UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

परिचय एवं जन्म-रविदास को स्वामी रामानन्द के बारह शिष्यों में से एक माना जाता है। उनका नाम रैदास लोक-प्रचलित है। उनका जन्म काशी के मण्डुवाडीह ग्राम में विक्रमी संवत् 1471 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविवार के दिन हुआ था। रविवार को जन्म होने के कारण ही उनका नाम रविदास’ पड़ा।

तत्कालीन परिस्थितियाँ-रविदास के समय में भारतवासी यवनों के शासन से पीड़ित थे और भारतीय राजा आपस में लड़ रहे थे। भारतवासी सभी तरह से उपेक्षित थे और विद्यमान सम्प्रदायों में। धार्मिक द्वेष बढ़ रहा था। ऐसी दशा में दु:खी होकर महात्माओं ने ईश्वर को ही शरण मानते हुए लोगों को ईश्वर की व्यापकता और सर्वशक्तिमत्ता समझायी। भारतवासी उन्हीं लोगों का सन्त कहकर आदर करते थे, जो दीन-दुःखियों की सेवा में तत्पर तथा दलितों और शोषितों के प्रति दयावान थे।

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जीवन-प्रणाली एवं सिद्धान्त-रविदास अपने कर्म में लगे रहकर दु:खी लोगों के प्रति दयावान बने रहे। वे धर्म के बाह्य आचरणों को परस्पर द्वेष का कारण मानते थे। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा यह उनका विचार था। रविदास किसी पाठशाला में नहीं पढ़े। उन्होंने गुरु की कृपा से संसार की क्षणभंगुरता एवं ईश्वर की नित्यता और व्यापकता का जो ज्ञान प्राप्त किया, उसी का लोगों को उपदेश . दिया। | रविदास ने न किसी जंगल में जाकर तपस्या की ओर न ही किसी पर्वत की गुफा में बैठकर साधना की। वे जल में रहते हुए भी जल (UPBoardSolutions.com) से भिन्न रहने वाले कमल-पत्र की तरह संसार के बन्धन से मुक्त थे। उनका विश्वास था कि अपना कर्म करते हुए घर पर रहकर भी ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। वे ईश्वर को मन्दिरों, वनों और एकान्त में ढूंढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय के भीतर ढूंढ़ना अधिक उचित समझते थे। वे ईश्वर की प्राप्ति में अहंकार को सबसे बड़ा बाधक मानते थे। यह मैं करता हूँ, यह मेरा है-इस भ्रम को छोड़कर ही ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है; ऐसा उनका मानना था।

निर्गुणोपासक-रविदास, कबीरदास, नानक आदि महात्माओं ने यद्यपि निर्गुण ब्रह्म की उपासना की, फिर भी उन्होंने सगुणोपासकों से कभी द्वेष नहीं किया। वे निराकार ब्रह्म के साक्षात्कार के साथ-साथ दु:खियों, दीनों, दरिद्रों और दलितों के प्रति भी अपने मन में अगाध प्रेम रखते थे।

रविदास दीनों, दरिद्रों और दलितों में ईश्वर के दर्शन करते थे। उनके विचार में ईश्वर ने सबको समान बनाया है; अतः सभी आपस में भाई-भाई हैं। मनुष्य जाति में जाति, वर्ण और सम्प्रदाय के भेद : मनुष्य ने बनाये हैं। वे कहते थे-‘हरि को भजे, सो हरि का होई।’ हरि के भजन में जाति या वर्ण नहीं पूछा जाता है। उन्होंने राष्ट्र की अखण्डता और एकता को बनाये रखने का सदैव प्रयत्न किया।

स्वर्गारोहण-रविदास 126 वर्ष की आयु में संवत् 1597 वि० राजस्थान के चित्तौड़गढ़ नामक स्थान पर परमात्मा में विलीन हो गये थे। वे अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं।

गधाशों का सन्दर्भ अनुवाद 

(1) परमोपासकस्य रामानन्दस्य द्वादशशिष्या आसन्निति भण्यते। तेषु शिष्येषु रविदासो लोके रैदास इति संज्ञया ख्यात एकः शिष्यः आसीदित्युच्यते। रविदासस्य जन्म काश्यां माण्डूरनाम्नि (मण्डुवाडीह) ग्रामे एकसप्तत्युत्तरचतुर्दशशततमे (1471 वि०) विक्रमाब्दे माघमासस्य पूर्णिमायान्तिथौ रविवासरेऽभवत्। रविवासरे तस्य जन्म इति हेतोः रविदास इति नाम जातमित्यनुमीयते। |

शब्दार्थ-
भण्यते = कहा जाता है। संज्ञया = नाम से।
ख्यात = प्रसिद्ध।
आसीत् इति उच्यते = थे, ऐसा कहा जाता है।
हेतोः = कारण से।
जातमित्यनुमीयते (जातम् + इति + अनुमीयते) = हुआ, ऐसा अनुमान किया जाता है।

सन्दर्भ
प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तके ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में रविदास के शिष्यत्व एवं जन्म की बात कही गयी है।

अनुवाद
महान् उपासक रामानन्द के बारह शिष्य थे, ऐसा कहा जाता है। उन शिष्यों में रविदास संसार में रैदास नाम के प्रसिद्ध एक शिष्य थे, ऐसा कहा जाता है। रविदास का जन्म काशी में | मांडूर (मण्डुवाडीह) नामक ग्राम में विक्रम संवत् 1471 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविवार के दिन हुआ था। रविवार के दिन उनका जन्म हुआ, इस कारण ‘रविदास’ यह नाम हुआ, ऐसा अनुमान किया जाता है।

(2) पञ्चदश्यां शताब्दी भारतीयजनजीवनमतीवक्लेशक्लिष्टमासीत्। यवनशासकैराक्रान्तो देशो, मिथः कलहायमाना भारतीयाः राजानः दुःखदैन्यग्रस्ताः, सर्वथोपेक्षिताः भारतीयजनाः विविधधमानुयायिषु प्रवृत्तो विद्वेषो जातिवर्णेषु विभक्तो भारतीयसमाज इति देशदशां दर्श दर्श दूयमानहृदयाः (UPBoardSolutions.com) तदानीन्तनाः महात्मानः सन्तश्चेश्वर एव शरणमिति मन्यमाना ईश्वरम्प्रति समर्पिताः सन्त परमात्मनो व्यापकत्वं तस्य सर्वशक्तिमत्त्वञ्च बोधयति स्म। |

शब्दार्थ-
अतीव = अत्यधिक।
क्लेशक्लिष्टम् = दुःखों से दु:खी।
मिथः = आपस में।
कलहायमाना = कलह करते हुए।
सर्वथोपेक्षिताः = सब प्रकार से उपेक्षित।
दर्श दर्शम् = देख-देखकर।
दूयमान हृदयाः = दुःखी हृदय वाले।
तदानीन्तनाः = उस समय के।
व्यापकत्वं = व्यापक होना।
बोधयन्ति स्म = समझते थे।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पन्द्रहवीं शताब्दी में भारतीयों की दीन दशा तथा उस दशा से उन्हें उबारने के लिए भारतीय सन्तों द्वारा किये जा रहे जन-जागरण आन्दोलन का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
पन्द्रहवीं शताब्दी में भारतीय लोगों का जीवन कष्टों से अत्यधिक दुःखी था। मुसलमान शासकों से देश आक्रान्त (पीड़ित) था, आपस में झगड़ते हुए भारतीय राजा दुःख और दीनता से ग्रसित थे, भारतीय लोग सभी तरह से उपेक्षित थे, विविध धर्म के अनुयायियों में शत्रुता बढ़ी हुई थी, भारतीय समाज जातियों और वर्गों में बँटा हुआ था इस प्रकार देश की दशा को देख-देखकर दुःखित हृदय वाले तत्कालीन महात्मा और सन्त (UPBoardSolutions.com) ईश्वर ही शरण है ऐसा मानते हुए ईश्वर के प्रति समर्पित सन्त परमात्मा की व्यापकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को समझाते थे।

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(3) वस्तुतस्तु, तादृशा एव महापुरुषाः ‘सन्त’ शब्देन भारतीयजनमानसे समादृता अभवन्, ये परदुःखकातराः परहितरताः दुःखिजनसेवापरायणाः दलितान् शोषितान्प्रति सदयाः स्वसुखमविगणयन्तः यदृच्छालाभसन्तुष्टा आसन्।

शब्दार्थ-
वस्तुतस्तु = वास्तव में।
तादृशा एव = उस प्रकार के ही।
समादृताः = सम्मान प्राप्त।
परहितरताः = दूसरों की भलाई में लगे हुए।
सदयाः = दयालु।
अविगणयन्तः = न गिनते हुए, उपेक्षा करते हुए।
यदृच्छालाभः = इच्छानुसार जो प्राप्त हो जाए।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में तत्कालीन भारतीय समाज में सन्तों की स्थिति का वर्णन किया गया है। | अनुवाद–वास्तव में भारतीय लोगों के मन में उसे प्रकार के महापुरुषों ने ही ‘सन्त’ शब्द से आदर प्राप्त किया, जो दूसरों के दु:खों, दूसरों की भलाई में लगे हुए, दुःखी लोगों की सेवा करने वाले, दलितों और शोषितों के प्रति दयावान्, अपने सुखों की परवाह न करके जैसा मिल गया, उस लाभ से सन्तुष्ट थे।’

(4) सत्पुरुषो महात्मा रविदासः स्वकर्मणि निरतः सन् परमात्मनो माहात्म्यमुपवर्णयन् दुःखितान् जनान्प्रति सदयहृदयः कर्मणः प्रतिष्ठां लोकेऽस्थापयत्। धर्मस्य बाह्याचारः एवं परस्परवैरस्य हेतुरिति स विश्वसिति स्म। अतो बाह्याचारान् परिहाय धर्माचरणं विधेयम्। गङ्गास्नानाच्छरीरशुद्धेरपेक्षया मनसा शुद्धिरावश्यकीति तेनोक्तम्। पूते तु मनसि काष्ठस्थाल्यामेव गङ्गेति तस्योक्ति प्रसिद्धैवास्ति।

शब्दार्थ-
निरतः सन् = लगे हुए।
माहात्म्यम् उपवर्णयन् = महत्त्व का वर्णन करते हुए।
लोकेऽस्थापयत् = लोक में स्थापित की।
विश्वसिति स्म = विश्वास करते थे।
परिहाय = छोड़कर।
विधेयम् = करना चाहिए।
गङ्गस्नानाच्छरीरशुद्धेरपेक्षया (गङ्गा + स्नानात् + शरीर + शुद्धेः + अपेक्षया) = गंगा में स्नान से शरीर की शुद्धि की अपेक्षा।
पूते तु मनसि = मन पवित्र होने पर।
काष्ठस्थाल्यामेव (काष्ठः + स्थाल्याम् + एव) = काठ की थाली (कठौती) में ही।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास के धर्म के बाह्यचारों के सम्बन्ध में व्यक्त विचारों का वर्णन • किया गया है।

अनुवाद
सत् पुरुष महात्मा रविदास ने अपने कर्म में लगे हुए रहकर परमात्मा की महिमा का वर्णन करते हुए, दु:खी लोगों के प्रति दयालु हृदय होकर संसार में कर्म की प्रतिष्ठा स्थापित की। वे ‘धर्म के बाहरी आचरण ही आपसी वैर के कारण ऐसा विश्वास करते थे। इसलिए बाहरी आचारे को छोड़कर धर्म का (UPBoardSolutions.com) आचरण करना चाहिए। गंगा स्नान से शरीर की शुद्धि की अपेक्षा मन की शुद्धि आवश्यक है, ऐसा उन्होंने बतलाया। मन के पवित्र रहने पर कठौती में ही गंगा है, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’, उनकी यह उक्ति ही प्रसिद्ध है।

(5) रविदासः कस्याञ्चिदपि पाठशालायां पठितुं न गतोऽतस्तस्य ज्ञानं पुस्तकीयं नासीत्। जगतो नश्वरत्वं परमात्मनोऽनश्वरत्वं व्यापकत्वमित्यादिदार्शनिकं ज्ञानं गुरोरनुकम्पया तेन लब्धं प्रेरणयैव तथाभूतस्य ज्ञानस्योपदेशो जनेभ्यस्तेन दत्तः।।

शब्दार्थ-
कस्याञ्चिदपि = किसी भी।
पुस्तकीयम् = पुस्तक सम्बन्धी।
नश्वरत्वम् = नाशवान् होने का भाव।
गुरोरनुकम्पया = गुरु की कृपा से।
तथाभूतस्य = उस प्रकार का।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास द्वारा गुरु की कृपा से दार्शनिक ज्ञान अर्जित करने का वर्णन

अनुवाद
रविदास किसी भी पाठशाला में पढ़ने के लिए नहीं गये, इसलिए उनका ज्ञान पुस्तकीय नहीं था। उन्होंने संसार की नश्वरता, ईश्वर की नित्यता और व्यापकता आदि का दार्शनिक ज्ञान गुरु की कृपा से प्राप्त किया था। गुरु की प्रेरणा से ही उन्होंने लोगों को उस प्रकार के ज्ञान का उपदेश दिया।

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(6) सः तपस्तप्तुं गहनं वनं न जगाम न वा गिरिगुहायमुपविश्य साधनरतः ज्ञानमधिगन्तुं चेष्टते स्म। वीतरागभयक्रोधोऽसौ जगति निवसन्नपि जगतः बन्धनात् पद्मपत्रमिव मुक्तः व्यवहरति स्म। स्वकर्मणि निरतः फलम्प्रति निराकाङ्क्षः स्वगृहेऽपि परमात्मा साक्षात्कर्तुं शक्यते इति रविदासः प्रत्येति। (UPBoardSolutions.com) अतो विभिन्नोपासनास्थलेषु वनेषु रहसि वा ईश्वरानुसन्धानादपेक्षया स्वहृदये एवानुसन्धातुमुचितम्। ईश्वरप्राप्तावहङ्कार एवं बाधकोऽस्ति।’अहमिदं करोमि’ ममेदमिति बोधः भ्रमात्मकः। भ्रममपहायैव ईश्वरप्राप्तिः सम्भवा। रविदासः स्वरचिते पद्ये गायति—यदा अहमस्मि तदा त्वं नासि, यदा त्वमसि तदा अहं नास्मि।

शब्दार्थ-
गिरिगुहायामुपविश्य = पर्वत की गुफा में बैठकर।
अधिगन्तुम् = प्राप्त करने के लिए।
चेष्टते स्म = प्रयत्न किया।
निविसन्नपि = निवास करते हुए भी।
पद्मपत्रमिव = कमल के पत्ते के समान।
व्यवहरति स्म = व्यवहार करते थे।
निरतः = लगे हुए।
निराकाङ्क्षः = इच्छारहित। प्रत्येति = विश्वास करते थे।
रहसि = एकान्त में।
ईश्वरानुसन्धानादपेक्षया = ईश्वर को खोजने की अपेक्षा।
अनुसन्धातुम् = खोजने के लिए।
ईश्वर-प्राप्तावहङ्कारः (ईश्वर + प्राप्तौ + अहङ्कारः) = ईश्वर की प्राप्ति में घमण्ड।
बोधः = ज्ञान। भ्रममपहायैव = भ्रम को छोड़कर ही। नासि (न + असि) = नहीं हो।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास द्वारा ईश्वर-प्राप्ति के साधन रूप में ईश्वर को हृदय में खोजने और अहंकार को त्यागने पर बल दिया गया है।

