UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 बात (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 बात (गद्य खंड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये
(1) यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जलबात का वर्णन करते, किन्तु दोनों विषयों में से हमें (UPBoardSolutions.com) एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। हम तो केवल उसी बात के ऊपर दो-चार बातें लिखते हैं, जो हमारे-तुम्हारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्थ भाव को प्रकाशित करती रहती हैं।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति किसके माध्यम से करते हैं?
(4) भूगोलवेत्ता किसका अध्ययन करता है?
(5) वैद्य किस बात का वर्णन करते हैं? |
[शब्दार्थ-सहवर्ती = साथ रहनेवाला, सहचर। वेत्ता = ज्ञाता, जाननेवाला। बात = वचन, शरीरस्थ वायु, वायु । जल-बात = जलवायु । प्रयोजन = मतलब। संभाषण = वार्तालाप । हृदयस्थ = हृदय में स्थित ।]

उत्तर –

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। यहाँ लेखक बात की महत्ता बताते हुए कहता है कि जिस प्रकार का व्यक्ति होता है वह उसी प्रकार की बात करता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – लेखक इस तथ्य से अवगत कराते हुए कहता है कि एक व्यक्ति का जो स्वभाव होगा अथवा जो जिस प्रकार का कार्य करेगा वह स्वाभाविक रूप से उसी प्रकार के वातावरण में उसी कार्य के अनुसार बुद्धिवाला हो जायेगा, फिर वह उसी से सम्बन्धित बात करेगी। उदाहरणस्वरूप यदि हम वैद्यराज को लें तो अपने स्वभावानुसार एवं कार्य के अनुरूप किसी रोग जैसे पित्त और उससे सम्बन्धित विषयों पर बात करेगा। यदि कोई भूगोल का ज्ञाता होगा तो वह अपने स्वभावानुसार (UPBoardSolutions.com) किसी देश की जलवायु अथवा प्राकृतिक विषयों पर बात करेगा। परन्तु लेखक कहता है कि दोनों विषयों में बात कहने का हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। हम लोग उसी विषय पर बात लिखते अथवा करते हैं जो हृदय की भावनाओं को वाणी के माध्यम से प्रकाशित करती है। हमारे मन की जो स्थिति है, जो भावनाएँ हमारे हृदय में प्रतिपल उठती हैं उसे यदि हम मुख से, वाणी के माध्यम से दूसरे को अवगत करायें तो वह ‘बात’ कहलाती है।
  3. हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति बात के माध्यम से करते हैं।
  4. भूगोलवेत्ता किसी देश के जल-बात का वर्णन करते हैं। |
  5. वैद्य कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते हैं।

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(2) जब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो ‘गात माँहि बात करामात है।’ नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली (UPBoardSolutions.com) अथच लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइये तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइयेगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, खोटी बात, टेढ़ी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बाते ही तो हैं।
प्रश्न
(1)  गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) “गात माँहि बात करामात है।” का क्या तात्पर्य है?
(4) कौन-सी बात चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है?
(5) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इसमें लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक नहीं, बल्कि ईश्वर तक भी है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक बात की महत्ता दिखाते हुए कहता है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक ही सीमित नहीं, परमेश्वर तक इसके प्रभाव से बच नहीं पाये। यद्यपि परमेश्वर के विषय में कहा गया है कि उसकी न वाणी है, न हाथ हैं, न पैर हैं, बल्कि वह तो निराकार निरंजन है तथापि उसे बिना वाणी का वक्ता कहा गया है। जब निराकार ब्रह्म पर भी बात को प्रभाव होता है तो फिर हम शरीरधारी मनुष्यों का तो कहना ही क्या है? हमारे शरीर में तो बात (भाषण शक्ति अथवा वायु) का (UPBoardSolutions.com) ही चमत्कार है। अनेक शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोष आदि जितना भी साहित्य है, वह सब बात का ही विस्तार है। इन विविध प्रकार के ग्रन्थों में एक से बढ़कर एक बातें पायी जाती हैं। एक-एक बात ऐसी अमूल्य है कि जो हमारे मन, बुद्धि और चित्त को अपूर्व आनन्दमयी दशा में पहुँचा देती है। इन ग्रन्थों की बातें ही लोक तथा परलोक की सब बातों का ज्ञान कराती हैं। लेखक कहता है कि बात का रूप-रंग नहीं होता। कोई कह नहीं सकता कि अमुक बात ऐसी है परन्तु यदि बुद्धि से विचार कर देखा जाय तो हम पायेंगे कि जैसे भगवान् के अनेक रूप होते हैं, उसी प्रकार बात के भी अनेक रूप होते हैं, जैसे बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, मीठी, कड़वी, भली, बुरी, सुहाती और लगती बात आदि कैसी भी हों ये सब बात के ही रूप हैं।
  3. “गात माँहि बात करामात है।” का तात्पर्य है कि हमारे शरीर में तो बात का ही चमत्कार है।
  4. नानाशास्त्र, पुराण, इतिहास काल आदि की बातें चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है।
  5. ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का अभिप्राय बात का स्वरूपगत वैभिन्नता को दर्शाना है।

(3)  सच पूछिये तो इस बात की भी क्या ही बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफ-उल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी-सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं, इसी से अन्य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। फिर क़ौन न मानेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को लोग निराकार (UPBoardSolutions.com) कहते हैं, तो भी इसका सम्बन्ध उसके साथ लगाये रहते हैं। वेद, ईश्वर का वचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गोड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं जो प्रत्यक्ष मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलम्बियों ने ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ वाली बात मान रखी है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) निराकार परमात्मा का सम्बन्ध बात से कैसे है?
(4) मानव जाति समस्त जीवधारियों में क्यों शिरोमणि है?
(5) ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ नामक हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्ध से उद्धृत किया गया है। इसके अन्तर्गत लेखक ने बात की महत्ता का वर्णन किया है और कहा है कि बात के कारण ही जन मानस में व्यक्ति की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – वस्तुत: बात का महत्त्व इतना अधिक है कि उसका वर्णन करना कठिन हो जाता है। यदि बात के महत्त्व को लेखनीबद्ध किया जाये तो एक ग्रन्थ बन सकता है। संसार में मानव को समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है। उसका मुख्य कारण भी यह बात ही है। मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो बात करने में चतुर है। इसी कारण वह सभी प्राणियों का सिरमौर बना है। मानव की भाषा में तोता-मैना आदि पक्षी थोड़ा समझने योग्य बातों का उच्चारण कर लेते हैं, जिसके कारण वे आकाश में विचरण करनेवाले अन्य पक्षियों की तुलना में श्रेष्ठ समझे जाते हैं और इसीलिए उनका जनसामान्य में आदर किया जाता है। इतना सब कुछ होते हुए भी भला कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो बात (भाषा) की महत्ता को स्वीकार नहीं (UPBoardSolutions.com) करेगी। बात (भाषा) की महत्ता के कारण ही लोग भगवान् का सम्बन्ध उससे जोड़ते हैं। यद्यपि लोग भगवान् को बिना आकार वाला (अशरीर) मानते हैं किन्तु लोग उसे फिर भी श्रेष्ठ उपदेशवक्ता कहकर उसकी सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करते हैं। लेखक बात की महत्ता का वर्णन करते हुए यह कहता है कि यदि यह कहा जाय कि भगवान् तो निराकार होने के कारण सम्भाषण (उपदेश) कर ही नहीं सकते तो वह मनुष्य से भी निम्न श्रेणी में आ जाते हैं क्योंकि मनुष्य तो सम्भाषण करने में समर्थ है। अत: बात (सदुपदेश) ही भगवान् को मनुष्य से श्रेष्ठ बनाती है। इसीलिए शायद सभी धर्मावलम्बी भगवान् का सम्बन्ध भाषण-शक्ति से अवश्य जोड़ते हैं, चाहे वे उसके निराकार रूप के समर्थक हों अथवा साकार रूप के।
  3. हिन्दू समाज में वेदों को ईश्वर का वचन कहा जाता है साथ ही ईश्वर को निराकार कहा जाता है।
  4. बात का प्रभाव के कारण मानव जाति जीवधारियों में शिरोमणि है।
  5. ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का अभिप्राय प्रत्यक्ष मुख के बिना बात से स्थित स्पष्ट हो जाना है।

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(4) बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति-वैर, सुख-दु:ख, श्रद्धा-घृणा, उत्साह-अनुत्साह आदि जितनी उत्तमता और सहजता बात के द्वारा विदित हो सकते हैं, दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं । घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सहारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो, जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है। हमारे तुम्हारे भी सभी काम (UPBoardSolutions.com) बात पर ही निर्भर करते हैं। ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ बात ही से पराये अपने और अपने पराये हो जाते हैं। मक्खीचूस उदार तथा उदार स्वल्पव्ययी, कापुरुष युद्धोत्साही एवं युद्धप्रिय शान्तिशील, कुमार्गी, सुपथगामी अथच सुपन्थी, कुराही इत्यादि बन जाते हैं।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) लाखों कोस का समाचार कौन बतला सकता है?
(4) पाँच वाक्यों में बात का महत्त्व लिखिए।
(5) ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय स्पष्ट कीजिए। |

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के पाठ ‘बात’ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने वाणी के महत्त्व को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित पद्यांशों की व्याख्या – लेखक बात के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि बात का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। बात कहने के ढंग से ही उसका प्रभाव घटता अथवा बढ़ता है।‘निश्चय ही हमारे बात करने के ढंग से हमारा प्रत्येक कार्य प्रभावित होता है। बात (UPBoardSolutions.com) के प्रभावशाली होने पर कवि अथवा चारण, राजाओं से पुरस्कार में हाथी तक प्राप्त कर लेते थे किन्तु कटु बात कहने से राजाओं द्वारा लोग हाथी के पाँव के नीचे कुचल भी दिये जाते थे। यह बात भी सिद्ध है कि बात अर्थात् वायु-प्रकोप से ‘हाथीपाँव’ नामक रोग भी हो जाता है।” किसी की वाणी से प्रभावित होकर बड़े-बड़े कंजूस भी उदार हृदयवाले बन जाते हैं और परिश्रम से अर्जित अपनी सम्पत्ति परोपकार के लिए अर्पित कर देते हैं। इसके विपरीत कटु वाणी के प्रभाव से उदार-हृदय व्यक्ति भी अपने साधनों को समेट लेता है। युद्ध-क्षेत्र में चारणों की ओजपूर्ण वाणी सुनकर कायरों में भी वीरता का संचार हो जाता है और यदि बात लग जाय तो युद्ध चाहनेवाला व्यक्ति भी शान्तिप्रिय बन जाता है। बात के प्रभाव से बुरे रास्ते पर चलनेवाला व्यक्ति सन्मार्ग पर चलने लगता है (UPBoardSolutions.com) और बात की शक्ति-द्वारा सन्मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति भी दुष्टों-जैसा व्यवहार करने लगता है। तात्पर्य यह है कि बात कहने का ढंग और शब्दों का प्रयोग मनुष्य पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालता है।
  3. लाखों कोस को समाचार बात बतला सकता है।
  4. बात का महत्त्व –
    • बात के अनेक काम देखने में मिलते हैं?
    • बात के द्वारा कोई भी भाव सहजता एवं सरलता से विदित हो सकता है।
    • लाखों कोस का समाचार मुख या लेखनी से निर्गत बात बतला सकती है।
    • हम डाकघर अथवा तारघर के सहारे दूर की बात जान सकते हैं।
    • सभी काम बात पर ही निर्भर करते हैं।
  5. ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय है अच्छी बात से पुरस्कार स्वरूप हाथी की प्राप्ति होती है और बुरी बात पर हाथी के पाँव के नीचे कुचला जा सकता है।

(5)  बात का तत्त्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात गढ़ सकना भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनन्द के आगे सारा संसार तुच्छ हुँचता है। बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठीमीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, (UPBoardSolutions.com) सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के’तूतू’, ‘पूसी-पूसी’ इत्यादि बातें कह दो तो भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान् की बात का असर न हो।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। |
(3) बालकों की बातें कैसी होती हैं?
(4) इस अवतरण में पाषाण खण्ड से क्या आशय है?
(5) विद्वानों एवं कवियों का जीवन कैसे बीतता है?

उत्तर – 

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबन्ध से उधृत है। इस गद्यावतरण में लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बात कहने की क्षमता यद्यपि सब में होती है किन्तु ‘बात’ को सही ढंग से व्यक्त कर पाना या दूसरों की बातों को समझ पाना सभी के वश की बात नहीं होती।
  2. रेखांकित अंश की व्याख्या – विद्वानों की बात का तात्पर्य समझ पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सरल काम नहीं है। साथ ही साथ दूसरों को प्रभावित कर सकनेवाली बात भी गढ़कर कह देना साधारण मनुष्यों का काम नहीं है। संसार में बड़े-बड़े ज्ञानियों एवं कवियों का जीवन बात के तात्पर्य को समझने और समझाने में ही बीत जाता है। सुहृदगणों की बात में जो आनन्द मिलता है उसके (UPBoardSolutions.com) आगे सारा संसार फीका पड़ जाता है। बालकों की तोतली बोलियों में, सुन्दर रमणियों की मीठी, प्यारी-प्यारी बातों में, कवियों की रसीली उक्तियों में और सुन्दर वक्ताओं की प्रभावशाली सशक्त बातों में जो आकर्षण होता है वह सभी के चित्त को मुग्ध कर देता है। जो इससे प्रभावित नहीं होते वे पशु ही क्यों पत्थर की शिला की भाँति शुष्क और कठोर होते हैं। |
  3. बालकों की बातें सुन्दर रमणियों की मीठी, प्यारी-प्यारी होती हैं।
  4. बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की प्यारी मीठी बातें, कवियों की रसीली बातें जिनके हृदय को प्रभावित न करे उन्हें पाषाण खण्ड कहते हैं।
  5. विद्वानों एवं कवियों का जीवन बात ही को समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं।

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(6) ‘मर्द की जबान’ (बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। आज जो बात है कल ही स्वार्थान्धता के वश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलम्ब की सम्भावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना नीति-विरुद्ध नहीं है। पर कब? जात्युपकार, देशोद्धार, प्रेम-प्रचार आदि के समय न कि पापी पेट के लिए।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने किसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना है?
(4) ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहने से क्या तात्पर्य है?
(5) बात के ढंग का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना किस प्रकार नीति विरुद्ध नहीं है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘बात’ पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं। पं० प्रतापनारायण मिश्र ने प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया है कि प्राचीन काल में हमारे यहाँ के लोग बात के पक्के होते थे, किन्तु आजकल स्वार्थ में अन्धे लोग तुरन्त बात बदल देते हैं। |
  2. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कथन है कि आजकल के भारत के अनेक कुपुत्रों ने यह तरीका अपना रखा है कि आदमी की जवान और गाड़ी का पहिया तो चलते ही रहते हैं अर्थात् गाड़ी का पहिया जिस प्रकार स्थिर नहीं रहता उसी प्रकार जबाने की स्थिर रहना या बात का पक्का होना आवश्यक नहीं है। यह कथन उन्हीं स्वार्थी लोगों का है जिनके लिए जाति, देश और सम्बन्धों का कोई महत्त्व नहीं होती। ऐसे लोगों की आज की जो बात है कल ही वह स्वार्थवश मालिक के मन के अनुसार बदलने (UPBoardSolutions.com) में थोड़ी भी देर नहीं लगाते हैं।
    लेखक आगे कहता है कि किसी महान् उद्देश्य की साधना या समय आने पर बात के रंग-ढंग या कहने का तरीका बदल लेने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं है। ऐसा मानव जाति की भलाई के समय, देशोद्धार के समय और प्रेम-प्रसंग में ही करना चाहिए अर्थात् यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका का हित छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है। स्वार्थ या पापी पेट को भरने के लिए कभी भी बात नहीं बदलनी चाहिए।
  3. यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका को हितं छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है।
  4. ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहना का तात्पर्य है स्वार्थवश बात बदलने में विलम्ब न लगना है।
  5. जाति उपकार और देशोद्धार के लिए अवसर पड़ने पर बात के कुछ रंग-ढंग को परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है।

प्रश्न 2. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन एवं साहित्यिक परिचय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र को साहित्यिक परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए। अथवा पं० प्रतापनारायण मिश्र को संक्षिप्त साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

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पं० प्रतापनारायण मिश्र
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1856 ई० । मृत्यु-सन् 1894 ई०। पिता-पं० संकटाप्रसाद मिश्र (ज्योतिषी)। जन्म-स्थान-बैजेगाँव (उन्नाव), उ० प्र०। शिक्षा-संस्कृत, बंगला, उर्दू आदि का ज्ञान।
साहित्यिक विशेषताएँ – प्रारम्भिक लेखक होते हुए भी श्रेष्ठ निबन्धों की रचना की । आँख, कान जैसे साधारण विषयों पर | भी सुन्दर निबन्ध रचना।
भाषा-शैली- प्रवाहपूर्ण, हास्य-विनोद का पुट, मुहावरों की चहल-पहल, भाषा में चमत्कार ।
रचनाएँ- 50 से भी अधिक पुस्तकों की रचना। ‘प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली’ (सभी रचनाओं का संग्रह) प्रकाशित हो चुका है।

  • जीवन-परिचय- पं० प्रतापनारायण मिश्र का जन्म उन्नाव जिला के बैजेगाँव में सन् 1856 ई० में हुआ था। इनके पिता पं० संकटाप्रसाद मिश्र एक ज्योतिषी थे। वे पिता के साथ बचपन से ही कानपुर आ गये थे। अंग्रेजी स्कूलों की अनुशासनपूर्ण पढ़ाई इन्हें रुचिकर नहीं लगी । फलत: घर पर ही आपने बंगला, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का अध्ययन किया। लावनीबाजों के सम्पर्क में आकर (UPBoardSolutions.com) मिश्र जी ने लावनियाँ लिख़नी शुरू कीं और यहीं से इनकी कविता का श्रीगणेश हुआ। बाद में आजीवन इन्होंने हिन्दी की सेवा की।
  • कानपुर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन से भी इनका गहरा सम्बन्ध था। वे यहाँ की अनेक सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध थे। इन्होंने कानपुर में एक नाटक-सभा की भी स्थापना की थी। ये भारतेन्दु के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित थे तथा इन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। अपनी हाजिरजवाबी और हास्यप्रियता के कारण वे कानपुर में काफी लोकप्रिय थे। इनकी मृत्यु कानपुर में ही सन् 1894 ई० में हुई।
  • कृतियाँ-मिश्र जी द्वारा लिखित पुस्तकों की संख्या 50 हैं, जिनमें प्रेम-पुष्पावली, मन की लहर, मानस विनोद आदि काव्य-संग्रह; कलि कौतुक, हठी हम्मीर, गो-संकट, भारत-दुर्दशा (नाटक), जुआरी-खुआरी (प्रहसन) आदि प्रमुख हैं। नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा ‘प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली’ नाम से इनकी समस्त रचनाओं का संकलन प्रकाशित हुआ है।
  • साहित्यिक परिचय-प्रतिभा एवं परिश्रम के बल पर अपने 38 वर्ष के अल्प जीवन-काल में ही पं० प्रतापनारायण मिश्र ने हिन्दी-निर्माताओं की वृहन्नयी (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र) में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। कविता के क्षेत्र में ये पुरानी धारा के अनुयायी थे। ब्रजभाषा की समस्या की पूर्तियाँ ये खूब किया करते थे। हिन्दी-हिन्दुस्तान का नारा भी इन्होंने ही दिया (UPBoardSolutions.com) था। मिश्र जी का उग्र और प्रखर स्वभाव उनकी कविताओं की अपेक्षा उनके निबन्धों में विशेष मुखर हुआ। मिश्र जी के निबन्धों में आत्मीयता और फक्कड़पन की सरसता है। इन्होंने कुछ गम्भीर विषयों पर कलम चलायी है जिसकी भाषा अत्यन्त ही संधी और परिमार्जित है। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में आज भी उनके जैसे लालित्यपूर्ण निबन्धकार की अभी बहुत कुछ कमी है। इनके निबन्धों में पर्याप्त विविधता है।
  • भाषा-शैली- मिश्र जी की भाषा मुहावरों और कहावतों से सजी हुई अत्यन्त ही लच्छेदार है जिसमें उर्दू, फारसी, संस्कृत शब्दों के साथ-साथ वैसवाड़ी के देशज शब्दों के भी प्रयोग हुए हैं। इनके निबन्धों की शैली में एक अद्भुत प्रवाह एवं आकर्षण है। इनकी शैली मुख्यत: दो प्रकार की हैं–(1) विनोदपूर्ण तथा (2) गम्भीर शैली । विनोदपूर्ण शैली को उत्कृष्ट कहना ‘समझदार की मौत’ है। गम्भीर शैली में इन्होंने बहुत ही कम लिखा है। यह उनके स्वभाव के बिल्कुल ही विरुद्ध था। ‘मनोयोग’ नामक निबन्ध इनकी गम्भीर शैली का उत्कृष्ट नमूना है।

