UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दिए गए चार विकल्पों में सही उत्तर का चुनाव करें
(i) धरातलीय लक्ष्यों का सुदूर संवेदन विभिन्न साधनों के माध्यम से किया जाता है; जैसे
(क) ABC
(ख) BCA
(ग) CAB
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) BCA.

(ii) निम्नलिखित में से कौन-से विद्युत चुम्बकीय विकिरण क्षेत्र का प्रयोग उपग्रह सुदूर संवेदन में नहीं होता है?
(क) सूक्ष्म तरंग क्षेत्र
(ख) अवरक्त क्षेत्र
(ग) एक्स-रे क्षेत्र
(घ) दृश्य क्षेत्र
उत्तर-(ग) एक्स-रे क्षेत्र।

(iii) चाक्षुष व्याख्या तकनीक में निम्न में से किस विधि का प्रयोग नहीं किया जाता है?
(क) धरातलीय लक्ष्यों की स्थानीय व्यवस्था
(ख) प्रतिबिम्ब के रंग परिवर्तन की आवृत्ति
(ग) लक्ष्यों को अन्य लक्ष्यों के सन्दर्भ में
(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण
उत्तर-(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) सुदूर संवेदन अन्य पारम्परिक विधियों से बेहतर तकनीक क्यों है?
उत्तर–सुदूर संवेदन युक्तियाँ ऊर्जा के वृहत्तर परिसर तथा विकिरण, परावर्तित, उत्सर्जित, अवशोषित तथा पारगत ऊर्जा पर आधारित हैं। इस पद्धति द्वारा निर्मित चित्र वस्तुस्थिति एवं भौगोलिक सामग्री का सटीक प्रदर्शन करते हैं, जबकि परम्परागत विधियाँ अनुमानों, आकलनों तथा गणितीय गणनाओं पर आधारित होती हैं जिसमें वस्तुस्थिति और क्षेत्रीय सामग्री का विशुद्ध प्रदर्शन असम्भव है, इसलिए सुदूर संवेदन को अन्य । पारस्परिक विधियों से अधिक श्रेष्ठ तकनीक माना जाता है।

(ii) आई० आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-आई०आर०एस० ( भारतीय सुदूर संवेदन) उपग्रह इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रक्षेपित किए गए हैं कि इनका उपयोग भू-संसाधन, सर्वेक्षण और प्रबन्धन तथा दूरसंचार में प्रगति हेतु किया जा सके, जबकि इंसेट क्रम के उपग्रहों के माध्यम से टीवी प्रसारण, दूरसंचार, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान तथा समुद्र विज्ञान सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। इन दोनों प्रकार के उपग्रहों में विशेषतागत अन्तर निम्नांकित तालिका के माध्यम से भी देखा जा सकता है।

तालिका 7.1: आई०आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 1
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 2
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 3

(iii) पुशबूम क्रमवीक्षक की कार्यप्रणाली का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-पुशबूम क्रमवीक्षक बहुत सारे संसूचकों पर आधारित होता है, जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण की जगह एक लेंस लगा रहता है जो उड़ान मार्ग के समानान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है। अत: इसकी कार्यप्रणाली बहुत सारे संसूचकों पर आधारित है, जिनकी संख्या विभेदन के कार्यक्षेत्र को क्षेत्रीय विभेदन से विभाजित करने से प्राप्त संख्या के समान होती है (चित्र 7.2)।
नोट-अधिक स्पष्टता के लिए बॉक्स 7.1 में दिए गए उदाहरण का अवलोकन करें।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 4

बॉक्स 7.1

उदाहरण के लिए, फ्रांस के सुदूर संवेदन उपग्रह स्पॉट (SPOT) में लगे हुए उच्च विभेदन दृश्य विकिरणमापी संवेदन का कार्यक्षेत्र 60 किमी है तथा उसका क्षेत्रीय विभेदन 20 मीटर है। अगर हम 60 किलोमीटर अथवा 60,000 मीटर को 20 मीटर से विभाजित करें तो हमें 3,000 का आँकड़ा प्राप्त होगा अर्थात् SPOT में लगे HRV-I संवेदक में 3,000 संसूचक लगाए गए हैं। पुशबूम स्कैनर में सभी डिटेक्टर पंक्ति में क्रमबद्ध होते हैं और प्रत्येक डिटेक्टर पृथ्वी के ऊपर अधोबिन्दु दृश्य पर 20 मीटर के आयाम वाली परावर्तित ऊर्जा का संग्रहण करते हैं (चित्र 7.2)।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें|
(i) विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक की कार्यविधि का चित्र की सहायता से वर्णन करें तथा यह भी बताएँ कि यह पुशबूम क्रमवीक्षक से कैसे भिन्न है?
उत्तर-क्रमवीक्षक (Scanner) सुदूर संवेदन उपग्रहों में संवेदन के रूप में कार्य करने वाले उपकरण हैं। ये क्रमवीक्षण (मशीन से संचालित दर्पण) हैं जो दृश्य क्षेत्र पर दृष्टि दौड़ते ही वस्तुओं को चित्रित कर लेते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं–(i) विस्क-बूम क्रमेवीक्षक (Cross Track Scanner), जिसमें घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक स्पेक्ट्रम लगा होता है। (i) पुशबूम क्रमवीक्षक (Along Track Scanner), जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण के स्थान पर लेंस लगा रहता है तथा बहुत सारे संसूचकों द्वारा उड़ान मार्ग के समान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 5
विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक में एक घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक लगा होता है। इसका दर्पण इस प्रकार से विन्यासित होता है कि जब यह एक चक्कर पूरा करता है तो संसूचक स्पेक्ट्रम के दृश्य एवं अवरक्त क्षेत्रों में बहुत सारे सँकेरे स्पेक्ट्रमी बैंडों में प्रतिबिम्ब प्राप्त करते हुए दृश्य क्षेत्र में 90° से 120° के मध्य भाग को कवर करता है। संवेदक का यह पूरा क्षेत्र, जहाँ तक वह पहुँच सकता है, उसे स्कैनर का कुल दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। पूरे क्षेत्र के क्रमवीक्षण के लिए संवेदक का प्रकाशयुक्त भाग एक निश्चित आयाम का होता है, जिसे तात्कालिक दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। चित्र 7.3 में विस्क-ब्रूम स्कैनर की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। अत: यह पुशबूम स्कैनर से इस रूप में भिन्न है कि इसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण पर लगे टेलिस्कोप की सहायता से धरातल के दृश्य संवेदक पर अंकित होते हैं जबकि पुशबूम में यह कार्य लेंस और बहुत सारे संसूचकों द्वारा पूरा होता है।

(ii) चित्र 7.9 (पाठ्य-पुस्तक भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य) में हिमालय क्षेत्र की वनस्पति आवरण में बदलाव को पहचानें व सूचीबद्ध करें।
उत्तर-चित्र (पाठ्य-पुस्तक चित्र-7.9, पृष्ठ 105) में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह द्वारा प्राप्त हिमालय तथा उत्तरी मैदान का है। इसमें बाएँ चित्र में मई एवं दाएँ चित्र में नवम्बर माह की परिवर्तित वनस्पति और अन्य भौगोलिक विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है।

ये प्रतिबिम्ब वनस्पति के प्रकार में अन्तर को दर्शाते हैं। मई के प्रतिबिम्ब में चित्र में दिखाई दे रहे लाल धब्बे शंकुधारी वन दर्शाते हैं। नवम्बर के प्रतिबिम्ब में दिखाई दे रहे अतिरिक्त लाल धब्बे पर्णपाती वने दर्शाते हैं तथा हल्का लाल रंग फसल को दर्शाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सुदूर संवेदन तकनीकी से आप क्या समझते हैं? इस तकनीकी से आँकड़े प्राप्त करने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी एक सूचना संग्रहण तकनीक है। इसके लिए विद्युत प्रकाशित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। इसमें सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली विधि विद्युत चुम्बकीय विकिरण के संवेदन पर आधारित है जो वस्तुओं से निरन्तर परावर्तित होती है। अत: वस्तुओं को स्पर्श किए बिना दूर से ही उनके विषय में सूचनाएँ एकत्र करने के विज्ञान को सुदूर संवेदन कहते हैं।

सुदूर संवेदन स्तर

चित्र 7.4 में उस प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है जो सुदूर संवेदन आँकड़ों को प्राप्त करने में प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रिया के निम्नलिखित स्तर या अवस्थाएँ हैं
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 6

  1. ऊर्जा का स्रोत,
  2. स्रोत से पृथ्वी तक ऊर्जा का स्थानान्तरण,
  3. पृथ्वी के धरातल के साथ ऊर्जा की अन्योन्य क्रिया,
  4. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का वायुमण्डल से प्रवर्धन,
  5. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का संवेदन द्वारा अभिसूचन,
  6. प्राप्त ऊर्जा का फोटोग्राफी/अंकीय आँकड़ों के रूप में अभिसरण,
  7. आँकड़ा उत्पाद से विषयानुरूप सूचना को निकालना,
  8. मानचित्र एवं सारणी के रूप में आँकड़ों एवं सूचनाओं का अभिसारण।

सुदूर संवेदन तकनीकी में ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत सूर्य है। सूर्य से ऊर्जा तरंगो के रूप में विस्तारित होकर प्रकाशगति (3,00,000 किमी/सेकण्ड की दर से) पृथ्वी के धरातल तक पहुंचती है। इसी ऊर्जा संचरण को विद्युत चुम्बकीय विकिरण कहा जाता है। सुदूर संवेदन में दृश्य ऊर्जा क्षेत्र, अवरक्त क्षेत्र व सूक्ष्म तरंग क्षेत्र सबसे अधिक उपयोगी है।

संचारित ऊर्जा भूतल पर उपस्थित वस्तुओं के साथ अन्योन्य क्रिया करती है। इससे वस्तुओ द्वारा ऊर्जा का अवशोषण, प्रेषण, परावर्तन व उत्सर्जन होता है। अन्ततः तैयार ऊर्जा पृथ्वी के तत्वों को प्रभावित करती है। इससे ऊर्जा का शोषण, स्थानान्तरण और परावर्तन होता है।

सुदूर संवेदन तकनीकी में प्रयुक्त संवेदक ऊर्जा का अभिलेख (रिकॉर्ड) रखते हैं और विकिरण विद्युतीकरण से डिजिटल इमेज में परावर्तित करते हैं। पृथ्वी पर डाडा इमेज प्राप्त हो जाने के बाद गलतियों का सुधार किया जाता है तथा सूचनाओं को इकाई में परिवर्तित कर मानचित्र प्राप्त किए जाते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 7

प्रश्न 2. संवेदक क्या है? संवेदन विभेदन के प्रकार बताइए।
उत्तर-संवेदक संवेदक वह उपकरण/युक्ति है जो विद्युत-चुम्बकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं, उन्हें संकेतकों में बदलते हैं तथा उपयुक्त आकारों में प्रस्तुत करते हैं। आँकड़ा उत्पाद के आधार पर संवेदक दो प्रकारे के होते हैं

  • फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) तथा
  • आंकिक संवेदक (स्कैनर)।

फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) किसी भी लक्ष्य बिन्दुओं को एक क्षण में अभिलेखित कर लेता है, जबकि आंकिक संवेदक लक्ष्य के प्रतिबिम्ब को पंक्ति-दर-पंक्ति अभिलेखित करता है। सुदूर संवेदन उपग्रहों में आंकिक संवेदक का ही प्रयोग अधिक किया जाता है।

संवेदन विभेदन

सुदूर संवेदक धरातलीय (Spatial), वर्णक्रमीय (Spectral) तथा विकिरणमितीय विभेदनयुक्त होते हैं, जो विभिन्न धरातलीय अवस्थाओं से सम्बन्धित उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं

1. धरातलीय विभेदन-धरातलीय विभेदन भू-पृष्ठ पर दो साथ-साथ स्थित परन्तु भिन्न वस्तुओं को पहचानने की संवेदक क्षमता से सम्बन्धित है। यह एक नियम है कि धरातलीय विभेदन बढ़ने के साथ भू-पृष्ठ की छोटी-से-छोटी चीज को पहचानना व स्पष्ट रूप से देखा जाना सम्भव हो सकता है। हमारी आँखों पर लगने वाला चश्मा इसी कार्य को करता है तभी हम चश्मे के प्रयोग से पुस्तक में लिखे अक्षरों को स्पष्ट रूप से पढ़ते हैं।

2. वर्णक्रमीय स्पेक्ट्रम विभेदन-यह विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों (बैंड) में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से सम्बन्धित है। जिस प्रकार तरंगों के प्रकीर्णने से इन्द्रधनुष बनता है या हम प्रयोगशाला में प्रिज्म का प्रयोग करते हैं, उसी सिद्धान्त के विस्तृत प्रयोग से हम इन मल्टीस्पेक्ट्रल प्रतिबिम्बों को प्राप्त करते हैं।

3. रेडियोमीटिक विभेदन-विकिरणमितीय या रेडियोमीट्रिक विभेदन संवेदक की दो भिन्न लक्ष्यों की भिन्नता को पहचानने सम्बन्धित है। जितना रेडियोमीट्रिक विभेदन अधिक होगा, विकिरण अन्तर उतना ही कम होगा। इससे दो लक्ष्य क्षेत्रों के मध्य अन्तर को जाना जा सकता है।

प्रश्न 3. अंकीय प्रतिबिम्ब से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-अंकीय प्रतिबिम्ब अलग-अलग पिक्चर तत्त्वों के मेल से बनते हैं। इन्हें पिक्सल (Pixels) कहा जाता है। इमेज में हर पिक्सल का एक अंकीय मान होता है जो धरातल के द्विविमीय-बिम्ब को इंगित करता है। अंकीय मान को अंकीय नम्बर (DN) कहा जाता है। एक डिजिटल नम्बर एक पिक्सल के विकिरण माने का औसत होता है। यह मान संवेदक द्वारा विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा पर आधारित है। इसकी गहनता का स्तर इसके प्रसार (Range) को व्यक्त करता है (चित्र 7.6)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 8

प्रश्न 4. प्रतिबिम्ब (Image) में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान किस प्रकार की जाती है? समझाइए।
उत्तर-सामान्यत: प्रतिबिम्ब में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान और उनका विभेदन दो विधियों पर आधारित है

  • कम्प्यूटर-आधारित सॉफ्टवेयर द्वारा DN मूल्य (0-255)।
  • प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में तुलना करके।

प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में अंकित तत्त्वों के वितरण और स्थिति निर्धारण की प्रक्रिया तुलनात्मक अध्ययन द्वारा पूरी की जाती है। केवल प्रतिबिम्ब को देखकर विभिन्न प्राकृतिक तथा मालवीय तथ्यों की पहचान निम्न प्रकार की जा सकती है
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) img 9

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उपग्रह चित्रों की व्याख्या के प्रमुख तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर-उपग्रह चित्रों की व्याख्या के तत्त्व हैं-आकार, आकृति, छाया, आभा, रंग, बनावट, प्रतिरूप, सम्बन्धित तत्त्व।

प्रश्न 2. इमेजरी क्या है?
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी से प्राप्त प्रतिबिम्ब।

प्रश्न 3. भारत के दो उपग्रह जो सुदूर संवेदन से सम्बन्धित हों, के नाम बताओ।
उत्तर-(i) IRS-1A-1988 (ii) IRS-1B-1991.

