UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

1. हर क्यारी में पद-चिह्न ……………………………………………………………………….. मचल मचल इठलाती है।

शब्दार्थ-पद-चिह्न = पैरों के चिह्न कसक = पीड़ा। शबनम = ओस किसलय = कोपलें। आभा = सौन्दर्य

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में श्रमिक एवं कृषक वर्ग की महत्ता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या – सुमन जी श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि मैंने क्यारी-क्यारी यानी खेत-खेत में तुम्हारे पद-चिह्नों को देखा है। तुमने कठिन परिश्रम से जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल पर आज भी तुम्हारे श्रमयुक्त कदम परिलक्षित हो रहे हैं। फसलों की डालियाँ जो नये-नये पल्लवों से लद गई हैं, प्रतीत होता है कि तुम्हारी मुस्कान इन्हें मिल गयी है। विकास का यही नियम है, (UPBoardSolutions.com) जगह-जगह मुस्कान फैल जाती है। प्रत्येक काँटे का व्यक्तित्व भी बड़ा अजीब होता है। इसमें किसी न किसी का दुःख-दर्द कसकता ही है। ओस की बूंदों को देखकर जीवन में प्यास जग जाती है।

प्रत्येक नदी की उठती हुई लहरें मन को डस लेती हैं अर्थात् नदी से उठती हुई लहरें मन पर अपना प्रभाव डालती हैं। जो भी नया अंकुर फूटता है, वह भविष्य में आने वाली अपनी कलियों को अपने में समाहित किये रहता है। अंकुर की आँख विकास का प्रतिरूप है। हर किसलय में, हर पल्लव में जो लाली परिलक्षित होती है, वह और कुछ नहीं, तुम्हारे अधरों की लाली ही मालूम देती है। कलियों को अपना स्वभाव है कि हवा बहने पर वे हिलती-डुलती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सुमनजी ने समाज की प्रगति में श्रमिक-कृषक वर्ग के योगदान को रेखांकित किया है।
  • भाषा-सरल खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-शान्त
  • अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश।।

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2. अम्बर में उगती सोने-चाँदी ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।
अथवा क्या उम्र ढलेगी तो ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।

शब्दार्थ-सिन्धु = समुद्र पावन = पवित्र संघर्ष = लड़ाई लाचारी = बेबशी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यावतरण में सुमनजी ने श्रमिक एवं कृषक वर्ग के परिश्रम से समाज में आयी सम्पन्नता का वर्णन किया है।

व्याख्या – सुमनजी कहते हैं कि आकाश में उगते सूरज, चाँद और सितारे ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे सोने और चाँदी की फसलें उग रही हैं। खेत में ज्वार और बाजरे की फसलें मस्ती में लहरा रही हैं। यह सुन्दर दृश्य मन को प्रभावित कर रहा है। ये मन को नये-नये बिम्ब प्रदान करते हैं। चाँद के उदय होने पर समुद्र में चाँदनी सैकड़ों ज्वार उठा देती है।

सुमनजी कहते हैं कि ऊपर बताये गये प्राकृतिक दृश्य इतने मोहक हैं कि हम अपने को इनसे अलग नहीं कर सकते ये इतने आकर्षक हैं कि मेरे मन को बाँध लेते हैं। फिर भी जीवन में अनगिनत क्रिया-कलाप करने पड़ते हैं। इन क्रिया-कलापों से हम दूर भी नहीं रह सकते प्राकृतिक सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) और जीवन के धन्धे को क्या साथ-साथ लेकर चलना संभव है। शरीर और मन का सम्बन्ध अत्यन्त पवित्र होता है। यह पवित्र सम्बन्ध कैसे टूट सकता है? प्रकृति मन को सुख प्रदान करती है और जीवन के धन्धे शरीर के लिए अत्यावश्यक हैं। अतः दोनों का सम्बन्ध बना रहना उचित है।

सुमनजी कुछ गम्भीर मुद्रा में हो जाते हैं और पूछते हैं क्या जब उम्र ढलने लगेगी तो यह सब कुछ, जो आज इतना आकर्षक लग रहा है, ओझल हो जायेगा? क्या उम्र ढलने के साथ-साथ सूरज और चाँद की कान्ति मन्द पड़ जायेगी? जिने सुन्दर दृश्यों को संजोये मैंने जीवन-मृत्यु का स्वर साध लिया है, क्या उनका आकर्षण साँसों को धोखा दे देगा?

सुमनजी पुन: कहते हैं कि मैं जिस दिन स्वप्नों एवं अपनी कल्पनाओं का मूल्यांकन करने बैठेंगा, उस दिन मेरे संघर्षों पर जाला चढ़ जायेगा, मेरा संघर्ष थक जायेगा और जिस दिन (UPBoardSolutions.com) विवशता मुझ पर तरस दिखाएगी अर्थात् जिस दिन मैं मजबूरी का गुलाम बन जाऊँगा, उस दिन जीवन की अपेक्षा मृत्यु का पलड़ा भारी होगा, उस दिन मृत्यु मुझे पकड़ लेगी।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सुमनजी ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता का चित्रण किया है।
  • भाषा-खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-शान्त
  • शैली-गीत

3. इन सबसे बढ़कर मूक ……………………………………………………………………….. प्रतिध्वनि बतलाते हो।

शब्दार्थ-पथ = रास्ता, मार्ग पथराई = पत्थर-सी। अकारथ = व्यर्थ मूक = गूंगा। बेबसी = लाचारी। आजादी = स्वतन्त्रता।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यावतरण शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में सुमनजी ने निर्बल व्यक्तियों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मेरा मन प्राकृतिक सुन्दरता को देखने में नहीं लगा रह सकता। मैं दुःख से तड़पते हुए उन व्यक्तियों को अधिक महत्त्व देता हूँ जो कि अन्न के अभाव में भूख से व्याकुल होकर पथरा गये हैं। उनकी पथराई आँखें आनेजाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने पास बुलाती हैं। वही आँखें आज मुझे भी अपने नजदीक बुला रही हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी चिन्ता ईश्वर को भी नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि (UPBoardSolutions.com) इन्हें बनाने के बाद ईश्वर इन्हें उसी प्रकार भूल गया है, जैसे कि उसने इन्हें बनाया ही न हो। सचमुच धर्म की ध्वजा इन दीन-हीन प्राणियों की हड़ियों पर ही फहराती है क्योंकि ये लोग अन्याय और अनीति के विरुद्ध आवाज तक नहीं उठा पाते हैं।

सुमनजी का कहना है कि यदि मैं ऐसे व्यक्तियों को भुला देता हूँ तो मेरा मानव शरीर धारण करना बेकार है। ऐसी स्थिति में मेरा शरीर मिट्टी का लोथड़ा मात्र रह जायेगा। यदि मेरी आँखें इन लोगों के कष्टों को देखकर सहानुभूति से द्रवित नहीं होती हैं तो इन आँखों का कोई मूल्य नहीं है। आँसू तो दया और करुणा के प्रतीक हैं, अतः जब तक इन आँखों से करुणा का जल नहीं प्रवाहित होता है, तब तक इनका होना और न होना बराबर है। यदि मैं निर्बल वर्ग को भुला देता हूँ तो मेरा जन्म लेना व्यर्थ है और मेरा जीवित रहना भी मरे हुए व्यक्ति के समान ही है। अभिप्राय यह है कि मानव को मानव के प्रति सहानुभूति, दया, करुणा-जैसी मानवीय भावनाओं को अपने हृदय में रखना चाहिए।

सुमनजी कहते हैं कि मैं स्पष्ट रूप से अवलोकन कर रहा हूँ कि तुम श्रमिक वर्ग की उपेक्षा कर रहे हो। अब इन्हें मीठी-मीठी बातों द्वारा बहलाना छोड़ दो। अब तुम्हारा यह दर्शन (UPBoardSolutions.com) चलने वाला नहीं है। निर्धन श्रमिक के मृतप्राय बच्चों पर विवशता चीख-चीख पड़ती है और तुम इसे स्वतन्त्रता की प्रतिध्वनि के रूप में परिभाषित कर उधर से अपना ध्यान हटाना चाहते हो। तुम्हारी यह सोच उपयुक्त नहीं है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इन पंक्तियों में सुमनजी ने मानव के प्रति सहानुभूति, करुणा और प्रेम की भावना व्यक्त की है।
  • भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली,
  • गुण- प्रसाद।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
  • रस-करुण।

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4. यों खेल करोगे तुम कब ……………………………………………………………………….. का अम्बर में घेरा यदि।
अथवा विश्वास सर्वहारा ……………………………………………………………………….. दरार पड़ जायेगी।
अथवा सदियों की कुर्बानी ……………………………………………………………………….. अम्बर में घेरा यदि।

शब्दार्थ-असहाय = निर्धन। सर्वहारा = गरीब तबके के लोग। गोंस = फाँस, कील। कुर्बानी = बलिदान अम्बर = आकाश।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने दीन-दुखियों के प्रति शासन की उपेक्षा पर गहरी चोट की है।

व्याख्या – सुमनजी शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि तुम असहायों की मूल समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत लम्बा समय बीत गया, गरीब व्यक्ति को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर कब तक सुलाते (UPBoardSolutions.com) रहोगे। जरा याद रखना, मानवीय संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले बचोगे और संसार श्मशान घाट बन जायेगा। ऐसी स्थिति में तुम अकेले क्या करोगे?

सुमनजी आगे चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सर्वहारा (गरीब, निर्धन) वर्ग का विश्वास खो दिया तो पास आती मृत्यु की। गहरी फाँस तुम्हारे जीवन में गड़ जायेगी। बड़े मुश्किल के बाद गरीब जागा है, इसकी जागृति का स्वागत करना चाहिए। यदि बाँध बाँधने के पूर्व ही पानी सूख जाए, तब तो धरती की छाती में दरार पड़ जायेगी। बाँध इसलिए बाँधा जाता है ताकि उसमें पानी इकट्ठा रहे। यदि पानी सूख गया तो बाँध का क्या औचित्य? अतः समय रहते सजग हो जाओ और निर्धन व्यक्ति को उसका अधिकार सौंप दो।

सुमनजी आगे पुनः चेतावनी दे रहे हैं, यदि श्रमिक वर्ग के उत्थान के लिए सदियों से चले आ रहे विचार आन्दोलन का सम्मान न हुआ, उनकी कुर्बानी बेकार चली गयी तो ठीक नहीं होगा। सुबह के जागरण को जमुहाई ले-लेकर खो देना कहाँ की बुद्धिमानी है? पूर्णिमा का उत्सव मनाने की बात (UPBoardSolutions.com) सोचते-सोचते ही यदि आकाश में अमावस्या का अँधेरा छा गया तो इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। अत: अँधेरा दूर करके श्रमिक के जीवन में प्रकाश का उत्सव मनाने का प्रयास करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सर्वहारा वर्ग के उत्थान की बात कही गयी है।
  • भाषा-खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-रौद्र।
  • शैली-भावात्मक, गीत।
  • अलंकार-आशा की अफीम में रूपक।

5. इतिहास न तुमको माफ करेगा ……………………………………………………………………….. सब छन्दों की रानी है।
अथवा इतिहास न तुमको ……………………………………………………………………….. को मत मन्द करो।

शब्दार्थ-सैलाब = बाढ़, प्रवाह, जल-प्लावन भू = भूलोक। भुवः = भुवलोक। गायत्री = एक वैदिक छन्द। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उद्धृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने मानव समाज के कर्णधारों को समाज कल्याण हेतु प्रोत्साहित किया है।

व्याख्या – सुमनजी का कहना है कि समय परिवर्तनशील है। इसलिए हमें जो भी अवसर प्राप्त हुए हैं उनका सदुपयोग किया जाना चाहिए अन्यथा कीर्ति की जगह अपकीर्ति मिलेगी। यदि हमने समय का सही सदुपयोग नहीं किया तो आने वाला समाज हमारी अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता पर धिक्कारेगा। इस समय का जो भी इतिहास लिखा जायेगा, उसमें किसी भी व्यक्ति को उसकी अकर्मण्यता के लिए क्षमा नहीं किया जायेगा। सत्ता में बैठे लोगों को चेतावनी देते हुए सुमनजी कहते हैं कि तुम्हारी अकर्मण्यता से पूरब में उगने वाले सूरज (UPBoardSolutions.com) की लालिमा पर कालिख पुत जायेगी। उसकी महत्ता खत्म हो जायेगी और फिर शताब्दियों तक इस प्रकार की उन्नतिशील घड़ियाँ आयें अथवा न आयें, हमें यह भी मालूम नहीं है। इसलिए हमें अपने समय का उचित उपयोग करना चाहिए।

समय परिवर्तनशील है। अतः इसकी परिवर्तनशीलता को देखते हुए प्रगति के प्रवाह को रोकने का प्रयास मत करो। मालूम नहीं कि इस प्रकार की सुखद वायु में साँस लेने का अवसर मिले या न मिले। इसलिए तुम सभी खिड़की और दरवाजों को खोलकर रखो। जीवन की सुखदायी किरणों का प्रकाश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने दो। इस आनन्ददायक घड़ियों का उपयोग मात्र धनी वर्ग तक सीमित न रह जाय। तुम्हें ऐसा प्रयास करना चाहिए, जिससे उन किरणों का प्रकाश आमजन के आँगन तक पहुँच सके। नव-निर्माणरूपी महान यज्ञ की ज्वालाओं को मन्द करने का प्रयास मत करो, अपितु उसको अधिक तीव्र जलने दो।

सुमनजी का कहना है कि आज जो चेतना का प्रभात हुआ है, इसके लिए बहुत पुराने समय से संघर्ष होता रहा है। इस नये प्रभात की अरुणाई की पहचान बहुत पुरानी है। आज नवयुग की चेतना-गायत्री, भूलोक, भुवलोक और स्वर्गलोक की समता की प्रतिष्ठा करने का आह्वान कर रही है, इसका गर्मजोशी से स्वागत करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इन पंक्तियों में सुमनजी की प्रगतिवादी भावना की अभिव्यक्ति हुई है।
  • भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।
  • शैलीभावात्मक, गीत।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना
  • रस-वीर एवं अद्भुत

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म – 5 अगस्त, सन् 1915 ई०
मृत्यु – 27 नवम्बर, सन् 2002 ई०
जन्म – स्थान-ग्राम-झगरपुर, जनपद-उन्नाव, उ०प्र०
अध्यापन कार्य – उज्जैन, मध्य प्रदेश
रचनाएँ – मिट्टी की बारात, हिल्लोल, जीवन के गान्
पुरस्कार – 1958 -(देव पुरस्कार), 1974-(सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार), 1974-(साहित्य अकादमी पुरस्कार), 1974–(पद्मश्री), 1993-(शिखर सम्मान), 1993-‘ भारत भारती’ पुरस्कार, 1999–पद्म भूषण।

प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के जीवन-वृत्त एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की साहित्यिक विशेषताएँ एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 5.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।

