UP Board Solutions for Practical Home Science प्रयोगात्मक गृह विज्ञान सम्बन्धी मौखिक प्रश्नोत्तर

UP Board Solutions for Practical  Home Science प्रयोगात्मक गृह विज्ञान सम्बन्धी मौखिक प्रश्नोत्तर (Viva Voce Regarding Practical Home Science)

UP Board Solutions for Practical Home Science प्रयोगात्मक गृह विज्ञान सम्बन्धी मौखिक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गृहिणी को पाक-कला का ज्ञान होना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
गृहिणी के ज्ञान व कार्य कुशलता का प्रभाव परिवार के सदस्यों पर पड़ता है। प्रत्येक खाद्य पदार्थ में मनुष्य के शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले तत्त्व उपस्थित रहते हैं परन्तु यह गृहिणी के ही ज्ञान पर निर्भर करता है कि वह उनका अधिक-से-अधिक लाभ, परिवार के सदस्यों को पहुँचा सके। यह उसके खाद्य पदार्थों के चुनाव व भोजन पकाने के ऊपर निर्भर करता है। उसको यह देखना चाहिए कि परिवार के किस सदस्य को किस प्रकार का भोजन देना है जिससे प्रत्येक व्यक्ति को उसकी शारीरिक आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार पोषक तत्त्व मिल सकेंगे और कोई तत्त्व पकाने पर व्यर्थ नहीं जा सकेगा। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि गृहिणी को पाक-कला का ज्ञान होना अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
भोजन पकाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तरः
1. उबालना (Boiling) – चावल व पत्ते वाली हरी तरकारियों को उबालकर पकाया जाता है। इन खाद्य सामग्रियों को पानी में उबालकर उनका पानी फेंक देने से उनके पोषक तत्त्व निकल जाते हैं। ऐसे पदार्थों में पानी की मात्रा कम रखनी चाहिए। आलू, अरवी, रतालू को छिलके सहित साबुत उबालना चाहिए।
2. भाप से पकाना (Steaming) – यह विधि सर्वोत्तम है। भाप से पकाया गया भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक, सुपाच्य व स्वादिष्ट होता है।
3. तलना (Frying) – कुछ खाद्य पदार्थों को तलकर बनाया जाता है। तलना दो प्रकार का होता है –

  • उथली चिकनाई – थोड़ी-सी चिकनाई को कड़ाही, तवे या फ्राइपैन में डालकर पदार्थों को बनाया जाता है, जैसे-आलू की टिकिया, डोसे, पराँठे, ऑमलेट, चीले आदि।
  • गहरी चिकनाई – कढ़ाई में अधिक चिकनाई डालकर पदार्थों को पकाया या तला जाता है, जैसे-पूड़ी, कचौड़ी, समोसे, मठरी, पकौड़ी, पापड़, जिमीकन्द, पनीर आदि।

4. भूनना तथा सेंकना (Roasting and Baking) – कुछ खाद्य पदार्थों को गर्म बालू के माध्यम से भूनकर पकाया जाता है; जैसे – आलू, बैंगन, शकरकन्दी, चना, मक्का, मुरमुरे, मटर, ज्वार, खीलें, मूंगफली आदि। कुछ अन्य पदार्थों को गर्म वायु के ताप पर सेंका जाता है; जैसे – तन्दूर की रोटी, कोयले पर डालकर सेंका गया फुलका, नानखताई, कबाब, बिस्कुट, डबलरोटी आदि। इस विधि द्वारा पदार्थों को बनाने से पोषक तत्त्व कम नष्ट होते हैं तथा भोजन स्वादिष्ट और सुपाच्य होता है।

प्रश्न 3.
भोजन पकाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तरः

  • भोजन बनाने का स्थान मक्खीरहित तथा हर प्रकार से स्वच्छ होना चाहिए।
  • गृहिणी के वस्त्र साफ होने चाहिए। केश बँधे हुए रहने चाहिए।
  • बर्तन व जल साफ होना चाहिए।
  • सब्जियाँ ताजी व दागरहित होनी चाहिए।
  • सब्जियों को काटने से पहले साफ जल से धोना चाहिए, काटने के बाद धोने से खनिज लवण व विटामिन का कुछ अंश पानी के साथ निकल जाता है।
  • सब्जियों को पकाते या उबालते समय उनमें उतना ही पानी डालिए जितना कि सब्जी के लिए पर्याप्त हो। उबली या पकी हुई सब्जी में पानी अधिक होने पर उसका पानी निकाल देने से उसके विटामिन ‘C’ व ‘B’ और खनिज लवण पानी के साथ घुलकर निकल जाते हैं।
  • दाल के अनुमान से उसमें उतना ही पानी प्रारम्भ में रखना चाहिए जितने में वह पककर तैयार हो जाए। बीच-बीच में पानी डाल देने से दाल स्वादिष्ट नहीं बनती है तथा देर से गलती है।
  • प्रेशर कुकर में पतीली की अपेक्षा पानी की मात्रा कम रखिए।
  • चावलों को पकाने के लिए उतना ही पानी डालिए जितना कि उसमें चावल गलकर पक जाए। चावलों का माँड निकाल देने से विटामिन ‘B’ व स्टार्च का अंश निकल जाता है।
  • सब्जियों व दालों को पकाते समय बेकिंग पाउडर (खाने वाला सोडा) नहीं डालना चाहिए। इससे विटामिन ‘B’ नष्ट हो जाता है।
  • अधिक मसाले व घी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनकी अधिकता भोजन को गरिष्ठ बनाती है तथा पाचन-संस्थान में जलन हो सकती है।
  • सूखी सब्जियों को बनाते समय आग धीमी होनी चाहिए।
  • दाल, चावल, सब्जी, सूप आदि को ढककर पकाना व उबालना चाहिए।
  • आटे को छानकर भूसी नहीं निकालनी चाहिए।
  • घर में सदस्यों की संख्या व आवश्यक मात्रा के अनुसार भोजन पकाना चाहिए। अधिक बना लेने से भोजन व्यर्थ जाता है या बासी भोजन खाना पड़ता है। इससे फिजूलखर्च होता है या स्वास्थ्य की हानि होती है। अत: अनुमान से उचित मात्रा में भोजन बनाना चाहिए।

प्रश्न 4.
भोजन पकाने से क्या लाभ हैं?
उत्तरः

  • भोजन सुपाच्य हो जाता है; जैसे-चावल, दाल आदि मुलायम हो जाते हैं जो सरलता से पच जाते हैं। स्टार्च वाले पदार्थों के कण फूलकर मुलायम हो जाते हैं; जैसे-आलू, अरवी, चावल आदि चबाने योग्य हो जाते हैं तथा सरलतापूर्वक पचाए जा सकते हैं। .
  • भोजन स्वादिष्ट बन जाता है। कुछ ही सब्जियों जैसे-मूली, गाजर, टमाटर आदि का प्रयोग कच्चे रूप में किया जा सकता है; शेष सभी को पकाकर बनाने से वे स्वादिष्ट बन जाती हैं। इसी प्रकार दाल, चावल, रोटी सभी खाद्य पदार्थ पकाकर बनाए जाने से स्वादिष्ट होते हैं।
  • भोजन देखने में आकर्षक लगता है। तैयार किया हुआ भोजन देखने में सुन्दर व सुगन्ध युक्त होता है। इससे भूख उद्दीप्त होती है तथा भोजन भी ठीक प्रकार से पचता है।
  • भोजन सुरक्षित रहता है, जैसे खोया, दूध, मांस, मुरब्बा, जैम आदि को अच्छी तरह से पका लिया जाए तो ये शीघ्र खराब नहीं होते हैं।
  • खाद्य पदार्थों को ताप मिलने से उनमें विद्यमान कीटाणु नष्ट हो जाते हैं जिससे रोग होने की आशंका नहीं रहती है। दूध को कभी भी कच्चा नहीं पीना चाहिए।

प्रश्न 5.
आधुनिक युग में रसोई के श्रम व समय के बचाव के लिए कौन-कौन से यन्त्र हैं?
उत्तरः
गैस, प्रेशर कुकर, ग्राइण्डर, मिक्सी, टोस्टर, हीटर, बिजली की केतली, स्टोव, विभिन्न प्रकार के कटर; जैसे-प्याज, सलाद, तरकारी काटने हेतु एवं पूरी व फुलका बेलने की मशीन, रेफ्रिजरेटर आदि।

प्रश्न 6.
प्रेशर कुकर से तरकारी व दाल बनाने से क्या लाभ हैं?
उत्तरः

  • तरकारी या दाल शीघ्र तैयार हो जाती है जिससे समय व ईंधन की बचत होती है।
  • इनके पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं।
  • ये स्वादिष्ट बनती हैं।

प्रश्न 7.
प्रेशर कुकर के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तरः

  • तरकारी व सब्जी में पानी की आवश्यक मात्रा रखनी चाहिए। पानी कम होने से वस्तु जल जाएगी।
  • बन्द करते समय ढक्कन के ऐरो के निशान को प्रेशर कुकर पर बने ऐरो के निशान से मिलाकर ढक्कन को अन्दर कीजिए और बन्द कर दीजिए।
  • पदार्थ के बन जाने पर नीचे उतारकर रख दीजिए, जब वह पूर्ण रूप से ठण्डा हो जाए अर्थात् भाप का दबाव न रहे तब उसको खोलिए।
  • यदि शीघ्रता में कोई काम करना है तो किसी चमचे आदि से उसका ‘वेट’ उठाकर उसकी भाप धीरे-धीरे निकाल दीजिए। गर्म खोलने का प्रयत्न करने से दुर्घटना की आशंका रहती है।
  • ढक्कन बाहर निकालने के लिए प्रेशर कुकर पर बने ‘→’ से ‘,’ चिह्नों को मिलाकर तब निकालना चाहिए।
  • कार्य समाप्त होने पर रबड़ निकालकर साफ कर लेनी चाहिए।
  • प्रेशर कुकर को विम से साफ करना चाहिए।

प्रश्न 8.
शाकाहारी व मांसाहारी भोजन में क्या अन्तर है?
उत्तरः
जो खाद्य पदार्थ वनस्पति जगत अर्थात् पेड़, पौधों आदि से प्राप्त होते हैं वे शाकाहारी आहार की श्रेणी में आते हैं और जो खाद्य पदार्थ जीव-जन्तुओं के शरीर से प्राप्त किए जाते हैं वे मांसाहारी आहार की श्रेणी में आते हैं। सामान्य रूप से मांस, मछली तथा अण्डा मांसाहार हैं। दूध भले ही पशु जगत से प्राप्त होता है, परन्तु इसे व्यवहार में मांसाहार नहीं माना जाता है।

प्रश्न 9.
भोजन के पोषक तत्त्व हमको किस प्रकार के भोजन से अधिक मिलते हैं?
उत्तरः

  • ताजे फल व तरकारियों से।
  • बासी भोजन की अपेक्षा ताजे भोजन से।
  • सावधानीपूर्वक बनाए गए भोजन से।
  • प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा वसा से हमें अधिक कैलोरी मिलती है।

प्रश्न 10.
सब्जियों को किन-किन रूपों में बना सकती हैं?
उत्तरः

  • सूखी
  • शोरबेदार
  • तली व कुरकुरी चिप्स
  • उबालकर, कुचली हुई
  • भुरता आदि।

प्रश्न 11.
कार्बोहाइड्रेट्स (स्टार्च और शक्कर) किन-किन सब्जियों से प्राप्त हो सकता है?
उत्तरः
जड़ों और गाँठ वाली सब्जियों में स्टार्च रहता है। आलू, शकरकन्द, अरवी, गाजर, चुकन्दर, मटर, सेम के बीज, रतालू, काशीफल आदि में कार्बोज विद्यमान रहता है।

प्रश्न 12.
शरीर में विटामिन्स की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए कौन-कौन सी सब्जियों का सेवन करना चाहिए?
उत्तरः
पीले रंग की सब्जियों जैसे गाजर में कैरोटीन तत्त्व से विटामिन ‘A’ बनता है। अंकुरित मटर से विटामिन ‘B’ की प्राप्ति की जा सकती है। टमाटर, हरी मिर्च, नीबू, पत्ते वाली गोभी आदि में विटामिन ‘C’ तथा ऐस्कॉर्बिक एसिड की पर्याप्त मात्रा रहती है। मूंगफली में विटामिन ‘D’ व पत्ते वाली सब्जियों में ‘E’ और अल्फाफा नामक घास से विटामिन ‘K’ तत्त्व की प्राप्ति की जा सकती है।

प्रश्न 13.
हरी सब्जियों में जल का भाग कितना प्रतिशत होता है?
उत्तरः
ताजी सब्जियों में 80% जल का अंश होता है। सूखी सब्जियों जैसे मटर, चने का सूखा हुआ साग आदि में जल की मात्रा कम होती है इसलिए इनको बनाने से पहले पानी में भिगोना आवश्यक होता है।

प्रश्न 14.
मनुष्य के लिए सेलुलोस की क्या आवश्यकता है?
उत्तरः

जो कार्य औषधि के क्षेत्र में विरेचक चूर्ण करता है, वही कार्य भोजन के क्षेत्र में सेलुलोस करता है। यह कब्ज को दूर करता है, मल को शरीर से बाहर निकलने में सहायता करता है। हरे साग, भूसी, पत्ते वाली गोभी आदि से सेलुलोस प्राप्त होता है।

प्रश्न 15.
एक साधारण कार्य करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन कितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है?
उत्तरः
2300 से 3000 तक प्रतिदिन कैलोरी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 16.
एक बोझा ढोने वाले व्यक्ति को कितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है?
उत्तरः
3500 से 4000 कैलोरी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 17.
एक गर्भवती स्त्री की प्रतिदिन कैलोरी की माँग क्या है?
उत्तरः
3600 से 4000 तक प्रतिदिन कैलोरी की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 18.
एक मानसिक कार्य करने वाले व्यक्ति के भोजन में कौन-कौन से तत्त्व होने चाहिए?
उत्तरः
मानसिक कार्य करने वाले व्यक्ति को मुख्य रूप से प्रोटीन, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन्सयुक्त भोजन की आवश्यकता होती है। इसीलिए उसे दूध, मक्खन, अण्डा, फल, दालें आदि भोज्य पदार्थ देने चाहिए।

प्रश्न 19.
ऊर्जा उत्पादक पदार्थ कौन-कौन से होते हैं?
उत्तरः

  • कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च तथा शर्करा)-गेहूँ, मक्का, चना, बाजरा, जौ, आलू, अरवी, कच्चा केला, शकरकन्द आदि।
  • शर्करा-चीनी, खाँड, गुड़, गन्ना, शहद, विभिन्न मिठाइयाँ, जैम तथा मुरब्बा, अंगूर, अंजीर आदि।
  • वसा-सूखे मेवे, मछली का तेल, मूंगफली, मक्खन, घी, गोला, तेल आदि।

प्रश्न 20.
शरीर निर्माणक पदार्थों के नाम बताइए।
उत्तरः

  • प्रोटीन-समस्त प्रकार की दालें, अण्डा, मांस, सोयाबीन, दूध, दही, पनीर, मक्खन आदि।
  • खनिज लवण-कैल्सियम, फॉस्फोरस, लोहा, दूध, केला, अंजीर, पनीर, आइसक्रीम, हरी सब्जियाँ, पालक, दालें, सूखे मेवे आदि।

प्रश्न 21.
गाँठ वाली सब्जी कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर
अरवी, आलू, जिमीकन्द, शकरकन्द, मूंगफली आदि।

प्रश्न 22
पर्त वाली सब्जियों के नाम बताइए।
उत्तरः
लहसुन, प्याज आदि।

प्रश्न 23.
जड़ों वाली कौन-कौन सी सब्जियाँ होती हैं?
उत्तरः
शकरकन्दी, शलजम, मूली, चुकन्दर, गाजर आदि।

प्रश्न 24.
फल वाली कौन-कौन सी सब्जियाँ होती हैं?
उत्तरः
बैंगन, लौकी, तोरई, भिण्डी, परमल, टमाटर, मिर्च, कच्चा केला, खीरा, नीबू आदि।

प्रश्न 25.
अचार को किस प्रकार सुरक्षित रखा जा सकता है?
उत्तरः
अचार का मसाला तैयार कर लेने के पश्चात् उसमें थोड़ा सोडियम बेंजोएट डाल देने से या अधिक समय तक धूप में रखा रहने से अचार सुरक्षित रहता है। नमक व तेल की मात्रा ठीक होने से अचार खराब नहीं होता है। थोड़ा सिरके (एसिटिक एसिड) की मात्रा डालने से भी ठीक रहता है।

प्रश्न 26.
अचार को धूप में क्यों रखा जाता है?
उत्तरः
जो बैक्टीरिया व फफूंदी अचार को खराब करते हैं वे धूप की गर्मी से नष्ट हो जाते हैं जिससे पदार्थ सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 27.
अचार के प्रति क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तरः

  • सीलन से बचाना चाहिए।
  • अन्न के हाथ अचार के मर्तबान में नहीं डालने चाहिए।
  • ढक्कन बन्द रखना चाहिए।
  • कभी-कभी धूप में रख देना चाहिए।

प्रश्न 28.
मर्तबान का निःसंक्रमण करना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
पदार्थों को खराब करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करना आवश्यक है।

प्रश्न 29.
कौन-कौन से हानिकारक पदार्थ हैं जो अचार,मुरब्बावस्क्वेशकोखराबकरते हैं?
उत्तरः
पदार्थों को सड़ाने वाले बैक्टीरिया और फफूंदी हैं।

प्रश्न 30.
अचार के लिए कैसे नीब लेंगी?
उत्तरः
दागरहित पीले रंग वाले, दबाने पर कुछ नर्म व बड़े होने चाहिए।

प्रश्न 31.
अचार बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तरः

  • नमक व तेल की मात्रा कम नहीं होनी चाहिए।
  • फल का चुनाव सही होना चाहिए।
  • बर्तन का नि:संक्रमण अवश्य कर लेना चाहिए।
  • मसाले घर पर तैयार किए हुए होने चाहिए।
  • फल व बर्तन में नमी नहीं होनी चाहिए।
  • अन्न के हाथ मसाले व फल में नहीं लगने चाहिए।
  • मसाले सही अनुपात में डालने चाहिए।
  • मीठा अचार बनाने के लिए चीनी की मात्रा 40% से कम नहीं होनी चाहिए।
  • तेल बढ़िया किस्म का होना चाहिए।

प्रश्न 32.
Eye test किसे कहते हैं?
उत्तरः
जैली में बड़े-बड़े बबूले पड़ने लगें तथा उनका रंग सफेद दिखाई दे तो समझिए कि जैली तैयार हो गई है। इसे ही Eye test कहते हैं।

प्रश्न 33.
Sheet test किस प्रकार तैयार करते हैं?
उत्तरः
कलछी में जैली लेकर उसकी डण्डी की ओर लाइए और उसको थोड़ी देर हवा में रखकर देखना चाहिए कि वह जमकर एक पतली चादर के रूप में बन जाएगी। यदि बूंद-बूंद करके गिरे और जरा भी जमे नहीं तो समझना चाहिए कि जैली अभी तैयार नहीं हुई है। इसे ही Sheet test कहते हैं।

प्रश्न 34.
अच्छी जैली की क्या पहचान है?
उत्तरः

  • जैली का रंग सुर्ख लाल-भूरा सा होना चाहिए।
  • जैली पारदर्शक होनी चाहिए।
  • जिस पात्र में जमा दी जाए उसी का आकार ग्रहण करे।
  • फल की मौलिक सुगन्ध होनी चाहिए।
  • छूने पर उँगली पर नहीं चिपकनी चाहिए।
  • चाकू से काटने पर चाकू में चिपके नहीं व उसके किनारे साफ करें।
  • बोतल को उलटने पर जैली गिरे नहीं।

प्रश्न 35.
जैली को कब बर्तन में भरना चाहिए?
उत्तरः
जैली के तैयार हो जाने के पश्चात् गर्म-गर्म बोतल में भरते हैं। बोतल में डालते समय उसे किसी लकड़ी के टुकड़े या कपड़े की गद्दी पर रख लेना चाहिए। ऐसा न करने पर बोतल टूट जाएगी।

प्रश्न 36.
गर्म पदार्थ भरने पर बोतल क्यों टूट जाती है?
उत्तरः
गर्म पदार्थ भरने पर अन्दर का तापक्रम अधिक होगा और बाहर का कम व नीचे ठण्डक होने के कारण उसमें असमान प्रसार होने के कारण वह चटक जाती है।

प्रश्न 37.
खोया व छेने में क्या अन्तर है?
उत्तरः
खोया दूध को गाढ़ा करके तथा दूध के जलांश को लगभग समाप्त करके बनाया जाता है और छेना दूध को फाड़कर दूध का प्रोटीन अलग करके बनाया जाता है।

