UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 19 भारतीय परिवार और उसके प्रत्येक सदस्य की भूमिका (Indian Family and the Role Played by its Each Member)
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 19 भारतीय परिवार और उसके प्रत्येक सदस्य की भूमिका
UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय परिवार का क्या अर्थ है? भारतीय परिवार में विभिन्न सदस्यों की भूमिकाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारतीय परिवार की कौन-सी विशेषताएँ होती हैं? विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा
भारतीय परिवार की क्या विशेषताएँ हैं? उन पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
भारतीय परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Family) –
परिवार एक सामाजिक संस्था है। समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य तथा सामाजिक परिस्थितियाँ परिवार की विशेषताओं एवं आदर्शों को निर्धारित करती हैं। यही कारण है कि विश्व के विभिन्न समाजों में विद्यमान परिवारों के स्वरूप एवं विशेषताओं में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारतीय समाज के परिवार की कुछ मौलिक विशेषताएँ हैं, जो उसे पाश्चात्य समाज के परिवार से भिन्न प्रमाणित करती हैं। भारतीय समाज पारम्परिक रूप से आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख रहा है। यही कारण है कि भारतीय परिवार भी कुछ मौलिक विशेषताओं से युक्त है। पारम्परिक भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. संयुक्त परिवार प्रणाली-पारम्परिक भारतीय परिवार की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि हम संयुक्त रूप से रहकर ‘संयुक्त कुटुम्ब प्रणाली’ का पालन करते हैं। संयुक्त परिवार में तीन अथवा तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य एक साथ रहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत माँ-बाप, बच्चे, चाचा-चाची, भाई-भतीजे, बहन आदि मिलकर रहते हैं तथा एक ही साथ रहकर भोजन की व्यवस्था होती है। इस प्रणाली का सबसे बड़ा सिद्धान्त ‘संगठन’ है, जिसके अन्तर्गत सभी सदस्य मिल-जुलकर अपने-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करते हैं।
भारतीय संयुक्त परिवार के आशय को डॉ० इरावती कर्वे ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है“संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का एक समूह है, जो साधारणतया एक मकान में रहते हैं, जो एक रसोई में पका भोजन करते हैं, जो सामान्य सम्पत्ति के स्वामी होते हैं और जो सामान्य उपासना में भाग लेते हैं तथा जो किसी-न-किसी प्रकार से एक-दूसरे के रक्त सम्बन्धी होते हैं।”
2. पितृसत्तात्मक परिवार-हमारे भारतीय परिवार का मुखिया प्रारम्भ से ही पुरुष रहा है तथा उसे ही पूरे परिवार की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे परिवार को पितृसत्तात्मक परिवार कहते हैं।
आदिम काल में परिवार की देखभाल तथा जिम्मेदारी माता पर निर्भर रहती थी, अत: उसे मातृसत्तात्मक परिवार कहते थे। कुछ क्षेत्रों में; जैसे कि मालाबार इत्यादि में आज भी इस प्रकार की परिवार प्रणाली विद्यमान है जहाँ कि परिवार की सभी जिम्मेदारियाँ माता पर निर्भर हैं।
3. परिवार में स्त्रियों का उच्च स्थान-भारतीय परिवार के अन्तर्गत प्रारम्भ से ही स्त्री को सर्वोच्च एवं सम्मान का स्थान प्रदान किया गया है। परिवार में स्त्री तथा पुरुष को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। महर्षि मनु ने स्त्रियों की महत्ता निम्नलिखित रूप में बताई है –
“जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है; जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कार्य विफल होते हैं; तथा जहाँ स्त्रियाँ तंग की जाती हैं, दुःखी की जाती हैं, वहाँ परिवार बिल्कुल नष्ट हो जाते हैं।”
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिवार में स्त्रियों को उच्च स्थान प्रदान करना भारतीय परिवार की एक विशेषता है।
4. संस्कारों एवं आदर्शों को प्राथमिकता-परिवार का गठन विवाह पर आधारित होता है। भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बन्धन एवं धार्मिक संस्कार है, न कि सामाजिक समझौता। इस स्थिति में भारतीय परिवार में संस्कारों एवं आदर्शों को भी विशेष महत्त्व दिया जाता है।
