UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन (Home Cleanliness and Ventilation)
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 10 गृह स्वच्छता एवं संवातन
UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
घर की स्वच्छता (सफाई) की क्या आवश्यकता है? घर की सफाई कितने प्रकार की होती है? घर की साप्ताहिक सफाई गृहिणी किस प्रकार करे जिससे उसकी शक्ति तथा समय कम-से-कम खर्च हो?
अथवा
घर की सफाई का क्या महत्त्व है? घर की दैनिक व साप्ताहिक सफाई आप किस प्रकार करेंगी? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तरः
घर की सफाई का महत्त्व (आवश्यकता) (Importance (Necessity) of Home Cleaning) –
घर में कीमती सामान का होना तथा उसका व्यवस्थित रूप से सजा होना इतना आवश्यक नहीं है जितनी घर की सफाई व स्वच्छता आवश्यक है। घर की सफाई से आशय है – घर में गन्दगी का व्याप्त न होना।
स्वच्छता; घर और घर की वस्तुओं को सुन्दर व आकर्षक बनाती है। उदाहरणार्थ-अत्यन्त कीमती सजावट की वस्तुएँ बैठक में लगी हैं, किन्तु सभी वस्तुओं पर धूल जमी है, मकड़ी के जाले लगे हैं, तो कौन सभ्य मनुष्य वहाँ बैठना पसन्द करेगा जबकि एक साधारण और स्वच्छ बैठक में अधिक आकर्षण होगा। स्वच्छता से मानसिक प्रेरणा प्राप्त होती है, मन प्रसन्न होता है। गन्दगी अनेक बीमारियों की जननी है, कीटाणुओं के पनपने का स्थान है। यदि नालियों में पानी भरा सड़ रहा है तो उसमें दुर्गन्ध तो पैदा होगी ही, साथ ही मक्खी व मच्छर भी बहुतायत में पैदा होंगे जो अनेक रोगों का कारण बनेंगे।
इस प्रकार स्वच्छता; सजावट तथा आकर्षण की पूरक तो है ही, यह रोगों से भी हमको बचाती है और मन को प्रफुल्लित करती है।
सफाई की व्यवस्था, विधि तथा प्रकार (System, Process and Types of Cleaning) –
गृहिणी को घर में अनेक प्रकार के कार्य होने के कारण प्रत्येक वस्तु, स्थान आदि की प्रतिदिन सफाई करना न तो सम्भव है और न ही आवश्यक। अत: घरेलू सफाई को पाँच भागों या प्रकारों में बाँटा जाता है। सफाई के इन भागों को घरेलू सफाई के प्रकार भी माना जाता है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं –
- दैनिक सफाई (Daily Cleaning)
- साप्ताहिक सफाई (Weekly Cleaning)
- मासिक सफाई (Monthly Cleaning)
- वार्षिक सफाई (Annual Cleaning),
- आकस्मिक सफाई (Casual Cleaning)।
1. दैनिक सफाई (Daily cleaning) –
घर की कुछ सफाई प्रतिदिन ही की जाती है। गृह स्वच्छता के लिए दैनिक सफाई को ही सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। दैनिक घरेलू सफाई का संक्षिप्त विवरण अग्रवर्णित है –
(अ) विभिन्न कमरों की सफाई – हवा से उड़कर अथवा जूतों आदि के साथ आई मिट्टी आदि कमरों को तथा कमरे में रखी वस्तुओं को गन्दा करती है। बच्चों वाले घर में बच्चे कागज के टुकड़े, पेंसिल की छीलन आदि फैलाते हैं। अतः इन सबकी सफाई प्रतिदिन ही होनी चाहिए। इसके लिए प्रतिदिन कमरों में झाडू लगाना तथा. फर्नीचर को कपड़े से झाड़ना-पोंछना आवश्यक है। दरवाजे के पास रखे गए पायदान को अवश्य झाड़ना चाहिए। अस्त-व्यस्त फैले हुए सामान एवं कपड़ों को समेटकर यथास्थान रखना अनिवार्य है। बिस्तर को ठीक करना तथा यदि आवश्यक हो तो उठाकर निर्धारित स्थान पर भी रखना चाहिए। यदि घर में फूलदानों में फूल रखे जाते हैं, तो उनकी भी देखभाल करनी चाहिए। फर्श पर गीले कपड़े से पोंछा लगाना अच्छा रहता है। पोंछे के पानी में फिनायल अथवा कोई अन्य नि:संक्रामक अवश्य मिला लेना चाहिए।
(ब) रसोईघर को साफ करना – रसोईघर या पाककक्ष को भी नित्य ही साफ करना अत्यन्त आवश्यक होता है। रसोईघर में जूठे बर्तन, भोजन के टुकड़े अथवा अन्न कण जो फैल जाते हैं, उनकी सफाई प्रतिदिन ही होनी चाहिए। रसोईघर को साफ रखना गृहिणी का मुख्य कर्त्तव्य है।
(स) स्नानगृह एवं शौचालय की सफाई – स्नानगृह एवं शौचालय की सफाई भी नित्य ही करनी चाहिए। स्नानगृह में तो साबुन आदि के कारण काफी गन्दगी हो जाती है। उसी में कपड़े भी धोए जाते हैं जिनका मैल फर्श पर रुक जाता है। अत: नित्य ही स्नानगृह के फर्श को झाडू से रगड़कर साफ करना आवश्यक होता है। स्नानगृह में प्रयोग होने वाली बाल्टी, लोटा, मग आदि को साफ करके उलटकर रखना चाहिए। इसी प्रकार शौचालय की सफाई भी प्रतिदिन होनी चाहिए। शौचालय में फिनायल डालने से वातावरण स्वास्थ्यकर तथा स्वच्छ रहता है।
(द) घर की नालियों एवं अन्य स्थानों की सफाई – घर के अन्दर बनी नालियों, जैसे रसोईघर से पानी निकालने वाली नाली आदि की सफाई भी नित्य होनी चाहिए। इनमें भी फिनायल आदि डाली जाती है। इनके अतिरिक्त आँगन तथा अन्य स्थानों को भी झाड़-बुहारकर साफ रखना चाहिए।
2. साप्ताहिक सफाई (Weekly cleaning) –
घर के सभी स्थानों की सफाई प्रतिदिन की जानी न तो सम्भव है और न ही आवश्यक। अत: कुछ स्थानों एवं वस्तुओं की सफाई सप्ताह में एक बार सामान्यतः छुट्टी के दिन की जाती है। इसे साप्ताहिक सफाई कहते हैं। इसके अन्तर्गत घर की दरियों एवं कालीनों को झाड़ा जाता है, फर्नीचर को पूरी तरह झाड़कर उनकी गद्दियों आदि को ठीक किया जाता है, दरवाजों तथा खिड़कियों के पास लगे मकड़ी के जालों आदि को साफ किया जाता है। कमरे में लगी हुई तस्वीरों, चित्रों एवं सजावट की अन्य वस्तुओं को भी साप्ताहिक सफाई के समय साफ करना चाहिए। यदि आवश्यकता समझी जाए तो कमरों के फर्श को धोया भी जा सकता है।
घर के बिस्तर एवं चादरों को भी एक दिन धूप में कुछ समय के लिए अवश्य डालना चाहिए। सर्दियों में तो यह अति आवश्यक होता है। इससे पलंग आदि की सफाई में सहायता मिलती है। यदि पलंग अथवा चारपाइयों में खटमल हों, तो इस दिन उन्हें मारने के लिए कोई कीटनाशक दवा छिड़कनी चाहिए। साप्ताहिक सफाई के अन्तर्गत रसोईघर में दाल-मसाले आदि रखने वाले डिब्बों को साफ करके तथा सुखाकर यथास्थान रख देना चाहिए। इसी दिन रसोइघर में लगी सिंक एवं अन्य वस्तुओं को विशेष रूप से साफ करना चाहिए और घर के मैले कपड़े एवं चादरें आदि गिनकर धोबी के पास भेज देने चाहिए।
