UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 d
Chapter Name गुट-निरपेक्ष आन्दोलन
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
गुट-निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए।
या
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण बताइए। [2008, 10]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता

गुट-निरपेक्षता को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ‘तटस्थता’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय कानून और व्यवहार में तटस्थता का जो अर्थ लिया जाता है, गुट-निरपेक्षता उससे नितान्त भिन्न स्थिति है। तटस्थता और गुट-निरपेक्षता में भेद स्पष्ट करते हुए जॉर्ज लिस्का लिखते हैं –

“किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है और कौन गलत है किसी का पक्ष नहीं लेना तटस्थता है किन्तु गुट-निरपेक्षता का आशय सही और गलत में विभेद करते हुए सदैव सही का समर्थन करना है।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रणेता पं० नेहरू ने 1949 ई० में अमेरिकी जनता के सम्मुख कहा था –

जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।” गुट-निरपेक्षता को स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे कहा, “हमारी तटस्थता का अर्थ है निष्पक्षता, जिसके अनुसार हम उन शक्तियों और कार्यों का समर्थन करते हैं जिन्हें हम उचित समझते हैं और उनकी निन्दा करते हैं जिन्हें हम अनुचित समझते हैं, चाहे वे किसी भी विचारधारा की पोषक हों।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण

गुट-निरपेक्षता के अर्थ और प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए इस नीति के लक्षणों का अध्ययन किया जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं –

1. शक्ति गुटों से पृथक रहने और महाशक्तियों के साथ सैनिक समझौता न करने की नीति – गुट-निरपेक्षता का सबसे प्रमुख लक्षण है-शक्ति गुटों से पृथक् रहने की नीति। इसमें यह बात भी निहित है कि गुट-निरपेक्ष देश किसी भी महाशक्ति के साथ सैनिक समझौता नहीं करेगा। गुट-निरपेक्षता का मूल विचार है कि विश्व के देशों को परस्पर विरोधी शिविरों में विभक्त करने के प्रयासों या महाशक्तियों के प्रभाव क्षेत्रों के विस्तार के प्रयासों ने विश्व में तनाव की स्थिति को जन्म दिया है और गुट-निरपेक्षता का उद्देश्य इन शक्ति गुटों से अलग रहते हुए तनाव की शक्तियों को निर्बल करना है।

2. स्वतन्त्र विदेश नीति – गुट-निरपेक्षता का आशय यह है कि सम्बद्ध देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट के साथ बँधा हुआ नहीं है, वरन् उसका अपना स्वतन्त्र मार्ग है। जो सत्य, न्याय, औचित्य और शान्ति पर आधारित है। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी का पिछलग्गू नहीं होता वरन् राष्ट्रीय हित को दृष्टि में रखते हुए सत्य, न्याय, औचित्य और विश्वशान्ति की प्रवृत्तियों का समर्थन करता है। स्वतन्त्र विदेश नीति का पालन गुट-निरपेक्षता की नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इस नीति के कारण ही प्रत्येक गुट-निरपेक्ष देश प्रत्येक वैश्विक मामले पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करता है।

3. शान्ति की नीति – गुट-निरपेक्षता का उदय विश्वशान्ति की आकांक्षा और उद्देश्य से हुआ है। यह शान्ति के उद्देश्यों और संकल्पों की अभिव्यक्ति है। इसका लक्ष्य है, तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति का विस्तार। गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाते हुए भारत ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों (कोरिया, कांगो, साइप्रस) में शान्ति स्थापना के प्रयत्न किये और गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सातवें शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्रीमती गांधी ने कहा था, ‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन इतिहास का सबसे बड़ा शान्ति आन्दोलन है।’

4. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य विरोधी नीति – गुट-निरपेक्षता साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, रंगभेद और शोषण तथा आधिपत्य के सभी रूपों का विरोध करने वाली नीति है। गुट-निरपेक्षता विभिन्न राष्ट्रों के आपसी व्यवहार में राष्ट्रीय प्रभुसत्ता, स्वतन्त्रता, समानता और विकास में विश्वास करती है; संघर्ष, अन्याय, दमन और असहिष्णुता का विरोध करती है एवं भूख तथा अभाव की स्थितियों को दूर करने पर बल देती है। विश्व के अनेक क्षेत्रों यथा एशिया व अफ्रीका में उपनिवेशवाद की समाप्ति में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

5. निरन्तर विकासशील नीति – गुट-निरपेक्षता एक स्थिर नीति नहीं वरन् निरन्तर विकासशील नीति है जिसे अपनाते हुए सम्बद्ध देशों द्वारा राष्ट्रीय हित और विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए अपने दृष्टिकोण और कार्य-शैली में परिवर्तन किया जा सकता है। 1971 की ‘भारत-सोवियत रूस मैत्री सन्धि’ गुट-निरपेक्षता की विकासशीलता की। परिचायक है। गुट-निरपेक्षता के समस्त सन्दर्भ में भी विकासशीलता का परिचय मिलता है। 1975 के पूर्व गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में राजनीतिक विषयों पर अधिक बल दिया जाता था। पिछले एक दशक में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अन्तर्गत आर्थिक विषयों और आर्थिक विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है।

6. गुट-निरपेक्षता एक आन्दोलन है, गुट नहीं – गुट-निरपेक्षता एक गुट नहीं वरन् एक आन्दोलन है। एक ऐसा आन्दोलन, जो राष्ट्रों के बीच स्वैच्छिक सहयोग चाहता है, प्रतिद्वन्द्विता या टकराव नहीं।

7. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र का सहायक है, विकल्प नहीं – गुट-निरपेक्षता का विश्वास है कि “संयुक्त राष्ट्र के बिना आज के विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र का विकल्प या उसका प्रतिद्वन्द्वी नहीं वरन् इस संगठन की सहायक प्रवृत्ति है, जिसका उद्देश्य है संयुक्त राष्ट्र को सही दिशा में आगे बढ़ाते हुए उसे शक्तिशाली बनाना।”

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रारम्भ करने का क्या उद्देश्य था ? वर्तमान परिस्थितियों में इसका क्या महत्त्व है ? [2007, 12]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा वर्तमान परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उसमें भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए। [2014]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन कब और किसके द्वारा प्रारम्भ किया गया? वर्तमान विश्व की परिवर्तनशील परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सार्थकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए [2013]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

गुट-निरपेक्षता का आशय है, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्वि-पक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित स्वतन्त्र रीति-नीति का अवलम्बन।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) – गुट-निरपेक्षता का सबसे प्रमुख लक्षण है-शक्ति गुटों से पृथक् रहने की नीति। गुट-निरपेक्ष देश का स्वतन्त्र मार्ग होता है तथा वह अन्तरष्ट्रिीय राजनीति में किसी का पिछलग्गू नहीं होता। गुट-निरपेक्षता का लक्ष्य है–तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति का विस्तार। गुट-निरपेक्षता साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नवउपनिवेशवाद, रंग-भेद और शोषण तथा आधिपत्य के सभी रूपों का विरोध करने वाली नीति है। गुट-निरपेक्षता एक गुट नहीं वरन् एक आन्दोलन है तथा निरन्तर विकासशील नीति है। गुट-निरपेक्षता को यह भी विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र के बिना आज के विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रारम्भ करने का उद्देश्य – वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्ष अथवा असंलग्नता का सिद्धान्त अत्यन्त प्रभावशाली और लोकप्रिय बन गया है। गुटनिरपेक्षता की नीति को सर्वप्रथम अपनाने का श्रेय भारत को प्राप्त है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सबसे प्रमुख और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य विश्व का दो विरोधी गुटों में बँट जाना था। एक गुट का नेता संयुक्त राज्य अमेरिका था और दूसरे गुट का नेता था सोवियत संघ। इन दोनों गुटों के बीच मतभेदों की एक ऐसी खाई उत्पन्न हो गयी थी और दोनों गुट एक-दूसरे के विरोध में इस प्रकार सक्रिय थे कि इसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। 1947 ई० में जब भारत स्वतन्त्र हुआ, तो एशिया और विश्व में भारत की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए दोनों विरोधी गुटों के देशों द्वारा भारत को अपनी ओर शामिल करने के प्रयत्न प्रारम्भ कर दिये गये और परस्पर विरोधी गुटों के इन प्रयासों ने वैदेशिक नीति के क्षेत्र में भारत के लिए एक समस्या खड़ी कर दी। लेकिन इन कठिन परिस्थितियों में भारत के द्वारा अपने विवेकपूर्ण मार्ग का शीघ्र ही चुनाव कर लिया गया और वह मार्ग था, गुट-निरपेक्षता अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दोनों ही गुटों से अलग रहते हुए विश्व शान्ति, सत्य और न्याय का समर्थन करने की स्वतन्त्र, विदेश नीति।

प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्षता को सही रूप में नहीं समझा जा सका। केवल दो महाशक्तियों ने इसे ‘अवसरवादी नीति’ बतलाया, वरन् अन्य देशों द्वारा भी यह सोचा गया कि ‘आज की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में निरपेक्षता का कोई मार्ग नहीं हो सकता। लेकिन समय के साथ भ्रान्तियाँ कमजोर पड़ीं और शीघ्र ही कुछ देश गुट-निरपेक्षता की ओर आकर्षित हुए। ऐसे देशों में सबसे प्रमुख थे—मार्शल टीटो के नेतृत्व में यूगोस्लाविया और कर्नल नासिर के नेतृत्व में मिस्र। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्षता की एक त्रिमूर्ति बन गयी ‘नेहरू, नासिर और टीटो’। कालान्तर में, एशियाई-अफ्रीकी देशों ने सोचा कि गुट-निरपेक्षता को अपनाना न केवल सम्भव है, वरन् उनके लिए यह लगभग स्वाभाविक और उचित मार्ग है। 1961 ई० में 25 देशों ने इस मार्ग को अपनाया।

लेकिन अब इस आन्दोलन से जुड़े सदस्य देशों की संख्या 120 हो गयी है। ‘गुट-निरपेक्षता’। आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सबसे अधिक लोकप्रिय धारणा बन गयी है और गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की एक प्रमुख प्रवृत्ति का स्थान ले लिया है।

वर्तमान में गुट-निरपेक्षता का महत्त्व

बदलती परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता का स्वरूप भी बदला है, किन्तु इसका महत्त्व पहले से अधिक हो गया है। यही कारण है कि आज गुट-निरपेक्षता का पालन करने वाले राष्ट्रों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की आवाज प्रबल बन सकी है। विश्व के दो प्रतिस्पर्धी गुटों में सन्तुलन पैदा करने और विश्व-शान्ति बनाये रखने में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। आज की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के सन्दर्भ में ‘निर्गुट आन्दोलन (NAM) पर महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी आ गयी है। आज की परिस्थितियों में निर्गुट देश ही अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति स्थापित करने और बनाये रखने में योग दे सकते हैं।

विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंगभेद की नीति का विरोध करने में निर्गुट आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज निर्गुट आन्दोलन निर्धन और पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर जोर दे रहा है। गुट-निरपेक्ष देशों की यह बराबर माँग रही है कि विश्व की ऐसी आर्थिक रचना हो, जिसमें विश्व की सम्पत्ति का न्यायपूर्ण ढंग से वितरण हो सके। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की मान्यता है ‘आर्थिक शोषण का अन्त किये बिना’ विश्व-शान्ति सम्भव नहीं है। विश्व में शान्ति, स्वतन्त्रता और न्याय की रक्षा के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस आन्दोलन ने विश्व में तनाव, शैथिल्य में पर्याप्त योग दिया है। तीसरी दुनिया के आर्थिक विकास के लिए यह आन्दोलन आशा की किरण है। श्रीमती गाँधी ने निर्गुट आन्दोलन के सातवें शिखर सम्मेलन में ठीक ही कहा था-“गुट-निरपेक्षता का जो रूप था वह बदल गया है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का युग नहीं बीता है।” उन्होंने आगे कहा-“गुट- निरपेक्षता मानव-व्यवहार का दर्शन है। इसमें समस्याओं के समाधान के लिए बल-प्रयोग का कोई स्थान नहीं है। गुट-निरपेक्षता का औचित्य कल भी उतना ही रहेगा, जितना आज है।”

[ संकेत – गुट-निरपेक्षता आन्दोलन में भारत की भूमिका हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न (150 शब्द) प्रश्न 1 का अध्ययन करें। ]

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सार्थकता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2010, 16]
या
क्या गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। [2014, 16]
या
आधुनिक विश्व के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता की सार्थकता पर एक निबन्ध लिखिए। [2012]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता (सार्थकता)

वर्तमान समय में बदलती हुई अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में बहुत-से राजनीतिक विचारकों का यह दृष्टिकोण है कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता समाप्त हो चुकी है, अर्थात् गुटनिरपेक्ष आन्दोलन महत्त्वहीन हो गया है, अथवा आधुनिक परिस्थितियों में इस आन्दोलन की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि आधुनिक परिस्थितियों में इस आन्दोलन को और भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

1. पहला दृष्टिकोण – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अपनी उपादेयता खो चुका है-इस परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वानों ने यह मत प्रकट किया है कि आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का कोई सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक महत्त्व नहीं रह गया है। उनका यह मत इसे धारणा पर आधारित है कि 1991 ई० में सोवियत संघ के विघटन एवं शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अस्तित्व की कोई आवश्यकता नहीं है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना एवं विकास में शीतयुद्ध की राजनीति ने बहुत अधिक प्रभाव डाला था। एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने इस विचारधारा को इसलिए अपनाया था कि वे दोनों महाशक्तियों की गुटबन्दियों से पृथक् रहकर अपना विकास कर सकें एवं अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन कर सकें। परन्तु आधुनिक समय में विश्व राजनीति द्वि-ध्रुवीय के स्थान पर एक-ध्रुवीय अथवा बहु-ध्रुवीय रूप में परिवर्तित हो रही है। शक्ति के नये केन्द्र उदय हो रहे हैं। सैनिक शक्ति के स्थान पर आर्थिक शक्ति की महत्ता स्थापित होती जा रही है। क्षेत्रीय सहयोग के नये आयाम स्थापित हो रहे हैं। राज्यों की राजनीतिक व्यवस्था स्थिरता के स्थान पर गतिशील है। अतः ऐसे राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर प्रश्न-चिह्न लग गया है। शीतयुद्ध की राजनीति के कारण इस आन्दोलन का जन्म हुआ तथा जब शीतयुद्ध ही समाप्त हो गया है तो इस आन्दोलन का औचित्य निरर्थक है। अतः इसकी उपादेयता समाप्त हो चुकी है।

2. दूसरा दृष्टिकोण : मजबूत बनने की दिशा में सक्रिय – कुछ विचारकों का यह मत है। कि आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता है तथा इसको अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि स्वयं गुट-निरपेक्ष राष्ट्र अभी इन परिस्थितियों से हतोत्साहित नहीं हुए हैं, वरन् वे सक्रिय रूप से इसको सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। विश्व के राष्ट्र इसकी भूमिका के प्रति आशावान हैं; क्योंकि गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या घटने के स्थान पर बढ़ती जा रही है, जिसका प्रमाण है सोलहवाँ शिखर सम्मेलन, जिसमें सदस्य राष्ट्रों की संख्या 120 हो गयी है। आज भी संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों पर अमेरिका एवं पश्चिमी राष्ट्रों का आधिपत्य स्थापित है। ऐसे में इन विकासशील राष्ट्रों को संयुक्त संगठन की आवश्यकता है, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इन राष्ट्रों की एकाधिकारवाद की भावना को चुनौती दे सके तथा अपने विकास सम्बन्धी नियमों एवं व्यवस्थाओं की स्थापना करवा सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 राष्ट्रों में 120 निर्गुट राष्ट्रों की स्थिति पर्याप्त महत्त्व रखती है और इन राष्ट्रों की सहमति के बिना संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा कोई निर्णय लेने में असमर्थ है। ये राष्ट्र कुछ सामान्य समस्याओं; जैसे-आतंकवाद, नशीली दवाओं के प्रयोग, जाति भेद, रंग-भेद, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन, निरक्षरता आदि; से पीड़ित हैं। इनका समाधान इन राष्ट्रों के पारस्परिक सहयोग से ही सम्भव है। यदि ये राष्ट्र संगठित होंगे तो ये अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को काफी सीमा तक प्रभावित कर सकते हैं।

3. भविष्य की सम्भावनाएँ – आधुनिक समय में संयुक्त राष्ट्र संघ के लगभग २/३ सदस्य। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के हैं तथा इन्होंने इन अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से विश्व शान्ति, उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के अन्त, रंगभेद की समाप्ति, परमाणु शस्त्रों पर रोक, नि:शस्त्रीकरण, हिन्दमहासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करना आदि विषयों को उठाया, विचार-विमर्श किया तथा अनेक मुद्दों पर सफलताएँ भी प्राप्त की।

इस आन्दोलन के जन्म के पश्चात् से ही इसमें विसंगतियाँ आनी प्रारम्भ हो गयी थीं। इस आन्दोलन में धीरे-धीरे ऐसे राष्ट्रों का आगमन प्रारम्भ हो गया जो कि सोवियत संघ एवं अमेरिका से वैचारिक दृष्टिकोण के आधार पर जुड़ गए। क्यूबा साम्यवादी देश होने के बावजूद निर्गुट आन्दोलन से जुड़ गया। 1962 ई० में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो कोई भी गुट-निरपेक्ष राष्ट्र भारत की सहायता के लिए नहीं आया वरन् भारत को ब्रिटेन तथा अमेरिका से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। 1965 ई० में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत का पक्ष सोवियत संघ ने लिया। कश्मीर के मसले पर अनेक बार सोवियत संघ ने वीटो का प्रयोग किया। वियतनाम जैसे गुट-निरपेक्ष राष्ट्र पर 1979 ई० में चीन ने आक्रमण कर दिया और उसे सोवियत संघ से मैत्री करने पर मजबूर होना पड़ा। अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण तथा गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का मूकदर्शक बना रहना इसकी सार्थकता को कम करता है। अत: इस आन्दोलन के विकास के साथ इसके अर्थ एवं परिभाषाएँ भी बदलनी प्रारम्भ हो गईं। अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि विदेश नीति की स्वतन्त्रता ही गुट-निरपेक्षता का एकमात्र मापदण्ड है। किसी भी राष्ट्र के साथ किसी भी प्रकार की सन्धि करने पर गुट-निरपेक्षता की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

