UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी निबन्ध

1. जीवन में वक्षों का महत्त्व (2018)
अन्य शीर्षक
वृक्ष हमारे जीवन साथी
संकेत बिन्दु भूमिका, हमारे जीवन में वनों की उपयोगिता/लाभ, पर्यावरण को सन्तुलित करना, वृक्षारोपण का महत्त्व, उपसंहार।।

भूमिका पेड़-पौधों के महत्त्व को कभी भी कमतर नहीं आंका जा सकता, क्योंकि ये हमारे जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। प्रकृति ने घनों ने रूप में हमें एक ऐसा प्राकृतिक सौन्दर्य उपलब्ध कराया है, जो न सिर्फ हमारी प्राकृतिक शोभा को बढ़ाते हैं, अपितु किसी भी देश के आर्थिक विकास व उसकी समृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर्थिक विकास के लिए वन केवल कच्चे माल की पूर्ति ही नहीं करते वरन् बाढ़ को नियन्त्रित करके भूमि के कटाव को भी रोकते हैं।

हमारे जीवन में वनों की उपयोगिता/लाभ वन हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है, किन्तु सामान्य व्यक्ति इनके महत्त्व को समझ नहीं पाते। वे वनों को प्राकृतिक सीमा मात्र मानते हैं। दैनिक जीवन में वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वन हमें रमणीक स्थान प्रदान करते हैं। वृक्षों के अभाव में पर्यावरण शुष्क हो जाता है और पर्यावरण का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। वृक्ष स्वयं सौन्दर्य की सृष्टि करते है। गर्मी के दिनों में बहुत से पर्यटक पहाड़ों पर जाकर वनों की शोभा देखते हैं। वनों से हमें विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ; जैसे-इमारती लकड़ी, जलाने की लकड़ी, दवाई में प्रयोग होने वाली लकड़ी आदि प्राप्त होती हैं। वृक्षों की लकड़ियाँ व्यापारिक दृष्टि से भी उपयोगी होती हैं। इनमें सागौन, देवदार, चीड़, शीशम, चंदन, आबनूस इत्यादि। प्रमुख हैं।

वनों से लकड़ी के अतिरिक्त अनेक उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति भी होती है, जिनका अनेक उद्योग में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है; जैसे—फर्नीचर उद्योग, औषधि उद्योग इत्यादि। वनों से हमें विभिन्न प्रकार के फल प्राप्त होते हैं, जो मनुष्य का पोषण करते हैं। ऋषि-मुनि वनों में रहकर कन्दमूल एवं फलों पर ही अपना जीवन निर्वाह करते थे। वनों से हमें अनेक जड़ी बूटियाँ प्राप्त होती हैं। वनों से प्राप्त जड़ी-बूटियों से कई असाध्य रोगों की दवाई प्राप्त होती है। कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पेड़-पौधों की महत्ता को समझते हुए कहा है।

“पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़

पर्यावरण को सन्तुलित करना वन वायु को शुद्ध करते हैं, क्योंकि वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करके ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। यह सत्य है कि “वृक्ष धरा के हैं आभूषण, करते हैं ये दूर प्रदूषण।” इस प्रकार वनों से वातावरण का तापक्रम, नमी और वायु प्रवाह नियर्मित होता है, जिससे जलवायु में सन्तुलन बना रहता है। वन जलवायु की भीषण उष्णता को सामान्य बनाए रखते हैं, ये आँधी-तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं तथा गर्मी और तेज हवाओं को रोककर देश की जलवायु को समशीतोष्ण बनाए रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का पर्यावरण असन्तुलित हो गया है। वृक्षारोपण पर्यावरण को सन्तुलित कर मानव के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। एक मेज, एक कर्मी, एक कटोरा फल और एक वायलन; भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए।’

2. अन्य पर्यावरण प्रदूषण : समस्या और समाधान (2018, 16, 15, 14, 13, 12, 11, 10)
अन्य शीर्षक औद्योगिक प्रदूषण : समस्या और समाधान (2004), पर्यावरण संरक्षण (2010), वन सम्पदा और पर्यावरण (2012, 11), जीवन रक्षा : पर्यावरण सुरक्षा (2014, 13), पर्यावरण एवं स्वास्थ्य (2013), पर्यावरण की उपयोगिता, पर्यावरण प्रदूषण से हानियाँ (2012), प्रदूषण, पर्यावरण एवं मानव जीवन (2013)
संकेत बिन्दु भूमिका, प्रदूषण का तात्पर्य, प्रदूषण के कारण, प्रदूषण के दुष्परिणाम, प्रदूषण निवारण के उपाय, उपसंहार।

भूमिका प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों में पर्यावरणीय प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है। यह भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की भी समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।

सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व को समाप्त कर सकने में सक्षम इस वैश्विक समस्या पर अब समस्त विश्व समुदाय एकजुट हैं और इसके निवारण के उपायों की खोज में जुटा है। उल्लेखनीय है कि इससे विश्व का पर्यावरण तो प्रदूषित हो हो हो है, साथ ही इसके दुष्ट परिणामस्वरूप कई अन्य जटिल समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं।

प्रदूषण का तात्पर्य नि:सन्देह सौरमण्डल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन के होने के पूर्ण प्रमाण विद्यमान हैं। पृथ्वी के वातावरण में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन तथा 1% अन्य गैसें शामिल हैं। इन गैसों का पृथ्वी पर समुचित मात्रा में होना जीवन के लिए अनिवार्य है, किन्तु जब इन गैसों का आनुपातिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, तो जीवन के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोन शुरू हो गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में अपने चरम पर था, कुपरिणामस्वरूप पृथ्वी पर गैसों का आनुपातिक सन्तुलन बिगड़ गया, जिससे विश्व की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया। इस तरह पर्यावरण में प्रदूषको (अपशिष्ट पदार्थों) का इस अनुपात में मिलना, जिससे पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण के कई रूप हैं—जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि।

प्रदूषण के कारण उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्ट पदार्थ जल एवं मृदा प्रदूषण का तो कारण बनते ही हैं, साथ ही इनके कारण वातावरण में विषैली गैसों के फैलने से वायु भी प्रदूषित होती है। मनुष्य ने अपने लाभ के लिए जंगलों की तेज़ी से कटाई की है। जंगल के पेड़ प्राकृतिक प्रदूषण नियन्त्रक का काम करते हैं। पेड़ों के पर्याप्त संख्या में न होने के कारण भी वातावरण में विषैली गैसें जमा होती रहती हैं और उसका शोधन नहीं हो पाता। मनुष्य सामान ढोने के लिए पॉलिथीन का प्रयोग करता है। प्रयोग के बाद इन पॉलिथीनों को यूं ही फेंक दिया जाता है। ये पॉलिथीने नालियों को अवरुद्ध कर देती हैं, जिसके फलस्वरूप पानी एक जगह जमा होकर प्रदूषित होता रहता है।

इसके अतिरिक्त, ये पॉलिथीन भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को कम कर देती हैं। प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता बढ़ी है। मोटर, रेल, घरेलू मशीनें इसके उदाहरण हैं। इन मशीनों से निकलने वाला धुआं भी पर्यावरण के प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि हुई है।

इसके कारण भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास हुआ है। रासायनिक एवं चमड़े के उद्योगों के अपशिष्टों को नदियों में बहा दिया जाता है। इस कारण जल प्रदूषित हो  जाता है एवं नदियों में रहने वाले जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रदूषण के दुष्परिणाम पर्यावरण प्रदूषण के कई दुष्परिणाम सामने आए हैं। इसका सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ा है। प्रदूषण के कारण आज मनुष्य का शरीर अनेक बीमारियों का घर बनता जा रहा है। खेतों में रासायनिक उर्वरकों के माध्यम से उत्पादित खाद्य-पदार्थ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सही नहीं है। वातावरण में घुली विषैली गैसों एवं धुएँ के कारण शहरों में मनुष्य का साँस लेना भी दूभर होता जा रहा है।

विश्व की जलवायु में तेजी से हो रहे परिवर्तन का कारण भी पर्यावरणीय असन्तुलन एवं प्रदूषण ही हैं। ओजोन परत में छिद्र की समस्या भी प्रदूषण की ही उपज हैं। वर्ष 2014 के अन्त में यू.एन.ई.पी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से जुड़ी लगभग एक लाख मौतें भारत सहित अमेरिका, ब्राजील, चीन, यूरोपीय संघ व मैक्सिको में होती हैं। यह रिपोर्ट पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली हानियों का जीता-जागता सबूत है।

प्रदूषण निवारण के उपाय पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के लिए हमें कुछ आवश्यक उपाय करने होंगे। मनुष्य स्वाभाविक रूप से प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति पर उसकी निर्भरता तो समाप्त नहीं की जा सकती, किन्तु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर न पड़ने पाए, इसके लिए हमें उद्योगों की संख्या के अनुपात में बड़ी संख्या में पेड़ों को लगाने की आवश्यकता हैं। इसके अलावा पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए हमें जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने की भी आवश्यकता है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि होने से स्वाभाविक रूप से जीवन के लिए अधिक प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती हैं और इन आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास में उद्योगों की स्थापना होती है और उद्योग कहीं-न-कहीं प्रदूषण का कारक भी बनते हैं।

यदि हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो एवं पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ सन्तुलित विकास भी हो, तो इसके लिए हमें नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा। प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा तब ही सम्भव है, जब हम इसका उपयुक्त प्रयोग करें। हमें अपने पूर्व राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के इस कथन से सीख लेने की आवश्यकता है- “हम सबको विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से पानी, ऊर्जा, निवास स्थान, कचरा प्रबन्धन तथा पर्यावरण के क्षेत्रों में पृथ्वी द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए कार्य करने चाहिए।’

उपसंहार वस्तुतः पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जिससे निपटना वैश्विक स्तर पर ही सम्भव हैं, किन्तु इसके लिए प्रयास स्थानीय स्तर पर भी किए जाने चाहिए। विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु एक दूसरे के पूरक हैं। सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा। हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है। विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी आवश्यक है, किन्तु ऐसा करते समय हमें सतत् विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना होगा तभी हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा। पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को नियन्त्रित कर, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए देशी तकनीकों से बने उत्पादों का उत्पादन तथा उपभोग जरूरी है। इसके साथ ही प्रदूषण को कम करने के लिए सामाजिक तथा कृषि वानिकी के माध्यम से अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाने की भी आवश्यकता है। यदि हम इन बातों पर ध्यान दें, तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सूक्ति आधारित निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name सूक्ति आधारित निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi सूक्ति आधारित निबन्ध

1. जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना/ससंगति (2018)
प्रस्तावना परमात्मा की सम्पूर्ण सृष्टि में मानव ही श्रेष्ठ माना जाता है, क्योकि मानव विवेकशील, विचारशील तथा चिन्तनशील प्राणी हैं। परमात्मा ने केवल मानव को ही बुद्धि अर्थात् चिन्तन शक्ति प्रदान की है। वह बुरा-भला सभी प्रकार का विचार करने में समर्थ है। समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए मानव को नैतिक शिक्षा व सत्संगति की आवश्यकता पड़ती है। मानव को बाल्यावस्था से ही माता-पिता द्वारा अच्छे संस्कार प्राप्त होने चाहिए, क्योंकि बचपन के संस्कारों पर ही मानव का सम्पूर्ण जीवन निर्भर रहता है।

सत्संगति का अर्थ सत् + संगति अर्थात् अच्छे व्यक्तियों के साथ रहना, उनके आचार-विचार एवं व्यवहार का अनुशासन करना ही सत्संगति कहलाता है। सत्संगति मानव को ही नहीं अपितु पशु-पक्षी एवं निरीह जानवरों को भी दुष्प्रवृत्ति छोड़कर सदवृत्ति के लिए प्रेरित करती है।

सत्संगति की आवश्यकता मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह नित्य प्रति भिन्न भिन्न प्रकृति के व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है। वह जिस भी प्रकृति के व्यक्ति के सम्पर्क में आता है, उसी के गुण-दोषों तथा व्यवहार आदि को ग्रहण कर लेता है। अतः मानव को बुरे लोगों की संगति से बचना चाहिए तथा सत्संगति अपनानी चाहिए, क्योकि सत्संगति ही मनुष्य को अच्छे संस्कार, उचित व्यवहार तथा उच्च विचार प्रदान करती है। बुराई के पंजों से बचने के लिए मानव को सत्संग की शरण लेनी चाहिए, तभी उसके विचार एवं व्यवहार श्रेष्ठ बनेंगे तथा उसका समाज में श्रेष्ठ स्थान बनेगा। यदि यह कुसंग में पड़ गया, तो उसका सम्पूर्ण जीवन विनष्ट हो जाएगा। अतः सत्संगति की महती आवश्यकता है।

सत्संगति से लाभ सत्संगति से मानव के आचार-विचार में परिवर्तन आता है और वह बुराई के मार्ग का त्याग कर सच्चे और अच्छे कर्मों में प्रवृत्त हो जाता है। इस निश्चय के उपरान्त उसे अपने मार्ग पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए। सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है। उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुंच जाता है। इस मार्ग पर चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है। अतः उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए।

कुसंगति को प्रभाव सत्संगति की भाँति कुसंगति का भी मानव पर विशेष प्रभाव पड़ता है, क्योकि कुसंगति तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है। इसकी संतानें सत्संगति का अनुकरण करने वाले को अपने जाल में फंसाने का प्रयत्न करती हैं। महाबली भीष्म, धनुर्धर द्रोण और महारथी शकुनि जैसे महापुरुष भी

इसके मोह जाल में फंस कर पथ विचलित हो गए थे। उनके आदर्शों का तुरन्त ही | हनन हो गया था। कुसंगति मानव के सम्पूर्ण जीवन को विनष्ट कर देती है। अतः प्रत्येक मानव को बुरे लोगों के सम्पर्क से बचना चाहिए।

उपसंहार अत: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह चन्दन के वृक्ष के समान अटल रहे। जिस प्रकार से विषधर रात-दिन लिपटे रहने पर भी उसे विष से प्रभावित नहीं कर सकते, उसी प्रकार सत्संगति के पथगामी का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं।

