UP Board Class 5 नैतिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा

UP Board Class 5 नैतिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा

नैतिक शिक्षा का उद्देश्य

१. छात्रों में सदैव सत्य बोलने की भावना जाग्रत् करना।
२. छात्रों में परोपकार एवं दया की भावना जाग्रत करना।
३. छात्रों में देश-प्रेम की भावना जाग्रत करना।
४. छात्रों में अपने माता-पिता, गुरुजनों का सम्मान करने की भावना जाग्रत् करना।

योग-शिक्षा

प्रश्न १.
योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया ही योग है।

प्रश्न २.
आसन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
आसन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
१. आसन खाली पेट करना चाहिए।
२. आसन करते समय ढीले वस्त्र पहनने चाहिए।
३. आसन करने का कमरा खुला एवं हवादार होना चाहिए।
४. जमीन पर मोटा कपड़ा या कम्बल बिछाकर आसन करना चाहिए।
५. प्रत्येक आसन करने के बाद शरीर को ढीला छोड़ देना चाहिए, जिससे शरीर के प्रत्येक अंग को आराम मिले।

प्रश्न ३.
आसनों से प्राप्त होनेवाले लाभ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आसनों से निम्नलिखित बिन्दुओं में लाभ होता है
१. आसन करने से शरीर स्वस्थ, सुडौल, सुन्दर एवं नीरोग रहता है।
२. आसन शरीर के अंगों को मजबूत बनाता है।
३. आसन करने से शरीर चुस्त रहता है।
४. आसन करने से शरीर में लचीलापन बना रहता है।
५. आसन करने से शरीर का आलस्य दूर रहता है।
६. आसन करने से मन को एकाग्र करने तथा आत्म-चिंतन में सहायता मिलती है।

सुखासन

विधि – जिन छात्रों को पद्मासन कठिन प्रतीत होता है, उनके लिए सुखासन सुविधाजनक है। इस आसन में पालथी मारकर सीधा बैठना चाहिए; किन्तु कमर झुकी न हो, यह ध्यान रहे। बाएँ हाथ की हथेली बाएँ घुटने पर और दाएँ हाथ की हथेली दाएँ घुटने पर आराम से रखनी चाहिए। हाथों की अंगुलियों एवं नेत्रों को सहज रखें।
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लाभ: इस आसन से हाथों और टाँगों की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और पाचनशक्ति बढ़ती है। घुटनों में जमा हुआ रक्तविकार दूर हो जाता है।

वज्रासन
इस आसन में बैठनेवाला व्यक्ति दृढ़ और मजबूत स्थिति प्राप्त करता है। इस स्थिति में सरलता से हिला-डुला नहीं जा सकता, इसीलिए इसे वज्रासन कहा जाता है।

विधि – पैरों के दोनों तलवों को गुदा के दोनों ओर इस प्रकार रखिए कि दोनों जाँघे पैरों पर और कूल्हे तलवों पर आए। टखनों से घुटनों तक का भाग भूमि को छूना चाहिए। पूरे शरीर का वजन घुटनों और टखनों पर रखिए। इस आसन के अभ्यास के दौरान श्वासोच्छवास जारी रखिए। प्रारंभ में संभवतः घुटनों और टखनों में दर्द होगा; किन्तु बाद में अपने आप दूर हो जाएगा। दोनों हाथ सीधे करके घुटनों पर रखिए।
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दोनों घुटनों को एकदम नजदीक रखिए। शरीर, गर्दन और सिर एक सीध में रखकर बिलकुल तनकर बैठिए। यह एक अत्यंत सामान्य आसन है। इस आसन में काफी लंबे समय तक आराम से बैठा जा सकता है।

लाभ:
१. इस आसन से पाचक रस अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। जठर अच्छा कार्य करता है और गैस का रोग मिटता है।
२. यह आसन निरंतर करने से घुटनों, पैरों, पंजों और जाँघों में होनेवाला दर्द दूर होता है।
३. इस आसन का लंबे समय तक अभ्यास करने से रसग्रंथियों अथवा प्लीहा, गले के कॉकल, अस्थिमज्जा आदि स्थानों पर उत्पन्न होनेवाले श्वेतकणों की संख्या में वृद्धि होने से स्वास्थ्य अधिक अच्छा बनता है।
४. नियमित रूप से यह आसन करनेवाला व्यक्ति ज्वर, कब्ज, मन्दाग्नि या अजीर्ण आदि छोटे-बड़े किसी भी रोग से पीड़ित नहीं होता।

