UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 5 संस्थाओं का कामकाज

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नलिखित में से कौन-सा फैसला खुद कर सकते हैं?
(क) अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।
(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं।
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
(घ) मंत्रीपरिषद् में अपनी पसंद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर:
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?
(क) जिलाधीश
(ख) गृह मंत्रालय का सचिव
(ग) गृहमंत्री
(घ) पुलिस महानिदेशक
उत्तर:
(ग) गृहमंत्री

प्रश्न 3.
न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा बयान गलत है?
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।
(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है।
(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है।
(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर:
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून का सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन-सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है?
(क) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) संसद
उत्तर:
(घ) संसद

प्रश्न 5.
उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा –

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। 1. रक्षा मंत्रालय
(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ कराई जाएँगी। 2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएँगी। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय
(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
(ङ) ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएँगे। 5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय

उत्तर:

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ कराई जाएँगी। 5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएँगी। 2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय
(ङ) ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएँगे। 1. रक्षा मंत्रालय

प्रश्न 6.
देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनैतिक संस्था का नाम बताइए ने निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है-
(क) सड़क, सिंचाई, जैसे बुनियादी ढाँचों के विकास (UPBoardSolutions.com) और नागरिकों की विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों पर किता पैसा खर्च किया जाएगा।
(ख) स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने संबंधी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर विचार-विमर्श करती है।
(ग) दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।
(घ) भूकंप पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना माँगती है।
उत्तर:
(क) लोकसभा (वित्त मंत्रालय)
(ख) संसद
(ग) सर्वोच्च न्यायालय
(घ) कार्यपालिका

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प्रश्न 7.
भारत का प्रधानमंत्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता? निम्नलिखित चार जवाबों में सबसे सही को चुनकर अपनी पसंद के पक्ष में कारण दीजिए।
(क) संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही ‘प्रधानमंत्री बन सकती है।
(ख) लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद् का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा सकती है।
(ग) चूंकि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है लिहाजा उसे जनता द्वारा चुने जाने की जरूरत ही नहीं है।
(घ) प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।
उत्तर:
(क) संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है। यदि एक प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित व्यक्ति जिसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं है को प्रधानमंत्री बना दिया जाता है, तो उसके लिए लोकसभा में अपनी मर्जी के बिल, नीतियाँ पास कराना (UPBoardSolutions.com) कठिन होगा। ऐसी स्थिति में सरकार ठीक ढंग से नहीं चल सकेगी। इसके अलावा भारत जैसे विशाल देश में जहाँ पर मतदाताओं की संख्या करोड़ों में है, किसी भी साधारण व्यक्ति चाहे वह कितना ही ईमानदार तथा बुद्धिमान क्यों न हो, चुनाव का खर्च सहन करना संभव नहीं होगा।

प्रश्न 8.
तीन दोस्त एक ऐसी फिल्म देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनता है और राज्य में बहुत से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इसी चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाले व्यक्ति का राज खतरनाक है। शंकर ने कहा कि यह तो एक कल्पना है।
कोई भी मंत्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:
इस प्रकार की फिल्म का कथानक कल्पना पर आधारित है यथार्थ से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। एक व्यक्ति का शासन सदैव खतरनाक होता है। शासन का संचालन नियमों के अनुसार ही चलाया जा सकता है। मुख्यमंत्री की नियुक्ति निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के उपरांत की जाती है। साथ ही सुधारों के लिए अत्यधिक योजना बनाने की जरूरत होती है। मैं भी शंकर से सहमत हूँ। राज्य में बदलाव लाने के लिए केवल एक दिन काफी नहीं होता।

प्रश्न 9.
एक शिक्षिका छात्रों की संसद के आयोजन की तैयारी कर रही थी। उसने दो छात्राओं को अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे (UPBoardSolutions.com) चाहें तो राज्यसभा में बहुमत प्राप्त दल की नेता हो सकतीं थीं और अगर चाहें तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको यह विकल्प दिया जाए तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
उत्तर:
मैं लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता बनना चाहूँगा क्योंकि व्यावहारिक रूप से लोकसभा-राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली होता है। धन विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है। इसे लोकसभा ही पारित कर सकती है। राज्यसभा इसे मात्र 14 दिन तक रोक सकती है और यदि राज्यसभा इस विधेयक को वापस लोकसभा को नहीं लौटाती है तब भी इस विधेयक को पास मान लिया जाएगा। (UPBoardSolutions.com) लोकसभा मंत्रिमण्डल को नियंत्रित करती है। लोकसभा के सदस्य मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं जबकि राज्यसभा सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।

प्रश्न 10.
आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इसमें से कौन-सी प्रतिक्रिया, न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह से समझती है?
(क) श्रीनिवांस का तर्क है कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है लिहाजा वह स्वतंत्र नहीं
(ख) अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन (UPBoardSolutions.com) का निर्देश दिया।
(ग) विजया का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है न ही किसी के अनुसार चलने वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इसे आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया। आपकी राय में कौन-सा विचार सही है?
उत्तर:
इन तीनों विचारों में से-
(ख) अंजैया का विचार सही है, न्यायपालिका स्वतंत्र है। सर्वोच्च न्यायालय सरकार के निर्णय को रद्द भी कर सकता है और उसे बदलने का आदेश भी दे सकता है। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अपने आदेश में संशोधन करने का आदेश दिया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक समीक्षा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
न्यायिक समीक्षा उच्चतम न्यायालय की वह शक्ति है जिसके माध्यम से वह विधायिका द्वारा पारित कानून अथवा कार्यपालिका द्वारा की गयी कार्रवाई की समीक्षा यह जानने के लिए कर सकता है कि उक्त कार्रवाई या कानून संविधान के अनुकूल है या प्रतिकूल। यदि न्यायालय को ऐसा लगता है कि कोई कानून अथवा आदेश संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो वह ऐसे कानून या आदेश को रद्द कर सकता है?

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प्रश्न 2.
राज्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
राज्य किसी निश्चित क्षेत्र में फैली राजनैतिक इकाई, जिसके पास संगठित सरकार हो और घरेलु तथा विदेशी नीतियों को बनाने का अधिकार हो। सरकारें परिवर्तित हो सकती हैं पर राज्य बना रहता है। बोलचाल की भाषा में देश, राष्ट्र और राज्य को समानार्थी के रूप में प्रयोग किया जाता है। राज्य’ (UPBoardSolutions.com) शब्द का एक अन्य प्रयोग किसी देश के अंदर की प्रशासनिक इकाइयों का प्रांतों के लिए भी होता है। इस अर्थ में राजस्थान, झारखण्ड, त्रिपुरा आदि भी राज्य कहे जाते हैं।

प्रश्न 3.
विधायिका से क्या आशय है?
उत्तर:
विधायिका जनप्रतिनिधियों की वह सभी है जिसके पास देश का कानून बनाने की शक्ति होती है। कानून बनाने के अतिरिक्त विधायिका को करों में वृद्धि करने, बजट बनाने और दूसरे वित्त विधेयकों को बनाने का विशेष अधिकार होता है।

प्रश्न 4.
न्यायपालिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक राजनैतिक संस्था जिसके पास न्याय करने एवं कानूनी विवादों के निपटारे का समाधान होता है, उसे न्यायपालिका कहते हैं। देश की सभी अदालतों को न्यायपालिका के नाम से संबोधित किया जाता है।

प्रश्न 5.
सरकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संस्थाओं का ऐसा समूह जिसके पास देश में व्यवस्थित जन-जीवन सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने, लागू करने और उसकी व्याख्या करने का अधिकार होता है। व्यापक अर्थ में सरकार किसी देश के लोगों और संसाधनों को नियंत्रित और उनकी निगरानी करती है।

प्रश्न 6.
कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
व्यक्तियों का ऐसा निकाय जिसके पास देश के संविधान और कानून के आधार पर नीति-निर्माण करने, निर्णय करने और उन्हें क्रियान्वित करने का अधिकार होता है, न्यायपालिका कहते हैं।

प्रश्न 7.
गठबन्धन सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब विधायिका में किसी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो ऐसी दशा में दो या दो से अधिक राजनीतिक दल आपस में मिलकर जो सरकार बनाते हैं, उसे गठबन्धन सरकार कहते हैं।

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प्रश्न 8.
संस्थाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
सरकार के विभिन्न कार्यों को करने के लिए देश में अनेक व्यवस्थाएँ की जाती हैं। इन व्यवस्थाओं को ही संस्थाएँ कहते हैं। इन संस्थाओं की संरचना एवं कार्यों का वर्णन संविधान में किया गया होता है।

प्रश्न 9.
संसदीय लोकतंत्र की तीन प्रमुख संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संसदीय लोकतंत्र की तीन प्रमुख संस्थाएँ-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका होती है। इसमें विधानमंडल कानून बनाता है, कार्यपालिका उन कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका विवादों का समाधान करती है।

प्रश्न 10.
भारत के राष्ट्रपति के कार्यपालिका सम्बन्धी तीन शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी तीन प्रमुख शक्तियाँ इस प्रकार हैं-

  1. देश का शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है।
  2. राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और उसके परामर्श पर अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है।
  3. राष्ट्रपति राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति करता है।

प्रश्न 11.
संसद से क्या आशय है? संसद के दोनों सदनों का कार्यकाल बताइए।
उत्तर:
सभी लोकतंत्रीय राज्यों में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक संस्था होती है, जो कानूनों का निर्माण करती है।
भारत, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस आदि राज्यों में इसे संसद नाम दिया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में इस संस्था को कांग्रेस नाम दिया गया है। लोकसभा के सदस्यों का साधारण (UPBoardSolutions.com) कार्यकाल 5 वर्ष है, परंतु राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह उसे इसके पाँच वर्ष पूरे होने से पहले भी भंग कर सकता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है, उसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इसके 1/3 सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के बाद रिटायर हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुन लिए जाते हैं।

प्रश्न 12.
लोकसभा एवं विधानसभा की चुनाव प्रक्रिया बताइए।
उत्तर:
लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। पूरे देश को उतने निर्वाचन-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है जितने कि सदस्य चुने जाने हैं। एक निर्वाचन-क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है। राज्यसभा के 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से मनोनीत किए जाते हैं जिन्होंने कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली है। शेष 238 सदस्य राज्यों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।

प्रश्न 13.
राष्ट्रपति किस परिस्थिति में संकटकालीन स्थिति की घोषणा कर सकता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति निम्न तीन स्थितियों में संकटकाल की घोषणा कर सकता है-

  1. युद्ध, विदेशी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह होने की स्थिति में।
  2. किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी के विफल होने की स्थिति में।
  3. देश की वित्तीय स्थिति खराब होने की स्थिति में।

प्रश्न 14.
भारत के प्रधानमंत्री की तीन शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रधानमंत्री की तीन प्रमुख शक्तियाँ इस प्रकार हैं-

  1. प्रधानमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद् का निर्माण करता है। मंत्रिपरिषद् के सभी सदस्य प्रधानमंत्री की सिफारिश के अनुसार ही राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति किए जाते हैं।
  2. प्रधानमंत्री मंत्रियों के बीच विभागों का विभाजन करता है।
  3. प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है।

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प्रश्न 15.
राष्ट्रपति की तीन विधायी शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रपति की तीन विधायी शक्तियाँ इस प्रकार हैं-

  1. राष्ट्रपति संसद को अधिवेशन बुला सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है।
  2. राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों द्वारा पास किए गए बिलों को स्वीकृति प्रदान करता है।
  3. राष्ट्रपति को राज्यसभा में 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतांत्रिक देश में संसद का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रायः सभी लोकतांत्रिक देशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभी जनता के प्रतिनिधि के रूप में सर्वोच्च राजनैतिक सत्ता का प्रयोग करती है। इस तरह जनता द्वारा निर्वाचित राष्ट्रीय सभा को संसद कहते हैं। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा कहते हैं।
लोकतांत्रिक देशों में संसद के महत्त्व को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-

  1. संसद सरकार के पास उपलब्ध धन को भी नियंत्रित करती है।
  2. संसद देश में सार्वजनिक मुद्दों तथा राष्ट्रीय नीतियों पर परिचर्चा का सर्वोच्च मंच है। यह किसी भी मामले में सूचना की मांग कर सकती है।
  3. संसद देश में कानून बनाने वाली सर्वोच्च सत्ता है। यह वर्तमान कानूनों को बदल/समाप्त कर सकती है अथवा पुराने कानूनों के स्थान पर नए कानून ला सकती है।
  4. संसद का सरकार को चलाने वाले लोगों पर नियंत्रण होता है। संसद के समर्थन के बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता।