3. मासिक सफाई (Monthly cleaning) –
कुछ वस्तुएँ एवं स्थान ऐसे होते हैं जिनकी साप्ताहिक सफाई नहीं हो पाती। वास्तव में, यह सफाई हर सप्ताह आवश्यक भी नहीं होती है। ऐसी सफाई महीने में एक बार अवश्य हो जानी चाहिए इसलिए इस सफाई को मासिक सफाई कहा जाता है। मासिक सफाई के अन्तर्गत मुख्य रूप से भण्डारगृह अथवा स्टोर रूम की सफाई आती है। भण्डारगृह में रखी सभी वस्तुओं को झाड़-पोंछकर साफ किया जाता है तथा उन्हें धूप में रखा जाता है। इसी प्रकार रसोईघर में रखी वस्तुओं को महीने में एक बार अवश्य धूप में रखना चाहिए। इससे दाल, चावल जैसे खाद्यान्नों में घुन, कीड़ा आदि नहीं लग पाता। अचार, चटनी आदि को महीने में एक बार धूप में रखना अच्छा होता है। इसके साथ ही भारी बिस्तर जैसे रजाई तथा गद्दों को भी धूप में फैलाना आवश्यक होता है। इससे उनमें से नमी की दुर्गन्ध तथा कुछ रोगाणु आदि समाप्त हो जाते हैं। मासिक सफाई का अपना विशेष महत्त्व होता है।
4. वार्षिक सफाई (Annual cleaning) –
दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक सफाई के अतिरिक्त वार्षिक सफाई, जो वर्ष में केवल एक बार ही की जाती है, अनेक कारणों से आवश्यक है। हमारे देश में इस प्रकार की सफाई दीपावली के अवसर पर करने की परम्परा है। यह इसलिए भी उत्तम है क्योंकि दीपावली वर्षा के बाद सर्दियों के प्रारम्भ में होती है। इस समय सबसे अधिक कीड़े-मकोड़े व फफूंद आदि हो सकते हैं। इस अवसर पर घर के सभी सामान को बाहर निकाला जाता है तथा उसे झाड़-पोंछकर एवं साफ करके रखा जाता है।
आवश्यकतानुसार घर की लिपाई-पुताई कराई जाती है, साथ ही छोटी-मोटी टूट-फूट की मरम्मत भी करवा ली जाती है। दरवाजों एवं खिड़कियों पर रंग-रोगन तथा फर्नीचर पर पॉलिश करवाने से इनकी भी सफाई हो जाती है। वार्षिक सफाई के अवसर पर ही घर के सामान को छाँटा जाता है तथा व्यर्थ के सामान को या तो फेंक दिया जाता है अथवा उसे बेच दिया जाता है।
5. आकस्मिक सफाई (Casual cleaning) –
घर की सफाई के उपर्युक्त चार प्रकारों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का भी उल्लेख किया जा सकता है। यह नियमित सफाई से भिन्न है। उदाहरण के लिए किसी दिन यदि धूलभरी आँधी आ जाए तो उसके बाद की जाने वाली सफाई को आकस्मिक सफाई की श्रेणी में रखा जाएगा। इसी प्रकार यदि घर में कोई उत्सव आयोजित किया गया हो तो उसके पहले तथा बाद में की जाने वाली सफाई को भी अन्य किसी श्रेणी में न रखकर आकस्मिक सफाई की श्रेणी में ही रखा जाता है। आकस्मिक घरेलू सफाई का न तो समय निश्चित होता है और न ही व्यापकता। घर की आकस्मिक सफाई को पूरा करने के लिए गृहिणी तथा परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ परिवर्तन करना पड़ता है तथा कुछ अतिरिक्त परिश्रम तथा उपाय करने पड़ते हैं।
प्रश्न 2.
घर की सफाई में किस-किस प्रकार के सामान की आवश्यकता होती है? इनका प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?
उत्तरः
घर की सफाई में काम आने वाला सामान (Material for Cleaning Home) –
व्यवस्थित ढंग से सफाई करने के लिए कुछ सामग्री आवश्यक होती है। यदि उपकरण तथा सफाई के पदार्थ आवश्यकतानुसार हों, तो सफाई अच्छी भी होती है तथा सरल भी। इस कार्य के लिए निम्नलिखित उपकरण तथा सुविधाएँ होनी उपयुक्त हैं –
1. झाड़-घर की सफाई के लिए सर्वाधिक उपयोग झाड़ का होता है। ये कई प्रकार की होती हैं, जिनमें से मुख्य खजूर की झाड़, नारियल की झाड़ तथा फूल-झाड़ घरों में प्रयोग की जाती हैं। झाड़ घर के कमरों, आँगन, बरामदे आदि के फर्श को बुहारने के काम आती है। ईंटों के फर्श तथा नालियों आदि को साफ करने के लिए सींक वाली कड़ी व मजबूत झाड़ काम में लाई जाती है, फूल-झाड़ मुलायम होती है। इससे चिकने फर्श की सफाई की जाती है।
2. झाड़न एवं पोंछा-झाड़न उस कपड़े को कहा जाता है जिससे वस्तुओं को झाड़ा-पोंछा जाता है। यह पुराने मुलायम कपड़े का बनाया जाता है। सुविधा के लिए इस कपड़े को एक छोटे डण्डे पर बाँधा जा सकता है। झाड़न से फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियाँ तथा घर की सजावट की वस्तुओं अर्थात् तस्वीर, फूलदानों आदि की धूल झाड़ी जा सकती है। इस प्रकार के झाड़न के अतिरिक्त फर्श को साफ करने अथवा पोंछा लगाने के लिए एक मोटा कपड़ा प्रयोग करना चाहिए। पोंछा लगाने के लिए पानी में फिनायल या अन्य कीटाणुनाशक मिलाया जा सकता है।
3. बुश-घर की विभिन्न वस्तुओं एवं दीवारों आदि की सफाई के लिए झाड़ तथा झाड़न के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के ब्रुश प्रयोग में लाए जाते हैं। कुछ ब्रुश पशुओं के नरम बालों अथवा नायलॉन के बने होते हैं। इनसे घर की सजावटी, नक्काशी, कटिंग अथवा अन्य कीमती वस्तुओं की सफाई की जाती है। फर्श अथवा दीवारों को रगड़कर साफ करने के लिए तिनके अथवा सन के ब्रुश उपयोगी होते हैं। छत पर लगे मकड़ी के जालों को साफ करने के लिए भी इसी प्रकार के ब्रुश को बाँस के साथ बाँधकर प्रयोग किया जाता है। पानी के स्थानों पर, जहाँ काई लगी है या अन्य प्रकार की गन्दगी जमने की आशा है, तारों के बने ब्रुश प्रयोग किए जाते हैं। रसोईघर के बर्तनों को साफ करने के लिए मुलायम ब्रुश प्रयोग किए जाते हैं। बोतलों आदि को भी अन्दर से ब्रुश से साफ किया जाता है।
4. सफाई के लिए आवश्यक बर्तन-घर की सफाई करने के लिए कुछ बर्तन भी आवश्यक हैं। सामान्यतः पानी भरने एवं पोंछा लगाने के लिए बाल्टी एवं एक डिब्बा आवश्यक है। कूड़ा एवं गन्दगी डालने के लिए अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे कूड़ेदान तथा घर का समस्त कूड़ा डालने के लिए एक बड़ा कूड़ादान होना चाहिए जो मुख्य द्वार के निकट रखा रहे। कूड़ेदान ढक्कन वाले होने ही उचित हैं।
5. अन्य सामग्री-सफाई के लिए उपयोगी साबुन, सर्फ, विम, सोडा आदि तथा वस्तुओं के दाग-धब्बे छुड़ाने के लिए स्प्रिट, बेन्जीन, तारपीन का तेल, हल्का तेजाब आदि की भी आवश्यकता होती है। कुछ कीटाणुनाशक घोल जैसे फिनायल आदि भी घर पर अवश्य होने चाहिए। ।
प्रश्न 3.
