UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi रस

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name रस
Number of Questions 8
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi रस

प्रश्न 1
रस क्या है ? उसके अंगों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
श्रव्य काव्य पढ़ने या दृश्य काव्य देखने से पाठक, श्रोता या दर्शक को जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, उसे ‘रस’ कहते हैं। विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी (या संचारी) भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है। मनुष्य के हृदय में रति, शोक आदि कुछ भाव हर समय सुप्तावस्था में रहते हैं, जिन्हें स्थायी भाव कहते हैं। ये स्थायी भाव अनुकूल परिस्थिति या दृश्य उपस्थित होने पर जाग्रत हो जाते हैं। सफल कवि द्वारा वर्णित वृत्तान्त को पढ़ या सुनकर काव्य के पाठक या श्रोता को एक ऐसे अलौकिक आनन्द का अनुभव होता है कि वह स्वयं को भूलकर आनन्दमय हो जाता है। यही आनन्द ‘काव्यशास्त्र’ में रस कहलाता है।

रस के अंग

रस के प्रमुख चार अवयव (अंग) हैं–

  1. स्थायी भाव,
  2. विभाव,
  3. अनुभाव तथा
  4. संचारी भाव। इन अंगों का परिचय निम्नलिखित है-

(1) स्थायी भाव
रति (प्रेम), जुगुप्सा (घृणा), अमर्ष (क्रोध) आदि भाव मनुष्य के मन में स्वाभाविक रूप से सदा विद्यमान रहते हैं, इन्हें स्थायी भाव कहते हैं। ये नौ हैं और इसी कारण इनसे सम्बन्धित रस भी नौ ही हैं-
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi रस img 1

रति नामक स्थायी भाव के प्राचीन ग्रन्थों में तीन भेद किये गये हैं–(i) कान्ताविषयक रति (नर-नारी का पारस्परिक प्रेम), (ii) सन्ततिविषयक रति और (iii) देवताविषयक रति। अपत्य (सन्तान) विषयक रति की रस-रूप में परिणति करके सूर ने दिखा दी; अतः अब वात्सल्य रस को एक स्वतन्त्र रस की मान्यता प्राप्त हो गयी है। इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य-कौशल के फलस्वरूप देवताविषयक रति की भक्ति रस में परिणति होने से भक्ति रस भी एक स्वतन्त्र रस माना जाने लगा है; अतः अब रसों की संख्या ग्यारह हो गयी है–उपर्युक्त नौ तथा
(10) वात्सल्य रस-वत्सलता (स्थायी भाव) तथा
(11) भक्ति रस-देवताविषयक रति (स्थायी भाव)।

(2) विभाव।
स्थायी भाव सामान्यतः सुषुप्तावस्था में रहते हैं, इन्हें जाग्रत एवं उद्दीप्त करने वाले कारणों को विभाव कहते हैं। विभाव निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
(1) आलम्बन विभाव-जो स्थायी भाव को उद्बुद्ध (जाग्रत) करे वह आलम्बन विभाव कहलाता है। इसके निम्नलिखित दो अंग होते हैं

  • आश्रय-जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जाग्रत होता है, उसे आश्रय कहते हैं।
  • विषय-जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण आश्रय के हृदय में रति आदि स्थायी भाव जाग्रत होते हैं, उसे विषय कहते हैं।

(2) उद्दीपन विभाव-जो जाग्रत हुए स्थायी भाव को उद्दीप्त करे अर्थात् अधिक प्रबल बनाये, वह उद्दीपन विभाव कहलाता है।
उदाहरणार्थ, श्रृंगार रस में प्राय: नायक-नायिका एक-दूसरे के लिए आलम्बन हैं और वन, उपवन, चाँदनी, पुष्प आदि प्राकृतिक दृश्य या आलम्बन के हाव-भाव उद्दीपन विभाव हैं। भिन्न-भिन्न रसों में आलम्बन और उद्दीपन भी बदलते रहते हैं; जैसे-युद्धयात्रा पर जाते हुए वीर के लिए उसका शत्रु ही आलम्बन है; क्योंकि उसके कारण ही वीर के मन में उत्साह नामक स्थायी भाव जगता है और उसके आस-पास बजते बाजे, वीरों की हुंकार आदि उद्दीपने हैं; क्योंकि इनसे उसका उत्साह और बढ़ता है।

(3) अनुभाव

आलम्बन तथा उद्दीपन के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के जाग्रत तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभाव दो प्रकार के होते हैं-(i) सात्त्विक और (ii) कायिक।

  • सात्त्विक अनुभाव-जो शारीरिक विकार बिना आश्रय के प्रयास के स्वत: ही उत्पन्न होते हैं, वे सात्त्विक अनुभाव कहलाते हैं। ये आठ होते हैं—(1) स्तम्भ, (2) स्वेद, (3) रोमांच, (4) स्वरभंग, (5) कम्प, (6) वैवर्य, (7) अश्रु एवं (8) प्रलय (सुध-बुध खोना)।
  • कायिक अनुभाव-इनका सम्बन्ध शरीर से होता है। जो चेष्टाएँ आश्रय अपनी इच्छानुसार जान-बूझकर प्रयत्नपूर्वक करता है, उन्हें कायिक अनुभाव कहते हैं; जैसे-क्रोध में कठोर शब्द कहना, उत्साह में पैर पटकना, कूदना आदि।

(4) संचारी (या व्यभिचारी) भाव
जो भाव स्थायी भावों से उद्बुद्ध (जाग्रत) होने पर इन्हें पुष्ट करने में सहायता पहुँचाने तथा इनके अनुकूल कार्य करने के लिए उत्पन्न होते हैं, उन्हें संचारी (या व्यभिचारी) भाव कहते हैं; क्योंकि ये अपना काम करके तुरन्त स्थायी भावों में ही विलीन हो जाते हैं (संचरण करते रहने के कारण इन्हें संचारी और स्थिर न रहने के कारण व्यभिचारी कहते हैं)।
प्रमुख संचारी भावों की संख्या तैंतीस मानी गयी है-
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi रस img 2
(संचारी भावों की संख्या असंख्य भी हो सकती है। ये स्थायी भावों को गति प्रदान करते हैं तथा उसे । व्यापक रूप देते हैं। स्थायी भावों को पुष्ट करके ये स्वयं समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 2
रस कितने होते हैं ? किसी एक रस का लक्षण उदाहरणसहित लिखिए।
उत्तर
शास्त्रीय रूप से रस निम्नलिखित नौ प्रकार के होते हैं
(1) श्रृंगार (संयोग व विप्रलम्भ) रस, (2) हास्य रस, (3) करुण रस, (4) वीर रस, (5) रौद्र रस, (6) भयानक रस, (7) वीभत्स रस, (8) अद्भुत रस तथा (9) शान्त रस। कुछ विद्वान् ‘वात्सल्य रस’ और ‘भक्ति रस’ को भी उपरि-निर्दिष्ट नव रसों की श्रृंखला में ही मानते हैं।
[विशेष—माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उ० प्र० द्वारा निर्धारित नवीनतम पाठ्यक्रम में आगे दिये जा रहे पाँच रस ही निर्धारित हैं।

(1) श्रृंगार रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से ‘रति’ नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत होता है तो उसे शृंगार रस कहते हैं।

(ख) अवयव

स्थायी भाव--रति।
आलम्बन (विभाव)-नायक या नायिका।
उद्दीपन ( विभाव)—सुन्दर प्राकृतिक दृश्य तथा नायक-नायिका की वेशभूषा, विविध आंगिक चेष्टाएँ (हाव-भाव) आदि।
संचारी ( भाव)--पूर्वोक्त तैतीस में से अधिकांश।
अनुभाव-आश्रय की प्रेमपूर्ण वार्ता, अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, चुम्बन, कटाक्ष, अश्रु, वैवयं आदि।

(ग) श्रृंगार रस के भेद-
श्रृंगार के दो भेद हैं–संयोग और विप्रलम्भ (वियोग)। संयोग श्रृंगार। [2013, 15, 16, 18]
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रृंगार कहते हैं। संयोग से आशय हे-सुख को प्राप्त करना।
उदाहरण 1-

राम कौ रूप निहारति जानकी, कंगन के नग की परछाहीं ।
यातें सबे सुधि भूलि गयी, कर टेकि रहीं पल टारति नाहीं ॥ ( तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-यहाँ सीताजी अपने कंगन के नग में पड़ रहे राम के प्रतिबिम्ब को निहारते हुए अपनी सुध-बुध भूल गयीं और हाथ को टेके हुए जड़वत् हो गयीं। इसमें जानकी आश्रय और राम आलम्बन हैं। राम का नग में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब उद्दीपन है। रूप को निहारना, हाथ टेकना अनुभाव और हर्ष तथा जड़ता संचारी भाव हैं।

इस प्रकार विभाव, संचारी भाव और अनुभावों से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार की अवस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

कौन हो तुम वसन्त के दूत
विरस पतझड़ में अति सुकुमार ;
घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मन्द बयार ।( काव्यांजलि : श्रद्धा-मनु)

स्पष्टीकरण-इस प्रकरण में रति स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव है-श्रद्धा (विषय) और मनु (आश्रय)। उद्दीपन विभाव है-एकान्त प्रदेश, श्रद्धा की कमनीयता, शीतल-मन्द पवन। हृदय में शान्ति का मिलना अनुभाव है। आश्रय मनु के हर्ष, उत्सुकता आदि भाव संचारी भाव हैं। इस प्रकार अनुभावविभावादि से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार रस की दशा को प्राप्त हुआ है। वियोग श्रृंगार [2010, 14, 15, 16, 17]

प्रेम में अनुरक्त नायक और नायिका के परस्पर मिलन का अभाव वियोग श्रृंगार कहलाता है।
उदाहरण 1-

हे खग-मृग, हे मधुकर त्रेनी,
तुम देखी सीता मृग नैनी ? (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-यहाँ श्रीराम आश्रय हैं और सीताजी आलम्बन, सूनी कुटिया और वन का सूनापन उद्दीपन हैं। सीताजी की स्मृति, आवेग, विषाद, शंका, दैन्य, मोह आदि संचारी भाव हैं। इस प्रकार विभाव-अनुभाव-संचारीभाव के संयोग से रति नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर विप्रलम्भ श्रृंगार की रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले
जाके आये न मधुबन से औ न भेजा सँदेशा।
मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ ।
जा के मेरी सब दुःख-कथा श्याम को तू सुना दे ॥ (काव्यांजलि : पवन-दूतिका)

स्पष्टीकरण-इस छन्द में विरहिणी राधा की विरह-दशा का वर्णन किया गया है। ‘रति’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-राधा (आश्रय) और श्रीकृष्ण (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-मेघ जैसी शोभा और कमल जैसे नेत्रों का स्मरण। श्रीकृष्ण के विरह में रुदन अनुभाव है। स्मृति, आवेग, उन्माद आदि संचारियों से पुष्ट श्रीकृष्ण से मिलन के अभाव में यहाँ वियोग श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

(2) करुण रस [2009, 10,11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-किसी प्रिय वस्तु या वस्तु के विनाश से या अनिष्ट की प्राप्ति से करुण रस की निष्पत्ति होती है।

(ख) अवयव-

स्थायी भाव-शोक।
आलम्बन (विभाव)–विनष्ट वस्तु या व्यक्ति।
उद्दीपन (विभाव)–इष्ट के गुण तथा उनसे सम्बन्धित वस्तुएँ।।
अनुभाव–रुदन, प्रलाप, मूच्र्छा, छाती पीटना, नि:श्वास, उन्माद आदि।
संचारी भाव-स्मृति, मोह, विषाद , जड़ता, ग्लानि, निर्वेद आदि।
उदाहरण 1-

जो भूरि भाग्य भरी विदित थी निरुपमेय सुहागिनी।
हे हृदयवल्लभ ! हूँ वही अब मैं महा हतभागिनी ॥
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी।
है अब उसी मुझ-सी जगत् में और कौन अनाथिनी ॥ ( जयद्रथ-वध)

स्पष्टीकरण-अभिमन्यु की मृत्यु पर उत्तरा के इस विलाप में उत्तरा-आश्रय और अभिमन्यु की मृत्यु-आलम्बन है, पति के वीरत्व आदि गुणों का स्मरण-उद्दीपन है। अपने विगत सौभाग्य की स्मृति एवं दैन्य-संचारी भाव तथा (उत्तरा का) क्रन्दन–अनुभाव है। इनसे पुष्ट हुआ शोक नामक स्थायी भाव करुण-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

क्यों छलक रहा दुःख मेरा
ऊषा की मृदु पलकों में
हाँ! उलझ रहा सुख मेरा
सन्ध्या की घन अलकों में । (काव्यांजलि : आँसू )

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में कवि के अपनी प्रेयसी के विरह में रुदन का वर्णन किया गया है। इसमें कवि के हृदय का ‘शोक’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-प्रेमी, यहाँ पर कवि (आश्रय) तथा प्रियतमा (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-अन्धकाररूपी केश-पाश तथा सन्ध्या। कवि के हृदय से नि:सृत उद्गार अनुभाव हैं। अश्रुरूपी प्रात:कालीन ओस की बूंदें संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट शोक नामक स्थायी भाव करुण रस की दशा को प्राप्त हुआ है।
वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में अन्तर–वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में मुख्य अन्तर प्रियजन के वियोग का होता है। वियोग श्रृंगार में बिछुड़े हुए प्रियजन से पुनः मिलन की आशा बनी रहती है; परन्तु करुण रस में इस प्रकार के मिलन की कोई सम्भावना नहीं होती।

(3) हास्य रस [2009, 10, 11, 12, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा–जब किसी वस्तु या व्यक्ति के विकृत आकार, वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि से व्यक्ति को बरबस हँसी आ जाए तो वहाँ हास्य रस है।।

(ख) अवयव

स्थायी भाव–हास।
आलम्बन (विभाव)—विचित्र-विकृत चेष्टाएँ, आकार, वेशभूषा।
उद्दीपन (विभाव)-आलम्बन की अनोखी बातचीत, आकृति।
अनुभाव-आश्रय की मुस्कान, अट्टहास।।
संचारी भाव-हर्ष, चपलता, उत्सुकता आदि।
उदाहरण 1-

नाना वाहन नाना वेषा। बिहँसे सिव समाज निज देखा ॥
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद-कर कोउ बहु पद-बाहू॥ (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-इस उदाहरण में स्थायी भाव हास के आलम्बन–शिव समाज, आश्रय-शिव, उद्दीपन-विचित्र वेशभूषा, अनुभाव—शिवजी का हँसना तथा संचारी भाव-रोमांच, हर्ष, चापल्य आदि। इनसे पुष्ट हुआ हास नामक स्थायी भाव हास्य-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

बिंध्य के वासी उदासी तपोब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
खैहैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पदमंजुल-कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे॥ (हिन्दी : वन पथ पर)

[विशेष—पाठ्यक्रम में संकलित अंश में हास्य रस का उदाहरण दृष्टिगत नहीं होता। अत: 10वीं की पाठ्य-पुस्तक से उदाहरण दिया जा रहा है।]
स्पष्टीकरण—इस छन्द में विन्ध्याचल के तपस्वियों की मनोदशा का वर्णन किया गया है। यहाँ ‘हास’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं–विन्ध्य के उदास तपस्वी (आश्रय) और राम (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—गौतम की स्त्री का उद्धार। मुनियों का कथा आदि सुनना अनुभाव हैं। हर्ष, उत्सुकता आदि संचारी भावों से पुष्ट प्रस्तुत छन्द में हास्य रस का सुन्दर परिपाक हुआ है।

(4) वीर रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-शत्रु की उन्नति, दीनों पर अत्याचार या धर्म की दुर्गति को मिटाने जैसे किसी विकट या दुष्कर कार्य को करने का जो उत्साह मन में उमड़ता है, वही वीर रस का स्थायी भाव है, जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है।

(ख) अवयव

स्थायी भाव-उत्साह।
आलम्बन (विभाव)—अत्याचारी शत्रु।।
उद्दीपन (विभाव)-शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
अनुभाव-गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
संचारी भाव-आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।
उदाहरण 1-

मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे ॥
है और की तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं ।
मामा तथा निज तात से भी, युद्ध में डरता नहीं ॥( मैथिलीशरण गुप्त)

स्पष्टीकरण-अभिमन्यु का यह कथन अपने सारथी के प्रति है। इसमें कौरव-आलम्बन, अभिमन्यु-आश्रय, चक्रव्यूह की रचना–उद्दीपन तथा अभिमन्यु के वाक्य–अनुभाव हैं। गर्व, औत्सुक्य, हर्ष आदि संचारी भाव हैं। इन सभी के संयोग से वीर रस की निष्पत्ति हुई है।
उदाहरण 2-

साजि चतुरंग सैन अंग, में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है। भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नद मर्द गैबरने के रलत है ॥ ( काव्यांजलि : शिवा-शौर्य)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण है। इसमें ‘शिवाजी के हृदय का उत्साह’ स्थायी भाव है। ‘युद्ध को जीतने की इच्छा’ आलम्बन है। ‘नगाड़ों का बजना’ उद्दीपन है। ‘हाथियों के मद का बहना’ अनुभाव है तथा उग्रता’ संचारी भाव है। इन सबसे पुष्ट उत्साह’ नामक स्थायी भाव वीर रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

(5) शान्त रस [2009, 10, 11, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा–संसार की क्षणभंगुरता एवं सांसारिक विषय- भोगों की असारता तथा परमात्मा के ज्ञान से उत्पन्न निर्वेद (वैराग्य) ही पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत होता है।

(ख) अवयव

स्थायी भाव-निर्वेद (उदासीनता)।
आलम्बन (विभाव)-संसार की क्षणभंगुरता, परमात्मा का चिन्तन आदि।
उद्दीपन (विभाव)-सत्संग, शास्त्रों का अनुशीलन, तीर्थ यात्रा आदि।
अनुभाव-अश्रुपात, पुलक, संसारभीरुता, रोमांच आदि।
संचारी भाव-हर्ष, स्मृति, धृति, निर्वेद, विबोध, उद्वेग आदि।
उदाहरण 1-

मन पछितैहै अवसर बीते ।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते ॥
अब नाथहिं अनुराग, जागु जड़-त्यागु दुरासा जीते ॥
बुझे न काम अगिनी तुलसी कहुँ बिषय भोग बहु घी ते ॥

स्पष्टीकरण–यहाँ तुलसी (या पाठक)-आश्रय हैं; संसार की असारता–आलम्बन; अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ होने की चिन्ता–उद्दीपन; मति-धृति आदि संचारी एवं वैराग्यपरक वचन–अनुभाव हैं। इनसे मिलकर शान्त रस की निष्पत्ति हुई है।
उदाहरण 2 –

अब लौं नसानी अब न नसैहौं ।
रामकृपा भवनिसा सिरानी, जागे फिर न डसैहौं ।
पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं ।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं ।
परबस जानि हँस्यों इन इंद्रिन, निज बस वै न हसैहौं ।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैहौं । (काव्यांजलि: विनयपत्रिका)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में तुलसीदास जी की जगत् के प्रति विरक्ति और श्रीराम के प्रति अनुराग मुखर हुआ है। इस पद में संसार से पूर्ण विरक्ति अर्थात् ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-तुलसीदास (आश्रय) तथा श्रीराम की भक्ति (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—श्रीराम की कृपा, सांसारिक असारता तथा इन्द्रियों द्वारा उपहास। स्वतन्त्र होना, राम के चरणों में रत होना, सांसारिक विषयों में पुनः निर्लिप्त न होना आदि से सम्बद्ध कथन अनुभाव हैं। निर्वेद, हर्ष, स्मृति आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव शान्त रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 निम्नलिखित पद्यांशों में कौन-से रस हैं ? प्रत्येक का स्थायी भाव भी बताइए
प्रश्न  (क)
साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं ।
उत्तर
इसमें वीर रस है, जिसका स्थायी भाव उत्साह है।

प्रश्न  (ख)
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात ।।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु हीं सौं बात ।।
उत्तर
इसमें संयोग श्रृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न  (ग)
कौन हो तुम वसंत के दूत
विरस पतझड़ में अति सुकुमार;
घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मन्द बयार ?
उत्तर
इसमें संयोग श्रृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न  (घ)
आये होंगे यदि भरत कुमति-वश वन में,
तो मैंने यह संकल्प किया है मन में-
उनको इस शर का लक्ष चुनँगा क्षण में,
प्रतिषेध आपका भी न सुनँगा रण में ।
उत्तर
इसमें वीर रस है, जिसका स्थायी भाव उत्साह है।

प्रश्न  (ङ)
सुख भोग खोजने आते सब, आये तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन, तुम आत्मा के, मन के मनोज
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर, चेतना, अहिंसा, नम्र ओज ।
पशुता का पंकज बना दिया, तुमने मानवता का सरोज ।।
उत्तर
इसमें शान्त रस है, जिसका स्थायी भाव निर्वेद है।

प्रश्न 2
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
(क) अपनी पाठ्य-पुस्तक से करुण रस की दो पंक्तियाँ लिखिए। यह भी स्पष्ट कीजिए कि आप इसे करुण रस की रचना क्यों मानते हैं ?
(ख) हास्य रस की निष्पत्ति कब होती है ? अपनी पाठ्य-पुस्तक से उदाहरण देकर समझाइए।
(ग) अपनी पाठ्य-पुस्तक से वीर रस को बतलाने के लिए किसी पद की दो पंक्तियाँ लिखिए और स्पष्ट कीजिए कि उसे वीर रस की रचना क्यों मानते हैं ?
(घ) अपनी पाठ्य-पुस्तक से करुण रस का लक्षण लिखिए और उसका उदाहरण दीजिए।
(ङ) अपनी पाठ्य-पुस्तक से शान्त रस की दो पंक्तियाँ लिखिए और यह भी स्पष्ट कीजिए कि आप इसे शान्त रस की रचना क्यों मानते हैं ?
(च) वीर रस को लक्षण लिखिए और अपनी पाठ्य-पुस्तक के आधार पर उसका उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(छ) विप्रलम्भ श्रृंगार अथवा शान्त रस का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(ज) अपनी पाठ्य-पुस्तक से वीर रस की दो पंक्तियाँ लिखिए। रस के आलम्बन और आश्रय की ओर भी संकेत कीजिए।
(झ) संयोग शृंगार अथवा वीर रस का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(ञ) श्रृंगार और करुण में से किसी एक रस का लक्षण और उदाहरण लिखिए।
(ट) ‘करुण’ अथवा ‘वीर’ रस के लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर

(1) श्रृंगार (संयोग व विप्रलम्भ) रस, (2) हास्य रस, (3) करुण रस, (4) वीर रस, (5) रौद्र रस, (6) भयानक रस, (7) वीभत्स रस, (8) अद्भुत रस तथा (9) शान्त रस। कुछ विद्वान् ‘वात्सल्य रस’ और ‘भक्ति रस’ को भी उपरि-निर्दिष्ट नव रसों की श्रृंखला में ही मानते हैं।
[विशेष—माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उ० प्र० द्वारा निर्धारित नवीनतम पाठ्यक्रम में आगे दिये जा रहे पाँच रस ही निर्धारित हैं।

(1) श्रृंगार रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से ‘रति’ नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत होता है तो उसे शृंगार रस कहते हैं।

(ख) अवयव

स्थायी भाव--रति।
आलम्बन (विभाव)-नायक या नायिका।
उद्दीपन ( विभाव)—सुन्दर प्राकृतिक दृश्य तथा नायक-नायिका की वेशभूषा, विविध आंगिक चेष्टाएँ (हाव-भाव) आदि।
संचारी ( भाव)--पूर्वोक्त तैतीस में से अधिकांश।
अनुभाव-आश्रय की प्रेमपूर्ण वार्ता, अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, चुम्बन, कटाक्ष, अश्रु, वैवयं आदि।

(ग) श्रृंगार रस के भेद-
श्रृंगार के दो भेद हैं–संयोग और विप्रलम्भ (वियोग)। संयोग श्रृंगार। [2013, 15, 16, 18]
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रृंगार कहते हैं। संयोग से आशय हे-सुख को प्राप्त करना।
उदाहरण 1-

राम कौ रूप निहारति जानकी, कंगन के नग की परछाहीं ।
यातें सबे सुधि भूलि गयी, कर टेकि रहीं पल टारति नाहीं ॥ ( तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-यहाँ सीताजी अपने कंगन के नग में पड़ रहे राम के प्रतिबिम्ब को निहारते हुए अपनी सुध-बुध भूल गयीं और हाथ को टेके हुए जड़वत् हो गयीं। इसमें जानकी आश्रय और राम आलम्बन हैं। राम का नग में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब उद्दीपन है। रूप को निहारना, हाथ टेकना अनुभाव और हर्ष तथा जड़ता संचारी भाव हैं।

इस प्रकार विभाव, संचारी भाव और अनुभावों से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार की अवस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

कौन हो तुम वसन्त के दूत
विरस पतझड़ में अति सुकुमार ;
घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मन्द बयार ।( काव्यांजलि : श्रद्धा-मनु)

स्पष्टीकरण-इस प्रकरण में रति स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव है-श्रद्धा (विषय) और मनु (आश्रय)। उद्दीपन विभाव है-एकान्त प्रदेश, श्रद्धा की कमनीयता, शीतल-मन्द पवन। हृदय में शान्ति का मिलना अनुभाव है। आश्रय मनु के हर्ष, उत्सुकता आदि भाव संचारी भाव हैं। इस प्रकार अनुभावविभावादि से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार रस की दशा को प्राप्त हुआ है। वियोग श्रृंगार [2010, 14, 15, 16, 17]

प्रेम में अनुरक्त नायक और नायिका के परस्पर मिलन का अभाव वियोग श्रृंगार कहलाता है।
उदाहरण 1-

हे खग-मृग, हे मधुकर त्रेनी,
तुम देखी सीता मृग नैनी ? (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-यहाँ श्रीराम आश्रय हैं और सीताजी आलम्बन, सूनी कुटिया और वन का सूनापन उद्दीपन हैं। सीताजी की स्मृति, आवेग, विषाद, शंका, दैन्य, मोह आदि संचारी भाव हैं। इस प्रकार विभाव-अनुभाव-संचारीभाव के संयोग से रति नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर विप्रलम्भ श्रृंगार की रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले
जाके आये न मधुबन से औ न भेजा सँदेशा।
मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ ।
जा के मेरी सब दुःख-कथा श्याम को तू सुना दे ॥ (काव्यांजलि : पवन-दूतिका)

स्पष्टीकरण-इस छन्द में विरहिणी राधा की विरह-दशा का वर्णन किया गया है। ‘रति’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-राधा (आश्रय) और श्रीकृष्ण (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-मेघ जैसी शोभा और कमल जैसे नेत्रों का स्मरण। श्रीकृष्ण के विरह में रुदन अनुभाव है। स्मृति, आवेग, उन्माद आदि संचारियों से पुष्ट श्रीकृष्ण से मिलन के अभाव में यहाँ वियोग श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

(2) करुण रस [2009, 10,11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-किसी प्रिय वस्तु या वस्तु के विनाश से या अनिष्ट की प्राप्ति से करुण रस की निष्पत्ति होती है।