प्रश्न 2.
भारत के राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता है। संसद के सभी सदस्य अर्थात् सांसद तथा राज्य विधानसभाओं के सभी सदस्य अर्थात् विधायक उसका चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति पद के किसी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए बहुमत प्राप्त करना होता है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि भारत का राष्ट्रपति पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता दिखाई दे।

प्रश्न 3.
लोकसभा वित्तीय मामलों में किन शक्तियों का प्रयोग करती है?
उत्तर:
भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में वित्तीय मामलों में लोकसभा की शक्ति सर्वोच्च है। लोकसभा द्वारा एक बार सरकारी बजट अथवा धन संबंधी कोई कानून पास कर देने के (UPBoardSolutions.com) बाद राज्यसभा इसे अस्वीकार नहीं कर सकती। राज्यसभा इसमें केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है अथवा इसमें संशोधन का सुझाव दे सकती है। यह लोकसभा का अधिकार है कि वह उन सुझावों को माने या न माने।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति स्वविवेक का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
लोकसभा के चुनावों में जब कोई राजनीतिक दल अथवा गठबन्धन बहुमत के लिए आवश्यक सीटें जीत लेता है। तो राष्ट्रपति उस दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्ति करता है। लेकिन जब किसी दल अथवा गठबंधन के नेता को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करता है। तब राष्ट्रपति ऐसे दल अथवा गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जो उसके (UPBoardSolutions.com) विचार में लोकसभा में बहुमत प्राप्त कर सकता हो। ऐसे मामले में, राष्ट्रपति नवनियुक्त प्रधानमंत्री को निर्धारित समय सीमा में लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए कह सकता है।

प्रश्न 5.
धन-विधेयक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कोई भी विधेयक जब निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित होता है तो उसे धन-विधेयक कहते हैं-

  1. किसी भी धन को भारत की संचित निधि से दिए जाने की घोषणा करना या उसमें से धन खर्च करना।
  2. धन के आय तथा व्यय के बारे में कोई अन्य विषय।
  3. कोई कर लगाना अथवा उसे समाप्त करना।
  4. भारत सरकार द्वारा लिया गया ऋण या उससे संबंधित विषय।
  5. भारत की संचित निधि तथा आकस्मिक निधि की रक्षा तथा उसमें धन डालना अथवा निकालना।

प्रश्न 6.
लोकसभा सदस्य बनने के लिए व्यक्ति में कौन-सी योग्यताएँ होनी चाहिए।
उत्तर:
व्यक्ति को लोकसभा का सदस्य बनाने के लिए व्यक्ति में निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए।

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. यदि वह लोकसभा का सदस्य बनना चाहता है, तो वह 25 वर्ष की आयु और राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर कार्य न कर रहा हो।
  4. वह पागल अथवा दिवालिया न हो।
  5. वह किसी गंभीर अपराध में दंडित न किया गया हो।
  6. उसके पास वे सभी योग्यताएँ हों, जो समय-समय पर संसद निश्चित करे।

प्रश्न 7.
राष्ट्रपति को उसके पद से किस तरह हटाया जा सकता है?
उत्तर:
संविधान का उल्लंघन करने और उसकी रक्षा करने में विफल रहने पर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। इसके लिए सदन में 1/4 सदस्य हस्ताक्षर सहित 14 दिन का नोटिस दें। उसके पश्चात् सदन उस प्रस्ताव पर विचार करेगा। यदि सदन अपनी । कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित व मतदान में भाग लेने (UPBoardSolutions.com) वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे, तो उसे दूसरे सदन के पास भेज दिया जाता है। यदि दूसरा सदन भी उसी प्रकार से उस प्रस्ताव को पास कर दे, तो महाभियोग प्रस्ताव संसद द्वारा पारित समझा जाएगा और राष्ट्रपति पद से हट जाएगा।

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प्रश्न 8.
राष्ट्रपति की योग्यताएँ एवं कार्यकाल बताइए।।
उत्तर:
एक व्यक्ति में भारत का राष्ट्रपति चुने जाने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
  4. वह केंद्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर कार्य न कर रहा हो।
  5. वह संसद अथवा किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए।
  6. सन् 1997 में जारी किए गए अध्यादेश द्वारा इसमें निम्नलिखित दो योग्यताएँ और जोड़ दी गई हैं-
    1. उसे 15,000 जमानत के रूप में जमा करवाने होंगे।
    2. राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार का नाम निर्वाचक-मंडल के कम-से-कम 50 सदस्यों द्वारा प्रस्तावित तथा अन्य 50 सदस्यों द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।

कार्यकाल – राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया है, परंतु संसद महाभियोग द्वारा उसे इस कार्यकाल के समाप्त होने से पहले भी पद से हटा सकती है।

प्रश्न 9.
‘अविश्वास प्रस्ताव’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी मंत्रिपरिषद् तभी तक अपने पद पर बनी रह सकती है, जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है। विपक्षी दल जब यह अनुभव करें कि सरकार की नीतियाँ ठीक नहीं हैं या सरकार अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर रही है, तो वह संसद में सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पेश करते हैं। इस प्रस्ताव पर संसद में वाद-विवाद किया जाता है और फिर उस पर मतदान कराया जाता है। यदि सदस्यों का बहुमत अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करता है तो सरकार (मंत्रिपरिषद्) को अपना त्याग-पत्र देना पड़ता है। यदि संसद में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मत प्राप्त नहीं होते, तो वह रद्द हो जाता है और सरकार पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 10.
क्या भारत का राष्ट्रपति संकटकालीन शक्तियों का प्रयोग करके तानाशाह बन सकता है? अपने तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि राष्ट्रपति को अनेक संकटकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं किन्तु उसके ऊपर अनेक लोकतांत्रिक प्रतिबन्ध भी हैं जिससे वह तानाशाह नहीं बन सकता है।
इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यदि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों को दुरुपयोग करता है, तो सांसद उसके विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव पास करके उसे पद से हटा सकती है।
  2. राष्ट्रपति संकटकालीन स्थिति की घोषणा तभी कर सकता है, जब मंत्रिमंडल लिखित रूप में उसे ऐसा करने का परामर्श दे।
  3. राष्ट्रपति की घोषणा पर एक महीने के अंदर संसद की स्वीकृति लेनी पड़ती है।

प्रश्न 11.
लोकसभा और राज्यसभा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा और राज्यसभा में अंतर-

लोकसभा

राज्यसभा

1. धन संबंधी बिल केवल लोकसभा में पेश किए जा सकते हैं। यह लोकसभा ही है जो देश का प्रशासन चलाने के लिए धन प्रदान करती है। 1. राज्यसभा के पास धन संबंधी मामलों में अधिक शक्ति प्राप्त नहीं है।
2. लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है। 2. लोकसभा की अपेक्षा राज्यसभा कम शक्तिशाली है।
3. लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते है। 3. राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
4. प्रत्येक लोकसभा को सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष होता है। 5 वर्ष के बाद निर्वाचित किए गए सभी सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। लोकसभा भंग हो जाती है। 4. राज्यसभा एक स्थायी निकाय है। यह कभी भंग नहीं होता किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
 5. लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या  552  है। 5. राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 250 से अधिक नहीं होती।

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प्रश्न 12.
न्यायपालिका भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा किस तरह करती है?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है। यदि सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीनती है या कोई नागरिक किसी दूसरे नागरिक को उसके मौलिक अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक नहीं करने देता, तो वह नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अंतर्गत संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। इन संवैधानिक उपचारों में बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख आदि का प्रयोग नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए किया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संसद तथा इसके दोनों सदनों के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्रायः सभी लोकतांत्रिक देशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभी जनता की ओर से सर्वोच्च राजनैतिक सत्ता को प्रयोग करती है। भारत में इस तरह की निर्वाचित राष्ट्रीय सभा को संसद कहते हैं। इसके दो सदन हैं-लोकसभा (निम्न सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन)।
देश में कानून बनाने वाली सर्वोच्च सत्ता संसद है। संसद वर्तमान कानूनों को परिवर्तित यो समाप्त कर सकती है अथवा पुराने कानूनों के स्थान पर नए कानून बना सकती है। संसद का सरकार को चलाने वाले लोगों पर नियंत्रण होता है। संसद् के समर्थन के बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता। संसद सरकार के पास उपलब्ध धन को भी नियंत्रित करती है। संसद देश में सार्वजनिक मुद्दों तथा राष्ट्रीय (UPBoardSolutions.com) नीतियों पर परिचर्चा का सर्वोच्च मंच है। यह किसी भी मामले में सूचना की माँग कर सकती है। हमारे देश में संसद दो सदनों से मिलकर बनी है-राज्यसभा तथा लोकसभा। हमारा संविधान राज्यसभा को राज्यों पर कुछ विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है। किन्तु अधिकतम मामलों में लोकसभा के पास सर्वोच्च शक्ति है।

लोकसभा – यह लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती है तथा लोगों की ओर से लोकसभा वास्तविक शक्ति का प्रयोग करती है। लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 है जिनमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों से तथा 20 सदस्य संघ शासित क्षेत्रों से चुने जाते हैं। राष्ट्रपति लोकसभा में 2 सदस्य आंग्ल-भारतीय समुदाय से मनोनीत करते हैं। लोकसभा सदस्यों की वर्तमान संख्या 545 है। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। आपात स्थिति में लोकसभा के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।

राज्यसभा – राज्यसभा के सदस्य परोक्ष रूप से विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। दूसरे सदन का सर्वाधिक सामान्य काम विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों और संघीय इकाइयों के हितों की निगरानी करना होता है। इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है। राज्यसभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान एवं समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले लोगों में से नामित (UPBoardSolutions.com) किए जाते हैं। राज्यसभा स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होती अपितु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वर्तमान में राज्यसभा के 245 सदस्य हैं जो विभिन्न राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों से चुने गए हैं।

प्रश्न 2.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं शक्तियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
देश में विद्यमान विभिन्न स्तरों के समस्त न्यायालयों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहते हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता से आशय यह है कि यह विधायिका एवं कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त है। इसीलिए न्यायपालिका को सभी लोकतांत्रिक देशों में विशेष महत्त्व दिया गया है। भारतीय न्यायपालिका पूरे देश के लिए सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों तथा स्थानीय न्यायालयों से मिलकर बनी है। भारतीय न्यायपालिका पूरे विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली है।
भारत की न्यायपालिका एकीकृत है। इसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे देश में न्यायिक प्रशासन को नियंत्रित करता है। वह इनमें से किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है।

  1. देश के नागरिकों के बीच;
  2. नागरिकों एवं सरकार के बीच;
  3. दो या इससे अधिक राज्य सरकारों के बीच;
  4. केन्द्र और राज्य सरकार के बीच।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि यह विधायिका अथवा कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त है। न्यायाधीश सरकार के निर्देशों या सत्ताधारी दलों की इच्छा के अनुसार काम नहीं करते। यही कारण है कि सभी आधुनिक लोकतंत्रों में अदालतें, विधायिका और कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होती हैं। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। अगर उसे लगता है कि विधायिका का कोई कानून अथवा कार्यपालिका की कोई कार्रवाई संविधान के विरुद्ध है तो यह उसे केन्द्र (UPBoardSolutions.com) अथवा राज्य स्तर पर अमान्य घोषित कर सकती है। इस प्रकार जब इसके सामने किसी कानून या कार्यपालिका की कार्रवाई को चुनौती मिलती है तो वह उसकी संवैधानिक वैधता तय करती है।

इसे न्यायिक समीक्षा के नाम से जाना जाता है। न्यायिक समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय की वह शक्ति है जिसके द्वारा वह विधायिका द्वारा पारित कानून अथवा कार्यपालिका द्वारा की गई कार्रवाई को यह जानने के लिए प्रयोग कर सकती है कि उक्त कानून या कार्रवाई संविधान द्वारा निषिद्ध है अथवा नहीं। यदि न्यायालय यह पाता है कि कोई कानून अथवा आदेश संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो यह ऐसे कानून या आदेश को अमान्य घोषित कर सकता है।

प्रश्न 3.
लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से किया जाता है। इसे १ 4,00,000 प्रतिमाह वेतन दिया जाता है।
लोकसभा अध्यक्ष के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-

