UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 14 Natural Resources

UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 14 Natural Resources (प्राकृतिक संपदा)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 14 Natural Resources (प्राकृतिक संपदा).

पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 217)

प्रश्न 1.
शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल से हमारा वायुमण्डल कैसे भिन्न है?
उत्तर-
हमारे वायुमण्डल (पृथ्वी के) में वायु कई गैसों का मिश्रण है, जैसे-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कॉर्बन डाई ऑक्साइड व जलवाष्प आदि। पृथ्वी पर इन सभी गैसों की उपस्थिति (UPBoardSolutions.com) ही जीवन-यापन करने के लिए आवश्यक है।
शुक्र व मंगल के वायुमण्डल में 95 से 97% तक कार्बनडाइआक्साइड ही पाई जाती है। अतः इन ग्रहों पर कोई जीवन नहीं पाया जाता है।

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प्रश्न 2.
वायुमण्डले एक कम्बल की तरह कैसे कार्य करता है?
उत्तर-
वायु ऊष्मा की कुचालक है। वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय और यहाँ तक कि पूरे वर्ष-भर नियत रखता है। वायुमण्डल ही दिन में अचानक तापमान को बढ़ने से रोकता है, और रात के समय पृथ्वी के बाहरी आन्तरिक्ष में ताप की दर को कम करता है। अतः हम कह सकते हैं कि वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कार्य करता है।

प्रश्न 3.
वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?
उत्तर-
स्थल तथा जल के ऊपर की वायु सौर ऊर्जा के कारण गर्म होती है। जल की अपेक्षा स्थल के ऊपर की वायु शीघ्र गर्म होकर ऊपर उठना प्रारंभ कर देती है। इससे वहाँ कम वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम वायुदाब वाले क्षेत्र में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वायु प्रवाह पवनों का निर्माण करती है। दिन के समय वायु की दिशा समुद्र से स्थल की (UPBoardSolutions.com) ओर होती है। रात्रि में स्थल के ऊपर की वायु समुद्र के ऊपर की वायु की तुलना में जल्दी ठंडी हो जाती है। अतः रात्रि में वायु प्रवाह स्थल से समुद्र की ओर होता है।

प्रश्न 4.
बादलों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर-
बादलों का निर्माण-दिन में वायुमण्डल में जलवाष्प पहुँचती है क्योंकि गर्म होने पर जल जलाशयों से उड़ता है तथा जलवाष्प बनकर वायुमण्डल में आ जाता है। गर्म वायु जलवाष्प को अपने साथ लेकर ऊपर की ओर उठती है। फैलने पर यह ठंडी हो जाती है तथा संघनित होकर बादल बनाती है।

प्रश्न 5.
मनुष्य के तीन क्रिया-कलापों का उल्लेख करें जो वायु प्रदूषण में सहायक हैं।
उत्तर-
मानव निर्मित स्रोत जो विभिन्न मानव क्रिया-कलापों द्वारा उत्पन्न होते हैं, जैसे-
(i) जनसंख्या वृद्धि,
(ii) वनों का काटना,
(iii) शहरीकरण,
(iv) औद्योगीकरण

  • मानव अपने कार्यों द्वारा विभिन्न प्रदूषण जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), हाइड्रोकार्बन, आर्सेनिक तथा रेडियोधर्मी पदार्थ वायु में छोड़ता है।
  • कोयला तथा पेट्रोलियम आदि जीवाश्म ईंधनों के जलने से भी प्रदूषक वायु में पहुँचते हैं।
  • कृषि में अत्यधिक उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग से भी वायु में प्रदूषक पहुँचते हैं।
  • ओजोन परत में छेद होने से भी पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहुँचती हैं।

पाठ्गत अॅश्न'(पृष्ठ संख्या – 219)

प्रश्न 1.
जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-

  • सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जल माध्यम में होती हैं।
  • पदार्थों का संवहन घुली अवस्था में होता है।
  • प्राणी को जीवित रहने हेतु जल आवश्यक है।
  • जल प्राणियों का आवास भी है।
  • स्थलीय जीवों को मीठे जल की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 2.
जिस गाँव/शहर/नगर में आप रहते हैं वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत क्या है?
उत्तर-
शहर में- नगर निगम द्वारा निर्मित जल के टैंक।
गाँवों में- तालाब, कुएँ, नल तथा नदियाँ एवं नहर आदि।

प्रश्न 3.
क्या आप किसी क्रिया-कलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रदूषित कर रहा है?
उत्तर-
(i) कृषि में उपयोगी कीटनाशक तथा उर्वरक
(ii) उद्योगों से निकला कचरा नदियों तथा झीलों में जमा हो जाता है।
(iii) जलाशयों में अनैच्छिक पदार्थों का मिलाना।
(iv) इच्छित पदार्थों को जल से हटाना।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 222)

प्रश्न 1.
मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर-
मिट्टी बनाने में निम्नलिखित कारक काम करते हैं

  1. सूर्य – सूर्य पत्थरों को गर्म करता है जिससे वे प्रसारित हो जाते हैं। रात के समय पत्थर सिकुड़ जाते हैं। इससे उसमें दरार पड़ जाती है और वह टूट जाता है।
  2. जल – जले मिट्टी के निर्माण में दो तरीके से सहायता करता है-
    • सूर्य के ताप से बनी दरार में पानी भर जाता है जो यदि जम जाता है तो वह दरार को चौड़ा कर देता है लेकिन यदि पानी बाद में जमता है तो (UPBoardSolutions.com) यह दरार को और भी चौड़ा करेगा क्योंकि बहता हुआ व जमा हुआ पानी पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है।
    • तेज गति से बहता पानी पत्थर के टुकड़ों को बहा ले जाता है जिससे वे आपस में टकराकर टूटकर और छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार मिट्टी अपने मूल पत्थर के स्थान से काफी दूर पायी जाती है।
  3. हवा – हवा से पत्थर के टुकड़े आपस में टकराकर और भी छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाते हैं।
  4. जीव – जीव भी मिट्टी के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लाइकेन पत्थरों की सतह पर उगते हैं जो पत्थर को चूर्ण के रूप में बदल देते हैं और मिट्टी की परत का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार मॉस भी मिट्टी को बारीक करने का काम करते हैं।

प्रश्न 2.
मृदा अपरदन क्या है?
उत्तर-
उपरिमृदा (Top soil) का वायु/जल द्वारा उड़ना अथवा दूसरे स्थान पर पहुँचना ही मृदा का अपरदन है। मृदा के महीन कण बहते हुए जल के साथ चले जाते हैं। तेज वायु भी मृदा कणों को उड़ाकर ले जाती है।

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प्रश्न 3.
अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर-
अपरदन रोकने के निम्नलिखित तरीके हैं|
1. भूमि को उपजाऊ बनाना – अपरदन प्रायः बंजर भूमि में ही होता है। अतः भूमि की अम्लीयता या क्षारीयता को दूर करके उसे कृषि-योग्य बनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। भूमि को उर्वर बनाने के लिए कम्पोस्ट खाद, हरी खाद, उर्वरक आदि का प्रयोग किया जाता है।
2. पशुओं के चरने पर नियंत्रण – इसके लिए नियंत्रित चरागाहों की व्यवस्था की जानी चाहिए। अतिचारण के कारण पौधे कुचलकर नष्ट हो जाते हैं। मृदा कणों के परस्पर उखड़ जाने पर अपरदन सुगमता से हो जाता है।
3. वनरोपण – वृक्षारोपण, वनरोपण, फसल उगाना आदि क्रियाओं के फलस्वरूप जड़े मृदा कणों को परस्पर बाँधे रखती हैं।
4. वायुरोधक पौधे लगाना – रेगिस्तानी क्षेत्रों में वायु अपरदन को रोकने या कम करने के लिए वृक्षों को पंक्तियों में एक-दूसरे के पास-पास उगाना चाहिए। इससे वायु की तीव्रता कम होने से मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है। समोच्च जुताई-पहाड़ी ढलानों पर शिखर से नीचे की ओर (UPBoardSolutions.com) समकोण पर गोलाई में जुताई-गुड़ाई करने से अपरदन कम होता है। इस प्रकार की खेती को कंटूर कृषि कहते हैं।
5. वेदिका निर्माण – पहाड़ी ढलानों को सीढ़ीनुमा खेतों में बाँटकरे अर्थात् वेदिका निर्माण करके खेती की जाती है। इससे जल अपरदन को रोका जा सकता है।
6. बाँध निर्माण – तेज बहाव वाले अधिक जल को रोकने के लिए बाँध बनाए जाते हैं। बाँध से रुके हुए जल का उपयोग विद्युत निर्माण और सिंचाई के लिए किया जाता है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 226)

प्रश्न 1.
जल-चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पायी जाती हैं?
उत्तर-
जल-चक्र में पानी की मुख्यतया दो अवस्थाएँ पायी जाती हैं-एक तरल (द्रव) व दूसरी वाष्प। पहले पानी का वाष्पीकरण होता है फिर संघनन व फिर द्रव रूप में जल वर्षा के रूप में पृथ्वी में लौट आता है जो नदियों द्वारा समुद्रों में और कुछ भूजल के साफ पानी को हिस्सा बन जाता है।

प्रश्न 2.
जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों पाए जाते हों?
उत्तर-
जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण यौगिक जिनमें नाइट्रोजन व ऑक्सीजन दोनों पाए जाते हैं, वे हैं-प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल (डी.एन.ए. व आर.एन.ए.) व विटामिन हैं।

प्रश्न 3.
मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानें जिनसे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
उत्तर-
निम्नलिखित क्रिया-कलापों द्वारा वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है-

  1. श्वसन – जीवों द्वारा श्वसन की प्रक्रिया में ग्लूकोस का ऑक्सीकरण होने से वह कार्बन डाइऑक्साइड में बदल जाता है और वह वायुमण्डल में एकत्रित हो जाती है तथा जीवों को ऊर्जा प्राप्त होती है।
  2. दहन – इस क्रिया में ईंधन को जलाया जाता है। जिससे विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पूर्ति होती है। जैसे-खाना पकाना, गर्म करना, यातायात व उद्योग-धन्धों में किया जाता है। दहन क्रिया से भी। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है जो वायुमण्डल में एकत्रित हो जाती है।
  3. औद्योगिक क्रान्ति – इसमें भी कारखानों में जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है जिससे अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है और वायुमण्डल में एकत्रित हो जाती है।

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प्रश्न 4.
ग्रीन-हाउस प्रभाव क्या है?
उत्तर-
वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व जलवाष्प) पृथ्वी की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं। वायुमण्डल में इस प्रकार की गैसों के प्रतिशत में वृद्धि पूरे विश्व के तापमान में वृद्धि कर पूरे विश्व के औसत तापमान को बढ़ा देगी, इसी प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 5.
वायुमण्डल में पाए जाने वाले ऑक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर-

  1. वायुमण्डल में तत्त्व के रूप में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा 21% है।
  2. यह पृथ्वी पर यौगिक के रूप में पाई जाती है। पृथ्वी पटल पर यह धातुओं व सिलिकॉन तथा कार्बन के आक्साइडों के रूप में और कार्बोनेट, सल्फेट, नाइट्रेट व अन्य खनिजों के रूप में भी पाई जाती है।
  3. यह जैविक अणु, जैसे कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल और वसा का भी एक आवश्यक घटक है।
  4. अधिक ऊँचाई पर यह त्रिपरमाण्विक (O3) ओजोन के रूप में भी पाई जाती है।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ – 227)

प्रश्न 1.
जीवन के लिए वायुमण्डल क्यों आवश्यक
उत्तर-
वायुमण्डल हमारे जीवन के लिए निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है-

  1. वायुमण्डल पृथ्वी को एक कम्बल की तरह चारों ओर से ढके हुए है।
  2. वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय यहाँ तक कि पूरे साल भर स्थिर (नियत) रखता है।
  3. वायुमण्डल दिन में अचानक तापमान को बढ़ने से रोकता है।
  4. रात के समय ताप को पृथ्वी के बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करता है।
  5. वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन परत हानिकारक विकिरणों (पराबैंगनी किरणों) के प्रभाव से हमारी रक्षा करती है।
  6. श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन भी वायुमण्डल से मिलती है।

प्रश्न 2.
जीवन के लिए जल क्यों अनिवार्य है?
उत्तर-
जीवन के लिए जल की उपयोगिता निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है-

  1. पानी पीने के लिए अनिवार्य है जिससे हम जीवित रहते हैं।
  2. सभी कोशिकीय क्रियाएँ जलीय माध्यम में ही होती हैं।
  3. शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में ही होता है।
  4. जलीय जीवों को वास स्थान प्रदान करता है।
  5. पौधों को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भी जल की आवश्यकता होती है।
  6. पानी एक सार्वत्रिक विलायक है।
  7. बीजों के अंकुरण के लिए भी जल आवश्यक है।
  8. पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए आसानी से उपलब्ध पानी एक आवश्यक स्रोत है।

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प्रश्न 3.
जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर हैं? क्या जल में रहने वाले जीव संपदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतंत्र हैं?
उत्तर-
पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को भूपृष्ठ कहते हैं। इस परत में पाए जाने वाले खनिज जीवों को विभिन्न प्रकार के पालन-पोषण करने वाले तत्त्व प्रदान करते हैं। कुछ जीव, जैसे-राइजोबियम फलीदार पौधों की जड़ों में ग्रन्थियाँ (गाठे) बनाते हैं और वायुमण्डल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को यौगिकों (नाइट्राइट व नाइट्रेट) में बदलकर पौधों के लिए उपयोगी बना देते हैं। कुछ ऐसे भी जीवाणु हैं जो इन यौगिकों व गले-सड़े पदार्थों को पुनः तत्त्वों में बदल देते हैं। केचुएँ भी मिट्टी में ही रहकर उसे उपजाऊ बनाते हैं। अन्य सभी प्राणी भी मिट्टी में उगने वाले पौधे से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि जीवित प्राणी मिट्टी पर निर्भर करते हैं।

जल में रहने वाले जीव संपदा मिट्टी से पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि जल में अत्यधिक पदार्थ घुल जाते हैं। जब जल चट्टानों पर से बहता है तो उसमें कुछ खनिज धुल (UPBoardSolutions.com) जाते हैं। नदियाँ बहुत-से पोषक तत्त्व समुद्र में इन्हीं चट्टानों से पहुँचाती हैं जिन्हें समुद्री जीव प्रयोग करते हैं। अतः वे पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं।

प्रश्न 4.
आपने टेलीविजन पर और समाचारपत्र में मौसम सम्बन्धी रिपोर्ट को देखा होगा। आप क्या सोचते हैं कि हमें मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?
उत्तर-
मौसम का पूर्वानुमान पवन की चाल व दिशा के अध्ययन द्वारा किया जा सकता है जो वर्षा आदि के विषय में अनुमान लगाने में सहायता करता है। इसके द्वारा कम व अधिक वायुदाब के क्षेत्रों का पता लगाया जा सकता है। भारत में अधिकतर वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी या उत्तरी-पश्चिमी मानसून द्वारा होती है।

प्रश्न 5.
हम जानते हैं कि बहुत-सी यानवीय गतिविधियाँ, वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण-स्तर को बढ़ा रहे हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?
उत्तर-
वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण-स्तर को बढ़ाने वाली गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण का स्तर घटाने में विशेष सहायता नहीं मिलेगी। जल व मृदा के प्रदूषण को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है, लेकिन वायु प्रदूषण के लिए यह प्रभावशाली नहीं होगा। प्रदूषण (UPBoardSolutions.com) को कम करने के लिए अच्छा हो कि हम प्राकृतिक संपदा का विवेकपूर्ण एवं सीमित उपयोग करें और प्रदूषकों को जल, मृदा व वायु में एक सीमित मात्रा में छोड़े ताकि प्राकृतिक सूक्ष्म जीव उनको आसानी से विघटित कर सकें।

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प्रश्न 6.
जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोतों की गुणवत्ता को निम्न प्रकार प्रभावित करते हैं-
वायु की गुणवत्ता नियन्त्रित करने में पौधों का योगदान – पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वायु से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं तो ऑक्सीजन गैस उत्पन्न करते हैं जिससे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा नियन्त्रित रहती है तथा श्वसन में सहायक ऑक्सीजन बढ़ती है।

मृदा की गुणवत्ता नियन्त्रित करने में पौधों का योगदान
(i) पौधों की जड़े भूमि में काफी गहराई तक जाकर मृदा को बाँधे रखती हैं जिसके कारण भूमि अपरदन नहीं होता।
(ii) भूमि अपरदन होने से मिट्टी नदियों की सतह में बैठने लगती है और नदियाँ उथली हो जाती हैं। जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
(iii) पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायु में जलवाष्प छोड़ते रहते हैं, जिससे वायुमण्डल में नमी की उचित मात्रा बनी रहती है जो वर्षा को नियन्त्रित करती है और (UPBoardSolutions.com) तेज वर्षा नहीं होती।
(iv) तेज वर्षा की बूंदों द्वारा भूमि कटाव व मृदा अपरदन होता है। पौधों के पत्ते तेज बूंदों को सीधे पृथ्वी पर नहीं पड़ने देते जिससे भूमि कटाव व मृदा अपरदन नहीं होता जो नदियों को उथला कर, बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है।

सुखद पर्यावरण – पौधे वातावरण को सुखद बनाते हैं। ये वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन की मात्रा तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा नमी की मात्रा बढ़ाते हैं।
पौधे जीवों को सूर्य की तेज किरणों से बचाव कर वातावरण को सुखद बनाते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर-
वायु प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोत हैं-

  • दावानल (Forest fire)
  • वायु में उड़ते पराग कण (Pollen grains)।

प्रश्न 2.
ऐसे दो पदार्थों के नाम लिखिए जिनको पुनःचक्रण किया जाता है।
उत्तर-
(i) मवेशी गृह का कचरा तथा गोबर आदि।
(ii) कपड़ा एवं कागज आदि।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल में CO2 गैस की मात्रा बढ़ने का पृथ्वी के औसत ताप पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
पृथ्वी का औसत ताप बढ़ जायेगा (Global Warming)।

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प्रश्न 4.
पर्यावरण में हानिकारक प्रभावों से ओजोन परत किस प्रकार हमें सुरक्षा प्रदान करती है?
उत्तर-
यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित करती है, जो मनुष्य के लिए हानिकारक हैं।

प्रश्न 5.
भूमि की उर्वरता कम होने का एक कारण लिखिए।
उत्तर-
मृदा अपरदन भूमि की उर्वरता कम होने का एक कारण है।

प्रश्न 6.
भारतवर्ष में वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कारक का नाम बताइए।
उत्तर-
वर्षा का पैटर्न, पवनों के पैटर्न पर निर्भर करता है।

प्रश्न 7.
जल अपरदन की दर किन क्षेत्रों में अधिक होती है?
उत्तर-
पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होती है।

प्रश्न 8.
प्रदूषित वायु में नियमित साँस लेने से उत्पन्न दो रोगों के नाम बताइए।
उत्तर-
कैंसर, हृदय रोग या एलर्जी।

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प्रश्न 9.
दो जीवविज्ञानी महत्त्वपूर्ण यौगिकों के नाम बताइए जिनमें नाइट्रोजन उपस्थित है।
उत्तर-
ऐल्केलॉइड तथा यूरिया।

प्रश्न 10.
वायुमण्डल में CO2 की सांद्रता की वृद्धि के दो कारण बताइये।
उत्तर-
(i) वनोन्मूलन।
(ii) बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधनों को जलाना।

प्रश्न 11.
ओजोन क्या है?
उत्तर-
ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है जिसमें ऑक्सीजन के तीन परमाणु पाये जाते हैं (O3)।

प्रश्न 12.
वायुमण्डल में ऑक्सीजन किन रूपों में पायी जाती है?
उत्तर-
ऑक्सीजन गैस (O2) और ओजोन गैस (O3)।

प्रश्न 13.
ओजोन परत किस ऊँचाई पर उपस्थित है?
उत्तर-
ओजोन पर्त वायुमण्डल में 16 km से 60 km की ऊँचाई पर उपस्थित है।

प्रश्न 14.
कौन जैवीय घटक हैं? वायु, पेड़, कीड़े।
उत्तर-
पेड़ व कीड़े।

प्रश्न 15.
वायुमण्डल का विस्तार क्या है?
उत्तर-
वायुमण्डल पृथ्वीतल से 60 किमी तक पाया जाता है।

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प्रश्न 16.
ओजोन स्तर का क्या महत्त्व है?
अथवा
सूर्य विकिरण का कौन-सा भाग ओजोन परत द्वारा अवशोषित किया जाता है?
उत्तर-
यह सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर, उसे पृथ्वी के धरातल तक नहीं पहुँचने देती।

प्रश्न 17.
जैवमंडल के गैसीय घटक का नाम लिखिए।
उत्तर-
वायु (कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन आदि)।

प्रश्न 18.
पृथ्वी के वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की प्रतिशतता क्या है?
उत्तर-
0.03%.

