UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 20
Chapter Name उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम
Number of Questions Solved 27
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
धनी व्यक्ति के लिए आय में वृद्धि से मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) स्थिर रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) घटती है

प्रश्न 2.
जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है, तब कुल उपयोगिता होती है
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) सर्वाधिक
(d) शून्य
उत्तर:
(c) सर्वाधिक

प्रश्न 3.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम के प्रतिपादक थे (2014)
(a) गौसेन
(b) फ्रेडरिक
(c) मार्शल
(d) फ्रेजर
उत्तर:
(a) गौसेन

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प्रश्न 4.
मधुर संगीत सुनने की दशा में सीमान्त उपयोगिता हास नियम
(a) लागू होता है
(b) लागू नहीं होता है
(c) कभी-कभी लागू होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) लागू नहीं होता है

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आवश्यकताएँ अनन्त/सीमित हैं। (2007)
उत्तर:
अनन्त

प्रश्न 2.
उपयोगिता का सृजन उपभोग है/उपभोग नहीं है। (2009)
उत्तर:
उपभोग है

प्रश्न 3.
उपयोगिता के सृजन/नाश को अर्थशास्त्र में उपयोग कहा जाता है। (2007)
उत्तर:
सृजन

प्रश्न 4.
उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन/उपभोग है। (2010)
उत्तर:
उत्पादन

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प्रश्न 5.
उपयोगिता को मापा जा सकता है।नहीं मापा जा सकता है।
उत्तर:
नहीं मापा जा सकता है।

प्रश्न 6.
तुष्टिगुण वस्तुगत/मनुष्यगत होता है।
उत्तर:
मनुष्यगत

प्रश्न 7.
उपभोग से वस्तुओं की उपयोगिता में कमी/वृद्धि होती है। (2011)
उत्तर:
कमी होती है

प्रश्न 8.
किसी वस्तु की सीमान्त उपयोगिता शून्य हो सकती है।नहीं हो सकती है।
उत्तर:
शून्य हो सकती है

प्रश्न 9.
कुल उपयोगिता हमेशा बढ़ती है/नहीं बढ़ती है।
उत्तर:
नहीं बढ़ती है

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता के प्रकार बताइए।
उत्तर:
उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

  1. सीमान्त उपयोगिता
  2. कुल उपयोगिता

प्रश्न 2.
सीमान्त उपयोगिता क्या है?
उत्तर:
किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का (UPBoardSolutions.com) जब कोई उपभोक्ता उपयोग करता है, तो उपभोग की गई अन्तिम इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं तथा उस वस्तु की सीमान्त इकाई से जो तुष्टिगुण प्राप्त होता है, वह सीमान्त तुष्टिगुण कहलाता है।

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प्रश्न 3.
उपयोगिता हास नियम को परिभाषित कीजिए एवं इसकी दो मान्यताएँ बताइए। (2016)
उत्तर:
बोल्डिग के अनुसार, “जब कोई उपयोगिता, अन्य वस्तुओं का उपभोग स्थिर रखकर किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो परिवर्तनशील वस्तु की उपयोगिता अन्त में अवश्य घटती है।”

उपयोगिता ह्रास नियम की दो मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी वस्तु का उपभोग निरन्तर किया जाना चाहिए।
  2. उपभोग वस्तु की प्रत्येक इकाई का परिमाण उचित होना चाहिए अन्यथा प्रारम्भिक अवस्था में ही आवश्यकता की तीव्रता घटने के स्थान पर अधिक हो जाएगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
उपयोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. उपयोगिता का सम्बन्ध वस्तु या सेवाओं की उस शक्ति से होता है, जो आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती है।
  2. किसी वस्तु या सेवा का उपभोग व्यक्ति को लाभ प्रदान कर रहा है। या हानि, इससे उपयोगिता का कोई लेना-देना नहीं होता है।
  3. उपयोगिता किसी वस्तु का उपभोग करने पर ही प्राप्त होती है। अत: उपयोगिता का सम्बन्ध उपभोगजन्य वस्तुओं से होता है, न कि पूँजीगत वस्तुओं से।
  4. एक ही वस्तु की उपयोगिता भिन्न व्यक्तियों के लिए समान या भिन्न परिस्थितियों में एक व्यक्ति के लिए ही अलग-अलग हो सकती है।
  5. उपयोगिता किसी वस्तु का वस्तुगत गुण नहीं है। वस्तु की उपयोगिता | (UPBoardSolutions.com) इसका उपभोग करने वाले पर निर्भर करती है।
  6. उपयोगिता व सन्तुष्टि दोनों एक नहीं हैं। उपयोगिता तो इच्छा की तीव्रता का द्योतक है, जोकि ‘सन्तुष्टि की शक्ति’ या ‘अनुमानित सन्तुष्टि’ से सम्बन्धित होती है।
  7. वस्तु के उपभोग में वृद्धि से अन्तत: उपयोगिता में ह्रास अवश्य होता है।

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प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है। जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे कुल उपयोगिता में भी वृद्धि होती है, लेकिन इसमें वृद्धि की मात्रा, सीमान्त उपयोगिता पर निर्भर करती है। जब सीमान्त उपयोगिता बढ़ती है, तो कुल उपयोगिता कम होती है तथा कुल उपयोगिता के बढ़ने की दर धीमी हो जाती है। जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है, तो कुल उपयोगिता अधिकतम हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है, तो कुल उपयोगिता कम होने लगती है। निम्नलिखित उदाहरण द्वारा उपरोक्त तथ्यों को स्पष्ट किया जा सकता है-

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उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि कुल उपयोगिता प्रारम्भ में तेजी से बढ़ती हुई तथा बाद में धीमी गति से बढ़ती हुई हो सकती है। कुल उपयोगिता जब अधिकतम होती है, तो उपभोक्ता के लिए वह पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु होता है। उपरोक्त उदाहरण के अनुसार, यदि उपभोक्ता 6 इकाई से अधिक का उपभोग करता है, तो उसको प्राप्त कुल उपयोगिता गिरने लगेगी।

प्रश्न 3.
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर

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प्रश्न 4.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सीमान्त उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2016, 08, 06)
अथवा
क्रमागत उपयोगिता ह्रास नियम से आप क्या समझते हैं? (2015)
अथवा
उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2018)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम से आशय एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता से है। इस नियम के प्रतिपादक एच.एच. गौसेन थे। सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी निर्धारित समय में एक व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) अतिरिक्त इकाई से मिलने वाली सन्तष्टि क्रमशः कम होती चली जाती है। इसका प्रमख कारण व्यक्ति की किसी आवश्यकता विशेष का क्रमशः सन्तुष्ट होते चले जाना है।

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एक व्यक्ति एक ही वस्तु को बहुत अधिक मात्रा में रखने की अपेक्षा अनेक प्रकार की वस्तुओं की थोड़ी-थोड़ी मात्रा रखना अधिक पसन्द करता है, क्योंकि जैसे-जैसे एक वस्तु की अधिक इकाइयाँ प्रयोग में ली जाती हैं, वैसे-वैसे उनकी सीमान्त उपयोगिता क्रमशः कम होती चली जाती है तथा अन्त में एक ऐसा बिन्दु आता है, जहाँ वस्तु के उपभोग से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता शून्य हो जाती है। इस बिन्दु को पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु कहते हैं। यदि इस बिन्दु के बाद भी उपभोक्ता वस्तु का उपयोग जारी रखता है, तो उसे उपयोगिता के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होने लगती है। इसे ऋणात्मक उपयोगिता कहते हैं। उपयोगिता के गिरने की यही प्रवृत्ति सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम कहलाती है।

अर्थशास्त्र में इस प्रवृत्ति को ‘क्रमागत उपयोगिता ह्रास नियम’ या ‘ह्रासमान तुष्टिगुण नियम’ भी कहा जाता है। मार्शल के अनुसार, “मनुष्य के पास किसी वस्तु की मात्रा में वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ उसे प्राप्त होता है, अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की मात्रा में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ-साथ वह लाभ क्रमशः घटता जाता है।” टॉमस के अनुसार, “किसी वस्तु की पूर्ति जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, उससे प्राप्त उपयोगिता उसकी मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के (UPBoardSolutions.com) साथ-साथ घटती जाती है।’ बोल्डिग के अनुसार, “जब कोई उपभोक्ता, अन्य वस्तुओं का उपभोग स्थिर रखकर किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो परिवर्तनशील वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अन्त में अवश्य घटती है।”

प्रश्न 5.
‘सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की मान्यताओं का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की प्रमुख मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

1. निरन्तर उपभोग किसी भी वस्तु का उपभोग निरन्तर होना चाहिए, अन्यथा यह नियम लागू नहीं होगा। यदि हम भोजन दो बार करते हैं, तो प्रत्येक बार भोजन करने पर सन्तोष मिलेगा, परन्तु यदि भोजन लगातार किया जाए, तो रोटी की प्रत्येक अगली इकाई से प्राप्त उपयोगिता कम होती जाएगी।

