UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 4 Reproductive Health

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 4
Chapter Name Reproductive Health
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 4 Reproductive Health (जनन स्वास्थ्य)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
समाज में जनन स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
समाज में जनन स्वास्थ्य का अर्थ स्वस्थ जनन अंगों व उनकी सामान्य कार्यप्रणाली से है। अतः जनन स्वास्थ्य का मतलब ऐसे समाज से है जिसके व्यक्तियों के जननअंग शारीरिक व क्रियात्मक रूप से पूर्णरूपेण स्वस्थ हों। लोगों को यौन शिक्षा के द्वारा उचित जानकारी मिलती है जिससे समाज में यौन सम्बन्धों के प्रति फैली कुरीतियाँ व भ्रांतियाँ खत्म होती हैं। जनन स्वास्थ्य के अन्तर्गत लोगों को विभिन्न प्रकार के यौन-संचारित रोगों, परिवार नियोजन के उपायों, छोटे परिवार के लाभ, सुरक्षित यौन सम्बन्ध आदि के प्रति जागरूक किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान माता की देखभाल, प्रसवोत्तर माती व शिशु की देखभाल, शिशु के लिए स्तनपान का महत्त्व जैसे महत्त्वपूर्ण जानकारियों के आधार पर स्वस्थ व जागरूक परिवार बनेंगे। विद्यालय व शिक्षण संस्थानों में प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य तथा यौन शिक्षा से आने वाली पीढ़ी सुलझी विचारधारा वाली होगी जिससे हमारा समाज व देश सशक्त होगा।

प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य के उन पहलुओं को सुझाएँ जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
उत्तर
जनन स्वास्थ्य के प्रमुख पहलू जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, इस प्रकार हैं –

  1. सुरक्षित व संतोषजनक जननिक स्वास्थ्य।
  2. जनता को जनन सम्बन्धी पहलुओं के प्रति जागरूक करना।
  3. विद्यालयों में यौन-शिक्षा प्रदान करना।
  4. लोगों को यौन संचारित रोगों, किशोरावस्था सम्बन्धी बदलावों व समस्याओं के बारे में जानकारी देना।
  5. जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों से अवगत कराना।
  6. गर्भपात, गर्भ निरोधक, आर्तव चक्र, बाँझपन सम्बन्धी समस्याएँ।
  7. मादा भ्रूण हत्या के लिए उल्वबेधन का दुरुपयोग आदि।

प्रश्न 3.
क्या विद्यालयों में यौन शिक्षा आवश्यक है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
विद्यालयों में यौन शिक्षा अति आवश्यक है क्योंकि इससे छात्रों को किशोरावस्था सम्बन्धी परिवर्तनों व समस्याओं के निदान की सही जानकारी मिलेगी। यौन शिक्षा से उन्हें यौन सम्बन्ध के प्रति भ्रांतियाँ व मिथ्य धारणाओं को खत्म करने में सहायता मिलेगी; इसके साथ-साथ उन्हें सुरक्षित यौन सम्बन्ध, गर्भ निरोधकों का प्रयोग, यौन संचारित रोगों, उनसे बचाव व निदान की जानकारी प्राप्त होगी। इसके परिणामस्वरूप आने वाली पीढ़ी भावनात्मक व मानसिक रूप से समृद्ध होगी।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि पिछले 50 वर्षों के दौरान हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है? यदि हाँ, तो इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
पिछले 50 वर्षों के दौरान निश्चित ही हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्र निम्न हैं –

  1. शिशु व मातृ मृत्यु दर घटी है।
  2. यौन संचारित रोगों की शीघ्र पहचान व उनका समुचित उपचार।
  3. बन्ध्य दम्पतियों को विभिन्न तकनीकियों द्वारा संतान लाभ।
  4. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ व जीवन स्तर।
  5. विभिन्न प्रकार के गर्भ निरोधकों की खोज व उपलब्धता।
  6. चिकित्सीय सहायता युक्त सुरक्षित प्रसव।
  7. लघु परिवारों के लिए प्राथमिकता।
  8. यौन सम्बन्धी मुद्दों पर बढ़ती हुई जागरूकता।
  9. बढ़ती जनसंख्या के नियन्त्रण हेतु प्रयासरत सरकार व आम जनता।

प्रश्न 5.
जनसंख्या विस्फोट के कौन-से कारण हैं?
उत्तर
जनसंख्या विस्फोट
विश्व की आबादी 2 व्यक्ति प्रति सेकण्ड या 2,00,000 व्यक्ति प्रतिदिन या 60 लाख व्यक्ति प्रतिमाह या लगभग 7 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। आबादी में इस तीव्रगति से वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहते हैं। यह मृत्युदर में कमी और जन्मदर में वांछित कमी न आने के कारण होता है।

जनसंख्या में वृद्धि एवं इसके कारण
किसी भी क्षेत्र में एक निश्चित समय में बढ़ी हुई आबादी या जनसंख्या को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं। जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण शिशु मृत्युदर (Infant Mortality Rate-IMR) एवं मातृ मृत्युदर (Matermal Mortality Rate-MMR) में कमी आई है।
  2. जनन योग्य व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि का होना।
  3. अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जीवन स्तर में सुधार होना।
  4. अशिक्षा के कारण व्यक्तियों को परिवार नियोजन के साधनों का ज्ञान न होना और परिवार नियोजन के तरीकों को पूर्ण रूप से न अपनाया जाना।
  5. वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।
  6. सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों द्वारा अनेक महामारियों का समूल रूप से निवारण होना।
  7. निम्न सामाजिक स्तर के कारण अधिकांश निर्धन व्यक्ति यह विश्वास करता है कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे काम करके अधिक धनोपार्जन करेंगे।
  8. सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण पुत्र प्राप्ति की चाह में दम्पति सन्तान उत्पन्न करते रहते हैं।

प्रश्न 6.
क्या गर्भ निरोधकों का उपयोग न्यायोचित है? कारण बताएँ।
उत्तर
विश्व की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के गर्भ-निरोधकों का प्रयोग किया जाता है। कंडोम जैसे गर्भ निरोधक से न सिर्फ सगर्भता से बचा जा सकता है बल्कि यह अनेक यौन संचारित रोगों व संक्रमणों से भी बचाव करता है। गर्भ निरोधक के प्रयोग द्वारा किसी भी प्रकार के अवांछनीय परिणाम से बचा जा सकता है या उसे रोका जा सकता है। विश्व के अधिकांश दम्पति गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं। गर्भनिरोधकों के इन सभी महत्त्वों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इनका उपयोग न्यायोचित है।

प्रश्न 7.
जनन ग्रन्थि को हटाना गर्भ निरोधकों का विकल्प नहीं माना जा सकता है, क्यों?
उत्तर
गर्भ निरोधक के अन्तर्गत वे सभी युक्तियाँ आती हैं जिनके द्वारा अवांछनीय गर्भ को रोका जा सकता है। गर्भ निरोधक पूर्ण रूप से ऐच्छिक व उत्क्रमणीय होते हैं, व्यक्ति अपनी इच्छानुसार इनका प्रयोग बन्द करके, गर्भधारण कर सकता है। इसके विपरीत जनन ग्रन्थि को हटाने पर शुक्राणु व अण्डाणुओं का निर्माण स्थायी रूप से खत्म हो जाता है अर्थात् ये उत्क्रमणीय नहीं होते हैं। एक बार जनन ग्रन्थि के हटाने पर पुनः गर्भधारण करना असंभव होता है।

प्रश्न 8.
उल्वबेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है। क्या यह आवश्यक होना चाहिए? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
उल्वबेधन एक ऐसी तकनीक है जिसके अन्तर्गत माता के गर्भ में से एम्नियोटिक द्रव (amniotic fluid) का कुछ भाग सीरिंज द्वारा बाहर निकाला जाता है। इस द्रव में फीट्स की कोशिकाएँ होती हैं जिसके गुणसूत्रों का विश्लेषण करके भ्रूण की लिंग जाँच, आनुवांशिक संरचना, आनुवांशिक विकार व उपापचयी विकारों का पता लगाया जा सकता है। अत: इस जाँच प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य होने वाली संतान में किसी भी संभावित विकलांगता अथवा विकार का पता लगाना है जिससे माता को गर्भपात कराने का आधार मिल सके।

किन्तु आजकल इस तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण लिंग ज्ञात करके, मादा भ्रूण हत्या के लिए हो रहा है। इसके फलस्वरूप हमारे देश का लिंगानुपात असंतुलित होता जा रहा है। मादा भ्रूण के सामान्य होने पर भी गर्भपात कर दिया जाता है क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुत्र जन्म को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा गर्भपात एक बच्चे की हत्या के समतुल्य है, अतः उल्वबेधन पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाना अति आवश्यक है।

प्रश्न 9.
बन्ध्य दम्पतियों को संतान पाने हेतु सहायता देने वाली कुछ विधियाँ बताइए।
उत्तर
बन्ध्य दम्पतियों को संतान प्राप्ति हेतु सहायता देने के लिए निम्न विधियाँ हैं –
1. परखनली शिशु (Test Tube Baby) – इसके अन्तर्गत शुक्राणु व अण्डाणुओं को इन विट्रो निषेचन कराया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण को सामान्य स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। स्त्री के गर्भ में गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने पर सामान्य रूप से शिशु का जन्म होता है।

2. युग्मक अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण (Gamete Intra- Fallopian Transfer) – इस विधि का प्रयोग उन महिलाओं पर किया जाता है, जो लम्बे समय से बन्ध्य हैं। इसके अन्तर्गत लेप्रोस्कोप की सहायता से फैलोपियन नलिका के एम्पुला में शुक्राणु व अण्डाणुओं का निषेचन कराया जाता है।

3. अन्तःकोशिकाद्रव्यीय शुक्राणु बेधन (Intra-Cytoplasmic Sperm Injection) – इसके अन्तर्गत शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में सम्बन्धित माध्यम में रखकर प्रत्यक्ष ही अण्डाणु में बेध दिया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण या युग्मनज को स्त्री के गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है।

4. कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Inseminaion) – इसका प्रयोग उन पुरुषों पर किया जाता है। जिनमें शुक्राणुओं की कमी होती है। इस विधि मे पुरुष के वीर्य को एकत्रित करके स्त्री की योनि में स्थापित कर दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त निसंतान दम्पति, अनाथ व आश्रयहीन बच्चों को कानूनी रूप से गोद ले सकते हैं।

प्रश्न 10.
किसी व्यक्ति को यौन संचारित रोगों के सम्पर्क में आने से बचने के लिए कौन-से उपाय अपनाने चाहिए?
उत्तर
यौन संचारित रोग यौन सम्बन्धों के द्वारा संचारित व अति संक्रामक होते हैं। इन रोगों से बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए –

  1. सहवास के दौरान कंडोम का प्रयोग करें।
  2. समलैंगिकता से दूर रहें।
  3. परगामी व्यक्ति से यौन सम्बन्ध न बनायें।
  4. वेश्यावृत्ति से दूर रहें।
  5. किसी भी प्रकार की यौन समस्या होने पर कुशल चिकित्सक से परामर्श लें।
  6. अनजान व्यक्ति से यौन सम्बन्ध न बनाये।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित वाक्य सही हैं या गलत, व्याख्या सहित बताएँ –

  1. गर्भपात स्वतः भी हो सकता है। (सही/गलत)
  2. बन्ध्यता को जीवनक्षम संतति न पैदा कर पाने की अयोग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है और यह सदैव स्त्री की असामान्यताओं/दोषों के कारण होती है। (सही/गलत)
  3. एक प्राकृतिक गर्भ निरोधक उपाय के रूप में शिशु को पूर्ण रूप से स्तनपान कराना सहायक होता है। (सही/गलत)
  4. लोगों के जनन स्वास्थ्य के सुधार हेतु यौन सम्बन्धित पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करना एक प्रभावी उपाय है। (सही/गलत)

उत्तर

  1. गलत। सामान्य परिस्थितियों में गर्भपात स्वत: नहीं होता है। गर्भपात का अर्थ है स्वेच्छा से या किसी दुर्घटनावश गर्भ का नष्ट होना।
  2. गलत। बन्ध्यता स्त्री या पुरुष दोनों के दोषों या विकारों के कारण होती है।
  3. सही। प्रसव के उपरान्त शिशु को भरपूर स्तनपान कराने से अण्डोत्सर्ग नहीं होता है। अत: आर्तव चक्र के प्रारम्भ न होने से गर्भ ठहरने की संभावना भी नहीं रहती है। किन्तु यह प्रसव के पश्चात् 4-6 महीने तक ही प्रभावी होता है।
  4. सही। जनन स्वास्थ्य के लिए लोगों को यौन सम्बन्धी समस्याओं, भ्रान्तियों व अवधारणाओं के बारे में सही जानकारी देना जरूरी है। सुरक्षित यौन सम्बन्ध, गर्भ निरोधन, यौन रोगों से बचाव आदि महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ, लोगों को जनन स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाती हैं।

प्रश्न 12.
निम्न कथनों को सही कीजिए –

  1. गर्भ निरोध के शल्य क्रियात्मक उपाय युग्मक बनने को रोकते हैं।
  2. सभी प्रकार के यौन संचारित रोग पूरी तरह से उपचार योग्य हैं।
  3. ग्रामीण महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक के रूप में गोलियाँ (पिल्स) बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
  4. ई० टी० तकनीकों में भ्रूण को सदैव गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।

उत्तर

  1. गर्भ निरोध के शल्य क्रियात्मक उपाय युग्मक परिवहन अथवा युग्मक संचार को रोकते हैं।
  2. जेनिटल हर्षीज, HIV संक्रमण, यकृत शोथ-B के अतिरिक्त शेष सभी प्रकार के यौन संचारित रोग पूरी तरह से उपचार के योग्य हैं, यदि इन्हें सही समय पर पहचान कर इलाज कराया जाये।
  3. गर्भ निरोधक गोलियाँ (पिल्स) सभी महिलाओं के बीच लोकप्रिय हैं।
  4. ई० टी० तकनीक में भ्रूण को हमेशा गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐम्नियोटिक द्रव की कोशिकाओं में निम्न में से किसकी उपस्थिति से भ्रूणीय शिशु का लिंग निर्धारण होता है?
(क) बार पिण्ड
(ख) लिंग-गुणसूत्र
(ग) काइऐज्मेटा
(घ) प्रतिजन
उत्तर
(क) बार पिण्ड

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर
11 जुलाई को।

प्रश्न 2.
गर्भ निरोधक गोलियों में कौन-सा पदार्थ होता है?
उत्तर
प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजेन्स।

प्रश्न 3.
कॉपर-टी का प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर
युग्मकों के निषेचन को रोकना।

प्रश्न 4.
IUCD का पूरा नाम बताइए।
उत्तर
इन्ट्रा यूटेराइन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस।

प्रश्न 5.
सरोगेट मदर किसे कहते हैं?
उत्तर
वह परिचारक माँ जिसके गर्भ में वास्तविक माँ का अण्डाणु पलता है, सरोगेट मदर कहलाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
टिप्पणी लिखिए।
(क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन
(ख) सरोगेट माँ
उत्तर
(क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन
गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझ कर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को प्रेरित गर्भपात या चिकित्सीय सगर्भता समापन (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी, MTP) कहते हैं। पूरी दुनिया में हर साल लगभग 45 से 50 मिलियन (4.5-5 करोड़) चिकित्सीय सगर्भता समापन कराए जाते हैं जो कि संसार भर की कुल सगर्भताओं का 1/5 भाग है। निश्चित रूप से यद्यपि जनसंख्या को घटाने में MTP की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसका उद्देश्य जनसंख्या घटाना नहीं है तथापि MTP में भावनात्मक, नैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक पहलुओं से जुड़े होने के कारण बहुत से देशों में यह बहस जारी है कि चिकित्सीय सगर्भता समापन को स्वीकृत या कानूनी बनाया जाना चाहिए या नहीं।

भारत सरकार ने इसके दुरुपयोग को रोकने की शर्तों के साथ 1971 ई० में चिकित्सीय सगर्भता समापन को कानूनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस प्रकार के प्रतिबन्ध अंधाधुंध और गैरकानूनी मादा भ्रूण हत्या तथा भेदभाव को रोकने के लिए बनाए गए, जो अभी भी भारत देश में बहुत ज्यादा हो रहा है।

चिकित्सीय सगर्भता समापन क्यों? निश्चित तौर पर इसका उत्तर अनचाही सगर्भताओं से मुक्ति पाना है। फिर चाहे वे लापरवाही से किए गए असुरक्षित यौन सम्बन्धों का परिणाम हों या मैथुन के समय गर्भ निरोधक उपायों के असफल रहने या बलात्कार जैसी घटनाओं के कारण हों। इसके साथ ही चिकित्सीय सगर्भता समापन की अनिवार्यता कुछ विशेष मामलों में भी होती है जहाँ सगर्भता बने रहने की स्थिति में माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक अथवा घातक हो सकती है।

सगर्भता की पहली तिमाही में अर्थात् सगर्भता के 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही संकटपूर्ण एवं घातक होता है। इस बारे में एक सबसे अधिक परेशान करने वाली यह बात देखने में आई है कि अधिकतर MTP गैर कानूनी रूप से, अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं। जो कि न केवल असुरक्षित होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। दूसरी खतरनाक प्रवृत्ति शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्ववेधन का दुरुपयोग (यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक) होता है।

बहुधा ऐसा देखा गया है कि यह पता चलने पर कि भ्रूण मादा है, MTP कराया जाता है, जो पूरी तरह गैर-कानूनी है। इस प्रकार के व्यवहार से बचना चाहिए, क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। असुरक्षित मैथुन से बचाव के लिए प्रभावशाली परामर्श सेवाओं को देने तथा गैर-कानूनी रूप से कराए गए गर्भपातों में जान की जोखिम के बारे में बताए जाने के साथ-साथ अधिक-से-अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि उपर्युक्त प्रवृत्तियों को रोका जा सके।

(ख) सरोगेट माँ
कुछ विरल परिस्थितियों में इन विट्रो निषेचित अण्डाणुओं को परिपक्व होने के लिए सरोगेट माँ का उपयोग किया जाता है। कुछ स्त्रियों में अण्डाणु का निषेचन तो सामान्य रूप से होता है किन्तु कुछ विकारों के कारण भ्रूण का परिवर्धन नहीं हो पाता है। ऐसी परिस्थितियों में स्त्री के अण्डाणु व उसके पति के शुक्राणु का कृत्रिम निषेचन कराया जाता है तथा भ्रूण को 32-कोशिकीय अवस्था में किसी अन्य इच्छुक स्त्री के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। यह स्त्री सरोगेट माँ कहलाती है तथा भ्रूण के पूर्ण विकसित होने पर शिशु को जन्म देती है। मनुष्य के साथ पशुओं में भी इस प्रक्रिया द्वारा शिशु उत्पत्ति करायी जा रही है। मनुष्य की तुलना में पशुओं के भ्रूण का स्थानान्तरण अधिक सरल होता है। यद्यपि परखनली शिशु का जन्म जीव विज्ञान की दृष्टि से एक अत्यधिक सफल उपलब्धि है, किन्तु इससे जुड़ी अनेक कानूनी व नैतिक समस्याएँ भी सामने आ रही हैं, जैसे इस प्रकार जन्मे बच्चे के ऊपर कानूनी हक आदि।

प्रश्न 2.
मनुष्य में यौन सम्बन्धी उत्पन्न रोगों के लक्षण बताइए।
उत्तर
मनुष्य में यौन सम्बन्धी उत्पन्न रोग
इन्हें लैंगिक संचारित रोग (sexual transmitted disease, STD) कहते हैं। ये लैंगिक संसर्ग से या प्रजनन मार्ग से संचारित होते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
1. क्लेमायइिओसिस (Chlamydiosis) – यह सर्वाधिक रूप में पाया जाने वाला जीवाणु जनित STD है। यह रोग क्लेमायडिआ ट्रेकोमेटिस (Chlamydia trachomatis) नामक जीवाणु से होता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से इस रोग का संचारण होता है। इसका उद्भवन काल (incubation period) एक सप्ताह का होता है।
लक्षण (Symptoms) – इस रोग में पुरुष के शिश्न से गाढ़े मवाद जैसा स्राव होता है तथा मूत्र-त्याग में अत्यन्त पीड़ा होती है। स्त्रियों में इस रोग के कारण गर्भाशय-ग्रीवा, गर्भाशय व मूत्र नलिकाओं में प्रदाह (inflammation) होता है। उपचार न होने पर यह श्रोणि प्रदाह रोग (pelvic inflammatory disease) में परिवर्तित होकर बन्ध्यता का कारण बनता है।

2. सुजाक (Gonorrhoea) – यह (ग्रामऋणी) जीवाणुवीय STD है जो डिप्लोकॉकस जीवाणु, नाइसेरिया गोनोरिया (Neisseria gonorrhoeae) द्वारा होता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से यह रोग फैलता है। इसका उद्भवन काल 2 से 10 दिन होता है।
लक्षण (Symptoms) – इस रोग का प्रमुख लक्षण यूरोजेनीटल (urogenital) पथ की श्लेष्मा कला में अत्यधिक जलन होना है। रोगी को मूत्र-त्याग के समय जलन महसूस होती है। सुजाक के लक्षण पुरुष में अधिक प्रभावी होते हैं। सुजाक से अन्य विकार; जैसे–प्रमेय जन्य सन्धिवाह (gonorrheal arthritis), पौरुष ग्रंथ प्रवाह (prostatitis), मूत्राशय प्रवाह (cystitis) व स्त्रियों में जरायु प्रदाह (meritis), डिम्ब प्रणाली प्रदाह (sapingititis), बन्ध्यता आदि हो जाते हैं।

3. एड्स (AIDS) – विषाणुओं से चार प्रमुख STDs होते हैं एड्स अर्थात् उपार्जित प्रतिरोध क्षमता अभाव सिन्ड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) एक विषाणु जनित रोग है। जो भयंकर रूप से फैल रहा है। एड्स रीट्रोवाइरस या HIV अथवा लिम्फोट्रापिक विषाणु टाइप III या HTLV III आदि नामक विषाणु से होता है। इस रोग का उद्भवन काल 9-30 माह है। रक्त आधान से सम्बन्धित व्यक्तियों में यह काल 4-14 माह होता है।
लक्षण (Symptoms) – निरन्तर ज्वर, पेशियों में दर्द, रातों को पसीना आना तथा लसीका ग्रंथियों का चिरस्थायी विवर्धन, लिंग अथवा योनि से रिसाव, जननांगीय क्षेत्र में अल्सर या जाँघों में सूजन आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

4. जेनीटल हर्षीज Genital Herpes) – यह रोग टाइप-2 हपज सिम्पलेक्स विषाणु (type-2 herpes simplex virus) से उत्पन्न होता है। परगामी व्यक्ति से सम्भोग करने पर यह रोग फैलता है।
लक्षण (Symptoms) – इस रोग के प्राथमिक लक्षण जननांगों पर छाले पड़ना व दर्द होना, ज्वर, मूत्र-त्याग में पीड़ा, लसीका ग्रन्थियों की सूजन आदि हैं। छालों के फूटने से संक्रमण तेजी से फैलता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या वृद्धि पर कैसे नियन्त्रण किया जा सकता है? परिवार नियोजन की वैज्ञानिक विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
जन्म नियन्त्रण के लिए प्रयोग होने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जनसंख्या नियन्त्रण
भारत में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते हैं –
1. शिक्षा की सुविधाओं का विस्तार – शिक्षित व्यक्ति प्रायः आय एवं व्यय के सिद्धान्त से भली-भाँति परिचित होने के कारण सीमित परिवार के महत्त्व को समझते हैं। यही कारण है कि शिक्षित परिवार सामान्यतः सीमित ही होते हैं।

2. बच्चों की संख्या का निर्धारण – जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए प्रति परिवार बच्चों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए। इसके लिए सरकारी स्तर पर कानून में संशोधन किये जाने चाहिए और यदि सम्भव न हो तो सीमित परिवार वाले व्यक्तियों को ऐसे प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए जिनसे कि जन-सामान्य में इसके प्रति रुचि उत्पन्न हो सके। परिवार में बच्चों की संख्या निश्चित करके अनियन्त्रित ढंग से बढ़ रही जनसंख्या पर तुरन्त प्रभावी रोक लगायी जा सकती है।

3. विवाह योग्य आयु में वृद्धि – विवाह का जनन से सीधा सम्बन्ध है; अतः विवाह योग्य आयु में वृद्धि करने से प्रजनन दर में कमी लायी जा सकती है। वर्तमान समय में यह स्त्रियों के लिए कम-से-कम 18 वर्ष तथा पुरुषों के लिए कम-से-कम 21 वर्ष है। इसे अब क्रमशः 23 वर्ष और 25 वर्ष कर देना चाहिए। इसके साथ-साथ देर से विवाह करने वाले स्त्रियों एवं पुरुषों को प्रोत्साहन पुरस्कार देना भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

4. गर्भपात को ऐच्छिक एवं सुविधापूर्ण बनाना – हमारे देश में गर्भपात को प्राचीन समय से ही घृणित माना गया है। गर्भपात की सुविधा को शीघ्र ही राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध कराना जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए बहुत आवश्यक है। अनावश्यक गर्भ से छुटकारा पाकर स्त्रियाँ अपने परिवार में बच्चों की संख्या सीमित रख सकती हैं।

5. समन्वित ग्रामीण विकास एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों में तालमेल – सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक विकास योजनाएँ चला रखी हैं। यदि इनके साथ परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को भी जोड़ दिया जाये तथा इन्हें सफलतापूर्वक प्रतिपादित करने के लिए विकास खण्डों के स्तर पर आर्थिक सहायता एवं अन्य प्रोत्साहन दिये जाएँ तो इन कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार को सन्तति निरोध के साधन व दवाएँ निःशुल्क बॉटनी चाहिए तथा नसबन्दी ऑपरेशन के लिए शिविर आयोजित कराने चाहिए।

6. कृषि एवं उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि – ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय: यह सोचा जाता है कि कृषि के लिए अधिकाधिक जनशक्ति आवश्यक है, जिसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सीमित परिवार की विचारधारा ठीक से नहीं पनप पायी है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक कृषि यन्त्रों एवं तकनीकों को अधिकाधिक उपलब्ध कराया जाये तो कम जनशक्ति द्वारा ही कृषि की जा सकेगी तथा सीमित परिवार के प्रति लोगों में रुचि उत्पन्न होगी। उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि से भी बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी, रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

7. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि एवं सुधार – सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों; जैसे–पेंशन, ग्रेच्युटी एवं सेवानिवृत्त होने पर मिलने वाली सुविधाएँ आदि में इतनी वृद्धि करनी चाहिए कि सेवा-निवृत्त होने पर कर्मचारी को अपने परिवार पर बोझ बनकर न रहना पड़े। इससे आम व्यक्ति ‘सन्तान बुढ़ापे की लाठी’ जैसी विचारधारा से मुक्ति पा सकेंगे तथा उनमें सीमित परिवार के प्रति रुचि बढ़ेगी।

8. परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाया जाये – जनसंख्या वृद्धि की समस्या का वास्तविक निदान जनसंख्या को नियोजित एवं नियन्त्रित करने में निहित है। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए –

  1. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे संचार माध्यमों द्वारा परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को अधिकाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  2. बन्ध्याकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए चल चिकित्सालयों, चिकित्सा शिविरों एवं अन्य आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए।
  3. सन्तति निरोध सम्बन्धी विभिन्न सामग्री को नि:शुल्क अथवा अत्यधिक सस्ते मूल्यों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  4. बन्ध्याकरण के लिए आवश्यक योग्य चिकित्सकों एवं अन्य कर्मचारियों को समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए और यदि सम्भव हो तो शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् चिकित्सकों को एक या दो वर्ष के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिए बाध्य किया जाए।

9. सकारात्मक और निषेधात्मक प्रेरकों पर आधारित विवेकपूर्ण जनसंख्या नीति – जनसंख्या को नियन्त्रित रखने के लिए विवेकपूर्ण नीति को अपनाया जाना तथा समय-समय पर उसका पुनर्मूल्यांकन कर उसमें आवश्यक संशोधन करते रहना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

10. विदेशियों के आगमन पर रोक – भारत में प्रतिवर्ष अनेकानेक विदेशी आकर बस जाते हैं। प्राय: बांग्लादेश और नेपाल से अनेक लोग आकर भारत में बस गये हैं। सरकार को विदेशी लोगों के आगमन को प्रतिबन्धित कर देना चाहिए, साथ ही अनाधिकृत रूप से भारत में आकर बस गये विदेशियों को हटाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

11. जनसंख्या के धार्मिक आयाम का अध्ययन एवं वस्तुनिष्ठ निर्णय – भारत में जनसंख्या वृद्धि के मजहबी आयाम को धर्म निरपेक्षता के नाम में अनदेखा किया जाता है। अब वह समय आ गया है जब सभी धर्मावलम्बियों, राजनीतिज्ञों एवं आम व्यक्तियों को कठोर निर्णय लेने ही चाहिए।

परिवार नियोजन की विधियाँ/गर्भ निरोधक
जनसंख्या को सीमित रखने के लिए विभिन्न प्रकार से परिवारों में सन्तानोत्पत्ति की दर को नियन्त्रित करके मानव जनसंख्या की वृद्धि को कम किया जा सकता है। इस प्रकार परिवार के आकार को सीमित रखना ही परिवार नियोजन है। इसके लिए कई विधियाँ अपनायी जाती हैं। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा गया है –
1. बन्ध्याकरण या नसबन्दी (Sterilization) – इस प्रक्रिया को वैसेक्टॉमी (vasectomy) भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में पुरुषों में वृषणकोष के ऊपरी भाग में शुक्रवाहिकाओं को काटकर इनके दोनों कटे सिरों को बाँध देते हैं। स्त्रियों में इसे सैल्पिजेक्टोमी या ट्युबेक्टोमी (salpingectomy or tubectomy) कहते हैं।

2. कण्डोम का प्रयोग (Use of Condom) – यह एक पतली झिल्ली होती है। पुरुष सम्भोग के समय इसे लिंग पर चढ़ा लेता है। इस प्रकार, वीर्य स्त्री की योनि में स्खलित न होकर कण्डोम
में ही रह जाता है।

3. गर्भ निरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills) – इसमें ऐसे हॉर्मोन्स की गोलियाँ होती हैं जो युग्मानुजनन तथा गर्भधारण में हस्तक्षेप करते हैं। इन हॉर्मोन्स के कारण पिट्यूटरी ग्रन्थि के
हॉर्मोन्स (FSH तथा LH) का स्रावण बहुत घट जाता है, जो अण्डाशयों को सक्रिय करते हैं।

4. अन्तः गर्भाशयी यन्त्र (Intrauterine Device = IUD) – इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे या स्टील की कोई युक्ति (device) गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति
गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं हो पाती।

5. बाधा विधियाँ (Barrier Methods) – ये विधियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं। इन विधियों में योनिधानी (vaginal pouch), तनुपट (diaphragm) तथा ग्रीवा टोपी (cervical cap) का प्रयोग किया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance (स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance (स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 2
Chapter Name Electrostatic Potential and Capacitance (स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता)
Number of Questions Solved 104
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance (स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
5 x 10-8 C तथा -3 x 10-8 C के दो आवेश 16 cm दूरी पर स्थित हैं। दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के किस बिन्दु पर विद्युत विभव शून्य होगा? अनन्त पर विभव शून्य लीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q1.1UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

प्रश्न 2.
10 cm भुजा वाले एक सम-षट्भुज के प्रत्येक शीर्ष पर 5 µC का आवेश है। षट्भुज के केन्द्र पर विभव परिकलित कीजिए।
हल-
समषट्भुज के केन्द्र से प्रत्येक शीर्ष की दूरी समान होती है तथा यह इसकी भुजा a = 10 सेमी के बराबर होगी (चित्र 2.3)। चूंकि प्रत्येक शीर्ष पर (UPBoardSolutions.com) आवेश भी समान (q = 5 µC = 5 x 10-6 C) है, अत: प्रत्येक शीर्ष पर स्थित आवेश के कारण केन्द्र O पर विभव समान होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

