UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 गणतन्त्रदिवसः (गद्य – भारती)

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name गणतन्त्रदिवसः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7  गणतन्त्रदिवसः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

‘गणतन्त्र’ से आशय- हमारे देश में प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र महोत्सव मनाया जाता है। सन् 1950 ई० में इसी दिन हमारा देश ‘गणतन्त्र घोषित हुआ था। इसी दिन से भारतीय संविधान देश में लागू हुआ और उसके अनुसार देश का शासन चलाया जाने लगा। इसी दिन,हमें ज्ञात हुआ कि देश की प्रभुसत्ता जनता में निहित है और जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। जनतन्त्र का यह सार्वभौम सिद्धान्त भी इसी दिन चरितार्थ हुआ। यही ‘गणतन्त्र’ का तात्पर्य है।

महत्त्व-26-  जनवरी का दिन राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सन् •1930 ई० में 26 जनवरी को ही राष्ट्रीय नेताओं ने पंजाब में रावी नदी के तट पर ‘कॉग्रेस के महाधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की थी। तब से यह दिन स्वतन्त्रता-दिवस के रूप में मनाया जाने (UPBoardSolutions.com) लगा था, किन्तु सन् 1947 ई० में भारत के स्वतन्त्र होने पर 15 अगस्त का दिन स्वतन्त्रता-दिवस के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इससे 26 जनवरी का महत्त्व किसी तरह कम नहीं हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने 26 जनवरी, 1950 ई० को भारतीय संविधान लागू करके इसके महत्त्व की रक्षा की। इस प्रकार स्वतन्त्रता की पूर्णरूपेण पुष्टि इसी दिन हुई।

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मनाने का ढंग– यह महोत्सव प्रतिवर्ष सम्पूर्ण देश में अत्यधिक हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। इस दिन भवनों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है और जन-सभाएँ की जाती हैं। विद्यालयों में बालक-बालिकाएँ राष्ट्रगीत गाते हैं, कविता-पाठ और भाषण प्रतियोगिताएँ होती हैं। छोटे-छोटे बच्चे झण्डियाँ लेकर सड़कों पर राष्ट्रगीत गाते हुए और मातृभूमि की जय बोलते हुए प्रभात-फेरियाँ निकालते हैं। इसे देखकर राष्ट्र के लिए आत्म-समर्पण करने वाले राष्ट्र-प्रेमियों की याद तरोताजा हो जाती है।

दिल्ली में मनाने का ढंग- यद्यपि यह महोत्सव प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक नगर में, विद्यालय में और कार्यालय में मनाया जाता है, फिर भी मुख्य उत्सव देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले के मैदान में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन दिल्ली नववधू के समान सजायी जाती है।

निश्चित समय पर राष्ट्रपति सुसज्जित बग्घी में चढ़कर आते हैं। उनके अंगरक्षक विशिष्ट वेशभूषा में उनके आगे-आगे चलते हैं। राष्ट्रपति लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय (UPBoardSolutions.com) ध्वज फहराते हैं और उपस्थित नर-नारी जयघोष करते हुए हर्ष व्यक्त करते हैं। पंक्ति बनाये बालक-बालिकाएँ राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं। इसके बाद स्थल सेना, जल सेना और नभ सेना के जवान अभिनन्दन करते हैं।

इस अवसर पर आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों और सामरिक वाहनों का प्रदर्शन किया जाता है। आंकाश में उड़ते हुए वायुयान क्षणभर में कभी तिरछे होकर, कभी ऊपर, कभी नीचे आकर अपना उड्डयन-कौशल दिखाते हैं और पुष्प वर्षा करके राष्ट्र का अभिनन्दन करते हैं। | यह उत्सव किसी धर्म, जाति अथवा सम्प्रदाय का नहीं है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति के लिए किये गये त्याग और बलिदान का स्मारक है। यह हमें परस्पर प्रेम, सहिष्णुता और सर्वप्रथम समभाव से रहने की प्रेरणा देता है।

राष्ट्रीयता का पोषक-यह महोत्सव हममें राष्ट्रीय भावना जाग्रत करता है। भूमि, जन और संस्कृति–राष्ट्र के इन तीन तत्त्वों का तादात्म्य ही राष्ट्रीयता है। भारतभूमि पर जन्म लेकर उसके अन्न और वायु से हम जीवित रहते हैं। वह हमारी माता के समान पालन-पोषण करती है; अंतः भारतभूमि (UPBoardSolutions.com) हमारी माता और हम उसके पुत्र हैं। भारतभूमि के हम सब निवासी आपस में भाई हैं। वर्ण, जाति, भाषा, धर्म आदि स्थान का भेद होते हुए भी हम भारतमाता के ही पुत्र हैं; अतः हम सभी को मातृभूमि की सेवा में तत्पर होना चाहिए-गणतन्त्र दिवस हमें इसी की याद दिलाता है।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) प्रतिवर्ष जनवरीमासस्य षड्विंशे दिनाङ्केऽस्माकं देशे गणतन्त्रोत्सवः आयोजितो भवति। एतस्मिन्नेव दिनाङ्के पञ्चाशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे (1950) देशोऽयमस्माकं गणतन्त्रो जातः। अस्मिन्नैव दिनाङ्केऽस्माभिर्निर्मितं संविधानं व्यवहारे आगतम्। एतस्माद्दिनादेवास्य देशस्य शासनं स्वनिर्मितेन विधानेन सञ्चाल्यमानमभूत्। राष्ट्रस्य प्रभुत्वशक्तिः जनेषु निहितेति संविधान प्रतिपादितः सिद्धान्तः तद्दिन एव प्रतिफलितः। जननिर्वाचिताः प्रतिनिधयो जनताम्प्रत्येवोत्तरदायिन इति जनतन्त्रस्य सार्वभौमः सिद्धान्तः तद्दिन एवं चरितार्थो जातः। अयमेव गणतन्त्रस्याशयोऽस्ति।

शाब्दार्थ-
षड्विंशे दिनाङ्के = छब्बीसवें दिन।
आयोजितो भवति = मनाया जाता है।
जातः = बना।
व्यवहारे आगतम् = व्यवहार में आया।
सञ्चाल्यमानम् = संचालित होने वाला।
प्रभुत्वशक्तिः = प्रभुसत्ता की शक्ति।
निहिता = स्थित है।
प्रतिपादितः = स्वीकार किया, विवेचित किया।
प्रतिफलितः = कार्यान्वित किया।
निर्वाचिताः = चुने गये।
उत्तरदायिनः = उत्तरदायी।
सार्वभौमः = सारे संसार का।
चरितार्थः = सफल।
आशयः अस्ति = अभिप्राय है।

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘गणतन्त्रदिवसः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गणतन्त्र का आशय स्पष्ट किया गया है।

अनुवाद
प्रतिवर्ष जनवरी महीने की 26 तारीख को हमारे देश में गणतन्त्र का उत्सव मनाया जाता है। सन् 1950 ईसवी में इसी दिन हमारा यह देश गणतन्त्र हुआ था। इसी तारीख को हमारे द्वारा बनाया गया संविधान व्यवहार में आया था। इसी दिन से इस देश का शासन अपने द्वारा निर्मित कानून से चलाया गया। (UPBoardSolutions.com) राष्ट्र की प्रभुत्वशक्ति जनता में निहित है, यह संविधान के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त रस दिन ही प्रतिफलित हुआ था। जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति ही उत्तरदायी होते हैं। जनतन्त्र का यह सार्वभौम सिद्धान्त उसी दिन चरितार्थ (लागू) हुआ था। यही गणतन्त्र का आशय है।

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(2) जनवरीमासस्य षड्विंशदिनाङ्के भारतस्य राष्ट्रियान्दोलनस्यैतिहासिको दिवसो वर्तते। त्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमेऽस्मिन्नेव दिनाङ्के श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य नेतृत्वे पञ्चनदप्रदेशे रावीनद्यस्तटे सम्पन्ने भारतीयराष्ट्रियकॉङ्ग्रेसमहाधिवेशने पूर्णस्वराज्यस्य सङ्कल्पो गृहीतोऽस्मन्नेतृवर्गौः। तत आरभ्य प्रतिवर्षमेष दिवसः स्वतन्त्रतादिवस इति नाम्ना समग्रे देशे समायोजितो भवति। सप्तचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे अगस्तमासस्य पञ्चदशदिनाङ्के भारतं स्वातन्त्र्यमलभत्। (UPBoardSolutions.com) अतोऽगस्तमासस्य पञ्चदशदिनाङ्के एव स्वतन्त्रतादिवसरूपेण ख्यातोऽभूत्। जनवरीमासस्य षड्विंशदिनाङ्कस्य महिमा न हीयेत इति राष्ट्रियनेतार नेतृभिः एतस्मिन् दिनाङ्के स्वनिर्मितं संविधानं प्रयुज्य तस्य महत्त्वं संरक्षितं किञ्च ततोऽप्यधिकं महत्त्वं तस्मै तैः प्रदत्तम्।

शब्दार्थ-
आन्दोलनस्य = आन्दोलन का।
ऐतिहासिको दिवसो = इतिहास से सम्बद्ध महत्त्व वाला दिन।
पञ्चनदप्रदेशे = पंजाब प्रदेश में सम्पन्ने = पूर्ण हुए।
सङ्कल्पः = निश्चित प्रतिज्ञा।
समायोजितो भवति = मनाया जाता है।
अलभत्= प्राप्त किया।
ख्यातः = प्रसिद्ध।
हीयते = कम होती है।
प्रयुज्य = प्रयोग करके, लागू करके।
प्रदत्तं = प्रदान किया गया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि 26 जनवरी के महत्त्व को बनाये रखने के लिए इस दिन स्वनिर्मित संविधान को लागू किया गया।

अनुवाद
जनवरी महीने की 26 तारीख भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का ऐतिहासिक दिन (तारीख) है। सन् 1930 ई० में इसी तारीख को श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के नेतृत्व में पंजाब में रावी नदी के किनारे पर हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महाधिवेशन में हमारे नेताओं ने पूर्ण स्वराज्य की प्रतिज्ञा की थी। तब से लेकर प्रतिवर्ष यह दिन स्वतन्त्रता दिवस (के), इस नाम से सारे देश में मनाया जाता रहा। सन् 1947 ईसवी में (UPBoardSolutions.com) अगस्त महीने की 15 तारीख को भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त की थी; अतः अगस्त महीने की 15 तारीख ही स्वतन्त्रता दिवस के रूप में प्रसिद्ध हुई। जनवरी महीने की 26 तारीख की महिमा कम न हो जाये, इसलिए राष्ट्रीय नेताओं ने इस तिथि को अपने द्वारा निर्मित संविधान को प्रयोग कर (लागू करके) उसके महत्त्व की उन्होंने रक्षा की और क्या, उन्होंने उसे (26 जनवरी को) उससे (15 अगस्त से) अधिक महत्त्व प्रदान किया।

(3) महोत्सवोऽयं महोल्लासेन समग्रे च देशे जनैः प्रतिवर्षमायोज्यते। पूर्वाह्नत्रिवर्णोऽस्माकं राष्ट्रध्वजो भवनेषु समुच्छुितो भवति, जनसभाश्च विधीयन्ते। तासु सभासु राष्ट्रं प्रति कर्त्तव्यं बोधयन्ति विशिष्टाः जनाः नेतारो विद्वांसश्च। विद्यालयेषु बालकाः बालिकाश्चानेकराष्ट्रियकार्यक्रमान् सोत्साहं सोल्लासं च सम्पादयन्ति, राष्ट्रियगीतानि गायन्ति, कवितापाठं कुर्वन्ति, भाषणप्रतियोगितासु सम्मिलिताः भवन्ति। प्रातः शिशुच्छात्राः (UPBoardSolutions.com) स्वप्रमाणानुरूपान् लघुलघून, ध्वजान् गृहीत्वा पङक्तिबद्धाः सन्तः वीथीषु राष्ट्रगीतं गायन्तः मातृभूमेः जयघोष कुर्वन्तः जनानुबोधयन्तः परिभ्रमन्ति। अदभुतं मनोहरं दृश्यमिदं जनमानसं बलादाकर्षदिवे राष्ट्रभावान् हदि-हृदि सञ्चारयत् स्मारयति तान् युवकान् महापुरुषान् यैः स्वतन्त्रतामाप्तुं, स्वातन्त्र्यान्दोलनाग्नौ स्वसुखं स्ववैभवं स्वप्राणा अपि सानन्दं सर्वं हुतम्।

शब्दार्थ-
महोल्लासेन (महा + उल्लासेन) = अत्यधिक प्रसन्नता से।
आयोज्यते = मनाया जाता है।
पूर्वाह्न = दिन के पूर्वभाग में।
समृच्छुितो भवति = फहराया जाता है।
विधीयन्ते = की जाती हैं।
बोधयन्ति = बताते हैं।
स्वप्रमाणानुरूपान् = अपने प्रमाण के अनुरूप।
लघु-लघून् = छोटे-छोटों को।
वीथीषु = गलियों में परिभ्रमन्ति = घूमते हैं।
बलादाकर्षदिव = बलपूर्वक आकर्षित करता हुआ।
हृदि-हृदि = प्रत्येक हृदय में।
स्मारयति = याद दिलाता है।
आप्तुम् = पाने के लिए।
आन्दोलनाग्नौ = आन्दोलन रूपी अग्नि में।
हुतम् = उत्सर्ग कर दिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में सम्पूर्ण देश में गणतन्त्र दिवस मनाये जाने की विधि का वर्णन किया। गया है।

अनुवाद
यह महान् उत्सव लोगों के द्वारा अत्यधिक उत्साह से सारे देश में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। सवेरे के समय हमारा तिरंगा झण्डा भवनों पर फहराया जाता है और जन-सभाएँ की जाती हैं। उन सभाओं में विशेष लोग, नेता और विद्वान राष्ट्र के प्रति कर्तव्य समझाते हैं। विद्यालयों में बालक और बालिकाएँ अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों को उत्साह और प्रसन्नता से सम्पन्न करते हैं। वे राष्ट्रीय गीत गाते हैं, कविता पाठ करते हैं, भाषण-प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होते हैं। सवेरे के समय छोटे बच्चे अपने (शरीर के) परिमाण के अनुसार छोटे-छोटे ध्वजों (UPBoardSolutions.com) को लेकर पंक्ति बनाकर रास्तों में राष्ट्रगीत गाते हुए, मातृभूमि की जय बोलते हुए लोगों को जाग्रत करते हुए घूमते हैं। यह अद्भुत मनोहर दृश्य लोगों के मनों को बलपूर्वक खींचता हुआ, हृदय-हृदय में राष्ट्रीय भावों का संचार करता हुआ, उन युवक महापुरुषों की याद दिलाता है, जिन्होंने स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए स्वतन्त्रता के आन्दोलन की आग में अपने समस्त सुख, वैभव और प्राणों को भी आनन्दपूर्वक होम कर दिया था।

(4) यद्यपि महोत्सवोऽयं ग्रामे-ग्रामे, नगरे-नगरे प्रतिविद्यालयं प्रतिकार्यालयं सर्वत्र समायोजिता भवति, तथापि मुख्योत्सवो देशस्य राजधान्यां दिल्लीनगरे स्थितस्य प्रख्यातस्य ‘लालकिलाख्यस्य’ महादुर्गस्य विशाले प्राङ्गणे महता समारम्भेण सम्पन्नो भवति। अमुं महोत्सव द्रष्टुं देशस्य सुदूराञ्चलेभ्यो जनास्तत्र समुपयान्ति। वैदेशिकाः तत्रोपस्थितास्तन्महोत्सवस्य भव्यं रूपमवलोक्य चकितास्तिष्ठन्ति। दिल्लीनगरी तद्दिने नवोढयुवतिरिव सज्जिताऽलङ्कृता च सुशोभते।।

शब्दार्थ-
प्रख्यातस्य = विख्यात।
समारम्भेण = तैयारी के साथ।
समुपयान्ति = आते हैं।
नवोढयुवतिरिव = नव-विवाहिता वधू के समान।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दिल्ली नगर में गणतन्त्र दिवस का उत्सव मनाये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यद्यपि यह महोत्सव गाँव-गाँव में, नगर-नगर में, प्रत्येक विद्यालय में, प्रत्येक कार्यालय में सभी जगह मनाया जाता है तो भी मुख्य उत्सवं देश की राजधानी दिल्ली नगरी में स्थित प्रसिद्ध ‘लालकिला’ नाम के बड़े किले के विशाल प्रांगण में बड़ी तैयारी के साथ सम्पन्न होता है। इस महोत्सव को देखने के लिए देश के दूर के स्थानों से लोग वहाँ आते हैं। वहाँ आये हुए विदेशी भी उस महोत्सव के भव्य रूप को देखकर चकित रह जाते हैं। दिल्ली नगरी उस दिन नव-विवाहिता वधू के समान सुसज्जित, अलंकृत और सुशोभित होती है।

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(5) सुनिश्चित कालेऽस्माकं राष्ट्रपतिः विभूषितमश्वयानमारुह्य महोत्सवस्थलं प्रयाति। अश्वारोहास्तस्याङ्गरक्षकाः प्रभावोत्पादकाः विशिष्टभूषाभूषिताः राष्ट्रपतेरश्वयानस्य पुरतोऽग्रेसरन्ति। राष्ट्रपतिः दुर्गप्राचीरं प्राप्तय राष्ट्रप्रतीकभूतं राष्ट्रध्वजं तत्र समुच्छ्यति। तां भव्य दिव्यां शोभां दर्श-दर्श (UPBoardSolutions.com) तत्र समवेताः नराः नार्यः बालाः वृद्धाश्च जयघोषं कुर्वन्तः स्वहृदयहर्ष व्यञ्जयन्ति। बालकाः बालिकाश्च पङ्क्तिबद्धाः पुरस्सरन्तः राष्ट्रपतये आनतिमर्पयन्ति। ततोऽस्माकं स्थल-सैनिकाः जनसैनिकाः नभस्सैनिकाश्च तं नमन्तोऽग्रेसरन्ति।

शब्दार्थ-
विभूषितम् अश्वयानम् आरुह्य = सजी हुई बग्घी पर चढ़कर।
प्रयाति = जाते हैं।
पुरतोओसरन्ति (पुरतः + अग्रेसरन्ति) = आगे बढ़ते हैं।
दुर्गप्राचीरं प्राप्य = किले की चहारदीवारी पर पहुँचकर समुच्छ्य ति = फहराता है।
समवेताः = इकड़े हुए।
व्यञ्जयन्ति = प्रकट करते हैं।
पुरस्सरन्तः = आगे बढ़ते हुए।
आनतिम् = नमस्कार।
नमन्तोऽग्रेसरन्ति = झुकते हुए आगे बढ़ते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में देश की राजधानी दिल्ली में गणतन्त्र दिवस मनाये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
निश्चित समय पर हमारे राष्ट्रपति सजी हुई बग्घी पर चढ़कर महोत्सव के स्थान पर जाते हैं। उनके घुड़सवार अंगरक्षक प्रभाव डालने वाली विशेष वर्दी पहने हुए राष्ट्रपति की बग्घी के सामने आगे चलते हैं। राष्ट्रपति दुर्ग की प्राचीर पर पहुँचकर वहाँ राष्ट्र के प्रतीकस्वरूप राष्ट्रध्वज को फहराते हैं। उस भव्य, दिव्य शोभा को देख-देखकर वहाँ एकत्रित हुए स्त्री-पुरुष, बालक और वृद्ध जय बोलते हुए अपने हृदय के हर्ष को (UPBoardSolutions.com) व्यक्त करते हैं। बालक और बालिकाएँ पंक्ति बनाकर आगे चलते हुए राष्ट्रपति को अभिवादन करते हैं। इसके बाद हमारे स्थल सैनिक, जल सैनिक और नभ सैनिक उन्हें नमस्कार करते हुए आगे चलते हैं।

(6) अस्मिन्नवसरे विशालानां विलक्षणानाञ्चात्याधुनिकास्त्रशस्त्राणां युद्धायुधानां सामरिकवाहनानाञ्च राष्ट्रपतेः पुरतः प्रदर्शनं क्रियते। आयुधयानानि यदा मन्थरंगत्या राष्ट्रपतिसमक्षमायान्ति तदानीमेव ध्वनितोऽप्यधिकवेगेन गगने क्षणमूर्ध्वं क्षणमधः क्षणं तिर्यग् उड्डीयमानानि वायुयानानि चेतश्चमत्कारकं स्वक्रियाकौशलं प्रदर्शयन्ति पुष्पवर्षाभिः राष्ट्रमभिनन्दन्ति देशरक्षाविधौ स्वसामर्थ्यञ्च साधु प्रकटयन्ति।

शब्दार्थ-
युद्धायुधानाम् = युद्ध के शस्त्रों का।
सामरिकवाहनानाम् = युद्ध के सामान को ढोने वाले।
पुरतः = सामने।
मन्थरगत्या = धीमी चाल से।
आयान्ति = आते हैं।
ऊर्ध्वम् = ऊपर।
तिर्यग् = तिरछे।
उड्डीयमानानि = उड़ते हुए।
चेतः चमत्कारकं = मन को चमत्कृत करने वाले।
साधु = अच्छी तरह।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दिल्ली नगर में आयोजित गणतन्त्र समारोह का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसी अवसर पर विशाल और विलक्षण आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का, युद्ध के आयुधों का और युद्ववाहनों का राष्ट्रपति के सामने प्रदर्शन किया जाता है। युद्धवाहने जब धीमी गति से राष्ट्रपति के सामने आते हैं, तभी ध्वनि से भी अधिक गति से आकाश में क्षणभर ऊपर, क्षणभर नीचे और (UPBoardSolutions.com) क्षणभर तिरछे उड़ते हुए वायुयान हृदय को चमत्कृत करने वाले अपने कौशल को दिखाते हैं, पुष्प-वर्षा से राष्ट्र का सम्मान करते हैं और देश की रक्षा-विधि में अपनी क्षमता को अच्छी तरह प्रकट करते हैं।