2. मात्रा व आकार उपभोग वस्तु की प्रत्येक इकाई का परिमाण उचित होना चाहिए, अन्यथा प्रारम्भिक अवस्था में ही आवश्यकता की तीव्रता घटने के स्थान पर अधिक हो जाएगी। उदाहरण-यदि एक प्यासे व्यक्ति को चम्मच से पानी पिलाया जाए, तो कुछ चम्मच पानी की इकाइयों तक उसकी उपयोगिता घटने के स्थान पर बढ़ती जाएगी।

3. अपरिवर्तित मूल्य यदि उपभोग की जाने वाली वस्तु का उपभोग करते समय किसी अगली इकाई का मूल्य बढ़ या घट जाता है, तो यह नियम लागू नहीं होगा; जैसे-दो आम एक ही कीमत के होने चाहिए।

4. स्थानापन्न वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन नहीं उपभोग की जाने वाली वस्तु की स्थानापन्न वस्तु का मूल्य भी पहले के समान रहना चाहिए अन्यथा यह नियम लागू नहीं होगा। चाय और कॉफी दो स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। यदि चाय की कीमत बढ़ जाती है, तो कॉफी की उपयोगिता पहले की अपेक्षा बढ़ जाएगी।

5. मानसिक दशा में परिवर्तन न हो यह नियम उसी समय लागू होगा जब उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में किसी प्रकार की परिवर्तन न हो उदाहरण यदि कोई उपभोक्ता किसी समय खाना खाने के दौरान दो रोटियाँ खाने के बाद भाँग या शराब का प्रयोग करता है, (UPBoardSolutions.com) तो उसकी मानसिक स्थिति में परिवर्तन हो जाएगा। इसके पश्चात् हो सकता है कि तीसरी रोटी से उसे पहले उपभोग की गई दो रोटियों से अधिक सन्तुष्टि मिले।

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6. आदत, रुचि, फैशन, आय, आदि में परिवर्तन न हो यह नियम उसी समय लागू होता है, जब उपभोक्ता की आदत, रुचि, फैशन तथा आय संमान रहती है। इनमें से किसी में परिवर्तन होने पर वस्तु की उपयोगिता , घटने के स्थान पर बढ़ सकती है।

प्रश्न 6.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम के अपवादों को समझाइए। (2007)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम के अपवादों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. दिखावटी अपवाद दिखावटी अपवाद निम्नलिखित हैं

  • उपभोग की इकाई सूक्ष्म हो यदि उपभोग की इकाई एक आदर्श इकाई न होकर अत्यन्त सूक्ष्म इकाई हो, तो यह नियम लागू नहीं हो पाएगा। यह अपवाद दिखावटी अपवाद है।
  • दुर्लभ व विलक्षण वस्तुएँ ऐसा कहा जाता है कि दुर्लभ वस्तुओं के सन्दर्भ में यह नियम लागू नहीं होता है; जैसे–दुर्लभ डाक टिकट, पेंटिंग, दुर्लभ सिक्कों, आदि के सन्दर्भ में यह देखा जाता है कि इनको कितनी मात्रा में भी एकत्र किया जाए, इनकी (UPBoardSolutions.com) उपयोगिता में कमी नहीं आती है।
  • कंजूस व्यक्ति की धन-संग्रह प्रवृत्ति यह अपवाद बताता है कि कंजूस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन बढ़ता जाता है, उसे एकत्र करने की उसकी इच्छा और अधिक बढ़ती चली जाती है।
  • मादक वस्तुओं का प्रयोग ऐसे व्यक्ति जो मादक व नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, उनको उन नशीली वस्तुओं की अतिरिक्त इकाइयों से अधिक उपयोगिता मिलती है।
  • वस्तु व सेवा के प्रयोग में वृद्धि नियम के अपवाद के सन्दर्भ में यह कहा गया है कि कुछ वस्तु व सेवाओं के प्रयोग में वृद्धि से उपयोगिता क्रमशः गिरने की अपेक्षा बढ़ती है।

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2. वास्तविक अपवाद वास्तविक अपवाद निम्नलिखित हैं

  • अच्छी कविता या मधुर संगीत इस सन्दर्भ में यह तर्क दिया गया है। कि अच्छी कविता या मधुर संगीत को जितनी बार सुना जाए, उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम नहीं होती है, लेकिन व्यवहार में हमयह सिद्ध कर सकते हैं कि उपयोगिता घटती हुई प्रतीत होने लगती है।
  • उपभोग की आरम्भिक अवस्था वस्तु के प्रभावपूर्ण उपयोग के लिए उसकी पर्याप्त मात्रा का होना भी आवश्यक है। अत: यह सम्भव है कि उपभोग की प्रारम्भिक इकाइयों में उपयोगिता बढ़ती हुई मिले, लेकिन एक बिन्दु के पश्चात् इसमें भी गिरावट अवश्य हो जाएगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से ‘सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की व्याख्या कीजिए। ( 2014)
अथवा
एक उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से ‘क्रमागत सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की व्याख्या कीजिए। (2013)
अथवा
एक सारणी और रेखाचित्र की सहायता से हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम की व्याख्या कीजिए। (2011)
अथवा
सीमान्त उपयोगिता हास नियम की रेखाचित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए। (2010)
अथवा
उपयोगिता ह्रास नियम क्या है? उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से इसे समझाइए। इस नियम का क्या महत्त्व है? . (2007)
अथवा
उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। इसे उपयुक्त तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट कीजिए। (2007)
अथवा
उपयुक्त उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2006)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम से आशय किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का जब कोई उपभोक्ता उपयोग करता है, तो उपभोग की गई अन्तिम इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं तथा उस वस्तु की सीमान्त इकाई से जो तुष्टिगुण प्राप्त होता है, वह सीमान्त (UPBoardSolutions.com) तुष्टिगुण कहलाता है।

उपयोगिता ह्रास नियम या सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण

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उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि पहली, दूसरी व तीसरी इकाइयों से क्रमशः बढ़ती हुई सीमान्त उपयोगिता प्राप्त हो रही है, किन्तु जैसा कि हमें ज्ञात है कि एक सीमा के पश्चात् यो अन्त में या एक बिन्दु के पश्चात् सीमान्त उपयोगिता में गिरावट अवश्य आती है। उदाहरण में चौथी इकाई का प्रयोग करने पर तीसरी इकाई की अपेक्षा कम सीमान्त उपयोगिता प्राप्त हुई है। छठी इकाई पर सीमान्त उपयोगिता शून्य है। इसका (UPBoardSolutions.com) आशय है कि पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु आ गया है। इस बिन्दु के पश्चात् भी इकाइयों का उपभोग किया जाएगा, तो सीमान्त उपयोगिता  ऋणात्मक हो जाएगी।

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विवेचन/स्पष्टीकरण रेखाचित्र में सीमान्त उपयोगिता रेखा (MU) तीन इकाइयों (a, b, c) तक बढ़ती है अर्थात् सीमान्त उपयोगिता प्रारम्भ में तेजी से बढ़ती है। इसके पश्चात् चौथी इकाई का प्रयोग करने पर MU रेखा नीचे की ओर गिरने लगती है और यह छठी इकाई

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तक लगातार गिरती जाती है और सीमान्त उपयोगिता शून्य हो जाती है। यह पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु होता है। इस इकाई के पश्चात् सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होने लगती है। उपयोगिता ह्रास नियम का महत्त्व उपयोगिता ह्रास नियम के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है

  1. कीमत निर्धारण में महत्त्व यह नियम मूल्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक होता है। किसी वस्तु की पूर्ति अधिक होने पर उसकी सीमान्त उपयोगिता गिरती चली जाती है, अत: उसका विनिमय मूल्य भी गिरता जाता है। अतः यह नियम मूल्य सिद्धान्त का आधार है।
  2. समाजवाद को आधार समाजवादी व्यवस्था में धनी वर्ग पर कर लगाकर, उनसे प्राप्त धनराशि को गरीबों पर व्यय किया जाता है, क्योंकि अमीरों की तुलना में गरीबों के लिए धन की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है।
  3. उपभोक्ता के व्यवहार की व्याख्या में सहायक यह नियम उपभोक्ता (UPBoardSolutions.com) की बचत, सम-सीमान्त उपयोगिता नियम, माँग का नियम, आदि उपभोक्ता व्यवहार के नियमों का आधार है।
  4. माँग के नियम का आधार इस नियम द्वारा यह ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की अधिक इकाइयों का उपभोग करने पर उसकी उपयोगिता के, क्रमशः घटने के कारण उसकी माँग कम हो जाती है।
  5. उत्पादन व उपभोग में भिन्नता का स्पष्टीकरण यह नियम उपभोग तथा उत्पादन की जटिलता के कारणों पर प्रकाश डालने में सहायक होता है।

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उपयोगिता ह्रास नियम के अपवाद

उपयोगिता ह्रास नियम के अपवादों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. दिखावटी अपवाद दिखावटी अपवाद निम्नलिखित हैं

