UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi धातु रूप

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name धातु रूप
Number of Questions Solved 41
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi धातु रूप

परिभाषा
क्रिया के मूल रूप को ‘धातु’ कहते हैं; जैसे—पठ, गम्, लिखू, नम् आदि। लकार की परिभाषा संस्कृत भाषा में काल को ‘लकार’ कहते हैं, जैसे-वर्तमान काल-लेट् लकार, भूतकाल-लङ्ग लकार, भविष्यत् काल तृट् लकार आदि।

लकार के भेद
संस्कृत में दस लकार होते हैं।

  1. लट् लकार
  2. लङ्ग लकार
  3. तृट् लकार
  4. लोट् लकार
  5. विधिलिङ्ग लकार
  6. लुट् लकार
  7. लिट् लकार
  8. लुङ्ग लकार
  9. लेट् लकार
  10. नृङ्ग लकार

नोट पाठ्यक्रम के अनुसार पाँच (लट्, लृट्, लोट्, विधिलिङ्ग एवं लङ् लकार) लकारों के बारे में ही चर्चा करेंगे।
संस्कृत में जितने शब्द होते हैं, उन सभी शब्दों को कारक और वचन के अनुसार तो प्रयोग किया ही जाता है, इसके अतिरिक्त संस्कृत के समस्त शब्दों को पुरुष में भी बाँटा (विभाजित) जाता है। ‘पुरुष’ शब्द का अर्थ ‘व्यक्ति से है अर्थात् कर्ता (क्रिया को करने वाला) इस प्रकार संस्कृत के सभी शब्दों को तीन प्रकार के शब्दों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं

  1. प्रथम पुरुष जिसके विषय में बात की जाती है। (जो प्रत्यक्ष न हो) उसे प्रथम पुरुष कहते हैं, जैसे वह, वे दोनों, वे सब/ये ही प्रथम पुरुष के कर्ता हैं।
  2. मध्यम पुरुष जो बात करने का माध्यम होता है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं; जैसे—तुम, तुम दोनों, तुम सब/ये ही मध्यम पुरुष के कर्ता है।
  3. उत्तम पुरुष किसी विषय पर स्वयं बोलने वाले को उत्तम पुरुष कहते हैं; जैसे मैं, हम दोनों, हम सब/ये ही उत्तम पुरुष के कर्ता हैं।

धातु-भेद
अर्थ-भेद के आधार पर धातु के निम्न तीन भेद होते हैं।

  1. परस्मैपदी जिन धातुओं के अन्त में ति, तः, अन्ति आदि प्रत्यय लगते हैं, उन्हें ‘परस्मैपदी’ धातु कहते हैं। नोट पाठ्यक्रम के अनुसार, परस्मैपदी के अन्तर्गत स्था, पा, नी, कृ, चुर एवं दा ‘सम्मिलित किए गए हैं।
  2. आत्मनेपदी जिन धातुओं के अन्त में ते, एते, अन्ते आदि प्रत्यय लगते हैं, उन्हें आत्मनेपदी धातु कहते हैं; जैसे-सेवते, सेवेते, सेवन्ते
  3. भयपदी जिन धातुओं के रूप दोनों पदों (परस्मैपद एवं आत्मनेपद) में चलते हैं, उन्हें उभयपदी धातु कहते हैं, जैसे

‘याच’ धातु परस्मैपद में रूप-याचति याचतः याचन्ति
‘याच’ धातु आत्मनेपदी में रूप-याचते याचेते याचन्ते

प्रश्न 1.
‘दा’ धातु लुट्लकार प्रथम पुरुष, द्विवचन का रूप है।
(क) दास्यतः
(ख) दत्तः
(ग) दास्यावः
(घ) दास्यथः

प्रश्न 2. ‘नेष्यावः’ रूप है ‘नी’ धातु का (2010)
(क) लट्, उत्तम, द्विवचन
(ख) लोट्, मध्यम, द्विवचन
(ग) लृट्, मध्यम, बहुवचन
(घ) लृट्, उत्तम, द्विवचन

प्रश्न 3.
नयतः रूप है ‘नी’ धातु का
(क) लट्, प्रथम, द्विवचन
(ख) लङ्, मध्यम, एकवचन
(ग) विधिलिङ, प्रथम, एकवचन,
(घ) लोट्, उत्तम, एकवचन

प्रश्न 4.
‘तिष्ठ’ रूप है ‘स्था’ धातु का (2015)
(क) लट्, प्रथम पुरुष, एकवचन
(ख) लोट्, मध्यम पुरुष, एकवचन
(ग) विधिलिङ, उत्तम पुरुष, एकवचन
(घ) लङ, उत्तम पुरुष, एकवचन

प्रश्न 5.
‘पास्यामः’ रूप है-‘पिबु धातु का (2011)
(क) लट्, उत्तम, बहुवचन
(ख) लृट्, उत्तम, बहुवचन
(ग) लङ्, मध्यम, एकवचन
(घ) लोट्, प्रथम, बहुवचन

प्रश्न 6.
‘एधि’ रूप है ‘अस्’ धातु का (2010)
(क) लट्, मध्यम, द्विवचन
(ख) लडु, उत्तम, एकवचन
(ग) विधिलिङ, प्रथम, बहुवचन
(घ) लोट्, मध्यम, एकवचन

प्रश्न 7.
‘स्था’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप होगा
(क) तिष्ठेयुः
(ख) तिष्ठे:
(ग) तिष्ठेव
(घ) तिष्ठेयम्

प्रश्न 8.
‘कृ’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप होगा
(क) करोतु
(ख) कुरु
(ग) कुरुत
(घ) अकरोत्

प्रश्न 9.
‘स्था’ धातु विधिलिङ्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन का रूप होगा
(क) तिष्ठामि
(ख) तिष्ठ
(ग) स्थास्यति
(घ) तिष्ठेम

प्रश्न 10.
‘कृ’ धातु लोट्, मध्यम, द्विवचन का रूप होगा। (2011)
(क) कुरुताम्
(ख) कुरुथः
(ग) कुरुत
घ) कुरुतम्

प्रश्न 11.
‘भविष्यथ’ रूप है ‘अस्’ धातु का (2012)
(क) लोट्, प्रथम, द्विवचन
(ख) विधिलिङ, उत्तम, एकवचन
(ग) लृट्, मध्यम, द्विवचन
(घ) लट्लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन

प्रश्न 12.
‘कृ’ धातु लूट, मध्यम पुरुष, द्विवचन का रूप होगा (2015)
(क) करोति
(ख) करिष्यथ:
(ग) करिष्यामि
(घ) करिष्यत

प्रश्न 13.
‘चोरयाव’ रूप है ‘चुर्’ (चुराना) धातु का (2010)
(क) लट्, प्रथम, द्विवचन
(ख) विधिलिड्., मध्यम, एकवचन
(ग) लोट्, उत्तम, द्विवचन
(घ) लङ्, उत्तम, बहुवचन

प्रश्न 14.
‘स्था’ धातु लुट्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप होगा (2012)
(क) स्थास्यति
(ख) स्थास्यावः
(ग) स्थास्यथ
(घ) स्थास्यामि

प्रश्न 15.
‘अस्’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप होगा (2011)
(क) स्थः
(ख) स्त
(ग) स्थ
(घ) भविष्यथ

प्रश्न 16.
‘अतिष्ठः’ रूप है ‘स्था’ थातु का (2010)
(क) लृट्, प्रथम, एकवचन
(ख) लोट्, मध्यम, बहुवचन
(ग) विधिलङ, उत्तम, एकवचन
(घ) लङ, मध्यम, एकवचन

प्रश्न 17.
‘आदः’ रूप है ‘अद्’ धातु का (2010)
(क) लट्, मध्यम, द्विवचन
(ख) बृद्, प्रथम, एकवचन
(ग) लङ्, मध्यम, एकवचन
(घ) लट्, प्रथम, द्विवचन

प्रश्न 18.
‘चुर्’ धातु लुट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप होगा (2011, 10)
(क) चोरयति
(ख) चोरयिष्यति
(ग) अचोरयत
(घ) चोरयतु

प्रश्न 19.
‘पा’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप होगा (2013)
(क) पिबथ
(ख) पिविष्यथ
(ग) पास्यथ
(घ) पास्यन्ति

प्रश्न 20.
‘दा’ धातु ललकार प्रथम पुरुष बहुवचन का रूप होगा। (2012)
(क) देहि
(ख) अददुः
(ग) दास्यन्ति
(घ) ददाति

प्रश्न 21.
‘कृ’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन का रूप होगा (2010)
(क) कुर्याताम्
(ख) कुर्याम्
(ग) कुर्यातम्
(घ) कुर्यात

प्रश्न 22.
‘भू’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप होगा (2013)
(क) भवताम्
(ख) भव
(ग) भवन्तु
(घ) भवानि

प्रश्न 23.
‘पठतु’ रूप है ‘पठ’ (पढ़ना) धातु का (2011)
(क) लट्, प्रथम, एकवचन
(ख) लोट्, प्रथम, एकवचन
(ग) लोट्, मध्यम, द्विवचन,
(घ) लृट्, उत्तम, एकवचन

प्रश्न 24.
‘पा’ (पिब) धातु ललकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन का रूप हैं। (2010)
(क) पिबसि
(ख) पिबामि
(ग) पिबन्ति
(घ) पिबति

प्रश्न 25.
‘स्थास्यथः’ रूप है ‘स्था’ धातु का (2011)
(क) विधिलिङ, मध्यम, बहुवचन
(ख) लोट् प्रथम, एकवचन
(ग) लृट्, मध्यम, द्विवचन
(घ) लट्, प्रथम, बहुवचन

प्रश्न 26.
‘ददाम’ रूप है ‘दा’ धातु का (2012)
(क) लोट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन
(ख) ट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन
(ग) ललकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन
(घ) विधिलिङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन

प्रश्न 27.
‘तिष्ठेव’ रूप है ‘स्था’ धातु का (2013)
(क) विधिलिङ्लकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन
(ख) विधिलिङ्लकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन
(ग) ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन
(घ) लोट्लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन

प्रश्न 28.
‘भू’ (होना) धातु ललकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप होगा (2011)
(क) भवति
(ख) भवसि
(ग) भवामि
(घ) भवामः

प्रश्न 29.
‘नी’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप होगा (2011)
(क) नय
(ख) नयत
(ग) नयतु
(घ) नयति

प्रश्न 30.
‘कुर्मः’ रूप है ‘कृ’ धातु का (2010)
(क) लङ्, उत्तम, बहुवचन
(ख) लृट्, मध्यम, एकवचन
(ग) विधिलिङ, प्रथम, द्विवचन
(घ) लट्, उत्तम, बहुवचन

प्रश्न 31.
‘कृ’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप होगा। (2010)
(क) कुरुथ
(ख) कुरुत
(ग) कुर्यात
(घ) कुर्यात्

प्रश्न 32.
‘पिबामः’ रूप है ‘पा’ (पिब्) धातु का (2009)
(क) लृट्, उत्तम, बहुवचन
(ख) लोट्, मध्यम, बहुवचन
(ग) लङ्, प्रथम, बहुवचन
(घ) लट्, उत्तम, बहुवचन

प्रश्न 33.
‘अकरोत्’ रूप होता है ‘कृ’ धातु का (2011, 10)
(क) लङ्, प्रथम, एकवचन
(ख) विधिलिङ, मध्यम, द्विवचन
(ग) लृट्, उत्तम, बहुवचन
(घ) लट्, प्रथम, एकवचन

प्रश्न 34.
‘नयतम्’ रूप है ‘नी’ धातु का (2014, 12, 11)
(क) लोट्, मध्यम, द्विवचन
(ख) लट्, मध्यम, बहुवचन
(ग) लृद्, प्रथम, एकवचन
(घ) लोट्, प्रथम, द्विवचन

प्रश्न 35.
‘स्युः’ रूप है ‘अस्’ धातु का (2010)
(क) लोट्, मध्यम, एकवचन
(ख) लृट्, उत्तम, द्विवचन
(ग) विधिलिङ्, प्रथम, बहुवचन
(घ) लङ्, प्रथम, एकवचन

प्रश्न 36.
‘नयानि’ रूप है ‘नी’ धातु का
(क) लट्, प्रथम, एकवचन
(ख) लोट्, उत्तम, एकवचन
(ग) लृट्, मध्यम, द्विवचन
(घ) लोट्, मध्यम, बहुवचन

प्रश्न 37.
‘अपिबत’ रूप है ‘पा’ धातु का
(क) लड्, प्रथम, एकवचन
(ख) लङ्, मध्यम, बहुवचन
(ग) विधिलिङ्, उत्तम, एकवचन
(घ) लट्, प्रथम, द्विवचन