  1. वह लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा सदन में शांति और व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करता है।
  2. यदि कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है अथवा सदन में अनुचित शब्दों का प्रयोग करता है तो स्पीकर उसके विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। वह उसे सदन से बाहर जाने के लिए कह सकता है।
  3. वह सदस्यों के लिए निवास तथा अन्य सुविधाओं (UPBoardSolutions.com) की व्यवस्था करता है।
  4. लोकसभा जब किसी बिल को पास कर देती है, तो वह स्पीकर के हस्ताक्षरों के बाद ही राज्यसभा अथवा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
  5. सदन की बैठक में गड़बड़ होने की स्थिति में वह सदन की बैठक स्थगित कर सकता है।
  6. सदन की विभिन्न समितियों की नियुक्तियों में स्पीकर का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है।
  7. यदि किसी बिल के बारे में यह मतभेद उत्पन्न हो जाए कि वह बिल वित्त-बिल है अथवा नहीं, तो उस संबंध में स्पीकर द्वारा किया गया निर्णय ही अंतिम माना जाएगा।
  8. वह सदन में सदस्यों को बोलने की आज्ञा देता है।
  9. सदन में जब किसी बिल पर वाद-विवाद समाप्त हो जाता है, तो वह उस पर मतदान करवाता है, मतों की गिनती करवाता है तथा परिणाम घोषित करता है।
  10. साधारणतः स्पीकर सदन में मतदान में भाग नहीं लेता, परंतु किसी बिल पर समान मत पड़ने की स्थिति में वह निर्णायक मत दे सकता है।
  11. स्पीकर सदन के नेता की सलाह से सदन का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
  12. वह लोकसभा के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  13. वह राष्ट्रपति तथा सदन के बीच कड़ी का काम करता है।
  14. दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी स्पीकर करता है।
  15. स्पीकर ही इस बात का निर्णय करता है कि सदन की गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य उपस्थित हैं अथवा नहीं।

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प्रश्न 4.
प्रधानमंत्री की शक्तियाँ एवं कार्यों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
प्रधानमंत्री की मुख्य शक्तियाँ एवं कार्यों का विवरण इस प्रकार है-

  1. मंत्रिपरिषद का निर्माण करना – प्रधानमंत्री का मुख्य कार्य मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना है, प्रधानमंत्री मंत्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति इस सूची के अनुसार ही मंत्रियों को नियुक्त करता है। प्रधानमंत्री ही विभिन्न मंत्रियों के बीच विभागों का बँटवारा करता है।
  2. मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता – प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है। इन बैठकों का कार्यक्रम भी प्रधानमंत्री द्वारा तैयार किया जाता है।
  3. मंत्रियों को हटाना – यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री की नीति से असहमत होता है, तो प्रधानमंत्री उसे त्याग-पत्र देने के लिए कह सकता है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से कहकर उसे पद से हटवा सकता
  4. संसद का नेता – प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही राष्ट्रपति द्वारा संसद का अधिवेशन बुलाया जाता है तथा स्थगित किया जाता है। संसद में सरकार की ओर से सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ प्रधानमंत्री द्वारा ही की जाती हैं।
  5. नीति आयोग का अध्यक्ष (पूर्व में योजना आयोग) – प्रधानमंत्री नीति आयोग (पूर्व में योजना आयोग), जो देश के आर्थिक विकास के लिए नीतियों का निर्माण करता है, का अध्यक्ष होता है।
  6. राष्ट्र का नेता – प्रधानमंत्री राष्ट्र का भी नेता है। जब देश पर किसी भी प्रकार का कोई संकट आता है, तो समस्त देश प्रधानमंत्री की ओर देखता है। प्रधानमंत्री से (UPBoardSolutions.com) ही यह आशा की जाती है कि वह देश को उस संकट से मुक्ति दिलाएगा। इस प्रकार प्रधानमंत्री ही देश का वास्तविक शासक होता है।
  7. राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी – प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी का काम करता है। वह राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में सूचित करता है तथा राष्ट्रपति की बात को मंत्रिमंडल के पास पहुँचाता है। मंत्री प्रधानमंत्री की पूर्व स्वीकृति से ही राष्ट्रपति से मिल सकते हैं।
  8. नीति निर्धारण करना – देश की आंतरिक तथा बाहरी (विदेश) नीति के निर्धारण में प्रधानमंत्री बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  9. नियुक्तियाँ – राष्ट्रपति सभी उच्च सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है।
  10. राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार – प्रधानमंत्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। राष्ट्रपति अपने सभी कार्य प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है।

प्रश्न 5.
राष्ट्रपति की शक्तियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रपति की प्रमुख शक्तियों का विवरण इस प्रकार हैं-

  1. सभी प्रमुख नियुक्तियाँ राष्ट्रपति के नाम से की जाती हैं। इनमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों और अन्य देशों में राजदूतों की नियुक्तियाँ शामिल हैं किन्तु राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग केवल मंत्रीमंडल की सलाह से करता है।
  2. सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौते तथा संधियाँ उसी के नाम पर किए जाते हैं।
  3. वह भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर होता है।
  4. राष्ट्रपति देश का मुखिया होता है।
  5. वह केवल नाममात्र की शक्तियों का प्रयोग करता है। वह ब्रिटेन की महारानी के समान है जिसके कार्य अधिकतर आलंकारिक होते हैं।
  6. वह देश की सभी राजनैतिक संस्थाओं के कार्य की निगरानी करता है।
  7. सरकार के सभी क्रियाकलाप राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।
  8. सरकार के सभी कानून तथा प्रमुख नीतिगत निर्णय राष्ट्रपति के नाम जारी किए जाते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 9 अशुद्ध वायु से होने वाले रोग

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 9 अशुद्ध वायु से होने वाले रोग

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु द्वारा रोगों के संक्रमण का प्रसार किस प्रकार से होता है? इस प्रकार के संक्रमण से बचाव के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायु; विशेष रूप से अशुद्ध वायु अनेक संक्रामक रोगों के प्रसार में प्रभावी माध्यम को कार्य करती है। वायु में अनेक रोगाणु पाए जाते हैं। रोगाणुओं का वायु में भली प्रकार से पनपना वायु की आर्द्रता, तापमान व सूर्य के प्रकाश की कम अथवा अधिक उपलब्धि पर निर्भर करता है। उदाहरण (UPBoardSolutions.com) के लिए-वर्षा ऋतु में अधिक आर्द्रता, अपेक्षाकृत कम सूर्य का प्रकाश व तापमान की परिस्थितियों में रोगाणु अधिक पनपते हैं, जबकि ग्रीष्म ऋतु की विपरीत परिस्थितियाँ रोगाणुओं के लिए घातक होती हैं। वायु द्वारा रोगाणुओं के प्रसार की कुछ सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) धूल के कणों के साथ रोगाणुओं का स्थानान्तरण:
साधारणतः वायु में धूल के कण व रोगाणु दोनों ही पाए जाते हैं। जब वायु की गति में परिवर्तन होता है तो धूल के कणों के साथ-साथ रोगाणु भी भूमि पर गिरते रहते हैं। झाडू द्वारा भूमि की सफाई करते समय ये रोगाणु धूल के कणों के साथ निचले स्तर की वायु में आ जाते हैं तथा या तो आस-पास (UPBoardSolutions.com) के मनुष्यों की श्वास नलिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। या फिर आस-पास के खुले रखे भोज्य पदार्थों तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार रोगों के संक्रमण की पूर्ण सम्भावना बन जाती है।

बचने के उपाय:

  1. मकानों, सार्वजनिक भवनों एवं अस्पतालों इत्यादि की सफाई झाडू द्वारा नहीं करनी चाहिए। इन स्थानों की सफाई गीले पोंछे से करनी चाहिए जिससे कि धूल के उड़ने की कोई सम्भावना न रहे। सफाई करते समय पोंछे को रोगाणुमुक्त करने के लिए फिनाइल के घोल में भिगोते रहना चाहिए।
  2. वायु के संवातन की समुचित व्यवस्था तथा धूल के उड़ने पर नियन्त्रण रखने से फैलने वाले रोगों से एक बड़ी सीमा तक बचाव किया जा सकता है।

(2) मानवीय असावधानियों द्वारा रोगाणुओं का प्रसार:
छींकना, खाँसना, वार्तालाप करना, हँसना, रोना अथवा गाना आदि वैसे तो सामान्य मानवीय क्रियाएँ हैं, परन्तु रोगियों द्वारा नादानी एवं असावधानी से की गई ये क्रियाएँ ही संक्रामक रोगों के प्रसार का कारण बन जाती हैं। रोगी द्वारा खाँसने व छींकने से निकला कफ व म्यूकस पदार्थ रोगाणुयुक्त (UPBoardSolutions.com) होता है। यह आस-पास लगभग 3-4 फिट दूरी तक बैठे व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त म्यूकस पदार्थ धूल के कणों के साथ मिलकर वायु द्वारा दूर-दूर तक फैलकर रोगाणुओं का प्रसार कर सकता है। रोगाणुओं का यह समूह धूल के कणों के साथ मिलकर भार में हल्का होने के कारण एक लम्बे समय तक वायु में विचरण भी कर सकता है।

बचने के उपाय:

  1.  परिचर्या के समय रोगी से लगभग चार फीट की दूरी तक रहना चाहिए।
  2. सार्वजनिक स्थलों (जैसे- स्कूल, अस्पताल एवं छविगृहों इत्यादि)में एक-दूसरे से कम-से कम 4-5 फीट की दूरी पर रहना चाहिए।
  3. रोगी एवं स्वस्थ दोनों ही प्रकार के मनुष्यों को खुले अथवा सार्वजनिक स्थलों पर नहीं थूकना चाहिए तथा छींकते समय नाक को रूमाल से ढक लेना चाहिए।
  4.  रोगी का रूमाल अथवा तौलिया अन्य व्यक्तियों को प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(3) वातानुकूलन संयन्त्र द्वारा रोगाणुओं का संक्रमण:
वातानुकूलन के कारण कमरे में आर्द्रता अधिक व तापमान कम बना रहता है। रोगाणुओं के पनपने के लिए यह एक उपयुक्त वातावरण है। वातानुकूलित कमरे में (UPBoardSolutions.com) रोगाणुओं का स्रोत बाहर से प्रवेश करने वाली वायु होती है। अतः यदि सावधानियाँ न रखी जाये तो वातानुकूलित कमरों में रहने वाले मनुष्य सरलतापूर्वक संक्रामक रोगों के शिकार बन जाते हैं।

बचने के उपाय:

  1. वातानुकूलन संयन्त्र में वायु के प्रवेश के स्थान पर जीवाणु-अभेद्य फिल्टर का लगा होना अति आवश्यक है। इसमें से छनकर केवल शुद्ध वायु ही कमरे में प्रवेश कर सकती है।
  2. सप्ताह में कम-से-कम दो बार वातानुकूलन संयन्त्र को बन्द कर कमरे को शुष्क किया जाना चाहिए और सम्भव हो, तो खिड़कियाँ इत्यादि खोलकर कमरे में धूप आने दें, इससे कमरे में उपस्थित रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। .

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प्रश्न 2:
वायु द्वारा फैलने वाले रोग कौन-कौन से हैं? किसी एक रोग का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु अनेक रोगों के प्रसार का माध्यम है, जिनमें कुछ प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं

  1.  डिफ्थीरिया,
  2.  काली खाँसी,
  3.  तपेदिक,
  4. चेचक,
  5.  खसरी,
  6. छोटी माता,
  7.  कर्णफेर,
  8. इन्फ्लू एंजा आदि।

रोहिणी (डिफ्थीरिया)

रोग का कारण:
यह रोग जीवाणुजनित रोग है तथा इसके जीवाणु वायु के माध्यम से फैलते हैं। कोरीनीबैक्टीरियम डिफ्थीरी नामक जीवाणु इस रोग की उत्पत्ति का कारण है। यह एक भयानक संक्रामक रोग है, जो कि प्राय: 2-5 वर्ष की आयु के बच्चों में अधिक होता है। यह रोग बहुधा शीत ऋतु में होता है।

सम्प्राप्ति काल: 2 से 3 दिन तक।

रोग के लक्षण:
इस रोग का प्रारम्भ रोगी की नाक व गले से होता है। इसके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1.  प्रारम्भ में गले में दर्द होता है और फिर सूजन आ जाती है तथा घाव बन जाते हैं।
  2.  शरीर का तापक्रम 101-104° फा० तक हो जाता है, परन्तु रोग बढ़ने पर यह कम हो जाता है।
  3.  टॉन्सिल व कोमल तालू पर झिल्ली बन जाती है, जो कि श्वसन क्रिया में अवरोधक होती है। इसके कारण रोगी दम घुटने का अनुभव करता है।
  4. रोगी को बोलने तथा खाने-पीने में कठिनाई होती है।
  5. रोगी के शरीर के अंगों को लकवा मार जाता है।
  6. समुचित उपचार न होने की स्थिति में जीवाणुओं का अतिक्रमण फेफड़ों तथा हृदय तक होता है, जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है।

