UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक अनूठा खेल है। इस बारे में चर्चा कीजिए कि यह किन-किन अर्थों में बाकी खेलों से भिन्न है। ऐतिहासिक रूप से एक ग्रामीण खेल के रूप में पैदा होने से टेस्ट क्रिकेट में किस तरह की विलक्षणताएँ पैदा हुई हैं?
उत्तर:
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक विलक्षण खेल है। अन्य खेलों से यह निम्न रूप में भिन्न है-

  1. क्रिकेट को ‘सभ्य लोगों का खेल’ (जेंटिलमैन गेम) कहा जाता है जबकि अन्य किसी खेल को यह उपाधि प्राप्त नहीं है।
  2. क्रिकेट का खेल मात्र अंग्रेज और राष्ट्रमण्डल देशों द्वारा खेला जाता है जबकि दूसरे खेल सम्पूर्ण विश्व में खेले जाते हैं।
  3. क्रिकेट विश्व का एकमात्र ऐसा खेल है जो दो देशों की टीम द्वारा 5 दिन तक खेला जाता है जबकि दूसरे खेलों में ऐसा नहीं है।
  4. क्रिकेट के खेल मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित नहीं होती जबकि अन्य खेलों के मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने के कारण क्रिकेट की विलक्षणताएँ-

  1. क्रिकेट की ग्रामीण जड़ों की पुष्टि टेस्ट मैच की अवधि से हो जाती है। शुरुआत में क्रिकेट मैच की समय सीमा नहीं होती थी। खेल तब तक चलता था, जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे।
  2. क्रिकेट मूलतः गाँव में कॉमन्स (ऐसे सार्वजनिक और खुले मैदान जिन पर पूरे समुदाय का सामुदायिक अधिकार होता था) में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार प्रत्येक गाँव में अलग-अलग होता था। इसलिए न तो सीमा रेखा निर्धारित थी और न ही चौके। जब सीमा-रेखा क्रिकेट की नियमावली का हिस्सा बनीं तब भी विकेट से उसकी दूरी निर्धारित नहीं की गयी। नियम के अंतर्गत केवल यह व्यवस्था की गयी थी कि अंपायर दोनों कप्तानों से परामर्श करके खेल के क्षेत्र की सीमा निर्धारित करेगा।
  3. क्रिकेट में प्रयुक्त वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि समय में आए परिवर्तन के बावजूद वह ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही जुड़ा रहा। बल्ला, स्टम्प व गिल्लियाँ लकड़ी (UPBoardSolutions.com) की बनी हुई हैं जबकि गेंद चमड़े, ट्वाइन और काग (कॉर्क) से बना हुआ है। आज भी क्रिकेट का बल्ला व गेंद हाथ से ही बनाए जाते हैं, मशीन से नहीं। बल्ले की निर्माण सामग्री में अवश्य कुछ परिवर्तन आया है।

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प्रश्न 2.
एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसके आधार पर आप कह सकें कि उन्नीसवीं सदी में तकनीक के कारण क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया। साथ ही ऐसे उपकरणों में से भी कोई एक उदाहरण दीजिए जिनमें कोई बदलाव नहीं आया।
उत्तर:
वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज के बाद 1848 ई० से क्रिकेट में पैड पहनने का प्रचलन शुरू हुआ। इसके शीघ्र बाद ही हाथों में पहनने के लिए दस्ताने अस्तित्व में आए। सिंथेटिक व हल्की सामग्री के बने हेलमेट के बिना तो आधुनिक क्रिकेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
उदाहरण-वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज, हाथों में पहनने के लिए दस्ताने और हल्के हेलमेट इससे क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया।
लेकिन समय की निरंतर बदलती प्रकृति के बावजूद क्रिकेट के महत्त्वपूर्ण उपकरण बल्ला, स्टम्प और वेल्स में कोई परिवर्तन नहीं आया ये पहले की भांति आज भी प्रकृति (UPBoardSolutions.com) पर ही आश्रित हैं। क्रिकेट की गेंद का निर्माण आज भी चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है।
उदाहरण-बल्ला, स्टम्प, वेल्स, गेंद। इन उपकरणों में कोई बदलाव नहीं आया है।

प्रश्न-3.
भारत और वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट क्यों इतना लोकप्रिय हुआ? क्या आप बता सकते हैं कि यह खेल दक्षिणी अमेरिका में इतना लोकप्रिय क्यों नहीं हुआ? उत्तर:
भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय होने के कारण इस प्रकार हैं-

  1. औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के कारण भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिशवादी कर्मचारियों ने क्रिकेट को नस्ली एवं सामाजिक उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किया।
  2. अंग्रेजों ने इस खेल को जनसामान्य के लिए लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि औपनिवेशिक लोगों के लिए क्रिकेट खेलना ब्रिटिश लोगों के साथ नस्ली समानता का परिचायक था। क्रिकेट में सफलता से नस्ली समानता एवं राजनीतिक प्रगति का अर्थ लिया जाने लगा।
  3. स्वाधीनता संघर्ष के काल में अनेक अभिजात्य वर्गीय नेताओं को क्रिकेट में आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की संभावनाएँ परिलक्षित होती थीं। दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट के लोकप्रिय न होने के कारण-दक्षिण अमेरिका में ब्रिटिश शासन नहीं था बल्कि वहाँ पर स्पेन, (UPBoardSolutions.com) पुर्तगाल आदि यूरोपीय देशों का शासन था। स्पेन और पुर्तगाल आदि देशों में क्रिकेट लोकप्रिय खेल नहीं था जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट उस लोकप्रियता को प्राप्त न कर सका जिसे भारत और वेस्टइंडीज ने प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए-

  1. भारत में पहला क्रिकेट क्लब पारसियों ने खोला।
  2. महात्मा गाँधी पेंटांग्युलर टूर्नामेंट के आलोचक थे।
  3. आईसीसी का नाम बदल कर इंपीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस के स्थान पर इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस कर दिया गया।
  4. आईसीसी का मुख्यालय लंदन की जगह दुबई में स्थानान्तरित कर दिया गया।

उत्तर:
(1) भारत में क्रिकेट का आरंभ करने का श्रेय बम्बई के छोटे से पारसी समुदाय को है। व्यापार के उद्देश्य से पारसी सबसे पहले अंग्रेजों के संपर्क में आए। इस तरह पश्चिम की संस्कृति से प्रभावित होने वाला भारत का पहला समुदाय पारसी था। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई (मुम्बई) में भारत का पहला क्रिकेट क्लब “ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ नाम से स्थापित किया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी (UPBoardSolutions.com) पारसी क्लबों के प्रायोजक व वित्त पोषक थे। अंग्रेजों ने उत्साही पारसियों की क्रिकेट के विकास में कोई सहायता नहीं की बल्कि बॉम्बे जिमखाना क्लब और पारसी क्रिकेटरों के बीच पार्क के इस्तेमाल को लेकर झगड़ा भी हुआ।

पारसियों ने इस बात की शिकायत की कि बॉम्बे जिमखाना के पोलो टीम के घोड़ों द्वारा रौंदे जाने के बाद मैदान क्रिकेट खेलने लायक नहीं रह गया है। जब यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज औपनिवेशिक अधिकारी अपने देशवासियों का पक्ष ले रहे हैं, तो पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए अपना खुद को जिमखाना ‘पारसी जिमखाना बनाया। पर पारसियों व नस्लवादी बॉम्बे जिमखाना के बीच की इस स्पर्धा का अंत अच्छा हुआ-पारसियों की एक टीम ने बॉम्बे जिमखाना को 1889 ई० में हरा दिया। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के चार साल बाद हुआ और दिलचस्प बात यह है कि इस संस्था के मूल नेताओं में से एक दादाभाई नौरोजी, जो अपने वक्त के महान राजनेता व बुद्धिजीवी थे, पारसी ही थे।

(2) महात्मा गांधी ने पेंटाग्युलर टूर्नामेंट को सांप्रदायिक भेद-भाव के आधार पर बाँटनेवाला बताकर इसकी निंदा की। उनका विचार था कि यह मुकाबला सांप्रदायिक रूप (UPBoardSolutions.com) से अशांतिकारक था जो कि ऐसे समय में देश के लिए हानिकारक था जब वे विभिन्न धर्मों के लोगों एवं क्षेत्रों को धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एकजुट करना चाह रहे थे।

(3) 1909 ई0 में इंग्लैण्ड में क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए “इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आई.सी.सी.) की स्थापना की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत धीरे-धीरे इंग्लैण्ड का साम्राज्यवादी स्वरूप नष्ट हो गया और उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गए परंतु क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन पर साम्राज्यवादी क्रिकेट कॉन्फ्रेंस का नियंत्रण बरकरार रहा।
आईसीसी पर, जिसका 1965 ई० में नाम बदलकर ‘इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस’ हो गया, इसके संस्थापक सदस्यों का वर्चस्व रहा, उन्हीं के हाथ में कार्यकलाप के वीटो अधिकार रहे। इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के विशेषाधिकार 1989 ई0 में जाकर खत्म हुए और वे अब सामान्य सदस्य रह गए।

(4) आईसीसी मुख्यालय लंदन से दुबई में इसलिए स्थानांतरित हुआ क्योंकि भारत दक्षिण एशिया में स्थित है। भारत में खेल के सबसे अधिक दर्शक थे और यह क्रिकेट खेलने वाले देशों में सबसे बड़ा बाजार था, इसलिए खेल का गुरुत्व औपनिवेशिक देशों से वि-औपनिवेशिक देशों (UPBoardSolutions.com) में स्थानांतरित हो गया। मुख्यालय का स्थानांतरण खेल में अंग्रेजी या साम्राज्यवादी प्रभुत्व के औपचारिक अंत का सूचक था।

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प्रश्न 5.
तकनीक के क्षेत्र में आए बदलावों, खासतौर से टेलीविजन तकनीक में आए परिवर्तनों से समकालीन क्रिकेट के विकास पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
समकालीन क्रिकेट के विकास एवं लोकप्रियता में वृद्धि करने में विकसित तकनीक विशेषकर उपग्रह टेलीविजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। रंग-बिरंगे परिधान, रक्षात्मक हेलमेट, क्षेत्र रक्षण सम्बन्धी प्रतिबन्ध, दूधिया प्रकाश की रोशनी में क्रिकेट, सीमित ओवर के क्रिकेट मैच आदि ने इस पूर्व औद्योगिक ग्रामीण खेल को आधुनिक परिवेश में रूपांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सेटेलाइट टेलीविजन के प्रचलन ने क्रिकेट को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा दिया है।
टेलीविजन तकनीक ने क्रिकेट के विकास को निम्न रूप में प्रभावित किया है-

  1. टेलीविजन प्रसारण ने क्रिकेट को एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है।
    टेलीविजन कंपनियों ने विज्ञापन-समय व्यावसायिक कंपनियों को बेचने आरंभ कर दिए। व्यावसायिक कंपनियों को भी इतना बड़ा दर्शक-समूह और कहाँ मिलता इसलिए विज्ञापनों से टी.वी. कंपनियों तथा क्रिकेट बोर्डो की आय बहुत बढ़ गई। निरंतर टी.वी. कवरेज के (UPBoardSolutions.com) बाद क्रिकेटर सेलेब्रिटी बन गए और उन्हें अपने क्रिकेट बोर्ड से तो ज्यादा वेतन मिलने ही लगा, लेकिन उससे भी बड़ी कमाई के साधन टायर से लेकर कोला तक के टी०वी० विज्ञापन हो गए।
  2. टी.वी. कैमरे के उपयोग ने क्रिकेट के स्वरूप को भी प्रभावित किया। अब टी.वी. में ‘स्लो-मोशन’ द्वारा खेल की बारीकियों पर नजर रखी जाने लगी है। तीसरे अंपायर का निर्णय पूरी तरह कैमरे के कुशलतापूर्वक उपयोग पर ही निर्भर होता है।
  3. टी.वी. द्वारा दिखाए जाने वाले ‘री-प्ले’ ने खेल की रोचकता को और भी बढ़ा दिया है।
  4. टी.वी. प्रसारण से क्रिकेट का स्वरूप बिल्कुल ही बदल गया। टेलीविजन तकनीक के द्वारा क्रिकेट की पहँच छोटे शहरों व गाँवों के दर्शकों तक हो गई। इससे क्रिकेट का सामाजिक आधार भी व्यापक हुआ है। महानगरों से दूर रहने वाले बच्चे जो कभी बड़े मैच नहीं देख पाते थे, अब अपने नायकों को देखकर क्रिकेट की तकनीकें सीख सकते हैं।
  5. उपग्रह (सैटेलाइट) टी.वी. की तकनीक और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया भर की पहुँच के चलते क्रिकेट का वैश्विक बाजार बन गया है। सिडनी में चल रहे मैच को अब सीधे सूरत में देखा जा सकता है।
  6. टेलीविजन दर्शकों को लुभाने के लिए (UPBoardSolutions.com) क्रिकेट में किए गए अनेक प्रयोग जैसे-रंगीन वर्दी, सीमित ओवर, रात-दिन का खेल, क्षेत्ररक्षण की पाबंदियाँ आदि, स्थायी सिद्ध हुए हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान सी.के.नायडू थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिशकालीन भारत के तीन प्रमुख क्रिकेटर कौन थे?
उत्तर:

  1. सी. के. नायडू,
  2. पावलंकर बालू,
  3. पालवंकर बिट्ठल।

प्रश्न 3.
पेंटांग्युलर टूर्नामेंट में शामिल होने वाली क्रिकेट टीमें किन समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं?
उत्तर:

  1. यूरोपीय समुदाय,
  2. हिन्दू समुदाय,
  3. पारसी समुदाय,
  4. मुस्लिम समुदाय,
  5. दरेस्ट (शेष भारतीय समुदाय)।

प्रश्न 4.
अंग्रेज बच्चों में क्रिकेट को किन गुणों को विकसित करने का माध्यम मानते थे?
उत्तर:

  1. अनुशासन,
  2. नेतृत्व क्षमता,
  3. ऊँच-नीच का बोध,
  4. स्वाभिमान।

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प्रश्न 5.
भारतीयों ने अंग्रेजों के बॉम्बे जिमखाना को पहली बार कब हराया था?
उत्तर:
अंग्रेजों के जिमखाना क्लब को भारतीयों ने पहली बार 1889 ई० में हराया था।

प्रश्न 6.
भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब कौन-सा था?
उत्तर:
भारत में भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ था।

प्रश्न 7.
वेस्टइंडीज में पहला गैर-गोरा क्लब कब बना?
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में वेस्टइंडीज का पहला गैर-गोरा क्लब था ।

प्रश्न 8.
वेस्टइंडीज को प्रथम अश्वेत कप्तान कौन था?
उत्तर:
फ्रैंक वॉरेल वेस्टइंडीज के प्रथम अश्वेत कप्तान थे।

प्रश्न 9.
क्रिकेट पिच की लंबाई कितनी होती है?
उत्तर:
क्रिकेट पिच की लम्बाई 22 गज होती है।

प्रश्न 10.
एम.सी.सी. की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
एम.सी.सी. की स्थापना 1787 ई० में हुई थी?

प्रश्न 11.
एम.सी.सी. का पूरा नाम क्या हैं?
उत्तर:
एम.सी.सी. का पूरा नाम है- ‘मेरिलिबॉन क्रिकेट क्लब

प्रश्न 12.
क्रिकेट के नियमों को पहली बार कब लिखा गया?
उत्तर:
सन् 1774 ई० में क्रिकेट के नियमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया।

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प्रश्न 13.
क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1760-1770 ई0 के दशक में क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत हुई।

प्रश्न 14.
क्रिकेट के गेंद को हवा में लहराकर फेंकने के दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. गेंद की गति बढ़ गई थी।
  2. गेंद को स्पिन एवं स्विंग कराना संभव हो गया था।

प्रश्न 15.
क्रिकेट का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
क्रिकेट का प्रसार प्रायः उन देशों में हुआ जिनमें इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक शासन था। इन देशों में भारत, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, वेस्टइंडीज, केन्या आदि शामिल हैं। इन देशों में क्रिकेट का प्रसार अंग्रेजों द्वारा किया गया।

प्रश्न 16.
19वीं सदी में क्रिकेट में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. क्रिकेट की गेंदे का व्यास निश्चित किया गया।
  2. चोट लगने से बचाव के लिए पैड व दस्ताने पहनने का प्रचलन शुरू हुआ।
  3. वाइड बॉल का नियम प्रभावी हुआ।

प्रश्न 17.
1760 व 1770 ई0 के क्रिकेट में आए बदलाव को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस अवधि में क्रिकेट की गेंद को जमीन पर लुढ़काने की जगह हवा में लहराकर बल्लेबाज के आगे पटकने का चलने शुरू हुआ। क्रिकेट की गेंद का वजन अब साढ़े पाँच से पौने छः औंस तक हो गया और बल्ले की चौड़ाई चार इंच कर दी गयी है। यह तब हुआ जब एक बल्लेबाज ने अपनी पूरी पारी विकेट जितने चौड़े बल्ले से खेल डाली।

प्रश्न 18.
भारत में क्रिकेट की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मिलती है। भारत में क्रिकेट खेलने वाला प्रथम समुदाय पारसी था। पारसी समुदाय के ज्यादातर लोग व्यापारी या पूंजीपति थे। (UPBoardSolutions.com) ये लोग व्यापार हेतु जब अंग्रेजों के संपर्क में आए तो इनमें क्रिकेट के प्रति रुचि बढ़ी।

प्रश्न 19.
भारत में पहला क्रिकेट क्लब कब खुला? अठाहरवीं सदी में क्रिकेट किन लोगों के बीच खेला जाता था?
उत्तर:
भारत में पहला क्रिकेट क्लब 1792 ई० में कलकत्ता क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। अठारहवीं सदी में भारत में क्रिकेट ब्रिटिश सैनिक व सिविल सर्वेट्स द्वारा केवल गोरे क्लबों व जिम्मखानों में खेले जानेवाला खेल बना रहा।

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प्रश्न 20.
पालवंकर बालू कौन थे?
उत्तर:
पालवंकर बालू का जन्म 1875 ई0 में पूना में हुआ था। वे धीमी गति की गेंदबाजी में अपने समय के सर्वश्रेष्ठ भारतीय गेंदबाज थे। बालू औपनिवेशिक काल के सबसे बड़े भारतीय क्रिकेट मुकाबले क्वाईंग्यूलर में हिन्दू टीम की ओर से खेलते थे। उन्हें कभी हिंदू टीम का कप्तान नहीं बनाया गया क्योंकि वह दलित समुदाय से थे। प्रश्न 21. विश्व का सबसे पहला क्रिकेट क्लब कौन था? इस क्लब की क्या उपलब्धियाँ थीं? उत्तर- दुनिया का पहला क्रिकेट क्लब हैम्बलडन में 1760 ई0 के दशक में बना और मेरिलिबॉन क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) क्लब (एम. सी. सी.) की स्थापना 1787 ई० में हुई। इसके अगले साल ही एम. सी. सी. ने क्रिकेट के नियमों में सुधार किए और उनका अभिभावक बन बैठा। एम. सी. सी. के सुधारों से खेल के रंग-ढंग में ढेर सारे परिवर्तन हुए, जिन्हें 18वीं
सदी के दूसरे हिस्से में लागू किया गया।

प्रश्न 22.
सेटेलाइट टेलीविजन ने क्रिकेट के दर्शकों में किस प्रकार वृद्धि की?
उत्तर:
सेटेलाइट (उपग्रह) टेलीविजन ने दर्शकों में क्रिकेट के प्रति रुचि उत्पन्न की। लोगों को टेलीविजन पर मैच देखने से इस खेल के नियमों और बारीकियों की जानकारी हुई। यह संचार माध्यम लोगों को उसी प्रकार खेल का आनन्द देता था जैसे कि खेल के मैदान में दर्शकों को। टेलीविजन (UPBoardSolutions.com) के कम्प्युटराइज्ड सिस्टम ने इस खेल को और भी आकर्षक, बना दिया।

प्रश्न 23.
हॉकी खेल का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अनेक परंपरागत खेलों के सम्मिलित रूप से आधुनिक हॉकी खेल का विकास हुआ। स्कॉट के शिंटी, इंग्लैण्ड व वेल्स के वेंडी व आयरिश हॉर्लिग को हॉकी का पूर्व रूप माना जा सकता है। भारत में हॉकी का आरंभ औपनिवेशिर्क काल में अंग्रेज सैनिकों द्वारा किया गया। भारत में पहले परंपरागत हॉकी क्लब की स्थापना 1885-86 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में हॉकी को वर्ष 1928 ई० में पहली बार शामिल किया गया

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिकेट के शुरुआती दौर में बल्लेबाज को ही कप्तान क्यों बनाया जाता था?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल आरंम्भिक दौर में इंग्लैण्ड में अभिजात्य वर्ग द्वारा खेला जाता था। अभिजात्य वर्ग इस खेल पर अपनी श्रेष्ठता बनाए रखना चाहता था। अतः ये लोग बल्लेबाज बनना पसन्द करते थे। उनका ऐसा मानना था कि गेंद फेंकने, से शक्ति (ऊर्जा) का क्षय होता है। इसलिए वे गेंद फेंकने का कार्य अन्य लोगों को देते थे और इस कार्य के बदले में उन्हें धन का भुगतान किया जाता था। धन लेकर गेंदबाजी करने वालों (UPBoardSolutions.com) को प्रोफेशनल (व्यवसायी) कहा जाता था। इन प्रोफेशनल लोगों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बल्लेबाज को ही कप्तान बनाया जाता था। इसीलिए आरंम्भिक काल में क्रिकेट को बल्लेबाजों का खेल कहा जाता था।