उदाहरण 

  1. विनोदपूर्ण शैली – (i) “इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात जाती है, बात खुलती है, बात छिपती है, बात अड़ती है, बात जमती है, बात उखड़ती है, हमारे-तुम्हारे भी सभी काम बात पर ही निर्भर हैं।”- बात
  2. गम्भीर शैली – ‘संसार में संसारी जीव निस्संदेह एक-दूसरे की परीक्षा न करें तो काम न चले पर उनके काम चलने में कठिनाई यह है कि मनुष्य की बुद्धि अल्प है। अतः प्रत्येक विषय पर पूर्ण निश्चय सम्भव नहीं है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. पं० प्रतापनारायण मिश्र की भाषा एवं शैली की दो-दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- भाषा की विशेषताएँ-

  1. मिश्र जी ने सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है।
  2. भाषा प्रवाहयुक्त, सरल एवं मुहावरेदार है। शैली की विशेषताएँ–
    • लेखों की शैली संयत एवं गम्भीर है।
    • लेखों में विनोदपूर्ण व्यंग्य तथा वक्रता के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 2. ‘‘बात के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।” इस तथ्य को लेखक ने किस प्रकार सिद्ध किया|
उत्तर –  राजा दशरथ ने वचन के कारण ही अपने प्राण त्याग दिये लेकिन वचन का त्याग नहीं किया। वचन का पक्का व्यक्ति समाज में समादृर होता है।

प्रश्न 3. बातहि हाथी पाइये बातहि हाथीपाँव’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- बात के द्वारा ही व्यक्ति हाथी तक प्राप्त कर सकता है और बात से ही व्यक्ति अपयश का भागी भी हो सकता है। अर्थात् उसे हाथी के पैर के नीचे कुचला भी जा सकता है।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र ने किन पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया?
उत्तर- पं० प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण’ एवं ‘हिन्दुस्तान’ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया।

प्रश्न 5. ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ सूक्ति का अर्थ बताइए।
उत्तर- ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ पर हठ करनेवाले को यह कहके बातों में उड़ायेंगे कि हम लूले-लँगड़े ईश्वर को नहीं मान सकते। हमारा तो प्यारा कोटि काम सुन्दर (UPBoardSolutions.com) श्याम वर्ण विशिष्ट है। ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ का तात्पर्य हाथ-पैर से हीन युवावस्था को प्राप्त है।

प्रश्न 6. आर्यगण अपनी बात का ध्यान रखते थे, इस बात को क्या प्रमाण है?
उत्तर- राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिये लेकिन उन्होंने वचन नहीं छोड़ा।

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प्रश्न 7. ‘बात’ पाठ से मुहावरों की सूची बनाइए।
उत्तर-
गात माँहि बात करामात है।
बातहिं हाथी पाइये बातहिं हाथी पाँव।
मर्द की जबान।
बात-बात में बात।

प्रश्न 8. ‘बात’ पाठ में बात और ईश्वर में क्या साम्य बताया गया है?
उत्तर- बात और ईश्वर में परस्पर साम्य है। वेद ईश्वर का वचन है। कुरानशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं।

प्रश्न 9. प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया गया है?
उत्तर – प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग वचन, कलाम और वर्ड के रूप में किया गया है।

प्रश्न 10. किस प्रकार के व्यक्ति को हमें पाषाणखण्ड समझना चाहिए और क्यों?
उत्तर- बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठी-मीठी और प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातों का जिनके हृदय पर प्रभाव (UPBoardSolutions.com) नहीं पड़ता, उन्हें पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के तू-तू, पूसी-पूसी इत्यादि बातें कह दो तो वे भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं।

प्रश्न 11. ‘बात’ शब्द की गूढ़ता पर तीस शब्द लिखिए।
उत्तर- नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली अथवा लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है, पर बुद्धि दौड़ाइये तो पता चलेगा कि ईश्वर की भाँति इसके अनेक रूप हैं।

प्रश्न 12. ‘बात’ पाठ से 10 सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- वेद ईश्वर का वचन है। निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है। बात के अनेक रूप हैं। बात का तत्त्व समझना आसान काम नहीं है। मर्द की जबान और गाड़ी (UPBoardSolutions.com) का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। बात से ही अपने-पराये और पराये अपने हो जाते हैं। कुरान शरीफ कलामुल्लाह है। होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है। निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है। मर्द की जबान और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता रहता है।

प्रश्न 13. ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर- ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य यह है कि हम दूसरों से बहुत नपी-तुली बात करें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने भारत के कुपुत्रों द्वारा ‘मर्द की जबान’ का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर- लेखक ने भारत के कुपुत्रों द्वारा ‘मर्द की जबान’ को अर्थ बताया है कि आजकल के बहुतेरे भारत के कुपुत्र अपने वचन की तनिक भी परवाह नहीं करते। स्वार्थ के कारण वे अपनी बात तुरन्त बदल देते हैं। इनका मानना है कि ‘मर्द की जबान’ और ‘गाड़ी को पहिया’ सदैव चलता रहता (UPBoardSolutions.com) है अर्थात् गाड़ी के पहिये की तरह मर्द की जबान भी चलायमान है अत: इस जबान से जो कुछ भी कहा जाय, उसे पूरा करना आवश्यक नहीं । हुजूरों की मरजी के अनुसार, इसे चाहे जब बदला जा सकता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं।                         (√)
(ब) निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है।                                    (√)
(स) पं० प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण’ पत्रिका को सम्पादन नहीं किया।  (×)
(द) ‘बात’ के कई रूप हैं।                                                                      (√)             

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प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस युग के लेखक हैं?
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस महान् साहित्यकार को अपना गुरु मानते थे?
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना गुरु मानते थे।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटक-‘कलि-कौतुक’ और ‘हठी हम्मीर’ है।

प्रश्न 6. कलामुल्लाह का क्या अर्थ है?
उत्तर – कलामुल्लाह का अर्थ वचन है।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्य प्रयोग कीजिए –
बात जाती रहना, बात जमना, बात बिगड़ना, बात का बतंगड़ बनाना, बात उखड़ना, बात की बात।

उत्तर – 

  • बात जाती रहना- (बात का महत्त्व न होना)
    राम ने दिनेश को इतना अधिक प्रलोभन दिया फिर भी उसकी बात जाती रही। 
  • बात जमना – (ठीक तरह से बात समझ में आना)
    मैंने उसे बहुत अच्छी तरह से समझाया, जिससे बात जम गयी लगती है।
  • बात बिगड़ना – (बात न बनना)
    मोहन को मैंने बार-बार समझाया था फिर भी बात बिगड़ गयी।
  • बात का बतंगड़ बनाना – (बातों में उलझाना)
    उसने बात का ऐसा बतंगड़ बनाया कि उसके समझ में नहीं आया।
  • बात उखड़ना – (बात न बनना)
    उसके लाख समझाने पर भी बात उखड़ गयी।
  • बात की बात – (प्रसंगवश किसी बात का जिक्र होना)
    मैं उसके साथ किये गये कार्यों का वर्णन नहीं कर रहा हूँ, यह तो बात की बात है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में सनियम सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम बताइएनिराकार, निरवयव, परमेश्वर, धर्मावलम्बी, विदग्धालाप, युद्धोत्साही, स्वार्थान्धता, कवीश्वर, योगाभ्यास।

उत्तर-
निराकार = निर + आकार = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
निरवयव = निरः + अवयव = : + अ = र (विसर्ग सन्धि)
परमेश्वर = परम + ईश्वर = अ + ई = ए (गुण सन्धि)
धर्मावलम्बी = धर्म + अवलम्बी = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
विदग्धालाप = विदग्ध + आलाप = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
युद्धोत्साही = युद्ध + उत्साही = अ + उ = ओ (गुण सन्धि)
स्वार्थान्धता = । स्वार्थ + अन्धता = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
कवीश्वर = कवि + ईश्वर = इ + ई = ई (दीर्घ सन्धि)
योगाभ्यास = योग + अभ्यास = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)

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प्रश्न 3. निम्नलिखित में समास-विग्रह करके समास का नाम भी लिखिएकापुरुष, पाषाणखण्ड, सुपथ, यथासामर्थ्य, अपाणिपादो, कुमार्गी ।

उत्तर  –
कापुरुष कायर पुरुष = कर्मधारय
पाषाणखण्ड = पाषाण का खण्ड = सम्बन्ध तत्पुरुष
सुपथ = सुन्दर रास्ता 
= प्रादि तत्पुरुष
यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार = अव्यययीभाव
अपाणिपादो = नपाणिपादो = 
क् तत्पुरुष
कुमार्गी = कुत्सित मार्गी = कर्मधारय

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(पथ की पहचान)

1. पुस्तकों में है नहीं ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा पुस्तकों में ……………………………………………………………. की जबानी।

शब्दार्थ-बटोही = राहगीर। बाट = रास्ता । पंथी = पथिक। पंथ = मार्ग। सन्दर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘पथ की पहचान’ से उद्धृत है।

प्रसंग – 
इसमें कवि चाहता है कि हमें कोई भी कार्य सोच-विचारकर करना चाहिए। लक्ष्य चुन लेने के बाद उस काम की कठिनाइयों से नहीं घबराना चाहिए।

व्याख्या – 
कवि कहता है कि हमारे जीवन-पथ की कहानी पुस्तकों में नहीं लिखी होती है, वह तो हमें स्वयं ही बनानी पड़ती है, दूसरे लोगों के कथन के अनुसार भी हम अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकते। इसका निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ेगा। इस संसार में अनेक लोग पैदा हुए और मर गये। उन सबकी गणना नहीं की जा सकती, परन्तु कुछ ऐसे कर्मवीर भी यहाँ जन्मे हैं जिनके पदचिह्न मौन भाषा में उनके (UPBoardSolutions.com) महान् कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। उन सभी कर्मठ महापुरुषों ने काम करने से पहले खूब सोच-विचार किया और फिर जी-जान से अपने कार्य में जुटकर सफलता प्राप्त की। अतः हे राहगीर, उनसे प्रेरणा ग्रहण कर अपना मार्ग निश्चित कर ले और तब उस पर चलना शुरू कर।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कार्य करने से पहले सोच-विचार करने की प्रेरणा दी गयी है।
  • सच्चे कर्मवीर बनने को उत्साहित किया गया है।
  • भाषा-सरल तथा खड़ीबोली।
  • शैली-गीत शैली।
  • रस-शान्त।
  • अलंकार-विरोधाभास

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2. यह बुरा है या कि ……………………………………………………………. पहचान कर ले।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रसंग – कवि बताता है कि विवेकपूर्वक किसी कार्य को चुन लेने पर उसके मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों या अन्य कारणों से उसे अधूरा छोड़ देना ठीक नहीं है।

व्याख्या – कवि कहता है कि विवेकपूर्ण कार्य का चुनाव करने के पश्चात् उसकी अच्छाई-बुराई पर सोचना व्यर्थ है-क्योंकि उस पथ को छोड़कर दूसरे पर चलना भी सम्भव नहीं हो सकेगा। कठिनाइयाँ तो हर मार्ग में होती हैं। इसलिए हे पंथी, अपने निश्चित कार्य को श्रेष्ठ समझकर उसे तुरन्त शुरू कर दे। यह कार्य करते समय तुझे आनन्द की अनुभूति होती रहेगी। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि कठिनाइयाँ तुझे ही उठानी पड़ रही हैं। (UPBoardSolutions.com) वास्तविकता यह है कि जीवन में जिसे भी सफलता मिली है, वह अपने कार्य को श्रेष्ठ समझता रहा है। इसलिए तुम भी अपने कार्य को श्रेष्ठ समझो। सोच-विचार करना है तो कार्य का चुनाव करने से पहले किया करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि व्यक्ति को चुने हुए कार्य में तन-मन से जुट जाने की प्रेरणा देता है।
  • भाषा-सरल- सुबोध खड़ीबोली।
  • शैली-प्रवाहपूर्ण गीत शैली।
  • रस-शान्त
  • शब्द-शक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-अनुप्रास।

3. है अनिश्चित किस ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा है अनिश्चित ……………………………………………………………. सुन्दर मिलेंगे।

शब्दार्थ-सरिता = नदी गह्वर = गुफा। शर = बाण आन = प्रतिज्ञा। बाट = मार्ग।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इसमें कवि जीवन-पथ में आनेवाले सुख-दु:खों के प्रति सचेत करता हुआ मनुष्य को निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहा है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हे जीवन-पथ के मुसाफिर ! यह नहीं बताया जा सकता है कि तेरे मार्ग में किस स्थान पर नदी, पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी । तेरे मार्ग में कब कठिनाइयाँ और बाधाएँ आयेंगी, यह नहीं कहा जा सकता। यह भी नहीं कहा जा सकता कि तेरे जीवन के मार्ग में किस स्थान पर सुन्दर वन और उपवन मिलेंगे। तेरे जीवन में कब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी। यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि कब तेरी जीवन-यात्रा समाप्त होगी और कब तेरी मृत्यु होगी।

कवि आगे कहता है कि यह बात भी अनिश्चित है कि मार्ग में कब तुझे फूल मिलेंगे और कब काँटे तुझे घायल करेंगे। तेरे जीवन में कब सुख प्राप्त होगा और कब दु:ख-यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि तेरे जीवन-मार्ग में कौन परिचित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) मिलेंगे और कौन प्रियजन अचानक तुझे छोड़ जायेंगे। हे पथिक! तू अपने मन में प्रण कर ले कि जीवन की कठिनाइयों की परवाह न करके तुझे आगे बढ़ते जाना है।
हे जीवन-पथ के यात्री! तू पथ पर चलने से पूर्व जीवन में आनेवाले सुख-दुःख को भली-भाँति जानकर अपने मार्ग की पहचान कर ले।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति मानव को सचेत किया है।
  • भाषा-सरल खड़ीबोली।
  • शैली–प्रतीकात्मक, वर्णनात्मक।
  • रस-शान्त
  • शब्दशक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

4. कौन कहता है ……………………………………………………………. कर ले।

शब्दार्थ-यत्न = प्रयत्न, कोशिश। ध्येय = लक्ष्य निलय = घर, नीड़, घोंसला । मुग्ध होना = रीझना।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – यथास्थिति और मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा में क्या तालमेल होना चाहिए-इन पंक्तियों में इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या – हे पथिक! तुमसे ऐसा किसी ने नहीं कहा है कि तुम अपने मन में स्वप्नों अर्थात् मधुर कल्पनाओं को न लगाओ। सब लोगों की अपनी-अपनी स्वप्निल कल्पनाएँ होती हैं। अपनी-अपनी उम्र और अपने-अपने समय में सभी ने इन्हें देखा है और अपने मन में उन्हें जगह दी है। हे पथिक! तू प्रयत्न करने पर भी इसमें सफल नहीं हो सकता कि तेरी कल्पनाएँ। मन में न उठे। ये स्वप्न, ये कल्पनाएँ व्यर्थ नहीं होतीं, इनका भी अपना लक्ष्य या ध्येय होता है। ये स्वप्न जबे आँखों के नीड़ में उपजते हैं, तब उनका अपना ध्येय होता है, ये व्यर्थ नहीं जाते, (UPBoardSolutions.com) किन्तु स्वप्नों से यथार्थ को झुठलाया नहीं जा सकता। कारण यह है कि स्वप्न या कल्पनाएँ जीवन में बहुत कम हैं, उनके सामने यथार्थ सत्य अनगिनत हैं। सत्य का मुकाबला कल्पनाओं से मत करो। संसार के रास्ते में यदि स्वप्न दो हैं, तो सत्य दो-सौ अर्थात् कल्पनाएँ बहुत कम हैं, यथार्थ बहुत अधिक हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि तुम कल्पनाओं पर ही मत रीझते रहो वरन् सत्य क्या है-इसका भी निर्धारण कर लो। हे पथिक! चलने से पहले अपने रास्ते की पहचान कर लो।

काव्यगत सौन्दर्य ।

  • कवि यहाँ कहना चाहता है कि महत्त्वाकांक्षा यथार्थ के सत्य और उपलब्ध साधनों पर ही आधारित होनी चाहिए और उसके लिए कठिन श्रम के साथ-साथ कर्तव्य का पालन करना भी आवश्यक है।
  • भाषा-साहित्यिक हिन्दी।
  • रस-शान्त।
  • गुण-प्रसाद
  • अलंकार-रूपक तथा अनुप्रास

5. स्वप्न आता स्वर्ग का ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा स्वप्न आता ……………………………………………………………. चीर देता।

शब्दार्थ-ललकती = लालायित होती है उन्मुक्त = स्वच्छन्द। दृग कोरकों = आँख के कोने ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्यांश डॉ० हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ नामक शीर्षक कविता से लिया गया है जो उनकी ‘सतरंगिणी’ नामक काव्य पुस्तक से उद्धृत है।

प्रसंग – इस पद में कवि पथिक को सम्बोधित करते हुए किसी भी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उसमें आनेवाली कठिनाइयों के प्रति आगाह कर देना चाहता है। कोरी भावुकता के प्रवाह में आकर किसी मार्ग पर चल पड़नी उचित नहीं है। कवि कहता है|

व्याख्या – हे पथिक ! भावुकता के आवेश में आकर किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व हम स्वर्ग का सपना देखने लगते हैं। प्रसन्नता के कारण हमारी आँखें चमक उठती हैं। उस समय कल्पना लोक की उड़ान भरने के लिए हमारे पैरों में पंख लग जाते हैं। छाती उन्मुक्त हो उत्साह से भर जाती है। किन्तु ठीक उसी प्रकार राह का एक मामूली-सा काँटा पाँवों में चुभ जाता है और खुन की दो बूंदों के बहने से ही सारी कल्पना की दुनिया ही उसमें डूब जाती है अर्थात् मार्ग में मामूली अवरोध उत्पन्न हो जाने मात्र से ही सारी मजा किरकिरा हो (UPBoardSolutions.com) जाता है। अत: पाँवों के काँटे चुंभकर ये शिक्षा देते हैं कि भले ही तुम्हारी आँखों में स्वर्ण के सजीले सपने क्यों न हों किन्तु तुम्हें अपने पैरों को पृथ्वी पर सुरक्षित टिकाना चाहिए अर्थात् मस्तिष्क में भले ही कल्पना की ऊँची उड़ाने क्यों न हों, किन्तु व्यावहारिक जगत् की उपयोगिता कदापि भूलनी नहीं चाहिए। हमें पथ के चुभे काँटों की इस शिक्षा का सदैव सम्मान करना चाहिए। किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उस मार्ग की पूरी जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इस पद में कवि ने एक जीता-जागता जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया है।
  • लाक्षणिक प्रयोगों के कारण काव्य की भाषा ओजपूर्ण एवं प्रभावशाली बन गयी है।