प्रश्न 19.
दो क्रियाओं के नाम लिखिए जो वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करती हैं।
उत्तर-
(i) श्वसन – जिसमें ग्लूकोज आदि का ऑक्सीकरण होता है।
(ii) दहन।

प्रश्न 20.
वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड़की मात्रा में वृद्धि के दो दुष्प्रभाव लिखिए।
उत्तर-
(i) कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा ग्रीन हाउस प्रभाव के द्वारा वायुमण्डल का ताप बढ़ा देती है।
(ii) ताप में वृद्धि होने पर जीवों की दक्षता कम हो जाती है।

प्रश्न 21.
वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड शोषित करने वाली क्रिया का नाम लिखिए।
उत्तर-
पौधों द्वारा होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया।

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प्रश्न 22.
मृदा निर्माण करने वाले दो कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर-
अजैविक घटक-ताप, जल और हवा जैविक घटक-सभी सजीव।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?
उत्तर-
वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि पृथ्वी से परावर्तित होने वाले अवरक्त विकिरण को अवशोषित कर लेते हैं जिससे वायुमण्डल का ताप बढ़ जाता है, इस प्रतिभास को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल में क्लोरो-फ्लोरो कार्बन क्या हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं?
उत्तर-
क्लोरोफ्लोरो कार्बन वायुमण्डल की ओजोन परत से क्रिया कर उसको क्षति पहुँचाते हैं।

प्रश्न 3.
प्रदूषक किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे पदार्थ अथवा कारक जिनके द्वारा वायु, जल, भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन उत्पन्न होता है, प्रदूषक (Pollutants) कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
मृदा क्या है?
उत्तर-
मृदा जैविक तथा अजैविक घटकों का जटिल मिश्रण है और यह पौधों को जकड़े रखती है तथा जीविका प्रदान करती है।

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प्रश्न 5.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले दो जीवों के नाम लिखिए।
उत्तर-
(i) जीवाणु राइजोबियम,
(ii) नील-हरित शैवाल।

प्रश्न 6.
दो प्रक्रियाओं के नाम लिखिए जो वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।
उत्तर-
(i) जीवाश्म ईंधनों का दहन,
(ii) ज्वालामुखी का फटना।

प्रश्न 7.
मृदा कटाव रोकने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अत्यधिक मात्रा में पेड़-पौधों को उगाना चाहिए। सघन खेती अपनानी चाहिए।

प्रश्न 8.
वायुमण्डल के मुख्य संघटक लिखिए।
उत्तर-
पृथ्वी के चारों तरफ पाया जाने वाला गैस का आवरण, वायुमण्डल (atmosphere) कहलाता है। यह 40 किमी तक पाया जाता है। पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल में (UPBoardSolutions.com) नाइट्रोजन लगभग 78%, ऑक्सीजन 21% व शेष 1% में अन्य गैसें जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन, हीलियम, मीथेन आदि पायी जाती हैं।
धरातल पर वायुमण्डल में उपस्थित विभिन्न अवयव निम्न प्रकार हैं-
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अन्य गैसें सूक्ष्म मात्रा में पायी जाती हैं। जलवाष्प भी वायुमण्डल में विद्यमान रहती है।

प्रश्न 9.
शुक्र तथा मंगल ग्रहों के वायुमण्डल को मुख्य संघटक क्या है? इसके प्रभाव लिखिए।
उत्तर-
शुक्र तथा मंगल ग्रहों के वायुमण्डल का मुख्य संघटक कार्बन डाइऑक्साइड है जो इनके वायुमण्डल में 95-97% तक है। इसका प्रभाव यह है कि वहाँ पर न कोई जीवन है और न जीवन को आधार देने वाले घटक।

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प्रश्न 10.
अम्लीय वर्षा (acid rain) से आप क्या समझते हैं? इसने ताजमहल को कैसे प्रभावित किया है?
अथवा
औद्योगिक क्षेत्र में स्थित संगमरमर से बने भवन हानि क्यों प्रदर्शित करते हैं? सम्बद्ध समीकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
कोयले में उपस्थित सल्फर जलने पर ऑक्सीकृत होकर सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस बनाता है। यह गैस वायुमण्डल में मिल जाती है। वर्षा के समय यह गैस पानी में घुलकर सल्फ्यूरस अम्ल (H2SO3) बनाती है जो वर्षा के साथ पृथ्वी पर आता है जिसे अम्लीय वृष्टि कहते हैं। इस अम्लीय वृष्टि से ताजमहल के संगमरमर का संक्षारण हो रहा है। संगमरमर कैल्सियम कार्बोनेट है जो वर्षा के साथ आये सल्फ्यूरस अम्ल से क्रिया करता है। और संक्षारित हो जाता है।
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दूसरे, जीवाश्म ईंधनों के अपूर्ण दहन से उत्पन्न कार्बन के कण वायुमण्डल में विसरित होते हैं जो भवन के ऊपर जमा होकर, संगमरमर की चमक को कम कर देते हैं व धीरे-धीरे भवन काला होता जाता है।

प्रश्न 11.
वायु प्रदूषण की मुख्य हानियाँ लिखिए।
उत्तर-
वायु प्रदूषण की मुख्य हानियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. वायु प्रदूषण श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। इससे श्वास, दमा, फेफड़ों का कैंसर व न्यूमोनिया जैसे विकार हो सकते हैं।
  2. मोटर वाहनों एवं धूम्रपान से छोड़े गये धुएँ में कार्बन मोनोक्साइड पायी जाती है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। CO में हीमोग्लोबिन से ऑक्सीजन की अपेक्षा संयोग करने की 200 गुना अधिक क्षमता होती है। यह COHb (कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन) बनाती है जो विषैला है और दम घुटने जैसे लक्षण उत्पन्न करता है। यह अवस्था प्राणघातक भी हो सकती है।
  3. ओजोन परत के ह्यस होने से पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी की सतह तक पहुँच सकता है जो त्वचा कैंसर, प्रतिरक्षा संस्थान तथा आँखों को हानि पहुँचाता है।
  4. अम्ल वर्षा ऐतिहासिक स्मारकों को हानि पहुँचाती है।
  5. कार्बन डाइऑक्साइड व मीथेन ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए उत्तरदायी हैं। ये पृथ्वी का ताप बढ़ देते हैं।

प्रश्न 12.
ओजोन परत क्या है? यह कैसे बनती है? तथा इसका क्या महत्व है?
उत्तर-
ओजोन (O3) तीन ऑक्सीजन परमाणुओं वाला ऑक्सीजन का अपररूप है। यह पृथ्वी से 16 km की ऊँचाई पर सूर्य किरणों के प्रभाव से ऑक्सीजन से उत्पन्न होती है। ओजोन (O3) का अनुपात इस ऊँचाई से 23 किमी की ऊँचाई तक बढ़ता जाता है। इस भाग में ओजोन परत अधिक सघन आवरण बनाती है। ओजोन अणुओं की यह विशेषता है कि वे सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी (Ultra-violet) विकिरण को अवशोषित कर लेते हैं। इस प्रकार पृथ्वी पर जीवों के लिए ओजोन परत एक सुरक्षात्मक आवरण के रूप में कार्य करती है।

प्रश्न 13.
ओजोन छिद क्या है? ये कहाँ पर स्थित हैं?
अथवा
ओजोन परत के नष्ट होने के क्या मुख्य कारण हैं?
उत्तर-
किन्हीं रसायनों के प्रयोग से ओजोन के आवरण में छेद हो जाते हैं। ये रसायन हैं- मुख्यतः क्लोरो फ्लोरो कार्बन व अन्य उनसे सम्बन्धित उत्पाद। इन छिद्रों से सूर्य (UPBoardSolutions.com) से आने वाला पराबैंगनी प्रकाश (विकिरण) वायुमण्डल की निचली सतहों तक आ जाता है, जो त्वचा कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है। 1980 के आस-पास वैज्ञानिकों ने अण्टार्कटिक भाग के पास ओजोन छिद्र की उपस्थिति ज्ञात की।

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प्रश्न 14.
ओजोन परत कौन-से विकिरण को अवशोषित करती है? ओजोन परत के ह्रास होने के क्या-क्या कारण हैं? यदि ओजोन परत पतली हो जाये तो कौन-कौन से रोग होने की सम्भावना हो सकती है?
उत्तर-
ओजोन परत द्वारा अवशोषित विकिरण पराबैंगनी विकिरण।
ओजोन परत के ह्रास होने के कारण – ऐरोसॉल या क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFC) की क्रिया के कारण। सुपरसोनिक विमानों में ईंधन के दहन से उत्पन्न पदार्थ व नाभिकीय विस्फोट भी ओजोन परत के ह्रास होने के कारण हैं। ओजोन परत के पतली होने पर सम्भावित रोग-त्वचा कैंसर।

प्रश्न 15.
वायु प्रदूषण क्या है? इसके मुख्य स्रोत क्या हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वायु प्रदूषण – जब वायु के विभिन्न अवयवों में किसी प्रकार का आनुपातिक असंतुलन होता है तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है।
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत दो प्रकार के हैं :
(i) प्राकृतिक स्रोत (Natural Source)
(ii) मानवनिर्मित स्रोत (Man-made Source)

(i) प्राकृतिक स्रोत – इनमें वनों में लगी आग, ज्वालामुखी, आँधी और तूफान, कार्बनिक पदार्थों का अपघटन आदि सम्मिलित हैं।
(ii) मानवनिर्मित स्रोत – इनमें जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि, वनों की कटाई, शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण सम्मिलित हैं। मानव भी अपने क्रिया-कलापों द्वारा अन्य वायु प्रदूषकों को वायुमण्डल में छोड़ता रहता है जैसे-कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, लैड, आर्सेनिक, एस्बेस्टस तथा रेडियोधर्मी पदार्थों का वायुमण्डल में मिलना।

प्रश्न 16.
जीवों से नाइट्रोजन वायुमण्डल में कैसे वापस पहुँचती है?
उत्तर-
जन्तुओं से नाइट्रोजन पुनः वायुमण्डल में निम्नलिखित चरणों में लौटा दी जाती है-

  1. शाकाहारी जन्तुओं में उत्सर्जी पदार्थों (मल-मूत्र आदि) के साथ नाइट्रोजन पुनः मृदा में पहुँच जाती है।
  2. पौधों तथा जन्तुओं के मृत शरीरों का विघटन जीवाणुओं तथा कवकों द्वारा होता है, जिससे नाइट्रोजन मृदा में पहुँचती है।
  3. मृदा में उपस्थित प्यूट्रिफाइंग बैक्टीरिया (Putre fying bacteria) उत्सर्जी पदार्थों एवं प्रोटीनों का विघटन करके उन्हें अमोनिया यौगिकों में बदल देते हैं। इस क्रिया को अमोनीकरण (Ammoni fication) कहते हैं।
  4. मृदा में उपस्थित नाइट्रीकारी जीवाणु (Nitrifying bacteria) अमोनिया को दो चरणों में नाइट्रेट में बदल देते हैं।
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  5. विनाइट्रीकरण बैक्टीरिया, जैसे-ल्यूडोमोनास, मृदा में उपस्थित नाइट्रेटों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते हैं जो पुनः वायुमण्डल में मुक्त हो जाती है।

प्रश्न 17.
ADP तथा ATP के पूरे नाम लिखिए। जीवों में इनका कार्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ADP एडिनोसीन डाईफॉस्फेट (Adinocine Diphosphate),
ATP एडिनो सीन ट्राईफॉस्फेट (Adinocine Triphosphate)
जीवों की कोशिकाओं में श्वसन क्रिया द्वारा ऊर्जा को, ADP अवशोषित करके ATP में बदल जाता है-अर्थात् ऊर्जा का अतिरिक्त फॉस्फेट बंध में संचय करता है। शरीर द्वारा कार्य करने के लिए आवश्यक होने पर ATP पुनः ADP में बदल जाता है तथा संचित ऊर्जा को मुक्त करके, शरीर की पेशियों को उपलब्ध कराता है।

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प्रश्न 18.
श्वसन (Respiration) एवं साँस लेने (Breathing) में क्या अन्तर है?
उत्तर-
जीवों की कोशिकाओं में ग्लूकोज के ऑक्सीजन से संयोग करके कार्बन डाई-ऑक्साइड एवं जल में बदलने तथा ऊर्जा मुक्त होने की क्रिया को श्वसन कहते हैं। जन्तुओं (UPBoardSolutions.com) के शरीर में वायुमण्डल से ऑक्सीजन खचने तथा कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर निकालने की क्रिया को ‘साँस लेना’ कहते हैं।
श्वसन एक रासायनिक अभिक्रिया है जबकि ‘साँस-लेना’ एक यान्त्रिक क्रिया है।

प्रश्न 19.
आवश्यक समीकरण देकर बताए कि ‘श्वसन’ तथा ‘प्रकाश-संश्लेषण’ क्या अन्तर है?
उत्तर-
‘श्वसन’ तथा ‘प्रकाश-संश्लेषण’ परस्पर विपरीत अभिक्रियाएँ हैं। श्वसन में ग्लूकोज ऑक्सीजन से संयोग होकर कार्बन डाइऑक्सइड तथा जल बनाता है।
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एवं ऊर्जा मुक्त होती है, जबकि प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के संयोजन से ग्लूकोज बनता है तथा ऊर्जा अवशोषित होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नप्रश्न

प्रश्न 1.
जल-चक्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जल चक्र (Water Cycle) – जल जीवधारियों के लिए अनिवार्य पदार्थ है। जीवधारियों के शरीर का सबसे बड़ा अंश लगभग 80-90 प्रतिशत जल होता है। जीवधारी जल को वायुमण्डल (वर्षा द्वारा) या भूमि से प्राप्त करते हैं। सौर ऊष्मा के, कारण झीलों, तालाबों, नदियों, समुद्र आदि का जल जलवाष्प बनकर वायुमण्डल में एकत्र हो जाता है और बादल बनते हैं-उनसे वर्षा, ओलावृष्टि के रूप में जल पुनः पृथ्वी पर वापस आ जाता है। मृदा जल को अवशोषित कर पौधे प्रकाश-संश्लेषण क्रिया करते हैं तथा शेष जल पत्तियों (UPBoardSolutions.com) और खुले भागों द्वारा वाष्पोत्सर्जित होकर पुनः वातावरण में पहुँच जाता है। जन्तु जल का उपयोग भोजन में तथा पीने में करते हैं तथा मूत्र के रूप में उत्सर्जित करके वापस वातावरण को पहुँचाते हैं। जीवधारियों के श्वसन से भी जल वातावरण में लौटता है।

जीवधारियों की मृत्यु के पश्चात् अपघटकों द्वारा जल वापस वातावरण में पहुँच जाती है। इस प्रकार जीवधारी जितना जल वातावरण से प्राप्त करते हैं, किसी-न-किसी क्रिया द्वारा वापस वातावरण में पहुँचा देते हैं।
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प्रश्न 2.
नाइट्रोजन चक्र का वर्णन कीजिए।
अथवा
नाइट्रोजन स्थिरीकरण से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए कि वायुमण्डल से मृदा को नाइट्रोजन किस प्रकार प्राप्त होती है?
उत्तर-
नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle) – वायुमण्डल का लगभग 78% भाग नाइट्रोजन गैस है। परन्तु सभी जीव (जीवाणु-एजोबैक्टर आदि को छोड़कर) इसका सीधा उपयोग नहीं कर सकते। इसके लिए नाइट्रोजन का नाइट्रेट लवणों के रूप में परिवर्तन आवश्यक होता है। वायुमण्डल की मुक्त नाइट्रोजन को जीवनोपयोगी नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तन की क्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) कहते हैं।
प्रकृति में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण तीन प्रकार से होता है-

1. विद्युत तड़ित से नाइट्रोजन स्थिरीकरण – आकाश में बिजली चमकने के समय वातावरणीय नाइट्रोजन वायु की ऑक्सीजन के साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड बनाती है। यह वर्षा के जल के साथ मिलकर नाइट्रिक अम्ल बनाता है और जल द्वारा जीवों के शरीर व मृदा में पहुँच जाता है। मृदा के क्षारीय तत्त्वों (लाइमस्टोन) से क्रिया करके नाइट्रेट बनता है और भूमि में स्थिर हो जाता है।
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2. जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण – लेग्यूमिनस पौधों (जैसे-मटर, सेम, चना और दलहनी पौधे) की जड़ों की गाँठों में राइजोबियम जीवाणुओं (Rhizobium bacteria) का वास होता है जो नाइट्रोजन को उसके यौगिकों में परिवर्तित करके पौधों के लिए उपयोगी बना देते हैं। कुछ अदलहनी पौधे जैसे गिन्कगो (Ginkgo) और एल्नस (Alnus) भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।

3. नीली-हरी शैवाल द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण – नीली-हरी शैवाल धान के खेतों में पायी जाती है। ये शैवाल नाइट्रोजन को उसके उपयोगी यौगिकों में परिवर्तित कर देती है।