प्रश्न 38.
लौकी व गाजर कसने के पश्चात् जो पानी निकलता है उसका आप क्या करेंगी?
उत्तरः
सब्जी में डाल लेंगे या आटा गूंधने में पानी के स्थान पर प्रयोग करेंगे।

प्रश्न 39.
खीर स्वास्थ्य के लिए कैसी रहती है?
उत्तरः
खीर स्वास्थ्यवर्द्धक तथा स्वादिष्ट व्यंजन है। यह sweet dish के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है। जिन बच्चों को दूध से अरुचि हो जाती है उनके लिए दूध की मात्रा शरीर में पहुँचाने का अच्छा साधन है।

प्रश्न 40.
मशीन में कोई खराबी हो जाएगी तो आप किस प्रकार दूर करेंगी?
उत्तरः
सर्वप्रथम हम देखेंगे कि मशीन के पुर्जे में किस प्रकार की खराबी है। साधारण घुमाव-फिराव देकर ठीक करने का स्वयं प्रयास करेंगे। जहाँ तक सम्भव हो सकेगा उसे दूर करने की भरसक चेष्टा करेंगे।

प्रश्न 41.
सुई में यदि धागा ठीक नहीं डाला जाएगा तो क्या होगा?
उत्तरः
थोड़ी-सी मशीन चलाने पर ही उसका धागा बार-बार टूटता रहेगा।

प्रश्न 42.
बॉबिन में धागा डालते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तरः

  • बॉबिन अधिक ऊपर तक नहीं भरना चाहिए।
  • धागे के तनाव को ठीक रखने के लिए धागे को बॉबिन बाइण्डर टेंशन ऐंगिल के बीच से होकर निकालना चाहिए।

प्रश्न 43.
बॉबिन केस में लगे पेंच का क्या काम है?
उत्तरः
यह बॉबिन में भरे हुए धागे के तनाव को ठीक रखता है। जब नीचे की बखिया कसी या ढीली आती है तब इस पेंच को कसा व ढीला किया जाता है।

प्रश्न 44.
बॉबिन ठीक न लगने की क्या पहचान है?
उत्तरः

  • मशीन चलाने पर वह अपने स्थान से हटकर नीचे गिर जाता है।
  • ऊपर धागा नहीं आता है।

प्रश्न 45.
पतले वस्त्र सिलने के लिए कितने नम्बर का धागा व सुई का प्रयोग किया जाता है?
उत्तरः
100 से 150 नम्बर का सूती धागा और 9 नम्बर की सुई का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 46.
सिल्क, लिलन, जार्जट आदि सिलने के लिए कितने नम्बर का धागा व सुई प्रयुक्त की जाती है?
उत्तरः
24 से 30 नम्बर का रेशमी धागा और 80 से 100 नम्बर का सूती धागा तथा 12, 13, 14 नम्बर की सुई प्रयोग में लानी चाहिए।

प्रश्न 47.
साधारण सूती वस्त्र सिलने के लिए कितने नम्बर का धागा व सुई की आवश्यकता है?
उत्तरः
60 से 80 नम्बर का सूती धागा तथा 14 नम्बर की सुई की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 48.
मशीन की बखिया या सिलाई खराब आ रही है तो आप क्या करेंगी?
उत्तरः
सर्वप्रथम ध्यान से देखेंगे कि किधर के धागे पर तनाव अधिक है। यदि ऊपर की ओर तनाव अधिक है तो थ्रेड टेंशन डिवाइडर को ढीला करेंगे। यदि नीचे की ओर वाले धागे का तनाव अधिक है तो बॉबिन केस में एक बारीक पेंच होता है उसे ढीला कर देंगे। फिर एक रफ कपड़े पर बखिया की परीक्षा करेंगे।

प्रश्न 49.
किन कारणों से मशीन की सुई टूट जाया करती है?
उत्तरः

  • यदि सुई कपड़े के अनुकूल नहीं है।
  • नीडिल बार स्क्रू ठीक से कसा न होने पर सुई निकलकर टूट जाती है।
  • कपड़ा निकालते समय नीडिल बार ऊँचा न किया गया हो।
  • नीचे का पुर्जा खोलकर सफाई आदि करने के पश्चात् यदि वह दोबारा ठीक से नहीं लगता है तब भी सुई टूटने का कारण बन जाता है।

प्रश्न 50.
ऊपर का धागा किस कारण से टूटता है?
उत्तरः

  • यदि ऊपर का धागा ठीक से न डाला गया हो।
  • स्पूल पिन में अटक जाने पर धागा टूट जाता है।
  • शटल केस में कपड़े के रेशे इकट्ठे हो जाने पर।
  • सुई टेढ़ी होने पर।
  • रफ क्वालिटी का धागा प्रयोग करने पर।
  • सुई ठीक से फिट न होने पर।
  • ऊपर के धागे का तनाव अधिक होने पर।

प्रश्न 51.
यदि सिलाई करते समय कपड़ा इकट्ठा हो रहा हो तो किस प्रकार ठीक करेंगी?
उत्तरः

  • कपड़े के समान महीन बखिया करेंगे।
  • धागे के तनाव को ठीक करने के लिए थ्रेड टेंशन डिवाइडर में लगे स्क्रू को ढीला कर देंगे।
  • शटल केस में मैल या कपड़े के धागे जमा होने पर निकालकर सफाई कर देंगे।
  • फीड डाग (feed dog) की अच्छी तरह से सफाई कर देंगे।

प्रश्न 52.
सिलाई करते समय धागे का गुच्छा क्यों बनता है?
उत्तरः

  • धागे का तनाव ढीला होने से।
  • ऊपर का धागा ठीक से न डाला गया हो।
  • बॉबिन केस का पेंच ढीला हो गया हो।
  • बॉबिन केस में लगी हुई पत्ती अपने स्थान से अधिक ऊँचाई पर उठ जाने पर।

प्रश्न 53.
मशीन भारी कब चलती है?
उत्तरः

  • तेल न डालने पर।
  • फीड डाग में कपड़े या धागे के रेशे अटक जाने पर।
  • बॉबिन केस में धागा अटक जाने पर।
  • बॉबिन वाइण्डर के फ्लाई व्हील से लग जाने पर।
  • सफाई न करने पर।

प्रश्न 54.
मशीन का प्रयोग करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तरः
मशीन का प्रयोग करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • मशीन में नियमित रूप से समय-समय पर तेल डालते रहना चाहिए।
  • रबड़ और रिंगों पर तेल नहीं पड़ना चाहिए।
  • मशीन के प्रयोग के अतिरिक्त उसे ढककर रखना चाहिए।
  • सुई को लगाते समय स्क्रू को अच्छी तरह से कस देना चाहिए।
  • बॉबिन को अधिक ऊपर तक मत भरिए।
  • ऊपर और नीचे वाले धागे को ठीक प्रकार से डालना चाहिए।
  • सिलाई प्रारम्भ करने से पहले किसी कपड़े पर जाँच कर लीजिए।
  • बहुत मोटे कपड़े को महीन सुई से मत सिलिए वरना सुई टूट जाएगी।
  • सिलाई करते समय कपड़े को मत खींचिए।
  • मशीन के पहिये को उल्टी तरफ मत चलाइए।
  • सिलाई करने के पश्चात् प्रेशर फुट को ऊँचा करके रखिए।
  • कपड़े को बाएँ हाथ की तरफ रखिए।

प्रश्न 55.
मशीन में तेल डालने से क्या लाभ हैं?
उत्तरः
मशीन में तेल डालने से निम्नलिखित लाभ हैं –

  • मशीन हल्की चलती है।
  • पुर्जे कम घिसते हैं।

UP Board Solutions for Class 11 Home Science

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 9 व्यक्तिगत स्वास्थ्य : शारीरिक स्वच्छता

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 9 व्यक्तिगत स्वास्थ्य : शारीरिक स्वच्छता (Individual Health: Cleanliness of Body)

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UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से क्या तात्पर्य है? इसकी देख-रेख तथा रक्षा के क्या उपाय किए जाने चाहिए?
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए शारीरिक स्वच्छता क्यों आवश्यक है? सविस्तार लिखिए।
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आप किन-किन नियमों का पालन करेंगी?
अथवा
व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति किस प्रकार से सजग रहना चाहिए?
अथवा
व्यक्तिगत स्वच्छता क्या है?
अथवा
टिप्पणी लिखिए-व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
अथवा
दैनिक जीवन में व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य : व्यक्तिगत स्वास्थ्य (Health : Individual Health) –
‘स्वास्थ्य’ को सामान्यत: रोग से मुक्त अवस्था समझा जाता है। वास्तव में, रोगमुक्त शरीर का हृष्ट-पुष्ट तथा बलशाली भी होना आवश्यक है। यह जीवन का एक विशेष गुण है जिसके अनुसार व्यक्ति सर्वोत्तम जीवन व्यतीत करता है तथा सर्वाधिक क्रिया करने के लिए समर्थ रहता है। अत: शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट व क्रियाओं की सर्वोत्तम दशा तथा उनके कार्यों के करने की शक्ति का समुचित सन्तुलन ही स्वास्थ्य है।

इसके अतिरिक्त, व्यक्ति का मानसिक एवं संवेगात्मक सन्तुलन भी उसके स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कारक होता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से असन्तुलित या असामान्य हो तो उस व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं माना जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “शरीर की रोगों से मुक्त दशा स्वास्थ्य नहीं है, व्यक्ति के स्वास्थ्य में तो उसका सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक कल्याण निहित है।” प्रस्तुत कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य अपने आप में एक बहुपक्षीय अवधारणा है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक पक्षों से है। उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ माना जाएगा जो क्रमशः शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक रूप से पूर्ण स्वस्थ हो।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य : देख-रेख तथा रक्षा (Individual Health : Care and Protection)
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य रक्षा के नियम (Rules of Individual Hygiene) –
व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना होगा –

1. नियमबद्धता – अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि दैनिक कार्यों को नियमानुसार किया जाए। उदाहरणार्थ-समय पर शौच आदि से निवृत्त होना, नाश्ता या भोजन समय से करना, व्यायाम नियमानुसार नित्यप्रति करना, समय पर सोना, समय से उठना आदि अनेक कार्य प्रतिदिन समय से करने होते हैं।

2. शारीरिक स्वच्छता – सम्पूर्ण शरीर की नियमित स्वच्छता स्वास्थ्य की दृष्टि से अति आवश्यक है अन्यथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। शारीरिक स्वच्छता के अभाव में विभिन्न संक्रामक रोगों के रोगाणु शरीर के सम्पर्क में आते रहते हैं तथा व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक-स्वच्छता आवश्यक है। शारीरिक स्वच्छता के लिए निम्नलिखित अंगों की स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए –

(क)त्वचा की स्वच्छता – त्वचा की सफाई प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है किन्तु भारतवर्ष जैसे गर्म देश में तो यह और भी अधिक आवश्यक है क्योंकि यहाँ अधिक पसीना आता है। पसीना एक दूषित पदार्थ है और इसमें अनेक पदार्थ; जैसे – उपचर्म की टूटी-फूटी कोशिकाएँ, धूल के कण आदि के अतिरिक्त अनेक जीवाणु भी फंस जाते हैं तथा इन पदार्थों को सड़ाते हैं। इससे दुर्गन्ध आने लगती है तथा अनेक प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

त्वचा की सफाई के लिए स्नान करना आवश्यक है। इससे त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं और पसीना निकलता रहता है। त्वचा से गन्दगी हट जाने से बीमारियों की आशंका नहीं रहती है। स्नान करते समय शरीर को साबुन आदि से साफ करना अच्छा रहता है। शरीर को रगड़ना भी आवश्यक है ताकि इसकी मालिश हो सके। इससे शरीर में रक्त का संचार सुचारु बना रहता है।

(ख) मुँह तथा दाँतों की स्वच्छता – मुँह को स्वच्छ करना आवश्यक है क्योंकि भोजन इत्यादि के टुकड़े दाँतों में अथवा अन्य स्थानों पर रुक जाते हैं जो बाद में सड़ने लगते हैं। फलस्वरूप जीवाणु अपना घर बना लेते हैं, जो भोजन के साथ आहार नाल में चले जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकते हैं। वैसे भी मुँह में अम्ल (तेजाब) बन जाने से दाँतों का इनेमल (पॉलिश) खराब हो जाता है।

मुंह एवं दाँतों की स्वच्छता के लिए भोजन या नाश्ते के बाद भली भाँति कुल्ला करना आवश्यक है। प्रातः शौच के बाद दाँतों को अच्छे मंजन, दातून या ब्रुश इत्यादि से साफ करना चाहिए। रात्रि को सोने से पूर्व भी दाँतों तथा मुँह की पूर्ण सफाई आवश्यक है।

(ग) नाखूनों की स्वच्छता – नाखूनों के अन्दर किसी प्रकार की गन्दगी नहीं रहनी चाहिए क्योंकि भोजन के साथ इनमें उपस्थित रोगों के कीटाणु, जीवाणु आदि आहार नाल में पहुँचकर विकार उत्पन्न करेंगे। नाखूनों को काटते रहना चाहिए अथवा ब्रुश इत्यादि से भली-भाँति साफ करना चाहिए।

(घ) बालों की स्वच्छता – बालों को स्वच्छ रखने के लिए इनको धोना आवश्यक है। धूल, मैल, पसीना आदि पदार्थ इससे साफ हो जाते हैं। साबुन, रीठा, बेसन आदि पदार्थों को बाल धोने के लिए प्रयोग में लाने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सिर के बालों को गन्दा रखने से उनमें आदि होने का भय रहता है जिससे सिर में घाव भी हो सकते हैं तथा अन्य रोग भी होने की सम्भावना रहती है।

(ङ) आँखों की स्वच्छता – आँखों की स्वच्छता तथा सुरक्षा के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक है –

  • आँखों को धूल, मिट्टी, गन्दगी आदि से बचाना चाहिए।
  • आँखों को गन्दे वस्त्र आदि से साफ नहीं करना चाहिए।
  • कोई वस्तु या धूल इत्यादि गिर जाने पर आँखों को मलना नहीं चाहिए बल्कि पानी से साफ करना चाहिए।
  • चेहरे को साफ रखना चाहिए और धोते समय स्वच्छ जल के छीटें आँखों में लगाने चाहिए।
  • कम या अत्यधिक तेज रोशनी से आँखों को बचाना चाहिए। अध्ययन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
  • आँखों के किसी भी साधारण रोग के होते ही उचित उपचार करना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करनी चाहिए।

(च) नाक की स्वच्छता – नाक के अन्दर से निकले हुए तरल श्लेष्मक में गन्दगी एकत्रित होती है। प्रतिदिन इसे अच्छी प्रकार साफ कर देना चाहिए। नाक की नियमित सफाई से हमारा श्वसन-तन्त्र स्वच्छ रहता है तथा श्वसन-तन्त्र सम्बन्धी रोगों की प्राय: आशंका नहीं रहती।

(छ) कानों की स्वच्छता-कान की भित्ति के अन्दर एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता रहता है जो बाहरी पदार्थों को अपने अन्दर उलझाकर अन्दर जाने से रोकता है। इसी कारण कान में मैल एकत्रित होता है। इसको सरसों का तेल डालकर रुई की फुरहरी से साफ करना चाहिए।

(ज) वस्त्रों की स्वच्छता-शारीरिक स्वच्छता के लिए जहाँ एक ओर शरीर के विभिन्न अंगों को स्वच्छ रखना अनिवार्य है, वहीं शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। वस्त्र जहाँ एक ओर शरीर की रक्षा एवं ढकने का कार्य करते हैं वहीं दूसरी ओर . गन्दे वस्त्रों से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है। इनमें अनेक प्रकार के रोगों के रोगाणु पल सकते हैं। त्वचा की अनेक बीमारियाँ गन्दे वस्त्र पहनने से होती हैं।

3. उचित पोषण-व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण भी आवश्यक है। उचित पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के आहार के अभाव में व्यक्ति अनेक कुपोषण अथवा अल्प-पोषणजनित रोगों का शिकार हो जाता है तथा उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

4. व्यायाम करना-शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रतिदिन नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम शरीर की मांसपेशियों को आवश्यक क्रियाशीलता देता है। इस प्रकार उसकी कार्य करने की शक्ति बढ़ती है। शरीर पुष्ट, स्फूर्तियुक्त तथा सुन्दर बन जाता है।

5. विश्राम तथा निद्रा-शरीर की थकान को दूर कर फिर से कार्य करने की शक्ति उत्पन्न करने के लिए आराम (विश्राम) आवश्यक है। इससे कार्यकुशलता बढ़ती है। विश्राम का सर्वोत्तम उपाय निद्रा है। निद्रा की अवस्था में मांसपेशियाँ शिथिल हो जाती हैं और उनके अन्दर एकत्र हुए विजातीय तत्त्व शरीर से विसर्जित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप शरीर की मांसपेशियाँ अधिक कुशलता से कार्य करने की क्षमता अर्जित कर लेती हैं।

6. मादक वस्तुओं से बचाव-व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति हर प्रकार के नशों से दूर रहे। वास्तव में, सभी मादक पदार्थों के सेवन का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

7. स्वस्थ मनोरंजन व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन भी आवश्यक है। वास्तव में, मानसिक एवं संवेगात्मक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन आवश्यक माना गया है। मनोरंजन के कुछ उपाय शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी विशेष लाभदायक होते हैं। खेल-कूद एवं व्यायाम इसी प्रकार के साधन हैं।

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य के लिए विश्राम तथा निद्रा का क्या महत्त्व है? विश्राम तथा निद्रा के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
अथवा
निद्रा का स्वास्थ्य से सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
विश्राम तथा निद्रा का महत्त्व (Importance of Rest and Sleep) –
शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करने से शरीर में थकान आ जाती है। वास्तव में, शारीरिक परिश्रम करते समय शरीर में अनेक विषैले पदार्थ एकत्र हो जाते हैं। ये पदार्थ ही हमारी मांसपेशियों की थकाते हैं। इसके अतिरिक्त, कार्य करते समय शरीर के ऊतक अधिक टूटते-फूटते रहते हैं। इस समय इनकी मरम्मत भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाती। अत: शरीर के स्वास्थ्य के लिए इन ऊतकों की मरम्मत तथा विषैले पदार्थों को बाहर निकालना अनिवार्य होता है। इन क्रियाओं के लिए विश्राम आवश्यक होता है।

विश्राम का सबसे उत्तम उपाय नींद है। विश्राम तथा निद्रा के समय शरीर में कार्य करने के परिणामस्वरूप हुई टूट-फूट की क्षतिपूर्ति हो जाती है। इस प्रकार शरीर नई शक्ति अर्जित कर लेता है। पर्याप्त नींद ले लेने से व्यक्ति एकदम तरोताजा एवं स्वस्थ हो जाता है। नींद के समय नाड़ी एवं श्वास की गति कुछ मन्द हो जाती है तथा रक्त चाप घट जाता है; अतः सम्बन्धित अंगों को कुछ आराम मिलता है। जिस व्यक्ति को पर्याप्त नींद नहीं आती उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, व्यक्ति दुर्बल हो जाता है, स्वभाव में चिड़चिड़ाहट आ जाती है तथा चेहरे पर उदासी छा जाती है, कार्य करने की चुस्ती तथा शारीरिक तेज कम हो जाता है। ऐसा व्यक्ति थका-थका रहता है, मस्तिष्क अत्यधिक तनावयुक्त हो जाता है तथा उसमें कार्यों के परिणाम के प्रति निराशा उत्पन्न हो जाती है।

नींद की कमी के उपर्युक्त लक्षणों को दूर करने के लिए, शरीर को रोगों से बचाने तथा स्वस्थ रखने के लिए उचित तथा आवश्यक विश्राम आवश्यक है। इसी प्रकार विश्राम की सर्वश्रेष्ठ विधि शान्त व गहरी नींद लेना है। इस प्रकार स्पष्ट है कि निद्रा का व्यक्ति के स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति को समुचित नींद अवश्य लेनी चाहिए।

विश्राम तथा निद्रा के समय ध्यान देने योग्य बातें (Important points to be kept in Mind at the Time of Rest and Sleep) –
शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बनाए रखने के लिए तथा पर्याप्त गहरी एवं शान्त नींद लेने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए –
1. निद्रा का समय-सामान्यतः रात्रि का समय सोने के लिए उपयुक्त है फिर भी विश्राम हेतु थोड़े समय के लिए दिन में (दोपहर के समय) सोया जा सकता है। शारीरिक श्रम करने वाले को अधिक समय तथा मानसिक कार्य करने वालों को अपेक्षाकृत कम समय की निद्रा चाहिए। सोने का समय तथा काल दोनों ही निश्चित होने चाहिए। कम-से-कम 6-8 घण्टे की निद्रा एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक होती है।

