UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा (कथा – नाटक कौमुदी)

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name भीमसेनप्रतिज्ञा (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 23
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा

परिचय- भरतमुनि ने अपने नाट्य-शास्त्र में लिखा है कि ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से ‘संवाद’, सामवेद से ‘संगीत’, यजुर्वेद से ‘अभिनय तथा अथर्ववेद से ‘रस’ के तत्त्वों को लेकर नाट्यवेद’ के नाम से पंचम वेद की रचना की। संस्कृत नाटकों की रचना के मुले-स्रोत रामायण, महाभारत तथा अन्य पौराणिक ग्रन्थ हैं। इनके आधार पर संस्कृत में अनेक नाटकों की रचनाएँ हुई हैं। । प्रस्तुत पाठ ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ का (UPBoardSolutions.com) संकलन श्री भट्टनारायण द्वारा रचित ‘वेणीसंहारम्’ नामक नाटक से किया गया है। वेणीसंहारम्’ की कथा मुख्य रूप से ‘महाभारत’ के ‘सभा-पर्व’ से ली गयी है। वैसे इस नाटक में उद्योग-पर्व’, ‘भीष्म-पर्व’, ‘द्रोण-पर्व’ तथा ‘शल्य-पर्व’ की भी कुछ घटनाओं का समावेश है। नाटककार के जीवन-काल के विषय में पुष्ट प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए थे।

पाठलाग प्रस्तुत पाठ में भीमसेन के चरित्र में वीर रस का परिपाक और नारी के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त हुआ है। पाठगत विषयवस्तु से प्राचीन भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है

क्रुद्ध भीमसेन के साथ सहदेव दर्शकों के सम्मुख रंगमंच पर उपस्थित होते हैं। उपस्थित होते ही भीमसेन इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि दुर्योधन ने पाण्डवों के विनाश के लिए अनेकानेक ओछे हथकण्डों को अपनाया है, अतः मेरे जीवित रहते हुए कौरव किसी प्रकार भी सुखी नहीं रह सकते हैं। भीमसेन के इस रोषपूर्ण वचन को सुनकर सहदेव उनसे शान्त रहने का आग्रह करते हुए आसन-ग्रहण करने का निवेदन करते हैं। आसन पर बैठते ही भीमसेन सहदेव से पूछते हैं कि सन्धि का क्या हुआ? सहदेव उन्हें बताते हैं कि वासुदेव कृष्ण दुर्योधन के पास मात्र पाँच-इन्द्रप्रस्थ, वृकप्रस्थ, जयन्त, वारणावत और एक अज्ञात नाम–ग्रामों को दिये जाने के लिए सन्धि-प्रस्ताव लेकर गये थे। इस पर भीमसेन आश्चर्यचकित होकर कहते हैं कि क्या पाँच ग्रामों की सन्धि?’ तत्पश्चात् वे (UPBoardSolutions.com) कहते हैं कि “ठीक है, मेरे ज्येष्ठ भाई किसी भी शर्त पर सन्धि करने के लिए भले ही तैयार हो जाएँ, किन्तु मैं जब तक कौरवों का सर्वनाश नहीं कर लूंगा, मुझे तब तक कोई भी सन्धि स्वीकार्य नहीं होगी। भीमसेन की इस रोषपूर्ण वाणी को सुनकर सहदेव बड़े विनीत भाव से उनसे कहते हैं कि ऐसा करने से तो वंश का नाश हो जाएगा। इस पर क्रुद्ध होकर भीमसेन कहते हैं, कि “उन पर तुझे भी तरस आता है; किन्तु मेरे सम्मुख वह दृश्य आज भी मूर्त रूप से खड़ा है, जिसमें भरी सभा में भीष्म, द्रोण, शकुनि, कर्ण और अन्यान्य जनों के सम्मुख द्रौपदी को अपमानजनक रूप में केश खींचकर लाया गया था और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया गया था। क्या तुझे उस दृश्य पर लज्जा नहीं आती?”

इसी बीच रंगमंच पर द्रौपदी आती है और वह उन दोनों से उनकी उद्विग्नता का कारण पूछती है। द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भीमसेन कहते हैं कि “पाण्डवों के सान्निध्य में रहते हुए भी पांचालराजतनया की ऐसी दीन अवस्था? क्या इससे बढ़कर उद्वेग का अन्य कोई कारण हो सकता है?’ भीमसेन के पीड़ा से भरे वचन सुनकर द्रौपदी उनके पास जाकर निवेदन करती है-“क्या उद्वेग का कोई अन्य कारण (UPBoardSolutions.com) भी है?’ भीमसेन उत्तर देते हैं कि “कौरव वंशरूपी दावानल में कौन कीट-पतंग के समान आचरण कर रहा है? मुक्तकेशिनी इस द्रौपदी को उस दावानल की धूमशिखा समझो।” बस, यहीं कथानक समाप्त हो जाता है।

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चरित्र चित्रण 

भीमसेन

परिचय- भीमसेन पाण्डु और कुन्ती का पुत्र तथा युधिष्ठिर का छोटा भाई था। वह पाण्डवों में सर्वाधिक बलशाली और सुगठित शरीर वाला था। उसने अज्ञातवास के समय युद्ध में सौ कौरवों को

मारने की प्रतिज्ञा की थी। वह युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण को सन्धि करने के लिए दूत बनाकर भेजने से क्रुद्ध हो जाता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) प्रतिशोधक उग्र स्वभाव- भीमसेन उग्र स्वभाव वाला बलशाली योद्धा है। वह परिस्थितिवश द्रौपदी के अपमान को किसी तरह सहन तो कर लेता है, परन्तु उसे अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है; यहाँ तक कि वह अपने अग्रज युधिष्ठिरसहित सभी भाइयों को (UPBoardSolutions.com) भी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए त्यागने को तैयार है। उसे प्रतिशोध लिये बिना किसी कीमत पर कौरवों से सन्धि स्वीकार्य नहीं है। इसीलिए वह कौरवों के नाश की बात को बड़ी उग्रवाणी में कहता है। उसका वचन, “भीमसेन के जीवित रहते हुए वे स्वस्थ नहीं रह सकते।’, उसके उग्र स्वभाव का ही उदाहरण है।।

(2) परम वीर- उग्र स्वभाव का होने के साथ-साथ वह परम वीर थे। उसे अपनी वीरता का पूर्ण विश्वास है, तभी तो वह चारों भाइयों को छोड़कर अकेले ही कौरवों से द्रौपदी के अपमान का बदला लेने की बात कहता है। उसके द्वारा युद्ध में सौ कौरवों को मारकर दु:शासन के लहू से द्रौपदी के केशों को सँवारने की प्रतिज्ञा भी उसकी वीरता का साक्ष्य प्रस्तुत करती है।

(3) अत्याचार- विरोधी व स्पष्ट वक्ता-अत्याचार करने वाले से अत्याचार को सहन करने वाला अधिक दोषी माना जाता है। इसलिए भीमसेन किसी अत्याचारे को सहन नहीं करना चाहता। वह द्रौपदी पर कौरवों द्वारा अत्याचार करने का भी विरोध करता है। उस अत्याचार के विरोध में परिस्थितिवश (UPBoardSolutions.com) वह अन्य कुछ तो नहीं कर पाता, किन्तु दुर्योधन की जंघा को तोड़कर वे दुःशासन की छाती को लहू पीकर द्रौपदी के वेणी-बन्धन की प्रतिज्ञा अवश्य करता है। वह सहदेव से स्पष्ट कह देता है कि चाहे सभी भाई सन्धि कर लें, किन्तु मैं सन्धि नहीं करूंगा। उसकी ये स्पष्ट और तर्कपूर्ण टिप्पणियाँ उसके स्पष्ट वक्ता होने का समर्थन करती हैं।

(4) बुद्धिमान्– भीमसेन पूर्ण क्रोधान्ध भी नहीं है, वरन् बुद्धिमान् भी है। वह प्रत्येक बात और उसके अन्तिम परिणाम को भली-भाँति सोचकर ही अपने भाव व्यक्त करता है। वह व्यक्ति के मुख-मण्डल को देखकर उसके अन्त:करण की बात को जान लेने में अति-निपुण है। मुक्तकेशिनी द्रौपदी को देखकर उसकी उदासी के कारण को वह जान लेता है, तभी तो वह कहता है–“इसमें पूछना ही क्या? तुम्हारे खुले केश ही कह रहे हैं कि तुम्हारी उदासी का क्या कारण है?” “

(5) नारी- सम्मान का पक्षधर-भीमसेन का चरित्र ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः सूक्ति से प्रेरित दिखाई पड़ती है। स्त्री का अपमान करने वाले को वह अक्षम्य मानता है, तभी तो वह प्रत्येक कीमत पर द्रौपदी को अपनी जंघा पर बिठाने की इच्छा करने वाले दुर्योधन की जंघा को तोड़ना तथा (UPBoardSolutions.com) द्रौपदी का केश-कर्षण करने वाले दुःशासन की छाती को विदीर्ण कर उसका लहू पीकर नारी-अपमान का बदला लेना चाहता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भीमसेन एक वीर, क्रोधी, बुद्धिमान, स्पष्ट वक्ता और नारी का सम्मान करने वाला क्षत्रिय है। इसके साथ ही उसमें स्वाभिमान, अदम्य साहस, दृढ़-प्रतिज्ञता और निर्भीकता जैसे अन्य गुण भी विद्यमान हैं।

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द्रौपदी

परिचय-‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ के रूप में संकलित नाट्यांश में भीमसेन और सहदेव ही मुख्य पात्र हैं, किन्तु इन दोनों के वार्तालाप का केन्द्रबिन्दु द्रौपदी ही है। वह नाट्यांश के उत्तरार्द्ध में मंच पर प्रवेश करती है और गिनती के संवाद ही बोलती है। उसको देखकर भीमसेन का क्रोध और अधिक भड़क उठता है। उद्दीपन के रूप में इस नाट्यांश में आयी द्रौपदी की कतिपय चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) मानिनी- द्रौपदी भरी सभा में कौरवों द्वारा किये गये अपने अपमान को भूल नहीं पाती। उसे अपने अपमान का उतना दु:ख नहीं है, जितना उसे इस अपमान को देखकर शान्त रहने वाले अपने पतियों की निर्लज्जता पर है। वह कुछ करने में समर्थ नहीं है; इसीलिए वह अपने पतियों को अपने (UPBoardSolutions.com) अपमान की निरन्तर याद दिलाते रहने के लिए अपने केशों को तब तक खुला रखने की प्रतिज्ञा करती है, जब तक कि वे उसके अपमान का बदला नहीं ले लेते।