प्रश्न 3.
6 cm की दूरी पर अवस्थित दो बिन्दुओं A एवं B पर दो आवेश 2 µC तथा -2 µC रखे है।
(a) निकाय के सम विभव पृष्ठ की पहचान कीजिए।
(b) इस पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर विद्युत-क्षेत्र की दिशा क्या है?
हल-
(a) दिया है, A व B पर दो आवेश 2 µC और -2 µC रखे हैं।
AB = 6 सेमी = 0.06 मीटर
दो दिए गए आवेशों के निकाय का समविभवी पृष्ठ A व B को मिलाने वाली रेखा के अभिलम्बवत् होगा। यह पृष्ठ, रेखा AB के मध्य बिन्दु C से गुजरेगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q3
इस प्रकार इस पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर समान विभव है और यह शून्य है। अतः यह एक समविभवी पृष्ठ है।
(b) हमें ज्ञात है कि वैद्युत क्षेत्र सदैव + से – आवेश (UPBoardSolutions.com) की ओर दिष्ट होता है। इस प्रकार यहाँ वैद्युत क्षेत्र (+ve) बिन्दु A से ऋणावेशित (-ve) बिन्दु B की ओर कार्य करता है। तथा यह समविभवी पृष्ठ के अभिलम्बवत् है।
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प्रश्न 4.
12 cm त्रिज्या वाले एक गोलीय चालक के पृष्ठ पर 1.6 x 10-7 C पर आवेश एकसमान रूप से वितरित है।
(a) गोले के अन्दर
(b) गोले के ठीक बाहर
(c) गोले के केन्द्र से 18 cm पर अवस्थित, किसी बिन्दु पर विद्युत-क्षेत्र क्या होगा?
हल-
आवेश सदैव चालक के पृष्ठ पर रहता है तथा बाहरी बिन्दुओं के लिए यह ऐसे व्यवहार करता है जैसे सम्पूर्ण आवेश इसके केन्द्र पर स्थित हो।
(a) गोले के भीतर वैद्युत क्षेत्र, Ein = 0
(b) गोले के पृष्ठ पर वैद्युत क्षेत्र
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प्रश्न 5.
एक समान्तर पट्टिका संधारित्र, जिसकी पट्टिकाओं के बीच वायु है, की धारिता 8 pF (1 pF = 10-12 F) है। यदि पट्टिकाओं के बीच की दूरी को आधा कर दिया जाए और इनके बीच के स्थान में 6 परावैद्युतक’का एक पदार्थ भर दिया जाए तो इसकी धारिता क्या होगी?
हल-
दिया है : पट्टिकाओं के बीच वायु होने पर समान्तर पट्ट संधारित्र की धारिता
C0 = 8 pF = 8 x 10-12 F
यदि प्रत्येक पट्टिका का क्षेत्रफल = A
तथा पट्टिकाओं के बीच दूरी = d हो, तो
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प्रश्न 6.
9 pF धारिता वाले तीन संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है।
(a) संयोजन की कुल धारिता क्या है?
(b) यदि संयोजन को 120 V के संभरण (सप्लाई) से जोड़ दिया जाए, तो प्रत्येक संधारित्र पर क्या विभवान्तर होगा?
हल-
तीनों संधारित्रों में प्रत्येक की धारिता 9 pF है।
अर्थात् C1 = C2 = C3 = 9 pF; संभरण वोल्टता V = 120 वोल्ट
(a) यदि इनके श्रेणी संयोजन की कुल धारिता Cs हो
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प्रश्न 7.
2 pF, 3 pF और 4 pF धारिता वाले तीन संधारित्र पाश्र्वक्रम में जोड़े गए हैं।
(a) संयोजन की कुल धारिता क्या है?
(b) यदि संयोजन को 100 V के संभरण से जोड़ दें तो प्रत्येक संधारित्र पर आवेश ज्ञात कीजिए।
हल-
यहाँ C1 = 2 pF, C2 = 3 pF, C3 = 4 pF तथा संभरण वोल्टता V = 100 वोल्ट
(a) संधारित्रों के पाश्र्वक्रम (समान्तर संयोजन) की कुल धारिता
C = C1 + C2 + C3 = 2 pF + 3 pF + 4 pF = 9 pF
(b) पाश्र्वक्रम संयोजन के प्रत्येक संधारित्र के सिरों के बीच वोल्टता संभरण वोल्टता के बराबर ही होगी अर्थात् V = 100 वोल्ट
अतः C1 = 2 pF = 2 x 10-12 F पर आवेश
Q1 = C2 x V = 2 x 10-12 F x 100 वोल्ट = 2 x 10-10 कूलॉम
C2 = 3 pF = 3 x 10-12 F पर आवेश
Q2 = C2 x V = 3 x 10-12 F x 100 वोल्ट = 3 x 10-10 कूलॉम
C3 = 4 pF = 4 x 10-12 F पर आवेश
Q3 = C3 x V = 4 x 10-12 F x 100 वोल्ट = 4 x 10-10 कूलॉम

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प्रश्न 8.
पट्टिकाओं के बीच वायु वाले समान्तर पट्टिको संधारित्र की प्रत्येक पट्टिका का क्षेत्रफल 6 x 10-3 m2 तथा उनके बीच की दूरी 3 mm है। संधारित्र की धारिता को परिकलित कीजिए। यदि इस संधारित्र को 100 V के संभरण से जोड़ दिया जाए तो संधारित्र की प्रत्येक पट्टिका पर कितना आवेश होगा?
हल-
दिया है, प्लेट क्षेत्रफल A = 6 x 10-3 m, y = 100 वोल्ट
बीच की दूरी d = 3 mm = 3 x 10-3 m
धारिता C = ?, प्रत्येक पट्टी पर आवेश = ?
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प्रश्न 9.
प्रश्न 8 में दिए गए संधारित्र की पट्टिकाओं के बीच यदि 3 mm मोटी अभ्रक की एक शीट (पत्तर) (परावैद्युतांक = 6) रख दी जाती है तो स्पष्ट कीजिए कि क्या होगा जब
(a) विभव (वोल्टेज) संभरण जुड़ा ही रहेगा।
(b) संभरण को हटा लिया जाएगा?
हल-
प्रश्न 8 के परिणाम से,
V = 100 वोल्ट,
q = 18 x 10-10 C
अब माध्यम का परावैद्युतांक K = 6
परावैद्युत की मोटाई t = 3 mm = 3 x 10-3 m
t = d; अत: संधारित्र पूर्णतः परावैद्युत द्वारा भरा है।
संधारित्र की नई धारिता C = KC0 = 6 x 18 pF [C0 = 18 pF]
= 108 pF
(a) विभव संभरण जुड़ा हुआ है; अत: संधारित्र का विभवान्तर नियत अर्थात् 100 वोल्ट रहेगा।
संधारित्र पर नया आवेश q = CV = 108 x 10-12 x 100
= 1.08 x 10-8 C
अतः इस स्थिति में, C = 108 pF, V = 100 V, q = 1.08 x 10-8 C
(b) विभव संभरण हटा लिया गया है; अत: संधारित्र पर आवेश q = 18 x 10-10 C नियत रहेगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q9

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प्रश्न 10.
12pF का एक संधारित्र 50 V की बैटरी से जुड़ा है। संधारित्र में कितनी स्थिर विद्युत ऊर्जा संचित होगी?
हल-
यहाँ C = 12 pF = 12 x 10-12 फैरड; V = 50 वोल्ट
अत: स्थिर वैद्युत ऊर्जा
U = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] CV²
= [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x (12 x 10-12) x (50)² जूल
= 1.50 x 10-8 जूल

प्रश्न 11.
200 V संभरण (सप्लाई) से एक 600 pF से संधारित्र को आवेशित किया जाता है। फिर इसको संभरण से वियोजित कर देते हैं तथा एक अन्य 600 pF वाले अनावेशित संधारित्र से जोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में कितनी ऊर्जा का ह्रास होता है?
हल-
दिया है, धारिताएँ C1 = 600 x 10-12 F, C2 = 600 x 10-12 F
विभवान्तर V1 = 200 V, V2 = 0 V .
प्रक्रिया में ऊर्जा का हास ΔU = ?
आवेश के बाद संभरण को हटा दिया जाता है; अतः निकाय पर कुल’ आवेश नियत रहेगा।
माना संधारित्रों को जोड़ने पर उनका उभयनिष्ठ विभव V है,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q11
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अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 12.
मूल बिन्दु पर एक 8 mC का आवेश अवस्थित है। -2 x 10-9 के एक छोटे से आवेश को बिन्दु P(0, 0, 3 cm) से, बिन्दु R(0, 6 cm, 9 cm) से होकर, बिन्दु Q(0, 4 cm, 0) तक ले जाने में किया गया कार्य परिकलित कीजिए।
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हल-
मूल बिन्दु पर आवेश Q = 8 x 10-3 C
दूसरा आवेश q = -2 x 10-9 C
स्थिरविद्युत क्षेत्र में किसी आवेश को एक बिन्दु से दूसरी बिन्दु तक ले जाने में किया जाने वाला कार्य मार्ग के स्थान पर अन्त्य बिन्दुओं पर निर्भर करता है।
आवेश q को बिन्दु P से Q तक ले जाने में किया गया कार्य
W = q (VQ – VP)
यहाँ बिन्दु Q की मूल बिन्दु से दूरी rQ = OQ = 0.04 m
तथा बिन्दु P की मूल बिन्दु से दूरी rP = OP = 0.03 m
मूल बिन्दु पर स्थित आवेश Q के कारण Q व P के बीच विभवान्तर
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प्रश्न 13.
b भुजा वाले एक घन के प्रत्येक शीर्ष पर q आवेश है। इस आवेश विन्यास के कारण घन के केन्द्र पर विद्युत विभव तथा विद्युत-क्षेत्र ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q13
हल-
चित्र 2.6 में घन की भुजा = b
अतः घन का प्रत्येक विकर्ण = [latex s=2]\sqrt { { b }^{ 2 }+{ b }^{ 2 }+{ b }^{ 2 } }[/latex] = b√3
घन के प्रत्येक शीर्ष पर स्थित आवेश = q तथा प्रत्येक आवेश की घन के केन्द्र O (चारों विकर्णो AF, EB, CH तथा GD का छेदन बिन्दु, जो इनका मध्य बिन्दु होता है) से दूरी
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चूंकि प्रत्येक विकर्ण के शीर्ष पर समान परिमाण तथा समान प्रकृति के आवेश रिथत हैं, अतः इनके कारण.O पर तीव्रता परिमाण में बराबर तथा दिशा में विपरीत होगी। अतः ये एक-दूसरे को निरस्त कर देंगी। अतः O पर परिणामी तीव्रता शून्य होगी।

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प्रश्न 14.
1.5 μC और 2.5 μC आवेश वाले दो सूक्ष्म गोले 30 cm दूर स्थित हैं।
(a) दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के मध्य बिन्दु पर, और
(b) मध्य बिन्दु से होकर जाने वाली रेखा के अभिलम्ब तल में मध्य बिन्दु से 10 cm दूर स्थित किसी बिन्दु पर विभव और विद्युत-क्षेत्र ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q14
हल-
(a) मध्य बिन्दु की प्रत्येक आवेश से दूरी
rA = rB = 0.15 m
मध्य बिन्दु पर विभव
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q14.2
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प्रश्न 15.
आन्तरिक त्रिज्या तथा बाह्य त्रिज्या r1 वाले एक गोलीय चालक खोल (कोश) पर r2 आवेश है।
(a) खोल के केन्द्र पर एक आवेश q रखा जाता है। खोल के भीतरी और बाहरी पृष्ठों पर पृष्ठ आवेश घनत्व क्या है?
(b) क्या किसी कोटर (जो आवेश विहीन है) में विद्युत-क्षेत्र शून्य होता है, चाहे खोल गोलीय न होकर किसी भी अनियमित आकार का हो? स्पष्ट कीजिए।
हल-
(a) जब चालक को केवल Q आवेश दिया गया है तो यह पूर्णत: चालक के बाह्य पृष्ठ पर रहता है। हम जानते हैं कि एक चालक के भीतर नैट आवेश शून्य (UPBoardSolutions.com) रहता है; अतः खोल के केन्द्र पर q आवेश रखने पर, खोल की भीतरी सतह पर -q आवेश प्रेरित हो जाता है तथा बाहरी सतह पर अतिरिक्त + q आवेश आ जाता है।
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(b) हाँ, यदि कोटर आवेशविहीन है तो उसके अन्दर विद्युत-क्षेत्र शून्य होगा। इसके विपरीत कल्पना करें कि किसी चालक के भीतर एक अनियमित आकृति का आवेशविहीन कोटर है जिसके भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य नहीं है। अब एक ऐसे बन्द लूप पर विचार करें जिसका कुछ भाग कोटर के भीतर क्षेत्र रेखाओं के समान्तर है तथा शेष भाग कोटर से बाहर परन्तु चालक के भीतर है। चूंकि चालक के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य है; अतः यदि एकांक आवेश को इस बन्द लूप के अनुदिश ले जाया जाए तो क्षेत्र द्वारा किया गया नैट कार्य प्राप्त होगा। परन्तु यह स्थिति स्थिरविद्युत क्षेत्र के लिए सत्य नहीं है (बन्द लूप पर नैट कार्य शून्य होता है)। अत: हमारी परिकल्पना कि कोटर के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य नहीं है, गलत है। अर्थात् चालक के भीतर आवेशविहीन कोटर के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य होगा।

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प्रश्न 16.
(a) दर्शाइए कि आवेशित पृष्ठ के एक पाश्र्व से दूसरे पाश्र्व पर स्थिरविद्युत-क्षेत्र के अभिलम्ब घटक में असांतत्य होता है, जिसे
[latex]\left( \vec { {E}_{2} } -\vec { {E}_{1} } \right) \hat { n } =\frac { \sigma }{ { \varepsilon }_{ 0 } }[/latex]
द्वारा व्यक्त किया जाता है। जहाँ एक बिन्दु पर पृष्ठ के अभिलम्ब एकांक सदिश है तथा [latex s=2]\sigma [/latex] उस बिन्दु पर पृष्ठ आवेश घनत्व है ([latex]\overset { \wedge }{ n }[/latex] की दिशा पाश्र्व 1 से पाश्र्व 2 की ओर है)। अतः
दर्शाइए कि चालक के ठीक बाहर विद्युत-क्षेत्र [latex]\frac { \sigma \hat { n } }{ { \varepsilon }_{ 0 } }[/latex] है।
(b) दर्शाइए कि आवेशित पृष्ठ के एक पाश्र्व से दूसरे पाश्र्व पर स्थिरविद्युत-क्षेत्र का स्पर्शीय घटक संतत है।
[संकेत- (a) के लिए गौस-नियम का उपयोग कीजिए। (b) के लिए इस तथ्य का उपयोग करें कि संवृत पाश पर एक स्थिर वैद्युत क्षेत्र द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है।)
उत्तर-
(a) माना AB एक आवेशित पृष्ठ है जिस पर पृष्ठीय आवेश घनत्व [latex s=2]\sigma [/latex] है। पृष्ठ के समीप प्रत्येक बिन्दु पर विद्युत-क्षेत्र [latex s=2]\overrightarrow { E }[/latex] समान तथा पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की ओर है।
चित्र में एक बेलनाकार गाउसीय पृष्ठ को प्रदर्शित किया गया है। इस पृष्ठ के वृत्ताकार परिच्छेदों पर अभिलम्ब सदिश [latex s=2]{ \overset { \wedge }{ n } }_{ 1 }[/latex] व [latex s=2]{ \overset { \wedge }{ n } }_{ 2 }[/latex] क्रमश: क्षेत्रों [latex s=2]\overrightarrow { { E }_{ 1 } }[/latex] व [latex s=2]\overrightarrow { { E }_{ 2 } }[/latex] के समदिश हैं जबकि वक्र पृष्ठ पर अभिलम्ब संगत क्षेत्र [latex s=2]\overrightarrow { { E }_{ 3 } }[/latex] के लम्बवत् हैं।
माना प्रत्येक वृत्तीय परिच्छेद का क्षेत्रफल ΔA है तब गाउसीय पृष्ठ से गुजरने वाला विद्युत फ्लक्स
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q16
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q16.3
(b) आवेशित पृष्ठ के एक ओर से दूसरी ओर जाने पर स्थिरविद्युत-क्षेत्र का स्पर्श रेखीय घटक सतत (सर्वथा शून्य) होता है, अन्यथा पृष्ठ के विभिन्न बिन्दु अलग-अलग विभवों पर होंगे तथा धनावेश पृष्ठ के अनुदिश उच्च विभव से निम्न विभव के बिन्दुओं की ओर गति करता रहेगा।

प्रश्न 17.
रैखिक आवेश घनत्व λ वाला एक लम्बा आवेशित बेलन एक खोखले समाक्षीय चालक बेलन द्वारा घिरा है। दोनों बेलनों के बीच के स्थान में विद्युत-क्षेत्र कितना है?
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प्रश्न 18.
एक हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन लगभग 0.53 Å दूरी पर परिबद्ध हैं:
(a) निकाय की स्थितिज ऊर्जा का eV में परिकलन कीजिए, जबकि प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन के मध्य की अनन्त दूरी पर स्थितिज ऊर्जा को शून्य माना गया है।
(b) इलेक्ट्रॉन को स्वतन्त्र करने में कितना न्यूनतम कार्य करना पड़ेगा, यदि यह दिया गया है कि इसकी कक्षा में गतिज ऊर्जा (a) में प्राप्त स्थितिज ऊर्जा के परिमाण की आधी है?
(c) यदि स्थितिज ऊर्जा को 1.06 Å पृथक्करण पर शून्य ले लिया जाए तो, उपर्युक्त (a) और (b) के उत्तर क्या होंगे?
हल-
यहाँ q1 = -1.6 x 10-19 C, q2 = +1.6 x 10-19 C
r = 0.53 Å = 5.3 x 10-11 m
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प्रश्न 19.
यदि H, अणु के दो में से एक इलेक्ट्रॉन को हटा दिया जाए तो हमें हाइड्रोजन आण्विक आयन(H2+) प्राप्त होगा। (H2+) की निम्नतम अवस्था (ground state) में दो प्रोटॉन के बीच दूरी लगभग 1.5 Å है और इलेक्ट्रॉन प्रत्येक प्रोटॉन से लगभग 1 Å की दूरी पर है। निकाय की स्थितिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए। स्थितिज ऊर्जा की शून्य स्थिति के चयन का उल्लेख कीजिए।
हल-
स्थितिज ऊर्जा की शुन्य स्थितिअनन्त पर मानते हुए दिए गए वैद्युत निकाय (जिसमें चित्र 2.12 के । अनुसार दो प्रोटॉम एवं एक इलेक्ट्रॉन है) की स्थितिज ऊर्जा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q19
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

प्रश्न 20.
a और b त्रिज्याओं वाले दो आवेशित चालक गोले एक तार द्वारा एक-दूसरे से जोड़े गए हैं। दोनों गोलों के पृष्ठों पर विद्युत-क्षेत्रों में क्या अनुपात है? प्राप्त परिणाम को, यह समझाने में प्रयुक्त कीजिए कि किसी एक चालक के तीक्ष्ण और नुकीले सिरों पर आवेश घनत्व, चपटे भागों की अपेक्षा अधिक क्यों होता है?
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q20.1

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प्रश्न 21.
बिन्दु (0, 0, -a) तथा (0, 0, a) पर दो आवेश क्रमशः -q और +q स्थित हैं।
(a) बिन्दुओं (0, 0, z) और (x, y, 0) पर स्थिरविद्युत विभव क्या है?
(b) मूल बिन्दु से किसी बिन्दु की दूरी पर विभव की निर्भरता ज्ञात कीजिए, जबकि [latex s=2]\frac { r }{ a }[/latex] >> 1
(c) x-अक्ष पर बिन्दु (5, 0, 0) से बिन्दु (-7, 0, 0) तक एक परीक्षण आवेश को ले जाने में कितना कार्य करना होगा? यदि परीक्षण आवेश को उन्हीं बिन्दुओं के बीच x-अक्ष से होकर न ले जाएँ तो क्या उत्तर बदल जाएगा?
हल-
दिए गए बिन्दु आवेश एक विद्युत द्विध्रुव बनाते हैं।
आवेशों के बीच की दूरी = 2a
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q21.1
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प्रश्न 22.
नीचे दिए गए चित्र 2.14 में एक आवेशविन्यास जिसे विद्युत चतुर्भुवी कहा जाता है, दर्शाया गया है। चतुर्भुवी के अक्ष पर स्थित किसी बिन्दु के लिए पर विभव की निर्भरता प्राप्त कीजिए जहाँ [latex s=2]\frac { r }{ a }[/latex] >> 1। अपने परिणाम की तुलना एक विद्युत द्विध्रुव व विद्युत एकल ध्रुव (अर्थात् किसी एकल आवेश) के लिए प्राप्त परिणामों से कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q22
हल-
माना P की विभिन्न आवेशों से दूरियाँ निम्नलिखित हैं-
r – a, r, r + a
चतुर्भुवी होने के कारण बिन्दु P पर विद्युत विभव
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

प्रश्न 23.
एक विद्युत टैक्नीशियन को 1 kV विभवान्तर के परिपथ में 2 μF संधारित्र की आवश्यकता है। 1 μF के संधारित्र उसे प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं जो 400 V से अधिक का विभवान्तर वहन नहीं कर सकते। कोई सम्भव विन्यास सुझाइए जिसमें न्यूनतम संधारित्रों की आवश्यकता हो।
हल-
माना हम प्रत्येक पंक्ति में n संधारित्र जोड़ते हैं तथा ऐसी m पंक्तियों को समान्तर क्रम में जोड़ते हैं।
श्रेणीक्रम में, 1 kV = 1000 V को विभवान्तर n संधारित्रों में बराबर बँट जाएगा।
प्रत्येक संधारित्र पर विभवान्तर = [latex s=2]\frac { 1000 }{ n }[/latex]
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
हमें 3-3 संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़कर इस प्रकार की 6 पंक्तियाँ बनानी होंगी। अब इन 6 पंक्तियों को समान्तर क्रम में जोड़ना होगा।

प्रश्न 24.
2F वाले एक समान्तर पट्टिका संधारित्र की पट्टिका का क्षेत्रफल क्या है, जबकि पट्टिकाओं का पृथकन 0.5 cm है? [अपने उत्तर से आप यह समझ जाएँगे कि सामान्य संधारित्र uF या कम परिसर के क्यों होते हैं? तथापि विद्युत-अपघटन संधारित्रों (Electrolytic capacitors) की धारिता कहीं अधिक (0.1 F) होती है क्योंकि चालकों के बीच अति सूक्ष्म पृथकन होता है।
हल-
दिया है, समान्तर पट्ट संधारित्र की धारिता C = 2F.
इसकी प्लेटों के बीच पृथक्करण (दूरी) d= 0.5 cm = 5 x 10-3 m
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q24

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प्रश्न 25.
चित्र 2.15 के नेटवर्क (जाल) की तुल्य धारिता प्राप्त 100 pF कीजिए। 300 V संभरण (सप्लाई) के साथ प्रत्येक संधारित्र का आवेश व उसकी वोल्टता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिए गए नेटवर्क को संलग्न चित्र 2.16 की भाँति व्यवस्थित किया जा सकता है-
सर्वप्रथम C2 व C3 श्रेणीक्रम में जुड़े हैं, इनकी तुल्य धारिता
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
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शेष संयोजन का विभवान्तर V = 300 V – 200 V = 100 V
C1, C2 व C3 के श्रेणी संयोजन से समान्तर क्रम में जुड़ा है,
C1 का विभवान्तर = 100 V
तथा C2 व C3 के श्रेणी संयोजन का विभवान्तर = 100 V
C1 पर आवेश q1 = C1V1 = 100 x 10-12 F x 100 V = 10-8 C
C2 = C3; अतः कुल विभवान्तर 100 V इन पर बराबर-बराबर बंटेगा।
प्रत्येक का विभवान्तर = 50 V
प्रत्येक पर आवेश q2 = C2V2 = 200 x 10-12 F x 50 V = 10-8 C
अतः संयोजन की धारिता C = [latex s=2]\frac { 200 }{ 3 }[/latex] pF
C1 का विभवान्तर = 100 V तथा आवेश = 10-8 C
C2 का विभवान्तर = 50 V तथा आवेश = 10-8 C
C3 का विभवान्तर = 50 V तथा आवेश = 10-8 C
C4 का विभवान्तर = 200 V तथा आवेश = 2 x 10-8 C

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प्रश्न 26.
किसी समान्तर पट्टिका संधारित्र की प्रत्येक पट्टिका का क्षेत्रफल 90 cm² है और उनके बीच पृथकन 2.5 mm है। 400 V संभरण से संधारित्र को आवेशित किया गया है।
(a) संधारित्र कितना स्थिरविद्युत ऊर्जा संचित करता है?
(b) इस ऊर्जा को पट्टिकाओं के बीच स्थिरविद्युत-क्षेत्र में संचित समझकर प्रति एकांक आयतन ऊर्जा u ज्ञात कीजिए। इस प्रकार, पट्टिकाओं के बीच विद्युत-क्षेत्र E के परिमाण और u में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
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प्रश्न 27.
एक 4 μF के संधारित्र को 200 V संभरण (सप्लाई) से आवेशित किया गया है। फिर संभरण से हटाकर इसे एक अन्य अनावेशित 2 μF के संधारित्र से जोड़ा जाता है। पहले संधारित्र की कितनी स्थिरविद्युत ऊर्जा का ऊष्मा और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में ह्रास होता है?
हल-
दिया है, C1 = 4 x 10-6 F, V1 = 200 V, C2 = 2 x 10-6 F, V2 = 0 V
माना जोड़ने के पश्चात् दोनों का उभयनिष्ठ विभव V है।
जोड़ने से पूर्व संभरण को हटा लिया गया है; अतः कुल आवेश स्थिर रहेगा।
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प्रश्न 28.
दर्शाइए कि एक समान्तर पट्टिका संधारित्र की प्रत्येक पट्टिका पर बल का परिमाण [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] QE है, जहाँ संधारित्र पर आवेश है और E पट्टिकाओं के बीच विद्युत-क्षेत्र का परिमाण है। घटक [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] के मूल को समझाइए।
हल-
माना दोनों पट्टिकाओं के बीच लगने वाला पारस्परिक आकर्षण बल F है तथा प्लेटों के बीच की दूरी है। दूरी x में dx की वृद्धि करने पर आकर्षण बल F के विरुद्ध कृत कार्य
dW = F dx …..(i)
प्लेटों के बीच विद्युत-क्षेत्र E है; अत: संधारित्र के एकांक आयतन में संचित ऊर्जा [latex]u=\frac { 1 }{ 2 } { \varepsilon }_{ 0 }{ E }^{ 2 }[/latex]
प्लेटों का क्षेत्रफल A व बीच की दूरी ४ है; अत: संधारित्र की कुल ऊर्जा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q28
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q28.1
घटक [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] का मूल इस तथ्य में निहित है कि चालक प्लेट के बाहर विद्युत-क्षेत्र [latex s=2]\frac { E }{ 2 }[/latex] तथा प्लेट के भीतर शून्य होता है। अत: औसत विद्युत-क्षेत्र में होता है, जिसके विरुद्ध प्लेट को खिसकाया जाता है।

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प्रश्न 29.
दो संकेन्द्री गोलीय चालकों जिनको उपयुक्त विद्युतरोधी आलम्बों से उनकी स्थिति में रोका गया है, से मिलकर एक गोलीय संधारित्र बना है (चित्र 2.17)। दर्शाइए कि (UPBoardSolutions.com) गोलीय संधारित्र की धारिता C इस प्रकार व्यक्त की जाती है:
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उत्तर-
गोलीय अथवा गोलाकार संधारित्र की धारिता (Capacitance of Spherical Capacitor) का व्यंजक-माना गोलीय संधारित्र धातु के दो समकेन्द्रीय खोखले गोलों A व B का बना है, जो एक-दूसरे को कहीं भी स्पर्श नहीं करते (चित्र 2.17)। जब गोले A को-q आवेश दिया जाता है तो (UPBoardSolutions.com) प्रेरण द्वारा गोले B पर +q आवेश उत्पन्न हो जाता है। चूंकि गोले B का बाहरी तल पृथ्वी से जुड़ा है; अतः गोले B के बाहरी तल पर उत्पन्न -q आवेश पृथ्वी से आने वाले इलेक्ट्रॉनों से निरावेशित हो जाता है। इस प्रकार गोले B के आन्तरिक पृष्ठ पर +q आवेश रह जाता है। माना गोले A की त्रिज्या r2 तथा गोले B की त्रिज्या b है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q29.1
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प्रश्न 30.
एक गोलीय संधारित्र के भीतरी गोले की त्रिज्या 12 cm है तथा बाहरी गोले की त्रिज्या 13 cm है। बाहरी गोला भू-सम्पर्कित है तथा भीतरी गोले पर 2.5 μC का आवेश दिया गया है। संकेन्द्री गोलों के बीच के स्थान में 32 परावैद्युतांक का द्रव भरा है।
(a) संधारित्र की धारिता ज्ञात कीजिए।
(b) भीतरी गोले का विभव क्या है?
(c) इस संधारित्र की धारिता की तुलना एक 12 cm त्रिज्या वाले किसी वियुक्त गोले की धारिता से कीजिए। व्याख्या कीजिए कि गोले की धारिता इतनी कम क्यों है?
हल-
दिया है, r1 = 13 cm = 0.13 m, r2 = 0.12 m, K = 32, Q = 2.5 x 10-6 C
(a) गोलीय संधारित्र की धारिता
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अर्थात् गोलीय संधारित्र की धारिता एकल गोले की धारिता से 416 गुनी अधिक है। इससे यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि एकल चालक के समीप एक अन्य (UPBoardSolutions.com) भू-सम्पर्कित चालक रखकर उनके बीच के स्थान में परावैद्युत भरने से धारिता बहुत अधिक बढ़ जाती है।

प्रश्न 31.
सावधानीपूर्वक उत्तर दीजिए :

  1. दो बड़े चालक गोले जिन पर आवेश Q1 और Q2 हैं, एक-दूसरे के समीप लाए जाते हैं। क्या इनके बीच स्थिर विद्युत बल का परिमाण तथ्यत:
    [latex]\frac { { Q }_{ 1 }{ Q }_{ 2 } }{ 4\Pi { \varepsilon }_{ 0 }{ r }^{ 2 } }[/latex]
    द्वारा दर्शाया जाता है, जहाँ r इनके केन्द्रों के बीच की दूरी है।
  2. यदि कूलॉम के नियम में [latex s=2]\frac { { 1 } }{ { r }^{ 3 } }[/latex] निर्भरता का समावेश ([latex s=2]\frac { { 1 } }{ { r }^{ 2 } }[/latex] के स्थान पर) हो तो क्या गाउस का नियम अभी भी सत्य होगा?
  3. स्थिरविद्युत-क्षेत्र विन्यास में एक छोटा परीक्षण आवेश किसी बिन्दु पर विराम में छोड़ा जाता है। क्या यह उस बिन्दु से होकर जाने वाली क्षेत्र रेखा के अनुदिश चलेगा?
  4. इलेक्ट्रॉन द्वारा एक वृत्तीय कक्षा पूरी करने में नाभिक के क्षेत्र द्वारा कितना कार्य किया जाता है? यदि कक्षा दीर्घवृत्ताकार हो तो क्या होगा?
  5. हमें ज्ञात है कि एक आवेशित चालक के पृष्ठ के आर-पार विद्युत-क्षेत्र असंतत होता है। क्या वहाँ विद्युत विभव भी असंतत होगा?
  6. किसी एकल चालक की धारिता से आपका क्या अभिप्राय है?
  7. एक सम्भावित उत्तर की कल्पना कीजिए कि पानी का परावैद्युतांक (= 80), अभ्रक के परावैद्युतांक (= 6) से अधिक क्यों होता है?