जीवन – परिचय – 
डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त, सन् 1915 ई० (संवत् 1972 श्रावण मास शुक्ल पक्ष नागपंचमी) को ग्राम झगरपुर, जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। परिहार वंश में जन्मे सुमन जी का विवर्द्धन गहरवाड़ वंशीय माता के दूध द्वारा हुआ। उनके पितामह ठाकुर बलराज सिंह जी स्वयं रीवा सेना में कर्नल थे तथा प्रपितामह ठाकुर चन्द्रिका सिंह जी को सन् 1857 ई० की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने एवं वीरगति प्राप्त होने का गौरव प्राप्त था।

सुमन जी ने अधिकांश रूप से रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों में रहकर आरम्भिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा प्राप्त की है। तत्पश्चात् सन् 1940 ई० में उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से परास्नातक (हिन्दी) की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1942 ई० में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1948 ई० में माधव कॉलेज उज्जैन में हिन्दी विभागाध्यक्ष बने, (UPBoardSolutions.com) दो वर्षों के पश्चात् 1950 ई० में उनको ‘हिन्दी गीतिकाव्य का उद्भव-विकास और हिन्दी साहित्य में उसकी परम्परा’ शोध प्रबन्ध पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि प्रदान की। आपने सन् 1954-56 तक होल्कर कॉलेज इन्दौर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर भी सुचारु रूप से कार्य किया। सन् 1956-61 ई० तक नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक और सूचना विभाग का कार्यभार आपको सौंपा गया।

सन् 1961-68 तक माधव कॉलेज उज्जैन में वे प्राचार्य के पद पर कार्य करते रहे। इन आठ वर्षों के बीच सन् 1964 ई० में वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कला संकाय के डीन तथा व्यावसायिक संगठन, शिक्षण समिति एवं प्रबन्धकारिणी सभा के सदस्य भी रहे। सन् 1968-70 ई० तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति के पद पर आसीन रहे।

डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को सन् 1958 ई० में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उनके काव्य संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ पर ‘देव’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई० में ‘पर आँखें नहीं भरीं’ काव्य संग्रह पर ‘नवीन’ पुरस्कार से सम्मानित किये गये। आपको सन् 1973 ई० में मध्य प्रदेश राजकीय उत्सव में सम्मानित किया गया। जनवरी, सन् 1974 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से विभूषित किया गया। भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार द्वारा 20 मई, सन् 1973 ई० को डी०लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। नवम्बर, सन् 1974 ई० को उन्हें ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुस्कार’ प्रदान किया गया। 26 फरवरी, 1973 ई० को ‘मिट्टी की बारात’ नामक काव्य संग्रह पर ‘सुमन जी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपने अक्टूबर, सन् 1974 ई० को नागपुर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र में दीक्षान्त भाषण दिया। पुन: 24 अप्रैल, 1977 ई० को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में पंचम (UPBoardSolutions.com) दिनकर स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत भाषण के लिए आपको आमंत्रित किया गया। सन् 1975 ई० में राष्ट्रकुल विश्वविद्यालय परिषद् के लन्दन विश्वविद्यालय स्थित मुख्यालय में कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति की गई। 17-18 जनवरी, सन् 1977 ई० को भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में हुए बावनवें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। पुनः 15-16 जनवरी, सन् 1978 ई० को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट में

भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् के तिरपनवें अधिवेशन की अध्यक्षता की। 27 नवम्बर, 2002 ई० को शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का 87 वर्ष की अवस्था में जनपद उज्जैन (म०प्र०) में निधन हो गया।

रचनाएँ – सुमन जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(1) हिल्लोल – यह सुमन जी के प्रेम-गीतों का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं को चित्रित किया गया है।
(2) जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया – इन सभी संग्रहों की कविताओं में क्रान्तिकारी भावनाएँ व्याप्त हैं। इन कविताओं में पीड़ित मानवता के प्रति सहानुभूति तथा पूँजीवाद के प्रति आक्रोश है।
(3) विन्ध्य हिमालय – इसमें देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की कविताएँ हैं।
(4) पर आँखें नहीं भरीं – यह प्रेमगीतों का संग्रह है।
(5) मिट्टी की बारात – इस पर सुमन जी को अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

डॉ० ‘सुमन’ जी प्रगतिवादी कवि के रूप में हमारे समक्ष अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से उपस्थित होते हैं। आपकी कविताओं में दलित, पीड़ित, शोषित एवं वंचित श्रमिक वर्ग को समर्थन किया गया है, साथ ही सामान्य रूप से पूँजीपति वर्ग तथा उनके अत्याचारों का खण्डन भी अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है। सामयिक समस्याओं का विवेचन उनकी कविताओं का प्रमुख अंग रहा है। आपकी कविताओं में आस्था (UPBoardSolutions.com) और विश्वास का स्वर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। आपने समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं तथा वर्ण जातिगत विषमताओं एवं भाग्यवादी विचारधारा को खण्डन भी किया है।

भाषा – सुमन जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता, वयवीयता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है। जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है।

सुमन जी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-
(क) नवीन-सन्धि, शब्द,
(ख) सरल सामाजिक योजना तथा
(ग) देशज शब्द।

भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमन जी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।

शैली – सुमन जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में लाक्षणिकता का भी प्रयोग किया है। सुमन जी की कविताओं की अभिव्यक्ति सौन्दर्य की एक विशेषता काव्यवाद का निर्वहन भी है। इसके अन्तर्गत जीवन की वर्तमान समस्याओं का पौराणिक घटनाओं से साम्य स्थापित किया है। आपकी कविताओं में प्रतीक विधान भी दर्शनीय है। सुमन जी की कविताओं में अलंकारों की समास योजना नहीं है। अनायास ही जो अलंकार आपकी कविताओं में आ गये हैं, ये भावोत्कर्ष में सहायक हुए हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान – ‘सुमन’ जी भारतीय माटी की वह गन्ध हैं, जिसमें जीवन रस-आनन्द सर्वत्र महकता रहता है। जिस प्रकार पृथ्वी की अभिव्यक्ति वनस्पतियों द्वारा होती है उसी प्रकार वनस्पतियों के रस से जीवित मानव प्राणी की अभिव्यक्ति उसकी कलात्मकता और वैज्ञानिकता में होती है।’सुमन’ जी भारतीय संस्कृति के अभिव्यक्ता हैं। प्रकृति के रूप, रस, गन्ध आदि के चितेरे भी हैं। जीवन रस की (UPBoardSolutions.com) मादकता के गायक हैं। जनसामान्य के दुःख-दर्द से द्रवित होने वाले मानव और परम्परागत गौरव गरिमा के संरक्षक हैं। उनके इन्हीं विशिष्ट रूपों को काव्य में पहचाना गया है। एक युग विशेष की मानसिकता की झाँकी उनके काव्य के गुणों से परिपूर्ण एवं प्रभावशाली है।

अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ‘सुमन’ जी का हिन्दी साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। वे हिन्दी साहित्य को ऐसी निधि प्रदान कर गये हैं जो कभी भी नष्ट नहीं हो सकती। शरीर तो नश्वर है लेकिन वैचारिक शरीर शाश्वत रूप से जीवित रहता है। सुमन जी अपनी कृतियों के माध्यम से हिन्दी साहित्य के प्रेमियों के मानस पटल पर सदैव नित-नवीन रूप में मुस्कराते रहेंगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘युगवाणी’ कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने मानवता के कल्याण की कामना की है तथा यह आग्रह किया है कि राष्ट्र के विकास का कार्य अवरुद्ध नहीं होना चाहिए अर्थात् राष्ट्र के विकास के लिए हमें निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
‘युगवाणी’ कविता की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।’
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है।‘युगवाणी’ कविता में जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में (UPBoardSolutions.com) उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है। सुमनजी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं—

  • नवीन सन्धि शब्द
  • सरल सामाजिक योजना
  • देशज शब्द भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमनजी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।

प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता का सारांश संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कवि श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहता है कि मैंने क्यारी-क्यारी में तुम्हारे ही पदचिह्नों के दर्शन किये हैं। तुमने परिश्रमपूर्वक जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल में आज भी तुम्हारे श्रमशील कदम झाँकते दिखाई दे रहे हैं । विकास का यही नियम है, जगह-जगह मुस्कान बिखर जाती है। इतना कठिन परिश्रम करने पर भी सर्वहारा वर्ग परेशान है। कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को (UPBoardSolutions.com) चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो तुम्हें समय कभी माफ नहीं करेगा। तुम्हारा अस्तित्व स्वयं खतरे में पड़ जायेगा।

प्रश्न 4.
कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से किन वास्तविकताओं के प्रति आगाह किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता के माध्यम से स्पष्ट किया है कि शासक वर्ग दीन-दुखियों की उपेक्षा कर रहा है और उन पर प्रहार कर रहा है। आज के युग में श्रमिक वर्ग शोषित एवं परेशान है।

प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता में कवि ने शासकों को क्या परामर्श दिया है?
उत्तर :
कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत समय बीत गया, निर्धन को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर अब भी सुला देना चाहते हो । याद रखना, मानवीय (UPBoardSolutions.com) संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले रह जाओगे और यदि संसार श्मशान बन गया तो तुम उसमें रहकर अकेले गीत गाओगे?

प्रश्न 6.
“युगवाणी’ कविता में कवि ने किसके इतिहास को माफ न करने को कहा है?
उत्तर :
कवि ने शासक एवं पूँजीपति वर्ग के इतिहास को कभी न माफ करने की बात कही है क्योंकि शासक एवं पूँजीपति वर्ग श्रमिकों का शोषण करते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस काल के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ आधुनिक काल (प्रगतिवादी युग) के कवि हैं।

प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस धारा के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी धारा के कवि हैं।

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प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की चर्चित रचनाएँ हैं-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, विन्ध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरीं, मिट्टी की बारात आदि।

प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है।’सुमन’ जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है।

प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य बताइए।
उत्तर :
युगवाणी कविता का तात्पर्य है-समयाधारित विचार। समय की माँग है कि राष्ट्र का विकास अनवरत गति से किया जाये ताकि मानवता का कल्याण हो।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(क) तन का, मन को पावन नाता कैसे तोड़ें?
उत्तर :
कवि ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भाषा–खड़ी बोली, शब्द शक्तिलक्षणी, शैली-गीत एवं रस-शान्त

(ख)
इतिहास न तुमको माफ करेगी याद रहे।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, शैली-भावात्मक, गीत एवं रस-रौद्र

(ग)
नव-निर्माण की लपटों को मत मन्द करो।
उत्तर :
यहाँ कवि की प्रगतिवादी भावना व्यक्त हुई है। शब्दशक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना, शैली-भावात्मक, गीत अलंकारअनुप्रास एवं भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।

(घ)
विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो
आसन्न मौत की गहन गोंस गड़ जायेगी।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, अलंकार-गहन गोंस गड़ में अनुप्रास अलंकार।।

2.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिए
विशेषण                                विशेष्य
पद                                          चिह्न
धर्म                                         ध्वजा
दुःख                                         दर्द
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1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को प्रगतिवादी कवि कहा जाता है, ऐसे प्रगतिवादी कवियों की सूची बनाइए।
उत्तर :
प्रगतिवादी कवि

  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  • बाबा नागार्जुन
  • शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
  • केदारनाथ अग्रवाल
  • नरेन्द्र शर्मा
  • भगवतीचरण वर्मा
  • रामविलास शर्मा

2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के पुरस्कारों की सूची बनाइए।
पुरस्कार                                                         (वर्ष)
1. देव पुरस्कार                                                   (1958)
2. सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार                         (1974)
3. साहित्य अकादमी पुरस्कार                             (1974)
4. पद्मश्री                                                             (1974)
5. शिखर सम्मान                                                 (1993)
6. भारत भारती पुरस्कार                                     (1993)
7. पद्म भूषण                                                        (1999)

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा उसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
या
प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं? प्राथमिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ

सामान्य रूप से, कोई भी दुर्घटना होने पर अथवा आकस्मिक बीमारी होने पर डॉक्टर अथवा चिकित्सक के पास जाया जाता है, परन्तु हर समय तथा हर स्थान पर चिकित्सक को तुरन्त उपलब्ध होना प्रायः सम्भव नहीं होता, क्योंकि दुर्घटना तो कहीं भी घटित हो सकती है। इस स्थिति में डॉक्टर अथवा चिकित्सक को रोगी या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पास लाने या ले जाने में काफी समय लग सकता है, परन्तु दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को तुरन्त सहायता की आवश्यकता होती है। यह सहायता इसलिए आवश्यक होती है ताकि दुर्घटनाग्रस्त (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति की दशा और अधिक न बिगड़े अथवा उसे सांत्वना प्राप्त हो जाए। इस प्रकार की सहायता दुर्घटनास्थल पर ही उपस्थित व्यक्तियों द्वारा तुरन्त दी जाती है। इस प्रकार की तुरन्त दी जाने वाली सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है। कि- ”आकस्मिक रूप से रोगी अथवा घायल हुए व्यक्ति को डॉक्टर अथवा चिकित्सक के आने से पूर्व दी जाने वाली सहायता एवं उपचार ही प्राथमिक चिकित्सा है।” प्राथमिक चिकित्सा के अर्थ को एक व्यावहारिक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर चलते हुए यदि कोई व्यक्ति किसी वाहन से टकरा जाए तथा उसकी बाँह एवं घुटना घायल हो जाए तथा वह गिर (UPBoardSolutions.com) जाए तो सड़क पर चलते हुए अन्य व्यक्तियों द्वारा उसे उठाया जाता है, आराम से लिटाया या बैठाया जाता है तथा उसके घाव पर पट्टी अथवा रूमाल बाँध दिया जाता है। ये सभी कार्य वास्तव में प्राथमिक चिकित्सा ही है। इसी प्रकार घर पर गर्म तवे से हाथ जल जाने पर तुरन्त बरनॉल लगाना भी प्राथमिक चिकित्सा ही है।

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त अथवा नियम

रोगी अथवा दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा सहायता देने वाला व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सक कहलाता है। प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को हर परिस्थिति में निम्नलिखित सिद्धान्तों को पालन करना चाहिए

(1) रोगी की अवस्था का अनुमान:
प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम पीड़ित व्यक्ति की अवस्था का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए। जैसे कि रोगी का कौन-सा अंग प्रभावित हुआ है, रक्तस्राव हो रहा है अथवा नहीं, हड्डियाँ टूटी हैं अथवा नहीं आदि। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।

(2) चिकित्सक से सम्पर्क:
यदि दुर्घटना गम्भीर हो तो प्राथमिक चिकित्सक को तुरन्त किसी योग्य चिकित्सक से भी सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। इस स्थिति में दुर्घटना की प्रकृति तथा घायल व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखकर ही सम्बन्धित चिकित्सक से सम्पर्क किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए–यदि दुर्घटना (UPBoardSolutions.com) ग्रस्त व्यक्ति की हड्डी टूट गई हो तो किसी हड्डी विशेषज्ञ से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए तथा यदि व्यक्ति मूर्च्छित हो या उसे किसी साँप ने काट लिया हो तो उस दशा में काय-चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए।

(3) सहायता की सीमा:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्ण चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे रोगी को तत्काल केवल जीवन-रक्षक सहायता तब तक देनी चाहिए जब तक कि उपयुक्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध न हो।