(2) क्रोधिनी– मानिनी के साथ-साथ द्रौपदी क्रोधी स्वभाव की भी है। यही क्रोध तो उससे कौरवों का विनाश न होने पर अपने केशों को न सँवारने की प्रतिज्ञा कराता है।

(3) पतियों की अन्धसमर्थक नहीं- द्रौपदी अपने पतियों द्वारा लिये गये निर्णयों की अन्ध्रसमर्थक नहीं है। अपने अपमान पर शान्त रहने वाले पतियों की शान्त-प्रवृत्ति का वह अनुकरण । नहीं करती, वरन् इसके विपरीत आचरण करती है; तभी तो वह भीमसेन को अपने अपमान की बदला लेने के लिए उकसाती है।

(4) पतियों को फटकारने वाली- वह पतियों की उचित-अनुचित बातों को चुपचाप सहन नहीं करती, वरन् समय पर उनका प्रतिकार भी करती है। भीमसेन की बात सुनकर वह अपने शेष चार पतियों के विषय में मन-ही-मन कहती है–‘नाथ, न लज्जन्त एते।’ (नाथ! इनको लज्जा नहीं आती।) वह प्रत्यक्ष रूप में भी मीठी फटकार लगाती हुई कहती है-‘कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’

(5) तीखी, किन्तु मधुरा– द्रौपदी का स्वभाव यद्यपि तीखा है, किन्तु अवसरानुरूप वह मधुर व्यवहार भी करती है। इसमें ये दोनों विपरीत गुण उसी प्रकार समाहित हैं, जिस प्रकार से कटु दवा के ऊपर शक्कर की मीठी परत चढ़ी हो। यद्यपि भीमसेन के क्रोध का कारण वही है और वही (UPBoardSolutions.com) उसे भड़काती भी है, तथापि वह भीमसेन से अधिक क्रोध न करने के लिए कहकर अपने उपर्युक्त दोनों गुणों का परिचय सहज ही दे देती है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पौराणिक पात्र अवश्य है, किन्तु यहाँ पर वह अपने _ अधिकारों के प्रति सचेत रहने वाली आधुनिक नवयुवती का प्रतिनिधित्व भी करती है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
क्रुद्धो भीमसेनः केन अनुगम्यमानः प्रविशति?
उत्तर
क्रुद्धो भीमसेनः सहदेवेन अनुगम्यमानः प्रविशति।

प्रश्‍न 2
कृष्णः केन पणेन सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः?
उत्तर
कृष्णः पञ्चभिः ग्रामैः सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः।

प्रश्‍न 3
प्रतिज्ञा केन कूता?
उत्तर
प्रतिज्ञा भीमसेनेन कृता।

प्रश्‍न 4
भीमसेनेन का प्रतिज्ञा कृता?
उत्तर
भीमसेनेन कौरवशतं हन्तुं, दुःशासनस्य उरस्य रक्तं पातुं, दुर्योधनस्य ऊरूद्वयं गदया चूरयित्वा द्रौपद्या: केशान् सज्जीकर्तुं प्रतिज्ञामकरोत्।

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प्रश्‍न 5
सन्धिप्रस्तावे के पञ्चग्रामाः आसन्?
उत्तर
सन्धिप्रस्तावे इन्द्रप्रस्थः, वृकप्रस्थः, जयन्तः, वारणावतः कश्चिद् एकः ग्रामः च इति पञ्चग्रामीः आसन्।

प्रश्‍न 6
द्रौपद्याः क्रोधः केन प्रशमितः?
उत्तर
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन प्रशमितः।

प्रश्‍न 7
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन कथं प्रशमितः?
उत्तर
दु:शासनस्य उरस्य रक्तेन अनुरञ्जिताभ्यां हस्ताभ्यां केशानां संयमनस्य प्रतिज्ञां कृत्वा भीमसेनेने द्रौपद्या: क्रोधः प्रशमितः।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक | विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. भीमसेनप्रतिज्ञा’ नाट्यांश किस ग्रन्थ से संकलित है?
(क) “विक्रमोर्वशीयम्’ से ।
(ख) ऊरुभंगम्’ से ।
(ग) “वेणीसंहारम्’ से
(घ) “किरातार्जुनीयम्’ से

2. ‘वेणीसंहारम्’ नाटक के रचयिता कौन हैं?
(क) भट्टनारायण
(ख) भास
(ग) महाकवि कालिदास
(घ) भवभूति

3. ‘वेणीसंहारम्’ रचना का मूल-स्रोत कहाँ से लिया गया है?
(क) ‘किरातार्जुनीयम्’ के प्रथम सर्ग से :
(ख) ‘शिशुपालवधम् के तृतीय सर्ग से :
(ग) ‘महाभारत’ के विंदुर पर्व से
(घ) महाभारत के सभापर्व से ।

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4. ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ नामक नाटक का नायक कौन है?
(क) भीम
(ख) दुर्योधन
(ग) सहदेव
(घ) युधिष्ठिर

5. भीमसेन किस बात की प्रतिज्ञा करते हैं?
(क) दुर्योधन की जंघा तोड़ने की
(ख) सन्धि न मानने की
(ग) युधिष्ठिर से अलग होने की
(घ) द्रौपदी के वेणीसंहार की

6. ‘हज्जे बुद्धिमतिके, कथय नाथस्य। कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’ में ‘बुद्धिमतिका’ कहा गया है
(क) चेटी को
(ख) कुन्ती को
(ग) द्रौपदी को
(घ) सुभद्रा को ।

7. भीमसेन क्यों क्रोधित था? |
(क) क्योंकि वह जन्मजात क्रोधी स्वभाव का था।
(ख) क्योंकि उसे धृतराष्ट्र-पुत्रों के नाम से चिढ़ थी।
(ग) क्योंकि दुर्योधन एवं दु:शासन ने पाण्डवों का अपमान किया था
(घ) क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर की ऐसी ही आज्ञा थी।

8. ‘स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्टाः।’ में ‘मयि’ पद को प्रयोग करने वाला कौन है?
(क) सहदेव
(ख) दुर्योधन ।
(ग) भीम
(घ) अर्जुन

9. ‘आकृष्य पाण्डववधूपरिधानकेशान्’ में ‘पाण्डववधू’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) उत्तरा
(ख) सुभद्रा
(ग) द्रौपदी
(घ) कुन्ती

10. ‘एवं कृते लोके तावत् स्वगोत्रक्षयाशंकि हृदयमाविष्कृतं भवति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) श्रीकृष्ण
(ख) द्रौपदी
(ग) सहदेव
(घ) भीमसेन

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11. ‘उदासीनेषु युष्मासु मम मन्युः न पुनः कुपितेषु” में मम’ शब्द का प्रयोग हुआ है
(क) द्रौपदी के लिए
(ख) भीमसेन के लिए
(ग) सहदेव के लिए
(घ) दुर्योधन के लिए।

12. ‘न खल्वमङ्गलानि चिन्तयितुमर्हन्ति भवन्तः कौरवाणाम्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सुयोधनः
(ख) भीमसेनः
(ग) सहदेवः
(घ) युधिष्ठिरः

13. ‘भगवान् कृष्णः केन………………” सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रतिहितः।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क)‘पणेन’ से
(ख) “पृथिव्या’ से
(ग) “धनेन’ से
(घ) “मूल्येन’ से

14. ‘प्रयच्छ•••••••यामान्कञ्चिदेकं च पञ्चमम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी
(क) ‘पण्डितो’ से
(ख) ‘मूख’ से
(ग) “चतुरो’ से
(घ) ‘त्रयोः ‘ से

15. ‘न लज्जयति………………”सभायां केशकर्षणम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी– | “
(क) ‘तनयानाम् से
(ख) ‘पुत्राणाम् से
(ग) ‘दाराणाम् से
(घ) “मातृणाम्’ से

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16. ‘मुक्तवेणीं स्पृशन्नेनां कृष्णां धूमशिखामिव।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) भीमसेनः
(ख) सहदेवः
(ग) द्रौपदी
(घ) कृष्णा

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)

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Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 25
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय- भारतीय वाङमय में पुराणों का विशिष्ट स्थान है। इनकी संख्या कुल अठारह मानी गयी है। पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण एक अनुपम, ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्रन्थ है। इसमें समस्त पुराणों का सार संगृहीत है। इसीलिए अन्य पुराणों की तुलना में इसका सर्वाधिक प्रचार-प्रसार है। इसमें बारह स्कन्ध और अठारह हजार श्लोक हैं। प्रस्तुत कथा श्रीमद्भागवत् पुराण के पंचम स्कन्ध में वर्णित है।।
राजर्षि भरत एक महान् भक्त थे, किन्तु एक मृगशावक के मोह में पड़कर मृत्यु के समय भी उसी का स्मरण करते रहे और अगले जन्म में मृगयोनि में उत्पन्न हुए। भगवत्कृपा से पूर्वजन्म का स्मरण बना रहने से मृगयोनि को त्यागकर पुन: उच्च ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए और संसार से विरक्त रहकर (UPBoardSolutions.com) अवधूत वृत्ति से जीवन व्यतीत करते रहे। इन्होंने चोरों के सरदार का चण्डिका देवी के द्वारा विनाश कराया तथा राजा रहूगण को उपदेश देकर उनका अज्ञान दूर किया।

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पाठ-सारांश

राजा भरत– प्राचीनकाल में भारत में एक धर्मनिष्ठ और प्रजापालक भरत नाम के राजा हुए। बहुत समय तक राज्य करके, पुत्रों को राज्य-भार देकर वे स्वयं मुनि पुलह के आश्रम में हरिक्षेत्र चले गये। वहाँ वे भगवत्पूजा में सुखपूर्वक अपना जीवन बिताने लगे।