सत्संगति कुन्दन है। इसके मिलने से काँच के समान मानव हीरे के समान चमक उठता है। अतः उन्नति का एकमात्र सोपान सत्संगति ही है। मानव को सज्जन परुषों के सत्संग में ही रहकर अपनी जीवन रूपी नौका समाज रूपी सागर से पार लगानी चाहिए। तभी वह आदर को प्राप्त कर सकता है तथा समस्त ऐश्वर्यों के सुख का उपभोग कर सकता है। इसीलिए कहा गया है कि जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना।।।

2. को न कुसंगति पाई नसाई (2016)
संकेत बिन्दु भूमिका, सूक्ति का अर्थ, कुसंगति का प्रभाव, उपसंहार।।

भूमिका को न कुसंगति पाई नसाई’ सूक्ति को समझने से पूर्व ‘कुसंगति’ शब्द का अर्थ समझना आवश्यक है। कुसंगति का अर्थ है-कुबुद्धि (बुरी संगत), दुर्भाव, कुरुचि आदि। कुबुद्धि के प्रभाव से व्यक्ति सदैव बुरी बाते ही सोचता है। और बुरे कार्यों में ही निमग्न रहता है। व्यक्ति को बुरी संगति मिलने से उसमें बुरी बुद्धि का विकास होता है तथा उसे अपने जीवन में निरन्तर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कुसंगति में फंसे व्यक्तियों का विकास सर्वथा अवरुद्ध हो जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं। वह अकेला नहीं रह सकता। बचपन से ही मनुष्य को एक-दूसरे के साथ मिलने-बैठने और बातचीत करने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इसी को संगति कहा जाता है। बचपन में बालक अबोध होता है। उसे अच्छे बुरे की पहचान नहीं होती यदि वह अच्छी संगति में रहता है, तो उस पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं और यदि उसकी संगति बुरी है तो उसकी आदतें भी बुरी हो जाती हैं।

सूक्ति का अर्थ कुसंगति के द्वारा व्यक्ति हीन-भावना से ग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है। जिस व्यक्ति में कुबुद्धि, दुर्भाव आदि भावनाएँ | व्याप्त होती है उसे स्वयं ही घन, वैभव, यश आदि से हाथ धोना पड़ता है, जो व्यक्ति अपने हित के साथ अन्य लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए संगठित होकर कार्य नहीं करता उसे प्रत्येक क्षेत्र में असफलता ही प्राप्त होती है। सत्संगति में रहकर व्यक्ति योग्य और कुसंगति में पड़कर व्यक्ति अयोग्य बनकर समाज और परिवार दोनों में निरादर प्राप्त करता है। प्रस्तुत सूक्ति को कैकयी व मन्थरा के प्रसंग द्वारा उचित प्रकार से समझा जा सकता है। कैकयी राम को अत्यधिक प्रेम करती थी, किन्तु कैकयी को मंथरा द्वारा उकसाया गया जिससे कैकेयी अपनी दासी मन्थरा की बातों में आकर राजा दशरथ से दो वरदान माँगती हैं और प्रभु श्रीराम को अपने से दूर कर देती हैं। ठीक उसी प्रकार जब इनसान अपने जीवन में कुसंगति में रहता है, तो वह ईश्वर से कोसों दूर हो जाता है। कुसंगति ही इनसान के जीवन में दुःखों का भण्डार लाती है। कैकयी के जीवन में मन्थरा के कुसंग से विपत्तियाँ आई और उसका सब कुछ नष्ट हो गया।

कुसंगति को प्रभाव कुसंगति का मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव प्रड़ता है। कुसंगति से सदा हानि होती है। मनुष्य को सतर्क और सावधान रहना चाहिए, क्योंकि कुसंगति काजल की कोठरी के समान है जिससे बेदाग बाहर निकलना असम्भव है। जीजाबाई की संगति में शिवाजी ‘छत्रपति शिवाजी’ बने, दस्यु रत्नाकर सुसंगति के प्रभाव से महामुनि वाल्मीकि बने, जिन्होंने रामायण नामक अमर काव्य लिखा। डाकू अंगुलिमाल, महात्मा बुद्ध के संगति में आकर उनका शिष्य बन गया और नर्तकी आम्रपाली का उद्धार हुआ। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का स्वजनों के प्रति मोह भंग कर युद्ध के लिए तैयार किया। वहीं दूसरी ओर कुसंगति में पड़कर भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन आदि पतन के गर्त में चले गए। ये सभी अपने आप में विद्वान् और वीर थे, लेकिन कुसंगति का प्रभाव इन्हें विनाश की ओर खींच लाया। विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का विशेष महत्त्व है। वह जैसी संगति में रहते हैं स्वयं वैसे ही बन जाते हैं जैसे कमल पर पड़ी बूंद नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार कुसंगति व्यक्ति को अन्दर से कलुषित कर उसका सर्वनाश कर देती है। इसलिए कहा गया है कि “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका संग त्याग देना चाहिए।

उपसंहार मानव जीवन में संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है। कुसंगति उसे पतन के गर्त में ले जाती हैं और वहीं दूसरी ओर सत्संगति उसके उत्थान का मार्ग खोल देती है। सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य को दूसरों के साथ किसी न किसी रूप में सम्पर्क करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है, तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है।

संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति में रहते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। तुलसीदास का कथन है-

‘बिनु सत्संग विवेक न होई।

अतः मनुष्य का प्रयास यही होना चाहिए कि वह कुसंगति से बचे और सुसंगति में रहे। तभी उसका कल्याण हो पाएगा।

3. परहित सरिस धरम नहिं भाई (2018, 12, 11, 10)
अन्य शीर्षक वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिए मरे। (2012)
संकेत बिन्दु भूमिका, सन्देश देती प्रकृति, संस्कृति का आधार परोपकार, जगत-कल्याण के लिए कृत संकल्प, उपसंहार।।

भूमिका ‘परहित’ अर्थात् दूसरों का हित करने की भावना की महत्ता को स्वीकार करते हुए ‘गोस्वामी तुलसीदास’ ने लिखा है

“परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।”

इन पंक्तियों का अर्थ है-परोपकार से बढ़कर कोई भी उत्तम धर्म यानी कर्म नहीं | है और दूसरों को कष्ट पहुँचाने से बढ़कर कोई नीच कर्म नहीं हैं। हमारे संस्कृत ग्रन्थ भी ‘परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्’ अर्थात् दूसरों को हित पहुंचाना पुण्यकारक तथा दूसरों को कष्ट देना पापकारक है, जैसे वचनों से भरे पड़े हैं। वास्तव में परहित या परोपकार की भावना ही मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाती है। किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिलाते समय या किसी विपन्न व्यक्ति की सहायता करते समय हृदय को जिस असीम आनन्द की प्राप्ति होती हैं, वह अवर्णनीय हैं, वह अकथनीय है।

सन्देश देती प्रकृति हमारे चारों ओर प्रकृति का घेरा है और प्रकृति अपने क्रियाकलापों से हमें परहित हेतु जीने का सन्देश देती है, प्रेरणा देती है। सूर्य अपना सारा प्रकाश एवं ऊर्जा जगत के प्राणियों को दे देता है, नदी अपना सारा पानी जन जन के लिए लुटा देती हैं। वृक्ष अपने समग्र फल प्राणियों में बाँट देते हैं, तो वर्षा जगत की तप्तता को शान्त, करती है। प्रकृति की परोपकार भावना को महान् छायावादी कवि पन्तजी’ ने निम्न शब्दों में उकेरा है-

“हँसमुख प्रसून सिखलाते पलभर है-
जो हँस पाओ।
अपने उर सौरभ से
जग का आँगन भर जाओ।”

संस्कृति का आधार परोपकार भारत सदैव से अपनी परोपकारी परम्परा के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है। यहाँ ऐसे लोगों को ही महापुरुष की श्रेणी में शामिल किया गया है, जिन्होंने स्वार्थ को त्यागकर लोकहित को अपनाया। यहाँ ऋषियों एवं तपस्वियों की महिमा का गुणगान इसलिए किया जाता है, क्योंकि उन्होंने ‘स्व’ की अपेक्षा ‘पर’ को अधिक महत्त्व दिया। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद कामायनी’ में लिखते हैं-

औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ,
अपने सुख को विस्तृत कर लो सब को सुखी बनाओ।”

जगत-कल्याण के लिए कृत संकल्प भारत की भूमि ही वह पावन भूमि है, जहाँ बुद्ध एवं महावीर जैसे सन्तों ने जगत-कल्याण के लिए अपना राजपाट, वैभव, सुख, सब कुछ त्याग दिया। परोपकार की भावना से ओत-प्रोत होने के लिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन में प्रेम, करुणा, उदारता, दया जैसे सदगणों को धारण करें। दिखावे के लिए किया गया परोपकार अहंकार को जन्म देती है, जिसमें परोपकारी इसके बदले सम्मान पाने की भावना रखता है। वास्तव में यह, परोपकार नहीं, व्यापार है। परोपकार तो नि:स्वार्थ भावना से प्रकृति के विभिन्न अंगों के समान होना चाहिए। राजा भर्तृहरि ने नीतिशतक में लिखा है-‘महान् आत्माएँ अर्थात् श्रेष्ठ जन उसी प्रकार स्वतः दूसरों का भला करते हैं; जैसे- सूर्य कमल को खिलाता है, चन्द्रमा मुदिनी को विकसित करता है तथा बादल बिना किसी के कहे जल देता है।

उपसंहार परोपकार करने से व्यक्ति की आत्मा तृप्त होती है और विस्तृत भी। उसका हृदय एवं मस्तिष्क अपने-पराये की भावना से बहुत ऊपर उठ जाता है। इस आत्मिक आनन्द की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। परोपकार व्यक्ति को अलौकिक आनन्द प्रदान करता है। उसमें मानवीयता का विस्तार होता है और वह सही अर्थों में मनुष्य कहलाने का अधिकारी बनता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही लिखा है-

मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे,
यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे।”

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी

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Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name रश्मिरथी
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
“रश्मिरथी’ के कथानक में ऐतिहासिकता और धार्मिकता दोनों हैं।” इस कथन के आधार पर इस खंडकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2018)
अथवा
“रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में उदान्त मानव मूल्यों का उदघाटन हुआ है।” स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी काव्य की कथावस्तु/कथासार अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु /कथासार (विषय-वस्तु) संक्षेप में लिखिए। (2018, 16, 12, 11)
अथवा

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 17, 14)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के कथानक की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के कथानक में ऐतिहासिकता और धार्मिकता दोनों हैं। तर्कसहित उत्तर दीजिए। (2014)
अथवा
रश्मिथी खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
उत्तर:
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित है। सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।

प्रथम सर्ग : कर्ण का शौर्य प्रदर्शन

कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से हुआ था और उसके पिता सूर्य थे। लोकलाज के भय से कुन्ती ने नवजात शिशु को नदी में बहा दिया, जिसे सूत (सारथि) ने बचाया और उसे पुत्र रूप में स्वीकार कर उसका पालन-पोषण किया। सूत के घर पलकर भी कर्ण महान् धनुर्धर, शूरवीर, शीलवान, पुरुषार्थी और दानवीर बना। एक बार द्रोणाचार्य ने कौरव व पाण्डव राजकुमारों के शस्त्र कौशल का सार्वजनिक प्रदर्शन किया।

सभी दर्शक अर्जुन की धनुर्विद्या के प्रदर्शन को देखकर आश्चर्यचकित रह गए, किन्तु तभी कर्ण ने सभा में उपस्थित होकर अर्जुन को द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारा। कृपाचार्य ने कर्ण से उसकी जाति और गोत्र के विषय में पूछा। इस पर कर्ण ने स्वयं को सूत-पुत्र बताया, तब निम्न जाति का कहकर उसका अपमान किया गया। उसे अर्जुन से द्वन्द्वयुद्ध करने के अयोग्य समझा गया, परन्तु दुर्योधन कर्ण की वीरता एवं तेजस्विता से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसे अंगदेश का राजा घोषित कर दिया। साथ ही उसे अपना अभिन्न मित्र बना लिया। गुरु द्रोणाचार्य भी कर्ण की वीरता को देखकर चिन्तित हो उठे और कुन्ती भी कर्ण के प्रति किए गए बुरे व्यवहार के लिए उदास हुई।

द्वितीय सर्ग: आश्रमवास

रश्मिरथी खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।  (2018, 17, 16)

राजपुत्रों के विरोध से दु:खी होकर कर्ण ब्राह्मण रूप में परशुराम जी के पास धनुर्विद्या सीखने के लिए गया। परशुराम जी ने बड़े प्रेम के साथ कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई। एक दिन परशुराम जी कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे, तभी एक कीड़ा कर्ण की जंघा पर चढ़कर खून चूसता-चूसता उसकी जंघा में प्रविष्ट हो गया। रक्त बहने लगा, पर कर्ण इस असहनीय पीड़ा को चुपचाप सहन करता रहा, और शान्त रहा। क्योकि कहीं गुरुदेव को निद्रा में विघ्न न पड़ जाए। जंघा से निकले रक्त के स्पर्श से गुरुदेव को निद्रा भंग हो गई। अब परशुराम को कर्ण के ब्राह्मण होने पर सन्देह हुआ। अन्त में कर्ण ने अपनी वास्तविकता बताई। इस पर परशुराम ने कर्ण से ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का अधिकार छीन लिया और उसे श्राप दे दिया। कर्ण गुरु के चरणों का स्पर्श कर वहाँ से चला आया।

तृतीय सर्ग : कृष्ण सन्देश (2017, 15)

बारह वर्ष का वनवास और अज्ञातवास की एक वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर पाण्डव अपने नगर इन्द्रप्रस्थ लौट आते हैं और दुर्योधन से अपना राज्य वापस माँगते हैं, लेकिन दुर्योधन पाण्डवों को एक सूई की नोंक के बराबर भूमि देने से भी मना कर देता है। श्रीकृष्ण सन्धि प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास आते हैं। दुर्योधन इस सन्धि प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता और श्रीकृष्ण को ही बन्दी बनाने का प्रयास करता है। श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर उसे भयभीत कर दिया। दुर्योधन के न मानने पर श्रीकृष्ण ने कर्ण को समझाया। श्रीकृष्ण ने कर्ण को उसके जन्म का इतिहास बताते हुए उसे पाण्डवों का बड़ा भाई बताया और युद्ध के दुष्परिणाम भी समझाए, लेकिन कर्ण ने श्रीकृष्ण की बातों को नहीं माना और कहा कि वह युद्ध में पाण्डवों की ओर से सम्मिलित नहीं होगा। दुर्योधन ने उसे जो सम्मान और स्नेह दिया है, वह उसका आभारी है।