2. विश्राम व निद्रा के लिए वातावरण-नींद तथा विश्राम के लिए वातावरण शान्त, तनावरहित तथा स्वस्थ होना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

(क) शयन कक्ष शान्त स्थान में शोरगुल से दूर होना चाहिए।
(ख) शयन कक्ष के अन्दर का वातावरण भी शान्त होना आवश्यक है।
(ग) शयन कक्ष में शुद्ध वायु के लिए उचित संवातन व्यवस्था होनी चाहिए।
(घ) व्यक्ति का मस्तिष्क तनावरहित होना चाहिए।

3. निद्रा के लिए व्यवस्थाएँ–स्वस्थ व शान्त निद्रा के लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएँ उपयोगी होती हैं –
(क) मच्छरों से बचने का प्रबन्ध किया जाना आवश्यक है। इसके लिए मच्छरदानी का उपयोग लाभदायक है।
(ख) चारपाई, पलंग इत्यादि कसा हुआ होना चाहिए।
(ग) बिस्तर मुलायम होना चाहिए।
(घ) विश्राम के समय वस्त्र ढीले-ढाले पहनने चाहिए।
(ङ) सोने के स्थान में सीलन, दुर्गन्ध आदि नहीं होनी चाहिए।
(च) ताजा या ठण्डे पानी से मुँह, हाथ व पैर धोकर सोना शान्त तथा गहरी निद्रा के लिए सभी प्रकार से उचित है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“स्वास्थ्य मानव जीवन की अमूल्य निधि है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य का सर्वाधिक महत्त्व है। सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत करता है तथा दैनिक जीवन के सभी क्रिया-कलाप सुचारु रूप से सम्पन्न करता है। स्वस्थ व्यक्ति अपनी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार जीविकोपार्जन करता है तथा अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं की भली-भाँति पूर्ति करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है तथा सामाजिक जीवन में समायोजित रहता है। इसके विपरीत दुर्बल स्वास्थ्य वाला व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता तथा अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करता है। अतः कहा जाता है कि ‘स्वास्थ्य मानव जीवन की अमूल्य निधि है।’

प्रश्न 2.
मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। अथवा मुख एवं दाँतों की सफाई और देखभाल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता के महत्त्व –
व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता में मुँह तथा दाँतों की स्वच्छता का अपना महत्त्व है। मुखगुहा में स्थित विभिन्न अंगों में से जीभ और गला सामान्य प्रक्रियाओं से ही साफ हो जाते हैं। साधारण कुल्ले आदि करने से मुँह साफ हो जाता है, किन्तु दाँतों की विशेष स्वच्छता आवश्यक होती है। भोजन को चबाते समय भोज्य-पदार्थों के कण दाँतों के मध्य उपस्थित स्थान में फँस जाते हैं। ये फँसे हुए भोजन के कण सड़कर दुर्गन्ध पैदा करते हैं। यह दुर्गन्ध विभिन्न बैक्टीरिया के कारण उत्पन्न होती है। इससे मुख में ही नहीं, आहार नाल में भी अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं। इन रोगों के होने से दाँत कमजोर हो सकते हैं, मसूड़े खराब हो सकते हैं, यहाँ तक कि पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है। दाँतों की सफाई के अभाव में पायरिया नामक रोग होने की आशंका रहती है। वैसे भी यदि दाँत कमजोर हैं, तो भोजन को ठीक प्रकार से नहीं चबाया जा सकता है, फलस्वरूप पाचन क्रिया में विघ्न पैदा होता है। अत: दाँतों का स्वच्छ होना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 3.
दाँतों को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने की विधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दाँतों को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने की विधि दाँतों एवं मुख को स्वच्छ रखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है –

  • कुछ भी खाने के बाद कुल्ला अवश्य करना चाहिए ताकि दाँतों में फंसे हुए खाद्य-पदार्थों के कण निकल जाएँ। प्रतिदिन सुबह कोई भी कार्य करने से पूर्व दाँतों की सफाई आवश्यक है। इसी प्रकार रात्रि को सोते समय भी दाँतों की सफाई करनी चाहिए।
  • ब्रुश, दातून, पेस्ट अथवा किसी बारीक मंजन से दाँतों को प्रतिदिन साफ करना आवश्यक है। (3) मसूड़ों की सफाई तथा मालिश करते रहने से दाँत सुरक्षित एवं मजबूत रहते हैं।
  • दाँतों को स्वस्थ रखने के लिए अधिक गर्म एवं अधिक ठण्डे खाद्य अथवा पेय-पदार्थ ग्रहण नहीं करने चाहिए।
  • यदि कोई चिपकने वाला खाद्य-पदार्थ खाया जाए तो उसके उपरान्त दाँतों की सफाई का अतिरिक्त ध्यान रखना चाहिए।
  • समय-समय पर दन्त-चिकित्सक से परामर्श करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
बालों की सफाई क्यों आवश्यक है? बालों को साफ करने की उपयुक्त विधि लिखिए।
उत्तर:
बालों की सफाई की आवश्यकता एवं विधि –
सिर के बालों की सफाई करना आवश्यक है क्योंकि बालों को साफ न करने से इत्यादि पड़ सकती हैं, जो हमारे शरीर का खून चूसती हैं। बालों के गन्दे रहने से त्वचा के छिद्र भी बन्द हो जाते हैं फलतः पसीना नहीं निकल पाता है और त्वचा के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। अत: यह आवश्यक है कि बालों को नियमित रूप से साफ किया जाए। स्वच्छ बाल सौन्दर्य बढ़ाने वाले होते हैं, विशेषकर नारियों के लिए।

बालों को साफ करने के लिए प्रमुख रूप से इन्हें धोना आवश्यक है। बालों को धोने के लिए कम-से-कम सोडे वाला साबुन प्रयोग में लाना चाहिए। अधिक सोडे वाला साबुन बालों की जड़ों को कमजोर कर देता है, इसलिए दही, रीठा, बेसन, मुलतानी मिट्टी आदि से बालों को धोया जाना उचित रहता है। आजकल अनेक प्रकार के शैम्पू भी बालों को धोने के लिए उपलब्ध हैं। किसी अच्छे शैम्पू द्वारा भी बालों को धोया जा सकता है। बालों की सफाई के लिए, विशेषकर ज़े मारने के लिए सोडे में सिरका मिलाकर बालों में लगाया जा सकता है।

नीबू तथा लहसुन के रस को बालों में लगाने से भी मर जाती हैं। जुएँ नष्ट करने के लिए कुछ औषधियाँ भी उपलब्ध हैं। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से नियमित रूप से बालों को धोने से भी जुएँ समाप्त हो जाती हैं। बालों की रक्षा करने के लिए नित्यप्रति कंघा करना चाहिए। इससे एक ओर तो बाल सँवरे रहते हैं तथा दूसरी ओर बालों से गन्दगी निकलती रहती है।

प्रश्न 5.
थकान किसे कहते हैं? इसे किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
थकान का अर्थ तथा दूर करने की विधि –
विभिन्न प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करते रहने से शरीर के अंगों में थकान पैदा हो जाती है। श्रम करने से मांसपेशियों में उत्पन्न हुए विषैले पदार्थों के कारण विभिन्न अंग थक जाते हैं। सामान्य रूप से थकान का मुख्य कारण मांसपेशियों में लैक्टिक एसिड की मात्रा बढ़ जाना होता है। इसके अतिरिक्त, कार्य करते समय शरीर के ऊतक टूटते-फूटते रहते हैं और इस दौरान इनकी पूरी मरम्मत भी नहीं हो पाती है।

थकान को दूर करने के लिए विश्राम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। शरीर में उत्पन्न विषैले पदार्थों को बाहर निकालना तथा टूट-फूट की मरम्मत करना आदि क्रियाओं के लिए विश्राम आवश्यक होता है। मस्तिष्क एवं स्नायु सम्बन्धी अंगों को विश्राम देने से इनकी कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता अत्यधिक बढ़ जाती है। विश्राम करने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया निद्रा है। निद्रा शरीर के अवयवों तथा इन्द्रियों का शिथिलन है। अत: ऐसे समय में शरीर के अन्दर विभिन्न प्रकार की टूट-फूट की मरम्मत हो जाती है और नई कार्य-शक्ति अर्जित हो जाती है तथा पर्याप्त नींद लेने के बाद व्यक्ति तरोताजा एवं प्रसन्नचित्त हो जाता है। इस समय नाड़ी तथा श्वास गति, रक्तचाप एवं शरीर का ताप कम हो जाता है तथा व्यक्ति थकान से मुक्त हो जाता है।

कई बार कार्यों के परिवर्तन से थकान दूर हो जाती है। इसके लिए मनोरंजन, व्यायाम तथा योगाभ्यास लाभदायक होता है। ये शरीर की कार्यक्षमता को बढ़ा देते हैं और थके हुए शरीर को शीघ्रता से, विश्राम के समय, पहले जैसी स्थिति में लाने में सहायता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.
श्वसन और व्यायाम का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
व्यायाम से शरीर के अंगों को उचित रूप से सुचारु गति प्राप्त होती है। इस गति से शरीर की ऊर्जा इस्तेमाल होती है। इस स्थिति में ऑक्सीकरण के लिए अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए श्वसन-क्रिया को सामान्य से तीव्र होना पड़ता है। व्यायाम की दशा में श्वसन के माध्यम से अधिक मात्रा में वायु ग्रहण की जाती है। इससे फेफड़ों में अधिक वायु भरती है तथा फेफड़ों द्वारा रक्त के शुद्धीकरण की दर में भी वृद्धि होती है। स्पष्ट है कि व्यायाम तथा श्वसन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। व्यायाम श्वसन-क्रिया को सुचारु बनाने में सहायक होता है तथा सुचारु श्वसन से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित मादक पदार्थों के विषय में आप क्या जानते हैं? इनके सेवन करने से लाभ तथा हानियाँ समझाइए –
(क) अफीम
(ख) भाँग
(ग) गाँजा व चरस।
उत्तर:
सामान्यतः सभी प्रकार की मादक वस्तुएँ शरीर के लिए हानिकारक होती हैं। इनके लाभ बहुत सीमित, केवल दवाएँ आदि बनाने में होते हैं। इनकी लत या आदत निश्चित रूप से स्वास्थ्य को नष्ट कर देती है।

(क) अफीम – यह एक तीव्र मादक पदार्थ है। इसका निर्माण पोस्त के पौधे से किया जाता है। यद्यपि इसकी खेती एवं व्यापार पूर्णत: नियन्त्रित तथा कानूनन प्रतिबन्धित है, फिर भी चोरी-छिपे या तस्करी से इसका निर्माण किया जाता है। इसका प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। कुछ व्यक्ति इसके चूर्ण को खाते हैं तो कुछ इसको सूंघकर नशा प्राप्त करते हैं। सिगरेट में भरकर धूम्रपान के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। कुछ लोगों को इसके इंजेक्शन लगवाने की आदत पड़ जाती है।
अफीम के सेवन से अनेक हानियाँ हैं –

  • व्यक्ति आलसी हो जाता है।
  • शरीर पीला पड़ जाता है अर्थात् रक्त की कमी हो जाती है।
  • शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  • आँखों की ज्योति कम हो जाती है।

वास्तव में, अफीम एक मीठा और भयंकर विष है। इसके सेवन से अनेक प्रकार की स्नायु तथा मस्तिष्क सम्बन्धी शिथिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

(ख) भाँग-भाँग एक पौधे की पत्तियों से प्राप्त की जाती है। इसकी पत्तियों को पीसकर ऐसे ही खाया जाता है अथवा ठण्डाई आदि के रूप में घोटकर पिया जाता है। भाँग के सेवन से व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। यह आँतों को शुष्क व कमजोर बनाती है।

(ग) गाँजा व चरस-गाँजा एवं चरस पौधों से प्राप्त किए गए अधिक सान्द्र नशीले पदार्थ हैं। इनका सेवन सिगरेट, चिलम इत्यादि में भरकर धूम्रपान के रूप में किया जाता है। इन पदार्थों का नशा अत्यन्त तीव्र होता है। इनके सेवन से शरीर एवं स्वास्थ्य पर अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ता है। पाचन शक्ति नष्ट हो जाती है और मानसिक चेतना जाती रहती है। इस प्रकार इस नशे का सम्पूर्ण शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।

प्रश्न 8.
धूम्रपान अथवा तम्बाकू सेवन से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धूम्रपान अथवा तम्बाकू से हानि –
तम्बाकू एक मुख्य मादक पदार्थ है। इसे एक प्रकार के पौधे की पत्तियों को विशेष रूप से पकाकर तैयार किया जाता है। इसे खाने, पीने, सूंघने, धुआँ निकालने आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिनमें बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि के रूप में धूम्रपान (smoking) करना प्रमुख है। पान में चूना, कत्था आदि वस्तुओं के साथ या सुर्ती के रूप में चूने के साथ खाने में, नसवार के रूप में सूंघने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

तम्बाक में अनेक विषैले पदार्थ होते हैं जिसमें सबसे घातक व तेज विष निकोटिन (nicotine) है। यह पदार्थ सूक्ष्म रूप में मादक है। तम्बाकू चाहे किसी भी प्रकार प्रयोग में लाया जाए, इसके प्रयोग से अनेक हानियाँ हैं। यदि बाल्यावस्था या युवावस्था में इसके सेवन की आदत पड़ गई तो वह अत्यन्त घातक एवं स्थायी प्रभाव उत्पन्न करती है। प्रौढ़ व्यक्ति पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे होता है।

  • तम्बाकू का धुआँ फेफड़े, गले इत्यादि की श्लेष्म कला (भीतरी झिल्ली) को खराब कर देता है जिससे पहले कफ-खाँसी तथा बाद में दमा, तपेदिक तक हो जाते हैं।
  • गले, नाक, फेफड़े, श्वसन मार्ग आदि तथा सम्पूर्ण शरीर में शुष्कता (dryness) पैदा हो जाती है जिससे खराश तथा चटखन हो जाती है।
  • पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, पेट खराब रहता है, जी मिचलाता है, भूख मर जाती है, कब्ज रहने लगता है।
  • हृदय गति तेज होने से रुधिर परिसंचरण तथा हृदय सम्बन्धी रोग जैसे उच्च रक्त चाप (high blood pressure), केशिकाओं का चौड़ा होना आदि हो सकते हैं।
  • नींद कम हो जाती है।
  • मांसपेशियों की संकुचन-क्षमता (सिकुड़ने-फैलने की शक्ति) कम होने से कार्यकुशलता कम हो जाती है।
  • तम्बाकू के सेवन से कैंसर जैसा भयानक रोग हो सकता है, जिसमें मुँह, गाल, होंठ, फेफड़े, गले आदि का कैंसर प्रमुख है।
  • अधिक खुश्की होने के कारण मस्तिष्क कमजोर हो जाता है। इस प्रकार मानसिक शक्ति का ह्रास होता है।

यूरोपीय देशों में तो स्त्रियाँ भी धूम्रपान के रूप में तम्बाकू का सेवन करती हैं जिससे उनका सौन्दर्य कम हो जाता है। गर्भकाल में माता के धूम्रपान करने से अपरिपक्व और समय से पूर्व ही कम वजन के शिशु का जन्म होता है।

प्रश्न 9.
त्वचा की स्वच्छता के महत्त्व एवं उपायों का उल्लेख कीजिए। अथवा त्वचा की स्वच्छता से क्या तात्पर्य है? यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
त्वचा की स्वच्छता का महत्त्व एवं उपाय –
शारीरिक स्वच्छता के लिए सम्पूर्ण शरीर को ढकने वाली अपनी त्वचा को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। त्वचा पर असंख्य छिद्रों से हर समय, अनेक विषैले तथा हानिकारक पदार्थ पसीने के रूप में रिसते रहते हैं। यह पसीना सूखकर त्वचा पर ही जम जाता है। इसके अतिरिक्त, अनेक प्रकार की बाहरी गन्दगी, धूल, रोगाणु आदि त्वचा पर पसीने के साथ ही जमते रहते हैं। इसी प्रकार त्वचा के गन्दा रहने से पसीने के छिद्र भी बन्द हो सकते हैं और शरीर से हानिकारक पदार्थों के न निकलने से अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। वैसे भी गन्दगी से अनेक चर्म रोग (skin diseases) पैदा होते हैं क्योंकि इस गन्दगी में रोगाणु पनप जाते हैं। त्वचा की गन्दगी से व्यक्ति के शरीर एवं कपड़ों में दुर्गन्ध आने लगती है। अत: त्वचा की स्वच्छता व्यक्ति के लिए परम आवश्यक है।

त्वचा की स्वच्छता का मुख्य उपाय स्नान है। अत: सामान्यत: नित्य स्नान करना आवश्यक है किन्तु ठण्डे प्रदेशों में कभी-कभी बिना स्नान के ही रहा जा सकता है। भारत जैसे देश में सर्दियों में दिन में एक बार तथा गर्मियों में दो बार स्नान करना स्वास्थ्य के लिए हितकर है। साधारण रूप से ठण्डे पानी (अपने शरीर के ताप के लगभग ताप वाला जल) से स्नान करना चाहिए। बच्चों, दुर्बल व्यक्तियों तथा वृद्धजनों को गर्म पानी से स्नान कराया जा सकता है। स्नान करते समय पूरे शरीर को रगड़-रगड़कर साफ करना चाहिए। साबुन अथवा उबटन द्वारा भी त्वचा की गन्दगी को साफ किया जा सकता है। स्नान करने से जहाँ एक ओर त्वचा की सफाई होती है वहीं दूसरी ओर इससे चित्त प्रसन्न रहता है। अत: स्नान करना स्फर्तिदायक है।

प्रश्न 10.
बालक-बालिकाओं में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
बालक-बालिकाओं को व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान प्रदान करना –
बालक-बालिकाओं में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना अति आवश्यक है क्योंकि –

  • किसी कार्य को सम्पादित करने के लिए सर्वप्रथम उसके बारे में जानकारी होनी आवश्यक है।
  • छोटी उम्र में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान करा देने से उसके अन्दर संस्कार तथा आदत का निर्माण हो सकता है।
  • बालक या बालिका अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहकर स्वच्छता का स्वयं ही ध्यान रखते हैं इस प्रकार उनका स्वास्थ्य बना रहता है। उनके पास रोग कम-से-कम आते हैं।

अत: यह आवश्यक है कि बालक-बालिकाओं को कम आयु में ही व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना चाहिए तथा इसको उनकी आदत बना देना चाहिए।

प्रश्न 11.
बालकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ रहने की आदत आप कैसे सिखाएँगी?
उत्तर:
बालकों में स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता की आदत डालना –
अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता आवश्यक है तथा बालकों में अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता की आदत डालने के लिए कुछ नियमों को अपनाना आवश्यक है। माता-पिता, अभिभावक, सम्बन्धियों तथा परिवार के सभी सदस्यों का कर्त्तव्य है कि स्वयं स्वच्छता सम्बन्धी क्रियाओं का अनुसरण करें तथा इन्हें नियमों के रूप में बच्चों के लिए प्रतिस्थापित करें। इसके लिए निम्नलिखित आदतें अनुकरणीय हैं –

  • सोने व उठने में नियमितता निश्चित समय पर निश्चित अवधि की निद्रा अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। अत: सोने तथा जागने का समय निश्चित करना आवश्यक है।
  • नियमित शौच आदि-नियमित शौच आदि से निवृत्त होना आवश्यक है। यह कार्य प्रात: उठने के बाद होना चाहिए।
  • मुँह व दाँतों की सफाई–मुँह और दाँतों की सफाई मंजन, पेस्ट आदि के द्वारा शौच के बाद करना आवश्यक है। उसी समय हाथ-पैर आदि की सफाई भी नियमपूर्वक करनी चाहिए।
  • व्यायाम तथा योगासन-शरीर को उचित रूप से क्रियाशील रखने के लिए नियमित व्यायाम तथा योगासन आवश्यक हैं।
  • नियमित स्नान-प्रतिदिन नियमपूर्वक स्नान करना स्वच्छता के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही स्वच्छ वस्त्र आदि धारण करने चाहिए।
  • अन्य आदतें-नियमित नाखून काटना तथा उनकी सफाई, भोजन करने से पूर्व तथा बाद में साबुन से हाथों को भली-भाँति साफ करना आवश्यक है।

