UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 1 खून का रिश्ता

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name खून का रिश्ता
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 1 खून का रिश्ता

खून का रिश्ता – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2018, 13)

बाबूजी एवं वीरजी में वैचारिक मतभेद
आधुनिक दृष्टिकोण वाला वीरजी एम. ए पास नवयुवक है, जो सगाई, ब्याह आदि अवसरों पर धन की बर्बादी एवं किसी भी प्रकार के आडम्बर का विरोधी है, जबकि परम्परागत सोच वाले बाबूजी आडम्बर प्रिय एवं दहेज के समर्थक लगते हैं। पीरजी अपनी सगाई में किसी तरह का आडम्बर एवं दिखावा पसन्द नहीं करता है, इसलिए वह सदा रुपये में सगाई करने तथा सगाई में केवल बाबूजी के जाने के पक्ष में है, जबकि बाबूजी अपने धनी सम्बन्धियों को सगाई में ले जाने के पक्ष में हैं। वीरजी बाबूजी की बात का विरोध करते हुए अपनी बात पर अडिग रहते हैं।

चाचा मंगलसेन का तय हुआ जाना
जब बाबूजी ने पगड़ी खोल कर अपने सफ़ेद बालों की दुहाई देते हुए कुछ लोगों को साथ ले जाने की बात कही, तो वीरजी अपने चाचा मंगलसेन को बाबूजी के साथ गाने के लिए कहता है। मंगलसेन बाबूजी का चचेरा भाई है, जो फौज से रिटायर होने के बाद बाबूजी के साथ ही रहता है और घर का काम करता है। गरीब मंगलसेन को बाबूजी बात पर अपमानित करते हैं तथा उसे उचित सम्मान नहीं देते, जो वीरजी को बुरा लगता है। मंगलसेन को विश्वास था कि वह सगाई में ज़रूर जाएगा और उसका विश्वास साकार हो गया।

समधी जी द्वारा सगाई देना
बाजी और मंगलसेन तैयार होकर अपने होने वाले समधी के घर पहुंचे, जहां उन दोनों की खूब आवभगत हुई। सगाई देने के समय बादाम से भरे कितने ही थाल समधी जी द्वारा लाए गए पर बाबूजी ने केवल सवा रुपये लेने की ही बात कही। अन्त में समधी जी अन्दर से चाँदी का एक थाल लाए जिसमें चाँदी की तीन कटोरियों एवं चॉदी के तीन चम्मच रखे हुए थे। एक कटोरी में केसर, दूसरी में राँगला धागा और तीसरी में चाँदी का रुपया एवं चवन्नी रखी हुई थी।

वापस आने पर एक चम्मच गायब मिलना
थाली को अपने कन्धों पर रखकर मंगलसेन घर पहुँचा। वीरजी की माँ ने रुमाल हटाकर देखा कि चॉदी की कटोरियाँ तो तीन थीं, लेकिन चम्मच दो ही थे। सभी को आश्चर्य हुआ की तीसरा चम्मच कहाँ गया?

मंगलसेन की तलाशी होना
चाँदी का एक चम्मच गायब हो जाने पर सभी को गरीब मंगलसेन पर सन्देह हुआ। मंगलसेन द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद आँगन में उसे खड़ा कर उसकी तलाशी ली गई, तो उसकी जेब में मैला रुमाल, रीक्षियों की गल्ली, माचिस और छोटी-सी पेन्सिल के अलावा कुछ न मिला। तलाशी लिए जाने से मंगलसेन अत्यन्त अपमानित महसूस करने लगा। उसकी साँस फूलने लगी और वह खड़-खड़ा गिर गया। घर के नौकर सन्तू ने उसे छज्जे पर लिटा दिया।

गायब चम्मच का मिल जाना
ढोलक की आवाज़ सुनकर पड़ोस की महिलाएँ घर में इकट्ठा होने लगीं, तभी वीरजी का साला आकर चोंदी को चम्मच मनोरमा को देकर चला गया। दूसरी और सगाई में जाने सम्बन्धी मुद्दे पर सन्तू ने मंगलसेन से शर्त लगाई थी, जिसे वह हार चुका था। सन्तू कहता है कि तनख्वाह मिलने पर वह शर्त की। रकम मंगलसैन को दे देगा। इसी बिन्दु पर कहानी समाप्त हो जाती है, लेकिन खून का रिश्ता तार-तार हो जाता है। मंगलसेन को यह समझ नहीं आता कि सगाई में उसका जाना उसके लिए सम्मान का सूचक था या अपमान का. क्योंकि सगाई में जाने के कारण ही उस पर चोरी का आरोप लगाया गया और अपमानित करके उसकी तलाशी ली गई।

‘खून का रिश्ता’ कहानी की समीक्षा/विवेचना

(2018, 17, 14)

वर्तमान समाज में टूटते रिश्तों की वास्तविकता बताने वाली कहानी ‘खून का रिश्ता’ की समीक्षा इस प्रकार है।

कथानक/विषय-वस्तु
बाबूजी का बेटा वीरजी अपनी सगाई मात्र सवा रुपये में करवाना चाहता है और सगाई में केवल एक आदमी को भेजना चाहता है, परन्तु उसके माता-पिता अपने पुत्र की सगाई अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार धूमधाम से करना चाहते है, किन्तु उनका बेटा ऐसा नहीं करने देता है। वीरजी के एक चाचा मंगलसेन वृद्ध एवं विकलांग है, जो अपने भतीजे की सगाई में जाने के सपने देखते हैं। उनका नौकर सन्तु जब उनसे कहता है कि बाबूजी आपको सगाई में नहीं ले जाएँगे, तो वे उदास हो जाते हैं, कि अन्ततः उनकी भाभी, वीरजी और बाबूजी उन्हें ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

उनके पास सगाई में जाने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं। फिर उनकी भाभी ने घुला हुआ पाजामा, बाबूजी की एक पगड़ी देकर उन्हें समधी के यहाँ जाने के लिए तैयार किया। वहाँ जाकर उनका सपना पूरा हो गया। सगाई में समधी के यहाँ से चॉदी की तीन कटौरी और दो चम्मच देखकर वीरजी की माँ को गुस्सा आ गया। वे बोलीं-‘समधी जी ने तीन चम्मच दिए होंगे; किन्तु एक चम्मच कहाँ गायब हो गया? सबको मंगलसेन पर ही शक होता है कि उन्होंने ही हेराफेरी की है। बाबूजी ने उन्हें दण्ड देने की भी बात की। कुछ ही देर में वीरजी का साला एक चम्मच लाकर दे देता है। इस प्रकार मंगलसेन पर लगा आरोप झूठा साबित हो जाता है तथा खून का रिश्ता टूटते टूटते जुड़ जाता है। इस प्रकार कहानी का कथानक विचारोत्तेजक एवं यथार्थपूर्ण है। मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का उन्मूलन कर देना भीष्म साहनी की चिन्तन कला का अद्भुत गुण है। कहानी में सजीवता तथा तारतम्यता विद्यमान है।

पात्र और चरित्र-चित्रण
‘खून का रिश्ता’ कहानी में मानवीय दृष्टिकोण से सामाजिक एवं पारिवारिक सम्बन्धों की विवेचना की गई है। यह एक प्रकार से चरि-प्रधान कहानी है, जिसमें मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही मुख्य विषय है। कहानी के प्रमुख पात्र के रूप में वीरजी की चिन्तन-शैली को आधुनिक भारतीय जागरूक नवयुवक के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपनी भावी ज़िन्दगी को सँवारने के लिए दहेज रहित विवाह का आश्चर्यजनक निर्णय लेता है। वीरजी की माँ एक स्वस्थ एवं सन्तुष्ट गृहिणी की भूमिका में हैं, जिनका चरित्र परिस्थितियों के साथ-साथ विकास पाता है। वह कभी खून के रिश्ते की गरिमा को पहचानती एवं महत्त्व देती हैं, तो कभी उसकी उपेक्षा भी करती हैं। प्रस्तुत कहानी में चरित्र की सूक्ष्मता एवं चारित्रिक भगिमाओं का वैशिय यानि विविधतापूर्ण चित्रण दर्शनीय है। कहानी में पात्रों की यथार्थता को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। चरित्र-चित्रण में विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

कथोपकथन अथवा संवाद
प्रस्तुत कहानी के संवाद पूर्ण नियन्त्रित तथा कौतूहल को उजागर करने वाले हैं। कथाकार ने इस कहानी में मुहावरों का प्रयोग करके संवादों को उत्कृष्ट बनाया है। वीरजी के दहेज विरोधी और माता-पिता के वात्सल्यपूर्ण चरित्र को उजागर करते संवाद है-” मैंने कह दिया, माँ! मेरी सगाई सवा रुपये में होगी और केवल बाबूजी सगाई डलवाने जाएँगे। जौ मंजूर नहीं हो तो अभी से “बस-बस, आगे कुछ मत कहना।” माँ ने झट से टोकते हुए कहा। फिर क्षुब्ध होकर बोली, “जो तुम्हारे मन में आए करो। आजकल कौन किसी की सुनता है। छोटा-सा परिवार और इसमें भी कभी कोई काम ढंग से नहीं हुआ। मुझे तो पहले ही मालूम था तुम अपनी करोगे……………………. ।”

देशकाल और वातावरण
कहानी में देशकाल और वातावरण में आँचलिक और स्थानीय रंग दिखता है। घटना और उससे सम्बन्धित परिस्थितियों का चित्रण सजीव रूप से तथा क्रमानुगत ढंग से किया गया है। समाज के टूटते सम्बन्धों का यथार्थ चित्रण वर्तमान वातावरण के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। करुणा, आश्चर्य, प्रेम, वात्सल्य आदि की सरसता वातावरण के प्रभाव से सजीव हो गई है।

भाषा-शैली
भीष्म साहनी ने ‘खून का रिश्ता” कहानी को सरल एवं बोधगम्य भाषा द्वारा प्रभावशाली बनाया है। सूक्ष्म मानवीय सम्बन्धों को उजागर करने के लिए भाषा की सांकेतिकता से उसकी व्यंजना शक्ति बढ़ाई गई है। इस कहानी में शब्दों का चयन क्रियाओं के वेग और अन्तर्द्वन्द्व के विचार से किया गया है। इसमें अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। कहानी की सभी शैलियों, शब्दों का चयन प्रभावशाली ढंग से किया गया है। इस कहानी में बाबूजी की शैली अधिकांश स्थानों पर ओजपूर्ण है। नौकर सन्तू की शैली मंगलसेन के प्रति व्यंग्य प्रधान है।

उद्देश्य
प्रत्येक कहानी के मूल में एक केन्द्रीय भाव होता है, जो कहानी को मौलिक आधार प्रदान करता है। यही कहानी का उद्देश्य कहलाता है। साहनी जी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन करने, मानवता तथा भाईचारे की भावना को सुदृढ़ करने आदि पर जोर दिया है। व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता, ममत्व और समता भाव संचारित करना कहानी का मूल उद्देश्य है। इस कहानी में वीरजी की माँ द्वारा अपने बेटे की खुशी के लिए समस्त आदर्शों का त्याग करना पाठकों को चकित करने वाला है।

शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक कथानुसार सटीक व संगत है। यह शीर्षक कहानी के भाव, विचार, उद्देश्य व कथावस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक व तर्कसंगत है। सम्पूर्ण कथा शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस कहानी के शीर्षक में व्यापकता, प्रतीकात्मकता का गुण भी विद्यमान है। इसी के साथ इस कहानी का शीर्षक सरल, आकर्षक, मौलिक, नवीन व कौतूहलपूर्ण बन जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि शीर्षक की दृष्टि से यह कहानी सार्थक सिद्ध होती हैं।

वीरजी का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 16, 14, 12)

मानवीय संवेदनाओं के कथा शिल्पी भीष्म साहनी की कहानी ‘खून का रिश्ता’ में वीरजी प्रमुख पात्र है, जिसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं।

शिक्षित युवक
वीरजी एक आदर्श नवयुवक है, जो सही अर्थों में शिक्षित हैं। वह नवयुवक घर परिवार के लगभग सभी सदस्यों का विरोध करता हुआ अकेला महज के विरोध विद्रोह करता है तथा सभी को अपना सुसंगत निर्णय मानने के लिए बाध्य करता है। उसके कहने पर ही निर्धन चाचा मंगलसेन उसके पिताजी के साथ समधी के घर सगाई लेकर जा पाते हैं।

आडम्बर एवं दहेज में विश्वास नहीं
वीरजी सही अर्थों में शिक्षित एवं समझदार नवयुवक है। वह अपने विवाह में किसी भी तरह का आज़म्बर या दिखावापन पसन्द नहीं करता है। वह दहेज के रूप में शगुन का सिर्फ सवा रुपया स्वीकार करता है। वह विवाह में फिजूलखर्ची से भी दूर राना चाहता है। यही कारण है कि वह केवल पिताजी को और उनके अत्यधिक आग्रह के बाद साथ में चाचाजी को सगाई में जाने देता हैं।

समानता की भावना का पोषक
वीरजी एक सहदय युवक है, जो अपने गरीब चाचा मंगलसेन को भी बराबर का सम्मान दिलवाता है। उसी की ज़िद का परिणाम होता है कि पिताजी को उसकी बात मानकर मंगलसेन को ले जाने के लिए राज़ी होना पड़ता है। वह धनी रिश्तेदारों की जगह गरीब मंगलसेन को अधिक प्राथमिकता देता है।

व्यवहार कुशल एवं मृदु भाषी
वीरजी एक व्यवहारकुशल युवक है और घर के सभी सदस्यों के प्रति उसका व्यवहार बड़ा ही मृदु है। वह अपने गरीब चाचा मंगलसेन को अत्यधिक सम्मान देता है तथा झुककर उनके पाँव छूता है।

अपनी संगिनी के प्रति स्नेहिल भावना
वीरजी अपनी होने वाली पत्नी प्रभा के प्रति अत्यन्त स्नेहयुक्त भावनाएँ रखता है। वह रुमाल को देखकर ही प्रभा के स्पर्श की कल्पना से पुलकित होने लगता है। वह चाहता है कि रुमाल को हाथ में लेकर चूम ले।

खून के रिश्तों का महत्त्व देने वाला
वीरजी खून के रिश्ते की विशेषता/पवित्रता को समझने वाला आधुनिक बौद्धिक युवक है। वह सभी बातों को बौद्धिक एवं तार्किक रूप से परखने के बाद भी परम्परा की उस मर्यादा को नहीं भूलता, जो बड़ों के प्रति छोटों का कर्तव्य है।

इसके अतिरिक्त, वह इस भावना एवं संवेदना से भी अच्छी तरह परिचित है कि पून के रिश्ते वाले चाचा मंगलसेन अपने भतीजे की शादी से सम्बन्धित क्या-क्या ख्याल रखते होंगे। यही कारण है कि वह अपनी सगाई में चाचा को भेजने की जिद करता है और सफल होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वीरजी एक शिक्षित युवक, आडम्बर एवं दहेज विरोधी, समानता की भावना का पोषक होने के साथ-साथ खून के रिश्तों को महत्त्व देता है। का हितेषी भी है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार

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Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रवण कुमार
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाएँ लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2018, 16, 14, 19)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए। (2018, 16, 15, 13, 11)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में वर्णित बाणविद्ध श्रवण कुमार के करुण विलाप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में नौ सर्ग हैं। खण्डकाव्य की सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।

प्रथम सर्ग : अयोध्या (2011)

अयोध्या के गौरवशाली इतिहास में अनेक महान् राजाओं की गौरवगाथा छिपी हुई है। अनेक राजाओं; जैसे-पृथु, इक्ष्वाकु, ध्रुव, सगर, दिलीप, रघु ने अयोध्या को प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया। इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चन्द्र और गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ ने शासन किया।

राजा रघु के नाम पर ही इस कुल का नाम रघुवंश पड़ा। महाराज दशरथ राजा अज के पुत्र थे। अयोध्या के प्रतापी शासक राजा दशरथ के राज्य में सर्वत्र शान्ति थी। चारों ओर कला-कौशल, उपासना-संयम तथा धर्मसाधना का साम्राज्य था। सभी वर्ग सन्तुष्ट थे। महाराज दशरथ स्वयं एक महान् धनुर्धर थे, जो शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्धहस्त थे।

द्वितीय सर्ग : आश्रम (2014, 11)

सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था, जहाँ श्रवण कुमार अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता के साथ सुख एवं शान्तिपूर्वक निवास करता था। वह अत्यन्त आज्ञाकारी एवं अपने माता-पिता का भक्त था।

तृतीय सर्ग : आखेट

‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आखेट सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2018)
एक दिन गोधूलि बेला में राजा दशरथ विश्राम कर रहे थे, तभी उनके मन में आखेट की इच्छा जाग्रत हुई। उन्होंने अपने सारथी को बुलावा भेजा।

रात्रि में सोते समय राजा ने एक विचित्र स्वप्न देखा कि एक हिरन का बच्चा उनके बाण से मर गया और हिरनी खड़ी आँसू बहा रही है। राजा सूर्योदय से बहुत पहले जगंकर आखेट हेतु वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं।

दूसरी ओर श्रवण कुमार माता-पिता की आज्ञा से जल लेने के लिए नदी के तट पर जाता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं। यह बाण सीधे श्रवण कुमार को जाकर लगता है, वह चीत्कार कर उठता है। श्रवण कुमार की चीत्कार सुन राजा दशरथ चिन्तित हो उठते हैं।

चतुर्थ सर्ग: श्रवण

राजा दशरथ के बाण से घायल श्रवण कुमार को यह समझ में नहीं आता है कि उसे किसने बाण मारा? वह अपने अन्धे माता-पिता की चिन्ता में व्याकुल है कि अब उसके माता-पिता की देखभाल कौन करेगा? वह बड़े दुःखी मन से राजा से कहता है कि उन्होंने एक नहीं, अपितु एक साथ तीन प्राणियों की हत्या कर दी है। उसने राजा से अपने माता-पिता को जल पिलाने का आग्रह किया। इतना कहते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा दशरथ अत्यन्तै दुःखी हुए और स्वयं जल लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गए।

पंचम सर्ग : दशरथ (2012, 10)

राजा दशरथ दुःख एवं चिन्ता में भरकर सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे। वे अत्यन्त आत्मग्लानि एवं अपराध भावना से भरे हुए थे। पश्चाताप, आशंका और भय से भरकर वे आश्रम पहुँच जाते हैं।

घष्ठ सर्ग : सन्देश (मार्मिक प्रसंग) (2013)

श्रवण के माता-पिता अपने आश्रम में पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस बात से आशंकित थे कि अभी तक उनका पुत्र लौटकर क्यों नहीं आया? उसी समय उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी। वे राजा दशरथ को श्रवण कुमार ही समझ रहे थे।

जब राजा ने उन्हें जल लेने के लिए कहा, तो उनका भ्रम दूर हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें अपना परिचय दिया और जल लाने का कारण बताया। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके वृद्ध माता-पिता अत्यन्त व्याकुल हो उठे।

सप्तम सर्ग : अभिशाप (2017, 14, 13, 12)

सप्तम सर्ग में ऋषि दम्पति के करुण विलाप का चित्रण है। वे आंसू बहाते हुए, विलाप करते हुए नदी के तट पर पहुंचे और विलाप करते-करते अचेत हो जाते हैं। अचेत होते ही राजा दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि यह अपराध तुमसे अनजाने में हुआ है, पर इसका दण्ड तो तुम्हें भुगतना ही होगा। वह श्राप देते हैं कि जिस प्रकार पुत्र-शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूँ, उसी प्रकार एक दिन तुम भी अपने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दोगे।

अष्टम सर्ग : निर्वाण (2014)

श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा दिए गए श्राप को सुनकर राजा अत्यन्त दु:खी होते हैं। श्रवण के माता-पिता भी जब रो-रोकर शान्त होते हैं तो उन्हें आप देने का दुःख होता है। अब पिता को आत्मबोध होता है और वे सोचते हैं कि यह तो नियति का विधान था। तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और उसने अपने माता-पिता को सांत्वना दी। पुत्र शोक में व्याकुल माता पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं।

नवम सर्ग : उपसंहार

राजा दशरथ दुःखी मन से अयोध्या लौट आते हैं। वे इस घटना का वर्णन किसी से नहीं करते हैं, परन्तु राम जब वन को जाने लगते हैं, तो उन्हें उस श्राप का स्मरण हो आता है और वह यह बात अपनी रानियों को बताते हैं।

प्रश्न 2.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं को लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक सफल खण्डकाव्य है। खण्डकाव्य की विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य) पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ एक भावप्रधान (मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी घटना की मार्मिकता से पूर्ण) खण्डकाव्य है। सतर्क सोदाहरण प्रमाणित कीजिए। (2013, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017, 14)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में “करुणा और प्रेम की विह्वल मन्दाकिनी प्रवाहित होती है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2010)
अथवा
सिद्ध कीजिए कि ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में करुण रस की प्रधानता है।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक पौराणिक कथानक पर आधारित है। कवि ने इसमें अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यन्त कुशलता से किया है। यह खण्डकाव्य भावपक्षीय एवं कलापक्षीय दोनों दृष्टियों से उत्तम विशेषताओं को धारण किए हुए है, जिनका विवेचन इस प्रकार है।
भावपक्षीय विशेषताएँ श्रवण कुमार खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. अन्तर्मुखी भावों की अभिव्यक्ति श्रवण कुमार खण्डकाव्य में मार्मिक स्थलों की कुशल अभिव्यक्ति की गई है। स्वप्न देखते समय, श्रवण कुमार को तीर से मरते देखकर, अभिशाप सर्ग में दशरथ का पश्चाताप एवं दु:ख प्रकट हुआ है। तीर लगने के बाद श्रवण कुमार की मन:स्थिति का चित्रण कवि ने बड़ी कुशलता से किया हैं। कवि ने मन:विश्लेषण को स्वाभाविक अभिव्यक्ति देने का प्रयत्न किया है।
  2. भारतीय संस्कृति का गौरव गान प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय संस्कृति का गौरवगान किया है। मानव के आदर्शों एवं प्राचीन स्वरूप के गौरव का दर्शन कराना ही इस खण्डकाव्य का मूल उद्देश्य है। इसकी अभिव्यक्ति में कवि ने अपनी पूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया हैं।
  3. रस योजना इस खण्डकाव्य का प्रमुख रस करुण है। करुण रस का सहज स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। कवि ने रस योजना में अपनी प्रतिभा का सफल प्रयोग किया हैं। “निर्मम एक बाण ने उनसे, छीन लिया उनका वात्सल्या”

कलापक्षीय विशेषताएँ ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. भाषा-शैली प्रस्तुत खण्डकाव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। पारिभाषिक और समसामयिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी दर्शनीय है। शैली की दृष्टि से इतिवृत्तात्मक, चित्रात्मक, आलंकारिक, छायावादी आदि शैलियों के दर्शन होते हैं। विभिन्न शैलियों का कुशल प्रयोग तो हुआ ही है, साथ ही अभिव्यंजना शक्ति के पूर्ण स्वरूप के दर्शन भी होते हैं। (2011, 10)
  2. अलंकार योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में उपमान-विधान के लिए विस्तृत भावभूमि का चयन किया गया है। श्लेष, यमक, वक्रोक्ति, चीप्सा, पुनरुक्ति, विरोधाभास, अनुप्रास आदि शब्दालंकारों के साथ ही उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, उदाहरण, सन्देह, यथासंख्य, परिसंख्या आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया गया है।
  3. छन्द योजना प्रधान छन्द ‘वीर’ है। 16, 15 पर यति तथा अन्त में गुरु, लघु का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं 30 मात्रा वाले छन्द भी आ गए हैं। ऐसे मात्र 3 छन्द हैं और छन्द के दृष्टिकोण से यह सामान्य बात है। अन्तिम तीन छन्दों में ताटक और लावनी छन्दों का भी प्रयोग हुआ है।
  4. उद्देश्य डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित प्रस्तुत खण्डकाव्य का उद्देश्य यह है कि पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगी युवा पीढ़ी जीवन मूल्यों से दूर न हो, बच्चे अपने कर्तव्यों से विमुख न हों, अपितु वे बड़ों का यथोचित सम्मान करे। आज युवा पीढ़ी में अनैतिकता, उद्दण्डता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है, वह अपने गुरुजनों और माता-पिता के प्रति श्रद्धारहित होती जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि युवा वर्ग में त्याग, सहिष्णुता, दया, परोपकार, क्षमाशीलता, उच्च संस्कार, भावात्मकता, एकता आदि नैतिक आदशों एवं जीवन मूल्यों की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए।

कवि ने इस खण्डकाव्य के माध्यम से युवा वर्ग को श्रवण कुमार की भाँति बनने की प्रेरणा दी है। उनकी भाँति वह भी अपने जीवन में, अपने आचरण में इन आदर्शों को उतार सके और गर्व से यह कह सके कि ‘मुझे बाणों की चिन्ता नहीं सता रही है, मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है, लेकिन मुझे अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की चिन्ता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा?

प्रश्न 3.
श्रवण कुमार खण्डकाव्य के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (2016)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र श्रवण कुमार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रमुख पात्र की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डालना ही कवि को प्रमुख उद्देश्य हैं। खण्डकाव्य का मुख्य उद्देश्य होने के कारण इसका शीर्षक ‘श्रवण कुमार’ रखा गया है, जो कथनानुसार पूर्णतः उपयुक्त प्रतीत होता है। ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व मार्मिक प्रसंग दशरथ का श्रवण कुमार के पिता द्वारा शापित होना है, परन्तु इस प्रसंग की अभिव्यक्ति का भाव श्रवण कुमार के व्यक्तित्व से ही मद्ध है। खण्डकाव्य की कथावस्तु के अनुसार दशरथ का चरित्र सक्रियता की दृष्टि से सर्वाधिक है, परन्तु दशरथ के चरित्र के माध्यम से भी श्रवण कुमार के चरित्र की विशेषताएँ ही प्रकाशित हुई हैं। अत: इस खण्डकाव्य का मुख्य पात्र श्रवण कुमार ही है और ‘श्रवण कुमार’ शीर्षक उपयुक्त है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्रांकन/ चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के श्रवण कुमार की मातृ-पितृभक्ति पर प्रकाश डालिए। (2017, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार की चरित्रगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2015, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2012)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में श्रवण किन आदर्शों का प्रतीक है? (2010)
अथवा
“चरित्र ही व्यक्ति को महान् बनाता है।” इस कथन के सन्दर्भ में श्रवण कुमार के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के वर्ण्य-विषय की वर्तमान सन्दर्भो में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए। (2013)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ का चरित्र-चित्रण करते हुए यह बताइए कि वह भारतीय संस्कृति के किन आदर्शों का प्रतीक है? (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ में वर्णित आदर्श चरित्र से आज के परिप्रेक्ष्य में क्या शिक्षा मिलती है? (2010)
अथवा
श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख नायक/पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018, 14)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का नायक ऋषि पुत्र श्रवण कुमार हैं। वह सरयू के तट पर अपने अन्धे माता-पिता के साथ एक आश्रम में रहता है। कवि ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक चित्रित किया है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. मातृ-पितृभक्त श्रवण कुमार एक आदर्श मातृ-पितृभक्त पुत्र है। वह हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करता है। वह अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा है। वह उन्हें काँवड़ में बिठाकर विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्राएँ कराता है। मृत्यु के समीप पहुंचने पर भी उसे केवल अपने माता-पिता को ही चिन्ता सताती है।
  2. सत्यवादी श्रवण कुमार सत्यवादी है। जब राजा दशरथ ब्राह्मण की सम्भावना प्रकट करते हैं, तो वह उन्हें साफ-साफ बता देता है कि वह ब्रह्म कुमार नहीं है। उसके पिता वैश्य और माता शूद्र हैं।
  3. क्षमाशील श्रवण कुमार स्वभाव से ही बड़ा सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईष्र्या या द्वेष का भाव नहीं है। दशरथ द्वारा छोड़े गए बाण से आहत होने पर भी उसके मन में किसी प्रकार का क्रोध उत्पन्न नहीं होता है, इसके विपरीत वह उनका सम्मान ही करता है।
  4. भाग्यवादी श्रवण कुमार भाग्य पर विश्वास करता है अर्थात् जो भाग्य में होता है, वही मनुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य को भाग्य के अनुसार ही फल मिलता है। उसे कोई टाल नहीं सकता, यही जीवन का अटल सत्य है। दशरथ द्वारा बाण लगने में वह उन्हें कोई दोष नहीं देता इसे वह भाग्य का ही खेल मानता है।
  5. आत्मसन्तोषी श्रवण कुमार आत्मसन्तोषी है। उसे भोग व ऐश्वर्य की कोई कामना नहीं है। उसके मन में किसी वस्तु के प्रति कोई लोभ व लालच नहीं है। वह सन्तोषी जीव हैं। उसके मन में किसी को पीड़ा पहुँचाने का भाव ही जाग्रत नहीं होता-
    वन्य पदार्थों से ही होता,
    रहता, मम जीवन-निर्वाह।
    ऋषि हूँ, नहीं किसी को पीड़ा,
    पहुँचाने की उर में चाह।।”
  6. भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी वह भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। वह माता पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करता है। अतः कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में सभी उच्च आदर्श विद्यमान हैं। वह मातृ-पितृभक्त है, तो साथ ही क्षमाशील, उदार, सन्तोषी और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है। वह खण्डकाव्य का नायक है।