(ख) अवयव-

स्थायी भाव-शोक।
आलम्बन (विभाव)–विनष्ट वस्तु या व्यक्ति।
उद्दीपन (विभाव)–इष्ट के गुण तथा उनसे सम्बन्धित वस्तुएँ।।
अनुभाव–रुदन, प्रलाप, मूच्र्छा, छाती पीटना, नि:श्वास, उन्माद आदि।
संचारी भाव-स्मृति, मोह, विषाद , जड़ता, ग्लानि, निर्वेद आदि।
उदाहरण 1-

जो भूरि भाग्य भरी विदित थी निरुपमेय सुहागिनी।
हे हृदयवल्लभ ! हूँ वही अब मैं महा हतभागिनी ॥
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी।
है अब उसी मुझ-सी जगत् में और कौन अनाथिनी ॥ ( जयद्रथ-वध)

स्पष्टीकरण-अभिमन्यु की मृत्यु पर उत्तरा के इस विलाप में उत्तरा-आश्रय और अभिमन्यु की मृत्यु-आलम्बन है, पति के वीरत्व आदि गुणों का स्मरण-उद्दीपन है। अपने विगत सौभाग्य की स्मृति एवं दैन्य-संचारी भाव तथा (उत्तरा का) क्रन्दन–अनुभाव है। इनसे पुष्ट हुआ शोक नामक स्थायी भाव करुण-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

क्यों छलक रहा दुःख मेरा
ऊषा की मृदु पलकों में
हाँ! उलझ रहा सुख मेरा
सन्ध्या की घन अलकों में । (काव्यांजलि : आँसू )

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में कवि के अपनी प्रेयसी के विरह में रुदन का वर्णन किया गया है। इसमें कवि के हृदय का ‘शोक’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-प्रेमी, यहाँ पर कवि (आश्रय) तथा प्रियतमा (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-अन्धकाररूपी केश-पाश तथा सन्ध्या। कवि के हृदय से नि:सृत उद्गार अनुभाव हैं। अश्रुरूपी प्रात:कालीन ओस की बूंदें संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट शोक नामक स्थायी भाव करुण रस की दशा को प्राप्त हुआ है।
वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में अन्तर–वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में मुख्य अन्तर प्रियजन के वियोग का होता है। वियोग श्रृंगार में बिछुड़े हुए प्रियजन से पुनः मिलन की आशा बनी रहती है; परन्तु करुण रस में इस प्रकार के मिलन की कोई सम्भावना नहीं होती।

(3) हास्य रस [2009, 10, 11, 12, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा–जब किसी वस्तु या व्यक्ति के विकृत आकार, वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि से व्यक्ति को बरबस हँसी आ जाए तो वहाँ हास्य रस है।।

(ख) अवयव

स्थायी भाव–हास।
आलम्बन (विभाव)—विचित्र-विकृत चेष्टाएँ, आकार, वेशभूषा।
उद्दीपन (विभाव)-आलम्बन की अनोखी बातचीत, आकृति।
अनुभाव-आश्रय की मुस्कान, अट्टहास।।
संचारी भाव-हर्ष, चपलता, उत्सुकता आदि।
उदाहरण 1-

नाना वाहन नाना वेषा। बिहँसे सिव समाज निज देखा ॥
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद-कर कोउ बहु पद-बाहू॥ (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण-इस उदाहरण में स्थायी भाव हास के आलम्बन–शिव समाज, आश्रय-शिव, उद्दीपन-विचित्र वेशभूषा, अनुभाव—शिवजी का हँसना तथा संचारी भाव-रोमांच, हर्ष, चापल्य आदि। इनसे पुष्ट हुआ हास नामक स्थायी भाव हास्य-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।
उदाहरण 2-

बिंध्य के वासी उदासी तपोब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
खैहैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पदमंजुल-कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे॥ (हिन्दी : वन पथ पर)

[विशेष—पाठ्यक्रम में संकलित अंश में हास्य रस का उदाहरण दृष्टिगत नहीं होता। अत: 10वीं की पाठ्य-पुस्तक से उदाहरण दिया जा रहा है।]
स्पष्टीकरण—इस छन्द में विन्ध्याचल के तपस्वियों की मनोदशा का वर्णन किया गया है। यहाँ ‘हास’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं–विन्ध्य के उदास तपस्वी (आश्रय) और राम (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—गौतम की स्त्री का उद्धार। मुनियों का कथा आदि सुनना अनुभाव हैं। हर्ष, उत्सुकता आदि संचारी भावों से पुष्ट प्रस्तुत छन्द में हास्य रस का सुन्दर परिपाक हुआ है।

(4) वीर रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा-शत्रु की उन्नति, दीनों पर अत्याचार या धर्म की दुर्गति को मिटाने जैसे किसी विकट या दुष्कर कार्य को करने का जो उत्साह मन में उमड़ता है, वही वीर रस का स्थायी भाव है, जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है।

(ख) अवयव

स्थायी भाव-उत्साह।
आलम्बन (विभाव)—अत्याचारी शत्रु।।
उद्दीपन (विभाव)-शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
अनुभाव-गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
संचारी भाव-आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।
उदाहरण 1-

मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे ॥
है और की तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं ।
मामा तथा निज तात से भी, युद्ध में डरता नहीं ॥( मैथिलीशरण गुप्त)

स्पष्टीकरण-अभिमन्यु का यह कथन अपने सारथी के प्रति है। इसमें कौरव-आलम्बन, अभिमन्यु-आश्रय, चक्रव्यूह की रचना–उद्दीपन तथा अभिमन्यु के वाक्य–अनुभाव हैं। गर्व, औत्सुक्य, हर्ष आदि संचारी भाव हैं। इन सभी के संयोग से वीर रस की निष्पत्ति हुई है।
उदाहरण 2-

साजि चतुरंग सैन अंग, में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है। भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नद मर्द गैबरने के रलत है ॥ ( काव्यांजलि : शिवा-शौर्य)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण है। इसमें ‘शिवाजी के हृदय का उत्साह’ स्थायी भाव है। ‘युद्ध को जीतने की इच्छा’ आलम्बन है। ‘नगाड़ों का बजना’ उद्दीपन है। ‘हाथियों के मद का बहना’ अनुभाव है तथा उग्रता’ संचारी भाव है। इन सबसे पुष्ट उत्साह’ नामक स्थायी भाव वीर रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

(5) शान्त रस [2009, 10, 11, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

(क) परिभाषा–संसार की क्षणभंगुरता एवं सांसारिक विषय- भोगों की असारता तथा परमात्मा के ज्ञान से उत्पन्न निर्वेद (वैराग्य) ही पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत होता है।

(ख) अवयव

स्थायी भाव-निर्वेद (उदासीनता)।
आलम्बन (विभाव)-संसार की क्षणभंगुरता, परमात्मा का चिन्तन आदि।
उद्दीपन (विभाव)-सत्संग, शास्त्रों का अनुशीलन, तीर्थ यात्रा आदि।
अनुभाव-अश्रुपात, पुलक, संसारभीरुता, रोमांच आदि।
संचारी भाव-हर्ष, स्मृति, धृति, निर्वेद, विबोध, उद्वेग आदि।
उदाहरण 1-

मन पछितैहै अवसर बीते ।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते ॥
अब नाथहिं अनुराग, जागु जड़-त्यागु दुरासा जीते ॥
बुझे न काम अगिनी तुलसी कहुँ बिषय भोग बहु घी ते ॥

स्पष्टीकरण–यहाँ तुलसी (या पाठक)-आश्रय हैं; संसार की असारता–आलम्बन; अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ होने की चिन्ता–उद्दीपन; मति-धृति आदि संचारी एवं वैराग्यपरक वचन–अनुभाव हैं। इनसे मिलकर शान्त रस की निष्पत्ति हुई है।
उदाहरण 2 –

अब लौं नसानी अब न नसैहौं ।
रामकृपा भवनिसा सिरानी, जागे फिर न डसैहौं ।
पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं ।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं ।
परबस जानि हँस्यों इन इंद्रिन, निज बस वै न हसैहौं ।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैहौं । (काव्यांजलि: विनयपत्रिका)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में तुलसीदास जी की जगत् के प्रति विरक्ति और श्रीराम के प्रति अनुराग मुखर हुआ है। इस पद में संसार से पूर्ण विरक्ति अर्थात् ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं-तुलसीदास (आश्रय) तथा श्रीराम की भक्ति (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—श्रीराम की कृपा, सांसारिक असारता तथा इन्द्रियों द्वारा उपहास। स्वतन्त्र होना, राम के चरणों में रत होना, सांसारिक विषयों में पुनः निर्लिप्त न होना आदि से सम्बद्ध कथन अनुभाव हैं। निर्वेद, हर्ष, स्मृति आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव शान्त रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry (वैद्युत रसायन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry (वैद्युत रसायन).

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 3
Chapter Name Electro Chemistry
Number of Questions Solved 82
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry (वैद्युत रसायन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निकाय Mg2+ | Mg का मानक इलेक्ट्रोड विभव आप किस प्रकार ज्ञात करेंगे?
उत्तर
निकाय Mg2+ | Mg का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करने के लिए एक सेल स्थापित करते हैं। जिसमें एक इलेक्ट्रोड Mg | MgSO4 (1M), एक मैग्नीशियम के तार को 1M MgSO4 विलयन में डुबोकर (UPBoardSolutions.com) व्यवस्थित करते हैं तथा मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड Pt, H2 (1 atm) | H+ (1M) को दूसरे इलेक्ट्रोड की भाँति व्यवस्थित करते हैं (चित्र-1)।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 1
सेल का विद्युत वाहक बल मापते हैं तथा वोल्टमीटर में विक्षेप की दिशा को भी नोट करते हैं। विक्षेप की दिशा प्रदर्शित करती है कि इलेक्ट्रॉनों को प्रवाह मैग्नीशियम इलेक्ट्रोड से (UPBoardSolutions.com) हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर है। अर्थात् मैग्नीशियम इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण तथा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड पर अपचयन होता है। अत: सेल को निम्नवत् व्यक्त किया जा सकता है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 2

प्रश्न 2.
क्या आप एक जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट का विलयन रख सकते हैं?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 3
अब हम यह जाँच करेंगे कि निम्नलिखित अभिक्रिया होगी अथवा नहीं।
Zn(s)+ CuSO4(aq) → ZnSO4(aq) + Cu(s)
सेल को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है –
Zn | Zn2+ || Cu2+ | Cu
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 4
= 0.34 V – (- 0.76V) = 1.1 V
चूंकि Ecell धनात्मक है, अत: अभिक्रिया होगी तथा इस कारण हम जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट नहीं रख सकते हैं।

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प्रश्न 3.
मानक इलेक्ट्रोड विभव की तालिका का निरीक्षण कर तीन ऐसे पदार्थ बताइए जो अनुकूल परिस्थितियों में फेरस आयनों को ऑक्सीकृत कर सकते हैं।
उत्तर
फेरस आयनों के ऑक्सीकरण का अर्थ है –
Fe2+ → Fe3+ + e ; E =- 0.77 V
केवल वे पदार्थ Fe2+ को Fe3+ में ऑक्सीकृत कर सकते हैं जो प्रबल ऑक्सीकारक हों तथा जिनका धनात्मक अपचायक विभव 0.77 V से अधिक हो जिससे सेल (UPBoardSolutions.com) अभिक्रिया का विद्युत वाहक बल धनात्मक प्राप्त हो सके। यह स्थिति उन तत्वों पर लागू हो सकती है जो विद्युत-रासायनिक श्रेणी में Fe3+ | Fe2+ से नीचे स्थित हैं; उदाहरणार्थ- Br, Cl तथा I.

प्रश्न 4.
pH = 10 के विलयन के सम्पर्क वाले हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के विभव का परिकलन कीजिए।
हल
हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के लिए,
H+ + e → 1/2 H2
नेर्नुस्ट समीकरण से,
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 5

प्रश्न 5.
एक सेल के emf का परिकलन कीजिए जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है। दिया गया है: Ecell = 1.05 V
Ni(s) + 2Ag+ (0.002M) → Ni2+ (0.160M) + 2Ag(s)
हल
दी गई सेल अभिक्रिया के लिए नेस्ट समीकरण से,
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 6

प्रश्न 6.
एक सेल जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है –
2Fe3+ (aq) + 2I (aq) → 2Fe2+ (aq) + I(s)
का 298K ताप पर Ecell = 0.236 V है। सेल अभिक्रिया की मानक गिब्ज ऊर्जा एवं साम्य स्थिरांक का परिकलन कीजिए।
हल
2Fe3+ + 2e → 2Fe2+
2I → I2 + 2e
अतः दी गई सेल अभिक्रिया के लिए, n = 2
ΔrG = – nFEcell
= – 2 x 96500 x 0.236 J
= -45.55 kJ mol-1
ΔrG = -2.303 RT log KC
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 7
= 7.983
KC = Antilog (7.983) = 9.616 x 107

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प्रश्न 7.
किसी विलयन की चालकता तनुता के साथ क्यों घटती है?
उत्तर
विलयन की चालकता, विलयन के एकांक आयतन में उपस्थित आयनों की चालकता होती है। तनुकरण पर प्रति एकांक आयतन आयनों की संख्या घटती है, अत: चालकता भी घट जाती है।

प्रश्न 8.
जल की Δºm ज्ञात करने का एक तरीका बताइए।
उत्तर
अनन्त तनुता पर जल की सीमान्त मोलर चालकता (Δºm), अनन्त तनुता पर सोडियम हाइड्रॉक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा सोडियम क्लोराइड (जिसमें सभी प्रबल विद्युत-अपघट्य हैं) की मोलर चालकताएँ ज्ञात होने पर निम्न प्रकार प्राप्त की जा सकती है –
Δºm (H2O ) = Δºm (NaOH)  + Δºm HCl  – Δºm (NaCl)

प्रश्न 9.
0.025 mol L-1 मेथेनोइक अम्ल की चालकता 46.1 S cm2 mol-1 है। इसकी वियोजन की मात्रा एवं वियोजन स्थिरांक का परिकलन कीजिए। दिया गया है कि
λ°(H+) = 349.6S cm mol-1 एवं
λ°(HCOO-) = 54.6 S cm mol-1.
हल
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 8

प्रश्न 10.
यदि एक धात्विक तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा 2 घंटों के लिए प्रवाहित होती है तो तार में से कितने इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होंगे?
हल
Q (कूलॉम) = i (ऐम्पियर) × t (सेकण्ड)
= (0.5 ऐम्पियर) × (2 × 60 x 60 s) = 3600 C
96500 C का प्रवाह 1 मोल इलेक्ट्रॉन अर्थात् 6.02 x 1023 इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के तुल्य होता है।
3600 C के तुल्य इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह = [latex s=2]\frac { { 6.02\times 10 }^{ 23 } }{ 96500 } \times 3600[/latex]
= 2246 x 1022 इलेक्ट्रॉन

प्रश्न 11.
उन धातुओं की एक सूची बनाइए जिनका विद्युत-अपघटनी निष्कर्षण होता है।
उत्तर
Na, Ca, Mg तथा Al.

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित अभिक्रिया में Cr2O72- आयनों के एक मोल के अपचयन के लिए कूलॉम में विद्युत की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी ?
Cr2O72- + 14H+ + 6e → 2Cr3++ + 7H2O
हल
दी गई अभिक्रिया के अनुसार,
Cr2O72- – आयनों के एक मोल को 6 मोल इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
अतः F = 6 x 96500 C = 579000 C
अत: Cr3+ में अपचयन के लिए 579000 C विद्युत की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 13.
चार्जिंग के दौरान प्रयुक्त पदार्थों का विशेष उल्लेख करते हुए लेड संचायक सेल की चार्जिंग क्रियाविधि का वर्णन रासायनिक अभिक्रियाओं की सहायता से कीजिए।
उत्तर
चार्जिग (आवेशन) के दौरान एक बाह्य स्रोत से (UPBoardSolutions.com) सेल को विद्युत ऊर्जा दी जाती है अर्थात् सेल एक विद्युतअपघटनी सेल की भाँति कार्य करता है। अभिक्रियाएँ डिस्चार्ज (निरावेशन) के दौरान होने वाली अभिक्रियाओं से विपरीत प्रकार होती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 9

प्रश्न 14.
हाइड्रोजन को छोड़कर ईंधन सेलों में प्रयुक्त किए जा सकने वाले दो अन्य पदार्थ सुझाइए।
उत्तर
मेथेन (CH4), मेथेनॉल (CH3OH)।

प्रश्न 15.
समझाइए कि कैसे लोहे पर जंग लगने का कारण एक विद्युत-रासायनिक सेल बनना माना जाता है?
उत्तर
लोहे की सतह पर उपस्थित जल की परत वायु के अम्लीय ऑक्साइडों; जैसे- CO2, SO2 आदि को घोलकर अम्ल बना लेती है जो वियोजित होकर H+ आयन देते हैं
H2O+ CO2 → H2CO3 [latex s=2]\rightleftharpoons [/latex] 2H+ +CO32-
H+ आयनों की उपस्थिति में, लोहा कुछ स्थलों पर से इलेक्ट्रॉन खोना प्रारम्भ कर देता है तथा फेरस आयन बना लेता है। अतः ये स्थल ऐनोड का कार्य करते हैं –
Fe(s) → Fe2+ (aq) + 2e
इस प्रकार धातु से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन अन्य स्थलों पर पहुँच जाते हैं जहाँ H+ आयन तथा घुली हुई ऑक्सीजन इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर लेती है तथा अपचयन अभिक्रिया हो जाती है। अतः ये स्थल कैथोड की भाँति कार्य करते हैं –
O2(g) +4H+ (aq) +4e → 2H2O(l)
सम्पूर्ण अभिक्रिया इस प्रकारे दी जाती है
2Fe(s)+O2(g) + 4H+ (aq) → 2Fe2+ (aq) + 2H2O(l)

इस प्रकार लोहे की सतह पर विद्युत-रासायनिक सेल बन जाता है।
फेरस आयन पुनः वायुमण्डलीय ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकृत होकर फेरिक आयनों में परिवर्तित हो जाते हैं। जो जल अणुओं से संयुक्त होकर जलीय फेरिक ऑक्साइड Fe2O3. xH2O बनाते हैं। यह जंग कहलाता है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुओं को उस क्रम में व्यवस्थित कीजिए जिसमें वे एक-दूसरे को उनके | लवणों के विलयनों में से प्रतिस्थापित करती हैं।
Al, Cu, Fe, Mg एवं Zn.
उत्तर
Mg, Al, Zn, Fe तथा Cu

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प्रश्न 2.
नीचे दिए गए मानक इलेक्ट्रोड विभवों के आधार पर धातुओं को उनकी बढ़ती हुई अपचायक क्षमता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
K+ । K = -2.93 V, Ag+ | Ag= 0.80V,
Hg2+ | Hg= 0.79 V
Mg2+ | Mg = -2.37 V, Cr3+ | Cr = -0.74 V
उत्तर
किसी धातु की अपचायक शक्ति उसके ऑक्सीकरण विभव पर निर्भर करती है। ऑक्सीकरण विभव जितना अधिक होगा, ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति (UPBoardSolutions.com) उतनी अधिक होगी तथा इसलिए उसकी अपचायक शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी। अत: दिये गये धातुओं की बढ़ती अपचायक शक्ति का क्रम निम्न होगा –
Ag < Hg < Cr < Mg < K

प्रश्न 3.
उस गैल्वेनी सेल को दर्शाइए जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है –
Zn(s) + 2Ag+ (aq) → Zn2+ (aq) + 2Ag(s)
अब बताइए –

  1. कौन-सा इलेक्ट्रोड ऋणात्मक आवेशित है?
  2. सेल में विद्युत-धारा के वाहक कौन-से हैं?
  3. प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर होने वाली अभिक्रिया क्या है?

उत्तर
जिंक इलेक्ट्रोड ऐनोड का कार्य करता है, जबकि सिल्वर इलेक्ट्रोड कैथोड का कार्य करता है। सेल को निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं –
Zn (S)| Zn2+ (aq)|| Ag+ (aq)| Ag (s)
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 10

  1. Zn / Zn2+ इलेक्ट्रोड ऋणात्मक आवेशित होता है तथा ऐनोड की तरह कार्य करता है।
  2. बाह्य परिपथ में इलेक्ट्रॉन तथा आंतरिक परिपथ में आयन।
  3. ऐनोड पर : Zn (s) → Zn2+ (aq) + 2e
    कैथोड पर : Ag+ (aq) + e → Ag(s)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं वाले गैल्वेनी सेल का मानक सेल-विभव परिकलित कीजिए।
(i) 2Cr(s) + 3Cd2+ (aq) → 2Cr3+ (aq) + 3Cd
(ii) Fe2+ (aq) + Ag+ (aq) → Fe3+ (aq) + Ag(s)
उपर्युक्त अभिक्रियाओं के लिए ΔrG एवं साम्य स्थिरांकों की भी गणना कीजिए।
हल
(i) सेले को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 11
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 12

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सेलों की 298K पर नेर्नुस्ट समीकरण एवं emf लिखिए।

  1. Mg(s) | Mg2+ (0001 M) || Cu2+ (0.0001 M) | Cu(s)
  2. Fe(s) | Fe2+ (0.001 M) || H+ (1 M) | H2(g) (1 bar) | Pt(s)
  3. Sn(8) | Sn2+ (0.050 M) | H+ (0.020 M) | H2(g) (1 bar) | Pt(s)
  4. Pt(s) | Br (0.010 M)|Br2 (l) || H+ (0.030 M) | H2(g) (1 bar) | Pt (s).

हल
1. सेल अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
Mg(s) + Cu2+ (0.0001 M) → Mg2+ (0.001 M) + Cu (s)
इसलिए n = 2,
इसके अनुसार नेर्नस्ट समीकरण निम्नवत् होगी –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 13

2. सेल अभिक्रिया निम्न है –
Fe(s) + 2H+ (1M)→ Fe2+ (0.001M)+ H2 (1bar)
इसलिए n = 2,
इस सेल के epf के लिए नेर्नस्ट समीकरण निम्न होगी –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 14

3. सेल अभिक्रिया निम्न है –
Sn(s) + 2H+ (0.020M) → Sn2+ (0.050M)+ H2 (1 bar)
इसलिए n = 2,
इसके अनुसार, नेर्नस्ट समीकरण निम्न होगी –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 14a

4. सेल अभिक्रिया निम्न है –
2Br (0.010 M) + 2H+ (0.030 M) → Br2(l) + H2 (1 bar)
इसलिए n = 2,
सेल के लिए नेर्नस्ट समीकरण के अनुसार emf निम्न है –
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प्रश्न 6.
घड़ियों एवं अन्य युक्तियों में अत्यधिक उपयोग में आने वाली बटन सेलों में निम्नलिखित अभिक्रिया होती है –
Zn(s) + Ag2O(s) + H2O(l) → Zn2+ (aq) + 2Ag(s) + 2OH (aq)
अभिक्रिया के लिए ΔrG एवं E ज्ञात कीजिए।
हल
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सेल अभिक्रिया के लिए, n = 2
∴ ΔrG = – nFEcell
∴ ΔrG = – 2 x 96500 x 1.104 = -2.13 x 105 CV mol-1
= – 2.13 x 10 J mol-1

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प्रश्न 7.
किसी विद्युत-अपघट्य के विलयन की चालकता एवं मोलर चालकता की परिभाषा दीजिए। सान्द्रता के साथ इनके परिवर्तन की विवेचना कीजिए।
उत्तर
विद्युत-अपघट्य के विलयन की चालकता (Conductivity of the solution of an electrolyte) – यह प्रतिरोध R का व्युत्क्रम होती है तथा इसे उस सरल रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिससे धारा किसी चालक में प्रवाहित होती है।
c = [latex s=2]\frac { 1 }{ R } =\frac { A }{ pl } [/latex]
k = [latex s=2]\frac { A }{ l }[/latex]
यहाँ k विशिष्ट चालकता है। चालकता का SI मात्रक सीमेन्ज (Siemens) है जिसे प्रतीक ‘S’ से निरूपित किया जाता है तथा यह ohm-1 या Ω-1 के तुल्य होता है।
मोलर चालकता (Molar conductivity) – वह चालकता जो 1 मोल विद्युत-अपघट्य को विलयन में घोलने पर समस्त आयनों द्वारा दर्शायी जाती है, मोलर चालकता कहलाती है, इसे Δm (लैम्ब्डा) से व्यक्त किया जाता है। यदि विद्युत-अपघट्य विलयन के V cm3 में विद्युत-अपघट्य के 1 mol उपस्थित हों, तब
Δm = K x V
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इसकी इकाई ohm-1 cm2 mol-1 या S cm2 mol-1 है।

सान्द्रता के साथ चालकता तथा मोलर चालकता में परिवर्तन
(Variation of Conductivity and Molar Conductivity with Concentration)
विद्युत-अपघट्य की सान्द्रता में परिवर्तन के साथ-साथ चालकता एवं मोलर चालकता दोनों में परिवर्तन होता है। दुर्बल एवं प्रबल दोनों प्रकार के विद्युत-अपघट्यों की सान्द्रता (UPBoardSolutions.com) घटाने पर चालकता सदैव घटती है। इसकी इस तथ्य से व्याख्या की जा सकती है कि तनुकरण (dilution) करने पर प्रति इकाई आयतन में विद्युत धारा ले जाने वाले आयनों की संख्या घट जाती है। किसी भी सान्द्रता पर विलयन की चालकता उस विलयन के इकाई आयतन का चालकत्व होता है जिसे परस्पर इकाई दूरी पर स्थित एवं इकाई अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के मध्य रखा गया हो।

यह निम्नलिखित समीकरण से स्पष्ट है –
C = [latex s=2]\frac { kA }{ l } [/latex] =k
(A एवं । दोनों ही उपयुक्त इकाइयों m या cm में हैं)
किसी दी गई सान्द्रता पर एक विलयन की मोलर चालकता उस विलयन के V आयतन का चालकत्व है जिसमें विद्युत-अपघट्य का एक मोल घुला हो तथा जो एक-दूसरे से इकाई दूरी पर स्थित, A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो इलेक्ट्रोडों के मध्य रखा गया हो। अतः
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Δm = [latex s=2]\frac { kA }{ l } [/latex] = k
चूंकि l = 1 एवं A = V (आयतन, जिसमें विद्युत अपघट्य का एक मोल घुला है।)
Δm = k V
सान्द्रता घटने के साथ मीलर चालकता बढ़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह कुल आयतन (V) भी बढ़ जाता है जिसमें एक मोल विद्युत अपघट्य उपस्थित होता है। यह पाया गया है कि विलयन के तनुकरण पर आयतन में वृद्धि K में होने वाली कमी की तुलना में कहीं अधिक होती है।

प्रबल विद्युत-अपघट्य (Strong Electrolytes)
प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए Δm का मान तनुता के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है एवं इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा निरूपित किया जा सकता है –
Δm  = Δºm – Ac1/2
यह देखा जा सकता है कि यदि Δm को c1/2 के विपरीत आरेखित किया जाए (चित्र-3) तो हमें एक सीधी रेखा प्राप्त होती है जिसका अन्त:खण्ड A एवं ढाल ‘A’ के बराबर है। दिए गए विलायक एवं ताप पर स्थिरांक ‘A का मान विद्युत-अपघट्य के प्रकार अर्थात् विलयन में विद्युत-अपघट्य के (UPBoardSolutions.com) वियोजन से उत्पन्न धनायन एवं ऋणायन के आवेशों पर निर्भर करता है। अत: NaCl, CaCl2, MgSO4 क्रमशः 1-1, 2-1 एवं 2-2 विद्युत-अपघट्य के रूप में जाने जाते हैं। एक प्रकार के सभी विद्युत-अपघट्यों के लिए ‘A’ का मान समान होता है।

प्रश्न 8.
298 K पर 0.20 M KCl विलयन की चालकता 0.0248 S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता का परिकलन कीजिए।
हल
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प्रश्न 9.
298 K पर एक चालकता सेल जिसमें 0.001 M KCl विलयन है, का प्रतिरोध 1500 Ω है। यदि 0.001 M KCl विलयन की चालकता 298K पर 0.146 x 10-3 S cm-1 हो तो सेल स्थिरांक क्या है?
हल
k = [latex s=2]\frac { 1 }{ R } [/latex] x सेल नियतांक
∴ सेल नियतांक = K R= 0.146 x 10-3 x 1500 = 0.219 cm-1

प्रश्न 10.
298 K पर सोडियम क्लोराइड की विभिन्न सान्द्रताओं पर चालकता का मापन किया गया जिसके आँकड़े अग्रलिखित हैं –
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हल
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सीधी रेखा को पीछे तक खींचने पर यह Δm अक्ष पर 124.0 S cm2 mol-1 पर मिलती है। यह Δºm का मान है।

प्रश्न 11.
0.00241 M ऐसीटिक अम्ल की चालकता 7.896 x 10-5 S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता को परिकलित कीजिए। यदि ऐसीटिक अम्ल के लिए  Δºm का मान 390.5 S cm2 mol-1 हो तो इसका वियोजन स्थिरांक क्या है?
हल
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प्रश्न 12.
निम्नलिखित के अपचयन के लिए कितने आवेश की आवश्यकता होगी?
(i) 1 मोल Al3+ को Al में
(ii) 1 मोल Cu2+ को Cu में।
(iii) 1 मोल MnO4 को Mn2+ में
हल
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प्रश्न 13.
निम्नलिखित को प्राप्त करने में कितने फैराडे विद्युत की आवश्यकता होगी?
(i) गलित CaCl2 से 20.0 g Ca
(ii) गलित Al2O3 से 40.0 g Al
हल
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 26

प्रश्न 14.
निम्नलिखित को ऑक्सीकृत करने के लिए कितने कूलॉम विद्युत आवश्यक है?