प्रश्न 38.
‘अनयः रूप है ‘नी’ धातु का
(क) लट्, मध्यम, द्विवचन
(ख) लङ्, मध्यम, एकवचन
(ग) लङ, प्रथम, बहुवचन
(घ) लृट्, प्रथम, एकवचने

प्रश्न 39.
‘स्था’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन का रूप होगा (2012, 10)
(क) स्थास्यथः
(ख) स्थास्यतः
(ग) तिष्ठथः
(घ) तिष्ठतम्

प्रश्न 40.
‘अतिष्ठाव’ रूप है ‘स्था’ धातु का
(क) लोट्, मध्यम, द्विवचन
(ख) लड्, उत्तम, द्विवचन
(ग) विधिलिङ्, प्रथम, बहुवचन
(घ) लृटु, मध्यम, एकवचन

प्रश्न 41.
निम्नलिखित धातुओं के यथानिर्देश रूप लिखिए।
‘पा’ (पिब) धातु ललकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = पिबामः (2018)
‘नी’ धातु लट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = नयामः (2018)
‘पा’ धातु लोटलकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = पिबत (2018)
‘दा’ धातु लुट्लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = दास्यथः (2018)
‘नी’ धातु लोटलकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = नय, नयतात् (2018)
‘दा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = देहि (2018)
‘कृ’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = अकुतम् (2018)
‘दा’ धातु ललकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन = दत्तः (2018)
‘पा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = पिबावः (2018)
‘नी’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = नयावः। (2018)
‘दा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = दत्त (2018)
‘चुर’ धातु लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन = अचोरयत् (2018)
‘नी’ धातु लोट्लकार’ मध्यम पुरुष, बहुवचने = नयत (2018, 17)
‘कृ’ धातु ‘लोट्लकार’ मध्यम पुरुष, बहुवचन = कुरूत (2018, 17)
‘पा’ धातु ‘लिङ्लकार’ मध्यम पुरुष, द्विवचन
‘दा’ धातु ‘लिङ्लकार’ मध्यम पुरुष, द्विवचन
‘चुर’ धातु ‘ललकार’ मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप लिखिए = चोरयसि (2017)
‘स्था’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = तिष्ठथ (2016)
‘कृ’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = कृथ (2016)
‘नी’ धातु लुट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = नेष्यामः (2016)
‘कृ’ धातु लुट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = करिष्यम् (2016)
‘मा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = अपिषाव (2016)
‘अस्’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = आस्थ (2016)
‘स्था’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = तिष्ठतम् (2017, 16)
‘नी’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = नयतम् (2016)
‘या’ धातु विधिलिङ् लकार, मध्यम पुरुष, द्विवधन = पिबेतम् (2017, 16)
‘नी’ धातु विधिलिङ् लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = नयेतम् (2017, 16)
‘कृ’ धातु लोट्लकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन = कुरुताम् (2016)
दा’ धातु लोट्लकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन = दत्ताम्। (2016)
‘दा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = दोहि
‘पा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = पिब (2018)
‘स्था’ धातु ललकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन = अतिष्ठन्। (2013)
‘दा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = देहि, दत्तात्। (2016, 14, 13)
‘नी’ धातु ललकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन = अनयन् । (2013)
‘दा’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = अदम् (2018, 13)
‘स्था’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन = अतिष्ठतम् (2017, 13)
‘चुर्’ धातु ललकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन = चोरयतः (2013)
‘स्था’ धातु लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन = तिष्ठन्ति (2014)
‘दा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = दास्यावः (2012)
‘स्था’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = तिष्ठे: (2013)
‘पा’ (पिब) धातु ललकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन = पिबन्ति (2014)
‘कृ’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = कुर्यात (2013)
‘ढा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = अढद्म (2012)
‘स्था’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = तिष्ठ (2014)
‘स्था’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = अतिष्ठत (2013)
‘दा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = दाः (2012)
‘नी’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = नयस (2017, 13)
‘स्था’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = स्थास्यावः (2012)
‘नी’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = नयेत (2013)
‘स्था’ धातु लुट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवधन = अतिष्ठाम (2012)
‘दा’ धातु लृट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = दास्यामः (2012)
‘स्था’ लङ्लकार, उत्तम पुरुष, बहुवचन = अतिष्ठाम (2012)
‘पा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, एकवचन = पिबामि (2014)
‘दा’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = अददाः (2013)
‘नी’ धातु ललकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = नयथ : (2013)
‘चुर्’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = चोरय (2013)
‘स्था’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, एकवचन = तिष्ठामि. (2014)
‘स्था’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = तिष्ठेत (2013)
‘पा’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = पिब (2018, 16, 14, 13)
‘नी’ धातु विधिलिङ्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = नयेः (2013)
‘पा’ धातु लृट्लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन = पास्यथ (2017, 13)
‘दा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, एकवचन = अददाम्। (2013)
‘दा’ धातु ललकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन = अदद्वः (2013)
‘पठ’ धातु लृट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन = पठिष्यति (2014)
‘कृ’ धातु लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन = कुरु कुरुताम् (2014)

उत्तर
1. (क), 2. (घ), 3. (क), 4. (ख), 5. (ख), 6. (घ), 7. (ख), 8. (ख), 9. (घ), 10. (घ), 11. (ग) 12. (ख), 13. (ग), 14. (ग), 15. (घ), 16. (घ), 17. (घ), 18. (ख), 19. (ग), 20. (ख), 21. (ग), 22. (ख), 23. (ख), 24. (ग), 25. (ग), 26. (क), 27. (ख), 28. (ख), 29. (क), 30. (घ), 31. (ग), 32. (घ), 33. (क), 34. (क), 35. (ग), 36. (ख), 37. (क), 38. (ख), 39. (क), 40. (ख),

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi शब्द रूप

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Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name शब्द रूप
Number of Questions Solved 70
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi शब्द रूप

शब्द की परिभाषा
वर्गों के सार्थक समूह को ‘शब्द’ कहते हैं, जैसे-राम, मोहन, विचित्रा, सुनीता आदि। इन शब्दों से कुछ न कुछ अर्थ अवश्य निकलता है। अतः ये सभी शब्द हैं। संस्कृत में शब्द के दो भेद होते हैं।

  1. विकारी शब्द जिस शब्द में विकार पैदा होता है अर्थात् जो शब्द लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उसे ‘विकारी शब्द’ कहते हैं। विकारी शब्द लिंग, वचन, कारक आदि के प्रयोग से अनेक भागों में बँट जाता है; जैसे- देव, मोहन, लता आदि।
  2. अविकारी शब्द जिस शब्द में विकार पैदा नहीं होता है, उसे ‘अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे-अत्र, तत्र, कुत्र, च, अपि आदि। ये सभी शब्द हमेशा इसी अवस्था में रहते हैं।

शब्दों के प्रकार
संस्कृत के सभी शब्द दो प्रकार के होते हैं।

  1. स्वरान्त जिस शब्द के अन्त में स्वर वर्ण (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ आदि वर्गों में से कोई एक वर्ण) हो, उसे ‘स्वरान्त वर्ण’ कहते हैं; जैसे- देव, मुनि, लता, नदी, साधु, वधू आदि। इन सभी शब्दों के अन्त में क्रमशः अ, इ, आ, ई, उ, ऊ स्वर वर्ण हैं। अतः ये सभी शब्द स्वरान्त हैं।
  2. व्यंजनान्त जिस शब्द के अन्त में व्यंजन हो, उसे ‘व्यंजनान्। शब्द’ कहते हैं; जैसे-बलवत्, जगत्, भगवत् आदि। इन सभी शब्दों के अन्त में व्यंजन वर्ण है। तथा स्वर न होने के कारण हलन्त (,) का चिह्न लगा हुआ है।

नोट नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्यक्रम में लिंगों के अन्तर्गत संज्ञा व सर्वनाम का चयन किया गया है।

बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जगत्सु’ रूप हैं ‘जगत्’ शब्द का (2018)
(क) तृतीया विभक्ति एकवचन
(ख) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन
(ग) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन
(घ) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन

प्रश्न 2.
‘यस्मै रूप है ‘यत्’ शब्द का (2018)
(क) पंचमी विभक्ति, बहुवचन
(ख) चतुर्थी विभक्ति एकवचन
(ग) सप्तमी विभक्ति, द्विवचन
(घ) तृतीया विभक्ति, बहुवचन

प्रश्न 3.
‘यस्मात् (2018)
(क) तृतीया,. द्विवचन
(ख) पंचमी, एकवचन
(ग) चतुर्थी एकवचन
(घ) द्वितीया, एकवचन

प्रश्न 4.
येषाम् (2018)
(क) तृतीया, द्विवचन
(ख) षष्ठी, बहुवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन
(घ) द्वितीया, एकवचन

प्रश्न 5.
‘नाम्ना (2018)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) तृतीया, बहुवचन
(ग) चतुर्थी, बहुवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 6.
‘सरिति (2018)
(क) षष्ठी, एकवचन
(ख) षष्ठी, बहुवचन
(ग) सप्तमी, एकवचन
(घ) पंचमी, एकवचन

प्रश्न 7.
‘अस्मै (2018)
(क) चतुर्थी, एकवचन
(ख) चतुर्थी, द्विवचन
(ग) पंचमी, बहुवचन
(घ) पंचमी, एकवचन

प्रश्न 8.
‘आत्मनि’ रूप है ‘आत्मन’ शब्द का (2018)
(क) प्रथमा, एकवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 9.
‘सर्वस्यै’ रूप है ‘सर्व’ (स्त्रीलिंग) का (2018)
(क) द्वितीया, एकवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) पंचमी, एकवचन प्रश्न

प्रश्न 10.
येषाम् रूप है ‘यत्’ शब्द (पुल्लिग) का (2018, 17)
(क) षष्ठी विभक्ति, बहुवचन
(ख) पंचमी विभक्ति, एकवचन
(ग) तृतीया, बहुवचन प्रश्न

प्रश्न 11.
‘जगते’ रूप है जगत् का (2017)
(क) सप्तमी, एकवचन
(ख) द्वितीय, द्विवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 12.
‘इदम्’ स्त्रीलिंग तृतीया बहुवचन का रूप है। (2017)
(क) आभिः
(ख) एभिः
(ग) अनया

प्रश्न 13.
‘आत्मानः’ रूप है ‘आत्मन्’ शब्द का (2017)
(क) पंचमी विभक्ति, एकवचन
(ख) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन
(ग) प्रथमा विभक्ति, बहुवचन

प्रश्न 14.
‘यस्यै’ रूप है यत् (स्त्रीलिंङ्ग) का (2017)
(क) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन
(ख) पंचमी विभक्ति एकवचन
(ग) तृतीया विभक्ति एकवचन

प्रश्न 15.
‘सरिति’ रूप है सरिता का (2017)
(क) द्वितीय द्विवचन
(ख) चतुर्थी एकवचन
(ग) सप्तमी एकवचन

प्रश्न 16.
सर्वस्य रूप है सर्व (पुल्लिग) का
(क) पंचमी, एकवचन
(ख) षष्ठी, एकवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 17.
‘एषाम् (2017)
(क) षष्ठी, बहुवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) चतुर्थी, द्विवचन
(घ) तृतीया, द्विवचन

प्रश्न 18.
सर्वस्मै शब्द (नपुंसकलिंग) रूप है (2016)
(क) तृतीया, द्विवचन।
(ख) पंचमी, एकवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन
(घ) द्वितीया, बहुवचन

प्रश्न 19.
राजा (राजन्-पुल्लिंग) शब्द के द्वितीया, एकवचन का रूप है (2016)
(क) राज्ञा’
(ख) राज्ञः
(ग) राजानम्
(घ) राजभिः

प्रश्न 20.
अस्मै रूप है ‘इदम्’ पुल्लिग शब्द का (2016)
(क) षष्ठी, द्विवचन
(ख) सप्तमी, एकवचन
(ग) द्वितीया, बहुवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 21.
राजा शब्द के पुल्लिग, तृतीया एकवचन में रूप है (2016)
(क) राज्ञो
(ख) राज्ञः
(ग) राज्ञा
(घ) राज्ञोः

प्रश्न 22.
नाम्ने रूप है ‘नाम’ शब्द के (2016)
(क) चतुर्थी, एकवचन
(ख) प्रथम, द्विवचन
(ग) सप्तमी, एकवचन
(घ) पंचमी, एकवचन

प्रश्न 23.
सर्व पुल्लिग, पंचमी एकवचन का रूप होगा (2016)
(क) सर्वात्
(ख) सर्वस्मात्
(ग) सर्वस्य
(घ) सर्वस्मिन्

प्रश्न 24.
‘आत्मने’ रूप है आत्मन् (आत्मा) का (2017, 06)
(क) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन
(ख) प्रथमा विभक्ति, द्विवचन
(ग) तृतीया विभक्ति, एकवचन
(घ) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन

प्रश्न 25.
सरितु (नदी) स्त्रीलिंग, सप्तमी विभक्ति एकवचन का रूप होगा (2016)
(क) सरितौ
(ख) सरिते
(ग) सरिति
(घ) सरिता

प्रश्न 26.
‘आत्मभिः’ रूप है आत्मन् का (2016)
(क) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन
(ख) सप्तमी विभक्ति एकवचन
(ग) तृतीया विभक्ति, बहुवचन
(घ) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन

प्रश्न 27.
‘सर्व’ स्त्रीलिंग, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन का रूप है (2016)
(क) सर्वासु
(ख) सर्वाभ्यः
(ग) सवस्यै
(घ) सर्वभ्य

प्रश्न 28.
‘सरिते’ रूप है सरित् शब्द का (2017, 16)
(क) सम्बोधन एकवचन
(ख) प्रथमा एकवचन
(ग) द्वितीया एकवचन
(घ) चतुर्थी एकवचन

प्रश्न 29.
‘इदम्’ स्त्रीलिंग, सप्तमी बहुवचन का रूप होगा। (2018, 16)
(क) एषु
(ख) आसु
(ग) अस्मासु
(घ) अस्याम्

प्रश्न 30.
‘आत्मना’ आत्मन् शब्द रूप का है- (2018, 16)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) द्वितीया, द्विवचन
(ग) तृतीया, बहुवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 31.
‘राजनि’ शब्द रूप का है। (2016)
(क) प्रथम, द्विवचन
(ख) तृतीया, बहुवचन
(ग) सप्तमी, एकवचन
(घ) षष्ठी, द्विवचन

प्रश्न 32.
सर्व (स्त्रीलिंग) का तृतीया एकवचन का रूप है। (2016)
(क) सर्वम्
(ख) सर्वया
(ग) सर्वामिः
(घ) सर्वस्मै

प्रश्न 33.
‘सर्व’ पुल्लिङ्ग चतुर्थी एकवचन का रूप होगा (2015, 14, 13, 10)
(क) सर्वाम्
(ख) सर्वस्मिन्
(ग) सर्वस्मै
(घ) सर्वस्यै

प्रश्न 34.
‘सर्वस्मिन्’ शब्द रूप है, सर्व (पुल्लिङ्ग) का (2018, 12)
(क) द्वितीया, द्विवचन
(ख) तृतीया, एकवचन
(ग) चतुर्थी, द्विवचन
(घ) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 35.
‘नाम्नि’ रूप है ‘नामन्’ का (2013, 12)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) सप्तमी, एकवचन
(ग) चतुर्थी, बहुवचन
(घ) द्वितीया, बहुवचन

प्रश्न 36.
‘राज्ञाम्’ रूप है ‘राजन्’ का (2014, 11)
(क) सप्तमी, बहुवचन
(ख) पञ्चमी, एकवचन
(ग) तृतीया, द्विवचन
(घ) षष्ठी, बहुवचन

प्रश्न 37.
‘इदम्’ पुल्लिङ्ग द्वितीया बहुवचन का रूप होगा (2012)
(क) इमाः
(ख) इमान्
(ग) इमानि
(घ) इमाम

प्रश्न 38.
‘आत्मनु’ शब्द का षष्ठी बहुवचन रूप होगा (2014, 13)
(क) आत्मनि
(ख) आत्मनेः
(ग) आत्मनाम्
(घ) हे आत्मन्

प्रश्न 39.
‘राज्ञा’ शब्द रूप है, ‘राजन्’ शब्द का (2012)
(क) चतुर्थी, एकवचन
(ख) तृतीया, एकवचन
(ग) पञ्चमी, एकवचन
(घ) द्वितीया, द्विवचन

प्रश्न 40.
‘राज्ञि’ शब्द रूप है ‘राजन’ का (2011)
(क) तृतीया, बहुवचन
(ख) सप्तमी, एकवचन
(ग) षष्ठी, द्विवचन
(घ) द्वितीया, द्विवचन

प्रश्न 41.
‘सरिते’ शब्द रूप है ‘सरित्’ (नदी) शब्द के (2013, 12, 11)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) चतुर्थी, द्विवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन
(घ) पञ्चमी, द्विवचन

प्रश्न 42.
यत् (स्त्रीलिङ्ग) सप्तमी बहुवचन का रूप होगा (2014, 13)
(क) यस्यै
(ख) याभिः
(ग) यासाम्
(घ) यासु

प्रश्न 43.
‘राजभिः’ रूप है ‘राजन’ का (2010)
(क) षष्ठीं. द्विवचन
(ख) पञ्चमी, एकवचन
(ग) तृतीया, बहुवचन
(घ) सप्तमी बहुवचन

प्रश्न 44.
‘जगति’ रूप है ‘जगत्’ का (2015, 14, 13, 12, 10)
(क) सप्तमी, एकवचन
(ख) पंचमी, एकवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन
(घ) षष्ठी, एकवचन

प्रश्न 45.
‘सरिताम्’ शब्द रूप है ‘सरित’ शब्द का (2012)
(क) द्वितीया, एकवचन
(ख) सप्तमी, बहुवचन
(ग) तृतीया, द्विवचन
(घ) षष्ठी, बहुवचन

प्रश्न 46.
‘यत्’ (स्त्रीलिङ्ग) षष्ठी, बहुवचन का रूप होगा (2011)
(क) येषाम्
(ख) यासाम्
(ग) यस्याः
(घ) यस्यै

प्रश्न 47.
‘इदम्’ (पुल्लिङ्ग) शब्द का चतुर्थी विभक्ति एकवचन का रूप है। (2018, 14, 13, 11)
(क) इमे
(ख) अस्य
(ग) एषु
(घ) अस्मै

प्रश्न 48.
‘सर्व’ (स्त्रीलिङ्ग) शब्द के चतुर्थी एकवचन का रूप होगा (2014, 12, 11, 10)
(क) सर्वस्यै
(ख) सर्वस्मै
(ग) सर्वस्मिन्
(घ) सर्वेण

प्रश्न 49.
‘यत्’ (पुल्लिङ्ग) शब्द सप्तमी एकवचन का रूप होगा। (2012)
(क) यस्यै
(ख) यस्मात्
(ग) येन
(घ) यस्मिन्

प्रश्न 50.
‘सर्व’ (सब) (पुल्लिङ्ग) तृतीया बहुवचन का रूप होगा (2010)
(क) सर्वान्
(ख) सर्वेषु
(ग) सर्वेः
(घ) सर्वेभ्यः

प्रश्न 51.
‘अदस्’ (पुल्लिङ्गः तृतीया एकवचन का रूप होगा । (2010)
(क) अमुना
(ख) अमूभ्याम्
(ग) अभून्
(घ) अमुष्मै

प्रश्न 52.
‘अनेन’ रूप है ‘इदम्’ (पुल्लिङ्ग) का (2013, 11, 10)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) चतुर्थी, द्विवचन
(ग) द्वितीया, बहुवचन
(घ) पञ्चमी, द्विवचन

प्रश्न 53.
‘अयम्’ शब्द रूप है ‘इदम्’ (पुल्लिङ्ग) का (2014)
(क) द्वितीया, एकवचन
(ख) प्रथमा, एकवचन
(ग) पंचमी, द्विवचन
(घ) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 54.
‘नाम्ने’ रूप है ‘नाम’ का (2014, 12)
(क) द्वितीया, बहुवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) षष्ठी, द्विवचन
(घ) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 55.
‘येभ्यः’ रूप है ‘यद्’ (नपुंसकलिङ्ग) का (2011)
(क) चतुर्थी, बहुवचन
(ख) प्रथम, द्विवचन
(ग) तृतीया, एकवचन
(घ) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 56.
‘हरीणाम् रूप है ‘हरि’ का (2013, 12)
(क) प्रथम, द्विवचन्
(ख) षष्ठी, बहुवचन
(ग) सप्तमी, एकवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 57.
‘इदम्’ (पुल्लिङ्ग) तृतीया एकवचन का रूप है (2018, 14)
(क) अनया
(ख) अनेन
(ग) अस्य
(घ) आसु

प्रश्न 58.
‘राज्ञः’ शब्द रूप है ‘राजन’ का (2014, 12)
(क) द्वितीया, बहुवचन
(ख) तृतीया, एकवचन
(ग) पंचमी/धष्ठी, एकवचन
(घ) सप्तमी, बहुवचन

प्रश्न 59.
‘राजन’ शद का द्वितीया द्विवचन का रूप होगा (2014)
(क) राज्ञोः
ख) राज्ञः
(ग) राज्ञाम्
(घ) राजानौ

प्रश्न 60.
‘सर्व’ (पुल्लिङ्ग) सप्तमी द्विवचन का रूप होगा (2013)
(क) सर्वाभ्याम्
(ख) सर्वैः
(ग) सर्वस्य
(घ) सर्वयोः

प्रश्न 61.
‘सरित्’ (नदी) स्त्रीलिङ्ग चतुर्थी एकवचन का रूप होगा (2017)
(क) सरिति
(ख) सरिते
(ग) सरितम्
(घ) सरितः

प्रश्न 62.
‘सरिता’ रूप है ‘सरित्’ का (2018, 15, 14, 13, 12)
(क) प्रथमा, एकवचन
(ख) द्वितीया, एकवचन
(ग) तृतीया, एकवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 63.
‘नामसु’ शब्द रूप है ‘नामन्’ को (2013, 06)
(क) द्वितीया, एकवचन
(ख) सप्तमी, बहुवचन
(ग) षष्ठी, द्विवचन
(घ) पंचमी, बहुवचन

प्रश्न 64.
‘रा’ शब्द रूप है ‘राजन्’ शब्द का (2015, 13, 12, 11)
(क) तृतीया, एकवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) पंचमी, बहुवचन
(घ) सप्तमी, एकवचन

प्रश्न 65.
‘अदस्’ (पुल्लिङ्ग) षष्ठी बहुवचन का रूप होगा। (2011)
(क) अमुष्मै
(ख) अभूभ्याम्
(ग) अमुष्मिन्
(घ) अमीषाम्

प्रश्न 66.
‘यद्’ (पुल्लिङ्ग) द्वितीया बहुवचन का रूप है। (2012)
(क) याः
(ख) यानि
(ग) यान्
(घ) यै

प्रश्न 67.
‘आत्मने’ शब्द रूप है ‘आत्मन्’ का (2014, 13, 12, 11, 10)
(क) पंचमी, एकवचन
(ख) चतुर्थी, एकवचन
(ग) तृतीया, एकवचन
(घ) षष्ठी, एकवचन

प्रश्न 68.
सर्वस्यै (2012)
(क) प्रथमा, बहुवचन
(ख) पञ्चमी, एकवचन
(ग) षष्ठी, द्विवचन
(घ) चतुर्थी, एकवचन

प्रश्न 69.
‘एभिः’ रूप है ‘इदम्’ शब्द का (2018, 19)
(क) पंचमी, एकवचन
(ख) तृतीया, बहुवचन
(ग) द्वितीया, द्विवचन
(घ) सप्तमी, बहुवचन

प्रश्न 70.
‘यत् स्त्रीलिङ्गा प्रथमा, एकवचन का रूप होगा। (2013)
(क) यः
(ख) या
(ग) ये
(घ) यौ

उत्तर
1. (ग), 2. (ख), 3. (ख), 4. 5. (क), 6. (ग), 7. (क) 8. (ग), 9. (ख), 10. (क), 11. (ग),12. (क), 13. (ग), 14. (क), 15. (ग), 16. (ख), 17. (क), 18. (ग), 19. (ग), 20. (घ), 21. (ग), 22. (क), 23. (ख), 24. (क), 25. (ग), 26. (ग), 27. (ग), 28. (घ), 29. (ख) , 30. (क), 31. (ग), 32. (ग), 33. (ग), 34. (घ), 35. (ख), 36. (घ) , 37. (ख), 38. (ग), 39. (ख), 40. (ख), 41. (ग), 42. (घ), 43. (ग), 44. (क), 45. (घ), 46. (ख), 47. (घ), 48. (क), 49. (घ), 50. (ग), 51. (क), 52. (क), 53. (ख), 54. (ख), 55. (क), 56. (ख), 57. (ख), 58. (ग), 59. (घ), 60. (घ), 61. (ख), 62. (ग), 63. (ख), 64. (ख), 65. (घ), 66. (ग), 67. (ख), 68. (घ), 69. (ख), 70. (ख)

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 5 प्रगति के मानदण्ड

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name प्रगति के मानदण्ड
Number of Questions Solved 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 5 प्रगति के मानदण्ड