(7) महोत्सवोऽयं न कस्यचिद्धर्मस्य सम्प्रदायस्य वर्णस्य जातेर्वाऽस्ति। समग्रस्य राष्ट्रस्य रक्षायै राष्ट्रस्य संवर्धनाय च विहितस्य त्यागस्य बलिदानस्य संस्मारकोऽयमस्माकं राष्ट्रियोत्सवः प्रतिवर्ष परस्परं प्रेम्णां सहिष्णुतया सर्वधर्मसमभावतया स्थातुमस्मान् प्रेरयति।

शब्दार्थ
संवर्धनाय = बढ़ाने के लिए।
विहितस्य = किये गये।
संस्मारकः = स्मारक।
प्रेरयति = प्रेरित करती है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गणतन्त्र दिवस के उत्सव से मिलने वाली प्रेरणा का वर्णन किया गया हैं।

अनुवाद
यह महोत्सव किसी धर्म, सम्प्रदाय, वर्ण या जाति का नहीं है। सारे राष्ट्र की रक्षा के : लिए और राष्ट्र की प्रगति के लिए किये गये त्याग और बलिदान की याद कराने वाला हमारा यह राष्ट्रीय उत्सव प्रतिवर्ष आपस में प्रेम, सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव से रहने के लिए हमें प्रेरणा देता है।

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(8) राष्ट्रियमहोत्सवोऽयं राष्ट्रभावमस्मासु जागरयति। राष्ट्रभावो राष्ट्रं प्रति जनानां तादात्म्यभावः। भूमिः जनाः संस्कृतिरिति त्रयाणां समुच्चय एव राष्ट्रम्। राष्ट्रस्यैतानि त्रीणि तत्त्वानीत्यपि वक्तुं शक्यते। भारतभूमिः भारतीयजनाः भारतीयसंस्कृतिरितित्रयाणां तादात्म्यमेव भारतराष्ट्रमिति संज्ञेयम्। भारतभूमौ वयं जन्म लब्ध्वा निवसामः तदन्नेन, तज्जलेन, तद्वायुना च जीवामः विविधभोगोपयुक्तवस्तूनि सो (UPBoardSolutions.com) अस्मभ्यं प्रयच्छन्ती मातृवदस्मान् पालयति पुष्णाति वर्धयति च। अतएव सा भूमिः मातृभूमिरित्युच्यते। ‘माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ इति श्रुतिर्वदति। मातृभूमिं प्रति समादरं प्रदर्शयन् श्रीरामोऽपि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ इत्यवोचत्। मातुः मातृभूमेश्च महिमा केनं न स्वीक्रियते? |

शब्दार्थ-
जागरयति = जगाता है।
समुच्चय = समूह।
वक्तुं शक्यते = कहा जा सकता है।
तादात्म्यम् एव = मिश्रित रूप ही।
संज्ञेयम् = जानना चाहिए।
लब्ध्वा = पाकर। जीवायः = जीते हैं।
अस्मभ्यम् = हम सबके लिए।
प्रयच्छन्ती = देती हुई।
मातृवत् अस्मान् = माता के समान हमको।
पुष्णाति = पुष्ट करती है।
श्रुतिः वदति = वेद कहता है।
स्वर्गादपि = स्वर्ग से भी।
गरीयसी = अधिक श्रेष्ठ है।
स्वीक्रियता = स्वीकार करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश मे राष्ट्र के तत्त्व बताये गये हैं और जन-समुदाय को पृथ्वी का पुत्र बताया। गया है।

अनुवाद
यह राष्ट्रीय महोत्सव हममें राष्ट्रभावना जाग्रत करता है। लोगों का राष्ट्र के प्रति अपनापन ही राष्ट्रभावना है। भूमि, जन् और संस्कृति इन तीनों का समूह ही राष्ट्र है। ये राष्ट्र के तीन तत्त्व हैं, ऐसा कहा जाता सकता है। भारतभूमि, भारत के लोग और भारत की संस्कृति इन तीनों का मिश्रित रूप ही भारत राष्ट्र है, ऐसी जानना चाहिए। हम भारतभूमि पर जन्म लेकर रहते हैं, उसके अन्न से, उसके जल से और उसकी वायु से जीवित रहते हैं। अनेक प्रकार की भोग के योग्य वस्तुओं को वह .

हमें प्रदान करती हुई हमारा पालन करती है, पोषण करती है और बड़ा करती है। इसलिए उस भूमि को ‘मातृभूमि’ ऐसा कहा जाता है। ‘माता भूमि है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ’, ऐसा वेद कहते हैं। मातृभूमि के प्रति आदर दिखाते हुए श्रीराम ने भी ‘माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान् है’, ऐसा कहा था। माता। और मातृभूमि की महिमा को कौन स्वीकार नहीं करता है?

(9) मातृभूमौ जनाः निवसन्ति। सर्वे जना एकमातुः सन्ततयोऽतस्ते मिथो भ्रातरः सन्ति। एकमातृजेषु भ्रातृषु सहजः स्नेहो भवति। तेषु भवतु नाम वर्णभेद, भाषाभेदः, धर्मभेदः, क्षेत्रभेदो वापरं सर्वे ते भारतभूतनया एव। पुष्पोद्याने प्रस्फुटितानि विविधवणकारभूतानि यथा स्ववैविध्येनोद्यानस्य सुषमामेव वर्धयन्ति तथैवेते बाह्यभेदाः अस्माकं मातृभूमेः दिव्यस्वरूपं व्यञ्जयन्ति। यथा सर्वेषु वर्णाकारस्वरूपभेदेषु सत्सु भूमेः (UPBoardSolutions.com) प्राप्त एक एव रसः प्रवहति, तस्मिन् से न कश्चिद्भेदः तथैव सर्वेषु जनेषु बाह्यभेदेषु सत्सु भारतीय संस्कृतिः रसरूपेण प्रवहति। स एव । संस्कृतिरसोऽस्मान् मिथः एकसूत्रे प्रतिबध्नाति। अतः सर्वे वयं भारतीयाः भारतपुत्राः पुत्र्यश्च सततं स्वमातृसेवापरा भवेम इति गणतन्त्रमहोत्सवः प्रतिवर्षमस्मान् स्मारयति।

शब्दार्थ
सन्ततयः = सन्तान।
मिथः = आपस में।
एकमातृजातेषु = एक माता से जन्म लेने वालों में।
सहजः = स्वाभाविक।
भवतु नाम = भले ही हो।
वापरं (वा + अपरं) = अथवा अन्य।
भारतभूतनयाः = भारतभूमि में उत्पन्न हुए पुत्र।
प्रस्फुटितानि = खिले हुए।
स्ववैविध्येन = अपनी विविधता से।
उद्यानस्य = बगीचे की।
सुषमाम् = सुषमा को।
तथैवेते (तथा + एव + एते) = उसी प्रकार ये।
बाह्यभेदाः = बाहरी भेद।
व्यञ्जयन्ति = प्रकट करते हैं।
एकसूत्रे = एक सूत्र में।
प्रतिबध्नाति = बाँधती है।
संततम् = सदा, लगातार।
स्मारयति = याद दिलाता है। |

प्रसंग
भारत में रहने वाले लोगों में अनेक विविधताएँ होते हुए भी सभी एक हैं। हम सभी मातृभूमि के पुत्र हैं; अतः हमें मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए। प्रस्तुत गद्यांश में यही बताया गया है।

अनुवाद
मातृभूमि पर लोग रहते हैं। सब लोग एक ही माता की सन्तान हैं; अतः वे आपस में भाई हैं। एक माता से उत्पन्न हुए भाइयों में स्वाभाविक स्नेह होता है। उनमें भले ही वर्णभेद, भाषाभेद, धर्मभेद अथवा स्थान भेद हो, परन्तु वे सब भारतभूमि के पुत्र ही हैं। पुष्पों के उद्यान में खिले हुए अनेक रंगों और आकारों के होते हुए भी पुष्प अपनी विविधता से उद्यान की शोभा ही बढ़ाते हैं, उसी प्रकार (हमारे) बाहरी भेदभाव हमारी मातृभूमि के दिव्य (सुन्दर) स्वरूप को प्रकट करते हैं। जिस प्रकार रंग, आकार, स्वरूप का भेद होते हुए भी सभी (वनस्पतियों) (UPBoardSolutions.com) में भूमि से प्राप्त एक ही रस बहता है, उसमें (रस में) कोई भी अन्तर नहीं (होता), वैसे ही बाहरी भेदभाव होते हुए भी सभी (भारतीय) लोगों में भारतीय संस्कृति रस रूप में बहती है। वही संस्कृति रस हमें आपस में एक सूत्र में बाँधती है; अत: हम सभी. भारत के रहने वाले भारत के पुत्र और पुत्रियाँ निरन्तर अपनी माता की सेवा में लगे रहें। .. । गणतन्त्र महोत्सव प्रतिवर्ष हमें इसकी याद दिलाता है।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
गणतन्त्र दिवस के महत्त्व पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को ध्यानपूर्वक पढ़कर अपने शब्दों में लिखिए।]

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प्ररन 2
गणतन्त्र दिवस का आशय स्पष्ट करते हुए इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत ‘गणतन्त्र से आशय’ और ‘महत्त्व शीर्षकों की सामग्री को पढ़िए और अपने शब्दों में लिखिए।]

प्ररन 3
गणतन्त्र दिवस को लाल किले पर क्या कार्यक्रम होता है और राष्ट्रपति को किस प्रकार सलामी दी जाती है।
उत्तर
गणतन्त्र दिवस के दिन राष्ट्रपति निश्चित समय पर बग्घी में चढ़कर आते हैं और लाल किले की प्राचीन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। उपस्थित स्त्री-पुरुष जयघोष करते हुए हर्ष व्यक्त करते हैं। पंक्तिबद्ध बालक-बालिकाएँ राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं। इसके पश्चात् तीनों सेनाओं (जल, थल और नभ) के जवान राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु : शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु : शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु क्या है? इसमें सम्मिलित तत्त्वों का वर्णन कीजिए। शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए क्यों आवश्यक है?
या
वायु के प्राकृतिक संगठन का विस्तार से वर्णन कीजिए।शुद्ध वायु के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वायु से प्रत्येक व्यक्ति भली-भाँति परिचित है। भले ही वायु को हम देख नहीं सकते परन्तु प्रत्येक व्यक्ति वायु का अनुभव एवं सेवन करता रहता है। प्राणी-मात्र के जीवन का आधार वायु ही है। वायु के अभाव में किसी प्रकार के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अब प्रश्न उठता है कि वैज्ञानिक (UPBoardSolutions.com) दृष्टिकोण से वायु क्या है? वायु वास्तव में कुछ गैसों का मिश्रण है। गैसों का यह मिश्रण रंगहीन, स्वादहीन तथा गन्धहीन होता है। वायु में भार होता है तथा यह दबाव डालती है। वायु फैल सकती है तथा संकुचित हो सकती है। इसमें विसरण का गुण भी पाया जाता है। वायु हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक व्यापक क्षेत्र में हर समय रहती है। इस क्षेत्र को वायुमण्डल कहा जाता है।

वायू का संगठन

एक समय था जब वायु को एक तत्त्व समझा जाता था। उस समय वायु की गिनती पाँच मुख्य तत्त्वों में की जाती थी, परन्तु विभिन्न वैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप इस धारणा को बदलना पड़ा। वर्तमान ज्ञान के अनुसार वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण मात्र है। वायु में विद्यमान मुख्य गैसें हैं-ऑक्सीजन (UPBoardSolutions.com) तथा नाइट्रोजन। इन दो मुख्य गैसों के अतिरिक्त वायु में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, हाइड्रोजन, ऑर्गन तथा जलवाष्प भी विद्यमान रहती है। वायु में लगभग पाँचवा भाग ऑक्सीजन होता है। वायु में विद्यमान गैसों का संगठन निम्नवर्णित तालिका द्वारा स्पष्ट हो जाएगा।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु  शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन
वायु के इस संगठन को चित्र द्वारा भी दर्शाया गया है। वायु में विद्यमान विभिन्न गैसों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु  शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन
ऑक्सीजन:
वायु में ऑक्सीजन का आयतन लगभग 21% होता है। ऑक्सीजन जीवन के लिए . अति आवश्यक है। इसे प्राण-वायु भी कहते हैं। ऑक्सीजन प्रायः सभी जीवधारियों की श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक है। प्राणी हों अथवा पौधे, सभी श्वसन क्रिया के लिए ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन करते हैं। श्वसन क्रिया में नासिका द्वारा शुद्ध वायु हमारे फेफड़ों में पहुँचती है। फेफड़ों की रुधिर कोशिकाओं में ऑक्सीजन का अवशोषण होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायु में छोड़ दी जाती है ताकि बाह्य-श्वसन (UPBoardSolutions.com) द्वारा वायुमण्डल में मुक्त हो जाए। रुधिर द्वारा ऑक्सीजन विभिन्न ऊतकों एवं केशिकाओं में पहुँचती है। यहाँ यह खाद्य के ज्वलन अथवा ऑक्सीकरण में सहायता करती है। इस क्रिया में ऊर्जा उत्पन्न होती है जोकि हमारे शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं का मूल आधार है। इसके अतिरिक्त वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन अन्य ज्वलन क्रियाओं में भी सहायता करती है। कोयला, लकड़ी, तेल, कपड़ा, कागज आदि सभी पदार्थ ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही जलते हैं। इन क्रियाओं में ऑक्सीजन प्रयोग में आती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनती है। आग के धुएँ में प्राय: कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें होती हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड:
वायु में कार्बन डाइऑक्साइड का आयतन लगभग 0.03% होता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पौधों एवं प्राणियों की श्वसन क्रिया द्वारा तथा वस्तुओं के जलने के फलस्वरूप बढ़ती रहती है। अन्तः श्वसन (प्रश्वसित वायु) तथा बाह्य श्वसन (उच्छ्वसित वायु) क्रिया में वायु की प्रतिशत मात्रा में परिवर्तन निम्न प्रकार से होता है| इस प्रकार हम देखते हैं कि जैसे-जैसे वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है उसी अनुपात में ऑक्सीजन की मात्रा घटती है। यह स्थिति जीवधारियों के लिए घातक हो सकती है। (UPBoardSolutions.com) इससे बचाव करते हैं हरे पौधे। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश में कार्बन डाइऑक्साइड व जल को प्रयोग कर अपने भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड प्रयुक्त होती है तथा ऑक्सीजन बाहर निकलती है। इस प्रकार हरे पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा वायुमण्डल में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों की मात्रा में सन्तुलन बनाए रखते हैं।

नाइट्रोजन:
वायुमण्डल में इसकी मात्रा सर्वाधिक (लगभग 78.08%) होती है। प्रत्यक्ष रूप में यह गैस अधिक उपयोगी नहीं है। न तो यह गैस स्वयं जलती है और न ही वस्तुओं के जलने में सहायता करती है। अतः यह एक प्रकार से निष्क्रिय गैस है, परन्तु परोक्ष रूप से यह एक अति महत्त्वपूर्ण गैस है। यह (UPBoardSolutions.com) ऑक्सीजन की ऑक्सीकरण अथवा ज्वलनशील प्रक्रिया की तीव्रता पर अंकुश लगाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वायुमण्डल में यदि नाइट्रोजन न हो, तो ऑक्सीजन की उपस्थिति में संसार की सभी वस्तुएँ जलकर राख हो जाएँगी।

ओजोन:
यह अन्य गैसों (हाइड्रोजन, ऑर्गन, जलवाष्प आदि) के साथ मिलकर वायु का लगभग 0.94% भाग होती है। यह गैस सूर्य की हानिकारक किरणों का अधिकांश भाग सोखकर पृथ्वी तक नहीं पहुँचने देती है। यह फलों एवं सब्जियों को सड़ने से बचाती है। कुछ रोगों में भी यह लाभकारी पाई गई है। कुल मिलाकर यह गैस मानव जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हुई है।

जलवाष्प:
यह वायु को नम एवं ठण्डा बनाती है। वायुमण्डल में इसकी प्रतिशत मात्रा स्थान विशेष के तापक्रम पर निर्भर करती है। कम ताप पर इसकी मात्रा अधिक व अधिक ताप पर इसकी मात्रा कम होती है। इसकी वायुमण्डल में प्रतिशत मात्रा को आपेक्षिक आर्द्रता कहते हैं। अधिक आर्द्रता वातावरण को भारी व सीलनयुक्त बनाती है। ऐसा वातावरण (जैसे कि वर्षा ऋतु) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि (UPBoardSolutions.com) इसमें मक्खी, मच्छर व अनेक रोगाणु आसानी से पनपते हैं। समुद्रतल से ऊँचाई की ओर (जैसे कि ऊँची पर्वत-श्रृंखलाएँ) बढ़ने पर वायु की संरचना बदलने लगती है। अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा घट जाती है। यही कारण है कि ऊँचाई पर पहुँचकर साँस लेने में कठिनाई अनुभव होती है। उपर्युक्त गैसों के अतिरिक्त वायुमण्डल में धूल के कण, रेडियोधर्मी तत्त्वे व अनेक प्रकार के कीटाणु भी पाए जाते हैं।

शुद्ध वायु का महत्त्व

शुद्ध वायु संसार के सभी प्राणियों एवं पेड़-पौधों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। सभी जीवधारी शुद्ध वायु की उपस्थिति में ही जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण श्वसन क्रिया सम्पादित करते हैं। इसके अतिरिक्त भी शुद्ध वायु से अनेक लाभ हैं, जिनका विस्तृत विवरण अग्रलिखित है

मनुष्यों के लिए उपयोगिता

हमारे जीवन में शुद्ध वायु अनेक रूप में उपयोगी है; जैसे कि

(1) श्वसन क्रिया:
प्रश्वसन क्रिया में हम शुद्ध वायु को नासिका छिद्रों द्वारा फेफड़ों तक खींचते हैं। फेफड़ों में रक्त-केशिकाओं का जाल बिछा होता है। केशिकाओं में उपस्थित रक्त द्वारा वायु से (UPBoardSolutions.com) ऑक्सीजन का अवशोषण होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन होता है जो कि नि:घसन द्वारा वायुमण्डल में पहुँच जाती है। रक्त संचरण के द्वारा ऑक्सीजन विभिन्न कोशिकाओं तथा ऊतकों तक पहुँचती है तथा खाद्य के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा मुक्त करती है। यह मुक्त ऊर्जा मानव शरीर में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक है।

(2) शरीर के ताप को नियमन:
स्वस्थ शरीर का तापमान प्राय: 37° से० के लगभग होता है, जबकि कमरे का तापमान 15°-20° से० तक होता है। अत: कम तापमान वाली वायु जब शरीर को स्पर्श करती है, तो शरीर से कुछ गर्मी लेकर जाती है। इस प्रकार लगातार शरीर की गर्मी अथवा ऊष्मा कम होती रहती है। इसी प्रकार शरीर की त्वचा से पसीने का जब वाष्पीकरण होता है, तो भी शरीर के तापमान में कमी आती है।

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प्रश्न 2:
संवातन से क्या तात्पर्य है? प्राकृतिक साधनों पर आधारित संवातन के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवातन का अर्थ घर के वायुमण्डल में उत्पन्न हो जाने वाली गर्मी, नमी तथा स्थिरता को समाप्त अथवा कम कर देने की प्रक्रिया को संवातन कहते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत घर के कमरों से गर्म, नम व अशुद्ध स्थिर वायु का निष्कासन तथा शुद्ध, शुष्क व शीतल वायु का प्रवेश होता है। इस (UPBoardSolutions.com) प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी आवासीय स्थल से अशुद्ध वायु के निष्कासन तथा बाहर से शुद्ध वायु के आगमन की समुचित व्यवस्था ही संवातन है। संवातन के परिणामस्वरूप ही किसी आवासीय स्थल में निरन्तर शुद्ध वायु उपलब्ध होती रहती है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से संवातन की समुचित व्यवस्था अति आवश्यक है।

प्राकृतिक साधनों पर आधारित संवतन

प्रकृति ने हमारे वातावरण में संवतन की समुचित व्यवस्था की है। प्राकृतिक संवातन मुख्य रूप से वायुमण्डल में होने वाली चूषण, संनयन तथा विसरण नामक क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है। इन तीनों क्रियाओं का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है।

(1) चूषण–प्रायः
सभी गैसों का संवहन सिद्धान्त रूप से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर होता है। इसे चूषण क्रिया कहते हैं। फुटबॉल का उदाहरण देखें। हवा भरने वाले पम्प से दबाव के साथ फुटबॉल में हवा भरी जाती है। पूरी हवा भर जाने पर फुटबॉल के अन्दर वायु का दबाव वायुमण्डल में उपस्थित वायु के दबाव से अधिक हो जाता है। अब फुटबॉल का वाल्व ढीला करने पर इसके भीतर की वायु कम दबाव वाले वायुमण्डल (UPBoardSolutions.com) में तेजी से संवहन करती है और तब तक करती रहती है जब तक कि फुटबॉल के भीतर की वायु का दबाव वायुमण्डल के दबाव के समान नहीं हो जाता। इस सिद्धान्त का उपयोग घर की संवातन व्यवस्था में किया जाता है।

(2) संनयन-यह प्रक्रिया प्रायः
द्रव पदार्थों व गैसों में होती है। हल्के पदार्थों में यह प्रक्रिया तीव्र होती है। उदाहरण के लिए किसी द्रव पदार्थ को गर्म करने पर इसका प्रथम कण अथवा अणु गर्म होते ही फैलकर व हल्का होकर ऊपर की ओर प्रसारित हो जाता है तथा इसका स्थान अपेक्षाकृत ठण्डा कण ले लेता है। फिर यह भी गर्म होकर प्रसारित हो जाता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है। इसी सिद्धान्त के अनुसार गर्म होने पर कमरे की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है तथा इसके द्वारा रिक्त किए गए स्थान की पूर्ति शीतल वायु द्वारी (कमरे के बाहर से) होती है। इस प्रकार संनयन प्रक्रिया द्वारा कमरे में लगातार शीतल एवं शुद्ध वायु का प्रवेश होता रहता है।