प्रश्न 12.
टिप्पणी लिखिए – ‘जनसाधारण को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी देने के आधुनिक साधन।’
उत्तर:
आधुनिक युग जन-संचार का युग है। आज महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी को जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए कुछ ऐसे उपाय प्रयोग में लाए जाते हैं जो व्यापक-क्षेत्र में प्रभावकारी होते हैं। इस प्रकार के प्रमुख उपाय या साधन हैं-दूरदर्शन, रेडियो तथा समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ। इन समस्त साधनों में भी सर्वाधिक उपयोगी आधुनिक उपाय दूरदर्शन ही है। अत: जन-साधारण को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी प्रदान करने के लिए दूरदर्शन को ही अपनाया जाना चाहिए। दूरदर्शन के कार्यक्रमों में स्वास्थ्य के नियमों को भली-भाँति दर्शाया जा सकता है तथा उसके व्यावहारिक महत्त्व को भी स्पष्ट किया जा सकता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य से क्या आशय है? .
उत्तर:
“शरीर की रोगों से मुक्त दशा स्वास्थ्य नहीं है, व्यक्ति के स्वास्थ्य में तो उसका सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक कल्याण निहित है।” – ( विश्व स्वास्थ्य संगठन )

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के मुख्य नियम हैं –

  • नियमबद्धता
  • शारीरिक स्वच्छता
  • उचित पोषण
  • व्यायाम करना
  • विश्राम एवं निद्रा
  • मादक वस्तुओं से बचाव तथा
  • स्वस्थ मनोरंजन।।

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत स्वच्छता की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
शरीर के समस्त अंगों तथा शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता को व्यक्तिगत स्वच्छता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
शरीर को स्वच्छ, नीरोग, चुस्त एवं प्रसन्नचित्त रखने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता आवश्यक है।

प्रश्न 5.
उचित पोषण से क्या आशय है?
उत्तर:
पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार ग्रहण करना ही ‘उचित पोषण’ है।

प्रश्न 6.
विश्राम तथा निद्रा को क्यों आवश्यक माना जाता है?
उत्तर:
शारीरिक एवं मानसिक थकान के निवारण के लिए विश्राम एवं निद्रा को आवश्यक माना जाता है।

प्रश्न 7.
नियमित रूप से व्यायाम का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? अथवा व्यायाम से क्या लाभ है?
उत्तर:
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल तथा ओजस्वी बनता है।

प्रश्न 8.
दाँतों की नियमित रूप से सफाई न करने की दशा में किस रोग के हो जाने की आशंका रहती है?
उत्तर:
दाँतों की नियमित रूप से सफाई न करने की दशा में दाँतों में पायरिया रोग हो जाने की आशंका रहती है।

प्रश्न 9.
त्वचा की स्वच्छता का प्रमुख उपाय क्या है?
उत्तर:
त्वचा की स्वच्छता का प्रमुख उपाय है-प्रतिदिन स्नान करना।

प्रश्न 10.
मादक-द्रव्यों के सेवन का व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
मादक-द्रव्यों के सेवन का व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 11.
शराब से होने वाली एक मुख्य हानि बताइए।
उत्तर:
शराब के अधिक सेवन से केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र दुर्बल हो जाता है जिससे सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

प्रश्न 12.
नाखूनों की सफाई क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
नाखूनों के बड़े होने पर उनमें गन्दगी भर जाती है तथा उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु एकत्र हो जाते हैं जो भोजन करते समय मुँह में पहुँचकर आहार-नाल में पहुँच जाते हैं तथा विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है –
(क) शारीरिक रूप से स्वस्थ होना
(ख) मानसिक रूप से स्वस्थ होना
(ग) संवेगात्मक रूप से स्वस्थ होना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

2. व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए आवश्यक है –
(क) नियमित जीवन तथा उचित पोषण
(ख) शारीरिक स्वच्छता तथा नियमित व्यायाम
(ग) समुचित विश्राम, निद्रा तथा स्वस्थ मनोरंजन
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

3. त्वचा की स्वच्छता प्रतिदिन करनी चाहिए क्योंकि –
(क) इससे शरीर ठीक रहता है
(ख) इससे त्वचा का कोई रोग नहीं होता
(ग) इससे शरीर कोमल रहता है
(घ) इससे भूख अधिक लगती है।
उत्तर:
(ख) इससे त्वचा का कोई रोग नहीं होता।

4. स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम आवश्यक है क्योंकि यह शरीर को बनाता है –
(क) आलसी एवं निष्क्रिय
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्थ
(ग) आलसी एवं स्वस्थ
(घ) निष्क्रिय एवं स्वस्था
उत्तर:
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्थ।

5. व्यायाम का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है –
(क) शरीर स्वस्थ रहता है
(ख) शरीर का समुचित विकास होता है एवं क्रियाशील बनता है
(ग) शरीर के विकार दूर हो जाते हैं
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी।।

6. शारीरिक थकान के निवारण का सर्वोत्तम उपाय है –
(क) घूमना-फिरना
(ख) टी० वी० देखना
(ग) नींद
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) नींद।

7. स्वस्थ मनोरंजन से सुधार होता है –
(क) व्यवहार में
(ख) पाचन-शक्ति में
(ग) मानसिक स्वास्थ्य में
(घ) रोग में।
उत्तर:
(ग) मानसिक स्वास्थ्य में।

8. व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बचना चाहिए –
(क) व्यायाम से
(ख) विश्राम से
(ग) मनोरंजन से
(घ) मादक द्रव्यों के सेवन से।
उत्तर:
(घ) मादक द्रव्यों के सेवन से।

9. ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस कब मनाया जाता है –
(क) 1 मई
(ख) 11 मई
(ग) 21 मई
(घ) 31 मई।
उत्तर:
(घ) 31 मई।

10. व्यायाम से लाभ है –
(क) शारीरिक विकास
(ख) स्वास्थ्य में सुधार
(ग) मानसिक विकास
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी।

UP Board Solutions for Class 11 Home Science

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन (Home Cleanliness and Ventilation)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन

UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घर की स्वच्छता (सफाई) की क्या आवश्यकता है? घर की सफाई कितने प्रकार की होती है? घर की साप्ताहिक सफाई गृहिणी किस प्रकार करे जिससे उसकी शक्ति तथा समय कम-से-कम खर्च हो?
अथवा
घर की सफाई का क्या महत्त्व है? घर की दैनिक व साप्ताहिक सफाई आप किस प्रकार करेंगी? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तरः
घर की सफाई का महत्त्व (आवश्यकता) (Importance (Necessity) of Home Cleaning) –
घर में कीमती सामान का होना तथा उसका व्यवस्थित रूप से सजा होना इतना आवश्यक नहीं है जितनी घर की सफाई व स्वच्छता आवश्यक है। घर की सफाई से आशय है – घर में गन्दगी का व्याप्त न होना।

स्वच्छता; घर और घर की वस्तुओं को सुन्दर व आकर्षक बनाती है। उदाहरणार्थ-अत्यन्त कीमती सजावट की वस्तुएँ बैठक में लगी हैं, किन्तु सभी वस्तुओं पर धूल जमी है, मकड़ी के जाले लगे हैं, तो कौन सभ्य मनुष्य वहाँ बैठना पसन्द करेगा जबकि एक साधारण और स्वच्छ बैठक में अधिक आकर्षण होगा। स्वच्छता से मानसिक प्रेरणा प्राप्त होती है, मन प्रसन्न होता है। गन्दगी अनेक बीमारियों की जननी है, कीटाणुओं के पनपने का स्थान है। यदि नालियों में पानी भरा सड़ रहा है तो उसमें दुर्गन्ध तो पैदा होगी ही, साथ ही मक्खी व मच्छर भी बहुतायत में पैदा होंगे जो अनेक रोगों का कारण बनेंगे।

इस प्रकार स्वच्छता; सजावट तथा आकर्षण की पूरक तो है ही, यह रोगों से भी हमको बचाती है और मन को प्रफुल्लित करती है।

सफाई की व्यवस्था, विधि तथा प्रकार (System, Process and Types of Cleaning) –
गृहिणी को घर में अनेक प्रकार के कार्य होने के कारण प्रत्येक वस्तु, स्थान आदि की प्रतिदिन सफाई करना न तो सम्भव है और न ही आवश्यक। अत: घरेलू सफाई को पाँच भागों या प्रकारों में बाँटा जाता है। सफाई के इन भागों को घरेलू सफाई के प्रकार भी माना जाता है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं –

  • दैनिक सफाई (Daily Cleaning)
  • साप्ताहिक सफाई (Weekly Cleaning)
  • मासिक सफाई (Monthly Cleaning)
  • वार्षिक सफाई (Annual Cleaning),
  • आकस्मिक सफाई (Casual Cleaning)।

1. दैनिक सफाई (Daily cleaning) –
घर की कुछ सफाई प्रतिदिन ही की जाती है। गृह स्वच्छता के लिए दैनिक सफाई को ही सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। दैनिक घरेलू सफाई का संक्षिप्त विवरण अग्रवर्णित है –

(अ) विभिन्न कमरों की सफाई – हवा से उड़कर अथवा जूतों आदि के साथ आई मिट्टी आदि कमरों को तथा कमरे में रखी वस्तुओं को गन्दा करती है। बच्चों वाले घर में बच्चे कागज के टुकड़े, पेंसिल की छीलन आदि फैलाते हैं। अतः इन सबकी सफाई प्रतिदिन ही होनी चाहिए। इसके लिए प्रतिदिन कमरों में झाडू लगाना तथा. फर्नीचर को कपड़े से झाड़ना-पोंछना आवश्यक है। दरवाजे के पास रखे गए पायदान को अवश्य झाड़ना चाहिए। अस्त-व्यस्त फैले हुए सामान एवं कपड़ों को समेटकर यथास्थान रखना अनिवार्य है। बिस्तर को ठीक करना तथा यदि आवश्यक हो तो उठाकर निर्धारित स्थान पर भी रखना चाहिए। यदि घर में फूलदानों में फूल रखे जाते हैं, तो उनकी भी देखभाल करनी चाहिए। फर्श पर गीले कपड़े से पोंछा लगाना अच्छा रहता है। पोंछे के पानी में फिनायल अथवा कोई अन्य नि:संक्रामक अवश्य मिला लेना चाहिए।

(ब) रसोईघर को साफ करना – रसोईघर या पाककक्ष को भी नित्य ही साफ करना अत्यन्त आवश्यक होता है। रसोईघर में जूठे बर्तन, भोजन के टुकड़े अथवा अन्न कण जो फैल जाते हैं, उनकी सफाई प्रतिदिन ही होनी चाहिए। रसोईघर को साफ रखना गृहिणी का मुख्य कर्त्तव्य है।

(स) स्नानगृह एवं शौचालय की सफाई – स्नानगृह एवं शौचालय की सफाई भी नित्य ही करनी चाहिए। स्नानगृह में तो साबुन आदि के कारण काफी गन्दगी हो जाती है। उसी में कपड़े भी धोए जाते हैं जिनका मैल फर्श पर रुक जाता है। अत: नित्य ही स्नानगृह के फर्श को झाडू से रगड़कर साफ करना आवश्यक होता है। स्नानगृह में प्रयोग होने वाली बाल्टी, लोटा, मग आदि को साफ करके उलटकर रखना चाहिए। इसी प्रकार शौचालय की सफाई भी प्रतिदिन होनी चाहिए। शौचालय में फिनायल डालने से वातावरण स्वास्थ्यकर तथा स्वच्छ रहता है।

(द) घर की नालियों एवं अन्य स्थानों की सफाई – घर के अन्दर बनी नालियों, जैसे रसोईघर से पानी निकालने वाली नाली आदि की सफाई भी नित्य होनी चाहिए। इनमें भी फिनायल आदि डाली जाती है। इनके अतिरिक्त आँगन तथा अन्य स्थानों को भी झाड़-बुहारकर साफ रखना चाहिए।

2. साप्ताहिक सफाई (Weekly cleaning) –
घर के सभी स्थानों की सफाई प्रतिदिन की जानी न तो सम्भव है और न ही आवश्यक। अत: कुछ स्थानों एवं वस्तुओं की सफाई सप्ताह में एक बार सामान्यतः छुट्टी के दिन की जाती है। इसे साप्ताहिक सफाई कहते हैं। इसके अन्तर्गत घर की दरियों एवं कालीनों को झाड़ा जाता है, फर्नीचर को पूरी तरह झाड़कर उनकी गद्दियों आदि को ठीक किया जाता है, दरवाजों तथा खिड़कियों के पास लगे मकड़ी के जालों आदि को साफ किया जाता है। कमरे में लगी हुई तस्वीरों, चित्रों एवं सजावट की अन्य वस्तुओं को भी साप्ताहिक सफाई के समय साफ करना चाहिए। यदि आवश्यकता समझी जाए तो कमरों के फर्श को धोया भी जा सकता है।

घर के बिस्तर एवं चादरों को भी एक दिन धूप में कुछ समय के लिए अवश्य डालना चाहिए। सर्दियों में तो यह अति आवश्यक होता है। इससे पलंग आदि की सफाई में सहायता मिलती है। यदि पलंग अथवा चारपाइयों में खटमल हों, तो इस दिन उन्हें मारने के लिए कोई कीटनाशक दवा छिड़कनी चाहिए। साप्ताहिक सफाई के अन्तर्गत रसोईघर में दाल-मसाले आदि रखने वाले डिब्बों को साफ करके तथा सुखाकर यथास्थान रख देना चाहिए। इसी दिन रसोइघर में लगी सिंक एवं अन्य वस्तुओं को विशेष रूप से साफ करना चाहिए और घर के मैले कपड़े एवं चादरें आदि गिनकर धोबी के पास भेज देने चाहिए।

3. मासिक सफाई (Monthly cleaning) –
कुछ वस्तुएँ एवं स्थान ऐसे होते हैं जिनकी साप्ताहिक सफाई नहीं हो पाती। वास्तव में, यह सफाई हर सप्ताह आवश्यक भी नहीं होती है। ऐसी सफाई महीने में एक बार अवश्य हो जानी चाहिए इसलिए इस सफाई को मासिक सफाई कहा जाता है। मासिक सफाई के अन्तर्गत मुख्य रूप से भण्डारगृह अथवा स्टोर रूम की सफाई आती है। भण्डारगृह में रखी सभी वस्तुओं को झाड़-पोंछकर साफ किया जाता है तथा उन्हें धूप में रखा जाता है। इसी प्रकार रसोईघर में रखी वस्तुओं को महीने में एक बार अवश्य धूप में रखना चाहिए। इससे दाल, चावल जैसे खाद्यान्नों में घुन, कीड़ा आदि नहीं लग पाता। अचार, चटनी आदि को महीने में एक बार धूप में रखना अच्छा होता है। इसके साथ ही भारी बिस्तर जैसे रजाई तथा गद्दों को भी धूप में फैलाना आवश्यक होता है। इससे उनमें से नमी की दुर्गन्ध तथा कुछ रोगाणु आदि समाप्त हो जाते हैं। मासिक सफाई का अपना विशेष महत्त्व होता है।

4. वार्षिक सफाई (Annual cleaning) –
दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक सफाई के अतिरिक्त वार्षिक सफाई, जो वर्ष में केवल एक बार ही की जाती है, अनेक कारणों से आवश्यक है। हमारे देश में इस प्रकार की सफाई दीपावली के अवसर पर करने की परम्परा है। यह इसलिए भी उत्तम है क्योंकि दीपावली वर्षा के बाद सर्दियों के प्रारम्भ में होती है। इस समय सबसे अधिक कीड़े-मकोड़े व फफूंद आदि हो सकते हैं। इस अवसर पर घर के सभी सामान को बाहर निकाला जाता है तथा उसे झाड़-पोंछकर एवं साफ करके रखा जाता है।

आवश्यकतानुसार घर की लिपाई-पुताई कराई जाती है, साथ ही छोटी-मोटी टूट-फूट की मरम्मत भी करवा ली जाती है। दरवाजों एवं खिड़कियों पर रंग-रोगन तथा फर्नीचर पर पॉलिश करवाने से इनकी भी सफाई हो जाती है। वार्षिक सफाई के अवसर पर ही घर के सामान को छाँटा जाता है तथा व्यर्थ के सामान को या तो फेंक दिया जाता है अथवा उसे बेच दिया जाता है।

5. आकस्मिक सफाई (Casual cleaning) –
घर की सफाई के उपर्युक्त चार प्रकारों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का भी उल्लेख किया जा सकता है। यह नियमित सफाई से भिन्न है। उदाहरण के लिए किसी दिन यदि धूलभरी आँधी आ जाए तो उसके बाद की जाने वाली सफाई को आकस्मिक सफाई की श्रेणी में रखा जाएगा। इसी प्रकार यदि घर में कोई उत्सव आयोजित किया गया हो तो उसके पहले तथा बाद में की जाने वाली सफाई को भी अन्य किसी श्रेणी में न रखकर आकस्मिक सफाई की श्रेणी में ही रखा जाता है। आकस्मिक घरेलू सफाई का न तो समय निश्चित होता है और न ही व्यापकता। घर की आकस्मिक सफाई को पूरा करने के लिए गृहिणी तथा परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ परिवर्तन करना पड़ता है तथा कुछ अतिरिक्त परिश्रम तथा उपाय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 2.
घर की सफाई में किस-किस प्रकार के सामान की आवश्यकता होती है? इनका प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?
उत्तरः
घर की सफाई में काम आने वाला सामान (Material for Cleaning Home) –
व्यवस्थित ढंग से सफाई करने के लिए कुछ सामग्री आवश्यक होती है। यदि उपकरण तथा सफाई के पदार्थ आवश्यकतानुसार हों, तो सफाई अच्छी भी होती है तथा सरल भी। इस कार्य के लिए निम्नलिखित उपकरण तथा सुविधाएँ होनी उपयुक्त हैं –

1. झाड़-घर की सफाई के लिए सर्वाधिक उपयोग झाड़ का होता है। ये कई प्रकार की होती हैं, जिनमें से मुख्य खजूर की झाड़, नारियल की झाड़ तथा फूल-झाड़ घरों में प्रयोग की जाती हैं। झाड़ घर के कमरों, आँगन, बरामदे आदि के फर्श को बुहारने के काम आती है। ईंटों के फर्श तथा नालियों आदि को साफ करने के लिए सींक वाली कड़ी व मजबूत झाड़ काम में लाई जाती है, फूल-झाड़ मुलायम होती है। इससे चिकने फर्श की सफाई की जाती है।

2. झाड़न एवं पोंछा-झाड़न उस कपड़े को कहा जाता है जिससे वस्तुओं को झाड़ा-पोंछा जाता है। यह पुराने मुलायम कपड़े का बनाया जाता है। सुविधा के लिए इस कपड़े को एक छोटे डण्डे पर बाँधा जा सकता है। झाड़न से फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियाँ तथा घर की सजावट की वस्तुओं अर्थात् तस्वीर, फूलदानों आदि की धूल झाड़ी जा सकती है। इस प्रकार के झाड़न के अतिरिक्त फर्श को साफ करने अथवा पोंछा लगाने के लिए एक मोटा कपड़ा प्रयोग करना चाहिए। पोंछा लगाने के लिए पानी में फिनायल या अन्य कीटाणुनाशक मिलाया जा सकता है।

3. बुश-घर की विभिन्न वस्तुओं एवं दीवारों आदि की सफाई के लिए झाड़ तथा झाड़न के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के ब्रुश प्रयोग में लाए जाते हैं। कुछ ब्रुश पशुओं के नरम बालों अथवा नायलॉन के बने होते हैं। इनसे घर की सजावटी, नक्काशी, कटिंग अथवा अन्य कीमती वस्तुओं की सफाई की जाती है। फर्श अथवा दीवारों को रगड़कर साफ करने के लिए तिनके अथवा सन के ब्रुश उपयोगी होते हैं। छत पर लगे मकड़ी के जालों को साफ करने के लिए भी इसी प्रकार के ब्रुश को बाँस के साथ बाँधकर प्रयोग किया जाता है। पानी के स्थानों पर, जहाँ काई लगी है या अन्य प्रकार की गन्दगी जमने की आशा है, तारों के बने ब्रुश प्रयोग किए जाते हैं। रसोईघर के बर्तनों को साफ करने के लिए मुलायम ब्रुश प्रयोग किए जाते हैं। बोतलों आदि को भी अन्दर से ब्रुश से साफ किया जाता है।

4. सफाई के लिए आवश्यक बर्तन-घर की सफाई करने के लिए कुछ बर्तन भी आवश्यक हैं। सामान्यतः पानी भरने एवं पोंछा लगाने के लिए बाल्टी एवं एक डिब्बा आवश्यक है। कूड़ा एवं गन्दगी डालने के लिए अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे कूड़ेदान तथा घर का समस्त कूड़ा डालने के लिए एक बड़ा कूड़ादान होना चाहिए जो मुख्य द्वार के निकट रखा रहे। कूड़ेदान ढक्कन वाले होने ही उचित हैं।