प्रश्न 4. भारत में कितने राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के सूचना संवेदन केन्द्र हैं?
उत्तर-भारत में राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के 350 सूचना संवेदन केन्द्र हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के चार विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें
(i) निम्नलिखित में से किन वायव फोटो में क्षितिज तल प्रतीत होता है ?
(क) ऊध्र्वाधर
(ख) लगभग ऊध्र्वाधर
(ग) अल्प तिर्यक
(घ) अति तिर्यक
उत्तर-(घ) अति तिर्यक।।

(ii) निम्नलिखित में से किस वायव फोटो में अधोबिन्दु एवं प्रधान बिन्दु एक-दूसरे से मिल जाते
(क) ऊर्ध्वाधर
(ख) लगभग ऊर्ध्वाधर
(ग) अल्प तिर्यक
(घ) अति तिर्यक
उत्तर-(क) ऊर्ध्वाधर।

(iii) वायव फोटो निम्नलिखित प्रक्षेपों में से किसका एक प्रकार है ?
(क) समान्तर
(ख) लम्बकोणीय ।
(ग) केन्द्रक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ग) केन्द्रक।।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वायव फोटो किस प्रकार खींचे जाते हैं ?
उत्तर-वायव फोटो वायुयान या हैलीकॉप्टर में लगे परिशुद्ध कैमरे के द्वारा लिए जाते हैं। इस तरह से प्राप्त किए गए फोटोग्राफ स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने तथा लक्ष्यों की व्याख्या करने के लिए उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 2. भारत में वायव फोटो का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर-भारत में वायव फोटो का इतिहास पुराना नहीं है। यहाँ सर्वप्रथम 1920 में बड़े पैमाने पर आगरा शहर का वायव फोटो लिया गया था। उसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण द्वारा इरावदी डेल्टा के वनों का वायु सर्वेक्षण किया गया जो 1923.24 में पूरा हुआ था। इसके बाद इस प्रकार के अनेक सर्वेक्षण किए गए। इनका उपयोग उन्नत मानचित्र बनाने में किया गया। वर्तमान में पूरे देश का वाथव फोटो सर्वेक्षण ‘वायव फोटो वायु सर्वेक्षण निदेशालय, नई दिल्ली की देख-रेख में किया जाता है। भारत में तीन उड्डयन एजेन्सियाँ वायु फोटोग्राफ लेने के लिए अधिकृत हैं

  1. भारतीय वायुसेना,
  2. वायु सर्वेक्षण कम्पनी (कोलकाता) तथा
  3. राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था (हैदराबाद)।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें
(क) वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौन से हैं?
उत्तर-वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग
वायव फोटो भौगोलिक अध्ययनों के लिए बहू-उपयोगी हैं। इनका उपयोग स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने एवं उनमें अद्यतन सूचनाएँ अंकित करने में किया जाता है। वायव फोटो के दो विभिन्न उपयोग स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने और उनका निर्वचन करने के कारण ही फोटोग्राममिति तथा । फोटो/प्रतिबिम्ब निर्वचन के रूप में दो स्वतन्त्र किन्तु एक-दूसरे से सम्बन्धित विज्ञानों का विकास हुआ है। वायव फोटो के कुछ महत्त्वपूर्ण उपयोग एवं लाभ निम्नलिखित हैं

  1. वायव फोटों से पृथ्वी के विहंगम दृश्य प्राप्त होते हैं जो सतह की आकृतियों को स्थानिक सन्दर्भ में समझने के लिए उपयोगी हैं।
  2. वायव फोटो ऐतिहासिक अभिलेखन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं।
  3. वायव फोटो धरातलीय दृश्यों का त्रिविम स्वरूप प्रदान करते हैं जो भौगोलिक अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
  4. किसी क्षेत्र के भूमि उपयोग सर्वेक्षण को समझने और उस क्षेत्र के नियोजन की रूपरेखा तैयार करने में यह एक विश्वसनीय विधा है।
  5. इसके द्वारा किसी क्षेत्र का समकालिक भौगोलिक अध्ययन करना अत्यन्त सरल है।

(ख) मापनी को निर्धारित करने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर- मापनी को निर्धारित करने की विभिन्न विधियाँ वायव फोटो की व्याख्या के लिए क्षेत्रों एवं उनकी लम्बाइयों के विषय में जानकारी आवश्यक होती है, जिसके लिए फोटो की मापनी की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। वायव फोटो की मापनी की संकल्पना मानचित्रों की मापनी के समान ही है। वायंव फोटों पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी एवं उनकी वास्तविक धरातल पर दूरी के मध्य अनुपात को मापक कहते हैं। इसे इकाई समतुल्यता के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है; जैसे 1 =1,000 फुट या 12,000 इंच या निरूपक भिन्न 1/12,000. वायव फोटो की मापनी को निर्धारित करने की निम्नलिखित तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं

(1) प्रथम विधि : फोटो एवं धरातलीय दूरी के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना
यह विधि तब उपयोगी होती है जब वायव फोटो में कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध है; जैसे—धरातल पर दो पहचानने योग्य बिन्दुओं की दूरी, तो एक ऊर्ध्वाधर फोटो की मापनी सरलता से प्राप्त हो जाती है। यदि वायव फोटो पर मापी गई दूरी (Dp) के साथ धरातल (Dg) की संगत से दूरी ज्ञात हो तो वायव फोटो की मापनी को इन दोनों के अनुपात अर्थात् Dp/Dg में मापा जाएगा।

(2) द्वितीय विधि : फोटो दूरी एवं मानचित्र दूरी में सम्बन्ध स्थापित करना
विधि का उपयोग तब किया जाता है जब जिस क्षेत्र के फोटो में मापनी की गणना करनी है उस क्षेत्र को मानचित्र उपलब्ध हो। दूसरे शब्दों में, मानचित्र एवं वायव फोटो पर पहचाने जाने वाले दो बिन्दुओं के बीच की दूरी हमें वायव फोटो (Sp) की मापनी की गणना करने में सहायता प्रदान करती है। इन दोनों दूरियों के बीच के सम्बन्ध को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
(फोटो मापनी : मानचित्र मापनी) (फोटो दूरी : मानचित्र दूरी)
अतएव
फोटो मापनी (Sp) = फोटो दूरी (Dp) : मानचित्र दूरी (Dm) x मानचित्र मापनी कारक (mst)

(3) तृतीय विधि : फोकस दूरी (f) एवं वायुयान की उड़ान ऊँचाई (H) के बीच सम्बन्ध स्थापित करना
चित्र 6.1 के अनुसार ऊर्ध्वाधर फोटो में कैमरे की फोकस दूरी (f) तथा वायुयान की उड़ान (H) को सीमान्त जानकारी के रूप में लिया जाता है।
फोटो मापनी सूत्र को ज्ञात करने के लिए चित्र 6.1 का उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है
फोकस दूरी (f) : उड़ान ऊँचाई (H) = फोटो दूरी (Dp) : धरातलीय दूरी (Dg)
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 1

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. एक वायव फोटो में दो बिन्दुओं के बीच की दूरी को 2 सेमी मापा जाता है। उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच धरातल पर वास्तविक दूरी 1 किमी है तो वायव फोटो (Sp) की मापनी की गणना करें। . (पा०पु०पृ०सं० 92)
हल-Sp = Dp : Dg
(Sp = वायवे फोटो, Dp = फोटो में दो बिन्दुओं के बीच की दूरी, Dg = उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच धरातल पर वास्तविक दूरी)
Sp = Dp : Dg
= 2 सेमी : 1 किमी ।
= 2 सेमी : 1 x 1,00,000 सेमी (क्योंकि 1 किमी = 1,00,000 सेमी):
= 1: 1,00,000/2
= 50,000 सेमी
= 1 इकाई 50,000 इकाई को प्रदर्शित करती है।
इसलिए Sp = 1: 50,000

प्रश्न 2. एक मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच की दूरी का माप 2 सेमी है। वायव फोटो पर संगत दूरी 10 सेमी है। फोटोग्राफ की मापनी की गणना कीजिए, जबकि मानचित्र की मापनी | 1:50,000 है। (पा०पु०पृ०सं० 93)
हल-Sp = Dp : Dm x msf
(Sp = वायव फोटो, Dp = वायव फोटो की संगत दूरी, Dm = मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच दूरी, msf = मानचित्र की मापनी) |
Sp = Dp : Dm x msf
= 10 सेमी : 2 सेमी x 50,000
= 10 सेमी : 1,00,000 सेमी
अथवा 1 : 1,00,000/10 = 10,000 सेमी या 1 इकाई = 10,000 इकाई को व्यक्त करती है।
इसलिए Sp = 1 : 10,000

प्रश्न 3. एक वायव फोटो की मापनी की गणना कीजिए, जबकि वायुयान की उड्डयन ‘तुंगता 7,500 मीटर है तथा कैमरे की फोकस दूरी 15 सेमी है। (पा०पू०पृ०सं० 94)
हल-Sp = f : H ।
Sp = 15 सेमी : 7,500 x 100 सेमी
(क्योंकि 1 मीटर = 100 सेमी) |
= [latex s=2]\frac { 1:75,00,000 }{ 15 } [/latex]
= 1 : 50,000
इसलिए Sp = 1 : 50,000

प्रश्न 4. फोटोग्राममिति (Photogrammetry) एवं प्रतिबिम्ब निर्वचन (Image Interpretation) से आप क्या समझते हैं? इनकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर-फोटोग्राममिति ।
यह वायव फोटो द्वारा विश्वसनीय मापन का विज्ञान एवं तकनीक है। फोटोग्राममिति के सिद्धान्त ही वायव फोटो की परिशुद्ध लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई की माप प्रदान करते हैं। यह तकनीक स्थलाकृतिक मानचित्रों को तैयार करने और उनको अद्यतन बनाने में उपयोगी होती है।

प्रतिबिम्ब निर्वचन
प्रतिबिम्ब निर्वचन का अर्थ है फोटोग्राममिति द्वारा प्राप्त चित्र का अध्ययन एवं व्याख्या करना। अत: यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से सम्बन्धित निर्णय लेने की प्रक्रिया हैं। इसका उपयोग किसी क्षेत्र के वायव फोटो या सुदूर संवेदन चित्र के द्वारा भौगोलिक जानकारी और उनकी व्याख्या करने के लिए किया जाता है। किसी क्षेत्र की स्थलाकृतियों, वनस्पति, भूमि उपयोग, मिट्टी का प्रकार तथा अन्य भौतिक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों का सटीक अध्ययन द्वारा संसाधन, प्रबन्धन एवं नियोजन के लिए प्रतिबिम्ब निर्वचन अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 5. वायव फोटो के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वायव फोटो के प्रकार वायव फोटो का वर्गीकरण कैमरा अक्ष, मापनी, व्याप्त क्षेत्र के कोणीय विस्तार एवं इनके उपयोग और प्रयोग फट तल में लाई गई फिल्म के आधार पर किया जाता है। कैमरे के प्रकाशिक अक्ष तथा मापक के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 2

1. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो के प्रकार ।
कैमॅरी अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
(i) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ – जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के समान्तर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष (धरातलीय जल तथा फोटोतल) एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस आवर्त क्षेत्र प्रकार प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं (चित्र 6.2)।

(ii) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 15 से 30° के अभिकल्पित विचलन | के साथ लिए गए वायव फोटो को अल्प तिर्यक फोटोग्राफ कहते हैं (चित्र 6.3)। इस प्रकार के फोटोग्राफ प्रारम्भिक सर्वेक्षण में उपयोगी होते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 3

(iii) अति तिर्यक फोटोग्राफ-ऊर्ध्वाधर अक्षं से कैमरे की धुरी को लगभग 60° झुकाने पर एक | तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है। इस प्रकार के फोटोग्राफ भी प्रारम्भिक सर्वेक्षण में प्रयोग किए जाते हैं (चित्र 6.4)।

2. मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार
मापक के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
(i) वृहत मापनी फोटोग्राफ-वृहत् मापनी वायव फोटोग्राफ की मापनी 1 : 15,000 तथा इससे अधिक होती है।
(ii) मध्यम मापनी फोटोग्राफ-मध्यम मापक वायव फोटोग्राफ 1 : 15,000 से 1 : 30,000 के मध्य होते हैं।
(iii) लघु मापनी फोटोग्राफ-लघुमापक वायव फोटोग्राफ 1 : 30,000 पर बने होते हैं।