प्रश्न 5.
‘श्रवण कुमार’ के आधार पर महाराज दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2009)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग के आधार पर राजा दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के पंचम और सप्तम् सर्गों में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्र (मनोभावों) पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
“दशरथ का अन्तर्द्वन्द्र श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2011)
उत्तर:
हों, शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में दशरथ का चरित्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वह एक योग्य शासक एवं आखेट प्रेमी हैं। वह रघुवंशी राजा अज के पुत्र हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य में वह आद्यन्त विद्यमान हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. योग्य शासक राजा दशरथ एक योग्य शासक हैं। वह अपनी प्रजा की देखभाल पुत्रवत रूप में करते हैं। उनके राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी है। चोरी का नामोनिशान नहीं है। उनके शासन में चारों ओर सुख-समृद्धि का बोलबाला है। वह विद्वानों का यथोचित सत्कार करते हैं।
  2. उच्चकुल में उत्पन्न राजा दशरथ का जन्म उच्च कुल में हुआ था। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज जैसे महान् राजा इनके पूर्वज थे।
  3. आखेट प्रेमी राजा दशरथ आखेट प्रेमी हैं, इसलिए सावन के महीने में अब चारों ओर हरियाली छा जाती है, तब उन्होंने शिकार करने का निश्चय किया। वे शब्दभेदी बाण चलाने में अत्यन्त कुशल हैं।
  4. अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण शब्दभेदी बाण से जब श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, तो वह सोचते हैं कि मैंने यह पाप कर्म क्यों कर डाला? यदि मैं थोड़ी देर और सोया रहता या रथ का पहिया टूट जाता या और कोई रुकावट आ जाती, तो मैं इस पाप से बच जाता। उन्हें लगता है कि मैं अब श्रवण कुमार के अन्धे माता-पिता को कैसे समझाऊँगा, कैसे उन्हें तसल्ली दूंगा? दुःख तो इस बात का है कि अब युगों-युगों तक उनके साथ यह पाप कथा चलती रहेगी।
  5. उदार वे अत्यन्त उदार हैं। श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप को वह चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। किसी अन्य को वह इस बारे में बताते नहीं हैं, पर मन ही मन यह पीड़ा उन्हें खटकती रहती हैं।
  6.  विनम्र एवं दयालु वह अत्यन्त विनम्र एवं दयालु हैं। अहंकार उनमें लेशमात्र भी नहीं है। वे किसी का दुःख नहीं देख सकते। श्रवण कुमार को जब उनका बाण लगता है, तो वे अत्यन्त चिन्तित हो उठते हैं। वह आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनके माता-पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह, राजा दशरथ का चरित्र महान् गुणों से परिपूर्ण है। प्रायश्चित और आत्मग्लानि की अग्नि में तपकर वे शुद्ध हो जाते हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name राजमुकुट
Number of Questions Solved 14
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘राजमुकुट’ नाटक की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2010)
उत्तर:
मेवाड़ में राणा जगमल अपने वंश की मर्यादा का निर्वाह न करके सुरा सुन्दरी में डूबा हुआ था। अपने भोग-विलास एवं आनन्द में किसी भी तरह की बाधा सहन नहीं करने वाला राणी जगमल एक क्रूर शासक बन गया था। उसने कुछ चाटुकारों के कहने पर निरपराध विधवा प्रजावती की नृशंस हत्या करवा दी, जिससे प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रजावती के शव को लेकर प्रजा राष्ट्रनायक चन्दावत के घर पहुंची।

इसी समय कुंवर शक्ति सिंह ने राणा जगमल के क्रूर सैनिकों के हाथों से एक भिखारिणी की रक्षा की। जगमल के कार्यों से खिन्न शक्ति सिंह को चन्द्रावत ने कर्म-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। एक दिन जब जगमल राजसभा में आनन्द मना रहा था, तो राष्ट्रनायक चन्दावत वहाँ पहुँचे और जगमल को उसके घृणित कार्यों के प्रति सचेत करते हुए उसे प्रजा से क्षमा याचना के लिए कहा।

जगमल ने उनकी बात स्वीकार करते हुए स्वयं से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहा और अपनी तलवार एवं राजमुकुट उन्हें सौंप दिए। राष्ट्रनायक चन्दावत ने राणा प्रताप को जगमल का उत्तराधिकारी बनाया तथा उन्हें राजमुकुट एवं तलवार सौप दी। प्रताप मेवाड़ के राणा बन गए। अब सुरासुन्दरी के स्थान पर शौर्य एवं त्याग-भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा प्रसन्नतापूर्वक राणा प्रताप की जय-जयकार करने लगी।

प्रश्न 2.
‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए। (2017, 12, 11, 10)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
उत्तर:
मेवाड़ के राणा बनकर, प्रताप ने अपनी प्रजा को अपने खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रजा में वीरत्व का संचार करने के लिए उन्होंने ‘हेरिया’ उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय को एक वन्य-पशु का आखेट करना अनिवार्य था। इसी आखेट के क्रम में एक जंगली सुअर के आखेट को लेकर राणा प्रताप और शक्ति सिंह में विवाद उत्पन्न हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों भाई शस्त्र निकाल कर एक-दूसरे पर झपट पड़े। भावी अनिष्ट की आशंका से राजपुरोहित ने बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया, परन्तु दोनों ही नहीं माने।

राजकुल को अमंगल से बचाने के लिए राजपुरोहित ने अपने ही हाथों, अपनी कटार अपनी छाती में पोप ली और प्राण त्याग दिए। राणा प्रताप ने शक्ति सिंह को देश (राज्य) से निर्वासित कर दिया। शक्ति सिंह मेवाड़ से निकलकर अकबर की सेना से जा मिला।

प्रश्न 3.
‘राजमुकुट’ नाटक के तृतीय अंक की कथा को सार/कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2016, 15)
उत्तर:
राजा मानसिंह राणा प्रताप के चरित्र एवं गुणों से बहुत प्रभावित थे, इसलिए वे राणा प्रताप से मिलने आए। राजा मानसिंह की बुआ का विवाह सम्राट अकबर के साथ हुआ। अतः राणा प्रताप ने उन्हें धर्म से च्युत एवं विधर्मियों का सहायक समझकर उनसे भेंट नहीं की। उन्होने राजा मानसिंह के स्वागतार्थ अपने पुत्र अमर सिंह को नियुक्त किया। इससे मानसिंह ने स्वयं को अपमानित महसूस किया और वे उत्तेजित हो गए। अपने अपमान का बदला चुकाने की धमकी देकर वे चले गए। तत्कालीन समय में दिल्ली का सम्राट अकबर मेवाड़-विजय के लिए रणनीति बना रहा था।

उसने सलीम, मानसिंह एवं शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मेवाड़ भेजी। हल्दीघाटी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। मानसिंह से बदला लेने के लिए राणा प्रताप मुगल सेना के बीच पहुंच गए और मुगलों के व्यूह में फंस गए। राणा प्रताप को मुगलों से घिरा देख चन्दावत ने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर पहन लिया और युद्धभूमि में अपने प्राणों की बलि दे दी। राणा प्रताप बच गए। उन्होंने युद्धभूमि छोड़ दी। दो मुगल सैनिकों ने राणा प्रताप का पीछा किया, जिसे शक्तिसिंह ने देख लिया। शक्ति सिंह ने उन मुगल सैनिकों का पीछा करके उन्हें मार गिराया। शक्ति सिंह और राणा प्रतापगले मिले। उनके आंसुओं से उनका समस्त वैमनस्य धुल गया। उसी समय राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक’ की मृत्यु हो गई, जिससे राणा प्रताप को अपार दुःख हुआ।

प्रश्न 4.
‘राजमुकुट नाटक के अन्तिम (चतुर्थ) अंक की कथा संक्षिप्त रूप में लिखिए। (2014, 13, 12, 11)
अथवा
नाटक के मार्मिक स्थल पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप एवं अकबर की भेंट का वर्णन कीजिए। (2012, 11)
उत्तर:
हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाने पर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। अकबर ने प्रताप की देशभक्ति, आत्म-त्याग एवं शौर्य से प्रभावित होकर उनसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की। शक्ति सिंह साधु-वेश में देश में विचरण कर रहा था और प्रजा में देशप्रेम की भावना तथा एकता की भावना जाग्रत कर रहा था। अकबर के मानवीय गुणों से परिचित होने के कारण शक्ति सिंह ने प्रताप से अकबर की भेंट को छल-प्रपंच नहीं माना। उसका विचार था कि दोनों के मेल से देश में शान्ति एवं एकता की स्थापना होगी। इस चतुर्थ अंक में ही नाटक का मार्मिक स्थल समाहित है।

एक दिन राणा प्रताप के पास वन में एक संन्यासी आया, जिसका उचित स्वागत-सत्कार न कर पाने के कारण राणा प्रताप अत्यन्त खिन्न हुए। अतिथि को भोजन देने के लिए राणा प्रताप की बेटी चम्पा पास के बीजों की बनी रोटी लेकर आई। उसी समय कोई वनबिलाव चम्पा के हाथ से रोटी छीनकर भाग गया। इसी क्रम में चम्पा गिर गई और सिर में गहरी चोट लगने से स्वर्ग सिधार गई।

कुछ समय बाद अकबर संन्यासी वेश में वहाँ आया और प्रताप से बोला-आप उस अकबर से तो सन्धि कर सकते हैं, जो भारतमाता को अपनी माँ समझता है और आपकी तरह ही उसकी जय बोलता है।” मृत्युशय्या पर पड़े महाराणा प्रताप को रह-रहकर अपने देश की याद आती हैं। वे अपने बन्धु-बाँधवों, पुत्रों और सम्बन्धियों को मातृभूमि की स्वतन्त्रता एवं रक्षा का व्रत दिलाते हुए भारतमाता की जय बोलते हुए स्वर्ग सिधार जाते हैं।

प्रश्न 5.
‘राजमुकुट’ नाटक के शीर्षक का औचित्य बताइए। (2012, 11)
उत्तर:
नाटककार श्री व्यथित हृदय ने प्रस्तुत नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट इसलिए रखा है, क्योंकि सम्पूर्ण नाटक राजमुकुट की प्रतिष्ठा के इर्द-गिर्द ही घूमता है और अन्तिम अंक में इसी राजमुकुट ने मेवाड़ के राणा प्रताप की जान बचाकर मेवाड़ के शासक की रक्षा की ताकि आने वाले समय में मेवाड़ अपनी आन एवं शान को अक्षुण्ण रख सके तथा खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सके। प्रस्तुत नाटक का आरम्भ ही राजमुकुट की मर्यादाओं की प्रतिष्ठापना से होता है। राणा जगमल की विलासितापूर्ण जीवन-शैली से व्यथित प्रजा एवं राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत द्वारा राजमुकुट की मर्यादाओं की रक्षा करने में असक्षम राजा जगमल से राजमुकुट वापस लेकर राणा प्रताप को सौंपा जाता है।

राणा प्रताप देश की स्वतन्त्रता को राजमुकुट की मान प्रतिष्ठा से जोड़ देते हैं तथा मरते दम तक अपने संकल्प की रक्षा करते हैं। राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की जान बचाने के लिए स्वयं राजमुकुट धारण कर लेते हैं। यह राजमुकुट ही था, जो शासकों को अपने देश को स्वतन्त्रता हेतु मर-मिटने का सन्देश भी देता है और मेवाड़ के शासक की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। अतः नाटक के कथानक के अनुसार नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट पूर्णतया उपयुक्त एवं सार्थक है।।

प्रश्न 6.
‘राजमुकुट’ नाटक की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
राजमुकुट नाटक की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डालते हुए उसकी कथावस्तु लिखिए। (2016)
अथवा
नाट्य-कला की दृष्टि से ‘राजमुकट’ नाटक की समीक्षा कीजिए। (2011)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक की कथा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018, 17, 14, 12)
अथवा
राजमुकुट नाटक का कथासार/कथावस्तु प्रस्तुत कीजिए। (2016)
अथवा
कथावस्तु की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा लिखिए। (2013)
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक ‘राजमुकुट’ को कथानक विशुद्ध ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, जिसमें अनेक काल्पनिक तत्वों का समावेश किया गया है। महाराणा प्रताप के शौर्यपूर्ण जीवन से सम्बन्धित इस नाटक का प्रारम्भ महाराणा के राजमुकुट धारण करने से होता है। कथानक के विकास में शक्ति सिंह और राणा का विवाह, अकबर की सेना का मेवाड़ पर आक्रमण, हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप का वन-वन भटकना, उनकी मृत्यु आदि अनेक सहायक सोपान हैं। कथानक के अन्तर्गत काल्पनिक तत्वों का समावेश आधुनिक समाज की कुछ समस्याओं का बोध कराने के लिए किया गया है। कथानक में देशप्रेम, राष्ट्रीय एकता, भावात्मक समन्वय तथा अन्तर्राष्ट्रीय चेतना जैसे मानवीय-मूल्यों को महत्त्व देकर इसे व्यापक स्तर पर देशकाल के लिए उपयोगी यानि प्रासंगिक बना दिया गया है। कथानक के अन्तर्गत प्राचीन भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति की श्रेष्ठता को भी दर्शाया गया है। इस नाटक का कथानक सुगठित, सशक्त, उद्देश्यपूर्ण, सुन्दर एवं प्रासंगिक है। इस प्रकार, कथानक की दृष्टि से राजमुकुट’ एक सफल नाटक है।

प्रश्न 7.
“राजमुकुट’ नाटक में देशकाल और वातावरण का सफल निर्वाह हुआ है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक का कथानक ऐतिहासिक होने के कारण नाटककार ने इतिहास की प्रामाणिकता को बहुत महत्त्वपूर्ण माना है तथा उसे महत्त्व दिया है। प्रस्तुत नाटक में अकबर के काल के वातावरण को चित्रित किया गया है, जिसमें नाटककार को अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई है। युद्ध का दृश्य अत्यन्त सजीव बन पड़ा है। नाटक में तत्कालीन राजस्थान का परिवेश मुखरित हो उठा है। तत्कालीन समाज के अनुरूप संवादों एवं पात्रों की योजना ने वातावरण के चित्रण को और अधिक स्वाभाविकता प्रदान की है।

प्रश्न 8.
‘राजमुकुट’ की संवाद-योजना (कथोपकथन) की समीक्षा कीजिए। (2012, 11)
उत्तर:
संवाद-योजना की दृष्टि से राजमुकुट’ नाटक पूर्णतया सफल नाटक है। इस नाटक के संवाद सुन्दर, सरल, सहज, सरस, संक्षिप्त एवं पात्रों के अनुकूल हैं। ये । संवाद मनोभावों को भी अभिव्यक्त करने में पूर्णतया सफल हैं। संवादों में कहीं ओज है, तो कहीं माधुर्य। नाटक की संवाद-योजना में इन खूबियों के अतिरिक्त कुछ कमियाँ भी हैं। इसमें स्वगत कथनों की अधिकता है, जिससे पाठक एवं दर्शक को अरुचि होती है। संवादों में कसाव एवं संक्षिप्तता का भी अभाव है। संवादों में । कहीं-कहीं असम्बद्धता भी दिखाई देती है, जिससे पाठक पर नाटक का प्रभाव नहीं पड़ पाता।