(4) सांत्वना देना व धैर्य बँधाना:
कई बार चोट से अधिक दुर्घटना का सदमा पीड़ित व्यक्ति की अधिक हानि करता है। अतः प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह पीड़ित व्यक्ति को सांत्वना दे तथा उसे धैर्य बँधाए।

(5) कृत्रिम श्वसन की सहायता:
डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा आत्महत्या के प्रयास में प्रायः पीड़ित व्यक्ति को श्वास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को तुरन्त कृत्रिम श्वास दिलाना चाहिए।

(6) हृदय गति अवरुद्ध होने पर सहायता देना:
कई बार श्वसन क्रिया के साथ-साथ पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति भी अवरुद्ध हो जाती है। यदि तत्काल विधिवत् सहायता उपलब्ध हो जाए, तो कई बार पीड़ित व्यक्ति की जीवन रक्षा हो जाती है।

(7) शरीर को गर्म रखना:
यदि व्यक्ति घायल हो गया हो तथा शरीर से रक्त बह रहा हो तो उस व्यक्ति के शरीर को गर्म रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यक्ति को गर्म दूध या चाय पिलानी चाहिए। ध्यान रहे ऐसी स्थिति में कभी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को ठण्डा पानी नहीं पिलाना चाहिए।

(8) मूर्छित अवस्था में सहायता:
यदि पीड़ित व्यक्ति मूर्च्छित अवस्था में है तो उसके चारों ओर भीड़ न लगने दें तथा उसे खुले व हवादार स्थान पर लिटाएँ। उसके सीने के वस्त्रों को बटन खोलकर ढीला कर दें तथा ठण्डे पानी के छीटें देकर मूच्छ दूर करने का प्रयास करें।

(9) रक्त-स्राव रोकना:
घायल व्यक्ति का रक्त-स्राव रोकना प्राथमिक चिकित्सा का सर्वाधिक आवश्यक नियम या सिद्धान्त है, क्योंकि अधिक रक्तस्राव के कारण भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की प्रायः आकस्मिक मृत्यु हुआ करती है। इसके लिए बन्द लगाना या टूर्नीकट का प्रयोग करना चाहिए। घायल व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार लिटाना चाहिए कि उसका सिर शेष शरीर से कुछ नीचा रहे, जिससे कि मस्तिष्क तक रक्त संचार में रुकावट न उत्पन्न हो।

(10) भीड़ न करें:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के आस-पास अधिक लोगों को एकत्रित नहीं होना चाहिए। जो लोग पास रहें, वे भी शान्त रहें। भीड़ होने पर रोगी व्यक्ति घुटन महसूस कर सकता है क्योंकि वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।

(11) घाव पर पट्टी बाँधना:
घायल व्यक्ति के घावों पर कोई नि:संक्रामक लगाकर कसकर पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी न होने पर कोई स्वच्छ कपड़ा अथवा रूमाल घाव पर कसकर बाँध देना चाहिए।

(12) कम से कम हिलाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को कम-से-कम हिलाना-डुलाना चाहिए, क्योंकि इससे रक्तस्राव बढ़ सकता है तथा यदि पीड़ित व्यक्ति के फ्रेक्चर है, तो निम्नलिखित सावधानियाँ रखें

  • (क) जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति को पहले रक्तस्राव बन्द करने का उपाय करें तथा फिर उसे किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही अस्पताल तक ले जाएँ।
  • (ख) सरल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति के फ्रेक्चर के दोनों ओर खरपच्चियाँ बाँधे तथा फिर उसे सहारा देकर अथवा स्ट्रेचर पर लिटाकर अस्पताल तक ले जाएँ।

(13) विष-पीड़ित व्यक्ति की सहायता:
विष का सेवन किए व्यक्ति को वमन कराना प्रायः लाभप्रद रहता है। अस्पताल ले जाते समय पीड़ित व्यक्ति के वमने का नमूना तथा विष की खाली शीशी ले जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विष के प्रकार की जानकारी पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र एवं सही चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है।

(14) जले हुए व्यक्ति को सहायता:
जलने की दुर्घटना या तो आग के द्वारा हो सकती है या फिर रासायनिक पदार्थों (अम्ल आदि) के कारण होती है। आग से जलने पर पीड़ित व्यक्ति के घावों को तुरन्त एक स्वच्छ कपड़े से ढक दें तथा यदि वह होश में है तो उसे पर्याप्त मात्रा में पानी, चाय, कॉफी व दूध आदि पिलाएँ। अम्ल से जलने पर प्रभावित स्थान पर पर्याप्त ठण्डा पानी डालें तथा जलन कम होने पर घाव को स्वच्छ कपड़े से ढक दें। उपर्युक्त दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाएँ।

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प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सक में होने वाले आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक के वांछित गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक में किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा एक महत्त्वपूर्ण मानवीय-सामाजिक कार्य है। एक प्राथमिक चिकित्सक यदि योग्य, दूरदर्शी एवं मानवीय गुणों से युक्त है तो वह जीवन-रक्षा जैसे अमूल्य एवं अतिप्रशंसनीय कार्य को सम्पादित कर सकता है।

प्राथमिक चिकित्सक के गुण

एक सरल प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है

(1) दुरदर्शी एवं फुर्तीला:
प्राथमिक चिकित्सक दूरदर्शी एवं फुर्तीला होना चाहिए, ताकि दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही पीड़ित व्यक्तियों की आवश्यकतानुसार तुरन्त सहायता कर सकें। दूरदर्शी व्यक्ति घटित होने वाली दुर्घटना के दूरगामी परिणामों का भी अनुमान लगा लेता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति के अनुकूल ही निर्णय लेता है।

(2) स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट:
प्राथमिक चिकित्सक अच्छे स्वास्थ्य का व्यक्ति होना चाहिए। उसका मानसिक एवं शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट होना भी आवश्यक है, क्योंकि उसे शीघ्र ही पीड़ित व्यक्तियों (UPBoardSolutions.com) की देखभाल तथा उनका अस्पताल तक स्थानान्तरण करना होता है। दुर्घटना स्थल का दृश्य अनेक बार बहुत ही हृदयविदारक होता है। ऐसी स्थिति में केवल मजबूत हृदय वाला व्यक्ति ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है।

(3) चतुर एवं विवेकशील:
एक चतुर एवं विवेकशील प्राथमिक चिकित्सक सही समय पर सही निर्णय ले सकता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की आवश्यकता को समझकर उन्हें सांत्वना दे सकता है।

(4) धैर्यवान एवं सहनशील:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति प्रायः चिड़चिड़े हो जाते हैं; अतः प्राथमिक चिकित्सक को धैर्यवान व सहनशील होना चाहिए।

(5) मृदुभाषी एवं सेवाभाव रखने वाला:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति सहानुभूति एवं मृद व्यवहार के पात्र होते हैं। अत: प्राथमिक चिकित्सक अपना दायित्व सफलतापूर्वक तब ही निभा सकता है। जबकि वह मृदुभाषी हो तथा सेवाभाव रखता हो।

(6) आत्मविश्वासी:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्णरूप से आत्मविश्वासी होना चाहिए, क्योंकि दुर्बल आत्मविश्वास रखने वाला प्राथमिक चिकित्सक किसी बड़ी दुर्घटना को देखकर घबरा सकता है। अथवा बौखला सकता है।

(7) साधन सम्पन्नता:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोगी अथवा घायल व्यक्ति को कुछ औषधियाँ अथवा अन्य सहायता दी जाती है। अतः यह आवश्यक है कि प्राथमिक चिकित्सक के पास उपचार एवं सहायता के लिए अनिवार्य साधन उपलब्ध हों। सामान्य रूप से प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स’ में इस प्रकार की आवश्यक सामग्री रखी जाती है।

(8) शारीरिक विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को मानव शरीर की बाह्य एवं आन्तरिक रचना का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। गम्भीर रोगों एवं गम्भीर रूप से घायल व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार करते समय उपर्युक्त ज्ञान उसे अतिरिक्त सहायता प्रदान करेगा।

(9) प्राथमिक चिकित्सा का अधिकाधिक ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को भली प्रकारे सम्बन्धित विषय में प्रशिक्षित होना चाहिए। उदाहरण के लिए उसे तीव्र ज्वर के रोगी के प्रारम्भिक उपचार की जानकारी (UPBoardSolutions.com) होनी चाहिए। इसी प्रकार डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा जलने वाले व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार किस प्रकार किया जाता है आदि का उसे अपेक्षित ज्ञान होना चाहिए।

(10) पर्याप्त दक्षता:
प्राथमिक चिकित्सक पर्याप्त दक्ष होना चाहिए ताकि वह सोचने में समय व्यर्थ न करके घायलों की तुरन्त सहायता कर सके तथा विधिपूर्वक उनका स्थानान्तरण अस्पताल तक करा सके।

(11) सीमाओं का ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को अपने कर्तव्य की सीमाओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह प्राथमिक चिकित्सक है, कोई डिग्री प्राप्त चिकित्सक नहीं। अतः उसे पीड़ित व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाने अथवा पहुँचवाने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 3:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से में आप कौन-कौन से आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखेंगी?
या
प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए।
या
घर में प्राथमिक सहायता पेटिका रखना क्यों आवश्यक है? इसमें आप क्या-क्या रखेंगी?
उत्तर:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से’ (फर्स्ट एड बॉक्स) से अभिप्राय सरलतापूर्वक इधर-उधर ले। जाए जा सकने वाले बक्से से है, जिसमें कि प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखी होती हैं। प्रत्येक घर, सार्वजनिक एवं राजकीय प्रतिष्ठान तथा स्कूल-कॉलेज में प्राथमिक चिकित्सा बक्से के रखने से, अनेक लाभ हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. घर में होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं; जैसे-जलना, चोट लगना आदि के समय प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक सामग्री सुविधापूर्वक एवं तुरन्त उपलब्ध हो जाती है।
  2.  स्कूल व कॉलेज आदि के खेल के मैदान में अथवा अन्य अवसरों पर विद्यार्थियों को लगने वाली चोटों की प्राथमिक चिकित्सा तुरन्त सम्भव हो जाती है।
  3.  बस व ट्रेन में यात्रा करते समय अथवा पिकनिक के समय होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए प्राथमिक चिकित्सा बक्से में व्यवस्थित रूप से रखी सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।

प्राथमिक चिकित्सा बक्से का निर्माण

इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(क) आवश्यक उपकरण तथा
(ख) अत्यावश्यक औषधियाँ।

(क) आवश्यक उपकरण:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए उपयोगी उपकरणों की सूची निम्नलिखित ह

  1.  कैंची
  2.  चाकू
  3. चिमटी
  4.  सेफ्टी पिन
  5.  सुई-धागा
  6.  गिलास व चम्मच
  7. स्वच्छ रुई
  8. नि:संक्रमित गॉज
  9.  छोटी-बड़ी पट्टियाँ
  10. गर्म पानी की बोतल
  11.  बर्फ की टोपी
  12. स्वच्छ कपड़ा
  13. छोटा तौलिया
  14.  साबुन
  15.  खपच्चियाँ
  16. तीली तथा तैयार फुरेरी
  17.  मोमबत्ती व दियासलाई
  18. टार्च।

(ख) उपयोगी औषधियाँ:
प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में प्रायः निम्नलिखित औषधियाँ रखी जाती हैं

  1.  अमृतधारा
  2.  पुदीनहरा
  3.  कोरामिन
  4. बरनौल
  5.  फ्यूरासिन
  6. पचनोल
  7. नावलजिन
  8.  आयोडेक्स
  9. ग्लिसरीन
  10.  ऐक्रीफ्लेविन
  11.  सुंघाने वाले लवण
  12.  ग्लूकोस
  13. पोटैशियम परमैंगनेट
  14. डिटॉल
  15.  स्प्रिट
  16. विक्स
  17. बाम
  18.  सामान्य नमक

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य (UPBoardSolutions.com) दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति का जीवन बचाना है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है। इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है तथा वह अधिक नहीं घबराता। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है।

प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सा की दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा की निम्नलिखित दो मुख्य विशेषताएँ हैं

(1) जीवन रक्षा:
प्राथमिक चिकित्सा की सर्वोपरि विशेषता गम्भीर रोगी अथवा गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति की जीवन-रक्षा के प्रयास करना है।
(2) तत्काल उपचार:
प्रायः दुर्घटना स्थल पर उपयुक्त चिकित्सा देर से सुलभ होती है। ऐसे विपरीत समय में प्राथमिक चिकित्सा दैवी सहायता के समान होती है।

प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सक के कोई चार महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के कर्तव्यों की कोई सीमा नहीं है, परन्तु प्राथमिकता के आधार पर उसके निम्नलिखित चार कर्तव्यों को अति महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है

(1) धैर्यपूर्वक तत्काल उपचार करना:
प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटना स्थल पर बिना घबराए पीड़ित व्यक्तियों का तुरन्त उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय पर शीघ्र उपचार प्रायः जीवन-रक्षक सिद्ध होता है।

(2) आपातकालीन सेवा प्रदान करना:

प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को कृत्रिम श्वास देना, रक्त-स्राव रोकना तथा अवरुद्ध हृदय-गति को चालू करने के प्रयास करना आदि
आपातकालीन सेवाएँ तुरन्त प्रदान करनी चाहिए।

(3) सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना:

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों के लिए कई बार दुर्घटना का मानसिक आघात घातक सिद्ध होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक का एक मुख्य कर्तव्य है कि वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सांत्वना दे तथा उनका साहस बढ़ाए।

(4) उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध कराना:

प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि पीड़ित व्यक्तियों के प्राथमिक उपचार के तुरन्त पश्चात् सबसे पास के डॉक्टर अथवा अस्पताल को दुर्घटना की सूचना दे।

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प्रश्न 4:
गृहिणी के लिए प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है, इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है और वह घबराता नहीं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा (UPBoardSolutions.com) अधिक बिगड़ने से बच जाती है। अतः गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि समय-समय पर घर में छोटी-छोटी घटनाएँ घटती रहती हैं। प्राथमिक चिकित्सा के ज्ञान के अभाव में ये घटनाएँ ही कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर सकती हैं। इसीलिए स्पष्ट है कि गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना सर्वोपरि कार्य है।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता की मुख्य दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैसे तो किसी दुर्घटना के घटित होने अथवा व्यक्ति के रोगग्रस्त हो जाने पर तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ ऐसी सामान्य दशाओं का उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें प्राथमिक चिकित्सा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है

  1. चोट लगने से अथवा गिर जाने से हड्डी टूट गई हो।
  2.  विद्युल का झटका लग गया हो।
  3.  किसी भी नशे का अधिक मात्रा में सेवन कर लिया गया हो।
  4. किसी विषैले जानवर अथवा कीड़े ने काट लिया हो।
  5.  कोई व्यक्ति पानी में डूब जाए तथा उसके पेट में पानी भर जाने पर उसे बाहर निकाल कर तुरन्त उपचार देना।
  6.  आग से जल जाने या झुलस जाने पर।
  7.  कोई व्यक्ति जान-बूझकर अथवा अनजाने में किसी विष को अथवा जलाने वाली वस्तु को खा या पी ले।
  8.  व्यक्ति के किसी भी अंग से रक्त बह निकले।
  9. व्यक्ति को श्वास लेने में कठिनाई हो रही हो।
    उपर्युक्त आकस्मिक दुर्घटनाओं के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की दुर्घटना के होते ही प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को विशिष्ट चिकित्सा सहायता उपलब्ध होने से पूर्व दुर्घटनास्थल पर ही प्रदान की जाने वाली सामान्य परन्तु आवश्यक चिकित्सा सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।