4. नाइट्रोजन का औद्योगिक स्थिरीकरण – औद्योगिक क्षेत्र में नाइट्रोजन स्थिरीकरण को कृत्रिम स्थिरीकरण कहते हैं। कारखानों में वायुमण्डलीय N2 व H2 गैसें अमोनिया (NH3) बनाती हैं, NH3 ऑक्सीकृत होकर नाइट्रेट का निर्माण करती है। यह अम्लों से क्रिया करके अमोनिया लवण का निर्माण करता है। ये कृत्रिम उर्वरक (Fertilizers) के रूप में उपयुक्त होते हैं। इस विधि को हैबर की विधि (Haber’s Process) कहते हैं, जैसे- अमोनियम सल्फेट [(NH4)2SO4], अमोनियम फॉस्फेट [(NH4)3PO4], अमोनियम नाइट्रेट NH4NO3 आदि।
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उपर्युक्त विधियों से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन मृदा में नाइट्रेटों के रूप में पहुँच जाती है। पौधे अपनी जड़ों के द्वारा अवशोषित करके इन्हें ऐमीनो अम्लों में परिवर्तित करते हैं। तथा ऐमीनो अम्ल बहुलीकरण (Polymerisation) की क्रिया से प्रोटीनों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार नाइट्रोजन
आहार श्रृंखला में प्रवेश करती है तथा शाकाहारी उपभोक्ताओं एवं अन्ततः मांसाहारी उपभोक्ताओं में पहुँचती है।

नाइट्रोजन का वायुमण्डल में पुनः प्रवेश – इन उपभोक्ताओं (पौधों एवं जन्तुओं) से नाइट्रोजन पुनः वायुमण्डल में निम्नलिखित चरणों में लौटा दी जाती है

  • शाकाहारी जन्तुओं में उत्सर्जी पदार्थों (मल-मूत्र आदि) के साथ नाइट्रोजन पुनः मृदा में पहुँच जाती है।
  • पौधों तथा जन्तुओं के मृत शरीरों का विघटन जीवाणुओं तथा कवकों द्वारा होता है, जिससे नाइट्रोजन मृदा में पहुँचती है।
  • मृदा में उपस्थित प्यूट्रिफाइंग बैक्टीरिया (Putrifying bacteria) उत्सर्जी पदार्थों एवं प्रोटीनों का विघटन करके उन्हें अमोनिया यौगिकों में बदल देते है। इस क्रिया को अमोनीकरण (Ammonification) कहते हैं।
  • मृदा में उपस्थित नाइट्रीकारी जीवाणु (Nitrifying bacteria) अमोनया को दो चरणों में नाइट्रेट में बदल देते हैं।
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  • विनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया, जैसे-स्यूडोमोनास, मृदा में उपस्थित नाइट्रेटों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते हैं जो पुन: वायुमण्डल में मुक्त हो जाती है।

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प्रश्न 3.
कार्बन चक्र का वर्णन कीजिए।
अथवा
कार्बन-चक्र का रेखाचित्र बनाइए। इसमें असन्तुलन का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर-
कार्बन चक्र (Carbon Cycle) – जीवधारियों में पाये जाने वाले सभी कार्बनिक यौगिकों में कार्बन उपस्थित होता है। कार्बन के प्रमुख स्रोत हैं-वायुमण्डल, समुद्र तथा कार्बोनेट चट्टानें (जैसे चूना-पत्थर), कोयला और पेट्रोलियम्। कार्बन वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में लगभग 0.03% से 0.04% (2.3 x 1012 टन) होती है। समुद्र में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 1.3 x 1013 टन है। इन दोनों स्थानों में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड एक-दूसरे से सन्तुलन बनाये रखती है। वायुमण्डल तथा समुद्र में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड, जीवनमण्डल और स्थलमण्डल की कार्बन डाइऑक्साइड के साथ निरन्तर आदान-प्रदान करती रहती है।
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जीवमण्डल के उत्पादक (क्लोरोफिलयुक्त पौधे) प्रकाश-संश्लेषण के लिए वायुमण्डल से कार्बन डाइ-ऑक्साइड लेते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा का उपयोग रसायन संश्लेषी जीव भी करते हैं। इसके अतिरिक्त समुद्र में पाये जाने वाले पौधे भी कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा का सीधा उपयोग करते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड के जीवमण्डल में पहुँचने के बाद कार्बन आहार श्रृंखला द्वारा उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक और इन दोनों से अपघटकों (UPBoardSolutions.com) तक पहुँचता है।
जीवमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड की लगभग समान मात्रा निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं द्वारा प्रतिवर्ष वायुमण्डल में वापस लौटती है|
1. उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटकों के श्वसन द्वारा, और
2. ईंधन (लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि) को जलाने पर।
इन स्रोतों के अतिरिक्त समुद्र में स्थित कैल्शियम कार्बोनेट की चट्टानें (चूना-पत्थर), चट्टानों का अपक्षय (weathering), गरम झरने, ज्वालामुखी, इत्यादि भी वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड विमोचित करते है।

वायुमण्डल में CO2 की अधिकता जीवाश्मीय ईंधन का अधिक उपयोग करने से तथा वनों के विनष्टीकरण के फलस्वरूप होती है। वायुमण्डल में CO2 की अधिकता के फलस्वरूप एक आवरण-सा बन जाता है जो सौर विकिरण के लिए पारदर्शी होता है। यह दृश्य प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने देता है किन्तु पुनः विकिरण के रूप में लौटी ऊष्मीय तरंगों को रोक लेता है। ऊष्मा वापस पृथ्वी पर लौटा दी जाती है, इसके फलस्वरूप ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न होता है। सामान्य स्थिति में इसके फलस्वरूप पौधों के उत्पादन में वृद्धि होती है, लेकिन वायुमण्डलीय ताप बढ़ जाने का दुष्प्रभाव जीवधारियों को परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।

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प्रश्न 4.
ऑक्सीजन-चक्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ऑक्सीजन-चक्र (Oxygen Cycle) – वायुमण्डल में लगभग 21% ऑक्सीजन स्वतन्त्र रूप में है। स्वच्छ एवं समुद्री जल में भी जल तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड के रूप में ऑक्सीजन होती है। मृदा में कार्बोनेट्स ([latex]{ CO }_{ 3 }^{ – }[/latex]) नाइट्रेट्स ([latex]{ NO }_{ 3 }^{ – }[/latex]) सल्फेट्स ([latex]{ SO }_{ 4 }^{ – }[/latex]) तथा फॉस्फेट्स ([latex]{ PO }_{ 4 }^{ — }[/latex]) आदि के रूप में ऑक्सीजन होती है।

ऑक्सीजन-चक्र के चरण निम्नवत हैं-

  • श्वसन क्रिया में सभी जीव (जन्तु तथा पौधे) वायु से ऑक्सीजन लेते हैं। जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन हेतु उपयोग करते हैं।
  • श्वसन क्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनता है जो वायुमण्डल में अथवा जलमण्डल में छोड़ दिया जाता है।
  • मानव के क्रिया-कलापों में ईंधनों के दहन में भी वायुमण्डल की ऑक्सीजन व्यय होती है तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड बनती है।
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    प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे वायुमण्डल में छोड़ी गयी कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल का उपयोग करके जटिल कार्बनिक पदार्थ (ग्लूकोज, C6H12O6) बनाते हैं तथा वायुमण्डल में ऑक्सीजन को मुक्त करते हैं।

इस प्रकार जन्तुओं के श्वसन, ईंधनों के दहन तथा पौधों के प्रकाश-संश्लेषण की अभिक्रियाओं के द्वारा प्रकृति में ऑक्सीजन का चक्रण होता है।

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प्रश्न 5.
जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? जले किस प्रकार प्रदूषित होता है। इसे कैसे नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर-
जल प्रदूषण (Water Pollution) – स्वच्छ जल में घुलित खनिज तत्त्व तथा लवण आदि संतुलित मात्रा में पाए जाते हैं। जल में विषाक्त पदार्थ जैसे-कारखानों के अपशिष्ट उत्पाद, रासायनिक पदार्थ, वाहित मल, कूड़ा-करकट आदि के मिलने से जल दूषित हो जाता है। इसे जल प्रदूषण कहते हैं। वह जल जो मनुष्य के उपयोग योग्य नहीं होता और जिससे रोग हो सकते हैं, प्रदूषित जल कहलाता है। इसमें हानिकारक कीटाणु, जीवाणु तथा पीड़कनाशक आदि हो सकते हैं। प्रदूषण के कारण जल पीने योग्य नहीं रहता है।

जल प्रदूषण का मुख्य स्रोत कार्बनिक पदार्थ, अपमार्जक आदि हैं। कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से पानी में गंध आने लगती है और वह प्रदूषित हो जाता है अर्थात् जल में भौतिक (Physical), रासायनिक (Chemical) व जैविक (Biological) परिवर्तन होने पर वह प्रदूषित हो जाता है।
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय-

  • वाहित मल, घर से निकले हुए अपमार्जक तथा गंदे जल को शहर के निकट नदियों या तालाबों में न गिराकर नालियों द्वारा बाहर ले जाकर आबादी से दूर गिराना चाहिए।
  • कारखानों से निकलने वाले विषैले अपशिष्ट पदार्थों एवं गर्म जल को जलाशयों, नदियों या समुद्रों में नहीं गिराना चाहिए।
  • कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को उपचारित करके ही नदियों आदि में गिराया जाना चाहिए।
  • कीटनाशकों का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि उस खेत का जल पीने वाले जलाशयों में बहकर न जाए।
  • कूड़ा-करकट को जलाशयों में न डालकर शहर से बाहर किसी गड्ढे में डालकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।

अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. ऑक्सीजन किन स्रोतों से प्राप्त होती है?
(a) वायुमण्डल से
(b) जलमण्डल से
(c) उपर्युक्त दोनों से
(d) स्थलमण्डल से।

2. सौर-ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन होता है
(a) प्रकाश-संश्लेषण द्वारा
(b) श्वसन द्वारा
(c) उत्सर्जन द्वारा
(d) वाष्पोत्सर्जन द्वारा।

3. वायुमण्डल कहलाता है
(a) पृथ्वी का वह ठोस भाग जिसमें जीव हों
(b) पृथ्वी का जल से आच्छादित भाग
(c) पृथ्वी के ऊपर गैसीय भाग
(d) उपर्युक्त सभी।

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4. भू-मण्डल कहलाता है
(a) पृथ्वी का वह ठोस भाग जिसमें जीव हों
(b) पृथ्वी का जल से आच्छादित भाग
(c) पृथ्वी के ऊपर गैसीय भाग
(d) उपर्युक्त सभी।

5. जल-चक्र का संचालन मुख्य रूप से होता है
(a) प्रकाश-संश्लेषण द्वारा
(b) वाष्पन द्वारा
(c) वर्षा द्वारा
(d) उपर्युक्त सभी से।

6. जैवमण्डल में पोषक तत्वों एवं पदार्थों का प्रवाह है
(a) उत्क्रमणीय
(b) एक ही दिशा में
(c) पहले एक दिशा में व बाद में उत्क्रमणीय
(d) चक्रीय

7. निम्न में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाला जीव है
(a) सूडोमोनाज
(b) नाइट्रोसोमोनाज
(c) राइजोबियम
(d) नाइट्रोबैक्टर।

8. निम्न में विनाइट्रीकरण वाला जीव है
(a) सूडोमोनाज
(b) नाइट्रोसोमोनाज
(c) राइजोबियम
(d) नाइट्रोबैक्टर।

9. अमोनीकरण करने वाला जीव है
(a) सूडोमोनाज
(b) नाइट्रोसोमोनाज
(c) राइजोबियम
(d) नाइट्रोबैक्टर।

10. नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदलने की प्रक्रिया कहलाती है-
(a) नाइट्रोजन स्थिरीकरण
(b) नाइट्रीकरण
(c) अमोनीकरण
(d) विनाइट्रीकरण

11. कारक जो मृदा के निर्माण में सहायक है-
(a) सूर्य
(b) जल
(c) वायु
(d) उपर्युक्त सभी।

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12. हानिकारक पराबैंगनी विकिरण रोक लिया जाता है-
(a) ऑक्सीजन परत द्वारा
(b) ओजोन परत द्वारा
(c) नाइट्रोजन परत द्वारा
(d) उपर्युक्त सभी से।

13. वातावरण में CO2 की कमी होती है-
(a) ईंधनों के दहन से
(b) प्रकाश संश्लेषण से
(c) श्वसन से
(d) दहन व श्वसन दोनों से।

14. पर्यावरण को स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्द्धक रखने के लिए-
(a) प्राकृतिक सम्पदा का बिल्कुल उपयोग न करें।
(b) प्राकृतिक सम्पदा का अति उपयोग करें
(c) प्राकृतिक सम्पदा का समुचित व आनुपातिक उपयोग करें।
(d) प्राकृतिक सम्पदा व पर्यावरण का कोई सम्बन्ध नहीं है।

15. सामान्य मनुष्य को चाहिए प्रतिदिन
(a) 100 – 110 किग्रा वायु
(b) 200 – 210 किग्रा वायु
(c) 250 – 265 किग्रा वायु
(d) 350 – 365 किग्रा वायु

16. मृदा एक प्राकृतिक संसाधन है जो
(a) जीवित रहने के विकास के लिए आवश्यक है।
(b) खाद्य-पदार्थ, कपड़े व आश्रय प्रदान करता है।
(c) पौधों को आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
(d) उपर्युक्त सभी।

उत्तरमाला

  1. (c)
  2. (a)
  3. (c)
  4. (a)
  5. (b)
  6. (d)
  7. (c)
  8. (a)
  9. (b)
  10. (b)
  11. (d)
  12. (b)
  13. (b)
  14. (c)
  15. (c)
  16. (d)

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UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 1 Matter in Our Surroundings

UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 1 Matter in Our Surroundings (हमारे आस-पास के पदार्थ)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या-4)

प्रश्न 1.
निम्न में से पदार्थ छाँटो-कुर्सी, वायु, स्नेह, गन्ध, घृणा, बादाम, विचार, शीत, शीतल पेय, इत्र की सुगन्ध।
उत्तर-
पदार्थ निम्न हैं-कुर्सी, वायु, बादाम तथा शीतल पेय पदार्थ, यह सभी स्थान घेरते हैं तथा इन सभी का द्रव्यमान होता है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रेक्षण के कारण बताइए : गरमा-गरम खाने की गंध कई मीटर दूर से ही आपके पास पहुँच जाती है, लेकिन ठंडे खाने की महक लेने के लिए आपको उसके पास जाना पड़ता है।
उत्तर-
किसी पदार्थ की गंध या महक हमें तब अनुभव होती है जब गंध के कण वायु में मिश्रित होकर हमारी नाक तक पहुँचते हैं। यह भी जानते हैं कि कणों का विसरण किसी माध्यम में (UPBoardSolutions.com) उच्च ताप पर अधिक तथा निम्न ताप पर कम होता है। इसलिए गरमा-गरम खाने की गंध तेजी के साथ कई मीटर दूर तक पहुँच जाती है। लेकिन ठंडे खाने की गंध लेने के लिए हमें उसके पास जाना पड़ता है।

प्रश्न 3.
स्वीमिंग पूल में गोताखोर पानी काट पाता है। इससे पदार्थ का कौन-सा गुण प्रेक्षण होता है?
उत्तर-
स्वीमिंग पूल में गोताखोर पानी काट पाता है। क्योंकि जल के कणों के मध्य आकर्षण बल होता है जो कणों को साथ-साथ रखता है।

प्रश्न 4.
पदार्थ के कणों की क्या विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर-
पदार्थ के कणों की विशेषताएँ

  1. पदार्थ के कणों के मध्य एक आकर्षण बल उपस्थित होता है।
  2. पदार्थ के कणों के मध्य (UPBoardSolutions.com) पर्याप्त रिक्त स्थान होता है।
  3. पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते रहते हैं।
  4. पदार्थ के तीन रूप ठोस, द्रव और गैस हैं। पदार्थ की ये अवस्थाएँ उसके कणों की विभिन्न विशेषताओं के कारण होती हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 6)

प्रश्न 1.
किसी तत्त्व के द्रव्यमान प्रति इकाई आयतन को घनत्व कहते हैं। (घनत्व = द्रव्यमान/ आयतन) घनत्व बढ़ने के साथ निम्नलिखित को आरोही क्रम में लिखो -वायु, चिमनी का , शहद, पानी, चॉक, रूई और लोहा।
उत्तर-
घनत्व के बढ़ते क्रम में पदार्थ :
वायु < चिमनी का धुआँ < रुई < पानी < शहद < चॉक < लोहा।

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प्रश्न 2.
(a) पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं के गुणों में होने वाले अंतर को तालिकाबद्ध कीजिये।
उत्तर-
(a) पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं में निम्नलिखित अन्तर पाये जाते हैं-
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(b) निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-दृढ़ता, संपीड्यता, तरलता, बर्तन में गैस का भरना, आकार, गतिज ऊर्जा एवं घनत्व।
उत्तर-
(i) दृढ़ता : दृढ़ता पदार्थों का वह गुण है। जिसके कारण बाह्य बल लगाने पर भी पदार्थ अपना आकार नहीं बदलते परन्तु बल लगाने पर वे टूट जाते हैं, जैसे ठोस पदार्थ दृढ़ होते हैं।

(ii) संपीड्यता : संपीड्यता का अर्थ है कि पदार्थ पर बल लगाने पर उसके कण एक-दूसरे के समीप आ जाएँ जिससे उसका आयतन कम हो जाये। ठोस पदार्थों को तथा द्रवों का संपीडन नहीं किया जा सकता। गैसों को आसानी से संपीडित किया जा सकता है।

(iii) तरलता : तरलता का अर्थ है बहाव। ऐसे पदार्थ जो बह सकते हैं तरल या द्रव पदार्थ कहलाते हैं। कुछ पदार्थ आसानी से बहते हैं जैसे जल, दूध आदि परन्तु कुछ पदार्थ धीरे बहते हैं जैसे शहद, ग्लिसरीन।।

(iv) बर्तन में गैस का भरना : गैसों को आसानी से संपीडित किया जा सकता है इसलिए गैसों के अत्यधिक आयतन को एक कम आयतन वाले सिलेण्डर में संपीडित करके (UPBoardSolutions.com) भरा जा सकता है जैसे द्रवित पैट्रोलियम गैस (L.P.G.), अस्पतालों में दिये जाने वाले ऑक्सीजन सिलेण्डरों में भी सपीडित करके गैस को भरा जाता है। इसी प्रकार संपीडित प्राकृतिक गैस (C.N.G.) को भी अधिक ताप पर गैस सिलेण्डरों में भरा जाता है।

(v) आकार : यदि पदार्थ के कणों के बीच आकर्षण बल बहुत अधिक हो तो उनका आकार निश्चित होता है, जैसे ठोस पदार्थों का आकार निश्चित होता है। परन्तु तरल पदार्थ के कणों के मध्य आकर्षण बल कम होने के कारण आकार निश्चित नहीं होता। वे उसी बर्तन का आकार ग्रहण कर लेते हैं जिसमें उन्हें रखा जाता है। इसी प्रकार गैसीय पदार्थों का आकार भी निश्चित नहीं होता है।

