UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 11 अशोक महान (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 11 अशोक महान (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

अशोक महान का नाम भारत के इतिहास में दयालुता और करुणा के लिए विशेष प्रसिद्ध है। अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त कर उसे अपने अधीन कर लिया। इस युद्ध में लगभग एक लाख लोग मारे गए। अशोक ने मारे गए सिपाहियों, रोती-बिलखती स्त्रियों तथा बच्चों को देखा। इन सबको देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठा; तब उसने निर्णय किया कि अब मैं कभी तलवार नहीं उठाऊँगा।

अशोक प्रजा को अपनी सन्तान के समान समझता था। वह दीन-दुखियों,.वृद्धों और अपाहिजों को ध्यान रखता था। सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता था। उसने राज्य के अधिकारियों को आदेश दे रखा था कि (UPBoardSolutions.com) प्रजा की सुरक्षा का सदैव ध्यान रखें।

अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था, किंतु सभी धर्मों का आदर करता था। वह दयालुता का व्यवहार करता था। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। धर्म प्रचार के लिए उसने साम्राज्य के सुदूर भागों में धर्म प्रचारकों को भेजा। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी किया। उसने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को भी धर्म के प्रचार के लिए भेजा। अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों तथा उपदेशों को शिलाओं, स्तम्भों और गुफाओं में अंकित कराया। उसने गौतम बुद्ध के जन्म स्थान लुंबिनी वने में भी एक लाट लगवाई। हमारे राष्ट्रध्वज के मध्य का चक्र सारनाथ के अशोक स्तम्भ से ही लिया गया है। भारतीय शासकों में अशोक का स्थान बहुत ऊँचा है।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद युद्ध न करने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर :
कलिंग के युद्ध में अशोक ने मारे गए सिपाहियों, रोती-बिलखती स्त्रियों और बच्चों को देखा। इससे उसका हृदय द्रवित हो उठा और उसने भविष्य में युद्ध न करने का निश्चय किया।

प्रश्न 2.
अशोक को जीत क्यों महँगी पड़ी?
उत्तर :
अशोक कलिंग की जनता पर अपनी प्रशासन क्षमता का प्रभाव छोड़ना चाहता था, लेकिन विजय के पश्चात् उसे केवल शवों के ढेर और पीड़ित अबलाओं, मासूमों, घायलों आदि का आर्तनाद मिला। इस आधार पर उसे जीत महँगी पड़ी।

प्रश्न 3.
अशोक के संदेशों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

  1. अशोक ने मनुष्यों को सदाचार की शिक्षा दी। उसने प्रजा को प्रेम, मृदुलता एवं दयालुता के उपदेश दिए।
  2. पशुओं पर दया करो। पशु की हत्या कभी मत करो।
  3. अशोक ने अहिंसा एवं सत्य पर बल दिया। (UPBoardSolutions.com)
  4. मनुष्यों को बड़ों का आदर तथा छोटों पर दया करनी चाहिए और सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों और उपदेशों को जनमानस तक कैसे पहुँचाया?
उत्तर :
अशोक ने शिलालेखों, स्तम्भलेखों, स्तूपों, लाटों, प्रचारकों, प्रतिनिधियों आदि के द्वारा बौद्ध धर्म के सिद्धांत और उपदेश जनमानस तक पहुँचाए।

प्रश्न 5.
अशोक को युग पुरुष कहना क्यों उचित है?
उत्तर :
प्राचीन भारत के शासकों में अशोक का स्थान बहुत ऊँचा है। अशोक के कार्य अपनी पीढ़ी और युग से आगे थे। इसलिए अशोक को युग पुरुष कहना उचित है।

प्रश्न 6.
सही तथ्यों के सामने सही (✓) तथा गलत के सामने गलत (✗) को निशाने लगाएँ (निशान लगाकर) –

(क) अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद कभी युद्ध न करने का निर्णय लिया। (✓)
(ख) अशोक बौद्ध थे, वे सभी धर्मों का आदर नहीं करते थे। (✗)
(ग) अशोक ने सिंहल द्वीप, चीन, जापान आदि देशों में प्रचारक भेजे थे। (✓)
(घ) हमारे राष्ट्र ध्वज के मध्य का चक्र सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। (✓)