वायु के संघटन पर एक नोट लिखिए।वायु में नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड एवं नमी के महत्त्व को समझाइए। अथवा वायु का संघटन बताइए। वायु में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के महत्त्व को समझाइए।
उत्तरः
वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है। यह स्वादहीन, रंगहीन तथा गन्धहीन होती है। यह हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक व्यापक क्षेत्र में उपस्थित है, इसी को वायुमण्डल कहा जाता है।
वायु का संघटन (Composition of Air) –
वैज्ञानिक युग से पहले लोग वायु को तत्त्व समझते थे किन्तु अब यह सर्वविदित है कि वायु प्रमुखत: ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन का मिश्रण है। इन गैसों के अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, ओजोन, आर्गन, जलवाष्प आदि गैसें भी वायु में उपस्थित रहती हैं। वायु में उपस्थित इन गैसों में से सामान्यत: ऑक्सीजन सक्रिय और नाइट्रोजन निष्क्रिय गैस है। ऑक्सीजन वायु के आयतन का लगभग 1/5 भाग होती है। हमारे श्वसन के लिए यही गैस आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इसमें रोगों के कीटाणु, पेड़-पौधों तथा अन्य जीवों के उत्सर्जी पदार्थ, बीजाणु आदि भी होते हैं।
वायु में विभिन्न गैसों का प्रतिशत निम्नांकित सारणी में दर्शाया गया है –
यद्यपि समय-समय पर और स्थान-स्थान पर यह संघटन बदलता रहता है, फिर भी अनेक कारणों से प्रकृति में यह संघटन काफी सन्तुलित रहता है और यदि यह सन्तुलित नहीं है, तो वायु को प्रदूषित समझा जाता है। ऐसी वायु निश्चित ही किसी-न-किसी रूप में हानिकारक होती है।
वायु में ऑक्सीजन (O2) का महत्त्व (Importance of Oxygen in Air) –
ऑक्सीजन एक प्राणदायक गैस है। सभी जीव-जन्तु तथा पौधे इसे श्वसन के लिए ग्रहण करते हैं तथा भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। यह गैस वस्तुओं के जलने में सहायता करती है तथा उनके ऑक्साइड बनाती है। ऑक्सीजन एक रंगहीन, गन्धहीन तथा स्वादहीन गैस है।
वायु में नाइट्रोजन (N2) का महत्त्व (Importance of Nitrogen in Air) –
वायु में विद्यमान नाइट्रोजन गैस एक निष्क्रिय गैस है जो ऑक्सीजन इत्यादि की तीव्रता को कम करती है। वैसे वायुमण्डल की नाइट्रोजन इस स्वरूप में सामान्यतया जीवधारियों के लिए किसी काम की नहीं है। दूसरी ओर जीवधारियों में उपस्थित प्रोटीन में नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में होती है और बिना नाइट्रोजन के इस कोशिकीय पदार्थ के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। इसका अर्थ यह भी है कि नाइट्रोजन प्रोटीन के संगठक तत्त्व के रूप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह भी सत्य है कि जन्तु इसे सीधे वायु से प्राप्त नहीं कर सकते। वायु की नाइट्रोजन मिट्टी के द्वारा पौधों में तथा वहाँ से सभी जन्तुओं में पहुँचती है। मृदा में नाइट्रोजन निम्नलिखित प्रकार से पहुँचती है –
- घर्षण विद्युत द्वारा नाइट्रोजन व ऑक्सीजन के संयोग से अनेक ऑक्साइड्स बनते हैं जो वर्षा द्वारा भूमि में पहुँच जाते हैं।
- मिट्टी में उपस्थित कुछ जीवाणु तथा कुछ शैवाल इस स्वतन्त्र नाइट्रोजन को बन्धित कर लेते हैं।
- कुछ पौधों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु भी इसे बन्धित कर लेते हैं।
मृदा से नाइट्रोजन के यौगिक पौधों में तथा वहाँ से जन्तुओं में पहुँचते हैं। इन जीवों के उत्सर्जन से अथवा मृत जीवों के भूमि पर गिरने तथा बाद में जीवाणुओं द्वारा सड़ने (decompose) से यह नाइट्रोजन स्वतन्त्र होकर वापस वायुमण्डल में आ जाती है और वायु में इसका सन्तुलन बना रहता है। इस प्रकार प्रकृति में नाइट्रोजन-चक्र के लिए वायु की नाइट्रोजन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
वायु में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का महत्त्व (Importance of Carbon dioxide in Air) –
शुद्ध वायु में, जो जीवों के श्वसन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यन्त अल्प होती है। आयतन के अनुसार यह लगभग 0.03 % होती है। जीव के द्वारा छोड़ी गई श्वास में इसकी मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। इसी प्रकार वस्तुओं के जलने से भी यही गैस अधिकतम मात्रा में उत्पन्न होती है। अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड की वायु में उपस्थिति मनुष्य सहित सभी जन्तुओं के लिए हानिकारक है। यह श्वसन योग्य वायु में एक ओर तो ऑक्सीजन की मात्रा को कम करती है दूसरी ओर धीमे विष के रूप में कार्य करती है।
हरे पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की वायु में उपस्थिति अत्यन्त लाभदायक है। ये पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में इस गैस का प्रयोग कार्बोज तथा बाद में मण्ड आदि बनाने में करते हैं। वास्तव में जो भी खाद्य पदार्थ पृथ्वी पर उपस्थित है अथवा प्राप्त होता है, पौधों को इसी क्रिया से प्राप्त होता है। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। इस क्रिया में भोजन (कार्बनिक पदार्थ) बनाने के लिए कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से ही प्राप्त किया जाता है।
उपर्युक्त के अनुसार पृथ्वी पर कार्बन चक्र (carbon cycle) को चलाए रखने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड अत्यन्त आवश्यक है।
वायु में नमी का महत्त्व (Importance of Humidity in Air) –
वायु में नमी भी अल्पमात्रा में उपस्थित होती है। इसकी अधिक मात्रा वायु को श्वसन के अयोग्य बनाती है। वायु की नमी अधिक मात्रा में होने पर, जलवाष्प में परिणत होकर जल में बदलती रहती है। इस नमी के प्राकृतिक स्वरूप बादल, कोहरा, धुंध, ओस, वर्षा आदि हैं। ठण्डे स्थानों में गिरने वाली बर्फ भी इसी नमी का अति ठण्डा स्वरूप है। प्रत्येक खुले हुए जल-तल से जलवाष्प नमी के रूप में वायु में सदैव ही मिलती रहती है। पृथ्वी पर आवश्यक रूप में उपस्थित जल चक्र (Water cycle) में इसका अत्यधिक महत्त्व है।
प्रश्न 4.