रोग का संक्रमण:
इस रोग का संवाहक वायु है। रोगी के बोलने, खाँसने एवं छींकने से जीवाणु वायु में मिलकर स्वस्थ बच्चों तक पहुँचते हैं। रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्रों, दूध एवं खाद्य पदार्थों के माध्यम से भी यह रोग स्वस्थ बच्चों में स्थानान्तरित हो सकता है।

रोगोपचार एवं रोग से बचने के उपाय

बचाव के उपाय:
डिफ्थीरिया नामक रोग के संक्रमण को नियन्त्रित करने के लिए अर्थात् इस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए—

  1.  रोगी से स्वस्थ बच्चों को दूर रहना चाहिए।
  2. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं को सावधानीपूर्वक नष्ट कर देना चाहिए।
  3. रोगी की ‘परिचर्या करने वाले व्यक्ति को तथा घर के अन्य बच्चों को डिफ्थीरियाएण्टीटॉक्सिन इन्जेक्शन लगवाने चाहिए।
  4.  स्वस्थ रहन-सहन द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है; अतः वातावरण की स्वच्छता एवं निद्रा व विश्राम का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

रोग का उपचार:
डिफ्थीरिया नामक रोग का तुरन्त तथा अत्याधिक व्यवस्थित उपचार आवश्यक होता है। इसके लिए रोगग्रस्त बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवा देना चाहिए तथा निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल देना चाहिए।
  2.  नमक मिले जल से नाक, गले व मुँह को साफ करना चाहिए।
  3.  सिरदर्द एवं अधिक तापक्रम होने पर माथे व सिर पर शीतल जल की पट्टी रखना लाभकारी रहता है।
  4.  रोगी को पर्याप्त मात्रा में द्रव पदार्थ पिलाने चाहिए।
  5.  मधु में लहसुन का रस मिलाकर रोगी के गले पर लेप करना उचित रहता है।
  6.  रोगमुक्त होने के पश्चात् भी रोगी को कम-से-कम दस दिन तक पूर्ण विश्राम करना चाहिए।
  7. रोगी के प्रभावित अंगों की मालिश करना प्रायः लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 3:
चेचक नामक रोग की उत्पत्ति के कारणों, लक्षणों तथा बचने एवं उपचार के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वायु द्वारा संक्रमित होने वाले रोगों में से एक मुख्य रोग चेचक (Smallpox) है। यह एक अत्यधिक भयंकर एवं घातक रोग है। अब से कुछ वर्ष पूर्व तक भारतवर्ष में इस संक्रामक रोग का काफी अधिक प्रकोप रहता था। प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हुआ करते थे तथा हजारों की मृत्यु (UPBoardSolutions.com) हो जाती थी, परन्तु सरकार के व्यवस्थित प्रयास से अब इस रोग को प्रायः पूरी तरह से नियन्त्रित कर लिया। गया है। चेचक को स्थानीय बोलचाल की भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है। इस रोग के कारणों, लक्षणों एवं बचाव के उपायों का विवरण निम्नवर्णित है

चेचक की उत्पत्ति के कारण:
चेचक वायु के माध्यम से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग एक विषाणु (Virus) द्वारा फैलता है, जिसे वरियोला वायरस कहते हैं। रोगी व्यक्ति के साँस, खाँसी, बलगम के अतिरिक्त उसके दानों के मवाद, छिलके, कै, मल एवं मूत्र में भी यह वायरस विद्यमान होता है। इन सब स्रोतों (UPBoardSolutions.com) से चेचक के वायरस निकलकर वायु में व्याप्त हो जाते हैं तथा सब ओर फैल जाते हैं। ये वायरस सम्पर्क में आने वाले स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रोगी व्यक्ति के सीधे सम्पर्क द्वारा भी यह रोग संक्रमित हो सकता है। चेचक के फैलने का काल मुख्य रूप से नवम्बर से मई माह तक का होता है।

रोग के लक्षण:

  1.  रोगी को तीव्र ज्वर रहता है।
  2. पीठ एवं सिर में भयानक पीड़ा होती है।
  3.  रोग के तीसरे दिन पहले चेहरे पर तथा फिर टाँगों व बाँहों पर लाल रंग के दाने निकल आते हैं। अब रोगी का ज्वर कम होने लगता है।
  4. रोग के 5-6 दिन पश्चात् दाने आकार में वृद्धि कर बड़े-बड़े छालों का रूप ले लेते हैं।
  5.  छालों में प्रारम्भ में तरल पदार्थ भरा रहता है जो कि रोग के 8-10 दिन बाद पस में बदल जाता है। छालों में प्रायः जलन व खाज होती है।
  6. रोग के 15-20 दिन पश्चात् छाले अथवा फफोले सूखने लगते हैं तथा इन पर खुरण्ड जमने लगता है।
  7.  खुरण्ड उतर जाने पर त्वचा पर स्थायी चिह्न बने रह जाते हैं।
  8. उतरा हुआ खुरण्ड भारी मात्रा में विषाणुओं का संक्रमण करता है।

रोग से बचने के उपाय:
चेचक एक भयानक संक्रामक रोग है। सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से रोगी की परिचर्या करने वाले व्यक्ति को इस रोग से बचने के उपाय अवश्य ही अपनाने चाहिए। एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया, जिसके सफल प्रयोगों के फलस्वरूप आज चेचक को सम्पूर्ण विश्व में नियन्त्रित कर लिया गया है। चेचक से बचाव के कुछ सामान्य एवं सरल उपाय अग्रवर्णित हैं

  1. रोगी को पृथक्, स्वच्छ एवं हवादार कमरे में रखना चाहिए।
  2.  रोगी के पासे नीम की ताजी पत्तियों वाली टहनी रखनी चाहिए।
  3. रोगी की परिचर्या करने वाले व आस-पास कै व्यक्तियों को चेचक का टीका अवश्य ही लगवा देना चाहिए।
  4.  रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल पीने के लिए देना चाहिए।
  5. तीव्र ज्वर व अन्य प्रकार की परिस्थितियों में किसी कुशल चिकित्सक की देख-रेख में ही रोगी को औषधियाँ देनी चाहिए।
  6.  रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्र, बर्तन इत्यादि को तीव्र नि:संक्रामक प्रयोग कर उबलते पानी से धोना चाहिए।
  7. रोगी के फफोलों पर से उतरने वाले खुरण्डों को जला देना चाहिए।
  8.  नि:संक्रमण के लिए डिटॉल, फिनाइल, सैवलॉन, स्प्रिट व कार्बोलिक साबुन इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।
  9.  पूर्ण स्वस्थ होने तक रोगी को कमरे से बाहर नहीं जाने देना चाहिए।

चेचक का उपचार:
सामान्य रूप से चेचक के विशेष उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह रोग निश्चित अवधि के उपरान्त अपने आप ही समाप्त हो जाता है, परन्तु समुचित उपचार के माध्यम से रोग की भयंकरता से बचा जा सकता है तथा रोग से होने वाले अन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। चेचक के रोगी को हर प्रकार से अलग रखना अनिवार्य है। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जानी चाहिए। रोगी के कमरे में अधिक प्रकाश नहीं होना चाहिए, क्योंकि रोशनी से उसकी आँखों में चौंध लगती है, जिसका रोगी की नजर पर बुरा प्रभाव पड़ता (UPBoardSolutions.com) है। चेचक के रोगी को पीने के लिए उबला हुआ पानी तथा हल्का आहार ही देना चाहिए। रोगी से सहानुभूतिमय व्यवहार करना चाहिए। किसी चिकित्सक की राय से कोई अच्छी मरहम भी दानों पर लगाई जा सकती है। रोगी को सुझाव देना चाहिए कि वह दानों को खुजलाए नहीं।

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प्रश्न 4:
खसरा नामक रोग की उत्पत्ति के कारणों, लक्षणों तथा बचाव एवं उपचार के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खसरा (Measles):
वायु द्वारा संक्रमित होने वाला मुख्य रूप से बच्चों में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह छोटी आयु के बच्चों को होता है तथा कभी-कभी गम्भीर रूप धारण कर लेता है। सामान्य रूप से इस रोग से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती।

रोगका कारण:
यह एक विषाणु जनित रोग है जो कि रुबियोला नामक विषाणु के द्वारा उत्पन्न होता है। इस रोग के विषाणु खाँसने, थूकने व छींकने से वायु में आते हैं तथा वायु द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों में पहुँच कर रोग उत्पन्न करते हैं। रोग के संक्रमण के 10-12 दिन के पश्चात् रोगी में इसके लक्षण प्रकट होते हैं।

रोग के लक्षण:
खसरा एक संक्रामक रोग है; अत: इसको निम्नलिखित विभिन्न लक्षणों के द्वारा पहचान कर इससे बचने के उपाय करने चाहिए

  1.  रोग का प्रारम्भ जुकाम व सिर-दर्द से होता है।
  2.  रोगी को प्राय: खाँसी उठती है तथा छींकें आती हैं।
  3. शरीर का तापमान 103-104° फा० तक हो जाता है।
  4. चार या पाँच दिन पश्चात् मस्तक व चेहरे पर छोटे-छोटे लाल रंग के दाने निकलते हैं जो कि धीरे-धीरे शरीर के अन्य भागों पर भी फैल जाते हैं।
  5.  दाने निकलने पर रोगी का ज्वर कम हो जाता है।
  6. चार या पाँच दिन में दाने सूखने लगते हैं तथा इनसे खुरण्ड अथवा पपड़ी उतरने लगती है।
  7.  दस से पन्द्रह दिन बाद शरीर साफ हो जाता है तथा रोगी स्वस्थ अनुभव करता है।

बचाव के उपाय:
खसरे से बचने के लिए गन्दगी एवं अशुद्ध वातावरण से बचना चाहिए। सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन से बच्चों में रोग से बचने की क्षमता विकसित होती हैं। अब खसरा (UPBoardSolutions.com) से बचने का टीका भी विकसित कर लिया गया है, जो छोटे शिशुओं को लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त वे सभी उपाय करने चाहिए, जो अन्य संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए किए जाते हैं।

उपचार के उपाय:
यदि खसरा बिगड़े नहीं तो किसी विशेष उपचार की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु खसरा के रोगी की उचित देखभाल अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि कभी-कभी इस बात का डर रहता है कि रोगी को कहीं निमोनिया न हो जाए। रोगी को गर्मी एवं अधिक ठण्ड से बचाना चाहिए। रोगी
को हल्का एवं सुपाच्य आहार देना चाहिए तथा दानों को खुजाने से रोकना चाहिए।

प्रश्न 5:
तपेदिक या क्षयरोग के विषय में आप क्या जानती हैं? इस रोग की उत्पत्ति के कारणों, लक्षणों, बचने एवं उपचार के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तपेदिक अथवा क्षय रोग एक अत्यन्त गम्भीर एवं घातक संक्रामक रोग है। इस रोग को टी०बी० तथा राज्यक्ष्मा भी कहते हैं। यह एक जीवाणु जनित रोग है जो कि माइक्रो बैसिलस ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु द्वारा फैलती है। इस जीवाणु की सर्वप्रथम खोज रॉबर्ट कॉक नामक वैज्ञानिक ने 1882 ई० में की थी। क्षय रोग वायु संवाहित संक्रामक रोग है जो कि विश्व के लगभग सभी देशों में पाया जाता है। यह रोग अधिकतर महानगरों की सघन आबादियों, औद्योगिक क्षेत्रों, खनिज खान क्षेत्रों तथा गन्दी व अविकसित बस्तियों के निवासियों में पाया जाता है। यह रोग अधिकतर युवावस्था में होता है तथा वृद्धावस्था में अपना उग्र रूप प्रदर्शित करता है। क्षय (UPBoardSolutions.com) रोग के जीवाणु श्वसन वायु के साथ शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों में पनपते हैं। वायु द्वारा संवाहित होने के कारण रोगी के आसपास के लोग सरलतापूर्वक इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। इस रोग की एक अन्य विशेषता यह है कि इस रोग को संक्रमण होने के लगभग छह माह बाद रोगी में रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के जीवाणु अधिक समय तक जीवित रहने के कारण वायु द्वारा भोज्य पदार्थों पर भी पहुंच जाते हैं। अतः दूषित भोज्य पदार्थ भी प्रायः इस रोग के वाहक का कार्य करते हैं। क्षय रोग फेफड़ों के अतिरिक्त शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। मनुष्यों में प्रायः चार प्रकार के क्षय रोग पाए जाते हैं

  1. फेफड़ों का क्षय रोग,
  2.  अस्थियों का क्षय रोग,
  3. आँतों का क्षय रोग तथा
  4.  ग्रन्थियों का क्षय रोग।।

रोग की उत्पत्ति के कारण:
क्षय रोग होने के कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से दिया जा सकता है