प्रश्न 6. वायव फोटो की ज्यामिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-धरातल के सापेक्ष किसी वायव फोटोग्राफ की अनुस्थापना को जानने के लिए वायव फोटो की ज्यामिति की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्येक वायव छायाचित्र केन्द्रीय प्रक्षेप पर होता है, क्योंकि विभिन्न धरातलीय लक्ष्यों से नि:सृत किरणें उड़ान रेखा पर स्थित सन्दर्श केन्द्र से होकर गुजरती हैं। केन्द्रीय प्रक्षेप की इन्हीं विशेषताओं के आधार पर धरतलीय भू-भाग के छाया चित्रण को चित्र 6.5 एवं 6.6 में केन्द्रीय प्रक्षेप के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। चित्र 6.5 में प्रक्षेपित किरणें Aa, Bb एवं Cc एक ही बिन्दु () से गुजरती है जिसे सन्दर्श केन्द्र कहते हैं। एक लेंस के ति को केन्द्रीय प्रक्षेप माना जाता है। ऊध्र्वाधर फोटोग्राफ की ज्यामिति को ।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 4
स्पष्ट किया गया है। चित्र में ‘S’ कैमरा लेंस का केन्द्र है। धरातलीय सतह से आती हुई किरण पुंज इस बिन्दु पर। अभिसृत हो जाती है तथा वस्तुओं के चित्र बनाने के लिए नेगेटिव (फोटो) की सतह की ओर अपसरित हो जाती है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि केन्द्रीय प्रक्षेप में संगत बिन्दुओं को मिलाने वाली सभी सीधी . रेखाएँ, जो वस्तु एवं आकृति के संगत बिन्दुओं को जोड़ती हैं, एक ही बिन्दु से होकर गुजरती हैं।

यदि कैमरा अक्ष से होते हुए नेगेटिव की सतह पर एक लम्ब खींचा जाए तो जिस बिन्दु पर लम्ब मिलता है, उसे प्रधान बिन्दु कहते हैं। जब इस रेखा को बढ़ाकर धरातल पर लाते हैं तो चित्र के अनुसार PG बिन्दु पर मिलेगी, किन्तु नेगेटिव पर मिलने पर यही बिन्दु अधोबिन्दु कहलाता है (देखिए चित्र 6.6)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 5

प्रश्न 7.विभिन्न विशेषताओं के आधार पर वायव फोटोग्राफ के प्रकारों की संक्षेप में तुलना कीजिए।
उत्तर-वायव फोटोग्राफ के प्रकारों की तुलना
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 6

प्रश्न 8. मानचित्र एवं वायव फोटो में अन्न्नर बताइए।
उत्तर-मानचित्र एवं वायव फोटो में अन्तर
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) img 7

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. वायव फोटोग्राफ क्या है?
उत्तर-वायुयान में लगे कैमरे द्वारा लिए गए फोटोग्राफ वायव फोटोग्राफ कहलाते हैं।

प्रश्न 2. प्रथम वायव फोटोग्राफ के विषय में बताइए।
उत्तर-प्रथम वायव फोटो 1858 में फ्रांस में एक गुब्बारे द्वारा लिया गया था। वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान का प्रयोग पहली बार 1909 में इटली के एक नगर का फोटो खींचने में किया गया था।

प्रश्न 3. भारत में शैक्षणिक उद्देश्य के लिए वायव फोटोग्राफ की क्या व्यवस्था है?
उत्तर-भारत में शैक्षणिक उद्देश्य के लिए वायव फोटो को APFS पार्टी नं० 73 को भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण निदेशालय के साथ जोड़कर सुलभता प्रदान की गई है।

प्रश्न 4. नत फोटोग्राफ क्या है?
उत्तर-ऊध्र्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3°से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को नत फोटोग्राफ कहा जाता है।

प्रश्न 5. क्या वायव फोटो से मानचित्र को अनुरेखित किया जा सकता है?
उत्तर-नहीं, क्योंकि प्रक्षेप तथा एक मानचित्र के सन्दर्भ एवं एक वायव फोटो के मध्य मूलभूत अन्तर होता है।

प्रश्न 6. ऑर्थोफोटो क्या है?
उत्तर-वायव फोटो से मानचित्र बनाने के पूर्व सन्दर्श दृश्य से समतलमिति दृश्य में परिवर्तन आवश्यक होता है। इस तरह के रूपान्तरित चित्रों को ऑर्थोफोटो कहा जाता है।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 6 Introduction to Aerial Photographs (वायव फोटो का परिचय), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(1) स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होते हैं ?
उत्तर – स्थलाकृतिक मानचित्र को सामान्य उपयोग वाले मानचित्रों के नाम से भी जाना जाता है। इन मानचित्रों में किसी छोटे आकार के क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रदर्शित किया जाता हैं। इन मानचित्रों में महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों का प्रदर्शन किया जाता है।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 1

(ii) भारत की स्थलाकृतिक मानचित्र बनाने वाली संस्था का नाम बताइए तथा इसके मानचित्रों में प्रयुक्त मापनी के विषय में बताइए।
उत्तर – भारत में भारतीय सर्वेक्षण विभाग’ पूरे देश के लिए स्थलाकृतिक मानचित्र तैयार करने वाली संस्था है। ये मानचित्र विभिन्न मापनियों पर तैयार किए जाते हैं। इसलिए दी हुई श्रृंखला के सभी मानचित्रों में एक ही प्रकार के सन्दर्भ बिन्दु एवं मापनी का प्रयोग किया जाता है। सामान्य रूप में स्थलाकृतिक मानचित्रों में 1 : 50,000 एवं 1 : 63,360 मापक का प्रयोग किया जाता है।

(iii) भारतीय सर्वेक्षण विभागं हमारे देश के मानचित्रण में किन मापनियों का उपयोग करता है ?
उत्तर – भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा अपने देश के मानचित्र. 1 : 10,00,000; 1 : 22,50,000; 1:1,25,000; 1 : 50,000 तथा 1 : 25,000 की मापनी पर तैयार किए जाते हैं जिसमें अक्षांशीय एवं देशान्तरीय विस्तार क्रमशः 4 x 4°, 1° x 1°, 30° x 30°, 15° x 15° तथा 5° x 7°30′ होते हैं। इनमें से प्रत्यक मानचित्र की संख्यात्मक प्रणाली को चित्र 5.1 में प्रदर्शित किया गया है। |

(iv) समोच्च रेखाएँ क्या हैं ?
उत्तर – समोच्च रेखा माध्य समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले बिन्दुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा होती है। उच्चावच लक्षणों को दर्शाने के लिए.समोच्च रेखा एक अत्यन्त लोकप्रिय विधि है।

(v) समोच्च रेखाओं के अन्तराल क्या दर्शाते हैं ?
उत्तर – समोच्च रेखाओं को अन्तराल इन रेखाओं की दूरी (ऊँचाई) को दर्शाता है। दो समोच्च रेखाओं के बीच ऊध्र्वाधर अन्तर समान रहता है। समोच्च रेखाएँ भिन्न-भिन्न अन्तर पर खींची जाती हैं; जैसे 20, 50, 100 मीटर आदि।

(vi) रूढ़ चिह क्या हैं ?
उत्तर – स्थलाकृतिक मानचित्रों में विभिन्न भौतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को भिन्न-भिन्न संकेतों की सहायता से प्रकट किया जाता है, जिन्हें रूढ़ या परम्परागत चिह्न कहते हैं। चित्र.5.4 व 5.5 में विभिन्न प्रकार के रूढ़ चिह्नों को प्रदर्शित किया गया है।

प्रश्न 2. संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(क) समोच्च रेखाएँ, (ख) स्थलाकृतिक शीट में उपान्त सूचनाएँ, (ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग।
उत्तर – (क) समोच्च रेखाएँ।
समोच्च रेखाएँ उन कल्पित रेखाओं को कहते हैं जो समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं। प्रत्येक समोच्च रेखा के एक छोर पर उसकी ऊँचाई मीटर या फुट में अंकित कर दी जाती है, परन्तु प्रत्येक समोच्च रेखा के मध्य का अन्तर समान रहती है। (देखिए चित्र 5.2)
समोच्च रेखाओं की विशेषताएँ – समोच्च रेखाओं में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं
1. समोच्च रेखाएँ मानचित्रों में समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं।
2. दो समोच्च रेखाओं के मध्य का अन्तर सदैव समान रहता है।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 2
3. दो समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हैं।
4. प्रत्येक समोच्च रेखा उस स्थान की वास्तविक ऊँचाई को प्रकट करती है।
5. समोच्च रेखाएँ पूर्ण होती हैं। इन्हें खण्ड रेखाओं के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जाता है।
6. सामान्यतया जब एक समोच्च रेखा किसी भी दिशा की ओर मुड़ जाती है तो प्रायः दूसरी समोच्च रेखा भी उसका ही अनुसरण करती हुई दिखाई पड़ती है।
7. समोच्च रेखाओं से. पार्श्व चित्र खींचकर वास्तविक भू-आकृतियों को पुनः निर्मित किया जा सकता है।
8. समोच्च रेखाओं की तीव्रता द्वारा किसी भी स्थान के ढाल को सुगमता से ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
9. सभी समोच्च रेखाओं का मान इन रेखाओं के मध्य में अंकों द्वारा माप की विभिन्न इकाइयों में अंकित कर दिया जाता है।
10. पास-पास खींची हुई समोच्च रेखाएँ तीव्र ढाल को प्रकट करती हैं, जबकि दूर-दूर खींची हुई समोच्च रेखाएँ मन्द ढाल को प्रकट करती हैं।

(ख) स्थलाकृतिक शीट में उपान्त सूचनाएँ

स्थलाकृतिक शीट में निम्नलिखित सूचनाएँ प्रदर्शित की जाती हैं

1. प्रारम्भिक सूचनाएँ – इसके अन्तर्गत –

  • राज्य का नाम, जिले का नाम तथा अक्षांशीय एवं देशान्तरीय विस्तार दिया जाता है;
  • सर्वेक्षण वर्ष एवं प्रकाशन की तिथि;
  • पत्रक (शीट) की संख्या;
  • पत्रक का मापक;
  • ग्रिडे तथा चुम्बकीय दिक्पात;
  • पत्रक की स्थिति, विस्तार एवं बसाव स्थल;
  • प्रशासकीय विभाग;
  • अभिसामयिक या परम्परागत चिह्न।।

2. उच्चावच एवं जल प्रवाह।
3. प्राकृतिक वनस्पति।
4. सिंचाई के साधन।
5. यातायात के साधन।
6. जनसंख्या का वितरण।
7. मानव अधिवास।
8. उद्योग-धन्धे।
9. सभ्यता एवं संस्कृति।
10. ऐतिहासिक स्वरूप। .

(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग

भारत में भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1767 ई० में की गई थी। इसका मुख्यालय देहरादून में है। यह विभाग भारत के स्थलाकृतिक मानचित्र विभिन्न मापकों पर तैयार करके प्रकाशित करता है। यह विभाग स्थलाकृतिक मानचित्रों को दो श्रृंखलाओं में तैयार करता था –
(i) भारत एवं पड़ोसी देश तथा

(ii) विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्रों की संख्या। 1937 ई० में दिल्ली सर्वेक्षण सम्मेलन के बाद अब भारतीय सर्वेक्षण विभाग केवल विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्रों वाली श्रृंखला के विनिर्देशों के आधार पर भारत के स्थलाकृतिक मानचित्रों का निर्माण एवं प्रकाशन करता है।

प्रश्न 3. स्थलाकृतिक मानचित्र निर्वचन को क्या अर्थ है तथा इसकी विधि क्या है? इसकी विवेचना कीजिए।
उत्तर – स्थलाकृतिक मानचित्र का अर्थ इन मानचित्रों को पढ़ना, समझना या व्याख्या (Interpretation) करना है। टोपोशीट या स्थलाकृतिक मानचित्र को पढ़ना अत्यन्त रोचक होता है, इसलिए इनको भौगोलिक ज्ञान की कुंजी कहा जाता है। स्थलाकृतिक मानचित्रों के अध्ययन की विधि अत्यन्त सरल होती है। स्थलाकृतिक मानचित्र को दिए गए। निर्देशों या सूचनाओं के आधार पर समझा जा सकता है अर्थात् मानचित्र में दिए गए प्रकार की भौतिक व सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए रूढ़ चिह्न दिए होते हैं जिनके आधार पर कोई भी व्यक्ति इन मानचित्रों का अध्ययन सरलतापूर्वक कर सकता है। इस विधि को निम्नलिखित शीर्षकों से स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है

1. प्रारम्भिक सूचना – इसके अन्तर्गत मानचित्र में राज्य, जिला, संस्था, वर्ष, मापक, दिक्पात, । स्थिति एवं परम्परागत चिह्न आदि दिए होते हैं, जिसके आधार पर स्थलाकृतिक मानचित्रं की
समस्त प्रारम्भिक सूचनाओं को सरलता से समझ लिया जाता है।

2. उच्चावच एवं जल-प्रवाह – भू-पत्रकों में समोच्च रेखाओं द्वारा धरातल की संरचना तथा ढाल प्रकट किया जाता है। ढाल द्वारा जल-प्रवाह तथा नदी-घाटियों के आकार का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

3. प्राकृतिक वनस्पति – भू-पत्रकों पर विभिन्न रंगों द्वारा वनस्पति के विभिन्न प्रकार एवं उनका वितरण प्रकट किया जाता है। पीले रंग से कृषि क्षेत्र तथा हरे रंग से प्राकृतिक वनस्पति; यथा-घास, झाड़ियाँ तथा वृक्ष आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।

4. सिंचाई के साधन – भू-पत्रंकों में झील, तालाब, कुएँ, नदियों तथा नहरों का चित्रण प्रायः नीले रंग से किया जाता है जिनसे सिंचाई साधनों का ज्ञान हो जाता है। यदि पत्रक में सिंचाई के साधन
नहीं दिए गए हैं तो इसका यह अर्थ हुआ कि कृषि वर्षा पर ही निर्भर करती है।

5. यातायात के साधन – इन पत्रकों में रेलमार्गों, सड़क-मार्गों, पगडण्डियों तथा वायुमार्गों को परम्परागत चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है जिनके द्वारा क्षेत्र-विशेष में यातायात मार्गों एवं उन पर
संचालित परिवहन साधनों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