प्रश्न 9.
‘राजमुकुट’ नाटक की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। (2012, 11)
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक की भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कृतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग से यद्यपि भाषा में कुछ क्लिष्टता उत्पन्न हुई है तथापि इसका समायोजन कुशलतापूर्वक किया गया है, जिसके कारण इसमें माधुर्य एवं ओज बना रहता हैं। क्लिष्टता आने का कारण संस्कृत के शब्दों की बहुलता है। इसकी भाषा-शैली में मुहावरों, लोकोक्तियों एवं अलंकारों का प्रयोग खुलकर हुआ है, जिससे भाषा में आकर्षण बढ़ा है; जैसे-“वह देश में छाई हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हँसेगा, आलोक पुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है, उसका पौरुष गेय है।”इस प्रकार, भाषा-शैली की दृष्टि से ‘राजमुकुट एक सफल नाटक है।

प्रश्न 10.
‘राजमुकुट’ नाटक की अभिनेयता (रंगमंचीयता) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अभिनेयता की दृष्टि से राजमुकुट नाटक रंगमंच के अधिक अनुकूल प्रतीत नहीं होता। दृश्यों की संख्या अधिक होने के साथ-साथ पात्रों की संख्या भी बहुत अधिक है। अभिनय को सफल बनाने में एक बड़ी बाधा के रूप में यह बिन्दु सामने आता है। प्रस्तुत नाटक में रंगमंचीय प्रस्तुतीकरण की तकनीक को ध्यान में नहीं रखा गया है। युद्ध, सैनिक, हाथी-घोड़े आदि का मंचन सम्भव नहीं है या फिर मंचन में कठिनाइयाँ अधिक है। भाषा की दृष्टि से भी यह अभिनेयता या रंगमंचीयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। इस तरह, कहा जा सकता है कि अभिनेयता या रंगमंचीयता की दृष्टि से यह एक सफल नाटक नहीं है, लेकिन पाठ्य-नाट्य की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ एक सफल नाटक है।

प्रश्न 11.
“राजमुकुट नाटक की विशेषता राष्ट्रीय एकता एवं देश प्रेम है।” स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशभक्ति पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक का उददेश्य स्पष्ट कीजिए। (2014, 13, 11, 10)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशप्रेम एवं स्वाधीनता की भावना पर प्रकाश डालिए। (2014)
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक के नाटककार का उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित मार्मिक, सजीव, सशक्त तथा प्रभावोत्पादक अंशों एवं प्रसंगों का वर्णन करके भारत के लोगों में देशप्रेम की भावना को जागृत करना है।
प्रस्तुत नाटक के उद्देश्य या सन्देश को निम्न बिन्दुओं के रूप में देख सकते हैं।

  1. स्वाधीनता, देशप्रेम एवं एकता का सन्देश ‘राजमुकुट’ नाटक के लेखक ने राष्ट्रीय एकता का सन्देश देते हुए यह दर्शाया है कि महाराणा प्रताप अन्तिम समय तक अपने राष्ट्र की एकता के लिए संघर्ष करते रहे। वे मृत्यु के समय भी अपने वीर साथियों एवं सम्बन्धियों को मातृभूमि की रक्षा का सन्देश देते हैं।
  2. साम्प्रदायिक सद्भाव लेखक व्यथित हृदय जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना का प्रसार करने के लिए साम्प्रदायिकता पर कुठाराघात किया है। महाराणा एवं अकबर का मिलन साम्प्रदायिक समन्वय की भावना को प्रदर्शित करता हैं।
  3. जनता की सर्वोच्चता इस नाटक के माध्यम से लेखक यह सन्देश देना। चाहता है कि सत्ता की वास्तविक शक्ति शासित होने वाली जनता में ही निहित है। जनसामान्य का दमन एवं शोषण करके कोई भी शासक चैन से नहीं रह सकता है। राजा या शासक प्रजा या जनसामान्य के केवल प्रतिनिधि भर हैं। उन्हें जनता का शोषण करने का कोई अधिकार नहीं है।

इस प्रकार प्रस्तुत नाटक के माध्यम से नाटककार अपने उद्देश्यों को पाठक तक सम्प्रेषित करने में पूर्णतः सफल रहा है। प्रस्तुत नाटक की पात्र योजना श्रेष्ठ है। इसके नायक महाराणा प्रताप हैं तथा उनके अतिरिक्त अन्य मुख्य पात्रों में शक्तिसिंह, कृष्णजी चन्दावत, जगमल, मानसिंह, अकबर आदि शामिल हैं, जबकि नारी पात्रों में प्रजावती, प्रमिला, गुणवती, चम्पा आदि उल्लेखनीय हैं। प्रस्तुत नाटक के पात्र कहानी के विकास में सहायक हैं। इस नाटक के पात्रों की मुख्य विशेषता उनका उदात्त स्वभाव है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 12.
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर उस पात्र का चरित्रांकन कीजिए, जिसने आपको प्रभावित किया हो। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों? (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के नायक या प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16, 15)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर ‘प्रताप सिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2017)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराजा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर प्रतापसिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो, उसके व्यक्तित्व का परिचय दीजिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
उत्तर:
महाराणा प्रताप के चारित्रिक गुणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में देखा जा सकता है।

  1. आदर्श भारतीय महाराणा प्रताप आदर्श भारतीय नायक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। उनके विशिष्ट एवं उत्कृष्ट गुणों के कारण मेवाड़ की जनता उन्हें एक जनप्रिय शासक मानती हैं। उच्च गुणों एवं मानवीय भावनाओं से सम्पन्न महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व अनुकरणीय है।
  2. दृढ़प्रतिज्ञ एवं कर्तव्यनिष्ठ राणा प्रताप दृढ़निश्चयी एवं अपने कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठावान हैं। वे अपने कर्तव्यों का पालन हर परिस्थिति में करते हैं।
  3. स्वतन्त्रता-प्रेमी महाराणा प्रताप जीवनपर्यन्त देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करते रहे। दर-दर की ठोकरें खाने को विवश होने के पश्चात् भी उन्होंने विदेशी मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
  4. आन के रक्षक राणा प्रताप एक सच्चे क्षत्रिय थे, जिन्होंने अपनी आन, बान एवं शान के आगे प्रत्येक चीज को तुच्छ समझा। इसी आन ने उन्हें अकबर से सन्धि नहीं करने दी और उनके इस गुण की प्रशंसा अकबर ने भी की।
  5. पराक्रमी योद्धा राणा प्रताप वीर हैं। हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध उनके शौर्य की गाथा गाते नहीं थकता। वह साक्षी है, महाराणा प्रताप के पराक्रम का, उनकी युद्ध कुशलता एवं वीरता का।।
  6. भारतीय संस्कृति के रक्षक महाराणा प्रताप भारतीय संस्कृति के सच्चे रक्षक हैं, उसके पोषक हैं। अतिथि सत्कार की भारतीय परम्परा को वे अपने जीवन की विकट विषम परिस्थितियों में भी नहीं भूलते हैं। संन्यासी के रूप में अकबर के पहुंचने पर, वे उसके सम्मुख कुछ प्रस्तुत नहीं कर पाने से दुःखी हैं, क्योंकि उनके पास केवल घास की रोटियाँ उपलब्ध हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है धैर्यवान, वीरता एवं शौर्य के प्रतीक, स्वतन्त्रता के परम उपासक, अद्वितीय कष्टसहिष्णु एवं श्रेष्ठ आचरण चाले महाराणा प्रताप एक आदर्श भारतीय नायक थे।

प्रश्न 13.
‘राजमुकुट के आधार पर शक्ति सिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 12, 11, 10)
उत्तर:
नाटककार श्री व्यथित हृदय द्वारा लिखित नाटक ‘राजमुकुट’ के नायक मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप का छोटा भाई शक्ति सिंह नाटक के प्रमुख पात्रों में शामिल हैं। इसका चरित्र-चित्रण निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है-

  1. देश-प्रेमी एवं मानवीयता का रक्षक महाराणा प्रताप के अनुज शक्ति सिंह को नाटक के अन्तर्गत मानवता के रक्षक, देश प्रेमी एवं त्याग की प्रतिमा के रूप में चित्रित किया गया है। वह राज्याधिकार के लिए अपने ही बन्धुओं का रक्तपात करने के लिए तैयार नहीं है। वह जगमल की क्रूरता से एक भिखारिन को भी बचाता है।
  2. राज्य-वैभव या सत्ता के प्रति अनासक्त शक्ति सिंह का चरित्र त्याग भावना से परिपूर्ण है। वह सत्ता के लिए अपने भाइयों से संघर्ष नहीं करता और युद्ध में अपने भाई महाराणा प्रताप को दो मुगल सैनिकों से भी बचाता है। उसे गद्दी पर बैठने में कोई आसक्ति नहीं हैं।
  3. निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता वह बेलाग एवं निर्भीक वक्ता है और जो उसे उचित लगता है, वहीं बोलता एवं करता है। वह अकबर की सेना में सम्मिलित होने के पश्चात् भी मेवाड़ के खिलाफ अकबर का साथ नहीं देता।
  4. भातृ-प्रेमी शक्तिसिंह का भातृ-प्रेम उसके चरित्र को गौरवान्वित करने वाला है। महाराणा प्रताप पर घात लगाए हुए दो मुगल सैनिकों को शक्ति सिंह ने अपने एक ही बार में मौत के घाट उतार दिया। शक्ति सिंह ने अपने बड़े भाई महाराणा प्रताप से क्षमा-याचना भी की तथा उनके प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें अपना घोड़ा भी सौप दिया।
  5. राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भावना का पोषक शक्ति सिंह का दृष्टिकोण राष्ट्रीय अखण्डता को मूलमन्त्र मानकर चलने वाला है तथा वह हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी बड़ा समर्थक है। वह मुगल शासकों को भारत देश का ही अभिन्न अंग मानता हैं और उसे विश्वास है कि ये सभी एक दिन भारतमाता की जय बोलेंगे।
  6. अन्तर्द्वन्त से पीड़ित शक्ति सिंह आन्तरिक स्तर पर घोर अन्तर्दन्द्र से जूझ रहा है। उज्ज्वल चरित्र का शक्ति सिंह प्रतिशोध की भावना और देशभक्ति के द्वन्द्व से घिर जाता है, लेकिन जीत अन्ततः देशभक्ति की ही होती है। कुछ मानवीय दुर्बलताओं ने अपनी उपस्थिति से शक्ति सिंह के चरित्र को यथार्थ का स्पर्श दिया है, जिससे उसका चरित्र और अधिक निखर गया है।

प्रश्न 14.
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर अकबर का चरित्रांकन/ चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17)
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक में अकबर एक कुशल कूटनीतिज्ञ, मानवतावादी एवं साम्प्रदायिक समन्वयकर्ता के रूप में दृष्टिगोचर होता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. कुशल राजनीतिज्ञ अकबर कुशल शासक है। उसके पास विशाल सेना हैं। विदेशी होते हुए भी वह भारतीयों पर अपना प्रभाव छोड़ता है और उन्हें अपने पक्ष में कर लेता है। उसने राजपूत घरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी शक्ति का विस्तार किया, जिससे उसे अनेक राजपूत शासकों का समर्थन प्राप्त हुआ। मानसिंह की बुआ जोधाबाई उसकी पटरानी है, इस कारण उसे मानसिंह का भी समर्थन मिल जाता है और उसके प्रति राजपूतों का विरोध कम होता है। उसने जैसलमेर और जोधपुर की राजकुमारियों से भी विवाह किए।
  2. धार्मिक सहिष्णुता का परिचय अकबर ने इस्लाम धर्म का स्वरूप बदलकर एक ऐसा धर्म प्रचलित किया, जो अत्यन्त उदार एवं समान व्यवहार पर आधारित था। उसके द्वारा प्रचलित ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म सर्वधर्म समन्वय की भावना पर आधारित था। उसने हिन्दू और मुसलमानों को एक दूसरे के निकट लाने का प्रयास किया। धर्म के आधार पर वह किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता था, इसी कारण उसने हिन्दुओं पर लगे तीर्थयात्रा-कर और जजिया कर को हटा दिया था।
  3. भारत के प्रति प्रेम अकबर ने स्वयं को भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और रीति-रिवाज में रंग लिया। वह भारत के सांस्कृतिक वातावरण में पूर्ण रूप से घुल-मिल गया। उसे भारत व उसकी संस्कृति से हार्दिक प्रेम है। ‘राजमुकुट’ नाटक के माध्यम से नाटककार तथाकथित कर्णधारों और अल्पसंख्यक नेताओं को अपना सन्देश देना चाहता है। भारत के प्रति अकबर के प्रेमभाव को दिखाना ही इस नाटक की विलक्षणता है। वह महाराणा प्रताप के अतिथि-प्रेम, देश-भक्ति और स्वाधीनता प्रेम पर मुग्ध हो जाता है, वह महाराणा प्रताप की प्रशंसा करते हैं और उनके समक्ष कहते हैं-“आज से महाराणा, भारत माँ मेरी माँ है और इस देश के निवासी मेरे भाई हैं। हम सब भाई-भाई है महाराणा। हम सब एक हैं।”

इस प्रकार नाटक में अकबर आदर्श शासक एवं मानवतावादी भावनाओं से ओतप्रोत हैं। उनका चरित्र अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 11 विविधा

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 11
Chapter Name विविधा
Number of Questions Solved 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 11 विविधा

(नरेन्द्र शर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, गजानन माधव मुक्तिबोध’, गिरिजाकुमार माथुर, धर्मवीर भारती)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

(क) नरेन्द्र शर्मा

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
छायावादोत्तर काल में अपने प्रणय-गीतों, सामाजिक भावना एवं क्रान्तिवादी कविताओं से जनमत को गहराई से प्रभावित करने वाले कवियों में अग्रगण्य नरेन्द्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के जहाँगीरपुर नामक गाँव में 28 फरवरी, 1913 में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री पूरनलाल शर्मा तथा माता का नाम श्रीमती गंगा देवी था। नरेन्द्र शर्मा चार वर्ष के ही थे, तभी इनके पिता का स्वर्गवास हो गया।