प्रश्न 2:
क्या प्राथमिक चिकित्सा के लिए मान्यता प्राप्त चिकित्सक होना आवश्यक है?
उत्तर:
नहीं, कोई भी सेवाभाव रखने वाला व्यक्ति आवश्यक प्रशिक्षण ग्रहण करने पर प्राथमिक चिकित्सा करने योग्य बन सकता है।

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प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सा कौन प्रदान कर सकता है?
उत्तर:
दुर्घटना स्थल पर उपस्थित कोई भी व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 4:
क्या आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं?
उत्तर:
नि:सन्देह, आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य है- दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाना।

प्रश्न 6:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त है- दुर्घटना की वास्तविकता तथा गम्भीरता को । जानना तथा प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करना।

प्रश्न 7:
प्राथमिक चिकित्सा बक्सा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
जिससे कि समय पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यक सामग्री एक ही स्थान पर तुरन्त उपलब्ध हो सके।

प्रश्न 8:
क्या एक प्राथमिक चिकित्सक के लिए अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग करना उचित है?
उत्तर:
कदापि नहीं, अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग एक मान्यता प्राप्त चिकित्सक को करना चाहिए।

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प्रश्न 9:
कृत्रिम श्वसन की कब आवश्यकता होती है? या कृत्रिम श्वसन कब दिया जाता है?
उत्तर:
प्राय: डूबने व विद्युत करन्ट लगने वाले व्यक्ति की सामान्य श्वास गति अवरुद्ध हो जाती है, अत: उसे तुरन्त कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10:
यदि कोई दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति मूर्च्छित हो तथा उसके शरीर से रक्त बह रहा हो, तो । प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
इस स्थिति में सर्वप्रथम शरीर से रक्त का बहना रोकने के उपाय करने चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) दुर्घटनास्थल पर दी जाने वाली तुरन्त सहायता को कहते हैं
(क) औपचारिक चिकित्सा,
(ख) अनावश्यक चिकित्सा,
(ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(घ) कृत्रिम चिकित्सा।

(2) प्राथमिक चिकित्सक होता है
(क) कोई भी सामान्य व्यक्ति
(ख) कुशल डॉक्टर
(ग) सम्बन्धित दुर्घटना का अनुभवी व्यक्ति
(घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो

(3) प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित दोष नहीं होना चाहिए
(क) धैर्यवान,
(ख) दूरदर्शी,
(ग) चिड़चिड़ा,
(घ) मृदुभाषी।

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(4) प्राथमिक चिकित्सा की विशेषता है
(क) घायलों की मरहम पट्टी,
(ख) पीड़ितों की जीवन-रक्षा,
(ग) दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को धैर्य बँधाना,
(घ) ये सभी।

(5) दुर्घटना घटने पर हमारा कर्तव्य है ।
(क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(ख) मूक दर्शक बनकर खड़े रहना,
(ग) अनदेखा कर देना,
(घ) तुरन्त घटनास्थल से भाग जाना।

(6) दुर्घटना में पीड़ित जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति का सर्वप्रथम
(क) हड्डी टूटने का उपचार करना चाहिए,
(ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(ग) हाथ पकड़कर अस्पताल ले जायें,
(घ) खपच्चियाँ लगाए।

(7) कृत्रिम विधि से श्वास कब दिलाई जाती है ।
(क) दम घुटने पर,
(ख) जल में डूबने पर,
(ग) फाँसी लगाने पर,
(घ) तीनों अवस्थाओं में।

(8) टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है
(क) टूटी हुई हड्डी जोड़ने में,
(ख) घाव पर पट्टी को रोकने में,
(ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लि
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

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(9) आकस्मिक घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है
(क) अल्पकालीन,
(ख) दीर्घकालीन,
(ग) तत्काल,
(घ) निरुद्देश्य।

उत्तर:
(1) (ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(2) (घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो,
(3) (ग) चिड़चिड़ा,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(6) (ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(7) (घ) तीनों अवस्थाओं में,
(8) (ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लिए,
(9) (ग) तत्काल।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य.

प्रयोगात्मक कार्य एवं प्रोजेक्ट कार्य

प्रयोग 1:

विषय:
पाँच विभिन्न कपड़ों के नमूनों का संग्रह करना।

उद्देश्य:

पाँच भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़ों के नमूनों का संग्रह करना। आवश्यक सामग्री
कैंची, विभिन्न प्रकार के कपड़ों की कतरनें, सूई एवं धागा तथा प्रयोगात्मक पुस्तिका।

विधि:

प्रत्येक प्रकार के कपड़े की एक-एक कतरन लेकर उसमें से एक निश्चित आकार (गोलाकार अथवा वर्गाकार) का कपड़ा काट लें। यदि चाहें तो कपड़ों के टुकड़ों की तुरपाई भी कर (UPBoardSolutions.com) लें। इसके उपरान्त इन टुकड़ों को अपनी प्रयोगात्मक पुस्तिका में किसी भी आकर्षक क्रम में टाँक लें। प्रत्येक प्रकार के कपड़े का नाम यथास्थान अंकित कर दें।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

निरीक्षण:
छात्राओं को उपलब्ध कपड़ों के विषय में समुचित जानकारी अवश्य होनी चाहिए। कपड़ों के विषय में उपलब्ध जानकारी को अपनी प्रयोगात्मक पुस्तिका में निम्नलिखित क्रम में अवश्य लिखें

  1. सम्बन्धित कपड़े किस प्रकार के तन्तुओं से निर्मित हैं?
  2.  सामान्य रूप से वे किस ऋतु में धारण किये जाते हैं?
  3. कपड़ों के मुख्य गुण-दोष क्या हैं?
  4.  प्रत्येक प्रकार के कपड़े को धोने की विधि।
  5.  सम्बन्धित कपड़ों के रख-रखाव की विधि।

परिणाम:
प्रयोगात्मक पुस्तिका में भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़ों के नमूनों को एकत्रित करने का मुख्य उद्देश्य कपड़ों की वास्तविक पहचान करना है। इसके अतिरिक्त कपड़ों के गुणों की समुचित जानकारी प्राप्त करना भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

सावधानियाँ:

  1. कपड़ों के नमूनों के संग्रह को नमी एवं सीलन से बचाकर रखना चाहिए।
  2. इस बात की भी सावधानी रखनी चाहिए कि कपड़ों को कीड़ों या फफूदी से हानि न पहुँचे।

प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

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प्रश्न 1:
केपड़ा बनाने के लिए किन स्रोतों से तन्तु प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
कपड़ा बनाने के लिए मुख्य रूप से प्राकृतिक स्रोतों से तन्तु प्राप्त किये जाते हैं। जैसेप्राणी-जगत् से ऊन एवं रेशम तथा वनस्पति-जगत् से कपास, लिनन, (UPBoardSolutions.com) जूट आदि। इसके अतिरिक्त कपड़ा बनाने के लिए कृत्रिमं तन्तु भी प्रयोग किए जाते हैं; जैसे–रेयॉन, नायलॉन, डेकरॉम, एक्रीलॉन आदि।

प्रश्न 2:
सूती वस्त्र के तन्तु किस स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
सूती वस्त्र के तन्तु वनस्पति-जगत् में पाये जाने वाले कपास नामक पौधे से प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 3:
लिनन नामक वस्त्र के तन्तु किस स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
लिनन के तन्तु फ्लाक्स यो सन नामक पौधे के तने से प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 4:
ऊनी तन्तु किस वर्ग के तन्तु हैं?
उत्तर:
ऊनी तन्तु प्राणी-जगत् से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक तन्तु हैं। इन्हें प्रोटीन तन्तु भी कहा जाता है।

प्रश्न 5:
रेशम के कीड़े द्वारा निर्मित खोल को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
रेशम के कीड़े द्वारा निर्मित खोल को ककून कहते हैं।

प्रश्न 6:
वस्त्रों का राजा किस वस्त्र को कहा जाता है?
उत्तर:
रेशम के वस्त्रों को वस्त्रों का राजा कहा जाता है।

प्रश्न 7:
रेशम का कीड़ा कहाँ पाला जाता है?
उत्तर:
रेशम का कीड़ा मुख्य रूप से शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है।

प्रश्न 8:
सूती कपड़े धारण करना किस प्रकार की जलवायु में उत्तम समझा जाता है?
उत्तर:
गर्म जलवायु में सूती कपड़े धारण करना उत्तम समझा जाता है।

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प्रश्न 9:
रूमाल, तौलिए तथा नेपकिन आदि मुख्य रूप से किस वस्त्र के बनाये जाते हैं?
उत्तर:
लिनन के बनाये जाते हैं।

प्रश्न 10:
रेयॉन के तन्तु किस प्रकार के होते हैं? इन्हें कैसे बनाया जाता है?
उत्तर:
रेयॉन के तन्तु कृत्रिम तन्तु हैं, इन्हें यान्त्रिक विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 11:
नॉयलॉन के तन्तु किस प्रकार के होते हैं? इन्हें कैसे बनाया जाता है?
उत्तर:
नायलॉन के तन्तु कृत्रिम तन्तु हैं, इन्हें रासायनिक विधि से तैयार किया जाता है।

प्रश्न 12:
कौन-से वस्त्रों को धोना सर्वाधिक सरल होता है?
उत्तर:
नायलॉन तथा अन्य कृत्रिम तन्तु वाले वस्त्रों को धोना सर्वाधिक सरल होता है।

प्रयोग-2

विषय:
कार्बोहाइड्रेट प्राप्ति के स्रोतों को चित्र द्वारा दर्शाना।

परिचय:
कार्बोहाइड्रेट को वनस्पति-जगत् से ही प्राप्त किया जा सकता है।
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प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
कार्बोहाइड्रेट के अधिकांश स्रोत कहाँ हैं?
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट के अधिकांश स्रोत वनस्पति-जगत् में हैं।

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प्रश्न 2:
क्या मांस-मछली तथा अण्डे में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है?
उत्तर:
नहीं, मांस-मछली तथा अण्डे में कार्बोहाइड्रेट नहीं पाया जाता।

प्रयोग 3:

विषय:
खाद्य तत्त्वों का संकलन चार्ट द्वारा ( आहार के अनिवार्य तत्त्व विटामिन ‘सी’ का चार्ट द्वारा प्रदर्शन)।

उद्देश्य:
विटामिन ‘सी’ प्राप्ति के स्रोतों को दर्शाना।

आवश्यक सामग्री:
चार्ट पेपर, पेन्सिल, रबड़, काले रंग की स्याही तथा विभिन्न रंग।

विटामिन ‘सी’ प्राप्ति के स्रोत:
विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत खट्टे फल तथा हरी सब्जियाँ हैं। आँवला विटामिन‘सी’ का अति उत्तम स्रोत है।
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प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत बताइए।
उत्तर:
‘विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं—खट्टे फल। इनमें नींबू, नारंगी, सन्तरा, अमरूद, अनन्नास, तरबूज आदि मुख्य हैं। आँवला विटामिन ‘सी’ का एक अति उत्तम स्रोत है। इसके अतिरिक्त टमाटर, गोभी, सलाद आदि हरी सब्जियाँ भी विटामिन ‘सी’ के उत्तम स्रोत हैं।

प्रश्न 2:
हमारे लिए विटामिन ‘सी’ की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
विटामिन ‘सी’ हड्डियों, पेशियों, तन्तुओं तथा अन्य ऊतकों को मजबूती व दृढ़ता प्रदान करता है। यह विटामिन संक्रामक रोगों से बचाव में सहायक होता है तथा लौह खनिज के उपापचय में सहायक होता है।

प्रश्न 3:
आहार में विटामिन ‘सी’ की कमी के प्रभावों को बताइए।
उत्तर:
आहार में विटामिन ‘सी’ की कमी से व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति आलस्य एवं कमजोरी महसूस करता है। रोग-प्रतिरोधक-क्षमता घट जाती है दाँतों एवं मसूड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 4:
विटामिन ‘सी’ की अत्यधिक कमी से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
विटामिन ‘सी’ की अत्यधिक कमी से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।

प्रयोग 4:

विषय:
बिस्तर पर लेटे रोगी के बिस्तर की चादर बदलना।

उद्देश्य:
रोगी को संक्रमण से बचाने के लिए एवं स्वच्छता का ध्यान रखते हुए रोगी के बिस्तर की चादर बदलना।

आवश्यक सामग्री:
दो साफ धुली चादरें तथा छोटी चादर।

विधि:
साधारणतया हम बिस्तर की चादर गन्दी होने पर तुरन्त बदल देते हैं। परन्तु समस्या तब उत्पन्न होती है जब रोगी आसानी से उठ-बैठ नहीं पाता और न ही हिल-डुल पाता है। ऐसी दशा में किस प्रकार रोगी की चादर बदली जाए? चादर बदलने की निम्नलिखित विधियाँ हैं

करवट विधि

  1. सर्वप्रथम पहले से एक और चादर उसी लम्बाई को लेकर, उसकी आधी चौड़ाई से अधिक तक मोड़कर लपेट लेते हैं। यदि छोटी चादर या मोमजामा भी बदलना हो तो उसे भी मोड़कर तैयार रखते हैं।
  2. तत्पश्चात् रोगी को एक करवट लिटाकर बिस्तर पर बिछी हुई छोटी चादर, मोमजामा व बड़ी चादर को घुमाकर लपेटते हुए रोगी की पीठ के पास तक ले जाते हैं तथा नीचे के बिस्तर की सिलवटें दूर कर देते हैं।
    UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य
  3.  इसके पश्चात् गन्दी चादर को हटाकर शेष बिस्तर पर साफ चादर पहले उस ओर से बिछाते हैं जिधर खाली स्थान है और इसके बाद आधी बिछी हुई चादर पर रोगी की करवट पलट देते हैं।
  4. इसके बाद जब रोगी आधी करवट ले लेता है तब उस खाली आधे स्थान पर तुरन्त चादर बिछा देते हैं।

लपेट विधि

नई चादर को बिछाने के लिए रोगी को करवट दिलानी अति आवश्यक है। उसकी पीठ की ओर खड़े होकर उस ओर से पलंग की पुरानी चादर को पहले थोड़ी दूर तक लपेट लेना चाहिए तथा जितनी दूर तक यह चादर हट जाती है उतनी दूर तक नई चादर को बिछा देना चाहिए। इसी तरह पुरानी चादर लपेटते जाते हैं तथा नई चादर बिछाते जाते हैं। जब दोनों चादरों की लपेटन रोगी के समीप पहुँच जाती है तो उसे सहारा देकर धीरे से नई चादर की ओर करवट दिला दी जाती है।