अनुवाद
वे तपस्या करने के लिए घने जंगल में नहीं गये, न ही पर्वतों की गुफा में बैठकर साधना में लीन होकर ज्ञान को प्राप्त करने की चेष्टा की। राग, भय, क्रोध से रहित वे संसार में रहते हुए भी संसार के बन्धन से उसी प्रकार व्यवहार करते थे, जैसे कमल का पत्ता; अर्थात् जो जल में रहकर भी गीला नहीं होता है। अपने कर्म में लगे हुए फल के प्रति इच्छारहित होकर अपने घर में भी परमात्मा का साक्षात्कार किया जा (UPBoardSolutions.com) सकता है, रविदास ऐसा विश्वास करते थे। इसलिए विभिन्न पूजा-स्थलों में, वन में या एकान्त में ईश्वर को खोजने की अपेक्षा अपने हृदय में ही खोजना उचित है। ईश्वर की प्राप्ति में अहंकार ही बाधक है। मैं यह करता हूँ, यह मेरा है, यह ज्ञान भ्रमपूर्ण है। भ्रम को छोड़कर ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है। रविदास अपने रचित पद्य में गाते हैं-“जब मैं हूँ, तब तुम नहीं हो, जब तुम हो, तब मैं नहीं हूं।”

(7) रविदासः कबीरदासो नानकदेवप्रभृतयः सन्तो महात्मानः निर्गुणमेवेश्वरं गायन्ति स्म। परन्ते सगुणसम्प्रदायावलम्बिनः प्रति विद्वेषिणो नासन्। तैः रचितेषु पदेषु यत्र-तत्र भक्तिभावस्य तत्त्वमवलोक्यते। निराकारब्रह्मणः गहनभूते सुविस्तृते साक्षात्कारविचारनभसि विचरन्नपि रविदासः ।। पृथिवीतले विद्यमानतेषु दुःखितेषु, दरिद्रेषु दलितेषु च सुतरां रमते स्म।।

शब्दार्थ-
प्रभृतयः = आदि।
परं ते = किन्तु वे।
विद्वेषिणः = द्वेष रखने वाले। नासन् (न +आसन्) = नहीं थे।
तत्त्वमवलोक्यते = तत्त्व देखा जाता है।
गहनभूते = गम्भीर बने हुए में।
साक्षात्कार विचारनभसि = साक्षात्कार के विचार रूपी आकाश में
विचरन्नपि = विचरण करते हुए। भी।
रमते स्म = रमता था।

प्रसंग
रविदास निर्गुण ब्रह्म की उपासना के साथ-साथ दु:खी-दलितों के प्रति भी दयावान थे। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में किया गया है।

अनुवाद
रविदास, कबीरदास, नानक देव आदि सन्त-महात्मा निर्गुण ईश्वर का ही गान करते थे, परन्तु वे सगुण मत को मानने वालों के प्रति द्वेष नहीं रखते थे। उनके द्वारा बनाये गये पदों में यहाँ-वहाँ (स्थान-स्थान) पर भक्तिभावना का तत्त्व देखा जाता है।

निराकार ब्रह्म के घने, अत्यन्त विस्तृत साक्षात्कार के विचाररूपी आकाश में विचरण करते हुए भी रविदास पृथ्वी तल पर विद्यमान दु:खी, दरिद्र और दलितों में अत्यधिक रमण (घूमते अर्थात् प्रेम) करते थे; अर्थात् निर्गुण ब्रह्म के साधक होते हुए भी दीन-दुःखियों से उतना ही प्रेम करते थे, जितना परमात्मा से।।

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(8) सः दलितेषु, दीनेषु, दरिद्रेष्वेवेश्वरमपश्यत्। तेषां सेवा, तान्प्रति सहानुभूतिः प्रेमप्रदर्शनं चेश्वरार्चनमिति तस्य विचारः। सामाजिकवैषम्यं न वास्तविकं प्रत्युत परमात्मना सर्वे समाना एव रचिताः, सर्वे च तस्येश्वरस्य सन्ततयोऽतः परस्परं बान्धवाः। मनुष्येषु तर्हि मिथः कथं वैरभावः? इत्थं समत्वस्य बन्धुतायाश्चोपदेशं जनेभ्योऽददात्। जातिवर्णसम्प्रदायादिभेदा अपि मनुष्यरचिताः परमात्मन इच्छाप्रतिकूलम्। इत्थं रविदासेन (UPBoardSolutions.com) मनुष्यजातौ स्पृश्यास्पृश्यादिदोषाणामुच्चावचभेदानां चातीवतीव्रस्वरेण विरोधः कृतः। हरि भजति स हरेर्भवति। हरिभजने ने कश्चित्पृच्छति जातिं वर्णं वेति सत्यं प्रतिपादयन् देशस्याखण्डतायाः राष्ट्रस्यैक्यस्य च रक्षणे स प्रायतते। महात्मा रविदासोऽध्यात्म, भक्ति, सामाजिकाभ्युन्नतिं च युगपदेव संसाधयन् सप्तनवत्युत्तरपञ्चदशशततमे वैक्रमे राजस्थानप्रान्ते चित्तौडगढनाम्नि स्थाने षड्विंशत्युत्तरशतिमते वयसि परमात्मनि विलीनः यशःशरीरेणाद्यापि जीवतितराम्।। |

शब्दार्थ
दरिद्रेष्वेवेश्वरमपश्यत् (दरिद्रेषु + एव + ईश्वरम् + अपश्यत्) = दरिद्रों में ही ईश्वर को देखते थे।
चेश्वरार्चनमिति (च + ईश्वर + अर्चनम् + इति) = और ईश्वर की पूजा है, ऐसा।
वैषम्यम् = असमानता को।
इच्छा-प्रतिकूलम् = इच्छा के विपरीत।
इत्थं = इस प्रकार।
स्पृश्यास्पृश्यादिदोषाणां = छुआछूत इत्यादि दोषों का।
उच्चावच = ऊँचे-नीचे।
चातीवतीव्रस्वरेण (च + अतीव + तीव्र + स्वरेण) = और अधिक तीखे स्वर से।
कश्चित् पृच्छति = कोई पूछता है।
प्रतिपादयन् = प्रतिपादन करते हुए।
प्रायतत = प्रयत्न किया। युगपदेव = एक साथ ही।
संसाधयन् = सिद्ध करते हुए।
वयसि = अवस्था में।
शरीरेणाद्यापि = (शरीरेण + अद्य + अपि) शरीर से आज भी।
जीवतितराम् = जीवित हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास ने दोनों, दुःखियों, दरिद्रों और दलितों में ईश्वर के रूप को दर्शाया है।

अनुवाद
उन्होंने दलितों, दीनों और दरिद्रों में ईश्वर के दर्शन किये। उनकी सेवा, उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम-प्रदर्शन ईश्वर की पूजा है, ऐसा उनका विचार था। सामाजिक असमानता वास्तविक नहीं है, अपितु ईश्वर ने सबको समान बनाया है और सब उस ईश्वर की सन्तान हैं; अतः आपस में भाई हैं। फिरे मनुष्यों में आपस में कैसी शत्रुता? इस प्रकार उन्होंने लोगों को समानता और बन्धुता का उपदेश दिया। जाति, वर्ण, सम्प्रदाय आदि के भेद भी मनुष्य के बनाये हैं, परमात्मा की इच्छा के विपरीत हैं। इस प्रकार रविदास ने मनुष्य जाति में छुआछूत आदि दोषों का, ऊँच-नीच के भेदों का अत्यन्त जोरदार शब्दों में खण्डन किया। जो हरि को भजता है, वह हरि का (UPBoardSolutions.com) होता है। हरि के भजने में कोई जाति या वर्ण को नहीं पूछता है-इस सत्य को बतलाते हुए देश की अखण्डता और राष्ट्र की एकता की रक्षा करने के लिए उन्होंने प्रयत्न किया। महात्मा रविदास अध्यात्म (आत्मा, परमात्मा का ज्ञान), भक्ति सामाजिक उन्नति को एक साथ ही सिद्ध करते हुए 1597 विक्रम संवत् में राजस्थान प्रान्त में चित्तौड़गढ़ नाम के स्थान पर 126 वर्ष की आयु में परमात्मा में विलीन हो गये, वे अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
रविदास का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को अपने शब्दों में संक्षेप में लिखें।] ।

प्ररन 2
रविदास की ईश्वर सम्बन्धी विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
रविदास का ऐसा विश्वास था कि फल के प्रति इच्छारहित होकर अपने कर्म मे लगा हुआ व्यक्ति अपने घर में भी परमात्मा को साक्षात्कार कर सकता है। उनका कहना था कि ईश्वर को अपने हृदय में खोजना ही उचित है। ईश्वर की प्राप्ति में यह मैं हूँ, यह मेरा है’ यह ज्ञान भ्रमपूर्ण है। इस भ्रम का त्याग किये बिना ईश्वर की प्राप्ति असम्भव है।

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प्ररन 3
रविदास के जीवन-परिचय एवं जीवन-दर्शन का वर्णन करते हुए तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए
उत्तर
[संकेत-“पाठ-सारांश” मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दिये गये शीर्षकों ‘परिचय एवं जन्म’, ‘जीवन-प्रणाली एवं सिद्धान्त’ तथा ‘तत्कालीन परिस्थितियाँ’ की सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 11 नागार्जुन (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 11 नागार्जुन (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(बादल को घिरते देखा है)

1. अमल धवल ………………………………………………………………………….. तिरते देखा है।

शब्दार्थ-अमल = निर्मल। धवल = सफेद शिखर = चोटी स्वर्णिम = सुनहले। तुंग = ऊँचा। ऊमस = गर्मी । पावस = वर्षा तिक्त = कसैला। बिसतन्तु = कमलनाल के अन्दर के कोमल रेशे। तिरते = तैरते हुए।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में जनकवि नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ नामक कविता से अवतरित हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘प्यासी-पथराई आँखें’ में संकलित है।

प्रसंग – इस स्थल पर कवि ने हिमालय के वर्षाकालीन सौन्दर्य का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मैंने निर्मल, चाँदी के समान सफेद और बर्फ से मण्डित पर्वत की चोटियों पर घिरते हुए बादलों के मनोरम दृश्य को देखा है। मैंने मानसरोवर में खिलनेवाले स्वर्ण-जैसे सुन्दर कमल-पुष्पों पर मोती के समान चमकदार अत्यधिक शीतल जल की बूंदों को गिरते हुए देखा है।
कवि हिमालय की प्राकृतिक सुषमा का अंकन करते (UPBoardSolutions.com) हुए कहता है कि उस पर्वत-प्रदेश में हिमालय के ऊँचे शिखररूपी कन्धों पर छोटी-बड़ी अनेक झीलें फैली हुई हैं। मैंने उन झीलों के नीचे शीतल, स्वच्छ, निर्मल जल में ग्रीष्म के ताप के कारण व्याकुल और समतल क्षेत्रों से आये (अर्थात् मैदानों से आये हुए) हंसों को कसैले और मधुर कमलनाल के तन्तुओं को खोजते हुए और उन झीलों में तैरते हुए देखा है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने साहित्यिक और कलात्मक शब्दावली का प्रयोग करते हुए हिमालय की सुन्दरता का अंकन किया है, जहाँ पर सभी प्राणी आनन्द और उल्लास का अनुभव कर सकते हैं।
  • आलम्बने रूप में प्रकृति का चित्रण हुआ है।
  • सरल व प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग।
  • गुण–माधुर्य।
  • रस-श्रृंगार।
  • शब्द-शक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, रूपकातिशयोक्ति।

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2. एक दूसरे से ………………………………………………………………………….. चिढ़ते देखा है।
अथवा निशा काल ………………………………………………………………………….. के तीरे।
अथवा दुर्गम ………………………………………………………………………….. हो-होकर।

शब्दार्थ-वियुक्त = पृथक्, जुदा। तीरे = किनारे शैवाल = घास परिमल = सुगन्ध।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में कविवर नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं।

प्रसंग – इनमें कवि ने हिमालय के मोहक दृश्यों का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि चकवा-चकवी आपस में एक-दूसरे से अलग रहकर सारी रात बिता देते हैं। किसी शाप के कारण वे रात्रि में मिल नहीं पाते हैं। विरह में व्याकुल होकर वे क्रन्दन करने लगते हैं। प्रात: होने पर उनका क्रन्दन बन्द हो जाता है और वे मानसरोवर के किनारे मनोरम दृश्य में एक-दूसरे से मिलते हैं और हरी घास पर प्रेम-क्रीड़ा करते हैं। महाकवि कालिदास द्वारा मेघदूत महाकाव्य में वर्णित अपार धन के स्वामी कुबेर और उसकी सुन्दर अलका नगरी अब कहाँ है? आज आकाश मार्ग से जाती हुई पवित्र गंगा का जल कहाँ गया? बहुत हूँढ़ने पर भी मुझे मेघ के उस दूत के दर्शन नहीं हो सके। ऐसा भी हो सकता है कि इधर-उधर भटकते (UPBoardSolutions.com) रहनेवाला यह मेघ पर्वत पर यहीं कहीं बरस पड़ा हो। छोड़ो, रहने दो, यह तो कवि की कल्पना थी। मैंने तो गगनचुम्बी कैलाश पर्वत के शिखर पर भयंकर सर्दी में विशाल आकारवाले बादलों को तूफानी हवाओं से गरजे-बरस कर संघर्ष करते हुए देखा है। हजारों फुट ऊँचे पर्वत-शिखर पर स्थित बर्फानी घाटियों में जहाँ पहुँचना बहुत कठिन होता है, कस्तूरी मृग अपनी नाभि में स्थित अगोचर कस्तूरी की मनमोहक सुगन्ध से उन्मत्त होकर इधर-उधर दौड़ता रहता है। निरन्तर भाग-दौड़ करने पर भी जब वह उसे कस्तूरी को प्राप्त नहीं कर पाता तो अपने-आप पर झुंझला उठता है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • यहाँ कवि ने विभिन्न मोहक दृश्यों को प्रस्तुत करके अपनी कुशल प्रकृति-चित्रण कला को दर्शाया है।
  • भाषा-तत्सम प्रधान खड़ीबोली।
  • रस-श्रृंगार।
  • गुण-माधुर्य।
  • अलंकार-अनुप्रास।

3. शत-शत ………………………………………………………………………….. फिरते देखा है।

शब्दार्थ-मुखरित = गुंजित कानन = वन शोणित = लाल धवल = सफेद कुन्तल = केश। सुघर = सुन्दर कुवलय = नीलकमल वेणी = चोटी। रजित = चाँदी के बने, मणियों से गढ़े। लोहित = लाल त्रिपदी = तिपाई । मदिरारुण = मद्यपान कर लेने के कारण हुई लाल, नशे में लाल। उन्मद = नशे में मस्त।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में कविवर नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ से लिया गया है।

प्रसंग – यहाँ कवि ने किन्नर-प्रदेश की शोभा का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि आकाश में बादल छा जाने के बाद किन्नर-प्रदेश की शोभा अद्वितीय हो जाती है। सैकड़ों छोटे-बड़े झरने अपनी कल-कल ध्वनि से देवदार के वन को गुंजित कर देते हैं अर्थात् गिरते हुए झरनों का स्वर देवदार के वनों में गूंजता रहता है। इन वनों के बीच में लाल और श्वेत (UPBoardSolutions.com) भोजपत्रों से छाये हुए कुटीर के भीतर किन्नर और किन्नरियों के जोड़े विलासमय क्रीडाएँ करते रहते हैं। वे अपने केशों को विभिन्न रंगों के सुगन्धित पुष्पों से सुसज्जित किये रहते हैं। सुन्दर शंख जैसे गले में इन्द्र-नीलमणि की माला धारण करते हैं, कानों में नीलकमल के कर्णफूल पहनते हैं और उनकी वेणी में लाल कमल सजे रहते हैं।