(3) विसरण:
इस प्रक्रिया में पदार्थ अधिक सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान से कम सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान की ओर विसरित करते हैं; उदाहरणार्थ-एक सेण्ट अथवा इत्र की शीशी कमरे के एक कोने में खोलने पर धीरे-धीरे इत्र की सुगन्ध पूरे कमरे में फैल जाती है। इसी प्रकार एक गिलास पानी में स्याही की एक बूंद डालकर हिलाने पर पूरा पानी ही रंगीन हो जाता है। ठोस, द्रव तथा गैस तीनों ही प्रकार के पदार्थों में विसरण (UPBoardSolutions.com) की यह प्रक्रिया पाई जाती है। विसरण की प्रक्रिया संवातन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। कमरे की वायु नमी व बाह्य श्वसन की – कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण सान्द्र हो जाती है; अत: यह बाहर (कम सान्द्र वायु) की ओर विसरण करती है तथा कम सान्द्रता वाली शुद्ध व शीतल वायु कमरे में अन्दर की ओर विसरण करती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि कमरे के अन्दर व बाहर की वायु की सान्द्रता समान नहीं हो जाती।

संवातन की प्राकृतिक व्यवस्था के लिए उपयोगी उपाय

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए उपयुक्तं संवातन व्यवस्था का होना आवश्यक है।
अतः संवातन की उपयुक्त व्यवस्था के लिए निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाना विवेकपूर्ण है

(1) मकान की व्यवस्था:
नियोजित बस्तियों में आवास-गृहों का निर्माण परस्पर पर्याप्त दूरी पर होना चाहिए, एक-दूसरे से मिले हुए मकानों में वायु का प्रवेश स्वतन्त्र रूप से नहीं हो पाता, जबकि दूर-दूर बने मकानों में वायु का संवातन भली प्रकार से होता है।

(2) दरवाजे एवं खिड़कियाँ:
मकान में दरवाजे एवं खिड़कियाँ पर्याप्त संख्या में होनी आवश्यक हैं। कमरों में दरवाजों एवं खिड़कियों की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि जिससे वायु आमने-सामने
आर-पार सरलता से आ-जा सके।

(3) रोशनदान:
गर्म होने से वायु हल्की हो जाती है तथा ऊपर की ओर उठती है। अतः गर्म एवं अशुद्ध वायु के निष्कासन के लिए कमरे में रोशनदान का होना अनिवार्य है। रोशनदान का एक लाभ यह भी है कि सूर्य की किरणें इससे कमरे में प्रवेश पाकर हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करती रहती हैं।

(4) चिमनी:
यह प्राय: रसोई-गृह में निर्मित की जाती हैं। ईंधन के जलने से उत्पन्न धुआँ चिमनी द्वारा ही रसोई-गृह से निष्कासित होता है। इसका लाभ यह है कि गृहिणी न तो घुटन महसूस करती है। और न ही उसके नेत्रों पर धुएँ का कुप्रभाव पड़ता है। आधुनिक युग में धुआँ उत्पन्न करने वाले ईंधन का प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है तथा इसके स्थान पर कुकिंग गैस व विद्युत चूल्हों का उपयोग होने लगा है। अतः अब रसोई-गृह में चिमनी के निर्माण की आवश्यकता लगभग नगण्य हो गई है।

प्रश्न 3:
संवातन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कृत्रिम विधियों का वर्णन कीजिए।
या
सामान्य विद्युत पंखों, निर्वातक पंखों एवं वातानुकूलन संयन्त्रों का संवातन के लिए उपयोग किन-किन पद्धतियों के आधार पर किया जाता है?
उत्तर:
संवातन के प्राकृतिक साधनों के अनुसार मकान में कमरे पर्याप्त लम्बे, चौड़े व ऊँचे होने चाहिए तथा कमरों में पारगमन संवातन के लिए दरवाजे व खिड़कियाँ अधिक संख्या में तथा उपयुक्त स्थानों पर बनी होनी चाहिए, परन्तु इसमें प्रायः निम्नलिखित दो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

  1.  स्थान के अभाव के कारण प्राय: पर्याप्त लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई वाले कमरों के मकानों का निर्माण करना सम्भव नहीं हो पाता है।
  2. वर्ष में अनेक बार (जैसे कि ग्रीष्म ऋतु में) वायु अत्यन्त मन्द गति से संचरण करती है, जिसके फलस्वरूप मकानों में शुद्ध एवं शीतल वायु का उपयुक्त संवातन नहीं हो पाता है; अतः मकानों में घुटन भरा गर्म वातावरण रहता है।
    उपर्युक्त कठिनाइयों से निपटने के लिए आज के आधुनिक युग में अनेक प्रकार के विद्युत उपकरणों (संवातन के कृत्रिम साधन) का उपयोग किया जाता है। मकानों एवं सार्वजनिक भवनों में संवातन की उत्तम व्यवस्था के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले प्रमुख विद्युत संयन्त्र निम्नलिखित हैं

(1) सामान्य विद्युत पंखे:
सामान्य पंखे प्लीनम पद्धति पर आधारित होते हैं। इनके द्वारा वायु की गति अधिक संवहनशील हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दूषित वायु की निकासी शीघ्र होती रहती है।

(2) निर्वातक पंखे (एक्जॉस्ट फैन):
ये पंखे निर्वात पद्धति पर आधारित होते हैं। इस पद्धति में कमरे की अशुद्ध गर्म वायु को पंखों द्वारा बाहर धकेल दिया जाता है, जिसका स्थान शुद्ध एवं शीतल वायु लेती रहती है, परिणामस्वरूप कमरे में संवतन की व्यवस्था ठीक बनी रहती है। निर्वातक पंखे प्रायः प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, छविगृहों व घुटन भरे कमरों में लगाए जाते हैं।

(3) सामान्य व निर्वातक पंखों का मिश्रित उपयोग:
इन दोनों प्रकार के पंखों का एक साथ उपयोग मिश्रित अथवा मिली-जुली पद्धति पर आधारित है। इस पद्धति का उपयोग विशाल भवनों, छविगृहों एवं अस्पतालों आदि में किया जाता है। इसके अनुसार निर्वातक पंखे अशुद्ध एवं गर्म वायु को बाहर फेंकते हैं तथा सामान्य पंखे अन्दर की वायु को गति प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह पद्धति संवात्नन व्यवस्था को अत्यन्त प्रभावी बना देती है।

(4) वातानुकूलन:
आदर्श संवातन की यह आधुनिकतम पद्धति है। इस पद्धति में वायु को उचित तापमान, वांछित स्वच्छता तथा उपयुक्त आर्द्रता प्रदान की जाती है। कमरे में श्वसन क्रिया के कारण उत्पन्न हुई अशुद्ध वायु वातानुकूलन संयन्त्र के शुद्धिकरण भाग में पहुँचकर शुद्ध हो जाती है। बाहर से आने वाली वायु भी सर्वप्रथम शुद्धिकरण भाग में प्रवेश करती है, जिससे यह धूल के कणों एवं कीटाणुओं से मुक्त हो जाती है।
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संयन्त्र के शीतलीकरण भाग द्वारा कमरे में वांछित तापमान बनाए रखा जाता है। इस प्रकार इस विधि द्वारा कमरे की संवातन व्यवस्था अत्यन्त प्रभावी बनी रहती है। इस विधि की एकमात्र कमी यह है कि अत्यधिक महँगी होने के कारण यह जनसाधारण की पहुँच से बाहर है। वातानुकूलन यन्त्रों का उपयोग प्रायः धनी परिवारों, छविगृहों, बड़े-बड़े राजकीय अस्पतालों, सार्वजनिक व राजकीय भवनों तथा उच्च श्रेणी के रेल के डिब्बों इत्यादि में किया जाता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु के कौन-कौन से चार प्रमुख कार्य हैं?
उत्तर:
वायु के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  समस्त जीवधारियों की श्वसन क्रियों का मूल आधार होना,
  2.  प्राणियों में शारीरिक तापमान का नियमन करना,
  3. जल की उत्पत्ति करना तथा
  4.  हरे पौधों में भोजन-निर्माण की प्रक्रिया का मूल आधार होना।

प्रश्न 2:
वर्षा ऋतु की नमी से हमें क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
वर्षा ऋतु में नमी होने के कारण वायु में जलवाष्प (आर्द्रता) की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार के वातावरण में फफूदी, कीटाणु व कीट-पतंगे अधिक पनपते हैं। इसके हानिकारक परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. फफूदी के कारण भोज्य पदार्थ शीघ्र ही सड़ने लगते हैं तथा खाने योग्य नहीं रहते।
  2. चमड़े, लकड़ी व कागज की वस्तुएँ फफूदी के पनपने के कारण अपनी गुणवत्ता खो देती हैं।
  3.  कीटाणुओं के वातावरण में पनपने के कारण विभिन्न रोगों के होने की सम्भावनाएँ बन जाती हैं।
  4. वस्तुओं पर फफूदी व अन्य सूक्ष्मजीवियों के पनपने के कारण वातावरण में सड़न की दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 3:
प्रकृति वायुमण्डल में प्राण-वायु( ऑक्सीजन) की मात्रा का सन्तुलन किस प्रकार कर पाती है?
या
वायु को शुद्ध करने में प्रकृति किस प्रकार सहायता करती है?
उत्तर:
वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21 प्रतिशत होती है। ऑक्सीजन समस्त प्राणियों को उनकी श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक है। श्वसन क्रिया में प्राणी वायु से ऑक्सीजन लेते हैं। तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैसे निष्कासित करते हैं। इसके अतिरिक्त लगभग सभी वस्तुएँ; जैसे लकड़ी, कोयला, कागज आदि ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही जलती हैं तथा धुएँ के रूप में कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों को वायुमण्डल में निष्कासित करती हैं। परिणाम यह होता है कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने (UPBoardSolutions.com) लगती है। प्रकृति इस स्थिति से निपटने के लिए पूर्णरूप से सक्षम है। हरे पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड व पानी का उपयोग कर अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा घटती है तथा इसे क्रिया में ऑक्सीजन गैस उत्पन्न होती है। इस प्रकार हरे पौधे वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस निष्कासित कर इसकी मात्रा का सन्तुलन बनाए रखते हैं।

प्रश्न 4:
अच्छे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आप अपने मकान में किस प्रकार के कमरे बनवाएँगी?
उत्तर:
सामान्यतः मनुष्य एक घण्टे में लगभग 100 घन मीटर वायु ग्रहण करता है। यदि उस वायु का एक घण्टे में तीन बार भी परिवर्तन हो, तो एक मनुष्य के लिए लगभग 33 घन मीटर स्थान की आवश्यकता पड़ेगी। अतः मकान में लम्बे, चौड़े व ऊँचे कमरों का होना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर के अन्दर व बाहर उत्तम संवातन व्यवस्था का होना भी आवश्यक है। अतः कमरों में दरवाजे व खिड़कियाँ इस प्रकार से होनी चाहिए कि वायु का पारगमन सरलतापूर्वक हो सके।

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प्रश्न 5:
घर से बाहर की संवातन व्यवस्था के सम्भावित उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
घर के अन्दर वायु का प्रवेश सदैव बाहर से ही होता है। अत: घर की अच्छी-से-अच्छी आन्तरिक संवातन व्यवस्था भी तब तक अप्रभावी ही रहेगी जब तक कि बाहर की संवातन व्यवस्था ठीक प्रकार की न हो। बाहर की. संवातन व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1.  सड़कें तथा गलियाँ चौड़ी होनी चाहिए।
  2.  बस्ती अथवा मौहल्ले में मकानों के बीच पर्याप्त दूरी होनी चाहिए।
  3.  सड़कों व नालियों की सफाई की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. मकानों के आस-पास पार्क व क्रीड़ास्थल होने चाहिए।
  5.  मकानों के आस-पास व सड़कों के दोनों ओर हरे पेड़-पौधे लगे होने चाहिए।

प्रश्न 6:
घर के अन्दर संवातन के मुख्य साधन कौन-कौन से हैं?
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प्रश्न 7:
संवातन का क्या महत्त्व है? समझाइए।
उत्तर:
संवातन वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से किसी आवासीय स्थल पर निरन्तर वायु का आवागमन होता रहता है। संवातन की व्यवस्था का विशेष महत्त्व है। इस व्यवस्था के परिणामस्वरूप सम्बन्धित स्थल पर शुद्ध एवं स्वच्छ वायु उपलब्ध होती रहती है। इस स्थिति में कमरे की दूषित, गर्म एवं दुर्गन्धयुक्त वायु बाहर निकल जाती है तथा उसके स्थान पर शीतल, शुद्ध वायु प्रवेश कर जाती है। अवासीय स्थल पर संवातन की (UPBoardSolutions.com) उचित व्यवस्था होने की दशा में विभिन्न रोगों के जीवाणुओं को पनपने का अवसर उपलब्ध नहीं होता, कमरे में नमी या घुटन नहीं होती तथा वहाँ का तापमान भी सामान्य बना रहता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संवतन की व्यवस्था सम्बन्धित व्यक्तियों के सामान्य स्वास्थ्य में सहायक होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु अपने आप में क्या है?
उत्तर:
वायु अपने आप में विभिन्न गैसों की एक मिश्रण है।

प्रश्न 2:
वायु-रूपी गैसीय मिश्रण में विद्यमान मुख्य गैसों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायु-रूपी गैसीय मिश्रण में विद्यमान मुख्य गैसें हैं ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन, ओजोन तथा ऑर्गन आदि।

प्रश्न 3:
वायु जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वायु निम्नलिखित दो रूपों में जीवन के लिए आवश्यक है
(1) जीवधारियों में श्वसन क्रिया वायु की उपस्थिति में ही होती है।
(2) यह हमारे शरीर के ताप को नियन्त्रित करने में सहायता करती है।

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प्रश्न 4:
वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है?
उत्तर:
वस्तुओं के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती है।

प्रश्न 5:
संवातन क्या है?
उत्तर:
किसी आवासीय स्थान पर शुद्ध वायु के प्रवेश एवं अशुद्ध वायु के बाहर जाने की व्यवस्था को संवातन कहते हैं।

प्रश्न 6:
रोशनदानों का संवातन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अशुद्ध वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठकर कमरे में बने रोशनदानों से बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 7:
कृत्रिम संवतन के मुख्य साधन क्या हैं?
उत्तर:
कृत्रिम संवातन के मुख्य साधन है

  1.  सामान्य विद्युत पंखे,
  2.  निर्वातक पंखे,
  3.  वातानुकूलन संयन्त्र।

प्रश्न 8:
पारगाम संवातन को प्रभावी बनाने का क्या उपाय है?
उत्तर:
इसके लिए दरवाजों एवं खिड़कियों को ठीक आमने-सामने स्थित होना चाहिए।

प्रश्न 9:
रात्रि में पेड़ के नीचे सोना क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
रात्रि में पेड़-पौधों में श्वसन क्रिया अधिक होती है जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन भी अधिक होता है।
अतः रात्रि में पेड़ के नीचे सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

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प्रश्न 10:
पृथ्वी पर वायुमण्डल का क्षेत्र कितना विस्तृत है?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 400 किलोमीटर ऊपर तक वायु पाई जाती है।

प्रश्न 11:
वायु को शुद्ध करने में सूर्य के प्रकाश तथा पेड़-पौधों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड गैस ग्रहण कर लेते हैं तथा
ऑक्सीजन विसर्जित करके वायु को शुद्ध करते हैं।

प्रश्न 12:
वायु में पाई जाने वाली सक्रिय गैस कौन-सी है?
उत्तर:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य सक्रिय गैस है-ऑक्सीजन।

प्रश्न 13:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस कौन-सी है?
उत्तर:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस है-नाइट्रोजन।

प्रश्न 14:
वर्षा ऋतु में वायु में मुख्य रूप से क्या परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
वर्षा ऋतु में वायु में नमी की दर बढ़ जाती है तथा धूल-कणों एवं अन्य लटकने वाली अशुद्धियाँ घट जाती हैं।

प्रश्न 15:
प्राणवायु अथवा जीवन-रक्षक गैस कौन-सी है?
उत्तर:
ऑक्सीजन गैस, जो कि प्राणियों में श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 16:
वायु संगठन में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत क्या है?
उत्तर:
वायु संगठन में ऑक्सीजन 20.95% तथा कार्बन डाइऑक्साइड 0.03% होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) प्रकृति में ऑक्सीजन का सन्तुलन बनाए रखते हैं
(क) मनुष्य,
(ख) कीट-पतंगे,
(ग) वन्य जीव-जन्तु,
(घ) पेड़-पौधे।

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(2) वायु को दूषित करने वाला कारक है
(क) प्राणियों की श्वसन क्रिया,
(ख) जैविक पदार्थों का विघटन,
(ग) दहन की व्यापक प्रक्रिया,
(घ) ये सभी कारक।

(3) वायु में विद्यमान गैसों में से सर्वाधिक सक्रिय गैस है
(क) नाइट्रोजन,
(ख) हाइड्रोजन,
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड,
(घ) ऑक्सीजन।

4. वायु में विद्यमान मुख्य निष्क्रिय गैस है
(क) ऑक्सीजन,
(ख) ओजोन,
(ग) नाइट्रोजन,
(घ) कार्बन मोनोऑक्साइड।

(5) संवातन का मुख्य उद्देश्य है
(क) कमरे से दुर्गन्ध को हटाना,
(ख) कमरे में सुगन्ध को बढ़ाना,
(ग) कमरे में शुद्ध वायु प्राप्त करना,
(घ) कमरे को ठण्डा रखना।

(6) कमरे में उत्तम संवातन व्यवस्था के लिए आवश्यक है
(क) दरवाजे,
(ख) खिड़कियाँ,
(ग) रोशनदान,
(घ) पारगामी व्यवस्था।

(7) विद्युत पंखों द्वारा वायु को प्रदान की जाती है
(क) स्थिरता,
(ख) स्थायित्व,
(ग) गति,
(घ) आर्द्रता।

(8) दीवारों में बनी चिमनियों से कमरे की वायु
(क) बाहर निकलती है,
(ख) बाहर भी जाती है तथा अन्दर भी जाती है,
(ग) बाहर से अन्दर आती है,
(घ) कोई प्रभाव नहीं होता।

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(9) श्वसन क्रिया में रक्त का शुद्धिकरण करती है
(क) नाइट्रोजन,
(ख) हाइड्रोजन,
(ग) ऑक्सीजन,
(घ) कार्बन मोनोऑक्साइड।

उत्तर:
(1) (घ) पेड़-पौधे,
(2) (घ) ये सभी कारक,
(3) (घ) ऑक्सीजन,
(4) (ग) नाइट्रोजन,
(5) (ग) कमरे में शुद्ध वायु प्राप्त करना,
(6) (घ) पारगामी व्यवस्था,
(7) (ग) गति,
(8) (क) बाहर निकलती है,
(9) (ग) ऑक्सीजन।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 6 जनसंख्या

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 6 जनसंख्या

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में सही विकल्प चुनिए-
(i) निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में प्रवास, आबादी की संख्या, वितरण एवं संरचना में परिवर्तन लाता है?
(क) प्रस्थान करने वाले क्षेत्र में
(ख) आगमन वाले क्षेत्र में
(ग) प्रस्थान एवं आगमन दोनों क्षेत्रों में
(घ) इनमें से कोई नहीं

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(ii) जनसंख्या में बच्चों का एक बहुत बड़ा अनुपात निम्नलिखित में से किसका परिणाम है?
(क) उच्च जन्मदर
(ख) उच्च मृत्युदर
(ग) उच्च जीवनदर
(घ) अधिक विवाहित जोड़े

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक जनसंख्या वृद्धि का परिणाम दर्शाता है?
(क) एक क्षेत्र की कुल जनसंख्या
(ख) प्रत्येक वर्ष लोगों की संख्या में होने वाली वृद्धि,
(ग) जनसंख्या वृद्धि की दर
(घ) प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या

(iv) 2001 की जनगणना के अनुसार एक साक्षर’ व्यक्ति वह है
(क) जो अपने नाम को पढ़ एवं लिख सकता है।
(ख) जो किसी भी भाषा में पढ़ एवं लिख सकता है।
(ग) जिसकी उम्र 7 वर्ष है तथा वह किसी भी भाषा को समझ के साथ पढ़ एवं लिख सकता है।
(घ) जो पढ़ना-लिखना एवं अंकगणित, तीनों जानता है।
उत्तर:
(i) (ग) प्रस्थान एवं आगमन दोनों क्षेत्र में
(ii) (क) उच्च जन्म दर
(iii) (ग) जनसंख्या वृद्धि की दर
(iv) (ग) जिसकी उम्र 7 साल, किसी भाषा को समझना, पढ़ना तथा लिखना।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के उत्तर संक्षेप में दें-

  1. जनसंख्या वृद्धि के महत्त्वपूर्ण घटकों की व्याख्या करें।
  2. 1981 से भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर क्यों घट रही है?
  3. आयु संरचना, जन्मदर एवं मृत्युदर को परिभाषित करें।
  4. प्रवास, जनसंख्या परिवर्तन का एक कारक।

उत्तर:
(1) जनसंख्या वृद्धि के महत्त्वपूर्ण घटक इस प्रकार हैं-

  1. उच्च जन्म दर,
  2. निम्न मृत्यु दर,
  3. प्रवसन।

(2) 1981 के बाद भारत में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. परिवार कल्याण विधियों का अपनाया जाना,
  2. स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं की अधिक जागरूकता,
  3. महिलाओं में शिक्षा का तेज गति से प्रसार,
  4. सरकारी