इस आन्दोलन के जन्म के पश्चात् से ही इसमें विसंगतियाँ आनी प्रारम्भ हो गयी थीं। इस आन्दोलन में धीरे-धीरे ऐसे राष्ट्रों का आगमन प्रारम्भ हो गया जो कि सोवियत संघ एवं अमेरिका से वैचारिक दृष्टिकोण के आधार पर जुड़ गए। क्यूबा साम्यवादी देश होने के बावजूद निर्गुट आन्दोलन से जुड़ गया। 1962 ई० में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो कोई भी गुट-निरपेक्ष राष्ट्र भारत की सहायता के लिए नहीं आया वरन् भारत को ब्रिटेन तथा अमेरिका से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। 1965 ई० में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत का पक्ष सोवियत संघ ने लिया। कश्मीर के मसले पर अनेक बार सोवियत संघ ने वीटो का प्रयोग किया। वियतनाम जैसे गुट-निरपेक्ष राष्ट्र पर 1979 ई० में चीन ने आक्रमण कर दिया और उसे सोवियत संघ से मैत्री करने पर मजबूर होना पड़ा। अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण तथा गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का मूकदर्शक बना रहना इसकी सार्थकता को कम करता है। अत: इस आन्दोलन के विकास के साथ इसके अर्थ एवं परिभाषाएँ भी बदलनी प्रारम्भ हो गईं। अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि विदेश नीति की स्वतन्त्रता ही गुट-निरपेक्षता का एकमात्र मापदण्ड है। किसी भी राष्ट्र के साथ किसी भी प्रकार की सन्धि करने पर गुट-निरपेक्षता की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की कमजोरी के लिए कुछ तो संरचनात्मक कमियाँ हैं; जैसे-स्थायी सचिवालय का न होना और इसके स्थान पर औपचारिक संगठनों; जैसे-समन्वय ब्यूरो तथा सम्मेलन; की स्थापना आदि उत्तरदायी हैं, तो दूसरी ओर सदस्य-राष्ट्रों के पारस्परिक मतभेद, विवाद एवं संघर्ष इसकी संगठित शक्ति को कमजोर कर रहे हैं। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य होने पर भी भारत तथा पाकिस्तान के मध्य अनेक सैनिक युद्ध हो चुके हैं और अभी भी अघोषित युद्ध की स्थिति बनी हुई है। पाकिस्तान की परमाणु बम बनाने की क्षमता तथा अमेरिका एवं चीन से अत्याधुनिक हथियारों को खरीदने से भारत की शान्ति एवं सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है और यह सम्भव है कि भारत और पाकिस्तान का किसी भी समय भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो सकता है। भारत-चीन सीमा-विवाद, वियतनाम-कम्पूचिया विवाद, अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप, ईरान-इराक विवाद, इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनका कोई निश्चित समाधान गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के पास नहीं है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ऐसे क्षेत्र स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं जहाँ इस आन्दोलन की आज भी प्रासंगिकता, उपादेयता एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका है; जैसे –

  1. नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए प्रयास करना।
  2. उत्तर-दक्षिण संवाद के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना।
  3. निरस्त्रीकरण के लिए प्रयास करना।
  4. मादक द्रव्यों की तस्करी एवं आतंकवाद को रोकने में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  5. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रयास करना।
  6. दक्षिण-दक्षिण संवाद को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  7. एक-ध्रुवीय व्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका के बढ़ते हुए वर्चस्व को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करना।

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प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता की उपलब्धियों तथा विफलताओं का विवरण दीजिए। [2009, 10]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की उपलब्धियाँ

गुट-निरपेक्षता विदेश-नीति का वह मूल सिद्धान्त है, जिसमें कोई भी राष्ट्र सम्मिलित हो सकता है। इस प्रकार गुट-निरपेक्षता का प्रादुर्भाव तथा विकास वर्तमान समय की सर्वाधिक लोकप्रिय तथा प्रभावशाली नीति है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियों को अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है –

1. गुट-निरपेक्षता की नीति को मान्यता – विश्व के दोनों राष्ट्र-अमेरिका तथा सोवियत संघ यह समझते थे कि भुट-निरपेक्ष आन्दोलन सिवाय एक ‘धोखे’ के और कुछ नहीं है। अतः विश्व के राष्ट्रों को किसी एक गुट में अवश्य सम्मिलित हो जाना चाहिए, परन्तु गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अपनी नीतियों पर दृढ़ रहा। समय व्यतीत होने के साथ-साथ विश्व के दोनों गुटों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया। साम्यवादी देशों का विश्वास साम्यवादी विचारधारा से हटकर एक नवीन स्वतन्त्र विचारधारा की ओर आकर्षित होने लगा। उन्होंने विश्व में पहली बार इस बात को स्वीकार किया कि गुट-निरपेक्ष देश वास्तव में स्वतन्त्र हैं। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सोवियत संघ तथा गुट-निरपेक्ष देशों के समक्ष मूलभूत समस्याएँ समान हैं। पश्चिमी गुटों ने तो सातवें दशक में गुट-निरपेक्ष नीति को मान्यता प्रदान की। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष देशों के प्रति सद्भावना तथा सम्मान का वातावरण उत्पन्न करने में आन्दोलनकारियों को जो सफलता प्राप्त हुई उसकी सराहना की जानी चाहिए।

2. शीत-युद्ध के भय को दूर करना – शीत-युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तनाव का वातावरण व्याप्त था। परन्तु गुट-निरपेक्षता की नीति ने इस तनाव को शिथिलता की दशा में लाने के लिए भरसक प्रयत्न किया तथा इसमें सफलता भी प्राप्त की।

3. शीत-युद्ध को सक्रिय करना – अनेक गुट-निरपेक्ष देश चाहते थे कि विश्व के दोनों गुटों के मध्य शान्ति तथा सद्भावना का वातावरण बने। शीत-युद्ध के कारण अनेक देशों में भ्रम व्याप्त था कि यह शान्ति किसी भी समय युद्ध के रूप में भड़क सकती है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने शीत युद्ध को हथियारों के युद्ध में बदलने से रोका तथा अन्तर्राष्ट्रीय जगत में व्याप्त भ्रम को दूर किया। सर्वोच्च शक्तियाँ समझ गईं कि व्यर्थ में रक्त बहाने से कोई लाभ नहीं है।

4. विश्व के संघर्षों को दूर करना – गुट-निरपेक्षता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने विश्व में होने वाले कुछ भयंकर संघर्षों को टाल दिया। धीरे-धीरे उनके निदान ढूंढ़ लिये गये। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने आणविक अस्त्र के खतरों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में योगदान दिया। विश्व के छोटे-छोटे विकासशील तथा विकसित राष्ट्रों को दो भागों में विभाजित होने से रोका। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने सर्वोच्च शक्तियों को सदैव यही प्रेरणा दी कि “संघर्ष अपने हृदय में सर्वनाश लेकर चलता है इसलिए इससे बचकर चलने में विश्व का कल्याण है। इसके स्थान पर यदि सर्वोच्च शक्तियाँ विकासशील राष्ट्रों के कल्याण के लिए कुछ कार्य करती हैं तो इससे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को बल मिलेगा।

5. अपनी प्रकृति के अनुसार पद्धतियों का आविष्कार करना – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की एक उपलब्धि यह भी है कि इसने संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ जैसे देशों की नीतियों को नकराते हुए अपनी प्रकृति के अनुकूल पद्धतियों का विकास किया। इस प्रकार भारत ने विश्व-बन्धुत्व, समाज-कल्याण तथा समाज के समाजवादी ढाँचे के अनुसार गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों को चलने के लिए प्रेरित किया।

6. आर्थिक सहयोग का वातावरण बनाना – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विकासशील राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता का ठोस परिचय दिया जिसके कारण विकासशील राष्ट्रों को समय-समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो सकी। कोलम्बो शिखर सम्मेलन में तो आर्थिक घोषणा-पत्रे तैयार किया गया जिससे गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के मध्य अधिक-से-अधिक आर्थिक सहयोग की स्थिति निर्मित हो सके। एक प्रकार से गुट-निरपेक्षता का आन्दोलन आर्थिक सहयोग का एक संयुक्त मोर्चा है।

7. नयी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की अपील – वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ने नयी करवट बदली है। अत: नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की यह अपील तथा माँग है कि विश्व मंच पर ‘आर्थिक विकास सम्मेलन का आयोजन किया जाए जो विश्व में व्यापार की स्थिति सुधारे, विकासशील राष्ट्रों को व्यापार करने के अवसर प्रदान करे, ‘सामान्य पहल’ के अनुसार गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी दोनों प्रकार का अनुदान प्राप्त हो। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की पहल के परिणामस्वरूप 1974 ई० में संयुक्त राष्ट्र संघ ने छठा विशेष अधिवेशन आयोजित किया जिसमें नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था स्थापित करने की घोषणा का प्रस्ताव पारित किया गया। कुछ समय बाद इस घोषणा-पत्र के विषय पर विकसित राष्ट्रों ने भी विचार-विमर्श किया, जो गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

8. निःशस्त्रीकरण तथा अस्त्र-नियन्त्रण की दिशा में भूमिका – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के देशों ने नि:शस्त्रीकरण तथा अस्त्र-नियन्त्रण के लिए विश्व में अवसर तैयार किया। यद्यपि इस क्षेत्र में गुट-निरपेक्ष देशों को तुरन्त सफलता नहीं मिली, तथापि विश्व के राष्ट्रों को यह विश्वास होने लगा कि हथियारों को बढ़ावा देने से विश्व-शान्ति संकट में पड़ सकती है। यह गुट-निरपेक्षता का ही परिणाम है कि 1954 ई० में आणविक अस्त्र के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगा तथा 1963 ई० में आंशिक परीक्षण पर प्रतिबन्ध स्वीकार किए गए।

9. संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मान – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का भी सदैव सम्मान किया, साथ ही संगठन के वास्तविक रूप को रूपान्तरित करने में भी सहयोग दिया। पहली बात तो यह है कि गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या इतनी है कि शीत-युद्ध के वातावरण को तटस्थता की नीति के रूप में परिवर्तन करने में राष्ट्रों के संगठन की बात सुनी गई। इससे छोटे राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का नियन्त्रण सरलतापूर्वक लागू हो सका। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के महत्त्व की वृद्धि करने में भी सहायता दी।

गुट-निरपेक्षता की विफलताएँ

गुट-निरपेक्षता की विफलताओं का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है –

1. सिद्धान्तहीन नीति – पश्चिमी आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता की नीति अवसरवादी तथा सिद्धान्तहीन है। ये देश साम्यवादी तथा पूँजीवादी देशों के साथ अवसरानुकूल ‘कार्य सम्पन्न करने में निपुण हैं। अत: ये देश दोहरी चाल चलते रहते हैं। इनका कोई निश्चित ध्येय नहीं है। ये देश अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने की गतिविधियों से नहीं चूकते हैं।

2. बाहरी आर्थिक तथा रक्षा सहायता पर निर्भरता – गुट-निरपेक्ष देशों पर विफलता का यह आरोप भी लगाया जाता है कि उन्होंने बाहरी सहायता का आवरण पूर्ण रूप से ग्रहण कर लिया है। चूंकि वे हर प्रकार की सहायता चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक मार्ग निकालकर अपना कार्य सिद्ध करने की नीति अपना ली है। आलोचकों का कहना है कि यदि गुट-निरपेक्षता की भावना सत्य पर आधारित होती तो ये देश आत्म-निर्भरता की नीति को मानकर चलते। अतः गुट-निरेपक्ष राष्ट्रों ने स्वतन्त्रता के मार्ग में कील ठोंक दी है।

3. गुट-निरपेक्षता की नीति में सुरक्षा का अभाव – आलोचकों ने इस बात पर भी टीका टिप्पणी की है कि गुट-निरपेक्ष देश आर्थिक स्थिति सुधारने की ओर संलग्न रहते हैं। ये देश सुरक्षा को पर्याप्त नहीं मानते हैं। ऐसी दशा में यदि वे बाहरी सैनिक सहायता स्वीकार करते हैं तो उनकी गुट-निरपेक्षता धरी की धरी रह जाएगी। सन् 1962 में चीन से आक्रमण के समय भारत को यह विदित हो गया कि बाहरी शक्ति के समक्ष गुट-निरपेक्ष राष्ट्र मुँह ताकते रह जाते हैं। इस प्रकार बाहरी शक्ति का सामना करने के लिए बाहर से सैनिक सहायता पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।

4. अव्यावहारिक सिद्धान्तों की नीति – आलोचकों के कथनानुसार गुट-निरपेक्षता के सिद्धान्त अव्यावहारिक हैं। ये व्यवहार में विफल हुए हैं। सिद्धान्तों के अनुसार गुट-निरपेक्ष देशों को स्वतन्त्रता की नीतियों को सुदृढ़ करना था, परन्तु वे अपने दायित्व को निभाने में असफल रहे। पश्चिमी राष्ट्रों का तो यहाँ तक कहना है कि गुट-निरपेक्षता साम्यवाद के प्रति सहानुभूति रखती है परन्तु विश्व राजनीति में उसे गुप्त रखना चाहती है। पं० नेहरू ने सदा साम्यवादी रूस की प्रशंसा की तथा भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण सोवियत संघ की नीतियों से प्रेरित होकर किया गया।

5. संकुचित नीति का पोषक – विदेश नीति का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। इस सम्बन्ध में आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता का सीमित वृत्त इतने व्यापक वृत्त को कैसे अपने में समेट सकता है। अतः गुट-निरपेक्ष आन्दोलन एक प्रकार से अफसल है। गुटों से बाहर रहकर विश्व राजनीति में क्रियाशीलता का प्रदर्शन करना अत्यधिक कठिन है। विश्व की सम्पूर्ण नीति गुटों के चतुर्दिक घूमती है। अतः गुटों से पृथक् रहकर कोई भी राष्ट्र विकास के पथ पर नहीं पहुँच सकता।

6. राष्ट्रहित के स्थान पर नेतागिरी की नीति – कुछ आलोचकों का मानना है कि गुट निरपेक्षता की भावना ऊर्ध्वगामी है, जबकि विश्व राजनीति की जड़ें अधोगामी हैं। ऐसी स्थिति में इस नीति के केन्द्र में राष्ट्रहित की भावना नहीं दिखाई देती है।

7. गुट-निरपेक्षता एक दिशाहीन आन्दोलन – कुछ आलोचकों का मानना है कि विश्व की नवीन मुक्त व्यापार की नीति के अन्तर्गत गुटे-निरपेक्षता का आन्दोलन निरर्थक सिद्ध हो रहा है। आज अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर सद्भावना की आवश्यकता है, अलगावाद की नहीं। गुट-र्निरपेक्षता का आन्दोलन इस दृष्टि से दिशाहीनता का प्रदर्शन मात्र बनकर रह गया है।

8. गुट-निरपेक्षता की नीति से अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं – आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता की नीति ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में अभी तक कोई ठोस परिवर्तन नहीं किया है। शीत-युद्ध के समय में सारा विश्व प्रमुख शिविरों में विभक्त रहा। इन शिविरों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नेताओं के कहने में अपनी नीति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं किया। भारत के विरोध करने के पश्चात् भी अमेरिका ने कोरिया में अभियान चलाया, चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया तथा लेबनान में अमेरिकी सेनाएँ। प्रविष्ट हो गईं। पश्चिमी एशिया में अरब-इजराइल युद्ध हुए। इस प्रकार गुट-निरपेक्षता की नीति निरर्थक सिद्ध हुई।

इस प्रकार गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का कोई ठोस आधार नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन एवं भारत पर एक टिप्पणी लिखिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका सदैव केन्द्रीय रही है। भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू को इस आन्दोलन का संस्थापक माना जाता है। 1947 से 1950 ई० तक पं० नेहरू के नेतृत्व में गुट-निरपेक्षता को सकारात्मक तटस्थता” के रूप में स्वीकार किया गया था। तत्पश्चात् 1977 से 1979 ई० तक मोरारजी देसाई के नेतृत्व में भारत ने अमेरिका व रूस दोनों के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारों व= उनमें समन्वय स्थापित किया। इस काल को वास्तविक गुट-निरपेक्षता का काल कहा जाता है। 1980 ई० में भारत का नेतृत्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी के हाथों में सौंपा गया। इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत ने 1983 ई० में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भाग लिया। इस काल में इन्दिरा गाँधी द्वारा दो समस्याओं पर प्रमुख रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया, जिसमें प्रथम, शीतयुद्ध को समाप्त करने तथा द्वितीय, परमाणु अस्त्रों की होड़ को समाप्त करने से सम्बन्धित थी। आठवाँ शिखर सम्मेलन जो जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में सम्पन्न हुआ, में भारत का नेतृत्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी द्वारा किया गया था।

इस सम्मेलन में राजीव गाँधी द्वारा विकासशील राष्ट्रों के मध्य स्वतन्त्र संचार-प्रणाली’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया। इसके अतिरिक्त 1989 ई० में नवें शिखर सम्मेलन के समय भारत में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार थी जिसके नेतृत्व में भारत द्वारा “पर्यावरण की सुरक्षा पर बल देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में “पृथ्वी संरक्षण कोष’ की स्थापना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। 1992 ई० में होने वाले दसवें शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा विश्व की प्रमुख समस्या परमाणु नि:शस्त्रीकरण वे राष्ट्रों के मध्य आर्थिक समानता कायम करने के प्रश्न को उठाया गया। इस सम्मेलन के अन्तर्गत दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मण्डेला ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जम्मू-कश्मीर जैसे भारत के द्विपक्षीय मसले पर बोलकर भारतीय भावनाओं के आन्दोलन की मूल भावनाओं को ठेस पहुँचायी। यद्यपि तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा नेल्सन मण्डेला के अध्यक्षीय भाषण की आलोचना की गयी व अपने कूटनीतिक चातुर्य के द्वारा उन्होंने सम्मेलन में भारत की साख को बचा लिया, परन्तु इस घटना ने भारत को भविष्य के लिए सतर्क रहने की शिक्षा दी।

प्रश्न 2.
गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइए।
उत्तर :
गुटनिरपेक्षता का महत्त्व

वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. गुटनिरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  2. गुटनिरपेक्षता राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
  3. गुटनिरपेक्ष के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति-सन्तुलन बना रही।
  4. गुटनिरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य-राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
  5. गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
  6. गुटनिरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
  7. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  8. यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
  9. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
  10. इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
  11. इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत-युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  12. गुटनिरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रतापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
‘गुट-निरपेक्षता की नीति के आवश्यक तत्त्व बताइए।
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की नीति के आवश्यक तत्त्व

सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में असंलग्नता की नीति के कर्णधारों-नेहरू, नासिर और टीटो ने इस नीति के 5 आवश्यक तत्त्व माने हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. सम्बद्ध देश स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो।
  2. वह उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
  3. वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो।
  4. उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौता नहीं किया हो।
  5. उसने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति न दी हो।

उपर्युक्त आवश्यक तत्त्वों के अनुसार गुट-निरपेक्षता का आशय ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित रीति-नीति का अवलम्बन है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