कवि का कथन है कि किन्नर प्रदेश के नर-नारियों के मदिरापान करनेवाले बर्तन चाँदी के बने हुए हैं। वे मणिजड़ित तथा “कलात्मक ढंग से बने हुए हैं। वे अपने सम्मुख निर्मित तिपाई पर मदिरा के पात्रों को रख लेते हैं और स्वयं कस्तूरी मृग के नन्हें बच्चों की कोमल और दागरहित छाल पर आसन लगाकर बैठ जाते हैं । मदिरा पीने के कारण उनके नेत्र लाल रंग के हो जाते हैं। उनके नेत्रों में उन्माद छा जाता है। मदिरा पीने के (UPBoardSolutions.com) बाद वे लोग मस्ती को प्रकट करने के लिए अपनी कोमल और सुन्दर अँगुलियों से सुमधुर स्वरों में वंशी की तान छेड़ने लगते हैं। कवि कहता है कि इन सभी दृश्यों की मनोहरता को मैंने देखा है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • यहाँ किन्नर प्रदेश के स्त्री-पुरुषों के विलासमय जीवन को यथार्थ चित्रण हुआ है।
  • प्रकारान्तर से कवि ने धनी वर्ग की विलासिता का वर्णन किया है।
  • भाषा–संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • रस-श्रृंगार।
  • अलंकार-उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश।
  • शब्द-शक्ति-लक्षणी।

प्रश्न 2.
नागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 3.
नागार्जुन का जीवन वृत्त लिखकर उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए

प्रश्न 4.
नागार्जुन के साहित्यिक अवदान एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5.
नागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए तथा उनके काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

(नागार्जुन)
स्मरणीय तथ्य

जन्म – सन् 1910 ई०, तरौनी (जिला दरभंगा (बिहार)।
मृत्यु – सन् 1998 ई०।
शिक्षा – स्थानीय संस्कृत पाठशाला में, श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा।
वास्तविक नाम-वैद्यनाथ मिश्र।
रचनाएँ – युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य), बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा (उपन्यास), दीपक, विश्वबन्धु (सम्पादन)।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – सम-सामयिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं का चित्रण, दलित वर्ग के प्रति संवेदना, अत्याचारपीड़ित एवं त्रस्त व्यक्तियों के प्रति (UPBoardSolutions.com) सहानुभूति।
भाषा – शैली-तत्सम शब्दावली प्रधान शुद्ध खड़ीबोली। ग्रामीण और देशज शब्दों का प्रयोग। प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग।
अलंकार व छन्द-उपमा, रूपक, अनुप्रास। मुक्तक छन्द।।

जीवन-परिचय – श्री नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के तरौनी ग्राम में सन् 1910 ई० में हुआ था। आपका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। आपका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर आपके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया व्यक्तिगत दुःख ने आपको मानवता के दु:ख को समझने की क्षमता प्रदान की है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। सन् 1936 ई० में आप श्रीलंका गये और वहाँ पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। सन् 1938 ई० में आप स्वदेश लौट आये। (UPBoardSolutions.com) राजनीतिक कार्यकलापों के कारण आपको कई बार जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। आप बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा घुमक्कड़ एवं फक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं। आप निरन्तर भ्रमण करते रहे। सन् 1998 ई० में आपका निधन हो गया।

रचनाएँ – युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) आदि।

उपन्यास – बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा आदि। सम्पादन-दीपक, विश्व-बन्धु पत्रिका।

मैथिली के ‘पत्र – हीन नग्न-गाछ’ काव्य-संकलन पर आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है।

काव्यगत विशेषताएँ

नागार्जुन के काव्य में जन भावनाओं की अभिव्यक्ति, देश-प्रेम, श्रमिकों के प्रति सहानुभूति, संवेदनशीलता तथा व्यंग्य की प्रधानता आदि प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं। अपनी कविताओं में आप अत्याचार-पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति

प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं होते हैं, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते हैं। व्यंग्य करने में आपको संकोच नहीं होता। तीखी और सीधी चोट (UPBoardSolutions.com) करनेवाले आप वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार हैं। नागार्जुन जीवन के, धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गानेवाले कवि हैं, जिनकी रचनाएँ किसी वाद की सीमा में नहीं बँधी हैं।

भाषा – शैली–नागार्जुन जी की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक प्रभाव डालनेवाली है। काव्य-विषय आपके प्रतीकों के माध्यम से स्पष्ट उभरकर सामने आते हैं। आपके गीतों में जन- जीवन का संगीत है। आपकी भाषा तत्सम प्रधान शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें अरबी व फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

अलंकार एवं छन्द – आपकी कविता में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकार ही देखने को मिलते हैं। प्रतीक विधान और बिम्ब-योजना भी श्रेष्ठ है।
साहित्य में स्थान-निस्सन्देह नागार्जुन जी का काव्य भाव-पक्ष तथा कला पक्ष की दृष्टि से हिन्दी साहित्य का अमूल्य कोष है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नागार्जुन ने अपनी कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में प्रकृति के किस रूप के सौन्दर्य का वर्णन किया
उत्तर:
इस कविता में कवि ने हिमालय पर्वत पर स्थित कैलाश पर्वत की चोटी पर घिरते बादलों के सौन्दर्य का वर्णन किया है।

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प्रश्न 2.
‘महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ पंक्ति में प्राकृतिक वर्णन के अतिरिक्त मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
कवि कहता है कि इस संसार में निरन्तर संघर्ष चल रहा है। मैंने असहाय जाड़ों में आकाश को छूने वाले कैलाश पर्वत की चोटी पर बहुत बड़े बादल-समूह को बर्फानी और तूफानी (UPBoardSolutions.com) हवाओं से गर्जना करके क्रोध प्रकट करते हुए युद्धरत देखा है। यद्यपि हवा बादल को उड़ा ले जाती है। बादल वायु के समक्ष शक्तिहीन है फिर भी उसको हवा के प्रति संघर्ष उसके अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।

कहने का भाव यह है कि सफलता की सम्पूर्ण सामर्थ्य व्यक्ति के अन्दर निहित रहती है, किन्तु अज्ञानतावश उस सामर्थ्य को न जानने के कारण और सफलता से वंचित रहने के कारण वह अपने ऊपर ही झुंझलाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने नरेत्तर (मनुष्य से इतर) दम्पतियों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
कवि नरेत्तर दम्पतियों का वर्णन करते हुए कहता है कि सुगन्धित फूलों को अपने बालों में लगाये हुए, अपने शंख जैसे गलों में, मणि की माला तथा कानों में नीलकमल के कर्णफूल पहने हुए, अंगूरी शराब पीकर हिरण की खाल पर पालथी मारकर बैठे हुए किन्नर युगल दर्शकों के हृदय को गद्गद करते हैं।

प्रश्न 4.
‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर:
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में हिमालय पर्वत पर स्थित कैलास पर्वत की चोटी पर घिरते बादलों के सौन्दर्य को वर्णन किया गया है। कवि के अनुसार निर्मल, चाँदी के समान सफेद और बर्फ से मण्डित पर्वत-चोटियों पर घिरते हुए बादलों से सम्पूर्ण वातावरण अत्यन्त मनोहारी दिखायी देने लगता है। कैलाश पर्वत पर छाये बड़े-बड़े बादल; तूफानी हवाओं से गरज-गरजकर दो-दो हाथ करते हैं। यद्यपि तूफानी हवाएँ (UPBoardSolutions.com) अन्ततः बादलों को उड़ा ले जाती हैं, फिर भी बादल अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहता है। आकाश में बादल छा जाने से किन्नर प्रदेश की शोभा अद्वितीय हो जाती है। सैकड़ों छोटे-बड़े झरने अपनी कल-कल ध्वनि से देवदार के वन को गुंजित कर देते हैं। इन वनों में किन्नर और किन्नरियाँ विलासितापूर्ण क्रीड़ाएँ करने लगती हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नागार्जुन किस युग के कवि हैं?
उत्तर:
आधुनिक (प्रगतिवाद) युग के कवि हैं।

प्रश्न 2.
नागार्जुन की दो रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
युगधारा, खून और शोले।

प्रश्न 3.
नागार्जुन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नागार्जुन की भाषा सहज, सरल, बोधगम्य, स्पष्ट, स्वाभाविक और मार्मिक प्रभाव डालने वाली है। उनकी शैली स्वाभाविक और पाठकों के हृदय में तत्सम्बन्धी भावनाओं को उदीप्त करनेवाली होती है।

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प्रश्न 4.
बादल को घिरते देखा है? शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 देखें।

प्रश्न 5.
‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ के माध्यम से कवि ने हिमालय पर्वत पर स्थित कैलाश पर्वत की चोटी के सौन्दर्य को वर्णित करने की चेष्टा की है।

प्रश्न 6.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर:
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रतिपाद्य हिमालय पर्वत पर स्थित कैलाश पर्वत की चोटी का सौन्दर्य वर्णन है।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) श्यामल शीतल अमल सलिल में।
समतल देशों के आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त मधुर बिस तंतु खोजते, हंसों को तिरते देखा है।

(ब) मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।
उत्तर:
(अ) काव्य-सौन्दर्य-

  • कैलाश पर्वत अत्यन्त रमणीक स्थान है। गर्मी की उमस से व्याकुल होकर यहाँ दूर देश के पक्षी आते हैं और विचरण करते हैं।
  • शैली-गेय है।
  • भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य है।
  • अलंकार-अनुप्रास।

(ब) काव्य-सौन्दर्य-

  • कवि कह रहा है कि कोमल अँगुलियों द्वारा वंशीवादन से लोग थिरक उठते हैं। जैसे गोपिकाएँ भगवान् श्रीकृष्ण की मुरली पर मोहित हो जाती थीं।
  • शैली-गेय है।
  • भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य है।

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2.
निम्नलिखित शब्द युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिएअतिशय शीतल, स्वर्णिम कमलों, प्रणय कलह, रजत-रचित।
उत्तर:
विशेषण                                   विशेष्य 

अतिशय                    –                शीतल
प्रणय                         –               कलह
स्वर्णिम                      –               कमलों
रजत                          –               रचित

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UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 1 GandhiJi And A Coffee Drinker (G Ram chandran)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 1 GandhiJi And A Coffee Drinker (G Ram chandran)

(A) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
How did Gandhiji pick up ‘nursing?
गाँधी जी ने सेवा करने का कार्य किस प्रकार सीखा था?
Answer:
When nursing became necessary to Gandhiji in life, he learned it through hard way of experience.
जब गाँधी जी के जीवन में सेवा करने का कार्य आवश्यक (UPBoardSolutions.com) हो गया तो उन्होंने यह कार्य अनुभव के कठिन तरीके से सीखा था।

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Question 2.
What did Gandhiji arrange in personally at the Ashram?
गाँधी जी ने आश्रम में व्यक्तिगत रूप से क्या व्यवस्था की थी?
Answer:
Gandhiji arranged the care of the sick in person at the Ashram.
गाँधी जी ने आश्रम में मरीजों की देखभाल की व्यवस्था व्यक्तिगत रूप से की थी।

Question 3
What was the joke especially among the young people in the Ashram?
आश्रम के नवयुवकों में विशेष रूप से क्या मजाक प्रचलित था?
Answer:
It was a joke, especially among young people in the Ashram, that if you wanted to see Gandhiji everyday and talked to him and hear him crack jokes, you had only to be ill and get into bed.
आश्रम के नवयुवकों में विशेष रूप से यह मजाक (UPBoardSolutions.com) प्रचलित था कि यदि तुम्हें प्रतिदिन गाँधी जी से मिलने की इच्छा हो तथा उनसे बातें करना हो और उन्हें मजाक करते हुए सुनना पसन्द ले तो तुम्हारे लिए बीमार होकर बिस्तर पर लेटना ही काफी है।

Question 4
What was Gandhiji’s daily routine at the Ashram?
आश्रम में गाँधी जी का दैनिक कार्य क्या था?
Answer:
Gandhiji visited the sick every day and spent a few minutes at every bed-side. He also saw to things carefully and never failed to crack a joke
or two with the patient.
गाँधी जी प्रतिदिन रोगी के निकट आते थे और प्रत्येक बिस्तर के पास कुछ समय व्यतीत करते थे। वे प्रत्येक वस्तुको ध्यानपूर्वक देखा भी करते थे और रोगी के साथ एक-दो विनोदपूर्ण बात करने से कभी नहीं चूकते थे।

Question 5
What was the young lad fond of? Why did he not get his favourite drink in the Ashram?
नवयुवक किस वस्तु का शौकीन था? उसे आश्रम में अपना मनपंसद पेय क्यों नहीं मिला?
Answer:
The young lad was fond of coffee. He did not get his favourite drink in the Ashram because it was not allowed there.
नवयुवक कॉफी का शौकीन था। उसे आश्रम में अपना मनपसंद पेय इसलिए नहीं मिला क्योंकि वहाँ पर कॉफी पीने की आज्ञा न थी।

Question 6
What was the young lad dreaming of one day lying on his back?
एक दिन अपनी पीठ के बल लेट कर नवयुवक क्या स्वप्न देख रहा था?
Answer:
One day the young lad was lying on his back dreaming for a cup of good coffee.
एक दिन नवयुवक पीठ के बल लेटा हुआ एक प्याली अच्छी कॉफी के लिए स्वप्न देख रहा था।

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Question 7
The youngster had a sudden brain-wave. What does the word brain-wave mean here?
लड़के के मस्तिष्क में अचानक ‘ब्रेन-वेब’ हुआ। यहाँ पर ब्रेन-बेव’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
Answer:
The word brain-wave means a thought in mind that appears suddenly.
‘ब्रेन-बेव’ शब्द का तात्पर्य एक ऐसे विचार से है जो मस्तिष्क में अचानक उत्पन्न हो जाये।

Question 8
What did the young lad request Gandhiji for?
नवयुवक ने गाँधी जी से किस वस्तु के लिए अनुरोध किया?
Answer:
The young lad requested Gandhiji for a cup of coffee.
नवयवुक ने गाँधी जी से एक प्याली कॉफी के लिए अनुरोध किया।

Question 9
What did Gandhiji promise to send him?
गाँधी जी ने उसको क्या भेजने का वचन दिया?
Answer:
Gandhiji promised to send him a cup of light coffee and warm toast.
गाँधी जी ने उसको एक प्याली हल्की कॉफी और गर्म टोस्ट भेजने का वचन दिया।

Question 10
Why was the young lad surprised?
नवयुवक आश्चर्य में क्यों पड़ गया?
Answer:
When the young lad saw Gandhiji carrying a tray covered with a white khadi napkin, he was surprised.
जब नवयुवक ने गाँधी जी को सफेद खादी के एक रुमाल से ढंकी हुई एक ट्रे को ले आते हुए देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया।

Question 11
What did the boy imagine, lying on his bed?
अपने बिस्तर पर लेटे हुए लड़के ने क्या कल्पना की?
Answer:
The boy imagined that Gandhiji would go to Ba in her kitchen and ask for coffee and toast for him.
लड़के ने कल्पना की कि गाँधी जी बा के पास रसोईघर में जायेंगे और उसके लिए कॉफी और टोस्ट के लिए कहेंगे।

Question 12
Who made the coffee and why?
कॉफी किसने बनायी और क्यों?
Answer:
Gandhiji himself made the coffee because it was an untimely hour and he did not like to rouble Ba as she would be taking rest.
गाँधी जी ने स्वयं कॉफी बनायी क्योंकि वह असमय था और वे बा को कष्ट नहीं देना चाहते थे क्योंकि वे उस समय राम कर रही होंगी।

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Question 13
How did the young lad like the coffee?
नवयुवक को कॉफी कैसी लगी?
Answer:
The young lad liked the coffee much because he was habitual to take it.
नवयुवक को कॉफी बहुत पसन्द आयी क्योंकि वह इसे पीने का आदी था।

Question 14
Why was the boy troubled after Gandhiji had gone?
गाँधी जी के जाने के बाद लड़का परेशान क्यों हो गया?
Answer:
The boy was troubled after Gandhiji had gone because his mind’s eye saw him opening thekitchen, lighting the stove, making the coffee and carrying it to him.
गाँधी जी के जाने के बाद लड़का इसलिए परेशान हो (UPBoardSolutions.com) गया क्योंकि उसने कल्पना की आँखों से उन्हें रसोईघर खोलते, स्टोव जलाते, कॉफी बनाते और उसे उसके पास लाते हुए देखा।

(B) MULTIPLE CHOICE ouESTIONS
Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए
(A)
(i) Gandhiji was able to nurse the sick well because :
(a) he picked up nursing at a nursing sc
(b) he was interested in nursing
(c) he learned nursing through the hard way of experience
(d) he practised nursing daily
(ii) Gandhiji visited the sick in the Ashram :
(a) every day
(b) every alternate day
(c) whenever he found time
(d) once in a week
(iii) Gandhiji promised the young lad :
(a) a cup of coffee only
(b) warm toast and coffee
(c) coffee and thosai
(d) a cup of tea
(iv) Gandhiji’s cottage was :
(a) in the centre of the Ashram
(b) near the gate of the Ashram
(c) a long way across the road at the other end of the Ashram
(d) in the middle of the Ashram.