चतुर्थ सर्ग : कर्ण के महादान की कथा

‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग का कथानक अपने शब्दों में लिखिए। (2008, 12)
जय कर्ण ने पाण्डवों के पक्ष में जाने से मना कर दिया, तो इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास आए। वह कर्ण को दानवीरता की परीक्षा लेना चाहते थे। कर्ण इन्द्र के इस छल-प्रपंच को पहचान गया, परन्तु फिर भी उसने इन्द्र को सूर्य के द्वारा दिए गए कवच और कुण्डल दान में दे दिए। इन्द्र कर्ण की इस दानवीरता को देखकर अत्यन्त लज्जित हुए। उन्होंने स्वयं को प्रवंचक, कुटिल और पापी कहा तथा प्रसन्न होकर कर्ण को ‘एकनी’ नामक अमोघ शक्ति प्रदान की।

पंचम सर्ग : माता की विनती (2013 10)

अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती-कर्ण के संवाद की घटना का सारांश लिखिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के पंचम सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में कुन्ती और कर्ण के संवाद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। (2010)

कुन्ती को चिन्ता है कि रणभूमि में मेरे ही दोनों पुत्र कर्ण और अर्जुन परस्पर युद्ध करेंगे। इससे चिन्तित हो वह कर्ण के पास जाती है और उसे उसके जन्म के विषय में सब बताती है। कर्ण कुन्ती की बातें सुनकर भी दुर्योधन का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है, किन्तु अर्जुन को छोड़कर अन्य किसी पाण्डव को न मारने का वचन कुन्ती को दे देता है। कर्ण कहता है कि तुम प्रत्येक दशा में पाँच पाण्डवों की माता बनी रहोगी। कुन्ती निराश हो जाती है। कर्ण ने युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कुन्ती की सेवा करने की बात कही। कुन्ती निराश मन से लौट आती है।

षष्ठ सर्ग : शक्ति परीक्षण

श्रीकृष्ण इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि कर्ण के पास इन्द्र द्वारा दी गई ‘एकघ्नी शक्ति है। जब कर्ण को सेनापति बनाकर युद्ध में भेजा गया तो श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को कर्ण से लड़ने के लिए भेज दिया।

दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने घटोत्कच को एकनी शक्ति से मार दिया। इस, विजय से कर्ण अत्यन्त दुःखी हुए, पर पाण्डव अत्यन्त प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने अपनी नीति से अर्जुन को अमोघशक्ति से बचा लिया था, परन्तु कर्ण ने फिर भी छल से दूर रहकर अपने व्रत का पालन किया।

सप्तम सर्ग : कर्ण के बलिदान की कथा (2011)

रश्मिरथी खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के अन्तिम सर्ग की विवेचना कीजिए। (2014, 13)
कर्ण को पाण्डवों से भयंकर युद्ध होता है। वह युद्ध में अन्य सभी पाण्डवों को पराजित कर देता है, पर माता कुन्ती को दिए गए वचन का स्मरण कर सबको छोड़ देता है। कर्ण और अर्जुन आमने-सामने हैं। दोनों ओर से घमासान युद्ध होता है। अर्जुन कर्ण के बाणों से विचलित हो उठते हैं। एक बार तो वह मूर्छित भी हो जाते हैं। तभी कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फंस जाता है। कर्ण रथ से उतरकर पहिया निकालने लगता है, तभी श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्ण पर बाण चलाने की आज्ञा देते हैं।

श्रीकृष्ण के संकेत करने पर अर्जुन निहत्थे कर्ण पर प्रहार कर देते हैं। कर्ण की मृत्यु हो जाती है, पर वास्तव में नैतिकता की दृष्टि से तो कर्ण ही विजयी रहता है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि विजय तो अवश्य मिली, पर मर्यादा खोकर।

प्रश्न 2.
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा

‘रश्मिरथी’ में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ की भाषा की स्वाभाविक सहजता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। (2012)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2014, 13)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। (2013)
अथवा
किन विशेषताओं के आधार पर ‘रश्मिरथी’ को उच्च कोटि का काव्य माना जाता है? (2013)
अथवा
“रश्मिरथी’ काव्य खण्ड में व्यक्ति की उदात्त एवं आदर्श भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘रश्मिरथी में कवि का मन्तव्य कर्ण के चरित्र के शीलपक्ष, मैत्री भाव तथा शौर्य का चित्रण करना है।” सिद्ध कीजिए। (2014, 11)
उत्तर:
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सदैव देशप्रेम एवं मानवतावादी दृष्टिकोण के समर्थक रहे हैं। रश्मिरथी’ खण्डकाव्य इसका अपवाद नहीं है। इस खण्डकाव्य की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

कथानक

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य का कथानक ‘महाभारत’ के प्रसिद्ध पात्र कर्ण के जीवन प्रसंग पर आधारित हैं। इन प्रसंगों ने कर्ण के व्यक्तित्व को एक नई छवि प्रदान की है। कथानक का संगठन सुनियोजित प्रकार से किया गया है।

प्रसंगों का समय भिन्न-भिन्न है, लेकिन उन्हें इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध किया गया हैं। कि कथा के प्रवाह में बाधा नहीं पड़ती और उसका क्रमबद्ध विकास होता है। कथा का अन्त इस प्रकार किया गया है कि वह कर्ण की विशेषताओं को विभूषित करते हुए समाप्त हो जाती है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण

इस खण्डकाव्य में कर्ण के उपेक्षित जीवन और उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर ही प्रकाश डालना कवि का उद्देश्य रहा है। अन्य पात्रों का चुनाव इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया है।

कथानक में एक भी अनावश्यक पात्र को स्थान नहीं दिया गया है। कर्ण के चरित्र में वर्तमान युग के सामाजिक स्तर पर उपेक्षित व्यक्तियों एवं कुन्ती के रूप में समाज के नियमों से प्रताड़ित नारियों की व्यथा को स्वर दिया गया है। इस प्रकार इस खण्डकाव्य में पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से हुआ है।

कर्ण जैसे महान् गुणों से सम्पन्न. नायक को कवि ने मुख्य पात्र बनाया है। अन्य पात्रों का चित्रण कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकाशित करने के लिए किया गया है। सम्पूर्ण काव्य में वीर रस को ही प्रधानता दी गई है। छन्दों में अवश्य विभिन्नता है। आदर्शोन्मुख उद्देश्य के लिए लिखी गई इस रचना को सफल खण्डकाव्ये कहा जा सकता हैं।

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य का उद्देश्य (2013)

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने उपेक्षित, लेकिन प्रतिभावान मनुष्यों के स्वर को वाणी दी है। यदि कर्ण को बचपन से समुचित सम्मान प्राप्त हुआ होता, जन्म, जाति और कुल आदि के नाम पर उसे अपमानित न किया गया होता तो वह कौरवों का साथ कभी भी नहीं देता। शायद तब महाभारत का युद्ध भी नहीं हुआ होता। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रतिभाएँ कुण्ठित होकर समाज को पतन की ओर अग्रसर कर देती हैं।

इस खण्डकाव्य में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। इसमें समाज में नारियों की मनोदशा का भी यथार्थ वर्णन किया गया है, साथ ही समाज में उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है। इस प्रकारे उद्देश्य की दृष्टि से भी यह एक सफल खण्डकाव्य है।

इस खण्डकाव्य में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। इसमें समाज में नारियों की मनोदशा का भी यथार्थ वर्णन किया गया है, साथ ही समाज में उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है। इस प्रकारे उद्देश्य की दृष्टि से भी यह एक सफल खण्डकाव्य है।

काव्यगत विशेषताएँ

प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
भावपक्षीय विशेषताएँ

1. वण्र्य विषय खण्डकाव्य की दृष्टि से यह एक सफल खण्डकाव्य है। इसके कथानक की रचना में कवि ने अपनी सूझबूझ का अच्छा परिचय दिया है। दिनकर जी की इस रचना का प्रमुख पात्र कर्ण है। वह समाज के उन व्यक्तियों का प्रतीक है, जो वर्ण-व्यवस्था पर आधारित अमानवीय क्रूरता एवं जड़ नैतिक मान्यताओं की विभीषिका के शिकार हैं।

वर्ण व्यवस्था, जाति-प्रथा, एवं ऊँच-नीच की भावना वर्तमान युग की ज्वलन्त समस्याएँ हैं। इन्हीं के कारण भारतीय समाज में योग्य एवं कर्मठ व्यक्तियों की उपेक्षा एक सामान्य बात है। कर्ण ऐसे ही पीड़ित एवं उपेक्षित जनों को आदर्श प्रतीक है।

2. प्रकृति चित्रण यद्यपि रश्मिरथी काव्य में प्रकृति चित्रण कवि का विषय नहीं है, तथापि पात्रों के चित्रण-वर्णन के दौरान यत्र-तत्र प्रकृति का चित्रण हुआ है, जो अत्यन्त सशक्त है; जैसे|

  • अम्बुधि में आकटक निमज्जित, कनक खचित पर्वत-सा।
  • हँसती थीं रश्मियाँ रजत से भरकर वारि विमले को।।
  • कदली के चिकने पातों पर पारद चमक रहा था।

3. रस निरूपण प्रस्तुत खण्डकाव्य में वीर रस की प्रधानता है। साथ ही करुण एवं वात्सल्य रस को भी स्थान दिया गया है। जहाँ कर्ण और कुन्ती का वार्तालाप हैं, वहाँ वात्सल्य रस देखने को मिलता है-

“मेरे ही सुत मेरे सुत को ही मारें,
हो क्रुद्ध परस्पर ही प्रतिशोध उतारें।’

कलापक्षीय विशेषताएँ। (2010)
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

  1. भाषा-शैली रश्मिरथी खण्डकाव्य में अधिकतर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। तद्भव शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगत होता है। वास्तव में, यह काव्य शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में रचित काव्य है। कवि ने अपनी काव्यात्मक भाषा को कहीं भी बोझिल नहीं होने दिया है। सूक्तिपरकता का भी प्रयोग किया गया है। प्राचीन शब्दावली का प्रयोग किया है, जहाँ युद्ध, घटनाओं एवं परिस्थितियों को स्वाभाविक रूप देने का प्रयास किया गया है।
  2. छन्द एवं अलंकार कवि ने प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्द प्रयोग किए हैं। विषय, मानसिक परिस्थितियों तथा घटनाओं के संवेदनात्मक पक्ष को दृष्टि में रखते हुए इनका आयोजन किया गया है। अलंकारों में सहजता और संक्षिप्तता है, वे स्वाभाविक रूप से ही प्रयुक्त हुए हैं। वस्तुतः अलंकारों के प्रदर्शन के प्रति कवि की रुचि नहीं है। इस प्रकार भावात्मक एवं कलात्मक दृष्टि से रश्मिरथी’ खण्डकाव्य एक उत्कृष्ट रचना है। यह रचना वर्तमान युग के लिए अत्यन्त उपयोगी है, जो आधुनिक युग के
    समाज की बुराइयों को दूर करने का सन्देश देती है।
  3. उद्देश्य ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने उपेक्षित, लेकिन प्रतिभावान मनुष्यों के स्वर को वाणी दी है। यदि कर्ण को बचपन से समुचित सम्मान प्राप्त हुआ होता तथा जन्म, जाति और कुल आदि के नाम पर उसे अपमानित न किया गया होता, तो वह कौरवों का साथ कभी भी नहीं देता। शायद तब महाभारत का युद्ध भी नहीं हुआ होता। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रतिभाएँ कुण्ठित होकर समाज को पतन की ओर अग्रसर कर देती हैं।

प्रश्न 3.
“रश्मिरथी’ के प्रत्येक सर्ग में संवादात्मक स्थल ही सबसे प्रमुख है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2011)
अथवा
“रश्मिरथी खण्डकाव्य की संवाद योजना बड़ी सशक्त है।” इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (2012)
उत्तर:
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के संवादों में नाटकीयता के गुण विद्यमान हैं। यह नाटकीयता सर्वत्र देखी जा सकती है। इसमें सरलता, सुबोधता, स्वाभाविकता के साथ-साथ प्रभावशीलता भी देखने को मिलती है|

“उड़ती वितर्क-धागे पर चंग-सरीखी,
सुधियों की सहती चोट प्राण पर तीखी।
आशा-अभिलाषा भरी, डरी, भरमाई,
कुन्ती ज्यों-ज्यों जाह्नवी तीर पर आई।

कवि ने प्रभावशाली संवाद शैली का अनुसरण करते हुए वर्णनात्मक शैली की कमियों का निराकरण कर दिया है-

“पाकर प्रसन्न आलोक नया, कौरवसेना का शोक गया।
आशा की नवल तरंग उठी, जन-जन में नई उमंग उठी।”

सर्गों का क्रम भी कवि की रचनात्मक विशेषताओं को व्यक्त करता है। छन्द एवं अलंकार कवि ने प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्द प्रयोग किए हैं। विषय, मानसिक परिस्थितियों तथा घटनाओं के संवेदनात्मक पक्ष को दृष्टि में रखते हुए इनका आयोजन किया गया हैं। अलंकारों में सहजता और संक्षिप्तता हैं, वे स्वाभाविक रूप से ही प्रयुक्त हुए हैं। वस्तुतः अलंकारों के प्रदर्शन के प्रति कवि की रुचि नहीं हैं। इस प्रकार भावात्मक एवं कलात्मक दृष्टि से ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य एक उत्कृष्ट रचना है। यह रचना वर्तमान युग के लिए अत्यन्त उपयोगी है, जो आधुनिक युग के समाज की बुराइयों को दूर करने का सन्देश देती है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
“कर्ण महान् योद्धा के साथ-साथ दानवीर भी है।” इस कथन के आधार पर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के नायक के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चरित्रिक विशेषताओं को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी के माध्यम से कवि दिनकर ने महारथी कर्ण के किन गुणों पर प्रकाश डाला है? अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के चरित्र की विशेषताएँ बताइट।
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालिए। (2018, 16)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
‘रश्मिरथी’ के कर्ण के व्यक्तित्व की उल्लेखनीय विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रमुख पात्र कर्ण के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक कर्ण) का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन/चारित्रिक मूल्यांकन) कीजिए। (2018, 17, 15, 14, 13, 12, 11)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के कर्ण दानवीर थे, परन्तु वह मानसिक अन्तर्द्वन्द्व से भी ग्रस्त थे। ऐसा क्यों? स्पष्ट कीजिए। (2011)
अथवा
कर्ण के चरित्र में ऐसे कौन-से गुण हैं, जो उसे महामानव की कोटि तक उठा देते हैं? (2012, 11)
अथवा
“रश्मिरथी खण्डकाव्य में उदात्त मानवीय चरित्र का उद्घाटन किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए। (2013)
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ के आधार पर कर्ण के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. महान् धनुर्धर कर्ण की माता कुन्ती और पिता सूर्य थे। लोकलाज के भय से कुन्ती अपने पुत्र को नदी में बहा देती है, तब एक सूत उसका लालन-पालन करता है। सूत के घर पलकर भी कर्ण महादानी एवं महान् धनुर्धर बनता है। एक दिन अर्जुन रंगभूमि में अपनी बाणविद्या का प्रदर्शन करता है, तभी वहाँ आकर कर्ण भी अपनी धनुर्विद्या का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन करता है। कर्ण के इस प्रभावपूर्ण प्रदर्शन को देखकर द्रोणाचार्य एवं पाण्डव उदास हो जाते हैं।

