परिवार के सदस्य परस्पर मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे की सुरक्षा तथा रोग-निवारण में योगदान करते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार में अपने को हर प्रकार से सुरक्षित अनुभव करता है।
  • वस्त्रों आदि की व्यवस्था परिवार अपने सदस्यों के लिए वस्त्रों तथा अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करता है।
  • निवास की व्यवस्था परिवार के सदस्य भली प्रकार सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकें, इसके लिए परिवार ही निवास स्थान या घर की भी व्यवस्था करता है।

प्रश्न 4.
परिवार के मुख्य सामाजिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य सामाजिक कार्य –
1. बालक का समाजीकरण-परिवार का प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण कार्य बालक का समाजीकरण करना है। जन्म के उपरान्त बालक में कुछ ऐसी प्रवृत्तियाँ भी पायी जाती हैं, जो समाज-सम्मत नहीं होती। परिवार के वातावरण द्वारा ही इन प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तरीकरण होता है, जिससे मानव शिशु क्रमश: एक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता है। परिवार ही बालक को सामाजिकता का प्रथम पाठ पढ़ाता है। अन्य लोगों से व्यवहार करना, उठने-बैठने तथा बातचीत करने का शिष्टाचार आदि बालक परिवार से ही सीखता है। परिवार समाजीकरण की सभी अवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सामाजिक विरासत का प्रसार करना-परिवार सामाजिक विरासत (social heritage) का प्रसार तथा हस्तान्तरण करता है। परिवार ही जनरीतियाँ, कानून, विश्वास, रूढ़ियाँ, नैतिक नियम, शिक्षा आदि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान करता है तथा उनका संग्रह और विस्तार करता है।

3. सदस्यों को सामाजिक स्थिति प्रदान करना-परिवार की स्थिति के अनुसार उसके सदस्यों को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। परिवार की सामाजिक स्थिति के अनुसार ही यह निश्चित किया जाता है कि उसके सदस्यों को किन लोगों में उठना-बैठना चाहिए। वैवाहिक सम्बन्धों की स्थापना भी इसी आधार . पर की जाती है।

4. सदस्यों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना-परिवार अपने सदस्यों को सामाजिक अपमान, दिवालियापन आदि से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है। परिवार ही एक ऐसा संगठन है, जो व्यक्ति के सामाजिक सम्मान की सुरक्षा के प्रति चिन्तित रहता है तथा यथासम्भव सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है।

5. जीवन-साथी के चुनाव में सहायता-परिवार अपने सदस्यों के विवाह सम्बन्ध स्थापित करने या जीवन-साथी के चुनाव में योगदान करता है। इस प्रकार परिवार एक अन्य परिवार को जन्म देने में सहायक होता है।

6. सामाजिक नियन्त्रण में सहायक-सामाजिक नियन्त्रण के प्रथा, कानून जनमत, प्रचार, नेतृत्व, शिक्षा संस्थाएँ तथा रीति-रिवाज आदि अनेक अभिकरण हैं, परन्तु इन सब में परिवार का विशिष्ट स्थान है। यथार्थ में परिवार ही एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को इन सब को मानने के लिए बाध्य करता है। व्यक्ति को भले-बुरे का ज्ञान कराने में परिवार विशेष सहायक होता है। यह केवल अपने तक ही व्यक्ति को नियन्त्रित नहीं करता वरन् बाह्य जगत में भी व्यक्ति पर नियन्त्रण रखता है। अन्य शब्दों में, पारिवारिक नियन्त्रण व्यक्ति को समाज तथा समूह में नियन्त्रित रहने की आदत डाल देता है। परिवार की प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा की रक्षा के लिए उनका सदस्य कोई भी अनुचित कार्य नहीं करता है।

परिवार के सामाजिक कार्यों के उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि वास्तव में व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाने में परिवार का सर्वाधिक योगदान होता है। परिवार ही व्यक्ति को उसकी सामाजिक पहचान प्रदान करता है तथा समाज के अनुरूप व्यक्तित्व प्रदान करता है। इसीलिए परिवार को व्यक्ति के समाजीकरण की प्रथम संस्था कहा जाता है।