(3) आयु संरचना-किसी देश में जनसंख्या की आयु संरचना वहाँ के विभिन्न आयु समूहों के लोगों की संख्या को बताता है। यह जनसंख्या की मूल आवश्यकताओं में से एक है। जन्मदर-एक वर्ष के दौरान 1000 लोगों पर जीवित पैदा हुए बच्चों की संख्या को जन्मदर कहते हैं। मृत्युदर-एक वर्ष की अवधि में 1000 लोगों पर मृत व्यक्तियों की संख्या को मृत्युदर कहते हैं।

(4) प्रवास, जनसंख्या परिवर्तन का एक कारक है लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने को प्रवास कहते हैं। जनसंख्या वितरण एवं उसके घटकों को परिवर्तित करने में प्रवास की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह आगमन तथा प्रस्थान दोनों ही स्थानों के जनसांख्यिकीय आँकड़ों को प्रभावित (UPBoardSolutions.com) करता है। प्रवास आंतरिक (देश के भीतर) या अंतर्राष्ट्रीय (देशों के बीच) हो सकता है। आंतरिक प्रवास जनसंख्या के आकार में परिवर्तन नहीं करता लेकिन देश में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करता है।

  1. प्रवास जनसंख्या के गठन एवं वितरण में बदलाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2. भारत में अधिकतर प्रवास ग्रामीण क्षेत्रों से ‘अपकर्षण’ कारक प्रभावी होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी एवं बेरोजगारी की प्रतिकूल अवस्थाएँ हैं तथा नगर का ‘कर्षण’ प्रभाव रोजगार में वृद्धि एवं अच्छे जीवन स्तर को दर्शाता है। 1951 में शहरी जनसंख्या 17.29 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 31.2 प्रतिशत हो गई।
  3. 2001-2011 के बीच एक ही दशक के दौरान ‘‘दस लाख से अधिक की जनसंख्या वाले महानगर 35 से बढ़कर 53 हो गए हैं।

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प्रश्न 3.
जनसंख्या वृद्धि एवं जनसंख्या परिवर्तन के बीच अंतर स्पष्ट करें?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि एवं जनसंख्या परिवर्तन के बीच निम्नलिखित अंतर हैं-

जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या परिवर्तन

 1. जनसंख्या वृद्धि से तात्पर्य किसी क्षेत्र में निश्चित अवधि के दौरान रहने वाले लोगों की संख्या में  परिवर्तन है। 1. जनसंख्या परिवर्तन से आशय किसी क्षेत्र में निश्चित अवधि के दौरान जनसंख्या वितरण, संरचना या आकार में परिवर्तन से है।
2. इसमें पिछली जनसंख्या को बाद की जनसंख्या से घटाकर ज्ञात किया जाता है। 2. जनसंख्या परिवर्तन तीन प्रक्रियाओं के आपसी संयोजन के कारण आता है- जन्मदर, मृत्युदर और प्रवास।
 3. वृद्धि को संख्या के रूप में प्रकट किया जाता है। 3. जनसंख्या परिवर्तन सापेक्ष वृद्धि और प्रतिवर्ष होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के द्वारा देखा जाता है।

प्रश्न 4.
व्यावसायिक संरचना एवं विकास के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
व्यावसायिक संरचना एवं विकास के बीच सम्बन्ध–मुख्य रूप से व्यवसायों को तीन वर्गों में रखा जाता है-प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक व्यवसाय। प्राथमिक व्यवसाय कृषि आदि से संबंधित हैं, द्वितीयक व्यवसाय निर्माण उद्योगों से संबंधित है तथा तृतीयक व्यवसाय सेवाओं से सम्बन्धित होते हैं। विकसित एवं विकासशील देशों में द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों में कार्य करने वाले लोगों का अनुपात अधिक (UPBoardSolutions.com) होता है। विकासशील देशों में प्राथमिक क्रियाकलापों में कार्यरत लोगों का अनुपात अधिक होता है। भारत में कुल जनसंख्या का 64 प्रतिशत भाग केवल कृषि कार्य करता है। द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों की संख्या का अनुपात क्रमशः 13 तथा 20 प्रतिशत है। वर्तमान समय में बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में वृद्धि होने के कारण

द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों में व्यावसायिक परिवर्तन हुआ है।
विकास के लिए जनसंख्या का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है।
इस प्रकार स्वस्थ जनसंख्या निम्नलिखित रूप से लाभकारी हो सकती है-

  1. बीमारियों पर कम खर्च होता है। इसके अतिरिक्त धन को विकास कार्यों में लगाया जाता है।
  2. विकास की गति तीव्र होती है।
  3. सरकार को अधिक स्वास्थ्य सेवाएँ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं रहती।
  4. लोगों में स्वस्थ वातावरण का संचार होता है।
  5. स्वस्थ जनसंख्या अधिक समय तक काम करती है तथा उत्पादन में वृद्धि होती है।
  6. स्वस्थ जनसंख्या में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।
  7. हृष्ट-पुष्ट नागरिक उत्पन्न होते हैं।
  8. अधिक तेज तथा अधिक कार्यक्षम होते हैं।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति वर्ष 2004 में घोषित की गयी।
इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1.  किशोर-किशोरियों को असुरक्षित यौन संबंधों के कुप्रभावों/कुपरिणामों के बारे में जागरूक करना।
  2. गर्भनिरोधक सेवाओं को पहुँच और खरीद के दायरे के भीतर रखना।
  3. खाद्य संपूरक को पोषणिक सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  4. बाल विवाह को रोकने के कानून को और अधिक कारगर बनाना।
  5. शिक्षा और स्वास्थ्य की शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करना।
  6. किशोर-किशोरियों की पहचान जनसंख्या के उस भाग के रूप में करें जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  7. इनकी पोषणिक आवश्यकताओं की ओर ध्यान देना।।
  8. अवांछित गर्भधारण तथा यौन संबंधों से होने वाली बीमारियों से किशोर-किशोरियों की सुरक्षा करना।
  9. किशोर-किशोरियों की अन्य आवश्यकताओं के प्रति विशेष ध्यान देना।
  10. देर से विवाह और देर से संतानोत्पत्ति को प्रोत्साहित करना।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
एक प्रश्नावली बनाकर कक्षा की जनगणना कीजिए। प्रश्नावली में कम-से-कम पाँच प्रश्न होने चाहिए। ये प्रश्न विद्यार्थियों के परिवारजनों, कक्षा में उनकी उपलब्धि, उनके स्वास्थ्य आदि से संबंधित हों। प्रत्येक विद्यार्थी को वह प्रश्नावली भरनी चाहिए। बाद में सूचना को संख्याओं में (प्रतिशत में) संग्रहीत कीजिए। इस सूचना को वृत्त-रेखा, दंड-आरेख या अन्य किसी प्रकार से प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
स्वयं करें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या का अध्ययन करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
किसी देश की जनसंख्या ही उस देश के संसाधनों का विकास करती है और उनका उपभोग करती है। ऐसे में किसी देश के लोगों की संख्या, उनका वितरण एवं विकास तथा गुणवत्ता पर्यावरण को समझने का मूलभूत आधार है। इसलिए जनसंख्या का अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 2.
अरुणाचल प्रदेश का जनघनत्व कम क्यों है?
उत्तर:
अरुणाचल प्रदेश एक पर्वतीय क्षेत्र है। यहाँ की जलवायु ठण्डी है। यहाँ कृषि तथा उद्योग भी विकसित नहीं है। इसीलिए यहाँ का जनघनत्व कम है।

प्रश्न 3.
भारत में किस राज्य की साक्षरता सबसे अधिक है?
उत्तर:
भारत में केरल राज्य की साक्षरता सबसे अधिक है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार केरल राज्य की साक्षरता दर 94.0% है।

प्रश्न 4.
भारत के अति सघन आबादी वाले दो भागों के नाम बताइए। इनमें सघन जनसंख्या होने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में ऊपरी गंगाघाटी तथा मालाबार क्षेत्र में अति सघन जनसंख्या है।
सघन जनसंख्या के दो कारण इस प्रकार हैं-

  1.  इन प्रदेशों में उद्योगों का अत्यधिक विकास हुआ है।
  2. इन प्रदेशों की भूमि उपजाऊ है।

प्रश्न 5.
लिंगानुपात (स्त्री-पुरुष) से क्या आशय है?
उत्तर:
स्त्री-पुरुष के बीच जनसंख्या के संख्यात्मक अनुपात को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं। इसे प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या के रूप में व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 6.
मृत्यु-दर के तेजी से घटने के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. मृत्यु-दर के तेजी से घटने का मुख्य कारण स्वास्थ्य सेवाओं का प्रसार है।
  2. शिक्षा के प्रसार से भी मृत्यु-दर में अत्यधिक कमी आयी है।

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प्रश्न 7.
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के दो मुख्य कारण इस प्रकार हैं-

  1. चिकित्सा सुविधाओं के प्रसार के कारण मृत्यु-दर में तो कमी आयी है, लेकिन जन्म-दर में आशा के अनुरूप कमी नहीं आ पाई है।
  2. भारत में अधिकतर लोग निर्धन एवं अनपढ़ हैं। वे छोटे परिवारों के महत्त्व को नहीं समझते हैं। वे सन्तान को ईश्वर की कृपा समझकर गर्भ-निरोध का प्रयास नहीं करते हैं।

प्रश्न 8.
जनसंख्या घनत्व का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी देश-प्रदेश के प्रति एक वर्ग किलोमीटर में रहने वाले लोगों की औसत जनसंख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। इसे व्यक्ति प्रति वर्ग किमी में व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारत की लगभग आधी आबादी कितने राज्यों में निवास करती है?
उत्तर:
भारत की लगभग आधी जनसंख्या इन पाँच राज्यों में निवास करती है-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश।

प्रश्न 10.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों के अंतर्गत कौन-कौन से व्यवसाय सम्मिलित हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत कृषि, पशुपालन, वृक्षारोपण एवं मछली पालन तथा खनन आदि क्रियाएँ शामिल हैं। द्वितीयक क्रियाकलापों में उत्पादन करने वाले उद्योग, भवन एवं निर्माण कार्य आते हैं। तृतीयक क्रियाकलापों में परिवहन, संचार, वाणिज्य, प्रशासन तथा सेवाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के क्या उपाय अपनाए गए हैं?
उत्तर:
भारत सरकार ने 1952 में एक व्यापक परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रारंभ किया। 1975 में इंदिरा कांग्रेस सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम तथा 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने इसे परिवार कल्याण कार्यक्रम नाम रख दिया। परिवार कल्याण कार्यक्रम जिम्मेदार तथा सुनियोजित पितृत्व को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 कई वर्षों के नियोजित प्रयासों का परिणाम है।

प्रश्न 12.
भारत की जनसंख्या का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण बताइए।
उत्तर:
भारत की जनसंख्या का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण इसकी किशोर जनसंख्या का आकार है। यह भारत की कुल जनसंख्या का पाँचवाँ भाग है। किशोर प्रायः 10 से 19 वर्ष की आयु वर्ग के होते हैं। ये भविष्य के सबसे महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं।

प्रश्न 13.
जनसंख्या की सापेक्ष एवं निरपेक्ष वृद्धि किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी विशेष समय के अंतराल में जैसे 10 वर्षों के भीतर, किसी देश/राज्य के निवासियों की संख्या में परिवर्तन सापेक्ष वृद्धि कहलाता है। पहले की जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) जैसे 2001 की जनसंख्या को बाद की जनसंख्या जैसे 2011 की जनसंख्या से घटाकर इसे प्राप्त किया जाता है। इसे निरपेक्ष वृद्धि कहा जाता है।

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प्रश्न 14.
आश्रित जनसंख्या के अंतर्गत किन-किन आयु वर्ग के लोगों को सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
आश्रित जनसंख्या के अंतर्गत बच्चों तथा वृद्ध जिनकी आयु क्रमशः 15 वर्ष से कम और 59 वर्ष से अधिक है, आयु वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण जनसंख्या और नगरीय जनसंख्या में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण जनसंख्या और नगरीय जनसंख्या में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-

नगरीय जनसंख्या

ग्रामीण जनसंख्या

1. भारत की नगरीय जनसंख्या 37.7 करोड़ है, लेकिन 35 महानगरों में 27% से अधिक नगरीय जनसंख्या रहती है। 1. ग्रामीण जनसंख्या 83.32 करोड़ है। इसका बहुत छोटा भाग गौण व तृतीयक व्यवसाय में लगा है।
2. नगरीय जनसंख्या को सर्वाधिक सुविधाएँ सुलभ हैं। 2. ग्रामीण जनसंख्या को सार्वजनिक सेवाएँ बहुत कम सुलभ हैं।
3. नगरीय जनसंख्या का जीवन स्तर सामान्यतः उच्च पाया जाता है। 3. ग्रामीण जनसंख्या का जीवन स्तर सामान्यतः निम्न पाया जाता है।
4. देश की लगभग 31.2% जनसंख्या नगरों में रहती  है। 4. भारत गाँवों का देश है। देश की लगभग 68.8% जनसंख्या गाँवों में रहती है।
 5. नगरीय जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग प्रथम श्रेणी के नगरों में रहता है। प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या 2929 है। 5. ग्रामीण जनसंख्या अधिकतर प्राथमिक व्यवसाय में लगी होती है। जैसे कृषि करना, लकड़ी काटना, मछली पकड़ना,  पशु-पालन, खनन आदि।

प्रश्न 2.
जन्म-दर और वृद्धि-दर में अंतर कीजिए।
उत्तर:
जन्म-दर और वृद्धि-दर में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वृद्धि -दर

जन्म-दर

1. विकासशील देशों में वृद्धिदर सामान्य से अधिक है। विकसित देशों में वृद्धि-दर 1 प्रतिशत से कम है । 1. विकसित देशों में जन्म-दर कम होती है और विकासशील देशों में जन्म-दर अधिक होती है।
2. उच्च-वृद्धिदर से प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। 2. उच्च जन्मदर पिछड़ेपन का प्रतीक बन गई है।
3. जन्म-दर और मृत्यु-दर के अंतर को वृद्धि दर कहते हैं। 3. किसी देश या क्षेत्र में वर्ष के मध्य जीवित जन्मे बच्चों की  संख्या को जन्म-दर कहते हैं।
4. वृद्धिदर को प्रतिशत में व्यक्त करते हैं। 4. जन्मदरे प्रति हजार में व्यक्त की जाती है।
 5. आजकल भारत की प्राकृतिक वार्षिक वृद्धि दर 21.3 प्रतिशत है। 5. भारत में जन्म दर 26.1 व्यक्ति प्रति हजार है।

प्रश्न 3.
भारत के मैदानी भागों में सघन आबादी पाए जाने के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत के मैदानी भागों में सघन जनसंख्या पाए जाने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. समतल मैदान,
  2. उपजाऊ मिट्टी,
  3. पर्याप्त मात्रा में वर्षा,
  4. सिंचाई के विकसित साधन,
  5. परिवहन के विकसित साधन,
  6. उद्योग एवं कृषि का विकास।

प्रश्न 4.
भारत में राज्यवार जनसंख्या वितरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19.981 करोड़ है। यहाँ भारत की कुल जनसंख्या का 16.51 प्रतिशत निवास करते हैं।
भारत की सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है तथा लक्षद्वीप केन्द्रशासित प्रदेशों में सबसे कम जनसंख्या वाला क्षेत्र है। सिक्किम की जनसंख्या 6 लाख, 10 हजार है जबकि लक्षद्वीप में जनसंख्या 64,429 है। भारत की जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत भाग निम्नलिखित पाँच राज्यों में निवास करता है।

  1. उत्तर प्रदेश             16.51%
  2. महाराष्ट्र                    9.28%
  3. बिहार                      8.60%
  4. पश्चिम बंगाल            7.54%
  5. आंध्र प्रदेश              6.99%.

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प्रश्न 5.
नगरों में बढ़ती हुई जनसंख्या ने न केवल नगरीय केन्द्रों में समस्याएँ पैदा की हैं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों को भी प्रभावित किया है। प्रत्येक के विषय में दो बिन्दु स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण नगरीय केन्द्रों में उत्पन्न समस्यायें इस प्रकार हैं-

  1. लोगों के नैतिक मूल्यों में परिवर्तन और गिरावट।
  2. चोरबाजारी, कालाबाजारी, रिश्वत तथा लूट-पाट का बोलबाला।।
  3. नगरों के संसाधनों तथा जन सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ता है।
  4. आवश्यक वस्तुओं की कमी तथा उनके मूल्यों में आशातीत वृद्धि।
  5. वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।

(ख) नगरीय जनसंख्या में वृद्धि का ग्रामीण क्षेत्रों पर प्रभाव इस प्रकार है-

  1. रोजगार की खोज में लोगों को ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्रों की ओर पलायन करना।
  2. भूमिहीन किसानों की निर्धनता में वृद्धि। 3. कृषि जोतों का अलाभकारी होना तथा छोटे किसानों के गाँव में बेकार हो जाने से उनका नगरों में जाकर मजदूरी करना।

प्रश्न 6.
भारत में भूमि की उर्वरता जनसंख्या वितरण को किस प्रकार प्रभावित करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। यहाँ की जनसंख्या वितरण बहुत असमान है। सामान्यतः जनसंख्या का वितरण भूमि की उर्वरता के अनुरूप पाया जाता है। जिन क्षेत्रों में मिट्टी अधिक उपजाऊ पाई जाती है, वहाँ जनसंख्या की सघनता अधिक मिलती है और जिन क्षेत्रों में मिट्टी कम उपजाऊ होती है, वहाँ जनसंख्या कम पाई जाती है। भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि और मिट्टी का सीधा संबंध है। हमारे भरण-पोषण की अधिकांश सामग्री प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी से ही मिलती है।

उदाहरण के लिए उत्तरी मैदान, पूर्व तटीय मैदान, पश्चिम तटीय मैदान, डेल्टाई मैदान एवं घाटी प्रदेश सघन आबादी वाले हैं। यदि इन प्रदेशों का भी अवलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि प्रत्येक प्रदेश में जनसंख्या का वितरण संभव नहीं है। उत्तरी मैदान में जनसंख्या पश्चिम से पूर्व की ओर घटती जाती है। हरियाणा राज्य पश्चिमी बंगाल की तुलना में कम सघन है। पश्चिमी बंगाल की मृदा बहुत उर्वरक है। पर्वतीय (UPBoardSolutions.com) प्रदेश में मिट्टी की परत पतली होती है। इन क्षेत्रों में अपेक्षाकृत मिट्टी की परत मोटी और उपजाऊ होती है। अतः घाटी प्रदेशों में पर्वतीय प्रदेशों से अधिक सघन जनसंख्या पाई जाती है।

प्रश्न 7.
भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि को जन्मदर कम करके ही रोका जा सकता है। जन्मदर को निम्न उपायों के माध्यम से कम किया जा सकता है-

  1. गर्भधारण से लेकर प्रजनन प्रक्रिया से जुड़ी अनेकानेक समस्याओं का ज्ञान होने के कारण शिक्षित महिलाओं की जीवन प्रत्याशा अधिक होती है। वह अपने और अपने बच्चे के स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग होती है।
  2. शिक्षित महिलाओं की दृष्टि व्यापक होती है, उनकी सोच राष्ट्रीय स्तर की होने के कारण बड़े परिवार को राष्ट्रीय संसाधनों पर बोझ मानती हैं।
  3. भारत में दो बच्चों के परिवार को राष्ट्रीय आदर्श माना गया है, उसकी दृढ़ता से पालन कराया जाए।
  4. भारतीय संविधान में निर्धारित शादी की न्यूनतम आयु लड़कियों की 18 तथा लड़कों की 21 वर्ष को व्यावहारिक रूप दिया जाए।
  5. स्त्री शिक्षा पर अधिक बल दिया जाए।
  6. दो या इससे कम बच्चों वाले माता-पिता को सरकारी नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही विशेष वेतन-वृद्धि का प्रावधान हो।
  7. परिवार कल्याण सुविधाओं का देशभर में विस्तार किया जाए।

प्रश्न 8.
भारत के आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों का विकास आवश्यक क्यों है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक संसाधनों को संपत्ति में तभी बदला जा सकता है, जब लोगों की गुणवत्ता या उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जाए।
  2. देश की प्राकृतिक संपदा के पूर्ण विकास के लिए पर्याप्त संख्या, आवश्यक तकनीकी ज्ञान, पूँजी तथा लोगों का कुशल, क्रियाशील, परिश्रमी व ईमानदार होना आवश्यक है।
  3. अच्छे स्वास्थ्य एवं सुविधाओं की सुलभता भी प्राकृतिक संपदा के विकास पर निर्भर है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि देश के आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक तथा मानव दोनों ही संपदाओं का विकास साथ-साथ होना चाहिए।
  4. किसी देश का आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधनों और मानवीय संसाधनों पर निर्भर करता है। किसी एक के अभाव में विकास की कल्पना नहीं की जा सकती।
  5. प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की विपुलता व संपन्नता, आर्थिक प्रगति की गति तेज करती है।
  6. मानव संसाधनों द्वारा ही प्राकृतिक संपदा को अधिकाधिक मात्रा में उपयोगी वस्तुओं में बदलकर, बड़े पैमाने पर संपदा प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 9.
जनसंख्या का गाँवों से नगरों की ओर पलायन क्यों हो रहा है?
उत्तर:
गाँवों से नगरों की ओर जनसंख्या का तेजी से पलायन निम्न कारणों से हो रहा है-