  1.  वायु की समुचित संवातन व्यवस्था न होने के कारण।
  2.  घनी बस्तियों व महानगरों में एक ही स्थान में अधिक लोगों के रहने पर अर्थात् स्थानाभाव की स्थिति में।
  3.  पौष्टिक भोजन के अभाव में।
  4. आवश्यकता से अधिक मानसिक व शारीरिक कार्य करने से।
  5.  परिवार कल्याण का पालन न करने से।।
  6.  अत्यधिक धूम्रपान व मदिरापान करने से।
  7.  आवासीय व्यवस्था के आस-पास कूड़ा-करकट व गन्दगी एकत्रित होने से।
  8. क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति के आस-पास रहने से।

रोग के लक्षण:
क्षय रोग के लक्षण एक लम्बी अवधि के बाद प्रकट होते हैं। संक्रमण के लगभग छह माह बाद रोगी में क्षय रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। एक भीषण संक्रामक रोग होने के कारण इस रोग के निम्नलिखित लक्षणों का प्रत्येक गृहिणी को ज्ञान आवश्यक है

  1.  रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रोगी थकावट अनुभव करता है।
  2.  धीरे-धीरे भूख कम लगने लगती है।
  3. रोगी को शरीर दुर्बल होने लगता है तथा शारीरिक भार धीरे-धीरे घटने लगता है।
  4.  क्षय रोग से प्रभावित रोगी की कार्यक्षमता घट जाती है तथा कार्य करने में उसका मन नहीं लगता।
  5.  श्वसन क्रिया तीव्र हो जाती है तथा श्वास फूलने लगती है।
  6.  जुकाम वे खाँसी की शीघ्र पुनरावृत्ति होने लगती है।
  7. सीने में प्राय: दर्द होने लगता है।
  8.  रोग की गम्भीर अवस्था में खाँसने पर कफ के साथ रक्त भी जाने लगता है।
  9. रक्त की कमी से जाने के कारण रोगी का रंग पीला पड़ने लगता है।
  10.  रोगी को प्रायः ज्वर रहने लगता है।
  11.  फेफड़ों में तरल पदार्थ भर जाने के कारण इनकी कार्यक्षमता घटने लगती है। समुचित उपचार न होने पर फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं। इन लक्षणों को रोगी के एक्स-रे चित्र में देखा जा सकता है।

रोग से बचने के उपाय एवं उपचार:

  1.  बच्चों को आवश्यक रूप से बी० सी० जी० का टीका लगवाना चाहिए।
  2. रोगी को पृथक् कमरे में रखना चाहिए तथा उसके सम्पर्क में परिचर्या करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य लोगों को नहीं आना चाहिए।
  3.  रोग बढ़ जाने की अवस्था में रोगी को क्षय रोग अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए।
  4.  रोगी के कमरे में वायु की संवातन व्यवस्था उत्तम होनी चाहिए।
  5. रोगी का नियमित रूप से सुबह व शाम को खुली हवा में टहलना सदैव लाभप्रद रहता है।
  6.  रोगी को शुद्ध, पौष्टिक एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिए।
  7. रोगी के कपड़ों, बर्तनों व अन्य वस्तुओं का नियमित नि:संक्रमण होना चाहिए।
  8.  रोगी के थूकदान में फिनाइल डालना चाहिए तथा कमरे के फर्श को भी फिनाइल द्वारा धोते रहना चाहिए।
  9. आवासीय व्यवस्था के आस-पास स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  10. औषधियों का प्रयोग: वर्तमान समय में क्षय रोग के उपचार के लिए विभिन्न प्रभावकारी औषधियाँ उपलब्ध हैं। क्षय रोग ग्रस्त व्यक्ति को किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में औषधियाँ लेनी चाहिए। इस रोग का उपचार लम्बे समय तक चलता है। अतः धैर्यपूर्वक पूर्ण उपचार करना चाहिए तथा आहार एवं दिनचर्या को अनिवार्य रूप से नियमित रखना चाहिए।

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प्रश्न 6:
कर्णफेर अथवा गलसुआ नामक रोग के कारणों, लक्षणों तथा बचने के उपायों एवं सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कर्णफेर अथवा गलसुआ (Mumps)–एक वायु संवाहित विषाणु जनित रोग है। मम्स विषाणु प्रायः पाँच से पन्द्रह वर्ष की आयु के बच्चों में रोग उत्पन्न करते हैं, परन्तु अधिक आयु के
व्यक्ति भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। इस रोग के होने के विशेष कारण निम्नलिखित हैं|

  1.  रोगी के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप एक बच्चे को रोग के होने पर परिवार के अन्य बच्चों को भी इस रोग के होने की सम्भावना अधिक रहती है।
  2.  गले के अंगों के रोग से प्रभावित होने के कारण रोगी का थूक अथवा लार रोग के प्रसार का माध्यम होते हैं।
  3. यह रोग प्राय: शीत ऋतु में होता है।
  4.  रोग के प्रारम्भ में होने के लगभग चार सप्ताह तक रोग के संक्रमण की सम्भावना रहती है।

सम्प्राप्ति काल: लगभग दो दिन

रोग के लक्षण:
यह एक भीषण संक्रामक रोग है। युवावस्था में होने पर इस रोग में जननांगों के कुप्रभावित होने की सम्भावना रहती है; अत: इस रोग से बचने के लिए इसके विशिष्ट लक्षणों का ज्ञान अति आवश्यक है

  1.  जबड़ों के कोनों पर कान के नीचे अत्यधिक दर्द करने वाली सूजन आ जाती है।
  2. धीरे-धीरे यह सूजन व दर्द गले तक पहुँच जाती है जो कि लगभग एक सप्ताह में दूर होती है।
  3.  बच्चों में प्रभावित होने वाले विशिष्ट अंग सैलाइवरी व पेरोटिड ग्रन्थियाँ होती हैं तथा विषाणु रक्त, रीढ़-रज्जु (स्पाइनल कॉर्ड) के तरल पदार्थ तथा मूत्र में पाए जाते हैं।
  4. युवावस्था में रोग होने पर जननांगों में सूजन आ जाती है, जिससे नपुंसकता पैदा होने का भय रहता है।

बचने के उपाय एवं सावधानियाँ:
इस रोग की उत्पत्ति संक्रमण द्वारा होती है। अतः स्वस्थ बच्चों को रोगी बच्चे के निकट सम्पर्क से बचाना चाहिए। बच्चों को ठण्ड से बचाकर रखना चाहिए। अब इस रोग से बचाव का टीका भी प्रचलन में आ गया है तथा प्रायः सभी बच्चों को लगाया जाता है।

उपचार:
इस रोग के उपचार के लिए रोगी को ठण्ड से बचाना चाहिए तथा पूर्ण विश्राम प्रदान करना चाहिए। रोगी को हल्का तथा नर्म भोजन दिया जाना चाहिए, ताकि चबाना न पड़े। गर्म पानी में नमक डाल कर कुल्ले कराने चाहिए। गले की सिकाई करनी चाहिए; गर्म रुई द्वारा सेंकना अच्छा रहता है। स्वस्थ बच्चों को रोगी बच्चे से दूर रखना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
काली खाँसी रोग के कारण, लक्षण एवं उपचार बताइए।
उत्तर:
कारण-काली खाँसी अथवा कुकुर खाँसी बच्चों में होने वाला एक भयंकर रोग है, जो कि होमोकीस परदुसिस बैसिलस नामक जीवाणु के द्वारा होता है। रोगी के खाँसने, (UPBoardSolutions.com) छींकने या बोलने से जीवाणु वायु में आ जाते हैं तथा इस प्रकार की दूषित वायु स्वस्थ बच्चों में रोग का प्रसार करती है। रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्र एवं बर्तन भी रोग के प्रसार का माध्यम होते हैं।
लक्षण:

  1. भयंकर खाँसी उठती है तथा रोगी खाँसते-खाँसते वमन कर देता है।
  2. खाँसने से आँखों में पानी आ जाता है।
  3.  गले में दर्द रहता है।
  4.  ज्वर तथा व्याकुलता रहती है।
  5.  यह रोग लगभग 1-2 सप्ताह तक रहता है।

बचने के उपाय तथा उपचार:

  1.  बच्चों को रोग-निरोधक टीका लगवाना चाहिए।
  2. वायु संवाहित रोग होने के कारण रोगी से स्वस्थ बच्चों को पृथक् रखना चाहिए।
  3.  रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं को नि:संक्रमित करते रहना चाहिए।
  4. रोगी को किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए तथा चिकित्सक द्वारा सुझाई गई औषधियाँ नियमित रूप से लेनी चाहिए।

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प्रश्न 2:
कूलर एवं वातानुकूलन यन्त्र के निरन्तर उपयोग से क्या हानि सम्भव है?
उत्तर:
कूलर अथवा वातानुकूलन यन्त्र के लगातार उपयोग से कमरे की आर्द्रता में वृद्धि होती है। तथा तापमान कम हो जाता है। कम तापमान व अधिक आई वायु में रोगाणु (UPBoardSolutions.com) सरलतापूर्वक पनपते हैं; अतः विभिन्न रोगों के पनपने की सम्भावनाओं में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त कूलर युक्त अथवा वातानुकूलित कमरे में वायु के संवतन की उत्तम व्यवस्था का अभाव रहता है। इस प्रकार के कमरे में यदि वायु संवाहित रोग से ग्रस्त कोई रोगी रखा जाता है, तो उसके सम्पर्क में आने वाले स्वस्थ व्यक्तियों के रोगग्रस्त होने की आशंका अधिक रहती है।

प्रश्न 3:
अशुद्ध एवं विषैली वायु से हमें क्या-क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
अशुद्ध एवं विषैली वायु के वातावरण में रहने से होने वाली मुख्य हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. मानसिक तनाव में वृद्धि,
  2.  सिर दर्द,
  3.  जी मिचलाना,
  4. श्वास की गति में अवरोध होने के कारण दम घुटना,
  5. हृदय गति मन्द हो जाने के कारण हृदय रोगों की सम्भावनाओं में वृद्धि तथा
  6.  वायु संवाहित रोगों के प्रसार में वृद्धि।

प्रश्न 4:
उदभवन अथवा सम्प्राप्ति काल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रोगों के मूल कारण प्रायः रोगाणु होते हैं जो कि किसी-न-किसी विधि से हमारे शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न करते हैं। रोगों की पहचान हम उनके कारण शरीर में दिखाई पड़ने वाले लक्षणों के आधार पर करते हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि संक्रमण (रोगाणुओं को शरीर में प्रवेश) के साथ ही शरीर में रोग के लक्षण प्रकट हों। इनमें कुछ समय लगता है, जिसे सम्प्राप्ति काल कहा जाता है। अतः संक्रमण (UPBoardSolutions.com) ग्रहण करने और इसके कारण रोग के लक्षणों के प्रकट होने तक की अवधि को सम्प्राप्ति काल अथवा उद्भवन काल कहते हैं। विभिन्न रोगों में यह अवधि अलग-अलग होती है, जैसे कि खसरा का सम्प्राप्ति काल 10-12 दिन का तथा कर्णफेर का लगभग दो दिन का होता है।

प्रश्न 5:
इन्फ्लूएंजा कैसे फैलता है? इस रोग के उपचार तथा बचने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
इन्फ्लूएंजा या फ्लू एक सामान्य रूप से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग सामान्य रूप से मौसम के बदलने के समय अधिक होता है। इस रोग का फैलाव बड़ी तेजी से होता है; अत: इससे बचने के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। फ्लू के कारण तथा फैलना-फ्लू नामक रोग एक अति सूक्ष्म जीवाणु द्वारा फैलता है। यह रोगाणु इन्फ्लूएंजा वायरस कहलाता है। प्रायः जुकाम के बिगड़ जाने पर फ्लू बन जाता है। फ्लू नामक रोग रोगी के सम्पर्क द्वारा भी फैल जाता है। फ्लू के रोगी की छींक, खाँसी तथा थूक आदि द्वारा भी फ्लू फैलता है। रोगी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रूमाल, बर्तन तथा अन्य वस्तुओं के सम्पर्क द्वारा भी यह रोग लग सकता है।

लक्षण:
फ्लू प्रारम्भ में जुकाम के रूप में प्रकट होता है। नाक से पानी बहने लगता है। इस रोग के शुरू होते ही शरीर में दर्द होने लगता है। सारे शरीर में बेचैनी होती है तथा कमजोरी महसूस होती है। इसके साथ-ही-साथ तेज ज्वर (102°F से 104°Fतक) हो जाता है।
उपचार:
फ्लू के रोगी व्यक्ति को आराम से लिटा देना चाहिए। रोगी को चिकित्सक को दिखाकर दवा ले लेनी चाहिए। फ्लू के रोगी को विटामिन ‘सी’ युक्त भोजन देना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अशुद्ध वायु के माध्यम से फैलने वाले रोग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
चेचक, तपेदिक, खसरा, डिफ्थीरिया, कर्णफेर, काली खाँसी तथा इन्फ्लूएंजा आदि रोग वायु के माध्यम से ही फैलते हैं।