हरिण-शावक का मोह- एक दिन भरत गण्डकी नदी के किनारे ईश्वर-नाम का जप कर रहे थे। वहाँ जल पीने के लिए आयी हुई हिरनी सिंह के भयंकर शब्द को सुनकर नदी के पार चली गयी। नदी लाँघते समय उसका गर्भ नदी के प्रवाह में गिर पड़ा। जल-प्रवाह में बहते हुए मृगशिशु को उठाकर राजर्षि भरत अपने आश्रम में ले आये और बड़े प्रेम से उस्का पालन-पोषण करने लगे। जब वह मृगशावक बड़ा हुआ तो वह ऋषि को छोड़कर भाग गया। उसके वियोग में भरत इतने दु:खी हुए कि उसका स्मरण करते-करते ही उन्होंने प्राण (UPBoardSolutions.com) त्याग दिये और अपने अगले जन्म में मृगयोनि को प्राप्त किया। भगवदाराधना के कारण उनकी पूर्वजन्म की स्मृति नष्ट नहीं हुई थी। अपने मृगयोनि में जन्म लेने के मृगशावक के मोह के कारण को जानकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ और वैराग्य-प्राप्त कर उन्होंने मृग-शरीर को त्याग दिया।

ब्राह्मण कुल में जन्म- भरत ने अगले जन्म में अंगिरा गोत्र के ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। ब्राह्मण जाति में भी वह भगवान् का ध्यान करते हुए जड़, अन्धे, बहरे के समान आचरण करते थे। पिता की मृत्यु के बाद उनके भाइयों ने उन्हें जड़ (मूर्ख) जानकर घर से निकल दिया। घर छोड़ने के बाद वह मैले-कुचैले वस्त्र पहनकर तत्पश्चात् सर्दी, गर्मी, बरसात में बिना शरीर ढके और बिना स्नान किये घूमते रहते थे।

देवी के द्वारा, रक्षा- एक बार चोरों का सरदार पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से देवी को बलि देने के लिए लाये गये पुरुष के भाग जाने पर भरत को चण्डी देवी के मन्दिर में बलि हेतु ले गया। (UPBoardSolutions.com) चोरों ने उन्हें देवी के सामने बैठाया और उनका सिर काटने के लिए तलवार उठायी। भद्रकाली ने ब्राह्मण को बलि के अयोग्य मानते हुए प्रकट होकर क्रोध से पापी चोरों के सिर काट दिये।

राजा रहूगण को उपदेश– एक बार सिन्धु-सौवीर देशों के राजा रहूगण ने कपिलाश्रम को जाते समय भरत को हृष्ट-पुष्ट समझकर पालकी ढोने के काम में लगा लिया। भरत पालकी ढोते समय भूमि को शुद्ध देखकर चल रहे थे; अतः पालकी को बार-बार ऊपर-नीचे होते देख रहूगण ने भरत को व्यंग्य भरे शब्द कहे। उपहास करते हुए रहूगण से जड़भरत ने कहा-“हे राजन्! आप ठीक कहते हैं। यदि कोई बोझ है तो वह शरीर का है, मेरा नहीं। मोटापा, दुबलापन, बीमारी आदि शरीर की हैं, मेरी नहीं; क्योंकि मैं देह के अभिमान से मुक्त हूँ।”

राजा ने ब्राह्मण के शास्त्रसम्मत वचन सुनकर पालकी से उतरकर उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि आप दत्तात्रेय आदि में से कौन-से अवधूत हैं? मैं इन्द्र के वज्र से, शिव के शूल से, यम के दण्ड से भी इतना नहीं डरता, जितना ब्राह्मण कुल के अपमान से डरता हूँ। विज्ञान, रूप और प्रभाव को छिपाये जड़वत् घूमने वाले आप कौन हैं? तब जड़भरत ने राजा से कहा कि “हे राजन्! तुम अज्ञानी होते हुए भी ज्ञानी की तरह (UPBoardSolutions.com) बोल रहे हो। जब तक यह जीव माया को छोड़कर आत्म-तत्त्व को नहीं जानता, तब तक संसार में भटकता रहता है। इस प्रकार जड़भरत रहूगण को तत्त्व-ज्ञान का उपदेश देकर पुनः स्वच्छन्द विचरण करने लगे। राजा रहूगण ने भी देहाभिमान को त्याग दिया।

चरित्र चित्रण

जड़भरत

परिचय-जड़भरत का जन्म राजपरिवार में हुआ था। बाद में मृग-शिशु के मोह में पड़कर इन्होंने मृगयोनि में जन्म लिया। अन्त में अंगिरा गोत्र के ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। इनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) महान् ईश्वर-भक्त–जड़भरत राजा होते हुए भी ईश्वर के परम भक्त थे। राज्य का सुख भोगकर ये भगवद्-भजन के लिए हरिक्षेत्र चले गये थे। ये अनेक पुष्प, तुलसी, जल से भगवान् की पूजा किया करते थे। मृग की योनि में भी इन्हें भगवत्कृपा से पूर्व जन्म का स्मरण था। ब्राह्मण कुल में (UPBoardSolutions.com) जन्म लेने पर इन्होंने अपने असली स्वरूप को छिपाकर जड़, अन्ध और बधिर के समाने आचरण किया। अपने तीनों ही जन्मों में ये पूर्वजन्म के ज्ञाता रहे और सद्भावक भी। सांसारिक मायाजन्य पापकर्म इन्हें किसी भी जन्म में छू तक नहीं पाया था। नर बलि दिये जाने के लिए प्रस्तुत किये जाने पर देवी द्वारा रक्षा किया जाना इनकी भगवद्-भक्ति का ही प्रभाव था।

(2) मृग-शावक के प्रति मोह- भगवत्पूजी में सुखपूर्वक जीवन बिताने पर भी भरत को मृर्ग-शावक का पालन करने के कारण उसके प्रति मोह हो गया था। उसके भाग जाने पर इन्होंने बहुत विलाप किया और उसी का स्मरण करते हुए देह-त्याग किया।

(3) समत्व योगी- जड़भरत की मान-अपमान में कोई रुचि नहीं थी। ब्राह्मण कुल में जन्म पाकर भी ये अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाकर जड़, अन्ध और बधिरवत् आचरण करते रहे, जिसके परिणामस्वरूप भाइयों द्वारा घर से निकाल दिये गये। ये मैले-कुचैले वस्त्र पहनकर, सर्दी, गर्मी, वर्षा में शरीर को न ढककर, बिना स्नान किये विचरण करते थे। अज्ञ जनों के उपहास की इन्हें परवाह न थी। चोरों द्वारा नर बलि (UPBoardSolutions.com) के लिए ले जाने पर भी इन्होंने विरोध नहीं किया। ये राजा रहूगण द्वारा पालकी ढोने के काम में लगाये गये और इन्होंने उसके व्यंग्य-वचनों को ऐसे सह लिया, जैसे किसी ने कुछ कहा ही नहीं।

(4) अहिंसक वृत्ति- पालकी ढोते समय साफ भूमि देखकर चलना उनकी अहिंसक वृत्ति का परिचायक है।

(5) उच्च ज्ञानी एवं सदुपदेशक- जड़भरत परम ज्ञानी थे। रहूगण द्वारा अपमान किये जाने पर . भी उन्होंने उसे तत्त्व-ज्ञान की शिक्षा दी। उन्हें देहाभिमान नहीं था। सांसारिक माया को वे संसारपरिभ्रमण का कारण मानते थे। वे ब्रह्मनिष्ठ एवं आत्मज्ञानी पुरुष थे। उन्होंने राजा रहूगण को जिस उपदेशामृत का पान कराया उससे राजा रहूगण का देहाभिमान छूट गया और उसने सत्संगति के लिए ज्ञान के महत्त्व को (UPBoardSolutions.com) भली-भाँति जान लिया। अन्ततः उसने भी राज-पाठ को छोड़ दिया और देहाभिमान । से मुक्त हो गयी। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जड़भरत अहिंसक वृत्ति के, समत्वयोगी, अध्यात्मनिष्ठ, परम ज्ञानी एवं ईश्वर-भक्त पुरुष थे।

लघु उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित  प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
नृपः भरतः सर्वं विहाय कुत्र गतः?
उत्तर
नृपः भरतः सर्वं विहाय पुलहाश्रमं हरिक्षेत्रम् अगच्छत्।

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प्रश्‍न 2
राजर्षिः मृगयोनिं कथं प्राप्तः?
उत्तर
राजर्षे: मरणकाले मृगशावके आसक्तिः आसीत्, अतएव राजर्षिः मृगयोनिं प्राप्तः।

प्रश्‍न 3
भरतः मृगशरीरं विहाय कस्मिन् कुले जन्म लेभे?
उत्तर
भरत: मृगशरीरं विहाय अङ्गिरागोत्रस्य ब्राह्मणकुले जन्म लेभे?

प्रश्‍न 4
भद्रकाली देवी भरतस्य रक्षणाय किमकरोत्?
उत्तर
भद्रकाली देवी भरतस्य रक्षणाय पापिष्ठानां चौराणां वधमकरोत्।

प्रश्‍न 5
चौरराजः कस्माद् हेतोः पुरुषपशु भद्रकाल्यै दातुमियेष?
उत्तर
चौरराजः पुत्र कामनया पुरुषपशु भद्रकाल्यै दातुमियेष।

प्रश्‍न 6
रहूगणः कः आसीत्?
उत्तर
रहूगण: सिन्धुः सौवीरदेशयोः राजा आसीत्।।

प्रश्‍न 7
भरतः रहूगणाय किमुपादिशत्?
उत्तर
भरत: रहूगणाय देहाभिमानं त्यक्तुं मनोरूपं शत्रु हन्तुं हरेश्चरणोपासितुं च उपादिशत्।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए-

1. ‘जडभरतः’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से लिया गया है?
(क) ‘अग्निपुराण’ से
(ख)’रामायण’ से
(ग) “श्रीमद्भागवत् पुराण’ से
(घ) ‘महाभारत’ से

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2. ‘श्रीमद्भागवत् पुराण’ के रचयिता कौन हैं?
(क) मनु
(ख) महर्षि अंगिरा
(ग) महर्षि वेदव्यास ।
(घ) महर्षि वाल्मीकि

3. ‘श्रीमद्भागवत्’ पुराण में कितने स्कन्ध और कितने श्लोक हैं?
(क) 12 स्कन्ध, 18 हजार श्लोक
(ख) 18 स्कन्ध, 12 हजार श्लोक
(ग) 18 स्कन्ध, 18 हजारे श्लोक
(घ) 5 स्कन्ध, 15 हजार श्लोक।

