UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 4
Chapter Name धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण)

धातु-रूप प्रकरण

जिस शब्द के द्वारा किसी काम के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-‘राम: पुस्तकं पठति।’ इस वाक्य में ‘पठति से पढ़ने के काम का बोध होता है; अतः ‘पठति क्रिया है।

क्रिया के मूल रूप को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं; जैसे—राम: पुस्तकं पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया का मूल ‘पद्’ है; अतः ‘पद्’ धातु है।

धातुओं में प्रत्यय जोड़ने से ही क्रिया के विभिन्न रूप बनते हैं। क्रियाएँ ‘तिङ’ प्रत्यय जोड़कर बनायी जाती हैं; अतः तिङन्त कहलाती हैं। संस्कृत में क्रिया का ही प्रयोग होता है, धातु का नहीं।

क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) सकर्मक क्रिया तथा (2) अकर्मक क्रिया।।

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(1) सकर्मक क्रिया- ये वे क्रियाएँ हैं, जिनका अपना कर्म होता है। समर्कक क्रिया के व्यापार को फल कर्ता को छोड़कर किसी और (कर्म) पर पड़ता है; जैसे-राम: पुस्तकं पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया के व्यापार का फल ‘राम:’ कर्ता को छोड़कर ‘पुस्तकम्’ (कर्म) पर पड़ता है; अतः ‘पठति’ (UPBoardSolutions.com) क्रिया सकर्मक है।। क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने पर मिलने वाला उत्तर कर्म होता है। ऊपर के वाक्य में ‘क्या’ पढ़ता है; प्रश्न करने पर उत्तर में ‘पुस्तकम्’ आता है; अतः ‘पुस्तकम् कर्म है और ‘पठति’ क्रिया, सकर्मक है।

(2) अकर्मक क्रिया- अकर्मक क्रिया के व्यापार का फल केवल कर्ता तक ही सीमित होता है। अकर्मक क्रियाओं का अपना कोई कर्म नहीं होता है; जैसे-रामः हसति। इस वाक्य में हसति’ (हँसना) क्रिया के व्यापार का फल केवल ‘राम:’ कर्ता पर ही पड़ता है; अतः ‘हसति’ क्रिया अकर्मक है।। अकर्मक क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने से उत्तर में कुछ नहीं आता है।

लकार या काल

प्रयोग की दृष्टि से क्रियाओं की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं, संस्कृत में उन्हें लकारों द्वारा प्रकट किया जाता है। संस्कृत में प्राय: सभी कालों के प्रारम्भ में ‘ल’ वर्ण आता है, अत: इन्हें लकार कहते हैं। ये 10 होते हैं

  1. लट् लकार (वर्तमानकाल),
  2. लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल),
  3. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्),
  4. लृट् लकार (सामान्य भविष्यत्),
  5. लङ् लकार (अनद्यतन भूत),
  6. लिङ् लकार (विधिलिङ) अनुमति, आज्ञा, प्रार्थना आदि अर्थ में,
  7. आशीलिङ् (आशीर्वाद अर्थ में),
  8. लोट् लकार (आज्ञा अर्थ में)
  9. लुङ् लकार (सामान्य भूतकाल) तथा
  10. लुङ् लकार (हेतु-हेतुमद्भूत)

उम्रर्युक्त लकारों में लट्, लोट्, लङ, विधिलिङ ये चार लकार सार्वधातुक और शेष छ: लकार आर्धधातुक कहलाते हैं।नवीं कक्षा के छात्रों को केवल निम्नलिखित पाँच लकारों के रूप जानना आवश्यक है
(1) लट् लकार (वर्तमानकाल)- निरन्तर होती हुई, वर्तमानकाले की क्रिया लट् लकार द्वारा बतायी जाती है।
(2) लङ् लकार- भूतकाल की क्रिया को बताने के लिए लङ् लकार का प्रयोग होता है। यह लकार, जो कार्य आज से पहले हुआ हो, उसका बोध कराने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(3) लृट् लकार- हिन्दी की उन क्रियाओं का, जिनके अन्त में गा, गे, गी लगे होते हैं, का अनुवाद करने के लिए भविष्यत्काल के वाक्यों में लुट् लकार का प्रयोग किया जाता है।
(4) लोट् लकार– अनुमति, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अनुरोध, जिज्ञासा और सामर्थ्य अर्थ में लोट् लकार का प्रयोग किया जाता है।(5) विधिलिङ् लकार- उनुमति को छोड़कर शेष (निमन्त्रण, आमन्त्रण, अनुरोध, जिज्ञासा, सामर्थ्य तथा विधि) अर्थों में विधिलिङ् लकार का प्रयोग किया जाता है। :

क्रिया क पद

क्रिया के तीन पद होते हैं—

  • परस्मैपद,
  • आत्मनेपद तथा
  • उभयपद।।

(1) परस्मैपद- क्रिया के व्यापार का परिणाम जब कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य को प्राप्त होता है तब वहाँ क्रिया के परस्मैपदी रूप का प्रयोग होता है; जैसे-पठति।

(2) आत्मनेपद- जब क्रिया के व्यापार का परिणाम कर्ता तक ही सीमित रहता है, वहाँ क्रिया का आत्मनेपदी रूप प्रयुक्त होता है; जैसे-लभते।

(3) उभयपद- जिन धातुओं के ‘परस्मैपदी’ तथा ‘आत्मनेपदी’ दोनों रूप प्रसंगानुसार प्रयुक्त होते हैं, वे उभयपदी धातुएँ कहलाती हैं; जैसे—कृ—करोति, कुरुते; नी-नयति, नयते; जि- जयति, जयते।

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पुरुष

संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन पुरुष होते हैं—

  • प्रथम पुरुष,
  • मध्यम । पुरुष तथा
  • उत्तम पुरुष।

वचन

वन संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन वचन होते हैं—

  • एकवचन,
  • द्विवचन तथा
  • बहुवचन ।

लिंग

लिग संस्कृत में लिंग के कारण क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं आता।

धातुगण

उन अनेक धातुओं के समूह को गण कहते हैं, जिनमें एक विकरण प्रत्यय होता है। संस्कृत में विकरण प्रत्ययों के आधार पर समस्त धातुओं को दस गणों में विभक्त किया गया है। (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक गण का नाम उसकी प्रथम धातु के आधार पर रखा गया है; जैसे-भ्वादिगण की प्रथम धातु ‘भू’ (भू + आदि गण) है। दस गणों में कुल धातुओं की संख्या 1970 है। इन गणों के नाम इस प्रकार हैं

  • भ्वादिगण,
  • अदादिगण,
  • जुहोत्यादिगण,
  • दिवादिगण,
  • स्वादिगण,
  • तुदादिगण,
  • रुधादिगण,
  • तनादिगण,
  • क्रयादिगण,
  • चुरादिगण।

घातुओं के प्राथय

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण)
विशेष— नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में ‘पद्, गम्, अस्, शक्, प्रच्छ’ परस्मैपदी धातुओं; ‘लभ्’ आत्मनेपदी धातु तथा ‘याच्, ग्रह, कथ्’ उभयपदी धातुओं के रूप (UPBoardSolutions.com) निर्धारित हैं। विद्यार्थियों के ज्ञान एवं. अनुवादोपयोगी होने के कारण कुछ अन्य प्रमुख धातु-रूपों को भी यहाँ दिया जा रहा है।

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वस्तनिष्ठ प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए-
1. वर्तमानकाल के लिए किस लकार का प्रयोग किया जाता है?
(क) विधिलिङ् लकार का
(ख) लट् लकार का
(ग) लृट् लकार का
(घ) लङ् लकार का

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2. लङ् लकार किस काल को प्रदर्शित करता है? |
(क) वर्तमानकाल को ।
(ख) भविष्यत्काल को ।
(ग) भूतकाल को
(घ) किसी काल को नहीं

3. विधिलिङ् लकार का प्रयोग किस प्रकार के वाक्यों में होता है?
(क) आज्ञा अर्थ के वाक्यों में
(ख) चाहिए अर्थ के वाक्यों में
(ग) भविष्यत्काल के वाक्यों में ।
(घ) इच्छा अर्थ के वाक्यों में

4. आज्ञा अर्थ में कौन-सा लकार प्रयुक्त होता है?
(क) लोट् लकार
(ख) लङ् लकार
(ग) विधिलिङ् लकार
(घ) लृट् लकार

5. लकार कुल कितने प्रकार के होते हैं?
(क) आठ
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) दस

6. संस्कृत में कुल कितने गण माने जाते हैं? ।
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) दस
(घ) सोलह

7. गण का नाम किस आधार पर रखा गया है?
(क) धातु से जुड़े प्रत्यय के आधार पर
(ख) धातु से जुड़े उपसर्ग के आधार पर
(ग) लकार के आधार पर
(घ) गण की प्रथम धातु के आधार पर

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8. संस्कृत में किस कारण से क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होता?
(क) क्रिया-पद के कारण।
(ख) लिंग के कारण
(ग) पुरुष के कारण
(घ) वचन के कारण

9. निम्नलिखित में से कौन क्रिया को पद नहीं है?
(क) सकर्मकाकर्मक
(ख) परस्मै
(ग) आत्मने
(घ) उभय

10. ‘युवां ग्रन्थम् अपठतम्’ में रेखांकित पद के स्थान पर क्रिया का क्या रूप होगा, जिससे वाक्य विधिलिङ्का बन जाए?
(क) पठेयम्
(ख) पठेव
(ग) पठतम्।
(घ) पठेतम् ।

11. ‘गच्छानि’ किस लकार, पुरुष और वचन का रूप है?
(क) लोट्, उत्तम, एक
(ख) लट्, उत्तम, एक
(ग) लङ, प्रथम, बहु ।
(घ) लृट्, मध्यम, एक

12. ‘अगच्छम्’ किस काल का रूप है?
(क) वर्तमानकाल का
(ख) सामान्य भूतकाल का ।
(ग) भविष्यत्काल का
(घ) भूतकाल का ।

13. ‘लभ्’ धातु के लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन ( आत्मनेपदी) का रूप होगा
(क) लभेते
(ख) लभेत
(ग) लभताम्
(घ) लभते

14. ‘लभध्वम्’ ‘लभ्’ धातु (आत्मनेपदी) के किस लकार, पुरुष और वचन का रूप है?
(क) लोट्, मध्यम, एक ।
(ख) लोट, मध्यम, बह.
(ग) विधिलिङ, मध्यम, बहु
(घ) लृट्, मध्यम, बहु ।

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15. परस्मैपद में ‘याचेत्’ किस लकार का रूप होगा?
(क) लोट् का
(ख) विधिलिङ को
(ग) लृट् को
(घ) लङ् का

16. “याचे’ आत्मनेपद में किस काल का रूप होगा?
(क) वर्तमानकाल का
(ख) भूतकाल का
(ग) विधिलिङ का
(घ) भविष्यत्काल का ।

17.’एधि’ किस धातु का रूप है?
(क) आप् का.
(ख) याच् का ‘
(ग) अस् का 
(घ) इष् का

18. ‘शक्ष्याव:’ में मूल धातु और लकार कौन-से हैं?
(क) आस् और लृट्
(ख) शक् और लृट्
(ग) नश् और लोट् ।
(घ) अस् और विधिलिङ

19. ‘शिष्यः प्रश्नं प्रक्ष्यति।’ में रेखांकित पद के स्थान पर वाक्य को लोट् लकार में बदलने के | लिए क्या पद प्रयुक्त करेंगे? ।
(क) पृच्छेत्
(ख) अपृच्छत्
(ग) पृच्छति
(घ) पृच्छतु
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20. ‘ग्रह्’ धातु ( आत्मनेपदं) में लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप होगा
(क) गृणीत.
(ख) गृहणीत
(ग) गृणीते
(घ)गृणीताम्।

21. ‘अगृह्णन्’ में लकार, पुरुष, वचन और पद होगा
(क) लङ प्रथम, बहु, परस्मैपद
(ख) लृट्, उत्तम, एक, उभये
(ग) लङ, प्रथम, एक, परस्मैपद
(घ) लङ, मध्यम, एक, आत्मनेपद

22. ‘कथ्’ धातु (परस्मैपदी) लोट् लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप है
(क) कथयते
(ख) कथयतम्
(ग) कथयताम्
(घ) कथयथ

23. निम्नलिखित में कौन-सी धातु उभयपदी है?
(क) अस्
(ख) लभ्
(ग) याच् :
(घ) प्रच्छ्।

24. ‘पृच्छाम’ रूप किस लकार, पुरुष तथा वचन का है?
(क) लट्, उत्तम, एके
(ख) लोट्, उत्तम, बहु ।
(ग) लङ, प्रथम, द्वि
(घ) विधिलिङ, उत्तम, बहु

25. ‘अस्’ धातु किस गण के अन्तर्गत आती है?
(क) अदादि
(ख) दिवादि
(ग) क्रयादि
(घ) रुधादि ।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 शब्द-रूप प्रकरण (व्याकरण)