5. भारतीय परिवार का उच्च उद्देश्य-पारम्परिक रूप से भारतीय परिवार में जीवन के उच्च उद्देश्यों को प्राथमिकता दी जाती है। भारतीय परिवार में आध्यात्मिकता का विशेष महत्त्व है। परिवार में सन्तान के आदर्श, पालन-पोषण तथा महान संस्कारों को ध्यान में रखा जाता है। वास्तव में भारतीय परिवार पुरुषार्थों की प्राप्ति का केन्द्र ही है।
6. अतिथि सत्कार भारतीय परिवार में अतिथि को सबसे महान व्यक्ति का दर्जा दिया गया है। जब वह घर में आता है तो उसका आदर सत्कार उच्च रीति से किया जाता है तथा इसमें केवल शिष्टाचार का ही पालन नहीं किया जाता बल्कि अपने को सौभाग्यशाली मानकर उसकी सेवा की जाती है।
7. पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्य-भारतीय परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति अधिकारों एवं कर्तव्यों की भावना पायी जाती है। बड़े, छोटों को स्नेह देते हैं, उनका समाजीकरण करते हैं तथा यथासम्भव उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं। छोटे, बड़ों का सम्मान करते हैं तथा उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।
उपर्युक्त विवरण द्वारा पारम्परिक भारतीय परिवार की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट हो जाती हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि आधुनिक परिस्थितियों में भारतीय परिवार पर पाश्चात्य संस्कृति का गम्भीर प्रभाव पड़ा है तथा इस प्रभाव के परिणामस्वरूप भारतीय परिवार की पारम्परिक विशेषताओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है।
(नोट–भारतीय परिवार के विभिन्न सदस्यों की भूमिकाओं के विवरण के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1, 2 तथा 3 का उत्तर देखें।)
प्रश्न 2.
“व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के विभिन्न सदस्यों पर निर्भर है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
“गृह वातावरण व्यक्तित्व निर्माण में विशेष रूप से सहायक है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तरः
व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के विभिन्न सदस्यों या घर के वातावरण पर निर्भर रहना –
बालक परिवार में पैदा होता है। उसके व्यक्तित्व के विकास से परिवार के अन्य सदस्यों का गहरा सम्बन्ध होता है तथा बालक पर उन सदस्यों का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ता है। बालक के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले पारिवारिक कारकों का विवरण निम्नलिखित है –
1. माता-पिता का प्रभाव-परिवार में व्यक्ति/बालक के व्यक्तित्व पर सबसे अधिक प्रभाव उसके माता-पिता का पड़ता है। जिस प्रकार का माता-पिता का स्वभाव, चरित्र एवं पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं, उसी प्रकार से बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है।
माता-पिता के दमन की प्रक्रिया के कारण तथा प्यार के अभाव में बालक दब्बू बन जाता है। वह एकान्तप्रिय हो जाता है और कल्पना की दुनिया में विचरण करने लगता है। इस प्रकार माता-पिता के अनुचित व्यवहार से बालक के व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं हो पाता। बहुत-से माता-पिता बच्चों को गाली से सम्बोधित करके बातें करते हैं। इससे बालक पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
इसके विपरीत कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अत्यधिक प्यार करते हैं और अपने बच्चों की प्रत्येक कठिनाई दूर करने के लिए चिन्तित रहते हैं, जिससे बच्चा अधिक परावलम्बी हो जाता है। उसमें स्वतन्त्र इच्छा-शक्ति बिल्कुल नहीं रहती। उसमें आत्म-निर्भरता के गुण का अभाव हो जाता है। उसका व्यक्तित्व भी ठीक से विकसित नहीं होता है। अतः कहा जा सकता है कि अधिक लाड़-प्यार भी बच्चे को बिगाड़ देता है।
माता-पिता के पारस्परिक सम्बन्धों; आचरणों तथा विचारों का प्रभाव भी उनके बच्चों पर कम नहीं पड़ता। जो माँ-बाप स्वयं दिन-रात लड़ाई-झगड़ा करते हैं, एक-दूसरे को गालियाँ दिया करते हैं या अनुचित आचरण करते हैं, उनका अनुकरण उनके बच्चे जानबूझकर और उत्सुकतापूर्वक करते हैं। यदि माता-पिता सदाचरण द्वारा बच्चे के समक्ष अच्छे आदर्श प्रस्तुत करते हैं तो बच्चे अच्छे बनेंगे।