संवातन से आप क्या समझती हैं? संवातन का सिद्धान्त क्या है? संवातन के साधनों का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा
संवातन के प्रमुख साधन लिखिए।
उत्तरः
संवातन (Ventilation) –
किसी स्थान पर वायु के आने-जाने (विसरित होने) की क्रिया को संवातन (Ventilation) कहा जाता है। यह एक प्रकार की व्यवस्था है जो किसी आवासीय स्थान, कार्य करने के स्थान आदि पर विशेष रूप से की जाती है ताकि वहाँ रहने वाले व्यक्तियों को शुद्ध (प्रदूषणरहित) वायु प्राप्त होती रहे। इस प्रकार की व्यवस्था के लिए दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है। एक तो कमरे या उक्त स्थान की अशुद्ध वायु को बाहर निकालने की व्यवस्था। दूसरे बाहर से शुद्ध वायु को अन्दर लाने की प्रक्रिया। स्पष्ट है कि खुले स्थान में तो प्रकृति स्वयं ही वायु की शुद्धता को सन्तुलित रखती है।
संवातन का सिद्धान्त (Principle of Ventilation) –
ताप के बढ़ने से वायु हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठने लगती है। कमरे की वायु व्यक्तियों की श्वसन क्रिया के कारण अशुद्धियाँ प्राप्त होने के साथ-साथ गर्म भी हो जाती है; अत: छत की ओर ऊपर उठती है, अपेक्षाकृत ठण्डी तथा शुद्ध वायु कमरे के नीचे के स्थानों में रहेगी। गर्म होकर जब किसी आवासीय स्थल की वायु ऊपर उठ जाती है तब वहाँ का स्थान खाली होने लगता है। इस खाली स्थान को भरने के लिए अतिरिक्त वायु की आवश्यकता होती है। इस सैद्धान्तिक तथ्य के आधार पर संवातन की व्यवस्था की जाती है। उत्तम संवातन के लिए कमरे में ऊपरी भाग में अशुद्ध वायु के विसर्जन के लिए रोशनदान होना चाहिए तथा नीचे भाग में शुद्ध वायु के प्रवेश के लिए दरवाजों एवं खिड़कियों का प्रावधान होना चाहिए।
संवातन के साधन (Resources of Ventilation) –
स्वास्थ्य एवं श्वसन की सुविधा के लिए संवातन अनिवार्य है। संवातन की व्यवस्था मुख्य रूप से दो प्रकार के साधनों से होती है – (क) प्राकृतिक साधन तथा (ख) कृत्रिम साधन।
(क) प्राकृतिक साधन-प्रकृति ने स्वयं ही संवातन की व्यवस्था की है। वायु के कुछ गुण, जैसे विसरण का गुण, संवातन में स्वयं ही सहायक होते हैं। जब किसी स्थान पर कोई गैस एकत्रित हो जाती है तो वह स्वयं ही विभिन्न दिशाओं में फैलने लगती है। इस प्रकार इस क्रिया में एक स्थान की गैसें दूसरे स्थान पर चली जाती हैं तथा वहाँ पर अन्य स्थान से वायु आ जाती है। विसरण की क्रिया धीमी गति से होती है। इस प्रकार मन्द गति से विसरण के द्वारा वायु शुद्ध होती रहती है। तेज गति से चलने वाली हवाएँ संवातन का दूसरा प्राकृतिक साधन हैं। विभिन्न प्राकृतिक कारकों से प्रभावित होकर वायुमण्डल में अनेक । बार तेज गति से हवाएँ चलती हैं और वायु का विलोडन कर देती हैं। वातावरण में होने वाले तापमान के अन्तर से भी संवातन की प्रक्रिया को बल मिलता है। यह विसरण की गति को प्रभावित करता है। इस प्रकार वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठ जाती है। खाली स्थान को भरने के लिए अन्य स्थान से वायु बहकर आ जाती है और संवातन होता है।
(ख) कृत्रिम साधन – वातावरण में चलने वाली प्राकृतिक संवातन की क्रियाओं को ध्यान में रखकर हम अपने मकानों में विभिन्न प्रकार की व्यवस्था करते हैं जो कृत्रिम संवातन के अन्तर्गत आती हैं। प्राकृतिक संवातन उत्तम एवं स्वाभाविक होता है। इसका लाभ उठाने के लिए मकान, कार्य करने के स्थान आदि पर खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान तथा चिमनियाँ आदि बनाई जाती हैं। इस प्रकार, इन स्थानों में गर्म वायु ऊपर उठकर रोशनदान या चिमनियों से बाहर निकल जाती है और ठण्डी वायु खिड़कियों, दरवाजों के रास्ते अन्दर आ जाती है।
कुछ स्थानों पर संवातन की उपर्युक्त व्यवस्था सम्भव नहीं हो पाती। उदाहरणार्थ-सिनेमाघरों, अस्पतालों तथा अत्यधिक ठण्डे स्थानों में निरन्तर खिड़कियाँ, दरवाजे. खुले नहीं रखे जा सकते हैं। ऐसे स्थानों पर प्राकृतिक संवातन के लाभ प्राप्त नहीं किए जा सकते। इनके अभाव में कृत्रिम संवातन के कुछ अन्य साधनों को अपनाया जाता है। इनमें से कुछ साधन निम्नलिखित हैं
(1) निर्वातक पंखे (Exhaust Fans) कमरे के अन्दर की दूषित वायु को खींचकर बाहर फेंक देते हैं। इस प्रकार अन्दर स्थान खाली हो जाता है जिसे भरने के लिए दूसरी ओर के किसी भी मार्ग से बाहर की शुद्ध वायु भीतर आ जाती है।
(2) कमरे की गन्दी वायु को बाहर से अथवा किसी अन्य साधन से लाई गई शुद्ध वायु के द्वारा कमरे से बाहर धकेल दिया जाता है। उदाहरण-कूलर।।
(3) कमरे की वायु को पाइपों में गर्म भाप प्रवाहित करके गर्म कर दिया जाता है। गर्म होकर हल्की वायु रोशनदानों से बाहर निकल जाती है तथा शुद्ध वायु दरवाजों, खिड़कियों से अन्दर आ जाती है।