प्रगति के मानदण्ड – जीवन/साहित्यिक परिचय

प्रश्न-पत्र में पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठों में से के पाठों के लेखकों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा जाता है। इस प्रश्न में किन्हीं 4 लेखकों के नाम दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक लेखक के बारे में लिखना होगा। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय तथा साहित्यिक उपलब्धियाँ
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 को मथुरा (उत्तर प्रदेश) के नगला चन्द्रभान में हुआ था। इनके पिता श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता श्रीमती रामप्यारी एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। इनके पिता भारतीय रेलवे में नौकरी करते थे, इसलिए इनका अधिकतर समय बाहर ही बीतता था।

पण्डित जी अपने ममेरे भाइयों के साथ खेलते हुए बड़े हुए। जब इनकी आयु 3 वर्ष की थी, तब इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद इनकी माता बीमार रहने लगी थी। कुछ समय पश्चात् इनकी माता की भी मृत्यु हो गई। इन्होंने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी. एस. सी., बी. टी. करने के बाद भी इन्होंने नौकरी नहीं की और अपना सारा जीवन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में लगा दिया। अपने छात्र जीवन में ही ये इस आन्दोलन में चले गए थे। बाद में ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक के लिए प्रचार-प्रसार करने लगे।

वर्ष 1961 में अखिल भारतीय जन संघ के बनने पर, इन्हें संगठन मन्त्री बनाया गया। उसके बाद वर्ष 1953 में ये अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री बनाए गए। महामन्त्री के तौर पर पार्टी में लगभग 15 सालों तक इस पद पर रहकर अपनी इस पार्टी को एक मजबूत आधारशिला दी। कालीकट अधिवेशन वर्ष 1967 में ये अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी, 1968 को एक रेल यात्रा के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने रात को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश के आस-पास उनकी हत्या कर दी थी और मात्र 52 साल की आयु में पण्डित जी ने अपने प्राण देश को समर्पित कर दिए।

साहित्यिक सेवाएँ
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय महान् चिन्तक और संगठनकर्ता तथा एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने जीवनपर्यन्त अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी इनकी गहरी अभिरुचि थी। इनके हिन्दी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न प-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही इन्होंने ‘चन्द्रगुप्त ‘नाटक’ लिख डाला था।

कृतियाँ
इनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें इस प्रकार हैं-दो योजनाएँ, राष्ट्र जीवन की दिशा, सम्राट चन्द्रगुप्त, राजनैतिक डायरी, जगत् गुरु शंकराचार्य, एकात्मक मानवतावाद, एक प्रेम कथा, लोकमान्य तिलक की राजनीति, राष्ट्र धर्म, पाँचजन्य।

भाषा-शैली
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी पत्रकार तो थे ही, साथ में चिन्तक और लेखक भी थे। जनसंघ के राष्ट्र जीवन दर्शन के निर्माता दीन दयाल जी का उद्देश्य स्वतन्त्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्त्व दृष्टि प्रदान करना था। इन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को ‘एकात्म मानवतावाद’ जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी।

प्रगति के मानदण्ड – पाठ का सार

परीक्षा में ‘पाठ का सार’ से सम्बन्धित कोई प्रश्न नहीं पूछा जाता है। यह केवल विद्यार्थियों को पाठ समझाने के उद्देश्य से दिया गया है।

राजनीतिक दलों के विषय में लेखक के विचार
लेखक के अनुसार, भारत के अधिकांश राजनीतिक दल पाश्चात्य विचारों को लेकर हीं चलते हैं। वे पश्चिम की किसी-न-किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े हुए तथा वहाँ के दलों की नकल मात्र हैं। वे भारत की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते और न ही चौराहे पर खड़े विश्वमानव का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

मनुष्य के विकास में समाज का दायित्व
लेखक ने मनुष्य के विकास में समाज के दायित्व को महत्वपूर्ण माना है। लेखक के अनुसार इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण-पोषण, शिक्षण, स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था तथा अस्वस्थ एवं अक्षमता की अवस्था में उचित अवकाश की व्यवस्था करने और जीविकोपार्जन की जिम्मेदारी समाज की है। प्रत्येक सभ्य समाज किसी-न-किसी रूप में इसका पालन भी करता है। लेखक ने समाज द्वारा मनुष्य का उचित ढंग से निर्वाह करने को प्रगति का मानदण्ड माना है, इसलिए लेखक का मानना है कि न्यूनतम जीवन स्तर की गारण्टी, शिक्षा, जीविकोपार्जन के लिए रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को हमें मूलभूत अधिकार के रूप में स्वीकार करना होगी।

‘मानव सामाजिक व्यवस्था का केन्द्र
एकात्म मानववाद मानव जीवन व सम्पूर्ण सृष्टि के एकमात्र सम्बन्ध का दर्शन है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी ने इसका वैज्ञानिक विवेचन किया। उनके अनुसार | हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र मानव होना चाहिए, ‘जो’ जहाँ मनुष्य हैं, वहाँ ब्रह्माण्ड है’, के न्याय के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है। जिस व्यवस्था में पूर्ण मानव के स्थान पर एकांगी मानव पर विचार किया जाए, वह अधूरी है। लेखक के अनुसार, भारत ने सम्पूर्ण सृष्टि रचना में एकत्व देखा है। हमारा आधार एकात्म मानव है, इसलिए एकात्म मानववाद के आधार पर हमें जीवन की सभी व्यवस्थाओं का विकास करना होगा। “सिद्धान्त और नीति” से सम्पादित ‘प्रगति के मानदण्ड” अध्याय में लेखक ने मनुष्य को सामाजिक व्यवस्था के केन्द्र में रखा है और मनुष्य द्वारा अपने भरण-पोषण में असमर्थ होने पर समाज को उसका दायित्व सौंपा है। साथ ही समाज में व्याप्त कुरीतियों को परम्परा का नाम देकर अपनाए रखने की संकीर्ण मानसिकता व भारतीय एवं पाश्चात्य समाज के सैद्धान्तिक विभेदों को प्रकट करते हुए मनुष्य को अपना बल बदाने तथा विश्व की प्रगति में सहायक भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया है।

भारतीय संस्कृति के प्रति संकीर्ण मानसिकता
लेखक के अनुसार, भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा लेकर चलने वाले कुछ राजनीतिक दल हैं, लेकिन वे भारतीय संस्कृति की सनातनता (प्राचीनता) को उसकी गतिहीनता समझ बैठे हैं, इसलिए ये दल पुरानी रूदियों का समर्थन करते हैं। भारतीय संस्कृति के क्रान्तिकारी तत्त्व की ओर उनकी दृष्टि नहीं जाती। समाज में प्रचलित अनेक कुरीतियों; जैसे छुआछूत, जाति-भेद दहेज, मृत्युभोज, नारी-अवमानना आदिको लेखक ने भारतीय संस्कृति और समाज के लिए रोग के लक्षण माना है। भारत के कई महापुरुष, जो भारतीय परम्परा और संस्कृति के प्रति निष्ठा रखते थे, वे इन बुराइयों के विरुद्ध लड़ें। अन्त में लेखक ने स्पष्ट किया है कि हमारी सांस्कृतिक चेतना के क्षीण होने का कारण रूदियों हैं। एकात्म मानव विचार भारतीय और भारत के बाहर की सभी चिन्ताधाराओं का समान आकलन करके चलता है। उनकी शक्ति और दुर्बलताओं को परखता है और एक ऐसा मार्ग प्रशस्त करता है, जो मानव को अब तक के उसके चिन्तन, अनुभव और उपलब्धि की मंजिल से आगे बढ़ा सके।

स्वयं की शक्ति बढ़ाने पर बल देना
लेखक के अनुसार, पाश्चात्य जगत् ने भौतिक उन्नति तो की, लेकिन उसकी आध्यात्मिक अनुभूति पिछड़ गई अर्थात् वह आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर पाया। वहीं दूसरी ओर’ भारत भौतिक दृष्टि से पिछड़ गया, इसलिए भारत की आध्यात्मिकता शब्द मात्र रह गई। शक्तिहीन व्यक्ति को आत्मानुभूति नहीं हो | सकती। बिना स्वयं को प्रकाशित किए सिद्धि (सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। अतः आवश्यक है कि बल की उपासना के आदेश के अनुसार हम अपनी शक्ति को बढ़ाए और स्वयं की उन्नति करने के लिए प्रयत्नशील बनें, जिससे हम अपने रोगों को दूर कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकें तथा विश्व के लिए भार न बनकर | उसकी प्रगति में साधक की भूमिका निभाने में सहायक हो सकें।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में गद्य भाग से दो गद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर:::: देने होंगे।

प्रश्न 1.
जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण-पोषण की, उसके शिक्षण की, जिससे वह समाज के एक जिम्मेदार घटक के नाते अपना योगदान करते हुए अपने विकास में समर्थ हो सके, उसके लिए स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था में जीविकोपार्जन की और यदि किसी भी कारण वह सम्भव न हो, तो भरण-पोषण की तथा उचित अवकाश की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी समाज की है। प्रत्येक सभ्य समाज इसका किसी-न-किसी रूप में निर्वाह करता है। प्रगति के यही मुख्य मानदण्ड हैं। अतः न्यूनतम जीवन-स्तर की गारण्टी, शिक्षा, जीविकोपार्जन के लिए रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को हमें मूलभूत अधिकार के रूप में स्वीकार करना होगा।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) लेखक के अनुसार मनुष्य के विकास में समाज की क्या भूमिका है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मनुष्य के विकास में समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि समाज में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पालन-पोषण, शिक्षण, जीविका के लिए रोजी रोटी का उचित प्रबन्ध करना समाज की जिम्मेदारी है।

(ii) मनुष्य की प्रगति का मानदण्ड क्या हैं?
उत्तर:
जब समाज मनुष्य के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह पूरी निष्ठा से करता है, तो मनुष्य की प्रगति होती है। समाज द्वारा मनुष्य का पोषण करना ही
प्रगति और विकास का मुख्य मानदण्ड है।

(iii) लेखक के अनुसार व्यक्ति के मूल अधिकार क्या होने चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मनुष्य के न्यूनतम जीवन स्तर की गारण्टी, शिक्षा, जीवन-यापन के लिए रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण हमारे मूल अधिकार होने चाहिए।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में मनुष्य को उसके मूलभूत अधिकारों के प्रति सचेत करना तथा मनुष्य के विकास में समाज के दायित्व का बोध कराना ही लेखक का मूल उद्देश्य है।

(v) ‘न्यूनतम’ व ‘व्यवस्था’ शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
न्यूनतम् – उच्चतम, व्यवस्था – अव्यवस्था।

प्रश्न 2.
हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र मानव होना चाहिए, जो (‘यत् पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे’) के न्याय के अनुसार समष्टि का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है। (भौतिक उपकरण मानव के सुख के साधन हैं, साध्य नहीं।) जिस व्यवस्था में भिन्नरुचिलोक का विचार केवल एक औसत मानव से अथवा शरीर-मन-बुद्धि-आत्मायुक्त, अनेक एषणाओं से प्रेरित पुरुषार्थचतुष्टयशील, पूर्ण मानव के स्थान पर एकांगी मानव का ही विचार किया जाए, वह अधूरा है। हमारा आधार एकात्म मानव है, जो अनेक एकात्म मानववाद (Integral Humanism) के आधार पर हमें जीवन की सभी व्यवस्थाओं का विकास करना होगा।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) लेखक के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के केन्द्र में कौन होना चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था के मध्य अर्थात् केन्द्र में मनुष्य होना चाहिए। मनुष्य ही ब्रह्माण्ड का आधार है तथा पृथ्वी पर जीव का प्रतिनिधित्व करने वाला तथा उसका साधन मनुष्य ही है।

(ii) मनुष्य का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
टी.वी., इण्टरनेट आदि भौतिक उपकरण मनुष्य को सुख पहुँचाने के साधन हैं, उसका लक्ष्य नहीं हैं। मनुष्य इन साधनों से सुख तो प्राप्त कर सकता है, परन्तु इन्हें अपना लक्ष्य नहीं मान सकता है, क्योंकि मनुष्य का लक्ष्य निरन्तर प्रगति करनी है।

(iii) लेखक के अनुसार कौन-सी व्यवस्था अधूरी कहलाती हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जिस व्यवस्था में सम्पूर्ण मानव जाति के स्थान पर अकेले मानव पर विचार किया जाए अर्थात् केवल एक ही मनुष्य के विकास पर बले दिया जाए, वह व्यवस्था अधूरी कहलाती है।

(iv) भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण आधार एकात्म मानव है। भारत की सम्पूर्ण * सृष्टि में एकत्व दृष्टिगत होता है, इसलिए हमें एकात्म मानवता के आधार पर जीवन में विकास करना होगा।

(v) ‘समष्टि व ‘पूर्ण’ शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
समष्टि – व्यष्टि, पूर्ण – अपूर्ण।