  1. 1 मोल H2O को O2 में।
  2. 1 मोल FeO को Fe2O3 में।

हल
1. 1 mol H2O के लिए इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार दी जाती है –
H2O → H2 + 1/2 O2
अर्थात् O2- → 1/2 O2 + 2e
∴ आवश्यक विद्युत की मात्रा = 2F = 2 x 96500 C = 193000 C

2. 1 mol FeO के लिए इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार दी जाती है –
FeO → 1/2 Fe2O3
अर्थात् Fe2+ → Fe3+ + e
∴ आवश्यक विद्युत की मात्रा = 1F = 96500 C

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प्रश्न 15.
Ni(NO3)2 के एक विलयन का प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के बीच 5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करते हुए 20 मिनट तक विद्युत-अपघटन किया गया। Ni की कितनी मात्रा कैथोड पर निक्षेपित होगी?
हल
अभिक्रिया निम्न प्रकार सम्पन्न होती है –
Ni2+ + 2e  → Ni
Ni का परमाणु भार = 58.70
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प्रश्न 16.
ZnSO4, AgNO3 एवं CuSO4 विलयन वाले तीन विद्युत-अपघटनी सेलों A, B, C को श्रेणीबद्ध किया गया एवं 1.5 ऐम्पियर की विद्युत धारा, सेल B के कैथोड पर 145 सिल्वर निक्षेपित होने तक लगातार प्रवाहित की गई। विद्युत धारो कितने समय तक प्रवाहित हुई? निक्षेपित कॉपर एवं जिंक को द्रव्यमान क्या होगा ?
हल
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 28

प्रश्न 17.
तालिका 3.1 (पाठ्यपुस्तक) में दिए गए मानक इलेक्ट्रोड विभवों की सहायता से अनुमान लगाइए कि क्या निम्नलिखित अभिकर्मकों के बीच अभिक्रिया सम्भव है?
(i) Fe3+ (aq) और I (aq)
(ii) Ag+ (aq) और Cu (s)
(iii) Fe3+ (aq) और Br (aq)
(iv) Ag (s) और Fe3+ (aq)
(v) Br2(aq) और Fe2+ (aq).
उत्तर
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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए विद्युत-अपघटन से प्राप्त उत्पाद बताइए –

  1. सिल्वर इलेक्ट्रोडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
  2. प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
  3. प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के साथ H2SO4 का तनु विलयन
  4. प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के साथ CuCl2 का जलीय विलयन।

उत्तर
1. AgNO3 (aq) → Ag+ (aq) + NO3 (aq)
H2O [latex s=2]\leftrightarrows [/latex] H+ + OH
कैथोड पर : चूंकि सिल्वर का अपचयन विभव (+0.80 V) जल (-0.830 V) से अधिक है, इसलिए Ag+ वरीयता के आधार पर अपचयित होगा तथा सिल्वर धातु कैथोड पर जमा होगी।
Ag+ (aq) + e → Ag (s)
ऐनोड पर : निम्न अभिक्रिया होगी –
H2O (l) → 1/2 O2(g) + 2H+ (aq)
NO3 (aq) → NO3 + e
Ag(s) → Ag+ (aq) + e

इन अभिक्रियाओं में कॉपर का अपचयन विभव न्यूनतम है। इसलिए सिल्वर स्वयं ऐनोड पर ऑक्सीकरण के फलस्वरूप Ag’ में परिवर्तित हो जायेगी और Ag’ आयन विलयन में चले जायेंगे।
Ag(s) → Ag(aq) + e

2. कैथोड पर : सिल्वर आयने अपचयित होंगे तथा सिल्वर धातु जमा होगी।
ऐनोड पर : चूँकि जल का अपचयन विभव NO3 आयनों से कम होता है, इसलिए जल वरीयता के आधार पर ऑक्सीकृत होगा तथा ऑक्सीजन मुक्त होगी।
H2O (l) → 1/2 O(g) + 2H+ (aq) + 2e

3. प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के साथ H2SO4 के तनु विलयन का विद्युत-अपघटन
H2SO4(aq) → 2H+ (aq) + SO2-4 (aq)
H2O [latex s=2]\leftrightarrows [/latex] H+ + OH
कैथोड पर : H+ +e → H
H → H(g)
ऐनोड पर : OH → OH + e
4OH → 2H2O (l) + O(g)
अत: कैथोड पर H, तथा ऐनोड पर 0 मुक्त होगी।

4. CuCl2 (aq) → Cu2+ (aq) + 2Cl (aq)
H2O [latex s=2]\leftrightarrows [/latex] H+ + OH
कैथोड पर : चूंकि Cu2+ (+0.341 V) का अपचयन विभव जल (-0.83 V) से अधिक होता है, इसलिए Cu2+ वरीयता के आधार पर अपचयित होंगे तथा कैथोड पर कॉपर धातु जमा होगी।
Cu2+ (aq) + 2e → Cu (s)

ऐनोड पर : निम्न अभिक्रियाओं के होने की सम्भावना है –
H2O (l) → 1/2 O(g) + 2H+ (aq) + 2e– ;
E° = +1.23 V
2Cl–  (aq) → Cl2 (g) + 2e–  ; E° = + 1.36V
चूँकि जल का अपचयन विभव Cl (जलीय) आयनों से कम होता है, इसलिए जल वरीयता के आधार पर ऐनोड पर ऑक्सीकृत होगा तथा O2, गैस मुक्त होगी।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चार क्षार धातुओं A, B, C व D के मानक अपचयन विभव क्रमशः-3.05 -1.66,- 0.40 तथा 0.80 वोल्ट हैं। इनमें से प्रबलतम अपचायक है – (2011)
(i) A
(ii) B
(iii) C
(iv) D
उत्तर
(i) A

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प्रश्न 2.
प्रबलतम अपचायक है – (2016)
(i) Li
(ii) Na
(iii) K
(iv) Cs
उत्तर
(i) Li

प्रश्न 3.
25°C पर Li+ /Li, Ba2+ / Ba, Na+ / Na तथा Mg2+/Mg के मानक अपचयन इलेक्ट्रोड विभव क्रमशः -305,- 273 – 271 तथा -237 वोल्ट हैं। सबसे प्रबल ऑक्सीकारक है – (2009, 13, 18)
(i) Ba2+
(ii) Mg2+
(iii) Na+
(iv) Li+
उत्तर
(ii) Mg2+

प्रश्न 4.
किसी भी इलेक्ट्रोड का इलेक्ट्रोड विभव निर्भर करता है – (2012)
(i) धातु की प्रकृति पर
(ii) विलयन के ताप पर
(iii) विलयन की मोलरता पर
(iv) इनमें से सभी पर
उत्तर
(iv) इनमें से सभी पर

प्रश्न 5.
तत्त्वों A, B,C तथा D के मानक अपचयन विभव क्रमशः -2.90, +1.50, -0.74 तथा +0.34 वोल्ट हैं। इनमें सर्वाधिक विभव ऑक्सीकारक है – (2016)
(i) A
(ii) B
(iii) C
(iv) D
उत्तर
(ii) B

प्रश्न 6.
धातु जो सरलता से ऑक्सीकृत हो जाती है – (2017)
(i) Cu
(ii) Ag
(iii) Al
(iv) At
उत्तर
(iii) Al

प्रश्न 7.
चार धातुओं A, B, C तथा D के मानक ऑक्सीकरण इलेक्ट्रोड विभव क्रमशः + 1.5 वोल्ट,- 20 वोल्ट, + 0.84 वोल्ट तथा- 0.36 वोल्ट हैं। इन धातुओं की बढ़ती सक्रियता का क्रम है – (2017)
(i) A < B < C < D
(ii) D < C < B < A
(iii) A < C < D < B
(iv) B < C < D < A
उत्तर
(iii) A < C < D < B

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प्रश्न 8.
निम्न में कौन-सा ऑक्साइड हाइड्रोजन द्वारा अपचयित होगा? (2017)
(i) Na2O
(ii) MgO
(iii) Al2O3
(iv) Ag2O
उत्तर
(iv) Ag2O

प्रश्न 9.
Mg, Cu, Na तथा Au की सक्रियता का सही क्रम है – (2016)
(i) Au > Cu > Mg > Na
(ii) Mg > Cu > Au > Na
(iii) Na > Mg > Cu> Au
(iv) Cu > Mg > Na > Au
उत्तर
(iii) Na > Mg > Cu> Au

प्रश्न 10.
चार धातुओं A, B, C, D के मानक इलेक्ट्रोड विभव (E0) क्रमशः + 1.5 V, -20 V, + 0.34 V तथा – 0.76 v हैं। इन धातुओं की घटती हुई सक्रियता का क्रम है –(2014)
(i) A> C> D> B
(ii) A> B> D> C
(iii) B> D> C> A
(iv) D> A> B> C
उत्तर
(iii) B> D> C> A

प्रश्न 11.
A, B और C तत्त्वों का मानक अपचयन विभव क्रमशः +0.68 V,-0.50 V और-2.5 V है। उनकी अपचयन शक्ति का क्रम है – (2017)
(i) A > B > C
(ii) A > C > B
(iii) C > B > A
(iv) B > C > A
उत्तर
(ii) A > C > B

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प्रश्न 12.
धातु जो हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से H, विस्थापित नहीं कर सकती है, वह है – (2017)
(i) Zn
(ii) Cu
(iii) Mg
(iv) Al
उत्तर
(ii) Cu

प्रश्न 13.
निम्न में से कौन-सी अभिक्रिया सम्भव नहीं है? (2017)
(i) Cu + 2AgNO3 → Cu (NO3)2 + 2Ag
(ii) CaO + H2 → Ca + H2O
(iii) CuO+ H2 → Cu + H2O
(iv) Fe + H2SO4 → FeSO4 + H2 ↑
उत्तर
(i) Cu + 2AgNO3 → Cu (NO3)2 + 2Ag

प्रश्न 14.
आर्यन जिसकी विद्युत चालकता जलीय विलयन में सबसे अधिक है, है – (2014)
(i) Li+
(ii) Na+
(iii) K+
(iv) Cs+
उत्तर
(iv) Cs+

प्रश्न 15.
अच्छे चालकत्व विलयन वाले पदार्थ हैं – (2017)
(i) दुर्बल वैद्युत अपघट्य
(ii) प्रबल वैद्युत अपघट्य
(iii) विद्युत अपघट्य
(iv) उत्प्रेरक
उत्तर
(ii) प्रबल वैद्युत अपघट्य

प्रश्न 16.
[latex s=2]\frac { N }{ 50 } [/latex] KCl विलयन की 25°C पर विशिष्ट चालकता 0.002765 म्हो सेमी-1  है। यदि विलयन सहित सेल का प्रतिरोध 400 ओम हो तो सेल स्थिरांक होगा – (2017)
(i) 0.553 सेमी-1
(ii) 1.106 सेमी-1
(iii) 2.212 सेमी-1
(iv) इनमें से कोई नही
उत्तर
(ii) 1.106 सेमी-1

प्रश्न 17.
जल के विद्युत अपघटन में बनी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का भारात्मक अनुपात है – (2016)
(i) 2 : 1
(ii) 8 : 1
(iii) 16 : 1
(iv) 1 : 4
उत्तर
(i) 2 : 1

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प्रश्न 18.
हाइड्रोजन-ऑक्सीजन ईंधने सेल में नेट अभिक्रिया संपन्न होती है – (2016)
(i) 2H(g) +4 OH (aq) → 4H2O (l) +4e
(ii) O2(g) + 2H2O (l) → 2e + 4OH (aq)
(iii) 2H2(g) + O(g) → 2H2O (l)
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(iii) 2H2(g) + O(g) → 2H2O (l)

प्रश्न19.
सीसा संचायक सेल को आवेशित करने पर – (2017)
(i) PbO2 घुलता है।
(ii) लेड इलेक्ट्रोड पर PbSO4 जमता है।
(iii) H2SO4 पुन: बनता है।
(iv) अम्ल की मात्रा घटती है।
उत्तर
(ii) लेड इलेक्ट्रोड पर PbSO4 जमता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रेडॉक्स विभव किसे कहते हैं? (2014)
उत्तर
जब सेल में ऑक्सीकरण तथा अपचयन अभिक्रिया होती है तो धातु और विलयन के मध्य स्थापित विभवान्तर को रेडॉक्स विभव कहते हैं; जैसे
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यदि इस प्रकार के सेल का विभव E हो तो ऑक्सीकारक की सान्द्रता [Ox] तथा अपचायक की सान्द्रता [Red] में 25°C पर निम्नलिखित सम्बन्ध होता है –
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जहाँ, E° रेडॉक्स विभव है और n ऑक्सीकारक (Ox) द्वारा ग्रहण किये गये इलेक्ट्रॉनों की संख्या है। जिन्हें ऑक्सीकारक ग्रहण करके अपने संगत अपचायक में बदल देता है।

प्रश्न 2.
किसी सेल के विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है? (2017)
उत्तर
किसी सेल के इलेक्ट्रोडों के इलेक्ट्रोड विभवों में वह अन्तर, जब सेल से परिपथ में कोई विद्युत धारा नहीं बहती है, सेल को विद्युत वाहक बल कहलाता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सम्भव अभिक्रियाओं की सहायता से Mg, Zn, Cu और Ag को उनके घटते हुए इलेक्ट्रोड विभव के क्रम में लिखिए – (2014)

  1. Cu + 2Ag+ → Cu2+ + 2Ag
  2. Mg + Zn2+ → Mg2+ + Zn
  3. Zn + Cu2+ → Zn2+ + Cu

उत्तर

  1. Cu + 2Ag+ → Cu2+ + 2Ag
    Cu > E°Ag
  2.  Mg + Zn2+ → Mg2+ + Zn
    Mg  > E°Zn
  3. Zn + Cu2+ → Zn2+ + Cu
    Zn > E°Cu

अतः E° का घटता हुआ क्रम इस प्रकार होगा –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 34

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प्रश्न 4.
Mg, Zn, Cu, Ag में से किस तत्त्व की अम्ल से अभिक्रिया होने पर हाइड्रोजन गैस विमुक्त होती है? (2015)
उत्तर
Mg तथा Zn अम्ल से अभिक्रिया करके H, गैस विमुक्त करते हैं क्योंकि विद्युत रासायनिक श्रेणी में Mg तथा Zn का स्थान हाइड्रोजन से ऊपर है अर्थात् Mg तथा Zn की अपचायक क्षमता हाइड्रोजन से अधिक है।

प्रश्न 5.
कॉपर सल्फेट के विलयन में लोहे की कील डालने पर क्या होगा? (2016)
उत्तर
कॉपर सल्फेट के विलयन में लोहे की कील डालने पर लोहे की कील के ऊपर कॉपर की परत चढ़ जायेगी, क्योंकि कॉपर की सक्रियता लोहे से कम होती है।

प्रश्न 6.
जिंक तथा ताँबे में से एक अम्लों से हाइड्रोजन गैस विस्थापित नहीं करता है। क्यों? (2016)
उत्तर
वैद्युत रासायनिक श्रेणी में जिंक हाइड्रोजन से ऊपर तथा ताँबा हाइड्रोजन से नीचे स्थित है जिसके कारण जिंक हाइड्रोजन से अधिक अपचायक है और ताँबा कम अपचायक है। इसीलिए जिंक अम्लों से हाइड्रोजन को विस्थाप्रित करता है परन्तु, ताँबा नहीं करता है।

प्रश्न 7.
यद्यपि विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऐलुमिनियम हाइड्रोजन से ऊपर है किन्तु यह वायु और जल में स्थायी है। क्यों? (2016, 18)
उत्तर
यद्यपि विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऐलुमिनियम हाइड्रोजन से ऊपर है किन्तु यह वायु और जल में स्थायी है क्योंकि यह गर्म जल या जलवायु के साथ उच्च ताप पर क्रिया करता है और साधारण ताप पर जल के साथ इसकी क्रिया मन्द होती है।

प्रश्न 8.
Zn तथा Fe, कॉपर सल्फेट (CuSO4) में Cu को विस्थापित कर सकते हैं, परन्तु Pt और Ag नहीं करते। कारण स्पष्ट कीजिए। (2009, 12, 13)
या
Zn, CuSO4 विलयन से कॉपर को विस्थापित कर सकता है जबकि सोना (Ag) ऐसा नहीं कर सकता है। क्यों? (2017)
उत्तर
कम इलेक्ट्रोड विभव वाली धातु अधिक इलेक्ट्रोड विभव वाली धातु को उसके लवण के विलयन में से प्रतिस्थापित कर देती है। विद्युत रासायनिक श्रेणी में नीचे की ओर चलने पर इलेक्ट्रोड विभव कम होता जाता है। चूंकि विद्युत रासायनिक श्रेणी में Zn तथा Fe धातुएँ Cu से नीचे स्थित हैं अत: (UPBoardSolutions.com) इनका इलेक्ट्रोड विभव Cu से कम होता है और ये Cu को उसके लवण विलयन CuSO4 में से विस्थापित कर देती हैं, जबकि Pt और Ag का स्थान विद्युत रासायनिक श्रेणी में Cu से ऊपर होता है जिसके कारण इनका इलेक्ट्रोड विभव Cu से अधिक होता है। इसी कारण से ये Cu को इसके लवण विलयन में से विस्थापित नहीं कर पाती हैं।

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प्रश्न 9.
सिल्वर नाइट्रेट के घोल में कॉपर की छड़ डालने पर घोल नीला क्यों हो जाता है? (2010, 16)
उत्तर
वैद्युत रासायनिक श्रेणी का प्रत्येक तत्त्व अपने से नीचे स्थित तत्त्वों को उसके विलयन से विस्थापित कर सकता है। श्रेणी में Cu का स्थान Ag से ऊपर है. अत: यह AgNO3 से निम्नलिखित क्रिया देगा –
Cu + 2AgNO3 → Cu2+ + 2NO3 + 2Ag
इस प्रकार विलयन में क्यूप्रिंक आयन (Cu2+) विद्यमान होने से विलयन का रंग नीला हो जायेगा।

प्रश्न 10.
विशिष्ट चालकता से क्या तात्पर्य है? इसका मात्रक क्या है? (2014, 17)
उत्तर
किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उस चालक की विशिष्ट चालकता (या केवल चालकता) कहते हैं। इसे ग्रीक अक्षर K (कप्पा, kappa) से निरूपित किया जाता है।
k = [latex s=2]\frac { 1 }{ p } [/latex]
विशिष्ट चालकता के मात्रक ओम-1 सेमी-1 या Ω-1 सेमी-1 या S सेमी-1 हैं।

प्रश्न11.
एक विद्युत अपघट्य विलयन की मोलर चालकता को परिभाषित कीजिए तथा उसके मात्रक लिखिए। (2014, 18)
उत्तर
किसी विलयन के एक निश्चित आयतन में उपस्थित एक विद्युत अपघट्य पदार्थ के एक मोल द्वारा उपलब्ध कराये गये आयनों की चालकता को मोलर चालकता कहते हैं। इसे A से प्रदर्शित करते हैं। मोलर चालकता के मात्रक ओम-1 सेमी2 मोल-1 या S सेमी2 मोल-1 हैं।

प्रश्न 12.
कोलराउश का नियम क्या है? (2014, 15, 16, 17)
उत्तर
इस नियम के अनुसार, “किसी विद्युत अपघट्य की अनन्त तनुता पर चालकता इसके धनायनों तथा ऋणायनों की मोलर चालकताओं के योग के बराबर होती है, यदि प्रत्येक चालकता पद को विद्युत अपघट्य सूत्र में उपस्थित संगत आयनों की संख्या से गुणा किया जाये।”
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प्रश्न13.
मोलर चालकता तथा तुल्यांक चालकता में क्या सम्बन्ध है? (2017)
उत्तर
मोलर चालकता तथा तुल्यांक चालकता में निम्नलिखित सम्बन्ध है – UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 36

प्रश्न14.
विद्युत अपघटन की क्रियाविधि उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइए। (2016)
उत्तर
किसी विद्युत अपघट्य का विद्युत धारा द्वारा अपघटन विद्युत अपघटन कहलाता है। उदाहरणार्थ- गलित सोडियम क्लोराइड में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह सोडियम और क्लोरीन में अपघटित हो जाता है।
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प्रश्न15.
फैराडे का विद्युत अपघटन का प्रथम नियम लिखिए। (2017)
उत्तर
इस नियम के अनुसार, “विद्युत अपघटन की प्रक्रिया में किसी इलेक्ट्रोड विशेष पर मुक्त (अथवा एकत्रित) पदार्थ का द्रव्यमान विलयन में प्रवाहित की गई विद्युत की मात्रा (कुल आवेश) के समानुपाती होता है।”

प्रश्न16.
फैराडे का विद्युत अपघटन का द्वितीय नियम लिखिए। (2016, 17)
उत्तर
इस नियम के अनुसार, “जब श्रेणीक्रम में जुड़े विभिन्न विद्युत अपघट्यों के विलयनों में समान मात्रा में विद्युत प्रवाहित की जाती है, तो इलेक्ट्रोडों पर मुक्त (या एकत्रित) पदार्थों के द्रव्यमान उनके तुल्यांक भारों के समानुपाती होते हैं।’
अर्थात्  W1 ∝ E1 W2 ∝ E2, [latex s=2]\frac { { W }_{ 1 } }{ { E }_{ 1 } } [/latex] = [latex s=2]\frac { { W }_{ 2 } }{ { E }_{ 1=2 } } [/latex] = [latex s=2]\frac { { W }_{ 3 } }{ { E }_{ 3 } } [/latex]

प्रश्न17.
विद्युत लेपन को उदाहरण द्वारा संक्षेप में समझाइए। (2014)
उत्तर
विद्युत अपघटन द्वारा कम सक्रिय धातु की कलई अधिक सक्रिय धातु पर चढ़ाई जाती है। इस प्रक्रिया को विद्युत लेपन कहते हैं। धातुओं की होने वाली अवांछनीय संक्षारण क्रिया को विद्युत लेपन द्वारा रोका जाता है।
उदाहरणार्थ– लोहे की चादर पर जिंक या टिन का लेप किया जाता है। क्योंकि जिंक या टिन की सक्रियता लोहे से कम है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत अपघटनी सेल तथा गैल्वेनी सेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2014, 15, 17)
उत्तर
विद्युत अपघटनी सेल तथा गैल्वेनी सेल में निम्न अन्तर हैं –
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प्रश्न 2.
इलेक्ट्रोड विभव किसे कहते हैं? इसका मान किन-किन कारकों पर निर्भर करता है? (2012, 15)
उत्तर
जब किसी धातु (इलेक्ट्रोड) को उसी धातु के किसी लवण विलयन में रखा जाता है तो धातु तथा विलयन के सम्पर्क स्थल पर वैद्युत द्विक-स्तर (electrical double layer) उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप धातु तथा विलयन के मध्य विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जिसे (UPBoardSolutions.com) इलेक्ट्रोड विभव (electrode potential) कहते हैं। इसे E° से प्रकट करते हैं और इसे वोल्ट में मापा जाता है। उदाहरणार्थ-जब कॉपर की छड़, कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोई जाती है तो कॉपर की छड़, विलयन के सापेक्ष ऋणावेशित हो जाती है जिससे कॉपर धातु और कॉपर आयनों के मध्य विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है।
Cu (s) [latex s=2]\rightleftharpoons [/latex] Cu2+ + 2e
इस विभवान्तर को कॉपर इलेक्ट्रोड का विभव कहते हैं।
इलेक्ट्रोड विभव निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

  1. चालक की प्रकृति – जिस इलेक्ट्रोड की चालकता अधिक होगी वह उतना ही अधिक इलेक्ट्रोड विभवे उत्पन्न करता है।
  2. धात्विक आयन की विलयन में सान्द्रता – सान्द्रता बढ़ाने पर इलेक्ट्रोड विभव को मान घटता है, क्योंकि सान्द्रता बढ़ाने पर आयनन घट जाता है, फलस्वरूप चालकता कम हो जाती है।
  3. तापक्रम – इलेक्ट्रोड विभव का मान ताप पर भी निर्भर करता है जो ताप बढ़ाने पर आयनन बढ़ जाने के कारण बढ़ता है।