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 34 डॉ० विश्वेश्वरैया (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

डॉ० विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर प्रदेश के मुद्देनल्ली गाँव में 15 सितम्बर, सन् 1861 में हुआ था। इनका पूरा नाम मोक्षगुडम् विश्वेश्वरैया था। ये कुशल इंजीनियर, विख्यात स्थापत्यविद् नए नए उद्योगों और धन्धों के जन्मदाता, शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं देशभक्त थे।

1893 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने विश्वेश्वरैया की परीक्षा ली। मुंबई सरकार की सक्कर जल योजना जिसे वह यथाशीघ्र पूरा करना चाहती थी, परन्तु उस काम की देखरेख कर रहे अँग्रेज इंजीनियर की मृत्यु हो गई। तब विश्वेश्वरैया ने बड़ी योग्यता एवं कर्मठता से इस कार्य को समय पर पूरा कर दिया। इन्होंने मूसा नदी पर बाँध बाँधकर जलाशयों का निर्माण कराया, जिससे जन-धन का विनाश करने वाली मूसा नदी हैदराबाद के लिए वरदान सिद्ध हुई। इन्होंने तत्कालीन मैसूर राज्य में बैंक, (UPBoardSolutions.com) मैसूर चैम्बर ऑफ कामर्स, चन्दन तेल कारखाना, सरकारी साबुन कारखाना आदि उद्योगों की स्थापना की। भद्रावती के प्रसिद्ध लोहा और इस्पात कारखाने की योजना डॉ० विश्वेश्वरैया ने ही तैयार की थी। ये जीवन भर शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रति प्रयत्नशील रहे। इन्होंने ही मैसूर विश्वविद्यालय की नींव डाली। ये बाह्य आडम्बरों का विरोध करते थे। भारतीय संस्कृति और आचार-विचार में इनकी महान आस्था थी।

जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो देश ने इस महान रत्न का हार्दिक सम्मान किया। अँग्रेजों ने इन्हें ‘सर’ की उपाधि दी थी। भारत सरकार ने इन्हें सर्वोच्च ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया। (UPBoardSolutions.com)

सन् 1962 में डॉ० विश्वेश्वरैया का स्वर्गवास हो गया। आज भी इनके महान कार्यों के कारण भारतवासी इन्हें याद करते हैं।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
डॉ० विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत का भगीरथ क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
डॉ० विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत का भगीरथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि महाराज भगीरथ की भाँति ही डॉ० विश्वेश्वरैया ने अपनी योग्यता और कर्मठता से जन-धन का विनाश करनेवाली मूसा (UPBoardSolutions.com) नदी को हैदराबाद के लिए वरदान बना दिया। उन्होंने करोड़ों एकड़ बंजर धरती को उर्वर बनाया और तेज बहनेवाली अनेक नदियों पर बाँध बँधवाए।

प्रश्न 2.
कृष्णराज सागर कहाँ बना हुआ है?
उत्तर :
मैसूर राज्य में कावेरी नदी पर ‘कृष्णराज’ सागर बना हुआ है।

प्रश्न 3.
हैदराबाद के लिए मूसा नदी को डॉ० विश्वेश्वरैया ने किस प्रकार वरदान बना दिया?
उत्तर :
विश्वेश्वरैया ने मूसा नदी पर बाँध बाँधकर जलाशयों का निर्माण कराया और जन-धन का विनाश करनेवाली मूसा नदी को हैदराबाद के लिए वरदान बना दिया।

प्रश्न 4.
डॉ० विश्वेश्वरैया के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
डॉ० विश्वेश्वरैया के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदैव परिश्रम एवं लगन से अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। बाधाओं से नहीं घबराना चाहिए। परिश्रम, कर्तव्य-निष्ठा, धैर्य, बल एवं (UPBoardSolutions.com) शिक्षा ही मानव को उन्नति के मार्ग की ओर ले जाने में समर्थ होती है।

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प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