6. जनसंख्या का वितरण – भू-पत्रकों में नगरीय तथा ग्रामीण अधिवासों की व्यापकता को देखकर जनसंख्या के वितरण को समझा जा सकता है।

7. मानव अधिवास – भू-पत्रकों में बस्तियों की स्थिति से मानव-अधिवास के ढंग का सामान्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है। सघन एवं विरल जनसंख्या द्वारा ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों का अध्ययन किया जा सकता है।

8. उद्योग-धन्धे – भू-पत्रकों के अध्ययन द्वारा मानवीय क्रियाकलापों; जैसे—कृषि, पशुचारण तथा कला-कौशल का ज्ञान भी प्राप्त होता है। इनके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि किस क्षेत्र के लोग कृषि करते हैं, वनों का शोषण करते हैं, खनन कार्य करते हैं, मछली पकड़ते हैं या भारी उद्योग-धन्धे चलाते हैं। इसी प्रकार खनिज पदार्थों के अध्ययन द्वारा उद्योगों के विषय में जानकारी
प्राप्त की जा सकती है।

9. सभ्यता एवं संस्कृति – इन भू-पत्रकों में विद्यालय, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, चिकित्सालय, रेलवे स्टेशन, निरीक्षण भवन, धर्मशालाएँ आदि परम्परागत चिह्नों की सहायता से दर्शाए जाते हैं। इन्हें देखकर इस क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

10. ऐतिहासिक स्वरूप – इन भू-पत्रकों से युद्ध-स्थल, किला, राजधानियाँ, ऐतिहासिक स्थलों तथा । अन्य महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का बोध होता है।

प्रश्न 4. यदि आप स्थलाकृतिक शीट के सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या कर रहे हैं तो आप किस प्रकार की सूचनाएँ लेना पसन्द करेंगे तथा इन सूचनाओं को कैसे प्राप्त करेंगे? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से विवेचना करें।
उत्तर – किसी क्षेत्र के सांस्कृतिक लक्षण वहाँ के अधिवास, रेल तथा सड़क मार्ग; भवन (मन्दिर, मस्जिद आदि) एवं संचार साधन होते हैं। ये सभी लक्षण उस क्षेत्र के विकास और समस्याओं को इंगित करते हैं। इन सूचनाओं की जानकारी टोपोशीट से प्राप्त हो जाती है, फिर भी नवीनतम सूचनाओं के लिए क्षेत्र का भ्रमण उपयोगी होता है। सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या हम देहरादून-टिहरी-गढ़वाल ([latex s=2]53 \frac { J }{ 3 } [/latex]) टोपोशीट के उदाहरण द्वारा भली प्रकार कर सकते हैं।

देहरादून-टिहरी-गढ़वाल के सांस्कृतिक लक्षण
(स्थलाकृतिक मानचित्र [latex s=2]53 \frac { J }{ 3 } [/latex] के आधार पर)

1. यातायात के साधन – इस फ्त्रक का अधिकांश भाग पर्वतीय है, जहाँ रेलपथों तथा सड़कों का निर्माण बहुत ही कठिन है; अत: इस पत्र में परिवहन मार्गों का विकास बहुत ही कम हुआ है। इस क्षेत्र का धरातल विषम एवं ऊबड़-खाबड़ होने के कारण यहाँ न तो रेलमार्गों का विकास हुआ है और न ही अधिक सड़क मार्गों का। पत्रक के दक्षिणी भाग में परिवहन पथ अधिक दिखाई पड़ रहे हैं। दून घाटी में सड़कें अपेक्षाकृत अधिक दिखाई पड़ती हैं। यहाँ एक रेलमार्ग भी अंकित है जो देहरादून से ऋषिकेश-हरिद्वार की ओर जाता है। पर्वतीय क्षेत्र में बिखरे हुए गाँवों को जोड़ने के लिए पगडण्डी (पैदल पथ) मार्ग विकसित हुए हैं (चित्र 5.3)।

2. प्रमुख परिवहन मार्ग –

  • उत्तरी रेलवे-यह रेलमार्ग दिल्ली को देहरादून से जोड़ता है। ऋषिकेश, हरिद्वार, लक्सर, सहारनपुर, देवबन्द, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मोदीनगर, गाजियाबाद इस मार्ग के प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
  • देहरादून-हरिद्वार सड़क मार्ग।
  • देहरउदून-मसूरी सड़क मार्ग।
  • देहरादून-सहारनपुर सड़क मार्ग।
  • देहरादून-विक्रासनगर सड़क मार्ग।
  • कच्ची सड़कें तथा पगडण्डियाँ।।

3. मानव आवास तथा जन-विन्यास – भू-पत्रक को देखने से ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व अत्यन्त कम है। पर्वतीय क्षेत्र में अधिवासों का वितरण भी बहुत विरल है। केवल दून घाटी में सघन जनसंख्या निवास करती है, जबकि शेष भागों में दूर-दूर बिखरे हुए गाँव स्थित हैं। देहरादून, दून घाटी का प्रमुख नगर है। इसके अतिरिक्त, यहाँ रायगढ़, राजपुर; भाजना, शमशेरगढ़ तथा कालागढ़ आदि कस्बे भी विकसित हुए हैं। मंसूरी इस पत्रक का दूसरा महत्त्वपूर्ण नगर है। इसे ‘पर्वतीय नगरों की रानी’ कहा जाता है। ग्रीष्म ऋतु में यह नगर प्राकृतिक सुषमा एवं स्वास्थ्यवर्द्धक तथा उत्तम जलवायु के कारण पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र बन जाता है। मसूरी सड़क मार्ग द्वारा देहरादून नगर से जुड़ा हुआ है। इस सड़क मार्म के साथ-साथ छोटे-छोटे गाँव स्थित हैं। पर्वतों पर गाँव बिखरे हुए प्रतिरूप में पाए जाते हैं। देहरादून भारत का प्रमुख नगर उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी तथा शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। सर्वे ऑफ इण्डिया, वन अनुसन्धानशाला, सुदूर संवेदन संस्थान तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के कार्यालय भी इसी नगर में स्थित हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 3

4. मानव व्यवसाय – असमतल धरातल के कारण यहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव पाया जाता है। समतल क्षेत्र होने के कारण दून घाटी में कृषि का विकास अधिक हुआ है। यह क्षेत्र बासमती
चावल के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल तथा चाय की कृषि की जाती है। देहरादून के निकटवर्ती क्षेत्रों में चाय के अनेक बाग विकसित हुए हैं। इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आम, लीची तथा आडू आदि फल भी उगाए जाते हैं। ढालू पहाड़ी क्षेत्रों में अदरक, आलू तथा हरी मिर्च आदि सब्जियाँ उत्पन्न की जाती हैं।

वनों पर आश्रित उद्योग भी इस क्षेत्र में पर्याप्त विकसित हो गए हैं। वनों से लकड़ी काटना यहाँ का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्यम है। इसी कारण देहरादून लकड़ी चीरने, फर्नीचर तथा खेल का सामान बनाने के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है। यह नगर लकड़ी व्यवसाय का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। वन-अनुसन्धानशाला इस उद्योग में विशेष सहायता पहुँचाती है।

इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है; अतः इसे क्षेत्र में भावी विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। धरातलीय विषमता इस क्षेत्र की प्रगति में बाधक है। राज्य सरकार ने यातायात के साधनों का समुचित विकास कर इस क्षेत्र की प्रगति के द्वार खोल दिए हैं।

प्रश्न 5. निम्नलिखित लक्षणों के लिए रूढ़ चिह्नों एवं संकेतों को बनाइए(क) अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखाएँ
(ख) तल चिह्न ।
(ग) गाँव
(घ) पक्की सड़क
(ङ) पुल सहित पगडण्डी
(च) पूजा करने के स्थान
(छ) रेल लाइन
उत्तर – निम्नांकित चित्र 5.4 का अवलोकन करें
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 4
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 5
अभ्यास (क)
समोच्च प्रणाली को देखें तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 6

प्रश्न 1. समोच्च रेखाओं से निर्मित स्थलाकृति का नाम लिखें।
उत्तर – पठारे।

प्रश्न 2. मानचित्र में समोच्च अन्तराल का पता लगाएँ।
उत्तर – 100 मीटर।

प्रश्न 3. मानचित्र पर E एवं F के बीच की दूरी को धरातल पर की दूरी में बदलें।
उत्तर – यदि मानचित्र पर E एवं F की दूरी मापने पर 2 सेमी है तथा मापक 1 सेमी = 2 किमी को दर्शाता है। तो धरातल की दूरी 4 किमी होगी।

प्रश्न 4. A तथा B, C तथा D एवं E तथा F के बीच के ढालों के प्रकार का नाम लिखें।
उत्तर – A तथा B-मन्द ढाल; C तथा D-तरंगित ढाल; E तथा F—तीव्र ढाल।

प्रश्न 5. G से E, D तथा F की दिशाओं को बताएँ।
उत्तर – G से E-पश्चिम; D तथा F-उत्तर एवं दक्षिण।

अभ्यास (ख)

स्थालाकृतिक शीट संख्या 63 K/12 जैसा कि पाठ्य-पुस्तक (भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य) पृष्ठ 78 पर चित्र में दिखाया गया है, का अध्ययन करें तथा निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें

प्रश्न 1.1: 50,000 को साधारण कथन में बदलें।
उत्तर – 1 सेमी = 50,000/1,00,000 = 1/2 किम अर्थात् 1 सेमी = 1/2 किमी।

प्रश्न 2. क्षेत्र की मुख्य बस्तियों के नाम लिखें।
उत्तर – कछेवा (Kachhwa), मझवान (Majhwan), बारानी (Baraini) आदि।

प्रश्न 3. गंगा नदी के बहाव की दिशा क्या है?
उत्तर – दक्षिण-पूर्व।।

प्रश्न 4. गंगा नदी के कौन-से किनारे पर भतौली स्थित है?
उत्तर – पूर्वी किनारे के निकट।

प्रश्न 5. गंगा नदी के किनारे ग्रामीण बस्तियाँ किस प्रकार अवस्थित हैं?
उत्तर – प्रकीर्ण अथवा बिखेरे हुए रूप में।

प्रश्न 6. उन गाँवों/बस्तियों के नाम लिखें, जहाँ डाकघर एवं तारघर स्थित हैं।
उत्तर – कछेवा (डाकघर), गहेरवा (तारघर)।

प्रश्न 7. क्षेत्र में पीला रंग क्या दर्शाता है?
उत्तर – कृषि क्षेत्र।

प्रश्न 8. भतौली गाँव के लोगों के द्वारा नदी को पार करने के लिए परिवहन के किस साधन का | उपयोग किया जाता है?
उत्तर – नाव का।

अभ्यास (ग)

पाठ्य-पुस्तक (भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य) पृष्ठ 64 पर दी गई स्थलाकृतिक शीट संख्या 63 K/12 को अध्ययन करें तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें

प्रश्न 1. मानचित्र के सबसे उच्च बिन्दु की ऊँचाई ज्ञात करें।
उत्तर – 174 मीटर (राजघाट)।

प्रश्न 2. जमटिहवा नदी मानचित्र के किस भाग से होकर बह रही है ?
उत्तर – दक्षिण-पूर्व।

प्रश्न 3. कुरदरी नाले के पूर्व में कौन-सी मुख्य बस्ती अवस्थित है ?
उत्तर – कोटवा (Kotwa)।

प्रश्न 4. इस क्षेत्र में किस प्रकार की बस्ती है ?
उत्तर – प्रकीर्ण प्रकार की।

प्रश्न 5. सिपू नदी के बीच सफेद धब्बे किस प्रकार की भौगोलिक स्थलाकृति को दर्शाते हैं ?
उत्तर – नदीमोड़ के साथ बालू का जमाव।.

प्रश्न 6. कुरदरी के बहाव की दिशा क्या है ?
उत्तर – दक्षिण-पूर्व।

प्रश्न 7. नीचला खजौरी डैम स्थलाकृतिक शीट के किस भाग में अवस्थित है ?
उत्तर – उत्तरी-पश्चिमी।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं सहित प्रदर्शित कीजिए
1. मन्द ढाल, 2. खड़ी ढाल, 3. अवतल ढाल, 4. उत्तल ढाल, 5. शंक्वाकार पहाड़ी, 6. पठार, 7. V-आकार की घाटी, 8. U-आकार की घाटी, 9. महाखड़ड (गॉर्ज), 10. पर्वतस्कन्ध, 11. भृगु, 12. जलप्रपात।
उत्तर – 1, मन्द ढाल-जब किसी भू-आकृति का ढाल ‘या कोण बहुत कम होता है तो वह मन्द ढाल कहलाता है। इस प्रकार की स्थलाकृति को समोच्च रेखाओं के बीच की बहुत अधिक दूरी से पहचाना जाता है (चित्र 5.6)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 9

2. खड़ी ढाल – इस स्थलाकृति में ढाल का कोण अधिक होता है। इसकी समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी बहुत कम होती है जो खड़ी ढाल को प्रदर्शित करता है (चित्र 5.7)।

3. अवतल ढाल – इसे नतोदर ढाल भी कहते हैं। इस प्रकार के उच्चावच में निचला भाग मन्द ढाल | वाला एवं ऊपरी भाग खड़ी ढाल वाला होता है। इसकी समोच्च रेखा निचले भाग में दूर-दूर तथा ऊपर की ओर पास-पास होती है (चित्र 5.8)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 10

4. उत्तल ढाल – इसे उन्नतोदर ढाल भी कहा जाता है। इसमें अवतल ढाल के विपरीत ऊपरी भाग मन्द एवं निचला भाग खड़ी ढाल वाला होता है। इसकी समोच्च रेखा ऊपरी भाग में दूर-दूर तथा | निचले भाग में पास-पास होती है (चित्र 5.9)।

5. शंक्वाकार पहाड़ी – शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन मानचित्र पर बन्द गोलाकार समोच्च रेखाओं के द्वारा किया जाता है, जिसका मान अन्दर की ओर अधिक होता है (चित्र 5.10)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 11