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प्रश्न 3.
मानक इलेक्ट्रोड विभव क्या है? इलेक्ट्रोड विभव (E) और मानक इलेक्ट्रोड विभव (E°) में सम्बन्ध लिखिए। (2016)
या
टिप्पणी लिखिए-नेर्नस्ट समीकरण। (2015, 16, 17)
उत्तर
मानकं इलेक्ट्रोड विभव – किसी धातु की छड़ को 25°C पर एक मोलर धातु आयन सान्द्रता के विलयन में डुबोने पर धातु और विलयन के मध्य जो विभवान्तर उत्पन्न होता है उसे धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव (E°) कहते हैं।
इलेक्ट्रोड विभव (E) और मानक इलेक्ट्रोड विभव (E°) में सम्बन्ध
माना एक इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार है –
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नेर्नस्ट के अनुसार, किसी ताप T पर धातु इलेक्ट्रोड M| Mn+ के विभव E और विलयन में धातु आयनों की सान्द्रता [Mn+] में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है,
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इसे नेर्नस्ट समीकरण भी कहते हैं।
जहाँ E° धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव (वोल्ट में), R गैस नियतांक (R= 8.312 JK-1 mol-1), T परम ताप (केल्विन में), F फैराडे नियतांक (F = 96,485 C mol-1), n इलेक्ट्रोड अभिक्रिया में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों के मोलों की संख्या तथा [Mn+] विलयन में धातु आयनों की सक्रियता (activity) अथवा मोल प्रति लीटर में व्यक्त सान्द्रता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सेल के विद्युत वाहक बल की गणना कीजिए – (2017)
Cu | Cu++ (1M) | Ag+ (1M) | Ag
दिया है : E° Cu2+ | Cu= + 0.34 volt
E° Ag+ | Ag = + 0.80 volt
हल
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित सेल का e.m.f. निकालिए। यह भी बताइए कि कौन-सा इलेक्ट्रोड धन ध्रुव और कौन-सा ऋण ध्रुव है? सेल में होने वाली अर्द्ध अभिक्रियाएँ और पूर्ण अभिक्रियाएँ लिखिए – (2015)
Ni | Ni++ (0.1M) || Ag+ (0.1M) | Ag
E° Ni++ | Ni=- 0.25 v और E° Ag+ | Ag= + 0.80 V
हल
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प्रश्न 6.
वैद्युत रासायनिक श्रेणी किसे कहते हैं? इसके प्रमुख लक्षण तथा दो प्रमुख उपयोग लिखिए। (2009, 10, 12, 14, 16, 17)
उत्तर
वैद्युत रासायनिक श्रेणी–विभिन्न धातुओं तथा अधातुओं के मानक इलेक्ट्रोड विभवों (अपचयन विभव) को बढ़ते हुए क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है, उसे वैद्युत रासायनिक श्रेणी कहते हैं।
वैद्युत रासायनिक श्रेणी के लक्षण

  1. श्रेणी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर तत्त्वों की अपचयन क्षमता घटती है, जबकि नीचे से ऊपर जाने पर अपचयन क्षमता बढ़ती है।
  2. हाइड्रोजन से ऊपर के सभी तत्त्व अम्लों से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं, जबकि नीचे वाले तत्त्व अम्लों से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त नहीं करते।
  3. हाइड्रोजन से ऊपर के सभी तत्त्व जल या भाप के साथ क्रिया करके H, गैस देते हैं।
  4. जिस तत्त्व का अपचयन विभव जितना अधिक होता है, वह उतना ही प्रबल ऑक्सीकारक होता है।
  5. जिस तत्त्व का अपचयन विभव जितना कम होता है, वह उतना ही प्रबल अपचायक होता है।
  6. श्रेणी का ऊपर वाला तत्त्व नीचे वाले तत्त्व को उसके विलयन से विस्थापित कर देता है।

उपयोग – वैद्युत रासायनिक श्रेणी के दो उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. किसी सेल के मानक वैद्युत वाहक बल का निर्धारण करने में,
  2. धातुओं की क्रियाशीलता की तुलना करने में।

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प्रश्न 7.
गरम करने पर HgO अपघटित हो जाता है परन्तु MgO नहीं। क्यों? (2017)
उत्तर
जो धातु विद्युत रासायनिक श्रेणी में Cu से नीचे हैं उनके ऑक्साइड कम स्थायी होते हैं और वे गर्म करने पर आसानी से अपघटित हो जाते हैं।
2HgO [latex s=2]\underrightarrow { \triangle } [/latex] 2Hg + O2
MgO [latex s=2]\underrightarrow { \triangle } [/latex] कोई विघटन नहीं

प्रश्न 8.
निम्नलिखित को कारण सहित समझाइए –

  1. क्लोरीन KI विलयन से I2 को विस्थापित कर देती है परन्तु I2, KBr विलयन से ब्रोमीन को विस्थापित नहीं करती है। क्यों ? (2017)
  2. Hg+ H2SO4 → HgSO4 + H2

उपर्युक्त अभिक्रिया सम्भव नहीं है। (2017)
उत्तर
1. Cl2 की ऑक्सीकारक क्षमता आयोडीन से अधिक है इसलिए Cl2 KI विलयन से आयोडीन को विस्थापित कर देती है।
2KI + Cl2 → 2KCl + I2
I2 की ऑक्सीकारक क्षमता ब्रोमीन से कम है इसलिए I2, KBr विलयन से ब्रोमीन को विस्थापित नहीं कर पाती है।
2KBr + I2 → कोई अभिक्रिया नहीं

2. Hg विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से नीचे है इसलिए Hg, H2SO4 से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं कर पाती है।
Hg+ H2SO4 → कोई अभिक्रिया नहीं

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प्रश्न 9.
कोलराउश के नियम की सहायता से आप ऐसीटिक अम्ल की अनन्त तनुता पर मोलर चालकता किस प्रकार ज्ञात करेंगे? (2014, 15)
उत्तर
कोलराउश के नियम की सहायता से किसी दुर्बल विद्युत अपघट्य की अनन्त तनुता पर मोलर चालकता का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है। जैसे- CH3COOH के लिए Δm का मान निम्न प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है –
कोलराउश के नियम के अनुसार,
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यदि H+ आयन तथा CH3COO आयन के लिए अनन्त तनुता पर मोलर चालकताओं के मान ज्ञात हैं। तो उपर्युक्त समीकरण की सहायता से CH3COOH के लिए Δm का मान आसानी से ज्ञात किया जा सकता है। यदि आयनिक चालकताएँ ज्ञात नहीं हैं तो निम्न परोक्ष विधि का प्रयोग किया जाता हैपरोक्ष विधि में तीन (या अधिक) ऐसे प्रबल विद्युत अपघट्यों का चुनाव किया जाता है जिनके Δm के मानों (UPBoardSolutions.com) के योग/अन्तर से विचाराधीन दुर्बल विद्युत अपघट्य के Δm का मान प्राप्त किया जा सके जैसे- CH3COOH के Δm के मान को निर्धारित करने के लिए HCl, CH3COONa तथा NaCl का चुनाव किया जाता है और इनके Δm के मानों को बहिर्वेशन विधि द्वारा ज्ञात कर लिया जाता है। कोलराउश के नियम के अनुसार,
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प्रश्न 10.
क्या कारण है कि गलित कैल्शियम हाइड्राइड का विद्युत अपघटन करने पर हाइड्रोजन ऐनोड पर मुक्त होती है? समझाइए। (2017)
उत्तर
गलित CaH2 में हाइड्रोजन हाइड्राइड आयन H के रूप में रहता है और विद्युत अपघटन करने पर H को ऑक्सीकरण होता है।
CaH2 → Ca2+ + 2H
2H → H2 +2e (ऐनोड)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न सेलों की संरचना तथा कार्य प्रणाली का वर्णन कीजिए

  1. शुष्क सेल तथा
  2. मर्करी सेल। (2014)

उत्तर
1. शुष्क सेल – यह सबसे अधिक प्रयोग किए जाने वाला प्राथमिक व्यापारिक सेल है। एक सामान्य शुष्क सेल को संलग्न चित्र में दर्शाया गया है। इसमें जिंक धातु से बना एक पात्र होता है जो ऐनोड का कार्य करता है। MnO2 + C चूर्ण से घिरी एक ग्रेफाइट छड़ कैथोड का कार्य करती है। जिंक पात्र (UPBoardSolutions.com) तथा ग्रेफाइट छड़ के मध्य के रिक्त स्थान में NH4Cl तथा ZnCl2 का एक नम पेस्ट भरा रहता है। जिंक पात्र के चारों ओर गत्ते का आवरण चढ़ा रहता है। सेल के ऊपरी सिरे को मोम अथवा पिच (pitch) से सील कर दिया जाता है।
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इस सेल में जटिल रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं।
इन अभिक्रियाओं को सरल रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
ऐनोड पर–  Zn(s) → Zn2+ + 2e
कैथोड पर– MnO2 + NH+4 +e → MnO(OH) + NH3

ऐनोड पर जिंक ऑक्सीकृत होकर Zn2+ आयनों में परिवर्तित होता है। कैथोड पर मैंगनीज +4 अवस्था से +3 ऑक्सीकरण अवस्था में अपचयित होता है। कैथोड अभिक्रिया में उत्पन्न अमोनिया ऐनोडिक अभिक्रिया में उत्पन्न Zn2+ आयनों से संयोग कर Zn(NH3)+4 आयनों का निर्माण करती है। Zn2+ आयनों के NH3 अणुओं द्वारा जटिलीकरण के कारण मुक्त Zn2+ आयनों की सान्द्रता घट जाती है। जिससे सेल की वोल्टता (voltage) में वृद्धि होती है।

शुष्क सेल का विभव लगभग 1.25 – 1.5 V होता है। इन सेलों की आयु अधिक नहीं होती है क्योंकि सेल में प्रयुक्त NH4Cl अम्लीय प्रकृति का होता है और प्रयोग में न लेने की अवस्था में भी जिंक पात्र का संक्षारण (corrosion) करता रहता है। यह एक प्राथमिक सेल है तथा इसे पुनः आवेशित करना सम्भव नहीं है।

(ii) मर्करी सेल – मर्करी सेल एक विशेष प्रकार का शुष्क सेल है जिसका उपयोग प्राय: घड़ी, कैमरा आदि छोटे यन्त्रों में ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।
मर्करी सेल में जिंक-मर्करी अमलगम ऐनोड के रूप में कार्य करता है। मरक्यूरिक ऑक्साइड (HgO) तथा कार्बन का एक पेस्ट कैथोड का कार्य करता है। पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) तथा जिंक ऑक्साइड (ZnO) के एक पेस्ट को विद्युत अपघट्य के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। सेल में निम्न अभिक्रियाएँ होती हैं –
ऐनोड पर – Zn (amalgam) + 2OH → ZnO(s) + H20+ 2e
कैथोड पर – HgO(s) + H2O+ 2e → Hg(l) + 2OH
नेट सेल अभिक्रिया –
Zn(amalgam) + HgO(s) → ZnO(s) + Hg(l)

इस सेल की सेल अभिक्रिया में विलयन में उपस्थित कोई ऐसा आयन निहित नहीं है जिसकी सान्द्रता में परिवर्तन हो सकता हो। इस कारण इस सेल का सेल विभव केवल प्रयोग की अवधि में ही नहीं अपितु इसके सम्पूर्ण कार्यकाल में स्थिर रहता है। इसका सेल विभव लगभग 1.35 V है।

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प्रश्न 2.
एक लेड संचायक बैटरी की संरचना तथा कार्य प्रणाली का वर्णन कीजिए। इस बैटरी के पुनः आवेशन में निहित अभिक्रियाओं को लिखिए।
या
किसी व्यापारिक सेल का वर्णन कीजिए। (2015)
या
सीसा संचायक सेल का संक्षिप्त वर्णन करते हुए इसके ऐनोड और कैथोड पर होने वाली अभिक्रियाएँ लिखिए। (2018)
उत्तर
लेड संचायक बैटरी – यह सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली संचायक बैटरी है। इसका उपयोग सभी स्वचालित वाहनों, जैसे-कार, बस आदि में तथा घरेलू ऊर्जा स्रोतों (power inverters) में किया जाता है। इसमें अनेक लेड संचायक सेल (lead storage cells) श्रेणीक्रम में व्यवस्थित होते हैं।
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एक लेड संचायक सेल वास्तव में एक गैल्वेनिक सेल है जिसमें ऐनोड सूक्ष्म वितरित स्पंजी लेड (finely divided spongy lead) से पैक की गई लेड (या लेड-ऐन्टीमनी मिश्र धातु) की एक जाली का बना होता है, जबकि कैथोड लेड डाइऑक्साइड (PbO2) की एक परत युक्त (UPBoardSolutions.com) एक लेड की जाली का बना होता है। विद्युत अपघट्य के रूप में सल्फ्यूरिक अम्ल के एक तनु विलयन (लगभग 38% द्रव्यमानानुसार) का प्रयोग किया जाता है जिसका विशिष्ट घनत्व (specific gravity) 1.3 g cm होता है। एक संचायक सेल का सेल विभव 2 वोल्ट होता है।

लेड संचायक बैटरी बनाने के लिए अनेक लेड संचायक सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। सेल विभव (emf) 12 V प्राप्त करने के लिए 6 सेलों को तथा सेल विभव 24 V प्राप्त करने के लिए 12 सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़ने की आवश्यकता होती है। एक लेड संचायक बैटरी में ऐनोड तथा कैथोड़ प्लेटें (जिन्हें ग्रिड (grids) कहा जाता है। एकान्तर रूप में व्यवस्थित होती हैं तथा सल्फ्यूरिक अम्ल के 38% विलयन में डूबी रहती हैं। ऐनोडों तथा कैथोडों को एक-दूसरे से पृथक् करने के लिए कुचालक पदार्थ से बने पृथक्कारकों (separators) को प्रयोग किया जाता है। ऐलोड तथा कैथोड प्लेटें पृथक् रूप से एक-दूसरे से जोड़ दी जाती हैं। इससे इलेक्ट्रोडों के पृष्ठ क्षेत्रफल में वृद्धि होती है तथा बैटरी की विद्युत उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो जाती है।

बैटरी में स्थित प्रत्येक सेल में निम्न इलेक्ट्रोड अभिक्रियाएँ होती हैं –
ऐनोड पर : Pb(s) + SO2-4(aq) → PbSO4 (5) + 2e
कैथोड पर : PbO2 (s) + SO2-4 (aq) + 4H+ (aq) + 2e → PbSO4 (s) + 2H2O
शुद्ध सेल अभिक्रिया :
Pb (s) + PbO2 (s) + 4H+ (aq) + 2SO2-4 (aq) → 2PbSO4 (s) + 2H2O
उपर्युक्त अभिक्रियाओं से स्पष्ट है कि सेल (बैटरी) से विद्युत-धारा ग्रहण करने की प्रक्रिया (discharging of the cell) में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपभोग होता है और इस कारण सेल में उपस्थित सल्फ्यूरिक अम्ल तनु हो जाता है एवं इसका विशिष्ट घनत्व कम हो जाता है। (UPBoardSolutions.com) दोनों प्रकार के इलेक्ट्रोडों पर PbSO4 का सफेद अवक्षेप जमा हो जाता है। जब सल्फ्यूरिक अम्ल का विशिष्ट घनत्व
1.2 g cm-3 से कम हो जाता है तथा दोनों प्रकार के इलेक्ट्रोड PbSO4 से आच्छादित हो जाते हैं तो सेल अभिक्रिया रुक जाती है। ऐसे सेल (बैटरी) को निरावेशित (discharged) कहा जाता है। इस स्थिति में सेल (बैटरी) को पुनः आवेशित करने की आवश्यकता होती है।

पुनः आवेशन—निरावेशित लेड संचायक सेल (बैटरी) को विपरीत दिशा में किसी बाह्य स्रोत से दिष्ट धारा (D.C.) प्रवाहित कर पुनः आवेशित किया जा सकता है। इसके लिए संचायक सेल (बैटरी) के ऋणात्मक इलेक्ट्रोड टर्मिनल को एक दिष्ट धारा स्रोत के ऋणात्मक से तथा सेल (बैटरी) के धनात्मक इलेक्ट्रोड को स्रोत के धनात्मक टर्मिनल से जोड़ा जाता है। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर इलेक्ट्रोड
अभिक्रियाएँ उत्क्रमित हो जाती हैं जिससे PbSO4 ऋणात्मक इलेक्ट्रोड पर Pb में तथा धनात्मक इलेक्ट्रोड पर PbO2 में परिवर्तित हो जाता है। पुनः आवेशन के समय निम्न अभिक्रियाएँ होती हैं –

ऐनोड पर – PbSO4 (5) + 2e → Pb(s) + SO2-4 (aq)
कैथोड पर – PbSO4 (s) + 2H2O → PbO2(s) + 4H+ (aq) + SO4 (aq) + 2e
शुद्ध आवेशन अभिक्रिया
2PbSO4 (s) + 2H2O [latex s=2]\underrightarrow { Charging } [/latex] Pb(s) + PbO2(s) + 4H+ (aq) + 2SO2-4 (aq)
उपर्युक्त अभिक्रियाओं से स्पष्ट है कि सेल (बैटरी) की पुन: आवेशन प्रक्रिया में इलेक्ट्रोड पदार्थ अपने मूल रूप में पुनः प्राप्त हो जाते हैं तथा H+ एवं SO2-4 आयनों के निर्माण (UPBoardSolutions.com) के कारण H2SO4 के विशिष्ट घनत्व में वृद्धि होती है और यह बढ़कर पुनः 1.3 g cm-3 हो जाता है। इस प्रकार सेल (बैटरी) पुनः विद्युत धारा को उत्पन्न करने में सक्षम हो जाती है और इसे पुन: उपयोग में लाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
संक्षारण क्या है और यह किन कारकों पर निर्भर करता है? इसे एक विद्युत रासायनिक घटना क्यों माना जाता है? (2015)
या
लोहे पर जंग लगने से क्या तात्पर्य है? किन परिस्थितियों में लोहे पर जंग लगती है? जंग लगने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
या
लोहे को जंग लगने से बचाने के लिए प्रयुक्त कुछ प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
या
संक्षारण से आप क्या समझते हैं? इसे प्रेरित करने वाले मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए।
या
धातुओं के बलिदानी रक्षण का क्या अभिप्राय है और इसे कैसे सम्पन्न किया जाता है?
या
कैथोडिक रक्षण से आप क्या समझते हैं? यह किस प्रकार लोहे को जंग लगने से बचाता है?
उत्तर
संक्षारण – जब एक धातु को किसी विशिष्ट वातावरण में रखा जाता है तो वह वातावरण से क्रिया कर सकती है जिसके फलस्वरूप उसकी सतह कलुषित (deteriorate) हो सकती है। इस घटना को संक्षारण (corrosion) कहते हैं।

अधिकांश धातुएँ वायुमण्डल में रखे जाने पर किसी न किसी रूप में प्रभावित होती हैं। वायुमण्डल में उपस्थित गैसें धातु से मन्द गति से क्रिया कर उसकी सतह को कलुषित कर देती हैं। इससे धातुएँ अपनी विशिष्ट चमक खो देती हैं। कुछ धातुओं की शक्ति कम हो जाती है और वे दुर्बल तथा भंगुर (UPBoardSolutions.com) (brittle) । हो जाती हैं। चाँदी की चमक का कम होना (tarnishing of silver), लोहे पर जंग लगना (rusting on iron), ताँबे या कॉसे पर हरी परत का जमा होना आदि संक्षारण के कुछ सामान्य उदाहरण हैं। संक्षारण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है –
किसी निश्चित वातावरण की मन्द किन्तु स्वतः प्रवर्तित क्रिया द्वारा धातुओं की सतह के कलुषित (deteriorate) होने की प्रक्रिया को संक्षारण कहा जाता है।

संक्षारण को प्रभावित करने वाले कारक
धातुओं का संक्षारण अनेक कारकों पर निर्भर करता है। इनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्न हैं –
1. धातु की क्रियाशीलता – अधिक क्रियाशील धातु के संक्षारण की सम्भावना किसी अन्य कम क्रियाशील धातु की तुलना में अधिक होती है। उदाहरणार्थ- लोहा अपने से कम क्रियाशील धातु चाँदी की तुलना में अधिक तेजी से संक्षारित होता है। किसी धातु की क्रियाशीलता उसकी विद्युत धनात्मक प्रकृति पर निर्भर करती है। धातु की विद्युत धनात्मक प्रकृति जितनी अधिक होगी, वह उतनी ही अधिक क्रियाशील होगी। इस प्रकार धातुएँ जैसे-Na, Ca, Mg, Al, Zn आदि शीघ्रता से संक्षारित होती हैं।

2. धातु में अशुद्धियों की उपस्थिति – शुद्ध धातुएँ प्राय: अधिक संक्षारित नहीं होती हैं। एक धातु में अन्य अशुद्ध धातुओं की उपस्थिति उस धातु में संक्षारण को प्रेरित करती है। इसका कारण यह है कि कम विद्युत धनात्मक अशुद्ध धातुएँ ग्राही धातु के साथ गैल्वेनिक सेलों का निर्माण करती हैं जिससे ग्राही धातु संक्षारित हो जाती है।

3. जल में विद्युत अपघट्यों की उपस्थिति – जल में विद्युत अपघट्य पदार्थों की उपस्थिति संक्षारण की दर में वृद्धि करती है। उदाहरणार्थ-लोहे का संक्षारण आसुत जल की (UPBoardSolutions.com) तुलना में समुद्री जल में अधिक सीमा तक होता है, क्योंकि समुद्री जल में अनेक विद्युत अपघट्य जैसे NaCl, KCl आदि घुले रहते हैं।

4. वायु में क्रियाशील गैसों की उपस्थिति – वायु में उपस्थित क्रियाशील गैसें; जैसे- CO2 , SO2, NO2 आदि जल में घुलकर अम्लों का निर्माण करती हैं, जो विद्युत-अपघट्यों का कार्य करते हैं एवं संक्षारण प्रक्रिया को त्वरित करते हैं।

लोहे पर जंग लगना – जब लोहे के एक टुकड़े को नम वायु में खुला रखा जाता है, तो उसकी सतह पर एक लाल-भूरी (reddish brown) परत बन जाती है। इस परत को आसानी से खुरचा जा सकता है। नम वायु की क्रिया द्वारा लोहे की सतह पर एक लाल-भूरी परत के जमा होने की प्रक्रिया को जंग लगना कहते हैं तथा लाल-भूरी परत को जंग कहा जाता है।

लोहे पर जंग लगना वास्तव में वायु, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड की लोहे से संयुक्त अभिक्रिया के कारण होता है। पूर्णरूप से शुष्क वायु या वायु मुक्त शुद्ध जल में (UPBoardSolutions.com) लोहे पर जंग नहीं लगती है। जंग की सही संरचना वायुमण्डलीय परिस्थितियों तथा जंग को प्रेरित करने वाले कारकों के सापेक्ष योगदान पर निर्भर करती है। यह मुख्य रूप से जलयोजित फैरिक ऑक्साइड Fe2O3.xH2O है। इसके निर्माण को सरल रूप में निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
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जंग लगने की प्रक्रिया में नम वायु की उपस्थिति में सर्वप्रथम लोहे की बाहरी सतह जंग ग्रस्त होती है। और सतह पर जलयोजित फेरिक ऑक्साइड (जंग) की एक परत जमा हो जाती है। यह परत मुलायम तथा सरन्ध्र होती है और मोटाई बढ़ने पर स्वयं नीचे गिर सकती है। परत के नीचे गिरने से लोहे की आन्तरिक परत वायुमण्डल के सम्पर्क में आ जाती है और उस पर भी जंग लग जाती है। इस प्रकार यह प्रक्रम चलता रहता है और धीरे-धीरे लोहा अपनी शक्ति खोता रहता है।
लोहे पर जंग लगने की प्रक्रिया निम्नलिखित कारकों से प्रेरित तथा अधिशासित होती है –

  1. वायु की उपस्थिति
  2. नमी की उपस्थिति
  3. कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति
  4. जल में विद्युत अपघट्यों की उपस्थिति
  5. लोहे में कम विद्युत धनात्मक धातुओं की अशुद्धि के रूप में उपस्थिति

संक्षारण की क्रियाविधि – संक्षारण की क्रियाविधि की व्याख्या करने के लिए समय-समय पर अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इन सिद्धान्तों में विद्युत रासायनिक सिद्धान्त (electrochemical theory) सर्वाधिक मान्य है।

विद्युत रासायनिक सिद्धान्त के अनुसार, संक्षारण मूल रूप से एक विद्युत रासायनिक घटना है। यह मुख्य रूप से धातु सतह के विभिन्न भागों के विद्युत रासायनिक व्यवहारों में भिन्नता के कारण सम्पन्न होती है। लोहे पर जंग लगना संक्षारण का एक विशिष्ट रूप है। विद्युत रासायनिक सिद्धान्त के आधार पर संक्षारण की क्रियाविधि को लोहे पर जंग लगने के उदाहरण से निम्न प्रकार से आसानी से समझा जा (UPBoardSolutions.com) सकता है। लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि-लोहे का संक्षारण उस समय होता है जब इसे जल, घुलित ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वातावरण में रखा जाता है। विद्युत रासायनिक सिद्धान्त के अनुसार, लोहे की सतह के रासायनिक रूप से भिन्न भाग घुलित ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड युक्त जल की उपस्थिति में लघु गैल्वेनिक सेलों (miniature galvanic cells) की भाँति व्यवहार करते हैं। सतह का एक भाग ऐनोड की भाँति तथा कोई अन्य भाग कैथोड की भाँति कार्य करता है। इसके फलस्वरूप ऐनोडिक क्षेत्र (anodic area) में ऑक्सीकरण की क्रिया सम्पन्न होती है और आयरन परमाणु Fe2+ आयनों में ऑक्सीकृत हो जाते हैं।
ऐनोडिक क्षेत्र में
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 3 Electro Chemistry image 49
इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉन धातु माध्यम में गति कर कैथोडिक क्षेत्र में पहुँच जाते हैं। कैथोडिक क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन H+ आयनों की उपस्थिति में ऑक्सीजन को अपचयित करते हैं। H’ आयनों का निर्माण जल परत में H2CO3 के वियोजन के कारण होता है जो CO2 के जल में घुलने से प्राप्त होता है।
जल परत में– H2O(l) + CO2 (g) → H2CO3 (aq)
H2CO3 (aq) [latex s=2]\rightleftharpoons [/latex] H+ (aq) + HCO3 (aq)

कैथोडिक क्षेत्र में – O2 (g) + 4H+ (aq) + 4e → 2H2O (l); E° = 1.23 V
इस प्रकार लोहे की सतह पर स्थित एक लघु गैल्वेनिक सेल में सम्पन्न होने वाली नेट अभिक्रिया को निम्न प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है –

ऐनोड पर – [Fe(s) → Fe2+ (aq) + 2e ] x 2
कैथोड पर – O2 (g) + 4H+ (aq) +4e → 2H2O(l)
नेट अभिक्रिया
2Fe(s) + O2(g) + 4H+ (aq) → 2Fe2+ (aq) + 2H2O(l); E° cell = 1.67 V

उपर्युक्त अभिक्रिया में निर्मित Fe2+ आयन लोहे की सतह पर स्थित जल परत में गति करने लगते हैं। यदि जल परत में NaCl, MgCl2 आदि विद्युत अपघट्य उपस्थित हैं तो लघु सेल में अधिक विद्युत धारा का संचालन होता है तथा जंग लगने की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।
एक लघु गैल्वेनिक सेल में निर्मित Fe2+ आयन वायुमण्डलीय ऑक्सीजन द्वारा Fe3+ आयनों में ऑक्सीकृत हो जाते हैं तथा वायुमण्डलीय ऑक्सीजन एवं नमी से संयोग कर जलयोजित आयरन (III) ऑक्साइड (Fe2O3 . xH2O) का निर्माण करते हैं जो लोहे की सतह पर जंग के रूप में जमा हो जाता है।
4Fe2+ (aq) + O2 (g) + 4H2O(l)-→ 2Fe2O3 (s) + 8H+
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उपर्युक्त अभिक्रिया में उत्पन्न हुए H+ ओयन जंग लगने की प्रक्रिया में पुन: उपभोगित हो जाते हैं। यदि लोहे में कम विद्युत धनात्मक धातुएँ अशुद्धि के रूप में उपस्थित हैं तो जंग लगने की प्रक्रिया त्वरित हो जाती है क्योकि अशुद्धियाँ लोहे की सतह पर अनेक लघु गैल्वेनिक सेलों का निर्माण (UPBoardSolutions.com) करती हैं। अत्यन्त शुद्ध लोहे पर शीघ्रता से जंग नहीं लगती है। जल में विद्युत अपघट्यों की उपस्थिति जंग प्रक्रिया को त्वरित करती है क्योंकि अपघट्य लोहे की सतह पर उपस्थित जल परत की विद्युत चालकता में वृद्धि करते हैं। यही कारण है कि आसुत जल की तुलना में समुद्री जल में लोहे पर अधिक तेजी से जंग लगती है।