  1. गाँवों में सार्वजनिक सुविधाओं का अभाव – शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन आदि का गाँवों में अभाव है। नगरों में इन सुविधाओं को बराबर आकर्षण है।
  2. गाँवों में रोजगार के अवसरों का अभाव – गाँवों में शिक्षित और अशिक्षित युवकों के लिए रोजगार के साधनों की कमी है। शिक्षित और प्रशिक्षित युवकों के लिए गाँवों में रोजगार का और भी अभाव है। फलतः रोजगार की तलाश में गाँवों से नगरों की ओर पलायन की (UPBoardSolutions.com) स्वाभाविक प्रक्रिया बन गई है। नगरों में रोजगार मिलने के बाद उनकी आश्रित संख्या भी नगरों में आकर बस जाती है।
  3. अलाभकारी जोतों का बढ़ना – छोटे और सीमांत किसान की पैतृक जोतों के बँटवारे होते रहने से उनका छिटका होना तथा भूमि का छोटा टुकड़ा हिस्से में आना, जोत को अलाभकारी बना देता है। अंततः छोटा किसान अपनी भूमि को बेचने के लिए विवश हो जाता है और काम-धंधे की तलाश में वह शहर की ओर चल पड़ता है।

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प्रश्न 10.
जन्म-दर की तुलना में मृत्यु-दर में अधिक कमी का कारण क्या है?
उत्तर:
भारत में जन्म-दर एवं मृत्यु-दर दोनों ही निरंतर घट रही हैं। यह देश के विकास का प्रतीक है। लेकिन इन दोनों के घटने की दर में अंतर है। मृत्यु-दर तो तेजी से नीचे आयी है, लेकिन जन्म-दर में ह्रास मंद गति से हो रहा है। जन्म-दर की तुलना में मृत्यु-दर में अधिक कमी के निम्न कारण हैं-

  1. देश में मलेरिया, हैजा, चेचक, प्लेग जैसी महामारियों को अब नियंत्रित कर लिया गया है। नई और प्रभावशाली ओषधियों का निर्माण व उपयोग किया जा रहा है।
  2. देशभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के अधिक प्रसार के कारण वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जन्म पर प्रत्येक बच्चे की जीवन-प्रत्याशी बढ़कर 64 वर्ष हो गई है, जो इस शताब्दी के प्रारंभ में केवल 27 वर्ष थी।
  3. मृत्यु-दर का तेजी से घटने का मुख्य कारण स्वास्थ्य सेवाओं का प्रसार रहा है।
  4. शिक्षा के प्रसार ने भी मृत्युदर को कम करने में सहायता की है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरुक रहते हैं।

प्रश्न 11.
जनसंख्या वृद्धि किसे कहते हैं? इसे कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि से तात्पर्य किसी क्षेत्र में निश्चित अवधि के दौरान स्हने वाले लोगों की संख्या में परिवर्तन से है। ऐसे परिवर्तन को दो तरीके से व्यक्त किया जा सकता है-

  1. प्रतिवर्ष प्रतिशत वृद्धि के रूप में,
  2. सापेक्ष वृद्धि के रूप में।

प्रत्येक वर्ष या एक दशक में बढ़ी जनसंख्या, केवल संख्या में वृद्धि का परिणाम है। इसकी गणना बाद की जनसंख्या में से पहले की जनसंख्या को साधारण रूप से घटाकर की जाती है। जनसंख्या वृद्धि की दर अथवा गति का अध्ययन प्रतिशत प्रतिवर्ष में किया जाता है। इसे वार्षिक वृद्धि दर कहा जाता है। जैसे-10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर का अर्थ है कि किसी वर्ष के दौरान प्रत्येक 100 लोगों की मूल जनसंख्या में 10 लोगों की वृद्धि हुई।

प्रश्न 12.
किसी देश की जनसंख्या की तीन प्रमुख श्रेणियों का वर्णन कीजिए। इनमें से कौन-सा समूह पराश्रित है?
उत्तर:
आयु संरचना किसी भी देश की जनसंख्या की मूलभूत विशेषता होती है। जनसंख्या की आयु संरचना से आशय किसी देश में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों से है। किसी भी देश की जनसंख्या को सामान्यतः तीन विस्तृत श्रेणियों में बांटा जा सकता है-

  1. बच्चे (सामान्यतः 15 वर्ष से कम आयु वाले)-ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील नहीं होते हैं तथा इनको भोजन, वस्त्र एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है।
  2. वयस्क (15 वर्ष से 59 वर्ष)-ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील तथा जैविक रूप से प्रजननशील होते हैं। यह जनसंख्या का कार्यशील वर्ग है।
  3. वृद्ध ( 59 वर्ष से अधिक)-ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील या अवकाश प्राप्त हो सकते हैं। ये स्वैच्छिक रूप से कार्य कर सकते हैं, लेकिन भर्ती प्रक्रिया के द्वारा इनकी नियुक्ति नहीं होती है। भारत में जनसंख्या संरचना-युवा 58.7%, वृद्ध 6.9%, बच्चे 34.4%। बच्चों तथा वृद्धों का प्रतिशत निर्भरता अनुपात को प्रभावित करता है क्योंकि ये समूह उत्पादनशील नहीं होते।

प्रश्न 13.
भारत के लिए स्वास्थ्य का स्तर आज भी चिंता का विषय है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देश ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है। स्वास्थ्य स्तर में भी महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ, फिर भी इस सम्बन्ध में अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
असन्तोषजनक स्वास्थ्य परिस्थितियों के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. शुद्ध पीने का पानी तथा मूल स्वास्थ्य रक्षा सुविधाएँ ग्रामीण जनसंख्या के केवल एक-तिहाई लोगों को उपलब्ध हैं।
  2. प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत अनुशंसित स्तर से काफी कम है तथा हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कुपोषण से प्रभावित है।

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प्रश्न 14.
क्या स्त्रियों को अच्छी शिक्षा देकर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
विश्व के विकसित देशों में अशिक्षा को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया है। शिक्षा का स्तर बढ़ने से स्त्री-पुरुष अनुपात एवं सन्तानोत्पत्ति को नियंत्रित करने में सहायता मिली है। विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि एक प्रतिशत से भी कम है बल्कि कुछ देशों में यह ऋणात्मक हो गयी है। यह स्थापित तथ्य है कि स्त्रियों को शिक्षित एवं जागरूक करके जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।
इसके लिए निम्न प्रयास किए जा सकते है-

  1. अच्छी शिक्षा पाने के लिए एक लंबी अवधि की आवश्यकता पड़ती है। अतः शिक्षित लड़कियों की अधिक उम्र में जाकर शादी होती है। तब तक परिवार-दायित्व का ज्ञान आसानी से हो जाता है।
  2. शिक्षित स्त्रियों को रोजगार मिल जाता है। रोजगार प्राप्त महिलाएँ अधिक बच्चे की अच्छी देख-रेख करने में अपने को असमर्थ पाती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
केरल में जनसंख्या की स्थिति देश के अन्य राज्यों से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के विभिन्न पक्षों-घनत्व, स्त्री-पुरुष अनुपात, क्रियाशीलता, साक्षरता, जीवन-प्रत्याशी आदि पर विचार करने पर यह स्पष्ट है कि केरल की जनसंख्या की प्रवृत्ति देश के अन्य राज्यों से निम्न कारणों से भिन्न है-

(1) जीवन – प्रत्याशा सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाओं एवं शिक्षा में विस्तार के कारण जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। भारत में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की जीवन-प्रत्याशा कम रही है। परंतु अब इस प्रवृत्ति में परिवर्तन आ गया है। अतः स्त्रियों की जीवन-प्रत्याशा पुरुषों की अपेक्षा (UPBoardSolutions.com) कुछ अधिक है। जन्म के समय स्त्रियों की औसत जीवनप्रत्याशा 67.7 वर्ष तथा पुरुषों की औसत जीवन-प्रत्याशा 64.6 वर्ष थी। केरल में जीवन-प्रत्याशा अधिक है। यहाँ स्त्रियों की जीवन-प्रत्याशा 72% तथा पुरुषों की 71% है।

(2) क्रियाशीलता – भारत में बड़ी जनसंख्या आश्रितों की है। एक-तिहाई क्रियाशील जनसंख्या पर दो-तिहाई आश्रित जनसंख्या का दबाव है। सामान्यतः क्रियाशील जनसंख्या का अधिक अनुपात दुर्गम क्षेत्रों अथवा विकसित क्षेत्रों में पाया जाता है। इस दृष्टि से केरल विकसित क्षेत्रों में आता है। यहाँ अर्जक जनसंख्या का अनुपात देश के औसत अनुपात से लगभग डेढ़ गुना अधिक है।

(3) साक्षरता – मानवीय संसाधनों के विकास में शिक्षा का भारी महत्त्व है। सन् 2011 में साक्षरता का प्रतिशत 73 रहा है। मनुष्य का दीर्घ आयु होना साक्षरता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। साक्षरता से क्रियाशील जनसंख्या का अनुपात बढ़ता है। केरल राज्य साक्षरता में सबसे आगे है। यहाँ 2011 की जनगणना के अनुसार 94% साक्षरता पाई गई है।

(4) घनत्व – केरल में जनघनत्व (पश्चिम बंगाल को छोड़कर) सबसे अधिक है। यहाँ भारत के औसत जनघनत्व से लगभग तीन गुना जनघनत्व पाया जाता है। केरल में जनसंख्या का घनत्व 860 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। केरल में अधिक वर्षा तथा वर्षा की अवधि भी अधिक होने के कारण वर्ष में दो-तीन फसलें उगाई जाती हैं।

यहाँ के पाश्च जलों एवं तटवर्ती सागरों में भारी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है, जिससे सघन जनसंख्या की खाद्य-आपूर्ति हो जाती है। स्त्री-पुरुष अनुपात-स्त्री-पुरुष गृहस्थ जीवन की गाड़ी के दो पहिए हैं। एक पहिए के कमजोर या उसके न होने पर गाड़ी का सही चलना संभव नहीं। संसार के (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक सभ्य समाज में स्त्री और पुरुषों की संख्या में समानता है। हमारे देश के अनेक क्षेत्रों में स्त्री-पुरुष अनुपात में बहुत अंतर मिलता है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों पर 943 स्त्रियाँ थीं।

केरल ही एकमात्र ऐसा राज्य है जिसमें पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक है। यहाँ स्त्री-पुरुष अनुपात 1084 :1000 हैं। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट है कि केरल एक सघन आबाद क्षेत्र होते हुए भी मानवीय संपदा का अधिक विस्तार कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है। यहाँ के लोग परिश्रमी एवं संघर्षशील हैं, ये लोग अपनी कर्तव्यनिष्ठा के आधार पर उपलब्ध प्राकृतिक संपदा का भरपूर उपयोग करते हैं।

प्रश्न 2.
भारत के महानगरों में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय क्यों बन गई है? इससे उत्पन्न परिणामों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्ष 2011 में भारत की नगरीय जनसंख्या बढ़कर 37.7 करोड़ हो गयी है, यह कुल जनसंख्या का 27.78 प्रतिशतॆ है। भारत की नगरीय जनसंख्या का 65% प्रथम श्रेणी के नगरों में निवास करता है। भारत की एक तिहाई से भी अधिक जनसंख्या केवल 35 महानगरों में निवास करती है। यह एक चिंता का विषय है। नगरीकरण विकास का प्रतीक है। परंतु महानगरों में तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या न केवल (UPBoardSolutions.com) महानगरों में समस्या खड़ी कर रही है, अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में भी विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। नगरों में जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण, इनके वर्तमान संसाधनों तथा उपलब्ध जन सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है। कभी-कभी तो यहाँ लोगों को आवश्यक सुविधाएँ भी नहीं मिल पातीं।

महानगरों की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं-
(1) लिंग-अनुपात का असन्तुलित होना – रोजगार की तलाश में पहले पुरुष वर्ग नगरों की ओर जाता है। फलतः नगरों में लिंग अनुपात में बहुत अंतर पाया जाता है। इस विषम अनुपात से अनेक सामाजिक कुरीतियाँ एवं बुरी आदतें पड़ जाती हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ जाती है।

(2) आवास की समस्या – महानगरों की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने के कारण आवास की बड़ी गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। अधिकतर लोग तंग, अँधेरे तथा दूषित वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आवास की समस्या मजदूर वर्ग में तो और भी गंभीर है। झुग्गी-झोपड़ियों में और खुले आकाश के नीचे लोग अपनी रातें बिता रहे हैं।

(3) रोजगार की समस्या – रोजगार पाने के लिए गाँवों से लोग नगरों में आ रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में रोजगार के साधन नहीं बढ़ रहे हैं। अतः नगरों में रोजगार की समस्या बढ़ रही है। भिखारियों की संख्या बढ़ रही है। चोर-गिरहकटों की संख्या बढ़ रही है। लूट-पाट के मामले बढ़ रहे हैं। उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त अति नगरीकरण के कारण नगरों में पेयजल की समस्या, सफाई एवं स्वास्थ्य की (UPBoardSolutions.com) समस्या, वायु प्रदूषण की समस्या, ध्वनि प्रदूषण की समस्या, शिक्षा की समस्या, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि की समस्या तथा परिवहन की समस्या नगरों से जुड़ गयी है।

प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या घनत्व के वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या का वितरण असमान है। साथ ही भारत विश्व की घनी आबादी वाले देशों में से एक है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। जहाँ बिहार का जनसंख्या घनत्व 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, वहीं अरुणाचल प्रदेश का जनसंख्या घनत्व 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।

पर्वतीय क्षेत्र तथा प्रतिकूल जलवायवी अवस्थाएँ इन क्षेत्रों की विरल जनसंख्या के लिए उत्तरदायी हैं। असोम एवं अधिकतर प्रायद्वीपीय राज्यों का जनसंख्या घनत्व मध्यम है। पहाड़ी, कटे-छैटे एवं पथरीले भूभाग, मध्यम से कम वर्षा, छिछली एवं कम उपजाऊ मिट्टी इन राज्यों के जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) घनत्व को प्रभावित करती है। उत्तर मैदानी भाग एवं दक्षिण में केरल का जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यहाँ समतल मैदान एवं उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है तथा पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है।

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प्रश्न 4.
व्यावसायिक संरचना का अर्थ स्पष्ट कीजिए। विभिन्न व्यवसायों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के वितरण को विभिन्न व्यवसायों के आधार पर वर्गीकृत करना व्यावसायिक ढाँचा कहलाता है। भारत में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक विविधता विद्यमान है।
व्यवसायों को प्रायः प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक श्रेणियों में बाँटा गया है जिसका विवरण इस प्रकार है-

  1. प्राथमिक क्रियाकलापों में कृषि, पशुपालन, वृक्षारोपण एवं मछली पालन तथा खनन आदि क्रियाएँ शामिल हैं।
  2. द्वितीयक क्रियाकलापों में उत्पादन करने वाले उद्योग, भवन एवं निर्माण कार्य आते हैं।
  3. तृतीयक क्रियाकलापों में परिवहन, संचार, वाणिज्य, प्रशासन तथा सेवाएँ शामिल हैं।

भाग्त में कुल जनसंख्या का 64 प्रतिशत भाग केवल कृषि कार्य करता है। द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों की संख्या का अनुपात क्रमशः 13 तथा 20 प्रतिशत है। वर्तमान समय में बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में वृद्धि होने के कारण द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों में व्यावसायिक परिवर्तन हुआ है।

प्रश्न 5.
बढ़ती हुई जनसंख्या के दुष्प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बढ़ती हुई जनसंख्या के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(i) बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण – देश की जनसंख्या बढ़ने से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार का प्रदूषण बढ़ रहा है जो भयंकर खतरे का संकेत दे रहा है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। वनस्पति व प्राणी जगत के ह्रास (UPBoardSolutions.com) के कारण पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। प्रदूषण की रोक-थाम के साथ-साथ बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाई जाए।

(ii) खनिज संपदा का ह्रास – खनिज संपदा की मात्रा निश्चित है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता। एक बार उसका उपभोग, उतनी ही मात्रा को कम कर देता है। जनसंख्या बढ़ने से खनन काम तेजी से बढ़ रहा है। अतः खनिजों के शीघ्र ही समाप्त होने की समस्या पैदा हो गई है। आवश्यकता इस बात की है कि खनिजों का उपभोग कम किया जाए, पूरक वस्तुओं का विकास किया जाए तथा उनके संरक्षण की विधियाँ अपनाई जाएँ।

(iii) मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी – भारत में प्राचीनकाल से खेती होते रहने से मृदा की उपजाऊपन की क्षमता कम हो गई है। इधर जनसंख्या के बढ़ने से वर्ष में 2-3 फसलें लेना भी आवश्यक है। यह सिंचाई के साधनों के विस्तार तथा रासायनिक उर्वरकों के भरपूर उपयोग से भी संभव है। ऐसा करने पर मृदा में क्षारीय तत्त्वों का बढ़ना तथा भूमि का जलाक्रान्त होना स्वाभाविक है। इससे मृदा का उपजाऊपन कम हो जाता है और कहीं-कहीं तो मृदा की समाप्ति भी देखी गई है। अतः इस समस्या के निदान के लिए रासायनिक खादों का वैज्ञानिक उपयोग तथा मृदा सर्वेक्षण की आवश्यकता है।

(iv) वनों का तेजी से ह्रास – पेट की भूख मिटाने के लिए कृषि का विकास और विस्तार आवश्यक हो जाता है। खाद्यान्नों की माँग को पूरा करने के लिए वनों को साफ करके खेतों में बदला गया है। फलतः देश में 21 प्रतिशत से भी कम भू-भाग पर वनों का विस्तार रह गया। वनों की कमी से वर्षा से (UPBoardSolutions.com) कभी बाढ़ों का आना, मृदा का अपरदन होना तथा बहुमूल्य वन संपदा के न मिलने से समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। अतः वनों के विस्तार एवं वृक्षारोपण पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।

(v) चरागाह भूमि की कमी – भारत में पशु संपदा संसार में सर्वाधिक है। चरागाह भूमि घटते-घटते केवल 4% रह गई। फलतः पशुओं से अपेक्षित उत्पाद नहीं मिल पाते हैं। वनीय भूमि का पशुचारण के लिए उपयोग किया जा रहा है। इससे समस्या का निदान नहीं, अपितु दूसरे प्रकार की समस्या और उठ खड़ी होती है। अतः योजनाबद्ध तरीकों से चरागाह भूमि का विस्तार कर पशुपालन को सुव्यवस्थित व सुदृढ़ किया जाए।

(vi) कृषि योग्य भूमि का घटना – जनसंख्या के बढ़ने से पैतृक कृषि भूमि का बँटवारा निरंतर होता चला आ रहा है। फलतः कृषि योग्य भूमि का प्रति व्यक्ति अनुपात घटकर 0.29 हेक्टेयर रह गया है। इस समस्या का एक ही हल है कि जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण किया जाए।

प्रश्न 6.
भारत के सबसे अधिक तथा सबसे कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों का जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों को ध्यान में रखते हुए विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या का वितरण असमान है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल जनसंख्या 121.08 करोड़ है और जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। लेकिन दिल्ली में तो घनत्व 11320 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है तो अरुणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु में घनत्व 401 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी तक है। कुछ संघ राज्यों जैसे दिल्ली, चंडीगढ़, (UPBoardSolutions.com) लक्षद्वीप तथा पांडिचेरी में 2547 से 11320 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर तक है। कहीं दूसरे राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मेघालय, नगालैण्ड, सिक्किम, मणिपुर आदि में घनत्व 17 से लेकर 128 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ही है।

इस असमान वितरण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
(i) औद्योगिक विकास – देश के जिन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास अधिक हुआ है, वहाँ रोजगार के अवसर तथा अन्य सुविधाएँ बढ़ जाती हैं। अतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व बढ़ जाता है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास कम हुआ है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम है।

(ii) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता – संसाधनों से संपन्न क्षेत्र जनसंख्या को आकर्षित करते हैं। जल, मृदा, खनिज, वन आदि देश की बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा है। इसके लिए जनशक्ति चाहिए। दामोदर घाटी खनिज संपदा से संपन्न है। फलतः वहाँ अधिक जनसंख्या पाई जाती है। उपजाऊ मृदा क्षेत्र सघन आबाद हैं। डेल्टाई-क्षेत्र देश के सघनतम जनसंख्या वाले हैं।

(iii) यातायात की सुविधाओं का विकास – जिन क्षेत्रों में नदियों, नहरों, सड़कों व रेल मार्गों का जाल है, वहाँ आवश्यक वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध होती हैं। लोग काम के केंद्रों पर आसानी से आ-जा सकते हैं। परिवहन के साधनों के विकास से मैदानी भागों में अधिक जनसंख्या पाई जाती है।
पर्वतीय, मरुस्थलीय तथा वनीय क्षेत्रों में यातायात के साधनों की कमी के कारण विरल आबाद है।

(iv) स्थल का स्वरूप – भारत में पर्वत, पठार एवं मैदान तीनों ही स्थलाकृतियाँ विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं। देश की अधिकांश जनसंख्या मैदानी भागों में रहती है, क्योंकि मैदानी भाग में कृषि करना आसान व लाभदायक है, जिससे अधिक लोगों का जीवन निर्वाह होता है। मैदानों में जनसंख्या के वितरण में भी असमानता है। अधिक उपजाऊ मैदानी भागों में अधिक सघन जनसंख्या पाई जाती है।

(v) जलवायु – अधिक गर्म व शुष्क भागों में जनसंख्या कम पाई जाती है। अधिक ठंडे प्रदेश भी विरल जनसंख्या वाले हैं। राजस्थान का पश्चिमी भाग तथा हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है। देश के समजलवायु वाले क्षेत्रों तथा उष्ण आई भागों में सघन जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) पाई जाती है। पश्चिमी बंगाल और केरल क्रमशः सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले राज्य हैं।