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Class Class 9
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Chapter Chapter 3
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Number of Questions Solved 29
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 शब्द-रूप प्रकरण (व्याकरण)

संस्कृत में शब्दों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) संज्ञा, (2) सर्वनाम, (3) विशेषण, (4) क्रिया, (5) अव्यये।
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में लिंग, कारक और वचन के अनुसार परिवर्तन होता है। क्रिया में कालें, पुरुष और वचन के अनुसार परिवर्तन होता है तथा अव्ययों में किसी भी दशा में (लिंग, कारक, वचन आदि के कारण) कोई परिवर्तन नहीं होता।

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लिंग

संस्कृत में निम्नलिखित तीन लिंग होते हैं-
(1) पुंल्लिग— जिससे पुरुष जाति का बोध होता है; जैसे-नरः, कविः।
(2) स्त्रीलिंग- जिससे स्त्री जाति का बोध होता है; जैसे–माला, मतिः, धेनुः, वधू, माती आदि।
(3) नपुंसकलिंग- जिससे न पुरुष जाति का बोध होता है और न स्त्री जाति का; जैसे-फलम्, वारि, मधु, जगत् आदि।।
विशेष— संस्कृत में लिंग-निर्णय में कठिनाई होती है। इसका अभ्यास अति आवश्यक है। इसके पूर्ण ज्ञान के लिए कोश, व्याकरण तथा साहित्य का अध्ययन आवश्यक है।

वचन

संस्कृत में निम्नलिखित तीन वचन होते हैं-
(1) एकवचन- जिनसे एक वस्तु का बोध होता है; यथा—बालकः पठति।
(2) द्विवचन- जिनसे दो वस्तुओं का बोध होता है; यथा-बालकौ पठतः।।
(3) बहुवचन- जिनसे दो से अधिक वस्तुओं का बोध होता है; यथा–बालकाः पठन्ति।

कारक

क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले पदों को कारक कहते हैं। हिन्दी में कारकों की संख्या आठ है, किन्तु संस्कृत में सम्बन्ध तथा सम्बोधन को; क्रिया से सम्बन्ध न होने के कारण; कारक नहीं माना जाता है।
सामान्य रूप से कारकों का परिचय निम्नलिखित है-
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विभक्तियों के प्रत्यय

संज्ञाओं के तीनों लिंगों, तीनों वचनों तथा सातों विभक्तियों में रूप चलते हैं। शब्द-रूपों को बनाने के लिए उनसे प्रत्यय जोड़े जाते हैं। इन प्रत्ययों को ‘सुप् प्रत्यय कहते हैं और इनसे बनने वाले शब्दों को सुबन्त कहते हैं।

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 कुछ व्यंजनान्त (हलन्त) होते हैं। इन सभी संज्ञा शब्दों को निम्नलिखित छः वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) स्वरान्त पुंल्लिग शब्द-राम, कवि, भानु, पितृ, गो आदि।
(2) स्वरान्त नपुंसकलिंग शब्द-
फल, वारि, मधु आदि।
(3) स्वरान्त स्त्रीलिंग शब्द–
माला, मति, धेनु, नदी, वधू, मातृ आदि।
(4) व्यंजनान्त पुंल्लिग शब्द– करिन्, आत्मन्, राजन्, मरुत्, सुहद् आदि।।
(5) व्यंजनान्त नपुंसकलिंग शब्द- मनस्, जगत्, नाम आदि।
(6) व्यंजनान्त स्त्रीलिंग शब्द- वाच्, सरित्, विपद् आदि।

विशेष- नवीं कक्षा में पुंल्लिग-राम, हरि, गुरु; स्त्रीलिंग-रमा, मति, वाच्; नपुंसकलिंग–सर्व, तद्, युष्मद् तथा अस्मद् शब्दों के रूप निर्धारित हैं। अनुवाद में सहायक होने के कारण इनके अतिरिक्त भी कुछ रूप यहाँ दिये जा रहे हैं।

स्वरान्त (अजन्त) पुंल्लिग शब्द ।

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ध्यातव्य
(1) उपर्युक्त संख्याओं में ‘अधिक’ या ‘उत्तर’ शब्द जोड़कर अन्य संख्याएँ भी बनायी । जा सकती हैं।
(2) प्रयुतम् (दस लाख), कोटिः (करोड़), दश कोटि: (दस करोड़), अर्बुदम् (अरब), दशार्बुदम् (दस अरब), खर्बम् (खरब), दशखर्बम् (दस खरब), नीलम् (नील), दसनीलम् (दस नील), पद्मम् (पद्म), दशपद्मम् (दस पद्म), शङ्खम् (शंख), दशशङ्खम् (दस शंख), महाशङ्कम् (महा शंख) आदि संख्यावाचक शब्द हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए|

1. ‘राम’ शब्द रूप कैसा है?
(क) अकारान्त
(ख) मकारान्त
(ग) आकारान्त
(घ) इकारान्त

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2. ‘राम’ शब्द का तृतीया बहुवचन में रूप होता है—
(क) रामेभ्यः
(ख) रामेण
(ग) रामाभ्याम्
(घ) रामैः

3. ‘रामाय’ शब्द किस विभक्ति और किस वचन का रूप है?
(क) पञ्चमी और एकवचन :
(ख) षष्ठी और द्विवचन
(ग) चतुर्थी और बहुवचन
(घ) चतुर्थी और एकवचन

4. हरि शब्द का रूप किसकी भाँति चलेगा?
(क) दधि की
(ख) मति की।
(ग) वारि की
(घ) मुनि की

5. हरौ’ शब्द किस विभक्ति और किस वचन का रूप है?
(क) प्रथमा और द्विवचन का
(ख) सप्तमी और एकवचन का
(ग) द्वितीया और द्विवचन को ।
(घ) षष्ठी और द्विवचन का

6. ‘गुरु’ शब्द का द्वितीया द्विवचन में रूप होगा
(क) गुरौ
(ख) गुरोः ।
(ग) गुरवः
(घ) गुरू

7. ‘गुरवः’ शब्द किस विभक्ति और किस वचन का रूप है?
(क) सप्तमी और द्विवचन का ।
(ख) चतुर्थी और एकवचन का
(ग) प्रथमा और बहुवचनं का
(घ) द्वितीया और बहुवचन का

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8. ‘रमा’ शब्द किस प्रकार का है?
(क) अकारान्त स्त्रीलिंग
(ख) आकारान्त स्त्रीलिंग
(ग) अकारान्त पुंल्लिग
(घ) आकारान्त पुंल्लिग

9. ‘रमाभिः’ शब्द किस विभक्ति और किस वचन का रूप है?
(क) चतुर्थी और बहुवचन का
(ख) पञ्चमी और बहुवचन का
(ग) तृतीया और बहुवचन का।
(घ) द्वितीया और बहुवचन का।

10. ‘रमा’ शब्द का षष्ठी द्विवचन का रूप होगा–
(क) रमायाः
(ख) रमयोः
(ग) रमायै
(घ) रमया

11. ‘मति’ शब्द का रूप किसके समान नहीं चलेगा
(क) सम्पत्ति के
(ख) सरित् के
(ग) नीति के
(घ) भक्ति के

12. ‘मत्योः’ शब्द रूप की विभक्ति और वचन है
(क) सप्तमी और द्विवचन
(ख) पञ्चमी और एकवचन
(ग) चतुर्थी और एकवचन ।
(घ) षष्ठी और एकवचन

13. द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में ‘मति’ शब्द का रूप होगा
(क) मत्योः
(ख) मती 
(ग) मत्यौ
घ) मत्यै

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14. ‘वाच्’ शब्द कैसा है?
(क) हलन्त पुंल्लिगे ।
(ख) चकारान्त स्त्रीलिंग ।
(ग) चकारान्त पुंल्लिग
(घ) चकारान्त नपुंसकलिंग ।

 15.सप्तमी बहुवचन में ‘वाच्’ शब्द का क्या रूप होगा? ।
(क) वाचशु
(ख) वाचषु
(ग) वाचसु
(घ) वाक्षु

16. ‘वाच्’ शब्द का प्रथमा विभक्ति और एकवचन का रूप होगा
(क) वाचः
(ख) वाणी
(ग) वाक्
(घ) वाचम्

17. ‘सर्व’ नपुंसकलिंग शब्द का तृतीया बहुवचन में क्या रूप होगा?
(क) सर्वैः
(ख) सर्वस्यै ।
(ग)स्वर से पहले
(घ) सर्वेभ्यः

18. ‘तद्’ नपुंसकलिंग का द्वितीया बहुवचन में क्या रूप होगा?
(क) तान्
(ख) तानि
(ग) ते ।
(घ) ताः

19. ‘नौ’ किस शब्द और वचन का रूप है?
(क) न शब्द, प्रथमा, द्विवचन ।
(ख) अस्मद् शब्द, द्वितीया, द्विवचन
(ग) नव शब्द, चतुर्थी, द्विवचन
(घ) नो शब्द, द्वितीया, द्विवचन

20. ‘अस्मद्’ शब्द का इनमें से सही रूप कौन-सा है?
(क) मयी
(ख) माम
(ग) मम
(घ) मम्

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21. ‘त्वम्’ किस शब्द और वचन का रूप है?
(क) तू शब्द और प्रथमा एकवचन का
(ख) युष्मद् शब्द और प्रथमा एकवचन का
(ग) अस्मद् शब्द और प्रथमा एकवचन का
(घ) स शब्द और तृतीया एकवचन का

22. ‘युष्मद्’ का द्वितीया बहुवचन में कौन-सा रूप होगा?
(क) त्वाम्
(ख) युष्मान्
(ग) यूयम्
(घ) युवाम्

23. ‘अस्मद्’ शब्द का’अस्मत्’ रूप किस विभक्ति और वचन में बनता है?
(क) प्रथमा बहुवचन में ।
(ख) षष्ठी एकवचन में।
(ग) पञ्चमी बहुवचन में
(घ) सप्तमी एकवचन में

24. ‘तद्’ सर्वनाम नपुंसकलिंग का’ तस्मै’ रूप बनता है
(क) प्रथमा में
(ख) चतुर्थी में
(ग) पञ्चमी में
(घ) सप्तमी में

25. ‘वाग्भिः’ रूप किस विभक्ति के किस वचन का है? ।
(क) तृतीया के बहुवचन का।
(ख) चतुर्थी के द्विवचन का।
(ग) षष्ठी के द्विवचन का
(घ) सप्तमी के एकवचन का

26. ‘युष्मत्’ रूप किस विभक्ति के किस वचन का है?
(क) पञ्चमी के बहुवचन का
(ख) षष्ठी के एकवचन का
(ग) सप्तमी के द्विवचन का न का
(घ) षष्ठी के द्विवचन का ।

27. ‘अस्मद्’ शब्द कामया’ रूप बनता है
(क) द्वितीया विभक्ति में
(ख) चतुर्थी विभक्ति में
(ग) पञ्चमी विभक्ति में ।
(घ) तृतीया विभक्ति में

28. ‘ऊननवतिः’ संख्यावाची शब्द का मान है
(क) 89
(ख) 91
(ग) 99
(घ) 79

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29. ‘षष्णवतिः’संख्यावाची शब्द का मान है
(क) 96
(ख) 69
(ग) 99
(घ) 59

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 2
Chapter Name सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 90
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

 ‘हिम’ और ‘आलय’, ‘देव’ और ‘आलय’, ‘देव’ और ‘इन्द्र’ आदि शब्द-युग्मों को सदि जल्दी-जल्दी पढ़ा जाये तो इनका मिला हुआ रूप ‘हिमालय’, ‘देवालय’, ‘देवेन्द्र’ आदि ही सदा मुख से निकलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सन्धि शब्दों के मिले हुए उच्चारण को ही एक रूप है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि जब कोई दो वर्ण अत्यन्त समीप आ जाते हैं तभी उनमें सन्धि होती है। इस प्रकार पास होने पर वर्षों में कभी तो (UPBoardSolutions.com) परिवर्तन हो जाता है और कभी नहीं भी होता, परन्तु सदैव पहले शब्द का अन्तिम वर्ण दूसरे शब्द के आरम्भ वाले वर्ण से ही मिलता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दो वर्षों के अत्यन्त पास आने से उनमें जो परिवर्तन होता है, उसे सन्धि कहते हैं; जैसे—रमा + ईशः = रमेशः।।

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सन्धि तीन प्रकार की होती है|

(क) स्वर सन्धि- जब पहले शब्द का अन्तिम स्वर दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भिक) स्वर से मिलता है तो स्वर सन्धि होती है, जैसे–रथ + आरूढः = रथारूढः।।

(ख) व्यंजन सन्धि- जब पहले शब्द का अन्तिम व्यंजन दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भिक) स्वर या व्यंजन से मिलता है तो व्यंजन सन्धि होती है, जैसे-वाक् + ईशः = वागीशः या सत् + चित् = सच्चित्।

(ग) विसर्ग सन्धि- जब पहले शब्द के अन्त में आया हुआ ‘:’ (विसर्ग) दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भ) में आये हुए स्वर या व्यंजन से मिलता है, तो विसर्ग सन्धि होती है, जैसे—छात्रः + तिष्ठति = छात्रस्तिष्ठति।