  1. स्वतन्त्र राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक एकता व शान्तिपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना हेतु।
  2. नवस्वतन्त्र राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक व तकनीकी सम्बन्धों की स्थापना करना।
  3. पर्यावरण प्रदूषण पर नियन्त्रण करना।
  4. स्वतन्त्रता की रक्षा करना।
  5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व रंगभेद जैसी नीतियों का विरोध करना।
  6. मानव अधिकारों का समर्थन करना।
  7. निरस्त्रीकरण का समर्थन व युद्धों का विरोध करना।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने हेतु प्रयत्न करना।
  9. सैनिक गुटबन्दी से दूर रहना।
  10. परस्पर सहयोग द्वारा विकास की गति में वृद्धि करना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से क्या आशय है?
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापकों के नाम लिखिए। [2011, 13]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से आशय पं० जवाहरलाल (प्रधानमन्त्री भारत), कर्नल नासिर (राष्ट्रपति मिस्र) तथा मार्शल टीटो (राष्ट्रपति यूगोस्लाविया) से है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ और कब सम्पन्न हुआ था? [2011]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में 1961 ई० में हुआ था।

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता कौन थे? [2013]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष की नीति के प्रणेता पं० जवाहरलाल नेहरू थे।

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था?
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ शिखर सम्मेलन डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में 1998 ई० में आयोजित हुआ था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ विदेश मन्त्री सम्मेलन 1997 ई० में नयी दिल्ली में सम्पन्न हुआ था।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार गुट-निरपेक्ष देशों के नाम अंकित कीजिए। [2007, 10, 11]
उत्तर :
भारत, मिस्र, मलेशिया एवं यूगोस्लाविया

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति का प्रतिपादन किसने किया था ?
(क) इन्दिरा गाँधी ने
(ख) पं० जवाहरलाल नेहरू ने
(ग) लाल बहादुर शास्त्री ने
(घ) राजीव गाँधी ने

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था ? [2013]
(क) काठमाण्डू
(ख) कोलम्बो
(ग) बेलग्रेड
(घ) नयी दिल्ली

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक गुट-निरपेक्ष देश नहीं है ? [2011, 14]
(क) ब्रिटेन
(ख) श्रीलंका
(ग) मिस्र
(घ) इण्डोनेशिया

प्रश्न 4.
गुट निरपेक्ष आन्दोलन नरम पड़ता जा रहा है क्योंकि [2012]
(क) इसके नेतृत्व में दूरदर्शिता का अभाव है।
(ख) इसके सदस्य राष्ट्रों की सभी समस्याओं का समाधान हो गया है।
(ग) विश्व में अब एक ही गुट प्रभावशाली रह गया है।
(घ) गुट-निरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है।

प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की नींव कब पड़ी? [2013]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ था। [2016]
(क) 1960
(ख) 1961
(ग) 1962
(घ) 1965

प्रश्न 6.
वर्ष 2012 में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था? [2013]
(क) इराक
(ख) ईरान
(ग) चीन
(घ) अमेरिका

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बन्धित नहीं है? [2012]
(क) मिस्र के कर्नल नासिर
(ख) यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो
(ग) भारत के पं० जवाहरलाल नेहरू
(घ) चीन के चाऊ-एनलाई

प्रश्न 8.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेता कौन थे? [2015]
(क) पं० मोतीलाल नेहरू, सुहात, यासर अराफात
(ख) इंदिरा गांधी, फिडेल कास्त्रो, कैनिथ कौन्डा
(ग) नासिर, जवाहरलाल नेहरू, टीटो।
(घ) श्रीमावो भण्डारनाईके, अनवर सदात, जुलियस नायरेरे

उत्तर :

  1. (ख) पं० जवाहरलाल नेहरू ने
  2. (ग) बेलग्रेड
  3. (क) ब्रिटेन
  4. (घ) गुटनिरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है
  5. (ख) 1961
  6. (ख) ईरान
  7. (घ) चीन के चाऊ-एनलाई
  8. (ग) नासिर, जवाहरलाल नेहरू, टीटो।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 27
Chapter Name Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)
Number of Questions Solved 44
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य से आप क्या समझते हैं ? समान्तर माध्य के प्रकार बताइए। [2010]
उत्तर:
साधारण बोलचाल की भाषा में समान्तर माध्य को औसत कहते हैं। समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का एक मापक है। वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, समान्तर माध्य कहलाती है। समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए-यदि छ: बालकों की आयु क्रमशः 5, 7, 9, 11, 13 व 15वर्ष है तो इसका समान्तर माध्य = [latex]\frac { 5+7+9+11+13+15 }{ 6 }[/latex] = [latex]\frac { 60 }{ 6 }[/latex] = 10 वर्ष होगा।

समान्तर माध्य निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है
प्रो० होरेस सैक्रिस्ट के अनुसार, “एक समंकमाला के पदों के मूल्यों के योग को उनकी संख्या से भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उसे ‘माध्य’ कहते हैं।”
क्रॉक्सटन व क्राउड़न के अनुसार, “माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, क्योंकि माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत ही कहीं होता है; अत: यह केन्द्रीय मूल्य का माप कहा जाता है।”

गणितीय माध्य या समान्तर माध्य के प्रकार
गणितीय या समान्तर माध्य के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं
1. सरल समान्तर माध्य तथा
2. भारित समान्तर माध्य।

1. सरले समान्तर माध्य – सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है तथा इसकी गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है।
2. भारित समान्तर माध्य – भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है। पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य निकालना ही भारित समान्तर माध्य कहलाता है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य के गुण-दोष लिखिए। [2008, 11, 12, 13, 15]
उत्तर:
समान्तर माध्य के गुण- समान्तर माध्य में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

  1. सरलता – समान्तर मध्य में सरलता का गुण पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति भी इसकी गणना सरलतापूर्वक कर सकता है, क्योंकि इसको समझना आसान होता है।
  2. समस्त पदों का प्रतिनिधित्व – समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए सम्पूर्ण समंकों का प्रयोग किया जाता है; अत: यह सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. निश्चितता – संमान्तर मध्य सदैव एक ही होता है। श्रेणी चाहे जिस ढंग से लिखी जाए, इसमें कोई अन्तर नहीं आता; अत: इसमें निश्चितता का गुण पाया जाता है।
  4. तुलना का आधार – समान्तर माध्य के द्वारा विभिन्न समंकों में तुलना की जा सकती है; अतः समान्तर माध्य तुलना का आधार प्रस्तुत करता है।
  5. बीजगणितीय विवेचन सम्भव होता है – समान्तर माध्य का प्रयोग बीजगणितीय क्रियाओं में सम्भव है; अत: इस माध्य का प्रयोग उच्च-स्तरीय सांख्यिकीय विश्लेषण में किया जाता है।

समान्तर माध्य के दोष – समान्तर माध्य में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं

  1. समान्तर माध्य ज्ञात करते समय सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु बड़े मूल्यों के पद माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं, जिसके कारण समान्तर माध्य श्रेणी का ठीक प्रतिनिधित्व करने में असफल रहता है; जैसे – किसी कार्यालय के प्रबन्धक का वेतन ₹14,000 और दो लिपिकों का वेतन क्रमशः ₹3,000 और ₹4,000 है तो इस समूह के वेतन का माध्य हैं ₹7,000 होगा, जो कि श्रेणी का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता।
  2. समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं। उदाहरण के लिए-यदि तीन फर्मों के विभिन्न वर्षों के लाभ निम्नवत् हैं
    UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 1
    उपर्युक्त लाभ को देखने से स्पष्ट होता है कि तीनों फर्मों का औसत लाभ या समान्तर माध्य 50,000 है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तीनों फर्म समान प्रगति पर हैं, परन्तु फर्म A प्रगति पथ पर है और फर्म B की स्थिति शोचनीय।
  3. गुणात्मक सामग्री का समान्तर माध्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है। इस कारण गुणात्मक सामग्री के लिए यह अनुपयुक्त है।
  4. समान्तर माध्य के द्वारा कभी-कभी विचित्र व हास्यास्पद परिणाम प्राप्त होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति के पास 4 गाय हैं और दूसरे व्यक्ति के पास 3 गाय हैं तो इनका समान्तर माध्य 3.5 होता है। जबकि 3.5 गाय नहीं होती हैं; अत: जिन वस्तुओं का विभाजन असम्भव है उनके समान्तर माध्य को ज्ञात करना कठिन है।
  5. समान्तर माध्य का बिन्दुरेखीय प्रदर्शन या रेखाचित्र असम्भव है।
  6. समंकमाला को देखकर समान्तर मध्य का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  7. सम्पूर्ण समंकों में से यदि कोई एक समंक गायब हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में समान्तर माध्य ज्ञात करना कठिन होता है।
  8. समान्तर माध्य छोटे पदों को कम और बड़े पदों को अधिक महत्त्व देता है।

प्रश्न 3
समान्तर माध्य की गणना हेतु प्रयुक्त प्रत्यक्ष एवं लघु रीतियों को उदाहरण सहित समझाइए। [2010]
उत्तर:
समान्तर माध्य ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं- 1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) तथा 2. परोक्ष विधि या लघु विधि (Indirect or Short-cut Method)

1. प्रत्यक्ष विधि – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह विधि अत्यन्त सरल है, परन्तु यदि समंकों का मूल्य बड़ा होता है और उनकी संख्या भी अधिक होती है तो इस विधि का प्रयोग उचित नहीं रहता, क्योंकि गणना करने में अधिक समय व श्रम का व्यय होता है।

2. परोक्ष विधि या लघु विधि – इस विधि को अप्रत्यक्ष विधि या कल्पित माध्य विधि भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य (Assumed Mean) मान लेते हैं तथा कल्पित माध्य को प्रत्येक पद-मूल्य में से घटाकर धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) होता है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक (-) होता है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। जो मूल्य प्राप्त होता है वही समान्तर माध्य होता है। यदि समंकों का मूल्य बड़ा हो तथा समंकों की संख्या भी अधिक हो तो इस विधि का प्रयोग उचित होता है, क्योंकि गणना करने में समय व श्रम का कम व्यय होता है।

विशेष – समंक तीन प्रकार की श्रेणियों में मिल सकते हैं

  1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series) में,
  2. खण्डित श्रेणी (Discrete Series) में तथा
  3. सतत् (अखण्डित) श्रेणी (Continuous Series) में। प्रत्येक प्रकार की श्रेणी का समान्तर मध्य प्रत्यक्ष या परोक्ष दोनों ही विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

व्यक्तिगत श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना

(अ) प्रत्यक्ष विधि – व्यक्तिगत श्रेणी में सभी पदों के मूल्यों को जोड़कर, कुल योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं।
सूत्र रूप में:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 2
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] संकेताक्षर का प्रयोग सरल समान्तर माध्य के लिए है। x1, x2, x3, x4, आदि व्यक्तिगत पद-मूल्य हैं तथा n पदों की संख्या है।
Σ(Sigma) ग्रीक भाषा का अक्षर है, जिसका अर्थ दिये गये समस्त पद-मूल्यों का योग है।

(ब) अप्रत्यक्ष विधि या लघु रीति – अप्रत्यक्ष विधि को कल्पित माध्य रीति भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों में से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य मान लेते हैं, फिर निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma dx }{ n } [/latex]
यहाँ
n A = offrea FTET (Assumed Mean)
Σdx = कल्पित माध्य से विचलन (Deviations from Assumed Mean)
n = पदों की संख्या

उदाहरण 1
एक कक्षा के 12 विद्यार्थियों के भार सम्बन्धी ऑकड़े निम्नलिखित हैं। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना कीजिए
भार (किग्रा में) : 45         42       47        55      58        60          61       44      49         52         48        45
हल:
समान्तर माध्य की गणना (प्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 3

हल:
समान्तर माध्य की गणना (अप्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 4

खण्डित श्रेणी में समान्तर साध्य की गणना
खण्डित श्रेणी में प्रत्येक पद-मूल्य की तत्सम्बन्धी आवृत्तियाँ दी हुई रहती हैं। इस श्रेणी में भी समान्तर माध्य दोनों विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि द्वारा – खण्डित श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए पद-मूल्यों को सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करके गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में- fx = आवृत्ति का उसके मूल्य का गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf

(ब) अप्रत्यक्ष (लघु) विधि – कल्पित माध्य से पद-मूल्यों का विचलन निकालकर सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करते हैं। गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग देने पर प्राप्त भागफल यदि धनात्मक है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। इस प्रकार समान्तर माध्य ज्ञात हो जाता है।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ A = कल्पित माध्य;
Σfdx = कल्पित माध्य से पद-मूल्यों के विचलनों व आवृत्तियों के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 2
निम्नांकित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 5
हल:
प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 6
अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 7

सतत या अखण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में मूल्य (x) वर्गों में दिये हुए रहते हैं; अतः सर्वप्रथम प्रत्येक वर्गान्तर का मध्य बिन्दु (mid point) या मध्य मूल्य (mid value) ज्ञात करते हैं। यह मध्य मूल्य M.V. को x यानि पद-मूल्य मानकर आगे की गणना की जाती है। इस प्रकार सतत् श्रेणी खण्डित श्रेणी में परिवर्तित हो जाती है। इसके बाद वे सभी क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जो खण्डित श्रेणी में की जाती हैं। सतत् श्रेणी में समान्तर माध्य ‘प्रत्यक्ष विधि तथा ‘लघु विधि’ दोनों प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि – सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए वर्गों के ‘मध्य मूल्य निकाले जाते हैं। तत्पश्चात् उनको आवृत्तियों (f) से गुणा करते हैं। गुणनफल के योग में
आवृत्तियों के योग से भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में – fx = आवृत्ति का सम्बन्धित मध्य मूल्य से गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf ।

(ब) अप्रत्यक्ष या लघु विधि – सतत् श्रेणी में लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात करना प्रत्यक्ष विधि की अपेक्षा सरल होता है। लघु विधि में समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. सर्वप्रथम वर्गान्तरों के मध्य मूल्य ज्ञात करते हैं।
  2. मध्य मूल्य में से एक मूल्य या कोई अन्य कल्पित माध्य (A) मान लिया जाता है।
  3. कल्पित माध्य को प्रत्येक मूल्य में से घटाकर विचलन (dx) ज्ञात करते हैं।
  4. dx को तत्सम्बन्धी आवृत्तियों से गुणा कर fdx ज्ञात करते हैं।
  5. गुणनफलों का योग करके Σfdx ज्ञात करते हैं।
  6. समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

सूत्र- [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ, A = कल्पित माध्य;
fdx = कल्पित माध्य से विचलन X आवृत्ति;
Σfdx = आवृत्ति तथा विचलन के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 3
निम्नलिखित तालिका में दिये गये आँकड़ों के आधार पर समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए विद्यार्थियों की संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 8
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 9
अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 10
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 11

संचयी आवृत्तियाँ दिये रहने पर समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में संचयी आवृत्तियाँ दो प्रकार से हो सकती हैं
(1) ‘से अधिक’ तथा (2) ‘से कम। दोनों प्रकार से दी गयी संचयी आवृत्तियों में समान्तर माध्य की गणना उदाहरण 4 तथा 5 द्वारा स्पष्ट की जा रही है।

उदाहरण 4
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 86
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से अधिक के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गों की निम्न सीमाएँ दी गयी हैं; अत: इसे सर्वप्रथम सतत् श्रेणी में बदलेंगे। श्रेणी को देखने से ज्ञात होता है कि श्रेणी में वर्गान्तर 10 का है। अत: पहला वर्ग 10-20 का बनेगा तथा पहले संचयी आवृत्ति में से अगली संचयी आवृत्ति को घटाते जाएँगे, अर्थात् संचयी आवृत्ति से सामान्य आवृत्ति बनाएँगे; अब साधारण श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 12
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 13
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 14

उदाहरण 5
निम्नलिखित आवृत्ति-वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 15
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से कम के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गान्तर की उच्च सीमाएँ दी हैं। हम देखते हैं कि श्रेणी के प्रत्येक वर्ग में अन्तर 10 का है। सर्वप्रथम हम इसे सतत् श्रेणी में बदलेंगे। हमारा पहला वर्ग 10-20 का होगा। प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति ज्ञात करने के लिए अगले वर्ग की संचयी आवृत्ति में से पहले वर्ग की संचयी आवृत्ति घटा देंगे। सतत् श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 16
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 17

उदाहरण 6
निम्नलिखित श्रेणी से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 18
हल:
विशेष – समानान्तर माध्य ज्ञात करने की दोनों विधियाँ (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) इस प्रश्न के हल हेतु दर्शायी गयी हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 19

विशेष – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह कोई भिन्न विधि नहीं है, वरन् लघु विधि की सहायक विधि ही है। इस विधि में कल्पित माध्य से अन्तर की संख्याओं को किसी उभयनिष्ठ संख्या से भाग दे दिया जाता है, जिससे पद-विचलन बहुत छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार इन छोटे पद-विचलनों में उनकी आवृत्तियों से गुणा करने पर कुल विचलन ज्ञात हो जाते हैं। अन्त में विचलनों के योग में उक्त उभयनिष्ठ संख्या का गुणा कर दिया जाता है। शेष विधि वही रहती है जिसे लघु विधि के अन्तर्गत समझाया गया है। चिह्नों के अर्थ भी वही होते हैं जिन्हें लघु रीति के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

उदाहरण 7
एक परीक्षा में 50 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्तांक नीचे तालिका में दिये गये हैं। अंकगणितीय माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 20
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 21
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 22

उदाहरण 8
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 23
या
निम्न समंकों में से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 24
या
निम्नलिखित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 25
या
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण में समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 26
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 27
प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य क्या है? भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधि उदाहरण के द्वारा समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में भारित समान्तर माध्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यह वह माध्य होता है जिसमें पदों को उनके सापेक्षिक महत्त्व के अनुसार भार देकर माध्य की गणना की जाती है। अनेक स्थितियों में तुलना करने के लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त विधि होती है। उदाहरणार्थ-एक कारखाने के कर्मचारियों की औसत आय ज्ञात करने के लिए व्यवस्थापक के वेतन तथा कर्मचारियों के वेतन को समान महत्त्व देना अनुचित होगा; क्योंकि कारखाने में व्यवस्थापक तो एक होगा तथा कर्मचारियों की संख्या अधिक होगी। उचित औसत आय तब ही प्राप्त हो सकती है, जब हम व्यवस्थापक तथा कर्मचारियों को उनके महत्त्व के अनुसार भार दें। इसके लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त है।

भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधियाँ – भारित समान्तर माध्य भी प्रत्यक्ष विधि एवं अप्रत्यक्ष या लघु विधि से ज्ञात किया जा सकता है

(क) प्रत्यक्ष विधि से भारित समान्तर माध्य – (1) प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के आधार पर भार (w) प्रदान किया जाता है।
(2) प्रत्येक मूल्य (x) को उसके भार (W) से गुणा करके गुणनफल (Wx) ज्ञात करते हैं। इसके बाद गुणनफलों का योग करके ΣWx निकालते हैं। ।
(3) गुणनफलों (Σwx) में भारों के योग (ΣW) का भाग देकर समान्तर माध्य निकालते हैं। सूत्र रूप में
[latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma Wx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] w = भारित समान्तर माध्य है।
ΣWx = मूल्यों तथा भारों के गुणनफलों का योग है।
Σw = भारों का योग है।