(B) Gandhiji prepared the coffee himself because :
(a) only he knew how to prepare good coffee
(b) it was an untimely hour and so he did not want to trouble Ba
(c) he liked to do the work himself
(d) he did not like to tell Ba.
Answers:
(i) (c) he learned nursing through the hard way of experience
(ii) (a) every day
(iii) (b) warm toast and coffee
(iv) (c) a long way across the road at the other end of the Ashram.
(v) (b) it was an untimely hour and so he did not want to trouble Ba.

(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’:
बताइये कि निम्नलिखित कयों में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य :
(i) Gandhiji was a first class nurse to the sick.
(ii) Gandhiji picked up nursing at a nursing school.
(iii) In the Ashram all sick persons came directly under Gandhiji’s eye and care.
(iv) The South Indian lad was down with fever.
(v) The lad wished to eat dosai.
(vi) The lad pined for a cup of good coffee.
(vii) Gandhiji got the coffee prepared by Ba.
(viii) Gandhiji himself prepared the coffee.
(ix) Gandhiji sent coffee and toast through an inmate of the Ashram.
(x) The coffee was light but excellent.
Answers:
(i) T, (ii) F, (iii) T, (iv) F, (v) F, (vi) T, (vii) F, (viii) T, (ix) F, (x)T.

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(D) Fill in the blanks with missing letters to complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
rec-v-r; c-nsu-t; ex-ell-nt; expe-i-nce; v-s-t; j-k-
Answers:
recover, consult, excellent, experience, visit, joke

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 4 अर्थव्यवस्था : परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 4 अर्थव्यवस्था : परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 4 अर्थव्यवस्था : परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान’ घर तथा परिवार सम्बन्धी व्यवस्था का अध्ययन है। घर तथा परिवार की व्यवस्था के अनेक पक्ष हैं। इन पक्षों में ‘अर्थव्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। अन्य समस्त पक्षों में गृहिणी एवं परिजनों के दक्ष होते हुए भी, यदि घर की अर्थव्यवस्था सुचारु न हो, तो परिवार की सुख-शान्ति एवं (UPBoardSolutions.com) समृद्धि संदिग्ध हो जाती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान में अर्थव्यवस्था का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है तथा प्रत्येक सुगृहिणी से आशा की जाती है कि वह गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाए रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी। गृह-अर्थव्यवस्था के अर्थ, परिभाषा तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण निम्नवर्णित है

गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा

सार्वजनिक जीवन में अर्थव्यवस्था’ एक विशिष्ट प्रकार की व्यवस्था है जिसका सम्बन्ध मुख्य रूप से धन-सम्पत्ति से होता है। रुपए-पैसे की योजनाबद्ध व्यवस्था ही अर्थव्यवस्था है। प्रत्येक संस्था एवं संगठन के सुचारू संचालन के लिए स्पष्ट एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था आवश्यक होती है। जब अर्थव्यवस्था को अध्ययन घर-परिवार के सन्दर्भ में किया जाता है, तब इसे गृह-अर्थव्यवस्था कहा जाता है। अर्थव्यवस्था के अर्थ को जान (UPBoardSolutions.com) लेने के उपरान्त गृह-अर्थव्यवस्था का वैज्ञानिक अर्थ भी स्पष्ट किया जा सकता है। घर-परिवार के आय-व्यय को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर नियोजित करना तथा इस नियोजन के माध्यम से परिवार को अधिक-से-अधिक आर्थिक सन्तोष प्रदान करना ही गृह-अर्थव्यवस्था है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निकिल तथा डारसी ने गृह-अर्थव्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय को गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह-अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध, परिवार की आर्थिक क्रियाओं से होता है। इस स्थिति में यह भी जानना आवश्यक है कि आर्थिक क्रियाओं से क्या आशय है? आर्थिक क्रियाएँ व्यक्ति या परिवार की उन क्रियाओं को कहा जाता है, जिनका धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय अथवा वितरण से होता है। परिवार की विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ ही परिवार की आर्थिक पूर्ति में सहायक होती हैं। इस दृष्टिकोण से परिवार की आर्थिक गतिविधियों का विशेष महत्त्व होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रत्येकै परिवार निरन्तर रूप से असंख्य आवश्यकताओं को महसूस करता है तथा चाहता है कि उसकी समस्त आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। परन्तु समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर पाना प्रायः सम्भव नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति अथवा परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित किया जाता है। यह कार्य भी (UPBoardSolutions.com) गृह-अर्थव्यवस्था के ही अन्तर्गत किया जाता है। परिवार का अर्थ-व्यवस्थापक परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करता है तथा प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित प्रयास किए जाते हैं। इस प्रकार की दृष्टिकोण अपना लेने से गृह-अर्थव्यवस्था उत्तम बनी रहती है। सफल गृह-अर्थव्यवस्था के लिए परिवार की आर्थिक गतिविधियों को सुनियोजित बनाना नितान्त आवश्यक है। किसी भी स्थिति में पारिवारिक व्यय को पारिवारिक आय से अधिक नहीं होना चाहिए। आय की तुलना में व्यय के अधिक हो जाने की स्थिति में पारिवारिक अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है तथा परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ जाता है।

गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक

घर-परिवार की सुख-शान्ति तथा समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम होना नितान्त आवश्यक है। गृह-अर्थव्यवस्था को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों को संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

(1) गृह-अर्थव्यवस्था की सुचारू प्रक्रिया:
परिवार की सम्पूर्ण आय को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक व्यय की व्यवस्थित योजना तैयार करना ही, गृह-अर्थव्यवस्था की प्रक्रिया कहलाती है। इस योजना के अन्तर्गत आय तथा व्यय में सन्तुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। इसके लिए पारिवारिक-बजट का निर्धारण तथा उसका पालन करना सहायक सिद्ध होता है। आय एवं व्यय में परस्पर सन्तुलन रखने की यह योजना गृह-अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।

(2) पारिवारिक आय:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में पारिवारिक आय एक अति महत्त्वपूर्ण कारक है। पारिवारिक आय के अर्जन में प्रमुख योगदान परिवार के मुखिया का होता है। वास्तव में धनोपार्जन का दायित्व मुख्य रूप से परिवार के मुखिया का ही माना जाता है। मुखिया की आय परिवार की अर्थव्यवस्था को विशेष रूप से प्रभावित करती है। यदि मुखिया के अतिरिक्त परिवार का कोई अन्य सदस्य भी धनोपार्जन करता हो, तो उसकी आय को भी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए प्रभावकारी कारक माना जाता है।

(3) गृहिणी की कुशलता:
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि गृहिणी की कुशलता भी गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। कुशल गृहिणी परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करके आय के अनुसार व्यय करती है। मितव्ययिता ही अच्छी गृहिणी का आवश्यक गुण है। कुशल गृहिणी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए जहाँ एक ओर बचत का बजट निर्धारित करती है, वहीं दूसरी
ओर परिवार की आय में यथासम्भव वृद्धि के उपाय भी करती है।

(4) पारिवारिक व्यय का नियोजन:
यह सत्य है कि गृह-अर्थव्यवस्था को परिवार की आय मुख्य रूप से प्रभावित करती है, परन्तु आय के साथ-साथ व्यय का नियोजन भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भले ही परिवार की आय कितनी भी अधिक क्यों न हो, यदि आय से व्यय अधिक हो जाए तो समस्त प्रयास करने के उपरान्त भी (UPBoardSolutions.com) परिवार की अर्थव्यवस्था सन्तुलित नहीं रह पाती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था के लिए पारिवारिक व्यय का नियोजन भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि नियोजित ढंग से व्यय नहीं किया जाता, तो परिवार की अर्थव्यवस्था के बिगड़ जाने की आशंका रहती है।

(5) परिवार के रहन-सहन का स्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक है-परिवार के रहन-सहन का स्तर। प्रत्येक परिवार चाहती है कि उसका रहन-सहन का स्तर उन्नत हो। रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है। इस स्थिति में यदि इस प्रकार से किया जाने वाला (UPBoardSolutions.com) व्यय पारिवारिक आय के अनुरूप नहीं होता, तो निश्चित रूप से गृह-अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि रहन-सहन के स्तर को पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाना चाहिए।

(6) निरन्तर होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन:
समाज में निरन्तर रूप से होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। फैशन, नवीन प्रचलन, मनोरंजन के नए-नए साधन आदि कारक परिवार के व्यय को बढ़ाते हैं। इस प्रकार यदि आय में वृद्धि नहीं होती तो परिवार का व्यय बढ़ जाने पर परिवार की अर्थव्यवस्था क्रमशः बिगड़ने लगती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया जाता है कि अपनी आय को ध्यान में रखते हुए ही फैशन, मनोरंजन एवं सामाजिक उत्सवों आदि पर व्यय करना चाहिए।

(7) परिवार का आकार:
परिवार के आकार से आशय है-परिवार के सदस्यों की संख्या। परिवार के सदस्यों की संख्या भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक उल्लेखनीय कारक है। यदि परिवार की आय सीमित हो तथा उस आय पर ही निर्भर रहने वाले परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक हो, तो निश्चित रूप से परिवार के रहन-सहन का स्तर निम्न होगी तथा गृह-अर्थव्यवस्था भी संकट में रहेगी। इससे भिन्न यदि (UPBoardSolutions.com) किसी परिवार में धनोपार्जन करने वाले सदस्यों की संख्या अधिक हो तथा उन पर निर्भर रहने वाले सदस्यों की संख्या कम हो तो निश्चित रूप से परिवार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनी रहती है तथा रहन-सहन का स्तर भी उन्नत बन सकता है। आधुनिक दृष्टिकोण से ‘छोटा-परिवार, सुखी-परिवार’ की धारणा को ही उत्तम माना जाता है।

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प्रश्न 2:
‘आवश्यकता’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
परिवार की मूल आवश्यकताएँ कौन-सी हैं? उनकी पूर्ति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
आवश्यकता का अर्थ

परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो अपने सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापक प्रयास करती है। आवश्यकताओं को अनुभव करना तथा उनकी पूर्ति करना ही जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि आवश्यकता से क्या आशय है? व्यक्ति की आवश्यकताएँ मूल रूप से व्यक्ति की कुछ विशिष्ट इच्छाएँ ही होती हैं, परन्तु व्यक्ति की समस्त इच्छाओं को उसकी आवश्यकताएँ नहीं माना (UPBoardSolutions.com) जा सकता। इच्छाएँ हमारी भावनाओं से पोषित होती हैं। वे भौतिक जगत् की यथार्थताओं से दूर होती हैं, परन्तु आवश्यकताओं का सीधा सम्बन्ध भौतिक यथार्थताओं से होता है। आवश्यकताएँ हमारे भौतिक साधनों के अनुरूप होती हैं। इस प्रकार हमारी प्रबल इच्छाएँ तथा साधनानुकूल इच्छाएँ ही हमारी आवश्यकताएँ बन जाती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिसमें कल्पना के अतिरिक्त अन्य तीन तत्त्व भी विद्यमान हैं। ये तत्त्व हैं क्रमशः इच्छा की प्रबलता, इच्छा को पूर्ण करने के लिए समुचित प्रयास तथा इच्छापूर्ति के लिए सम्बन्धित त्याग के लिए तत्परता। इस प्रकार से हम व्यक्ति की उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिस इच्छा को पूरा करने के लिए उस व्यक्ति के पास समुचित साधन हैं तथा साथ-ही-साथ वह व्यक्ति उस इच्छा को पूरा करने के लिए सम्बन्धित साधन को इस्तेमाल करने के लिए तत्पर भी हो। आवश्यकता के अर्थ को पेन्शन ने इन शब्दों में स्पष्ट (UPBoardSolutions.com) किया है, “आवश्यकता विशेष वस्तुओं की पूर्ति हेतु एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जो उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयत्न अथवा त्याग के रूप में प्रकट होती है।” आवश्यकता के अर्थ एवं प्रकृति को ध्यान में रखते हुए स्मिथ तथा पैटर्सन ने स्पष्ट किया है, ”आवश्यकता किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मनुष्य में योग्यता है और वह उसके लिए व्यय करने के लिए तैयार हो।”

परिवार की मूल आवश्यकताएँ

मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताएँ होती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने मानव-जीवन को बड़ा जटिल बना दिया है। आज किसी के पास कितना ही धन हो, वह उसकी आवश्यकता के अनुपात में कम ही प्रतीत होता है। अतः कुशल संचालन के लिए आवश्यक है कि गृहिणी को आवश्यकताओं की जानकारी हो, जिससे वह कुशलतापूर्वक उनकी पूर्ति कर सके।
अनिवार्य आवश्यकताएँ ही मूल आवश्यकताएँ कहलाती हैं, जो प्रत्येक परिवार में प्राय: निम्नलिखित होती हैं

(1) भोजन:
पोषक तत्वों से युक्त सन्तुलित भोजन परिवार की प्रथम मूल आवश्यकता है। परिवार के सभी सदस्यों (बच्चे, स्त्री व पुरुष) को पोषणयुक्त भोजन पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए।

(2) वस्त्र:
परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त एवं उपयुक्त वस्त्र उपलब्ध होने चाहिए। उपयुक्त वस्त्रों से हमारा तात्पर्य है कि ये मौसम, व्यक्तिगत रुचि, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों आदि के अनुरूप होने चाहिए।

(3) आवासीय व्यवस्था:
परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुसार उचित आवास का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है। पर्याप्त एवं शुद्ध जल, वायु, सूर्य का प्रकाश इत्यादि का उपलब्ध होना उचित आवास की आवश्यक विशेषताएँ हैं।

(4) शिक्षा:
बच्चों की अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार की मूल एवं अनिवार्य आवश्यकता है। उपयुक्त शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः बालक-बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध करना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उपयोगी सूचना देने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रत्येक परिवार के लिए अलग महत्त्व है, क्योंकि ये सदस्यों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक ज्ञान में वृद्धि करती हैं।

(5) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य रक्षा:
पोषणयुक्त भोजन, आवश्यक व्यायाम, मौसम के अनुरूप वस्त्र एवं घर व आस-पास की स्वच्छता आदि परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं। इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी सदस्य के बीमार पड़ने पर उसे उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध होनी चाहिए।

(6) बच्चों की देखभाल:
बच्चे परिवार एवं देश का भविष्य होते हैं। अतः स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा व आचार-व्यवहार के दृष्टिकोण से उनकी देखभाल अति आवश्यक है। बच्चों की उचित देखभाल को परिवार की मूल आवश्यकताओं में सम्मिलित किया जाता है।

(7) मनोरंजन:
मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन अति आवश्यक है। अतः परिवार में मनोरंजन के यथा योग्य साधन अवश्य उपलब्ध होने चाहिए।

(8) प्रेम, स्नेह एवं सहयोग:
एकाकी परिवार में प्राय: पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार पति-पत्नी, उनके माता-पिता व भाई-बहनों के संयुक्त रूप से रहने के कार अधिक बड़ा हो जाता है। परिवार छोटा हो या फिर बड़ा, दोनों ही में सदस्यों के स्नेह व परस्पर सह की भावना का होना (UPBoardSolutions.com) आवश्यक है। परिवाररूपी सामाजिक संस्था का कुशल संचालन प्रेम, स्नेह एवं सहयोग पर ही निर्भर करता है। यह प्रवृत्ति भी परिवार की मूल आवश्यकता है।