उत्कट आसन

विधि – अपने पंजों पर एड़ियों को जितना उठा सकें उठाकर खड़े हो जाइए। इसके पश्चात धीरे-धीरे अपने शरीर को साधते हुए पंजों के सहारे जमीन पर बैठने का प्रयास कीजिए। आपके शरीर का सारा भार पंजों पर ही होना चाहिए। कुल्हे और एड़ियाँ एक-दूसरे से मिले रहने चाहिए। दोनों इस अवस्था में रहें कि जमीन से सामान्तर रेखाएँ बनाएँ। आपके शरीर का शेष अंग सीधे और समकोण रहने चाहिए। दोनों हाथ घुटनों पर और आँखें खुली रखकर गहरी साँस लेनी चाहिए।
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उत्कट आसन के निम्न लाभ होते हैं
१. इसमें मांसपेशियों का गठन अच्छा होता है।
२. पैरों के अँगूठे तथा घुटने स्वस्थ रहते हैं।
३. आसन शरीर शुद्धि में सहायक होते हैं।
४. रीढ़ की हड्डी ठीक बनी रहती है।

कोणासन

इस आसन में दोनों हाथ और दोनों पैरों से शरीर का आधार कोण जैसा बनता है। इसलिए इसे ‘कोणासन’ कहा जाता है। इस आसन में दोनों हाथों के पंजों और पैरों की एड़ियों पर पूरे शरीर का संतुलन बनाए रखना पड़ता है।
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विधि – दोनों पैर साथ में जोड़े रखिए। दोनों हाथों के बीच कंधों के बराबर अंतर रखकर हाथ और पैर लंबे करें। इसके बाद साँस खींचिए और हथेलियों तथा एडियों की सहायता से शरीर को ऊपर की ओर ले जाइए। गरदन को पीछे की ओर मोड़िए। दोनों हाथ सीधे और सीना आसमान की तरफ रखिए। इस स्थिति में आठ-दस सेकंड तक रहिए; फिर धीरे-धीरे मूल स्थिति में आइए। यह आसन चार से छह बार कर सकते हैं।

लाभ:
१. इस आसन से कंधे मजबूत बनते हैं और पेट की तकलीफें दूर होती है।
२. इस आसन से पैरों और रीढ़ को पर्याप्त मात्रा में व्यायाम मिलता है।
३. यह आसन पश्चिमोत्तानासन का उप-आसन माना जाता है। इसलिए इसे पश्चिमोत्तानासन के बाद करने से बहुत लाभ होता है।

आसन करते समय सावधानी

आसन करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए
१. आसन नियमपूर्वक करना चाहिए तथा कभी भी शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
२. आसन करने के पश्चात् कभी भी तुरंत स्नान नहीं करना चाहिए।
३. आसन करते समय आपस में बातचीत नहीं करनी चाहिए।
४. आसन प्रतिदिन निश्चित समय पर करना चाहिए।

दिशाओं का ज्ञान
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निर्देश –

  • बच्चों से पूछे कि सूर्योदय के समय सूर्य की ओर मुंह करके खड़े होने पर उनके
    • मुँह की ओर कौन-सी दिशा होगी?
    • पीठ की ओर कौन-सी दिशा होगी?
    • बाएँ हाथ की ओर कौन-सी दिशा होगी?
    • दाएँ हाथ की ओर कौन-सी दिशा होगी?
  • कक्षा के अंदर भी यह गतिविधि करवाएँ।
  • नक्शे के आधार पर भी दिशाओं की पहचान करवाएँ।

महीनों और त्योहारों के नाम
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निर्देश

  • प्रत्येक माह में प्रकृति में होनेवाले परिवर्तन के बारे में चर्चा करें।
  • भारतीय कैलेंडर के अनुसार आनेवाले तीज-त्योहारों के बारे में बातचीत करें।
  • अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आनेवाले प्रमुख त्योहारों के विषय में बातचीत करें।
  • ऋतुओं के बारे में चर्चा करें कि कौन-सी ऋतु किस अंग्रेजी अथवा भारतीय महीने में आती है।

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UP Board Class 5 Hindi निबंध रचना

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मेरी पाठशाला

मेरे विद्यालय का नाम प्राथमिक विद्यालय है। इसका भवन विशाल और सुन्दर है। इसमें पाँच कमरे हैं। सभी कमरे खुले और हवादार हैं। इनमें रोशनी तथा बिजली के पंखों का बहुत अच्छा प्रबंध है। पाठशाला में प्रधानाध्यापक का कमरा अलग है।