(ख) लघु रीति से भारित समान्तर माध्य – इस विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. प्रत्येक पद को महत्त्व के अनुसार भार देना।
  2. कल्पित माध्य (A) मानकर मूल्यों से विचलन (dx) ज्ञात करना।
  3. विचलनों को तत्सम्बन्धी भार से गुणा करके गुणनफल ज्ञात करना तथा उनका योग करना। इस प्रकार ΣWdx ज्ञात हो जाएगा।
  4. निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके भारित समान्तर माध्य ज्ञात किया जाएगा

[latex]\overline { X }[/latex]W = A + [latex]\frac { \Sigma Wdx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ परे, [latex]\overline { X }[/latex]W = भारित समान्तर माध्य;
A = कल्पित माध्य।
ΣWdx = कल्पित माध्य से प्राप्त विचलनों और तत्सम्बन्धी भारों के गुणनफल का योग।
Σw = भारों का योग।

उदाहरण 9
एक व्यक्ति ने निम्नलिखित वस्तुएँ विविध मूल्यों पर नीचे दी गयी तालिका के अनुसार खरीदी हैं। उनका भारित समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 28
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 29
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 30
लघु रीति द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 31

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
निम्नांकित समंकों की सहायता से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए। प्रश्न-पत्र के अधिकतम अंक 50 थे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 32
हल:
[ संकेत–उपर्युक्त प्रश्न व्यक्तिगत श्रेणी के अन्तर्गत आता है। ] ।
समान्तर माध्य सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 33

प्रश्न 2
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
7, 10, 13, 18, 24, 30
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 34
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 35

प्रश्न 3
उत्तर प्रदेश सरकार के निम्नलिखित वार्षिक व्यय के माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 36
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 37
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 38

प्रश्न 4
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 39
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 40

प्रश्न 5
8 व्यक्तियों के समूह के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ₹5,000 है। 12 व्यक्तियों के एक समूह का समान्तर माध्य ₹6,000 है। सभी 20 व्यक्तियों के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ज्ञात करें।
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 41
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 42

प्रश्न 6
एक शहर के 100 परिवारों की मासिक आय निम्नवत है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 43
उपर्युक्त आँकड़ों की सहायता से इस शहर के परिवारों की मासिक आय का समान्तर माध्य लघु विधि द्वारा ज्ञात कीजिए।
हल:
विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 44

प्रश्न 7
निम्नांकित श्रेणी से समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा लघु दोनों रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 45
हल:
प्रत्यक्ष एवं लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 46
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 47
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 48

प्रश्न 8
निम्नलिखित का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 49
हल:
संकेत – सर्वप्रथम वर्गान्तर समान अन्तराल के बनाने होंगे; क्योकि पहले वर्गान्तर में 1 का अन्तर है, दूसरे व तीसरे में 2 का तथा चौथे व पाँचवें में 5 का। अतः सुविधा के लिए पहले, दूसरे व तीसरे को मिलाकर एक वर्गान्तर बना लेंगे, जिसमें 5 का अन्तर होगा।

प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 50
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 51
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 52

प्रश्न 9
निम्नांकित का लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 53
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 54
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 55

प्रश्न 10
क, ख और ग आगरा के किसी इण्टरमीडिएट कॉलेज के परीक्षार्थी हैं। इन्होंने निम्नलिखित प्रश्न का समान्तर माध्य निकाला। तीनों परीक्षार्थियों के उत्तर एक-दूसरे से भिन्न थे। क का उत्तर 347, जबकि ख और ग के उत्तर क्रमशः 35 और 37 थे। समान्तर माध्य की गणना करके ज्ञात कीजिए कि इन परीक्षार्थियों में किसका उत्तर सही है?
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 56
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 57

प्रश्न 11
एक विद्यार्थी के पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य 40 है। छठे विषय में प्राप्त अंकों को सम्मिलित कर लेने पर समान्तर माध्य 46 हो जाता है। छठे विषय में उसे कितने अंक मिले?
हल:
पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 40
पाँच विषयों में कुल प्राप्त अंक = 40 x 5 = 200
छः विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 46
छः विषयों में कुल प्राप्त अंक। = 46 x 6 = 276
छठे विषय में प्राप्तांक = छः विषयों के कुल प्राप्तांक-पाँच विषयों के कुल प्राप्तांक
छठे विषय के प्राप्तांक = 276 – 200 = 76

प्रश्न 12
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 58
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 59

प्रश्न 13
निम्नलिखित आँकड़ों से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 60
हल:
सर्वप्रथम वर्गान्तर को अपवर्जी श्रेणी बनाकर तथा संचयी आवृत्ति को सामान्य आवृत्ति में बदल लेंगे, तत्पश्चात् प्रश्न को अग्रवत् हल करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 61

प्रश्न 14
10 छात्रों के अंक इस प्रकार हैं
10, 28, 32, 12, 18, 20, 25, 15, 26, 14. प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए।
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 62

प्रश्न 15
निम्नलिखित समंकों में से प्रत्यक्ष रीति द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 63
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 64
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 65

प्रश्न 16
निम्नलिखित समंकों में से अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 66
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 67

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 68

प्रश्न 2
एक आदर्श माध्य के गुण बताइए।
उत्तर:
एक आदर्श माध्य में निम्नलिखित आवश्यक गुण होने चाहिए

  1. स्पष्ट परिभाषा।
  2. श्रेणी के सभी पदों पर आधारित।
  3. माध्य सरल होना चाहिए।
  4. अंकगणितीय एवं बीजगणितीय विवेचन सम्भव।
  5. उच्चावचनों का कम प्रभाव।
  6. माध्य से निकाली गयी संख्या निश्चित एवं निरपेक्ष होनी चाहिए।

प्रश्न 3
एक व्यक्ति की मासिक आय रुपये में नीचे दी गयी है। प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य कीजिए [2008]
1400, 1350, 1500, 1750, 1100
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 69

प्रश्न 4
निम्नलिखित आवृत्ति सारणी के आधार पर छात्रों को प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2007]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 70
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 71

निश्चित उतरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य किसे कहते हैं? [2008, 11, 12, 13, 15]
या
समान्तर माध्य को परिभाषित कीजिए। [2013, 14]
उत्तर:
समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है।
या
वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, उस समूह का समान्तर माध्य कहलाती है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
समान्तर माध्य दो प्रकार के होते हैं

  1. सरल समान्तर माध्य तथा
  2. भारित समान्तर माध्य।

प्रश्न 3
सरल समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है?
उत्तर:
सरल समान्तर माध्य की गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है। सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है? [2009, 11]
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है।
पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य ज्ञात करना भारित समान्तर माध्य है।

प्रश्न 5
समान्तर माध्य की तीन सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य की गणना करते समय सभी समंक समान गुण वाले होने चाहिए।
(2) उच्चावचनों का कम प्रभाव होना चाहिए।
(3) समान्तर माध्य की गणना योग्य एवं कुशल व्यक्ति के द्वारा की जानी चाहिए जिससे कि समान्तर माध्य शुद्ध प्राप्त हो सके।

प्रश्न 6
अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 72

प्रश्न 7
समान्तर माध्य के दो गुण बताइए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य में सरलता का गुण पाया जाता है।
(2) समान्तर माध्य सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 8
समान्तर माध्य के दो दोष लिखिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य ज्ञात करने में सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है। किन्तु बड़े मूल्यों के पद समान्तर माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं।
(2) समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं।

प्रश्न 9
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 73

प्रश्न 10
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009,11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 74

प्रश्न 11
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009, 11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 75

प्रश्न 12
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 76

प्रश्न 13
भारित समान्तर माध्य की गणना हेतु लघु विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य का लघु विधि का सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 77

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
केन्द्रीय प्रवृत्ति की एक माप है
(क) समान्तर माध्य
(ख) माध्य विचलन
(ग) प्रमाप विचलन
(घ) सह-सम्बन्ध
उत्तर:
(क) समान्तर माध्य।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य का मूल्य श्रेणी के सभी चरों के मूल्य के
(क) योग के बराबर होता है।
(ख) वर्गों के योग के बराबर होता है।
(ग) योग में चरों की संख्या से गुणा करने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है ।
उत्तर:
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।

प्रश्न 3
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 78
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79

प्रश्न 4
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 81

प्रश्न 5
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 82
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 83

प्रश्न 6
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 84
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 85

प्रश्न 7
53 छात्रों के प्राप्तांकों का समान्तर माध्य 53 है। यदि प्रत्येक छात्र के प्राप्तांकों में 3 की वृद्धि कर दी जाए तो प्राप्तांकों का समान्तर माध्य
(क) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] = 53 [latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] हो जाएगा।
(ख) 53 + 3 = 56 हो जाएगा।
(ग) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] = 54[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] हो जाएगा।
(घ) 53 + 32 = 62 हो जाएगा।
उत्तर:
(ख) 53 +3 = 56 हो जाएगा।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 c
Chapter Name भारत की विदेश नीति
Number of Questions Solved 31
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। भारत की विदेशी नीति का सबसे प्रमुख लक्षण क्या है?
या
भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान का परीक्षण कीजिए।
या
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013, 14]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया और 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हो जाने के बाद से भारत प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति। अब तक भारत की विदेश नीति के मूलाधार पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित आदर्श रहे हैं। भारत की विदेश नीति उनके द्वारा दिखाये गये अहिंसा, मैत्री, मानवता, सहयोग और स्नेह के सद्गुणों पर आधारित रही है। पण्डित नेहरू ने बुद्ध के पंचशील जैसे महान् शब्द को लेकर अपनी विदेश नीति में पंचशील को मुख्य आधार बनाया था। भारत की विदेश नीति विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक रही है। इस विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य और आधार निम्नलिखित हैं –

1. शान्ति का पोषक – भारत का सदैव से यही प्रयास रहा है कि विश्व से युद्धों की समाप्ति हो, विस्फोटक वातावरण के स्थान पर शान्ति का वातावरण स्थापित हो। विश्व में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से भारत ने सदैव ही विश्व के सभी राष्ट्रों से मैत्री बनाये रखने का प्रयत्न किया है। पण्डित नेहरू और अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी ने मिलकर विश्व शान्ति का पोषण करने में सक्रिय कार्य किये। पण्डित नेहरू ने सोवियत संघ के साथ भी मधुर सम्बन्ध बनाये रखे। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और श्री राजीव गाँधी ने भी विश्व में शान्ति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास – विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय संघ संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत ने सदैव पूरी रुचि ली है तथा इसके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों और निर्देशों का सदा तत्परता से पालन किया है। कश्मीर के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश पर भारत ने तुरन्त युद्ध-विराम कर लिया था। इसके अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों-कोरिया, कांगो, वियतनाम, बांग्लादेश, इजरायल, अफगानिस्तान, हंगरी और स्वेज नहर आदि की समस्या सुलझाने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पूर्ण सहयोग दिया।

3. गुट-निरपेक्षता की नीति – पं० जवाहरलाल नेहरू ने एक नीति विकसित की थी कि हम किसी एक गुट के साथ न तो विशेष मित्रता रखेंगे और न ही शत्रुता। हम तटस्थ रहेंगे। हमारा उद्देश्य विश्व के दोनों गुटों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाना रहेगा। यह गुट-निरपेक्षता की नीति बहुत लोकप्रिय हुई थी। विश्व के बहुत-से राष्ट्र इस गुट-निरपेक्षता की नीति का पालन करते हैं। अब तो गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का एक प्रबल संगठन बन गया है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शासनकाल में यह गुट-निरपेक्षता का कार्य बहुत तेजी से हुआ। वे 1983 ई० में इस संगठन की अध्यक्षा थीं और उनके नेतृत्व में ही सातवाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन दिल्ली में 7 मार्च से 12 मार्च, 1983 तक हुआ जिसमें 101 देशों ने भाग लिया। स्व० प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने भी गुट-निरपेक्ष नीति का ही पालन किया है। 16वाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन 26 अगस्त से 31 अगस्त तक तेहरान (ईरान) में सम्पन्न हुआ था। भारत की ओर से हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने इस सम्मेलन में सक्रिय भूमिका निभाई तथा गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किये।

4. पंचशील : विदेश नीति की आत्मा – पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने जब भारत की विदेश नीति के आदर्श और व्यवहार निर्धारित किये, तब उन्होंने पाँच मुख्य ध्येय निर्धारित किये। भगवान् बुद्ध के पंचशील शब्द से प्रेरणा पाकर नेहरू जी ने इन्हें पंचशील की संज्ञा दी। ये पंचशील यथार्थ में भारत की विदेश नीति की आत्मा बन गये। इसलिए इन पर ही भारत की विदेश नीति आधारित थी। ये पंचशील के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. अखण्डता की रक्षा – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता की रक्षा करनी चाहिए। एक-दूसरे की स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय सीमा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। यह मैत्री और सार्वभौमिकता का महान् सिद्धान्त है।
  2. युद्ध को टालना – भारत कभी भी निरुद्देश्य युद्ध नहीं करेगा और दूसरे देशों के साथ भी यही प्रयास करेगा कि वे युद्ध न करें।
  3. गृह-नीति में हस्तक्षेप न करना – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  4. सहयोग की नीति – सभी राष्ट्रों को मानवता के आदर्श का पालन करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे से सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
  5. स्वतन्त्रता की रक्षा – कोई भी राष्ट्र कभी-भी ऐसा प्रयास न करे, जिससे किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जाए।

भारत की विदेश नीति का एक लक्ष्य धीरे-धीरे यह बनता गया कि सोवियत रूस को अपना परम मित्र मानकर भारत उनकी ओर विशेष रूप से झुकता चला गया। यह प्रक्रिया पण्डित नेहरू के समय में ही प्रारम्भ हो गयी थी। लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी ने भी सोवियत रूस से अत्यधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध अपनाये। इस सन्दर्भ में भारत और सोवियत रूस के प्रमुख नेताओं की क्रमश: सोवियत और भारत यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण रही।

हाल ही में अमेरिका तथा भारत के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आयी है।

इस तरह उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत की विदेश नीति पंचशील आदर्शों पर आधारित रही है। सभी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध और पंचशील के महान् आदर्श इस विदेश नीति के प्रमुख आधार हैं। पं० जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “विश्व में शान्ति स्थापित करना ही हमारी वैदेशिक नीति का प्रमुख उद्देश्य है।”

प्रश्न 2.
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएँ बताइए। [2009, 12, 13]
या
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्षणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
भारत की विदेश नीति के मूल (आधारभूत) सिद्धान्तों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। [2008, 13]
या
भारत की विदेशी नीति के प्रमुख तत्त्वों का परीक्षण कीजिए। [2009]
या
भारत की विदेशी नति के चार सिद्धान्तों को बताइए एवं पंचशील की व्याख्या कीजिए। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख मूल सिद्धान्त क्या हैं? [2010, 11]
या
भारत की विदेश नीति के आधारभूत तत्त्वों (लक्षणों) का वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर :
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं –

1. राष्ट्रीय हित – किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति का प्रमुख आधार राष्ट्रीय हित होता है। भारतीय विदेश नीति के निर्धारण में भी इस तत्त्व का विशेष महत्त्व है। भारतीय विदेश नीति में राष्ट्रीय हित के महत्व को स्पष्ट करते हुए विदेश नीति के सृजनकर्ता कहे जाने वाले भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री नेहरू का मत था कि “हम चाहे कोई भी नीति निर्धारित करें, देश की वैदेशिक नीति से सम्बन्धित की गयी चतुरता राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने में ही निहित है। भारत की प्रत्येक सरकार अपने राष्ट्रीय हितों को ही प्राथमिकता और सर्वोपरिता देगी। कोई भी सरकार ऐसे आचरण का खतरा नहीं उठा सकती जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल हो।’

2. गुट-निरपेक्षता की नीति – गुट-निरपेक्षता अथवा असंलग्नता की नीति भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय सम्पूर्ण विश्व को दो गुटों में बँटा देख भारतीय प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने नव स्वतन्त्र राष्ट्रों के लिए एक पृथक् सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसके अन्तर्गत नवे स्वतन्त्र राष्ट्रों द्वारा दोनों गुटों से पृथक् रहने की नीति को अपनाया गया। गुटों से पृथक् रहने की इसी नीति को गुट-निरपेक्षता की नीति के नाम से जाना जाता है।

3. मैत्री और सह-अस्तित्व की नीति – भारतीय विदेश नीति की एक अन्य प्रमुख विशेषता मैत्री और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व पर बल देती है। भारत विश्व के सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बनाने में विश्वास रखता है।

4. विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने पर बल – भारतीय विदेश नीति द्वारा विश्व के दोनों विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं। इस सम्बन्ध में भारत ने विश्व राजनीति में शक्ति का सन्तुलन बनाये रखने में दोनों गुटों के मध्य कड़ी का कार्य किया है।

5. साधनों की पवित्रता की नीति – भारतीय विदेश नीति साधनों की पवित्रता पर विशेष बल देती है। यह नैतिकता व आदर्शवादिता का समर्थन करती है तथा अनैतिकता व अवसरवादिता का घोरें विरोध करती है।

6. पंचशील – भारत शान्ति का पुजारी है, इसलिए उसने विश्व शान्ति स्थापित करने की नीति अपनायी है। 1954 ई० में उसने पंचशील को अपनी विदेश नीति का अंग बनाया। पंचशील का सिद्धान्त महात्मा बुद्ध के उन पाँच सिद्धान्तों पर आधारित है जो उन्होंने व्यक्तिगत आचरण के लिए निर्धारित किये थे। पंचशील के सिद्धान्तों का सूत्रपात पं० जवाहरलाल नेहरू व चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई के मध्य तिब्बत समझौते के समय हुआ था। पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का सम्मान करें।
  2. कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करे और सभी राष्ट्र एक-दूसरे की स्वतन्त्रता का आदर करें।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए।
  4. प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करे तथा पारस्परिक हित में सहयोग करे।
  5. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का सभी राष्ट्र पालन करें।

7. निःशस्त्रीकरण में आस्था – भारत हमेशा विश्व-शान्ति का समर्थक रहा है, इसलिए भारत ने सदैव नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया है। भारत का मत है विश्व-शान्ति तभी स्थापित की जा सकती है जब भय और आतंक का वातावरण उत्पन्न करने वाली शस्त्रों की दौड़ से दूर रहा जाए और सभी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिज्ञा-पत्र का पूर्ण ईमानदारी एवं सच्चाई से पालन करें।

8. संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग – भारत ने सदा ही विश्व-हितों को प्रमुखता दी है। प्रारम्भ से ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग किया है। इसके महत्त्व के विषय में पं० नेहरू ने कहा था कि, “हम संयुक्त राष्ट्र संघ के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते।’ कोरिया, हिन्दचीन, साइप्रस एवं कांगो की समस्याओं के समाधान में भारत ने अपनी रुचि दिखलाई थी और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश पर भारत ने यहाँ अपनी सेनाएँ भेजकर शान्ति-स्थापना में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। भारत ने कभी अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेशों का यथोचित सम्मान किया। भारत के यथोचित सम्मान दिये जाने के कारण ही भारत चार बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य चुना गया। डॉ० राधाकृष्णन यूनेस्को के सर्वोच्च पद पर रहे। श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित साधारण सभा की सभापति रह चुकी हैं। प्रो० बी० ए० राव ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

9. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – साम्राज्यवादी शोषण से त्रस्त भारत ने अपनी विदेश नीति में साम्राज्यवाद के प्रत्येक रूप का कटु विरोध किया है। भारत इस प्रकार की प्रवृत्तियों को विश्व-शान्ति एवं विश्व-व्यवस्था के लिए घातक एवं कलंकमय मानता है। 1956 ई० में जब इंग्लैण्ड व फ्रांस मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर स्वेज नहर को हड़पना चाहते थे तो भारत ने इसे नवीन साम्राज्यवाद का घोर विरोध किया। भारत ने लीबिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, मलाया, अल्जीरिया आदि देशों के स्वतन्त्रता संग्राम का पूरा समर्थन किया। दक्षिणी अफ्रीका व रोडेशिया के प्रजातीय विभेद का भारत ने जोरदार विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र संघ में यह प्रश्न उठाता रहा। के० एम० पणिक्कर के अनुसार, “भारत की नीति हमेशा से यही रही है कि यह पराधीन लोगों की स्वतन्त्रता के प्रति आवाज उठाता रहा है एवं भारत का दृढ़ विश्वास रहा है कि साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद हमेशा से आधुनिक युद्धों का कारण रहा है।”

इस प्रकार भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ सिद्धान्त का पालन कर रही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का सबसे मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर :
असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता भारत की विदेश नीति का सबसे प्रमुख लक्षण है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ही भारत के द्वारा निश्चित कर लिया गया कि भारत इन दोनों विरोधी गुटों में से किसी में भी शामिल न होते हुए विश्व के सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करेगा और इस दृष्टि से भारत के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति का पालन किया जाएगा। वास्तव में भारत के द्वारा असंलग्नता की विदेश नीति को अपनाने के कुछ विशेष कारण थे। प्रथमतः यदि भारत किसी गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेता तो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उसकी स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती। वह विश्व राजनीति में स्वतन्त्र रूप से भाग नहीं ले सकता था। दूसरे पक्ष के अनुसार ही अपनी विदेश नीति तय करनी पड़ती, अत: अपने सम्मान को बनाए रखने के लिए असंलग्नता की नीति ही श्रेयस्कर थी। द्वितीयतः सैकड़ों वर्षों के साम्राज्यवादी शोषण से मुक्ति के बाद भारत के सम्मुख सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न आर्थिक पुनर्निर्माण का था और आर्थिक पुनर्निर्माण का यह कार्य विश्व शान्ति के वातावरण में ही सम्भव था। अत: भारत के लिए यही स्वाभाविक था कि वह सैनिक गुटों से अलग रहते हुए अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने का प्रयत्न करे। इस प्रकार राष्ट्रीय हितों और विश्व शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति अपनायी गयी है।

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

प्रश्न 2.
भारत की लुक ईस्ट (पूरब की ओर देखो) की नीति क्या है?
उत्तर :
‘पूरब की ओर देखो’ की नीति

वर्ष 1991 में रूस के विघटन तथा अमेरिका के नेतृत्व में उभरती एक ध्रुवीय व्यवस्था व वैश्वीकरण के आलोक में भारत ने अपनी विदेश नीति को नया आयाम दिया तथा उसे व्यावहारिकता प्रदान की। 1991 में भारत ने ‘लुक ईस्ट’ नीति का आरम्भ किया जिसमें ‘एशियान’ (ASEAN) सहित पूर्वी एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों का विस्तार करना था। शीत युद्ध के युग में भारत व पूर्वी एशिया के देशों के पारस्परिक सम्बन्धों को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

1996 में भारत को ‘एशियान’ संगठन में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त हुआ तथा तब से भारत लगातार इसकी शिखर-वार्ताओं में भाग लेता रहा है। वर्ष 2002 में एशियान-भारत शिखरवार्ताओं की शुरुआत हुई। इसी प्रकार सातवीं शिखर-वार्ता अक्टूबर, 2009 में चोम हुआ हिन (थाईलैण्ड) में तथा आठवीं शिखर-वार्ता 2 अक्टूबर, 2010 में हनोई में सम्पन्न हुई, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाग लिया। भारत व एशियन के मध्य नौवीं शिखर-वार्ता 2011 में जकार्ता में तथा 10वीं शिखर-वार्ता 2012 में दिल्ली में सम्पन्न हुई। इसमें आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त लड़ाई हेतु सहमति बनी। एशियान देशों के साथ बढ़ते सम्बन्धों के कारण द्विपक्षीय व्यापार 1990 में 22.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2009 में 40 बिलियन डॉलर हो गया। भारत व एशियान देशों के मध्य अगस्त, 2009 में मुक्त व्यापार समझौता सम्पन्न हुआ, जिसमें 4,000 वस्तुओं पर सीमा कर में कटौती की जाएगी। इससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को लागू हो गया है। भारत ने 2005 से ही पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रतिवर्ष भाग लेना आरम्भ किया है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यूरोपीय संघ की तर्ज पर पूर्वी एशिया में एक आर्थिक समुदाय का विकास करना है।

भारत ने 1996 में एशियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की सदस्यता प्राप्त की थी। यह मंच एशियान क्षेत्र में सुरक्षा सम्बन्धी सहयोग का एक मंच है। भारत तथा पूर्वी एशिया के देशों ने यूरोपियन कम्युनिटी की तर्ज पर पूर्वी एशिया कम्युनिटी की स्थापना का लक्ष्य रखा है। भारत ने पूर्व की ओर देखो नीति की सफलता को देखते हुए इसके दूसरे चरण की शुरुआत 2001 में की, जहाँ इसके प्रथम चरण (1991-2001) में एशियान देशों के साथ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ावा दिया गया था। वहीं दूसरे चरण में एशियान के अतिरिक्त पूर्वी एशिया के अन्य देशों-दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ सम्बन्धों को बढ़ाता जा रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के उददेश्य बताइए। [2013]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखना।
  2. सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों में सन्धियों के पालन के प्रति आस्था बनाये रखना।
  4. सैनिक गुटबन्दियों और समझौते से अपने आपको अलग रखना तथा ऐसी गुटबन्दियों को निरुत्साहित करना।
  5. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना।

प्रश्न 2.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013]
उत्तर :
पंचशील के सिद्धान्त

भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख तत्त्व पंचशील या शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्त रहे। ये पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सर्वोच्च सत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना।
  2. एक-दूसरे के क्षेत्र पर आक्रमण का परित्याग।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का संकल्प।
  4. समानती और पारस्परिक लाभ के सिद्धान्तों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना। .
  5. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व।

भारत इस बात के लिए प्रयत्नशील है कि विश्व के विभिन्न राज्यों के द्वारा अपने पारस्परिक व्यवहार में पंचशील के इन पाँचों सिद्धान्तों को स्वीकार कर लिया जाए। पंचशील के सिद्धान्तों को सबसे पहले अपनाने वाले देश चीन के द्वारा इन सिद्धान्तों का खुला उल्लंघन किया गया, किन्तु इससे पंचशील के सिद्धान्तों का महत्त्व कम नहीं हो जाता।

प्रश्न 3.
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। [2010]
उत्तर :
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति

1962 के पूर्व तक भारतीय विदेश नीति को सामान्यतया सफल समझा जाता था, लेकिन 1962 में चीन के बड़े पैमाने पर आक्रमण और भारतीय सेना की पराजय ने भारतीय विदेश नीति की सफलता के भ्रम को समाप्त कर दिया। अत: नेहरू युग में ही भारतीय विदेश नीति पर पुनर्विचार प्रारम्भ हो गया और इस पुनर्विचार के आधार पर उत्तर-नेहरू युग में भारतीय विदेश नीति ने आदर्शवादिता के स्थान पर राष्ट्रीय हितों के अनुरूप एक यथार्थवादी मोड़ ले लिया। शीतयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त भारत ने अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारा है। यह व्यावहारिकता का प्रतीक है। 2008 में अमेरिका के साथ भारत ने सिविल परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसी प्रकार राष्ट्रहित के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत में पूर्वी एशिया, अफ्रीका सेण्ट्रल एशिया आदि के प्रति नीतियों में परिवर्तन किया है। भारतीय विदेश नीति की यह यथार्थवादिता जिन घटनाओं के रूप में देखी जा सकती है, उनमें दो-तीन निश्चित रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

प्रश्न 4.
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए किन सिद्धान्तों का अनुसरण किया है?
उत्तर :
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुसरण का सदैव ध्यान रखा है –

  1. सम्पूर्ण विश्व में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण बनाये रखने में हर सम्भव सहयोग देना।
  2. विश्व के सभी देशों से सम्मानजनक सम्बन्ध न्यायसंगत आधार पर बनाये रखना।
  3. विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने के साथ अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों और सन्धियों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने की दिशा में प्रयासरत रहना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
किसी भी देश की विदेश नीति की मूल आधारशिला क्या होती है?
उत्तर :
किसी भी देश की विदेश नीति का सबसे प्रमुख आधार होता है-‘राष्ट्रीय हित’।

प्रश्न 2.
भारत व एशियान के मध्य मुक्त व्यापार समझौता कब लागू हुआ? (2012)
उत्तर :
भारत व एशियान मुक्त व्यापार समझौता वर्ष 2010 में लागू हुआ। इस समझौते पर हस्ताक्षर वर्ष 2009 में किए गए थे।

प्रश्न 3.
भारत ने प्रथम अणु परीक्षण कब किया व अन्तरिक्ष में पहला चरण कब आगे बढ़ाया?
उत्तर :
प्रथम अणु परीक्षण 18 मई, 1974 को पोखरण में किया गया और प्रथम भू-उपग्रह ‘आर्यभट्ट प्रथम’ 19 अप्रैल, 1975 को अन्तरिक्ष में भेजा गया।

प्रश्न 4.
1996 में आणविक निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में कौन-सी सन्धि सम्पन्न हुई है?
उत्तर :
1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि’ सम्पन्न हुई है। यह सन्धि भेदभावपूर्ण है, इसलिए भारत ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं?

प्रश्न 5.
भारत ने दूसरी बार अणु परीक्षण कब किया?
उत्तर :
भारत ने दूसरी बार आणविक परीक्षण मई, 1998 में पाँच आणविक परीक्षण के रूप में किये।

प्रश्न 6.
भारत की विदेश नीति की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए। [2007]
या
पंचशील के कोई दो मुख्य सिद्धान्त बताइए। [2016]
उत्तर :

  1. गुट-निरपेक्षता की नीति तथा
  2. विश्वशान्ति।

प्रश्न 7.
पंचशील के किसी एक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
अहस्तक्षेप।

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प्रश्न 8.
इण्डिया, ब्राजील, साउथ अफ्रीका (IBSA) ‘इब्सा’ की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
उतर :
इब्सा’ की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी।

प्रश्न 9.
पंचशील के दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए। [2012, 14, 15, 16]
उतर :

  1. प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का पारस्परिक सम्मान एवं
  2. समानता और पारस्परिक हित में सहयोग।

प्रश्न 10.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण लिखिए। [2007]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की नीति भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण है।

प्रश्न 11.
भारतीय विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर :
भारत की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य अपने राष्ट्रीय हितों में अभिवृद्धि करना है।

प्रश्न 12.
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ क्या है?
उत्तर :
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है-जिस व्यक्ति या देश के साथ मतभेद हों, उसके साथ भी शान्तिपूर्वक रहना।

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प्रश्न 13.
शिमला समझौता कब एवं किनके बीच हुआ था?
उत्तर :
शिमला समझौता जुलाई, 1972 ई० में भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री जैड० ए० भुट्टो के बीच हुआ था।

प्रश्न 14.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर :
स्व० पण्डित जवाहरलाल नेहरू।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य है
(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना
(ख) सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना
(ग) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति
(ख) विश्वशान्ति
(ग) साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध
(घ) ये सभी

प्रश्न 3.
‘परमाणु परीक्षण रोक सन्धि’ कब हुई थी?
(क) 1960 में
(ख)1962 में
(ग) 1963 में
(घ) 1965 में

प्रश्न 4.
‘भारत-सोवियत संघ मैत्री सन्धि’ कब सम्पन्न हुई?
(क) 8 अगस्त, 1970 को
(ख) 9 अगस्त, 1971 को
(ग) 9 सितम्बर, 1972 को
(घ) 11 अगस्त, 1975 को

प्रश्न 5.
भारत ने अपना प्रथम अणु परीक्षण कब किया?
(क) 10 मई, 1972 को
(ख) 10 अगस्त, 1973 को
(ग) 18 मई, 1974 को
(घ) 9 सितम्बर, 1975 को।

प्रश्न 6.
भारत ने पूरब की ओर देखो’ की नीति की शुरुआत कब की? [2012]
(क) 1990
(ख) 1991
(ग) 1992
(घ) 1993

प्रश्न 7.
स्वतन्त्र भारत का पहला विदेश मन्त्री कौन था?
(क) अम्बेडकर
(ख) सरदार पटेल
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) सरदार स्वर्ण सिंह

प्रश्न 8.
भारत की विदेशी नीति के निर्माता हैं [2014]
(क) महात्मा गांधी
(ख) विनोबा भावे
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) डॉ० अम्बेडकर

प्रश्न 9.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक थे [2014]
(क) सरदार वल्लभभाई पटेल
(ख) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) दलाई लामा

उत्तर :

  1. (घ) उपर्युक्त सभी
  2. (घ) ये सभी
  3. (ग) 1963 में
  4. (ख) 9 अगस्त, 1971 को
  5. (ग) 18 मई, 1974 को
  6. (ख) 1991
  7. (क) अम्बेडकर
  8. (ग) जवाहरलाल नेहरू
  9. (ख) पं० जवाहरलाल नेहरू।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य के रूप में भारत

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 b
Chapter Name संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य के रूप में भारत
Number of Questions Solved 39
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य के रूप में भारत

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों का विवरण दीजिए। उनमें से सुरक्षा परिषद् के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए। [2007, 11]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों की संख्या लिखिए। [2013]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंगों का वर्णन कीजिए तथा विश्व शान्ति की स्थापना में इसकी भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। [2013]
उतर :
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ‘सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन के आधार पर 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र के छः मुख्य अंग हैं, जो निम्नलिखित हैं –

1. साधारण सभा या महासभा – साधारण सभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे प्रमुख अंग है। संघ के सभी सदस्य साधारण सभा के सदस्य होते हैं। प्रत्येक सदस्य राज्य को इसमें 5 प्रतिनिधि भेजने का अधिकार होता है।

2. सुरक्षा परिषद् – यह संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यकारिणी है। इसका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। 1 जनवरी, 1966 से परिषद् में 15 सदस्य हैं जिनमें 5 स्थायी तथा 10 अस्थायी सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का ‘हृदय’ व ‘दुनिया की पुलिसमैन’ कही जाने वाली सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यपालिका है। सुरक्षा परिषद् में कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से 5 स्थायी सदस्य व 10 अस्थायी सदस्य हैं। पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस तथा ब्रिटेन हैं। इसके अतिरिक्त अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए किया जाता है। सुरक्षा परिषद् में किसी भी विषय पर निर्णय 15 में से 9 सदस्य राष्ट्रों की स्वीकृति द्वारा होता है। इसमें भी 5 स्थायी सदस्य राष्ट्रों का स्वीकारात्मक मत होना अनिवार्य होता है। यदि पाँचों में से एक भी स्थायी सदस्य प्रस्ताव पर विरोध प्रकट करता है तो प्रस्ताव को रद्द समझा जाता है। इस अधिकार को स्थायी राष्ट्रों का निषेधाधिकार (वीटो) कहा जाता है।

3. आर्थिक व सामाजिक परिषद् – इस परिषद् का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र की आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु सहयोग प्राप्त करना है। इसमें इस समय 54 सदस्य हैं।

4. प्रन्यास परिषद् – इस परिषद् का मुख्य कार्य अविकसित और पिछड़े हुए प्रदेशों के हितों की रक्षा करना है। यह कार्य उन्नत व विकसित सदस्यों के द्वारा किया जाता है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – यह संयुक्त राष्ट्र संघ का न्यायिक अंग है। न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जो साधारण सभा व सुरक्षा परिषद् द्वारा 9 वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित होते हैं। न्यायालय में सभी निर्णय बहुमत से होते हैं। न्यायालय केवल ऐसे ही विवादों पर विचार कर सकता है जिनसे सम्बन्धित सभी पक्ष विवादों को न्यायालय के सम्मुख विचारार्थ प्रस्तुत करें।

6. सचिवालय – इसके सचिवालय का प्रधान महामन्त्री और संघ की आवश्यकतानुसार कर्मचारी वर्ग होता है। महामन्त्री की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर साधारण सभा द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है।

सुरक्षा परिषद् के कार्य

संयुक्त राष्ट्र संघ घोषणा-पत्र की धारा 24, 25 व 26 के अन्तर्गत उल्लिखित सुरक्षा परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. विश्व-शान्ति व सुरक्षा बनाये रखना तथा इसके भंग होने की स्थिति में कारणों की जाँच करना व विचार-विमर्श कर समझौता, अपील या बाध्यकारी आदेश देकर उसका समाधान करना।
  2. किसी राष्ट्र द्वारा निर्णय व नियमों का उल्लंघन किये जाने पर उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही (कूटनीतिक, आर्थिक या सैनिक) करना।
  3. महासभा में नये सदस्य राष्ट्रों के आवेदन-पत्रों पर विचार करना व सुझाव देना।
  4. संयुक्त राष्ट्र संघ का महासचिव सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही महासभा द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  5. सुरक्षा परिषद् को एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य अपनी वार्षिक रिपोर्ट महासभा को प्रेषित करने से सम्बन्धित है।
  6. विश्व में प्राणघातक अस्त्रों के नियमन का प्रयत्न करना।

[ संकेत – विश्व शान्ति की स्थापना में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका के अध्ययन हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का अध्ययन करें। ]