4. राजा भरत क्या करके पुलहाश्रम हरिक्षेत्र गये?
(क) बहुत काल तक राज्य-सुख भोगकर
(ख) पुत्रों में धन का विभाजन करके
(ग) सभी सम्पत्ति त्यागकर
(घ) उपर्युक्त तीनों कार्य करके

5. भरत किस नदी के तट पर प्रणव-जप कर रहे थे?
(क) गंगा के
(ख) नर्मदा के
(ग) गण्डकी के
(घ) गोमती के

6. भरत अगले जन्म में किस योनि में उत्पन्न हुए?
(क) देवयोनि में
(ख) गोयोनि में .
(ग) सिंहयोनि में ।
(घ) मृगयोनि में

7. चोरों के राजा द्वारा दी जा रही बलि से जड़भरत की रक्षा कैसे हुई?
(क) जड़भरत अवसर देखकर भाग आये
(ख) पुरोहित ने उन्हें बलि के अयोग्य बताया।
(ग) चोरों के राजा को जड़भरत पर दया आ गयी।
(घ) चण्डी ने प्रकट होकर जड़भरत की रक्षा की

8. ‘सिन्धसौवीर’ देश के राजा का नाम था
(क) भरत
(ख) रहूगण
(ग) पुलह
(घ) दत्तात्रेय

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9. रहूगण ने जडभरत की बातों से उनको क्या समझा?
(क) तत्त्वज्ञानी
(ख) असत्यभाषी
(ग) मूर्ख
(घ) पागल

10. रहूगण ने पालकी से उतरकर किसको प्रणाम किया?
(क) जड़भरत को ,
(ख) दत्तात्रेय को।
(ग) चोरों के सरदार को
(घ) भद्रकाली को

11. ‘त्वं सत्यं जानासि ज्ञानिनस्तु मिथ्यात्वेन जानन्ति’, में त्वं’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ। है?
(क) जड़भरत के लिए।
(ख) रहूगण के लिए।
(ग) भद्रकालीन के लिए
(घ) चोरों के सरदार के लिए

12. ‘हे राजन्! त्वमविद्वानपि ज्ञानीव वदसि। अतस्त्वं ज्ञानिनां मध्ये श्रेष्ठो न भवसि।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) चौरराजः
(ख) रहूगणः
(ग) जडभरतः
(घ) भद्रकाली

13. ‘तं श्रुत्वा हरिणी •••••••••• सहसैव नदीमुल्लङ्कितवती।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) “वृकभयेन’ से ।
(ख) ‘गजभयेन से
(ग) ‘सिंहभयेन’ से
(घ) “शृगालभयेन’ से

14. ‘चौरराजः ••••••••••• सन् भद्रकाल्यै पुरुषपशुमालब्धं प्रवृत्तः।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) ‘सिद्धिकाम:’ से
(ख) अर्थकामः’ से
(ग) ‘राज्यकामःसे।
(घ) “पुत्रकाम: से

15. साधु गच्छत्, कथं यानं विषमं नीयते?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) रहूगणः
(ख) चौरराजः
(ग) जडभरतः
(घ) वोढारः

16. “हे वीर! यदि कश्चिद् भारः स्यात् स हि वोढुः देहस्य न मम।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) रहूगणः
(ख) चौरराजः
(ग) जडभरतः
(घ) भद्रकाली

17. ‘हे राजन्! त्वमविद्वानपि ••••••••••वदसि।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी ।
(क) ज्ञानीव
(ख) अज्ञानीव
(ग) मूढेव
(घ) जडमिव

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18. ‘तव मुर्हतमात्रसङ्गात् मम अविवेको नष्टः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति? ।
(क) रहूगणः
(ख) जडभरतः
(ग) चौरराजः
(घ) चण्डिका

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय- संस्कृत वाङमय में पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि की उपादेय कथाएँ विपुल संख्या में प्राप्त हैं। वेद, पुराणादि की कथाएँ जो भारतीय धर्म-परम्परा की परिचायक हैं, उनसे भी समाज अत्यधिक लाभान्वित हुआ है। आज के परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो परिवर्तन दृष्टिगोचर (UPBoardSolutions.com) हो रहे हैं, उनके सन्दर्भो में मात्र सिद्धान्तों से काम नहीं चल सकता। इसके लिए हमें देश और समाज की समस्याओं की ओर ध्यान देना ही होगा और उनके समाधान भी ढूढ़ने होंगे।

प्रस्तुत पाठ इसी भावना से लिखा हुआ नाटक है। भारत जैसे विशाल देश में स्थान-विशेष से सम्बद्ध अनेकानेक कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका निराकरण श्रम, दृढ़ निश्चय और परोपकार भावना से संगठित होकर ही सरलता से किया जा सकता है। इस पाठ के देवसिंह का चरित्र इसी का ज्वलन्त उदाहरण है।

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पाठ-सारांश

‘श्रम एव विजयते’ पाठ में स्पष्ट किया गया है कि श्रम, पक्का इरादा और परोपकार की भावना से अनेकानेक कठिनाइयों और समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है

प्रथम दृश्य- प्रस्तुत नाटक में तीन दृश्य हैं। प्रथम दृश्य में शीला अपने ग्राम शिवपुर की समस्याओं की ओर देवसिंह का ध्यान आकृष्ट करती हुई धिक्कारती है कि इस गाँव में पेट भरने योग्य अन्न व पीने के लिए जल भी सुलभ नहीं है। ईंधन प्राप्त करने के लिए वन नहीं है और पशुओं के खाने के लिए घास नहीं है, फिर लोगों को दूध कैसे प्राप्त हो? इस गाँव की स्थिति तो नरक से भी बदतर हो रही है।

इसी समय देवसिंह को अपने उस प्रसिद्ध कुल को ध्यान आता है, जिसकी यशोगाथाएँ अन्य राज्यों में भी फैली हुई थीं और आज उसी के ग्राम की वधुएँ कष्टपूर्ण जीवन बिता रही हैं। यह सोचकर देवसिंह पहले जल की समस्या का समाधान करना चाहता है।

द्वितीय दृश्य- द्वितीय दृश्य में देवसिंह अपने गाँव के निकट स्थित एक पर्वत के शिखर पर चढ़कर चारों ओर देखता है। उसे एक छोटी नदी दिखाई देती है। नदी और गाँव के मध्य वही छोटा-सा पर्वत है, जिस पर देवसिंह चढ़ा हुआ है। वह उसी पर्वत में ग्रामीणों की सहायता से सुरंग बनाकर नदी के जल को अपने गाँव में लाने की सोचता है। उसकी एक सेवक सदानन्द नदी के जल को पर्वत में सुरंग बनाकर गाँव में लाने के प्रयास को आकाश से तारे तोड़कर लाने के समान असम्भव बताता है, परन्तु देवसिंह के मन में अपार उत्साह है। (UPBoardSolutions.com) वह कहता है कि जब एक छोटा-सा चूहा पर्वत को फोड़कर उसमें अपना बिल बना सकता है, तब शरीर से पुष्टं मानव ग्रामीणों की सहायता से पर्वत में सुरंग बनाकर जल को अपने गाँव तक लाने का प्रयत्न क्यों न करे? वह जानता है कि “लक्ष्मी उद्यमी पुरुष के पास स्वयं पहुँच जाती है।”

तृतीय दृश्य- तृतीय दृश्य में ग्रामवासी आपस में बातचीत करते हैं कि देवसिंह के प्रयास से शिवपुर ग्राम निश्चित ही सुखी हो जाएगा। पहले तो सभी ग्रामीण उसकी योजना को सुनकर हँसते थे, परन्तु दृढ़-निश्चयी देवसिंह को अपने परिवार के साथ पर्वत खोदने के काम में लगा देखकर गाँव में आबाल-वृद्ध सभी कुदाल लेकर पर्वत में सुरंग खोदकर नहर बनाने के काम में उसके साथ लग जाते हैं।

इसी बीच एक पुरुष दौड़ता हुआ आकर देवसिंह को सूचना देता है कि उसका इकलौता पुत्र पर्वत की लुढ़कती चट्टान के नीचे दबकर मर गया है। सब रोते हुए वहीं चले जाते हैं जहाँ देवसिंह के पुत्र का शव पड़ा है।

सभी ग्रामवासियों को शोक-सागर में डूबे हुए देखकर देवसिंह उन्हें शोक न करने के लिए समझाता है। वह इसे कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है। वह कहता है कि जन्म और मृत्यु मनुष्य के अधीन नहीं हैं। उत्तम जन किसी कार्य को प्रारम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते; अतः हमें भी दुःख-सुख की परवाह न करके ‘बहुजन हिताय’ शुरू किये गये कार्य में व्यक्तिगत चिन्ता छोड़ देनी चाहिए; अतः हे ग्रामवासियों! कुछ ही महीनों में नहर बनकर तैयार हो जाएगी। गाँव में अपूर्व सुख प्राप्त होगा, कृषि से अन्न उत्पन्न होगा। सभी ग्रामवासी (UPBoardSolutions.com) देवसिंह को ‘धन्य’ कह उठे, जो एकमात्र पुत्र की मृत्यु की परवाह न करके अपने गाँव के विकास के लिए लगा हुआ था। निश्चय ही वह धन्य है। परिश्रमी गाँववासियों के द्वारा सम्पन्न किये गये कार्य से गाँव को अवश्य ही कल्याण होगा।

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चरित्र – चित्रण

देवसिंह
परिचय-प्रस्तुत एकांकी का प्रमुख पात्रे देवसिंह शिवपुर ग्राम का रहने वाला, उत्साही, कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी और कर्म पर विश्वास करने वाला प्रगतिशील युवक है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) साहसी– देवसिंह साहसी युवक है। वह अपनी भाभी से ग्राम की नारकीय दशा को सुनकर गाँव में पेयजल लाने का साधन ढूंढ़ निकालना चाहता है। वह पर्वत में सुरंग बनाकर नदी का जल गाँव में लाने का साहसिक निर्णय कर लेता है। ग्रामीणों के उपहास करने पर भी वह मात्र अपने परिवार को लेकर ही पर्वत को खोदने में लग जाता है। पुत्र की मृत्यु पर भी वह अपने साहसिक कदम को पीछे नहीं हटाता।

(2) आशावादी–वह आशावादी व्यक्ति है। वह गाँव और नदी के बीच पर्वत को देखकर भी उसे भेदकर गाँव तक जल लाने की आशा करता है। सदानन्द के द्वारा इस कार्य को आकाश के तारे तोड़ने के समान असम्भव कहने पर भी वह निराश नहीं होता है। गाँव वालों के उपहास करने पर भी उसे गाँव तक जल पहुँचने की आशा है।