संक्षारण से बचाव – संक्षारण से बचाव की कुछ प्रमुख विधियाँ निम्न हैं –
1. अवरोध रक्षण – लोहे को जंग लगने से बचाने के लिए इस विधि का काफी उपयोग किया जाता है। इस विधि में धातु सतह तथा वायुमण्डलीय वायु के मध्य एक उपयुक्त अवरोध का निर्माण किया जाता है! इससे धातु सतह वायु, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड की क्रिया से बची रहती है और संक्षारित नहीं होती है। अवरोध रक्षण निम्न में से किसी भी विधि द्वारा किया जा सकता है –

  1. धातु की सतह पर तेल या ग्रीस के लेपन द्वारा – लोहे की सतह पर तेल या ग्रीस (grease) की एक पतली फिल्म बनाकर उसे जंग लगने से बचाया जा सकता है। लोहे के औजारों तथा मशीनी भागों (machinery parts) को इसी प्रकार जंग लगने से बचाया जाता है।
  2. धातु सतह पर पेंट के लेपन द्वारा – धातु सतह पर किसी पेंट (paint), एनामिल (enamel) आदि का एक पतली परत के रूप में लेपन करने से धातु संक्षारित होने से बच जाती है।
  3. धातु पर कुछ विशिष्ट रसायनों के लेपन द्वारा – लोहे की सतह पर FePO4 या अन्य किसी उपयुक्त रसायन का लेप कर उसे जंग लगने से बचाया जा सकता है। रसायन की पतली अविलेय परत लोहे को वायु तथा नमी के सम्पर्क से बचाकर इस पर जंग नहीं लगने देती है।
  4. धातु पर असंक्षारणीय धातुओं की परत द्वारा – किसी असंक्षारणीय धातु; जैसे- निकिल, क्रोमियम आदि की एक पतली परत को किसी धातु पर चढ़ाकर भी उसकी संक्षारण से रक्षा की जा सकती है। जैसे, लोहे पर निकिल या क्रोमियम की एक पतली परत द्वारा लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है।

2. बलिदानी रक्षण – इस विधि में धातु का रक्षण उसकी सतह पर लेपित एक अन्य अधिक सक्रिय धातु के बलिदान द्वारा किया जाता है। जब एक धातु की सतह को एक अधिक सक्रिय धातु से आवृत कर दिया जाता है, तो अधिक सक्रिय धातु प्रथम धातु की तुलना में वरीयता से इलेक्ट्रॉन त्याग (UPBoardSolutions.com) कर आयनिक अवस्था में परिवर्तित होती रहती है। इससे अधिक सक्रिय धातु धीरे-धीरे उपभोगित होती रहती है और प्रथम धातु की संक्षारण से रक्षा करती है। जब तक अधिक सक्रिय धातु संक्षारणीय धातु की सतह पर स्थित होती है तब तक प्रथम धातु-संक्षारण से बची रहती है।

लोहे का गैल्वेनीकरण – जिंक लोहे से अधिक क्रियाशील (अधिक विद्युत धनात्मक) है, अत: जिंक का उपयोग प्राय: लोहे की सतह को आवृत करने के लिए किया जाता है। लोहे की सतह पर जिंक की एक पतली परत को जमा करने की प्रक्रिया को गैल्वेनीकरण कहा जाता है। गैल्वेनीकरण को निम्न दो प्रकार से सम्पन्न किया जा सकता है –

  1. लोहे को पिघले जिंक में डुबोकर – इस विधि में लोहे की चादरों को पिघले जिंक में डुबोया जाता है और इसके पश्चात् उन्हें गर्म रॉलरों (rollers) के मध्य से गुजारा जाता है, जिससे लोहे की चादर से चिपका अतिरिक्त जिंक हट जाता है और उस पर जिंक की एक समान पतली परत शेष रह जाती है।
  2. शेरार्डीकरण द्वारा – इस विधि में जिंक चूर्ण को उच्च ताप पर गर्म किया जाता है और प्राप्त जिंक वाष्प को लोहे की चादरों की सतह पर संघनित होने दिया जाता है, जिससे उन पर जिंक की एक
    पतली तथा एक समान परत जमा हो जाती है।

लोहे की सतह पर स्थित जिंक की परत के कारण लोहे की सतह वायु तथा नमी के सम्पर्क में नहीं आने पाती है। जिंक की परत में खरोंच अथवा दरारें उत्पन्न होने पर भी लोहे पर जंग नहीं लगती है। इसका कारण यह है कि जिंक का मानक अपचयन विभव लोहे के मानक अपचयन विभव से कम है। स्पष्ट है कि लोहे की तुलना में जिंक में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। जिंक परत में दरार पड़ने (UPBoardSolutions.com) पर जिंक परत ऐनोड की भाँति तथा लोहे की खुली सतह कैथोड की भाँति कार्य करने लगती है। ऐनोड पर जिंक के ऑक्सीकरण में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन आयरन कैथोड पर जाकर वायुमण्डलीय ऑक्सीजन को जल में अपचयित कर देते हैं। ऑक्सीकरण के कारण जिंक परत वायुमण्डलीय O2, CO2 तथा नमी की उपस्थिति में भास्मिक जिंक कार्बोनेट, ZnCO3, Zn(OH)2 में परिवर्तित हो जाती है। यह परत लोहे की खुली सतह को जंग लगने से बचाती है।

टिन द्वारा लोहे की रक्षण – लोहे की सतह पर टिन की एक पतली परत जमाकर भी उसकी जंग लगने से रक्षा की जा सकती है। लोहे की सतह को टिन की एक पतली परत से आवृत करने की प्रक्रिया को टिनिंग (tinning) कहा जाता है। टिनिंग द्वारा लोहा (आयरन) उस समय तक रक्षित रहता है जब तक कि टिन परत अक्षुण (intact) रहती है। यदि टिन परत में खरोंच या दरारें उत्पन्न हो जाती हैं तो लोहा आरक्षित हो जाता है और उस पर जंग लगना प्रारम्भ हो जाता है। इसका कारण यह है कि आयरन का मानक अपचयन विभव टिन से कम है।

इससे स्पष्ट है कि टिन की तुलना में आयरन में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। अत: यदि टिन परत में दरार उत्पन्न हो जाती है तो सतह के खुले भाग में उपस्थित आयरन एक ऐनोड का तथा टिन परत एक कैथोड का कार्य करने लगती है। इसके फलस्वरूप आयरन वरीयता से ऑक्सीकृत होकर जंग ग्रस्त हो जाता है।

3. जंग-रोधी विलयनों द्वारा रक्षण – लोहे के संक्षारण को जंग-रोधी विलयनों द्वारा भी रोका जा सकता है। इस प्रकार के विलयन प्रायः क्षारीय फॉस्फेट या क्रोमेट विलयन होते हैं। विलयन का क्षारीय माध्यम H+ आयनों की उपलब्धता को कम करता है। चूंकि H+ आयन जंग लगने के लिए (UPBoardSolutions.com) अपरिहार्य हैं, अतः उनके कम होने से जंग लगने की प्रक्रिया मन्द हो जाती है। इसके अतिरिक्त फॉस्फेटों में धातु पर आयरन फॉस्फेट की एक परत का आवरण चढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। यह परत धातु की जंग लगने से रक्षा करती है। इस प्रकार के विलयनों का प्रयोग स्वचालित वाहनों के इंजनों के भागों को तथा कार रेडियेटरों की जंग लगने से रक्षा करने के लिए किया जाता है।

4. कैथोडिक रक्षण या विद्युत रक्षण – इस विधि का उपयोग धरातल के नीचे दबे पाइपों तथा टैंकों के रक्षण के लिए किया जाता है। इस विधि में रक्षित की जाने वाली धातु को एक अधिक सक्रिय (अधिक विद्युत धनात्मक) धातु से जोड़ा जाता है।

धरातल के नीचे स्थित जिस लोहे के पाइप या टैंक की जंग लगने से रक्षा करनी होती है उसके निकट एक सक्रिय धातु जैसे Zn या Mg की एक प्लेट या ब्लॉक को रखा जाता है और दोनों को एक तार से जोड़ दिया जाता है। चूंकि अधिक सक्रिय धातु में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। (UPBoardSolutions.com) अत: यह लोहे की तुलना में वरीयती से ऑक्सीकृत होती रहती है। इस प्रकार अधिक सक्रिय धातु एक ऐनोड का कार्य करती है। उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन कैथोड की भाँति कार्य कर रहे लोहे के पाइप पर जाकर O, को OH आयनों में अपचयित कर देते हैं।
O2 + 2H2O + 4e → 4OH
सक्रिय धातु के ऑक्सीकरण के कारण ऐनोड धीरे-धीरे लुप्त होता रहता है। इस प्रकार लोहे का पाइप या अन्य वस्तु जंग लगने से रक्षित रहती है और सक्रिय धातु ऐनोड व्यतित होता रहता है। जब तक सक्रिय धातु उपस्थित होती है, लोहे के पाइप पर जंग नहीं लगती है। इस विधि में समय-समय पर सक्रिय धातु के पुराने ऐनोड के स्थान पर नया ऐनोड स्थापित करना आवश्यक होता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 4
Chapter Name Cost of Production (उत्पादन लागत)
Number of Questions Solved 40
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
उत्पादन लागत से आप क्या समझते हैं ? उत्पादन लागत के प्रकार बताइए।
या
मौद्रिक लागत, वास्तविक लागत एवं अवसर लागत को संक्षेप में समझाइए।
या
लागत से आप क्या समझते हैं? स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
उत्पादन लागत का अर्थ
प्राय: बोलचाल की भाषा में उत्पादन लागत से तात्पर्य उन समस्त भुगतानों से होता है, जिनको एक उत्पादक किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयोग आने वाले विभिन्न साधनों को उसके उत्पादन में सहयोग देने के बदले में पुरस्कार के रूप में देता है। इस प्रकार सामान्य बोलचाल की भाषा में वस्तु की लागत में उत्पादक द्वारा अन्य व्यक्तियों को किये गये भुगतानों को ही सम्मिलित किया जाता है तथा उन साधनों या वस्तुओं को जिनको वह अपने पास से दे देता है, उनका पुरस्कार या पारिश्रमिक उस वस्तु की उत्पादन लागत में सम्मिलित नहीं किया जाता है। परन्तु अर्थशास्त्र में वस्तु की उत्पादन-लागत के अन्तर्गत केवल अन्य व्यक्तियों को किये गये भुगतान नहीं रहते हैं, बल्कि उत्पादक द्वारा स्वयं दिये गये उपादानों का पुरस्कार और वस्तुओं का मूल्य तथा उसका स्वयं अपना लाभ भी सम्मिलित रहता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि उत्पादन लागत = भूमि का लगान + कच्चे माल की कीमत + मजदूरों की पूँजी पर ब्याज + संगठनों का वेतन + उद्यमी का सामान्य लाभ।

उत्पादन लागत की परिभाषाएँ
प्रो० मार्शल के शब्दों में, “उत्पादन लागते वह समस्त मौद्रिक (द्राव्यिक) लागत है जो उद्यमी को अपने व्यवसाय में उत्पादकों को विभिन्न उपादानों को आकर्षित करने के लिए लगानी पड़ती है। इसमें कच्चे माल की कीमत, मजदूरी और वेतन, पूँजी पर ब्याज, लगान, प्रबन्धक सम्बन्धी सामान्य आयकरों का भुगतान तथा अन्य व्यापारिक काम आदि सम्मिलित होते हैं।”

उम्ब्रेट, हण्ट तथा किण्टर के अनुसार, “उत्पादन लागत में वे समस्त भुगतान सम्मिलित होते हैं। जो कि अन्य व्यक्तियों को उनकी वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग के बदले में किये जाते हैं। इसमें मूल्य ह्रास तथा प्रचलन जैसे भेद भी सम्मिलित रहते हैं। इसमें उत्पादक द्वारा प्रदत्त सेवाओं के लिए अनुमानित मजदूरी तथा उसके द्वारा प्रदत्त पूँजी व भूमि का पुरस्कार भी सम्मिलित रहता है।”

उत्पादन लागत के प्रकार
उत्पादन लागत के प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. मौद्रिक लागत
  2.  वास्तविक लागत
  3. अवसर लागत

1. मौद्रिक लागत – उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग के लिए जो धन व्यय किया जाता है, वह उसकी मौद्रिक लागत होती है या किसी वस्तु के उत्पादन पर द्रव्य के रूप में उत्पादन के उपादानों पर जो व्यय किया जाता है उसे मौद्रिक या द्राव्यिक लागत कहा जाता है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पादक की मौद्रिक लागत में निम्नलिखित तत्त्व सम्मिलित होते हैं

(क) स्पष्ट लागते (Explicit Costs) – इनके अन्तर्गत वे सब लागतें सम्मिलित की जाती हैं, जो उत्पादक के द्वारा स्पष्ट रूप से विभिन्न उपादानों को खरीदने (क्रय करने) के लिए व्यय की जाती हैं।

(ख) अस्पष्ट लागते (Implicit Costs) –
इनके अन्तर्गत उन साधनों एवं सेवाओं का मूल्य सम्मिलित होता है, जो उत्पादक के द्वारा प्रयोग की जाती हैं, किन्तु जिनके लिए वह प्रत्यक्ष रूप से भुगतान नहीं करता। उत्पादन में प्रयोग किये जाने वाले कुछ साधनों का स्वामी व्यवसायी स्वयं हो सकता है। इसलिए वह उनके लिए प्रत्यक्ष रूप से भुगतान नहीं करता। उद्यमी के स्वयं के साधनों के बाजार दर पर पुरस्कारों को अस्पष्ट लागतें कहा जाता है।
उपर्युक्त स्पष्ट लागतें एवं अस्पष्ट लागतों से स्पष्ट होता है कि मौद्रिक लागत के अन्तर्गत निम्नलिखित दो बातें सम्मिलित होती हैं

  1. वस्तु के उत्पादन हेतु आवश्यक उपादानों की क्रय-कीमत या उन्हें किया गया भुगतान।
  2. फर्म के मालिक द्वारा लगाये जाने वाले उपादानों की अनुमानित कीमत एवं सामान्य लाभ सम्मिलित रहते हैं।

2. वास्तविक लागत – वास्तविक लागत का विचार तो परम्परावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा ही प्रस्तुत कर दिया गया था, परन्तु इसकी विस्तृत एवं स्पष्ट व्याख्या प्रो० मार्शल द्वारा की गयी। उन्होंने कहा कि  – “वस्तु के निर्माण में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लगाये गये विभिन्न प्रकार के श्रमिकों का श्रम इसके साथ वस्तुओं को उत्पन्न करने में प्रयोग आने वाली उस पूँजी को बचाने में जो संयम अथवा प्रतीक्षा आवश्यक होती है, वे समस्त प्रयत्न और त्याग मिलकर वस्तु की वास्तविक लागत कहलाते हैं।”
कहने का आशय यह है कि वास्तविक लागत उन प्रयत्नों तथा त्यागों की माप होती है जो समाज को उसे उत्पन्न करने हेतु सहन करने पड़ते हैं। इसी कारण इसको ‘सामाजिक लागत’ के नाम से भी पुकारते हैं। वास्तविक लागत में निम्नांकित दो बातें सम्मिलित रहती हैं

  1. विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्न जो उत्पादन क्रिया में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भाग लेते हैं।
  2. पूँजी को संचय करने के कारण उत्पन्न होने वाले कष्ट एवं त्याग।

ये समस्त प्रयत्न एवं त्याग मिलकर वस्तु की वास्तविक लागत’ कहलाते हैं। जिस कार्य को करने में श्रमिकों को अधिक कष्ट होता है, उसकी वास्तविक लागत अधिक होती है। इसके विपरीत, जिस कार्य को करने में श्रमिकों को कम कष्ट होता है, उसकी वास्तविक लागत कम होती है।

3. अवसर लागत – आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने वास्तविक लागत के विचार के स्थान पर अवसर लागत का विचार दिया है। अवसर लागत को हस्तान्तरण आय’ या ‘विकल्प लागत’ भी कहते हैं।

अवसर लागत से अभिप्राय है कि किसी एक वस्तु के उत्पादन में किसी साधन के प्रयोग किये जाने का अभिप्राय यह है कि उस साधन को अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग नहीं किया जा रहा है। अतः किसी वस्तु को उत्पन्न करने की सामाजिक लागत उन विकल्पों के रूप में व्यक्त की जा सकती है जो उस वस्तु को उत्पादित करने के लिए हमें त्यागने होते हैं।

प्रो० मार्शल ने उद्यमकर्ता के दृष्टिकोण से उत्पादन लागत का विभाजन निम्न प्रकार से किया है

  1. प्रधान लागत अथवा परिवर्तनशील लागत।
  2.  पूरक लागत या स्थिर लागत।

(i) प्रधान लागत अथवा परिवर्तनशील लागत – प्रधान लागत वह लागत है जो उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ बढ़ती रहती है। इस कथन को और अधिक अच्छी तरह इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं कि “यदि उत्पादन की मात्रा में कमी हो जाती है तो प्रधान लागत में भी वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, यदि उत्पादन की मात्रा में कमी हो जाती है तो प्रधान लागत में भी कमी हो जाती है। इस प्रकार से उत्पादन की मात्रा और प्रधान लागत में प्रत्यक्ष तथा लगभग आनुपातिक सम्बन्ध होता है। उदाहरणार्थ-एक चीनी मिल को लीजिए। चीनी बनाने के लिए गन्ने के साथ-ही-साथ बिजली व श्रम-शक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है। गन्ना-मजदूरी और बिजली पर होने वाला व्यय चीनी के उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ घटता-बढ़ता रहता है। यदि मिल का मालिक चीनी का उत्पादन कम कर देता है तो उपर्युक्त तीनों मदों पर व्यय स्वत: ही कम हो जाता है। इसके विपरीत, यदि वह चीनी के उत्पादन की मात्रा में वृद्धि कर देता है तो उपर्युक्त तीनों मदों पर होने वाले व्यय में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार व्यय का उत्पादन की मात्रा के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के कारण ही इसे ‘प्रधान लागत अथवा ‘अस्थिर उत्पादन लागत’ भी कहते हैं। मिल के बन्द हो जाने पर अथवा उत्पादन शून्य हो जाने पर प्रधान लागत भी शून्य हो जाती है।

(ii) पूरक लागत या स्थिर लागत – पूरक लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ घटती-बढ़ती नहीं है। पूरक लागत को स्थिर लागत’ भी कहते हैं। अन्य शब्दों में इसको इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि यदि मिल में उत्पादन की मात्रा को पहले से दुगुना अथवा आधा कर दिया जाए तो पूरक लागत पूर्ववत् ही रहेगी। सरल शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि प्रत्येक उत्पादक को कुछ व्यय अनिवार्य रूप से ऐसे करने होते हैं जो उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर भी पूर्ववत् ही रहते हैं; जैसे – भवन व जमीन का किराया, पूँजी पर दिया जाने वाला ब्याज, बीमा शुल्क, मशीनों व यन्त्रों का मूल्य ह्रास, व्यवस्थापकों को वेतन आदि। यदि कारखाने में उत्पादन की मात्रा में एक सीमा तक वृद्धि की जाती है तो पूरक लागत में वृद्धि नहीं होती है, परन्तु जब उत्पत्ति उस सीमा को पार कर जाती है तो पूरक लागत में भी वृद्धि होने लगती है।

प्रश्न 2
सीमान्त उत्पादन लागत (सीमान्त लागत) और औसत उत्पादन लागत (औसत लागत) का अर्थ समझाइए तथा इनका सम्बन्ध रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। इनके वक्र U-आकार के क्यों होते हैं ? [2006, 08, 10, 11]
या
कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत की अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 10]
या
औसत लागत एवं सीमान्त लागत से आप क्या समझते हैं? एक सारणी की सहायता से इनके बीच के सम्बन्धों को दर्शाइए। [2007, 08, 10, 15]
उत्तर:
सीमान्त उत्पादन लागत का अर्थ
सीमान्त लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की उत्पन्न की गयी अन्तिम इकाई की मौद्रिक लागत से होता है। अन्य शब्दों में, सीमान्त लागत से आशय एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन करने पर कुल लागत में हुई वृद्धि अथवा वस्तु की एक इकाई को कम उत्पन्न करने पर कुल लागत में हुई कमी से है। अर्थात् एक अधिक अथवा एक कम इकाई के उत्पादन करने पर कुल उत्पादन लागत में वृद्धि या कमी को सीमान्त उत्पादन लागत कहते हैं।

मान लीजिए वस्तु की केवल पाँच इकाइयों का उत्पादन किया गया और उन सबकी कुल लागत ₹ 30 है। अब यदि उत्पादन 5 इकाइयों से बढ़ाकर 6 इकाइयाँ कर दिया जाए अर्थात् एक अधिक इकाई का उत्पादन किया जाए और कुल लागत ₹ 39 आये, तब कुल लागत में ₹ 9 की वृद्धि हुई अर्थात् सीमान्त इकाई की लागत ₹ 9 हुई। इसी प्रकार यदि एक इकाई कम अर्थात् प्रथम चार इकाइयों की कुल लागत ₹ 22 हो तब एक इकाई कम उत्पादन करने पर कुल लागत में हैं 8 की कमी पड़ती है अर्थात् सीमान्त इकाई की लागत ₹ 8 होगी।
सीमान्त उत्पादन लागत कोई निश्चित लागत नहीं होती। वह उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करती है।

औसत उत्पादन लागत का अर्थ

कुल मौद्रिक लागत में उत्पन्न की गयी समस्त इकाइयों की संख्या का भाग देने से जो राशि आये, वह औसत लागत कहलाती है। कुल उत्पादन लागत में उत्पादित इकाइयों की संख्या का भाग देने से औसत लागत ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिए-माना 5 इकाइयों की कुल उत्पादन लागत ₹ 30 है। अत: औसत लागत = 30 ÷ 5 = ₹6 हुई।
कुल उत्पादन लागत औसत लागत = –
उत्पन्न की गयी समस्त इकाइयों की संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production 1

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production 2

सीमान्त तथा औसत उत्पादन लागत में सम्बन्ध
सीमान्त उत्पादन लागत तथा औसत उत्पादन लागत में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसकी व्याख्या उत्पत्ति के नियमों के अन्तर्गत की जा सकती है। व्यवहार में, उत्पादन में पहले वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू होता है, फिर कुछ समय के लिए आनुपातिक प्रतिफल का नियम तथा फिर ह्रासमान प्रतिफल का नियम लागू होता है।

  1. जब उत्पादन में वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू होता है तब सीमान्त लागत तथा औसत लागत दोनों ही घटती जाती हैं अर्थात् प्रत्येक अगली इकाई की उत्पादन लागत क्रमश: घटती जाती है। इस स्थिति में सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी से घटती है, परिणामस्वरूप औसत लागत सीमान्त लागत से अधिक रहती है।
  2.  जब उत्पादन में आनुपातिक प्रतिफल नियम लागू होता है तब सीमान्त उत्पादन लागत व औसत उत्पादन लागत दोनों बराबर हो जाती हैं।
  3. हासमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है वैसे-वैसे हर इकाई की उत्पादन लागत बढ़ती जाती है। ऐसी दशा में सीमान्त लागत और औसत लागत दोनों ही बढ़ती हैं; किन्तु सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ती है, परिणामस्वरूप सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक हो जाती है तथा सीमान्त लागत की आकृति अंग्रेजी के U-आकार की होती है। सीमान्त उत्पादन लागत तथा औसत उत्पादन लागत के सम्बन्ध को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

माना कोई फर्म खिलौनों का उत्पादन करती है। खिलौनों की इकाइयों की सीमान्त उत्पादन लागत व औसत उत्पादन लागत निम्नांकित तालिका के अनुसार है

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production 3

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
संलग्न चित्र में अ ब रेखा पर खिलौनों (उत्पादन) की इकाइयाँ तथा अ स रेखा पर प्रति इकाई उत्पादन लागत दर्शायी गयी है। रेखाचित्र में MC रेखा सीमान्त उत्पादन लागत की रेखा है तथा AC औसत उत्पादन लागत की रेखा है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production 4
जैसे-जैसे अतिरिक्त इकाइयों का उत्पादन किया जाता है तब औसत लागत व सीमान्त लागत ‘प्रारम्भ में दोनों घटती हैं, लेकिन सीमान्त लागत, औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी से गिरती है। धीरे-धीरे औसत व सीमान्त लागतें बढ़ने लगती हैं तब वे दोनों बराबर हो जाती हैं। इसके पश्चात् ह्रासमान प्रतिफल नियम लागू होने पर सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक हो जाती है।।

औसत लागत और सीमान्त लागत वक्र U-आकार के क्यों होते हैं ?
औसत लागत वे सीमान्त लागत वक्रों के U-आकार के होने का प्रमुख कारण फर्म को प्राप्त होने वाली आन्तरिक बचते हैं। इन बचतों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

1. श्रम-सम्बन्धी बचते – श्रम-सम्बन्धी बचते श्रम-विभाजन का परिणाम होती हैं। कोई फर्म उत्पादन का स्तर जैसे-जैसे बढ़ाती जाती है, श्रम-विभाजन उतनी ही अधिक मात्रा में किया जा सकता है। श्रम-विभाजन के कारण लागत गिरती जाती है।

2. तकनीकी बचते – उत्पादन स्तर जितना अधिक होगा उतनी ही उत्पादन लागत प्रति इकाई कम होगी। इस प्रकार तकनीकी बचतें प्राप्त होती हैं।

3. विपणन की बचते – जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे विपणन की प्रति इकाई लागत गिरती जाती है।

4. प्रबन्धकीय बचते – उत्पादन में वृद्धि होने पर प्रबन्ध की प्रति व्यक्ति इकाई लागत भी निश्चित रूप से गिरती है।

उपर्युक्त कारणों से उत्पादन के बढ़ने पर औसत लागत के गिरने की आशा की जा सकती है। लागत इस कारण गिरती है, क्योंकि अधिकांश साधन ऐसे होते हैं जिन्हें बड़े पैमाने के उत्पादन पर ही अधिक कुशलता के साथ उपयोग में लाया जा सकता है, यद्यपि उत्पादन बढ़ने पर फर्म की औसत लागत गिरती है, किन्तु ऐसा केवल एक सीमा तक ही होता है। अनुकूलतम उत्पादन इस सीमा को निर्धारित करता है। जब फर्म का उत्पादन अनुकूलतम होता है तो उसकी औसत लागत न्यूनतम होती है। अनुकूलतम उत्पादन तक पहुँचने के पश्चात् औसत लागत बढ़ने लगती है। जब उत्पादन अनुकूलतम से अधिक किया जाएगा तो प्रबन्धकीय समस्याएँ बढ़ जाएँगी। इन सब बातों के आधार पर यह कह सकते हैं कि फर्म का अल्पकालीन औसत वक्र U-आकार का होता है।