(9) आय:
यह परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। धन से प्रायः सभी भौतिक आवश्यकताएँ क्रय की जा सकती हैं। परिवार में धन का प्रमुख स्रोत पारिवारिक आय होती है। प्रत्येक परिवार की आय प्राय: सभी सदस्यों की मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के योग्य होनी चाहिए।

(10) बचते:
आकस्मिक संकटों (बीमारी आदि) का सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त लड़के-लड़कियों के विवाह, लड़कों के व्यवसाय एवं धार्मिक कार्यों आदि में भी अकस्मात् ही धन की आवश्यकता पड़ती है। धन की इस आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति एक (UPBoardSolutions.com) बुद्धिमान् गृहिणी नियमित बचत द्वारा करती है। अतः प्रत्येक गृहिणी का कर्तव्य है कि वह आय-व्यय में सन्तुलन रखकर परिवार के भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित एवं अधिक-से-अधिक बचत करे। प्राथमिक एवं गौण आवश्यकताओं में भिन्नता लाना इतना सरल नहीं है जितना हम समझते हैं। वास्तव में जो वस्तु एक परिवार के लिए विलासिता की श्रेणी में है, वह वस्तु किसी अन्य परिवार के लिए अनिवार्य आवश्यकता की श्रेणी में मानी जा सकती है। अतः विभिन्न आवश्यकताएँ परिवार की आर्थिक दशा, रहन-सहन एवं समाज में स्तर तथा प्रतिष्ठा के अनुसार प्राथमिक अथवा गौण हो सकती हैं। परिवार के मुखिया तथा अन्य सदस्यों का दायित्व है कि वे पारिवारिक परिस्थितियों एवं उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लें तथा उनकी क्रमिक पूर्ति के लिए प्रयास करें।

प्रश्न 3:
परिवार की मूल आवश्यकताओं पर प्रभाव डालने वाले कारक कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक समझाइए।
या
आवश्यकताओं की वृद्धि एवं तीव्रता को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी भी परिवार के सफल संचालन के लिए उसकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति अति आवश्यक है। परन्तु बढ़ती हुई महँगाई एवं वैज्ञानिक आविष्कारों के आज के युग में यह कोई सरल कार्य नहीं है। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि मूल आवश्यकताएँ किन-किन कारकों से प्रभावित होती हैं। परिवार की मूल आवश्यकताओं को प्रायः निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
(क) व्यक्तिगत कारक,
(ख) वस्तुगत कारक,
(ग) पारिस्थितिक कारक।

(क) व्यक्तिगत कारक:
ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) आर्थिक स्थिति:
एक व्यक्ति अथवा परिवार की आय के अनुसार ही उसकी आवश्यकताएँ होती हैं। आय में वृद्धि के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए-एक
पवर्गीय परिवार की आवश्यकताएँ कम होती हैं, जबकि एक धनी परिवार की आवश्यकताएँ विलासिताओं की सीमा तक बढ़ जाती हैं।

(2) रहन-सहन का स्तर:
रहन-सहन का स्तर आवश्यकताओं के वर्गीकरण को बदल देता है। उदाहरण के लिए एक मध्यमवर्गीय परिवार की आवश्यकता बिजली के पंखे से भी पूर्ण हो जाती है,
जबकि एक धनी परिवार वातानुकूलन को आवश्यक समझता है।

(3) रुचि एवं आदत:
रुचि के अनुसार वस्तुओं को रखना आवश्यकता है; जैसे कि संगीत में रुचि रखने वाली गृहिणी के लिए वाद्य यन्त्र आवश्यक है, जबकि किसी अन्य रुचि वाली महिला के लिए यह अनुपयोगी है। इसी प्रकार पान, चाय, कॉफी इत्यादि की जिन्हें आदत है उनके लिए ये आवश्यकताएँ हैं, जबकि अन्य के लिए ये धन के अपव्यय की वस्तुएँ हैं।

(4) सामाजिक स्तर:
यह भी आवश्यकताओं का अर्थ बदल देता है। एक उच्चवर्गीय परिवार के लिए वैभवशाली आवासीय व्यवस्था व मोटरकार इत्यादि यदि एक ओर आवश्यकताएँ हैं, तो दूसरी ओर साधारण मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए विलासिता की वस्तुएँ हैं। इसी प्रकार निम्नवर्गीय परिवारों के लिए कच्चे मकान व झोपड़े आदि आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं।

(5) शरीर-रचना एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी कारक:
मानवीय आवश्यकताओं को व्यक्ति की अपनी शरीर-रचना तथा स्वास्थ्य भी प्रभावित करते हैं; उदाहरण के लिए—यदि किसी व्यक्ति की टाँग में कोई विकृति या दोष हो, तो उनके लिए छड़ी या बैसाखी एक प्रबलतम आवश्यकता होती है। इसी प्रकार जिसकी नजर या दृश्य-क्षमता कमजोर हो, उसके लिए चश्मा अति आवश्यक या अनिवार्य आवश्यकता माना जाता है।

(6) व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण:
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न होता है। कुछ व्यक्ति भौतिकवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए भौतिक सुख-सुविधा सम्बन्धी आवश्यकताएँ अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं। ऐसा व्यक्ति घर में सुन्दर सोफा, कलर टी० वी०, डायनिंग टेबल आदि अनिवार्य समझता है। इससे भिन्न (UPBoardSolutions.com) एक धार्मिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति के लिए सोफा खरीदने की तुलना में तीर्थ-यात्रा का महत्त्व अधिक हो सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी एक ऐसा कारक है जो मानवीय आवश्यकताओं को गम्भीरता से प्रभावित करता है।

(ख) वस्तुगत कारक
आवश्यकताओं को सीधे ही प्रभावित करती हैं; जैसे कि

(1) वस्तुओं का मूल्य:
साधारण मूल्यों वाली वस्तुओं को प्रायः आवश्यकताओं के वर्ग में तथा अत्यधिक मूल्य वाली वस्तुओं को विलासिता की श्रेणी में रखा जाता है। इस प्रकार वस्तुओं का मूल्य आवश्यकताओं से सीधा सम्बन्ध रखता है।

(2) वस्तुओं की संख्या:

उपभोग की प्रेरक वस्तुओं के सन्दर्भ में उनकी प्रति व्यक्ति अथवा : परिवार के अनुसार संख्या सदैव महत्त्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए–एक परिवार में एक कार आवश्यकता हो सकती है, जबकि एक से अधिक कारें होना विलासिता कहलाएँगी। इसी प्रकार एक व्यक्ति के पास दो या चार जोड़ी अच्छे वस्त्र होना आवश्यकता है, जबकि अत्यधिक संख्या में वस्त्रों को होना विलासिता माना जाएगा।

(ग) पारिस्थितिक कारक:
मैं परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं; जैसे कि

(1) देश एवं काल:
प्रत्येक देश की भौगोलिक परिस्थितियों पर उसकी आवश्यकताएँ निर्भर करती हैं। उदाहरण के लिए-उष्ण देशों में आवास, वस्त्र एवं भोजन आदि की आवश्यकताएँ ठण्डे देशों से भिन्न होती हैं। इसी प्रकार किसी भी देश में ग्रीष्म ऋतु की आवश्यकताएँ शीत ऋतु से सदैव भिन्न होती हैं।

(2) फैशन एवं रीति-रिवाज:

प्रत्येक देश एवं प्रदेश में रीति-रिवाज प्रायः भिन्न होते हैं। इसके अनुसार ही भोजन, वस्त्र एवं आवास जैसी मूल आवश्यकताएँ भी प्रायः बदल जाया करती हैं।

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प्रश्न 4:
परिवार की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में गृहिणी का क्या योगदान है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
या
एक कुशल गृहिणी अर्थव्यवस्था को किस प्रकार व्यवस्थित कर सकती है? समझाइए।
उत्तर:
गृहिणी गृह-संचालिका होती है। उसकी बुद्धिमत्ता, व्यवहार-कुशलता एवं सूझ-बूझ पर ही उत्तम पारिवारिक व्यवस्था एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। वह पारिवारिक आय के अनुसार ही व्यय करती है। पारिवारिक आय से हमारा अभिप्राय निम्नलिखित है

(1) प्रत्यक्ष आय:
सदस्यों के वेतन एवं व्यापार आदि से अर्जित आय। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति का किराया व ब्याज आदि से प्राप्त धन भी इसमें सम्मिलित है।
(2) अप्रत्यक्ष आय:
यह सुख-सुविधाओं के रूप में होती है; जैसे कि नि:शुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तथा पैतृक मकान, जिसका किराया नहीं देना होता है इत्यादि। । पारिवारिक आय प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। एक कुशल गृहिणी इसका सदैव ध्यान रखती है। वह निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर अर्थव्यवस्था का संचालन करती है

(i) मूल आवश्यकताओं को प्राथमिकता:
भोजन, वस्त्र एवं मकान जीवनरक्षक मूल आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इनके लिए यह भी आवश्यक है कि इन पर पारिवारिक आय के अनुसार ही व्यय हो।

(ii) आवश्यकताओं में समन्वय:
विभिन्न आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा किया जाना चाहिए। आवश्यकताओं की पूर्ति उनके महत्त्व के क्रम में प्राथमिकता के सिद्धान्त के अनुसार की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए–जीवनरक्षक आवश्यकताओं में भोजन सर्वप्रथम आता है तथा वस्त्र एवं मकान बाद में। अतः गृहिणी को सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों को आवश्यक पौष्टिक भोजन मिले, इसके पश्चात् ही आय का व्यय वस्त्र व मकान की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाना चाहिए।

(ii) आय के अनुसार व्यय:
जिस प्रकार धन का अपव्यय करना अनुचित है, उसी प्रकार धन का आवश्यकता से कम व्यय करना भी कोई अच्छी बात नहीं है। एक कुशल गृहिणी अर्थव्यवस्था का संचालन रहन-सहन के सामाजिक स्तर के अनुसार करती है। यदि पारिवारिक आय कम है, तो इसका व्यय केवल मूल (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं की पूर्ति में ही करती है। इसके विपरीत यदि आय अधिक है, तो वह स्तर के अनुरूप विलासिता की वस्तुओं (जैसे कि वातानुकूलन, टेलीविजन, गृह सज्जा की वस्तुएँ इत्यादि) पर भी धन व्यय कर सकती है अर्थात् एक कुशल गृहिणी को आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए।

(iv) मुद्रा की क्रय-शक्ति:
आज महँगाई के युग में मुद्रा की क्रय-शक्ति प्रायः घटती रहती है। एक कुशल गृहिणी मुद्रा की क्रय-शक्ति का विशेष ध्यान रखती है तथा इसके अनुसार ही अपने परिवार की अर्थव्यवस्था का संचालन करती है।

(v) पारिवारिक सन्तोष:
पारिवारिक आय एवं परिवार के सदस्यों की संख्या में सीधा सम्बन्ध होता है। कम सदस्यों के परिवार में अर्थव्यवस्था के संचालन में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती, परन्तु यदि परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक है तो गृहिणी की व्यवहार-कुशलता एवं सूझ-बूझ के द्वारा ही अर्थव्यवस्था का संचालन सम्भव है। एक कुशल गृहिणी परिवार के सभी सदस्यों के सुख, सन्तोष एवं रुचि का ध्यान रखती है तथा आवश्यकता पड़ने पर पारिवारिक आय में वृद्धि के उपाय अपनाती है।

(vi) भविष्य के लिए बचत:
एक कुशल गृहिणी कभी भी धन का अनुचित व्यय नहीं करती है। वह अर्थव्यवस्था का संचालन योजना बनाकर करती है। वह प्रत्येक परिस्थिति में भविष्य की योजनाओं व आकस्मिक कार्यों (बीमारी व विवाह आदि) के लिए धन की बचत का प्रावधान रखती है। प्रत्येक कुशल गृहिणी पारिवारिक स्तर के अनुरूप धन का व्यय करती है तथा एक निश्चित मात्रा में धन की बचत कर उसको सुरक्षित एवं अधिक लाभप्रद राष्ट्रीय बचत योजनाओं में लगाती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिवार की बढ़ती आवश्यकताओं की सन्तुष्टि तभी सम्भव हो सकती है जब विभिन्न आवश्यकताओं तथा उनकी तीव्रता को ध्यान में (UPBoardSolutions.com) रखकर सीमित साधनों से सन्तुष्ट किया जाए। इस उद्देश्य के लिए आय-व्यय का सन्तुलन अत्यन्त आवश्यक है। यदि पारिवारिक आय-व्यय का सन्तुलन न किया जाए, तो गृह की अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित हो जाएगी और यह भी सम्भव है कि परिवार की आय से व्यय अधिक हो जाए। परिवार की आय से अधिक व्यय हो जाने पर परिवार पर ऋण का बोझ हो जाएगा और ऋण से परिवार की सुख-शान्ति समाप्त हो जाएगी।
वास्तव में, एक सुव्यवस्थित या कुशल अर्थव्यवस्था ही इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हो सकती है। अतः एक आदर्श गृह-व्यवस्था में कुशल अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गृहिणी को इस बात की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए कि मानव की किस-किस अवस्था की । कौन – कौन सी आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण हैं; (UPBoardSolutions.com) जैसे-शिशु की आवश्यकता, भूख व सुरक्षा। उसके। पश्चात् बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था एवं वृद्धावस्था की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अपना पूर्ण उत्तरदायित्व निभाएँ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि परिवार की सुख-शान्ति एवं समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम एवं सुनियोजित होना आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि किस प्रकार की गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम या सफल कहा जा सकता है, अर्थात् सफल गृह-अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ या लक्षण क्या हैं? सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं ।

  1.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
  2. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं में समन्वय स्थापित किया जाता है।
  3.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लिया जाता है।
  4.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आय के अनुसार व्यय का निर्धारण किया जाता है।
  5.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत अनिवार्य रूप से बचत का प्रावधान होता है।
  6. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में पारिवारिक सन्तोष का ध्यान रखा जाता है। प्रश्न 2-गृह-अर्थव्यवस्था के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:
किसी भी परिवार की उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए

  1.  पारिवारिक लक्ष्यों के निर्धारण का सिद्धान्त,
  2. आय के विश्लेषण का सिद्धान्त,
  3.  विभिन्न पारिवारिक योजनाओं सम्बन्धी सिद्धान्त,
  4.  पारिवारिक भविष्य की सुरक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त,
  5. परिवार के सदस्यों की सन्तुष्टि का सिद्धान्त।

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प्रश्न 3:
आवश्यकताएँ कितने प्रकार की होती हैं?
या
अनिवार्य आवश्यकताएँ किन्हें कहा जाता है?
या
आरामदायक आवश्यकताओं से आप क्या समझती हैं?
या
विलासात्मक आवश्यकताओं से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति की आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं तथा वे कभी भी पूर्ण नहीं होतीं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मानवीय आवश्यकताओं का एक व्यवस्थित वर्गीकरण किया गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त मानवीय आवश्यकताओं को तीन वर्गों में रखा गया है। ये वर्ग हैं-अनिवार्य आवश्यकताएँ, आरामदायक आवश्यकताएँ तथा विलासात्मक आवश्यकताएँ। इन तीनों प्रकार की आवश्यकताओं का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है

(1) अनिवार्य आवश्यकताएँ:
मानव जीवन के लिए अत्यधिक अनिवार्य आवश्यकताओं को इस वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। इस वर्ग की मानवीय आवश्यकताओं को व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताएँ भी कहा जाता है। इस वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में मनुष्य का जीवन भी कठिन हो जाता है। मुख्य रूप से (UPBoardSolutions.com) भोजन, वस्त्र तथा आवास को इस वर्ग की आवश्यकताएँ माना गया है। व्यापक रूप से इस वर्ग में भी तीन प्रकार की आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें क्रमशः जीवनरक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ, कार्यक्षमतारक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ तथा प्रतिष्ठारक्षक
अनिवार्य आवश्यकताएँ कहा जाता है।