स्वर सन्धि

स्वर के साथ स्वर के मिलने से (स्वर + स्वर) स्वर में जो परिवर्तन (विकार) होता है, उसे स्वर या अच् सन्धि कहते हैं। इस सन्धि में धन (+) चिह्न से पूर्व व्यंजन में स्वर मिला होता है। इसीलिए व्यंजन में हलन्त () का चिह्न लगा हुआ नहीं होता है; जैसे-धन + अर्थी = धनार्थी। इसमें ‘अ’ के बाद ‘अ’ आया है। ‘धन’ के ‘न’ में ‘अ’ मिला हुआ है, इसलिए उसमें हल् का चिह्न नहीं है। ,

स्वर सन्धि प्रधानतया छः प्रकार की होती है-

(1) दीर्घ सन्धि,
(2) गुण सन्धि,
(3) वृद्धि सन्धि,
(4) यण् सन्धि,
(5) अयादि सन्धि,
(6) पूर्वरूप सन्धि ।

(1) दीर्घ सन्धि (सूत्र-अकः सवर्णे दीर्घः)

नियम- यदि (ह्रस्व या दीर्घ) अ, इ, उ, ऋ, लू स्वरों के बाद (ह्रस्व या दीर्घ) समान स्वर आते हैं तो उनके स्थान पर दीर्घ स्वर, अर्थात् आ, ई, ऊ, ऋ, ऋ (लू नहीं) हो जाता है। उदाहरण –
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

विशेष- ऋ’ और ‘कृ’ सवर्ण संज्ञके हैं, अतः समान स्वर माने जाते हैं। ऋ’ और ‘लू’ में किसी भी स्वर के पूर्व या पश्चात् होने पर, सन्धि होने पर, दोनों के स्थान पर ‘ऋ’ ही होता है, ‘लु’ नहीं, क्योंकि संस्कृत में ‘लू’ होता ही नहीं।]

(2) गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः)

नियम– यदि अ या आ के बाद ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ और लु आते हैं तो दोनों की सन्धि होने पर क्रमशः ए, ओ, अर् और अल् हो जाता है। उदाहरण –
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(3) वृद्धि सन्धि (सूत्र–वृद्धिरेचि)

नियम- यदि अ या आ के बाद ए-ऐ और ओ-औ आते हैं तो दोनों की सन्धि होने पर उनके स्थान पर क्रमश: ऐ और औ हो जाते हैं। उदाहरण
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(4) यण् सन्धि (सूत्र–इको यणचि)

नियम- यदि ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, लू (इकु) के बाद कोई असमान स्वर आये तो दोनों की सन्धि होने पर उनके स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल (यण्) हो जाता है। उदाहरण
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)(5) अयादि सन्धि (सूत्र–एचोऽयवायावः) :
नियम-यदि ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई स्वर आता है, तब सन्धि होने पर ‘ए’ के स्था न में ‘अय्’, ‘ओ’ के स्थान में ‘अ’, ‘ए’ के स्थान में ‘आय्’, ‘औ’ के स्थान में ‘आव्’ परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण-
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(6) पूर्वरूप सन्धि (सूत्र-एङ् पदान्तादति)

नियम- पदान्त के ‘ए’ और ‘ओ’ के बाद ‘अ’ आने पर ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है; अर्थात् ‘अ’ अपना रूप छोड़कर पूर्ववर्ण जैसा हो जाता है और ‘अ’ के स्थान पर पूर्वरूपसूचक चिह्न () लगाया जाता है। उदाहरण –

(1) ए के बाद अ=एऽ
हरे + अव = हरेऽव
वृक्षे + अस्मिन् = वृक्षेऽस्मिन्

(2) ओ के बाद अब ओऽ ।
विष्णो + अव= विष्णोऽव
गुरो + अत्र= गुरोऽत्र

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व्यंजन सन्धि

व्यंजन के बाद स्वरे या व्यंजन (व्यंजन् + स्वर, व्यंजन + व्यंजन) आने पर पूर्व पद के व्यंजन में जो परिवर्तन (विकार) होता है, उसे व्यंजन (हल्) सन्धि कहते हैं। इसमें ‘+’ चिह्न से पहले हलन्त व्यंजन आता है; जैसे-सत् + चित् = सच्चित्, जगत् + ईश्वरः = जगदीश्वरः। यहाँ पहले उदाहरण में ‘त्’ के बाद व्यंजन और दूसरे उदाहरण में ‘त्’ के बाद स्वर आया है।

विशेष- नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में व्यंजन सन्धि के निम्नलिखित छ: भेद निर्धारित हैं
(1) श्चुत्व सन्धि,
(2) ष्टुत्व सन्धि,
(3) जश्त्व सन्धि (पदान्त, अपदान्त)
(4) चवं सन्धि,
(5) अनुस्वार सन्धि,
(6) परसवर्ण सन्धि।

(1) श्चुत्व सन्धि (सूत्र-स्तोः श्चुना श्चुः) ।

नियम- ‘स्’ या तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद ‘श्’ या चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) आये तो इनकी सन्धि होने पर ‘स्’ का ‘श्’ तथा तवर्ग का चवर्ग हो जाता है। उदाहरण-
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 (2) ष्टुत्व सन्धि (सूत्र-ष्टुना ष्टुः)

नियम-‘स्’ या तवर्ग के बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) आये तो इनका योग (सन्धि) होने पर ‘स्’ का ‘ष’ तथा तवर्ग का टवर्ग हो जाता है। उदाहरण.
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(3) जश्त्व सन्धि
यह सन्धि दो प्रकार की होती है
(क) पदान्त जश्त्व तथा
(ख) अपदान्त जश्त्व।

(क) पदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जशोऽन्ते)

नियम- यदि पदान्त में वर्ग के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ण तथा श, ष, स्, ह के बाद कोई भी स्वर तथा वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व में से कोई वर्ण आये तो पहले वाले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण (जश्) हो जाता है। उदाहरण –
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(ख) अपदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जश् झशि)

नियम- यदि अपदान्त में झल् अर्थात् वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण के बाद कोई झश् । अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण हो तो सन्धि होने पर वह जश् अर्थात् अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है।
उदाहरण –
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

 (4) चव सन्धि (सूत्र–खरि च)

नियम- यदि झल् (वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्ण) के बाद वर्ग का प्रथम व द्वितीय वर्ण या श, ष, स् आता है तो सन्धि होने पर झल् के स्थान पर चर् अर्थात् अपने वर्ग का प्रथम वर्ण हो जाता है।
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

(5) अनुस्वार सन्धि (सूत्र-मोऽनुस्वारः)
नियम-
यदि पदान्त में ‘म्’ के बाद कोई भी व्यंजन आता है तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (‘) हो जाता है।
उदाहरण-

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे ।
त्वम् + करोषि = त्वं करोषि
त्वाम् + वदामि = त्वां वदामि ।
रामम् + भजामि = रामं भजामि ।
यदि पदान्त ‘म्’ के बाद कोई स्वर आ जाता है तो ‘म्’ ही रह जाता है;
जैसे-अहम् + अगच्छम् = अहम् अगच्छम्। ऐसी स्थिति में अगले स्वर को ‘म्’ से मिलाकर लिख देते हैं; जैसे-जलम् + आनय = जलमानय, वनम् + अगच्छत् = वनमगच्छत्।

विशेष— उपर्युक्त प्रकार से ‘म्’ का ‘अ’ से मिलना या किसी स्वर से मिलना सन्धि-कार्य नहीं है। यह हलन्त’ वर्गों की सामान्य प्रकृति है कि वे स्वर से मिल जाते हैं।

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(6) परसवर्ण सन्धि (सूत्र-अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः)

नियम- अनुस्वार से परे यदि यय् प्रत्याहार (श्, ष, स्, ह के अतिरिक्त सभी व्यंजन यय् प्रत्याहार में आते हैं) का कोई भी व्यंजन आये तो अनुस्वार का परसवर्ण हो जाता है; अर्थात् पद के मध्य में अनुस्वार के आगे श्, ष, स्, ह को छोड़कर किसी भी वर्ग का कोई भी व्यंजन आने पर अनुस्वारे के स्थान पर उस वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है;
उदाहरण—
गम् + गा = गङ्गा।
गम्/गं + ता = गन्ता ।
सम्/सं + ति = सन्ति ।
अन्/अं+ कितः = अङ्कितः।
शाम्/शां + तः = शान्तः ।
अन्/अं + चितः = अञ्चितः । |
कुम्/कुं+ चितः = कुञ्चितः।

विशेष— यह नियम प्रायः अनुस्वार सन्धि के पश्चात् लगता है। पदान्त में यह नियम विकल्प से होता है।
उदाहरण-
कार्यम् + करोति = कार्यं करोति या कार्यङ्करोति।
अलम् + चकार = अलं चकार या अलञ्चकार
रामम् + नमामि = रामं नमामि यो रामन्नमामि
त्वम् + केरोषि = त्वं करोषि या त्वङ्करोषि ।

विसंर्ग सन्धि

विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यंजन के मिलने से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसमें ‘+’ चिह्न से पूर्व विसर्ग आता है। विसर्ग किसी-न-किसी स्वर के बाद ही आता है, व्यंजन के बाद कभी नहीं आता। विसर्ग सन्धि में विसर्ग से पूर्व आने वाले स्वर का तथा विसर्ग के बाद आने वाले वर्ण का ध्यान रखा जाता है।

(1) विसर्ग का विसर्ग रहना
नियम- यदि विसर्ग के पूर्व कोई भी स्वर हो और विसर्ग के बाद क-ख और प–फ आते हैं तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। उदाहरणरामः + करोति = रामः करोति ।
बालकः + खादति = बालक:खादति
शिष्यः + पठति = शिष्यः पठति
वृक्षाः + फलन्ति = वृक्षाः फलन्ति

(2) सत्व सन्धि (सूत्र-विसर्जनीयस्य सः)

नियम– विसर्ग का श, ष, सु होना–यदि विसर्ग के बाद च-छ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘श्’, ट-ठ आये तो विसर्ग के स्थान पर ष तथा त-थ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। उदाहरण –
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(3) विसर्ग का विकल्प से श, ष, स् होना (सूत्र–वा शरि)

नियम- यदि विसर्ग के बाद श, ष, स आते हैं तो सन्धि के पश्चात् विसर्ग के स्थान पर क्रमशः श्, ष, स् हो जाते हैं अथवा विसर्ग का विसर्ग ही रह जाता है।
उदाहरण
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(4) विसर्ग का उ होना (सूत्र–ससजुषोरुः तथा अतोरोरप्लुतादप्लुते)

नियम-
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ तथा बाद में भी ‘अ’ आता है तो सन्धि होने पर विसर्ग का ‘रु’ (र का लोप होने पर उ’) हो जाता है। विसर्ग से पूर्व का ‘अ’ तथा विसर्ग वाला ‘उ’ मिलकर (अ + उ = ओ) ‘ओ’ हो जाते हैं तथा विसर्ग के बाद वाले ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है उदाहरण
(ऽ)चिह्न लग जाता है। उदाहरण

रामः + अपि = राम उ अपि-रामो
अपि = रामोऽपि। बालः + अवदत् = बाल उ अवदत्-बालो अवदत् = बालोऽवदत्।।
शुकः + अस्ति = शुक उ अस्ति–शुको अस्ति = शुकोऽस्ति।
कः + अपि = क उ अपि-को अपि = कोऽपि।
बालकः + अयम् = बालक उ अयम्-बालको अयम् = बालकोऽयम्।

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(5) विसर्ग का उ होना (सूत्र–हशि च)

नियम- यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में कोमल व्यंजन (वर्ग को तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व, ह) आती है तो विसर्ग का रु (उ) हो जाता है। विसर्ग के पूर्ववर्ती अ तथा उ मिलकर (अ + उ =ओ) ओ हो जाते हैं। उदाहरणमयूरः + नृत्यति = मयूरो नृत्यति
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(6) विसर्ग का लोप होना

नियम(अ) -यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो तथा बाद में ‘अ’ को छोड़कर कोई भी स्वर आये तो विसर्ग का लोप हो जाता है। उदाहरण
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नियम ( ब) –यदि ‘आ’ के बाद ‘विसर्ग और विसर्ग के बाद कोई भी स्वरे या कोमल व्यंजन आता है तो विसर्ग को लोप हो जाता है। उदाहरण
बालकाः + आगच्छन्ति = बालका आगच्छन्ति शिष्याः + अनमन् = शिष्या अनमन
जनाः + उपविशन्ति = जना उपविशन्ति सिंहाः + एते = सिंहा एते
मयूराः + नृत्यन्ति = मयूरा नृत्यन्ति जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।
मृगाः + धावन्ति = मृगी धावन्ति शुकाः + वदन्ति= शुको वदन्ति

नियम ( स )- एषः और सः के बाद अ को छोड़कर कोई भी वर्ण आता है तो विसर्ग का लोप हो जाता है। उदाहरणएषः + पठति
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विशेष- एषः और स: के बाद अ आने पर विसर्ग का ‘उ’ होकर ‘अतोरोरप्लुतादप्लुते’ के अनुसार सन्धि होती है।
उदाहरण-
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 21(7) विसर्ग का ‘र’ होना 

नियम– यदि विसर्ग के पूर्व अ या आ को छोड़कर कोई भी स्वर या कोमल व्यंजन आता है तो सन्धि होने पर विसर्ग का ‘ए’ हो जाता है। उदाहरण
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(8) र का लोप

नियम- नियम 7 के अनुसार विसर्ग का र होने पर ‘र’ के बाद पुनः ‘ए’ आता है तो पूर्ववर्ती (विसर्ग वाले) ‘र’ का लोप हो जाता है और विसर्ग से पूर्व स्थित स्वर यदि ह्रस्व है तो उसका दीर्घ हो जाता है। उदाहरण-
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लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर संस्कृत व्याकरण से।

 दीर्घ सन्धि
प्रश्‍न 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
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प्रश्‍न 3
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क)
ऐसे दो शब्द मिलाइए जिनमें दोनों ओर ह्रस्व ‘अ’ हो।
उत्तर
पुर + अरिः = पुरारिः, उदक +अर्थी = उदकार्थी।

(ख)
ऐसे दो शब्द बताइए , जिनके अन्त में दीर्घ ‘ई’ हो तथा उनसे मिलने वाले के शुरू में भी दीर्घ ‘ई’ हो।
उत्तर
नदी + ईशः = नदीशः, नारी + ईश्वरः = नारीश्वरः।

(ग)

सवर्ण का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
एक समान उच्चारण-स्थान और गंक समान प्रयत्न द्वारा उच्चरित वर्ण सवर्ण कहलाते. .