2. जन्म-क्रमका प्रभाव – बालक के व्यक्तित्व पर उसके जन्म-क्रम का भी प्रभाव पड़ता है। बच्चा जब इकलौता होता है तो उसकी सुविधाओं एवं उपलब्ध वस्तुओं में हिस्सा बँटाने वाला कोई नहीं होता। इससे बालक जहाँ एक ओर अत्यधिक परावलम्बी हो जाता है, वहाँ वह निर्दयी भी हो जाता है। कुछ वर्षों तक अकेला रहने के बाद दूसरे बच्चे के जन्म लेने पर वह उसके प्रति ईर्ष्यालु हो सकता है। इसी प्रकार सबसे छोटा बच्चा परिवार में सदा बबुआ ही बने रहने की कोशिश करता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि सबसे बड़े बच्चे में लड़ने-झगड़ने तथा नेतागीरी करने की प्रवृत्ति कम होती है तथा आत्म-चिन्तन एवं एकान्तप्रियता का गुण अधिक होता है। बीच के बच्चे तथा छोटे साधारण रहते हैं। इकलौते बच्चे लड़ाकू, जिद्दी, प्रेम के बाह्य प्रदर्शन के इच्छुक और विचारों में अस्थिर होते हैं।
3. परिवार के टूटने का प्रभाव – परिवार के टूट जाने का भी बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। माता की मृत्यु हो जाने पर सौतेली माता के साथ रहना या तलाक के कारण माता-पिता का परिवर्तन हो जाना आदि अवस्थाओं में यदि सौतेली माता अथवा सौतेले पिता का व्यवहार उचित नहीं होता अथवा बालकों को छोटी-छोटी बातों के लिए डाँट या मार सहनी पड़ती है तथा अवहेलना और ताड़ना का सामना करना पड़ता है तो बालक के मन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जो बालक दब्बू होते हैं, वे चिड़चिड़े, एकान्तप्रिय और कल्पनाओं में खोए रहने वाले बन जाते हैं। जो बालक साहसी और उग्र स्वभाव के होते हैं, वे अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते हैं। प्राय: वे घर से भाग भी जाते हैं। ऐसे बालकों के व्यक्तित्व का समुचित विकास बहुत ही कम हो पाता है।
4. भाई-बहन का प्रभाव – भाई-बहनों के आचरण का भी बालक पर प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार का बड़ा बच्चा दबंग और उद्दण्ड बन जाता है तो परिवार के दूसरे बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है क्योंकि बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति (बालक) के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास परिवार के सदस्यों तथा पारिवारिक वातावरण पर निर्भर होता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
परिवार में पत्नी (माता) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में पत्नी (माता) की भूमिका –
हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। इस संस्कार में बँधकर पत्नी पति को विशेष सम्मान एवं महत्त्व प्रदान करती है। परिवार में घर से बाहर का कार्य पति की जिम्मेदारी पर और घर के अन्दर के कार्यों की देख-रेख पत्नी पर रहती है। आजकल आवश्यकता पड़ने पर पत्नी धनोपार्जन में भी सहयोग देती है।
गृहस्वामिनी के रूप में घर के सब कार्यों को भली प्रकार करना उसका पुनीत कर्त्तव्य है। अपने सास-ससुर की सेवा करना तथा अपने स्वभाव की सरलता के द्वारा एक आदर्श नारी की भूमिका को निभाना भी उसका महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है।
माता के रूप में; स्वस्थ सन्तान की उत्पत्ति करना, उसकी सेवा करना, उसका लालन-पालन करना व उसकी प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति करना, जिससे परिवार में अच्छे बालक और सुयोग्य नागरिक विकसित हो सकें; उसका कर्तव्य है। स्त्री का कर्त्तव्य एक आदर्श पत्नी, आदर्श वधू और आदर्श माँ बनने का होना चाहिए, जिसके अनुसार वह परिवार में अपनी यह सब भूमिका भली प्रकार से निभा सके। सम्मिलित परिवार में तो पत्नी को सबके साथ रहना पड़ता है; अतः उसे अपनी कार्यकुशलता व मधुर स्वभाव से आदर्श वातावरण का निर्माण करना चाहिए। परिवार में पत्नी को एक अन्य भूमिका भी निभानी पड़ती है, यह है-नियन्त्रक की भूमिका। पत्नी को जहाँ एक ओर बच्चों को पारिवारिक मूल्यों के अनुसार नियन्त्रित रखना होता है, वहीं दूसरी ओर अपने पति को भी अनेक क्षेत्रों में विचलित होने से बचाना होता है।
प्रश्न 2.