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प्रश्न 2.
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्त्व को हम निम्न रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. अंग्रेज क्रिकेट के खेल को एक मैदानी खेल के अलावा खिलाड़ियों में अनुशासन, ऊँच-नीच की समझ, गुण, स्वाभिमान की रणनीति और नेतृत्व कौशल विकसित करने का एक माध्यम मानते थे।
  2. अंग्रेजों का मानना था कि क्रिकेट का खेल केवल विजय-पराजय की भावना से प्रेरित होकर नहीं खेला जाना चाहिए बल्कि इसे न्यायोचित खेल भावना से खेला जाना चाहिए।
  3. अंग्रेजों की मान्यता थी कि सभ्य लोगों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट से ही विद्यार्थियों में नैतिक चरित्र का विकास संभव है।

प्रश्न 3.
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा को हम इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं-

  1. वेस्टइंडीज भारत की ही तरह इंग्लैण्ड का उपनिवेश था।
  2. 19वीं शताब्दी के अंत में वेस्टइंडीज में पहले स्थानीय क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब के सभी सदस्य मुलेट्टो समुदाय के थे। मुलेटों समुदाय में मिश्रित यूरोपीय और अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे।
  3. वेस्टइंडीज के स्थानीय लोगों ने क्रिकेट के खेल को गोरी और काली प्रजाति, मध्य नस्ली समानता व राजनीतिक प्रगति के रूप में स्वीकार किया।
  4. वेस्टइंडीज के लोगों ने इस खेल को अपने आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न माना। इसी भावना की परिणति थी कि जब इन लोगों ने 1950 ई0 के दशक में इंग्लैण्ड के विरुद्ध पहली टेस्ट श्रृंखला जीती तो इस जीत को वहाँ राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया गया। फ्रैंक वारेलु 1960 ई0 में वेस्टइंडीज टीम के प्रथम अश्वेत कप्तान बने।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के पहले लिखित नियमों के बारे में बताइए।
उत्तर:
क्रिकेट के पहले लिखित नियम 1744 ई० में बनाए गए। इन नियमों का विवरण इस प्रकार है-

  1. बल्ले के रूप व आकार पर कोई पाबंदी नहीं थी। ऐसा लगता है कि 40 नॉच या रन का स्कोर काफी बड़ा होता था, शायद इसलिए कि गेंदबाज तेजी से बल्लेबाज के नंगी, पैडरहित पिंडलियों पर गेंद फेंकते थे।
  2. हाजिर शरीफों में से दोनों प्रिंसिपल (कप्तान) दो अंपायर चुनेंगे, जिन्हें किसी भी विवाद को निपटाने की अंतिम अधिकार होगा।
  3. स्टंप 22 इंच ऊँचे होंगे, उनके बीच की गिल्लियाँ 6 इंच लंबी होंगी।
  4. गेंद का वजन 5 से 6 औंस के बीच होगा और स्टंप के बीच की दूरी 22 गज होगी।

प्रश्न 5.
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-

पेशेवर क्रिकेटर

शौकिया क्रिकेटर

1. पेशेवरों को तेज गेंदबाजी का मेहनतकश काम दिया जाता था। 1. शौकिया बल्लेबाज टीम में रहने का प्रयास करते थे।
2. उन्हें हीन समझा जाता था। 2. उन्हें सामाजिक श्रेष्ठता हासिल थी।
3. पेशेवर गरीब थे जो पैसे के लिए खेलते थे। पेशेवर  खिलाड़ियों का मेहनताना संरक्षकों द्वारा, चंदे, या गेट पर इकट्ठा किए गए पैसे से दिया जाता था। 3. शौकिया वे अमीर लोग थे जो खाली समय बिताने। के लिए क्रिकेट खेलते थे न कि पैसे के लिए।
4. वे आजीविका कमाने के लिए खेलते थे। 4. वे मजे के लिए खेलते थे।
5. उन्हें खिलाड़ी कहा जाता था। 5. उन्हें भद्र पुरुष कहा जाता था।

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी के दौरान क्रिकेट के खेल में क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए?
उत्तर:
19वीं सदी के दौरान क्रिकेट के खेल में निम्नलिखित परिवर्तन घटित हुए.-

  1. चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग किए जाने लगे।
  2. बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था।
  3. ओवरआर्म बॉलिंग कानूनी ठहरायी गई।
  4. वाइड बॉल के लिए नियम लागू किया गया।
  5. गेंद का सटीक व्यास तय किया गया।

प्रश्न 7.
‘शौकिया खिलाड़ी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के समाज के ऐसे उच्चवर्गीय लोग जो अपना शौक पूरा करने के लिए क्रिकेट खेलते थे, उन्हें ‘शौकिया खिलाड़ी’ कहते थे।
शौकीनों की समाजिक श्रेष्ठता क्रिकेट की परंपरा का हिस्सा बन गई। शौकीनों को जहाँ ‘जेंटिलमैन’ की उपाधि दी गई तो वहीं पेशेवरों को ‘खिलाड़ी’ (प्लेयर्स) का अदना-सा नाम मिला। मैदान में घुसने के उनके प्रवेश-द्वार भी अलग-अलग थे। शौकीन जहाँ बल्लेबाज हुआ करते वहीं खेल में असली (UPBoardSolutions.com) मशक्कत और ऊर्जा वाले काम, जैसे तेज गेंदबाजी, पेशेवर खिलाड़ियों के हिस्से आते थे।

क्रिकेट में संदेह का लाभ (बेनेफिट ऑफ डाउट) हमेशा बल्लेबाज को ही मिलने की एक वजह यह भी है। क्रिकेट बल्लेबाजों का ही खेल इसीलिए बना क्योंकि नियम बनाते समय बल्लेबाजी करने वाले ‘जेंटिलमैन’ को तरजीह दी गई। शौकिया खिलाड़ियों की सामाजिक श्रेष्ठता का ही नतीजा था कि टीम की कप्तान पारंपरिक तौर पर बल्लेबाज ही होता था, इसलिए नहीं कि बल्लेबाज कुदरती तौर पर बेहतर कप्तान होते थे, बल्कि इसलिए कि बल्लेबाज तो आम तौर पर ‘जेंटिलमैन’ ही होते थे। चाहे क्लब की टीम हो या राष्ट्रीय टीम, कप्तान तो शौकिया खिलाड़ी ही होता था।

प्रश्न 8.
पेशेवर खिलाड़ी से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे खिलाड़ी जो अपने जीवन-यापन के लिए क्रिकेट का खेल खेलते थे, पेशेवर खिलाड़ी कहलाते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को वजीफा, चंदा अथवा मैदान के गेट पर इकट्ठा किए गए धन में से कुछ पैसा दिया जाता था। इंग्लैण्ड में क्रिकेट एक मौसमी खेल के रूप में खेला जाता है क्योंकि सर्दियों में तापमान बहुत कम होने के कारण क्रिकेट नहीं खेला जाता है। सर्दियों को क्रिकेट का ऑफ सीजन भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) ऑफ सीजन में पेशेवर खिलाड़ी प्रायः खदानों में अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को कभी भी कप्तान नहीं बनाया जाता था। पहली बार 1930 ई0 के दशक में यार्कशायर के एक पेशेवर खिलाड़ी लेन हटन ने अंग्रेजी टीम की कप्तानी की थी।

प्रश्न 9.
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल इसलिए माना जाता है क्योंकि इंग्लैण्ड के अलावा इस खेल का विस्तार उन्हीं देशों में हुआ जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश थे। क्रिकेट की पूर्व-औद्योगिक विषमताओं ने इसके अन्य देशों में गमन को कठिन बना दिया। इसलिए इसने उन्हीं देशों में अपनी जड़े जमाई जहाँ अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की और शासन किया। इन ब्रिटिश उपनिवेशों (जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज और कीनिया) में क्रिकेट इसलिए लोकप्रिय खेल बन पाया क्योंकि गोरे (UPBoardSolutions.com) बाशिंदों ने इसे अपनाया या फिर जहाँ स्थानीय अभिजात वर्ग ने अपने औपनिवेशिक मालिकों की आदतों की नकल करने की कोशिश की, जैसे कि भारत में।

प्रश्न 10.
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को हम निम्न रूप में स्पष्ट कर सकते हैं। इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों में ग्वालों व चरवाहों द्वारा खेले जाने वाले गेंद व डण्डे के खेल से क्रिकेट की उत्पत्ति हुई। ‘बैट’ अंग्रेजी का पुराना शब्द है, जिसका अर्थ है ‘डंडा’ या ‘कुंदा। 17वीं शताब्दी तक यह एक प्रचलित खेल के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। सन् 1706 में विलियम गोल्ड ने अपनी कविता में एक क्रिकेट मैच का वर्णन किया था। सन् 1709 में लंदन और कैंट की टीमों के बीच पहला क्रिकेट मैच खेला गया था।

सन् 1710 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय तथा सन् 1729 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी क्रिकेट खेला जाने लगा।
सन् 1760 में इंग्लैंड में प्रथम क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब का नाम ‘हैम्बलडन क्लब’ रखा गया। सन् 1787 में इंग्लैण्ड में ‘मेरिलीबोन क्रिकेट क्लब’ (एम.सी.सी) की स्थापना की गई। लार्ड्स के प्रसिद्ध मैदान पर प्रथम मैच 27 जून, 1788 में खेला गया था। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट की स्थापना सन् 1873 में हुई।

प्रश्न 11.
‘हॉकी’ का राष्ट्रीय खेल के रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक हॉकी खेल का विकास पूर्व काल में ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर खेले जाने वाले परंपरागत खेलों से हुआ। स्कॉटलैण्ड में खेले जाने वाले खेल शिंटी, इंग्लिश व वेल्श के खेल बेंडी व आयरिश हालिंग को आधुनिक हॉकी का आदिम रूप माना जाता है।
दूसरे अन्य खेलों की भाँति हमारे यहाँ भी हॉकी की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश सेना द्वारा ही की गई थी। पहले हॉकी क्लब की स्थापना 1885-1886 ई0 में कलकत्ता में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में भारत को पहली बार 1928 ई० में शामिल किया गया था। इस प्रतिस्पर्धा में ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विट्जरलैण्ड को हराते हुए भारत फाइनल तक जा पहुँचा। फाइनल में भारत ने इंग्लैण्ड को भी शून्य के मुकाबले तीन गोल से मात दे दी।

भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों के खेल-कौशल और तीक्ष्णता ने हमारे देश को ओलंपिक के कई स्वर्ण पदक द्वादिलाए। 1928 से 1956 ई0 के बीच भारतीय टीम ने लगातार छः ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। हॉकी की दुनिया में भारतीय वर्चस्व के इस (UPBoardSolutions.com) स्वर्ण युग में भारत ने ओलंपिक में कुल 24 मैच खेले और सभी में सफलता प्राप्त की। इन मैचों में भारतीय खिलाड़ियों ने 178 गोल (प्रति मैच औसतन 7.43 गोल) दागे और विपक्षी टीमें उनके खिलाफ केवल 7 ही गोल कर पाईं। हॉकी में भारत को दो स्वर्ण पदक 1964 ई० के टोकियो ओलंपिक और 1980 ई० के मास्को ओलंपिक में प्राप्त हुए थे।

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प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका को लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर क्यों रखा गया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम बहुत समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर रही क्योंकि वहाँ पर सत्तारूढ़ सरकार ने रंगभेद की नीति अपनायी हुई थी। वहाँ के बहुसंख्यक मूल निवासी काले लोगों को उनके मूलभूत नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया था। इन दक्षिण अफ्रीकी मूल निवासियों को क्रिकेट टीम में कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता था। लेकिन इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड ने दक्षिण अफ्रीका की टीम के साथ क्रिकेट खेलना जारी रखा। रंगभेद की नीति के कारण भारत, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) टीमों ने दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम का बहिष्कार किया। उस समय भारत-पाकिस्तान के पास आई.सी.सी. में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे दूसरे देशों को दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने से रोक सकें। यह तभी संभव हुआ जब आई.सी.सी. में एशियाई और अन्य अफ्रीकी देशों का प्रभावबढ़ा। किन्तु वर्तमान में वहाँ नेल्सन मण्डेला के दीर्घकालिक लोकतांत्रिक संघर्ष के फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार है और वहाँ रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। रंगभेद की नीति के समाप्ति के साथ अब आई.सी.सी. के सभी देशों के दक्षिण अफ्रीका के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय (UPBoardSolutions.com) ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे।

उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों (UPBoardSolutions.com) को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे।

औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई।

प्रश्न 2.
क्रिकेट के नियमों में समयानुसार परिवर्तन की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट के खेल का महत्त्व आज इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसमें निरन्तर परिवर्तन किए जाते रहे।
क्रिकेट के खेल में किए गए परिवर्तनों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) क्रिकेट का मैदान – क्रिकेट के खेल के मैदान का आकार निश्चित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रिकेट के खेल को नियंत्रित एवं संचालित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई.सी.सी. ने इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाया है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट कॉमन्स (गाँव की सामूहिक भूमि) पर खेला जाता था और प्रत्येक गाँव में इस मैदान का आकार पृथक्पृथक् होता था। इसलिए वर्तमान में भी क्रिकेट के (UPBoardSolutions.com) मैदान का आकार अलग-अलग होता है, जोकि स्टेडियम के आकार पर निर्भर करता है। इसमें विकेट से विकेट के बीच की दूरी (पिच) 22 गज (17.68 मी.) होती है।

(2) क्रिकेट की गेंद – क्रिकेट की गेंद का निर्माण चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है। पहले गेंद का वजन साढ़े पाँच औंस होता था जो बाद में बढ़ाकर पौने छः औंस हो गया। वर्तमान में इसका वजन 156 ग्राम तथा गेंद की परिधि 8 से 9 इंच होती है। गेंद का रंग दिन के मैच में लाल तथा रात के मैच में सफेद होता है।

(3) बल्ले का आकार – क्रिकेट के बल्ले की आकृति 18वीं सदी के मध्य तक हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी हुई होती थी। बल्ले को बाद में लकड़ी के एक साबुत टुकड़े से बनाया जाने लगा। वर्तमान में बल्ले के दो हिस्से होते हैं—ब्लेड या फट्टा जो विलों (बैद) नामके पेड़ की लकड़ी से बनता है और हत्था (हैंडल) बेंत से बनता है। नए नियमों के अनुसार बल्ले की चौड़ाई 44 इंच (10.8 सेमी) तथा इसकी लम्बाई 38 इंच (96.5 सेमी) निर्धारित की गई हैं।

(4) गेंद फेंकने का तरीका – शुरुआती दिनों में क्रिकेट की गेंद को पिच पर लुढ़काकर (अण्डर आर्म) फेंका जाता था। 1761-70 के दशक में गेंद को हवा में लहरा कर फेंकने का प्रज्वलन आरंभ हुआ। इससे गेंदबाजों को विभिन्न लंबाइयों की गेंद फेंकने के साथ-साथ गेंद को घुमाने में भी सहायता मिली। इसके कारण गेंदबाजी में गति, स्पिन तथा स्विंग जैसी तकनीकों का समावेश हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों ने ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’ के रूप में गेंदबाजी की नवीन तकनीकों का विकास किया है।

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प्रश्न 3.
‘वाटरलू का युद्ध ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।’ इस कथन का क्या निहितार्थ है?
उत्तर:
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की सैन्य सफलता का रहस्य उसके उत्कृष्ट पब्लिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षण के दौरान सिखाए गए नैतिक मूल्यों में निहित था। इन पब्लिक स्कूलों में ईटन सर्वाधिक प्रसिद्ध था। अंग्रेजी आवासीय विद्यालय में अंग्रेज लड़कों को शाही इंग्लैण्ड के तीन अहम् संस्थानों-सेना, प्रशासनिक सेवा व चर्च में कैरियर के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के शुरुआत (UPBoardSolutions.com) तक टॉमस आर्नल्ड-जो मशहूर रग्बी स्कूल के हेडमास्टर होने के साथ-साथ आधुनिक पब्लिक स्कूल प्रणाली के प्रणेता थे-रग्बी व क्रिकेट जैसे टीम खेलों को पढ़ाई का एक सुनियोजित तरीका मानते थे।

अंग्रेज लड़के अनुशासन, अनुक्रम का महत्त्व, कौशल, स्वाभिमान की रीति-नीति और नेतृत्व क्षमता सीखते थे जो उनकी ब्रिटिश साम्राज्य चलाने में सहायता करते थे। विक्टोरियाई साम्राज्य-निर्माता दुसरे देशों की जीत को यह कह कर सही ठहराते थे कि उन्हें जीतना निःस्वार्थ समाज सेवा थी जिससे पिछड़े समाज ब्रितानी कानून व पश्चिम ज्ञान के संपर्क में आकर सभ्यता का सबक सीख सकते थे।
क्रिकेट ने अभिजात अंग्रेजों की इस शौकिया आत्मछवि को पुष्ट करने में मदद की-जहाँ पर क्रिकेट फायदे या जीत के लिए न होकर केवल सीखने के लिए  और ‘स्पिरिट ऑफ फेयरप्ले’ (न्यायोचित खेल भावना) के लिए खेला जाता था।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के खेल को ग्रामीण पृष्ठभूमि से किस प्रकार जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल की प्रारंभिक पृष्ठभूमि ग्रामीण ही थी। शुरुआत में इसमें समय की कोई सीमा नहीं थी। ग्रामीण इंग्लैण्ड में यह खेल तब तक चलता था जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे। उल्लेखनीय है। कि ग्रामीण जीवन की गति मंद होती है और क्रिकेट के नियम औद्योगिक क्रान्ति से पहले बनाए गए थे। क्रिकेट के मैदान का आकार अनिश्चित होना भी उसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि को इंगित करता है। क्रिकेट मूलतः गाँव की शामिलात जमीन अर्थात् कॉमन्स में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार हरेक गाँव में अलग-अलग होता था, इसलिए न तो बाउंड्री तय थी और न ही चौके। जब गेंद भीड़ में घुस जाती तो लोग क्षेत्ररक्षक या फील्डर के लिए रास्ता बना देते थे, ताकि वह आकर गेंद वापस ले जाए। जब सीमा रेखा क्रिकेट की नियमावली का

हिस्सा बनी तब भी, विकेट से उसकी दूरी तय नहीं की गई। क्रिकेट के ग्रामीण पृष्ठभूमि व पूर्व औद्योगिक होने का संकेत इसमें प्रयोग होने वाले सामान से भी मिलता है। (UPBoardSolutions.com) आज भी बल्ला, स्टंप व गिल्लियाँ लकड़ी से बनी होती हैं जबकि गेंद चमड़े, सुतली (ट्वाइन) और कॉर्क से।
‘क्रिकेट के कानून’ बहत वर्षों पहले 1744 ई0 में औद्योगिक क्रांति से पहले लिखे गए थे। उस समय केवल टेस्ट क्रिकेट ही खेला जाता था और इस विशेष खेल की गति उस समय के गाँव के लोगों की सुस्त रफ्तार जिंदगी का सूचक है।

प्रश्न 5.
भारत में क्रिकेट के प्रसार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत औपनिवेशिक शासन काल में हुई। 1721 ई० में अंग्रेज जहाजियों ने कैम्बे में अपना प्रथम मैच भारत में खेला। भारत में पहला क्रिकेट क्लब कलकत्ता में 1792 ई० में स्थापित किया गया। शुरुआत में भारत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित था। यह खेल भारत में 18वीं शताब्दी में अंग्रेज सैनिकों और सिविल सर्वेट्स द्वारा उनके (गोरे लोगों के लिए अधिकृत) क्लबों और जिमखानों में खेला जाता था। भारतीयों द्वारा इस खेल की शुरुआत का श्रेय पारसी समुदाय को जाता है।

अंग्रेजों के संपर्क में आकर सबसे पहले पारसियों ने 1848 ई0 में प्रथम भारतीय क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटेल क्रिकेट क्लब’ की स्थापना बंबई में की। इस क्लब के प्रायोजक टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी थे। अंग्रेज प्रायः इनके पार्क को घोड़ों द्वारा रौंदकर खराब कर देते थे परंतु (UPBoardSolutions.com) प्रशासन ने इनकी कोई सहायता नहीं की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए ‘पारसी जिमखाना क्लब’ की स्थापना की। 1889 में पारसियों की एक टीम ने अंग्रेजों के बोम्बे जिमखाना को एक मैच में हरा कर भारतीय श्रेष्ठता सिद्ध की।

पारसी जिमखाना क्लब की स्थापना के पश्चात् अन्य भारतीय समुदायों ने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने की शुरुआत की। इससे भारत में सांप्रदायिक एवं नस्ली आधार पर क्लबों का प्रचलन आरंभ हुआ। शीघ्र ही भारत में एक क्वाड्रेग्युलर (चतुष्कोणीय) टूर्नामेंट आरंभ हुआ जिसमें धर्म के आधार पर चार टीमें (यूरोपीय, पारसी, हिंदू तथा मुस्लिम) खेलती थीं। कुछ समय पश्चात् इस टूर्नामेंट में ‘द रेस्ट’ के नाम से पाँचवीं टीम को शामिल किया गया जिसमें भारतीय ईसाई जैसे बचे-खुचे समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया। धर्म के (UPBoardSolutions.com) आधार पर होने वाले इस टूर्नामेंट के विरुद्ध महात्मा गाँधी सहित अनेक भारतीय नेताओं ने आवाज उठाई परंतु यह टूर्नामेंट 1947 ई० तक चलता रहा। 1947 ई0 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इस टूर्नामेंट के स्थान पर नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन शुरू हुआ जिसे वर्तमान में रणजी ट्राफी के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 6.
क्रिकेट के अतंर्राष्ट्रीय विस्तार का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार इस प्रकार है-
(क) इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच सन् 1871 में खेले गए क्रिकेट मैच में ऑस्ट्रेलिया की जीत हुई। इस पराजय के विरोध में कुछ अंग्रेज महिलाओं ने ‘वेल्स को जलाकर इंग्लिश क्रिकेट का दाह संस्कार सा कर दिया। वेल्स की उस राशि को ऑस्ट्रेलिया की टीम को सौंप दिया गया। तभी से ये दोनों टीमें एक-दूसरे के विरुद्ध एसेज के लिए खेलती हैं।