(3) आत्मविश्वासी एवं दृढनिश्चयी- देवसिंह को अपनी शक्ति और अपने निश्चय के प्रति दृढ़ आस्था है। अपने आत्मविश्वास के आधार पर ही वह पर्वत काटकर नहर निकालने का दृढ़ निश्चय करता है और केवल अपने बल पर ही प्रारम्भ किये गये कार्य में अन्तत: सफलता प्राप्त करता है।

(4) प्रगतिशील विचारक और त्यागी- देवसिंह प्रगतिशील विचारों का व्यक्ति है। वह अपने गाँव को खुशहाल देखना चाहता है। वह ग्रामीणों के श्रम द्वारा नहर निकालने की योजना (UPBoardSolutions.com) बनाता है और उसे क्रियान्वित करने में अग्रणी रहता है। देश की प्रगति के लिए वह सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर है। पुत्र का बलिदान करके भी नहर के कार्य को पूर्ण करना उसके सर्वस्व त्याग का श्रेष्ठ उदाहरण है।

(5) सहनशील– देवसिंह सहनशील व्यक्ति है। वह ग्राम की उन्नति के लिए बड़े-से-बड़े कष्ट को भी सहन करने की क्षमता रखता है। पुत्र की मृत्यु को सहन करके भी वह प्रारम्भ किये गये कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता। वह पुत्र की मृत्यु को कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है।

(6) आदर्श नेता– देवसिंह में आदर्श नेतृत्व के समस्त गुण विद्यमान हैं। उसका सिद्धान्त है कि जो कार्य लोगों के सहयोग से पूर्ण हो सकता हो, उसे पहले स्वयं करने लगो। ऐसा करने से दूसरे लोग स्वयं नेता का अनुगमन करने लगेंगे। निश्चय ही आदर्श नेता परोपदेशक मात्र नहीं होते, वरन् वे दूसरों को भी स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित करने में सफल होते हैं।निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि देवसिंह एक उत्साही, कर्मठ, साहसी, धीर-वीर और प्रगतिशील युवक है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्ररन 1
देवसिंहस्य भ्रातृजाया तं किम् उवाच?
उत्तर
देवसिंहस्य भ्रातृजाया स्वग्रामस्य नारकी दशाम् अकथयत्।

प्ररन 2
देवसिंहस्य जनकः केन नाम्ना प्रथते स्म?
उत्तर
देवसिंहस्य.जनक: ‘कालोभण्डारि’ इति नाम्ना प्रथते स्म।

प्ररन 3
शिखरमारुह्य देवसिंहः कम् अपश्यत्? :
उत्तर
पर्वतशिखरमारुह्य देवसिंह: एकां लघ्वी नदीम् अपश्यत्।

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प्ररन 4
शिखरोपरि मूषकः किम् अकरोत्?
उत्तर
शिखरोपरि मूषक: विलम् अखनत्।।

प्ररन 5
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा सः किम् अकथयत्?
उत्तर
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा देवसिंहः अकथयत् यत् एषः अल्पप्राणः गिरि भित्वा स्व विलं निर्मातुं प्रयतते, कथं न अयं वपुषा पुष्टः मानवः स्वग्रामीणानां साहाय्येन पर्वते वृहद् विलं निर्माय पानीयं स्वग्रामम् आनेतुम् प्रयतेत्?

प्ररन 6
सदानन्दः देवसिंहं किं प्रत्यवदत्?
उत्तर
सदानन्दः देवसिंहं प्रत्यवदत् यत् मूषकाः प्रकृतिदत्तया शक्त्या विलं खनन्ति, वयं न तादृशाः भवामः।।

प्ररन 7
गिरिखननकाले देवसिंहस्य किम् अनिष्टम् अभवत्।।
उत्तर
गिरिखननकाले देवसिंहस्य पुत्रः पर्वतखण्डस्य अधस्तात् आयातः पिष्टः मृतश्च अभवत्।

प्ररन 8
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः किम् अवदत्?
उत्तर
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः अवदत्-सुख-दुःखम् अविगणय्यैव बहुजनहिताय .. क्रियमाणे कर्माणी स्वार्थचिन्तां जहति।

 

वस्तुनिष्ठ  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1.
‘श्रम एव विजयते’ पाठ किस विधा पर आधारित है?
(क) आख्यायिका
(ख) कथा
(ग) नाटक
घ) जीवनवृत्त

2. ‘श्रम एव विजयते’ पाठ का नायक कौन है?
(क) कालोभण्डारि
(ख) देवसिंह
(ग) वीरसिंह
(घ) सदानन्द

3. शीला और देवसिंह में क्या सम्बन्ध है?
(क) पत्नी-पति का
(ख) भाभी-देवर को
(ग) पुत्री-पिता का
(घ) पुत्रवधु श्वसुर का

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4. गाँव की दुर्दशा के विषय में देवसिंह किसके द्वारा धिक्कारा जाता है?
(क) शीला द्वारा।
(ख) ग्रामीण पुरुष द्वारा
(ग) सदानन्द द्वारा।
(घ) वीरसिंह द्वारा 

5. देवसिंह बहुत जल वाले भूभागों को खोजने के लिए किसके साथ निकला?
(क) अपने बड़े भाई के साथ
(ख) अपने छोटे भाई के साथ
(ग) अपने पुत्र के साथ
(घ) अपने सेवक के साथ।

6. देवसिंह पहाड़ी पर ऐसा क्या देखता है, जिससे वह नदी से गाँव तक नहर खोदने का निर्णय लेता है?
(क) छोटी-सी पहाड़ी को
(ख) बिल खोदते हुए चूहे को
(ग) उत्साही गाँववालों को
(घ) ग्राम की दु:खी वधुओं को

7. सदानन्द देवसिंह को क्या कहकर हतोत्साहित करता है?
(क) धिङ मे पौरुषम् 
(ख) इदं कार्यं केवलं बालचापलमिव
(ग) उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः
(घ) अयं ग्राम: नरकायते

8. देवसिंह ने दृढ़ निश्चय किया|
(क) गाँव छोड़ देने का
(ख) पानी के लिए उपाय करने का
(ग) कुएँ खोदने का
(घ) शीला से बदला लेने का

9. नहर खुदाई के मंगल-कार्य में अमंगल किस प्रकार उत्पन्न हुआ?
(क) नहर के कार्य के बन्द होने से ।
(ख) शीला के पत्थर के नीचे आ जाने से
(ग) पहाड़ी के ढहने से।
(घ) देवसिंह के पुत्र की मृत्यु से।

10. देवसिंह के पुत्र की मृत्यु किस कारण से हुई?
(क) वह नदी में डूब गया था ।
(ख) उसे सदानन्द ने मार दिया था।
(ग) वह पत्थर के नीचे दब गया था
(घ) उसे साँप ने काट लिया था

11. देवसिंह ने अपने पुत्र की मृत्यु के बारे में सुनकर गाँव वालों से क्या कहा?
(क) जब तक काम पूरा न हो, तब तक मत रुको
(ख) यह सूचना मेरे घर मत देना
(ग) दुर्भाग्य प्रबल है ।
(घ) काम बन्द कर दो

12. ‘त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) देवसिंहः
(ख) वीरसिंहः
(ग) सदानन्दः
(घ) शीला

13. ‘दैवेन देयमिति •••••••••••••••• वदन्ति।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सुपुरुषा:’ से
(ख) ‘महापुरुषा:’ से।
(ग) “कापुरुषाः’ से
(घ) “उत्साही पुरुषा:’ से

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14. ‘दृढसङ्कल्पेन श्रमेच किं न भवितुं शक्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) नन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) वीरसिंहः
(घ) देवसिंहस्य पुत्रः

15.’देवसिंहस्य जनकः ‘कालोभण्डारि’ : अवदानगाथाः अतिलछ्य ………..सीमानं, ” प्रसिद्ध्यन्ति स्म।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) ‘गढवाल’ से
(ख) “कश्मीर से ,
(ग) उत्तरांचल’ से
(घ) उत्तराखण्ड से

16. ‘उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति ………………… श्लोकस्य चरणपूर्तिः पदः अस्ति
(क) शक्तिः
(ख) सरस्वती
(ग) लक्ष्मी :
(घ) दुर्गा :

17. ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे ::•••••••••••निरामयाः।’ श्लोकस्य चरणपूर्ति पदः अस्ति
(क) सन्तु
(ख) स्त
(ग) स्तः
(घ) सन्ति 

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18. ‘चोत्तमजनाः प्रारब्धं कार्यमाफलोदयं न त्यजन्ति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सदानन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) ग्रामवासी
(घ) कालोभण्डारि

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)

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Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 25
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय–प्रस्तुत कॅथा ‘हितोपदेश’ नामक ग्रन्थ से संकलित की गयी है। इसके लेखक नारायण पण्डित हैं। बंगाल के राजा धवलचन्द्र ने इसका संकलन कराया था। इस कथा-संग्रह में रोचक कथाओं के माध्यम से नीति और धर्म की शिक्षा दी गयी है। कथाओं की रोचकता, सरलता और उपदेशात्मकता के कारण ही इसको संस्कृत वाङमय में आदरणीय स्थान प्राप्त है। इस ग्रन्थ में घशु-पक्षियों आदि से सम्बद्ध नीति-कथाएँ हैं, जो मानव-मात्र के लिए रोचक और उपादेय तो हैं ही, साथ ही इनमें जीवन का । व्यावहारिक पक्ष भी वर्णित है। ‘हितोपदेश’ (UPBoardSolutions.com) की कथा-शैली सरल, सुबोध होने के साथ-साथ । उपदेशात्मक भी है। इसकी कथाओं में प्रवाह और रोचकता दृष्टिगोचर होती है। इस ग्रन्थ का रचना-काल दसवीं शताब्दी (ईस्वी) के लगभग माना जाता है। इसमें चार परिच्छेद हैं-मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि। इस ग्रन्थ को पंचतन्त्र से भी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।