प्रश्न 2.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 3.
बच्चन जी की साहित्यिक विशेषताओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 4.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-परिचय लिखिए तथा उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 5.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-वृत्त लिखकर उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।

हरिवंशराय बच्चन
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म – सन् 1907 ई०, प्रयाग।
मृत्यु – सन् 2003 ई०।
शिक्षा – एम० ए०, पी-एच० डी०
पिता का नाम – प्रताप नारायण।
रचनाएँ – मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमन्त्रण, एकान्त संगीत, सतरंगिणी, हलाहल, बंगाल का काल, मिलनयामिनी, प्रणय-पत्रिका, बुद्ध और नाचघर (काव्य), क्या भूलें क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर (आत्मकथा), दो चट्टानें।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावों का चित्रण, विषाद और निराशा का चित्रण, विद्रोह को स्वर, युग जीवन का व्यापक चित्रण।
भाषा – सहज व सरल खड़ीबोली।
शैली – गीतात्मक। छन्द-मुक्तक।
जीवन – परिचय – श्री हरिवंशराय बच्चन का जन्म प्रयाग में सन् 1907 ई० में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू भाषा के माध्यम से हुई थी। आपने सन् 1925 ई० में कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद से हाईस्कूल, सन् 1927 ई० में गवर्नमेण्ट इन्टर कालेज से इण्टर तथा सन् 1929 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपने विश्वविद्यालय छोड़ दिया। बाद में सन् 1938 ई० में उसी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1954 ई० में आपने कैम्ब्रिज (UPBoardSolutions.com) विश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आरम्भ में आपने प्रयाग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। कुछ समय तक आपने आकाशवाणी में काम किया। तत्पश्चात् आपकी नियुक्ति भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के पद पर हुई और वहीं से अवकाश ग्रहण किया। आप सन् 1965 ई० में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

साहित्य और कविता के प्रति आपकी रुचि बचपन से ही थी। सन् 1923 ई० में आपकी रचना ‘मधुशाला’ के प्रकाशन ने आपको कीर्ति के शिखर पर पहुँचा दिया। आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सन् 1976 ई० में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। आपका शरीरान्त सन् 2003 ई० में हो गया।

रचनाएँ – बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, प्रणय-पत्रिका, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, दो चट्टानें आदि। ‘दो चट्टानें’ काव्य-ग्रन्थ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है।

काव्यगत विशेषताएँ

बच्चन जी उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि हैं। आपकी कविताओं में भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। आपकी कविता में प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावपूर्ण चित्र अंकित हैं। प्रेम के अतिरिक्त जीवन के अन्य सन्दर्भो में निराशा की भाषा देखने को मिलती है। विद्रोह का स्वर भी कहीं-कहीं आपकी कविताओं में मिलता है। आपकी पूर्ववर्ती रचनाओं में वैयक्तिकता है तो परवर्ती रचनाओं में (UPBoardSolutions.com) जन-जीवन का व्यापक चित्रण है। वैचारिक क्रान्ति, मानवीय संवेदना और व्यंग्य-दंश से पूर्ण आपके काव्य ने हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की है।

बच्चन जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी बोलचाल की भाषा के अधिक निकट है। आपकी भाषा सरल व सरस है। आपने लोकगीतों और मुक्तक छन्दों की रचना की है। अपनी गेयता, सरलता, सरसता और खुलेपन के कारण आपके गीत बहुत ही पसन्द किये जाते हैं।

साहित्य में स्थान – नि:सन्देह लोकगीतों की धुन में गीतों की रचना करके बच्चन जी ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। हिन्दी साहित्य में हालावाद के स्थापक के रूप में आपका मान्य स्थान है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बटोही को चलने के पूर्व बाट की पहचान करने की सलाह कवि किस अभिप्राय से देता है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं। इस मार्ग का निर्धारण किसी दूसरे उपदेश या पुस्तकों को पढ़कर नहीं किया जा सकता है। (UPBoardSolutions.com) कुछ मनुष्य ऐसे अवश्य रहे हैं, जो अपने पथ पर अपने कदमों के निशान छोड़ गये। हैं। हमें उनसे अवश्य कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 2.
यात्रा सुगम और सफल होने के लिए कवि क्या सुझाव देता है?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि जीवन के मार्ग का निर्धारण करके उस पर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ना ही श्रेयस्कर है। अनिश्चय की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती। कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का यह सोचना कि पथ के निर्धारण से उसे ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, गलत है। पूर्व के सभी मनुष्यों को भी अपने पथ का निर्धारण करना पड़ा था और बाधाएँ उनके सामने भी आयी थीं।

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प्रश्न 3.
यात्रा में विघ्न-बाधाओं को किन प्रतीकों से बतलाया गया है?
उत्तर :
बाधाओं और कठिनाइयों के लिए कवि ने नदी, पर्वत, गुफाओं और काँटों आदि को प्रतीक के रूप में प्रयोग किया है।

प्रश्न 4.
‘स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले’ कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
कवि के कहने का भाव यह है कि सुख के स्वप्नों में न डूबकर जीवन की वास्तविकताओं का भी ज्ञान होना आवश्यक है, तभी उन्नति का पथ प्रशस्त हो सकता है जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ने से पूर्व उचित लक्ष्य या मार्ग का भी निर्धारण कर लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
कवि’आदर्श और यथार्थ’ के समन्वय पर किन पंक्तियों पर बल देता है और उसके लिए किस वस्तु का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है?
उत्तर :
रास्ते का एक काँटा। पाँव का दिल चीर देता। राह के काँटे चुभकर बताते हैं कि सपने तो बुनें, लेकिन सच्चाई से इंकार नहीं करें, तभी जीवन में सफलता मिल सकती है। और आनन्द के फूल खिल सकते हैं। कवि की यही शिक्षा है।

प्रश्न 6.
‘पथ की पहचान’ कविता के द्वारा कवि क्या सन्देश देना चाहता है? अथवा ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता के द्वारा कवि ने हमें क्या सन्देश देने का प्रयास किया है?
उत्तर :
कवि इस कविता के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता है कि व्यक्ति को विवेकपूर्वक किसी कार्य को चुनना चाहिए, फिर आनेवाली किसी भी बाधा से घबराये बिना साहसपूर्वक निरन्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए। आगे बढ़ते हुए आदर्श और यथार्थ को उचित समन्वय होना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ‘बच्चन’ ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं। इस मार्ग का निर्धारण किसी दूसरे के उपदेश से या पुस्तकों को पढ़कर नहीं किया जा सकता है। कुछ (UPBoardSolutions.com) मनुष्य ऐसे अवश्य रहे हैं, जो अपने पथ पर अपने कदमों के निशान छोड़ गये हैं। हमें उनसे अवश्य कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है।

कवि कहते हैं कि जीवन के मार्ग का निर्धारण करके उस पर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ना ही श्रेयस्कर है। अनिश्चय की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती । कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का यह सोचना कि पथ के निर्धारण में उसे ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, गलत है। पूर्व के सभी मनुष्यों को भी अपने पथ का निर्धारण करना पड़ा था और बाधाएँ उनके सामने भी आयी थीं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हरिवंशराय बच्चन किस युग के कवि हैं?
उत्तर :
आधुनिक युग (काल) के।।

प्रश्न 2.
बच्चन जी की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
मधुशाला एवं मधु कलश।

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प्रश्न 3.
मधुशाला किसकी रचना है?
उत्तर :
हरिवंशराय बच्चन की।

प्रश्न 4.
बच्चन जी की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
खड़ीबोली।

प्रश्न 5.
बच्चन जी ने अपनी भाषा में किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर :
भावात्मक गीत शैली।

प्रश्न 6.
मधुशाला की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर :
उल्लास एवं आनन्द।

प्रश्न 7.
बच्चन जी ने मधुशाला, मधुबाला, होला और प्याला को किस रूप में स्वीकार किया है?
उत्तर :
प्रतीकों के रूप में।।

प्रश्न 8.
‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं।

प्रश्न 9.
‘पथ की पहचान’ कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
व्यक्ति को विवेकपूर्वक किसी कार्य का चयन करना चाहिए और निरन्तर अपने पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। सफलता निश्चित रूप से मिलेगी।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
(ब) रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता।
उत्तर :
(अ) काव्य-सौन्दर्य-

  • किसी पथिक या राही को मार्ग पर चलने के पूर्व उसके विषय में भली-भाँति अवगत हो जाना चाहिए।
  • भाषा-खड़ीबोली।
  • शैली- भावात्मक गीत शैली।।

(ब) काव्य-सौन्दर्य-

  • रास्ते का एक काँटा पाँव को चोटिल कर देता है अर्थात् रास्ते का एक काँटा अनेक मुसीबतें खड़ी कर देता है।
  • भाषा – खड़ीबोली। (स) शैली- भावात्मक गीत शैली।

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2. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए
(अ) रक्त की दो बूंद गिरती एक दुनिया डूब जाती।
(ब) है अनिश्चित, किस जगह पर बाज, बन सुन्दर मिलेंगे।
उत्तर :
(अ) अतिशयोक्ति।
(ब) सम्भावना।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान के तत्त्व और क्षेत्र

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान के तत्त्व और क्षेत्र

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान के तत्त्व और क्षेत्र.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
‘गृह विज्ञान’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए।
या
‘गृह विज्ञान’ से आप क्या समझती हैं? गृह विज्ञान के तत्वों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हई औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप जीवन-मूल्यों में भारी परिवर्तन आए, जिससे स्त्रियों को पुरुषों के समान घर से बाहर निकलकर काम करना पड़ा। इससे स्त्रियों के कार्यक्षेत्र और उत्तरदायित्वों में वृद्धि हुई। घर एवं घर से बाहर के उनके द्विमुखी उत्तरदायित्व को कुशलतापूर्वक निभाने के लिए एक ऐसे विषय की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी जो सामान्य घरेलू जीवन को उत्तम, (UPBoardSolutions.com) सरल, कम श्रम-साध्य तथा समय की बचत कराने में सहायक हो। इसी सन्दर्भ में क्रमश: एक विषय का विकास हुआ, जिसे आज गृह विज्ञान के रूप में जाना जाता है। घर-परिवार को सुविधाजनक व आर्थिक रूप से निर्भर बनाने के लिए सर्वप्रथम स्त्रियों की रुचि गृह-अर्थशास्त्र की ओर उत्पन्न करने का प्रयास किया गया। समय के साथ-साथ इस विषय का क्षेत्र विस्तृत होता गया तथा इसने अन्त में आज के गृह विज्ञान का रूप ले लिया।

गृह विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

गृह विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है-‘गृह’ तथा ‘विज्ञान’। गृह का अर्थ है ‘घर’ और विज्ञान का अर्थ है ‘व्यवस्थित ज्ञान’। इस प्रकार, गृह विज्ञान का अर्थ गृह से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं; जैसे आवास, भोजन, वेशभूषा आदि का व्यवस्थित अध्ययन करना है। सर्वप्रथम गृह विज्ञान; अर्थशास्त्र की शाखा के रूप में अमेरिका में विकसित हुआ। अमेरिकन होम इकोनोमिक्स एसोसिएशन के अनुसार, “गृह-अर्थशास्त्र शिक्षा का विशिष्ट विषय है, जिसके अन्तर्गत आय-व्यय, भोजन की स्वच्छता एवं रुचिपूर्णता, वेशभूषा और आवास आदि के रुचिपूर्ण एवं उपयुक्त चुनाव तथा तैयारी और परिवार एवं अन्य मानव समुदायों द्वारा उनके उपयोग का अध्ययन किया जाता है।” समय के साथ-साथ इस विषय ने अधिक व्यापक रूप धारण कर (UPBoardSolutions.com) लिया तथा इसमें शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य एवं रोगाणु विज्ञान, आहार एवं पोषण तथा पर्यावरण सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण विषय भी सम्मिलित किए गए हैं।

जापान में इस विषय को गृह-प्रशासन के नाम से जाना जाता है। गुड जॉनसन के अनुसार, “गृह व्यवस्था सामान्य देशों में अत्यधिक सामान्य व्यवस्था है जिसमें अधिकांश व्यक्ति कार्यरत होते हैं तथा अधिकतर धन का उपयोग किया जाता है और यह व्यक्तियों के स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।”

‘गृह विज्ञान’ नामक विषय को कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है; जैसे कि ‘गृह विज्ञान तथा गृह-कला’ (Home Science and Household Art), ‘घरेलू विज्ञान एवं गृह-कला’ (Domestic Science and Home Craft) गृह विज्ञान के विस्तृत विषय-क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इस विषय की एक ब्यवस्थित परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की जा सकती है

“गृह विज्ञान वह सामाजिक विज्ञान है जो घर-परिवार से सम्बन्धित समस्त आवश्यकताओं एवं योजनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करता है तथा पारिवारिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि करने के लिए सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है।”

गृह विज्ञान की एक परिभाषा दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज के “गृह विज्ञान संस्थान’ ने इन शब्दों में प्रस्तुत की है, ”गृह विज्ञान वह व्यावहारिक विज्ञान है जो अपने अध्ययनकर्ताओं को सफल पारिवारिक जीवन व्यतीत करने, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को हल करने और सुखमय जीवन-यापन करने की दशाओं का ज्ञान कराता है।”

उपर्युक्त विवरण द्वारा गृह विज्ञान का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान एक उपयोगी तथा व्यावहारिक महत्त्व का विषय है। इस विषय के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य सुखी एवं आदर्श पारिवारिक जीवन-यापन करने के उपाय जानना है। इस विषय के अन्तर्गत उन समस्त (UPBoardSolutions.com) उपायों को व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है जो पारिवारिक जीवन की दैनिक समस्याओं का उत्तम समाधान प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

गृह विज्ञान के तत्त्व

गृह विज्ञान का अध्ययन गृह एवं परिवार के उत्तम जीवन–स्तर का मूल आधार है। गृह विज्ञान में वे सभी तत्त्व सम्मिलित हैं जो परिवार की आवश्यकताओं व उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। गृह विज्ञान के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

(1) परिवार के सदस्यों की बहुमुखी विकास:
परिवार के रूप में मनुष्य ने एक ऐसी संस्था का विकास किया है जहाँ उसका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार का विकास होता है। परिवार में ही परिवार के प्रत्येक सदस्य को सुरक्षा प्राप्त होती है, प्रत्येक सदस्य का अपना उत्तरदायित्व होता है तथा प्रत्येक सदस्य के अधिकार (UPBoardSolutions.com) और कर्तव्य होते हैं। अतः परिवार के सभी सदस्यों के स्वस्थ विकास और अभिवृद्धि के लिए सहायक पर्यावरण की व्यवस्था करना गृह विज्ञान का मूल तत्त्व है अर्थात् बालकों का समुचित पालन-पोषण हो, जिससे वे समाज की उन्नति में अपना योगदान दे सकें, यह गृह विज्ञान का मुख्य उद्देश्य है।

(2) नियोजन:
किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए नियोजन आवश्यक है। पारिवारिक जीवन में आर्थिक सन्तुलन के लिए आय को नियोजित रूप से व्यय करने तथा नियमित बचत करने की आवश्यकता होती है। गृह विज्ञान से क्रय-विक्रय, बजट व बचत आदि से सम्बन्धित जानकारी मिलती है, जिससे व्यय एवं बचत का नियोजन करना सम्भव हो पाता है। गृह प्रबन्ध के लिए भी नियोजन अति महत्त्वपूर्ण है। गृह के सन्दर्भ में परिवार नियोजन, बजट बनाने तथा बचत नियोजन का महत्त्व आधुनिक युग की बढ़ती हुई आवश्यकताओं में प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

(3) नियन्त्रण:
नियोजन योजना के निर्माण में सहायक होता है, तो नियन्त्रण योजना के अनुसार कार्य करने के लिए उत्तरदायी है। नियन्त्रण चालू योजना को कार्यक्रम अथवा परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित भी करता है। उदाहरण के लिए-गृहिणी अपने दैनिक कार्यक्रम की योजना स्वयं बनाती है। तथा (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता पड़ने पर इसमें इच्छित परिवर्तन भी कर लेती है, परन्तु जीवन में अनेक घटनाएँ इस प्रकार की होती हैं कि जिन पर नियन्त्रण सम्भव नहीं हो पाता। गृह विज्ञान हमें ऐसी घटनाओं से निपटने की शिक्षा देता है; जैसे कि जल जाना, हाथ कट जाना आदि दुर्घटनाओं के लिए गृह विज्ञान प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी देता है।

(4) मूल्यांकन:
गृह विज्ञान एक जीवन दर्शन है, जिसका लक्ष्य सदैव परिवार के सभी सदस्यों का सर्वांगीण कल्याण करना रहता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मूल्यांकन एक महत्त्वपूर्ण कसौटी है। विभिन्न कार्यों के नियोजन का मूल्यांकन किया जानी चाहिए। नियोजन के मूल्यांकन पर नियोजन की सफलता अथवा असफलता निर्भर करती है। इसी प्रकार नियन्त्रण की सफलता भी मूल्यांकन पर निर्भर होती है। उदाहरण के लिए कोई (UPBoardSolutions.com) गृहिणी अपने दिनभर के कार्यों का मूल्यांकन जब रात्रि में करती हैं, तो उसे पता चलता है कि कुछ कम आवश्यक कार्यों में अधिक समय लगने के कारण उसे ललित कलाओं अथवा सामाजिक गतिविधियों के लिए समय नहीं मिल पाया। अत: दूसरे दिन वह कार्यों की योजना में यथेष्ट परिवर्तन कर समय की बचत कर सकती है। इस प्रकारे, मूल्यांकन भावी योजनाओं के लिए ठोस आधार प्रस्तुत करता है तथा भविष्य में होने वाली हानियों से बचाता है।

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प्रश्न 2:
”गृह विज्ञान कला और विज्ञान दोनों ही है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘गृह विज्ञान की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। या गृह विज्ञान की प्रकृति का विवेचन करते हुए स्पष्ट कीजिए कि इस विषय में कलात्मक एवं वैज्ञानिक दोनों ही पक्ष विद्यमान हैं।
उत्तर:
किसी भी विषय के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उस विषय की प्रकृति को निर्धारित करना आवश्यक होता है। विषय की प्रकृति को निर्धारित करने के लिए सर्वप्रथम यह निश्चित (UPBoardSolutions.com) करना आवश्यक होता है कि अमुक विषय विज्ञान’ है अथवा ‘कला’। गृह विज्ञान की प्रकृति का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि इसमें ‘विज्ञान’ तथा ‘कला’ दोनों के ही लक्षण विद्यमान हैं। इस तथ्य की पुष्टि अग्रवर्णित विवरण द्वारा हो जाएगी

(अ) गृह विज्ञान : एक विज्ञान के रूप में
विज्ञान शब्द का अर्थ एक विशिष्ट क्रमबद्ध ज्ञान से है। यह कार्य तथा कारण में सम्बन्ध स्थापित करता है। नियमों का निर्माण, सुनिश्चित अध्ययन प्रणाली एवं भावी घटनाओं का अनुमान इत्यादि विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ये लगभग सभी गृह विज्ञान की भी विशेषताएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित विवरण द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है

(1) यह तथ्यात्मक है:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत हम शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, गृह परि चर्या, वस्त्र विज्ञान तथा अर्थव्यवस्था आदि से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित कर उनका तथ्यात्मक अध्ययन करते हैं।