(4) वातानुकूलन की विधि द्वारा संवातन किया जाता है। यह अनेक यन्त्रों का बना उपकरण होता है। इसमें कुछ यन्त्र कमरे की दूषित वायु को खींचकर बाहर निकालने का कार्य करते हैं। दूसरे यन्त्र वायु से धूल आदि के कणों को छानकर इसे साफ-सुथरी करते हैं साथ ही इसको उचित ताप पर लाते हैं। तीसरे प्रकार के यन्त्र शुद्ध, आवश्यक रूप में शीतल तथा उचित नमी वाली वायु को अन्दर भेजने का कार्य करते हैं। यह एक महँगी विधि है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गृह स्वच्छता से क्या लाभ हैं? गृह स्वच्छता के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
घर को गन्दगी से मुक्त रखना ही गृह स्वच्छता कहलाता है। गृह स्वच्छता के लिए निरन्तर समुचित प्रयास करने पड़ते हैं। व्यक्ति एवं परिवार के लिए गृह स्वच्छता के निम्नलिखित महत्त्व या लाभ हैं –
- घर की सफाई घर की सजावट में सहायक होती है। घर की सफाई के अभाव में घर की सजावट हो ही नहीं सकती।
- घर की सफाई घर में जीवाणुओं को पनपने से रोकती है। वास्तव में विभिन्न रोगों के जीवाणु गन्दगी में ही पनपते हैं।
- घर की सफाई घर में रहने वालों के स्वास्थ्य में भी सहायक होती है। साफ-सुथरे घर में व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
- घर की सफाई सुचारु गृह-व्यवस्था में सहायक होती है।
- घर की सफाई से घर के आकर्षण में भी वृद्धि होती है।
- घर की सफाई वहाँ रहने वालों के जीवन-स्तर को भी उन्नत बनाती है।
- घर की सफाई से व्यक्ति स्वस्थ, प्रसन्न तथा उत्साहित रहता है। ये कारक व्यक्ति की। व्यावसायिक सफलता में भी सहायक होते हैं।
- साफ-सुथरे घर की सभी आगन्तुक प्रशंसा करते हैं।
घर की स्वच्छता के पाँच प्रकार हैं-दैनिक सफाई, साप्ताहिक सफाई, मासिक सफाई, वार्षिक सफाई तथा आकस्मिक सफाई।
प्रश्न 2.
घर की सफाई के लिए अपनाए जाने वाले आधुनिक उपकरणों का सामान्य परिचय दीजिए।
अथवा घर की सफाई के दो आधुनिक उपकरणों के नाम व कार्य लिखिए।
उत्तरः
घर की सफाई के आधुनिक उपकरण घर की सफाई के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले मुख्य आधुनिक उपकरण निम्नलिखित हैं –
1. वैक्यूम क्लीनर-वैक्यूम क्लीनर घर की सफाई के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला एक आधुनिक उपकरण है जो बिजली से चलता है। इस उपकरण में ऐसी व्यवस्था रहती है कि यह फर्श पर बिखरी धूल को अपनी ओर खींच लेता है तथा यह धूल साथ में लगी हुई एक कपड़े की थैली में इकट्ठी हो जाती है। बाद में, इस कपड़े की थैली को कूड़ेदान में झाड़ दिया जाता है। वैक्यूम क्लीनर द्वारा घर के फर्श, दीवारों एवं कोनों पर रुकी हुई धूल को सरलता से साफ किया जा सकता है।
2. कारपेट क्लीनर-दरी एवं कालीन को साफ करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले उपकरण को कारपेट क्लीनर कहा जाता है। इस उपकरण में एक ब्रुश लगा रहता है जो कालीन आदि की धूल को झाड़कर साफ करता है। यह धूल एक डिब्बे में एकत्र होती रहती है जिसे बाद में खाली किया जा सकता है।
3. बर्तन साफ करने की मशीन-अब बर्तन साफ करने के लिए एक मशीन बना ली गई है। इस मशीन के एक भाग में जो ढोल के आकार का होता है जूठे बर्तन रखकर सोडा अथवा विम डाल दिया जाता है। तत्पश्चात् मशीन को चालू कर दिया जाता है, बर्तन स्वतः ही साफ हो जाते हैं।
प्रश्न 3.
शुद्ध वायु की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
शुद्ध वायु की आवश्यकता –
भोजन से भी अधिक शुद्ध वायु जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह श्वसन क्रिया को चलाती है। इस क्रिया में जीव ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं। वास्तव में, ऑक्सीजन शरीर के अन्दर विभिन्न कोशिकाओं में रुधिर के हीमोग्लोबिन द्वारा पहुँचकर कोशिकीय श्वसन में काम आती है। इस क्रिया के अन्तर्गत भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही ऊर्जा हमारे शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है। यह रुधिर के प्लाज्मा द्वारा श्वसन अंगों में पहुँचकर शरीर से बाहर निकल जाती है। इस प्रकार, वायु की ऑक्सीजन का उपयोग सभी जीव करते हैं। फलस्वरूप वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी होती है तथा’ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। कम ऑक्सीजन तथा अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वाली वायु श्वसन के योग्य नहीं रहती तथा अनेक कष्टप्रद लक्षण उत्पन्न करती है।
प्रश्न 4.
वायु में पायी जाने वाली अशद्धियाँ कौन-कौन सी होती हैं?
अथवा
वायु में कौन-कौन सी अशुद्धियाँ पायी जाती हैं?