अपने गाँव में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से 1936 में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान जेल जाने के बाद वर्ष 1940 में काशी विद्यापीठ में इन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इन्होंने वर्ष 1934 में प्रयाग में ‘अभ्युदय’ पत्रिका का सम्पादन किया। वर्ष 1943 में बम्बई (अब मुम्बई) की चित्रपट की दुनिया में प्रवेश किया तथा उसे अनेक साहित्यिक एवं मधुर गीत प्रदान किए। बाद में आकाशवाणी से जुड़कर विविध भारती के कार्यक्रमों का संचालन भी किया। वर्ष 1989 में इनका देहान्त हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावादोत्तर युग के प्रमुख व्यक्तिवादी गीतिकाव्य के रचयिता कवियों में नरेन्द्र शर्मा का विशिष्ट स्थान है। नरेन्द्र शर्मा ने साहित्य और लोकमंच कवि सम्मेलनों के माध्यम से जनजीवन को प्रभावित एवं प्रेरित कर साहित्यकार के दायित्व का पूर्ण निर्वाह किया है। इन्होंने कवि सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में अपने गीतों को प्रस्तुत करके लोगों के मन-मस्तिष्क को मोह लिया था। वे विशेष रूप से छोटी भावनाओं को सरसता से व्यक्त करने वाले सफल कवि थे। इनके कुछ गीत फिल्मों में भी रिकॉर्ड किए गए हैं।

कृतियाँ
काव्य संग्रह शूल-फूल, कर्ण फूल, प्रवासी के गीत, पलाशवन, मिट्टी और फूल, रक्त चन्दन, प्रभात फेरी, प्यासा, निर्झर आदि।
खण्ड काव्य द्रौपदी, उत्तर-जय, सुवर्णा।।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. चित्रात्मकता, सजीवता एवं आत्मीयता के भाव भावात्मक अनुभूति की तीव्रता एवं सहजता की दृष्टि से नरेन्द्र शर्मा के गीतों की अपनी विशिष्टता है। उनके गीतों में चित्रात्मकता, सजीवता एवं आत्मीयता के भाव हैं।
  2. क्रान्तिकारी दृष्टिकोण छायावादौत्तरकाल में अपने प्रणय गीतों, सामाजिक भावना एवं क्रान्तिवाहक कविताओं से जनमत को बहुत गहराई से प्रभावित करने वाले कवियों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
  3. विद्रोही स्वर शर्मा जी ने आक्रोश-भरे विद्रोही स्वर में विशाल जनमानस की विवशता, विद्रोह की भावना एवं नव निर्माण की चेतना को मुखरित किया है।
  4. प्रकृति चित्रण इनके प्रकृति चित्रण में सरलता से हृदय को आकर्षित कर लेने की क्षमता है। इनमें प्रकृति को आकर्षक रूप देने में अत्यधिक कुशलता है।

कला पक्ष

  1. भाषा नरेन्द्र शर्मा ने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है, किन्तु उसके उपरान्त भी उनकी भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली बन पड़ी है।
  2. शैली इनकी रचनाओं में लाक्षणिकता, चित्रोपमता एवं प्रतीकात्मकता प्रचुरता से उपलब्ध हैं।
  3. अलंकार एवं छन्द शर्मा जी के काव्य में अलंकारों एवं छन्दों का बड़ा ही। स्वाभाविक, सजीव और सुन्दर प्रयोग हुआ है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
अपने प्रणय गीतों, सामाजिक भावना एवं क्रान्तिकारी कविताओं से लोगों को प्रभावित करने वाले कवियों में नरेन्द्र शर्मा प्रमुख हैं। एक उत्कृष्ट गीतकार के रूप में नरेन्द्र शर्मा का हिन्दी साहित्य में सदैव विशिष्ट स्थान रहेगा।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

मधू की एक बूंद

प्रश्न 1.
मधु की एक बूंद के पीछे मानव ने क्या क्या दुःख देखे।
मधु की एक बूंद धूमिल घन दर्शन और बुद्धि के लेखे!
सृष्टि अविद्या का कोल्हू यदि, विज्ञानी विद्या के अन्धे;
मधु की एक बूंद बिन कैसे जीव करे जीने के धन्धे!

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उदधृत है तथा उसके रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘मधु की एक बूंद’ कविता से उद्धृत है तथा इसके रचनाकार ‘नरेन्द्र शर्मा जी हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सृष्टि में प्रत्येक प्राणी के क्रियाकलाप आनन्द की खोज के लिए ही होते हैं। मनुष्य आनन्द का अभिलाषी है और इस क्षण को प्राप्त करने हेतु वह सदैव प्रयत्नशील रहता है।

(iii) कवि के अनुसार किसकी अभिव्यक्ति असम्भव है?
उत्तर:
कवि कहता है कि मनुष्य जीवन-पर्यन्त आनन्द की प्राप्ति हेतु प्रयासों में लगा रहता है और उसे आनन्द के ये क्षण अनेक दुःखों का सामना करने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करना असम्भव है।

(iv) कवि के अनुसार पृथ्वीवासी को सुख की प्राप्ति क्यों नहीं हो पाई है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि आनन्द या सुख की प्राप्ति हेतु कोल्हू के बैल की भाँति चारों ओर चक्कर लगा रही है अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वीवासी अपनी अज्ञानता के कारण ही आनन्द या सुख की प्राप्ति नहीं कर पा रहे हैं, व्यर्थ ही आनन्द के मार्ग में निरन्तर क्रियाशीलता का अनुसरण कर रहे हैं।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में रूपक, उपमा एवं अनुप्रास अलंकार हैं।

प्रश्न 2.
मधु की एक बूंद बिन, रीते पाँचों कोश और पाँचों जन;
मधु की एक बूंद बिन, हम से सभी योजनाएँ सौ योजन!
मधु की एक बूंद बिन, ईश्वर शक्तिमान भी शक्तिहीन है!
मधु की एक बूंद सागर हैं हर जीवात्मा मधुर मीन है।
मधु की एक बूंद पृथ्वी में, मधु की एक बूंद शशि-रवि में
मधु की एक बूंद कविता में, मधु की एक बूंद कवि में।
मधु की एक बूंद के पीछे, मैंने अब तक कष्ट सहे शत,
मधु की एक बूंद मिथ्या है, कोई ऐसी बात कहे मत!

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने आनन्द के महत्व को प्रतिपादित किया है। तथा स्पष्ट किया है कि आनन्द ही मनुष्य जीवन का आधार है तथा इसको प्राप्त करने के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में आनन्द के अभाव में किसको महत्त्वहीन बताया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में आनन्द के अभाव में पंचकोश तथा पंचजन सभी शून्य व निष्प्रभ हैं अर्थात् मनुष्य को यदि आनन्द के क्षण ही प्राप्त न हों, तो उसके शरीर को संगठित करने वाले पाँच कोश अर्थात् पंचकोश तथा पंचजन का अस्तित्वव्यर्थ है, उनका कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

(iii) कवि ने आनन्द के क्षण के महत्व को किस प्रकार प्रकट किया है?
उत्तर:
कवि ने आनन्द के एक क्षण के महत्व को प्रकट करते हुए कहा है कि आनन्द की एक वृंद मनुष्य के लिए सागर के समान है और प्रत्येक जीवात्मा उसकी मनोहर मछली है।

(iv) “मधु की एक बूंद मिथ्या है, कोई ऐसी बात कहे मत।” इस पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
इस पंक्ति से कवि का आशय यह है कि जीवन में आनन्द की प्राप्ति के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं अर्थात् मनुष्य जीवन-पर्यन्त आनन्द की प्राप्ति के
लिए प्रयासरत् रहता है, इसलिए आनन्द को मिथ्या मानना सर्वथा गलत है।

(v) ‘शक्तिहीन’ में कौन-सा समास है? विग्रह करके स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्तिहीन-शक्ति से हीन (तत्पुरुष समास)।

(ख) भवानीप्रसाद मिश्र

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
प्रयोगशील एवं नई कविता के सशक्त कवि भवानीप्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, 1914 को होशंगाबाद जिले के ‘रेखा’ तट पर बसे ‘टिगरिया’ नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सीताराम मिश्र तथा माता का नाम श्रीमती देवी था। जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज से बी.ए. करने के बाद ये वर्ष 1942 के आन्दोलन में तीन वर्ष के लिए जेल गए। जेल में ही इन्होंने बांग्ला भाषा का अध्ययन किया। आकाशवाणी के मुम्बई केन्द्र में हिन्दी विभाग के प्रधान पद से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने ‘सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय’ का सम्पादन किया। वर्ष 1985 में इन्होंने इस संसार से विदा ली।

साहित्यिक गतिविधियाँ
इनकी रचनाओं पर गाँधी-दर्शन को स्पष्ट प्रभाव है। चिन्तनशीलता इनकी रचनाओं की एक प्रमुख विशिष्टता है। इन्होंने जीवन से जुड़ी गहरी विडम्बनाओं एवं विसंगतियों को सरल शैली में चित्रित किया है। प्रकृति सौन्दर्य चित्रण में इनका मन बहुत रमता था। इनकी कविताओं में वैयक्तिता एवं आत्मानुभूति के स्वर भी मुखरित हुए हैं।

कृतियाँ
अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ में शमिल होने से इनकी रचनाओं से पहली बार पाठक परिचित हुए। इसके अतिरिक्त इनकी प्रमुख रचनाएँ-गीत-फरोश, चकित हैं दुःख, अँधेरी कविताएँ, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, मानसरोवर दिन, कालजयी आदि हैं।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. प्रेम की एक पक्षीयता के दर्शन मिश्र जी की कविता में प्रेम की एक पदीयता के दर्शन होते हैं। उसमें आकुलता, आँसू और अभाव की चर्चा अधिक
  2. मानववादी कलाकार मिश्र जी एक मानववादी कलाकार हैं। मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा उनका अभीष्ठ है। मानववादी भावना उनके काव्य में सर्वत्र समाहित है, चाहे कवि प्रकृति की दृश्यावली में डूबा हो या विशेष मनःस्थिति में आत्मरथ हो गया है।
  3. प्रगतिशील चेतना मिश्र जी के काव्य में प्रगतिशील चेतना के भी दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी प्रगतिशील चेतना से पूँजीपतियों, सामन्तों और शासकों के अत्याचारों का  सजीव वर्णन किया है।
  4. प्रकृति चित्रण मिश्र जी प्रकृति के कवि हैं। इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य के चित्र इतनी गहराई से और सजीवता से उभारे हैं कि उनमें प्रकृति, मोहक और यथार्थ रूप में साकार हो उठी है।।
  5. गाँधीवादी विचारधारा गाँधी दर्शन अनुभूति के स्तर पर उनके विचारों में घुलमिल कर उनके काव्य में प्रकट हुआ है। उन्होंने अपने ‘गाँधी पंचशती’ कविता संग्रह में अपनी गाँधीवादी विचारधारा का सुन्दर परिचय दिया है।

कला पक्ष

  1. भाषा मिश्र जी की भाषा सहज, सरल, बोधगम्य और स्वाभाविक बन पड़ी है। इन्होंने स्वयं को संस्कृत की तत्सम शब्दावली से बचाकर सामान्य भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।
  2. शैली मिश्र जी की भाषा की तरह ही शैली भी सरल, सहज और प्रवाहमय है।
  3. बिम्ब एवं प्रतीक योजना मिश्र जी ने अपनी व्यक्तित्व अनुभूति और आस्था के सन्दर्भ में प्रतीकों का प्रयोग किया है, इसके साथ ही अपनी कविता में विविध प्रकार के बिम्बों को भी अपनाया है।
  4. अलंकार एवं छन्द मिश्र जी ने अपने काव्य में अलंकारों का सरल, सहज और स्वाभाविक प्रयोग किया है। अलंकारों का छलीप मिश्र जी को मोहित नहीं कर सका प्रयोगवादी प्रवृत्ति के कारण इन्होंने अधिकांश रूप से छन्द मुक्त कविताएँ लिखी हैं, परन्तु उनमें लय और ध्वन्यात्मकता का पूर्ण ध्यान रखा है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
प्रयोगवादी कवियों में भवानीप्रसाद मिश्र एक प्रख्यात कवि के रूप में जाने जाते हैं। प्रयोगवादी एवं नई कविता की काव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि के रूप में इन्हें अत्यधिक सम्मान प्राप्त है।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

बूंद टपकी एक नभ से

प्रश्न 1.
बूंद टपकी एक नभ से, किसी ने झुककर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो, हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो, ठगा-सा कोई किसी की आँख
देखे रह गया हो, उस बहुत से रूप को,
रोमांच रोके सह गया हो। बूंद टपकी एक नभ से,
और जैसे पथिक छ मुस्कान, चौंके और घूमे आँख उसकी,
जिस तरह हँसती हुई-सी आँख चूमे,
उस तरह मैंने उठाई आँख : बादल फट गया था,
चन्द्र पर आता हुआ-सा अभ्र थोड़ा हट गया था।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उदधृत हैं तथा उसके रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पशि ‘दूसरा सप्तक’ काव्य संग्रह में संकलित कविता ‘बूंद टपकी एक नब से ‘से उदधृत हैं तथा इसके रचनकार भवानीप्रसाद मिश्र ‘ जी हैं|

(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बूंद के माध्यम से प्रेमिका के द्वारा चित्त को आकर्षित करने के लिए किए जाने वाले भावों की अभिव्यक्ति की है। कवि ने इसके साथ ही आकाश में बूंद के टपकने जैसी सामान्य-सी प्राकृतिक घटना को अनेक उपमानों से व्यक्त किया है।

(iii) “हँस रही-सी आँख ने जैसे, किसी को कस दिया हो।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत क्ति का आशय यह है कि आकाश से टपकी बूंद प्रेयसी के रूप में जब प्रेमी पर गिरती है, तो उसे लगता है जैसे उसने उसे अपनी ओर आकर्षित कर अपने बहुपाश में बाँध दिया हो।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जब नायिका की ओर देखा तब क्या हुआ था?
उत्तर:
कवि ने जब अपनी आँखें उठाई और आकाश की ओर देखा, तो बादल फट गया था अर्थात् जब उन्होंने नायिका की ओर देखा तो उसके मुख पर पड़ा हुआ पूँघट हट गया था और ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों चन्द्रमा के ऊपर से बादल हट गए हों। यहाँ चन्द्रमा को नायिका के तथा पूँघट को बादल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में उपमा, उत्प्रेक्ष एवं अनुप्रास अलंकार हैं।

(ग) गजान माधव मुक्तिबोध

जीवन परिचय एवं साहित्यिक
उपलब्धियाँ नई कविता के प्रतिनिधि कवि गजानन माधव मुक्तिबोध’ का जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर, जिला ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता माधव मुक्तिबोध पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर थे। इनकी माता का नाम पार्वती बाई था। इन्दौर के होल्कर कॉलेज से बी.ए. करने के बाद इन्होंने मित्रों के सहयोग से एम.ए. किया और राजनान्दगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इन्होंने शान्ताबाई नामक एक विपन्न लड़की से प्रेम विवाह किया। विभिन्न परिस्थितियों से जूझते हुए मुक्तिबोध को अपना सम्पूर्ण जीवन अभाव, संघर्ष और विपन्नता में ही व्यतीत करना पड़ा। सितम्बर, 1964 में इनका देहावसान हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
आधुनिक जीवन मूल्यों की सशक्त अभिव्यक्ति के लिए इन्होंने नए विषयों को नवीन सन्दर्भो से युक्त करके प्रस्तुत किया। जन-जीवन के यान्त्रिक स्वरूप को पहचानकर उसकी व्याख्या करने वाले आधुनिक हिन्दी कविता में मुक्तिबोध सम्भवतः पहले कवि हैं। मुक्तिबोध बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। वे आम आदमी की वकालत करने वाले कवि थे। उनका व्यक्तित्व अपनी पूरी पीढी में विशिष्ट रहा है। इन्होंने ‘हल’ तथा ‘नया खून’ पत्रिकाओं का सम्पादन किया।