(2) वैज्ञानिक पद्धति द्वारा अध्ययन:
गृह विज्ञान में आहार एवं पोषण विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, प्राथमिक चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के वैज्ञानिक नियमों की जानकारी प्राप्त करके स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं सुरक्षा आदि से सम्बन्धित नियम बनाये जाते हैं अर्थात् गृह विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया जाता है।

(3) गृह विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्त हैं:
इसमें गृह-सज्जा, स्वास्थ्य, आहार और पोषण, चिकित्सा, बाल विकास, वस्त्रों की देख-रेख आदि के सर्वमान्य सिद्धान्त हैं। ये परिस्थितियों के अनुसार केवल कुछ संशोधनों के साथ विश्व के सभी भागों में स्वीकार किए जाते हैं।

(4) गृह विज्ञान में भविष्यवाणी सम्भव है:
गृह विज्ञान से सम्बन्धित अनेक विषयों पर तो निश्चित भविष्यवाणी की जा सकती है तथा अनेक विषयों पर सम्भावनाएँ व्यक्त की जा सकती हैं।

(5) गृह विज्ञान के तथ्य प्रामाणिक होते हैं:
गृह विज्ञान के सिद्धान्त एवं तथ्य सभी परिस्थितियों में प्रामाणिक होते हैं। । उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि ‘गृह विज्ञान’ में विज्ञान की विभिन्न विशेषताएँ विद्यमान हैं।

(ब) गृह विज्ञान : एक कला के रूप में
कला का अर्थ व्यावहारिक जीवन में ज्ञान के प्रयोग से हैं। यह एक मानवीय प्रयत्न है जिसके द्वारा वस्तुओं को पहले से श्रेष्ठ व सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाता है। कल्पना एवं सृजनात्मकता कला की मुख्य विशेषताएँ हैं। गृह विज्ञान में भी कला के कुछ तत्त्व विद्यमान हैं। गृह विज्ञान का ज्ञान गृहिणी (UPBoardSolutions.com) में मानवीय गुणों का विकास करता है जिसमें गृह, परिवार व समाज का सर्वांगीण उत्थान निहित है। निम्नलिखित विवरण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं—

(1) सौन्दर्य बोध:
कला सौन्दर्य बोध की प्रतीक है। गृह विज्ञान में घर की सज्जा की शिक्षा दी जाती है। इसमें पाक-कला एवं आहार-नियोजन के व्यावहारिक वे कलात्मक दोनों पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

(2) परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं का अध्ययन:
परिवार के आर्थिक पक्ष अर्थात् आय-व्यय और बचत के विषय में जानकारी तथा नियोजन, नियन्त्रण एवं मूल्यांकन द्वारा जीवन को सुखमय एवं सुविधाओं से परिपूर्ण बनाने की शिक्षा मिलती है।

(3) व्यक्तिगत सज्जा, वस्त्र-निर्माण एवं देख-रेख आदि:
ये सब जीवन के कलात्मक पक्ष को दिशा प्रदान करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि गृह विज्ञान में यदि एक ओर विज्ञान के अनेक विषयों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया जाता है, तो दूसरी ओर गृह-व्यवस्था एवं गृह-सज्जा, अर्थव्यवस्था, व्यक्तिगत सज्जा आदि के कलात्मक सिद्धान्तों को भी व्यावहारिक रूप दिया जाता है। अतः यह कथन कि ”गृह विज्ञान कला और विज्ञान दोनों ही है” पूर्णरूप से तर्कसंगत है।

प्रश्न 3:
गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
या
“गृह विज्ञान एक व्यापक विषय है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान का सम्बन्ध घर-परिवार के सामान्य जीवन के प्रायः सभी पक्षों से हैं। इसीलिए गृह विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र अत्यधिक व्यापक एवं बहुपक्षीय है। जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण तथा पहले से अच्छा बनाने में गृह विज्ञान महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह उचित (UPBoardSolutions.com) रहन-सहन, स्वास्थ्य, आर्थिक व्यवस्था, गृह प्रबन्ध, कर्तव्यपरायणता एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है। इसमें व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र सभी को सम्मिलित किया जाता है। अध्ययन की सुविधा के लिए गृह विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को अग्रलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

गृह विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र

(1) गृह-प्रबन्ध:
गृह कार्यों की व्यवस्था, पारिवारिक कर्तव्यों का बोध, पारस्परिक सम्बन्ध इत्यादि गृह-प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त उचित व्यवहार एवं नैतिक मूल्यों को ज्ञान भी सफल गृह-प्रबन्ध के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

(2) अर्थव्यवस्था:
परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं के अनुसार परिवार की आय से उचित बजट का बनाना तथा मितव्ययिता व बचत आदि के माध्यम से आय एवं व्यय में सन्तुलन बनाए रखना
अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आते हैं।

(3) सफाई, सजावट आदि से सम्बन्धित जानकारी:
सफाई और सजावट आदि से सम्बन्धित जानकारी होना गृह विज्ञान का सबसे प्रमुख क्षेत्र है। सफाई हमारे रहने के वातावरण को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सुरक्षित बनाती है तथा सजावट से घर की सुन्दरता बढ़ती है।

(4) स्वास्थ्य रक्षा:
स्वास्थ्य रक्षा से आशय है-व्यक्तिगत व परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य की देख-रेख और रक्षा करना। इस विषय में सामान्य एवं संक्रामक रोगों के उपचार एवं बचाव के (UPBoardSolutions.com) उपायों की जानकारी के साथ-साथ पेय जल की शुद्धता का ज्ञान भी आवश्यक है। इसके अन्तर्गत जन-स्वास्थ्य के नियमों की समुचित जानकारी प्रदान की जाती है तथा पर्यावरण के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

(5) आहार एवं पोषण विज्ञान:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत ‘आहार तथा पोषण विज्ञान का भी अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से आहार के कार्यों, आहार के तत्त्वों, सन्तुलित आहार, आहार-आयोजन, पाक-क्रिया की प्रणालियों, खाद्य पदार्थों के संरक्षण, पोषण-प्रक्रिया तथा आहार द्वारा रोगों के उपचार का अध्ययन किया जाता है।

(6) बैक्टीरिया विज्ञान:
समस्त प्राणियों के आहार एवं स्वास्थ्य तथा अनेक बैक्टीरिया (जीवाणुओं) का घनिष्ठ सम्बन्ध है। विभिन्न बैक्टीरियाँ हमारे आहार एवं स्वास्थ्य पर अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। कुछ बैक्टीरिया हमारे भोज्य-पदार्थों की पोषकता तथा उपयोगिता में वृद्धि करते हैं जबकि कुछ अन्य बैक्टीरिया हमारे भोज्य पदार्थों को न केवल दूषित करते हैं बल्कि उन्हें नष्ट भी कर सकते हैं। कुछ बैक्टीरिया तथा विषाणु विभिन्न संक्रामक रोगों को भी जन्म देते हैं। अतः इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान के अन्तर्गत बैक्टीरिया विज्ञान का भी व्यवस्थित अध्ययन किया
जाता है।

(7) प्राथमिक चिकित्सा एवं परिचर्या:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों और आकस्मिक रोगियों को तुरन्त आवश्यक एवं सम्भव उपचार उपलब्ध कराना प्राथमिक चिकित्सा कहलाता है। रोगी की उचित देख-रेख, औषधि का समय पर सेवन कराना, आवश्यक बिस्तर का प्रबन्ध करना, नाड़ी, श्वास-गति, ताप आदि का चार्ट बनाना इत्यादि गृह-परिचर्या के अन्तर्गत आते हैं। इन सभी विषयों का व्यवस्थित अध्ययन गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित है।

(8) मातृ-कला तथा शिशु-कल्याण:
पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए मातृ-कला तथा शिशु-कल्याण को सभ्य समाज में महत्त्वपूर्ण एवं अति आवश्यक माना जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान (UPBoardSolutions.com) के अध्ययन-क्षेत्र में मातृ-कला एवं शिशु-कल्याण को भी सम्मिलित किया गया है। इसके अन्तर्गत गर्भावस्था की देखरेख का व्यापक अध्ययन किया जाता है तथा शिशु-कल्याण सम्बन्धी समस्त गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।

(9) बाल-विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध:
गृह विज्ञान बाल-विकास एवं पारिवारिक सम्बन्धों का भी व्यवस्थित अध्ययन करता है। इसमें शिशु के जन्म से लेकर उसके आगे के क्रमिक विकास का अध्ययन निहित होता है। गृह विज्ञान में बालकों के शारीरिक, भावात्मक, भाषागत तथा सामाजिक विकास के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी अध्ययन किया जाता है। पारिवारिक सम्बन्धों के अन्तर्गत परिवार के संगठन, विशेषताओं, महत्त्व, कार्यों एवं दायित्वों तथा बदलते सामाजिक प्रतिमानों आदि का अध्ययन किया जाता है।

(10) वस्त्र-विज्ञान एवं परिधान:
वस्त्र-विज्ञान के अन्तर्गत वस्त्र बनाने वाले प्राकृतिक एवं कृत्रिम तन्तुओं का, वस्त्र-निर्माण की विभिन्न विधियों का, वस्त्रों की परिष्कृति तथा प्ररिसज्जा का, वस्त्रों के रख-रखाव एवं संग्रह का, उचित प्रकार से धुलाई आदि का व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। ‘परिधान विज्ञान के अन्तर्गत (UPBoardSolutions.com) परिवार के सदस्यों के लिए वस्त्रों के चुनाव, वस्त्रों की कटाई-सिलाई तथा उनकी सज्जा आदि का भी अध्ययन किया जाता है। ये समस्त विषय गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित हैं।

(11) गृह-गणित:
वर्तमान प्रणालियों के आधार पर सामान्य गणित का ज्ञोर्न गृह-गणित कहलाता है। इसके द्वारा क्रय-विक्रय में लाभ-हानि, प्रतिशत एवं साधारण ब्याज सम्बन्धी सरल गणनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। गृह-गणित को सामान्य ज्ञान परिवार की अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाए रखने में भी सहायक होता है।

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प्रश्न 4:
गृह विज्ञान शिक्षण क्षेत्र में कौन-कौन से प्रमुख विषय सम्मिलित किए जाते हैं और क्यों? समझाइए।
या
“गृह विज्ञान में विभिन्न विषयों का समावेश है।”इस कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साधारण रूप से गृह विज्ञान को गृह-प्रबन्ध समझा जाता है, जिसके अन्तर्गत घर की व्यवस्था, आर्थिक सन्तुलन तथा रहन-सहन का स्तर आदि सम्मिलित हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि गृह-प्रबन्ध, गृह विज्ञान का एक पक्ष है, जबकि गृह विज्ञान के अन्तर्गत गृह से सम्बन्धित सम्पूर्ण पक्षों का (UPBoardSolutions.com) समावेश होता है। गृह विज्ञान वास्तव में कोई एक स्वतन्त्र विषय नहीं है, वरन् यह विषय विभिन्न सामाजिक एवं वैज्ञानिक विषयों के ऐसे अंशों का समन्वित रूप है जिनका ज्ञान घर एवं सामाजिक परिवेश के सामान्य क्रिया-कलापों में भाग लेने एवं गृहस्थ-जीवन की दैनिक समस्याओं को हल करने हेतु आवश्यक है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है। इस विज्ञान के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है

(1) शरीर-रचना व स्वास्थ्य विज्ञान:
इसके अन्तर्गत सुखी, सन्तुष्ट एवं स्वस्थ रहने के लिए हमें शरीर-रचना एवं स्वास्थ्य विज्ञान का आवश्यक ज्ञान दिया जाता है।

(2) चिकित्सा एवं परिचर्या:
गृह विज्ञान द्वारा महत्त्वपूर्ण रोगों के निदान अथवा प्राथमिक चिकित्सा के लिए चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन तथा रोगी की देखभाल के लिए गृह-परिचर्या का आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

(3) आहार व पोषणविज्ञान:
इनके अध्ययन से भोजन व इसके पोषक तत्वों को आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जाता है। प्रत्येक परिवार में प्रतिदिन आहार की अनिवार्य रूप से व्यवस्था की जाती है (UPBoardSolutions.com) तथा इस व्यवस्था का दायित्व मुख्य रूप से गृहिणी का ही होता है। अतः गृह विज्ञान में बालिकाओं को आहार एवं पोषण विज्ञान की समुचित जानकारी प्रदान की जाती है।

(4) मातृकला और बाल-कल्याण:
आज की बालिकाएँ ही भावी माताएँ हैं; अतः उनके भावी जीवन को सरल एवं सफल बनाने के लिए गृह विज्ञान के अन्तर्गत मातृकला एवं बाल-कल्याण का
आवश्यक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(5) जीव विज्ञान:
यह हमें लाभदायक पौधों एवं प्राणियों से सम्बन्धित ज्ञान उपलब्ध कराता है। इस ज्ञान का भी व्यावहारिक जीवन में महत्त्व है। अतः गृह विज्ञान में जीव विज्ञान का प्रारम्भिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(6) भौतिक व रसायन विज्ञान:
ये हमें आधुनिक यन्त्रों एवं ऊर्जा के स्रोतों का व्यावहारिक ज्ञान एवं पर्यावरण सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं। यह ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार के लिए अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है; अतः इस क्षेत्र के प्रारम्भिक ज्ञान को गृह विज्ञान में अनिवार्य रूपसे सम्मिलित किया जाता है

(7) अर्थशास्त्र व गृह-गणित:
इनके अध्ययन से हमें आय-व्यय, बचत, बजट अर्थात् परिवार के लिए आवश्यक एवं उपयोगी आर्थिक जानकारी एवं सम्बन्धित गणित का ज्ञान होता है। गृहिणियों के लिए दैनिक जीवन में इस ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है; अतः इस विषय को भी गृह विज्ञान में
सम्मिलित किया गया है।

(8) मनोविज्ञान, दर्शन व नीतिशास्त्र:
इनको अध्ययन मानव जीवन में मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक एवं नैतिक मूल्यों के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

(9) पारिवारिक समाजशास्त्र:
परिवार के संगठन, स्वरूपों, कार्यों तथा समस्याओं आदि का व्यवस्थित अध्ययन पारिवारिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। पारिवारिक जीवन को सुखी एवं व्यवस्थित बनाने के लिए यह ज्ञान अति आवश्यक होता है। इस तथ्य यह खते ? रिट में पारिवारिक समाजशास्त्र का भी अध्ययन किया जाता हैं।

(10) नागरिकशास्त्र:
नागरिकों के मूल अधिकार क्या हैं? नागरिकों के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं? इन्हें जानने के लिए नागरिकशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। गृह विज्ञान के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति में यह ज्ञान सहायक होता है; अतः इस विषय का भी प्रारम्भिक अध्ययन गृह विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।

(11) वस्त्र विज्ञान:
वस्त्र व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है। वस्त्र विज्ञान के अन्तर्गत वस्त्रों के निर्माण, गुणों, परिधान के चुनाव एवं निर्माण आदि का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक घर-परिवार में परिवार के सदस्यों के लिए वस्त्रों की समुचित व्यवस्था की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही गृह विज्ञान में वस्त्र विज्ञान का भी व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। इस प्रकार वह अपने परिवार का सदस्य होने के साथ-साथ सम्पूर्ण देश तथा विश्व से भी जुड़ा हुआ (UPBoardSolutions.com) है। इसलिए गृह विज्ञान का विषय-क्षेत्र भी घर तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसका क्षेत्र समाज व विश्व भी है। इसी आधार पर गृह विज्ञान अपने सिद्धान्तों और क्रियाओं द्वारा बालक व बालिका को पूर्णता प्रदान करता है। अतः स्पष्ट है कि गृह विज्ञान अपने अन्तर्गत उन सभी आवश्यक विषयों को सम्मिलित करता है जो परिवार के विभिन्न सदस्यों के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 5:
गृह विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
या
”गृह विज्ञान एक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय है।” इस कथन की पुष्टि करते हुए गृह विज्ञान के महत्त्व एवं उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान एक उपयोगी एवं व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान है। इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध घर एवं परिवार के सामान्य जीवन के प्रायः सभी पक्षों से है। गृह विज्ञान मुख्य रूप से बालिकाओं की शिक्षा-पाठ्यचर्या का एक अनिवार्य विषय है। वास्तव में, आज की छात्राएँ ही भावी गृहिणियाँ एवं (UPBoardSolutions.com) माताएँ है, उन्हें ही धर-गृहस्थी का दायित्व सँभालना तथा बच्चों का पालन-पोषण करना होता है। इस स्थिति में बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान का समुचित ज्ञान अर्जित करना नितान्त अनिवार्य है। गृह विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व एवं उपयोगिता का विवरण निम्नवर्णित है

गृह विज्ञान का महत्त्व एवं उपयोगिता

(1) श्रम, समय एवं व्यय की बचत में सहायक:
गृह विज्ञान में उन समस्त उपायों एवं विधियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है जिनके उपयोग से हमारे सभी घरेलू कार्य शीघ्र, आसानी से कम खर्च करके पूरे हो जाते हैं। गृह विज्ञान में ही श्रम, समय, धन तथा ईंधन आदि की बचत करने वाले उपकरणों को उचित ढंग से प्रयोग करने का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त गृह विज्ञान की छात्रा को सिखाया जाता है कि वह किस प्रकार से (UPBoardSolutions.com) अपने सभी कार्य व्यवस्थित रूप से कर सकती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान का ज्ञान श्रम, समय एवं धन को बचत में सहायक है।

(2) आर्थिक नियोजन में सहायक:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत प्रारम्भिक आर्थिक नियमों का भी अध्ययन किया जाता है तथा प्रारम्भिक गणित भी सीखा जाता है। इससे गृहिणियों को अपने घर के खर्च व्यवस्थित करने तथा उसका ठीक-ठीक हिसाब रखने में सहायता प्राप्त होती है। गृह विज्ञान में घर का बजट तैयार करना तथा उसके (UPBoardSolutions.com) अनुसार खर्च करना भी सिखाया जाता है। बजट के अनुसार खर्च करने से व्यक्ति कभी भी आर्थिक संकट में नहीं फँसता। आर्थिक दृष्टि से नियोजित परिवार सदैव सुखी एवं समृद्ध कहता है। इस दृष्टिकोण से भी गृह विज्ञान के ज्ञान को उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

(3) आहार एवं पोषण सम्बन्धी ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान के अध्ययन का एक उल्लेखनीय महत्त्व यह भी है कि इससे हमें आहार एवं पोषण सम्बन्धी समुचित ज्ञान प्राप्त हो जाता है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत हम आहार के तत्त्वों, विभिन्न भोज्य पदार्थों की उपयोगिता, सन्तुलित आहार तथा पोषण आदि के विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इस प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करके कोई भी गृहिणी अपने परिवार के सदस्यों के लिए सीमित आय में भी सन्तुलित आहार उपलब्ध करा सकती है। यही नहीं गृह विज्ञान के ज्ञान के आधार पर आहार-आयोजन के नियमों को जानकर तथा
आहार–संरक्षण एवं संग्रह की विधियों को समझकर, अनेक प्रकार से बचत की जा सकती है।

(4) क्रय-विक्रय एवं बचत का ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान विषय के अन्तर्गत बालिकाओं की क्रय-विक्रय एवं बाजार की गतिविधियों में ध्यान रखने योग्य बातों की भी जानकारी प्रदान की जाती है तथा उपभोक्ताओं के हितों का ज्ञान प्रदान किया जाता है। इस जानकारी से आगे चलकर गृहिणियों को अपने दैनिक जीवन में विशेष सहायता प्राप्त होती है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत बैंक, डाकघर तथा जीवन बीमा आदि की कार्य-प्रणालियों का भी अध्ययन किया जाता है। इससे भी गृहिणियों को विशेष लाभ होता है।