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(घ)
अक् प्रत्याहार से क्या समझते हैं?
उत्तर
अ, इ, उ, ऋ, लू वर्गों के समूह को अक् प्रत्याहार कहते हैं।

(ङ) व्यंजन सन्धि कब होती है?
उत्तर
व्यंजन से व्यंजन अथवा स्वर के मिल जाने पर व्यंजन सन्धि होती है।

प्रश्‍न 4
निम्नलिखित में शुद्ध वाक्य पर ‘✓’ तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए-
उत्तर
(क) इ तथा ई और ई + इ मिलने में परिणाम एक नहीं होता। (✗)
(ख) उ+ ऊ और ऊ+ ऊ मिलने में फल एक ही होता है। (✓)
(ग) अद्यापि और रवीन्द्रः में दीर्घ सन्धि है। (✓)
(घ) ह्रस्व तथा दीर्घ स्वर मिलकर दीर्घ नहीं होता। (✗)
(ङ) दीर्घ तथा ह्रस्व स्वर मिलने पर दीर्घ होता है। (✓)

प्ररन 5
निम्नलिखित शब्दों से अ, ई और उ के जोड़े अलग कीजिए
अद्य + अपि, रवि + इन्द्रः, दैत्य + अरिः, तथा + अपि, क्षिति + ईशः, तत्र + आसीत्, दया + अर्णवः, मधु + उत्सवः, कपि + ईश्वरः, गुरु + उपदेशः, सुधी + ईशः, परम + आत्मा, मातृ + ऋणम्।
उत्तर
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प्ररन 6
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करके नियम बताइए-
उत्तर
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गुण सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा नियम बताइए
उत्तर
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प्ररन 2
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि कीजिएउत्तर- सन्धि-विच्छेद सन्धित पंद सन्धि-विच्छेद सन्धित पद
उत्तर
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प्ररन 3
निम्नलिखित में जो कथन सत्य हों, उन पर ‘✓’ का तथा जो गलत हों उन पर ‘✗’ का चिह्न लगाइएउत्तर-

(क) उ और प का उच्चारण-स्थान एक है। ( ✓)
(ख) इ और य् का उच्चारण-स्थान एक नहीं है।  (✗ )
(ग) कवीन्द्रः तथा रवीन्द्रः में गुण सन्धि है। (✗ )
(घ) महेशः तथा दिनेशः में दीर्घ सन्धि है ।(✗ )
(ङ) ई तथा चवर्ग सवर्ण हैं। (✗ )
(च) सवर्ण ह्रस्व स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। (✓ )
(छ) देवर्षि में ऋ के कारण र् और आया है। ( ✗)

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प्ररन 4
निम्नलिखित में गुण और दीर्घ सन्धियों वाले वाक्य अलग-अलग छाँटिएउत्तर—

(क) महोदय! अहं तवेदं कार्यं न वाञ्छामि।। (गुण)

(ख) कुत्रागतः सः कथन्न देवालयं गच्छति। (दीर्घ) 

(ग) सन्देहास्पदं कार्यं न करणीयं त्वयात्र। (दीर्घ) 

(घ) तस्य गुणोत्कर्ष को न जानाति। (गुण)

(ङ) अद्य चन्द्रोदयः न भविष्यति।। (गुण)

यण सन्धि
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प्ररन 3

निम्नलिखित कथनों में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा शुद्ध कथन पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) इक् का अर्थ इ, उ, ऋ, लू होता है।  (✓ )
(ख) यण का अर्थ केवल य्, व् होता है। ( ✗)
(ग) अन्वेषण में दीर्घ सन्धि होती है। ( ✗)
(घ) सूर्योदय और अभ्युदय में एक ही सन्धि होती है। ( ✗)
(ङ) मात्रादेशः में दीर्घ सन्धि होती है। ( ✗)
(च) य् का उच्चारण स्थान कण्ठ है।  ( ✗)
(छ) इ और य का उच्चारण स्थान एक है। (✓ )

प्ररन 4

निम्नलिखित शब्दों में से यण और गुण सन्धियों के शब्द अलग कीजिए
गङ्गोदकम्, अथापि, यद्यपि, इत्याह, महोत्सवः, मध्वानय, जलार्थी, कथयाम्यहम्, जानाम्यहम्, प्रधानाध्यापकः, महेशः, सुरेशः, वध्वागमनम्।
उत्तर
यण सन्धि–यद्यपि, इत्याह, मध्वानय, कथयाम्यहम्, जानाम्यहम्, वध्वागमनम्। गुण सन्धि–गङ्गोदकम्, महोत्सवः, महेशः, सुरेशः।

प्ररन 5
निम्नलिखित वाक्यों में यण् सन्धि के शब्द बताइए-
उत्तर
वाक्य

 वृध्दि सन्धि
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प्ररन 3-निम्नलिखित सूत्रों का उदाहरणसहित अर्थ लिखिए

अकः सवर्णे दीर्घः, इको यणचि, आद्गुणः।
उत्तर
(क) अकः सवर्णे दीर्घः– यह दीर्घ सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि अक् प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु) के बाद क्रमशः अ, इ, उ, ऋ, लू ही आएँ तो दोनों स्वर मिलकर दीर्घ स्वर हो जाते हैं। उदाहरण-धन + अर्थी = धनार्थी, भानु + उदय = भानूदयः। 

(ख) इको यणचि- यह यण् सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि इक् प्रत्याहार (इ, उ, ऋ, लु) के बाद कोई अच् प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ऐ, औ) का वर्ण आये तो उसके (इक्) स्थान पर यण् (य, व, र, ल) हो जाता है। उदाहरण-प्रति + एकः = प्रत्येकः, पशु +एव = पश्वेव।

(ग) आद् गुणः- यह गुण सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि अ के बाद कोई असमान स्वर आये तो दोनों को मिलाकर गुण (ए, ओ) हो जाता है। उदाहरण-नर + ईशः = नरेशः, पय + ऊर्मिः = पयोर्मिः।

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प्ररन 4
गुण और वृद्धि में अन्तर बताइए।
उत्तर
अ, ए तथा ओ वर्ण गुण कहलाते हैं; जब कि आ, ऐ तथा औ वर्ण वृद्धि।

प्ररन 5
निम्नलिखित में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा अशुद्ध कथन पर ‘‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) कमलम् में सात वर्ण हैं।
(ख) इत्यादि में चार वर्ण हैं।
(ग) माम् + अकथयत् में सन्धि सम्भव है।
(घ) सदैव और तवैव में एक ही सन्धि है।

प्ररन 6
निम्नलिखित में परिवर्तन का कारण बताइए

(क)
अ +इ=ए ही क्यों होता है; जैसे-सुरेश में।
उत्तर
गुण सन्धि के ‘आद् गुण: सूत्र से ऐसा होता है।

(ख)
इ के स्थान में ये क्यों होता है; जैसे-इत्यादि में।
उत्तर
यण् सन्धि के सूत्र ‘इको यणचि’ द्वारा ऐसा होता है।

(ग)
अ+उ =ओ ही क्यों होता है; जैसे—सूर्योदय में।
उत्तर
गुण सन्धि के सूत्र ‘आद् गुणः’ से अ + उ = ओ होता है।

(घ)
महा + ऋषिः = महार्षिः क्यों नहीं? |
उत्तर
गुण सन्धि के सूत्र ‘आद् गुणः’ के अनुसार आ + ऋ = अर् होता है, न कि आर्; इसलिए ऐसा नहीं हुआ।

(ङ)
अथैव में ऐ क्यों हुआ?
उत्तर
वृद्धि सन्धि के सूत्र ‘वृद्धिरेचि के अनुसार अ + ए = ऐ होता है।

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प्ररन 7
निम्नलिखित वाक्यों में सन्धियुक्त शब्दों को अलग कीजिए

(क) रामः ममौरसः पुत्रः अस्ति।
(ख) सः सदैव अग्रजान् प्रणमति।
(ग) एकैकं पुस्तकेमादाय तत्रागच्छ।
(घ) त्वं कथं गङ्गोदकम् मलिनं करोषि। ।
(ङ) नगरेषु खाद्यान्नं विद्यते।
उत्तर 
(क) ममौरसः, (ख) सदैव, (ग) एकैकं, पुस्तकमादाय, तत्रागच्छ, (घ) गङ्गोदकम्, (ङ) खाद्यान्न।।

अयादि सन्धि
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 31

प्ररन 3
निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए-
एचोऽयवायावः, आद् गुणः, वृद्धिरेचि।
उत्तर
एचोऽयवायाः —यह अयादि सन्धि का सूत्र है। इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि एच् (ए, ऐ, ओ, औ) के बाद यदि कोई स्वर आये तो एच् के स्थान पर क्रमशः अय्, आय्, अव्, आव् हो जाते हैं; अर्थात् ए का अय्, ऐ का आय्, ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है।

आद् गुणः- इस सूत्र की व्याख्या के लिए वृद्धि सन्धि के अन्तर्गत प्रश्न 3 का (ग) भाग देखिए।

वृद्धिरेचि- यह वृद्धि सन्धुि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि ह्रस्व अथवा दीर्घ ‘अ’ के बाद एच् (ए, ऐ, ओ, औ) वर्ण आते हैं तो वृद्धि हो जाती है; अर्थात् अ अथवा आ के बाद यदि ए अथवा ऐ आये तो उनके स्थान पर ऐ तथा ओ अथवा औ आये तो उनके स्थान पर औ हो जाता है।

प्ररन 4
गुण तथा वृद्धि में अन्तर बताइए।
उत्तर
गुण के अन्तर्गत अ, ए, ओ वर्ण आते हैं, जब कि वृद्धि के अन्तर्गत आ, ऐ, औ वर्ण।

प्ररन 5
निम्नलिखित में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा अशुद्ध कथन पर ‘‘ का निशान लगाइए।
उत्तर
(क) ए + ए = ऐ होता है। (✗ )
(ख) अ + ओ = औ होता है। (✓ ) 
(ग) र् और ले यण् प्रत्याहार में आते हैं। (✓ )
(घ) प और उ का उच्चारण स्थान अलग-अलग है। (✗ )
(ङ) भवनम् में भू धातु आती है ( )
(च) शयनम् में शी धातु नहीं होती है। (✗ ) 
(छ) मतैक्यम् में दीर्घ सन्धि है। (✗ )
(ज) सुंर + ईशः = सुरेशः होता है। (✓ )
(झ) महा + ऋषिः मिलकर महर्षि बनता है। (✓ )
(ञ) प्रत्येकः के खण्ड सम्भव नहीं है। (✗ )

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प्ररन 6
निम्नलिखित वाक्यों से सन्धियुक्त शब्दों को सन्धि के अनुसार अलग-अलग कीजिए
(क) त्वं जलाशयं कदा गमिष्यसि?
(ख) अहं तु तत्रैव मिलिष्यामि।
(ग) कृष्णः देवालये न तिष्ठति अपितु जनमानसे।
(घ) सुरेशः सदा पुस्तकालये पठति।
उत्तय
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श्चुत्व सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
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प्ररन 3
निम्नलिखित में शुद्ध कथनों पर ‘‘ तथा अशुद्ध कथनों पर ‘‘ का चिह्न लगाइएउत्तर-