(2) आरामदायक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है। जिनकी पूर्ति से व्यक्ति का जीक्न निश्चित रूप से अधिक सुखी तथा सुविधामय हो जाता है। उदाहरण के
लिए – विभिन्न घरेलू उपकरण इसी वर्ग की आवश्यकताएँ हैं। इन उपकरणों को अपनाकर जीवन अधिक सरल हो जाता है।

(3) विलासात्मक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलितं किया जाता है। जो व्यक्ति की विलासात्मक इच्छाओं से सम्बन्धित होती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में न तो व्यक्ति के जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और न ही व्यक्ति की कार्यक्षमता ही घटती है। विलासात्मक आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न होती हैं। विलासात्मक आवश्यकताएँ भी तीन प्रकार की होती हैं, जिन्हें क्रमशः हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताएँ, हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताएँ तथा सुरक्षा सम्बन्धी विलासात्मक आवश्यकताएँ कहा (UPBoardSolutions.com) जाता है। अधिक महँगी कार, आलीशान भवन, महँगे तथा अधिक संख्या में वस्त्र रखना हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं। भोग-विलास के साधने नशाखोरी तथा नैतिक एवं चारित्रिक पतन के साधनों को अपनाना हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताओं से सम्बद्ध हैं। जहाँ तक सुरक्षात्मक विलासात्मक आवश्यकताओं का सम्बन्ध है, इनमें बहुमूल्य गहनों तथा विभिन्न सम्पत्तियों को सम्मिलित किया जाता है। ये वस्तुएँ व्यक्ति के संकट-काल में सहायक होती हैं।

प्रश्न 4:
आरामदायक तथा विलासात्मक आवश्यकताओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानवीय आवश्यकताओं के वर्गीकरण में आरामदायक तथा विलासात्मक आवश्यकताओं को अलग-अलग वर्ग में प्रस्तुत किया गया है। स्थूल रूप से देखने पर इन दोनों प्रकार की आवश्यकताओं में कोई स्पष्ट अन्तर दिखाई नहीं देता। एक ही आवश्यकता एक व्यक्ति के लिए विलासात्मक आवश्यकता हो सकती है और वही आवश्यकता किसी अन्य व्यक्ति के लिए आरामदायक आवश्यकता हो सकती है। वास्तव (UPBoardSolutions.com) में, ये दोनों सापेक्ष हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि जिस आवश्यकता से सम्बन्धित व्यक्ति का किसी प्रकार अहित होने की आशंका हो, वह आवश्यकता विलासात्मक आवश्यकता की श्रेणी में आएगी। इससे भिन्न जो आवश्यकता केवल जीवन की सुख-सुविधा में वृद्धि करती है, वह आरामदायक आवश्यकता की श्रेणी में आएगी।

प्रश्न 5:
मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं ।

  1. मानवीय आवश्यकताएँ असीमित होती हैं।
  2. मानवीय आवश्यकताओं में पुनरावृत्ति होती है। उदाहरण के लिए–एक बार भोजन ग्रहण कर लेने के उपरान्त कुछ समय बाद पुनः भोजन की आवश्यकता महसूस होने लगती है।
  3. आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इनमें विकल्प भी सम्भव होते हैं। उदाहरण के लिए–प्रकाश की आवश्यकता के लिए साधन के रूप में लैम्प, मोमबत्ती, वैद्युत-बल्ब आदि में विकल्प हो सकता है।
  4. कुछ आवश्यकताएँ परस्पर पूरक होती हैं। उदाहरण के लिए मोटर की पूरक आवश्यकता पेट्रोल है।
  5. मानवीय आवश्यकताओं में प्रतिस्पर्धा होती है तथा उनकी प्रबलता में अन्तर होता है।
  6. वर्तमान सम्बन्धी मानवीय आवश्यकताएँ अधिक प्रबल होती हैं।
  7. कुछ मानवीय आवश्यकताएँ आदत का रूप ले लेती हैं।
  8. जानकारी बढ़ने के साथ-साथ आवश्यकताएँ बढ़ती हैं।
  9. आवश्यकताओं पर विज्ञापन एवं प्रचार का भी प्रभाव पड़ता है।
  10. मानवीय आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इन पर प्रचलित रीति-रिवाजों तथा फैशन का भी प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 6:
आवश्यकता की अनिवार्यता आप किस प्रकार निर्धारित करेंगी?
उत्तर:
आवश्यकता की अनिवार्यता निम्नलिखित आधारों पर निर्भर करती है

(1) कुशलता में वृद्धि का आधार:
यदि किसी आवश्यकता की पूर्ति से परिवार की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है, तो वह आवश्यकता अति अनिवार्य हो जाती है।

(2) सुख-सन्तोष का आधार:
जिन आवश्यकताओं की पूर्ति से पारिवारिक सदस्यों को सुख एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है, वे अनिवार्यता की श्रेणी में आती हैं।

(3) मूल्य एवं माँग का आधार:
यदि किसी आवश्यक वस्तु के मूल्य में वृद्धि की आशंका हो तो वह अनिवार्यता की श्रेणी में आ जाती है।

प्रश्न 7:
आवश्यकताओं के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों के अन्वेषण का आधार सदैव मनुष्य की आवश्यकताएँ ही रही हैं। आदि मानव से आज के मानव का सामाजिक विकास समय-समय पर आवश्यकताओं की उत्पत्ति एवं तुष्टि के कारण ही सम्भव हुआ है। आधुनिक युग में आवश्यकताओं की पूर्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन धन है। आवश्यकताओं में वृद्धि होने पर परिवार के (UPBoardSolutions.com) सदस्य पारिवारिक आय में वृद्धि का प्रयास करते हैं, जिसके फलस्वरूप रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है। सम्मिलित आर्थिक प्रयासों से पारिवारिक सदस्यों में स्नेह, सहयोग एवं दायित्व की भावना में वृद्धि होती है तथा परिवार की उन्नति होती है।

प्रश्न 8:
परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना कठिन होता है। क्यों?
उत्तर:
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन मुख्य साधन है। परिवार में धन का मुख्य स्रोत पारिवारिक आय होती है। आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं और आय प्रायः सीमित। अतः आवश्यकताओं की पूर्ति अनिवार्यता के क्रम में की जाती है। सर्वप्रथम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है और यदि धन शेष बचता है तो कुछ और आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। शेष आवश्यकताओं की पूर्ति का (UPBoardSolutions.com) एकमात्र उपाय पारिवारिक सदस्यों के सम्मिलित प्रयासों से ही सम्भव हो सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना एक कठिन कार्य है।

प्रश्न 9:
आवश्यकता एवं आर्थिक क्रियाओं को सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यदि आवश्यकताएँ न होतीं तो किसी प्रकार के आर्थिक प्रयास आदि का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः आर्थिक प्रयत्न की जननी आवश्यकता ही है। इस प्रकार आर्थिक क्रियाओं एवं आवश्यकताओं में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। वास्तव में, आवश्यकताएँ ही (UPBoardSolutions.com) मनुष्य को आर्थिक प्रयत्न करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए मनुष्य विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन आर्थिक क्रियाओं में उत्पादन, विनिमय, वितरण आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-अर्थव्यवस्था की एक सरल एवं स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
‘परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय का गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” निकिल तथा डारसी

प्रश्न 2:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक क्या है?
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-धन या आय।

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प्रश्न 3:
गृह-अर्थव्यवस्था के किन्हीं दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था के दो सिद्धान्त है

  1. आय के विश्लेषण का सिद्धान्त तथा
  2.  पारिवारिक भविष्य की सुरक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त।

प्रश्न 4:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की दो विशेषताएँ हैं

  1.  परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करना तथा
  2.  गृह-अर्थव्यवस्था में बचत का प्रावधान रखना।

प्रश्न 5:
परिवार की अति अनिवार्य मूलभूत आवश्यकता क्या है?
उत्तर:
भोजन परिवार की अति अनिवार्य मूलभूत आवश्यकता है।

प्रश्न 6:
जीवनरक्षक आवश्यकता से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
भोजन एवं वस्त्र मानव अस्तित्व की जीवनरक्षक आवश्यकताएँ हैं।

प्रश्न 7:
विलासिता सम्बन्धी आवश्यकताओं से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
ये सामाजिक प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य एवं दिखावे सम्बन्धी आवश्यकताएँ हैं; जैसे कि रंगीन टी० वी०, वातानुकूलित यन्त्र आदि।

प्रश्न 8:
आधुनिक समाज के विभिन्न परिवारों को आप कौन-कौन सी श्रेणियों में वर्गीकृत करेंगी?
उत्तर:
आधुनिक समाज को प्रायः तीन-उच्च, मध्यम व निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रश्न 9:
गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाने में सर्वाधिक योगदान परिवार के किस सदस्य का होता है?
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाने में सर्वाधिक योगदान परिवार के मुखिया का होता है।

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प्रश्न 10:
उत्तम एवं सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए परिवार का आकार किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर:
उत्तम एवं सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए परिवार का आकार छोटा होना चाहिए।

प्रश्न 11:
परिवार के बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था किस प्रकार की पारिवारिक आवश्यकता है?
उत्तर:
परिवार के बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था परिवार की मूलभूत आवश्यकता है।

प्रश्न 12:
कपड़े धोने की मशीन किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
कपड़े धोने की मशीन एक आरामदायक आवश्यकता है।

प्रश्न 13:
बहुमूल्य गहने किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
बहुमूल्य गहने सुरक्षात्मक विलासात्मक आवश्यकता है।

प्रश्न 14:
एक डॉक्टर के लिए कार किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
एक डॉक्टर के लिए कार अनिवार्य आवश्यकता है।

प्रश्न 15:
सिगरेट या शराब पीना कैसी आवश्यकता है?
उत्तर:
सिगरेट या शराब पीना आदत सम्बन्धी आवश्यकता के उदाहरण हैं।

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प्रश्न 16:
आपके अनुसार परिवार के सदस्यों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था परिवार की किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
हमारे अनुसार परिवार के सदस्यों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था परिवार की मूलभूत आवश्यकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) किसी परिवार द्वारा अपनी आय-व्यय तथा धन-सम्पत्ति के लिए की जाने वाली व्यवस्था को कहते हैं
(क) अनिवार्य व्यवस्था,
(ख) पारिवारिक व्यवस्था,
(ग) गृह-अर्थव्यवस्था,
(घ) अनावश्यक व्यवस्था।

(2) कुशल अर्थव्यवस्था का आधार है
(क) पारिवारिक आय,
(ख) सीमित आवश्यकताएँ,
(ग) विवेकपूर्ण व्यय,
(घ) पैतृक सम्पत्ति।

(3) यदि गृह-अर्थव्यवस्था सुचारू हो, तो
(क) परिवार के सदस्यों की प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है,
(ख) परिवार के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है,
(ग) परिवार आर्थिक संकट का शिकार नहीं होता,
(घ) उपर्युक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं।

(4) पारिवारिक आय को मितव्ययिता से व्यय करने के लाभ हैं
(क) सुख-सुविधाओं की प्राप्ति,
(ख) भविष्य के लिए बचत,
(ग) सुदृढ़ अर्थव्यवस्था,
(घ) ये सभी।

(5) व्यक्ति की सर्वाधिक अनिवार्य आवश्यकता है
(क) सभी इच्छाओं की पूर्ति,
(ख) सन्तुलित एवं पौष्टिके भोजन,
(ग) नींद,
(घ) भव्य एवं आकर्षक भवन।

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(6) मानवीय आवश्यकताएँ होती हैं
(क) दो,
(ख) चार,
(ग) सीमित,
(घ) असीमित।

(7) सबसे अधिक सुखी होता है
(क) धनी वर्ग,
(ख) नियन्त्रित आवश्यकताओं वाला वर्ग,
(ग) श्रमिक वर्ग,
(घ) मध्यम श्रेणी का वर्ग।

(8) जीवनरक्षक आवश्यकता होती है
(क) जिसकी पूर्ति मानव अस्तित्व के लिए की जाती है,
(ख) जो रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाती है,
(ग) जिसकी पूर्ति से कार्य-कुशलता बढ़ती है,
(घ) जिसकी पूर्ति से अत्यधिक सुख का अनुभव होता है।

उत्तर:
(1) (ग) गृह-अर्थव्यवस्था,
(2) (ग) विवेकपूर्ण व्यय,
(3) (घ) उपर्युक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (ख) सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन,
(6) (घ) असीमित,
(7) (ख) नियन्त्रित आवश्यकताओं वाला वर्ग,
(8) (क) जिसकी पूर्ति मानव अस्तित्व के लिए की जाती है।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 आजादः चन्द्रशेखरः (गद्य – भारती)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 9
Chapter Name आजादः चन्द्रशेखरः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 आजादः चन्द्रशेखरः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

परिचय और जन्म–राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलि-वेदी पर चढ़ाने वाले देशभक्तों में अग्रगण्य चन्द्रशेखर आजाद का नाम भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा। इन्हें भुला देना अत्यधिक कृतघ्नता होगी। चन्द्रशेखर तो जीवन-पर्यन्त आजाद ही रहे, निरन्तर प्रयासरस पुलिसकर्मी कभी उनके हाथों में हथकड़ी न डाल सके। | चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के ‘भाँवरा’ नामक (UPBoardSolutions.com) ग्राम में 23 जुलाई, सन् 1906 ईसवीं में हुआ था। इनकी माता का नाम जगरानी और पिता का नाम सीताराम था। इनके पिता उन्नाव जनपद के बदरका ग्राम से जाकर अलीराजपुर राज्य में 8 रुपये मासिक की नौकरी करते थे और वहीं रहने लगे थे।

घर से निष्कासन और अध्ययन-एक दिन चन्द्रशेखर ने राजा के उद्यान का एक फल तोड़ लिया था। क्रोधित हुए पिता ने ग्यारह वर्ष के उस बालक को घर से निकाल दिया; क्योंकि पिता के कहने पर भी चन्द्रशेखर ने माली से क्षमा न माँगी। घर से निकलकर दो वर्ष तक नगर-नगर घूमकर उन्होंने कठिन परिश्रम करके किसी प्रकार अपनी जीविका चलायी। दैवयोग से वाराणसी आये और वहाँ एक संस्कृत पाठशाला में संस्कृत का अध्ययन करने लगे।

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युवती की रक्षा-एक दिन किसी दुष्ट युवक को एक भद्र युवती को परेशान करते हुए चन्द्रशेखर ने देख लिया। चन्द्रशेखर उसे पृथ्वी पर गिराकर और उसकी छाती पर चढ़कर उसे तब तक पीटते रहे, जब तक कि उस बेशर्म युवक ने उस युवती से क्षमा नहीं माँगी। इस घटना से प्रभावित होकर आचार्य नरेन्द्रदेव ने उनके अध्ययन की व्यवस्था काशी विद्यापीठ में करा दी।

असहयोग आन्दोलन में भाग–विद्यापीठ के अनेक छात्रों को असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होते देखकर आजाद भी तिरंगा झण्डा लेकर भारतमाता की जय’ और ‘गाँधी जी की जय बोलते हुए आन्दोलन में सम्मिलित हो गये। सैनिकों द्वारा उन्हें न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित करने पर उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम ‘स्वाधीन’ और घर जेल’ बताया। इस पर क्रुद्ध होकर न्यायाधीश ने उनको 15 कोडे मारे (UPBoardSolutions.com) जाने की सजा दी। कोडों से पीटे जाने पर भी ‘भारतमाता की जय करते हुए उन्होंने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। जेल से छूटने पर नागरिकों ने उनका स्नेहसिक्त अभिनन्दन किया। जब गाँधी जी ने हिंसा के कारण अपना आन्दोलन वापस ले लिया, तब आजाद बहुत दु:खी हुए। “