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प्रश्न 7.
भारतीय जनसंख्या से संबंधित पाँच समस्याएँ नीचे दी गई हैं। प्रत्येक समस्या का एक दुष्परिणाम और प्रत्येक समस्या का एक व्यवहारिक समाधान लिखो।

  1. उच्च जनघनत्व
  2. असंतुलित लिंग-अनुपात
  3. सभी को स्वास्थ्य-सुविधाओं को अभाव
  4. बढ़ती जनसंख्या के कारण पर्यावरण संबंधी समस्या
  5. स्त्रियों की आर्थिक भागीदारी।

उत्तर:
1. जनघनत्व

  • दुष्परिणाम : जनघनत्व से प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ता है तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गयी है।
  • समाधान : नए उद्योगों की स्थापना करके रोजगार के नए अवसरों का सृजन करना होगा। अधिक जन-घनत्व वाले क्षेत्रों से कम जनघनत्व वाले क्षेत्रों की ओर उद्योगों तथा कार्यालयों को स्थानान्तरित करना होगा।

2. असंतुलित लिंग-अनुपात

  • दुष्परिणाम : स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार तथा समाज में स्त्रियों के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण।
  • समाधान : स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करके उनके हितों की रक्षा करना।

3. सभी को स्वास्थ्य-सुविधाओं का अभाव

  • दुष्परिणाम : प्रति व्यक्ति समुचित स्वास्थ्य-सुविधाओं के न मिलने के कारण स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव।
  • समाधान : स्त्री-बच्चों सहित सबके लिए एकीकृत स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराना।

4. बढ़ती जनसंख्या के कारण पर्यावरण संबंधी समस्या

  • दुष्परिणाम : वायु जल तथा ध्वनि प्रदूषण की समस्या।
  • समाधान : पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों में जागृति उत्पन्न करना।

5. स्त्रियों की आर्थिक भागीदारी

  • दुष्परिणाम : स्त्रियों में आर्थिक भागीदारी का बहुत कम होना।
  • समाधान : शिक्षा के अवसर प्रदान करके स्त्रियों की आर्थिक भागीदारी बढ़ाना।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा पर्यावरण के विभिन्न वर्गों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

मनुष्य ही क्या प्रत्येक प्राणी एवं वनस्पति जगत् भी पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है तथा ये सभी अपने पर्यावरण से प्रभावित भी होते हैं। पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करने से पूर्व पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के संयोग या मेल से बना है।‘परि’ का अर्थ है चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘घेरा’। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ चारों ओर का घेरा’। इस प्रकारे व्यक्ति के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति केचारों ओर जो प्राकृतिक और अन्य सभी प्रकार की शक्तियाँ और परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, इनके प्रभावी रूप को ही पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। पर्यावरण इन समस्त शक्तियों, वस्तुओं और दशाओं का योग है जो मानव को चारों (UPBoardSolutions.com) ओर से आवृत किए हुए हैं। मानव से लेकर वनस्पति तथा सूक्ष्म जीव तक सभी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। पर्यावरण उन सभी बाह्य दशाओं एवं प्रभावों का योग है जो जीव के कार्य-कलापों एवं जीवन को प्रभावित करता है। मानव-जीवन पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ एवं सामान्य परिचय को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करनी भी आवश्यक है। कुछ मुख्य समाज वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) जिस्बर्ट द्वारा परिभाषा:
जिस्बर्ट के अनुसार पर्यावरण से आशय उन समस्त कारकों से है। जो किसी व्यक्ति या जीव को चारों ओर से घेरे रहते हैं तथा प्रभावित करते हैं। उनके शब्दों में, “पर्यावरण वह कुछ भी है जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।” जिस्बर्ट की मान्यता है कि जीव अपने पर्यावरण के प्रभाव से बच नहीं सकता।

(ii) रॉस द्वारा परिभाषा:
रॉस ने पर्यावरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, पर्यावरण हमें प्रभावित करने वाली कोई भी बाहरी शक्ति है।”
उपर्युक्त विवरण द्वारा पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि व्यक्ति के सन्दर्भ में स्वयं व्यक्ति को छोड़कर इस जगत् में जो कुछ भी है वह सब कुछ सम्मिलित रूप से व्यक्ति का पर्यावरण है।

पर्यावरण का वर्गीकरण

पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषा सम्बन्धी विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण की धारणा अपने आप में एक विस्तृत अवधारणा है। इस स्थिति में पर्यावरण के व्यवस्थित अध्ययन के लिए पर्यावरण का समुचित वर्गीकरण प्रस्तुत करना आवश्यक है। सम्पूर्ण पर्यावरण को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है

(1) प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत समस्त प्राकृतिक शक्तियों एवं कारकों को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, वनस्पति जगत् तथा जीव-जन्तु तो प्राकृतिक पर्यावरण के घटक ही हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक शक्तियों एवं घटनाओं को भी प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) पर्यावरण ही माना जाएगा। सामान्य रूप से कहा जा सकता है। कि प्राकृतिक पर्यावरण न तो मनुष्य द्वारा निर्मित है और न ही यह मनुष्य द्वारा नियन्त्रित ही है। प्राकृतिक . अथवा भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर पड़ता है।

(2) सामाजिक पर्यावरण:
सामाजिक पर्यावरण भी पर्यावरण का एक रूप या पक्ष है। सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचा ही सामाजिक पर्यावरण कहलाता है। इसे सामाजिक सम्बन्धों का पर्यावरण भी कहा जा सकता है। परिवार, पड़ोस, खेल के साथी, समाज, समुदाय, विद्यालय आदि सभी सामाजिक पर्यावरण के ही घटक हैं। सामाजिक पर्यावरण भी व्यक्ति को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है, परन्तु यह सत्य है। कि व्यक्ति सामाजिक पर्यावरण के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान प्रदान करता है।

(3) सांस्कृतिक पर्यावरण:
पर्यावरण का एक रूप या पक्ष सांस्कृतिक पर्यावरण भी है। सांस्कृतिक पर्यावरण प्रकृति-प्रदत्त नहीं है, बल्कि इसका निर्माण स्वयं मनुष्य ने ही किया है। वास्तव में मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं का समग्र रूप तथा परिवेश सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाता है। सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक तथा अभौतिक (UPBoardSolutions.com) दो प्रकार का होता है। सभी प्रकार के मानव-निर्मित उपकरण एवं साधन सांस्कृतिक पर्यावरण के भौतिक पक्ष में सम्मिलित हैं। इससे भिन्न मनुष्य द्वारा विकसित किए गए मूल्य, संस्कृति, धर्म, भाषा, रूढ़ियाँ, परम्पराएँ आदि सम्मिलित रूप से सांस्कृतिक पर्यावरण के अभौतिक पक्ष का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 2:
पर्यावरण-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? पर्यावरण-प्रदूषण के विभिन्न रूप कौन-कौन से हैं? पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण को अर्थ

‘पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के संयोग से बना है। ‘परि’ शब्द का अर्थ है। ‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘ढके हुए या घेरे हुए। इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ हुआ चारों ओर से घेरे हुए या ढके हुए। इस स्थिति में व्यक्ति का पर्यावरण वह सब कुछ कहलाएगा जो व्यक्ति को घेरे रहता है अर्थात् विश्व में व्यक्ति के अतिरिक्त जो कुछ भी है वह उसका पर्यावरण है।
पर्यावरण को अर्थ जान लेने के उपरान्त पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है। पर्यावरण के प्रदूषण का सामान्य अर्थ है हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति द्वारा हुआ है। प्रकृति द्वारा निर्मित पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में (UPBoardSolutions.com) बदलने लगता है जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका होती है तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए–यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर अन्य विषैली गैसों का अनुपात बढ़ जाए तो कहा जाएगा कि वायु-प्रदूषण हो गया है। इसी प्रकार पर्यावरण के किसी भी भाग के दूषित हो जाने को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाएगा।

पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूप

पर्यावरण के मुख्य भाग हैं-जल, वायु तथा पृथ्वी। इन्हीं भागों से सम्बन्धित प्रदूषण के विभिन्न रूप हैं-वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा मिट्टी-प्रदूषण। प्रदूषण के इन मुख्य रूपों के साथ-साथ एक अन्य रूप भी उल्लेखनीय है तथा वह है ध्वनि-प्रदूषण।

पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

पर्यावरण-प्रदूषण वर्तमान युग की एक गम्भीर समस्या है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव जनजीवन के प्रत्येक पक्ष पर पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रमुख प्रतिकूल प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
(1) जन-स्वास्थ्य पर प्रभाव पर्यावरण:
प्रदूषण का जनजीवन पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जन-स्वास्थ्य पर पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण से अनेक साधारण तथा गम्भीर रोग फैलते हैं। इन रोगों के शिकार होकर असंख्य व्यक्ति अपना स्वास्थ्य आँवा बैठते हैं तथा अनेक व्यक्तियों की तो मृत्यु हो जाती है।

(2) व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर प्रभाव:
पर्यावरण प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव जन-सामान्य की कार्यक्षमता पर भी पड़ता है। वास्तव में, प्रदूषित पर्यावरण में निरन्तर रहने से व्यक्ति की शारीरिक चुस्ती घट जाती है तथा वह आलस्य का शिकार रहता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की कार्यक्षमता निश्चित रूप से घट जाती है। प्रदूषित पर्यावरण में रहने पर व्यक्ति की कार्य-कुशलता भी घट जाती है। वह कार्यों में अधिक त्रुटियाँ करता है तथा उसकी उत्पादन-दर भी घट जाती है।

(3) आर्थिक जीवन पर प्रभाव:
पर्यावरण-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव जन-सामान्य की आर्थिक, स्थिति तथा आर्थिक जीवन पर भी पड़ता है। वास्तव में, निरन्तर अस्वस्थ रहने से व्यक्ति सुस्त हो जाता है। तथा उसकी कार्यक्षमता घट जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति न तो पर्याप्त परिश्रम कर पाता है और न ही समुचित उत्पादन ही कर (UPBoardSolutions.com) पाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगती है तथा वह निर्धनता का शिकार हो जाता है। निर्धनता अपने आप में अभिशाप है। निर्धन व्यक्ति न तो पोषक आहार ग्रहण कर सकता है और न ही अस्वस्थ होने पर उपचार ही करवा पाता है। इस प्रकार वह क्रमशः परेशानियों से घिरता जाता है।

प्रश्न 3:
वायु किस प्रकार दूषित होती है? उसे शुद्ध करने के प्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?
या
वायु-प्रदूषण के कारण तथा प्रदूषण को रोकने के उपाय बताइए।
उत्तर:
वायु-प्रदूषण अथवा वायु के दूषित होने के कारण

शुद्ध वायु लगभग सभी जीवधारियों की मूल आवश्यकता है। सभी जीवधारी श्वसन में वायु के प्राणदायी भाग (ऑक्सीजन) का उपभोग कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं, जिसकी मात्रा वायुमण्डल में निरन्तर बढ़ती जा रही है। हरे पौधे इसको एकमात्र अपवाद हैं, क्योंकि ये प्रकाश-संश्लेषण (UPBoardSolutions.com) की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग कर ऑक्सीजन गैस स्वतन्त्र करते हैं। तथा इस प्रकार वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा का लगभग सन्तुलन बना रहता है। शुद्ध वायु में आवश्यक तत्त्वों के सन्तुलन को बिगाड़ने का श्रेय मानव जाति को जाता है। इस तथ्य की पुष्टि वायु के अशुद्ध होने के निम्नलिखित कारणों के अध्ययन से हो जाती है|

(1) श्वसन क्रिया द्वारा:
प्रायः सभी जीवधारी श्वसन के लिए वायुमण्डल की ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। श्वसन क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा
बढ़ती रहती है तथा ऑक्सीजन गैस की प्रतिशत मात्रा घटती रहती है।

(2) विभिन्न पदार्थों के जलने से:
ऊर्जा-प्राप्ति के लिए मनुष्य द्वारा जलाए जाने वाले ये पदार्थ हैं-लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल एवं गैस आदि। इन पदार्थों के जलने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस की मात्रा दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है तथा अनेक विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। ये विषैली गैस एवं पदार्थ हैं-कार्बन डाइऑक्साईड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फ्लोराइड्स, (UPBoardSolutions.com) हाइड्रोकार्बन्स इत्यादि। इनके अतिरिक्त इथाइलीन, एसीटिलीन तथा प्रोपाइलीन इत्यादि भी अल्प मात्रा में स्वतन्त्र होकर वायुमण्डल में अपनी प्रतिशतता में निरन्तर वृद्धि कर रही हैं। ये सभी आने वाले समय में मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगाने वाले विषैले पदार्थ हैं।

(3) वनों की अन्धाधुन्ध कटाई:
वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका पेड़ों द्वारा निभाई जाती है। पेड़ पर्यावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को घटाते हैं तथा ऑक्सीजन में वृद्धि करते हैं। मनुष्य द्वारा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के परिणामस्वरूप यह प्राकृतिक नियम प्रभावित होने लगा है तथा परिणामस्वरूप वायु-प्रदूषण की दर में वृद्धि होने लगी है।

(4) औद्योगिक अशुद्धियों द्वारा:
औद्योगिक क्रान्ति ने जहाँ मनुष्य के जीवन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं, वहीं औद्योगिक अशुद्धियों ने वायुमण्डल को प्रदूषित किया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं—

(i) पोलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स (पी० सी० बी०):
इनका उपयोग औद्योगिक विलेयकों के रूप में तथा प्लास्टिक उद्योग में होता है। जब कृत्रिम रबर से बने टायर सड़कों पर रगड़ खाते हैं, तो ये पदार्थ वायुमण्डल में मिल जाते हैं।

(ii) स्मॉग:
शोधन-कार्यशालाओं के धधकने (रिफायनरी फ्लेयर्स) से बने धुएँ एवं कोहरे के मिश्रण से स्मॉग की उत्पत्ति होती है। औद्योगिक नगरों में प्रायः इस प्रकार का वायु-प्रदूषण पाया जाता है।

(iii) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन:
अनेक उद्योगों में इस प्रकार के कार्बन का प्रयोग हो रहा है। असावधानियों के कारण यह वायुमण्डल में मुक्त होकर ओजोन की परत में छिद्र कर चुका है तथा इस प्रकार वायुमण्डल को हानिकारक बनाने की ओर अग्रसर है।।

(iv) परमाणु ऊर्जा:
परमाणु विस्फोटों से अनेक प्रदूषक वायुमण्डल में आते हैं।

वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय

  1. आवासीय बस्तियों का निर्माण सरकार द्वारा स्वीकृत मानकों के आधार पर होना चाहिए।
  2. घरों में ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था चिमनी के द्वारा होनी चाहिए, जिससे कि वह घरों में एकत्रित न हो।
  3.  सरकार द्वारा संचालित वृक्षारोपण कार्यक्रम में हम सभी अपना योगदान दें। इसके लिए बस्ती व इसके आस-पास वृक्ष लगाने चाहिए।
  4. बस्ती के आस-पास रिक्त भूमि न छोड़े तथा गन्दगी न डालें। धूल व गन्दगी उड़कर वायु को दूषित कर सकती हैं।
  5. वाहनों के लिए पक्की सड़कें होनी चाहिए ताकि उनके चलने से धूल न उड़े।
  6.  वाहनों के इंजन सही अवस्था में होने चाहिए, अन्यथा पेट्रोल व डीजल के अपूर्ण ज्वलन से अधिक धुआँ बनने के कारण प्रदूषण अधिक होता है। इस विषय में सरकार ने आवश्यक कदम उठाए हैं। तथा इस प्रकार के वाहन स्वामियों के लिए आर्थिक दण्ड का प्रावधान निश्चित किया है।
  7.  विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को नागरिक सीमा से दूर स्थित होना चाहिए। इनसे निकलने वाले धुएँ के लिए ऊँची-ऊँची चिमनियाँ हों। विभिन्न प्रदूषकों को वायुमण्डल में आने से रोकने के लिए चिमनियों में आवश्यक निस्यन्दक अथवा फिल्टर लगे होने चाहिए।
  8.  पी० सी० बी० व क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन जैसे पदार्थों के उपयोग को नियन्त्रित किया जाए।

वायु शुद्धिकरण के प्राकृतिक साधन

हम जानते हैं कि वायु का आदर्श संगठन पृथ्वी के सभी जीवधारियों के लिए अति आवश्यक है। अनेक (पूर्व वर्णित) कारणों से यह संगठन प्रभावित होता रहता है। संगठन के इस परिवर्तन को हम वायु-प्रदूषण कहते हैं। प्रकृति ने अनेक ऐसे साधन उत्पन्न किए हैं जो कि वायु का शुद्धिकरण कर वायु-प्रदूषण को एक सीमा तक नियन्त्रित रखते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं

(1) पेड़-पौधे:
विशेष रूप से हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साईड लेकर सूर्य के | प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन निर्मित करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस
वातावरण में मुक्त होती है। इस प्रकार हरे पेड़-पौधे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा में यथासम्भव सन्तुलन बनाए रखते हैं।

(2) सूर्य:
सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का अमूल्य व अमर स्रोत है। सूर्य का प्रकाश पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को सम्भव बनाता है जो कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन मुक्त करती है। सूर्य के प्रकाश में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। सूर्य का ताप वायुमण्डल में जल-वाष्प की मात्रा को नियन्त्रित रखता है।

(3) वर्षा:
वर्षा को जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों (जैसे-धूल के कण, अनेक गैसें वे कीटाणु आदि) को अपने साथ बहाकर ले जाता है तथा इस प्रकार वायुमण्डल की शुद्धता में वृद्धि करता
क्रिया द्वारा पधि वायुमण्ड निम्नलिखित वायु का शुद्धि
है।

(4) ऑक्सीजन:
ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर नष्ट कर देती है।

(5) ओजोन:
इसके दो महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। यह वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती है तथा साथ-साथ सूर्य के प्रकाश को फिल्टर कर अनावश्यक परा-बैंगनी अथवा अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी तक नहीं आने देती।

(6) विसरण:
विसरण प्रायः सभी पदार्थों का प्राकृतिक गुण है। गैसों में विसरण सर्वाधिक पाया जाता है, जिससे गैसें अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्रों की ओर सदैव बहती रहती हैं। विसरण के फलस्वरूप विषैली गैसों की वायुमण्डल में सान्द्रता अधिक समय तक नहीं रह पाती है। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) वायु का अधिक वेग भी अशुद्धियों को दूर तक बहा ले जाती है। इससे यह लाभ होता है कि वायु की अशुद्धियाँ दूर-दूर तक विसरित हो जाती हैं और किसी स्थान विशेष पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं हो पातीं।

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प्रश्न 4:
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

वायु को अशुद्ध करने वाले प्रदूषक जनस्वास्थ्य को अनेक प्रकार से कुप्रभावित करते हैं। यह जनसाधारण में अनेक रोग उत्पन्न करते हैं, जिनमें से कुछ तो आज के वैज्ञानिक युग में भी असाध्य हैं। विभिन्न वायु प्रदूषकों एवं उनके प्रभावों को अग्रांकित सारणी द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है ।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

प्रश्न 5:
जल-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? जल-प्रदूषण के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल-प्रदूषण का अर्थ

जल प्राणीमात्र के लिए अति आवश्यक है, परन्तु केवल शुद्ध जल ही जीवित प्राणियों के लिए : स्वास्थ्यकर सिद्ध होता है। जल अपने आप में एक यौगिक है, जिसका सूत्र है H,0। जल एक उत्तम विलायक है, अत: जल में विभिन्न अशुद्धियाँ शीघ्र ही घुल जाती हैं। विभिन्न अशुद्धियों का समावेश हो जाने पर जल प्रदूषित हो जाता है। इस प्रकार जल के मुख्य स्रोतों में दूषित एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना ही जल-प्रदूषण कहलाता है।

जल-प्रदूषण के स्रोत अथवा कारण

जल-प्रदूषण का मूल कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं। जल-प्रदूषण के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

(1) घरेलू वाहित मल (सीवेज):
इसमें मल-मूत्र, घरेलू गन्दगी तथा कपड़ों को धोने के बाद का जंल आदि सम्मिलित होते हैं। इन्हें प्रायः उन नदियों में डाल दिया जाता है जिनके किनारों पर गाँव, कस्बे तथा (UPBoardSolutions.com) नगर आदि बसे होते हैं। इसके परिणामस्वरूप नदियों के किनारे, झील आदि के जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। वाहित मल से अनेक प्रकार के कीटाणु जल में आ जाते हैं, जिसके कारण जल का अत्यधिक क्लोरीनीकरण करना आवश्यक हो जाता है।

(2) वर्षा का जल:
वर्षा का जल खेतों की मिट्टी की ऊपरी परत को बहाकर नदियों, झीलों तथा समुद्र तक पहुँचा देता है। इसके साथ अनेक प्रकार के खाद (नाइट्रोजन एवं फॉस्फेट के यौगिक) एवं कीटनाशक पदार्थ भी जल में पहुँच जाते हैं।

(3) औद्योगिक संस्थानों द्वारा विसर्जित पदार्थ:
इनमें अनेक विषैले पदार्थ (अम्ल, क्षार, सायनाइड आदि), रंग-रोगन, कागज उद्योग द्वारा विसर्जित पारे (मरकरी) के यौगिक, रसायन एवं पेस्टीसाइड उद्योग द्वारा विसर्जित सीसे (लैड) के यौगिक तथा कॉपर व जिंक के यौगिक प्रमुख हैं।

(4) तैलीय (ऑयल) प्रदूषण:
इस प्रकार का प्रदूषण समुद्र के जल में होता है। समुद्र में यह प्रदूषण या तो जहाजों द्वारा तेल विसर्जित करने से होता है अथवा समुद्र के किनारे स्थित तेल-शोधक संस्थानों के कारण होता है।