2. सामाजिक विडम्बना का शिकार कर्ण क्षत्रिय कुल से सम्बन्धित था, लेकिन उसका पालन-पोषण एक सूत के द्वारा हुआ, जिस कारण वह सूतपुत्र कहलाया और इसी कारण उसे पग-पग पर अपमान का बूंट पीना पड़ा। शस्त्र विद्या प्रदर्शन के समय प्रदर्शन स्थल पर उपस्थित होकर वह अर्जुन को ललकारता है, तो सब स्तब्ध रह जाते हैं। यहाँ पर कर्ण को कृपाचार्य की कूटनीतियों का शिकार होना पड़ता है। द्रौपदी के स्वयंवर में भी उसे अपमानित होना पड़ा था।

3. सच्चा मित्र कर्ण दुर्योधन का सच्चा मित्र है। दुर्योधन कर्ण की वीरता से प्रसन्न होकर उसे अंगदेश का राजा बना देता है। इस उपकार के बदले भावविह्वल कर्ण सदैव के लिए दुर्योधन का मित्र बन जाता है। वह श्रीकृष्ण और कुन्ती के प्रलोभनों को ठुकरा देता है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि मुझे स्नेह और सम्मान दुर्योधन ने ही दिया। अतः मेरा तो रोम-रोम दुर्योधन का ऋणी है। वह तो सब कुछ दुर्योधन पर न्योछावर करने को तत्पर रहता है।

4. गुरुभक्त कर्ण सच्चा गुरुभक्त हैं। वह अपने गुरु के प्रति विनयी एवं श्रद्धालु है। एक दिन परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सोए हुए थे तभी एक कीट कर्ण की जंघा में घुस जाता है, रक्त की धारा बहने लगती है, वह चुपचाप पीड़ा को सहता है, क्योकि पैर हिलाने से गुरु की नींद खुल सकती थी, लेकिन आँखें खुलने पर वह गुरु को अपने बारे में सब कुछ बता देता है। गुरु क्रोधित होकर उसे आश्रम से निकाल देते हैं, लेकिन वह अपनी विनय नहीं छोड़ता और गुरु के चरण स्पर्श कर वहाँ से चल देता है।

5. महादानी कर्ण महादानी है। प्रतिदिन प्रात:काल सन्ध्या वन्दना करने के पश्चात् वह याचकों को दान देता है। उसके द्वार से कभी कोई याचक खाली नहीं लौटा। कर्ण की दानशीलता का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है।

“रवि पूजन के समय सामने, जो भी याचक आता था,
मुँह माँगा वह दान कर्ण से, अनायास ही पाता था।”

इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास आते हैं। यद्यपि कर्ण इन्द्र के छल को पहचान लेता है तथापि वह इन्द्र को सूर्य द्वारा दिए गए कवच और कुण्डल दान में दे देता है।

6. महान् सेनानी कौरवों की ओर से कर्ण सेनापति बनकर युद्धभूमि में प्रवेश करता है। युद्ध में अपने रण कौशल से वह पाण्डवों की सेना में हाहाकार मचा देता है। अर्जुन भी कर्ण के बाणों से विचलित हो उठते हैं। श्रीकृष्ण भी उसकी वीरता की प्रशंसा करते हैं। भीष्म उसके विषय में कहते हैं

“अर्जुन को मिले कृष्ण जैसे,
तुम मिले कौरवों को वैसे।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कर्ण का चरित्र दिव्य एवं उच्च संस्कारों से युक्त है। वह शक्ति का स्रोत है, सच्चा मित्र है, महादानी और त्यागी है। वस्तुतः उसकी यही विशेषताएँ उसे खण्डकाव्य का महान् नायक बना देती हैं।

प्रश्न 5.
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्रांकन कीजिए। (2018, 17, 10)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘दिनकर’ जी द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

1. युद्ध विरोधी एवं मानवता का पक्षधर ‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण युद्ध के प्रबल विरोधी हैं और मानवता के प्रति संवेदनशील हैं। उन्हें यह ज्ञात है कि युद्ध की विभीषिका मानवता के लिए कितनी दुखदायी होती है। पाण्डवों के वनवास से लौटने के पश्चात् श्रीकृष्ण कौरवों को समझाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं और युद्ध को टालने का भरसक प्रयत्न करते हैं, किन्तु हठी दुर्योधन नहीं मानता। कौरवों से पाण्डवों के लिए वे पाँच गाँव ही माँगते हैं। दुर्योधन के द्वारा अस्वीकार करने पर वे सोचते हैं कि वह कर्ण की शक्ति प्राप्त कर ही युद्ध में अपनी जीत की कल्पना कर रहा है। यदि कर्ण उसका साथ छोड़ दे तो यह युद्ध रोका जा सकता है। इस युद्ध को रोकने के लिए उन्होंने कर्ण से कहा-

यह मुकुट मान सिंहासन ले,
बस एक भीख मुझको दे दे।
कौरव को तेज रण रोक सखे,
भु का हर भावी शोक सखे।

2. निडर एवं स्फुटवक्ता श्रीकृष्ण निडर एवं स्फुटवक्ता अर्थात् बात को स्पष्ट कहने वाले हैं। वे युद्ध नहीं चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कौरवों और पाण्डवों के मध्य सुलह हो जाए। इसके आधार पर उन्हें कायर नहीं कहा जा सकता। वे दुर्योधन को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास करते हैं, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं है, अपनी जिद पर अड़ा है, लेकिन जब वह उनके हित की दृष्टि से दी गई सलाह को नहीं मानती है तो वे कहते हैं कि-

तो ले अब मैं भी जाता है,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

3. सदाचारी एवं व्यावहारिक श्रीकृष्ण सदाचारी एवं व्यावहारिक हैं। उनके सभी कार्य सदाचार एवं शील के परिचायक हैं। उनका उद्देश्य सदाचारपूर्ण समाज की स्थापना करना है और वे यही चाहते हैं कि सभी सदाचरण करें। वे सदाचार को ही जीवन का सार मानते हुए कहते हैं कि-

नहीं पुरुषार्थ केवल जाति में है,
विभा का सार शील पुनीत में है।

4. गुणवानों के पक्षधर ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण गुणवान व्यक्तियों के प्रबल समर्थक एवं प्रशंसक हैं। इस कारण वे अपने विरोधी के गुणों का भी सम्मान करते हैं। यद्यपि कर्ण कौरव पक्ष का योद्धा था फिर भी श्रीकण के मन में उसके गुणों के प्रति बहुत आदर है। वे उसका गुणगान करते नहीं थकते। उसकी मृत्यु के उपरान्त वे अर्जुन से उसके बारे में कहते हैं कि-

मगर, जो हो, मनुज सुवरिष्ठ था वह,
घनुर्धर ही नहीं, घमिष्ठ था वह।
वीर शत बार धन्य
तुझ-सा न मित्र कोई अनन्य।

5. कूटनीतिज्ञ ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण कूटनीतिज्ञ हैं। महाभारत के श्रीकृष्ण के चरित्र से उनके चरित्र की विशेषताएँ मिलती हैं, किन्तु इस खण्डकाव्य में उनके कूटनीतिज्ञ स्वरूप का ही चित्रण हुआ है। पाण्डवों की जीत का आधार उनकी कूटनीति ही थी। वे पाण्डवों की ओर से कूटनीति की चाल चलकर दुर्योधन की सबसे बड़ी शक्ति कर्ण को उससे अलग करने का प्रयास करते हैं। उनकी कूटनीतिज्ञता का पता इन पंक्तियों में उनके द्वारा कहा गया यह कथन स्पष्ट करता है–

कुन्ती का तू ही तनय श्रेष्ठ,
बलशील में परम श्रेष्ठ।
मस्तक पर मुकुट धरेंगे हम,
तेरा अभिषेक करेंगे हम,

6. अलौकिक गुणों से युक्त ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण महाभारत के श्रीकृष्ण की ही तरह अलौकिक गुणों से युक्त हैं। वे लीलामय पुरुष हैं, क्योंकि उनमें अलौकिक शक्ति विद्यमान है। जब वे दुर्योधन के दरबार में पाण्डवों के दूत बनकर जाते हैं, तो दुर्योधन उन्हें बाँधना चाहता है और कैद करना चाहता है, तो उस समय वे अपना लीलामय विराट स्वरूप दिखाते है-

हरि ने भीषण हुँकार किया,
अपना स्वरूप विस्तार किया,
डगमग-इगमग दिग्गज डोले,
भगवान, कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए हम कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण निडर एवं स्फुटवक्ता, अलौकिक गुणों से युक्त होते हुए महाभारत के श्रीकृष्ण के चरित्र के समस्त गुणों को अपने अन्दर समाहित किए हुए हैं। इसके साथ-ही-साथ उनका चरित्र लोकमंगल की भावना से युक्त है। श्रीकृष्ण का यह स्वरूप कवि ने इस खण्डकाव्य में युग के अनुसार ही प्रकट किया है। इसके कारण उनके महाभारतकालीन चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है-

प्रश्न 6.
“रश्मिरथी खण्डकाव्य के नारी-पात्र कुन्ती के चरित्र में कवि ने मातृत्व के भीषण अन्तर्द्वन्द्व की पुष्टि की है।” इस कथन की सार्थकता कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रधान नारी (कुन्ती) पात्र का चरित्रांकन कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2013, 12, 11)
अथवा
“कुन्ती के चरित्र में कवि ने मातृत्व के भीषण अन्तर्द्वन्द्व की सृष्टि की है।” इस कथन के आधार पर कुन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2010)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में प्रस्तुत कुन्ती के मन की घुटन का विवेचन कीजिए। (2011)
उत्तर:
कुन्ती पाण्डवों की माता है। सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से ही हुआ था। इस प्रकार कुन्ती के पाँच नहीं वरन् छः पुत्र थे। कुन्ती की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. समाज भीरू कुन्ती लोकलाज के भय से अपने नवजात शिशु को गंगा में बहा देती है। वह कभी भी उसे स्वीकार नहीं कर पाती। उसे युवा और धीरत्व की मूर्ति बने देखकर भी अपना पुत्र कहने का साहस नहीं कर पाती। जब युद्ध की विभीषिका सामने आती है, तो वह कर्ण से एकान्त में मिलती है और अपनी दयनीय स्थिति को व्यक्त करती है।
  2. एक ममतामयी माँ कुन्ती ममता की साक्षात् मूर्ति है। कुन्ती को जब पता चलता है कि कर्ण का उनके अन्य पाँच पुत्रों से युद्ध होने वाला है, तो वह कर्ण को मनाने उसके पास जाती है और उसके प्रति अपना ममत्व एवं वात्सल्य प्रेम प्रकट करती है। वह नहीं चाहती कि उनके पुत्र युद्धभूमि में एक-दूसरे के साथ संघर्ष करें। यद्यपि कर्ण उनकी बातें स्वीकार नहीं करता, पर वह उसे आशीर्वाद देती है, उसे अंक में भरकर अपनी वात्सल्य भावना को सन्तुष्ट करती है।
  3. अन्तर्द्वन्द्व ग्रस्त कुन्ती के पुत्र परस्पर शत्रु बने हुए थे, तब कुन्ती के मन में भीषण अन्तर्द्वन्द्व मचा हुआ था, वह बड़ी उलझन में पड़ी हुई थी कि पाँचों पाण्डवों और कर्ण में से किसी की भी हानि हो, पर वह हानि तो मेरी ही होगी। वह इस स्थिति को रोकना चाहती थीं, परन्तु कर्ण के अस्वीकार कर देने पर वह इस नियति को सहने के लिए विवश हो जाती है। इस प्रकार कवि ने ‘रश्मिरथी’ में कुन्ती के चरित्र में अनेक उच्च गुणों का समावेश किया है। और इस विवश माँ की ममता को महान् बना दिया है।

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UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 11
Chapter Name एकाकी तथा संयुक्त परिवार के
सम्बन्धों का मनोविज्ञान
Number of Questions Solved 31
Categorie UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
परिवार का लक्षण है 
(2018)
(a) सदस्यों का एक सम्बन्ध से जुड़े होना
(b) सदस्यों का एक ही गाँव का होना
(c) सदस्यों को आपस में मित्र होना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सदस्यों का एक सम्बन्ध से जुड़े होना

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार में पाई जाती है 
(2013)
(a) दो पीदियों

(b) तीन पीदियों
(c) तीन से अधिक पवियाँ हैं।
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) दो पौड़यो। 

प्रश्न 3.
एकल (एकाकी) परिवार में (2008, 11, 17)
(a) केवल ए मत होता है।
(b) पति-नी के रिश्तेदार भी होते हैं।
(c) केवल प-िपत्नी होते हैं।
(d) पति-नी और उनके अविवाति मध्ये होते हैं।
उत्तर:
(d) पति-पत्नी और उनके अविवाहित बने होते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार में
(a) यह एक व्यक्ति होता है।
(b) पति-पत्नी और उनके बचे होते हैं।
(c) कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं
(d) परोक्त सभी
उत्तर:
(c) कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं।

प्रश्न 5.
“संयुक्त परिवार की भावना बड़ी मज़बूत है।” यह कथन है (2010)
(a) टीबी, बॉटमोर
(b) के. एस. कपाडिया
(c) डॉ. आई.पी. देसाई
(d) श्यामाचरण दुवै 4.
अत्तर:
(c) डॉ. आई.पो. देसाई