उत्तरः
वायु की अशुद्धियाँ –
वायु में विभिन्न क्रियाओं के परिणामस्वरूप दो प्रकार की अशुद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं –
(अ) गैसीय अशुद्धियाँ-वायु अपने आप में विभिन्न गैसों का मिश्रण मात्र है। वातावरण में विभिन्न क्रियाओं के परिणामस्वरूप विभिन्न गैसें बनती हैं जो वायु को अशुद्ध बनाती रहती हैं। इस प्रकार की मुख्य गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, अमोनिया आदि।
(ब)ठोस अथवा लटकने वाली अशुद्धियाँ-कुछ हल्के ठोस पदार्थ भी वायु में व्याप्त रहते हैं। वायु की इन ठोस अशुद्धियों को देखा जा सकता है। ये अशुद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं –
(i) सजीव अशुद्धियाँ-विभिन्न प्रकार के जीवाणु, बीजाणु, परागकण आदि इसी प्रकार की अशुद्धियाँ हैं। ये अशुद्धियाँ हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
(ii) निर्जीव अशुद्धियाँ-ये अशुद्धियाँ विभिन्न प्रकार के कणों के रूप में होती हैं। मिट्टी, धुल, रेत आदि के हल्के कण वायु में व्याप्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त, वनस्पतियों के कण, ऊन, धागे तथा लकड़ी आदि के महीन कण इसी प्रकार की अशुद्धि को जन्म देते हैं। विभिन्न फैक्ट्रियों आदि की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के साथ कोयले के महीन कण तथा कुछ अन्य धातुओं के कण भी वायु में घुल-मिल जाते हैं। इन सभी प्रकार के कणों को वायु की अशुद्धियाँ ही माना जाता है।
प्रश्न 5.
वायु को अशुद्ध बनाने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
वायु को अशुद्ध बनाने वाले कारक –
वायु को अशुद्ध करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं –
1. श्वसन क्रिया द्वारा-वायु का सर्वाधिक उपयोग श्वसन क्रिया के लिए होता है। श्वसन क्रिया द्वारा वायुमण्डल से जीव ऑक्सीजन का सेवन कर लेते हैं तथा बदले में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। इस क्रिया के परिणामस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जाती है और वायु अशुद्ध हो जाती है।
2. विभिन्न पदार्थों के जलने से लकड़ी, कोयला, गैस, तेल तथा अन्य अनेक पदार्थों के जलने में ऑक्सीजन प्रयुक्त होती है। इससे वायु में ऑक्सीजन की मात्रा तो घटती ही है, साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा में भी बढ़ोतरी होती है। इससे वायु का सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा वायु अशुद्ध हो जाती है। जलने की क्रिया से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी कुछ विषैली गैसें भी उत्पन्न होती हैं, जो वायु को और अधिक दूषित बनाती हैं।
3. व्यावसायिक अशुद्धियाँ-उद्योगों में अनेक प्रकार की रासायनिक क्रियाएँ होती हैं। इससे अनेक प्रकार की विषैली गैसें तथा गन्दगी उत्पन्न होती है। ये सब वायुमण्डल में व्याप्त होती रहती हैं और वायुमण्डल दूषित होता रहता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के उद्योग भिन्न-भिन्न प्रकार की अशुद्धियाँ वायुमण्डल में छोड़ते रहते हैं।
4. वाहन-डीजल, पेट्रोल, गैस आदि से चलने वाले वाहन भी वायु को निरन्तर अशुद्ध बनाते रहते हैं।
प्रश्न 6.
अशुद्ध वायु का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तरः
अशुद्ध वायु का स्वास्थ्य पर प्रभाव –
शुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य के लिए सहायक एवं लाभदायक होती है। इसके विपरीत, अशुद्ध वायु हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। अधिक समय तक अशुद्ध वायु में साँस लेते रहने से अनेक रोग हो सकते हैं। यदि व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध वायु नहीं मिलती तो उसकी आयु घटकर शीघ्र ही मृत्यु भी हो सकती है। अशुद्ध वायु फेफड़ों को दूषित करती है तथा शरीर में अनेक विजातीय तत्त्व एकत्रित होने लगते हैं। पाचन क्रिया भी अशुद्ध वायु से अस्त-व्यस्त होने लगती है। अशुद्ध वायु शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। अशुद्ध वायु के निरन्तर सेवन से व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसा व्यक्ति कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाता, वह प्राय: बेचैन-सा रहता है तथा उसके व्यवहार में असामान्यता आ जाती है।
अशुद्ध वायु में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। इससे वायु में विभिन्न रोगों के कीटाणु बढ़ने लगते हैं। इस प्रकार अनेक प्रकार के रोग; जैसे-सिरदर्द, चक्कर आना, भूख न लगना, अजीर्ण, आँखों, गले आदि के रोग, तपेदिक, खाँसी, जुकाम आदि अशुद्ध वायु से फैलते हैं।
प्रश्न 7.
वायु मानव-जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
वायु मानव-जीवन के लिए आवश्यक है –
वायु, सभी जीवधारियों के लिए प्राणदायिनी है। यह पेड़-पौधों के लिए भी आवश्यक है, जिनसे हमें अनेक प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। यह मनुष्य के लिए दो प्रकार से आवश्यक है –
1. श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक गैसों का आदान-प्रदान–शरीर में उपस्थित प्रत्येक जीवित कोशिका, ऊतक आदि को जीवित रहने तथा जैविक कार्यों को करने के लिए प्राणदायक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इन जीवित कोशिकाओं में ऑक्सीजन, जो रुधिर के माध्यम से यहाँ पहुँचती है, के द्वारा भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है। इससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड भी उत्पन्न होती है। यह शरीर के लिए अनुपयोगी एवं हानिकारक गैस है। रुधिर के द्वारा ही कार्बन डाइऑक्साइड इन कोशिकाओं तथा ऊतकों से हटाई जाती है।
श्वसन के लिए ऑक्सीजन श्वसनांगों में वायु से ही उपलब्ध होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर से वायु में छोड़ी जाती है।
2. शरीर का ताप सामान्य रखना-वायु के सम्पर्क में शरीर का ताप कम होता रहता है; अत: स्थिर बना रहता है। त्वचा पर आए हुए पसीने को भी वायु उड़ा ले जाती है। इससे त्वचा ठण्डी होती है। दूसरी ओर श्वसन क्रिया से भी शरीर के तापक्रम का नियमन होता है।
प्रश्न 8.