6. पठार – यह धरातल का चपटा उठा हुआ भू-भाग है। इसको दर्शाने वाली समोच्च रेखाएँ सामान्यतः किनारों पर पास-पास तथा भीतर की ओर दूर-दूर होती हैं (चित्र 5.11)।

7.v-आकार की घाटी – इस घाटी का तल गहरा तथा किनारे ढालू होते हैं। मानचित्र पर इसकी समोच्च रेखाएँ अंग्रेजी के ‘V’ अक्षर की उल्टी आकृति (A) में होती हैं। इन रेखाओं के बीच की दूरी प्रायः नीचे से ऊपर की ओर घटती जाती है, जबकि इनकी ऊँचाई बढ़ती जाती है (चित्र 5.12)।

8. U-आकार की घाटी – इस घाट का निर्माण उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमनदों के अपरदनद्वारा होता है। इसकी समोच्च रेखाएँ अंग्रेजी अक्षर U के उल्टे आकार की भाँति होती हैं। ये रेखाएँ तल के निकट समानान्तर तथा किनारे पर पास-पास होती हैं (चित्र 5.13)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 12

9. महाखइड (गॉर्ज) – यह गहरी और सँकरी,घाटी है। इसका निर्माण पर्वतीय क्षेत्र में अधिक ऊँचाई। पर नदियों द्वारा ऊध्र्वाकार अपरदन से होता है। इसकी समोच्च रेखाएँ बहुत समीप बनाई जाती हैं। जिसमें भीतरी समोच्च रेखाओं के बीच का अन्तर बहुत कम होता है जो इसके दोनों किनारे को दिखाता है (चित्र 5.14)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 13

10. पर्वतस्कन्य – पर्वत-श्रृंखलाओं से घाटी की ओर झुकी हुई ढाल वाली आकृति को स्पर या पर्वतस्कन्ध कहते हैं। इसकी समोच्च रेखाएँ उल्टे V-आकार (Λ) की तरह होती हैं। (Λ) के दोनों । किनारे ऊँचाई वाले भाग को दिखाते हैं (चित्र 5.15)।

11. भृगु – यह तीव्र ढाल वाली भू-आकृति है। इसकी समोच्च रेखाएँ पास-पास बनी रहती हैं जो आपस में जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं (चित्र 5.16)।

12. जलप्रपात – यह नदी के द्वारा निर्मित प्रमुख स्थलाकृति है। इसकी समोच्च रेखाएँ एक स्थान प६ परस्पर मिल जाती हैं, अर्थात् नदी को एक स्थान पर काटती हुई दिखाई देती हैं। रैपिड की समोच्च रेखाएँ अपेक्षाकृत दूर-दूर होती हैं (चित्र 5.17)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 14

प्रश्न 2. भू-पत्रक मानचित्र से आप क्या समझते हैं? भारतीय भू-पत्रक मानचित्रों में संख्यांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर – भू-पत्रक मानचित्र
भू-पत्रक मानचित्र किसी क्षेत्र-विशेष का विस्तृत अध्ययन करने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं। इन्हें स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps) भी कहते हैं। इनमें विभिन्न विवरण परम्परागत चिह्नों (Conventional Signs) के द्वारा प्रकट किए जाते हैं। इन अंश-पत्रकों में किसी क्षेत्र के भौगोलिक तथ्यों (भौतिक एवं सांस्कृतिक) का विशद विवरण प्रस्तुत किया जाता है। ‘टोपोग्राफी (Topography) ग्रीक भाषा का शब्द है, जो टोपों (Topo) तथा ‘ग्राफीन’ (Graphein) शब्दों से मिलकर बना है। ‘टोपो’ का अर्थ है ‘स्थल’ तथा ‘ग्राफीन’ का अर्थ है ‘वर्णन करना। इस प्रकार भू-पत्रक मानचित्रों का अर्थ है-‘किसी स्थान का वर्णन करना।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 15

स्थलाकृतिक अथवा भू-पत्रक मानचित्रों का निर्माण दीर्घ मापक पर किया जाता है। विधिवत् सर्वेक्षण के पश्चात् इन मानचित्रों में भौतिक व सांस्कृतिक विवरणों को परम्परागत चिह्नों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। इन मानचित्रों के अध्ययन से मानव एबं उसके पर्यावरण के सम्बन्ध स्पष्ट हो जाते हैं तथा इनकी व्याख्या सुगम हो जाती है।

भारतीय भू-पत्रक मानचित्रों में संख्यांकन ।

भारत में धरातलीय पत्रकों का प्रकाशन भारतीय सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इण्डिया) द्वारा किया जाता है। इस विभाग को प्रधान कार्यालय हाथीबड़कला, देहरादून (उत्तराखण्ड) में स्थित है। भारत के प्रत्येक भू-पत्रक पर संख्यांकन होता है। यह उनका सूचकांक (Index Number) कहलाता है। भारत एवं समीपवर्ती देशों की माला के भू-पत्रकों की कुल संख्या 136 है, जो भारत तथा उसके पड़ोसी देशों को घेरे हुए है। प्रत्येक धरातलीय पत्रक का विस्तार 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तर के मध्य होता है। इनका मापक 1: 10,00,000 होता है। भारत के सम्पूर्ण धरातलीय पत्रकों की संख्या 39 से 92 तक है। भारत व समीपवर्ती देशों के पत्रकों की क्रमांक संख्या 1 से 136 तक है। इन्हें सूची संख्या (Index Number) भी कहते हैं (देखिए चित्र 5.18)।

प्रत्येक पत्रक को 16 वर्गों में विभक्त किया गया है जिनमें अंग्रेजी के A से P तक अक्षर लिखे जाते हैं। यह प्रत्येक भाग 1° अक्षांश तथा 1° देशान्तर के विस्तार को प्रकट करता है, इसीलिए इन्हें एक अंश भू-पत्रक भी कहते हैं। पुनः प्रत्येक एक अंश पत्रक को 16 भागों में बाँटा जाता है तथा प्रत्येक भाग में 1 से 16 तक संख्याएँ लिख दी जाती हैं। इस प्रकार प्राप्त भू-पत्रक 15 मिनट अक्षांश एवं 15 मिनट देशान्तर को प्रकट करता है। इनका मापक एक इंच बराबर एक मील होता है, जिससे इन्हें एक इंच भू-पत्रक भी कहते हैं। वर्तमान में मीट्रिक प्रणाली के अन्तर्गत इन मानचित्रों का मापक 1 : 50,000 अर्थात् 2 सेमी = 1 किमी कर दिया गया है। चित्र 5.19 में K (के) चित्र 5.19 : धरातल पत्रक। अंश पत्रक संख्या का निर्धारण 63K/1 से 63K/16 तक किया गया। है। कभी-कभी एक डिग्री भू-पत्रकों को 16 भागों में न बाँटकर केवल 4 भागों में ही बाँटा जाता है, तब उनका नामकरण दिशा के आधार पर करते हैं; जैसे-63M/Nw, 63M/SW, 63M/NE तथा 63M/SE । प्रायः प्रत्येक अंश पत्रक को उस क्षेत्र के बड़े नगर के नाम से पुकारा जाता है (देखिए चित्र 5.20 एवं 5.21)।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 16
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) img 17

प्रश्न 3. परम्परागत चिह्न क्या हैं? भू-पत्रक मानचित्रों में कौन-से रंगों का प्रयोग होता है ?
उत्तर – परम्परागत चिह
भू-पत्रकों में विभिन्न विवरणों को प्रदर्शित करने के लिए कुछ निश्चित चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें परम्परागत चिह्न या अभिसामयिक अथवा रूढ़ चिह्न कहते हैं। इन परम्परागत चिह्नों का निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। महत्त्वपूर्ण परम्परागत चिह्नों को चित्र 5.4 में प्रदर्शित किया गया है।

भू-पत्रक मानचित्रों में प्रयुक्त होने वाले रंग।

परम्परागत चिह्नों के साथ-साथ भू-पत्रक मानचित्रों में निम्नांकित रंगों का प्रयोग किया जा सकता है। इन रंगों के द्वारा मानचित्रों में प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक भू-दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं

  1. लाल रंग – लाल रंग का प्रयोग भवन (बस्तियों) एवं सड़क मार्गों को प्रदर्शित करने में किया जाता है।
  2. पीला रंग – इसका प्रयोग कृषि क्षेत्रों के प्रदर्शन में किया जाता है।
  3. हरा रंग – हरे रंग से वन, प्राकृतिक वनस्पति, घास तथा बाग-बगीचे आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।
  4. नीला रंग – नीले रंग द्वारा तालाब, नदी, झील, सागर तथा अन्य जलाशय क्षेत्रों अर्थात् विभिन्न जल क्षेत्रों को प्रदर्शित किया जाता है।
  5. काला रंग – इसका प्रयोग सीमाएँ प्रकट करने तथा रेलवेलाइन प्रदर्शित करने में किया जाता है।
  6. कत्थई रंग – इस रंग द्वारा ऊँचाई प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाएँ बनाई जाती हैं।
  7. भूरा रंग – यह पर्वतीय क्षेत्रों के छायाकरण में प्रयुक्त किया जाता है।

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. धरातलीय पत्रक क्या है ?
उत्तर – किसी स्थान-विशेष के प्राकृतिक पर्यावरण एवं सांस्कृतिक तथ्यों के विस्तृत अध्ययन हेतु अभिसामयिक चिह्नों से निर्मित मानचित्रों को ‘धरातलीय पत्रक’ कहते हैं।

प्रश्न 2. भारत में भू-पत्रकों का प्रकाशन किसके द्वारा किया जाता है ?
उत्तर – भारत में भू-पत्रकों को प्रकाशन सर्वे ऑफ इण्डिया, हाथीबड़कला, देहरादून (उत्तराखण्ड) द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 3. सर्वे ऑफ इण्डिया क्या है ? इसका मुख्यालय कहाँ स्थित है ?
उत्तर – सर्वे ऑफ इण्डिया भारत सरकार का मानचित्र प्रकाशन एवं सर्वेक्षण विभाग है। इसका मुख्यालय हाथीबड़कला, देहरादून (उत्तराखण्ड) में स्थित है।

प्रश्न 4. भारतीय भू-पत्रकों की संख्या बताइए।
उत्तर – भारत एवं उसके समीपवर्ती देशों में धरातलीय भू-पत्रकों की संख्या 136 है, परन्तु भारत में पत्रक संख्या 39 से 92 तक के भू-पत्रक ही सम्मिलित हैं।

प्रश्न 5. धरातलीय पत्रकों का महत्त्व बताइए।
उत्तर – धरातलीय पत्रकों से किसी क्षेत्र का सूक्ष्म अध्ययन किया जा सकता है। इनसे भावी विकास योजनाएँ निर्धारित की जाती हैं तथा सैन्य-संचालन एवं युद्ध के समय में भी ये प्रयुक्त किए जाते हैं।

प्रश्न 6. अभिसामयिक या परम्परागत चिह्न क्या हैं ?
उत्तर – मानचित्रों में विभिन्न प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों को प्रस्तुत करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें अभिसामयिक या परम्परागत अथवा रूढ़ चिह्न कहते हैं।

प्रश्न 7. उच्चावच किसे कहते हैं ?
उत्तर – धरातल के विषम, ऊबड़-खाबड़ एवं असमतल स्वरूप को उच्चावच कहते हैं।

प्रश्न 8. उच्चावच प्रदर्शन की विधियाँ बताइए।
उत्तर – उच्चावच प्रदर्शन की निम्नलिखित विधियाँ हैं –

  • चित्रीय विधि,
  • गणितीय विधि एवं
  • मिश्रित विधि।।

प्रश्न 9. समोच्च रेखाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – मानचित्रों पर समुद्रतल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाने वाली कल्पित रेखाओं को ‘समोच्च रेखाएँ’ कहते हैं?

प्रश्न 10. हैश्च्यूर क्या है ?
उत्तर – सामान्य ढाल की दिशा में खींची गई छोटी-छोटी खण्डित रेखाएँ हैश्च्यूर कहलाती हैं।

प्रश्न 11. निर्देशिका (बेंच मार्क) क्या है ?
उत्तर – किसी स्थान की समुद्रतल से वास्तविक ऊँचाई जिस चिह्न द्वारा प्रदर्शित की जाती है, उसे निर्देशिका (बेंच मार्क) कहते हैं।

प्रश्न 12. क्षैतिज समकक्षक किसे कहते हैं ?
उत्तर – दो समोच्च रेखाओं के मध्य के क्षैतिज अन्तर को क्षैतिज समकक्षक या क्षैतिज तुल्यमान (Horizontal Equivalent-H.E.) कहते हैं। इससे उस स्थान के ढाल का ज्ञान होता है।

प्रश्न 13. उदग्रान्तर (Vertical Interval) किसे कहते हैं ?
उत्तर – दो समोच्च रेखाओं के मध्य के लम्बवत् अन्तराल को उदग्रान्तर या उदग्र अन्तराल कहते हैं।

प्रश्न 14. समोच्च रेखाओं से क्या प्रदर्शित किया जाता है ?
उत्तर – समोच्च रेखाओं द्वारा मानचित्रों में ऊँचाई, गहराई, ढाल तथा विभिन्न स्थलाकृतियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। जाती हैं।

प्रश्न 15, पाश्र्व-चित्रण क्या है ?
उत्तर – पार्श्व-चित्रण धरातल (भू-आकृतियों) की वास्तविक दशा को प्रदर्शित करने की एक विधि है। इसे खण्ड-चित्रण भी कहते हैं। इस विधि द्वारा समोच्च रेखाओं की सहायता से विभिन्न भू-आकृतियों को चित्रित किया जाता है।

प्रश्न 16. पाश्र्व-चित्रण में कौन-कौन से मापकं प्रयुक्त किए जाते हैं ?
उत्तर – पाश्र्व-चित्रण में क्षैतिज तथा लम्बवत् मापकों को प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17. पाश्र्व-चित्रण कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर – पाश्र्व-चित्रण दो प्रकार का होता है