प्रश्न 3.
भारत के अधिकांश राजनीतिक दल पाश्चात्य विचारों को लेकर ही चलते हैं। वे वहाँ किसी-न-किसी राजनीतिक विचारधारा से सम्बद्ध एवं वहाँ के दलों की अनुकृति मात्र हैं। वे भारत की मनीषा को पूर्ण नहीं कर सकते और न चौराहे पर खड़े विश्वमानव का मार्गदर्शन कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा लेकर चलने वाले भी कुछ राजनीतिक दल हैं, किन्तु वे भारतीय संस्कृति की सनातनता को उसकी गतिहीनता समझ बैठे हैं और इसलिए बीते युग की रूढ़ियों अथवा यथास्थिति का समर्थन करते हैं। संस्कृति के क्रान्तिकारी तत्त्व की ओर उनकी दृष्टि नहीं जाती।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) भारतीय राजनीतिक दलों के विषय में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर:
लेखक भारतीय राजनीतिक दलों के विषय में विचार व्यक्त करते हुए कहता है कि भारत के अधिकतर राजनीतिक दल पश्चिमी देशों के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें ही आधार मानकर चलते हैं। भारतीय दल पश्चिम के राजनीतिक दलों की नकल मात्र है।

(ii) लेखक के अनुसार, भारतीय राजनीतिक दल विकासशील भारत का मार्गदर्शन क्यों नहीं कर सकते?
उत्तर:
लेखक के अनुसार, भारत के अधिकांश राजनीतिक दल, विकासशील भारत का मार्गदर्शन नहीं कर सकते, क्योंकि वे पाश्चात्य विचारों का ही अनुसरण करते हैं। वे भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा का दिखावा मात्र करते हैं।

(iii) पुरानी रूढ़ियों का समर्थन करने वाले दलों के विषय में लेखक का क्या मत है?
उत्तर:
पुरानी रूदियों का समर्थन करने वाले कुछ राजनीतिक दल भारतीय संस्कृति की प्राचीनता और गौरव को विकास के मार्ग की रुकावट समझकर पुरानी रूदियों का समर्थन करते हैं। भारतीय संस्कृति के क्रान्तिकारी तत्वों की ओर इनकी दृष्टि ही नहीं जाती।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में अधिकतर राजनीतिक दलों की पाश्चात्य विचारधाराओं से संचालित होने तथा राजनीतिक दलों की भारतीय संस्कृति के प्रति संकीर्ण मानसिकता को प्रकट करना ही लेखक का मुख्य उद्देश्य है।

(v) ‘राजनीतिक’, व ‘अनुकृति’ शब्दों में क्रमशः प्रत्यय तथा उपसर्ग अँटकर लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक – इक (प्रत्यय), अनुकृति – अनु (उपसर्ग)।

प्रश्न 4.
आज के अनेक आर्थिक और सामाजिक विधानों की हम जाँच करें, तो पता चलेगा कि वे हमारी सांस्कृतिक चेतना के क्षीण होने के कारण युगानुकूल परिवर्तन और परिवर्द्धन की कमी से बनी हुई रूढ़ियों, परकीयों के साथ संघर्ष की परिस्थिति से उत्पन्न माँग को पूरा करने के लिए अपनाए गए उपाय अथवा परकीयों द्वारा थोपी गई या उनका अनुकरण कर स्वीकार की गई व्यवस्थाएँ मात्र हैं। भारतीय संस्कृति के नाम पर उन्हें जिन्दा रखा जा सकता।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश ‘प्रगति के मानदण्ड पाठ से लिया गया है। इसके लेखक पण्डित दीनदयाल उपाध्याय है।

(i) लेखक के अनुसार भारतीय सांस्कृतिक चेतना के कमजोर होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार भारतीय सांस्कृतिक चेतना के कमजोर होने का मुख्य कारण युग के अनुकूल परिवर्तन न करके पुरानी प्रथाओं, रूढियों को अधिक महत्त्व देना है।

(iii) युगानुरूप परिवर्तन एवं विकास नहीं होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
युगानुरूप परिवर्तन एवं विकास नहीं होने का मुख्य कारण हमारी प्राचीन रूढ़ियाँ, परम्पराएँ, कुप्रथाएँ हैं, जिन्हें समकालीन समय में मनुष्य की आवश्यकताओं से अधिक महत्त्व देने के कारण हमारी प्रगति रुक गई।

(iv) भारतीय नीतियाँ एवं सिद्धान्त किस प्रकार विदेशियों की नकल मात्र बनकर रह गए हैं?
उत्तर:
भारतीय नीतियाँ एवं सिद्धान्त विदेशियों की नकल मात्र बनकर रह गए हैं, क्योंकि विदेशियों के साथ होने वाले संघर्ष तथा उन परिस्थितियों से उत्पन्न माँग को पूरा करने के लिए अपनाए गए तरीके या तो विदेशियों द्वारा जबरदस्ती थोपे गए हैं या स्वयं हमने उनकी नकल करके नीतियों एवं सिद्धान्त निर्मित कर लिए हैं।

(v) ‘परिस्थिति’, व सांस्कृतिक’ शब्दों में क्रमशः उपसर्ग एवं प्रत्यय आँटकर लिखिए।
उत्तर:
परिस्थिति – परि (उपसर्ग), सांस्कृतिक – इक (प्रत्यय)

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name सन्धि
Number of Questions Solved 39
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि

परिभाषा
दो शब्दों के पास आने पर पहले शब्द के अन्तिम वर्ण और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण अथवा दोनों में आए विकार अर्थात् परिवर्तन को सन्धि कहते हैं।
जैसे- हिम + आलय = हिमालय
सत् + जनः = सज्जनः आदि।

सन्धि के भेद
सन्धि के तीन भेद होते हैं, जो निम्न हैं

1. स्वर सन्धि

परिभाषा स्वर का स्वर के साथ मेल को स्वर सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित भेद हैं।
1. दीर्घ सन्धि (सूत्र अकः सवर्णे दीर्घः) इस सन्धि में पूर्व पद का अन्तिम और उत्तर पद का प्रथम वर्ण समान होने पर दोनों मिलकर दीर्घ स्वर हो जाता है।
जैसे-
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि img 1

ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-अकः सवर्ण दीर्घः

2. गुण सन्धि (सुत्र आदगुणः) इस सन्धि में पूर्व पद के अन्त में अ/आ तथा उत्तर पद का प्रथम वर्ण इ/ई, ऊ, ऋ, कोई हो, तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर्, अल् हो जाता है।
जैसे-
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि img 2
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है- आद्गुणः।

3. वृद्धि सन्धि (सूत्र वृदिरेचि) इस सन्धि में पूर्व पद का अन्तिम वर्ण अ/आ तथा उत्तर पद का प्रथम वर्ण ए/ए, ओ हो, तो दोनों वर्गों के स्थान पर क्रमशः है। • तथा औं हो जाता है।
जैसे-
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि img 3
⇒  ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है- वृद्धिरेचि।

4. यण सन्धि (सूत्र इकोयणचि) इस सन्धि में इ/ई, उऊ, ऋ/लू किसी भी वर्ण के बाद असमान वर्ण आने पर दोनों मिलकर क्रमशः य, व, र, ल हो जाते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि img 8
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सन्धि img 4
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-इकोयणचि।

5. अयादि सन्धि (सूत्र एचोऽयवायावः) इस सन्धि में ए, ओ, ऐ, औं में से किसी भी वर्ण के बाद कोई स्वर आए तो ये वर्ण क्रमशः अय्, अव्, आयू, आद् में बदल जाते हैं।
जैसे-
हरे + ए = (हर् + ए + ए) = हर् + अय् + ए = हरये
ने + अनम् = (न् + ए + अनम्) = न् + अय् + अनम् = नयनम् (2018, 10)
शे + अनम् = (श् + ए + अनम्) = श् + अय् +अनम् = शयनम् (2015, 12)
नै + अकः = (न् + ऐ + अकः) + न् + आय् + अकः = नायकः (2013, 12, 10)
पौ + अकः = (प् + आ + अकः) = प् + आ + अकः = पावकः (2018, 13, 12, 10)
पो + अनः = (प् + आ + अनः) = प् + अय् + अनः = पवनः (2018, 14)
नौ + इकः = (न् + औ + इकः) = _ + आ + इकः = नाविकः (2014, 13, 12)
गै + अकः = (गु + ऐ + अकः) = ग् + आय् + अकः = गायकः (2013, 10)
पौ + अनम् = (१ + औ + अनम्) = १ + आ + अनम् = पावनम् (2018, 14)
भों + अनम् = (भू + ओ + अनम्) = + + अ + अनम् = भवनम् (2014)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम हैं-एचोऽयवायावः।

6. पूर्वरूप सन्धि (सूत्र एङ पदान्तादति) इस सन्धि के अन्तर्गत पूर्व पद के अन्त में एड् = ‘ए’ अथवा ‘ओ’ रहने तथा दूसरे पद के प्रारम्भ में ‘अ’ के आने पर ‘अ’ का लोप हो जाता है और पूर्वरूप हुए ‘अ’ को दर्शाने के लिए अवग्रह (5) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
ग्राम + अपि = ग्रामेऽपि (इस ग्राम में भी) (2014, 12)
देवो + अपि = देवोऽपि (देवता भी) (2018, 02)
हरे + अत्र = हरेऽत्र (हे हरि! रक्षा कीजिए)। (2012)
विष्णो + अव = विष्णोऽब (हे विष्णु! रक्षा कीजिए) (2013, 12, 11)
हरे + अव = हरेऽव (हे हरि! रक्षा कीजिए) (2013, 12, 11)
पुस्तकालये + अस्मिन् = पुस्तकालयेऽस्मिन् (इस पुस्तकालय में) विद्यालये + अस्मिन = विद्यालयेऽस्मिन् (2018)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-एङ पदान्तादति।
विशेष

  1. पद से तात्पर्य धातु के लकार एवं शब्द के विभक्ति में बने रूप से है।
  2. पूर्वरूप सन्धि अयादि सन्धि का अपवाद है।

7. पररूप सन्धि (सूत्र एङि पररूपम्) इस सन्धि के अन्तर्गत अकारान्त उपसर्ग के बाद ए = ए अथवा ओं से प्रारम्भ होने वाली धातुओं के आने पर उपसर्ग का अ अपने बाद वाले ए अथवा ओं में बदल जाता है।
जैसे-
प्र + एजते = प्रेजत (अधिक काँपता है) (2018, 14, 13, 12)
उप + औषति = उपौषति (जलता है) (2018, 14, 13, 19)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में प्रयुक्त नियम है-एड़ि पररूपम्।
विशेष पररूप सन्धि वृद्धि सन्धि का अपवाद है।

2. व्यंजन सन्धि
परिभाषा व्यंजन का स्वर अथवा व्यंजन के साथ मेल को व्यंजन सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित भेद हैं, जो निम्न हैं।

1. श्चुत्व सन्धि (सूत्र स्तोः श्चुना श्चुः) इस सन्धि के अन्तर्गत सकार या तवर्ग (त्, थ, ६, ७, न्) के बाद शकार अथवा चवर्ग (चु, छ, ज, झू, ,) के आने पर सकार शकार में और तवर्ग क्रम से चवर्ग में बदल जाता है।
जैसे-
निस् + छलम् = निश्छलम् (2011)
निस् + चय = निश्चय हरिस् + शेते = हरिश्शेते (2013, 12, 11, 10)
सत् + चित् = सच्चित् (2014, 13)
सत् + चयनम् = सच्चयनम् (2012, 11, 10)
कस् + चित् = कश्चित् सत् + चरितम् = सच्चरितम् (2018)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियाँ स्तोः बुना श्वुः नियम पर आधारित हैं।।

2. ष्टुत्व सन्धि (सूत्र ष्टुनाष्टुः) इस सन्धि के नियमानुसार सकार (स्) अथवा तवर्ग (त्, थ, द, ध, न ) के बाद षकार (७) अथवा वर्ग (द्, ठ, ड, ढ, ण ) के आने पर सकार धकार में और तवर्ग क्रमशः टबर्ग में बदल जाता है।
जैसे–
रामस् + धष्ठः = रामष्य: (2014, 12)
रामस् + टीकते = रामष्टीकते (2018, 11)
पैष् + ता = पेष्टा तत् + टीका = तट्टीका (2014, 13, 12)
चक्रिन + दौकसे = चक्रिण्ढौकसे (2012)
उत् + ड्यनम् = उड्डयनम्
⇒ ध्यान दें उपर्युक्त सन्धियाँ ष्टुनाष्टुः नियम पर आधारित हैं।