(क) स्तोः का अर्थ है–स् और तु, थ, द्, धू, न्। (✗)
(ख) जगज्जननी में स्वर सन्धि है। (✗)
(ग) वागीशः में स्वर सन्धि है। (✗)
(घ) सत् + मार्ग मिलकर सन्मार्ग बनता है। (✓ )
(ङ) पश्यामि + अहम् मिलकर पश्यामी + अहम् होता है। (✗)
(च) अभ्युदय; में अभि + उदयः होता है। (✓ )
(छ) नदी + आवेगः = नदी आवेगः ही रहता है। (✗)
(ज) मध्वरिः में मधु + अरिः होता है। (✓ )
(झ) प्रत्येकम् का सन्धि-विच्छेद नहीं होता है। (✗)
(ञ) यद्यपि एक शब्द है। इसमें सन्धि–विच्छेद सम्भव नहीं है। (✗)

प्ररन  4
निम्नलिखित में सन्धि के अनुसार शब्द अलग-अलग कीजिए
अत्युदारः, इत्याह, गणेशः, खल्वागच्छति, वदाम्यहम्, भजाम्यहम्, व्यवहारः, यथैव, सज्जनः, सन्मार्गः।।

उत्तर
यण् सन्धि– अत्युदारः, इत्याह, खल्वागच्छति, वदाम्यहम्, भजाम्यहम्, व्यवहारः।
गुण सन्धि– गणेशः।
श्चुत्व सन्धि–सज्जनः, सन्मार्ग।
वृद्धि सन्धि–यथैव।

ष्टुत्वं सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेदै कीजिए
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प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘✓ ‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) धनुष् + टङ्कारः = धनुषटङ्कारः होता है। ()
(ख) मत् + टीका = मद् टीका होता है। ()
(ग) रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति होता है। ( )
(घ) सत् + जनः = सज्जनः होता है।  ()
(ङ) ड् टवर्ग का तीसरा वर्ण है।  ( )

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प्ररन 4
स्तोः श्चुना श्चुः का क्या अर्थ है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
यह श्चुत्व सन्धि का सूत्र है। स्तोः का अर्थ है स् और तवर्ग, श्चुना का अर्थ है श् और चवर्ग तथा श्चुः का अर्थ है श् और चवर्ग। प्रस्तुत सूत्र के अर्थ का तात्पर्य यह है कि यदि स् और तवर्ग के पश्चात् श् अथवा चवर्ग आता है तो स् के स्थान पर श् और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग हो जाता है। उदाहरण
रामस् + शेते = रामशेते
सत् + जनाः = सज्जनः
निस् + छलः = निश्छलः
सत् + चित् = सच्चित् जश्त्व सन्धि

जशत्व सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
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प्ररन 2
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि कीजिए
उत्तर

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प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘‘ को तथा अशुद्ध वाक्य.पर ‘‘ का  चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) तत् + धनम् = तथ्धनम् होता है। (✗)
(ख) दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः होता है। (✓) 
(ग) जश्त्व का अर्थ ज, ब, ग, डू, द् में से कोई वर्ण होता है। (✓)
(घ) झलों में वर्ग का पंचम वर्ण भी आता है। (✗)
(ङ) अल् का अर्थ कोई भी वर्ण होता है। (✓)

प्ररन 4
निम्नलिखित में नियम-निर्देश करते हुए सन्धि कीजिए
उत्तर
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प्ररन 5
निम्नलिखित में नियम-निर्देशपूर्वक सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
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प्ररन 6
निम्नलिखित में सन्धियुक्त शब्दों को छाँटिएऔर सन्धियों को क्रम में लिखिए
(क) विष्णुदकम् आनय।
(ख) तेनोक्तं यद् सत्यमेव सत्यं भवति।
(ग) रमेशः कथयति यत् सँः दीर्घायुः भविष्यति।
(घ) पावकः सर्वान् दहति न केवलं त्वामेव।
(ङ) अयं महोत्सवः सर्वप्रियः भवति।।
उत्तर
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चर्ख सन्धि
प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
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अनुस्वार सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित अंशों में आवश्यकतानुसार ‘मोऽनुस्वारः’ का अभ्यास कीजिए
उत्तर
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प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्यों पर ‘‘ को तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) अहम् तत्र गच्छामि यत्र अन्यः कोऽपि न गमिष्यति। (✗)
(ख) श्यामः त्वाम् कथयिष्यति, सः कुत्रासीत्। (✗)
(ग) ‘हरिं वन्दे’ इत्येवमुक्त्वा सः गतः।  (✓)
(घ) अहमिच्छामि गृहं गन्तुं किन्तु यानं नास्ति। (✓)
(ङ) तव पुस्तकं विलोक्य अहं प्रसन्नतामनुभवामि। (✓)
(च) मोहनः इदानीमेव अत्रागमिष्यति। (✓)
(छ) विद्यामन्दिरं गत्वा रमेशः निश्चिन्तः अभवत् । ( ✓)
(ज) जानाम्यहं यत् अस्मिन् जगति सारः नास्ति। (✓)
(झ) अद्य रूप्यकाणाम् अभावः माम् क्लेशयति। (✗)
(ञ) त्वं तु सङ्कटापन्नः नासि, अतः दुःखं न जानासि। (✓)

प्ररन 4
निम्नलिखित वाक्यों में से गुण सन्धि के उदाहरण छाँटिए|
(क) भारतदेशे महोत्सवाः भवन्ति।
(ख) प्राचीनकाले अनेके महर्षयः अत्रासन्।
(ग) ते जनाः कुत्र, तव कार्यायाहं गमिष्याम्येव।
(घ) ये जनाः कुत्र निवसन्ति, नाहं जाने।
(ङ) जाते सूर्योदये सः आगमिष्यति।
उत्तर-
(क)
महोत्सवाः,
(ख)
महर्षयः,
(ङ)
सूर्योदये।

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प्ररन 5
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) सम्बन्ध की वर्तनी इस प्रकार होती है।  (✓)
(ख) दण्डित का शुद्धस्वरूप ऐसा ही है।  (✓)
(ग) परसवर्ण का अर्थ दूसरा वर्ण होता है। (✗)
(घ) कुञ्चित में ञ् नहीं लिखना चाहिए। (✗)
(ङ) दम्पत्ति की वर्तनी अशुद्ध है।  (✗)
(च) मन्त्र में तवर्ग का कोई वर्ण नहीं है। (✗)
(छ) वाक् + ईशः =.वाकीशः होता है। (✗)
(ज) “दिग्गजः’ में जश्त्व सन्धि है। (✓)
(झ) “सत्कार: एक शब्द है। (✗)
() ‘सुहत्फलम्’ अशुद्ध लिखा है। (✓) 
(ट) “एतज्जलम्’ में श्चुत्व सन्धि है। (✓)
(ठ) ‘गृहंगतः’ में कोई सन्धि नहीं है। (✗) 
(ड) “सत्यंवद में अनुस्वार सन्धि है। (✓)

विसर्जनीयस्य सः 
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प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘‘ का तथा अशुद्ध वाक्यं पर ‘‘ का । चिह्न लगाइए–
उत्तर
(क) अत्र छात्राश्तिष्ठन्ति। ()
(ख) त्वम् तत्र कथेत्र गच्छसि। ()
(ग) वयमत्र पश्यामस्तावत्।  ()
(घ) अस्माकं परिश्रमः त्वकृते भवति। ()
(ङ) मम स्थितः न शोभना वर्तते।। ()
(च) कठिन परिश्रमः फलति सदा।()
(छ) देवेनाहं ताडितः किं बहुना। ()
(ज) अस्माकं गृहे निवासाय देवा आयान्ति। ()
(झ) लक्ष्मीश्चञ्चला भवति।। ()

ससजुषोरुः
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हाशि च
प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
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प्ररन 2
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘‘ का चिह्न लगाइए-
उत्तर
(क) सोऽहम् = सः + अहम्। (✓)
(ख) शिवोऽहम् में अतोरोरप्लुतादप्लुते की प्रवृत्ति है। (✓)
(ग) सदैव में गुण सन्धि है।। (✗)
(घ) गत्वाहम् में वृद्धि सन्धि है। (✗)
(ङ) अहं गच्छामि में कोई सन्धि नहीं है। (✗)
(च) रामो वदति में हशि च की प्रवृत्ति है। (✓)
(छ) श्यामो नमति में हशि च नहीं लगता। (✗)
(ज) यत्र योगेश्वरः कृष्णः में योगेश्वरो होना चाहिए। (✗)

प्ररन 3
निम्नलिखित में वर्ण-परिवर्तन के कारण बताइए
उत्तर
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प्ररन 4
निम्नलिखित को शुद्ध करके लिखिए-
भौ + उकः = भावुकः। सर्पः + सर्पति = सप्रसर्पति। रामः पाठम् पठति। मोहनस्चलति। देवश्तिष्ठति।।
उत्तर
भौ + उकः = भावुकः।
सर्पः + सर्पति = सर्पस्सर्पति।
रामः पाठं पठति। मोहनश्चलति। देवस्तिष्ठति।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. स्वर सन्धि कब होती है?
(क) व्यंजन और विसर्ग के मिलने पर।
(ख) स्वर के साथ विसर्ग मिलने पर
(ग) स्वर के साथ व्यंजन मिलने पर
(घ) स्वर के साथ स्वर मिलने पर

2. दीर्घ सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) अकः सवणे दीर्घः
(ख) इको यणचि
(ग) आद्गुणः ।
(घ) स्तो: श्चुना श्चुः

3. ‘इको यणचि’ सूत्र में इक् से क्या तात्पर्य है?
(क) इ, आ, ऋ, लू वर्ण ।
(ख) अ, इ, उ, ऋ, लु वर्ण
(ग) इ, उ, ऋ, लु वर्ण ।
(घ) य, व, र, ले वर्ण

4. इक् प्रत्याहार का यण प्रत्याहार किस सन्धि में होता है? |
(क) वृद्धि सन्धि में
(ख) गुण सन्धि में
(ग) दीर्घ सन्धि में
(घ) यण् सन्धि में

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5. व्यंजन सन्धि में किसका मेल होता है? |
(क) स्वर और स्वर का
(ख) व्यंजन से स्वर या व्यंजन का।
(ग) केवल स्वर और व्यंजन का।
(घ) व्यंजन और विसर्ग का

6. व्यंजन सन्धिका कौन-सा भेद है?
(क) सत्व सन्धि
(ख) रुत्व सन्धि
(ग) चवं सन्धि
(घ) पूर्वरूप सन्धि

7. ‘स्तोः श्चुना श्चुःसूत्र किस सन्धि का है?
(क) टुत्व सन्धि का
(ख) जश्त्व सन्धि का ।
(ग) श्चुत्व सन्धि का । 
(घ) अनुस्वार सन्धि को

8. चवं सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) टुना टुः
(ख) झलां जशोऽन्ते
(ग) खरि च
(घ) ससजुषोरुः

9. इकार का उकार से योग होने पर क्या होता है?
(क) इकार का अकार
(ख) इकार का यकार
(ग) इकार का लोप
(घ) उकार का लोप

10. ‘ओ’ के बाद कोई स्वर आने पर ‘ओ’ का क्या होता है? |
(क) अय् ।
(ख) अव्
(ग) आव् ।
(घ) आय्

11. ‘अ’ या ‘आ’ के बाद’इ’या’ई’ आने पर ‘अ’ या ‘आ’ को क्या हो जाता है?
(क) ए
(ख) ऐ
(ग) अय्
(घ) आय्

12. ‘अ’ या ‘ओ’ के बाद ‘ओ’ या’ औ’ आने पर ‘अ’ या ‘आ’ का क्या हो जाता है?”
(क) ओ
(ख) औ 
(ग) अव्
(घ) आव् ।

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13.यदि’अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए-ऐ’ या’ओ-औ’ आते हैं तो उनके स्थान पर क्रमशः ‘ऐ’ और | ‘औ’ हो जाते हैं, यह सन्धि है
(क) अकः सवर्णे दीर्घः
(ख) इको यणचि ।
(ग) वृद्धिरेचि
(घ) एचोऽयवायावः

14. यदि किसी शब्द में विसर्ग से पहले ‘अ’ आता है और बाद में भी ‘अ’ आता है, ऐसे शब्दों में कौन-सी सन्धि होगी ?
(क) वा शरि
(ख) अतोरोरप्लुतादप्लुते
(ग) मोऽनुस्वारः
(घ) हशि च ।

15. सकार या तवर्ग के बाद षकार या टवर्ग का योग होने पर स् का ५ तथा तवर्ग का टवर्ग हो। जाता है। यह कौन-सी सन्धि है?
(क) टुना ष्टुः
(ख) खरि च
(ग) स्तो: श्चुना श्चुः
(घ) झलां जशोऽन्ते

16. मकार का अनुस्वार किस सन्धि में होता है?
(क) अपदान्त जश्त्व सन्धि में ।
(ख) पदान्त जश्त्व सन्धि में ।
(ग) अनुस्वार सन्धि में।
(घ) अनुनासिक सन्धि में

17. विसर्ग सन्धि में विसर्ग सदैव कहाँ आता है?
(क) व्यंजन के बाद
(ख) स्वर के बाद
(ग) स्वर से पहले
(घ) व्यंजन से पहले