(क) डॉ० विश्वेश्वरैया का जीवन साहस, संघर्ष और सफलता की अनुपम कहानी है।
(ख) डॉ० विश्वेश्वरैया की मान्यता थी कि उचित शिक्षा ही देश की आर्थिक दुर्गति दूर करती है।

प्रश्न 6.
नीचे लिखे कथनों का सही मिलान कीजिए (मिलान करके) –
UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 34 डॉ० विश्वेश्वरैया (महान व्यक्तिव) 1

उत्तर :

(क) भारत कैसे उन्नति कर सकता है; जबकि इसकी अस्सी प्रतिशत जनता अनपढ़ है!
(ख) डॉ० विश्वेश्वरैया देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति थे।
(ग) डॉ० विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर प्रदेश के मुद्देनल्ली गाँव में 15 सितम्बर, 1861 में हुआ था।
(घ) डॉ० विश्वेश्वरैया का जीवन साहस, संघर्ष और सफलता की अनुपम कहानी है।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 10 महात्मा बुद्ध (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 10 महात्मा बुद्ध (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। ये कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र थे। सिद्धार्थ तीक्ष्ण बुद्धि के थे, ये जिज्ञासु स्वभाव के थे। इनके विषय में विद्वानों ने घोषणा की थी कि ये एक दिन घर-बार त्यागकर संन्यासी हो जाएँगे। पिता नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र संन्यासी हो, अतः उन्होंने इनका विवाह यशोधरा के साथ कर दिया। यशोधरा को एक पुत्र हुआ। पुत्र का नाम राहुल रखा गया। सिद्धार्थ का मन परिवार और राजकार्य में नहीं लगता था।

एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण के लिए जा रहे थे। इन्होंने एक वृद्ध को देखा, जो बहुत मुश्किल से चल पा रहा था। इस सम्बन्ध में सारथा से पूछने पर ज्ञात हुआ कि एक दिन सभी की यही दशा होती है। एक दिन इन्होंने देखा कि चार व्यक्ति एक मृतक को लिए जा रहे हैं। सारथी से पूछने पर ज्ञात हुआ कि एक दिन सभी को मरना पड़ेगा। तभी सिद्धार्थ ने इस संसार (UPBoardSolutions.com) के माया-मोह। को छोड़ने का निश्चय कर लिया और एक दिन वे अपनी सुन्दर पत्नी और पुत्र को छोड़ रात्रि में ही घर से निकल गए। संन्यासी की भाँति सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में घूमते रहे। कुछ दिनों बाद ये गया पहुँचे और ज्ञान प्राप्ति का संकल्प लेकर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। छह वर्ष की कठिन । तपस्या के बाद इन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया, तब ये गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।

गौतम बुद्ध ने लोगों को उपदेश दिया कि जीवन में किसी बात की अति न करो, सन्तुलित जीवन जीयो, अहिंसा का पालन करो, कभी किसी को मत सताओ। किसी प्राणी की हत्या मत करो। सभी के साथ भाई-चारे का जीवन बिताओ। सत्य का पालन करो।

गौतम बुद्ध कहते थे कि दूसरों की भलाई करो। परोपकार से मित्रता करो। इन्होंने लोगों को बताया कि सागर की तरह गम्भीर बनो। मन में अच्छे विचार रखो। इनका कहना था कि स्वास्थ्य से बढ़कर (UPBoardSolutions.com) कोई लाभ नहीं। जाति-पाँति का भेद-भाव ठीक नहीं। बुद्ध का धर्म बौद्ध धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गौतम बुद्ध ने अपने प्रेम बंधन में सभी को बाँध लिया।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
सिद्धार्थ हिरण पर तीर क्यों नहीं चला सके?
उत्तर :
सिद्धार्थ हिरण पर तीर इसलिए नहीं चला सके, क्योंकि हिर, की माँ अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दया-याचना के भावों से सिद्धार्थ की ओर देख रही थी। उसे देखकर सिद्धार्थ का हृदय द्रवित हो गया और वे लौट गए।