5. अन्य सामग्री-सफाई के लिए उपयोगी साबुन, सर्फ, विम, सोडा आदि तथा वस्तुओं के दाग-धब्बे छुड़ाने के लिए स्प्रिट, बेन्जीन, तारपीन का तेल, हल्का तेजाब आदि की भी आवश्यकता होती है। कुछ कीटाणुनाशक घोल जैसे फिनायल आदि भी घर पर अवश्य होने चाहिए। ।

प्रश्न 3.
वायु के संघटन पर एक नोट लिखिए।वायु में नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड एवं नमी के महत्त्व को समझाइए। अथवा वायु का संघटन बताइए। वायु में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के महत्त्व को समझाइए।
उत्तरः
वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है। यह स्वादहीन, रंगहीन तथा गन्धहीन होती है। यह हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक व्यापक क्षेत्र में उपस्थित है, इसी को वायुमण्डल कहा जाता है।
वायु का संघटन (Composition of Air) –
वैज्ञानिक युग से पहले लोग वायु को तत्त्व समझते थे किन्तु अब यह सर्वविदित है कि वायु प्रमुखत: ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन का मिश्रण है। इन गैसों के अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, ओजोन, आर्गन, जलवाष्प आदि गैसें भी वायु में उपस्थित रहती हैं। वायु में उपस्थित इन गैसों में से सामान्यत: ऑक्सीजन सक्रिय और नाइट्रोजन निष्क्रिय गैस है। ऑक्सीजन वायु के आयतन का लगभग 1/5 भाग होती है। हमारे श्वसन के लिए यही गैस आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इसमें रोगों के कीटाणु, पेड़-पौधों तथा अन्य जीवों के उत्सर्जी पदार्थ, बीजाणु आदि भी होते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन 1
वायु में विभिन्न गैसों का प्रतिशत निम्नांकित सारणी में दर्शाया गया है –
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन 2

यद्यपि समय-समय पर और स्थान-स्थान पर यह संघटन बदलता रहता है, फिर भी अनेक कारणों से प्रकृति में यह संघटन काफी सन्तुलित रहता है और यदि यह सन्तुलित नहीं है, तो वायु को प्रदूषित समझा जाता है। ऐसी वायु निश्चित ही किसी-न-किसी रूप में हानिकारक होती है।

वायु में ऑक्सीजन (O2) का महत्त्व (Importance of Oxygen in Air) –
ऑक्सीजन एक प्राणदायक गैस है। सभी जीव-जन्तु तथा पौधे इसे श्वसन के लिए ग्रहण करते हैं तथा भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। यह गैस वस्तुओं के जलने में सहायता करती है तथा उनके ऑक्साइड बनाती है। ऑक्सीजन एक रंगहीन, गन्धहीन तथा स्वादहीन गैस है।

वायु में नाइट्रोजन (N2) का महत्त्व (Importance of Nitrogen in Air) –
वायु में विद्यमान नाइट्रोजन गैस एक निष्क्रिय गैस है जो ऑक्सीजन इत्यादि की तीव्रता को कम करती है। वैसे वायुमण्डल की नाइट्रोजन इस स्वरूप में सामान्यतया जीवधारियों के लिए किसी काम की नहीं है। दूसरी ओर जीवधारियों में उपस्थित प्रोटीन में नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में होती है और बिना नाइट्रोजन के इस कोशिकीय पदार्थ के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। इसका अर्थ यह भी है कि नाइट्रोजन प्रोटीन के संगठक तत्त्व के रूप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह भी सत्य है कि जन्तु इसे सीधे वायु से प्राप्त नहीं कर सकते। वायु की नाइट्रोजन मिट्टी के द्वारा पौधों में तथा वहाँ से सभी जन्तुओं में पहुँचती है। मृदा में नाइट्रोजन निम्नलिखित प्रकार से पहुँचती है –

  • घर्षण विद्युत द्वारा नाइट्रोजन व ऑक्सीजन के संयोग से अनेक ऑक्साइड्स बनते हैं जो वर्षा द्वारा भूमि में पहुँच जाते हैं।
  • मिट्टी में उपस्थित कुछ जीवाणु तथा कुछ शैवाल इस स्वतन्त्र नाइट्रोजन को बन्धित कर लेते हैं।
  • कुछ पौधों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु भी इसे बन्धित कर लेते हैं।

मृदा से नाइट्रोजन के यौगिक पौधों में तथा वहाँ से जन्तुओं में पहुँचते हैं। इन जीवों के उत्सर्जन से अथवा मृत जीवों के भूमि पर गिरने तथा बाद में जीवाणुओं द्वारा सड़ने (decompose) से यह नाइट्रोजन स्वतन्त्र होकर वापस वायुमण्डल में आ जाती है और वायु में इसका सन्तुलन बना रहता है। इस प्रकार प्रकृति में नाइट्रोजन-चक्र के लिए वायु की नाइट्रोजन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

वायु में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का महत्त्व (Importance of Carbon dioxide in Air) –
शुद्ध वायु में, जो जीवों के श्वसन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यन्त अल्प होती है। आयतन के अनुसार यह लगभग 0.03 % होती है। जीव के द्वारा छोड़ी गई श्वास में इसकी मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। इसी प्रकार वस्तुओं के जलने से भी यही गैस अधिकतम मात्रा में उत्पन्न होती है। अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड की वायु में उपस्थिति मनुष्य सहित सभी जन्तुओं के लिए हानिकारक है। यह श्वसन योग्य वायु में एक ओर तो ऑक्सीजन की मात्रा को कम करती है दूसरी ओर धीमे विष के रूप में कार्य करती है।

हरे पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की वायु में उपस्थिति अत्यन्त लाभदायक है। ये पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में इस गैस का प्रयोग कार्बोज तथा बाद में मण्ड आदि बनाने में करते हैं। वास्तव में जो भी खाद्य पदार्थ पृथ्वी पर उपस्थित है अथवा प्राप्त होता है, पौधों को इसी क्रिया से प्राप्त होता है। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। इस क्रिया में भोजन (कार्बनिक पदार्थ) बनाने के लिए कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से ही प्राप्त किया जाता है।

उपर्युक्त के अनुसार पृथ्वी पर कार्बन चक्र (carbon cycle) को चलाए रखने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड अत्यन्त आवश्यक है।

वायु में नमी का महत्त्व (Importance of Humidity in Air) –
वायु में नमी भी अल्पमात्रा में उपस्थित होती है। इसकी अधिक मात्रा वायु को श्वसन के अयोग्य बनाती है। वायु की नमी अधिक मात्रा में होने पर, जलवाष्प में परिणत होकर जल में बदलती रहती है। इस नमी के प्राकृतिक स्वरूप बादल, कोहरा, धुंध, ओस, वर्षा आदि हैं। ठण्डे स्थानों में गिरने वाली बर्फ भी इसी नमी का अति ठण्डा स्वरूप है। प्रत्येक खुले हुए जल-तल से जलवाष्प नमी के रूप में वायु में सदैव ही मिलती रहती है। पृथ्वी पर आवश्यक रूप में उपस्थित जल चक्र (Water cycle) में इसका अत्यधिक महत्त्व है।

प्रश्न 4.
संवातन से आप क्या समझती हैं? संवातन का सिद्धान्त क्या है? संवातन के साधनों का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा
संवातन के प्रमुख साधन लिखिए।
उत्तरः
संवातन (Ventilation) –
किसी स्थान पर वायु के आने-जाने (विसरित होने) की क्रिया को संवातन (Ventilation) कहा जाता है। यह एक प्रकार की व्यवस्था है जो किसी आवासीय स्थान, कार्य करने के स्थान आदि पर विशेष रूप से की जाती है ताकि वहाँ रहने वाले व्यक्तियों को शुद्ध (प्रदूषणरहित) वायु प्राप्त होती रहे। इस प्रकार की व्यवस्था के लिए दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है। एक तो कमरे या उक्त स्थान की अशुद्ध वायु को बाहर निकालने की व्यवस्था। दूसरे बाहर से शुद्ध वायु को अन्दर लाने की प्रक्रिया। स्पष्ट है कि खुले स्थान में तो प्रकृति स्वयं ही वायु की शुद्धता को सन्तुलित रखती है।

संवातन का सिद्धान्त (Principle of Ventilation) –
ताप के बढ़ने से वायु हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठने लगती है। कमरे की वायु व्यक्तियों की श्वसन क्रिया के कारण अशुद्धियाँ प्राप्त होने के साथ-साथ गर्म भी हो जाती है; अत: छत की ओर ऊपर उठती है, अपेक्षाकृत ठण्डी तथा शुद्ध वायु कमरे के नीचे के स्थानों में रहेगी। गर्म होकर जब किसी आवासीय स्थल की वायु ऊपर उठ जाती है तब वहाँ का स्थान खाली होने लगता है। इस खाली स्थान को भरने के लिए अतिरिक्त वायु की आवश्यकता होती है। इस सैद्धान्तिक तथ्य के आधार पर संवातन की व्यवस्था की जाती है। उत्तम संवातन के लिए कमरे में ऊपरी भाग में अशुद्ध वायु के विसर्जन के लिए रोशनदान होना चाहिए तथा नीचे भाग में शुद्ध वायु के प्रवेश के लिए दरवाजों एवं खिड़कियों का प्रावधान होना चाहिए।

संवातन के साधन (Resources of Ventilation) –
स्वास्थ्य एवं श्वसन की सुविधा के लिए संवातन अनिवार्य है। संवातन की व्यवस्था मुख्य रूप से दो प्रकार के साधनों से होती है – (क) प्राकृतिक साधन तथा (ख) कृत्रिम साधन।

(क) प्राकृतिक साधन-प्रकृति ने स्वयं ही संवातन की व्यवस्था की है। वायु के कुछ गुण, जैसे विसरण का गुण, संवातन में स्वयं ही सहायक होते हैं। जब किसी स्थान पर कोई गैस एकत्रित हो जाती है तो वह स्वयं ही विभिन्न दिशाओं में फैलने लगती है। इस प्रकार इस क्रिया में एक स्थान की गैसें दूसरे स्थान पर चली जाती हैं तथा वहाँ पर अन्य स्थान से वायु आ जाती है। विसरण की क्रिया धीमी गति से होती है। इस प्रकार मन्द गति से विसरण के द्वारा वायु शुद्ध होती रहती है। तेज गति से चलने वाली हवाएँ संवातन का दूसरा प्राकृतिक साधन हैं। विभिन्न प्राकृतिक कारकों से प्रभावित होकर वायुमण्डल में अनेक । बार तेज गति से हवाएँ चलती हैं और वायु का विलोडन कर देती हैं। वातावरण में होने वाले तापमान के अन्तर से भी संवातन की प्रक्रिया को बल मिलता है। यह विसरण की गति को प्रभावित करता है। इस प्रकार वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठ जाती है। खाली स्थान को भरने के लिए अन्य स्थान से वायु बहकर आ जाती है और संवातन होता है।

(ख) कृत्रिम साधन – वातावरण में चलने वाली प्राकृतिक संवातन की क्रियाओं को ध्यान में रखकर हम अपने मकानों में विभिन्न प्रकार की व्यवस्था करते हैं जो कृत्रिम संवातन के अन्तर्गत आती हैं। प्राकृतिक संवातन उत्तम एवं स्वाभाविक होता है। इसका लाभ उठाने के लिए मकान, कार्य करने के स्थान आदि पर खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान तथा चिमनियाँ आदि बनाई जाती हैं। इस प्रकार, इन स्थानों में गर्म वायु ऊपर उठकर रोशनदान या चिमनियों से बाहर निकल जाती है और ठण्डी वायु खिड़कियों, दरवाजों के रास्ते अन्दर आ जाती है।

कुछ स्थानों पर संवातन की उपर्युक्त व्यवस्था सम्भव नहीं हो पाती। उदाहरणार्थ-सिनेमाघरों, अस्पतालों तथा अत्यधिक ठण्डे स्थानों में निरन्तर खिड़कियाँ, दरवाजे. खुले नहीं रखे जा सकते हैं। ऐसे स्थानों पर प्राकृतिक संवातन के लाभ प्राप्त नहीं किए जा सकते। इनके अभाव में कृत्रिम संवातन के कुछ अन्य साधनों को अपनाया जाता है। इनमें से कुछ साधन निम्नलिखित हैं

(1) निर्वातक पंखे (Exhaust Fans) कमरे के अन्दर की दूषित वायु को खींचकर बाहर फेंक देते हैं। इस प्रकार अन्दर स्थान खाली हो जाता है जिसे भरने के लिए दूसरी ओर के किसी भी मार्ग से बाहर की शुद्ध वायु भीतर आ जाती है।

(2) कमरे की गन्दी वायु को बाहर से अथवा किसी अन्य साधन से लाई गई शुद्ध वायु के द्वारा कमरे से बाहर धकेल दिया जाता है। उदाहरण-कूलर।।

(3) कमरे की वायु को पाइपों में गर्म भाप प्रवाहित करके गर्म कर दिया जाता है। गर्म होकर हल्की वायु रोशनदानों से बाहर निकल जाती है तथा शुद्ध वायु दरवाजों, खिड़कियों से अन्दर आ जाती है।

(4) वातानुकूलन की विधि द्वारा संवातन किया जाता है। यह अनेक यन्त्रों का बना उपकरण होता है। इसमें कुछ यन्त्र कमरे की दूषित वायु को खींचकर बाहर निकालने का कार्य करते हैं। दूसरे यन्त्र वायु से धूल आदि के कणों को छानकर इसे साफ-सुथरी करते हैं साथ ही इसको उचित ताप पर लाते हैं। तीसरे प्रकार के यन्त्र शुद्ध, आवश्यक रूप में शीतल तथा उचित नमी वाली वायु को अन्दर भेजने का कार्य करते हैं। यह एक महँगी विधि है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गृह स्वच्छता से क्या लाभ हैं? गृह स्वच्छता के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
घर को गन्दगी से मुक्त रखना ही गृह स्वच्छता कहलाता है। गृह स्वच्छता के लिए निरन्तर समुचित प्रयास करने पड़ते हैं। व्यक्ति एवं परिवार के लिए गृह स्वच्छता के निम्नलिखित महत्त्व या लाभ हैं –

  • घर की सफाई घर की सजावट में सहायक होती है। घर की सफाई के अभाव में घर की सजावट हो ही नहीं सकती।
  • घर की सफाई घर में जीवाणुओं को पनपने से रोकती है। वास्तव में विभिन्न रोगों के जीवाणु गन्दगी में ही पनपते हैं।
  • घर की सफाई घर में रहने वालों के स्वास्थ्य में भी सहायक होती है। साफ-सुथरे घर में व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
  • घर की सफाई सुचारु गृह-व्यवस्था में सहायक होती है।
  • घर की सफाई से घर के आकर्षण में भी वृद्धि होती है।
  • घर की सफाई वहाँ रहने वालों के जीवन-स्तर को भी उन्नत बनाती है।
  • घर की सफाई से व्यक्ति स्वस्थ, प्रसन्न तथा उत्साहित रहता है। ये कारक व्यक्ति की। व्यावसायिक सफलता में भी सहायक होते हैं।
  • साफ-सुथरे घर की सभी आगन्तुक प्रशंसा करते हैं।

घर की स्वच्छता के पाँच प्रकार हैं-दैनिक सफाई, साप्ताहिक सफाई, मासिक सफाई, वार्षिक सफाई तथा आकस्मिक सफाई।

प्रश्न 2.
घर की सफाई के लिए अपनाए जाने वाले आधुनिक उपकरणों का सामान्य परिचय दीजिए।
अथवा घर की सफाई के दो आधुनिक उपकरणों के नाम व कार्य लिखिए।
उत्तरः
घर की सफाई के आधुनिक उपकरण घर की सफाई के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले मुख्य आधुनिक उपकरण निम्नलिखित हैं –

1. वैक्यूम क्लीनर-वैक्यूम क्लीनर घर की सफाई के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला एक आधुनिक उपकरण है जो बिजली से चलता है। इस उपकरण में ऐसी व्यवस्था रहती है कि यह फर्श पर बिखरी धूल को अपनी ओर खींच लेता है तथा यह धूल साथ में लगी हुई एक कपड़े की थैली में इकट्ठी हो जाती है। बाद में, इस कपड़े की थैली को कूड़ेदान में झाड़ दिया जाता है। वैक्यूम क्लीनर द्वारा घर के फर्श, दीवारों एवं कोनों पर रुकी हुई धूल को सरलता से साफ किया जा सकता है।

2. कारपेट क्लीनर-दरी एवं कालीन को साफ करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले उपकरण को कारपेट क्लीनर कहा जाता है। इस उपकरण में एक ब्रुश लगा रहता है जो कालीन आदि की धूल को झाड़कर साफ करता है। यह धूल एक डिब्बे में एकत्र होती रहती है जिसे बाद में खाली किया जा सकता है।

3. बर्तन साफ करने की मशीन-अब बर्तन साफ करने के लिए एक मशीन बना ली गई है। इस मशीन के एक भाग में जो ढोल के आकार का होता है जूठे बर्तन रखकर सोडा अथवा विम डाल दिया जाता है। तत्पश्चात् मशीन को चालू कर दिया जाता है, बर्तन स्वतः ही साफ हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
शुद्ध वायु की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
शुद्ध वायु की आवश्यकता –
भोजन से भी अधिक शुद्ध वायु जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह श्वसन क्रिया को चलाती है। इस क्रिया में जीव ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं। वास्तव में, ऑक्सीजन शरीर के अन्दर विभिन्न कोशिकाओं में रुधिर के हीमोग्लोबिन द्वारा पहुँचकर कोशिकीय श्वसन में काम आती है। इस क्रिया के अन्तर्गत भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही ऊर्जा हमारे शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है। यह रुधिर के प्लाज्मा द्वारा श्वसन अंगों में पहुँचकर शरीर से बाहर निकल जाती है। इस प्रकार, वायु की ऑक्सीजन का उपयोग सभी जीव करते हैं। फलस्वरूप वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी होती है तथा’ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। कम ऑक्सीजन तथा अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वाली वायु श्वसन के योग्य नहीं रहती तथा अनेक कष्टप्रद लक्षण उत्पन्न करती है।

प्रश्न 4.
वायु में पायी जाने वाली अशद्धियाँ कौन-कौन सी होती हैं?
अथवा
वायु में कौन-कौन सी अशुद्धियाँ पायी जाती हैं?
उत्तरः
वायु की अशुद्धियाँ –
वायु में विभिन्न क्रियाओं के परिणामस्वरूप दो प्रकार की अशुद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं –

(अ) गैसीय अशुद्धियाँ-वायु अपने आप में विभिन्न गैसों का मिश्रण मात्र है। वातावरण में विभिन्न क्रियाओं के परिणामस्वरूप विभिन्न गैसें बनती हैं जो वायु को अशुद्ध बनाती रहती हैं। इस प्रकार की मुख्य गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, अमोनिया आदि।

(ब)ठोस अथवा लटकने वाली अशुद्धियाँ-कुछ हल्के ठोस पदार्थ भी वायु में व्याप्त रहते हैं। वायु की इन ठोस अशुद्धियों को देखा जा सकता है। ये अशुद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं –

(i) सजीव अशुद्धियाँ-विभिन्न प्रकार के जीवाणु, बीजाणु, परागकण आदि इसी प्रकार की अशुद्धियाँ हैं। ये अशुद्धियाँ हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

(ii) निर्जीव अशुद्धियाँ-ये अशुद्धियाँ विभिन्न प्रकार के कणों के रूप में होती हैं। मिट्टी, धुल, रेत आदि के हल्के कण वायु में व्याप्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त, वनस्पतियों के कण, ऊन, धागे तथा लकड़ी आदि के महीन कण इसी प्रकार की अशुद्धि को जन्म देते हैं। विभिन्न फैक्ट्रियों आदि की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के साथ कोयले के महीन कण तथा कुछ अन्य धातुओं के कण भी वायु में घुल-मिल जाते हैं। इन सभी प्रकार के कणों को वायु की अशुद्धियाँ ही माना जाता है।

प्रश्न 5.
वायु को अशुद्ध बनाने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
वायु को अशुद्ध बनाने वाले कारक –
वायु को अशुद्ध करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं –

1. श्वसन क्रिया द्वारा-वायु का सर्वाधिक उपयोग श्वसन क्रिया के लिए होता है। श्वसन क्रिया द्वारा वायुमण्डल से जीव ऑक्सीजन का सेवन कर लेते हैं तथा बदले में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। इस क्रिया के परिणामस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जाती है और वायु अशुद्ध हो जाती है।