कृतियाँ
काव्य रचनाएँ चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल तथा तार सप्तक में प्रकाशित रचनाएँ।
कहानी संग्रह काठ का सपना।
उपन्यास विपात्र।।
आत्माख्यान एक साहित्यिक की डायरी।।
निबन्ध संग्रह नई कविता का आत्म-संघर्ष तथा अन्य निबन्ध।
पुस्तक समीक्षा उर्वशीः दर्शन और काव्य, कामायनी : एक पुनर्विचार।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. यायावरी वृति मुक्तिबोध की कविता में यायावरी वृति के दर्शन होते हैं। ये जीवन की सच्चाई की खोज के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकते रहे।
  2. आधुनिक जीवन की विभीषिकाओं का चित्रण गजानन जी की कविता में आधुनिक जीवन की विभीषिकाओं को जितनी सूक्ष्म दृष्टि से चित्रित किया गया है, उतनी किसी अन्य कवि के काव्य में प्राप्त नहीं होती हैं।
  3. सन्त्रास और कुण्ठा इनकी कविता में सन्त्रास एवं कुण्ठा की भी व्यंजना हुई है।
  4. विद्रोह या क्रान्ति सामाजिक अव्यवस्था, कुरीतियों के प्रति विद्रोह या क्रान्ति का स्वर इनकी कविता का प्राण है।
  5. सत्-चित् वेदना मुक्तिबोध जी सत्-चित्-वेदना के कवि हैं। इनका दुःख का बोध जितना गहरा है उतना ही व्यापक है।

कला पक्ष

  1. भाषा मुक्तिबोध के काव्य की भाषा कृत्रिमता के आडम्बर से मुक्त हैं। इनकी भाषा इनके विचारों का सफल प्रतिनिधित्व करने में समर्थ है। इन्होंने अपनी भाषा को सरल, सहज एवं सम्प्रेषणीय बनाने के लिए उर्दू, अंग्रेजी और देशज भाषा के शब्दों को अपनाया है।
  2. शैली गजानन जी ने अपनी लम्बी कविताओं में फैन्टेसी (कल्पना) शैली का आश्रय लिया है।
  3. बिम्ब एवं प्रतीक मुक्तिबोध जी ने काल्पनिक एवं जादुई प्रतीकों के माध्यम से बिम्बों का निर्माण किया है, जो संवेदनात्मक अनुभूति की तीव्रता को तो प्रदर्शित करते हैं, परन्तु मस्तिष्क में किसी स्पष्ट चित्र का निर्माण नहीं करते। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी कविताओं में प्रतीकों के माध्यम से मिथिकों की भी सृष्टि की है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
गजानन माधव मुक्तिबोध’ कवि, कथाकार, समीक्षक, विचारक एवं श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। अनेक विद्वान् सच्चे अर्थों में उन्हें ही ‘प्रयोगवादी’ कविता का अग्रगण्य कवि मानते हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

मुझे कदम-कदम पर

प्रश्न 1.
मुझे कदम-कदम पर, चौराहे मिलते हैं बाँहें फैलाए।
एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें
फूटतीं व मैं उन सब पर से
गुजरना चाहता हूँ; बहुत अच्छे लगते हैं।
उनके तजुर्बे और अपने सपने….. सब सच्चे लगते हैं;
अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
में कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ,
जाने क्या मिल जाए।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस रचना से उदधृत है तथा उसके कवि कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘मुझे कदम-कदम पर से उधृत हैं तथा इसके कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध जी हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि जीवन विकल्पों से परिपूर्ण है। किसी भी खोज के समय व्यक्ति के सामने अनन्त मार्ग खुल जाते हैं और व्यक्ति इन सबका आनन्द प्राप्त करना चाहता है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर:
कवि को बहिर्जगत में इतने मनोरम, प्रभावपूर्ण और इतने सुन्दर दृश्य अपने चारों ओर देखने को मिलते हैं, वह उससे प्रेरणा ग्रहण करने का सन्देश इस पद्यांश के माध्यम से देता है।

(iv) कवि सदैव प्रयत्नशील अवस्था में विद्यमान क्यों रहता हैं?
उत्तर:
कवि के मन में सदैव जिज्ञासा बनी रहती है कि अनुभवों से अलग कोई और विचित्र अनुभव भी उसे कभी-न-कभी किसी-न-किसी रूप में प्राप्त हो सकता है। इन अनुभवों की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील होना अति आवश्यक है, इसलिए कवि सदैव प्रयत्नशील अवस्था में विद्यमान रहता है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में उपमा व पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।

प्रश्न 2.
कहानियाँ लेकर और मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते
जहाँ जरा खड़ा होकर बातें कुछ करता हैं…..
उपन्यास मिल जाते। दु:ख की कथाएँ,
तरह-तरह की शिकायतें, अहंकार-विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान,
जमाने के जानदान सूरे व आयतें सुनने को मिलती हैं।
कविताएँ मुस्करा लाग-डॉट करती हैं, प्यार बात करती हैं।
मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियाँ श्रद्धाएँ चढ़ती हैं!!
घबराएँ प्रतीक और मुस्काते रूप-चित्र लेकर
मैं घर पर जब लौटता…….उपमाएँ, द्वार पर
आते ही कहती हैं कि सौ बरस और तुम्हें जीना ही चाहिए।

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) कवि के सामने उचित चयन की समस्या कब उत्पन्न हो जाती है?
उत्तर:
कवि के अनुसार हमारा जीवन विविधतापूर्ण है। जीवनरूपी मार्ग में कवि को कदम-कदम पर अनेक चौराहे मिलते हैं। इन चौराहों के प्रत्येक कोण में अनेकानेक कहानियों के कथानक छिपे रहते हैं, जिसके फलस्वरूप कवि के सम्मुख उचित चयन की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं कि मैं किस कथानक को चुनाव करके अपने जीवन को गति प्रदान करूँ।।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने संसार की गति को विचित्र क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने संसार की गति को विचित्र इसलिए कहा है, क्योंकि वह किसी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करतीं, अपितु उचित के चयन में प्रोत्साहित तथा अनुचित के चयन में फटकार लगाने की अपेक्षा यह उलझन ही पैदा करती है, क्योंकि यह संसार अनुचित का चयन करके मृत्यु का वरण करने वाले तथा उचित का चयन करके जीवन को सार्थक बनाने वाले के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करती हैं।

(iii) व्यक्ति के जीवन में सदैव कैसी समस्या का प्रश्न विद्यमान रहेगा?
उत्तर:
व्यक्ति अपने जीवन में सदैव उचित मार्ग का चयन करने में असमर्थ रहता है, यदि उसे सौ साल जीवित रहने का भी अवसर मिल जाए तब भी उसके हित में उचित चयन का प्रश्न विद्यमान रहेगा।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने यह भाव स्पष्ट करना चाहकि जीवन में समस्या केवल अभावों की ही नहीं है, वरन् उपयुक्त चुनाव की भी है। यहाँ जीवन की विविधता और उसमें उचित के चयन की समस्या को जीवन की विकटतम समस्या के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

(v) अहंकार का सन्धि विच्छेद कीजिए।
उत्तर:
अहंकार – अहम् + कार (अनुस्वार सन्धि)

(घ) गिरिजाकुमार माथुर

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ (2009)
प्रयोगशील कवियों में विशिष्ट स्थान रखने वाले गिरिजाकुमार माथुर का जन्म गाय प्रदेश के अशोक नगर नामक स्थान पर वर्ष 1919 में हुआ था। इनके पिता का नाम भी देगी चरण था। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा एल.एल.बी. करने के बाद कई जगह नौकरी करते हुए अन्त में वर्ष 1953 में आकाशवाणी लखनऊ में उ-निदेशक के रूप में इनकी पुनः नियुक्ति हुई। इन्होंने साहित्य सृजन के साथ ‘गगनांचल’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। वर्ष 1994 में भौतिक संसार को छोड़कर सदा के लिए प्रस्थान कर गए।

साहित्यिक गतिविधियाँ
गिरिजाकुमार माथुर प्रयोगवादी कवियों में अपना विशेष स्थान रखते हैं। ये तार सप्तक के कवि हैं। इनके काव्य में प्रयोग तथा समन्वय का सुन्दर सामंजस्य दिखाई देता है। ये रोमाण्टिक अनुभूति सम्पन्न प्रणय-भाव और सौन्दर्य के प्रति नवीन दृष्टि को अभिव्यक्ति देने के लिए सुप्रसिद्ध है।

इन्होंने आधुनिक जीवन की कुण्ठाओं के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी अपने काव्य में रथान दिया है। कविता के अतिरिक्त, इन्होंने एकांकी नाटक आलोचना आदि भी लिखी हैं।

कृतियाँ
प्रमुख काव्य संकलन मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बन्ध न सका, छाया मत छूना, साक्षी रहे वर्तमान, पृथ्वीकल्प आदि हैं।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. अनुभूतियों एवं संवेदनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्ति इनके काव्य में अनुभूतियों एवं संवेदनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है। इन्होंने विभिन्न अनुभवों को विभिन्न रूपों में व्यक्त किया है।
  2. पूँजीवादी तथा साम्राज्यवादी भावनाओं का विरोध इन्होंने पूँजीवादी तथा साम्राज्यवादी भावनाओं के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई और समाजवादी भावनाओं की अभिव्यक्ति की है।
  3. प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन इन्होंने प्रकृति के सौन्दर्य, उसकी उदासी, आदि का वर्णन अपने काव्य में किया है। प्रकृति चित्रण का प्रायः उद्दीपनकारी रूप इनके काव्य में मिलता है।

कला पक्ष

  1. भाषा इनकी भाषा प्रौद्ध, प्रांजल तथा परिनिष्ठित खड़ी बोली है। जिसमें संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के साथ-साथ बोलचाल के शब्दों का भी बहुत प्रयोग हुआ है।
  2. प्रतीक इन्होंने अपने काव्य में विविध प्रतीकों; जैसे-परम्परागते, व्यक्तिगत, प्राकृतिक, देशगत, ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक आदि का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया है।
  3. बिम्ब इनके काव्य में वस्तुपरक, ऐन्द्रिय, आध्यात्मिक तथा भाव बिम्बों का प्रयोग हुआ है। इनकी बिम्ब योजना सुन्दर है।
  4. अलंकार एवं छन्द इन्होंने प्राचीन अलंकार के साथ नवीन अलंकारों का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है। इनके काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है, परन्तु फिर भी इनका विशेष झुकाव मुक्त छन्द की ओर है। इन्होंने अनेक सुन्दर, छन्दबद्ध तथा तुकबन्दी से परिपूर्ण गीत भी लिखे हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान
गिरिजाकुमार माथुर प्रयोगवादी कवियों में ख्यातिप्राप्त कवि माने जाते हैं। प्रयोगवादी कवि के रूप में ये इस नई काव्यधारा के अग्रदूत हैं। ये तार सप्तक के सात कवियों में से एक हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

चित्रमय धरती

प्रश्न 1.
ये धूसर, साँवर, मटियाली, काली धरती फैली है।
कोसों आसमान के घेरे में रूखों छाए नालों के हैं।
तिरछे ढलान फिर हरे-भरे लम्बे चढ़ाव झरबेरी, ढाक,
कास से पुरित टीलों तक जिनके पीछे छिप जाती है।
गढ़बाटों की रेखा गहरी ये सोंधी घास बँकी रूदे हैं।
धूप बुझी हारे भूरी सूनी सूनी उन चरगाहों के पार कहीं
धुंधली छाया बन चली गई है पाँत दूर के पेड़ों की
उन ताल वृक्ष के झौरों के आगे दिखती
नीली पहाड़ियों की झाँई जो लटे पसारे हुए।
जंगलों से मिलकर है एक हुई

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं तथा उसके रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ ‘लैण्डस्केपः धूप के धान’ काव्य संग्रह में संकलित 
कविता ‘चित्रमय धरती’ से उद्धृत हैं तथा इसके रचनाकार  गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।

(ii) कवि ने धरती के सौन्दर्य का वर्णन किस रूप में किया है?
उत्तर:
कवि धरती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि ये धूल से भरी हुई मटमैली, सवली, काली धरती आसमान के घेरे में बहुत दूर तक फैली हुई है। अर्थात् यह धरती बहुत विशाल है। इस धरती पर कहीं सुगन्धित घास से भरपूर मैदान हैं तो कहीं पर केवल जंगल ही जंगल दिखाई दे रहे हैं।

(iii) कवि ने धरती के भव्य रूप का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर:
धरती के दृश्य को दूर से देखने पर पहाड़ियों और जंगल दोनों एक ही रूप तथा आकार के दिखाई दे रहे हैं, वे अलग-अलग नहीं लगते। इस प्रकार कवि ने धरती के भव्य रूप का वर्णन किया हैं।

(iv) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पतियों में कवि ने इस विराट धरती के अब तक देखें अनदेखें सभी प्रकार के सौन्दर्य का चित्रण किया है। कवि की दृष्टि धूसर, सॉवर, मटियाली, काली धरती के शोभामय स्वरूपों की ओर भी गई है। अतः इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने धरती के सौन्दर्य का चित्रण किया है।

(v) “सूनी-सुनी उन चरगाहों के पार कहीं प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार
उत्तर:
“सूनी-सूनी उन चरगाहों के पार कहीं” इस पंक्ति में सूनी शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(ङ) धर्मवीर भारती

जीवन परिचय एवं साहित्यिक
उपलब्धियाँ हिन्दी काव्य में अपनी तीक्ष्ण आधुनिक दृष्टि, स्वच्छन्द प्रवृत्ति एवं व्यक्तिवादी चेतना के लिए प्रख्यात धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, 1926 में इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. करने के बाद ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही हिन्दी के प्राध्यापक नियुक्त हुए।

