UP Board Time Table 2020 Class 12 (Released) | Detailed UP Board Class 12 Date Sheet

UP Board Time Table Class 12

UP Board Time Table Class 12: The board of Uttar Pradesh i.e UPMSP (Uttar Pradesh Madhyamika Shiksha Parishad) has released the board Exam dates for Intermediate class. There are about 2200 secondary schools which are registered with the UP board. For Intermediate class, the Exam will be held in the month of February-March across the various districts of UP State.

Download UP Board Class 12 Time Table 2020

Although the board officials of UPMSP has released the UP Board Time Table for Class 12 in their official website. If there is any change in the UP Board Time Table for Class 12, we will update it here. Meanwhile, students can download UP Board Time Table for Class 12 from the official website of UPMSP i.e.,upmsp.edu.in.We too will provide you with detailed information regarding UP Board Time Table for Class 12 and how to download the sAMe. Read on to find out.

UP Board Time Table Class 12 Overview

Before getting into the detailed UP Board Time Table for Class 12, let’s have an overview of the Exam

Name of the Exam Uttar Pradesh Intermediate (Class 12) Exams
Conducting Body Uttar Pradesh Madhyamika Shiksha Parishad (UPMSP)
Exam Mode Offline
Exam Timings Morning Shift – 8:00 AM to 11:15 AM and Afternoon Shift – 2:00 pm to 5:15 pm
Exam Start Date 18th February 2020
Exam End Date 5th March 2020
Official Website upmsp.edu.in

UP Board Time Table for Class 12 2020

UP Board Date Sheet for Class 12 is available on the official website of the UP Board, that is upsmp.edu.in. Students of Class 12 can also check out the UP Board Time Table for Class 12 as under

Date and Day Subject Timings
18 फरवरी मंगलवार Hindi/हिंदी 2:00 – 5:15 pm
20 फरवरी बृहस्पतिवार Painting/चित्रकला,
Geography/भूगोल, Physics/भौतिक विज्ञान
8:00 – 11:15 AM
2:00 – 5:15 PM
22 फरवरी शनिवार Military Science/सैन्य विज्ञान
Home Science/गृह विज्ञान, Business organizations and correspondence/व्यापारिक संगठन एवं पत्र व्यवहार
8:00 – 11:15 AM
2:00 – 5:15 PM
22 फरवरी सोमवार Civics/नागरिक शास्त्र, Chemistry/रसायन विज्ञान, Economics Commerce geography/अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य भूगोल (For Commerce Students)/वाणिज्य छात्रों के लिए 2:00 – 5:15 PM
25 फरवरी मंगलवार Computer/कंप्यूटर 2:00 – 5:15 PM
26 फरवरी बुधवार English/अंग्रेजी 2:00 – 5:15 PM
28 फरवरी शुक्रवार History/इतिहास 2:00 – 5:15 PM
29 फरवरी शनिवार Biology/जीव विज्ञान, Maths/गणित 2:00 – 5:15 PM
2 मार्च सोमवार Psychology/मनोविज्ञान 2:00 – 5:15 PM
3 मार्च मंगलवार Economics/अर्थशास्त्र 2:00 – 5:15 PM
4 मार्च बुधवार Sanskrit/संस्कृत 2:00 – 5:15 PM
5 मार्च बृहस्पतिवार Maths (for Commerce students)/गणित (वाणिज्य वर्ग के लिए)
Sociology/समाजशास्त्र
8:00 – 11:15 AM
2:00 – 5:15 PM

UP Board Time Table for Class 12th Science 2020

Exam Date Subject Name Timings
18 फरवरी मंगलवार Hindi/हिंदी 2:00 PM to 5:15 PM
20 फरवरी सोमवार Physics/भौतिक विज्ञान 2:00 PM to 5:15 PM
22 फरवरी सोमवार Chemistry/रसायन विज्ञान 2:00 PM to 5:15 PM
26 फरवरी बुधवार English/अंग्रेजी 2:00 PM to 5:15 PM
29 फरवरी शनिवार Biology/जीव विज्ञान, Maths/गणित 2:00 PM to 5:15 PM

UP Board Time Table for Class 12th Arts 2020

Exam Date Subject Name Timings
18 फरवरी मंगलवार Hindi/हिंदी 2:00 PM to 5:15 PM
20 फरवरी बृहस्पतिवार Geography/भूगोल 2:00 PM to 5:15 PM
22 फरवरी सोमवार Civics/नागरिक शास्त्र 2:00 PM to 5:15 PM
26 फरवरी बुधवार English/अंग्रेजी 2:00 PM to 5:15 PM
28 फरवरी शुक्रवार History/इतिहास 2:00 PM to 5:15 PM
3 मार्च मंगलवार Economics/अर्थशास्त्र 2:00 PM to 5:15 PM
5 मार्च बृहस्पतिवार Sociology/समाजशास्त्र 2:00 PM to 5:15 PM

UP Board Time Table for Class 12th Commerce 2020

Exam Date Subject Name Timings
18 फरवरी मंगलवार Hindi/हिंदी 2:00 PM to 5:15 PM
20 फरवरी बृहस्पतिवार Accountancy/बही खाता तथा लेखाशास्त्र 2:00 PM to 5:15 PM
22 फरवरी शनिवार Business Organizations and correspondence/व्यापारिक संगठन एवं पत्र व्यवहार 2:00 PM to 5:15 PM
22 फरवरी सोमवार Economics Commerce geography/अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य भूगोल (For Commerce Students)/वाणिज्य छात्रों के लिए 2:00 PM to 5:15 PM
26 फरवरी बुधवार English/अंग्रेजी 2:00 PM to 5:15 PM
5 मार्च बृहस्पतिवार Maths (for Commerce students)/गणित (वाणिज्य वर्ग के लिए) 2:00 PM to 5:15 PM

How To Check UP Board Time Table for Class 12 On Official Website?

Students of Class 12 under UP Board can check their Date Sheet/Time Table from the official website by following the steps as under:

  1. Visit the official website of UP Board: upmsp.edu.in
  2. Click on the “Dashboard” under “Important Login”.
  3. Click on “Timeline of the Year 2020” from the list.
  4. Your UP Board Time Table for Class 12 will be displayed.

UP Board Class 12 Hall Ticket/Admit Card

The UP Board Class 12 Hall Tickets will be released at least a month before the Exam and the UP Board Admit Card / Hall Ticket will be dispatched to their respective schools by the board officials of UpmSP. Students can also download their UP Board Hall Ticket from the official website: upmsp.edu.in. The Admit Card will provide information regarding the Exam, such as Exam date, Exam time, venue, important instructions, etc. Candidates are advised to read the instructions carefully and keep the Admit Card safe.

UP Board Time Table for Class 12 | Important Key Notes To Remember

  1. Understand your syllabus thoroughly that is going through each and every chapters and concept.
  2. Practice previous year question papers. This will help you to score good marks as you will know what to expect in the actual Exam.
  3. Take mock tests which in turn helps you to identify your weak areas, so that you can work on that.
  4. Create a time table and follow it strictly.
  5. Note down important formulas, equations, theorems, etc. which will be helpful in last-minute preparation.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Name हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद

अनुवाद।
एक भाषा की किसी पंक्ति को किसी अन्य भाषा में परिवर्तित करना ही अनुवाद कहलाता है। जैसे—यदि हम संस्कृत के किसी वाक्य को हिन्दी में परिवर्तित करते हैं तो यह ‘संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद’ कहा जाता है। ठीक उसी प्रकार यदि हम हिन्दी के किसी वाक्य को संस्कृत में परिवर्तित करते हैं तो यही ‘हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद’ कहा जाता है।

हिन्दी भाषा के वाक्यों को संस्कृत भाषा में परिवर्तित करने के लिए निश्चित नियम हैं। उन नियमों के अनुसार हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद ठीक प्रकार से किया जा सकता है। वे नियम या बातें निम्न प्रकार हैं।
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए संस्कृत व्याकरण के इन नियमों को भली-भाँति समझना आवश्यक है

संस्कृत में तीन पुरुष, तीन वचन और तीन लिंग होते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद img 1
संस्कृत में कर्ता के पुरुष एवं वचन के आधार पर क्रिया का रूप निर्धारित होता है, किन्तु क्रिया पर लिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।। उदाहरणार्थ-‘राम पढ़ता है’ वाक्य के लिए संस्कृत में लिखा जाएगा ‘रामः पठति’, जबकि ‘सीता पढ़ती है’ के लिए भी ‘सीता पठति’ ही लिखा जाएगा। इस प्रकार यहाँ क्रिया कर्ता के लिंग से अप्रभावित है। हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए कर्ता के पुरुष और वचन की पहचान करना अति आवश्यक है। संस्कृत में प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष एवं उत्तम पुरुष के प्रत्येक वचन के लिए एक-एक कर्ता होता है।

अतः तीन वचन होने से प्रथम पुरुष के तीन कर्ता, मध्यम पुरुष के तीन कर्ता और उत्तम पुरुष के तीन कर्ता होंगे। इस प्रकार कुल नौ कर्ता हुए। आइए, इस तालिका को समझे-.
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद img 2

यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि ‘तुम’ का बहुवचन में प्रयोग होने पर मध्यम पुरुष बहुवचन की क्रिया ही ली जाती है। उदाहरणार्थ-बालक! तुम विद्यालय जाओ’। का संस्कृत में अनुवाद होगा ‘बालक! यूयं विद्यालयं गच्छत।’ संस्कृत में क्रिया को ‘धातु के नाम से जाना जाता है और मुख्यतः पाँच लकारों के द्वारा धातुओं (क्रियाओं) का बोध कराया जाता है। वर्तमान काल के अर्थ में लट्लकार का, भूतकाल के अर्थ में ललकार का एवं भविष्यत् काल के अर्थ में लट्लकार का प्रयोग होता है। आज्ञा देना, प्रार्थना करना, प्रस्ताव रखना एवं इच्छा ध्या करने के अर्थ में लोट्लकार तथा चाहिए, सम्भावना एवं शनि प्रदर्शन के अर्थ में विधिलिङ्लकार को प्रयोग में लाया जाता हैं। नीचे ‘भू’ धातु अर्थात् ‘होना’ क्रिया के तीनों कालों के लिए लकार में रूप दिए जा रहे हैं

भू (होना)
लट्लकार (वर्तमान काल)

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद img 4
(उपर्युक्त धातुओं के भू के तुल्य रूप चलेंगे।)
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कर्ता जिस वचन का होगा, क्रिया भी उसी वचन की ली जाएगी।
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विभक्तियाँ
संस्कृत में हिन्दी के कारक चिह्नों (परसर्ग) के स्थान पर सात विभक्तियाँ एवं आठवीं सम्बोधन प्रयुक्त किए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं-
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प्रथम विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) मोहन लिखता है। मोहनः लिखति।
(ii) मालती बोलती है। मालतीं वदति।
(iii) आप नहीं खाते हैं। भवान् न खादति।
(iv) यमुना बहती है। यमुना वहति।।

द्वितीय विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) तुम सब पुस्तक पढ़ते हो। यूयं पुस्तकं पठथ।
(ii) पण्डित ज्ञान देता है। पण्डितः ज्ञानं ददाति।
(iii) मैंने पत्र दिया। अहं पत्रम् अददाम्।
(iv) सीता दान करती है। सीता दानं करोति।

तृतीय विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) राजा स्वभाव से सज्जन है। नृपः प्रकृत्या सज्जनः अस्ति।
(ii) उमेश सिर से गंजा है। उमेशः शिरसा खल्वाटोऽरित।
(iii) विनीत कमर से कुबड़ा है। विनीत कटया कुजः अस्ति।
(iv) वह आँखों से देखती हैं। सः नेत्राभ्यां पश्यति।

चतुर्थी विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) राजा पण्डित को दान देता है। नृपः पण्डिताय दानं ददाति।
(ii) अनीता को लड्डू अच्छा लगता है। अनीतायै मोदकम् रोचते।
(iii) इस बालक के लिए मिठाई लाओ। अस्मै बालकाय मिष्टान्नम् अन्य।
(iv) मोहन ने गरीब को धन दिया। मोहनः दरिद्राय सम्पदाम् अदात्।

पञ्चमी विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) पेड़ से पत्ते गिरते हैं। (2018) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(ii) गाँव से बाहर विद्यालय है।। ग्रामात् बहिः विद्यालयः अस्ति।
(iii) ममता नदी से जल लाती है। ममता नद्याः जलम् आनयति।
(iv) सज्जन दुर्जन से डरता है। सज्जनः दुर्जनात् बिमैति।

षष्ठी विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) यह राम की किताब है। इदं रामस्य पुस्तकम् अस्ति।
(ii) कृष्ण का घर कहाँ है? कृष्णस्य गृहम् कुत्र अस्ति?
(iii) वह किसका हाथी है? सः कस्य गजः अस्ति?
(iv) अशोक मगध के राजा थे? अशोक: मगधस्य नृपः आसीत्।

सप्तमी विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) सन्ध्या विद्यालय में है। सन्ध्या विद्यालये अस्ति।
(ii) भीम युद्ध में प्रवीण था।। भीमः युद्धे प्रवीणः आसीत्।
(iii) कार्यालय में छुट्टी है। कार्यालये अवकाशः अस्ति।
(iv) पण्डित आसन पर बैठा है। पण्डितः आसने तिष्ठति।

सम्बोधन विभक्ति पर आधारित संस्कृत अनुवाद

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
(i) हे देव! कल्याण करो। हे देव! कल्याणं कुरु।
(ii) प्रभु! मेरी रक्षा करो। भों प्रभु! मां रक्षा
(iii) बालकों! तुम सब घर जाओ। हे बालकाः! यूयं गृहं गछता
(iv) हे दुर्योधन! प्रिय वचन बोलो। हे दुर्योधनः! प्रिय वचनं वद।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए हिन्दी-संस्कृत अनुवाद

वर्ष 2018

हिन्दी वाक्य संस्कृत वाक्य
1. विद्यालय के सामने उपवन है। विद्यालयं सम्मुखें उपवनम्अस्ति ।
2. हम दोनों को हँसना चाहिए। आवां हसेव।
3. घोड़ा पाँव से लँगड़ा है। अश्वः पादेन पङ्गु अस्ति।
4. पुस्तकों में गीता श्रेष्ठ है। पुस्तकानां पुस्तकेषु वा गीता श्रेष्ठ अस्ति
5. हम लोग कहाँ जाएँगे? वयं कुत्र गामिष्यामः।
6. बालक पढ़ रहे हैं। बालकाः पठन्ति।
7. कल मैं विद्यालय जाऊँगा। श्वः अहं विद्यालयं गमिष्यामि।
8. हमें सदा सत्य बोलना चाहिए। वयं सदा सत्यं वदेम।
9. विद्या व्यय से बढ़ती है। विद्या व्ययात् वर्धते।
10. मोहन गा रहा है। मोहनः गीयते।
11. कवियों में कालिदास श्रेष्ठ हैं। कवीनां कवीषु वा कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।
12. प्रयाग के दोनों तरफ गंगा बहती है। प्रयागं परितः गंगा वहति।
13. राधा कृष्ण के साथ यमुना किनारे जाती थी राधा कृष्णेन सह यमुनातरे गच्छति स्म।
14. भिक्षुक के लिए कपड़ा दीजिए। भिक्षुकाय वस्त्रं यच्छ।
15, प्रतिदिन प्रातःकाल गुरु जी को प्रणाम करो। प्रतिदिनं प्रातः गुरवे नमः कुरु।
16. मेरा बड़ा भाई पिता से लड्डू माँगता है। ममं अग्रजः पितर मोदकं याचते।
17, मैदान के चारों ओर हरे वृक्ष हैं। क्षेत्रं परितः हरितानि वृक्षाणि सन्ति
18. कवियों में तुलसीदास श्रेष्ठ कवीनां कवीषु वा तुलसीदासः श्रेष्ः अस्ति।
19. पथिक किसान से रास्ता पूछता है। पथिकः कृषकं मार्गं पृच्छति।
20. हम लोग तुमको यह पुस्तक देंगे। वयं तुभ्यं इदं पुस्तकं दास्यामः।
21. भगवान शंकर को नमस्कार है। भगवते शंकराय नमः
22. संस्कृत भाषा सब भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा सर्वांषां भाषाणां जननी अस्ति।
23. दुष्ट कभी दुष्टता नहीं छोड़ता।। दुष्टः कदापि दुष्टता न त्यजति।
24. प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण करो। प्रतिदिनं ईश्वर स्मर।
25. आज वह वाराणसी जाएगा। अद्य सः चाराणसीम गमिष्यति।
26. हमें प्रतिदिन खेलना चाहिए। वयं प्रतिदिन क्रीडेम।
27. ईष्र्या मनुष्य की शत्रु है। ईष्र्या मनुष्याणां शत्रु अस्ति।
28. सदाचार मनुष्य का आभूषण है। सदाचारः मनुष्यानाम् आभूषणम् अस्ति
29. कल वर्षा अवश्य होगी। श्वः वर्षा अबश्या भविष्यति।
30. तुम लोग शीघ्र विद्यालय जाओ। यूयं शीघ् विद्यालयं गच्छत्।
31. वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।

वर्ष 2017

हिन्दी वाक्य संस्कृत वाक्य
1. तुम्हें क्या करना चाहिए? त्वं किं कुर्या:?
2. हम जा रहे हैं। वयं गच्छामः।
3. आज समाज उनका ऋणी है। अद्य समाजः तेषा ऋणी अरित।
4. रीतिका एक मेधावी छात्रा है। रीतिको एक मेधावी छात्रा अस्ति!
5. वे दोनों कल काशी गए थे। तौ हुयः काशीम् अगच्छातम्।
6. कवियों में कालिदास श्रेष्ठ । कविषु कालिदासः श्रेष्ठः
7. राम श्याम के साथ घर जाता है। राम: श्यामेन सह गृहं गच्छतः।
8. पक्षी आकाश में उड़ते है। खगाः गगने विचरन्ति
9. भिक्षुक राजा से वस्त्र माँगता है। भिक्षुकः राजानाम् वस्त्रं याचति।
10. अध्यापक के चारों ओर विद्यार्थी दौड़ते हैं। अध्यापकं परितः छात्राः धावन्ति।
11. हनुमान वानरों के साथ लङ्का गए। हनुमानः वानरैः सह लङ्काम् अगच्छन्।
12. वृक्ष से पके हुए फल गिरते हैं। वृक्षात् पक्वानि फलानि पतन्ति।
13. देवी दुर्गा को नमस्कार है। दुर्गादेव्याः नयः।
14. गीता का छोटा भाई छात्राओं को पुस्तकें देता है। गीतायाः कनिष्ठ भातरः छात्राणाम् पुस्तकं ददति।।
15. खेत के दोनों ओर भवन हैं। क्षेत्रम् अभितः भवनानि सन्ति।
16. राम ने रावण को बाण से मारा। (2017) रामः रावणं बाणेन अह्नत्।
17. मोहन चावलों से भात पकाता है। मोहनः तण्डुलेन् ओदनं पचति।
18. हिमालय भारत की रक्षा करता हैं। हिमालयः भारतस्य रक्षां करोति।
19. तुम प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण करो। त्वं प्रतिदिनं ईश्वरस्य स्मरणं कुरू।
20. धीर पुरुष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते। न्यायपथात् प्रविचलन्ति पढ़ा न धीराः।