क्रान्तिकारी दल के सदस्य–दैवयोग से आजाद प्रणवेश चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त आदि . क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। उनकी सत्यनिष्ठा को देखकर मन्मथनाथ गुप्त ने उन्हें क्रान्तिकारी दल का सदस्य बना लिया। थोड़े ही समय में वे क्रान्तिकारियों की केन्द्रीय परिषद् के सदस्य हो गये। उन्होंने गोली चलाने और निशाना लगाने में कौशल प्राप्त कर लिया। उन्होंने सन् 1925 ई० में काकोरी काण्ड में सक्रिय भाग लिया। इस अवसर पर आजाद को छोड़कर उनके अन्य सहयोगी पकड़े गये और हथकड़ी लगाकर शूली पर चढ़ा दिये गये। उस समय चन्द्रशेखर को बहुत दु:ख हुआ किन्तु वे क्रान्ति : से विरत नहीं हुए और उन्होंने क्रान्तिकारी दल का नेतृत्व सँभाला।।

आजाद ने अनेक अंग्रेज अधिकारियों और सैनिकों को मारा। लाला लाजपत राय के हत्यारे ‘साण्डर्स को भी आजाद ने मौत के घाट उतार दिया।

विधानसभा-भवन में बम-विस्फोट–सन् 1929 ई० में 8 अप्रैल को आजाद की सलाह से सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा भवन में बम विस्फोट कर दिया। चन्द्रशेख़र विधानसभा भवन के बाहर ही उपस्थित थे। उसमें भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आत्मसमर्पण कर (UPBoardSolutions.com) दिया और उन्हें शूली पर चढ़ा दिया गया। आजाद के अनेक साथी भगवतीचरण, सालिगराम आदि भी मारे गये। आजाद बहुत दु:खी हुए। यशपाल और वीरभद्र के विश्वासघात से आजाद को गहरा दु:ख पहुंचा था।

अमर बलिदान–सन् 1931 ई० में फरवरी की 27 तारीख को आजाद प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में यशपाल और सुखदेव के साथ बैठे हुए बातचीत कर रहे थे। उसी समय वीरभद्र दिखाई पड़ा और यशपाल उठकर चल दिया। आजाद सुखदेव के साथ बातचीत कर ही रहे थे कि सैनिकों ने वहाँ आकर आजाद को घेर लिया।

आजाद ने अपने सहयोगी सुखदेव को किसी तरह पार्क से बाहर निकाला और पिस्तौल भरकर । खड़े हो गये। विपक्षियों ने आजाद पर गोलियाँ बरसायीं। आजाद ने भी निरन्तर गोलियाँ बरसाकर

अनेक को मूर्च्छित और घायल कर दिया। अन्त में जब उनकी पिस्तौल में एक गोली रह गयी, तब उन्होंने स्वयं को ही मार लिया। इस प्रकार चन्द्रशेखर अमर शहीद हो गये।

ऐसे क्रान्तिकारी देशभक्त सदा उत्पन्न नहीं होते। उनका जन्म कभी-कभी ही होता है। ऐसे अमर युवक युगान्तर उपस्थित करने के लिए जन्म लेते हैं। भारतभूमि धन्य है, जहाँ ऐसे शूरवीर उत्पन्न होते हैं, जो अपने जन्म से भारतभूमि को पवित्र करते हैं और खून से सींचते हैं।

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गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) राष्ट्रहितेऽनुरक्तानामात्मबलिं कर्तुं सहर्षमुद्यतानाम् अग्रगण्यः चन्द्रशेखरः भारतस्य स्वातन्त्र्येतिहासेऽसौ सततमुल्लेखनीयः स्मरणीयश्च। स्वतन्त्रतायाः मधुरं फलं भुञ्जानाः वयमधुना प्रकामं मोदामहे। तद् वृक्षारोपकास्तु त एवात्मबलिदायकास्तादृशाः वीराः एवासन्। प्रातः स्मरणीयास्ते वीराः कदापि भारतीयैरस्माभिः नैव विस्मर्तुं शक्यन्ते। तेषां विस्मृतिस्तु महती कृतघ्नता स्यात्। तेष्वेव वीरेषु मूर्धन्यः परमस्वतन्त्रश्चन्द्रशेखरः आजीवनं स्वतन्त्र एवासीत्। सततं प्रयतमानैरपि आरक्षकैः तत्करे लौहशृङ्खला न पिनद्धा। मातृभूमिपरिचारकः राणाप्रताप इव असावपि आत्मबलिदायको वीरः रक्तस्नातोऽपि स्वतन्त्र एव परिभ्रमन् प्राणानत्यजत्। (UPBoardSolutions.com) जीवितः स तैः कथमपिन गृहीतः। देशभक्तानामादर्शभूतस्य चन्द्रशेखरस्य जन्म षडधिकैकोनविंशतिशततमे . (1906) ख्रीष्टाब्दे जुलाईमासस्य त्रयोविंशतितयां तारिकायां मध्यप्रदेशस्य भाँवरा ग्रामेऽभवत्। तस्य जनकः श्री सीतारामः स्वीययो धर्मपत्न्या जगरानी नामधेयया सह उन्नावजनपदस्य बदरकाग्रामात् गत्वा तत्रैव व्यवसत्। सः तत्र ‘अलीराजपुरराज्ये’ वृत्त्यर्थं कार्यमकार्षीत्। अष्टमुद्रात्मकं मासिकं वेतनञ्चालभत्।

शब्दार्थ
आत्मबलिं कर्तुम् = अपना बलिदान करने के लिए।
उद्यतानाम् = उद्यत रहने वालों में।
सततमुल्लेखनीयः स्मरणीयश्च = सदैव उल्लेख करने और स्मरण रखने योग्य।
भुञ्जानाः = भोगते हुए।
प्रकामम् मोदामहे = अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
तवृक्षारोपकास्तु = उस वृक्ष को लगाने वाले तो।
नैव = नहीं ही। विस्मर्तुं शक्यन्ते = भुलाये जा सकते हैं।
कृतघ्नता = उपकार न मानना।
मूर्धन्यः = सर्वश्रेष्ठ।
पिनद्धा = पहनायी।
असावपि (असौ + अपि) = यह भी।
परिभ्रमन् = घूमते हुए।
स्वीययाय धर्मपत्न्या = अपनी धर्मपत्नी के साथ।
वृत्त्यर्थम् = जीविका के लिए।
अकार्षीत् = करता था।

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘आजादः चन्द्रशेखरः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रहित के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले चन्द्रशेखर आजाद के जन्म तथा पारिवारिक स्थिति के विषय में बताया गया है।

अनुवाद
राष्ट्रहित में लगे हुए स्वयं को बलिदान करने के लिए सहर्ष तैयार लोगों में सबसे पहले गिने जाने वाले चन्द्रशेखर भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में मिरन्तर उल्लेख करने योग्य और स्मरणीय हैं। स्वतन्त्रता के जिस मधुर फल को खाते हुए हम आज अत्यन्त प्रसन्न हो रहे हैं, उस वृक्ष को लगाने वाले वे ही अपना बलिदान करने वाले उस प्रकार के वीर ही थे। प्रातः समय स्मरण करने योग्य ये वीर हम भारतीयों के द्वारा कभी भी भुलाये नहीं जा सकते। उनको भूल जाना तो बड़ी कृतघ्नता होगी। उन्हीं वीरों में सर्वश्रेष्ठ अत्यधिक स्वतन्त्र चन्द्रशेखर (UPBoardSolutions.com) जीवनभर स्वतन्त्र ही रहे। निरन्तर प्रयत्न करते हुए भी सिपाहियों ने उनके हाथों में लोहे की जंजीर (हथकड़ी) नहीं पहनायी। मातृभूमि की सेवा करने वाले राणाप्रताप की तरह अपनी बलि देने वाले इसी वीर ने रक्त में स्नान करते हुए भी स्वतन्त्र घूमते हुए ही प्राणों को त्याग दिया।

उनके द्वारा वह जीवित कभी नहीं पकड़े गये। देशभक्तों में आदर्शस्वरूप चन्द्रशेखर का जन्म सन् 1906 ईसवी में जुलाई महीने की 23 तारीख को मध्य प्रदेश के ‘‘भाँवरा’ नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता श्री सीताराम अपनी जगरानी नाम की धर्मपत्नी के साथ उन्नाव जिले के बदरका ग्राम से जाकर वहीं रहते थे। वे वहाँ अल्लीराजपुर के राज्य में जीविका के लिए कार्य करते थे और आठ रुपये मासिक वेतन पाते थे।

(2) एकदा चन्द्रशेखरः तस्यैवोद्यानस्य फलमेकं पितरमपृष्ट्वैव अत्रोटयत्। क्रोधाविष्टस्तज्जनकः सीतारामः प्रियं सुतमेकादशवर्षदेशीयं चन्द्रशेखरं गृहान्निस्सारयामास। क्रोधाविष्टः जनकः अवोचत् , गत्वा मालाकारं क्षमा याचस्व, परं स एवं कर्तुं नोद्यतः। गृहान्निर्गत्य वर्षद्वयमितस्ततः सः प्रतिनगरं भ्रामं-भ्रामं घोरं श्रमं कृत्वा जीविकां निरवहत्। दैववशात् सः बालकः वाराणसीमुपगम्य कस्याञ्चित् संस्कृतपाठशालायां संस्कृताध्ययनमकरोत्।।

शब्दार्थ-
एकदा = एक बार
तस्यैवोद्यानस्य = उसी बगीचे का।
पितरम् अपृष्ट्वैव = पिता से पूछे बिना ही।
निस्सारयामास = निकाल दिया।
क्रोधाविष्टः = क्रोध में भरे हुए।
मालाकारं = माली से।
नोद्यतः (न + उद्यतः) = तैयार नहीं हुआ।
इतस्ततः = इधर-उधर।
निरवहत् = निर्वाह किया।
दैववशात् = भाग्य से।
उपगम्य = जाकर।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पिता द्वारा चन्द्रशेखर को घर से निकालने और उनके वाराणसी जाकर अध्ययन करने का वर्णन है। |

अनुवाद
एक बार चन्द्रशेखर ने उसी (अल्लीराजपुर) के उद्यान का एक फल पिता से बिना पूछे ही तॉड़ लिया। क्रोध से युक्त उनके पिता सीताराम ने प्रिय पुत्र ग्यारह वर्षीय चन्द्रशेखर को घर से निकाल दिया। क्रुद्ध पिताजी बोले–‘जाकर माली से क्षमा माँगो’, परन्तु वह ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ। घर से निकलकर दो वर्ष तक उसने इधर-उधर प्रत्येक नगर में घूम-घूमकर कठोर परिश्रम करके जीविका चलायी। दैवयोग से वह बालक वाराणसी पहुँचा और किसी संस्कृत की पाठशाला में संस्कृत का अध्ययन करने लगा।

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(3) एकदा कोऽपि दुष्टो युवा कामप्येकां भद्रयुवतीं पीडयन् चन्द्रशेखरेण बलात् गृहीतः। तं धराशायिनं कृत्वा तस्योरसि उपविष्टश्च, चन्द्रशेखरः तं तावन्नमुमोच यावत् स चञ्चलो दुष्टः धृष्टः निर्लज्जो युवा तां युवतिं भगिनिकेति नाकथयत् क्षमायाचनाञ्च नाकरोत्। अनया घटनया चन्द्रशेखरस्य महती ख्यातिः जाता। आचार्यनरेन्द्रदेवस्तेन प्रभावितः काशीविद्यापीठे तस्याध्ययनव्यवस्थां कृतवान्। यदा (UPBoardSolutions.com) विद्यापीठस्यानेके छात्राः असहयोगान्दोलने सम्मिलिताः जाताः तदाजादोऽपि तत्र सम्मिलितः त्रिवर्णध्वजमादाय ‘जयतु महात्मा गाँधी’, ‘जयतु भारतमाता’ इति घोषयन् न्यायाधीशस्य सम्मुखमानीतः।

तदा स स्वकीयं नाम ‘आजाद’ इति पितुर्नाम ‘स्वाधीन’ इति गृहञ्च कारागारमवोचत् , तदा क्रुद्धो न्यायाधीशः तस्मै पञ्चदशकशाघातदण्डमददात्। तदपि सः ‘जयजय’ कारं कृत्वा मनसि ब्रिटिशसाम्राज्यमुन्मूलयितुं सङ्कल्पमकरोत्। कशाघातेन पीड्यमानोऽपि सः निश्चल एवासीत्। ततः बहिरागत्य सः जनैरभिनन्दितः। द्वाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशततमे (1922) वर्षे यदा महात्मना गान्धिमहोदयेनान्दोलनम् निवारितं तदाजादो दुःखितो जातः यतोऽहिसंकान्दोलने तस्य निष्ठा नासीत्।।

शब्दार्थ-
भद्रयुवतीम् = शिष्ट युवती को।
बलात् = बलपूर्वक।
धराशायिनं कृत्वा = पृथ्वी ।
पर गिराकर।
उरसि = छाती पर।
भगिनिकेति = बहन ऐसा।
ख्यातिः जाता = प्रसिद्धि हुई।
त्रिवर्णाध्वजम् आदाय = तिरंगे झण्डे को लेकर।
आनीतः = लाये गये।
घोषयन्= घोषणा करते हुए।
अवोचत् = कहा।
कशाघातदण्डम् = कोड़े मारने का दण्ड।
उन्मूलयितुम् = जड़ से उखाड़ के लिए।
कशाघातेन = कोड़ों की चोट से।
निवारितम् = रोक दिया।
निष्ठा = श्रद्धा, विश्वास।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर के द्वारा दुष्ट के हाथों से एक युवती को बचाने एवं महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होने का वर्णन है।

अनुवाद
एक दिन किसी एक शिष्ट युवती को सताते हुए किसी दुष्ट युवक को चन्द्रशेखर ने बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे भूमि पर गिराकर उसकी छाती पर बैठ गया। चन्द्रशेखर ने उसे तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उस चंचल, दुष्ट, धृष्ट, बेशर्म युवक ने उस युवती को ‘बहन’ नहीं कहा और क्षमा नहीं माँगी। इस घटना से चन्द्रशेखर की बड़ी प्रसिद्धि हो गयी। आचार्य नरेन्द्रदेव ने उससे प्रभावित होकर काशी विद्यापीठ में उसके अध्ययन की व्यवस्था करा दी। जब काशी विद्यापीठ के अनेक छात्र असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हुए, तब आजाद भी उसमें सम्मिलित हुए और तिरंगा झण्डा लेकर ‘महात्मा गाँधी की जय’, ‘भारतमाता की जय’ बोलते हुए न्यायाधीश (जज) (UPBoardSolutions.com) के सामने लाये गये। तब उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वाधीन’ और घर ‘कारागार’ बताया। तब क्रुद्ध जज ने उनको 15 कोड़े मारने का दण्ड दिया। तब भी उन्होंने जय्-जयकार करके मन में ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ने का संकल्प किया। कोड़ों से पीटे जाते हुए भी वे निश्चल ही रहे। इसके बाद बाहर आने पर उनका लोगों ने अभिनन्दन किया। सन् 1922 ई० में जब महात्मा गाँधी ने आन्दोलन रोक दिया, तब आजाद दुःखी हुए; क्योंकि अहिंसक आन्दोलन में उनको विश्वास नहीं था।