वर्ष 1959 में बम्बई से प्रकाशित होने वाले हिन्दी के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ के सम्पादन का भार भी इनके कन्धों पर आया। इन्होंने धर्मयुग को व्यावसायिक स्तर से ऊँचा उठाकर उसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, लोकप्रिय एवं कलात्मक विषयों को समाविष्ट कर उसे एक उच्च आदर्श पर पहुँचाया। ‘भारत-भारती’, ‘व्यास सम्मान’, ‘पद्मश्री’ आदि सम्मानों से सम्मानित इस महान् साहित्यकार का 5 सितम्बर, 1997 को निधन हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
धर्मवीर भारती के जीवन पर साहित्यिक वातावरण का प्रभाव बाल्यकाल से ही पउने लगा था। निराला, पन्त, महादेवी वर्मा और डॉ. रामकुमार वर्मा जैसे महान साहित्यकारों के सम्पर्क से उन्हें साहित्य-सृजन की प्रेरणा प्राप्त हुई और उनकी प्रतिभा में भी निखार आया। मैं एक प्रतिभाशाली कवि, विचारक, नाटककार, अद्वितीय कथाकार, निबन्धकार, एकांकीकार, आलोचक और नीर-क्षीर विवेकी सम्पादक थे। उन्होंने रेखाचित्र, यात्रावृत्त, संस्मरण आदि अन्य विधाओं पर अपनी लेखनी चलाकर अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया।

कृतियाँ
काव्य रचनाएँ ठण्डा लोहा, सात गीत वर्ष, अन्धा युग, कनुप्रिया आदि।
उपन्यास गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा।
कहानी संग्रह चाँद और टूटे हुए लोग।
निबन्ध संग्रह कहनी- अनकनी, पश्यन्ती, ठेले पर हिमालय
नाटक नदी प्यासी थी।
एकांकी संग्रह नीली झील।
आलोचना ग्रन्थ साहित्य, मानव-मूल्या

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. स्वच्छन्दता भारती जी ने अपने काव्य में भावों को बड़ी सरलता एवं स्पष्टता के साथ व्यक्त किया है। इन्होंने भाव-चित्रण एवं दृश्य-चित्रण में नवीन उद्भावनाओं का परिचय दिया है। उनकी प्रारम्भिक कृति ‘ठण्डा लोहा से लेकर ‘कनुप्रिया’ तथा सभी में स्वच्छन्दता की प्रवृति’ विद्यमान है।
  2. मांसलता का पुट प्रयोगवादी भारती जी की कविताओं में प्रणय भाव में मांसलता का पुट विद्यमान है।
  3. प्रकृति चित्रण भारती जी की कविताओं में प्रकृति चित्रण का विनियोजन मानवीय भावनाओं को उद्दीप्त करने तथा आलंकारिक रूप में हुआ है।

कला पक्ष

  1. भाषा भारती जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी सहज और सरल खड़ी बोली है। इन्होंने अपनी भाषा में तद्भव और विदेशी शब्दावली का उन्मुक्त रूप से प्रयोग किया है।
  2. अप्रस्तुत योजना अप्रस्तुत योजना की दृष्टि से भारती जी ने परम्परागत और नवीन दोनों ही प्रकार के उपमानों की योजना की है।
  3. प्रतीक योजना प्रतीक योजना की दृष्टि से भारती जी की कविताएँ पर्याप्त समृद्ध हैं, पौराणिक प्रतीकों की योजना में भारती जी सिद्धहस्त हैं।
  4. बिम्ब और मिथक भारती जी के काव्य में बिम्बों और मिथकों का बड़ा ही सार्थक प्रयोग देखने को मिलता है। उनके गीत नाट्य ‘अन्धा युग’ मिथक की दृष्टि से छायावादोत्तर काल की सबलतम कृति है। बिम्ब निर्माता में भारती जी की अभिरुचि प्राकृतिक उपादानों के प्रयोग की और अधिक रही है।
  5. अलंकार भारती जी के अलंकार प्रयोग में भी नवीनता के दर्शन होते हैं। हिन्दी साहित्य में स्थान धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार हैं। इनकी रचनाओं में मन और सामूहिक चेतना दोनों की ही अभिव्यक्ति हुई हैं। इन्हें आधुनिक युग के विशिष्ट रचनाकार ‘ के रूप में सम्मान प्राप्त है।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक ४ अंक) के उत्तर देने होंगे।

साँझ के बादल

प्रश्न 1.
ये अनजान नदी की नावे जादू के-से पाल
उड़ाती आतीं मन्थर चाल! नीलम पर किरनों की साँझी
एक न डोरी एक न माँझी फिर भी लाद निरन्तर लातीं
सेन्दुर और प्रवाल! कुछ समीप की कुछ सुदूर की
कुछ चन्दन की कुछ कपूर की कुछ में गेरु, कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल! ये अनजान नदी की नावे
जादू के-से पाल उड़ाती आतीं मन्थर चाल!

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत काव्यांश के केन्द्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रकृति के गत्यात्मक रूप के चित्रण के साथ ही अपनी वर्णन-शक्ति की सजीवता को प्रदर्शित करते हुए ‘साँवा के बादलों को पालों वाली नावों जैसा चित्रित किया है, जिसमें बहुत-सी रंगीन छवियाँ एवं आकृतियाँ बनती-बिगड़ती रहती हैं।

(ii) कवि ने सन्ध्याकालीन बादलों के सौंदर्य किस रूप में किया है?
उत्तर:
कवि ने सन्ध्याकालीन बादलों के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि ये बादल अनजान नदी की नावों हैं, जो धीमी गति से जादू के पालों को अड़ाती हुई चती जा रही है अर्थात् जिस प्रकार नदी में पानी के बहाव के साथ सबकुछ बहकर चला जाता है उसी प्रकार बादलरूपी अनजान नदी की नार्वे अपने साथ सभी कुछ बहाती हुई चलती हैं।

(iii) कवि ने बादलरूपी नावों के किन-किन रूपों का वर्णन किया हैं?
उत्तर;
कवि के अनुसार बादलरूपी नावों में विभिन्न प्रकार की नावें हैं, कुछ नावें हैं, तो कुछ दूर की, कुछ चन्दन की तो कुछ कपूर की, कुछ गेरू तो कुछ रेशम की और कुछ
केवल जाल की जो दृष्टि को भ्रमित कर बाँधने का कार्य करती है।

(iv) ‘प्रवाल’ और ‘सुद्र’ शब्दों में से उपसर्ग अँटकर लिखिए।
उत्तर:
प्रवाल में ‘प्र’ उपसर्ग और सुदूर में ‘सु’ उपसर्ग है।

(v) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के रचनाकार एवं रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ ‘धर्मवीर भारती’ द्वारा रचित ‘सात गति-वर्ष’ काव्य संग्रह में संगलित कविता ‘साँझ के बादल’ से अवतरित है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name त्यागपथी
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का की प्रमुख घटना को अपने शब्दों में लिखिए (2018)
अथवा
‘त्यागपथी खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘त्यागपथ’ की कथावस्तु/कथानक संक्षेप में लिखिए। (2017, 16, 14, 13, 12, 11)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन / उल्लेख कीजिए। (2018, 12, 10)
अथवा
“त्यागपथी खण्डकाव्य में सम्राट हर्षवर्द्धन का चरित्र ही केन्द्र है। और उसी के चारों ओर कथानक का चक्र घूमता है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। (2012, 10)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में वर्णित किसी प्रेरणास्पद घटना का उल्लेख कीजिए। (2010)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
“हर्ष के युग के सांस्कृतिक वैभव, ज्ञानदान, शिक्षानुशासन, सर्वधर्म एकता, समाज की चरित्रशीलता आदि की झलक ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के माध्यम से देखी जा सकती है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2010)
उत्तर:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षकालीन भारतीय समाज एवं जीवन का उदात्त चित्र प्रस्तुत हुआ है। वर्णन कीजिए। (2013, 12) उत्तर प्रसिद्ध साहित्यकार रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्ये एक ऐतिहासिक काव्य हैं, जिसमें छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन के त्याग, तप और सात्विकता का वर्णन किया गया है। इस खण्डकाव्य में कवि ने हर्ष की वीरता का वर्णन किया है। साथ ही भारत की राजनीतिक एकता, संघर्ष, हर्ष की वीरता और उनके द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों को भारत से भगाने का भी वर्णन किया हैं।

प्रथम सर्ग

राजकुमार हर्षवर्धन वन में शिकार खेलने में व्यस्त थे, तभी उन्हें पिता के रोगग्रस्त होने का समाचार मिला। कुमार तुरन्त लौट आए। पिता को रोगमुक्त करने के लिए वे बहुत उपचार करवाते हैं, परन्तु असफल रहते हैं। उनके बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरापथ पर हूणों से युद्ध करने में लगे हुए थे। हर्ष ने दूत भेजकर पिता की अस्वस्थता का समाचार उन तक पहुँचाया। उधर उनकी माता ने अपने पति की अस्वस्थता को बढ़ता हुआ देखकर आत्मदाह करने का निश्चय किया और बहुत समझाने पर भी वह अपने निर्णय पर अडिग रहीं और पति की मृत्यु से पूर्व ही आत्मदाह कर लिया। कुछ समय पश्चात् हर्ष के पिता की भी मृत्यु हो गई। पिता का अन्तिम संस्कार करके हर्ष दुःखी मन से राजमहल लौट आए।

द्वितीय सर्ग

पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर राज्यवर्द्धन भी अपने नगर लौट आए। माता पिता की मृत्यु से व्याकुल होकर उन्होंने वैराग्य लेने का निश्चय किया, परन्तु तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी छोटी बहन राज्यश्री को बन्दी बना लिया है और उसके पति गृहवर्मन को मार डाला है। यह सुनकर राज्यवर्द्धन सब कुछ भूलकर मालवराज को परास्त करने चल पड़ते हैं। वह गौड़ नरेश को हरा देते हैं, पर गौड़ नरेश धोखे से मार्ग में उनकी हत्या करवा देता है।

जब ये सब समाचार हर्षवर्द्धन को ज्ञात होता है, तो वह विशाल सेना लेकर गौड़ नरेश से युद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं, परन्तु तभी सेनापति से उन्हें अपनी बहन के वन में जाने का समाचार मिलता है, जिसे सुनकर वह अपनी बहन को खोजने वन की ओर चल पड़ते हैं। वहाँ एक भिक्षु द्वारा उन्हें राज्यश्री के आत्मदाह करने की बात पता चलती है। वह शीघ्र ही वहाँ पहुँचकर अपनी बहन को ऐसा करने से रोक लेते हैं और कन्नौज लौट आते हैं।

तृतीय सर्ग (2008)

इस सर्ग में सम्राट हर्ष की इतिहास प्रसिद्ध दिग्विजय का वर्णन है। छ: वर्षों तक निरन्तर युद्ध करते हुए हर्ष ने समस्त उत्तराखण्ड को जीत लिया। उन्होंने कश्मीर, मिथिला, बिहार, गौड़, उत्कल, नेपाल, वल्लभी, सोरठ आदि सभी राज्यों को जीत लिया तथा यवन, हूण आदि विदेशी शत्रुओं का नाश करके देश को शक्तिशाली एवं सुगठित राज्य बनाया और अनेक वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन किया। उनके राज्य में धर्म, संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हुई। उन्होंने कन्नौज को ही अपने विशाल साम्राज्य की राजधानी बनाया।

चतुर्थ सर्ग

इस सर्ग में राज्यश्री, हर्ष और आचार्य दिवाकर के वार्तालाप का वर्णन किया गया है। यद्यपि राज्यश्री अपने भाई के साथ कन्नौज के राज्य की संयुक्त रूप से शासिका थी, परन्तु मन में तथागत की उपासिका थी और वह भिक्षुणी बनना चाहती थी, परन्तु हर्ष इसके लिए तैयार नहीं थे। बाद में आचार्य दिवाकर ने राज्यश्री को मानव कल्याण में लगने का उपदेश दिया। राज्यश्री ने उनके उपदेशों का पालन किया और वह मानव सेवा में लग गई।

पंचम सर्ग (2012, 10)

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग की कथा लिखिए। (2018)
इस सर्ग में हर्ष के त्यागी और व्रती जीवन का वर्णन किया गया है। हर्ष ने प्रयाग में त्याग-व्रत का महोत्सव मनाने का निश्चय किया। उन्होंने देश के सभी ब्राह्मणों, श्रमणों, भिक्षुओं, धार्मिक व्यक्तियों आदि को प्रयाग में आने के लिए निमन्त्रण दिया और सम्पूर्ण संचित कोष को दान देने की घोषणा की-प्रतिवर्ष माघ के महीने में त्रिवेणी तट पर विशाल मेला लगता था। इस अवसर पर प्रति पाँचवें वर्ष हर्षवर्द्धन अपना सर्वस्व दान कर देते थे तथा अपनी बहन राज्यश्री से वस्त्र माँगकर धारण करते थे। इस प्रकार वे एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपनी राजधानी वापस लौटते थे। इस दान को वे प्रजा-ऋण से मुक्ति का नाम देते थे। इस प्रकार, कर्तव्यपरायण, त्यागी, परोपकारी, परमवीर महाराज हर्षवर्धन का शासन सब प्रकार से सुखकर तथा कल्याणकारी सिद्ध होता है। सम्राट हर्षवर्द्धन के माध्यम से कवि ने तत्कालीन श्रेष्ठ शासन का उल्लेख करते हुए भारतीय धर्म, राजनीति, संस्कृति और समाज की उन्नति का उत्कृष्ट वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली की विवेचना कीजिए। (2018)
अथवा
खण्डकाव्य की कसौटी पर ‘त्यागपथी’ का मूल्यांकन कीजिए। (2016)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
खण्डकाव्य की विशेषताओं (तत्त्वों, लक्षणों) के आधार पर ‘त्यागपथी’ का मूल्यांकन कीजिए। (2013, 12, 10)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य/ काव्यशिल्प) को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (2011, 10)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के उददेश्य/ सोददेश्यता (सन्देश) पर प्रकाश डालिए। (2015, 13, 11)
अथवा
“त्यागपथी खण्डकाव्य भारतीयता का सन्देश देता है।” स्पष्ट कीजिए (2013)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय जीवन-शैली और सामाजिक व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018, 17)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2011, 10)
उत्तर:
कविवर रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है।

कथानक की ऐतिहासिकता

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्द्धन की कथा का वर्णन हुआ है। कवि ने हर्षवर्द्धन के माता-पिता की मृत्यु, भाई-बहनोई की हत्या, कन्नौज के राज्य संचालन, मालवराज शशांक से युद्ध, हर्ष द्वारा दिग्विजय करके धर्मशासन की स्थापना तथा प्रत्येक पाँचवें वर्ष तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व दान करने की ऐतिहासिक घटनाओं को अत्यधिक सरल एवं सरस रूप में प्रस्तुत किया है। खण्डकाव्य की कथावस्तु यद्यपि ऐतिहासिक है, तथापि कवि ने अपनी कल्पनाशक्ति का समन्वय कर इसे अत्यन्त रचनात्मक बना दिया है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में प्रभाकरवर्द्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती, उनके दो पुत्र (राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन), एक पुत्री (राज्यश्री), कन्नौज, मालव, गौड़ प्रदेश के राज्यों के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर, सेनापति आदि अनेक पात्र हैं। खण्डकाव्य के नायक सम्राट हर्षवर्द्धन हैं तथा इस काव्य की नायिका हर्ष की बहन राज्यश्री है।