(vi) गतिज ऊर्जा एवं घनत्व : पदार्थ के कण सदैव गतिशील रहते हैं जिनके कारण उनमें गतिज ऊर्जा होती है। ठोस पदार्थों के कणों की गतिज ऊर्जा बहुत कम होती है तरल पदार्थों में ठोस पदार्थों से अधिक तथा गैसीय पदार्थ की गतिज ऊर्जा सबसे अधिक होती है।
घनत्व किसी पदार्थ के एक इकाई आयतन का द्रव्यमान होता है। सामान्यतः येस पदार्थों का घनत्व अधिक होता है। गैसीय पदार्थों के कणों के मध्य खाली स्थान बहुत अधिक होता (UPBoardSolutions.com) है इनकी गतिज ऊर्जा भी बहुत अधिक होती है परन्तु इनका घनत्व ठोस तथा द्रवों की अपेक्षा बहुत कम होता है।

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प्रश्न 3.
कारण बताएँ
(a) गैस पूरी तरह उस बर्तन को भर देती है, जिसमें इसे रखते हैं।
(b) गैस बर्तन की दीवारों पर दबाव डालती है।
(c) लकड़ी की मेज ठोस कहलाती है।
(d) हवा में हमें आसानी से अपना हाथ चला सकते हैं, लेकिन एक ठोस लकड़ी के टुकड़े में हाथ चलाने के लिए हमें कराटे में दक्ष होना पड़ेगा।
उत्तर-
(a) गैस पूरी तरह उस बर्तन को भर देती है। जिसमें उसे हम रखते हैं क्योंकि उच्च गतिज ऊर्जा तथा नगण्य आकर्षण बलों के कारण, गैस के अणु उच्च वेग से सभी दिशाओं में गतिशील होते रहते हैं।
(b) तेजी से गति करते हुए, जब गैस के अणु बर्तन की दीवारों से टकराते हैं, वे दाब डालते रहते हैं। गैस द्वारा डाला गया दाब तेजी से गति करने वाले गैस-अणुओं की बर्तन की दीवारों से टक्करों के कारण होता है।
(c) लकड़ी की मेज ठोस कहलाती है, क्योंकि इसका (UPBoardSolutions.com) आकार तथा आयतन निश्चित होता है।
(d) हवा में हाथ आसानी से चला सकते हैं क्योंकि हवा के अणु आसानी से काटे जा सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कणों के बीच बहुत कम बल लगी होता है। जबकि लकड़ी के कणों के बीच बहुत कम स्थान होता है,
अत: उनके बीच अत्यधिक बल लगा होता है। उसमें हाथ चलाने के लिए हमें कराटे में दक्ष होना पड़ेगा।

प्रश्न 4.
सामान्यतया ठोस पदार्थों की अपेक्षा द्रवों का घनत्व कम होता है। लेकिन आपने बर्फ के टुकड़े को पानी पर तैरते देखा होगा। पता लगाइए ऐसा क्यों होता है?
उत्तर-
बर्फ का टुकड़ा पानी पर तैरता है क्योंकि यह अपने अधिक आयतन के कारण अपने द्रव्यमान से अधिक पानी हटा सकता है। इसीलिए बर्फ का टुकड़ा तैरता रहता है। बर्फ का आयतन अपने उस जल से जिससे वह बना होता है अधिक होता है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 9)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तापमान को सेल्सियस में बदलें-
(a) 300 K
(b) 573 K
उत्तर-
(a) K = °C + 273
°C = K – 273 = 300 – 273 = 27°C
(b) K = °C + 273
°C = K – 273 = 573 – 273 = 200°C

प्रश्न 2.
निम्नलिखित ताप पर जल की भौतिक अवस्था क्या होगी ?
(a) 250°C
(b) 100°C
उत्तर-
(a) 250°C ताप पर जल गैसीय अवस्था में बदल जायेगा।
(b) 100°C ताप पर जल द्रव तथा गैसीय अवस्था में बदल जायेगा।

प्रश्न 3.
किसी भी पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के दौरान तापमान स्थिर क्यों रहता है?
उत्तर-
किसी पदार्थ का ताप बढ़ाने पर वह एक निश्चित ताप पर अवस्था में परिवर्तन करके दूसरी भौतिक अवस्था प्राप्त कर लेता है। अब इसका ताप स्थिर रहता है क्योंकि अब समस्त (UPBoardSolutions.com) ऊष्मा अवस्था परिवर्तन में काम आती है तथा यह तब तक रहता है जब तक पदार्थ एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पूर्ण रूप से न बदल जाए, ऐसी ऊष्मा को पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

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प्रश्न 4.
वायुमंडलीय गैसों को द्रव में परिवर्तन करने के लिए कोई विधि सुझाइए।
उत्तर-
हम जानते हैं कि पदार्थ की अवस्थाएँ दाब व तापमान के द्वारा तय होती हैं। ताप कम करके व दाब बढ़ाकर पदार्थ की अवस्था परिवर्तन किया जा सकता है। वायुमण्डलीय गैस की ऊपर ऊँचाई पर ताप कम होने के कारण गैस संघनित होकर बादलों में बदल जाती है जो द्रव की छोटी-छोटी बूंदों से मिलकर बना होता है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 11)

प्रश्न 1.
गर्म, शुष्क दिन में कूलर अधिक ठंडा क्यों करता है ?
उत्तर-
कूलर के आधार में एक पानी भरने का बर्तन होता है। घनाकार बर्तन के एक फलक पर पंखा लगाया जाता है व अन्य तीन फलकों पर घास की चटाई। उन पर एक युक्ति का प्रयोग कर पानी गिराया जाता है, पंखा बाहरी हवा को अंदर खींचता है और पानी का वाष्पन होता है जिसके लिए वह (UPBoardSolutions.com) ऊष्मा अन्दर आने वाली हवा से ग्रहण करता है और हवा ठंडी हो जाती है।

प्रश्न 2.
गर्मियों में घड़े का जल ठंडा क्यों होता है?
उत्तर-
मिट्टी से बने घड़े में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। जिनसे घड़े में भरा पानी रिसकर बाहर आ जाता है तथा वायुमंडल की गर्म वायु के संपर्क में आकर वाष्पीकृत हो जाता है। जल के वाष्प में परिवर्तित होने के लिए आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा घड़े के भीतर वाले जल से प्राप्त होती है। इससे घड़े के भीतर उपस्थित जल ठंडा हो जाता है।

प्रश्न 3.
ऐसीटोन/पेट्रोल या इत्र डालने पर हमारी हथेली ठंडी क्यों हो जाती है ?
उत्तर-
ऐसीटोन/पेट्रोल या इत्र शीघ्रता से वाष्पीकृत हो जाते हैं। जब इन पदार्थों को हथेली पर डाला जाता है | तो यह हथेली से ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं तथा वाष्पीकृत
हो जाते हैं। ऊर्जा (ताप) के रूस से हमारी हथेली ठंडी | हो जाती है।

प्रश्न 4.
कप की अपेक्षा प्लेट से हम गर्म दूध या चाय जल्दी क्यों पी लेते हैं ?
उत्तर-
वाष्पीकरण या वाष्पन एक सतही प्रक्रिया है। प्लेट की खुली सतह का क्षेत्रफल कप के क्षेत्रफल से | अधिक होता है, अतः प्लेट में दूध या चाय का वाष्पीकरण कप की अपेक्षा तेजी से होता है, व वे जल्दी ठंडे हो जाते हैं।

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प्रश्न 5.
गर्मियों में हमें किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिए ?
उत्तर-
गर्मियों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए। पसीने के वाष्पीकरण के दौरान पसीना हमारे शरीर या आसपास से ऊर्जा प्राप्त करके वाष्प में बदल जाता है। वाष्पीकरण की (UPBoardSolutions.com) गुप्त ऊष्मा के बराबर ऊष्मीय ऊर्जा हमारे शरीर से अवशोषित हो जाती है जिससे शरीर ठंडा हो जाता है। चूंकि सूती कपड़ों में पसीने का अवशोषण अधिक होता है, इसलिए हमारा पसीना इसमें अवशोषित होकर वायुमंडल में आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या-13-14)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तापमानों को सेल्सियस इकाई में परिवर्तित करें :
(a) 293 K
(b) 470 K
उत्तर-
(a) °C = K – 273 = 293 – 273 = 20°C
(b) °C = K – 273 = 470 – 273 = 197°C

प्रश्न 2.
निम्नलिखित तापमानों को केल्विन इकाई में परिवर्तित करें :
(a) 25°C
(b) 373°C
उत्तर-
(a) K = °C + 273 = 25 + 273 = 298 K
(b) K= °C + 273 = 373 + 273 = 646 K

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अवलोकनों हेतु कारण लिखें-
(a) नैफ्थलीन को रखा रहने देने पर यह समय के साथ कुछ भी ठोस पदार्थ छोड़े बिना अदृश्य हो जाती है।
उत्तर-
नैफ्थलीन एक ऊर्ध्वपातन पदार्थ है और वह ठोस अवस्था से सीधे गैस में (बिना द्रव बने) परिवर्तित हो जाता है।
अतः कोई अवशेष नहीं बचता।

(b) हमें इत्र की गन्ध बहुत दूर बैठे हुए भी पहुँच जाती है।
उत्तर-
इत्र के कण वायु के कणों के साथ शीघ्रता से विसरित होकर वायुमण्डल में फैल जाते हैं। इसी प्रकार चारों ओर फैलने के कारण हमें कई मीटर दूर बैठे भी गन्ध पहुँच जाती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पदार्थों को उनके कणों के बीच बढ़ते हुए आकर्षण के अनुसार व्यवस्थित करें –
(a) जल
(b) चीनी
(c) ऑक्सीजन
उत्तर-
ऑक्सीजन < जल < चीनी।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित तापमानों पर जल की भौतिक अवस्थाएँ क्या हैं ?
(a) 25°C
(b) 0°C
(c) 100°C
उत्तर-
(a) 25°C पर पानी द्रव अवस्था में होगा।
(b) 0°C पर पानी ठोस अवस्था में होगा क्योंकि पानी 0°C पर जम जाता है।
(c) 100°C पर पानी गैसीय अवस्था में होगा क्योंकि 100°C पर पानी वाष्प अवस्था में बदल जाता है।

प्रश्न 6.
पुष्टि हेतु कारण दें
(a) जल कमरे के ताप पर द्रव है
(b) लोहे की अलमारी कमरे के ताप पर ठोस होती है।
उत्तर-
(a) पानी कक्ष-ताप पर द्रव होता है क्योंकि इसका कोई निश्चित आकार नहीं होता, इसे जिस बर्तन में डाला जाता है उसी की आकृति जैसा बन जाता है। इसका निश्चित आयतन होता है, इसे फर्श पर डालने से ढलान की ओर रहता है|
अतः हम कह सकते हैं कि कक्ष -ताप (UPBoardSolutions.com) पर पानी द्रव है।
(b) लोहे की अलमारी कठोर व असंपीड्य है, इसका आकार निश्चित है इसीलिए यह ठोस है।

प्रश्न 7.
273 K पर बर्फ को ठंडा करने पर तथा जल को इसी तापमान पर ठंडा करने पर शीतलता का प्रभाव अधिक क्यों होता है ?
उत्तर-
273 K पर पानी के कणों की अपेक्षा बर्फ के कणों की ऊर्जा कम होती है। फलतः, बर्फ वातावरण से अधिक ऊष्मा अवशोषित कर सकता है। यही कारण है कि समान ताप पर होते हुए भी बर्फ पानी की अपेक्षा अधिक ठंडक पहुँचाता है।

प्रश्न 8.
उबलते हुए जल अथवा भाप में से जलने की तीव्रता किसमें अधिक महसूस होती है ?
उत्तर-
373 K पर वाष्प के कणों की ऊर्जा समान ताप पर पानी के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है। ऐसा वाष्प के कणों द्वारा वाष्पन की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊर्जा अवशोषित किए जाने के कारण होता है। अतः जब वाष्प त्वचा के संपर्क में आता है तो समान ताप पर उबलते पानी की अपेक्षा अधिक ऊर्जा मुक्त करता है। फलतः 373 K पर वाष्प द्वारा समान ताप पर उबलते पानी की अपेक्षा अधिक जलन पैदा होती है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित चित्र के लिए A, B, C, D, E तथा F की अवस्था परिवर्तन को नामांकित करें-
उत्तर-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 1 Matter in Our Surroundings image - 2

अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पदार्थ के कणों के आकार के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पदार्थ के कणों के आकार अत्यन्त सूक्ष्म हैं।

प्रश्न 2.
दो पदार्थों के नाम लिखिए जो ऊर्ध्वपातन करते हैं।
उत्तर-
अमोनियम क्लोराइड, कपुर।

प्रश्न 3.
दो गैसों के नाम बताइए जिन्हें घरों तथा अस्पतालों में संपीडित रूप में आपूर्ति की जाती है।
उत्तर-
LPG तथा ऑक्सीजन।

प्रश्न 4.
केल्विन पैमाने पर जल का क्वथनांक तथा हिमांक लिखिए।
उत्तर-
क्वथनांक = 373K, हिमांक = 273K

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-से पदार्थों का निश्चित आयतन है लेकिन निश्चित आकार नहीं ?
ऑक्सीजन, शर्करा, क्रिस्टल, लकड़ी, जल, वायु।
उत्तर-
जल

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प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-से पदार्थों को आकार व आयतन निश्चित नहीं है ?
ऑक्सीजन, शर्करा क्रिस्टल, लकड़ी, जल, वायु
उत्तर-
ऑक्सीजन तथा वायु।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार ‘पंचतत्त्व’ कौन-से हैं ?
उत्तर-
प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार ‘पंचतत्त्व’ हैं, पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और आकाश।

प्रश्न 8.
तरल क्या है? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
कोई भी पदार्थ जो बह सकता है और अपना आकार बदल सकता है, तरल कहलाता है, जैसे-द्रव तथा गैस।

प्रश्न 9.
जल में घुली ऑक्सीजन का एक उपयोग लिखिए।
उत्तर-
जलीय जीव जल में घुली ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं।

प्रश्न 10.
ठोस, द्रव एवं गैसों में किसकी संपीड्यता सबसे अधिक और किसकी सबसे कम है?
उत्तर-
गैसों की संपीड्यता सबसे अधिक और ठोसों की सबसे कम है।

प्रश्न 11.
ठोस, द्रव और गैस की दृढ़ता के घटते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर-
ठोस > द्रव > गैस

प्रश्न 12.
ठोस, द्रव व गैस में से किसको खुरची | जा सकता है ?
उत्तर-
ठोस को खुरचा जा सकता है।

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प्रश्न 13.
पदार्थ के कणों में गतिज ऊर्जा क्यों होती | है ?
उत्तर-
पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं. इसीलिए उनमें गतिज ऊर्जा उत्पन्न होती रहती है।

प्रश्न 14.
आप जल की धार को क्यों नहीं काट | पाते?
उत्तर-
जल के कणों के मध्य एक बल कार्य करता है जो उन्हें एक साथ बाँधे रखता है।

प्रश्न 15.
दो गैसों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर-
ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पसीना आने पर हमें पंखे के पास बैठने पर ठंडक क्यों अनुभव होती है ?
उत्तर-
पसीने के वाष्पन के लिए ऊष्मा शरीर से ली जाती है। पंखे में बैठने से वाष्पन की दर बढ़ जाती है और हमें ठंडक अनुभव होती है।

प्रश्न 2.
आर्द्रता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वायु के प्रति घन मीटर में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा आर्द्रता कहलाती है।

प्रश्न 3.
ऊर्ध्वपातन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
किसी पदार्थ का ठोस अवस्था से सीधा गैसीय अवस्था में बदलना ऊर्ध्वपातन कहलाता है।

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प्रश्न 4.
किन्हीं दो ऊर्ध्वपातन पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कपूर, अमोनियम क्लोराइड, नैफ्थलीन एवं शुष्क बर्फ।

प्रश्न 5.
उन कारकों को लिखिएँ जो किसी गैस को द्रवित करने में सहायक हैं।
उत्तर-
उच्च दाब व निम्न ताप दो ऐसे कारक हैं। जो किसी गैस को द्रवित करने में सहायक हैं।

प्रश्न 6.
फैला देने पर गीले कपड़े क्यों जल्दी सूखते हैं ?
उत्तर-
फैला देने पर गीले कपड़े जल्दी सूखते हैं। क्योंकि फैलाने से उनकी सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है। और जल के वाष्पन की दर बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
गलन की गुप्त ऊष्मा क्या है ?
उत्तर-
किसी पदार्थ के 1 किग्रा को उसके गलनांक पर ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा, गलन की गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

प्रश्न 8.
वाष्पन की गुप्त ऊष्मा क्या है ?
उत्तर-
किसी पदार्थ के 1 किग्रा को उसके क्वथनांक पर द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा, वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

प्रश्न 9.
गुप्त ऊष्मा का मात्रक क्या है ?
उत्तर-
गुप्त ऊष्मा का मात्रक है कैलोरी प्रति ग्राम या जूल प्रति किग्रा।

प्रश्न 10.
बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा क्या है?
उत्तर-
बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा 80 कैलोरी/ग्राम या 335 जूल/ग्राम या 335 x 103 जूल/किग्रा है।

प्रश्न 11.
जल के वाष्पन की गुप्त ऊष्मी क्या है?
उत्तर-
जल के वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 2260 जूल/ग्राम या 2260 x 103 जूल/किग्रा है।

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प्रश्न 12.
अन्तराणुक बलों के आधार पर ठोस, दुव तथा गैसों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ठोसों में अन्तराणुक बल अत्यधिक प्रबल होते हैं ताकि इसे बनाने वाले अवयव कण इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि उनके मध्य स्थान नगण्य होता है। इसी कारण ठोसों को संपीडित नहीं किया जा सकता तथा इनका घनत्व अधिक होता है।
द्रवों में अन्तराणुक बल इतने प्रबल होते हैं कि वे (UPBoardSolutions.com) अवयव कणों को एक साथ बाँधे रख सकें, लेकिन उतने प्रबल नहीं होते कि अवयव कणों की स्थिति निश्चित रख सकें। इसी कारण द्रवों का आकार निश्चित नहीं होता तथा द्रव बहते हैं। गैसों में अन्तराणुक बल नगण्य (अत्यधिक निर्बल) होते हैं। इसलिए गैसों के अवयव कण स्वतंत्र रूप से गतिशील होते हैं तथा उपलब्ध स्थान को घेर लेते हैं।