3. जश्त्व सन्धि (सूत्र झलां जश् झशि) इस सन्धि के नियमानुसार झल् वर्णो अर्थात् अन्तःस्थ (य, र्, ल्, व्), शल् (श, ष, स, ह) तथा अनुनासिक व्यंजन के अतिरिक्त आए अन्य व्यंजन के बाद झश् (किसी वर्ग का तीसरा अथवा चौथा वर्ण) के आने पर प्रथम व्यंजन झल्, जश् (उसी वर्ग का तीसरा वर्ण ज्, ग्, ड्, द्, ब्) में बदल जाता है।
जैसे-
सिध् + धिः = सिद्धिः (2018, 14, 12)
दध् + धा = दोग्ध। (2015, 13, 12, 11)
योध् + धा = योद्धा (2014, 12)
लभ् + धः = लब्धः (2014, 12)
दुधः + धम् = दुग्धम्।
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-झलां जश् झशि।

4. घर्त्य सन्धि (सूत्र खरि च) इस सन्धि के नियमानुसार झलू प्रत्याहार वर्णो (य्, र्, ल्, व्, ड्, ञ्, ण्, न्, म् के अतिरिक्त अन्य व्यंजन अर्थात् वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण तथा श्, धू, स्, इ) के पश्चात् खर् प्रत्याहार वर्ण (वर्ग के प्रथम, द्वितीय वर्ण तथा शू, धू, सू) के आने पर प्रथम व्यंजन झलू प्रत्याहार, घर प्रत्याहार (वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प्) में बदल जाता है।
जैसे-
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (2018, 13)
विपद् + काल = विपत्काल (2014, 12)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्रान्तः (2012)
उद् + साहः = उत्साहः
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-खरि च।

5. लत्व सन्धि (सूत्र तोलिं) इस सन्धि के नियमानुसार तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के पश्चात् ल के आने पर तंवर्ग परसवर्ण ल में बदल जाता है। उल्लेखनीय है। कि न के पश्चात् ल के आने पर न् अनुनासिक लै में बदल जाता है।
जैसे-
उत् + लेखः = उल्लेख: (2018, 14, 12, 11, 10)
उद् + लिखितम् = उल्लिखितम् (2012)
तत् + लयः = तल्लयः विद्वान् + लिखति = विद्वान्लिखति (2012)
⇒  ध्यान दें उक्त सन्धियाँ तोर्लि नियम पर आधारित हैं।

6. अनुस्वार सन्धि (सूत्र मोऽनुस्वारः) इस सन्धि के नियमानुसार पदान्त म् (विभक्तियुक्त शब्द के अन्त का मू) के पश्चात् किसी व्यंजन के आने पर म् अनुस्वार (-) में बदल जाता है।
जैसे-
गृहम् + गच्छ = गृहंगच्छ (2018)
गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति (2013)
धनम् + जय = धनञ्जय (2014)
हरिम् + वन्दे = हरि बन्दै (2000)
दुःखम् + प्राप्नोति = दुःखं प्राप्नोति
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-मोऽनुस्वारः।

7. परसवर्ण सन्धि (सूत्र अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः) इस सन्धि के नियमानुसार पद के मध्य अनुस्वार के पश्चात् श्, ष्, स्, हू के अतिरिक्त किसी व्यंजन के आने पर अनुस्वार आने वाले वर्ग के पाँचवें वर्ण में बदल जाता है।
जैसे-
सम् + धिः = सन्धिः
त्वम् + करोषि = त्वङ्करोषि = त्वं करोषि (2012)
नगरम् + चलति = नगरचलति = नगरं चलति
रामम् + नमामि = रामन्नमामि = रामं नमामि
सम् + नद्ध = सन्नद्धः (2018)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है– अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः।

3. विसर्ग सन्धि

परिभाषा विसर्ग का स्वर अथवा व्यंजन के साथ मेल को विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित भेद हैं-
1. सत्व सन्धि (सूत्र विसर्जनीयस्य सः) इस सन्धि में विसर्ग के पश्चात् खर् प्रत्याहार वर्गों के प्रथम वर्ण, द्वितीय वर्ण तथा शु, ष, स् के आने पर विसर्ग स् में बदल जाता है।
जैसे-
नमः + ते = नमस् + ते = नमस्ते
गौः + चरति = गौस् + चरति = गौश्चरति (2014, 12)
पूर्णः + चन्द्रः = पूर्णस् + चन्द्रः = पूर्णश्चन्द्रः (2018, 13, 12)
हरिः + चन्द्रः = हरिस् + चन्द्रः = हरिश्चन्द्रः (2014, 10)
हरिः + चरति = हरिस् + चरति = हरिश्चरति (2013, 10)
⇒ ध्यान दें उक्त सन्धियों में निर्दिष्ट नियम है-विसर्जनीयस्य सः।
विशेष उपर्युक्त प्रथम उदाहरण को छोड़कर शेष सभी उदाहरण स् और चवर्ग का मेल होने से श्चुत्व सन्धि के ‘स्तोः श्चुनी श्चुः’ नियम पर भी आधारित है।’

2. रुत्व सन्धि (सूत्र 1 ससजुषोः रुः) इस सन्धि के नियमानुसार पदान्त सू एवं सजु शब्द का ष् रू ()र् में बदल जाता है। (सूत्र 2 खरवसानयोर्विसर्जनीय) पदान्त र के पश्चात् खर् प्रत्याहार के किसी वर्ण के आने अथवा न आने पर है विसर्ग में बदल जाता है।
जैसे-
सजु = सजुर् = सजुः।
कवेः + आभावात् = कवेरभावात् (2013)
रामस् = राम = रामः
रामस् + पठति = राम + पठति = रामः पठति

3. उत्त सन्धि (सूत्र 1 अतोरोरप्लुतादप्लुते) स् के स्थान पर आए र के पूर्व अ एवं पश्चात् में अ अथवा (सूत्र 2 हशि च) हश् प्रत्याहार के किसी वर्ण (वर्ग तृतीय, चतुर्थ, पंचम के वर्षों एवं य, र, ल, व, ह) के आने पर १ छ में बदल जाता है।
जैसे- सस् + अपि = सर् + अपि = स + उ + अपि = सो + अपि = सोऽपि (2013)
शिवस् + अर्थ्यः = शिबर् + अर्व्यः = शिव + उ + अर्व्यः = शिव + अर्ध्यः = शिवोऽर्थ्यः (2012)
रामस् + अस्ति = रामर् + अस्ति = राम + उ + अस्ति = राम + अस्ति = रामोऽस्ति
बालकस् + अति = बालक + अपि = बालक + उ । अपि = बालको + अपि = बालकोऽपि

4. विसर्ग लोप (सुत्र 1 रोरि) विसर्ग अथवा र बाद र के आने पर प्रथम र् का लोप हो जाता है। (सूत्र 2 ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घाs:) पूर्ववर्ती र के पहले अ, इ, उ के आने पर वे दीर्घ हो जाते हैं।
जैसे-
गौः + रम्भते = गौर् + रम्भते = गौरम्भते (2012)
हरेः + रमणम् = हरेर् + रमणम् = हरेरमणम् (2012)
हरिः + रम्यः = हरिर् + रम्यः = रम्यः (2012)
पुनः + रमते = पुनर् + रमते = पुनारमते (2014, 12)
भानुः + राजते = भानुर् + राजते = भानुराजते।

बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नयनम्’ का सन्धि विच्छेद होगा। (2018)
(क) ने + अन्नम्।
(ख) नय + नम्।
(ग) नै + अनम्
(घ) नय + अनम् प्रश्न

प्रश्न 2.
‘पावनः’ का सन्धि विच्छेद होगा। (2018)
(क) पाव + अनः
(ख) पो + अनः
(ग) पौ + अनमः
(घ) पद + अनः प्रश्न

प्रश्न 3.
उत् + लेख’ की सन्धि होगी। (2018)
(क) उत्लेख
(ख) उद्लेख
(ग) उज्लेख
(घ) उल्लेख प्रश्न

प्रश्न 4.
‘प्रेजतेः’ में सन्धि है। (2018)
(क) गुण सन्धि
(ख) पररूप सन्धि
(ग) पूर्वरूप सन्धि
(घ) अयादि सन्धि

प्रश्न 5.
‘नायक’ का सन्धि विच्छेद होगा (2018, 16)
(क) नै + अकः
(ख) नाय + अकः
(ग) नाय + क
(घ) नौ + अक:

प्रश्न 6.
‘तद् + लीन’ की सन्धि होगी। (2016)
(क) तल्लीनः
(ख) तलीनः
(ग) तल्लिनः
(घ) तद्दीनः

प्रश्न 7.
‘रमयागच्छ’ का सन्धि विच्छेद होगा। (2016)
(क) रमें + आगछ
(ख) रमा + आगच्छ
(ग) राम + आगच्छ
(घ) रमया + गछ

प्रश्न 8.
‘नश्चलति’ का सन्धि विच्छेद होगा
(क) नरस् + चलति
(ख) नरश् + चलति
(ग) नर् + सचलि
(घ) न + चलति

प्रश्न 9.
‘विद्वान् + लिखति’ की सन्धि है। (2016)
(क) विद्वन्लिखति।
(ख) विद्वांलिखति
(ग) विद्वाल्लिखति
(घ) विद्वांलिखति

प्रश्न 10.
‘पुनारमते’ में सन्धि है। (2016)
(क) रोरि
(ख) खरि च
(ग) विसर्जनीयस्य सः
(घ) ष्टुना ष्टुः

प्रश्न 11.
‘पौ + इत्रम्” की सन्धि है। (2016)
(क) पवित्र
(ख) पवित्रम्
(ग) परित्राण
(घ) परित्रम्

प्रश्न 12,
‘विष्णोऽव’ का सन्धि विच्छेद होगा (2016)
(क) विष्णु + अव
(ख) विष्णु + इव
(ग) विष्णो + अव
(घ) विष्णों + आव

प्रश्न 13.
‘इत्यादि का सन्धि विच्छेद होगा (2017, 16)
(क) इति + आदि
(ख) इत्य + आदि
(ग) इत्या + दि
(घ) इत् + यदि

प्रश्न 14.
‘पौ + अकः’ की सन्धि है (2018, 17, 16)
(क) पोअकः
(ख) पावकः
(ग) पावाकः
(घ) पौवाकः

प्रश्न 15.
‘गुरो + अनु’ की सन्धि हैं। (2016)
(क) गुरवनु
(ख) गुरोऽनु
(ग) गुरावनु
(घ) गुरोरनु

प्रश्न 16.
‘पशवश्चरन्ति’ में सन्धि हैं। (2016)
(क) हशि च
(ख) रोरि
(ग) विसर्जनीयस्य सः
(घ) खर च

प्रश्न 17.
ससजुषोः रुः सन्धि है (2015)
(क) अरिस् + गच्छति
(ख) प्रभुः + चलति
(ग) बालकः + याति
(घ) शिवः + अपि

प्रश्न 18.
‘पुत्रस् + षष्ठः’ की सन्धि है। (2015)
(क) पुत्रस्षष्ठः
(ख) पुत्रोषष्ठः
(ग) पुत्रर्षष्ठः
(घ) पुत्रष्षष्ठः

प्रश्न 19.
‘दोग्धा’ का सन्धि-विच्छेद होगा (2015, 12, 11)
(क) दोग् + धा
(ख) दो + ग्धा
(ग) दोध् + धा
(घ) दोक + धा।

प्रश्न 20.
‘सज्जनः’ का सन्धि-विच्छेद होगा (2018, 13, 12, 11)
(क) सत् + जनः
(ख) सद् + जनः
(ग) सज्ज + नः
(घ) सज़ + जनः

प्रश्न 21.
‘उज्ज्वल’ का सन्धि-विच्छेद है (2014)
(क) उद् + ज्वल
(ख) उर् + ज्वल
(ग) उज् + ज्वल
(घ) उस् + ज्वल

प्रश्न 22.
विसर्जनीयस्य सः सन्धि है (2014)
(क) शिया + अस्ति
(ख) रामः + गच्छति
(ग) हरिः + भाति
(घ) चन्द्रः + चकोर:

प्रश्न 23.
‘निस + छलम्’ की सन्धि है (2011)
(क) निस्छलम्
(ख) निष्छलम्
(ग) निश्छलम्
(घ) निलम्

प्रश्न 24.
‘तत् + चौरः’ की सन्धि हैं। (2018, 11)
(क) तदचौरः
(ख) तचौरः
(ग) तच्छौरः
(घ) तच्चौरः

प्रश्न 25.
‘एचोऽयवायावः’ सन्धि है। (2014)
(क) उप + ओषति
(ख) नौ + इकः
(ग) रामस् + च
(घ) तत् + टीका

प्रश्न 26.
अयादि सन्धि है। (2011)
(क) ने + अनम्
(ख) नय + नम
(ग) यदि + अपि
(घ) सत् + चित्