इस पाठशाला में लगभग दो सौ विद्यार्थी हैं। इसमें सभी अध्यापक बहुत परिश्रमी हैं। वे हमें बहुत प्यार से पढ़ाते हैं। स्कूल में एक बहुत बड़ा मैदान है। हम प्रतिदिन प्रार्थना के लिए इसमें इकट्ठे होते हैं। पाठशाला के एक कोने में सुन्दर मन्दिर है। इस मन्दिर के पास एक छोटा-सा बगीचा है। मन्दिर के बाईं ओर पानी के नल लगे हुए हैं। स्कूल का परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा आता है। मुझे अपनी पाठशाला बहुत अच्छी लगती है।

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मेरे अध्यापक

मेरे विद्यालय में छह अध्यापक पढ़ाते हैं। हमारे कक्षाध्यापक एक स्वस्थ युवक हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक है। सादा जीवन, उच्च विचारवाली बात उन पर खरी उतरती है। छात्रों को पढ़ाने का उनका ढंग बहुत ही अच्छा है। . उन्होंने बी०ए०, बी०एड० की परीक्षाएँ पास की हैं। वे हमें सभी विषय पढ़ाते हैं। वे बहुत अच्छे ढंग से पाठ पढ़ाते हैं और कुछ रोचक कहानियाँ भी सुनाते हैं। वे कुशल वक्ता तथा मृदु स्वभाव के हैं। वे गरीब छात्रों की सहायता भी करते हैं। वे सच्चे अर्थों में गुरु हैं। भगवान उन्हें दीर्घायु प्रदान करें तथा स्वस्थ रखें!

गणतंत्र दिवस-26 जनवरी

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश में गणतंत्र शासन शुरू हुआ। हमारे देश में अपना संविधान तथा अपने कानून लागू हुए। इसी की याद में प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस का महोत्सव मनाया जाता है।

गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाने के लिए कई दिन पहले से तैयारी होती है। स्कूलों, कॉलेजों तथा दफ्तरों में इस दिन उत्सव मनाने के लिए काम की छुट्टी होती है।

सुबह ही प्रभात फेरी होती है। प्रभात फेरी गाकर तथा नारे बोलकर लोगों को जगाया जाता है। इसके बाद सभी सरकारी दफ्तरों तथा अन्य स्थानों पर राष्ट्रध्वज फहराए जाते हैं। सभाएँ होती हैं, जिनमें भाषण, देशप्रेम की कविताएँ, गाने आदि होते हैं। स्कूलों में बालकों के खेल-कूद होते हैं। जीतनेवाले छात्रों को पुरस्कार दिए जाते हैं।

‘गणतंत्र दिवस’ हमारा राष्ट्रीय त्योहार है। यह उत्सव हम उत्साह तथा आनंद से मनाते हैं तथा देश की तन-मन-धन से सेवा करने की प्रतिज्ञा करते हैं।

वसन्त ऋतु

भारत में चार मुख्य ऋतुएँ हैं। इनमें वसन्त ऋतु सबसे सुन्दर है। यह ऋतुओं का राजा है। इस ऋतु में न सर्दी होती है और न ही गर्मी पड़ती है। इस ऋतु का प्रारम्भ माता महासरस्वती की पूजा से होता है। इस दिन भगवती/सरस्वती की प्रतिमा के सामने पुस्तकों, पुस्तिकाओं, लेखनियों, दवातों आदि की भी पूजा होती है; अतः हमें इन सबका आदर करना चाहिए। बागों में सुन्दर फूल खिलते हैं; वृक्षों में नई कोंपले उगती हैं; खेतों में पीले फूलों की बहार छा जाती है; पक्षी खुशी से गीत गाते हैं; तितलियाँ नाचती हैं और भँवरे गुनगुनाते हैं।

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भारत में वसन्त ऋतु के स्वागत में त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को वसन्त कहते हैं। बड़े-बड़े नगरों में मेले लगते हैं। इन मेलों में खेल होते हैं। जीतनेवालों को इनाम मिलते हैं। बच्चे और बड़े सुन्दर वस्त्र पहनते हैं। कई लोग पीले रंग की पगड़ी बाँधते हैं। बच्चे पतंग उड़ाते हैं। आकाश पतंगों से भरा दिखाई देता है। सच तो यह है कि वसन्त ऋतु खुशियाँ ही खुशियाँ लाती है।

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UP Board Class 5 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र – लेखन)

UP Board Class 5 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र – लेखन)

पत्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
१. व्यक्तिगत पत्र – अपने मित्रों अथवा संबंधियों को लिखे जाने वाले पत्र ‘व्यक्तिगत पत्र’ कहलाते हैं।
२. व्यापारिक पत्र – व्यापार से संबंधित कार्यों के लिए लिखे जाने वाले पत्र ‘व्यापारिक पत्र’ कहलाते हैं।
३. सरकारी पत्र – जो पत्र पदाधिकारियों को लिखे जाते हैं, उन्हें ‘सरकारी पत्र’ कहते हैं।

रुपये मँगाने के लिए पिता जी को पत्र

बुलन्दशहर
दिनांक : 23 जून, 20xx

आदरणीय पिता जी,
सादर चरण स्पर्श!