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता संयुक्त परिवार की नहीं है? (2010)
(a) सामान्य निवास तथा सामान्य रसोईघर
(b) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अवा आरमनिर्भरता के प्रौसाहन के लिए। अवसर है।
(c) परिवार के सभी सदस्यों का अति धन एवसाय ए होता है।
(d) पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य
उत्तर:
(b) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अथवा आत्मनिर्भरता के प्रोत्साहन के 
लिए अगर है।

प्रश्न 7.
पारिवारिक संरचना में होने वाले परिवर्तन हैं। (2018)
(a) संयुक्त परिवार का विघटन ।
(a) परिवार का आकार छोटा होना।
(c) परिवार के पारम्परिक कार्यों में कमी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
एकाळी परिवार का क्या आशय है? (2007, 17)
उत्तर:
पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चों के योग से बनने जाले परिणार को एकाको परिवार कहते हैं। लोवी के अनुसार, “एकाको परिवार में प्रत्येक पति-पानी और अपरिपक्व आयु के बच्चे समुदाय के शेष लोगों से अलग एक इकाई का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार की दो विशेषताएँ लिखिए। 
(2015)
उत्तर:
एकाको परिवार की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. परिवार का छोटा आकार
  2. निजी सम्पत्ति की अवधारणा

प्रश्न 3.
एकाकी परिवार के पाँच दोष लिखिए। 
(2014)
धनी एकाकी परिवार से होने वाली दो हानियाँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
एकाको परिवार की हानि एवं दोष निम्नलिखित हैं।

  • कार्यक्षमता में कमी
  • नन्हें शिशुओं की समस्या
  • बच्चों में अनुशासनहीनता का विकास।
  • नौकरों पर निर्भरता का बढ़ना
  • स्वयं की भावना का विकास

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार प्रणाली से क्या अभिप्राय है? (2017)
अथवा
संयुक्त परिवार से क्या आशय है? (2006)
उत्तर:
संयुक्त परिवार प्रणाली से तात्पर्य, एक ऐसी पारिवारिक व्यवस्था से हैं, जिसमें निकट के रिश्तेदारों को शामिल किया जाता है (दादा-दादी, चाचा-चाची इत्यादि) तथा जिसमें सम्पत्ति, वास, अषकारों एवं कर्तव्यों का 
समिति रूप से समावेश होता है।

प्रश्न 5.
संयुक्त परिवार की चार प्रमुख विशेषताओं को बताइए। (2008)
उत्तर:
संयुक्त परिवार की प्रमुख चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • परिवार का बड़ा आकार
  • सामान्य नियम
  • सम्मिलित सम्पत्ति में आय
  • कर्ता का सर्वोच्च स्थान

प्रश्न 6.
संयुक्त परिवार के क्या लाभ है? है (2004, 14)
उत्तर:
संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार की सुविधाएँ; जैसे–मनोरंजन का उत्तम साधन, श्रम विभाजन, सामान्य हितों की रक्षा इत्यादि प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 7.
संयुक्त परिवार में स्त्रियों की स्थिति का उल्लेख कीजिए। (2009)
उत्तर:
संयुक्त परिवार में स्त्रियों को दशा बहुत दयनीय होती हैं। इस व्यवस्था में स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के विकास का कोई असर नहीं मिलता तथा उनके जोवन का प्रमुख लक्ष्य सन्तानोत्पति एवं पूरे दिन रसोई में व्यतीत करना हो जाता है, इसमें स्त्रियों को अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है। इस प्रकार इस व्यवस्था में उनका जीवन लगभग नौरस हो जाता है।

प्रश्न 8.
संयुक्त परिवार में वृद्धजनों (दादा-दादी के मनोवैज्ञानिक सम्बन्धों 
पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त परिवार में वृक्ष जन अपनी उपयोगिता को सुनिश्चित करते हुए अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना चाहते हैं। दूसरी ओर ये परिवार के अन्य सदस्यों से स्नेह एवं समन प्राप्ति की आकांक्षा भी रखते हैं। परिवार के छोटे बच्चे दादा-दादी के संरक्षण में समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हैं यद्यपि दादा-दादी 
का अधिक लाड़-प्यार उनके विकास को प्रभावित भी करता है।

प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार में प्राचीन एवं नवीन मूल्यों में संघर्ष की सम्भावना 
विद्यमान रहती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त परिवार में सामान्यतः तीन अथवा तीन से अधिक पोटो के सदस्य एकसाथ वास करते हैं। ऐसी स्थिति में पीडी-अन्तराल के कारण प्राचीन एवं नवोन मूल्यों में संघर्ष विकसित होना स्वाभाविक परिणाम है। आवश्यक है कि पुरानी एवं नवीन दोनों पीढ़ी के सदस्य परस्पर बातचीत करें एवं आपस के पौड़ी अनाराल को समझने की कोशिश करे।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
परिवार की चार विशेषताएँ लिखिए 
(2018)
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेश ने परिवार की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख लिया है।

  1. सार्वभौमिकता परिवार की उपस्थिति सार्वभौमिक होती है, अत् शहर हों, म ग हो; यह सभी जगह उपस्थित होता है और प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य होता है।
  2. सीमित और बड़ा आकार परिवार सीमित आकार या बड़े आकार का भी हो सकता है अर्थात परिवार में दो पी मों के सदस्य भी हो सकते है और तौन-या-तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य भी हो सकते हैं।
  3. भावात्मक आधार परिवार के सदस्य परस्पर भावात्मक बन्धनों से बँधे होते हैं। परिवार में प्रेम, त्याग, सहयोग, दया तथा बलिदान आदि की भावनाएँ विद्यमान रहती हैं।
  4. सदस्यों का उत्तरदायित्व प्रत्येक परिवार अपने-अपने सदस्यों से कुछ उत्तरदायित्व निभाने की अपेक्षा रखता है। संकट के समय प्रत्येक सदस्य परिवार के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर रहता है।

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार के क्या लाभ हैं? 
(2005, 06, 13, 13, 18)
उत्तर:
सामान्य रूप से एकाको परिवार में केवल दो पीढ़ियों के सदस्य पाए जाते है अर्थात् पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे ही एकाकी परिवार का निर्माण करते हैं। 
एकाकी परिवार के लाभ एकाकी परिवार के साथ या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. पति-पत्नी संयुक्त रूप से परिवार का संचालन करते हैं। इसमें पति-पत्नी को अपनी गृङ्गस्थी को संचालित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती हैं।
  2. सभी प्रकार के रिश्तेदारों व सम्बन्धियों में एकाको परिवार के प्रति सहानुभूति का व्यवहार रहता है। सम्बन्धियों के साथ प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होता है।
  3. एकाको परिवार में पति-पत्नी अपनी सन्तान को समुचित शिक्षा का प्रबन्ध करते हैं तथा उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु सदैव प्रयासरत् रहते हैं। अतः बच्चों के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होता है।
  4. एकाको परिवार में स्त्रियों की स्थिति मजबूत होती है। एक ही स्त्री होने के | कारण कोई भी एकाही परिवार में इसकी अवहेलना नहीं कर सकता। पत्नी द्वारा पिक सहायता करना भी सम्भव होता है।
  5. एकाको परिवार में पारिवारिक गोपनीयता बनी रहती है।
  6. एकाकी परिसर में प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सही प्रकार से होता है। परिवार का आकार छोटा होने के कारण शोषण व फतह का पूर्णतः अभाव होता है।
  7. एकाकी परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने कार्य को पूर्ण उत्तरदायित्व के अनुसार का है, जिससे भालस्य और कामचोरी की भावना विकसित नहीं हो पाती।

प्रश्न 3.
एकाकी परिवार में कौन-कौन सी व्यावहारिक कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं? (2006, 17)
उत्तर:
एकाकी परिवार की कुछ नयाँ व कठिनाइयों निम्नलिखित हैं

  1. नन्हें शिशुओं की समस्या ज्यादातर एकाकी परिवार में पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, ऐसे में नन्हें शिशुओं को कहाँ छोड़ा जाए, यह एक बहुत बड़ी समस्या होती है।
  2. कार्यक्षमता में कमी एकाको परिवार में सदस्यों की सागा कम होती है। यदि पत्नी नौकरी करती है, जो थर का सारा कार्य भी जो करना पड़ता है। अतः उसकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है।
  3. नौकरों पर निर्भरता पति-पत्नी दोनों को नौकरी करने के कारण प्रायः उन्हें | नौकरों पर निर्भर रहना पड़ता हैं। नौकर पर विश्वास करना कभी-कभी पाकि भी हो जाता है। अत: पति-पत्नी दोनों मानसिक परेशानी में रहते है।
  4. बच्चों में अनुशासनहीनता पति फनी दोनों के नौकरी पर चले जाने के कारण बच्चों के क्रियाकलापों की देखभाल करने के लिए घर पर कोई नहीं होता, इसलिए कभी-कभी उनमें बुरी आदतें भी जम ले लेती हैं। अतः बच्चे अनुशासनहीन हो जाते हैं। बच्चे एकता की भावना से ग्रसित हो जाते हैं।
  5. स्वार्थ की भावना का विकास एकाकी परिवार में पति पत्नी केवल अपने बारे में सोचते हैं। अत: उनमें स्वार्थ की भावना बढ़ती जाती है। वृद्ध माता-पिता तथा भाई बहन के लिए कार्य करने का उन्हें अक्सर ही नहीं मिल पाता। अतः ये स्वार्थी व निष्ठुर हो जाते हैं।
  6. उचित निर्देशन एवं परामर्श का अभाव एकाकी परिवार के सदस्यों को दादा-दादी एवं अन्य बुजुर्ग सदस्यों का उचित निर्देशन एवं परामर्श उपलब्ध नहीं हो पाता है। इस प्रकार वे बुजुर्ग सदस्यों के जीवन के अनुभवों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
  7. व्यय साध्य एकाकी परिवार के आय के स्रोत सीमित होते हैं, जबकि उन्हें समस्त संसाधनों को व्यय प्रबन्धन बिना किसी सहायता के स्वयं करना

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार के विघटन के दो मुख्य कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के विघटन के दो कार्य निम्न प्रकार हैं
1. स्त्रियों में आन्तरिक कलह संयुक्त परिवार की स्त्रियों में आपस में कलह 
परिवार के लिए हानिकारक होता है। संयुक्त परिवार में झगड़े तथा मानसिक इह एवं संघर्ष छोटी-छोटी बातों पर चलते राहते हैं, जो आगे चलकर एक समस्या का रूप धारण कर लेते हैं। जिससे पूरे परिवार तथा बच्चों पर बुरा प्रभव पता है, इससे बचने के लिए अनेक दम्पति अपना एक अलग एकाकी परिवार बस्सा लेते हैं।

2. व्यावसायिक विजातीयता 20वीं शताब्दी में भारतीय समाज को परिवर्तित करने वाले अनेक सामाजिक आर्थिक क्रियाओं के फलस्वरूप नए-नए व्यवसाय व रोजगारों के वक्त आने से लोग इन गामाया अशा अवसरों को ओर आकर्षित हुए हैं। संयुक्त परिवार के सदस्य भी परम्परागत व्यवसाय को इछोड़कर नए साय अपनाने लगे हैं। इसके परिणामस्वरुप संयुका परिवारों के विघटन को प्रक्रिया तेज हुई हैं।

प्रश्न 5
“आधुनिक युग में संयुक्त परिवार लुप्त होता जा रहा है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। 
(2016)
उत्तर:
औद्योगीकरण के इस युग में संयुक्त परिवार व्यक्ति या समाज की माँगों को पूर्णरूप से सना नहीं कर पा रहा है, इसलिए मशः संयुमा परिवार का या तो विघटन ही होता जा रहा है या फिर इसके स्वरूप में अत्यधिक पस्मि स्वीकार किए जा रहे हैं। संयुक्त परिवार के लुप्त होते जाने की पुष्टि के समर्थन में निम्नलिखित कारणों को प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रथमत: औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रियाओं में रोगों के कारण गाँव के लोगों में नगरों की ओर प्रवसन करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। अतः क्षेत्रीय गतिशीलता में वृद्धि के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार का विघटन स्वाभाविक हो जाता है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त परिवार समष्टिवादिता की धारणा पर आधारित होते हैं, परन्तु आणुनिक भौतिकवादी युग में सामूहिकता के स्थान पर व्यक्तिवादिता का अधिक बोलबाला हो गया है। इसके अतिरिक्त पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव से उन लोगों का झुकाव कर्तव्यों की ओर न होका अधिकारों की ओर है। इन नवीन मूल्यों के प्रभाव र संयुक्त परिवार का महत्त्व कम हो रहा है।

इसके अतिरिक्त कमान आधुनिक तकनीकी युग में नए-नए व्यवसायों व रोजगारों को सावनाओं का विस्तार भी है। संयुक्त परिवार के सदस्य भी परम्परागत व्यवसाय को छोड़कर नए व्यवसाय अपनाने लगे हैं। इसके परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों में घिरन की प्रक्रिया तेज हुई है। संयुक्त परिवार में अधिक सदस्यों के निर्वहन का बोझ भी छोटे या बड़े सदस्यों को जविकोपार्जन के लिए नए व्यवसाय खोजने हेतु प्रेरित करता है। फलत: परम्परागत व्यवसाय की भिन्तरता बाधित होती है।

इसके अतिरिक्त वर्तमान आधुनिक युग में नए कानूनों; जैसे हिन्दू स्त्रियों का सम्मति अधिकार अनियम आदि के प्रभाव के कारण भी संयुक्त परिवार के विघटन की प्रक्रिया भी हुई है। दूसरी ओर वर्तमान आधुनिक समाज में उद्भूत नवीन सामाजिक संस्थाओं के संयुक्त परिवार द्वारा सम्पादित काय के लिए नए विकल्प प्रस्तुत किए हैं। अतः संयुक्त परिवार का महत्व एवं आवश्यकता दिन प्रतिदिन घटती जा रही है।

प्रश्न 6.
संयुक्त परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए सुझाव दीजिए। 
(2013)
उत्तर:
वर्तमान परिवतियों में संयुक्त परिवार के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए व्यावहारिक सुझाव निम्नलिखित है।

  1. संयुक्त पीवार में सभी स्त्रियों को विशेष रूप से पुत्र-वधुओं को समुचित सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए।
  2. परिवार के मुखिया को अधिक उदार तथा न्यायप्रिय होना चाहिए।
  3. संयुक्त परिवार में मारपती एवं योग्य व्यक्तियों को अधिक सम्मान एवं सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
  4. संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के लिए आवास की आवश्यक सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
  5. संयुक्त परिवार में प्रत्येक सदस्य को अपने कर्तव्यों तथा अन्य सदस्यों के अपकारों के प्रति आगरूक होना चाहिए।