(5) स्वास्थ्य एवं शरीर सम्बन्धी ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान में स्वास्थ्य के नियमों का विस्तृत रूप में अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत स्वच्छता, व्यायाम तथा विश्राम आदि के नियमों एवं लाभों का भी अध्ययन किया जाता है। गृह विज्ञान में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक आदतों को अपनाने तथा हानिकारक आदतों को छोड़ने के लिए भी (UPBoardSolutions.com) सुझाव प्रस्तुत किए जाते हैं एवं उपाय बताए जाते हैं। इसके अतिरिक्त गृह विज्ञान में शरीर सम्बन्धी बहुपक्षीय ज्ञान भी प्रदान किया जाता है। इस ज्ञान का सम्पूर्ण परिवार के लिए विशेष महत्त्व है। इस दृष्टिकोण से भी गृह विज्ञान को उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय माना जाता है।

(6) मातृ-कला एवं शिशु-कल्याण का ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
आज की छात्राएँ ही भावी माताएँ हैं। लड़कियों के लिए मातृ-कला’ एवं ‘शिशु-कल्याण’ का समुचित ज्ञान विशेष रूप से उपयोगी होता है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत इस विषय से सम्बन्धित व्यावहारिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान किया जाता है। इस ज्ञान को प्राप्त करके, गृहिणियाँ गृहस्थ जीवन की समस्याओं एवं परेशानियों का विवेकपूर्ण ढंग से सामना कर लेती हैं। इस तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि गृह विज्ञान का
अध्ययन लड़कियों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण होता है।

(7) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत प्राथमिक चिकित्सा तथा गृह-परिचर्या का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है। इससे घर में घटित होने वाली किसी भी आकस्मिक दुर्घटना के समय, गृहिणियाँ घबराती नहीं, बल्कि सूझ-बूझ तथा जानकारी द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को, हर सम्भव (UPBoardSolutions.com) सहायता प्रदान करती हैं। परिवार के किसी सदस्य के बीमार हो जाने पर उसकी परिचर्या की व्यवस्था की जाती है। इस दृष्टिकोण से भी कहा जा सकता हैं कि गृह विज्ञान का अध्ययन विशेष महत्त्वपूर्ण है।

(8) वस्त्रों को तैयार करने तथा रख-रखाव के ज्ञान की प्राप्ति:
गृह विज्ञान में वस्त्रों की कटाई-सिलाई तथा मरम्मत आदि का प्रयोगात्मक रूप में अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ वस्त्रों की उचित धुलाई तथा संग्रह की विधियों को भी सिखाया जाता है। इन सबसे परिवार के सदस्यों के वस्त्र जहाँ एक ओर कम खर्चे में तैयार हो जाते हैं, वहीं वस्त्र अधिक समय तक अच्छी हालत में रहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में भी गृह विज्ञान का अध्ययन विशेष रूप से उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है।

(9) शारीरिक श्रम तथा सामाजिक कार्यों के प्रति रुचि जाग्रत करना:
गृह विज्ञान में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्य भी किए जाते हैं। इस प्रकार के प्रयोगात्मक कार्यों को करने से छात्रों में शारीरिक श्रम तथा सामाजिक कार्यों के प्रति भी रुचि उत्पन्न होती है। इस प्रवृत्ति से पूरे समाज को ही लाभ होता है।

(10) गृह विज्ञान का व्यावसायिक महत्त्व:
गृह विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने वाली छात्राओं के लिए गृह विज्ञान के अध्ययन का व्यावसायिक महत्त्व भी है। गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त छात्राओं के लिए विभिन्न व्यवसाय अपनाने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो सकते हैं; जैसे  बालवाड़ी एवं आँगनवाड़ी शिक्षिका, समाज-सेविका, प्राथमिक (UPBoardSolutions.com) चिकित्सा निर्देशिका, ग्राम-सेविका, परिवार नियोजन निर्देशिका, पोषण-विशेषज्ञा तथा गृह विज्ञान अध्यापिका आदि पद प्राप्त हो सकते हैं। ये समस्त व्यवसाय मानव एवं समाज-सेवा से सम्बद्ध हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह विज्ञान का व्यावसायिक महत्त्व भी उल्लेखनीय है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि गृह विज्ञान के अध्ययन का बहुपक्षीय महत्त्व एवं उपयोग है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि गृह विज्ञान का ज्ञान केवल बालिकाओं एवं महिलाओं के लिए ही उपयोगी नहीं है बल्कि इस ज्ञान से परिवार के सभी सदस्य लाभान्वित हो सकते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्पष्ट कीजिए कि गृह विज्ञान परिवार के सभी सदस्यों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
या
‘गृह विज्ञान केवल बालिकाओं के लिए ही नहीं वरन् लड़कों के लिए भी उपयोगी विषय है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारम्परिक रूप से यह माना जाता रहा है कि गृह विज्ञान केवल बालिकाओं एवं महिलाओं के लिए ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय है, किन्तु यह धारणा भ्रामक है। वास्तव में गृह विज्ञान का ज्ञान परिवार के सभी सदस्यों के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक पारिवारिक परिस्थितियों में गृह-व्यवस्था, गृह-सज्जा तथा परिवार की सुख-सुविधाओं में वृद्धि के लिए परिवार के सभी सदस्यों का समुचित योगदान आवश्यक होता है। इस स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों के लिए गृह विज्ञान का समुचित ज्ञान आवश्यक है। इसी तथ्य (UPBoardSolutions.com) को ध्यान में रखते हुए अब लड़कियों के अतिरिक्त लड़कों के लिए भी गृह विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लड़कों द्वारा अपनाए जाने वाले कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं, जिनमें गृह विज्ञान का अध्ययन एवं ज्ञान सहायक होता है। उदाहरण के लिए-होटल प्रबन्धन, खाद्य-संरक्षण तथा परिधान-निर्माण आदि कुछ ऐसे ही व्यवसाय हैं। इस स्थिति में हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान केवल बालिकाओं के लिए ही नहीं वरन् लड़कों के लिए भी समान रूप से उपयोगी विषय है।

प्रश्न 2:
स्पष्ट कीजिए कि गृह विज्ञान एक व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण विषय है।
उत्तर:
हम जानते हैं कि गृह विज्ञान वह व्यवस्थित अध्ययन है जिसके अन्तर्गत उन सभी विषयों का अध्ययन किया जाता है जो सुखी एवं आदर्श परिवार के निर्माण में सहायक होते हैं। पारिवारिक जीवन के अनेक पक्ष एवं क्षेत्र हैं; अतः गृह विज्ञान के अन्तर्गत ज्ञान के विभिन्न पक्षों एवं क्षेत्रों का अनिवार्य रूप से अध्ययन किया जाता है। गृह विज्ञान में गृह-प्रबन्ध एवं गृह-सज्जा, गृह कार्य-व्यवस्था, गृह अर्थव्यवस्था, सामान्य स्वास्थ्य एवं शरीर शास्त्र, प्राथमिक चिकित्सा एवं गृह-परिचर्या, आहार एवं पोषण विज्ञान, वस्त्र विज्ञान तथा पारिवारिक समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है। इस स्थिति में हम कह सकते हैं कि (UPBoardSolutions.com) गृह विज्ञान एक व्यापक विषय है।
गृह विज्ञान एक कोरा सैद्धान्तिक विषय नहीं है। इसके अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक जीवन को अधिक-से-अधिक सरल, सुविधाजनक एवं उत्तम बनाना है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही गृह विज्ञान को व्यावहारिक दृष्टिकोण से उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण बनाया गया है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत विभिन्न विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान को दैनिक जीवन में उपयोग में लाया जाता है तथा उससे लाभ प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान एक व्यापक तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण विषय है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह विज्ञान को इसके विकास के प्रथम चरण में किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
गृह विज्ञान को इसके विकास के प्रथम चरण में ‘गृह अर्थशास्त्र’ (Home Economics) के नाम से जाना जाता था

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प्रश्न 2:
वर्तमान समय में गृह विज्ञान को अन्य किन-किन नामों से भी जाना जाता है?
उत्तर:
वर्तमान समय में गृह विज्ञान को

  1.  ‘गृह विज्ञान तथा गृह-कला’
  2.  “घरेलू विज्ञान तथा गृह-कला’ तथा
  3.  गृह शिल्प एवं सम्बन्धित कला’ आदि नामों से भी जाना जाता है।

प्रश्न 3:
गृह विज्ञान के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान के मुख्य तत्त्वे चार हैं अर्थात् ‘परिवार के सदस्यों का बहुमुखी विकास, नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन’।

प्रश्न 4:
गृह विज्ञान के अध्ययन का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
गृह विज्ञान के अध्ययन का मुख्यतम उद्देश्य सुखी एवं आदर्श पारिवारिक जीवन व्यतीत करने के उपाय जानना है।

प्रश्न 5:
गृह विज्ञान की एक व्यवस्थित परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
“गृह विज्ञान वह व्यावहारिक विज्ञान है, जो अपने अध्ययनकर्ताओं को सफल पारिवारिक जीवन व्यतीत करने, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को हल करने और सुखमय जीवन-यापन करने की दशाओं का ज्ञान कराता है।

प्रश्न 6:
गृह विज्ञान के अध्ययन के किन्हीं चार केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. आगरा (उ० प्र०),
  2. पन्तनगर (उ० प्र०),
  3.  लेडी इरविन कॉलेज (दिल्ली ), तथा
  4. बंगलुरू (कर्नाटक)

प्रश्न 7:
गृह विज्ञान किस प्रकार का विज्ञान है?
उत्तर:
गृह विज्ञान एक सामान्य तथा व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान है।

प्रश्न 8:
परिवार में गृह विज्ञान के अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्व किसके लिए है?
उत्तर:
परिवार में गृह विज्ञान के अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्व गृहिणी के लिए है।

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प्रश्न 9:
पारिवारिक जीवन में गृह विज्ञान के ज्ञान के दो मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
पारिवारिकजीवन में गृह विज्ञान के ज्ञान के दो मुख्य लाभ हैं

  1. श्रम, समय एवं व्यय की बचत में सहायक तथा
  2. आर्थिक-नियोजन में सहायक।

प्रश्न 10:
क्या गृह विज्ञान का अध्ययन गृहिणी के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
गृह विज्ञान का अध्ययन एवं सम्बन्धित जानकारी परिवार के सभी सदस्यों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न में चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) ‘गृह विज्ञान’ से आशय है
(क) गृह-निर्माण,
(ख) घर-परिवार सम्बन्धी व्यवस्थित ज्ञान,
(ग) गृहिणियों का अध्ययन विषय,
(घ) घर को सजाने सँवारने का ज्ञान।

(2) गृह विज्ञान है
(क) शुद्ध विज्ञान,
(ख) शुद्ध कला,
(ग) विज्ञान एवं कला दोनों,
(घ) इनमें में से कोई नहीं।

(3) गृह विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है
(क) आहार एवं पोषण विज्ञान का,
(ख) आय एवं व्यय के नियोजन का,
(ग) वस्त्र एवं परिधान शास्त्र का,
(घ) सम्पूर्ण गृह-व्यवस्था का

(4) गृह विज्ञान का क्षेत्र होता है
(क) सीमित,
(ख) व्यापक,
(ग) व्यावहारिक,
(घ) अव्यावहारिक

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(5) गृह विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है
(क) गृह-प्रबन्ध का,
(ख) गृह अर्थव्यवस्था का,
(ग) आहार एवं पोषण का,
(घ) इन सभी का।

(6) गृह विज्ञान किस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है?
(क) केवल सैद्धान्तिक,
(ख) केवल व्यावहारिक,
(ग) सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(7) गृह विज्ञान उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है
(क) गृह विज्ञान की छात्राओं के लिए,
(ख) केवल गृहिणियों के लिए,
(ग) परिवार के सभी सदस्यों के लिए,
(घ) किसी के लिए भी नहीं।

उत्तर:
(1) (ख) घर-परिवार सम्बन्धी व्यवस्थित ज्ञान,
(2) (ग) विज्ञान एवं कला दोनों,
(3) (घ) सम्पूर्ण गृह-व्यवस्था को,
(4) (ख) व्यापक,
(5) (घ) इन सभी का,
(6) (ग) सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों,
(7) (ग) परिवार के सभी सदस्यों के लिए।

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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics (सांख्यिकी)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics (सांख्यिकी).

प्रश्नावली 14.1

प्रश्न 1. उन आँकड़ों के पाँच उदाहरण दीजिए जिन्हें आप दैनिक जीवन में एकत्रित कर सकते हैं।
हल :
दैनिक जीवन में संग्रह योग्य आँकड़े :

  1. अपनी कक्षा के 25 सहपाठियों द्वारा एक क्लास टेस्ट में प्राप्त अंकों का संग्रह।
  2. अपने परिवार के सदस्यों की आयु और उनकी लम्बाई सम्बन्धी आँकड़ों का संग्रह।
  3. कक्षा के छात्रों के परिवार के सदस्यों की संख्या का संग्रह।
  4. उद्यान में लगे 20 पौधों की लम्बाइयों का संग्रह।
  5. N.C.C. ऑफिसर से ऐसे छात्रों की सूची का संग्रह जिन्होंने N.C.C. कोर्स लिया है। ऐसे और भी अनेक उदाहरण सम्भव हैं।

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प्रश्न 2. ऊपर दिए गए प्रश्न 1 के आँकड़ों को प्राथमिक आँकड़ों या गौण आँकड़ों में वर्गीकृत कीजिए।
हल :
प्रश्न 1 में दिए गए प्रथम चार उदाहरण प्राथमिक आँकड़ों के हैं क्योकि इनका संग्रह स्वयं किया गया है। पाँचवाँ उदाहरण गौण आँकड़ों का है क्योकि उनका संग्रह स्वयं न करके एक कार्यालय की सूची से किया गया है।

प्रश्नावली 14.2

प्रश्न 1. आठवीं कक्षा के 30 विद्यार्थियों के रक्त समूह ये हैं :
A, B, O, O, AB, O, A, O, B, A, O, B, A, O, O, A, AB, O, A, A, O, O, AB, B, A, O, B, A, B, O
इन आँकड़ों को एक बारम्बारता बण्टन सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए। बताइए कि इन विद्यार्थियों में कौन-सा रक्त समूह अधिक सामान्य है और कौन-सा रक्त समूह विरलतम रक्त समूह है।
हल :
यहाँ A, B, O, AB चार रक्त समूह हैं जिनकी उपस्थिति का 30 विद्यार्थियों के रक्त में परीक्षण किया गया है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-1
स्पष्ट है कि अधिकतम बारम्बारता वाला रक्त समूह अर्थात रक्त समूह 0 अधिक सामान्य है और न्यूनतम बारम्बारता वाला रक्त समूह अर्थात रक्त समूह AB विरलतम है।

प्रश्न 2. 40 इंजीनियरों की उनके आवास से कार्य-स्थल की ( किलोमीटर में) दूरियाँ ये हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-2
0 – 5 को (जिसमें 5 सम्मिलित नहीं है) पहला अन्तराल लेकर ऊपर दिए हुए आँकड़ों से वर्ग-माप 6 वाली एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन सारणी बनाइए। इस सारणीबद्ध निरूपण में आपको कौन-से मुख्य लक्षण देखने को मिलते हैं?
हल : इंजीनियरों के आवास से उनके कार्यालय की न्यूनतम दूरी = 2 किमी
अधिकतम दूरी = 32 किमी
दूरी का परिसर = 32 – 2 = 30 किमी
वर्गों की संख्या = [latex]\frac { 30 }{ 5 }[/latex] + 1 = 6 + 1 = 7
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-3
मुख्य लक्षण : यहाँ हम देखते हैं कि उक्त सारणी में वर्ग अनतिव्यापी (non-overlapping) हैं तथा चार इंजीनियरों के कार्यालय उनके आवास से सामान्यतः अधिक दूर हैं।

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प्रश्न 3. 30 दिन वाले महीने में एक नगर की सापेक्ष आर्द्रता (% में) यह रही है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-4
(i) वर्ग 84-86, 86-88 आदि लेकर एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन बनाइए।
(ii) क्या आप बता सकते हैं कि ये आँकड़े किस महीने या ऋतु से सम्बन्धित हैं?
(iii) इन आँकड़ों का परिसर क्या है?
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-5
(ii) इन आँकड़ों में उल्लिखित आर्द्रता सामान्य से अधिक है। अत: ये आँकड़े वर्षा ऋतु के किसी महीने में संकलित किए गए हैं।
(iii) परिसर = आँकड़ों का अधिकतम मान – आँकड़ों का न्यूनतम मान = 99.2 – 84.9 = 14.3.

प्रश्न 4. निकटतम सेन्टीमीटरों में मापी गई 50 विद्यार्थियों की लम्बाइयाँ ये हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-6
(i) 160 – 165, 165 – 170 आदि का वर्ग अन्तराल लेकर ऊपर दिए गए आँकड़ों को एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन सारणी के रूप में निरूपित कीजिए।
(ii) इस सारणी की सहायता से आप विद्यार्थियों की लम्बाइयों के सम्बन्ध में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
हल :
(i) सबसे कम लम्बाई = 150 सेमी
सबसे अधिक लम्बाई = 173 सेमी
लम्बाई का परिसर = 173 – 150 = 23 सेमी
वर्ग का आमाप = 5 सेमी
वर्गों की संख्या = [latex]\frac { 23 }{ 5 }[/latex] = 5 और प्रथम वर्ग (150-155)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-7
(ii) निष्कर्ष : (a) अधिकांश छात्रों की लम्बाई 165 सेमी से कम है।
(b) 50% से अधिक विद्यार्थी (अर्थात 12 + 9 + 14 = 35) 165 सेमी से छोटे हैं तथा 5 छात्रों की लम्बाई 170 सेमी से अधिक है।

प्रश्न 5. एक नगर में वायु में सल्फर डाइऑक्साइड का सान्द्रण भाग प्रति मिलियन [parts per million (ppm)] में ज्ञात करने के लिए एक अध्ययन किया गया। 30 दिनों के प्राप्त किए गए आँकड़े ये हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-8
(i) 0.00 – 0.04, 0.04 – 0.08 आदि का वर्ग-अन्तराल लेकर इन आँकड़ों की एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन सारणी बनाइए।
(ii) सल्फर डाइऑक्साइड की सान्द्रता कितने दिन 0.11 भाग प्रति मिलियन से अधिक रही?
हल :
(i) अधिकतम सान्द्रण = 0.22 ppm
निम्नतम सान्द्रण = 0.01 ppm
सान्द्रण का परिसर = 0.22 – 0.01 = 0.21 ppm
वर्ग का आमाप = 0.04 ppm
वर्गों की संख्या = [latex]\frac { 0.21 }{ 0.04 }[/latex] = 5 और प्रथम वर्ग (0.00 – 0.04)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-9
(ii) सल्फर डाइऑक्साइड का सान्द्रण 0.11 भाग प्रति मिलियन से अधिक सीमा वाले वर्ग और उनकी बारम्बारता
वर्ग 0.12 – 0.16 बारम्बारता 02
वर्ग 0.16 – 0.20 बारम्बारता 04
वर्ग 0.20 – 0.24 बारम्बारता 02
अतः सल्फर डाइऑक्साइड को वायु में सान्द्रण 0.11 भाग प्रति मिलियन से अधिक 8 दिनों तक रहा।

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प्रश्न 6. तीन सिक्कों को एक साथ 30 बार उछला गया। प्रत्येक बार चित (Head) आने की संख्या निम्न प्रकार है :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-10
उपर्युक्त आँकड़ों के लिए एक बारम्बारता बण्टन सारणी बनाइए।
हल : चित आने की न्यूनतम संख्या = 0 और अधिकतम संख्या = 3
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-11