(5) रेडियोधर्मी पदार्थ:
नाभिकीय विखण्डन के फलस्वरूप अनेक रेडियोधर्मी पदार्थ जल को दूषित कर देते हैं। इस प्रकार का प्रदूषण प्रायः समुद्र के जल में होता है।

(6) शव-विसर्जन:
हमारे समाज में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के कारण मृत व्यक्तियों के शव को, अस्थियों को तथा चिता की राख आदि को नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। इसी प्रकार अनेक
स्थानों पर मृत पशुओं को भी जल में बहा दिया जाता है। इन सबके मिलने से भी जल-प्रदूषण में वृद्धि होती है।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

प्रश्न 6:
जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के मुख्य उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल अनेक प्रकार के खनिज लवण, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों तथा गैसों के एक निश्चित अनुपात से अधिक अथवा अन्य अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से (UPBoardSolutions.com) प्रदूषित हो जाता है। अनेक कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशक पदार्थ, रासायनिक खाद, औद्योगिक अपशिष्ट, वाहित मल आदि जल-प्रदूषक पदार्थ हैं। ये पदार्थ जल को विभिन्न प्रकार से प्रदूषित कर देते हैं।

जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय

  1. कूड़े-करकट, गन्दगी व मल-मूत्र आदि का जल-विसर्जन प्रतिबन्धित होना चाहिए।
  2.  सीवर-प्रणाली का विस्तार होना चाहिए। सीवर के जल को नगर के बाहर किसी उपयुक्त स्थान परे यथासम्भव दोषरहित करने के बाद नदी आदि में प्रवाहित करना चाहिए।
  3.  मृत प्राणियों अथवा उनकी राख का जल विसर्जन यथासम्भव प्रतिबन्धित होना चाहिए।
  4.  उद्योगों एवं कारखानों के संचालकों को स्पष्ट व कठोर आदेश होने चाहिए जिससे कि वे अपने अपशिष्ट पदार्थों का उचित प्रबन्ध करें तथा किसी भी परिस्थिति में इन्हें जल-स्रोतों तक न जाने दें।
  5. जल के शुद्धिकरण के लिए जल स्रोतों में मछलियाँ, शैवाल तथा अन्य जलीय पौधे उगाने चाहिए।
  6.  डी० डी० टी० वे एल्डीन जैसे विषैले पदार्थों का उपयोग यदि प्रतिबन्धित किया जाना सम्भव न हो तो इसे सीमित अवश्य किया जाना चाहिए।
  7.  नदियों, झीलों एवं तालाबों के किनारों पर वस्त्रादि नहीं धोने चाहिए। साबुन व डिटर्जेण्ट्स के उपयोग के कारण लगभग 40% जल प्रदूषित होता है।
  8. विषैले प्रदूषकों; जैसे-लैड, मरकरी व कीटनाशकों को नदियों द्वारा समुद्र तक पहुँचने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  9. परमाणु भट्टियों एवं नाभिकीय विखण्डन के प्रयोगों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए तथा किसी भी परिस्थिति में समुद्र के जल को रेडियोधर्मी पदार्थों से मुक्त रखना चाहिए।
  10.  प्रदूषण सम्बन्धी आवश्यक शिक्षा का प्रसार होना चाहिए, जिससे कि प्रत्येक नागरिक प्रदूषण की रोकथाम के कार्यक्रम में निजी योगदान दे सके।

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प्रश्न 7:
ध्वनि-प्रदूषण के विषय में आप क्या जानती हैं? ध्वनि-प्रदूषण से हानि एवं इसे रोकने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
ध्वनि-प्रदूषण का अर्थ पर्यावरण-प्रदूषण का एक रूप ध्वनि-प्रदूषण भी है। ध्वनि-प्रदूषण का आशय है—-अनावश्यक तथा अधिक शोर। प्रत्येक प्रकार की तीव्र ध्वनि को शोर की श्रेणी में रखा जा सकता है, भले ही यह शोर कल-कारखानों का हो, रेलगाड़ियों या अन्य वाहनों का हो, लाउडस्पीकरों का हो, टाइप मशीनों का हो, रसोईघर में बर्तनों का हो या गली-मुहल्ले में महिलाओं की आपसी लड़ाई-झगड़े का ही क्यों (UPBoardSolutions.com) न हो। स्पष्ट है कि हर क्षेत्र में शोर ही शोर है। शोर भले ही साधारण-सी घटना है, परन्तु इसका गम्भीर एवं प्रतिकूल प्रभाव हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर निरन्तर पड़ता रहता है। वास्तव में ध्वनि या शोर की तीव्रता ही ध्वनि-प्रदूषण है। ध्वनि की तीव्रता का मापन करने की इकाई डेसीबेल है। सामान्य रूप से 80-85 डेसीबेल से अधिक तीव्रता वाली प्रत्येक ध्वनि को ध्वनि-प्रदूषण कारक ही माना जाता है।

स्रोत-ध्वनि-प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं

  1.  वाहनों द्वारा उत्पन्न शोर,
  2.  कारखानों में मशीनों द्वारा उत्पन्न शोर,
  3.  मनोरंजन के साधनों (रेडियो, टी० वी०, सिनेमा, लाउडस्पीकर व पटाखे आदि) से उत्पन्न शोर तथा
  4. भीड़ के नारों से उत्पन्न शोर।

जनजीवन पर प्रभाव( हानि):
ध्वनि-प्रदूषण का व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाती है, उसकी कार्यक्षमता घटती है तथा निरन्तर झुंझलाहट बनी रहती है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के कानों एवं श्रवण-क्षमता पर ध्वनि प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निरन्तर ध्वनि-प्रदूषण से कानों की सुनने की शक्ति घट सकती है या समाप्त भी (UPBoardSolutions.com) हो सकती है। अत्यधिक शोर के कारण उच्च रक्त-चाप, श्वसन गति तथा नाड़ी गति में उतार-चढ़ाव, जठरांत्र गतिशीलता में कमी, रक्त-संचरण में
परिवर्तन तथा स्नायु-तन्त्र की असामान्यता जैसे प्रभाव देखे जा सकते हैं।

नियन्त्रण:

  1.  ऐसे उपाय करने चाहिए, जिनसे शोर उत्पन्न होने के स्थान पर ही कम किया जा सके।
  2.  शोर संचरण के मार्ग में इसे कम करने के लिए व्यवधान लगाए जाएँ।
  3. शोर ग्रहण करने वाले का भी बचाव किया जाए।
  4. आवासीय क्षेत्रों में उच्च ध्वनि वाले लाउडस्पीकरों पर कड़ा प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  5.  औद्योगिक शोर को प्रतिबन्धित करने के लिए यथा-स्थान अधिक-से-अधिक साइलेंसर लगाए जाने चाहिए।
  6. वाहनों की ध्वनि को नियन्त्रित करने के समस्त तकनीकी उपाय करने चाहिए। ऊँची ध्वनि वाले हॉर्न नहीं लगाए जाने चाहिए।
  7.  जहाँ तक सम्भव हो मकानों को अधिक-से-अधिक साउण्ड पूफ बनाया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

स्रोत:
(1) नाभिकीय विखण्डन,
(2) परमाणु भट्टियों से उत्पन्न रेडियोधर्मी उत्पाद।

वातावरण पर प्रभाव:
रेडियोधर्मी पदार्थ वायु एवं जल-प्रदूषण करते हैं।

रेडियोधर्मी प्रदूषक:
कार्बन-14, स्ट्रांशियम-90, केसियम, आयोडीन आदि।

जनजीवन पर प्रभाव:

  1.  ल्यूकीमिया व कैन्सर जैसे असाध्य रोग।
  2. अंगों में विकास के समय उत्पन्न विकृतियाँ।
  3.  गुणसूत्रों पर कुप्रभाव जो कि आनुवंशिक हो जाता है।

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प्रश्न 2:
मृदा-प्रदूषण अर्थात् मिट्टी के प्रदूषण के सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का एक स्वरूप मृदा-प्रदूषण’ भी है। मृदा-प्रदूषण का अर्थ है किसी क्षेत्र की मिट्टी का प्रदूषित हो जाना। मिट्टी या भूमि का सीधा सम्बन्ध वनस्पतियों अर्थात् पेड़-पौधों से होता है। मृदा-प्रदूषण की दशा में मिट्टी में विजातीय तथा हानिकारक तत्त्वों का समावेश हो जाता है। मिट्टी का निरन्तर सम्पर्क वायु तथा जल से होता है। अत: यदि जल एवं वायु में प्रदूषण की दर में वृद्धि होती है। तो निश्चित रूप से मृदा-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। फसलों की सिंचाई के लिए निरन्तर जल की आवश्यकता होती है। अत: यदि प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई का कार्य किया जाए तो मिट्टी भी प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वायु-प्रदूषण की दशा में वर्षा होने पर वायु की (UPBoardSolutions.com) अशुद्धियाँ मिट्टी में मिल जाती हैं। मृदा-प्रदूषण का सीधा प्रभाव हमारी फसलों पर पड़ता है। फसलों एवं उनसे प्राप्त खाद्य-पदार्थों के विजातीय तत्त्वों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार के खाद्य-पदार्थों के सेवन से मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है। मृदा-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए अलग से कोई विशेष उपाय करने आवश्यक नहीं होते। इसके लिए जल एवं वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित कर लेना ही पर्याप्त माना जाता है। यदि वायु एवं जल-प्रदूषण को नियन्त्रित कर लिया जाए, तो मृदा-प्रदूषण की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी।

प्रश्न 3:
जंगलों को जनजीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मानव जाति ने प्राचीनकाल से ही जंगलों कों निज स्वार्थ में ईंधन, फर्नीचर एवं भवन-निर्माण सामग्री की लकड़ी के स्रोतों की तरह प्रयोग किया है। इसके अनेक दुष्परिणाम धीरे-धीरे मानव जाति को ही भुगतने पड़े हैं। वनों का जनजीवन में महत्त्व निम्नलिखित है

  1. प्रत्येक परिस्थिति में मानव जीवन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर होता है। गैसों, खनिज लवणों, पोषक पदार्थों आदि के आदान-प्रदान से मनुष्य तथा वनस्पतियाँ, एक-दूसरे का जीवन सम्भव बनाते हैं। जंगलों के विनाश के दुष्परिणाम हैं प्राकृतिक विपदाएँ; जैसे–सूखा व बाढ़
    आदि।
  2. वनों के हरे पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन गैसों का वायुमण्डल में सन्तुलन बनाए रखते हैं। वनों के विनाश के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है जो कि एक हानिकारक स्थिति है।

प्रश्न 4:
वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की निरन्तर बढ़ रही प्रतिशत मात्रा से क्या दुष्परिणाम सम्भव हैं?
उत्तर:
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा में वृद्धि के कारण हैं
(1) कोयला, पेट्रोल व डीजल आदि को दहन तथा
(2) वनों का विनाश। वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड के बढ़ने की यदि यह गति बनी रही तो आगामी 40 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में लगभग तीन डिग्री सेण्टीग्रेड (UPBoardSolutions.com) तक वृद्धि होने की सम्भावना है। इसका परिणाम होगा विभिन्न देशों की जलवायु में परिवर्तन; उत्तरी अमेरिका व रूस में वर्षा में कुछ कमी तथा पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सहारा का क्षेत्र व भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा में कुछ वृद्धि होगी। इससे हमारे देश में बाढ़, प्रदूषण व मृदा अपरदन आदि की समस्याओं में वृद्धि होगी।

पृथ्वी का तापमान बढ़ जाने के कारण दोनों ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने के कारण समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि हो जाएगी, जिसके कारण समुद्र के किनारे पर स्थित कई नगर व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पर्यावरण से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति के सन्दर्भ में व्यक्ति के अतिरिक्त इस सृष्टि में जो कुछ भी विद्यमान है, वह सब कुछ सम्मिलित रूप से पर्यावरण है।

प्रश्न 2:
पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप हैं प्राकृतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण।

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प्रश्न 3:
पर्यावरण के किस स्वरूप का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है?
उत्तर:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है।

प्रश्न 4:
पर्यावरण-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर:
पर्यावरण के किसी एक या एक से अधिक भागों का दूषित हो जाना ही पर्यावरण-प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण-प्रदूषण अपने आप में पर्यावरण की एक हानिकारक दशा है।

प्रश्न 5:
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूप हैं

  1. वायु-प्रदूषण,
  2.  जल-प्रदूषण,
  3. ध्वनि-प्रदूषण तथा
  4. मृदा-प्रदूषण।

प्रश्न 6:
पर्यावरण-प्रदूषण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि किस युग में हुई है? उत्तर–आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रश्न 7-पर्यावरण-प्रदूषण के चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1.  औद्योगीकरण एवं नगरीकरण,
  2.  वृक्षों की अत्यधिक कटाई,
  3.  तू अवशिष्ट पदार्थों में वृद्धि,
  4. स्वचालित वाहनों की वृद्धि।

प्रश्न 8:
क्या आपके विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
हमारे विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त नहीं केवल नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 9:
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के किस पक्ष पर पड़ता है?
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

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प्रश्न 10:
जल कैसे दूषित होता है?
उत्तर:
मनुष्यों द्वारा वाहित मल, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों, कीटनाशकों, साबुन व डिटर्जेण्ट्स आदि के नदी, झील अथवा तालाब आदि के जल में मिल जाने से जल दूषित हो जाता है।

प्रश्न 11:
वायु-प्रदूषण का क्या कारण है?
उत्तर:
वायु-प्रदूषण का कारण है-वायु में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ जाना।

प्रश्न 12:
सल्फर डाइऑक्साइड से मनुष्य को क्या रोग हो जाता है?
उत्तर:
फेफड़ों के ऊतक कुप्रभावित होते हैं तथा पुरानी खाँसी का रोग हो जाता है।

प्रश्न 13:
फेफड़ों का केंसर सर किस गैस के प्रदूषण से होता है?
उत्तर:
नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, तथा NO) फेफड़ों के कैंसर की सम्भावनाओं में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 14:
वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोग हैं
(1) टायफाइड तथा
(2) पीलिया।

प्रश्न 15:
पारे व सीसे के यौगिक मनुष्य को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
ये मछलियों के शरीर में पहुँच जाते हैं। इन मछलियों को खाने से मनुष्य के नेत्रों व मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 16:
ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर:
शोर तथा उसकी तीव्रता का बढ़ जाना ही ध्वनि-प्रदूषण है।

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प्रश्न 17:
ध्वनि या शोर की इकाई क्या है?
उत्तर:
ध्वनि या शोर की इकाई डेसीबेल है।

प्रश्न 18:
पर्यावरण से सम्बन्धित किन्हीं दो दण्डनीय अपराधों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) वनों एवं सार्वजनिक स्थलों के वृक्षों को काटना तथा
(2) वन्य प्राणियों; जैसे–चीता, शेर, हिरन आदि का शिकार करना।

प्रश्न 19:
भूमि-प्रदूषण को मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भू-प्रदूषण के जनजीवन पर होने वाले कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. फसल की पैदावार कम होने से किसानों को आर्थिक क्षति होती है तथा
  2.  भूमि में रोगाणुओं के पनपने से अनेक रोग फैल जाते हैं।

प्रश्न 20:
वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है?
उत्तर:
वस्तुओं के जलने से मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें बनती

प्रश्न 21:
मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी क्यों माना गया है?
उत्तर:
मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी माना गया है; क्योंकि इनसे निकली अनेक हानिकारक गैसें; प्रमुखतः गैसीय हाइड्रोकार्बन्स, नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ सूर्य के प्रकाश में विषैला प्रकाश संश्लेषी स्मॉग बना लेती हैं, जो प्राणियों के लिए हानिकारक हैं।

प्रश्न 22:
औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से किस प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि होती है?
उत्तर:
औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से वायु-प्रदूषण में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 23:
कारखानों से निकलने वाली गैसें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। क्यों?
उत्तर:
कारखानों से निकलने वाली गैसें विषैली होती हैं। ये विषैली गैसें सल्फर व कार्बन की ऑक्साइड आदि होती हैं जो अनेक रोगों को उत्पन्न करती हैं या शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं, जिससे रोगाणु क्रिया करने में सफल हो जाते हैं।

प्रश्न 24:
क्या कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं?
उत्तर:
हाँ, कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं क्योंकि इनसे तपेदिक, कैंसर, दमा, श्वास आदि रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 25:
रसोईघर में किस प्रकार के ईंधन को इस्तेमाल करके वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
रसोईघर में रसोई गैस, बायो गैस तथा धुआँ-रहित मिट्टी के तेल के स्टोव तथा आधुनिक धुआँ-रहित चूल्हों को इस्तेमाल करके वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि करने वाले कारक हैं
(क) औद्योगीकरण,
(ख) नगरीकरण,
(ग) यातायात के शक्ति-चालित साधन,
(घ) ये सभी।

(2) कीटनाशक दवाओं ने किस समस्या को बढ़ावा दिया है?
(क) हरित क्रान्ति को,
(ख) औद्योगीकरण को,
(ग) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(घ) आर्थिक समृद्धि को।

(3) ध्वनि-प्रदूषण के कारण हैं
(क) लाउडस्पीकर,
(ख) वाहनों के हॉर्न,
(ग) सायरन,
(घ) ये सभी।

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(4) शोर या ध्वनि को मापने की इकाई है
(क) कैलोरी,
(ख) किलोग्राम,
(ग) सेण्टीमीटर,
(घ) डेसीबेल।

(5) सूर्य के प्रकाश की अनावश्यक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है वायुमण्डल में उपस्थित
(क) ऑक्सीजन,
(ख) कार्बन डाई-ऑक्साइड,
(ग) ओजोन,
(घ) नाइट्रोजन।

(6) रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण होने वाला असाध्य रोग है
(क) टायफाइड,
(ख) चेचक,
(ग) कैन्सर,
(घ) डिफ्थीरिया।

(7) वायुमण्डल की ओजोन की परत में छिद्र करने वाला प्रदूषक है
(क) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन,
(ख) पी०सी० बी०,
(ग) डी० डी० टी०,
(घ) एल्ड्रीन।

(8) जल में डी० डी० टी० की मात्रा में वृद्धि से सम्भावना बढ़ जाती है
(क) फेफड़ों के कैन्सर की,
(ख) ल्यूकीमिया की,
(ग) पेट में अल्सर की,
(घ) लिवर के कैन्सर की।

(9) मछलियों एवं अन्य समुद्री प्राणियों के विनाश का प्रायः कारण बना करता है
(क) तैलीय-प्रदूषण,
(ख) वायु-प्रदूषण,
(ग) रेडियोधर्मी-प्रदूषण,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(10) निम्नलिखित में कौन-सा रोग वाहित मल द्वारा दूषित जल से होता है?
(क) चेचक,
(ख) काली खाँसी,
(ग) टायफाइड,
(घ) विषैला भोजन।

(11) पौधे वायुमण्डल का शुद्धिकरण करते हैं
(क) नाइट्रोजन द्वारा,
(ख) ऑक्सीजन द्वारा,
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा,
(घ) पानी द्वारा।

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(12) कारखानों की चिमनियों के धुंए से प्रदूषण होता है
(क) जलीय-प्रदूषण,
(ख) ध्वनि-प्रदूषण,
(ग) मृदीय-प्रदूषण,
(घ) वायु-प्रदूषण।

(13) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण ने बढ़ावा दिया है
(क) पर्यावरण की स्वच्छता को,
(ख) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(ग) पर्यावरण के रख-रखाव को,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(14) वर्तमान औद्योगिक जगत् की गम्भीर समस्या है ।
(क) बेरोजगारी,
(ख) महँगाई,
(ग) भिक्षावृत्ति,
(घ) पर्यावरण-प्रदूषण।

उत्तर:
(1) (घ) ये सभी,
(2) (ग) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(3) (घ) ये सभी,
(4) (घ) डेसीबेल,
(5) (ग) ओजोन,
(6) (ग) कैन्सर,
(7) (क) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन,
(8) (घ) लिवर के कैन्सर की,
(9) (क) तैलीय-प्रदूषण,
(10) (ग) टायफाइड,
(11) (ख) ऑक्सीजन द्वारा,
(12) (घ) वायु प्रदूषण,
(13) (ख) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(14) (घ) पर्यावरण-प्रदूषण।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर के लिए आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए। रोगी का बिस्तर लगाते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
उत्तर:
रोगी के बिस्तर के लिए आवश्यक वस्तुएँ . रोगी को आरामदायक बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है

  1.  पलंग: भली-भाँति कसा हुआ बान, निवाड़ अथवा स्प्रिंगदार पलंग लगभग हर दृष्टिकोण से उपयुक्त रहता है।
  2.  दरी: सबसे नीचे बिछाने के लिए मोटी दरी अथवा टाट।
  3.  गद्दा: लगभग 6-7 सेन्टीमीटर मोटा मंजबूत गद्दा।
  4.  चादर: दो या तीन सफेद व स्वच्छ चादर।
  5. ड्रॉ: शीट-मोमजामे के टुकड़े के नाप की छोटी चादर।
  6.  मोमजामे का टुकड़ा: चादर से लगभग आधी नाप का।
  7.  ओढ़ने का सामान:  मौसम के अनुसार भारी अथवा हल्का कम्बल अथवा लिहाफ।
  8.  तकिया: मुलायम रुई या हवा वाले दो तकिए।

रोगी का बिस्तर लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें

रोगी का बिस्तर लगाते समय आवश्यक वस्तुओं का उपयोग विधिपूर्वक करना अधिक उपयुक्त रहता है। यह कार्य निम्नलिखित चरणों में किया जाता है