हल-

  1. यदि दोनों गोले एक-दूसरे से बहुत अधिक दूरी पर होंगे तभी वे बिन्दं आवेशों की भाँति कार्य करेंगे। कूलॉम का नियम केवल बिन्दु आवेशों के लिए सत्य है; अत: गोलों को समीप लाने पर कूलॉम का नियम लागू नहीं होगा।
  2. नहीं, गाउस का नियम केवल तभी तक सत्य है जब तक कि कूलॉम के नियम में निर्भरता [latex s=2]\frac { { 1 } }{ { r }^{ 2 } }[/latex] अतः कूलॉम के नियम में निर्भरता ([latex s=2]\frac { { 1 } }{ { r }^{ 3 } }[/latex]) होने पर गाउस का नियम लागू नहीं होगा।
  3. नहीं, यदि क्षेत्र रेखा एक सरल रेखा है, केवल तभी परीक्षण आवेश क्षेत्र रेखा के अनुदिश चलेगा।
  4. शून्य, स्थिर विद्युत क्षेत्र में बिन्दु आवेश के बन्द वक्र पर चलाने में किया गया कार्य शून्य होता है। यदि वक्र दीर्घवृत्ताकार है तो भी कार्य शून्य होगा।
  5. नहीं, चालक की पूरी सतह (UPBoardSolutions.com) पर विद्युत विभव सतत होता है।
  6. एकल चालक की धारिता एक ऐसे संधारित्र की धारिता है, जिसकी दूसरी प्लेट अनन्त पर है।
  7. जल के अणुओं का अपना स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण होता है; अत: जल का परावैद्युतांक उच्च होता है, इसके विपरीत अभ्रक के अणुओं का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है; अत: इसका परावैद्युतांक निम्न होता है।

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प्रश्न 32.
एक बेलनाकार संधारित्र में 15 cm लम्बाई एवं त्रिज्याएँ 1.5 cm तथा 1.4 cm के दो समाक्ष बेलन हैं। बाहरी बेलन भू-सम्पर्कित है और भीतरी बेलन को 3.5 μF का आवेश दिया गया है। निकाय की धारिता और भीतरी बेलन का विभव ज्ञात कीजिए। अन्त्य प्रभाव (अर्थात सिरों पर क्षेत्र रेखाओं का मुड़ना) की उपेक्षा कर सकते हैं।
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प्रश्न 33.
3 परावैद्युतांक तथा 107 Vm-1 की परावैद्युत सामर्थ्य वाले एक पदार्थ से 1 kV वोल्टता अनुमतांक के समान्तर पट्टिका संधारित्र की अभिकल्पना करनी है। [परावैद्यत सामर्थ्य वह अधिकतम विद्युत-क्षेत्र है जिसे कोई पदार्थ बिना भंग हुए अर्थात आंशिक आयनन द्वारा बिना विद्युत संचरण आरम्भ किए सहन कर सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से क्षेत्र को कभी भी परावैद्युत सामर्थ्य के 10% से अधिक नहीं होना चाहिए।] 50 pF धारिता के लिए पट्टिकाओं का कितना न्यूनतम क्षेत्रफल होना चाहिए?
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प्रश्न 34.
व्यवस्थात्मकतः निम्नलिखित में संगत समविभव पृष्ठ का वर्णन कीजिए :

  1. z-दिशा में अचर विद्युत-क्षेत्र
  2. एक क्षेत्र जो एकसमान रूप से बढ़ता है, परन्तु एक ही दिशा (मान लीजिए z-दिशा) में रहता है।
  3. मूल बिन्दु पर कोई एकल धनावेश, और
  4. एक समतल में समान दूरी पर समान्तर लम्बे आवेशित तारों से बने एकसमान जाल।

उत्तर-

  1. x-y समतल के समान्तर समतल।
  2. समविभव पृष्ठ x-y समतल के समान्तर होंगे, परन्तु बढ़ते क्षेत्र के साथ, भिन्न-भिन्न नियत विभव वाले समतल एक-दूसरे के समीप होते जाएँगे।
  3. संकेन्द्रीय गोले जिनके केन्द्र मूल बिन्दु पर हैं।
  4. ग्रिड के समीप, समविभव पृष्ठों की आकृति समय के साथ बदलेगी परन्तु ग्रिड से दूर जाने पर समविभव पृष्ठ ग्रिड (जाल) के अधिकाधिक समान्तर होते जाएँगे।

प्रश्न 35.
किसी वान डे ग्राफ प्रकार के जनित्र में एक गोलीय धातु कोश 15 x 106 V का एक इलेक्ट्रोड बनाना है। इलेक्ट्रोड के परिवेश की गैस की परावैद्युत सामर्थ्य 5 x 107 Vm-1 है। गोलीय कोश की आवश्यक न्यूनतम त्रिज्या क्या है? [इस अभ्यास से आपको यह ज्ञान होगा कि एक छोटे गोलीय कोश से आप स्थिरवैद्यत जनित्र, जिसमें उच्च विभव प्राप्त करने के लिए कम आवेश की आवश्यकता होती है, नहीं बना सकते।
हल-
दिया है, गोलीय कोश का विभव V = 15 x 106 V
गैस की परावैद्युत सामर्थ्य Emax = 5 x 107 V/m
माना कोश की न्यूनतम त्रिज्या r है, तब
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance Q35

प्रश्न 36.
r1 त्रिज्या तथा q1 आवेश वाला एक छोटा गोला r2 त्रिज्या और q2 आवेश के गोली खोल (कोश) से घिरा है। दर्शाइए यदि q1 धनात्मक है तो (जब दोनों को एक तार द्वारा जोड़ दिया जाता है) आवश्यक रूप से आवेश, गोले से खोल की तरफ ही प्रवाहित होगा, चाहे खोल पर आवेश q2 कुछ भी हो।
उत्तर-
हम जानते हैं कि किसी चालक का सम्पूर्ण आवेश उसके बाह्य पृष्ठ पर रहता है; अतः जैसे ही दोनों गोलों को चालक तार द्वारा जोड़ा जाएगा वैसे ही अन्दर वाले छोटे (UPBoardSolutions.com) गोले को सम्पूर्ण आवेश तार से होकर बाहरी खोल की ओर प्रवाहित हो जाएगा, चाहे खोल पर आवेश q2 कुछ भी क्यों न हो।

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प्रश्न 37.
निम्न का उत्तर दीजिए:
(a) पृथ्वी के पृष्ठ के सापेक्ष वायुमण्डले की ऊपर परत लगभग 400 kV पर है, जिसके संगत विद्युत-क्षेत्र ऊँचाई बढ़ने के साथ कम होता है। पृथ्वी के पृष्ठ के सापेक्ष विद्युत-क्षेत्र लगभग 100 Vm-1 है। तब फिर जब हम घर से बाहर खुले में जाते हैं तो हमें विद्युत आघात क्यों नहीं लगता? (घर को लोहे का पिंजरा मान लीजिए; अतः उसके अन्दर कोई विद्युत-क्षेत्र नहीं है।)

(b) एक व्यक्ति शाम के समय अपने घर के बाहर 2 m ऊँचा अवरोधी पट्ट रखता है जिसके शिखर पर एक 1 m क्षेत्रफल की बड़ी ऐलुमिनियम की चादर है। अगली सुबह वह यदि धातु की चादर को छूता है तो क्या उसे विद्युत आघात लगेगा?

(c) वायु की थोड़ी-सी चालकता के कारण (UPBoardSolutions.com) सारे संसार में औसतन वायुमण्डल में विसर्जन धारा 1800 A मानी जाती है। तब यथासमय वातावरण स्वयं पूर्णतः निरावेशित होकर विद्युत उदासीन क्यों नहीं हो जाता? दूसरे शब्दों में, वातावरण को कौन आवेशित रखता है?

(d) तड़ित के दौरान वातावरण की विद्युत ऊर्जा, ऊर्जा के किन रूपों में क्षयित होती है?
[संकेत : पृष्ठ आवेश घनत्व = 10-9 Cm-2 के अनुरूप पृथ्वी के (पृष्ठ) पर नीचे की दिशा में लगभग 100 Vm-1 का विद्युत क्षेत्र होता है। लगभग 50 km ऊँचाई तक (जिसके बाहर यह अच्छा चालक है) वातावरण की थोड़ी सी चालकता के कारण लगभग + 1800 C का आवेश प्रति सेकण्ड समग्र रूप से पृथ्वी में पंप होता रहता है। तथापि, पृथ्वी निरावेशित नहीं होती, क्योंकि संसार में हर समय लगातार तड़ित तथा तड़ित-झंझा होती रहती है, जो समान मात्रा में ऋणावेश पृथ्वी में पंप कर देती है।]
उत्तर-
(a) हमारा शरीर तथा पृथ्वी के समान विभव पर रहने के कारण हमारे शरीर से होकर कोई विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती इसीलिए हमें कोई विद्युत आघात नहीं लगता।

(b) हाँ, पृथ्वी तथा ऐलुमिनियम की चादर मिलकर एक संधारित्र बनाती हैं तथा अवरोधी पट्ट परावैद्युत का कार्य करती है। ऐलुमिनियम की चादर वायुमण्डलीय (UPBoardSolutions.com) आवेश के लगातार गिरते रहने से आवेशित होती रहती है और उच्च विभव प्राप्त कर लेती है; अतः जब व्यक्ति इस चादर को छूता है तो उसके शरीर से होकर एक विद्युत धारा प्रवाहित होती है और इस कारण उस व्यक्ति को विद्युत आघात लगेगा।

(c) यद्यपि वायुमण्डल 1800 A की औसत विसर्जन धारा के कारण लगातार निरावेशित होता रहता है। परन्तु साथ ही तड़ित तथा झंझावात के कारण यह लगातार आवेशित भी होता रहता है और इन दोनों के बीच एक सन्तुलन बना रहता है जिससे कि वायुमण्डल कभी भी पूर्णत: निरावेशित नहीं हो पाता।

(d) तड़ित के दौरान वातावरण की विद्युत ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा तथा ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में क्षयित होती है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैद्युत विभव का मात्रक है (2011, 14)
(i) जूल/कूलॉम
(ii) जूल x कूलॉम
(iii) कूलॉम/जूल
(iv) न्यूटन/कूलॉम
उत्तर-
(i) जूल/कूलॉम

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प्रश्न 2.
E = 0 तीव्रता वाले वैद्युत-क्षेत्र में विभव V का दूरी r के साथ परिवर्तन होग (2010, 12, 17)
(i) V ∝ [latex s=2]\frac { 1 }{ r }[/latex]
(ii) V ∝ r
(iii) V ∝ [latex s=2]\frac { { 1 } }{ { r }^{ 2 } }[/latex]
(iv) V, r पर निर्भर नहीं करेगा
उत्तर-
(iv) V, r पर निर्भर नहीं करेगा

प्रश्न 3.
दो प्लेटें एक-दूसरे से 1 सेमी दूरी पर हैं और उनमें विभवान्तर 10 वोल्ट है। प्लेटों के बीच वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता है- (2009)
(i) 10 न्यूटन/कूलॉम
(ii) 500 न्यूटन/कूलॉम
(iii) 1000 न्यूटन/कूलॉम
(iv) 250 न्यूटन/कूलॉम
उत्तर-
(iii) 1000 न्यूटन/कूलॉम

प्रश्न 4.
1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) मात्रक है
(i) ऊर्जा का
(ii) विभव का
(iii) वेग का
(iv) कोणीय संवेग का
उत्तर-
(i) ऊर्जा का

प्रश्न 5.
एक वोल्ट विभवान्तर पर त्वरित करने पर इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा होती है|
(i) 1 जूल
(ii) 1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट
(iii) 1 अर्ग
(iv) 1 वाट
उत्तर-
(ii) 1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट

प्रश्न 6.
वैद्युत द्विध्रुव के कारण, केन्द्र से दूरी पर अक्ष में स्थित बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता एवं विभव क्रमशः E तथा V हैं। E तथा V में सम्बन्ध होगा (2017)
(i) E = [latex s=2]\frac { V }{ R }[/latex]
(ii) E = [latex s=2]\frac { V }{ 2r }[/latex]
(iii) E = [latex s=2]\frac { 2V }{ r }[/latex]
(iv) E = 2rV
उत्तर-
(i) E = [latex s=2]\frac { V }{ R }[/latex]

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प्रश्न 7.
निम्न में से कौन-सा तथ्य समविभव पृष्ठ के लिए सत्य नहीं है ? (2009)
(i) पृष्ठ पर किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर शून्य होता है।
(ii) वैद्युत बल रेखाएँ पृष्ठ के सर्वथा लम्बवत् होती हैं।
(iii) पृष्ठ पर किसी आवेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर कोई कार्य नहीं होता है।
(iv) समविभव पृष्ठ सर्वदा गोलाकार होते हैं।
उत्तर-
(iv) समविभव पृष्ट सर्वदा गोलाकार होते हैं।

प्रश्न 8.
एक इलेक्ट्रॉन को दूसरे इलेक्ट्रॉन के अधिक नजदीक लाने पर निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा (2010)
(i) घटती है।
(ii) बढ़ती है।
(iii) उतनी ही रहती है।
(iv) शून्य हो जाती है।
उत्तर-
(ii) बढ़ती है।

प्रश्न 9.
वायु में 1 सेमी दूरी पर रखे प्रत्येक 1 माइक्रो कूलॉम के दो धनात्मक बिन्दु आवेशों के निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा है- (2016)
(i) 0.9 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट
(ii) 0.9 जूल
(iii) 1 जूल
(iv) 9 जूल
उत्तर-
(ii) 0.9 जूल

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से धारिता का मात्रक कौन-सा है?
(i) कूलॉम
(ii) ऐम्पियर
(iii) वोल्ट
(iv) कूलॉम/वोल्ट
उत्तर-
(iv) कूलॉम/वोल्ट

प्रश्न 11.
एक आवेशित संधारित्र बैटरी से जुड़ा है। यदि प्लेटों के बीच परावैद्युत पदार्थ की एक पट्टी रखी जाये तो निम्न में से क्या परिवर्तित नहीं होगा ? (2010)
(i) आवेश
(ii) विभवान्तर
(iii) धारिता
(iv) ऊर्जा
उत्तर-
(ii) विभवान्तर

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प्रश्न 12.
वायु में रखे दो धनावेशों के मध्य परावैद्युत पदार्थ रख देने पर इनके बीच प्रतिकर्षण बल का मान (2015)
(i) बढ़ जायेगा
(ii) घट जायेगा
(iii) वही रहेगा।
(iv) शून्य
उत्तर-
(ii) घट जायेगा।

प्रश्न 13.
दिये गये चित्र 2.18 में बिन्दुओं A व B के बीच तुल्य धारिता है
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(i) 4 μF
(ii) [latex s=2]\frac { 12 }{ 7 }[/latex] μF
(iii) [latex s=2]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] μF
(iv) [latex s=2]\frac { 7 }{ 12 }[/latex] μF
उत्तर-
(i) 4 μF

प्रश्न 14.
दिये गये चित्र 2.19 में बिन्दुओं A व B के बीच तुल्य धारिता है- (2009)
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(i) [latex s=2]\frac { 2 }{ 3 }[/latex] μF
(i) [latex s=2]\frac { 3 }{ 2 }[/latex] μF
(ii) [latex s=2]\frac { 11 }{ 3 }[/latex] μF
(iv) 1 μF
उत्तर-
(i) 1 μF

प्रश्न 15.
चित्र 2.20 में प्रदर्शित संधारित्रों की तुल्य धारिता A व B के बीच है (2015)
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(i) 4 μF
(ii) 2.5 μF
(iii) 2 μF
(iv) 0.25 μF
उत्तर-
(ii) 2.5 μF

प्रश्न 16.
100 माइक्रोफैरड धारिता वाले संधारित्र को 10 वोल्ट तक आवेशित करने पर उसमें संचित ऊर्जा होगी (2016)
(i) 5.0 x 10-3 जूल
(ii) 0.5 x 10-3 जूल।
(iii) 0.5 जूल।
(iv) 5.0 जूल।
उत्तर-
(i) 5.0 x 10-3 जूल।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैद्युत-विभव की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विमा लिखिए। (2012, 17)
उत्तर-
वैद्युत-विभव-वैद्युत- क्षेत्र में किसी बिन्दु पर वैद्युत-विभव (V), परीक्षण-आवेश (+q0) को अनन्त से उस बिन्दु तक लाने में किये गये कार्य (W) तथा परीक्षण-आवेश के मान की निष्पत्ति के बराबर होता है।
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प्रश्न 2.
इलेक्ट्रॉन-वोल्ट की परिभाषा दीजिए।
या
eV क्या है? इसका मान जूल में ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन-वोल्ट- यह ऊर्जा का जूल की तुलना में बहुत छोटा मात्रक है। इसको इस प्रकार परिभाषित किया जाता है-
“1 इलेक्ट्रॉन-बोल्ट (eV) वह ऊर्जा है जो कि 1 इलेक्ट्रॉन (आवेश q = e = 1.6 x 10-19 कूलॉम) 1 वोल्ट विभवान्तर पर त्वरित होने पर प्राप्त करता है।”
यदि q कूलॉम आवेश से आवेशित कण ΔV विभवान्तर पर त्वरित होता है तो उसके द्वारा प्राप्त गतिज ऊर्जा K = q x ΔV
यहाँ, q = e = 1.6 x 10-19 कूलॉम तथा V = 1 वोल्ट
1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट ऊर्जा = 1.6 x 10-19 कूलॉम x 1 वोल्ट = 1.6 x 10-19 जूल।
इस प्रकार 1 eV = 1.6 x 10-19 जूल

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प्रश्न 3.
1 Mev को जूल में व्यक्त कीजिए।
हल-
1 MeV = 106 eV= 106 x 1.6 x 10-19 जूल = 1.6 x 10-13 जूल

प्रश्न 4.
क्या यह सम्भव है कि किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव शून्य हो, लेकिन वैद्युत क्षेत्र शून्य न हो?
उत्तर-
हाँ। उदाहरण के लिए, वैद्युत द्विध्रुव की निरक्षीय स्थिति में।

प्रश्न 5.
1 सेमी त्रिज्या के गोले को 1 कूलॉम आवेश देने से गोले के पृष्ठ पर उत्पन्न विभव की गणना कीजिए। (2016)
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प्रश्न 6.
+ 40 माइक्रोकूलॉम के दो आवेश परस्पर 0.4 मीटर की दूरी पर स्थित हैं। इनके मध्य बिन्दु पर विभव की गणना कीजिए। माध्यम का परावैद्युतांक 2 है। (2014)
हल-
+ 40 माइक्रोकूलॉम के दोनों आवेशों के कारण उनके मध्य बिन्दु पर वैद्युत विभव
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प्रश्न 7.
विभव-प्रवणता तथा वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर-
वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E = – विभव प्रवणता = [latex s=2]\frac { \triangle V }{ \triangle x }[/latex]

प्रश्न 8.
विभव-प्रवणता का मात्रक एवं विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर-
मात्रक-वोल्ट/मीटर तथा विमा- [MLT-3A-1]

प्रश्न 9.
दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 50 V है। एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक 2 x 10-5 कूलॉम आवेश को ले जाने पर कितना कार्य करना होगा ? (2011, 12, 18)
हल-
कार्य (W) = आवेश x विभवान्तर = 2 x 10-5 कूलॉम x 50 वोल्ट = 10-3 जूल।

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प्रश्न 10.
10 सेमी की दूरी पर स्थित दो बिन्दु A व B के विभव क्रमशः +10 वोल्ट तथा -10 वोल्ट हैं। 1.0 कूलॉम आवेश को A से B तक ले जाने में कितना कार्य करना होगा? (2012)
हल-
1.0 कूलॉम आवेश को A से B तक ले जाने में किया गया कार्य
W = (VB – VA) q0 = (-10 – 10) x 1.0 = -20 जूल
अत: कार्य प्राप्त होगा।

प्रश्न 11.
सम-विभव पृष्ठ से क्या तात्पर्य है? (2015, 17)
उत्तर-
किसी वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह पृष्ठ जिस पर स्थित सभी बिन्दुओं पर वैद्युत विभव बराबर हो, समविभव पृष्ठ कहलाता है।

प्रश्न 12.
किसी समविभव पृष्ठ के दो बिन्दुओं के मध्य 800 μC आवेश को गति कराने में कितना कार्य होगा? (2013)
हल-
समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर विभव का मान समान होता है। अतः पृष्ठ के किन्हीं भी दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर ΔV = 0
अतः q = 800 μC = 800 x 10-6 कूलॉम को इन बिन्दुओं के बीच गति कराने में किया गया कार्य
W = q x ΔV = (800 x 10-6) x 0 = 0 (शून्य) [∴ 1 μC = 10-6 C]

प्रश्न 13.
संधारित्र किसे कहते हैं? (2014)
उत्तर-
संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है।

प्रश्न 14.
संधारित्र की धारिता की परिभाषा लिखिए। (2014, 15)
उत्तर-
किसी संधारित्र की धारिता, उसकी एक प्लेट को दिए गए आवेश तथा दोनों प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवान्तर के अनुपात के बराबर होती है।
अर्थात् संधारित्र की धारिता C = [latex s=2]\frac { q }{ V }[/latex]

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प्रश्न 15.
M.K.S. पद्धति में धारिता की विमा लिखिए। इसका मात्रक क्या है?
उत्तर-
धारिता की विमा [M-1L-2T4A2] तथा मात्रक फैरड है।

प्रश्न 16.
परावैद्युत पदार्थ क्या है? (2010, 12)
उत्तर-
परावैद्युत पदार्थ वह पदार्थ होता है जिसके अन्दर सभी परमाणुओं में उनके सभी इलेक्ट्रॉन नाभिक के आकर्षण बल से दृढ़तापूर्वक बँधे रहते हैं। अतः ऐसे पदार्थों में वैद्युत चालन के लिए कोई भी मुक्त इलेक्ट्रॉन उपलब्ध नहीं होता अथवा मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या नगण्य होती है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनमें होकर वैद्युत प्रवाह नहीं होता। फिर भी यदि कोई वैद्युत-क्षेत्र किसी परावैद्युत पदार्थ पर आरोपित (UPBoardSolutions.com) किया जाता है तो परावैद्युत पदार्थ के पृष्ठों पर प्रेरित आवेश उत्पन्न हो जाता है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे कुचालक (insulator) पदार्थ हैं जिनमें वैद्युत प्रभाव (electric effects) बिना वैद्युत चालन के संचरित होते हैं।” किसी वैद्युत चालक के किसी बिन्दु पर दिया गया आवेश उसकी पूरी सतह पर शीघ्रता से फैल जाता है, जबकि किसी परावैद्युत के किसी बिन्दु पर दिया गया आवेश उसी के निकटवर्ती क्षेत्र में स्थिर रहता है। उदाहरण-काँच, रबर, प्लास्टिक, ऐबोनाइट, माइका, मोम, कागज, लकड़ी आदि।

प्रश्न 17.
संधारित्र में साधारणतया प्रयुक्त होने वाले किन्हीं दो परावैद्युत पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर-
अभ्रक व काँच।

प्रश्न 18.
किसी परावैद्युत पदार्थ के वैद्युत ध्रुवण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
द्युत धुवण- किसी परावैद्युत अथवा विद्युतरोधी को बाह्य वैद्युत क्षेत्र में रखने पर इसके धन व ऋण आवेशों के केन्द्र पृथक्-पृथक् हो जाते हैं, जिससे इनमें वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण प्रेरित हो जाते हैं। ऐसे परावैद्युत को ध्रुवित होना कहते हैं तथा इस घटना को वैद्युत ध्रुवण कहते हैं।

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प्रश्न 19.
संधारित्रों में परावैद्युत के उपयोग से धारिता क्यों बढ़ जाती है? (2010, 11)
या
किसी संधारित्र की प्लेटों के बीच परावैद्युत पदार्थ भरने पर इसकी धारिता पर क्या प्रभाव पड़ता है? (2014)
उत्तर-
संधारित्रों की प्लेटों के बीच परावैद्युत भरने से इसके अन्दर प्लेटों के बीच उपस्थित वैद्युत-क्षेत्र के विपरीत दिशा में एक आन्तरिक वैद्युत-क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, जो इसकी सतह पर प्लेटों के विपरीत आवेश के प्रेरित होने से उत्पन्न होता है। अतः प्लेटों के बीच विभवान्तर घट जाता है, जिसके परिणामस्वरूप धारिता बढ़ जाती है।

प्रश्न 20.
परावैद्युत सामर्थ्य एवं भंजक विभवान्तर को स्पष्ट कीजिए। (2013).
उत्तर-

  • परावैद्युत सामर्थ्य- परावैद्युत पर आरोपित वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान जिसको परावैद्युत बिना परावैद्युत भंजन के सहन कर सकता है, परावैद्युत की परावैद्युत सामर्थ्य कहलाती है।
  • भंजक विभवान्तर- किसी परावैद्युत पदार्थ के भंजक हुए बिना उसके दोनों सिरों के बीच लगाए गए वैद्युत विभवान्तर के अधिकतम मान को उस परावैद्युत का भंजक विभवान्तर कहते हैं।

प्रश्न 21.
एक आवेशित संधारित्र एवं एक वैद्युत सेल में मूल अन्तर क्या है? (2009)
उत्तर-
आवेशित संधारित्र में वैद्युत आवेश संग्रहीत रहता है, जबकि वैद्युत सेल में वैद्युत आवेश का प्रवाह होता है।

प्रश्न 22.
समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक लिखिए तथा प्रतीकों का अर्थ बताइए। (2007)
उत्तर-
C = [latex s=2]\frac { { \varepsilon }_{ 0 }A }{ d }[/latex]
A = प्रत्येक प्लेट का क्षेत्रफल,
d = प्लेटों के बीच की दूरी तथा
[latex s=2]{ \varepsilon }_{ 0 }[/latex] = वायु या निर्वात् की वैद्युतशीलता।

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प्रश्न 23.
दो संधारित्र जिनकी धारिताएँ क्रमशः 20 तथा 30 μF हैं, श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। उनकी तुल्य धारिता ज्ञात कीजिए। (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance VSAQ 23

प्रश्न 24.
नीचे दिये गये परिपथ में A और B बिन्दुओं के बीच तुल्य धारिता ज्ञात कीजिए- (2015)
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हल-
दिये गये परिपथ को निम्नांकित चित्र से प्रतिस्थापित कर सकते हैं
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स्पष्ट है कि दिया गया परिपथ व्हीटस्टोन सेतु व्यवस्था है, अतः 8 μF पर कोई आवेश संचित नहीं होगा।
अतः चित्र 2.22 को चित्र 2.23 से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
अत: A व B के बीच तुल्य धारिता C = 2 μF + 2 μF = 4 μF
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प्रश्न 25.
एक समान्तर प्लेट वायु संधारित्र की धारिता 100 μF है। यदि इसे 50 वोल्ट तक आवेशित किया जाए, तो इसमें संचित ऊर्जा कितनी होगी? (2009)
हल-
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प्रश्न 26.
एक 10 μF के संधारित्र का विभवान्तर 100 वोल्ट से 200 वोल्ट कर देने पर उसकी ऊर्जा में परिवर्तन ज्ञात कीजिए। (2011, 12, 14)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance VSAQ 26

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता तथा विभव-प्रवणता के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2011)
या
विभव-प्रवणता से क्या तात्पर्य है ? विभव-प्रवणता एवं विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2012)
या
विभव-प्रवणता से आप क्या समझते हैं ? (2018)
उत्तर-
माना बिन्दु O पर स्थित +q आवेश के वैद्युत-क्षेत्र में, जिसकी तीव्रता [latex s=2]\overrightarrow { E }[/latex] है, O से क्रमशः ॐ तथा (x + Δx) दूरी पर x-अक्ष की धनात्मक दिशा में स्थित बिन्दु A तथा बिन्दु B हैं। यदि एक परीक्षण धनावेश +qo बिन्दु B पर रख दिया जाये तो (UPBoardSolutions.com) इस आवेश पर इस वैद्युत-क्षेत्र के कारण लगने वाला वैद्युत बल F = q0E होगा। इस बल की दिशा [latex s=2]\overrightarrow { E }[/latex] की दिशा में अर्थात् X-अक्ष की धनात्मक दिशा में होगी। अत: +q0 आवेश को बिन्दु B से बिन्दु A तक बल [latex s=2]\overrightarrow { E }[/latex] के विरुद्ध ले जाया गया है। बिन्दु A, बिन्दु O से x दूरी पर स्थित है, अत: इस प्रक्रिया में बाह्य कर्ता को बल [latex s=2]\overrightarrow { F }[/latex] के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा। अत: यदि यह कार्य ΔW हो तो
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राशि [latex s=2]\frac { \triangle V }{ \triangle x }[/latex], दूरी के साथ विभव-परिवर्तन की दर है तथा इसे ही विभव-प्रवणता कहते हैं। अतः किसी वैद्युत-क्षेत्र में किसी बिन्दु पर किसी दिशा में वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता उस दिशा में क्षेत्र की । ऋणात्मक विभव-प्रवणता के बराबर होती है। (UPBoardSolutions.com) प्राप्त समीकरण (2). में ऋणात्मक चिह्न यह दर्शाता है कि वैद्युत-क्षेत्र की दिशा में विभव घटता है तथा : वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता की दिशा विभव-प्रवणता की दिशा के विपरीत होती है।

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प्रश्न 2.
किसी वैद्युत-द्विध्रुव के अक्ष (अनुदैर्ध्य स्थिति) पर स्थित किसी बिन्दु पर वैद्युत-विभव का सूत्र स्थापित कीजिए। (2011, 17)
या
वैद्युत-द्विध्रुव को परिभाषित कीजिए। किसी वैद्युत-द्विध्रुव की अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव का सूत्र स्थापित कीजिए। (2012, 14, 15, 16, 18)
उत्तर-
वैद्युत-द्विधुव- कम दूरी पर स्थित दो बराबर तथा विपरीत आवेशों के निकाय को वैद्युत-द्विध्रुव कहते हैं।
वैद्युत-द्विध्रुव के अक्ष पर स्थित किसी बिन्दु पर वैद्युत- विभव-माना K परावैद्युतांक वाले माध्यम में एक वैद्युत-द्विध्रुव AB रखा है। द्विध्रुव +q व -q कूलॉम के आवेशों से बना है जिनके बीच की दूरी 2l है। द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से r मीटर की दूरी पर इसकी अक्षीय स्थिति में बिन्दु P पर वैद्युत-विभव ज्ञात करना है। चित्र 2.25 से स्पष्ट है कि बिन्दु P की आवेश +q से दूरी (r – l) तथा -q से (r + l) हैं।
आवेश +q के कारण P पर विभव,
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प्रश्न 3.
सिद्ध कीजिए कि निरक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर वैद्युत-द्विध्रुव द्वारा वैद्युत-विभव शून्य होता है। (2010, 15, 16)
उत्तर-
वैद्युत-द्विध्रुव की निरक्षीय स्थिति में वैद्युत-विभव- माना वैद्युत-द्विध्रुव AB की लम्ब-अर्द्धक रेखा पर द्विध्रुव के मध्य-बिन्दु O से r मीटर की दूरी पर स्थित बिन्दु P वह बिन्दु है, जहाँ हमें वैद्युत-विभव ज्ञात करना है। (चित्र 2.26)। अब बिन्दु P पर द्विध्रुव के आवेश (+q) के कारण विभव
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प्रश्न 4.
दिये गये आवेशों के निकाय की कुल वैद्युत स्थितिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए। (2014)
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प्रश्न 5.
निम्न चित्र में विभवान्तर (VA – VB) के मान की गणना कीजिए- (2016)
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प्रश्न 6.
किसी वैद्युत द्विध्रुव को एकसमान विद्युत क्षेत्र में संतुलन की स्थिति से कोण घुमाने में किये गये कार्य का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2017)
हल-
माना p वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण का एक वैद्युत-द्विध्रुव, किसी एकसमान वैद्युत क्षेत्र E में रखा है तथा वैद्युत द्विध्रुव को वैद्युत क्षेत्र के भीतर घुमाया जा रहा है (चित्र 2.29)। माना किसी क्षण वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण p की दिशा क्षेत्र की दिशा से α कोण बनाती है, तब वैद्युत-द्विध्रुव पर वैद्युत-क्षेत्र के कारण कार्य करने वाले बल-युग्म का आघूर्ण
τ = pE sin α
वैद्युत-द्विध्रुव को इस स्थिति से आगे अल्पांश कोण dα द्वारा घुमाने में वैद्युत-क्षेत्र के विरुद्ध कृत कार्य
dW = बल-युग्म का आघूर्ण x कोणीय विस्थापन
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प्रश्न 7.
किसी आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक U = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] CV²
अथवा [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } \left( \frac { { q }^{ 2 } }{ C } \right)[/latex] प्त कीजिए, जहाँ C चालक की धारिता, q चालक पर आवेशं तथा V उसका विभव है। (2011, 16)
या
सिद्ध कीजिए कि E , जहाँ E = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } \left( \frac { { q }^{ 2 } }{ C } \right)[/latex] आवेशित चालक की ऊर्जा, q = चालक
पर आवेश तथा C उसकी धारिता है। या सिद्ध कीजिए कि आवेशित संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा U = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] CV² होती है। (2017)
उत्तर-
आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा- किसी चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य उसमें वैद्युत-स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। चूंकि प्रारम्भ में चालक पर आवेश शून्य है; अतः चालक तल पर विभव भी शून्य होगा। जैसे-जैसे चालक को आवेश दिया जाता है, (UPBoardSolutions.com) उसका विभव वैसे-वैसे बढ़ता जाता है, क्योंकि चालक का विभव उसे पर उपस्थित आवेश के अनुक्रमानुपाती होता है। माना चालक को कुल आवेश q कूलॉम देने पर उसका विभव V वोल्ट (बैटरी के विभव के बराबर) हो जाता है। हम यह मान सकते हैं कि चालक को आवेश देते समय उसका औसत विभव (0 + V) / 2 = V/2 रहा; अतः चालक को आवेशित करने में किया गया कुल कार्य
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प्रश्न 8.
एक समान्तर प्लेट संधारित्र को बैटरी से आवेशित किया जाता है। बैटरी का सम्बन्ध संधारित्र से विच्छेदित करने के उपरान्त प्लेटों के बीच की दूरी दोगुनी करने पर संधारित्र की धारिता तथा संग्रहित ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2011)
उत्तर-
माना कि संधारित्र पर संचित आवेश q है।
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प्रश्न 9.
किसी चालक की वैद्युत धारिता से क्या तात्पर्य है ? RC का विमीय समीकरण निकालिए, जहाँ प्रतिरोध तथा C धारिता है। (2011)
उत्तर-
किसी चालक की वैद्युत धारिता- किसी चालक द्वारा आवेश ग्रहण करने की क्षमता उसकी वैद्युत धारिता कहलाती है। यह चालक को दिये गये आवेश तथा उसके संगत विभव में होने वाली वृद्धि के अनुपात के बराबर होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance SAQ 9
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प्रश्न 10.
संधारित्र के ऊर्जा घनत्व से क्या तात्पर्य है? प्रदर्शित कीजिए कि एकांक आयतन में किसी समानान्तर प्लेट संधारित्र में संचित ऊर्जा, [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } { \varepsilon }_{ 0 }{ E }^{ 2 }[/latex] है, जहाँ प्रतीकों का सामान्य अर्थ है। (2011, 15, 17)
उत्तर-
आवेशित संधारित्र की ऊर्जा उसकी प्लेटों के बीच स्थित माध्यम में निहित रहती है। संधारित्र की प्लेटों द्वारा घेरे गये माध्यम के एकांक आयतन में निहित ऊर्जा को संधारित्र का ऊर्जा घनत्व कहते हैं। अतः संधारित्र का ऊर्जा घनत्व
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प्रश्न 11.
तीन संधारित्र C1, C2 और C3 श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। इनकी समतुल्य धारिता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2015, 17)
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance SAQ 11.1
प्रश्न 12.
एक समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों का व्यास 8 सेमी है। प्लेटों के बीच वायु भरी है। यदि इस संधारित्र की धारिता 100 सेमी त्रिज्या के गोले की धारिता के बराबर हो, तो इसकी प्लेटों के बीच दूरी की गणना कीजिए। (2014)
हल-
समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता = 100 सेमी त्रिज्या वाले गोले की धारिता
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प्रश्न 13.
100 μF समान्तर प्लेट संधारित्र 400 वोल्ट तक आवेशित है। यदि इसके प्लेटों के बीच दूरी आधी कर दें तो प्लेटों के बीच नया विभवान्तर क्या होगा और संचित ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा ? (2014)
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प्रश्न 14.
दिये गये परिपथ में यदि A तथा B बिन्दुओं के बीच 150 वोल्ट विभवान्तर लगाया जाये तो 6 μF के संधारित्र के प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवान्तर एवं संचित ऊर्जा की गणना कीजिए। (2015)
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प्रश्न 15.
संधारित्रों के दिये गये नेटवर्क में बिन्दुओं A और B के बीच तुल्य धारिता ज्ञात कीजिए और 4 μF संधारित्र के प्लेटों के बीच विभवान्तर की गणना कीजिए। (2016)
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हल-
चित्र 2.32 में 3 μF, 3 μF तथा 3 μF समान्तर क्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता यदि C1 हो, तो।
C1 = 3 + 3 + 3 = 9 μF
तथा 18 μF एवं C = 9 μF श्रेणीक्रम में हैं।
अतः इनकी तुल्य धारिता यदि C2 हो, तो
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प्रश्न 16.
वैद्युत संधारित्र क्या होते हैं? इनके किन्हीं दो उपयोगों का उल्लेख कीजिए। धातु के दो गोलों की त्रिज्याएँ 18 सेमी तथा 27 सेमी हैं। प्रत्येक को 75 माइक्रोकूलॉम आवेश दिया गया है। चालक द्वारा दोनों गोलों को जोड़ने पर उभयनिष्ठ विभव का मान ज्ञात कीजिए। (2016)
उत्तर-
वैद्युत संधारित्र- वैद्युत संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है। माना कि किसी चालक को q आवेश देने पर उसका वैद्युत विभव V हो जाता है, तब चालक की धारिता, C = [latex s=2]\frac { q }{ V }[/latex]
संधारित्रों के उपयोग- संधारित्रों के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं-