प्रश्न 7.
एकावी परिवार के सम्बन्धों के मनोविज्ञान पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
एकाकी परिवार में सदस्यों के मनोवैज्ञानिक सम्बन्धों की दृष्टि से निम्नलिखित तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं।

1. बच्चों- का मनोवैज्ञानिक सम्वन्य एकाकी परिवार में बच्चे अपनी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं; जैसे-स्नेह, ममता, सुरक्षा आदि की पूर्ति हेतु पूर्णत: माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। माता-पिता को व्यस्तता अथवा अन्य किसी कारण। इन आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर बच्चों के व्यक्तित्व का उचित विकास नहीं हो पाता है।

2. पति- पत्नी का मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध एकाही परिवार में पति-पत्नी को भूमिका गाढ़ी के दो पहिए के समान होती है। अत: जीवन के सुचारु संचालन के लिए इनमें परस्पर सामंजस्य एवं सनसन स्थापित होना अति आवश्यक है। किसी एक में भी सवोच्चता का भाव, परिवार को विटित करने की क्षमता रखता है। आवश्यक है कि पति-पत्नी में परस्पर विश्वास हो, दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा के प्रति संवेदनशील हो और * दोनों एक-दूसरे को भूमिका के महत्व को समझें।

3. माता- पिता एवं पुत्र/पुत्री का मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध बाल्यावस्था तक सन्तान माता के संरक्षण में अधिक रहती हैं, किन्तु इसके पश्चात् की। अवस्था में पुत्र, पिता के मार्गदर्शन में स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करता है। पिता भी पुत्र को अपना सहयोगी मानते हैं एवं उसके भावी जीवन को निर्देशित करते हैं। दूसरी ओर पुत्रियां माता के ऑपक नगदक होती है। एवं माता के साथ प्रई, कोमल व ममतापूर्ण सम्बन्ध विकसित करती हैं। पुत्रियों के पराया धन होने की भावना भी माता में उनके प्रति विशेष लगाव उत्पन्न करती है। वस्तुतः माता एवं पुत्री के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध एक आदर्श स्थिति को इंगित करते हैं। एकाकी परिवार का अस्तित्व उपरोक्त वर्णित मनोवैज्ञानिक बन्यों की गहन समझ पा निर्भर करता है। इनकी समझ के अभाव में पारिवारिक सम्बन्धों में तनाव ापन होने की सम्भावना चत तो है

प्रश्न 8.
सास-बहू के सम्बन्ध में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2008)
अशा बहू के सुखद वैवाहिक जीवन में सास की क्या भूमिका है? 
(2005, 09, 10, 16)
उत्तर:
बहू के सुखद वैवक जीवन में सास की भूमिका अत्यन्त निर्णायक होती है, चूंकि पी के घर में आने पर बहू का सर्वाधिक काम मास में ही पड़ता है, इसलिए इन दोनों के शवों में सौहार्द्रता होनी अतिभाश्यक है। चूक सास घर में बड़ी और ज्यादा अनुभव हो है, इसलिए उन्हें बड़ी सूझ बूझ व दायित्वपूर्ण वेग से व्यवहार करना चाहिए तथा बहू को की भी बात समझाते हुए मपुर एवं स्नेहपूर्ण ढंग से व्यवहार करना चाहिए। इससे बहू को नए परिवार में अनुकूलन करने या उलने में मदद मिलती है। दूसरी ओर बहू को सास के प्रति माता का भाव रखना चाहिए, उन्हें आदर-सम्मान तथा स्नेह देना चाहिए, इससे सास बहू के रिश्तों में मधुरता आएगी और बहू का वैवाहिक जीवन सुखद होने के साथ ही परिवार का वातावरण भी शान्तिपूर्ण व खुशहाल होगा, साथ ही सास-बहू के समय अड़े होने से बहू का अपने पति से भी रिता मजबुत होगा।

प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार तथा एकाकी परिवार में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
(2005, 17, 18)
उत्तर:
संयुक्त परिवार एवं एकाकी परिवार में अन्तर निम्नलिखित हैं
UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान 1
UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान 2

प्रश्न 10.
समाज व परिवार को कोर्ट परिवार से क्या लाभ हैं? (2017)
उत्तर:
भारतीय विचारधारा के अनुसार प्राचीनकाल से पारिवारिक संस्था का अत्यधिक महत्त्व रहा है। यह समाज को एक महत्वपूर्ण इकाई मानी जाती है, जो समाज के स्थायित्व, वृद्धि और अत्रि का प्रमुख आधार है। मैकावर और पेज ने परिवार को समाज की सबसे महत्वपूर्ण संस्था माना। बड़ा परिवार होने पर इसमें कई प्रकार की कठिनाई आप्त रहती है। यहाँ आमदनी कम तथा खर्च अधिक होते हैं। इसके विपरीत छोटा परिवार सौमित आवश्यकताओं वाला होता है तथा इसके सदस्य भी सीमित होते हैं।

इनकी आवश्यकताएँ छोट एवं कम् खर्च वाली होती हैं, क्योंकि इस परिवार की आय भी कम होती हैं। संख्या के सीमित रहने पर एक एक आवश्यकताओं को ठीक से पूर्ण किया जाता है। इस लाह के परिवारों में एक रोती है, जिसका कारण पापा एक-दूसरे के सुख बाँटना, उसे समझना और उसमें हाथ बँटाना शामिल होता है। छोटे परिवारों में जीवन को मूल आवश्यकताएँ रोटी, कपड़ा और मकान की समस्याएँ इतनी ची नहीं होती हैं, जिनमें बड़े परिवारों को। अतः समाव व परिवार की दृष्टि से बड़े परिवार की तुलना में छोटे परिवार श्रेष्ठ है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त परिवार की विशेषताएँ लिखिए। (2014, 17)
उत्तर:

संयुक्त परिवार का तात्पर्य

भारतीय समाज में पारम्परिक रूप से पाए जाने वाले परिवारों को समाजशास्त्रीय भाषा में ‘संयुक्त परिवार’ कहा जाता है। संयुक्त परिवार प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूप से परस्पर सम्बन्धित भिभिन्न गीवियों (सामान्य रूप से तीन या उससे अधिक) के सदस्यों का एक प्रामक समूह है, जिसके सदस्य समान्य आम व्यय में योगदान देते हैं। एक धर्म के अनुयायी बनकर सामान्यतः एकसाथ निवास संयुक्त परिवार की विशेषताएँ संयुक्त परिवार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है।

1. परिवार का बड़ा आकार संयुक्तपरिवार में सामान्यतः न या तीन से अधिक जोड़ो के सदस्य एकसाथ रहते फलस्वरूप संयुक्त परिवार का आकार वृहद् होना इसकी आधारभूत है। इस परिवार में सामान्यत: 20 से 25 सदस्य होते हैं।

2. सामान्य निवास स्थान संयुक्त 
परिवार में तीन या तीन से अधिक कि निरन्तरता पीढ़ी के लोगों का एक घर होता है। यदि कोई सदस्य या परिवार भ्रमण, नौकरी, शिक्षा या अन्य किसी काण से दूर में रहता है, भी उसे उसी सामान्य निवास का सदस्य माना जाता है। इस परिवार के सदस्य एक ही मकान में रहते हैं।

3. निश्चित संरचना भारतीय संयुक्त परिवारों में परिवार के सभी सदस्यों की एक प्रकार से निश्चित संरचना होती है। इस संरचना के अन्तर्गत परिवार के मुनगा या स्। का रान निश्चित होता है। कर्ता को उसकी स्थिति के अनुसार ही अधिकारों का प्रयोग एवं कर्तव्यों का पालन करना पड़ता हैं। दूसरे स्थान पर उसकी स्त्री होती है, तीसरे स्थान पर परिवार के सभी भाई एवं लड़के होते हैं, चौथे स्थान पर परिवार की सभी स्त्रिों आती हैं।

4.धार्मिक आधार संयुक्त परिवार में सभी कार्य पार्मिक विचारों को ध्यान में रखकर किए जाते हैं; जैसे-कर्मकाण्डों से सम्बन्ध रखने से कार्य, त्यौहारों को मनाना एवं प्रत इत्यादि रखना। सामूहिक पृ-पाठ करना भी संयुक्त परिवार की एक प्रमुख विशेषता है।

5. आर्थिक स्थिरता संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों द्वारा अर्जित धन एक ही कोष में एकत्र होने और सभी सदस्यों के लिए सामान्य रूप से आवश्यकतानुसार व्यय होने के कारण परिवार की आर्थिक स्माित धक दयनीय नहीं होतो, क्योकि कर्ता या गृहपति सयो धक आयु वाला व्यक्ति होता है। अतः यह पैसा सोच-समझकर ही सर्व करता है।

6. सामान्य सम्पत्ति संयुक्त परिवार के अन्तर्गत परिका को सम्पति का व्यक्तिगत उपग या लाभ न होकर परिवार के सभी सदस्यों के लिए उपग एवं लाभ होता है। परिवार की सम्पूर्ण सापशि पर संयुक्त अधिकार होता है।

7. सदस्यों की सुरक्षा ऐसा देखा जाता है कि एकाकी परिवार में कम सदस्य होते हैं। यदि उनमें से कोई सदस्य बीमार हो जाता है अथवा कहीं चला आता है, तो परिवार के कार्यों में बाधा ही हो जाती है परन यदि परिवार संगत है, तो उसके अन्दर हम प्रकार की छोटी छोटी समस्याएं परिवार के कार्यों में कोई विशेष बाधक नहीं होती है।

8. सांस्कृतिक निरन्तरता संयुक्त परिवार में तीन या इससे अधिक पौड़ी के लोग रहते हैं। पुरानी पीढ़ी के लोगों द्वारा नई पीढ़ी के लोगों को सांस्कृतिक परम्पराओं को हस्ताक्षरित किया जाता है। भर के बुजुर्ग यति छोटे बच्चों को कहानियां सुनाकर, अपने धन के उदाहरण देकर, अपने साथियों के व्यवहारों एवं अनुभवों को बताकर इस कार्य को पूरा करते हैं। परिणामस्वरूप नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के आचार-विचार, प्रथा, परम्पराएँ, धर्म और कर्म, हार इत्यादि को प्रहण काके अपने में आत्मसात् करती है, इससे सांस्कृतिक निरन्तरता बनी रहती हैं।

प्रश्न 2.
संयुक्त परिवार के मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: 

संयुक्त परिवार के गुण

संयुक्त परिवार के गुण निम्नलिखित हैं।
1. बच्चों का उचित पालन-पोषण संयुक्त परिवार में छोटे-बड़े सभी प्रकार के सदस्य राहते हैं। वृद्ध व्यक्तियों को दोटे पत्थों के पालन पोषण का अधिक ध्यान राता है। यदि परिवार के अन्य सदस्य विभिन्न कार्यों में सलान राहते है, तो वृद्ध लोग बच्चों की देखभाल का कार्य संभाल लेते हैं।
2. सुरक्षा की भावना संयुक्त परिवार। 
के सदस्य आपस में प्रेम ए सहयोग के बयान में हैं, जिसके इति पालन पोषण कारण सभी सदस्य शारीरिक, सुरक्षा की भावना मन्तबज्ञानिक आर्थिक तथा सामाजिक सुरत का अनुभव करते हैं। मामूकता रै भवन विनाशमन में बधों, पण सामाजिक निम्। वृद्धों एवं विधाओं की भा के पारिकि वर्ष में बचाअम-विभाजन समस्या का इल स्वयं परिवार में ही भि अनुभव प्राप्त करने का हो जाता है।
3. मनोरंजन का साधन संयुक्त परिवार में छोटे-बड़े सभी तरह के सदस्य होते हैं। ये सभी सदस्य जब आपस में मैठकर विचार विनिमय तथा हँसी मजाक करते हैं, तो एक प्रकार से सभी लोगों का मनोरंजन होता है।
4. सामूहिकता की भावना संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के साथ में रहने, आपस में विचार-विमर्श करने, उठने-बैठने इत्यादि कार्यों से उनमें सामूहिक भावना का विकास होता है। इस भन्। से व्यक्ति में सुरक्षा की भाषा तथा धैर्य का विकास होता है। याही सामूहिकता को 
भावना परिवारवाद को बढ़ावा देती है।
5. सामाजिक नियन्त्रण संयुक्त परिवार में सामाजिक नियन्त्रण का कार्य 
परिवार के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है। परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे से पारस्परिक कर्तव्य से बंधे रहते हैं, यही कारण है कि सभी सदस्य एक प्रकार से नियन्त्रित जोधा बताते हैं।
6. पारिवारिक मार्च में अस्रत संयुक्त परिवार में पारिवारिक खर्च भी संयुक्त होता है। पूरे परिवार के लिए आवश्यक वस्तुएँ एक साथ ही खरीदी जाती हैं। एकसाथ काफी मात्रा में पाएं खरीदने पर अपेक्षाकृत गरी मिलती है। इसके अतिरिक्त एकसाथ संयुक्त परिवार बसाकर रहने की स्थिति में बहुत-से खर्च एक ही जगह होते हैं, जबकि एकाकी परिवारों में उतने ही खर्च अलग-अलगजगह होते हैं।
7. म-विभाग संयुक्त परिका के सभी सदस्य कार्य को आपस में बाँटकर 
करते हैं। संयुक्त परिवार का मुखिया, की या गृहस्वामी परीजा के सभी सदस्यों को उनकी योग्यता एवं क्षमताओं के अनुसार अलग-अलग कार्य सौंपता हैं। विभिन्न अनुभव करने का स्थान संयुक्त परिवार में व्यक्ति विभिन्न ऑक्तचों के सदस्यों के मध्य रहता है। इसके अतिरिका उसे विभिन्न आयु के लोगों के अनुभवों एवं विचारों को जानने का अवसर मिलता है। इस रूप में संयुक्त परिवार व्यक्ति को उसके आगामी जीवन के लिए तैयार करता है।

प्रश्न 3.
संयुक्त परिवार के मुख्य दोषों का उल्लेख कीजिए। (2006, 14)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के दोष संयुका परिवार के दोष या हानिन निम्नलिखित हैं।