प्रश्न 3
कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत में अन्तर स्पष्ट कीजिए। किन परिस्थितियों में औसत लागत व सीमान्त लागत में परिवर्तन होते हैं ? सचित्र दर्शाइए।
या
तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत के सम्बन्ध को दर्शाइए।
या
कुल लागत, औसत लागत तथा सीमान्त लागत की सचित्र व्याख्या कीजिए। [2007]
उत्तर:
कुल लागत (Total Cost) – किसी वस्तु के कुल उत्पादन में जो धन व्यय होता है, उसे कुल लागत कहते हैं। अन्य शब्दों में, किसी वस्तु की निश्चित मात्रा को उत्पन्न करने में जो कुल मौद्रिक लागत आती है, उसे कुल लागत कहते हैं। कुल लागत में सामान्यत: दो प्रकार की लागते सम्मिलित होती हैं – निश्चित लागतें (Fixed Costs) परिवर्तनशील लागते (Variable Costs)।
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सीमान्त लागत (Marginal Cost) – किसी वस्तु की अन्तिम इकाई पर आने वाली लागत को ‘सीमान्त लागत’ कहते हैं अर्थात् सीमान्त लागत से आशय एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में हुई वृद्धि से होता है या वस्तु की एक इकाई को कम उत्पन्न करने पर कुल लागत में जो कमी होती है, उसको सीमान्त लागत कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सीमान्त उत्पादन लागत एक अधिक अथवा एक कम इकाई के उत्पादन करने पर कुल उत्पादन लागत में हुई वृद्धि या कमी है।

औसत लागत (Average Cost) – कुल लागत में उत्पादन की गयी समस्त इकाइयों की संख्या को भाग देने से औसत लागत ज्ञात हो जाती है।
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कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत में अन्तर एवं सम्बन्ध
कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत में सम्बन्ध एवं अन्तर निम्नवत् है
ज्यों-ज्यों अतिरिक्त इकाइयों का उत्पादन किया जाता है तो कुल लागत में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है, लेकिन प्रारम्भ में यह वृद्धि कम गति से और बाद में तीव्र गति से होती है। औसत लागत व सीमान्त लागत प्रारम्भ में दोनों घटती हैं, लेकिन सीमान्त लागत औसत लागत की तुलना में अधिक तेजी से गिरती है और धीरे-धीरे औसत व सीमान्त लागतें बढ़ने लगती हैं, लेकिन सीमान्त लागत के बढ़ने की गति औसत लागत की तुलना में अधिक तीव्र होती है। औसत और सीमान्त लागतों में कमी या वृद्धि उत्पत्ति के नियमों की क्रियाशीलता के कारण होती है।

उत्पादन लागतों को उत्पत्ति के नियमों के सन्दर्भ में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1.  जब कुल उत्पादन में वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू होता है, तो कुल लागत तो बढ़ती जाती है, किन्तु सीमान्त लागत तथा औसत लागत दोनों ही घटती जाती हैं। सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा । अधिक तेजी से घटती है, परिणामस्वरूप औसत लागत, सीमान्त लागत से अधिक रहती है।
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  2. जब उत्पादन में आनुपातिक प्रतिफल नियम लागू होता है तब कुल लागत में वृद्धि होती है, परन्तु औसत लागत वक्र सीमान्त लागत व औसत लागत समान रहती हैं।
  3. जब उत्पादन में ह्रासमान प्रतिफल नियम लागू उत्पादन की इकाइयाँ होता है तब कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत तीनों बढ़ती जाती हैं, किन्तु सीमान्त लागत के बढ़ने की गति औसत लागत से अधिक तीव्र होती है।

कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत के अन्तर एवं सम्बन्ध को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
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रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
संलग्न रेखाचित्र में अ ब रेखा पर उत्पादन की इकाइयाँ तथा अ स रेखा पर उत्पादन लागत (₹ में) दर्शायी गयी है। ज्यों-ज्यों अतिरिक्त इकाइयों का उत्पादन किया जाता है, कुल लागत में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है, लेकिन प्रारम्भ में वृद्धि कम गति से तथा बाद में तीव्र गति से होती है। औसत लागत व सीमान्त लागत प्रारम्भ में दोनों घटती हैं, परन्तु सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा तेजी से गिरती है और धीरे-धीरे सीमान्त व औसत लागतें बढ़ने लगती हैं। सीमान्त लागत, औसत लागत की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से बढ़ती है।
चित्र में TC वक्र कुल लागत, MC वक्र सीमान्त लागत तथा AC वक्र औसत लागत को प्रदर्शित करती है।

किन परिस्थितियों में औसत लागत व सीमान्त लागत में परिवर्तन होते हैं ?
सीमान्त लागत व औसत लागत में परिवर्तन उत्पत्ति के नियमों के अन्तर्गत होते हैं अर्थात् जब उत्पादन में उत्पादन के नियम क्रियाशील रहते हैं तब औसत लागत व सीमान्त लागत में परिवर्तन होने लगते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
सीमान्त लागत और औसत लागत के सम्बन्धों को चित्र की सहायता से समझाइए। [2014, 16]
उत्तर:
औसत लागत और सीमान्त लागत का सम्बन्ध
सीमान्त लागत और औसत लागत दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों के आपसी सम्बन्ध को हम इस प्रकार से भी स्पष्ट कर सकते हैं
(i) जब किसी वस्तु की औसत लागत में कमी होती है तो उसकी सीमान्त लागत भी वस्तु की औसत लागत से कम होती है।
(ii) जब किसी वस्तु की औसत लागत में वृद्धि होती है तो उसकी सीमान्त लागत भी वस्तु की औसत लागत से अधिक ही होती है। संक्षेप में, औसत लागत और सीमान्त लागत के आपसी सम्बन्ध को संलग्न चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है
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  1. जब तक किसी वस्तु के उत्पादन में वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू रहता है, तब तक औसत लागत कम होती जाती है तथा इसके साथ-ही-साथ वस्तु की सीमान्त लागत भी कम होती जाती है।
  2. जब तक औसत लागत कम होती जाती है, तब तक उसकी सीमान्त लागत उससे अधिक तीव्रता से कम होती जाती है।
  3. जब वस्तु की औसत लागत में वृद्धि होती जाती है तो उसकी सीमान्त लागत में वृद्धि हो जाती है।
  4.  जब वस्तु की औसत लागत में वृद्धि होती जाती है तो सीमान्त लागत में वृद्धि उससे अधिक तीव्रता से होती रहती है।।
  5. जिस बिन्दु पर वस्तु की औसत लागत न्यूनतम होती है, उस पर वस्तु की सीमान्त लागत और औसत लागत आपस में दोनों बराबर होती हैं।

प्रश्न 2
उत्पादन (उत्पत्ति) ह्रास नियम को उत्पादन लागतों के सम्बन्ध में रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन (उत्पत्ति) ह्रास नियम
उत्पत्ति ह्रास नियम एक तकनीकी नियम है जो स उत्पत्ति के साधनों के बदलते हुए अनुपातों के कुल 100उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करता 80
AC औसत उत्पादन वक्र है। उत्पादन ह्रास नियम की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है“यदि हम उत्पत्ति के एक या अधिक साधनों की मात्रा को निश्चित रखते हैं और
V सीमान्त उत्पादन वक्र अन्य साधनों की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं तो एक बिन्दु के पश्चात् .परिवर्तनीय तत्त्वों की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली उत्पादन घटने
श्रम वे पूँजी की इकाइयाँ लगता है।”
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उत्पादन हास नियम को लागत वृद्धि नियम भी कहा जा सकता है अर्थात् जब उत्पादन के क्षेत्र में सीमान्त और औसत उत्पादन की मात्रा में एक सीमा के पश्चात् कमी होनी प्रारम्भ हो जाती है तब : सीमान्त और औसत लागतें बढ़नी प्रारम्भ हो जाती हैं। इसीलिए इस नियम को लागत वृद्धि नियम (Law of Increasing Cost) भी कहते हैं।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
उत्पादन ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण उत्पादन – संलग्न चित्र में उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता की दशा में सीमान्त उत्पादन तथा औसत उत्पादन दर्शाया गया है। चित्र में अब रेखा पर श्रम व पूँजी की इकाइयाँ तथा अ स रेखा पर उत्पादन दिखाया गया है। क ख औसत उत्पादन वक्र तथा क ग सीमान्त उत्पादन वक्र है। उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण औसत उत्पादन और सीमान्त उत्पादने दोनों ही गिरते हैं, लेकिन सीमान्त उत्पादन औसत उत्पादन की अपेक्षा अधिक तेजी से गिरता है।

प्रश्न 3
उत्पत्ति ह्रास नियम के अन्तर्गत औसत लागत एवं सीमान्त लागत का चित्र द्वारा प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण लागत – संलग्न चित्र में अ ब रेखा पर उत्पादन की इकाइयाँ तथा अ स रेखा पर उत्पादन लागत को दर्शाया गया है।
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MC सीमान्त लागत वक्र तथा AC औसत लागत वक्र है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि औसत लागत और सीमान्त लागत दोनों ही बढ़ रहे हैं, इसलिए इसे लागत वृद्धि नियम भी कहा जाता है। इस स्थिति में, सीमान्त लागत के बढ़ने की गति औसत लागत से अधिक तीव्र रहती है। उत्पादन की इकाइयाँ

प्रश्न 4
उत्पत्ति वृद्धि नियम को उत्पादन लागतों के सम्बन्ध में रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
उत्पत्ति वृद्धि नियम
उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करने के लिए जब उत्पत्ति के साधनों (श्रम व पूँजी) की अधिक इकाइयाँ प्रयोग की जाती हैं तो उसके परिणामस्वरूप संगठन में सुधार होता है। साधनों के अनुकूलतम संयोग से उत्पादन अनुपात से अधिक मात्रा में बढ़ता है। यह कहा जा सकता है कि यदि उत्पत्ति के साधनों की पूर्ति लोचदार हो तो एक बिन्दु तक उत्पादन के पैमाने का विस्तार करने से अनुपात से अधिक उत्पादन होता है। इसे उत्पत्ति वृद्धि नियम कहते हैं। उत्पत्ति वृद्धि नियम को घटती हुई लागत का नियम भी कहा जा सकता है, क्योंकि उत्पादन में वृद्धि साधन की मात्रा में वृद्धि की अपेक्षा तेजी के साथ होती है, इसलिए प्रति इकाई उत्पादन लागत गिरती जाती है। उत्पत्ति वृद्धि नियम के लागू होने के परिणामस्वरूप औसत लागत (Average Cost) तथा सीमान्त लागत (Marginal Cost) दोनों ही गिरती हैं।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण

1. उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण उत्पादन – चित्र (अ) में Ox-अक्ष पर श्रम व पूँजी की इकाइयाँ तथा OY-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा को दर्शाया गया है। चित्र में MP 25सीमान्त उत्पादन की वक्र रेखा तथा AP औसत उत्पादन की वक्र रेखाg 20है। चित्र से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे उत्पत्ति के साधन की मात्रा को बढ़ाया जाता है, संगठन में सुधार होने के कारण सीमान्त उत्पादन और औसत उत्पादन दोनों ही बढ़ते जाते हैं। परन्तु सीमान्त उत्पादन के बढ़ने की गति औसत उत्पादन के बढ़ने की गति से अधिक तीव्र
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2. उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण लागत – चित्र (ब) में OX-अक्ष पर उत्पादन की इकाइयाँ तथा OY-अक्ष पर लागत (₹ में) दिखायी गयी है। चित्र में AC औसत लागत तथा MC सीमान्त लागत वक्र है। उत्पादन में वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू होने के कारण म सीमान्त लागत और औसत लागत दोनों ही घटती जाती हैं; परन्तु सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी E से घटती है।
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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
मौद्रिक लागत व वास्तविक लागत के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मौद्रिक लागत व वास्तविक लागत में अन्तर
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प्रश्न 2
स्थिर लागत किसे कहते हैं ? इसके अन्तर्गत कौन-कौन से व्यय सम्मिलित किये जाते हैं?
उत्तर:
उत्पादन की स्थिर लागत के अन्तर्गत वे सब उत्पादन व्यय सम्मिलित किये जाते हैं, जिन्हें सभी परिस्थितियों में करना आवश्यक होता है और जो उत्पादन की मात्रा के साथ नहीं बदलते। प्रत्येक उत्पादक को कुछ लागत स्थिर साधनों के प्रयोग करने के लिए लगानी होती है। इस प्रकार की लागत को स्थिर लागत कहते हैं। स्थिर साधन वे साधन होते हैं, जिनकी मात्रा में शीघ्रता से परिवर्तन नहीं किया जा सकता; जैसे – मशीनें, औजार, भूमि, बिल्डिग का किराया, स्थायी कर्मचारियों का वेतन, बीमे की किश्तें आदि। ये सब उत्पादन की स्थिर लागतें होती हैं।

प्रश्न 3
परिवर्तनशील लागत किसे कहते हैं ? इसके अन्तर्गत कौन-कौन से व्यय सम्मिलित किये जाते हैं ?
उत्तर:
परिवर्तनशील लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ बदलती है। किसी व्यवसाय में परिवर्तनशील साधनों को प्रयोग में लाने के लिए जो लागत लगाई जाती है, उसे परिवर्तनशील लागत कहते हैं। परिवर्तनशील वे ‘साधने होते हैं, जिनकी मात्रा में सरलता से परिवर्तन किया जा सकता है। परिवर्तनशील लागते उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर बदलती हैं। परिवर्तनशील लागतों के अन्तर्गत, कच्चे माल और ईंधन की लागत, अस्थायी श्रमिकों की मजदूरी इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 4
सीमान्त उत्पादन लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सीमान्त उत्पादन लागत, उत्पादन की सीमान्त इकाई को उत्पन्न करने की लागत होती है। दूसरे शब्दों में, उत्पादित वस्तुओं की एक और ईकाई को उत्पन्न करने में जो लागत आती है उसे सीमान्त लागत कहा जाता है। सीमान्त लागत कुल लागत में एक और इकाई उत्पन्न करने के कारण होने वाली वृद्धि को बताती है। श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “सीमान्त लागत का तात्पर्य उत्पादित वस्तु की एक अतिरिक्त लागत से होती है।”

उदाहरण के लिए – 5 इकाई उत्पन्न करने की कुल लागत ₹500 है और 6 इकाइयों को उत्पन्न करने की लागत ₹720 है, तो सीमान्त लागत ₹220 होगी। प्रश्न 5 औसत लागत वक्र व सीमान्त लागत वक्र में अन्तर बताइए। उत्तर औसत लागत वक्र और सीमान्त लागत वक्र में एक निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है। जब तक औसत लागत (AC) वक्र गिर रहा होता है तब तक सीमान्त लागत (MC) औसत लागत से कम होती है। किन्तु जब औसत लागत बढ़ने लगती है, तो सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक हो जाती है।

यदि औसत लागत वक्र ‘यू’ आकार का खींचा जाता है तो उसके साथ का सीमान्त लागत वक्र सदैव औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटेगा।

प्रश्न 6
वास्तविक लागत से आप क्या समझते हैं? [2008]
उत्तर:
किसी वस्तु के उत्पादन में जो कष्ट (abstinence), त्याग (sacrifice) तथा कठिनाइयाँ (exertions) उठानी पड़ती हैं, उन सभी के योग को उत्पादन की वास्तविक लागत’ कहते हैं। कुछ अर्थशास्त्री वास्तविक लागत को ‘सामाजिक लागत’ (Social Cost) भी कहते हैं। प्रो० मार्शल ने वास्तविक लागत की अवधारणा को इस प्रकार समझाया है-“किसी वस्तु के उत्पादन में विभिन्न प्रकार के श्रमिकों को जो प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रयत्न करने पड़ते हैं तथा साथ ही वस्तु के उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली पूँजी को प्राप्त करने में जिस संयम या प्रतीक्षा की आवश्यकता होती है, वे समस्त प्रयास तथा त्याग मिलकर वस्तु की वास्तविक लागत कहलाती है।”

प्रश्न 7
सीमान्त लागत व औसत लागत में अन्तर कीजिए। [2009, 10, 11]
उत्त:
सीमान्त लागत – किसी वस्तु की अन्तिम इकाई पर आने वाली लागत को सीमान्त लागत कहते हैं।
औसत लागत – कुल लागत में उत्पादन की गई समस्त इकाइयों की संख्या को भाग देने पर औसत लागत ज्ञात हो जाती है। औसत लागत और सीमान्त लागत में अन्तर निम्नलिखित हैं

  1. जब किसी वस्तु की औसत लागत में कमी होती है तो उसकी सीमान्त लागत भी वस्तु की औसत लागत से कम होती है।
  2. जब किसी वस्तु की औसत लागत में वृद्धि होती है तो उसकी सीमान्त लागत भी वस्तु की औसत लागत से अधिक ही होती है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
कुल लागत से क्या अभिप्राय है ? [2012]
उत्तर:
उत्पादक द्वारा उत्पादन की किसी निश्चित मात्रा को उत्पन्न करने पर जो कुल व्यय आता है, उसे कुल लागत कहा जाता है। इसमें सामान्यतया दो प्रकार की लागत सम्मिलित होती हैं

  1.  निश्चित लागते (Fixed Costs) तथा
  2. परिवर्तनशील लागते (Variable Costs)।

प्रश्न 2
औसत उत्पादन लागत से क्या अभिप्राय है ?
या
औसत लागत का सूत्र लिखिए। [2011, 12, 15, 16]
उत्तर:
औसत उत्पादन लागत, उत्पादन की प्रति इकाई लागत होती है। इसे ज्ञात करने के लिए कुल लागत को उत्पन्न की गयी इकाइयों की मात्रा से भाग दिया जाता है। औसत लागत ज्ञात करने के लिए दिये गये सूत्र का प्रयोग करते हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production 15

प्रश्न 3
औसत तथा सीमान्त लागत वक्रों की स्थिति किस प्रकार की होती है ?
उत्तर:
औसत लागत और सीमान्त लागत वक्र सर्वदा U-आकार के होते हैं, जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि आरम्भ में इन लागतों की प्रवृत्ति गिरने की होती है, किन्तु एक न्यूनतम सीमा पर पहुँचने के पश्चात् यह बढ़ने लगती है।

प्रश्न 4
अवसर लागत को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
अवसर लागत को ‘हस्तान्तरण आय’ या विकल्प लागत भी कहा जाता है।

प्रश्न 5
अवसर लागत के दो महत्त्व बताइए।
उत्तर:
(1) लगान के निर्धारण में अवसर लागत का विचार महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार लगान अवसर लागत के ऊपर अतिरेक होता है।
(2) अवसर लागत के द्वारा उत्पादन लागत में होने वाले परिवर्तन को समझा जा सकता है।

प्रश्न 6
वास्तविक लागत में किन तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है ?
उत्तर:
वास्तविक लागत = श्रम के प्रयास और कठिनाइयाँ + पूँजीपति की प्रतीक्षा और त्याग।

प्रश्न 7
वास्तविक लागत को ज्ञात करना कठिन है, क्यों? समझाइए।
उत्तर:
वास्तविक लागत को ज्ञात करना एक कठिन कार्य है क्योकि वास्तविक लागत प्रयासों और त्यागों पर आधारित होती है। प्रयास, त्याग और प्रतीक्षा मनोवैज्ञानिक तथा आत्मनिष्ठ होते हैं, इसलिए उन्हें सही-सही मापा नहीं जा सकता है।

प्रश्न 8
उत्पादन लागत वक्र U-आकार के क्यों होते हैं ? [2016]
उत्तर:
लागत वक्रों के U-आकार का होने का सबसे बड़ा कारण उत्पादन को प्राप्त होने वाली आन्तरिक बचते (Internal Economics) हैं।

प्रश्न 9
कुल उत्पादन लागत की संरचना लिखिए। उत्तर कुल लागत निम्नलिखित दो प्रकार की लागतों से मिलकर बनती है
(1) स्थिर अथवा पूरक लागत (Fixed Costs),
(2) परिवर्तनशील लागत (Variable Costs)
या कुल लागत = स्थिर लागत + परिवर्तनशील लागत।

प्रश्न 10
परिवर्तनशील लागत को परिभाषित कीजिए। [2015, 16]
उत्तर:
परिवर्तनशील लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ बढ़ती रहती है। तथा उत्पादन की मात्रा में कमी होने पर घटती रहती है।

प्रश्न 11
स्थिर लागत किसे कहते हैं? [2010, 12]
या
स्थिर लागत को परिभाषित कीजिए। [2015]
उत्तर:
स्थिर लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ घटती-बढ़ती नहीं है। इसे पूरक लागत भी कहते हैं।

प्रश्न 12
अवसर लागत को हस्तान्तरण आय भी कहते हैं। हाँ या नहीं। [2014]
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 13
स्थिर लागत अल्पकाल में उत्पादन में परिवर्तन होने पर परिवर्तित होती है। सही अथवा गलत।
उत्तर:
गलत।।

प्रश्न 14
स्थिर लागत एवं परिवर्तनशील लागत में भेद कीजिए। [2012, 14]
उत्तर:
स्थिर लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ बढ़ती नहीं है, जबकि परिवतर्नशील लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ बढ़ती रहती है तथा उत्पादन की मात्रा में कमी होने पर घटती रहती है।

प्रश्न 15
अवसर लागत क्या है? [2006, 08, 10, 14]
उत्तर:
किसी वस्तु के उत्पादन की अवसर लागत वस्तु की वह मात्रा है जिसका त्याग किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
उत्पत्ति वृद्धि नियम (वृद्धिमान प्रतिफल नियम) की क्रियाशीलता की दशा में औसत लागत की प्रवृत्ति होती है
(क) घटने की
(ख) बढ़ने की
(ग) स्थिर रहने की
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) घटने की।

प्रश्न 2
जब उत्पादन ‘ह्रास नियम’ के अन्तर्गत होता है, तब सीमान्त एवं औसत लागते
(क) घटने लगती हैं।
(ख) बढ़ने लगती हैं।
(ग) स्थिर रहती हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) बढ़ने लगती हैं।

प्रश्न 3
अवसर लागत को कहते हैं
(क) व्यक्तिगत आय
(ख) हस्तान्तरण आय
(ग) सामाजिक आय
(घ) राष्ट्रीय आय
उत्तर:
(ख) हस्तान्तरण आय।

प्रश्न 4
जब सीमान्त लागत घटती है, तो औसत लागत
(क) स्थिर रहती है।
(ख) तेजी से गिरती है।
(ग) तेजी से बढ़ती है।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(घ) इनमें से कोई नहीं।।

प्रश्न 5
“किसी निश्चित वस्तु की अवसर लागत वह उत्तम विकल्प है जिसका परित्याग कर दिया जाता है।” यह कथन है
(क) डॉ० एल० ग्रीन का।
(ख) डेवनपोर्ट का ।
(ग) प्रो० कोल का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) प्रो० कोल का।

प्रश्न 6
वास्तविक उत्पादन लागत में सम्मिलित होता है
(क) श्रम के प्रयास और कठिनाइयाँ + पूँजीपति की प्रतीक्षा और त्याग
(ख) भूमि का लगान
(ग) प्रबन्धक का वेतन
(घ) उद्यमी का लाभ
उत्तर:
(क) श्रम के प्रयास और कठिनाइयाँ + पूँजीपति की प्रतीक्षा और त्याग।

प्रश्न 7
‘वास्तविक उत्पादन लागत का सिद्धान्त हमें सन्देहात्मक विचार तथा अवास्तविकता की दलदल में डाल देता है।” यह कथन है
(क) प्रो० मार्शल का
(ख) प्रो० हेन्डरसन का
(ग) रिकार्डों का।
(घ) प्रो० जे० के० मेहता का
उत्तर:
(ख) प्रो० हेन्डरसन का।

प्रश्न 8
वास्तविक लागत का सिद्धान्त है
(क) वास्तविक
(ख) अवास्तविक
(ग) वास्तविक और अवास्तविक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अवास्तविक।

9. निम्नलिखित में से किसे उत्पादन की स्थिर लागत में सम्मिलित किया जाता है?
(क) कच्चे माल की कीमत
(ख) अस्थायी श्रमिकों की मजदूरी
(ग) फैक्ट्री-भवन का किराया
(घ) इन सभी को
उत्तर:
(ग) फैक्ट्री-भवन का किराया।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से स्थिर लागत कौन-सी? [2012]
(क) कच्चे माल पर व्यय
(ख) यातायात व्यय
(ग) मशीनों पर व्यय
(घ) श्रमिकों की मजदूरी
उत्तर:
(घ) श्रमिकों की मजदूरी।

प्रश्न 11
जब औसत लागत न्यूनतम होती है, तब [2014]
(क) औसत लागत < सीमान्त लागत
(ख) औसत लागत = सीमान्त लागत
(ग) औसत लागत > सीमान्त लागत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) औसत लागत = सीमान्त लागत।

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UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data (आंकड़ों का आलेखी निरूपण)

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 Text Book Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
(i) जनसंख्या वितरण दर्शाया जाता है
(क) वर्णमात्री मानचित्रों द्वारा
(ख) सममान रेखा मानचित्रों द्वारा
(ग) बिन्दुकित मानचित्रों द्वारा
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ग) बिन्दुकित मानचित्रों द्वारा।

(ii) जनसंख्या की दशकीय वृद्धि को सबसे अच्छा प्रदर्शित करने का तरीका है–
(क) रेखाग्राफ
(ख) दण्ड आरेख
(ग) वृत्त आरेख
(घ) ऊपर में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) रेखाग्राफ।

(iii) बहुरेखाचित्र की रचना प्रदर्शित करती है
(क) केवल एक चर
(ख) दो चरों से अधिक
(ग) केवल दो चर
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ख) दो चरों से अधिक।

(iv) कौन-सा मानचित्र “गतिदर्शी मानचित्र” माना जाता है
(क) बिन्दुकित मानचित्र
(ख) सममान रेखा मानचित्र
(ग) वर्णमात्री मानचित्र
(घ) प्रवाह संचित्र।
उत्तर:
(घ) प्रवाह संचित्र।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के 30 शब्दों में उत्तर दीजिए :
(i) थिमैटिक मानचित्र क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक अथवा सांस्कृतिक वातावरण के किसी तत्त्व का किसी क्षेत्र में वितरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्र को ‘थिमैटिक (वितरण) मानचित्र’ कहते हैं।

(ii) आँकड़ों के प्रस्तुतीकरणा से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण का तात्पर्य आँकड़ों द्वारा तथ्यों की विशेषताओं को प्रदर्शित किया जाना है। यह प्रस्तुतीकरण आलेख, आरेख अथवा मानचित्र, चार्ट आदि द्वारा किया जाता है।

(iii) बहुदण्ड आरेख और यौगिक दण्ड आरेख में अंतर बताइए।
उत्तर:
बहुदण्ड आरेख- यह आरेख तुलना के उद्देश्य के लिए दो या दो से अधिक चरों को प्रदर्शित करता है। पुरुष-स्त्री अनुपात, ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या अथवा विभिन्न साधनों द्वारा सिंचाई दर्शाने के लिए यह आरेख बनाया जाता है।
यौगिक दण्ड आरेख- इसे मिश्रित दण्ड आरेख भी कहते हैं। इसमें विभिन्न घटकों को चर के एक समूह में वर्गीकृत किया जाता है अथवा एक घटक के विभिन्न चर साथ-साथ रखे जाते हैं। .