वर्ष 2016

हिन्दी वाक्य संस्कृत वाक्य
1. शिव पार्वती के साथ कैलाश गए। शिवः पार्वत्या सह कैलाशम् अगच्छत्।
2. रमेश की छोटी बहन पैर से लंगड़ी हैं। रमेशस्य अनुजा (भगिनी) पादेन खजः अस्ति।
3. सभी देवताओं को नमस्कार है। सर्वे देवेभ्यःनमः।।
4. दाता भिखारियों को अन्न देता है। दाता भिक्षुकेभ्यः अन्नं यच्छति।
5. वृक्ष से फल गिरते हैं। वृक्षात् फलानि पतन्ति।
6. गाँव के सब ओर उपवन है। ग्रामम् सर्वतः उपनामि सन्ति।
7. वह भिखारी को भिक्षा देता है। सः भिक्षुकाय भिक्षा ददाति।
8. बालकों में रमेश सबसे बड़ा है। बालकेषु रमेशः ज्येष्ठ अस्ति।
9. वे दोनों कहाँ जा रहे हैं? तौ कुत्र गच्छतः।
10. मैं कल प्रयाग गया था। अहम् श्वः प्रयागम् अगच्छम्।
11. तुम लोग माँ के साथ जाओ। यूयम् मात्रा सह गच्छता
12. हमें नित्य पढ़ना चाहिए। अस्माभिः नित्यं पठितव्यम्।।
13. आकाश कल कहाँ जाएगा? आकाशः इवः कुत्र गामिष्यतिः
14. श्री राम ने पूछा मुझे कहाँ  रहना चाहिए? श्री रामः अपृच्छत्-मया कुत्र स्थातव्यम्।।
15. सड़क के दोनों ओर हरे वन हैं।। मार्गम् उभयतः हरितानि वनानि सन्ति
16. पिता पुत्र को मिठाई देता है। पिता पुत्राय मिष्ठान्नम् यच्छति।
17. बालिकाएँ अध्यापिकाओं के साथ गीत गाती हैं। बालिकाः अध्यापिकाभिः सह गीत गायन्ति।
18. कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल को मारा। कृष्णः सुदर्शन चक्रणे शिशुपाल अनत्।।
19. मेरा बड़ा भाई अपने साथियों में सबसे कुशाग्र हैं। मम अग्रजः निज मित्रेषु कुशाग्रः अस्ति
20. हमें अपने गुरुजनों का सदैव आदर केरना चाहिए। अस्माभिः सदैव निजगुरुजनान् सम्मानं कर्तव्यम्।
21. योग स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है। योगः स्वस्थ जीवनाय आवश्यकम्। अस्ति

वर्ष 2015

हिन्दी वाक्य संस्कृत वाक्य
1. नदियों में गंगा श्रेष्ठ है। नदीषु गङ्गा श्रेष्ठा अस्ति।
2. राम विद्यालय गया। रामः विद्यालयम् अगच्छत्।
3. यह मोहन की पुस्तक है। इदं मोहनस्य पुस्तकं अस्ति।
4. मोहन गैर से लंगड़ा है। मोहनः पार्दन खजः अस्ति।
5. नदी के दोनों ओर नगर हैं। नदीं उभयतः नगरम् अस्ति।
6. अध्यापक छात्र को पुस्तक देता है। अध्यापक: छात्राय पुस्तकं ददाति।
7. नदी के दोनों ओर हरे-भरे खेत हैं। नदीं उभयतः स्यश्यामलानि क्षेत्राणि सन्ति
8. रमेश अपनी बहन को मीठे फल देती हैं। रमेशः स्वभगिन्यै मधुरं फलं ददाति।
9. अध्यापकों ने विद्यालय आकर छात्रों को पढ़ाया। अध्यापकाः विद्यालये आगत्य छषान् अध्यापयन्ति स्म।
10. सीता का छोटा भाई मोहन के साथ खेलने जाएगा। सीतायाः अनुजः मोहनेन सह क्रीडष्यति
11. भिखारी दोनों आँखों से अन्धा है। भिक्षुक नेत्राभ्याम् अन्धः अस्ति।
12. अभिज्ञानशाकुन्तलम् अन्य नाटकों से अधिक रम्य हैं। अभिज्ञानशाकुन्तलम् अन्येषुनाटकेषु अधिकं रम्यम् अस्ति।

वर्ष 2014

हिन्दी वाक्य संस्कृत वाक्य
1. वे दोनों क्या करते हैं? तौ किं कुरुतः?
2. आकाश विद्वानों में श्रेष्ठ है। आकाशः विद्वत्सु श्रेष्ठः अस्ति।
3. अध्यापिका छात्रा से प्रश्न का उत्तर पूछती है। अध्यापिका छात्र प्रश्नोत्तरं पृच्छति।
4. तुम दोनों कल मेरे साथ बाजार नहीं जाओगे। युवा श्वः मया सह आपणं न गमिष्यथः।
5. स्नान करने से रूप की रक्षा होती है। स्नानेन रूपस्य रक्षा भवति।
6. लोभ पाप का कारण होता है। लोभः पापस्य कारणं भवति।
7. वे अपने विद्यालय जाएँ। ते स्वविद्यालयं गच्छन्तु।
8. पिता की आज्ञा से श्रीराम वन को गए। पितुः आज्ञया श्रीरामः वनम् अगच्छतु।
9. सुरेश दोनों कानों से बहरा है। सुरेशः कर्णभ्यां बधिरः अस्ति।
10. हम लोगों ने पानी पीकर अपना पाठ पड़ा। वयं जलं पीत्वा स्वपाठम् अपठाम्।

वर्ष 2013

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
1. तालाब में कमल खिलते हैं। तड़ागे कमलानि विकसन्ति।
2. वे दोनों विद्यालय जाते हैं। तौ विद्यालयं गच्छतः।
3. किसी वन में एक सिंह रहता था। (2017) कस्मिंश्चिद् वने एकः सिंह: निवसति स्म।
4. मैं तुम्हारे साथ विद्यालय नहीं जाऊँगी। अहं त्वया सह विद्यालयं न गमिष्यामि।
5. पिता की आज्ञा से श्रीराम वन को गए। पितुः आज्ञया श्रीरामः वनम् अगच्छत्।
6. कुएँ के चारों ओर लोग बैठते हैं कूपं परितः जनाः तिष्ठन्ति।
7. गाँव के चारों ओर वृक्ष हैं। (2017) ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति।
8. छात्रों में राम श्रेष्ठ हैं छात्रेषु रामः श्रेष्ठः अस्ति।
9. चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।
10. वह चावलों से भात पकाएगी सा तण्डुलैः ओदनं पक्ष्यति।
11. भिखारी दोनों कानों से बहरा है। भिक्षुकः कर्णाभ्यां बधिरः, अस्ति।
12. विद्यार्थी को सुख छोड़ना चाहिए। विद्यार्थी सुखं त्यजेत्।।
13: संस्कृत भाषा देवभाषा है। संस्कृतभाषा देवभाषा अस्ति।
14. तुम सब संस्कृत पढौ।। यूयं संस्कृतं पठतम्।।
15. सोनू सिंह से नहीं डरता। सोनू सिंहात् न बिभेति।

वर्ष 2012

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
1. मैं कल बाजार जाऊँगा।। अहं श्वः आपणं गमिष्यामि।
2. सदा सत्य और प्रिय वचन बोलो। सदा सत्यं प्रियवचनं च वद।
3. पुरुषोत्तम राम यहाँ आए थे। पुरुषोत्तमः रामः अत्र आगच्छत्।
4. तेरी पुस्तक कहाँ है? तव पुस्तकं कुत्र अस्ति?
5. वह मेरे साथ विद्यालय में पढ़ता है। सः मया सह विद्यालये पठति।
6. हिमालय उत्तर दिशा में स्थित है। हिमालयः उत्तरदिशि स्थितः।।
7. साँप वेग से चलता है। सर्पः वेगेन चलति।
8. बाग में आम के पेड़ हैं। उद्याने आम्रवृक्षाः सन्ति।
9. हम मित्रों के साथ भोजन करेंगे। वयं मित्रैः सह भोजनं करिष्यामः।
10. यह मेरा विद्यालय है। अयं मम विद्यालयः अस्ति।
11. मैं दूध नहीं पीऊँगा। अहं दुग्धं न पास्यामि।
12. तुम सब कहाँ पढ़ते हो? यूयं कुत्र पथ?
13. छात्रों को विद्यालय जाना चाहिए। छात्राः विद्यालयं गच्छेयुः।
14. बालकों में राम श्रेष्ठ है। बालकेषु रामः श्रेष्ठः अस्ति।
15. मेरी माताजी गृहकार्य में निपुण हैं। मम माता गृहकार्यं निपुणा अस्ति।