आपको जानकर अत्यंत प्रसन्नता होगी कि गीता और मैं दोनों ही अर्धवार्षिक परीक्षा में प्रथम आए हैं। आपकी आज्ञा अनुसार हम दोनों ही मन लगाकर पढ़ते हैं और कार्य में माता जी की सहायता भी करते हैं। आप शीघ्र ही पाँच सौ (500) रुपये भेजने की कृपा करें, ताकि हम दोनों अपने लिए नई पुस्तकें खरीद सकें। शेष कुशल है।

आपका आज्ञाकारी पुत्र
गौरव

UP Board Class 5 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र - लेखन)

फीस माफी के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाध्यापक महोदय,
प्राथमिक विद्यालय, अलीगढ़।
श्रीमान जी,

सादर प्रार्थना है कि मैं कक्षा-5 में पढ़ रहा हूँ। मेरे पिता जी बहुत निर्धन व्यक्ति हैं तथा हमारे परिवार में पाँच सदस्य हैं। उन सबका बोझ पिता जी पर ही है। आर्थिक परिस्थितिवश वे मेरी पढ़ाई का खर्च नहीं दे सकते। इससे पूर्व मैं हर परीक्षा में प्रथम रहा हूँ; इसीलिए आपसे प्रार्थना है कि मेरी फीस माफ करने का कष्ट करें! आपकी अति कृपा होगी!

आपका शिष्य
विशाल कक्षा-5
दिनांकः 4 जुलाई, 20xx

प्रधानाध्यापिका को बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
प्रधानाध्यापिका महोदया,
प्राथमिक विद्यालय,
लखनऊ
आदरणीया,

निवेदन है कि मुझे कल रात से तेज बुखार है; अतः मैं विद्यालय में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ। कृपया, आप मुझे आज से दो दिन का अवकाश प्रदान करें! आपकी अति कृपा होगी!

UP Board Class 5 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र - लेखन)

आपकी शिष्या
कु० दीपा
कक्षा-5
दिनांकः 15 जुलाई, 20xx

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UP Board Class 5 Hindi व्याकरण

UP Board Class 5 Hindi व्याकरण

प्रश्न:
व्याकरण क्या है?
उत्तर:
भाषा की शुद्धता-अशुद्धता का ज्ञान कराने वाला शास्त्र व्याकरण कहलाता है।

जैसे –

  • श्याम ने पढ़ा। (शुद्ध)
  • श्याम पढ़ा। (अशुद्ध)

प्रश्न:
भाषा क्या है?
उत्तर:
भाषा – भावों या विचारों की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए अपनाया गया माध्यम ही भाषा है;
जैसे – संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, मैथिली, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम आदि।

भाषा को उसके प्रयोग के आधार पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(१) लिखित भाषा – जो भाषा लिखने और पढ़ने में प्रयोग की जाती है, उसे ‘लिखित भाषा’ कहते हैं।
(२) कथित भाषा अथवा मौखिक – जो भाषा आपस में बातचीत करते समय प्रयोग की जाती है, उसे ‘कथित भाषा’ अथवा ‘मौखिक’ भाषा कहते हैं।
(३) सांकेतिक भाषा – यदि संकेतों से विचार प्रकट किए जाएँ, तो उसे ‘सांकेतिक भाषा’ कहते हैं।

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प्रश्न:
लिपि किसे कहते हैं?
उत्तर:
लिपि – वर्ण का लिखित चिह्न ही लिपि है।

प्रश्न:
वर्ण या अक्षर किसे कहते हैं? उसके भेद बताओ।
उत्तर:
वर्ण (अक्षर) – वर्ण (अक्षर) भाषा की वह छोटी-से-छोटी मूल ध्वनि है, जिसके टुकड़े न हो सकें, जैसे – अ, इ, ए, क्, ख् आदि।

वर्ण या अक्षर के भेद –
१. स्वर
२. व्यंजन।

प्रश्न:
स्वर किसे कहते हैं? उसके भेद बताओ।
उत्तर:
स्वर – स्वर वे अक्षर या वर्ण हैं, जिनके बोलने में दूसरे अक्षरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती। ये ग्यारह होते हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ और औ।

स्वर के तीन भेद होते हैं –
(क) ह्रस्व स्वर – जैसे – अ, इ, उ, ऋ आदि।
(ख) दीर्घ स्वर – जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि।
(ग) प्लुत स्वर – जैसे – ओ३म आदि।