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता तथा असफलता के कारण उदाहरण सहित बताइए। [2007]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व-शान्ति स्थापित करने में किस प्रकार सहायक है?
या
विश्व शान्ति स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र का क्या योगदान है? [2011]
उत्तर :
सन् 1920 में स्थापित राष्ट्र संघ की असफलता के कारण सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी। संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन से विश्व के राष्ट्रों को यह आशा बँधी कि यह अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं तथा विवादों का निराकरण शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराकर विश्व-शान्ति एवं सुरक्षा को बनाये रखने में पूर्ण सफल होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति में अत्यधिक सीमा तक सफल रहा है, परन्तु यह अन्तर्राष्ट्रीय संगठन महाशक्तियों की स्वार्थपरता के कारण अनेक अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण में असफल भी रहा है। खाड़ी युद्ध, कुर्द समस्या, रूस का चेचेन्या पर आक्रमण, पूर्वी तिमोर की समस्या, परमाणु शस्त्रों के परिसीमन में अवरोध आदि अनेक अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएँ इस तथ्य की पुष्टि करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ (सफलताएँ)

विश्व-शान्ति को बनाये रखने के लिए संघ की सुरक्षा परिषद् तथा महासभा ने निम्नलिखित प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में एक बड़ी सीमा तक सफलता प्राप्त की है –

1. रूस-ईरान विवाद (1946 ई०) – संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से ईरान के अजरबैजान क्षेत्र में सोवियत संघ की सेनाओं के द्वारा प्रवेश करने की समस्या को दोनों देशों में सीधी वार्ता कराकर 21 मई, 1946 तक रूसी सेनाओं से ईरानी प्रदेश को खाली करा दिया गया।

2. यूनान विवाद (1946-47 ई०) – 3 दिसम्बर, 1946 को यूनान ने संयुक्त राष्ट्र संघ से शिकायत की कि उनकी सीमाओं पर साम्यवादी राज्य आक्रामक कार्यवाहियाँ कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने यूनान तथा साम्यवादी राज्यों में समझौता कराकर इस विवाद को सुलझाने में सफलता प्राप्त की।

3. हॉलैण्ड-इण्डोनेशिया विवाद (1947-48 ई०) – द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त 1947 ई० में हॉलैण्ड तथा इण्डोनेशिया के मध्य युद्ध छिड़ गया। 20 जुलाई, 1947 को ऑस्ट्रेलिया तथा भारत ने इस मामले को सुरक्षा परिषद् में उठाया। समिति के प्रयत्नों के फलस्वरूप 17 जनवरी, 1948 को दोनों पक्षों में एक अस्थायी समझौता हो गया।

4. बर्लिन का घेरा (1948 ई०) – 23 सितम्बर, 1948 को मित्र-राष्ट्रों ने रूस के द्वारा बर्लिन की घेरेबन्दी का मामला सुरक्षा परिषद् में उठाया। परिणामस्वरूप 4 मई, 1949 के एक समझौते के द्वारा रूस ने 12 मई, 1949 को बर्लिन की घेराबन्दी समाप्त कर दी।

5. फिलिस्तीन की समस्या (1948 ई०) – संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से 13 सितम्बर, 1993 को फिलिस्तीन को सीमित स्वतन्त्रता प्रदान करने वाले एक समझौते पर यासिर अराफात और इजराइली प्रधानमन्त्री रॉबिन ने हस्ताक्षर कर दिये। 25 जुलाई, 1994 को जॉर्डन के शाह हुसैन और रॉबिन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर करके अपनी शत्रुता का अन्तं कर दिया।

6. सीरिया और लेबनान की समस्या (1946 ई०) – 4 फरवरी, 1946 को सीरिया और लेबनान ने अपने प्रदेश से फ्रांसीसी सेनाओं को हटाने की माँग की। सुरक्षा परिषद् में विश्व जनमत के दबाव को देखते हुए ब्रिटेन और फ्रांस ने सीरिया तथा लेबनान से अपनी सेनाएँ वापस बुला लीं। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र इस समस्या को हल करने में सफल रहा।

7. स्पेन की समस्या (1946 ई०) – 1946 ई० में पोलैण्ड ने सुरक्षा परिषद् से यह शिकायत की कि स्पेन में फ्रांको के तानाशाही शासन के कारण अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को खतरा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने इस सम्बन्ध में यह सिफारिश की कि फ्रांको की सरकार को संयुक्त राष्ट्र और उसकी सहायक संस्थाओं की सदस्यता से वंचित कर दिया जाए, किन्तु बाद में यह सिफारिश रद्द कर दी गयी और 1955 ई० में स्पेन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता भी प्रदान कर दी गयी।

8. कोरिया की समस्या (1950-51 ई०) – द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त कोरिया; उत्तरी कोरिया और दक्षिणी कोरिया के मध्य विभक्त हो गया था। महाशक्तियों के आपसी मतभेदों के फलस्वरूप 1950 ई० में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर भीषण आक्रमण कर दिया। सुरक्षा परिषद् ने उत्तरी कोरिया को आक्रमणकारी घोषित कर दिया। जुलाई, 1951 ई० में दोनों पक्षों में समझौता हो गया और युद्ध भी बन्द हो गया। यह संयुक्त राष्ट्र की एक उल्लेखनीय सफलती थी, क्योंकि उसी के प्रयासों के कारण ही कोरिया युद्ध विश्व युद्ध का रूप धारण नहीं कर सका था।

9. कश्मीर समस्या – पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर, 1947 को उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइलियों द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करा दिया। 1 जनवरी, 1948 को भारत ने सुरक्षा परिषद् से इस विषय में शिकायत की। 17 जनवरी, 1948 को सुरक्षा परिषद् ने दोनों पक्षों को युद्ध बन्द करने का आदेश दिया, परन्तु युद्ध समाप्त नहीं हुआ। समस्या के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित आयोग ने दोनों पक्षों से बातचीत की। पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद दोनों पक्षों ने 1 जनवरी, 1949 को युद्ध-विराम मान लिया।

10. स्वेज नहर की समस्या (1956 ई०) – 26 जुलाई, 1956 को कर्नल नासिर द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर मिस्र में स्वेज नहर कम्पनी’ की सम्पत्ति को जब्त (Freeze) कर लिया गया। ब्रिटेन और फ्रांस के आग्रह पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 राष्ट्रों का एक सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में अमेरिकी प्रतिनिधि डलेस ने यह प्रस्ताव रखा कि स्वेज नहर को निरस्त अधिकार-क्षेत्र में रखा जाए और उसकी देखभाल का उत्तरदायित्व अन्तर्राष्ट्रीय स्वेज नहर बोर्ड’ को सौंप दिया जाए जो कि अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के समक्ष प्रस्तुत करे तथा स्वेज नहर को सभी देशों के लिए खोल दिया जाए। 15 नवम्बर, 1956 को संयुक्त राष्ट्र की सेना की एक टुकड़ी कर्नल नासिर की अनुमति से मिस्र पहुँच गयी। अप्रैल, 1957 ई० में स्वेज नहर पुनः जहाजों के आवागमन के लिए खोल दी गयी। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ स्वेज नहर की समस्या को हल करने में सफल हुआ।

11. कांगो की समस्या (1960 ई०) – कांगो की भीषण समस्या को भी हल करने में संयुक्त राष्ट्र संघ को सफलता प्राप्त हुई। कांगो का एकीकरण करके संयुक्त राष्ट्र ने अपना काम पूरा कर दिया, परन्तु आज भी कांगो की समस्या पूरी तरह सुलझ नहीं पायी है।

12. साइप्रस की समस्या (1964 ई०) – 16 अगस्त, 1960 को साइप्रस ब्रिटिश अधीनता से मुक्त होकर एक स्वतन्त्र गणराज्य बन गया। तत्पश्चात् साइप्रस में उत्पन्न गृहयुद्ध की समस्या को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वहाँ शान्ति सेना भेजी गयी व सेना द्वारा वहाँ शान्ति स्थापित की गयी।

13. डोमिनिकन गणराज्य विवाद (1965 ई०) – 1964 ई० के अन्त में वेस्टइण्डीज के हेटी टापू के एक भाग में स्थित डोमिनिकन गणराज्य में गृहयुद्ध छिड़ गया। संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिकी राज्यों के प्रयत्नों के कारण दोनों पक्षों में एक समझौते के बाद वहाँ शान्ति स्थापित हो गयी।

14. अरब-इजराइल युद्ध (1967 ई०) – 7 जून, 1967 को सुरक्षा परिषद् ने एक प्रस्ताव पारित करके अरबों तथा इजराइल को तत्काल ही युद्ध बन्द करने का आदेश दिया। फलस्वरूप 8 जून, 1967 को दोनों पक्षों ने युद्ध बन्द कर दिया।

15. अरब-इजराइल युद्ध (1973 ई०) – अक्टूबर, 1973 ई० में अरब-इजराईल के बीच पुनः युद्ध प्रारम्भ हो गया। लेकिन महाशक्तियों की स्वार्थप्रियता के कारण तत्काल ही सुरक्षा परिषद् ने इस युद्ध को रोकने की कोई कार्यवाही नहीं की। जब युद्ध उग्र रूप धारण करने लगा तब संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से 11 नवम्बर, 1973 को इज़राइल तथा मिस्र के मध्य एक छः सूत्रीय समझौता हो गया।

16. वियतनाम की समस्या (1974 ई०) – 1964 ई० में अमेरिका ने वियतनाम संघर्ष में खुलकर हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। महाशक्तियों की स्वार्थप्रियता के कारण उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के मध्य संघर्ष 1974 ई० तक चलता रहा। विश्व जनमत के दबाव के कारण अमेरिका को वियतनाम से अपनी सेनाएँ हटानी पड़ीं और अन्ततः उत्तरी तथा दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण हो गया।

17. दक्षिणी रोडेशिया की समस्या (1980 ई०) – संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव के फलस्वरूप 17 अप्रैल, 1980 को भीषण छापामार युद्ध के पश्चात् रोडेशिया को स्वाधीनता प्राप्त हो गयी और ‘जिम्बाब्वे’ के नाम से उसे संघ की सदस्यता भी दे दी गयी।

18. अमेरिकी बन्धकों की समस्या – 4 नवम्बर, 1979 को ईरान की राजधानी तेहरान में स्थित अमेरिकी दूतावास की घेराबन्दी करके कुछ कट्टर इस्लामी छात्रों ने 52 अमेरिकी राजनयिकों को बन्दी बना लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से अमेरिकी बन्धकों को मुक्ति मिल सकी।

19. फाकलैण्ड की समस्या (1982 ई०) – 12 अप्रैल, 1982 को अर्जेण्टाइना की सेनाओं ने अचानक ही फाकलैण्ड द्वीपसमूह पर आक्रमण करके उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से 14 जून, 1982 को अर्जेण्टाइना की सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और फाकलैण्ड पर पुन: ब्रिटेन का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

20. ईरान-इराक युद्ध (1988 ई०) – सीमा विवाद को लेकर 22 सितम्बर, 1980 को ईरान व इराक के मध्य उत्पन्न युद्ध संयुक्त राष्ट्र द्वारा मध्यस्थता करने पर अगस्त, 1988 ई० में समाप्त हुआ।

21. नामीबिया की समस्या (1990 ई०) – नामीबिया एक लम्बे समय से अपनी स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्नशील था। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में 13 दिसम्बर, 1988 को कांगो की राजधानी ब्रांजविले में दक्षिण अफ्रीका, क्यूबा और अंगोला के प्रतिनिधियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते के बाद 21 मार्च, 1990 को नामीबिया एक स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया।

22. कुवैत की समस्या (खाड़ी युद्ध 1991 ई०) – इराक ने अपनी साम्राज्यवादी लिप्सा की पूर्ति के लिए अपने पड़ोसी देश कुवैत पर अधिकार कर लिया। सुरक्षा परिषद् के आदेश से संयुक्त राज्य अमेरिका व मित्र-राष्ट्रों की सेना ने खाड़ी युद्ध में इराक को नतमस्तक करके कुवैत को मुक्त कराया।

23. यूगोस्लाविया की समस्या (1992 ई०) – 1992 ई० में यूगोस्लाविया में भीषण जातीय संघर्ष छिड़ गया, जिसमें बीस हजार से अधिक लोग मारे गये। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में भारत के लेफ्टीनेण्ट जनरल सतीश नाम्बियार के नेतृत्व में 25 हजार सैनिकों की एक सेना यूगोस्लाविया में शान्ति स्थापना हेतु भेजी गयी। इस सेना ने यूगोस्लाविया (वर्तमान बोसनिया) में शान्ति की स्थापना की।

24. सोमालिया की समस्या (1993 ई०) – 1991 ई० को राष्ट्रपति मोहम्मद सैयद की पदच्युति के बाद गृहयुद्ध और अधिक तेज हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सेना की सहायता से सोमालिया में शान्ति स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के अनेक राष्ट्रों की गम्भीर समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने में सफलता प्राप्त की है। यदि इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ की सकारात्मक भूमिका नहीं होती तो तीसरे विश्व युद्ध की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकती थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ की विफलताएँ।

आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की कुछ जटिल समस्याएँ ऐसी भी हैं जिनका समाधान करने में संयुक्त राष्ट्र संघ विफल रहा है; जैसे –

  1. कम्पूचिया की समस्या।
  2. रूस का चेचेन्या पर आक्रमण (1996 ई०)।
  3. खाड़ी क्षेत्र की समस्या (दिसम्बर, 1996 ई०)।
  4. अफगानिस्तान में गृहयुद्ध (अक्टूबर, 1996 ई०)।
  5. कोसोवो की समस्या (1999 ई०) जिसमें NATO संगठन के देशों ने अमेरिका तथा ब्रिटेन के नेतृत्व में कोसोवो पर सैनिक हमला किया।
  6. इराक के सैनिक ठिकानों की खोज का कार्यक्रम (1998 ई०), जहाँ रासायनिक अस्त्रों के भण्डार को छुपाया गया था। कुछ स्थानों की तलाशी न दिये जाने के कारण अमेरिका ने इराक पर (1999 ई०) सैनिक आक्रमण कर दिया।
  7. पाकिस्तान (जून, 1999 ई०) द्वारा भारतीय सीमा पर अन्तर्राष्ट्रीय नियन्त्रण रेखा का उल्लंघन कर भाड़े के घुसपैठियों द्वारा कारगिल क्षेत्र में युद्ध जैसी कार्यवाही करना।
  8. 1999 ई० में उत्पन्न पूर्वी तिमोर की समस्या।
  9. अफगानिस्तान में अकवाद की समस्या (2001 ई०), इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष (मार्च 2002 ई०) तथा अमेरिका द्वारा इराक पर आक्रमण (मार्च 2003 ई०), रूस का चेचेन्या में हस्तक्षेप (दिसम्बर 2004 ई०), इराक में आतंकी विस्फोट (अप्रैल 2005 ई०), रूस व जापान के बीच द्वीपों का विवाद (जनवरी 2006 ई०), ईराने की परमाणु नीति (मार्च 2006 ई०) आदि।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बनाये रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है, फिर भी हम संयुक्त राष्ट्र को एक आदर्श संस्था के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि इस संस्था में महाशक्तियों के प्रभुत्व का बोलबाला है। कुछ विद्वानों ने तो यहाँ तक टिप्पणी की है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका ने खरीद लिया है। आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र संघ की अपेक्षा विश्व राजनीति पर अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हो गया है।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्व शान्ति की स्थापना में भारत की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2007]
या
‘भारत की संयुक्त राष्ट्र में सदैव ही पूर्ण आस्था रही है। इस कथन के प्रकाश में, संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका की विववेचना कीजिए।
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्व शान्ति में भारत की भूमिका

भारत संयुक्त राष्ट्र की स्थापना करने वाला एक संस्थापक सदस्य है। भारत संयुक्त राष्ट्र को विश्व-शान्ति स्थापित करने वाला एक आवश्यक उपागम मानता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों तथा विशेष अभिकरणों में सक्रिय भाग लेकर महत्त्वपूर्ण कार्य किये है। भारत ने आज तक संयुक्त राष्ट्र के आदेशों का पूर्णतः पालन किया है। कोरिया तथा हिन्द-चीन में शान्ति स्थापित करने के लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सहायता की। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर कांगों में शान्ति स्थापना हेतु अपनी सेनाएं भेजीं जिन्होंने उस देश की एकता को सुरक्षित रखा।

भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में विश्व शान्ति की स्थापना में भूमिका को निम्न प्रकार समझा जा सकता है।

1. गैर-राष्ट्रों के संघर्षों की समाप्ति में योगदान – भारत ने क्रोशिया तथा बोस्निया-हर्जेगोविना में हुए संघर्षों को समाप्त करने के उद्देश्य से सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों को पूरा समर्थन दिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा दल के प्रयासों से लेफ्टिनेण्ट जनरल सतीश नाम्बियार की माण्ड में यूगोस्लाविया में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन के लिए भेजी गई सेना की विश्वभर में प्रशंसा हुई। भारत ने सोमालियों को मानवीय सहायता तत्काल भेजने में संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाही का समर्थन किया तथा उसके कार्यों में सहयोग दिया।

2. भारतीय सेनाओं का योगदान – संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय सेनाओं के कार्यों की प्रशंसा की है। भारत ने कांगो में शान्ति स्थापना के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं। उन्होंने निष्पक्षता के साथ वहाँ शान्ति तथा सुरक्षा की स्थापना करके देश की एकता को बचाया। इसके अतिरिक्त, भारत ने सोमालिया में भी शान्ति स्थापनार्थ अपनी सेवाएँ भेजीं। भारतीय सेनाएँ यूगोस्लाविया, कम्बोडिया, लाइबेरिया, अंगोला तथा मोजाम्बिक में संयुक्त राष्ट्र की शान्ति स्थापनार्थ कार्यवाही में सफलतापूर्वक भाग लेकर सम्मान सहित स्वदेश लौटी हैं। भारत ने एक टुकड़ी संयुक्त राष्ट्र अंगोला वेरीफिकेशन मिशन (U.N. Angola Verification Mission) पर जुलाई, 1995 में भेजी। वर्ष 1996-97 की अवधि में लगभग 1,100 भारतीय सैनिक, स्टाफ अधिकारी तथा सैनिक पर्यवेक्षक अंगोला में तैनात रहे। इतना ही नहीं, भारत ने संयुक्त राष्ट्र रवांडा मिशन पर थल सेना की एक बटालियन भेजी जिसमें 800 सैनिकों की टुकड़ी तथा एक आन्दोलन नियन्त्रण यूनिट सम्मिलित थी। 22 सैन्य पर्यवेक्षक तथा 9 स्टाफ अधिकारियों को भी नियुक्त किया गया था। इस समय 5 सैनिक पर्यवेक्षक संयुक्त राष्ट्र इराक-कुवैत पर्यवेक्षक मिशन में और 6 पर्यवेक्षक लाइबेरिया में तैनात हैं।

सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त राष्ट्र की शान्ति मिशन की वर्तमान 17 कार्यवाहियों में इस समय लगभग 80,000 असैनिक तथा सैनिक कार्यरत् हैं, जिनमें भारत के 6,000 कार्मिक हैं।। नवम्बर, 1998 में दक्षिणी लेबनान में भारतीय इन्फैण्ट्री बटालियन के सम्मिलित हो जाने से भारत संयुक्त राष्ट्र शान्ति स्थापना में दूसरा सबसे बड़ा सैनिक सहायता देने वाला देश बन गया है।

3. आर्थिक सहयोग पर महत्त्वपूर्ण कार्य – भारत ने संयुक्त राष्ट्र से सम्बन्धित देशों के आह्वान पर आर्थिक सहयोग पर अधिक-से-अधिक बल दिया है तथा यथायोग्य सहायता भी प्रदान की है। विभिन्न देशों के साथ आर्थिक सहयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र के लिए स्थापित संयुक्त । कमीशन तथा तकनीकी कार्यक्रमों के विकास में पूर्ण सहयोग दिया है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए तथा प्रादेशिक अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर आर्थिक सहयोग का समर्थन किया है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि भारत ने आर्थिक विकास के लिए विश्व में अपनी अच्छी साख बनाई है। विभिन्न गुटनिरपेक्ष सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों . में, अंकटाड की बैठकों में, संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक समस्याओं पर होने वाले विशेष विचारविमर्श में, विशेषकर कच्चे माल और विकास के विषय में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में पर्याप्त बल दिया गया है।

4. लोकतन्त्र के सिद्धान्त पर बल – संयुक्त राष्ट्र में विचार-विमर्श की अवधि में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के लोकतान्त्रिक स्वरूप और सुरक्षा परिषद् तथा संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों को बढ़ी । हुई सदस्य संख्या के अनुरूप अधिक प्रतिनिधि बनाने का दृढ़ता के साथ समर्थन किया। भारत ने अपने प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्गत ही लोकतन्त्र के सिद्धान्त को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया तथा 1994 ई० में महासभा के 49वें सत्र में सामान्य बहस के समय परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए अपना दावा भी किया। महासभा में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल के नेता ने कहा कि जनसंख्या, अर्थव्यवस्था का आकार, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की स्थापना में भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य होना अनिवार्य समझा जाना चाहिए।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत और संयुक्त राष्ट्र के सम्बन्ध संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से ही मैत्रीपूर्ण तथा सहयोगी रहे हैं। भारत ने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा सैन्य क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया है। विशेषतः संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेन्सियों के तत्त्वावधान में एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के पिछड़े हुए देशों को दी गई सहायता तथा मानवीय अधिकारों की घोषणा में भारत ने पूर्ण सहयोग दिया है। आर्थिक दृष्टि से अभावग्रस्त जातियों, समुदायों के सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने में भारत का योगदान प्रशंसनीय रहा है।

लघु उत्तरीय प्रठा (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की संगठनात्मक कमियों पर प्रकाश डालिए तथा उसके सुधार के उपाय सुझाइए। [2007]
उत्तर :
सुरक्षा परिषद् की संगठनात्मक कमियों को समझने के लिए सर्वप्रथम उसकी संरचना पर दृष्टिपात करना वांछित होगा।

सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यकारिणी है और इसका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। 1 जनवरी, 1966 से परिषद् में 15 सदस्य हैं जिनमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं। परिषद् के 5 स्थायी सदस्य हैं–संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी गणराज्य, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और साम्यवादी चीन। शेष 10 अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्ष के लिए होता है। 1965 ई० के संशोधन के अनुसार इन अस्थायी सदस्यों में 5 स्थान अफ्रीकी, एशियाई राज्यों, 2 स्थान लैटिन अमेरिकी राज्यों, 2 स्थान पश्चिमी यूरोपीय देशों और एक स्थान पूर्वी यूरोपीय राज्यों को मिलना चाहिए जिससे सभी क्षेत्रों को परिषद् में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाए।

संगठनात्मक कमियाँ तथा सुधार के उपाय

सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। वर्तमान समय में यह अनुभव किया जा रहा है कि सुरक्षा परिषद् में एशियाई-अफ्रीकी तथा लैटिन अमेरिकी राज्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। अत: परिषद् में अस्थायी और स्थायी विशेषतया स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर उन्हें उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।

सामान्य सुझाव यह है कि परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी जानी चाहिए और जापान, जर्मनी, भारत तथा अफ्रीकी और लैटिन अमेरिका के एक-एक देश को परिषद् की स्थायी सदस्यता प्रदान की जानी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्थिति तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रति भारत के निरन्तर सहयोग के आधार पर भारत का परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए ठोस दावा बनता है। जापान ने भी भारत को स्थायी सदस्यता प्रदान किए जाने का पुरजोर समर्थन किया है।

परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (Veto) प्राप्त है। यह अधिकार भी विवादास्पद तथा दोषपूर्ण है। यह भी सुझाव है कि सुरक्षा परिषद् में सभी निर्णय बहुमत के आधार पर किये जाएँ तथा निषेधाधिकार को निरस्त कर दिया जाए।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
या
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो मुख्य उद्देश्य बताइए। [2014, 15, 16]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो प्रमुख उद्देश्य बताइए। [2016]
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य

अनुच्छेद 1 में दिए गए उद्देश्यों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र का सर्वप्रमुख कार्य अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शान्ति बनाए रखना है। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की व्यवस्था करना।
  2. पारस्परिक मतभेदों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना।
  3. प्रत्येक राष्ट्र को समान समझना और समान अधिकार देना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक एवं मानवीय समस्याओं को सुलझाने में सहयोग देना।
  5. समस्त मानव-जाति के अधिकारों का सम्मान करना।

संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त

घोषणा-पत्र के अनुच्छेद 2 में संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का वर्णन है। इसमें वर्णित कुछ सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. सभी सदस्य राष्ट्र एकसमान और सम्प्रभुतासम्पन्न हैं।
  2. सभी सदस्य राष्ट्र संघ के प्रति अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करेंगे।
  3. सदस्य-राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण तरीकों से हल करेंगे।
  4. सदस्य-राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र के प्रतिकूल न तो बल प्रयोग की धमकी देगे और न ही शक्ति का प्रयोग करेंगे।
  5. सदस्य-राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में सहायता देंगे और उन राष्ट्रों की सहायता नहीं करेंगे, जिनके विरुद्ध संघ ने कोई कार्यवाही की हो।
  6. कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र किसी राष्ट्र के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) की स्थापना व सदस्यता पर संक्षिप्त टिपणी लिखिए।
उतर :
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना

प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर विश्व में शान्ति स्थापित करने तथा विश्व शान्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना की गई थी, परन्तु अनेक कारणों से राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य में असफल रहा और 1939 ई० में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया; अतः भविष्य में युद्धों को रोकने और विश्व में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से युद्धकाल में ही किसी ऐसी संस्था की आवश्यकता अनुभव की गई, जो इस उद्देश्य की पूर्ति कर सके। फलतः युद्धकाल में ही अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट, रूस के राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा अनेक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में नवीन अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना पर विचार किया गया और अन्त में इसी सन्दर्भ में मित्र-राष्ट्रों को 26 जून, 1945 को अमेरिका के प्रसिद्ध नगर सैनफ्रांसिस्को में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र’ का गठन किया गया तथा संयुक्त राष्ट्र के कार्यों एवं उद्देश्यों के सन्दर्भ में एक घोषणा-पत्र (Charter) तैयार किया गया। इस घोषणा-पत्र पर 24 अक्टूबर, 1945 को 51 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए। इस समय संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 193 है। दक्षिणी सूडान इसका नया सदस्य राष्ट्र है, जिसे 2011 में इसमें शामिल किया गया। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में है।

सदस्यता

विश्व का कोई भी शान्तिप्रिय राष्ट्र जो संयुक्त राष्ट्र की शर्ते या नियम मानने को तैयार हो, इसको सदस्य बन सकता है। सदस्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन-पत्र दिया जाता है, जिस पर सुरक्षा परिषद् एवं महासभा विचार करती हैं। दोनों की स्वीकृति पाने पर राष्ट्र को सदस्यता–पत्र दे दिया जाता है। सुरक्षा परिषद् बहुमत से सदस्यता प्रदान करती है, परन्तु इसके लिए परिषद् के स्थायी सदस्यों की सहमति तथा महासभा के 2/3 बहुमत का समर्थन आवश्यक है। सदस्यता प्राप्ति के समय उसे (सदस्यता प्राप्त करने वाले देश को) पारस्परिक झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने की प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। प्रतिज्ञा का उल्लंघन करने की स्थिति में उसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र द्वारा कार्यवाही की जाती है।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति स्थापना कार्यों में भारत की भूमिका बताइए। [2008]
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे प्रमुख उद्देश्य है। भारत ने इस उद्देश्य की पूर्ति में संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरा सहयोग दिया है। 1947 ई० में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया और अगस्त, 1965 ई० में पुनः जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, तब भारत ने राष्ट्र संघ के प्रस्ताव को माना, जब कि वह चाहता तो शक्ति के आधार पर इस प्रश्न को सुलझा सकता था।

1950 ई० में उत्तरी कोरिया द्वारा दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण किया गया। इस आक्रमण से ‘कोरियाई युद्ध’ आरम्भ हो गया और ऐसा लगने लगा कि कहीं यह युद्ध विश्व युद्ध का रूप न ले ले। इस युद्ध को रोकने के लिए ही भारत ने प्रस्ताव पारित कराया। इस प्रस्ताव को कार्यान्वित कराने वाले आयोग का अध्यक्ष भी भारत को ही बनाया गया। जनरल थिमैया की अध्यक्षता में भारतीय सैनिकों ने युद्ध-बन्दियों को स्वदेश लौटाने का कार्य बड़ी सावधानी से किया।

कोरियों की तरह ही कांगो में भी भारतीय सैनिक भेजे गये तथा प्रतिनिधि श्री राजेश्वर दयाल ने कांगो में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के व्यक्तिगत प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। इस समस्या को हल कराने में श्री वी० कृष्णामेनन ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। भारत के प्रयास से ही जेनेवा में सम्मेलन बुलाया गया और यहीं युद्ध-बन्दी तथा अस्थायी सन्धि का प्रस्ताव पास हुआ। युद्धविराम सन्धि को लागू करने के लिए बनाये गये आयोग की अध्यक्ष भी भारत को ही बनाया गया। लाओस और कम्बोडिया में भी भारतीय सेना ने बहुत प्रशंसनीय भूमिका निभायी।

हंगरी एवं स्वेज संकट भी तृतीय विश्व युद्ध को जन्म दे सकते थे। इन संकटों को भी भारत ने राष्ट्र संघ के माध्यम से सुलझाया। भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अपने दायित्व को भली-भाँति समझते हुए ईरान-इराक युद्ध की समाप्ति, दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद की नीति को समाप्त करने और नामीबिया की स्वतन्त्रता और उपनिवेशवाद के अन्त से सम्बन्धित अनेक कार्यों के लिए निरन्तर प्रयत्न किये। इस प्रकार भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ को शान्ति और सुरक्षा के कार्यों में पूरा-पूरा सहयोग प्रदान किया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के कार्यों का वर्णन कीजिए। [2015, 16]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। [2010, 15]
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का संगठन

महासभा, संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसे ‘विश्व संसद’ के रूप में भी जाना जाता है। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को इसमें अपने पाँच प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है, किन्तु किसी भी निर्णायक मतदान के अवसर पर उन पाँचों का केवल एक ही मत माना जाता है। इस सभा का अधिवेशन वर्ष में एक बार सितम्बर में होता है। यद्यपि इसके बहुमत अथवा सुरक्षा परिषद् के आग्रह पर संघ का महासचिव विशेष अधिवेशन भी बुला सकता है। इसके अतिरिक्त एक निर्वाचित अध्यक्ष तथा सात उपाध्यक्ष संघ के पदाधिकारी होते हैं। महासभा प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय विषय पर विचार कर सकती है। साधारण विषयों में निर्णय बहुमत से लिया जाता है, किन्तु विशेष विषयों के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। भारत की विजयलक्ष्मी पंडित महासभा के अध्यक्ष पद पर रहने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के कार्य

संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • यह अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करती है।
  • सुरक्षा परिषद् अपने 10 अस्थायी तथा सामाजिक, आर्थिक परिषद् के 54 सदस्यों तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का निर्वाचन करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट को स्वीकृति प्रदान करती है।
  • विश्व शान्ति के लिए आवश्यक विषयों पर सुरक्षा परिषद् का ध्यान आकर्षित कराती है।

प्रश्न 2.
निषेधाधिकार (वीटो पावर) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार की शक्ति प्रदान की गई है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि पाँचों स्थायी सदस्यों में से कोई एक सदस्य सुरक्षा परिषद् में किए गए निर्णय से सहमत नहीं, तो वह इस निर्णय को वीटो पावर के माध्यम से रद्द कर सकता है।

प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के विषय में बताइए।
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रमुख अंग के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय को आविर्भाव सन् 1945 ई० में हुआ जिसे विश्व न्यायालय के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र विश्व न्यायालय नीदरलैण्ड की राजधानी हेग में स्थित है।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनकी नियुक्ति 9 वर्ष की अवधि के लिए महासभा तथा सुरक्षा परिषद् के बहुमत से की जाती है।

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प्रश्न 4.
सुरक्षा परिषद् के चार महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए। [2007, 10]
उत्तर :
सुरक्षा परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा स्थापित करना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष और विवाद के कारणों की जाँच करना और उसके निराकरण के शान्तिपूर्ण समाधान के उपाय खोजना।
  3. युद्ध को तत्काल बन्द करने के लिए आर्थिक सहायता को रोकना और सैन्य शक्ति का प्रयोग करना।
  4. महासभा को नए सदस्यों के सम्बन्ध में सुझाव देना।
  5. अपनी वार्षिक रिपोर्ट तथा अन्य रिपोर्टों को महासभा के पटल पर रखना।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के विषय में बताइए।
उत्तर :
संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य राष्ट्र महासभा के प्रतिनिधि झेते हैं। प्रत्येक राष्ट्र महासभा के लिए 5 प्रतिनिधि, 5 वैकल्पिक प्रतिनिधि तथा अनिश्चित संख्या में अपने सलाहकार भेज सकता है। लेकिन प्रत्येक देश को चाहे वह छोटा हो या बड़ा, महासभा में मात्र एक मत देने का ही अधिकार प्राप्त है। स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्य संख्या 51 थी, जो वर्तमान में बढ़कर 193 हो गयी है।

प्रश्न 6.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। यह स्वास्थ्य कार्यों से सम्बन्धित विश्व का सबसे बड़ा अभिकरण है।

स्वास्थ्य से तात्पर्य केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति न होकर पूर्ण शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कल्याण की दशा से है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु यह संस्था अनेक कार्य करती है; जैसे-राष्ट्रीय सरकारों की स्वास्थ्य सेवा सुदृढ़ करने में सहायता देना, संकटकाल में तकनीकी सहायता तथा सलाह देना, रोगों को दूर करने की योजनाएँ बनाना तथा उन्हें कार्यान्वित करना, अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय तथा करारों को प्रस्तावित करना आदि।

प्रश्न 7.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष (IMF) कब स्थापित किया गया था तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उतर :
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना दिसम्बर, 1945 ई० में की गयी थी। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी० सी० में है। इसकी स्थापना का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन देना, व्यापार के सन्तुलित विकास को प्रोत्साहित करना, सदस्यों के मध्य विनिमय में स्थिरता को बढ़ाना तथा उस सम्बन्ध में पारस्परिक स्पर्धा को हटाना, विदेशी विनिमय-प्रतिबन्धों को हटाना, सदस्यों को धन उपलब्ध कराकर उनमें विश्वास उत्पन्न करना तथा सदस्यों के मध्य भुगतान से अन्तर्राष्ट्रीय सन्तुलन में असमानताओं को कम करना आदि हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंगों के नाम बताइए। [2012]
उत्तर :

  1. महासभा
  2. सुरक्षा परिषद्
  3. सामाजिक और आर्थिक परिषद्
  4. सचिवालय
  5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय तथा
  6. संरक्षण परिषद्।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कोई दो प्रमुख उद्देश्य बताइए। [2007, 10]
उत्तर :

  1. विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना करना।
  2. नागरिकों की समानता एवं आत्म-निर्णय के अधिकार के आधार पर राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ की उस संस्था का नाम लिखिए जो जन-स्वास्थ्य के लिए कार्य करती है।
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.)।

प्रश्न 4.
सुरक्षा परिषद् में कितने सदस्य होते हैं ? [2009, 11, 12]
उत्तर :
पन्द्रह सदस्य।

प्रश्न 5 :
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की कुल संख्या बताइए।
या
सुरक्षा परिषद के दो स्थायी सदस्य देशों के नाम लिखिए। [2008, 09, 10, 12]
उत्तर :
सुरक्षा परिषद् में पाँच स्थायी सदस्य, संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, रूस, फ्रांस तथा साम्यवादी चीन हैं।

प्रश्न 6.
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर :
सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष होता है।

प्रश्न 7.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या कितनी है?
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 15 है।

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव कौन हैं ? [2011, 14, 16]
उत्तर :
बान-की-मून।

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प्रश्न 9
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में से किन्हीं दो सदस्य राष्ट्रों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर :
अमेरिका, रूस।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय कहाँ है? [2007, 15, 16]
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में।

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के दो गैर-यूरोपियन स्थायी सदस्य देशों के नाम लिखिए। [2008, 14]
उत्तर :
चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ परिषद् के दो गैर-यूरोपियन स्थायी सदस्य हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई – [2008, 13]
(क) 20 जनवरी, 1946 को
(ख) 24 अक्टूबर, 1945 को
(ग) 13 दिसम्बर, 1945 को
(घ) 1 जनवरी, 1946 को

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ है? [2007, 10]
(क) पेरिस में
(ख) लन्दन में
(ग) न्यूयॉर्क में
(घ) मास्को में

प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
(क) न्यूयॉर्क में
(ख) वाशिंगटन डी० सी० में
(ग) पेरिस में
(घ) हेग में

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का प्रधान कार्यालय कहाँ स्थित है?
(क) हेग में
(ख) पेरिस में
(ग) न्यूयॉर्क में
(घ) लन्दन में

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है? [2012]
(क) इंग्लैण्ड
(ख) अमेरिका
(ग) रूस
(घ) भारत

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में अस्थायी सदस्यों की संख्या होती है – [2007]
(क) पाँच
(ख) दस
(ग) पन्द्रह
(घ) बारह

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है?
(क) ब्रिटेन
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ग) फ्रांस
(घ) जर्मनी

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान सदस्य संख्या कितनी है?
(क) 181
(ख) 190
(ग) 193
(घ) 201

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट संस्था नहीं है? [2007]
(क) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
(ख) खाद्य एवं कृषि संगठन
(ग) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