प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर क्यों बिछाते हैं?
उत्तर:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर बिछायी जाती है क्योंकि वह रोगी के शरीर से निकलने वाले पसीने को सोख लेती है। इसके अतिरिक्त चादर को निसंक्रमित करने के लिए इसे खौलते पानी में आसानी से धोया जा सकता है।

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प्रश्न 2:
ठीक से उठ-बैठनसकने वाले रोगी के बिस्तर की चादर बदलने में कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस प्रकार के रोगियों के बिस्तर की चादर बदलते समय दो व्यक्तियों का होना सुविधाजनक रहता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
मरहम-पट्टी ( ड्रेसिंग ) से क्या अभिप्राय है? प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियाँ बाँधने के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
मरहम-पट्टी का अर्थ एवं प्रकार

प्राथमिक चिकित्सा में सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कार्य है-दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मरहम-पट्टी करना। किसी भी प्रकार की चोट लग जाने या घाव हो जाने पर रोगी की मरहम-पट्टी की जाती है। मरहम-पट्टी के अन्तर्गत चोट या घाव को किसी नि:संक्रामक घोल से साफ करके उस पर मरहम (UPBoardSolutions.com) लगाकर पट्टी बाँधी जाती है। चोट एवं घाव के अतिरिक्त कुछ अन्य दशाओं में भी मरहम-पट्टी की जाती है। सैद्धान्तिक रूप से मरहम-पट्टी के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं

(1) सूखी मरहम-पट्टी,
(2) गीली मरहम-पट्टी।

(1) सूखी मरहम-पट्टी:
इसका प्रयोग घाव की रक्षा करने, उसके भरने तथा उस पर दबाव डालने के लिए किया जाता है। सामान्यतः ये पट्टियाँ जालीदार महीन कपड़े की बनी होती हैं तथा नि:संक्रमित अवस्था में प्लास्टिक पेपर में बन्द रहती हैं। आकस्मिक दुर्घटना के समय इनके उपलब्ध होने तक इनके स्थान पर स्वच्छ फलालेन कपड़े के टुकड़े, रूमाल अथवा कागज का उपयोग किया जा सकता है।

(2) गीली मरहम-पट्टी:
ये दो प्रकार की होती हैं

(क) ठण्डी पट्टी:
यह पीड़ा, सूजन तथा आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। ये स्वच्छ कपड़े, रूमाल अथवा फलालेन के कपड़े की चार तह करके ठण्डे पानी में भिगोकर प्रभावित अंगों पर रखी जाती हैं। इन्हें गीला एवं ठण्डा बनाए रखने के लिए समय-समय पर बदलते रहना चाहिए।

(ख) गर्म पट्टी:
इनका उपयोग गुम चोट की पीड़ा को कम करने, फोड़ों को पकाने तथा सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। ठण्डी पट्टी के समान इसे भी कपड़े की चार तह करके (UPBoardSolutions.com) बनाया जाता है. तथा गर्म पानी में भिगोकर प्रभावित अंग पर रखा जाता है। प्रभावित अंग को लगातार गर्मी प्रदान करने के लिए पट्टी को बार-बार बदलते रहना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों के उद्देश्य एवं महत्त्व

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों का अपना विशेष महत्त्व है। इसकी पुष्टि के लिए पट्टियों को प्रयोग करने में निम्नलिखित उद्देश्यों का अवलोकन करना आवश्यक है

  1. पट्टियों के प्रयोग करने का एक उद्देश्य घाव को बढ़ने अथवा फैलने से रोकना होता है, जिससे कि चोटग्रस्त अंग अधिक गम्भीर न हो सके।
  2.  पट्टियाँ प्रायः नि:संक्रमित होती हैं; अत: इनका प्रयोग कर घाव को ढकने से घाव वायु में उपस्थित हानिकारक जीवाणु के संक्रमण से सुरक्षित हो जाता है।
  3. चोटग्रस्त अंग पर औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए पट्टियों का प्रयोग किया जाता है। दवा लगाकर पट्टी बाँध देने पर दवा के पुछ जाने या अरु जाने की आशंका नहीं रहती।
  4. घायल अंग अथवा अंगों को सहारा देने के लिए झोल के रूप में पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
  5.  घाव पर उचित मात्रा में दबाव डालने के लिए पट्टियों का प्रयोग करते हैं। इससे सूजन या तो कम हो जाती है या फिर बढ़ती नहीं है।
  6. चोट अथवा घाव आदि को फिर से चोट या धक्का लगने से बचाने के लिए प्रायः पट्टियों का उपयोग किया जाता है।
  7.  रक्तस्त्राव को कम करने के लिए अथवा बन्द करने के लिए घायल अंग पर कसकर पट्टियाँ बाँधी जाती हैं।
  8.  पट्टियाँ बाँधने से क्षतिग्रस्त धमनियों एवं पेशियों को आराम मिलता है तथा दर्द में कमी आती है।
  9. रोगियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए भी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 2:
लुढ़की अथवा लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है? भुजा एवं टाँग के चोटग्रस्त होने पर लम्बी पट्टियाँ किस प्रकार बाँधी जाती हैं?
उत्तर:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग:
ये प्राय: 5 मीटर लम्बी होती हैं; परन्तु सीने एवं सिर पर बाँधने के लिए ये 8 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। भिन्न अंगों के लिए इनकी चौड़ाई भिन्न होती है। इन्हें मशीन अथवा हाथ द्वारा लपेटा जा सकता है। इनके प्रयोग करने के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. घाव अथवी चोट पर रुई, औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए।
  2. घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  3.  सूजन कम करने तथा घाव पर उचित दबाव डालने के लिए।
  4. रक्त-स्राव रोकने के लिए तथा रक्त-प्रवाह की दिशा को बदलने के लिए।

(क) भुजा अथवा अग्रबाहु पर लम्बी पट्टियाँ बाँधने की विधियाँ

(i) अँगूठे की पट्टी बाँधना:
अँगूठे की पट्टी बाँधने के लिए लगभग 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसे बाँधने के लिए कलाई के पृष्ठ तल पर एक सिरा रखकर दो लपेट लगाते हैं। पट्टी को छोटी उँगली की ओर लपेटते हुए हथेली पर से अंगूठे के नाखून की ओर एक फेरा अँगूठे के चारों (UPBoardSolutions.com) ओर लगाते हैं; अत: यह पट्टी अँगूठे के बाहरी किनारों की ओर होगी। अब अँगूठे के चारों ओर इसे लपेटते हुए अंगूठे के भीतरी किनारे की ओर लाया जाता है और इसी प्रकार और चक्कर लगाए जाते हैं। प्रत्येक चक्कर में पहली पट्टी की चौड़ाई का लगभग 1/3 भाग ढक दिया जाता है। इस प्रकार लपेटी गई पट्टी जब कलाई के पास पहुँच जाती है, तब कलाई पर पट्टी के दो चक्कर लगाकर या तो पहले छोर के साथ गाँठ बाँध दी जाती है। अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
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(ii) उँगली की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी भी 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी होती है। इसे । भी कलाई के पृष्ठ भाग से प्रारम्भ करना चाहिए और 1-2 लपेट देने के बाद उँगली के नाखून तक ले जाना चाहिए। अँगूठे की तरह ही क्रमशः आगे से पीछे की ओर पट्टी को लपेटते हुए जब पट्टी हथेली पर पहुँच जाए तो अँगूठे की ओर ले जाकर कलाई के चारों ओर लपेटकर पहले छोर से बाँध देते हैं अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ देते हैं।

(iii) हथेली की पट्टी बाँधना:
इसके लिए लगभग 5 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है। घायल व्यक्ति की हथेली को नीचे रखकर प्राथमिक चिकित्सक को उसके सामने खड़ा होना चाहिए। अब पट्टी के सिरे को छोटी उँगली के पास रखकर अँगूठे की ओर ले जाते हैं तथा उँगलियों के चारों ओर दो-तीन बार लपेट (UPBoardSolutions.com) देते हैं। इसके बाद पट्टी को अँगूठे और हथेली के कोण । से निकालकर हथेली के पृष्ठ भाग की ओर ले । जाते हैं जहाँ से कलाई की ओर ले जाकर कलाई पर एक चक्कर लगाकर वापस लौटा लेते हैं। इस बार यह चक्कर छोटी अँगली की ओर जाएगा।
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छोटी उँगली के नाखून से नीचे तक तथा उँगलियों के नीचे से निकाल लिया जाता है। इस प्रकार, क्रमशः उँगलियों से कलाई की ओर तथा कलाई से अँगूठे की ओर (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार कुछ चक्कर लगाए जाते हैं। हर बार पट्टी के पिछले चक्कर का कुछ भाग ढक देने से पट्टी के खुलने का भय नहीं रहता है। अन्तिम रूप में पट्टी को कलाई पर ही पहले सिरे के साथ बाँध दिया जाता है अथवा सेफ्टी पिन के साथ जोड़ दिया जाता है।

(iv) अग्रबाहु की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी लगभग 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके सिरे को अँगूठे के सिरे की ओर रखा जाता है तथा कलाई के भीतर की।
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ओर से बाहर की ओर लाया जाता है। अब इस पट्टी को । अँगूठे की ओर से छोटी उँगली की ओर उसके प्रथम जोड़। पर लम्बी पट्टी बाँधना तक लाया जाता है और हथेली की ओर से लेते हुए अँगूठे। और उँगलियों के स्थान से हथेली के पृष्ठ भाग पर लाया जाता है। इस प्रकार दो-तीन चक्कर लगाए जाते हैं। बाद में कलाई पर सीधे दो-तीन चक्कर लगाकर कोहनी की तरफ लपेटते हुए, ध्यान रहे कि हर बार पिछली पट्टी इससे ढकती रहे, जब कोहनी के पास पहुँच जायें तो पट्टी के सिरे कों एक या दो लपेट देकर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ देते हैं। बड़ी झोली में अग्रबाहू डालकर सहारा दिया जाता है।

(ख) टाँग पर पट्टी बाँधने की विधियाँ:

(i) घटने तथा कोहनी पर पट्टी बाँधना:
घटने। अथवा भुजा की कोहनी पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी बाँधी जाती है। पहले पट्टी के खुले सिरों को जोड़ में भीतरी सतह पर रखकर एक-दो चक्कर लगाने (UPBoardSolutions.com) चाहिए। उसके उपरान्त क्रमशः जोड़ के ऊपर-नीचे लटके हुए ‘8’ की आकृति एक के बाद एक कई बार बनानी चाहिए। जब जोड़ पूरा ढक जाए तो पट्टी को सेफ्टी पिन से अटका देना चाहिए। यदि चोट बाँह में हो, तो उसे झोली में लटका देना चित्र चाहिए।
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(ii) तलुए तथा एड़ी पर पट्टी बाँधना:
दोनों स्थानों पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी प्रयोग में लाई जाती है। पैर को सुविधाजनक स्थिति में रखकर पट्टी को टखने के जोड़ पर इस प्रकार रखा जाता है। कि इसका खुला सिरा टखने पर रहे और फिर टखने के जोड़ पर दो लपेट इस प्रकार लगाए जाते हैं कि जोड़ पूरी । तरह ढक जाए। (UPBoardSolutions.com) इसके बाद पट्टी को पैर के ऊपर से ले जाकर छोटी उँगली के सिरे तक ले जाते हैं और यहाँ से पैर के ऊपर एक सीधा चक्कर लगा देते हैं। अब शेष चक्कर ‘8’ का अंक बनातेहुए लगाते हैं। इस प्रकार पुरा तलुओ। ढक दिया जाता है। अब या तो पहले सिरे के साथ गाँठ बाँध दी जाती है अथवा सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

एड़ी पर पट्टी बाँधते समय पट्टी को टखने के जोड़ के ऊपर से बाँधना आरम्भ करते हैं। एक-दो लपेट एड़ी पर देने के पश्चात् पट्टी तलुए तक पहुँचाते हैं। तलुए के नीचे से निकालकर छोटी उँगली की दिशा में पहले चक्कर की तरह पट्टी एड़ी पर से तिरछी ली जाती है तथा तीन-चार बार लपेट देकर एड़ी
टखने को पूरी तरह ढक देते हैं।

(iii) ट्राँग की पट्टी बाँधना:
अग्रबाहु की तरह टाँग की पट्टी भी 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके बाँधने का ढंग भी बिल्कुल अग्रबाहु के समान होता है।

प्रश्न 3:
भुजा एवं टाँगों पर बाँधी जाने वाली तिकोनी पट्टियों की विभिन्न विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों के प्रयोग से कुछ विशिष्ट अंगों को आवश्यकतानुसार बाँधकर प्रभावित स्थान को ढकने, पीड़ा कम करने तथा उपयुक्त दबाव डालना आदि महत्त्वपूर्ण कार्य किए जा सकते हैं। तिकोनी पट्टियों को भुजा एवं टाँग पर निम्नलिखित प्रकार से बाँधा जा सकता है

(क) भुजा पर तिकोनी पट्टी बाँधना

(i) हाथ की पट्टी बाँधना:
तिकोनी पट्टी को फैलाकर उसके आधार वाले भाग को लगभग चार सेन्टीमीटर अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। घायल हाथ को पट्टी के मध्यम भाग में इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली पट्टी के शीर्ष की ओर रहे। शीर्ष को मोड़कर कलाई तक ले जाते हैं। पट्टी के आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों से पकड़कर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में खींचकर लपेटते हैं। तथा कलाई पर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। यदि आवश्यकता हो, तो चोटग्रस्त हाथ को सँकरी झोली द्वारा लटका देते हैं।
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(ii) कोहनी की पट्टी बाँधना:
कोहनी पर बाँधने के लिए एक छोटी पट्टी को फैलाकर उसके आधारीय भाग को हाथ की पट्टी के अनुसार थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लेते हैं। अब कोहनी को समकोण पर मोड़कर पट्टी को इस प्रकार रखा जाता है कि उसका शीर्ष कन्धे की ओर रहे और आधारीय भाग आगे की ओर अग्रबाहु पर। रहे। (UPBoardSolutions.com) अब आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथ से पकड़कर कोहनी के ऊपरी भाग से एक-दूसरे के विपरीत दिशा में लपेटकर ‘रीफ गाँठ बाँध दी जाती है। शीर्ष का बचा हुआ भाग गाँठ के ऊपर लाकर सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी से जोड़ दिया जाता है। भुजा को आराम देने के लिए बड़ी झोली में डाल दिया जाता है।
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(iii) कन्धे की पट्टी बाँधना:
इस कार्य के लिए तिकोनी पट्टी के आधारीय भाग को अन्दर की ओर मोड़ते हैं। प्राथमिक चिकित्सक चोटग्रस्त व्यक्ति के घायल कन्धे की ओर खड़ा होकर पट्टी को इस प्रकार रखे कि पट्टी को शीर्ष भाग गर्दन के पास कन्धे पर रहे तथा आधार को मध्य भाग कोहनी से ऊपर रहे। अब पट्टी के दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर बाँह के नीचे से विपरीत दिशा में घुमाकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ लगा देते हैं। हाथ को कोहनी पर समकोण की दिशा में रखकर झोली में डाल देते हैं।
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(ख) टाँग की पट्टी बाँधना