  • उपभोग की इकाई सूक्ष्म हो यदि उपभोग की इकाई एक आदर्श इकाई न होकर अत्यन्त सूक्ष्म इकाई हो, तो यह नियम लागू नहीं हो पाएगा। यह अपवाद दिखावटी अपवाद है।
  • दुर्लभ व विलक्षण वस्तुएँ ऐसा कहा जाता है कि दुर्लभ वस्तुओं के सन्दर्भ में यह नियम लागू नहीं होता है; जैसे–दुर्लभ डाक टिकट, पेंटिंग, दुर्लभ सिक्कों, आदि के सन्दर्भ में यह देखा जाता है कि इनको कितनी मात्रा में भी एकत्र किया जाए, इनकी उपयोगिता में कमी नहीं आती है।
  • कंजूस व्यक्ति की धन-संग्रह प्रवृत्ति यह अपवाद बताता है कि कंजूस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन बढ़ता जाता है, उसे एकत्र करने की उसकी इच्छा और अधिक बढ़ती चली जाती है।
  • मादक वस्तुओं का प्रयोग ऐसे व्यक्ति जो मादक व नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, उनको उन नशीली वस्तुओं की अतिरिक्त इकाइयों से अधिक उपयोगिता मिलती है।
  • वस्तु व सेवा के प्रयोग में वृद्धि नियम के अपवाद के सन्दर्भ में यह कहा गया (UPBoardSolutions.com) है कि कुछ वस्तु व सेवाओं के प्रयोग में वृद्धि से उपयोगिता क्रमशः गिरने की अपेक्षा बढ़ती है।

2. वास्तविक अपवाद वास्तविक अपवाद निम्नलिखित हैं

  • अच्छी कविता या मधुर संगीत इस सन्दर्भ में यह तर्क दिया गया है। कि अच्छी कविता या मधुर संगीत को जितनी बार सुना जाए, उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम नहीं होती है, लेकिन व्यवहार में हमयह सिद्ध कर सकते हैं कि उपयोगिता घटती हुई प्रतीत होने लगती है।
  • उपभोग की आरम्भिक अवस्था वस्तु के प्रभावपूर्ण उपयोग के लिए उसकी पर्याप्त मात्रा का होना भी आवश्यक है। अत: यह सम्भव है कि उपभोग की प्रारम्भिक इकाइयों में उपयोगिता बढ़ती हुई मिले, लेकिन एक बिन्दु के पश्चात् इसमें भी गिरावट अवश्य हो जाएगी।

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प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता व सीमान्त उपयोगिता से आप क्या समझते हैं? उदाहरण व चित्र की सहायता से समझाइए। (2008)
उत्तर:
वे वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, मानव के लिए उपयोगी होती हैं। वस्तु के उपभोग से जो सन्तुष्टि प्राप्त होती है, उसे उपयोगिता कहा जाता है। उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

1. सीमान्त उपयोगिता या तुष्टिगुण सीमान्त उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की एक अतिरिक्त इकाई का उभयोग करने पर कुल उपयोगिता में वह वृद्धि है, जो उपयोगिता की एक और इकाई की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है। प्रो. ऐली के अनुसार, “किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमान्त इकाई के तुष्टिगुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु-विशेष की ‘सीमान्त उपयोगिता’ कहा जाएगा।” प्रो. सैम्युलसन के अनुसार, “सीमान्त तुष्टिगुण उस अतिरिक्त उपयोगिता को बताती है, जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई से मिलती है।” उदाहरण-यदि सुनील किसी टेबल को प्राप्त करने हेतु ₹ 100 तथा (UPBoardSolutions.com) कुर्सी को प्राप्त करने हेतु ₹ 50 व्यय करने को तैयार है, तो टेबल का तुष्टिगुण 100 इकाई तथा कुर्सी का तुष्टिगुण 50 इकाई हुआ। दूसरे शब्दों में, सुनील के लिए टेबल का तुष्टिगुण कुर्सी के तुष्टिगुण की अपेक्षा दोगुना अधिक है।

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की अवस्थाएँ या रूप सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं

  • धनात्मक जब तक किसी वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को कुछ-न-कुछ सन्तुष्टि मिलती रहती है, तब व्यक्ति को मिलने वाली वह सन्तुष्टि सीमान्तं तुष्टिगुण का ‘धनात्मक तुष्टिगुण’ (उपयोगिता) कहलाता है।
  • शून्य जब वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को न तो सन्तुष्टि मिलती है और न ही असन्तुष्टि मिलती है, तब इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ‘शून्य हो जाता है। इस अवस्था को शून्य तुष्टिगुण या पूर्ण तृप्ति का बिन्दु (Point of saturation) कहा जाता है।
  • ऋणात्मक जब उपभोक्ता सीमान्त तुष्टिगुण के शून्य हो जाने के पश्चात् भी वस्तु का उपभोग करता है, तो इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है। इस अवस्था में उपभोक्ता को सन्तुष्टि मिलने के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होती है।

2. कुल उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है।”

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण

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व्याख्या उपरोक्त तालिका के अनुसार प्रथम केले से उपभोक्ता को 35 कुल तुष्टिगुण प्राप्त हुआ। दूसरे केले का उपभोग करने से कुल तुष्टिगुण बढ़कर 35 + 30 = 65 हो गया। तीसरे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण 89 तथा चौथे केले के उपभोग पर (UPBoardSolutions.com) कुल तुष्टिगुण बढ़कर 101 हो गया। इस अवस्था को धनात्मक कहेंगे। चूंकि पाँचवें केले का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य रहा, इसलिए कुल तुष्टिगुण में कोई वृद्धि नहीं हो पाई अतः इस अवस्था को शन्य कहा जाएगा और वह 101 ही रहा, किन्तु छठे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण घटकर 95 रह गया। इस प्रकार इस अवस्था को ऋणात्मक कहा जाएगा।

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सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर सम्बन्ध (Mutual Relationship between Marginal Utility and Total Utility) सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है, जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-

  1. प्रारम्भिक अवस्था में वस्तु के उपभोग से सीमान्त तुष्टिगुण घटता है, परन्तु कुल तुष्टिगुण बढ़ता है।
  2. जब तक सीमान्त तुष्टिगुण धनात्मक रहता है, तब तक कुल तुष्टिगुण भी बढ़ती रहता है।
  3. जिस बिन्दु पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य हो जाता है, उस बिन्दु पर कुल तुष्टिगुण अधिकतम होता है। यह बिन्दु पूर्ण तृप्ति का बिन्दु कहलाता है।
  4. यदि पूर्ण तृप्ति के पश्चात् भी उपभोक्ता वस्तु का उपभोग करता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है तथा कुल तुष्टिगुण घटने लगता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण कुल तुष्टिगुण में दी गई तालिका द्वारा सीमान्त व कुल तुष्टिगुण को रेखाचित्र द्वारा निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

व्याख्या उपरोक्त रेखाचित्र में रेखा OX पर उपभोग किए गए केलों की इकाइयाँ तथा रेखा oy पर प्राप्त उपयोगिता दिखाई। गई है। AC रेखा सीमान्त। तुष्टिगुण की है। जैसे-जैसे अगले केले का उपभोग करते हैं, वैसे-वैसे सीमान्त तुष्टिगुण रेखा गिरती जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा बढ़ती जाती है।
पूर्ण तृप्ति का बिन्दु ‘U’ पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य तथा कुल तुष्टिगुण रेखा अधिकतम है। जैसे ही अगले (छठे) केले का उपभोग किया जाता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक हो जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा भी गिरने लगती है।

निष्कर्ष अतः स्पष्ट है कि रेखाचित्र में सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे-जैसे गिरती जाएगी, कुल तुष्टिगुण रेखा ऊपर की ओर उठती रहेगी। सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे ही शून्य बिन्दु पर होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा स्थिर (अधिकतम) बिन्दु पर होगी। जैसे ही सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा भी नीचे की ओर गिर जाएगी।

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प्रश्न 3.
उपयुक्त उदाहरण द्वारा कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता में अन्तर कीजिए। (2018)
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर

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वे वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, मानव के लिए उपयोगी होती हैं। वस्तु के उपभोग से जो सन्तुष्टि प्राप्त होती है, उसे उपयोगिता कहा जाता है। उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

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1. सीमान्त उपयोगिता या तुष्टिगुण सीमान्त उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की एक अतिरिक्त इकाई का उभयोग करने पर कुल उपयोगिता में वह वृद्धि है, जो उपयोगिता की एक और इकाई की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है। प्रो. ऐली के अनुसार, “किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमान्त इकाई के तुष्टिगुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु-विशेष की ‘सीमान्त उपयोगिता’ कहा जाएगा।” प्रो. सैम्युलसन के (UPBoardSolutions.com) अनुसार, “सीमान्त तुष्टिगुण उस अतिरिक्त उपयोगिता को बताती है, जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई से मिलती है।” उदाहरण-यदि सुनील किसी टेबल को प्राप्त करने हेतु ₹ 100 तथा कुर्सी को प्राप्त करने हेतु ₹ 50 व्यय करने को तैयार है, तो टेबल का तुष्टिगुण 100 इकाई तथा कुर्सी का तुष्टिगुण 50 इकाई हुआ। दूसरे शब्दों में, सुनील के लिए टेबल का तुष्टिगुण कुर्सी के तुष्टिगुण की अपेक्षा दोगुना अधिक है।

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की अवस्थाएँ या रूप सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं

  • धनात्मक जब तक किसी वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को कुछ-न-कुछ सन्तुष्टि मिलती रहती है, तब व्यक्ति को मिलने वाली वह सन्तुष्टि सीमान्तं तुष्टिगुण का ‘धनात्मक तुष्टिगुण’ (उपयोगिता) कहलाता है।
  • शून्य जब वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को न तो सन्तुष्टि मिलती है और न ही असन्तुष्टि मिलती है, तब इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ‘शून्य हो जाता है। इस अवस्था को शून्य तुष्टिगुण या पूर्ण तृप्ति का बिन्दु (Point of saturation) कहा जाता है।
  • ऋणात्मक जब उपभोक्ता सीमान्त तुष्टिगुण के शून्य हो जाने के पश्चात् भी वस्तु का उपभोग करता है, तो इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है। इस अवस्था में उपभोक्ता को सन्तुष्टि मिलने के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होती है।

2. कुल उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है।”

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

व्याख्या उपरोक्त तालिका के अनुसार प्रथम केले से उपभोक्ता को 35 कुल तुष्टिगुण प्राप्त हुआ। दूसरे केले का उपभोग करने से कुल तुष्टिगुण बढ़कर 35 + 30 = 65 हो गया। तीसरे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण 89 तथा चौथे केले के उपभोग पर कुल तुष्टिगुण बढ़कर 101 हो गया। इस अवस्था को धनात्मक कहेंगे। चूंकि पाँचवें केले का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य रहा, इसलिए कुल तुष्टिगुण में कोई वृद्धि नहीं हो पाई अतः इस अवस्था को शन्य कहा जाएगा और वह 101 ही रहा, किन्तु छठे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण घटकर 95 रह गया। इस प्रकार इस अवस्था को ऋणात्मक कहा जाएगा।

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सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर सम्बन्ध (Mutual Relationship between Marginal Utility and Total Utility) सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है, जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-

  1. प्रारम्भिक अवस्था में वस्तु के उपभोग से सीमान्त तुष्टिगुण घटता है, परन्तु कुल तुष्टिगुण बढ़ता है।
  2. जब तक सीमान्त तुष्टिगुण धनात्मक रहता है, तब तक कुल तुष्टिगुण भी बढ़ती रहता है।
  3. जिस बिन्दु पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य हो जाता है, उस बिन्दु पर कुल (UPBoardSolutions.com) तुष्टिगुण अधिकतम होता है। यह बिन्दु पूर्ण तृप्ति का बिन्दु कहलाता है।
  4. यदि पूर्ण तृप्ति के पश्चात् भी उपभोक्ता वस्तु का उपभोग करता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है तथा कुल तुष्टिगुण घटने लगता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण कुल तुष्टिगुण में दी गई तालिका द्वारा सीमान्त व कुल तुष्टिगुण को रेखाचित्र द्वारा निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

व्याख्या उपरोक्त रेखाचित्र में रेखा OX पर उपभोग किए गए केलों की इकाइयाँ तथा रेखा oy पर प्राप्त उपयोगिता दिखाई। गई है। AC रेखा सीमान्त। तुष्टिगुण की है। जैसे-जैसे अगले केले का उपभोग करते हैं, वैसे-वैसे सीमान्त तुष्टिगुण रेखा गिरती जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा बढ़ती जाती है।
पूर्ण तृप्ति का बिन्दु ‘U’ पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य तथा कुल तुष्टिगुण रेखा अधिकतम है। जैसे ही अगले (छठे) केले का उपभोग किया जाता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक हो जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा भी गिरने लगती है।

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निष्कर्ष अतः स्पष्ट है कि रेखाचित्र में सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे-जैसे गिरती जाएगी, कुल तुष्टिगुण रेखा ऊपर की ओर उठती रहेगी। सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे ही शून्य बिन्दु पर होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा स्थिर (अधिकतम) बिन्दु पर होगी। जैसे ही सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक होगी, (UPBoardSolutions.com) कुल तुष्टिगुण रेखा भी नीचे की ओर गिर जाएगी।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 19
Chapter Name देशी बैंकर्स
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में देशी बैंकर्स के कार्य हैं
(a) जमा स्वीकार करना
(b) ऋण देना
(c) हुण्डियों का व्यवसाय करना
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स पर नियन्त्रण होता है
(a) केन्द्रीय सरकार का
(b) भारतीय रिज़र्व बैंक का
(c) भारतीय स्टेट बैंक का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स का कार्यक्षेत्र केवल शहरों/गाँवों तक ही सीमित रहता है।
उत्तर:
गाँवों तक

प्रश्न 2.
क्या देशी बैंकर्स की ब्याज दर ऊँची होती है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
सभी देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली समान होती है/भिन्न-भिन्न होती है।
उत्तर:
भिन्न-भिन्न होती है

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प्रश्न 4.
क्या देशी बैंकर्स के पास पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स भारतीय रिज़र्व बैंक के नियन्त्रण में हैं,नहीं हैं।
उत्तर:
नहीं हैं

प्रश्न 6.
क्या भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
हाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है?
उत्तर:
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण देते हैं। देशी बैंकरों को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स के कार्य करने का तरीका सरल होता है। इससे ऋण लेने की प्रक्रिया भी सरलता व शीघ्रता से पूर्ण हो जाती है।
  2. भारतीय बहीखाता प्रणाली देशी बैंकर्स अपने हिसाब-किताब का लेखा भारतीय बहीखाता प्रणाली के अनुसार करते हैं।
  3. गोपनीयता देशी बैंकर्स अपने ग्राहकों के लेन-देन के (UPBoardSolutions.com) विवरणों की गोपनीयता बनाए रखते हैं, जिससे इनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  4. सीमित क्षेत्र इनके कार्य करने का क्षेत्र प्रायः गाँवों तक ही सीमित होता है।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
देशी बैंकर्स के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. देशी बैंकर्स आवश्यकतानुसार जमाएँ स्वीकार करते हैं।
  2. देशी बैंकर्स ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4.
देशी बैंकरों के चार गुण लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकरों के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना।
  2. उचित बीज एवं यन्त्रों की आपूर्ति करना।
  3. अनुत्पादक कार्यों हेतु ऋण प्रदान करना।
  4. सरल विधि द्वारा लेन-देन।

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स के चार दोष लिखिए। उत्तर देशी बैंकर्स के चार दोष निम्नलिखित हैं

  1. इनके द्वारा ऋणियों का शोषण किया जाता है।
  2. ये धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली से कार्य करते हैं।
  3. इनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण होती है।
  4. इनके पास पूँजी का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स क्या हैं? इनके दो दोषों का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स (UPBoardSolutions.com) को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2012, 08)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना (UPBoardSolutions.com) होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स के कार्यों, गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों (UPBoardSolutions.com) के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

देशी बैंकर्स के गुण एवं दोष

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और (UPBoardSolutions.com) लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से (UPBoardSolutions.com) भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स कौन होते हैं? भारत में देशी बैंकरों के गुण व दोषों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार (UPBoardSolutions.com) करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की (UPBoardSolutions.com) सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों (UPBoardSolutions.com) को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है? देशी बैंकर्स व आधुनिक बैंकर्स में क्या अन्तर है? देशी बैंकर्स के महत्त्व का भी वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

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देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक (UPBoardSolutions.com) औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 4.
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का परीक्षण कीजिए। (2007)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक कृषिप्रधान देश है। भारत के अधिकतर किसान गरीब होते हैं। यहाँ के किसान वित्त व्यवस्था के लिए साहूकारों पर निर्भर रहते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही उधार लेन-देन की प्रथा प्रचलन में थी। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक बैंकों का विकास नहीं होने के कारण (UPBoardSolutions.com) किसानों को देशी बैंकर्स पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भारत में कृषि साख की 20% पूर्ति देशी बैंकरों द्वारा की जाती है। ये बैंकर्स किसानों को बीज, खाद, कृषि उपकरण, आदि को खरीदने के लिए ऋण प्रदान करते हैं। ये बैंकर्स या संस्था किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार समय-समय पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका (महत्त्व)

देशी बैंकर्स से आशय

देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा (UPBoardSolutions.com) ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 5.
‘देशी बैंकर’ पर एक लेख लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकर्स

देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन (UPBoardSolutions.com) साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

देशी बैंकर्स के गुण व दोष

देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के (UPBoardSolutions.com) लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं-

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  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 14
Chapter Name बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक एक संस्था है, जो
(a) मुद्रा में लेन-देन करती है
(b) धन का निवेश करती है।
(c) ऋण प्रदान करती है
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
औद्योगिक बैंक निम्नलिखित में से किसके विकास के लिए ऋण प्रदान करते हैं? (2014)
(a) उद्योग
(b) भूमि
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उद्योग

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक को दायित्व है?
(a) ऋण
(b) निवेश
(c) जमाराशि
(d) भुने तथा खरीदे बिल
उत्तर:
(c) जमाराशि

प्रश्न 4.
बैंक का सामान्य कार्य कौन-सा है?
(a) साधारण ऋण
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना
(c) नकद साख
(d) ऋण के रूप में उधार देना
उत्तर:
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आधुनिक ढंग का बैंक सबसे पहले कहाँ स्थापित हुआ? (2014)
उत्तर:
1401 ई. में स्पेन के बारसिलोना (UPBoardSolutions.com) नगर में