वर्ष 2011

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
1. पुत्र प्रातः पिता को प्रणाम करता है। पुत्रः प्रातःकाले पितरं प्रणाम करोति।।
2. क्या राम ने अभी को अपनी पुस्तक अददात्? किं रामः प्रभायै स्वपुस्तकं न नहीं दी?
3. वह प्रतिदिन प्रातःकाल उठता है। सः प्रतिदिन प्रातःकाले उत्तिष्ठति।
4. मैं अपने मित्र के साथ विद्यालय जाता हैं। अहं स्वमित्रेण सह विद्यालयं गच्छामि।
5. इन्द्र बादलों से खेल रहे हैं। इन्द्रः मेघैः क्रीडति।।
6. सड़क के दोनों ओर हरे-भरे खेत हैं। मार्ग उभयतः हरितानि क्षेत्राणि सन्ति।
7. मैं कल दिल्ली जाऊँगा। अहं श्वः दिल्लीं गमिष्यामि।
8. प्रजा का कल्याण हो। प्रजाभ्यः स्वस्ति।
9. सदा सत्य और प्रिय वचन बोलो। सदा सत्यं प्रियवचनं च वद।
10. राजा दिलीप एक महापुरुष थे। राजा दिलीपः एकः महापुरुषः आसीत्।
11. राम, लक्ष्मण के साथ वन में गए। रामः लक्ष्मणेन सह वनम् अगच्छत्।
12. बालकों में गोविन्द श्रेष्ठ है। बालकेषु गोविन्दः श्रेष्ठः अस्ति।
13. श्रीकृष्ण के दोनों ओर गोपाल हैं। श्रीकृष्णम् उभयतः गोपालकाः सन्ति।
14 .हम सब कल प्रयाग गए थे। वयं ह्यः प्रयागम् अगच्छाम।।
15. फूलों पर भौंरे गूंजते हैं। पुष्पेषु भ्रमराः गुञ्जन्ति।

वर्ष 2010

हिन्दी वाक्य संस्कृत अनुवाद
1. क्या तुम आज वाराणसी जाओगे? किं त्वम् अद्य वाराणसीं गमिष्यति?
2. छात्रों को गुरु के प्रति विनम्र होना चाहिए। शिष्याः गुरु प्रति विनमः भवेयुः।
3. जानवर सायंकाल जंगल से घर आ गए। पशवः सायंकाले वनात् गृहे आगच्छन्।
4. पिताजी बालक के साथ विद्यालय जाते हैं। पिता बालकेन सह विद्यालयं गच्छति।।
5. सफलता के लिए हमें अति परिश्रम करना चाहिए। सफलतायाः हेतो वयं अतिपरिश्रम कुर्याम्।
6. उमेश दोनों कानों से बहरा है। उमेशः कर्णाभ्यां दधिरः अस्ति।
7. छात्रों में मोहन श्रेष्ठ है। छात्रेषु मोहनः श्रेष्ठः अस्ति।
8. विद्यालय का वार्षिकोत्सव कब होगा? विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः कदा भविष्यति?
9. विद्यालय के चारों ओर वृक्ष हैं। विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति
10. हिमालय से गंगा निकलती है। हिमालयात् गङ्गा प्रभवति।
11. सरोवरों में कमल खिलते हैं। सरोवरेषु कमलानि विकसन्ति।
12. मनुष्य सदाचार से यश प्राप्त करता है। मनुष्यः सदाचारेण यशं प्राप्नोति।
13. तुम जल्दी घर जाओ। त्वं शीघ्रं गृहं गच्छ।
14. गुरु को नमस्कार है। गुरुवे नमः।।
15. मैं तुम्हारे साथ विद्यालय नहीं जाऊँगी। अहं त्वया सह विद्यालयं न गमिष्यामि।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 8 सुभाषित रत्नानि

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 8
Chapter Name सुभाषित रत्नानि
Number of Questions Solved 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 8 सुभाषित रत्नानि

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती।
तस्या हि मधुरं काव्यं तस्मादपि सुभाषितम्।। (2013, 11)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ नामक पाठ’ से उदधृत है।
अनुवाद सभी भाषाओं में देववाणी (संस्कृत) सर्वाधिक प्रधान, मधुर और दिव्य है। निश्चय ही उसका काव्य (साहित्य) मधुर है तथा उससे (काव्य से) भी अधिक मधुर उसके सुभाषित (सुन्दर वचन या सूक्तियाँ) हैं।

श्लोक 2
सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।। (2018, 11, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद सुख चाहने वाले (सुखार्थी) को विद्या कहाँ तथा विद्या चाहने वाले (विद्यार्थी) को सुख कहाँ! सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या पाने की चाह त्याग देनी चाहिए और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख त्याग देना चाहिए।

श्लोक 3
जल-बिन्दु-निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।। (2010)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद बूंद-बूंद अल गिरने से क्रमशः घड़ा भर जाता है। यही सभी विद्याओं, धर्म तथा धन का हेतु (कारण) है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि विद्या, धर्म एवं धन की प्राप्ति के लिए उद्यम के साथ-साथ धैर्य का होना भी आवश्यक है, क्योंकि इन तीनों का संचय धीरे-धीरे ही होता है।

श्लोक 4
काव्य-शास्त्र-विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।। (2017, 10)
सन्दर्म पूर्ववत्।
अनुवाद बुद्धिमान लोगों का समय काव्य एवं शास्त्रों (की चर्चा) के आनन्द में व्यतीत होता है तथा मूर्ख लोगों का समय बुरी आदतों में, सोने में एवं झगड़ा झंझट में व्यतीत होता है।

श्लोक 5
न चौरहार्यं न च राजहार्य
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्द्धत एवं नित्यं ।
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। (2018, 16, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद विद्यारूपी धन सभी धनों में प्रधान है। इसे न तो चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बाँट सकता है और न तो यह बोझ ही बनता है। यहाँ कहने का तात्पर्य है कि अन्य सम्पदाओं की भाँति विद्यारूपी धन घटने वाला नहीं है। यह धन खर्च किए जाने पर और भी बढ़ता जाता है।
विशेष-

  1.  शास्त्र में अन्यत्र भी विद्या को श्रेष्ठ सिद्ध करते हुए कहा गया
    है-‘स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।’
  2.  इस दोहे में भी विद्या को इस प्रकार महिमामण्डित किया गया है।
    ‘सरस्वती के भण्डार की बड़ी अपूरब बात।।
    ज्यों खर्च त्यों-त्यों बढे, बिन खर्चे घट जात।।”

श्लोक 6
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्ष प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्।। (2018, 17, 14, 12, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद पीछे कार्य को नष्ट करने वाले तथा सम्मुख प्रिय (मीठा) बोलने वाले मित्र का उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जिस प्रकार मुख पर दूध लगे विष से भरे घड़े को छोड़ दिया जाता है।

श्लोक 7
उदेति सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तुमेति च।।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।। (2017, 11, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद महान् पुरुष सम्पत्ति (सुख) एवं विपत्ति (दुःख) में उसी प्रकार एक समान रहते हैं, जिस प्रकार सूर्य उदित होने के समय भी लाल रहता है और अस्त होने के समय भी। यह कहने का तात्पर्य यह है कि महान् अर्थात् ज्ञानी पुरुष को सुख-दुःख प्रभावित नहीं करते। न तो वह सुख में अत्यन्त आनन्दित ही होता है और न दुःख में हतोत्साहित

श्लोक 8
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खुलस्य साधोः विपरीतुमेत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।। (2016, 14, 13, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत् ।
अनुवाद दुष्ट व्यक्ति की विद्या वाद-विवाद (तर्क-वितर्क) के लिए, सम्पत्ति घमण्ड के लिए एवं शक्ति दूसरों को कष्ट पहुँचाने के लिए होती है। इसके विपरीत सज्जन व्यक्ति की विद्या ज्ञान के लिए, सम्पत्ति दान के लिए एवं शक्ति रक्षा के लिए होती है।

श्लोक 9
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।। (2018, 14, 12, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद बिना सोचे-विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। अज्ञान परम आपत्तियों (घोर संकट) का स्थान (आश्रय) है। सोच-विचारकर कार्य करने वाले व्यक्ति का गुणों की लोभी अर्थात् गुणों पर रीझने वाली सम्पत्तियाँ (लक्ष्मी) स्वयं वरण करती हैं। यहाँ कहने का अर्थ यह है कि ठीक प्रकार से विचार कर किया गया कार्य ही सफलीभूत होता है, अति शीघ्रता से बिना विचारे किए गए कार्य का परिणाम सर्वदा अहितकर ही होता है।

श्लोक 10
वज्रादपि कठोराणि मृदृनि कुसुमादपि।
लोकोत्तराणां चेतांसि को न विज्ञातुमर्हति।। (2017, 12, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद असाधारण पुरुषों अर्थात् महापुरुषों के वज्र से भी कठोर तथा पुष्प से भी कोमल चित्त (हृदय) को भला कौन जान सकता है?