  1. सर्वप्रथम दरी बिछाई जाती है। दरी को पलंग की चूल व पाटी आदि के साथ बाँध देना चाहिए ताकि बिछाए जाने के पश्चात् बिस्तर फिसलने न पाए।
  2.  दरी बिछाने के पश्चात् उस पर गद्दा बिछाना चाहिए।
  3.  गद्दे के ऊपर चादर बिछायें। चादर को चारों ओर से मोड़कर गद्दे के नीचे दबा देना उचित रहता है। इसके लिए पहले सिरहाने की ओर से तथा फिर पैरों की ओर तथा सबसे अन्त में लम्बाई की ओर से सलवटें निकाल देनी चाहिए।
  4. अब चादर पर मोमजामे का टुकड़ा बिछाया जाता है। यह चौड़ाई में चादर को लगभग आधा होता है। तथा लम्बाई में तकिए के सिरे से रोगी के घुटनों तक होता है। यह बिस्तर को गीला नहीं होने देता।
  5. रोगी को गीलेपन से बचाने तथा स्वच्छ स्थिति में रखने के लिए ड्रॉ-शीट का प्रयोग किया जाता है। यह चादर व गद्दे को भी सुरक्षित रखती है। इस छोटी चादर को इस (UPBoardSolutions.com) प्रकार बिछाया जाता है कि मोमजामा पूर्ण रूप से ढक जाए। मोमजामे में और ड्रॉ-शीट में सलवटें नहीं रहनी चाहिए।
  6. ऊपर की चादर इस प्रकार बिछाए कि यह बिस्तर को पूर्णरूप से ढक ले। इसे चारों ओर से लिफाफे के कोनों की तरह मोड़ देना चाहिए।
  7. मौसम के अनुसार ओढ़ने के लिए जो भी चादर, कम्बल अथवा लिहाफ हो उसे रोगी के पैरों की तरफ भली-भाँति तह बनाकर रखना चाहिए। |
  8. यदि ओढ़ने के लिए कम्बल देना है, तो चादर के ऊपर कम्बल को इस प्रकार लगाना चाहिए कि चादर सिरहाने की ओर कम-से-कम 15-20 सेन्टीमीटर बाहर निकली रहे। अब इसको कम्बल के ऊपर मोड़ देना उपयुक्त रहेगा। इस प्रकार की व्यवस्था से कम्बल रोगी को चुभेगा नहीं तथा कम्बल के इस भाग को गन्दा होने से बचाया जा सकेगा।
  9.  सिरहाने के लिए मुलायम व आरामदायक तकिया लगा देना चाहिए।

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प्रश्न 2:
रोगी का बिस्तर कितने प्रकार का हो सकता है? बिस्तर लगाने की विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोगी के विभिन्न प्रकार के बिस्तर–अलग-अलग प्रकार के रोगियों के लिए अलग प्रकार के बिस्तर प्रयोग किए जाते हैं। ये प्रायः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. साधारण बिस्तर,
  2.  विशेष बिस्तर,
  3.  ऑपरेशन का बिस्तर,
  4. अस्थि-भंग का बिस्तर,
  5. जले का बिस्तर,
  6. कम्बल का बिस्तर।

विभिन्न प्रकार के बिस्तर लगाना

बिस्तर लगाते समय रोगी के आराम व सुविधाओं का अधिकाधिक ध्यान रखना चाहिए। भिन्न-भिन्न रोगियों के लिए उनकी सुविधा एवं दशा के दृष्टिकोण से निम्न प्रकार के बिस्तर लगाना उपयुक्त रहता है

(1) साधारण बिस्तर:
बिस्तर लगाने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1.  पलंग की निवाड़, स्प्रिंग आदि ठीक प्रकार कसी हों,
  2.  पलंग दीवार से इतनी दूरी पर हो कि परिचारिका को उसके चारों ओर पर्याप्त स्थान मिल सके तथा
  3. रोगी को तीव्र वायु अथवा धूप न लगे।

पलंग पर पहले दरी बिछाई जाती है। ध्यान रहे कि दरी में सलवटें न हों। सिकुड़ने से बचाने के लिए दरी को पलंग के साथ बाँध देना चाहिए। अब गद्दा बिछाया जाता है। गद्दे के ऊपर सफेद चादर बिछाते समय सलवटों को दूर किया जाता है। चादर को गद्दे के चारों ओर दबा देना चाहिए। मौसम के अनुसार लिहाफ, कम्बल या चादर को ओढ़ने के प्रयोग में लाया जाता है। इन्हें भली प्रकार से तह बनाकर पलंग पर रोगी के पैरों की ओर रख दिया जाता है। सिर के नीचे एक मुलायम तकिया रख दिया जाता है और अन्त में रोगी को लिटाकर उसे छाती तक आवश्यक कपड़े से ढक देते हैं। ओढ़ने वाले कपड़े को तीनों ओर से गद्दे के नीचे दबा देना उपयुक्त रहता है ताकि अनजाने में रोगी के इधर-उधर होने से यह सिकुड़ने न पाए।

(2) विशेष बिस्तर:
यदि रोगी ठीक प्रकार से उठ-बैठ नहीं सकता तो उसके लिए विशेष बिस्तर लगाना सुविधाजनक रहता है। इस प्रकार के बिस्तर में सामान्य बिस्तर के अतिरिक्त रबर-शीट तथा ड्रॉ-शीट लगाई जाती है। रबर-शीट के स्थान पर मोमजामा या रैक्सीन भी लगाई जा सकती है। यह रोगी की कमर से (UPBoardSolutions.com) घुटने तक की लम्बाई की होती है। पहले रबर-शीट लगाकर फिर उसके ऊपर ड्रॉ-शीट (छोटी चादर) बिछाई जाती है। रबर-शीट व ड्रॉ-शीट की सलवटें निकालकर चौड़ाई में दोनों ओर गद्दे के नीचे दबा देनी होती है ताकि यह फिर से सिकुड़ने न पाए।

(3) ऑपरेशन का बिस्तर:
ऑपरेशन अथवा शल्य-क्रिया वाले रोगी का बिस्तर भी विशेष बिस्तर की ही तरह होता है। इसमें एक तौलिया तथा एक रबर-शीट अथवा मोमजामे का टुकड़ा अलग से रखी जाता है, जिससे कि रोगी के वमन करने से अथवा दूध व चाय आदि के फैलने पर ब्रिस्तर गन्दा न होने के पाए। रोगी के बिस्तर के नीचे चिलमची तथा मल-मूत्र विसर्जन पात्र भी रखे जाते हैं।

(4) अस्थि-भंग का बिस्तर:
हड्डी टूटने पर प्रायः रोगी को एक लम्बी अवधि तक बिस्तर पर लेटना पड़ता है। अतः उसे एक-सा चौरस बिस्तर चाहिए। मेरुदण्ड अथवा कूल्हे की हड्डी टूटने पर रोगी सीधा नहीं लेट पाता तथा पैर की हड्डी टूटने पर रोगी को पैर कुछ ऊँचा उठाकर रखना होता है। ऐसी अवस्था में फ़ैक्चर बोर्ड अथवा बैड-कैडिल की आवश्यकता पड़ती है। ये प्रायः 2.5 सेमी मोटे, 30 सेमी चौड़े तथा एक मीटर लम्बे होते हैं। इनका उपयोग घायल के टूटे अंगों पर वस्त्रों के भार को रोकने के लिए किया जाता है।

(5) जले का बिस्तर:
यह भी एक प्रकार से विशेष बिस्तर ही होता है। जले हुए स्थान पर अक्सर न तो पट्टी ही बाँधी जाती है और न ही इसे कपड़े से ढकना सरल होता है। जले हुए स्थान से प्रायः पानी स्रावित होता रहता है; अतः इसके लिए विशेष व्यवस्था की आवश्यकता होती है। बिस्तर पर रबर-शीट या मोमजामे (UPBoardSolutions.com) काटुकड़ा बिछाकर उसे ड्रॉ-शीट से ढक दिया जाता है। जले हुए स्थान के ऊपर बैड-कैडिल का उपयोग कर इसे महीन कपड़े अथवा कम्बल इत्यादि से मौसम के अनुसार ढक दिया जाता है।

(6) कम्बल का बिस्तर:
कुछ विशेष प्रकार के रोगियों के लिए कम्बलों के बिस्तर की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए-हृदय रोग तथा गठिया आदि से पीड़ित व्यक्ति। ऐसा इसलिए आवश्यक होता है कि रोगी को पूरी तरह से गर्म रखना होता है। इस प्रकार के बिस्तर में गद्दे बिछाने तक की क्रिया एक सामान्य बिस्तर की तरह होती है। इसमें गद्दे के ऊपर एक अथवा दो कम्बल बिछाए जाते हैं। ओढ़ने के लिए रोगी को कम्बल ही दिया जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के बिस्तर की चादर बदलने की विधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोगी के बिस्तर की चादर बदलना

प्रत्येक प्रकार के बिस्तर का बाह्य अथवा ऊपरी आवरण चादर होती है; अत: बिस्तर की स्वच्छता बनाए रखने के लिए नियमित रूप से चादर बदलते रहना अति आवश्यक है। (UPBoardSolutions.com) यह कार्य रोगी की अवस्था एवं सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए सतर्कता एवं विधिपूर्वक करना होता है। यदि रोगी बिस्तर से उठने में असमर्थ हो, तो उसके बिस्तर की चादर बदलने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाना चाहिए
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

  1.  चादर बदलने के लिए दो परिचारिकाओं का होना अधिक सुविधाजनक रहता है।
  2.  सर्वप्रथम एक स्वच्छ सफेद चादर को उसकी लम्बाई के आधे भाग में लपेटकर पास की मेज । पर रख दें।
  3. रोगी के ऊपर केवल चादर छोड़कर बिस्तर के शेष कपड़े हटाकर धूप में रख देने चाहिए।
  4. एक परिचारिका को रोगी के ऊपर झुककर अपने हाथ उसकी कमर व पुट्ठों के पीछे रखकर उसे धीरे से अपनी ओर करवट दिलानी चाहिए। दूसरी परिचारिका इस बीच रोगी को सावधानीपूर्वक ढके रखे तथा सँभाले रहे।
  5. अब बिस्तर पर बिछी चादर को धीरे से लपेटकर रोगी की पीठ के पास ले जाना चाहिए। पुरानी चादर के रिक्त स्थान पर मेज पर तह की हुई चादर बिछाए।
  6.  उपर्युक्त विधि के अनुसार रोगी को दूसरी ओर करवट दिलाए। अब पुरानी चादर के शेष भाग को हटाकर नई चादर को पूरी तरह बिछा दें।
  7. अब नई चादर को चारों ओर से सावधानीपूर्वक थोड़ा खींचकर उसकी सलवटें हटा दें और नीचे लटकने वाले भाग को गद्दे के नीचे अच्छी प्रकार से दबा दें।
  8. इसी प्रकार रबर-शीट एवं ड्रॉ-शीट (छोटी चादर) को लगाना चाहिए। रोगी को धीरे-धीरे साफ बिस्तर की ओर करवट बदलवा देनी चाहिए।
  9. अब दूसरी ओर जाकर पुराने कपड़ों को निकाल देना चाहिए। रबर-शीट एवं ड्रॉ-शीट की शेष तहों को खोलकर फैला देना चाहिए। पूर्व तरह से नीचे लटकते हुए भागों को चारों ओर से मोड़कर दबा देना चाहिए।
  10. सबसे बाद में ऊपर की चादर एवं कम्बल को बदलना चाहिए।

उपर्युक्त प्रक्रिया उन रोगियों के लिए है जो कि ठीक प्रकार से उठ-बैठ नहीं सकते। अन्य उठने व चलने योग्य रोगियों के बिस्तर की चादर बदलने का कार्य एक ही परिचारिका सरलतापूर्वक कर सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोगी के बिस्तर की मुख्य विशेषताएँ

रुग्णावस्था में प्रायः व्यक्ति को एक लम्बी अवधि बिस्तर पर लेटकर व्यतीत करनी पड़ती है; अतः रोगी के लिए बिस्तर का अत्यधिक महत्त्व होता है। एक अच्छे एवं उपयुक्त बिस्तर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होनी चाहिए|

(1) रोग के अनुकूल बिस्तर:
रोग के अनुकूल बिस्तर से रोगी को अधिक सुविधाएँ एवं आराम मिलता है। उदाहरण के लिए-गठिया एवं हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कम्बलों का बिस्तर अधिक उपयुक्त रहता है।

(2) स्वच्छ बिस्तर:
साफ-सुथरा एवं स्वच्छ बिस्तर हर प्रकार के रोगी के लिए लाभदायक रहता। है। बिस्तर की अधिकांश वस्तुएँ; जैसे-दरी, चादर व तकिए के गिलाफ आदि सूती कपड़े के होने चाहिए ताकि उन्हें अच्छी प्रकार गर्म पानी से धोकर साफ किया जा सके। रोगी के बिस्तर को प्रतिदिन तीव्र धूप में सुखाना (UPBoardSolutions.com) चाहिए। ऐसा करने से खटमल आदि के होने का भय नहीं रहता है तथा अनेक प्रकार के अन्य कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार स्वच्छ एवं कीटाणुरहित बिस्तर शीघ्र स्वास्थ्य प्राप्त करने में रोगी की सहायता करता है।

(3) आरामदायक बिस्तर:
सलवटरहित कोमल बिस्तर रोगी को पर्याप्त आराम देता है; अतः समय-समय पर रोगी के बिस्तर से सलवटें दूर करते रहना चाहिए।

(4) ऋतु के अनुकूल बिस्तर:
ग्रीष्म ऋतु में रोगी को ओढ़ने के लिए महीन सूती चादर तथा शीत ऋतु में कम्बल अथवा लिहाफ देना सुविधाजनक रहता है।

(5) प्रकाशएवं वायु की उचित व्यवस्था:
रोगी का बिस्तर कमरे में ऐसी स्थिति में होना चाहिए कि प्रकाश एवं वायु उस पर सीधे न आएँ। ऐसा न होने पर रोगी कष्ट एवं बेचैनी का अनुभव कर सकता है।

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प्रश्न 2:
शय्या घाव से आप क्या समझती हैं? शय्या घाव के कारणों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शय्या घाव तथा उनके कारण यदि कोई व्यक्ति किसी गम्भीर रोग अथवा दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटा रहता है तथा सामान्य रूप से (UPBoardSolutions.com) करवट भी नहीं बदल पाता तो उस स्थिति में व्यक्ति के शरीर के कुछ भागों में एक विशेष प्रकार के घाव हो जाते हैं। इस प्रकार के घावों को शय्या घाव (bed sore) कहते हैं। शय्या घाव हो जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं

(1) सलवटों वाला बिस्तर:
रोगी के बिस्तर की सलवटों की चुभन व रगड़ के कारण इस प्रकार के घाव बन जाया करते हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

(2) बिस्तर की नमी-रोगी के हाथ:
मुँह धुलाते समय अथवा स्पंज कराते समय कई बार बिस्तर नम हो जाता है। पसीने से भी बिस्तर में नमी आ सकती है। ऐसे बिस्तर का उपयोग प्रायः रोगी को शय्या घाव अथवा शय्या-क्षत का शिकार बना देता है।

(3) अन्य कारण:
रोगी को मधुमेह रोग होना तथा पीठ के छिलने पर असावधानी करना आदि अन्य ऐसे कारण हैं जो कि शय्या घाव को बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 3:
शय्या घाव के बचाव एवं उपचार के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शय्या घाव का बचाव एवं उपचार जहाँ तक हो सके इस बात का प्रयास करना चाहिए कि रोगी को शय्या घाव होने ही न पाएँ। इसके लिए रोगी को समय-समय पर करवट बदलवाते रहना चाहिए, शरीर को साफ एवं सूखा रखें तथा नित्य प्रति कोई अच्छा पाउडर लगाते रहें। इन साधारण (UPBoardSolutions.com) सावधानियों के अतिरिक्त अब शय्या के बचाव के लिए हवा तथा पानी वाले गद्दे भी तैयार कर लिए गए हैं। इन गद्दों के इस्तेमाल से रोगी को शय्या घाव से बचाया जा सकता है। परन्तु यदि दुर्भाग्यवश रोगी को शय्या घाव हो जाएँ तो निम्नलिखित उपचार किए जाने चाहिए

  1.  साबुन के झाग बनाकर शय्या घाव के स्थान पर धीरे-धीरे मलकर स्वच्छ पानी से धोने पर रोगी को काफी आराम मिलता है।
  2.  साबुन के झाग से साफ करने के पश्चात् शय्या घाव के स्थान को स्प्रिट से साफ कर जिंक अथवा बोरिक पाउडर लगाने पर शय्या घाव धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं।
  3. शय्या घाव के अधिक फैलने पर प्रभावित स्थान पर साइकिल के ट्यूब के आकार के रबर के घेरे अथवा रिंग कुशन का प्रयोग करना चाहिए। इससे घाव बिस्तर से रगड़ नहीं खाता तथा इसे उपर्युक्त उपचारों द्वारा ठीक किया जा सकता है।
  4.  शय्या घाव के उपचार के लिए अनेक बार शल्य-क्रिया भी की जाती है। इससे संक्रमण को नियन्त्रित किया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के लिए बिस्तर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रुग्णावस्था की अवधि को आराम एवं सुविधापूर्वक व्यतीत करने के लिए रोगी को एक उपयुक्त बिस्तर की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 2:
ड्रॉ-शीट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह सामान्य चादर से लगभग आधे आकार की सफेद चादर होती है जिसे रबर-शीट के ऊपर बिछाया जाता है। इसको बिछाने से पूरा बिस्तर गन्दा या गीला होने से बच जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के बिस्तर में गद्दे का क्या उपयोग है?
उत्तर:
गद्दे का प्रयोग प्रायः रोगी के बिस्तर को कोमल तथा आरामदायक बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4:
रबर-शीट अथवा मोमजामे के प्रयोग से क्या लाभ है?
उत्तर:
मुख्य बिस्तर को गीला व गन्दा होने से बचाने के लिए रोगी के बिस्तर में रबर-शीट अथवा मोमजामे का टुकड़ा लगाया जाता है।

प्रश्न 5:
बैड-क्रैडिल का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
बैड-क्रैडिल का प्रयोग रोगी के जलने अथवा अस्थि-भंग होने की अवस्था में किया जाता है।

प्रश्न 6:
गठिया अथवा हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए किस प्रकार का बिस्तर उपयुक्त रहता है?
उत्तर:
गठिया अथवा हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कम्बलों का बिस्तर उपयुक्त रहता है।

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प्रश्न 7:
ठीक प्रकार से उठ-बैठ न सकने वाले रोगी के बिस्तर की चादर बदलने में कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस प्रकार के रोगियों के बिस्तर की चादर बदलते समय दो व्यक्तियों का होना सुविधाजनक रहता है।

प्रश्न 8:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर क्यों बिछाते हैं?
उत्तर:
क्योंकि सूती चादर रोगी को पसीना सोख लेती है तथा इसे खौलते पानी में धोकर सहज ही नि:संक्रमित किया जा सकता है।

प्रश्न 9:
रोगी के बिस्तर के लिए कौन-कौन सी आवश्यक सामग्री चाहिए?
उत्तर:
रोगी को आरामदायक बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए एक पलंग, दरी, गद्दा, चादर, ड्रॉशीट, एक मोमज़ामे का टुकड़ा, ओढ़ने की उपयुक्त सामग्री एवं तकिए आदि की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 10:
शव्या घाव वाले रोगी के बिस्तर पर क्या बिछाना उपयुक्त है ताकि इससे लाभ हो सके?
उत्तर:
भेड़ की खाल बिछाने से शय्या घाव में लाभ होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) कम्बलों का बिस्तर किस रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है?
(क) शय्या-क्षत,
(ख) गठिया,
(ग) शल्य-क्रिया,
(घ) अस्थि भंग।

(2) बैड-क्रैडिल का प्रयोग करते हैं
(क) गठिया के रोगी के लिए,
(ख) शय्या घाव के रोगी के लिए,
(ग) दमे के रोगी के लिए,
(घ) जले के रोगी के लिए।

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(3) ड्रॉ-शीट होती है
(क) एक छोटी सूती चादर,
(ख) मोमजामे का टुकड़ा,
(ग) रैक्सीन का टुकड़ा,
(घ) एक छोटा कम्बल।

(4) रोगी के बिस्तर पर रबड़शीट का प्रयोग किया जाता है
(क) बिस्तर को ठण्डा रखने के लिए,
(ख) बिस्तर को रोगी के मल-मूत्र से सुरक्षित रखने के लिए,
(ग) बिस्तर को सुन्दर बनाने के लिए,
(घ) रोगी को शय्या-घाव से बचाने के लिए।

(5) ठीक से उठ-बैठ न सकने वाले रोगी को चाहिए
(क) सामान्य बिस्तर,
(ख) कम्बलों का बिस्तर,
(ग) विशेष बिस्तर,
(घ) सलवटयुक्त बिस्तर।

(6) शय्या घाव होते हैं
(क) एक साधारण रोग के कारण,
(ख) दोषपूर्ण बिस्तर के कारण,
(ग) निरन्तर करवट बदले बिना लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहने के कारा,
(घ) इन सभी कारणों से।

(7) शय्या-क्षत का उपचार है
(क) सेंक करना,
(ख) रिंग कुशन लगाना,
(ग) बर्फ लगाना,
(घ) कुछ नहीं करना।

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(8) गम्भीर रोगी के बिस्तर पर हवा का गद्दा इस्तेमाल करके उसे बचाया जा सकता है
(क) संक्रमण से,
(ख) रोग की गम्भीरता से,
(ग) शय्या घाव से,
(घ) थकान से।

उत्तर:
(1) (ख) गठिया,
(2) (घ) जले के रोगी के लिए,
(3) (क) एक छोटी सूती चादर,
(4) (ख) बिस्तर को रोगी के मल-मूत्र से सुरक्षित रखने के लिए,
(5) (ग) विशेष बिस्तर,
(6) (ग) निरन्तर करवट बदले बिना लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहने के कारण,
(7) (ख) रिंग कुशन लगाना,
(8) (ग) शय्या घाव से।

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