(ख) इंग्लैण्ड में 1909 ई0 में ‘इंपीरियल क्रिकेट कान्फ्रेंस’ (आई.सी.सी.) की स्थापना हुई तथा इसी के साथ क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली। इंग्लैण्ड के अलावा आस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य बने। सन् 1926 में भारत, वेस्टइंडीज एवं न्यूजीलैंड भी इसके सदस्य बन गए। सन् 1952 में पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। सन् 1971 में रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की (UPBoardSolutions.com) सदस्यता समाप्त कर दी गई। सन् 1965 में इस कांफ्रेंस का नाम बदलकर इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस’ (आई.सी.सी.) रख दिया गया। समय के साथ-साथ अन्य देश भी (राष्ट्रमंडल देशों के अतिरिक्त) इसके सदस्य बनते गए।

वर्तमान समय में इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्जेंटीना, कनाडा, डेनमार्क, कीनिया, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश, हॉलैंड, बरमूडा, फिजी, सिंगापुर, हांगकांग, इजराइल व मलेशिया आदि देश इसके सदस्य या सहसदस्य हैं। क्रिकेट के इतिहास का प्रथम एकदिवसीय मैच 5 जनवरी, 1971 ई० को इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इसमें 40 ओवर प्रति पारी रखे गए। एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन व विकास का श्रेय भी इंग्लैण्ड को जाता है। इंग्लैण्ड के प्रयासों के फलस्वरूप ही इंग्लैण्ड में प्रथम विश्वकप का आयोजन हुआ। इस विश्व कप क्रिकेट में आठ देशों की टीमों ने भाग लिया था। इस विश्व कप में क्रिकेट के फाइनल में वेस्टइंडीज ने आस्ट्रेलिया को 17 रनों से हराया था।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ है?
उत्तर:
ऐसे लोगों को घुमंतू या खानाबदोश कहते हैं जो एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते बल्कि अपनी जीविका के निमित्त एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। इन घुमंतू लोगों का जीवन इनके पशुओं पर निर्भर होता है। वर्ष भर किसी एक स्थान पर पशुओं के लिए पेयजल और चारे की (UPBoardSolutions.com) व्यवस्था सुलभ नहीं हो पाती ऐसे में ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमणशील रहते हैं। जब तक एक स्थान पर चरागाह उपलब्ध रहता है तब तक ये वहाँ रहते हैं, परन्तु चरागाह समाप्त होने पर पुनः दूसरे नए स्थान की ओर चले जाते हैं।
घुमंतू लोगों के निरंतर आवागमन से पर्यावरण को निम्न लाभ होते हैं-

  1. यह खानाबदोश कबीलों को बहुत से काम जैसे कि खेती, व्यापार एवं पशुपालन करने का अवसर प्रदान करता है।
  2. उनके पशु मृदा को खाद उपलब्ध कराने में सहायता करते हैं।
  3. यह चरागाहों को पुनः हरा-भरा होने और उसके अति-चारण से बचाने में सहायता करता है क्योंकि चरागाहें अतिचारण एवं लम्बे प्रयोग के कारण बंजर नहीं बनतीं।
  4. यह विभिन्न क्षेत्रों की चरागाहों के प्रभावशाली प्रयोग में सहायता करता है।
  5. निरंतर स्थान परिवर्तन के कारण किसी एक स्थान की वनस्पति का अत्यधिक दोहन नहीं होता है।
  6. चरागाहों की गुणवत्ता बनी रहती है।
  7. लगातार स्थान परिवर्तन से भूमि की उर्वरता बनी रहती है।

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प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?

  1. परती भूमि नियमावली
  2. वन अधिनियम
  3. अपराधी जनजाति अधिनियम
  4. चराई कर।

उत्तर:
1. परती भूमि नियमावली बनाने के कारण – अंग्रेज सरकार परती भूमि को व्यर्थ मानती थी, क्योंकि परती भूमि से उसे कोई लगान प्राप्त नहीं होती थी। साथ ही परती भूमि का उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता था। यही कारण था कि अंग्रेज सरकार ने परती भूमि का विकास करने के लिए (UPBoardSolutions.com) अनेक नियम बनाए जिन्हें परती भूमि नियमावली के नाम से जाना जाता है।
परती भूमि नियमावली का चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-

  1. चरवाहे अपने पशुओं को अब निश्चित चरागाहों में ही चराते थे जिससे चारा कम पड़ने लगा।
  2. चारे की कमी के कारण पशुओं की सेहत और संख्या घटने लगी।
  3. चरागाहों का आकार सिमटकर बहुत छोटा रह गया।
  4. बचे हुए चरागाहों पर पशुओं का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया।

2. वन अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज वन अधिकारी ऐसा मानते थे कि वनों में पशुओं को चराने के अनेक नुकसान हैं। पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधों और वृक्षों की नयी कोपलें नष्ट हो जाती हैं जिससे नए पेड़ों का विकास रुक जाता है। इसलिए औपनिवेशिक (UPBoardSolutions.com) सरकार ने अनेक वन अधिनियम पारित किए जिसके द्वारा वनों को आरक्षित तथा पशुचारण को नियमित किया जा सके।
वन अधिनियम का चरवाहों पर प्रभाव-

  1. वनों में उनके प्रवेश और वापसी का समय निश्चित कर दिया गया।
  2. वन नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने की व्यवस्था लागू की गई।
  3. घने वन जो बहुमूल्य चारे के स्रोत थे, उनमें पशुओं को चराने पर रोक लगा दी गई।
  4. कम घने वनों में पशुओं को चराने के लिए परमिट लेना अनिवार्य कर दिया गया।

3. “अपराधी जनजाति अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज अधिकारी घुमंतू लोगों को शक की निगाह से देखते थे। अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इन लोगों के बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण इन लोगों की पहचान करना तथा इनका विश्वास करना कठिन कार्य है। घुमंतू लोगों से कर संग्रह करना और कर निर्धारण दोनों कठिन कार्य हैं। उक्त कारणों से प्रेरित होकर अंग्रेज सरकार ने 1871 ई० में (UPBoardSolutions.com) अनेक घुमंतू समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में डाल दिया और उनकी बिना परमिट आवागमन को प्रतिबन्धित कर दिया।
अपराधी जनजाति अधिनियम को घुमंतू लोगों पर प्रभाव-

  1. अनेक समुदायों ने पशुपालन के स्थान पर वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया।
  2. अपराधी सूची में शामिल किए गए घुमंतू समुदाय एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने के लिए विवश हो गए।
  3. स्थायी रूप से बसने के कारण अब वे स्थानीय चरागाहों पर ही निर्भर ही गए जिसके कारण उनके पशुओं की संख्या में तेजी से कमी आई।

4. चराई कर लागू किए जाने के कारण – अंग्रेज सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किया। इसी क्रम में चरवाहों पर चराई कर लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर करे वसूल किया जाने लगा। देश के अधिकतर चरवाही इलाकों में 19वीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी कर की देर तेजी से बढ़ती चली गयी और कर वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन सुदृढ़ होती गयी। 1850 से 1880 ई० के दशकों के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंप जाता था।

ठेकेदारी पाने के लिए ठेकेदार सरकार को जो पैसा देते थे उसे वसूल करने और साल भर में ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाने के लिए वे जितना चाहे उतना कर वसूल सकते थे। 1880 ई० के दशक तक आते-आते सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू (UPBoardSolutions.com) कर दिया। हरेक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया। किसी भी चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना पड़ता था। चरवाहे के साथ कितने जानवर हैं और उसने कितना टैक्स चुकाया है, इस बात को उसके पास में दर्ज कर दिया जाता था।

चरवाहों पर चराई कर का प्रभाव–प्रति मवेशी कर लागू होने पर चरवाहों ने पशुओं की संख्या को सीमित कर दिया। अनेक चरवाहों ने अवर्गीकृत चरागाहों की खोज में स्थान परिवर्तन कर लिया। अनेक चरवाहा समुदायों ने पशुपालन के साथसाथ वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया। इससे पशुपालन करने वालों की कठिनाई को समझा जा सकता है।

प्रश्न 3.
मसाई समुदाय के चरागाह उनसे क्यों छिन गए? कारण बताएँ।।
उत्तर:
‘मासाई’, पूर्वी अफ्रीका का एक प्रमुख चरवाहा समुदाय है। औपनिवेशिक शासनकाल में मसाई समुदाय के चरागाहों को सीमित कर दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तथा प्रतिबन्धों ने उनकी चरवाही एवं व्यापारिक दोनों ही गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव डाला। मासाई समुदाय के (UPBoardSolutions.com) अधिकतर चरागाह उस समय छिन गए जब यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने अफ्रीका को 1885 ई० में विभिन्न उपनिवेशों में बाँट दिया।

श्वेतों के लिए बस्तियाँ बनाने के लिए मासाई लोगों की सर्वश्रेष्ठ चरागाहों को छीन लिया गया और मासाई लोगों को दक्षिण केन्या एवं उत्तर तंजानिया के छोटे से क्षेत्र में धकेल दिया गया। उन्होंने अपने चरागाहों का लगभग 60 प्रतिशत भाग खो दिया। औपनिवेशिक सरकार ने उनके आवागमन पर विभिन्न बंदिशें लगाना प्रारंभ कर दिया। चरवाहों को भी विशेष आरक्षित स्थानों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना उन्हें उन सीमाओं से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। क्योंकि मासाई लोगों को एक निश्चित क्षेत्र में सीमित कर दिया गया था, इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कट गए और एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर

मजबूर कर दिया गया जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी। उन्नीसवीं सदी के अंत में पूर्व अफ्रीका में औपनिवेशिक सरकार ने स्थानीय किसान समुदायों को अपनी खेती की भूमि बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके परिणामस्वरूप मासाई लोगों के चरागाह खेती की जमीन में तब्दील हो गए।
मासाई लोगों के रेवड़ (भेड़-बकरियों वाले लोग) चराने के विशाल क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया (उदाहरणतः कीनिया में मासाई मारा व साम्बूरू नैशनल पार्क (UPBoardSolutions.com) और तंजानिया में सेरेनगेटी पार्क। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों को आना मना था। वे इन इलाकों में न तो शिकार कर सकते थे और न अपने जानवरों को ही चरा सकते थे। 14,760 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला सेरेनगेटी नैशनल पार्क भी मसाईयों के चरागाहों पर कब्जा करके बनाया गया था।

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प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर:
भारत और पूर्वी अफ्रीका दोनों ही उस समय औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन थे, इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें संदेह की दृष्टि से देखती थीं। इन दोनों देशों में औपनिवेशिक शोषण के तरीके में भी समानता थी।
मासाई गड़रियों और भारतीय चरवाहों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(i) भारत और अफ्रीका दोनों में ही जंगल यूरोपीय शासकों द्वारा आरक्षित कर दिए गए और चरवाहों का इन जंगलों में प्रवेश निषेध कर दिया गया। ये आरक्षित जंगल इन दोनों देशों में अधिकतर उन क्षेत्रों में थे जो पारंपरिक रूप से खानाबदोश चरवाहों की चरगाह थे। इस प्रकार, (UPBoardSolutions.com) दोनों ही मामलों में औपनिवेशिक शासकों ने खेतीबाड़ी को प्रोत्साहन दिया जो अंततः चरवाहों की चरागाहों के पतन का कारण बनी।

(ii) भारत और पूर्वी अफ्रीका के चरवाहा समुदाय खानाबदोश थे और इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें अत्यधिक संदेह की दृष्टि से देखती थीं । यह उनके और अधिक पतन का कारण बना।

(iii) दोनों स्थानों के चरवाहा समुदाय अपनी-अपनी चरागाहें कृषि-भूमि को तरजीह दिए जाने के कारण खो बैठे। भारत में चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील करने के लिए उन्हें कुछ चुनिंदा लोगों को दिया गया। जो जमीन इस प्रकार छीनी गई थी वे अधिकतर चरवाहों की चरागाहें थीं। ऐसे बदलाव चरागाहों के पतन एवं चरवाहों के लिए बहुत-सी समस्याओं का कारण बन गए। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) अफ्रीका में भी मासाई लोगों की चरागाहें श्वेत बस्ती बसाने वाले लोगों द्वारा उनसे छीन ली गईं और उन्हें खेती की जमीन बढ़ाने के लिए स्थानीय किसान समुदायों को हस्तांतरित कर दिया गया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक सरकार ने ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ कब पारित किया?
उत्तर:
सन् 1871 में।

प्रश्न 2.
गुज्जर बकरवाल समुदाय किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
गुज्जर बकरवाल समुदाय भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से सम्बन्धित है।

प्रश्न 3.
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के प्रमुख चरवाहा समुदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं-गोल्ला, कुरूमा, कुरूबा आदि।

प्रश्न 4.
राइका समुदाय भारत के किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
‘राइका’ समुदाय भारत के राजस्थान राज्य से सम्बन्धित है।

प्रश्न 5.
बंजारा समुदाय के लोग देश के किन राज्यों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
बंजारा समुदाय के लोग भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 6.
गद्दी समुदाय किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
गद्दी समुदाय के लोग देश के हिमाचल प्रदेश राज्य से सम्बन्धित हैं।

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प्रश्न 7.
बुग्याल से क्या आशय है?
उत्तर:
ऊँचे पहाड़ों पर स्थित घास के हरे-भरे मैदानों को बुग्याल कहते हैं।

प्रश्न 8.
धंगर समुदाय बारिश शुरू होते ही सूखे पठारों की ओर क्यों लौट जाते हैं?
उत्तर:
धंगर समुदाय के लोग प्रमुख रूप से भेड़-बकरियाँ पालते हैं। भेड़ें मानसून के गीले मौसम को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं इसलिए वे इस मौसम में सूखे पठारों की ओर चले जाते हैं।

प्रश्न 9.
अफ्रीका के प्रमुख चरवाहा समुदाय और उनके द्वारा पालित मवेशियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विश्व की आधी से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब अर्द्ध शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेरिनों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। ये ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे जैसे पशु पालते हैं और दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं।

प्रश्न 10.
नोमड़ किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
नोमड़ वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते अपितु अपनी आजीविका कमाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। भारत के कई हिस्सों में हम प्रायः खानाबदोश चरवाहों को उनके बकरियों और भेड़ों या ऊँटों और अन्य पशुओं के साथ घूमते हुए देखते हैं।

प्रश्न 11.
अपराधी जनजाति अधिनियम 1871 के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार खानाबदोश कबीलों को अपराधी की नजर से देखती थी। भारत की औपनिवेशिक सरकार द्वारा सन् 1871 में अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की (UPBoardSolutions.com) सूची में रख दिया। बिना किसी वैध परिमट के इन समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।

प्रश्न 12.
भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले चरवाहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
गुज्जर बकरवाल जम्मू कश्मीर के घुमन्तू चरवाहे, गद्दी हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे, धंगर महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, कुरुमा, कुरुबा तथा गोल्ला कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चरवाहे, बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, राइका राजस्थान के घुमंतू चरवाहे आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 13.
औपनिवेशिक शासन का चरवाहों की जिन्दगी पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने जाने पर बंदिशें लगने लगीं और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।

प्रश्न 14.
कुरुबा, कुरुमा और गोल्ला चरवाही के अलावा और कौन-सा व्यवसाय करते हैं?
उत्तर:
गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते थे जबकि कुरुमा और कुरुबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते थे और हाथ के बुने कम्बल बेचते थे। ये लोग जंगलों और छोटे-छोटे खेतों के आस-पास रहते थे। वे अपने जानवरों की देखभाल के साथ-साथ कई दूसरे काम-धंधे भी करते थे।

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प्रश्न 15.
किन्नौरी, शेरपा और भोटिया किस तरह के चरवाहे हैं?
उत्तर:
हिमालय के पर्वतीय भागों में रहने वाले भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग अपने मवेशियों को चराने के काम हेतु मौसमी बदलावों के हिसाब से खुद को ढालते थे और अलग-अलग इलाकों में पड़ने वाले चरागाहों का बेहतरीन इस्तेमाल करते थे। जब एक चरागाह की हरियाली (UPBoardSolutions.com) खत्म हो जाती थी या इस्तेमाल के काबिल नहीं रह जाती थी तो वे किसी और चरागाह की तरफ चले जाते थे।

प्रश्न 16.
गद्दी चरवाहे किस तरह अपने मवेशियों को चराते थे? उत्तर- हिमाचल प्रदेश के गद्दी चरवाहे मौसमी
उतार:
चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे। वे भी शिवालिक की निचली पहाड़ियों में अपने मवेशियों को झाड़ियों में चराते हुए जाड़ा बिताते थे। अप्रैल आते-आते वे उत्तर की तरफ चल पड़ते और पूरी गर्मियाँ लाहौल और स्पीति में बिता देते। जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दरें खुल जाते तो उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों में जा पहुँचते थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ्रीका के निर्धन चरवाहों का जीवन उनके मुखिक से किस तरह अलग था?
उत्तर:
मुखियाओं के पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट (UPBoardSolutions.com) जाते तो वे और जानवर खरीद सकते थे। किन्तु ऐसे चरवाहों का जीवन इतिहास अलग था जो केवल अपने पशुओं पर ही निर्भर थे। प्रायः उनके पास बुरे सैमय में बचे रहने के लिए संसाधन नहीं होते थे। युद्ध एवं अकाल के दिनों में वे अपना लगभग सब कुँछ आँवा बैठते थे।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पैर कौन-से प्रतिबन्ध लगाए थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पर निम्न प्रतिबन्ध लगाए-

  1. मासीई लोगों के रेवेंड़ चराने के विशील क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों को आना मना था।
  2. मूल निवासियों को भी पास जारी किए गए थे जिन्हें दिखाए बिना उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश करने नहीं दिया जाता था।
  3. औपनिवेशिक सरकार ने उनके आने-जाने पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए।
  4. चरवाहा समुदाय को विशेष रूप से निर्धारित स्थानों पर निवास करने के लिए बाध्य किया गया।
  5. बिना किसी वैधं परमिट के ईनं (UPBoardSolutions.com) समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
  6. वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कैट गए और उन्हें एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर मजबूर कर दिये गये जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी।

प्रश्न 3.
औपनिवेशिक सरकार ने भीरत में परेती भूमि नियमावली क्यों लागू की तथा इसका क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार परती भूमि को बैंकार मानती थी, क्योंकि इससे उसे कोई राजस्व प्राप्त नहीं होता था। अतः वह सभी चरागाहों को कृषि भूमि में परिवर्तित कैरनी चाहती थी। उसका मानना था कि यदि ऐसा कर दिया जाए तो भू-राजस्व भी बढ़ेगा और जूट (पटसन), कपास, गेहूँ जैसी फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि होगी। सभी चरागाहों को अंग्रेज सरकार परती भूमि मानती थी क्योंकि उससे उन्हें कोई लंगान नहीं मिलती था। उन्नीसवीं सदी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन (UPBoardSolutions.com) नियमों की सहायता से सरकार गैर-खेतिहर जमीन को अपने अधिकार में लेकर कुछ विशेष लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को विभिन्न प्रकार की छूट प्रदान की गई और ऐसी भूमि पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें से कुछ लोगों को इस नई जमीन पर बसे गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज्यादातर जमीन वास्तव में चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे जिसने चरवाहों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाली।

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प्रश्न 4.
राइको समुदाय के जीवन-विधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राइका देश के पश्चिमी राज्य राजस्थान का प्रमुख चरवाहा समुदाय है। यह क्षेत्र वर्ष में बहुत कम हैं #प्त करता है। इसीलिए खेती की उपज हर साल घटती-बढ़ती रहती थी। बहुत सारे इलाकों में तो दूर-दूर तक कोई फल होती ही नहीं थी। इसके चलते राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। बरसात में तो बाड़मेर, जैसलमेर, औध और बीकानेर के राइका अपने गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान (UPBoardSolutions.com) उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। लेकिन अक्टूबर आते-अति ये चरागाह सूखने लगते थे। नतीजतन ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ निकल जाते थे और अगंली बरसात में ही वापस लौटते थे। राइकाओं का एक वर्ग ऊँट पालता था जबकि कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।

प्रश्न 5.
घरवाहा समुदाय की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चरवाहा समुदाय का जीवन निरंतर प्रकृति से संघर्ष में बीतता था। उन्हें निरंतर प्राकृतिक एवं मानवीय समस्याओं और बदलती परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, जैसे-
(क) स्थायी संबंधों की स्थापनी – उन्हें अपने प्रवास के प्रत्येक ठिकाने ,पर रहने वाले निवासियों तथा अधिकारियों से घनिष्ठ संपर्क बनाए रखने की आवश्यकता होती है अन्यथा वे उन क्षेत्रों में उनके पशुचारण पर प्रतिबंध लगी कते हैं।

(ख) दिशा का निर्धारण – प्रवास की दिशा निर्धारित करना चरवाहा समुदाय की एक प्रमुख समस्या होती है क्योंकि गलत दिशा का चयन उन्हें तथा उनके पशुओं के लिए भोजन तथा पानी की समस्या उपस्थित कर सकता है।

(ग) प्रवास की समय सीमा का निर्धारण – प्रवास काल में किस स्थान पर कितने समय तक रुकना है जिससे वे चरागाहों तक सही समय पर पहुँच सकें और मौसम बिगड़ने से पहले सही सलामत वापस आ सकें अर्थात् प्रवास की अवधि और रेवड़ के साथ कब और कहाँ ठहरना है (UPBoardSolutions.com) आदि, का निर्धारणजी एक कठिन समस्या होती है जिसे एक लंबे अनुभव द्वारा ही हल किया जा सकता है। चरवाहा समुदाय अपनी जीवन सम्बन्धी अनेक आवश्यकताओं के लिए गैर-चरवाहा समुदायों पर भी निर्भर होते हैं, ऐसे में समाज अन्य समूहों से भी उनके मानवीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं।