(4) दैवात् आजादस्य परिचयः क्रान्तिकारिणा प्रणवेशचटर्जीमहोदयेन सह सञ्जातः। अनेन प्रसिद्धक्रान्तिकारिणी मन्मथनाथगुप्तेन साकं तस्य परिचयः कारितः। आजादस्य सत्यनिष्ठामवलोक्य मन्मथनाथगुप्तः क्रान्तिकारिदलस्य सदस्यं तमकरोत्। तदानीं क्रान्तिकारिदलस्य नेता अमरबलिदायी रामप्रसादबिस्मिलः आसीत्। अल्पीयसैव समयेन आजादः केन्द्रियक्रान्तिकारिदलस्य सदस्यो जातः। गुलिकाचालने लक्ष्यभेदने च तेन महत् कौशलमवाप्तम्। अतः सः तस्मिन् दले अतीव समादृतः आसीत्। (UPBoardSolutions.com) पञ्चविंशत्यधिकैकोनविंशतिशततमे (1925) वर्षे अगस्तमासस्य नवम्यां तारिकायां जायमाने काकोरीकाण्डे आजादेन सक्रियभागो गृहीतः। तस्मिन्नवसरे आजादं विहाय अन्ये बहवः सहयोगिनः निगडिताः शूलमारोपिताश्च। तदानीं परमदुःखितोऽपि आजादः क्रान्तेर्विरतो न जातः, प्रत्युत क्रान्तिकारिसेनायाः नायको जातः।।

तेनानेकानि कार्याणि कृतानि अनेकेऽधिकारिणः आरक्षिणश्च हताः। लालालाजपतरायस्य हन्ता प्रधानरक्षी ‘साण्डर्स’ नामधेयोऽपि आजादेन निहतः।।

शब्दार्थ-
सञ्जातः = हुआ।
साकम् = साथ।
कारितः = कराया।
अल्पीयसैव (अल्पीयसा + एव) = थोड़ी ही।
अल्पीयसैव समयेन = थोड़े से ही समय में।
गुलिकाचालने = गोली चलाने में।
लक्ष्यभेदने = निशाना लगाने में।
अवाप्तम् = प्राप्त कर लिया।
जायमाने = होने वाले।
निगडिताः = गिरफ्तार कर लिये गये, बेड़ी पहना दिये गये।
शूलमारोपिताः = शूली पर चढ़ा दिये गये।
विरतः = उदासीन।
आरक्षिणः = सिपाही।
हन्ता = मारने वाला।
निहतः = मारा।।

प्रसंग”
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर की क्रान्तिकारी कार्यवाहियों तथा क्रान्तिकारी दल के नेतृत्व को सँभालने का वर्णन है।

अनुवाद
भाग्य से आजाद का परिचय क्रान्तिकारी प्रणवेश चटर्जी महोदय के साथ हुआ। इस प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ने मन्मथनाथ गुप्त के साथ उसका परिचय कराया। आजाद की सत्यनिष्ठा को देखकर मन्मथनाथ गुप्त ने उसे क्रान्तिकारी दल को सदस्य बना लिया। उस समय क्रान्तिकारी दल के नेता अमर बलि देने वाले ‘रामप्रसाद बिस्मिल’ थे। थोड़े ही समय में आजाद केन्द्रीय क्रान्तिकारी दल के सदस्य हो गये। गोली चलाने और निशाना लगाने में उन्होंने महान् कौशल प्राप्त कर लिया; अतः वह उस दल में अत्यन्त आदरणीय (UPBoardSolutions.com) हो गये थे। सन् 1925 ई० में अगस्त महीने की नौ तारीख को होने वाले काकोरी काण्ड में आजाद ने सक्रिय भाग लिया। उस अवसर पर आजाद को छोड़कर दूसरे बहुत-से सहयोगी पकड़े गये (अर्थात् हथकड़ियाँ पहना दीं) और शूली पर चढ़ा दिये गये। इस समय अत्यन्त दु:खी होते हुए भी आजाद क्रान्ति से उदासीन नहीं हुए, अपितु क्रान्तिकारियों की सेना के नायक हो गये।

उन्होंने अनेक कार्य किये, अनेक अधिकारियों और सैनिकों को मारा। लाला लाजपत राय के … हत्यारे सेना के प्रधान ‘साण्डर्स’ को भी आजाद ने मार दिया।

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(5) एकोनत्रिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1929) वर्षे अप्रैलमासस्य अष्टम्यां तारिकायाम् आजादस्य परामर्शेनैव सरदारभगतसिंहः बटुकेश्वरदत्तश्च विधानसभाभवने बमविस्फोटमकुरुताम्। तस्मिन् समये चन्द्रशेखरोऽपि विधानसभाभवनाद् बहिः मोटरयानमादायोपस्थितः आसीत्। परं भगतसिंहः बटुकेश्वरदत्तश्च विधानसभाभवने एव आत्मसमर्पणं कृतवन्तौ। पश्चात् तौ द्वावपि शूलमारोपितौ। (UPBoardSolutions.com) एवम् आजादस्य अनेके सहयोगिनः भगवतीचरणसालिकरामप्रभृतयो मृताः। अतः आजादश्चन्द्रशेखरो नितरां खिन्नो जातः, केन्द्रियक्रान्तिकारिदलस्य सदस्ययोः यशपालवीरभद्रयोः सन्दिग्धाचरणेन तु आजादो विक्षुब्धोऽभवत्। यदी दलस्य सदस्याः एव विश्वासघातिनो जाताः तदा तस्य दुःखानुभूतिः स्वाभाविकी एव आसीत्। तदपि सः स्वमार्गात् विचलितो न जातः। कर्णपुरस्य वीरभद्रत्रिपाठिनः विश्वासघात एवं आजादस्य कृतेऽनिष्टकारको जातः।

शब्दार्थ
परामर्शेनैव = परामर्श से ही।
अकुरुताम् = किया।
मोटरयानमादायोपस्थितः = मोटर वाहन लेकर उपस्थित।
कृतवन्तौ = कर दिया। द्वावपि (द्वौ + अपि) = दोनों ही।
मृताः = मारे गये।
सन्दिग्धाचरणेन = सन्देह भरे आचरण से।
विक्षुब्धः = व्याकुल, असन्तुष्ट।
विश्वासघातिनः = विश्वासघात करने वाले।
कर्णपुरस्य = कानपुर के।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में क्रान्तिकारी गतिविधियों में चन्द्रशेखर के अनेक सहयोगियों के मारे जाने एवं दल के कुछ लोगों द्वारा विश्वासघात किये जाने का वर्णन है।

अनुवाद
सन् 1929 ई० में अप्रैल महीने की आठ तारीख को आजाद के परामर्श से ही सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त ने विधानसभा भवन में बम विस्फोट किया। उस समय चन्द्रशेखर भी विधानसभा भवन के बाहर मोटरगाड़ी लेकर उपस्थित थे, परन्तु भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानस भवन में ही आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में उन दोनों को शूली पर चढ़ा दिया गया। इसे प्रकार आजाद के अनेक साथी (UPBoardSolutions.com) भगवतीचरण, सालिगराम आदि मारे गये। इसलिए चन्द्रशेखर आजाद अत्यन्त दु:खी हुए। केन्द्रीय क्रान्तिकारी दल के दो सदस्यों यशपाल और वीरभद्र के सन्देहपूर्ण आचरण से आजाद नाराज हुए। जब दल के सदस्य ही विश्वासघाती हो गये, तब उनको दु:ख का अनुभव होना स्वाभाविक ही था। तब भी वह अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। कानपुर के वीरभद्र त्रिपाठी को विश्वासघात ही आजाद के लिए अनिष्टकारी हुआ।

(6) एकत्रिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1931) वर्षे फरवरीमासस्य सप्तविंशतितमायां तारिकायां प्रातः नववादने प्रयागस्य अल्फ्रेड नाम्नि उद्याने एकस्य वृक्षस्याधश्छायायाम् आजादः यशपालेन सुखदेवेन च समं वार्तालापं कुर्वन् उपविष्टः आसीत्। तस्मिन्नेव समये गच्छन् वीरभद्रत्रिपाठी दृष्टः, यशपालोऽपि उत्थाय चलितः, आजादः सुखदेवराजेन सह वार्तालाप कुर्वन्नेवासीत्। तदा आरक्षिणः आगत्य परितोऽवरुद्धवन्तस्तम्। ।

शब्दार्थ-
नववादने = नौ बजे।
वृक्षस्याधश्छायायाम् = वृक्ष के नीचे छाया में।
समम् = साथ।
उपविष्टः आसीत् = बैठे हुए थे।
उत्थाय = उठकर।
परितः = चारों ओर।
अवरुद्धवन्तः = घेर लिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर के सिपाहियों द्वारा घेरे जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
सन् 1931 ईसवी में फरवरी महीने की 27 तारीख को प्रातः नौ बजे प्रयाग के अल्फ्रेड नामक बगीचे में एक वृक्ष के नीचे छाया में आजाद यशपाल और सुखदेव के साथ बातचीत करते हुए बैठे थे। उसी समय जाता हुआ वीरभद्र त्रिपाठी दिखाई पड़ा। यशपाल भी उठकर चल दिया। आजाद सुखदेव के साथ बातचीत कर ही रहे थे, तब ही सैनिकों ने आकर चारों ओर से उसे घेर लिया।

(7) स्वकीयं सहयोगिनं कथञ्चित्ततः उद्यानात् निःसार्य. आजादः पेस्तौलअस्त्रं संसाधितवान्। तगा विपक्षतः गुलिकावृष्टिः जाता। विपक्षतः आरक्षिणां गुलिकावृष्टिं दर्श-दर्शम् आजादस्य मनः आकुलं नाभूत्। आजादोऽपि स्वकीयेनास्त्रेणानेकान् विमुग्धान् आहतांश्चाकरोत्। यदास्त्रे एका गुलिकावशिष्टा आसीत् तदा तया स्वमेवाहन्। एवमाजादश्चन्द्रशेखरो यशः शरीरेणामरतामभजत्। |

शब्दार्थ-
स्वकीयम् = अपने।
कथञ्चिद् = किसी प्रकार।
निःसार्य = निकालकरे।
संसाधित- वान् = तैयार किया।
विपक्षतः = शत्रु की ओर से।
गुलिकावृष्टिः = गोलियों की वर्षा।
आरक्षिणां = पुलिस वालों की।
आकुलं नाभूत् = व्याकुल नहीं हुआ।
विमुग्धान् = मूर्च्छित।
स्वमेवाहन (स्वम् + एव + अहन्) = अपने को ही मार दिया।
अभजत् = प्राप्त हुआ। |

प्रसंग

प्रस्तुत गद्यांश में आजाद का अपनी ही गोली से शहीद हो जाने का वर्णन है।

अनुवाद
अपने साथी (सुखदेव) को किसी तरह पार्क से निकालकर आजाद ने पिस्तौल सँभाली। तब विपक्ष की ओर से गोलियों की वर्षा हुई। विपक्ष की ओर से सैनिकों की गोलियों की वर्षा को देख-देखकर आजाद का मन व्याकुल नहीं हुआ। आजाद ने भी अपने अस्त्र से अनेक को मूर्च्छित और घायल कर दिया। जब पिस्तौल में एक गोली बची थी, तब उसने उसने स्वयं को मार लिया। इस प्रकार आजाद चन्द्रशेखर यशरूपी शरीर से अमर हो गये।।

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(8) एवं विधाः अमरबलिदानिनो देशाभिमानिनो देशसंरक्षकाः क्रान्तिकारिणो नवयुवानः प्रतिदिनं नोत्पद्यन्ते। तेषा जन्म युगे कदाचिदेव जायते। यतश्च एतादृशाः अमरयुवानः युगान्तरमुपस्थापयितुमेवोत्पद्यन्ते। एतेषामावश्यकतापि क्वाचित्की कदाचित्की एव भवति। एवंविधाः आजादस्य चन्द्रशेखरस्य द्रष्टारः साक्षात्कर्तारः अद्यापि जीवन्ति ये आत्मानं पावनं मन्यन्ते। भारतभूरपि धन्यैव यत्र एतादृशा आत्मबलिदायिनो शूराः स्वीयेन जन्मना भूमिं पावनां कृतवन्तः, शोणितेन सिञ्चितवन्तश्च।।

स्वातन्त्र्यमाप्तुकामोऽयं क्रान्तिकारी दृढव्रतः।
जातोऽमरो बलेर्दानादाजादश्चन्द्रशेखरः॥

शब्दार्थ
नोत्पद्यन्ते = उत्पन्न नहीं होते।
कदाचिदेव = कभी ही।
उपस्थापयितुं = उपस्थित करने के लिए।
क्वाचित्की = कहीं।
कादाचित्की = आकस्मिक।
द्रष्टारः = देखने वाले।
अद्यापि = आज भी।
पावनं मन्यते = पवित्र मानते हैं।
शोणितेन = रक्त से।
बलेर्दानाद् = बलिदान करने से।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान का स्मरण किया गया है।

अनुवाद
इस प्रकार के अमर बलिदानी, देश पर अभिमान करने वाले, देश की रक्षा करने वाले क्रान्तिकारी नवयुवक प्रतिदिन उत्पन्न नहीं होते हैं; अर्थात् जन्म नहीं लेते हैं। उनका ज़न्म युग में कभी ही होता है; क्योंकि इस प्रकार के अमर युवक युग-परिवर्तन उपस्थित करने के लिए ही उत्पन्न होते हैं। इनकी आवश्यकता भी कहीं-कहीं, कभी-कभी ही होती है। चन्द्रशेखर आजाद के देखने वाले और साक्षात्कार करने वाले इस प्रकार के लोग आज भी जीवित हैं, जो अपने आप को पवित्र मानते हैं। भारतभूमि भी धन्य है, जहाँ इस प्रकार के आत्मबलि को देने वाले शूरवीर अपने जन्म से भूमि को पवित्र करते हैं और खून से सींचते हैं।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति का इच्छुक वह चन्द्रशेखर नाम का युवक अत्यन्त क्रान्तिकारी और दृढ़-प्रतिज्ञ था। वह आत्म-बलिदान देकर अमर हो गया।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
चन्द्रशेखर आजाद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीषक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।] ।

प्ररन 2
चन्द्रशेखर के घर से निकलने की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जब चन्द्रशेखर केवल ग्यारह वर्ष के थे, तब उन्होंने अल्लीराजपुर राज्य के बगीचे से एक फल बिना अपने पिताजी से पूछे तोड़ लिया। इस पर उनके पिता जी बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चन्द्रशेखर से उद्यान के माली से माफी माँगने के लिए कहा। लेकिन चन्द्रशेखर ने माली से क्षमा न माँगी। इस पर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया।

प्ररन 3
चन्द्रशेखर आजाद किस प्रकार क्रान्तिकारियों में सम्मिलित होकर क्रान्तिकारी सेना के नायक बने?
उत्तर
असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के बाद आजाद का परिचय भाग्य से प्रणवेश चटर्जी नामक क्रान्तिकारी के साथ हो गया। प्रणवेश चटर्जी ने इनका परिचय मन्मथनाथ गुप्त से करवाया। इनकी सत्यनिष्ठा से प्रभावित होकर मन्मथनाथ गुप्त ने इन्हें क्रान्तिकारी दल का सदस्य बना लिया। गोली चलाने और निशाना लगाने में इन्होंने शीघ्र ही कुशलता प्राप्त कर ली। ‘काकोरी काण्ड में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। इस काण्ड के पश्चात् जब प्रमुख सदस्य पकड़ लिये गये, तब ये क्रान्तिकारी सेना के नायक बना दिये गये।

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प्ररन 4
अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
सत्ताइस फरवरी उन्नीस सौ इकतीस को प्रातः नौ बजे आजाद, अल्फ्रेड पार्क में एक वृक्ष की छाया में बैठे हुए यशपाल और सुखदेव से बात कर रहे थे। इसी समय उनका विश्वासघाती साथी वीरभद्र त्रिपाठी दिखाई दिया, जिसे देखकर यशपाल उठकर चला गया। इसी समय पुलिस ने आकर पार्क (UPBoardSolutions.com) को चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने किसी प्रकार सुखदेव को पार्क के बाहर निकाल और पिस्तौल सँभाल लिया। पुलिस की ओर से गोलियों की बौछार होने लगी। आजाद ने भी अपनी गोलियों से बहुतों को घायल किया। जब उनके पास केवल एक ही गोली शेष रह गयी तो उन्होंने उससे स्वयं को मार लिया और शहीद हो गये।

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