18. सत्व सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) अतोरोरप्लुतादप्लुते
(ख) विसर्जनीयस्य सः
(ग) ससजुषोरुः ।
(घ) हशि च ।

19. होतृ + लृकारः में कौन-सी सन्धि होगी?
(क) अयादि सन्धि
(ख) दीर्घ सन्धि
(ग) गुण सन्धि
(घ) वृद्धि सन्धि

20. निम्नलिखित विकल्पों में वृद्धि सन्धि का उदाहरण कौन-सा है?
(क) मधु + अरिः
(ख) नदी + ईशः
(ग) नै + अकः।
(घ) लता + एव

21. कृष् + नः किस सन्धि का उदाहरण है? । 
(क) अनुनासिक सन्धि का
(ख) टुत्व सन्धि को
(ग) चव सन्धि को
(घ) श्चुत्व सन्धि का

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22. ‘निः + दयः’ में विसर्ग का’र’ किस सूत्र से हुआ है?
(क) ससजुषोरु: से
(ख) ठूलोपेपूर्वस्य दीघोंऽणः से
(ग) हशि च से।
(घ) अतोरोरप्लुतादप्लुते से

23. गङ्गा + उदकम् में सन्धित पद होगा-
(क) गङ्दकम् ,
(ख) गङ्गोदकम्
(ग) गङ्गादूकम् ।
(घ) गङ्गौदकम् ।

24. ‘पवित्रम्’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है?
(क) पव् + इत्रम्
(ख) पौ + इत्रम्
(ग) पो + इत्रम्
(घ) पे + इत्रम्

25. नकुलो + अपि का सन्धित पद क्या होगा?
(क) नकुलौपि
(ख) नकुलैपि
(ग) नकुलोऽपि
(घ) नकुलेपि

26. ‘शुद्धिः’ का सन्धि-विच्छेद क्या होगा?
(क) शुध् + दिः
(ख) शुद् + धिः
(ग) शुदि + धः
(घ) शुध् + धिः

27. जगन्नाथः का सन्धि-विच्छेद क्या होगा?
(क) जगत् + नाथः
(ख) जगन्न + अथः
(ग) जगन् + नाथः
(घ) जगद् + नाथः

28. ‘दिगम्बरः’ का सन्धि-विच्छेद होगा-
(क) दिक् + अम्बरः
(ख) दिग + अम्बर:
(ग) दिक+ अम्बरः
(घ) दिग् + अम्बरः

29.’चयनम्’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) च + अनम्
(ख) चय+ नम्रै
(ग) चे + अनम्
(च) चे + एनम् ।

30. ‘वाक्-जाल’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा
(क) वाघ्ञ्जालः
(ख) वाग्जालः
(ग) वाक्जाल:
(घ) वाक्जाल:

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31. ‘निराश्रितः’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) निर + आश्रितः
(ख) निरा + आश्रितः
(ग) निरा + श्रितः
(घ) निः + आश्रितः

32. ‘वृक्ष + छाया’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा-
(क) वृक्षच्छाया
(ख) वृक्षश्छाया
(ग) वृक्षया
(घ) वृक्षाछाया

33. ‘शिवः + अहम्’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा-
(क) शिवर्हम्
(ख) शिवोहम्
(ग) शिवोऽहम्
(घ) शिवोऽहम्

34. ‘तथैव’ का सन्धि-विच्छेद होगा-
(क) तथा + एव

(ख) तथ + ऐव
(ग) तथ् + ऐव |
(घ) तथे + एव

35. ‘त्वम् + करोषि’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा
(क) त्वम्करोषि
(ख) त्वंकरोषि
(ग) त्वङ्करोषि ।
(घ) त्वन्करोषि

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण) 

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण)  are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 1
Chapter Name माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण)

भाषा- भाषा द्वारा हम अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाते हैं तथा दूसरों के भावों को ग्रहण करते हैं। भाषा में अनेक ध्वनियाँ होती हैं। ध्वनियों को प्रकट करने वाले प्रतीकों को वर्ण कहा जाता है। दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर शब्द-रचना करते हैं तथा अनेक शब्दों से मिलकर वाक्य बनते हैं। और अनेक वाक्यों द्वारा भाषा का निर्माण होता है। भाषा का प्रवाह सदैव नदी के समान स्वच्छन्द होता है। व्याकरण (UPBoardSolutions.com) इसमें किनारों का काम करता है। भाषा को देखकर ही व्याकरण के नियम बनाये जाते हैं; अर्थात् भाषा पहले होती है और व्याकरण उसके बाद। संस्कृत भाषा का व्याकरण बहुत वैज्ञानिक है। इसके नियमों को बड़ी सरलता से समझा जा सकता है। संस्कृत भाषा के समस्त व्याकरण एवं वर्णमाला का आधार महर्षि पाणिनि द्वारा प्रतिपादित चौदह सूत्र हैं, जिन्हें ‘शिव सूत्र’ अथवा ‘माहेश्वर सूत्र’ भी कहते हैं।

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संस्कृत  की वर्णमाला

कोई भी वर्णमाला विभिन्न प्रकार के वर्षों से बनती है और वर्ण विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को प्रकट करने वाले प्रतीक होते हैं। संस्कृत वर्णमाला के वर्ण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-(अ) स्वर या अच् तथा (ब) व्यंजन या हल्।।

(अ) स्वर या अच्- जिसका उच्चारण किसी अन्य ध्वनि की सहायता के बिना होता है और मुँह से श्वास-वायु बिना किसी रुकावट के बाहर निकल जाती है, उसे स्वर या अच् कहते हैं; जैसे-अ, इ, उ आदि।

स्वर वर्णो को तीन भागों में विभक्त किया गया है

  1. ह्रस्व स्वर- इनके उच्चारण में कम समय लगता है। इनके उच्चारण-समय को एक मात्रा माना गया है; जैसे-अ, इ, उ, ऋ, लु।
  2. दीर्घ स्वर- इनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है। इसीलिए इनके उच्चारण-समय को दो मात्रा माना गया है; जैसे—आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। (UPBoardSolutions.com)
  3. प्लुत् स्वर- इनके उच्चारण में सबसे अधिक समय लगता है। इसीलिए इनके उच्चारण समय को तीन मात्रा का माना गया है; ऐसे वर्गों के सम्मुख ३ लिख देते हैं; जैसे-ओ३म्। इन स्वरों का प्रयोग सामान्य संस्कृत में नहीं मिलता है।

(ब) व्यंजन या हल्- जिन वर्गों का उच्चारण स्वर की सहायता के बिना नहीं हो सकता और श्वास-वायु किसी-न-किसी अवरोध के बाद ही मुँह से बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं; जैसे—क, ख आदि। व्यंजनों के उच्चारण की सरलता के लिए उनमें ‘अ’ मिला रहता है; जैसे—क् + अ = क। व्यंजन वर्गों को भी तीन भागों में विभक्त किया गया है

1.स्पर्श व्यंजन- जिन वर्गों के उच्चारण के समय मुख के दो अवयव एक-दूसरे का स्पर्श करते हैं और श्वास-वायु के निकलने में बाधा डालते हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। ये संख्या में 25 होते हैं, जिनका वर्गानुसार विभाजन इस प्रकार है
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण) 

2.अन्तःस्थ-
जो वर्ण न तो पूरी तरह स्वर होते हैं और न व्यंजन; अर्थात् दोनों के बीच (अन्तः) में स्थित होते हैं, उन्हें अन्त:स्थ वर्ण कहा जाता है। ये चार हैं

अन्तःस्थ- य र ल व

3. ऊष्म- जिन वर्गों का उच्चारण करते समय मुख से निकलने वाली वायु ऊष्म (घर्षण के कारण) होकर बाहर निकलती है, उन्हें ऊष्म वर्ण कहा जाता है। ये भी संख्या में चार हैं

ऊष्मा – श ष स है।

विशेष-

  1. उपर्युक्त के अतिरिक्त विसर्ग (:) व (अनुस्वार) (‘) भी अन्य ध्वनियाँ हैं।
  2. अ, ए तथा ओ स्वर वर्गों को गुण कहते हैं; जब कि ओ, ऐ, औ को वृद्धि कहते हैं।

उच्चारण-स्थान

वर्गों का उच्चारण करते समय मुख का कोई-न-कोई भाग विशेष भूमिका निभाता है। वर्ण के उच्चारण में जिस भाग की विशेष भूमिका होती है, वही उसका उच्चारण-स्थान कहलाता है। इन उच्चारण-स्थानों के आधार पर वर्गों का नामकरण भी किया गया है। वर्गों के उच्चारण-स्थान क्रमशः इस प्रकार हैं
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 माहेश्वर-सूत्र एवं वर्गों का उच्चारण (व्याकरण) 

प्रयत्न

वर्गों का उच्चारण करते समय मुख के विभिन्न भाग कुछ चेष्टाएँ करते हैं। इन भागों के उच्चारण करने की चेष्टा को ही प्रयत्न कहते हैं। उच्चारण में कुछ चेष्टाएँ मुख के अन्दर के भागों में होती हैं तथा कुछ बाहर के भागों में होती हैं। मुख के अन्दर होने वाली चेष्टाओं को आभ्यन्तर प्रयत्न तथा बाहर होने (UPBoardSolutions.com) वाली चेष्टाओं को बाह्य प्रयत्न कहते हैं। आभ्यन्तर प्रयत्न निम्नलिखित पाँच प्रकार के होते हैं

(1) स्पृष्ट- इस प्रयत्न में जिह्वा मुख के विभिन्न भागों को स्पर्श करती है। इसलिए ही इन्वर्गों को स्पर्श वर्ण भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत ‘क’ से ‘म’ तक के वर्ण आते हैं। 

(2) ईषत् स्पृष्ट– इस प्रयत्न में जिह्वा मुख के विभिन्न भागों का स्पृष्ट वर्गों की अपेक्षा कम स्पर्श करती है। इसके अन्तर्गत ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व वर्ण आते हैं।

(3) विवृत- इस प्रयत्न द्वारा स्वर वर्गों का उच्चारण होता है। इस प्रयत्न में मुख को खोलना पड़ता है।

(4) ईषत् विवृत- इस प्रयत्न में जिह्वा को अपेक्षाकृत कम उठाना पड़ता है। इसके अन्तर्गत ‘श’, ‘ष’, ‘स’, ‘ह’ वर्ण आते हैं।

(5) संवृत- इसमें वायु का मार्ग बन्द हो जाता है। यह प्रयत्न केवल ह्रस्व ‘अ’ के लिए होता है। बाह्य प्रयत्नों में ओष्ठों की चेष्टाएँ तथा उच्चारण के समय बनने वाली मुखाकृतियाँ आती हैं।

माहेश्वर-सूत्र

महर्षि पाणिनि ने संस्कृत के सभी वर्गों को लेकर लघु सूत्रों द्वारा विस्तृत अर्थ वाले नियमों का निर्माण किया है। ये लघु सूत्र चौदह हैं, जिन्हें शिव-सूत्र अथवा माहेश्वर-सूत्र भी कहते हैं।

  1. अइंउण्,
  2. ऋलुक्,
  3.  एओङ,
  4. ऐऔच्,
  5. हयवरट्,
  6. लणे,
  7. अमरूणनम्,
  8. झभञ्,
  9. घढधष्,
  10. जबगडदश्,
  11. खफछठथचटतव्,
  12. कपय्,
  13. शषसर्,
  14. हल्।

इन सूत्रों के प्रत्याहार बनाते समय प्रत्येक सूत्र का अन्तिम (हलन्त) अक्षर लुप्त हो जाता है। इनमें आरम्भ के चार सूत्रों में स्वर वर्ण हैं तथा शेष दस सूत्रों में व्यंजन वर्ण। 

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चौहद शिव- सूत्रों से प्रत्याहारों का निर्माण किया जाता है। महर्षि पाणिनि के अनुसार “वह संक्षिप्त रूप जो ‘किसी सूत्र के प्रथम और अन्तिम वर्गों को जोड़कर बनाया जाता है, प्रत्याहार कहलाता है। जैसे-अइउण सूत्र का प्रत्याहार अण। जो प्रत्याहार बनाना हो, उसका प्रथम वर्ण लेकर और (UPBoardSolutions.com) शिव-सूत्रों का अन्तिम हलन्त वर्ण निकालकर प्रत्याहार बनता है, अर्थात् प्रथम वर्णसहित अन्तिम वर्ण से पूर्व के सभी वर्ण उस प्रत्याहार के अन्तर्गत आ जाते हैं। इसमें हलन्त वर्गों को छोड़ दिया जाता है। कुछ प्रमुख प्रत्याहारों का विवरण निम्नलिखित है