प्रश्न 5.
परिवार के मुख्य आर्थिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य आर्थिक कार्य –
परिवार द्वारा निम्नलिखित आर्थिक कार्य सम्पन्न होते हैं –

  • श्रम-विभाजन-परिवार के अधिकांश कार्य श्रम-विभाजन पर आधारित रहते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य अपनी योग्यता एवं क्षमता तथा लिंग और आयु के आधार पर अपना-अपना कार्य करता है। पिता द्वारा प्राय: धनोपार्जन होता है तथा माता घर के खाने-पीने एवं सफाई आदि का प्रबन्ध करती है। पुत्र शाक-सब्जी तथा बाजार से सौदा आदि लाते हैं, बेटियाँ माँ के कार्यों में हाथ बँटाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य का कुछ-न-कुछ कार्य निश्चित रहता है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण–परिवार में बालक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करता है। पिता यदि दुकानदार, लुहार या बढ़ई है तो बालक उसके साथ रहकर उसके व्यवसाय में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार परिवार व्यावसायिक प्रशिक्षण का कार्य करता है।
  • उत्पादन की प्रेरणा-परिवार अपने सदस्यों को आर्थिक उत्पादन की प्रेरणा प्रदान करता है। प्रत्येक सदस्य परिवार की दशा को सुधारने के लिए कुछ-न-कुछ आर्थिक उत्पादन की चेष्टा करता है।
  • आर्थिक क्रिया का केन्द्र प्राचीनकाल से ही परिवार विभिन्न आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र रहा है। सर्वप्रथम आर्थिक क्रियाओं का प्रारम्भ परिवार में ही हुआ और वहीं से उसका प्रसार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ।
  • उत्तराधिकार का निश्चय-परिवार में सम्पत्ति के उत्तराधिकार का भी निश्चय होता है। यह विभाजन किस प्रकार हो, इसका निश्चय परिवार में होता है।

प्रश्न 6.
परिवार के मुख्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्य –
परिवार वह स्थल है, जहाँ अनेक धार्मिक एवं आध्यात्मिक विषयों की पृष्ठभूमि तैयार होती है। परिवार के समस्त सदस्य सामान्य रीति से ईश्वर की उपासना करते हैं। छोटे-छोटे बालक अपने माता-पिता अथवा दादा-दादी से कहानियाँ सुनकर ईश्वर और धर्म तथा अध्यात्म सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करते हैं। माता-पिता के धार्मिक आचरण बालकों को प्रभावित करते हैं और वे अनुकरण द्वारा अनेक धार्मिक क्रियाएँ सीख जाते हैं। धार्मिक उत्सवों द्वारा भी बालकों को धर्म का ज्ञान प्राप्त होता है।

परिवार संस्कृति के विकास का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। परिवार में रहकर बालक सामाजिक संस्कृति . से परिचित होता है। परिवार का सांस्कृतिक वातावरण बालक को समाज की संस्कृति का ज्ञान कराता है। बालक अनुकरण द्वारा भाषा और अच्छी बातें सीखते हैं और उन्हें अपने जीवन का अंग बनाते हैं। रीति-रिवाज, परम्पराओं तथा प्रथाओं को सुरक्षित रखने के साथ-साथ परिवार बालकों को उनका ज्ञान भी कराता है। परिवार ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

प्रश्न 7.
परिवार के मुख्य शैक्षिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य शैक्षिक कार्य ऑगस्त कॉम्ट के शब्दों में, “परिवार सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला है।” पेस्तालॉजी के अनुसार, “परिवार शिक्षा का सबसे उत्तम स्थान और बालक का प्रथम विद्यालय है।” फ्रोबेल भी लिखते हैं – “माताएँ आदर्श अध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा सबसे अधिक प्रभावशाली और प्राकृतिक है।” वास्तव में परिवार में बालक अपने माता-पिता तथा बड़ों का अनुकरण करके अनेक बातें सीखता है तथा अपना बौद्धिक विकास करता है। प्राचीन समाजों में शिक्षा संस्थाओं का कार्य भी परिवार ही करते थे तथा आज भी अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने में परिवार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। परिवार के विस्तृत सहयोग से ही विद्यालय की शिक्षा सुचारु रूप से चल पाती है।