प्रश्न 2.
बैंकिंग कम्पनी अधिनियम सन् 1949/1956 में लागू किया गया।
उत्तर:
सन् 1949 में

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का एक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
बचत की आदत को प्रोत्साहित करना।

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प्रश्न 4.
बैंक से चैक/पे-इन-स्लिप द्वारा रोकड़ निकाली जा सकती है। (2007)
उत्तर:
चैक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो (UPBoardSolutions.com) माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।”

प्रश्न 2.
एक बैंक के चार कार्य बताइए। (2017)
उत्तर:
बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमाएँ प्राप्त करना।
  2. ऋण देना।
  3. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।
  4. साख-पत्रों का निर्गमन करना।

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प्रश्न 3.
समाशोधन-गृह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह (Clearing House) किसी एक स्थान के बैंकों का ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

प्रश्न 4.
“बैंकों में जमा धन पूँजी है।” टिप्पणी कीजिए। (2018)
उत्तर:
जब व्यवसायी व्यवसाय आरम्भ करता है, तो वह कुछ धन (UPBoardSolutions.com) व्यवसाय के चालू खाते में जमा करता है। इस धन की प्रयोग व्यवसायी आवश्यकता पड़ने पर करता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि बैंक में व्यवसायी का जमा धन पूँजी है।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार निजी बैंकों के नाम बताइए। (2018)
उत्तर:
चार निजी बैंकों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आई सी आई सी आई बैंक
  2. येस बैंक
  3. एक्सिस बैंक
  4. एच डी एफ सी बैंक

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
नकद साख पर टिप्पणी लिखिए। (2008)
उत्तर:
भारत में बैंकों द्वारा ऋण देने की यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसमें बैंक ग्राहक को एक निश्चित मात्रा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार देता है। ग्राहक अपनी सीमा तक बैंक से कभी भी ऋण ले सकता है। बैंक इस प्रकार का ऋण देने के लिए ग्राहक (UPBoardSolutions.com) का माल, चल सम्पत्ति या प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में अपने पास रखता है तथा बैंक ग्राहक को एक खाता अपने यहाँ खोल देता है। और ऋणी उसमें से अपनी आवश्यकतानुसार लेन-देन करता रहता है। बैंक ग्राहक से उतनी ही राशि पर ब्याज वसूलता है, जितनी राशि ग्राहक बैंक से ऋण के रूप में निकालता है। इस प्रकार यह सुविधा पर्याप्त जमानत के आधार पर दी जाती है। वर्तमान समय में भारत में यह पद्धति लोकप्रिय है।

प्रश्न 2.
बैंक द्वारा साख का सृजन किस प्रकार किया जाता है? (2008)
उत्तर:
बैंक द्वारा साख का सृजन निम्न प्रकार से किया जाता है-

1. नोटों के निर्गमन द्वारा साख का निर्माण बैंक नोटों का निर्गमन करके साख का निर्माण करते हैं। प्रारम्भ में अनेक बैंकों द्वारा नोट निर्गमन की व्यवस्था प्रचलित थी, इसलिए सभी बैंक नोट निर्गमन द्वारा साख सृजन करते थे। किन्तु आधुनिक समय में देश का केन्द्रीय बैंक नोट निर्गमन का कार्य करता है। व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का अधिकार नहीं होता है। केन्द्रीय बैंक निश्चित मात्रा में धातुकोष रखकर नोट निर्गमन करता है।

2. विनिमय बिलों की कटौती द्वारा साख सृजन व्यापारिक बैंक विनिमय बिलों, प्रतिज्ञा-पत्रों, हुण्डियों, प्रतिभूतियों, आदि की कटौती एवं क्रय-विक्रय द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं।

3. नकद जमा तथा साख जमा द्वारा साख निर्माण व्यापारिक बैंक नकद जमाओं एवं साख जमाओं के द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं। बैंक अपने पास जमा राशि से ऋण देते हैं और जमाएँ उत्पन्न करते हैं।

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4. अधिविकर्ष सुविधा द्वारा बैंक द्वारा अच्छी साख वाले एवं विश्वसनीय ग्राहकों को अधिविकर्ष की सुविधा दी जाती है। इस सुविधा के अन्तर्गत अधिविकर्ष की राशि पर निकाली गई अवधि तक का ब्याज लिया जाता है। इस आधार पर भी बैंक साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बताइए। (2008)
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था का आधार है। किसी भी देश की व्यापारिक अथवा औद्योगिक समृद्धि सुदृढ़ बैंकिंग व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक के महत्त्व अथवा लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का मुख्य उद्देश्य बचत की आदत को प्रोत्साहित करना होता है।
  2. बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को जमा करके (UPBoardSolutions.com) देश में पूँजी का निर्माण करते हैं।
  3. बैंक द्वारा चैक व ड्राफ्ट के माध्यम से भुगतान शीघ्रता व सरलता से किया जा सकता है।
  4. बैंक किसानों को कृषि यन्त्र, खाद, बीज, आदि खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके देश के विकास में योगदान देते हैं।
  5. बैंक साख की मात्रा में कमी या वृद्धि करके मुद्रा की पूर्ति को सन्तुलित बनाए रखते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक की परिभाषा दीजिए। बैंक के प्रमुख कार्यों का भी वर्णन कीजिए। (2007,06)
अथवी
बैंक के कार्यों को संक्षेप में समझाइए। (2012, 07)
उत्तर:
बैंक का अर्थ बैंक से तात्पर्य उस संस्था से है, जो जनता से जमा के रूप में धन प्राप्त करती है और ऋण के रूप में अथवा जमाकर्ताओं की माँग पर धन उधार देती है। इस प्रकार बैंक वे संस्थाएँ हैं, जो धन का लेन-देन करती हैं। आधुनिक युग में बैंकिंग विकास के साथ-साथ बैंकों के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का (UPBoardSolutions.com) अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।” वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह एक संस्थान है, जहाँ धन का संग्रहण, संरक्षण एवं निर्गमन होता है, ऋण की तथा बिलों की कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं और मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की व्यवस्था की जाती है।”

बैंक की सेवाएँ या कार्य मुख्य रूप से बैंक के कार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

I. मुख्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा के रूप में धन प्राप्त करना बैंक जनता से विभिन्न प्रकार के खातों के माध्यम से धन प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। बैंक मुख्य रूप से चालू खाता, बचत  खाता, सावधि निक्षेप खाता, आवर्ती जमा खाता, आदि खातों के माध्यम से धन प्राप्त करता है।

2. ऋण के रूप में धन उधार देना बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य जनता को धन उधार देना है। बैंक अपने पास जमा कुल धनराशि का एक निश्चित भाग नकद कोष में रखकर शेष धनराशि को उधार देता है। ऋण देते समय बैंक व्यक्ति की आवश्यकता, साख वे जमानत का भी ध्यान रखता है। यह निम्नलिखित प्रकार से ऋण प्रदान करता है

  1. साधारण ऋण इस प्रकार का ऋण जमानत मिलने पर एक निश्चित समयावधि के लिए दिया जाता है। साधारण ऋण (Simple Loan) पर ब्याज उसी दिन से प्रारम्भ हो जाती है, जिस दिन से ग्राहक के खाते में ऋण राशि जमा की जाती है।
  2. अधिविकर्ष बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहकों को उनके खाते में जमा धनराशि से भी अधिक धनराशि निकालने की सुविधा देता है, जिसे अधिविकर्ष (Overdraft) कहते हैं।
  3. नकद साख बैंक चल अथवा अचल सम्पत्ति की जमानत पर एक निश्चित मात्रा में ग्राहक को ऋण लेने का अधिकार प्रदान करता है। बैंक इस धनराशि पर ब्याज भी वसूल करता है।
  4. विनिमय-विपत्रों को भुनाना बैंक विनिमय-विपत्रों, हुण्डियों और व्यापारिक विपत्रों को बट्टे पर भुनाकर भी अल्पकाल के लिए ऋण देता है विनिमय-विपत्रों को भुनाने में (Discounting of Bills of Exchange) बैंक मितीकाटा ब्याज लेता है।

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II. सामान्य बैंकिंग कार्य बैंक के सामान्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. साख-पत्रों का निर्गमन बैंक ग्राहकों के लिए बैंक ड्राफ्ट, (UPBoardSolutions.com) यात्री चैक, हुण्डी व साख-पत्र, आदि के निर्गमन की सुविधा देता है, जिससे वर्तमान समय में धनराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक भेजी जा सकती है।
  2. पत्र-मुद्रा का निर्गमन बैंक द्वारा पत्र-मुद्रा का निर्गमन भी किया जाता है। यह कार्य वर्तमान में रिज़र्व बैंक ही करता है।
  3. विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय बैंक ग्राहकों की सुविधा के लिए विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करवाता है।

III. एजेन्सी सम्बन्धी कार्य बैंक के एजेन्सी सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ग्राहक की ओर से भुगतान करना ब्याज, बीमा किस्त व ऋण, आदि का भुगतान भी बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया जाता है।
  2. अभिगोपन का कार्य करना बैंक औद्योगिक एवं व्यापारिक इकाइयों के अंश एवं ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य भी करते हैं।
  3. ग्राहकों की ओर से भुगतान संग्रह करना बैंक अपने ग्राहक के लिए किराया, ब्याज, ऋण की किस्त, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  4. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना बैंक अपने ग्राहक की ओर से उसके आदेशानुसार प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं। बैंक अपने ग्राहक के लिए चैक, बिल व हुण्डी, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  5. धन का स्थानान्तरण बैंक अपने ग्राहकों के लिए धन के स्थानान्तरण की सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर उचित माध्यम से शीघ्र व सस्ते माध्यम से प्रदान करता है।

IV. अन्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. समाशोधन-गृह का कार्य करना बैंक अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए समाशोधन-गृह का कार्य भी करता है।
  2. सरकार को आर्थिक सहायता देना बैंक सरकार को आवश्यकता होने पर ऋण प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक आँकड़ों का प्रकाशन बैंक व्यापार एवं उद्योगों (UPBoardSolutions.com) से सम्बन्धित आँकड़ों का प्रकाशन करते हैं।
  4. बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा बैंक ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा प्रदान करके उनकी बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा करते हैं।
  5. व्यापारिक सूचना प्रदान करना बैंक अनेक आवश्यक सूचनाएँ अपने ग्राहकों तक पहुँचाकर उनकी व्यापार वृद्धि में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 2.
समाशोधन-गृह से आप क्या समझते हैं? समाशोधन-गृह के गुण व दोषों को बताइए। (2015)
उत्तर:
समाशोधन-गृह से आशय समाशोधन-गृह का तात्पर्य उस संस्था से है, जो बैंकों को पारस्परिक लेन-देन की सुविधा प्रदान करती है। यह एक बड़ा बैंक होता है, जो अनेक बैंकों के पारस्परिक लेन-देन को लेखा करता है, जिससे लेन-देन में कम-से-कम नकद मुद्रा का प्रयोग होता है, इन्हें ‘निकासी-गृह’ (Clearing House) भी कहा जाता है। प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह किसी एक स्थान के बैंकों का एक ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

समाशोधन-गृह के गुण या लाभ समाशोधन-गृह के लाभ/गुण निम्नलिखिते हैं-

  1. बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के समय व व्यय में कमी आती है, जिससे बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  2. जोखिम से मुक्ति इनके उपलब्ध होने के कारण धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने व ले जाने का जोखिम समाप्त हो जाता है।
  3. भुगतान में सुविधा इनकी सहायता से बैंकों के पारस्परिक भुगतान शीघ्र व सरलता से किए जा सकते हैं।
  4. नकद कोष में कमी इनके कारण बैंकों को अधिक मात्रा में नकद (UPBoardSolutions.com) कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. बैंकों के पारस्परिक सहयोग में वृद्धि समाशोधन-गृहों से बैंकों के पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  6. मुद्रा के उपयोग में मितव्ययिता समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के आपसी लेन-देन नकद में न होकर सीधे खाते में नाम या जमा होते हैं। इससे मुद्रा के प्रयोग में मितव्ययिता आती है।

समाशोधन-गृह के दोष समाशोधन-गृह के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. समाशोधन-गृहों की संख्या कम होना समाशोधन-गृहों की संख्या कम होने के कारण लेन-देन करने में परेशानी होती है।
  2. सदस्यता नियमों में कठोरता होना समाशोधन-गृह में सदस्य बनने के नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है।
  3. सभी समाशोधन-गृहों के नियमों में भिन्नता होना सभी समाशोधन-गृहों के नियम अलग-अलग होते हैं, जिससे इनके द्वारा लेन-देन करने में कठिनाई होती है।

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प्रश्न 3.
बैंकिंग क्षेत्र में आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर:
पिछले एक दशक में बैंकिंग क्षेत्र में बहुत तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में सरलता व विश्वसनीयता की वृद्धि हुई है। इसके लिए बैंकों द्वारा कुछ आधुनिक विधियाँ अपनाई गई हैं, जिन्हें निम्न शीर्षकों द्वारा समझा जा सकता है

1. साख-पत्र साख-पत्र वह पत्र है, जिसके आधार पर साख-पत्र धारी देश-विदेश में विभागीय भण्डारों, होटलों तथा अन्य प्रमुख संस्थानों से बिना रकम दिए माल अथवा सेवा प्राप्त कर सकता है। इस पत्र का स्पष्ट अर्थ है कि ग्राहक या साख-पत्र धारी को कहीं भी किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकृत विभागीय भण्डार, होटल या अन्य संस्था उधार माल या सेवा प्रदान कर सकती है और इसका भुगतान बैंक द्वारा ग्राहक के खाते से कर दिया जाता है। इसके लिए बैंक ग्राहक से उस धनराशि पर कुछ दर से ब्याज वसूलता है।

2. यन्त्रीकरण एवं आधुनिकीकरण बैंक अपनी वर्तमान कार्य प्रणाली में सुधार करने, बेहतर व शीघ्र सेवा प्रदान करने के दृष्टिकोण से यन्त्रीकरण व कम्प्यूटरीकरण पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे ग्राहक तथा बैंक कर्मचारियों के समय व श्रम की बचत होती है।

3. यन्त्रीकृत चैक एवं समाशोधन-गृह 1 जुलाई, 2013 से सभी बैंक CTS-2010 मापदण्ड के चैक जारी कर रहे हैं। इन चैकों का महत्त्व यह है कि यह चैक सम्बन्धित बैंक की किसी भी शाखा से भुनाए जा सकते हैं। इसके लिए बैंकों के प्रतिनिधि दो दिन में एक (UPBoardSolutions.com) बार एक अधिकृत व सुरक्षित स्थान पर इन चैकों का बैंकों के अनुसार आपस में आदान-प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर इन चैकों का आदान-प्रदान किया जाता है, उसे समाशोधन-गृह कहते हैं।

4. सभी भाषाओं को प्रोत्साहन वर्तमान में बैंक के कर्मचारी व बैंक के उपकरण या यन्त्र सभी भाषाओं (हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू) का प्रयोग करते हैं, जिससे ग्राहक की उसकी स्वयं की भाषा में कर्मचारी व उपकरण कार्य कर सकें। इसका महत्त्व अधिक इसलिए है, क्योंकि जिन लोगों को हिन्दी या अंग्रेजी नहीं आती थी तो वे बैंक में रुचि नहीं रखते थे, परन्तु अब ग्राहक की भाषा के अनुसार बैंक कार्य करता है।

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5. दूरसंचार नेटवर्क वर्तमान में सभी बैंकों ने अपने दूरसंचार नेटवर्क को मजबूती व तीव्र गति प्रदान की है, जिससे जो कार्य पहले दो या तीन दिन में हुआ करता था, वर्तमान में वह कार्य कुछ ही मिनटों में हो जाता है। जैसे-रकम का खाते से खाते में हस्तान्तरण, डिमाण्ड ड्राफ्ट का भुनाना, इत्यादि।

6. बैंकिंग एप्लीकेशन्स वर्तमान में प्रत्येक बैंक द्वारा अपनी एक एप्लीकेशन लॉन्च की गयी है, जिसके माध्यम से ग्राहक कहीं भी कभी भी अपने खाते से राशि/रकम दूसरे व्यक्ति के खाते में हस्तान्तरित कर सकता है और अपने खाते की स्थिति विवरण प्राप्त कर सकता है। इस (UPBoardSolutions.com) एप्लीकेशन के माध्यम से ग्राहक/खाताधारक मोबाईल रिचार्ज व बिलों का भुगतान कर सकता है, खरीदारी के साथ-साथ अन्य कार्य भी कर सकता है।
बैंकिंग एप्लीकेशन ऑनलाइन बैंकिंग का आधुनिक स्वरूप है।

7. ऑटोमेटिड टेलर मशीन (ए. टी. एम.) ए. टी. एम. को एनी टाइम मनी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मशीन से 24 घण्टे जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है। ए. टी. एम. से ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं, एक खाते से दूसरे खाते में हस्तान्तरण करा सकते हैं, नई चैक बुक जारी करा सकते हैं और बैंक खाते का विवरण ले सकते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 18
Chapter Name सहकारी बैंक
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में सहकारी समिति अधिनियम कब पारित हुआ? (2014)
(a) सन् 1901 में
(b) सन् 1904 में
(c) सन् 1903 में
(d) सन् 1905 में
उत्तर:
(b) सन् 1904 में

प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक किस स्तर पर होते हैं?
(a) ग्राम स्तर पर
(b) प्रदेश स्तर पर
(c) जिला स्तर पर
(d) मण्डल स्तर पर
उत्तर:
(c) जिला स्तर पर

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक कितने प्रतिशत लाभ का वितरण करते हैं?
(a) 25%
(b) 30%
(c) 75%
(d) 40%
उत्तर:
(c) 75%

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का मुख्य कार्य होता है।
(a) जननिक्षेप प्राप्त करना
(b) क्षेत्रीय व्यवस्था को प्रोत्साहित करना
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना
(d) उपभोक्ताओं को ऋण देना
उत्तर:
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
जिला सहकारी बैंक

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प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक की स्थापना गाँव/शहर में की जाती हैं।
उत्तर:
शहर

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंकों का प्रबन्ध किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
संचालक मण्डल

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक अल्पकालीन/दीर्घकालीन ऋण देते हैं।
उत्तर:
अल्पकालीन

प्रश्न 5.
राज्य सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
शीर्ष बैंक

प्रश्न 6.
भारत के सहकारी साख आन्दोलन में सरकारी हस्तक्षेप कम/अधिक होता है।
उत्तर:
अधिक

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प्रश्न 7.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना सन् 1975/1980 में की गई। (2014)
उत्तर:
सन् 1975 में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंकों के दो लक्षण बताइए।
उत्तर :
सहकारी बैंक के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. प्रबन्ध इन बैंकों के प्रबन्ध का कार्य लोकतान्त्रिक आधार पर किया जाता है।
  2. स्थापना का उद्देश्य सहकारी बैंकों की (UPBoardSolutions.com) स्थापना व्यक्तियों द्वारा स्वयं के कल्याण अर्थात् स्वयं की सहायता के उद्देश्य से की जाती है।

प्रश्न 2.
सहकारी बैंक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
सहकारी बैंक निम्नलिखित निम्न प्रकार के होते हैं

  1. केन्द्रीय सहकारी बैंक
  2. राज्य सहकारी बैंक

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीय सहकारी बैंक को ‘जिला सहकारी बैंक (District Co-operative Bank) भी कहते हैं। इन बैंकों का प्रमुख उद्देश्य जिले की प्राथमिक समितियों से सम्पर्क स्थापित करना, उनका निरीक्षण करना व उन्हें सहयोग प्रदान करना होता है। यह प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) जिले में एक ही होता है तथा इसकी स्थापना शहर में की जाती है।

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प्रश्न 4.
सहकारी बैंक के चार कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
सहकारी बैंक के चार कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ये बैंक सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  2. ये बैंक सम्पूर्ण प्रादेशिक सहकारी आन्दोलने के लिए वित्त की व्यवस्था ए करते हैं।
  3. ये बैंक केन्द्रीय सहकारी बैंक के मार्गदर्शक होते हैं।
  4. ये बैंक प्रदेश के अनेक केन्द्रीय बैंकों के मध्य सन्तुलन बनाए रखते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंक के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों (UPBoardSolutions.com) को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 2.
सहकारी बैंकों के दोषों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय (UPBoardSolutions.com) पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

प्रश्न 3.
वाणिज्यिक बैंक व सहकारी बैंक में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009,07)
उत्तर:
वाणिज्यिक व सहकारी बैंकों में अन्तर
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
को-ऑपरेटिव बैंक (सहकारी बैंक) क्या है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में सहकारी बैंकों की भूमिका की विवेचना कीजिए। (2011, 06)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंक का महत्त्व बताइए। (2008)
अथवा
सहकारी बैंकों के गुणों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
को-ऑपरेटिव बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

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  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग (UPBoardSolutions.com) की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में सहकारी बैंकों की असफलता के क्या कारण हैं? इन्हें उपयोगी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (2016)
उत्तर:
सहकारी बैंकों की असफलता के प्रमुख कारण

  1. सहकारी बैंकों पर सरकार का अत्यधिक नियन्त्रण सरकार ने इन बैंकों पर अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाए हैं। इससे जनता इन्हें सरकार का बैंक समझती है।
  2. उचित प्रबन्ध का न होना इन बैंकों में कुशल व्यक्तियों का अभाव होता है। फलस्वरूप इनको लाभ के स्थान पर हानि अधिक होती है।
  3. पर्याप्त पूँजी का अभाव इन बैंकों के पास पूँजी की कमी होती है, क्योंकि इनके अधिकांश सदस्यों के पास धन नहीं होता है।
  4. ऋण वसूली करने में देरी सहकारी बैंक ऋण राशि को सही समय पर वसूल करने में असफल रहते हैं। परिणामस्वरूप, जिन्हें आवश्यकता होती है, उन्हें धन नहीं मिल पाता।
  5. अपूर्ण ज्ञान सहकारी बैंकों को ग्रामीण जनता व समितियों के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होती है।

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भारत में सहकारी बैंकों के सुधार के लिए सुझाव

  1. पूँजी में वृद्धि इन समितियों को अपने रक्षित कोषों में वृद्धि करनी चाहिए।
  2. सरकारी नियन्त्रण में कमी सहकारी संगठन पर सरकारी नियन्त्रण में कमी कर देनी चाहिए, जिससे कि समिति के सदस्यों पर उत्तरदायित्व का भार डाला जा सके।
  3. सहकारिता के सिद्धान्तों का प्रचार इन बैंकों में सहकारिता के सिद्धान्तों की शिक्षा प्रदान करने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. समन्वय एवं सहयोग इन बैंकों का व्यापारिक बैंकों के साथ सहयोग और समन्वय (UPBoardSolutions.com) होना चाहिए, जिससे ये बैंक अधिक सुविधाएँ प्रदान कर सकें।
  5. कर्मचारियों के लिए उचित प्रशिक्षण सहकारी बैंकों में अनेक स्थानों पर उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे योग्य कर्मचारियों की सेवाएँ बैंकों को उपलब्ध हो सकें।
  6. ब्याज की दर इन समितियों को ब्याज की दर में कमी करनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सहकारी बैंक क्या है? इसके गुण वे दोषों का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
सहकारी बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की (UPBoardSolutions.com) स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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सहकारी बैंकों के गुण

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

सहकारी बैंकों के दोष

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सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए (UPBoardSolutions.com) ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक, कार्य एवं महत्त्व help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 3
Chapter Name बैंक समाधान विवरण
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)
                   

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण किसके द्वारा बनाया जाता है?
(a) व्यापारी
(b) बैंक
(c) देनदार
(d) लेनदार
उत्तर:
(a) व्यापारी

प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है?
(a) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष से
(b) रोकड़ पुस्तक के रोकड़ कॉलम शेष से
(c) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष यो पास बुक के शेष से
(d) पास बुक के शेष से
उत्तर:
(c) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष या पास बुक के शेष से

प्रश्न 3.
बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है
(a) व्यापारी की इच्छानुसार
(b) अन्तिम खाते बनाने से पूर्व
(c) अन्तिम खाते बनाने के पश्चात्
(d) छमाही
उत्तर:
(d) व्यापारी की इच्छानुसार

प्रश्न 4.
बैंक अधिविकर्ष होता है।
(a) जब ग्राहक का रुपया बैंक में जमा होता है।
(b) जब बैंक ग्राहक को उसकी जमा राशि से अधिक रुपया ऋण के रूप में दे देता है।
(c) जब ग्राहक खाता बन्द कर देता है।
(d) उपरोक्त तीनों कथन सत्य हैं।
उत्तर:
(b) जब बैंक ग्राहक को उसकी जमा राशि से अधिक रुपया ऋण के रूप में दे देता है।

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
रोकड़ पुस्तक और पास बुक के शेषों का मिलान करने के लिए तैयार किए जाने वाले विवरण का नाम लिखिए। (2014)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण

प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण में कितने खाने होते हैं?
उत्तर:
तीन खाने

प्रश्न 3.
रोकड़ बही में ओवरड्राफ्ट (अधिविकर्ष) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर;
रोकड़ बही का क्रेडिट शेष

प्रश्न 4.
बैंक पास बुक का कौन-सा शेष अधिविकर्ष कहलाता है?
उत्तर:
ऋणी शेष

प्रश्न 5.
रोकड़ बही का डेबिट शेष क्या दर्शाता है?
उत्तर:
नकद रोकड़

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न  (2अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है?
उत्तर:
बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
रोकड़ बही एवं बैंक पास बुक में अन्तर के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
रोकड़ बही एवं बैंक पास बुक में अन्तर के दो कारण निम्नलिखित

  1. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु (UPBoardSolutions.com) भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए।
  2. चैक बैंक में वसूली के लिए भेजे, जो अभी तक वसूल नहीं हुए।

लघु उत्तरीय प्रश्न  (4 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है? यह क्यों तैयार किया जाता है? (2016, 11)
अथवा
बैंक समाधान विवरण से आप क्या समझते हैं? एक व्यापारी के द्वारा यह विवरण बनाया जाना क्यों आवश्यक है? (2007)
अथवा
बैंक समाधान विवरण बनाने के मुख्य उद्देश्यों को बताइए। (2008)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ
1. बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में (UPBoardSolutions.com) कर देता है। यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

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4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे—बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान करता है, जिससे व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के (UPBoardSolutions.com) कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

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बैंक समाधान विवरण के उद्देश्य

बैंक समाधान विवरण का अर्थ  बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

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(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा (UPBoardSolutions.com) कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

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(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष (UPBoardSolutions.com) या अधिविकर्ष द्वारा बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दावलियों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

  1. अधिविकर्ष
  2. पास बुक (2007)

उत्तर:
1. अधिविकर्ष बैंक अपने चालू खाताधारकों को एक विशेष सुविधा प्रदान करता है कि यदि वे चाहें तो आवश्यकता के समय अपनी जमा की हुई धनराशि से अधिक धनराशि बैंक से निकाल सकते हैं। यह सुविधा बैंक अधिविकर्ष’ कहलाती है। इसमें व्यापारी बैंक का ऋणी और बैंक व्यापार का ऋणदाता बन जाता है। उदाहरण-यदि बैंक में ₹ 2,00,000 जमा हों और व्यापारी ₹ 2,50,000 निकाल लेता है, तो ₹ 2,50,000 – ₹ 2,00,000 = ₹ 50,000 का अधिविकर्ष कहलाता है।

2. पास बुक यह एक छोटी-सी पुस्तक होती है, जिसमें ग्राहक व बैंक के बीच हए सभी लेन-देनों का लेखा किया जाता है। यह बैंक की पुस्तकों में खुले ग्राहक के खाते की प्रतिलिपि होती है। इसमें बैंक में धनराशि जमा कराने, धनराशि निकालने तथा ब्याज, आदि का तिथि के साथ विवरण दिया जाता है। उदाहरण-

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण 1

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न  (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है? रोकड़ शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के आठ कारणों का उल्लेख कीजिए।  (Imp 2007)
अथवा
किसी निश्चित तिथि पर पास बुक तथा रोकड़ पुस्तक के शेषों में अन्तर होने के क्या-क्या कारण होते हैं? वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
1. बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या (UPBoardSolutions.com) विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में कर देता है। यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ (UPBoardSolutions.com) छूट प्रदान करता है, जिससे व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

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प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है? इसको बनाने की विधि का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया (UPBoardSolutions.com) जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

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(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष या अधिविकर्ष द्वारा बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

प्रश्न 3.
बैंक समाधान विवरण क्या है? यह क्यों बनाया जाता है? रोकड़ बही के शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के किन्हीं छः कारणों का उल्लेख कीजिए। (2008)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ
बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में कर देता है। (UPBoardSolutions.com) यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे—बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान करता है, जिससे (UPBoardSolutions.com) व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

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11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

बैंक समाधान विवरण बनाने के उददेश्य

बैंक समाधान विवरण का अर्थ इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण (UPBoardSolutions.com) भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

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रोकड़ बही के शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के कारण

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक (UPBoardSolutions.com) में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष या अधिविकर्ष द्वारा बैंक (UPBoardSolutions.com) समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

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क्रियात्मक प्रश्न  (8 अंक)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना से एक बैंक समाधान विवरण 31 मार्च, 2016 को बनाइए।

  1. इस तिथि को रोकड़ बही में बैंक खाते का शेष ₹ 3,000 था।
  2. ₹ 200 का चैक बैंक में जमा किया गया था, परन्तु बैंक खाते में अभी तक जमा नहीं हुआ।
  3. लेनदारों को ₹ 1,800 के दो चैक दिए थे, उनमें से बैंक के पास ₹ 800 का एक चैक ही भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया।
  4. निम्नलिखित प्रविष्टियाँ पास बुक में की गई थी, परन्तु रोकड़ बही में उस तिथि तक नहीं लिखी गई थी।
  • बैंक व्यय ₹ 40
  • ₹ 200 का बीमा प्रीमियम बैंक द्वारा चुकाया गया था।
  • एक ग्राहक द्वारा बैंक में ₹ 500 सीधे जमा कर दिए गए। (2017)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 मार्च, 2016 को)
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प्रश्न 2.
निम्न से बैंक समाधान विवरण-पत्र तैयार कीजिए।

  1. दिनांक 31-12-2014 को रोकड़ बही के अनुसार बैंक शेष ₹ 3,200 है।
  2. बैंक व्यय ₹ 20 था।
  3. बैंक ने ₹ 100 लाभांश एकत्रित किया।
  4. ₹ 1,780 के चैक जारी किए गए, लेकिन भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  5. ₹ 860 के बैंक बैंक में जमा कराए, किन्तु अभी क्रेडिट नहीं हुए। (2016)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2014 को)

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण

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प्रश्न 3.
निम्न विवरण से 31 मार्च, 2015 को बैंक समाधान विवरण-पत्र बनाइए।

  1. रोकड़ बही के बैंक खाते का क्रेडिट शेष (अधिविकर्ष) ₹ 14,400 हैं।
  2. ₹ 6,160 के चैक बैंक में जमा कराए गए, परन्तु राशि जमा नहीं हुई।
  3. देनदारों को ₹ 2,880 के चैक जारी किए गए, किन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. बैंक ने ₹ 200 अपना बैंक व्यय लगाया।
  5. ₹ 4,000 एक ग्राहक ने व्यापारी के बैंक खाते में सीधे जमा करवाए। (2016)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 मार्च, 2015 को)
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित विवरण से रनवीर सिंह, मुम्बई का 31 दिसम्बर, 2013 का बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2013 को पास बुक का क्रेडिट शेष ₹ 6,225 था।
  2. ₹ 2,375 का चैक संग्रह हेतु बैंक भेजा गया था, किन्तु संग्रह नहीं हुआ।
  3. 1,750 और ₹ 1,500 के दो चैकों को निर्गमित किया गया, किन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. बैंक द्वारा ₹ 225 ब्याज के क्रेडिट किए गए।
  5. ग्राहक की ओर से ₹ 1,200 का बीमा प्रीमियम का बैंक द्वारा सीधे भुगतान किया गया।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2013 को)
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित विवरण से श्यामनन्दन, कानपुर का 31 दिसम्बर, 2012 का बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2012 को रोकड़ बही के अनुसार ₹ 5,000 डेबिट शेष था।
  2. संग्रह हेतु भेजा गया, ₹ 1,000 के चैक का बैंक द्वारा संग्रह नहीं हुआ।
  3. ₹ 500 का एक निर्गमित चैक भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया।
  4. बैंक द्वारा ब्याज के पास बुक में हैं  ₹ 125 क्रेडिट किए गए, किन्तु रोकड़ । पुस्तक लेखा नहीं हुआ।
  5. बैंक द्वारा बीमा प्रीमियम के ₹ 500 का भुगतान सीधे कर दिया गया।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2012 को)
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित विवरण से मै, अमर चन्द्र, कुँवर चन्द्र, वाराणसी का 31 दिसम्बर, 2011 को बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2011 को रोकड़ बही के अनुसार ₹ 6,023 का डेबिट शेष था।
  2. बैंक में संग्रह हेतु ₹ 1,420 का चैक भेजा गया था जिसका संग्रह नहीं हुआ था।
  3. ₹ 3,000 के चैक निर्गमित किए गए थे, किन्तु भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. ₹ 1,850 बैंक द्वारा बीमा प्रीमियम के लिए सीधे भुगतान किए गए।
  5. ₹ 120 बैंक ने ब्याज के क्रेडिट किए। (2012)

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हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2011 को)
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प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचनाओं से 31 दिसम्बर, 2010 को एक बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए।

  1. रोकड़ पुस्तक के अनुसार शेष ₹ 8,000 था।
  2. ₹ 11,000 का चैक संग्रह हेतु बैंक भेजा गया, किन्तु संग्रह नहीं हुआ।
  3. ₹ 12,000 के चैक निर्गमित किए गए, किन्तु भुगतान के लिए केवल ₹ 10,000 के चैक प्रस्तुत किए गए।
  4. एक ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में ₹ 4,000 जमा कर दिए गए।
  5. बैंक द्वारा ब्याज के लिए हैं ₹ 500 क्रेडिट किए गए।
  6. बैंक द्वारा ₹ 1,500 बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान किया गया। (2011)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2010 को)
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर 31 दिसम्बर, 2005 को बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए।

  1. पास बुक के अनुसार क्रेडिट शेष ₹ 9,000 था।
  2. ₹ 7,000 के चैक वसूली के लिए भेजे गए, किन्तु वसूल नहीं हुए।
  3. बैंक व्यय के ₹ 60 डेबिट किए गए, किन्तु रोकड़ पुस्तक में लेखा नहीं हुआ।
  4. ₹ 9,600 के चैक निर्गमित किए गए, किन्तु भुगतान हेतु उन्हें प्रस्तुत नहीं किया गया।
  5. पास बुक में गलती से ₹ 3,000 डेबिट हो गए।  (2006)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2005 को)
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए। 31 दिसम्बर, 2004 को मोहन की पास बुक में ₹ 8,000 का डेबिट शेष था। रोकड़ बही से मिलान करने पर निम्नलिखित अन्तर ज्ञात हुए

  1. बैंक में जमा किया गया ₹ 1,000 का चैक अभी तक वसूल नहीं हुआ।
  2. ₹ 1,000 के चैक निर्गमित किए गए, परन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  3. ग्राहक ने ₹ 1,000 सीधे मोहन के खाते में जमा कर दिए।
  4. ₹ 500 विनियोग पर ब्याज बैंक ने वसूल किया।
  5. बैंक द्वारा लिया गया ब्याज ₹ 1,000।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2004 को)
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प्रश्न 11.
निम्न से बैंक समाधान विवरण-पत्र तैयार कीजिए।

  1. दिनांक 31.12.2017 को पास बुक के अनुसार बैंक शेष (जमा) ₹ 6,428 था।
  2. बैंक व्यय ₹ 120 था।
  3. बैंक ने ₹ 1,000 लाभांश एकत्रित किया।
  4. ₹ 2,600 के चैक जारी किए गए, लेकिन भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  5. ₹ 1,600 के चैक बैंक में जमा कराए, किन्तु अभी तक क्रेडिट नहीं हुए। (2018)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2017 को)
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