1. आवेश का संचय करने में संधारित्र को मुख्यत: आवेश का संचय करने में उपयोग किया जाता है। किसी परिपथ में क्षणिक एवं प्रबल धारी प्राप्त करने के लिए उस परिपथ में एक आवेशित संधारित्र जोड़ दिया जाता है। क्षणिक एवं शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के (UPBoardSolutions.com) लिए स्पन्दित वैद्युत चुम्बक (pulsed electromagnet) का प्रयोग करते हैं जो किसी आवेशित संधारित्र से ही प्रबल धारा प्राप्त करते हैं।

2. ऊर्जा का संचय करने में-आवेशित संधारित्र की प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र में पर्याप्त वैद्युत स्थितिज ऊर्जा संचित रहती है। यदि संख्या में बहुत अधिक आवेशित संधारित्रों का एक स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता 93 संयोजन (संधारित्र बैंक) बनाएँ तो उस ऊर्जा की बड़ी मात्रा को संचित किया जा सकता है और समय आने पर उससे आवश्यकतानुसार ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।

3. इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में विभिन्न कार्यों के लिए संधारित्रों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, रेडियो-आवृत्ति के वैद्युत चुम्बकीय (UPBoardSolutions.com) दोलनों के उत्पादन एवं संसूचन में अर्थात् रेडियो, टेलीविजन इत्यादि के कार्यक्रमों के प्रसारण तथा अभिग्रहण में, वैद्युत शक्ति-सम्भरण (electric power supply) में वोल्टता के उच्चावचन (fluctuations) कम करने में प्रायः फिल्टर प्रयोग होते हैं और संधारित्र एकदिशीय धारा के स्पन्दनों (pulses) के आयाम को कम करके दिष्ट धारा प्राप्त कराने में सहायक होता है।

4. वैद्युत उपकरणों में—वैद्युत उपकरणों जैसे-प्रेरण कुण्डली (induction coil), मोटर इंजन के ज्वलन तन्त्र (ignition system), बिजली के पंखे इत्यादि में संधारित्रों का उपयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि जब किसी प्रेरकीय परिपथ को अचानक तोड़ा जाता है, तो उस स्थान पर चिंगारी (spark) उत्पन्न होती है, परन्तु यदि उसे परिपथ में संधारित्र को लगाया गया है, तो परिपथ के टूटने से उत्पन्न प्रेरित धारा संधारित्र की प्लेटों को आवेशित कर चिंगारी उत्पन्न होने की सम्भावना को समाप्त कर देती है।

5. वैज्ञानिक अध्ययन में-वैज्ञानिक अध्ययनों में भी संधारित्रों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के संधारित्रों में विभिन्न आकार की प्लेटों के बीच अलग-अलग (UPBoardSolutions.com) विन्यासों (configurations) के वैद्युत क्षेत्र स्थापित कर उसमें विभिन्न परावैद्युत पदार्थों को रखकर वैद्युत क्षेत्र में उनके वैद्युत व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।
दिया है, गोलों की त्रिज्याएँ 0.18 मीटर तथा 0.27 मीटर हैं। a मीटर त्रिज्या के गोले की धारिता

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैद्युत विभव की परिभाषा लिखिए। वैद्युत-आवेश के कारण किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2015)
उत्तर-
वैद्युत-विभव वैद्युत- क्षेत्र में किसी बिन्दु पर वैद्युत-विभव (V) परीक्षण आवेश (+q0) को अनन्त से उस बिन्दु तक लाने में किये गये कार्य (W) तथा परीक्षण-आवेश के मान की निष्पत्ति के बराबर होता है।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance LAQ 1.1UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance
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प्रश्न 2.
समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक का निगमन कीजिए। इसकी धारिता को कैसे बढ़ाया जा सकता है। (2013, 15, 16, 17)
या
किसी समान्तर-पट्ट संधारित्र की धारिता का व्यंजक प्राप्त कीजिए, जबकि दोनों प्लेटों के बीच परावैद्युत भरा हो। (2013)
या
किसी समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2011, 14)
या
किसी समतल आवेशित प्लेट के निकट वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र लिखिए। इसका उपयोग करके समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता के व्यंजक का निगमन कीजिए। (2011)
उत्तर-
समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता- चित्र 2.34 में एक समान्तर-प्लेट संधारित्र दिखाया। गया है जिसमें मुख्यत: धातु की लम्बी व समतल दो प्लेटें Xव Y होती हैं जो एक-दूसरे के आमने-सामने थोड़ी दूरी पर दो विद्युतरोधी स्टैण्डों में लगी रहती हैं। इन समान्तर-प्लेटों के बीच वायु के स्थान (UPBoardSolutions.com) पर कोई विद्युतरोधी माध्यम (परावैद्युतांक K) भरा है। समतल प्लेटों में से प्रत्येक का क्षेत्रफल A मीटर तथा उनके बीच की दूरी d मीटर है।

जब प्लेट X को +q आवेश दिया जाता है तो प्रेरण के कारण प्लेट Y पर अन्दर की ओर -q आवेश तथा बाहर की ओर +q आवेश उत्पन्न हो जाता है, चूंकि प्लेंट Y पृथ्वी से जुड़ी है; अतः इसके बाहरी तल का +q आवेश पृथ्वी में चला जाएगा। अंतः प्लेटों के बीच वैद्युत-क्षेत्र उत्पन्न हो जाएगा और लगभग सभी जगह क्षेत्र की तीव्रता एकसमान होगी।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance LAQ 2
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समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता को निम्नलिखित प्रकार से बढ़ाया जा सकता है-

  1. प्रयुक्त प्लेटें अधिक क्षेत्रफल की होनी चाहिए।
  2. प्लेटों के बीच ऐसा माध्यम रखना चाहिए जिसका परावैद्युतांक अधिक हो।
  3. प्लेटों के बीच की दूरी (d) कम लेनी चाहिए अर्थात् प्लेटें परस्पर समीप रखनी चाहिए।

प्रश्न 3.
समान धारिता के चार संधारित्र समान्तर-क्रम में जुड़े हैं। 1.5 वोल्ट की बैटरी से जोड़ने पर प्रत्येक संधारित्र पर संचित आवेश 1.5 माइक्रोकूलॉम है। यदि इन्हें श्रेणीक्रम में जोड़कर उसी बैटरी से आवेशित किया जाए, तो प्रत्येक संधारित्र पर संचित आवेश की गणना कीजिए। (2016)
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प्रश्न 4.
एक समान्तर प्लेट वायु संधारित्र की धारिता 2 μF है। जब इसकी प्लेटों के बीच, प्लेटों के बीच की दूरी की तीन-चौथाई मोटाई की k परावैद्युतांक की प्लेट रखी जाती है, तब संधारित्र की धारिता 4 μF हो जाती है। k का मान ज्ञात कीजिए जहाँ प्लेटों का तथा परावैद्युत प्लेट का क्षेत्रफल समान है। (2014)
हल-
माना प्लेट का क्षेत्रफल = A
प्लेटों के बीच की दूरी = d
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प्रश्न 5.
दिये गये चित्र 2.35 में A और B बिन्दुओं के बीच तुल्यधारिता ज्ञात कीजिए। (2012)
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प्रश्न 6.
एक समान्तर प्लेट संधारित्र की प्रत्येक प्लेट का क्षेत्रफल 40 सेमी है तथा दोनों प्लेटों के बीच विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता 50 न्यूटन प्रति कूलॉम है। प्रत्येक प्लेट पर आवेश की गणना कीजिए। (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance LAQ 6
प्रश्न 7.
दिए गए परिपथ में संधारित्र की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा की गणना कीजिए। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance LAQ 7
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

प्रश्न 8.
दिए गए परिपथ में दोनों संधारित्रों पर संचित आवेशों की गणना कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance

UP Board Solutions

प्रश्न 9.
वानडे ग्राफ जनित्र की संरचना तथा कार्यविधि चित्र की सहायता से समझाइए। (2015)
या
वानडे ग्राफ जनित्र के सिद्धान्त एवं कार्यविधि का वर्णन कीजिए। (2017)
या
वानडे ग्राफ जनित्र के गुण-दोष/उपयोग का वर्णन कीजिए।
या
वानडे ग्राफ जनित्र का नामांकित चित्र बनाइए। इसके कार्य करने का सिद्धान्त बताइए। यह किस तरह से उच्च वोल्टेज उत्पन्न करता है? (2018)
उत्तर-
प्रोफेसर वानडे ग्राफ ने सन् 1931 में एक ऐसे स्थिर वैद्युत उत्पादक यन्त्र (electrostatic generator) की रचना की जिसके द्वारा दस लाख वोल्ट या इससे भी उच्च कोटि का विभवान्तर उत्पन्न किया जा सकता है। इस जनित्र को उनके नाम पर ही वानडे ग्राफ जनित्र कहते हैं।
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सिद्धान्त-
इस जनित्र का सिद्धान्त निम्न दो स्थिर वैद्युत घटनाओं पर आधारित है-
(i) एक खोखले चालक का आवेश उसकी बाहरी सतह पर विद्यमान रहता है।
(ii) किसी चालक से वायु में वैद्युत विसर्जन, उसके नुकीले सिरों की प्राथमिकता से होता है। इस जनित्र की कार्यविधि वैद्युत चालक के नुकीले सिरों (pointed ends) की क्रिया पर आधारित है। चालक के नुकीले भाग पर आवेश का पृष्ठ घनत्व बहुत अधिक होने के कारण, इसे भाग के (UPBoardSolutions.com) पास तीव्र वैद्युत क्षेत्र उपस्थित होता है, जिससे वहाँ भी वायु का आयनीकरण (ionisation) हो जाता है। तब विपरीत प्रकृति का आवेश आकर्षण के कारण नुकीले भाग के पास तथा समान प्रकृति का आवेश प्रतिकर्षण के कारण नुकीले भाग से दूर की ओर दौड़ता है अर्थात् नुकीले भाग से वैद्युत पवन उत्पन्न हो जाता है।

यदि किसी खोखले चालक गोले के अन्दर जुड़े किसी चालक के (नुकीले भाग के) पास कोई आवेश लाया जाए, तो यह सम्पूर्ण आवेश खोखले चालक के बाहरी पृष्ठ पर स्थानान्तरित हो जाता है, चाहे खोखले चालक को विभव कितना भी अधिक हो। इस प्रकार खोखले चालक पर बार-बार आवेश देकर इसके आवेश तथा विभव को बहुत अधिक मान तक बढ़ाया जा सकता है। इसकी सीमा वैद्युतरोधी कठिनाइयों द्वारा निर्धारित की जाती है।

रचना-
चित्र 2.39 में वानडे ग्राफ जनित्र की रचना प्रदर्शित है। इसमें लगभग 5 मीटर व्यास के धातु का खोखला गोला S होता है जो लगभग 15 मीटर ऊँचे विद्युतरोधी स्तम्भों A व B पर टिका रहता है। P1 और P2 दो घिरनियाँ होती हैं जिनमें से होकर विद्युतरोधी पदार्थ; जैसे-रबर या रेशम की बनी एक पट्टी (belt) गुजरती है।

नीचे की घिरनी P को एक वैद्युत मोटर के द्वारा घुमाया जाता है जिससे पट्टी ऊध्र्वाधर तल में तीर की दिशा में घूमने लगती है। C1 और C2 धातु की दो कंघियाँ होती हैं। C1 (UPBoardSolutions.com) को फुहार कंघी (spray comb) तथा C2 को संग्राहक कंघी (collection comb) कहते हैं। कंघी C1 को एक उच्च विभव की बैटरी के धने सिरे से जोड़ दिया जाता है ताकि वह लगभग 10000 वोल्ट के पृथ्वी धनात्मक विभवे पर रह सके। कंघी C2 को गोले S के हैं आन्तरिक पृष्ठ से जोड़ दिया जाता है। D एक विसर्जन-नलिका (discharge tube) है।

चित्र 2.39 गोले से आवेश के क्षरण (leakage) को रोकने के लिए जनित्र को एक लोहे के टैंक में जिसमें दाब । युक्त (लगभग 15 वायुमण्डलीय दाब) वायु भरी होती है, बन्द कर देते हैं। लोहे का टैंक पृथ्वीकृत होता है।

कार्यविधि-
जब कंघे C1 को अति उच्च विभव दिया जाता है, तो तीक्ष्ण बिन्दुओं की क्रिया के फलस्वरूप यह इसके स्थान में आयन उत्पन्न करता है। धन आयनों व कंघे C1 के बीच प्रतिकर्षण के कारण ये धन आयन बेल्ट पर चले जाते हैं। गतिमान बेल्ट द्वारा ये आयन ऊपर ले जाए जाते हैं। C2 के तीक्ष्ण सिरे बेल्ट को ठीक छूते हैं। इस प्रकार कंघा C2 बेल्ट के धन आवेश को एकत्रित करता है। यह धन आवेश शीघ्र ही गोले S के बाहरी पृष्ठ पर स्थानान्तरित हो जाता है। चूंकि बेल्ट घूमती रहती है, यह धन आवेश को ऊपर की ओर ले जाती है (UPBoardSolutions.com) जो कंघे C2 द्वारा एकत्रित कर लिया जाता है तथा गोले S के बाहरी पृष्ठ पर स्थानान्तरित हो जाता है। इस प्रकार गोले S का बाहरी पृष्ठ निरन्तर धन आवेश प्राप्त करता है तथा इसका विभवे अति उच्च हो जाती है। जब गोले S का विभवे बहुत अधिक हो जाता है, तो निकटवर्ती वायु की परावैद्युत तीव्रता (dielectric strength) टूट जाती है तथा आवेश का निकटवर्ती वायु में क्षरण (leakage) हो जाता है। अधिकतम विभव की स्थिति में आवेश के क्षरण होने की दर गोले पर स्थानान्तरित आवेश की दर के बराबर हो। जाती है। गोले से आवेश का क्षरण रोकने के लिए, जनित्र को पृथ्वी से सम्बन्धित तथा उच्च दाबे पर वायू भरे टैंक में रखा जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 2 Electrostatic Potential and Capacitance LAQ 9.1

वास्तविक जनित्र में एक खोखले गोले S के स्थान पर दो खोखले गोले प्रयुक्त करके, एक गोले पर धनावेश तथा दूसरे गोले पर ऋणावेश एकत्रित करके, इन दोनों गोलों के बीच एक अत्यन्त उच्च विभवान्तर प्राप्त कर लिया जाता है।
वानडे ग्राफ जनित्र धन आवेशित कणों को अति उच्च वेग तक त्वरित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का जनित्र IIT कानपुर में लगा है जो आवेशित कणों को 2 Mev ऊर्जा तक त्वरित करता
उपयोग-
वानडे ग्राफ जनित्र के उपयोग निम्नलिखित हैं

  1. उच्च विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए,
  2. तीव्र एक्स किरणों के उत्पादन में,
  3. नाभिकीय विघटन के प्रयोगों में आवेशित कणों (प्रोटॉन, ड्यूट्रॉन तथा α कण आदि) को उच्च गतिज ऊर्जा प्रदान करने में,
  4. नाभिकीय भौतिकी के अध्ययन में इसका उपयोग कण त्वरक (particle accelerator) के रूप में किया जाता है।

दोष-
वानडे ग्राफ जनित्र के दोष निम्नवत् हैं-

  1. इसके आकार के बड़ा होने के कारण इसका उपयोग असुविधाजनक होता है।
  2. उच्च विभव के कारण इसको उपयोग खतरनाक होता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 3
Chapter Name Human Reproduction
Number of Questions Solved 37
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) मानव …… उत्पत्ति वाला है। (अलैगिक/लैगिक)
उत्तर
लैंगिक।

(ख) मानव हैं। अण्डप्रजक, सजीवप्रजक, अण्डजरायुज)
उत्तर
सजीवप्रजक।

(ग) मानव में …….. निषेचन होता है। (बाह्य/आन्तरिक)
उत्तर
आन्तरिक।

(घ) नर एवं मादी ……. युग्मक होते हैं। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
अगुणित।

(ङ) युग्मनज ……. होता है। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
द्विगुणित।

(च) एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को …… कहते हैं।
उत्तर
अण्डोत्सर्ग (ovulation)

(छ) अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) …… नामक हॉर्मोन द्वारा प्रेरित (इन्ड्यूस्ड) होता है।
उत्तर
ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH)

(ज) नर एवं मादा युग्मक के संलयन (फ्यूजन) ……. को हैं।
उत्तर
निषेचन।

(झ) निषेचन …….. में संपन्न होता है।
उत्तर
अण्डवाहिनी नली के संकीर्ण पथ व तुंबिका के संधिस्थल।

(ज) युग्मनज विभक्त होकर …….. की रचना करता है जो गर्भाशय में अंतरोपित (इंप्लांटेड) होता है।
उत्तर
ब्लास्टोसिस्ट (कोरकपुटी)।

(ट) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को …….. कहते हैं।
उत्तर
अपरा (placenta)।

प्रश्न 2.
पुरुष जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-1

प्रश्न 3.
स्त्री जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-2

प्रश्न 4.
वृषण तथा अण्डाशय के बारे में प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
वृषण के कार्य

  1.  वृषण में जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन (spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।
  2. वृषण की सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli cells) शुक्रजन कोशिकाओं तथा शुक्राणुओं का पोषण करती हैं।
  3. वृषण की अन्तराली कोशिकाओं से एन्ड्रोजन (androgens) हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं, ये द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास को प्रभावित करते हैं।

अण्डाशय के कार्य

  1. अण्डाशय की जनन कोशिकाओं से अण्डजनन द्वारा अण्डाणुओं (ova) का निर्माण होता है।
  2. अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका (Graafian follicle) से एस्ट्रोजन हॉर्मोन (estrogen hormone) स्रावित होता है, यह अण्डोत्सर्ग (ovulation) को प्रेरित करता है।
  3. अण्डाशय में बनी संरचना कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) से स्रावित प्रोजेस्टेरोन (progesterone) हॉर्मोन गर्भाशय में निषेचित अण्डाणु को स्थापित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुक्रजनक नलिका
वृषण का निर्माण अनेक शुक्रजनक नलिकाओं (seminiferous tubules) से होता है। शुक्रजनक नलिकाओं के मध्य संयोजी ऊतक में स्थान-स्थान पर अन्तराली कोशिकाओं (interstitial cells) के समूह स्थित होते हैं। इन्हें लेडिग कोशिकाएँ (Leydig’s cells) भी कहते हैं। इनसे स्रावित नर हॉर्मोन्स (testosterone) के कारण द्वितीयक लैंगिक लक्षण विकसित होते हैं।

प्रत्येक शुक्रजनक नलिका पतली एवं कुण्डलित होती है। यह दो पर्यों से घिरी रहती है। बाहरी पर्त को बहिःकुंचक (tunica propria) तथा भीतरी पर्त को जनन एपिथीलियम (germinal epithelium) कहते हैं। जनन एपिथीलियम का निर्माण मुख्य रूप से जनन कोशिकाओं (gem cells) से होता है। इनके मध्य स्थान-स्थान पर सटली कोशिकाएँ (Sertoli cells or nurse cells) पायी जाती हैं। जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शुक्राणु सटली कोशिकाओं से पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। वृषण की शुक्रजनक नलिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं। शुक्रवाहिकाएँ अधिवृषण (epididymis) में खुलती हैं। अधिवृषण से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वंक्षण नाल (inguinal canal) से होती हुई उदर गुहा में प्रवेश करती है। शुक्रवाहिनी मूत्रवाहिनी के साथ फंदा बनाकर मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-3

प्रश्न 6.
शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर
नर युग्मक (शुक्राणुओं) की निर्माण प्रक्रिया, शुक्रजनन कहलाती है। वृषण की जनन उपकला के अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणु बनते हैं। यह क्रिया निम्न प्रकार होती है –
(अ) स्पर्मेटिड का निर्माण – यह क्रिया अग्रलिखित उप चरणों में पूरी होती है –

  1. गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) – प्राथमिक जनन कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन के द्वारा विभाजित होती हैं तथा स्पर्मेटोगोनिया बनाती हैं। ये सभी कोशिकाएँ द्विगुणसूत्री (diploid) होती हैं।
  2. वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – स्पर्मेटोगोनिया नर्सिंग कोशिकाओं से खाद्य पदार्थ ग्रहण करके आकार में बड़ी हो जाती हैं तथा इस अवस्था को प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। यह अवस्था भी द्विगुणसूत्री होती है।
  3. परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase) – प्राथमिक स्पर्मेटोसाईट में एक अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे द्विगुणित कोशिकाएँ बनती हैं जिन्हें द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। प्रत्येक द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट में समसूत्री विभाजन होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट से 4 कोशिकाएँ बनती हैं, जिन्हें स्पर्मेटिड कहते हैं।

(ब) स्पर्मेटिड का कायान्तरण – स्पर्मेटिड में कुछ परिवर्तन होते हैं जिनके द्वारा शुक्राणु बनता है। ये परिवर्तन निम्न हैं –

  1. न्यूक्लिअस ठोस हो जाता है। स्पर्मेटिड से RNA निकलने के कारण केंद्रक आगे की तरफ नुकीला हो जाता है, न्यूक्लिओलस (nucleolus) तथा प्रोटीन खत्म हो जाती है।
  2. माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) दूरस्थ सेन्ट्रीओल के चारों तरफ एकत्रित होकर एक आवरण बना लेता है जो शुक्राणुओं को ऊर्जा देता है। गॉल्जीकाय केंद्रक के अग्र भाग पर
    एक्रोसोम में परिवर्तित हो जाता है।
  3. दूरस्थ सेन्ट्रीओल एक्सोनीमा बनाता है।
  4. अधिकतर कोशिकाद्रव्य नष्ट हो जाता है, लेकिन इसका कुछ भाग शुक्राणु की पूँछ के चारों तरफ एक पर्त बना लेता है।

उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सटली कोशिकाओं के जीवद्रव्य में होती हैं। परिपक्व शुक्राणु शुक्रजनक नलिका की गुहा में छोड़ दिए जाते हैं तथा वहाँ से निकलकर लगभग 18-24 घण्टे एपीडाइडीमस (epididymus) में रहते हैं।

प्रश्न 7.
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए।
उत्तर
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में निम्न हॉर्मोन शामिल होते हैं –

  1. गोनेडोट्रॉपिन रिलीजिंग हार्मोन (GRH)
  2. ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH)
  3. फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH)
  4. एन्ड्रोजेन (Androgen)
  5. इनहिबिन

प्रश्न 8.
शुक्राणुजनन एवं वीर्यसेचन (स्परमिएशन) की परिभाषा लिखिए।
उत्तर
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) – वृषण में शुक्राणुजन कोशिकाओं से शुक्राणुओं (sperms) के बनने की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है। शुक्राणुजन कोशिकाओं से अचल स्पर्मेटिड्स का निर्माण तीन अवस्थाओं में होता है, इन्हें क्रमशः गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था तथा परिपक्वन प्रावस्था कहते हैं। अचल स्पर्मेटिड्स (Spermatids) के चल शुक्राणुओं (motile sperms) में बदलने की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन या शुक्राणु-कायान्तरण (spermiogenesis) कहते हैं।

वीर्यसेचन (Spermiation) – शुक्राणु कायान्तरण के पश्चात् मुक्त शुक्राणुओं के शीर्ष सली कोशिकाओं (sertoli cells) में अन्त:स्थापित (embedded) हो जाते हैं। शुक्रजनक नलिकाओं से शुक्राणुओं के मोचित (released) होने की प्रक्रिया को वीर्यसेचन (spermiation) कहते हैं।

प्रश्न 9.
शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाइए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-4

प्रश्न 10.
शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या हैं?
उत्तर
अधिवृषण (epididymis), शुक्रवाहक (vas deferens), शुक्राशय (seminal vesicle), पुरःस्थ ग्रन्थियों (prostate gland) तथा बल्बोयूरेथल ग्रन्थियों के स्राव शुक्राणुओं को गतिशील बनाए रखने तथा इन्हें परिपक्व बनाने में सहायक होते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से शुक्रीय प्रद्रव्य (seminal plasma) कहते हैं। शुक्राणु तथा शुक्रीय प्रदव्य मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं। शुक्रीय प्रद्रव्य में मुख्यतः फ्रक्टोस, कैल्सियम तथा एन्जाइम होते हैं।

प्रश्न 11.
पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर
पुरुष की सहायक नलिकाओं के प्रमुख कार्य निम्न हैं –

  1. ये वृषण से शुक्राणुओं को मूत्र मार्ग द्वारा बाहर लाती हैं।
  2. ये शुक्राणुओं का संग्रह करती हैं।

पुरुष की सहायक ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य निम्न हैं –

  1. पुरस्थ द्रव का स्राव करना जो शुक्राणुओं को सक्रिय करता है।
  2. काउपर्स ग्रन्थि चिपचिपा तरल स्रावित करती है जो योनि को चिकना बनाता है।
  3. नर हार्मोन उत्पन्न करना।

प्रश्न 12.
अण्डजनन क्या है? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर
स्त्री के अण्डाशय के जनन एपीथिलियम की कोशिकाओं से अण्डाणुओं का निर्माण, अण्डजनन कहलाता है। अण्डजनन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –
(i) प्रोलीफेरेशन प्रावस्था (Proliferation Phase) – इस अवस्था की शुरुआत उस समय से होती है जब मादा फीट्स (foetus) माँ के गर्भ में लगभग 7 माह की होती है। जनन कोशिकाएँ विभाजित होकर अण्डाशय की गुहा में कोशिका गुच्छ बना देती हैं जिसे पुटिका (follicle) कहते हैं। पुटिका की एक कोशिका आकार में बड़ी हो जाती है तथा इसे ऊगोनियम (ooagonium) कहते हैं।

(ii) वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – यह अवस्था भी उस समय पूरी हो जाती है जब मादा माँ के गर्भ में होती है। इस अवस्था में ऊगोनियम पोषण कोशिकाओं से भोजन एकत्रित करते समय आकार में बड़ी हो जाती है। उसे प्राथमिक ऊसाइट (primary 0ocyte) कहते हैं।

(iii) परिपक्व प्रावस्था (Maturation Phase) – यह क्रिया पूरे जनन काल (11-45) वर्ष में लगातार होती रहती है। प्राथमिक ऊसाइट में पहला अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तथा दो असमान कोशिकाएँ बन जाती हैं। बड़ी कोशिका द्वितीयक ऊसाइट (secondary 0ocyte) कहलाती है, जबकि छोटी कोशिका को प्रथम ध्रुवीकाय (first polar body) कहते हैं। यह विभाजन अण्डोत्सर्ग से पहले होता है। दूसरा समसूत्री विभाजन अण्डवाहिनी में, अण्डोत्सर्ग के बाद होता है जिसके फलस्वरूप एक अण्डाणु तथा एक द्वितीयक ध्रुवीकाय (second polar body) बनती है। सभी ध्रुवीकाय नष्ट हो जाती हैं तथा इस सम्पूर्ण क्रिया में एक अण्डाणु प्राप्त होता है। ध्रुवीकार्य का निर्माण अण्डाणुओं को पोषण प्रदान करने के लिए होता है।

प्रश्न 13.
अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट (ट्रांसवर्स सेक्शन) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-5

प्रश्न 14.
ग्राफी पुटिका (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-6

प्रश्न 15.
निम्नलिखित के कार्य बताइए –

  1. पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम)
  2. गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम)
  3. अग्र पिंडक (एक्रोसोम)
  4. शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल)
  5. झालर (फिम्ब्री)

उत्तर

  1. पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम) – यह प्रोजेस्ट्रॉन, एस्ट्रोजेन, रिलेक्सिन नामक हार्मोन का स्राव करता है जो गर्भाशय के अन्तः स्तर को बनाए रखते हैं।
  2. गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम) – यह निषेचित अण्डे के प्रत्यारोपण तथा सगर्भता के लिए आवश्यक है। मासिक चक्र के दौरान इसमें परिवर्तन आता है। यह अपरा निर्माण में भी सहायक है।
  3. अग्र पिंडक (एक्रोसोम) – इसमें उपस्थित एन्जाइम, निषेचन में सहायक होते हैं।
  4. शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) – यह शुक्राणु के गमन में सहायता करती है।
  5. झालर (फिम्ब्री) – यह अण्डोत्सर्ग के समय; अण्डाशय से निकले अण्डाणु के संग्रह में सहायता करती है।

प्रश्न 16.
सही अथवा गलत कथनों को पहचानें

  1. पुंजनों (एन्ड्रोजेन्स) का उत्पादन सटली कोशिकाओं द्वारा होता है। (सही/गलत)
  2. शुक्राणु को सटली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है। (सही/गलत)
  3. लीडिंग कोशिकाएँ, अण्डाशय में पायी जाती हैं। (सही/गलत)
  4. लीडिंग कोशिकाएँ पूंजनों (एन्ड्रोजेन्स) को संश्लेषित करती हैं। (सही/गलत)
  5. अण्डजनन पीत पिंड (कॉपर्स ल्यूटियम) में सम्पन्न होता है। (सही/गलत)
  6. सगर्भता (प्रेगनेंसी के दौरान आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) बंद होता है। (सही/गलत)
  7. योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वर्जिनिटी) या यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है।(सही/गलत)