प्रश्न 10.
किस दिन को प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाता है ? [2008, 10, 14]
(क) 1 मई
(ख) 1 दिसम्बर
(ग) 24 अक्टूबर
(घ) 6 अगस्त

प्रश्न 11.
सुरक्षा परिषद् में कुल कितने सदस्य हैं? [2007, 09, 11, 12, 13]
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन संयुक्त राष्ट्र संघ का अंग नहीं है [2012]
(क) सुरक्षा परिषद्
(ख) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(ग) आर्थिक तथा सामाजिक परिषद्
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है? [2012]
(क) इंग्लैण्ड
(ख) अमेरिका
(ग) रूस
(घ) भारत

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किस वर्ष हुई थी? [2015]
(क) सन् 1942
(ख) सन् 1945
(ग) सन् 1946
(घ) सन् 1947

उत्तर :

  1. (ख) 24 अक्टूबर, 1945 को
  2. (ग) न्यूयॉर्क में
  3. (ख) वाशिंगटन डी० सी० में
  4. (क) हेग में
  5. (घ) भारत
  6. (ख) दस
  7. (घ) जर्मनी
  8. (ग) 193
  9. (ख) खाद्य एवं कृषि संगठन
  10. (ग) 24 अक्टूबर
  11. (ग) 15
  12. (ख) विश्व स्वास्थ्य संगठन
  13. (घ) भारत
  14. (ख) सन् 1945।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 a
Chapter Name राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रमण्डल क्या है? वर्तमान विश्व में इसके महत्व का मूल्यांकन कीजिए। [2013]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या है? इसका सदस्य कौन हो सकता है? [2010, 14]
या
राष्ट्रमण्डल के गठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए। [2010]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसकी स्थापना कब हुई थी? इसमें कितने सदस्य हैं? इसका मुख्यालय कहाँ है? [2012]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या हैं? राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत के कार्यों की चर्चा कीजिए। [2013]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल उन देशों का संगठन है जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग बराबर के सम्बन्ध स्थापित कर लिये। वस्तुतः ‘ब्रिटिश साम्राज्य’, ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ तथा ‘राष्ट्रमण्डल’ एक ही संस्था के नाम हैं, जो परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक से इसका प्रारम्भ हुआ था। 1907 ई० के सम्मेलन में इसका नाम ‘इम्पीरियल कॉन्फ्रेंस’ निश्चित किया गया और 1931 ई० के वेस्टमिन्स्टर विधान में इसका नाम बदलकर ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ कर दिया गया। 1947 ई० में भारत की स्वतन्त्रता के बाद जब भारत के द्वारा गणतन्त्र के साथ-साथ राष्ट्रमण्डल की सदस्यता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की गयी तो अप्रैल, 1949 ई० के सम्मेलन में इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रमण्डल’ (Commonwealth of Nations) रखा गया और गणतन्त्रों के लिए सम्राट् के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गयी। इसका मुख्यालय मार्लबेरो हाउस लंदन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। इसमें वर्तमान सदस्य देशों की संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्व वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है, वरन् मैत्री, विश्वास, स्वातन्त्र्य-इच्छा और शान्ति की भावना पर आधारित मानवीय संगठन है जिसका कोई संविधान, सन्धि, समझौता, लिखित नियम या कानून नहीं हैं और जो केवल सदस्यों की पारस्परिक सद्भावना पर टिका हुआ है। राष्ट्रमण्डल के सभी राष्ट्र स्वतन्त्र और समान हैं और इसमें ब्रिटिश सम्राट् के प्रति किसी प्रकार की वफादारी होना जरूरी नहीं है। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त’ (High Commissioner) कहे जाते हैं।

राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र अपनी इच्छानुसार राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय नीति को मानते हैं और व्यवहार में भी अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर उनमें विचार-भेद की स्थिति देखी जाती है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

यद्यपि राष्ट्रमण्डल का कोई सामान्य बन्धन, लक्ष्य या ध्येय नहीं है तथापि इसमें सदस्य कुछ बातों पर प्रायः सहमत हैं जिन्हें राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य कहा जाता है।

ये इस प्रकार हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना।

राष्ट्रमण्डल के कार्य (महत्त्व)

राष्ट्रमण्डल के प्रमुख कार्य (महत्त्व) निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रमण्डल ने अनेक विषयों पर अपने सदस्य देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। छोटे सदस्य राष्ट्रों; जैसे–माल्टा, फिजी, कैमरून, न्यूगिनी, युगाण्डा, कीनिया आदि की अर्थव्यवस्था सुधार में सहयोग प्रदान करके उनके विकास को गति प्रदान करने में सहायता प्रदान की है।
  2. राष्ट्रमण्डल ने विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों तथा खेलों के आयोजनों से देशों के बीच आपसी सहयोग विकसित करने तथा उनकी प्रतिभाओं को आगे लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने अपनी विदेश नीति के मूल्यों एवं सिद्धान्तों के आधार पर राष्ट्रमण्डल के पारस्परिक सहयोग, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, नि:शस्त्रीकरण तथा आर्थिक सहयोग के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समय-समय पर उल्लेखनीय सहायता प्रदान की है।
  3. अक्टूबर, 2011 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित सदस्य देशों की बैठक में खाद्य सुरक्षा, वित्त, जलवायु परिवर्तन तथा व्यापार क्षेत्र की कई नई वैश्विक चुनौतियों से निपटने का आग्रह किया।
  4. राष्ट्रमण्डल में इक्कीसवीं सदी में चोगम को ही एक अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की अपील की गई।

राष्ट्रमण्डल की आलोचना (मूल्यांकन)

भारत में जनता का एक बड़ा वर्ग सदैव ही राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोधी रहा है तथा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाया जा रहा है। यह वर्ग निम्नलिखित आधारों पर राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध करता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता अंग्रेजों के प्रति भारतीयों की गुलामी का द्योतक है, इसलिए दासता का प्रतीक है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के आर्थिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। क्योंकि ब्रिटेन ने ‘यूरोपीय साझा बाजार’ की पूर्ण सदस्यता स्वीकार कर ली है।
  3. भारत-पाक सम्बन्धों में ब्रिटेन का भारत-विरोधी दृष्टिकोण रहा है।
  4. ब्रिटेन की राष्ट्रमण्डल के आधारभूत सिद्धान्तों (प्रजातन्त्र तथा मानवीय अधिकारों) में एकनिष्ठ तथा सच्ची निष्ठा नहीं है।

राष्ट्रमण्डल, राष्ट्रों का एक ढीला-ढाला संगठन है। विश्व राजनीति में इस संगठन की स्थिति अधिक सन्तोषजनक नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो जाने के कारण यह अब इस पर अपना पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में सक्षम नहीं है। अतः इस संगठन में ब्रिटेन की नीतियों के विरुद्ध भी विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। इस संगठन के सदस्य राष्ट्रों में भी पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव देखा जा रहा है।

[संकेत – राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका (कार्य) हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न 2 (150 शब्द) का अध्ययन करें।

लघू उत्तीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का अर्थ व उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल

कभी अंग्रेजी शासन के अधीन रहे देशों, जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग समानता के सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं, ने मिलकर राष्ट्रमण्डल की स्थापना की। राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्वों वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक में इसका प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1949 में इस संगठन का नाम ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से बदलकर राष्ट्रमण्डल कर दिया गया और गणतन्त्रों के लिए ब्रिटिश सम्राट के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गई। वर्ष 1949 में ही भारत इसका सदस्य देश बना। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त कहलाते हैं। राष्ट्रमण्डल का मुख्यालय मार्लबोरो हाउस लन्दन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। वर्तमान में राष्ट्रमण्डल की सदस्य संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना तथा अन्तर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक तथा मानव-कल्याण सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करना।
  4. सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान करना तथा खेल-कूद आदि की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
  5. सदस्य राष्ट्रों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना।

प्रश्न 2.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

स्वतन्त्रता आन्दोलन की कालावधि में कांग्रेस राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को त्यागने की वकालत करती थी, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसे सम्बन्ध में व्यावहारिक दृष्टिकोण से विचार किया गया तथा यह निश्चित किया गया कि भारत को राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक तथा आर्थिक दोनों ही लाभ हैं। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि भारत ने सदैव ही स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन किया है। जब सन् 1956 ई० में ब्रिटेन और मिस्र के बीच स्वेज नहर को लेकर संघर्ष आरम्भ हुआ, तब राष्ट्रमण्डल के सदस्य होते हुए भी भारत ने मिस्र का पक्ष लिया और ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का घोर विरोध करते हुए अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का प्रमाण दिया। इसी प्रकार मार्च 1962 ई० में आयोजित राष्ट्रमण्डलीय सम्मेलन में भारत ने दक्षिण अफ्रीका की रंग-भेद नीति की तीव्र आलोचना की। ब्रिटेन के यूरोपीय साझा बाजार में सम्मिलित होने के प्रश्न पर भी भारत ने अपने स्वतन्त्र विचार व्यक्त किए।

जब 1962 ई० में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सदस्यों ने भारत का ही समर्थन किया और भारत की विभिन्न प्रकार से सहायता की। ब्रिटेन ने भी चीन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध किया और अस्त्र-शस्त्र तथा अन्य प्रकार से हमारी सहायता की। यद्यपि ब्रिटेन की नीतियों के अन्तर्गत समय-समय पर भारत का विरोध हुआ है, जिसके कारण हमारे देश में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए प्रतिक्रिया भी हुई है, किन्तु इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रमण्डल की सदस्यता भारत के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। और उसे सदस्य राष्ट्रों से अनेक क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता रहा है। अतः भारत के राष्ट्रमण्डल से पृथक् होने की बात सर्वथा अनुचित है। इस समय भारत के ब्रिटेन के साथ सम्बन्ध काफी मधुर हैं। भारत के द्वारा जो परमाणु-परीक्षण किए गए हैं उनके सम्बन्ध में ब्रिटेन ने भारत पर अमेरिका की भाँति कोई आर्थिक प्रतिबन्ध आरोपित नहीं किए हैं।

वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन की 7वीं बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। 13-15 नवम्बर, 1999 ई० तक डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में राष्ट्रमण्डल देशों के शासनाध्यक्षों के चार दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने इसमें भाग लिया। इस सम्मेलन में अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के सैनिक शासन की कटु आलोचना की। भारत ने पाकिस्तान की राष्ट्रमण्डल देशों की सदस्यता से निलम्बन की माँग की तथा बैठक के पहले ही दिन राष्ट्रमण्डल के छह सदस्य देशों ने इस संगठन से पाकिस्तान के निलम्बन की माँग की पुष्टि कर दी।

5-7 दिसम्बर, 2003 ई० तक अबुजा (नाइजीरिया) सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् प्रस्ताव 1373 पर अमल सुनिश्चित करने के लिए बहुपक्षीय सहयेाग पर बल दिया।

वाजपेयी के निवर्तमान प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने माल्टा (2005), यूगांडा (2007) तथा त्रिनिडाड एवं टोबैगो (2009) में आयोजित राष्ट्रमण्डलों के शिखर सम्मेलनों में भाग लिया। उपराष्ट्रपति मो० हामिद अंसारी ने वर्ष 2011 में पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) में आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 27-29 नवम्बर, 2015 के मध्य 24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन का आयोजन भूमध्य सागरीय देश माल्टा में किया गया। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने इसमें भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस सम्मेलन का विषय था-‘वैश्विक मूल्यों को जोड़ना।। माल्टा सम्मेलन में भारत ने राष्ट्रमण्डल के गरीब देशों को स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग शुरू करने और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में मदद हेतु 25 लाख डॉलर उपलब्ध करवाने की घोषणा की। भारत ने इसके लिए राष्ट्रमण्डल जलवायु संकट हल’ बनाने का प्रस्ताव भी दिया। इससे पहले 23-26 नवम्बर, 2015 के मध्ये राष्ट्रमण्डल पीपुल्स फोरम का आयोजन किया गया। इसमें भारत की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा ने सम्बोधित किया।

भारत राष्ट्रमण्डल के बजट में चौथा सबसे अधिक योगदान करने वाला देश है परंतु राष्ट्रमण्डल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है, जैसे कि 1965 में इसके सचिवालय की स्थापना, 1971 की सिंगापुर घोषणा, 1991 की हरारे घोषणा तथा 1995 में मंत्री स्तरीय कार्य समूह की स्थापना। तथापि, भारत का सबसे उल्लेखनीय योगदान रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष के लिए अफ्रीका के सदस्य देशों के साथ एकता स्थापित करना है।

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प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता के भारतीय विरोध के चार कारण बताइए।
उत्तर :
भारत के अनेक विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध किया जा रहा है। इसके पीछे विचारकों ने निम्नलिखित मत दिये हैं –

  1. चूँकि ब्रिटेन ने सदियों तक हमें पराधीन रखा है तथा हमारा शोषण किया है; अतः राष्ट्रमण्डल की सदस्यता हमारी दास मनोवृत्ति की प्रतीक है। अतः हमें इसकी सदस्यता का परित्याग कर देना चाहिए।
  2. कश्मीर को लेकर भारत तथा पाकिस्तान में सदैव मतभेद रहे हैं, लेकिन राष्ट्रमण्डल के सबसे पुराने देश ब्रिटेन द्वारा सदैव आक्रमणकारी राष्ट्र पाकिस्तान का ही समर्थन किया गया है। अतः भारत के जनमानस में असन्तोष का होना स्वाभाविक है और उसका विचार है कि भारत को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से कोई लाभ नहीं है तथा यह भारत के लिए निरर्थक है।
  3. राष्ट्रमण्डल के ढाँचे की बुनियाद प्रजातन्त्र और मानवीय अधिकारों पर टिकी है। परन्तु वास्तविकता यह है कि उसने व्यवहार में कभी भी इन आदर्शों का अनुसरण नहीं किया है। राष्ट्रमण्डल ने रंगभेद की नीति का अनुसरण करने वाली दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया, उल्टे उसे परोक्ष रूप से समर्थन दिया। अत: राष्ट्रमण्डल की उपयोगिता पर ही प्रश्न-चिह्न लग जाता है।
  4. ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय साझा बाजार की सदस्यता ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रमण्डल की सदस्यता आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए महत्त्वपूर्ण थी, परन्तु सदस्यता ग्रहण करने के बाद भारत के आर्थिक हित प्रभावित होने की आशंका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख नामों को लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र वर्तमान समय में राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 53 है। ये राज्य हैं-ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, उत्तरी आयरलैण्ड, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, पाकिस्तान, घाना, बांग्लादेश, जाम्बिया, मलावी, कीनिया, नाइजीरिया, तंजानिया, सियरालियोन, युगाण्डा, जंजीबार, साइप्रस, माल्टा, जमैका, त्रिनिदाद तथा टोबागो, सिचेलिस स्वतन्त्र गणराज्य, फगनाओ, फिजी रोंगा, मॉरीशस, स्वाजीलैण्ड, लेसोथो, बोत्सवाना, गाम्बिया, बारबाडोस, गुयाना आदि। द० अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति के कारण दे० अफ्रीका को वर्ष 1961 में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का त्याग करना पड़ा था। 1994 के प्रारम्भिक महीनों में द० अफ्रीका में लोकतन्त्र और मानवीय समानता पर आधारित सरकार स्थापित हो गई। अतः 31 मई, 1994 को द० अफ्रीका को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता पुनः प्रदान कर दी गई। 1997 में मोजाम्बिक और कैमरून (जो भूतकाल में पुर्तगाल और फ्रेंच उपनिवेश थे) को राष्ट्रमण्डल सदस्यता प्रदान की गई।

प्रश्न 2.
चौदहवें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन (डरबन 12 नवम्बर, 1999) में पाकिस्तान से सम्बन्धित कौन-सा निर्णय लिया गया था?
उत्तर :
12 नवम्बर, 1999 में राष्ट्रमण्डल का चौदहवाँ शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन 12 नवम्बर से 15 नवम्बर, 1999 तक चला। इस सम्मेलन की समाप्ति पर जारी किये गये घोषणा-पत्र में पाकिस्तान में स्थापित सैनिक शासन को अवैध बताते हुए उसकी कटु आलोचना की गयी। सम्मेलन में लिये गये एक निर्णय के अनुसार पाकिस्तान को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से अनिश्चित काल के लिए निलम्बित कर दिया गया। घोषणा-पत्र में यह भी माँग की गयी कि पाकिस्तान में शीघ्र-से-शीघ्र लोकतन्त्र की स्थापना की जाए। पाकिस्तान को इस आशय की चेतावनी भी दी गयी है कि यदि पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने पाकिस्तान में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए त्वरित प्रयास नहीं किये तो उसके विरुद्ध प्रत्येक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये जाएँगे। घोषणा-पत्र में सदस्य राष्ट्रों से यह भी अनुरोध किया गया कि विश्व में फैल रहे आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभ बताइए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से विविध प्रकार का सहयोग मिला है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज भी भारत का 70-80% व्यापार राष्ट्रमण्डल के देशों के साथ हो रहा है।
  3. राष्ट्रमण्डल के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से भारत को तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में सहायता प्राप्त करने में सफलता मिली है।
  4. राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत ने सैनिक ज्ञान प्राप्त किया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य लिखिए। [2010]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य है – प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति करते हुए प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।

प्रश्न 2
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम लिखिए। [2007, 08, 11, 14]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम हैं-भारत व कनाडा।

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प्रश्न 3.
डरबन सम्मेलन में राष्ट्रमण्डल में किस राज्य की वापसी हुई है?
उत्तर :
डरबन सम्मेलन में नाइजीरिया में लोकतन्त्र की बहाली के बाद, उसकी राष्ट्रमण्डल में वापसी हुई है।

प्रश्न 4.
डरबन में सम्पन्न हुए राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में किस देश की सदस्यता निलम्बित की गयी थी और क्यों ?
उत्तर :
डरबन में सम्पन्न राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में सैनिक शासन की स्थापना के कारण पाकिस्तान को सदस्यता से निलम्बित किया गया था।

प्रश्न 5.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध होने के दो कारण बताइए।
उत्तर :

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को दासता का प्रतीक माना जाता है।
  2. यह देश की आर्थिक प्रगति में बाधक माना जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
वर्तमान में राष्ट्रमण्डल के देशों की संख्या है –
(क) 50
(ख) 52
(ग) 53
(घ) 59

प्रश्न 2.
2005 ई० में राष्ट्रमण्डल देशों का सम्मेलन हुआ था –
(क) ओटावा (कनाडा) में
(ख) वैल्टा (माल्टा) में
(ग) नयी दिल्ली (भारत) में
(घ) इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में

प्रश्न 3.
24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन 2015 का आयोजन किस देश में किया गया?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) कनाडा
(घ) माल्टा

उत्तर :

  1. (ग) 53
  2. (ख) वैल्टा (माल्टा) में
  3. (घ) माल्टा।

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