2. विभिन्न पदार्थों के जलने से लकड़ी, कोयला, गैस, तेल तथा अन्य अनेक पदार्थों के जलने में ऑक्सीजन प्रयुक्त होती है। इससे वायु में ऑक्सीजन की मात्रा तो घटती ही है, साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा में भी बढ़ोतरी होती है। इससे वायु का सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा वायु अशुद्ध हो जाती है। जलने की क्रिया से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी कुछ विषैली गैसें भी उत्पन्न होती हैं, जो वायु को और अधिक दूषित बनाती हैं।

3. व्यावसायिक अशुद्धियाँ-उद्योगों में अनेक प्रकार की रासायनिक क्रियाएँ होती हैं। इससे अनेक प्रकार की विषैली गैसें तथा गन्दगी उत्पन्न होती है। ये सब वायुमण्डल में व्याप्त होती रहती हैं और वायुमण्डल दूषित होता रहता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के उद्योग भिन्न-भिन्न प्रकार की अशुद्धियाँ वायुमण्डल में छोड़ते रहते हैं।

4. वाहन-डीजल, पेट्रोल, गैस आदि से चलने वाले वाहन भी वायु को निरन्तर अशुद्ध बनाते रहते हैं।

प्रश्न 6.
अशुद्ध वायु का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तरः
अशुद्ध वायु का स्वास्थ्य पर प्रभाव –
शुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य के लिए सहायक एवं लाभदायक होती है। इसके विपरीत, अशुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। अधिक समय तक अशुद्ध वायु में साँस लेते रहने से अनेक रोग हो सकते हैं। यदि व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध वायु नहीं मिलती तो उसकी आयु घटकर शीघ्र ही मृत्यु भी हो सकती है। अशुद्ध वायु फेफड़ों को दूषित करती है तथा शरीर में अनेक विजातीय तत्त्व एकत्रित होने लगते हैं। पाचन क्रिया भी अशुद्ध वायु से अस्त-व्यस्त होने लगती है। अशुद्ध वायु शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। अशुद्ध वायु के निरन्तर सेवन से व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसा व्यक्ति कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाता, वह प्राय: बेचैन-सा रहता है तथा उसके व्यवहार में असामान्यता आ जाती है।

अशुद्ध वायु में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। इससे वायु में विभिन्न रोगों के कीटाणु बढ़ने लगते हैं। इस प्रकार अनेक प्रकार के रोग; जैसे-सिरदर्द, चक्कर आना, भूख न लगना, अजीर्ण, आँखों, गले आदि के रोग, तपेदिक, खाँसी, जुकाम आदि अशुद्ध वायु से फैलते हैं।

प्रश्न 7.
वायु मानव-जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
वायु मानव-जीवन के लिए आवश्यक है –
वायु, सभी जीवधारियों के लिए प्राणदायिनी है। यह पेड़-पौधों के लिए भी आवश्यक है, जिनसे हमें अनेक प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। यह मनुष्य के लिए दो प्रकार से आवश्यक है –

1. श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक गैसों का आदान-प्रदान–शरीर में उपस्थित प्रत्येक जीवित कोशिका, ऊतक आदि को जीवित रहने तथा जैविक कार्यों को करने के लिए प्राणदायक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इन जीवित कोशिकाओं में ऑक्सीजन, जो रुधिर के माध्यम से यहाँ पहुँचती है, के द्वारा भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है। इससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड भी उत्पन्न होती है। यह शरीर के लिए अनुपयोगी एवं हानिकारक गैस है। रुधिर के द्वारा ही कार्बन डाइऑक्साइड इन कोशिकाओं तथा ऊतकों से हटाई जाती है।

श्वसन के लिए ऑक्सीजन श्वसनांगों में वायु से ही उपलब्ध होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर से वायु में छोड़ी जाती है।

2. शरीर का ताप सामान्य रखना-वायु के सम्पर्क में शरीर का ताप कम होता रहता है; अत: स्थिर बना रहता है। त्वचा पर आए हुए पसीने को भी वायु उड़ा ले जाती है। इससे त्वचा ठण्डी होती है। दूसरी ओर श्वसन क्रिया से भी शरीर के तापक्रम का नियमन होता है।

प्रश्न 8.
अशुद्ध वायु की शुद्धि के प्राकृतिक साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
अशुद्ध वायु की शुद्धि के प्राकृतिक साधन –
प्रकृति में ही ऐसे अनेक साधन हैं जो वायु को निरन्तर शुद्ध करते रहते हैं; यथा –

1. पेड़-पौधों द्वारा वायु शुद्ध करना – वायु को शुद्ध करने वाले मुख्य प्राकृतिक साधन पेड़-पौधे हैं जो वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं तथा सूर्य के प्रकाश में
ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस क्रिया में जहाँ एक ओर वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटती है वहीं दूसरी ओर ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है।

2. सूर्य के प्रकाश द्वारा वायु का शुद्ध होना – सूर्य के प्रकाश में अत्यधिक ताप होता है। इसकी गर्मी से अनेक अशुद्धियाँ स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं; जैसे—विभिन्न रोगों के कीटाणु सूर्य की गर्मी से मर जाते हैं, जलवाष्प की अधिकता सूर्य की गर्मी से कम होती है तथा वस्तुओं के सड़ने-गलने से उत्पन्न होने वाली अशुद्धियाँ तथा दुर्गन्धपूर्ण गैसें सूर्य के प्रकाश एवं गर्मी से ऑक्सीजन की उपस्थिति में नष्ट हो जाती हैं।

3. वर्षा द्वारा वायु का शुद्ध होना – वर्षा का जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों को घोलकर अपने साथ बहा ले जाता है। उदाहरणार्थ-वायुमण्डल में उपस्थित धूल-कण एवं अन्य अनेक धातुओं के महीन कण जल के साथ बहकर पृथ्वी पर आते हैं तथा अनेक गैसें जल में घुलनशील होती हैं जो वर्षा के जल में घुलकर पृथ्वी पर आती हैं।

4. वायु की ऑक्सीजन द्वारा वायु का शुद्ध होना – ऑक्सीजन सभी वस्तुओं को ऑक्सीकृत करने वाली गैस है। इस प्रकार वायु में उपस्थित ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर देती है। इसी प्रकार की दूसरी गैस तथा ऑक्सीजन का एक रूप ओजोन भी एक तीव्र गैस है। ओजोन अनेक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है।

5. तेज हवाओं द्वारा वायु का शुद्ध होना – वायु का शुद्धीकरण तेज गति से बहने वाली हवाओं से भी होता है। ये हवाएँ एक स्थान पर एकत्रित होने वाली अशुद्धियों को तीव्र गति से उड़ाकर दूर क्षेत्रों में पहुँचा देती हैं। इस क्रिया से वायु का विलोडन होता है तथा सभी स्थानों पर सन्तुलन बना रहता है। उदाहरणार्थ-यदि हवाएँ न चलें तो औद्योगिक क्षेत्रों का वातावरण इतना अधिक दूषित हो जाए कि वहाँ रहना असम्भव हो जाए।

6. विसरण द्वारा वायु का शुद्ध होना – विसरण पदार्थों का एक विशेष गुण है, विशेषकर गैसों का; जिसमें एक गैस अपने से अधिक सान्द्रण से कम सान्द्रण वाले स्थान पर स्वयं ही बहती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि उस गैस का दोनों स्थानों (सभी स्थानों) पर बराबर सान्द्रण नहीं हो जाता। इस गुण के कारण वायु की गैसें इधर-उधर बहती रहती हैं। जब किसी एक स्थान पर कुछ विषैली गैसें अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं तो वे स्वयं ही किसी भी दिशा में विसरित हो जाती हैं। इस प्रकार विसरण से वायु शुद्ध बनी रहती है।

प्रश्न 9.
अशुद्ध वायु की शुद्धि के कृत्रिम साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
अशुद्ध वायु की शुद्धि के कृत्रिम साधन –
अशुद्ध वायु को शुद्ध करने के लिए निम्नलिखित कृत्रिम साधनों को मुख्य रूप से अपनाया जाता है –

  • सभी मकानों एवं निवास स्थानों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वायु एवं सूर्य के प्रकाश के आने-जाने की व्यवस्था रहे।
  • घरों में जहाँ अँगीठी आदि जलाई जाती हैं वहाँ से धुआँ निकलने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए एक ऊँची चिमनी लगा देना उचित है ताकि धुआँ एवं दूषित गैसें घर के अन्दर तथा अन्य निवास स्थानों के पास एकत्रित न होने पाएँ।
  • यदि पशु पालने हों तो उन्हें निवास स्थान से कुछ दूर ही रखना चाहिए।
  • प्रत्येक बस्ती में काफी संख्या में पेड़-पौधे एवं वनस्पति उगानी चाहिए।
  • भूमि खाली नहीं छोड़नी चाहिए। खाली भूमि में धूल उड़ती है जो वायु को दूषित करती है।
  • विभिन्न औद्योगिक संस्थानों तथा फैक्ट्रियों को बस्ती से दूर बनाना चाहिए। इसके साथ ही फैक्ट्रियों का धुआँ निकालने वाली चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिए, जिससे दूषित गैसें काफी ऊँचाई पर वायुमण्डल में चली जाएँ।
  • जहाँ अधिक वाहन चलते हैं वहाँ की सड़कें पक्की होनी चाहिए। कच्ची सड़कों से धूल उड़ती है तथा यह धूल वायु को दूषित करती है। कच्ची सड़कों पर धूल को उड़ने से रोकने के लिए पानी छिड़कने की व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रश्न 10.
गृह तथा स्कूल में उत्तम संवातन व्यवस्था को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है?
अथवा
स्कूलों में संवातन व्यवस्था का महत्त्व लिखिए।
अथवा
टिप्पणी लिखिए-संवातन से लाभ।
उत्तरः
घर तथा स्कूल में संवातन व्यवस्था का महत्त्व –
सभी जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध वायु आवश्यक है। शुद्ध वायु का अर्थ है ऐसी वायु जिसमें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपस्थित हो। वायुरूपी इस मिश्रण में ऑक्सीजन के अतिरिक्त अन्य संगठक गैसों आदि का प्रतिशत भी सामान्य के इधर-उधर नहीं होना चाहिए अन्यथा यह वायु प्रदूषित कहलाएगी। किसी भी प्रकार से प्रदूषित वायु श्वसन के अयोग्य होती है। घर हो या विद्यालय या अन्य कोई स्थान जहाँ मनुष्य रहता है अथवा एकत्रित होते हैं, सभी जगह श्वसन के लिए शुद्ध तथा श्वसन योग्य वायु का होना आवश्यक है। दूसरी ओर ऐसे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति या व्यक्ति समूह वायु में से श्वसन योग्य प्राणदायक ऑक्सीजन को ग्रहण ही नहीं करेंगे वरन् कार्बन डाइऑक्साइड तथा नमी छोड़कर इसे प्रदूषित भी करेंगे। इसका अर्थ यह भी है कि अल्प समय में ही कमरे या किसी भी बन्द स्थान की वायु को ये व्यक्ति केवल श्वसन द्वारा ही श्वसन योग्य नहीं रहने देंगे। बच्चों पर तो प्रदूषित वायु अथवा अशुद्ध वायु का अत्यधिक प्रभाव होता है।

आवश्यक है कि उपर्युक्त स्थानों में ऐसी व्यवस्था अवश्य ही होनी चाहिए कि श्वसन में छोड़ी गई दूषित वायु को कमरे से बाहर निकाला जाए तथा शुद्ध, श्वसन योग्य वायु कमरे में लाई जाए। अत: आवश्यक है कि ऐसे सभी स्थानों पर उचित तथा उपयोगी संवातन व्यवस्था अपनाई जाए। इसके लिए सामान्य प्राकृतिक साधनों को ही कृत्रिम रूप से अपनाकर व्यवस्थित किया जा सकता है, जैसे पारगामी संवातन (Cross Ventilation) तथा छत के आस-पास चिमनी अथवा रोशनदान बनाना।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गृह तथा स्कूल में संवातन व्यवस्था का अत्यधिक महत्त्व है। स्कूल में प्रत्येक कक्ष पर्याप्त बड़ा होना चाहिए तथा उसमें खिड़की, दरवाजे एवं रोशनदान अवश्य होने चाहिए। स्कूल के कमरों की दिशा वायु की गति के अनुकूल होनी चाहिए ताकि एक दिशा से आने वाले वायु के झोंके दूसरी दिशा वाले दरवाजे खिड़कियों से बाहर निकल जाएँ। कमरों के अतिरिक्त स्कूल का प्रांगण भी पर्याप्त खुला होना चाहिए। स्कूल का निर्माण तंग गलियों में या औद्योगिक क्षेत्र में नहीं किया जाना चाहिए। स्कूल के निकट कोई गन्दा नाला या खत्ता भी नहीं होना चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गृह स्वच्छता क्या है?
उत्तरः
गृह स्वच्छता का अर्थ है-घर में गन्दगी का न होना। गृह स्वच्छता के लिए घर तथा घर की वस्तुओं की सफाई के विभिन्न उपाय किए जाते हैं तथा घर से कूड़े-करकट को नियमित रूप से विसर्जित किया जाता है।

प्रश्न 2.
गृह स्वच्छता के कितने प्रकार हैं?
उत्तरः
घर की सफाई के मुख्य पाँच प्रकार हैं –

  1. दैनिक सफाई
  2. साप्ताहिक सफाई
  3. मासिक सफाई
  4. वार्षिक सफाई
  5. आकस्मिक सफाई।

प्रश्न 3.
घर की सफाई के दो मुख्य आधुनिक उपकरणों के नाम बताइए।
उत्तरः
घर की सफाई के दो मुख्य आधुनिक उपकरण हैं-वैक्यूम क्लीनर तथा कारपेट क्लीनर।

प्रश्न 4.
घर की सफाई का प्रमुख लाभ क्या है?
उत्तरः
घर की सफाई वहाँ रहने वालों के स्वास्थ्य में सहायक होती है।

प्रश्न 5.
क्या सफाई के अभाव में गृह-सज्जा सम्भव है?
उत्तरः
सफाई के अभाव में गृह-सज्जा कदापि सम्भव नहीं है।

प्रश्न 6.
वायु जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर
वायु से ही जीव श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करता है तथा वायु में ही वह कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है।

प्रश्न 7.
प्राणदायक गैस कौन-सी है?
उत्तरः
प्राणदायक गैस ऑक्सीजन है। यह श्वसन के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 8.
वायु कैसे दूषित होती है?
उत्तरः
जीवों के द्वारा की जाने वाली श्वसन-क्रिया, पदार्थों के जलने तथा औद्योगिक संस्थानों के अवशेषों के वायु में मिलने से वह दूषित हो जाती है।

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण को आप कैसे रोकेंगी?
उत्तरः
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण में आवश्यक सावधानियाँ रखकर, वाहनों को सुधारकर तथा अधिक-से-अधिक पेड़ लगाकर वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है।

प्रश्न 10.
वायु को शुद्ध करने में सर्वाधिक योगदान किसका है?
उत्तरः
वायु को शुद्ध करने में सर्वाधिक योगदान पेड़-पौधों का है।

प्रश्न 11.
संवातन से क्या आशय है? ।
उत्तरः
किसी आवासीय स्थान पर वायु के आने-जाने की उचित व्यवस्था को ‘संवातन’ कहते हैं।

प्रश्न 12.
संवातन का उद्देश्य क्या है?
उत्तरः
संवातन का उद्देश्य आवासीय स्थल पर शुद्ध वायु प्राप्त करना तथा अशुद्ध वायु का विसर्जन है।

प्रश्न 13.
संवातन के प्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तरः
संवातन के प्राकृतिक साधन हैं-वायु की गति, तेज हवाएँ, गैसों के विसरण का गुण तथा ताप पाकर वायु का हल्का होकर ऊपर उठना।

प्रश्न 14.
रोशनदान छत के पास तथा खिड़कियाँ नीचे की ओर होती हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तरः
ताजी एवं ठण्डी वायु खिड़कियों से कमरे में प्रवेश करती है तथा गर्म एवं अशुद्ध वायु रोशनदान से बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 15.
कृत्रिम संवातन का कोई एक उपाय बताइए।
उत्तरः
कृत्रिम संवातन का एक मुख्य उपाय है-निर्वातक पंखा (Exhaust fan)।

प्रश्न 16.
निर्वातक पंखों की क्या उपयोगिता है?
उत्तरः
किसी कक्ष से दूषित वायु को बाहर निकालने के लिए निर्वातक पंखे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। ये कृत्रिम संवातन के प्रमुख साधन होते हैं।

प्रश्न 17.
घर को मक्खी व मच्छरों से मुक्त करने के उपाय लिखिए।
उत्तरः
घर को मक्खी व मच्छरों से मुक्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-घर में हर प्रकार की सफाई की व्यवस्था करना/रखना। इसके अतिरिक्त घर में नियमित रूप से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाना चाहिए। घर पर फिनायल का पोंछा लगाना चाहिए। घर के सभी बाहरी दरवाजे-खिड़कियाँ जाली वाले होने चाहिए तथा उन्हें सामान्य रूप से बन्द रखना चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. घर की सफाई में सर्वाधिक महत्त्व है –
(क) दैनिक सफाई का
(ख) साप्ताहिक सफाई का
(ग) मासिक सफाई का
(घ) वार्षिक सफाई का।
उत्तरः
(क) दैनिक सफाई का।

2. घर की सफाई महत्त्वपूर्ण है –
(क) शारीरिक स्वास्थ्य के लिए
(ख) मानसिक स्वास्थ्य के लिए
(ग) जीवन में आनन्द-प्राप्ति के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।

3. घर की सफाई क्यों आवश्यक है –
(क) रोग के कीटाणुओं की रोकथाम के लिए
(ख) घर की सजावट के लिए
(ग) सुचारु रूप से गृह व्यवस्था के लिए
(घ) इन सभी कारणों के लिए।
उत्तरः
(घ) इन सभी कारणों के लिए।

4. शौचालय की नाली को प्रतिदिन धोना चाहिए –
(क) डी०डी०टी० से
(ख) साबुन से
(ग) फिनायल से
(घ) सादे पानी से।
उत्तरः
(ग) फिनायल से।

5. वायु में पायी जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस है –
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) ओजोन
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
उत्तरः
(ख) नाइट्रोजन।

6. वायु है –
(क) एक मिश्रण
(ख) यौगिक
(ग) तत्त्व
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(क) एक मिश्रण।

7. वर्षा ऋतु में वायु में बढ़ जाती है –
(क) सुगन्ध
(ख) नमी
(ग) ऑक्सीजन
(घ) नाइट्रोजन।
उत्तरः
(ख) नमी।

8. कमरे के अच्छे संवातन के लिए आवश्यक है –
(क) एक खिड़की तथा एक दरवाजा
(ख) एक खिड़की, रोशनदान व एक दरवाजा
(ग) पारगामी संवातन व्यवस्था
(घ) कूलर की व्यवस्था।
उत्तरः
(ग) पारगामी संवातन व्यवस्था।

9. किसी कार्बनिक वस्तु के जलने से उत्पन्न होती है –
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड।

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UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 11 कूड़ा-करकट व मल-मूत्र निस्तारण 

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 11 कूड़ा-करकट व मल-मूत्र निस्तारण (Disposal of Refuse and Human Excreta)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 11 कूड़ा-करकट व मल-मूत्र निस्तारण

UP Board Class 11 Home Science Chapter 11 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घर के कूड़े-करकट के निष्कासन की क्या व्यवस्था होनी चाहिए? कूड़े-कचरे के अन्तिम विसर्जन की विभिन्न विधियों का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा
कूड़ा-करकट तथा अपशिष्ट जल के निकास की व्यवस्था पर विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा
शहर के कूड़े-कचरे के निस्तारण की सर्वोत्तम विधि क्या है? समझाइए।
अथवा
कूड़े को नष्ट करने की विभिन्न विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
कूड़ा-करकट (Refuse) –
घर में अनेक कार्यों के परिणामस्वरूप कूड़ा-करकट एकत्र होता रहता है। सब्जियों के छिलके, आटे का चोकर, भोजन की जूठन, धूल-मिट्टी जो हाथ अथवा पैरों के साथ आती है तथा अन्य प्रकार का कूड़ा-करकट घर की सफाई में निकलता ही है। व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए इसका उचित विसर्जन अत्यावश्यक है। अगर ऐसा न किया गया तब पर्यावरण तो दूषित होगा ही, साथ ही स्थान-स्थान पर कूड़ा-कचरा भी होगा और विभिन्न प्रकार के रोगाणु आदि उत्पन्न होंगे। इस प्रकार प्रत्येक घर की सफाई के बाद निकला कूड़ा-करकट, इस प्रकार से विसर्जित होना चाहिए कि जन-स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को कोई हानि न हो।