उत्तर

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. सही।

प्रश्न 17.
आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रअल साइकिल) का कौन-से हार्मोन नियमन करते हैं?
उत्तर
मादाओं (प्राइमेट्स) में अण्डाणु निर्माण 28 दिन के चक्र में होती है जिसे आर्तव चक्र अथवा मासिक चक्र या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं। प्रत्येक स्त्री में यह चक्र 12-13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो जाती है तथा 45-55 वर्ष की आयु में खत्म हो जाता है। यह चक्र अण्डाशय में अण्डाणु निर्माण को दर्शाता है तथा इसके प्रारम्भ होने के साथ ही मादा गर्भधारण में सक्षम हो जाती है। आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) का नियमन निम्न दो हामोंन करते हैं-(i) LH हार्मोन (ii) FSH हॉर्मोन।

प्रश्न 18.
प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं?
उत्तर
गर्भकाल पूरा होने पर पूर्ण विकसित शिशु का माता के गर्भ से बाहर आना, प्रसव (पारट्यूरिशन) कहलाता है। इस दौरान गर्भाशयी तथा उदरीय संकुचन होते हैं व गर्भाशय फैल जाता है। जिससे गर्भस्थ शिशु बाहर आ जाता है। प्रसव का प्रेरण ऑक्सिटोसिन, एस्ट्रोजेन व कॉर्टिसोल नामक हार्मोन करते हैं।

प्रश्न 19.
हमारे समाज में पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है?
उत्तर
स्त्री में XX गुणसूत्र तथा पुरुष में XY गुणसूत्र पाये जाते हैं। जब स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का Y गुणसूत्र मिलते हैं तो पुत्र (XY) उत्पन्न होता है। इसके विपरीत स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का X गुणसूत्र मिलने पर पुत्री (XX) उत्पन्न होती है। अतः उत्पन्न संतान का लिंग निर्धारण पुरुष के गुणसूत्र द्वारा होता है न कि स्त्री के गुणसूत्र से। चूंकि पुरुष में 50% X तथा 50% Y गुणसूत्र होते हैं। अतः पुरुष के गुणसूत्र का X या Y होना ही सन्तान के लिंग के लिए उत्तरदायी है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को देना सर्वदा गलत है।

प्रश्न 20.
एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअण्ड यमज थे?
उत्तर
एक माह में मानव अण्डाशय से सिर्फ एक अण्डा मोचित होता है। समरूप जुड़वाँ बच्चों का जन्म होने पर भी एक माह में एक ही अण्डा मोचित हुआ होगा। द्विअण्ड यमज के सन्दर्भ में एक माह में दो अण्डे मोचित हुए होंगे।

प्रश्न 21.
आप क्या सोचते हैं कि कुतिया जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे?
उत्तर
6 अण्डे मोचित हुए थे।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समरूप जुड़वाँ बच्चे पैदा होते हैं जब
(क) एक शुक्राणु दो अंडाणुओं का निषेचन करे
(ख) एक अण्डाणु का दो शुक्राणु निषेचन करें
(ग) दो अण्डाणु दो भिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित हों
(घ) एक निषेचित अण्डा दो कोरक खण्डों में विभक्त होकर पृथक्-पृथक् दो स्वतंत्र भ्रूण के रूप में विकसित हो
उत्तर
(घ) एक निषेचित अण्डा दो कोरक खण्डों में विभक्त होकर पृथक्-पृथक् दो स्वतंत्र भ्रूण के रूप में विकसित हो

प्रश्न 2.
ब्लास्टुला अवस्था में भ्रूण को सर्वप्रथम गर्भाशय से जोड़ने का कार्य निम्न में से कौन-सी झिल्ली करती है?
(क) एम्निओन
(ख) अपरा/कोरियोन
(ग) ऐलेन्टॉयस
(घ) योक सैक
उत्तर
(ख) अपरा/कोरियोन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फर्टीलाइजिन तथा एण्टी-फर्टीलाइजिन प्रक्रिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
अण्डाणु से फर्टीलाइजिन तथा शुक्राणु से एण्टीफर्टीलाइजिन स्रावित होते हैं, इसलिए शुक्राणु अण्डाणु की ओर आकर्षित हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
कृत्रिम शुक्रसंसेचन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
इसमें परिरक्षित शुक्राणु द्वारा स्त्री की फैलोपियन नलिका से लिए गए अण्डाणु का परखनली में निषेचन किया जाता है। इसके पश्चात् युग्मनज को स्त्री के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार की सन्तान को परखनली शिशु कहते हैं।

प्रश्न 3.
ऐसे दो जन्तुओं के नाम लिखिए जिनमें रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है।
उत्तर
यूथीरिया अधोवर्ग के प्राणियों में रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है; जैसे-कपि तथा मनुष्य।

प्रश्न 4.
मॉरुला तथा ब्लास्टुला में एक अन्तर लिखिए।
उत्तर
मॉरुला कोशिकाओं से बनी ठोस गेंद सदृश रचना होती है, इसके विपरीत ब्लास्टुला में कोरक गुहा या ब्लास्टोसील नामक गुहा का निर्माण हो जाता है।

प्रश्न 5.
भ्रूण के मीजोडर्म स्तर द्वारा निर्मित किन्हीं चार अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर
त्वचा की डर्मिस, संयोजी ऊतक, वृक्क, जनद, हृदय, रक्त वाहिनियाँ तथा लसीका वाहिनियाँ, नोटोकॉर्ड तथा अन्त:कंकाल।

प्रश्न 6.
आपातकालीन ग्रन्थि का नाम लिखिए।
उत्तर
ऐड्रीनल मेड्यूला को आपातकालीन ग्रन्थि कहते हैं।

प्रश्न 7.
शिशुजन्म के बाद कौन-सा हॉर्मोन दूध मुक्त करता है? उसका स्रोत बताइए।
उत्तर
शिशुजन्म के बाद प्रोलेक्टिन (prolactin) हॉर्मोन दूध मुक्त करता है तथा एक अन्य हॉर्मोन दूध को स्तन से बाहर निकलने को उद्दीपित करता है। इसका स्रोत पीयूष ग्रन्थि है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यौवनारम्भ क्या है? इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के शरीर में होने वाले परिवर्तन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
यौवनारम्भ भौतिक परिवर्तनों की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालकों का शरीर एक वयस्क शरीर के रूप में विकसित होता है तथा उनमें प्रजनन एवं निषेचन की क्षमता भी विकसित हो जाती है।

बालक के यौवनारम्भ पर उत्पन्न लक्षण
बालक के शरीर में यौवनावस्था (puberty) प्रारम्भ होने के समय (लगभग 15-18 वर्ष) से ही निम्नलिखित लक्षण विकसित होने लगते हैं –

  1. शरीर की सुडौलता – शरीर अधिक मजबूत, मांसपेशीयुक्त, सुडौल, अधिक शक्तिशाली होने लगता है; कन्धे अधिक चौड़े हो जाते हैं तथा वृद्धि के कारण लम्बाई बढ़ने लगती है।
  2. शरीर पर बाल – चेहरे पर मूंछ और बाद में दाढ़ी के बाल निकलने लगते हैं, वृषण कोषों आदि पर तथा उनके आस-पास बाल निकल आते हैं।
  3. आवाज का भारीपन – आवाज में काफी परिवर्तन आने लगता है। यह भारी होने लगती है तथा | इसकी दृढ़ता में भी बढ़ोतरी होती है।

उपर्युक्त परिवर्तन गौण लैंगिक लक्षण कहलाते हैं तथा वृषणों में बनने वाले नर हॉर्मोन, टेस्टोस्टेरोन के कारण सम्भव होते हैं जो प्रारम्भ में लगभग 20 वर्ष की आयु तक अधिक मात्रा में स्रावित होता है और अनेक शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन लाता है।

बालिका के यौवनारम्भ पर उत्पन्न लक्षण
बालिकाओं में रजोधर्म प्रारम्भ होने से पूर्व होने वाले परिवर्तनों में अण्डाशयों तथा उनके सहायक अंगों का विकास सम्मिलित है। पीयूष ग्रन्थि से उत्पन्न जनद प्रेरक हॉर्मोन्स इन कार्यों को 11 से 13 वर्ष की उम्र में प्रेरित करने लगते हैं और अण्डाशये के अन्दर उपस्थित पुटिकाओं से एस्ट्रोजेन्स (हॉर्मोन्स) स्रावित होने लगते हैं, फलस्वरूप यौवनारम्भ (puberty) के लिए परिवर्तन होने लगते हैं। इन्हीं के प्रभाव से निम्नलिखित गौण लैंगिक लक्षण भी विकसित होते हैं –

  1. स्तनों की वृद्धि तथा सुडौल होना (इनमें दुग्ध ग्रन्थियों का बनना आदि भी)।
  2. बाह्य जननांगों; जैसे–योनि, लैबिया, भगशिश्न आदि का समुचित विकास।
  3. श्रोणि भाग का चौड़ा होना तथा नितम्बों का भारी होना।
  4. बगल तथा जननांगों (भगद्वार) आदि के आस-पास बालों का उगना।
  5. स्वभाव में शीतलता तथा आवाज का महीन होना।
  6. मासिक स्राव एवं आर्तव चक्र का प्रारम्भ होना।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(क) मानव भ्रूण का रोपण,
(ख) स्तनियों में अपरा,
या
अपरा क्या है? इसके मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर
(क) मानव भ्रूण का रोपण
निषेचन के लगभग एक घण्टे के बाद युग्मनज (zygote) का विदलन शुरू हो जाता है और चौथे दिन तक चार बार मिटॉटिक विभाजनों द्वारा विभाजित होकर 16 कोरकखण्डों (blastomeres) की एक गोल ठोस संरचना बनती है, यह संरचना मॉरुला (morula) कहलाती है। इसका निर्माण होते-होते यह गर्भाशय में पहुँच जाता है।

मॉरुला के गर्भाशय में जाने के बाद गर्भाशय गुहा का ग्लाइकोजनयुक्त पोषक तरल मॉरुला (भ्रूण) में भीतर जाने लगता है, जिससे मॉरुला के अन्दर पोषक तरल से भरी हुई एक गुहा-सी बन जाती है। इस गुहा को ब्लास्टोसील (blastocoel) कहते हैं। भ्रूण की इस प्रावस्था को ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) कहते हैं। इसके बनते-बनते भ्रूण का पारभासी आवरण समाप्त हो जाता है। गुहा की दीवार की कोशिकाएँ चपटी हो जाती हैं। इन्हें अब ट्रोफोब्लास्ट (trophoblast) कहते हैं। ट्रोफोब्लास्ट गर्भाशय से पोषक रसों का अवशोषण करती है। ट्रोफोब्लास्ट आँवल (placenta) के निर्माण में भी भाग लेती हैं। ब्लास्टुला की भीतरी कोशिका पिण्ड को भ्रूणबीज (embryoblast) कहते हैं, क्योंकि इसी से भावी भ्रूण के विभिन्न भाग बनते हैं।

निषेचन के एक सप्ताह बाद ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय के ऊपरी भाग में इसकी भित्ति से चिपक जाता है। अर्थात् ब्लास्टोसिस्ट का गर्भाशय भित्ति में रोपण प्रारम्भ हो जाता है। ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह से कुछ अंगुली सदृश प्रवर्ध निकलकर गर्भाशय भित्ति के अन्तः स्तर में घुसकर निषेचन के लगभग 8 दिन बाद भ्रूण को गर्भाशयी भित्ति से जोड़ देते हैं, यही क्रिया भ्रूण का रोपण (implantation of embryo) है।

(ख) स्तनियों में अपरा, आँवल या जरायु
अपरा एक संयुक्त ऊतक है जो स्तनपोषियों में, मादा के गर्भ में, भ्रूण (embryo) का गर्भाशय भित्ति के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करती है। निषेचन (fertilization) के बाद निषेचित अण्डाणु, विदलन (cleavage) करता हुआ एक परिवर्द्धनशील भ्रूण में परिवर्तित होकर जब गर्भाशय (uterus) में पहुँचता है तो गर्भाशय भित्ति के चिपचिपा हो जाने के कारण उसी से चिपक जाता है। यह क्रिया रोपण (implantation) है। इस समय तक कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) के प्रभाव से गर्भाशय भित्ति में अनेक परिवर्तन होते हैं।
गर्भाशय भित्ति से चिपके हुए भ्रूण की विशिष्ट कलाएँ तथा गर्भाशय भित्ति मिलकर अपरा (placenta) का निर्माण करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया को गर्भाधान (conception) कहते हैं।

अपरा के कार्य (Functions of Placenta) – अपरा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ऊतक है, इसका भ्रूण की जीवन-क्रियाओं को चलाने के लिए मादा के शरीर से विशिष्ट सम्बन्ध है। अपरा के अग्रलिखित कार्य होते हैं –
1. भूण का पोषण – भ्रूण अपरा के द्वारा ही माता से समस्त पोषक पदार्थ प्राप्त करता है। माता की रुधिर वाहिनियों का सम्बन्ध भ्रूण की रुधिर वाहिनियों से होता है; अतः माता के रुधिर में आने वाले पचे हुए खाद्य पदार्थ, सरल रूप में भ्रूण को मिलते रहते हैं। अपरा में इन खाद्य पदार्थों का और भी सरलीकरण किया जाता है तथा यह भ्रूण की आवश्यकता के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का संग्रह भी करता है।

2. भूण का श्वसन – माता के शरीर से रुधिर के द्वारा ही भ्रूण को ऑक्सीजन के अणु प्राप्त होते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी इसी रुधिर द्वारा वापस की जाती है। इस प्रकार श्वसन क्रिया के लिए वात विनिमय (gaseous exchange) का कार्य अपरा ही करता है।

3. भूण का उत्सर्जन – भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थ भ्रूण के रुधिर से अपरा क्षेत्र में माता के रुधिर में विसरित होते रहते हैं। इनका निष्कासन भी माता के उत्सर्जी अंगों द्वारा किया जाता है।

4. हॉर्मोन्स का स्रावण – गर्भावस्था को उचित रूप में बनाये रखने आदि के लिए अपरा से एस्ट्रोजेन्स, प्रोजेस्टेरॉन, जरायु गोनैडोट्रॉपिन आदि हॉर्मोन्स का स्रावण होता है। इसी प्रकार प्रसव | को आसान करने के लिए अपरा द्वारा रिलैक्सिन हॉर्मोन का भी स्रावण होता है।

प्रश्न 3.
अपरा द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
अपरा से दो स्टेरॉइड तथा दो प्रोटीन हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं –

  1. कोरिओनिक गोनेडोट्रॉपिक हॉर्मोन (CGH) – यह प्रोटीन हॉमोंन गर्भधारण (pregnancy) को बनाये रखता है। यह कॉर्पस ल्यूटियम के विकास तथा इसके हॉर्मोन स्राव पर नियन्त्रण करता है।
  2. प्लेसैन्टस लैक्टोजन – यह प्रोटीन हॉमोंन दुग्ध ग्रन्थियों को प्रेरित करता है।
  3. ऐस्ट्रेडियॉल – यह स्टेरॉइड हॉर्मोन गर्भाशय की पेशियों के संकुचन का नियन्त्रण करता है।
  4. प्रोजेस्टेरॉन – यह स्टेरॉइड हॉर्मोन गर्भधारण में सहायता करता है।

प्रश्न 4.
गर्भ झिल्लियों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
या
एम्निऑन के चार महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर
गर्भ झिल्लियाँ
भ्रूण की देह के बाहर विकसित होने वाली झिल्लियाँ अथवा कलाओं (membranes) को भ्रूण-बहिस्थ कलाएँ कहते हैं। ये भ्रूण के परिवर्द्धन एवं जीवन के लिए विशेष कार्य करती हैं, परन्तु भ्रूण के अंगोत्पादन में भाग नहीं लेतीं। जन्म अथवा डिम्बोद्गमन के समय इनका निष्कासन हो जाता है। मानव तथा अन्य सभी स्तनियों, सरीसृपों, पक्षियों में चार भ्रूण-बहिस्थ कलाएँ या गर्भ झिल्लियाँ निर्मित होती हैं। ये चार भ्रूणीय-बहिस्थ कलाएँ इस प्रकार हैं –
1. उल्व (Amnion) – यह कला भ्रूण को चारों ओर से घेरे रहती है। भ्रूण के चारों ओर की इस गुहा को उल्व गुहा (amniotic cavity) कहते हैं। इस गुहा में एक तरल भरा रहता है जिसे उल्व तरल या एम्निऑटिक तरल (amniotic fluid) कहते हैं। इस तरल में मन्द गति होती रहती है जिसके कारण भ्रूण के अंग परस्पर चिपकते नहीं। इस प्रकार, एम्निऑटिक तरल भ्रूण के अंगों में विकृतियाँ उत्पन्न होने से बचाता है। यह निम्नलिखित कार्य करता है –

  • एम्निऑटिक तरल भ्रूण की बाह्य आघातों से रक्षा करता है।
  • एम्निऑन भ्रूण को कवच एवं भ्रूण-बहिस्थ कलाओं से पृथक् रखकर इनसे चिपकने से रोकता है।
  • एम्निऑटिक तरल में डूबे रहने से भ्रूण के सूखने (desiccation) का भय नहीं होता।
  • एम्निऑटिक तरल में होने वाली मन्द गति के कारण अंग आपस में चिपकते नहीं।

2. चर्मिका (Chorion) – कॉरिऑन में वृद्धि तीव्र गति से होती है। यह एम्निऑन के बाहर की ओर निर्मित होती है। कॉरिऑन जरायु (placenta) का निर्माण करती है। एम्निऑन तथा कॉरिऑन के बीच की गुहा को कॉरिऑनिक गुहा (chorionic cavity) कहते हैं। कॉरिऑन की एक्टोडर्म या ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह पर दीर्घ अंकुर उत्पन्न होते हैं जिन्हें कॉरिऑनिक अंकुर (chorionic villi) कहते हैं। ये अंकुर गर्भाशय की भित्ति में धंस जाते हैं। ये रसांकुर भ्रूण के पोषण, श्वसन तथा उत्सर्जन में सहायक हैं।

कॉरिऑन से एक हॉर्मोन, कॉरिओनिक गोनैडोट्रॉपिन का स्रावण होता है, जो प्लैसेण्टा विकसित होने तक डिम्ब ग्रन्थि में कॉर्पस ल्यूटियम को सक्रिय रखता है।

3. पीतक कोष (Yolk Sac) – मानव का पीतक कोष छोटा होता है और यह भ्रूण-बहिस्थ गुहा द्वारा चर्मका से पृथक् रहता है। स्तनियों के भ्रूण में पीतक नहीं होता है। पीतक कोष में रुधिर निर्माण होता है। विकास की अन्तिम प्रावस्थाओं में जब अपरापोषिका विकसित हो जाती है, तब पीतक कोष छोटा होने लगता है और धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।

4. अपरापोषक या एलैण्टोइस (Allantois) – मानव के भ्रूण में अपरापोषक एक अवशेषी अंग के रूप में होती है। अन्य स्तनियों में अपरापोषक स्प्लैंकनोप्ल्यूर (एण्डोडर्म एवं स्प्लैंकनिक मीसोडर्म) से निर्मित होती है। स्प्लैंकनिक मीसोडर्म कॉरिऑन के मीसोडर्म स्तर के सम्पर्क में आकर इससे समेकित (fuse) हो जाती है। इस प्रकार, एक मिश्रित भित्ति निर्मित होती है जिसे एलैण्टोकोरिऑन (allantochorion) कहते हैं। एलैण्टोकॉरिऑन, एलैण्टॉइक प्लैसेण्टा की उत्पत्ति में भाग लेती है।

पीतक कोष एवं एलैण्टोइस के वृन्त संयुक्त रूप से नाभि रज्जु (umbilical cord or belly stalk) निर्मित करते हैं।

स्तनधारियों में एलैण्टोइस मूत्राशय का कार्य नहीं करती, क्योंकि भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थों का माँ के रुधिर परिवहन में विसरण हो जाता है एवं माँ के वृक्कों के द्वारा इनका उत्सर्जन होता है। एलैण्टोइस का रुधिर परिवहन तन्त्र भ्रूण को ऑक्सीजन एवं पोषण प्रदान कराता है।

प्रश्न 5.
प्राणियों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भ्रूणीय विकास में उदाहरण सहित अन्तर बताइए।
या
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भ्रूणीय विकास क्या हैं ? इनके उदाहरण दीजिए।
उत्तर
जाइगोट से शिशु निर्माण तक जो भी परिवर्तन होते हैं, उन्हें भ्रूणीय विकास (embryonic development) कहते हैं। भ्रूणीय विकास दो प्रकार का होता है –

1. परोक्ष भूणीय विकास (Indirect Embryonic Development) – जब परिवर्द्धन (development) के बाद अण्डे से निकला जन्तु सामान्य शिशु से काफी भिन्न होता है और फिर यह रूपान्तरण (metamorphosis) के द्वारा सामान्य शिशु में परिवर्तित होता है, ऐसे परिवर्द्धन को परोक्ष या अप्रत्यक्ष विकास कहते हैं। अण्डे से निकले जन्तु को विकास की शिशु प्रावस्था (larval stage) कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्द्धन मुख्यत: अकशेरुकी जन्तुओं तथा अन्य कुछ कशेरुकी, विशेषत: मेंढक तथा अन्य उभयचरों में पाया जाता है। इनमें भ्रूण के पोषण के लिए पीत (yolk) की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

2. प्रत्यक्ष भूणीय विकास (Direct Embryonic Development) – इस प्रकार के विकास में अण्डे से निकला जीव अथवा नवजात शिशु रचना में वयस्क प्राणि के समान ही होता है जिनमें जनन परिपक्वता (sexual maturity) नहीं होती। इनमें आयु के साथ-साथ शरीर की वृद्धि तथा जनन परिपक्वता आ जाती है तभी यह प्रौढ़ होता है। ऐसे भ्रूणीय विकास को प्रत्यक्ष भ्रूणीय विकास कहते हैं। इनमें भ्रूण के पोषण के लिए अधिक पीत (yolk) पाया जाता है। इस प्रकार का विकास घोंघों, पक्षियों, सरीसृपों तथा सभी स्तनियों में पाया जाता है। मानव में मादा आँवल (placenta) के द्वारा भ्रूण को पोषण देती है, यही कारण है कि इस प्रकार के जन्तुओं में एक बार में कम सन्ताने उत्पन्न होती हैं।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निषेचन क्रिया किसे कहते हैं? मनुष्य में निषेचन में होने वाली क्रियाओं का उल्लेख कीजिए तथा अण्डाणु में शुक्राणु के प्रवेश का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर
निषेचन क्रिया
मनुष्य के जीवन चक्र में प्रत्यक्ष भ्रूणीय विकास होता है। यह भ्रूणीय विकास माता के गर्भाशय (uterus) में होता है।

मनुष्य के भ्रूणीय विकास का प्रारम्भ निषेचन से होता है। मनुष्य में निषेचन (fertilization) फैलोपियन नलिका (fallopian tube) में होता है। इस क्रिया में फैलोपियन नलिका में मैथुन (सम्भोग) के समय पुरुष द्वारा छोड़े हुए वीर्य में उपस्थित शुक्राणुओं (sperms) में से एक अगुणित शुक्राणु (haploid sperm) एक अगुणित अण्डाणु (haploid ovum) से समेकित (fuse) हो जाता है और एक द्विगुणित रचना युग्मनज (zygote) बनाता है। समेकन की इस क्रिया को निषेचन कहते हैं।

निषेचन क्रिया में मादा युग्मक या अण्डाणु सम्पूर्ण रूप में किन्तु नर युग्मक अर्थात् शुक्राणु का केवल केन्द्रक (nucleus = n) ही भाग लेता है। मैथुन से निषेचन तक की वास्तविक क्रिया के निम्नलिखित चरण होते हैं –
1. शुक्राणु का अण्डाणु की ओर पहुँचना – मादा की योनि में नर के द्वारा स्खलित वीर्य में से कुछ सफल शुक्राणु (sperms) अपनी पूँछ की सहायता से 1-4 मिमी प्रति मिनट की गति से फैलोपियन नलिका में पहुँचते हैं। इस कार्य में गर्भाशय की सीरिंज अवशोषण क्रिया तथा क्रमाकुंचन गति इन्हें ऊपर चढ़ने में सहायक होती है। फैलोपियन नलिका में संकुचन की उत्तेजना वीर्य में उपस्थित प्रोस्टाग्लाण्डिस तथा ऑक्सीटोसिन की उपस्थिति से प्रेरित होती है।

2. समूहन प्रक्रिया – मैथुन के पश्चात् जब अण्डाणु और शुक्राणु समीप आते हैं तब अण्डाणु फर्टीलाइजिन तथा शुक्राणु एण्टीफर्टीलाइजिन नामक पदार्थ का स्राव करता है। एण्टीफर्टीलाइजिन फर्टीलाइजिन की ओर आकर्षित होता है, जिसके फलस्वरूप अण्डाणु शुक्राणु की ओर आता है और इनका समूहन होता है। अब तक स्रावों की मात्रा कम हो जाने से अण्डे तक पहुँचने वाले शुक्राणुओं की संख्या कम होती जाती है।
स्त्री के जनन नाल में शुक्राणु 1-5 दिन तक जीवित रह सकते हैं किन्तु ये स्खलन के 12-24 घण्टों की अवधि में अण्डाणु का निषेचन कर सकते हैं।

3. संधारण – वीर्य योनि की अम्लीयता को समाप्त करके शुक्राणुओं को अण्डाणु का निषेचन करने में सहायक होते हैं। इस प्रक्रिया को संधारण कहते हैं। सामान्यत: केवल एक शुक्राणु ही अण्डाणु में प्रवेश कर पाता है। वह क्षेत्र जहाँ से ध्रुवकाय (polar body) के बाहर निकलने पर शुक्राणु इसमें प्रवेश करता है उसे सक्रिय ध्रुव (active pole) कहते हैं। अण्डाणु की सतह पर स्थित कुछ ग्राहियों की सहायता से शुक्राणु का शीर्ष अण्डाणु की सतह से चिपक जाता है।

4. शुक्राणु द्वारा अण्डाणु का बेधन – अण्डाणु की सतह से चिपकने के बाद शुक्राणु का एक्रोसोम (acrosome) स्पर्म लाइसिन (sperm lysin) नामक एन्जाइम का स्राव करता है। इसमें हाइल्यूरोनिडेज (hyaluronidase) तथा प्रोटियेज (protease) एन्जाइम्स होते हैं। ये । एन्जाइम अण्डाणु के कोरोना रेडिएटा तथा जोना पेलुसिडा को विघटित करके शुक्राणु को अण्डाणु में प्रवेश के लिये मार्ग बनाते हैं। जैसे ही शुक्राणु अण्डाणु में प्रवेश करता है अण्डाणु में कुछ ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं, जिससे दूसरा शुक्राणु इसमें प्रवेश नहीं कर सकता। शुक्राणु की पूँछ अण्डाणु में प्रवेश नहीं करती है। अण्डाणु के चारों ओर हाइल्यूरोनिक अम्ल द्वारा चिपकी फॉलिकल कोशिकाओं का अपघटन करने के लिए शुक्राणु हाइल्यूरोनिडेज (hyaluronidase) एन्जाइम स्रावित करता है। इससे सम्पर्क स्थल पर अण्डे के बाहरी आवरण कोरोना रेडियेटा (corona radiata) तथा जोना पेलुसिडा (zona pellucida) नष्ट हो जाते हैं।

शुक्राणु के सम्पर्क स्थल पर अण्डाणु की बाहरी दीवार (भित्ति) फूलकर एक निषेचन शंकु (fertilization cone) बनाती है। अण्डाणु की प्लाज्माकला से चिपकने के पश्चात् शुक्राणु का एक्रोसोम स्पर्म लाइसिन एन्जाइम स्रावित करता है। इसके द्वारा अण्डाणु की प्लाज्मा कला घुल जाती है और शुक्राणु धीरे-धीरे अण्डाणु में प्रवेश कर जाता है।

5. अण्डाणु का सक्रियण – शुक्राणु के प्रवेश करते ही अण्ड कोशिका से एक रासायनिक संकेत अण्डाणु की सतह की ओर प्रेषित होता है, जिसके कारण अण्डकोशिका के चारों ओर स्थित शुक्राणुओं में से कोई भी शुक्राणु अब अण्डाणु में प्रवेश नहीं करने पाता है। अण्डाणु की प्लाज्माकला के नीचे स्थित कॉर्टिकल कणिकाएँ निषेचन झिल्ली बनाती हैं। इसे अण्डाणु का सक्रियण कहते हैं। निषेचन झिल्ली अन्य शुक्राणुओं को अण्डाणु में प्रवेश करने से रोक देती है।

6. शुक्राणु तथा अण्डाणु के केन्द्रक का संलयन – शुक्राणु के अण्डे में प्रवेश करते ही उसके कोशिकाद्रव्य एवं कॉर्टेक्स में अनेक परिवर्तन होने लगते हैं। इन परिवर्तनों के कारण सक्रिय अण्डाणु में समसूत्री विभाजन (mitosis) की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-7

अण्डाणु के अन्दर शुक्राणु का नर पूर्व केन्द्रक (male pronucleus) एक निश्चित पथ पर अण्डाणु के मादा पूर्व केन्द्रक (female pronucleus) की ओर अग्रसर होता है। इस पथ को शुक्राणु प्रवेश पथ (sperm penetration path) कहते हैं। अब नर एवं मादा पूर्व केन्द्रकों का परस्पर स्थापित हो जाने से दोनों का संलयन (fusion) हो जाता है, जिसके फलस्वरूप युग्मनज (zygote) बनता है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या पुनः द्विगुणित (2n) हो जाती है। इसके साथ ही माता-पिता के गुणसूत्रों का परस्पर मिश्रण हो जाता है।

निषेचित अण्डे को अब युग्मनज (zygote) तथा इसके केन्द्रक को सिन्कैरिओन (synkaryon) कहते हैं। दोनों पूर्व केन्द्रकों के संलयन को उभय मिश्रण (amphimixis) कहते हैं। सेण्ट्रिओल सहित शुक्राणु केन्द्रक के प्रवेश से अण्डाणु के कोशिकाद्रव्य में तर्क निर्माण प्रारम्भ हो जाता है और युग्मनज प्रथम केन्द्रक विभाजन के लिए तैयार हो जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-8

प्रश्न 2.
विदलन एवं समसूत्री विभाजन में अन्तर स्पष्ट कीजिए । मनुष्य के युग्मनज में विदलन को समझाइए एवं इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर
विदलन तथा समसूत्री विभाजन में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction img-9
मनुष्य के युग्मनज में विदलन
निषेचन के पश्चात् युग्मनज में तेजी से समसूत्री विभाजन होता है अत: यह अनेक कोशिकाओं के समूह में विभाजित होता है। इसके आकार में कोई परिवर्तन नहीं आता है व इसे क्रिया को विदलन (cleavage) कहते हैं। इससे कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। विदलने द्वारा बनी कोशिकाएँ ब्लास्टोमीयर्स (blastomeres) कहलाती हैं। मानव में पूर्णभंजी विदलन (holoblastic cleavage) होता है। युग्मनज में प्रथम विदलन प्रायः निषेचन के तीस घण्टे बाद होता है तथा युग्मनज के अण्डवाहिनी के ऊपरी हिस्से में उपस्थित होने के दौरान यह विदलन होता है। पहले विदलन में युग्मनज मध्य अक्ष से पूर्ण रूप से दो ब्लास्टोमीयर्स में बँट जाता है।

दूसरा विदलन निषेचन के प्रायः 44 घण्टे बाद होता है व यह प्रथम विदलन के समकोण पर होता है। अतः युग्मनज चार समान ब्लास्टोमीयर्स में विभाजित हो जाता है। तृतीय विदलन प्रायः निषेचन के तीन दिन बाद होता है तथा ये पहले दो विभाजनों के 90° के कोण पर होता है। विदलन के दौरान भ्रूण अण्डवाहिनी में नीचे की ओर खिसकता जाता है। तृतीय विदलन के पश्चात् विदलन अनिश्चित रूप से होता है तथा चौथे दिन भ्रूण गर्भाशय में पहुंच जाता है। यह भ्रूण 32 कोशिकाओं (32 cells) का होता है व इसे मोरूला (morula) कहते हैं।