प्रश्न 2:
फर्श पर थूकना क्यों हानिकारक है? या इधर-उधर थूकना क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
फर्श पर थूकने से थूक में उपस्थित रोगाणु भी भूमि पर गिरते हैं। थूक के सूखने पर धूल के साथ ये रोगाणु वायु द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुँचकर उनमें रोग की उत्पत्ति कर सकते हैं।

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प्रश्न 3:
वातानुकूलित कमरे में जीवाणुओं के प्रवेश को किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर:
वातानुकूलित संयन्त्र में वायु के प्रवेश स्थान पर जीवाणु-अभेद्य फिल्टर लगाने से कमरे में प्रवेश करने वाली वायु के साथ आने वाले जीवाणुओं को बाहर ही रोका जा सकता है।

प्रश्न 4:
अस्पतालों की सफाई झाड़द्वारा क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर:
झाडू से सफाई करने पर रोगाणुयुक्त धूल उड़कर वायु में आ जाती है, जिससे वायु द्वारा रोगाणुओं के प्रसार की सम्भावना बलवती हो जाती है। अतः झाडू द्वारा अस्पतालों में सफाई नहीं की जाती है।

प्रश्न 5:
सूर्य के प्रकाश का रोगाणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
शुष्क वातावरण एवं सूर्य के प्रकाश में रोगाणु प्रायः नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 6:
ऐसा कौन-सा संक्रामक रोग है जिसकी हमारे देश में समूल नष्ट किए जाने की घोषणा की गई?
उत्तर:
चेचक एक भीषण संक्रामक रोग है। हमारे देश में यह समूल नष्ट किया जा चुका है।

प्रश्न 7:
क्षय रोग अधिक होने के दो प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
गन्दगी एवं कुपोषण के कारण क्षय रोग की सम्भावना अधिक रहती है।

प्रश्न 8:
किसे रोग को मृत्यु का कप्तान’ कहा जाता है?
उत्तर:
क्षय रोग को, ‘मृत्यु का कप्तान’ भी कहा जाता है।

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प्रश्न 9:
क्षय रोग से बचाव के लिए कौन-सा टीका लगाया जाता है?
उत्तर:
क्षय रोग से बचाव के लिए बी०सी०जी० का टीका लगाया जाता है।

प्रश्न 10:
टीका लगवाने अथवा वैक्सीनेशन से क्या लाभ है?
उत्तर:
किसी रोग विशेष का टीका लगवाने से शरीर में उस रोग के लिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होती है।

प्रश्न 11:
ट्रिपल एण्टीजन टीके से कौन-कौन से रोगों के लिए प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न की जाती है?
उत्तर:
ट्रिपल एण्टीजन (डी० पी० टी०) को टीका डिफ्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटेनस नामक रोगों से बचाव के लिए लगाया जाता है।

प्रश्न 12:
खसरा के रोगी को नमक बहुत कम मात्रा में क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
खसरा के रोगी को कम नमक देने से उसकी त्वचा पर उभरे दानों में जलन व खुजली कम होती है।

प्रश्न 13:
कुकुर खाँसी याकाली खाँसी की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
कुकुर खाँसी या काली खाँसी की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार जीवाणु का नाम है-होमोकीट्स परटुसिस बैसिलसा ।

प्रश्न 14:
कुकुर खाँसी के लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  1. भयंकर खाँसी उठती है तथा रोगी खाँसते-खाँसते वमन कर देता है।
  2. खाँसी से आँखों में पानी आ जाता है।
  3.  गले में दर्द रहता है।
  4.  ज्वर तथा व्याकुलता रहती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) किस रोग में रोगी के गले में झिल्ली बन जाती है?
(क) चेचक,
(ख) काली खाँसी,
(ग) डिफ्थीरिया,
(घ) कर्णफेर।

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(2) डिफ्थीरिया नामक रोग होता है
(क) केवल छोटी लड़कियों को,
(ख) केवल स्कूल जाने वाले बालकों को,
(ग) 2 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को,
(घ) केवल सम्पन्न परिवार के बच्चों को।

(3) कर्णफेर नामक रोग में बच्चे को होता है
(क) जबड़े में दर्द,
(ख) गले में दर्द,
(ग) लार ग्रन्थियों में सूजन तथा दर्द,
(घ) कान में दर्द।

(4) चेचक से बचाव के टीके का आविष्कार किया है
(क) रॉबर्ट कॉक ने,
(ख) एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग ने,
(ग) एडवर्ड जेनर ने,
(घ) इनमें से किसी ने नहीं।

(5) क्षय रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम है
(क) कोरीनीबैक्टीरियम,
(ख) माइक्रो बैसिलस ट्यूबरकुलोसिस,
(ग) बोइँटेला,
(घ) स्ट्रेप्टोकोकस।

(6) बी० सी० जी० का टीका लगाया जाता है
(क) क्षय रोग से बचने के लिए,
(ख) काली खाँसी से बचने के लिए,
(ग) कर्णफेर से बचने के लिए,
(घ) रोहिणी से बचने के लिए।

(7) चेचक के विषाणु का क्या नाम है?
(क) एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका,
(ख) वेरियोला वाइरस,
(ग) विब्रियो कोलेरा,
(घ) साल्मोनेला टाइफॉइडिस।

(8) निम्नलिखित में वायु द्वारा फैलने वाला रोग है
(क) चेचक,
(ख) हैजा,
(ग) पीलिया,
(घ) पेचिश।

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(9) कौन-सा रोग वायु द्वारा संक्रमित नहीं होता?
(क) तपेदिक,
(ख) हैजा,
(ग) चेचक,
(घ) खसरा।

उत्तर:
(1) (ग) डिफ्थीरिया,
(2) (ग) 2 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को,
(3) (ग) लार ग्रन्थियों में सूजन तथा दर्द,
(4) (ग) एडवर्ड जेनर ने,
(5) (ख) माइक्रो बैसिलस ट्यूबरकुलोसिस,
(6) (क) क्षय रोग से बचने के लिए,
(7)(ख) वेरियोला वाइरस,
(8) (क) चेचक,
(9) (ख) हैजा।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सा मौलिक अधिकारों के उपयोग का उदाहरण नहीं है?
(क) बिहार के मजदूरों का पंजाब के खेतों में काम करने जाना।
(ख) ईसाई मिशनों द्वारा मिशनरी स्कूलों की श्रृंखला चलाना।
(ग) सरकारी नौकरी में औरत और मर्द को समान वेतन मिलना।
(घ) बच्चों द्वारा माँ-बाप की सम्पत्ति विरासत में पानी।
उत्तर:
(घ) बच्चों द्वारा माँ-बाप की सम्पत्ति विरासत में पाना।

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प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सी स्वतंत्रता भारतीय नागरिकों को नहीं है?
(क) सरकार की आलोचना की स्वतंत्रता।
(ख) सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने की स्वतंत्रता।
(ग) सरकार बदलने के लिए आन्दोलन शुरू करने की स्वतंत्रता।
(घ) संविधान के केंद्रीय मूल्यों का विरोध करने की स्वतंत्रता।
उत्तर:
(ख) सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने की स्वतंत्रता।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान इनमें से कौन-सा अधिकार देता है?
(क) काम का अधिकार।
(ख) पर्याप्त जीविका का अधिकार
(ग) अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार।
(घ) निजता का अधिकार।
उत्तर:
(ग) अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार।

प्रश्न 4.
उस मौलिक अधिकार का नाम बताएँ जिसके तहत निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ आती हैं?
(क) अपने धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता।
(ख) जीवन का अधिकार।
(ग) छुआछूत की समाप्ति।
(घ) बेगार का प्रतिबन्ध।
उत्तर:
(क) धर्म की (धार्मिक) स्वतंत्रता का अधिकार।
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार।
(ग) समानता का अधिकार।
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र और अधिकारों के बीच सम्बन्धों के बारे में इनमें से कौन-सा बयान ज्यादा उचित है? अपनी पसंद के पक्ष में कारण बताएँ?
(क) हर लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों को अधिकार देता है।
(ख) अपने नागरिकों को अधिकार देने वाला हर देश लोकतांत्रिक हैं।
(ग) अधिकार देना अच्छा है, पर यह लोकतंत्र के लिए जरूरी नहीं है।
उत्तर:
(क) यह बयान अधिक वैध और उपयुक्त है। प्रत्येक लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों को अधिकार देता है। लोकतन्त्र में प्रत्येक नागरिक को मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाता है। चुनाव लोकतांत्रिक हों, इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने, राजनैतिक दल का निर्माण करने तथा राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हो। लोकतंत्रीय राज्यों (UPBoardSolutions.com) में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। अधिकतर राज्यों में नागरिकों के महत्वपूर्ण अधिकारों को संविधान में शामिल कर दिया जाता है। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है और उनकी सुरक्षा के भी उपाय किए गए हैं।

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प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता के अधिकार पर ये पाबन्दियाँ क्या उचित हैं? अपने जवाब के पक्ष में कारण बताएँ।
(क) भारतीय नागरिकों की सुरक्षा कारणों से कुछ सीमावर्ती इलाकों में जाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है।
(ख) स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए कुछ इलाकों में बाहरी लोगों को सम्पत्ति खरीदने की अनुमति नहीं है।
(ग) शासक दल को अगले चुनाव में नुकसान पहुँचा सकने वाली किताब पर सरकार प्रतिबन्ध लगाती है।
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत देश के किसी भी भाग में घूमने-फिरने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, किन्तु देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश के कुछ भागों जैसे सेना की छावनी, सीमावर्ती संवेदनशील क्षेत्रों में किसी को जाने की अनुमति लेनी पड़ती है। यह प्रति उचित एवं (UPBoardSolutions.com) न्यायसंगत है क्योंकि किसी भी देश के लिए उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
(ख) कुछ क्षेत्रों में ऐसी व्यवस्था को अनुचित नहीं कहा जा सकता है। कुछ जनजातीय क्षेत्रों में तथा जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल आदि राज्यों के बारे में ऐसा प्रतिबन्ध लगाया गया है जिससे वहाँ के लोग अपनी संस्कृति को बनाए रख सकें।
(ग) ऐसे प्रतिबन्ध को उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है।

प्रश्न 7.
मनोज एक सरकारी दफ्तर में मैनेजर के पद के लिए आवेदन देने गया। वहाँ के अधिकारी ने उसका आवेदन लेने से मना कर दिया और कहा, “झाडू लगाने वाले का बेटा होकर तुम मैनेजर बनना चाहते हो। तुम्हारी जाति का कोई कभी इस पद पर आया है? नगरपालिका के दफ्तर जाओ और सफाई कर्मचारी के लिए अर्जी दो।” इस मामले में मनोज के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है? मनोज की तरफ से जिला अधिकारी के नाम लिखे एक पत्र में इसका उल्लेख करो।
उत्तर:
मनोज के मामले में समानता के अधिकार तथा स्वतंत्रता के अधिकार’ को स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य, नौकरी अथवा व्यवसाय करने का अधिकार दिया गया है और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य (UPBoardSolutions.com) करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। अतः निम्न जातियों के लोगों को उनका जातिगत काम करने के लिए मजबूर करना उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

प्रश्न 8.
जब मधुरिमा सम्पत्ति के पंजीकरण वाले दफ्तर में गई तो रजिस्ट्रार ने कहा, “आप अपना नाम ‘मधुरिमा बेनर्जी, बेटी ए. के. बनर्जी’ नहीं लिख सकतीं। आप शादीशुदा हैं और आपको अपने पति का ही नाम देना होगा। फिर आपके पति का उपनाम तो राव है। इसलिए आपका नाम भी बदलकर मधुरिमा राव हो जाना चाहिए।” मधुरिमा इस बात से सहमत नहीं हुई। उसने कहा, “अगर शादी के बाद मेरे पति का नाम नहीं बदला तो मेरा नाम क्यों बदलना चाहिए? अगर वह अपने नाम के साथ पिता का नाम लिखते रह सकते हैं तो मैं क्यों नहीं लिख सकती?” आपकी राय में इस विवाद में किसका पक्ष सही है? और क्यों?
उत्तर:
इस विवाद में मधुरिमा का पक्ष सही है। मधुरिमा के व्यक्तिगत मामलों पर प्रश्न करके तथा उनमें दखल करके रजिस्ट्रार मधुरिमा के स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप कर रहा है। साथ ही अपने पति का नाम अपनाने का प्रश्न सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है जो महिलाओं को कमतर तथा (UPBoardSolutions.com) कमजोर मानता है। मधुरिमा को अपना नाम बदलने के लिए बाध्य करना समानता के अधिकार तथा धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