प्रश्न 13.
भौतिक अवस्था के आधार पर पदार्थ की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं ? उनमें अन्तर कीजिए।
उत्तर-
भौतिक अवस्था के आधार पर पदार्थ की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हैं-
(i) ठोस अवस्था
(ii) द्रव अवस्था
(iii) गैसीय अवस्था।
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प्रश्न 14.
वायुमण्डलीय गैसों का विसरण जलीय जीवों के लिए किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर-
वायुमण्डलीय गैसें, विशेषकर, ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड, विसरण द्वारा जल में घुल जाती हैं। घुलीं हुई ऑक्सीजन का उपयोग जलीय जन्तु श्वसन के लिए करते हैं। जलीय पादप जल में घुली हुई कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण द्वारा खाद्य निर्माण में करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या होता है जब एक ठोस पदार्थ को गर्म किया जाता है ?
उत्तर-
जब एक ठोस पदार्थ को गर्म किया जाता है, तब उसका तापमान बढ़ता जाता है या उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ती जाती है जिसके कारण पदार्थ के कण अधिक तेजी से कम्पन करने लगते हैं और कणों के मध्य की दूरी बढ़ती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब ऊष्मा (UPBoardSolutions.com) द्वारा प्रदत्त ऊर्जा कणों के आकर्षण बल के बराबर हो जाती है और ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाता है। यह तापमान पदार्थ का गलनांक कहलाता है।
अतः ‘‘किसी पदार्थ का गलनांक वह तापमान है। जिस पर कोई पदार्थ पिघलकर सामान्य वायुमंडलीय दाब पर द्रव में परिवर्तित हो जाता है।”
उदाहरण के लिए, बर्फ का गलनांक 273.16 K है। (सुविधा के लिए इसे हम 273 K लेते हैं।) K को ‘केल्विन’ कहते हैं।

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प्रश्न 2.
वाष्पीकरण या वाष्पन क्या है ? उन कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर वाष्पीकरण की दर निर्भर करती है।
उत्तर-
वाष्पीकरण या वाष्पन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई द्रव अपने क्वथनांक से भी कम ताप पर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है।
वायुमण्डल से ऊष्मा लेकर द्रव की खुली सतह के कण वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की दर निम्न कारकों पर निर्भर करती है :
(i) द्रव की खुली सतह : द्रव को छोटे या कम खुली सतह वाले बर्तन में रखने पर वाष्पन की दर कम और चौड़े या अधिक खुली सतह वाले बर्तन में अधिक होती है।
(ii) वायु का ताप : वायुमण्डल का ताप अधिक होने पर वाष्पीकरण की दर अधिक होती है।
(iii) वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता : वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता या नमी कम होने पर वाष्पीकरण की दर अधिक और अधिक होने पर कम होती है।
(iv) वायु की गति में वृद्धि : जब वायु की गति बढ़ जाती है तो जलवाष्प तेजी से दूर ले जायी जाती है जिससे आस-पास के स्थान में जलवाष्प की मात्रा कम हो जाती है और वाष्पन की दर बढ़ जाती है। यह सामान्य अनुभव की बात है कि तेज वायु में कपड़े जल्दी सूखते हैं।

प्रश्न 3.
कुछ मापने योग्य राशियों के S.I. मात्रक व प्रतीक लिखिए।
उत्तर-
कुछ मापने योग्य राशियाँ, उनके S.I. मात्रक एवं प्रतीक-
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प्रश्न 4.
गैसें बर्तन की दीवारों पर दाब क्यों डालती हैं ? संपीडित गैसों के सामान्य उदाहरण दीजिए व उनके उपयोग लिखिए।
उत्तर-
गैसीय अवस्था में, कण सभी दिशाओं में गतिशील रहते हैं और बर्तन की दीवारों से टकराते रहते हैं। और बर्तन की दीवारों पर दाब आरोपित करते हैं। सिलिंडर में गैस उच्च दाब (Pressure) पर भरी जाती है और वह अत्यधिक संपीडित होती है। वह गैस संपीडित गैस (Compressed gas) कहलाती है। अत्यन्त उच्च दाब पर संपीडित गैस द्रवित हो जाती है, इसे द्रवीकृत गैस (Liquefied gas) (UPBoardSolutions.com) कहते हैं। उदाहरणार्थ,
(i) घरों में खाना बनाने के लिए उपयोग किये जाने वाले सिलिंडर में उच्च दाब पर पेट्रोलियम गैस भरी जाती है जिसे द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquefied Petroleum Gas : LPG) कहते हैं।
(ii) संपीडित ऑक्सीजन (Compressed oxygen) अस्पतालों में प्रयोग की जाती है और मरीजों को दी जाती है जो सामान्य रूप से श्वसन नहीं कर पाते हैं।
(iii) संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas : CNG) का उपयोग आजकल एक स्वच्छ ईंधन (Clean fuel) के रूप में वाहन चलाने में किया जाता है।

प्रश्न 5.
विसरण क्या है ? जल में मिलाने पर किसका विसरण तेजी से होगा ठोस का या द्रव का ?
उत्तर-
विसरण : जब एक क्रिस्टल या द्रव की बूंद को जल में मिलाया जाता है, तो उसके कण धीरे-धीरे , समान रूप में जल में फैल जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जब दो अलग प्रकार के कणों वाले पदार्थ : सम्पर्क में होते हैं, तो उन पदार्थों के कणों का स्वत: मिश्रित । (intermixing) होना विसरण कहलाता है।
अतः ‘‘सम्पर्क में होने पर दो या अधिक प्रकार के कणों का स्वतः मिश्रित होना, विसरण कहलाता है।”
एक ठोस का दूसरे ठोस में विसरण संभव नहीं है या अत्यन्त कम है। एक ठोस का या एक द्रव का किसी द्रव में विसरण सामान्य प्रक्रिया है और किसी द्रव का अन्य द्रव में विसरण की दर ठोस की अपेक्षा अधिक होती है। ताप के साथ भी विसरण की दर बढ़ जाती है।

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प्रश्न 6.
बताइये क्यों गरमा-गरम खाने की गंध कई मीटर दूर से ही आपके पास पहुँच जाती है लेकिन ठंडे खाने की महक लेने के लिए आपको उसके पास जाना पड़ता है?
उत्तर-
किसी पदार्थ की गंध या महक हमें तभी अनुभव होती है जब महक के कण वायु में मिश्रित होकर हमारी नाक तक पहुँचते हैं। हम यह भी जानते हैं कि कणों को विसरण किसी माध्यम में उच्च ताप पर अधिक व निम्न ताप पर कम होता है। इसीलिए गरमा-गरम (उच्च ताप वाले) खाने की गंध तेजी के साथ कई मीटर दूर तक पहुँच जाती है लेकिन ठंडे (कम ताप वाले) खाने की गंध लेने के लिए हमें उसके पास जाना पड़ता है।

With the help of our online specific heat calculator you will be able to calculate the specific heat capacity instantly.

प्रश्न 7.
निम्न की परिभाषा दीजिए :
गुप्त ऊष्मा (Latent Heat), गलन की गुप्त ऊष्मा, वाष्पन की गुप्त ऊष्मा।
उत्तर-
गुप्त-ऊष्मा : किसी निश्चित ताप पर दी गयी ऊष्मा की वह मात्रा जो पदार्थ की भौतिक अवस्था में परिवर्तन करने के लिए दी जाती है, गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

गलन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Fusion or Melting) : ऊष्मा की वह मात्रा जो किसी पदार्थ के 1 किग्रा को उसके गलनांक पर ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने के लिए दी जाती है, गलन की गुप्त ऊष्मा कहलाती है। बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा 80 कैलोरी/ग्राम या 335 जूल/ग्राम है।

वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Vaporisation) : ऊष्मा की वह मात्रा जो किसी पदार्थ के 1 किग्रा को उसके क्वथनांक पर द्रव अवस्था से गैसीय| अवस्था में बदलने के लिये दी जाती है, वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहलाती है। भाप या वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 540 कैलोरी/ग्राम या 2260 जूल/ग्राम है।

प्रश्न 8.
पदार्थ की अवस्था पर ताप और दाब का क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ताप और दाब का पदार्थ की अवस्था पर प्रभाव पड़ता है। जब किसी ठोस को गर्म किया जाता है तो उसके कगों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। वे तेजी से कंपन करते हैं और अधिक स्थान ग्रहण करते हैं और वे फैलने लगते हैं। एक निश्चित तापमान पर वे आकर्षण के बंधन से मुक्त हो स्वतंत्रतापूर्वक घूमने लगते हैं। तब उसके अणुओं की गति नहीं बढ़ती और उनकी व्यवस्था और क्रम में परिवर्तन होने लगता है तब वे तरल अवस्था में बदल जाते हैं। तरल को गर्म करने से अणुओं का वेग बढ़ जाता है। उनकी गतिज ऊर्जा बढ़ (UPBoardSolutions.com) जाती है। तेज गति वाले अणुओं का संवेग जब उन पर भीतर की तरफ लग रहे बल से अधिक बढ़ जाता है तो वे वाष्प अवस्था में बदल जाते हैं और तरल की सतह से बाहर निकल आते हैं।

अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कणों के बीच सबसे कम आकर्षण बल है
(a) ठोसों में
(b) द्रवों में
(c) गैसों में
(d) इनमें से कोई नहीं

2. किसी ठोस का सीधे ही गैसीय अवस्था में बदलना कहलाता है
(a) वाष्पन।
(b) ऊर्ध्वपातन
(c) संघनन
(d) संगलन।

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3. ऊर्ध्वपातन पदार्थ हैं
(a) अमोनियम क्लोराइड
(b) नैफ्थेलीन
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं

4. किसी गैस को दृवित करने के लिए चाहिए
(a) उच्च ताप व दाब
(b) निम्न ताप व उच्च दाब
(c) निम्न ताप व दाब
(d) उच्च ताप व निम्न दाब

5. वाष्पीकरण वह प्रक्रम है जिसमें जल वाष्प में बदलता है
(a) 100°C पर
(b) अपने क्वथनांक पर
(c) अपने क्वथनांक से कम ताप पर
(d) कमरे के ताप परे

6. शुष्क बर्फ है
(a) बिना पानी वाली बर्फ
(b) ठोस कार्बन डाइऑक्साइड
(c) ठोस कार्बन मोनोक्साइड
(d) इनमें से कोई नहीं

7. कणों के मध्य सबसे कम स्थान होता है
(a) गैसों में
(b) द्रवों में
(c) ठोसों में ।
(d) इनमें से कोई भी नहीं

8. पदार्थ के कणों।
(a) के मध्य स्थान होता है।
(b) के मध्य आकर्षण बल होता हैं।
(c) में गतिज ऊर्जा होती है।
(d) उपर्युक्त सभी

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9. निम्न में पदार्थ नहीं है
(a) हवा
(b) गंध
(c) सर्दी
(d) शीतल पेय।

10. …….. तरल कहलाते हैं।
(a) स व द्रव
(b) द्रव व गैस
(c) ठोस व गैस
(d) ठोस, द्रव व गैस।

11. हम खुरच सकते हैं
(a) ठोस को
(b) द्रव को
(c) गैस को
(d) इनमें से कोई नहीं।

12. हम बहुत अधिक संपीडित कर सकते हैं
(a) ठोस को
(b) द्रव को
(c) गैस को
(d) इनमें से कोई नहीं।

13. ……. का आयतन निश्चित होता है, आकार नहीं।
(a) ठोस
(b) द्रव
(c) गैस
(d) इनमें से कोई नहीं।

14. बर्फ का गलनांक 0° लिया गया है
(a) फारेनहाइट पैमाने में
(b) केल्विन पैमाने में
(c) सेल्सियस पैमाने में
(d) गैलीलियो पैमाने में।

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15. आकार व आयतन निश्चित नहीं होता
(a) ठोसों में।
(b) द्रव में
(c) गैसों में
(d) इन सभी में

16. रसोईघर में प्रयोग करते हैं
(a) LPG
(b) MIC
(c) CNG
(d) ये सभी।

17. वाहनों में प्रयोग की जाती है
(a) LPG
(b) MIC
(c) CNG
(d) ये सभी।

18. बर्फ का गलनांक है
(a) 100°C
(b) 273 K
(c) 273°C
(d) 373 K

19. जल का क्वथनांक है
(a) 0°C
(b) 273 K
(c) 273°C
(d) 373 K

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20. गर्मियों में घड़े का जल निम्नलिखित प्रक्रमों में से किसके कारण ठंडा हो सकता है
(a) परासरण
(b) विसरण
(c) वाष्पोत्सर्जन
(d) वाष्पन ।

उत्तरमाला

  1. (c)
  2. (b)
  3. (c)
  4. (b)
  5. (c)
  6. (b)
  7. (c)
  8. (d)
  9. (c)
  10. (b)
  11. (a)
  12. (c)
  13. (b)
  14. (c)
  15. (c)
  16. (a)
  17. (c)
  18. (b)
  19. (d)
  20. (d)

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1
भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
(क) प्रत्येक व्यक्ति के लिए खाद्य उपलब्ध रहे।
(ख) लोगों के पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच में खाद्य रहे।

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प्रश्न 2.
कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर:
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अन्य क्षेत्र जो या तो भूमि के आधार पर गरीब हैं या जिनके पास बहुत कम भूमि है, क्रमशः खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं। प्राकृतिक प्रकोपों से प्रभावित लोग जो शहरों में पलायन करते हैं, वह भी खाद्य असुरक्षा के शिकार होते हैं। गर्भवती महिलाएँ एवं नर्सिंग माँ भी कुपोषण एवं खाद्य असुरक्षा स्तर का शिकार (UPBoardSolutions.com) होती है। उक्त के अलावा भूमिहीन अर्थात् थोड़ी या नाम मात्र की भूमि पर निर्भर लोगों को खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त लोगों की श्रेणी में हम शामिल कर सकते हैं जिनका विवरण इस प्रकार हैं

  1.  शहरी कामकाजी मजदूर ।
  2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों के लोग
  3.  प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोग
  4.  गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाएँ तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चे
  5.  पारम्परिक दस्तकार
  6. पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग
  7.  अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार
  8.  भिखारी

प्रश्न 3.
भारत में कौन-से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
उत्तर:
भारत में ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र आदि राज्य खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हैं।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि हरित क्रान्ति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे?
उत्तर:
भारत में सरकार ने स्वतन्त्रता के पश्चात् खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बनने का यथासम्भव प्रयास किया है। भारत में कृषि क्षेत्र में एक नयी रणनीति अपनायी गयी, जैसे-हरित क्रान्ति के कारण गेहूँ उत्पादन में वृद्धि हुई। गेहूँ की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में इस सफलता की (UPBoardSolutions.com) पुनरावृत्ति हुई। पंजाब और हरियाणा में सर्वाधिक वृद्धि दर दर्ज की गयी, जहाँ अनाजों का उत्पादन 1964-65 के 72.3 लाख टन की तुलना में बढ़कर 1995-96 में 3.03 करोड़ टन पर पहुँच गया, जो अब तक का सर्वाधिक ऊँचा रिकार्ड था। दूसरी तरफ, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अतः हरित क्रान्ति ने भारत को काफी हद तक खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है।

प्रश्न 5.
भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है। आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर देश बन चुका है। ऐसे में देश का कोई नागरिक खाद्य से वंचित नहीं होना चाहिए। वास्तविक अभ्यास एवं वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं है। लोगों को एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास खाद्य खरीदने के लिए आवश्यक राशि नहीं है। यह लोग दीर्घकालिक गरीब हैं जो कोई क्रय शक्ति नहीं रखते। इस वर्ग में भूमिहीन एवं बेरोज़गार लोग शामिल हैं।
खाद्य से वंचित सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में है-ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन परिवार जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं, कम वेतन पाने वाले लोग, शहरों में मौसमी रोजगार पाने वाले लोग। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों (इनमें से निचली जातियाँ) को या तो भूमि का आधार कमजोर होता है। वे लोग भी खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हैं और जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है। खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।

प्रश्न 6.
जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
किसी प्राकृतिक आपदा जैसे—सूखा, बाढ़ आदि के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट दर्ज की जाती है जिससे क्षेत्र विशेष में खाद्यान्न की कमी हो जाती है जिसकी वजह से खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ जाती हैं। समाज के निर्धन वर्ग के लोग ऊँची कीमतों पर खाद्यान्न नहीं खरीद पाते हैं। (UPBoardSolutions.com) यदि यह आपदा अधिक लंबे समय तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जो अकाल की स्थिति बन सकती है।

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प्रश्न 7.
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए।
उत्तर:
दीर्घकालिक भुखमरी यह मात्रा एवं/या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते (UPBoardSolutions.com) हैं। मौसमी भुखमरी-यह फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बन्धित हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे—बरसात के मौसम में अनियमित निर्माण के कारण श्रमिक को कम काम रहता है।

प्रश्न 8.
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत सरकार ने लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर खाद्य सुरक्षा प्रणाली अपनायी है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्त्योदय अन्न योजना के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।

(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली–केन्द्र सरकार, भारतीय खाद्य निगम के द्वारा किसानों से अधिप्राप्त अनाज को विनियमित कर राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। वर्तमान में देश के ज्यादातर क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्य सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है। राशन की दुकानों को उचित मूल्य की दुकानें कहते हैं। यहाँ चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के (UPBoardSolutions.com) लिए मिट्टी के तेल का भण्डारण और वितरण किया जाता है।

संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर.पी.डी.एस.) को 1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) को जून 1997 से सभी क्षेत्रों में गरीबों को लक्षित करने के सिद्धान्त को अपनाने के लिए प्रारम्भ की गई। यह पहला मौका था जब निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई।

(ख) अन्त्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.) और अन्नपूर्णा योजना (ए.ए.एस.)-ये योजनाएँ क्रमशः ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक समूहों पर लक्षित हैं। इस योजना का क्रियान्वयन पी.डी.एस. के पहले से ही मौजूद नेटवर्क के साथ जोड़ा गया।

प्रश्न 9.
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर:
सरकार बफर स्टॉक को कुछ निश्चित कृषि फसलों जैसे–गेहूँ, गन्ना आदि के लिए नियमित करता है। बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल को भण्डार है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों (UPBoardSolutions.com) से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है। इन फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले सरकार न्यूनतम समर्थित मूल्य की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं। ऐसा कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
टिप्पणी लिखें
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत
(ख) बफर स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत
(घ) उचित दर की दुकान
उत्तर:
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत-भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है। सरकार फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले न्यूनतम समर्थित मूल्य की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं।

(ख) बफर स्टॉक-अतिरिक्त भंडार गेहूँ एवं चावल जैसे अनाजों का स्टॉक है जो सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम से प्राप्त किया जाता है। इसका वितरण घाटे के क्षेत्रों एवं आवश्यक लोगों को किया जाता है।

(ग) निर्गमित कीमत-निर्गमित मूल्य पर सरकार द्वारा घाटे के क्षेत्रों में अनाज का वितरण किया जाता है, निर्गमित मूल्य कहलाती है। यह कीमत बाजार मूल्य की तुलना में कम होती है।

(घ) उचित दर वाली दुकानें भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती हैं।
राशन कि दुकानों में, जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, पर चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है। ये लोगों को सामान बाजार कीमत से कम कीमत पर देती है। अब अधिकांश क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं।