प्रश्न 27.
‘विष्णो + अत्र’ की सन्धि होगी
(क) विष्ण्वत्र
(ख) विष्णवत्र
(ग) विष्पावत्र
(घ) विष्णोऽत्र

प्रश्न 28.
‘प्रभुश्चलति’ का सन्धि-विच्छेद है। (2011)
(क) प्रभुः + चलति
(ख) प्रभु + चलति
(ग) प्रभो + चलति
(घ) प्रभा + चलति

प्रश्न 29.
‘झलां जशु झशि’ सन्धि है। (2011)
(क) लब्धम्
(ख) रामष्षष्ठः
(ग) सत्कारः
(घ) रामश्च

प्रश्न 30.
पररूप सन्धि है। (2011)
(क) प्रभो + अत्र
(ख) प्र + एजते
(ग) देव + आलयः
(घ) प्रति+ उदारः।

प्रश्न 31.
विसर्ग सन्धि है। (2011)
(क) समस्तरति
(ख) सिद्धिः
(ग) पुस्तकालयः
(घ) नयनम्

प्रश्न 32.
‘रामावग्रतः’ का सन्धि-विच्छेद है।
(क) राम + अग्रतः
(ख) रामौ + अग्रतः
(ग) राम + अग्रतः
(घ) रामे + अग्न

प्रश्न 33.
‘पूर्णश्चन्द्रः’ में कौन-सी सन्धि है? (2018, 15)
(क) रोरि
(ख) वृद्धिरेचि
(ग) वीसर्जनीयस्य सः
(घ) पररूपम्

प्रश्न 34.
‘विष्णवे’ का सन्धि-विच्छेद होगा (2018, 13, 12)
(क) विष्णु + वे
(ख) विष्णोः + ए
(ग) विष्णु+ए
(घ) विष्णो +ए।

प्रश्न 35.
अयादि सन्धि है
(क) सत् + चित्त
(ख) प्र + एजते
(ग) पौ + अकः
(घ) योघ् + धा।

प्रश्न 36.
‘सः + अक्षरः’ की सन्धि होगी। (2015)
(क) साक्षरः
(ख) सोऽक्षरः
(ग) साक्षरः
(घ) सःक्षर

प्रश्न 37.
‘लू + आकृतिः’ की सन्धि होगी (2015)
(क) लाकृतिः
(ख) लुकृति
(ग) अकृतिः
(घ) लआकृति

प्रश्न 38.
‘वधूत्सवः’ में सन्धि है। (2015)
(क) यण्
(ख) पूर्वरूप
(ग) अयादि
(घ) दीर्घ

प्रश्न 39.
चर्व सन्धि (खरि च) है। (2011)
(क) दोघ् + धा
(ख) उद् + कीर्णः
(ग) मत् + चित्ते
(घ) हरिम् + वन्दै

उत्तर
1. (क) 2. (ग) 3. (घ) 4. (ख) 5. (क) 6. (क) 7. (क) 8. (क) 9. (घ) 10. (ख) 11. (ख) 12. (ग) 13. (क) 14. (ख) 15. (ख) 16. (ग) 17. (क) 18. (घ) 19. (ग) 20. (क) 21. (ख) 22. (घ) 23. (ग) 24. (घ) 25. (ख) 26. (क) 27. (घ) 28. (क) 29. (क) 30. (ख) 31. (क) 32. (ख) 33. (ग) 34. (घ) 35. (ग) 36. (ग) 37. (क) 38. (घ) 39. (ख)

सूत्रों की व्याख्या पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एचायवायाव: सूत्र का सादाहरण| व्याख्या ||जए!
उत्तर:
यदि ए, ओ, ऐ, औ में से किसी भी वर्ण के बाद कोई स्वर आए तो ये वर्ण क्रमशः अय्, अ, आयु, आव् में बदल जाते हैं;
जैसे–
ने + अनम् = नयनम्: पौ + अकः = पावकः, कलौ + इव = कलाविव (2018)

प्रश्न 2.
‘एछ पदान्तादति’ (अथवा पूर्वरूप) सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि पूर्व पद के अन्त में ए और ओ में से कोई वर्ण रहे और उसके बाद दूसरे पद में अ आए तो अ का लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह (5) लिखा जाता है।
जैसे—विष्णो + अव = विष्णोऽव; देवो + अपि = देवोऽपि

प्रश्न 3.
‘एहि पररूपम्’ सूत्र की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
यदि अकारान्त उपसर्ग के पश्चात् ए अथवा ओ से प्रारम्भ होने वाली धातु आए तो उपसर्ग का अ अपने बाद वाले ए अथवा ओ में बदल जाता हैं ।
जैसे—प्र + एजते = प्रेजते, उप + ओषति = उपोषति

प्रश्न 4.
‘स्तोः श्चुना श्चुः सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि सकार या तवर्ग के बाद शकार अथवा चवर्ग का कोई वर्ण आए तो। सकार (स्) शकार (श) में तथा तवर्ग क्रमानुसार चवर्ग में बदल जाता है।
जैसे-सत् + चरितम् = सच्चरितम्, हरिस् + शेते = हरिश्शेते

प्रश्न 5.
‘टुनाष्टुः सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि सकार अथवा तवर्ग के किसी वर्ण के बाद षकार अथवा वर्ग का कोई वर्ण आए तो सकार (स्) षकार (७) में तथा तवर्ग क्रमशः टवर्ग में बदल जाता है;
जैसे—रामस् + टीकते = रामष्टीकते, तत् + टीका = तट्टीका

प्रश्न 6.
‘झलां जश् झशि’ सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि झल् वर्षों (य्, र, ल, व्, श, ष, स्, ह तथा अनुनासिक व्यंजनों को छोड़कर आए अन्य व्यंजन) के बाद झश् (वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण) आए तो प्रथम व्यंजन झलू जश् (उसी वर्ग का तीसरा वर्ण जु, बु, गु, डू, ६) में बदल जाता है;
जैसे—योध् + धा = योद्धा, दुधः + धम् = दुग्धम्।

प्रश्न 7.
‘तोर्लि’ सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि तवर्ग के किसी वर्ण के पश्चात् ल आए तो तवर्ग परसवर्ण ले में बदल जाता है;
जैसे-उत् + लेखः = उल्लेखः, तद् + लयः = तल्लयः

प्रश्न 8.
‘मोऽनुस्वारः सूत्र की सोदाहरण परिभाषा लिखिए। (2013, 10)
उत्तर:
यदि पदान्त म् के पश्चात् कोई व्यंजन आए तो म् अनुस्वार हो जाता है;
जैसे—कृष्णाम् + बन्दे = कृष्णं वन्दे, गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति।

प्रश्न 9.
‘विसर्जनीयस्य सः’ सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए। (2013, 10)
उत्तर:
यदि विसर्ग के पश्चात् खर् प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्गों का प्रथम, द्वितीय एवं श्, ५, स्) आए तो विसर्ग स् में बदल जाता है;
जैसे—नमः + ते = नमस्ते, नर: + चलति = नरश्चलति

प्रश्न 10.
‘रोरि’ सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए। (2010)
उत्तर:
यदि विसर्ग अथवा के पश्चात् र आए तो विसर्ग अथवा प्रथम र का लोप हो जाता है तथा प्रथम र के पूर्व अ, इ, उ में से किसी के रहने पर वह दीर्घ हो जाता है;
जैसे-हरि + रम्यः = हरिर् + रम्यः = हरीरम्यः
पुन + रमते = पुनर् + रमते = पुनारमते

प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि के नियम/नाम का उल्लेख कीजिए।
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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 4 अशोक के फूल

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name अशोक के फूल
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 4 अशोक के फूल

अशोक के फूल – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2017, 16, 14, 13, 12, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठों में से लेखकों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा जाता है। इस प्रश्न में किन्हीं 4 लेखकों के नाम दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक लेखक के बारे में लिखना होगा। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन-परिचय तथा साहित्यिक उपलब्धियाँ
हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक एवं भारतीय संस्कृति के युगीन व्याख्याता आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म वर्ष 1907 में बलिया जिले के ‘दूबे का छपरा’ नामक ग्राम में हुआ था। संस्कृत एवं ज्योतिष का ज्ञान इन्हें उत्तराधिकार में अपने पिता पण्डित अनमोल दूबे से प्राप्त हुआ। वर्ष 1930 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त करने के बाद वर्ष 1940 से वर्ष 1950 तक ये शान्ति निकेतन में हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में रहे। विस्तृत स्वाध्याय एवं साहित्य सृजन का शिलान्यास यहीं हुआ। वर्ष 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। वर्ष 1980 से वर्ष 1966 तक पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। वर्ष 1967 में इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। अनेक गुरुतर दायित्वों को निभाते हुए उन्होंने वर्ष 1979 में रोग-शय्या पर ही चिरनिद्रा लीं।

साहित्यिक सेवाएँ
आधुनिक युग के गद्यकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी गद्य के धोत्र में इनकी साहित्यिक सेवाओं का आकलन निम्नवत् किया जा सकता है–

  1. निबन्धकार के रूप में आचार्य द्विवेदी के निबन्धों में जहाँ साहित्य और संस्कृति की अखण्ड धारा प्रवाहित होती है, वहीं प्रतिदिन के जीवन की विविध गतिविधियों, क्रिया-व्यापारों, अनुभूतियों आदि का चित्रण भी अत्यन्त सजीवता और मार्मिकता के साथ हुआ है।
  2. आलोचक के रूप में आलोचनात्मक साहित्य के सृजन की दृष्टि से द्विवेदी जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी आलोचनात्मक कृतियों में विद्वत्ता और अध्ययनशीलता स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। ‘सूर-साहित्य’ उनकी प्रारम्भिक आलोचनात्मक कृति है।
  3. उपन्यासकार के रूप में द्विवेदी जी ने चार महत्त्वपूर्ण उपन्यासों की रचना की है। ये हैं-‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचन्द्र लेख’, ‘पुनर्नवा’ और ‘अनामदास का पोथा’। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित ये उपन्यास द्विवेदी जी की गम्भीर विचार-शक्ति के प्रमाण
  4. ललित निबन्धकार के रूप में द्विवेदी जी ने ललित निबन्ध के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण लेखन कार्य किए हैं। हिन्दी के ललित निबन्ध को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले निबन्धकार के रूप में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अग्रणी हैं। निश्चय ही ललित निबन्ध के क्षेत्र में वे युग-प्रवर्तक लेखक रहे हैं।

कृतियाँ
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनको निम्नलिखित वर्गों में प्रस्तुत किया गया है-

  1. निबन्ध संग्रह अशोक के फूल, कुटज, विचार-प्रवाह, विचार और वितर्क, आलोक पर्व, कल्पलता।
  2. आलोचना साहित्य सूर-साहित्य, कालिदास की लालित्य योजना, कबीर, साहित्य-सहचर, साहित्य का मर्म।
  3. इतिहास हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हिन्दी साहित्यः उद्भव और विकास
  4. उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा, अरुचन्द्र लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।
  5. सम्पादन नाथ-सिद्धों की बानियाँ, संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, सन्देश-रासका।
  6. अनूदित रचनाएँ प्रबन्ध चिन्तामणि, पुरातन प्रबन्ध संग्रह, प्रबन्धकोश, विश्व परिचय, लाल कनेर, मेरा बचपन आदि।

भाषा-शैली
द्विवेदी जी ने अपने साहित्य में संस्कृतनिष्ट, साहित्यिक तथा सरल भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी, उर्दू तथा फारसी भाषा के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया है।

इनकी भाषा में मुहावरों का प्रयोग प्रायः कम हुआ है। इस प्रकार द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध, परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ी बोली है। उनकी गद्य-शैली प्रौद एवं गम्भीर है। इन्होंने विवेचनात्मक, गवेषणात्मक, आलोचनात्मक, भावात्मक तथा आत्मपरक शैलियों का प्रयोग अपने साहित्य में किया है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी की कृतियाँ हिन्दी साहित्य की शाश्वत निधि हैं। उनके निबन्धों एवं आलोचनाओं में उच्च कोटि की विचारात्मक क्षमता के दर्शन होते हैं। हिन्दी साहित्य जगत में उन्हें एक विद्वान् समालोचक, निबन्धकार एवं आत्मकथा लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। वस्तुतः वे एक महान् साहित्यकार थे। आधुनिक युग के गद्यकारों में उनका विशिष्ट स्थान है।

अशोक के फूल – पाठ का सार

परीक्षा में ‘पाठ का सार’ से सम्बन्धित कोई प्रश्न नहीं पूछा जाता है। यह केवल विद्यार्थियों को पाठ समझाने के उद्देश्य से दिया गया है।

सामन्तीय सभ्यता एवं परिष्कृत रुचि का प्रतीक : अशोक
‘अशोक के फूल’ नामक निबन्ध आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक चिन्तन की परिणति है। भारतीय परम्परा में अशोक के फूल दो प्रकार के होते हैं-श्वेत एवं लाल पुष्प। श्वेत पुष्प तान्त्रिक क्रियाओं की सिद्धि के लिए उपयोगी हैं, जबकि लाल पुष्प स्मृतिवर्धक माना जाता है। द्विवेदी जी का मानना है कि मनोहर, हस्यमय एवं अलंकारमय दिखने वाला अशोक का वृक्ष विशाल सामन्ती सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक है। यही कारण है कि सामन्ती व्यवस्था के ढह जाने के साथ-साथ अशोक के वृक्ष की महिमा एवं गरिमा दोनों नष्ट होने लगी। इससे अशोक के वृक्ष का सामाजिक महत्त्व भी कम होने लगा।

अशोक वृक्ष की पूजा: गन्धर्वो एवं यक्षों की देन
प्राचीन साहित्य के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि अशोक के वृक्ष में कन्दर्प देवताओं का वास है। वास्तव में पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कन्दर्प देवता की होती थी। इसे ही ‘मदनोत्सव’ कहते थे। लेखक का मानना है कि अशोक के स्तवकों में वह मादकता आज भी है। भारतवर्ष का सुवर्ण युग इस पुष्प के प्रत्येक दल में लहरा रहा है।

मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा
लेखक का मानना है कि दुनिया की सारी चीजें मिलावट से पूर्ण हैं। कोई भी वस्तु अपने विशुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद, केवल एक ही चीज विशुद्ध है। और वह है मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा।

वह गंगा की अबाधित-अनाहत धारा के समान सबकुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है। मानव-जाति की दुर्दम, निर्मम धारा के हजारों वर्षों का रूप देखने से स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य की जीवन-शक्ति बड़ी ही निर्मम हैं, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही हैं। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती-बहाती हुई यह जीवन धारा आगे बदी है।

अशोक के वृक्ष की मौज
लेखक कहता है कि अशोक का वृक्ष आज भी अपनी उसी स्थिति में विद्यमान है, जिसमें वह दो हजार वर्ष पहले था। उसका कहीं से भी कुछ नहीं बिगड़ा है। वह उसी मस्ती में हँस रहा है, वह उसी मस्ती में झूम रहा है। इससे सभी को रस यानी आनन्द लेने की शिक्षा लेनी चाहिए। उदास या निराश होना व्यर्थ है।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में गद्य भाग से दो गद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर::: देने होंगे।

प्रश्न 1.
पुष्पित अशोक को देखकर मेरा मन उदास हो जाता है। इसलिए नहीं कि सुन्दर वस्तुओं को हतभाग्य समझने में मुझे कोई विशेष रस मिलता है। कुछ लोगों को मिलता है। वे बहुत दूरदर्शी होते हैं। जो भी सामने पड़ गया उसके जीवन के अन्तिम मुहूर्त तक का हिसाब वे लगा लेते हैं। मेरी दृष्टि इतनी दूर तक नहीं जाती। फिर भी मेरा मन इस फूल को देखकर उदास हो जाता है। असली कारण तो मेरे अन्तर्यामी ही जानते होंगे, कुछ थोड़ा-सा में भी अनुमान कर सकता हूँ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) किस पुष्प को देखकर लेखक उदास हो जाते हैं?
उत्तर:
अशोक के खिले हुए पुष्य को देखकर लेखक उदास हो जाते हैं। वे उसकी सुन्दरता के कारण नहीं, बल्कि उसकी कमियों का अन्वेषण कर दुःखी हो रहे हैं।

(ii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या बताना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक बताना चाहता है कि संसार में सुन्दर वस्तुओं को दुर्भाग्यशाली या कम समय के लिए भाग्यवान समझकर ईष्र्थावश उससे आनन्द की प्राप्ति करने वाले लोगों की कमी नहीं है।

(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्वयं के विषय में क्या कहा है?
उत्तर:
लेखक ने स्वयं को अन्य लोगों से कम दूरदर्शी बताकर अपनी उदारता एवं महानता का परिचय दिया है। लेखक अशोक के फूल के सम्बन्ध में अपनी मनः स्थिति एवं सोच को स्पष्ट कर रहा है।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक व पाठ का नाम स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इस पाठ में किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश के लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं तथा पाठ का नाम अशोक के फूल है। इस निबन्ध में लेखक ने वर्णनात्मक, विवेचनात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है।

(v) निम्न शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हतभाग्य – भाग्यहीन, अभागा दूरदर्शी – भविष्य की घटनाओं को समझने वाला।

प्रश्न 2.
अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला, वह अपूर्व था। सुन्दरियों के आसिंजनकारी नूपुरवाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था, कोमल कपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल नील अलकों की अचंचल शोभा को सौ गुना बढ़ा देता था। वह महादेव के मन में क्षोभ पैदा करता था, मर्यादा पुरुषोत्तम के चित्त में सीता का भ्रम पैदा करता था और मनोजन्मा देवता के एक इशारे पर कन्धों पर से ही फूट उठता था।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) संस्कृत के किस कवि ने अशोक को सम्मानित किया?
उत्तर:
संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अशोक को जो सम्मान दिया. वह अपूर्व था। उससे पहले किसी भी कवि ने अशोक का वर्णन नहीं किया।

(ii) किस फूल की सुन्दरता के कारण सुन्दरियाँ उन्हें अपने कानों का आभूषण बनाती हैं?
उत्तर:
अशोक के फूलों की सुन्दरता के कारण सुन्दरियाँ उन्हें अपने कानों का आभूषण बनाती हैं। यह कर्णफूल जब उनके गलों पर झूलता है तो वे और अधिक सुन्दर लगने लगती हैं।

(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उददेश्य क्या हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अशोक के फूल का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है। यहाँ लेखक कहना चाहता है कि साहित्यकारों में मुख्य रूप से संरकृत के महान् कवि कालिदास ने अशोक के फूल का जो मादकतापूर्ण वर्णन किया है, ऐसा किसी अन्य ने नहीं किया है।

(iv) अशोक पर फूल आने के सम्बन्ध में लेखक को क्या विचार है?
उत्तर:
लेखक का विचार है कि अशोक पर तभी पुष्प आते हैं जब कोई अत्यन्त सुन्दर युवती अपने कोमल और संगीतमय नूपुरवाले चरणों से उस पर प्रहार करती है।

(v) निम्न शब्दों का अर्थ लिखिए – आसिजनकारी तथा कर्णावतंस।
उत्तर:
आसिंजनकारी – अनुरागोत्पादक
कर्णावतंस – कर्णफूल।

प्रश्न 3.
कहते हैं, दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है! केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है। शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सधा। क्यों उसे वह याद रखती? सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश में किस प्रसंग की चर्चा की गई है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक आचार्य द्विवेदी जी ने रचनाकारों अर्थात् साहित्यकारों द्वारा अशोक के फूल को भूल जाने की आलोचना की है।

(ii) लेखक ने गद्यांश में किस प्रकार के लोगों को स्वार्थी कहा है?
उत्तर: मस्त गद्यांश में लेखक आचार्य द्विवेदी ने रचनाकारों अर्थात् साहित्यकारों द्वारा ‘अशोक के फूल’ के भूल जाने की आलोचना की है कि यह संसार बड़ा स्वार्थी है। यह केवल उन्हीं बातों को याद रखता है जिससे उसके स्वार्थ की सिद्धि होती है।

(iii) “सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।” से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
लेखक कहना चाहता है कि यह संसार स्वार्थी व्यक्तियों से भरा पड़ा है। यह हर व्यक्ति अपने ही स्वार्थ को साधने में लगा हुआ है। उसे अपने ही स्वार्थ को सिद्ध करने से फुरसत नहीं है, तो वह अशोक के फूल की क्या परवाह करेगा, जो शायद उसके लिए किसी काम का नहीं है।

(iv) ‘फूल’ शब्द के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
फूल- पुष्य, कुसुम, प्रसून आदि।

(v) स्वार्थ शब्द का विलोम लिखिए।
उत्तर:
स्वार्थ शब्द का विलोम निःस्वार्थ होगा।

प्रश्न 4.
मुझे मानव-जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती-बहाती सी जीवन-धारा आगे बढ़ी है। संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ में मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा (जीने की इच्छा) है। वह गंगा की अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र हैं। सभ्यता और संस्कृति का मोह क्षण-भर बाधा उपस्थित करता है, धर्माचार का संस्कार थोड़ी देर तक इस धारा से टक्कर लेता है, पर इस दुर्दम धारा में सब कुछ बह जाता है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने किस ओर संकेत किया हैं?
उत्तर:
मानव सभ्यता एक प्रवाहमान धारा के समान है। हमारी सभ्यता और संस्कृति भी अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का मिला-जुला रूप है। इन्हीं तथ्यों की ओर लेखक ने संकेत किया है।

(ii) मानव जाति किस मोह को रौंदती चली आ रही है?
उत्तर:
मनुष्य की जीवन शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही हैं। अब तक न जाने उसने कितनी जातियों एवं संस्कृतियों को अपने पीछे छोड़ दिया है।

(iii) मानव का व्यवहार किस प्रकार परिवर्तित होता है?
उत्तर:
मानव कभी भी वर्तमान स्थिति से सन्तुष्ट नहीं रहता। अतः हमेशा ही उसके व्यवहार एवं संस्कृति में परिवर्तन होता रहता है। इसके लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहा है।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किन बातों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक मनुष्य की जीने की इच्छा के बारे में ध्यान आकृष्ट कराना चाहता है। वह बताना चाहता है कि मनुष्य की जीने की इच्छा इतनी प्रबल है कि अब तक न जाने कितनी सभ्यताओं और संस्कृतियों का उत्थान और पतन हुआ है। न जाने कितनी जातियाँ और संस्कृतियाँ पनपी और नष्ट हो गईं, परन्तु आज तक जो शुद्ध और जीवित है, वह है मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा अर्थात् उसकी जीने की इच्छा।

(v) ‘दुर्दम’ और ‘निर्मम’ शब्दों में से उपसर्ग और मूल शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
दुर्दम = ‘दुर्’ (उपसर्ग), दम (मूल शब्द)
निर्मम = ‘निर् ‘ (उपसर्ग), मम (मूल शब्द)

प्रश्न 5.
आज जिसे हम बहुमूल्य संस्कृति मान रहे हैं, वह क्या ऐसी ही बनी रहेगी? सम्राटों-सामन्तों ने जिस आचार-निष्ठा को इतना मोहक और मादक रूप दिया था, वह लुप्त हो गई; धर्माचार्यों ने जिस ज्ञान और वैराग्य को इतना महार्घ समझा था, वह लुप्त हो गया; मध्ययुग के मुसलमान रईसों के अनुकरण पर जो रस-राशि उमड़ी थी, वह वाष्प की भाँति उड़ गई, क्या यह मध्ययुग के कंकाल में लिखा हुआ व्यावसायिक युग को कमले ऐसा ही बना रहेगा? महाकाल के प्रत्येक पदाघात में धरती धसकेगी। उसके कुंठनृत्य की प्रत्येक चारिका कुछ-न-कुछ लपेटकर ले जाएगी। सब बदलेगा, सब विकृत होगा—सब नवीन बनेगा।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य यह बताना है कि सभ्यता एवं संस्कृति निरन्तर परिवर्तनशील हैं। उसे समय के प्रहार से कोई नहीं बच सकता।

(ii) धर्माचार्यों के महार्घ ज्ञान-वैराग्य का क्या हुआ?
उत्तर:
लेखक कहता है कि संसार का नियम है, जो आज जिस रूप में है, कल वह अवश्य नए रूप में परिवर्तित होगा। अतः धर्म के आचार्यों ने जिस ज्ञान और वैराग्य को कीमती व प्रतिष्ठित समझा था, आज उसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया।

(iii) मध्ययुगीन रस-राशि से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मध्ययुगीन रस-राशि से लेखक का तात्पर्य मध्ययुग में मुस्लिम शासकों के अनुकरण से समाज में उमड़ी रसिक संस्कृति से है। लेखक कहता है कि वह संस्कृति भी भाप बनकर कहाँ लुप्त हो गई अर्थात् समाप्त हो गई।

(iv) निम्न शब्दों का अर्थ लिखिए मोहक, विकृत, बहुमूल्य।
उत्तर:
मोहक – आकर्षक, मोहने वाला
विकृत – खण्डित
बहुमूल्य – कीमती

(v) निम्न शब्दों के विलोम लिखिए – वैराग्य, नवीन।
उत्तर:
वैराग्य – अनुराग
नवीन – प्राचीन

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