प्रश्न 8.
परिवार के मुख्य मनोरंजनात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मनोरंजनात्मक कार्य –
मनुष्य के जीवन में मनोरंजन का भी अपना महत्त्व है। दिन भर परिश्रम करने के पश्चात् मनुष्य के लिए मनोरंजन करना आवश्यक हो जाता है। मनोरंजन से शरीर की थकावट दूर होती है तथा शरीर में स्फूर्ति आती है। परिवार मनोरंजन का प्रमुख केन्द्र है। थका हुआ व्यक्ति घर में अपने बाल-बच्चों के बीच बैठकर आनन्द और स्फूर्ति का अनुभव करता है। छोटे बालक अपने बाबा तथा दादी से कहानियाँ तथा मनोरंजक चुटकुले सुनकर अपना मनोरंजन करते हैं। परिवार में मनाए जाने वाले उत्सव भी मनोरंजन के उद्देश्य को पूरा करते हैं।

प्रश्न 9.
परिवार के मुख्य मनोवैज्ञानिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मनोवैज्ञानिक कार्य –
परिवार द्वारा किए जाने वाले मुख्य मनोवैज्ञानिक कार्य निम्नलिखित हैं –

  • परिवार बालकों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • परिवार बालकों का संवेगात्मक विकास उचित दिशा में करता है।
  • परिवार में अनेक मूलप्रवृत्तियों की सन्तुष्टि होती है। काम, वात्सल्य, सहानुभूति तथा प्रेम इसके उदाहरण हैं।
  • अनेक मानसिक प्रक्रियाएँ; जैसे जिज्ञासा, निरीक्षण, प्रत्यक्षीकरण, तर्क तथा विचार आदि का विकास परिवार में ही होता है।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि बालक के समाजीकरण में परिवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
अथवा
“परिवार समाजीकरण की प्रथम संस्था है।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तरः
परिवार द्वारा बालक का समाजीकरण –
परिवार का एक प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण कार्य बालक का समाजीकरण करना है। परिवार के वातावरण के द्वारा ही बालक की तमाम प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तरीकरण होता है, जिससे वह एक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता है। परिवार ही बालक को सामाजिकता का प्रथम पाठ पढ़ाता है। अन्य लोगों से व्यवहार करना, उठने-बैठने तथा बातचीत करने का शिष्टाचार आदि बालक परिवार से ही सीखता है। परिवार समाजीकरण की सभी अवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार में ही रहकर बालक भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करता है, सामाजिक सद्गुणों को अपनाता है तथा नियन्त्रित जीवन व्यतीत करना सीखता है। इन सभी कारणों से परिवार को समाजीकरण की प्रथम संस्था माना जाता है।

प्रश्न 11.
टिप्पणी लिखिए-सामाजिक-नियन्त्रण में परिवार की भूमिका।
उत्तरः
सामाजिक नियन्त्रण के अनेक अभिकरण हैं; यथा-  प्रथा, कानून, जनमत, प्रचार, नेतृत्व, शिक्षा संस्थाएँ तथा रीति-रिवाज आदि। परन्तु इन सब में परिवार का विशिष्ट स्थान है। यथार्थ में परिवार ही एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को इन सबको मानने के लिए बाध्य करती है। व्यक्ति को भले-बुरे का ज्ञान कराने में परिवार विशेष सहायक होता है। यह केवल अपने तक ही व्यक्ति को नियन्त्रित नहीं करता वरन् बाह्य जीवन में भी व्यक्ति पर नियन्त्रण रखता है। अन्य शब्दों में, पारिवारिक नियन्त्रण व्यक्ति को समाज तथा समूह में नियन्त्रण सहने की आदत डाल देता है। परिवार की प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा की रक्षा के लिए उसका सदस्य कोई भी अनुचित कार्य नहीं करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक-नियन्त्रण में परिवार द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवार की मैकाइवर एवं पेज द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।
उत्तरः
“परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों को पैदा करने तथा लालन-पालन की व्यवस्था करता है।’ (-मैकाइवर एवं पेज )

प्रश्न 2.
एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार की प्रमुख विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार मानव-समाज की प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।

प्रश्न 3.
परिवार की चार मुख्य विशेषताओं (लक्षण) का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः

  1. यह प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।
  2. यह मानव जगत की सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है।
  3. यह विवाह पर आधारित संस्था है।
  4. इस संस्था की सदस्य-संख्या सीमित होती है।

प्रश्न 4.
परिवार की उत्पत्ति सम्बन्धी एक मुख्य सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार की उत्पत्ति सम्बन्धी एक मुख्य सिद्धान्त है-विकासवादी सिद्धान्त।

प्रश्न 5.
परिवार में पुरुष को मुखिया क्यों माना जाता है?
उत्तरः
पितृसत्तात्मक समाजों में परिवार के पुरुषों को अधिक अधिकार, कर्त्तव्य तथा सत्ता प्राप्त होती है। इस स्थिति में पारम्परिक रूप में वयोवृद्ध पुरुष को ही परिवार का मुखिया मान लिया जाता है।

प्रश्न 6.
बालक की प्रथम पाठशाला किसे माना जाता है?
उत्तरः
परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला माना जाता है।

प्रश्न 7.
बालक के समाजीकरण में सर्वाधिक योगदान किसका होता है?
उत्तरः
बालक के समाजीकरण में सर्वाधिक योगदान परिवार का होता है।

प्रश्न 8.
बच्चे की प्रथम समाजीकरण संस्था क्या है?
उत्तरः
बच्चे की प्रथम समाजीकरण संस्था ‘परिवार’ है।

प्रश्न 9.
पारिवारिक मूल्यों से आप क्या समझती हैं?
उत्तरः
परिवार द्वारा जिन बातों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है तथा अर्जित करने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है, उन्हें पारिवारिक मूल्य कहा जाता है।।

प्रश्न 10.
समाज की इकाई क्या है?
उत्तरः
समाज की इकाई परिवार है।

प्रश्न 11.
बच्चों में अच्छे गुणों का निर्माण कहाँ से प्रारम्भ होता है?
उत्तरः
बच्चों में अच्छे गुणों का निर्माण परिवार से प्रारम्भ होता है।

प्रश्न 12.
भावात्मक सुरक्षा सुखी परिवार के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
यदि परिवार से समुचित भावात्मक सुरक्षा हो तो परिवार के सभी सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास सामान्य तथा सन्तुलित रूप से होता है। इस स्थिति में सभी सदस्य जीवन के सभी पक्षों में उत्साहपूर्वक कार्य एवं प्रगति करते हैं तथा परिवार की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. परिवार का गठन होता है –
(क) सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर
(ख) वित्तीय हितों के आधार पर
(ग) विवाह नामक संस्था के आधार पर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरः
(ग) विवाह नामक संस्था के आधार पर।

2. परिवार के लक्षण हैं –
(क) सदस्यों का रक्त सम्बन्ध से जुड़े होना
(ख) सदस्यों का एक ही गाँव का होना
(ग) सदस्यों का आपस में मित्र होना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(क) सदस्यों का रक्त सम्बन्ध से जुड़े होना।

3. समाज की इकाई है –
(क) स्कूल
(ख) परिवार
(ग) समुदाय
(घ) घर।
उत्तरः
(ख) परिवार।

4. परिवार के मुख्य शारीरिक कार्य हैं
(क) काम-इच्छा की पूर्ति एवं सन्तानोत्पत्ति
(ख) बच्चों का पालन-पोषण
(ग) जीवन की सुरक्षा तथा भोजन की व्यवस्था
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी।

5. परिवार द्वारा किए जाने वाले आर्थिक कार्य हैं –
(क) व्यावसायिक प्रशिक्षण
(ख) उत्पादन की प्रेरणा
(ग) उत्तराधिकार का निश्चय
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी।

6. पारिवारिक उद्देश्यों की उपलब्धि का पूर्ण उत्तरदायित्व होता है –
(क) केवल गृहिणी का
(ख) केवल घर के मुखिया का
(ग) परिवार के सभी सदस्यों का
(घ) इन सभी का।
उत्तरः
(ग) परिवार के सभी सदस्यों का।

7. बालक के समाजीकरण की प्रथम संस्था है
(क) राज्य
(ख) समाज
(ग) परिवार
(घ) समुदाय।
उत्तरः
(ग) परिवार।

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