प्रश्न 7. 50 दशमलव स्थान तक शुद्ध का मान नीचे दिया गया है।
3.14159265358979323846264338327950288419716939937510
(i) दशमलव बिन्दु के बाद आने वाले 0 से 9 तक के अंकों का एक बारम्बारता बण्टन बनाइए।
(ii) सबसे अधिक बार और सबसे कम बार आने वाले अंक कौन-कौन से हैं?
हल :
(i) 0 से 9 तक के अंकों की बारम्बारता बण्टन सारणी
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-12
(ii) सारणी से स्पष्ट है कि सबसे कम अर्थात 2 बार शून्य (0) का अंक और सबसे अधिक अर्थात 8 बोर 3 व 9 अंक आए हैं।

प्रश्न 8. तीस बच्चों से यह पूछा गया कि पिछले सप्ताह उन्होंने कितने घण्टों तक टी०वी० के प्रोग्राम देखे। प्राप्त परिणाम ये रहे हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-13
(i) वर्ग चौड़ाई 5 लेकर और एक वर्ग अन्तराल को 5 -10 लेकर इन आँकड़ों की एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन सारणी बनाइए।
(ii) कितने बच्चों ने सप्ताह में 15 या अधिक घण्टों तक टेलीविजन देखा?
हल :
(i) न्यूनतम घण्टे = 1, अधिकतम घण्टे = 17
घण्टों का परिसर = 17 – 1 = 16
वर्ग का आमाप = 5
वर्गों की संख्या = [latex]\frac { 16 }{ 5 }[/latex] + 1 = 3 + 1 = 4
वर्ग 0 – 5, 5 – 10, 10 – 15 व 15 – 20 होंगे।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-14
(ii) सारणी से स्पष्ट है कि 2 बच्चों ने 15 या अधिक घण्टों से अधिक टी०वी० देखी।

प्रश्न 9. एक कम्पनी एक विशेष प्रकार की कार-बैट्री बनाती है। इस प्रकार की 40 बैट्रियों के जीवन-काल (वर्षों में) ये रहे हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-15
0.5 माप के वर्ग अन्तराल लेकर तथा अन्तराल 2 – 2.5 से प्रारम्भ करके इन आँकड़ों की एक वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन सारणी बनाइए।
हल : अधिकतम जीवन-काल = 4.6 वर्ष
न्यूनतम जीवन-काल = 2.2 वर्ष
जीवन-काल का परिसर = 4.6 – 2.2 = 2.4 वर्ष
वर्ग का आमाप = 0.5
वर्गों की संख्या = [latex]\frac { 2.4 }{ 0.5 }[/latex] + 2 = 4 + 2 = 6
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-16

प्रश्नावली 14.3

प्रश्न 1. एक संगठन ने पूरे विश्व में 15-44(वर्षों में) की आयु वाली महिलाओं में बीमारी और मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए किए गए सर्वेक्षण से निम्नलिखित आँकड़े (% में) प्राप्त किए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-17
(i) ऊपर दी गई सूचनाओं को आलेखीय रूप में निरूपित कीजिए।
(ii) कौन-सी अवस्था पूरे विश्व की महिलाओं के खराब स्वास्थ्य और मृत्यु का बड़ा कारण है?
(iii) अपनी अध्यापिका की सहायता से ऐसे दो कारणों का पता लगाने का प्रयास कीजिए जिनकी ऊपर (ii) में मुख्य भूमिका रही हो।
हल :
(i) दी गई सूचनाओं का आलेखीय निरूपण
बनाने की विधि :

  1. X – अक्ष व Y – अक्ष खींचिए।
  2. X – अक्ष पर उचित रिक्त स्थानों के बीच समान चौड़ाई रखते हुए महिलाओं में बीमारी और मृत्यु के कारण प्रदर्शित कीजिए।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-18
  3. Y – अक्ष पर बीमारियों के प्रतिशत को उचित पैमाना लेकर अंकित कीजिए। चित्र में 1 सेमी = 2% पैमाने से बीमारियों का प्रतिशत अंकित किया गया है।
  4. प्रत्येक कारण के सापेक्ष उसके प्रतिशत को एक ऐसे आयत द्वारा प्रदर्शित कीजिए जिसकी ऊँचाई बीमारी के प्रतिशत को और समान चौड़ाइयाँ बीमारी को व्यक्त करें।
  5. आयतों की ऊपरी चौड़ाइयों पर उनके द्वारा व्यक्त बीमारी के प्रतिशत लिख दीजिए।
    (ii) जनन स्वास्थ्य अवस्था का प्रतिशत (31.8) सर्वाधिक है।
    अत: यह पूरे विश्व की महिलाओं के खराब स्वास्थ्य । और मृत्यु का बड़ा कारण है।
    (iii) (a) पुनरुत्पादी स्वास्थ्य अवस्था, (b) अपरिपक्व आयु में प्रजनन।

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प्रश्न 2. भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की (निकटतम दस तक की) संख्या के आँकड़े अग्रलिखित दिए गए हैं:
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-19
(i) ऊपर दी गई सूचनाओं को एक दण्ड आलेख द्वारा निरूपित कीजिए।
(ii) कक्षा में चर्चा करके, बताइए कि आप इस आलेख से कौन-कौन से निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
हल :
(i) दण्ड चित्र (आलेख) बनाने की विधि

  1. पहले X – अक्ष व Y – अक्ष खींचिए।
  2. X – अक्ष पर समान रिक्त स्थानों के बीच किसी समान चौड़ाई के भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्र प्रदर्शित कीजिए।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-20
  3. Y – अक्ष पर प्रति हजार लड़कों के सापेक्ष लड़कियों की स्थिति प्रदर्शित करना है। इसके लिए उचित पैमाना लेकर Y – अक्ष पर मापन के (मानक) विभिन्न स्तर अंकित कर दीजिए। चित्र में 900 तक की संख्या को स्थिर ऊँचाई लिया गया है।
    और अगले 100 के लिए 10 (की संख्या) को 1 सेमी से प्रदर्शित किया गया है।
  4. समान चौड़ाई के भिन्न क्षेत्रों के प्रत्येक 1000 पर लड़कियों की संख्या को आयतों द्वारा प्रदर्शित कीजिए। प्रति हजार पर लड़कियों की संख्या आयतों की ऊँचाइयों को व्यक्त करती है।
  5. प्रत्येक आयत की चौड़ाई के ऊपरी भाग पर सम्बन्धित लड़कियों की संख्या अंकित कीजिए और आयतों को उचित शेड या रंग भरकर सुस्पष्ट कीजिए।

(ii) आलेख के निष्कर्ष

  1. अन्य जातियों की अपेक्षा अनुसूचित जनजाति में (प्रति हजार लड़कों पर) लड़कियों की संख्या अधिक है।
  2. गैर-पिछड़े जिलों के सापेक्ष पिछड़े जिलों में (प्रति हजार लड़कों पर) लड़कियों की संख्या अधिक है।
  3. शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में (प्रति हजार लड़कों पर) लड़कियों की संख्या अधिक है।

प्रश्न 3. एक राज्य के विधान सभा के चुनाव में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों द्वारा जीती गई सीटों के परिणाम नीचे दिए गए हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-21
(i) मतदान के परिणामों को निरूपित करने वाला एक दण्ड आलेख खींचिए।
(ii) किस राजनैतिक पार्टी ने अधिकतम सीटें जीती हैं?
हल :
(i) बनाने की विधि

  1. X – अक्ष ब Y – अक्ष खींचिए।
  2. एक-दूसरे के बीच समान और उचित रिक्त स्थान छोड़कर समान चौड़ाई के आधारों द्वारा X – अक्ष पर राजनैतिक पार्टियों को प्रदर्शित कीजिए।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-22
  3. Y-अक्ष पर राजनैतिक पार्टियों द्वारा जीती गई सीटें प्रदर्शित करना है। पैमाना : 1 सेमी = 10 सीटें लेकर सीटों के लिए मापन स्केल अंकित कीजिए।
  4. विभिन्न पार्टियों के लिए निर्धारित एवं प्रदर्शित आधारों पर उनमें से प्रत्येक के लिए जीती गई सीटों की संख्या के सापेक्ष ऊँचाई के आयत बनाइए।
  5. आयतों की ऊपरी चौड़ाई पर जीती गई सीटों की संख्या अंकित कीजिए। दण्ड आलेख पूर्ण हो गया।
    (ii) चूँकि जीती गई सीटों की संख्या आयतों की ऊँचाई के अनुक्रमानुपाती है और पार्टी A के लिए प्रदर्शित आयत की ऊँचाई सबसे अधिक है। अतः पार्टी A ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं।

प्रश्न 4. एक पौधे की 40 पत्तियों की लम्बाइयाँ एक मिलीमीटर तक शुद्ध मापी गई हैं और प्राप्त आँकड़ों को निम्नलिखित सारणी में निरूपित किया गया है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-23
(i) दिए हुए आँकड़ों को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खींचिए।
(ii) क्या इन्हीं आँकड़ों को निरूपित करने वाला कोई अन्य उपयुक्त आलेख है?
(iii) क्या यह सही निष्कर्ष है कि 153 मिलीमीटर लम्बाई वाली पत्तियों की संख्या सबसे अधिक है? क्यों?
हल :
(i) आयत चित्र बनाने की विधि

  1. दिए गए आँकड़ों के वर्ग असतत हैं। इन्हें सतत बनाइए।
    किसी वर्ग की ऊपरी सीमा तथा इसके क्रमागत वर्ग की निम्न सीमा का अन्तर = 127 – 126 = 1
    इस अन्तर का आधा = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] = 0.5
    अब, प्रत्येक वर्ग की निम्न सीमा में से 0.5 घटाते हैं तथा ऊपरी सीमा में 0.5 जोड़ते हैं। इस प्रकार हमें निम्न वर्ग–अन्तराल प्राप्त होते हैं।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-24
  2. X – अक्ष व Y – अक्ष खींचिए।
  3. X – अक्ष पर (सतत) वर्ग प्रदर्शित कीजिए। दो क्रमागत वर्गों के बीच रिक्त स्थान न छोड़िए।
  4. Y – अक्ष पर उचित पैमाना लेकर (पत्तियों की लम्बाई) बारम्बारताओं के लिए मापन स्केल अंकित कीजिए। वर्गों पर पत्तियों की संख्या के अनुपात में ऊँचाई व्यक्त करने वाले आयत प्रदर्शित कीजिए। उचित पैमाने का प्रयोग कीजिए। आवश्यक गणना अग्रवत् कीजिए :
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-25
  5. आयतों के ऊपरी सिरों पर सम्बन्धित वर्गों की बारम्बारताएँ अंकित कीजिए।

(ii) हाँ, इन आँकड़ों को बारम्बारता बहुभुज द्वारा भी निरूपित किया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-26
(iii) वर्ग (144.5 – 153.5) मिमी के अन्तर्गत 153 मिमी आता है;
अत: इस वर्ग की बारम्बारता सबसे अधिक है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि 153 मिमी लम्बाई की पत्तियों की संख्या सबसे अधिक हो। क्योंकि यह अधिकतम बारम्बारता 144.5 मिमी से 153.5 मिमी तक के पूरे वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है न कि मात्र 153 मिमी का।

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प्रश्न 5. नीचे की सारणी में 400 निऑन लैम्पों के जीवन-काल दिए गए हैं :
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(i) एक आयतचित्र की सहायता से दी हुई सूचनाओं को निरूपित कीजिए।
(ii) कितने लैम्पों के जीवन-काल 700 घण्टों से अधिक हैं?
हल :
(i) बनाने की विधि

  1. X-अक्ष पर जीवन-काल वर्गों को प्रदर्शित कीजिए जिनमें प्रत्येक की चौड़ाई 100 है।
  2. Y-अक्ष पर लैम्पों की संख्या को प्रदर्शित कीजिए।
  3. वर्गों की चौड़ाई को आधार मानकर और लैम्पों की संख्या को ऊँचाई मानकर लिए गए पैमानों के सापेक्ष आयत बनाइए और आयतचित्र आलेख को पूरा कीजिए।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-28

(ii) वर्ग (700-800), (800-900) व (900-1000), 700 से अधिक घण्टों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
700 घण्टों से अधिक जीवन-काल वाले लैम्पों की संख्या = सम्बन्धित वर्षों की बारम्बारताओं को योग = 74 + 62 + 48 = 184 लैम्प।

प्रश्न 6. नीचे की दो सारणियों में प्राप्त किए गए अंकों के अनुसार दो सेक्शनों के विद्यार्थियों का बण्टन दिया गया है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-29
दो बारम्बारता बहुभुजों की सहायता से एक ही आलेख पर दोनों सेक्शनों के विद्यार्थियों के प्राप्तांक निरूपित कीजिए। दोनों बहुभुजों का अध्ययन करके दोनों सेक्शनों के निष्पादनों की तुलना कीजिए।
हल :
बारम्बारता बहुभुज बनाने की विधि
(1) X-अक्ष व Y-अक्ष खींचे।
(2) X-अक्ष पर दिए हुए अंक वर्ग प्रदर्शित किए।
(3) Y-अक्ष पर पैमाना : 1 सेन्टीमीटर = 2 विद्यार्थी के अनुरूप मापन स्केल अंकित किया।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-30
(4) प्रथम वर्ग के ठीक पूर्व और अन्तिम वर्ग के ठीक पश्चात् एक-एक वर्ग की कल्पना की और इनके मध्य-बिन्दु A तथा G अंकित किए।
(5) दिए गए वर्गों के सापेक्ष उनके मध्य-बिन्दु क्रमशः ज्ञात किए।
(6) प्रत्येक वर्ग के मध्य-बिन्दु को भुज और बारम्बारता को कोटि मान कर वर्ग के सापेक्ष एक-एक बिन्दु ज्ञात किया जैसा कि नीचे दिखाया गया है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-31
(7) दोनों सेक्शनों A और B के लिए बिन्दुओं B, C, D, E, F वे B’, C’, D’, E’, F’ को आलेखित किया।
(8) इन्हें क्रम से मिलाकर सेक्शन A के लिए बारम्बारता बहुभुज आलेख A B C D E F G A खींचा और सेक्शन B के लिए बारम्बारता बहुभुज आलेख A B C’ D’ E’ F’ G A खींचा। आलेखों के अध्ययन से निष्कर्ष
दोनों आलेखों में सेक्शन A के उच्च स्तर के बिन्दु D, E, F सेक्शन B के समान स्तरीय बिन्दुओं D’, E’, F’ से अधिक ऊँचाई पर हैं।
अतः सेक्शन A का सेक्शन B के सापेक्ष परिणाम उन्नत है।

प्रश्न 7. एक क्रिकेट मैच में दो टीमों A और B द्वारा प्रथम 60 गेंदों में बनाए गए रन नीचे दिए गए हैं :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-32
बारम्बारता बहुभुजों की सहायता से एक ही आलेख पर दोनों टीमों के आँकड़े निरूपित कीजिए।
हल :
बारम्बारता बहुभुज आलेख बनाने की विधि

  1. X-अक्ष व Y-अक्ष खींचे।
  2. दिए हुए वर्ग असतत हैं। प्रत्येक वर्ग की निम्न सीमा में 0.5 घटाकर और उपरि सीमा में 0.5 जोड़कर इन्हें सतत बनाया।
    किसी वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उसके क्रमागते वर्ग की निम्न सीमा का अन्तर = 7 – 6 = 1
    इस अन्तर का आधा = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] = 0.5 है।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-33
  3. X-अक्ष पर वर्गों की सीमाओं को प्रदर्शित किया।
  4. Y-अक्ष पर टीमों द्वारा बनाए गए रनों को प्रदर्शित करना है। मापन स्केल अंकित किया।
  5. प्रथम वर्ग (0.5-6.5) के ठीक पूर्व एक कल्पित वर्ग लेकर उसका मध्य-बिन्दु A ज्ञात किया।
  6. अन्तिम वर्ग (54.5- 60.5) के ठीक पश्चात् एक कल्पित वर्ग लेकर उसका मध्य-बिन्दु L ज्ञात किया।
  7. प्रत्येक वर्ग के मध्य-बिन्दु क्रमशः 3.5, 9.5, 15.5, 21.5, 27.5, 33.5, 39.5, 45.5, 51.5 व 57.5 ज्ञात किए।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-34
  8. टीम A व टीम B के लिए अलग-अलग प्रत्येक वर्ग के मध्य बिन्दु और उसकी बारम्बारता के सापेक्ष एक-एक बिन्दु ज्ञात किया जैसा कि सारणी में दिखाया गया है।
    UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-35
  9. टीम A के लिए बिन्दुओं B, C, D, E, F, G, H, I, J, K का आलेखन किया।
  10. इन्हें क्रम से मिलाकर टीम A के लिए बारम्बारता बहुभुज आलेख A B C D E F G H I J K L A प्राप्त किया।
  11. टीम B के लिए बिन्दुओं B, C, D, E, F, G’, H’, I’, J, K’ का आलेखन किया।
  12. इन्हें क्रम से मिलाकर टीम B के लिए बारम्बारता बहुभुज A B C D E F G H I J K L A प्राप्त किया।

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प्रश्न 8. एक पार्क में खेल रहे विभिन्न आयु वर्गों के बच्चों की संख्या का एक यादृच्छिक सर्वेक्षण (random survey) करने पर निम्नलिखित आँकड़े प्राप्त हुए है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-36
उपर्युक्त आँकड़ों को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खींचिए।
हल :
बनाने की विधि

  1. X-अक्ष तथा Y-अक्ष खींचा।
  2. X-अक्ष पर आयु-वर्ग (1-2), (2-3), (3-5), (5-7), (7-10), (10-15) तथा (15-17) प्रदर्शित किया।
  3. यहाँ वर्गों की चौड़ाइयाँ क्रमशः 1,1, 2, 2, 3, 5 व 2 अर्थात असमान हैं जिसमें न्यूनतम चौड़ाई 1 है।
  4. वर्गों की चौड़ाई के सापेक्ष आयतों की लम्बाई के लिए एक सारणी निम्नवत् बनाई।
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  5. प्रत्येक वर्ग की चौड़ाई पर उसके लिए आगणित लम्बाई का आयत बनाकर अभीष्ट आयतचित्र प्राप्त किया।
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प्रश्न 9. एक स्थानीय टेलीफोन निर्देशिका से 100 कुलनाम (surname) यदृच्छया लिए गए और उनसे अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों की संख्या का निम्न बारम्बारता बण्टन प्राप्त किया गया।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-39
(i) दी हुई सूचनाओं को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खींचिए।
(ii) वह वर्ग अन्तराल बताइए जिसमें अधिकतम संख्या में कुलनाम हैं।
हल :
(i) बनाने की विधि

  1. X-अक्ष तथा Y-अक्ष खींचे।
  2. X-अक्ष पर दिए हुए वर्ग (1 – 4), (4 – 6), (6 – 8), (8 – 12) व (12 – 20) प्रदर्शित किए।
  3. यहाँ वर्गों की चौड़ाई परिवर्ती अर्थात 3, 2, 2, 4 व 8 है। न्यूनतम चौड़ाई वाला वर्ग 4-6 अथवा 6-8 है जिसकी चौड़ाई 2 है।
  4. वर्गों की दी गई बारम्बारता के सापेक्ष आयतों की लम्बाई के लिए सारणी निम्नवत् बनाई।
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  5. प्रत्येक वर्ग चौड़ाई पर उसके आगणित लम्बाई के आयत बनाए। इस प्रकार अभीष्ट आयतचित्र प्राप्त हुआ।
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(ii) सारणी से स्पष्ट है कि वर्ग अन्तराल (6 – 8) में अधिकतम अर्थात 44 कुलनाम हैं।