विशेष –
(क) हिन्दी में अब प्लुत का लिखित प्रयोग नहीं होता।
(ख) ‘अं’ और ‘अ’ को अयोगवाह कहते हैं।

प्रश्न:
व्यंजन किसे कहते हैं? इसके प्रकार भी बताओ।
उत्तर:
व्यंजन – वे वर्ण या अक्षर हैं, जिनके बोलने में स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है; जैसेक में अ जोड़ने से ‘क’ तथा ख में अ जोड़ने से ‘ख’ बन जाता है। स्वर के बिना हम व्यंजन वर्णों को लिख तो सकते हैं;

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जैसे- क्, ख् आदि लेकिन उच्चारण नहीं कर सकते।

व्यंजन के प्रकार – हिन्दी वर्णमाला में तैंतीस (३३) व्यंजन होते हैं।
१. क वर्ग – क ख ग घ ङ
२. च वर्ग – च छ ज झ ञ
३. ट वर्ग – ट ठ ड ढ ण
४. त वर्ग – त थ द ध न
५. प वर्ग – प फ ब भ म
६. अन्तःस्थ – य र ल व
७. ऊष्म – श ष स ह
८. संयुक्त – क्ष = ‘क् + ष् + अ, त्र = त् + र् + अ, ज्ञ = ज् + ञ् + अ।

अनुस्वार – पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म) का बिंदी रूप ही अनुस्वार है। इसे ‘अं’ लिखकर दर्शाते हैं; जैसे – मंगल, दंगल, कंगन, नंदन, चंदन आदि।
विसर्ग – यह केवल संस्कृत के शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है। इसे ‘अ’ लिखकर दर्शाते हैं; जैसेप्रातः, अतः, स्वतः, यतः, कुतः आदि।
मात्रा – व्यंजन को पूरा करने में स्वर का जो लिखित रूप सहायक होता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्राएँ निम्न होती हैं
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विशेष – अ सभी व्यंजनों में छिपा होता है; अतः इसकी मात्रा नहीं होती है।

प्रमुख विराम चिह्न – हिन्दी में लिखते समय निम्नलिखित चिह्न प्रमुख रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं-
१. अल्पविराम (,)
२. अर्धविराम (;)
३. पूर्णविराम (।)
४. प्रश्नवाचक चिह्न (?)
५. विस्मयादिबोधक चिह्न (!)
६. बराबर का चिहन (=)
७. विवरण (विसर्ग चिह्न) (:)
८. संयोजक चिह्न (-)
९. निर्देशक चिह्न (-)
१०. अवतरण चिह्न (“…”) (‘…’)

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शब्द

शब्द की परिभाषा – वर्णों का सार्थक समूह ही शब्द है; जैसे – रघुवर, सीता, पुस्तक, लेखक आदि।

भाव के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं
(१) सार्थक शब्द – जिस शब्द का कुछ निश्चित अर्थ निकले, उसे ‘सार्थक शब्द’ कहते हैं; जैसेपुस्तक, आम, लड़का आदि।
(२) निरर्थक शब्द – जिस शब्द का कुछ भी अर्थ न निकले, उसे ‘निरर्थक शब्द’ कहते हैं, जैसेकातपु, मआ, काड़ल, मलक, कखले, तणिग आदि।

व्याकरण के अनुसार शब्दों के पाँच भेद होते हैं –
१. संज्ञा
२. सर्वनाम
३. क्रिया
४. विशेषण
५. अव्यय

संज्ञा

१. संज्ञा – किसी वस्तु, स्थान, प्राणी या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं; जैसे- पुस्तक, आगरा, राम, श्याम, अंकित, प्रियंका आदि।

संज्ञा के पाँच भेद होते हैं –

  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – राम, सीता, गंगा, यमुना, भारत, उत्तर प्रदेश, मोहन, गीता आदि।
  2. जातिवाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से एक प्रकार की सब वस्तुओं का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – लड़की, गाय, नदी, गेंद, माता-पिता, भाई-बहन आदि।
  3. समूहवाचक संज्ञा – जिस शब्द से प्राणियों या वस्तुओं के एकत्र या साथ होने का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – सभा, कक्षा, भीड़, दल, झंड, दर्जन, समिति, सेना आदि।।
  4. द्रव्यवाचक संज्ञा – मापे जाने वाले या तौले जाने वाले पदार्थ का ज्ञान कराने वाले शब्द द्रव्यवाचक संज्ञा कहलाते हैं; जैसे – चावल, दाल, आटा, तेल, घी, दूध, सब्जी, सीमेंट, लोहा, सोना, चाँदी, लकड़ी, कपड़ा, रस्सी आदि।
  5. भाववाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से गुण, दशा, व्यापार आदि का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – सुन्दरता, मोटापा, कालापन, मिठास, कड़वाहट, अधिकता, कठोरता आदि।