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पाठ-सारांश

संजीवक का वन में छूटना- दक्षिणापथ में सुवर्ण नाम की नगरी में वर्धमाने नाम का एक व्यापारी रहता था। एक बार उसने अधिक धन कमाने के उद्देश्य से संजीवक और नन्दक नाम के दो बैलों की जोड़ी को जोड़कर गाड़ी में अनेक प्रकार के सामान भरकर कश्मीर की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में ऊबड़-खाबड़ भूमि वाले एक महावन में टाँग टूट जाने से संजीवक चलते-चलते गिर पड़ा। अनेक उपाय करने पर भी जब वह स्वस्थ न हो सका तो उसका स्वामी वर्धमान उसे वहीं छोड़कर आगे चल दिया।

पिंगलक को भय- संजीवक स्वेच्छा से उस महावन में आहार-विहार करता हुआ कुछ ही दिनों में हष्ट-पुष्ट हो गया। उसी महावन का राजा पिंगलक नाम का सिंह एक दिन यमुना के तट पर पानी पीने के लिए आया। वहाँ संजीवक की महान् गर्जना को सुनकर और भयभीत होकर बिना जल पीये ही घबराया हुआ-सा अपने स्थान पर आकर चुपचाप बैठ गया। उसके मन्त्री के ‘करटक’ और ‘दमनक नाम के दो पुत्रों ने उसे (UPBoardSolutions.com) घबराया हुआ देखकर उसकी चिन्ता का कारण जानने का विचार किया। बहुत सोच-विचार कर दमनक ने साष्टांग प्रणाम करके पिंगलक से उसकी चिन्ता का कारण पूछा। पिंगलक ने किसी बलवान् पशु की भयंकर आवाज सुनने को अपने भय का कारण बताया।

करटक और दमनक को संजीवन के पास जाना— दमनक ने पिंगलक के भय का कारण सुनकर कहा कि हे स्वामी! जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक आपको भय नहीं करना चाहिए, लेकिन आप ‘करटक’ को भी अपने विश्वास में लीजिए, जिससे इस विपत्ति के समय में वह भी हमारा सहायक हो सके। तब करटक और दमनक दोनों ही पिंगलक के पास से सम्मानसहित विदा होकर उसके भय का प्रतिकार करने के लिए चल दिये। दमनक ने मार्ग में करटेक को बताया कि स्वामी के भय का कारण बैल का भयानक शब्द है। तब वे दोनों संजीवक के पास गये। करंटक पहले ही कहीं वृक्ष के नीचे बैठ गया था। दमनक ने संजीवक से (UPBoardSolutions.com) कहा कि मैं इस महावन के रक्षक रूप में नियुक्त किया गया हूँ। आप शीघ्र मेरे सेनापति करटक के पास जाकर प्रणाम कीजिए या वन को छोड़कर चले. जाइए। संजीवक ने डरते-डरते करटक के पास पहुँचकर उसको साष्टांग प्रणाम किया।

संजीवक और पिंगलक की मैत्री– करटक ने संजीवक से कहा कि यदि तुम्हें इस वन में रहना हो तो हमारे स्वामी पिंगलक को जाकर प्रणाम करो। वे दोनों उसे स्वामी से अभयदान का आश्वासन देकर अपने साथ पिंगलक के पास ले गये। पहले उसे कुछ दूर बैठाकर उन्होंने पिंगलक से कहा कि हे स्वामिन्! वह बहुत बलवान् है किन्तु आपसे मिलना चाहता है। उसकी स्वीकृति लेकर उन दोनों ने संजीवक को लाकर राजा से मिलवाया। संजीवक ने पिंगलक के पास जाकर उसको प्रणाम किया और तत्पश्चात् वे दोनों बड़े प्रेम से वहीं रहने लगे।

दमनक की उपेक्षा – एक दिन पिंगलक का भाई स्तब्धकर्ण वहाँ आया। उसने देखा कि करटक और दमनक दोनों अत्यधिक मनमानी करते हैं, खूब खाते हैं, मनमाना खर्च करते हैं, फेंकते भी हैं। उसने पिंगलक को समझाया कि दमनक और करटक सन्धिविग्रह के अधिकारी हैं, इन्हें खजाने (UPBoardSolutions.com) की रक्षा का काम नहीं सौंपना चाहिए। इसलिए आप संजीवक को आय-व्यय के अधिकार में लगा दीजिए। ऐसा करने पर पिंगलक और संजीवक का समय बड़े प्रेम से सुखपूर्वक बीतने लगा।

दमनक की भेद- नीति-करटक और दमनक ने स्वयं को और भाई-बन्धुओं को भोजन मिलने में शिथिलता देख विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संज़ीर्वक और पिंगलक को मिलाना ही हमारी भूल थी। दमनक ने पिंगलक से कहा कि हे देव! यह संजीवक आपके प्रति दुर्भावना रखता है, वह आपका अनिष्ट करना चाहता है और आपका राज्य लेना चाहता है। सभी मन्त्रियों को त्यागकर इसे ही सब कार्यों का अधिकारी बनाना आपकी बड़ी भूल है। फिर वह संजीवक के पास जाकर बोला कि स्वामी आप पर दुष्ट भाव रखते हैं, वह आपको मारकर अपने परिवार को तृप्त करना चाहते हैं। ऐसा कहकर दमनक ने उसे अपना पराक्रम दिखाने के लिए उकसा दिया।

संजीवक का विनाश- संजीवक ने शेर का बिगड़ा रूप देखकर अपनी शक्ति के अनुसार बल प्रदर्शन किया। दोनों के युद्ध में संजीवक मारा गया। पिंगलक अपने सेवक (UPBoardSolutions.com) संजीवक को मारकर बड़ा दुःखी हुआ। उसे ‘:ख देखकर दमनक ने कहा-स्वामिन्! शत्रु को मारकर ‘सन्ताप करना उचित नहीं है। दमनक द्वारा : दये जाने पर पिंगलक धीरे-धीरे अपनी स्वाभाविक अवस्थी को प्राप्त हो गया।

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चरित्र-चित्रण

दमनक

परिचय– दमनक पिंगलक नामक सिंह के मन्त्री का पुत्र है। वह जाति से शृगाल और प्रकृति से अत्यन्त दुष्ट है। वह कुटिल, राजनीतिज्ञ, अवसरवादी एवं स्वार्थ-सिद्धि में अत्यन्त कुशल है। वह ही इस कथा का मुख्य पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) अवसरवादी– दमनक को अवसरवादी व्यक्ति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह अपने राजा का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहता। अवसर का लाभ उठाकर वह पिंगलक एवं संजीवक की मित्रता कराकर दोनों को सान्निध्य प्राप्त कर मनमानी करता है। अपनी उपेक्षा को देखकर वह संजीवक का वध करा देता है और फिर से सम्मान प्राप्त करता है।

(2) कुशल कूटनीतिज्ञ- कूटनीति में दमनक करटक की तुलना में अत्यधिक कुशल है। वह कूटनीति का सहारा लेकर और पिंगलक के भय का निवारण कर सम्मानित स्थान प्राप्त करता है। राजा द्वारा अपनी उपेक्षा किये जाने पर कूटनीतिक चाल चलकर वह पिंगलक एवं संजीवक में फूट डालकर संजीवक को मरवा देता है और अपना खोया हुआ पद पुन: प्राप्त कर लेता है।

(3) वाक्पटु एवं स्वार्थी– स्वार्थी व्यक्ति के लिए वाक्पटु होना बहुत आवश्यक है। दमनक अपनी वाक्पटुता के बल पर करटक की सहायता से अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। संजीवक और पिंगलक की मित्रता उसकी वाक्पटुता का ही परिणाम है। उसकी वाक्पटुता का ज्ञान संजीवक और पिंगलक से (UPBoardSolutions.com) की गयी अलग-अलग बातों से होता है। अपने स्वार्थ में वह इतना अन्धा है कि उसकी सिद्धि के लिए वह किसी की हत्या तक कराने में भी नहीं हिचकिचाता। वह संजीवक की अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बलि चढ़ा देता है। उसका भाई करटक उसके स्वार्थ-पूर्ति के मार्ग में केवल उसकी बतायी गयी भूमिका में ही साधक सिद्ध होता है। |

(4) धृष्ट एवं चतुर- दमनक स्वभाव से धृष्ट एवं बुद्धि से चतुर है। बुद्धिचातुर्य के द्वारा वह संजीवक एवं पिंगलक दोनों पर अप्रत्यक्ष रूप से शासन करता है। उसकी स्वाभाविक धृष्टता की पूर्ति में उसका बुद्धिचातुर्य उसका सहायक होता है। उसकी बुद्धि की चतुरता का उदाहरण है कि वह एक ओर तो संजीवक को सिंह का भय दिखाता है तथा दूसरी ओर पिंगलक को बताता है कि वह सामान्य बैल न होकर (UPBoardSolutions.com) महादेव (शिव) का शक्तिशाली बैल है। इस प्रकार दोनों में सामंजस्य कराकर मेल करा देता है। अपने धृष्ट स्वभाव के कारण ही वह मनमानी करने लगता है और उस पर अंकुश लगाये जाने पर संजीवक एवं पिंगलक में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की चिनगारी उत्पन्न कर देता है, यह उसकी धृष्टता का चरम-बिन्दु है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दमनक को कुटिल राजनीतिज्ञ के रूप में चित्रित करके राजनीति की घिनौनी चालों को उजागर किया गया है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
सञ्जीवकः कः आसीत्?
उत्तर
सञ्जीवकः एकः वृषभः आसीत्।

प्रश्‍न 2
पिङ्गलकः किमर्थं पानीयमपीत्वा तूष्णीं स्थितः?
उत्तर
पिङ्गलक: सञ्जीवकस्य घोरशब्दात् भीत: सन् पानीयम् अपीत्वा तूष्णीं स्थितः।

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प्रश्‍न 3
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा अब्रवीत् यद् उदकार्थी स्वामी पानीयम् अपीत्वा किमर्थं विस्मिता इव तिष्ठति।।

प्रश्‍न 4
स्तब्धकर्णः कः आसीतू?
उत्तर
स्तब्धकर्णः पिङ्गलकस्य भ्राता आसीत्।

प्रश्‍न 5
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा अब्रवीत–अरे वृषभ! एषोऽहं राजा पिङ्गलकोऽ’रण्यरक्षार्थे नियुक्तः। सेनापतिः करटकः समाज्ञापयति, सत्वरमागच्छ न चेदस्मादरण्याद् दूरमपरसर अन्यथा ते विरुद्धं फलं भविष्यति।