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प्रश्न 11.
राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
राशन की दुकानों के संचालन में आने वाली प्रमुख समस्यायें इस प्रकार हैं

  1. राशन की दुकान खोलने के लिए पर्याप्त मात्रा में उच्च कोटि की सीमित वस्तुओं का सरकार द्वारा उपलब्ध न किया जाना।
  2.  सभी सदस्यों का राशन न लेना।।
  3. घटिया वस्तुओं का न खरीदा जाना।
  4.  कुछ दुकानदारों द्वारा छल-कपट, धोखा-धड़ी, चोर बाजारी और काला बाजारी करना।
  5.  पर्याप्त मात्रा में राशन की दुकान का उपलब्ध न होना।
  6.  राशन की दुकानों का देहातों में दूर स्थित होना।

प्रश्न 12.
खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं। उदाहरणार्थ, तमिलनाडु में जितनी राशन की दुकानें हैं, उनमें से करीब 94 प्रतिशत सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर अन्य वस्तुएँ जैसे-दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से (UPBoardSolutions.com) प्रगति कर रही है। गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सरकारी समिति का उदाहरण है। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत सरकारी समितियों के और अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य और सम्बन्धित वस्तुएँ उपलब्ध कराई हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराष्ट्र के ‘एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस’ की खाद्य सुरक्षा में भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस संस्था ने महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क की सहायता की। यह संस्था गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम का संचालन करती है।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता का मुख्य कारण अखिल भारतीय स्तर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खाद्यान्नों की औसत उपभोग मात्रा 1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह है। बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति उपभोग को आँकड़ा 300 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह से भी कम हैं।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को किन आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है?
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अनेक आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। अनाजों से साढ़स भरे अन्न भंडारों के बावजूद भुखमरी की घटनाएँ हो रही है। भारतीय खाद्य निगम के भंडार अनाज से भी हैं। कहीं अनाज सड़ रहा है तो कुछ स्थानों पर चूहे अनाज खा रहे हैं।

प्रश्न 4.
सहायिकी (सब्सिडी) क्या है?
उत्तर:
सहायिकी (सब्सिडी) वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। सहायिकी से घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए, उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से किसानों तथा फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से विशेषतया खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों को अपनी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेहूं उपजाने के लिए प्रेरित किया जाता है जबकि मोटे अनाज गरीबों का प्रमुख भोजन है। धान की खेती के लिए सघन सिंचाई से पर्यावरण और जल स्तर में गिरावट आई है।

प्रश्न 6.
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 ई. के दशक में हुई। इस अकाल में 30 लाख से अधिक लोग मारे गए थे। हरित क्रान्ति से पहले खाद्य संकट से उबरने के लिए 1960 ई. के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनः जीवित की गयी।

प्रश्न 7.
अकाल से आप क्या समझते है?
उत्तर:
अकाल फसलों के उत्पादन कम होने से लोगों में भुखमरी उत्पन्न हो जाती है जिससे बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं। जो लोग भुखमरी तथा विवश होकर होकर दूषित जल या सड़े भोजन के प्रयोग से फैलने वाली महामारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमजोरी से रोगी के प्रति शरीर की प्रतिरोधी क्षमता में कमी उत्पन्न होती है।

प्रश्न 8.
उचित दर वाली दुकानों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राशन की दुकानों में जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, जहाँ चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है, ये सामान लोगों को बाजार कीमत से कम कीमत पर वितरण किया जाता है।

प्रश्न 9.
राशन कार्ड रखने वाले परिवार को लगभग कितना सामान प्रतिमाह मिलता है?
उत्तर:
राशन कार्ड रखने वाले कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्रा (जैसे 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।

प्रश्न 10.
सोमालिया में अकाल का क्या कारण है?
उत्तर:
सोमालिया (अफ्रीकी देश) में अकाल-नागरिक अशान्ति का परिणाम है। देश में खाद्य वितरण प्रणाली पूरी तरह टूट गयी है।

प्रश्न 11.
राशन कार्ड के प्रकार बताइए।
उत्तर:
राशन कार्ड के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं

  1.  गरीबों में सबसे गरीब के लिए (अंत्योदय) कार्ड।
  2.  गरीबी रेखा से नीचे बी. पी. एल. कार्ड उनके लिए हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं।
  3. गरीबी रेखा से ऊपर ए. पी. एल. कार्ड सभी अन्य लोगों के लिए।

प्रश्न 12.
अकाल के विपक्ष में तीन आधुनिक हथियारों को बताइए।
उत्तर:
अकाल के विरुद्ध आधुनिक हथियार

  • नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग
  •  रेगिस्तानी कृषि
  • आधुनिक कृषि तकनीक का उपयोग।

प्रश्न 13.
अकाल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अकाल उस परिस्थिति को कहते हैं जिसमें किसी क्षेत्र या देश की जनसंख्या का बड़ा भाग अल्प भोजन और कुपोषण से ग्रस्त होता है, जिसके कारण भुखमरी, जीवन का साधारण अंग बन जाती है।

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प्रश्न 14.
स्वतन्त्रता से पूर्व अकाल के पड़ने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
अकाल के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं

  1.  खाद्य की अधिक कमी,
  2. विनाश, चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित,
  3. ब्रिटिश सरकार की दमन नीतियाँ।

प्रश्न 15.
राशनिंग क्या है? इसका उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
राशनिंग उस मात्रा पर प्रतिबंध को दर्शाती है जो उपभोक्ताओं द्वारा क्रय एवं उपभोग की जा सकती है। राशनिंग उन गरीब उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं की उपलब्धि को सुनिश्चित करती है जो कि स्वतन्त्र बाजार में वस्तुएँ प्राप्त नहीं कर पाते। सीमित वस्तुएँ जैसे—मिट्टी का तेल, सीमेंट, वनस्पति घी आदि वस्तुएँ भी राशन कार्ड द्वारा बेची जाती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्य सुरक्षा में किसे शामिल किया जा सकता है?
उत्तर:
खाद्य सुरक्षा में निम्नलिखित शामिल हैं

  1.  खाद्य की उपलब्धता यहाँ पर सभी के लिए भोजन उपलब्ध होना चाहिए।
  2. खाद्य की अधिकता-सभी व्यक्तियों के पास खाद्य (भोजन) होना चाहिए। यह सभी तक पहुँचना चाहिए।
  3.  खाद्य की प्राप्ति-सभी व्यक्तियों के पास पर्याप्त, सुरक्षित एवं पोषण खाद्य खरीदने के लिए पर्याप्त क्रय शक्ति होनी चाहिए।

A buffer Capacity system is a solution that resists a change in pH when acids or bases are added.

प्रश्न 2.
खाद्यान्न के गोदामों में आवश्यकता से अधिक अनाज का होना फिर भी लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। इस विडम्बना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अतिरिक्त भंडार (Buffer Stock) की पर्याप्तता के बावजूद हमारे देश की 26% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रह रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन उनके पास भोजन खरीदने के साधन भी नहीं हैं। हालांकि यह प्रतिशत 19992000 में कम हुआ जो 1993-94 में 36% था; इन गरीबों (UPBoardSolutions.com) की सम्पूर्ण संख्या 26 करोड़ है। यह प्रदर्शित करता है कि यहाँ पर कुछ लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है, जबकि सरकार के गोदामों में खाद्यान्न रखने की जगह नहीं है। उपरोक्त परिस्थितियों में हमारे कृषि वैज्ञानिकों को उत्पादन में वृद्धि के लिए कई अन्य उपाय खोजने पड़ेंगे जिससे हमारी जनसंख्या के कई लाख लोगों को भोजन प्रदान किया जा सके।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा विनियमित बिन्दु पर आवश्यक वस्तुओं के वितरण को सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। हमारे देश में लगभग 4,60,000 राशन एवं उचित कीमत की दुकानें हैं जो सम्पूर्ण देश में फैली हुई हैं। मिट्टी का तेल, गन्ना, कोयला आदि भी सरकारी उचित कीमत की दुकानों के द्वारा बेची जाती है। उपभोक्ता सहकारी समितियाँ (co-operatives) भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ऐजेंट के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन सहकारी समितियों द्वारा विनियमित कपड़े एवं अन्य वस्तुएँ बेची जाती हैं।

कभी-कभी व्यापारिक एजेंसी द्वारा राशन कार्ड के आधार पर वनस्पति तेल भी बेचा जाता है।
सुपर बाज़ार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली की एजेंसी के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दिल्ली में विभिन्न गतिशील मोटर वाहन (vans) को भी दिल्ली प्रशासन एवं सुपर बाजार द्वारा प्रारम्भ किया गया है। जिससे शहर के प्रत्येक हिस्से में आवश्यक वस्तुओं का प्रवाह किया जा सके। (UPBoardSolutions.com) दिल्ली दृध योजना एवं मदर डेयरी भी दूध की आपूर्ति उचित दर (fair price) पर करती है। जनजातियों के क्षेत्रों (tribal areas) में भी विशेष सहायता योजना (special subsidied scheme) के अन्तर्गत अनाज को रियायती दरों पर उपलब्ध कराया जाता है।

प्रश्न 4.
सहकारी समितियाँ किस प्रकार खाद्य सुरक्षा में सहायक होती हैं?
उत्तर:
सहकारी समितियाँ भारत में खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सहकारी समितियों ने गरीब लोगों को कम मूल्य पर वस्तुएँ बेचने के लिए दुकानों का निर्माण किया है। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में चलाई जाने वाली सभी उचित कीमत की दुकानों में से 94 प्रतिशत दुकानें सहायक समितियों द्वारा चलाई जाती हैं। दिल्ली में, मदर डेयरी ने दिल्ली सरकार द्वारा निश्चित नियंत्रित कीमत पर उपभोक्ताओं के लिए दूध एवं सब्जियों के संचय का प्रयास किया है। अमूल भी सहकारी समितियों की सफलता की एक कहानी है। यह देश में श्वेत क्रान्ति लाया था। यहाँ सहकारी समितियों के कई और अन्य उदाहरण है जो खाद्य सुरक्षा को भारत के (UPBoardSolutions.com) विभिन्न भागों के विभिन्न वर्गों में सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार महाराष्ट्र में Academy of Development Science ने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा अनाज बैंक बनाने की सुविधा उपलब्ध की। ADS प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। यह भोजन सुरक्षा के उद्देश्य से संगठित गैर-सरकारी संगठनों के लिये भवन की व्यवस्था करता है। महराष्ट्र के विभिन्न भागों में अनाज बैंकों का धीरे-धीरे विकास हो रहा है।

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प्रश्न 5.
अन्त्योदय अन्न योजना एवं अन्नपूर्णा योजना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) दिसम्बर 2000 ई. में प्रारम्भ हुई। इस योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे पाए जाने वाले परिवारों की पहचान की गयी। गरीब परिवारों की प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने गरीबी रेखा के आधार पर पता लगाया। प्रत्येक पहचान किए गए परिवार को 25 किलोग्राम (UPBoardSolutions.com) अनाज अत्यधिक रियायती मूल्य पर प्रदान किया गया। गेहूं का मूल्य 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो दर पर प्रदान किए गए। अप्रैल 2002 ई. से खाद्यान्न की मात्रा 25 किलो से बढ़ाकर 35 किलो कर दी गई।

इसके पश्चात् इस योजना का प्रसार गरीबी रेखा के नीचे दिए जाने वाले 50 लाख अन्य परिवारों में किया गया! यह वृद्धि जून 2003 ई. एवं अप्रैल 2004 ई. में की गई। इस वृद्धि से दो करोड़ परिवारों की सहायता प्रदान की जाती है।
अन्नपूर्णा योजना (APS)–यह वर्ष 2000 में सीनियर नागरिकों को 10 किलोग्राम मुफ्त अनाज प्रदान करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के रूप में आरम्भ की गई।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम को लागू करने के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
14 नवम्बर, 2004 ई. को यह कार्यक्रम पूरक श्रम रोजगार के सृजन को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 पिछड़े जिलों में शुरू किया गया। यह कार्यक्रम उन समस्त ग्रामीण गरीबों के लिए है, जिन्हें वेतन रोजगार की आवश्यकता है।
और जो अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। इसे शत-प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया और राज्यों को निःशुल्क अनाज मुहैया कराया जाता रहा है। जिला स्तर पर कलेक्टर शीर्ष अधिकारी है और उन पर इस कार्यक्रम की योजना बनाने, कार्यान्वयन, समन्वयन और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी है। वर्ष 2004-05 में इस कार्यक्रम के लिए 20 लाख टन अनाज के अतिरिक्त 2,020 करोड़ रुपये नियत किए गए हैं।

प्रश्न 7
अन्त्योदय अन्न योजना से आप क्या समझते हैं? टिप्पणी करें।
उत्तर:
अन्त्योदय अन्न योजना दिसम्बर, 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अन्तर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। सम्बन्धित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को सर्वेक्षण के द्वारा चुना। 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता (UPBoardSolutions.com) प्राप्त दर पर प्रत्येक परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ा कर 35 किलोग्राम कर दी गई। जून 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त बी.पी.एल. परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।

प्रश्न 8.
भुखमरी से आप क्या समझते हैं? भारत में भुखमरी के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।
भुखमरी के प्रकार

(क) दीर्घकालिक भुखमरी–यह मात्रा या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
(ख) मौसमी भुखमरी-यह फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बन्धित हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण ना नारी क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे-बरसात के मौसम में अनियत निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्य और खाद्य से सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1.  गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इसने देश में श्वेत क्रान्ति ला दी है।
  2. भारत में सहकारी समितियों के कई उदाहरण हैं जो समाज के विभिन्न वर्गों की खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
  3.  भारत में गैर-सरकारी संगठन की खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
  4. इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस (ए.डी.एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है।
  5. ए.डी.एस. गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।
  6. अनाज बैंक अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में खुलते जा रहे हैं।
  7. अनाज बैंकों की स्थापना, गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से उन्हें फैलाने और खाद्य सुरक्षा पर सरकार की नीति को प्रभावित करने में ए.डी.एस. की कोशिश रंग ला रही है।
  8.  ए.डी.एस. अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति मिली। हैं।
  9. भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
  10.  सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं।
  11. दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।

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प्रश्न 2.
कुछ पोषक भोजन कार्यक्रमों को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

  1. दोपहर के भोजन की योजना-यह वर्ष 1962-63 में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य 6 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रोटीन युक्त पौष्टिक भोजन प्रदान करना है। वर्ष 1983 तक इसने 18 लाख बच्चों को इस कार्यक्रम में शामिल किया।
  2.  विशेष पोषण योजना-यह वर्ष 1970-71 में प्रारम्भ किया गया। इसका लक्ष्य 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रोटीन युक्त 300 कैलोरी प्रदान करना है और गर्भवती को वर्ष में 300 दिन 500 कैलोरी प्रोटीन के साथ प्रदान करना है। वर्ष 1983 तक इस कार्यक्रम में 9 लाख लोग शामिल थे। इस कार्यक्रम में पौष्टिक एवं शक्तिवर्धक खाद्य का उत्पादन भी शामिल है।
  3. विशेष पौष्टिक भोजन कार्यक्रम-वर्ष 1960 में विशेष पौष्टिकता की कमी को दूर करने के लिए निम्न विशेष पौष्टिक भोजन कार्यक्रम जारी किए गए।
  4. व्यवहारिक संतुलित पौष्टिक आहार योजना-यह वर्ष 1960 में दो राज्यों में प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1973 तक यह सभी राज्यों में फैल गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य संतुलित आहार, सुरक्षित खाद्य का उपभोग एवं पकाने की उचित तकनीकी के विचार को फैलाना था।

प्रश्न 3.
अनाज प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय (II) विश्व युद्ध के दौरान अनाज की कमी को पूरा करने के लिए इसे प्रारम्भ किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध से अनाज प्रबंध निरंतर उसी एवं अन्य रूप में चल रहा है। अनाज प्रबंध के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-

(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली का रख-रखाव।
(ख) अनाज के अतिरिक्त भंडार का रख-रखाव।
(ग) सरकारी एजेंसी द्वारा बाजार में उपलब्ध अतिरिक्त खाद्यान्नों की सार्वजनिक वितरण के रूप में प्राप्ति करना एवं उसका भंडार बनाना।
(घ) अनाज के प्रबंध में आवश्यक एवं न्यायोचित प्रतिबन्ध लगाना।
(ङ) निजी व्यापार का नियमन जिससे खाद्यान्नों की जमाखोरी एवं उनमें सट्टेबाज़ी रोकी जा सकें।
(च) जब कभी आवश्यक हो, तो घरेलू उत्पादन की सहायता के लिए विदेशों से खाद्यान्न का आयात करना।

प्रश्न 4.
अकाल के लिए उत्तरदायी कारणों को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अकाल के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं-

  1. युद्ध एवं जान बूझकर राजनीतिक हस्तक्षेप भी अकाल को कारण हो सकता है-इन दिनों क्षेत्रों में विनाशकारी युद्ध एवं कुछ राजनैतिक मतभेद अकाल की स्थिति पैदा करते हैं।
  2. नागरिक उथल-पुथल (अशान्ति) और भोजन वितरण प्रणाली की दुर्व्यवस्था-समूहों के मध्य टकराव एवं मुठभेड़ कभी-कभी खाद्य वितरण प्रणाली को तोड़ देते हैं और अकाल को बढ़ावा देते हैं।
  3. अधिक खाद्य कमी-अकाल की प्रधान विशेषता खाद्य की अधिक कमी होना है। खाद्य (भोजन) अनुपलब्ध है। चाहे यह उपलब्ध हो लेकिन इसके मूल्य के अधिक होने के कारण यह सामान्य लोगों की पहुँच तक नहीं होता।
  4.  फसल की असफलता या स्थिति में परिवर्तन जैसे सूखा-हार्वेस्ट के बाढ़, सूखा एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण निरन्तर असफल होने के परिणामस्वरूप खाद्य स्तर में कमी होती है और यह आकाल की स्थिति लाता है।
  5.  विनाश चाहे प्राकृतिक या मानव निर्मित किसी भी प्रकार का विनाश चाहे प्राकृतिक हो या मानव द्वारा निर्मित आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचाता है और अकाल को पैदा करता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 12 Heron’s Formula

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 12 Heron’s Formula (हीरोन सूत्र)