विदलन के लाभ
विदलन द्वारा होने वाले लाभ निम्नवत् हैं –

  1. युग्मनज का जीवद्रव्य ब्लास्टोमीयर्स में विभाजित हो जाता है।
  2. विदलन जीवद्रव्य को गति प्रदान करता है तथा जनन स्तर (germ layers) बनाने में सहायता | करता है।
  3. यह ऊतक तथा अंग बनाने में सहायता करता है।
  4. विदलन के कारण निश्चित केंद्रकी जीवद्रव्य अनुपात (ratio) बनता है।
  5. इसके फलस्वरूप एककोशिकीय युग्मनज बहुकोशिकीय भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology  Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 2
Chapter Name Sexual Reproduction in Flowering Plants
Number of Questions Solved 54
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ, जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है?
उत्तर
आवृतबीजी पादप (angiospermic plant) पुष्पीय पादप हैं। पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (modified shoot) है जिसका कार्य प्रजनन होता है। पुष्प में निम्नलिखित चार चक्र होते हैं –
(क) बाह्यदलपुंज (Calyx) – इसका निर्माण बाह्यदल (sepals) से होता है।
(ख) दलपुंज (Corolla) – इसका निर्माण दल (petals) से होता है।
(ग) पुमंग (Androecium) – इसका निर्माण पुंकेसर (stamens) से होता है। यह पुष्प का नर जनन चक्र कहलाता है।
(घ) जायांग (Gynoecium) – इसका निर्माण अण्डप (carpels) से होता है। यह पुष्प का मादा जनन चक्र कहलाता है।

पुंकेसर के परागकोश (anther) में परागकण मातृ कोशिका (pollen mother cells) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा परागकण (pollen grains) का निर्माण होता है। परागकण नर युग्मकोभिद् (male gametophyte) कहलाता है।
अण्डप (carpel) के तीन भाग होते हैं – अण्डाशय (ovary), वर्तिका (style) तथा वर्तिकाग्र (stigma)। अण्डाशय में बीजाण्ड का निर्माण होता है। बीजाण्ड के बीजाण्डकाय की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (mega spore mother cell) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) अथवा भ्रूणकोष (embryo sac) का विकास होता है।
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प्रश्न 2.
लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है ? इन दोनों घटनाओं के अंत में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर
लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के मध्य निम्न अन्तर हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-2
इन घटनाओं के दौरान अर्धसूत्री विभाजन होता है। लघुबीजाणुजनन के अन्त में लघुबीजाणु अथवा परागकण बनते हैं तथा गुरुबीजाणुजनन के अन्त में चार गुरूबीजाणु बनते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें-परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक।
उत्तर
उपरोक्त शब्दावलियों का सही विकासीय क्रम निम्नवत् है –
बीजाणुजन ऊतक → परागमातृ कोशिका → लघुबीजाणु चतुष्क → परागकण → नरयुग्मक

प्रश्न 4.
एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरा नामांकित चित्र बनाइए। (2010, 15, 17)
उत्तर
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प्रश्न 5.
आप मादा युग्मकोभिद् के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं ?
उत्तर
गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप बने गुरुबीजाणु चतुष्क (tetrad) में से तीन नष्ट हो जाते हैं। तथा केवल एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय होता है जो मादा युग्मकोभिद् का विकास करता है। गुरुबीजाणु का केन्द्रक तीन, सूत्री विभाजनों द्वारा आठ केन्द्रक बनाता है। प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार केन्द्रक व्यवस्थित हो जाते हैं। भ्रूणकोष के बीजाण्डद्वारी ध्रुव पर स्थित चारों केन्द्रक में से तीन केन्द्रक कोशिकाएँ अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं, जबकि निभागी सिरे के चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक एन्टीपोडल कोशिकाएँ (antipodal cells) बनाते हैं। दोनों ध्रुवों से आये एक-एक केन्द्रक, केन्द्रीय कोशिका में संयोजन द्वारा ध्रुवीयकेन्द्रक (polar nucleus) बनाते हैं। चूंकि मादा युग्मकोद्भिद् सिर्फ एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होता है, अत: इसे एक बीजाणुज विकास कहते हैं।

प्रश्न 6.
एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोदभिद के 7-कोशिकीय, 8-न्यूक्लिएट (केन्द्रकीय) प्रकृति की व्याख्या करें।
उत्तर
आवृतबीजी पौधों को मादा युग्मकोभिद् 7-कोशिकीय व 8-केन्द्रकीय होता है जिसके परिवर्धन के समय क्रियाशील गुरुबीजाणु (functional megaspore), प्रथम केन्द्रीय विभाजन द्वारा दो केन्द्रक बनाता है। दोनों केन्द्रक गुरुबीजाणु के दोनों ध्रुवों (माइक्रोपाइल व निभागीय) पर पहुँच जाते हैं। द्वितीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर दो-दो केन्द्रिकाएँ बन जाती हैं। तृतीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर चार-चार केन्द्रक बन जाते हैं। माइक्रोपायलर शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं तथा चौथा केन्द्रक ऊपरी ध्रुव का चक्र बनाता है। निभागीय शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन एन्टीपोडल केन्द्रक तथा चौथा केन्द्रक निचला ध्रुव केन्द्रक का निर्माण करता है। ऊपरी तथा निचला ध्रुवीय केन्द्रक मध्य में आकर संयोजन द्वारा द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) बनाते हैं। अण्ड उपकरण के तीन केन्द्रकों से मध्य वाला केन्द्रक अण्ड (egg) बनाता है। शेष दोनों केन्द्रक सहायक कोशिकाएँ (synergid cells) बनाते हैं।
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प्रश्न 7.
उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें।
उत्तर
वे पुष्प जिनके परागकोश तथा वर्तिकाग्र अनावृत (exposed) होते हैं, उन्मील परागणी पुष्प कहलाते हैं। उदाहरण- वायोला, ऑक्जेलिस।
अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण नहीं होता है। अनुन्मीलिय पुष्प अनावृत नहीं होते हैं। अतः इनमें पर-परागण सम्भव नहीं होता है। इस प्रकार के पुष्पों के परागकोश तथा वर्तिकाग्र पास-पास स्थित होते हैं। परागकोश के स्फुटित होने पर परागकण वर्तिकाग्र के सम्पर्क में आकर परागण करते हैं। अतः अनुन्मीलिय पुष्प स्व-परागण ही करते हैं।

प्रश्न 8.
पुष्पों द्वारा स्व-परागण को रोकने के लिए विकसित की गयी दो कार्यनीतियों का विवरण दें।
उत्तर
पुष्पों में स्व-परागण को रोकने हेतु विकसित की गयी दो कार्यनीतियाँ निम्न हैं –

  1. स्व-बन्ध्यता (Self-fertility) – इस प्रकार की कार्यनीति में यदि किसी पुष्प के परागण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो वे उसे निषेचित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण-माल्वा के एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं होते हैं।
  2. भिन्न काल पक्वता (Dichogamy) – इसमें नर तथा मादा जननांग अलग-अलग समय में | परिपक्व होते हैं जिससे स्व-परागण नहीं हो पाता है। उदाहरण-सैक्सीफ्रेगा कुल के सदस्य।

प्रश्न 9.
स्व-अयोग्यता क्या है ? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ?
उत्तर
स्व-अयोग्यता पुष्पीय पौधों में पायी जाने वाली ऐसी प्रयुक्ति है जिसके फलस्वरूप पौधों में स्व-परागण (self-pollination) नहीं होता है। अतः इन पौधों में सिर्फ पर-परागण (cross pollination) ही हो पाता है। स्व-अयोग्यता दो प्रकार की होती है –

  1. विषमरूपी (Heteromorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता में एक ही जाति के पौधों के वर्तिकाग्र तथा परागकोशों की स्थिति में भिन्नता होती है अतः परागनलिका की वृद्धि वर्तिकाग्र में रुक जाती है।
  2. समकारी (Homomorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता विरोधी-S अलील्स (opposition-S-alleles) द्वारा होती है। उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप स्व-अयोग्यता वाली जातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक नहीं पहुँच पाती है।

प्रश्न 10.
बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है ? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ?
उत्तर
बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा परागण में ऐच्छिक परागकणों का उपयोग तथा वर्तिकाग्र को अनैच्छिक परागकणों से बचाना सुनिश्चित किया जाता है। बैगिंग के अन्तर्गत विपुंसित पुष्पों को थैली से ढ़ककर, इनके वर्तिकाग्र को अवांछित परागकणों से बचाया जाता है। पादप जनन में इस तकनीक द्वारा फसलों को उन्नतशील बनाया जाता है तथा सिर्फ ऐच्छिक गुणों वाले परागकण वे वर्तिकाग्र के मध्य परागण सुनिश्चित कराया जाता है।

प्रश्न 11.
त्रि-संलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ।
उत्तर
परागनलिका से मुक्त दोनों नर केन्द्रकों में से एक मादा केन्द्रक से संयोजन करता है। दूसरा नर केन्द्रक भ्रूणकोष में स्थित द्वितीयक केन्द्रक (2n) से संयोजन करता है। द्वितीयक केन्द्रक में दो केन्द्रक पहले से होते हैं तथा नर केन्द्रक से संलयन के पश्चात् केन्द्रकों की संख्या तीन हो जाती है। तीन केन्द्रकों का यह संलयन, त्रिसंलयन (triple fusion) कहलाता है। त्रिसंलयन की प्रक्रिया भ्रूणकोष में होती है तथा इसमें ध्रुवीय केन्द्रक अर्थात् द्वितीयक केन्द्रक व नर केन्द्रक सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 12.
एक निषेचित बीजाण्ड में, युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर
निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड में युग्मनज (zygote) का विकास होता है। बीजाण्ड के अध्यावरण दृढ़ होकर बीजावरण (seed coat) बनाते हैं। बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से बीजकवच तथा भीतरी अध्यावरण से अन्तः कवच बनता है। भ्रूणपोष में भोज्य पदार्थ एकत्रित होने लगते हैं। जल की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है, अतः कोमल बीजाण्डे कड़ा व शुष्क हो जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अंदर की कार्यिकी क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा युग्मनज से बना नया भ्रूण सुप्तावस्था में पहुँच जाता है। इसे युग्मनज प्रसुप्ति कहते हैं। बीजावरण से घिरा, एकत्रित भोजन युक्त तथा सुसुप्त भ्रूण युक्त यह रचना, बीज (seed) कहलाती है।

प्रश्न 13.
इनमें विभेद करें –
(क) बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल
(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल
(घ) परिभ्रूण पोष तथा फलभित्ति
उत्तर
(क) बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक में अन्तर बीजपत्राधार
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(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल में अन्तर
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(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल में अन्तर
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(घ) परिभ्रूण पोष तथा फलभित्ति में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-8

प्रश्न 14.
एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं ? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है ?
उत्तर
सेब में फल का विकास पुष्पासन (thalamus) से होता है। इसी कारण इसे आभासी फल (false fruit) कहते हैं। फल की रचना, पुष्प के निषेचित अण्डाशय (ovary) से होती है।
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प्रश्न 15.
विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ?
उत्तर
एक द्विलिंगी पुष्प की कली अवस्था में, परागकोश को काटकर अलग करने की प्रक्रिया, विपुंसन (emasculation) कहलाती है। यह कृत्रिम परागण की एक तकनीक है तथा इसका प्रयोग पादप प्रजनक द्वारा आर्थिक महत्त्व के पौधों की अच्छी नस्ल बनाने में किया जाता है। विपुंसन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि ऐच्छिक वर्तिकाग्र युक्त पौधे पर ही परागण हो।

प्रश्न 16.
यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों ?
उत्तर
वृद्धि कारकों के प्रयोग द्वारा अनिषेकजनन हेतु हम केले का चयन करेंगे क्योंकि यह बीज रहित होता है।

प्रश्न 17.
परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पुंकेसर के परागकोश (anther) में प्रायः चार लघुबीजाणुधानी (microsporangia) बनती हैं। प्रत्येक लघुबीजाणुधानी चार पर्वो वाली भित्ति से आवृत होती है। बाहर से भीतर की ओर इन्हें क्रमशः बाह्य त्वचा (epidermis), अंतस्थीसियम (endothecium), मध्यपर्त (middle layer) तथा टेपीटम (tapetum) कहते हैं। बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को संरक्षण प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं। सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-10

प्रश्न 18.
असंगजनन क्या है ? इसका क्या महत्त्व है ? (2014, 17)
उत्तर
अलैंगिक जनन की एक सामान्य विधि जिसमें नये पौधे का निर्माण युग्मकों के संलयन के बिना ही होता है, असंगजनन (apomixis) कहलाती है। असंगजनन में गुणसूत्रों का विसंयोजनपुनःसंयोजन (segregation and recombination) नहीं होता है। अतः इसमें पौधे के लाभदायक गुणों को अनिश्चित समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आवरणविहीन तथा एककोशिकीय जनन अंग प्रमुख लक्षण हैं – (2015)
(क) ब्रायोफाइटा के
(ख) टेरिडोफाइटा के
(ग) अनावृतबीजियों के
(घ) थैलोफाइटा के
उत्तर
(घ) थैलोफाइटा के

प्रश्न 2.
एक आवृतबीजी में 400 परागकणों को उत्पन्न करने के लिए कितने अर्ध-सूत्री विभाजन आवश्यक होंगे? (2015)
(क) 400
(ख) 100
(ग) 200
(घ) 50
उत्तर
(ख) 100

प्रश्न 3.
परागकण मातृकोशिका में गुणसूत्रों की संख्या होती है (2016)
(क) अगुणित
(ख) द्विगुणित
(ग) त्रिगुणित
(घ) बहुगुणित
उत्तर
(ख) द्विगुणित

प्रश्न 4.
बीजाण्ड का वह स्थान जहाँ बीजाण्डवृत्त जुड़ा होता है उसे कहते हैं (2017)
(क) निभाग (चलाजा)
(ख) नाभिका (हाइलम)
(ग) केन्द्रक
(घ) माइक्रोपाइल
उत्तर
(ख) नाभिका (हाइलम)

प्रश्न 5.
परागनलिका का अध्यावरण द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश कहलाता है (2017)
(क) निभागी युग्मन
(ख) अण्डद्वारी प्रवेश
(ग) इनमें से दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
द्विनिषेचन का तात्पर्य है (2017)
(क) दो नर युग्मकों का अण्डकोशिका से संयोजन
(ख) एक नर युग्मक का अण्डकोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन
(ग) इनमें से दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) एक नर युग्मक का अण्डकोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन

प्रश्न 7.
द्विनिषेचन क्रिया होती है (2014)
(क) शैवालों में
(ख) ब्रायोफाइट्स में
(ग) अनावृतबीजी पौधों में
(घ) आवृतबीजी पौधों में
उत्तर
(घ) आवृतबीजी पौधों में

प्रश्न 8.
भारतीय भ्रूण-विज्ञान के जनक है – (2017)
(क) राम उदार
(ख) बी०एन० प्रसाद
(ग) पी०एन० मेहरा
(घ) पी० माहेश्वरी
उत्तर
(घ) पी० माहेश्वरी

प्रश्न 9.
नारियल का रेशे उत्पन्न करने वाला भाग है – (2016)
(क) बाह्य फलभित्ति
(ख) अन्तः फलभित्ति
(ग) मध्य फलभित्ति
(घ) तना तथा पत्ती
उत्तर
(ग) मध्य फलभित्ति

प्रश्न 10.
बहुभ्रूणता खोजी गई (2017)
(क) ल्यूवेनहॉक द्वारा
(ख) माहेश्वरी द्वारा
(ग) विन्कलर द्वारा
(घ) कूपर द्वारा
उत्तर
(क) ल्यूवेनहॉक द्वारा।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युक्तपुंकेसरी दशा किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
जब किसी पुष्प के सभी पुंकेसर परस्पर संलग्न होते हैं, तब इसे युक्तपुंकेसरी दशा कहते हैं। जैसे – Cucurbitaceae family के पौधों में।

प्रश्न 2.
चतुर्दी पुंकेसर किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
जब एक पुष्प के चार पुंकेसर लम्बे और दो पुंकेसर छोटे हों, तो इसे चतुर्थी अवस्था कहते हैं। जैसे – सरसों के पुष्प में।

प्रश्न 3.
जौ या गेहूँ के 100 दाने बनाने के लिए कितने अर्द्धसूत्री विभाजन की आवश्यकता होगी? (2017, 18)
उत्तर
जौ या गेहूँ के 100 दाने बनाने के लिए 125 अर्द्धसूत्री विभाजन की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 4.
परिपक्व परागकोष की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए। (2015, 17)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-11

प्रश्न 5.
ऊर्ध्ववर्ती एवं अधोवर्ती अण्डाशयों की लम्ब काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2015)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-12

प्रश्न 6.
पॉलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष में कितने केन्द्र उपस्थित होते हैं? (2017)
उत्तर
परिपक्व भ्रूणकोष 8 केन्द्रकीय एवं 7 कोशिकीय होता है।

प्रश्न 7.
भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण कैसे होता है? इसमें उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती (2015)
उत्तर
द्वितीयक केन्द्रक (2n) तथा एक नर केन्द्रक (n) के संलयन से भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है। इसमें उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या 3n होती है।

प्रश्न 8.
निमीलिता को परिभाषित कीजिए तथा एक उदाहरण भी दीजिए। (2014)
उत्तर
कुछ द्विलिंगी पुष्प ऐसे होते हैं जो कभी नहीं खिलते। इन पुष्पों को निमीलित पुष्प कहते हैं। ऐसे पुष्पों में बन्द अवस्था में ही परागकोश फट जाते हैं जिससे परागकण पुष्प के वर्तिकाग्र पर बिखर जाते हैं और स्व-परागण हो जाता है। इस प्रक्रिया को ही निमीलिता कहते हैं। उदाहरणार्थ-कनकौआ (Commelina), गुलमेंहदी (Impatiens), बनफसा (Viola), मूंगफली (Arachis) आदि।

प्रश्न 9.
भ्रूणपोष का विकास आवृतबीजी पौधों में किस प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है? (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन के पश्चात् होता है।

प्रश्न 10.
प्रजनन की पाल्मेला स्टेज किस पादप में पाई जाती है? (2015)
उत्तर
प्रजनन की पाल्मेला स्टेज क्लेमाइडोमोनास में पाई जाती है।

प्रश्न 11.
पालीनिया का नामांकित चित्र बनाइये। (2017)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-13

प्रश्न 12.
निम्न में अन्तर कीजिए – (2017)

  1. उभयलिंगाश्रयी तथा एकलिंगाश्रयी।
  2. समकालपक्वता तथा पूर्वमुँपक्वता।
  3. भ्रूणपोषी तथा अभ्रूणपोषी बीज।

उत्तर
1. उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) – जब नर तथा मादा पुष्प एक ही पौधे पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधे को एकक्षयक कहते हैं, जैसे-लौकी, कद्दू, खीरा, मक्का, अरण्डी आदि। एकक्षयक पौधों में बहुधा नर पुष्प शीर्ष की ओर तथा मादा पुष्प नीचे की ओर लगे रहते हैं। इन पौधों के पुष्पों में स्व-परागण भी हो सकता है।
एकलिंगाश्रयी (Dioecious) – जब नर तथा मादा पुष्प दो भिन्न पौधों पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधों को द्विक्षयक कहते हैं, जैसे – पपीता, शहतूत, भाँग, केवड़ा, डेटपाम (datepalm) आदि। द्विक्षयक पौधों में केवल पर-परागण ही सम्भव है।

2. समकालपक्वता (Homogamy) – इस प्रकार के स्वपरागण में पुष्प का परागकोष तथा वर्तिकाग्र एक ही समय में परिपक्व होते हैं; जैसे-गार्डेनिया (Gardenia); कॉनवालवुलस (Convolvulus); सदाबहार (Vinca rosed = Catharanthus roseus), गुलाबांस (Mirabilis) आदि।
पूर्वऍपक्वता (Protandry) – जब पुष्प में पुमंग (androecium), जायांग (gynoecium) से पहले परिपक्व हो जाते हैं तब इस अवस्था को पूर्वऍपक्व (protandrous) कहते हैं। इन पुष्पों के परागकोश से निकलकर परागकण उसी पौधे के पुष्पों का परागण नहीं कर पाते परन्तु दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँचकर परागण करते हैं; जैसे-गुड़हल, कपास, क्लेरोडेन्ड्रान, सालवियो, सूर्यमुखी, गेंदा, धनिया, सौंफ, बेला आदि। यह दशा पूर्वस्त्रीपक्वता की अपेक्षा अधिक सामान्य है।

3. भ्रूणपोषी बीज (Endospermic Seeds) – ऐसे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष बीजों के अंकुरण तक पाया जाता है उन्हें भ्रूणपोषी बीज या एल्ब्यूमिनस बीज (albuminous seeds) कहते हैं। इन बीजों में बीजपत्र (cotyledons) बहुत पतले होते हैं क्योंकि इनमें भोजन भ्रूणपोष में संचित रहता है; जैसे-सुपारी (Areca), फाइटेलेप्स (Phyteleps), डेट (Phoenix), अरण्डी (Caster), गेहूँ (Wheat), मक्का (Maize) आदि।
अभ्रूणपोषी बीज (Non-endospermic Seeds) – कुछ पौधों, जैसे–चना, सेम, मटर में भ्रूणपोष, भ्रूण-परिवर्धन में पूर्णरूप से प्रयोग हो जाता है। ऐसे बीजों के बीजपत्रों (cotyledons) में भोजन संचित रहने के कारण ये मोटे होते हैं। इन्हें अभ्रूणपोषी (non-endospermic) या एक्सएल्ब्यूमिनस (exalbuminous) बीज कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आवृतबीजों में नर युग्मकोभिद का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2009, 16)
या
एक आवृतबीजी पौधे के परागकण के अंकुरण की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए। (2010, 12, 15, 16)
उत्तर
नर युग्मकोदभिदका विकास
परागकोश के स्फुटन के समय मध्य स्तर व टेपीटम स्तर नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार परागकोश भित्ति में केवल बाह्यत्वचा (epidermis) व अन्तःत्वचा (endothecium) रह जाती है। प्रायः परागकोश का स्फुटन अनुदैर्घ्य दरारें (longitudinal slits) बनने से होता है जो प्रायः दो परागधानियों के मिलने के स्थान पर (A) (B) होती हैं। कभी-कभी अग्र दरारों (terminal slits) अथवा छिद्रों (pores) से भी परागकोशों को स्फुटन होता है। स्फुटन के फलस्वरूप परागकण स्वतन्त्र हो जाते हैं। परागकोश से स्वतन्त्र होने के पूर्व ही परागकणों का अंकुरण हो जाता है। इस क्रिया में सर्वप्रथम परागकण का केन्द्रक परागकण-भित्ति की ओर जाकर समसूत्री विभाजन द्वारा दो केन्द्रकों में विभाजित हो जाता है।
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इनमें बड़े केन्द्रक को वर्दी केन्द्रक या नली केन्द्रक (vegetative nucleus or tube nucleus) तथा छोटे केन्द्रक को जनन केन्द्रक (generative nucleus) कहते हैं। प्रायः इस अवस्था में परागकण, परागकोश को छोड़ देते हैं। अब परागकणों का आगे का विकास मादा पुष्प के स्त्रीकेसर (pistil) के वर्तिकाग्र पर होता है। परागण (pollination) की क्रिया द्वारा परागकण, स्त्रीकेसर (pistil) के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँच जाते हैं जहाँ इनका अंकुरण होता है।
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प्रश्न 2.
वायु परागण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
या
वायु परागित पुष्पों की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर
पुष्पों में वायु द्वारा होने वाले पर-परागण को वायु परागण (anemophily) कहते हैं और ऐसे पुष्पों को वायु परागित पुष्प (anemophilous flowers) कहते हैं। वायु परागित पुष्पों में कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं जो निम्नलिखित हैं –

  1. वायु परागित पुष्प छोटे एवं आकर्षण रहित होते हैं। ये रंगहीन (colourless); गंधहीन (odourless) एवं मकरन्द रहित होते हैं।
  2. वायु परागित पुष्प प्रायः एकलिंगी (unisexual) होते हैं। ये पत्तियों वाले भाग के ऊपर निकलते हैं तथा इनमें नर पुष्पों की अधिकता होती है; जैसे – मक्का में अथवा फिर नई पत्तियों के निकलने से पहले ही खिल जाते हैं, जैसे-पोपलर में।
  3. पुष्प के अनावश्यक भाग; जैसे – बाह्यदल एवं दल बहुत छोटे होते हैं जिससे ये परागकणों और वर्तिकाग्र के बीच रुकावट न बन सकें।
  4. वायु परागण करने वाले पुष्पों द्वारा प्रचुर मात्रा में परागकण (pollen grains) उत्पन्न होते हैं। क्योंकि वायु के झोंकों के साथ परागकणों का अधिकांश भाग इधर-उधर गिरकर नष्ट हो जाता है और फिर थोड़े से परागकण ही वास्तविक परागण क्रिया में भाग ले पाते हैं। उदाहरणार्थमक्का (Zea) तथा रूमेक्स (Rumex) का एक पौधा क्रमशः लगभग 2 करोड़ तथा 40 करोड़ परागकण उत्पन्न करता है। इसी प्रकार केनाबिस (Cannabis) के एक पुष्प से लगभग 5 लाख परागकणों का निर्माण होता है।
  5. परागकण छोटे, शुष्क व हल्के होते हैं जिससे ये वायु में आसानी से इधर-उधर उड़ सकें। कुछ पुष्पों के परागकणों में विशेष संरचनाएँ भी पायी जाती हैं जो वायु परागण में सहायक होती हैं; जैसे-चीड़ (Pinus) के परागकण पंखयुक्त (winged) होते हैं जिससे ये आसानी से उड़ सकें।
  6. पुंकेसर के पुंतन्तु प्रायः लम्बे तथा पतले होते हैं और पुष्प के बाहर निकले रहते हैं जिससे वायु के झोंकों के साथ ये आसानी से पुंतन्तुओं पर झूल सकें, जैसे—पोपलर में। घास, ताड़ आदि में पुष्पों के परागकोश मुक्तदोली (versatile) प्रकार का होता है जिससे ये वायु में आसानी से झूल सकें।
  7. इन पुष्पों का वर्तिकाग्र लम्बा, रोमयुक्त एवं पुष्प के बाहर निकला होता है जिससे ये परागकणों को आसानी से पकड़ सकें; जैसे-रोमयुक्त (मक्का) या चिपचिपा (पोपलर)।

प्रश्न 3.
आवृतबीजी पौधों में द्विनिषेचन की क्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011)
या
द्विनिषेचन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2009, 11, 12, 14, 15, 16)
या
दोहरा निषेचन को परिभाषित कीजिए। (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन
पराग नलिका (pollen tube) में उपस्थित दोनों नर केन्द्रक ही नर युग्मक (male gametes) की तरह कार्य करते हैं और भ्रूणकोष में पहुँचने के बाद इनमें से एक नर युग्मक वास्तविक मादा युग्मक (female gamete) अर्थात् अण्ड कोशिका (egg cell) के अन्दर प्रवेश करके उसके केन्द्रक के साथ संलयित (fuse) हो जाता है। यह क्रिया वास्तविक युग्मक संलयन (syngamy) है। इस प्रकार की क्रिया को निषेचन (fertilization) कहते हैं। दूसरा नर युग्मक, दो ध्रुवीय केन्द्रकों (polar nuclei) द्वारा बने द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) की ओर पहुँचकर उसे निषेचित करता है। यह क्रिया त्रिसंयोजन (triple fusion) कहलाती है। इस समय भ्रूणकोष के अन्दर निषेचित अण्डकोशिका तथा त्रिसंयोजित केन्द्रक के अतिरिक्त सभी केन्द्रक अथवा कोशिकाएँ धीरे-धीरे लुप्त हो जाती हैं। यहाँ, एक ही भ्रूणकोष में दो संलयन होते हैं; अतः यह क्रिया द्विनिषेचन (double fertilization) कहलाती है और इस क्रिया के फलस्वरूप भ्रूणकोष में प्रायः निम्नलिखित परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं –

1. बीजाण्ड के दोनों कवच तथा इनसे बनने वाली संरचनाओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता और ये नये बनने वाले बीज का बीजावरण (seed coat) बनाते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-17

2. बीजाण्डकाय में उपस्थित भ्रूणकोष (embryo sac) में, अब दो ही केन्द्रक तथा उनसे बनने वाली कोशिकाएँ रह जाती हैं, ये इस प्रकार हैं –

  • निषिक्ताण्ड (Oospore) – जो एक नर युग्मक (केन्द्रक) तथा अण्डकोशिका के संलयन (fusion) के फलस्वरूप बना है तथा आगे चलकर भ्रूण (embryo) का निर्माण करेगा।
  • भूणपोष केन्द्रक (Endospermic Nucleus) – जो द्वितीयक केन्द्रक (2n) तथा एक नर केन्द्रक (n) के संलयन से बना है अतः प्रायः त्रिगुणित (triploid) होता है और | सम्पूर्ण भ्रूणकोष के कोशिकाद्रव्य को अपनी कोशिका मानकर रहता है। यही कोशिका आगे चलकर भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण करती है।

प्रश्न 4.
द्विनिषेचन के पश्चात किसी आवृतबीजी पौधे के बीजाण्ड में होने वाले बहुत से परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन के पश्चात बीजाण्ड में होने वाले परिवर्तन

1. बाह्य अध्यावरण (Outer Integurment) – बीज का बीजचोल (testa) बनाता है।
2. अन्तः अध्यावरण (Inner Integument) – बीज का अन्त:कवच या टेगमेन (tegmen) बनाता है।
3. बीजाण्ड वृन्त (Funiculus) – नष्ट हो जाता है। लीची में इससे एक मांसल ऊतक निकलता है, यह बीज के चारों ओर होता है, इसे बीजचोल या एरिल कहते हैं। यह खाने योग्य भाग है। इसे third integument भी कहते हैं।
4. बीजाण्डद्वार (Micropyle) – बीजाण्डद्वार के रूप में ही रहता है। अरण्डी (castor bean) में इससे एक अतिवृद्धि निकलती है, जिसे बीजचोलक (caruncle) कहते हैं।
5. बीजाण्डकाय (Nucellus) – प्रायः समाप्त हो जाता है, कभी-कभी पतली परत के रूप में बचा रहता है जिसे परिभ्रूणपोष (perisperm) कहते हैं; जैसे-कुमुदिनी, काली मिर्च आदि।

प्रश्न 5.
भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष की तुलना कीजिए। (2010, 14, 15, 17)
उत्तर
भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष की तुलना
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-18

प्रश्न 6.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए
(क) अनिषेकफलने (2014, 17)
(ख) बहुभ्रूणता (2010, 14, 15, 16)
या
अनिषेकफलन एवं बहुभ्रूणता में अन्तर लिखिए। (2017)
उत्तर
(क) अनिषेकफलन
यह शब्द नौल (Noll) ने दिया। अण्डाशय (ovary) से बिना निषेचन के फल निर्माण की क्रिया को अनिषेकफलन (parthenocarpy) कहते हैं तथा ऐसे फलों को अनिषेकफलनी फल (parthenocarpic fruits) कहते हैं। यह फल बीजरहित (seedless) होते हैं। अंगूर, केले तथा अनन्नास में प्राकृतिक अनिषेकफलन होता है। अनिषेकफलन को हॉर्मोन; जैसे-ऑक्सिन व जिबरेलिन के छिड़काव से भी प्रेरित किया जाता है। अनार (pomegranate), नारियल (coconut) या उन फलों में जिनमें खाने योग्य भाग बीच का है, अनिषेकफलनी फल बनाना बेकार होता है।

(ख) बहुभ्रूणता
एक बीजाण्ड या बीज में एक से अधिक भ्रूणों का उत्पन्न होना बहुभ्रूणता (polyembryony) कहलाता है। अनावृतबीजी पौधों में यह सामान्य घटना है परन्तु आवृतबीजी पौधों में काफी कम पायी जाती है। बहुभ्रूणता (polyembryony) की खोज एण्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (A.V. Leeuwenhoek) ने 1791 में सन्तरे (orange) के बीजों में की थी। यद्यपि एक बीज में बहुत सारे भ्रूण (embryo) विकसित हो जाते हैं, परन्तु इनमें से एक ही भ्रूण सक्रिय होकर पौधों की अगली पीढ़ी को जन्म देता है।
बहुभ्रूणता निम्न प्रकार की होती है –

1. सरले बहुभ्रूणता (Simple Polyembryony) – इस प्रकार की बहुभ्रूणता में बीजाण्ड में एक-से-अधिक भ्रूणकोष (embryo sac) होते हैं। इनमें निषेचन के बाद अनेक निषिक्ताण्ड (oospore) बनते हैं। प्रत्येक से भ्रूण का निर्माण होता है, जैसे-ब्रेसिका (Brassica)

2. मिश्रित बहुभ्रूणता (Mixed Polyembryony) – इसमें एक से अधिक पराग नलिकाएँ बीजाण्ड में जाती हैं। अतिरिक्त युग्मक, सहायक कोशाओं अथवा प्रतिमुख कोशाओं से संयुक्त हो जाते हैं और इस प्रकार बनी द्विगुणित कोशी (2n) से भी भ्रूण बनता है, जैसे – सैजिटेरिया, पोआ अल्पीना, एलियम ओडोरम आदि।