सर्वनाम

२. सर्वनाम – जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होता है, उसे सर्वनाम कहते हैं; जैसे- मैं, हम, वह, तुम आदि।
उदाहरण – गीता लखनऊ में रहती है। वह स्कूल जाती है। यहाँ ‘वह’ सर्वनाम है। मैं, हम, वह, तुम, आप, कौन, कोई आदि भी सर्वनाम हैं।

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सर्वनाम के छह भेद होते हैं –

  1. पुरुषवाचक सर्वनाम – जैसे – मैं, हम, तुम, वह आदि। इसके तीन भेद होते हैं –
    (क) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम – जैसे – मैं. हम।
    (ख) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम – जैसे – तू, तुम।
    (ग) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम – जैसे – वह, वे, उसे, उनका, यह, ये, इसे, इनका आदि।
  2. निश्चयवाचक सर्वनाम – जैसे – यह, ये, वह, वे आदि।
  3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम – जैसे – कोई, कुछ आदि।
  4. संबंधवाचक सर्वनाम – जैसे – जो-सो, जैसा-वैसा आदि।
  5. प्रश्नवाचक सर्वनाम – जैसे – क्या, कौन आदि।
  6. निजवाचक सर्वनाम – जैसे – स्वयं, खुद, अपने-आप, आप ही आप, स्वतः आदि।

विशेषण

३. विशेषण – जो शब्द किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताए, उसे विशेषण कहते हैं, जैसे – काला, अच्छा, मोटा, सुन्दर आदि।

  • गुणवाचक विशेषण – जैसे – अच्छा, बुरा, काला, मोटा, पीला आदि।
  • परिमाणवाचक विशेषण – जैसे – किलोग्राम, मीटर, लीटर आदि।
  • संख्यावाचक विशेषण – जैसे – एक, दो, दस, सौ, हजार आदि।

क्रिया

४. क्रिया – जिन शब्दों में किसी काम का करना या होना पाया जाए, उन्हें क्रिया कहते हैं, जैसेदौड़ना, पढ़ना, खेलना आदि।
जैसे – सीता खेलती है।

राम पढ़ता है। ऊपर के वाक्यों मे ‘खेलना’ और ‘पढ़ना’ क्रियाएँ हैं। इसके अतिरिक्त दौड़ना, नाचना, चलना, जाना, गाना, हँसना इत्यादि सब क्रियाएँ हैं।

  • सकर्मक क्रिया
  • अकर्मक क्रिया

अव्यय

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५. अव्यय – जिन शब्दों के रूप सदैव एक-से रहते हैं, उन्हें ‘अव्यय’ या अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे – धीरे-धीरे, जल्दी-जल्दी, इधर-उधर आदि।

क्रिया-विशेषण – क्रिया-विशेषण उन शब्दों को कहते हैं, जो क्रियाओं की विशेषताएँ प्रकट करते हैं; जैसे – साइकिल तेज दौड़ती है। गौरव अच्छा लिखता है। यहाँ ‘तेज’ और ‘अच्छा’ शब्द क्रिया-विशेषण हैं।

लिंग

लिंग की परिभाषा – जिससे किसी वस्तु या प्राणी की जाति (पुरुष या स्त्री) का बोध हो, उसे ‘लिंग’ कहते हैं; जैसे – राम, सीता, कुर्सी, लड़का आदि।

लिंग के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –

  • पुल्लिंग – जिस शब्द से पुरुष जाति का बोध हो, उसे ‘पुल्लिंग’ कहते हैं; जैसे – राम, आम, घोड़ा आदि।
  • स्त्रीलिंग – जिस शब्द से स्त्री जाति का बोध हो, उसे ‘स्त्रीलिंग’ कहते हैं; जैसे – सीता, लीची, घोड़ी आदि।

वचन

वचन की परिभाषा – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु या प्राणी की संख्या का बोध हो, उसे ‘वचन’ कहते हैं; जैसे – गाय-गाएँ, पुस्तक-पुस्तकें आदि।
वचन के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –

  • एकवचन – जिससे केवल एक वस्तु या प्राणी का बोध हो, उसे ‘एकवचन’ कहते हैं; जैसे – गाय, पुस्तक, लड़का आदि।
  • बहुवचन – जिससे एक से अधिक वस्तुओं अथवा प्राणियों का बोध हो, उसे ‘बहुवचन’ कहते हैं; जैसे – गाएँ, पुस्तकें, लड़के आदि।