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प्रश्नावली 12.1

प्रश्न 1. एक यातायात संकेत बोर्ड पर ‘आगे स्कूल है’ लिखा है और यह भुजा ‘a’ वाले एक समबाहु त्रिभुज के आकार का है। हीरोन के सूत्र का प्रयोग करके इस बोर्ड का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। यदि संकेत बोर्ड पर परिमाप 180 सेमी है तो इसका क्षेत्रफल क्या होगा?
हल :
दिया है, समबाहु त्रिभुज के आकार के बोर्ड की एक भुजा = a
समबाहु त्रिभुज के आकार के बोर्ड का परिमाप = a + a + a = 3a
त्रिभुज का अर्द्धपरिमाप s = [latex]\frac { 3a }{ 2 }[/latex]
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प्रश्न 2. किसी फ्लाईओवर (flyover) की त्रिभुजाकार दीवार को विज्ञापनों के लिए प्रयोग किया जाता है। दीवार की भुजाओं की लम्बाइयाँ 122 मीटर, 22 मीटर और 120 मीटर हैं। इस विज्ञापन से प्रतिवर्ष 5000 प्रति मीटर² की प्राप्ति होती है। एक कम्पनी ने एक दीवार को विज्ञापन देने के लिए 3 महीने के लिए किराए पर लिया। उसने कुल कितना किराया दिया?
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 12 Heron’s Formula img-2
हल :
फ्लाईओवर की त्रिभुजाकार दीवार की मापें 122 मीटर, 22 मीटर तथा 120 मीटर हैं।
माना a = 122 मीटर, b = 22 मीटर, c = 120 मीटर
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प्रश्न 3. किसी पार्क में एक फिसल (slide) पट्टी बनी हुई है। इसकी पाश्र्वीय दीवारों (slide walls) में से एक दीवार पर किसी रंग से पेन्ट किया गया है और उस पर “पार्क को हरा-भरा और साफ रखिए’ लिखा हुआ है। यदि इस दीवार की विमाएँ 15 मीटर, 11 मीटर और 6 मीटर हैं तो रंग से पेन्ट हुए भाग
पार्क को हरा-भरा को क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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हल :
जिस दीवार पर पेन्ट किया गया है, उसकी विमाएँ माना
15 मीटर a = 15 मीटर, b = 11 मीटर और c = 6 मीटर
आकृति में दीवार त्रिभुजाकार है।
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प्रश्न 4. उस त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए जिसकी दो भुजाएँ 18 सेमी और 10 सेमी हैं तथा परिमाप 42 सेमी है।
हल :
माना त्रिभुजे की दो भुजाएँ a = 18 सेमी तथा b = 10 सेमी
माना तीसरी भुजा c सेमी है।
तब, त्रिभुज की परिमाप = a + b + c = 18 + 10 + c = 28 + c
परन्तु दिया है कि त्रिभुज का परिमाप 42 सेमी है।
28 + c = 42 ⇒ c = 42 – 28 = 14 सेमी
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प्रश्न 5. एक त्रिभुज की भुजाओं का अनुपात 12 : 17 : 25 है और उसका परिमाप 640 सेमी है। त्रिभुज का क्षेत्रफले ज्ञात कीजिए।
हल :
दिया है, त्रिभुज की भुजाओं का अनुपात 12 : 17 : 25 है।
माना त्रिभुज की भुजाएँ a = 12 x, b = 17 x तथा c = 25 x
त्रिभुज की परिमाप = a + b + c = 12x + 17x + 25x = 54x
तब, प्रश्नानुसार, त्रिभुज का परिमाप = 540 सेमी
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प्रश्न 6. एक समद्विबाहु त्रिभुज का परिमाप 30 सेमी है और उसकी बराबंर भुजाएँ 12 सेमी लम्बी हैं। इस त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
माना त्रिभुज की तीसरी भुजा c सेमी है।
समद्विबाहु त्रिभुज की बराबर भुजाएँ a = 12 सेमी तथा b = 12 सेमी।
त्रिभुज की परिमाप = a + b + c = 12 + 12 + c = (24 + c) सेमी
परन्तु प्रश्नानुसार, परिमाप 30 सेमी है।
24 + c = 30 ⇒ c = 30 – 24 = 6 सेमी
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प्रश्नावली 12.2

प्रश्न 1. एक पार्क चतुर्भुज ABCD के आकार का है, जिसमें ∠C = 90°, AB = 9 मीटर, BC = 12 मीटर, CD = 5 मीटर और AD = 8 मीटर है। इस पार्क का कितना क्षेत्रफल है?
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हल :
पार्क का चित्र संलग्न है।
विकर्ण BD खींचा जिसने चतुर्भुजाकार पार्क ABCD को दो त्रिभुजाकार भागों में विभाजित किया हैं।
पहला समकोण त्रिभुज BCD तथा दूसरा विषमबाहु त्रिभुज ABD समकोण त्रिभुज BCD के आकार वाले भाग का क्षेत्रफल
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x BC x CD
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x 12 x 5 = 30 वर्ग मीटर
BD, समकोण त्रिभुज BCD का कर्ण है।
पाइथागोरस प्रमेय से, BD² = BC² + CD² = (12)² + (5)² = 144 + 25 = 169 = (13)²
⇒ BD = (13)²
⇒ BD = 13 मीटर
तब, ΔABD में, माना a = 9 मीटर, b = 8 मीटर व c = 13 मीटर
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प्रश्न 2. एक चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसमें AB = 3सेमी, BC = 4सेमी, CD = 4सेमी, DA = 5 सेमी और AC = 5 सेमी है।
हल :
चतुर्भुज ABCD बनाया। स्पष्ट है कि विकर्ण AC संलग्न चतुर्भुज को ΔABC व ΔACD में विभक्त करता है।
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प्रश्न 3. राधा ने एक रंगीन कागज से एक हवाईजहाज का चित्र बनाया जैसा कि आकृति में दिखाया गया है। प्रयोग किए गए कागज का कुल क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 4. एक त्रिभुज और एक समान्तर चतुर्भुज का एक ही आधार है और क्षेत्रफल भी एक ही है। यदि त्रिभुज की भुजाएँ 26 सेमी, 28 सेमी और 30 सेमी हैं तथा समान्तर चतुर्भुज 28 सेमी के आधार पर स्थित है तो उसकी संगत ऊँचाई ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 5. एक समचतुर्भुजाकार घास के खेत में 18 गायों के चरने के लिए घास है। यदि इस समचतुर्भुज की प्रत्येक भुजा 30 मीटर और बड़ा विकर्ण 48 मीटर है तो प्रत्येक गाय को चरने के लिए इस घास के खेत का कितना क्षेत्रफल प्राप्त होगा?
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प्रश्न 6. दो विभिन्न रंगों के कपड़ों के 10 त्रिभुजाकार टुकड़ों को सी कर एक छाता बनाया गया है। प्रत्येक टुकड़े के माप 20 सेमी, 50 सेमी और 50 सेमी हैं। छाते में प्रत्येक रंग का कितना कपड़ा लगा है?
हल :
छाते में 2 रंग हैं और उसे 10 त्रिभुजाकार टुकड़ों से सिला गया है।
प्रत्येक रंग के [latex]\frac { 10 }{ 2 }[/latex] = 5 टुकड़े होंगे।
प्रत्येक त्रिभुजाकार टुकड़े की माप 20, 50 व 50 सेमी हैं अर्थात प्रत्येक टुकड़ा एक समद्विबाहु त्रिभुज को निरूपित करता है।
माना a = 20 सेमी, b = 50 सेमी तथा c = 50 सेमी
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= 1000 x 2.4494 वर्ग सेमी
= 2449.4 वर्ग सेमी
अतः प्रत्येक रंग का 2449.4 वर्ग सेमी कपड़ा लगेगा।

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प्रश्न 7. एक पतंग तीन भिन्न-भिन्न शेडों (shades) के कागजों से बनी है। इन्हें आकृति में I, II और III से दर्शाया गया है। पतंग का ऊपरी भाग 32 सेमी विकर्ण का एक वर्ग है और निचला भाग 6 सेमी, 6 सेमी और 8 सेमी भुजाओं का एक समद्विबाहु त्रिभुज है। ज्ञात कीजिए कि प्रत्येक शेड का कितना कागज प्रयुक्त किया गया है।
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अतः भाग 1 व भाग II प्रत्येक के कागज का क्षेत्रफल= 256 वर्ग सेमी तथा भाग III के लिए कागज का क्षेत्रफल = 17.88 वर्ग सेमी।।

प्रश्न 8. फर्श पर एक फूलों का डिजाइन 16 त्रिभुजाकार टाइलों से बनाया गया है, जिनमें से प्रत्येक की भुजाएँ 9 सेमी, 28 सेमी और 35 सेमी हैं। इन टाइलों को 50 पैसे प्रति सेमी की दर से पॉलिश कराने का व्ययज्ञात कीजिए।
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कुल 16 त्रिभुजाकार टाइलों का क्षेत्रफल = 16 x एक त्रिभुजाकार टाइल का क्षेत्रफल
= 16 x 36√6 वर्ग सेमी = 5766 वर्ग सेमी
= 576 x 2.45 = 1411.2 वर्ग सेमी
1 वर्ग सेमी पर पॉलिश कराने का व्यय = 50 पैसे
1411.2 वर्ग सेमी पर पॉलिश कराने का व्यय = 1411.2 x 50 = 70560 पैसे
अतः 16 टाइलों पर पॉलिश कराने का व्यय = 70560 पैसे

प्रश्न 9. एक खेत समलम्ब के आकार का है जिसकी समान्तर भुजाएँ 25 मीटर और 10 मीटर हैं। इसकी असमान्तर भुजाएँ 14 मीटर और 13 मीटर हैं। इस खेत का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
(1) आकाश में जिस प्रकार षोडश कला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्ज्वल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे । लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव को सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में (UPBoardSolutions.com) आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वादविवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर किसको महत्त्व मिलना चाहिए?
(4) चन्द्रमा कितनी कलाओं से परिपूर्ण होता है?
(5) कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध किस महामानव से है?
[शब्दार्थ-लोकमानस = जनता का मन। अर्से से = बहुत समय से। आविर्भाव = उत्पत्ति, जन्म। पार्थिव = पृथ्वी सम्बन्धी, भौतिक स्थूल।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ पाठ से उधृत किया गया है। इसके लेखक संस्कृत एवं हिन्दी के मूर्द्धन्य विद्वान् आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं। नियत गद्यांश में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरु नानकदेव के जन्म-दिन का महत्त्व बताते हुए उनके प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा को व्यक्त किया है। गुरु तो भक्तों के हृदय में प्रतिक्षण प्रकट होते रहते हैं-इस भावना का सहज आध्यात्मिक रूप प्रस्तुत किया है। ।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह बताया है कि आकाश में जिस प्रकार सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा प्रकाशित होता है ठीक उसी प्रकार मानव के मस्तिष्क में किसी ज्योतिपुंज का उत्पन्न होना अत्यन्त स्वाभाविक है। गुरुनानक देव ऐसे ही सोलह कलाओं से युक्त स्निग्ध ज्योति महामानव थे। हमारे देश की जनता बहुत समय से गुरु नानकदेव के जम को कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन मनाती आ रही है। गुरु नानकदेव तो किसी एक ही दिन अपने भौतिक शरीर से प्रकट हुए होंगे, (UPBoardSolutions.com) किन्तु श्रद्धालु भक्तगणों के हृदय में तो वे सदैव ही आध्यात्मिक रूप से प्रकट होते रहते हैं। यद्यपि भौतिक रूप से जन्म लेने को महत्त्व दिया जाता रहा है, फिर भी प्रतिक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से जन्म लेने का अधिक महत्त्व समझा जाना चाहिए-ऐसी लेखक का मत है। यद्यपि इतिहास के विद्वानों के मत में उनकी जन्म-तिथि सम्बन्धी विवाद है, किन्तु इस देश की जनता का सामूहिक मन इस बात पर विशेष ध्यान नहीं देता। उसके मन में जो जन्म सम्बन्धी धारणा बन गयी है, उसके लिए वही सत्य है। उसे तो इसके माध्यम से अपने गुरु को पूजना है, सो वह कार्तिक पूर्णिमा को पूज लेता है।
  3. लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर उनके आध्यात्मिकता को महत्त्व मिलना चाहिए।
  4. चन्द्रमा षोडश कलाओं से परिपूर्ण होता है।
  5. कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध महामानव गुरु नानकदेव से है।

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(2) गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिएपर्याप्त है।
नवो नवो भवसि जायमानः- गुरु, तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्षों से शरत्काल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूर्णचन्द्र के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध (UPBoardSolutions.com) जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त, आह्लाद अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्लाद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्लाद प्रकट करती है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) शरदकाल की यह तिथि किसकी याद कराती रही है?
(4) उत्सव का क्षण कौन-सा है?
(5) शरद पूर्णिमा किसका स्मरण कराती है? |
[शब्दार्थ-उत्सव =त्योहार, उल्लास। उल्लसित = हर्षित । नव = नया। जायमानः = जन्म लेनेवाला । चित्तभूमि = चित्त या मन में। नवीन = नया।]

उत्तर- 

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं। प्रस्तुत गद्यांश में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरु की महिमा की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मन में जब कभी भी गुरु प्रकट हो जायँ वही क्षण हर्षित कर देनेवाला होता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का मत है कि गुरु जिस किसी भी शुभ मुहूर्त में हृदय में उत्पन्न हो जायँ वही समय वही मुहूर्त आनन्द का है, प्रसन्नता का है। वह ऐसा समय है जो जीवन में हर्षोल्लास भर देनेवाला होता है। परमात्मा की ये महान् विभूतियाँ प्रतिक्षण भक्तों के हृदय (UPBoardSolutions.com) में जन्म लेकर नित्य नया रूप धारण करती रहती हैं। सच है कि गुरु तो हर क्षण चित्तभूमि अर्थात् मन में उत्पन्न होकर नये-नये होते रहते हैं। भक्तों के लिए ऐसा हर क्षण उत्सव का है, उल्लास का है। हजारों वर्षों से शरदकाल की यह तिथि प्रभामंडित पूर्णचन्द्र के साथ उस महामानव का याद कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का तादात्म्य करने से इस देश का समष्टि चित्त प्रसन्नता का अनुभव करता है। हम लोग ‘रामचन्द्र कृष्णचन्द्र इत्यादि कहकर इसी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जन-मानस के अत्यन्त अनुकूल है। आज भारतीय जनता गुरु नानकदेव को स्मरण (UPBoardSolutions.com) करके प्रसन्नता का अनुभव करती है।
  3. शरदकाल की यह तिथि प्रभामंडित पूर्णचन्द्र के साथ गुरुनानक जी की याद कराती रही है।
  4. गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वह क्षण उत्सव का है।
  5. शरद पूर्णिमा महामानव गुरु नानकदेव का स्मरण कराती है।

(3) विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रान्ति ले आनेवाला यह सन्त इतने मधुर, इतने स्निग्ध, इतने मोहक वचनों को बोलनेवाला है। किसी का दिल दुखाये बिना, किसी पर आघात किये बिना, कुसंस्कारों को छिन्न करने की शक्ति रखनेवाला, नयी संजीवनी धारा से प्राणिमात्र (UPBoardSolutions.com) को उल्लसित करनेवाला यह सन्त मध्यकाल की ज्योतिष्क मण्डली में अपनी निराली शोभा से शरत् पूर्णिमा के पूर्णचन्द्र की तरह ज्योतिष्मान् है। आज उसकी याद आये बिना नहीं रह सकती। वह सब प्रकार से लोकोत्तर है। उसका उपचार प्रेम और मैत्री है। उसका शास्त्र सहानुभूति और हित-चिन्ता है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) गुरुनानक जी का उपचार क्या है?
(4) क्रान्ति लाने वाले यहाँ किस सन्त का वर्णन है?
(5) शरद पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की तरह कौन ज्योतिष्मान है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं। इन पंक्तियों में गुरु नानकदेव के महान् व्यक्तित्व और उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- गुरु नानकदेव एक महान् सन्त थे। उनके समय के समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ विद्यमान थीं । समाज का आचरण दूषित हो चुका था। इन बुराइयों को दूर करने और सामाजिक आचरणों में सुधार लाने के लिए गुरु नानकदेव ने न तो किसी की निन्दा की और न ही तर्क-वितर्क द्वारा किसी की विचारधारा का खपडन किया। उन्होंने अपने आचरण और मधुर वाणी से ही दूसरों के विचारों और आचरण में परिवर्तन करने का प्रयास किया और इस दृष्टि से उन्होंने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। बिना किसी का दिल दुखाये और बिना किसी को किसी प्रकारे की चोट पहुँचाये, उन्होंने दूसरों के बुरे संस्कारों को नष्ट कर दिया। उनकी सन्त वाणी को सुनकर दूसरों का हृदय हर्षित हो जाता था और लोगों को नवजीवन प्राप्त होता था। लोग उनके उपदेशों को जीवनदायिनी औषध की भाँति ग्रहण करते थे। (UPBoardSolutions.com) मध्यकालीन सन्तों के बीच गुरु नानकदेव इसी प्रकार प्रकाशमान दिखायी पड़ते हैं, जैसे आकाश में आलोक बिखेरने वाले नक्षत्रों के मध्य; शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा शोभायमान होता है । विशेषकर शरद पूर्णिमा के अवसर पर ऐसे महान् सन्त का स्मरण हो आना स्वाभाविक है। वे सभी दृष्टियों से एक अलौकिक पुरुष थे। प्रेम और मैत्री के द्वारा ही वे दूसरों की बुराइयों को दूर करने में विश्वास रखते थे। दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखना और उनके कल्याण के प्रति चिन्तित रहना ही उनका आदर्श था। गुरु नानकदेव का सम्पूर्ण जीवन, उनके इन्हीं आदर्शों पर आधारित था।
  3. गुरुनानक जी का उपचार प्रेम और मैत्री है।
  4. क्रान्ति लाने वाले यहाँ सन्त गुरु नानकदेव का वर्णन है।
  5. शरद पूर्णिमा पूर्ण चन्द्र की तरह गुरु नानकदेव ज्योतिष्मान हैं?