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प्रश्नावली 14.4

प्रश्न 1. एक टीम ने फुटबॉल के 10 मैचों में निम्नलिखित गोल किए :
2, 3, 4, 5, 0, 1, 3, 3, 4, 3
इन गोलों के माध्य, माध्यक और बहुलक ज्ञात कीजिए।
हल : टीम द्वारा फुटबॉल के 10 मैचों में किए गए गोल :
2, 3, 4, 5, 0, 1, 3, 3, 4, 3
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-42
यहाँ 0,1, 2 व 5 की बारम्बारता = 1 है;
4 की बारम्बारता = 2 है;
3 की बारम्बारता = 4 है।
स्पष्ट है कि 3 की बारम्बारता सर्वाधिक है।
बहुलक = 3
अतः माध्य = 2: 8; माध्यक = 3 और बहुलक = 3

प्रश्न 2. गणित की परीक्षा में 15 विद्यार्थियों ने (100 में से ) निम्नलिखित अंक प्राप्त किए।
41, 39, 48, 52, 46, 62, 64, 40, 96, 52, 98, 40, 42, 52, 60
इन आँकड़ों के माध्य, माध्यक और बहुलक ज्ञात कीजिए।
हल : 15 विद्यार्थियों के प्राप्तांक :
41, 39, 48, 52, 46, 62, 64, 40, 96, 52, 98, 40, 42, 52, 60
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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 14 Statistics img-44

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रेक्षणों को आरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है। यदि आँकड़ों का माध्यक 63 हो तो का मान ज्ञात कीजिए।
29, 32, 48, 50, x, x + 2, 72, 78, 84, 95
हल : दिए गए प्रेक्षण आरोही क्रम में व्यवस्थित हैं।
प्रेक्षणों की संख्या N = 10 (सम)
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प्रश्न 4. आँकड़ों 14, 25, 14, 28, 18, 17, 18, 14, 23, 22, 14, 18 का बहुलक ज्ञात कीजिए।
हल :
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यहाँ पद 14 की बारम्बारता सर्वाधिक है; अत: बहुलक= 14

प्रश्न 5. निम्नलिखित सारणी से एक फैक्ट्री में काम कर रहे 60 कर्मचारियों का माध्य वेतन ज्ञात कीजिए :
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अत: फैक्टरी के 60 कर्मचारियों का माध्य वेतन = 5083.33

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प्रश्न 6. निम्न स्थिति पर आधारित एक उदाहरण दीजिए :
(i) माध्य ही केन्द्रीय प्रवृत्ति का उपयुक्त माप है।
(ii) माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का उपयुक्त माप नहीं है, जबकि माध्यक एक उपयुक्त माप है।
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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
उत्तर:

  1. लोगों की आर्थिक स्थिति ने उनके वस्त्रों में अंतर ला दिया।
  2. स्त्रियों में सौन्दर्य की भावना ने उनके वस्त्रों में परिवर्तन ला दिया।
  3. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  4. राजतंत्र व शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
  5. फ्रांसीसी क्रान्ति ने सम्प्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  6. फ्रांस के रंग लाल, नीला तथा सफेद, देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन तीनों रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  7. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियाँ अलग-अलग थीं।
  8. तंग लिबास व कॉर्सेट पहनने से युवतियों में अनेक बीमारियाँ तथा विरूपताएँ आने लगीं थीं।
  9. यूरोप में सस्ते व अपेक्षाकृत सुंदर भारतीय वस्त्रों की माँग बढ़ गयी थी।
  10. फांसीसी क्रान्ति के उपरान्त फ्रांस में महिलाएँ और पुरुष दोनों ही आरामदेह व ढीले-ढाले वस्त्र पहनने लगे थे, जिनका अन्य यूरोपीय देशों पर प्रभाव पड़ा।

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प्रश्न 2.
फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून क्या थे?
उत्तर:
सन् 1294 से 1789 ई0 की फ्रांसीसी क्रान्ति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित (UPBoardSolutions.com) करने का प्रयास किया गया। फ्रांसीसी समाज के विभिन्न वर्गों के लोग किस प्रकार के वस्त्र पहनेंगे इसका निर्धारण विभिन्न कानूनों द्वारा किया जाता था।
इन कानूनों को सम्प्चुअरी कानून (पोशाक संहिता) कहा जाता था। फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून इस प्रकार थे-

  1. किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर द्वारा यह निर्धारित होता था कि कोई व्यक्ति एक वर्ष में कितने कपड़े खरीद सकता था।
  2. साधारण व्यक्तियों द्वारा कुलीनों जैसे कपड़े पहनने पर पूर्ण पाबंदी थी।
  3. शाही खानदान तथा उनके संबंधी ही बेशकीमती कपड़े (एमइन, फर, रेशम, मखमल अथवा जरी आदि) पहनते थे।
  4. निम्न वर्गों के लोगों को खास-खास कपड़े पहनने, विशेष व्यंजन खाने, खास तरह के पेय (मुख्यतः शराब) पीने और शिकार खेलने की अनुमति नहीं थी।

यथार्थ में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को प्रदर्शित करने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए रेशम, फर, एर्माइन मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इसका प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 3.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच दो फर्क बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय और भारतीय पोशाक संहिता के बीच दो अंतर निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय पोशाक संहिता में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था जबकि भारतीय पोशाक संहिता में आरामदेह तथा ढीले- ढाले वस्त्रों को अधिक महत्त्व दिया जाता था।
  2. यूरोपीय पोशाक संहिता कानूनी समर्थन पर आधारित थी, जबकि भारतीय पोशाक संहिता को सामाजिक समर्थन प्राप्त था।
  3. यूरोप के लोग हैट पहनते थे जिसे वे स्वयं से उच्च सामाजिक स्तर के लोगों के सामने सम्मान प्रकट करने के लिए उतारते थे जबकि भारत के लोग अपने को गर्मी से बचाने के लिए पगड़ी पहनते थे और यह सम्मान का सूचक थी। इसे इच्छानुसार बार-बार नहीं उतारा जाता था।

प्रश्न 4.
1805 में अंग्रेज अफसर बेंजमिन होइन ने बंगलोर में बनने वाली चीजों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे-

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े।
  • मोटी छींट।
  • मखमल।
  • रेशमी कपड़े।

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे, और क्यों?
उत्तर:
20वीं सदी के प्रारंभिक देशकों में इनमें से रेशमी और मखमल के कपड़ों का प्रयोग सीमित हो गया होगा क्योंकि-

  1. यह कपड़े यूरोपीय कपड़ों की तुलना में बहुत महंगे थे।
  2. स्वदेशी आंदोलन ने लोगों में रेशमी वस्त्रों का त्याग करने को प्रेरित किया।
  3. इस समय तक इंग्लैण्ड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का व सस्ता था।

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प्रश्न 5.
उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
19वीं सदी में भारत में केवल उन्हीं उच्च वर्गीय भारतीयों ने पश्चिमी कपड़े पहनना आरंभ किया जो अंग्रेजों के संपर्क में आए थे। साधारण भारतीय समुदाय इस काल में परंपरागत भारतीय वस्त्रों को ही पहनता था। हमारा समाज मुख्यतः पुरुष प्रधान है और महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पारिवारिक सम्मान को बनाए रखें। उनसे सुशील एवं अच्छी गृहिणी बनने की अपेक्षा की जाती थी। वे पुरुषों जैसे वस्त्र (UPBoardSolutions.com) नहीं पहन सकती थीं और इसलिए, उन्होंने पारंपरिक परिधान पहनना जारी रखा। यह सीधे तौर पर महिलाओं को समाज में निम्न दर्जा हासिल होने का सूचक है। इस काल में साधारण महिलाओं की सामाजिक स्थिति घरेलू जिम्मेदारियों के निर्वहन तक ही सीमित थी परंतु उच्च वर्गीय महिलाएँ शिक्षित होने के साथ-साथ राजनीति तथा समाजसेवा जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों से जुड़ी हुई थीं।

प्रश्न 6.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गाँधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील से ज्यादा कुछ नहीं हैं और ‘अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं। चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गाँधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
इस समय महात्मा गाँधी की छवि भारतीय जनता में एक ‘महात्मा’ एवं मुक्तिदाता के रूप में उभर रही थी। गाँधी जी की वेशभूषा सादगी, पवित्रता और निर्धनता का प्रतीक थी जो भारतीय जनता के विचारों और स्थिति को प्रतिबिम्बित करती थी। इस कारण महात्मा गाँधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति चर्चिल के साम्राज्यवाद का विरोध करती हुई प्रतीत हुई और उन्होंने महात्मा गाँधी के विषय में प्रश्नगत् टिप्पणी की।

प्रश्न 7.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गाँधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर:
प्रत्येक भारतीय को खादी के वस्त्र पहनाने का आँधीजी का स्वप्न कुछ हिस्सों तक सीमित रहने के निम्नलिखित कारण थे-

  1. भारत का उच्च अभिजात्य वर्ग मोटी खादी के स्थान पर हल्के व बारीक कपड़े पहनना पसंद करता था।
  2. अनेक भारतीय पश्चिमी शैली के वस्त्रों को (UPBoardSolutions.com) पहनना आत्मसम्मान का प्रतीक मानते थे।
  3. सफेद रंग की खादी के कपड़े महंगे थे, तथा उनका रख-रखाव भी कठिन था, जिसके कारण निम्न वर्ग के मेहनतकश लोग इसे पहनने से बचते थे। इसलिए महात्मा गाँधी के विपरीत बाबा साहब अम्बेडकर जैसे अन्य राष्ट्रवादियों ने पाश्चात्य शैली का सूट पहनना कभी नहीं छोड़ा। सरोजनी नायडू और कमला नेहरू जैसी महिलाएँ भी हाथ से बुने सफेद, मोटे कपड़ों की जगह रंगीन व डिजाइनदार साड़ियाँ पहनती थीं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्मिका साड़ी देश के किस भाग में अधिक लोकप्रिय थी?
उत्तर:
यह साड़ी प्रमुख रूप से बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय थी।

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प्रश्न 2.
रवीन्द्रनाथ टैगोर किस पोशाक को राष्ट्रीय पोशाक के रूप में डिजाइन करना चाहते थे?
उत्तर:
वे हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रमुख समुदायों के मेल से पोशाक डिजाइन करना चाहते थे, जिसमें बटनदार लंबा कोट पुरुषों के लिए सबसे उपयुक्त पोशाक थी।

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी ने लुंगी-कुर्ता पहनने का प्रयोग कब शुरू किया?
उत्तर:
1913 ई० में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में महात्मा गाँधी ने पहली बार यह परिधान धारण किया।

प्रश्न 4.
फ्रांस में सम्प्चुअरी कब से कब तक लागू रहे?
उत्तर:
फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून 1294 ई0 से 1789 ई0 तक प्रभावी रहा।

प्रश्न 5.
विक्टोरियाई समाज में महिलाओं की स्थिति बताइए। उत्तर- विक्टोरियाई समाज में बचपन से ही महिलाओं को आज्ञाकारी, खिदमती, सुशील तथा दब्बू होने की शिक्षा दी जाती थी। प्रश्न 6. पादुका सम्मान से क्या आशय है?
उत्तर:
अंग्रेजों की ऐसी सोच थी कि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान में घुसने से पहले जूते उतारते हैं, इसलिए किसी भी सरकारी संस्था में प्रवेश करने से पहले उन्हें जूते उतारने चाहिए। इस नियम को ‘पादुका सम्मान के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 7.
1870 ई0 के दशक में अमेरिका में पोशाक सुधार के समर्थकों के क्या विचार थे?
उत्तर:

  1. कपड़ों को सरल बनाया जाए।
  2. कार्सेट का परित्याग किया जाए।
  3. स्कर्ट की लंबाई छोटी की जाए।

प्रश्न 8.
त्रावणकोर रियासत की शनार जाति पर लागू प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. ऊँची जाति वालों के सामने शनार स्त्री-पुरुष शरीर के ऊपरी भाग को नहीं ढंक सकते थे।
  2. शनार लोग सोने के आभूषण नहीं पहन सकते थे।
  3. शंनार लोग जूते नहीं पहन सकते थे।
  4. शनार लोग छतरी लेकर नहीं चल सकते थे।

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प्रश्न 3.
20वीं सदी की शुरुआत में कृत्रिम रेशों से बने कपड़ों की माँग क्यों बढ़ गयी थी?
उत्तर:
ये कपड़े पूर्व प्रचलित कपड़ों की तुलना में सस्ते, हल्के, आरामदायक होते थे। इन कपड़ों को पहमनी और साफ करना आसान था।

प्रश्न 10.
दकियानूसी वर्ग के लोग क्यों पोशाक सुधार का विरोध कर रहे थे?
उत्तर:
उनका ऐसा मानना था कि इससे महिलाओं की शालीनता, खूबसूरती और जनानापन समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 11.
सम्प्चुअरी कानूनों के अंतर्गत राजा-रजवाड़े किस तरह की पोशाक पहन सकते थे?
उत्तर:
इस कानून के अन्तर्गत राजा-रजवाड़े एर्माइन, रेशम, फर, मखमल या जरी की बनी पोशाक ही पहन सकते थे।

प्रश्न 12.
विश्व युद्धों के कारण महिला परिधानों में आए किन्हीं दो बदलावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विश्व युद्धों के कारण महिला परिधानों में आए दो बदलाव –

  1. यूरोप में औरतों ने जेवर और बेशकीमती कपड़े पहनने छोड़ दिए।
  2. चटख रंगों के स्थान पर हल्के रंग के कपड़े पहने जाने लगे।

प्रश्न 13.
ब्रिटेन में नई सामग्री से नई प्रौद्योगिकी ने किस तरह के सुधार लाने में सहायता की?
उत्तर:
17वीं सदी से पहले फ्लैक्स, लिनेन या ऊन से बने बहुत कम कपड़े प्रयोग में लाए जाते थे। किंतु 1600 ई. के बाद भारत के साथ व्यापार के चलते सस्ती व रखरखाव में आसान भारतीय छींट यूरोप लाई गई। उन्नीसवीं सदी में यूरोप में अधिकाधिक लोगों की सूती कपड़ों तक पहुँच हो गई। बीसवीं (UPBoardSolutions.com) सदी के प्रारंभ तक सस्ते, टिकाऊ एवं रखरखाव तथा धुलाई में आसान कृत्रिम रेश से बने कपड़े प्रयोग किए जाने लगे।

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प्रश्न 14.
1830 के दशक में महिला पत्रिकाओं ने पारंपरिक वस्त्रों के पहनने से किस तरह के नकारात्मक प्रभावके बारे में बतलाया?
उत्तर:
महिला पत्रिकाओं ने बताना शुरू कर दिया कि तंग लिबास व कॉर्सेट पहनने से महिलाओं में विभिन्न तरह की बीमारियाँ और विरूपताएँ आ जाती हैं। ऐसे पहनावे जिस्मानी विकास में बाधा पहुँचाते हैं, इनसे रक्त प्रवाह भी अवरुद्ध होता है। मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ झुक जाती है।

प्रश्न 15.
इंग्लैण्ड की लड़कियों को बचपन में क्या शिक्षा दी जाती थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की लड़कियों को बचपन में घर व स्कूल में यह शिक्षा दी जाती थी कि पतली कमर रखना उनका नारी सुलभ कर्तव्य है। सहनशीलता स्त्रीत्व का आवश्यक गुण है। आकर्षक व स्त्रियोचित दिखने के लिए उनका कॉर्सेट पहनना आवश्यक था। इसके लिए शारीरिक कष्ट या यातना भोगना मामूली बात मानी जाती थी।

प्रश्न 16.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर:
जेकोबिन क्लब्ज के लोग स्वयं को सेन्स क्लोट्टीज कहते थे।

प्रश्न 17.
इंग्लैण्ड में नेशनल डेस सोसाइटी’ की स्थापना कब की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में सन् 1881 में नेशनल ड्रेस सोसाइटी की स्थापना की गयी।

प्रश्न 18.
स्वदेशी आंदोलन ने किस बात पर विशेष बल दिया?
उत्तर:
भारत में बने माल का अधिक-से-अधिक देशवासियों द्वारा प्रयोग और विदेशी माल का बहिष्कार।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भारत में 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक में बंगाल विभाजन के विरोधस्वरूप देश भर में स्वदेशी को अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के निमित्त एक जन-आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन के मूल में वस्त्रों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सस्ते और हल्के ब्रिटिश कपड़ों के प्रचलन के कारण बड़ी संख्या में भारतीय बुनकर बेरोजगार हो गए थे। जब लॉर्ड कर्जन ने 1905 ई० में बंगाल को विभाजित करने का फैसला किया तो ‘बंग-भंग की प्रतिक्रिया में स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ा। देशवासियों से अपील की गई कि वे तमाम तरह के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीजों को बनाने के लिए खुद उद्योग लगाएँ। खादी का इस्तेमाल देशभक्ति का कर्तव्य बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि रेशमी कपड़े व काँच की चूड़ियों को फेंक दें और शंख की चूड़ियाँ पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक प्रयास किए गए।

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प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारत पर राजनैतिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपने कपड़ा उद्योग को सुधारने के लिए किस प्रकार प्रयास किया?
उत्तर:
अंग्रेज सर्वप्रथम भारत में वस्त्रों को व्यापार करने के लिए आए थे। 17वीं शताब्दी तक विश्व के कुल वस्त्र उत्पादन का एक चौथाई भारत में होता था। किन्तु इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रान्ति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। इसके फलस्वरूप कच्चे माल के रूप में कपास और नील (UPBoardSolutions.com) की माँग बढ़ गयी। परिणामस्वरूप विश्व बाजार में भारत की स्थिति बदल गयी। वस्त्र निर्यातक भारत अब कच्चे माल का निर्यातक बन गया।
अंग्रेजों ने भारत पर राजनैतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए इसका दो तरीके से इस्तेमाल किया-

  1. वे भारतीय किसानों को नील जैसी फसल की खेती के लिए बाध्य कर पाए और अंग्रेजों द्वारा बनाया गया महीन वे सस्ता कपड़ा भारत में निर्मित मोटे कपड़े का स्थान लेने लगा।
  2. भारत पर राजनीतिक हुकूमत के सहारे ब्रिटेन ने भारतीय बाजार में सस्ते व मिल में बने हुए बारीक वस्त्र पेश किए।
    इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय वस्त्रों के माँग के अभाव में भारतीय बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए। मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम् और सूरत जैसे-प्रमुख सूती वस्त्र केन्द्रों का पतन हो गया जबकि इसी दौरान ब्रिटिश कपड़ा उद्योग केन्द्र का तेजी से विकास हुआ।