(i) पैर की पट्टी बाँधना:
इसे भी हाथ के समान ही बाँधा जाता है। पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लिया जाता है।
चित्र 18.8-कन्धे की पट्टी बाँधना, घायल पैर को पट्टी के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली शीर्ष की ओर रहे। एड़ी आधार से थोड़ी अन्दर रहनी चाहिए। शीर्ष को मोड़कर पैर के ऊपर लाया जाता है तथा आधारीय जोड़ के पास से ऊपर के भाग पर । दोनों सिरों को विपरीत दिशा में घुमाकर (UPBoardSolutions.com) चारों ओर लपेट देते हैं। अब दोनों सिरों में आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। शीर्ष के शेष भाग को पट्टी के ऊपर से खींचकर गाँठ को ढकते हुए मोड़कर आगे की ओर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ दिया जाता है।
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(ii) घुटने की पट्टी बाँधना:
पट्टी के आधारीय भाग को अन्य पट्टियों की तरह मोड़कर घुटने पर इस प्रकार रखा जाता है कि शीर्ष का भाग घुटने के ऊपर कमर की ओर सामने रहे तथा आधारीय भाग घुटने के नीचे रहे। आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर टाँग के चारों ओर लपेटना चाहिए तथा लपेटते हुए घुटने के (UPBoardSolutions.com) ऊपर ले जाकर आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठं के द्वारा बाँधा जाता है। इस प्रकार शीर्ष पट्टी के नीचे की ओर से निकला रहता है जिसे खींचकर तथा मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से घुटने से जोड़ दिया जाता है।
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(iii) जाँघ तथा कूल्हे की पट्टी बाँधना:
जाँघ पर बाँधने के लिएदो तिकोनी पट्टियों की आवश्यकता होती है। एक पट्टी का आधारीय भाग अन्य पट्टियों की तरह अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। इसी भाग को जाँघ के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि पट्टी का शीर्ष कूल्हे की ओर कमर पर रहे। दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर एक-दूसरे के विपरीत दिशा में जाँघ के ऊपर लपेटकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा बाँधा जाता है। दूसरी (UPBoardSolutions.com) पट्टी को सँकरी बनाकर कमर पर इस प्रकार बाँधा जाता है कि पहली पट्टी का शीर्ष इसके नीचे दब जाए। सँकरी पट्टी का सिरा ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा उचित स्थान पर बाँधा जाता है। अब पहली पट्टी के शीर्ष को ऊपर की ओर थोड़ा खींचकर गाँठ.. के ऊपर से ढकते हुए नीचे की ओर मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी के साथ जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 4:
सिर पर बाँधते समय तिकोनी वलम्बी पट्टियों का प्रयोग किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
मस्तिष्क एवं अनेक नाड़ियाँ सिर में सुरक्षित रूप में स्थित होती हैं। सिर मानव शरीर का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। सिर में लगने वाली छोटी-सी चोट भी उपयुक्त देख-रेख न होने पर घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को सिर पर पट्टी बाँधने की भली प्रकार से जानकारी होनी अति आवश्यक है। सिर में चोट लगने पर तिकोनी व लम्बी दोनों प्रकार की पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

(1) सिर की तिकोनी पट्टी बाँधना:
सिर पर चोट लगने पर घायल भाग पर रुई व औषधि यथास्थान रखने के लिए तथा घाव को भली-भाँति ढकने के लिए तिकोनी पट्टी का प्रयोग किया जाता है। पट्टी बाँधते समय निम्नलिखित नियम अपनाएँ

  •  पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लें। अब पट्टी को सिर पर इस प्रकार रखें कि आधारे का मुड़ा हुआ भाग भौंहों के निकट हो तथा सिरा पीछे की ओर रहे।

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  •  पट्टी के दोनों सिरों को कान के ऊपर से सिर के पीछे की ओर ले जाकर तथा फिर वापस लपेटकर सामने की ओर माथे पर लाना चाहिए। माथे के बीच में दोनों सिरों को लेकर रीफ’ गाँठ द्वारा बाँधे। द्वारा बॉधे।
  • पट्टी के शीर्ष-भाग को थोड़ा खींचकर मोड़ दें तथा इसे शेष पट्टी से सेफ्टी पिन द्वारा जोड़ दें।
  • प्राथमिक चिकित्सक को पट्टी बाँधते समय घायल व्यक्ति को किसी कुर्सी अथवा स्टूल पर बैठाना चाहिए।

(2) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधना:
सिर के लिए लगभग पाँच सेन्टीमीटर चौड़ी व सात से आठ मीटर लम्बी दो पट्टियों की आवश्यकता होती है। दोनों पट्टियों के सिरे बाँधकर गाँठ को । रोगी के माथे के मध्य में रखते हैं। प्राथमिक चिकित्सक को रोगी के पीछे खड़े होकर दोनों । पट्टियों को विपरीत दिशा में लपेटते हुए दोनों हाथों से कानों के ऊपर सिर के पीछे ले जाकर मोड़ देना चाहिए। अब दाएँ हाथ की पट्टी को मोड़कर सिर के बीच से सामने माथे की ओर लाते हैं।
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बाएँ हाथ की पट्टी को बाएँ कान के ऊपर से ले जाकर माथे के मध्य में ले आते हैं। जो पट्टी दाएँ हाथ से माथे पर लाई गई थी उसके ऊपर से बाएँ हाथ की पट्टी को बाँधते हुए दाएँ कान की ओर ले जाते हैं। इस प्रकार, दाहिने हाथ की पट्टी के लपेट सिर पर, एक बार बाईं तथा दूसरी बार दाईं ओर लपेटते जाते हैं। इस क्रिया को बार-बार दोहराने से पूरा सिर ढक जाता है। अन्त में दोनों पट्टियों के सिरों को एक-दूसरे (UPBoardSolutions.com) पर मोड़ देकर सिर के पीछे से माथे की ओर विपरीत दिशा में लाते हैं और यहीं पर गाँठ के द्वारा अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से बाँध देते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ बाँधने के सामान्य नियम कौन-से हैं?
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करते समय प्राथमिक चिकित्सक को निम्नलिखित नियमों का अनुसरण करना चाहिए

  1. घाव एवं घायल व्यक्ति का ध्यानपूर्वक निरीक्षण कर प्राथमिक चिकित्सक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पूरी पट्टी बाँधी जानी है या आधी अथवा चौड़ी या सँकरी, उसी के अनुसार पट्टियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2.  प्रट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित होनी चाहिए।
  3.  पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधना चाहिए, क्योंकि ढीली पट्टी का कोई विशेष लाभ नहीं होता और यहं खुल भी सकती है।
  4. पट्टी की गाँठ सदैव सुविधाजनक स्थान पर लगानी चाहिए। पट्टी की गाँठ कभी भी घाव के ऊपर नहीं लगाई जाती है।
  5.  पट्टी बाँधने के बाद प्रायः ‘रीफ’ गाँठ लगानी चाहिए।
  6.  पट्टी को कसकर सफाई एवं विधिपूर्वक लपेटना चाहिए।

प्रश्न 2:
‘रीफ’ गाँठ किस प्रकार लगाई जाती है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गाँठ ही बाँधी जाती है। रीफ गाँठ बाँधने के लिए पट्टी के दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़ लेते हैं। बाएँ हाथ के सिरे को दाएँ हाथ के सिरे पर रख दिया जाता है तथा उसे इस इस प्रकार लपेटा जाता है कि दाएँ हाथ का सिरा बाएँ (UPBoardSolutions.com) हाथ में आ जाए। अब दाएँ हाथ के टुकड़े के। सिरे को बाएँ हाथ में रखा जाता है और पहले की तरह घुमाकर नीचे से । निकाल लिया जाता है। अब दोनों सिरों को दो विपरीत दिशाओं में खींच देने से गाँठ भली-भाँति कस जाएगी।
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प्रश्न 3:
तिकोनी पट्टी कैसे तैयार की जाती है? इसे किस-किस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी बनाने के लिए मारकीन अथवा अन्य किसी मजबूत कपड़े का 1×1 मीटर आकार का टुकड़ा लिया जाता है। इसके एक सिरे को सामने वाले दूसरे सिरे से मिलाकर तथा दोहरा करके त्रिभुज की तरह बना लिया जाता है। अब मुड़े हुए स्थान से काटने पर दो तिकोनी पट्टियाँ प्राप्त (UPBoardSolutions.com) होती हैं। इनके किनारों को थोड़ा-सा मोड़कर तुरपन कर दी जाती है। तिकोनी पट्टियों को आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है

(1) पूरी खुली पट्टी:
यह पीठ, छाती तथा सिर पर बाँधने में प्रयुक्त होती है। इसका प्रयोग सम्पूर्ण रूप में किया जाता है।

(2) चौड़ी पट्टी:
यह शीर्ष को आधार पर उलट कर तथा पट्टी को दोहरा करके प्रयोग में लाई जाती है। यह झोल डालने या खपच्च बाँधने के काम आती है।
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(3) संकरी पट्टी:
इसे बनाने के लिए दो बार मुड़े शीर्ष-भाग को पुनः तीसरी बार आधार पर रखकर मोड़ देते हैं। अधिक सँकरी करने के लिए इसे पुन: मोड़ा जा सकता है। इसका प्रयोग भी चौड़ी पट्टी के समान किया जाता है।

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प्रश्न 4:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों का प्राथमिक चिकित्सा में अत्यधिक महत्त्व है। इनका प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है

  1. चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। इससे प्रभावित भाग वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित हो जाते हैं।
  2. इनकी सहायता से खपच्चियों, औषधि व रुई आदि को घायल अंग पर यथास्थान बनाए रखा जा सकता है।
  3.  घायल अंग पर उपयुक्त दबाव डालने के लिए तिकोनी पट्टियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति का दर्द एवं रक्तस्राव कम होता है।
  4.  तिकोनी पट्टियों की झोली बनाई जाती है जो कि चोटग्रस्त अंग को सहारा देने के काम आती है।

प्रश्न 5:
रोलर पट्टी का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
लम्बी या रोलर पट्टियाँ हाथ से या मशीन से रोलर के रूप में लपेटी जाती हैं। इनकी चौड़ाई भिन्न-भिन्न होती है। ये प्रमुखत: रुई को बाँधने तथा औषधि, खपच्चियों आदि को यथास्थान रखने के
प्रयोग में लाई जाती है। इसके अतिरिक्त ये सूजन कम करने, घाव पर दबाव डालने, रक्त स्राव रोकने, टूटे अंग पर प्लास्टर चढ़ाने आदि के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं।

प्रश्न 6:
तिकोनी पट्टी से बड़ी झोली एवं सैन्ट जॉन झओली किस प्रकार बनाई जाती है?
उत्तर:

(1) बड़ी झोली:
तिकोनी पट्टी को खुली अवस्था में चोटग्रस्त व्यक्ति के वक्षस्थल पर इस प्रकार रखते हैं कि पट्टी के आधार को एक सिरा स्वस्थ कन्धे पर रहे तथा दूसरा नीचे लटकता रहे। बाँह की समको ३२ ड देते हैं। अब नीचे लटकने वाले सिरे को मोड़कर घायल व्यक्ति के कन्धे पर लाया जाता है और दोनों सिरों को हँसली की हड्डी के पास के गड्ढे में ‘रीफ’ गाँठ लगाकर बाँध देते हैं। पट्टी के शीर्ष भाग को अन्दर की ओर भली-भाँति मोड़कर सेफ्टी पिन लगा दी जाती है।

(2) सैन्ट जॉन झोली:
यह हॅसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है। जिस ओर की हॅसली की इड्डी टूटी हुई हो उस ओर बगल में पैड लगा दिया जाता है। अब घायल अंग की ओर के हाथ को व-स्थल पर मोड़कर इस प्रकार रख दिया जाता है कि वह स्वस्थ कंधे को छूता रहे। पट्ट को खुली हुई अवस्था में इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) फैलाते हैं कि पूरे अग्रबाहु को ढकते हुए इसके आधार को एक सिरा स्वस्थ कंधे पर रहे। दूसरा नीचे लटका हुआ सिरा पीठ की ओर से घुमाकर स्वस्थ कंधे पर लाया जाता है। इस प्रकार दोनों आधारीय सिरों को इसी कंधे पर हँसली की हड्डी के ऊपरी गर्त में ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है। कोहनी पर पट्टी के शीर्ष-भाग के सिरे को मोड़कर सेफ्टी पिन से जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 7:
कान पर पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-इसके लिए 6 सेमी चौड़ी तथा 5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसमें । पट्टी को सिर और माथे पर दो बार लपेट देते हैं। पट्टी को घायल कानों के नीचे से निकालकर सामने माथे की ओर लाते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। दूसरा चक्कर पहले चक्कर का – भाग दबाते हुए (UPBoardSolutions.com) कान के ऊपर लगाते हैं और पट्टी को माथे की ओर लाकर स्वस्थ कान की ओर झुकाव देते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। इसी प्रकार सारे कान को ढक देते हैं। जब पूरा कान ढक जाए, तो एक चक्कर माथे और सिर के चारों ओर लाकर माथे पर पट्टी लाकर सेफ्टी पिन लगा देनी चाहिए।

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प्रश्न 8:
जबड़े की पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-जबड़े की पट्टी दो प्रकार से बाँधी जाती है ।
(क) एक पट्टी द्वारा,
(ख) दो पट्टियों द्वारा

(क) एक पट्टी द्वारा:
एक पट्टी को सँकरा मोड़ लेते हैं। इस पट्टी का बीच का भाग हड्डी के नीचे रखकर दोनों सिरों को गालों के ऊपर से लाकर सिर के ऊपर ले जाते हैं और दोनों सिरों में सिर के ऊपर आधी रीफ गाँठ बाँधकर धीरे-धीरे कसते हैं। अब इस पट्टी के दो हिस्से हो जाएँगे। एक हिस्से को धीरे-धीरे माथे पर तथा दूसरे हिस्से को सिर के पीछे वाले भाग पर लाया जाता है। पट्टी के सिरों को हाथों में ध्यान से पकड़े रहना चाहिए, (UPBoardSolutions.com) जिससे पट्टी ढीली न होने पाए। इन सिरों को कानों से बाहर निकालते हुए कानों के ऊपरी भाग पर धीरे-धीरे खींचकर तथा सिरे के बीच में लाकर एक रीफ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है।

(ख) दो पट्टियों द्वारा:
दो पट्टियाँ लेकर सँकरी मोड़ लेते हैं। पहले एक पट्टी ठुड्डी के नीचे से तथा गालों के ऊपर से ले जाकर सिर के ऊपर बाँध दी जाती है। अब दूसरी पट्टी ठुड्डी पर से तथा दोनों कानों के नीचे से ले जाकर गर्दन के पीछे ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं। अब दोनों पट्टियों के बचे हुए सिरों को एक-दूसरे से रीफ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ कितने प्रकार की होती हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
पट्टियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं
(1) तिकोनी पट्टियाँ तथा
(2) लम्बी पट्टियाँ।

प्रश्न 2:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:

  1. घाव तथा चोट पर खपच्चियाँ, रुई एवं औषधि को रोकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  2.  सूजन को कम करने तथा घाव पर दबाव डालकर रक्तस्राव को रोकने के लिए भी लम्बी पट्टी को प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 4:
लम्बी पट्टी बाँधते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1.  पट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित हों।
  2. पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधे तथा गाँठ सुविधाजनक स्थान पर लगाएँ।
  3.  सही आकार की पट्टी का चुनाव करें।