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(4) किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना। क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है। सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना। गुरु नानक ने यही किया। उन्होंने जनता को बड़े-से-बड़े सत्य के सम्मुखीन कर दिया, हजारों दीये उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये।।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) हजारो दीये किसके सामने स्वयं फीके पड़ गये?
(4) छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देने की क्या तात्पर्य है?
(5) अहमिकाओं और कार्यहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने का सही उपाय क्या है?
[शब्दार्थ-क्षुद्र = तुच्छ, छोटा। अहमिकाओं = अहंकार की भावनाएँ। संकीर्णता = हृदय का छोटापन। कदाचित् = कभः। सम्मुखीन = सामने।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। इन पंक्तियों में लेखक ने व्यक्त किया है कि गुरु नानकदेव ने महान् सत्य का उद्घाटन करके संसार की भौतिक वस्तुओं को सहज ही तुच्छ सिद्ध कर दिया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- हम किसी रेखा को मिटाये बिना यदि उसे छोटा करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि उस रेखा के पास उससे बड़ी रेखा खींच दी जाय। ऐसा करने पर पहली रेखा स्वयं छोटी प्रतीत होने लगेगी। इसी प्रकार यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उसके लिये भी हमें महानता की बड़ी लकीर खींचनी होगी। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया (UPBoardSolutions.com) जा सकता; उसके लिये व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है। इसी उद्देश्य से मानव-जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया। गुरु की वाणी ने साधारण जनता को परम सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं। गुरु की वाणी ऐसी महाज्योति थी, जिसने जन साधारण के मन से अहंकार, क्षुद्रता, संकीर्णता आदि के अन्धकार को दूर कर उसे दिव्य ज्योति से प्रकाशित कर दिया।
  3. हजारों दीये गुरु नानकदेव की महाज्योति के सामने फीके पड़ गये।
  4. किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना।
  5. अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना।

(5) भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन लोगों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है। वह उतरती है और ऊपर उठाती है। इसे पुराने पारिभाषिक शब्दों में कहें तो कुछ इस प्रकार होगा कि एक ओर उसका ‘अवतार’ होता है, (UPBoardSolutions.com) दूसरी ओर औरों का उद्धार होता है। अवतार और उद्धार की यह लीला भगवान् के प्रेम का सक्रिय रूप है, जिसे पुराने भक्तजन ‘अनुग्रह’ कहते हैं। आज से लगभग पाँच सौ वर्ष से पहले परम प्रेयान् हरि का यह ‘अनुग्रह’ सक्रिय हुआ था, वह आज भी क्रियाशील है। आज कदाचित् गुरु की वाणी र सबसे अधिक तीव्र आवश्यकता अनुभूत हो रही है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) भगवान के प्रेम में क्या सक्रिय रूप है?
(4) सन्तजन क्या कार्य करते हैं?
(5) अनुग्रह का क्या तात्पर्य है?
[शब्दार्थ-अनुग्रह = कृपा, उपकार। दिव्य ज्योति = आलोकित प्रकाश। आश्रय = आधार, सहारा। अभाजन = अयोग्य।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि गुरु नानक जैसे महान् सन्तों में ईश्वर अपनी ज्योति अवतरित करते हैं और ये महान् सन्त इस ज्योति के सहारे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाते हैं।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- द्विवेदी जी का मत है कि जब संसार पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है तो उसकी अलौकिक ज्योति किसी सन्त के रूप में इस संसार में अवतरित होती है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर अपनी दिव्य ज्योति को किसी महान् सन्त के रूप में प्रस्तुत करके उसे इस जगत् का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर भेजता है। वह महान् सन्त ईश्वर की ज्योति से आलोकित होकर संसार का मार्गदर्शन करता है। ईश्वर निरीह लोगों के कष्टों को दूर करना चाहता है, इसलिए उसकी यह (UPBoardSolutions.com) दिव्य-ज्योति मानव-शरीर प्राप्त करके चैन से नहीं बैठती, वरन् अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्रिय हो उठती है। मानव रूप में जब भी ईश्वर अवतार लेता है, तभी इस विश्व का उद्धार तथा कल्याण होता है। प्राचीन भक्ति-साहित्य में ईश्वर की दिव्य ज्योति का मानव रूप में जन्म ‘अवतार और उद्धार’ कहा गया है। इस दिव्य ज्योति का ‘अवतार’ अर्थात् उतरना होता है और सांसारिक प्राणियों का उद्धार’ अर्थात् ऊपर उठना होता है। आचार्य द्विवेदी अन्त में कहते हैं कि ईश्वर का अवतार लेना और प्राणियों का उद्धार करना ईश्वर के प्रेम का सक्रिय रूप है। भक्तजन इसे ईश्वर की विशेष कृपा मानकर ‘अनुग्रह’ की संज्ञा बताते हैं।
  3. भगवान् के प्रेम में अवतार और उद्धार की यह लीला सक्रिय रूप है।
  4. सन्तजन लोगों का उद्धार करते हैं।
  5. भगवान का अवतार लेकर गिरे जनों का उद्धार करने की लीला को अनुग्रह. करते हैं।

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(6) महागुरु, नयी आशा, नयी उमंग, नये उल्लास की आशा में आज इस देश की जनता तुम्हारे चरणों में प्रणति निवेदन कर रही है। आशा की ज्योति विकीर्ण करो, मैत्री और प्रीति की स्निग्ध धारा से आप्लावित करो। हम उलझ गये हैं, भटक गये हैं, पर कृतज्ञता अब भी हम में रह गयी है। आज भी हम तुम्हारी अमृतोपम वाणी को भूल नहीं गये हैं। कृतज्ञ भारत को प्रणाम अंगीकार करो।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) ‘कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो’ का क्या मतलब है?
(4) कृतज्ञता से आप क्या समझते हैं?
(5) लेखक गुरु से किस प्रकार की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है?
[शब्दार्थ-विकीर्ण = प्रसारित । स्निग्ध = पवित्र। अमृतोपम = अमृत के समान । अंगीकार = स्वयं में समाहित, स्वीकार ।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। यहाँ लेखक ने गुरु नानकदेव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके ति श्रद्धा का भाव व्यक्त किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक गुरु से प्रार्थना करता है कि वे भटके हुए भारतवासियों के हृदय में प्रेम, मैत्री एवं सदाचार का विकास करके उनमें नयी आशा, नये उल्लास व नयी उमंग का संचार करें। इस देश की जनता उनके चरणों में अपना प्रणाम निवेदन करती है। लेखक का कथन है कि वर्तमान समाज में रहनेवाले भारतवासी कामना, लोभ, तृष्णा, ईष्र्या, ऊँचनीच, जातीयता (UPBoardSolutions.com) एवं साम्प्रदायिकता जैसे दुर्गुणों से ग्रसित होकर भटक गये हैं, फिर भी इनमें कृतज्ञता का भाव विद्यमान है। इस कृतज्ञता के कारण ही आज भी ये भारतवासी आपकी अमृतवाणी को नहीं भूले हैं। हे गुरु! आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करने की कृपा करें।
  3. कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो का मतलब आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करने की कृपा करे।
  4. किसी के उपकार को अंगीकार करके सम्मान देना और उसके प्रति न्यौछावर होना कृतज्ञता है।
  5. लेखक गुरु से आशा की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है।

प्रश्न 2. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के जीवन एवं साहित्यिक परिचय का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 4. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक विशेषताएँ बताते हुए उनकी भाषा-शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए। अथवा डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1907 ई०। मृत्यु-18 मई, 1979 ई० । जन्म-आरत दुबे का छपरा, जिला बलिया (उ० प्र०) में। शिक्षा-इण्टर, ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य।
रचनाएँ-‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘सूर साहित्य’, ‘कबीर’, ‘अशोक के फूल’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, विचार और वितर्क’, ‘विश्व-परिचय’, ‘लाल कनेर’, ‘चारु चन्द्रलेख’।
वर्य-विषय- भारतीय संस्कृति का इतिहास, ज्योतिष साहित्य, विभिन्न धर्म तथा सम्प्रदाय। ।
शैली- सरल तथा विवेचनात्मक।

  • जीवन-परिचय- डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण-परिवार में सन् 1907 ई० में हुआ था। इनकी शिक्षा का प्रारम्भ संस्कृत से ही हुआ था। सन् 1930 ई० में इन्होंने काशी विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी वर्ष प्रधानाध्यापक होकर शान्ति निकेतन चले गये। सन् 1940 ई० से 1950 ई० तक वे वहाँ हिन्दी भवन के डायरेक्टर के पद पर काम करते रहे; तदुपरान्त वे काशी विश्वविद्यालय (UPBoardSolutions.com) में हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। लखनऊ विश्वविद्यालय ने इनकी हिन्दी की महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिए 1949 ई० में इन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1957 ई० में इनकी विद्वत्ता पर इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। 1960 ई० में ये चण्डीगढ़ विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष होकर चले गये और वहाँ से सन् 1968 ई० में पुन: काशी विश्वविद्यालय में ‘डायरेक्टर’ होकर आ गये। कुछ दिन तक उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष पद पर कार्य करने के उपरान्त 18 मई, 1979 ई० को इनका देहावसान हो गया।
  • कृतियाँ
    1. आलोचना- ‘सूर-साहित्य’, ‘हिन्दी-साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी-साहित्य का आदिकाल’, ‘कालिदास की लालित्ययोजना’, ‘सूरदास और उनका काव्य’, ‘कबीर’, ‘हमारी साहित्यिक समस्याएँ’, ‘साहित्य का मर्म’, ‘भारतीय वाङ्मय’, ‘साहित्यसहचर’, ‘नखदर्पण में हिन्दी-कविता’ आदि।
    2. निबन्ध-संग्रह- अशोक के फूल’, ‘कुटज’, ‘विचार-प्रवाह’, ‘विचार और वितर्क’, ‘कल्पलता’, ‘आलोक-पर्व’ आदि।
    3. उपन्यास- ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारु चन्द्रलेख’, ‘पुनर्नवा’ तथा ‘अनामदास का पोथा’।
    4. अनूदित साहित्य- ‘प्रबन्ध-चिन्तामणि’, ‘पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह’, ‘प्रबन्ध-कोष’, ‘विश्व-परिचय’, ‘लाल कनेर’, ‘मेरा वचन’ आदि। द्विवेदी जी मूल रूप से शुक्ल जी की परम्परा के आलोचक होते हुए भी आलोचना-साहित्य में अपनी एक मौलिक दिशा प्रदान करते हैं।
    5. साहित्यिक परिचय- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी में मौलिक रूप से साहित्य का सृजन करने की योग्यता बाल्यकाल से ही विद्यमान थी। इन्होंने अपने बाल्यकाल में ही व्योमकेश शास्त्री से कविता लिखने की कला सीखनी प्रारम्भ कर दी थी। धीरे-धीरे साहित्य-जगत् इनकी विलक्षण सृजन-प्रतिभा से परिचित होने लगा। शान्ति-निकेतन पहुँचकर इनकी (UPBoardSolutions.com) साहित्यिक प्रतिभा और भी अधिक निखरने लगी । बंगला साहित्य से भी वे बहुत अधिक प्रभावित थे। इनकी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट हुई । ये उच्चकोटि के शोधकर्ता, निबन्धकार, उपन्यासकार और आलोचक थे । इन्होंने अनेक विषयों पर उत्कृष्ट कोटि के निबन्धों तथा नवीन शैली पर आधारित उपन्यासों की रचना की। विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्मक निबन्धों की रचना करने में द्विवेदी जी अद्वितीय थे। ये ‘उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी’ के अध्यक्ष और हिन्दी संस्थान’ के उपाध्यक्ष भी रहे। इनकी सुप्रसिद्ध कृति ‘कबीर’ पर इन्हें ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ तथा ‘सूर-साहित्य’ पर ‘इन्दौर साहित्य समिति’ से ‘स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था।
    6. भाषा और शैली- द्विवेदी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ शुद्ध खड़ीबोली है। इनकी भाषा के दो रूप हैं। निबन्ध में जहाँ संस्कृत के सरल तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है वहीं उर्दू, फारसी, बंगला और देशज शब्दों के भी प्रयोग मिलते हैं। द्विवेदी जी की शैली में अनेकरूपता है। उसमें बुद्धि-तत्त्व के साथ-साथ हृदय–तत्त्व का भी समावेश है। उनकी शैली को गवेषणात्मक शैली (UPBoardSolutions.com) (नाथसम्प्रदाय जैसे सांस्कृतिक निबन्धों में), आलोचनात्मक शैली, व्यावहारिक आलोचनाओं में, भावात्मक शैली (ललित और आत्मव्यंजक निबन्धों में), व्याख्यात्मक शैली (दार्शनिक विषयों के स्पष्टीकरण में), व्यंग्यात्मक शैली (हास्य-व्यंग्य सम्बन्धी निबन्धों में तथा ललित निबन्धों में), कथात्मक शैली (उपन्यासों और संस्मरणात्मक निबन्धों में) आदि छह कोटियों में विभक्त किया जा सकता है।

उदाहरण

  1. गवेषणत्मिक शैली- कार्तिक पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है।” – गुरु नानकदेव
  2. आलोचनात्मक शैली- “अद्भुत है गुरु की बानी की सहज बोधक शक्ति। कहीं कोई आडम्बर नहीं, कोई बनाव नहीं, सहज हृदय से निकली हुई सहज प्रभावित करने की अपार शक्ति है।” – गुरु नानकदेव
  3. भावात्मक शैली- “दुरन्त जीवन शक्ति है। कठिन उपदेश है। जीना भी एक कला है लेकिन कला ही नहीं तपस्या है। जियो तो प्राण ढाल दो जिन्दगी में, जीवन रस के उपकरणों में ठीक है।” – कुटज
  4. व्याख्यात्मक शैली- “किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना।” – गुरु नानकदेव
  5. व्यंग्यात्मक शैली- “इस गिरिकूट बिहारी का नाम क्या है? मन दूर-दूर तक उड़ रहा है-देश में और काल में-‘मनोरथमनार्नगतिनं विद्यते’ अचानक याद आया-अरे यह तो ‘कुटज’ है।” – कुटज
  6. कथात्मक शैली- ‘यह जो मेरे सामने कुटज का लहराता पौधा खड़ा है वह नाम व रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा कर रहा है।” – कुटज

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अपने समकालीन सन्तों से गुरु नानकदेव किस प्रकार भिन्न एवं विशिष्ट हैं?
उत्तर- अपने समकालीन सन्तों से गुरु नानकदेव भिन्न थे। उन्होंने प्रेम का संदेश दिया है। उनके लिए संन्यास तथा गृहस्थ दोनों समान हैं।

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प्रश्न 2. अनुग्रह का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती है। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन जनों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है।

प्रश्न 3. ‘गुरु नानकदेव’ पाठ की भाषा-शैली पर तीन वाक्य लिखिए। |
उत्तर-
गुरु नानकदेव पाठ की भाषा अत्यन्त सरल एवं प्रवाहमान है। इसमें उर्दू, फारसी, अंग्रेजी एवं देशज शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। यत्र-तत्र मुहावरेदार भाषा का भी प्रयोग हुआ है। भाषा शुद्ध, संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है। शैली अत्यन्त सरल एवं आकर्षक है।

प्रश्न 4. गुरु नानक की ‘सहज-साधना’ से सम्बन्धित लेखक के विचार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानक जी ‘सहज-साधना’ के पक्षधर थे। वे आडम्बर में विश्वास नहीं करते थे। सहज जीवन बड़ी कठिन साधना है। सहज भाषा बड़ी बलवती आस्था है।

प्रश्न 5. गुरु नानकदेव’ के आविर्भाव काल को दर्शाते हुए उनमें आनेवाली समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- गुरु नानकदेव का आविर्भाव आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ। आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व देश अनेक कुसँस्कारों से जकड़ा हुआ था। जातियों, (UPBoardSolutions.com) सम्प्रदायों, धर्मों और संकीर्ण कुलाभिमानों से वह खण्ड-विच्छिन्न हो गया था। इस विषम परिस्थितियों में महान् गुरु नानकदेव ने सुधा लेप का काम किया।

प्रश्न 6. किन तथ्यों के आधार पर लेखक ने कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र तिथि बताया है?
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा भारत की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरद्काल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पूरे वैभव पर होता है । आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शांत, पृथ्वी हरी-भरी, जल प्रवाह मृदु-मन्थर हो जाता है।

प्रश्न 7. गुरु नानकदेव द्वारा दिये गये जनता के सन्देश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानक ने प्रेम का सन्देश दिया है। उनका कथन था कि ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल के बन्धन निरर्थक हैं क्योंकि मनुष्य जीवन का जो चरम प्राप्तव्य है (UPBoardSolutions.com) वह स्वयं प्रेमरूप है। प्रेम ही उसका स्वभाव है, प्रेम ही उसका साधन है। गुरु नानक जी बाह्य आडम्बर में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने अभिमान से दूर रहने का संदेश दिया।

प्रश्न 8. कार्तिक पूर्णिमा क्यों प्रसिद्ध है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा के दिन महान् गुरु नानकदेव का जन्म-दिवस मनाया जाता है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा प्रसिद्ध है।

प्रश्न 9. गुरु नानकदेव पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए। |
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है । शरदकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पूरे वैभव पर होता है। गुरु नानकदेव षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे! भारतवर्ष की मिट्टी में युग (UPBoardSolutions.com) के अनुरूप महापुरुषों को जन्म देने का अद्भुत गुण है। गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है। ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल का बन्धन निरर्थक है। प्रेम मानव का स्वभाव है। किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना। सहज जीवन बड़ी कठिन साधना है। सहज भाषा बड़ी बलवती आस्था है।

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प्रश्न 10. गुरु नानकदेव के गुणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया। नानक जी जाति-पाँति में विश्वास नहीं करते थे। वे बाह्य आडम्बर से दूर थे। उनकी दृष्टि में संन्यास लेना आवश्यक नहीं है। वे अभिमान से दूर रहना चाहते थे। उन्होंने अहंकार से दूर रहने को संदेश दिया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो उपन्यास-पुनर्नवा और चारुचन्द्र लेख हैं।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) कार्तिक पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है।    (√)
(ब) गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है।                                                          (√)
(स) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्विवेदी युग के लेखक हैं।                                 (×)
(द) सीधी लकीर खींचना आसान काम है।                                                         (×)

प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी किस युग के लेखक हैं?
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

प्रश्न 4. ‘कबीर’ नामक रचना पर हजारीप्रसाद द्विवेदी को कौन-सा पारितोषिक प्राप्त हुआ?
उत्तर- ‘कबीर’ पर हजारीप्रसाद द्विवेदी को मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ।

प्रश्न 5. गुरु नानकदेव का आविर्भाव कब हुआ था?
उत्तर- गुरु नानकदेव का आविर्भाव आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ था।

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व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए –
उत्तर-  कुलाभिमान, सर्वाधिक, अनायास, लोकोत्तर, अमृतोपम।

कुलाभिमान  –  कुल + अभिमान    –    दीर्घ सन्धि
सर्वाधिक      –   सर्व + अधिक        –   
दीर्घ सन्धि
अनायास      –   अन + आयास       –    
दीर्ध सन्धि
लोकोत्तर      –   लोक + उत्तर         –    
गुण सन्धि
अमृतोपम     –  अमृत + उपम        –   
गुण सन्धि

प्रश्न 2निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए –
अर्थहीन, महापुरुष, स्वर्णकमल, चित्रभूमि, प्राणधारा।
उत्तर-
अर्थहीन      –  अर्थ से हीन             –   करण तत्पुरुष
महापुरुष    –  महान् है पुरुष जो    –   
कर्मधारय
स्वर्णकमल – स्वर्णरूपी कमल       –   
कर्मधारय
चित्रभूमि     –  चित्रों से युक्त भूमि   –   
करण तत्पुरुष
प्राणधारा    – प्राणरूपी धारा          –   कर्मधारय

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का प्रत्यय अलग कीजिए –
अवतार, संजीवनी, स्वाभाविक, महत्त्व, प्रहार, उल्लसित
उत्तर –
शब्द          –     प्रत्यय
अवतार       –        र
संजीवनी     –      अनी
स्वाभाविक –       इक
महत्त्व        –       त्व
प्रहार         –        र
उल्लसित   –       इत

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