श्लोक 11
प्रीणाति यः सुचरितैः पितरं स पुत्रो
यद् भर्तुरेव हितमिच्छति तत् कलत्रम्।
तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं यद्
एतत्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते।। (2017, 13, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद अपने अच्छे आचरण (कर्म) से पिता को प्रसन्न रखने वाला पुत्र, (सदा) पति का हित (अर्थात् भला चाहने वाली पत्नी तथा आपत्ति (दुःख) एवं सुख में एक जैसा व्यवहार करने वाला मित्र, इस संसार में इन तीनों की प्राप्ति पुण्यशाली व्यक्ति को ही होती है।

श्लोक 12
कामान् दुग्धे विप्रकर्षत्यलक्ष्मी
कीर्ति सूते दुष्कृतं या हिनस्ति।
शुद्धां शान्तां मातरं मङ्गलानां
धेनुं धीराः सूनृतां वाचमाहुः ।। (2011)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद धैर्यवानों (ज्ञानियों) ने सत्य एवं प्रिय (सुभाषित) वाणी को शुद्ध, शान्त एवं मंगलों की मातारूपी गाय की संज्ञा दी है, जो इच्छाओं को दुहती अर्थात् पूर्ण करती है, दरिद्रता को हरती है, कीर्ति अर्थात् यश को जन्म देती। है एवं पाप का नाश करती हैं। इस प्रकार यहाँ सत्य और प्रिय (मधुर) वाणी को मानव की सिद्धियों को पूर्ण करने वाली बताया गया है।

श्लोक 13
व्यतिषजति पदार्थानान्तरः कोऽपि हेतुः
न खलु बहिरुपाधी प्रीतयः संश्रयन्ते।
विकसति हि पतङ्गस्योदये पुण्डरीकं
द्रवति च हिमरश्मावुद्गतेः चन्द्रकान्तः।। (2012)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद पदार्थों को मिलाने वाला कोई आन्तरिक कारण ही होता है। निश्चय ही प्रीति | (प्रेम) बाह्य कारणों पर निर्भर नहीं करती; जैसे-कमल सूर्य के उदय होने पर ही खिलता है। और चन्द्रकान्त-मणि चन्द्रमा के उदय होने पर ही द्रवित होती हैं।

श्लोक 14
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा ।
न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।। (2016, 13, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद नीति में दक्ष लोग निन्दा करें या स्तुति; चाहे लक्ष्मी आए या स्व-इच्छा से चली जाए; मृत्यु आज ही आए या फिर युगों के पश्चात्, धैर्यवान पुरुष न्याय-पथ से थोड़ा भी विचलित नहीं होते। | इस प्रकार यहाँ यह बताया गया है कि धीरज धारण करने वाले लोग कर्म-पथ पर अडिग होकर चलते रहते हैं जब तक उन्हें लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।

श्लोक 15
ऋषयो राक्षसीमाहुः वाचमुन्मत्तदृप्तयोः।
सा योनिः सर्ववैराणां सा हि लोकस्य निऋतिः।। (2014, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद ऋषियों ने उन्मत्त तथा अहंकारी लोगों की वाणी को राक्षसी वाणी कहा है, जो | सभी प्रकार के बैरों को जन्म देने वाली एवं संसार की विपत्ति का कारण होती है।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1.
विद्याप्राप्यर्थं विद्यार्थी किं त्यजेत्? अथवा विद्यार्थी किं त्यजेत? (2017, 14, 13, 11)
उत्तर:
विद्याप्राप्यर्थं विद्यार्थी सुखं त्यजेत्।।

प्रश्न 2.
धीमतां कालः कथं गच्छति? (2015, 12, 11, 10)
उत्तर:
धीमता कालः काव्यशास्त्रविनोदेन गच्छति।।

प्रश्न 3.
मूर्खाणां कालः कथं गच्छति? (2018, 17, 12)
उत्तर:
मूर्खाणां कालः व्यसनेन, निद्रया कलहेन वा गच्छति।

प्रश्न 4.
सर्वधनप्रधानं किं धनम् अस्ति?
उत्तर:
सर्वधनप्रधानं विद्याधनम् अस्ति।।

प्रश्न 5.
खलस्य विद्या किमर्थं भवति? (2016)
उत्तर:
खलस्य विद्या विवादाय भवति।

प्रश्न 6.
लोकोत्तराणां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति? (2017, 19)
उत्तर:
लोकोत्तराणां चेतांसि वज्रादपि कठोराणि कुसुमादपि च कोमलानि भवन्ति।

प्रश्न 7. पुण्डरीकं कदा विकसति (2018, 14, 10)
उत्तर:
पुण्डरीकं सूर्य उदिते विकसति।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 7 महर्षिर्दयानन्दः

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name महर्षिर्दयानन्दः
Number of Questions Solved 8
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 7 महर्षिर्दयानन्दः

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश 1
सौराष्ट्रप्रान्ते टङ्कारानाम्नि ग्रामे श्रीकर्षणतिवारीनाम्नो धनाढ्यस्य
औदीच्यविप्रवंशीयस्य धर्मपत्नी शिवस्य पार्वतीव भाद्रमासे नवम्यां तिथौ गुरुवासरे
मूलनक्षत्रे एकाशीत्युत्तराष्टादशशततमे (1881) वैक्रमाब्दे पुत्ररत्नमजनयत्।।
जन्मतः दशमे दिने ‘शिवं भजेदयम्’ इति बुद्धया पिता स्वसुतस्य मूलशङ्कर इति
नाम अकरोत् अष्टमे वर्षे चास्योपनयनमकरोत्। त्रयोदशवर्ष प्राप्तवतेऽस्मै
मूलशङ्कराय पिता शिवरात्रिव्रतमाचरितुम् अकथयत्। पितुराज्ञानुसार मूलशङ्करः
सर्वमपि व्रतविधानमकरोत्। रात्रौ शिवालये स्वपित्रा समं सर्वान् निद्रितान् विलोक्य
स्वयं जागरितोऽतिष्ठत् शिवलिङ्गस्य चोपरि मूषिकमेकमितस्ततः विचरन्तं दृष्ट्वा
शहितमानसः सत्यं शिवं सुन्दरं लोकशङ्करं शङ्करं साक्षात्कर्तुं हृदि निश्चितवान्
ततः प्रभृत्येव शिवरात्रेः उत्सवः ‘ऋषिबोधोत्सवः’ इति नाम्ना
श्रीमद्दयानन्दानुयायिनाम् आर्यसमाजिनां मध्ये प्रसिद्धोऽभूत्।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महर्षिर्दयानन्दः’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद सौराष्ट्र प्रान्त के टंकारा नामक ग्राम में उत्तरी ब्राह्मणवंश के श्रीकर्षण तिवारी नामक धनी सेठ की पत्नी ने, ‘भगवान शिव की पत्नी पार्वती की भौति विक्रम सम्वत् 1881 के भाद्रपद मास की नवमी तिथि, गुरुवार को मूल नक्षत्र में पुत्ररत्न को जन्म दिया।

‘यह भगवान शिव को भजे’ ऐसा विचार कर पिता ने जन्म के दसवें दिन अपने पुत्र का नाम ‘मूलशंकर’ रखा तथा आठवें वर्ष में इनका यज्ञोपवीत संस्कार किया। तेरह वर्ष पूर्ण होने पर मूलशंकर को पिता ने शिवरात्रि का व्रत रखने के लिए कहा। पिता की आज्ञा के अनुसार मूलशंकर ने व्रत के समस्त विधान पूर्ण किए।

रात्रि में शिवालय में अपने पिता संग सबको सोया देख ये स्वयं जागे बैठे रहे तथा शिवलिंग पर एक चूहे को इधर-उधर घूमता देख इनका मन सशंकित हो उठा। (इन्होंने) सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् लोक मंगलकारी भगवान शंकर का साक्षात्कार करने का हृदय में निश्चय किया। तभी से लेकर श्रीमान दयानन्द के अनुयायी आर्यसमाजियों में शिवरात्रि का उत्सव ‘ऋषिबौधोत्सव’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

विशेष महर्षि दयानन्द को ज्ञान प्राप्त होने को ‘ऋषिबोधोत्सव’ नाम से जाना जाता है।

गद्यांश 2
यदा अयं षोडशवर्षदेशीयः आसीत् तदास्य कनीयसी भगिनी विधूचिकया पञ्चत्वं गता। वर्षत्रयानन्तरमस्य पितृव्योऽपि दिवङ्गतः। द्वयोरनयः मृत्युं दृष्ट्वा आसीदस्य मनसि कथमुहं कथंवायं लोकः मृत्युभयात् मुक्तः स्यादिति चिन्तयतः एवास्य हदि सहसैव वैराग्यप्रदीपः प्रज्वलितः। एकस्मिन् दिवसे अस्तङ्गते भगवति भास्वति मूलशङ्करः गृहमत्यजत्। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद जब ये लगभग सोलह वर्ष के थे, तब इनकी छोटी बहन की मृत्यु हैजे से हो गई। तीन वर्षों के उपरान्त इनके चाचा भी स्वर्ग सिधार गए। इन दोनों की मृत्यु देख इनके मन में (प्रश्न) उठा कि मृत्यु के भय से कैसे मुझे और कैसे इस जग को मुक्ति मिल सकती है? ऐसा विचार करते हुए इनके हृदय में सहसा वैराग्य का दीपक जल उठा। एक दिन भगवान सूर्य के अस्त होने के उपरान्त मूलशंकर ने घर त्याग दिया।

