UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 9 Mechanical Properties Of Solids

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Physics
Chapter Chapter 9
Chapter Name Mechanical Properties Of Solids
Number of Questions Solved 73

UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 9 Mechanical Properties Of Solids (ठोसों के यान्त्रिक गुण)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
4.7 m लम्बे व 3.0 x 10-5 m2 अनुप्रस्थ काट के स्टील के तार तथा 3.5 m लम्बे व 40 x 10-5m2 अनुप्रस्थ काट के ताँबे के तार पर दिए गए समान परिमाण के भारों को लटकाने पर उनकी लम्बाइयों में समान वृद्धि होती है। स्टील तथा ताँबे के यंग-प्रत्यास्थता गुणांकों में क्या अनुपात है?
हल-
यंग-प्रत्यास्थता गुणांक [latex s=2]Y=\frac { \frac { F }{ A } }{ \frac { I }{ L } } =\frac { F.L }{ A.I } [/latex]
यहाँ दोनों तारों के लिए लटकाया गया भार F = Mg तथा (UPBoardSolutions.com) लम्बाई में वृद्धि l समान है, अतः Y∝(L/A)
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प्रश्न 2.
चित्र-9.1 में किसी दिए गए पदार्थ के लिए प्रतिबल-विकृति वक्र दर्शाया गया है। इस पदार्थ के लिए
(a) यंग-प्रत्यास्थता गुणांक, तथा
(b) सन्निकट पराभव सामर्थ्य क्या है?
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हल-
(a) ग्राफ के सरल रेखीय भाग में बिन्दु A के संगत
अनुदैर्ध्य प्रतिबल = 150×106 न्यूटन/मी
तथा अनुदैर्घ्य विकृति = 0.002
∴ यंग-प्रत्यास्थता गुणांक
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(b) पराभव बिन्दु लगभग B है।
अत: इसके संगत पदार्थ की पराभव (UPBoardSolutions.com) सामर्थ्य = 300×106 न्यूटन/मीटर
= 300×108 न्यूटन/मी

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प्रश्न 3.
दो पदार्थों A और B के लिए प्रतिबल-विकृति ग्राफ चित्र-9.2 में दर्शाए गए हैं।
| इन ग्राफों को एक ही पैमाना मानकर खींचा गया है।
(a) किस पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक अधिक है?
(b) दोनों पदार्थों में कौन अधिक मजबूत है?
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उत्तर-
(a) ∵ पदार्थ A के ग्राफ का ढाल दूसरे ग्राफ की तुलना में अधिक है; अतः पदार्थ A का यंग गुणांक अधिक है।
(b) दोनों ग्राफों पर पराभव बिन्दुओं की ऊँचाई लगभग बराबर है परन्तु (UPBoardSolutions.com) पदार्थ A के ग्राफ में पदार्थ B की तुलना में प्लास्टिक क्षेत्र अधिक सुस्पष्ट है; अतः पदार्थ A अधिक मजबूत है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित दो कथनों को ध्यान से पढिए और कारण सहित बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य
(a) इस्पात की अपेक्षा रबड़ का यंग गुणांक अधिक है;
(b) किसी कुण्डली का तनन उसके अपरूपण गुणांक से निर्धारित होता है।
उत्तर-
(a) असत्य, रबड़ तथा इस्पात के बने एक जैसे तारों में समान विकृति उत्पन्न करने के लिए इस्पात के तार में रबड़ के तार की अपेक्षा अधिक प्रतिबल उत्पन्न होता है, इससे स्पष्ट है कि इस्पात का यंग गुणांक रबड़ की अपेक्षा अधिक है।
(b) सत्य, जब हम किसी कुण्डली (स्प्रिग) को खींचते हैं तो न तो स्प्रिंग निर्माण में लगे तार की लम्बाई में कोई परिवर्तन होता है और न ही उसके आयतन में। केवल स्प्रिंग का रूप बदल जाता है; अतः स्प्रिंग का तनन उसके अपरूपण गुणांक द्वारा निर्धारित होता है।

प्रश्न 5.
0.25 cm व्यास के दो तार, जिनमें एक इस्पात का तथा दूसरा पीतल का है, चित्र-9.3 के अनुसार भारित हैं। बिना भार लटकाए इस्पात तथा पीतल के तारों की लम्बाइयाँ क्रमशः स्टील 1.5 m तथा 1.0m हैं। यदि इस्पात तथा पीतल के यंग गुणांक क्रमशः 20 x 1011 Pa तथा 0.91×1011 Pa हों तो इस्पात तथा पीतल के तारों में विस्तार की गणना कीजिए।
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हल-
यहाँ स्टील के तार के लिए
त्रिज्या r1 = (0.25/2) सेमी = 0.125 सेमी
= 0.125 x 10-2 मी
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प्रश्न 6.
ऐलुमिनियम के किसी घन के किनारे 10 cm लम्बे हैं। इसकी एक फलक किसी ऊर्ध्वाधर दीवार से कसकर जड़ी हुई है। इस घन के सम्मुख फलक से 100 kg का एक द्रव्यमान जोड़ दिया गया है। ऐलुमिनियम का अपरूपण गुणांक 25 GPa है। इस फलक का ऊध्र्वाधर विस्थापन कितना होगा?
हल-
दिया है : अपरूपण गुणांक G =25 GPa = 25 x 109 Nm-2
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बल-आरोपित फलक का क्षेत्रफल A = 10 cm x 10 cm = 100 x 10-4 m2

प्रश्न 7.
मृदु इस्पात के चार समरूप खोखले बेलनाकार स्तम्भ 50,000 kg द्रव्यमान के किसी बड़े ढाँचे को आधार दिए हुए हैं। प्रत्येक स्तम्भ की भीतरी तथा बाहरी त्रिज्याएँ क्रमशः 30 तथा 60 cm हैं। भार वितरण को एकसमान मानते हुए प्रत्येक स्तम्भ की सम्पीडन विकृति की गणना कीजिए।
हल-
दिया है : बाहरी त्रिज्या Rext = 60 cm = 0.6 m
भीतरी त्रिज्या Rint =30 cm = 0.3 m
∴ प्रत्येक स्तम्भ का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल
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प्रश्न 8.
ताँबे का एक टुकड़ा, जिसका अनुप्रस्थ परिच्छेद 15.2 mm x 19.1 mm का है, 44,500 N बल के तनाव से खींचा जाता है, जिससे केवल प्रत्यास्थ विरूपण उत्पन्न हो। उत्पन्न विकृति की गणना कीजिए।
हल-
विरूपण विकृति से संगत प्रत्यास्थता गुणांक अपरूपण गुणांक (दृढ़ता गुणांक η (UPBoardSolutions.com) होता है जो यहाँ 4.20 x 1010 Pa) दिया है।
ताँबे के टुकड़े का अनुप्रस्थ-परिच्छेद
A = (15.2 x 10-3 मी) x (19.1 x 10-3 मी)
=290.32 x 10-6 मी2 = 2.9 x 10-4 मी2
विरूपक बल F =44500 न्यूटन = 4.45 x 104 न्यूटन
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प्रश्न 9.
1.5 cm त्रिज्या का एक इस्पात का केबिल भार उठाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। | यदि इस्पात के लिए अधिकतम अनुज्ञेय प्रतिबल 108 Nm-2 है तो उस अधिकतम भार की गणना कीजिए जिसे केबिल उठा सकता है।
हल-
केबिल के अनुप्रस्थ-परिच्छेद का क्षेत्रफल ।
A = πr2 = 3.14 x (1.5 x 10-2 मी )2 = 7.065 x 10-4 मी2
। अधिकतम अनुज्ञेय प्रतिबल = 108 न्यूटन/मीटर2
∴ बल F = (F/A) x A = प्रतिबल x अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल
∴ केबिल द्वारा उठाया जा सकने वाला अधिकतम भार ।
= अनुज्ञेय प्रतिबल x अनुप्रस्थ-काट को (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल
= (108 न्यूटन /मी2) x (7.065 x 10-4 मी2)
= 7.065 x 104 न्यूटन = 7.07 x 104 न्यूटन

प्रश्न 10.
15 kg द्रव्यमान की एक दृढ़ पट्टी को तीन तारों, जिनमें से प्रत्येक की लम्बाई 2 m है, से सममित लटकाया गया है। सिरों के दोनों तार ताँबे के हैं तथा बीच वाली तार लोहे का है। तारों के व्यासों के अनुपात ज्ञात कीजिए जबकि प्रत्येक पर तनाव उतना ही रहता है।
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हल-
प्रत्येक तार द्वारा सम्भाला जाने वाला भार
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प्रश्न 11.
एक मीटर अतानित लम्बाई के इस्पात के तार के एक सिरे से 14.5 kg का द्रव्यमान बाँध कर उसे एक ऊर्ध्वाधर वृत्त में घुमाया जाता है, वृत्त की तली पर उसका कोणीय वेग 2 rev/s है। तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल 0.065cm2 है। तार में विस्तार की • गणना कीजिए जब द्रव्यमान अपने पथ के निम्नतम बिन्दु पर है। (इस्पात के लिए Y =2×1011 न्यूटन/मी2)
हल-
ऊध्र्वाधर वृत्त के निम्नतम बिन्दु पर
F – mg = mrω²
डोरी में तनाव बल F = mrω² + mg
F = [14.5 x 1.0 x (2.0)² + 14.5 x 9.8] न्यूटन
= [58.0 + 142.1] न्यूटन = 200.1 (UPBoardSolutions.com) न्यूटन
तथा L = 1.00 मी, अनुप्रस्थ-काट A = 0.065 सेमी² = 0.065 x 10-4 मी2 तथा
Y =2 x 1011 न्यूटन/मी2
सूत्र
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प्रश्न 12.
नीचे दिए गए आँकड़ों से जल के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक की गणना कीजिए; प्रारम्भिक आयतन = 100.0, दाब में वृद्धि = 100.0 atm (1 atm =1.013 x 105 Pa), अन्तिम आयतन = 100.5 L नियत ताप पर जल तथा वायु के आयतन प्रत्यास्थता गुणांकों की तुलना कीजिए। सरल शब्दों में समझाइए कि यह अनुपात इतना अधिक क्यों है?
हल-
यहाँ प्रारम्भिक आयतन V = 100.0 लीटर
अन्तिम आयतन (V – υ) = 100.5 लीटर
आयतन में कमी υ = (V – υ) – (V) = 100 लीटर – 100.5 लीटर = – 0.5 लीटर
दाब में वृद्धि p = 100 वायुमण्डलीय (UPBoardSolutions.com) दाब ।
= 100 x 1.013 x 105 न्यूटन/मी2
= 1.013 x 10न्यूटन/मी
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक
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हम जानते हैं कि STP पर वायु का आयतन प्रत्यास्थता गुणांक 1 x 105 Pa है, अतः जल का आयतन । प्रत्यास्थता गुणांक वायु के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक से अधिक है। इसका कारण है कि समान दाब द्वारा जल के आयतन में होने वाली कमी, वायु के आयतन में होने वाली कमी की तुलना में नगण्य है।

प्रश्न 13.
जल का घनत्व उस गंहराई पर, जहाँ दाब 80.0 atm हो, कितना होगा? दिया गया है कि | पृष्ठ पर जल का घनत्व 103 x 10 kg3 m-3, जल की सम्पीड्यता 45.8 x 10-11 Pa-1(1 Pa = 1Nm-2)
हल-
यहाँ पृष्ठ से गहराई तक जाने पर दाब परिवर्तन p = (80.0-1.0) वायुमण्डल = 79वायुमण्डल अर्थात् ।
p = 79 x 1.013 x 105 न्यूटन/मी2
= 80.027 x 105 न्यूटन/मी2
जहाँ जल की संपीड्यता K = 45.8 x 10-11 Pa-1
जल को आयतन प्रत्यास्थता गुणांक
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पृष्ठ पर जल का घनत्व ρ = 1.03 x 103 kg m-3
माना ρ’ किसी दी गई गहराई पर जल का घनत्व है। यदि V तथा  V’ जल के निश्चित द्रव्यमान M के पृष्ठ तथा दी गई गहराई के आयतन हैं तो
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प्रश्न 14.
काँच के स्लेब पर 10 atm का जलीय दाब लगाने पर उसके आयतन में भिन्नात्मक अन्तर की गणना कीजिए।
हल-
यहाँ दाब-परिवर्तन p = 10 वायुमण्डलीय दाब
= 10 x 1.013 x 105 Pa = 1.013 x 106 Pa
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक B = 37 x 109 Pa
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक [latex s=2]B=\frac { -P }{ \left( \frac { u }{ v } \right) } [/latex]
[latex s=2]\left( \frac { \nu }{ V } \right) =-\frac { P }{ B } [/latex]
आयतन में भिन्नात्मक परिवर्त [latex s=2]\left( \frac { u }{ V } \right) =-\left( \frac { 1.013\times { 10 }^{ 6 }pa }{ 37\times { 10 }^{ 9 }pa } \right) =-2.74\times { 10 }^{ -5 }[/latex]
यहाँ (-) चिह्न आयतन में कमी का प्रतीक है।

प्रश्न 15.
ताँबे के एक ठोस धन का एक किनारा 10 cm का है। इस पर 7.0 x 106 Pa.का.जलीय दाब लगाने पर इसके आयतन में संकुचन निकालिए।
हल-
आयतन विकृति
[latex s=2]\left( \frac { u }{ V } \right) =-\left( \frac { 7.0\times { 10 }^{ 6 }pa }{ 1.40\times { 10 }^{ 11 }pa } \right) =-5\times { 10 }^{ -5 }[/latex]
परन्तु घन के किनारे की लम्बाई a = 10 सेमी = 0.10 मी
घन का आयतन 20 = a3 = (0.10 मी) 3 = 10-3 मी
अतः आयतन में परिवर्तन ) = आयतन विकृति x आयतन
= – 5×10-5 x 10-3 मी
=-5×10-8 x 106 सेमी
=-0.05 सेमी
(-) चिह्न आयतन में संकुचन का प्रतीक है।

प्रश्न 16.
1 लीटर जल पर दाब में कितना अन्तर किया जाए कि वह 0.10% से सम्पीडित हो जाए?
हल-
यहाँ आयतन में प्रतिशत संकुचन = – 0.10
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अर्थात् दाब 2.2 x 106 Pa बढ़ाया जाये।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 17.
हीरे के एकल क्रिस्टलों से बनी निहाइयों, जिनकी आकृति चित्र-9.6 में दिखाई गई है, का उपयोग अति उच्च दाब के अन्तर्गत द्रव्यों के व्यवहार की जाँच के लिए किया जाता है। निहाई के संकीर्ण सिरों पर सपाट फलकों का व्यास 0.50 mm है। यदि निहाई के चौड़े सिरों पर 50,000 N का बल लगा हो तो उसकी नोंक पर दाब ज्ञात कीजिए।
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हल-
सपाट फलक की त्रिज्या R = 0.25 mm = 2.5 x 10-4 m हीरे के शंकु ।
फलक का क्षेत्रफल A = πR2
=3.14 x (2.5 x 10-4m)2
=196 x 10-8m
जबकि आरोपित बल F = 50,000N
नोंक पर दाब P [latex s=2]\frac { F }{ A } =\frac { 50,000N }{ 19.6\times { 10 }^{ -8 }{ m }^{ 2 } } [/latex]
=2.55 x 1011 Pa

प्रश्न 18.
1.05 mलम्बाई तथा नगण्य द्रव्यमान की एक छड़ को बराबर लम्बाई के दो तारों, एक इस्पात : का (तार A) तथा दूसरा ऐलुमिनियम का तार (तार B) द्वारा सिरों से लटका दिया गया है, जैसा कि चित्र-9.7 में दिखाया गया है। A तथा B के तारों के अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षेत्रफल क्रमशः 1.0 mm2 और 2.0 mm हैं। छड़ के किस बिन्दु से एक द्रव्यमान m को लटका दिया जाए ताकि इस्पात तथा ऐलुमिनियम के तारों में (a) समान प्रतिबल, तथा (b) समान विकृति उत्पन्न हो?
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हल-
तारों के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल
AA = 1.0 mm2, AB =2.0 mm2
YA = 2.0 x 1011 Nm-2,
Y= 0.7 x 1011 Nm-2
माना द्रव्यमान को तार A वाले सिरे से, x दूरी पर बिन्दु C से लटकाया गया है, तब इसकी दूसरे ‘सिरे से दूरी (1.05 – x) m होगी।
माना इस भार के कारण तारों में FA तथा FB तनाव बले उत्पन्न होते हैं।
बिन्दु C के परितः आघूर्ण लेने पर,
FA .x = FB (1.05-x) ….(1)
(a) तारों में समान प्रतिबल उत्पन्न होता है; अत:
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अत: द्रव्यमान को तार A वाले सिरे से 43 cm की दूरी पर लटकाना चाहिए।

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प्रश्न 19.
मृदु इस्पात के एक तार, जिसकी लम्बाई 1.0 m तथा अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल – 0.50 x 10-2 cm है, को दो खम्भों के बीच क्षैतिज दिशा में प्रत्यास्थ सीमा के अन्दर ही तनित किया जाता है। तार के मध्य बिन्दु से 100g का एक द्रव्यमान लटका दिया जाता है। मध्य बिन्दु पर अवनमन की गणना कीजिए।
हल-
दिया है : तार की लम्बाई L = 1.0 m,
अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A = 0.50 x 10-2 cm2 = 5 x 10-7 m2
m = 100 g = 0.1 kg, Y = 2.0 x 1011 Nm-2
माना सन्तुलन की स्थिति में तार के दोनों भागों का क्षैतिज से – झुकाव θ है तथा तार के दोनों भागों में समान तनाव T है। सन्तुलन की स्थिति में,
2T sin θ = mg …(1)
(C तार का मध्य बिन्दु है जो भार लटकाने पर बिन्दु O तक विस्थापित हो जाता है।)
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प्रश्न 20.
धातु के दो पहियों के सिरों को चार रिवेट से आपस में जोड़ दिया जाता है। प्रत्येक रिवेट का व्यास 6 मिमी है। यदि रिवेट का अपरुपण प्रतिबल 6.9 x 107 Pa से अधिक नहीं बढ़ना | हो तो रिवेट की हुई पट्टी द्वारा आरोपित तनाव का अधिकतम मान कितना होगा? मान लीजिए कि प्रत्येक रिवेट एक-चौथाई भार वहन कर सकता है।
हल-
दिया है, प्रत्येक रिवेट का व्यास = 6 मिमी ।
∴ त्रिज्या r = व्यास/2 = 6 मिमी/2 = 3 मिमी = 3 x 10-3 मी
अतः रिवेट का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल ।
A = πr2 = 3.14 x (3 x 10-3 मी)2
= 28.26 x 10-6 मी2
भंजक प्रतिबल = रिवेट द्वारा सहन किये जा (UPBoardSolutions.com) सकने वाला अधिक अपरूपण प्रतिबल
= 6.9 x 107 Pa = 6.9 x 107 न्यूटन/मीटर2
प्रत्येक रिवेट द्वारा सहन किया जा सकने वाला अधिकतम तनाव = भंजक प्रतिबल x A
= (6.9 x 10न्यूटन/मी2) x (28.26 x 10-6 मी2)
= 1.949 x 103 न्यूटन ≈ 1.95 x 10’न्यूटन
चूँकि पट्टी में चार रिवेट लगी हैं। अत: पट्टी द्वारा आरोपित अधिकतम तनाव
= 4 x 1.95 x 103 न्यूटन = 7.8 x 103 न्यूटन

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प्रश्न 21.
प्रशांत महासागर में स्थित मैरियाना नामक खाई एक स्थान पर पानी की सतह से 11 km नीचे चली जाती है और उस खाई में नीचे तक 0.32 m3 आयतन का इस्पात का एक गोला गिराया जाता है तो गोले के आयतन में परिवर्तन की गणना करें। खाई के तल पर जल का दाब 1.1 x 108 Pa है और इस्पात का आयतन गुणांक 160 G Pa है।
हल-
यहाँ दाब-परिवर्तन
p = खाई की तली पर दाब = 1.1 x 108 Pa
इस्पात का आयतन प्रत्यास्थता गुणांक
B = 160 G Pa = 160 x 109 Pa = 1.6 x 1011 Pa
गोले का आयतन = V = 0.32 मी3
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक [latex s=2]B=\frac { -p }{ \left( \frac { \upsilon }{ V } \right) } [/latex]
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(-) चिह्न आयतन में कमी का प्रतीक है। अर्थात् आयतन में 2.2 x 10-4 मी3 की कमी होगी।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक है|
(i) किग्रा/मीटर2-सेकण्ड
(ii) किग्रा/मीटर-सेकण्ड2
(iii) किग्री/मीटर2-सेकण्ड2
(iv) किग्रा/मीटर3-सेकण्ड2
उत्तर-
(ii) किग्रा/मीटर-सेकण्ड2

प्रश्न 2.
दृढ़ता गुणांक (प्रत्यास्थता गुणांक) का विमीय सूत्र है
(i) ML-1T-2
(ii) ML-2T3
(ii) MLT-2
(iv) ML-1T1
उत्तर-
(i) ML-1T-2

प्रश्न 3.
ताप बढ़ाने पर यंग-प्रत्यास्थता गुणांक का मान
(i) बढ़ता है।
(ii) घटता है।
(iii) अपरिवर्तित रहता है।
(iv) असामान्य रूप से घटता तथा बढ़ता है।
उत्तर-
(ii) घटता है।

प्रश्न 4.
एक तार से भारmg लटकाने पर तार की लम्बाई में वृद्धि हो जाती है। इस प्रक्रिया में किया गया कार्य है।
(i) [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]mgl
(ii) mgl
(iii) 2mgl
(iv) शून्य
उत्तर-
(i) [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]mgl

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प्रश्न 5.
एक धातु के तार की लम्बाई , जिसका यंग प्रत्यास्थता गुणांक है, में वृद्धि होती है, जब इस पर कुछ भार लगाया जाता है। तार के एकांक आयतन में संचित स्थितिज ऊर्जा है।
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उत्तर-
(iii) [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } Y\left( \frac { { l }^{ 2 } }{ { L }^{ 2 } } \right) [/latex]

प्रश्न 6.
यदि एक तार को खींचकर दोगुना कर दिया जाए तो उसका यंग प्रत्यास्थता गुणांक हो जायेगा
(i) आधा
(ii) समाने
(ii) दोगुना
(iv) चार गुना
उत्तर-
(ii) समान

प्रश्न 7.
पूर्णतया दृढ़ वस्तु के लिए यंग प्रत्यास्थता गुणांक का मान होता है।
(i) शून्य।
(ii) अनन्त
(iii) 1
(iv) 100
उत्तर-
(ii) अनन्त