प्रश्‍न 6
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे कः केन व्यापादितः?
उत्तर
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे सञ्जीवकः पिङ्गलकेन व्यापादितः। 

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नेवर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. ‘क्षीयते खलसंसर्गात् पाठ किस ग्रन्थ से उदधृत है?
(क) “बृहत्कथामञ्जरी’ से
(ख) “हितोपदेश’ से ।
(ग) “कथासरित्सागर’ से ।
(घ) ‘पञ्चतन्त्रम्’ से

2. ‘हितोपदेश’ नामक कथा-संग्रह के लेखक हैं
(क) बाणभट्ट
(ख) नारायण पण्डित
(ग) विष्णु शर्मा
(घ) शर्ववर्मा

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3. दक्षिणापथ में कौन-सी नगरी थी?
(क) सुवर्णा नगरी
(ख) उज्जयिनी नगरी
(ग) साकेत नगरी
(घ) कौशल नगरी

4. संजीवक’ और ‘स्तब्धकर्ण’ कौन थे?
(क) सिंह और वृषभ
(ख) शृगाल और वृषभ ।
(ग) वृषभ और सिंह
(घ) दोनों शृगाल

5. वर्धमान ने संजीवक को किस वन में छोड़ा था?
(क) दण्डक नामक अरण्य में
(ख) नन्दन नामक अरण्य में
(ग) दुर्ग नामक अरण्य में।
(घ) अभयारण्य में

6. पिंगलक कौन था? उसने भयंकर आवाज किसकी सुनी थी?
(क) सिंह था, संजीवक की
(ख) वृषभ था, करटक और दमनक क्री
(ग) सिंह था, स्तब्धकर्ण की
(घ) सिंह था, नन्दक की

7. संजीवक और पिंगलक में किसने मित्रता करायी?
(क) करटक नामक शृगाले ने ।
(ख) दमनक नामक शृगाल ने
(ग) स्तब्धकर्ण नामक सिंह ने
(घ) नन्दक नामक बैल ने।

8. वर्धमान वणिक् ने संजीवक को वन में क्यों छोड़ दिया?
(क) उसे संजीवक की आवश्यकता नहीं थी
(ख) संजीवक नन्दक को मारने लगा था
(ग) वह संजीवक से छुटकारा पाना चाहता था
(घ) संजीवक को.एक पैर टूट गया था

9. पिंगलक नदी के पास जाकर बिना पानी पिये क्यों लौट आया था?
(क) क्योंकि पिंगलक को प्यास नहीं थी।
(ख) क्योंकि नदी का पानी गन्दा था
(ग) क्योंकि नदी में पानी नहीं था।
(घ) क्योंकि संजीवक को गर्जन सुनकर वह डर गया था

10. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना मित्र क्यों बना लिया?
(क) संजीवक के समान पिंगलक भी शाकाहारी था ।
(ख) पिंगलक को मन्त्री के रूप में बैल की ही आवश्यकता थी
(ग) पिंगलक संजीवक के अच्छे स्वास्थ्य से भयभीत था। |
(घ) पिंगलक के मन्त्री-पुत्र करटक-दमनक ने उसे सलाह दी थी

11. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना अर्थमन्त्री क्यों बनाया?
(क) क्योंकि संजीवक मांस नहीं खाता था।
(ख) क्योंकि स्तब्धैकर्ण ने ऐसी ही सलाह दी थी
(ग) क्योंकि पिंगलक के सभी साथी ऐसा ही चाहते थे।
(घ) क्योंकि संजीवक ने इसके लिए अनुरोध किया था

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12. पिंगलक और संजीवक में किसने युद्ध करवाया
(क) करटक ने
(ख) स्तब्धकर्ण ने
(ग) नन्दक ने
(घ) दमनक ने

13. पिंगलक ने संजीवक को क्यों मार डाला?
(क) क्योंकि पिंगलक संजीवक का मांस खाना चाहता था
(ख) संजीवक ने पिंगलक पर आक्रमण किया था।
(ग) क्योंकि पिंगलक के भाई स्तब्धकर्ण ने ऐसा करने के लिए कहा था
(घ) क्योंकि पिंगलक को विश्वास दिलाया गया था कि संजीवक तुम्हें मारना चाहता है।

14. ‘अनुजीविना कुतः कुशलम्’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) पिङ्गलकः
(ख) दमनकः  
(ग) सञ्जीवकः
(घ) करटकः

15.’•••••••••••••••• सह मम महान् सनेहः’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सञ्जीवकः’ से
(ख) “सञ्जीवकस्य’ से
(ग) ‘सञ्जीवकेन’ से
(घ) “सञ्जीवकम्’ से

16. ‘सिंहस्य भ्राता •••••••••••••••••नामा सिंहः समागतःवाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी— 
(क) ‘दमनक’ से
(ख) “स्तब्धकर्ण’ से
(ग) “करटक’ से
(घ) “संजीवक’ से

17. देव! सञ्जीवकस्तोपर्यसदृश व्यवहारः अवलक्ष्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) स्तब्धकर्णः
(ख) नन्दकः,
(ग) दमनकः
(घ) वर्धमानः

18. ‘अयं स्वामी तवोपरि विकृतबुद्धी रहस्यमुक्तवान्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) दमनकः
(ख) करटकः
(ग) सञ्जीवकः
(घ) पिङ्गलकः

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19. ‘ततस्तयोर्युद्धे सञ्जीवकः•••••••••••••••••• व्यापादितः।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सिंहात्’ से
(ख) “सिंहेन’ से
(ग) “सिंहै:’ से
(घ) ‘सिंहम्’ से

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 शकुन्तलाया पतिगृहगमनम् (कथा – नाटक कौमुदी)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 4
Chapter Name शकुन्तलाया पतिगृहगमनम् (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 शकुन्तलाया पतिगृहगमनम् (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय- संस्कृत वाङ्मय में कालिदास को महाकवि की पदवी प्राप्त है। निम्नलिखित श्लोक इस बात को सूचित करता है कि कालिदास के समान दूसरा कवि संस्कृत साहित्य में नहीं हुआ।

पुरा कवीनां गणना प्रसङ्गे कनिष्ठिकाधिष्ठित कालिदासः।।
अद्यापि तत्तुल्यकवेरभावादनामिको सार्थवती बभूव ॥ 

कालिदास ने ‘रघुवंशम्’ एवं ‘कुमारसम्भवम्’ नाम के महाकाव्यों को ‘ऋतु-संह्मरः’ और ‘मेघदूतम्’ नामक खण्डकाव्यों की तथा ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’, ‘मालविकाग्निमित्रम्’ औरविक्रमोवशीयम्’ नामक नाटकों की रचना की। यदि कालिदास ने केवल ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ र्की ही रचना की होती, तब भी उनका संस्कृत-साहित्य में इतना ही यश होता। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित श्लोक प्रसिद्ध है ।

काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला।
तत्रापि चतुर्थोऽङ्कः तत्र श्लोकचतुष्टयम् ॥

प्रस्तुत पाठ ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ के चतुर्थ अंक का संक्षिप्त रूप है। शकुन्तला की कथा ‘महाभारत’ के ‘आदिपर्व’ (अध्याय 67 से 74) में वर्णित ‘शकुन्तलोपाख्यानम्’ से संकलित है, जिसे कालिदास ने अपनी प्रखर प्रतिभा से निखार दिया है।

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पाठ-सारांश

कण्व का गला भर आना- शकुन्तला के पतिगृह-गमन की बात सोचकर कण्व का गला भर आता है। वे सोचते हैं कि जब पुत्री की विदाई के समय मुझ जैसा तपस्वी अपने आँसू नहीं रोक पा रहा है, तब इस अवसर पर सद्गृहस्थों की क्या दशा होती होगी। शकुन्तला कण्व के चरण-स्पर्श करती है। (UPBoardSolutions.com) कण्व उसें चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति का वरदान देकर अपने शिष्य शाङ्गरव और शारवत् से शकुन्तला को लेकर चलने को कहते हैं। दोनों शकुन्तला को लेकर चलते हैं।

कण्व का वन- वृक्षों से शकुन्तला को विदाई देने के लिए कहना-महर्षि कण्व वन के वृक्षों से कहते हैं कि हे वन-वृक्षों! पहले तुम्हें जल देकर स्वयं जल पीने वाली, अलंकरण-प्रिया होने पर भी तुम्हारे फूल-पत्ते न तोड़ने वाली शकुन्तला आज अपने पति के घर जा रही है। अतः तुम उसे उसके अपने घर जाने की आज्ञा दो। तभी कोयल के रूप में वन-वृक्ष उसे अपने पति के घर जाने की आज्ञा देते हैं।

शकुन्तला के विरह में सभी जीव-जन्तुओं का दुःखी होना- शकुन्तला बड़े भारी मन से कदम आगे बढ़ा रही है। उसके विरह में वृक्ष और दूसरे जीव-जन्तु भी दुःखी हैं। उसके पतिगृह-गमन की बात सुनकर हरिणी ने घास खाना छोड़ दिया है, मयूरों ने नाचना छोड़ दिया है तथा लताएँ पीले पत्तों के रूप में (UPBoardSolutions.com) मानो आँसू बहा रही हैं। शकुन्तला वनज्योत्सना नामक लता को बाँहों में भरकर उसका आलिंगन करती है तथा अपनी सखियों से उसकी देखभाल करने को कहती है।

मृगशावक का शकुन्तला को रोकना- कण्व शकुन्तला को सान्त्वना दे रहे होते हैं; तभी एक मृगशावक शकुन्तला का आँचल मुँह में दबाकर खींचता हुआ, उसे रोकने का प्रयत्न करता है। इस मृगशावक को शकुन्तला ने घायलावस्था में पाया था और उसका उपचार करके उसका पुत्रवत् लालन-पालन किया था। शकुन्तला उसे सान्त्वना देती है कि मेरे बाद पिता मेरे समान ही तेरी देखभाल करेंगे।

शाङ्गरव का सबको लौट जाने के लिए कहना- पतिगृह जाती शकुन्तला के साथ सभी लोग आश्रम से दूर एक जलाशय तक आ जाते हैं। यहाँ पर शाङ्गुरव कण्व से कहता है कि गुरुवर विदाई के समय परिजनों को जलाशय के मिलने पर लौट जाना चाहिए, ऐसा सुना जाता है। अब आप इस जलाशय के तट पर से आश्रम वापसे जा सकते हैं।