प्रश्न 6.
चराई-कर ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
चराई-कर का चरवाहा समुदाय पर प्रभाव-भारत में अंग्रेज सरकार ने 19वीं शताब्दी के मध्य अपनी आय बढ़ाने के लिए अनेक नए कर लगाए। इन्हीं में से एक चराई-कर था, जो पशुओं पर लगाया गया था। यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ-साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को एक निश्चित कर ही देते थे। फलस्वरूप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अतः बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।
इस प्रकार औपनिवेशिक सरकार द्वारा लागू किए गए इन विभिन्न नियमों ने चरवाहा समुदायों के जीवन को और अधिक कष्टपूर्ण बना दिया।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय को निम्न प्रकार से प्रभावित किया-

  1. चरागाहों की कमी होने के कारण बचे हुए चरागाहों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ गया जिससे चरागाहों की गुणवत्ता में कमी आई।
  2. चारे की मात्रा और गुणवत्ता में कमी का प्रभाव पशुओं के स्वास्थ्य एवं संख्या पर भी पड़ा।
  3. इससे चरागाह क्षेत्रों के कमी की समस्या उत्पन्न हो गई जिसके कारण चरवाहा समुदायों के सामने रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।
  4. वनों को आरक्षित कर दिया गया जिसके कारण अब वे वनों में पहले की तरह आजादी से अपने पशुओं को नहीं चरा सकते थे।

प्रश्न 8.
बार-बार पड़ने वाले अकाल का मासाई समुदाय के चरागाहों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अकाल किसी भी स्थान की फसलों, चरागाहों और जन-जीवन पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। वर्षा न होने पर चरागाह सूख जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि चरवाहे स्थानान्तरण न करें तो भोजन के अभाव में जानवरों की मृत्यु निश्चित है। फिर भी औपनिवेशिक प्रशासन में मासाई (UPBoardSolutions.com) लोगों को प्रतिबंधित क्षेत्रों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना ये लोग इनकी सीमाओं के बाहर नहीं जा सकते थे।

1933 और 1934 ई0 में पड़े केवल दो साल के भयंकर सूखे में मासाई आरक्षित क्षेत्र के आधे से अधिक जानवर मर चुके थे। जैसे-जैसे चरने की जगह सिकुड़ती गई, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते चले गए। बार-बार आने वाले बुरे सालों की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई।

प्रश्न 9.
औपनिवेशिक सरकार मासाई समुदाय में मुखिया की नियुक्ति क्यों करती थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने विभिन्न मासाई समुदाय में मुखिया की नियुक्ति की। मुखिया कबीलों से सम्बन्धित मामलों को देखते थे। ये मुखिया धीरे-धीरे धन संचय करने लगे। उनके पास अपनी नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे अपने गरीब पड़ोसियों को लगान चुकाने के लिए कर्ज देते थे। उनमें से अधिकतर मुखिया बाद में शहरों में जाकर बस गए और व्यापार करने लगे। अब वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट जाते तो वे
और जानवर खरीद सकते थे।

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प्रश्न 10.
कोंकण के स्थानीय किसान धंगर चरवाहों का स्वागत क्यों करते थे?
उत्तर:
कोंकण एक उपजाऊ क्षेत्र है और यहाँ पर्याप्त वर्षा होती है। यहाँ के किसान चावल की खेती करते हैं।
वे दो कारणों से धंगर चरवाहों का स्वागत करते हैं-

  1. धंगर के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता है, जिससे भूमि पुनः उर्वरता प्राप्त कर लेती है। प्रसन्न होकर कोंकण के किसान धंगरों को चावल देते हैं जो वे वापस लौटते समय अपने साथ ले जाते हैं।
  2. जब धंगर कोंकण पहुँचते हैं तब तक खरीफ की फसल की कटाई हो चुकी होती है। तब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने होते हैं। (UPBoardSolutions.com) उनके खेतों में धान के इँठ अभी मिट्टी में फँसे होते हैं। धंगरों के पशु इन इँठों को खा जाते हैं और मिट्टी साफ हो जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ्रीका में चरवाही पर एक संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए।
उत्तर:
विश्व की आधे से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। आज भी अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग रोजी-रोटी के लिए किसी-न-किसी तरह की चरवाही गतिविधियों पर ही आश्रित हैं। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे जाने-माने समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब अर्द्ध-शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। यहाँ के चरवाहे गाय, बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। ये लोग दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करते हैं। कुछ लोग आमदनी बढ़ाने के लिए (UPBoardSolutions.com) चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं। कुछ लोग चरवाही से होने वाली मामूली आय से गुजर नहीं हो पाने पर कोई भी धंधा कर लेते हैं। अफ्रीकी चरवाहों को जीवन औपनिवेशिक काल एवं उत्तर-औपनिवेशिक काल में बहुत अधिक बदल गया है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम सालों से ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पूर्वी अफ्रीका में भी स्थानीय किसानों को अपनी खेती के क्षेत्रफल को अधिक से अधिक फैलाने के लिए प्रोत्साहित करने लगी। जैसे-जैसे खेती का प्रसार हुआ वैसे-वैसे चरागाह खेतों में तब्दील होने लगे। ये चरवाहों के लिए ढेरों कठिनाइयाँ लेकर आए। उनका जीवन बहुत कठिन बन गया।

प्रश्न 2.
मासाई समुदाय के सामाजिक जीवन का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मासाई लोगों की वास्तविक संपत्ति इनके पशु होते हैं। प्रत्येक मासाई परिवार में बड़ी संख्या में पशु-पालन किया जाता है। पशुओं से दूध निकालने का कार्य महिलाएँ करती हैं। यह कार्य दिन निकलने से पहले और सूर्य डूबने से पहले किया जाता है। ये लोग प्रायः कच्चे दूध का ही उपयोग करते हैं। केवल रोगग्रस्त मासाई ही उबालकर दूध का उपयोग करते हैं। दूध को हिलाकर मक्खन बनाया जाता है किन्तु ये लोग पनीर बनाना नहीं जानते। मासाई लोग भेड़ पालन भी करते हैं। इनसे दूध, ऊन तथा मांस प्राप्त होता है। परंतु भेड़ों का (UPBoardSolutions.com) स्थान इनके सामाजिक जीवन में अधिक महत्त्व का नहीं है, भेड़ों के साथ कुछ बकरियाँ भी पाली जाती हैं। बकरियों से दूध और मांस दोनों प्राप्त होते हैं। अधिकांश परिवारों में कुछ गधे भी पाले जाते हैं, जिन पर बोझा ढोने का काम लिया जाता है। कुछ लोग इस कार्य के लिए ऊँट भी रखते हैं। कुत्तों का प्रयोग पशुओं की देखभाल के लिए किया जाता है।

मासाई समुदाय के सभी सदस्य पशुपालन का कार्य नहीं करते हैं। प्रायः 16 से 30 वर्ष के लोगों को युद्ध के लिए रखा जाता है। इनका कर्त्तव्य अपने दल के लोगों तथा पशुओं की रक्षा करना है। ये सिपाही बड़े आनंद से जीवन बिताते हैं। ये लोग तेज धार वाले बचें, लोहे की तलवार और हड्डी की बनी ढाल का प्रयोग करते हैं।

मासाई समाज की एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समय-समय पर युवकों को योद्धाओं के दल में भेजा जाता है। ये उन लोगों का स्थान ग्रहण करते हैं जो प्रौढ़ हो जाते हैं और उन्हें शादी करके परिवार बसाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। युवकों को योद्धावर्ग में सम्मिलित होने से पूर्व (UPBoardSolutions.com) योद्धाओं के सब गुण अपनाने पड़ते हैं और बाद में उनका मुंडन-संस्कार होता है। प्रत्येक वर्ग को कुछ नाम दिया जाता है, जैसे-‘लुटेरा’, ‘सफेद तलवार’ इत्यादि। योद्धाओं का आयु के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है। मासाई लोग सदा अपनी संपत्ति को बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं, जिसमें ये योद्धा बड़े सहायक होते हैं।
मासाई के जीवन की तीन मुख्य अवस्थाएँ होती हैं-

  1. बालपन,
  2. योद्धापन और
  3. वृद्ध।

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प्रश्न 3.
भारत के पठारी क्षेत्र में रहने वाले धंगर चरवाहा समुदाय का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
धंनगर (धंगर) महाराष्ट्र का प्रमुख चरवाहा समुदाय है। ये लोग महाराष्ट्र के मध्य पठारी क्षेत्रों में रहते हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में इनकी जनसंख्या 4,67,000 थी। इस समुदाय के अधिकांश लोग पशुचारण पर आश्रित हैं परंतु कुछ लोग कंबल और चादरें भी बनाते हैं। महाराष्ट्र का यह भाग कम वर्षा वाला क्षेत्र होने के कारण अर्द्धशुष्क प्रदेश है। यहाँ प्राकृतिक वनस्पति के रूप में काँदेदार झाड़ियाँ मिलती हैं जो पशुओं को चारा जुटाती हैं। अक्टूबर में यहाँ बाजरा की फसल काटने के उपरांत ये लोग पश्चिम में कोंकण क्षेत्र में पहुँच जाते थे। इस यात्रा में लगभग एक महीना लग जाता था। कोंकण एक उपजाऊ प्रदेश है और यहाँ वर्षा भी पर्याप्त होती है।

अतः यहाँ के किसान चावल की खेती करते थे। ये धंगर चरवाहों का स्वागत करते थे जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे जिसे समय धंगर किसान कोंकण पहुँचते थे उस समय तक खरीफ (चावल) की फसल कट चुकी होती थी। अब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने (UPBoardSolutions.com) होते थे। उनके खेतों में धान के नँठ अभी मिट्टी में फँसे होते थे। धांगरों के पशु इन ढूंठों को खा जाते थे और मिट्टी साफ हो जाती थी। धंगरों के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता था। अतः मिट्टी फिर से उर्वरता प्राप्त कर लेती थी। प्रसन्न होकर कोंकणी किसान धांगरों को चावल देते थे जो वे वापसी पर अपने साथ ले जाते थे।

प्रश्न 4.
भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले चरवाहा समुदाय का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक चरवाहा समुदाय रहते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख समुदायों का विवरण इस प्रकार है-
(1) गुज्जर समुदाय – मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी गुज्जर लोग गाय और भैंस पालते हैं। ये हिमालय के गिरीपद क्षेत्रों (भाबर क्षेत्र) में रहते हैं। ये लोग जंगलों के किनारे झोंपड़ीनुमा आवास बना कर रहते हैं। पशुओं को चराने का कार्य पूरुष करते हैं। पहले दूध, मक्खन और घी इत्यादि को स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य महिलाएँ करती थीं परंतु अब ये इन उत्पादों को परिवहन के साधनों (टैंपो, मोटरसाइकिल आदि) की सहायता से निकटवर्ती शहरों में बेचते हैं। इस समुदाय के लोगों ने इस क्षेत्र में स्थायी रूप से बसना (UPBoardSolutions.com) आरंभ कर दिया है परंतु अभी भी अनेक परिवार गर्मियों में अपने पशुओं को लेकर ऊँचे पर्वतीय घास के मैदानों (बुग्याल) की ओर चले जाते हैं। इस समुदाय को स्थानीय नाम ‘वन गुज्जर’ के नाम से भी जाना जाता है। अब इस समुदाय ने पशुचारण के साथ-साथ स्थायी रूप से कृषि करना भी आरंभ कर दिया है। हिमाचल के अन्य प्रमुख चरवाहा समुदाय भोटिया, शेरपा तथा किन्नौरी हैं।

(2) गुज्जर बकरवाल – इन लोगों ने 19वीं शताब्दी में जम्मू-कश्मीर में बसना आरंभ कर दिया। ये लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड पालते हैं जिन्हें रेवड़ कहा जाता है। बकरवाल लोग अपने पशुओं के साथ मौसमी स्थानान्तरण करते हैं। सर्दियों के मौसम में यह अपने पशुओं को लेकर शिवालिक पहाड़ियों में चले आते हैं क्योंकि ऊँचे पर्वतीय मैदान इस मौसम में बर्फ से ढक जाते हैं इसलिए उनके पशुओं के लिए चारे का अभाव होने लगता है जबकि हिमालय के दक्षिण में स्थित शिवालिक पहाड़ियों में बर्फ न होने के कारण उनके पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता है। सर्दियों के समाप्त होने के साथ ही अप्रैल माह में यह समुदाय अपने काफिले को लेकर उत्तर की ओर चलना शुरू कर देते हैं।

पंजाब के दरों को पार करके जब ये समुदाय कश्मीर की घाटी में पहुँचते हैं तब तक गर्मी के कारण बर्फ पिघल चुकी होती है तथा चारों तरफ नई घास उगने लगती है। सितम्बर के महीने तक ये इस घाटी में ही डेरा डालते हैं और सितम्बर महीने के अंत में पुनः दक्षिण की ओर लौटने लगते हैं। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार यह समुदाय प्रति वर्ष दो बार स्थानांतरण करता है। हिमालय पर्वत में ये ग्रीष्मकालीन चरागाहें, 2,700 मीटर से लेकर 4,120 मीटर तक स्थित हैं।

(3) गद्दी समुदाय – हिमाचल प्रदेश के निवासी गद्दी समुदाय के लोग बकरवाल समुदाय की तरह अप्रैल और सितम्बर के महीने में ऋतु परिवर्तन के साथ अपना निवास स्थान परिवर्तित कर लेते हैं। सर्दियों में जब ऊँचे क्षेत्रों में बर्फ जम जाती है, तो ये अपने पशुओं के साथ शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं। मार्ग में वे लाहौल और स्पीति में रुककर अपनी गर्मियों की फसल को काटते हैं तथा सर्दियों की फसल की बुवाई करते हैं। अप्रैल के अंत में वे पुनः लाहौल और स्पीति पहुँच जाते हैं और अपनी फसल काटते हैं। (UPBoardSolutions.com) इसी बीच बर्फ पिघलने लगती है और दरें साफ हो जाते हैं इसलिए गर्मियों में अपने पशुओं के साथ ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं। गद्दी समुदाय में भी पशुओं के रूप में भेड़ तथा बकरियों को ही पाला जाता है।

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प्रश्न 5.
मासाई समुदाय को औपनिवेशिक शासन ने किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
मासाई समुदाय के जीवन को औपनिवेशिक शासन ने निम्न प्रकार से प्रभावित किया-
(1) सामाजिक हस्तक्षेप – औपनिवेशिक शासन ने मासाई की सामाजिक संरचना को भी प्रभावित किया। उन्होंने कई मासाई उपसमूहों के मुखिया तय कर दिए तथा उनके कबीलों की समस्त जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। विभिन्न समुदायों के मध्य होने वाले युद्धों पर पाबंदी लगा दी गई जिसके कारण योद्धा वर्ग तथा वरिष्ठ जनों की परंपरागत सत्ता कमजोर हो गई। मासाई समाज धीरे-धीरे अमीर तथा गरीब में (UPBoardSolutions.com) बँटने लगा क्योंकि मुखिया की नियमित आमदनी के अनेक स्रोत थे परंतु साधारण चरवाहों की आय बहुत सीमित थी जिसके कारण उनके बीच का अंतर निरंतर बढ़ता गया।

(2) सीमाओं का निर्धारण – औपनिवेशिक शासन से पूर्व मासाई चरवाहों पर कोई क्षेत्रीय प्रतिबंध नहीं था। वे अपने रेवड़ के साथ भोजन तथा पानी की खोज में कहीं भी आ-जा सकते थे। परंतु अब सभी चरवाहा समुदायों को भी विशेष आरक्षित इलाकों की सीमाओं में कैद कर दिया गया। अब ये समुदाय इन आरक्षित इलाकों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे। वे विशेष पास लिए बिना अपने जानवरों को लेकर बाहर नहीं जा सकते थे। लेकिन परमिट (पास) हासिल करना भी कोई आसान काम नहीं था। इसके लिए उन्हें तरह-तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता था और उन्हें तंग किया जाता था। अगर कोई नियमों का पालन नहीं करता था तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी।

(3) सूखा तथा अकाल की विषम स्थिति – औपनिवेशिक शासन से पूर्व कम वर्षा अथवा अकाल की स्थिति में चरवाहा समुदाय स्थान परिवर्तन के द्वारा इस प्राकृतिक आपदा का सामना सफलतापूर्वक कर लेते थे परंतु चरागाह समुदायों की सीमाओं का निर्धारण हो जाने के पश्चात् सूखे की आशंका सदा बनी रहती थी।

(4) शिकार के लिए चराई क्षेत्र को आरक्षण – मासाइयों के विशाल चराई क्षेत्र पर औपनिवेशिक शासकों ने पशुओं के शिकार के लिए पार्क बना दिए। इन पार्को में कीनिया के मासाई मारा तथा सांबू नेशनल पार्क तथा तंजानिया का सेरेंगेटी नेशनल पार्क के नाम लिए जा सकते हैं। सेरेंगेटी नेशनल पार्क 14,760 किमी से भी अधिक क्षेत्र पर बनाया गया था। मासाई लोग इन पार्को में न तो पशु चरा (UPBoardSolutions.com) सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे।
अच्छे चराई क्षेत्रों के छिन जाने तथा जल संसाधनों के अभाव से शेष बचे चराई क्षेत्र की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। चारे की आपूर्ति में भारी कमी आई। फलस्वरूप पशुओं के लिए आहार जुटाने की समस्या गंभीर हो गई।

(5) चरागाहों का कम होना – औपनिवेशिक शासन से पहले मासाई लैंड का इलाका उत्तरी कीनिया से लेकर तंजानिया के घास के मैदानों (स्टेपीज) तक फैला हुआ था। उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों ने अफ्रीका में कब्जे के लिए मारकाट शुरू कर दी और बहुत सारे इलाकों को छोटे-छोटे उपनिवेशों में तब्दील करके अपने-अपने कब्जे में ले लिया।

1885 ई० में ब्रिटिश, कीनिया और जर्मन के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय टंगानयिका सीमा खींचकर मासाई लैंड के दो बराबरबराबर टुकड़े कर दिए गए। बाद के सालों में सरकार ने गोरों को बसाने के लिए बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया। मासाईयों को दक्षिणी कीनिया और उत्तरी तंजानिया के छोटे से इलाके में समेट दिया गया। औपनिवेशिक शासन से पहले मासाईयों के पास जितनी (UPBoardSolutions.com) जमीन थी उसका लगभग 60 फीसदी हिस्सा उनसे छीन लिया गया। उन्हें ऐसे सूखे इलाकों में कैद कर दिया गया जहाँ न तो अच्छी बारिश होती थी और न ही हरे-भरे चरागाह थे।

(6) कृषि क्षेत्रों का विस्तार – ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने पूर्वी अफ्रीका में स्थानीय किसानों को कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। कृषि क्षेत्र बढ़ाने के लिए चरागाहों को कृषि-खेतों में बदला गया जिसके कारण चरागाह क्षेत्र बहुत तेजी से कम होने लगे।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

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( विस्तृत उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) 
जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर (UPBoardSolutions.com) के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?
(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?
(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस (UPBoardSolutions.com) डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।”
  3. लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “
  4. लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।
  5. लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।

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(2) साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था। इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेलो गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट (UPBoardSolutions.com) में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
  3. लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।

(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही (UPBoardSolutions.com) अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। (UPBoardSolutions.com) साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।”
  3. चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।

प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 3. श्रीराम शर्मा की साहित्यिक विशेषताओं को बताते हुए उनकी भाषा-शैली भी स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 4. श्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा श्रीराम शर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

श्रीराम शर्मा
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1892 ई० (1949 वि०)। मृत्यु-सन् 1967 ई० । जन्म-स्थान-किरथरा (मैनपुरी) उ० प्र० । शिक्षा-बी० ए० ।
साहित्य सेवा – सम्पादक (विशाल भारत), आत्मकथा लेखक, संस्मरण तथा शिकार साहित्य के लेखक।
भाषा – सरल, प्रवाहपूर्ण, सशक्त, उर्दू एवं ग्रामीण शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल।
शैली – वर्णनात्मक रोचक शैली।
रचनाएँ – सन् बयालीस के संस्मरण, सेवाग्राम की डायरी, शिकार साहित्य, प्राणों का सौदा, बोलती प्रतिमा, जंगल के जीव। |

  • जीवन-परिचय- हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् ये पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर आये। आपने ‘विशाल भारत’ नामक पत्र का (UPBoardSolutions.com) सम्पादन बहुत दिनों तक किया। इनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुख्यतः राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बराबर भाग लिया है जिसकी सजीव झाँकियाँ आपकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। आपकी मृत्यु एक लम्बी बीमारी के पश्चात् सन् 1967 ई० में हो गयी।
  • कृतियाँ –
    • संस्मरण-साहित्य- सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ में इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन और उस समय के समाज की झाँकी प्रस्तुत की है।
    • शिकार साहित्य- ‘जंगल के जीव’, ‘प्राणों का सौदा’, ‘बोलती प्रतिमा’, ‘शिकार’ में आपका शिकार-साहित्य संगृहीत है। इन सभी रचनाओं में रोमांचकारी घटनाओं का सजीव वर्णन हुआ है । इन कृतियों में घटना-विस्तार के साथसाथ पशुओं के मनोविज्ञान का भी सम्यक् परिचय दिया गया है।
    • जीवनी-‘नेताजी’ और ‘गंगा मैया ।’ । इन कृतियों के अतिरिक्त शर्मा जी के फुटकर लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
    • साहित्यिक परिचय– शर्मा जी हिन्दी में शिकार साहित्य प्रस्तुत करने में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनके शिकार साहित्य में घटना विस्तार के साथ-साथ पशु-मनोविज्ञान को सम्यक् परिचय भी मिलता है। शिकार साहित्य के अतिरिक्त शर्मा जी ने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तथा संस्मरणात्मक निबन्धों और शिकार सम्बन्धी कहानियों को लिखने (UPBoardSolutions.com) में शर्मा जी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिकार साहित्य को हिन्दी में प्रस्तुत करनेवाले शर्मा जी पहले साहित्यकार हैं।
    • भाषा-शैली- शर्मा जी की भाषा स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण है। भाषा की दृष्टि से ये प्रेमचन्द के अत्यन्त निकट माने जा सकते हैं, यद्यपि ये छायावादी युग के विशिष्ट साहित्यकार रहे हैं। आपकी भाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग से भाषा अत्यन्त सजीव एवं सम्प्रेषणीयता के गुण से सम्पन्न हो गयी है।
      इनकी शैली स्पष्ट एवं वर्णनात्मक है जिसमें स्थान-स्थान पर स्थितियों का विवेचन मार्मिक और संवेदनशील होता है। शर्मा जी की शिकार सम्बन्धी, संस्मरणात्मक कहानियों और निबन्धों में शैलीगत विशेषता है जो रोमांच और कौतूहल आद्योपान्त बनाये रखती है।