प्रश्न 8.
किसी खींचे हुए तार की प्रति एकांक आयतन की स्थितिज ऊर्जा होती है।
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उत्तर-
(iii) किसी खींचे हुए तार की प्रति एकांक आयतन की स्थितिज ऊर्जा
= [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x यंग प्रत्यास्थता गुणांक x विकृति2

प्रश्न 9.
यदि प्रतिबल sहै तथा तार के पदार्थ का यंग गुणांक ४ है तो तार को खींचने पर उसके प्रति एकांक आयतन में संचित ऊर्जा
(i) [latex s=2]\frac { { S }^{ 2 } }{ 2Y } [/latex]
(ii) [latex s=2]\frac { 2Y }{ { S }^{ 2 } } [/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { S }{ 2Y } [/latex]
(iv) [latex s=2]{ 2S }^{ 2 }Y[/latex]
उत्तर-
(i) प्रति एकांक आयतन में संचित ऊर्जा = [latex s=2]\frac { { S }^{ 2 } }{ 2Y } [/latex]

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प्रश्न 10.
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक का व्युत्क्रम होता है।
(i) यंग प्रत्यास्थता गुणांक
(ii) दृढ़ता गुणांक
(iii) सम्पीड्यता ।
(iv) विकृति
उत्तर-
(iii) आयतन प्रत्यास्थता गुणांक का व्युत्क्रम सम्पीड्यता होता है।

प्रश्न 11.
पॉयसन अनुपात होता है।
(i) अनुदैर्ध्य प्रतिबल/पाश्विक विकृति
(ii) पाश्विक विकृति/अनुदैर्घ्य विकृति
(iii) अनुदैर्घ्य विकृति/पाश्विक विकृति
(iv) अनुदैर्ध्य प्रतिबल/अनुदैर्ध्य विकृति
उत्तर-
(ii) पॉयसन अनुपात = पाश्विक विकृति/अनुदैर्ध्य विकृति

प्रश्न 12.
प्रत्यास्थता में पॉयसन अनुपात का मान होता है।
(i) [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] से अधिक
(ii) -1 से कम
(iii) -1 और [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] के बीच
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर-
(iii) प्रत्यास्थता में पॉयसन अनुपात का मान -1 और [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] के बीच होता है।

प्रश्न 13.
Y,η और B में सम्बन्ध होता है|
(i) Y = ηB
(ii) η = YB
(iii) [latex s=2]Y=\frac { 9\eta }{ 3B+\eta } [/latex]
(iv) [latex s=2]Y=\frac { 3B+{ \eta }_{ 1 } }{ 9\eta B } [/latex]
उत्तर-
(iii) Y, η और B में सम्बन्ध [latex s=2]Y=\frac { 9\eta }{ 3B+\eta } [/latex]

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यास्थता की सीमा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
किसी वस्तु पर लगाये गये विरूपक बल की उस अधिकतम सीमा को जिसके अन्तर्गत वस्तु के । पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण विद्यमान रहता है, उस पदार्थ की प्रत्यास्थता की सीमा कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रतिबल की परिभाषा तथा मात्रक लिखिए।
उत्तर-
साम्यावस्था में वस्तु की अनुप्रस्थ-काट के एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आन्तरिक प्रतिक्रिया बल को प्रतिबल कहते हैं। इसका मात्रक न्यूटन/मीटर है।

प्रश्न 3.
प्रतिबल एवं दाब में अन्तर बताइए।
उत्तर-
किसी वस्तु की अनुप्रस्थ-काट के एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आन्तरिक प्रतिक्रिया बल को प्रतिबल कहते हैं जबकि किसी पृष्ठ के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले अभिलम्बवत् बल को दाब कहते हैं।

प्रश्न 4.
भंजक प्रतिबल से आप क्या समझते हैं।
उत्तर-
जब विरूपक बल का मान प्रत्यास्थता की सीमा से बाहर हो जाता है तो तार की लम्बाई में वृद्धि सदैव के लिए हो जाती है। विरूपक बेल और अधिक बढ़ाने पर एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि विरूपक बल का मान एक निश्चित मान से अधिक हो जाता है (UPBoardSolutions.com) और तार टूट जाता है। विरूपक बले को वह मान जिस पर तार टूट जाता है, भंजक बल (breaking force) कहलाता है। अत: तार के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाला वह बल जिस पर तार टूट जाता है, भंजक प्रतिबल (breaking stress) कहलाता है।

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प्रश्न 5.
विकृति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
विरूपक बल के कारण किसी वस्तु की इकाई विमा में होने वाले परिवर्तन को विकृति कहते हैं। इसका कोई मात्रक नहीं होता इसीलिए यह एक विमाहीन राशि है।

प्रश्न 6.
दृढ़ता गुणांक की परिभाषा लिखिए तथा इसका मात्रक भी लिखिए।
उत्तर-
दृढ़ता गुणांक-प्रत्यास्थता की सीमा के अन्दर, अपरूपक प्रतिबल तथा अपरूपण विकृति के अनुपात को ठोस वस्तु के पदार्थ का दृढ़ता गुणांक (modulus of rigidity) कहते हैं। इसे 1 से प्रदर्शित किया जाता है। इसका मात्रक न्यूटन/मीटर2 है।

प्रश्न 7.
काँच, ताँबा, इस्पात तथा रबर को प्रत्यास्थता-गुणांकों के बढ़ते क्रम में लिखिए।
उत्तर-
रबर, काँच, ताँबा, इस्पात।

प्रश्न 8. किसी तार को खींचने में कार्य क्यों करना पड़ता है? इस कार्य का क्या होता है?
उत्तर-
तार को खींचने में अन्तरा-परमाणुक बलों के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यह कार्य खिंचे तार में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।

प्रश्न 9.
एक तार की लम्बाई काटकर आधी कर दी जाती है।
(i) दिए गए भार के अन्तर्गत इसकी लम्बाई में वृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(ii) अधिकतम भार पर, जो वह वहन करती है, क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
(i) लम्बाई में वृद्धि आधी रह जायेगी,
(ii) कोई प्रभाव नहीं, क्योंकि विकृति ΔL/L उतनी ही रहेगी।

प्रश्न 10.
यदि किसी तार के लिए ब्रेकिंग बल F हो, तो (i) इसी आकार के दो समान्तर तारों के लिए तथा (ii) इस तार से दोगुने मोटे तार के लिए ब्रेकिंग बल क्या होंगे?
उत्तर-
(i) 2F क्योंकि कुल परिच्छेद-क्षेत्रफल दोगुना होगा। (ii) 4F क्योंकि दोगुने मोटे तार का परिच्छेद-क्षेत्रफल चार गुना होगा।

प्रश्न 11.
इस्पात तथा ताँबे की समान आकारों की स्प्रिंगों को समान वृद्धि तक खींचा जाता है। किस पर अधिक कार्य करना पड़ेगा?
उत्तर-
इस्पात का यंग-प्रत्यास्थता गुणांक (Y) ताँबे की तुलना में अधिक होता है। अतः यदि स्प्रिंग समान आकार की है (A, L बराबर हैं), तो बराबर-बराबर खींचने (वृद्धि x) के लिए इस्पात की स्प्रिंग पर अधिक कार्य करना पड़ेगा।
चूंकि UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 9 Mechanical Properties Of Solids 29

प्रश्न 12.
किसी धातु के परमाणुओं के बीच की औसत दूरी 30 Å है। यदि धातु का यंग-प्रत्यास्थता गुणांक 1.8 x 1011 न्यूटन/मीटर हो, तो उसका अन्तरा-परमाणुक बल-नियतांक ज्ञात कीजिए।
हल-
k = 1.8 x 1011 x 3.0 x 10-10 = 54 न्यूटन/मी

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प्रश्न 13.
1 वर्ग सेमी अनुप्रस्थ परिच्छेद के प्रत्यास्थ तार से 1.0 किग्रा द्रव्यमान का पिण्ड लटकाने पर तार में उत्पन्न प्रतिबल का मान ज्ञात कीजिए।
हल-
तार का क्षेत्रफल A = 1 वर्ग सेमी = 1 x 10-4 वर्ग मी,
द्रव्यमान m = 1.0 किग्रा ।
प्रतिबल [latex s=2]=\frac { mg }{ A } =\frac { 1.0\times 9.8 }{ 1\times { 10 }^{ -4 } } [/latex] = 9.8 x 10° न्यूटन/मी

प्रश्न 14.
एक तार में 2 x 10-4 रेखीय विकृति उत्पन्न करने पर उसमें संचित एकांक आयतन की ऊर्जा ज्ञात कीजिए। तार के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक 12 x 1011 न्यूटन/मी2 हैं।
हल-
तार में विकृति = 2 x 10-4
तथा तार के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता (UPBoardSolutions.com) गुणांक = 1.2 x 1011 न्यूटन/मी2
तार में संचित एकांक आयतन की ऊर्जा u = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x प्रत्यास्थता गुणांक x विकृति2
=[latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x 1.2 x 1011 x (2 x 10-4)2
=[latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x 1.2 x 1011 x 4 x 10-8
=2.4 x 103 जूल/मी3

प्रश्न 15.
L लम्बाई तथा A अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल का एक तार l लम्बाई से खींचा जाता है। यदि तार के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक Y है तो तार का बल नियतांक क्या है?
उत्तर-
तार को । लम्बाई में खींचने के लिए आवश्यक बल
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प्रश्न 16.
सम्पीड्यता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
किसी पदार्थ के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक के व्युत्क्रम अर्थात् 1/B को उस पदार्थ की सम्पीड्यता कहते हैं। इसे K से प्रदर्शित करते हैं।
[latex s=2]K=\frac { 1 }{ B } =\left( \frac { -\upsilon }{ p\upsilon } \right) [/latex]

प्रश्न 17.
ठोस, द्रव तथा गैस में से किसकी सम्पीड्यता सबसे अधिक होगी?
उत्तर-
गैस की।

प्रश्न 18.
एक छड़ में अनुदैर्घ्य एवं अनुप्रस्थ विकृति क्रमशः 5 x 10-3 एवं 2 x 10-3 हैं। छड़ का प्वासों अनुपात (σ) ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, छड़ की अनुदैर्ध्य विकृति = 5 x 10-3
तथा छड़ की अनुप्रस्थ विकृति = 2 x 10-3
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प्रश्न 19.
30 x 10-3 मी3 आयतन के तरल पर 6 x 10न्यूटन/मी का दाब बढ़ाने पर उसमें 5 x 10-7 मी3 आयतन की कमी हो जाती है। तरल का आयतन प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात कीजिए।
हल-
UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 9 Mechanical Properties Of Solids 32

प्रश्न 20.
स्प्रिंग इस्पात की बनाई जाती है, ताँबे की क्यों नहीं?
उत्तर-
समान विरूपक बल लगाने पर इस्पात की स्प्रिंग ताँबे की स्प्रिंग की तुलना में कम खिंचती है। क्योंकि इस्पात का यंग-प्रत्यास्थता गुणांक अधिक होता है। इसके अतिरिक्त, विरूपक बल हटा लेने पर इस्पात की स्प्रिंग ताँबे की स्प्रिंग की तुलना में शीघ्र अपनी पूर्व अवस्था प्राप्त कर लेती है।

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प्रश्न 21.
रेल की पटरी I-आकार की क्यों बनाई जाती है?
उत्तर-
रेल की पटरी के ऊपर तथा नीचे के तल अधिक विकृत (strained) होते हैं। अत: उनके क्षेत्रफल अधिक होने चाहिए, जिससे कि उन पर दाब अथवा अभिलम्ब प्रतिबल (F/A) कम लगे। बीच के भाग पर बहुत कम विकृति होती है। अत: वे कम चौड़ाई (UPBoardSolutions.com) के बनाये जाते हैं क्योंकि इससे लोहे की बचत होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तन्य पदार्थ एवं भंगुर पदार्थ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
तन्य पदार्थ (Ductile materials)—ये वे पदार्थ होते हैं जिनमें प्रत्यास्थता की सीमा के आगे प्लास्टिक क्षेत्र बड़ा होता है। ऐसे पदार्थों के । प्रतिबल-विकृति वक्र में भंजक बिन्दु प्रत्यास्थता की सीमा के बिन्दु से काफी दूर ! होता है। इनके तार खींचे जा सकते हैं। इस प्रकार के पदार्थों का प्रयोग स्प्रिंग तथा चादर (sheet) बनाने में किया जाता है।
उदाहरणार्थ-ताँबा, चाँदी, लोहा, ऐलुमिनियम आदि।
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भंगुर पदार्थ (Brittle materials)–ये वे पदार्थ हैं जिनके लिए प्रत्यास्थता । की सीमा से परे प्लास्टिक क्षेत्र बहुत छोटा है। ऐसे पदार्थों के प्रतिबल-विकृति वक्र में भंजक बिन्दु प्रत्यास्थता की सीमा बिन्दु के निकट होता है। (चित्र 9.9)। उदाहरणार्थ-काँच भंगुर पदार्थ है। इनके लिए प्रतिबल-विकृति वक्र संलग्न चित्र की भाँति होता है।

प्रश्न 2.
पॉयसन अनुपात क्या है? आयतन विकृति, पाश्विक विकृति तथा पॉयसन अनुपात में । सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर-
पॉयसन अनुपात-पाश्विक विकृति तथा अनुदैर्घ्य विकृति के अनुपात को वस्तु के पदार्थ का पॉयसन अनुपात कहते हैं। इसे σ से प्रदर्शित करते हैं। इसका कोई मात्रक नहीं होता इसीलिए यह एक विमाहीन राशि है।
आयतन विकृति, पाश्विक विकृति तथा पॉयसन अनुपात में सम्बन्ध
[latex s=2]\sigma =\frac { 1 }{ 2 } \left[ 1-\frac { d\upsilon }{ AdL } \right] [/latex]
(जहाँ A = छड़ की अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल)

प्रश्न 3.
हुक का प्रत्यास्थता सम्बन्धी नियम लिखिए।
उत्तर-
सन् 1679 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने प्रयोगों के आधार पर किसी प्रत्यास्थ वस्तु पर लगाये गये विरूपक बल एवं उसके कारण उत्पन्न परिवर्तन में सम्बन्ध स्थापित किया। इसे हुक का नियम कहते हैं जिसका कथन (statement) निम्न प्रकार है
“लघु विकृतियों की सीमा के भीतर, पदार्थ पर कार्यरत् प्रतिबल उसमें (UPBoardSolutions.com) उत्पन्न विकृति के अनुक्रमानुपाती होता है।”
अत: प्रतिबल ∝ विकृति
अथवा प्रतिबल = E x विकृति
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प्रश्न 4.
यंग-प्रत्यास्थता गुणांक की परिभाषा लिखिए तथा इसका मात्रक व विमा भी लिखिए।
उत्तर-
यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young’s modulus of elasticity)प्रत्यास्थता की सीमा के भीतर अनुदैर्ध्य प्रतिबल और अनुदैर्घ्य विकृति के अनुपात को वस्तु के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं। इसे Y से प्रदर्शित करते हैं। यदि L लम्बाई तथा A अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल वाले तार पर लम्बाई की दिशा में F बल लगाने से उसकी लम्बाई में वृद्धि । हो, तो
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अनुदैर्ध्य प्रतिबल = F/A
तथा अनुदैर्ध्य विकृति = l/L
यंग-प्रत्यास्थता गुणांक [latex s=2]Y=\frac { F/A }{ I/L } =\frac { FL }{ AI } [/latex]
यदि r त्रिज्या अर्थात् A = πr² के किसी तार को एक सिरे पर दृढ़
आधार से बाँधकर, दूसरे सिरे से भार Mg लटकाने पर उसकी लम्बाई में वृद्धि l हो, तो
प्रतिबल = Mg/πr² तथा
विकृति = I/L
[latex s=2]Y=\frac { Mg/{ \pi r }^{ 2 } }{ I/L } =\frac { MgL }{ { \pi r }^{ 2 }l } [/latex] (जहाँ r तार की त्रिज्या है।)
इसका मात्रक न्यूटन/मीटर2 तथा विमीय सूत्र [ML-1T-2] है।

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प्रश्न 5.
रबड़ और स्टील में कौन अधिक प्रत्यास्थ है? गणितीय आधार पर समझाइए।
उत्तर-
रबड़ की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ है–प्रत्यास्थता पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु आरोपित विरूपक बल द्वारा उत्पन्न आकार अथवा रूप के परिवर्तन का विरोध करती है। अत: हम कह सकते हैं। कि किसी प्रत्यास्थ वस्तु के आकार अथवा रूप में एक नियत परिवर्तन उत्पन्न करने के लिए जितना अधिक बाह्य बल लगाना होगा, वह वस्तु उतनी ही अधिक प्रत्यास्थ होगी। अत: रबड़ तथा स्टील में कौन अधिक प्रत्यास्थ है, इस बात को उपर्युक्त आधार पर निम्न प्रकार से ज्ञात कर सकते हैं
माना स्टील व रबड़ के दो तार समान लम्बाई L व समान त्रिज्या r के हैं। माना इन पर Mg भार लटकाने से स्टील के तार की लम्बाई में वृद्धि ls; तथा रबड़ की डोरी की लम्बाई में वृद्धि lR, है। यदि स्टील व रबड़ के यंग प्रत्यास्थता गुणांक क्रमश: YS व YR, हैं; तो
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चूँकि रबड़ का तार स्टील के तार की अपेक्षा समान भार के लिए लम्बाई में अधिक खिंचता है, अर्थात् lR >lS, इसलिए YS > YR अर्थात् रबड़ की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ है क्योंकि इसके लिए प्रत्यास्थता गुणांक YS, का मान अधिक है।

प्रश्न 6.
आयतन प्रत्यास्थता-गुणांक किसे कहते हैं?
उत्तर-
आयतनात्मैक प्रत्यास्थता गुणांक (Bulk modulus of elasticity)-प्रत्यास्थता की सीमा के भीतर, अभिलम्ब प्रतिबल तथा आयतन विकृति के अनुपात को वस्तु के पदार्थ का आयतनात्मक प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं। इसे B से प्रदर्शित करते हैं।
माना किसी वस्तु पर F अभिलम्ब बल लगाकर उसके आयतन में ΔV का परिवर्तन (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। माना वस्तु का प्रारम्भिक आयतन V तथा अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल A है, तो वस्तु पर लगने वला प्रतिबल F/A होगा जोकि वस्तु पर लगाया गया दाब है। अतः
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प्रश्न 7.
किसी पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक 25 x 1012 न्यूटन/मी2 है। इस पदार्थ के 1 मीटर लम्बे तार की लम्बाई में 0.1% वृद्धि करने के लिये कितना बल लगाना होगा? तार कापरिच्छेद क्षेत्रफल 1 मिमी2 है।
हल-
दिया है, Y = 25 x 1012 न्यूटन/मी2, L = 1 मी,
l = 0.001.मी = 1 x 10-3 मी,
A = 1 मिमी2 = 10-6 मी2
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प्रश्न 8.
धातु की 2 मिमी2 एकसमान अनुप्रस्थ-परिच्छेद की एक छड़ को 0°C से 20°C तक गर्म किया जाता है। छड़ का रेखीय प्रसार गुणांक 12 x 10-6 प्रति °c है। इसका यंग प्रत्यास्थता गुणांक 1011 न्यूटन/मीटर2 है। छड़ के प्रति एकांक आयतन में संचित ऊर्जा की गणना कीजिए।
हल-
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प्रश्न 9.
धातु के एक तार की त्रिज्या 0.35 मिमी है। उसे तार की लम्बाई में 0.2% की वृद्धि करने के लिए कितने बल की आवश्यकता होगी? (Y = 9.0 x 1010 न्यूटन/मी2)
हल-
यंग प्रत्यास्थता गुणांक के सूत्र
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प्रश्न 10.
1.0 मिमी2 के एकसमान अनुप्रस्थ-परिच्छेद के तार को 50°C तक गर्म करके दृढतापूर्वक सिरों पर बाँधकर ताना गया है। यदि तार का ताप घटकर 30°C हो जाये तो तार के तनाव में परिवर्तन ज्ञात कीजिए। स्टील कारेखीय प्रसार गुणांक 1.1 x 10-5 /°C तथा यंग प्रत्यास्थता गुणांक 2.0 x 1011 न्यूटन/मी2 है।
हल-
तार के ताप में Δt की कमी होने पर, तार में उत्पन्न तनाव बल F = YA α Δt
जहाँ Y तार के पदार्थ का यंग-प्रत्यास्थता गुणांक है, A तार का अनुप्रस्थ-परिच्छेद क्षेत्रफल है तथा α तार के पदार्थ का अनुदैर्ध्य प्रसार गुणांक है।
प्रश्नानुसार, Y = 2.0 x 1011 न्यूटन/मी2,
A = 1.0 मिमी2 = 1.0 x 10-6 मी2,
α = 1.1 x 10-5 प्रति °C,
At = (50-30)°C = 20°C
F = (2.0 x 1011) x (1.0 x 10-6) x (1.1 x 10-5) x 20
= 44 न्यूटन