  1. वेग तथा कलह का केन्द्र संयुक्त परिवार कलई एवं द्वेष का केन्द्र होता है। यदि संयुक्त परिवार में कता अपने हित पर ध्यान देना प्रारम्भ कर दे, तब स्थिति और भी बिगड़ जाती है।
  2. स्त्रियों की सराब स्थिति संयुक्त। परिवार का एक दोष यह भी है कि संयुक्त परिवार के दोष इन परिवारों में स्त्रियों की दशा बहुत निन एवं दयनीय होती है। सुनान पति विशेषकर बधुओं को बहुत अधिक वर्ग या परम करना पता है। अधिक जानोत्पति उनको । एवं मनद के कोप। अकर्मण माने पात्र बनना पड़ता है। संयुक्त परिवार के पापा का व में आ स्वावलम्बन के के भय का वातावरण प्राप्त । हो पाने के कारण स्त्रियाँ भिक रिता सदैव दूसरों पर निर्भर रहती हैं।
  3. बुद्धि का अनुपयोगः संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक कता की आज्ञानुसार कार्य करते हैं। इस स्थिति में उन्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करने का अवसर प्राप्त नहीं होता, जब कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करता, तो उसकी बुद्धि का कुण्ठित हो जाना स्वाभाविक हैं।
  4. अधिक सन्तानोत्पनि संयुक्त परिवार में जहाँ बाल विवाह को प्रोत्साहन मिलता है एवं विवादी जियारों को वर्चस्व प्राप्त होता है। वहीं पुत्र सनान की कामना को विशेष मात्र प्राप्त होता है। संयुक्त परिवार में परिवार की स्त्रियों भी यह सोचने लगती हैं कि जितने अधिक बच्चे पैदा किए जाएंगे, उतना ही अधिक उनको परिवार की सामान्य सम्पत्ति का भाग पैटधार के समय मिलेगा।
  5. अकर्मण्य व्यमियों की वृद्धि संयुक्त परिवार में परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण का दायित्व पूरी परिवार पर ही होता हैं। इस सुविधा का साथ जताकर का सदस्य अकर्मण्य, आलसी या निकम्मे। आते हैं। ये सदस्य बिना कुछ कार्य किए हैं। खाते-पीते तथा मौज करते हैं, इससे पूरे परिवार का जीवन-स्तर निम हो जाता है। साथ ही इससे आम अर्गन करने वालों में असन्तोष उत्पन्न होता है।
  6. गोपनीयता का अभाव संयुक्त परिबार में अधिक सदस्य होने के कारण नव-विवाहिती अथवा पति-पत्नी को एकान्त यांनीय स्वतन्त्रता उपलब्ध नहीं हो पाती है। अनेक अवसरों पर यह वचन परिपत्नी के बन्यो में कुण्ठा को जन्म देती है एवं उनके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करती हैं।
  7. भय का वातावरण संयुक्त परिवारों में पवार के वृद्धजनों के संयों को ही प्रमुखता प्राप्त होती है। उनकी सहमति के बिना किसी नए विचार का अनुपालन परिवार में सम्पन्न नहीं होता है। अत: नई पी के सदस्यों में अपने नए रचनात्मक विचारों को आगे रखने का संकोच सर्द। विद्यमान रहता हैं।
  8. आर्थिक निर्भरता उल्लेखनीय है कि संयुक्त परिवारों में प्रायः सभी वयस्के सदस्य जीविकोपार्जन में संलग्न राहते हैं, किन्तु परिवार के आय-व्यय का ले-जोखा के परिवार के मुखिया के हाथों में रहता है। फलतः सभी सदस्यों को अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए एक व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता हे।

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार टूटने के क्या कारण है? (2006, 10)
अथवा
भारतीय समाज में संयुक्त परिवार के निरन्तर विघटन के 
कारणों को स्पष्ट कीजिए। इन VImp (2003, 04, 06, 11, 12)
अथवा
“संयुक्त परिवार का भविष्य उज्ज्वल नहीं है।” क्यों? (2016)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के विघटन के कारण औद्योगीकरणा के इस युग में संयुक्त परिवार व्यक्किा एवं समाज को माँगों को पूर्ण रूप से मनुष्ट नहीं कर पा रहा है, इसलिए क्रमशः संयुक्त परिवार का या तो विघटन ही होता जा रहा है या फिर इसके स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन स्वीकार किए जा रहे हैं। संयुक्त परिवार के विघटन के निम्नलिखित कारण हैं।
1. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण 
संयुका परिवार के विपरन् का प्रभाव औद्योगीकरण एवं नगरीकरन की प्रक्रियाओं में छोरीकरण एवं नगरीकरण व के कारण गाय के लोगों का प्रभाव में नगरों की ओर प्रवसन की शरदत्य पति का प्रभाव प्रवृत्ति में है। अव आमसवम एवं आत्मत्याग की कमी गांव के लोग नए रोजगार एवं प्रभात व्यावसायिक अवसरों के लिए उनमा वृद्धि का प्रय नगरों की ओर आकर्षित हुए नए कानूनों का प्रव हैं।

इन लोगों ने गांव के संयुक्त परिवार से आकर नगरों में अपने लिए मकान बना लिए हैं। तथा व्यवसाय भी खोना लिए हैं, परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों में अब पहले जैसी बात नहीं ह गई है। अनेक व्यक्ति अपने पारिवारिक व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसायों को अपने लगे हैं। अत: क्षेत्रीय गतिशीलता में वृद्धि हुई है, इसमें संयुक्त परिवार का विघटन स्वाभाविक हो जाता है।

2. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भारतीय संस्कृति के अनुसार, संयुक्त परिवारों में परिवार के सदस्यों के कर्तव्यों पर विशेष बल दिया जाता था, परन्तु वर्तमान स्थिति ठीक इसके विपरीत है। पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव से अब लोगों का झुकाव करियों की ओर न होकर अष्किारों की ओर है। पाश्चात्य दृष्टिकोण व्यक्तवादी है। अत: इस दृष्टिकोण के प्रबल होने की स्थिति में संयुक्त परिवार का महत्व घट रहा है।

3. आत्मसंयम एवं आत्मत्याग की कमी वर्तमान समय में लोगों में आत्मसंयम एवं आत्मत्याग । भाषा में कमी आई है या उनका एकदम से लोग ही होता चला जा रहा है। दूसरी ओर लोगों के निजी स्वार्थ एवं भौतिहाद तथा गतिवादिता की भावनाएं बड़ती जा रही है। इस कारण थोड़ी-सी परेशानी का संकट का अनुभव करते हैं। अब लोग संयुक्त परियार को छोड़कर एकाकी परिवार बसाने को तत्पर हो जाते हैं।

4. स्त्री-शिक्षा का प्रभाव आज की शिक्षित स्त्री अपने चारों और के ताबरण की जानकारी रखती है। वह संयुक्त परिसर के घुटन भरे जीवन को, जिसमें से कर्ता के निरंकुश शासन में रहना पड़ता है, अपने अधिकारों का हनन समझती हैं। ऐसी स्थिति में सभी आधुनिक वातावरण की चाह में संयुक्त परिशा की अपेक्षा एकाकी परिवार को अधिक पसन्द करती है।

5. जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव जनसङ्ख्या में वृद्धि न केवल संयुक्त परिवारों के लिए ही भयानक परिणाम पैदा करने वाली है, अपितु कभी-कभी सम्पूर्ण समाज के लिए भी ऐसी समस्या बन जाती है, जिसका समाधान खोजना कठिन हो जाता हैं। 

संयुक्त परिवार का भविष्य

उपरोक्त कारणों के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि संयुका परिवार को अवधारणा वर्तमान आधुनिक युग में संक्रमण के दौर से गुजर रही है। संयुक्त परिवार की मूलभूत विशेषताओं; जैसे–सामूहिक, सांस्कृतिक निरन्तरता आदि को आधुनिक युग की संकल्पनाएँ प्रभावित कर रही हैं। 

अत: संयुक्त परिवारों में विपटन की सम्भावनाएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं। समकालीन सामाजिक संरचना में संयुक्त परिवार छिन-भिन्न होकर एकाकी परिशों का रूप ले रहे हैं। यद्यपि संयुक्त परिवार के भविष्य के विषय में दो विचारधाराएँ सामने आती हैं ।

  1. प्रथम विचारधारा संयुक्त परिवार के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। इसके समर्थक के, एम, कपाडिया है। उनके अनुसार, संयुक्त परिवार ने अभी तक जिस कमय समय को पार किया है, उसका भविष्य पुरा नहीं है। इसके अतिरिक्त हिन्दू मनोवृत्तियाँ आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं।
  2. दूसरी विचारधारा संयुक्त परिवार के भविष्य को अन्धकारमय मानती है। इस विचारधारा के समक्षक कोलण्ड़ा के अनुसार अधिकांश भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या प्रतिदिन कम होती जा रही है अर्घात् उनका विघटन हो निष्कर्ष जो भी हो, इतना तो हम कह सकते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में संयुक्त परियार के स्वरूप में परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 5.
“परिवार समाजीकरण की प्रथम पाठशाला है” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। 
(2018)
उत्तर:
समाजीकरण की प्रक्रिया बहुत जटिल प्रक्रिया है, जो बालक के विकास को प्रभावित करती है जिसका वर्णन निम्न प्रकार से हैं। परिवार का योगदान समाजीकरण की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है, वहीं से बालक सर्वप्रथम समाजीकरण आरम्भ करता है। इसी कारण से परिवार को बालक की सपशम पाठशाला’ कहा गया है। परिवार हो वो गह है जहाँ में शतक आदर्श नागरिकता का पाठ सीखा है। चालक के समाजीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित है।
1. माँ की भूमिका चालक का परिवार में सबसे घनिष्ठ सम्बन्। माँ से होता हैं। माँ 
उसे दूध पिलाती है और उसकी देखभाल भी करती है और यदि म बालक को देखभाल अच्छे से न करती तो उसका प्रभाव यह होता है कि चालक का। समाजीकरण उचित प्रकार से नहीं होता।
2. अधिक लाड़-प्यार बालक को परिवार द्वारा आवश्यकता से अधिक प्रेम करने 
प्रकार का कार्य न करने देने पा, आम कारण से उनका समाजीकरण रुक जाता है या ठक ढंग से नहीं हो पाता है, जिसके परिणामस्वरुप बालक बिगड़ जाता है।
3. माता-पिता का आपसी सम्बन्धी बालक के साम्राज्ञीकरण में माता-पिता का विशेष महत्व होता है। जिन परिवार में मात-पिता के आपको सम्बन्धी अन् होते हैं उन परिवार का समाजीकरण उचित ढंग से होता है। इसके विपरीत विन परिवार में माता-पिता आपस में झगड़ते हैं उन परिवार के बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे उनका सामाजीकरण विकृत हो जाता है, क्योंकि आपसी लड़ाई-झगड़े के कारण माता-पिता बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दे
4. माता-पिता के बच्चे के साथ सम्बन्ध माता-पिता जय बन्यों को उचित स्नेह देते हैं तो उनमें अहें सामाजिक गुण पैदा हो जाते है और यदि बच्चों को माता-पिता का उचित प्यार और सुरक्षा नहीं मिलती है, तो उनका सामाजिक विकास अच्छे ढंग से नहीं होता। वे पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि बच्चों को कम स्नेह या प्यार मिलता है, तो उनमें बदला देने की भावना विकसित हो जाती है। इस कारण से बालक कई यर बात-अपराधी भी बन जाते हैं।
5. बच्चों का अन्य सम्बन्धियों के साथ सम्बन्ध बों के परिवार के सम्बन्धियों का भी बच्चे के अपर गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे—वर का दादा-दादी, चाचा-चाची, मौसा मी तथा अन्य परिवार सगे सम्बन्धियों के साथ सम्बन्ध कैसा है? ये भी बालक के समानीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
6. परिवार की आर्थिक स्थिति यह भी देखा गया है कि यदि पारिवारिक आर्थिक स्थिति ठीक न हो तो ये भी बालक के समाजीकरण में बाधा पहुंचाती है, क्योंकि बालक के पालन पोषण में बच्चों को वे सभी आर्थिक सुख-सुविधाएँ नहीं मिल पाती, जो एक अच्छे परिमार के बच्चों को मिलती हैं। अत: इनसे 
बालक में सहनशीलता, परिश्रम करने वाले गुण विकसि होते हैं।
7. परिवार की बनावट परिवार दो प्रकार के होते हैं।

  • एकाकी परिवार
  • संयुक्त परिवार

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UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स are part of UP Board Solutions for Class 12 Computer. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Chapter Chapter 10
Chapter Name कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स
Number of Questions Solved 35
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
if, if-else तथा switch स्टेटमेण्ट्स हैं।
(a) ब्रांचिंग
(b) जम्पिंग
(c) लूपिंग
(d) कण्डीशन
उत्तर:
(a) ब्रांचिंग

प्रश्न 2
निम्न में से कौन-सा लूप स्टेटमेण्ट नहीं है? [2013]
(a) if
(b) do-while
(c) while
(d) for
उत्तर:
(a) if एक ब्रांचिंग स्टेटमेण्ट है, जो प्रोग्राम में निर्णय लेने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3
default की-वई किसमें प्रयोग किया जाता है?
(a) goto
(b) if
(c) if-else
(d) switch
उत्तर:
(d) switch

प्रश्न 4
break स्टेटमेण्ट का प्रयोग निम्न में से किससे बाहर जाने में किया जा सकता है?
(a) for लूप
(b) while लूप
(c) Switch स्टेटमेण्ट
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 5
निम्न में से कौन-सा प्रोसेस संख्याओं को निश्चित अंक तक चलाने के लिए उच्चतम है?
(a) for
(b) while
(c) do-while
(d) ये सभी
उत्तर:
(a) for लूप अन्य सभी स्टेटमेण्ट से उच्चतम है।

प्रश्न 6
निम्न में से i++; स्टेटमेण्ट किसके समान है?
(a) i = i +i;
(b) i = i+1;
(c) i = i-1;
(d) i–;
उत्तर:
(b) i++; स्टेटमेण्ट से तात्पर्य है कि उसमें 1 अंक जुड़ जाए, इसलिए 1 = 1+ 1; इसके समान है।

प्रश्न 7. Unconditional branching statement का उदाहरण है [2007]
(a) if else
(b) go to
(c) switch
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) go to

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
कोई नम्बर 2 से विभाजित है अथवा नहीं इसके लिए स्टेटमेण्ट लिखिए।
उत्तर:
if (n%2 == 0)