गद्यांश 3
सप्तदशवर्षाणि यावत् अमरत्वप्राप्त्युपायं चिन्तयन् मूलशङ्करः आमाद् ग्राम, नगरानगरं, वनाद् वनं, पर्वतात् पर्वतमभ्रमत् परं नाविन्दतातितरां तृप्तिम् । अनेकेभ्यो विद्वद्भ्यः व्याकरण-वेदान्तादीनि शास्त्राणि योगविद्याश्च अशिक्षत्। नर्मदातटे च पूर्णानन्दसरस्वतीनाम्नः संन्यासिनः सकाशात् संन्यासं गृहीतवान् ‘दयानन्दसरस्वती’ इति नाम च अङ्गीकृतवान्। (2016, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद मूलशंकर सत्रह वर्ष तक अमरता प्राप्ति के उपाय पर विचार करते हुए गाँव-गाँव, शहर-शहर, वन-वन, पर्वत-पर्वत घूमते रहे, किन्तु सन्तुष्टि नहीं पा सके। अनेक विद्वानों से व्याकरण, वेदान्त आदि शास्त्र तथा योग विद्या सीखी। इन्होंने नर्मदा नदी के तट पर ‘पूर्णानन्द सरस्वती’ नाम के संन्यासी से संन्यास ग्रहण कर ‘दयानन्द सरस्वती’ नाम अंगीकार किया।

गद्यांश 4
गुरुः विरजानन्दोऽपि कुशाग्रबुद्धिमिमं दयानन्दं त्रीणि वर्षाणि यावत् पाणिनेः
अष्टाध्यायींमन्यानि च शास्त्राणि अध्यापयामास। समाप्तविद्यः दयानन्दः परमया
श्रद्धया गुरुमवदत्-भगवन् ! अहम् अकिञ्चनतया तनुमनोभ्यां समं केवलं
लवङ्गजातमेव समानीतवानस्मि। अनुगृहणातु भवान् अङ्गीकृत्य मदीयामिमां गुरुदक्षिणाम्। (2018, 16, 14, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद गुरु विरजानन्द ने भी इस कुशाग्र बुद्धि वाले दयानन्द को तीन वर्षों तक पाणिनी की अष्टाध्यायी एवं अन्य शास्त्रों का अध्ययन कराया। विद्यार्जन पूर्ण कर दयानन्द ने अपने परम श्रद्धेय गुरु से कहा, “भगवन्! मैं दरिद्र होने के कारण आपके लिए तन-मन से मात्र कुछ लौंग लाया हूँ। आप मेरी इस गुरुदक्षिणा को स्वीकार कर मुझे अनुगृहीत कृतज्ञ करें।”

गद्यांश 5
प्रीतः गुरुस्तमभाषत-सौम्य! विदितवेदितव्योऽसि, नास्ति किमपि अविदितं
तव। अद्यत्वेऽस्माकं देशः अज्ञानान्धकारे निमग्नो वर्तते, नार्यः अनाद्रियन्ते,
शूद्राश्च तिरस्क्रियन्ते, अज्ञानिनः पाखण्डनश्च पूज्यन्ते। वेदसूर्योदयमन्तरा
अज्ञानान्धकारं न गमिष्यति। स्वस्त्यस्तु ते, उन्नमय पतितान् , समुद्धर
स्त्रीजाति, खण्डये पाखण्डम्, इत्येव मेऽभिलाष इयमेव च मे गुरुदक्षिणा। (2016, 12)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद गुरु ने प्रसन्नतापूर्वक उनसे कहा, “सौम्य! तुम जानने योग्य सभी बातें जान चुके हो, अब तुम्हें कुछ भी अज्ञात नहीं। इन दिनों हमारा राष्ट्र अज्ञानरूपी अन्धकार में डूबा हुआ है। आज यहाँ नारियों का अनादर किया जाता है, शूद्र तिरस्कृत किए जाते हैं और अज्ञानी व पाखण्डी पूजे जाते हैं। अज्ञानरूपी अन्धकार बिना वेदरूपी सूर्य के उदित हुए दूर नहीं होगा। तुम्हारा कल्याण हो, पतितों को ऊँचा उठाओ, स्त्री-जाति का उद्धार करो, पाखण्ड का नाश करो, यह मेरी अभिलाषा है और यही मैरी गुरुदक्षिणा है।”

गद्यांश 6
गुरुणा एवम् आज्ञप्तः महर्षिर्दयानन्दः एतद्देशवासिनो जनान् उद्धत कर्मक्षेत्रेऽवतरत्। सर्वप्रथमं हरिद्वारे कुम्भपर्वणि भागीरथीतटे पाखण्डखण्डिनी पताकामस्थापयत्। ततश्च हिमाद्रि गत्वा त्रीणि वर्षाणि तपः अतप्यत्। तदनन्तरमयं प्रतिपादितवान् ऋग्यजुसामाथवणो वेदाः नित्या ईश्वर काश्च, ब्राह्मण-क्षत्रिय वैश्य-शूद्राणां गुण-कर्मस्वभावैः विभागः न तु जन्मना, चत्वारः एव आश्रमाः, ईश्वरः एकः एव, ब्रह्म-पितृ-देवातिथि-बलि-वैश्वदेवाः पञ्च महायज्ञा नित्यं करणीमाः। ‘स्त्रीशूद्री वेदं नाधीयाताम् अस्य वाक्यस्य असारतां प्रतिपाद्य सर्वेषां वेदाध्ययनाधिकार व्यवस्थापयत्। एवमयं पाखण्डोन्मूलनाय वैदिक धर्मसंस्थापनाय च सर्वत्र भ्रमति स्म। एवमार्यज्ञानमहादीपो देवो दयानन्दः यावज्जीवनं देशजायुद्धाराय प्रयतमानः तदर्थ स्वजीवनमपि दत्तवान् मुक्तिञ्चाध्यगच्छत् एवमस्य महर्षेः जीवनं नूनमनुकरणीयमस्ति। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद गुरु से इस प्रकार आज्ञा प्राप्त करकें महर्षि दयानन्द इस देश के निवासी मनुष्यों के उद्धार के लिए कर्मक्षेत्र में कूद पड़े। सर्वप्रथम हरिद्वार में कुम्भपर्व पर गंगा के किनारे पाखण्ड का नाश करने वाली पताका (ध्वजा) को स्थापित किया। उसके बाद हिमालय पर्वत पर जाकर तीन वर्ष तक तप किया। इसके बाद उन्होंने प्रतिपादित किया कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद नित्य हैं और ईश्वर द्वारा रचित हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का विभाजन गुण, कर्म और प्रकृति के अनुरूप है, न कि जन्म से।

आश्रम चार ही हैं। ईश्वर एक ही है। ब्रह्म, पितृ, देव, अतिथि तथा अलिवैश्वदेव में पाँच महायज्ञ प्रतिदिन हीं करने चाहिए। “स्त्री और शूद्र को वेद नहीं पढ़ने चाहिए”-इस वाक्य की सारहीनता का प्रतिपादन करके सभी के लिए वेद को पढ़ने के अधिकार की व्यवस्था की। इस तरह ये पाखण्ड की समाप्ति के लिए और वैदिक धर्म की स्थापना के लिए सब जगह घूमते रहे। इस प्रकार आर्य-शान के महान् दीप देव दयानन्द ने सम्पूर्ण जीवन देश और जाति के उद्धार के लिए अर्पित कर दिया और मोक्ष प्राप्त किया। इस प्रकार इन महर्षि का जीवन निश्चित रूप से अनुकरणीय है।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1.
महर्षेः दयानन्दस्य पितुः नाम किम् आसीत्? (2014)
उत्तर:
महर्षेः दयानन्दस्य पितुः नाम श्रीकर्षणतिवारी आसीत्।

प्रश्न 2.
महर्षेः दयानन्दस्य जन्मः कस्मिन् स्थाने/ग्रामे अभवत्। (2018, 17, 14, 10)
अथवा
महर्षेः दयानन्दस्य जन्मभूमिः कुत्र आसीत्
अथवा
मूलशङ्करस्य जन्म कुत्र अभवत्? (2018, 14)
उत्तर:
महर्षेः दयानन्दस्य जन्म सौराष्ट्रप्रान्ते टङ्कारानाम्नि ग्रामे अभवत्।

प्रश्न 3.
महर्षेः दयानन्दस्य बाल्यकालिकं किं नाम आसीत्?
उत्तर:
महर्षेः दयानन्दस्य बाल्यकालिकं मूलशङ्करः इति नाम आसीत्।।

प्रश्न 4.
दयानन्दस्य भगिनी कथं पञ्चत्वं गता? (2017, 14)
उत्तर:
दयानन्दस्य भगिनी विषूचिकया पञ्चत्वं गता।

प्रश्न 5.
मूलशङ्करस्य हृदये वैराग्यं कथम् उत्पन्नम्। (2012)
उत्तर:
स्वभगिन्याः पितृव्यस्य च मृत्युं दृष्ट्वा मूलशङ्करस्य हृदये वैराग्यप्रदीप: प्रज्वलितः।

प्रश्न 6.
महर्षेः दयानन्दस्य गुरुः कः आसीत्? (2017, 16, 15, 13, 10)
अथवा
विरजानन्दः कस्य गुरुः आसीत्? (2015, 10)
उत्तर:
विरजानन्दः महर्षेः दयानन्दस्य गुरुः आसीत्!