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प्रश्न 11.
एक तार की लम्बाई 1 मी तथा त्रिज्या 2 मिमी है। इससे 2 किग्रा का भार लटकाने पर इसकी लम्बाई में 1 मिमी की वृद्धि हो जाती है। उसी पदार्थ के दूसरे तार, जिसकी लम्बाई 2 मी तथा त्रिज्या 1 मिमी है, पर वही भार लटकाया जाए, तो उसकी लम्बाई में वृद्धि निकालिए।
हल-
यदि L लम्बाई व r त्रिज्या के तार पर Mg भार लटकाने से तार की लम्बाई में वृद्धि l हो, तब
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प्रश्न 12.
0.5 मी लम्बाई तथा 1.0 सेमी2 परिच्छेद की पीतल की छड़ को लम्बाई की तरफ से 5 किग्रा वजन से दबाया जाता है। छड़ की बढ़ी हुई ऊर्जा की गणना कीजिए। (पीतल का प्रत्यास्थता गुणांक Y = 1.0 x 1011 न्यूटन/मी2 ,g = 10 मी/से2)
हल-
ऊर्जा-वृद्धि U = कार्य, W = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }Fl[/latex] तथा (UPBoardSolutions.com) Y = [latex s=2]\frac { Fl }{ Al }[/latex]
अथवा [latex s=2]l=\frac { FL }{ AY }[/latex] से,
छड़ की बढ़ी हुई ऊर्जा
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प्रश्न 13.
रबर की एक गेंद को किसी गहरी झील में 100 मी गहराई पर ले जाने से उसके आयतन में 0.2% की कमी हो जाती है। रबर के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक की गणना कीजिए। दिया गया है,g = 10.0 मी/से2, जल का घनत्व = 1.0 x 103 किग्रा/मी3
हल-
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विस्तृत उत्तंरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तरा-परमाणु बल नियतांक के लिए सूत्र स्थापित कीजिए।
उत्तर-
अन्तरा-परमाणु बल-नियतांक-हम जानते हैं। कि किसी ठोस में प्रत्येक परमाणु पास वाले परमाणुओं से घिरा । होता है। यह अन्तरा-परमाणविक बलों द्वारा परस्पर बँधे होते हैं तथा स्थिर साम्यावस्था में रहते हैं। जब ठोस पर विरूपक बल लगाया जाता है, तो ठोस के परमाणु अपनी साम्य स्थिति से विस्थापित हो जाते हैं। विरूपक बल को हटा लेने पर अन्तरा-परमाणविक बल उन्हें फिर वापस प्रारम्भिक स्थितियों में ले जाते हैं। ठोस पिण्ड पुनः अपनी प्रारम्भिक स्थिति, आकृति तथा आकार प्राप्त कर लेता है। जब किसी स्प्रिंग को बाह्य बल द्वारा खींचा जाता है, तो स्प्रिंग में उत्पन्न प्रत्यानयन (restoring) बल F, स्प्रिंग की लम्बाई में होने वाली वृद्धि x के अनुक्रमानुपाती होती है।
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F∝x
⇒ F = kx
जहाँ k एक नियतांक है, जिसे स्प्रिंग का बल नियतांक कहते हैं|
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ठीक इसी प्रकार, जब किसी ठोस पर बाह्य बल लगाते हैं, तो परमाणुओं के बीच दूरी बदल जाती है। इससे परमाणुओं के बीच उत्पन्न (अन्तरा-परमाणु) बल F’, उनके बीच दूरी परिवर्तन ∆r के अनुक्रमानुपाती होता है। |
F’ ∝ ∆r ⇒ F = k∆r,
जहाँ k अन्तरा-परमाणु बल नियतांक है।।
माना किसी तार में परमाणुओं के बीच साम्य दूरी r0 है, तार की लम्बाई l है। तार पर बाह्य बले F लगाने से तार की लम्बाई में वृद्धि ∆l होती है, तो उसके परमाणुओं के बीच की दूरी r0 से बढ़कर r0 + ∆r हो जाती है (चित्र 9.11)। तब,
अनुदैर्घ्य विकृति = [latex s=2]\frac { \Delta l }{ l } =\frac { \Delta r }{ { r }_{ 0 } } [/latex]
चूंकि परमाणुओं के बीच दूरी r0 है, अतः तार के अनुप्रस्थ-काट के r02 क्षेत्रफल में परमाणुओं की औसतन 1 कड़ी (chain) होगी (चित्र 9.12)। अर्थात् अनुप्रस्थ-काट के प्रति एकांक क्षेत्रफल में 1/r02 कड़ियाँ होंगी। यदि तार का अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल A हो, तो उसमें कड़ियों की संख्या A/r02 होगी। इस प्रकार अन्तरा-परमाणु बल (किसी 1 कड़ी पर लगने वाली बल) |
UP Board Solutions for Class 11 Physics Chapter 9 Mechanical Properties Of Solids 47
अतः अन्तरा-परमाणु बल नियतांक k, तार के पदार्थ के यंग-प्रत्यास्थता गुणांक Y तथा तार के परमाणुओं के बीच सामान्य दूरी r0 , के गुणनफल के बराबर होता है।

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प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि तार को खींचने पर उसके प्रति एकांक आयतन की प्रत्यास्थ स्थितिज़ ऊर्जा का मान [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x प्रतिबल x विकृति के बराबर होता है।
उत्तर-
जब किसी तार पर बाह्य बल लगाकर खींचा जाता है तो अन्तरा-परमाणुक बलों के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है, जो तार में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। प्रारम्भ में तार में आन्तरिक बल शून्य है, जो तार की लम्बाई बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है तथा लम्बाई में वृद्धि हो जाने पर बल F हो जाता है जो कि आरोपित बल के बराबर है। इस प्रकार तार की लम्बाई में वृद्धि के लिए औसत आन्तरिक बल = [latex s=2]\frac { 0+F }{ 2 }[/latex] = [latex s=2]\frac { F }{ 2 }[/latex]
अतः तार पर किया गया कार्य W = औसत बल x लम्बाई में वृद्धि = (F/2) x l
यही तार में संचित प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा है।
अतः U = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }Fl[/latex]
यदि तार की लम्बाई L और अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल A हो, तो
[latex s=2]U=\frac { 1 }{ 2 } \times \left( \frac { F }{ A } \right) \times \left( \frac { l }{ L } \right) \times LA[/latex]
= [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] प्रतिबल x विकृति x तार का आयतन
तार के एकांक आयतन में संचित प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा
U = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] प्रतिबल x विकृति (यही सिद्ध करना था।)

प्रश्न 3.
किसी तार के लिए प्रतिबल तथा विकृति के बीच ग्राफ खींचिए। इस ग्राफ से प्रत्यास्थ सीमा, पराभव बिन्दु तथा भंजक बिन्दु समझाइए।
उत्तर-
प्रत्यास्थ सीमा—यह भाग वक्रीय है, अत: विकृति प्रतिबल के अनुक्रमानुपाती नहीं होती है। इस क्षेत्र में हुक का नियम मान्य नहीं होता है। यदि B पर प्रतिबल हटा लिया जाये तो तार अपनी पूर्वावस्था में शीघ्र ही नहीं लौटता है। यदि तार को कुछ समय तक विरूपक बल से मुक्त रखा जाये तो वह अपनी प्रारम्भिक लम्बाई को प्राप्त करेगा। अत: इस बिन्दु B द्वारा निरूपित प्रतिबल को तार की प्रत्यास्थता सीमा (elastic limit) कहते हैं।
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पराभव बिन्दु-यह भाग विकृति अक्ष के लगभग समान्तर है। अतः यह उस स्थिति को प्रकट करता है। जब मानो बिना प्रतिबल को बढ़ाये अपने आप ही विकृति बढ़ती रहती है। बिन्दु B, जहाँ पर ऐसी स्थिति , प्रारम्भ होती है, पराभव बिन्दु (yield point) कहलाता है।
भंजक बिन्दु-बिन्दु D से आगे यदि तार पर लटके भार को कम भी किया जाये तो भी तार पतला होता चला जाता है अर्थात् इसका अनुप्रस्थ-परिच्छेद एकसमान नहीं रहता है तथा तार का पदार्थ श्यान तरल (viscous fluid) की भाँति बढ़ना प्रारम्भ हो जाता है एवं एक बिन्दु E तक पहुँचते-पहुँचते तार टूट जाता है। बिन्दु E को भंजक बिन्दु कहते हैं।

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प्रश्न 4.
किसी तार को खींचने में किए गए कार्य तथा प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक का निगमन कीजिए।
हल-
किसी तार को खींचने में किया गया कार्य तथा प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक-जब हम किसी तार को खींचते हैं, तो अन्तराणविक बलों के विरुद्ध कुछ कार्य करते हैं जो कि तार में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। अत: तार की प्रत्यास्थता स्थितिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
माना एक तार की लम्बाई L तथा परिच्छेद-क्षेत्रफल A है। यदि इस तार की लम्बाई के अनुदिश बले F लगाने से तार की लम्बाई में वृद्धि x हो जाती है। तब ।
अनुदैर्ध्य प्रतिबल = F/A तथा अनुदैर्घ्य विकृति = x/L
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प्रश्न 5.
दो क्लैम्पों (दो दृढ़ आधारों) के बीच तने (कसे) तार का ताप बदलने या ठण्डा करने पर तार में उत्पन्न बल के लिए व्यंजक का निगमन कीजिए।
हल-
माना लम्बाई L तथा अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल A का एक तार दो दृढ़ आधारों के बीच कसा है। जब तार को ठण्डा किया जाता है, तो तार लम्बाई में सिकुड़ता है जिससे कि यह आधारों पर एक बल- आरोपित करता है। माना तार के पदार्थ का यंग-प्रत्यास्थता गुणांक Y व अनुदैर्ध्य प्रसार गुणांक α है। यदि तार के ताप में Δt°C की कमी होने पर तारे की लम्बाई में कमी ΔL हो, तब
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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 11 Water in the Atmosphere

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 11 Water in the Atmosphere (वायुमंडल में जल)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) जलवाष्प
(ख) धूलकण
(ग) नाइट्रोजन
(घ) ऑक्सीजन
उत्तर-(घ) ऑक्सीजन।

प्रश्न (ii) निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल, द्रव से वाष्प में बदल जाता है?
(क) संघनन ।
(ख) वाष्पीकरणे
(ग) वाष्पोत्सर्जन
(घ) अवक्षेपण
उत्तर-(ख) वाष्पीकरण।

प्रश्न (ii) निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(क) सापेक्ष आर्द्रता
(ख) निरपेक्ष आर्द्रता
(ग) विशिष्ट आर्द्रता
(घ) संतृप्त हवा
उत्तर-(ख) निरपेक्ष आर्द्रता।।

प्रश्न (iv) निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊँचा बादल कौन-सा है?
(क) पक्षाभ
(ख) वर्षा मेघ
(ग) स्तरी
(घ) कपासी
उत्तर-(क) पक्षाभ।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर-वर्षण के तीन प्रकारों के नाम निम्नलिखित हैं– 1. जलवर्षा, 2. हिमवर्षा, 3. ओलावृष्टि।।

प्रश्न (ii) सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-वायु में निरपेक्ष या वास्तविक आर्द्रता एवं वायु के जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता का अनुपात । सापेक्ष आर्द्रता कहलाती है। यह सदैव प्रतिशत में मापी जाती है।
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अर्थात् दिए गए तापमान पर एक स्थान की वायु में जलवाष्प की मात्रा तथा उस वायु की जलवाष्प धारण करने की अधिकतम क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं जिसे उक्त सूत्र से ज्ञात किया जाता है। इसे मापने हेतु आई बल्ब एवं शुष्क बल्ब तापमापी यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न (iii) ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर-ऊँचाई के साथ आर्द्र हवा जब ठण्डी होती है तब उसमें जलवाष्प को धारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। अतः ऊँचाई पर जाने पर हवा ठण्डी होने के कारण उसमें जलवाष्प की मात्रा तेजी से घटने लगती है, क्योंकि उपयुक्त तापमान के अभाव में हवा में जल धारण क्षमता नहीं रहती। इसीलिए ऊँचाई के साथ तापमान घटने के कारण जलवाष्प की मात्रा तेजी से घटती जाती है।

प्रश्न (iv) बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-बादल पानी की छोटी बूंदों या बर्फ के छोटे कणों की संहति है। बादलों की उत्पत्ति पर्याप्त ऊँचाई पर स्वतन्त्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण होती है। बादलों को ऊँचाई, विस्तार, घनत्व तथा पारदर्शिता या अपारदर्शिता के आधार पर निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है1. पेक्षाभ मेघ, 2. कपासी मेघ, 3. स्तरी मेघ, 4. वर्षा मेघ।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-विश्व में वर्षा का वितरण सभी स्थानों पर समान नहीं है। धरातल की बनावट, जलवायु एवं पवनों की दिशा पर वर्षा की मात्रा परिवर्तित होती रहती है। विश्व में वर्षा के वितरण की मुख्य विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं

  1. विषुवत् वृत्ते से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे घटती जाती है।
  2. विश्व के तटीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के आन्तरिक भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
  3. विश्व के स्थलीय भागों की अपेक्षा सागरीय भागों में वर्षा अधिक होती है क्योंकि वहाँ जलस्रोतों की उपलब्धता के कारण वाष्पीकरण की क्रिया लगातार होती रहती है।
  4. विषुवत् वृत्त से 35 से 40° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पूर्वी तटों पर बहुत अधिक वर्षा होती है तथा पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
  5. विषुवत् रेखा से 45° तथा 65° उत्तर तथा दक्षिण अक्षांशों के मध्य पछुवा पवनों के कारण सबसे पहले महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर तथा फिर पूर्व की ओर घटती हुई दर से वर्षा होती है।
  6. विश्व में जहाँ पर्वत तट के समानान्तर हैं, वहाँ वर्षा की मात्रा पवनाभिमुख तटीय मैदानों में अधिक | होती है जबकि प्रतिपवने दिशा की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
  7. वार्षिक वर्षण के आधार पर वर्षा की कुल मात्रा के आधार पर विश्व में अधिक वर्षा के क्षेत्र | भूमध्य रेखा के निकट, मध्यम वर्षा के क्षेत्र 30° से 60° अक्षांश दोनों गोलार्द्ध में तथा कम वर्षा के क्षेत्र ध्रुवीय पेटी में स्थित हैं।

प्रश्न (i) संघनन के कौन-कौन से प्रकार हैं? ओस एवं तुषार के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-जलवाष्प का जल के रूप में बदलना संघनन कहलाता है। वास्तव में ऊष्मा का ह्रास ही संघनन का कारण होता है। संघनन के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं
(i) ओस, (ii) तुषार, (ii) कुहासा, (iv) बादल।
ओस-जब आर्द्रता धरातल के ऊपर हवा में संघनन केन्द्रकों पर संघनित न होकर ठोस वस्तु; जैसेपत्थर, घास तथा पौधों की पत्तियों की ठण्डी सतह पर पानी के सूक्ष्म कणों के रूप में एकत्र हो जाती है। तो उसे ओस कहते हैं। ओस के बनने के लिए यह आवश्यक है कि ओसांक जमाव बिन्दु से ऊपर हो। ओस के बनने में साफ आकाश, शान्त हवा, उच्च सापेक्ष आर्द्रता तथा ठण्डी एवं लम्बी रातें उपयुक्त दशाएँ मानी जाती हैं।

तुषार-तुषार या पाला अथवा हिमकण भी संघनने प्रक्रिया का ही परिणाम है। जब संघनन क्रिया के समय भूमि के निकट की वायु का तापमान हिमांक बिन्दु (0°C) तक नीचे गिर जाता है तो पौधों एवं भूमि की सतह पर उपस्थित जल जमने लगता है, यही तुषार या पाला कहलाता है। सफेद तुषार के बनने की सबसे उपयुक्त दशाएँ ओस के बनने की दशाओं के समान हैं, किन्तु इसमें केवल हवा का तापमान जमाव बिन्दु पर या उससे नीचे होना आवश्यक है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल से जल हमें किस रूप में प्राप्त होता है? |
(क) जल
(ख) जल एवं हिम
(ग) जल, हिम, पाला।
(घ) जल, हिम, पाला, ओस
उत्तर-(ख) जल एवं हिम।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किस प्रदेश में प्रमुख रूप से संवाहनिक वर्षा होती है?
(क) भूमध्यसागरीय प्रदेश ।
(ख) भूमध्यरेखीय प्रदेश
(ग) टैगा प्रदेश
(घ) टुण्ड्रा प्रदेश
उत्तर-(ख) भूमध्यरेखीय प्रदेश।

प्रश्न 3. निम्नलिखित वर्षा-प्रकारों में से कौन विषुवतरेखीय प्रदेशों में पायी जाती है?
(क) प्रतिचक्रवातीय वर्षा
(ख) चक्रवातीय वर्षा
(ग) पर्वतीय वर्षा ।
(घ) संवहनीय वर्षा
उत्तर-(घ) संवहनीय वर्षा।

प्रश्न 4. संवहनीय वर्षा विशिष्ट विशेषता है
(क) चीन तुल्य जलवायु की ।
(ख) भूमध्यरेखीय जलवायु की
(ग) भूमध्यसागरीय जलवायु की
(घ) पश्चिम यूरोपीय जलवायु की
उत्तर-(ख) भूमध्यरेखीय जलवायु की।

प्रश्न 5. वृष्टिछाया प्रदेश किससे सम्बन्धित है?
(क) संवाहनिक वर्षा ।
(ख) चक्रवातीय वर्षा
(ग) पर्वतीय वर्षा
(घ) प्रतिचक्रवतीय वर्षा
उत्तर-(ग) पर्वतीय वर्षा। ||

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संघनन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-वायु में उपस्थित जलवाष्प का ताप गिरने पर जब उसका घनीभवन होता है तब उसे संघनन कहते हैं।

प्रश्न 2. संघनन के कौन-कौन से रूप होते हैं?
उत्तर-ओस, पाला, कोहरा, ओले, मेघ, वर्षा, हिम आदि संघनन के विविध रूप हैं।

प्रश्न 3. संवाहनिक वर्षा क्या है ?
उत्तर-धरातल पर ऊष्मा की अधिकता के कारण वायुमण्डल में उत्पन्न संवहनीय धाराओं द्वारा होने वाली वर्षा संवाहनिक वर्षा कहलाती है।

प्रश्न 4. चक्रवातीय वर्षा का क्षेत्र बेताइए।
उत्तर-आयन रेखाओं तथा मध्य अक्षांशों में अधिकांश वर्षा चक्रवातों द्वारा ही होती है। उत्तरी भारत भी चक्रवातीय वर्षा का क्षेत्र है।

प्रश्न 5. संवहनीय वर्षा का क्षेत्र बतलाइए।
उत्तर-संवहनीय वर्षा अधिकतर अपराह्न में होती है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र में शान्त पेटी (डोलड्रम) में अधिकांशतः संवहनीय वर्षा ही होती है।

प्रश्न 6. विश्व में औसत वार्षिक वर्षा के वितरण सम्बन्धी दो महत्त्वपूर्ण तथ्य बतलाइए।
उत्तर-1. भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा न्यून होती जाती है।
2. भूमध्यरेखीय कटिबन्ध तथा शीत-शीतोष्ण कटिबन्धों के पश्चिमी भागों में वर्षा का वितरण वर्षभर समान रहता है।

प्रश्न 7. वाष्पीकरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-जल के तरल रूप से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8. कोहरे के कौन-कौन से तीन प्रकार हैं?
उत्तर-कोहरे के तीन प्रकार हैं-1. विकिरण कोहरा, 2. अभिवहन कोहरा, 3. वाताग्री कोहरा।

प्रश्न 9. धूम्र कोहरा क्या है?
उत्तर-ऐसी स्थिति जिसमें कोहरा तथा धुआँ सम्मिलित रूप से बनते हैं धूम्र कोहरा कहलाती है। यह स्थिति नगरों एवं औद्योगिक केन्द्रों में धुएँ की अधिकता के कारण केन्द्रकों की मात्रा की अधिकता के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 10. कुहासे एवं कोहरे में क्या अन्तर है?
उत्तर-कुहासे एवं कोहरे में अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर होता है। कुहासे में कोहरे की अपेक्षा नमी अधिक होती है। कुहासा पहाड़ों पर अधिक पाया जाता है, जबकि कोहरा मैदानों में अधिक पाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आर्द्रता किसे कहते हैं?
उत्तर-वायुमण्डल में निहित जलवाष्प विशाल महासागरों, झीलों, नदियों अथवा पेड़-पौधों से प्राप्त होती है। प्रतिदिन धरातल का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प के रूप में परिवर्तित होता रहता है। वायु में विद्यमाने वाष्प ही उसकी आर्द्रता कहलाती है। वायु में वाष्प ग्रहण करने की शक्ति बहुत अंशों में उसके तापमान पर निर्भर करती है। वायु का तापमान जितना अधिक होगा उसमें वाष्प धारण करने की शक्ति उतनी ही बढ़ जाएगी। उदाहरणार्थ-यदि एक घन फुट वायु के तापमान को 0° से 5° सेग्रे अर्थात् 5° सेग्रे बढ़ा दिया जाए तो उस वायु में केवल 1 ग्रेन वाष्प धारण करने की शक्ति बढ़ती है। परन्तु यदि 32° सेग्रे तापमान वाली वायु को 5.5° सेग्रे से बढ़ाकर 37.5° सेग्रे कर दिया जाए तो वह 5 ग्रेन वाष्प धारण करने योग्य हो जाती है। यही कारण है कि शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में वायु अधिक वाष्प ग्रहण कर सकती है जिससे गर्मियों में अधिक वर्षा होती है। वायु में वाष्प की मात्रा उसके तापमान के अतिरिक्त जल और स्थल के विस्तार तथा पवनों की किसी स्थान तक पहुँच पर निर्भर करती है। इसे सदैव प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 2. आर्द्रता एवं सापेक्ष आर्द्रता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-आर्द्रता–आर्द्रता से तात्पर्य वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा से है। आर्द्रता को कई प्रकार से व्यक्त किया जाता है; जैसे—सापेक्ष आर्द्रता, निरपेक्ष आर्द्रता एवं अधिकतम आर्द्रता। आर्द्रता में क्षैतिज एवं लम्बवत् अन्तर पाया जाता है। किसी स्थान-विशेष पर किसी विशिष्ट समय में वायु में जलवाष्प की वास्तविक मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे वास्तविक आर्द्रता भी कहा जाता है। इसे ग्रेन प्रति घन फुट या ग्राम प्रति घन सेमी द्वारा व्यक्त किया जाता है। सोपक्ष आर्द्रता-वायु में निरपेक्ष या वास्तविक आर्द्रता एवं वायु के जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता का अनुपात सापेक्ष आर्द्रता कहलाती है। यह सदैव प्रतिशत में मापी जाती है।

प्रश्न 3. बादल या मेघ का क्या अर्थ है? ये कैसे बनते हैं?
उत्तर-मेघ वास्तव में वायुमण्डल में धूलकणों पर रुके हुए जल-बिन्दुओं का समूह मात्र है। तापमान के अत्यन्त कम होने पर वायु की अतिरिक्त जलवाष्प सूक्ष्म जल की बूंदों में बदल जाती है, जिसे संघनन (Condensation) कहते हैं। जिस ताप पर संघनन आरम्भ होता है, उसे ओसांक (Dew point) कहते ।

हैं। यदि ओसांक 0° सेल्सियस से ऊपर आ जाता है तो जलवाष्प सूक्ष्म जल की बूंदों में बदल जाती है और यदि 0° सेल्सियस (हिमांक) पर ओसांक आता है तो जलवाष्प सूक्ष्म हिमकणों में अर्थात् पाले के रूप में बदल जाती है। यही हिमकण तथा जल-सीकर कुहरे के रूप में वायुमण्डल में दिखलाई पड़ते हैं। जब ये एक विस्तृत क्षेत्रफल में विशाल रूप धारण कर ऊँचाई पर सघन रूप में एकत्रित हो जाते हैं, तो इन्हें मेघ या बादल कहा जाता है।
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सामान्यतया मेघ धूलकणों पर स्थित जलकण अथवा हिमकणों के विशाल आकार हैं, जो वायुमण्डल में अक्षांशों के अनुसार भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों पर स्थापित हो जाते हैं। इन मेघों की ऊँचाई कटिबन्धों के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है।

प्रश्न 4. संघनन क्या है? इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बतलाइए।
उत्तर-जलवाष्प के घनीभूत होकर जल में बदलने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं। संघनन आई वायु के ठण्डा होने पर होता है। संघनन प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं

  1. जब वायु का तापमान ओसांक तक पहुँच जाता है।
  2.  जब वायु का आयतन ऊष्मा की मात्रा बढ़ाए बिना बढ़ जाए।
  3. जब वायु की आर्द्रता धारण क्षमता घटकर वायु में उपस्थित आर्द्रता की मात्रा से कम हो जाए।
  4. जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा मिला दी जाए।

प्रश्न 5. वर्षा और वर्षण में अन्तर लिखिए।
उत्तर-वर्षा—यह वर्षण का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें बादलों के जल-वाष्प कण संघनित होकर जल की बूंदों या हिमकणों के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरते हैं। जलवर्षा तथा हिमवर्षा इसके दो रूप हैं।

वर्षण—यह एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डल की आर्द्रता संघनित होकर वर्षा, हिम, ओला, पाला आदि रूपों में धरातल पर गिरती है। जल-वर्षा, वर्षण का एक साधारण रूप है। हिमवृष्टि, ओलावृष्टि, हिमपात आदि इसके अनेक रूप हैं।

प्रश्न 6. निरपेक्ष एवं सापेक्ष आर्द्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर- निरपेक्ष आर्द्रता एवं सापेक्ष आर्द्रता में अन्तर
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प्रश्न 7. वर्षण या वृष्टि से क्या अभिप्राय है? इसके दो रूपों का विवरण दीजिए।
उत्तर-वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसों के साथ-साथ जलवाष्प भी विद्यमान रहती है। वायुमण्डल में व्याप्त इस जलवाष्प को ही वायुमण्डल की आर्द्रता कहते हैं। भूमण्डल पर ओस, बादल, हिमपात, कुहरा, तुषार तथा वर्षा आदि इसी आर्द्रता की देन हैं, जिन्हें वर्षण तथा वृष्टि कहा जाता है।

वर्षण के रूप

वर्षण के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन निम्नलिखित है
1. हिमपात–जब कभी वायुमण्डल का तापमान ओसांक बिन्दु से भी कम हो जाता है, तो उसमें उपस्थित जलवाष्प जल में परिणत न होकर सीधे हिम के रवों के रूप में संघनित हो जाती है।
भूतल पर ये रवे हिमकणों के रूप में गिर जाते हैं। वर्षण का यह स्वरूप ‘हिमपात’ कहलाता है।

2. हिमवर्षा–जब जल की बूंदें भूप्रष्ठ के समीप की वायु की बहुत शीतल परतों से होकर गुजरती हैं, तब जलवाष्प हिम (बर्फ) बनकर नीचे गिरती है। वर्षण का यह रूप हिमवृष्टि या हिमवर्षा
कहलाता है। उच्च अक्षांशों तथा उच्च पर्वतीय प्रदेशों में हिमवर्षा ही होती है।

प्रश्न 8. उन नियन्त्रक कारकों का वर्णन कीजिए जो वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन की क्रिया की दर को नियन्त्रित करते हैं।
उत्तर–वाष्पीकरण वह क्रिया है जिसके द्वारा जल द्रव अवस्था से वाष्पीय अवस्था में परिवर्तित होता है। वाष्पीकरण निम्नलिखित कारकों पर निर्भर है

  1. तापमान तापमान बढ़ने पर वाष्पीकरण की गति अधिक हो जाती है। यही कारण है कि उष्ण कटिबन्ध में अन्य ताप-क्षेत्रों की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है।
  2. पवन वेग-पवन का वेग जितना अधिक होता है, वाष्पीकरण भी उतना ही अधिक होता है।
  3. वायु की शुष्कता-वायु जितनी अधिक शुष्क होती है, वाष्पीकरण उतना ही तीव्र गति से होता है। वर्षा के दिनों में वायु आर्द्र होती है, इसलिए वर्षा ऋतु में वाष्पीकरण कम होता है।

वाष्पोत्सर्जन-इस प्रक्रिया के अन्तर्गत आर्द्रता की मात्रा तरल पदार्थों के साथ-साथ जीवित प्राणियों; जैसे—पेड़-पौधे आदि से भी प्राप्त होती है। वाष्पोत्सर्जन उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ वर्षा तथा वनस्पति अधिक पाई जाती है। भूमध्यरेखा के 10° उत्तर एवं 10° दक्षिण में ऐसे क्षेत्र स्थित हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वर्षा के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं? प्रत्येक की उत्पत्ति के कारण समझाइए।
या वर्षा के प्रमुख प्रकारों के नाम बताइए। संवहनीय वर्षा की उत्पत्ति समझाइए तथा उसका विश्व वितरण बताइए।
या विश्व में वर्षा के असमान वितरण की व्याख्या कीजिए तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर-वर्षा अथवा वृष्टि
वायुमणूडल से जल हमें दो रूपों में प्राप्त होता है—तरल एवं ठोस। जल की प्राप्ति को ही वर्षा या वृष्टि कहते हैं। वर्षा धरातल पर जल, हिम, फुहार तथा ओलों के रूप में प्राप्त होती है। कोहरा, ओस तथा तुषार आदि भी वर्षा के ही रूप हैं, परन्तु इनमें वर्षा को अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्षा की मात्रा वायुमण्डलीय आर्द्रता पर निर्भर करती है। वाष्प की यह मात्रा संघनित होकर जल-कणों में परिवर्तित हो जाती है। वायुमण्डल में जब इन जल-कणों की अधिकता हो जाती है तो यह कण घनीभूत होकर वर्षा के रूप में धरातल पर टपकना आरम्भ कर देते हैं। वर्षा निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करती है

  1. वायुमण्डल में पर्याप्त मात्रा में जलवाष्प की उपस्थिति।
  2. जल-सीकरों के आकार में वृद्धि होना।
  3. जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया का तीव्रता से होना, जो निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है
  • अधिक तापमान के कारण वायु का हल्की होकर ऊपर फैलना,
  • ध्रुवीय प्रदेशों से उष्ण प्रदेशों की ओर वायु का प्रवाहित होना एवं
  • निम्न वायुदाब का उच्च वायुदाब से मिलन तथा उसका ठण्डी जलधाराओं के सम्पर्क में आना।

वर्षा के प्रकार

जलवाष्पयुक्त वायुराशियों की संघनन प्रक्रिया के फलस्वरूप धरातल की वर्षा भिन्न-भिन्न रूपों में प्राप्त होती है। वर्षा के निम्नलिखित तीन स्वरूप पाये जाते हैं

1. संवहनीय वर्षा–धरातल पर ऊष्मा की अधिकता के कारण वायुमण्डल में उत्पन्न संवहनीय धाराओं द्वारा होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में अत्यधिक गर्मी के कारण होती है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में प्रतिदिन वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा वायुमण्डल में फैल जाती है एवं समीपवर्ती वायु आकर इसका स्थान ले लेती है। कुछ समय बाद जलद मेघों का निर्माण होता है। वायुमण्डल में ऊपर उठी वायु ठण्डी होकर सीकरों में बदल जाती है। इस प्रकार स्थानीय ताप के प्रभाव के कारण वायुमण्डल में संवहन क्रिया आरम्भ हो जाती है। इन प्रदेशों में तीव्र गर्जन-तर्जन एवं बिजली की गड़गड़ाहट के साथ घनघोर वर्षा होती है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में इसी प्रक्रिया द्वारा वर्षा होती है।
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2. पर्वतीय वर्षा–निम्न वायुभार उच्च वायुभार को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि उच्च वायुभार किसी जलाप्लावित क्षेत्र से होकर गुजरता है तो यह आर्द्रता ग्रहण कर लेता है। जब इनके मार्ग में कोई पर्वत शिखर | या पठार अवरोध के रूप में उपस्थित हो जाता है तो वायु । घनीभूत होकर वर्षा करती है। पर्वतीय वर्षा उस समय होती है जब वायुमण्डल में आर्द्रता की मात्रा अधिकतम होती है।
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मध्यवर्ती अक्षांशों में शरद् एवं शीत ऋतु के प्रारम्भ में तथा मानसूनी प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में इसी प्रकार की वर्षा होती है। इसे पर्वतकृत वर्ष भी कहते हैं। वायु अवरोध के सामने वाले भागों में अत्यधिक वर्षा होती है, जब कि विमुख भाग में वर्षा कम होती जाती है, क्योंकि यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते वायु में आर्द्रता बहुत ही कम हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों को वृष्टिछाया प्रदेश (Rain-Shadow Region) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की वर्षा में कुछ अन्य प्रत्यक्ष कारक भी अपना प्रभाव डालते हैं। दिन में पर्वतों के ढाल तथा घाटियाँ गर्म हो जाती हैं जिससे वायुमण्डल में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी इनके शीतलन से भी वर्षा हो जाती है। इस प्रकार पर्वतीय वर्षा पर धरातलीय बनावट का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

3. चक्रवातीय वर्षा–जब विपरीत दिशाओं की शीतल एवं उष्ण वायुराशियाँ किसी स्थान पर एकत्रित होने लगती हैं तो वायु में अभिसरण की दशा उत्पन्न। इससे वायुराशियाँ ऊपर की ओर उठती हैं तथा इनमें अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। इनसे कपासी मेघों का निर्माण होता है तथा बौछारों के रूप में वर्षा होती है।
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शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में चक्रवातीय वर्षा होती है। उष्ण कटिबन्ध में ग्रीष्म ऋतु में चक्रवातों से वर्षा होती है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में विभिन्न वायुराशियों में तापमान, आर्द्रता एवं घनत्व में भिन्नता होने के कारण वाताग्रों का निर्माण नहीं हो पाता। अधिकांश चक्रवातीय वर्षा शरद् ऋतु में होती है। समशीतोष्ण प्रदेशों में पछुवा हवाओं के साथ-साथ अनेक चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं। उत्तरी भारत में शीतकालीन वर्षा भी चक्रवातीय वर्षा का एक प्रमुख उदाहरण है।

संसार में वर्षा का वितरण

संसार के वर्षा के वितरण मानचित्र पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि भूतल पर सभी जगह एकसमान मात्रा में वर्षा नहीं होती। धरातल की बनावट, जलवायु एवं पवनों की दिशा पर वर्षा की मात्रा निर्भर करती है। संसार में वर्षा का वितरण निम्नवत् पाया जाता है–

1. विषुवतरेखीय अधिक वर्षा की पेटी-वर्षा-वितरण का यह क्षेत्र विषुवत रेखा के 10° उत्तर तथा 10° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। इस पेटी में प्रतिदिन संवहनीय मूसलाधार वर्षा होती है। वर्षा बादलों की गर्जन तथा बिजली की चमक के साथ होती है। इस पेटी में वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमी तक रहता है। अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ घने वन पाये जाते हैं तथा कृषि का विकास कम हुआ है। यहाँ विरल आबादी मिलती है।

2. व्यापारिक पवनों की वर्षा की पेटी-व्यापारिक पवन प्रवाह क्षेत्र में इन पवनों से व्यापक वर्षा होती है; अत: इसे व्यापारिक पवनों की वर्षा की पेटी कहते हैं। इस पेटी का विस्तार 10° से 20° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्थों में पाया जाता है। इसी पेटी में मानसूनी पवनों से भी भारी वर्षा हुआ करती है। वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 150 सेमी तक रहता है। प्रचुर वर्षा के कारण मानसूनी प्रदेशों में चावल की सघन खेती होती है तथा घनी आबादी पायी जाती है।

3. उपोष्ण कम वर्षा की पेटी-उच्च वायुदाब की यह पेटी 20° से 30° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्ध में विस्तृत है। इस पेटी में वर्षा बहुत कम होती है, क्योंकि नीचे उतरती हुई हवाएँ वर्षा नहीं करती हैं। अतः विश्व के अधिकांश उष्ण मरुस्थल इसी पेटी में पाये जाते हैं। इस पेटी में वर्षा का वार्षिक औसत 50 सेमी तक ही रहता है।

4. भूमध्यसागरीय मध्यम वर्षा की पेटी-यह पेटी 30° से 40° अक्षांशों के मध्य फैली हुई है। इस क्षेत्र में वायुदाब की पेटियों के खिसक जाने के कारण शीत ऋतु में ही वर्षा होती है। पछुवा पवनें तथा चक्रवात शीत ऋतु में खूब वर्षा करते हैं। इस क्षेत्र में वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। यहाँ मध्यम सघन आबादी पायी जाती है।

5. शीतोष्ण वर्षा की पेटी-40° से 60° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्थों में यह पेटी पायी जाती है। पछुवा पवनों का व्यापक प्रभाव रहने के कारण इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। दक्षिणी अक्षांशों में यहाँ चक्रवातों से भारी वर्षा होती है। इस पेटी में प्रतिवर्ष 100 से 125 सेमी तक वर्षा होती है। यहाँ पश्चिमी यूरोपीय देशों में सघन आबादी मिलती है।

6. ध्रुवीय कम वर्षा की पेटी-60° अक्षांशों से 90° अक्षांशों के मध्य सबसे कम वर्षा होती है। 60° अक्षांशों के निकट मात्र 25 सेमी वर्षा ही होती है, शेष भागों में वर्षा हिम-कणों के रूप में होती है। इस क्षेत्र में वर्ष-भर उच्च दाब बना रहने के कारण वर्षा कम होती है। हिमाच्छादन के कारण यहाँ विरल आबादी पायी जाती है।

प्रश्न 2. वायुमण्डल से ओलावृष्टि एवं वर्षा किस प्रकार होती है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–ओलावृष्टि-जब वायुमण्डल में प्रबल वायु की धाराएँ ऊर्ध्वाधर रूप में चलती हैं, तव संघनन की प्रक्रिया वायुमण्डल के उच्च स्तरों में निम्न तापमान पर सम्पन्न होती है तथा जलवाष्प हिमकणों में बदल जाती है। हिमकणों का आकार धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, परन्तु ऊपर उठती हुई प्रचण्ड वायु इन्हें नीचे नहीं गिरने देती है। इस प्रकार इन रवों की मोटाई कुछ सेमी तक बढ़ जाती है तथा ठोस हिम के गोले के रूप में ये रवे भूपृष्ठ पर गिरते हैं, जिसे ‘ओलावृष्टि’ या ‘उपलवृष्टि’ कहते हैं। कभी-कभी ओले वर्षा के साथ भी भूपृष्ठ पर गिरते हैं। ओलावृष्टि से फसलों को भारी हानि पहुँचती है।

वर्षा-वर्षा, वृष्टि का सबसे सामान्य प्रतिरूप है। वायुमण्डल में जलवाष्प के संघनन से मेघों का निर्माण होता है। मेघों में अनेक छोटे-छोटे जलकण होते हैं, जो यत्र-तत्र बिखरे रहते हैं। जब मेघ वायुमण्डल के शीतल क्षेत्रों में पहुँचते हैं तब ये जलकण संचित होकर पहले की अपेक्षा और बड़े हो जाते हैं। भार के कारण ये वायुमण्डल में अधिक देर तक टिक नहीं पाते और नीचे बरसने लगते हैं। वृष्टि के इस रूप को ‘वर्षा’ कहते हैं। वर्षा की बूंदों का व्यास 6 मिमी तक होता है। ‘फुहार’ हल्की वर्षा का स्वरूप है। इसमें जल की बूंदें बहुत ही सूक्ष्म होती हैं, जिनका व्यास 0.5 मिमी से भी कम होता है।

प्रश्न 3. ऊँचाई के आधार पर मेघों या बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर—बादलों का वर्गीकरण उनकी धरातल से ऊँचाई तथा आकार के आधार पर किया जाता है। 1932 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बादलों को निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकृत किया गया है

1. उच्च बादल-इन बादलों की ऊँचाई समुद्रतल से 6 से 12 किमी तक होती है। इनमें पक्षाभ (Cirrus), पक्षाभ कपासी (Cirro-cumulus) और पक्षाभ स्तरी (Cirro-stratus) मेघ सम्मिलित किए जाते हैं। पक्षाभ सबसे ऊँचे मेघ होते हैं जिनका निर्माण सूक्ष्म हिमकणों से होने के कारण इनका रंग श्वेत होता है। ये चक्रवातों के आगमन से पहले आकाश में दिखलाई पड़ते हैं। पक्षाभ स्तरी मेघ आकाश में एक पतली चादर की भाँति फैले होते हैं और चन्द्रमा तथा सूर्य के चारों ओर प्रभामण्डल बना देते हैं। पक्षाभ-कपासी मेघ छोटे-छोटे, गोलाकार या लहरनुमा होते हैं।

2. मध्यम ऊँचाई के बादल-इन बादलों की ऊँचाई धरातल से 3 से 6 किमी तक होती है। इन बादलों में स्तरी मध्य रेखा (Altostratus) और कपासी मध्य मेघ (Altocumulus) प्रमुख हैं। स्तरी मध्य मेघों में सूर्य व चन्द्रमा स्पष्ट दिखाई नहीं देते और इनसे विस्तृत क्षेत्रों में लगातार वर्षा होती है।

3. निम्न बादल-ये धरातल से 3 किमी ऊँचाई तक पाए जाने वाले बादल हैं जिनके प्रमुख प्रकार स्तरी (Stratus), वर्षा स्तरी (Nimbo Stratus) और स्तरी कपासी (Strato-cumulus) मेघ हैं। स्तरी बादल कुहरे के समान कई परतों में शीतोष्ण कटिबन्ध में जाड़ों में अधिक दिखलाई पड़ते हैं। वर्षा स्तरी बादल काले तथा धरातल के निकट अत्यन्त घने होते हैं जिनसे भारी वर्षा होती है। स्तरी कपासी मेघ हल्के भूरे रंग के बड़े-बड़े गोलाकार चकतों में पाए जाते हैं।

4. अधिक ऊध्र्वाधर विकास वाले बादल-इन बादलों में पवनें तेजी से धरातल से ऊपर की ओर ऊर्ध्वाधर प्रवाहित होती हैं। अत: इनका ऊध्र्वाधर विस्तार अधिक होता है। ये कपासी (Cumulus) और कपासी वर्षी (Cumulonimbus) मेघ होते हैं। ये गहरे काले रंग वाले भारी बादल होते हैं। इन्हें गर्जन मेघ भी कहते हैं। कपासी वर्षी मेघ ऊँचाई में अधिक विस्तार वाले पर्वत के समान होते हैं। प्रबल ऊर्ध्वाधर पवनों के कारण इनसे मूसलाधार वर्षा ओले, विद्युत की चमक व गर्जन-तर्जन के साथ होती है।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems (वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) यदि धरातल पर वायुदाब 1,000 मिलीबार है तो धरातल से 1 किमी की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार।
(ग) 1,100 मिलीबार ।
(घ) 1,300 मिलीबार
उत्तर-(ख) 900 मिलीबार।।

प्रश्न (ii) अन्तर उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(क) विषुववृत्त के निकट
(ख) कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ) आर्कटिक वृत्त के निकट
उत्तर-(क) विषुवत् वृत्त के निकट।

प्रश्न (iii) उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(क) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाबे रेखाओं के समकोण पर ।
(घ) समदाब रेखाओं के समानान्तर
उत्तर-(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत।

प्रश्न (iv) वायुराशियों के निर्माण का उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) विषुवतीय वन ।
(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग |
(ग) हिमालय पर्वत ।
(घ) दक्कन पठार
उत्तर-(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न (i) वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर-वायुदाब को मापने की इकाई मिलीबार तथा पासकल है। व्यापक रूप से वायुदाब मापने के लिए किलो पासकल इकाई का प्रयोग किया जाता है जिसे hPa द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक घटाया जाता है क्योंकि समुद्र तल पर औसत वायुमण्डलीय दाब 1,013.2 मिलीबार या 1,013.2 किलो पासकल होता है। अतः वायुदाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने के लिए और मानचित्र को तुलनात्मक बनाने के लिए वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्र स्तर पर घटा दिया जाता है।

प्रश्न (ii) जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्णकटिबन्ध में पवनें उत्तरी-पूर्वी क्यों होती है?
उत्तर-जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा में होता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबन्धीयं पेवनों की दिशा कोरिओलिस बल से प्रभावित होकर उत्तरी-पूर्वी हो जाती है।

प्रश्न (iii) भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर-जब समदाब रेखाएँ सीधी होती हैं तो उन पर घर्षण का प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि दाब प्रवणता बल कोरिओलिस बल से सन्तुलित हो जाता है। इसलिए पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर चलती हैं। अतः ऐसी क्षैतिज पवनें जो ऊपरी वायुमण्डल की समदाब रेखाओं के समानान्तर चलती हों, भूविक्षेपी (Geostrophic) पवनें कहलाती हैं (चित्र 10.1)।
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प्रश्न (iv) समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर-ऊष्मा के अवशोषण तथा स्थानान्तरण की प्रकृति स्थल व समुद्र में भिन्न होती है अर्थात् दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा शीघ्र एवं अधिक गर्म हो जाते हैं, अतः यहाँ निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठण्डे रहते हैं और उन पर उच्चदाब बना रहता है। इसलिए दिन में पवनें समुद्र से स्थल की ओर प्रवाहित होती हैं। इन पवनों को स्थल समीर कहते हैं। रात के समय स्थल भाग शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं; अतः वहाँ उच्चदाब पाया जाता है जबकि समुद्र देर से ठण्डे होने के कारण रात्रि में निम्न दाब के क्षेत्र रहते हैं। इसलिए पवनें रात्रि में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इनको समुद्री समीर कहते हैं (चित्र 10.2)।
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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (1) पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ।
उत्तर-पवनों की दिशा एवं वेग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

1. दाब प्रवणता-किन्हीं दो स्थानों के वायुदाब का अन्तर दाब प्रवणता कहलाता है। दाब प्रवणता में अन्तर जितना अधिक होगा पवनों की गति उतनी ही अधिक होती है। सामान्यतः प्रवणता के सम्बन्ध में दो तथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण हैं–(i) पवनें समदाब रेखाओं को काटती हुई उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं तथा (ii) इनकी गति दाब प्रवणता पर आधारित होती है।

2. घर्षण बल-पवनों की गति तथा दिशा पर घर्षण बल का विशेष प्रभाव होता है। घर्षण बल की उत्पत्ति तथा उसके ऊपर चलने वाली पवन के संघर्ष से होती है। घर्षण बल हवा के विपरीत दिशा में कार्य करता है। जलीय भागों पर स्थल भागों की अपेक्षा घर्षण कम होता है इसलिए पवन तीव्र गति से चलती है। जहाँ घर्षण नहीं होता है, वहाँ पवन विक्षेपण बल तथा प्रवणता बल में सन्तुलन पाया जाता है; अतः पवन की दिशा समदाब रेखा के समानान्तर होती है, किन्तु घर्षण के कारण पवन वेग कम हो जाता है तथा वह समदाब रेखाओं के समानान्तर ने चलकर कोण बनाती हुई चलती है।