प्रश्न 9.
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया में हजारों आदिवासी और जंगल में रहने वाले लोग सतपुड़ा राष्ट्रीय पार्क, बोरी वन्यजीव अभ्यारण्य और पंचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य से अपने प्रस्तावित विस्थापन का विरोध करने के लिए जमा हुए। उनका कहना था कि यह विस्थापन उनकी जीविका और उनके विश्वासों पर हमला है। सरकार का दावा है कि इलाके के विकास और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए उनका विस्थापन जरूरी है। जंगल पर आधारित जीवन जीने वाले की तरफ से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक पत्र, इस मसले पर सरकार द्वारा दिया जा सकने वाला संभावित जवाब और इस मामले पर मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तैयार करो।
उत्तर:
होशंगाबाद (म.प्र.) जिले के पिपरिया में हजारों आदिवासी और जंगल में रहने वाले लोग अपने प्रस्तावित विस्थापन का विरोध करने के लिए एकात्रित हुए थे। पिपरिया के निवासियों के अनुसार सरकार द्वारा ऐसा करना। उनके स्वतंत्रता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है जो उन्हें देश के किसी भी भाग में बसने का अधिकार देता है। किन्तु सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि सार्वजनिक हित में वह नागरिक (UPBoardSolutions.com) के स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती है और उसे सीमित कर सकती है। कुछ ही समय पहले दिल्ली में यमुना नदी के किनारे पर बसे कई झुग्गी-झोंपड़ी वालों को वहाँ से हटा दिया गया है क्योंकि ऐसा करना उस स्थान के विका तथा जानवरों की रक्षा के लिए आवश्यक समझा गया था।

उस जंगल में रहने वाले लोगों में राष्ट्रीय मानवाधिकार को एक पत्र लिखा जिसमें यह कहा गया कि सरकार किसी अन्य स्थान पर उनके पुनर्वास का प्रबन्ध करे। दिल्ली सरकार ने ऐसा किया। सर्वोच्च न्यायालय का हाल ही का एक निर्णय भी इसी बात का समर्थन करता है जिसमें नर्मदा बाँध की ऊँचाई को बढ़ाने के उद्देश्य से जिन लोगों को विस्थापित किया गया था, उनके पुनर्वास के लिए सरकार किसी अन्य स्थल पर प्रबन्ध करेगी।

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प्रश्न 10.
इस अध्याय में पढ़े विभिन्न अधिकारों को आपस में जोड़ने वाला एक मकड़जाल बनाएँ। जैसे आने जाने की स्वतंत्रता का अधिकार तथा पेशा चुनने की स्वतंत्रता का अधिकार आपस में एक-दूसरे से जुड़े हैं। इसका एक कारण है कि आने-जाने की स्वतंत्रता के चलते व्यक्ति अपने गाँव या शहर के अन्दर ही नहीं, दूसरे गाँव, दूसरे शहर और दूसरे राज्य तक जाकर काम कर सकता है। इसी प्रकार इस अधिकार को तीर्थाटन से (UPBoardSolutions.com) जोड़ा जा सकता है जो किसी व्यक्ति द्वारा अपने धर्म का अनुसरण करने की आजादी से जुड़ा है। आप इस मकड़जाल को बनाएँ और तीर के निशानों से बताएँ कि कौन-से अधिकार आपस में जुड़े हैं। हर तीर के साथ संबंध बताने वाला एक उदाहरण भी दें।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार
नोट : उपर्युक्त चित्र की सहायता से विद्यार्थी स्वयं भी मकड़जाल बनाने का प्रयास करें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अधिकार वे सुविधाएँ, अवसर व परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति को समाज तथा राज्य द्वारा उसके विकास के लिए प्रदान की जाती हैं।

  1. प्रो. लॉस्की के अनुसार, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे अवस्थाएँ हैं जिनके बिना कोई मनुष्य अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।”
  2. डॉ. बेनी प्रसाद के अनुसार, “अधिकार न अधिक और ने कम वे सामाजिक परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक व अनुकूल हों।”

प्रश्न 2.
जनहित याचिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनहित किसी मामले को लेकर कोई व्यक्ति न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। इस तरह दायर की गयी।
याचिका को जनहित याचिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
बंधुआ मजदूरी किसे कहते हैं?
उत्तर:
मजदूरों को अपने मालिक के लिए मुफ्त या बहुत थोड़े से अनाज वगैरह के लिए जबरन काम करना पड़ता है।
जब यही काम मजदूर को जीवन भर करना पड़ता है तो उसे बंधुआ मजदूरी कहते हैं।

प्रश्न 4.
किन्हीं चार राजनैतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. मतदान का अधिकार
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार
  3. सरकारी नौकरी पाने का अधिकार
  4. सरकार की आलोचना करने का अधिकार

प्रश्न 5.
प्रतिज्ञा-पत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
नियमों व सिद्धान्तों को बनाए रखने का व्यक्ति, समूह या देशों का वायदा प्रतिज्ञा-पत्र कहलाता है। ऐसे बयान या संधि पर हस्ताक्षर करने वाले पर इसके पालन की वैधानिक बाध्यता होती है।

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प्रश्न 6.
एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है?
उत्तर:
एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन विश्व भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतंत्र रिपोर्ट जारी करता है।

प्रश्न 7.
कानुनी अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे अधिकार जिन्हें राज्य की स्वीकृति मिल जाती है, उन्हें कानूनी या वैधानिक अधिकार कहते हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अदालत में दावा कर सकता है। जीवन, संपत्ति, कुटुंब आदि के अधिकार राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति या अधिकार इन्हें छीनने का प्रयत्न करता है तो (UPBoardSolutions.com) उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। राज्य इनका उल्लंघन करने वालों को दण्ड देता है, इसलिए कानूनी अधिकार के पीछे राज्य की शक्ति रहती है।

प्रश्न 8.
लोकतांत्रिक अधिकार 347 नैतिकता का अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी देश में लोगों को कुछ अधिकार नैतिक आधार पर दिए जाते हैं। ये अधिकार मनुष्य एवं समाज दोनों के हित में होते हैं। जीवन की सुरक्षा, स्वतंत्रता, धर्म-पालन, शिक्षा-प्राप्ति, संपत्ति रखने आदि की सुविधाएँ देने पर ही मनुष्य की भलाई हो सकती है। इनसे समाज भी उन्नत होता है, इसलिए समाज स्वेच्छा से इन अधिकारों को प्रदान करता है। जब तक ऐसे अधिकारों के पीछे कानून की मान्यता या दबाव नहीं रहता, ये नैतिक अधिकार कहलाते हैं। नैतिक अधिकारों की मान्यता सामाजिक निंदा तथा आलोचना के भय से दी जाती है। यदि बुढ़ापे में माता-पिता की सेवा नहीं की जाती है तो समाज निंदा करता है। इसलिए माता-पिता का यह नैतिक अधिकार है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनहित याचिका को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कोई भी पीड़ित व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में न्याय पाने के लिए तत्काल न्यायालय जा सकता है। किन्तु यदि मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है। ऐसे मामलों को जनहित याचिका के माध्यम से उठाया जाता है।

इसमें कोई भी व्यक्ति या समूह सरकार के किसी कानून या काम के खिलाफ सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय में जा सकता है। ऐसे मामले जज के नाम पोस्टकार्ड पर लिखी अर्जी के माध्यम से भी चलाए जा सकते हैं। अगर न्यायाधीशों को लगे कि सचमुच (UPBoardSolutions.com) इस मामले में सार्वजनिक हितों पर चोट पहुँच रही है तो वे मामले को विचार के लिए स्वीकार कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना एक कानून के तहत 1993 ई. में की गयी। इस आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अधिकारीगण तथा नागरिक शामिल होते हैं। लेकिन इसे अदालती मामलों में निर्णय देने का अधिकार नहीं है। यह पीड़ितों को संविधान में वर्णित सभी मौलिक अधिकारों सहित सारे मानव अधिकार दिलाने पर ध्यान देता है। इनमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराई गई वे संधियाँ भी शामिल हैं जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं किसी को सजा नहीं दे सकता।

यह मानव अधिकार हनन के किसी भी मामले की जाँच करता है। तथा देश में मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए अन्य सामान्य कदम उठाता है। यह गवाहों को इसके समक्ष पेश होने के आदेश दे सकता है, किसी सरकारी कर्मचारी से पूछताछ कर सकता है, किसी आधिकारिक दस्तावेज की (UPBoardSolutions.com) माँग कर सकता है, किसी जेल का निरीक्षण करने के लिए उसका दौरा कर सकता है तथा किसी स्थान पर जाँच करने के लिए अपना दल भेज सकता है। देश के 14 राज्यों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे राज्य मानवाधिकार आयोग हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में शामिल किए गए अधिकारों को मौलिक अधिकार क्यों कहते हैं? ।
उत्तर:
नागरिकों के मूल अधिकारों का वर्णन भारतीय संविधान के तीसरे अध्याय में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच किया गया है। इन्हें मूल अधिकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अधिकार मनुष्य की उन्नति और विकास के लिए आवश्यक माने जाते हैं। इनके प्रयोग के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की उन्नति नहीं कर सकता। ये अधिकार देश में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना में (UPBoardSolutions.com) सहायता करते हैं। संविधान में इन अधिकारों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है ताकि कोई सरकार नागरिकों को इन अधिकारों से वंचित न कर सके और देश के सभी नागरिक इन अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

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प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा-पत्रों की अधिकारों के विस्तार में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा – पत्र आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधार पर कई अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। ये अधिकार भारत के संविधान में प्रत्यक्ष रूप से मौलिक अधिकारों का हिस्सा नहीं हैं।
इन अधिकारों में प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-

  1. स्वास्थ्य का अधिकार- बीमारी के दौरान चिकित्सीय देखभाल, बच्चे के जन्म के समय महिलाओं की विशेष देखरेख तथा महामारियों की रोकथाम।।
  2. शिक्षा का अधिकार- निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा के लिए समान अवसर। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों की अधिकारों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. काम करने का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के लिए अवसर मिलना चाहिए।
  4. सुरक्षित तथा स्वस्थ कार्य परिस्थितियाँ, उचित मेहनताना जो कि मजदूरों तथा उनके परिवारों को सम्मानजनक जीवन स्तर उपलब्ध कराता हो।
  5. उपयुक्त जीवन स्तर का अधिकार जिसमें उपयुक्त भोजन, कपड़े तथा निवासस्थान शामिल हैं।
  6. सामाजिक सुरक्षा तथा बीमे का अधिकार।

प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? इसकी सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से आशय है किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने विचारों को स्वतन्त्र रूप से अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता। यह किसी व्यक्ति को दूसरों से बातचीत करने, सरकार की आलोचना करने हेतु अलग तरीके से सोचने की आजादी देता है। हम पैम्पलेट, पत्रिका या अखबार के द्वारा समाचार प्रकाशित कर सकते हैं।
सीमाएँ-

  1. किसी भी व्यक्ति को दूसरों के विरुद्ध हिंसा भड़काने की स्वतंत्रता नहीं है।
  2. कोई भी व्यक्ति इसका प्रयोग लोगों को सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए नहीं उकसा सकता।
  3. कोई भी व्यक्ति झूठी और घटिया बातें करके किसी अन्य को अपमानित नहीं कर सकता जिससे किसी व्यक्ति के सम्मान को हानि होती है।

प्रश्न 6.
सऊदी अरब में किस तरह की सरकार अस्तित्व में है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सऊदी अरब में वंशानुगत शासन व्यवस्था अस्तित्व में है। यहाँ लोगों की शासक को चुनने में कोई भूमिका नहीं है।
इस शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. वहाँ कोई धार्मिक आजादी नहीं है। सिर्फ मुसलमान ही यहाँ के नागरिक हो सकते हैं। यहाँ रहने वाले दूसरे धर्मों के लोग घर के अन्दर ही धर्म के अनुसार पूजा-पाठ कर सकते हैं। उनके सार्वजनिक धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक है।
  2. महिलाओं पर कई सार्वजनिक पाबंदियाँ लगी हुई हैं। औरतों को वैधानिक रूप से मर्दो से कम दर्जा मिला हुआ है।
  3. शाह ही विधायिका और कार्यपालिका का (UPBoardSolutions.com) चयन करता है तथा जजों की नियुक्ति भी स्वयं ही करता है और उनके द्वारा किए गए किसी भी निर्णय को बदल सकता है।
  4. नागरिक राजनैतिक दल अथवा राजनैतिक संगठन का गठन नहीं कर सकते।
  5. मीडिया शाह की मर्जी के विरुद्ध कोई भी खबर नहीं दे सकता।