परिवार में पति (पिता) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में पति (पिता) की भूमिका –
परिवार का जन्म मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हुआ है, जिसमें पति, जिसको कि दूसरे शब्दों में घर का मुखिया भी कहा जाता है, को महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी की भूमिका निभानी पड़ती है। मुखिया वह स्तम्भ होता है, जिस पर पूरे परिवार का ढाँचा खड़ा रहता है और इस स्तम्भ अथवा मुखिया का मुख्य काम पूरे परिवार के लिए भोजन, वस्त्र, मकान व सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा तथा भौतिक सुरक्षा की व्यवस्था करना भी उसी का धर्म एवं कर्त्तव्य है।
व्यक्ति के रूप में वह पिता है, उसको अपने बच्चों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना और उनकी पूर्ति करना होता है। अपनी आय को अपने परिवार पर खर्च करना ही उसका परम कर्त्तव्य है।
पति के रूप में पत्नी की आवश्यकताओं को समझना और गृहस्थी के लिए सब साधन जुटाना उसका कर्त्तव्य है। गृहस्थी के भिन्न-भिन्न कार्यों में रुचि लेना और स्त्री के साथ पूर्ण सहयोग देना होता है। इसके अतिरिक्त, पति को घर का मुखिया होने के नाते अनेक प्रकार के उत्तरदायित्वों को समझना होता है। उसे दूर के तथा निकट के नाते-रिश्तेदारों के साथ अपने सम्बन्ध बनाए रखने तथा समय-समय पर अपने सम्बन्धियों की सहायता के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, सामान्य रूप से पुरुष ही समाज में परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। अत: इस रूप में भी पुरुष को विशिष्ट दायित्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है।
प्रश्न 3.
परिवार में बच्चों एवं अन्य सदस्यों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
परिवार में बच्चों एवं अन्य सदस्यों की भूमिका –
प्रत्येक परिवार में पुत्र और पुत्रियों का भिन्न-भिन्न कर्त्तव्य समझा जाता है। सन्तान-रहित परिवार की कल्पना तो असम्भव-सी प्रतीत होती है। प्रत्येक परिवार में; विशेषकर हिन्दू परिवार में पुत्र का न होना नरक में जाने की भाँति पाप समझा जाता है, यद्यपि यह एक अन्धविश्वास-मात्र है। प्रत्येक दम्पती की यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र का जन्म हो तथा वह पढ़-लिखकर गुणवान बनकर उनके बुढ़ापे का सहारा बन सके तथा वंश की रक्षा कर सके। पढ़ा-लिखाकर युवावस्था में उसकी शादी एक अच्छी कन्या के साथ कर दी जाती है।
इसी प्रकार पुत्रियों को भी परिवार में विशेष स्थान दिया गया है। उन्हें उचित शिक्षा देकर भविष्य के लिए एक अच्छी गृहिणी के रूप में तैयार किया जाता है। प्राचीन काल में तो कन्याओं को देवी की तरह पूजा जाता था तथा अब भी विशेष अवसरों पर उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। आगे चलकर ये पुत्रियाँ ही किसी की पत्नी, पुत्रवधू आदि के रूप में गृह की नैया को पार लगाती हैं। इस प्रकार सन्तान की परिवार .’ में प्रमुख भूमिका है।
वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों में पुत्र एवं पुत्रियों द्वारा लगभग समान भूमिका निभाई जाती है। यह माना जाता है कि पुत्र एवं पुत्रियों को पढ़-लिखकर परिवार के कल्याण में यथासम्भव योगदान देना चाहिए।