3. कोरिऑलिस बल-पृथ्वी की दैनिक गति (घूर्णन) के कारण उसका वायुमण्डलीय आवरण भी घूमता है; अत: इस बल के कारण पवनें सीधी न चलकर अपने दाईं अथवा बाईं ओर मुड़ जाती हैं। अर्थात् पवनों में विक्षेप उत्पन्न हो जाते हैं। इसे विक्षेपण बल (Deflection Force) कहा जाता है। इस बल की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी गणितज्ञ कोरिऑलिस ने सन् 1844 में की थी; अत: इसे कोरिऑलिस बल भी कहते हैं। बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ तथा दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और विषुवत् वृत्त पर अनुपस्थित रहता है।

प्रश्न (ii) पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30°उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के सम्भव कारण बताएँ
उत्तर-वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है। वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल की गति को गतिमान रखता है, जो पृथ्वी की जलवायु को भी प्रभावित करता है। पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का क्रमिक प्रारूप चित्र 10.3 में प्रस्तुत है। पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ (Cell) कहते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को हेडले का कोष्ठ तथा उपोष्ठ उच्च दाब कटिबन्धीय क्षेत्र में फेरल कोष्ठ एवं ध्रुवीय अक्षांशों पर ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये
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तीन कोष्ठ वायुमण्डलीय परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं जिसमें तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांओं में स्थानान्तर सामान्य परिसंचरण प्रारूप को बनाए रखता है। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के दो सम्भव कारण निम्नलिखित हैं

1. उच्च तापमान व न्यून वायुदाब से अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र पर वायु संवहन धाराओं । के रूप में ऊपर उठती है। हम जानते हैं कि विषुवत् रेखा पर घूर्णन गति तेज होती है जिसके कारण वायुराशियाँ बाहर की ओर जाती हैं। यह हवा ऊपर उठकर क्रमशः ठण्डी होती है। ऊपरी परतों में यह हवा ध्रुवों की ओर बहने से और अधिक हो जाती है और इसका घनत्व बढ़
जाता है।

2. दूसरा कारण यह है कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों की ओर जाने वाली हवा कोरिऑलिस बल के कारण पूर्व की ओर विक्षेपित होकर कर्क और मकर रेखा व 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उतर जाती है और उच्च वायुदाब कटिबन्ध का निर्माण करती है। इसको उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध कहते हैं।’

प्रश्न (iii) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं। क्यों?
उत्तर-उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अत्यन्त आक्रामक एवं विनाशकारी होते हैं। इनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबन्ध के महासागरीय क्षेत्रों पर होती है। यहाँ इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिए निम्नलिखित अनुकूल स्थितियाँ पाई जाती हैं
1. बृहत् समुद्री सतह, जहाँ तापमान 27° सेल्सियस से अधिक रहता है।
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2. इस क्षेत्र में कोरिऑलिस बल प्रभावी रहता है जो उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति में सहायक है।
3. इन क्षेत्रों में ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अन्तर कम रहता है।
4. यहाँ वायुदाब निम्न होता है जो चक्रवातीय परिसंचरण में सहायक है।
5. समुद्र तल तन्त्र पर ऊपरी अपसरण का होना।

उच्च वेग वाली और मूसलाधार वर्षा उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों के केन्द्रीय भाग में होती है। क्योंकि यहाँ केन्द्रीय (अक्षु) भाग इस चक्रवात का शान्तक्षेत्र होता है, जहाँ पवनों का अवतलन होता है। चक्रवात अक्षु के चारों तरफ अक्षुभित्ति होती है जहाँ वायु का प्रबल वेग में आरोहण होता है, यह वायु आरोहण क्षोभसीमा की ऊँचाई तक पहुँचकर इसी क्षेत्र में उच्च वेग वाली पवनों को उत्पन्न करता है। (चित्र 10.4)। यह पवनें समुद्रों से आर्द्रता ग्रहण करती हैं जिससे समुद्रों के तटीय भाग पर भारी वर्षा होती है। और सम्पूर्ण क्षेत्र जलप्लावित हो जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भूपृष्ठ (पृथ्वी के गोले) पर वायुदाब की कुल पेटियों की संख्या है
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) चार
(घ) छः
उत्तर-(ख) सात।

प्रश्न 2. भूपृष्ठ पर उच्च वायुदाब की पेटियों (मेखलाओं) की संख्या है
(क) पाँच
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) दो।
उत्तर-(ग) चार।।

प्रश्न 3. समदाब रेखाएँ हैं
(क) काल्पनिक रेखाएँ ।
(ख) वास्तविक रेखाएँ
(ग) (क) और (ख) दोनों ।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) काल्पनिक रेखाएँ।

प्रश्न 4. तापमान के अधिक होने पर वायुदाब
(क) अधिक होता है।
(ख) कम होता है।
(ग) मध्यम होता
(घ) अपरिवर्तनीय होता है।
उत्तर-(ख) कम होता है।

प्रश्न 5. तापीय चक्रवात को सूर्यातप चक्रवात का नाम देने वाले विद्वान हैं
(क) ल्यूक हावर्ड
(ख) बाइज बैलट
(ग) हम्फ्रीज
(घ) जर्कनीज
उत्तर-(ग) हम्फ्रीज।।

प्रश्न 6. जब पवनें वायु के निम्न दाब के कारण भंवर केन्द्र की ओर वेगपूर्वक दौड़ती हैं तो वायु का यह भंवर कहलाता है
(क) चक्रवात
(ख) प्रति-चक्रवात
(ग) शीतोष्ण चक्रवात
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) चक्रवात।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुदाब का क्या अर्थ हैं?
उत्तर-वायुमण्डल की ऊँचाई धरातल से हजारों किलोमीटर तक है। इतनी अधिक ऊँचाई तक फैली वायुमण्डल की गैसें एवं जलवाष्प धरातल पर भिन्न-भिन्न मात्रा में दबाव डालती हैं, इसी दबाव को वायुदाब कहते हैं।

प्रश्न 2. वायुदाब विभिन्नता के मुख्य कारण बतलाइए।
उत्तर-धरातल पर वायुदाब सभी जगह समान नहीं होता। वायुदाब की भिन्नता का मुख्य कारण तापमान, ऊँचाई तथा जलवाष्प की भिन्नता एवं पृथ्वी की घूर्णन गति है।

प्रश्न 3. डोलडम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-डोलड्रम विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी है जो भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° अक्षांशों में मध्य स्थित है। इस पेटी में वायु शान्त रहती है।

प्रश्न 4. अश्व अक्षांश की स्थिति बतलाइए।
उत्तर-उच्च वायुभार अथवा अश्व अक्षांश पेटी दोनो गोलार्द्ध में 30°से 35° अक्षांशों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 5. चक्रवात में पवनों की दिशा किस ओर होती है?
उत्तर-चक्रवात अण्डाकार समदाब रेखाओं का घेरा है जिसमें पवनें बाहर से केन्द्र की ओर तेजी से चलती हैं। इसमें पवनों की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल होती है।

प्रश्न 6. तापीय चक्रवात उत्पन्न होने का क्या कारण है?
उत्तर-तापीय चक्रवात की उत्पत्ति महासागरों में तापमान एवं वायुदाब की भिन्नता एवं असमानता के कारण होती है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में आइसलैण्ड एवं ग्रीनलैण्ड तथा एल्यूशियन द्वीपों के निकट उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 7. टाइफून क्या हैं? ये कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर-फिलीपीन्स, जापान तथा चीन सागर में चलने वाले चक्रगामी चक्रवातों को टाइफून कहते हैं। इसमें तीव्र पवनें चलती हैं और तेज वर्षा होती है। प्रश्न 8. हरिकेन का क्या अर्थ है? उत्तर–कैरेबियन सागर तथा मैक्सिको के तट पर चलने वाले भयंकर चक्रवात जिनकी गति 120 किमी प्रति घण्टा से भी अधिक होती है, हरिकेन कहलाते हैं।

प्रश्न 9. व्यापारिक पवनें क्या हैं?
उत्तर-उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से विषुवतीय निम्न दाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलार्द्ध में निरन्तर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवन कहते हैं।

प्रश्न 10. मिस्ट्रल तथा फोहन क्या हैं? इनकी स्थिति बताइए।
उत्तर-मिस्ट्रल-ये तीव्र गति की शुष्क गर्म पवनें हैं जो आल्पस पर्वतीय पर्वतीय क्षेत्रों में चलती हैं। इसके प्रभाव से यूरोप में अंगूर शीघ्र पक जाते हैं। फोहन-ये ठण्डी एवं शुष्क पवनें हैं जो शीत ऋतु में फ्रांस में भूमध्यसागरीय तट पर चलती हैं। ये पवनें तापमान को हिमांक से नीचे गिरा देती हैं।

प्रश्न 11. वायुराशि क्या है? ।
उत्तर-वायुमण्डल का वह विस्तृत भाग जिसमें तापमान एवं आर्द्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में समरूप हों वायुराशि कहलाती है। एक वायुराशि कई परतों का समूह होती है जो क्षैतिज दिशा में एक-दूसरे के ऊपर फैली होती है। इन परतों में तापमान एवं आर्द्रता की दशाएँ लगभग समान होती हैं।

प्रश्न 12. दाब प्रवणता क्या है?
उत्तर-दो स्थानों के बीच वायुदाब परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहते हैं। दाब प्रवणता सदैव उच्चदाब की ओर परिवर्तित होती है। इसीलिए जिस स्थान पर समदाब रेखाएँ अधिक पास-पास होती हैं वहाँ दाब-प्रवणता अधिक होती है।

प्रश्न 13. तृतीय समूह की पवनों के नाम बताइए।
उत्तर-तृतीय समूह की पवनों को स्थानीय पवन भी कहते हैं। लू, फोहन, चिनुक, मिस्ट्रल तथा हरमटन तृतीय समूह की प्रमुख पवनें हैं।

प्रश्न 14. तीन प्रकार की स्थायी पवनों के नाम लिखिए।
उत्तर-तीन प्रकार की स्थायी पवनों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. व्यापारिक पवन,
  2. पछुआ पवन तथा
  3. ध्रुवीय पवन।

प्रश्न 15. वायुदाब पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर-वायुदाब की पेटियों के नाम निम्नलिखित हैं 1. विषुवत्रेखीय निम्नदाब पेटी, 2. उपोष्ण उच्च दाब पेटी (उत्तरी गोलार्द्ध), 3. उपोष्ण उच्च दाब पेटी (दक्षिणी गोलार्द्ध), 4. ध्रुवीय निम्न दाब पेटी (उत्तरी गोलार्द्ध), 5. ध्रुवीय निम्न दाब पेटी (दक्षिणी गोलार्द्ध), 6. ध्रुवीय वायुदाब पेटी।।

प्रश्न 16. मिलीबार क्या है तथा वायुदाब किस यन्त्र द्वारा मापा जाता है?
उत्तर-वायुदाब मापने की इकाई को मिलीबार कहते हैं। एक मिलीबार एक वर्ग सेमी पर एक ग्राम भार के बल के बराबर होता है। वायुदाब बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है।

प्रश्न 17. कोरिऑलिस बल क्या है? इसके खोजकर्ता का नाम बताइए।
उत्तर-पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाती हैं। इसे कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक कोरिऑलिस द्वारा की गई थी। अत: उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम पड़ा है।

प्रश्न 18. विषुवत वृत्त के निकट उष्णकटिबन्धीय चक्रवात क्यों नहीं बनते है।
उत्तर-विषुवत् वृत्त पर कोरिऑलिस बल शून्य होता है और पवनें समदाब रेखाओं के समकोण पर बहती है। अत: निम्न दाब क्षेत्र और अधिक गहन होने के बजाय पूरित हो जाता है। यही कारण है कि विषुवत् वृत्त के निकट उष्णकटिबन्धीय चक्रवात नहीं बनते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. चक्रवात से आप क्या समझते हैं? इनसे सम्बन्धित मौसम का वर्णन कीजिए।
उत्तर-चक्रवात उन चक्करदार अथवा अण्डाकार पवनों को कहते हैं जिनके मध्य में निम्न वायुदाब तथा बाहर की ओर क्रमशः उच्च वायुदाब पाया जाता है। जब ये निम्न वायुदाब के भंवर भयंकर झंझावातों का रूप धारण कर लेते हैं तो उन्हें चक्रवात (Cyclone) कहते हैं (चित्र 10.5)। सामान्यतया इनका व्यास 320 किमी से 480 किमी तक होता है। कुछ बड़े चक्रवातों का व्यास कई हजार किमी तक पाया गया है। पी० लेक के अनुसार, “अण्डाकार समदाब रेखा से घिरे हुए निम्न वायु-भार क्षेत्र को चक्रवात कहते हैं।”
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मौसम-इन चक्रवातों के आगमन से पूर्व मौसम उष्ण एवं शान्त होने लगता है। आकाश में धीरे-धीरे श्वेत बादल छाने लगते हैं। चक्रवात के प्रवेश करते समय बादलों का रंग परिवर्तित हो जाता है। इनके आते ही ठण्डी वायु वायुभार चलने लगती है तथा आकाश में घने काले बादल छा जाते हैं एवं मिलीबार तूफान आ जाते हैं। बादलों की गर्जना तथा वायु की चमक के साथ घनघोर वर्षा होती है। जैसे-जैसे चक्रवाते आगे की ओर बढ़ता जाता है वैसे-वैसे मौसम स्वच्छ और शान्त होता जाता है।

प्रश्न 2. फैरल अथवा बाइज बैलेट के नियम को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-फैरल का नियम-पवन संचरण के इस नियम का प्रतिपादन अमेरिकी जलवायुवेत्ता फैरल ने किया था। उनके अनुसार, “पृथ्वी पर प्रत्येक स्वतन्त्र पिण्ड अथवा तरल पदार्थ, जो गतिमान है, पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुंडू जाता है।” इसी नियम के अनुसार ही सनातनी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल चलती हैं।

बाइज बैलेट का नियम-उन्नीसवीं शताब्दी में हॉलैण्ड के जलवायु वैज्ञानिक बाइज बैलेट ने पवन संचरण के सम्बन्ध में एक नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। उन्हीं के नाम पर इसे बाइज बैलेट का नियम कहते हैं। उनके अनुसार, “यदि हम उत्तरी गोलार्द्ध में चलती हुई वायु की ओर पीठ करके खड़े हो जाएँ तो हमारे बाईं ओर निम्न वायुभार तथा दाईं ओर उच्च वायुभार होगा। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दाईं ओर निम्न वायुभार तथा बाईं ओर उच्च वायुभार होगा।” यही कारण है कि सनातनी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उच्चदाब के चारों ओर घड़ी की सुइयों के अनुकूल और न्यूनदाब के चारों ओर घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल चला करती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में पवनों की दिशा ठीक इसके विपरीत होती है।

प्रश्न 3. वायुदाब पेटियों का स्थायी पवनों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वायुदाब सभी स्थानों एवं प्रदेशों में समान नहीं होता है। वायुदाब की इस असमानता को दूर करने के लिए वायु में गति उत्पन्न होती है अर्थात् वायुदाबे की भिन्नता के कारण वायुमण्डल की गैसें पवनों के रूप में बहने लगती हैं। वायु सदैव उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती है तथा उसका प्रवाह क्षेत्र बढ़ जाता है। इस प्रकार पृथ्वी तल के समानान्तर किसी दिशा में चलने वाली वायु को पवन (Wind) कहते हैं। वायुदाब पेटियों तथा स्थायी या सनातनी पवनों में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। धरातल पर वायु की गति के कारण ही वायुदाब में भी भिन्नता उत्पन्न हो जाती है। वायुदाब पेटियों के कारण ही स्थायी पवने वर्षभर उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं।

प्रश्न 4. समदाब रेखाएँ क्या होती हैं? विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति को चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो समुद्र तल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अन्तराल पर खींची गई इन्हीं समदाब रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। मानचित्र पर प्रदर्शित करते समय विभिन्न स्थानों का जो वायुदाब मापा जाता है।
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उसे समुद्र तल के स्तर पर घटाकर दिखाया जाता है। इससे दाब पर ऊँचाई का प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा तुलनात्मक अध्ययन सरलता से किया जाता है चित्र 10.6 में वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति को प्रदर्शित किया गया है। चित्र में निम्न दाब प्रणाली एक : या अधिक समदाब रेखाओं से घिरी है। चित्र 10.6 : उत्तरी गोलार्द्ध में समदाब रेखाएँ तथा पवन तन्त्र जिनके केन्द्र में निम्न वायुदाब है। उच्च दाब प्रणाली में भी एक या अधिक समदाब रेखाएँ होती हैं जिनके केन्द्र में उच्चतम वायुदाब है।

प्रश्न 5. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का प्रभाव क्षेत्र बताइए।
उत्तर-शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से प्रभावित क्षेत्र उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनका प्रभावित क्षेत्र प्रशान्त महासागर का पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्र, अटलाण्टिक महासागर का मध्य क्षेत्र एवं

भूमध्य व कैस्पियन सागर का ऊपरी क्षेत्र है। प्रशान्त महासागर में इनके द्वारा अलास्का, साइबेरिया, चीन तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में फिलीपीन्स में शीतकाल में प्रबल चक्रवात चलते हैं तथा भारी हानि पहुँचाते हैं। मध्य अटलाण्टिक क्षेत्र में शीतकाल में यह मैक्सिको की खाड़ी के निकट स्थित रहते हैं। भूमध्य व कैस्पियन सागर क्षेत्र में शीतोष्ण चक्रवात यूरोपीय देशों तथा तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत तक अपना प्रभाव रखते हैं।

दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुओं में चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। यहाँ 60° अक्षांश के समीप सबसे अधिक संख्या में चक्रवात में चक्रवात उत्पन्न होते हैं। यहाँ अण्टार्कटिक महाद्वीप पर वर्षभर अति शीतल एवं स्थायी वायुराशियों का उत्पत्ति क्षेत्र होने के कारण चक्रवात बड़े प्रबल और विनाशकारी होते हैं। इनका प्रभाव दक्षिणी महाद्वीपों के दक्षिणी तटीय भागों पर अधिक पड़ता है। शीत ऋतु में इनका प्रभाव अत्यन्त तीव्र होता है।

प्रश्न 6. वाताग्र क्या है? इनके विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर-जब दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ परस्पर मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही बनते हैं। तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता इनकी विशेषता होती है। इनके कारण वायु ऊपर उठकर बादल बनाती है तथा वर्षा करती है। वाताग्र निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं
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1. अचर वाताग्र-जब वाताग्र स्थिर हो अर्थात् ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायु । ऊपर नहीं उठती तो उसे अचर वाताग्र कहते हैं।

2. शीत वाताग्र-जब शीतल एवं भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण । वायुराशियों को ऊपर धकेलती है तो इस सम्पर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं।

3. उष्ण वाताग्र-जब उष्ण वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठण्डी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस सम्पर्क क्षेत्र , को उष्ण वाताग्र कहते हैं।

4. अधिविष्ट वाताग्र-जब एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं (चित्र 10.7)।

प्रश्न 7. वायुराशियों से क्या अभिप्राय है? उद्गम क्षेत्र के आधार पर इनको वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर-जब वायुराशि लम्बे समय तक किसी समांगी क्षेत्र पर रहती है तो वह उस क्षेत्र के गुणों को धारण कर लेती हैं। अतः तापमान एवं आर्द्रता सम्बन्धी इन विशिष्ट गुणों वाली यह वायु ही वायुराशि कहलाती है। दूसरे शब्दों में, वायु का वह बृहत् भाग जिसमें तापमान एवं आर्द्रता सम्बन्धी क्षैतिज भिन्नताएँ बहुत कम हों, तो उसे वायुराशि कहते हैं।

वायुराशियाँ जिस समांग क्षेत्र में बनती हैं वह वायुराशियों का उद्गम क्षेत्र कहलाता है। इन्हीं उद्गम क्षेत्रों के आधार पर वायुराशियाँ अग्रलिखित पाँच प्रकार की होती हैं

  1. उष्णकटिबन्धीय महासागरीय वायुराशि (mT),
  2. उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (CT),
  3. ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (mP),
  4. महाद्वीपीय आर्कटिक वायुराशि (CA),
  5. ध्रुवीय महाद्वीपीय (cP)।

प्रश्न 8. कोरिऑलिस बल क्या है? पवनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर-पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली पवनें पूर्व की ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम फ्रांसीसी गणितज्ञ कोरिऑलिस ने की थी; अतः उन्हीं के नाम पर यह कोरिऑलिस बल कहलाता है।

इस बल के प्रभाव से उत्तरी गोलार्द्ध की पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाई ओर विक्षेपित हो जाती है। वास्तव में पवनों में यह विक्षेप पृथ्वी के घूर्णन के कारण होता है। कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। अतः दाब प्रवणता जितनी अधिक होती है पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। अतः यह बल पवनों की दिशा को प्रभावित करता

प्रश्न 9. घाटी समीर एवं पर्वत समीर में अन्तर बताइए।
उत्तर-घाटी समीर-दिन के समय सूर्याभिमुखी पर्वतों के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। इस स्थिति में वायु घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाती है। इस स्थिति में वायु घाटी तल से पर्वतीय ढाल की ओर प्रवाहित होने लगती है। इसलिए इसे घाटी समीर या दैनिक समीर कहते हैं।

पर्वत समीर-सूर्यास्त के पश्चात् पर्वतीय ढाल पर भौमिक विकिरण ऊष्मा तेजी से होता है। इस कारण ढाल की ऊँचाई से ठण्डी और घनी हवा नीचे घाटी की ओर उतरने लगती है। यह प्रक्रिया चूँकि रात्रि में होती है अतः पवनों की इस व्यवस्था को पर्वत समीर या रात्रि समीर कहते हैं।

प्रश्न 10. वायुराशि तथा पवन या वायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुराशि एवं वायु में अन्तर
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए तथा पृथ्वीतल पर वायुदाब पेटियों का विवरण दीजिए।
या संसार की वायुदाब पेटियों का सचित्र विवरण दीजिए।
या पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति एवं वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर- वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक
वायुमण्डलीय दाब को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं

1. तापक्रम (Temperature)-तापक्रम एवं वायुदाब घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। ताप बढ़ने के साथ-साथ वायु गर्म होकर फैलती है तथा भार में हल्की होकर ऊपर उठती है। वायु के ऊपर उठने के कारण उस स्थान का वायुदाब कम हो जाता है। तापक्रम कम होने पर इसके विपरीत स्थिति होती है; अतः स्पष्ट है कि गर्म वायु हल्की तथा विरल होती है, जबकि ठण्डी वायु भारी तथा सघन होती है। यदि तापमान हिमांक बिन्दु के समीप हो तो यह वायुमण्डल की उच्च वायुभार पेटी को प्रदर्शित करता है। उच्च अक्षांशों पर अर्थात् ध्रुवीय प्रदेशों में सदैव उच्च वायुभार रहता है, क्योंकि ताप की कमी के कारण सदैव हिम जमी रहती है। इसके अतिरिक्त हिम द्वारा सूर्यातप का 85 प्रतिशत भाग परावर्तित कर दिया जाता है।