प्रश्न 2.
वे कौन-सी घटनाएँ थीं, जिन्हें देखकर सिद्धार्थ को दुनिया से विरक्ति हो गई?
उत्तर :
एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण के लिए घर से निकले। रास्ते में उन्हें एक वृद्ध (बूढ़ा मनुष्य) मिला, वह लाठी के सहारे चल रहा था। सारथी से पूछने पर उसने बताया कि वृद्ध होने पर सबकी यही दशा होती है। यह सुनकर ये बहुत दुखी हुए।

इसी प्रकार, एक दिन इन्होंने शिकार पर जाते समय एक मृतक को देखकर सारथी से पूछा। सारथी ने कहा- “सबको एक दिन अवश्य मरना है।” इन दोनों घटनाओं को देखकरे सिद्धार्थ को दुनिया से विरक्ति हो गई।

प्रश्न 3.
सिद्धार्थ बुद्ध कैसे बने?
उत्तर :
सिद्धार्थ गृह त्यागने के बाद संन्यासी की भांति जगह-जगह घूमते रहे। कुछ दिनों बाद वे गया पहुँचे और ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प लेकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। छह वर्ष की कठिन साधना के (UPBoardSolutions.com) बाद उन्हें अनुभव हुआ कि ज्ञान प्राप्त हो गया है और जीवन की समस्याओं को हल मिल गया है। तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाने लगे।

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प्रश्न 4.
गौतम बुद्ध ने संसार को कौन-कौन सी शिक्षाएँ दीं?
उत्तर :
गौतम बुद्ध ने संसार को बताया कि संसार में दुख ही दुख है। दुख का कारण सांसारिक वस्तुओं के लिए इच्छा और कामना है। दुख से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य को अष्टमार्ग पर चलना चाहिए। सब भाई-चारे एवं प्रेम से रहें, पवित्रता से जीवन बिताएँ, सत्य का पालन करें। घृणा को घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से जीतना चाहिए। सदैव दूसरों की भलाई करनी चाहिए। दया, स्नेह एवं करुणा को अपनाना चाहिए। मनुष्य को धैर्यवान बनना चाहिए। उसे किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। मनुष्य (UPBoardSolutions.com) को सन्तोष से काम लेना चाहिए तथा स्वास्थ्य को बनाए रखना चाहिए। जाति-पाँति का भेदभाव दूर करना चाहिए।

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके) –

(क) सिद्धार्थ की पत्नी का नाम यशोधरा था।
(ख) सिद्धार्थ ने सेवक से कहवा दिया कि अब मैं सत्य की खोज करके ही लौगा।
(ग) उन्हें छह वर्ष की कठिन साधना के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 9 भारत के महान खगोलविद् (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

भारतीय खगोलविदों में आर्यभट्ट, वराहमिहिर और सवाई जयसिंह प्रमुख हैं।

आर्यभट्ट – महान गणितज्ञ और खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के नाम पर भारत ने 19 अप्रैल, 1975 ई० को पहला कृत्रिम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ छोड़ा। नालन्दा विश्वविद्यालय में गहन खगोलीय ज्ञान जुटाने के बाद आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान की उत्कृष्ट रचना ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा। इस ग्रंथ से प्रभावित होकर गुप्त शासक बुद्धदेव ने आर्यभट्ट को (UPBoardSolutions.com) नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रधान बनाया। आर्यभट्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमकर दिन-रात बनाती है। चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से चमकता है और ग्रहण एक खगोलीय घटना है। राहु द्वारा सूर्य व चन्द्र का निगला जाना अन्धविश्वास है। यह निष्कर्ष आज भी मान्य है।

आर्यभट्ट ने एक और ग्रंथ ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ लिखा, जो दैनिक खगोलीय गणना और शुभ मुहूर्त निश्चित करने में काम आता है। आज भी पंचांग बनाने में आर्यभट्ट की खगोलीय गणना काम आती है।