प्रश्न 5:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से किस गांठ को अपनाया जाता है ?
उत्तर:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गांठ को अपनाया जाता है।

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प्रश्न 6:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से निम्नलिखित लाभ हैं

  1.  यह अपने आप न तो खुलती है और न ही खिसकती है।
  2.  आवश्यकता पड़ने पर इसे सहज ही खोला जा सकता है।

प्रश्न 7:
पट्टियाँ बाँधने के दो मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करने के दो मुख्य उद्देश्य हैं

  1. औषधि, खपच्चियों एवं रुई को घायल अंग पर स्थिर रखना।
  2.  घाव को वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित रखना।

प्रश्न 8:
तिकोनी पट्टी के लिए प्रायः कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी के लिए प्राय: मारकीन नामक कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 9:
लम्बी पट्टियाँ बनाने के लिए कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
लम्बी पट्टियाँ सामान्यतः जाली वाले सफेद कपड़े से बनाई जाती हैं। इस कपड़े को गौज कहते हैं।

प्रश्न 10:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए आप किस प्रकार की पट्टियों का प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11:
सबसे अच्छी पट्टी कौन-सी है?
उत्तर:
कीटाणुरहित स्वच्छ पट्टी सर्वोत्तम होती है।

प्रश्न 12:
आपातकाल में पट्टियाँ न उपलब्ध होने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
आपातकाल में पट्टियों के स्थान पर किसी स्वच्छ कपड़े का टुकड़ा, रूमाल अथवा स्वच्छ कागज प्रयोग कर घाव को ढककर बाँध देना चाहिए।

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प्रश्न 13:
गरम सेंक वाली पट्टी से क्या लाभ है?
उत्तर:
यह घाव की पीड़ा को कम करने के लिए की जाती है।

प्रश्न 14:
गीली मरहम-पट्टी क्यों की जाती है?
उत्तर:
यह सूजन कम करने के लिए की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) हँसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है
(क) बड़ी झोली,
(ख) सैन्ट जॉन झोली,
(ग) कॉलर-कफ झोली,
(घ) सँकरी झोली।

(2) पट्टियों को कसकर नहीं बथना चाहिए, क्योंकि
(क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(ख) इससे रक्तस्राव बन्द हो सकता है,
(ग) रोगी को अधिक दर्द होता है,
(घ) यह अशोभनीय पट्टी है।

(3) आन्तरिक रक्तस्त्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती है
(क) सूखी पट्टी,
(ख) गरम सेंक वाली पट्टी,
(ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(घ) कोई भी पट्टी।

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(4) बाह्य रक्तस्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती हैं
(क) तिकोनी पट्टियाँ,
(ख) लम्बी पट्टियाँ,
(ग) गरम सेंक वाली पट्टियाँ,
(घ) कोई भी पट्टी।

(5) कोहनी के जोड़ पर बाँधते समय पट्टी
(क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(ख) साधारण चक्राकार होती है,
(ग) अनियमित चक्र बनाती है,
(घ) ढीली-ढाली होती है।

(6) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधने के लिए पट्टियों की आवश्यकता पड़ेगी
(क) एक पट्टी की,
(ख) दो पट्टी की,
(ग) तीन पट्टियों की,
(घ) चार पट्टियों की।

(7) तिकोनी पट्टी बाँधी जाती है
(क) अँगूठा, उँगली तथा कलाई पर,
(ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(ग) सिर, टाँग और उँगलियों पर,
(घ) कहीं भी।

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(8) सैन्ट जॉन झोली का काम है
(क) एक हाथ के सिरे को दूसरे हाथ के सिरे पर रखना,
(ख) एक हाथ को सहारा देना,
(ग) दोनों हाथों को सहारा देना,
(घ) उपर्युक्त सभी।

उत्तर:
(1) (ख) सैन्ट जॉन झोली,
(2) (क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(3) (ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(4) (ख) लम्बी पट्टियाँ,
(5) (क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(6) (ख) दो पट्टी की,
(7) (ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(8) (ख) एक हाथ को सहारा देना।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को भरिए
(क) अवस्थिति क्षेत्र,
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र,
(ग) भूमि का उपयोग ( हेक्टेयर में)

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी 1
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

प्रश्न 2.
खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यकता होती है, जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?
उत्तर:
हाँ, हम सहमत हैं। क्योंकि आधुनिक कृषि तकनीकों को अधिक साधनों की जरूरत है जो उद्योगों में बनाए जाते हैं। एचवाईवी बीजों को अधिक पानी चाहिए और इसके साथ ही बेहतर नतीजों के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक भी चाहिए। किसान सिंचाई के लिए नलकूप लगाते हैं। ट्रैक्टर एवं प्रैसर जैसी मशीनें भी प्रयोग की जाती हैं। एचवाईवी बीजों की सहायता से गेहूं की पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति (UPBoardSolutions.com) हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बाजार में बेचने के लिए अधिक मात्रा में फालतू गेहूं है।

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प्रश्न 3.
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की?
उत्तर:
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की भिन्न रूप से सहायता की –

  1. कृषि उपकरण, जैसे हार्वेस्टर, श्रेशर आदि ने किसानों की सहायता की है।
  2. बिजली का उपयोग गाँव में प्रकाश के लिए भी किया गया।
  3. विद्युत प्रकाश, पंखे, प्रेस एवं मशीनों ने किसानों के घरेलू कार्यों में सहायता दी है।
  4. सिंचाई की उपयुक्त विधि, नलकूपों एवं पंपिंग सेटों को बिजली द्वारा चलाया जाता है।
  5. बिजली से सिंचाई प्रणाली में सुधार के कारण किसान पूरे वर्ष के दौरान विभिन्न फसलें उगा सकते थे।
  6. उन्हें मानसून की बरसात पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है जो कि अनिश्चित एवं भ्रमणशील है।

प्रश्न 4.
क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है? क्यों?
उत्तर:
सिंचित क्षेत्र में वृद्धि करना निम्न दृष्टि से महत्वपूर्ण है

  1.  सिंचाई की सुविधा प्राप्त भूम के टुकड़े में कृषि उत्पादन असिंचित भूमि के टुकड़े के उत्पादन से अधिक होता है।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचित क्षेत्र महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है।
  3. पौधों का जन्म, उनका विकास, फलना और फूलना; मिट्टी, जल और हवा के कुशल संयोग पर निर्भर करता है।
  4. यदि सिंचाई की असुविधा के कारण जल प्राप्त नहीं होता तो फसल सूख जाएगी, यदि लगातार जल की कमी होतो अकाल का भय हो जाता है।
  5.  सिंचित क्षेत्र की वृद्धि से भारत में (UPBoardSolutions.com) व्याप्त मानसून की अनिश्चित बरसात से मुक्ति मिलेगी।

प्रश्न 5.
पालमपुर के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की सारणी
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

प्रश्न 6.
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मज़दूरी न्यूनतम मज़दूरी से कम क्यों है?
उत्तर:
पालमपुर में खेतिहर मज़दूरों में काम के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा है। इसलिए लोग कम दरों पर मज़दूरी करने को तैयार हो जाते हैं। न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम का ग्रामीण क्षेत्रों में लागू न किया जाना भी एक प्रमुख कारण है। इसलिए गरीब मज़दूरों को जो कुछ भी मज़दूरी दी जाती है उसे वे अपना भाग्य समझकर स्वीकार कर लेते हैं।

प्रश्न 7.
अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मज़दूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मज़दूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु-रूप में? | क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज़ में हैं?
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में रामबचन और जनार्दन दो खेतिहर मजदूर हैं जो एक मकान के निर्माण कार्य में काम करते हैं। इन दोनों को प्रति 90 से 100 रुपये मिलते हैं। यह सत्य है कि उन्हें नकद मजदूरी मिलती है। लेकिन इन्हें नियमित रूप से काम नहीं मिलता क्योंकि बहुत से लोग कम दरों पर काम करने (UPBoardSolutions.com) के लिए राजी हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें कम मजदूरी मिलती है इसलिए वे कर्ज में डूबे हुए हैं। कम मजदूरी के कारण वे बड़ी कठिनाई से परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं।

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प्रश्न 8.
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाता है

  1. बहुविधि फसल उगाना-भूमि के एक ही टुकड़े पर एक वर्ष में कई फसलों को उगाना बहुविध फसल प्रणाली कहलाता है। पालमपुर के सभी किसान वर्ष में कम-से-कम दो फसलें उगाते हैं। पिछले 15-20 वर्ष से अनेक किसान तीसरी फसल के रूप में आलू की खेती कर रहे हैं।
  2. आधुनिक कृषि उपकरणों एवं तकनीक का उपयोग-पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने वाले भारत के पहले किसान थे। इन क्षेत्रों के किसानों ने सिंचाई के लिए नलकूपों, एच.वाई.वी. बीज, रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया। ट्रैक्टर एवं प्रैशर का भी प्रयोग किया गया। जिससे जुताई एवं फसल की (UPBoardSolutions.com) कटाई आसान हो गई। उन्हें अपने प्रयासों में सफलता मिली और उन्हें गेहूं की अधिक पैदावार के रूप में इसका प्रतिफल मिला। एचवाईवी बीजों की सहायता से पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बहुत सा अधिशेष गेहूँ बाजार में बेचने के लिए होता है।

प्रश्न 9.
एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर:
भूमि को मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है। एक हेक्टेयर 100 मीटर की भुजा वाले वर्गाकार भूमि के टुकड़े
के क्षेत्रफल के बराबर होता है। एक हेक्टेयर भूमि की मात्रा एक परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत कम है। इसलिए उसके द्वारा अपने जीवन यापन के लिए किए गए कार्य का ब्यौरा निम्नलिखित हो सकता है

  1. गाँव के धनी लोगों के पास नौकरी कर सकता है।
  2. गैर-कृषि कार्यों जैसे-पशुपालन, मछलीपालन और मुर्गीपालन आदि का कार्य कर सकता है।
  3.  खेतिहर मजदूर के रूप में बड़े किसानों और जमींदारों के पास कार्य कर सकता है।
  4. अपने परिवार के सदस्यों को रोजगार के लिए शहरों में भेज सकता है।

प्रश्न 10.
मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:

  1.  मझोले और बड़े किसानों के पास अधिक भूमि होती है अर्थात् उनकी जोतों का आकार बड़ा होता है जिससे वे अधिक उत्पादन करते हैं।
  2. अधिक उत्पादन होने से वे इसे बाजार में बेचकर धनलाभ प्राप्त करते हैं। इस धन का प्रयोग वे उत्पादन की आधुनिक विधियों को अपनाने में करते हैं।
  3.  इनकी पूँजी छोटे किसानों से भिन्न होती है क्योंकि छोटे किसानों के पास भूमि कम होने के कारण उत्पादन उनके पालन-पोषण के लिए भी कम बैठता है।
  4. उन्हें आधिक्य प्राप्त न होने के कारण बचते नहीं होती हैं इसलिए खेती के लिए उन्हें पूँजी बड़े किसानों या साहूकारों से उधार लेकर पूरी करनी पड़ती है जिस पर उन्हें काफी ब्याज चुकाना पड़ता है जो उन्हें ऋणग्रस्तता के चंगुल में फँसा देता है।

प्रश्न 11.
सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
उत्तर:
सविता ने तेजपाल सिंह से १ 3000, 24 प्रतिशत की दर पर चार महीने के लिए उधार लिया, जो कि ऊँची ब्याज दर है। सविता एक कृषि मजदूर के रूप में कटाई के समय 35 रुपए प्रतिदिन की दर पर उसके खेतों में काम करने को भी सहमत होती है। तेजपाल सिंह द्वारा सविता से लिया (UPBoardSolutions.com) जाने वाला ब्याज बैंक की अपेक्षा बहुत अधिक था। यदि सविता इसकी अपेक्षा बैंक से उचित ब्याज दर पर ऋण ले पाती तो उसकी हालत निश्चय ही इससे अच्छी होती।

प्रश्न 12.
अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 80 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए (वैकल्पिक)।
उत्तर:
अपने क्षेत्र के कुछ वयोवृद्ध व्यक्तियों से बात करने के बाद पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों से मुझे इस बात का पता चला कि 30 वर्ष पहले कृषि करने के पुराने तरीके कैसे थे। यह जानकारी इस प्रकार है।

  1.  प्राचीनकाल में सिंचाई के लिए कुओं का उपयोग किया जाता था। कुएँ से बैल के माध्यम से रहट का उपयोग करके पानी को ऊपर खींचकर सिंचाई जाती थी।
  2. सिंचाई के लिए पानी की प्राप्ति रहट द्वारा की जाती थी।
  3. तालाब और नदी-नाले के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था।
  4. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सिंचाई की पद्धति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए गए और पम्पिंग सैट तथा नलकूपों का उपयोग पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए किया जाने लगा।
  5. विशेष रूप से नदियों से नहरें निकालकर सिंचाई की व्यवस्था का जाल बुना गया।

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प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।
उत्तर:
हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले गैर कृषि उत्पादन कार्य इस प्रकार हैं

  1. खेतों में उत्पादित सब्जी, फलों को शहरी बाजारों में बेचा जाना।
  2. दूर गाँवों से एकत्र करके शहरों में आपूर्ति करना।
  3. सिलाई, कढ़ाई, प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना करना।
  4.  शिक्षित लोगों को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना।
  5. पशुपालन (Dairy), मुर्गीपालन (Poultry) और मछली पालन आदि।
  6. परिवहन संबंधित कार्य अर्थात् यातायात के लिए रिक्शा, टाँगा, टैम्पो, जीप, बस और ट्रक का उपयोग किया जाना।।
  7.  कुछ शिक्षित लोगों द्वारा नर्सरी पाठशाला और प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठशाला की स्थापना करना।
  8.  गन्ने से गुड़ और चीनी का तैयार किया जाना।

प्रश्न 14.
गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
गाँव में और अधिके गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं|

  1.  गाँव में अच्छे पब्लिक स्कूल खोलकर गाँव वालों की शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया जा सकता है।
  2. सरकार द्वारा गाँव में उद्योग-धन्धे स्थापित किए जा सकते हैं।
  3.  परिवहन का विकास करके गाँव और शहरों के बीच संकल्प और उत्तम सड़क बनवाकर गाँव से कृषि का अतिरिक्त उत्पादन शहरों में भेजा जा सकता है।
  4.  इसी प्रकार शहरों से गाँव के लिए आवश्यक वस्तुएँ मँगाई जा सकती हैं।
  5.  संचार के विकास द्वारा गाँव को देश और विदेश से जोड़ा जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर में किन-किन चीजों की दुकानें थी?
उत्तर:
पालमपुर में छोटे-छोटे जनरल स्टोरों में चावल, गेहूँ, चाय, तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथपेस्ट, बैट्री, मोमबत्तियाँ, कॉपियाँ, पेन, पेंसिल आदि बेचते थे। यहाँ के दुकानदार शहरों के थोक बाजारों से वस्तुएँ खरीदकर लाते थे और उसे गाँव में बेचते थे।