  1.  इक्–इ, उ, ऋ, लू ( ‘अइउण्’ के ‘इ’ से ऋलुक्’ के ‘क’ के पूर्व के वर्ण)
  2. यण–य, व, र, ल ( ‘हयवर’ के ‘य’ से ‘लण’ के ‘ण के पूर्व के वर्ण)
  3. अक्-अ, इ, उ, ऋ, लू ( ‘अइउण्’ के ‘अ’ से ऋलुक्’ के ‘क’ के पूर्व के वर्ण)
  4. अच्-अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ऐ, औ ( ‘अइउण्’ के ‘अ’ से ‘ऐऔच्’ के ‘च्’ के पूर्व के वर्ण)
  5. एङ–ए, ओ ( ‘एओङ ‘ए’ से ‘ङ’ के पूर्व के वर्ण)
  6. एच् ए, ओ, ऐ, औ ( ‘एओङ’ के ‘ए’ से ‘ऐऔच्’ के ‘च्’ के पूर्व के वर्ण) |
  7. झल्-झ, भ, घ, ढ, ध (वर्ग का चतुर्थ वर्ण), ज ब ग ड द (वर्ग का तृतीय वर्ण), ख, फ, छ, ठ, थे (वर्ग को द्वितीय वर्ण), च, ट, त, क, प (वर्ग का प्रथम वर्ण), श, ष, स, ह (ऊष्म वर्ण) = 24 वर्ण ( ‘झेभञ्’ में ‘झ’ से ‘हल्’ के ‘ल्’ तक के वर्ण)
  8. जश्-ज, ब, ग, ड, द (वर्ग का तृतीय वर्ग-जबगडदश्’ में ‘ज’ से ‘श्’ के पूर्व के वर्ण)
  9. हश्–ह, य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द (वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम वर्ण और य, र, ल, व)। ‘हश्’ को कोमल व्यंजन भी कहते हैं। |
  10. खर्-ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स (वर्गों के प्रथम, द्वितीय वर्ण तथा श, ष, स)। ‘खर्’ प्रत्याहार को कठोर व्यंजन भी कहते हैं। | पाणिनि के चौदह सूत्रों से अनेक प्रत्याहार बन सकते हैं, परन्तु पाणिनि ने मात्र 42 प्रत्याहारों का प्रयोग अपने व्याकरण में किया है। ये 42 प्रत्याहार पाणिनीय व्याकरण के सार माने जाते हैं। अकारादि क्रम से ये निम्नलिखित हैं
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विशेष— प्रत्याहारों के निर्माण के लिए चौदह माहेश्वर सूत्रों को क्रम से शुद्ध रूप में स्मरण रखना आवश्यक है, अन्यथा प्रत्याहार शुद्ध रूप से नहीं लिखे जा सकेंगे। जिस प्रत्याहार के वर्षों को लिखना हो उसका प्रथम वर्ण चौदह सूत्रों में से छाँटिए और अन्तिम (हलन्त) वर्ण तक चले जाइए (UPBoardSolutions.com) जब वह मिल जाए तो उसके मध्य के सभी वर्गों को लिख लीजिए। ये वर्ण ही उस प्रत्याहार के वर्ण होंगे।

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर संस्कृत व्याकरण से।

प्रश्‍न 1- निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर दीजिए
(अ)
च का उच्चारण-स्थान बताइए।
उत्तर
च का उच्चारण-स्थान तालु है।

(आ)
कण्ठ से किन वर्गों का उच्चारण होता है?
उत्तर
कण्ठ से अ, क, ख, ग, घ, ङ, ह तथा विसर्ग का उच्चारण होता है।

(इ)
य, र, ल, व को किस नाम से पुकारते हैं?
उत्तर
य, र, ल, व को अन्त:स्थ नामों से पुकारते हैं।

(ई)
तालु से किन-किन वर्गों का उच्चारण होता है?
उत्तर
तालु से इ, च, छ, ज, झ, ञ, य और श वर्गों का उच्चारण होता है।

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(उ)
त और थ का उच्चारण किस स्थान से होता है?
उत्तर
त और थे का उच्चारण दन्त से होता है।

(ऊ)
श का उच्चारण किस वर्ग के उच्चारण से मिलता है?
उत्तर
श का उच्चारण चवर्ग के उच्चारण से मिलता है।

(ऋ)
ष का उच्चारण स्थान बताइए।
उत्तर
ष का उच्चारण-स्थान मूद्ध है।

(ए)
स का उच्चारण स्थान बताइए।
उत्तर
स का उच्चारण-स्थान दन्त है।।

प्रश्‍न 2- निम्नलिखित कथनों में सही कथन पर ‘✓’ तथा गलत कथन पर ‘✗’ का निशान लगाइए

(क) अ और क का उच्चारण-स्थान एक नहीं है। (✗)
(ख) ल और स को उच्चारण दाँतों के सहारे होता है। (✓)
(ग) इ और य का उच्चारण-स्थान एक है। (✓)
(घ) उ और व का उच्चारण-स्थान एक नहीं है। (✓)
(ङ) मूद्ध से उच्चरित होने वाले वर्षों में ठ, ड और र हैं। (✓)

प्रश्‍न– 3–अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क)
जश् प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्ण बताइए।
उत्तर
जश् प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्ण ज, ब, ग, ड, द हैं।

(ख)
इक् से क्या समझते हैं?
उत्तर
इक् प्रत्याहार का तात्पर्य इ, उ, ऋ, लु वर्गों के समूह से है।

(ग)
ए और एच् में अन्तर बताइए।
उत्तर
एङ प्रत्याहार के अन्तर्गत ए, ओ वर्ण हैं, जब कि एच् प्रत्याहार के अन्तर्गत ए, ऐ, ओ, औ वर्ण आते हैं।

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(घ)
स्पर्श किन वर्गों को कहते हैं और क्यों?
उत्तर
क से म तक के समस्त वर्गों को स्पर्श वर्ण कहते हैं; क्योंकि इनके उच्चारण में जिह्वा विभिन्न उच्चारण-स्थानों का स्पर्श करती है।

(ङ)
वर्गों के तीसरे वर्ण किस प्रत्याहार में आते हैं?
उत्तर
वर्गों के तीसरे वर्ण जश् प्रत्याहार में आते हैं।

(च)
नासिका के सहारे किन वर्गों का उच्चारण होता है?
उत्तर
नासिका के सहारे ङ, ञ, ण, न, म वर्गों का उच्चारण होता है।

(छ)
पवर्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
पवर्ग से आशय प, फ, ब, भ, म वर्गों के समूह से है।

(ज)
किस प्रत्याहार में सभी स्वर आते हैं?
उत्तर
अच् प्रत्याहार में सभी स्वर आते हैं।

(झ)
गुण किसे कहते हैं?
उत्तर
अ, ए, ओ वर्गों को गुण कहते हैं।

(ञ)
वृद्धि में कौन-कौन-से वर्ण आते हैं?
उत्तर
वृद्धि में आ, ऐ, औ वर्ण आते हैं।

प्रश्‍न  4- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क)
प्रयत्न किसे कहते हैं?
उत्तर
वर्गों का उच्चारण करने के लिए मुख के अंगों द्वारा की गयी चेष्टाएँ ही प्रयत्न कहलाती

(ख)
आभ्यन्तर प्रयत्न कितने प्रकार का होता है?
उत्तर
आभ्यन्तर प्रयत्न पाँच प्रकार का होता है स्पृष्ट, ईषत् स्पृष्ट, विवृत, ईषत् विवृत और 
संवृत।

(ग)
स्वरों के उच्चारण में कौन-सा प्रयत्न होता है?
उत्तर
स्वरों के उच्चारण में विवृत प्रयत्न होता है।

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(घ)
स्पृष्ट प्रयत्न में कौन-कौन से वर्ण आते हैं?
उत्तर
स्पृष्ट प्रयत्न में क से में तक के समस्त वर्ण आते हैं।

(ङ)
उ और य के उच्चारण में क्या असमानता है?
उत्तर
उ का उच्चारण-स्थान ओष्ठ तथा प्रयत्न विवृत है, जब कि य का उच्चारण-स्थान तालु और प्रयत्न ईषत् स्पष्ट है।

वरित प्रश्‍नत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्‍न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. कौन-से वर्ण स्वर वर्ण कहलाते हैं?
(क) जो श्वास वायु के मार्ग में बिना बाधा डाले उच्चरित होते हैं।
(ख) जो श्वास वायु के मार्ग में बाधा डालकर उच्चरित होते हैं।
(ग) जो हलन्त से युक्त होते हैं।
(घ) जो दूसरे वर्गों की सहायता से उच्चरित होते हैं।

2. किन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है?
(क) ह्रस्व
(ख) दीर्घ
(ग) प्लुत ।
(घ) अन्त:स्थ

3. किन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है?
(क) अन्त:स्थ
(ख) दीर्घ
(ग) प्लुत
(घ) ह्रस्व

4. प्लुत स्वरों के सामने क्या लिखा जाता है? |
(क) २
(ख) दो
(ग) ३
(घ) तीन

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5. ‘य’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) मूद्ध
(ख) कण्ठ ।
(ग) दन्त
(घ) तालु

6. ‘फ’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) दन्तौष्ठ
(ख) ओष्ठ ।
(ग) जिह्वामूल
(घ) कण्ठौष्ठ

7. ‘ऐ’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) मूद्ध
(ख) दन्त ।
(ग) कण्ठ-तालु
(घ) तालु।

8. ‘लू’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) कण्ठौष्ठ
(ख) कण्ठ-तालु
(ग) दन्त
(घ) दन्तौष्ठ

9. विसर्ग’:’ का उच्चारण-स्थान क्या माना जाता है? ”
(क) कण्ठ
(ख) नासिका
(ग) दन्तौष्ठ
(घ) ओष्ठ 

10. ‘कण्ठ-तालु’ से उच्चरित होने वाले कौन-से वर्ण हैं?
(क) ए, ऐ
(ख) उ, ऊ
(ग) इ, ई
(घ) ओ, औ,

11. अनुस्वार( ) का उच्चारण-स्थान क्या माना जाता है?
(क) नासिका
(ख) जिह्वामूल
(ग) दन्तौष्ठ
(घ) तालु

12. ‘ऋ’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) दन्त
(ख) कण्ठ
(ग) मूद्ध
(घ) तालु

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13. ‘व’ वर्ण का उच्चारण-स्थान कौन-सा है?
(क) कण्ठौष्ठ
(ख) जिह्वामूल
(ग) कण्ठ-तालु।
(घ) दन्तौष्ठ

14. स्पर्श व्यंजन वर्गों के अन्तर्गत कुल कितने वर्ण आते हैं?
(क) पन्द्रह
(ख) पचीस
(ग) पाँच
(घ) पैंतीस

15. ‘ह’ वर्ण के लिए कौन-सा आभ्यन्तर प्रयत्न है?
(क) विवृत
(ख) ईषत् विवृत ।
(ग) स्पृष्ट
(घ) ईषत् स्पृष्ट

16. ‘य’ वर्ण के लिए कौन-सा अभ्यन्तर प्रयत्न है?
(क) ईषत् स्पृष्ट
(ख) विवृत
(ग) स्पृष्ट
(घ) ईषत् विवृत

17. यण् प्रत्याहार में कौन-कौन से वर्ण आते हैं?
(क) ज, ब, ग, ड, द
(ख) ह, य, व, र, ल
(ग) य, व, र, ल ।
(घ) श, ष, स, ह

18. अम् प्रत्याहार में कौन-कौन से वर्ण आते हैं?
(क) ञ, म, ग, ण ।
(ख) ङ, म, ण, न, ग
(ग) ङ, में, ण, न .,
(घ) ञ, म, ङ, ण, ने।

19. अक् प्रत्याहार में कौन-कौन-से वेर्ण आते हैं?
(क) अ, इ, उ
(ख) अ, इ, उ, ऋ
(ग) अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ ।
(घ) अ, इ, उ, ऋ, लु।

20. झष प्रत्याहार में कौन-कौन-से वर्ण आते हैं?
(क) झ, भ, घ, ढ,ध ।
(ख) झ, भ, धे, ढ
(ग) झ, भ, घ, ढे,
(घ) झ, भ, ज ।

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21. ‘ज, ब, ग, ड, द’ वर्गों का प्रत्याहार कौन-सा है? |
(क) जब्
(ख) जश्
(ग) जर्
(घ) जय्

22. ‘च, ट, त, क, प, श, ष, स’ वर्गों का प्रत्याहार कौन-सा है? ।
(क) चय्
(ख) चल्
(ग) चट्
(घ) चर्

23. ‘श, ष, स’ वर्गों को प्रत्याहार कौन-सा है?
(क) जश्
(ख) शर्
(ग) शल्
(घ) हल्

24. ‘इ, उ, ऋ, लु’ वर्गों का प्रत्याहार कौन-सा है?
(क) अच्
(ख) अण्
(ग) अक्
(घ) इक्