वराहमिहिर – ये सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के राजज्योतिषी थे। इनके बचपन का नाम मिहिर था। मगध राज्य का सबसे महान पुरस्कार ‘वराह का चिह्न’ मिलने पर इन्हें वराहमिहिर कहा जाने लगा। आर्यभट्ट से प्रभावित होकर ज्योतिष और खगोल ज्ञान को इन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया। शिक्षा पूर्ण करने के बाद ये विद्या और संस्कृति के केन्द्र उज्जैन आ गए। सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इनकी विद्वता से प्रभावित होकर इन्हें अपने नौरत्नों में शामिल कर लिया। इन्होंने पर्यावरण विज्ञान, जल विज्ञान और भू-विज्ञान के सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य उजागर किए। इनकी टिप्पणी थी कि कोई शक्ति चीजों को जमीन से (UPBoardSolutions.com) चिपकाए रहती है। पौधे और दीमक इंगित करते हैं कि जमीन के नीचे पानी है। वराहमिहिर की प्रमुख रचनाएँ- पंच सिद्धांतिका, वृहत्संहिता और बृहज्जाक हैं, जो संस्कृत भाषा में अनोखी शैली में लिखी गई हैं। ज्योतिष के क्षेत्र में वराहमिहिर की पुस्तके आज भी बेजोड़ है।

सवाई जयसिंह – खगोलशास्त्र में राजा जयसिंह की रुचि थी। इस कारण ये बाद में महान खगोलविद् और गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुए। ये तेरह वर्ष की उम्र में आमेर की गद्दी पर बैठे। 1701 ई० में औरंगजेब ने इन्हें सवाई की उपाधि से सम्मानित किया। इन्होंने अपनी राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ करके खगोलशास्त्र का ज्ञान अर्जित किया। इन्होंने अपने दरबार में खगोलविदों की गोष्ठियाँ कीं। इन्होंने पुर्तगाल, अरब और यूरोप से खगोल से सम्बन्धित पुस्तकें, संहिताएँ और सारणियाँ इकट्ठी कीं। कई पुस्तकों का संस्कृत में अनुवाद करवाया, जैसे- सिद्धांत सूरी कौस्तम, तुरूसुरणी, मिथ्या जीव छाया आदि। सवाई जयसिंह ने यूरोप से दूरबीन मँगवाई और खगोलीय पर्यवेक्षण के लिए अपनी दूरबीनों का निर्माण शुरू करवा दिया।

1724 ई० में दिल्ली में जन्तर-मन्तर वेधशाला का निर्माण किया गया। इसका उद्देश्य विज्ञान को लोकप्रिय बनाना था। राजा जयसिंह ने ईंट और चूने के विशाल उपकरण बनवाए और गहन अध्ययन एवं शोध के (UPBoardSolutions.com) बाद खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कई तथ्य दिए। दिल्ली और जयपुर की वेधशालाएँ (जन्तर-मन्तर) इसके उदाहरण हैं।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया?
उत्तर :
आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ नामक पुस्तक लिखी, जो दैनिक खगोलीय गणना और अनुष्ठानों के लिए शुभ मुहूर्त निश्चित करने के काम आती है। पंचांग बनाने के लिए आर्यभट्ट की खगोलीय गणना का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के बारे में वराहमिहिर ने कौन-सी प्रमुख टिप्पणियाँ की हैं?
उत्तर :
पृथ्वी के बारे में वराहमिहिर की टिप्पणी थी कि कोई शक्ति है, जो चीजों को जमीन से चिपकाए रखती है। इस कथन के आधार पर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बना।

प्रश्न 3.
जन्तर-मन्तर क्या है और कहाँ है?
उत्तर :
जन्तर-मन्तर वेधशाला है, जो दिल्ली और जयपुर में है।

प्रश्न 4.
आर्यभट्ट और वराहमिहिर के दो-दो (UPBoardSolutions.com) ग्रंथों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • आर्यभट्टीय, आर्यभट्ट सिद्धांत – आर्यभट्ट।
  • वृहत्संहित, वृहज्जातक – वराहमिहिर।

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प्रश्न 5.
सही तथ्यों के सामने सही (✓) तथा गलत के सामने गलत (✗) के निशान लगाइए (निशान लगाकर) –

(क) आर्यभट्ट हर बात को वैज्ञानिक आधार पर परखने में विश्वास करते थे। (✓)
(ख) दिल्ली की वेधशाला का नाम जन्तर-मन्तर नहीं है। (✗)
(ग) दूरबीन से दूर की चीजें देखी जा सकती हैं। (✓)
(घ) आर्यभट्ट, पाणिनि, सवाई जयसिंह सभी खगोलविद् हैं। (✗)