  1. सामान्य पार्श्व-चित्रण तथा
  2. तिर्यक पार्श्व-चित्रण।

प्रश्न 18. अन्तर्दृश्यता क्या है ?
उत्तर – किसी स्थलखण्ड पर दो स्थानों का परस्पर दिखाई पड़ना अन्र्दृश्यता कहलाता है।

प्रश्न 19. मिश्रित विधि किसे कहते हैं ?
उत्तर – उच्चावच प्रदर्शन में जब दो या दो से अधिक विधियों को एक-साथ प्रयुक्त किया जाता है तो उसे मिश्रित विधि कहते हैं; जैसे—समोच्च रेखाओं के साथ खण्ड रेखाओं (Form lines) को प्रदर्शित करना।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 5 Topographical Maps (स्थलाकृतिक मानचित्र), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें
(i) मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है
(क) मर्केटर
(ख) बेलंनी
(ग) शंकु
(घ) ये सभी
उत्तर-(ग) शंकु। |

(ii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न समक्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है
(क) शंकु ।
(ख) ध्रुवीय शिरोबिन्दु
(ग) मर्केटर
(घ) बेलनी
उत्तर-(क) शंकु।

(iii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है
(क) बेलनाकार समक्षेत्र
(ख) मर्केटर |
(ग) शंकु
(घ) ये सभी
उत्तर-(ख) मर्केटर।।

(iv) जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है तथा प्राप्त प्रक्षेप को कहते हैं
(क) लम्बकोणीय
(ख) त्रिविम
(ग) नोमॉनिक
(घ) ये सभी
उत्तर-(ग) नोमॉनिक।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्व निम्नलिखित हैं–

  1. पृथ्वी का लघु रूप-प्रक्षेप द्वारा लघु मापनी की सहायता से पृथ्वी के स्वरूप को कागज की | समतल सतह पर दर्शाया जाता है।
  2. अक्षांश के समान्तर-ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं जो विषुवत् वृत्त के समान्तर एवं , ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं। इनका विस्तार ध्रुव पर बिन्दु से लेकर विषुवत् वृत्त पर ग्लोबीय परिधि तक होता है। इनका सीमांकन 0° से 90° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों में किया जाता है।
  3. देशान्तर-ये अर्द्धवृत्त होते हैं जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं तथा दो विपरीत देशान्तर एक वृत्त का निर्माण करते हैं।
  4. भूमण्डलीय गुण-मानचित्र प्रक्षेप में ग्लोब के गुणों को संरक्षित किया जाता है। यही गुण किसी स्थान की दूरी, आकृति, क्षेत्रफल तथा दिशा को अभिव्यक्त करते हैं।

(ii) भूमण्डलीय सम्पत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-भूमण्डलीय गुण ही भूमण्डलीय सम्पत्ति कहलाता है। एक मानचित्र में चार : भूमण्डलीय गुण-क्षेत्रफल, आकृति, दिशा और दूरी-होते हैं। ये गुण विश्वव्यापी सम्पत्ति है जो प्रत्येक देश या स्थान के पास होती है। वास्तव में भूगोल इसी भूमण्डलीय सम्पत्ति के परिप्रेक्ष्य में मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है।

(iii) कोई भी मानचित्र ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता है, क्यों?
उत्तर-ग्लोब पृथ्वी का लगभग अधिकाधिक शुद्ध प्रतिरूप है। मानचित्र में हम पृथ्वी के किसी भी भाग या सम्पूर्ण पृथ्वी को उसके सही आकार एवं विस्तार में दिखाने का प्रयास करते हैं, लेकिन विकृति किसी-न-किसी रूप में अवश्य बनी रहती है। ऐसा इसलिए है कि पृथ्वी नारंगी की तरह गोल है जिसका प्रतिरूप ग्लोब भी इसी का समरूप है, किन्तु मानचित्र समतल सतह पर ग्लोब का एक प्रदर्शन है, जिसे त्रिविम रूप में प्रदर्शित करना कठिन है। फिर भी मानचित्र एवं ग्लोब दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता एवं महत्ता है।

(iv) बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र को समरूप कैसे रखा जाता है?
उत्तर-बेलनाकार प्रक्षेप में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं की दूरी की गणना कर आनुपातिक रूप में बनाया जाता है। ये रेखाएँ परस्पर समानान्तर तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं, जिसके कारण क्षेत्रफल विकृतियाँ न्यूनतम हो जाती हैं। इस प्रकार बेलनाकार, समक्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र समरूप हो जाता है।

प्रश्न 3. अन्तर स्पष्ट कीजिए
(i) विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ।
उत्तर-विकासनीय पृष्ठ वह होता है जिसे समतल करके अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के जाल को प्रक्षेपित किया जा सकता है, जबकि अविकासनीय सतह वह है जिसे बिना खण्डित या बिना तोड़े-मोड़े चपटा नहीं किया जा सकता है। अत: ग्लोब या गोलाकार सतह में अविकासनीय पृष्ठ (सतह) के गुण हैं, जबकि बेलन, शंकु या समतल में विकासनीय पृष्ठ के गुण हैं। (चित्र 4.1)
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (8)
ग्लोब से समतल सतह पर परिवर्तन, क्षेत्रफल, आकार एवं दिशा में विकृति पैदा करता है।
चित्र 4.1: विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ का प्रदर्शन

(ii) समक्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप।।
उत्तर-समक्षेत्र प्रक्षेप में पृथ्वी के विभिन्न भागों का क्षेत्रफल शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है, जबकि यथाकृतिक प्रक्षेप में क्षेत्रफल की शुद्धता के स्थान पर आकृति को शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है।

(iii) अभिलेख एवं तिर्यक प्रक्षेप।
उत्तर-जब विकासनीय पृष्ठ ग्लोब के विषुवत् वृत्त पर स्पर्श करता है तो उसे विषुवतीय या अविलम्ब प्रक्षेप कहा जाता है, किन्तु यदि कोई प्रक्षेप विषुवत् वृत्त या ध्रुव के बीच किसी बिन्दु पर स्पर्शरेखीय आधार पर बनाया जाए तो वह तिर्यक प्रक्षेप कहलाता है।

(iv) अक्षांश के समान्तर एवं देशान्तर के याम्योत्तर।
उत्तर-अक्षांश विषुवत् वृत्त के उत्तर या दक्षिण में स्थित किसी बिन्दु की कोणीय दूरी को डिग्री, मिनट तथा सेकण्ड में व्यक्त करता है। इन रेखाओं को प्रायः समान्तर अक्षांश कहते हैं। जबकि देशान्तर रेखाओं को प्रायः याम्योत्तर कहा जाता है। ये ग्रीनविच के पूर्व या पश्चिम में स्थित किसी बिन्दु की कोणीय स्थिति को डिग्री एवं मिनट में व्यक्त करती हैं।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दीजिए ।
(i) मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार की विवेचना कीजिए तथा प्रक्षेपों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-प्रक्षेपों का वर्गीकरण
प्रक्षेपों का वर्गीकरण प्रकाश तथा उनके उपयोग के आधार पर निम्नवत् किया जा सकता है ।

1. प्रकाश के प्रयोग के आधार पर प्रकाश के प्रयोग पर आधारित जो प्रक्षेप बनाए जाते हैं, उन्हें निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(क) सन्दर्भ प्रक्षेप–इने प्रक्षेपों की रचना करने के लिए ग्लोब के मध्य भाग से प्रकाश डालकर अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल प्राप्त किया जाता है। इन प्रक्षेपों के निर्माण में रेखागणित का सहयोग लिया जाता है; अतः इन्हें ज्यामितीय या अनुदृष्टि प्रक्षेप भी कहते हैं।
(ख) असन्दर्श प्रक्षेप-इन प्रक्षेपों की रचना गणित के सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है। अतः इन्हें गणितीय या अभौतिक प्रक्षेप भी कहते हैं।

2. उपयोग के आधार पर-उपयोग की दृष्टि से प्रक्षेपों को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(क) शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में क्षेत्रफल तथा मापक शुद्ध रहता है, उन्हें शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन, वितरण तथा राजनीतिक मानचित्रों की रचना में किया जाता है।
(ख) शुद्ध आकृति प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में विभिन्न प्रदेशों की आकृतियाँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध आकृति प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न देशों के मानचित्र, जलधाराओं की प्रवाह दिशा, वायुमार्ग तथा पवन की प्रवाह दिशा दर्शाने के लिए किया जाता है। ऐसे प्रक्षेपों का क्षेत्रफल प्रायः अशुद्ध रहता है।
(ग) शुद्ध दिशा प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में सभी दिशाएँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध दिशा प्रक्षेप
कहते हैं। इन प्रक्षेपों के मध्य से देखने पर प्रत्येक ओर शुद्ध दिशा का ज्ञान होता है, परन्तु यह दिशानुरूपता केन्द्र के निकटवर्ती क्षेत्रों तक ही रहती है। उत्तर-दक्षिण दिशाओं में इनका प्रसार अधिक होता है। इन प्रक्षेपों का उपयोग नाविकों के लिए बहुत ही लाभप्रद होता है। वायुमार्ग, जलमार्ग तथा स्थलमार्ग प्रदर्शित करने हेतु इन्हीं प्रक्षेपों का उपयोग किया जाता है।

3. रचना के आधार पर-रचना प्रक्रिया के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया जा सकता है
(क) शंक्वाकार प्रक्षेप,
(ख) बेलनाकार प्रक्षेप,
(ग) शिरोबिन्दु प्रक्षेप,
(घ) परम्परागत अथवा रूढ़ प्रक्षेप (चित्र 4.2)।

प्रक्षेप की विशेषताएँ

विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपों में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होती हैं|

  1. एक उत्तम प्रक्षेप में शुद्ध दिशा, शुद्ध क्षेत्रफल, शुद्ध आकृति, शुद्ध मापक जैसे ही गुण नहीं होते और उसकी रचना भी सरल होती है।
  2. कोई भी प्रक्षेप सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता, इसीलिए विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रक्षेपों की रचना की जाती है।
  3. प्रत्येक प्रक्षेप में अक्षांश रेखाएँ विषुवत् रेखा के समान्तर तथा देशान्तर रेखाएँ उत्तर-दक्षिण ध्रुवों | की ओर प्रसारित होती हैं।
  4. प्रत्येक प्रक्षेप अक्षांश व देशान्तर रेखाओं का जाल होता है।
  5. प्रक्षेप में दो देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी चाप कहलाती है, जबकि दो अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी पेटी कहलाती है।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (9)
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (10)
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (11)
चित्र 4.2-रचना एवं प्रकाश स्थिति के आधार पर प्रक्षेप के विभिन्न प्रकार।

(ii) कौन-सा मानचित्र प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लिए बहुत उपयोगी होता है। इस प्रक्षेप की सीमाओं एवं उपयोगों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-नौसंचालन उद्देश्य के लिए मर्केटर प्रक्षेप बहुत उपयोगी होता है। इस प्रक्षेप की रचना सन् 1569 में एक डच मानचित्रकार जेरार्डस मर्केटर ने की थी। यह एक यथाकृतिक प्रक्षेप है, जिसमें आकृति को सही बनाए रखा जाता है (चित्र 4.3)।.

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (12)
चित्र 4.3-मर्केटर प्रक्षेप : सीधी रेखाएँ रंब रेखा तथा वक्र रेखाएँ बृहत् वृत हैं।

सीमाएँ-1. इस प्रक्षेप में ध्रुव के निकटवर्ती देशों का आकार वास्तविक आकार से अधिक हो जाता है, क्योंकि देशान्तर एवं अक्षांशों के सहारे मापनी का विस्तार उच्च अक्षांशों पर तीव्रता से बढ़ता है।
2. इस प्रक्षेप में ध्रुवों को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है क्योंकि 90° समान्तर एवं याम्योत्तर रेखाएँ अनन्त होती हैं।

उपयोग-1. यह विश्व के मानचित्र के लिए बहुत ही उपयोगी है तथा ऐटलस मानचित्रों को बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
2. यह समुद्र एवं वायुमार्गों पर नौसंचालन के लिए बहुत ही उपयोगी है।
3. इस प्रक्षेप का उपयोग अपवाह प्रतिरूपों, समुद्री धाराओं, तापमान, पवनों एवं उनकी दिशाओं, पूरे विश्व में वर्षा का वितरण इत्यादि को मानचित्र पर प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

(iii) एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण क्या हैं तथा उसकी सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-एक मानक अक्षांश वाला शंकु प्रक्षेप
इस प्रक्षेप की आकृति शंकु की भाँति होती है। इसके निर्माण के लिए कागज को ग्लोब परे शंकु के आकार में मोड़कर लपेटा जाता है। कागजरूपी शंकु जिस स्थान पर ग्लोब को स्पर्श करता है, उसे ही प्रामाणिक अक्षांश या मानक अक्षांश अथवा प्रधान अक्षांश कहा जाता है, क्योंकि इस अक्षांश की लम्बाई प्रक्षेप में उतनी ही होती है जितनी इस मापक पर बने ग्लोब पर सम्बन्धित अक्षांश की। चूँकि इस प्रक्षेप में ग्लोब के मध्य में रखे गए प्रकाश द्वारा प्रक्षेपित अक्षांश तथा देशान्तरों का रेखा-जाले प्राप्त किया। जाता है; अतः सभी देशान्तर शंकु के शीर्षबिन्दु से बाहर की ओर प्रसारित होते हैं।

एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की विशेषताएँ

  1. शंकु प्रक्षेप की रचना अत्यन्त सुगम तथा सरल है।
  2. इस प्रक्षेप में सभी देशान्तर रेखाओं पर मापक शुद्ध रहता है।
  3. इस प्रक्षेप में प्रामाणिक अक्षांश के सहारे मापक तथा क्षेत्रफल दोनों ही शुद्ध रहते हैं।
  4. इस प्रक्षेप में मानचित्र को अलग-अलग भागों में बाँटकर भी बनाया जा सकता है।
  5. इस प्रक्षेप में एक ही गोलार्द्ध को प्रदर्शित किया जा सकता है।
  6. इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध नहीं रहता है।
  7. इस प्रक्षेप में मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा के सहारे वाले भागों को छोड़कर शुद्ध आकृति का | गुण भी नहीं पाया जाता है।
  8. इस प्रक्षेप में ध्रुव अपनी वास्तविक स्थिति से ऊपर प्रकट किया जाता है।
  9. शंकु प्रक्षेप पर सम्पूर्ण विश्व के मानचित्र का प्रदर्शन करना सम्भव नहीं है।

एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की सीमाएँ
शंकु प्रक्षेप का उपयोग पूर्व-पश्चिम दिशा में विस्तृत समशीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के लिए अधिक किया जाता है। इसमें वे छोटे-छोटे प्रदेश, जिनका विस्तार उत्तर-दक्षिण कम तथा पूर्व-पश्चिम अधिक होता है, सुगमता से प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इसी कारण डेनमार्क, हॉलैण्ड, पोलैण्ड, ब्रिटेन आदि । देशों के लिए यह प्रक्षेप सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।

महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

कुछ चुने हुए मानचित्र प्रक्षेप (पाठ्य-पुस्तक)
1. एक मानक अक्षांश रेखा वाला शंकु प्रक्षेप
उदाहरण-10° उ० से 70° उ० अक्षांशों तथा 10° पू० से 130° पू० देशान्तरों के बीच घिरे हुए एक क्षेत्र के लिए एक मानक समान्तर के साथ शंकु प्रक्षेप बनाएँ, जबकि मापनी 1: 25,00,00,000 है एवं अक्षांशीय तथा देशान्तरीय अन्तराल 10° है।
गणना-पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच

नोट-प्रक्षेप की गणना के अन्तर्गत पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

पृथ्वी का वास्तविक अर्द्धव्यास/प्रक्षेप की मापनी ।

पृथ्वी का वास्तविक अर्द्धव्यास 25,16,66,200 या 63,50,00,000 सेमी है। इसे गणना के लिए 25,00,00,000 इंच या 64,00,00,000 सेमी मानते हैं। अतः प्रस्तुत पुस्तक में 25,00,00,000 इंच को ही गणना का आधार माना गया है।

मानक अक्षांश 40° उत्तर है (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70), क्योंकि दिए गए उदाहरण के अन्तर्गत 40° ही मध्य में स्थित है।

मध्य देशान्तर 70° पूर्व है क्योंकि दिए गए विस्तार को देखने पर (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100, 110, 120, 130) 70° पूर्व ही मध्य में स्थित है।

रचना विधि-1.

  • इंच त्रिज्या वाला एक वृत्त खींचें जिसमें कोण COE 10° तथा BOE एवं AOD 40° मानक अक्षांश बनाएँ।
  • एक स्पर्श रेखा को B से बढ़ाकर P तथा A से बढ़ाकर P तक खींचें ताकि शंकु की दो भुजाएँ AP तथा BP ग्लोब को स्पर्श करें तथा 40° उ० पर मानक समान्तर का निर्माण करें।
  • चाप दूरी CE अक्षांशों के मध्य के अन्तराल को दर्शाता है। इस चाप दूरी के अनुसार एक अर्द्धवृत्त खींचें।
  • OP से OB पर लम्ब XY खींचें।
  • एक अन्य उत्तर-दक्षिण रेखा पर मानक अक्षांश बनाने के लिए BP दूरी का प्रयोग किया जाता है।
  • उत्तर-दक्षिण रेखा मध्य देशान्तर रेखा होती है।
    अन्य अक्षांश व देशान्तर रेखाओं की रचना को चित्र 4.4 देखकर पूरा किया जा सकता है।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (1)

2. बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रक्षेप
बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रेक्षप को लैम्बर्ट प्रक्षेप के नाम से भी जाना जाता है। इसे ग्लोब के विषुवतीय वृत्त पर स्पर्श बेलन पर पड़ने वाली अक्षांश किरणों के प्रक्षेपण के आधार पर बनाया जाता है। इस प्रक्षेप में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। ध्रुवों को विषुवत् रेखा के समान एवं समान्तर बनाया जाता है, इसलिए उच्च अक्षांशों वाले क्षेत्रों के आकार बहुत अधिक विकृत हो जाते है।

उदाहरण – विश्व का एक बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप बनाइए जिसमें मानचित्र की प्रतिनिधि ‘भिन्न 1: 30,00,00,000 है तथा अक्षांशीय एवं देशान्तरीय मध्यान्तर मध्ये 15° है।
गणना – पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 30,00,00,000 } [/latex] = 0.83 इंच
विषुवत् वृत्त की लम्बाई 2πR = [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 0.83 }{ 7 } [/latex] = 5.23 इंच

रचना विधि –

  1. 0.83 इंच अर्द्धव्यास का एक वृत्त खींचें।
  2. अन्य अक्षांश (उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्थों के लिए) 15°, 30°, 45°, 60°, 75° तथा 90° के | लिए वृत्त के मध्य बिन्दु से कोण बनाएँ।
  3. 0° कोण या केन्द्रीय रेखा के वृत्त की परिधि पर मिले बिन्दु से एक सीधी रेखा बनाइए, जिसकी | लम्बाई 5.23 इंच हो। यही रेखा प्रक्षेप पर विषुवत् रेखा को प्रदर्शित करती है।
  4. अन्य अक्षांश रेखा की रचना भी इस प्रकार पूरी की तथा इनको विषुवत् रेखा की लम्बाई के बराबर तथा समान्तर बनाया।
  5. देशान्तर रेखाएँ बनाने के लिए विषुवत् रेख़ को 24 बराबर भागों में विभाजित कर लम्बवत् । समान्तर रेखाएँ खींचीं।
  6. नीचे दिए गए चित्र 4.5 के अनुसार प्रक्षेप को पूरा करें।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (2)

3. मटर प्रक्षेप
यह प्रक्षेप एक गणितीय सूत्र पर आधारित है। इसलिए यह एक यथाकृतिक प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप पर किसी भी दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली सीधी रेखा एक नियत दिस्थिति को प्रकट करती है, जिसे रम्ब रेखा या लेक्सोड्रोम कहते हैं।

उदाहरण – विश्व मानचित्र के लिए 1 : 25,00,00,000 की मापनी पर तथा 15° के मध्यान्तर पर एक ‘मर्केटर का प्रक्षेप खींचें।
गणना-पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या या अर्द्धव्यास
= [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच
विषुवत् वृत्त की लम्बाई 2πR = [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 1 }{ 7 } [/latex] = 6.28 इंच

रचना विधि –

  1. 6.28 इंच की एक रेखा EQ खींचे जो कि विषुवत् रेखा दर्शाती हो।
  2. विषुवत् रेखा के दोनों बिन्दु EQ पर उत्तर-दक्षिण लम्ब खींचें।
  3. खींचे गए लम्ब के दोनों ओर अन्य अक्षांश के बीच की दूरी के चिह्न लगाएँ। इस दूरी की गणना के | लिए अग्रांकित सारणी का प्रयोग करें

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 13
4.देशान्तर रेखा बनाने के लिए भूमध्य रेखा पर प्रक्षेप में दिए गए मध्यान्तर 15° के आधार पर 360/15 = 24 बराबर दूरी वाली रेखाएँ खींचें तथा चित्र 4.6 के आधार पर प्रक्षेप की रचना पूर्ण करें।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (4)

विशेषताएँ –

  • यथाकृति एवं शुद्धदिशा प्रक्षेप है। इसमें अक्षांश व देशान्तर दो सीधी रेखाएँ होती हैं तथा वे एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  • अक्षांशों के बीच की दूरी ध्रुवों की ओर बढ़ती जाती है, जबकि देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी प्रत्येक अक्षांश पर बराबर होती है।
  • इस पर वास्तविक आकृति प्रदर्शित होती है, किन्तु अक्षांश वाले स्थानों की आकृति में विकृति आ जाती है।
  • वितरण मानचित्रों एवं एटलस के लिए यह उपयोगी प्रक्षेप है।

क्रियाकलाप

  1. 30° उ० से 70° उ० तथा 40° प० से 30° प० के बीच स्थित एक क्षेत्र का रेखाजाल एक मानक | अक्षांश वाले सामान्य शंकु प्रक्षेप पर बनाइए, जिसकी मापनी 1: 20,00,00,000 तथा मध्यान्तर 10° है।
  2. विश्व का रेखाजाल बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप पर बनाइए, जहाँ प्रतिनिधि भिन्न 1 : 15,00,00,000 तथा मध्यान्तर 15° है।
  3. 1: 25,00,00,000 की मापनी पर एक मर्केटर प्रक्षेप का रेखाजाल बनाइए, जिसमें अक्षांश एवं देशान्तर 20° के मध्यान्तर पर खींची जाएँ।

उत्तर – नोट – दिए गए उदाहरणों की सहायता से विद्यार्थी क्रियाकलाप स्वयं पूर्ण करें।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए प्रदर्शक भिन्न 1/25,00,00,000 पर एक मानक अक्षांश वाले शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना कीजिए, जवकि
प्रामाणिक अक्षांश = 45° दक्षिण
प्रक्षेपान्तर = 15°
देशान्तरीय विस्तार = 30° दक्षिण से 60° दक्षिण तक
अक्षांशीय विस्तार = 15° पश्चिम से 105° पूर्व तक।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (5)

रचना–सर्वप्रथम 1 इंच की त्रिज्या का एक अर्द्धवृत्त बनाइए, जिसका केन्द्र अ है। अ ब लम्ब खींचिए। अ से 45° तथा 15° के कोण बनाइए जो क्रमशः अ स तथा अ द हों। न द की दूरी से अ को केन्द्र मानकर एक चाप लगाइए। च बिन्दु से अ न आधार रेखा के समानान्तर च छ रेखा खींचिए। स बिन्दु से क स समकोण बनाती हुई एक स्पर्श रेखा खींचिए।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (6)

अब प्रक्षेप निर्माण हेतु कोई सीधी रेखा क ख लीजिए। ख को केन्द्र मानकार क स की दूरी से एक चाप . लगाइए, जो 45° दक्षिणी अक्षांश अर्थात् मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा को प्रकट करेगा। द न की दूरी से चाप के दोनों ओर के अक्षांशों की दूरियाँ काट लीजिए तथा ख को केन्द्र मानकर अक्षांशों के चाप लगाइए। च छ की दूरी से प्रामाणिक अक्षांश रेखा पर दोनों ओर देशान्तर रेखाएँ काटिए तथा उन्हें ख बिन्दु से सीधा मिला दीजिए। चित्र 4.7 की भाँति अक्षांशों एवं देशान्तरों का अंकन कीजिए। यह प्रक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप को प्रकट करेगा।

प्रश्न 2. प्रदर्शक भिन्न [latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 25,00,00,000 } [/latex] पर एक समक्षेत्रफल प्रक्षेप की रचना कीजिए, जबकि 25,00,00,000 प्रक्षेपान्तर 30°दिया हो।
हल – वृत्त की त्रिज्या (R) = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच
भूमध्य रेखा की लम्बाई = 2πR
= [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 1 }{ 7 } [/latex] = [latex s=2]\\ \frac { 44 }{ 7 } [/latex] =6.3 इंच
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 14

रचना – 1 इंच की त्रिज्या का अर्द्धवृत्त बनाइए। केन्द्रक से दोनों ओर प्रक्षेपान्तर के बराबर 30° के कोण बनाइए। क ख को च तक 6.3 इंच बढ़ाइए। खच से दोनों ओर लम्ब उठाइए तथा उस पर प्रत्येक कोण के कटान बिन्दु से विषुवत् रेखा के समानान्तर रेखाएँ खींचिए। ख च का लम्बार्द्धक खींचिए। लम्बार्द्धक के दोनों ओर की प्रत्येक रेखा को 6′ समभागों में विभक्त कीजिए तथा लम्बे रेखाएँ खींचकर देशान्तर रेखाएँ प्रदर्शित कीजिए। चित्र 4.8 के अनुसार अक्षांशों एवं देशान्तरों के जाल पर अंश लिखिए।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) img 6 (7)

प्रश्न 3. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ एवं उपयोगिता बताइए।
उत्तर- समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ

  1. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध रहता है।
  2. विषुवत् रेखा की लम्बाई मापक के अनुसार बनाई जाती है; अतः उस पर एक मापक तथा आकृति दोनों ही शुद्ध रहती हैं।
  3. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप में पूर्व-पश्चिम फैलावे जिस अनुपात में बढ़ता है, उसी अनुपात में उत्तर-दक्षिण फैलाव घटता जाता है, फलतः मापक सन्तुलित हो जाता है। यही कारण है कि शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप बना रहता है।
  4. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के प्रदर्शन करने में यह प्रक्षेप सर्वोत्तम है।।
  5. बेलनाकार प्रक्षेप पर विश्व का मानचित्र भली-भाँति प्रदर्शित किया जा सकता है।
  6. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों के लिए यह प्रक्षेप अनुपयोगी है।
  7. इस प्रक्षेप में ध्रुव, विषुवत् रेखा की लम्बाई के बराबर दूरी द्वारा ही प्रदर्शित किए जाते हैं, जबकि वास्तव में ग्लोब पर ध्रुव एक बिन्दु-मात्र होता है।
  8. बेलनाकार प्रक्षेप शुद्ध दिशा प्रक्षेप नहीं है।
  9. विषुवत् रेखा के अतिरिक्त अक्षांश रेखाओं पर मापक शुद्ध नहीं रहता है और देशान्तरों पर भी मापक शुद्ध नहीं रहता है, बल्कि उसका फैलाव हो जाता है।
  10. यह शुद्ध आकृति प्रक्षेप नहीं है।

समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की उपयोगिता

प्रायः बेलनाकार प्रक्षेप का प्रयोग विश्व का मानचित्र बनाने में किया जाता है। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के गनचित्र टपी प्रक्षेप पर बनाए जाते हैं। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न कृषि उपजों; जैसे-रबड़, चाय, गन्ना, चावल, कहवा, गर्म मसाले आदि का उत्पादन एवं वितरण इसी प्रक्षेप : पर प्रदर्शित किया जाता है।