प्रश्न 2.
पालमपुर गाँव के लोग बाजार करने कहाँ जाते थे?
उत्तर:
पालमपुर गाँव के लोग वस्तुओं को खरीदने के लिए तथा अपना अनाज बेचने के लिए शाहपुर कस्बे की ओर जाते थे।

प्रश्न 3.
पालमपुर की मुख्य क्रिया क्या थी?
उत्तर:
पालमपुर के लोग प्रमुखतः कृषि कार्य करते थे।

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प्रश्न 4.
पालमपुर में कम्प्यूटर कक्षा का परिचालक कौन है?
उत्तर:
पालमपुर में करीम कम्प्यूटर कक्षा का परिचालन करता था।

प्रश्न 5.
पालमपुर के निकटतम बड़े गाँव एवं छोटे कस्बे का नाम बताइए।
उत्तर:
पालमपुर से 3 किमी. दूरी पर स्थित रायगंज एक बड़ा गाँव है जबकि शाहपुर इसका निकटतम कस्बा है।

प्रश्न 6.
पालमपुर में उपलब्ध परिवहन के साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
यहाँ उपलब्ध प्रमुख परिवहन के साधन हैं-बैलगाड़ी, ताँगा, बुग्गी, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक और मोटर साइकल।

प्रश्न 7.
पालमपुर में कितने स्कूल एवं स्वास्थ्य केन्द्र हैं?
उत्तर:
पालमपुर में दो प्राथमिक एवं एक उच्च प्राथमिक स्कूल है जबकि यहाँ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा एक निजी डिस्पेंसरी है।

प्रश्न 8.
पालमपुर गाँव में जनसंख्या की संरचना क्या है?
उत्तर:
इस गाँव में 450 परिवार हैं, जो विभिन्न वर्गों एवं जातियों से सम्बन्धित हैं। 80 परिवार उच्च जातियों से सम्बन्धित हैं। अनुसूचित जनजाति एवं दलित का कुल जनसंख्या में हिस्सा 1/3 है। जबकि शेष हिस्सा अन्य जातियों का है।

प्रश्न 9.
भारत के किस राज्य में उर्वरक का सर्वाधिक उपयोग होता है?
उत्तर:
भारत के पंजाब राज्य में कृषि के अंतर्गत् उर्वरक का सर्वाधिक प्रयोग होता है।

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प्रश्न 10.
वह क्या उद्देश्य है? जिनके लिए किसानों को रुपयों की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
कुछ किसानों को रुपयों की आवश्यकता अपनी आधारभूत आवश्यकताओं जैसे—खाना, कपड़ा और मकान के लिए होती है। अन्य आवश्यकता कृषि आगतों जैसे—बीज, पानी, पशुओं और कृषि उपकरणों जैसे-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर आदि के लिए होती है। बहुत कम उद्यमी (UPBoardSolutions.com) किसानों को रुपये की आवश्यकता निवेश जैसे-व्यवसाय का प्रारंभ, परिवहन का क्रय, उपकरण-जीप, टैम्पो, ट्रक और नलकूपों की स्थापना आदि के लिए होती है।

प्रश्न 11.
क्या आप सहमत हैं कि पालमपुर गाँव में कृषि भूमि का वितरण असमान है?
उत्तर:
हाँ. हम सहमत हैं कि पालमपुर गाँव में भूमि का वितरण असमान है, क्योंकि अधिक संख्या में छोटे किसानों के पास 2 एकड़ से भी कम भृमे है। बड़े एवं मझोले किसानों के पास 2 एकड़ से अधिक भूमि है। कुछ किसान तो अब भी भूमिहीन हैं।

प्रश्न 12.
किसानों को श्रम कौन प्रदान करता है?
उत्तर:
गाँव के भूमिहीन लोग और अपर्याप्त भूमि वाले किसान बड़े और मध्यम किसानों से श्रम प्रदान करते हैं। छोटे किसानों
की उनके परिवार द्वारा सहायता मिलती है।

प्रश्न 13.
कार्यशील पूँजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा जरूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता होती है। कच्चा
माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।

प्रश्न 14.
स्थायी पूंजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
ओजारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औजार जैसे किसान का हल से लेकर परिष्कृत मशीनें जैसे-जेनरेटर, टग्बाइन, कंप्यूटर आदि आते हैं। आजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजो कहा जात है।

प्रश्न 15.
हरित क्रांति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1960 के दशक के उपरान्त कुछ क्षेत्रों के किसानों ने आधुनिक ढंग से कृषि करना शुरू कर दिया जिससे फसलों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हो गई। जिसे हरित क्रांति का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 16.
कृषि मजदूर किसे कहते हैं?
उत्तर:
गाँव के वे लोग जो या तो भूमिहीन परिवारों से संबंध रखते हैं या छोटे भूखंडों पर खेती करने वाले परिवारों से संबंध रखते हैं। उन्हें नकदी या किसी अन्य रूप में केवल मजदूरी ही मिलती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित है?
उत्तर:
कृषि कार्य में लगे हुए सभी लोगों के पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है। पालमपुर में लगभग 150 परिवार हैं जो भूमिहीन हैं और दलित वर्ग से संबंधित हैं। 240 परिवार 2 हेक्टेयर से कम भूमि पर खेती करते हैं। यहाँ 60 परिवार हैं। जिनके पास कृषि के लिए 2 एकड़ से अधिक भूमि है। बहुत कम किसानों के पास 10 हेक्टेयर भूमि है। यह प्रदर्शित करता है कि पालमपुर में भूमि का वितरण असमान है। इस प्रकार की स्थिति संपूर्ण भारत में पाई जाती है।

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प्रश्न 2.
खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर:
खेतिहर श्रमिक गरीब हैं क्योंकि|

  1.  ये श्रमिक भूमिहीन हैं या इनके पास भूमि का बहुत छोटा भाग है।
  2. वर्ष के दौरान उनके पास कोई कार्य नहीं है।
  3. इन मजदूरों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी प्राप्त नहीं होती है।
  4.  इनके परिवार बड़े होते हैं।
  5.  ये अशिक्षित, अस्वस्थ एवं अकुशल होते हैं।
  6. ये गरीब होते हैं, गरीबी ही गरीबी को जन्म देती है।

प्रश्न 3.
पालमपुर में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर में सारी भूमि जुताई के अंतर्गत है। भूमि का कोई भी टुकड़ा बंजर नहीं छोड़ा गया है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में 3 अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं। बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाता है। इसके बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती की जाती है।
सर्दी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूं बोया (UPBoardSolutions.com) जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है।
गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बना कर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है।

प्रश्न 4.
पालमपुर में कृषि-कार्य हेतु श्रमिक कौन उपलब्ध कराता है?
उत्तर:
कृषि में बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवार सहित अपने खेतों में काम करते हैं। किन्तु मध्यम या बड़े किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए श्रमिकों को मजदूरी देनी पड़ती है। इन श्रमिकों को कृषि मजदूर कहा जाता है। ये कृषि मजदूर या तो भूमिहीन परिवारों से होते हैं या छोटे खेतों पर काम करने वाले परिवारों में से।
किसानों के विपरीत इन लोगों को खेत में उगाई गई फसल पर कोई अधिकार नहीं होता। इन्हें किसान द्वारा काम के बदले में पैसे या किसी अन्य प्रकार से मजदूरी मिलती है जैसे कि फसल। एक कृषि मजदूर दैनिक आधार पर कार्यरत हो सकता है या खेत में किसी विशेष काम के लिए जैसे कि कटाई, या फिर पूरे वर्ष के लिए भी।

प्रश्न 5.
डाला और रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर:
पालमपुर निवासी डाला और रामकली भूमिहीन खेतीहर श्रमिक हैं। वे पालमपुर में दैनिक मजदूरी करते हैं। उन्हें निरंतर काम की खोज में रहना पड़ता है। सरकार द्वारा खेतीहर श्रमिक के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी 60 रुपए प्रतिदिन है।
किन्तु डाला और रामकली को केवल 35-40 रुपए ही मिलते हैं। पालमपुर के खेतीहर श्रमिकों में बहुत अधिक स्पर्धा है इसलिए लोग कम दरों पर मजदूरी के लिए तैयार हो जाते हैं। डाला और रामकली दोनों ही गाँव के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं।

प्रश्न 6.
कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से क्या हानि होती है?
उत्तर:
रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति घट जाती है। रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल, नदियों व झीलों का पानी प्रदूषित हो जाता है। रासायनिक खाद के निरंतर प्रयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है। भू-उर्वरता एवं भूमिगत जल जैसे (UPBoardSolutions.com) पर्यावरणीय संसाधन बनने में वर्षों लग जाते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद इनकी पुनस्र्थापना कर पाना बहुत कठिन होता है। कृषि के भावी विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए।

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प्रश्न 7.
पालमपुर गाँव की आर्थिक क्रियाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव में निम्नलिखित आर्थिक क्रियाएँ संपादित की जाती हैं

  1. गन्ने काटने की मशीन लगाना।
  2.  दुकानदार का कार्य करना।
  3. परिवहन संचालक का कार्य करना।
  4. लघु स्तरीय निर्माण कार्य।
  5. कृषि एक मुख्य आर्थिक क्रिया है।
  6. कृषि मजदूर के रूप में कार्य करना।
  7. दर्जी, धोबी, मोची, सुनार आदि का कार्य करना।
  8. मुर्गीपालन एवं डेयरी का कार्य अपनाना।

प्रश्न 8.
पालमपुर की गैर-कृषि क्रियाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर की गैर-कृषि क्रियाएँ इस प्रकार हैं

  1. डेयरी स्वामी के रूप में कार्य करना ।
  2. छोटी निर्माण फर्म को चलाना।
  3. दुकानदार के रूप में कार्य करना
  4.  परिवहन संचालक के रूप में कार्य करना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर में आधारभूत विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव में बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवा, सिंचाई की सुविधाओं से संपन्न एक विकसित गाँव है। बिजली से खेतों में स्थित सभी नलकूपों एवं विभिन्न प्रकार के छोटे उद्योगों को विद्युत ऊर्जा मिलती है। बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार द्वारा प्राथमिक व उच्च विद्यालय दोनों खोले गए हैं। लोगों का इलाज करने के लिए एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी दवाखाना है। गाँव के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की उत्पादन क्रियाएँ की जाती हैं जैसे कि खेती, लघु स्तरीय विनिर्माण, परिवहन, (UPBoardSolutions.com) दुकानदारी आदि। पालमपुर का प्रमुख क्रियाकलाप कृषि है। 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।
बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाती है। इसके बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती का जाती है। सरदी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूं बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजर में बेच दिया जाता है।

गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बनाकर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में तीन अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं।
बहुत से लोग गैर-कृषि क्रियायों से जुड़े हुए हैं। जैसे कि डेयरी, विनिर्माण, दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी पालन, सिलाई, शैक्षिक गतिविधियाँ आदि। किसान इन कार्यों को उस समय कर सकते हैं जब इन लोगों के पास खेतों में करने के लिए कोई काम न हो या वे बेरोजगार हों। यह उनकी आर्थिक दशा सुधारने में सहायता करेगा।

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प्रश्न 2.
क्या रासायनिक उर्वरकों को प्रयोग हानिकारक है? क्या रसायन एवं उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर:
निःसंदेह, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग वर्ष के दौरान अनाजों की उत्पादकता में वृद्धि करता है, लेकिन यह मिट्टी की प्राकृतिक उत्पादकता को कम करता है। अगले वर्ष उत्पादन को बनाए रखने के लिए अधिक रासायनिक उर्वरक की
आवश्यकता होती है जो दोबारा मिट्टी की उपजाऊपन को कम करती है। रासायनिक उर्वरक उत्पादन की लागत में भी वृद्धि करते हैं, क्योंकि इसका उपयोग अच्छी सिंचाई सुविधा, कीटनाशक आदि के साथ किया जाता है।

नलकूपों का अधिक उपयोग धरती के प्राकृतिक जल स्तर को कम कर देता है, जिसे वापस प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। रसायन एवं उर्वरक के अधिक उपयोग से भूमि अपनी उर्वरता नहीं बनाए रख सकती। पंजाब में निरंतर रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से पैदावार में कमी हुई है। अब किसानों को समान उत्पादन प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरक एवं अन्य साधनों के उपयोग के (UPBoardSolutions.com) लिए बाध्य किया जा रहा है। यह उत्पादन लागत में भी वृद्धि करता है।

रासायनिक उर्वरक खनिज प्रदान करते हैं जो पानी में घुल जाता है और शीघ्र ही पेड़-पौधों को उपलब्ध होता है किंतु यह भूमि में अधिक समय तक नहीं रहता। यह भूमि, जल, नदियों एवं झीलों को दूषित करता है। रासायनिक उर्वरक मिट्टी में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े एवं सूक्ष्म बैक्टिरिया को भी मार सकता है। इसका अर्थ है कि मिट्टी की उर्वरता पहले से कम हो गई है।

प्रश्न 3.
पालमपुर में होने वाली गैर-कृषि क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उन क्रियाओं को गैर कृषि क्रियाएँ कहते हैं जो कृषि के अतिरिक्त होती हैं जैसे-दुकानदारी, विनिर्माण, डेयरी, परिवहन, मुर्गीपालन, शैक्षिक गतिविधि आदि। पालमपुर में प्रचलित गैर कृषि गतिविधियों का विवरण इस प्रकार है

  1. परिवहन : तेजी से विकसित हो रहा क्षेत्र–पालमपुर और रायगंज के बीच की सड़क पर बहुत से वाहन चलते हैं जिनमें रिक्शा वाले, तांगे वाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक चालक, पारंपरिक बैल गाड़ी एवं बुग्गी (भैंसागाड़ी) शामिल हैं। इस काम में लगे हुए कई लोग अन्य लोगों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुँचाने और वहाँ से उन्हें वापस लाने का काम करते हैं जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। वे लोगों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते हैं।
  2.  पालमपुर में लघुस्तरीय विनिर्माण का एक उदाहरण-इस समय पालमपुर में 50 से कम लोग विनिर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इसमें बहुत साधारण उत्पादन क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है और यह छोटे स्तर पर किया जाता है। ये कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से घर में या खेतों (UPBoardSolutions.com) में किया जाता है। मजदूरों को कभी-कभार ही किराए पर लिया जाता है।
  3.  दुकानदार–पालमपुर में बहुत कम लोग व्यापार (वस्तु विनिमय) करते हैं। पालमपुर के व्यापारी दुकानदार हैं जो शहरों के थोक बाजार से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और उन्हें गाँव में बेच देते हैं। उदाहरणतः गाँव के छोटे जनरल स्टोर चावल, गेहूँ, चीनी, चाय, तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथ पेस्ट, बैट्री, मोमबत्ती, कॉपी, पेन, पेन्सिल और यहाँ तक कि कपड़े भी बेचते हैं।
  4. डेयरी–पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैसों को कई तरह की घास, बरसात के मौसम में उगने वाली ज्वार और बाजरा आदि खिलाते हैं। दूध को पास के बड़े गाँव रायगंज में बेच दिया जाता है।

Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 are helpful to complete your homework.

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