3. विदलन बहुभ्रूणता (Cleavage Polyembryony) – यह युग्मनज (zygote) के दो अथवा अधिक भागों में विभाजन से होती है। प्रत्येक भाग से भ्रूण बनता है; जैसे – क्रोटेलेरिआ
(Crotalaria), FAT37 15C (Nymphaea advena)

4. अपस्थानिक बहुभ्रूणता (Adventive Polyembryony) – जब भ्रूण का विकास बिना निषेचन के ही बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरण (integuments) की कोशाओं से होता है, तब ऐसी बहुभ्रूणता को अपस्थानिक बहुभ्रूणता कहते हैं; जैसे- नींबू, संतरा, आम आदि।

प्रश्न 7.
असंगजनन (apomixis) क्या है? उपयुक्त उदाहरण देकर इस प्रक्रिया को समझाइए। (2014, 17)
या
अपबीजाणुता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2015)
उत्तर
असंगजनन
कभी-कभी पौधे के जीवन-चक्र में युग्मक-संलयन (syngamy) अथवा अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) नहीं होते तथा इनकी अनुपस्थिति में नये पौधे का निर्माण हो जाता है, इस क्रिया को असंगजनन (apomixis) कहते हैं। इसकी खोज विंकलर (Winkler, 1908) नामक वैज्ञानिक ने की। असंगजनन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –

1. कायिक जनन (Vegetative Reproduction) – इस प्रकार के प्रजनन में बीज नहीं बनता। किसी कलिका से, जो तने अथवा पत्ती के ऊपर उत्पन्न होती है, एक नया पौधा जन्म लेता है;
जैसे – गन्ना, आलू आदि।
2. अनिषेकबीजता (Agamospermy) – लैंगिक जनन की अनुपस्थिति में बीज का निर्माण-इस प्रकार का प्रजनन बीज द्वारा होता है, परन्तु बीज के बनने में संयुग्मन एवं अर्धसूत्री विभाजन नहीं होते। यह निम्न प्रकार का होता है –

  • अपस्थानिक भूणता (Adventive Embryony) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरणों (integuments) की कुछ कोशिकाएँ विभाजन एवं वृद्धि करके भ्रूण का निर्माण करती हैं। इस प्रकार उत्पन्न भ्रूण में सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। उदाहरण—नींबू (Citrus), आम (Mangifera indica), नागफनी (Opuntia dillenii)
  • द्विगुणित बीजाणुता (Diplospory) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में दीर्घबीजाणु मातृकोशिका (megaspore mother cell) से भ्रूणकोष (embryo sac) बन जाता है। क्योंकि इस निर्माण में अर्धसूत्री विभाजन नहीं होता, सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। यदि इस भ्रूणकोष के अण्ड (egg) से, नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास हो जाता है तो उसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहा जाता है। उदाहरण-इक्सेरिस डेन्टाटा (Ixertis dentata), टेरेक्साकम एल्बाइडियम (Taraxacum albidium)
  • अपबीजाणुता (Apospory) – इसकी खोज रोजनबर्ग (Rosenberg, 1907) ने की। इसमें बीजाण्डकाय (nucellus) की कोई कोशिका एक ऐसे भ्रूणकोष का निर्माण करती है जिसकी प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र द्विगुणित (2n) होते हैं। यदि ऐसे भ्रूणकोष के अण्ड (egg) में नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास होता है तो इसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहते हैं।
    उदाहरण – क्रेपिस (crepis), क्लिफ्टोनिआ (Cliftonia), पार्थिनियम (Parthenium)।

प्रश्न 8.
अपयुग्मन पर टिप्पणी लिखें। (2017)
उत्तर
अपयुग्मन (Apogamy; Greek, apo = without; gamos = marriage)-यदि अगुणित भ्रूणकोष (haploid embryosac) के अण्ड कोशा (egg cell) के अलावा अन्य किसी दूसरी कोशा; जैसे-सहायक कोशा (synergid) अथवा प्रतिमुख कोशा (antipodal) से भ्रूण का निर्माण होता है, तो इसे अपयुग्मन कहते हैं। अर्थात् युग्मकोभिद् (gametophyte) से सीधे बीजाणुद्भिद् (sporophyte) का निर्माण; जैसे-एरीश्रिया (Erythroea); लिलियम (Lilium) आदि।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुष्पी पादपों में लघुबीजाणुजनन का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011)
या
केवल नामांकित चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पौधों में लघुबीजाणुजनन का वर्णन कीजिए। (2009, 11)
या
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए – ‘लघुबीजाणुजनन’। (2010, 11, 14, 16)
या
परागकोश के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
लघुबीजाणुजनन
पुष्पी पादपों में एक परागकोश (anther) एक उभार के रूप में कुछ विभज्योतिकी कोशिकाओं का एक अण्डाकार समूह होता है। शीघ्र ही यह एक चार पालियों वाला आकार बना लेता है। अब, चारों पालियों में बाह्य त्वचा के अन्दर अलग-अलग अधःस्तरीय कोशिकाएँ (hypodermal cells) बड़े आकार की तथा अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं। प्रत्येक पालि (lobe) में इस प्रकार की
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-19
कोशिकाओं की प्राय: एक ऊर्ध्व पंक्ति होती है। इन्हें प्रप्रसू कोशिकाएँ (archesporial cells) कहा जाता है। कभी-कभी अनुप्रस्थ काट में इनकी संख्या अधिक भी हो सकती है। प्रत्येक प्रप्रसू कोशिका में एक बड़ा तथा स्पष्ट केन्द्रक एवं प्रचुर मात्रा में जीवद्रव्य होता है। यह कोशिका एक परिनत विभाजन (periclinal division) अर्थात् पालि की परिधि के समानान्तर विभाजन द्वारा विभाजित होकर निम्नांकित दो कोशिकाएँ बनाती है –
1. प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary Parietal Cell) – बाहरी कोशिका जो बाह्य त्वचा की ओर होती है फिर से एक परिनत विभाजन (parietal division) करके दो कोशिकाओं-बाहरी अन्त:भित्तीय कोशिका (endothecial cell) तथा भित्तीय कोशिका (parietal cell) में बँट जाती है। अन्त:भित्तीय कोशिका केवल पालि की परिधि के साथ 90° का कोण बनाते हुए अर्थात् अपनत (anticlinal) विभाजन द्वारा विभाजित होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-20
साथ ही भित्तीय कोशिका कई परिनत तथा अनेक अपनत विभाजनों के द्वारा विभाजित होती है। इन विभाजनों से परागपुट (pollen chamber) की भित्ति का निर्माण होता है। सम्पूर्ण पालि में ऊर्ध्व पंक्ति में उपस्थित अन्त:भित्तीय कोशिकाएँ विभाजन के बाद अन्त:भित्ति (endothecium) बना लेती हैं। भित्ति कोशिकाओं में से दो-तीन स्तर, मध्य स्तर (middle layers) का निर्माण करते हैं। मध्य स्तर की सबसे भीतरी परत पोषक कोशिकाएँ बनाती हैं, जिसे टैपेटम (tapetum) कहते हैं।

2. प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (Primary Sporogenous Cell) – यह भीतरी कोशिका होती है जो बिना किसी क्रम के, अनियमित रूप में विभाजित होकर परागपुट (pollen chamber) के अन्दर बीजाणुजनक कोशिकाओं का एक समूह बना लेती है। स्पष्ट है। चारों पालियों में अलग-अलग तथा ऊर्ध्व रूप में निर्मित ये संरचनाएँ परागपुट हैं। इस समय तक योजि (connective) के एक ओर की दो पालियाँ मिलकर एक बड़ी पालि बनाती हैं तथा दूसरी ओर की दूसरी बड़ी पालि। अब प्रत्येक परागपुट में उपस्थित बीजाणुजनक कोशिकाएँ गोल होने लगती हैं, कुछ कोशिकाएँ टूट-फूटकर बढ़ती हुई कोशिकाओं के पोषण के काम आ जाती हैं, साथ ही इन कोशिकाओं का पोषण टैपेटम की कोशिकाओं के द्वारा भी होता है। इस प्रकार विकसित प्रत्येक कोशिका वास्तव में लघुबीजाणु मातृ कोशिका (microspore mother cell) है। एक परागपुट में इनकी संख्या सहस्त्रों हो सकती है।

सभी लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं का केन्द्रक, अब अर्द्ध-सूत्री विभाजन (reduction division or meiosis) द्वारा विभाजित होता है और चार केन्द्रक बनते हैं। इस प्रकार प्रत्येक केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के केन्द्रक (2n) से आधी अर्थात् अगुणित (n = haploid) रह जाती है। सामान्यत: चारों केन्द्रक बनने के बाद ही कोशिकाद्रव्य विभाजन होता है, किन्तु कुछ एकबीजपत्री पौधों में कोशिकाद्रव्य का विभाजन प्रथम अर्द्ध-सूत्री विभाजन के बाद ही आरम्भ हो जाता है।
प्रत्येक अगुणित कोशिका ही लघुबीजाणु (microspore) है। ये चार-चार के समूह अर्थात् चतुष्क (tetrad) में विन्यसित रहते हैं, जो अधिकतर द्विबीजपत्रियों में (i) चतुष्फलकीय (tetrahedral), किन्तु अधिकतर एकबीजपत्रियों में (ii) समद्विपाश्विक (isobilateral) होते हैं।

प्रश्न 2.
गुरुबीजाणुजनन क्या है? आवृतबीजीय पौधों में मादा युग्मकोभिद के परिवर्धन का वर्णन कीजिए। (2010, 11)
या
चित्रों की सहायता से एक सामान्य 8-केन्द्रकीय भ्रूणकोष के विकास का वर्णन कीजिए। (2009, 11, 12)
या
आवृतबीजी पौधों में भ्रूणकोष कैसे बनता है? चित्रों की सहायता से समझाइए। विभिन्न केन्द्रकों के कार्य की विवेचना कीजिए। (2010)
या
आवृतबीजी पौधों में गुरुबीजाणुजनन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। (2014, 17)
या
‘आवृतबीजियों में मादा युग्मकोभिद्’ पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
भ्रूणकोष का नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
उत्तर
गुरुबीजाणुजनन
पुष्पीय पौधे विषमबीजी (heterosporous) होते हैं अर्थात् इन पौधों में दो प्रकार के बीजाणु (spores) बनते हैं – लघुबीजाणु (microspores) जो नर युग्मकोभिद (male gametophyte) बनाने वाली कोशिकाएँ हैं तथा गुरुबीजाणु (megaspores) जो मादा युग्मकोभिद बनाने वाली कोशिकाएँ होती हैं। गुरुबीजाणुओं के बनने की क्रिया जिसमें मिओसिस (अर्द्ध-सूत्री विभाजन) होती है, गुरुबीजाणुजनन (megasporogenesis) कहलाती है।

आवृतबीजी पौधे में मादा युग्मकोभिद का परिवर्धन
1. गुरुबीजाणुओं का निर्माण या गुरुबीजाणुजनन (Development of Megaspores or Megasporogenesis) – बीजाण्ड (ovule) में बीजाण्डकाय (nucellus) के स्वतन्त्र सिरे के कुछ अन्दर अर्थात् अधःस्तरीय (hypodermal) क्षेत्र में एक या कई कोशिकाओं का एक समूह अपने स्पष्ट केन्द्रकों आदि से अधिक स्पष्ट होकर प्रप्रसू कोशिकाएँ (archesporial cells) बनाता है। यदि एक से अधिक प्रप्रसू कोशिकायें हैं तो भी प्राय: एक ही कोशिका बड़ी तथा स्पष्ट होकर एक परिनत विभाजन (periclinal division), जो कि एक सूत्री विभाजन (mitotic division) है, के द्वारा दो कोशिकाओं में बँट जाती है –

  • बाहरी कोशिका, प्राथमिक भित्तीय कोशिका (primary parietal cell) कहलाती है जो एक परिनत विभाजन के द्वारा विभाजित होकर दो कोशिकाएँ अथवा कुछ अपनत (anticlinal) विभाजनों के द्वारा भित्तीय कोशिकाओं (parietal cells) का एक समूह बना लेती है।
  • भीतरी कोशिका प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (primary sporogenous cell) कहलाती है और प्रायः बिना विभाजित हुए सीधे ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) की तरह वृद्धि करने लगती है। यह कोशिका जब काफी बड़ी तथा स्पष्ट केन्द्रक वाली हो जाती है, तो इसमें अर्द्ध-सूत्री विभाजन (meiosis) होता है और चार अगुणित (haploid = n) कोशिकाएँ बनती हैं, जो प्रायः एक लम्बवत् चतुष्क (linear tetrad) में विन्यसित रहती हैं। ये कोशिकाएँ गुरुबीजाणु (megaspore) हैं। इस प्रकार एक सम्पूर्ण बीजाण्ड अर्थात् गुरुबीजाणुधानी (megasporangium) में केवल चार गुरुबीजाणु बनते हैं जिनमें से प्राय: केवल एक ही गुरुबीजाणु क्रियाशील (functional) होता है और बढ़कर मादा युग्मकोभिद (female gametophyte) अर्थात् भ्रूणकोष (embryo sac) में परिवर्द्धित होता है। शेष बचे तीन गुरुबीजाणु बाद में नष्ट हो जाते हैं।

2. आवृतबीजी पौधे के भ्रूणकोष का परिवर्द्धन (Development of an Angiospermic Embryosac) – एक आवृतबीजी बीजाण्ड के बीजाण्डकाय (nucellus) के बीजाण्डद्वारीय (micropylar), स्वतन्त्र सिरे की ओर एक गुरुबीजाणु मातृकोशिका में अर्द्ध-सूत्री विभाजन (meiosis) से चार गुरुबीजाणुओं (megaspores) का निर्माण प्रायः लम्बवत् चतुष्क (linear tetrad) के रूप में होता है। इनमें से एक प्राय: निभागीय (chalazal) सिरे की ओर वाला गुरुबीजाणु (megaspore) जो एक अगुणित (haploid) तथा मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) की प्रथम कोशिका है, क्रियाशील हो जाता है। यह
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गुरुबीजाणु बीजाण्डकाय (nucellus) से अधिक मात्रा में पोषण प्राप्त करने लगता है तथा अब यह बड़ा होकर भ्रूणकोष मातृकोशिका (embryo sac mother cell) की तरह कार्य करने लगता है। यह बीजाण्डकाय का अधिकतम स्थान घेर लेता है। वृद्धि के समय इसका केन्द्रक जो लगभग मध्य में स्थित था, विभाजित होकर दो केन्द्रक बनाता है। बने हुए दोनों केन्द्रकों में से एक-एक दोनों विपरीत ध्रुवों पर (बीजाण्डद्वार वाला सिरा तथा दूसरा निभाग की ओर) स्थित हो जाते हैं। दोनों ध्रुवों पर स्थित ये केन्द्रक सूत्री विभाजन के द्वारा सामान्यत: दो-दो बार और विभाजित होते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार (कुल आठ) केन्द्रक बन जाते हैं। इस समय तक क्रियाशील गुरुबीजाणु जिसमें ये केन्द्रक स्थित हैं, बढ़कर एक थैले (sac) की तरह हो जाता है और अब इसे भ्रूणकोष (embryo sac) कहते हैं। भ्रूणकोष के प्रत्येक ध्रुवीय सिरे में उपस्थित चार-चार केन्द्रकों में से एक-एक केन्द्रक एक-दूसरे के साथ जुड़कर द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) का निर्माण करते हैं। उधर, दोनों ध्रुवों पर शेष तीन-तीन केन्द्रक अपने चारों ओर कोशिकाद्रव्य एकत्रित कर निम्नलिखित कोशिकाओं का निर्माण करते हैं –

  • बीजाण्डद्वार की ओर वाली तीन कोशिकाओं में से एक कोशिका अधिक बड़ी हो जाती है, यह अण्ड कोशिका (egg cell or oosphere) तथा शेष दोनों कोशिकाएँ सहायक कोशिकाएँ (synergid cells) कहलाती हैं। अण्ड कोशिका प्रायः मध्य में तथा सहायक कोशिकाएँ पाश्र्व में व्यवस्थित रहती हैं।
  • निभाग की ओर वाले ध्रुव की ओर बनी तीनों कोशिकाएँ, प्रतिधुवीय कोशिकाएँ (antipodal cells) कहलाती हैं।
    इस प्रकार, गुरुबीजाणुधानी के अन्दर ही एक गुरुबीजाणु मादा युग्मकोभिद अथवा भ्रूणकोष (female gametophyte or embryo sac) का निर्माण करता है।

प्रश्न 3.
परागण किसे कहते हैं? सैल्विया में होने वाले परागण की क्रिया का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर
परागण
पुंकेसर (stamen) पुष्प का नर भाग होता है जबकि स्त्रीकेसर (pistil) मादा भाग होता है। पुंकेसरों में परागकणों (pollen grains) का निर्माण होता है जो नर युग्मक अथवा शुक्राणु (sperms) उत्पन्न करते हैं। स्त्रीकेसरों में अण्डाशय (ovaries) का निर्माण होता है जिसमें मादा युग्मक अथवा अण्डाणु (egg) बनता है। प्रजनन क्रिया के सम्पन्न होने हेतु नर तथा मादा युग्मकों का संयुग्मन (fusion) आवश्यक है। चूंकि अधिकांश पौधों में परागकणों (pollen grains) के संचालन (locomotion) का अभाव होता है, इस कारण परागकणों के जायांग (gynoecium) तक पहुँचने के लिए इन्हें विभिन्न ढंग अपनाने पड़ते हैं। परागकोश में बने परागकणों का मादा पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की घटना को परागण (pollination) कहते हैं। परागण के पश्चात् पुंकेसर और दल गिर जाते हैं, बाह्यदल या तो गिर जाते हैं या फल में चिरलग्न रहते हैं।

परागण के प्रकार
परागण (pollination) निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –

  1. स्व-परागण (self-pollination) तथा
  2. पर-परागण (cross-pollination)।

1. स्व – परागण
स्व-परागण (self pollination) में एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचते हैं।

2. पर-परागण
इस क्रिया में एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। यहाँ पर दोनों पुष्प दो अलग-अलग पौधों पर स्थित होते हैं चाहे वे एकलिंगी हों या द्विलिंगी। पर-परागण क्रिया का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें बीज उत्पन्न करने के लिये एक ही जाति के दो पौधे भाग लेते हैं। द्विक्षयक पौधों (dioecious plants) के पुष्पों में केवल पर-परागण ही सम्भव होता है। द्विलिंगी पुष्पों में यह सामान्यतया पाया जाता है।

सैल्विया में कीट परागण
सैल्विया का पुष्प द्वि-ओष्ठि (bilabiate) होता है, ऊपरी ओष्ठ प्रजनन अंगों की रक्षा करता है तथा निचला ओष्ठ मधुमक्खियों के बैठने के लिये एक मंच (stage) का कार्य करता है। पुष्प पूर्वऍपक्व (protandrous) होता है, अर्थात् पुंकेसर, स्त्री पुंकेसर से पहले पकता है। इसमें दो पुंकेसर होते हैं।
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प्रत्येक पुंकेसर का पुंतन्तु छोटा होता है और इसके सिरे पर लीवर की भाँति मुड़ा तथा असामान्य रूप से लम्बा योजी (connective) होता है जो मध्य से कुछ हटकर पुंतन्तु से जुड़ा होता है। इस प्रकार योजी दो असमान खण्डों में बँट जाता है और इसके दोनों सिरों पर एक-एक परागकोश पालि लगी रहती है। ऊपरी खण्ड बड़ा होता है तथा इसके सिरे पर स्थित पालि अबन्ध्य (fertile) होती है। निचले छोटे खण्ड के सिरे पर बन्थ्य (sterile) पालि लगी रहती है। दोनों पुंकेसरों की बन्ध्य पालियाँ दलपुंज के मुख पर स्थित होती हैं। सल्विया में परागण क्रिया मधुमक्खी (honeybee) द्वारा सम्पन्न होती है।

जब मकरन्द की खोज में कोई मधुमक्खी दलपुंज की नली में प्रवेश करती है तो निचली बन्ध्य परागकोश पालियों को धक्का लगता है जिससे योजी का ऊपरी खण्ड लीवर की भाँति नीचे झुक जाता है। इसके फलस्वरूप दोनों अबन्ध्य परागकोश पालियाँ मधुमक्खी की पीठ से टकराकर अपना परागकण इसके ऊपर बिखेर देती हैं। जब यह मधुमक्खी परिपक्व अण्डप वाले किसी दूसरे पुष्प में प्रवेश करती है तो नीचे की ओर मुड़े हुए वर्तिकाग्र (stima) इसकी पीठ से रगड़ खाकर परागकणों को चिपका लेते हैं और इस प्रकार परागण क्रिया सम्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
पर-परागण से होने वाले लाभ तथा हानि का उल्लेख कीजिए। (2016)
या
“स्व-परागण की अपेक्षा पर-परागण अधिक उपयोगी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। (2017)
उत्तर
पर-परागण से लाभ (Advantages of Cross-pollination)-पर-परागण से निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. पर-परागित पुष्पों से बनने वाले फल बड़े, भारी एवं स्वादिष्ट होते हैं तथा इनमें बीजों की संख्या अधिक होती है।
  2. पर-परागण से उत्पन्न बीज भी बड़े, भारी, स्वस्थ एवं अच्छी नस्ल वाले होते हैं, जिससे उपज बढ़ जाती है।
  3. इन बीजों से उत्पन्न पौधे भी बड़े, भारी, स्वस्थ एवं सक्षम होते हैं तथा इनमें प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की अधिक क्षमता होती है।
  4. पर-परागण द्वारा रोग अवरोधक (disease resistant) नयी जातियाँ तैयार की जा सकती हैं।
  5. पर-परागण से आनुवंशिक पुनर्योजन द्वारा विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
  6. पर-परागण द्वारा प्रकृति में स्वत: ही पौधों की नई जातियाँ (new varieties) उत्पन्न होती रहती हैं। जिनमें नये गुणों का समावेश होता है तथा हाइब्रिड विगर (hybrid vigour) के कारण अच्छी संतति बनती है।

पर-परागण से हानियाँ (Disadvantages of Cross-pollination) – अनेक लाभ होते हुए भी पर-परागण से निम्नलिखित हानियाँ भी हैं –

  1. पर-परागण की क्रिया अनिश्चित (uncertain) होती है, क्योंकि परागण के लिए यह वायु, जल एवं जन्तु पर निर्भर होती है।
  2. परागित करने वाले साधनों की समय पर उपलब्धता न होने पर अधिकांश पुष्प परागित होने से रह जाते हैं।
  3. पर-परागण के लिए पुष्पों को दूसरे पुष्पों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  4. कीटों को आकर्षित करने के लिये पुष्पों को चटकीले रंग, बड़े दल, सुगन्ध तथा मकरन्द उत्पन्न करना पड़ता है जिन सबमें अधिक पदार्थ का अपव्यय होता है तथा अधिक ऊर्जा का ह्रास होता है।
  5. पर-परागित पुष्पों, विशेषकर वायु परागित पुष्पों में परागकण अधिक संख्या में नष्ट होते हैं।
  6. पर-परागित बीज सदैव संकर (hybrid) होते हैं।

प्रश्न 5.
द्विबीजपत्री भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिए। (2015)
या
द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण विकास की विभिन्न अवस्थाओं का केवल नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
उत्तर
द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास
युग्मनज (zygote) एक द्विगुणित संरचना है। यह सूत्री विभाजनों (mitotic division or mitosis) द्वारा विभाजित होता है। आरम्भ में यह आकार में बढ़कर अपने चारों ओर सेलुलोस की एक भित्ति का निर्माण करता है। इसके पश्चात् यह एक अनुप्रस्थ विभाजन (transverse division) द्वारा दो कोशाओं में विभाजित हो जाता है। इसमें ऊपरी (बीजाण्डद्वार की ओर स्थित) कोशा को आधार कोशा (basal cell) तथा निचली (निभाग की ओर स्थित) कोशा को अन्तस्थ कोशा (terminal cell) कहते हैं। अन्तस्थ कोशा को भूणीय कोशा (embryonal cell) तथा आधार कोशा को निलम्बक कोशा (suspensor cell) कहते हैं। आधार कोशा एक अनुप्रस्थ विभाजन (transverse division) तथा अन्तस्थ कोशा एक उदग्र विभाजन (vertical division) द्वारा विभाजित होकर (T’) के आकार का चार-कोशीय बालभूण (pro embryo) बनाती है।
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants img-24
निलम्बक कोशी कई अनुप्रस्थ विभाजनों द्वारा विभाजित होकर छः से दस कोशा लम्बी सूत्राकार रचना निलम्बेक (suspensor) बनाती है। इस निलम्बक की ऊपरी कोशा कुछ फूलकर एक पुटिका कोशा (vesicular cell or haustorial cell) बनाती है। निलम्बक भ्रूण कोशाओं को नीचे की ओर धकेलती है। इनकी ऊपरी कोशा चूषांग (haustoria) का कार्य करती है। निलम्बक की सबसे निचली कोशी अधःस्फीतिका (hypophysis) कहलाती है। यही कोशा आगे विभाजन करके मूलांकुर (radicle) के शीर्ष को जन्म देती है। निलम्बक का कार्य बीजाण्डकाय से भोजन खींचकर वृद्धि कर रहे भ्रूण को प्रदान करना है।

इसी बीच अन्तस्थ कोशा की दोनों कोशाएँ एक अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा विभाजित होकर चार भ्रूणीय कोशाएँ (embryonal cells) बनाती हैं। ये चारों कोशाएँ पुनः विभाजन द्वारा एक आठ कोशाओं वाली। अष्टम अवस्था (octant stage) बनाती हैं। इसमें अधः स्फीतिका के नीचे की चार कोशाएँ अधराधार कोशाएँ (hypobasal cells) तथा इसके नीचे चार कोशाएँ अध्याधार कोशाएँ (epibasal cells) कहलाती हैं। अधराधार कोशाओं से मूलांकुर (radicle) व अधोबीजपत्र (hypocotyl) तथा अध्याधार कोशाओं से प्रांकुर (plumule) व बीजपत्र (cotyledons) बनते हैं। अष्टमावस्था की आठों कोशाएँ परिनत विभाजन (periclinal division) द्वारा विभाजित होकर बाह्यत्वचीय कोशाओं (epidermal cells) का एक स्तर बनाती हैं जो बाद में अपनत विभाजन (anticlinal division) द्वारा विभाजित होकर त्वचाजन (dermatogen) स्तर बनाता है।
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अन्दर की कोशाएँ अनेक उदग्र (vertical) व अनुप्रस्थ (transverse) विभाजनों द्वारा विभाजित होकर केन्द्रीय रम्भजन (plerome) तथा मध्य में वल्कुटजन (periblem) बनाती हैं। वल्कुटजन कोशाएँ वल्कुट तथा रम्भजन कोशाएँ रम्भ (stele) बनाती हैं। पुनः वृद्धि एवं विभाजनों द्वारा भ्रूण कुछ हृदयाकार (cordate) हो जाता है। बाद में बीजपत्र बड़े होकर मुड़ जाते हैं। इस प्रकार परिपक्व द्विबीजपत्री भ्रूण में दो बीजपत्र (cotyledons) होते हैं जो एक अक्ष (axis) से जुड़े रहते हैं। अक्ष का एक भाग जो बीजपत्रों के बीच होता है प्रांकुर (plumule) कहलाती है और दूसरा भाग मूलांकुर (radicle) कहलाता है। उपरोक्त प्रकार के द्विबीजपत्री भ्रूण का परिवर्धन सामान्य प्रकार का है। इसका उदाहरण क्रूसीफेरी कुल के सदस्य कैप्सेला बुर्सा पेस्टोरिस (Capsella bursd pastoris) है।

प्रश्न 6.
भ्रूणपोष क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2014, 16)
या
आवृतबीजी पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के भ्रूणपोषों का वर्णन कीजिए। (2011)
या
‘भ्रूणपोष’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2010, 12)
उत्तर
भ्रूणपोष तथा उसके प्रकार
सभी पुष्पीय पौधों में भ्रूण (embryo) के पोषण के लिए एक विशेष ऊतक होता है, इसे भ्रूणपोष कहते हैं। जिम्नोस्पर्स में यह ऊतक युग्मकोभिदी या अगुणित (haploid = n) होता है किन्तु आवृतबीजी पौधों (angiospermic plants) में यह त्रिसंयोजन (triple fusion) के फलस्वरूप बनता है और अधिकतर पौधों में त्रिगुणित (triploid = 3n) होता है। इसके बीज में बने रहने तथा बीजांकुरण में सहायता करने पर बीज भ्रूणपोषी (endospermic) कहलाता है। अनेक द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में इसका भोजन बीज के बनते समय बीजपत्रों द्वारा सोख लिया जाता है और यह बीज अभ्रूणपोषी (non- endospermic) कहलाता है।
भ्रूणकोष (embryo sac) में होने वाले त्रिसंयोजन (triple fusion) के फलस्वरूप त्रिगुणित केन्द्रक (3n = triploid nucleus) बनता है। इसी के परिवर्द्धन से एक पोषक संरचना, भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण होता है। यह बढ़ते हुए भ्रूण (embryo) को पोषण देता है। कभी-कभी यह ऊतक; जैसे – अंकुरण के समय भ्रूण को पोषण प्रदान करने का कार्य करता है। आवृतबीजी पौधों में परिवर्धन (development) के आधार पर भ्रूणपोष अग्रलिखित तीन प्रकार के होते हैं –

1. केन्द्रकीय भ्रूणपोष (Nuclear Endosperm)-इस प्रकार के भ्रूणपोष विकास में भ्रूणपोष केन्द्रक (endosperm nucleus) बार-बार विभाजन द्वारा स्वतन्त्र रूप से बहुत-से केन्द्रक
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बनाता है (भित्ति-निर्माण नहीं होता) जो बाद में परिधि पर विन्यसित हो जाते हैं। भ्रूणपोष के मध्य में एक केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) बन जाती है। बाद में यह रिक्तिका समाप्त हो जाती है और बहुत-से केन्द्रक व कोशीद्रव्य इसमें भर जाते हैं। बाद में इनमें अनेक कोशाएँ बन जाती हैं। इस प्रकार का भ्रूणपोष
प्रायः पोलीपेटेली (polypetalae) वर्ग में पाया जाता है, जैसे-कैप्सेला | (Capsella)।

2. कोशिकीय भ्रूणपोष (Cellular Endosperm) – इस प्रकार के भ्रूणपोष निर्माण में भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रत्येक विभाजन के पश्चात् कोशा-भित्ति का निर्माण होता है। इस प्रकार का भ्रूणपोष प्रायः गैमोपेटेली वर्ग में पाया जाता है, haustorium जैसे – विल्लारसिया (Villarsia)।
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3. हिलोबियल भ्रूणपोष (Helobial Endosperm) – इस प्रकार का भ्रूणपोष लगभग 19% आवृतबीजी पौधों में पाया जाता है, विशेष रूप से यह एकबीजपत्री पौधों में पाया जाता है। यह ऊपर वर्णन किये गये दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों के बीच की अवस्था है। इसमें भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रथम विभाजन के बाद कोशा-भित्ति का निर्माण होता है। बाद में इन दोनों भागों में केन्द्रक विभाजन होता रहता है और भित्ति-निर्माण नहीं होता, जैसे-ऐरीमुरस (Eremurus)।
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प्रश्न 7.
पीढ़ियों का एकान्तरण क्या है? एक आवृतबीजी पौधे के जीवन इतिहास का केवल | रेखांकित चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
आवृतबीज़ी पौधों के जीवन-इतिहास में एक अत्यन्त विकसित एवं द्विगुणित (diploid; 2n) अवस्था बीजाणु-उभिद् (sporophyte) तथा अल्प विकसित, अगुणित (haploid; n) अवस्था युग्मकोभिद् (gametophyte) होती है।
ये दोनों अवस्थाएँ जीवन-चक्र में एक-दूसरे के बाद आती रहती हैं, जिसे पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generation) कहते हैं। किन्तु बीजाणुभिद् अवस्था स्वतन्त्र जबकि युग्मकोद्भिद् अवस्था बीजाणुभि पर निर्भर (dependent) होती है।

बीजाणुद्भिद् अवस्था प्रायः जड़, तना एवं पत्तियों में विभक्त होती है। युग्मकोद्भिद् अवस्था में परागकण नर युग्मकोभिद् की प्रथम कोशा है जिसके विकास से नर युग्मकों (male gametes) का निर्माण होता है। इसी प्रकार से बीजाण्ड के अन्दर दीर्घबीजाणु (megaspore) मादा युग्मकोभिद् की प्रथम कोशा है, जिससे भ्रूणकोष को निर्माण होता है। भ्रूणकोष में अण्ड कोशा (egg) बनती है। नरे। युग्मक (male gamete) एवं अण्ड (egg) कोशा के संयुग्मन (fusion) से युग्मनज (zygote; 2n) का निर्माण होता है। चूंकि युग्मनज बीजाण्ड के अन्दर बनता है, अत: बीजाण्ड जिसे निषेचन के पश्चात् बीज कहते हैं; के अंकुरण से बीजाणुभिद् पौधे का पुनः विकास होता है।
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms

UP Board Solutions for Class 12 Biology  Chapter 1 Reproduction in Organisms (जीवों में जनन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology  Chapter 1 Reproduction in Organisms (जीवों में जनन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 1
Chapter Name Reproduction in Organisms
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms (जीवों में जनन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है?
उत्तर
जनन जीवों का एक अति महत्त्वपूर्ण लक्षण है। यह एक अति आवश्यक जैविक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा न सिर्फ जीवों की उत्तरजीविता में मदद मिलती है बल्कि इससे जीव-जाति की निरन्तरता भी बनी रहती है। जनन जीवों के अमरत्व में भी सहायक होता है। प्राकृतिक मृत्यु, वयता वे जीर्णता के कारण होने वाले जीव ह्रास की आपूर्ति, जनन द्वारा ही होती है। जनने से जीवों की संख्या बढ़ती है। जनन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लाभदायक विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानान्तरित होती हैं। अत: जनन जैव विकास में भी सहायक होता है। इन समस्त कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जनन जीवों के लिए अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर
प्राय: लैंगिक जनन (sexual reproduction) को जनन की श्रेष्ठ विधि माना गया है। लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों की अदला-बदली होती है जिससे युग्मकों (gametes) में नये लक्षण विकसित होते हैं तथा नये जीव का विकास होता है जो अपने जनकों से भिन्न होता है। अतः लैंगिक जनन जैव विकास में सहायक होता है। लैगिक जनन द्वारा जीवों के जीवित रहने के अवसर अधिक होते हैं, क्योंकि आनुवंशिक विभिन्नताओं के कारण जीव अधिक क्षमतावान होता है। लैंगिक जनन से जीवों की संख्या भी बढ़ती है। अत: लैंगिक जनन ही, जनन की अच्छी विधि है।

प्रश्न 3.
अलैगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई सन्तति को क्लोन क्यों कहा गया है ?
उत्तर
आकारिकीय व आनुवंशिक रूप से एक समान जीव क्लोन (clone) कहलाते हैं। अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकीय रूप से अपने जनक के एकदम समान होती है, अत: इसे क्लोन कहते हैं।

प्रश्न 4.
लैगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं। क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है ?
उत्तर
लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। जो जनक से सन्तति में स्थानान्तरित होती हैं। युग्मकों की उत्पत्ति व निषेचन के कारण नये तथा बेहतर गुणों युक्त सन्तति का जन्म होता है। अत: लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप उत्पन्न सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं।

यह कथन सदैव सही नहीं होता है। जनकों के रोगग्रस्त होने पर वह रोग आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित हो जाता है।

प्रश्न 5.
अलैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति लैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति से किस प्रकार से भिन्न है?
उत्तर
अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक व संरचनात्मक रूप से जनक के समान होती है अर्थात् अपने जनक का क्लोन (clone) होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक रूप से जनक से भिन्न होती है।

प्रश्न 6.
अलैगिक तथा लैगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित करो। कायिक जनन को प्रारूपिक अलैगिक जनन क्यों माना गया है ?
उत्तर
अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद निम्नलिखित हैं
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कायिक जनन (vegetative reproduction), अलैंगिक जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के कायिक भाग से नये पौधे का निर्माण होता है। अतः इसमें एक ही जनक भाग लेता है तथा इसके द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकी में अपने जनक के समान होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कायिक जनन वास्तव में प्रारूपिक अलैंगिक जनन है।

प्रश्न 7.
कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दो।
उत्तर
कायिक प्रवर्धन जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के शरीर का कोई भी कायिक भाग प्रवर्धक का कार्य करता है तथा नये पौधे में विकसित हो जाता है। मातृ पौधे के कायिक अंग; जैसे-जड़, तना, पत्ती, कलिका आदि से नये पौधे का पुनर्जनन, कायिक प्रवर्धन कहलाता है। कायिक प्रवर्धन के दो उदाहरण निम्न हैं –

  1. अजूबा (Bryophyllum) के पौधे में पत्तियों के किनारों से पादपकाय उत्पन्न होते हैं जो मातृ पौधे से अलग होकर नये पौधे को जन्म देते हैं।
  2. आलू के कन्द में उपस्थित पर्वसन्धियाँ (nodes) कायिक प्रवर्धन में सहायक होती हैं। पर्वसन्धियों में कलिकाएँ स्थित होती हैं तथा प्रत्येक कलिको नये पौधे को जन्म देती है।

प्रश्न 8.
व्याख्या कीजिए –
(क) किशोर चरण
(ख) प्रजनक चरण
(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था।
उत्तर
(क) किशोर चरण (Juvenile phase) – सभी जीवधारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित अवस्था से होकर गुजरते हैं, इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते हैं। इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण यो अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था (vegetative phase) कहते हैं। इसकी अवधि विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न होती है।

(ख) प्रजनक चरण (Reproductive phase) – किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक चरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारम्भ होती है। पौधों में इस अवस्था को स्पष्ट पहचाना जा सकता है। क्योंकि पौधों में पुष्पन (flowering) प्रारम्भ हो जाता है। प्राणियों में भी अनेक शारीरिकी एवं आकारिकी परिवर्तन आ जाते हैं। इस चरण में जीव संतति उत्पन्न करने
योग्य हो जाता है। यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है।

(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था (Senescent phase) – यह जीवन चक्र की अन्तिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है। प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है। इस चरण में उपापचय क्रियाएँ मन्द होने लगती हैं, ऊतकों का क्षय होने लगता है तथा शरीर के अंग धीरे-धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और अन्ततः जीव की मृत्यु हो जाती है। इसे वृद्धावस्था भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैगिक प्रजनन को पाया है, क्यों ?
उत्तर
लैंगिक प्रजनन जटिल तथा धीमी गति से होने के बावजूद भी अनेक रूप से उत्तम है। इस प्रकार के जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से नये लक्षण विकसित होते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होते रहते हैं। गुणसूत्रों के आदान-प्रदान से विभिन्नताएँ भी उत्पन्न होती हैं, जो जैव विकास में सहायक होती हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण बड़े जीवों में लैंगिक जनन पाया जाता है।

प्रश्न 10.
व्याख्या करके बताएँ कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मकजनन सदैव अन्तर-सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होते हैं।
उत्तर
लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) तथा युग्मकजनन (gametogenesis) प्रक्रियाएँ होती हैं। सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित (diploid) होते हैं। युग्मक निर्माण प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं। शुक्राणुओं के निर्माण को शुक्रजनन तथा अण्डाणुओं के निर्माण को अण्डजनन कहते हैं। इनका निर्माण क्रमशः नर तथा मादा जनदों (gonads) में होता है। युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, अर्थात् युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं। युग्मकजनन प्रक्रिया अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा होती है। अतः युग्मकजनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियाएँ अन्तरसम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होती हैं। निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) बनाता है। द्विगुणित युग्माणु से भ्रूणीय परिवर्धन द्वारा नए जीव का विकास होता है।

प्रश्न 11.
प्रत्येक पुष्पीय पादप के भाग को पहचानिए तथा लिखिए कि वह अगुणित (n) है या द्विगुणित (2n)

  1. अण्डाशय
  2. परागकोश
  3. अण्डा या डिम्ब
  4. पराग
  5. नर युग्मक
  6. युग्मनज

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms img-2
उत्तर
पुष्पीय भाग –

  1. अण्डाशय (Ovary) – द्विगुणित (2n)
  2. परागकोश (Anther) – द्विगुणित (2n)
  3. अण्डा या डिम्ब (Ova) – अगुणित (n)
  4. परागकण (Pollen grain) – अगुणित (n)
  5. नर युग्मक (Male gamete) – अगणित (n)
  6. युग्मनज (Zygote) – द्विगुणित (2n)

[युग्मनज (zygote) शुक्राणु तथा अण्ड के मिलने से बनी द्विगुणित संरचना (2n) होती है।

प्रश्न 12.
बाह्य निषेचन की व्याख्या कीजिए। इसके नुकसान बताइए।
उत्तर
बाह्य निषेचन (External Fertilization) – शुक्राणु (नरे युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) के संयुग्मन या संलयन को निषेचन कहते हैं। इसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) का निर्माण होता है। अधिकांश शैवालों, मछलियों में और उभयचर प्राणियों में शुक्राणु (नर युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) का संलयन शरीर से बाहर जल में होता है, इसे बाह्य निषेचन (external fertilization) कहते हैं।

बाह्य निषेचन से हानियाँ (Disadvantages of External Fertilization) –

  1. जीवधारियों को अत्यधिक संख्या में युग्मकों का निर्माण करना होता है जिससे निषेचन के अवसर बढ़ जाएँ अर्थात् इनमें युग्मक संलयन के अवसर कम होते हैं।
  2. संतति अत्यधिक संख्या में उत्पन्न होती हैं।
  3. संतति शिकारियों द्वारा शिकार होने की स्थिति से गुजरती है, इसके फलस्वरूप इनकी उत्तरजीविता जोखिमपूर्ण होती है अर्थात् सन्तानें कम संख्या में जीवित रह पाती हैं।

प्रश्न 13.
जूस्पोर (अलैगिक चल बीजाणु) तथा युग्मनज के बीच विभेद करें।
उत्तर
जूस्पोर (अलैंगिक चल बीजाणु) – यह नग्न, चल, कशाभिका युक्त संरचना है जो अलैंगिक जनन की इकाई है। इनका निर्माण जनक कोशिका के जीवद्रव्य से सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इनके अग्र भाग पर स्थित कशाभिका जल में तैरने हेतु सहायक होती हैं। ये चलबीजाणु धानी में बनते हैं। उदाहरण – यूलोथ्रिक्स, क्लेमाइडोमोनास आदि।

युग्मनज (Zygote) – लैंगिक जनन के दौरान नर तथा मादा युग्मकों (gametes) के निषेचन से बनी रचना, युग्मनज कहलाती है। यह द्विगुणित (diploid = 2n) होता है तथा विकसित होकर भ्रूण अथवा लार्वा में परिवर्तित हो जाता है। लैंगिक जनन करने वाले जीवों का विकास युग्मनज से होता है। बाह्य निषेचन करने वाले जीवों में युग्मनज का निर्माण बाह्य माध्यम (जल) में होता है; जैसे – मेढ़क जबकि आन्तरिक निषेचन करने वाले जीवों में यह मादा के शरीर में विकसित होता है; जैसे – मनुष्य आदि।

प्रश्न 14.
युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 15.
एक पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तन (Post fertilization development in a flower)-पुष्पीय पौधों में दोहरा निषेचन तथा त्रिक संलयन (double fertilization and triple fusion) होता है। इसके फलस्वरूप भ्रूणकोष (embryo sac) में द्विगुणित युग्मनज (zygote) तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (primary endospermic nucleus) बनता है। इनसे क्रमशः भ्रूण (embryo) तथा भूणपोष (endosperm) बनता है। भ्रूणपोष विकासशील भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। इसके साथ-साथ बीजाण्ड में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं जिसके फलस्वरूप बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फलावरण (pericap) का निर्माण होता है।

  1. बीजाण्डवृन्त – बीजवृन्त बनाता है।
  2. अध्यावरण – बीजावरण बनाता है।
  3. अण्डद्वार – बीजद्वार बनाता है।
  4. बीजाण्डकाय (nucellus) – प्रायः नष्ट हो जाता है, कभी-कभी भोजन संचित होने के कारण पेरिस्पर्म (perisperm) बनाता है।
  5. भ्रूणकोष (embryosac)
    • अण्ड कोशिका (egg cell) – भ्रूण (embryo) बनाती है।
    • सहायक कोशिकाएँ (synergids) – नष्ट हो जाती हैं।
    • प्रतिमुख कोशिकाएँ (antipodal cells) – नष्ट हो जाती हैं।
    • ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) – भ्रूणपोष बनाता है।
  6. अण्डाशय की भित्ति – फलभित्ति बनाती है। बीज में भ्रूण सुप्तावस्था में रहता है। बीज चारों ओर से बाह्यकवच तथा अन्त:कवच (testa & tegmen) से बने अध्यावरण से घिरा होता है। भ्रूण बीजपत्रों के मध्य स्थित होता है। फलभित्ति की संरचना के आधार पर फल सरस अथवा शुष्क होते हैं।

प्रश्न 16.
एक द्विलिंगी पुष्प क्या है? अपने आस-पास से पाँच द्विलिंगी पुष्पों को एकत्र कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य (स्थानीय) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए।
उत्तर
द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flower) – जब पुष्प में पुमंग (androecium) तथा जायांग (gynoecium) दोनों होते हैं तो पुष्प द्विलिंगी (bisexual) कहलाता है। सामान्यतया समीपवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले द्विलिंगी पुष्प जैसे –

  1. सरसों – बेसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris)
  2. मूली – रेफेनस सैटाइवस (Raphanus sativus)
  3. मटर – पाइसम सटाइवम (Pisum sativum)
  4. सेम – डॉलीकोस लबलब (Dolichos tablab)
  5. अमलतास – केसिया फिस्टुला (Cassia fistula)
  6. गुड़हल – हिबिस्कस रोजा सिनेन्सिस (Hibiscus rosa sinensis)

प्रश्न 17.
किसी भी कुकुरबिट पादप के कुछ पुष्पों की जाँच कीजिए और पुंकेसरी व स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश कीजिए। क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं?
उत्तर
कुकुरबिट पादप पुष्प एकलिंगी होते हैं। नर पुष्प में जायांग अनुपस्थित होता है। पुष्प में पाँच पुंकेसर होते हैं। ये प्राय: 2 + 2 + 1 के रूप में संयुक्त रहते हैं। इनके परागकोश व्यावृत (twisted) होते हैं।

मादा पुष्प में पुमंग (androecium) अनुपस्थित होता है। जायांग त्रिअण्डपी, युक्ताण्डपी, एककोष्ठीय तथा अधोवर्ती अण्डाशय से बना होता है। इसमें भित्तिलग्न बीजाण्डन्यास होता है। अण्डाशय से विकसित सरल सरस फल पेपो (pepo) कहलाता है।
अन्य एकलिंगी पौधे –

  1. मक्का – जिआ मेज (Zeq muys)
  2. खजूर – फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Phoenix sylvestris)
  3. पपीता – कैरिका पपाया (Carica papaya)
  4. नारियल – कोकोस न्यूसीफेरा (Cocos nucifera)

प्रश्न 18.
अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन (सरवाइवल) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर
अण्डप्रजक (oviparous) प्राणियों में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का विकास मादा प्राणी के शरीर से बाहर होता है। मादा कैल्सियमयुक्त कवच से ढके अण्डों को सुरक्षित स्थान पर निक्षेपित करती है। अण्डों में भ्रूणीय विकास के फलस्वरूप शिशु का विकास होता है। शिशु निश्चित अवधि के पश्चात अण्डे के स्फुटन के फलस्वरूप मुक्त हो जाता है। अण्डप्रजक में बाह्य परिवर्द्धन (external development) होता है। यह पर्यावरणीय प्रतिकूल परिस्थितियों तथा शिकारी प्राणियों से प्रभावित होता है। इसके फलस्वरूप इन प्राणियों की उत्तरजीविता अधिक जोखिमयुक्त होती है। अण्डप्रजक प्राणियों को विकास के लिए कम समय मिलता है। अत: इन जीवों में आन्तरिक परिपक्वता सजीवप्रजक की तुलना में कम होती है। जैसे – मत्स्य, उभयचर, सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के प्राणी अण्डप्रजक होते हैं।

सजीवप्रजक (जरायुज – viviparous) में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का परिवर्द्धन मादा प्राणी के शरीर में होता है। इसे आन्तरिक परिवर्द्धन (internal development) कहते हैं। शिशु का विकास पूरा होने के पश्चात् प्रसव द्वारा इनका जन्म होता है, शिशु का विकास आन्तरिक होने के कारण और परिवर्द्धन में अधिक समय लगने के कारण इनकी उत्तरजीविता अपेक्षाकृत कम जोखिमपूर्ण होती है। आन्तरिक परिवर्द्धन होने के कारण ये बाह्य वातावरण तथा बाह्य परभक्षी जीवों से सुरक्षित रहते हैं। यही कारण है कि सजीवप्रजक की उत्तरजीविता अण्डप्रजक की अपेक्षा अधिक होती है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पौधों के निम्नलिखित अंगों में कौन-सा कायिक प्रजनन के लिए सर्वाधिक अनुकूल है?
(क) जड़
(ख) तना।
(ग) पत्ती
(घ) पत्र-प्रकलिका
उत्तर
(ख) तना

प्रश्न 2.
शकरकन्द एवं डहेलिया में कायिक जनन होता है
(क) पत्तियों द्वारा
(ख) पुष्पों द्वारा
(ग) जड़ों द्वारा
(घ) तनों द्वारा
उत्तर
(ख) पुष्पों द्वारा

प्रश्न 3.
निम्न में कृत्रिम कायिक प्रवर्धन सम्भव है
(क) आलू में
(ख) अजूबा में
(ग) आम में
(घ) प्याज में
उत्तर
(ग) आम में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनन किसे कहते हैं?
उत्तर
वह क्रिया जिसमें जीव अपने समान जीव को उत्पन्न करता है, जनन कहलाती है।

प्रश्न 2.
जनन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर

  1. लैंगिक जनन तथा
  2. अलैंगिक जनन।

प्रश्न 3.
मुकुलन पर टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर
मुकुलन (Budding) – इस प्रकार का विभाजन यीस्ट (Yeast) एवं कुछ जीवाणुओं में पाया जाता है। इस प्रक्रिया में कोशिका में बाह्य वृद्धि होकर एक या एक-से-अधिक छोटी रचनाएँ बन जाती हैं तथा केन्द्रक सूत्री-विभाजन (mitosis) द्वारा (Lindgreen, 1949 के अनुसार) विभाजित होकर दो भागों में बँट जाता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार केन्द्रक का यह विभाजन असूत्री विभाजन या अमाइटोसिस (amitosis) प्रकार का होता है। प्रत्येक मुकुल (bud) मातृ कोशिका से अलग होकर यीस्ट की नई कोशिका में परिवर्तित हो जाती है। इस क्रिया को मुकुलन (budding) कहते हैं। जब ये उर्द्ध रचनाएँ (outgrowths) अपनी मातृ-कोशिका से अलग नहीं होती तो श्रृंखला बनाती हैं, जिसे स्युडोमाइसीलियम कहते हैं। परन्तु अन्त में ये अलग हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की दो विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कलम लगाना
  2. दाब कलम

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में जनन की कितनी विधियाँ पायी जाती हैं? प्रत्येक का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
पौधों में जनन की विधियाँ
पौधों में मुख्य रूप से जनन की निम्नलिखित दो विधियाँ पायी जाती हैं –
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) – यह जनन का एक सामान्य प्रकार है जिसमें केवल एक ही जीव या जनक (Parents) भाग लेता है। इस विधि में वयस्क बनने के बाद जीव अपनी हूबहू प्रतिलिपियों (identical copies) के रूप में सन्ततियाँ उत्पन्न करता है। अतः जनक तथा सन्ततियों के बीच आनुवंशिक पदार्थ एवं लक्षणों में कोई अन्तर नहीं होता है। इसीलिए अलैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न सन्ततियों को क्लोन (clone) कहते हैं। ऐसा जनन अपेक्षाकृत तीव्र दर से होता है। इसके लिए शरीर में कोई विशिष्ट ऊतक या अंग नहीं होते।

2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) – लैंगिक जनन की प्रक्रिया जटिल होती है। इसके लिए शरीर में विशेष प्रकार के जननांग (reproductive organs) होते हैं। शरीर की सामान्य दैहिक कोशिकाओं (somatic cells) से भिन्न प्रकार की दो अगुणित (haploid = n) कोशिकाओं का संयुग्मन लैंगिक जनन की आधारभूत प्रक्रिया होती है। इन अगुणित कोशिकाओं को लैंगिक कोशिकाएँ (sex cells) या युग्मक (gamets) कहते हैं। शरीर की दैहिक कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। लैंगिक कोशिकाएँ प्रमुख जननांगों अर्थात् जनदों (gonads) की जनन कोशिकाओं (germ cells) में विशेष प्रकार के अर्धसूत्री या मीयोटिक विभाजन (reductional or meiotic division) से बनती हैं। इनके बनने की इस प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं।

संयुग्मन में भाग लेने वाली दो लैंगिक कोशिकाएँ भिन्न प्रकार की होती हैं – एक नर युग्मक कोशिका तथा दूसरी मादा युग्मक कोशिका इनके संयुग्मन से बनी द्विगुणित कोशिका को युग्मनज अर्थात् जाइगोट (zygote) कहते हैं। इसी से नई सन्तान का प्रारम्भ होता है। जनन कोशिकाओं के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बनी युग्मक कोशिकाओं में जनन कोशिकाओं के जोड़ीदार अर्थात् समजात गुणसूत्रों (homologous chromosomes) का बँटवारा अनियमित एवं संयोगिक (random) होता है। फिर युग्मनजों (zygotes) के बनने में नर व मादा युग्मक का संयुग्मन भी संयोगिक होता है। इसके कारण युग्मनजों के जीन प्रारूप (genotypes) जनन कोशिकाओं के जीन प्रारूपों से कुछ भिन्न होते हैं। इसी कारण लैंगिक जनन के फलस्वरूप बनी सन्तति माता-पिता से थोड़ी भिन्न दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
टिप्पणी लिखिए-ब्रायोफाइट्स में वर्षी प्रजनन। (2015)
उत्तर
ब्रायोफाइट्स के युग्मकोभिद् में अनेक प्रकार का वर्षी प्रजनन होता है। उदाहरणार्थ-विखण्डन, जेमा, कन्दे, पुंतन्तु, पत्र-प्रकलिका द्वारा। विखण्डन विधि में बहुकोशिकीय जनक पौधे का शरीर दो या दो से अधिक टुकड़ों में विखण्डित हो जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा पुनरुद्भवन द्वारा एक नई वयस्क सन्तति में विकसित हो जाता है। कभी-कभी पौधे की पत्ती व तने के अग्र भाग पर बहुकोशिकीय एवं हरे रंग की रचनाएँ निकलती हैं, जिन्हें जेम्यूल कहते हैं। ये अलग होकर अंकुरण द्वारा नये पौधे को जन्म देती हैं। पौधों के कन्द तथा पुंतन्तु भी नये पौधों को जन्म देते हैं। ब्रायोफाइट्स में पत्र-प्रकलिकाओं द्वारा भी वर्दी प्रजनन होता है। वे कलिकाएँ जिनमें खाद्य-पदार्थ संचित रहता है, पत्र-प्रकलिकाएँ कहलाती हैं। ये कलिकाएँ मातृ पौधे से टूटकर भूमि पर गिर जाती हैं। तथा अनुकूल मौसम में इनमें अपस्थानिक जड़े निकल आती हैं जो भूमि से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करती हैं तथा प्रकलिकाएँ वृद्धि करके नवीन पौधे बनाती हैं।

प्रश्न 3.
सूक्ष्म प्रवर्धन (माइक्रो प्रोपेगेशन) पर एक टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
ऊतक संवर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
यह कायिक प्रवर्धन की सबसे आधुनिक विधि है। इस विधि में मातृ पौधे के थोड़े से ऊतक से हजारों की संख्या में पादपों (plants) को प्राप्त किया जा सकता है। यह विधि ऊतक तथा कोशिका संवर्धन तकनीकी (tissue and cell culture technique) पर आधारित है।

इस विधि में जिस पौधे से प्रवर्धन करना होता है, उसके किसी भाग से ऊतक (tissue) का छोटा भाग अलग कर लिया जाता है। अब इस ऊतक की अजर्म परिस्थितियों (aseptic conditions) में किसी उचित संवर्धन माध्यम (culture medium) में वृद्धि कराते हैं। यह ऊतक पोषक पदार्थों का अवशोषण करके वृद्धि करता है जिससे कोशिकाओं के गुच्छे बन जाते हैं जिन्हें कैलस (callus) कहा जाता है। इस कैलस को लम्बे समय तक गुणन के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर कैलस का एक छोटा टुकड़ा दूसरे ऐसे माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ यह वृद्धि करके नन्हे पौधे के रूप में विकसित होता है। इस पादप को निकालकर मृदा में लगा दिया जाता है। इस विधि में एक बार ऊतक संवर्धन करके लम्बे समय तक पौधे प्राप्त किए जाते हैं और ये अधिक संख्या में प्राप्त होते हैं। यह विधि आर्किड्स (Orchids), कार्नेशन्स (Carnations), गुलदाऊदी (Crysanthemum) एवं सतावर (Asparagus) में अधिक सफल है। इस विधि से मशरूमों (Mushrooms) का भी संवर्धन किया जाता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कायिक जनन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन का विस्तृत वर्णन कीजिए। (2014, 15, 16, 17)
या
कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? (2014, 16)
या
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
पौधों में कायिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
पौधों में कायिक जनन
कायिक जनन प्रजनन की अथवा नए पौधे के पुनर्निर्माण (regeneration) की क्रिया है। इस क्रिया में नया पौधा मातृ पौधे के किसी भी कायिक भाग से बनता है। इसके सभी लक्षण व गुण मातृ पौधे के समान ही होते हैं। कायिक जनन को कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) के नाम से भी जाना जाता है।

मातृ पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपों का बनना कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है।
यह क्रिया निम्न पादपों (lower plants) में सामान्य रूप से देखने को मिलती है जबकि उच्च श्रेणी के पौधों (higher plants) में यह केवल निम्न दो प्रकार से होती है –

  1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural vegetative propagation)
  2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial vegetative propagation)

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
यह क्रिया प्रकृति में मिलती है। इस क्रिया के अन्तर्गत पादप का कोई अंग अथवा रूपान्तरित भाग मातृ पौधे से अलग होकर नया पौधा बनाता है। यह क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। पौधे का कायिक भाग; जैसे-जड़, तना व पत्ती इस क्रिया में भाग लेते हैं। ये भाग इस प्रकार से रूपान्तरित होते हैं कि वे अंकुरित होकर नया पौधा बना सकें। विभिन्न प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन की विधियाँ अग्रवत् हैं

(A) भूमिगत तना
तने का मुख्य भाग अथवा कुछ भाग भूमिगत वृद्धि करता है तथा एक प्रकार से भोजन संग्रह करने वाले अंग के रूप में रूपान्तरित हो जाता है। परन्तु इस पर कक्षस्थ कलिकाएँ मिलती हैं जिनसे नया पौधा विकसित होता है अथवा शाखाएँ निकलती हैं जो मृदा से बाहर आकर नया पौधा बना लेती हैं। उदाहरण के लिए –

(i) कन्द (Tuber) – वृद्धि असमान (diffuse) होती है; जैसे – आलू (potato)। इस पर आँख (eye) मिलती है, जिसमें कक्षस्थ कलिका (axillary bud) शल्क पत्रों से ढकी रहती है। यह कक्षस्थ कलिका अनुकूल समय में अंकुरित होकर नया पौधा बना लेती है। निश्चित पर्व सन्धियाँ नहीं मिलती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms img-4

(ii) प्रकन्द (Rhizome) – यह भूमिगत तना मृदा के भीतर समानान्तर अथवा क्षैतिज (horizontal) वृद्धि करता है। इस पर पर्व (internode) व पर्वसन्धियाँ (nodes) मिलती हैं। पर्व संघनित (condensed) होते हैं। पर्वसन्धियाँ शल्कपत्रों से ढकी रहती हैं जिनमें कक्षस्थ कलिका मिलती है। इन कक्षस्थ कलिकाओं से नए पौधे निकलते हैं; जैसे—अदरक (ginger), हल्दी (Curcuma) आदि।

(iii) घनकन्द (Corm) – यह भूमिगत तना मृदा में ऊर्ध्व वृद्धि करता है। इसमें पर्वसन्धियों (node) पर शल्कपत्रों से कलिकाएँ ढकी रहती हैं जिनसे नया पोधा बनता है; जैसे – अरबी (Colocasia), केसर (Crocus), जिमीकन्द (Amorphophalus) आदि।

(iv) शल्ककन्द (Bulb) – यह प्ररोह का वह रूपान्तरण है जहाँ तना छोटा होता है तथा इसे समानीत तने के चारों ओर रसीले गूदेदार शल्क पत्र मिलते हैं। शल्क पत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कलिकाएँ होती हैं जो नये पौधे को जन्म देती हैं; जैसे – प्याज (Allium cepa), ट्यूलिप (Tulip), रजनीगंधा (Narcissus) आदि।

(B) अर्धवायवीय तना
यह तना भूमि के समानान्तर क्षैतिज वृद्धि करता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े तथा प्ररोह (शाखा) निकलते हैं। कभी-कभी पर्वसन्धि का कुछ भाग मृदा में अथवा जल में मिलता है। उदाहरण के लिए –

(i) ऊपरी भूस्तारी (Runner) – यह तना विसर्गी होता है तथा मृदा के बाहर की ओर क्षैतिज रूप से मिलता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े फूटती हैं तथा प्ररोह (शाखा) निकलता है जो विपरीत दिशा में वायु में वृद्धि करता है। पर्वसन्धि से निकलती प्रत्येक शाखा एक नया पौधा बना लेती है; जैसे—दूब घास (Cyanodon), खट्टी बूटी (Oxalis), सेन्टेला (Centella) आदि।

(ii) भूस्तारी (Stolon) – इनमें पर्वसन्धियों से जड़े एवं वायवीय भाग निकलते हैं। भूस्तारी के टूटने पर प्रत्येक वायवीय शाखा स्वतन्त्र पौधा बन जाती है; उदाहरण–अरवी, केला आदि।
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(iii) भूस्तारिका (Offset) – जलोभिद होने के कारण इनकी पर्वसन्धियाँ जल निमग्न होती हैं। प्रत्येक पर्वसन्धि से पत्तियों का एक समूह (tuft) निकलता है, जिसमें नीचे जड़ों का गुच्छा होता है जो मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है; जैसे–समुद्र सोख (Water hyacinth), पिस्टिया (Pistia) आदि।

(iv) अन्त:भूस्तारी (Sucker) – मुख्य तना (पर्व) मृदा के भीतर क्षैतिज रूप (horizontal) में बढ़ता है। शाखाएँ प्रत्येक पर्वसन्धि से मृदा के बाहर निकल आती हैं; जैसे-पोदीना (mint)

(C) मूल
कुछ पौधों के मूल (जड़) कायिक प्रवर्धन करते हैं; जैसे – शकरकन्द (Ipomoea batatas), सतावर, डेहलिया (Dahelia), याम (Dioscored) आदि में अपस्थानिक कलिकाएँ (adventitious buds) निकलती हैं जो नया पौधा बना लेती हैं। कुछ काष्ठीय पौधों की जड़ों; जैसे-मुराया (Muraya), एल्बीजिया (Albuzzia), शीशम (Dalbergia) आदि से भी प्ररोह (shoot) निकलते हैं। जिनकी वृद्धि नए पौधे के रूप में होती है।
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(D) पत्ती
पत्तियों द्वारा कायिक प्रवर्धन सामान्यतः कम ही मिलता है। कुछ पौधों; जैसे–ब्रायोफिल्लम (Bryophyllum) तथा केलेन्चो (Kalanchoe) में पत्ती के किनारों (leaf margins) पर पत्र कलिकाएँ बनती हैं जिनसे छोटे-छोटे पौधे विकसित होते हैं। बिगोनिया (Begonia) अथवा एलिफेन्ट इअर प्लान्ट में पत्र कलिकाएँ पर्णवृन्त तथा शिराओं आदि पर व पूर्ण सतह पर निकलती हैं।
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(E) बुलबिल
ये प्रकलिकाएँ कायिक प्रवर्धन करने वाले जनन अंग हैं। ग्लोबा बल्बीफेरा (Globba bulbifera) में पुष्पक्रम के निचले भाग के कुछ पुष्प बुलबिल अथवा प्रकलिकाएँ बनाते हैं जो रूपान्तरित बहुकोशिकीय संरचनाएँ हैं। प्याज (Allium cepg), अमेरिकन एलोइ (Agave) आदि में भी प्रकलिकाएँ मिलती हैं जो बहुत-से पुष्पों के परिवर्तन से बनती हैं। प्रकलिकाएँ मातृ पौधे से अलग होकर नए पौधे के रूप में विकसित होती हैं।

डायोस्कोरिया बल्बीफेरा (Dioscored butbiferg) की जंगली प्रजाति तथा लिलियम बल्बीफेरम (Lilium bulbiferum) आदि में प्रकलिका (bulbil) पत्ती के अक्ष से निकलती है। खट्टी बूटी (Oxalis) में प्रकलिकाएँ कन्दिल मूल (tuberous root) के फूले हुए भाग से निकलती हैं। ये सभी प्रकलिकाएँ मातृ पादप से अलग होकर नए पादप में विकसित होती हैं।
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