प्रश्न 3.
विक्टोरिया कालीन समाज में महिलाओं व पुरुषों की वस्त्र शैलियों की भिन्नता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों की शैलियों में पर्याप्त भिन्नता थी। इस काल में महिलाओं को बचपन से सुशील और आज्ञाकारी होने की शिक्षा दी जाती थी। आदर्श नारी उसे माना जाता था जो तमाम दुःख दर्द को सह कर भी चुप रहे। जहाँ पुरुषों से धीर-गंभीर, बलवान, आजाद और आक्रामक होने की उम्मीद की जाती थी वहीं औरतों को छुईमुई, निष्क्रिय व दब्बू माना जाता था। पहनावे के रस्मो-रिवाज में भी यह अंतर स्पष्ट रूप से झलकता था। बचपन से ही लड़कियों को सख्त फीतों से बँधे कपड़ों-स्टेज में (UPBoardSolutions.com) कसकर बाँधा जाता था जिससे उनका बदन इकहरा रहे। थोड़ी बड़ी होने पर लड़कियों को बदन से चिपके कॉर्सेट (चुस्त भीतरी कुर्ती) पहनने होते थे। टाइट फीतों से कसी पतली कमर वाली महिलाओं को आकर्षक, शालीन व सौम्य समझा जाता था। इस तरह विक्टोरियाई महिलाओं की अलग छवि बनाने में पोशाक ने अहम् भूमिका निभाई।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय महिलाओं के परिधान में क्या परिवर्तन आए?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध (1914) के शुरू होने के साथ ही महिलाओं के पारंपरिक महिला परिधानों की समाप्ति हो गयी।
इन परिवर्तनों के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. उन्नीसवीं शताब्दी तक बच्चो के नए स्कूल सादे वस्त्रों पर बल देने और साज-श्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्र पहनने पड़ते थे जो इनकी गतिविधि में बाधा न डालें। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।
  2. अनेक यूरोपीय महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का परित्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएँ अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  3. प्रथम विश्व युद्ध की अवधि में अनेक व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्रे छोटे हो गए। 1917 ई0 तक ब्रिटेन में 7,00,000 महिलाएँ गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगीं। कामगर महिलाएँ ब्लाउज, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जो बाद में खाकी (UPBoardSolutions.com) ओवरआल और टोपी में परिवर्तित हो गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलने-फिरने में अधिक आसानी हो गई।
  4. भड़कीले रंगों का स्थान सादे रंगों ने ले लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।

प्रश्न 5.
भारत में स्वदेशी आंदोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लॉर्ड कर्जन ने ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति बढ़ते विरोध को नियंत्रित करने के लिए बंगाल विभाजन का निर्णय किया। बंगाल विभाजन के इस कदम ने भी भारत में स्वेदशी आंदोलन को बढ़ावा दिया। लोगों ने भारत में प्रचलित प्रत्येक प्रकार के विदेशी सामान का विरोध और बहिष्कार करना आरंभ किया। उन्होंने खादी का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया, यद्यपि यह मोटी, महँगी तथा रखरखाव में कठिन होती थी। उन्होंने माचिस एवं सिगरेट आदि सामानों के लिए अपने स्वयं के उद्योग स्थापित कर दिए। खादी का प्रयोग देशभक्ति के लिए कर्तव्य बन गया। महिलाओं ने अपने रेशमी कपड़े व काँच की चूड़ियाँ फेंक दीं और सादी शंख की चूड़ियाँ धारण करने लगीं। खुरदरे घर में बनाए गए कपड़ों को लोकप्रिय बनाने के लिए गीतों एवं कविताओं के माध्यम से इनका गुणगान किया गया। इसकी खामियों के बावजूद स्वदेशी के तजुर्बे ने महात्मा गाँधी को यह महत्त्वपूर्ण सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतीकात्मक हथियार के रूप में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

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प्रश्न 6.
शनार महिलाओं के सम्मुख उपस्थित समस्या और उनका समाधान प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी त्रावणकोर के नायर जमींदारों के यहाँ काम करने वाली शनार (नाडर) ताड़ी निकालने वाली एक जाति थी। नीची जाति का माने जाने के कारण इन लोगों को छतरी लेकर चलने, जूते या सोने के गहने पहनने की मनाही थी। नीची जाति की महिलाओं व पुरुषों से अपेक्षा की जाती थी कि स्थानीय रीति-रिवाज के अनुसार ऊँची जाति वाले लोगों के सामने कभी भी ऊपरी शरीर कोई नहीं ढंकेगा।1820 ई0 के दशक में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर धर्मांतरित शनार महिलाओं ने अपने तन को ढंकने के लिए उच्च जाति (UPBoardSolutions.com) की महिलाओं की तरह सिले हुए ब्लाउज व कपड़े पहनना प्रारंभ कर दिया। उच्च जाति के लोगों ने शनार महिलाओं के लिए बहुत सी मुसीबतें खड़ी कीं लेकिन शनार महिलाओं ने कपड़े पहनने के तरीके में बदलाव नहीं किया। अंत में त्रावणकोर सरकार द्वारा एक घोषणा द्वारा शनार महिलाओं–चाहे हिंदू हों या ईसाई – को जैकेट आदि से ऊपरी शरीर को अपनी इच्छानुसार ढंकने की अनुमति मिल गई, लेकिन ठीक वैसे ही नहीं जैसे ऊँची जाति की महिलाएँ ढंकती थीं।

प्रश्न 7.
ब्रिटेन में 1915 ई० से पहले ब्रिटेन की महिलाओं के वस्त्रों में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से थे?
उत्तर:
इस अवधि में महिलाओं के परिधानों में निम्नलिखित परिवर्तन हुए-

  1. 1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुँचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएँ इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।
  2. 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा।
    20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई तथा उनको संभालना अधिक आसान था।
  3. 17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास बहुत ही कम वस्त्र होते थे। ये फ्लैक्स, लिनिन तथा ऊन के बने होते थे जिनकी धुलाई कठिन थी इसलिए उन्होंने उन वस्त्रों को अपनाना आरंभ कर दिया जिनकी धुलाई तथा रख-रखाव अपेक्षाकृत सरल था।
  4. 1870 ई0 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 ई0 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुँच गई थी।

प्रश्न 8.
विभिन्न भारतवासियों द्वारा राष्ट्रीय पोशाक का डिजाइन तैयार करने के प्रयासों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में 19वीं सदी के अंत तक राष्ट्रीयता की भावना प्रबल रूप से बलवती हो उठी थी। ऐसे में अनेक भारतवासी राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति करने वाले सांस्कृतिक प्रतीकों के सृजन को तत्पर हो गए। इसी काल खण्ड में राष्ट्रीय पोशाक की खोज राष्ट्र की पहचान को प्रतीकात्मक ढंग से परिभाषित करने की प्रक्रिया का एक हिस्सा बन गयी। विभिन्न भारतवासियों द्वारा राष्ट्रीय पोशाक का डिजाइन तैयार करने के लिए अनेक प्रयास किए गए। 1870 ई0 के दशक में टैगोर खानदान ने भारतीय पुरुषों और महिलाओं के लिए राष्ट्रीय पोशाक (UPBoardSolutions.com) डिजाइन करने का प्रयास किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सुझाव प्रस्तुत किया कि भारतीय व यूरोपीय पोशाक का मेल करने के बजाय हिन्दू और मुसलमान पोशाक, का मेल करके भारतीय राष्ट्रीय पोशाक निर्मित की जाए। इस तरह बटनदार लंबा कोट-पुरुषों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया। इसी तरह पृथक्-पृथक् क्षेत्रों की पारंपरिक वेशभूषा से प्रेरणा ली गयी।

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प्रश्न 9.
‘सम्प्चुअरी कानूनों के खात्में का यह मतलब कत्तई नहीं था कि यूरोपीय देशों में हर कोई एक जैसी पोशाक पहनने लगा हो।’ इस कथन से क्या अर्थ निकलता है?
उत्तर:
सम्प्चुअरी कानूनों की समाप्ति के बाद भेदभाव मात्र कानूनी रूप से समाप्त किए गए थे। लेकिन इसका यह आशय कदापि नहीं था कि यूरोपीय देशों में प्रत्येक व्यक्ति एक जैसी पोशाक पहनने लगा हो। फ्रांसीसी क्रान्ति ने लोगों के सम्मुख समानता का प्रश्न उपस्थित किया तथा कुलीन विशेषाधिकारों तथा उनका समर्थन करने वाले कानूनों को समाप्त कर दिया। लेकिन सामाजिक वर्गों के बीच अंतर पूर्ववत् जारी रहा। स्पष्ट है कि गरीब न तो अमीरों जैसे कपड़े पहन सकते थे न ही वैसा खाना खा सकते थे। फर्क यह था कि अगर वे ऐसा करना चाहते तो अब कानून बीच में नहीं आने वाला था। इस तरह अमीर-गरीब की परिभाषा, उनकी वेशभूषा सिर्फ उनकी आमदनी पर निर्भर हो गई थी न कि सम्प्चुअरी कानूनों के द्वारा निर्धारित की जाती थी।

दीर्थ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दो विश्व युद्धों के दौरान महिलाओं की पोशाकों में आए अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दो विश्व युद्धों के दौरान महिलाओं की पोशाक में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हुए, जिन्हें निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया है-

  1. पैंट पाश्चात्य महिलाओं की पोशाक का अहम् हिस्सा बन गई।
  2. सुविधा के लिए महिलाओं ने बाल कटवाना प्रारंभ कर दिया।
  3. बीसवीं सदी तक कठोर और सादगी-भरी जीवन-शैली गंभीरता और प्रोफेशनले अंदाज का पर्याय बन गयी।
  4. बच्चों के नए विद्यालयों में सादी पोशाक पर जोर दिया गया और तड़क-भड़क को हतोत्साहित किया गया।
  5. बहुत-सी यूरोपीय महिलाओं ने आभूषण (UPBoardSolutions.com) एवं कीमती परिधान पहनना बंद कर दिया।
  6. उच्च वर्गों की महिलाएँ अन्य वर्गों की महिलाओं से मिलने-जुलने लगीं जिससे सामाजिक अवरोधों का पतन हुआ।
  7. प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के मध्य इंग्लैण्ड में 70,000 से अधिक महिलाएँ आयुध कारखानों में काम करती थीं और उन्हें स्कार्फ के साथ ब्लाउज एवं पैंट की कामकाजी वेशभूषा के साथ अन्य चीजें पहननी पड़ती थीं।
  8. हल्के रंगों के वस्त्र पहने जाते थे। इस प्रकारे कपड़े सादे होते गए।
  9. स्कर्ट छोटी होती चली गई।

प्रश्न 2.
फ्रांसिसी क्रान्ति के बाद परिधान संहिता में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सन् 1789 में फ्रांस में हुई क्रान्ति ने विभिन्न वर्गों के बीच व्याप्त पहनावे के अंतर को लगभग समाप्त कर दिया।
इस परिवर्तन का विवरण इस प्रकार है-

  1. लाल टोपी को स्वतंत्रता की निशानी के रूप में पहना जाने लगा।
  2. कीमती वस्त्रों के स्थान पर सादगीपूर्ण वस्त्रों का प्रचलन आरंभ हुआ, जिससे समानता की भावना प्रदर्शित होती थी।
  3. तिरछी टोपियाँ (कॉकेड) और लंबी पतलून भी प्रचलन में आ गई थी। फ्रांसिसी क्रांति के उपरांत यद्यपि परिधान संबंधी कानूनों का अंत हो गया था परंतु आर्थिक विभिन्नता के कारण अब भी निम्न वर्ग उच्च वर्गों के समान वस्त्र नहीं पहन सकता था।
  4. इस परिवर्तन का आरंभ जैकोबिन क्लब के सदस्यों द्वारा हुआ जब उन्होंने कुलीन वर्ग के फैशनदार घुटन्ना पहनने वाले लोगों से अलग दिखने के लिए धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया। इन सदस्यों को सौं कुलॉत’ (बिना घुटने वाले) कहा जाता था।
  5. महिलाओं और पुरुषों ने ढीले-ढाले आरामदेह वस्त्रों को पहनना आरंभ कर दिया।
  6. वस्त्रों के रंगों के चयन में फ्रांसिसी तिरंगों के तीनों रंगों (नीला, सफेद, लाल) को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। इन्हें पहनना देशभक्ति का पर्याय बन गया।

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प्रश्न 3.
‘पादुका सम्मान’ विवाद क्या था?
उत्तर:
ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 19वीं सदी की शुरुआत में शिष्टाचार की पालन करते हुए, शासन कर रहे देशी राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतार कर जाने की परंपरा प्रचलित थी तत्कालीन कुछ अंग्रेज अधिकारी भारतीय वेशभूषा भी धारण करते थे। लेकिन सन् 1830 में सरकारी समारोहों में उन्हें भारतीय परिधान धारण करके जाने से मनाकर दिया गया। दूसरी ओर भारतीयों को भारतीय वेशभूषा ही धारण करनी होती थी। गवर्नर लार्ड एमहर्ट (1824-1828) इस बात पर दृढ़ रहा कि उसके सम्मुख उपस्थित होने वाले भारतीय सम्मान प्रदर्शित करने के लिए नंगे पाँव आए, लेकिन उसने इस नियम को कठोरतापूर्वक लागू नहीं किया।

लेकिन लॉर्ड डलहौजी ने भारत का गवर्नर जनरल बनने पर इस नियम को दृढ़तापूर्वक लागू किया। अब भारतीयों को किसी भी सरकारी संस्था में प्रविष्ट होते समय जूते उतारने पड़ते थे। इस रस्म को ‘पादुका सम्मान’ कहा गया। जो लोग यूरोपीय परिधान धारण करते थे, उन्हें इस नियम से छूट प्राप्त थी। सरकारी सेवा में कार्यरत बहुत से भारतीय इस नियम से स्वयं को पीड़ित महसूस करने लगे थे। | 1862 ई० में (UPBoardSolutions.com) सूरत की फौजदारी अदालत में लगाने आँकने वाले के पद पर कार्यरत मनोकजी कोवासजी एन्टी ने सत्र न्यायाधीश की अदालत में जूते उतारने से इन्कार कर दिया। अदालत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई और उन्होंने विरोध जताते हुए बंबई के गवर्नर को पत्र लिखा।

इसके जवाब में अंग्रेजों का कहना था कि चूंकि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान या घर में घुसने से पहले जूते उतारते ही हैं, तो वे अदालत में भी वैसा ही क्यों न करें। इस पर भारतीयों ने कहा कि पवित्र जगहों या घर पर जूते उतारने के दो कारण थे। घर पर वे धूल या गंदगी अंदर न जाने पाए इसलिए जूते उतारते थे और पवित्र स्थानों पर वे देवी-देवताओं के प्रति आदर प्रकट करने के लिए जूते उतारते थे और उनका रिवाज था। किन्तु अदालत जैसी सार्वजनिक जगह घरों से अलग थे।

प्रश्न 4.
भारतीय शैली के कपड़ों के प्रति अंग्रेजों की सोच स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारतीय लोग स्वयं को गर्मी के ताप से बचाने के लिए पगड़ी बाँधते थे। पगड़ी को इच्छानुसार कहीं भी उतारा नहीं जाता था। अंग्रेज लोग पगड़ी की जगह हैट पहनते थे जो कि उनके सामाजिक स्तर से ऊपर के लोगों के सामने सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उतारना पड़ता था। इस सांस्कृतिक विविधता ने भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी थी।

ब्रिटिश लोग प्रायः इस बात से अप्रसन्न होते थे कि भारतीय लोग औपनिवेशिक अधिकारियों के सामने अपनी पगड़ी नहीं उतारते। दूसरी ओर कुछ भारतीय राष्ट्रीय अस्मिता को जताने के लिए जान-बूझकर पगड़ी पहनते। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा शिष्टाचार का पालन करते हुए, शासन कर रहे देशी राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतारकर जाने की परंपरा थी। 1824-1828 के बीच गवर्नर जनरल एमहर्ट इस बात पर अड़ा रहा कि उसके सामने पेश होने वाले हिंदुस्तानी आदर प्रदर्शित करने के लिए नंगे पाँव आएँ, लेकिन इसको सख्ती से लागू नहीं किया गया। जब लॉर्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बना तो ‘पादुका सम्मान की यह रस्म सख्त हो गई और अब भारतीयों को किसी भी सरकारी संस्था में दाखिल होते समय जूते निकालने पड़ते थे। जो लोग यूरोपीय पोशाक पहनते थे उन्हें इस नियम से छूट मिली हुई थी। सरकारी सेवा में कार्यरत बहुत से भारतीय इस नियम से स्वयं को त्रस्त महसूस करने लगे।

1862 ई० में सूरत की फौजदारी अदालत में लगान आँकने वाले के पद पर कार्यरत मनोकजी कोवासजी एन्टी ने सत्र न्यायाधीश की अदालत में जूते उतारने से इन्कार कर दिया। अदालत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई और उन्होंने विरोध जताते हुए बंबई के गवर्नर (UPBoardSolutions.com) को पत्र लिखा।
इसके जवाब में अंग्रेजों का कहना था कि चूंकि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान या घर में घुसने से पहले जूते उतारते ही हैं, तो वे अदालत में भी वैसा ही क्यों न करें। किन्तु भारतीय उनके इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

प्रश्न 5.
सफ्रेज आन्दोलन व वस्त्र सुधार को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
1830 ई0 के दशक तक इंग्लैण्ड में महिलाओं ने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष आरंभ किया। अब महिलाओं ने कॉर्सेट पहनने का विरोध करना आरंभ किया। वोल्ड आंदोलन के गति पकड़ने के साथ ही पोशाक-सुधार की मुहिम चल पड़ी। महिला पत्रिकाओं ने महिलाओं को इस परिप्रेक्ष्य में जागरुक करना आरंभ किया कि तंग वस्त्रों और कॉर्सेट पहनने
से महिलाओं को कौन-कौन सी शारीरिक और सौन्दर्यपरक विद्रूपताएँ आ जाती हैं।
इस पहनावे से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया-

  1. शरीर का प्राकृतिक रूप से विकास नहीं हो पाता है।
  2. रक्त प्रवाह बाधित होता है।
  3. रीढ़ की हड्डी झुक जाती है।
  4. मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं।

इंग्लैण्ड में शुरू हुए सफ्रेज आंदोलन ने यूरोप के बाहर अमेरिका को भी प्रभावित किया। महिलाओं ने अपने पहनावे से संबंधित समस्याओं को समाज के समक्ष रखना आरंभ कर दिया जैसे-

  1. स्कर्ट बहुत विशाल होते थे जिसके कारण चलने में परेशानी होती थी।
  2. लंबे स्कर्ट फर्श को साफ करते हुए चलते थे जो बीमारी का कारण थे।
  3. यदि पहनावे को आरामदायक बना दिया जाए तो वे भी कमाई कर सकती हैं और स्वतंत्र हो सकती हैं।

महिलाओं की इन माँगों का तीव्र विरोध भी हुआ उनके अनुसार पारंपरिक शैली छोड़ देने से महिलाओं की खूबसूरती, शालीनता तथा अन्य स्त्रियोचित गुणों का अभाव संभव था। इस प्रकार के विरोध के कारण ही महिला परिधानों में इस प्रकार के परिवर्तन प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत ही संभव हो सके।

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प्रश्न 6.
भारतीय वस्त्रों एवं महात्मा गाँधी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पोरबन्दर गुजरात में जन्में महात्मा गांधी बचपन में परंपरागत वस्त्र पहनते थे। लेकिन 19 वर्ष की आयु में जब वे कानून की पढ़ाई करने लंदन गए तो वे पश्चिमी पोशाकों की ओर आकृष्ट हुए। 1890 ई० के दशक में दक्षिण अफ्रीका में वकालत करने तक वे कोट-पैंट व पगड़ी पहनते थे। 1913 ई० में दक्षिण अफ्रीकी सरकार के विरोध में जब उन्होंने वहाँ भारतीय कोयला खदान मजदूरों का समर्थन किया तो (UPBoardSolutions.com) उन्हें पश्चिमी वस्त्र व्यर्थ प्रतीत हुए और उन्होंने लुंगी-कुर्ता पहनने का प्रयोग आरंभ किया। साथ ही विरोध करने के लिए खड़े हो गए।

1915 ई. में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी-सी धोती को अपना लिया। गाँधीजी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने इस पहनावे को गरीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी।

इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे। महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने के लिए बल दिया। उन्होंने देशवासियों को प्रेरित किया कि वे चरखा चलाएँ और स्वयं के बनाए हुए वस्त्र पहनें। उनके लिए खादी शुद्धता, सादगी और राष्ट्रभक्ति का पर्याय थी। उनके प्रयासों से शीघ्र ही पूरे देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खादी को अपना लिया और खादी वस्त्र राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन गए।

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