गाँव हो या शहर, प्रत्येक घर से निष्कासित कूड़ा-करकट गली, मुहल्ले, नगर अथवा गाँव का कूड़ा-करकट बन जाता है।

कूड़े-करकट का निस्तारण (Disposal of Refuse) –
घर में सफाई इत्यादि से निकले कूड़े-करकट के विसर्जन के लिए सबसे उत्तम उपाय यह है कि घर में किसी स्थान पर कूड़ेदान रख दिया जाए। कूड़ेदान का ढक्कनदार होना आवश्यक है। बच्चों के कमरे या अन्य ऐसे स्थानों पर अलग टोकरी रखी जा सकती है जिनमें कागज इत्यादि डाले जा सकते हैं। इन सब कूड़ेदानों के कूड़े को एक मुख्य कूड़ेदान में पहुँचाने की क्रिया आवश्यक है। यह कूड़ेदान घर के मुख्य द्वार के आस-पास रखा जाना चाहिए। सम्पूर्ण घर का कूड़ा इसी कूड़ेदान में डाला जाए तो यह घर की सफाई की उत्तम व्यवस्था है। सड़क या गली में आने वाली गाड़ियों के साथ आने वाले सफाई कर्मचारी कूड़ेदान से अपने ठेले में इस कूड़े को ले जाकर सार्वजनिक खत्ते पर पहुँचाने की व्यवस्था कर सकते हैं।

इस प्रकार, नगर में कूड़ा-करकट मुख्य तीन स्थानों पर एकत्रित किया जाता है –

  1. प्रत्येक घर में मुख्य द्वार के निकट एक बड़ा कूड़ेदान रखा जाता है। इस कूड़ेदान में घर का सारा कूड़ा एकत्र किया जाता है तथा यहाँ से इस कूड़े को सफाई कर्मचारी उठा ले जाता है।
  2. प्रत्येक मुहल्ले में जहाँ यह किसी बड़े ड्रम या इसी कार्य के लिए रखे गए विशेष प्रकार के ढक्कनदार कूड़ेदान में एकत्रित किया जाना चाहिए।
  3. नगर के खत्ते पर जहाँ सम्पूर्ण नगर या बड़े नगर के एक बड़े भाग के प्रत्येक मुहल्ले से आए हुए कूड़े को अन्तिम विसर्जन के लिए एकत्रित किया जाता है।

कूड़े-कचरे का अन्तिम विसर्जन (Last Disposal of Refuse) –
नगर अथवा गाँव के एकत्र किए गए कूड़े का अन्तिम विसर्जन निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जा सकता है –

1. जलाकर – इस कार्य के लिए विशेष प्रकार की भट्ठियाँ बनाई जाती हैं। ये भट्ठियाँ नगर से दूर होनी चाहिए क्योंकि कूड़े को जलाने से, उससे हानिकारक गैसें निकलती हैं। ये गैसें नागरिकों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचा सकती हैं। जलने के बाद बचे अवशेष, राख आदि को कई प्रकार से काम में लाया जा सकता है; जैसे भराव करने के लिए, सड़क आदि बनाने के लिए अथवा सीमेण्ट आदि बनाने के लिए। वर्तमान परिस्थितियों में घरेलू कूड़े में प्लास्टिक, रबड़ तथा पॉलीथीन जैसी अकार्बनिक वस्तुओं की पर्याप्त मात्रा होती है। इस स्थिति में कूड़े को जलाने पर अत्यधिक पर्यावरण प्रदूषण होता है। अतः कूड़े-करकट को जलाकर ठिकाने लगाना उचित नहीं माना जाता।

2. जल प्रवाह में डालकर – अब से कुछ काल पूर्व तक कूड़े-करकट के निस्तारण के लिए यही विधि उपयोग में लाई जाती थी जो अत्यन्त हानिकारक है। नदी आदि का जल इस प्रकार के निस्तारण से अत्यधिक दूषित हो जाता है। अत: कूड़े के निस्तारण की यह विधि वर्जित होनी चाहिए।

3. भराव करने के लिए – गड्ढों अथवा नीची भूमि में भराव करने के लिए कूड़े-कचरे का प्रयोग भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही है। विशेषकर ऐसे गड्ढे इत्यादि यदि आवासीय क्षेत्र में हैं तो इनसे निकली गैसें आदि अनेक रोगों का कारण बन सकती हैं। इससे कुछ सीमा तक बचाव के लिए कूड़े के ऊपर मिट्टी की तह बनाई जा सकती है। फिर भी इस प्रकार का भराव केवल आवासीय क्षेत्र से दूर के क्षेत्र में ही किया जाना चाहिए।

4. खाद बनाना-कूड़े – कचरे में जो कार्बनिक पदार्थ होते हैं, उनको खाद बनाने के लिए खाद के गड्ढों में डाला जाता है। इसको मिट्टी की तहों के बीच-बीच में दबाया जाता है। इस प्रकार, एक उत्तम प्रकार की खाद, कम्पोस्ट खाद तैयार होती है। इस विधि से कूड़े-करकट को उपयोगी पदार्थ में बदला जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर के साधारण कूड़े के अतिरिक्त गाय, भैंस आदि पशुओं का कूड़ा (गोबर आदि) भी होता है। इनका कूड़ा अलग तरीके से विसर्जित किया जाना चाहिए। इसके लिए व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि ये पदार्थ किसी एक स्थान पर अधिक समय तक एकत्रित न रहें। उपले थपवा देने, खाद बनाने के लिए गड्ढे में डाल देना आदि व्यवस्था सामान्य तथा पुरानी है। आजकल गोबर आदि से बायो गैस बनाने का कार्यक्रम, कूड़े-करकट के निस्तारण का एक वैज्ञानिक तरीका है।

5. छंटाई करके इस्तेमाल करना – घरेलू कूड़े-करकट के विसर्जन का एक उपाय कूड़े-करकट की छंटाई करके विभिन्न प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल करना भी है। इस उपाय के अन्तर्गत खाद के अतिरिक्त प्लास्टिक आदि को पुनः इस्तेमाल किया जाता है।

प्रश्न 2.
घरेलू मल विसर्जन के क्या-क्या तरीके हैं? कौन-सी प्रणाली उत्तम है और क्यों?
अथवा
जल-संवहन विधि से आप क्या समझती हैं? इसके द्वारा मल विसर्जन का वर्णन कीजिए।
अथवा
शहरों में वाहित मल का विसर्जन किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जल-संवहन विधि के शौचालय पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
घरेलू मल निस्तारण (Disposal of Excreta) –
सामान्यत: नगर या कस्बे में रहने वाले व्यक्तियों को घर पर ही मल-मूत्र विसर्जन की व्यवस्था करना अब आवश्यक हो गया है। गाँवों में प्राचीनकाल की भाँति मल विसर्जन की कोई समस्या नहीं है। स्थानाभाव, आबादी की वृद्धि तथा व्यक्ति की व्यस्तता के अनुसार इस दशा में घरों पर शौचालयों की व्यवस्था, उनकी बनावट तथा एकत्रित मल को ठिकाने लगाने की अनेक प्रकार से व्यवस्था की जाती रही है। पारम्परिक से लेकर आधुनिक तरीकों तक निम्नलिखित चार विधियाँ प्रचलित हैं –

1. मल उठाकर ले जाने की विधि – छोटे नगरों, कस्बों आदि में इसी प्रकार की व्यवस्था होती है। शौचालय में परिवार का प्रत्येक व्यक्ति मल त्याग करता है जो किसी बर्तन (pot) में एकत्रित होता है। सफाई कर्मचारी दिन में एक या दो समय आकर मल को उठाकर ले जाता है तथा नगरपालिका द्वारा स्थापित खत्ते में डाल देता है। सामान्यतः इस खत्ते से खाद बनाया जाता है।

मल विसर्जन की यह विधि सामान्य है तथा किसी प्रकार से भी अच्छी नहीं कही जा सकती। सफाई कर्मचारी की लापरवाही अनेक बार इसको और भी विकृत रूप दे देती है। मल को शुष्क अवस्था में न ले जाना, नाली आदि में बहाना, कम सफाई आदि के कारण यह विधि वातावरण को दुर्गन्धयुक्त तथा अस्वास्थ्यकर बनाती है। दूसरी ओर, सफाई कर्मचारी के द्वारा मल उठाकर ले जाना किसी प्रकार भी मानवीय कार्य प्रतीत नहीं होता। इसलिए इस प्रणाली को अब लगभग समाप्त किया जा चुका है।

2. सण्डास विधि – इस विधि के अन्तर्गत शौचालय में एक गहरा गड्ढा खोदकर इसके ऊपर बैठने के लिए एक सीट लगाई जाती है, जहाँ बैठकर मल त्याग किया जाता है। इस गड्ढे को साफ करने की कोई व्यवस्था नहीं होती, अत: यह गड्ढा धीरे-धीरे भरने लगता है। यह विधि किसी भी प्रकार से ठीक नहीं मानी जा सकती क्योंकि इससे सड़न एवं दुर्गन्ध पैदा होती है जो वातावरण को दूषित करने के साथ-साथ विभिन्न रोगों को भी उत्पन्न करती है।

3. जल-संवहन विधि – सभी आधुनिक व बड़े नगरों में घरेलू मल विसर्जन के लिए जल-संवहन विधि को अपनाया जाता है। यह एक उत्तम विधि है। इस विधि से गन्दगी एवं दुर्गन्ध पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।

इस विधि के अन्तर्गत घर पर एक व्यवस्थित शौचालय बनाया जाता है। शौचालय में मल त्यागने के लिए एक सीट लगाई जाती है जिसका सम्बन्ध भूमिगत पाइप द्वारा एक मुख्य पाइप से होता है जो शहर से बाहर तक जाता है। मल त्याग करने के उपरान्त सीट के पीछे लगे फ्लश सिस्टम से अधिक मात्रा में पानी छोड़ा जाता है। पानी के बहाव के साथ मल-मूत्र भी मुख्य पाइप में बह जाता है तथा शौचालय पूर्णतया स्वच्छ रहता है। नगर के बाहर एक स्थान पर इस मल को सड़ाकर खाद बना लिया जाता है जो कृषि कार्यों में बहुत उपयोगी होता है।

पहले कुछ नगरों में इस प्रकार से मल को बहाकर नगर के पास बहने वाली किसी नदी में मिला दिया जाता था, परन्तु अब इसे अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इससे नदियों का जल दूषित होता है। वास्तव में, घरेलू मल विसर्जन के लिए यह विधि सामान्यतः सभी प्रकार से उपयुक्त है, किन्तु इस विधि को केवल वहीं प्रयोग किया जा सकता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध होता है तथा इसका प्रबन्ध व्यवस्थित रूप से नगरपालिका द्वारा किया जाता है।

4. सैप्टिक टैंक विधि – घरेलू मल-विसर्जन के लिए उपर्युक्त सार्वजनिक जल-संवहन के स्थान पर स्थानीय सैप्टिक टैंक विधि का भी प्रयोग किया जा सकता है। सैप्टिक टैंक बनाने के लिए एक गहरा गड्ढा बनाया जाता है जो ऊपर से बन्द होता है, केवल विषैली गैसों के निकलने के लिए इसके ऊपर एक पाइस लगा दिया जाता है। सैप्टिक टैंक में मल को कीड़े खाते रहते हैं अथवा इसका अपघटन (decomposition) हो जाता है तथा पानी जमीन में रिसता रहता है अथवा नाली से बाहर जाता है। यह टैंक कई वर्षों तक कार्य करता रहता है। कुछ वर्षों के बाद एक बार सफाई करवा देने से पुनः उतने ही समय के लिए टैंक कार्य कर सकता है। इस टैंक के साथ भी घर का शौचालय हर प्रकार से स्वच्छ एवं दुर्गन्धरहित रूप में कार्य करता है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि घरेलू मल विसर्जन की चारों विधियों में जल-संवहन विधि सर्वोत्तम है क्योंकि इसमें शौचालय पूर्णतया स्वच्छ रहता है और दुर्गन्ध भी नहीं फैलती तथा मल भूमिगत पाइपों द्वारा बहकर शहर से बाहर चला जाता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गोबर का सबसे अच्छा उपयोग आप किस प्रकार करेंगी? समझाइए।
उत्तरः
गोबर का उत्तम उपयोग –
पारम्परिक रूप से हमारे देश में गोबर को उपले आदि बनाकर जलाने के काम में लिया जाता था। इसके धुएँ आदि में उपस्थित विषैली गैसें फैलती थीं, साथ ही उन कार्बनिक पदार्थों की हानि होती थी जिनका प्रयोग अत्यधिक उपयोगी पदार्थों के रूप में किया जा सकता है। कुछ स्थानों पर इसका उपयोग खाद बनाने के लिए भी किया जाता रहा है।

गोबर का सबसे अच्छा उपयोग है इसको बायो गैस संयन्त्र में डालकर बायो गैस प्राप्त करना। इस प्रकार एक शक्तिशाली ईंधन, प्रकाश के लिए ऊर्जा का साधन प्राप्त हो जाता है। यही नहीं, शेष बचा हुआ पदार्थ अत्यन्त उपयोगी खाद के रूप में प्रयोग होता है।

स्पष्ट है कि गोबर का बायो गैस उत्पादक के रूप में उपयोग सबसे अच्छा है।

प्रश्न 2.
घर की स्वच्छता एवं स्वास्थ्य में बाधक कीटों के रूप में मक्खी तथा मच्छर का सामान्य विवरण दीजिए।
उत्तरः
(क) मक्खी मक्खी गन्दगी में उत्पन्न होती है तथा सामान्य रूप से यह गन्दगी में रहना ही पसन्द करती है। एक मादा मक्खी एक बार में 100-500 अण्डे देती है। ये अण्डे छोटे, लम्बे तथा सिगार के आकार के होते हैं। इनका रंग सफेद व चमकीला होता है। जल्दी ही इनसे लारवा निकलता है जो बाद में प्यूपा बनकर मक्खी के रूप में बदल जाता है। बरसात के दिनों में गोबर, मल, कूड़ा-करकट इत्यादि के आस-पास इनका जन्म अधिक होता है, अतः इन्हें रोकने के लिए सफाई रखना अत्यन्त आवश्यक है। मक्खियों को नष्ट करने के लिए गन्दगी पर नियन्त्रण करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त घरों से मक्खियों को समाप्त करने के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं जैसे कि मक्खी मारने की औषधियों का छिड़काव।

(ख) मच्छर मच्छर की उत्पत्ति अण्डे से होती है। मादा मच्छर ठहरे हुए पानी के आस-पास अण्डे देती है। इसके अण्डे समूह में होते हैं। एक बार में एक मादा मच्छर 100-500 तक अण्डे देती है। बाद में अण्डों से लारवा तथा प्यूपा अवस्था बनती है और फिर मच्छर उत्पन्न होते हैं। इनके निवारण के लिए आस-पास पानी को रुकने नहीं देना चाहिए और यदि कहीं पानी रुका हुआ हो, तो उसके ऊपर मिट्टी का तेल डाल देना चाहिए। नाली, पानी के गड्ढे, टैंक, कूलर तथा अन्य स्थानों पर यदि पानी नहीं रुकेगा तो मच्छर भी पैदा नहीं होंगे।

प्रश्न 3.
घर के गन्दे पानी को निकालने के लिए क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तरः
घर के गन्दे पानी को निकालने के लिए नगरपालिका और नगरवासियों को आपसी सहयोग करना अनिवार्य है। घर के अन्दर नालियों की उचित व्यवस्था होनी आवश्यक है ताकि इसमें पानी न रुके। पक्के फर्श ढालू होने चाहिए, विशेषकर स्नानघर, रसोईघर आदि स्थानों के फर्श। घर की सभी नालियों को मिलाकर एक मुख्य नाली के द्वारा गली या सड़क की नाली से जोड़ देना चाहिए। प्रत्येक नाली के ऊपर जाली होनी आवश्यक है ताकि कूड़ा-करकट नालियों में न भरने पाए और पानी न रुकने पाए। नालियों को कभी-कभी फिनायल से साफ करवा देना चाहिए। एक से अधिक मंजिल वाले मकानों में निचली मंजिलों तक गन्दा पानी लाने के लिए प्लास्टिक या सीमेण्ट के पाइप का प्रयोग होना चाहिए। खुले पतनाले किसी भी हालत में उचित नहीं।

घर के गन्दे पानी को बाहर निकाल देना ही काफी नहीं है। बल्कि गन्दे पानी को निकालने की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि यह घर से बाहर पहुँचे और सार्वजनिक नाली से मिल जाए। इस प्रकार, जहाँ नगर अथवा कस्बे में सार्वजनिक नालियाँ हैं वहाँ गन्दे पानी की निकासी की समस्या स्वयं ही सुलझ जाती है किन्तु इनके अभाव में घर के बाहर गहरा .पक्का गड्ढा या सोकिंग पिट (socking pit) बनवा देना आवश्यक होगा। इनकी सफाई की भी व्यवस्था होनी चाहिए; ताकि इनमें मक्खी, मच्छर इत्यादि न पनप सकें।

प्रत्येक अवस्था में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कहीं भी पानी बेकार न बिखरे और न ही अधिक समय तक रुके।

प्रश्न 4.
सुलभ शौचालय से आप क्या समझती हैं? इसके महत्त्व को समझाइए।
अथवा
सुलभ शौचालय से क्या आशय है?
अथवा
टिप्पणी लिखिए-सुलभ शौचालय।
उत्तरः
सुलभ शौचालय की योजना एक राष्ट्रीय योजना है तथा इसका परिचालन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है। इस योजना का उद्देश्य देश भर से मनुष्य द्वारा मैला ढोने की प्रथा का पूर्ण उन्मूलन तथा आदर्श शौचालय उपलब्ध कराना है।

सुलभ शौचालय सैद्धान्तिक रूप से सैप्टिक टैंक विधि के ही समान है, परन्तु इस विधि के अन्तर्गत जो टैंक बनाया जाता है वह पक्का नहीं होता; अतः शौचालय का समस्त पानी जमीन में ही सोख लिया जाता है तथा कीड़ों द्वारा मल को समाप्त कर दिया जाता है। इस विधि में किसी प्रकार की विषैली एवं दुर्गन्धपूर्ण गैस भी नहीं बनती; अत: वातावरण के प्रदूषण का भी भय नहीं रहता। इस गड्ढे से दूषित पानी भी बाहर नहीं निकलता। अत: यह एक उत्तम एवं आदर्श शौचालय है।

सुलभ शौचालय बनाने के लिए केन्द्र सरकार तथा विश्व बैंक की ओर से विशेष अनुदान की व्यवस्था है। अत: सुलभ शौचालय बनवाने पर लागत भी बहुत कम आती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 11 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घर के कूड़े को कहाँ एकत्र करना चाहिए?
उत्तरः
घर के कूड़े को एक ढक्कनदार कूड़ेदान में एकत्र करना चाहिए।

प्रश्न 2.
कूड़े-कचरे के अन्तिम विसर्जन की मुख्य विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तरः
कूड़े-कचरे के अन्तिम विसर्जन की मुख्य विधियाँ हैं –

  • जलाना
  • जल में प्रवाहित करना
  • गड्ढों में भराव करना
  • खाद बनाना तथा
  • छंटाई करके इस्तेमाल करना।

प्रश्न 3.
मल-मूत्र के विसर्जन की किस प्रणाली को सर्वोत्तम माना जाता है?
उत्तरः
जल-संवहन प्रणाली को मल-मूत्र के विसर्जन की सर्वोत्तम प्रणाली माना जाता है।

प्रश्न 4.
मल-मूत्र विसर्जन की जल-संवहन विधि के स्थानीय स्वरूप को क्या कहते हैं?
उत्तरः
सैप्टिक टैंक विधि।

प्रश्न 5.
वर्तमान समय में गोबर का सर्वोत्तम उपयोग क्या माना जाता है?
उत्तरः
वर्तमान समय में गोबर का सर्वोत्तम उपयोग है-गोबर से बायोगैस बनाना।

प्रश्न 6.
घर से गन्दे पानी की निकासी के लिए किस प्रकार की नालियाँ होनी चाहिए?
उत्तरः
घर से गन्दे पानी की निकासी के लिए पक्की, ढलावदार तथा ढकी हुई नालियाँ होनी चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 11 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. घर के समस्त कूड़े को एकत्र करना चाहिए –
(क) घर के किसी कोने में
(ख) कूड़ेदान में
(ग) सड़क पर
(घ) पड़ोसियों के घर के सामने।
उत्तरः
(ख) कूड़ेदान में।