अशुद्ध वायु की शुद्धि के प्राकृतिक साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
अशुद्ध वायु की शुद्धि के प्राकृतिक साधन –
प्रकृति में ही ऐसे अनेक साधन हैं जो वायु को निरन्तर शुद्ध करते रहते हैं; यथा –
1. पेड़-पौधों द्वारा वायु शुद्ध करना – वायु को शुद्ध करने वाले मुख्य प्राकृतिक साधन पेड़-पौधे हैं जो वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं तथा सूर्य के प्रकाश में
ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस क्रिया में जहाँ एक ओर वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटती है वहीं दूसरी ओर ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है।
2. सूर्य के प्रकाश द्वारा वायु का शुद्ध होना – सूर्य के प्रकाश में अत्यधिक ताप होता है। इसकी गर्मी से अनेक अशुद्धियाँ स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं; जैसे—विभिन्न रोगों के कीटाणु सूर्य की गर्मी से मर जाते हैं, जलवाष्प की अधिकता सूर्य की गर्मी से कम होती है तथा वस्तुओं के सड़ने-गलने से उत्पन्न होने वाली अशुद्धियाँ तथा दुर्गन्धपूर्ण गैसें सूर्य के प्रकाश एवं गर्मी से ऑक्सीजन की उपस्थिति में नष्ट हो जाती हैं।
3. वर्षा द्वारा वायु का शुद्ध होना – वर्षा का जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों को घोलकर अपने साथ बहा ले जाता है। उदाहरणार्थ-वायुमण्डल में उपस्थित धूल-कण एवं अन्य अनेक धातुओं के महीन कण जल के साथ बहकर पृथ्वी पर आते हैं तथा अनेक गैसें जल में घुलनशील होती हैं जो वर्षा के जल में घुलकर पृथ्वी पर आती हैं।
4. वायु की ऑक्सीजन द्वारा वायु का शुद्ध होना – ऑक्सीजन सभी वस्तुओं को ऑक्सीकृत करने वाली गैस है। इस प्रकार वायु में उपस्थित ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर देती है। इसी प्रकार की दूसरी गैस तथा ऑक्सीजन का एक रूप ओजोन भी एक तीव्र गैस है। ओजोन अनेक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है।
5. तेज हवाओं द्वारा वायु का शुद्ध होना – वायु का शुद्धीकरण तेज गति से बहने वाली हवाओं से भी होता है। ये हवाएँ एक स्थान पर एकत्रित होने वाली अशुद्धियों को तीव्र गति से उड़ाकर दूर क्षेत्रों में पहुँचा देती हैं। इस क्रिया से वायु का विलोडन होता है तथा सभी स्थानों पर सन्तुलन बना रहता है। उदाहरणार्थ-यदि हवाएँ न चलें तो औद्योगिक क्षेत्रों का वातावरण इतना अधिक दूषित हो जाए कि वहाँ रहना असम्भव हो जाए।
6. विसरण द्वारा वायु का शुद्ध होना – विसरण पदार्थों का एक विशेष गुण है, विशेषकर गैसों का; जिसमें एक गैस अपने से अधिक सान्द्रण से कम सान्द्रण वाले स्थान पर स्वयं ही बहती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि उस गैस का दोनों स्थानों (सभी स्थानों) पर बराबर सान्द्रण नहीं हो जाता। इस गुण के कारण वायु की गैसें इधर-उधर बहती रहती हैं। जब किसी एक स्थान पर कुछ विषैली गैसें अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं तो वे स्वयं ही किसी भी दिशा में विसरित हो जाती हैं। इस प्रकार विसरण से वायु शुद्ध बनी रहती है।
प्रश्न 9.
अशुद्ध वायु की शुद्धि के कृत्रिम साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
अशुद्ध वायु की शुद्धि के कृत्रिम साधन –
अशुद्ध वायु को शुद्ध करने के लिए निम्नलिखित कृत्रिम साधनों को मुख्य रूप से अपनाया जाता है –
- सभी मकानों एवं निवास स्थानों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वायु एवं सूर्य के प्रकाश के आने-जाने की व्यवस्था रहे।
- घरों में जहाँ अँगीठी आदि जलाई जाती हैं वहाँ से धुआँ निकलने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए एक ऊँची चिमनी लगा देना उचित है ताकि धुआँ एवं दूषित गैसें घर के अन्दर तथा अन्य निवास स्थानों के पास एकत्रित न होने पाएँ।
- यदि पशु पालने हों तो उन्हें निवास स्थान से कुछ दूर ही रखना चाहिए।
- प्रत्येक बस्ती में काफी संख्या में पेड़-पौधे एवं वनस्पति उगानी चाहिए।
- भूमि खाली नहीं छोड़नी चाहिए। खाली भूमि में धूल उड़ती है जो वायु को दूषित करती है।
- विभिन्न औद्योगिक संस्थानों तथा फैक्ट्रियों को बस्ती से दूर बनाना चाहिए। इसके साथ ही फैक्ट्रियों का धुआँ निकालने वाली चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिए, जिससे दूषित गैसें काफी ऊँचाई पर वायुमण्डल में चली जाएँ।
- जहाँ अधिक वाहन चलते हैं वहाँ की सड़कें पक्की होनी चाहिए। कच्ची सड़कों से धूल उड़ती है तथा यह धूल वायु को दूषित करती है। कच्ची सड़कों पर धूल को उड़ने से रोकने के लिए पानी छिड़कने की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न 10.
गृह तथा स्कूल में उत्तम संवातन व्यवस्था को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है?
अथवा
स्कूलों में संवातन व्यवस्था का महत्त्व लिखिए।
अथवा
टिप्पणी लिखिए-संवातन से लाभ।
उत्तरः
घर तथा स्कूल में संवातन व्यवस्था का महत्त्व –
सभी जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध वायु आवश्यक है। शुद्ध वायु का अर्थ है ऐसी वायु जिसमें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपस्थित हो। वायुरूपी इस मिश्रण में ऑक्सीजन के अतिरिक्त अन्य संगठक गैसों आदि का प्रतिशत भी सामान्य के इधर-उधर नहीं होना चाहिए अन्यथा यह वायु प्रदूषित कहलाएगी। किसी भी प्रकार से प्रदूषित वायु श्वसन के अयोग्य होती है। घर हो या विद्यालय या अन्य कोई स्थान जहाँ मनुष्य रहता है अथवा एकत्रित होते हैं, सभी जगह श्वसन के लिए शुद्ध तथा श्वसन योग्य वायु का होना आवश्यक है। दूसरी ओर ऐसे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति या व्यक्ति समूह वायु में से श्वसन योग्य प्राणदायक ऑक्सीजन को ग्रहण ही नहीं करेंगे वरन् कार्बन डाइऑक्साइड तथा नमी छोड़कर इसे प्रदूषित भी करेंगे। इसका अर्थ यह भी है कि अल्प समय में ही कमरे या किसी भी बन्द स्थान की वायु को ये व्यक्ति केवल श्वसन द्वारा ही श्वसन योग्य नहीं रहने देंगे। बच्चों पर तो प्रदूषित वायु अथवा अशुद्ध वायु का अत्यधिक प्रभाव होता है।
आवश्यक है कि उपर्युक्त स्थानों में ऐसी व्यवस्था अवश्य ही होनी चाहिए कि श्वसन में छोड़ी गई दूषित वायु को कमरे से बाहर निकाला जाए तथा शुद्ध, श्वसन योग्य वायु कमरे में लाई जाए। अत: आवश्यक है कि ऐसे सभी स्थानों पर उचित तथा उपयोगी संवातन व्यवस्था अपनाई जाए। इसके लिए सामान्य प्राकृतिक साधनों को ही कृत्रिम रूप से अपनाकर व्यवस्थित किया जा सकता है, जैसे पारगामी संवातन (Cross Ventilation) तथा छत के आस-पास चिमनी अथवा रोशनदान बनाना।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गृह तथा स्कूल में संवातन व्यवस्था का अत्यधिक महत्त्व है। स्कूल में प्रत्येक कक्ष पर्याप्त बड़ा होना चाहिए तथा उसमें खिड़की, दरवाजे एवं रोशनदान अवश्य होने चाहिए। स्कूल के कमरों की दिशा वायु की गति के अनुकूल होनी चाहिए ताकि एक दिशा से आने वाले वायु के झोंके दूसरी दिशा वाले दरवाजे खिड़कियों से बाहर निकल जाएँ। कमरों के अतिरिक्त स्कूल का प्रांगण भी पर्याप्त खुला होना चाहिए। स्कूल का निर्माण तंग गलियों में या औद्योगिक क्षेत्र में नहीं किया जाना चाहिए। स्कूल के निकट कोई गन्दा नाला या खत्ता भी नहीं होना चाहिए।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गृह स्वच्छता क्या है?