काल

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काल की परिभाषा – क्रिया में लगनेवाला समय ही काल है। काल के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं –

  • वर्तमान काल – जिस क्रिया से कार्य का चल रहे समय में होना पाया जाए, उसे ‘वर्तमान काल’ कहते हैं; जैसे – गीता खाना खा रही है।
  • भूतकाल – जिस क्रिया से कार्य का बीते हुए समय में होना पाया जाए, उसे ‘भूतकाल’ कहते हैं; जैसे – गीता ने खाना खाया था।
  • भविष्यत्काल – जिस क्रिया से कार्य का आने वाले समय में होना पाया जाए, उसे ‘भविष्यत् काल’ कहते हैं; जैसे – गीता खाना खाएगी।

कारक

कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों, विशेषकर क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे ‘कारक’ कहते हैं। हिन्दी में कारक आठ होते हैं-
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विभक्ति – कारक के चिह्न ही ‘विभक्ति’ कहलाते हैं।

विलोम शब्द (विपरीतार्थक शब्द)

विलोम शब्द – जो शब्द का उलटा (विपरीत) अर्थ बताए, उसे विपरीतार्थक शब्द कहते हैं; जैसे – मीठा का विलोम शब्द खट्टा है।
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तत्सम और तदभव शब्द

तत्सम शब्द – शब्दों के शुद्ध संस्कृत रूप को, ‘तत्सम शब्द’ कहते हैं; जैसे – कर्ण, कृषक आदि।
तद्भव शब्द – संस्कृत शब्दों के बिगड़े हुए रूप को, ‘तद्भव शब्द’ कहते हैं; जैसे – अग्नि का आग।
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पर्यायवाची शब्द

ऐसे शब्द जिनके अर्थ समान होते हैं, वे ‘पर्यायवाची शब्द’ या ‘समानार्थी शब्द’ कहलाते हैं; जैसे –
अग्नि – आग, पावक, अनल, हुताशन, दहन, कृशानु।
आकाश – गगन, अम्बर, नभ, अन्तरिक्ष, व्योम, शून्य।
अमृत – पीयूष, सुधा, सोम, अमी, अमिय, मधु।
कमल – सरोज, जलज, पंकज, अम्बुज, नीरज, अरविन्द।
चन्द्रमा – शशि, राकेश, मयंक, सुधाकर, निशाकर, इन्दु।
राजा भूप, नृप, महीप, नरेन्द्र, भूपति, नरेश।
गंगा – देवनदी, भागीरथी, सुरसरि, मन्दाकिनी, हरिप्रिया, शिवसुता।
भगवान – ईश, ईश्वर, परमात्मा, जगदीश, प्रभु, जगन्नाथ।
सूर्य – दिनकर, रवि, भास्कर, भानु, अर्क, सविता, आदित्य।
पर्वत – पहाड़, महीधर, नग, गिरि, अचल, शैल, भूधर।
वन – कानन, जंगल, विपिन, अरण्य, अटवी।
बिजली – चपला, चंचला, दामिनी, तड़ित, क्षणप्रभा, विद्युत्।
पुत्री – तनया, सुता, बेटी, लड़की, आत्मजा, दुहिता, तनुजा।

मुहावरे व उनका अर्थ, वाक्य प्रयोग सहित

१. तीर की भाँति = बहुत तेजी से।
महेश अपने भाई को जलने से बचाने के लिए तीर की भाँति जलते हुए घर में घुसा।

२. डेरा डालना = एक स्थान पर जम जाना।
रामचन्द्र जी की सेना ने समुद्र पार करके लंका में डेरा डाल दिया।

३. खलबली मचाना = बहुत घबराहट पैदा करना।
वीर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश करके कौरवों की सेना में खलबली मचा दी।

४. जान पर खेलना = मृत्यु की चिन्ता न करते हुए संकट का सामना करना।
युद्ध में वीर सिपाही अपनी जान पर खेलकर अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा करते हैं।

५. बेहाल करना = व्याकुल करना।
कुंभकर्ण ने रीछों और बन्दरों को मार-मारकर बेहाल कर दिया।

६. ढेर कर देना = मार डालना।
रामू ने लाठी के एक ही वार से चोर को ढेर कर दिया।

७. आग पैदा करना = जोश उत्पन्न करना।
सुभाषचन्द्र बोस ने अपने भाषण से भारतीयों के हृदयों में आग पैदा कर दी।

UP Board Class 5 Hindi व्याकरण

८. मन रमना = मन लगना।
मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मेरा मन रम गया।