प्रश्न 2
switch स्टेटमेण्ट का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
switch स्टेटमेण्टे का प्रयोग प्रोग्राम में दिए गए अनेक मार्गों में से किसी एक का चयन करने में किया जाता है।

प्रश्न 3
लूपिंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी प्रोग्राम में निर्देश या निर्देशों के समूहों को एक से अधिक बार एक्जीक्यूट करने को लूपिंग कहते हैं।

प्रश्न 4
जब हमें एक निश्चित संख्या में दोहराव (Repetition) करना हो, तो किस लूप का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
for लूप द्वारा निश्चित संख्या में दोहराव लाया जाता है।

प्रश्न 5
while लूप और do-while लूप में क्या अन्तर है? [2007]
उत्तर:
while लूप में पहले कण्डीशन चैक की जाती है। इसके बाद लूप की बॉडी एक्जीक्यूट होती है, जबकि do-while में पहले लूप की बॉडी एक्जीक्यूट होती है फिर कण्डीशन चैक की जाती है।

प्रश्न 6. किस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी लूप के शेष स्टेटमेण्टों को छोड़कर
आगे बढ़ जाने के लिए किया जाता है? उत्तर continue स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न I (2 अंक)

प्रश्न 1
ब्रांचिंग पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। [2003]
उत्तर:
जब C++ प्रोग्राम में किसी स्टेटमेण्ट पर ऐसी स्थिति आती है कि वहाँ से आगे बढ़ने के लिए एक से अधिक मार्ग होते हैं, तो ऐसी स्थिति ब्रांचिंग कहलाती है। ब्रांचिंग स्थिति को हल करने के लिए ब्रांचिंग कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है, जो निम्न है।

  1. if स्टेटमेण्ट
  2. if-else स्टेटमेण्ट
  3. switch स्टेटमेण्ट
प्रश्न 2
लूप्स की नेस्टिंग उपयुक्त उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए। [2018]
उत्तर:
जब हम एक लूप के अन्दर दूसरी लुप लगाते हैं, तो इस प्रकार की लूप नेस्टिड लूप या लूप्स की नेस्टिंग कहलाती है।
उदाहरण
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, i;
for (n = 1; n< = 10; n = n+ 1)
cout <<"Table is : "<<endl;
for (1 = 1; i< = 10; i ++)
{
cout <<n*i <<endl;
}
cout <<endl;
}
}

प्रश्न 3
break एवं continue स्टेटमेण्ट की उपयोगिता को उदाहरण सहित समझाइए। [2006]
अथवा
break व continue में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007]
अथवा
उपयुक्त उदाहरण देकर break व countinue स्टेटमेण्ट्स में भेद करें। [2018]
उत्तर:
break व continue में अन्तर निम्न हैं।

break लूप से बाहर निकलने के लिए break स्टेटमेण्ट का प्रयोग होता है।
continue लूप के शेष स्टेटमेण्टों को छोड़कर आगे बढ़ जाने के लिए continue स्टेटमेण्ट का प्रयोग होता है।
उदाहरण
for
(inti = 1; i<= 5; i ++)
{
if(1%2==0)
break;
cout<<i;

उदाहरण
for(inti=1; i<= 5; 1 ++)
{
if(i%2= =0)
continue;
cout<<i;
}
प्रश्न 4
किसी संख्या का फैक्टोरियल निकालने हेतु C++ में प्रोग्राम लिखिए। [2011]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
int num, i, f = 1;
cout<<"Enter the number:";
cin>>num;
for(i = num; i > 0; i--)
{
f=f*i;
}
cout<<"Factorial of the number:"<<f;
}

आउटपुट:
Enter the number: 5
Factorial of the number : 120

प्रश्न 5
C++ में प्रारम्भिक 10 संख्याओं का औसत मान ज्ञात करने के लिए प्रोग्राम लिखिए।
उत्तर:
#include<iostream.h>.
void main( )
int sum=0,n, i=1;
float avg;
cout<<"\n Enter the value of n:";
cin>>n;
do
{
sum = sum + i ;
i = i + 1;
}
while (i <= n);
cout<<"\n Sum is: "<<sum;
avg=(float) sum/n;
cout<<"\n Average is :"<<avg;
}

आउटपुट:
Enter the value of n: 10
Sum is: 55
Average is; 5.5

प्रश्न 6
एक C++ प्रोग्राम लिखिए, जो A से H तक सीरीज प्रिण्ट करे, परन्तु उसमें c तथा F उपस्थित न हो।
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
for (char i='A';i<='H'; ++i)
{
if (i == "c' ।। i == 'F')
{
continue;
}
cout<<<<"\t";
}
}

आउटपुट:
A B D E G H

लघु उत्तरीय प्रश्न II (3 अक)

प्रश्न 1
उदाहरण सहित do-while व for लूप में भेद करें। [2016, 14]
उत्तर:
do-tuhile व for लूप में निम्न अन्तर हैं।

do-while लूप do-while लूप
इस लूप में लूप काउण्टर, असाइनमेण्ट, कण्डीशन की जाँच तथा लूप काउण्टर में दृद्धि या कमी एक साथ नहीं लिखे जा सकते। इस लूप में लूप काउण्टर, असाइनमेण्ट, कण्डीशन की जाँच तथा लूप काउण्टर में दृद्धि या कमी एक साथ नहीं लिखे जा सकते।

उदाहरण
do-while की सहायता से 1 से 20 तक की संख्याओं का योग निकालना।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i= 1, sum = 0;
do
{
sum = sum + i;
i++;
} while(i<=20);
cout<<"The sum is:"<< sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 210

उदाहरण
for लूप की सहायता से 1 से 20 तक की संख्याओं का योग निकालना।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum = 0;
for(s = 1 ; i <= 20 : i++)
{
sum = sum + i;
}
cout<<"The sum is :" << sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 210

प्रश्न 2
for लूप का प्रयोग करके प्रथम 1000 पूर्णांकों का योगफल ज्ञात - करने हेतु एक प्रोग्राम लिखिए। [2013]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i;
long sum = 0;
for(i = 0; i < 1000; i++)
{
sum = sum + i;
}
cout<<"The sum is:"<<sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 500500

प्रश्न 3
do-while लूप का प्रयोग करके प्रथम एक सौ विषम संख्याओं का योगफल छापने हेतु C++ भाषा में एक प्रोग्राम लिखिए। [2013, 03]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i = 1, sum = 0;
do
{
if(1%2 ! = 0)
{
Sum=sum + 1;
}
1++;
} whi1e(i < = 100);
cout<<"The sum is :"<<sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 2500

प्रश्न 4
goto, break व continue स्टेटमेण्ट्स को समझाइए। [2016]
उत्तर:
goto स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग प्रोग्राम के एक्जीक्यूशन का सामान्य क्रम बदलने के लिए किया जाता है, जिससे प्रोग्राम का नियन्त्रण प्रोग्राम में किसी अन्य स्थान पर बिना शर्त अन्तरित हो जाता है।
प्रारूप label:
goto label name;

break स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी भी प्रकार के लूप से बाहर निकलने के लिए किया जा सकता है। यह केवल सबसे भीतरी लुप के लिए लागू होगा, जिसमें इसका प्रयोग किया गया हो।
प्रारूप break;

continue स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी लुप के शेष स्टेटमेण्टो को छोड़कर आगे बढ़ जाने के लिए किया जाता है। इस स्टेटमेण्टो के प्रयोग से लूप समाप्त नहीं होता, बल्कि उस पास (Pass) में लूप के आगे के स्टेटमेण्ट को छोड़ दिया जाता है। अगले पासों में लूप सामान्य रूप में चलता रहता है।
प्रारूप continue;

प्रश्न 5
C++ में एक प्रोग्राम लिखिए, जो किसी दो अंकीय पूर्णांक का पहाड़ा छापे। [2016]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, i, table;
cout<<"Enter the number:";
cin>>n;
cout<<"Table\n";
for(i = 1; i< = 10; i++)
{
table = n* i;
cout<< table << endl;
}
}

आउटपुट
Enter the number: 12
Table
12
24
36
48
60
72
84
96
108
120

प्रश्न 6
C++ में तीन संख्याएँ इनपुट कीजिए तथा फिर उनमें से सबसे बड़ी को बताइए।
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int a, b, C;
cout<<"Enter the value of a, b. and c\n";
cina >>b>>c;
if( (a > b) && (a > c))
cout<< "a is the largest number";
{
else if ((b> a) && (b> c))
{
cout<<"b is the largest number";
}
else
cout<<"c is the largest number";
}

आउटपुट
Enter the value of a, b and c
12
34
54
c is the largest number

प्रश्न 7
C++ में एक पाँच अंकीय संख्या के समस्त अंकों का योग प्रदर्शित करने हेतु एक प्रोग्राम लिखिए। [2008]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
unsigned long i,pin, sum = 0;
cout<<"Enter any number:";
cin>>n;
while(n!=0)
{
p = n %10;
sum + = p;
n = n/10;
}
cout<<endl<<"Sum of digits is:"<<sum;
}

आउटपुट
Enter any number: 36768
Sum of digits is : 30

प्रश्न 8
किसी दी हुई संख्या को उलट कर लिखने के लिए एक C++ प्रोग्राम forced [2009]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, rev = 0, rem;
cout<< "Enter an integer:";
cin>>n;
while(n! = 0)
{
rem = n$10;
rev = rev * 10+rem;
n = n/10;
}
cout<<"Reversed number=" <<rev;
}

आउटपुट
Enter an integer : 4567
Reversed number = 7654

प्रश्न 9
do-while लूप की सहायता से 8 व 11 का पहाड़ा लिखने हेतु C++ भाषा में एक प्रोग्राम लिखिए। (2003)
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n,m;
cout<<"Enter n:";
cin>>n;
cout<<"Enter m:";
cin>>m;
int i = 1;
do
{
cout<<n*i<<"\t"<<m*i<<end1
i++;
} while (i< = 10);
}

आउटपुट
Enter n: 8
Enter m: 11
8        11
16      22
24     33
32     44
40    55
48    66
56     77
64    88
72    99
80   110

प्रश्न 10
- 100 व 100 के बीच पड़ने वाली सभी विषम संख्याओं का योग निकालने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। [2018]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum=0;
for (1= -100; 1<=100; 1< = 100; i=1+2)
{
if (i%2!=0)
{
sum = sum + i;
}
}
cout<<"The sum is:" <<sum;
}

आउटपुट
The sum is : 0
प्रश्न 11
for लूप का प्रयोग करते हुए 5 का पहाड़ा छापने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। [2018]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, n=5;
cout<< "The table is:" <<endl;
for (i=1; i<=10; i++)
{
cout<<n*i<<end1;
}
}

आउटपुट
The table is
5
1o
15
20
25
30
35
40
45
50

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1
ब्रांचिंग का संक्षिप्त विवरण दीजिए। दी गई संख्या सम है या विषम, जानने के लिए C++ में प्रोग्राम लिखिए। [2012, 03]
उत्तर
जब C++ प्रोग्राम में किसी स्टेटमेण्ट पर ऐसी स्थिति आती है कि वहाँ से आगे बढ़ने के लिए एक से अधिक मार्ग होते हैं तो ऐसी स्थिति ब्रांचिंग कहलाती है। ब्रांचिंग स्थिति को हल करने के लिए ब्रांचिंग कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है, जो निम्न हैं।

  1. if स्टेटमेण्ट
  2. if-else स्टेटमेण्ट
  3. switch स्टेटमेण्ट

दी गई संख्या सम है या विषम, जानने के लिए प्रोग्राम

#include<iostream.h>
void main( )
{
int num;
cout<<"Enter the number:";
cin>>num;
if (nurm2 == 0)
cout<<"The number is Even";
else
cout<<"The number is Odd";
}

आउटपुट
Enter the number : 25
The number is Odd

प्रश्न 2
C++ में, for तथा while loops का वर्णन कीजिए। C++ में, स्क्रीन पर निम्न चित्र को दर्शाने हेतु प्रोग्राम लिखिए। [2014, 12]
* * * * * *
* * * *
* * *
* *
*
उत्तर:
for लूप इस लूप का प्रयोग प्रोग्राम में ऐसे स्थानों पर किया जाता हैं। जब हमें किसी स्टेटमेण्ट या स्टेटमेण्ट के समूह का एक्जीक्यूशन एक निश्चित बार कराना हो।
while लूप इस लूप का प्रयोग प्रोग्राम में ऐसे स्थानों पर किया जाता है, जहाँ हमें यह पता नहीं होता कि लूप का एक्जीक्यूशन कितनी बार किया जाएगा। इसमें प्रत्येक बार लूप का एक्जीक्यूशन करने से पहले एक शर्त की जाँच की जाती है, जिसके सत्य होने पर ही लूप के स्टेटमेण्टों को एक्जीक्यूट किया जाता है अन्यथा कण्ट्रोल लूप से बाहर आ जाता है।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, j, rows=5;
for(i=rows; i>= 1; --i)
{
for(j=1; j<=i ; ++j)
{
cout«"* ";
}
cout<<"\n";
}
}
प्रश्न 3
1 से 10 तक का पहाड़ा लिखने के लिए C++ में while लूप का प्रयोग करते हुए एक प्रोग्राम लिखिए। [2014]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, j;
for(i = 1; i <=10 : i + + )
{
j = 1;
while(i <=10)
{
cout<<i*j<<"\t";
j++;
}
cout<< endl;
}
}

आउटपुट
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स img-1

प्रश्न 4
C++ में किन्हीं दस संख्याओं का योग एवं औसत प्रदर्शित करने हेतु प्रोग्राम लिखिए। (अपनी इच्छानुसार अंक ले) (2008)
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum = 0, avg, num;
cout<<"Enter the numbers"<< endl;
for(i = 0; i < 10 ; i++)
{
cin>>num;
sum = sum + num;
}
avg = sum/10;
cout<<"The sum is:"<<sum <<endl;
cout<<"The average is:"<<avg;
}

आउटपुट
Enter the numbers
3
4
5
7
4
9
8
5
4
9
The sum is : 58
The average is : 5

प्रश्न 5:
निम्न श्रेणी का योग ज्ञात करने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। 1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +.......+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex] [2009]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n;
double i, sum = 0;
cout<<"1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +.......+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex]"<<end1;
cout<<"Enter the value of n:"<<end1;
cin >>n;
for(i = 1; i <=n; i++)
{
sum = sum (1/i);
}
cout<< "The sum of series is:"<< sum;
}

आउटपुट
1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +…….+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex]
Enter the value of n:5
The sum of series is : 2.283333

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