प्रश्न 6.
किसने कहा –

(क) सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय राहु द्वारा सूर्य या चन्द्रमा को निगल जाने की धारणा अन्धविश्वास है।
उत्तर :
आर्यभट्ट ने कहा।

(ख) पौधे और दीमक इस बात की ओर (UPBoardSolutions.com) इंगित करते हैं कि जमीन के नीचे पानी है।
उत्तर :
वराहमिहिर ने कहा।

(ग) चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से चमकता है, उसका अपना प्रकाश नहीं है।
उत्तर :
आर्यभट्ट ने कहा।

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प्रश्न 7.
अपने शिक्षक/शिक्षिका से चर्चा कीजिए –

(क) जंतर-मंतर क्या है और कहाँ स्थित है ?
(ख) वेधशाला किसे कहते हैं? हमारे देश में कहाँ-कहाँ वेधशालाएँ हैं?
(ग) आकाशगंगा किसे कहते हैं?

नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका से स्वयं चर्चा करें।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 8 भारत के महान चिकित्सक (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 8 भारत के महान चिकित्सक (सश्रत,चरक) (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

आयु सम्बन्धी ज्ञान (वेद) को आयुर्वेद कहते हैं। आयुर्वेद सम्बन्धी सिद्धांतों का संकलन ऋषियों द्वारा संहिताओं में हुआ है। सुश्रुत संहिता शल्य तंत्र प्रधान तथा चरक संहिता काय चिकित्सा प्रधान ग्रंथ है। इनके लेखक सुश्रुत और चरक हैं।

सुश्रुत – छह सौ वर्ष ईसा पूर्व में जन्मे सुश्रुत आज भी ‘प्लास्टिक सर्जरी’ के जनक माने जाते हैं। इन्होंने वैद्यक और शल्य चिकित्सा का ज्ञान वाराणसी में दिवोदास धन्वंतरि के आश्रम में प्राप्त किया। ये मूत्र नलिका से पत्थर निकालने, टूटी हड्डी को जोड़ने और मोतियाबिंद की शल्यचिकित्सा में दक्ष थे। ऑपरेशन से पहले कीटाणु मारने के लिए उपकरण गर्म करना और बीमार को नशीला द्रव पिलाना आज भी मान्य है। सुश्रुत ने अपने शिष्यों से कहा था, “अच्छा वैद्य वही है, जो सिद्धांत और अभ्यास दोनों में पारंगत हो।” सुश्रुत ने अपनी सुश्रुत संहिता में 101 उपकरणों की सूची दी है। आज भी उनके समान यंत्र वर्तमान चिकित्सक प्रयोग में लाते हैं।

चरक – चरक ने आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में शरीर विज्ञान, निदान शास्त्र और भ्रूण विज्ञान पर चरक संहिता लिखी, जो आज भी चिकित्सा जगत् में सम्मानित है। ये सम्भवतः नागवंश में पैदा हुए और पश्चिमोत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। चरके पहले चिकित्सक थे, जिन्होंने पाचन प्रक्रिया और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दी। इनके अनुसार शरीर में वात, पित्त (UPBoardSolutions.com) और कफ के कारण दोष उत्पन्न हो जाता है। इन्होंने स्पष्ट किया कि एक शरीर दूसरे से भिन्न होता है। शरीर के तीनों दोष असन्तुलित होने से बीमारी पैदा हो जाती है। इन दोषों के सन्तुलन के लिए इन्होंने दवाइयाँ बनाईं।

चरक को शरीर में जीवाणुओं की उपस्थिति का ज्ञान था। चरक ने आनुवंशिकी के सम्बन्ध में मान्यता दी कि बच्चों में आनुवंशिक दोष जैसे- अन्धेपन, लँगड़ेपन जैसी विकलांगता माता-पिता की कमी के कारण नहीं, बल्कि डिंबाणु या शुक्राणु की त्रुटि के कारण होती है। यह मान्यता आज भी मान्य है। चरक ने दाँतों सहित शरीर में तीन सौ साठ हड्डियों का होना बताया। इन्होंने शरीर रचना और भिन्न अंगों का अध्ययन किया और धमनियों में विकार आना बीमारी का कारण बताया।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
सुश्रुत ने पीड़ित यात्री की किस प्रकार चिकित्सा की?
उत्तर :
सुश्रुत ने पीड़ित यात्री की चिकित्सा निम्न प्रकार की –