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. प्रक्षेप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – दीर्घवृत्तीय या अण्डाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग को समतल कागज पर चित्रित करने की विधि को प्रक्षेप कहते हैं। दूसरे शब्दों में, अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के जाल को प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 2. प्रक्षेप के निर्माण का आधार बताइए।
उत्तर – प्रक्षेप के निर्माण का आधार प्रकाश और गणित की गणना है।

प्रश्न 3. एक उत्तम प्रक्षेप में कौन-कौन से लक्षणे होते हैं?
उत्तर – एक उत्तम प्रक्षेप में निम्नलिखित लक्षण होते हैं(क) सरल रचना, (ख) शुद्ध दिशा, (ग) शुद्ध क्षेत्रफल, (घ) शुद्ध आकृति तथा (ङ) शुद्ध मापक।

प्रश्न 4. शंक्वाकार प्रक्षेप का क्या उपयोग है?
उत्तर – शंक्वाकार प्रक्षेप का उपयोग पूर्व-पश्चिम अधिक विस्तार वाले समशीतोषण प्रदेशों के मानचित्र प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5. बोन प्रक्षेप के निर्माणकर्ता का नाम क्या है?
उत्तर – बोन प्रक्षेप के निर्माणकर्ता फ्रांसीसी मानचित्रकार ‘रिग्रोबर्ट बोन’ हैं।

प्रश्न 6. बोन प्रक्षेप किस प्रक्षेप का संशोधित रूप है?
उत्तर – बोन प्रक्षेप एक प्रामाणिक अक्षांश वाले शंक्वाकार प्रक्षेप को संशोधित रूप है।

प्रश्न 7. बोन प्रक्षेप का उपयोग बताइए।
उत्तर – बोन प्रक्षेप का उपयोग फ्रांस, बेल्जियम तथा भारत जैसे देशों के मानचित्रों की रचना के लिए किया जाता है।

प्रश्न 8. ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप को समदूरी प्रक्षेप क्यों कहा जाता है?
उत्तर – ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी बराबर रहती है; अतः इसे ‘समदूरी’ प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 9. ध्रुवीय प्रक्षेप का प्रयोग किन क्षेत्रों में किया जाता है?
उत्तर – ध्रुवीय प्रक्षेप का अधिकांश प्रयोग 60°से 90° अक्षांशों वाले ध्रुवीय प्रदेशों के प्रदर्शन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 10. बेलनाकार प्रक्षेप क्या है?
उत्तर – बेलन के आकार वाले प्रक्षेप को ‘बेलनाकार प्रक्षेप’ कहते हैं।

प्रश्न 11. बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा की लम्बाई ज्ञात करने का सूत्र क्या है?
उत्तर – बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा की लम्बाई ज्ञात करने का सूत्र 2πR है।

प्रश्न 12. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप का उपयोग बताइए।
उत्तर – समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप विषुवत्रेखीय प्रदेशों (उष्णकटिबन्धीय प्रदेशों) के प्रदर्शन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसमें चाय, चावल, गन्ना, रबड़, कहवा आदि उष्ण प्रदेशों की उपजों का उत्पादन एवं वितरण भली-भाँति प्रदर्शित किया जा सकता है।

प्रश्न 13, गोलीय शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप को ध्रुवीय शिरोबिन्दु क्यों कहते हैं?
उत्तर – समतल कागज को ग्लोब के ध्रुवों पर स्पर्श करने के कारण इसे गोलीय शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 14. प्रधान अक्षांश रेखा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जिस अक्षांश रेखा पर शंकु ग्लोब को स्पर्श करता है, उसे प्रधान अक्षांश रेखा या प्रामाणिक अक्षांश रेखा अथवा मानक अक्षांश रेखा कहते हैं।

प्रश्न 15. स्टीरियोग्रैफिक ध्रुवीय खमध्य प्रक्षेप से क्यों अभिप्राय है?
उत्तर – एक ध्रुव पर प्रकाश डालकर तथा दूसरे पर स्पर्शी कागज रखकर जब अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल प्राप्त किया जाता है तो उसे स्टीरियोग्रैफिक ध्रुवीय खमध्ये प्रक्षेप कहते हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:
(i) पृथ्वी पर दो प्राकृतिक सन्दर्भ बिन्दु कौन-से हैं?
उत्तर-पृथ्वी के अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घूर्णन करने से दो प्राकृतिक सन्दर्भ बिन्दु प्राप्त होते हैं, जो उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव कहलाते हैं।

(ii) बृहत् वृत्त क्या है?
उत्तर-उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव के मध्य विषुवत रेखा को सबसे बड़ा अक्षांश या बृहत् वृत्त कहा जाता है। यह अक्षांश रेखाओं द्वारा बना सबसे बड़ा बृहत् है जो ग्लोब (पृथ्वी) को दो बराबर भागों में बाँटता है। |

(iii) निर्देशांक क्या है?
उत्तर-अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं को सामान्यतः भौगोलिक निर्देशांक (Co-ordinate) कहा जाता है, क्योंकि ये रेखाओं के जाल का एक तन्त्र बनाती हैं, जिस पर हम धरातल के विभिन्न लक्षणों की स्थिति को प्रदर्शित कर सकते हैं। इन निर्देशांकों की सहायता से विभिन्न बिन्दुओं की अवस्थिति, दूरी तथा दिशा को आसानी से निर्धारित किया जा सकता है।

(iv) सूर्य पूर्व से पश्चिम जाता हुआ क्यों दिखाई देता है?
उत्तर–हम जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इसीलिए सूर्य पूर्व में उदय और पश्चिम में अस्त होता है। अतः हमें सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर जाता हुआ दिखाई देता है।

(v) स्थानीय समय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर–किसी देश का स्थानीय समय वहाँ के प्रमुख याम्योत्तर पर होने वाला समय होता है अर्थात् किसी स्थान के देशान्तर पर जब सूर्य ठीक ऊपर होता है तो दोपहर के 12 बजे होते हैं। यह उस स्थान का स्थानीय समय कहलाता है।

प्रश्न 2. अक्षांशों एवं देशान्तरों के बीच अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के मध्य अन्तर
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 1
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 2

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. जब ग्रिनिच पर दोपहर के 12 बजे हैं, तब 90° पूर्व देशान्तर पर स्थत थिम्पू, भूटान का स्थानीय समय क्या होगा? (पा० पु० पृ० सं० 28)
प्रकथन-प्रमुख याम्योत्तर के पूर्व में प्रति 1° देशान्तर पर समय 4 मिनट की दर से बढ़ता है।
उत्तर–ग्रिनिच एवं थिम्पू के बीच का अन्तर = 90° देशान्तर
समय को कुल अन्तर = 90 x 4 = 360 मिनट
= [latex s=2]\\ \frac { 360 }{ 60 } [/latex] = 6 घण्टा।
अत: थिम्पू का स्थानीय समय ग्रिनिच से 6 घण्टे कम आया अर्थात् अपराह्न 6.00 बजे का होगा।

प्रश्न 2. जब ग्रिनिच पर दोपहर के 12 बजे हों, तब 90° पश्चिम देशान्तर पर स्थित न्यू औरलियेंस (अक्टूबर 2005 में कैटरीना तूफान से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला क्षेत्र) का स्थानीय समय क्या होगा? (पा० पु० पृ० सं० 28)
प्रकथन–प्रमुख याम्योत्तर के पश्चिम में 1° देशान्तर पर समय 4 मिनट की दर से घटता है।
उत्तर–ग्रिनिच एवं न्यू औरलियेंस के बीच का अन्तर = 90° देशान्तर
समय का कुल अन्तर = 90 x 4 =360 मिनट
= [latex s=2]\\ \frac { 360 }{ 60 } [/latex] = 6 घण्टा
अत: न्यू औरलियेंस का स्थानीय समय ग्रिनिच से 6 घण्टा कम आया अर्थात् अपराह्न 6.00 बजे का होगा।

प्रश्न 3. मानक याम्योत्तर का चुनाव किस प्रकार किया जाता है? भारत के मानक समय का निर्धारण बताइए। विश्व में कितने समय कटिबन्ध हैं?
उत्तर-मानक याम्योत्तर का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि यह 150° या 7° 30′ द्वारा विभाजित हो, ताकि मानक समय एवं ग्रिनिच माध्य समय के बीच के अन्तर को 1 या आधे घण्टे के गुणांक को बताया जा सके।

भारत के मानक समय का निर्धारण 82° 30′ पू० (E) से किया जाता है, जोकि मिर्जापुर से गुजरती है। अतः भारतीय मानक समय (IST) ग्रिनिच माध्य समय (GMT) से [latex s=2]5 \frac { 1 }{ 2 } [/latex] घण्टे आगे है। (82°30′ x 4) * (60 मिनट) = 5 घण्टे 30 मिनट।.

विश्व के सभी देश अपनी प्रशासनिक सीमाओं के अन्दर तक मानक याम्योत्तर तय करके देश के स्थानीय समय का निर्धारण करते हैं। पूर्व-पश्चिम में अधिक विस्तार वाले देश एक से अधिक याम्योत्तर चुन सकते हैं, जैसा कि रूस, कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में है।

विश्व को मानक याम्योत्तर समय के आधार पर 24 कटिबन्धों में विभाजित किया गया है। (चित्र 3.1)
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 3

प्रश्न 4. किस देशान्तर के समय में 0° देशान्तर से ठीक 12 घण्टे का अन्तर होता है, चाहे प्रमुख याम्योत्तर से पूर्व जाएँ या पश्चिम?
उत्तर-180° देशान्तर पर समय में 0° देशान्तर से ठीक 12 घण्टे का अन्तर होता है। हम जानते हैं कि जहाँ विश्व को 24 टाइम जोन में विभाजित किया गया है, वहीं एक स्थान तो ऐसा होगा जहाँ ग्रिनिच समय से पूरे दिन का अन्तर होगा; अत: ऐसा स्थान, जहाँ से पृथ्वी पर सचमुच दिन का प्रारम्भ होता है, 180° देशान्तर रेखा लगभग उसी स्थान पर स्थित है, जहाँ से अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा गुजरती है। अत: इस देशान्तर के समय में 0° देशान्तर से ठीक 12 घण्टे का अन्तर होता है, चाहे प्रमुख याम्योत्तर से पूर्व जाएँ या पश्चिम।।

प्रश्न 5. सूर्य पूर्व से पश्चिम गोलार्द्ध में जाने में कितना समय लेता है? प्रति घण्टा या प्रति मिनट के आधार पर यह कितनी देशान्तर पार कर लेता है? समझाइए।
उत्तर-पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई 360° देशान्तर अर्थात् एक चक्कर लगभग 24 घण्टे में पूरा करती है। चूंकि 180° देशान्तर प्रमुख याम्योत्तर के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर स्थित है; अत: सूर्य पूर्व से पश्चिमी गोलार्द्धमें जाने में 12 घण्टे का समय लेता है।

इस प्रकार सूर्य पूर्व से पश्चिम प्रति घण्टा 15° देशान्तर या 4 मिनट में 1° देशान्तर को पार कर लेता है। इस आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि जब हम पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हैं तब स्थानीय समय बढ़ता है और जब हम पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ते हैं तब समय घटता है।

प्रश्न 6. ग्लोब (पृथ्वी) पर अक्षांश समान्तर एवं देशान्तर याम्योत्तर को चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-चित्र 3.2 एवं 3.3 का अवलोकन कीजिए।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 4

प्रश्न 7. भारत का मानक समय ज्ञात करो जबकि ग्रीनविच पर दोपहर के 12.00 बजे हैं। भारत का मानक समय इलाहाबाद में [latex s=2]82\frac { { 1 }^{ O } }{ 2 } [/latex] पूर्व से मापा जाता है।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 5

प्रश्न 8. अक्षांश समान्तर क्या हैं?
उत्तर–वे काल्पनिक रेखाएँ जो भूमध्य रेखा के समान्तर पूर्व से पश्चिम को खिंची हुई मानी गई हैं, अक्षांश समान्तर कहलाती हैं (चित्र 3.2)।

प्रश्न 9. देशान्तर याम्योत्तर क्या है?
उत्तर–उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाओं को देशान्तर याम्योत्तर कहते हैं। (चित्र 3.3)।

प्रश्न 10. पृथ्वी पर दो अक्षांशों के बीच की दूरी लगभग कितनी होती है?
उत्तर–दो अक्षांशों के बीच की दूरी लगभग 111 किलोमीटर होती है।’

प्रश्न 11. याम्योत्तर के बीच की दूरी विषुवैत वृत्त, ध्रुव तथा मध्य में कितनी होती है?
उत्तर-याम्योत्तर के बीच की दूरी सर्वत्र समान नहीं होती। यह दूरी विषुवत् वृत्त पर अधिकतम (111.3 किलोमीटर), ध्रुवों पर न्यूनतम (0 किलोमीटर) तथा मध्य में अर्थात् 45° अक्षांश पर यह 79 किलोमीटर होती है।

प्रश्न 12. ग्लोब के लिए 20° दक्षिणी अक्षांश समान्तर आप किस प्रकार बनाएँगे। चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-एक किसी भी आकार का वृत्त बनाएँ तथा केन्द्र में से एक क्षैतिज रेखा खींचकर इसे दो बराबर भागों में बाँटें। यह आपकी विषुवत् रेखा होगी। इस वृत्त पर चॉदा (प्रोटेक्टर) को इस प्रकार से रखें कि चॉदा की 0° एवं 180° की रेखा वृत्त के मध्य खिंची रेखा से मिल जाए। अब 20° दे० (S) दर्शाने के लिए वृत्त के निचले आधे भाग में विषुवत् वृत्त से 20° का कोण बनाते हुए पूर्व एवं पश्चिम में दो बिद् लगाएँ जैसा कि चित्र 3.5 में दिखाया गया है। कोण की दोनों भुजाएँ वृत्त के दो बिन्दुओं को काटती हैं। विषुवत् वृत्त के समान्तर रेखा खींचते हुए इन दो बिन्दुओं को मिला दें। यही 20° दे० (S) होगा।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) img 6

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (अक्षांश, देशांतर और समय), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.