काव्यगत विशेषताएँ

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
भावपक्षीय विशेषताएँ ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भावपक्ष सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. मार्मिकता खण्डकाव्य में अनेक मार्मिक घटनाओं का संयोजन किया गया हैं। इसमें हर्षवर्द्धन की माता का चितारोहण, राज्यवर्द्धन की वैराग्य हेतु तत्परता, राज्यश्री के विधवा होने पर हर्ष की व्याकुलता, राज्यश्री द्वारा आत्मदाह के समय हर्षवर्द्धन के मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है।

2. प्रकृति चित्रण ‘त्यागपथी’ में कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। आखेट के समय हर्षवर्द्धन को पिता के रोगग्रस्त होने का समाचार मिलता है, वे तुरन्त राजमहल को लौट आते हैं।

वन-पशु अविरत, खर-शर-वर्षण से अकुलाए,
फिर गिरि-श्रेणी में खोहों से बाहर आए।”

3. रस निरूपण ‘त्यागपथ’ में कवि ने करुण, वीर, रौद्र, शान्त आदि रसों का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

करुण रस “मुझ मन्द पुण्य को छोड़ न माँ तुम भी जाओ,
छोड़ो विचार यह, मुझे चरण से लिपटाओ।”
वीर रस कन्नौज-विजय को वाहिनी सत्वर,
गुंजित था चारों ओर युद्ध का ही स्वर।”

कलापक्षीय विशेषताएँ ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कलागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. भाषा-शैली खण्डकाव्य की भाषा कथावस्तु और चरित नायक के अनुरूप होती है। ‘त्यागपथ’ की भाषा तत्सम शब्दों से परिपूर्ण है। हर्ष के ज्ञान, मानव प्रेम, त्याग, अहिंसा, निष्काम कर्म आदि आदशों को प्रस्तुत करने के लिए भाषा की तत्सम प्रधानता अनिवार्य थी। वस्तुतः ‘त्यागपथी’ की भाषा सांस्कृतिक आभिजात्य युक्त शब्दों से परिपूर्ण है; जैसे-जून-जन वहाँ था सानु, जब वल्कल उन्हीं ने ले लिए।

2. अलंकार योजना ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है-

“थी दीप्त उनकी शीर्ष मणियों में उदय की लालिमा,
पीने चली ज्यों बाल-रवि का तेज उनकी अग्निमा।”

3. छन्द योजना सम्पूर्ण खण्डकाव्य छब्बीस मात्राओं के गीतिका छन्द में रचित है। पाँचवें सर्ग के अन्त में घनाक्षरी का प्रयोग हुआ है। यह रचना की समाप्ति का ही सूचक नहीं वरन् वर्णन की दृष्टि से प्रशस्ति का भी सूचक है।

4. संवाद शिल्प ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में कवि ने सरल, मार्मिक एवं प्रवाहपूर्ण संवादों का समावेश करके अपनी काव्य और नाट्य कुशलता का परिचय दिया है। अनेक स्थानों पर काव्य नाटिका जैसा आनन्द प्राप्त होता है-

संवाद यदि कोई मिला हो आपको उसका कहीं,
कृष्ण बताएँ-मैं इसी क्षण खोजने जाऊँ वहीं।”

‘त्यागपथी’ का उद्देश्य अथवा सन्देश

किसी भी साहित्यिक कृति में जब किसी सद्गुणी, सदाचारी और महान् व्यक्तित्व रखने वाले ऐतिहासिक पुरुष को चित्रित किया जाता है, तो उसका एकमात्र उद्देश्य जनसाधारण में उन सद्गुणों के प्रति संवेदना जाग्रत करना होता है। सदगुणों का व्यक्तित्व में प्रतिष्ठापन और व्यवहार में उनका अनुकरण ही तो भारतीयता का पर्याय है, जिसका चित्रण हर्षवर्द्धन और राज्यश्री के चरित्रों में करके कवि ने युवकों को भारतीयता का सन्देश दिया है।

प्रस्तुत खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन के महान् गुणों को भावात्मक अभिव्यक्ति देकर उनके असाधारण व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। कवि का उद्देश्य जन-चेतना में, विशेष रूप से युवा-चेतना में, इन सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदना उत्पन्न करना है। त्यागपथो’ उदात्त गुणों के प्रति मन में भावात्मक संवेगों को उत्पन्न करने में सक्षम खण्डकाव्य है।

प्रश्न 3.
‘त्यागपथी’ का शीर्षक इसके कथानक की दृष्टि से कहाँ तक उपयुक्त है? (2016)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नाम की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य सम्राट हर्षवर्द्धन के जीवनवृत्त पर आधारित है। सम्राट हर्षवर्द्धन का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष एवं त्याग की कहानी है। इस महान् सम्राट ने तत्कालीन युग के छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त भारत को एक विशाल साम्राज्य सूत्र में बाँधकर शान्ति, शक्ति एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया। वे प्रजा की वास्तविक उन्नति चाहते थे। उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से राष्ट्र की रक्षा की थी।

शान्ति स्थापना के पश्चात् जब उन्होंने एक संगठित साम्राज्य की स्थापना कर ली, तब भी उन्होंने विलासिता की राह नहीं पकड़ी, वरन् सर्वस्व त्याग करने का दृढनिश्चय किया। इसी संकल्प के कारण वे तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक पांच वर्ष पश्चात् अपने कोष का सर्वस्व दान कर देते थे। किसी राजपुरुष अथवा किसी सम्राट में त्याग की वह आलौकिक ज्योति भरी हुई हो तो वह ‘त्यागपथी’ ही कहलाएगा।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर सम्राट हर्षवर्धन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथना
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
‘त्यागपथी’ के आधार पर हर्षवर्धन का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्धन का चरित्रांकन कीजिए। (2018)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का नायक कौन है? उसके चरित्र को किन विशेषताओं ने उभारा है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथना
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2016)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में प्रस्तुत “हर्षवर्द्धन के चरित्र में मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा है।”पष्ट कीजिए। (2017)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘त्यागपथी’ के नायक हर्षवर्द्धन का चरित्रांकन कीजिए। (2017)
अथवा
‘त्यागपथी’ के नायक का चरित्रांकन कीजिए। (2016)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018, 16)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र (हर्षवर्द्धन) की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017, 16)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक सम्राट हर्षवर्द्धन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य “महाराज हर्षवर्द्धन की दानवीरता और राष्ट्रीयता का द्योतक है।”-इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2013)
अथवा
“त्यागपथी में हर्षवर्द्धन का सम्पूर्ण जीवन मानवीय जीवन के प्रति निष्ठा का एक महान् उदाहरण है।” इस कथन के आधार पर हर्षवर्द्धन के चरित्रांकन में कवि कहाँ तक सफल हुआ है? (2014, 13)
अथवा
“हर्षवर्द्धन का चरित्र देशप्रेम का प्रखरतम उदाहरण है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2012, 11, 10)
उत्तर:
महाराज हर्षवर्द्धन थानेश्वर के महाराज प्रभाकरवर्द्धन के छोटे पुत्र हैं। वे ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नायक हैं। सम्पूर्ण कथा का केन्द्र वही हैं। सम्पूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है। उन्होंने छिन्न-भिन्न भारत को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधने का महान् कार्य किया।
उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।

1. आदर्श पुत्र एवं भाई ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श भाई के रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित होते हैं। जैसे ही पिता के अस्वस्थ होने का समाचार मिलता है, वे शीघ्र ही आखेट से लौट आते हैं। और यथासम्भव उपचार भी करवाते हैं। पिता के स्वस्थ न होने तथा माता के आत्मदाह करने की बात सुनकर वे अत्यन्त व्याकुल हो उठते हैं। इसी प्रकार बहन राज्यश्री को भी वे अग्निदाह से बचाते हैं। वे उसे सम्पूर्ण राज्ये सौंपकर अपने प्रेम का परिचय देते हैं।

बड़े भाई राज्यवर्द्धन के प्रति भी उनके मन में अपार स्नेह है-
“बाहर चले जब राज्यवर्द्धन हर्ष पीछे चल पड़े,
ज्यों वन-गमन में राम के पीछे लक्ष्मण अड़े।”

2. दानी एवं दृढ़ निश्चयी हर्षवर्द्धन दानी एवं दृढ़ निश्चयी हैं। उन्होंने छिन्न-भिन्न भारत को एक करने का दृढ़ निश्चय किया और इसमें सफल भी रहे। भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने जो दृढ़ प्रतिज्ञा की थी, उसको भी पूर्णतया पालन किया। हर्षवर्द्धन तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक पाँच वर्ष पर सम्पूर्ण राजकोष को दान कर देने की घोषणा करते हैं

“हुई थी घोषणा सम्राटे की साम्राज्य-भर में,
करेंगे त्याग सारा कोष ले संकल्प कर में।”

त्रिवेणी संगम पर प्रयाग में प्रति पाँच वर्ष पश्चात् माघ महीने में सर्वस्व त्याग करने का संकल्प लेते हैं। अपने जीवन में वे छ: बार इस प्रकार सर्वस्व दान का आयोजन करते हैं।

3. महान् योद्धा हर्षवर्द्धन महान् योद्धा हैं। उनके पराक्रम के आगे कोई योद्धा टिक नहीं पाता। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सका। महाराज हर्षवर्द्धन की दिग्विजय, उनका युद्ध कौशल और उनकी वीरता भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही परिणाम था कि-

“उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।”

4. पराक्रमी एवं धैर्यशाली हर्षवर्द्धन अत्यन्त पराक्रमी हैं, साथ ही धैर्यशाली भी हैं। पिता की मृत्यु, माता का आत्मदाह, बहनोई की मृत्यु और अपने प्रिय भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु जैसे महान् संकटों को उन्होंने अकेले ही सहन किया था। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं छोड़ा-

“क्रन्दन करती थी प्रजा, शान्त थे हर्ष धीर।।”

5. योग्य एवं कुशल शासक पिता और भाई की मृत्यु के पश्चात् हर्षवर्द्धन राजा बने। उनका शासन सुख, शान्ति और समृद्धि से परिपूर्ण था। उनके राज्य में प्रजा सब प्रकार से सुखी थी, विद्वानों की पूजा की जाती थी। सभी प्रजाजन आचरणवान, धर्मपालक, स्वतन्त्र एवं सुरुचिसम्पन्न थे। वे सदैव जनकल्याण एवं शास्त्र चिन्तन में लगे रहते थे। वे स्वयं को प्रजा का सेवक समझते थे।
उनका मत था कि-

नहीं अधिकार नृप को पास रखे धन प्रजा का,
करे केवल सुरक्षा देश-गौरव की ध्वजा का।”

इस प्रकार हर्ष का चरित्र एक वीर योद्धा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और महान् त्यागी शासक का चरित्र है। वह अपने कर्तव्यों के प्रति अत्यधिक सजग हैं। उनका यही गुण आज के भटके हुए युवाओं को प्रेरणा दे सकता है।

प्रश्न 5.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी स्त्री पात्र का चरित्रांकन कीजिए। (2016)
अथवा
‘त्यागपथी’ में वर्णित घटनाओं के आधार पर प्रमुख पात्र राज्यश्री का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 14, 13, 11, 10)
अथवा
‘त्यागपथी’ में निरूपित राज्यश्री की चारित्रिक छवि पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। (2015, 14)
अथवा
“त्यागपथी में राज्यश्री के चरित्र को अत्यन्त उदात्त स्वरूप प्रदान किया गया है।” सोदाहरण प्रमाणित कीजिए।
अथवा
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख नारी पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2014)
उत्तर:
कविवर रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का प्रमुख स्त्री पात्र राज्यश्री है। वह ममती की मूर्ति, माता-पिता की प्रिय पुत्री, कन्नौज की साम्राज्ञी और बुद्ध की अनन्य उपासिका है। वह महाराज प्रभाकरवर्द्धन की पुत्री एवं सम्राट हर्षवर्द्धन को छोटी बहन है। विवाह के कुछ समय पश्चात् ही उसके पति की मृत्यु हो जाती है और उसे वैधव्य जीवन बिताना पड़ता है। इसके पश्चात् वह अपना सम्पूर्ण जीवन लोक कल्याण हेतु व्यतीत करती है।

राज्यश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. आदर्श नारी राज्यश्री आदर्श पुत्री, आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समक्ष आती है। माता-पिता की यह लाड़ली बेटी यौवनावस्था में ही जब विधवा हो जाती है, तो बंदी बना ली जाता है। जब वह भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु का समाचार सुनती है, तो कारागार से भाग निकलती है और वन में भटकती हुई आत्मदाह के लिए तत्पर हो जाती है, किन्तु शीघ्र ही वह अपने भाई हर्षवर्द्धन द्वारा बचा ली जाती है। तब वह तन-मन से प्रजा की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर देती है।

2. धर्मपरायणा एवं त्यागमयी राज्यश्री का सम्पूर्ण जीवन त्याग भावना से परिपूर्ण है। भाई हर्षवर्द्धन उससे सिंहासन पर बैठने का आग्रह करते हैं, परन्तु वह राज्य सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। वह राज्य-वैभव का परित्याग करके कठोर संयम एवं नियम का मार्ग स्वीकार कर लेती हैं। माघ-मेले में प्रत्येक पाँचवें वर्ष वह भी अपने भाई की भाँति सर्वस्व दान कर देती है-“लुटाती थी बहन भी पास का सब तीर्थ-स्थल में|”

3. देशभक्त एवं जनसेविका राज्यश्री के मन में देशप्रेम और लोक कल्याण की भावना भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर भी वह वैधव्य का दुःख झेलते हुए देशसेवा में लगी रहती है। इसी कारण वह संन्यासिनी बनने के विचार को छोड़ देती है तथा अपना सम्पूर्ण जीवन देशसेवा में बिता देती हैं।

4. सुशिक्षिता एवं ज्ञान सम्पन्न राज्यश्री सुशिक्षिता है, साथ ही वह शास्त्रों के ज्ञान से भी भली भाँति परिचित है। आचार्य दिवाकर मित्र संन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं और इसे वह स्वीकार कर लेती हैं। वह आचार्य की आज्ञा का पालन करती है।

5. करुणा की साक्षात् मूर्ति राज्यश्री करुणा की साक्षात् मूर्ति हैं। उसने माता-पिता की मृत्यु और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दुःख झेले। इन दुःखों की अग्नि में तपकर वह करुणा की मूर्ति बन गई। इस प्रकार राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। राज्यश्री एक आदर्श राजकुमारी थी, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन पूर्ण सात्विकता और पवित्रता से व्यतीत किया। वह त्यागमयी और करुणामयी थी, इसलिए उसको चरित्र अनुकरणीय है।

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