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. ‘स्मृति’ निबन्ध के आधार पर बाल-सुलभ वृत्तियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- बालमन अत्यन्त चंचल होता है। बाल्यावस्था में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है। बाल्यावस्था में कभी-कभी बड़े साहसिक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2. लेखक ने अपने डण्डे के विषय में क्या कहा है? |
उत्तर- लेखक ने अपने डण्डे के विषय में कहा है कि उस उम्र में बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं।

प्रश्न 3. लेखक के कुएँ में साँप से संघर्ष के समय उसके छोटे भाई की मनोदशा कैसी थी? |
उत्तर- लेखक ने कहा है कि ”जब मैं कुएँ के नीचे जा रहा था तो छोटा भाई रो रहा था। मैंने उसे ढाँढस दिलाया कि मैं कुएँ में पहुँचते ही साँप को मार दूंगा।”

प्रश्न 4. लेखक की तीन साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 5. ‘स्मृति ‘ पाठ से आपने क्या समझा? अपने शब्दों में लिखिए। |
उत्तर- ‘स्मृति’ पाठ से यह बात उभरकर सामने आती है कि बच्चे अत्यन्त साहसी होते हैं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता है। इस उम्र में वे बड़े-बड़े साहसिक कार्य कर बैठते हैं।

प्रश्न 6. ‘स्मृति’ पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- सन् 1908 ई० की बात है। जाड़े के दिन थे। हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी। हम दोनों उछलते-कूदते एक ही साँस में गाँव से चार फर्लाग दूर उस कुएँ के पास आ गये । कुआँ कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था। कुएँ की पाट पर बैठे (UPBoardSolutions.com) हम रो रहे थे। दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मुझे नीचे बुला रही है। छोटे भाई की आशंका बेजा थी, पर उस फैं और धमाके से मेरा साहस कुछ और बढ़ गया।

प्रश्न 7. चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की क्या मनोदशा हुई? |
उत्तर- चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की मनोदशा उसी प्रकार हुई जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली से हत होने पर निकल जाती है और वह तड़पता रह जाता है।

प्रश्न 8. ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ लेखक ने अपने साथी लड़के से क्यों कहा?
उत्तर- ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ ऐसा लेखक ने अपने साथी लड़के से घरवालों के भय से कहा था।

प्रश्न 9. कुएँ में साहसपूर्वक उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाने के कार्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक पाँच धोतियाँ जोड़कर कुएँ के नीचे उतरा। नीचे कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम था, अत: साँप को डण्डे से मारना आसान नहीं थी। लेखक का कहना है कि डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

प्रश्न 10. लेखक और साँप के बीच संघर्ष के विषय में लिखिए।
उत्तर- जब लेखक चिट्ठियाँ लेने कुएँ में उतरा तो साँप ने वार किया और डण्डे से चिपट गया। डण्डा हाथ से छूटा तो नहीं, पर झिझक, सहम अथवा आतंक से अपनी ओर खिंच गया और गुंजल्क मारता हुआ साँप का पिछला भाग मेरे हाथों से छू गया। डण्डे को मैंने एक ओर पटक दिया । यदि (UPBoardSolutions.com) कहीं उसका दूसरा वार पहले होता, तो उछलकर मैं साँप पर गिरता और न बचता। डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. श्रीराम शर्मा किस युग के लेखक थे?
उत्तर- श्रीराम शर्मा शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

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प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था?
उत्तर- श्रीराम शर्मा ने ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया था।

प्रश्न 3. ‘स्मृति’ लेख किस शैली में लिखा गया है?
उत्तर- ‘स्मृति’ लेख वर्णनात्मक शैली में लिखा गया है।

प्रश्न 4. चिट्ठी किसने लिखी थी?
उत्तर- चिट्ठी श्रीराम शर्मा के बड़े भाई ने लिखी थी।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं।                             (√)
(ब) ‘स्मृति’ लेख ‘शिकार’ पुस्तक से लिया गया है।    (√)
(स) कुआँ पक्का और दस हाथ गहरा था।                (×)
(द) ‘स्मृति’ में सन् 1928 की बात है।                        (×)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम बताइए –
विषधर, चक्षुःश्रवा, प्रसन्नवदन, मृग-समूह, वानर-टोली।
उत्तर-
विषधर        –   विष को धारण करनेवाला (सर्प) – बहुब्रीहि समास
चक्षुःश्रवा     –   आँखों से सुननेवाला                    –   बहुब्रीहि समास
प्रसन्नवदन   –   प्रसन्न वदन वाला                       –    कर्मधारय समास
मृग-समूह    –   मृगों का समूह                          –    सम्बन्ध तत्पुरुष
वानर-टोली  –   वानरों की टोली                         –   सम्बन्ध तत्पुरुष

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प्रश्न 2. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य-प्रयोग कीजिए –
बेड़ियाँ कट जाना, बेहाल होना, आँखें चार होना, तोप के मुहरे पर खड़ा होना, टूट पड़ना, मोरचे पड़ना।
उत्तर-

  • बेड़ियाँ कट जाना- (मुक्त हो जाना)
    दासता की बेड़ियाँ कट जाने से देश आजाद हो गया।
  • बेहाल होना- (व्याकुल होना)
    राम के वन चले जाने पर दशरथ जी बेहाल हो गये।
  • आँखें चार होना- (प्रेम होना)
    आँखें चार होने पर प्रेम होता है।
  • तोप के मुहरे पर खड़ा होना- (मुकाबले पर डटना)
    हमारे देश के नौजवान तोप के मुहरे पर खड़े होने के लिए तैयार रहते हैं।
  • टूट पड़ना- (धावा बोल देना)
    हमारे देश के नौजवान जब पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े तो उसके छक्के छूट गये।
  • मोरचे पड़ना- (मुकाबला होना)
    कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोरचे पड़ गये।

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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल).

प्रश्नावली 9.1

प्रश्न 1.
निम्नांकित आकृतियों में से कौन-सी आकृतियाँ एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं? ऐसी स्थिति में, उभयनिष्ठ आधार और दोनों समान्तर रेखाएँ लिखिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-1
हल :
(i) इस आकृति में त्रिभुज PDC और चतुर्भुज ABCD का उभयनिष्ठ आधार DC है और DC की समान्तर रेखा पर त्रिभुज का शीर्ष P और चतुर्भुज के शीर्ष A व B स्थित हैं।
अत: ये आकृतियाँ (त्रिभुज और चतुर्भुज) एक ही आधार DC और एक ही समान्तर रेखाओं DC और AB के बीच स्थित हैं।
(ii) इस आकृति में दोनों चतुर्भुजों का आधार SR तो उभयनिष्ठ है परन्तु उनके शीर्ष P, Q व M, N आधार के समान्तर एक ही रेखा में नहीं हैं। अत: ये एक ही आधार और एक समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।
(iii) दी गई आकृति में ΔQRT और चतुर्भुज PQRS का आधार QR उभंयनिष्ठ है जबकि आधार QR के समान्तर एक ही रेखा पर ΔQRT का शीर्ष T और चतुर्भुज PQRS के शीर्ष P व S स्थित हैं। तब ΔQRT और चतुर्भुज PQRS एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं। उभयनिष्ठ आधार QR तथा समान्तर रेखाएँ QR व PS हैं।
(iv) दी गई आकृति में एक समान्तर चतुर्भुज व एक त्रिभुज है जिनका कोई उभयनिष्ठ आधार नहीं है। अत: ये एक ही आधार व एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।
(v) इस आकृति में दो चतुर्भुज ABCD तथा APQD हैं जो एक ही आधार AD व एक ही समान्तर रेखाओं AD और PQ के बीच स्थित हैं।
(vi) दी गई आकृति में PQRS एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके अन्तर्गत चतुर्भुज PADS, चतुर्भुज ABCD व चतुर्भुज BQRC तीन समान्तर चतुर्भुज समाहित हैं परन्तु इनका कोई उभयनिष्ठ आधार नहीं है।
अत: ये आकृतियाँ एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।

UP Board Solutions

प्रश्नावली 9.2

प्रश्न 1.
दी गई आकृति में ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और AE ⊥ DC तथा CF ⊥ AD है। यदि AB = 16 सेमी, AE = 8 सेमी और CF = 10 सेमी है तो AD ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-2
हल :
ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसमें AB = CD और इन समान्तर भुजाओं के बीच की लाम्बिक दूरी = AE
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = CD x AE [CD = AB = 16 सेमी] = 16 x 8 = 128 वर्ग सेमी
पुनः समान्तर चतुर्भुज ABCD में, AD = BC और AD || BC के बीच की लाम्बिक दूरी = CF
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AD x CF
AD x CF = 128 वर्ग सेमी
AD x 10 = 128
AD = 128 = 12.8 सेमी [CF = 10 सेमी]
अत: AD= 12.8 सेमी।

प्रश्न 2.
यदि E, F, G और H क्रमशः समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं के मध्य-बिन्दु हैं तो दर्शाइए कि ar (EFGH) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-3
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसमें बिन्दु E, F, G और H क्रमशः समान्तर चतुर्भुज की भुजाओं AB, BC, CD व DA के मध्य-बिन्दु हैं।
सिद्ध करना है : ar (EFFG) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
रचना : EG को मिलाइए।
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AB = CD और AB || CD
E, AB को मध्य-बिन्दु है और G, CD कां मध्य-बिन्दु है।
AE = EB = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] AB
DG = GC = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] CD
तब, AE = DG और AE || DG [AB = CD]
AEGD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AEGD और ∆EGH उभयनिष्ठ आधार EG पर स्थित हैं। इनके शीर्ष A, D व में एक ही रेखा पर हैं जो EG के समान्तर है।
∆EGH का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल …(1)
इसी प्रकार,
∆EGF का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
∆EGH का क्षेत्रफल + ∆EGF का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल
EFGH का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] [समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल + समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल]
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
अतः ar (EFGH = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
Proved.

प्रश्न 3.
P और Q क्रमशः समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं DC और AD पर स्थित बिन्दु हैं दर्शाइए कि ar (APB)= ar (BQC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-4
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है, जिसमें भुजाओं DC और AD पर स्थित बिन्दु क्रमश: P और Q हैं।
रेखाखण्ड AP व BP और BQ व CQ खींचकर दो त्रिभुज APB और BQC प्राप्त किए गए हैं।
सिद्ध करना है : ar (∆APB) = ar (∆BQC)
अर्थात ∆APB का क्षेत्रफल = ∆BQC का क्षेत्रफल।
रचना : P से AB पर लम्ब PR और Q से BC पर लम्ब QS खींचे।
उपपत्ति : समान्तर चतुर्भुज ABCD में,
AB || DC और इनके बीच की लम्ब दूरी PR है।
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AB x PR …(1)
और ∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x PR ….(2)
तब, समीकरण (1) व (2) से,
∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
पुनः समान्तर चतुर्भुज ABCD में, BC || AD और इनके बीच की दूरी QS है।
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी = BC x QS
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = BC x QS
परन्तु ∆BQC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x BC x QS …(5)
तब, समीकरण (4) व (5) से,
∆BRC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल …(6)
अब, समीकरण (3) व (6) से,
∆APB का क्षेत्रफल = ∆BQC का क्षेत्रफल
या ar(APB) = ar(BQC)
Proved.

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
संलग्न आकृति में, P समान्तर चतुर्भुज ABCD के अभ्यन्तर में स्थित कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि
(i) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
(ii) ar (APD) + ar (PBC) = ar(APB) + ar(PCD)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-5
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके अभ्यन्तर में स्थित एक बिन्दु P है।
रेखाखण्ड PA, PB, PC और PD खींचे गए हैं।
जिससे चार त्रिभुज ∆APB, ∆PBC, ∆PCD और ∆APD प्राप्त होते हैं।
सिद्ध करना है :
(i) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
(ii) ar (APD) + ar (PBC) = ar (∆APB) + ar (∆PCD)
रचना : P से AB पर लम्ब PQ तथा CD पर लम्ब PR खींचिए।
उपपत्ति :
(i) समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = भुजा x सम्मुख भुजा की लाम्बिक दूरी
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AB x (PQ + PR) ……(1)
∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x PA
∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x DC x PR
जोड़ने पर,
∆APB का क्षेत्रफल + ∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] (AB x PQ + DC x PR) का क्षेत्रफल
= (AB x PQ + AB x PR) (समान्तर चतुर्भुज ABCD में DC = AB)
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] AB (PQ + PR)
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफले (समीकरण (1) से)
अत: ∆APB का क्षेत्रफल + ∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
Proved.
(ii) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
2 [ar(APB) + ar (PCD)] = ar (ABCD)
2 ar (APB) + 2 ar (PCD) = ar (APB) + ar (PBC)+ ar (PCD) + ar (APD)
2ar (APB) + 2 ar (PCD) – ar (APB) – ar (PCD) = ar (PBC) + ar (APD)
ar (APB) + ar (PCD) = ar (APD) + ar (PBC)
अत: ar (APD) + ar (PBC) = ar (APB) + ar (PCD)
Proved.

प्रश्न 5.
दी गई आकृति में, PQRS और ABRS दो समान्तर चतुर्भुज हैं तथा X भुजा BR पर स्थित कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि
(i) ar (PQRS) = ar(ABRS)
(ii) ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-6
हल :
दिया है : PQRS तथा ABRS दो समान्तर चतुर्भुज है जिनका PA उभयनिष्ठ आधार RS है।
भुजा BR पर कोई बिन्दु X है। रेखाखण्ड AX तथा SX खींचे गए हैं जिससे ∆AXS प्राप्त होता है।
सिद्ध करना है :
(i) ar(PQRS) = ar (ABRS)
(ii) ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
रचना : बिन्दु A से आधार SR पर लम्ब AE खींचिए और बिन्दु X से AS पर लम्ब XF खींचिए।
उपपत्ति :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-7
(i) समान्तर चतुर्भुज PQRS में, PQ || RS और इनके बीच की लम्ब दूरी = AE है।
समान्तर चतुर्भुज PQRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी = SR x AE …..(1)
ar (PQRS) = SR x AE
समान्तर चतुर्भुज ABRS में,
AB || RS और इसके बीच की दूरी = AE है।
समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब-दूरी = SR x AE ……(2)
ar (ABRS) = SR x AE
तब समीकरण (1) व (2) से,
ar (PQRS) = ar (ABRS)
Proved.
(ii) ABRS एक समान्तर चतुर्भुज है।
BR || AS और इनके बीच की लम्ब दूरी = XF
समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा से सम्मुख भुजा की लम्ब-दूरी = AS x FX …..(3)
ar (ABRS) = AS x (FX)
∆ AXS का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AS x FX
तब, समीकरण (3) से,
∆AXS का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल
ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABRS)
परन्तु हम सिद्ध कर चुके हैं कि ar (ABRS) = ar (PQRS)
अत: ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
Proved.

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
एक किसान के पास समान्तर चतुर्भुज PQRS के रूप का एक खेत था। उसने RS पर स्थित कोई बिन्दु A लिया और उसे Pऔर से मिला दिया। खेत कितने भागों में विभाजित हो गया है? इन भागों के आकार क्या हैं? वह किसान खेत में गेहूँ। और दालें बराबर-बराबर भागों में अलग-अलग बोना चाहता है। वह ऐसा कैसे करे?
हल :
माना किसान के पास चित्रानुसार PQRS समान्तर चतुर्भुज के आकार का एक खेत है। किसान ने भुजा RS पर एक बिन्दु A चुनकर उसे P तथा Q से मिला दिया।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-8
खेत तीन त्रिभुजाकार भागों में विभाजित हो गया है। ये भाग ∆PSA, ∆PAQ तथा ∆QAR हैं।
किसान को गेहूँ और दालें बराबर क्षेत्रफलों में बोनी हैं इसलिए P से सम्मुख भुजा SR पर PN लम्ब डाला गया है।
∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x PQ x PN
PQRS एक समान्तर चतुर्भुज है। PQ = RS
तब, ∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x RS x PN (PQ = RS)
∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] (SA + AR) x PN (RS = SA + AR)
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x SA x PN + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AR x PN
= ∆PSA का क्षेत्रफल + ∆QAR का क्षेत्रफल
अत: किसान को ∆PAQ क्षेत्रफल में गेहूँ और ∆PSA तथा ∆QAR के क्षेत्रफल में दालें बोना चाहिए।

प्रश्नावली 9.3

प्रश्न 1.
दी गई आकृति में, ∆ABC की एक माध्यिका AD पर स्थित E कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि ar (ABE) = ar (ACE) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-9
हल :
दिया है : ∆ABC में BC का मध्य-बिन्दु D है जिससे AD त्रिभुज की एक माध्यिका है। माध्यिका AD पर एक बिन्दु E है।
सिद्ध करना है : ∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACE का क्षेत्रफल
अथवा  ar (ABE) = ar (ACE)
∆ABC में,
D, BC का मध्य-बिन्दु है अर्थात AD माध्यिका है।
हम जानते हैं कि त्रिभुज की एक माध्यिका उसे बराबर क्षेत्रफल के दो त्रिभुजों में विभाजित करती है।
∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल …..(1)
पुनः ∆BEC की माध्यिका ED है।
∆BED का क्षेत्रफल = ∆CDE का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) से (2) को घटाने पर,
∆ABD का क्षेत्रफल – ∆BED का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल – ∆CDE का क्षेत्रफल
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACE का क्षेत्रफल
ar (ABE) = ar (ACE)
Proved.

प्रश्न 2.
∆ABC में, E माध्यिका AD का मध्य-बिन्दु है। दर्शाइए कि ar (BED) = ar (ABC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-10
हल :
दिया है : ∆ABC में AD त्रिभुज की माध्यिका है और AD का मध्य-बिन्दु E है।
∆ABD में, AD माध्यिका है।
∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल
∆ABD का क्षेत्रफल + ∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ABD का क्षेत्रफल + ∆ACD का क्षेत्रफल
2 ∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
∆ABD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल …(1)
पुनः ∆ABD में, E, AD का मध्य-बिन्दु है।
BE, ∆ABD की माध्यिका है।
∆BED का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABD का क्षेत्रफल [समीकरण (1) से]
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
ar (BED) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 3.
दर्शाइए कि समान्तर चतुर्भुज के दोनों विकर्ण उसे बराबर क्षेत्रफलों वाले चार त्रिभुजों में बाँटते हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-11
हल :
दिया है: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है। जिसके विकर्ण AC और BD एक-दूसरे को बिन्दु 0 पर काटते हैं।
सिद्ध करना है : ∆ADO का क्षेत्रफल = ∆ABO का क्षेत्रफल = ∆BCO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल
रचना : शीर्ष A से BD पर लम्ब AN खींचा।
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और इसके विकर्ण AC व BD परस्पर बिन्दु O पर काटते हैं।
AB = CD तथा BC = AD
AO = CO तथा BO = DO
अब ∆BCO तथा ∆DAO में,
BC = DA (ऊपर सिद्ध किया है)
CO = AO (ऊपर सिद्ध किया है)
BO = DO (ऊपर सिद्ध किया है)
∆BCO = ∆ADO (S.S.S. से)
∆BCO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल …(1)
इसी प्रकार, ∆ABO तथा ∆CDO भी सर्वांगसम होंगे।
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल …(2)
AN, BD पर लम्ब है।
∆ADO का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x DO x AN = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ([latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]BD) x AN
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x BD x AN
और ∆ABO का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x BO x AN = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ([latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]BD) x AN [∴ BO = DO – [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BD]
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x BD x AN …(3)
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल
तब समीकरण (1), (2) व (3) से,
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆BCO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल
अतः स्पष्ट है कि समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण उसे समान क्षेत्रफल वाले चार त्रिभुजों में बाँटते हैं।
Proved.