2. आर्द्रता (Humidity)-आर्द्रता का वायुदाब पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वायु में जितनी अधिक आर्द्रता होगी, वायु उतनी ही हल्की होगी। इसीलिए यदि किसी स्थान पर आर्द्रता अधिक है। तो उस स्थान पर वायुदाब में कमी आ जाएगी। शुष्क वायु भारी होती है। वर्षा ऋतु में वायु में जलवाष्प अधिक मिले रहने के कारण वायुदाब कम रहता है। अत: मौसम परिवर्तन के साथ-साथ वायु में आर्द्रता की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है तथा वायुदाब भी बदलता रहता है। सागरों के ऊपर वाली वायु में जलवाष्प अधिक मिले होने के कारण यह स्थलीय वायु की अपेक्षा हल्की होती है।

3. ऊँचाई (Altitude)-ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ वायुदाब में कमी तथा ऊँचाई कम होने के साथ-साथ वायुदाब में वृद्धि होती जाती है। वायुमण्डल की सबसे निचली परत में वायुदाब अधिक पाया जाता है। इसी कारण वायुदाब समुद्र-तल पर सबसे अधिक मिलता है। धरातल के समीप वाली वायु में जलवाष्प, धूल-कण तथा विभिन्न गैसों की उपस्थिति से वायुदाब अधिक रहती है। लगभग 900 फीट की ऊँचाई पर वायुदाब 1 इंच यो 34 मिलीबार कम हो जाता है। अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डलीय दाब में कमी आती है, क्योंकि वायु की परतें हल्की तथा विरल होती हैं। यही
कारण है कि अधिक ऊँचाई पर वायुयान एवं रॉकेट आदि आसानी से चक्कर काटते रहते हैं।

4. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation of the Earth)-पृथ्वी की दैनिक गति भी वायुदाब को प्रभावित करती है। इस गति के कारण आकर्षण शक्ति का जन्म होता है। यही कारण है कि विषुवत् रेखा से उठी हुई गर्म पवनें ऊपर उठती हैं तथा ठण्डी होकर पुनः मध्य अक्षांशों अर्थात् 40° से 45° अक्षांशों पर उतर जाती हैं। यही क्रम ध्रुवीय पवनों में भी देखने को मिलता है। इस प्रकार इन अक्षांशों पर वायुमण्डलीय दाब अत्यधिक बढ़ जाता है। इसके विपरीत विषुवत रेखा पर वायु का दबाव कम रहता है।

5. दैनिक परिवर्तन की गति (Rotation of Diurmal Change)-दैनिक परिवर्तन की गति द्वारा दिन एवं रात के समय वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन होते हैं। दिन के समय स्थलखण्डों एवं । समुद्री भागों के वायुदाब में भिन्नता पायी जाती है, जबकि रात के समय समुद्री भागों पर वायुदाब में कम परिवर्तन होता है। विषुवत्रेखीय भागों में यह परिवर्तन अधिक पाया जाता है। ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इस परिवर्तन में कमी आती जाती है। धरातल दिन के समय ताप का अधिग्रहण करता है तथा उसी ताप को पृथ्वी रात्रि के समय उत्सर्जन करती है। इस प्रकार तापमान घटने-बढ़ने से वायुमण्डलीय दाब में भी परिवर्तन होता रहता है।

पृथ्वीतल पर वायुदाब पेटियाँ

वायुमण्डल में वायुदाब असमान रूप से वितरित है। वायुदाब का अध्ययन समदाब रेखाओं (Isobars) की सहायता से किया जाता है। वायुदाब का वितरण निम्नलिखित दो रूपों में पाया जाता है
1. उच्च वायुदाब (High Pressure) तथा
2. निम्न वायुदाब (Low Pressure)।

पृथ्वी पर उच्च एवं निम्न वायुदाब क्षेत्र एक निश्चित क्रम में वितरित मिलते हैं। यदि ग्लोब पर . स्थल-ही-स्थल हो या फिर जल-ही-जल हो तो वायुदाब पेटियाँ एक निश्चित क्रम से वितरित मिल

सकती हैं। जल एवं स्थल की विभिन्नता महाद्वीपों एवं महासागरों के तापमान में विभिन्नता उपस्थित । करती है। फलस्वरूप धरातल पर विषुवत् रेखा से लेकर ध्रुव प्रदेशों तक वायुदाब का वितरण असमान एवं अनियमित पाया जाता है। पृथ्वी पर वायुदाब की सात पेटियाँ पायी जाती हैं। उत्पत्ति के आधार पर इन पेटियों को निम्नलिखित दो समूहों में रखा जा सकता है|

(i) तापजन्य वायुदाब पेटियाँ (Thermal Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर ताप का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों को सम्मिलित किया जाता है।

(ii) गतिक वायुदाब पेटियाँ (Dynamic Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर पृथ्वी की परिभ्रमण गति का प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है।

वायुदाब पेटियाँ

1. विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब पैटी (Equatorial Low Pressure Belt)-इस पेटी का विस्तार विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है। सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायण स्थितियों के कारण ऋतुओं के अनुसार इस पेटी का स्थानान्तरण उत्तर-दक्षिण होता रहता है। स्थल की अधिकता के कारण अधिक तापमान की भाँति इस पेटी का विस्तार भी उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अधिक है। इस पेटी में वर्ष-भर सूर्य की, किरणें सीधी चमकती हैं तथा दिन एवं रात । बराबर होते हैं। अतः सूर्यातप की अधिकता के कारण दिन के समय धरातल अत्यधिक गर्म हो जाता है, जिससे उसके सम्पर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म होकर वायु हल्की होती है। जिससे उसका फैलाव होता है तथा वह ऊपर उठ जाती है। इसी कारण वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ताप की अधिकता के कारण यहाँ पर निम्न वायुदाब सदैव बना रहता है। वायुमण्डल में अधिक आर्द्रता निम्न वायुदाब के कारण होती हैं।
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इस प्रकार यह पेटी प्रत्यक्ष रूप में ताप से सम्बन्धित है। इस पेटी के दोनों ओर स्थित उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवत रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं तथा धरातलीय वायु में गति कम होने के कारण ये शान्त तथा अनिश्चित दिशा में | प्रवाहित होती हैं। इसी कारण इसे पेटी को ‘डोलड्रम’ अथवा ‘शान्त पवन की पेटी’ भी कहते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में यह पेटी उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा दक्षिणायण होने पर दक्षिण की ओर खिसक आती है।

2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी (Sub-tropical High Pressure Belt)-विषुव॑त् रेखा के दोनों ओर दोनों गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य यह पेटी विकसित है। वर्ष में शीतकाल के दो माह छोड़कर इस पेटी में तापमान लगभग उच्च रहता है। ग्रीष्मकाल में इस पेटी में उच्चतम तापमान अंकित किया जाता है, परन्तु फिर भी वायुदाब उच्च रहता है, क्योकि इस वायुदाब पेटी की उत्पत्ति पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण होती है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी तथा विषुवत्रेखीय निम्न वायुदाब पेटी के ऊपर से आने वाली वायुराशियाँ इसी पेटी में नीचे उतरती हैं। धरातल पर नीचे उतरने के कारण तथा दबाव के फलस्वरूप इन वायुराशियों के तापमान में वृद्धि । हो जाती है। इस प्रकार इस पेटी को उच्च वायुदाब ताप से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की परिभ्रमण गति तथा वायु के अवतलन से सम्बन्धित है। इसीलिए इस पेटी में उच्च वायुदाब तथा स्वच्छ आकाश मिलता है।

पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों के समीप की वायु कर्क तथा मकर रेखाओं तक प्रवाहित होकर एकत्रित हो जाती है, जिससे इस पेटी के वायुदाब में वृद्धि हो जाती है। वायुदाब की इस पेटी को ‘अश्व अक्षांश’ (Horse Latitudes) के नाम से पुकारते हैं। इन वायुदाब पेटियों के मध्य वायु शान्त रहती है, जिससे इन अक्षांशों में वायुमण्डल भी शान्त हो जाता है। धरातल पर वायु बहुत ही मन्द-मन्द प्रवाहित होती है जो अनियमित होती है।

3. उपधृवीय निम्न वायुदाब पेटी (Sub-polar Low Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी गोलाद्ध में इस पेटी का विस्तार 60° से 65° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इस पेटी में निम्न वायुदाब ‘ मिलता है। इनका विस्तार उत्तर तथा दक्षिण में क्रमशः आर्कटिक तथा अण्टार्कटिक वृत्तों के समीप है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी में अनेक केन्द्र पाये जाते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं—

(i) इन पेटियों के दोनों ओर उच्च वायुदाब पेटियाँ स्थित हैं। ये पेटियाँ ध्रुवीय भागों में अधिक शीत के कारण तथा मध्य अक्षांशों में पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण विकसित हुई हैं।

(ii) इन पेटियों के सागरतटीय भागों में गैर्म जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं जिनसे तापक्रम में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा वायुदाब निम्न हो जाता है।

(iii) पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उपध्रुवीय भागों में भंवरें उत्पन्न हो जाती हैं जिससे उपध्रुवीय भागों के ऊपर वायु की कमी के कारण न्यून वायुदाब उत्पन्न हो जाता है, परन्तु इस भाग में अधिक शीत पड़ने के कारण तापमान की अपेक्षा पृथ्वी की गति को प्रभाव बहुत ही कम रहता है। तापमान की कमी के कारण ध्रुवों पर उच्च वायुदाब की उत्पत्ति होती है तथा बाहर की ओर वायुदाब निम्न रहता है।

इस प्रकार इस वायुदाब पेटी का निर्माण पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण हुआ है। तापमान का बहुत ही कम प्रभाव इस निम्न वायुदाब पेटी पर पड़ता है।

4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी (Polar High Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवीय वृत्तों के समीप उच्च वायुदाब पेटी का विस्तार मिलता है। सम्पूर्ण वर्ष तापमान निम्न रहने के कारण यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहता है। इसी कारण धरातलीय वायु भारी तथा शीतल होती है। यद्यपि इस प्रदेश में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण वायु की धाराएँ पतली हो जाती हैं, परन्तु अधिक शीत एवं भारीपन के कारण वर्ष-भर उच्च वायुदाब बना रहता है। इस उच्च वायुदाब की उत्पत्ति में ताप को अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

ध्रुवीय प्रदेशों के वायुदाब में प्रायः समता पायी जाती है, क्योंकि वर्ष-भर ये प्रदेश हिम से ढके रहते हैं। उच्च वायुदाब वाले इन ध्रुवीय प्रदेशों से विषुवत रेखा की ओर शीत वाताग्र चलते हैं। इन वायुराशियों को। उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी के नाम से पुकारा जाता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी की आन्तरिक गतियाँ हैं, जो इन्हें मोड़ने में सहायता करती हैं। सामान्यतया इन। वायु-राशियों को ध्रुवीय पूर्वी पवनों के नाम से पुकारा जाता है। अत: इन प्रदेशों में सदैव उच्च वायुदाब बना रहता है।

प्रश्न 2. जनवरी एवं जुलाई के आधार पर वायुदाब के क्षैतिज विश्व वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समदाब रेखाओं की सहायता से किया जाता है। समदाब रेख़ाएँ समुद्रतल से समान वायुदाब को प्रदर्शित करती हैं।

वायुदाब का विश्व वितरण

जनवरी महीने का समुद्र तल से वायुदाब का विश्व वितरण चित्र 10.9 में दिखाया गया है जिससे स्पष्ट है कि विषुवत् वृत्त के निकट वायुदाब अफ्रीका महाद्वीप के मध्य में 1020 मिलीबार है, जबकि पूर्वी द्वीप समूह एवं दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर तथा पूर्वी व पश्चिमी भाग में 1010 मिलीबार की समदाब. रेखा आवृत है। जैसे-जैसे भूमध्यरेखा से उत्तरी ध्रुवों की ओर जाते हैं, वायुदाब घटकर. 1005 मिलीबार

तक पहुँच जाता है, वायुदाब घटने का क्रम उत्तरी ध्रुवों की अपेक्षा दक्षिणी ध्रुवों पर अधिक है। यहाँ । 995 मिलीबार की समदाब रेखा दक्षिणी अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण में स्थत है।
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चित्र 10.10 में जुलाई महीने का समुद्रतल से वायुदाब का विश्व वितरण दर्शाया गया है। मानचित्र से स्पष्ट है कि जुलाई माह में विषुवत् वृत्ते पर निम्न वायुदाब की समदाब रेखाओं का मान अपेक्षाकृत जनवरी से बहुत कम तो नहीं होता, किन्तु यह कुछ उत्तर-दक्षिण अवश्य खिसक जाता है।
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अतः सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि भूमध्यरेखा पर वायुदाब कम होता है जिसे भूमध्यरेखीय न्यून अवदाब कहते हैं। 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों पर उच्चदाब क्षेत्र पाए जाते हैं जिन्हें उपोष्ण उच्च दाब क्षेत्र कहा जाता है। पुनः ध्रुवों की ओर 60° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों पर निम्न दाब पेटियाँ हैं जिन्हें अधोध्रुवीय निम्नदाब पेटियाँ कहते हैं। ध्रुवों के निकट वायुदाब अधिक होता है क्योंकि यहाँ तापमान कम रहता है। वायुदाब की ये पेटियाँ स्थायी नहीं होतीं बल्कि इनमें ऋतुवत् परिवर्तन होता रहता है। अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु में ये दक्षिण की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। यही कारण है कि जनवरी एवं जुलाई की समदाब रेखाओं की स्थिति में अन्तर पाया जाता है।

प्रश्न 3. पवनों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए। पृथ्वी की नियतवाही अथवा स्थायी पवनों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनकी उत्पत्ति के कारणों को भी समझाइए।
या पृथ्वी की सनातनी हवाओं की उत्पत्ति एवं उनके वितरण का वर्णन कीजिए।
या ‘अश्व अक्षांश से आप क्या समझते हैं ?
या व्यापारिक हवाओं की दिशा एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
या पृथ्वी की भूमण्डलीय पवनों का वर्णन कीजिए एवं उनकी उत्पत्ति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुदाब में भिन्नता होने पर उच्च वायुदाब से कम निम्न वायुदाब की ओर वायु का क्षैतिज प्रवाह होता है, जिसे पवन कहते हैं।

पवनों का वर्गीकरण

भूमण्डल में पवने नियतवाही तथा अनियतवाही क्रम से चलती हैं, तदनुसार इन्हें दो वर्गों में रखा जाता है-
(I) स्थायी या नियतवाही या सनातनी या ग्रहीय पवनें (Permanent or Planetary Winds) तथा
(II) अनिश्चित अथवा अस्थायी पवने (Seasonal Winds)।

स्थायी या नियतवाही या सनातनी या ग्रहीय पवनें

ग्लोब या भूमण्डल पर उच्च वायुदाब की पेटियों से निम्न वायुदाब की ओर जो पवनें चलने लगती हैं, उन्हें नियतवाही पवनें कहते हैं। ये पवनें वर्ष भर एक निश्चित दिशा एवं क्रम से प्रवाहित होती हैं। इन पवनों में अस्थायी मौसमी स्थानान्तरण होता रहता है। इनकी उत्पत्ति तापमान तथा पृथ्वी के घूर्णन एवं वायुदाब से होती है, जिसके फलस्वरूप उच्च वायुदाब सदैव निम्न वायुदाब की ओर आकर्षित होता है।

1. विषुवतरेखीय पछुवा हवाएँ तथा डोलड्रम की पेटी (Equatorial westerly and Doldrum)-विषुवत् रेखा के 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य निम्न वायुदाब पेटी पायी जाती है। यहाँ पर हवाएँ शान्त रहती हैं। इसीलिए इसे शान्त पेटी या डोलड्रम कहते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में यह उत्तर की ओर अधिक खिसक जाती है तथा दक्षिणायण होने पर पुन: अपनी प्रारम्भिक अवस्था में आ जाती है। विषुवत् रेखा के सहारे इस डोलड्रम का विस्तार निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में पाया जाता है

(i) हिन्द-प्रशान्त डोलड्रम-इसका विस्तार विषुवत्रेखीय प्रदेश के एक-तिहाई भाग पर है। “यह अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी भाग से 180° देशान्तर तक विस्तृत है।

(ii) विषुवतरेखीय मध्य अफ्रीका के पश्चिमी भाग-डोलड्रम की यह पेटी अफ्रीका के पश्चिमी भाग में खाड़ी से लेकर अन्ध महासागर में कनारी द्वीप के उत्तरी भाग तक विस्तृत है।

(iii) विषुवतरेखीय मध्य अमेरिका के पश्चिमी भाग-इस पेटी में दोपहर बाद संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं तथा ठण्डी होकर गरज के साथ वर्षा करती हैं। यह डोलड्रम पश्चिम | से पूर्व दिशा की ओर धरातल पर चलता है।

2. व्यापारिक पवनें या सन्मार्गी पवनें (Trade Winds)-दोनों गोलार्डो में उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से विषुवत्रेखीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवनों के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। व्यापारिक पवनें 5° से 35° अक्षांशों के मध्य चलती हैं। ये स्थायी एवं सतत पवनें हैं तथा सदैव एक निश्चित दिशा एवं क्रम,से प्रवाहित होती हैं। इसलिए इन्हें ‘सन्मार्गी पवनें’ भी कहा जाता है। प्राचीन काल में नौकाएँ एवं जलयान इन्हीं पवनों के माध्यम से आगे बढ़ते थे। यदि इन पवनों का प्रवाह रुक जाता था तो व्यापार में बाधा पड़ती थी। यही कारण है कि इन पवनों का नाम व्यापारिक पवनें रखा गया था। व्यापारिक पवनों की स्थिति स्थल भागों की अपेक्षा जल भागों में अधिक शक्तिशाली होती है। साधारणतया पवनों की गति 16 से 24 किमी प्रति घण्टा होती है।

3. अश्व अक्षांश (Horse Latitudes)-दोनों गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य इनका विस्तार है। यह पेटी उपोष्ण उच्च वायुदाब की है। यह पेटी पछुवा पवनों एवं व्यापारिक पवनों के मध्य विभाजन का कार्य करती है। विषुवत् रेखा के समीप गर्म हुई वायु व्यापारिक पवनों के विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हुई शीतले होकर 30° से 35° अक्षांशों के समीप नीचे उतरती है। अत: इन पवनों के नीचे उतरने के कारण यहाँ उच्च वायुदाब उत्पन्न हो जाता है। इसी कारण यहाँ उपोष्ण कटिबन्धीय प्रति-चक्रवात उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे वायुमण्डल में स्थिरता आ जाती है। इस प्रकार वायु-प्रवाह शान्त हो जाता है जिससे मौसम भी शुष्क एवं मेघरहित हो जाता है।
UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems img 12
प्राचीन काल में स्पेन के व्यापारी अपने जलयानों पर घोड़े (Anchor) ले जाते थे, क्योंकि इनके संचालन का आधार पछुवा पवनें होती थीं, परन्तु अत्यधिक वायुदाब के कारण जलयान डूबना प्रारम्भ कर देते थे। अतः नाविक जलयानों को हल्का करने के लिए कुछ घोड़े सागर में फेंक देते थे जिससे इन्हें अश्व-अक्षांशों के नाम से पुकारा जाने लगा।

4. पछुवा पवनें (Westerly Winds)-उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी से उपध्रुवीय निम्न वायुभार पेटियों (60° से 65° अक्षांश) के मध्य चलने वाली स्थायी पवनों को ‘पछुवा पवनों के नाम से पुकारते हैं। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व की ओर होती है। ये पवनें शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धों में चलती हैं। शीत-प्रधान ध्रुवीय पवनों के उष्णार्द्र पछुवा पवनों के सम्पर्क में आने से वाताग्र (Front) उत्पन्न हो जाता है। इन्हें शीतोष्ण वाताग्र के नाम से जाना जाता है। चक्रवातों से इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा मौसम में भी परिवर्तन आ जाता है। आकाश बादलों से युक्त हो जाता है तथा वर्षा होती रहती है। उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुवा पवनों का प्रवाह तीव्र होता है, क्योंकि यहाँ पर जल की अधिकता है। यहाँ पर पछुवा पवनें गर्जन-तर्जन के साथ चलती हैं जिससे समुद्री यात्रियों ने इन्हें ‘गरजने वाला चालीसा’, ‘क्रुद्ध पचासा’ तथा ‘चीखती साठा’ आदि नामों से पुकारा है।

5. ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-उत्तरी ध्रुवीय प्रदेशों में 60° से 65° अक्षांशों के मध्य पूर्वी पवनें चलती हैं। ग्रीष्मकाल में इन अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्डो में निम्न वायुदाब मिलता है, परन्तु शीतकाल में यह समाप्त हो जाता है। ध्रुवों पर वर्ष-भर उच्च वायुदाब बना रहता है। अतः ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उप-ध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर चलने वाली पवनों को ‘ध्रुवीय पवनें’ कहते हैं। इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व होती है। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में इनके प्रवाह क्षेत्र उत्तर की ओर खिसक जाते हैं तथा दक्षिणायण में स्थिति इसके विपरीत होती है। ध्रुवीय पवनें 70° से 80° अक्षांशों के मध्य ही चल पाती हैं, क्योंकि इससे । आगे उच्च वायुदाब के क्षेत्र सदैव बने रहते हैं। ध्रुवों की ओर से चलने के कारण ये पवनें-अधिक ठण्डी एवं प्रचण्ड होती हैं। जब इनका सम्पर्क शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की पवनों से होता है तो भयंकर चक्रवातों एवं प्रति-चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।

नियतवाही या स्थायी या सनातनी हवाओं की उत्पत्ति

सनातनी हवाओं की उत्पत्ति के नियम को ग्रहीय वायु सम्बन्धी नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार हवाएँ सदैव उच्च वायुदाब क्षेत्रों से निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती हैं। तापमान की भिन्नता इन्हें गति प्रदान करती है, क्योंकि वायु गर्म होकर हल्की होने से ऊपर उठती है तथा उसके रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए दूसरे स्थानों से भारी वायु पवनं के रूप में दौड़ने लगती है। इन हवाओं की गति एवं दिशा पर पृथ्वी की घूर्णन गति का प्रभाव पड़ता है। पवन के निश्चित दिशा की ओर बहने के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