प्रश्न 7.
दयानन्दः किमर्थं सर्वत्र भ्रमति स्म? (2018)
उत्तर:
दयानन्दः अमरत्व प्राप्त्युपायं चिन्तपन् सर्वत्र भ्रमति स्म।

प्रश्न 8.
दयानन्दः विद्याध्ययनार्थं कुत्र गत? (2018)
उत्तर:
दयानन्दः विद्याध्ययनार्थं मथुरानगरं गतः

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 5 गीत / श्रद्धा-मनु

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name गीत / श्रद्धा-मनु
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 5 गीत / श्रद्धा-मनु

गीत / श्रद्धा-मनु – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता हैं। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
छायावाद के प्रवर्तक एवं उन्नायक महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के अत्यन्त प्रतिष्ठित सँघनी साहू के वैश्य परिवार में 1890 ई. में हुआ था। माता-पिता एवं बसे भाई के देहावसान के कारण अल्पायु में ही प्रसाद जी को व्यवसाय एवं परिवार के समस्त उत्तर:दायित्वों को वहन करना पड़ा। घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बांग्ला, उर्दू, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए इन्होंने अपने भीतर काव्य प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक विषम परिस्थितियों को जीवटता के साथ झेलते हुए यह युगसष्टा साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अपूर्व रचना-सुमन अर्पित करता हुआ 14 नवम्बर, 1937 निष्प्राण हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
जयशंकर प्रसाद के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य प्रमुख विषय रहा है, साथ ही उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। प्रसाद जी सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। प्रसाद जी ने कुल 67 रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

कृतियाँ
इनकी प्रमुख काव्य कृतियों में चित्राधार, प्रेमपथिक, कानन कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी आदि शामिल हैं।
चार प्रबन्धात्मक कविताएँ शेरसिंह का शस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि, प्रलय की छाया तथा अशोक की चिन्ता अत्यन्त चर्चित रहीं।
नाटक चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, धुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित आदि।
उपन्यास कंकाल, तितली एवं इरावती (अपूर्ण रचना)
कहानी संग्रह प्रतिध्वनि, छाया, आकाशदीप, आँधी आदि।
निबन्ध संग्रह काव्य और कला

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि प्रसाद जी के काव्य में श्रृंगार रस के संयोग एवं विप्रलम्भ, दोनों पक्षों का सफल चित्रण हुआ है। इनके नारी सौन्दर्य के चित्र स्थूलता से मुक्त आन्तरिक सौन्दर्य को प्रतिबिम्बित करते हैं
    “हृदय की अनुकृति बाह्य उदार
    एक लम्बी काया उन्मुक्ता”
  2. दार्शनिकता उपनिषदों के दार्शनिक ज्ञान के साथ बौद्ध दर्शन का समन्वित रूप भी इनके साहित्य में मिलता है।
  3. रस योजना इनका मन संयोग श्रृंगार के साथ साथ विप्रलम्भ श्रृंगार के चित्रण में भी खूब रमा है। इनके वियोग वर्णन में एक अवर्णनीय रिक्तता एवं अवसाद ने उमड़कर सारे परिवेश को आप्लावित कर लिया है। इनके काव्यों में शान्त एवं करुण रस का सुन्दर चित्रण हुआ है तथा कहीं कहीं वीर रस का भी वर्णन मिलता है।
  4. प्रकृति चित्रण इन्होंने प्रकृति के विविध रूपों का अत्यधिक हदयग्राही चित्रण किया है। इनके यहाँ प्रकृति के रम्य चित्रों के साथ-साथ प्रलय का भीषण चित्र भी मिलता है। इनके काव्यों में प्रकृति के उद्दीपनरूप आदि के चित्र प्रचुर मात्रा में हैं।
  5. मानव की अन्तःप्रकृति का चित्रण इनके काव्य में मानव मनोविज्ञान का विशेष स्थान है। मानवीय मनोवृत्तियों को उन्नत रूप देने वाली उदात्त भावनाएँ महत्वपूर्ण हैं। इसी से रहस्यवाद का परिचय मिलता है। ये अपनी रचनाओं में शक्ति-संचय की प्रेरणा देते हैं।
  6. नारी की महत्ता प्रसाद जी ने नारी को दया, माया, ममता, त्याग, बलिदान, सेवा, समर्पण आदि से युक्त बताकर उसे साकार श्रद्धा का रूप प्रदान किया है। उन्होंने ”नारी! तुम केवल श्रद्धा हो” कहकर नारी को सम्मानित किया है।

कला पक्ष

  1. भाषा प्रसाद जी की प्रारम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं, परन्तु शीघ्र ही वे खड़ी बोली के क्षेत्र में आ गए। उनकी खड़ी बोली उत्तर:ोत्तर परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक सौन्दर्य से युक्त होती गई। अद्वितीय शब्द चयन किया गया है, जिसमें अर्थ की गम्भीरता परिलक्षित होती है। इन्होंने भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का प्रयोग किया। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता से युक्त प्रसाद जी की भाषा में अद्भुत नाद-सौन्दर्य एवं ध्वन्यात्मकता के गुण विद्यमान हैं। इन्होंने चित्रात्मक भाषा में संगीतमय चित्र अंकित किए।
  2. शैली प्रबन्धकाव्य (कामायनी) एवं मुक्तक (लहर, झरना आदि) दोनों रूपों में प्रसाद जी का समान अधिकार था। इनकी रचना ‘कामायनी’ एक कालज कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है।
  3. अलंकार एवं छन्द सादृश्यमूलक अर्थालंकारों में इनकी वृत्ति अधिक भी है। इन्होंने नवीन उपमानों का प्रयोग करके उन्हें नई भंगिमा प्रदान की। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि के साथ मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्याय जैसे आधुनिक अलंकारों का भी सुन्दर उपयोग किया।

विविध छन्दों का प्रयोग तथा नवीन छन्दों की उदभावना इनकी रचनाओं में द्रष्टव्य है। आरम्भिक रचनाएँ घनाक्षरी छन्द में हैं। इन्होंने अतुकान्त छन्दों का प्रयोग अवैक किया है। ‘आँसू’ काव्य ‘सखी’ नामक मात्रिक छन्द में लिखा। इन्होंने ता.क, पादाकुलक, रूपमाला, सार, रोला आदि छन्दों का भी प्रयोग किया। इन्होंने अंग्रजी के सॉनेट तथा बांग्ला के त्रिपदी एवं पयार जैसे छन्दों का भी सफल प्रयोग किया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रसाद जी में भावना, विचार एवं शैली तीनों की प्रौढ़ता मिलती है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
प्रसाद जी भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से हिन्दी के युग-प्रवर्तक कवि के रूप में जाने जाते हैं। भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प आदि सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी ने युगान्तकारी परिवर्तन किए हैं। डॉ. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने हिन्दी साहित्य में उनके योगदान का उल्लेख करते हुए लिखा है-“वे छायावादी काव्य के जनक और पोषक होने के साथ ही, आधुनिक काव्यधारा को गौरवमय प्रतिनिधित्व करते हैं।”

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

गीत

प्रश्न 1.
बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट में डुबो रही—
तारा-घट ऊषा नागरी। खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई—
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी। अधरों में राग अमन्द पिए,
अलकों में मलयज बन्द किए—
तू अब तक सोई है आली! आँखों में भरे विहाग री।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित गीत ‘बीती विभावरी जाग री’ से उधृत किया गया है।

(ii) “अम्बर-पनघट में इबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी।” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से नायिका की सखी उसे सुबह होने के विषय में बताते हुए कहती है कि ऊषा रूपी नायिका आकाश रूपी पनघट में तारे रूपी घड़े को डुबो रही है अर्थात् रात्रि का समय समाप्त हो गया है और सुबह हो गई है, लेकिन वह अभी तक सोई हुई है।

(iii) प्रभात का वर्णन करने के लिए कवि ने किन-किन उपादानों का प्रयोग किया हैं?
उत्तर:
प्रभात का वर्णन करने के लिए कवि ने आकाश में तारों के छिपने, सुबह-सुबह पक्षियों के चहचहाने, पेड़-पौधों पर उगे नए पत्तों के हिलने, समस्त कलियों के पुष्पों में परिवर्तित होकर पराग से युक्त होने आदि उपादानों का प्रयोग किया है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के कथ्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में सुबह होने के पश्चात् भी नायिका के सोने के कारण उसकी सखी उसे जगाने के लिए आकाश में तारों के छिपने, पक्षियों के चहचहाने आदि घटनाओं का वर्णन करते हुए उसे जगाने का प्रयास करती है। वह उसे बताना चाहता है कि सर्वत्र प्रकाश होने के कारण सभी अपने कार्यों में संलग्न हो गए हैं, किन्तु वह अभी भी सोई हुई हैं।

(v) प्रस्तुत गद्यांश में मानवीकरण अलंकार की योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मानवीकरण अलंकार में प्राकृतिक उपादानों के क्रियाकलापों का वर्णन मानवीय क्रियाकलापों के रूप में किया जाता है। प्रस्तुत पद्यांश में सुबह का नायिका के रूप में वर्णन, पत्तों का आँचल डोलना, लताओं का गागर भरकर लाना आदि पद्यांश में मानवीकरण अलंकार के प्रयोग पर प्रकाश डालते हैं।