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प्रश्न 4.
दी गई आकृति में, ABC और ABD एक ही आधार AB पर बने दो त्रिभुज हैं। यदि रेखाखण्ड CD रेखाखण्ड AB से बिन्दु O पर समद्विभाजित होता है तो दर्शाइए कि ar (ABC) = ar (ABD) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-12
हल :
दिया है। दो ∆ABC व ∆ABD एक ही आधार AB पर स्थित हैं।
AB रेखाखण्ड CD को O पर समद्विभाजित करता है।
सिद्ध करना है : त्रिभुज ABC का क्षेत्रफल = त्रिभुज ABD का क्षेत्रफल
अथवा
ar (ABC) = ar (ABD)
रचना : शीर्षों C तथा D से AB पर क्रमशः CE तथा DF लम्ब खींचे।
उपपत्ति : CE ⊥ AB और DF ⊥ AB (रचना से)
CE || DF; और CD एक तिर्यक रेखा है।
∠ECD = ∠FDC (एकान्तर कोण)
∠ECO = ∠FDO …(1)
अब ∆ECO और ∆FDO में,
∠ECO = ∠FDO [समीकरण (1) से]
CO = DO (O पर CD समद्विभाजित होता है)
∠COE = ∠DOF (शीर्षाभिमुख कोण हैं)
∆ECO = ∆FDO (A.S.A. से)
CE = DF (C.P.C.T.) …(2)
तब, ∆ABC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x CE
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x DF [समीकरण (2) से]
= ∆ABD का क्षेत्रफल
अतः ∆ABC का क्षेत्रफल = ∆ABD का क्षेत्रफल
या
ar (ABC) = ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 5.
D, E और F क्रमशः त्रिभुज ABC की भुजाओं BC, CA और AB के मध्य-बिन्दु हैं। दर्शाइए कि
(i) BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
(ii) ar (DEF) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABC)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-12
हल :
दिया है: ∆ABC में भुजाओं BC, CA और AB के मध्य-बिन्दु क्रमशः D, E और F हैं।
सिद्ध करना है:
(i) BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
(ii) ar (DEF) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABC)
उपपत्ति :
(i) ∆ABC में E, AC का मध्य-बिन्दु है और F, AB का मध्य-बिन्दु है।
EF = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC और EF || BC (मध्य-बिन्दु प्रमेय से)
D, BC का मध्य-बिन्दु है।
BD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
EF = BD और EF || BD
अत: BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
Proved.
(ii) E और F क्रमश: AC और AB के मध्य-बिन्दु हैं।
EF = BC और EF || BC (मध्य-बिन्दु प्रमेय से)
परन्तु D, BC को मध्य-बिन्दु है।
CD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
EF = CD और EF || DC
DCEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
FD = CE और FD || EC या FD || AC या FD || AE
BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
DE = BF और DE || BF और DE || AB DE || AF
DE || AF और FD || AE
AEDF एक समान्तर चतुर्भुज है।
BDEF समान्तर चतुर्भुज है और FD उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल ……(1)
DCEF समान्तर चतुर्भुज है और DE उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆DCE का क्षेत्रफल ……(2)
AEDF समान्तर चतुर्भुज है और EF उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆AEF का क्षेत्रफल ………(3)
समीकरण (1), (2) व (3) को जोड़ने पर,
3 ∆DEF’ का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल + ∆DCE का क्षेत्रफल + ∆AEF का क्षेत्रफल दोनों पक्षों में ∆DEF जोड़ने पर,
4 ∆DEF का क्षेत्रफल = (∆BDF + ∆DEC + ∆AEF + ∆DEF) का क्षेत्रफल
4 ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
अतः ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
अथवा ar (DEF) = ar (ABC)
Proved.
(iii) चतुर्भुज BDEF का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल + ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆DEF का क्षेत्रफल + ∆DEF का क्षेत्रफल [समीकरण (1) से
= 2 ∆DEF का क्षेत्रफल = 2 x [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ∆ABC का क्षेत्रफल
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
अत: चतुर्भुज BDEF’ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
अथवा
ar (BDEF) = ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 6.
दी गई आकृति में, चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु O पर इस प्रकार प्रतिच्छेद करते हैं कि OB = OD है। यदि AB = CD है तो दर्शाइए कि
(i) ar(DOC) = ar (AOB)
(ii) ar(DCB) = ar(ACB)
(iii) DA || CB या ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-13
हल :
दिया है : ABCD एक चतुर्भुज है जिसमें विकर्ण AC, दूसरे विकर्ण BD को बिन्दु O पर इस प्रकार काटता है कि OB = OD भुजा AB, भुजा CD के बराबर है। सिद्ध करना है :
(i) ar (DOC) = ar (AOB)
(ii) ar (DCB) = ar (ACB)
(iii) DA || CB या ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
रचना : शीर्ष B से AC पर लम्ब BF तथा शीर्ष D से AC पर लम्ब DG खींचे।
उपपत्ति:
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-14
(i) BF ⊥ AC और DG ⊥ AC
∠DGF = ∠BFG = 90° ये एकान्तर कोण हैं।
BF || DG
BF || DG और BD तिर्यक रेखा है।
∠BDG = ∠DBF (एकान्तर कोण)
∠ODG = ∠OBF
अब ∆DOG और ∆BOF’ में,
∠ODG = ∠OBF (ऊपर सिद्ध किया है)
OD = OB (दिया है)
∠DOG = ∠ BOF (शीर्षाभिमुख कोण युग्म)
∆DOG = ∆BOF (A.S.A. से)
ar (DOG) = ar (BOF) …(1)
∆CDG और ∆ABF में,
∠G = ∠F (DG ⊥ AC, BF ⊥ AC)
CD = AB (दिया है)
DG = BF (∆DOG = ∆BOF)
∆CDG = ∆ABF (R.H.S. से)
ar (CDG) = ar (ABF) …(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (DOG) + ar (CDG) = ar (BOF) + ar (ABF)
अतः ar (DOC) = ar (AOB)
Proved.
(ii) ar (DOC) = ar (AOB) दोनों ओर ar (BOC) जोड़ने पर,
ar (DOC) + ar (BOC) = ar (AOB) + ar (BOC)
अतः ar (DCB) = ar (ACB)
Proved.
(iii) ∆DCB और ∆ACB के क्षेत्रफल समान हैं जैसा कि अभी सिद्ध किया है और दोनों त्रिभुज उभयनिष्ठ आधार BC पर स्थित हैं।
दोनों त्रिभुज एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
तब, DA || CB
समीकरण (2) से,
∆CDG = ∆ABF
CG = AF …(3)
और समीकरण (1) से,
∆DOG = ∆BOF
GO = OF ……(4)
समीकरण (3) व (4) को जोड़ने पर,
CG + GO = OF + AF
OC = OA
O, विकर्ण CA का भी मध्य-बिन्दु है अर्थात विकर्ण परस्पर समद्विभाजित करते हैं।
अत: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
Proved.

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प्रश्न 7.
बिन्दु D और E क्रमशः AABC की भुजाओं AB और AC पर इस प्रकार स्थित हैं कि ar (DBC) = ar (EBC) है। दर्शाइए कि DE || BC है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-15
हल :
दिया है: ∆ABC की दो भुजाओं AB तथा AC पर दो बिन्दु D और E इस प्रकार हैं। कि
∆DBC का क्षेत्रफल = ∆EBC का क्षेत्रफल।
सिद्ध करना है।
DE || BC
उपपत्ति :
ar (DBC) = ar (EBC)
∆DBC का क्षेत्रफल = ∆EBC का क्षेत्रफल
और दोनों उभयनिष्ठ आधार BC पर एक ही ओर स्थित हैं।
दोनों त्रिभुजों के शीर्ष BC के समान्तर एक ही रेखा पर स्थित होंगे।
अतः DE || BC
Proved.

प्रश्न 8.
XY त्रिभुज ABC की भुजा BC के समान्तर एक रेखा है। यदि BE || AC और CF || AB रेखा XY से क्रमशः E और F पर मिलती हैं तो दर्शाइए कि ar (ABE) = ar (ACF)
हल:
दिया है: ∆ABC की भुजा BC के समान्तर एक रेखा XY खींची गई है। बिन्दु B से AC के समान्तर रेखा BE खींची गई है जो XY से E पर मिलती है और इसी प्रकार बिन्दु C से AB के समान्तर एक रेखा CF खींची गई है जो XY से बिन्दु F पर मिलती है।
सिद्ध करना है : ar (ABE) = ar (ACF)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-16
उपपत्ति : XY || BC और BE || AC
यहाँ समान्तर रेखा युग्म (XY, BC)को अन्य समान्तर रेखा युग्म (EB, AC) द्वारा काटने पर समान्तर चतुर्भुज AEBC प्राप्त होता है।
AB, समान्तर चतुर्भुज AEBC का विकर्ण है।
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल …(1)
XY || BC और CF || AB
अर्थात एक समान्तर रेखा युग्म (XY, BC) को दूसरे समान्तर रेखा युग्म (CF, AB) द्वारा काटने पर समान्तर चतुर्भुज ABCF प्राप्त होता है।
AC, समान्तर चतुर्भुज ABCF’ का विकर्ण है।
∆ABC का क्षेत्रफल = ∆ACF का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) व (2) से,
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACF का क्षेत्रफल
या ar (ABE) = ar (ACF)
Proved.

प्रश्न 9.
समान्तर चतुर्भुज ABCD की एक भुजा AB को एक बिन्दु P तक बढ़ाया गया है। A से होकर CP के समान्तर खींची गई रेखा बढ़ाई गई CB को Qपर मिलती है और फिर समान्तर चतुर्भुज PBQR को पूरा किया गया है। दर्शाइए कि ar (ABCD) = ar (PBQR) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-17
हल :
दिया है : समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजा AB को किसी बिन्दु P तक बढ़ाया गया है। बिन्दु A से CP के समान्तर रेखा AQ है जो बढ़ी हुई CB से Q पर मिलती है। समान्तर चतुर्भुज PBQR को पूरा किया गया है।
सिद्ध करना है :
क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR)
ar (ABCD) = ar (PBQR)
रचना : चतुर्भुज ABCD का विकर्ण AC तथा चतुर्भुज PBQR का विकर्ण PR खींचिए।
उपपत्ति : AQ || CP और ∆ACQ तथा ∆APQ का आधार AQ है और ये इन्हीं समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
क्षेत्रफल (∆ACQ) = क्षेत्रफल (∆APQ)
क्षेत्रफल (∆ACB) + क्षेत्रफल (∆ABQ) = क्षेत्रफल (∆ABQ) + क्षेत्रफल (∆BPQ)
क्षेत्रफल (∆ACB) = क्षेत्रफल(∆BPQ) …(1)
∆ACB की भुजा AC, समान्तर चतुर्भुज ABCD का विकर्ण है और ∆BPQ की भुजा PQ, समान्तर चतुर्भुज PBQR का विकर्ण है।
क्षेत्रफल (∆ACB) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) ….(2)
क्षेत्रफल (∆BPQ) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR) …(3)
समीकरण (1), (2) तथा (3) से,
[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR)
क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = क्षेत्रफल ( समान्तर चतुर्भुज PBQR)
अथवा ar (ABCD) = ar (PBQR)
Proved.

प्रश्न 10.
एक समलम्ब ABCD, जिसमें AB || DC है, के विकर्ण AC और BD परस्पर O पर प्रतिच्छेद करते हैं। दर्शाइए कि ar (AOD) = ar (BOC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-18
हल :
दिया है : ABCD एक समलम्ब है जिसमें AB || DC है और समलम्ब के विकर्ण : AC और BD परस्पर O पर प्रतिच्छेद करते हैं।
सिद्ध करना है : ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल
ar (∆AOD) = ar (A BOC)
उपपत्ति : समलम्ब ABCD में AB || DC है और ∆ADC तथा ∆BDC दोनों का उभयनिष्ठ आधार DC है।
और दोनों के शीर्ष A तथा B, DC के समान्तर भुजा AB पर स्थित हैं।
∆ADC और ∆BDC एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
∆ADC का क्षेत्रफल = ∆BDC को क्षेत्रफल
दोनों पक्षों से ∆DOC का क्षेत्रफल घटाने पर,
∆ADC का क्षेत्रफल – ∆DOC का क्षेत्रफल = ∆BDC का क्षेत्रफल – ∆DOC का क्षेत्रफल
∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल
अथवा ar (AOD) = ar (BOC)
Proved.

प्रश्न 11.
दी गई आकृति में, ABCDE एक पंचभुज है। B से होकर AC के A समान्तर खींची गई रेखा बढ़ाई गई DC को F पर मिलती है। दर्शाइए कि
(i) ar (ACB) = ar (ACF)
(ii) ar(AEDF) = ar (ABCDE)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-19
हल :
दिया है : दी गई आकृति में ABCDE एक पंचभुज है। रेखाखण्ड AC खींचा गया है और बिन्दु B से इसके समान्तर एक रेखा खींची गई है जो DC को बढ़ाने पर उससे बिन्दु F पर मिलती है।
सिद्ध करना है :
(i) ar (ACB) = ar (ACF)
(ii) ar (AEDF) = ar (ABCDE)
उपपत्ति :
(i) दिया है BF || AC
∆ACB और ∆ACF समान्तर रेखाओं BF और AC के बीच स्थित हैं और दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार AC है।
त्रिभुज ACB का क्षेत्रफल = त्रिभुज ACF का क्षेत्रफल
ar (ACB) = ar (ACF)
Proved.
(ii) ar (ACB) = ar (ACF)
दोनों पक्षों में ar (ACDE) जोड़ने पर,
ar (ACDE) + ar (ACB) = ar (ACDE) + ar (ACF)
ar (ABCDE) = ar (AEDF)
अतः ar (ABCDE) = ar (AEDF)
Proved.

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प्रश्न 12.
गाँव के एक निवासी इतवारी के पास एक चतुर्भुजाकार भूखण्ड था। उस गाँव की ग्राम पंचायत ने उसके भूखण्ड के एक कोने से उसका कुछ भाग लेने का निर्णय लिया ताकि वहाँ एक स्वास्थ्य केन्द्र का निर्माण कराया जा सके। इतवारी इस प्रस्ताव को इस प्रतिबन्ध के साथ स्वीकार कर लेता है कि उसे इस भाग के बदले उसी भूखण्ड के संलग्न एक भाग ऐसा दे दिया जाए कि उसका भूखण्ड त्रिभुजाकार हो जाए। स्पष्ट कीजिए कि इस प्रस्ताव को किस प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-20
हल :
माना ABCD एक चतुर्भुजाकार भूखण्ड है जिसके एक कोने से कुछ भाग लेकर समान क्षेत्रफल का दूसरा भाग देना है जो खेत से संलग्न भी हो और बचे खेत के साथ मिलकर पूर्ण भूखण्ड का अधिगृहीत भूखण्ड त्रिभुजाकार बना सके।
चतुर्भुजाकार खेत का विकर्ण AC खींचिए।
बिन्दु D से DE || AC खींचिए जो बढ़ी हुई BC को E पर काटे। रेखाखण्ड AE खींचिए जो CD रेखा O पर काटे।
देखिए ∆ACD और ∆ACE एक ही आधार AC पर एक ही समान्तर रेखाओं AC व DE के बीच स्थित हैं।
ar (ACD) = ar (ACE)
ar (∆AOD) + ar (∆AOC) = ar (∆AOC) + ar (∆COE)
ar (AOD) = ar (COE)
अत: ∆AOD क्षेत्र लेकर उसके बचे भूखण्ड के क्षेत्र में क्षेत्र (∆COE) जोड़कर दे देना चाहिए।

प्रश्न 13.
ABCD एक समलम्ब है, जिसमें AB || DC है। AC के समान्तर एक रेखा AB को X पर और BC को Y पर प्रतिच्छेद करती है। सिद्ध कीजिए कि ar (ADX) = ar (ACY) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-21
हल :
दिया है : ABCD एक समलम्ब है जिसमें AB || DC है। विकर्ण AC खींचा गया है। AC के समान्तर एक रेखा खींची गई जो AB को X पर और BC को Y पर प्रतिच्छेद करती है। रेखाखण्ड DX और AY खींचे गए हैं जिनसे ∆ADX और ∆ACY बने हैं।
सिद्ध करना है : ar (ADX) = ar (ACY)
रचना : रेखाखण्ड CX खींचा।
उपपत्ति : AB पर एक बिन्दु X है और AB || DC है।
AX || DC तब ∆ADX और ∆ACX एक ही आधार AX पर एक ही समान्तर रेखाओं AX व DC के मध्य स्थित हैं।
ar (ADX) = ar (ACX) …(1)
पुनः XY || AC
तब ∆ACX और ∆ACY समान (उभयनिष्ठ) आधार AC पर समान्तर रेखाओं XY और AC के बीच स्थित है।
ar (ACX) = ar (ACY) …(2)
तब, समीकरण (1) व (2) से,
ar (ADX) = ar (ACY)
Proved.

प्रश्न 14.
दी गई आकृति में AP || BQ || CR है। सिद्ध कीजिए कि ar (AQC) = ar (PBR) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-22
हल :
दिया है : दी गई आकृति में AP || BQ है और BQ || CR है। रेखाखण्ड AQ, CQ, BP और BR खींचे गए हैं।
सिद्ध करना है : ar (AQC) = ar (PBR)
उपपत्ति : AP || BQ;
∆ABQ और ∆PBQ का आधार BQ उभयनिष्ठ है और ये दोनों समान्तर रेखाओं AP व B के बीच स्थित हैं।
ar (ABQ) = ar (PBQ) …(1)
इसी प्रकार,
∆BCQ और ∆BQR का उभयनिष्ठ आधार BQ है तथा ये दोनों समान्तर रेखाओं BQ व CR के बीच स्थित हैं।
ar (BCQ) = ar (BQR) …..(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (ABQ) + ar (BCQ) = ar (PBQ) + ar (BQR)
या ar (AQC)= ar (PBR)
Proved.

प्रश्न 15.
चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु O पर इस प्रकार प्रतिच्छेद करते हैं कि ar (AOD) = ar (BOC) है। सिद्ध कीजिए कि ABCD एक समलम्ब है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-23
हल :
दिया है : ABCD में विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु 0 पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करते हैं और ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल।
सिद्ध करना है : ABCD एक समलम्ब है।
उत्पत्ति: ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल (दिया है)
दोनों ओर समान क्षेत्रफल ∆DOC जोड़ने पर,
∆AOD का क्षेत्रफल + ∆DOC को क्षेत्रफल = ∆DOC का क्षेत्रफल + ∆BOC का क्षेत्रफल
(∆AOD + ∆DOC) का क्षेत्रफल = (∆DOC + ∆BOC) का क्षेत्रफल
∆ADC का क्षेत्रफल = ∆BDC का क्षेत्रफल
उक्त दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार DC है और दोनों का क्षेत्रफल समान है।
तबे, दोनों एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित होंगे।
AB || DC
अतः ABCD एक समलम्ब है।
Proved.

प्रश्न 16.
दी गई आकृति में, ar (DRC) = ar (DPC) है और ar (BDP) = ar (ARC) है। दर्शाइए कि दोनों चतुर्भुज ABCD और DCPR समलम्ब हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-24
हल :
दिया है : दी गई आकृति में ∆DRC, ∆DPC, ∆BPD और ∆ARC इस प्रकार हैं कि
ar (DRC) = ar (DPC) और ar (BDP) = ar (ARC)
सिद्ध करना है : चतुर्भुज ABCD और चतुर्भुज DCPR समलम्ब हैं।
उपपत्ति : ∆DRC और ∆DPC में ज्ञात है कि ar (DRC) = ar (DPC) और दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार DC है।
∆DRC और ∆DPC एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
DC || RP …(1)
अतः चतुर्भुज DCPR एक समलम्ब है।
ar (BDP) = ar (ARC)
ar (BDC) + ar (DPC) = ar (DRC) + ar (ADC)
परन्तु ar (DPC) = ar (DRC) (दिया है)
घटाने पर, ar (BDC) = ar (ADC)
∆BDC और ∆ADC के क्षेत्रफल बराबर हैं और उनका उभयनिष्ठ आधार DC है।
तब ∆BDC और ∆ADC एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
AB || DC …(2)
अतः चतुर्भुज ABCD का एक समलम्ब है। तब चतुर्भुज ABCD और चतुर्भुज DCPR दोनों ही समलम्ब हैं।
Proved.

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प्रश्नावली 9.4 (ऐच्दिक)

प्रश्न 1.
समान्तर चतुर्भुज ABCD और आयत ABEF एक ही आधार पर स्थित हैं और उनके क्षेत्रफल बराबर हैं। दर्शाइए कि समान्तर चतुर्भुज का परिमाप आयत के परिमाप से अधिक है।
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हल :
दिया है : समान्तर चतुर्भुज ABCD का आधार AB तथा इसी आधार AB पर ही समान क्षेत्रफल का आयत ABEF स्थित है।
सिद्ध करना है : समान्तर चतुर्भुज ABCD का परिमाप > आयत ABEF’ का परिमाप
उपपत्ति: ∆ADF में,
∠F = 90° (आयत का अन्त:कोण)
AF ⊥ EF
AF < AD (AD कर्ण है) …(1)
इसी प्रकार A BCE में,
∠E = 90° (आयत का बहिष्कोण = 90°)
BE ⊥ CD
BE < BC ( BC कर्ण है) …(2)
(AF + BE) < (AD + BC).
समीकरण (1) व (2) से
AB = EF (ABEF आयत है।)
AB = DC (ABCD समान्तर चतुर्भुज है।)
AB = EF = DC
दोनों ओर क्रमश: (AB + EF) और (AB + CD) जोड़ने पर,
AB + BE + EF + AF < AB + BC + CD + DA अतः समान्तर चतुर्भुज का परिमाप > आयत का परिमाप
Proved.

प्रश्न 2.
दी गई आकृति में, भुजा BC पर दो बिन्दु D और E इस प्रकार स्थित हैं। कि BD = DE = EC है। दर्शाइए कि ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC) है।
क्या आप अब उस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं, जो आपने इस अध्याय की ‘भूमिका’ में छोड़ दिया था कि क्या बुधिया का खेत वास्तव में बराबर क्षेत्रफलों वाले तीन भागों में विभाजित हो गया है?
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हल :
दिया है : भुजा BC पर D और E दो बिन्दु इस प्रकार स्थित हैं कि BD = DE = EC है।
सिद्ध करना है : ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC)
रचना : शीर्ष से BC पर शीर्षलम्ब AP खींचा।
उपपत्ति : BD = DE = EC
तीनों त्रिभुजों के आधार समान हैं। यह भी स्पष्ट है कि तीनों त्रिभुजों की एक ही ऊँचाई AP है। तब तीनों त्रिभुजों के क्षेत्रफल भी समान होंगे।
अतः ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC)
किसी त्रिभुज के आधार को n समान भागों में विभक्त कर सम्मुख शीर्ष से मिलाने पर त्रिभुज समान n भागों में विभक्त हो जाता है।
अत: किसान बुधिया द्वारा विभाजित किया गया क्षेत्र (खेत) वास्तव में बराबर क्षेत्रफलों वाले तीन भागों में विभाजित हो गया था।
Proved.