1. फैरल का नियम (Ferrel’s Law)-पवन-संचरण के इस नियम का प्रतिपादन अमेरिकी विद्वान् | फैरल ने किया था। फैरल के अनुसार, “पृथ्वी पर प्रत्येक स्वतन्त्र पिण्ड अथवा तरल पदार्थ, जो गतिमान है, पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बायीं ओर मुड़ जाता है। इसी नियम के अनुसार ही सनातनी हवाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के प्रतिकूल प्रवाहित होती हैं।

2. बाइज बैलट का नियम (Buys Ballot’s Law)-उन्नीसवीं शताब्दी में हॉलैण्ड के वैज्ञानिक बाइज बैलट ने पवन-संचरण के सम्बन्ध में एक नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। उन्हीं के नाम पर इसे बाइज बैलट का नियम कहते हैं। बाइज बैलट के अनुसार, “यदि हम उत्तरी गोलार्द्ध में चलती हुई हवा की ओर पीठ करके खड़े हों तो हमारे बायीं ओर निम्न वायुभार तथा दायीं ओर उच्च वायुभार होगा। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दायीं ओर निम्न वायुभार तथा बायीं ओर उच्च वायुभार होगा। यही कारण है कि सनातनी हवाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च दाब के चारों ओर घड़ी की सूइयों के अनुकूल और न्यून दाब के चारों ओर घड़ी की सूइयों के प्रतिकूल चला करती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में हवाओं की दिशा ठीक इसके विपरीत होती है।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 8 Weather Instruments. Maps and Charts

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 8 Weather Instruments. Maps and Charts (मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें|
(i) प्रत्येक दिन के लिए भारत के मौसम मानचित्र का निर्माण कौन-सा विभाग करता है?
(क) विश्व मौसम संगठन
(ख) भारतीय मौसम विभाग
(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-(ख) भारतीय मौसम विभाग।

(ii) उच्च एवं निम्न तापमानों में कौन-से द्रवों का प्रयोग किया जाता है?
(क) पारी एवं जल
(ख) जल एवं अल्कोहल ।
(ग) पारा एवं अल्कोहल
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-(ग) पारा एवं अल्कोहल।

(iii) समान दाब वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखाओं को क्या कहा जाता है?
(क) समदाब रेखाएँ
(ख) समवर्षा रेखाएँ
(ग) समताप रेखाएँ
(घ) आइसोहेल रेखाएँ।
उत्तर-(क) समदाब रेखाएँ।

(iv) मौसम पूर्वानुमान का प्राथमिक यन्त्र है
(क) तापमापी
(ख) दाबमापी
(ग) मानचित्र
(घ) मौसम चार्ट
उत्तर-(क) तापमापी।

(v) अगर वायु में आर्द्रता अधिक है, तब आई एवं शुष्क बल्ब के बीच पाठ्यांक का अन्तर होगा
(क) कम ।
(ख) अधिक
(ग) समान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) कम।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मौसम के मूल तत्त्व क्या हैं?
उत्तर-मौसम तत्त्वों के अन्तर्गत तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता तथा मेघों की दशाएँ सम्मिलित हैं। इन तत्त्वों के आधार पर वायुमण्डलीय दशाओं में कम समय अन्तराल पर परिवर्तन होता रहता है। इन्हीं तत्त्वों के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

(ii) मौसम चार्ट क्या है?
उत्तर-मौसम पूर्वानुमान के लिए मौसम चार्ट प्राथमिक यन्त्र है। ये विभिन्न वायुमण्डलीय दशाओं; जैसे-वायुराशियों, वायुदाब यन्त्रों, वाताग्रों तथा वर्षण को जानने एवं पहचानने में सहयोग करते हैं।

(iii) वर्ग 1 के वेधशालाओं में सामान्यतः कौन-सा यन्त्र मौसम परिघटनाओं को मापने के लिए होता है?
उत्तर-भारत में मौसम वेधशालाओं को उनके यन्त्रों तथा प्रतिदिन लिए गए प्रेक्षणों की संख्या के आधार पर पाँच वर्गों में विभाजित किया जाता है। इनमें उच्चतम वर्ग-1 की वेधशाला है। वर्ग-1 की वेधशाला में अग्रलिखित यन्त्रों द्वारा मौसम के तत्त्वों को मापन किया जाता है

  1. अधिकतम एवं न्यूनतम तापमापी,
  2. पनवेग तथा वात-दिग्दर्शी,
  3. शुष्क एवं आर्द्र बल्ब तापमाण,
  4. वर्षामापी तथा
  5. वायुदाबमापी। |

(iv) समताप रेखाएँ क्या हैं?
उत्तर-मानचित्र पर समान तापमान वाले स्थानों को मिलाकर खींची गई रेखाएँ समताप रेखाएँ कहलाती हैं।

(v) निम्नलिखित को मौसम मानचित्र पर चिह्नित करने के लिए किस प्रकार के मौसम प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है?
(क) धुन्ध, (ख) सूर्य का प्रकाश, (ग) तड़ित, (घ) मेघों से ढका आकाश
उत्तर-
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प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें
(i) मौसम मानचित्रों एवं चार्टी को किस प्रकार तैयार किया जाता है तथा ये हमारे लिए कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर–मौसम मानचित्र पृथ्वी या उसके किसी भाग का अल्प समय (एक दिन) के मौसमी परिघटनाओं का समतल धरातल पर प्रदर्शन है। इन मानचित्रों पर एक निश्चित दिन के विभिन्न मौसम तत्त्वों; जैसे—तापमान, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, मेघमयता, वायु की दिशा एवं वेग, वायुदाब इत्यादि को दर्शाया जाता है। इनको तैयार करने में केन्द्रीय कार्यालय द्वारा प्राप्त सूचनाओं, अभिलेख, निर्धारित प्रतीक या चिह्न और मौसम मानचित्र विधियों का प्रयोग किया जाता है। अतः मौसम मानचित्र बनाने के लिए मौसम सम्बन्धी सूचनाओं और प्रतीकों का सम्यक् ज्ञान आवश्यक है। इन्हीं चिह्नों या प्रतीकों को विभिन्न स्थानों की सूचनाओं के साथ निर्धारित केन्द्रों पर अवस्थित किया जाता है। भारत में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना के बाद से

मौसम मानचित्र एवं चार्यों को नियमित रूप से तैयार किया जाता है। मौसम चार्ट में मौसम सम्बन्धी सूचनाओं एवं प्रतीकों को प्रदर्शित किया जाता है। इस चार्ट के माध्यम से कम स्थान पर मौसम सम्बन्धी अधिकतम सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। इनको तैयार करने में मानचित्र की आवश्यकता नहीं होती, केवल मौसम सूचनाओं को प्रतीकों द्वारा क्रमबद्ध रूप से संयोजन किया जाता है। मौसम मानचित्र एवं मौसम चार्ट सम्बन्धित स्थान की मौसम दशाओं को समझने में अत्यन्त उपयोगी हैं। इनके आधार पर निर्धारित स्थान की मौसम दशाओं के आधार पर कृषि एवं अन्य कार्यों की विशेष योजनाएँ तैयार की जा सकती हैं जो सामाजिक-आर्थिक विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती हैं।

मानचित्र पठन

प्रश्न 1. पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.12 एवं 8.13 को पढे एवं निम्न प्रश्नों के उत्तर दें
(i) इन मानचित्रों में किन ऋतुओं को दर्शाया गया है?
उत्तर-मानचित्र 8.12 में शीत ऋतु (जनवरी माह) की दशाओं को तथा मानचित्र 8.13 में ग्रीष्म ऋतु (जुलाई माह) की दशाएँ दर्शाई गई हैं।

(ii) पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.12 में अधिकतम समदाब रेखा का मान क्या है तथा यह देश के किस भाग से गुजर रही है?
उत्तर-पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.12 में अधिकतम समदाब रेखा का मान ‘1020 है। यह देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग (जम्मू-कश्मीर) से गुजरती है।

(iii) पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.13 में सबसे अधिक एवं सबसे कम समदाब रेखाओं का मान क्या है। तथा ये कहाँ स्थित हैं?
उत्तर-पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.13 में सबसे अधिक 1010 की समदाब रेखा दक्षिण-पश्चिम (केरल) भारत में तथा सबसे न्यून समदाब रेखा 997 उत्तर-पश्चिमी भारत (राजथान से जम्मू-कश्मीर के सीमान्त भाग) में स्थित है।

(iv) दोनों मानचित्रों में तापमान वितरण का प्रतिरूप क्या है?
उत्तर-पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.12 में उत्तर की ओर तापमान घटता जाता है तथा चित्रे 8.13 में तापमान उत्तर एवं दक्षिण में अधिक है। (v) पाठ्य-पुस्तक चित्र 8.12 में किस भाग का अधिकतम औसत तापमान तथा न्यूनतम औसत तापमान आप देखते हैं? उत्तर-अधिकतम औसत तापमान दक्षिण भारत (25°C तमिलनाडु) में तथा न्यूनतम औसत तापमान (10°C जम्मू-कश्मीर) उत्तरी भारत में है।

(vi) दोनों मानचित्रों में आप तापमान वितरण एवं वायुदाब के बीच क्या सम्बन्ध देखते हैं?
उत्तर-तापमान बढ़ता है और वायुदाब कम होता जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मौसम मानचित्र क्या है? इसका प्रकाशन किस प्रकार होता है?
उत्तर-मौसम मानचित्र
प्रायः किसी स्थान की एक समय-विशेष की वायुमण्डलीय दशाओं के योग को मौसम कहा जाता है। तापमान, वायुदाबे, आर्द्रता, वर्षा, पवनें तथा आकाशीय दशाएँ वायुमण्डल के प्रमुख अंग हैं, जिन्हें जलवायु या मौसम के प्रमुख तत्त्व कहा जाता है।

जिन मानचित्रों में मौसम-चिह्नों की सहायता से मौसम के विभिन्न तत्त्वों का प्रदर्शन किया जाता है, उन्हें मौसम मानचित्र कहा जाता है। मौसम मानचित्र की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-

मौसम मानचित्र उन मानचित्रों को कहते हैं जिनमें किसी क्षेत्र के निश्चित समय के तापमान, वायुदाब, पवन-संचार, वर्षा आदि के विवरण प्रकाशित किए गए हों।’ मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए इने मानचित्रों की विशेष सहायता ली जाती है।

मौसम मानचित्रों का प्रकाशन

मौसम मानचित्रों की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने इनके नियमित प्रकाशन हेतु मौसम विज्ञान की स्थापना की है। इस विभाग का मुख्य कार्यालय पुणे (महाराष्ट्र) में है। उत्तरी भारत में मौसम निदेशालय (Directorate of Meteorology) की स्थापना लोधी रोड, नई दिल्ली में की गई है। इस विभाग द्वारा देश के विभिन्न भागों में स्थित वेधशालाओं से मौसम सम्बन्धी आँकड़े एवं विवरण प्राप्त किए जाते हैं, उन्हीं के आधार पर प्रतिदिन मौसम मानचित्रों की रचना की जाती है। मौसम मनिचित्रों में मौसम सम्बन्धी विवरण मौसम-चिह्नों की सहायता से प्रकाशित किए जाते हैं। यह विभाग मौसम मानचित्रों के साथ-साथ प्रतिदिन मौसम भविष्यवाणियों का रेडियो तथा दूरदर्शन से प्रसारण भी करता है।

प्रश्न 2. मौसम मानचित्रों में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के मौसम चिह्न या प्रतीक बनाइए।
या मौसम चिह्न क्या हैं? विभिन्न प्रकार के मौसम चिह्नों को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-मौसम चिह्न मौसम मानचित्रों में मौसम के विभिन्न विवरण दर्शाने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें मौसम चिह्न कहते हैं। चिह्नों के अभाव में मानचित्रों की उपयोगिता समाप्त हो जाती है। वस्तुतः मौसम मानचित्रों का अध्ययन अधूरा है। मौसम-चिह्नों का प्रयोग सर्वप्रथम एडमिरल ब्यूफोर्ट ने 1805 ई० में किया था। 1935 ई० में वारसा में सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सम्मेलन ने इन चिह्नों को मान्यता प्रदान कर दी है। अब इनका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों में प्रकाशित होने वाले मौसम मानचित्रों में किया जाने लगा है। महत्त्वपूर्ण मौसम चिह्न अग्रांकित हैं-

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मेघ दशाचिह

मेघ की दशाओं या मेघाच्छादन की मात्रा के चिह्न निम्नांकित चित्र 8.2 में दर्शाए गए हैं
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ब्यूफोर्ट वायुगति चिह

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प्रश्न 3. निम्नलिखित मौसम यन्त्रों का सचित्र वर्णन कीजिए
(i) तापमापी, (ii) वायुदाबमापी, (iii) वातदिग्दर्शी, (iv) पवन वेगमापी, (v) वर्षामापी।
उत्तर-(i) तापमापी ।
किसी स्थान का तापमान थर्मामीटर द्वारा नापा जाता है। अधिकांश तापमापी संकीर्ण बन्द शीशे की नली के रूप में होते हैं, जिनके एक सिरे पर प्रसारित बल्ब होता है। नली के निचले भाग एवं बल्ब में तरल पदार्थ (जैसे—अल्कोहल या पारा) भरा होता है। तापमापी का बल्ब जो वायु के सम्पर्क में रहता है। तात्कालिक अवस्था के परिणामस्वरूप गर्म या ठण्डा होता है। गर्म होने पर पारा ऊपर की ओर चढ़ता है, जबकि ठण्डा होने पर नीचे की ओर गिरता है। शीशे की नली पर एक मापनी बनी होती है, जिससे तापमान पढ़ी जाता है। यह मापनी सेण्टीग्रेड तथा फॉरेनहाइट में तापमान बताती है।
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वायु के तापमान को मापने के लिए उच्च तापमापी (चित्र 8.4) तथा निम्न तापमापी (चित्र 8.5) का उपयोग किया जाता है, जबकि वायु की आर्द्रता मापने के लिए शुष्क बल्ब एवं आर्द्र बल्ब तापमापी प्रयोग में लाई जाती है। इस तापमापी में दो भुजाएँ होती हैं जिनमें पारा भरा होता है। एक भुजा का निचला भाग पानी की बोतल में डूबा हुआ होता है तथा दूसरा शुष्क होने के कारण काँच की थैली के रूप में होता है (चित्र 8.6)।
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(ii) वायुदाबमापी

वायुमण्डलीय दाब को मापने के लिए वायुदाबमापी का प्रयोग किया जाता है। ये विभिन्न प्रकार के होते हैं, पर सबसे अधिक पारद वायुदाबमापी, निद्रव वायुदाबमापी तथा वायुदाब लेखीयन्त्र का उपयोग किया जाता है। वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार होती है। पारद वायुदाबमापी एक यथार्थ यन्त्र है। इसका उपयोग मानक के रूप में किया जाता है। निद्रव वायुदाबमापी को एनीरोइड बैरोमीटर भी कहा जाता है। यह शुष्क बैरोमीटर है। इसका आकार घड़ीनुमा होता है जिसे आसानी से जेब में रखकर कहीं भी ले जा सकते हैं।
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यह धातु को बना डिब्बा होता है, जिसे वायु से खाली कर दिया जाता है। इसके अन्दर के भाग में सिंप्रग लगी होती है। ऊपर के भागमें एक डायल होता है जिस पर अंक अंकित होते हैं। मध्य भाग में एक बटन लगा होता है जिससे सुइयाँ सम्बन्धित होती हैं। यह सुई वायु के दबाव से प्रभावित होकर चलती है जिससे वायु को कम या अधिक वायुदाब ज्ञात होता है (चित्र 8.8)।।

(iii) वातदिग्दर्शी

इस यन्त्र द्वारा वायु की दिशा ज्ञात की जाती है। यह यन्त्र किसी ऊँचे स्थान पर जैसे किसी भवन की सबसे ऊपरी मंजिल पर लगाया जाता है। इस यन्त्र के ऊपरी भाग में लगे तीर की नोंक वायु दिशा का संकेत देती है। यन्त्र के निचले भाग में सूचक लोहे की छड़े लगी होती हैं। इन छड़ों की तुलना से तीर की नोंक की स्थिति का निरीक्षण करके वायु की दिशा ज्ञात करते हैं (चित्र 8.9)। वायुदिशा ज्ञात करने का एक अन्य यन्त्र भी होता है जिसमें ऊपर एक मुर्गा बना होता है, जो वायु की दिशा के साथ घूमता है। जिस ओर मुर्गे का मुँह होता है, उस दिशा को पढ़कर दिशा का ज्ञान हो जाता है। इस यन्त्र को वैदर कॉक कहते हैं (चित्र 8.10)।
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(iv) पवनवेगमापी

वायु की गति मापने के लिए पवनवेगमापी (एनीमोमीटर) का प्रयोग किया जाता है। इस यन्त्र को खुले में किसी ऊँचे स्थान पर लगाते हैं। यह यन्त्र एक डिब्बे के अन्दर स्थित धुरी के रूप में होता है। इस धुरी के ऊपरी भाग में चार अर्द्धवृत्ताकार कटोरियाँ लगी होती हैं। वायु भर जाने पर ये कटोरी घूमती हैं तथा धुरी के निचले भाग द्वारा सम्बन्धित अंकित डायल पर मील या किमी प्रति घण्टा के रूप में वायु व्यक्त करती है (चित्र 8.11)।
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(v) वर्षामापी

वर्षामापी द्वारा वर्षा का मापन किया जाता है। सामान्यतः यह एक धातु का बेलनाकार पात्र होता है, जिसमें एक कीप’ लगी होती है। इस कीप पर पड़ने वाली वर्षा की बूंदें पात्र के अन्दर रखी बोतल में एकत्र होती रहती हैं। इस प्रकार 24 घण्टे में होने वाली वर्षा को नापने वाले पात्र जिसमें इंच व सेमी के निशान बने होते हैं, डालकर वर्षा का मापन करते हैं (चित्र 8.12)।

प्रश्न 4. जनवरी के मौसम मानचित्र के आधार पर वायुमण्डलीय दशाओं का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-जनवरी के मौसम मानचित्र का अध्ययन
(1) प्रारम्भिक सूचना :
यह दैनिक मौसम मानचित्र बुधवार, 1 जनवरी, 1986 ई० (पोष 11 शक, 1908) को भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार प्रात: 8.30 बजे (ग्रीनविच औसत समय-GMT 0300 बजे) की मौसम सम्बन्धी दशाओं को प्रदर्शित कर रहा है। इस मानचित्र में प्रातः 8.30 बजे मंगलवार 31 दिसम्बर से प्रातः 8.30 बजे बुधवार, 1 जनवरी तक अर्थात् पिछले 24 घण्टे की वर्षा की मात्रा एवं वायुदाब को दिखाया गया है।
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(II) वायुमण्डलीय दबाव
प्रस्तुत मौसम मानचित्र के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि दक्षिणी भारत में 1014 मिबा से और पूर्वी भारत में 1016 मिबा से घिरे निम्न दाब के क्षेत्र से उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत की ओर वायुदाब बढ़ता चला गया है। अफगानिस्तान में यह 1024 मिबा हो गया है, जबकि उत्तरी राजस्थान में 1020 मिबा से घिरा उच्च दाब का क्षेत्र स्थापित है। अरब सागर में निकोबार द्वीपसमूह के पास 1010 मिबा से घिरा निम्न दाब का क्षेत्र उपस्थित है। H अक्षर द्वारा उत्तरी राजस्थान में उच्च वायुमण्डलीय दाब तथा L अक्षर द्वारा निकोबार द्वीपसमूह में निम्न वायुमण्डलीय दाब दर्शाया गया है।
1. समदाब रेखाओं की प्रवृत्ति-प्रस्तुत मानचित्र के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मानचित्र के उत्तर-पश्चिमी भाग की समदाबे रेखाएँ बहुत दूर-दूर हैं। पश्चिमी विक्षोभ, जो पहले उत्तरी पाकिस्तान और निकटवर्ती अफगानिस्तान में था, अब जम्मू-कश्मीर में प्रवेश कर गया है।

2. दाब प्रवणता-उत्तरी भारत में दक्षिणी भारत की अपेक्षा दाब प्रवणता बहुत कम है। समदाब रेखाओं को दूर-दूर होना दाबे प्रवणता की कमी को तथा पास-पास होना दाब प्रवणता की
अधिकता को प्रदर्शित करता है।

(III) पवनें
मौसम मानचित्र में पवनों की दिशा एवं वेग पर उच्च और निम्न वायुदाब के क्षेत्रों की स्थिति तथा दाब प्रवणता का गहरा प्रभाव पड़ता है।
1. पवनों की दिशा-प्रस्तुत मानचित्र से यह स्पष्ट होता है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पछुवा पवनें चल रही हैं। उत्तर-पूर्वी भारत में उत्तर-पूर्व से पवनें चल रही हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उत्तर और उत्तर-पूर्व से तथा दक्षिणी भारत में उत्तर-पूर्व और उत्तर से पवनें चल रही

2. पवनों का वेग-समस्त उत्तरी भारत में पवनों का वेग 5 नॉट गति/घण्टा से कम है। उत्तर-पूर्व | और दक्षिणी भारत में स्थल पर वायु वेगे 5 नॉट प्रति घण्टा से लेकर 10 नॉट प्रति घण्टा तक है।

(IV) समुद्र की दशा
प्रस्तुत मानचित्र के अध्ययन से ज्ञात होता है कि दक्षिणी अरब सागर में कोचीन पत्तन के पश्चिम में सागर की स्थिति सामान्य तरंगित है, जबकि मिनीकॉय द्वीप के पास क्षुब्ध सागर दिखाया गया है।

(V) आकाश की दशा
1. देश के विभिन्न भागों में आकाश की दशा निर्मल आकाश से लेकर पूर्ण मेघाच्छादन तक है। मेघरहित आकाश बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, दक्षिणी मध्य प्रदेश, दक्षिणी गुजरात और तमिलनाडु में पाया जाता है। जम्मू-कश्मीर में 7/8 आकाश; हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में आधे से 3/4 भाग तक आकाश बादलों से आच्छादित है।
मानचित्र में सभी मेघ निम्न ऊँचाई वाले हैं।

2. अन्य वायुमण्डलीय दशाएँ-प्रस्तुत मानचित्र के दिल्ली, ग्वालियर, इलाहाबाद, डाल्टनगंज, सिलचर, इम्फाल, कोलकाता, आसनसोल, भोपाल, इन्दौर, रायपुर, नागपुर, विशाखपट्टनम, बंगलुरु, मुम्बई, नासिक, कोच्चि और तिरुवनन्तपुरम नगरों में धुन्ध छाई हुई है। लखनऊ, गोरखपुर, गोहाटी और हैदराबाद नगरों के आस-पास में कोहरा प्रदर्शित किया गया है।

(VI) वर्षण
देश के किसी भी भाग में पिछले 24 घण्टों में वर्षा नहीं हुई तथा न ही हिमपात हुआ है।