उत्तरः
गृह स्वच्छता का अर्थ है-घर में गन्दगी का न होना। गृह स्वच्छता के लिए घर तथा घर की वस्तुओं की सफाई के विभिन्न उपाय किए जाते हैं तथा घर से कूड़े-करकट को नियमित रूप से विसर्जित किया जाता है।
प्रश्न 2.
गृह स्वच्छता के कितने प्रकार हैं?
उत्तरः
घर की सफाई के मुख्य पाँच प्रकार हैं –
- दैनिक सफाई
- साप्ताहिक सफाई
- मासिक सफाई
- वार्षिक सफाई
- आकस्मिक सफाई।
प्रश्न 3.
घर की सफाई के दो मुख्य आधुनिक उपकरणों के नाम बताइए।
उत्तरः
घर की सफाई के दो मुख्य आधुनिक उपकरण हैं-वैक्यूम क्लीनर तथा कारपेट क्लीनर।
प्रश्न 4.
घर की सफाई का प्रमुख लाभ क्या है?
उत्तरः
घर की सफाई वहाँ रहने वालों के स्वास्थ्य में सहायक होती है।
प्रश्न 5.
क्या सफाई के अभाव में गृह-सज्जा सम्भव है?
उत्तरः
सफाई के अभाव में गृह-सज्जा कदापि सम्भव नहीं है।
प्रश्न 6.
वायु जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर
वायु से ही जीव श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करता है तथा वायु में ही वह कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है।
प्रश्न 7.
प्राणदायक गैस कौन-सी है?
उत्तरः
प्राणदायक गैस ऑक्सीजन है। यह श्वसन के लिए आवश्यक होती है।
प्रश्न 8.
वायु कैसे दूषित होती है?
उत्तरः
जीवों के द्वारा की जाने वाली श्वसन-क्रिया, पदार्थों के जलने तथा औद्योगिक संस्थानों के अवशेषों के वायु में मिलने से वह दूषित हो जाती है।
प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण को आप कैसे रोकेंगी?
उत्तरः
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण में आवश्यक सावधानियाँ रखकर, वाहनों को सुधारकर तथा अधिक-से-अधिक पेड़ लगाकर वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है।
प्रश्न 10.
वायु को शुद्ध करने में सर्वाधिक योगदान किसका है?
उत्तरः
वायु को शुद्ध करने में सर्वाधिक योगदान पेड़-पौधों का है।
प्रश्न 11.
संवातन से क्या आशय है? ।
उत्तरः
किसी आवासीय स्थान पर वायु के आने-जाने की उचित व्यवस्था को ‘संवातन’ कहते हैं।
प्रश्न 12.
संवातन का उद्देश्य क्या है?
उत्तरः
संवातन का उद्देश्य आवासीय स्थल पर शुद्ध वायु प्राप्त करना तथा अशुद्ध वायु का विसर्जन है।
प्रश्न 13.
संवातन के प्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तरः
संवातन के प्राकृतिक साधन हैं-वायु की गति, तेज हवाएँ, गैसों के विसरण का गुण तथा ताप पाकर वायु का हल्का होकर ऊपर उठना।
प्रश्न 14.
रोशनदान छत के पास तथा खिड़कियाँ नीचे की ओर होती हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तरः
ताजी एवं ठण्डी वायु खिड़कियों से कमरे में प्रवेश करती है तथा गर्म एवं अशुद्ध वायु रोशनदान से बाहर निकल जाती है।
प्रश्न 15.
कृत्रिम संवातन का कोई एक उपाय बताइए।
उत्तरः
कृत्रिम संवातन का एक मुख्य उपाय है-निर्वातक पंखा (Exhaust fan)।
प्रश्न 16.
निर्वातक पंखों की क्या उपयोगिता है?
उत्तरः
किसी कक्ष से दूषित वायु को बाहर निकालने के लिए निर्वातक पंखे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। ये कृत्रिम संवातन के प्रमुख साधन होते हैं।
प्रश्न 17.
घर को मक्खी व मच्छरों से मुक्त करने के उपाय लिखिए।
उत्तरः
घर को मक्खी व मच्छरों से मुक्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-घर में हर प्रकार की सफाई की व्यवस्था करना/रखना। इसके अतिरिक्त घर में नियमित रूप से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाना चाहिए। घर पर फिनायल का पोंछा लगाना चाहिए। घर के सभी बाहरी दरवाजे-खिड़कियाँ जाली वाले होने चाहिए तथा उन्हें सामान्य रूप से बन्द रखना चाहिए।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 10 बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. घर की सफाई में सर्वाधिक महत्त्व है –
(क) दैनिक सफाई का
(ख) साप्ताहिक सफाई का
(ग) मासिक सफाई का
(घ) वार्षिक सफाई का।
उत्तरः
(क) दैनिक सफाई का।
2. घर की सफाई महत्त्वपूर्ण है –
(क) शारीरिक स्वास्थ्य के लिए
(ख) मानसिक स्वास्थ्य के लिए
(ग) जीवन में आनन्द-प्राप्ति के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी के लिए।
3. घर की सफाई क्यों आवश्यक है –
(क) रोग के कीटाणुओं की रोकथाम के लिए
(ख) घर की सजावट के लिए
(ग) सुचारु रूप से गृह व्यवस्था के लिए
(घ) इन सभी कारणों के लिए।
उत्तरः
(घ) इन सभी कारणों के लिए।
4. शौचालय की नाली को प्रतिदिन धोना चाहिए –
(क) डी०डी०टी० से
(ख) साबुन से
(ग) फिनायल से
(घ) सादे पानी से।
उत्तरः
(ग) फिनायल से।
5. वायु में पायी जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस है –
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) ओजोन
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
उत्तरः
(ख) नाइट्रोजन।
6. वायु है –
(क) एक मिश्रण
(ख) यौगिक
(ग) तत्त्व
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(क) एक मिश्रण।
7. वर्षा ऋतु में वायु में बढ़ जाती है –
(क) सुगन्ध
(ख) नमी
(ग) ऑक्सीजन
(घ) नाइट्रोजन।
उत्तरः
(ख) नमी।
8. कमरे के अच्छे संवातन के लिए आवश्यक है –
(क) एक खिड़की तथा एक दरवाजा
(ख) एक खिड़की, रोशनदान व एक दरवाजा
(ग) पारगामी संवातन व्यवस्था
(घ) कूलर की व्यवस्था।
उत्तरः
(ग) पारगामी संवातन व्यवस्था।
9. किसी कार्बनिक वस्तु के जलने से उत्पन्न होती है –
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड।