UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 राज्य सरकार (अनुभाग – दो)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 राज्य सरकार (अनुभाग – दो).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विधानसभा के संगठन तथा उसके अधिकारों की विवेचना कीजिए। [2011]
               या
अपने राज्य के विधानसभा के संगठन पर प्रकाश डालिए।
               या
विधानसभा की सदस्यता की क्या अर्हताएँ (योग्यताएँ) हैं ?
               या
विधानसभा के अध्यक्ष का निर्वाचन कैसे होता है? उसके कोई चार कार्य लिखिए। [2013]
               या
विधानसभा का निर्वाचन कैसे होता है? [2017]
               या
उत्तर प्रदेश की विधानसभा का गत चुनाव कब हुआ था? इसकी चुनाव प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की विधानसभा का गत चुनाव 2017 में हुआ था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 168 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल होगा। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं—विधानसभा (निम्न सदन) तथा (UPBoardSolutions.com) विधान-परिषद् (उच्च सदन)। विधानसभा के सदस्यों को एम० एल० ए० (Member of Legislative Assembly) तथा विधान परिषद् के सदस्यों को एम० एल० सी० (Member of Legislative Council) कहते हैं। कुछ राज्यों में केवल एक सदन होता है, जिसे विधानसभा कहते हैं।

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विधानसभा का संगठन

1. सदस्य संख्या– संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्यों की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 तथा न्यूनतम संख्या 60 होती है। किसी राज्य की विधानसभा के सदस्यों की वास्तविक संख्या का निर्धारण राज्य की जनसंख्या के आधार पर संसद द्वारा किया जाता है। कुछ स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। राज्यपाल आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व न होने की स्थिति (UPBoardSolutions.com) में इसके एक सदस्य को मनोनीत कर सकता है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्यों की संख्या वर्तमान में 403 निर्धारित की गयी है।

2. सदस्यों को निर्वाचन- 
विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त मतदान रीति से होता है। वयस्क मताधिकार का अर्थ 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके नागरिकों (स्त्री व पुरुष) के मत देने के अधिकार से है।

3. सदस्यों की योग्यताएँ- 
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए किसी स्त्री या पुरुष में इन योग्यताओं का होना आवश्यक है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
  • संसद द्वारा निर्धारित अन्य सभी शर्ते पूरी करता हो, किसी न्यायालय द्वारा उसे दण्डित न किया गया हो तथा वह पागल व दिवालिया न हो।

4. सदस्यों का कार्यकाल- विधानसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, किन्तु राज्यपाल इस अवधि से पूर्व भी विधानसभा को भंग कराकर पुनः नये चुनाव करा सकता है। संकटकाल में विधानसभा की अवधि संसद द्वारा एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकती है।

5. पदाधिकारी –
विधानसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। अध्यक्ष का कार्य सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना तथा कार्यवाही का संचालन करना है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में यही कार्य उपाध्यक्ष (UPBoardSolutions.com) करता है।

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विधानसभा के अधिकार/कार्य/शक्तियाँ

विधानसभा के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. विधायिनी अधिकार- विधानसभा का प्रमुख कार्य कानून बनाना है। इसे नये कानून बनाने, पुराने कानूनों में संशोधन करने तथा उन्हें रद्द करने का अधिकार है। राज्य सूची में दिये गये सभी विषयों पर इसे कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची के विषयों पर भी यह कानून बना सकती है, किन्तु संसद द्वारा पारित कानून से विरोध हो जाने की स्थिति में केवल संसद द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।

2. शासन सम्बन्धी अधिकार- 
राज्य के शासन की वास्तविक बागडोर मन्त्रिपरिषद् के हाथ में रहती है, किन्तु मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है; अर्थात् शासन पर वास्तविक नियन्त्रण विधानसभा का ही रहता है। विधानसभा के सदस्य मन्त्रियों से सम्बन्धित विषयों पर प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव द्वारा, अविश्वास प्रस्ताव पारित करके, विधेयकों को अस्वीकृत करके, बजट में कटौती करके तथा उनके कार्यों की जाँच करके मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखते हैं। मन्त्रिपरिषद् तभी तक अस्तित्व में बनी रह सकती है, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त होता है।

3 वित्तीय अधिकार राज्य के आय- 
व्यय पर पूर्ण नियन्त्रण विधानसभा को ही प्राप्त होता है। नये कर लगाने, पुराने करों में वृद्धि करने, किसी कर को समाप्त करने तथा करों से प्राप्त आय को व्यय करने के लिए मन्त्रिपरिषद् को विधानमण्डल मुख्यत: विधानसभा से स्वीकृति लेना आवश्यक होता है। मन्त्रिपरिषद् द्वारा तैयार वार्षिक बजट के क्रियान्वयन के लिए विधानसभा की स्वीकृति अनिवार्य है। कुछ मदों को छोड़कर शेष (UPBoardSolutions.com) सभी मदों में कटौती करने या उसे अस्वीकार करने का विधानसभा को अधिकार है। इसकी स्वीकृति के बिना सरकार न तो कोई कर लगा सकती है और न ही राजकोष से एक पैसा खर्च कर सकती है।

4. अन्य अधिकार– 
विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को निम्नलिखित अधिकार भी प्राप्त हैं|

  • राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेना।
  • राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन करना।
  • विधान-परिषद् के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन करना।
  • विधान परिषद् की स्थापना अथवा उसकी समाप्ति के बारे में प्रस्ताव पास करना।
  • संविधान के संशोधन में भाग लेना।

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प्रश्न 2.
विधान-परिषद् का संगठन किस प्रकार होता है ? इसके कार्यों एवं अधिकारों का वर्णन कीजिए।
               या
विधानपरिषद् का गठा कैसे होता है ? इसे स्थायी सदन क्यों कहा जाता है ? [2013]
               या
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद के गठन का वर्णन कीजिए। [2014]
               या
विधान-परिषद् की किन्हीं दो वित्तीय शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2015]
               या
अपने प्रदेश में विधान-परिषद् की रचना एवं उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।[2016, 17]
               या
विधान-परिषद के सदस्यों की योग्यताओं का उल्लेख कीजिए। [2016, 18]
               या
अपने प्रदेश की विधानपरिषद के सदस्यों की संख्या कितनी होती है? इसका गठन कैसे होता है? इसकी विधायिनी (कानून-निर्माण सम्बन्धी) शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2016]
               या
विधान-परिषद् में कानून-निर्माण की प्रक्रिया समझाइए। [2016]
उत्तर :

विधान-परिषद् का संगठन

‘विधान-परिषद् राज्य विधानमण्डल का द्वितीय या उच्च सदन है। यह एक स्थायी सदन है। विधान-परिषद् सभी राज्यों के विधानमण्डलों में नहीं है। इस समय केवल छः राज्यों-बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा आन्ध्र प्रदेश में विधान (UPBoardSolutions.com) परिषद् की व्यवस्था है। वर्ष 2007 के चुनावों के पश्चात् आन्ध्र प्रदेश का विधानमण्डल भी दो सदनों वाला हो गया। इसके संगठन सम्बन्धी प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

1. सदस्य-संख्या- विधान-परिषद् के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 40 तथा अधिक-से-अधिक विधानसभा के सदस्यों की संख्या की 1/3 हो सकती है। जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में एक विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत वहाँ के विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 36 रखी गयी है।

2. सदस्यों का निर्वाचन एवं मनोनयन- 
विधान-परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता नहीं करती, वरन् इसके सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से जनता के प्रतिनिधियों द्वारा इस प्रकार होता है-परिषद् के समस्त सदस्यों को 1/3 भाग राज्य के स्थानीय निकायों अर्थात् राज्य की नगर महापालिकाओं, जिला परिषदों, पंचायतों तथा अन्य स्थानीय स्वायत्त शासन की संस्थाओं द्वारा, 1/3 भाग राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा, 1/12 भाग स्नातकों द्वारा तथा 1/12 भाग शिक्षकों द्वारा पूरा किया जाता है। शेष 1/6 सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करता है। ये मनोनीत सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान और समाज-सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।

3. सदस्यों की योग्यताएँ- 
विधान-परिषद् का सदस्य बनने के लिए किसी व्यक्ति में इन योग्यताओं का होना अनिवार्य है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो।
  • वह किसी सरकारी लाभ के पद पर न हो।
  • वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य शर्ते पूरी करता हो।

4. सदस्यों का कार्यकाल- विधान परिषद् एक स्थायी सदन होता है तथा वह कभी भी पूर्ण रूप से भंग या समाप्त नहीं होता। किन्तु इसके 1/3 सदस्यों का कार्यकाल प्रति दो वर्ष बाद समाप्त हो जाता है। और उनके स्थान पर उतने ही नये सदस्य निर्वाचित कर लिये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य अपने पद पर 6 वर्ष तक बना रहता है।
5. पदाधिकारी- विधान-परिषद् के दो पदाधिकारी होते हैं-सभापति तथा (UPBoardSolutions.com) उपसभापति। दोनों का निर्वाचन विधान परिषद् के सदस्य अपने सदस्यों में से करते हैं। सभापति का कार्य सदन की बैठक की अध्यक्षता करना तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करना होता है। सभापति की अनुपस्थिति में इन्हीं कार्यों को सम्पादन उपसभापति करता है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा से 22 सदस्य कम हो गये हैं तथा विधान-परिषद् के सदस्यों की संख्या 108 से घटकर 99 + 1 = 100 रह गयी है।

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विधान-परिषद् के कार्य एवं अधिकार

विधान-परिषद् के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. विधायिनी अधिकार- विधान-परिषद् को कानून निर्माण सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हैं। विधानसभा द्वारा पारित विधेयक  विधान परिषद् द्वारा पारित किये जाने पर ही राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है।

2. वित्तीय अधिकार– 
विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को विधान परिषद् 14 दिन तक रोके रख सकती है। वह वित्त विधेयक में आवश्यक संशोधन भी कर सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर करता है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशों को माने या नहीं। यदि परिषद् चौदह दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती, तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

3. कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार- 
विधान-परिषद् के सदस्य राज्य की मन्त्रिपरिषद् में सम्मिलित ।
हो सकते हैं। विधानपरिषद् मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की आलोचना कर सकती है तथा सुझाव भी दे सकती है। इस प्रकार वह मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है।

4. सदस्यों के विशेषाधिकार- 
विधान-परिषद् के सदस्यों को निम्नलिखित विशेषाधिकार भी प्राप्त

  • सदन के नियमों का पालन करते हुए उन्हें सदन में भाषण देने का अधिकार है।
  • सदन में दिये गये भाषण के लिए उनके विरुद्ध किसी (UPBoardSolutions.com) न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
  • अधिवेशन के दिनों में उपस्थित किसी सदस्य को सभापति की आज्ञा के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

5. अन्य अधिकार- विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को विधान परिषद् तीन माह तक रोककर जनमत जानने का प्रयत्न कर सकती है।

राज्य विधानमण्डल में कानून निर्माण की प्रक्रिया

(i) साधारण विधेयक के सम्बन्ध में

  1. धन विधेयक से विभिन्न विधेयकों को विधानसभा या विधान-परिषद् दोनों में से किसी एक में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  2. यदि विधेयक विधान-परिषद् में प्रस्तुत किया गया है तो वह विधानपरिषद् से पारित होने के पश्चात् विधानसभा को भेजा जाता है।
  3. यदि विधानसभा इस विधेयक को पारित कर देता है तो यह कानून बन जाता है और यदि विधेयक को अस्वीकार कर देती है तो यह विधेयक वहीं पर समाप्त हो जाता है।
  4. यदि विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है तो वह विधानसभा से पारित होने के पश्चात् विधान परिषद् को भेजा जाता है।
  5. विधान परिषद् विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को यदि स्वीकार कर लेती है तो वह राज्यपाल की अनुमति से अधिनियम बन जाता है।
  6. यदि विधान-परिषद्, विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को
  • अस्वीकार कर देती है, या
  • संशोधनों सहित पारित करती है, या
  • विधेयक प्रेषित किये जाने के दिनांक से तीन मास के भीतर पारित करके वापस नहीं करती, तो विधानसभा ऐसे विधान परिषद् द्वारा पारित विधेयक को पुनः संशोधनों सहित या बिना संशोधन के पुनः

पारित करके विधान परिषद् को भेजती है, यदि विधान-परिषद् पुनः–

  • उसे स्वीकार कर लेती है, तो वह विधेयक राज्यपाल (UPBoardSolutions.com) की अनुमति से अधिनियम बन जाता है, लेकिन यदि
  • उसे अस्वीकार कर देती है, या
  • संशोधनों सहित पारित करती है, या
  • विधानसभा द्वारा प्रेषित किये जाने के एक मास तक विधेयक को पारित नहीं करती तो,
  • यह विधेयके उसी रूप में पारित समझा जाएगा जिस रूप में विधानसभा ने पारित किया था।

(ii) धन विधेयक के सम्बन्ध में ।

  • धन विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है, विधानपरिषद में नहीं।
  • विधानपरिषद् धन विधेयक को केवल चौदह (14) दिन तक रोक सकती है। चौदह दिन बाद वह स्वतः ही पारित समझा जाता है।
  • विधानसभा विधान-परिषद् के किसी भी संशोधन या सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है। धन विधेयकों के विषय में विधानसभा को ही समस्त वास्तविक अधिकार हैं। अतः धन विधेयकों को लेकर विधानसभा तथा विधान-परिषद् में कोई गतिरोध उत्पन्न नहीं होता है।

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प्रश्न 3.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् का गठन किस प्रकार होता है ? उसके प्रमुख कार्य क्या हैं ? [2010, 12]
               या
राज्य की मन्त्रिपरिषद् पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
               या
राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है ? [2012]
               या
राज्य मन्त्रिपरिषद् के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मन्त्रिपरिषद् का गठन राज्य की वास्तविक कार्यपालिका राज्य की मन्त्रिपरिषद् होती है। भारत के संविधान के अनुसार, राज्यपाल को सहायता तथा मन्त्रणा देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती है, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री होता है। मन्त्रिपरिषद् के गठन सम्बन्धी प्रमुख बातें अग्रवत् हैं

मन्त्रिपरिषद् का गठन– विधानसभा के चुनाव के बाद जिस दल का विधानसभा में बहुमत होता है, उस दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्यपाल अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनके विभागों का वितरण करता है। यदि विधानसभा में किसी भी एक दल का बहुमत नहीं है तो राज्यपाल अपने विवेक से उसे मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है जो विधानसभा के आधे से अधिक सदस्यों (UPBoardSolutions.com) का विश्वास प्राप्त कर सके तथा अपने द्वारा बनाये गये मन्त्रिपरिषद् का संचालन कर सके। राज्य के मन्त्रिपरिषद् में तीन स्तर के मन्त्री होते हैं-कैबिनेट मन्त्री, राज्यमन्त्री और उपमन्त्री। संविधान के अन्तर्गत यद्यपि मन्त्रियों की संख्या निश्चित नहीं की गयी है तथापि मन्त्रियों की संख्या (मुख्यमन्त्री सहित) विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं हो सकती।

मन्त्रियों की योग्यताएँ- मुख्यमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों को विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि कोई मन्त्री किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे मन्त्री बनने के छः महीने के अन्दर किसी-न-किसी सदन का सदस्य बन जाना चाहिए अन्यथा उसे मन्त्रि-पद से त्याग-पत्र देना पड़ेगा।

मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल-

  1. मन्त्रिपरिषद् तभी तक कार्यरत रहती है जब तक कि उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त होता है। यदि विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।
  2. मुख्यमन्त्री या कोई मन्त्री अपनी इच्छानुसार त्याग-पत्र देकर अपने पद से अलग हो सकता है। मुख्यमन्त्री द्वारा त्याग-पत्र दिये जाने पर समस्त मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
  3. यदि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाने की सिफारिश कर सकता है।

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मन्त्रिपरिषद् के कार्य

संविधान के अन्तर्गत राज्यपाल को जो शासन सम्बन्धी शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं, व्यवहार में उनका प्रयोग मन्त्रिपरिषद् द्वारा ही किया जाता है। मन्त्रिपरिषद् राज्यपाल के नाम से राज्य का शासन चलाती है। शासन के संचालन हेतु उसे निम्नलिखित कार्य करने होते हैं

1. राज्यपाल को सलाह तथा सहायता प्रदान करना– 
संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् के संगठन का एकमात्र उद्देश्य राज्यपाल के कार्यों के निर्वाह में उसे सहायता तथा सलाह देना है।

2. शासन सम्बन्धी नीति का निर्धारण- 
मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य शासन सम्बन्धी नीति को निर्धारित करना है। इन नीतियों की पुष्टि मन्त्रिपरिषद् विधानमण्डल से कराती है।

3. प्रशासन सम्बन्धी कार्य- 
राज्य का समस्त प्रशासन अनेक विभागों में बँटा होता है तथा प्रत्येक विभाग का भार एक मन्त्री को सौंप दिया जाता है। विधानमण्डल में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर साधारणतया सम्बन्धित विभाग का मन्त्री देता है। वैसे मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से ही विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

4. कानूनों का निर्माण– 
प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग सम्बन्धी विधेयक तैयार कराकर उसे पारित कराने के लिए विधानमण्डल में प्रस्तुत करता है। विधेयक के पारित हो जाने पर वह कानून को रूप धारण कर लेता है, जिसे लागू करवाने का कार्य मन्त्रिपरिषद् करती है।

5. वित्त सम्बन्धी कार्य- 
वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने से पूर्व, पूर्ण वर्ष का आय-व्यय का बजट तैयार करना और उसे विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करके उसे पारित करवाने का काम राज्य का वित्त मन्त्री करता है।

6. विभागों के कार्यों में समन्वय- 
विभिन्न प्रशासनिक विभागों में परस्पर झगड़े उत्पन्न हो जाने की स्थिति में मन्त्रिपरिषद् उनका निपटारा करती है।

7. नियुक्तियों सम्बन्धी राज्यपाल का परामर्श- 
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, महाधिवक्ता, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों आदि जिन उच्च पदों पर राज्यपाल को नियुक्ति करने का अधिकार है उन सभी पदों पर वह नियुक्तियाँ मन्त्रिपरिषद् के परामर्श (UPBoardSolutions.com) से करता है।

8. सूचना देना– 
मन्त्रिपरिषद् अपनी नीतियों तथा कार्यों के बारे में राज्यपाल को समय-समय पर सूचना | देती रहती है। राज्यपाल स्वयं कोई भी प्रशासनिक जानकारी मन्त्रिपरिषद् से प्राप्त कर सकता है।

9. जनमत तैयार करना- 
मन्त्रियों का यह भी कर्तव्य है कि वे सरकारी नीतियों के पक्ष में जनमत तैयार | करें। इसके लिए मन्त्री राज्य के दौरे तथा सरकारी नीतियों का प्रचार करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मन्त्रिपरिषद् ही राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है। शासन-सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यवाही इन्हीं मन्त्रियों के द्वारा सम्पन्न की जाती है। इसलिए राज्य की वास्तविक शक्ति इसी के हाथ में होती है। मात्र विधानसभा ही इस पर अपना अंकुश रख सकती है।

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प्रश्न 4.
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसके प्रमुख कार्यों/अधिकारों (शक्तियों) का वर्णन कीजिए। [2010, 12]
               या
राज्यपाल के अधिकारों पर प्रकाश डालिए। दो उदाहरण दीजिए। [2015, 16]
               या
राज्यपाल की विधायी शक्तियों का उल्लेख कीजिए।[2010]
               या
राज्यपाल के पद के लिए क्या-क्या योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं?
               या
राज्यपाल को न्यायिक क्षेत्र में क्या अधिकार प्राप्त हैं?
राज्यपाल के तीन अधिकारों के विषय में लिखिए। [2017, 18]
उत्तर :

राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का मुखिया होता है। राज्य की समस्त कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं तथा राज्य का प्रशासन उसी के नाम से चलता है। संविधान के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों के लिए एक राज्यपाल होता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार, “राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अधिकार-पत्र पर अपने हस्ताक्षर और सील लगाकर करेगा। इस प्रकार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है, किन्तु व्यवहार में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राज्यपाल की नियुक्ति करता है।
कार्यकाल-राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किन्तु यदि राष्ट्रपति चाहे तो वह इस अवधि से पूर्व भी राज्यपाल को हटा सकता है।
योग्यताएँ–केवल वही व्यक्ति राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, जिसमें निम्नलिखित योग्यताएँ होती हैं

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो।
  • वह संसद या विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य न हो। यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो उसे पद-ग्रहण करने से पूर्व सम्बन्धित संसद या विधानमण्डल की सदस्यता से त्याग-पत्र देना होगा।
  • वह किसी लाभ के पद पर न हो।
  • वह उस राज्य का निवासी न हो जिस राज्य को वह (UPBoardSolutions.com) राज्यपाल नियुक्त किया जा रहा है।
  • वह किसी न्यायालय द्वारा दण्डित न किया गया हो।

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राज्यपाल के अधिकार/कार्य/शक्तियाँ

राज्य के शासन एवं सुव्यवस्था का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व राज्यपाल पर होता है। इस दायित्व को पूरा करने के लिए संविधान के अन्तर्गत उसे निम्नलिखित अधिकार दिये गये हैं
1. कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार- कार्यपालिका का प्रधान होने के कारण राज्यपाल को कार्यपालिका सम्बन्धी निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं

  • राज्य के शासन सम्बन्धी कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते हैं।
  • राज्यपाल मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है एवं उनके विभागों का वितरण करता है।
  • वह मुख्यमन्त्री के परामर्श पर राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, महाधिवक्ता, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों आदि की नियुक्तियाँ करता है।
  • वह मुख्यमन्त्री से शासन सम्बन्धी कोई भी सूचना माँग सकता है।
  • यदि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजकर राज्य में राष्ट्रपति शासन के लागू किये जाने की सिफारिश कर सकता है।

2. कानून निर्माण (विधायी) सम्बन्धी अधिकार –

  • राज्यपाल को विधानमण्डल के अधिवेशन को बुलाने, स्थगित करने तथा विधानसभा को अवधि से पहले भंग करने का अधिकार है।
  • राज्यपाल को विधानमण्डल के एक सदन या दोनों सदनों को संयुक्त रूप से सम्बोधित करने तथा लिखित सन्देश भेजने का अधिकार है।
  • विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक राज्यपाल (UPBoardSolutions.com) के हस्ताक्षर के बिना कानून नहीं बन सकता। कुछ विधेयकों को वह राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है। जब विधानमण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो तब राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है, जो विधानमण्डल की बैठक आरम्भ होने के छ: सप्ताह तक ही लागू रह सकता है।
  • राज्य विधान-परिषद् की कुल संख्या के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, समाज-सेवा, सहकारिता के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त हो।
  • राज्यपाल को ऐंग्लो इण्डियन समुदाय का एक सदस्य मनोनीत करने का तथा अध्यक्ष- उपाध्यक्ष की खाली जगह पर नियुक्ति करने का अधिकार भी है।

3. वित्तीय अधिकार- राज्यपाल को निम्नलिखित वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं

  • विधानमण्डल के समक्ष राज्यपाल के नाम से वित्तमन्त्री राज्य का बजट प्रस्तुत करता है।
  • राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी वित्त विधेयक सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • वह आकस्मिक निधि में से सरकार को खर्च के लिए धन दे सकता है।

4. न्याय सम्बन्धी अधिकार|

  • राज्यपाल उच्च न्यायालय के परामर्श से अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों तथा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। |
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल से भी | परामर्श करता है।
  • राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाये गये कानूनों को तोड़ने वाले अपराधियों की सजा को (मृत्युदण्ड के अतिरिक्त) माफ कर सकता है, कम कर सकता है तथा बदल सकता है।

5. अन्य अधिकार

  • विधानसभा में किसी भी दले का स्पष्ट बहुमत न होने पर वह अपने विवेक से मुख्यमन्त्री की | नियुक्ति करता है।
  • संकट काल में वह राज्य के शासन का संचालन अपने विवेक से करता है।

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प्रश्न 5. राज्य शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है? राज्यपाल तथा मुख्यमन्त्री के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। [2011]
               या
राज्य शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है ? [2013]
उत्तर :
राज्यपाल की स्थिति एवं महत्त्व राज्यपाल को अपने राज्य के शासन-तन्त्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए पर्याप्त अधिकार दिये। गये हैं। राज्यपाल को स्व-विवेक के आधार पर प्रयुक्त शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। विधानसभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर तथा संविधान की विफलता की स्थिति में भी उसे स्वविवेकी अधिकार प्राप्त हैं। अतः इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक शक्ति का उपयोग करता है। संकटकाल की स्थिति में वह केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करता है। इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक स्थिति का प्रयोग कर सकता है।

इस पर भी वह केवल वैधानिक अध्यक्ष ही होता है। वास्तविक कार्यपालिका शक्तियाँ तो राज्य की मन्त्रिपरिषद् में निहित होती हैं। राज्यपाल बाध्य है कि वह मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही कार्य करे। जब तक राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य (UPBoardSolutions.com) करता है और विधानमण्डल के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल को उसके शासन-कार्य में सहायता तथा परामर्श देता है, तब तक उनके लिए राज्यपाल के परामर्श की अवहेलना करने की बहुत ही कम सम्भावना है। महाराष्ट्र के भूतपूर्व राज्यपाल (स्वर्गीय) श्रीप्रकाश ने कहा था कि “मुझे पूरा विश्वास है कि संवैधानिक राज्यपाल के अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं करना होगा।” इस प्रकार राज्यपाल का पद शक्ति व अधिकार का नहीं, वरन् सम्मान व प्रतिष्ठा का है।

राज्य प्रशासन में राज्यपाल की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह राज्य के विभिन्न हितों और दलों के विवादों को मध्यस्थ बनकर दूर करता है। यदि राज्य के शासन द्वारा संविधान का उल्लंघन किया जाए तो राज्यपाल उसकी सूचना तुरन्त राष्ट्रपति को दे सकता है। राज्यपाल के पद का महत्त्व संवैधानिक भी है और परम्परागत भी। इस पद का महत्त्व राज्यपाल के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री (मन्त्रिपरिषद्) का सम्बन्ध

संविधान के अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा तथा राज्यपाल के प्रासादपर्यन्त मंत्रीगण अपना पद धारण करेंगे। परन्तु वास्तविकता यह है कि राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही मुख्यमंत्री बनने व सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। राज्य की कार्यपालिका में राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद् दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, अत: दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है

  • मुख्यमंत्री की सलाह पर ही राज्यपाल अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल राज्य में नाममात्र का शासक है और मन्त्रिपरिषद् वास्तविक शासक है।
  • राज्यपाल प्रत्येक दशा में मन्त्रिपरिषद् की सलाह को मानने के लिए बाध्य है।
  • राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल राज्य में वास्तविक शासक हो जाता है।

अनुच्छेद 167 के अनुसार राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य है कि राज्य प्रशासन से सम्बन्धित मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णयों और विचाराधीन विधेयकों की सूचना राज्यपाल को दे। राज्यपाल इस सम्बन्ध में अन्य
आवश्यक जानकारी माँग सकता है। इस प्रकार राज्य प्रशासन की वास्तविक शक्ति राज्यपाल के हाथ में न होकर मन्त्रिपरिषद्, अर्थात् मुख्यमंत्री के हाथ में होती है।

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प्रश्न 6.
मुख्यमन्त्री का चयन कैसे होता है ? मुख्यमन्त्री के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। [2011]
               या
राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है? सम्पूर्ण प्रक्रिया समझाइट। [2013, 14]
या

मुख्यमन्त्री के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए। राज्य के शासन में उसका क्या महत्त्व है ?
               या
किसी राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है ? राज्य के प्रशासन में उसकी भूमिका की व्याख्या कीजिए। [2013, 16]
               या
मुख्यमंत्री के कार्यों को लिखिए। [2011]
उत्तर :

मुख्यमन्त्री का चयन

राज्य की विधानसभा के चुनाव के बाद जिस दल का विधानसभा में बहुमत होता है उस दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करती है। किसी भी एक दल का बहुमत न होने पर दो या दो से अधिक दलों के संयुक्त नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता तो राज्यपाल अपने विवेक का प्रयोग करके किसी भी ऐसे दल के नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त कर सकता है, जो विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने में सक्षम हो। राज्यपाल मुख्यमन्त्री को पद की गोपनीयता तथा विश्वसनीयता की शपथ दिलाता है। फिर मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।

योग्यता- मुख्यमन्त्री के लिए विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। यदि वह पद पर नियुक्ति के समय किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे छ: माह के अन्दर किसी भी सदन का सदस्य बनना आवश्यक है अन्यथा उसे अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ेगा।

कार्यकाल- मुख्यमन्त्री उसी समय तक अपने पद पर रह सकता है, जब तक उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, वह अपनी इच्छानुसार कभी भी त्याग-पत्र देकर अपने पद से अलग हो सकता है।

मुख्यमन्त्री के कार्य तथा अधिकार

मुख्यमन्त्री के प्रमुख कार्य और अधिकार निम्नलिखित हैं –
1. मन्त्रिपरिषद् का गठन- मुख्यमन्त्री का प्रथम महत्त्वपूर्ण कार्य अपने मन्त्रिपरिषद् का गठन करना होता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रियों की सूची राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत करता है और राज्यपाल मन्त्रियों को शपथ दिलाता है। मन्त्रियों की संख्या का निर्धारण भी मुख्यमन्त्री ही करता है।

2. विभागों का वितरण- मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्यपाल मन्त्रियों के मध्य विभागों तथा राज्य के अन्य कार्यों का वितरण करता है।

3. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार- 
राज्यपाल को अनेक उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार होता है; जैसे-कुलपति, महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य आदि की नियुक्ति। वास्तव में इस अधिकार का प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है, क्योंकि राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह से ही इन पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है।

4. नीति-निर्धारण का अधिकार- 
राज्य की शासन-नीति तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों सम्बन्धी नीतियों को निर्धारित करने का अधिकार मुख्यमन्त्री को ही होता है।

5. शासन-व्यवस्था का स्वामी- 
संवैधानिक दृष्टि से राज्य की शासन-व्यवस्था का स्वामी राज्यपाल होता है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से राज्य के समस्त शासन-तन्त्र का स्वामी मुख्यमन्त्री होता है। वह विभिन्न मन्त्रालयों पर नियन्त्रण रखता है तथा विभागों के मध्य मतभेद (UPBoardSolutions.com) होने पर उनमें समझौता कराता है। अन्य मन्त्रियों के लिए सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर मुख्यमन्त्री से परामर्श लेना आवश्यक होता है। इस प्रकार राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख मुख्यमन्त्री ही होता है।

6. विभागों में समन्वय– 
मुख्यमन्त्री का एक प्रमुख कार्य शासन के सभी विभागों में समन्वय स्थापित | करना है, जिससे सभी विभाग एक इकाई के रूप में कार्य करें।

7. मन्त्रिमण्डल का सभापति– 
मुख्यमन्त्री राज्य के मन्त्रिमण्डल (Cabinet) का अध्यक्ष होता है। वह मन्त्रिमण्डल की सभाओं (बैठकों) का सभापतित्व करता है। यदि कोई मन्त्री मुख्यमन्त्री से सहमत नहीं ह्येता तो उसे त्याग-पत्र देना पड़ता है।

8. विधानसभा का नेता मुख्यमन्त्री राज्य की शासन-
व्यवस्था का प्रमुख होने के साथ-साथ विधानसभा का नेता भी होता है। उसके परामर्श से ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा के अधिवेशन बुलाये जाते हैं। वह दोनों सदनों में सरकार को अधिकृत वक्ता होता है।

9. राज्यपाल का सलाहकार –
राज्यपाल का प्रमुख परामर्शदाता मुख्यमन्त्री ही होता है। वही
मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों से राज्यपाल को अवगत कराता है तथा राज्यपाल के सन्देशों को मन्त्रियों तक पहुंचाता है। इस प्रकार वह राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद् के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। मुख्यमन्त्री राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सलाह भी दे सकता है।

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राज्य के शासन में महत्त्व

केन्द्र में जो स्थिति प्रधानमन्त्री की होती है राज्य में वही स्थिति मुख्यमन्त्री की होती है। प्रधानमन्त्री का कार्यक्षेत्र समूचा देश होता है, किन्तु मुख्यमन्त्री केवल अपने राज्य की सीमा के अन्दर ही कार्य करता है। राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में आसानी से समझा जा सकता है|

1.
राज्य की शासन-व्यवस्था में वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिपरिषद् होती है और मुख्यमन्त्री राज्य की मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष तथा नेता होता है। इस प्रकार मन्त्रिपरिषद् यदि राज्य के शासन की नौका है तो मुख्यमन्त्री उसका नाविक। (UPBoardSolutions.com) वह मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता तथा उसकी कार्यवाही का
संचालन करता है। मन्त्रिपरिषद् के निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं।

2. राज्यपाल द्वारा मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उनमें विभागों का वितरण मुख्यमन्त्री की इच्छानुसार ही किया जाता है। वह जब चाहे किसी भी मन्त्री से त्याग-पत्र माँग सकता है। मन्त्री द्वारा त्याग-पत्रे न दिये जाने | पर, मुख्यमन्त्री के परामर्श पर, राज्यपाल मन्त्री को उसके पद से हटा देता है।

3.
मुख्यमन्त्री ही मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों तथा प्रशासनिक कार्यों की सूचना समय-समय पर राज्यपाल कोदेता रहता है।

4.
राज्य विधानमण्डल में भी मुख्यमन्त्री को विशेष स्थान प्राप्त होता है। वह विधानसभा का नेता होता है।
और सरकार की नीतियों का स्पष्टीकरण करता है।

5.
मुख्यमन्त्री, राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद् तथा विधानमण्डल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच सम्पर्क बनाये . रखने वाली एक कड़ी का कार्य करता है।

संक्षेप में, राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री की स्थिति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा निर्णायक होती है। राज्य प्रशासन में सर्वेसर्वा होने के बावजूद मुख्यमन्त्री तानाशाह नहीं बन सकता, क्योंकि उसकी शक्तियों पर कई प्रतिबन्ध होते हैं; जैसे–संवैधानिक नियमों का प्रतिबन्ध, केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण, राज्यपाल का प्रतिबन्ध, विरोधी दलों का प्रतिबन्ध तथा जनमत का भय।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् की निर्वाचन पद्धति में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त रीति से होता है। विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं करती, वरन् समस्त सदस्यों का 1/3 भाग राज्य के स्थानीय निकायों के द्वारा, 1/3 भाग राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा, 1/12 भाग राज्य के स्नातकों द्वारा तथा 1/12 भाग राज्य के शिक्षकों द्वारा किया जाता है। शेष 1/6 सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करता है। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान और समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
विधान-परिषद् की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
विधान-परिषद्, विधानसभा की तुलना में एक कमजोर सदन है। कानून-निर्माण के क्षेत्र में साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा वे विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। साथ ही यदि कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान-परिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है, जो विधायकों को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे (UPBoardSolutions.com) जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है तो विधानसभा उस विधेयक को संशोधन सहित या संशोधन के बिना विधानमण्डल द्वारा पुनः पारित करके विधान परिषद् को भेजती है। इस बार विधान-परिषद् विधेयक को स्वीकृत करे या न करे अथवा ऐसे संशोधन पेश करे, जो विधानसभा को स्वीकार न हों तो भी यह विधेयक एक माह बाद विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

विधान परिषद् प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध जनमत तैयार करके उसको नियन्त्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कार्यपालिका केवल विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।

वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं, विधान परिषद् में नहीं। विधानसभा किसी वित्त विधेयक को पारित कर स्वीकृति के लिए विधान परिषद के पास भेजती है तो विधान-परिषद या तो 14 दिन के अन्दर ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर सकती है या फिर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस लौटा सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशों को माने या नहीं। यदि परिषद् 14 दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान । लिया जाता है।

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प्रश्न 3.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2006]
उत्तर :
भारत में वर्तमान समय में मात्र छ: राज्यों में विधानमण्डल में दो सदन हैं और शेष में एक। द्वि-सदनीय विधानमण्डल में निम्न सदन को विधानसभा और उच्च सदन को विधान-परिषद् कहते हैं। विधानसभा विधान परिषद् की अपेक्षा अधिक समर्थ एवं अधिकारसम्पन्न होती है। यह निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट होता है–

1. वित्तीय क्षेत्र में –
वित्तीय विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, विधानपरिषद् में नहीं; किन्तु विधान परिषद् की राय जानने के लिए ये विधेयक उसके पास भेजे अवश्य जाते हैं, परन्तु विधेयक पर परिषद् द्वारा दी गयी (UPBoardSolutions.com) राय मानने के लिए विधानसभा बाध्य नहीं है। चौदह दिन के अन्दर विधान-परिषद् को अपनी राय भेज देनी होती है। यदि इस अवधि में वह अपनी राय नहीं भेजता है तो भी विधेयक उसके द्वारा स्वीकृत माना जाता है। इस प्रकार वित्तीय क्षेत्र में विधानसभा शक्तिशाली है और विधान-परिषद् विधेयक को मात्र 14 दिन के लिए विलम्बित कर सकती है।

2. विधायिनी क्षेत्र में- 
साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं, परन्तु ये विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। जब कोई साधारण विधेयक विधानसभा द्वारा स्वीकृत हो जाता है, तब उस पर विधान परिषद् की स्वीकृति लेने के लिए उसे विधान परिषद् के पास भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् द्वारा विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक उसे पारित न किया जाए तो विधानसभा पुन: इसे पारित करके विधान परिषद् में भेजती है। इस बार भी यदि विधान-परिषद् इसे अस्वीकृत करती है या उसे संशोधित करती है या एक महीने तक उस पर कोई निर्णय नहीं लेती है तो ऐसी स्थिति में साधारण विधेयक स्वीकृत मान लिया जाता है और उसे राज्यपाल के पास हस्ताक्षर हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार विधान-परिषद् साधारण विधेयक को चार माह तक विलम्बित अवश्य कर सकती है; किन्तु उसे पारित होने से नहीं रोक सकती।

3. कार्यपालिका के क्षेत्र में – सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति ही सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। विधान परिषद् मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों से प्रश्न एवं पूरक-प्रश्न पूछ सकती है, उनकी आलोचना कर सकती है; किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखने का अधिकार (UPBoardSolutions.com) नहीं है। वास्तव में विधानसभा को ही मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखने का अधिकार प्राप्त होता है और यही उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर सकती है।

प्रश्न 4.
राज्य विधानमण्डल के किन्हीं दो अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल के दो अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार है-

1.
वित्तीय अधिकार- विधानमण्डल को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त होता है। विधानसभा द्वारा आय-व्यय वार्षिक बजट स्वीकृत होने पर ही शासन द्वारा आय-व्यय से सम्बन्धित किसी कार्य को किया जा सकता है। विधानमण्डल द्वारा विनियोग विधेयक पारित होने के बाद ही सरकार संचित निधि से आवश्यक व्यय हेतु धन निकाल सकती है।

2.
प्रशासनिक अधिकार – भारतीय संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित की गई है। परिणामत: राज्य की मन्त्रिपरिषद् को अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी रहना होता है। विधानमण्डल द्वारा विभिन्न विभागों के मन्त्रियों से उनके विभागों के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं तथा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध निन्दा का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। यही नहीं, विधानमण्डल द्वारा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव भी पारित किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप मन्त्रिपरिषद् के मन्त्रियों को अपने पद का त्याग करना पड़ जाता है।

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प्रश्न 5.
राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों की तुलना निम्नलिखित है

  • राज्यपाल राज्य के शासन का तथा राष्ट्रपति देश के शासन का प्रधान होता है। दोनों क्रमश: विधानमण्डल तथा संसद में कार्यपालिका के प्रधान होते हैं।
  • राज्य तथा देश में शासन के सभी कार्य क्रमश: राज्यपाल तथा राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं।’
  • राज्यपाल राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा राष्ट्रपति देश के प्रधानमन्त्री की। राज्यपाल तथा राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उनके कार्य (विभाग) विभाजन का बँटवारा क्रमशः मुख्यमन्त्री तथा प्रधानमन्त्री की (UPBoardSolutions.com) सलाह से करते हैं।
  • राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों एवं राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों एवं राज्यपालों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल राज्य के मुख्यमन्त्री से तथा राष्ट्रपति देश के प्रधानमन्त्री से शासन सम्बन्धी किसी भी सूचना की जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 6.
राज्यपाल के विवेकाधिकार पर एक टिप्पणी लिखिए। [2011]
               या
यदि राज्य विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिले तो राज्यपाल किसे मुख्यमन्त्री नियुक्त करेगा ? [2013]
               या
राज्यों में राज्यपालों के विवेकाधीन अधिकारों की विवेचना कीजिए। [2015]
उत्तर :
केन्द्र में राष्ट्रपति के समान ही राज्य में राज्यपाल की स्थिति संवैधानिक प्रमुख की होती है। वह राज्य के मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर ही कार्य करता है, परन्तु कुछ ऐसी भी परिस्थितियाँ होती हैं, जहाँ राज्यपाल मुख्यमन्त्री के परामर्श पर कार्य न करके स्वयं अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र होता है। ऐसी स्थितियों को राज्यपाल के विवेकाधिकार के नाम से जाना जाता है। जब राज्यपाल स्वविवेक से कार्य करता है, उस समय वह मन्त्रियों के परामर्श की अवहेलना भी कर सकता है। उदाहरण के लिए–असोम के राज्यपाल को कबीलों तथा सीमा के प्रदेशों का शासन चलाने में स्वविवेक से कार्य करने (UPBoardSolutions.com) का अधिकार है। दूसरे, जब विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राज्यपाल को मुख्यमन्त्री की नियुक्ति में स्वविवेक का अधिकार प्राप्त हो जाता है। तीसरे, राज्य में उत्पन्न संवैधानिक संकट की रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने में भी वह स्वविवेक से कार्य करता है। राज्यपाल को विधानसभा के विघटन में भी कुछ सीमा तक स्वविवेक का अधिकार है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल के अंग लिखिए।
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल के तीन अंग हैं

  • राज्यपाल,
  • विधानसभा तथा
  • विधान-परिषद्।

प्रश्न 2.
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के नाम लिखिए। [2010]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के नाम हैं–

  • विधानसभा तथा
  • विधानपरिषद्।

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प्रश्न 3.
विधानसभा का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर :
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न 4.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्यों की संख्या कितनी है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुल 403 सदस्य तथा 1 राज्यपाल द्वारा नामित अर्थात् 404 सदस्य हैं।

प्रश्न 5.
विधानसभा के एक ऐसे अधिकार का उल्लेख कीजिए जो कि विधान-परिषद् को प्राप्त नहीं है।
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का अधिकार केवल विधानसभा को प्राप्त है; विधान-परिषद् को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 6.
विधानसभा, विधानपरिषद से अधिक शक्तिशाली है। क्यों ?
उत्तर :
वित्त विधेयक को प्रस्तुत करने, कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखने तथा राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार केवल विधानसभा को है; अतः वह विधानपरिषद् से अधिक शक्तिशाली है।

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प्रश्न 7.
विधान-परिषद् के सदस्यों के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर :
विधान-परिषद् की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु (UPBoardSolutions.com) 30 वर्ष होनी चाहिए। एन 8 विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है ? उत्तर : विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

प्रश्न 9.
उन राज्यों के नाम लिखिए, जहाँ विधान-परिषद् का अस्तित्व है।
उत्तर :

  • उत्तर प्रदेश,
  • बिहार,
  • महाराष्ट्र,
  • कर्नाटक,
  • आन्ध्र प्रदेश,
  • जम्मू एवं कश्मीर

प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् में कितने सदस्य हैं ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् में 100 सदस्य हैं।

प्रश्न 11.
विधानपरिषद् में राज्यपाल कितने सदस्यों को मनोनीत करता है ?
उत्तर :
विधान-परिषद् में राज्यपाल को विधान-परिषद् की कुल सदस्य-संख्या के 1/6 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।

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प्रश्न 12.
विधेयक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
विधेयक दो प्रकार के होते हैं
(1) साधारण विधेयक तथा
(2) वित्त (धन) विधेयक।

प्रश्न 13.
धन-विधेयक विधानमण्डल के किस सदन में प्रस्तुत किये जाते हैं ?
उत्तर :
धन-विधेयक विधानमण्डल के निचले सदन अर्थात् विधानसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।

प्रश्न 14.
वित्त-विधेयक को विधान-परिषद् अधिक-से-अधिक कितने दिन रोक सकती है ?
उत्तर :
वित्त विधेयक को विधान-परिषद् अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है।

प्रश्न 15.
राज्यपाल-पद पर नियुक्ति हेतु अपेक्षित कोई दो अर्हताएँ लिखिए।
उत्तर :
राज्यपाल-पद पर नियुक्ति हेतु अपेक्षित दो अर्हताएँ निम्नलिखित हैं

  • वह संसद या विधानमण्डले के किसी सदन का सदस्य न हो।
  • वह उस राज्य का निवासी न (UPBoardSolutions.com) हो जिस राज्य में उसे नियुक्त किया गया है।

प्रश्न 16.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए, जहाँ विधानसभा तथा विधान-परिषद् दोनों सदन हैं। [2012, 15, 18]
उत्तर :

  • उत्तर प्रदेश,
  • महाराष्ट्र,
  • बिहार तथा
  • कर्नाटक।

प्रश्न 17.
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? उसके कार्यकाल की अवधि क्या है ? [2008]
उत्तर :
राज्यपाल की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से करता है। राज्यपाल की नियुक्ति सामान्यत: 5 वर्षों के लिए की जाती है।

प्रश्न 18.
राज्यपाल बनने के लिए न्यूनतम आयु क्या होती है ?
उत्तर :
राज्यपाल बनने के लिए न्यूनतम (UPBoardSolutions.com) आयु 35 वर्ष है तथा उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।

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प्रश्न 19.
राज्यपाल के किन्हीं दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राज्यपाल के दो अधिकार निम्नलिखित हैं

  • वित्तीय अधिकार-कोई भी धन विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • विधायी अधिकार राज्यपाल विधानसभा को कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व भंग कर सकता है।

प्रश्न 20.
क्या राज्यपाल पर महाभियोग लगाया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, राज्यपाल पर महाभियोग लगाया जा सकता है।

प्रश्न 21.
राज्य का वैधानिक प्रमुख कौन है? उसकी नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है? [2012]
उत्तर :
राज्य का वैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 22.
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमन्त्री के नाम बताए। [2012]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक तथा मुख्यमन्त्री श्री योगी आदित्यनाथ हैं।

प्रश्न 23.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के दो प्रमुख कार्य लिखिए। [2013]
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के दो प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  • राज्य के सम्पूर्ण प्रशासन का कार्य मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है।
  • विधानमण्डल के समक्ष विधेयक प्रस्तुत करना तथा उन्हें पारित कराना मन्त्रिपरिषद् का ही कार्य है।

प्रश्न 24.
विधानसभा तथा विधान-परिषद के किन्हीं दो अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के दो अन्तर निम्नवत् हैं

  • मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है न कि विधान परिषद् के।
  • विधानसभा की सदस्य संख्या (UPBoardSolutions.com) विधान-परिषद् से अधिक होती है।

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प्रश्न 25.
अपने राज्य की विधान-परिषद् में शिक्षकों और स्नातकों के प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
विधानपरिषद् राज्य के विधानमण्डल का उच्च सदन और स्थायी सदन है। प्रदेश में अध्यापकों का निर्वाचन-मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है। इसी प्रकार स्नातकों को निर्वाचन–मण्डल भी कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए व्यक्ति की आयु कितनी होनी चाहिए?

(क) 18 वर्ष
(ख) 25 वर्ष
(ग) 21 वर्ष ।
(घ) 35 वर्ष

2. विधानसभा के सदस्यों हेतु कौन-सी योग्यता आवश्यक है?

(क) भारत का नागरिक हो
(ख) राज्य सरकार के किसी पद पर अवश्य हो
(ग) आयु 40 वर्ष से अधिक हो
(घ) स्नातक हो

3. राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? [2018]

(क) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
(ख) निर्वाचन आयोग
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) राष्ट्रपति

4. राज्यपाल की नियुक्ति कितने वर्ष के लिए की जाती है?

(क) 4 वर्ष
(ख) 5 वर्ष
(ग) 3 वर्ष
(घ) 6 वर्ष

5. राज्य का मुख्यमन्त्री वही हो सकता है

(क) जिसे सर्वोच्च न्यायालय आदेश दे
(ख) जिसे राष्ट्रपति चाहे।
(ग) जो स्नातक हो
(घ) जो विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल का नेता हो

6. भारत के किस राज्य में द्विसदनीय व्यवस्थापिका है? [2011, 18)

(क) बिहार
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) पंजाब

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7. निम्नलिखित राज्यों में से किस एक राज्य में द्विसदनीय व्यवस्थापिका नहीं है? [2013]

(क) कर्नाटक
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) बिहार
(घ) महाराष्ट्र

8. भारत में द्विसदनात्मक विधानमण्डले यहाँ दिए गए राज्य में है [2014]

(क) मध्य प्रदेश
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) गुजरात

9. राज्य का मुख्यमन्त्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? [2015]

(क) राज्यपाल
(ख) मन्त्रिपरिषद
(ग) विधानसभा
(घ) विधानपरिषद्

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (क), 3. (घ), 4. (ख), 5. (घ), 6. (ख), 7. (ख), 8. (ख), 9. (ख)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 are helpful to complete your homework.

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UP Board Class 10 English Model Paper

UP Board Class 10 English Model Paper

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 English Model Paper.

Section ‘A’

1. Read the passage and answer the questions given below it :

“Your brothers died because they did not heed my words. They tried to drink water without answering my questions. Do not follow them. Answer my questions first and then you can quench your thirst. This pool belongs to me.” It did not take Yudhishthira a moment to understand that these could be none other than the words of a Yaksha (UPBoardSolutions.com) and guessed what had happened to his brothers. It took him no time to see a possible way of bringing them back to life. He said to the bodiless voice: “Please ask your questions.’
(i) Write the name of the lesson from which the above passage has been taken. Who is the author of the lesson ?  [2]
(ii) Who was the owner of the pool ? [2]

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2. Answer one of the following questions in about 60 words:  [4]
(i) What do you come to know about Pt. Nehru after reading the lesson “The Ganga”?
(ii) Why did the old merchant want to judge his two sons ? What test did he give to them to find out who was the cleverer of the two?

3. Answer any two of the following questions in about 25 words : [2+2=4]
(i) Why did postman go to his boss laughing heartily?
(ii) What did Socrates want Athens to be? (UPBoardSolutions.com) What did he ask the Athenians to do to achieve this end ?
(iii) Who was Swami Hari Das? Where did Akbar go to listen to his misic ?

4. Match the words of List ‘A’ with their meanings in List ‘B’: [4×1 = 4 ]
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5. Read the following piece of poetry and answer the questions given below it :
Ever in motion,
Blithesome and cheery,
Still climbing heavenward,
Never a weary.
(i) From which poem has the above stanza been taken ? WHe is the author of the poem? [2]
(ii) Each of the above four lines describes a (UPBoardSolutions.com) particular quality of the fountain. Mention them. [2]

6. Give the central idea of one of the following poems : [3]
(i) The Psalın of Life
(ii) The Village Song
                      or
Write four lines from on 1 of the poems given in your textbook.
(Do not copy out the lines given in the question paper.)

7. Answer any two of the following questions in about 25 words: [2 + 2 = 4]
(i) Why has the life of Edison been called great and eventful ?
(ii) Why did the king of Ujjain want to sit on the judgement-seat of Vikramaditya?
(iii) What was Jesse Owens’ ‘Greatest Olympic Prize’?

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8. Point out the ‘True’ or ‘False’ statements in the following: [4 x 1 = 4]
(i) Edison was a great inventor but he was never awarded a medal for his inventions.
(ii) Edison said, “I shall never invent anything which (UPBoardSolutions.com) will destory life. I want to make people happy.”
(iii) Vikramaditya was the king of Ujjain.
(iv) Jesse Owens helped Luz Long in qualifying for the final jump.

9. Select the most suitable alternative to complete the following statements : [4 x1 = 4]
(a) Edison died on ….
(i) 14th September, 1886.
(ii) 18th October, 1931.
(iii) 2nd November, 1930.
(iv) 13the September, 1918.

(b) Edison got a beating from his mother because ….
(i) he has sold the eggs.
(ii) he had hatched the eggs.
(iii) he had smashed the eggs and sopiled his shorts.
(iv) he had eaten up all the eggs.

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(c) When the mound was dug, the king found …..
(i) seven jars full of gold coins
(ii) skeletons of dead bodies
(iii) rare musical (UPBoardSolutions.com) instruments
(iv) the judgement seat of Vikramaditya.

(d) Hitler believed in the……………
(i) superiority of English race.
(ii) superiority of German race.
(iii) equality of all races.
(iv) superiority of all race.

Section ‘B’

10. Do as indicated against each of the following sentences :
(i) on sunday play hockey they every. [2]
(Frame correct sentence by re-ordering the words.)……..
(ii) The pilgrim said to the policeman, “Is this the way to Sangam?” (Change into indirect speech) [2]
(iii) I know him very well. (UPBoardSolutions.com) (Change into passive voice) [2]
(iv) The naughty boy ran away as he …………… afraid of punishment. [2]
(Use correct form of the verb ‘be’ to fill in the blanks)

11. (a) Choose the correct preposition from the ones given below the sentence to fill in the blank :
The sun sets …………. ti [2]
(in, into, to)

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(b) Complete the following sentence: [2]
He kept on working …………………….

(c) Complete the spellings of the following words: 1/2+1/2=1
(i) suc_e_d
(ii) c_r_y.

(d) Punctuate the following using capital letters wherever necessary: is this your final decision said amit to his father yes i cannot make any alternation said his father [2]

12. Translate the following into English:  [4]
आज भारत के कुछ शहरों को स्मार्ट बनाने का प्रयत्न जारों पर है। इसका लक्ष्य शहर को स्वच्छ, सुन्दर एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त बनाना है। इसके अन्तर्गत कूड़े-करकट का प्रबन्धन, जनता शौचालयों का निर्माण, बिजली एवं पानी की समुचित (UPBoardSolutions.com) व्यवस्था आती है। चौड़ी व समतल सड़कों, फ्लाई ओवर्स एवं पार्किंग स्थलों के निर्माण से यातायात सुगम हो जाएगा।

13. Your college is organizing a three day educational tour. Write a letter to your father requesting him to allow you to go on the tour and to send you two thousand rupees for the expenses.
(Do not write your Name and Place.)  [4]
                                      Or
Write an application to the Principal of your college for the regular opening of the library and purchase of some new books. (Do not write your Name and Roll No.)

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14. Write a composition on one of the following topics in about 60 words. Points are given below for each topic :  [6]

(a) A Visit to a River :
(i) Introduction-name of the river and time of visit
(ii) Boats and pilgrims, birds floating and flying to the surface to pick up food
(iii) People bathing and offering (UPBoardSolutions.com) prayers with flowers and milk
(iv) Shops and temples near the bank
(v) Conclusion-your feelings.

(b) An Indian Festival :
(i) Introduction-name and when it is celebrated
(ii) Why it is celebrated
(iii) How it is celebrated
(iv) Conclusion-some evils associated with it.

(c) Usefulness of Mobile Phones :
(i) Introduction-small, handy and easy to carry,
(ii) Cheap and quick means of communication
(iii) Facility of internet-money transfer, purchase of rail tickets, getting any information
(iv) Wastage of money on chatting and useless talking

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15. Read the passage carefully and answer the questions based on it:
Books are a delightful company. If you go into a room filled with books even without taking them down from the shelves, they seem to speak to you, seem to welcome you, seem to tell you that they (UPBoardSolutions.com) have something inside their covers that will be good for you and that they are willing to impart it to you. Value them and endeavour to turn them to good account. As to the books which you should read, there is hardly anything definite that can be said. Any good book that is wiser you, will teach you something-a great many things directly or indirectly. If your mind be open to learn, you have to read it indicating that you are a person who likes to get good out of it.

  1. Why should we value books?’ [3]
  2. Which books should we read and how should we approach them? [3]

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 9 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 9 द्वितीय विश्वयुद्ध-कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 9 द्वितीय विश्वयुद्ध-कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। [2009, 13, 14]
            या
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ? इसका तात्कालिक प्रभाव क्या पड़ा ? [2013]
            या
द्वितीय विश्वयुद्ध के चार प्रमुख कारण बताइट। [2009, 13, 18]
            या
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों तथा परिणामों पर प्रकाश डालिए। (2013)
            या
द्वितीय विश्वयुद्ध के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए जो आपकी दृष्टि से अधिक प्रभावकारी थे। (2014, 17)
            या
द्वितीय विश्वयुद्ध कब हुआ? इसका तात्कालिक कारण क्या था? [2016]
            या
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रारम्भ 1 सितम्बर, (UPBoardSolutions.com) 1939 को हुआ।

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द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारण

द्वितीय विश्वयुद्ध के विस्फोट के लिए भी वही कारण उत्तरदायी थे, जो प्रथम विश्वयुद्ध के लिए थे; यथा-धुरी राष्ट्रों की आक्रामक नीति तथा इंग्लैण्ड और फ्रांस की तुष्टीकरण व स्वार्थपूर्ण नीति। संक्षेप में, इस युद्ध के लिए निम्नलिखित कारणों को उत्तरदायी माना जाता है

1. वर्साय की सन्धि में जर्मनी का अपमान – वर्साय की सन्धि ही द्वितीय विश्वयुद्ध का मूल कारण थी। यह वास्तविक अर्थों में शान्ति सन्धि नहीं थी, वरन् इसमें दूसरे विश्वयुद्ध के बीज छिपे हुए थे। इस सन्धि में जर्मनी का बड़ा ही अपमान किया गया तथा जर्मन प्रतिनिधियों को बलपूर्वक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया था। जर्मनी के सारे साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था। उसकी सैनिक तथा (UPBoardSolutions.com) समुद्री शक्ति को नष्ट कर दिया गया था। उसकी राष्ट्रीय भावनाओं को इतना कुचल दिया गया था कि जर्मन जनता अपने अपमान का बदला लेने के लिए बेचैन हो उठी थी। दूसरी ओर इटली भी इस सन्धि से असन्तुष्ट था। वह भी फ्रांस और इंग्लैण्ड से बदला लेने के इन्तजार में था। ऑस्ट्रिया और टर्की भी इस सन्धि से रुष्ट थे।

2. हिटलर का उत्थान – जर्मनी के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय के पतन के बाद जर्मनी में गणराज्य की स्थापना हुई थी। लेकिन वीमर गणतन्त्र की सरकार जर्मनी में बढ़ती हुई बेकारी, भुखमरी तथा अराजकता को रोकने में विफल रही। इस सरकार ने वर्साय सन्धि को स्वीकार करके जर्मन जनता की भावनाओं को गहरी चोट पहुँचायी। जर्मनी की आन्तरिक दशा का लाभ उठाकर हिटलर ने नाजी पार्टी की स्थापना की और जनता के समक्ष जोरदार शब्दों में घोषणा की कि नाजी पार्टी जर्मनी को पुनरुत्थान करेगी तथा वर्साय में हुए जर्मनी के अपमान का बदला लेगी।

3. साम्राज्यवादी भावना का विकास – साम्राज्यवादी भावना का विकास भी द्वितीय महायुद्ध का एक मुख्य कारण था। यूरोप के बहुत-से राष्ट्र सैनिक दृष्टि से सबल होते हुए भी साम्राज्य की दृष्टि से अपने को हीन समझते थे। जर्मनी, इटली और जापान का स्थान ऐसे ही राष्ट्रों में था। ये राष्ट्र सैन्य-शक्ति की दृष्टि से ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों से किसी भी प्रकार कम नहीं थे, किन्तु उनके पास इंग्लैण्ड व फ्रांस के समान विशाल साम्राज्य नहीं थे; अतः साम्राज्य–विस्तार की भावना उनके हृदय में निरन्तर बढ़ती जा रही थी। ऐसी स्थिति में युद्ध का छिड़ना अनिवार्य था।

4. राष्ट्र संघ की दुर्बलता – द्वितीय विश्वयुद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण राष्ट्र संघ की असफलता थी। जर्मनी, जापान तथा इटली ने अपनी इच्छानुसार ऑस्ट्रिया, मंचूरिया और अबीसीनिया पर विजय प्राप्त की। निर्बल राष्ट्रों ने राष्ट्र संघ से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। उसकी उदासीनता तथा दुर्बलता को देखकर विश्व के राष्ट्र अपने-अपने बचाव के लिए सैनिक तैयारियाँ करने लगे।

5. विभिन्न गुटबन्दियाँ – हिटलर की आक्रामक कार्यवाहियों को देखकर यूरोप के राष्ट्रों में खलबली मच गयी। सभी राष्ट्र अपनी-अपनी सुरक्षा करने के लिए गुटबन्दियाँ करने लगे। इन गुटबन्दियों में विचित्र बात यह थी कि एक ही राष्ट्र कई गुटों में सम्मिलित हो जाता था। सबसे पहले फ्रांस, रूस, पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया और यूगोस्लाविया ने अपना गुट बनाया। इसके बाद जर्मनी, इटली और जापान में गुटबन्दी हो गयी। इस प्रकार यूरोप (UPBoardSolutions.com) के प्रमुख राष्ट्र दो गुटों में बँट गये। इन गुटबन्दियों का फल यह हुआ कि विश्व के सभी राष्ट्र एक-दूसरे को अविश्वास और शंका की दृष्टि से देखने लगे।

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6. तुष्टीकरण की नीति – द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व ब्रिटेन तथा फ्रांस ने फासीवादी शक्तियों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनायी। सन् 1931 ई० से 1938 ई० के मध्य जापान ने मंचूरिया, इटली ने अबीसीनिया और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को हड़प लिया, किन्तु यूरोपीय देशों और अमेरिका ने उनका कोई प्रतिरोध नहीं किया। म्यूनिख समझौते में तुष्टीकरण की नीति पराकाष्ठा पर जा पहुँची, जबकि ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चैम्बरलेन तथा फ्रांस के प्रधानमन्त्री दलादियर ने चेकोस्लोवाकिया की बलि दे दी। साम्यवाद को रोकने के लिए अपनायी गयी तुष्टीकरण की नीति आगे चलकर विश्वयुद्ध का एक कारण बन गयी।

7. पोलैण्ड की समस्या तथा युद्ध का आरम्भ अथवा तत्कालीन कारण – पेरिस के शान्ति सम्मेलन के निर्णय के अनुसार पोलैण्ड को एक स्वतन्त्र राज्य बना दिया गया था और वहाँ पर लोकतन्त्र की स्थापना की गयी थी। पोलैण्ड को समुद्र तट से मिलाने के लिए जर्मनी के बीच से होकर एक मार्ग बना दिया गया था। यह पोलिश गलियारा डेन्जिग के बन्दरगाह तक जाता था। हिटलर का कहना था कि डेन्जिंग में जर्मन जाति के लोग निवास करते हैं; अत: डेन्जिंग पर जर्मनी का अधिकार होना चाहिए। हिटलर की इस बात को मानने के लिए पोलैण्ड तैयार नहीं था। जर्मन सेनाओं ने 1 सितम्बर, 1939 ई० को पोलैण्ड पर आक्रमण (UPBoardSolutions.com) कर दिया। पोलैण्ड की सुरक्षा का आश्वासन देने के कारण ब्रिटेन, सभी ब्रिटिश उपनिवेश तथा फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर डाली। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया।

8. युद्ध की अनिवार्यता – वास्तव में प्रथम विश्वयुद्ध तथा उसके बाद की परिस्थितियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अनिवार्य बना दिया था। कुछ राष्ट्रों ने इसे रोकने का प्रयास भी किया, किन्तु अन्य राष्ट्र ‘यह समझते थे कि वे युद्ध से भयभीत हो गये हैं; अत: उनके लिए साम्राज्य–विस्तार का यह एक अच्छा अवसर है। इसीलिए साम्राज्यवादी देशों ने अन्य राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार साम्राज्य–विस्तार की नीति तथा शस्त्रीकरण ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अनिवार्य बना दिया। [संकेत–परिणामों (प्रभाव) के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।

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प्रश्न 2
द्वितीय विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

द्वितीय विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ

द्वितीय विश्वयुद्ध 1 सितम्बर, 1939 ई० को प्रारम्भ हुआ, जिसकी शुरुआत जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण करके की और 14 अगस्त, 1945 ई० को जापान के आत्मसमर्पण के साथ ही समाप्त हो गया। इस महायुद्ध की उल्लेखनीय घटनाएँ निम्नलिखित रहीं–

1. पोलैण्ड का युद्ध – 1 सितम्बर, 1939 ई० की सुबह 5 बजे जर्मनी की सेनाओं ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया।

2. रूस का फिनलैण्ड पर आक्रमण – पूर्वी पोलैण्ड पर प्रभुत्व जमाने के बाद सोवियत रूस की सेनाओं ने 20 नवम्बर, 1939 ई० को फिनलैण्ड पर आक्रमण किया। भीषण युद्ध के बाद फिनलैण्ड की सेना ने हथियार डाल दिये और उस पर (UPBoardSolutions.com) रूस का अधिकार हो गया।

3. हिटलर का नार्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण – 9 अप्रैल, 1940 ई० की सुबह अचानक ही हिटलर ने जर्मन सेनाओं को नार्वे और डेनमार्क पर हमला करने का आदेश दे दिया। 8 जून, 1940 ई० को नार्वे के महत्त्वपूर्ण नगर जर्मनी के अधिकार में आ गये।

4. हॉलैण्ड और बेल्जियम का फ्तन – 10 मई, 1940 ई० को जर्मनी ने हॉलैण्ड पर आक्रमण किया। 14 मई, 1940 ई० को डच सेनाओं ने हथियार डाल दिये। हॉलैण्ड पर जर्मनी का अधिकार हो गया।

5. फ्रांस की पराजय – हिटलर का लक्ष्य फ्रांस से जर्मनी के अपमान का बदला लेना था। अत: उसने जर्मन सेनाओं को तीन दिशाओं से फ्रांस पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। 22 जून, 1940 ई० को फ्रांस ने हार मान ली।

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6. ब्रिटेन पर हवाई आक्रमण – जर्मनी की जलशक्ति इंग्लैण्ड की जलशक्ति की अपेक्षा निर्बल थी। इस कारण हिटलर ने 8 अगस्त, 1940 ई० को इंग्लैण्ड पर बमबारी करने के आदेश दे दिये। लेकिन ब्रिटेन के वायुयानों ने लगभग 2,500 जर्मन वायुयानों को नष्ट कर दिया।

7. जर्मनी का रूस पर आक्रमण – जर्मनी रूस का प्रबल शत्रु था। हिटलर भी रूस के उपजाऊ क्षेत्र यूक्रेन की खानों तथा तेल के कुओं पर अधिकार करना चाहता था। 22 जून, 1941 ई० को हिटलर ने जर्मन सेनाओं को रूस पर तीन दिशाओं से आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जर्मन सेना ने यूक्रेन पर जल्दी ही अधिकार कर लिया, किन्तु लेनिनग्राड और मास्को पर अधिकार करने में असफल रही।

8. जापान तथा अमेरिका का युद्ध में प्रवेश – 7 दिसम्बर, 1941 ई० को अचानक ही जापानी सेना ने अमेरिका के प्रशान्त महासागर स्थित नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर भयानक आक्रमण कर दिया। जापान के इस आकस्मिक आक्रमण से (UPBoardSolutions.com) अमेरिका का नौसैनिक अड्डा पूरी तरह नष्ट हो गया। इसी दिन जापानी सेना ने शंघाई, हांगकांग, मलाया और सिंगापुर पर बमवर्षा की और ब्रिटिश जंगी जहाज ‘प्रिन्स ऑफ वेल्स’ को बमबारी करके नष्ट कर दिया। 11 दिसम्बर, 1941 ई० को संयुक्त राज्य अमेरिका ने धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

9. धुरी राष्ट्रों की पराजय का आरम्भ – अमेरिका के युद्ध में कूद पड़ने से मित्रराष्ट्रों की शक्ति तथा उत्साह बहुत अधिक बढ़ गया। जून, 1943 ई० में मित्रराष्ट्रों ने जापानी जहाजी बेड़े को मिडवे द्वीपसमूह के युद्ध में पराजित कर दिया। अगस्त, 1942 ई० में अमेरिका ने सोलोमन द्वीप-समूह पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।

10. मित्रराष्ट्रों की घेराबन्दी – 14 जनवरी, 1943 ई० को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल और अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने कासा ब्लांका में एक गुप्त सम्मेलन किया, जिसमें जर्मनी और इटली की घेराबन्दी की योजना बनायी गयी।

11. इटली की पराजय – 10 जुलाई, 1943 ई० को मित्रराष्ट्रों की सेनाओं ने सिसली पर आक्रमण किया। शीघ्र ही सिसली मित्रराष्ट्रों के अधिकार में आ गया। 18 जुलाई, 1943 ई० को मित्रराष्ट्रों ने संगठित रूप से इटली पर आक्रमण कर दिया।

12. फ्रांस की स्वतन्त्रता – 5 जून, 1944 ई० से मित्रराष्ट्रों ने फ्रांस की मुक्ति का अभियान छेड़ दिया। 15 अगस्त, 1944 ई० को फ्रांस के पूर्व भूमध्यसागरीय तट पर मित्रराष्ट्रों की सेनाएँ पहुँच गयीं। शीघ्र ही तूलो तथा मारसेलीज के बन्दरगाहों पर मित्रराष्ट्रों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

13. जर्मनी की पराजय – नवम्बर, 1944 ई० में मित्रराष्ट्रों की सेनाएँ हॉलैण्ड के मार्ग से जर्मनी में प्रविष्ट हो गयीं। हिटलर के नेतृत्व में जर्मन सेनाओं ने शत्रुओं का जमकर सामना किया, परन्तु अब तक की पराजयों से जर्मनों की शक्ति क्षीण हो चुकी थी। अतः जर्मन सेनाएँ हारकर पीछे हटने लगीं। 4 मई, 1945 ई० को समस्त यूरोप में जर्मन सेनाओं ने हथियार डाल दिये। 7 मई, 1945 ई० को अन्तरिम जर्मन सरकार ने युद्ध विराम सन्धि पर (UPBoardSolutions.com) हस्ताक्षर कर दिये और 8 मई, 1945 ई० को सम्पूर्ण यूरोप में युद्ध बन्द हो गया।

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14. जापान की पराजय – 26 जुलाई, 1945 ई० को पोट्सडम सम्मेलन में मित्रराष्ट्रों ने जापान से बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की माँग की, परन्तु जापान ने उनकी माँग पर कोई ध्यान न देकर युद्ध जारी रखा। फलस्वरूप 6 अगस्त, 1945 ई० को अमेरिका ने जापान के समृद्ध नगर हिरोशिमा पर पहला अणु बम डाल दिया। 9 अगस्त, 1945 ई० को अमेरिका ने जापानी नगर नागासाकी पर अपना दूसरा अणु बम गिराया। इन बमों की भयानक तबाही को देखकर जापान का सम्राट बुरी तरह भयभीत हो गया और उसने तत्काल ही जापानी सेना को हथियार डालने का आदेश दिया।

प्रश्न 3.
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का विवेचन कीजिए। [2009, 13, 17]
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या परिणाम हुए? किन्हीं चार पर प्रकाश डालिए। [2015]
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध के दो परिणामों का वर्णन कीजिए। [2009]
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख परिणाम

द्वितीय विश्वयुद्ध के अग्रलिखित परिणाम हुए –

1. भयंकर विनाश और नरसंहार – इस युद्ध में 5 करोड़ से भी अधिक लोग मारे गये। करोड़ों लोग घायल व बेघर हो गये। लगभग एक करोड़ बीस लाख लोगों को तो जर्मनी व इटली के यन्त्रणा शिविरों में अपनी जान गॅवानी पड़ी। इस युद्ध में सबसे (UPBoardSolutions.com) अधिक हानि जर्मनी में रूस को उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त पोलैण्ड तथा चेकोस्लोवाकिया में शायद ही कोई गाँव बचा हो जो युद्ध में नष्ट न हुआ हो। फ्रांस, बेल्जियम, हॉलैण्ड आदि राष्ट्रों में असंख्य लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर गये थे।

2. आर्थिक परिणाम – यूरोप के अनेक राष्ट्रों ने अपने साधनों को युद्ध में लगा दिया था, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। इस युद्ध में संलग्न सभी राष्ट्रों द्वारा लगभग 15 खरब डॉलर व्यय किये गये। युद्ध के बाद अनेक देशों की कीमतों में तीव्रता से वृद्धि हुई, जिससे मुनाफाखोरी तथा चोरबाजारी को बढ़ावा मिला। साथ ही बेरोजगारी भी बढ़ी।

3. जर्मनी का विभाजन – इस युद्ध में जर्मनी की पराजय होने पर मित्रराष्ट्रों द्वारा उसे दो भागों में विभाजित कर दिया गया-पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी। पूर्वी जर्मनी पर रूस का अधिकार हो गया, जब कि पश्चिमी जर्मनी पर अमेरिका, फ्रांस व इंग्लैण्ड का प्रभुत्व रहा।

4. फासिस्टवाद का अन्त – इटली से फासीवाद का अन्त हो गया। वहाँ प्रजातन्त्र की स्थापना हुई। युद्ध के हर्जाने के रूप में उसे अत्यधिक धनराशि देनी पड़ी। इटली के अफ्रीकी उपनिवेश उसके अधिकार से छिन गये।

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5. साम्राज्यवाद में निरन्तर कमी – ब्रिटेन, फ्रांस, हॉलैण्ड, पुर्तगाल, इटली, बेल्जियम आदि देशों ने एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में अपने उपनिवेश स्थापित किये हुए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप पराधीन देशों में राष्ट्रीयता तथा देशभक्ति की भावनाओं को बढ़ावा मिला, जिससे वहाँ स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष व आन्दोलन प्रारम्भ हो गये।

6. साम्यवाद का प्रसार – द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व में साम्यवाद का प्रसार बड़ी तेजी से हुआ। रूस के प्रभाव के कारण यूरोप में हंगरी, रूमानिया, पोलैण्ड, बुल्गारिया, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया तथा पूर्वी जर्मनी में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई।

7. दो गुटों का निर्माण एवं शीत युद्ध का जन्म – द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व के अनेक राष्ट्र दो गुटों में बँट गये-पूँजीवादी तथा साम्यवादी। पूँजीवादी देशों का नेतृत्व अमेरिका, जबकि साम्यवादी देशों का नेतृत्व रूस के हाथों में था। यद्यपि द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका तथा रूस दोनों ने मिलकर : जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी, किन्तु युद्ध के बाद साम्यवाद के प्रसार के कारणों से अमेरिका तथा रूस में गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गये। (UPBoardSolutions.com) रूस की बढ़ती हुई शक्ति से चिन्तित होकर अमेरिका तथा कुछ अन्य राष्ट्रों ने नाटो, सीटो तथा सेण्टो नामक सैनिक गुटबन्दियों का निर्माण किया।

8. अस्त्र-शस्त्र के निर्माण में होड़ – द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आणविक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण का एक नया युग. प्रारम्भ हो गया। अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि राष्ट्र अपनी सुरक्षा को मजबूत करने हेतु विनाशकारी अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में लग गये। अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पुन: तनाव फैलाना शुरू कर दिया है, जिसके कारण आज विश्व तीसरे विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ा प्रतीत हो रहा है।

9. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना – द्वितीय विश्वयुद्ध की विनाश-लीला को देखकर भविष्य में युद्धों को रोकने, अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से हल करने तथा विश्व में सहयोग एवं मैत्री स्थापित करने के उद्देश्य से विभिन्न राष्ट्रों ने मिलकर 24 अक्टूबर, 1945 ई० को संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की। यह संस्था आज भी विश्व में शान्ति तथा मानव-जाति की सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध कब और क्यों शुरू हुआ ?
उत्तर :
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद की गयी वर्साय की सन्धि के द्वारा मित्रराष्ट्रों (इंग्लैण्ड, फ्रांस के रूस) ने पराजित राष्ट्रों (जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी व तुर्की) के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया। जर्मनी को प्रथम विश्वयुद्ध का दोषी ठहराकर उसे शक्तिहीन बना दिया गया। (UPBoardSolutions.com) इससे जर्मनी में बदला लेने की भावना उत्पन्न हो गयी। धीरे-धीरे अपनी शक्ति को संचित करके, जर्मनी ने 1 सितम्बर, 1939 ई० को पोलैण्ड पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। फ्रांस, व इंग्लैण्ड ने जर्मनी को पोलैण्ड से अपनी सेना वापस बुलाने की चेतावनी दी, जिसे जर्मनी ने अनसुना कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इटली व जापान ने जर्मनी का साथ दिया। इस प्रकार 1 सितम्बर, 1939 ई० को द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया।

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प्रश्न 2.
उन देशों के नाम लिखिए जो द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़े थे।
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्रराष्ट्रों के नाम बताइए
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित होने वाले देशों की एक सूची बनायी जाने वाली है। उस सूची में एशिया के किस देश का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। [2009]
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, इटली और जापान) (UPBoardSolutions.com) और मित्रराष्ट्रों (फ्रांस, रूस, अमेरिका आदि) के बीच लड़ा गया था।

इस सूची में एशिया महाद्वीप के जापान देश का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

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प्रश्न 3.
तुष्टीकरण की नीति से क्या अभिप्राय है? यह द्वितीय विश्वयुद्धका कारण कैसे बनी ?
उत्तर :
तुष्टीकरण से अभिप्राय है, किसी के आक्रमण को मूक मान्यता देना अथवा किसी आक्रामक शक्ति को मनाने के लिए किसी अन्य देश की बलि दे देना। आक्रामक शक्तियों की निन्दा करने की अपेक्षा पश्चिमी देशों ने ऐसी शक्तियों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनायी। इसी तुष्टीकरण की नीति के कारण विश्व को एक अन्य युद्ध झेलना पड़ा। इस तथ्य के निम्नलिखित प्रमाण दिये जा सकते हैं

1. तत्कालीन यूरोप में दो बड़े खतरे थे—फासीवाद से और साम्यवाद से। युद्धकालीन साम्यवाद ने पश्चिमी यूरोपीय देशों को आतंकित कर रखा था। उन्हें यह भी भय था कि कहीं उनके देश में मजदूर स्वयं को संगठित करके सामाजिक क्रान्ति न कर दें। पश्चिमी देशों ने फासीवाद को तो सहन कर लिया, परन्तु मजदूरों के समर्थक साम्यवादी देश रूस का विरोध किया। जब जापान, इटली तथा जर्मनी ने कोमिण्टर्न विरोधी गठबन्धन स्थापित किया तो पश्चिमी देशों ने राहत का अनुभव किया, किन्तु यह उनकी भूल थी। उन्हें धुरी शक्तियों को उसी समय दबा देना चाहिए था।

2. पश्चिमी देशों ने दूरदर्शिता से काम नहीं लिया। उन्हें प्रथम महायुद्ध में पराजित जर्मनी तथा इटली से सावधान रहना चाहिए था। सन् 1936 ई० में जर्मनी ने वर्साय सन्धि की शर्तों को भंग करते हुए जब राइनलैण्ड में प्रवेश किया तब उसे रोकने के लिए पश्चिमी देशों के द्वारा कुछ नहीं किया गया।

3. जापान ने जब चीन पर आक्रमण किया तो ब्रिटेन और फ्रांस ने राष्ट्र संघ के कहने पर भी उसके विरुद्ध प्रतिबन्धों पर कोई विचार नहीं किया। सन् 1933 ई० में जापान राष्ट्र संघ से अलग हो गया। उसने चीन में अमेरिका तथा ब्रिटेन की (UPBoardSolutions.com) सम्पत्ति भी जब्त कर ली, फिर भी इन देशों की तुष्टीकरण की नीति जारी रही।

4. सन् 1935 ई० में इटली ने इथोपिया पर आक्रमण किया। राष्ट्र संघ ने इटली की कड़ी आलोचना की तथा उसके विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने की भी बात कही, किन्तु फ्रांस, इंग्लैण्ड और अमेरिका ने इटली को दण्ड देने के लिए कुछ नहीं किया।

5. सन् 1936 ई० में स्पेन में गृहयुद्ध छिड़ गया था। वहाँ सेना ने जनरल फ्रांको के नेतृत्व में लोकतान्त्रिक मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका। अन्य फासिस्ट देशों ने भी जनरल फ्रांको की सहायता की, तब ब्रिटेन और फ्रांस ने वहाँ की संवैधानिक सरकार को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया।

6. सन् 1938 ई० में जर्मनी ने चेकोस्लोवाकिया के सुदेतेनलैण्ड क्षेत्र पर अपना दावा किया, तब फ्रांस और इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्रियों ने म्यूनिख समझौते के तहत हिटलर की शर्तों को मान लिया। सन् 1939 ई० में जर्मनी ने सम्पूर्ण चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर लिया। पश्चिमी देशों की तुष्टीकरण की नीति ने फासिस्ट शक्तियों को बल प्रदान किया। यदि फासिस्टों पर रोक लगा दी जाती तो सम्भव था कि द्वितीय विश्वयुद्ध टल जाता।

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प्रश्न 4.
द्वितीय विश्वयुद्ध कब और कैसे समाप्त हो गया ?
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध श्रेष्ठ हथियारों का युद्ध था, जिसका अन्त सर्वाधिक विनाशकारी हथियार के आविष्कार द्वारा हुआ। स्पष्ट कीजिए। [2009]
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध कब समाप्त हुआ ? इसमें किसकी पराजय हुई ? [2015]
उतर :
सन् 1942 ई० से ही जर्मनी रूस के साथ एक निर्णायक तथा विनाशकारी युद्ध में संलग्न था। सन् 1944 ई० में फ्रांस के नॉर्मण्डी तट पर अमेरिकी तथा ब्रिटिश सेनाएँ उतर पड़ीं तो जर्मनी के लिए दूसरा गोर्चा खुल गया। मित्रराष्ट्रों की सेनाओं ने (UPBoardSolutions.com) जर्मनी को सब ओर से घेर लिया। जब 2 मई, 1945 ई० को मित्र देशों की सेनाओं ने बर्लिन में प्रवेश किया तो हिटलर ने आत्महत्या कर ली। इसके साथ ही जर्मनी ने बिना शर्त के 7 मई, 1945 ई० को आत्मसमर्पण कर दिया तथा यूरोप से युद्ध का अन्त हो गया, किन्तु एशिया में अगस्त, 1945 ई० तक युद्ध जारी रहा। 6 तथा 9 अगस्त, 1945 ई० को क्रमशः हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा लिटिल बॉय और फैट मैन नामक बम गिराने से हुई भारी क्षति के कारण जापान ने 14 अगस्त को आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 5.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय क्यों हुई? इसका क्या प्रभाव पड़ा? [2011]
उत्तर :
द्वितीय विश्व युद्ध के अन्तिम चरण में अमेरिका ने जापान के दो नगरों हिरोशिमा और नागासाकी पर 6 अगस्त, 1945 ई० को परमाणु बम गिराए। परमाणु बमों द्वारा किए गए जन-धन के इस महाविनाश ने जापान को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार 14 अगस्त, 1945 ई० को जापान पराजित हो गया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि जापान की बढ़ती सैन्य क्षमता पर विराम लग गया तथा उसे विपरीत परिस्थितियों में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा और इसी के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का भी अन्त हो गया।

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प्रश्न 6.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान तथा उसके सहयोगी देशों के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय क्यों लिया ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
          या
“सन् 1941 में यदि जापान ने पर्ल हार्बर पर आक्रमण न किया होता तो एक शक्तिशाली राष्ट्र युद्ध में न कूद पड़ता।” यह किस राष्ट्र के विषय में कहा गया है? उसने किन राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध घोषित किया ?
          या
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में क्यों सम्मिलित हो गया ?
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका मित्रराष्ट्रों के पक्ष में क्यों सम्मिलित हुआ ? [2011]
उत्तर :
जर्मनी ने पोलैण्डे पर आक्रमण करके द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत की थी। अमेरिका मित्रराष्ट्रों के प्रति सहानुभूति रखता था, इसके बावजूद वह युद्ध में सम्मिलित नहीं हुआ। जापान, जर्मनी के पक्ष में युद्ध में सम्मिलित हो चुका था। उसने 7 दिसम्बर, 1941 ई० को अचानक ही अमेरिका के प्रशान्त महासागर स्थित नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर नामक बन्दरगाह पर आक्रमण कर दिया तथा अमेरिका के 20 युद्धपोतों और 250 विमानों को (UPBoardSolutions.com) नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप अमेरिका भी 11 दिसम्बर, 1941 ई० को द्वितीय विश्वयुद्ध में कूद पड़ा तथा उसने धुरी राष्ट्रों जापान, इटली व जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। युद्ध में अमेरिका के आ जाने से मित्रराष्ट्रों की शक्ति बढ़ गयी और उनकी धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध जो सतत पराजय हो रही थी वह क्रमशः विजय में परिवर्तित होने लगी।

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प्रश्न 7.
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम अत्यन्त विनाशकारी थे। भविष्य में ऐसे युद्धों को रोकने के लिए दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध कितना विनाशकारी था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गये, करोड़ों लोग घायल व बेकार हो गये। लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोगों को तो जर्मनी व इटली के यन्त्रणा शिविरों में अपनी जान गॅवानी पड़ी। इस युद्ध में सबसे अधिक हानि जर्मनी व रूस को उठानी पड़ी। इनके अतिरिक्त पोलैण्ड तथा चेकोस्लोवाकिया में शायद ही कोई गाँव बचा हो, जो युद्ध में नष्ट न हुआ हो। फ्रांस, हॉलैण्ड, बेल्जियम आदि राष्ट्रों में असंख्य लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गये। मानवता का यही तकाजा है कि भविष्य में ऐसे युद्ध न हों। इसके लिए दो सुझाव आगे दिये गये हैं

1. निरस्त्रीकरण – द्वितीय विश्वयुद्ध में जितना भी जन-जीवन या सम्पत्ति का विनाश हुआ, उसका मुख्य कारण विनाशकारी अस्त्र-शस्त्रों का खुलकर प्रयोग किया जाना था। अन्त में परमाणु बमों के प्रयोग ने तो जैसे मानवता को ही अनदेखा कर दिया। विभिन्न देशों के आपसी हितों के टकराव के कारण उनके पारस्परिक मतभेद तो सदा चलते और सुलझते रहेंगे, परन्तु शस्त्रों से सुसज्जित राष्ट्रों का रवैया संयमविहीन हो जाता है और वहीं से युद्धों की भयानक विभीषिका का प्रारम्भ होता है। अत: सर्वप्रथम हमें निरस्त्रीकरण को अपनाना होगा।

2. शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र संघ – हमें संयुक्त राष्ट्र संघ को इतना शक्तिशाली व प्रभावी बनाना होगा कि वह विभिन्न राष्ट्रों के आपसी विवादों को प्रभावी ढंग से सुलझा सके, कोई भी राष्ट्र उसके द्वारा लिये गये निर्णयों की अवहेलना न कर सके और आवश्यकता (UPBoardSolutions.com) पड़ने पर संयुक्त राष्ट्र संघ बल प्रयोग भी कर सके। सभी राष्ट्र अपने विवादों को संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर ही प्रस्तुत करें और उसके निर्णय को मानने के लिए बाध्य हों। संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य-क्षेत्र को भी विस्तृत बनाना होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ को महाशक्तियों के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए वीटो’ की शक्ति का उन्मूलन किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 8.
यदि आपको अपने विद्यालय में संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थापना दिवस पर द्वितीय विश्वयुद्ध के भयानक विध्वंस की चर्चा करनी हो तो आप अणु बम से विनष्ट हुए किन दो नगरों की चर्चा करेंगे ? युद्ध पर इसका तात्कालिक प्रभाव क्या पड़ा ?
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के किन दो शहरों पर अणुबम गिराये गये ? [2010]
          या
किस देश पर अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध काल में एटम बम गिराया ? उन दो नगरों के नाम भी लिखिए जो बमों के प्रहार से नष्ट हो गये। [2011]
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध में जान-माल का भयंकर विनाश हुआ तथा पाँच करोड़ से भी अधिक लोग मारे गये। इस युद्ध में सर्वाधिक हानि जर्मनी व रूस को उठानी पड़ी। 26 जुलाई, 1945 ई० को पोट्सडनी सम्मेलन में मित्रराष्ट्रों ने जापान से बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की माँग की, परन्तु जापान ने उनकी माँग पर कोई ध्यान न देकर युद्ध जारी रखा। फलस्वरूप 6 अगस्त, 1945 ई० को अमेरिका ने जापान के समृद्ध नगर हिरोशिमा पर पहला अणु बम; जिसका नाम ‘लिटिल ब्वाय’ रखा गया था; गिरा दिया। 9 अगस्त, 1945 ई० को अमेरिका ने जापानी नगर नागासाकी पर अपना दूसरा अणुबम; जिसका नाम ‘फैट मैन’ (UPBoardSolutions.com) रखा गया था; गिराया। इन दोनों बमों के परिणामस्वरूप वहाँ भयानक तबाही फैल गयी। इन नगरों पर अणुबम के प्रहार के बाद 14 अगस्त, 1945 ई० को जापान ने मित्रराष्ट्रों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

प्रश्न 9.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किस देश ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए ? इस युद्ध के बाद विश्व किन दो गुटों में बँट गया और इन गुटों का नेतृत्व किन देशों ने किया ? [2011, 17]
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व के अनेक राष्ट्र दो गुटों में बँट गये-पूँजीवादी तथा साम्यवादी। पूँजीवादी देशों का नेतृत्व अमेरिका, जबकि साम्यवादी देशों का नेतृत्व रूस के हाथों में था। यद्यपि द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका तथा रूस दोनों ने मिलकर जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी, किन्तु युद्ध के बाद साम्यवाद के प्रसार के कारणों से अमेरिका तथा रूस में गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गये। रूस की बढ़ती हुई शक्ति से चिन्तित होकर अमेरिका तथा कुछ अन्य राष्ट्रों ने नाटो, सीटो तथा सेण्टो नामक सैनिक गुटबन्दियों का निर्माण किया।

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प्रश्न 10.
क्या आपकी दृष्टि में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा जापान के विरुद्ध अणुबम का प्रयोग करना उचित था ? अपने उत्तर की पुष्टि में दो तर्क दीजिए।
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा जापान के विरुद्ध अणुबम का प्रयोग उचित नहीं था, क्योंकि –

1. जापान का 7 दिसम्बर, 1941 ई० को अमेरिका के पर्ल हार्बर नामक बन्दरगाह पर आक्रमण उसके नौसैनिक अड्डे पर केन्द्रित था। इस आक्रमण में अमेरिका के 20 युद्धपोत और 250 विमान नष्ट हुए थे, परन्तु कोई विशेष जन-हानि नहीं हुई थी। अमेरिका को भी जवाबी कार्यवाही में जापान के सैनिक ठिकानों को निशाना बनाना चाहिए था, परन्तु उसने हिरोशिमा और नागासाकी के सघन जन आबादी वाले 8 नगरों पर अणुबम गिराकर एक अमानवीय कृत्य किया, जिसमें जितने लोग मारे गये उनसे कई गुना अधिक के जीवन बर्बाद हो गये।

2. पर्ल हार्बर बन्दरगाह पर जापानी बमबारी दिसम्बर, 1941 ई० में की गयी थी। अमेरिका ने अणुबम 6 व 9 अगस्त, 1945 को जापानी नगरों पर गिराये। अमेरिका के पास पर्ल हार्बर पर बमबारी के उपरान्त होने वाले दूरगामी परिणामों का विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त समय था। लेकिन अमेरिका ने दूरदर्शिता नहीं दिखायी। अणुबम के प्रयोग ने द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एक शीत युद्ध तथा परमाणु अस्त्रों की होड़ को जन्म दिया, जिसने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया।

प्रश्न 11.
1941 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा क्यों की ? उन दो नगरों के नाम लिखिए जो अणु बम द्वारा नष्ट कर दिये गये थे। ये नगर किस देश में हैं ? [2014]
          या
द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका क्यों शामिल हुआ ? जापान आत्मसमर्पण करने को क्यों विवश हुआ ? [2014]
उत्तर :
जापान सम्पूर्ण एशिया पर अपना प्रभाव स्थापित करना चाहता था। अत: 7 दिसम्बर, 1941 ई० को अचानक ही जापानी सेना ने अमेरिका के प्रशान्त महासागर स्थित नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर भयानक आक्रमण कर दिया जिसमें अमेरिका को अत्यन्त जान-माल की हानि हुई। फलस्वरूप अमेरिका ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

अमेरिका ने जीपान के दो प्रमुख नगरों हिरोशिमा और (UPBoardSolutions.com) नागासाकी पर अणु बम गिराये जिसके कारण लाखों लोगों की मृत्यु हो गयी। इस विनाशलीला को देखकर जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया।

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प्रश्न 12. 
हिटलर कौन था? उसकी नीतियों ने किस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध को प्रभावित किया? [2014]
उत्तर :
हिटलर जर्मनी का प्रधानमंत्री था जो बाद में वहाँ का तानाशाह बन गया। हिटलर ने वर्साय सन्धि-पत्र की अवहेलना करके जर्मनी का शस्त्रीकरण आरम्भ कर दिया, क्योंकि वह विश्व विजय करना चाहता था। इससे सम्पूर्ण यूरोप में खलबली मच गई। हिटलर की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर यूरोप के राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए युद्ध की तैयारियाँ करने लगे। यूरोप के राष्ट्रों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर गुट बना लिये जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ हुआ।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ कब और किसने किया ?
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ जर्मनी ने 1 सितम्बर, 1939 ई० को पोलैण्ड पर आक्रमण के साथ किया।

प्रश्न 2.
द्वितीय विश्वयुद्ध कब से कब तक चला ?
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 ई० से 1945 ई० तक चला।

प्रश्न 3.
धुरी-राष्ट्रों में कौन-कौन-से देश सम्मिलित थे ?
उत्तर :
धुरी-राष्ट्रों में जर्मनी, इटली तथा जापान सम्मिलित थे।

प्रश्न 4.
जर्मनी और इटली के तानाशाहों के नाम लिखिए।
उत्तर :
जर्मनी का तानाशाह हिटलर तथा इटली का तानाशाह मुसोलिनी था।

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प्रश्न 5.
‘नकली युद्ध’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
सितम्बर, 1939 ई० से अप्रैल, 1940 ई० तक, जब तक कि वास्तविक विश्वयुद्ध नहीं छिड़ा था, उसे ‘नकली युद्ध’ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
मित्रराष्ट्रों में कौन-कौन से देश सम्मिलित थे ?
उत्तर :
मित्रराष्ट्रों में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा फ्रांस सम्मिलित थे।

प्रश्न 7.
द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका मित्रराष्ट्रों के पक्ष में क्यों शामिल हुआ ? [2011]
          या
अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में किन कारणों से प्रवेश किया ?
उत्तर :
जापान द्वारा अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर बमबारी (UPBoardSolutions.com) करने से सुदूरपूर्व में अमेरिका के हित खतरे में पड़ गए थे। इसीलिए अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्रराष्ट्रों की ओर से प्रवेश किया।

प्रश्न 8.
अमेरिका ने परमाणु बम का प्रयोग सर्वप्रथम कब और कहाँ किया ?
उत्तर :
अमेरिका ने परमाणु बम का प्रयोग सर्वप्रथम 6 अगस्त, 1945 ई० को जापान के समृद्ध नगर हिरोशिमा पर किया गया।

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प्रश्न 9.
जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कब किया ?
उत्तर :
जर्मनी ने 7 मई, 1945 ई० को बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।

प्रश्न 10.
जापान ने आत्मसमर्पण कब और क्यों किया ?
उत्तर :
जापान ने हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अणुबम प्रहार होने के बाद 14 अगस्त, 1945 ई० को आत्मसमर्पण किया, जबकि वास्तविक समर्पण कार्य 2 सितम्बर, 1945 ई० को सम्पन्न हुआ।

प्रश्न 11.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दो महत्त्वपूर्ण परिणाम लिखिए।
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के दो महत्त्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित हैं—(1) धन और जन का भयंकर विनाश और संहार। (2) विश्व में दो गुटों का निर्माण एवं शीतयुद्ध का प्रारम्भ।

प्रश्न 12.
जापान के उन दो नगरों का उल्लेख कीजिए जो अणु बम द्वारा विनष्ट हुए। [2011]
उत्तर :
हिरोशिमा तथा (UPBoardSolutions.com) नागासाकी।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. द्वितीय विश्वयुद्ध का मूल कारण क्या था?

(क) वर्साय की सन्धि
(ख) जर्मनी में नाज़ी पार्टी का उत्थान
(ग) फ्रांस की महत्त्वाकांक्षा।
(घ) साम्राज्यवादी भावना

2. द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ कब हुआ? [2009, 16]

(क) 28 जुलाई, 1914 ई० को ।
(ख) 28 जून, 1919 ई० को।
(ग) 1 सितम्बर, 1939 ई० को
(घ) 3 सितम्बर, 1939 ई० को

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3. द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रयुक्त होने वाला सबसे घातक अस्त्र कौन-सा था?

(क) टैंक
(ख) मिसाइल
(ग) परमाणु बम
(घ) हाइड्रोजन बम

4. इंग्लैण्ड का युद्धकालीन प्रधानमन्त्री कौन था?

(क) चर्चिल
(ख) चेम्बरलेन
(ग) पामस्टर्न
(घ) लॉयड जॉर्ज

5. जर्मनी ने आत्मसमर्पण कब किया?

(क) 1 मई, 1945 ई० को
(ख) 2 मई, 1945 ई० को
(ग) 7 मई, 1945 ई० को
(घ) 8 मई, 1945 ई० को

6. द्वितीय विश्वयुद्ध में अणु बम किस देश पर गिराया गया था? [2018]

(क) जापान
(ख) जर्मनी
(ग) कोरिया
(घ) इटली

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7. जापान का वास्तविक आत्मसमर्पण कब हुआ ?

(क) 7 मई, 1945 ई० को
(ख) 14 अगस्त, 1945 ई० को
(ग) 2 सितम्बर, 1945 ई० को
(घ) 6 अगस्त, 1945 ई० को

8. अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया गया था [2009]

(क) 6 अगस्त, 1945 ई० को
(ख) 9 अगस्त, 1945 ई० को
(ग) 14 अगस्त, 1945 ई० को
(घ) 2 सितम्बर, 1945 ई० को

9. पर्ल हार्बर कहाँ स्थित है?

(क) प्रशान्त महासागर में
(ख) अन्ध महासागर में
(ग) हिन्द महासागर में
(घ) चीन सागर में

10. जर्मनी का तानाशाह कौन था?

(क) मुसोलिनी
(ख) हिटलर
(ग) स्टालिन
(घ) मार्शल टीटो

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11. द्वितीय विश्वयुद्ध कब-से-कब तक चला?

(क) 1939 ई० से 1942 ई० तक
(ख) 1939 ई० से 1943 ई० तक
(ग) 1939 ई० से 1944 ई० तक
(घ) 1939 ई० से 1945 ई० तक

12. वर्साय सन्धि को अस्वीकार करने वाला शासक था|

(क) स्टालिन
(ख) मुसोलिनी
(ग) हिटलर
(घ) जनरल फैंको

13. निम्नलिखित में से किस युद्ध में इटली ने भाग लिया था ? [2013]

(क) प्रथम विश्वयुद्ध में
(ख) द्वितीय विश्वयुद्ध में
(ग) दोनों युद्धों में ।
(घ) इनमें से किसी में नहीं

14. हिटलर का सम्बन्ध किस देश से था ? |2013]

(क) फ्रांस
(ख) जर्मनी
(ग) ऑस्ट्रिया
(घ) जापान

15. संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित होने का तात्कालिक कारण था (2015, 18)

(क) हिटलर द्वारा रूस पर आक्रमण
(ख) नालियों द्वारा पोलैण्ड पर आक्रमण
(ग) जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर आक्रमण
(घ) इटली द्वारा अलवानिया पर आक्रमण

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16. पर्ल हार्बर पर आक्रमण निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है? [2015]

(क) ऑस्ट्रिया-प्रशिया युद्ध
(ख) फ्रेंच-प्रशिया युद्ध
(ग) प्रथम विश्वयुद्ध
(घ) द्वितीय विश्वयुद्ध

उतरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 9 द्वितीय विश्वयुद्ध-कारण तथा परिणाम 1

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 क्रान्तियों का सामान्य परिचय (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 क्रान्तियों का सामान्य परिचय (अनुभाग – एक).

विस्तृत उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड की क्रान्ति के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
      या
इंग्लैण्ड में 1688 ई० में होने वाली गौरवपूर्ण अथवा रक्तहीन क्रान्ति के प्रमुख कारण क्या थे ? वर्णन कीजिए।
      या
इंग्लैण्ड की क्रान्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर

इंग्लैण्ड की क्रान्ति के कारण

इंग्लैण्ड की क्रान्ति विश्व इतिहास में ‘गौरवपूर्ण क्रान्ति’, ‘शानदार क्रान्ति’, ‘रक्तहीन क्रान्ति तथा महान् क्रान्ति’ नामों से प्रसिद्ध है। इसे शानदार क्रान्ति’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा बिना खून की एक बूंद बहाये तथा बिना युद्ध लड़े इंग्लैण्ड में निरंकुश शासन का अन्त करके संसद की सत्ता स्थापित कर दी गयी। इंग्लैण्ड की रक्तहीन क्रान्ति 1688 ई० में राजा जेम्स द्वितीय के शासनकाल (सन् 1685-88 ई०) (UPBoardSolutions.com) में हुई थी। जेम्स द्वितीय भी अपने पिता की तरह ही अहंकारी, हठी और निरंकुश शासक था। फलस्वरूप उसके शासनकाल के तीसरे वर्ष में ही क्रान्ति का आरम्भ हो गया। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित

1. कैथोलिकों के प्रति उदारता – जेम्स द्वितीय कैथोलिक धर्म का अनुयायी था। इसलिए वह प्रोटेस्टेण्ट धर्म के लोगों की अपेक्षा कैथोलिकों के प्रति पक्षपात करता था और उनके प्रति उदारता का व्यवहार करता था। उसने कैथोलिकों को सेना में उच्च पदों पर नियुक्त किया। इन नियुक्तियों को ब्रिटिश संसद ने अवैध घोषित कर दिया। इस पर जेम्स द्वितीय ने संसद को ही भंग कर दिया। संसद को भंग करने के पश्चात् जेम्स द्वितीय का साहस बढ़ता ही गया और उसने मनमाने ढंग से अन्य उच्च सरकारी पदों पर भी कैथोलिकों की नियुक्तियाँ कीं। इससे जनता के मन में जेम्स द्वितीय के विरुद्ध भावना पैदा हुई।

2. कोर्ट ऑफ हाईकमीशन की स्थापना – संसद को भंग करने के बाद जेम्स द्वितीय ने कैथोलिकों की नियुक्तियों को वैधानिक बनाने के लिए कोर्ट ऑफ हाईकमीशन की स्थापना की। संसद ने इस प्रकार की संस्थाओं और न्यायालयों की स्थापना पर रोक लगा रखी थी, क्योंकि ये सभी राजाओं की निरंकुशता की प्रतीक थीं। जेम्स द्वितीय ने संसद की परवाह न करते हुए कोर्ट ऑफ हाई कमीशन के माध्यम से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के चांसलर और लन्दन के बिशप को पदच्युत करके उनके स्थान पर कैथोलिकों की नियुक्ति करवा दी। जेम्स द्वितीय के इस कार्य से इंग्लैण्ड की प्रोटेस्टेण्ट जनता बहुत असन्तुष्ट हो गयी और राजा को हटाने की सोचने लगी।

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3. कानूनों का स्थगन ( रद्द करना) – जेम्स द्वितीय ने 1687 ई० में इंग्लैण्ड के कैथोलिकों पर नियन्त्रण लगाने वाले अन्य अनेक कानूनों को भी रद्द कर दिया। इन कानूनों में क्लैरेण्डन कोड, टेस्ट ऐक्ट तथा चर्च सम्बन्धी कानून प्रमुख थे। इन कानूनों के स्थगन से कैथोलिकों को सरकारी पद प्राप्त करने और धार्मिक कार्यों का सम्पादन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी। जनता को राजा की ये बाते बहुत बुरी लगीं।

4. धार्मिक घोषणा – जेम्स द्वितीय ने 1768 ई० में एक घोषणा करते हुए पादरियों को आदेश दिया कि वे उसके द्वारा की गयी कैथोलिक धर्म सम्बन्धी घोषणाओं को चर्च में पढ़कर सुनायें। जेम्स द्वितीय को यह आदेश इंग्लैण्ड के चर्च के विरुद्ध था; अत: ब्रिटिश जनता में रोष फैल गया और वह उत्तेजित हो उठी।.

5. सात बिशपों पर अभियोग – जेम्स द्वितीय के आदेश की तीखी प्रतिक्रिया हुई। कैण्टरबरी के आर्क बिशप और छह अन्य बिशपों ने राजा के पास एक आवेदन-पत्र भेजा जिसमें उन्होंने राजा से विनती की कि उन्हें अनुचित घोषणाएँ पढ़ने (UPBoardSolutions.com) को बाध्य ने किया जाए। इस पर जेम्स द्वितीय ने क्रोधित होकर सातों बिशपों को बन्दी बना लिया और उन पर राजद्रोह के अपराध में मुकदमा चलाया गया। इस घटना ने इंग्लैण्ड में क्रान्ति का वातावरण तैयार कर दिया।

6. हॉलैण्ड के राजा के विचार – हॉलैण्ड के राजा विलियम ऑफ ऑरेन्ज ने अपने एक लेख में विचार प्रकट किया कि कैथोलिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता कभी नहीं मिलनी चाहिए। इस विचार से इंग्लैण्ड की जनता बहुत प्रसन्न हुई तथा जेम्स द्वितीय के और अधिक विरुद्ध हो गयी।

7. अन्य कारण – जेम्स द्वितीय के पक्षपातपूर्ण कार्यों तथा दमन-नीति ने इंग्लैण्ड में क्रान्ति की लहर उत्पन्न कर दी। 12 जून, 1688 ई० को राजा जेम्स के यहाँ पुत्र के जन्म की सूचना ने क्रान्ति को अनिवार्य बना दिया; क्योंकि जनता यह सोचने लगी कि अब इंग्लैण्ड में कैथोलिक राजवंश ही सदैव के लिए स्थायी हो जाएगा।

प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड की क्रान्ति के परिणामों का वर्णन कीजिए।
      या
इंग्लैण्ड की क्रान्ति ने विश्व इतिहास को कहाँ तक प्रभावित किया ?
      या
इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति (1688 ई०) के दो परिणाम लिखिए। [2009]
      या
इंग्लैण्ड की क्रान्ति को गौरवपूर्ण क्रान्ति’ की संज्ञा क्यों दी गयी है ? इसके प्रमुख परिणामों को वर्णित कीजिए।
      या
इंग्लैण्ड के इतिहास में रक्तहीन क्रान्ति किस प्रकार एक युगान्तकारी घटना थी ? [2011]
उत्तर
इंग्लैण्ड की क्रान्ति इतिहास में गौरवपूर्ण क्रान्ति के नाम से क्यों प्रसिद्ध है ?
उक्ट, इंग्लैण्ड की क्रान्ति इतिहास में गौरवपूर्ण क्रान्ति (UPBoardSolutions.com) के नाम से इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि बिना खून की एक बूंद बहाये तथा बिना युद्ध लड़े इंग्लैण्ड में जेम्स द्वितीय के निरंकुश शासन का अन्त करके संसद की सत्ता स्थापित कर दी गयी।

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इंग्लैण्ड की क्रान्ति के परिणाम (प्रभाव)

इंग्लैण्ड के इतिहास में इस क्रान्ति का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस क्रान्ति के विश्व-इतिहास पर भी बड़े दूरगामी व व्यापक परिणाम हुए, जो निम्नवत् हैं –

1. राजा के दैवी अधिकारों का अन्त – क्रान्ति से पूर्व इंग्लैण्ड के अधिकांश सम्राट ‘राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्त में विश्वास करते आ रहे थे। वे अपने को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानने के साथ-साथ यह भी मानते थे कि राजा को अपनी स्वेच्छा से शासन करने का अधिकार था। इस क्रान्ति ने यह स्पष्ट कर दिया कि राजा का पद जनता की इच्छा पर निर्भर करता है, न कि दैवी अधिकार पर।

2. संसद की सर्वोच्चता की स्थापना – इंग्लैण्ड में गौरवपूर्ण क्रान्ति की सफलता के पश्चात् संसद की सर्वोच्चता स्थापित हो गयी। इससे यह सिद्ध हो गया कि जनता की प्रतिनिधि संसद की शक्ति अधिक है और राजा को संसद की इच्छा के अनुसार ही शासन करना चाहिए।

3. राजा और संसद के संघर्ष का अन्त – गौरवपूर्ण क्रान्ति के पश्चात् राजा और संसद के संघर्ष का अन्त हो गया, जिससे इंग्लैण्ड के आर्थिक विकास की गति में तेजी आ गयी।

4. राजा की निरंकुशता पर प्रतिबन्ध – संसद ने 1689 ई० में बिल ऑफ राइट्स पारित करके राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगा दिया। निरंकुशता समाप्त होने पर स्वतन्त्रता और समानता के आदर्शों की स्थापना की गयी। इस बिल के द्वारा (UPBoardSolutions.com) यह निश्चित कर दिया गया कि इंग्लैण्ड में प्रोटेस्टेण्ट धर्म का अनुयायी ही राजा बन सकेगा।

5. स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना – इंग्लैण्ड में क्रान्ति की सफलता के पश्चात् न्यायपालिका की स्थापना की गयी। अब न्यायाधीश स्वतन्त्र हो गये थे, क्योंकि न्यायाधीशों पर राजा का कोई नियन्त्रण नहीं रहा।

6. यूरोप में क्रान्तियों का प्रचलन – इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति की सफलता से प्रोत्साहित होकर यूरोप में राजनीतिक क्रान्तियों की एक श्रृंखला प्रारम्भ हो गयी।

7. इंग्लैण्ड और फ्रांस में विरोध – फ्रांस यूरोप में कैथोलिक धर्म का नेतृत्व कर रहा था; अतः जेम्स द्वितीय के साथ फ्रांस के मधुर सम्बन्ध थे, परन्तु इंग्लैण्ड में प्रोटेस्टेण्ट धर्म की मान्यता स्थापित हो जाने से इंग्लैण्ड और फ्रांस के सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हो गयी।

8. इंग्लैण्ड की विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति – गौरवपूर्ण क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैण्ड ने औपनिवेशिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में पर्याप्त प्रगति की। प्रशासन ने देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की ओर ध्यान दिया।

9. इंग्लैण्ड में संसदीय शासन का विकास – उन्नीसवीं सदी में इंग्लैण्ड में संसदीय शासन प्रणाली का तेजी से विकास हुआ। सन् 1832 ई० में पहला सुधार अधिनियम पारित हुआ, जिससे लोगों को मताधिकार प्राप्त हुआ। सन् 1867 ई०, 1884-85 (UPBoardSolutions.com) ई० तथा 1911 ई० में इंग्लैण्ड में सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार मिल गया। सन् 1918 ई० में इंग्लैण्ड में महिलाओं को भी मताधिकार प्राप्त हो गया। इस प्रकार इंग्लैण्ड में संसदीय शासन मजबूती से स्थापित हो गया और ब्रिटिश संसद संसार की ‘संसदों की जननी’ कही जाने लगी।

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प्रश्न 3.
अमेरिकावासी इंग्लैण्ड से क्यों सम्बन्ध विच्छेद करना चाहते थे? उनके असन्तोष के तीन कारण लिखिए। (2018)
      या
अमेरिका के स्वतन्त्रता-संग्राम के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
      या
अमेरिका की क्रान्ति के क्या कारण थे ? विवेचना कीजिए। (2018)
उत्तर
इंग्लैण्ड की शानदार क्रान्ति ने ब्रिटिश उपनिवेशों की जनता में स्वतन्त्रता और अधिकार-प्राप्ति की भावना की लहर उत्पन्न कर दी। इसे लहर का तूफान सर्वप्रथम अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों में उठा। 1942 ई० में जब कोलम्बस ने अमेरिका की खोज करके यूरोप में सनसनी फैला दी तो यूरोप के व्यापारी इस महाद्वीप की प्राकृतिक सम्पदा को लूटने तथा यहाँ के निवासियों को गुलाम बनाने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा करने लगे। व्यापारियों को प्रोत्साहन देने के लिए स्पेन, हॉलैण्ड, फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के राजाओं ने अमेरिका में अपने उपनिवेश बसाने शुरू कर दिये। 150 वर्षों के अन्दर ही अंग्रेजों ने अमेरिका में 13 (UPBoardSolutions.com) उपनिवेश स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली। ट्यूडर तथा स्टुअर्ट राजाओं के काल में अंग्रेजों ने अमेरिकी उपनिवेशों का जमकर शोषण किया, परन्तु पुनर्जागरण की लहर के कारण अमेरिकियों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित होने लगी। दूसरी ओर इंग्लैण्ड के सम्राट जॉर्ज तृतीय की अयोग्यता तथा ब्रिटिश प्रधानमन्त्रियों (लॉर्ड चैथम आदि) की उपेक्षापूर्ण नीतियों ने अमेरिकी उपनिवेशों की जनता के असन्तोष को अत्यधिक बढ़ा दिया। टॉमस पेन, एडमण्ड बर्क तथा थॉमस जेफरसन जैसे विद्वानों, लेखकों तथा वक्ताओं ने अपने विचारों से अमेरिका में क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

अमेरिका की क्रान्ति (असन्तोष) के कारण

सम्राट जॉर्ज द्वितीय की अयोग्यता एवं ब्रिटिश प्रधानमन्त्रियों की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण अमेरिकियों ने 1775 ई० में जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में फ्रांस तथा स्पेन की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया, जिसे अमेरिका का स्वतन्त्रता संग्राम कहते हैं। इस स्वतन्त्रता-संग्राम के निम्नलिखित कारण थे

1. दोषपूर्ण शासन – अमेरिका में इंग्लैण्ड के 13 उपनिवेश थे। इन उपनिवेशों में इंग्लैण्ड का शासन बहुत दोषपूर्ण था। प्रत्येक उपनिवेश में एक अंग्रेज गवर्नर होता था तथा एक विधानसभा होती थी, जिसमें उपनिवेश के निर्वाचित सदस्य होते थे। यह सभा स्थानीय मामलों सम्बन्धी कानून बनाती तथा कर लगाती थी। उनके ऊपर इंग्लैण्ड की सरकार जो भी नियम लागू करती थी, उनमें इंग्लैण्ड का हित निहित होता था। परस्पर विरोधी हितों के कारण अंग्रेज गवर्नर तथा निर्वाचित सभा के मध्य संघर्ष चलता रहता था। अमेरिकावासियों को उच्च पदों के लिए अयोग्य माना जाता था और अंग्रेजों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था; अतः अमेरिका की जनता अंग्रेजों के दोषपूर्ण शासन के विरुद्ध एकजुट होकर स्वतन्त्रता पाने के लिए लालायित हो उठी।

2. आर्थिक शोषण – इंग्लैण्ड की सरकार उपनिवेशों का बुरी तरह से शोषण कर रही थी। ब्रिटिश शासन ने उपनिवेशों में ऐसे व्यापारिक नियम लागू कर रखे थे, जिनसे इंग्लैण्ड को तो अधिकाधिक लाभ पहुँच रहा था, किन्तु ऐसे नियम उपनिवेशों के विकास में बाधक सिद्ध हो रहे थे। उदाहरण के लिए, उपनिवेशों की मुख्य उपज कपास, तम्बाकू तथा चीनी का निर्यात केवल इंग्लैण्ड को ही किया जा सकता था। उपनिवेशों में लोहे व (UPBoardSolutions.com) ऊन के सामान, ईंट आदि के उत्पादन पर प्रतिबन्ध था। इन वस्तुओं को केवल इंग्लैण्ड से ही आयात किया जा सकता था। उपनिवेशों से अन्य देशों को माल केवल इंग्लैण्ड के जहाजों द्वारा ही भेजा जा सकता था। उपनिवेशों के निवासी इस आर्थिक शोषण को अधिक दिन तक सहन न कर सके; अत: उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम छेड़ दिया।

3. स्टाम्प ऐक्ट लगाना – इंग्लैण्ड की सरकार ने उपनिवेश के निवासियों के व्यापारिक सौदों पर भारी कर लगा रखे थे, जिनसे जनता बहुत असन्तुष्ट थी। उपनिवेशों की सुरक्षा के लिए इंग्लैण्ड की सरकार ने यह निश्चय किया कि उपनिवेशों की एक स्थायी सेना रखी जाए, जिसका व्यय उपनिवेशों द्वारा ही वहन किया जाए। धन की प्राप्ति के लिए ब्रिटेन की संसद ने स्टाम्प ऐक्ट पारित करके उपनिवेशों पर अतिरिक्त कर लगा दिया। इसके अनुसार अदालती कागजों पर स्टाम्प लगाने पड़ते थे। उपनिवेशवासियों ने इस ऐक्ट का कड़ा विरोध किया और कहा कि यदि ‘प्रतिनिधित्व नहीं, तो कर भी नहीं।

4. दार्शनिकों का प्रभाव – इस काल में अमेरिका के लोगों को लॉक, हेरिंगटन, टॉमस पेन, जेफरसन, मिल्टन आदि दार्शनिकों के विचारों ने बहुत प्रभावित किया। इनके विचारों से अमेरिकियों में राजनीतिक चेतना जाग उठी, जिसने क्रान्ति का रूप धारण कर लिया। इन दार्शनिकों ने अपने लेखों में लोगों की भावनाओं को स्वतन्त्रता के प्रति जाग्रत किया। उपनिवेशों के लोगों ने इनसे प्रभावित होकर स्वतन्त्र होने के लिए संग्राम छेड़ दिया।

5. अन्य देशों के लोगों को बसना- इन उपनिवेशों में धीरे-धीरे यूरोप के अन्य देशों के लोग भी आकर बसने लगे थे, जिनमें प्रमुख रूप से आयरलैण्ड और हॉलैण्ड के लोग थे, जो इंग्लैण्ड से नाराज होकर अमेरिका आये थे। इस समय अमेरिका में रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी, जिनका इंग्लैण्ड से कोई लगाव नहीं था।

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6. स्वावलम्बन की इच्छा – अमेरिका में उपनिवेश स्थापित करने वाले लोग लगभग 150 वर्षों से रह रहे थे। प्रारम्भ में अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बाद वे अब अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आत्म-निर्भर हो गये थे। उपनिवेशवासियों ने यह अनुभव किया कि अब उनके लिए इंग्लैण्ड के संरक्षण में रहना लाभदायक नहीं है; अतः वे इंग्लैण्ड के साथ अपने सम्बन्ध विच्छेद करने के लिए प्रयत्नशील हो गये।

7. धार्मिक मतभेद – इंग्लैण्ड छोड़कर अमेरिका में बसने वाले अंग्रेज वहाँ होने वाले धार्मिक अत्याचारों से दु:खी होकर यहाँ आये। उनके साथ ही कुछ लोग आर्थिक लाभ हेतु भी यहाँ आ बसे। इनमें से अधिकांश लोग ऐसे थे जो ‘आंग्ल चर्च’ को नहीं मानते थे, जबकि इंग्लैण्ड में उन दिनों केवल ‘आंग्ल चर्च’ को ही मान्यता प्राप्त थी। इस प्रकार इंग्लैण्ड तथा उपनिवेशवासियों में गहरा धार्मिक मतभेद था।

8. फ्रांसीसी आक्रमण का भय समाप्त – फ्रांस तथा अमेरिका क्रमशः रोमन कैथोलिक धर्म तथा प्रोटेस्टेण्ट धर्म के समर्थक एवं अनुयायी थे। इसलिए दोनों वर्गों में आपस में कटुता के कारण सम्बन्ध तनावपूर्ण थे। आरम्भ में तो अमेरिकावासी अंग्रेजों को भय था कि यदि उन्होंने इंग्लैण्ड से झगड़ा किया तो उस अवसर का लाभ उठाकर कनाडा के फ्रांसीसी उन पर आक्रमण कर सकते हैं। लेकिन जब सप्तवर्षीय युद्ध के बाद कनाडा भी (UPBoardSolutions.com) अंग्रेजों के अधिकार में आ गया तब उपनिवेशवासी अंग्रेजों को कनाडा में बसे फ्रांसीसियों के आक्रमण का भय समाप्त हो गया। अतः उन्होंने निडर होकर अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी।

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प्रश्न 4.
अमेरिका की क्रान्ति की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
      या
अमेरिका की क्रान्ति के प्रमुख परिणामों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर

अमेरिकी क्रान्ति के परिणाम (उपलब्धियाँ)

अमेरिका की क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए –

1. लोकतन्त्र की स्थापना – अमेरिका की क्रान्ति ने लोकतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था की स्थापना के मार्ग खोल दिये। इस क्रान्ति ने ‘जनताकाशासन, जनता द्वारा, जनता के लिए’ का सन्देश विश्व को दिया। इससे प्रभावित होकर विश्व के अनेक राष्ट्रों में लोकतन्त्र शासन की स्थापना की गयी।

2. लिखित संविधान – अमेरिका में स्वतन्त्रता-संग्राम के पश्चात् 1789 ई० में विश्व का प्रथम लिखित संविधान तैयार किया गया, जिससे अन्य राष्ट्रों में भी लिखित संविधान लागू करने की परम्परा चल निकली।

3. संघात्मक शासन – प्रणाली–स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् अमेरिका में ही सर्वप्रथम संघीय शासन-प्रणाली लागू की गयी। इस व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता संघीय सरकार के हाथों में होती है तथा राज्यों की व्यवस्था राज्य सरकारों को दी जाती है। बाद में विश्व के अन्य राष्ट्रों ने भी इस प्रणाली को अपनाया।

4. अन्य देशों की क्रान्तियों को प्रेरणा – अमेरिका की क्रान्ति की सफलता से उत्साहित होकर फ्रांस आदि देशों में भी महत्त्वपूर्ण क्रान्तियाँ हुईं। स्वतन्त्रता, समानता और मूल अधिकारों की प्रेरणा ने विश्व के क्रान्तिकारियों को बड़ी प्रेरणा दी। फ्रांस की सेना और जनता पर इस क्रान्ति का विशेष प्रभाव पड़ा : और 1789 ई० में फ्रांस में भी राज्य क्रान्ति आरम्भ हो गयी।

5. समानता और स्वतन्त्रता का महत्त्व – अमेरिका में लोकतन्त्र की स्थापना होने पर व्यक्ति की समानता और स्वतन्त्रता स्थापित हो गयी। समानता, स्वतन्त्रता तथा बन्धुत्व ने विश्व के सभी देशों को प्रभावित किया।

6. संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म – अमेरिका के स्वतन्त्रता-संग्राम के (UPBoardSolutions.com) कारण ब्रिटेन ने 13 उपनिवेशों को स्वतन्त्र कर दिया, जिन्हें मिलाकर संयुक्त राज्य अमेरिका नामक राष्ट्र का जन्म हुआ।

7. गृह-युद्ध तथा दास-प्रथा का अन्त – अमेरिका के स्वतन्त्रता-संग्राम के पश्चात् गृह-युद्ध समाप्त हो गया तथा राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास-प्रथा को समाप्त करने के लिए सफल प्रयास किये।

8. अंग्रेजों की नीति में उदारता – अमेरिका के स्वतन्त्रता-संग्राम के फलस्वरूप अनेक उपनिवेशों तथा समुद्री स्थानों के छिन जाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने अपने अन्य उपनिवेशों के प्रति नम्रता और उदारता की नीति अपनानी प्रारम्भ कर दी। कुछ पुराने मन्त्रियों को हटाकर सुधारवादी विचारों के व्यक्तियों को मन्त्री बनाया गया। संसद को अधिक लोकतान्त्रिक बनाने के प्रयास किये गये। आयरलैण्ड की कानून बनाने की माँग को (UPBoardSolutions.com) स्वीकार कर लिया गया।

9. अन्य अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना – अमेरिकन उपनिवेश हाथ से निकल जाने के पश्चात् बहुत-से अंग्रेज कनाडा में बस गये। धीरे-धीरे कनाडा में अंग्रेजों का उपनिवेश स्थापित हो गया। बाद में ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड में भी इंग्लैण्ड ने अपने उपनिवेश बसाये। इस प्रकार दूसरे अंग्रेजी साम्राज्य की नींव पड़नी प्रारम्भ हो गयी, जो पहले से भी बड़ा था।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति किस प्रकार सम्पन्न हुई ?
उत्तर
क्रॉमवेल की शासन-नीति (1649-60) से अंग्रेज जनता तंग आ चुकी थी। परिणामस्वरूप सन् 1660 ई० में इंग्लैण्ड में पुनः राजतन्त्र की स्थापना हुई तथा चार्ल्स द्वितीय को राजा बनाया गया। उसकी मृत्यु के बाद उसको उत्तराधिकारी जेम्स द्वितीय गद्दी पर बैठा। वह एक निरंकुश शासक तथा कट्टर कैथोलिक था, जब कि इंग्लैण्ड में प्रोटेस्टेण्ट धर्म का बहुमत था। जेम्स के घर पुत्र-जन्म की सूचना से भी जनता में रोष फैल गया। जनतो यह सोचने (UPBoardSolutions.com) लगी कि अब इंग्लैण्ड में कैथोलिक राजवंश ही सदैव के लिए स्थायी हो जाएगा। अतः संसद ने राजा जेम्स द्वितीय के दामाद वे हॉलैण्ड के शासक विलियम ऑफ ऑरेज को जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए सेना सहित आने का निमन्त्रण भेजा। विलियम के इंग्लैण्ड आगमन पर जेम्स द्वितीय अपनी पत्नी व नवजात पुत्र के साथ देश छोड़कर फ्रांस भाग गया। संसद ने विलियम तृतीय (विलियम ऑफ ऑरेन्ज) तथा रानी मेरी (विलियम तृतीय की पत्नी तथा भगोड़े राजा जेम्स द्वितीय की पुत्री) को इंग्लैण्ड को संयुक्त शासक बना दिया। इस प्रकार 1688 ई० में इंग्लैण्ड में रक्तहीन गौरवपूर्ण क्रान्ति सम्पन्न हुई।

प्रश्न 2.
अमेरिका के उपनिवेशों की जनता अंग्रेजों से क्यों असन्तुष्ट थी ?
उत्तर
अमेरिका के उपनिवेशों की जनता के अंग्रेजों से असन्तुष्ट होने के अग्रलिखित कारण थे –

  1. इंग्लैण्ड की सरकार उपनिवेशों को इंग्लैण्ड के लिए लाभ का एक अच्छा साधन मानती थी, इसलिए उसने उपनिवेशों से होने वाले व्यापार के सम्बन्ध में एक विशेष नीति अपनायी। सन् 1765 ई० में ब्रिटेन की सरकार ने उपनिवेशों के लिए ‘स्टाम्प ऐक्ट’ बनाया, जिसके अनुसार उपनिवेशों में कानूनी दस्तावेजों पर स्टाम्प लगाना अनिवार्य कर दिया गया। इससे अमेरिकी जनता अंग्रेजों से रुष्ट हो गयी।
  2. सन् 1767 ई० में इंग्लैण्ड की सरकार ने अमेरिका में बाहर से आने वाले सीसा, (UPBoardSolutions.com) चाय, कागज तथा रंग | पर आयात-कर लगा दिया। इसका उपनिवेश के लोगों ने भारी विरोध किया।
  3. सन् 1770-73 ई० के काल में अनेक उत्तेजक घटनाएँ घटीं, जिनमें बोस्टन हत्याकाण्ड प्रमुख है। बोस्टन नगर में ब्रिटिश सैनिकों ने गोलीबारी की, जिसमें कुछ अमेरिकी नागरिकों की मृत्यु हो गयी। इससे जनता भड़क उठी।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रान्ति का क्या अर्थ है ? क्रान्ति क्यों होती है ?
उत्तर
क्रान्ति का सामान्य अर्थ एकाएक हुए या किये गये दूरगामी परिवर्तन से है। राजनीतिक निरंकुशता, सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं को दूर करने तथा सत्ता-परिवर्तन के लिए क्रान्ति होती है।

प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड की क्रान्ति को ‘गौरवमयी क्रान्ति’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
रक्त की एक बूंद बहाये बिना ही राजसत्ता में परिवर्तन होने के कारण इंग्लैण्ड की क्रान्ति को गौरवमयी, रक्तहीन या शानदार क्रान्ति कहा जाता है।

प्रश्न 3.
सन् 1688 ई० में हुई इंग्लैण्ड की क्रान्तिको किन अन्य नामों से सम्बोधित किया जाता है?
उत्तर
सन् 1688 ई० में हुई इंग्लैण्ड की क्रान्ति को ‘गौरवपूर्ण क्रान्ति’, (UPBoardSolutions.com) ‘शानदार क्रान्ति’, ‘रक्तहीन क्रान्ति’, ‘महान् क्रान्ति’ आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है।

प्रश्न 4.
मैग्नाकार्टा कब और किसके शासनकाल में तैयार हुआ ?
उत्तर
‘मैग्नाकार्टा’ घोषणा-पत्र 15 जून, 1215 ई० को इंग्लैण्ड के राजा जॉन के शासनकाल में तैयार हुआ।

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प्रश्न 5.
चार्ल्स प्रथम को फाँसी कब दी गयी ?
उत्तर
इंग्लैण्ड के राजा चार्ल्स प्रथम को 30 जनवरी, 1649 ई० को फाँसी दी गयी थी।

प्रश्न 6.
इंग्लैण्ड में रक्तहीन क्रान्ति कब हुई थी ? उस समय वहाँ का राजा कौन था ? [2009]
उत्तर
इंग्लैण्ड में रक्तहीन क्रान्ति सन् 1688 ई० में हुई थी। उस समय वहाँ का राजा जेम्स द्वितीय था।

प्रश्न 7.
बिल ऑफ राइट्स कब पारित किया गया ?
उत्तर
इंग्लैण्ड में बिल ऑफ राइट्स सन् 1689 ई० में पारित किया गया।

प्रश्न 8.
अमेरिका में ब्रिटेन के कितने उपनिवेश थे? अमेरिका की क्रान्ति किसके नेतृत्व में हुई ? [2017]
उत्तर
अमेरिका में ब्रिटेन के कुल तेरह उपनिवेश थे तथा इसकी क्रान्ति जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में हुई।

प्रश्न 9.
‘स्टाम्प ऐक्ट’ क्या था ? यह कब पास हुआ ?
उत्तर
‘स्टाम्प ऐक्ट’ सन् 1765 ई० में पारित किया गया, जिसके तहत (UPBoardSolutions.com) उपनिवेशों के सभी व्यापारिक सौदों पर कर (20 शिलिंग का स्टाम्प) लगाने की नीति निर्धारित की गयी थी।

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प्रश्न 10.
‘बोस्टन टी पार्टी की घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सन् 1773 ई० में अंग्रेज गवर्नर के चाय उतारने के आदेश पर रेड इण्डियनों की वेशभूषा में अमेरिकनों के द्वारा चाय की पेटियाँ समुद्र में फेंक देने की घटना को ‘बोस्टन टी पार्टी’ कहा जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. चार्ल्स प्रथम को पराजित करने में मुख्य भूमिका किसकी थी?

(क) चार्ल्स द्वितीय की
(ख) क्रॉमवेल की
(ग) जेम्स द्वितीय की
(घ) हॉलैण्ड के विलियम की

2. चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु कब हुई?

(क) 1665 ई० में।
(ख) 1675 ई० में
(ग) 1685 ई० में
(घ) 1695 ई० में

3. विश्व की किस क्रान्ति को शानदार क्रान्ति’ से सम्बोधित किया जाता है?

(क) फ्रांस की
(ख) इंग्लैण्ड की
(ग) अमेरिका की
(घ) रूस की।

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4. इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति कब हुई? [2013]

(क) 1660 ई० में
(ख) 1688 ई० में
(ग) 1717 ई० में
(घ) 1917 ई० में।

5. अमेरिका की क्रान्ति कब हुई थी?

(क) 1775 ई० में
(ख) 1776 ई० में
(ग) 1875 ई० में
(घ) 1765 ई० में

6. संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

(क) अब्राहम लिंकन
(ख) वुडरो विल्सन
(ग) जॉर्ज वाशिंगटन
(घ) जेफरसन

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7. अमेरिका का स्वतन्त्रता-दिवस कब मनाया जाता है? [2012, 13, 15, 16, 17]

(क) 13 दिसम्बर को
(ख) 6 जुलाई को
(ग) 4 जुलाई को
(घ) 11 अगस्त को

8. अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किसने किया? [2011, 13, 16]

(क) अब्राहम लिंकन ने।
(ख) थॉमस जेफरसन ने
(ग) जॉन लॉक ने।
(घ) जॉर्ज वाशिंगटन ने

9. बोस्टन चाय पार्टी की घटना हुई थी [2011]

(क) 1770 ई० में
(ख) 1771 ई० में
(ग) 1773 ई० में
(घ) 1775 ई० में

10. ‘बोस्टन चाय पार्टी’ घटना किस देश की क्रान्ति से सम्बन्धित है ? (2013)

(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) इंग्लैण्ड

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11. जॉर्ज वाशिंगटन कौन थे? [2014]

(क) अमेरिका के राष्ट्रपति
(ख) इंग्लैण्ड के राजा
(ग) फ्रांस के सम्राट
(घ) रूस के जार

12. इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति किस राजा के समय में हुई? [2015, 16, 18]

(क) जेम्स प्रथम
(ख) जेम्स द्वितीय
(ग) चार्ल्स प्रथम
(घ) हेनरी द्वितीय

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13. इंग्लैण्ड में रक्तहीन क्रान्ति कब हुई? [2016, 17, 18]

(क) 1688 ई० को
(ख) 1689 ई० को
(ग) 1660 ई० को
(घ) 1670 ई० को।

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 क्रान्तियों का सामान्य परिचय 1

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 औद्योगिक क्रान्ति एवं उसका प्रभाव (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 औद्योगिक क्रान्ति एवं उसका प्रभाव (अनुभाग – एक).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में ही क्यों आरम्भ हुई ? वहाँ के उद्योग-धन्धों पर इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई, क्योंकि निम्नलिखित कारणों के अतिरिक्त इसके लिए वहाँ अन्य देशों से अधिक अनुकूल वातावरण था

  1. इंग्लैण्ड को अपने उपनिवेशों से कच्चा माल सरलता से मिलने लगा तथा तैयार माल वहाँ के बाजारों में खपने लगा।
  2. सरकार द्वारा उद्योगों को प्रोत्साहन दिया गया जिससे पूँजीपतियों ने नये-नये उद्योग प्रारम्भ किये।
  3. इंग्लैण्ड में लोहे व कोयले के अपार भण्डार थे।
  4. चकबन्दी के कारण छोटे किसान भूमिहीन होकर रोजगार की तलाश में नगरों में पहुंचने लगे थे।
  5. उपनिवेशों से नये उद्योगों के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध था।
  6. जल परिवहन तथा नाविक शक्ति के विकास के कारण दूसरे देशों से व्यापार आसान हो गया था।
  7. इंग्लैण्ड में नये-नये वैज्ञानिक आविष्कार हुए जिन्होंने इस क्रान्ति को सफल बनाया।
  8. सत्रहवीं शताब्दी की क्रान्ति के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में एक स्थायी सरकार की स्थापना हो चुकी थी। इस सरकार पर सामन्तों का कब्जा नहीं था। व्यापारी वर्ग के हाथ में अधिक राजनीतिक शक्ति आ गयी थी और सरकारी हस्तक्षेप का कोई खतरा नहीं था।

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उद्योग-धन्धों पर प्रभाव
औद्योगिक क्रान्ति ने इंग्लैण्ड के उद्योग-धन्धों को निम्नलिखित रूप में प्रभावित किया
1. वस्त्र उद्योग का विकास – इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति का सर्वाधिक प्रभाव वहाँ के वस्त्र उद्योग पर पड़ा। क्रान्ति से पूर्व कपास एवं ऊन साधारण चरखों द्वारा काती जाती थीं, किन्तु 1738 ई० में ‘फ्लाइंग शटल के आविष्कार से बहुत कम समय में ही बहुत अधिक कपड़ा बुनकर तैयार होने लगा। सन् 1764 ई० में ‘स्पिनिंग जेनी’ नामक मशीन के आविष्कार से एक साथ आठ तकुए चलाये जाने लगे। सन् 1776 ई० में ‘वाटर फ्रेम’ (UPBoardSolutions.com) नामक मशीन का आविष्कार किया गया जो जल द्वारा संचालित होती थी। बाद में ‘म्यूल’ नामक यन्त्र से बहुत बारीक, मजबूत और लम्बा सूत बनने लगा। ‘शक्तिचालित ” करघों’ को घोड़ों, जल या वाष्प शक्ति द्वारा चलाया जा सकता था। कुछ सुधारों के पश्चात् वाष्पचालित इंजन का प्रयोग आटे की चक्की, रेलगाड़ी, समुद्री जहाज आदि उद्योगों में होने लगा। विभिन्न मशीनों के प्रयोग से इंग्लैण्ड में वस्त्रों का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। वस्त्रों का निर्यात करके इंग्लैण्ड के उद्योगपतियों ने बहुत लाभ कमाया।

2. खनन व्यवसाय – भाप के इंजन के प्रयोग से खानों से पानी निकालना आसान हो गया। सन् 1815 ई० में हम्फ्रे डेवी ने सेफ्टी लैम्प का आविष्कार किया, जिससे खानों में सुरक्षा की व्यवस्था हुई। लोहे की भट्ठियों में लकड़ी के स्थान पर कोयले का प्रयोग होने लगा। इब्राहीम डर्बी ने धमन भट्टी का आविष्कार किया जिससे कोयले को कोक के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। सन् 1784 ई० में हेनरी कार्ट ने लोहा साफ करने की विधि निकाली, जिससे लोहे से इस्पात बनाया जाने लगा।

3. मशीनी उद्योग का विकास – औद्योगिक क्रान्ति ने इंग्लैण्ड के मशीनी उद्योग को अत्यधिक प्रोत्साहित किया। विभिन्न आविष्कारों के फलस्वरूप लोहे से अनेक मशीनें, जलयान आदि बनाये जाने लगे। इंग्लैण्ड से बड़ी मात्रा में मशीनों का निर्यात प्रारम्भ हो गया। वस्तुत: परिवहन तथा संचार के साधनों के विकास से इंग्लैण्ड के उद्योग और वाणिज्य को बहुत बढ़ावा मिला।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति के कारणों का वर्णन कीजिए। [2011, 12, 16, 17]
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति के कारण
औद्योगिक क्रान्ति का प्रारम्भ मुख्यतया निम्नलिखित कारणों से हुआ –

1. कोयले व लोहे की प्राप्ति – इंग्लैण्ड में लोहा तथा कोयली निकटवर्ती क्षेत्रों में उपलब्ध था जिससे मशीनों व उद्योगों का विकास सुगम हो गया। कोयले से लोहे को पिघलाकर मेशीनें तथा परिवहन के यन्त्र बनाये गये। संक्षेप में, लोहे और कोयले की खानों की निकटता ने पूँजीपतियों को कारखाने खोलने की प्रेरणा प्रदान की।

2. पूँजी की उपलब्धता – पूर्व के देशों के साथ व्यापार करके इंग्लैण्ड (UPBoardSolutions.com) के व्यापारियों ने बड़ी मात्रा में धन कमाया था। वे अपनी पूँजी को व्यापार तथा उद्योग में लगाने के लिए उत्सुक थे। इस प्रकार नये-नये कारखानों की स्थापना के लिए पूँजी की कमी नहीं थी।

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3. उपनिवेशों की स्थापना – इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन तथा हॉलैण्ड ने एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के अनेक देशों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये थे। इन उपनिवेशों से कारखानों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति हुई और पक्के माल की खपत के लिए अच्छे बाजार मिल गये। अधिकाधिक धन कमाने के उद्देश्य से इन देशों में नये-नये उद्योग-धन्धे खुलते गये। फिर उपनिवेशों तक पहुँचने के लिए यूरोप के देशों को आवागमन के साधनों का विकास करना पड़ा।

4. वस्तुओं की माँग में वृद्धि – यूरोप के देशों में मशीनों से बनी उत्तम तथा सस्ती वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गयी थी, किन्तु पुरानी उत्पादन-प्रणाली के अन्तर्गत उत्पादन की मात्रा को शीघ्रता से बढ़ाना सम्भव नहीं था। अतः वस्तुओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए बड़े-बड़े मशीनी-कारखानों की स्थापना की गयी। इससे औद्योगीकरण तेजी से हुआ।

5. सस्ते मजदूरों का मिलना – इंग्लैण्ड तथा यूरोप के अन्य देशों की कृषि-प्रणाली में अनेक परिवर्तन हो गये थे। कृषि-कार्य मशीनों से होने लगा था। चकबन्दी के कारण छोटे किसान भूमिहीन होकर रोजगार की तलाश में शहरों में जाने लगे जो थोड़ी मजदूरी (UPBoardSolutions.com) पर काम करने को तत्पर थे। फलतः कारखानों के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिक सुलभ हो गये और कारखानों में दिन-रात अधिक मात्रा में उत्पादन होने लगा।

6. परिवहन, सन्देश तथा शक्ति के साधनों का विकास – परिवहन के साधनों के विकास से औद्योगिक क्रान्ति को अत्यधिक बल मिला। भाप के इंजन की खोज से रेलों तथा जलयानों का विकास हुआ। अठारहवीं शताब्दी में सुदृढ़ एवं पक्की सड़कों का निर्माण आरम्भ हो गया, जिन्होंने बड़े-बड़े नगरों के बीच सम्पर्क स्थापित कर दिया। स्थल मार्गों के अतिरिक्त जलमार्गों को भी यातायात के लिए उपयोग में लाया जाने लगा। धीरे-धीरे हजारों मील लम्बी नहरों का निर्माण किया गया। परिवहन के विभिन्न साधनों के विकास से कच्चे माल, तैयार माल तथा मजदूरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना सुगम हो गया। सन्देशवाहन के साधनों का विकास होने से व्यापार का विकास तथा विस्तार हुआ। मशीनों को चलाने के लिए शक्ति के साधन खोज निकाले गये।

7. वैज्ञानिक प्रगति – यूरोप में पुनर्जागरण तथा धर्म-सुधार आन्दोलन के साथ बौद्धिक विकास का युग प्रारम्भ हो गया। नये-नये आविष्कार तथा खोज कार्य होने लगे। नयी मशीनों, वैज्ञानिक विधियों तथा सुधरी हुई तकनीक ने उद्योग, कृषि, परिवहन तथा व्यापार के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी।

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प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख आविष्कारों का वर्णन कीजिए।
या
“औद्योगिक क्रान्ति एक मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।” इसकी व्याख्या कीजिए। औद्योगिक क्रान्ति के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या
औद्योगिक क्रान्ति के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में हुए आविष्कारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति ने कृषि, उद्योग, खनन, यातायात तथा संचार के क्षेत्रों में अनेक आविष्कार प्रदान किये। इनका संक्षिप्त विवरण अग्रवत् है –

  1. कृषि में – कृषि में काम आने वाले नये औजार; जैसे—इस्पात (UPBoardSolutions.com) का हल, हेंगी (हैरो), बीज बोने के लिए ड्रिलिंग मशीन, फसल काटने आदि के लिए मशीनों का आविष्कार किया गया।
  2. उद्योग में – वस्त्र उद्योग में स्पिनिंग जेनी, फ्लाइंग शटल, वाटर फ्रेम, स्पिनिंग म्यूल, पावरलूम आदि मशीनों का आविष्कार किया गया।
  3. कोयला खनन में – सेफ्टी लैम्प के आविष्कार से कोयला खानों में आग लगने का भय समाप्त हो गया।
  4. लोहा उद्योग में – इब्राहीम डर्बी ने लोहे को पिघलाने तथा साफ करने के लिए पत्थर के कोयले का प्रयोग शुरू किया। हेनरी कोर्ट ने लोहे को ढालने तथा चादरें बनाने की विधि खोज निकाली।
  5. यातायात तथा संचार में – मैकादम ने पक्की सड़कें बनाने की विधि की खोज की। जॉर्ज स्टीवेन्सन ने 1814 ई० में भाप के इंजन का आविष्कार किया। सन् 1837 ई० में तार और 1876 ई० में टेलीफोन के आविष्कार से संचार के साधनों में क्रान्ति पैदा हो गयी।

औद्योगिक क्रान्ति एक मिश्रित वरदान
इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि औद्योगिक क्रान्ति कुछ क्षेत्रों में बड़ी लाभकारी सिद्ध हुई और कुछ में बड़ी हानिकारक। वास्तव में यह क्रान्ति एक मिश्रित वरदान सिद्ध हुई। इसके कुछ लाभदायक और हानिकारक प्रभावों का वर्णन निम्नवत् है –
लाभदायक प्रभाव

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  1. संसार की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए जीवन की आवश्यक वस्तुएँ मशीनों द्वारा पूरी की जा सकती हैं।
  2. लोगों को भोजन, कपड़ा और मकान की सुविधा भी मशीनों द्वारा ही मिली है।
  3. मशीनों के प्रयोग से भारी कामों को सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  4. मशीनों के प्रयोग से समय की बचत होती है। उस समय को कला और साहित्य के विकास में लगाया जा सकता है।
  5. मशीनों के प्रयोग ने मानव-जीवन को सरल तथा (UPBoardSolutions.com) सुखमय बना दिया है।
  6. औद्योगिक क्रान्ति के कारण यातायात, संचार के साधनों और व्यापार में तेजी से विकास हुआ। इससे दूरियाँ मिट गयी हैं और संसार के सभी देश एक-दूसरे के निकट आ गये हैं।

हानिकारक प्रभाव

  1. औद्योगिक क्रान्ति के कारण ग्रामीण जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। लोग गाँव छोड़कर शहर की ओर भागने लगे।
  2. औद्योगिक क्रान्ति से समाज दो वर्गों-पूँजीपति और श्रमिक-में विभक्त हो गया।
  3. औद्योगिक क्रान्ति से मजदूरों का जीवन कष्टमय हो गया। वे मलिन बस्तियों में रहने लगे जहाँ दूषित पर्यावरण के कारण वे बीमारी का शिकार होने लगे।
  4. उद्योगपतियों ने कम वेतन पर स्त्रियों तथा बच्चों को रोजगार देकर उनका शोषण किया।
  5. औद्योगिक क्रान्ति ने नगरों के पर्यावरण को प्रदूषित किया।
  6. औद्योगिक क्रान्ति ने साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया जिसके भयंकर दुष्परिणाम उपनिवेशों की स्थापना । के रूप में सामने आये।

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प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? आर्थिक व सामाजिक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
या
यूरोप के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा ? अपने उत्तर की पुष्टि के लिए उदाहरण भी दीजिए। (2013)
या
औद्योगिक क्रान्ति से आपका क्या आशय है ? इसका प्रारम्भ इंग्लैण्ड में ही क्यों हुआ? इस क्रान्ति का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए। (2015)
या
इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के विकास पर निबन्ध लिखिए। (2015)
या
कपड़ा उद्योग तथा यातायात के क्षेत्र में क्रान्ति लाने में सहायक आविष्कारों का वर्णन कीजिए। उनका सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? किन्हीं दो प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2017]
उत्तर
अठारहवीं शताब्दी में औद्योगिक क्षेत्र में थोड़े-से समय में ही उत्पादन की तकनीक में जो आमूल परिवर्तन हुए उन्हें ही ‘औद्योगिक क्रान्ति’ की संज्ञा दी जाती है। औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई थी, क्योंकि इंग्लैण्ड में लोहे व कोयले (UPBoardSolutions.com) के अपार भण्डार थे। औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप पशु तथा मानवीय श्रम के स्थान पर मशीनों तथा भाप-शक्ति का प्रयोग प्रारम्भ हो गया। कुटीर तथा लघु उद्योगों के स्थान पर बड़े कारखानों की स्थापना होने लगी जिससे उत्पादन के साधनों पर पूँजीपतियों का अधिकार हो गया। संक्षेप में, औद्योगिक क्रान्ति ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया जिससे उत्पादन, परिवहन, संचार आदि के नवीन साधनों का अभ्युदय हुआ।
औद्योगिक क्रान्ति के आविष्कार
इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में अनेक आविष्कार हुए; यथा –

1. वस्त्र उद्योग – 1733 ई० में जॉन के ने तेज चलने वाली एक फ्लाइंग शटल का आविष्कार किया। इसके द्वारा पहले की अपेक्षा दुगनी चौड़ाई में कपड़ा पहले से कम समय में बुना जाने लगा। 1766 ई० में जेम्स हरग्रीब्ज़ ने सूत कातने की एक ऐसी मशीन बनाई जिसमें एक साथ आठ तकुए बारीक सूत कातते थे। इसी समय आर्कराइट ने एक मशीन बनाई, जो पानी से चलती थी और बारीक सूत कातती थी। हरग्रीब्स की मशीन को ‘स्पिनिंग जैनी’ तथा आर्कराइट की मशीन को ‘वाटर फ्रेम’ नाम दिया गया। 1776 ई० में क्राम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन में स्पिनिंग जैनी तथा वाटर फ्रेम दोनों के गुण विद्यमान थे। 1785 ई० में कार्टराइट ने भाप की शक्ति से चलने वाली ‘पावरलूम’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इसके अतिरिक्त ऊन साफ करने, रूई की पूनी बनाने, कपड़ों से सफेदी लाने तथा राँगने की मशीनें भी बनाई गईं। 1846 ई० में एलिहास हो ने सिलाई की मशीन का आविष्कार किया। इन मशीनों के आविष्कार के फलस्वरूप वस्त्र उद्योग में एक क्रान्ति आ गई और इंग्लैण्ड के कल-कारखानों में बड़े पैमाने पर वस्त्रों का उत्पादन होने लगा।

2. परिवहन – परिवहन के क्षेत्र में सर्वप्रथम मैकडम ने पक्की सड़कें बनाने की विधि निकाली। ब्रिटूले नामक इंजीनियर ने 1761 ई० में मानचेस्टर से बर्सले तक एक नहर का निर्माण किया। जेम्सवाट के बाद 1814 ई० में जॉर्ज स्टीफेन्सन ने ऐसा इंजन बनाया जो लोहे की पटरियों पर चलता था। 1825 ई० में स्टाकटन से डालिंगटन के बीच पहली रेलगाड़ी चलाई गई। 1820 ई० में स्टीफेन्सन ने रॉकेट इंजन बनाया जो 55 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से चल सकता था। 1808 ई० में समुद्री जहाजों का निर्माण हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी में मोटरगाड़ियाँ और हवाई जहाज पेट्रोल तथा डीजल की सहायता से चलने लगे।

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औद्योगिक क्रान्ति का सामाजिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक जीवन पर मुख्यतया निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

1. नगरों का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप नये-नये नगरों की स्थापना हुई तथा पुराने नगरों का विकास हुआ। उद्योगों की स्थापना के कारण नगरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी, जिससे वहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं। नगरों में एक ओर तो दैनिक (UPBoardSolutions.com) जनजीवन में हलचलें बढ़ गयीं, जबकि दूसरी ओर जन-सुविधाओं का अभाव हो गया तथा शहरों में प्रदूषण बढ़ने लगा।

2. नये वर्गों का उदय तथा परस्पर संघर्ष – औद्योगिक क्रान्ति के कारण समाज पूँजीपति और श्रमिक इन दो वर्गों में बँट गया। पूँजीपति श्रमिकों से अधिक काम लेते थे और उन्हें कम मजदूरी देकर उनका शोषण करते थे। फलस्वरूप दोनों वर्गों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया। इस वर्ग-संघर्ष के कारण हड़ताल तथा तालाबन्दी की घटनाएँ होने लगीं।

3. श्रमिकों की दयनीय दशा – औद्योगिक पूँजीवाद के साथ श्रमिकों का शोषण प्रारम्भ हो गया। मजदूरों को कम मजदूरी पर अस्वस्थ वातावरण में 18 घण्टे तक काम करना पड़ता था। मजदूरों के जीवन तथा जीविका की सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं था। उनके बीमार अथवा दुर्घटनाग्रस्त होने पर मालिक उन्हें काम से हटा देते थे।

4. स्त्रियों और बच्चों का शोषण – अधिकाधिक लाभ कमाने के लालच में मालिकों ने स्त्रियों और बच्चों को भी काम पर लगा लिया, किन्तु पुरुषों की अपेक्षा इनको कम मजदूरी दी जाती थी। बच्चों के नींद के झोंके में मशीन में फंसकर कट जाने की घटनाएँ होती रहती थीं तथा चिमनी साफ करने के लिए बच्चों को ब्रश की तरह प्रयोग किया जाता था। बाद में कुछ सरकारों ने स्त्रियों और बच्चों से कारखानों में काम लेने पर रोक लगा दी।

5. मलिन बस्तियों में वृद्धि – औद्योगिक नगरों में कारखानों के पास योजनारहित श्रम बस्तियों का निर्माण होता गया। ऐसी बस्तियों में बेढंगे मकान बनते गये जिनमें जल-निकास तथा सफाई की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। इसके फलस्वरूप ये बस्तियाँ बीमारी और गन्दगी के केन्द्र बन गयीं।

6. नैतिक मूल्यों का पतन – गाँवों से आने वाले श्रमिकों को नगरों में एकाकी जीवन बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिससे पारिवारिक विघटन प्रारम्भ हो गया। मजदूर मनोरंजन तथा विनोद के अभाव | में मदिरा, जुआ, वेश्यागमन तथा अश्लील साहित्य के शिकार हो गये।

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औद्योगिक क्रान्ति का आर्थिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक जीवन पर मुख्यतया निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

1. उत्पादन में वृद्धि – औद्योगिक क्रान्ति के कारण बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा कम लागत पर विभिन्न वस्तुओं का विशाल स्तर पर उत्पादन किया जाने लगा।

2. पूँजीवाद का विकास – उत्पादन में निरन्तर वृद्धि के कारण उद्योगपतियों के लाभ बढ़ते गये। उनके पास विशाल मात्रा में पूँजी इकट्ठी होती गयी जिससे वे नये-नये कारखाने खोलते गये। फलस्वरूप पूँजीवाद का विस्तार होता गया।

3. जीवन-स्तर में वृद्धि – एक ओर, उत्पादन में वृद्धि से समाज में आजीविका के नये स्रोत खुल गये जिससे श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई। दूसरी ओर, श्रमिकों को उपभोग के लिए नाना प्रकार की वस्तुएँ मिलने लगीं। फलतः श्रमिकों के जीवन-स्तर में सुधार (UPBoardSolutions.com) होता गया।

4. कृषि को विकास – औद्योगिक क्रान्ति के कारण कृषि-यन्त्रों, कृषि की तकनीक तथा विधियों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिससे कृषि-उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई। फलस्वरूप कृषकों की दशा में सुधार हुआ।

5. परिवहन के साधनों का विकास – औद्योगिक क्रान्ति के कारण रेल, सड़क तथा जल-परिवहन के साधनों का बहुत अधिक विकास हुआ। फलस्वरूप उद्योग, वाणिज्य तथा व्यापार का बहुत अधिक विकास तथा विस्तार हुआ।

6. आय का असमान वितरण – औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप पूँजी थोड़े व्यक्तियों के हाथ में संचित होने लगी, क्योंकि कारखानों के लाभ से मिल-मालिक और अधिक धनी होते गये। विशाल धन अर्जित करने के कारण उनका जीवन विलासितापूर्ण होता गया। दूसरी ओर असंख्य मजदूर थे जो कम मजदूरी मिलने के कारण गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। इसके अतिरिक्त, बड़े उद्योगों के सामने छोटे उद्योगों का महत्त्व घटने लगा, जिस कारण छोटे व्यवसायियों की स्थिति भी दिन-प्रतिदिन गिरने लगी।

7. समाजवाद का उदय – सम्पूर्ण विश्व में समाजवादी विचारधारा का उदय औद्योगिक क्रान्ति के कारण ही हुआ। समाजवादियों का मत था कि समस्त कारखानों, भूमि तथा अन्य साधनों पर राज्य या समस्त जनसंख्या का आधिपत्य होना चाहिए। पूँजीवाद ने समाज को दो वर्गों में विभक्त कर दिया-धनी पूँजीपति तथा निर्धन श्रमिक मिल-मालिकों द्वारा शोषण के कारण श्रमिकों में असन्तोष फैलता गया। श्रमिकों में यह भावना बलवती हो गयी कि (UPBoardSolutions.com) उनके जीवन में परिवर्तन के लिए समाजवादी व्यवस्था आवश्यक है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रान्ति के दो प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। [2012]
या
औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए किन्हीं दो कारणों को लिखिए जिनसे इंग्लैण्ड में इसका सर्वप्रथम विस्तार हुआ। (2013)
या
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के दो कारण कौन-से थे? (2015)
उतर
अठारहवीं शताब्दी में औद्योगिक क्षेत्र में थोड़े-से समय में ही उत्पादन की तकनीक में जो आमूल परिवर्तन हुए उन्हें ही ‘औद्योगिक क्रान्ति’ की संज्ञा दी जाती है।
औधोगिक क्रान्ति के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित है –

1. वैज्ञानिक प्रगति – युरोप में पुनर्जागरण तथा धर्म-सुधार आन्दोलन के साथ बौद्धिक विकास को युग प्रारम्भ हो गया। नये-नये आविष्कार तथा खोज-कार्य होने लगे। नयी मशीनों, वैज्ञानिक विधियों तथा | सुधरी हुई तकनीक ने उद्योग, कृषि, परिवहन तथा व्यापार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी।

2. कृषि क्रान्ति – 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में एक प्रकार से कृषि क्रान्ति’ हो गयी थी। जिसके कारण उत्पादन में तेजी से वृद्धि होने लगी। नस्ल सुधार से पशुधन में भी वृद्धि हुई जिसने खेती के साथ-साथ भोजन की भी स्थिति सुधार दी। इंग्लैण्ड थोड़े ही दिनों में अपेक्षतया कम जमीन उपलब्ध होने पर भी कृषि में यूरोप के अन्य देशों में अग्रणी हो गया। इन कृषिगत परिवर्तनों ने औद्योगिक क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार करने में मदद की। (UPBoardSolutions.com) इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम खेतों की घेराबन्दी-प्रथा शुरू हुई जिसे वर्तमान में खेतों की चकबन्दी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सूत कातने के विकास में कौन-कौन से यन्त्र सहायक सिद्ध हुए ?
या
इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप वस्त्र उद्योग में कौन-कौन से आविष्कार हुए ?
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में वस्त्र उद्योग में सहायक निम्नलिखित आविष्कार हुए –

  1. स्पिनिंग जेनी – जेम्स हरग्रीव्ज़ ने 1764 ई० में ‘स्पिनिंग जेनी’ का आविष्कार किया, जिससे सूत तेजी से काता जाने लगा।
  2. फ्लाइंग शटल – जॉन के ने ‘फ्लाइंग शटल’ का आविष्कार किया, जिससे कपड़ा तेजी से बनाया जाने लगा।
  3. वाटर फ्रेम – ऑर्कराइट ने 1769 ई० में हरग्रीव्ज़ के चरखे में कुछ ऐसे परिवर्तन किये कि वह वाष्प की शक्ति से चलाया जाने लगा। इस नये चरखे को उसने ‘वाटर फ्रेम’ का नाम दिया।
  4. स्पिनिंग म्यूल – क्रॉम्पटन ने 1776 ई० में एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिसमें हरग्रीव्ज और ऑर्कराइट दोनों के आविष्कारों के गुण विद्यमान थे। अब सूत तेजी से और बारीक काता जाने लगा। इस नयी मशीन को ‘म्यूल’ कहते थे।
  5. पावरलूम – कॉर्टराइट ने 1785 ई० में ‘पावरलूम’ का आविष्कार किया, जिसमें वाष्प-शक्ति द्वारा सूत काता जाने लगा और कपड़ा बुना जाने लगा।
  6. जिन – एली ह्विटनी नाम के एक अमेरिकी ने 1793 ई० में कपास से बिनौले (UPBoardSolutions.com) अलग करने की मशीन का आविष्कार किया। यह मशीन हाथ की तुलना में कई गुना अधिक रुई तैयार कर सकती थी।

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प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति का नगरों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व संसार की अधिकांश जनता गाँवों में रहती थी तथा कृषि पर निर्भर थी। लोगों की प्रायः सभी आवश्यकताएँ गाँवों में ही पूरी हो जाती थीं, किन्तु औद्योगिक विकास तथा क्रान्ति ने। स्थितियों को पूरी तरह बदल डाला। इससे नगरों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

  1. नगर अब आर्थिक जीवन के केन्द्र बन गये। अधिकतर नगर औद्योगिक नगरों के रूप में विकसित हुए।
  2. ये नगर धीरे-धीरे सघन आबादी के केन्द्र बन गये। इन नगरों में कारखानों की संख्या के साथ-साथ मजदूरों और उनकी बस्तियों की भी संख्या में वृद्धि होने लगी।
  3. नगरों में जनसंख्या के जमघट के कारण मकान, सफाई व स्वास्थ्य की समस्याएँ पैदा होने लगीं।
  4. धुएँ तथा गन्दगी के कारण नगरों का पर्यावरण प्रदूषित होने लगा।
  5. औद्योगीकरण की गति तेज होने से नगरीय जीवन की स्थितियों में गिरावट आयी। शहरी सभ्यता से लोगों का जीवन तनावपूर्ण होने लगा व नैतिकता और सामाजिकता के बन्धन टूटने लगे।

प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रान्ति से श्रमिकों की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति से श्रमिकों की स्थिति पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

  1. औद्योगिक क्रान्ति के कारण समाज पूँजीपति तथा श्रमिक इन दो वर्गों में बँट गया। पूँजीपति श्रमिकों से अधिक काम लेते थे, किन्तु उन्हें कम मजदूरी देते थे।
  2. मजदूरों को कम मजदूरी पर अस्वस्थ होने की स्थिति में भी 14 से 16 घण्टे काम करना पड़ता था। उनके बीमार या दुर्घटनाग्रस्त होने पर मालिक उन्हें काम से भी हटा देते थे।
  3. पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को बहुत कम मजदूरी दी जाने लगी। बच्चों के अधिक कार्य करते रहने के कारण नींद के झोंके में मशीन में फंसकर कट जाने की घटनाएँ होती रहती थीं।
  4. गाँवों से आने वाले श्रमिकों को नगरों में एकाकी जीवन बिताने के लिए (UPBoardSolutions.com) बाध्य होना पड़ा। जिससे पारिवारिक विघटन प्रारम्भ हो गया और वे मनोरंजन के अभाव में जुआ, मदिरा तथा अश्लीलता के शिकार हो गये।
  5. श्रम अधिक तथा मजदूरी कम होने के कारण मजदूरों को भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता था। इसीलिए वे भुखमरी तथा कुपोषण के शिकार हो गये। उपर्युक्त तथ्यों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् श्रमिकों की दशा बद-से-बदतर होती चली गयी।

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अतिलघु उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रान्ति कब हुई ?
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति अठारहवीं शताब्दी में हुई।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम किस देश में हुई ? कोई एक कारण लिखिए। [2011]
या
औद्योगिक क्रान्ति का प्रारम्भ क्यों और किस देश से हुआ ? [2013]
उत्तर
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई थी, क्योंकि इंग्लैण्ड में लोहे व कोयले के अपार भण्डार थे।

प्रश्न 3.
फ्लाइंग शटल का आविष्कार कब और किसने किया ?
उत्तर
फ्लाइंग शटल का आविष्कार 1738 ई० में जॉन के नामक अंग्रेज ने किया था।

प्रश्न 4.
जेम्स वाट क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर
जेम्स वाट इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि उसने 1769 ई० (UPBoardSolutions.com) में भाप-शक्ति से चलने वाला इंजन बनाया था।

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प्रश्न 5.
जॉर्ज स्टीवेन्सन का आविष्कार क्या था और वह कब हुआ ?
या
रेल इंजन का आविष्कारक कौन था ? [2015]
उत्तर
जॉर्ज स्टीवेन्सन ने 1814 ई० में रेल के इंजन का आविष्कार किया।

प्रश्न 6.
सेफ्टी लैम्प किसने बनाया और कब ?
उत्तर
सेफ्टी लैम्प का आविष्कार हम्फ्रे डेवी ने 1815 ई० में किया।

प्रश्न 7.
स्पिनिंग जैनी का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर
स्पिनिंग जैनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीव्ज ने किया था।

प्रश्न 8.
कपास ओटने की मशीन का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर
कपास ओटने की मशीन का आविष्कार (UPBoardSolutions.com) एली ह्विटने ने किया था।

प्रश्न 9.
आर्कराइट ने किस यन्त्र का आविष्कार किया था ?
उत्तर
आर्कराइट ने वाटर फ्रेम नामक यन्त्र का आविष्कार किया था।

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प्रश्न 10.
पावरलूम का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर
पावरलूम का आविष्कार एडमण्ड कॉर्टराइट ने किया।

प्रश्न 11.
औद्योगिक क्रान्ति के मध्य हुए तीन आविष्कारों का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर.
औद्योगिक क्रान्ति के मध्य ड्रिलिंग मशीन, सेफ्टी लैम्प व टेलीफोन का आविष्कार हुआ।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

1. औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ किस देश में हुआ था? [2012, 14]

(क) जर्मनी में
(ख) फ्रांस में
(ग) इंग्लैण्ड में
(घ) स्पेन में

2. लोहा साफ करने की विधि किसने निकाली थी?

(क) हेनरी कोर्ट ने
(ख) इब्राहीम डर्बी ने
(ग) ह्विटने ने
(घ) ओपन हर्थ ने

3. अनाज को भूसे से अलग करने वाली मशीन का आविष्कारक था –

(क) हिटने
(ख) टॉमस कोक
(ग) हेनरी कोर्ट
(घ) इब्राहीम डर्बी

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4. पक्की सड़क बनाने का अनुसन्धान किया –

(क) टॉमस टेलफोर्ड ने
(ख) जॉन मैकादम ने
(ग) ह्विटने ने
(घ) हेनरी कोर्ट ने

5. सर्वप्रथम सूत कातने के यन्त्र का आविष्कार किया

(क) आर्कराइट ने
(ख) हरग्रीव्ज ने
(ग) ह्विटने ने।
(घ) टॉमस कोक ने

6. इंग्लैण्ड में लोकोमोटिव रॉकेट नामक वाष्प-चालित इंजन का आविष्कार किया था –

(क) रिचर्ड ट्रेविथिक ने
(ख) जेम्स वाट ने
(ग) जॉर्ज स्टीवेन्सन ने
(घ) टॉमस कोक ने

7. औद्योगिक क्रान्ति के लिए उत्तरदायी कारण नहीं है

(क) मशीनों का प्रयोग
(ख) कृषि का विकास
(ग) वैज्ञानिक आविष्कार
(घ) लघु उद्योगों का विनाश

8. औद्योगिकीकरण का राजनीतिक प्रभाव था

(क) इंग्लैण्ड में आन्दोलन
(ख) उपनिवेशों की स्थापना
(ग) वर्ग-संघर्ष
(घ) भौतिकवाद का उदय

9. स्पिनिंग जैनी का आविष्कारक था–

(क) क्रॉम्पटन
(ख) आर्कराइट
(ग) हरग्रीव्ज
(घ) जॉन के

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10. हम्फ्रे डेवी का आविष्कार था

(क) पेट्रोमेक्स
(ख) टॉर्च
(ग) सेफ्टी लैम्प
(घ) विद्युत बल्ब

11. स्टीम इंजन के आविष्कारकर्ता थे [2014]

(क) ह्विटने
(ख) कार्टराइट
(ग) जॉन के
(घ) जेम्सवाट

12. सिलाई मशीन का आविष्कारक था [2015]

(क) न्यूटन
(ख) गैलीलियो
(ग) एलिहास हो
(घ) जेम्सवाट

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13. इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति प्रारम्भ हुई थी [2016]

(क) 17वीं शताब्दी में
(ख) 18वीं शताब्दी में
(ग) 19वीं शताब्दी में
(घ) 20वीं शताब्दी में

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 औद्योगिक क्रान्ति एवं उसका प्रभाव 1

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 are helpful to complete your homework.

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