(iv) एक बिन्दुकित मानचित्र की रचना के लिए क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर:
एक बिन्दुकित मानचित्र की रचना के लिए आवश्यक तत्त्व

  1. जिस क्षेत्र का बिन्दु मानचित्र बनाना है, उसका प्रशासनिक इकाइयों वाला रेखा मानचित्र।
  2. प्रत्येक प्रशासनिक इकाई के जनसंख्या सम्बन्धी निरपेक्ष आँकड़े।
  3. बिन्दु उचित स्थान पर लग सकें, इसके लिए उस क्षेत्र के धरातलीय मानचित्र, मृदा मानचित्र, जलवायु मानचित्र व सिंचाई मानचित्र इत्यादि का अवलोकन भी आवश्यक है। इन मानचित्रों से हमें यह अनुमान लगता है कि जनसंख्या का सांद्रण कहाँ-कहाँ हो सकता है।

(v) सममान रेखा मानचित्र क्या है? एक क्षेपक को किस प्रकार कार्यान्वित किया जाता है?
उत्तर:
सममान रेखा मानचित्र- काल्पनिक रेखाएँ जो समान मान के स्थानों को जोड़ती हैं, ‘सममान रेखाएँ’ कहलाती हैं। इन रेखाओं द्वारा भौगोलिक सत्य को मानचित्र पर दिखाना ‘सममान रेखा मानचित्र’ कहलाता है।
क्षेपक का कार्यान्वयन– क्षेपक का उपयोग दो स्टेशनों के प्रेक्षित मानों के बीच मध्यमान को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जैसे—आगरा और मेरठ का तापमान या दो बिन्दुओं की ऊँचाइयाँ।
समान मानों के स्थानों को जोड़ने वाली सममान रेखाओं का चित्रण ‘क्षेपक’ कहलाता है। क्षेपक के कार्यान्वयन करने के लिए निम्न बातों की पालना करनी पड़ती है

  1. मानचित्र पर न्यूनतम और अधिकतम मान को निश्चित करना।
  2. मान की परास की गणना, जैसे-परास = अधिकतम मान – न्यूनतम मान।
  3. श्रेणी के आधार पर 5, 10, 15 आदि में अन्तराल निश्चित करना। . . .

(vi) एक वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरणों की सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरण
(1) जिस क्षेत्र के लिए वर्णमात्री मानचित्र बनाना है, उस क्षेत्र की प्रशासनिक इकाइयों वाला रेखा मानचित्र।
(2) मानचित्र पर जिस वस्तु का वितरण प्रदर्शित करना है, उसके सभी प्रशासनिक इकाइयों से सम्बन्धित नवीनतम आँकड़े।

उपर्युक्त दो वस्तुएँ प्राप्त करने के बाद सापेक्षिक आँकड़ों का वर्ग-अन्तराल निर्धारित करना होता है। वर्ग अन्तराल बहुत अधिक अथवा बहुत कम नहीं होना चाहिए। सामान्यत: 3 से 6 वर्ग अन्तराल उचित रहते हैं। इन चुने हुए वर्ग अन्तरालों के लिए आभा चुनते समय ध्यान रखना चाहिए कि घनत्व या मान बढ़ने के साथ आभा की गहराई भी उत्तरोत्तर बढ़नी चाहिए। निर्धारित की गई आभाओं का सूचक बनाना भी आवश्यक होता है।

(vii) आँकड़े को वृत्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरणों की विवेचना ‘कीजिए।
उत्तर:
आँकड़े को वृत्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरण

  • आँकड़ों को बढ़ते क्रम में लिखें।
  • आँकड़ों के लिए कोणों की गणना के लिए [latex]\frac{360}{100}[/latex] से गुणा करें।
  • उपयुक्त त्रिज्या का चयन करें।
  • वृत्त बनाएँ।
  • शीर्षक, उपशीर्षक और सूचिका द्वारा आरेख को पूरा किया जाता है तथा रंग भरे जा सकते हैं।

क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
निम्न आँकड़े को अनुकूल/उपयुक्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए :
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 1
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 2
उत्तर:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 3

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़े को उपयुक्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए:
भारत : प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में साक्षरता और नामांकन अनुपात
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 4
उत्तर:
(नोट–अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।)

प्रश्न 3:
निम्नलिखित आँकड़े को वृत्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए :
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 5
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 6
उत्तर:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 7

प्रश्न 4.
नीचे दी गई तालिका का अध्ययन कीजिए और दिए हुए आरेखों/मानचित्रों को खींचिए :
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 8
(क) प्रत्येक राज्य में चावल के क्षेत्र को दिखाने के लिए एक बहुदण्ड आरेख की रचना कीजिए।
(ख) प्रत्येक राज्य में चावल के अन्तर्गत क्षेत्र के प्रतिशत को दिखाने के लिए एक वृत्त आरेख की रचना कीजिए।
(ग) प्रत्येक राज्य में चावल के उत्पादन को दिखाने के लिए एक बिन्दुकित मानचित्र की रचना कीजिए।
(घ) राज्यों में चावल उत्पादन के प्रतिशत को दिखाने के लिए एक वर्णमात्री मानचित्र की रचना कीजिए। .
उत्तर:
(नोट-अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।)

प्रश्न 5.
कोलकाता के तापमान और वर्षा के निम्नलिखित आँकड़े को एक उपयुक्त आरेख द्वारा दर्शाइए:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 9
उत्तर:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 10

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 Other Important Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दण्ड आरेख बनाने सम्बन्धी आवश्यक निर्देशों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दण्ड आरेख बनाने सम्बन्धी आवश्यक निर्देश
किसी भी आरेख को बनाने के लिए यूँ तो कोई विश्वव्यापी नियम तो नहीं होते, फिर भी कुछ हिदायतों का ध्यान रखना आवश्यक होता है

  1. सभी दण्ड एकसमान मोटाई के होने चाहिए। दण्डों की मोटाई दण्डों की संख्या व कागज के आकार पर निर्भर करती है।
  2. दण्ड समान दूरी पर स्थित होने चाहिए। दण्डों के बीच की दूरी दण्डों की चौड़ाई से कुछ कम होनी चाहिए ताकि तुलना करने में आसानी हो।
  3. दण्ड बनाने से पहले दिए गए आँकड़ों को पूर्णांक में बदल लेना चाहिए।
  4. आँकड़ों में न्यूनतम व उच्चतम सीमा और कागज पर स्थान देखकर ही मापनी का चुनाव करना चाहिए।
  5. आधार-रेखा के शून्य से दण्डों की लम्बाई मापी जाती है।
  6. दण्डों को सुन्दर, तुलनीय व आकर्षक बनाने के लिए उनमें काला रंग या आभा भरी जाती है। कई बार इन दण्डों में रंग भी भरे जाते हैं।

प्रश्न 2.
बिन्दु विधि के गुण व दोषों को समझाइए।
उत्तर:
बिन्द विधि के गण

  1. मात्रात्मक वितरण मानचित्र बनाने की सभी विधियों में बिन्दु विधि वितरण को सर्वाधिक शुद्ध रूप से प्रस्तुत करती है।
  2. यह विधि वस्तु की मात्रा और समानता दोनों गुणों को भली-भाँति प्रदर्शित करती है।
  3. इस विधि में वितरण की तीव्रता बिन्दुओं के सांद्रण से एकदम स्पष्ट हो जाती है।
  4. बिन्दु मानचित्र का दृष्टिक प्रभाव वितरण के अन्य मानचित्रों से अधिक होता है।
  5. बिन्दुओं को गिनकर पुनः आँकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं।

बिन्दु विधि के दोष

  1. बिन्दु मानचित्रों की रचना कठिन होती है, अत: अभ्यास और कुशलता के बिना इन्हें नहीं लगाया जा सकता।
  2. यह विधि केवल निरपेक्ष आँकड़ों को प्रदर्शित करती है।
  3. बिन्दु द्वारा मानचित्र पर घेरा हुआ स्थान वास्तविक क्षेत्रफल से काफी बड़ा होता है।
  4. प्रयास करने के बावजूद भी कई बिन्दु सही स्थिति पर नहीं लग पाते।
  5. क्षेत्र के भौगोलिक ज्ञान के बिना गए बिन्दु भ्रामक परिणाम प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 3.
आरेखों की उपयोगिता/महत्त्व/लाभ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आरेखों की उपयोगिता/महत्त्व/लाभ .
आरेखों की उपयोगिता/महत्त्व/लाभ अग्रलिखित हैं
1. सुबोध और सरल सूचना- आँकड़ों की लम्बी-लम्बी नीरस सूचनाएँ आरेखों द्वारा सहज ही समझ में आ जाती हैं। एक दृष्टि डालते ही बहुत-सी विशेषताएँ पता चल जाती हैं।

2. चिरस्मरणीय- इनके द्वारा प्रस्तुत आँकड़े लम्बे समय तक याद रहते हैं।

3. विशेषज्ञता आवश्यक नहीं- आरेखों को समझने के लिए किसी विशेष ज्ञान या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्य व्यक्ति भी इनको समझ सकता है।

4. आकर्षक और प्रभावशाली- आरेख चित्रमय होते हैं। इन्हें आकर्षक बनाया जाता है।

5. समय व श्रम की बचत- आरेखों द्वारा आँकड़ों को समझने से अपेक्षाकृत कम समय लगता है तथा श्रम भी कम करना पड़ता है। एक चीनी कहावत है कि “एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है।” छोटे से आकार का आरेख कई पृष्ठों पर लिखे विवरण की जानकारी दे देता है।

6. तुलना में सहायक- आरेखों से तथ्यों की तुलना करना सरल है।

7. सूचना के साथ मनोरंजन– इनसे मनोरंजन भी होता है।

8. अनुमान में सहायक- इनके द्वारा भावी प्रवृत्ति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
लखनऊ में मध्यमान मासिक वर्षा के आँकड़ों से एक सरल दण्ड आरेख की रचना कीजिए।
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 11
उत्तर:
रचना विधि-दिए गए आँकड़ों में वर्षा की मात्रा समय के सन्दर्भ अर्थात् जनवरी, फरवरी इत्यादि के रूप में दी गई है। ऐसे आँकड़ों को आरोही या अवरोही क्रम में बिल्कुल नहीं करते। इनके लिए दण्ड भी खड़े बनाने होते हैं ताकि समय का आधार मानकर तुलना की जा सके।

सबसे पहले ग्राफ पेपर या ड्राइंगशीट को सामने रखकर, मापनी से मापकर यह अनुमान लगाइए कि शीर्षक की जगह छोड़ देने के बाद अधिकतम वर्षा 27.16 सेमी को दिखाने के लिए आरेख को कागज़ के निचले हिस्से में कहाँ से शुरू करें।

शीट या ग्राफ पेपर के निचले हिस्से में एक आधार रेखा लीजिए। उस पर वर्ष के 12 महीनों के दण्डों की चौड़ाई व उनके बीच की दूरी को अंकित कीजिए। आधार रेखा के बाएँ सिरे पर एक लम्बवत् रेखा 15 सेमी ऊँची लीजिए व उस पर 0 से 30 अंकित कीजिए। एक मापनी के अनुसार 1 सेमी की ऊँचाई 2 सेमी वर्षा प्रदर्शित करेगी। अब वर्ष के 12 महीनों के लिए मापनी के अनुसार दण्डों की लम्बाई निर्धारित कीजिए। जनवरी महीने की वर्षा 4.20 सेमी मापक के दुगुना हो जाने के कारण अब वास्तविक फुटे के अनुसार 4.20 ÷ 2 = 2.10 सेमी द्वारा तथा फरवरी की वर्षा 5.18÷ 2 = 2.59 सेमी लम्बे दण्ड से प्रदर्शित होगी। इसी प्रकार अन्य महीनों के दण्डों की लम्बाई ज्ञात करके उन्हें आधार-रेखा पर बनाइए। (चित्र)

कई बार हमें ग्राफ पेपर के स्थान पर ड्राइंगशीट पर दण्ड आरेख बनाने होते हैं। ऐसे में दण्ड सीधे रहें और उनकी आपसी दूरी बराबर रहे तो इसके लिए हमें आरेख के लगभग बीच में एक नकली आधार-रेखा बना लेनी चाहिए जिसे बाद में मिटा दिया जाता है। इस नकली आधार-रेखा पर भी दण्डों की चौड़ाई व उनके बीच के अन्तर को अंकित किया जाता है। बाद में प्रत्येक दण्ड को बनाते समय असली व नकली दोनों आधार रेखाओं के ‘ समान बिन्दुओं को मिलाकर दण्ड की ऊँचाई बनानी होती है। इससे दण्ड सीधे बनते हैं।
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 12

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका में भारत की जनसंख्या के आँकड़े दिए गए हैं। इन्हें साधारण दण्ड आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए
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उत्तर:
रचना विधि-दिए गए आँकड़े समयानुसार हैं इसलिए इन्हें खड़े दण्ड आरेख द्वारा प्रदर्शित किया जाएगा। जब ‘स्थान एक समय अनेक’ हो तो ऐसे आँकड़ों को आरोही या अवरोही क्रम में नहीं किया जाता। आधार X-अक्ष पर समान दूरियों पर समान चौड़ाई वाले दण्ड बनाने के लिए चिह्न अंकित कीजिए। इस आधार-रेखा के बाएँ सिरे पर एक लम्बवत् रेखा खींचिए जिस पर जनसंख्या को दिखाने के लिए मापनी बनाई जाएगी। अब 1901 से 2011 की जनसंख्या के आँकड़ों को पूर्णांक बनाइए जो क्रमशः इस प्रकार होंगे23.84, 25.21, 25.13, 27.90, 31.87, 36.11, 43.92, 54.82, 68.38, 84.63, 102.70 व 121 करोड़। उच्चतम व न्यूनतम आँकड़ों को देखते हुए उचित मापनी लेनी होगी। उदाहरणत: 20 करोड़ जनसंख्या को प्रदर्शित करने के लिए यदि हम 1 इंच लम्बा दण्ड निश्चित करते हैं तो विभिन्न जनगणना वर्षों के दण्डों की लम्बाई क्रमश: 1.96, 1.26, 1.25, 1.39, 1.59, 1.80, 2.19, 2.74, 3.41, 4.23, 5.13 व 6.0 इंच होगी। शीर्षक व अन्य आवश्यक सूचनाएँ लिखकर आरेख तैयार कीजिए। (चित्र)
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प्रश्न 6.
नीचे दिए गए भारत के विदेश व्यापार से सम्बन्धित विभिन्न आँकड़ों को बहुदण्ड आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
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उत्तर:
रचना विधि-दिए गए आँकड़े एक ही तत्त्व ‘विदेश व्यापार’ के दो सम्बन्धित विषयों आयात और निर्यात के हैं, अत: हमें इन्हें दो-दो दण्डों के समुच्चयों द्वारा प्रदर्शित करेंगे।

इस आरेख के निर्माण के लिए ड्राइंगशीट या ग्राफ पेपर पर नीचे की तरफ एक आधार-रेखा लीजिए। इस पर दो-दो दण्डों के 10 समुच्चयों व उनके बीच की दूरी को अंकित कीजिए।

आँकड़ों तथा कागज के विस्तार को देखते हुए आधार रेखा के आरम्भिक बिन्दु से एक लम्बवत् रेखा खींचिए जो आयात-निर्यात के आँकड़ों को दिखाने के लिए मापनी का कार्य करेगी। मान लीजिए कि 1 सेमी का दण्ड आरेख 2,00,000 करोड़ रुपये को प्रदर्शित करता है तो हमें 14 सेमी ऊँचा मापक बनाना होगा जिसमें प्रत्येक सेमी का 1 टुकड़ा (1 mm) 20 हजार करोड़ रुपये को प्रदर्शित करेगा। अब संख्याओं को पूर्णांकों में बदलकर उनके मापक के अनुसार दण्ड-समुच्चय बनाइए। शीर्षक, अन्य सूचनाएँ व आभाओं को निर्देशिका बनाकर आरेख को पूर्ण कीजिए। (चित्र)
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 17

प्रश्न 7.
भारत में साक्षरता दर के दिए गए आँकड़ों के आधार पर एक बहुदण्ड आरेख की रचना कीजिए। .
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 18
उत्तर:
रचना विधि-उपर्युक्त तालिका में दिए गए आँकड़ों में भारत की कुल साक्षर जनसंख्या तथा पुरुष एवं महिला साक्षरता का प्रतिशत दिया गया है। ऐसे आँकड़ों को दर्शाने के लिए बहुदण्ड आरेख उपयुक्त है।
पहले दिए गए प्रश्नों की भाँति आधार रेखा तथा मापनी रेखा बनाकर कुल साक्षरों, पुरुष व महिला साक्षरों की प्रतिशत जनसंख्या को दर्शाने के लिए प्रत्येक वर्ष के तीन-तीन दण्ड समुच्चय बनाइए। इन दण्डों में विभिन्न आभाएँ भरकर उनका इंडेक्स बना दीजिए। इस तरह आरेख पूरा होगा। (चित्र)
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 19

प्रश्न 8.
भारत में सिंचाई के 2010-11 के दिए गए आँकड़ों को वृत्तारेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 20
उत्तर:
रचना विधि—इस तालिका में विभिन्न घटकों के कोण ज्ञात करने से पूर्व इन्हें अवरोही क्रम में कर लें लेकिन ध्यान रहे कि ‘अन्य’ (Others) घटक को सबसे अन्त में रखे क्योंकि इसमें कई आँकड़े शामिल होते हैं। उपर्युक्त तालिका के आँकड़ों के कोण इस प्रकार निकाले गए हैं—
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 21

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों को वृत्तारेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए :
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 22
उत्तर:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 23
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 24

प्रश्न 10.
मानचित्र में दिए गए वार्षिक तापान्तर (Annual Range of Temperature) के आँकड़ों के आधार पर एक समताप रेखा (Isotherm) मानचित्र बनाइए।
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 25
उत्तर:
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 26

प्रश्न 11.
चित्र में मुख्य नदी एवं उसकी सहायक नदियों में बहने वाली जल की मात्रा हजार घन फुट/प्रति घण्टा दी गई है। इसकी सहायता से इस नदी बेसिन के लिए एक जल प्रवाह आरेख बनाइए।
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 27
उत्तर:
रचना विधि-नदी के प्रवाह क्षेत्र में स्थित विभिन्न बेसिनों के आँकड़ों को देखते हुए एक उचित मापनी का निर्धारण कीजिए जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, जल की मात्रा के अनुपात में फीता बनाइए। यह – आपेक्षिक प्रवाह आरेख है।
UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Graphical Representation of Data 28

लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वर्णमात्री अथवा छाया मानचित्र की उपयुक्तता को समझाइए।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र की उपयुक्तता-जनसंख्या का घनत्व, कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत, जनसंख्या में लिंग तथा साक्षरता अनुपात, कुल भूमि में कृषि भूमि का अनुपात, कृषि-भूमि की प्रति हेक्टेयर उपज, जोत का औसत आकार, प्रति व्यक्ति आय, किसी वस्तु का प्रति व्यक्ति उपभोग आदि के आर्थिक तथ्यों के आँकड़ों को वर्णमात्री मानचित्रों के द्वारा बहुत अच्छी तरह प्रदर्शित किया जाता है। मानचित्र के प्रदर्शन की यह विधि भूगोलवेत्ता का महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

प्रश्न 2.
वर्णमात्री मानचित्र के दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
वर्णमात्री मानचित्र के दोष

  1. भौगोलिक तथ्य के घनत्व में अन्तर भौगोलिक दशाओं के प्रभाव में आता है, प्रशासनिक इकाइयों के द्वारा नहीं। इससे भ्रम पैदा हो जाता है।
  2. राजनीतिक सीमाएँ अस्थिर होती हैं।
  3. पूरी इकाई की गहनता समान नजर आती है, जबकि वास्तव में प्रशासनिक इकाई (जिले) में भी गहनता में भारी अन्तर पाया जाता है।
  4. इस विधि में ऋणात्मक क्षेत्र भी शामिल होता है जो कि गलत है।

प्रश्न 3.
सममान रेखा मानचित्र के दोष बताइए।
उत्तर:
सममान रेखा मानचित्र के दोष

  • सममान रेखा मानचित्र बनाना एक कठिन कार्य है क्योंकि इसके लिए हमें पर्याप्त व सही आँकड़े तथा अनेक स्थानों पर शुद्ध अवस्थिति की आवश्यकता होती है।
  • मानचित्र पर मूल्यों को खोजने के लिए अन्तर्वेशन करना पड़ता है जिससे गलती होने की संभावना रहती है।
  • कम आँकड़ों के आधार पर बनाई गई सममान रेखाएँ भ्रामक परिणाम प्रस्तुत कर सकती हैं।
  • आकस्मिक या तीव्र परिवर्तनों को इन रेखाओं द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
आरेखों की रचना में सावधानियों को समझाइए।
उत्तर:
आरेखों की रचना में सावधानियाँ

  1. आरेख आकर्षक और प्रभावशाली होने चाहिए।
  2. इनको उपयुक्त शीर्षक दिया जाना चाहिए।
  3. आरेख उचित मापनी पर बनाए जाने चाहिए।
  4. इनमें केवल चिह्नों व रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  5. आरेखों को सरल बनाना चाहिए।
  6. आरेखों के साथ सारणी भी दी जानी चाहिए।

प्रश्न 5.
वर्णमात्री मानचित्रों के गुणों को समझाइए।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र के गुण

  1. वस्तु के वितरण को समझाने के लिए यह एक सरल और प्रभावशाली विधि है।
  2. वितरण के तुलनात्मक अध्ययन के लिए वर्णमात्री विधि सर्वोत्तम मानी जाती है।
  3. वर्णमात्री विधि सापेक्षिक आँकड़ों जैसे प्रतिशत मान या प्रति इकाई घनत्व को दर्शाने की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
  4. वस्तुओं के वितरण में आने वाले आकस्मिक और भारी परिवर्तनों को दिखाने के लिए इससे बेहतर विधि और कोई नहीं है।

प्रश्न 6.
सममान रेखा मानचित्रों के गुणों को समझाइए।
उत्तर:
सममान रेखा मानचित्र के गुण

  1. अन्य विधियों की तुलना में सममान रेखा विधि अधिक वैज्ञानिक है।
  2. ये रेखाएँ ढाल प्रवणता या घनत्व में होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर देती हैं।
  3. बिन्दु आँकड़ों के माध्यम से भौगोलिक वितरण दर्शाने की यह सर्वोत्तम विधि है।
  4. संक्रमण पेटी में स्थित तत्त्वों को प्रदर्शित करने के लिए सममान रेखा विधि उत्तम मानी जाती है।

प्रश्न 7.
प्रवाह आरेखों के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
प्रवाह आरेखों का महत्त्व-प्रवाह आरेखं किसी क्षेत्र के प्रमुख परिवहन केन्द्रों व परिवहन मार्गों के निर्धारण में हमारी सहायता करते हैं। हमें इनसे उन केन्द्र बिन्दुओं (Nodal Points) का पता चलता है जहाँ अनेक मार्ग आकर मिलते हैं। क्षेत्रीय आयोजन में प्रवाह आरेखों का महत्त्व निर्विवाद है।

प्रश्न 8.
वर्णमात्री मानचित्र क्या हैं?
उत्तर:
वर्णमात्री (छाया) मानचित्र-ये वे मानचित्र हैं जिनमें प्रशासकीय इकाइयों को आधार मानकर आँकड़ों की सहायता से भौगोलिक तत्त्वों का क्षेत्रीय वितरण दर्शाया जाता है। वर्णमात्री विधि में क्षेत्रीय तथ्यों की मात्रा या घनत्व को दिखाने के लिए विभिन्न छायाओं (Shades) का प्रयोग किया जाता है। इस विधि की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमें केवल सापेक्षिक.आँकड़ों का प्रयोग किया जाता है, शुद्ध या निरपेक्ष आँकड़ों का नहीं।

मौखिक प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
सांख्यिकीय आरेख क्या होते हैं?
उत्तर:
सांख्यिकीय आरेख ऐसे रेखाचित्र होते हैं जिनकी रचना सांख्यिकीय आँकड़ों के आधार पर की जाती है। .