प्रश्न 3.
दी गई आकृति में, ABCD, DCFE और ABFE समान्तर चतुर्भुज हैं। दर्शाइए कि ar (ADE) = ar (BCF) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-28
हल :
दिया है : दी गई आकृति में चतुर्भुज ABCD, चतुर्भुज DCFE और चतुर्भुज ABFE समान्तर चतुर्भुज हैं।
सिद्ध करना है : ar (ADE) = ar (BCF)
उपपत्ति: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AD = BC
DCFE एक समान्तर चतुर्भुज है। DE = CF
ABFE एक समान्तर चतुर्भुज है। AE = BF
अब ∆ADE तथा ∆BCF में,
AD = BC (ऊपर सिद्ध किया है)
DE = CF (ऊपर सिद्ध किया है)
AE = BF (ऊपर सिद्ध किया है)
तब त्रिभुजों की सर्वांगसमता के परीक्षण (S.S.S.) से,
∆ADE = ∆BCF
ar (∆ADE) = ar (∆BCF)
Proved.

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प्रश्न 4.
दी गई आकृति में, ABCD, एक समान्तर चतुर्भुज है। BC को बिन्दु २ तक इस प्रकार बढ़ाया गया है कि AD = CQ है। यदि AQ भुजा DC को P पर प्रतिच्छेद करती है। तो दर्शाइए कि
ar (BPC) = ar (DPQ) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-29
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-30
हल :
दिया है: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है। BC को बिन्दु 9 तक इस प्रकार बढ़ाया D८ गया है कि AD = CQ। रेखाखण्ड AQ को मिलाया गया है जो DC को बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करता है।
सिद्ध करना है : ar (BPC) = ar (DPQ)
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AD = BC और दिया है कि AD = CQ
BC = CQ अर्थात C, BQ का मध्य-बिन्दु है।
PC, ∆PBQ की माध्यिका है।
ar (∆BPC) = ar (∆PCQ)
AD = CQ और AD || CQ (AD || BC)
ADQC एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके विकर्ण AQ तथा CD हैं।
P, CD का मध्य-बिन्दु है या PQ, ∆DQC की माध्यिका है।
ar (DPR) = ar (PCQ)
तब समीकरण (1) व (2) से,
ar (BPC) = ar (DPQ)
Proved.

प्रश्न 5.
दी गई आकृति में, ABC और BDE दो समबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि D भुजा BC का मध्य-बिन्दु है। यदि AE भुजा BC को F पर प्रतिच्छेद करती है तो दर्शाइए कि
(i) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(ii) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (BAE)
(iii) ar (ABC) = 2 ar (BEC)
(iv) ar (BFE) = ar (AFD)
(v) ar (BFE) = 2 ar (FED)
(vi) ar (FED) = [latex]\frac { 1 }{ 8 }[/latex] ar (AFC)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-31
हल :
दिया है : दी गई आकृति ∆ABC और ∆BDE दो समबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि D भुजा BC का मध्य-बिन्दु है। रेखाखण्ड AE, खींचा गया है जो BC को F पर प्रतिच्छेद करता है। सिद्ध करना है :
(i) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(ii) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (BAE)
(iii) ar (ABC) = 2 ar (BEC)
(iv) ar (BFE) = ar (AFD)
(v) ar (BFE) = 2 ar (FED)
(vi) ar (FED) = [latex]\frac { 1 }{ 8 }[/latex] ar (AFC)
रचना : रेखाखण्ड EC और AD खींचे।
उपपत्ति (i) D, BC का मध्य-बिन्दु है।
BD = DC
BD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
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प्रश्न 6.
चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करते हैं। दर्शाइए कि ar (APB) x ar (CPD) = ar (APD) x ar (BPC) है।
हल :
दिया है : ABCD के विकर्ण AC और BD हैं जो परस्पर बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करते हैं।
सिद्ध करना है: ar (APB) x ar (CPD) = ar (APD) x ar (BPC)
रचना : A तथा C से BD पर क्रमशः AM व CN लम्ब खींचे।
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प्रश्न 7.
P और Q क्रमशः त्रिभुज ABC की भुजाओं AB और BC के मध्य-बिन्दु हैं तथा रेखाखण्ड AP का मध्य-बिन्दु है। दर्शाइए कि :
(i) ar (PRQ) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ARC)
(ii) ar (RQC) = [latex]\frac { 3 }{ 8 }[/latex] ar (ABC)
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प्रश्न 8.
दी गई आकृति में, ABC एक समकोण त्रिभुज है जिसका कोण A समकोण है। BCED, ACFG और ABMN क्रमशः भुजाओं BC, CA और AB पर बने वर्ग हैं। रेखाखण्ड AX ⊥ DE भुजा BC को बिन्दु Y पर मिलता है। दर्शाइए कि :
(i) ∆MBC = ∆ABD
(ii) ar (BYXD) = 2 ar (MBC)
(iii) ar (BYXD) = ar (ABMN)
(iv) ∆FCB = ∆ACE
(v) ar (CYXE) = 2 ar (FCB)
(vi) ar (CYXE) = ar (ACFG)
(vii) ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG)
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हल :
दिया है : ∆ABC में ∠A समकोण है। त्रिभुज की भुजाओं AB, AC तथा BC पर क्रमश: ABMN, ACFG और BCED वर्ग बने हैं। रेखाखण्ड AX वर्ग BCED की भुजा DE पर लम्ब है, जो BC से Y पर मिलता है।
सिद्ध करना है :
(i) ∆MBC = ∆ABD
(ii) ar (BYXD) = 2 ar (MBC)
(iii) ar (BYXD) = ar (ABMN)
(iv) ∆FCB = ∆ACE
(v) ar (CYXE) = 2 ar (FCB)
(vi) ar (CYXE) = ar (ACFG)
(vii) ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG)
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We hope the UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार (balanced food) से आप क्या समझती हैं? विस्तृत स्पष्टीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्राणीमात्र के जीवित रहने के लिए वायु के बाद सर्वाधिक आवश्यक वस्तु भोजन या आहार है। आहार का हमारे जीवन में बहुपक्षीय महत्त्व है। आहार की आवश्यकता एक नैसर्गिक आवश्यकता है; जिसको आभास भूख लगने से होता है। सामान्य रूप से समझा जाता है कि आहार का केवल यही एक कार्य है। वास्तव में इसके अतिरिक्त भी अन्य विभिन्न कार्य आहार द्वारा सम्पन्न होते हैं। स्वास्थ्य विज्ञान एवं आहार-शास्त्र के (UPBoardSolutions.com) विस्तृत अध्ययनों के परिणामस्वरूप निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि आहार के सभी कार्यों को पूरा करने के लिए तथा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आहार को सन्तुलित (balanced) होना चाहिए।

सन्तुलित आहार का अर्थ
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जिस आहार द्वारा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाएँ, वह आहार सन्तुलित आहार है।” अब प्रश्न उठता है कि शरीर को आहार की आवश्यकता क्यों और किसलिए होती है? वास्तव में शरीर की वृद्धि, तन्तुओं के निर्माण तथा टूट-फूट की मरम्मत आदि शारीरिक कार्यों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करने तथा रोगों से बचने के लिए हमें आहार की आवश्यकता होती है। अतः जो आहार इन सब आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा करता है, वह आहार सन्तुलित आहार (balanced food) कहलाता है। शरीर-विज्ञान के अनुसार हमारे आहार में कार्बोज़, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। इन्हें आहार का अनिवार्य तत्त्व कहा जाता है। सन्तुलित आहार में आहार के ये अनिवार्य तत्त्व पर्याप्त मात्रा एवं सही अनुपात में होते हैं।

सन्तुलित आहार सम्बन्धी स्पष्टीकरण

सन्तुलित आहार का अर्थ जानने के उपरान्त इसके विषय में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जैसे कि-क्या भरपेट आहार ही सन्तुलित आहार है? क्या सन्तुलित आहार काफी महँगा होता है? क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित होता है? क्या ऊर्जादायक एवं वृद्धिकारक आहार ही सन्तुलित होता है? इन प्रश्नों का समुचित स्पष्टीकरण निम्नवर्णित है ।

(1) क्या भरपेट आहार सन्तुलित आहार है?
सामान्य रूप से गरीब देशों में लोगों के सामने भरपेट आहार प्राप्त करने की विकट समस्या रहा करती है। ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति को भरपेट आहार मिल जाए, तो वह सन्तुष्ट हो जाएगा तथा भ्रमवश अपने आहार को सन्तुलित आहार समझने लगेगा, परन्तु वास्तव में यह अनिवार्य नहीं है कि भरपेट या मात्रा में अधिक आहार सन्तुलित भी हो। यदि आहार में अनिवार्य तत्त्व, उचित मात्रा तथा उचित अनुपात में नहीं होते, (UPBoardSolutions.com) तो कितनी भी अधिक मात्रा में आहार ग्रहण कर लेने से आहार सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता; ऐसा आहार पेट भर सकता है अर्थात् भूख को शान्त कर सकता है, परन्तु अनिवार्य रूप से स्वास्थ्यवर्द्धक एवं शक्तिदायक नहीं हो सकता; उदाहरण के लिए–पर्याप्त मात्रा में चावल तथा मीट खा लेने से पेट तो भर जाएगा, परन्तु शरीर की अन्य आवश्यकताएँ जैसे कि विटामिन, लवण आदि का तो अभाव बना ही रहेगा। साथ ही यह भी सम्भव है कि शरीर में विभिन्न रोग पैदा हो जाए। सन्तुलित आहार सदैव स्वास्थ्यवर्द्धक तथा शरीर को नीरोग रखने में सहायक होता है।

(2) क्या महँगा आहार सन्तुलित आहार है?
भ्रमवश अनेक लोग महँगे एवं दुर्लभ आहार को अच्छा, सन्तुलित एवं उपयोगी आहार मान लेते हैं। परन्तु वास्तव में आहार की कीमत तथा उसके गुणों और उपयोगिता में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। महँगे से महँगा आहार भी असन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें आहार के अनिवार्य तत्त्व सही मात्रा एवं अनुपात में न हों। इसके विपरीत सस्ते से सस्ता आहार भी सन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें सभी आवश्यक तत्त्व अभीष्ट मात्रा में उपस्थित हों; उदाहरण के लिए—हमारे देश में मेवे एवं मीट महँगे खाद्य-पदार्थ हैं, परन्तु यदि हमारे आहार में केवल इन्हीं पदार्थों को ही ग्रहण किया जाए और शाक-सब्जियों, ताजे फलों, अनाज, दूध आदि की (UPBoardSolutions.com) अवहेलना की जाए, तो हमारा आहार अधिक महँगा होने पर भी सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं आ सकता। इस तथ्य को जान लेने के उपरान्त यह समझ लेना चाहिए कि कम आय एवं सीमित आर्थिक साधनों वाले व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकते हैं। सन्तुलित आहार प्राप्त करने के लिए सन्तुलित आहार के अनिवार्य तत्त्वों एवं उसके संगठन को जानना आवश्यक है, न कि अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता है। गरीब व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकता है।

(3) क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित आहार है?
आहार का एक उद्देश्य विभिन्न वस्तुओं का स्वाद ग्रहण करके आनन्द प्राप्त करना भी है। कुछ खाद्य-पदार्थ अपने आप में काफी स्वादिष्ट एवं रुचिकर होते हैं। कुछ व्यक्ति इन स्वादिष्ट पदार्थों को अधिक-से-अधिक मात्रा में खाना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति भ्रमवश स्वादिष्ट आहार को ही सन्तुलित आहार मान सकते हैं, परन्तु यह धारणा बिल्कुल गलत है। यह उचित है कि हमारे आहार को स्वादिष्ट भी होना चाहिए, परन्तु स्वादिष्ट (UPBoardSolutions.com) आहार तथा सन्तुलित आहार में कोई प्रत्यक्ष एवं अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। स्वादिष्ट आहार के लिए अनिवार्य रूप से सन्तुलित होना आवश्यक नहीं तथा इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं है कि सन्तुलित आहार अस्वादिष्ट ही हो; उदाहरण के लिए—कुछ लड़कियों को चटपटे तथा मसालेदार व्यंजन बहुत रुचिकर प्रतीत होते हैं, परन्तु इन व्यंजनों को सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।

(4) क्या वृद्धिकारक आहार सन्तुलित आहार है?
शारीरिक वृद्धि के लिए भी आहार ग्रहण किया जाता है। हमारे आहार में कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं। जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते हैं, परन्तु शरीर की वृद्धि करने वाले आहार को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते, यदि उसमें अन्य आवश्यक तत्त्वों की कमी या अभाव हो। ऐसे आहार को ग्रहण करने से व्यक्ति के शरीर की तो वृद्धि हो जाती है, परन्तु शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति तथा चुस्ती एवं (UPBoardSolutions.com) मानसिक-शक्ति का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता तथा व्यक्ति विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है; उदाहरण के लिए केवल प्रोटीनयुक्त खाद्य-सामग्री को ही ग्रहण करने से हमारा शरीर सुचारु रूप से न तो विकसित हो सकता है और न ही कार्य कर सकता है; अतः हम कह सकते हैं कि शारीरिक वृद्धिकारक आहार अपने आप में सन्तुलित आहार नहीं होता। सन्तुलित आहार शरीर की वृद्धि के साथ-साथं अन्य सभी आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सहायक होता है।

(5) क्या ऊर्जादायक आहार सन्तुलित आहार है?
हम ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अर्थात् शारीरिक परिश्रम करने के लिए आवश्यक शक्ति प्राप्त करने हेतु भी आहार ग्रहण करते हैं। कुछ खाद्य-पदार्थ शरीर को भरपूर ऊर्जा प्रदान करते हैं, परन्तु इन ऊर्जा प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते। वास्तव में ऊर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य भी आहार द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे कि रोगों से लड़ने की क्षमता, शरीर की वृद्धि तथा चुस्ती आदि प्राप्त करना। ये सब बातें ऊर्जादायक आहार से पूरी नहीं हो सकतीं।

स्पष्टीकरण पर आधारित निष्कर्ष
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि सन्तुलित आहार की धारणा वास्तव में बहुपक्षीय धारणा है। सन्तुलित आहार से विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है। वास्तव में उसी आहार को सन्तुलित आहार कहा जाएगा, जिससे व्यक्ति की आहार या आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ। सन्तुलित आहार की मात्रा पर्याप्त होती है, जिससे कि हमारी भूख शान्त हो जाती है। सन्तुलित आहार ऊर्जादायक होती है, (UPBoardSolutions.com) ताकि हम पर्याप्त शारीरिक परिश्रम कर सकें तथा हमें थकान या कमजोरी महसूस न हो। सन्तुलित आहार शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है तथा इससे शरीर की कोशिकाओं में होने नरन्तर टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है। सन्तुलित आहार हमारे शरीर को सम्भावित रोगों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा व्यक्ति में समुचित उत्साह एवं उल्लास बनाए रखता है। इन सबके अतिरिक्त सन्तुलित आहार शरीर में कुछ अतिरिक्त शक्ति . भी संचित करता है जो कि आपातकाल में काम आती है। सन्तुलित आहार ग्रहण करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ एवं नीरोग रहता

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प्रश्न 2:
सन्तुलित आहार के निर्धारक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हम जानते हैं कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है। सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक निम्नवर्णित हैं

(1) आयु:
भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का आहार सन्तुलित आहार माना जाता है। बच्चों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार में वृद्धिकारक पोषक तत्वों का अनुपात अधिक होता है। प्रौढ़ व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तथा रख-रखाव में सहायक पोषक तत्वों की अधिकता होनी चाहिए। वृद्ध व्यक्तियों के आहार में सुपाच्य तत्त्वों को प्राथमिकता दी जाती है।

(2) लिंग भेद:
स्त्री तथा पुरुष के आहार में भी अन्तर होता है। पुरुषों को सामान्य रूप से शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है; अतः इनके आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार गर्भावस्था तथा स्तनपान के काल में स्त्रियों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार सामान्य से भिन्न होता है।

(3) शारीरिक आकार:
सन्तुलित आहार का निर्धारण करते समय व्यक्ति के शारीरिक आकार को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। बड़े आकार वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार सामान्य से कम वजन वाले व्यक्ति को वृद्धिकारक पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है।

(4) जलवायु:
सन्तुलित आहार के निर्धारण में जलवायु का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। ठण्डी जलवायु में गर्म जलवायु की तुलना में अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। ठण्डी जलवायु में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इससे भिन्न गर्म जलवायु में पसीना अधिक आने के कारण आहार में खनिज लवणों एवं जल की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए, क्योंकि पसीने के माध्यम से खनिज लवणों तथा जल का अधिक विसर्जन हो जाता है।

(5) शारीरिक श्रम:
सन्तुलित आहार का एक निर्धारक कारक शारीरिक श्रम भी है। अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इस वर्ग के व्यक्तियों के आहार में कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इससे भिन्न कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की कम मात्रा का ही समावेश होना चाहिए।

प्रश्न 3:
कुपोषण से आप क्या समझती हैं? इससे बचने के उपाय बताइए। या कुपोषण का क्या अर्थ है? कुपोषण का क्या कारण है एवं स्वास्थ्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुपोषण-आहार में सभी अनिवार्य तत्त्व सम्मिलित होने पर भी यदि स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट हो रही हो तो इसे दोषपूर्ण पोषण अथवा कुपोषण कहते हैं। अतः कुपोषण का अर्थ है आहार का (UPBoardSolutions.com) दोषपूर्ण उपभोग। उदाहरण के लिए-अरुचिपूर्ण आहार चाहे जितना भी पौष्टिक हो, पर्याप्त लाभकारी नहीं होता। इसी प्रकार अनिच्छापूर्वक व अनियमित रूप से आहार का उपयोग करना लाभप्रद न होकर अस्वस्थता को जन्म दे सकती है। कुपोषण को ठीक प्रकार से समझने के लिए सम्बन्धित कारणों को जानना आवश्यक है।

कुपोषण के कारण

कुपोषण की पृष्ठभूमि में अज्ञानता एवं लापरवाही से आहार के उपभोग करने का महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसे निम्नलिखित कारणों का अध्ययन कर भली प्रकार समझा जा सकता है

(1) कार्य की अधिकता:
अनेक बार हम कार्य अधिक करते हैं, परन्तु आहार कम मात्रा में लेते हैं। जिसके फलस्वरूप आहार के पर्याप्त पौष्टिक होने पर भी शरीर में धीरे-धीरे दुर्बलता आने लगती है।

(2) निद्रा में कमी:
उपयुक्त समय तक न सो पाने पर मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की थकान रहती है। इस प्रकार के व्यक्ति प्रायः कुपोषण से प्रभावित रहते हैं।

(3) अस्वस्थता:
पाचन-क्रिया ठीक न रहने पर अथवा क्षयरोग से ग्रस्त व्यक्ति कुपोषण का शिकार रहते हैं। इसी प्रकार शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों पर सन्तुलित आहार का स्वास्थ्यवर्द्धक, प्रभाव नहीं पड़ती। पेट में कीड़े होने की दशा में भी व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है।

(4) घर एवं कार्यस्थल पर उपेक्षा:
घर अथवा कार्य करने के स्थान पर उपेक्षित व्यक्ति मानसिक . हीनता का शिकार रहता है। इस स्थिति में भी कुपोषण के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

(5) अनुपयुक्त एवं अनियमित आहार:
आयु, लिंग एवं व्यवसाय की दृष्टि से उपयुक्त आहार उपलब्ध न होने से तथा निश्चित समय पर आहार न करने से पोषण दोषपूर्ण हो जाता है।

(6) गरिष्ठ आहार:
अधिक तला हुआ अथवा कब्ज़ उत्पन्न करने वाला आहार शरीर को वांछित शक्ति प्रदान नहीं करती।

कुपोषण के लक्षण (प्रभाव)
कुपोषण के फलस्वरूप शरीर में निम्नलिखित लक्षण (प्रभाव) दिखाई पड़ सकते हैं

  1.  आहार से अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
  2.  शारीरिक भार घट जाता है।
  3.  स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा निद्रा कम आती है।
  4.  हर समय थकान अनुभव होती है।
  5.  चेहरा पीला हो जाता है तथा रक्त की कमी हो जाती है।
  6. शरीर पर चर्बी के अभाव में त्वचा में झुर्रियाँ पड़ जाती हैं।
  7.  पाचन-क्रिया में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
  8.  मनुष्य हीनता से ग्रसित हो जाता है।

कुपोषण से बचने के उपाय

कुपोषण से बचने के लिए पोषण के दोषपूर्ण तरीकों को दूर करने के उपायों पर विचार करना आवश्यक है। कुपोषण का विलोम शब्द है ‘सुपोषण’ अर्थात् अच्छा पोषण आहार के विभिन्न पोषक तत्त्वों, का उपयुक्त मात्रा में शरीर को उपलब्ध होना तथा उनका सही पाचन सुपोषण कहलाता है। सुपोषण के सामान्य नियमों का पालन करना ही कुपोषण से बचने का एकमात्र विकल्प है। सुपोषण के सामान्य नियमों का विवरण निम्नलिखित है

(1) ताजा एवं सुपाच्य आहार:
सदैव ताजा आहार ही उपयोग में लाना चाहिए, क्योंकि रखे हुए आहार में प्रायः जीवाणुओं एवं फफूद के पनपने की सम्भावना रहती है। आहार पौष्टिक तत्त्वों से युक्त होने के साथ-साथ सुपाच्य भी होना चाहिए। सुपाच्य आहार सरलता से शोषित होकर शरीर को
आवश्यक शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करता है।

(2) परोसने की कला:
आहार उपयुक्त स्थान पर स्वच्छ बर्तनों में परोसना चाहिए; इससे आहार ग्रहण करने वालों में आहार के प्रति आकर्षण एवं रुचि उत्पन्न होती है।