६. छक्के छुड़ाना = हौसला पस्त कर देना।
महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी के मैदान में मुगलों के छक्के छुड़ा दिए।

१०. खाक कर देना = नष्ट करना।
देखते-ही-देखते आग ने पटाखे की दुकान को खाक कर दिया।

लोकोक्तियाँ

अंत भले का भला – भलाई करने से खुद का भी भला होता है।
अंत बुरे का अंत बुरा – बुराई का फल बुरा होता है।
अक्ल बड़ी या भैंस – बुद्धि शारीरिक बल से श्रेष्ठ होती है।
आ बैल मुझे मार – जान-बूझकर मुसीबत मोल लेना।
आगे कुआँ पीछे खाई – दोनों ओर मुसीबत।
एक और एक ग्यारह – एकता में बल होता है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती – भूल दोनों ओर से होती है।

UP Board Solutions for Class 5 Hindi

UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 11 एकिक नियम

UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 11 एकिक नियम

अभ्यास

प्रश्न 1.
12 पुस्तकों का मूल्य रु. 144 है। एक पुस्तक का मूल्य कितना होगा?
हल:
∵ 12 पुस्तकों का मूल्य = 144 रु०
∴ 1 पुस्तक का मूल्य = [latex]\frac{144}{12}[/latex] = 12

प्रश्न 2.
5 गेंदों का मूल्य रु. 45 है। ऐसी ही 8 गेंदों का मूल्य ज्ञात करो।
हल:
∵ 5 गेंदों का मूल्य = 45 रु०
∴ 1 गेंद का मूल्य = [latex]\frac{45}{5}[/latex] रु०
∴ 8 गेंदों का मूल्य = [latex]\frac{45 \times 8}{5}[/latex] = 9 × 8 = 72 रु०

प्रश्न 3.
एक रेलगाड़ी 300 किमी की दूरी 6 घंटे में तय करती है। इसी चाल से वह रेलगाड़ी 500 किमी की दूरी कितने समय में तय करेगी।
हल:
∵ 300 किमी दूरी तय करने में लगा समय = 6 घंटे
∴ 1 किमी दूरी तय करने में लगा समय = [latex]\frac{6}{300}[/latex] घंटे
∴ 500 किमी दूरी तय करने में लगा समय = [latex]\frac{6}{300}[/latex] × 500 = 10 घंटे

प्रश्न 4.
एक परिवार में 15 किग्रा गेहूँ 20 दिनों के लिए पर्याप्त होता है। 30 किग्रा गेहूँ कितने दिनों के लिए पर्याप्त होगा?
हल:
∵ 15 किग्रा गेहूँ पर्याप्त है= 20 दिन के लिए
∴ 1 किग्रा गेहूँ पर्याप्त होगा = [latex]\frac{20}{15}[/latex] दिन के लिए
∴ 30 किग्रा गेहूँ पर्याप्त होगा = [latex]\frac{20}{15}[/latex] × 30 = 40 दिन के लिए

प्रश्न 5.
एक ट्यूबवेल से 3 हेक्टेयर खेत 36 घंटे में सींचा जाता है। उसी ट्यूबवेल से 12 हेक्टेयर खेत कितने घंटों में सींचा जाएगा?
हल:
∵ 3 हेक्टेयर सींचने में लगा समय = 36 घंटे
∴ 1 हेक्टेयर सींचने में लगा समय = [latex]\frac{36}{3}[/latex] घंटे
∴ 12 हेक्टेयर सींचने में लगा समय = [latex]\frac{36 \times 12}{3}[/latex] = 36 × 4 = 144 घंटे

प्रश्न 6.
यदि 2 रजिस्टर्ड पत्र भेजने में 38.50 रुपए लगते हैं तो ऐसे ही १ रजिस्टर्ड पत्र भेजने में कितने रुपए लगेंगे?
हल :
∵ 2 रजिस्टर्ड पत्र भेजने में लगा खर्च = 38.50 रुपए
∴ 9 रजिस्टर्ड पत्र भेजने में लगा खर्च = [latex]\frac{38.50}{2}[/latex] रुपए
∴ 9 रजिस्टर्ड पत्र भेजने में लगा खर्च = [latex]\frac{38.50 \times 9}{2}[/latex] = 19.25 × 9 = 173.25 रु.

प्रश्न 7.
राशन की दुकान पर 2 किग्रा चावल रु. 34 में मिलता है। 5 किग्रा. चावल कितने रुपए में मिलेगा? सही उत्तर के क्रम पर सही का चिह्न (✓) लगाओ (लगाकर )।
(क) रु0 68
(ख) रु0 85 (✓)
(ग) रु0 170
(घ) इनमें से कोई उत्तर सही नहीं है।

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