प्रश्न 2.
क्या सांख्यिकीय आरेख आँकड़ों का शुद्ध प्रदर्शन कर पाते हैं?
उत्तर:
सांख्यिकीय आरेखों द्वारा आँकड़ों का शुद्ध प्रदर्शन सम्भव नहीं हो पाता क्योंकि आरेख बनाते समय हमें शुद्ध आँकड़ों को पूर्णांकों में बदलना पड़ता है।

प्रश्न 3.
क्या आरेख आँकड़ों का प्रतिस्थापन है?
उत्तर:
आरेख आँकड़ों का प्रतिस्थापन कभी नहीं हो सकता क्योंकि आँकड़ों की समस्त खूबियों को रेखाचित्रों के माध्यम से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
दण्ड आरेख का गुण बताइए।
उत्तर:
दण्ड आरेख को आम आदमी समझ सकता है तथा इनसे तुलनात्मक अध्ययन भी आसान हो जाता है।

प्रश्न 5.
प्रवाह आरेख क्या है?
उत्तर:
परिवहन के साधनों, व्यक्तियों, वस्तुओं, नदियों व नहरों के जल के प्रवाह को दर्शाने वाले रेखाचित्र ‘प्रवाह आरेख’ कहलाते हैं।

प्रश्न 6.
प्रवाह आरेखों की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:

  • प्रवाह आरेखों से महत्त्वपूर्ण मार्गों व केन्द्रों के निर्धारण में सहायता मिलती है।
  • इनसे प्रमुख केन्द्रों के प्रवाह क्षेत्र को निर्धारित करने में भी सहायता मिलती है।

प्रश्न 7.
सममान रेखा विधि क्या होती है?
उत्तर:
यह मानचित्र पर बिन्दु आँकड़ों की सहायता से वितरण दिखाने की वह विधि है जिसमें समान मूल्य वाले बिन्दुओं को एक रेखा द्वारा मिला दिया जाता है।

प्रश्न 8.
अन्तर्वेशन क्या होता है? .
उत्तर:
सममान रेखा मानचित्र बनाते समय दो ज्ञात मूल्य वाले बिन्दुओं के बीच में किसी और मान वाले बिन्दु की स्थिति निर्धारित करना ‘अन्तर्वेशन’ कहलाता है।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आरेखों, आलेखों और मानचित्रों के चित्रांकन का सामान्य नियम है
(a) उपयुक्त विधि का चयन
(b) उपयुक्त मापनी का चयन
(c) अभिकल्पना
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
थिमैटिक मानचित्र का प्रकार है
(a) बिन्दुकित मानचित्र
(b) वर्णमात्री मानचित्र
(c) सममान रेखा मानचित्र
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
आरेख का प्रकार है
(a) रेखाचित्र
(b) दण्ड आरेख
(c) वृत्त रेखाचित्र
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 4.
दण्ड आरेख का प्रमुख प्रकार है.
(a) क्षैतिज दण्ड आरेख
(b) लम्बवत् दण्ड आरेख
(c) संश्लिष्ट दण्ड आरेख
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
वितरण मानचित्र के प्रकार हैं
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच।
उत्तर:
(a) दो।

प्रश्न 6.
परिवहन के साधनों, मनुष्यों, वस्तुओं की गति आदि को दर्शाने वाले आरेख को कहते हैं
(a) वृत्त रेखाचित्र
(b) प्रवाह आरेख
(c) मिश्रित दण्ड आरेख
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) प्रवाह आरेख।

UP Board Solutions for Class 12 Geography

UP Board Class 12 Geography Practical Work Chapter 2 Data Processing

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 2 Data Processing (आंकड़ों का प्रक्रमण)

UP Board Class 12 Geography Chapter 2 Text Book Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नांकित चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
(i) केन्द्रीय प्रवृत्ति का जो माप चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है, वह है
(क) माध्य
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) बहुलक
(घ) माध्यिका।
उत्तर:
(क) माध्य।

(ii) केन्द्रीय प्रवृत्ति का वह माप जो किसी वितरण के उभरे भाग से हमेशा संपाती होगा, वह
(क) माध्यिका
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) माध्य
(घ) बहुलक।
उत्तर:
(ग) माध्य।

(iii) ऋणात्मक सहसम्बन्ध वाले प्रकीर्ण अंकन में अंकित मानों के वितरण की दिशा होगी
(क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
(ख) नीचे बाएँ से ऊपर दाएँ
(ग) बाएँ से दाएँ
(घ) ऊपर दाएँ से नीचे बाएँ।
उत्तर:
(क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) माध्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
माध्य ऐसा मूल्य है जिसके निकट अन्य सभी मूल्य केन्द्रित होते हैं। माध्य से अधिक तथा कम सभी मूल्यों का योग शून्य होता है। अथवा किसी चर के विभिन्न मूल्यों का साधारण अंकगणितीय औसत माध्य कहलाता है। अथवा माध्य वह मान है जो सभी मूल्यों के योग को कुल प्रेक्षणों की संख्या में विभाजित करने पर प्राप्त होता है।

(ii) बहलक के उपयोग के क्या लाभ हैं? .
उत्तर:
बहुलक के प्रयोग से गणना आसान हो जाती है और इसे समझना आसान हो जाता है (इसे निरीक्षण द्वारा ही ज्ञात कर लिया जाता है)।

(iii) अपकिरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरल भाषा में अपकिरण विभिन्न इकाइयों का माध्य मूल्य से विचलन को कहते हैं। अपकिरण माध्य मूल्य से प्रसार, बिखराव, प्रकीर्णन परिक्षेपण आदि हैं। कोनर के अनुसार, “जिस सीमा तक व्यक्तिगत पद-मूल्यों में भिन्नता होती है, उसके माप को अपकिरण कहते हैं।”

(iv) सहसम्बन्ध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
चरों के बीच सम्बन्धों की तीव्रता और उसके स्वभाव की माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहते हैं।

(v) पूर्ण सहसम्बन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
सहसम्बन्ध पूरा 1 (एक) होने पर (चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे ‘पूर्ण सहसम्बन्ध’ कहते हैं।

(vi) सहसम्बन्ध की अधिकतम सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
सहसम्बन्ध की अधिकतम विस्तार (सीमा) 1 (एक) है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए
(i) आरेखों की सहायता से सामान्य तथा विषम वितरणों में माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की सापेक्षिक स्थितियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीन माप माध्य, माध्यिका और बहुलक की तुलना सामान्य वितरण वक्र द्वारा की जा सकती है। सामान्य वक्र घंटाकार वक्र होता है, जिसमें माध्य की उच्चतम आवृत्ति के दोनों तरफ आवृत्तियों का वितरण एकसमान होता है। माध्य के दोनों तरफ किनारों की ओर जाने पर आवृत्तियों की संख्या क्रमशः कम होती जाती है। इस वक्र में.माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है।

परन्तु विषम वक्र होने पर माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मूल्य भिन्न हो जाता है। चित्र में धनात्मक विषमता वाला वक्र दिखाया गया है जिसमें निम्न मूल्यों की आवृत्तियाँ अधिक तथा अधिक मूल्यों की आवृत्तियाँ कम हैं। इस अवस्था में पहले बहुलक, फिर माध्यिका और अन्त में माध्य आता है।
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अन्त में चित्र में ऋणात्मक विषमता वाला वक्र दिखाया गया है जिसमें कम मूल्य की आवृत्तियाँ कम तथा अधिक मूल्य की आवृत्तियाँ अधिक हैं। इस अवस्था में पहले माध्य, फिर माध्यिका और अन्त में बहुलक आता है।

(ii) माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की उपयोगिता पर टिप्पणी कीजिए (संकेत : उनके गुण तथा दोषों से)।
उत्तर:
(I) माध्य

माध्य के गुण
माध्य के निम्नलिखित गुण हैं

  1. सरल-इसकी गणना करना तथा इसे समझना बहुत सरल है।
  2. प्रतिनिधि माध्य-यह श्रेणी की सभी इकाइयों पर आधारित होता है।
  3. निश्चित मूल्य-माध्य का मूल्य सदा निश्चित रहता है।
  4. स्थिर-यह स्थिर होता है।

माध्य के दोष
माध्य के निम्नलिखित दोष हैं

  1. चरम मूल्यों का प्रभाव-माध्य पर चरम मूल्यों का अधिक प्रभाव होता है।
  2. अप्रतिनिधि तथा अवास्तविक-माध्य वह मूल्य हो सकता है जो श्रेणी में उपस्थित न हो।
  3. हास्यास्पद परिणाम-माध्य द्वारा कभी-कभी भ्रमात्मक तथा असंगत निष्कर्ष निकल आते हैं जो हास्यास्पद होते हैं।

(II) माध्यिका
माध्यिका के गुण
माध्यिका के निम्नलिखित गुण हैं

  1. सरल-माध्यिका को समझना और ज्ञात करना सरल है।
  2. चरम मूल्यों का न्यूनतम प्रभाव-माध्यिका ज्ञात करने में श्रेणी के चरम मूल्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  3. आँकड़ों के अभाव में उपयुक्त-आँकड़ों का अभाव होने पर भी इसकी गणना की जा सकती है।
  4. बिन्दुरेखीय प्रदर्शन-माध्यिका मूल्य को ग्राफ की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।

माध्यिका के दोष
माध्यिका के निम्नलिखित दोष हैं.

  1. समंकों का क्रम-समंकों को क्रम में जमाने में अधिक समय लगता है।
  2. चरम मूल्यों की उपेक्षा-इसमें चरम मूल्यों की उपेक्षा की गई है।
  3. प्रतिनिधित्व का अभाव यह केवल संभावित माप होता है, वास्तविक नहीं।
  4. अनियमित आँकड़ों के लिए उपयुक्त नहीं-यह अनियमित आँकड़ों के लिए उपयुक्त विधि नहीं है।

(III) बहुलक
बहुलक के गुण
बहुलक के निम्नलिखित गुण हैं

  1. सरल गणना- इसकी गणना बड़ी सरल है।
  2. चरम मूल्यों का न्यूनतम प्रभाव- यह चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है।
  3. सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व-यह श्रेणी का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व करता है।
  4. व्यावहारिक उपयोगिता- व्यवहार में बहुलक का काफी प्रयोग किया जाता है।

बहुलक के दोष
बहलक के निम्नलिखित दोष हैं

  1. अनिश्चित माध्य-बहुलक सबसे अधिक अनिश्चित व अस्पष्ट माध्य है।
  2. सभी मूल्यों पर आधारित नहीं-यह सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होता है।
  3. चरम मूल्यों की उपेक्षा-यह चरम मूल्यों की उपेक्षा करता है।
  4. वर्ग विस्तार से प्रभावित-यह वर्ग विस्तार से प्रभावित होता है।

(iii) एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से मानक विचलन की गणना की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
मानक विचलन- मानक विचलन किसी श्रेणी के विभिन्न मूल्यों के समान्तर माध्य से निकाले गए विचलनों के वर्गों के माध्य का वर्गमूल होता है। मानक विचलन हमेशा समान्तर माध्य के लिए जाते हैं और विचलन लेते समय शुद्धि की दृष्टि से +’ तथा ‘-‘ चिह्नों का पूरा ध्यान रखा जाता है। उन्हें पुन: धनात्मक बनाने के लिए उनके वर्ग कर लिए जाते हैं और फिर उनका वर्गमूल ज्ञात करके मानक विचलन निकाल लिया जाता है। इसे व्यक्त करने के लिए ग्रीक भाषा का अक्षर (छोटा सिग्मा) प्रयुक्त किया जाता है। अवर्गीकृत आँकड़ों का मानक विचलन ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-~–
मानक विचलन (σ) = [latex]\sqrt{\frac{\Sigma(X-\bar{X})^{2}}{N}}[/latex]
जहाँ Σ(X – [latex]\bar{X}[/latex])2 = विचलनों के वर्गों का योग
N = बारम्बारता,
उपर्युक्त सूत्र कुछ कठिन प्रतीत होगा। यदि X का मान दशमलव अंकों में हो और प्रेक्षणों की संख्या बहुत अधिक हो। उस स्थिति में हम निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करेंगे
[latex]\sqrt{\frac{\Sigma X^{2}}{N}-\left(\frac{\Sigma X}{N}\right)^{2}}[/latex]
उदाहरण- निम्न तालिका में आगरा के 10 वर्षों की वर्षा के आँकड़े दिए गए हैं। मानक विचलन ज्ञात कीजिए।
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(iv) प्रकीर्णन का कौन-सा माप सबसे अधिक अस्थिर है तथा क्यों?
उत्तर:
परिसर अथवा विस्तार किसी श्रृंखला में अधिकतम तथा न्यूनतम मानों के बीच अन्तर को परिसर (Range) कहते हैं। इसकी गणना निम्नलिखित सूत्र के द्वारा की जाती है, अर्थात्
R = L – S
यहाँ R= परिसर/विस्तार
L= अधिकतम मान
S = न्यूनतम मान प्रकीर्णन का परिसर (विस्तार) माप सबसे अधिक अस्थिर है, क्योंकि यह केवल अधिकतम तथा न्यूनतम मानों पर निर्भर करता है और अन्य मानों का प्रयोग नहीं करता जिससे इसका प्रयोग अधिक नहीं होता है। यद्यपि इसे ज्ञात करना अत्यन्त सरल है।
परिसर, परिवर्तनशीलता का अशोधित (crude) माप है और इसे सावधानी से केवल उसी परिस्थिति में प्रयोग करना चाहिए जहाँ आँकड़े लगातार तथा नियमित हों।

(v) सहसम्बन्ध की गहनता पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सहसम्बन्ध की गहनता सहसम्बन्ध की ऋणात्मक अथवा धनात्मक सहसम्बन्ध के अलावा हमारे लिए दो चरों के बीच सहसम्बन्ध .. की गहनता के सम्बन्ध में जानना भी आवश्यक है। साहचर्य की गहनता अधिक 1 से लेकर न्यूनतम -1 तक होती है और इन दो चरम सीमाओं के बीच शून्य (0) होती है।
इस विस्तार का रैखिक वर्णन चित्र में दर्शाया गया है। सहसम्बन्ध पूरा 1 (एक) होने पर (चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे पूर्ण सहसम्बन्ध कहते हैं। इस तरह गहनतम सहसम्बन्ध के दो विपरीत सिरों के ठीक मध्य में शून्य (0) सहसम्बन्ध स्थित होता है, जिस बिन्दु पर चरों के मध्य सहसम्बन्ध का अभाव अथवा सहसम्बन्ध अनुपस्थित होता है।
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(vi) कोटि सहसम्बन्ध की गणना के विभिन्न चरण कौन-से हैं?
उत्तर:
कोटि सहसम्बन्ध (स्पीयरमैन) कोटि संहसम्बन्ध को सन् 1904 में स्पीयरमैन ने प्रतिपादित किया था। इस विधि के अनुसार सहसम्बन्ध की गणना कोटियों के आधार पर की जाती है। सांख्यिकी के संकेताक्षर p (ग्रीक अक्षर जिसका उच्चारण है रो-rho) है। इसकी गणना विधि आसान होने के कारण स्पीयरमैन सहसम्बन्ध का उपयोग अधिक प्रचलित है।
कोटि सहसम्बन्ध की गणना के विभिन्न चरण

  1. X – Y चरों को सारणी के क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय स्तम्भों में दिखाएँ।
  2. दोनों चर अलग कोटि के हैं। X के मान को तीसरे स्तम्भ में दिखाया गया है। इसी प्रकार Y के मान को चौथे स्तम्भ में दिखाया जाता है। सर्वाधिक मान को R1 तथा दूसरे सबसे अधिक मान को R2 दिखाते हैं।
  3. जब XR और YR प्राप्त कर लिए जाते हैं तो दोनों का अन्तर ज्ञात किया जाता है और पाँचवें स्तम्भ में रख दिया जाता है।
  4. इनमें प्रत्येक अन्तर का वर्ग ज्ञात किया जाता है और इनका जोड़ किया जाता है। इसे छठे स्तम्भ में रखते हैं।
  5. इस प्रकार कोटि सहसम्बन्ध का परिकलन निम्न सूत्र से किया जाता है
    ρ = 1 = [latex]\frac{6 \Sigma D^{2}}{N\left(N^{2}-1\right)}[/latex]
    जिसमें
    ρ = कोटि सहसम्बन्ध
    ΣD2 = दोनों कोटियों के अन्तर के वर्ग का योग
    N = X – Y युग्मों की संख्या

क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
भौगोलिक विश्लेषण के लिए प्रयुक्त कोई काल्पनिक उदाहरण लीजिए तथा अवर्गीकृत आँकड़ों की गणना करने की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइए।
उत्तर:
काल्पनिक उदाहरण
निम्नलिखित सारणी में लखनऊ के मासिक तापमान के आँकड़े दिए गए हैं। इससे लखनऊ का औसत तापमान ज्ञात कीजिए
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प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के पूर्ण सहसम्बन्ध दर्शाने के लिए प्रकीर्ण आरेख बनाइए।
उत्तर:
(नोट-छात्र स्वयं करें।).

UP Board Class 12 Geography Chapter 2 Other Important Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सहसम्बन्ध किसे कहते हैं? इसके प्रकारों को समझाइए।
उत्तर:
सहसम्बन्ध का अर्थ प्रकृति में प्रत्येक तथ्य एवं परिघटना किसी अन्य तथ्य या परिघटना से प्रभावित और संबंधित होती है। इसी कारण दो या दो से अधिक श्रेणियों में परस्पर सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् एक श्रेणी में परिवर्तन आने पर दूसरी श्रेणी में भी परिवर्तन आ जाता है।
उदाहरण- किसी स्थान पर तापमान बढ़ने से वहाँ का वायुदाब कम होने लगता है। चरों के बीच सम्बन्धों की तीव्रता और उसके स्वभाव के माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहा जाता है।
“जब सम्बन्ध संख्यात्मक प्रकृति का होता है तो उसे खोजने, मापने तथा सूत्र में व्यक्त करने की विधि को ‘सहसम्बन्ध’ कहते हैं।”

सहसम्बन्ध के प्रकार
सहसम्बन्ध के दो प्रकार निम्नलिखित हैं
1. धनात्मक सहसम्बन्ध- जब दो चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में होता है अर्थात् एक चर के बढ़ने पर दूसरा चर भी बढ़ता है और एक के घटने पर दूसरा भी घटता है तो ऐसे सहसम्बन्ध को ‘धनात्मक सहसम्बन्ध’ कहते हैं।

2. ऋणात्मक सहसम्बन्ध- जब दो चरों में परिवर्तन एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में होता है तो इसे ‘ऋणात्मक सहसम्बन्ध’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से माध्य विचलन ज्ञात कीजिए15, 17, 19, 25, 30, 35, 48.
हल:
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चरण
(1) मदों को X मानिए।
(2) समान्तर माध्य ([latex]\bar{X}[/latex]) ज्ञात कीजिए।
(3) प्रत्येक मद में से [latex]\bar{X}[/latex] घटाइए (X – [latex]\bar{X}[/latex] = d)
(4) प्रत्येक विचलन को जोड़कर Σd ज्ञात करें।
(5) विचलनों के योग को मदों की संख्या से भाग दीजिए।
सूत्र = माध्य विचलन = [latex]\frac{\Sigma d}{n}=\frac{64}{7}[/latex] = 9.14

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ को स्पष्ट कीजिए
(i) आवृत्ति या बारंबारता, (ii) वर्ग, (iii) वर्ग-आवृत्ति, (iv) आवृत्ति-वितरण श्रृंखला, (v) मिलान रेखाएँ।
उत्तर:
(i) आवृत्ति या बारंबारता- किन्हीं आँकड़ों के समूह में एक मद (विशेष अंक) कितनी बार आता है अर्थात् उस संख्या की कितनी बार पुनरावृत्ति होती है, उसे उस मद की आवृत्ति या बारंबारता कहते हैं। उदाहरणत: किसी सारणी में मद 135 की चार बार पुनरावृत्ति हुई है, अत: 135 की बारंबारता 4 है।

(ii) वर्ग- यदि मदों (आँकड़ों) की संख्या बहुत अधिक हो तो विभिन्न मानों को छोटे-छोटे समूहों में बाँट दिया जाता है, जिन्हें वर्ग कहते हैं; जैसे-119-129, 129-139 वर्ग हैं।

(iii) वर्ग-आवृत्ति- किसी भी एक वर्ग में आने वाले मदों की संख्या को ‘वर्ग आवृत्ति’ कहते हैं।

(iv) आवृत्ति-वितरण श्रृंखला- यह आवृत्तियों के बंटन को प्रदर्शित करने वाली श्रृंखला है जिसमें मात्रात्मक सूचनाओं को संक्षिप्त करके व्यवस्थित रूप में रखा जाता है।

(v) मिलान रेखाएँ- आवृत्ति श्रृंखला की रचना करते समय प्रत्येक वर्ग में पड़ने वाली मद को एक छोटी-सी रेखा के द्वारा प्रकट किया जाता है जिसे ‘मिलान रेखा’ कहा जाता है। प्रत्येक चार मिलान रेखाओं के समूह के बाद पाँचवीं मिलान रेखा उन चारों रेखाओं को काटती हुई खींची जाती है, जैसे। फिर इन्हें गिनकर उस वर्ग-विशेष के सामने लिख दिया जाता है।

लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
माध्य क्या है?
उत्तर:
माध्य- इसे औसत भी कहते हैं। आँकड़ों को समझने और उनकी तुलना करने में औसत सर्वाधिक प्रभावशाली है। माध्य या औसत एक ऐसी अकेली संख्या है जो पूरी श्रृंखला के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है। औसत तो अधिकतम और न्यूनतम मूल्यों के बीच का एक मूल्य या मद होती है जो अधिक या कम सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व कर देती है।

प्रश्न 2.
सहसम्बन्ध में स्वतन्त्र व आश्रित चर को समझाइए।
उत्तर:
सहसम्बन्ध में स्वतन्त्र व आश्रित चर-सहसम्बन्ध के कुछ चर दूसरे चरों को प्रभावित करते हैं; इसीलिए उनमें सहसम्बन्ध होता है। जो चर प्रभावित होते हैं उन्हें ‘आश्रित चर’ कहा जाता है। इसके विपरीत जो चर प्रभावित करते हैं उन्हें ‘स्वतन्त्र चर’ कहा जाता है। उदाहरणत: कृषि उत्पादकता सिंचाई पर निर्भर करती है। इसमें सिंचाई ‘स्वतन्त्र चर’ व कृषि ‘आश्रित चर’ मानी जाती है।

प्रश्न 3.
माध्य की उपयोगिता तथा उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माध्य की उपयोगिता तथा उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. माध्य संक्षिप्तीकरण में सहायक है।
  2. यह तुलना में सहायक है।
  3. यह विश्लेषण में सहायक है।
  4. यह अनुपात निर्धारण में सहायक है।
  5. यह समग्र का प्रतिनिधित्व करता है।
  6. यह मार्गदर्शन प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
एक आदर्श माध्य के आवश्यक तत्त्व/विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक आदर्श माध्य के आवश्यक तत्त्व/विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. आदर्श माध्य की स्थिर परिभाषा होती है।
  2. यह सभी मूल्यों पर आधारित है।
  3. यह सरल और बोधगम्य है।
  4. यह शीघ्र गणनीय होता है।
  5. यह बीजगणितीय विवेचन के योग्य है।
  6. यह निदर्शन परिवर्तनों से न्यून प्रभावित होता है।

प्रश्न 5.
बहुलक की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बहुलक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बहुलक में सर्वाधिक आवृत्ति होती है।
  2. इसमें एकाधिक माध्य होता है।
  3. यह आवृत्ति पर निर्भर करती है।
  4. इसकी परिकलन विधि आसान है।
  5. इसमें अधिक व न्यून मूल्य का महत्त्व नहीं होता है।

प्रश्न 6.
माध्यिका की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
माध्यिका की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • माध्यिका का निर्धारण करने के लिए पदों को आरोही (बढ़ते हुए) या अवरोही (घटते हुए) क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
  • माध्यिका समंकमाला के केन्द्र में स्थित पद का मूल्य होता है।
  • माध्यिका सम्पूर्ण समंक श्रेणी को दो बराबर-बराबर भागों में बाँटती है तथा विभाजित करती है।
  • माध्यिका को पद-मूल्यों की क्रमिक वृद्धि पर आधारित किया जाता है, जिसके एक तरफ मूल्य कम तथा दूसरी तरफ अधिक मूल्य होते हैं।

प्रश्न 7.
विस्तार के गुणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विस्तार के गुण निम्नलिखित हैं

  1. विस्तार को सफलतापूर्वक मापा जा सकता है।
  2. विस्तार को समझना भी सरल है।
  3. इसका प्रयोग बड़े उद्योगों एवं कल-कारखानों में उत्पादन की वस्तुओं की गुणवत्ता के नियन्त्रण में विशेष रूप से किया जाता है।

प्रश्न 8.
विस्तार के दोषों को समझाइए।
उत्तर:
विस्तार के दोष निम्नलिखित हैं-

  • विस्तार किसी भी श्रेणी के विचरण का स्थायी माप नहीं होता है।
  • अधिकतम और न्यूनतम के मध्य पद मूल्यों में होने वाले प्रभाव का विस्तार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • विस्तार की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें चरम मूल्यों के बीच स्थित पद-मूल्यों के विचलन का ज्ञान नहीं हो पाता है।
  • आवृत्ति बंटनों के लिए विस्तार हमेशा उपयुक्त नहीं होते हैं।

प्रश्न 9.
मानक विचलन की विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
मानक विचलन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इसके आकलन में मूल्य के विचलन सदैव समान्तर माध्य से ही ज्ञात किए जाते हैं।
  2. इसकी माप में धनात्मक (+) और ऋणात्मक (-) चिह्नों को छोड़ा नहीं जाता है, बल्कि विचलनों का . वर्ग तो लिया जाता है।

प्रश्न 10.
विचरण के गुणांक को समझाइए।
उत्तर:
विचरण का गुणांक-प्रमाप विचलन के गुणांक का प्रयोग विभिन्न श्रेणियों में प्रमाप विचलन का तुलनात्मक अध्ययन एवं विवेचन किया जाता है। इसका मूल्य सामान्यतया एक से कम दशमलव 1 से 9 तक संख्या हो सकती है।
प्रमाप विचलन का प्रतिशत ही विचरण का गुणांक होता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है
[latex]\frac{\mathrm{S} . \mathrm{D}}{x}.[/latex] × 100
अथवा Coefficient of S.D. × 100.

प्रश्न 11.
प्रमाप विचलन के लाभ बताइए।
उत्तर:
प्रमाप विचलन के लाभ निम्नलिखित हैं

  1. प्रमाप विचलन सभी मूल्यों पर आधारित है।
  2. यह स्पष्ट व निश्चित माप होता है।
  3. इसमें परिवर्तन पर न्यूनतम प्रभाव होता है।
  4. यह उच्चस्तरीय सांख्यिकी में प्रयोग किया जाता है।
  5. यह अपकिरण के माप की सर्वश्रेष्ठ विधि है।

प्रश्न 12.
प्रमाप विचलन के दोष/अवगुण/कमियाँ समझाइए।
उत्तर:
प्रमाप विचलन के दोष/अवगुण/कमियाँ निम्नलिखित हैं·
(1) प्रमाप विचलन की गणनाविधि एवं प्रक्रिया अन्य अपकिरण की माप की विधियों से कठिन है। इसे समझना, गणना करना आदि कष्टसाध्य है।
(2) इसके माप में चरम मूल्यों को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।

मौखिक प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप क्या होता है?
उत्तर:
आँकड़ों की समंक श्रेणी में एक ऐसा प्रतिनिधि मूल्य जो सम्पूर्ण श्रेणी की केन्द्रीय प्रवृत्ति को सरल और संक्षिप्त रूप से अभिव्यक्त करे, केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप’ कहलाता है।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय प्रवृत्ति के प्रमुख माप कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
सामान्यतः केन्द्रीय प्रवृत्ति के 3 माप होते हैं

  1. अंकगणितीय माध्य/औसत
  2. माध्यिका तथा
  3. बहुलक।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय प्रवृत्ति का कौन-सा माप स्थितिजन्य है?
उत्तर.

  • माध्यिका एवं
  • बहुलक।

प्रश्न 4.
आँकड़ों में विचरणशीलता का विक्षेपण को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
यह जानने के लिए कि माध्य आँकड़ों का उचित प्रतिनिधित्व कर रहा है अथवा नहीं, विचरणशीलता का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 5.
प्रकीर्णन के मापन की प्रमुख विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रकीर्णन के मापन की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं

  1. विस्तार
  2. चतुर्थक विचलन
  3. माध्य विचलन
  4. मानक विचलन (S.D.) तथा विचरण गुणांक (C.V.)
  5. लारेन्ज वक्र।

प्रश्न 6.
सहसम्बन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
विभिन्न चरों के बीच संख्यात्मक सम्बन्धों की तीव्रता और उसके स्वभाव के माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहते हैं।

प्रश्न 7.
सहसम्बन्ध ज्ञात करने की मात्रिक विधियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. कार्ल पियर्सन का सहसम्बन्ध का गुणांक (r) तथा
  2. स्पीयरमैन कोटिक्रम सहसम्बन्ध (rK)

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
केन्द्रीय प्रवृत्ति का प्रमुख माप है
(a) अंकगणितीय माध्य
(b) माध्यिका
(c) बहुलक .
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय प्रवृत्ति का स्थितिजन्य माप है
(a) माध्यिका
(b) बहुलक
(c) (a) व (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) (a) व (b) दोनों।

प्रश्न 3.
प्रकीर्णन के मापन की विधि नहीं है
(a) विस्तार
(b) बहुलक
(c) माध्य विचलन
(d) लॉरेन्ज वक्र।
उत्तर:
(b) बहुलक।

प्रश्न 4.
‘विस्तार’ का संकेताक्षर है..
(a) R
(b) L
(c) S
(d) P
उत्तर:
(a) R.

प्रश्न 5.
पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध होता है
(a) 1
(b) 0
(c) – 1
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) – 1.

प्रश्न 6.
पूर्ण सहसम्बन्ध होता है
(a) – 1
(b) +1
(c) ±1
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) ±1.

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