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय (कथा – नाटक कौमुदी) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय (कथा – नाटक कौमुदी).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 14
Chapter Name समास-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय  (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय– प्रस्तुत पाठ ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ नामक नाटक से उद्धृत है। यह एक रूपकात्मक नाटक है और श्रीकृष्ण मिश्र के द्वारा प्रणीत है। कृष्ण मिश्र चन्देल राजा कीर्तिवर्मा के शासनकाल में हुए थे। इनका समय 1050 ईसवी के लगभग माना जाता है। नाटक की प्रस्तावना में यह उल्लिखित है कि राजा कीर्तिवर्मा की उपस्थिति में इसका मंचन किया गया था। इस नाटक में अत्यन्त सरल किन्तु प्रभावपूर्ण ढंग से यह बताया गया (UPBoardSolutions.com) है कि विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद् आदि के सहयोग से पुरुष अविद्याजन्य अन्धकार को पार करके विष्णु-भक्ति की कृपा से अपने वास्तविक विष्णु पद को प्राप्त होता है। इस नाटक में वेदान्त के ब्रह्मवाद के साथ वैष्णव-भक्ति का सुन्दर समन्वय परिलक्षित होता है।

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पाठ सारांश 

प्रस्तुत नाटक में विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद्, क्षमा, सन्तोष, वैराग्य, विष्णुभक्ति, महामोह आदि अमूर्त पात्रों के द्वारा दार्शनिक विषयों का अत्यन्त प्रभावोत्पादक एवं सरल शैली में सरसे वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पाठ का सारांश इस प्रकार है

सर्वप्रथम मैत्री रंगमंच पर प्रवेश करती है और विष्णुभक्ति के द्वारा महाभैरवी के बन्धन से मुक्त हुई श्रद्धा को देखना चाहती है। उसी समय श्रद्धा प्रवेश करती है। मैत्री उसे गले लगाती है। श्रद्धा विष्णुभक्ति के आदेश से काम, क्रोध आदि छः शत्रुओं पर विजय पाने का प्रयास करने के लिए राजा विवेक के पास जाती है। मैत्री भी विष्णुभक्ति की आज्ञा से विवेक की सफलता के लिए महात्माओं के हृदय में जाकर निवास करती है। इसके बाद प्रतीहारी के साथ राजा विवेक मंच पर आते हैं। वह विष्णुभक्ति की आज्ञा से काम आदि छ: रिपुओं को (UPBoardSolutions.com) जीतने का प्रयास करते हैं। वह सर्वप्रथम वस्तु-विचार को बुलाकर उसे काम को जीतने का आदेश देते हैं। इसके बाद क्षमा को बुलाकर उसे क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए कहते हैं। क्षमा कहती है कि मैं तो महामोह को भी जीत सकती हूँ और क्रोध तो उसका अनुचरमात्र है। क्रोध को जीत लेने पर हिंसा, कठोरता, मान, ईष्र्या आदि पर स्वतः विजय प्राप्त हो जाएगी।

इसके बाद राजा विवेक लोभ को जीतने के लिए सन्तोष को वाराणसी भेजते हैं। इसके बाद वह शुभ मुहूर्त में सेनापति को सेना के प्रस्थान के लिए आदेश देते हैं और स्वयं रथ पर सवार होकर वाराणसी के लिए प्रस्थान करते हैं। काम, क्रोध, लोभ आदि राजा विवेक के दर्शनमात्र से दूर भाग जाते हैं। राजा विवेक भगवान् शिव को प्रणाम करके वहीं अपनी सेना का पड़ाव डाल देते हैं।

विष्णुभक्ति हिंसाप्रधान युद्ध को देखने में स्वयं को असमर्थ पाकर वाराणसी से शक्तिग्राम चली जाती है और श्रद्धा को युद्ध का सारा वृत्तान्त अवगत कराने के लिए कह जाती है। श्रद्धा विष्णुभक्ति के पास जाती है। विष्णुभक्ति उस समय शान्ति से कुछ मन्त्रणा कर रही होती है। श्रद्धा उसे युद्ध का वृत्तान्त विस्तार से बताती है कि वस्तु-विचार ने काम को मार डाला। क्षमा ने क्रोध, कठोरता, हिंसा

आदि को धराशायी कर दिया। सन्तोष ने लोभ, तृष्णा, दीनता, असत्य, निन्दा, चोरी, असत्परिग्रह आदि को बन्दी बना लिया। अनुसूया ने मात्सर्य को जीत लिया। परोत्कर्ष की सम्भावना ने मद को दबा दिया। दूसरों के गुणों की अधिकता ने मान को नष्ट कर दिया और महामोह भी योग के विघ्नों के साथ डरकर कहीं छिप गया है।

चरित्र चित्रण

राजा
प्रस्तुत रूपक में बताया गया है कि व्यक्ति किस प्रकार से अत्यन्त सरल एवं प्रभावपूर्ण ढंग से विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद् आदि के सहयोग से अविद्याजन्य अन्धकार को पार करके विष्णुभक्ति की कृपा से अपने वास्तविक स्वरूप विष्णुपद को प्राप्त होता है। ब्रह्मवाद के साथ वैष्णवभक्ति का सुन्दर समन्वय परिलक्षित होता है। राजा की चारित्रिक विशेषताएँ अग्र प्रकार हैं

(1) सुयोग्य राजा- राजा को अत्यन्त योग्य दर्शाया गया है। वह अच्छे-बुरे सभी कार्यों का मता है। उसे इस बात का पता है कि किस बुराई को किस तरह दूर किया जा सकता है।

(2) ज्ञानी- राजा अत्यन्त ज्ञानी है। वह महामोह को धिक्कारता है कि तुम्हारा मूल ही अज्ञान है। , तत्त्व ज्ञान से ही अविद्यादि विकारों से छुटकारा पाया जा सकता है। वह काम के विजय हेतु वस्तु-विचार को, क्रोध के विजय हेतु क्षमा को, लोभ के विजय हेतु सन्तोष आदि को आदेश देता है।

(3) रणनीतिज्ञ- राजा एक कुशल रणनीतिज्ञ है। युद्ध-भूमि की भाँति ही वह समस्त विकारों को जीतने में समर्थ योद्धाओं-वस्तु-विचार, क्षमा, सन्तोष आदि–को लगाकर ही अन्त में सम्पूर्ण सेना को युद्ध के लिए भेजता है। | (4) स्नेही-राजा को अत्यन्त स्नेही रूप में चित्रित किया गया है। वह सभी (UPBoardSolutions.com) लोगोंवस्तु-विचार, क्षमा, सन्तोष आदि–से परामर्श करने के बाद ही युद्ध की पूर्ण तैयारी करता है। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए वह सर्वप्रथम अपने पक्ष के महान् योद्धाओं को यथोचित स्थानों पर लगाता है।

(5) विद्वान्- राजा अत्यन्त विद्वान् है। उसे मांगलिक समयों का सही पता है। ज्योतिषी द्वारा प्रस्थान का समय बताने पर वह आदरपूर्वक उसे स्वीकार कर लेता है तथा मांगलिक कार्य सम्पन्न करके ही वह रथ पर चढ़ने का अभिनय करता है। |

(6) आस्तिक- राजा अत्यन्त आस्तिक स्वभाव का है। वह षड्-विकारों को जीतने अर्थात् अभीष्ट की सिद्धि के लिए भगवान् को भी प्रणाम करता है और भगवन्मय नगरी वाराणसी में निवास करने का विचार व्यक्त करके वहीं सेना को पड़ाव डालता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजा जो एक योग्य, ज्ञानी एवं संकल्पवान् व्यक्ति है, जटिल दार्शनिक विषयों का सरलता से प्रतिपादन करता है।

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 लघु उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित  प्रश्नों के संस्कृत में उत्तर लिखिए

प्रश्‍न 1

कामः केन हतः?
उत्तर
वस्तुविचारेण कामः हतः।

प्रश्‍न 2
लोभस्य जेता कः?
उत्तर
सन्तोष: लोभस्य जेता आसीत्।

प्रश्‍न 3
राजा क्रोधस्य विजयाय किम् आदिशति?
उत्तर
राजा क्रोधस्य विजयाय क्षमाम् आदिशति।

प्ररन 4
देव्या विष्णुभक्त्या राजानं किं सन्दिष्टम्?
उत्तर
कामक्रोधादीनां निर्जयाय उद्योगं कर्तुं विष्णुभक्त्या राजानं सन्दिष्टम्।

प्रश्‍न 5
महामोहेन सह विवेकस्य सङ्ग्रामे जाते कस्य विजयः जातः।
उत्तर
महामोहेन सह विवेकस्य सङ्ग्रामे जाते विवेकस्य विजयः जातः।

प्रश्‍न 6
मैत्री देव्याः प्रिय सखी का आसीत्?
उत्तर
मैत्री देव्याः प्रिय सखी श्रद्धा आसीत्।।

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प्रश्‍न 7
राजा रथमारुह्य क्व गतवान्?
उत्तर
राजा रथमारुह्य वाराणसी गतवान्।

प्रश्‍न 8
निलीनः कः तिष्ठति?
उत्तर
महामोह: योगविघ्नैः सह क्वापि निलीनः तिष्ठति।

प्रश्‍न 9
कामादिभिः सङ्ग्रामे कस्य विजयः जातः?
उत्तर
कामादिभिः सङ्ग्रामे राजा विवेकस्य विजयः जातः।

प्रश्‍न 10
विष्णुभक्तिः कस्य माता आसीत्? ।
उत्तर
विष्णुभक्तिः राजा विवेकस्य माता आसीत्।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अग्रलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए|

1. षड्पुिविजयः’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से उधृत है?
(क) उत्तर रामचरितम्’ से।
(ख) ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ से
(ग) “वेणीसंहारम्’ से ।
(घ) “विक्रमोर्वशीयम्’ से

2. ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ के रचनाकार कौन हैं? 
(क) महाकवि भास
(ख) भट्टनारायण
(ग) विष्णु शर्मा
(घ) कृष्ण मिश्र

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3. ‘पड्रिपुविजयः’ नामक नाट्यांश के पात्र किस प्रकार के हैं?
(क) वास्तविक
(ख) पुरातन
(ग) आधुनिक
(घ) काल्पनिक

4. ‘अये, मे प्रियसखी मैत्री।’ में ‘मे’ पद से किसे संकेतित किया गया है?
(क) ‘महाभैरवी’ को
(ख) ‘श्रद्धा’ को
(ग) ‘विष्णुभक्ति’ को
(घ) ‘मैत्री’ को

5. राजा लोभ को जीतने हेतु सन्तोष को कहाँ जाने के लिए कहता है?
(क) प्रयाग
(ख) देवप्रयाग
(ग) कर्णप्रयाग
(घ) वाराणसी

6. राजा जिस रथ पर बैठकर वाराणसी के लिए चला, वह रथ कैसा था?
(क) सुखप्रद
(ख) सांग्रामिक
(ग) शोभन ।
(घ) स्वर्ण-निर्मित

7. ‘सुरसरित्’ शब्द से नदी का बोध होता है?
(क) वेत्रवती :
(ख) सरस्वती
(ग) गंगा
(घ) यमुना

8. ‘वत्से देव्या विष्णुभक्तेः प्रसादान्मुनिजनचेतः पदं प्राप्नुहि।’ कथन किसका है?
(क) ‘श्रद्धा’ का
(ख) प्रतीहारी’ का
(ग) “क्षमा’ का
(घ) “शान्ति’ का ।

9. निवृत्ति किससे होती है?
(क) ‘भक्ति-भाव से
(ख) “यज्ञ करने से
(ग) “तत्त्व-ज्ञान’ से
(घ) “तीर्थयात्रा’ से

10. ‘मया दृष्टा क्रुद्धशार्दूलमुखद्विभ्रष्टा •••••••••••• क्षेमेण सञ्जीविता प्रियसखी।’ में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) ‘मृगीव’ से
(ख) ‘गजेव’ से
(ग) “शृगालीव’ से
(घ) “कोकिलेव’ से

11. ‘लोभं जेतुं वाराणसी प्रति प्रतिष्ठीयताम्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) राजा
(ख) सन्तोषः ।
(ग) सूर्तः
(घ) सेनापतिः

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12. ‘अत्र “”””””समुत्सृज्य पुण्यभाजो विशन्ति यम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी
(क) “अहङ्कारम्’ से
(ख) मोहम्’ से
(ग) “देहम्’ से
(घ) “धनम्’ से

13. ‘यत्रासौ संसारसागरोत्तारतरणिकर्णधारो भगवान् हरिः स्वयं प्रतिवसति।’ वाक्यस्य वक्ता 
कः अस्ति?
(क) श्रद्धा

(ख) शान्तिः
(ग) विष्णुभक्तिः
(घ) सन्तोषः ।

14. क्षमा-‘देवस्याज्ञया महामोहमपि •••••••••••• पर्याप्तास्मि।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी- .
(क) ‘पलायितुम्’ से
(ख) “नष्टुम्’ से
(ग) “जेतुम्’ से
(घ) “हन्तुम्’ से

15. ‘तत्र कामः तावत्प्रथमो वीरो वस्तुविचारेणैव जीयते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सन्तोषः
(ख) प्रतीहारिः
(ग) सूतः
(घ) राजा

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16. ‘ततो वस्तुविचारेण कामो ………………।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) निषूदित:’ से
(ख) ‘निगृहीताः’ से
(ग) “हत:’ से ।
(घ) ‘खण्डितः’ से |

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