(VII) न्यूनतम ताप का प्रसामान्य ताप से विचलन
न्यूनतम ताप का प्रसामान्य ताप से विचलन का अर्थ है किसी स्थान पर किसी तिथि का न्यूनतम तापमान उसी स्थान के उसी तिथि के पिछले 30 वर्षों के औसत न्यूनतम ताप (सामान्य न्यूनतम तापमान) से कितने अंश सेल्सियस अधिक या कम है। इसे समान विचलन वाले स्थानों को मिलाकर खींची गई सम विचलन रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करते हैं (देखिए चित्र 8.14)।
* 1 नॉट = 1.84 किमी।
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इस मानचित्र में उत्तरी ओडिशा, बिहार के मैदान और जम्मू में रात्रि का तापमान प्रसामान्य से 4° से लेकर 5° सेल्सियस तक कम है। कुछ भागों में तापमान की यह कमी 2° से लेकर 3° सेल्सियस तक है। प्रायद्वीपीय भारत में कोरोमण्डल तट के साथ और वहाँ से भीतर की ओर बढ़े हुए भाग में न्यूनतम तापमान सामान्य से 2° सेल्सियस तक अधिक है।

(VIII) अधिकतम ताप का सामान्य ताप से विचलन
किसी भी स्थान के 30 या अधिक वर्षों के तापमान का औसत वहाँ का सामान्य (Normal) तापमान होता है। अधिकतम तापमान का सामान्य से विचलने किसी स्थान के किसी तिथि के अधिकतम
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तापमान का उसी स्थान के उसी तिथि के पिछले लगभग 30 वर्षों के औसत अधिकतम तापमान से अन्तर को प्रकट करता है। अधिकतम तापमान उस तिथि के औसत अधिकतम तापमान से अधिक भी हो सकता है और कम भी। कम को ऋणात्मक चिह्न (-) से और अधिक को धनात्मक चिह्न (+) से प्रदर्शित करते हैं (देखिए चित्र 8.15)

इस मानचित्र के उत्तरी भाग में अधिकतम तापमान सामान्य से 2 से 4° सेल्सियस तक नीचे कित किया गया है तथा नेपाल में 6° सेल्सियस तक नीचे है। प्रायद्वीपीय भारत में तटों पर सामान्य से लेकर . भीतरी भाग में 2° सेल्सियस तापमान अधिक पाया जाता है।

अगले 24 घण्टे का पूर्वानुमान

प्रस्तुत मौसम-मानचित्र के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखण्ड की उत्तरी पहाड़ियों में व्यापक रूप से हिमपात और वर्षा होने की सम्भावनाएँ हैं। अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, तटीय तमिलनाडु, दक्षिणी केरल और लक्षद्वीप में कहीं-कहीं वर्षा हो सकती है तथा तेज पवनों के साथ झंझावात आने की प्रबल सम्भावना है।

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मौसम विज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर-मौसम की विभिन्न दशाओं एवं उनसे सम्बन्धित लक्षणों का अध्ययन करने वाले शास्त्र को मौसम-विज्ञान कहते हैं।

प्रश्न 2. मौसम क्या है?
उत्तर-किसी स्थान-विशेष की अल्पकालीन वायुमण्डलीय दशाओं; जैसे–तापमान, वर्षा, वायु वेग एवं दिशा, ओला, कोहरा, ओस आदि को मौसम कहते हैं।

प्रश्न 3. मौसम के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-तापमान, वायुदाब, वायु-दिशा एवं गति, वर्षा तथा आर्द्रता आदि मौसम के प्रमुख तत्त्व हैं।

प्रश्न 4. तापमान किस यन्त्र से नापा जाता है?
उत्तर-तापमान को तापमापी (थर्मामीटर) नामक यन्त्र से नापा जाता है।

प्रश्न 5. तापमापी कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-तापमापी तीन प्रकार के होते हैं

  • साधारण तापमापी,
  • उच्चतम न्यूनतम तापमापी एवं
  • आर्द्र एवं शुष्क बल्ब तापमापी।

प्रश्न 6. आर्द्रता किस यन्त्र से ज्ञात की जाती है?
उत्तर-आर्द्रता, आर्द्र एवं शुष्क बल्ब तापमापी द्वारा ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 7. बैरोमीटर क्या है?
उत्तर-बैरोमीटर, वायुमण्डल का वायुदाब नापने का यन्त्र है।

प्रश्न 8. बैरोमीटर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-बैरोमीटर तीन प्रकार के होते हैं

  • साधारण बैरोमीटर,
  • फोर्टिन बैरोमीटर एवं
  • एनीरोइड बैरोमीटर।

प्रश्न 9. बैरोमीटर का उपयोग बताइए।
उत्तर बैरोमीटर का उपयोग निम्नलिखित तथ्यों को ज्ञात करने के लिए किया जाता है

  • वायुदाब की माप,
  • आगामी मौसम का ज्ञान,
  • ऊँचाई का ज्ञान एवं
  • तापमान का अनुमान।

प्रश्न 10. वर्षा किस यन्त्र से नापी जाती है?
उत्तर-वर्षा, वर्षामापी यन्त्र द्वारा नापी जाती है।

प्रश्न 11. वायु दिक्सूचक क्या है?
उत्तर-वायु दिक्सूचक द्वारा वायु के चलने की दिशा का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रश्न 12. पवन वेगमापी क्या है? उत्तर-पवन की गति ज्ञात करने वाले यन्त्र को पवन वेगमापी यन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 13. सामान्य तापमान का क्या अर्थ है?
उत्तर-सामान्य तापमान लगभग 30-35 वर्षों का औसत तापमान होता है।

प्रश्न 14. अधिकतम तापमान का प्रसामान्य से विचलन किसे कहते हैं?
उत्तर-किसी स्थान पर किसी तिथि के अधिकतम तापमान को उस स्थान के औसत अधिकतम तापमान से अन्तर को प्रसामान्य से विचलन कहते हैं। यह धनात्मक (+) अथवा ऋणात्मक (-) दोनों ही हो सकते हैं।

प्रश्न 15. मौसम मानचित्रों में H और I. अक्षरों से क्या प्रकट होता है?
उत्तर-मौसम मानचित्रों में H अक्षर उच्च दाब और L अक्षर निम्न दाब को प्रकट करता है।

प्रश्न 16. NLM का क्या अर्थ है?
उत्तर-NLM का अर्थ मानसून की उत्तरी सीमा है। इसे प्रकट करने के लिए जुलाई के मानचित्र में दोहरी खण्डित रेखाओं का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17, IST से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-भारतीय मानक समय को संक्षेप में IST कहते हैं।

प्रश्न 18. GMT का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-ग्रीनविच औसत समय GMT कहलाता है।

प्रश्न 19. भारतीय मौसम विभाग का मुख्यालय कहाँ है?
उत्तर-भारतीय मौसम विभाग का मुख्यालय पुणे में स्थित है।

प्रश्न 20. मौसम चिह्नों का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया था?
उत्तर-मौसम चिह्नों का सर्वप्रथम प्रयोग एडमिरल ब्यूफोर्ट (1805) ने किया था।

प्रश्न 21. तापमान मापने की कौन-कौन सी इकाइयाँ हैं?
उत्तर-तापमान को फारेनहाइट, सेण्टीग्रेड तथा यूमर में मापा जाता है। इन इकाइयों को निम्नलिखित सूत्र से एक-दूसरे में परिवर्तित कर सकते हैं –
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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दिए गए चार विकल्पों में सही उत्तर का चुनाव करें
(i) धरातलीय लक्ष्यों का सुदूर संवेदन विभिन्न साधनों के माध्यम से किया जाता है; जैसे
(क) ABC
(ख) BCA
(ग) CAB
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) BCA.

(ii) निम्नलिखित में से कौन-से विद्युत चुम्बकीय विकिरण क्षेत्र का प्रयोग उपग्रह सुदूर संवेदन में नहीं होता है?
(क) सूक्ष्म तरंग क्षेत्र
(ख) अवरक्त क्षेत्र
(ग) एक्स-रे क्षेत्र
(घ) दृश्य क्षेत्र
उत्तर-(ग) एक्स-रे क्षेत्र।

(iii) चाक्षुष व्याख्या तकनीक में निम्न में से किस विधि का प्रयोग नहीं किया जाता है?
(क) धरातलीय लक्ष्यों की स्थानीय व्यवस्था
(ख) प्रतिबिम्ब के रंग परिवर्तन की आवृत्ति
(ग) लक्ष्यों को अन्य लक्ष्यों के सन्दर्भ में
(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण
उत्तर-(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) सुदूर संवेदन अन्य पारम्परिक विधियों से बेहतर तकनीक क्यों है?
उत्तर–सुदूर संवेदन युक्तियाँ ऊर्जा के वृहत्तर परिसर तथा विकिरण, परावर्तित, उत्सर्जित, अवशोषित तथा पारगत ऊर्जा पर आधारित हैं। इस पद्धति द्वारा निर्मित चित्र वस्तुस्थिति एवं भौगोलिक सामग्री का सटीक प्रदर्शन करते हैं, जबकि परम्परागत विधियाँ अनुमानों, आकलनों तथा गणितीय गणनाओं पर आधारित होती हैं जिसमें वस्तुस्थिति और क्षेत्रीय सामग्री का विशुद्ध प्रदर्शन असम्भव है, इसलिए सुदूर संवेदन को अन्य । पारस्परिक विधियों से अधिक श्रेष्ठ तकनीक माना जाता है।

(ii) आई० आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-आई०आर०एस० ( भारतीय सुदूर संवेदन) उपग्रह इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रक्षेपित किए गए हैं कि इनका उपयोग भू-संसाधन, सर्वेक्षण और प्रबन्धन तथा दूरसंचार में प्रगति हेतु किया जा सके, जबकि इंसेट क्रम के उपग्रहों के माध्यम से टीवी प्रसारण, दूरसंचार, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान तथा समुद्र विज्ञान सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। इन दोनों प्रकार के उपग्रहों में विशेषतागत अन्तर निम्नांकित तालिका के माध्यम से भी देखा जा सकता है।

तालिका 7.1: आई०आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर

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(iii) पुशबूम क्रमवीक्षक की कार्यप्रणाली का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-पुशबूम क्रमवीक्षक बहुत सारे संसूचकों पर आधारित होता है, जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण की जगह एक लेंस लगा रहता है जो उड़ान मार्ग के समानान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है। अत: इसकी कार्यप्रणाली बहुत सारे संसूचकों पर आधारित है, जिनकी संख्या विभेदन के कार्यक्षेत्र को क्षेत्रीय विभेदन से विभाजित करने से प्राप्त संख्या के समान होती है (चित्र 7.2)।
नोट-अधिक स्पष्टता के लिए बॉक्स 7.1 में दिए गए उदाहरण का अवलोकन करें।
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बॉक्स 7.1

उदाहरण के लिए, फ्रांस के सुदूर संवेदन उपग्रह स्पॉट (SPOT) में लगे हुए उच्च विभेदन दृश्य विकिरणमापी संवेदन का कार्यक्षेत्र 60 किमी है तथा उसका क्षेत्रीय विभेदन 20 मीटर है। अगर हम 60 किलोमीटर अथवा 60,000 मीटर को 20 मीटर से विभाजित करें तो हमें 3,000 का आँकड़ा प्राप्त होगा अर्थात् SPOT में लगे HRV-I संवेदक में 3,000 संसूचक लगाए गए हैं। पुशबूम स्कैनर में सभी डिटेक्टर पंक्ति में क्रमबद्ध होते हैं और प्रत्येक डिटेक्टर पृथ्वी के ऊपर अधोबिन्दु दृश्य पर 20 मीटर के आयाम वाली परावर्तित ऊर्जा का संग्रहण करते हैं (चित्र 7.2)।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें|
(i) विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक की कार्यविधि का चित्र की सहायता से वर्णन करें तथा यह भी बताएँ कि यह पुशबूम क्रमवीक्षक से कैसे भिन्न है?
उत्तर-क्रमवीक्षक (Scanner) सुदूर संवेदन उपग्रहों में संवेदन के रूप में कार्य करने वाले उपकरण हैं। ये क्रमवीक्षण (मशीन से संचालित दर्पण) हैं जो दृश्य क्षेत्र पर दृष्टि दौड़ते ही वस्तुओं को चित्रित कर लेते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं–(i) विस्क-बूम क्रमेवीक्षक (Cross Track Scanner), जिसमें घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक स्पेक्ट्रम लगा होता है। (i) पुशबूम क्रमवीक्षक (Along Track Scanner), जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण के स्थान पर लेंस लगा रहता है तथा बहुत सारे संसूचकों द्वारा उड़ान मार्ग के समान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है।
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विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक में एक घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक लगा होता है। इसका दर्पण इस प्रकार से विन्यासित होता है कि जब यह एक चक्कर पूरा करता है तो संसूचक स्पेक्ट्रम के दृश्य एवं अवरक्त क्षेत्रों में बहुत सारे सँकेरे स्पेक्ट्रमी बैंडों में प्रतिबिम्ब प्राप्त करते हुए दृश्य क्षेत्र में 90° से 120° के मध्य भाग को कवर करता है। संवेदक का यह पूरा क्षेत्र, जहाँ तक वह पहुँच सकता है, उसे स्कैनर का कुल दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। पूरे क्षेत्र के क्रमवीक्षण के लिए संवेदक का प्रकाशयुक्त भाग एक निश्चित आयाम का होता है, जिसे तात्कालिक दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। चित्र 7.3 में विस्क-ब्रूम स्कैनर की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। अत: यह पुशबूम स्कैनर से इस रूप में भिन्न है कि इसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण पर लगे टेलिस्कोप की सहायता से धरातल के दृश्य संवेदक पर अंकित होते हैं जबकि पुशबूम में यह कार्य लेंस और बहुत सारे संसूचकों द्वारा पूरा होता है।

(ii) चित्र 7.9 (पाठ्य-पुस्तक भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य) में हिमालय क्षेत्र की वनस्पति आवरण में बदलाव को पहचानें व सूचीबद्ध करें।
उत्तर-चित्र (पाठ्य-पुस्तक चित्र-7.9, पृष्ठ 105) में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह द्वारा प्राप्त हिमालय तथा उत्तरी मैदान का है। इसमें बाएँ चित्र में मई एवं दाएँ चित्र में नवम्बर माह की परिवर्तित वनस्पति और अन्य भौगोलिक विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है।

ये प्रतिबिम्ब वनस्पति के प्रकार में अन्तर को दर्शाते हैं। मई के प्रतिबिम्ब में चित्र में दिखाई दे रहे लाल धब्बे शंकुधारी वन दर्शाते हैं। नवम्बर के प्रतिबिम्ब में दिखाई दे रहे अतिरिक्त लाल धब्बे पर्णपाती वने दर्शाते हैं तथा हल्का लाल रंग फसल को दर्शाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सुदूर संवेदन तकनीकी से आप क्या समझते हैं? इस तकनीकी से आँकड़े प्राप्त करने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी एक सूचना संग्रहण तकनीक है। इसके लिए विद्युत प्रकाशित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। इसमें सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली विधि विद्युत चुम्बकीय विकिरण के संवेदन पर आधारित है जो वस्तुओं से निरन्तर परावर्तित होती है। अत: वस्तुओं को स्पर्श किए बिना दूर से ही उनके विषय में सूचनाएँ एकत्र करने के विज्ञान को सुदूर संवेदन कहते हैं।

सुदूर संवेदन स्तर

चित्र 7.4 में उस प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है जो सुदूर संवेदन आँकड़ों को प्राप्त करने में प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रिया के निम्नलिखित स्तर या अवस्थाएँ हैं
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  1. ऊर्जा का स्रोत,
  2. स्रोत से पृथ्वी तक ऊर्जा का स्थानान्तरण,
  3. पृथ्वी के धरातल के साथ ऊर्जा की अन्योन्य क्रिया,
  4. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का वायुमण्डल से प्रवर्धन,
  5. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का संवेदन द्वारा अभिसूचन,
  6. प्राप्त ऊर्जा का फोटोग्राफी/अंकीय आँकड़ों के रूप में अभिसरण,
  7. आँकड़ा उत्पाद से विषयानुरूप सूचना को निकालना,
  8. मानचित्र एवं सारणी के रूप में आँकड़ों एवं सूचनाओं का अभिसारण।

सुदूर संवेदन तकनीकी में ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत सूर्य है। सूर्य से ऊर्जा तरंगो के रूप में विस्तारित होकर प्रकाशगति (3,00,000 किमी/सेकण्ड की दर से) पृथ्वी के धरातल तक पहुंचती है। इसी ऊर्जा संचरण को विद्युत चुम्बकीय विकिरण कहा जाता है। सुदूर संवेदन में दृश्य ऊर्जा क्षेत्र, अवरक्त क्षेत्र व सूक्ष्म तरंग क्षेत्र सबसे अधिक उपयोगी है।

संचारित ऊर्जा भूतल पर उपस्थित वस्तुओं के साथ अन्योन्य क्रिया करती है। इससे वस्तुओ द्वारा ऊर्जा का अवशोषण, प्रेषण, परावर्तन व उत्सर्जन होता है। अन्ततः तैयार ऊर्जा पृथ्वी के तत्वों को प्रभावित करती है। इससे ऊर्जा का शोषण, स्थानान्तरण और परावर्तन होता है।

सुदूर संवेदन तकनीकी में प्रयुक्त संवेदक ऊर्जा का अभिलेख (रिकॉर्ड) रखते हैं और विकिरण विद्युतीकरण से डिजिटल इमेज में परावर्तित करते हैं। पृथ्वी पर डाडा इमेज प्राप्त हो जाने के बाद गलतियों का सुधार किया जाता है तथा सूचनाओं को इकाई में परिवर्तित कर मानचित्र प्राप्त किए जाते हैं।
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प्रश्न 2. संवेदक क्या है? संवेदन विभेदन के प्रकार बताइए।
उत्तर-संवेदक संवेदक वह उपकरण/युक्ति है जो विद्युत-चुम्बकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं, उन्हें संकेतकों में बदलते हैं तथा उपयुक्त आकारों में प्रस्तुत करते हैं। आँकड़ा उत्पाद के आधार पर संवेदक दो प्रकारे के होते हैं

  • फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) तथा
  • आंकिक संवेदक (स्कैनर)।

फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) किसी भी लक्ष्य बिन्दुओं को एक क्षण में अभिलेखित कर लेता है, जबकि आंकिक संवेदक लक्ष्य के प्रतिबिम्ब को पंक्ति-दर-पंक्ति अभिलेखित करता है। सुदूर संवेदन उपग्रहों में आंकिक संवेदक का ही प्रयोग अधिक किया जाता है।

संवेदन विभेदन

सुदूर संवेदक धरातलीय (Spatial), वर्णक्रमीय (Spectral) तथा विकिरणमितीय विभेदनयुक्त होते हैं, जो विभिन्न धरातलीय अवस्थाओं से सम्बन्धित उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं

1. धरातलीय विभेदन-धरातलीय विभेदन भू-पृष्ठ पर दो साथ-साथ स्थित परन्तु भिन्न वस्तुओं को पहचानने की संवेदक क्षमता से सम्बन्धित है। यह एक नियम है कि धरातलीय विभेदन बढ़ने के साथ भू-पृष्ठ की छोटी-से-छोटी चीज को पहचानना व स्पष्ट रूप से देखा जाना सम्भव हो सकता है। हमारी आँखों पर लगने वाला चश्मा इसी कार्य को करता है तभी हम चश्मे के प्रयोग से पुस्तक में लिखे अक्षरों को स्पष्ट रूप से पढ़ते हैं।

2. वर्णक्रमीय स्पेक्ट्रम विभेदन-यह विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों (बैंड) में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से सम्बन्धित है। जिस प्रकार तरंगों के प्रकीर्णने से इन्द्रधनुष बनता है या हम प्रयोगशाला में प्रिज्म का प्रयोग करते हैं, उसी सिद्धान्त के विस्तृत प्रयोग से हम इन मल्टीस्पेक्ट्रल प्रतिबिम्बों को प्राप्त करते हैं।

3. रेडियोमीटिक विभेदन-विकिरणमितीय या रेडियोमीट्रिक विभेदन संवेदक की दो भिन्न लक्ष्यों की भिन्नता को पहचानने सम्बन्धित है। जितना रेडियोमीट्रिक विभेदन अधिक होगा, विकिरण अन्तर उतना ही कम होगा। इससे दो लक्ष्य क्षेत्रों के मध्य अन्तर को जाना जा सकता है।

प्रश्न 3. अंकीय प्रतिबिम्ब से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-अंकीय प्रतिबिम्ब अलग-अलग पिक्चर तत्त्वों के मेल से बनते हैं। इन्हें पिक्सल (Pixels) कहा जाता है। इमेज में हर पिक्सल का एक अंकीय मान होता है जो धरातल के द्विविमीय-बिम्ब को इंगित करता है। अंकीय मान को अंकीय नम्बर (DN) कहा जाता है। एक डिजिटल नम्बर एक पिक्सल के विकिरण माने का औसत होता है। यह मान संवेदक द्वारा विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा पर आधारित है। इसकी गहनता का स्तर इसके प्रसार (Range) को व्यक्त करता है (चित्र 7.6)।
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प्रश्न 4. प्रतिबिम्ब (Image) में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान किस प्रकार की जाती है? समझाइए।
उत्तर-सामान्यत: प्रतिबिम्ब में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान और उनका विभेदन दो विधियों पर आधारित है

  • कम्प्यूटर-आधारित सॉफ्टवेयर द्वारा DN मूल्य (0-255)।
  • प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में तुलना करके।

प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में अंकित तत्त्वों के वितरण और स्थिति निर्धारण की प्रक्रिया तुलनात्मक अध्ययन द्वारा पूरी की जाती है। केवल प्रतिबिम्ब को देखकर विभिन्न प्राकृतिक तथा मालवीय तथ्यों की पहचान निम्न प्रकार की जा सकती है
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मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उपग्रह चित्रों की व्याख्या के प्रमुख तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर-उपग्रह चित्रों की व्याख्या के तत्त्व हैं-आकार, आकृति, छाया, आभा, रंग, बनावट, प्रतिरूप, सम्बन्धित तत्त्व।

प्रश्न 2. इमेजरी क्या है?
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी से प्राप्त प्रतिबिम्ब।

प्रश्न 3. भारत के दो उपग्रह जो सुदूर संवेदन से सम्बन्धित हों, के नाम बताओ।
उत्तर-(i) IRS-1A-1988 (ii) IRS-1B-1991.

प्रश्न 4. भारत में कितने राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के सूचना संवेदन केन्द्र हैं?
उत्तर-भारत में राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के 350 सूचना संवेदन केन्द्र हैं।

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