2. घरेलू कूड़े की समस्या के पूर्ण समाधान का उपाय क्या है –
(क) घर में कूड़ा फैलने न दें
(ख) कूड़े को घर से निकालने की समुचित व्यवस्था करें
(ग) सभी घरों से निकलने वाले कूड़े को नष्ट करने के उपाय करें
(घ) उपर्युक्त सभी उपाय आवश्यक हैं।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी उपाय आवश्यक हैं।

3. भारत सरकार द्वारा शौचालय की किस योजना के लिए अनुदान दिया जाता है –
(क) जल-संवहन विधि
(ख) सैप्टिक टैंक विधि
(ग) सुलभ शौचालय योजना
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तरः
(ग) सुलभ शौचालय योजना।

4. गोबर का सर्वोत्तम वैज्ञानिक उपयोग क्या है –
(क) कण्डे बनाना
(ख) कच्चे घर को लीपना
(ग) गड्ढों में भर देना
(घ) बायोगैस बनाना।
उत्तरः
(घ) बायोगैस बनाना।

5. मक्खियों द्वारा कौन-सा रोग फैलता है
(क) चेचक
(ख) हैजा
(ग) टाइफॉइड
(घ) मलेरिया।
उत्तरः
(ख) हैजा।

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UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 19 भारतीय परिवार और उसके प्रत्येक सदस्य की भूमिका

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 19 भारतीय परिवार और उसके प्रत्येक सदस्य की भूमिका (Indian Family and the Role Played by its Each Member)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 19 भारतीय परिवार और उसके प्रत्येक सदस्य की भूमिका

UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय परिवार का क्या अर्थ है? भारतीय परिवार में विभिन्न सदस्यों की भूमिकाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारतीय परिवार की कौन-सी विशेषताएँ होती हैं? विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा
भारतीय परिवार की क्या विशेषताएँ हैं? उन पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
भारतीय परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Family) –
परिवार एक सामाजिक संस्था है। समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य तथा सामाजिक परिस्थितियाँ परिवार की विशेषताओं एवं आदर्शों को निर्धारित करती हैं। यही कारण है कि विश्व के विभिन्न समाजों में विद्यमान परिवारों के स्वरूप एवं विशेषताओं में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारतीय समाज के परिवार की कुछ मौलिक विशेषताएँ हैं, जो उसे पाश्चात्य समाज के परिवार से भिन्न प्रमाणित करती हैं। भारतीय समाज पारम्परिक रूप से आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख रहा है। यही कारण है कि भारतीय परिवार भी कुछ मौलिक विशेषताओं से युक्त है। पारम्परिक भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. संयुक्त परिवार प्रणाली-पारम्परिक भारतीय परिवार की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि हम संयुक्त रूप से रहकर ‘संयुक्त कुटुम्ब प्रणाली’ का पालन करते हैं। संयुक्त परिवार में तीन अथवा तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य एक साथ रहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत माँ-बाप, बच्चे, चाचा-चाची, भाई-भतीजे, बहन आदि मिलकर रहते हैं तथा एक ही साथ रहकर भोजन की व्यवस्था होती है। इस प्रणाली का सबसे बड़ा सिद्धान्त ‘संगठन’ है, जिसके अन्तर्गत सभी सदस्य मिल-जुलकर अपने-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करते हैं।

भारतीय संयुक्त परिवार के आशय को डॉ० इरावती कर्वे ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है“संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का एक समूह है, जो साधारणतया एक मकान में रहते हैं, जो एक रसोई में पका भोजन करते हैं, जो सामान्य सम्पत्ति के स्वामी होते हैं और जो सामान्य उपासना में भाग लेते हैं तथा जो किसी-न-किसी प्रकार से एक-दूसरे के रक्त सम्बन्धी होते हैं।”

2. पितृसत्तात्मक परिवार-हमारे भारतीय परिवार का मुखिया प्रारम्भ से ही पुरुष रहा है तथा उसे ही पूरे परिवार की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे परिवार को पितृसत्तात्मक परिवार कहते हैं।

आदिम काल में परिवार की देखभाल तथा जिम्मेदारी माता पर निर्भर रहती थी, अत: उसे मातृसत्तात्मक परिवार कहते थे। कुछ क्षेत्रों में; जैसे कि मालाबार इत्यादि में आज भी इस प्रकार की परिवार प्रणाली विद्यमान है जहाँ कि परिवार की सभी जिम्मेदारियाँ माता पर निर्भर हैं।

3. परिवार में स्त्रियों का उच्च स्थान-भारतीय परिवार के अन्तर्गत प्रारम्भ से ही स्त्री को सर्वोच्च एवं सम्मान का स्थान प्रदान किया गया है। परिवार में स्त्री तथा पुरुष को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। महर्षि मनु ने स्त्रियों की महत्ता निम्नलिखित रूप में बताई है –

“जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है; जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कार्य विफल होते हैं; तथा जहाँ स्त्रियाँ तंग की जाती हैं, दुःखी की जाती हैं, वहाँ परिवार बिल्कुल नष्ट हो जाते हैं।”

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिवार में स्त्रियों को उच्च स्थान प्रदान करना भारतीय परिवार की एक विशेषता है।

4. संस्कारों एवं आदर्शों को प्राथमिकता-परिवार का गठन विवाह पर आधारित होता है। भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बन्धन एवं धार्मिक संस्कार है, न कि सामाजिक समझौता। इस स्थिति में भारतीय परिवार में संस्कारों एवं आदर्शों को भी विशेष महत्त्व दिया जाता है।

5. भारतीय परिवार का उच्च उद्देश्य-पारम्परिक रूप से भारतीय परिवार में जीवन के उच्च उद्देश्यों को प्राथमिकता दी जाती है। भारतीय परिवार में आध्यात्मिकता का विशेष महत्त्व है। परिवार में सन्तान के आदर्श, पालन-पोषण तथा महान संस्कारों को ध्यान में रखा जाता है। वास्तव में भारतीय परिवार पुरुषार्थों की प्राप्ति का केन्द्र ही है।

6. अतिथि सत्कार भारतीय परिवार में अतिथि को सबसे महान व्यक्ति का दर्जा दिया गया है। जब वह घर में आता है तो उसका आदर सत्कार उच्च रीति से किया जाता है तथा इसमें केवल शिष्टाचार का ही पालन नहीं किया जाता बल्कि अपने को सौभाग्यशाली मानकर उसकी सेवा की जाती है।

7. पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्य-भारतीय परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति अधिकारों एवं कर्तव्यों की भावना पायी जाती है। बड़े, छोटों को स्नेह देते हैं, उनका समाजीकरण करते हैं तथा यथासम्भव उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं। छोटे, बड़ों का सम्मान करते हैं तथा उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।

उपर्युक्त विवरण द्वारा पारम्परिक भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट हो जाती हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि आधुनिक परिस्थितियों में भारतीय परिवार पर पाश्चात्य संस्कृति का गम्भीर प्रभाव पड़ा है तथा इस प्रभाव के परिणामस्वरूप भारतीय परिवार की पारम्परिक विशेषताओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है।

(नोट–भारतीय परिवार के विभिन्न सदस्यों की भूमिकाओं के विवरण के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1, 2 तथा 3 का उत्तर देखें।)

प्रश्न 2.
“व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के विभिन्न सदस्यों पर निर्भर है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
“गृह वातावरण व्यक्तित्व निर्माण में विशेष रूप से सहायक है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के विभिन्न सदस्यों या घर के वातावरण पर निर्भर रहना –
बालक परिवार में पैदा होता है। उसके व्यक्तित्व के विकास से परिवार के अन्य सदस्यों का गहरा सम्बन्ध होता है तथा बालक पर उन सदस्यों का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ता है। बालक के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले पारिवारिक कारकों का विवरण निम्नलिखित है –

1. माता-पिता का प्रभाव-परिवार में व्यक्ति/बालक के व्यक्तित्व पर सबसे अधिक प्रभाव उसके माता-पिता का पड़ता है। जिस प्रकार का माता-पिता का स्वभाव, चरित्र एवं पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं, उसी प्रकार से बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है।

माता-पिता के दमन की प्रक्रिया के कारण तथा प्यार के अभाव में बालक दब्बू बन जाता है। वह एकान्तप्रिय हो जाता है और कल्पना की दुनिया में विचरण करने लगता है। इस प्रकार माता-पिता के अनुचित व्यवहार से बालक के व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं हो पाता। बहुत-से माता-पिता बच्चों को गाली से सम्बोधित करके बातें करते हैं। इससे बालक पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसके विपरीत कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अत्यधिक प्यार करते हैं और अपने बच्चों की प्रत्येक कठिनाई दूर करने के लिए चिन्तित रहते हैं, जिससे बच्चा अधिक परावलम्बी हो जाता है। उसमें स्वतन्त्र इच्छा-शक्ति बिल्कुल नहीं रहती। उसमें आत्म-निर्भरता के गुण का अभाव हो जाता है। उसका व्यक्तित्व भी ठीक से विकसित नहीं होता है। अतः कहा जा सकता है कि अधिक लाड़-प्यार भी बच्चे को बिगाड़ देता है।

माता-पिता के पारस्परिक सम्बन्धों; आचरणों तथा विचारों का प्रभाव भी उनके बच्चों पर कम नहीं पड़ता। जो माँ-बाप स्वयं दिन-रात लड़ाई-झगड़ा करते हैं, एक-दूसरे को गालियाँ दिया करते हैं या अनुचित आचरण करते हैं, उनका अनुकरण उनके बच्चे जानबूझकर और उत्सुकतापूर्वक करते हैं। यदि माता-पिता सदाचरण द्वारा बच्चे के समक्ष अच्छे आदर्श प्रस्तुत करते हैं तो बच्चे अच्छे बनेंगे।

2. जन्म-क्रमका प्रभाव – बालक के व्यक्तित्व पर उसके जन्म-क्रम का भी प्रभाव पड़ता है। बच्चा जब इकलौता होता है तो उसकी सुविधाओं एवं उपलब्ध वस्तुओं में हिस्सा बँटाने वाला कोई नहीं होता। इससे बालक जहाँ एक ओर अत्यधिक परावलम्बी हो जाता है, वहाँ वह निर्दयी भी हो जाता है। कुछ वर्षों तक अकेला रहने के बाद दूसरे बच्चे के जन्म लेने पर वह उसके प्रति ईर्ष्यालु हो सकता है। इसी प्रकार सबसे छोटा बच्चा परिवार में सदा बबुआ ही बने रहने की कोशिश करता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि सबसे बड़े बच्चे में लड़ने-झगड़ने तथा नेतागीरी करने की प्रवृत्ति कम होती है तथा आत्म-चिन्तन एवं एकान्तप्रियता का गुण अधिक होता है। बीच के बच्चे तथा छोटे साधारण रहते हैं। इकलौते बच्चे लड़ाकू, जिद्दी, प्रेम के बाह्य प्रदर्शन के इच्छुक और विचारों में अस्थिर होते हैं।

3. परिवार के टूटने का प्रभाव – परिवार के टूट जाने का भी बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। माता की मृत्यु हो जाने पर सौतेली माता के साथ रहना या तलाक के कारण माता-पिता का परिवर्तन हो जाना आदि अवस्थाओं में यदि सौतेली माता अथवा सौतेले पिता का व्यवहार उचित नहीं होता अथवा बालकों को छोटी-छोटी बातों के लिए डाँट या मार सहनी पड़ती है तथा अवहेलना और ताड़ना का सामना करना पड़ता है तो बालक के मन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जो बालक दब्बू होते हैं, वे चिड़चिड़े, एकान्तप्रिय और कल्पनाओं में खोए रहने वाले बन जाते हैं। जो बालक साहसी और उग्र स्वभाव के होते हैं, वे अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते हैं। प्राय: वे घर से भाग भी जाते हैं। ऐसे बालकों के व्यक्तित्व का समुचित विकास बहुत ही कम हो पाता है।

4. भाई-बहन का प्रभाव – भाई-बहनों के आचरण का भी बालक पर प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार का बड़ा बच्चा दबंग और उद्दण्ड बन जाता है तो परिवार के दूसरे बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है क्योंकि बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति (बालक) के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के सदस्यों तथा पारिवारिक वातावरण पर निर्भर होता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवार में पत्नी (माता) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में पत्नी (माता) की भूमिका –
हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। इस संस्कार में बँधकर पत्नी पति को विशेष सम्मान एवं महत्त्व प्रदान करती है। परिवार में घर से बाहर का कार्य पति की जिम्मेदारी पर और घर के अन्दर के कार्यों की देख-रेख पत्नी पर रहती है। आजकल आवश्यकता पड़ने पर पत्नी धनोपार्जन में भी सहयोग देती है।

गृहस्वामिनी के रूप में घर के सब कार्यों को भली प्रकार करना उसका पुनीत कर्त्तव्य है। अपने सास-ससुर की सेवा करना तथा अपने स्वभाव की सरलता के द्वारा एक आदर्श नारी की भूमिका को निभाना भी उसका महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है।

माता के रूप में; स्वस्थ सन्तान की उत्पत्ति करना, उसकी सेवा करना, उसका लालन-पालन करना व उसकी प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति करना, जिससे परिवार में अच्छे बालक और सुयोग्य नागरिक विकसित हो सकें; उसका कर्तव्य है। स्त्री का कर्त्तव्य एक आदर्श पत्नी, आदर्श वधू और आदर्श माँ बनने का होना चाहिए, जिसके अनुसार वह परिवार में अपनी यह सब भूमिका भली प्रकार से निभा सके। सम्मिलित परिवार में तो पत्नी को सबके साथ रहना पड़ता है; अतः उसे अपनी कार्यकुशलता व मधुर स्वभाव से आदर्श वातावरण का निर्माण करना चाहिए। परिवार में पत्नी को एक अन्य भूमिका भी निभानी पड़ती है, यह है-नियन्त्रक की भूमिका। पत्नी को जहाँ एक ओर बच्चों को पारिवारिक मूल्यों के अनुसार नियन्त्रित रखना होता है, वहीं दूसरी ओर अपने पति को भी अनेक क्षेत्रों में विचलित होने से बचाना होता है।

प्रश्न 2.
परिवार में पति (पिता) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में पति (पिता) की भूमिका –
परिवार का जन्म मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है, जिसमें पति, जिसको कि दूसरे शब्दों में घर का मुखिया भी कहा जाता है, को महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी की भूमिका निभानी पड़ती है। मुखिया वह स्तम्भ होता है, जिस पर पूरे परिवार का ढाँचा खड़ा रहता है और इस स्तम्भ अथवा मुखिया का मुख्य काम पूरे परिवार के लिए भोजन, वस्त्र, मकान व सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा तथा भौतिक सुरक्षा की व्यवस्था करना भी उसी का धर्म एवं कर्त्तव्य है।

व्यक्ति के रूप में वह पिता है, उसको अपने बच्चों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना और उनकी पूर्ति करना होता है। अपनी आय को अपने परिवार पर खर्च करना ही उसका परम कर्त्तव्य है।

पति के रूप में पत्नी की आवश्यकताओं को समझना और गृहस्थी के लिए सब साधन जुटाना उसका कर्त्तव्य है। गृहस्थी के भिन्न-भिन्न कार्यों में रुचि लेना और स्त्री के साथ पूर्ण सहयोग देना होता है। इसके अतिरिक्त, पति को घर का मुखिया होने के नाते अनेक प्रकार के उत्तरदायित्वों को समझना होता है। उसे दूर के तथा निकट के नाते-रिश्तेदारों के साथ अपने सम्बन्ध बनाए रखने तथा समय-समय पर अपने सम्बन्धियों की सहायता के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, सामान्य रूप से पुरुष ही समाज में परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। अत: इस रूप में भी पुरुष को विशिष्ट दायित्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है।

प्रश्न 3.
परिवार में बच्चों एवं अन्य सदस्यों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में बच्चों एवं अन्य सदस्यों की भूमिका –
प्रत्येक परिवार में पुत्र और पुत्रियों का भिन्न-भिन्न कर्त्तव्य समझा जाता है। सन्तान-रहित परिवार की कल्पना तो असम्भव-सी प्रतीत होती है। प्रत्येक परिवार में; विशेषकर हिन्दू परिवार में पुत्र का न होना नरक में जाने की भाँति पाप समझा जाता है, यद्यपि यह एक अन्धविश्वास-मात्र है। प्रत्येक दम्पती की यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र का जन्म हो तथा वह पढ़-लिखकर गुणवान बनकर उनके बुढ़ापे का सहारा बन सके तथा वंश की रक्षा कर सके। पढ़ा-लिखाकर युवावस्था में उसकी शादी एक अच्छी कन्या के साथ कर दी जाती है।

इसी प्रकार पुत्रियों को भी परिवार में विशेष स्थान दिया गया है। उन्हें उचित शिक्षा देकर भविष्य के लिए एक अच्छी गृहिणी के रूप में तैयार किया जाता है। प्राचीन काल में तो कन्याओं को देवी की तरह पूजा जाता था तथा अब भी विशेष अवसरों पर उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। आगे चलकर ये पुत्रियाँ ही किसी की पत्नी, पुत्रवधू आदि के रूप में गृह की नैया को पार लगाती हैं। इस प्रकार सन्तान की परिवार .’ में प्रमुख भूमिका है।

वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों में पुत्र एवं पुत्रियों द्वारा लगभग समान भूमिका निभाई जाती है। यह माना जाता है कि पुत्र एवं पुत्रियों को पढ़-लिखकर परिवार के कल्याण में यथासम्भव योगदान देना चाहिए।

पारम्परिक भारतीय परिवार में पति-पत्नी, सन्तान के अतिरिक्त, संयुक्त परिवार प्रणाली के आधार पर परिवार के अन्य सदस्य; जैसे भाई, भतीजा, चाचा, चाची, ताऊ, ताई आदि भी होते हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग भूमिका होती है। इन सदस्यों को अपनी सामर्थ्य, शक्ति एवं आयु के अनुकूल पारिवारिक गतिविधियों में समुचित योगदान अवश्य ही देना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों की सहयोगपूर्ण भूमिका अति अनिवार्य होती है।

इस प्रकार सम्पूर्ण परिवार को सुखी और समृद्धशाली बनाने हेतु परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने-अपने कर्तव्य का पालन करना अनिवार्य है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पारम्परिक रूप से भारत में किस प्रकार के परिवार अधिक पाए जाते थे?
उत्तरः
पारम्परिक रूप से भारत में संयुक्त परिवार अधिक पाए जाते थे।

प्रश्न 2.
सत्ता के दृष्टिकोण से भारत में किस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं?
उत्तरः
सत्ता के दृष्टिकोण से भारत में मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक परिवार पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय परिवार में स्त्रियों की स्थिति कैसी है?
उत्तरः
भारतीय परिवार में स्त्रियों की सम्मानजनक स्थिति है।

प्रश्न 4.
वर्तमान नगरीय परिवारों में स्त्री की भूमिका में क्या उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है?
उत्तरः
वर्तमान नगरीय परिवारों में स्त्रियाँ परिवार के लिए धनोपार्जन के लिए भी यथासम्भव कार्य करने लगी हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय परिवार में पुरुष की क्या स्थिति है?
उत्तरः
भारतीय परिवार में पुरुष को मुखिया माना जाता है।

प्रश्न 6.
बच्चों के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव किसका पड़ता है?
उत्तरः
बच्चों के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव माता-पिता का पड़ता है।

प्रश्न 7.
विघटित परिवार का बच्चों के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तरः
विघटित परिवार के बच्चों का व्यक्तित्व असामान्य हो जाता है।

प्रश्न 8.
माता-पिता के बीच तनाव का बच्चों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तरः
माता-पिता के बीच तनाव का बच्चों के सामान्य विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है उनका व्यक्तित्व क्रमश: असामान्य होने लगता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. भारतीय परिवार की विशेषता है –
(क) संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन
(ख) पितृसत्तात्मक परिवार
(ग) संस्कारों एवं आदर्शों को प्राथमिकता
(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ।

2. परिवार में स्त्री की भूमिका होती है –
(क) पत्नी के रूप में
(ख) माता के रूप में
(ग) गृहिणी के रूप में
(घ) उपर्युक्त सभी रूपों में।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी रूपों में।

3. परिवार में मुखिया का कर्तव्य है –
(क) खाना बनाना
(ख) पैसे देना
(ग) बच्चों को पढ़ाना
(घ) सभी सदस्यों का ध्यान रखना।
उत्तरः
(घ) सभी सदस्यों का ध्यान रखना।

4. निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता भारतीय परिवार की नहीं है –
(क) यौन-सम्बन्ध
(ख) रक्त सम्बन्ध
(ग) सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा करना
(घ) नैतिक मूल्यों का ज्ञान देना।
उत्तरः
(ग) सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा करना।

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