(3) पदार्थों एवं रंगों में परिवर्तन:
विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों (मांस, मछली, दाल, तरकारी आदि) को बदल-बदल कर उपयोग करने से शरीर को आहार के सभी तत्त्व वांछित अनुपात में उपलब्ध होते रहते हैं। रंग-बिरंगे भोज्य पदार्थ अच्छे लगने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं। जैसे–सफेद भोज्य पदार्थों में प्राय: कार्बोहाइड्रेट्स, भूरे रंग के पदार्थों में प्रोटीन तथा पीले, नारंगी, लाल व हरे पदार्थो । में विटामिन व खनिज लवण पाए जाते हैं।

(4) आहार को नियमित समय:
प्रात:कालीन नाश्ता, दोपहर का आहार तथा रात्रि का आहार इत्यादि यथासम्भव नियमित रूप से निर्धारित समय पर करना चाहिए। ऐसा करने से आहार स्वादिष्ट लगता है तथा पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

(5) जल की मात्रा:
आहार के साथ अधिक जल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इसमें आहार अधिक पतला हो जाने के कारण पाचन क्रिया कुप्रभावित होती है।

(6) आहार पकाने की विधि:
आहार पकाते समय सही विधियों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक पकाने अथवा ठीक प्रकार से न पकाने से आहार के पौष्टिक तत्त्वों के नष्ट होने की सम्भावना रहती है।
आवश्यकता से अधिक मसालों का प्रयोग पाचन क्रिया को क्षीण करता है।

(7) यथायोग्य आहार:
आहार देते समय लेने वालों की आयु, लिंग व व्यवसाय का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक पौष्टिक आहार मिलना चाहिए।

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प्रश्न 4:
मानसिक कार्य करने वाले तथा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार में क्या अन्तर होगा? स्पष्ट कीजिए।
या
एक विद्यार्थी, मजदूर तथा एक छोटे बच्चे के आहार में आप किन बातों का विशेष ध्यान रखेंगी?
उत्तर:

बच्चों का आहार:
बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि तीव्र गति से होती है; अत: बच्चों को सदैव अधिक प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। बच्चों के आहार में दूध की मात्रा अधिक होनी चाहिए।

विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अपेक्षाकृत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है; अत: इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स व वसा की मात्रा कम होनी चाहिए। प्रोटीन, विटामिन एवं लवणयुक्त आहार इनके लिए सर्वोत्तम रहता है।

परिश्रमी एवं मजदूर वर्ग के व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अधिक श्रम करने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा भूख भी अधिक लगती है। इन्हें अधिक आहार मिलना चाहिए तथा इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स (विशेषतः शक्कर) तथा वसा की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
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प्रश्न 5:
दोपहर के आहार की योजना बनाते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? एक वयस्क पुरुष के दोपहर के आहार की तालिका बनाइए जिसमें पोषण की दृष्टि से सभी तत्त्व उपस्थित हों।
या
एक वयस्क व्यक्ति की आहार तालिका बनाइए।
उत्तर:
दोपहर के आहार हेतु ध्यान देने योग्य बातें

हमारे देश में दोपहर का आहार मुख्य आहार होता है; अत: दोपहर का आहार तैयार करते समय प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

(1) पौष्टिक तत्त्व युक्त आहार:
आहार में सभी आवश्यक तत्त्वों का समावेश होना चाहिए। उदाहरण के लिए—कार्बोहाइड्रेट्स के लिए कोई अनाज, प्रोटीन के लिए कोई एक दाल या अण्डा-मीट खनिज व विटामिन के लिए हरी सब्जी तथा वसा के लिए दही अथवा मक्खन इत्यादि।

(2) रुचिपूर्ण आहार:
आहार खाने वाले की रुचि के अनुसार होना चाहिए, जैसे कि चपाती खाने वाले के लिए चपातियाँ तथा चावल खाने वाले के लिए दाल-भात इत्यादि।

(3) आयु एवं व्यवसाय:
दोपहर के आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले पदार्थों की इतनी मात्रा होनी चाहिए कि व्यक्ति दिनभर बिना दुर्बलता अनुभव किए कार्य कर सके। इसके लिए सम्बन्धित व्यक्ति की आयु एवं उसके व्यवसाय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए-वयस्कों को अधेड़ पुरुषों की अपेक्षा (UPBoardSolutions.com) अधिक आहार की आवश्यकता होती है तथा श्रमिक वर्ग के मनुष्यों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक आहार मिलना चाहिए।

(4) भोज्य पदार्थों का परिवर्तन:
दालों व सब्जियों में परिवर्तन करे, चपातियों के स्थान पर चावल तथा दही के स्थान पर रायता प्रयोग कर दोपहर के आहार को रुचिकर बनाना चाहिए। इस प्रकार के परिवर्तन से आहार के पोषक तत्त्व कम नहीं होते तथा सम्बन्धित व्यक्ति को खाने में मन लगता है।

(5) आर्थिक दृष्टिकोण:
यह आवश्यक नहीं है कि महँगा आहार ही पौष्टिक होता है। गृहिणी को चाहिए कि अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही आहार की तैयारी करे। उदाहरण के लिए-वसा में घी, दूध के स्थान पर वनस्पति तेल व घी तथा विटामिन के लिए छाछ व हरी पत्तेदार सब्जियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
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प्रश्न 6:
दैनिक आहार को पौष्टिक एवं सस्ता बनाने का प्रबन्ध करने में एक कुशल गृहिणी का क्या योगदान है? इस पर विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए।
या
आहार को सन्तुलित बनाने के लिए गृहिणी को किन-किन खाद्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर:
सन्तुलित आहार के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री–सन्तुलित आहार में आहार के सभी आवश्यक तत्त्व उपयुक्त मात्रा में सम्मिलित होते हैं; अत: प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है

  1.  आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत।
  2. यदि किसी और किन्हीं तत्त्वों के स्रोत मौसम, अधिक मूल्य अथवा किसी स्थान विशेष के ” कारणं सहज ही उपलब्ध नहीं हैं, तो उन तत्त्वों के वैकल्पिक स्रोतों की जानकारी होना।

आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत

(1) कार्बोहाइड्रेट्स:
अनाज (गेहूँ, चावल आदि), आलू, शकरकन्द, दालें, गुड़, चीनी, मीठे फल, मेवे इत्यादि में विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है।

(2) प्रोटीन:
प्रोटीन प्रायः प्राणियों (प्राणिजन्य प्रोटीन) से तथा वनस्पतियों (वनस्पतिजन्य प्रोटीन) से प्राप्त होती है। इसके प्रमुख स्रोत हैं-अण्डा, मांस, मछली, दूध, दही, पनीर तथा दालें। सोयाबीन में सर्वाधिक (43%) प्रोटीन पाई जाती है।

(3) वसा:
इसके सामान्य स्रोत हैं—घी, दूध, मक्खन, मलाई, अण्डा, मांस, मछली, वनस्पति तेल व घी आदि।

(4) विटामिन:
ये हमें दूध, दही, अण्डा, मांस, मछली, अनाज, फलों व हरी सब्जियों से प्राप्त होते हैं।

(5) खनिज लवण:
इन्हें हम अण्डा, मछली, मेवे, दूध, सब्जी व फलों से प्राप्त कर सकते हैं।

सन्तुलित आहार तैयार करना

उपर्युक्त वर्णित खाद्य सामग्रियों को उपयोग कर एवं निम्नलिखित सामान्य नियमों का पालन कर सन्तुलित आहार तैयार किया जा सकता है|

  1. भिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए भिन्न प्रकार का सन्तुलित आहार होता है। उदाहरण के लिए–बच्चों में वृद्धि एवं विकास अधिक होता है; अतः इनके आहार में प्रोटीन व विटामिनयुक्त खाद्य सामग्री अधिक होनी चाहिए। इसी प्रकार वयस्क पुरुषों के आहार में परिश्रम अधिक करने के कारण ऊर्जायुक्त खाद्य सामग्री का आधिक्य होना चाहिए।
  2.  लम्बे व शक्तिशाली व्यक्ति को अधिक तथा पतले व छोटे व्यक्ति को कम आहार की आवश्यकता होती है।
  3.  स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है।
  4. कार्य एवं व्यवसाय का सन्तुलित आहार पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मजदूर वर्ग के पुरुषों को अधिक ऊर्जायुक्त तथा विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिनयुक्त आहार चाहिए।
  5.  शाकाहारी व्यक्तियों को दालें, दूध व दूध से बने पदार्थों की अधिक आवश्यकता होती है, जबकि मांसाहारी व्यक्ति प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति मांस, मछली व अण्डों से कर सकते हैं।
    इस प्रकार उपर्युक्त नियमों का पालन कर एक सुगृहिणी विभिन्न खाद्य सामग्रियों द्वारा सहज ही सन्तुलित आहार तैयार कर सकती है।

पौष्टिक एवं सस्ता दैनिक सन्तुलित आहार: आहार के आवश्यक तत्त्वों के स्रोत कई बार बड़े महँगे होते हैं। निम्नांकित सारणी का अध्ययन कर आहार को सस्ता एवं पौष्टिक बनाया जा सकता है
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प्रश्न 7:
‘आहार की तालिका’या’ मीनू’ बनाने का क्या महत्त्व है? मीनू बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? सविस्तार समझाइए।
या
सन्तुलित आहार-तालिका बनाते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आहार की तालिका बनाने के लाभ-एक समझदार गृहिणी प्रायः आहार की दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक तालिकाएँ बनाती है; क्योंकि

  1.  उसे पारिवारिक आय के अनुसार उपयुक्त आहार योजना बनाने में सुविधा रहती है।
  2.  महँगी भोज्य सामग्री की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री की जानकारी रहती है।
  3.  आहार संरक्षण के ज्ञान का उपयोग कर वह फसल के समय सस्ते भोज्य पदार्थों; जैसे अनाज व दालें आदि को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रख पाती है।
  4. वह सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार आहार उपलब्ध करा पाती है।
  5. वह सहज ही लगभग सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने में सफल रहती है।

मीनू बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें–प्रश्न 5 का उत्तर देखें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार तथा पर्याप्त आहार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सन्तुलित आहार’ तथा ‘पर्याप्त आहार’ दो भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। इनमें स्पष्ट अन्तर है। पर्याप्त आहार से आशय है आहार का मात्रा में पर्याप्त होना अर्थात् इतना आहार उपलब्ध होना, जिससे व्यक्ति का पेट भर जाए तथा भूख मिट जाए। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि ‘पर्याप्त आहार (UPBoardSolutions.com) अनिवार्य रूप से ‘सन्तुलित आहार नहीं होता। इससे भिन्न ‘सन्तुलित आहार’ की धारणा में इसके गुणात्मक पक्ष की प्रधानता होती है। सन्तुलित आहार मात्रा में पर्याप्त होने के साथ-साथ आहार सम्बन्धी सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला भी होता है; उसमें आहार के सभी पोषक तत्त्व उचित मात्रा एवं अनुपात में विद्यमान होते हैं।

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प्रश्न 2:
स्पष्ट कीजिए कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है।
उत्तर:
आहार एवं पोषण विज्ञान की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को ‘सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए। ‘सन्तुलित आहार’ की अवधारणा का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि सन्तुलित आहार अपने आप में सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का एवं भिन्न-भिन्न मात्रा का आहार सन्तुलित आहार होता है। भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा एवं अनुपात में आहार ही सन्तुलित आहार कहलाती है। जो आहार एक बच्चे के लिए सन्तुलित होता है, वह एक युवक (UPBoardSolutions.com) के लिए सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता। इसी प्रकार खेत अथवा कोयले की खान में दिन भर शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिक तथा मेज-कुर्सी पर बैठकर पुस्तक लिखने वाले बुद्धिजीवी लेखक का सन्तुलित आहार एकसमान नहीं हो सकता। स्पष्ट है कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है तथा इसका निर्धारण व्यक्ति के सन्दर्भ में विभिन्न कारकों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।

प्रश्न 3:
बहुप्रयोजन आहार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शरीर को स्वस्थ, क्रियाशील, निरोग एवं चुस्त रखने के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। पौष्टिक आहार सभी प्रकार के पोषक तत्वों से युक्त होता है। इस प्रकार के आहार के लिए अनेक शोध कार्य किए गए, जिनके परिणामस्वरूप सभी प्रकार के पोषक तत्त्वों से युक्त तथा सस्ता आहार तैयार किया जा सका। इस आहार को बहुप्रयोजन आहार कहते हैं।
बहुप्रयोजन आहार बनाने की विधि-तिलहनों का तेल निकाल लेने के बाद बचा पदार्थ खली कहलाता है। इसमें अनेक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। हमारे देश में बहुप्रयोजन आहार बनाने के लिए मुख्य रूप से सोयाबीन व मूंगफली की खली प्रयोग में लाई जाती है। इसमें चने का आटा तथा कुछ खनिज लवण व विटामिन मिलाए जाते हैं।
बहुप्रयोजन आहार का महत्त्व-यह बच्चों के लिए, गर्भवती तथा शिशु को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है। इसमें आहार के सामान्य रूप से अनिवार्य सभी तत्त्व समुचित मात्रा में पाए जाते हैं। बच्चों के लिए इसकी दैनिक आवश्यकता लगभग 30 ग्राम तथा बड़ों के लिए 60 ग्राम होती है।

प्रश्न 4:
आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
आहार योजना बनाते समय परिवार की आय को ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने का प्रयास किया जाता है। सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार गृहिणी दैनिक एवं साप्ताहिक मीनू बनाती है। आहार योजना बनाने के लिए गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होनी चाहिए

  1.  बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों का मूल्य।
  2. उत्तम भोज्यं सामग्री उचित मूल्य पर मिलने का स्थान।
  3.  महँगी भोज्य सामग्री के गुणों की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री।
  4. भोज्य पदार्थों को पकाने की उचित विधि।
  5. आहार संरक्षण का ज्ञान जिससे कि भोज्य सामग्री को नष्ट होने से बचाया जा सके।

प्रश्न 5:
18 वर्ष केशाकाहारी लड़के अथवा लड़की के लिए रात्रि आहार की तालिका बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 6:
प्रमुख भोज्य पदार्थों से हमें कितनी ऊर्जा मिलती है?
उत्तर:
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा प्रमुख भोज्य पदार्थ हैं जो कि हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं। इनकी एक ग्राम मात्रा शरीर में जाने के पश्चात् निम्न प्रकार से ऊर्जा उत्पन्न करती है

प्रोटीन                             4.1 कैलोरी
कार्बोहाइड्रेट                   4.1 कैलोरी
वसा                                9.0 कैलोरी

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प्रश्न 7:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार
कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार image - 1

प्रश्न 8:
बड़ों की अपेक्षा बच्चों को अधिक आहार की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बढ़ते हुए बच्चों को प्रति किलोभार के अनुसार सभी तत्त्वों की आवश्यकता होती है। 5 वर्ष की आयु के पश्चात् कैलोरी की आवश्यकता घट जाती है। अत: बच्चों को बड़ों की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाला आहार देना आवश्यक है। इसका प्रमुख कारण उनके शरीर को होने वाला विकास है। (UPBoardSolutions.com) बाद में एक निश्चित समय के बाद शरीर की इस प्रकार की वृद्धि समाप्त हो जाती है। इसलिए बड़ों को केवल टूट-फूट व कार्य शक्ति प्राप्त करने के लिए आहार की आवश्यकता होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है।

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प्रश्न 2:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक हैं—आयु, लिंग-भेद, शरीर का आकार, शारीरिक श्रम तथा जलवायु।।

प्रश्न 3:
क्या सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार बिल्कुल समान होता है ?
उत्तर:
सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार समान नहीं होता। यह सापेक्ष होता है। अर्थात् भिन्न-भिन्न श्रम एवं प्रकृति वाले व्यक्तियों का सन्तुलित आहार भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 4:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर में किन पोषक तत्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
उत्तर:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर वृद्धिकारक तथा ऊर्जादायक तत्त्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

प्रश्न 5:
आहार से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की इकाई क्या है?
उत्तर:
आहार से प्राप्त ऊर्जा की इकाई कैलोरी है।

प्रश्न 6:
सामान्य स्थिति में स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है। क्यों?
उत्तर:
इसके प्रमुख कारण हैं

  1.  अपेक्षाकृत कम लम्बाई,
  2.  कम शारीरिक भार,
  3. हल्का कार्य।

प्रश्न 7:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम, फॉस्फोरस व लोहे की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम 2.02 ग्राम, फॉस्फोरस 1.47 ग्राम तथा लोहा 30 से 40 मिलीग्राम तक होना चाहिए।

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प्रश्न 8:
कुपोषण के कोई दो कारक बताइए।
उत्तर:
(1) कार्य की अधिकता,
(2) अनियमित आहार।

प्रश्न 9:
शाकाहारी व्यक्तियों के लिए प्रोटीन प्राप्ति के कोई तीन स्रोत बताइए।
उत्तर:
(1) दूध,
(2) दालें,
(3) सोयाबीन।

प्रश्न 10:
विटामिन ‘ए’ एवंडी’ के लिए सरलता से उपलब्ध होने वाला स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11:
हरी पत्तेदार सब्जियों की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
हरी पत्तेदार सब्जियाँ रोगों से बचाने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 12:
प्रौढ़ावस्था में आहार ग्रहण करने का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
प्रौढ़ावस्था में मुख्य रूप से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तथा शरीर के रख-रखाव के लिए आहार ग्रहण किया जाता है।

प्रश्न 13:
एक वृद्ध व्यक्ति की अपेक्षा एक युवक के आहार में क्या अन्तर होना चाहिए?
उत्तर:
एक युवक को एक वृद्ध की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाले आहार की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 14:
गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक आहार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
सर्दियों में शरीर को उचित ताप पर बनाए रखने के लिए अधिक आहार की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 15:
हरी सब्जियाँ क्यों आहार का मुख्य अंग मानी जाती हैं?
उत्तर:
हरी सब्जियाँ रक्षात्मक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आती हैं; क्योंकि इनमें आवश्यक खनिज लवण एवं विटामिन पाए जाते हैं।

प्रश्न 16:
कॉफी के प्रयोग से क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
यह कार्बोज के पाचन में बाधा उत्पन्न करती है, हृदय की धड़कनें बढ़ाना, नींद में कमी तथा स्नायु-तन्त्र में विकार इनकी अन्य हानियाँ हैं।

प्रश्न 17:
अंकुरित मूंग में कौन-सा विटामिन पाया जाता है?
उत्तर:
अंकुरित मूंग में विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।

प्रश्न 18:
प्रोटीन प्राप्त करने के लिए कुछ प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:
प्रोटीन, दूध, दही, मांस, मछली, अण्डा, दालें व सोयाबीन आदि से प्राप्त किया जा सकता

प्रश्न 19:
मक्खन में आहार का कौन-सा तत्त्व होता है?
उत्तर:
मक्खन में प्रमुखतः वसा, विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ होते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। सही उत्तर का चयन कीजिए

(1) भोज्य पदार्थों को परिवर्तन कर प्रयोग करने से आहार में
(क) पौष्टिक तत्त्वों की कमी हो जाती है,
(ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(ग) कोई लाभ नहीं होता है,
(घ) व्यवस्था में कठिनाई होती है।

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(2) सन्तुलित आहार में उपयुक्त मात्रा में होते हैं
(क) विटामिन वे खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) कार्बोज व वसा,
(घ) ये सभी।

(3) आहार की उपयोगिता अधिक निर्भर करती है उसके
(क) पौष्टिकता के गुण पर ,
(ख) स्वादिष्ट होने पर,
(ग) पचने पर,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(4) शाकाहारी स्त्री के आहार में मात्रा बढ़ा देनी चाहिए
(क) मांस की,
(ख) अण्डों की,
(ग) अनाज की,
(घ) दूध की।

(5) कुपोषण से बचने का उपाय है
(क) सन्तुलित आहार,
(ख) पर्याप्त आहार,
(ग) मांसाहारी आहार,
(घ) शाकाहारी आहार।

(6) 9-12 माह के शिशु को ऊर्जा चाहिए
(क) 1000 कैलोरी,
(ख) 1400 कैलोरी,
(ग) 1500 कैलोरी,
(घ) 1600 कैलोरी।.

(7) हल्का काम करने वाले व्यक्ति को कितनी कैलोरी की आवश्यकता है?
(क) 3000,
(ख) 2500,
(ग) 3500,
(घ) 2200।

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(8) किसी भी भोज्य पदार्थ से प्राप्त ऊर्जा को नापने की इकाई है
(क) ग्राम,
(ख) औंस,
(ग) डिग्री,
(घ) कैलोरी।

(9) विटामिन ‘डी’ की प्राप्ति का स्रोत है
(क) फल एवं सब्जियाँ,
(ख) हवा एवं पानी,
(ग) सूर्य का प्रकाश,
(घ) ये सभी।

(10) दूध में प्रोटीन किस रूप में होती है?
(क) केसिन,
(ख) ब्लूटिन,
(ग) मायोसिन,
(घ) एल्ब्यूमिन।

(11) शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य है
(क) विटामिन को निर्माण,
(ख) जीवद्रव्य का संगठन,
(ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(12) दालों में सबसे अधिक मिलता है
(क) खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) ग्लूकोस,
(घ) इनमें से कोई नहीं।.

(13) सलाद में पाया जाता है
(क) कार्बोहाइड्रेट्स,
(ख) खनिज लवण,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।

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(14) श्रमिक के आहार में अधिक मात्रा होनी चाहिए
(क) फल एवं सब्जियों की,
(ख) दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थों की,
(ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की,
(घ) मादक पदार्थों की।

उत्तर:
(1) (ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(2) (घ) ये सभी,
(3) (ग) पचने पर,
(4) (घ) दूध की,
(5) (क) सन्तुलित आहार,
(6) (क) 1000 कैलोरी,
(7) (ख) 2500,
(8) (घ) कैलोरी,
(9) (ग) सूर्य का प्रकाश,
(10) (क) केसिन,
(11) (ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(12) (ख) प्रोटीन,
(13) (ख) खनिज लवण,
(14) (ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की।

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