  1. पीड़ित यात्री को साफ-सुथरे कमरे में ले गए और दवा मिला पानी मुँह धोने के लिए दिया।
  2. फिर उन्होंने एक गिलास में कुछ द्रव्य यात्री को पीने के लिए दिया और शल्य चिकित्सा की तैयारी करने लगे।
  3. फिर उन्होंने एक बड़े पत्ता से यात्री की नाक नापी। (UPBoardSolutions.com)
  4. फिर एक चाकू और चिमटी लेकर उसे आग की लौ पर गरम किया। उसी गर्म चाकू से उन्होंने यात्री के गाल से कुछ माँस काटा।
  5. इसके बाद गाल पर पट्टी बाँधकर बड़ी सावधानी से यात्री की नाक में दो नलिकाएँ डाली। गाल से कटा हुआ माँस और दवाइयाँ नाक पर लगाकर उसे पुनः आकार दे दिया, फिर नाक पर मुँघची व लाल चंदन का महीन बुरादा छिड़क कर हल्दी का रस लगा दिया और पट्टी बाँध दी।

प्रश्न 2.
सुश्रुत किस प्रकार की शल्य चिकित्सा में दक्ष थे?
उत्तर :
सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का जनक माना जाता है। वे मूत्र नलिका से पत्थर निकालने, टूटी हड्डियों को जोड़ने व मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा में दक्ष थे।

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प्रश्न 3.
सुश्रुत ने अपने शिष्यों से क्या कहा?
उत्तर :
“अच्छा वैद्य वही है, जो सिद्धांत और अभ्यास दोनों में पारंगत हो।”

प्रश्न 4.
आयुर्वेद’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
आयु सम्बन्धी ज्ञान (वेद) को आयुर्वेद कहते हैं।

प्रश्न 5.
चरक ने आनुवंशिकी के सम्बन्ध में क्या मान्यता दी थी?
उत्तर :
चरक ने आनुवंशिकी के सम्बन्ध में यह मान्यता दी थी- “बच्चों में आनुवंशिक दोष जैसे अन्धेपन, लँगड़ेपन जैसी विकलांगता माता-पिता की कमी के कारण नहीं, बल्कि डिंबाणु या शुक्राणु की कमी के कारण होती है।”

प्रश्न 6.
सुश्रुत और चरक ने किन ग्रन्थों की रचना की? ये किस क्षेत्र में उपयोगी हैं?
उत्तर :
सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता और चरक ने चरक संहिता की रचना की। सुश्रुत संहिता शल्य तंत्र प्रधान और चरक संहिता काय चिकित्सा प्रधान ग्रंथ है।

प्रश्न 7.
सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का जनक क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व सुश्रुत ने जो किया था उसी (UPBoardSolutions.com) का विकसित रूप आज प्लास्टिक सर्जरी है। अतः सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का जनक कहा जाता है।

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प्रश्न 8.
नीचे लिखे वाक्यों पर सही (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाइए (चिह्न लगाकर) –

(क) सुश्रुत एक सफल राजनीतिज्ञ थे। (✗)
(ख) सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का जनक कहा जाता है। (✓)
(ग) चरक को शरीर में जीवाणुओं की उपस्थिति का ज्ञान था। (✓)
(घ) चरक जादू से मरीजों की चिकित्सा किया करते थे। (✗)

प्रश्न 9.
सही विकल्प चुनिए (सही विकल्प चुनकर)

चरक ने शरीर में दाँतों सहित हड्डियों की संख्या –
(ग) तीन सौ साठ बताई।

सुश्रुत ने ऑपरेशन के पहले उपकरण को गर्म करने को कहा, जिससे –

(क) कीटाणु समाप्त हो जाएँ।
नोट – प्रश्न 10, 11, 12 तथा 13 विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं करें।

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