श्रद्धा-मनु

प्रश्न 2.
और देखा वह सुन्दर दृश्य नयन का इन्द्रजाल अभिराम।
कुसुम-वैभव में लता समान चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम।
हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया, उन्मुक्त।
मधु पवन क्रीड़ित ज्यों शिशु साल सुशोभित हो सौरभ संयुक्त।
मसृण गान्धार देश के, नील रोम वाले मेषों के चर्म,
ढक रहे थे उसका वपु कान्त बन रहा था वह कोमल वर्म।
नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ-वन बीच गुलाबी रंग।
आह! वह मुख! पश्चिम के व्योम-बीच जब घिरते हों घन श्याम;
अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) “हृदय की अनुकृति बाह्य उदार” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति से कवि का आशय यह है कि श्रद्धा आन्तरिक रूप से जितनी उदार, भावुक, कोमल हृदय की थी, उसका बाह्य रूप भी वैसा ही था। वह अपने आन्तरिक गुण से जिस प्रकार सबको मोहित कर लेती थी. उसी । प्रकार उसका रूप सौन्दर्य भी सभी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम था।

(ii) कवि द्वारा किए गए श्रद्धा के रूप सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कवि श्रद्धा के रूप सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसके नयन अत्यधिक आकर्षक थे, वह स्वयं लता के समान सुन्दर एवं शीतल थे, घने केशों के मध्य उसका मुख चन्द्रमा के समान प्रतीत होता था, उसके तन की सुगन्ध बसन्ती बयार की तरह हृदय को शीतलता प्रदान कर रही थी। अपने कोमल हृदय के समान उसका बाह्य रूप भी अत्यन्त सुन्दर था।

(iii) कवि ने पद्यांश में घनश्याम शब्द को दो बार प्रयोग किया है, उनका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने उपरोक्त पद्यांश में ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ तथा ‘बीच जब घिरते हों घनश्याम्’ के रूप में दो बार घनश्याम शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु दोनों बार उसके अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। पहले घनश्याम का अर्थ बादल तथा दूसरे घनश्याम का अर्थ शाम के समय का बादल हैं।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना किस-किस-से की गई है?
उत्तर:
पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना दो मिन्न स्थानों पर दो भिन्न उपमानों से की गई है। पहले स्थान पर ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में नायिका की तुलना बादलों के बीच दिखने वाले चाँद से की गई है। वहीं दूसरे स्थान पर ‘अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम’ में शाम के समय आकाश में छाए बादलों के बीच दिखाई देने वाले सूर्य से की गई है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अनुप्रास, उपमा, रूपकातिशयोक्ति व उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में रूपक अलंकार, ‘सुशोभित हो सौरभ संयुक्त’ में अनुप्रास अलंकार,, ‘खिला हो ज्यों बिजली का फूल’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

प्रश्न 3.
यहाँ देखा कुछ बलि का अन्न भूत-हित-रत किसका यह दान!
इधर कोई है अभी सजीव, हुआ ऐसा मन में अनुमान। तपस्वी!
क्यों इतने हो क्लान्त, वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश बताओ यह कैसा उद्वेग?
दुःख की पिछली रजनी बीत विकसता सुख का नवल प्रभात;
एक परदा यह झीना नील छिपाए है जिसमें सुख गात।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत् की ज्वालाओं का मूल;
ईश का वह रहस्य वरदान कभी मत इसको जाओ भूला”

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि श्रद्धा एवं मनु के कथनों के माध्यम से जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। कवि कहना चाहता है कि जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आएँगी, लेकिन हमें निराश होकर आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

(ii) श्रद्धा मनु के पास पहुँचने का क्या कारण बताती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा भनु को बताती है कि विराट हिमालय के इस वीरान क्षेत्र में जब उसे जीव-जन्तुओं के लिए अपने भोजन में से निकालकर अलग रखे गए भोजन के अंश दिखाई दिए, तो उसे उस प्रदेश में किसी व्यक्ति के रहने की अनुभूति हुई और इसी वजह से वह मनु के पास पहुँची।।

(iii) “दुःख की पिछली रजनी बीत, विकसता सुख का नवल प्रभात” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि जिस प्रकार रात्रि के पश्चात् सूर्योदय होता है और सम्पूर्ण जगत् प्रकाशमय हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में व्याप्त दुःखों के पश्चात् सुख का सर्य भी उदित होता हैं।

(iv) श्रद्धा मनु को किस प्रकार प्रेरित करती है?
उत्तर:
जीवन से हताश एवं निराश मनु को प्रेरित करते हुए श्रद्धा उसे जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए समझाते हुए कहती है कि जिस दुःख से परेशान होकर तुमने उसे अभिशाप मान लिया है वह एक वरदान है, जो तुम्हें सदा सुख को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता रहता

(v) ‘रजनी’ व ‘प्रभात’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द पर्यायवाची शब्द
रजनी रात, निशा
प्रभात सुबह, सवेरा

प्रश्न 4.
समर्पण लो सेवा का सार सजल संसृति का यह पतवार;
आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार।
बनो संसृति के मूल रहस्य तुम्हीं से फैलेगी वह बेल;
विश्व भर सौरभ से भर जाए सुमन के खेलो सुन्दर खेल।
और यह क्या तुम सुनते नहीं विधाता का मंगल वरदान
‘शक्तिशाली हो, विजयी बनो’ विश्व में गूंज रहा, जय गान।
डरो मत अरे अमृत सन्तान अग्रसर है मंगलमय वृद्धि;
पूर्ण आकर्षण जीवन केन्द्र खिंची आवेगी सकल समृद्धि!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) श्रद्धा मनु के समक्ष अपनी कौन-सी इच्छा व्यक्त करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा मनु के समक्ष स्वयं को उसकी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार कर लेने की इच्छा व्यक्त करती हैं। वह उससे कहती हैं कि मनु के द्वारा उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेने से वे दोनों इस सृष्टि अर्थात् मानव जाति की सेवा कर सकेंगे।

(ii) “बनो संसृति के मूल रहस्य” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से स्वयं को पनी के रूप में स्वीकार कर इस निर्जन संसार में मानव की उत्पत्ति का मूलाधार बनने का आग्रह करती है। उसका आशय यह है कि उन दोनों के मिलन से ही इस जगत् में मनुष्य जाति की उत्पत्ति सम्भव होगी।

(iii) “शक्तिशाली हो विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से क्या कहना चाहती है?
उत्तर:
”शक्तिशाली हो विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु की एकान्त में जीवनयापन करने की इच्छा एवं निराश व हताश मनःस्थिति में परिवर्तन करके उसे अकर्मण्यता को त्यागकर कर्तव्यशील बनकर विश्व को विजय करने की प्रेरणा देना चाहती हैं।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्रबन्धात्मक शैली का प्रयोग किया है। कति ने काव्य रचना के लिए तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जो भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतःसक्षम है। भाषा सहज, सरल एवं प्रभावगयी है।

(v) ‘विगत’ व ‘आकर्षण’ शब्दों के विलोमार्थी शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विलोमार्थक शब्द
विगत आगत
आकर्षण विकर्षण

प्रश्न 5.
विधाता की कल्याणी सृष्टि सफल हो इस भूतल पर पूर्ण;
पटें सागर, बिखरे ग्रह-पुंज और ज्वालामुखियाँ हों चूर्ण।
उन्हें चिनगारी सदृश सदर्प कुचलती रहे खड़ी सानन्द;
आज से मानवता की कीर्ति अनिल, भू, जल में रहे न बन्द।
जलधि के फूटें कितने उत्स द्वीप, कच्छप डूबें-उतराय;
किन्तु वह खड़ी रहे दृढ़ मूर्ति अभ्युदय का कर रही उपाय।
शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;
समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) श्रद्धा मनु को स्वयं वरण करने हेतु क्या कहकर प्रेरित करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा मनु से कहती हैं कि यदि वह उसका वरण कर लेता है, तो वह संसार के सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं के लिए मानव-सृष्टि कल्याणकारी होगी। मानव समस्त प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, उफनते सागरों आदि पर विजय पाकर समस्त जीवों की रक्षा करेगा, इसलिए उसे उसका वरण कर लेना चाहिए।

(ii) श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख क्यों करती हैं?
उत्तर:
श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख मनु को यह समझाने के लिए करती है। कि इस प्रलयकारी घटना के पश्चात् भी मानवता की रक्षा एवं उत्थान हेतु नव प्रयास जारी रहे। अतः मनु को स्वयं को निरुपाय न मानकर समस्या के समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

(iii) श्रद्धा विद्युतकणों के माध्यम से क्या कहना चाहती है?
उत्तर:
श्रद्धा विद्युत कणों के माध्यम से यह कहना चाहती है कि जिस प्रकार ये अलग-अलग होने पर शक्तिहीन होते हैं, किन्तु एकत्रित होते ही शक्ति का स्रोत बन जाते हैं, उसी प्रकार मानव भी जब अपनी शक्ति को पहचानकर एकत्रित कर लेता है तो वह विश्व-विजेता बन जाता है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अलंकार किसी भी काव्य रचना के सौन्दर्य में वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रस्तुत पद्यांश में भी कवि ने विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘सदृश सदर्प’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार तथा विद्युतकणों का उदाहरण देने के कारण दृष्टान्त अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(v) अभ्युदय’ व ‘निरुपाय’ में से उपसर्ग व मूल शब्द अलग-अलग कीजिए।
उत्तर:

शब्द उपसर्ग मूलशब्द
अभ्युदय अभि उदय
निरुपाय निर् उपाय

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