पारम्परिक भारतीय परिवार में पति-पत्नी, सन्तान के अतिरिक्त, संयुक्त परिवार प्रणाली के आधार पर परिवार के अन्य सदस्य; जैसे भाई, भतीजा, चाचा, चाची, ताऊ, ताई आदि भी होते हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग भूमिका होती है। इन सदस्यों को अपनी सामर्थ्य, शक्ति एवं आयु के अनुकूल पारिवारिक गतिविधियों में समुचित योगदान अवश्य ही देना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों की सहयोगपूर्ण भूमिका अति अनिवार्य होती है।
इस प्रकार सम्पूर्ण परिवार को सुखी और समृद्धशाली बनाने हेतु परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने-अपने कर्तव्य का पालन करना अनिवार्य है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
पारम्परिक रूप से भारत में किस प्रकार के परिवार अधिक पाए जाते थे?
उत्तरः
पारम्परिक रूप से भारत में संयुक्त परिवार अधिक पाए जाते थे।
प्रश्न 2.
सत्ता के दृष्टिकोण से भारत में किस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं?
उत्तरः
सत्ता के दृष्टिकोण से भारत में मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक परिवार पाए जाते हैं।
प्रश्न 3.
भारतीय परिवार में स्त्रियों की स्थिति कैसी है?
उत्तरः
भारतीय परिवार में स्त्रियों की सम्मानजनक स्थिति है।
प्रश्न 4.
वर्तमान नगरीय परिवारों में स्त्री की भूमिका में क्या उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है?
उत्तरः
वर्तमान नगरीय परिवारों में स्त्रियाँ परिवार के लिए धनोपार्जन के लिए भी यथासम्भव कार्य करने लगी हैं।
प्रश्न 5.
भारतीय परिवार में पुरुष की क्या स्थिति है?
उत्तरः
भारतीय परिवार में पुरुष को मुखिया माना जाता है।
प्रश्न 6.
बच्चों के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव किसका पड़ता है?
उत्तरः
बच्चों के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव माता-पिता का पड़ता है।
प्रश्न 7.
विघटित परिवार का बच्चों के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तरः
विघटित परिवार के बच्चों का व्यक्तित्व असामान्य हो जाता है।
प्रश्न 8.
माता-पिता के बीच तनाव का बच्चों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तरः
माता-पिता के बीच तनाव का बच्चों के सामान्य विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है उनका व्यक्तित्व क्रमश: असामान्य होने लगता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 19 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. भारतीय परिवार की विशेषता है –
(क) संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन
(ख) पितृसत्तात्मक परिवार
(ग) संस्कारों एवं आदर्शों को प्राथमिकता
(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ।
2. परिवार में स्त्री की भूमिका होती है –
(क) पत्नी के रूप में
(ख) माता के रूप में
(ग) गृहिणी के रूप में
(घ) उपर्युक्त सभी रूपों में।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी रूपों में।
3. परिवार में मुखिया का कर्तव्य है –
(क) खाना बनाना
(ख) पैसे देना
(ग) बच्चों को पढ़ाना
(घ) सभी सदस्यों का ध्यान रखना।
उत्तरः
(घ) सभी सदस्यों का ध्यान रखना।
4. निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता भारतीय परिवार की नहीं है –
(क) यौन-सम्बन्ध
(ख) रक्त सम्बन्ध
(ग) सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा करना
(घ) नैतिक मूल्यों का ज्ञान देना।
उत्तरः
(ग) सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा करना।