कण्व का शकुन्तला को गृहस्थ- जीवन की शिक्षा देना-महर्षि कण्व शकुन्तला को सफल गृहस्थ-जीवन का रहस्य समझाते हुए कहते हैं कि तुम पतिगृह में सभी बड़े लोगों की सेवा करना, सपत्नीजनों (सौतनों) के साथ सखियों जैसा व्यवहार करना, पति को कभी अपमान न करना, सेवकों से उदारता का व्यवहार करना। जो कन्याएँ ऐसा करती हैं, वे पतिगृह में सम्मान पाने के साथ-साथ अपने पिता के कुल (UPBoardSolutions.com) की कीर्ति को भी बढ़ाती हैं। गौतमी भी उससे कण्व के इन उपदेशों को न भूलने के लिए कहती है।शकुन्तला का सबसे विदा लेना-शकुन्तला अधीर होती हुई अपनी सखियों प्रियंवदा और अनसूया से लिपटती है। कण्व उसे सान्त्वना देते हैं। शकुन्तला उनके पैरों में गिरती है। कण्व उसे उसकी इच्छाएँ पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं।

शकुन्तला की विदाई पर कण्व का सन्तोष व्यक्त करना- शकुन्तला की दोनों सखियाँ जहाँ भारी मन से आश्रम लौटती हैं, वहीं महर्षि कण्व शकुन्तला की सकुशल विदाई पर सन्तोष व्यक्त करते हुए मन-ही-मन कहते हैं कि कन्या तो माता-पिता के पास धरोहर रूप में रखे गये पराये धन के समान होती है। मैं उसे योग्य पति के पास भेजकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गया हूँ।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शकुन्तला का पतिगृह- गमन, उसे कण्व द्वारा दिया गया उपदेश तथा शकुन्तला की विदाई का करुण एवं भावपूर्ण मार्मिक वर्णन प्रस्तुत अंश की महत्ता को बढ़ाने वाले हैं।

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चरित्र – चित्रण

शकुन्तला

परिचय- शकुन्तला  ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक की मुग्धा नायिका है। वह महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की पुत्री है। उसका लालन-पालन महर्षि कण्व ने पुत्रीवत् किया है। शकुन्तला भी उनको अपना पिता ही मानती है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं|

(1) प्रकृति प्रेमिका- शकुन्तला प्रकृति की गोद में पली है; अतः उसके हृदय में सभी चेतन-अचेतन के लिए प्रेम का अथाह सागर तरंगायित होता है। हरिणशावक को वह अपने शिशु-सदृश मानती है। वृक्षों एवं लताओं के प्रति भी उसका अनुराग उसी प्रकार का है। पशु-पक्षी, लता, पत्ते सभी उसके सगे-सम्बन्धी हैं। उसके इसी प्रकृति-प्रेम के विषय में महर्षि कण्व के उसे कथन से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है, जिसमें वे वनवृक्षों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि जो तुमको सींचे बिना पहले जल नहीं पीती थी, जो अलंकारप्रिय होने पर भी (UPBoardSolutions.com) स्नेह के कारण तुम्हारे फूल-पत्तों को नहीं तोड़ती थी, जो तुम्हारे पहले-पहल फूलने पर उत्सव मनाती थी, वही शकुन्तला अब अपने पति के घर जा रही है। अपने प्रति शकुन्तला के स्नेह को देखकर मानो वृक्षों और लताओं को भी उससे प्रेम हो गया है, इसीलिए तो उसके पतिगृह-गमन के समय लताएँ अपने पीले पत्तों के रूप में आँसू गिराती हुई विलाप कर रही हैं।

(2) दयालु और परोपकारिणी- प्रकृति के प्रति तो शकुन्तला को अपार स्नेह है ही, वन्य जीव-जन्तुओं के प्रति भी उसके मन में दया और प्रेम का अथाह सागर हिलोरें लेता है। यही कारण है। कि वह सभी जीवों पर परोपकार करती रहती है। घायलावस्था में उपचार किया गया और बाद में पुत्रवत् पाला गया मृगशावक उसके इसी स्नेह से अभिभूत होकर पतिगृह जाते समय उसका मार्ग रोकता है। उसकी इसी दयालु और परोपकारिणी प्रवृत्ति से प्रभावित होकर सभी जीव भी उसको अत्यधिक स्नेह करते हैं। यही कारण है कि उसके पतिगृह-गमने का समाचार सुनकर हरिणी ने कुशग्रास को उगल दिया है और मयूरों ने नाचना छोड़ दिया है।

(3) सच्ची सखी- शकुन्तला एक सच्ची सखी के रूप में यहाँ चित्रित की गयी है। वह अपनी सखियों प्रियंवदा एवं अनसूया से अगाध प्रेम रखती है। पतिगृह-गमन के समय प्रियंवृदा, अनसूया एवं नवमालिका के छूट जाने का उसे अत्यधिक दुःख है।

(4) सरल स्वभाव वाली- शकुन्तला का स्वभाव सरल है। शकुन्तला की सरलता के सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है कि “शकुन्तला की सरलता अपराध में, दुःख में, धैर्य में और क्षमा में परिपक्व है, गम्भीर है और स्थायी है।” ज्योत्स्ना लता से चेतन प्राणियों की तरह बाँहों में भरकर मिलना, फिर (UPBoardSolutions.com) नवमालिका लता को धरोहर के रूप में अपनी सखियों प्रियंवदा और अनसूया को सौंपना उसके सरल स्वभाव को प्रमाणित करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत नाट्यांश में शकुन्तलाको भावुक, परोपकारिणी, दयालु और प्रकृति-संरक्षिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

महर्षि कण्व 

“परिचय–महर्षि कण्व भी कालिदासकृत ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक के प्रमुख पात्र हैं। शकुन्तला उन्हीं की पालिता पुत्री है। उनकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) सरल और उदारहृदय- महर्षि कण्व का हृदय महर्षियोचित सरल एवं उदार है। वन-देवताओं एवं वृक्षों से शकुन्तला को पतिगृह-गमन की आज्ञा प्रदान करने के लिए कहना उनके सरल और उदार हृदय होने का प्रमाण ही है।

(2) मानव-भावों के पारखी– महर्षि कण्व यद्यपि ऋषि हैं, तथापि वे सामान्यजनों के भावों को परखने की विद्या में निपुण हैं। तभी तो वे वनज्योत्स्ना से लिपटती हुई भावुक शकुन्तला से कहते हैं कि मैं इस पर तुम्हारे सहोदर प्रेम को भली प्रकार जानता हूँ।।

(3) मानवोचित गुणों से सम्पन्न- दैवी सम्पत्ति से सम्पन्न महर्षि भी तो मानव ही हैं, उन्हें भी पिता का कोमल हृदय मिला है। इसीलिए वे शकुन्तला के विदा होते समय करुणा से आप्लावित हो जाते हैं। मुनि को हृदय शकुन्तला के भावी गमनमात्र की चिन्ता से भर जाता है। दूसरों को धीरज बँधाने (UPBoardSolutions.com) वाले गम्भीर मुनि स्वयं कह उठते हैं-‘यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया’ और वे दु:खभरी लम्बी साँस लेकर अन्तत: उसे आशीर्वाद देते हुए कहते हैं–‘गच्छ शिवास्ते पन्थानः सन्तु।’

(4) लोकाचार के ज्ञाता- यद्यपि कण्व ऋषि हैं, तथापि वे गृहस्थों के लोकाचार को भली-भाँति समझते हैं। इस सन्दर्भ में वे स्वयं शकुन्तला से कहते हैं-“वत्से! इस समय तुम्हें शिक्षा देनी है। वनवासी होते हुए भी हम लोकाचार समझते हैं। इसी लोकाचार का पालन करते हुए वे शकुन्तला को शिक्षा देते हैं-“तुम पतिकुल में पहुँचकर गुरुजनों की सेवा करना, उनकी सपनियों के साथ प्रिय सखी के सदृश व्यवहार करना। यदि स्वामी अपमान भी कर दें तो भी क्रोध से उनके विरुद्ध आचरण न करना। दास-दासी आदि सेवकजनों से उदारता का व्यवहार करना। भाग्य के अनुकूल होने पर भी कभी अभिमान न करना। इस प्रकार का आचरण करने वाली युवतियाँ गृहिणी पद को प्राप्त कर लेती हैं। इसके विपरीत चलने वाली तो कुल के लिए विपत्ति हैं।”

(5) श्रेष्ठ पिता- जब शकुन्तला चली जाती है, तब महर्षि कण्व शान्ति की साँस लेते हैं और अपने को परम शान्त एवं भारमुक्त पाते हैं। वे जानते हैं कि कन्या-धन परकीय धन होता है। वह पिता के पास एक धरोहर के रूप में रहता है और वह तब तक उस भार से मुक्त नहीं होता, जब तक वह (UPBoardSolutions.com) उसे धनी के पास लौटा नहीं देता। आज महर्षि कण्व भी अपनी पुत्री को उसके परिगृहीता के पास भेजकर विशदान्तरात्म होकर प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महर्षि कण्व समस्त श्रेष्ठ गुणों से ओत-प्रोत हैं। उनका चरित्र-चित्रण सामान्य मानव एवं महर्षियोचित गुणों का उत्कृष्ट संगम है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
शकुन्तला का आसीत्?
उत्तर
शकुन्तला कण्वस्य औरसपुत्री आसीत्। .

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प्रश्‍न 2
गृहिणः कथं पीड्यन्ते?
उत्तर
गृहिणः तनयाविश्लेषदुःखैर्नवैः पीड्यन्ते।

प्रश्‍न 3
शकुन्तलायाः उत्सवः कदा भवति?
उत्तर
वृक्षाणां कुसुमप्रसूतिसमये शकुन्तलायाः उत्सवः भवति।

प्रश्‍न 4
प्रियंवदा का आसीत्?
उत्तर
प्रियंवदा शकुन्तलायाः सखी आसीत्।

प्रश्‍न 5
कीदृशः युवतयः गृहिणीपदं यान्ति
उत्तर
याः युवतयः गुरुन् शुश्रूषन्ति, सपत्नीजने प्रियसखीवृत्तिं कुर्वन्ति, पतिं प्रति क्रोधं न कुर्वन्ति, ता: गृहिणीपदं यान्ति।

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प्रश्‍न 6
कन्या कीदृशः अर्थः अस्ति?
उत्तर
कन्या परकीया अर्थः अस्ति।

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