प्रश्न 7.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गोआन्तानामो में मानवाधिकारों के उल्लंघन के । सम्बन्ध में क्या सूचनाएँ एकत्रित कीं?
उत्तर:
मानवाधिकारों के लिए कार्यरत कार्यकर्ताओं को संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल विश्व भर में मानवाधिकारों के हनन पर स्वतन्त्र रिपोर्ट जारी करता है।
इस संस्था ने गोआन्तानामो में कैदियों के बारे में निम्न सूचनाएँ एकत्रित की थीं-

  1. कैदियों को ऐसे तरीकों से यातनाएँ दी जाती थीं जो अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन करते थे।
  2. उन्हें इलाज कराने की भी आज्ञा नहीं थी जो कि अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के अनुसार युद्ध बंदियों को भी उपलब्ध था।
  3. कई कैदियों ने भूख हड़ताल करके इन स्थितियों का विरोध करने का प्रयास किया था।
  4. आधिकारिक रूप से निर्दोष घोषित किए जाने के उपरान्त भी कैदियों को रिहा नहीं किया गया था।

इस प्रकार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने लोगों का ध्यान मानवाधिकार हनन के मामले की ओर आकृष्ट किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई एक स्वतंत्र जाँच ने भी एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी तथ्यों की पुष्टि की थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कहा कि गोआन्तानामो बे की जेल बन्द की जानी चाहिए।

प्रश्न 8.
भारत के संविधान में किए गए उन प्रावधानों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करते हैं।
उत्तर:
विभिन्नता में एकता भारत की विशेषता है। भारत में विभिन्न धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं। इसलिए भारत का संविधान भी धार्मिक मामलों में तटस्थ रहा तथा इसने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाना स्वीकार किया है। कोई भी ऐसा देश जो किसी धर्म को आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाता है।
निम्न संवैधानिक प्रावधान भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करते हैं-

  1. भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। श्रीलंका में बुद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम, इंग्लैण्ड में इसाई धर्म को आधिकारिक धर्म घोषित किया गया है जबकि भारत में ऐसा नहीं है। भारत में किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं दिया गया है।
  2. संविधान धर्म के आधार पर भेद-भाव को प्रतिबंधित करता है।
  3. संविधान सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार धर्म चुनकर उसका प्रचार करने, मानने का अधिकार देता है।

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प्रश्न 9.
“स्वतंत्रता का अधिकार छः स्वतंत्रताओं का समूह है।” स्पष्ट कीजिए। साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत की गयी व्यवस्थाओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता के अधिकार के अधीन भारतीय नागरिकों को अनेक प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की गयी हैं जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता।
  2. शान्तिपूर्ण तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठा होने की स्वतंत्रता।
  3. संघ अथवा समुदाय बनाने की स्वतंत्रता।
  4. भारत में किसी भी क्षेत्र अथवा स्थान पर घूमने-फिरने की स्वतंत्रता।
  5. भारत के किसी भी भाग में रहने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता।
  6. कोई भी व्यवसाय अथवा पेशा अपनाने की स्वतंत्रता।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (धारा 20-22) के अन्तर्गत निम्न व्यवस्था की गई है-

  1. किसी व्यक्ति को बिना कानून तोड़े दण्ड नहीं दिया जा सकता।
  2. एक ही व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दण्ड नहीं दिया जा सकता।
  3. किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाही देने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
  4. किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर पुलिस को 24 घण्टे के अन्दर उसे किसी न्यायाधीश के सामने उपस्थित करना होता है। जब कभी किसी व्यक्ति को निवारक नजरबन्दी कानून के अधीन गिरफ्तार किया जाता है। तब उसे 24 घण्टे के अन्दर न्यायाधीश के सामने उपस्थित करना जरूरी नहीं। परन्तु उसे भी दो महीने की अवधि से अधिक समय तक न्यायालय के सामने पेश किए बिना (UPBoardSolutions.com) नजरबन्द नहीं रखा जा सकता।
  5. गिरफ्तार किए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताना होगा। उस व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार वकील करने का अधिकार होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता का अधिकार अनेक अधिकारों का समूह है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायपालिका किस तरह हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है कि हम सीधे सर्वोच्च न्यायालय अथवा किसी राज्य के उच्च न्यायालय में जाकर अपने अधिकारों की सुरक्षा की माँग कर सकते हैं।

विधायिका, कार्यपालिका या सरकार द्वारा गठित किसी अन्य प्राधिकरण की किसी भी कार्रवाई के विरुद्ध हमें हमारे मौलिक अधिकारों की गारंटी प्राप्त है। कोई भी कानून अथवा कार्रवाई हमें हमारे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती।
यदि विधायिका या कार्यपालिका की कोई कार्रवाई हमसे हमारे मौलिक अधिकार या तो छीनती हैं या उन्हें सीमित करती है तो यह अवैध होगा। हम ऐसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार के ऐसे कानून को चुनौती दे सकते हैं।

न्यायालय भी किसी निजी व्यक्ति या निकाय के विरुद्ध मौलिक अधिकारों को लागू करती है। किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय विभिन्न प्रकार की रिट जारी कर सकते हैं। जब भी हमारे किसी मौलिक अधिकार का हनन होता है तो हम न्यायालय के द्वारा इसे रोक सकते हैं। हमारी न्यायपालिका अत्यंत शक्तिशाली है तथा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह कोई भी आवश्यक कदम उठा सकती है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार बहुत ही व्यापक तथा विस्तृत हैं। इनका वर्णन संविधान के 24 अनुच्छेदों (अनुच्छेद 12-35) में किया गया है।
  2. ये अधिकार सभी नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।
  3. इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति अथवा सरकार नागरिकों के इन अधिकारों को उल्लंघन करने अथवा इन्हें छीनने का प्रयत्न करता है तो नागरिक न्यायालय में जाकर उसके विरुद्ध न्याय की माँग कर सकता है।
  4. मौलिक अधिकारों का प्रयोग नागरिकों द्वारा मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता। यदि कोई नागरिक इनको प्रयोग इस ढंग से करता है कि उससे शांति तथा व्यवस्था भंग होती हो अथवा दूसरों की स्वतंत्रता के प्रयोग के मार्ग में बाधा उत्पन्न (UPBoardSolutions.com) होती हो तो ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है; उसे ऐसा करने से रोका जा सकता है।
  5. संकटकालीन स्थिति में मौलिक अधिकारों को निलम्बित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि संकट काल में सरकार द्वारा इन अधिकारों के प्रयोग पर पाबंदी लगाई जा सकती है।
  6. संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है।
  7. मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था की गई है, इनकी केवल घोषणा ही नहीं की गई है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान ने अपने नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं।
समानता का अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न प्रकार की समानता प्रदान की गई है-

  1. कानून के सामने सभी नागरिक समान हैं।
  2. किसी भी नागरिक को उसकी जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर सार्वजनिक स्थानों जैसे-होटलों, पार्को, नहाने के घाटों आदि पर प्रवेश करने से नहीं रोका जाएगा।
  3. सभी नागरिकों को सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में अवसर की समानता का अधिकार।
  4. छुआ-छूत की समाप्ति।
  5. सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों का अन्त।

स्वतन्त्रता का अधिकार- स्वतंत्रता का अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं-

  1. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता।
  2. शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के एकत्र होने की स्वतंत्रता।
  3. संघ बनाने की स्वतंत्रता।
  4. भारत में किसी भी स्थान पर (किसी भी भाग में) घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता।
  5. भारत के किसी भी भाग में रहने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता।
  6. अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपनाने की स्वतंत्रता।

शोषण के विरुद्ध अधिकार-

  1. इस अधिकार के अधीन मनुष्यों को खरीदना-बेचना तथा बेगार पर रोक लगा दी गई है।
  2. 14 वर्ष अथवा उससे कम आयु वाले बच्चों को किसी कारखाने अथवा खान में नौकरी पर नहीं लगाया जा सकता है।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार-

  1. प्रत्येक नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है।
  2. प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को अपनी धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने का अधिकार है।
  3. किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी धर्म (UPBoardSolutions.com) विशेष के लिए चंदा या कर देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  4. राज्य द्वारा स्थापित किसी भी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के सभी नागरिकों को अपनी भाषा, धर्म व संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा उसका विकास करने का अधिकार है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार- इस अधिकार के अनुसार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने की स्थिति में न्यायालय में जाकर न्याय माँगने का अधिकार है।

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प्रश्न 4.
भारत का संविधान कहता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति से उसके व्यक्तिगत जीवन की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं छीना जा सकता।” इस कथन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इसका आशय है कि जब तक न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को मृत्यु दण्ड न दिया गया हो, तब तक किसी भी व्यक्ति को मारा नहीं जा सकता। इसका यह भी अर्थ है कि सरकार अथवा पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को तब तक हिरासत में नहीं रख सकते जब तक उनके पास इसके लिए कोई न्यायिक औचित्य न हो। जब भी वे ऐसा करते हैं, उन्हें कुछ विशेष कानूनों का पालन करना पड़ता है।

  1. ऐसे व्यक्ति को अपने वकील से विचार-विमर्श करने और अपने बचाव के लिए वकील रखने का अधिकार होता है।
  2. गिरफ्तार किए गए अथवा हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी या हिरासत के कारण की सूचना देना आवश्यक है।
  3. जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है अथवा हिरासत में लिया जाता है तो उसे ऐसी गिरफ्तारी के 24 घण्टे के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना होता है।

प्रश्न 5.
भारत में नगरिकों के राजनैतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए। ।
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा प्रदत्त राजनीतिक अधिकारों द्वारा नागरिक अपने देश के शासन-प्रबन्ध में भाग लेते हैं।
इस श्रेणी के अन्तर्गत नागरिकों को प्रदत्त प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-

1. मतदान का अधिकार- लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान का अधिकार एक प्रमुख अधिकार है जो देश के नागरिकों को प्राप्त है। मतदान के अधिकार द्वारा सभी वयस्क नागरिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन-प्रबन्ध में हिस्सा लेने लगे हैं। जनता संसद तथा कार्यपालिका के लिए अपने प्रतिनिधि चुनकर भेजती है, जिससे कानून बनाने तथा प्रशासन चलाने के कार्य जनता की इच्छानुसार किए जाते हैं। इस प्रकार प्रजातांत्रिक शासन जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया जाता है। सभी आधुनिक राज्य अधिक-से-अधिक नागरिकों को मताधिकार देने का प्रयत्न करते हैं। इसके लिए अब शिक्षा, सम्पत्ति, जाति, लिंग, जन्म-स्थान आदि का (UPBoardSolutions.com) भेदभाव नहीं किया जाता, परन्तु नाबालिगों, अपराधियों, दिवालियों, पागलों तथा विदेशियों को मताधिकार नहीं दिया जाता। क्योंकि मताधिकार एक पवित्र तथा जिम्मेदारी का काम है। भारत में 18 वर्ष के सभी स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त है।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार- प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को योग्य होने पर चुनाव लड़ने का भी अधिकार दिया जाता है। प्रजातंत्र में तभी जनता की तथा जनता द्वारा सरकार बन सकती है, जब प्रत्येक नागरिक को कानून बनाने में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का अधिकार दिया जाता हो। जनता के वास्तविक प्रतिनिधि भी वही होंगे जो उन्हीं में से निर्वाचित किए गए हों। इसलिए राज्य नागरिकों को चुनाव लड़ने का भी अधिकार देता है, परन्तु कानून बनाना अधिक जिम्मेदारी का काम होता है, इसलिए ऐसे नागरिक को ही निर्वाचन में खड़े होने का अधिकार होता है जो कम-से-कम 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो तथा पागल, दिवालिया व अपराधी न हो। भारत में 25 वर्ष की आयु वाले नागरिक को यह अधिकार मिल जाता है।

3. सरकार की आलोचना करने का अधिकार- लोकतन्त्र में नागरिकों को शासन-कार्यों की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार है। लोकतन्त्र लोकमत पर आधारित सरकार है। विरोधी मतों के संघर्ष से ही सच्चाई सामने आती है। स्वतंत्रता का मूल जनता की निरन्तर जागृति ही है। (UPBoardSolutions.com) शासन के अत्याचारों अथवा अधिकारों के दोषों को दूर करने के लिए सरकार की आलोचना एक उत्तम तथा प्रभावशाली हथियार है। इससे सरकार दक्षतापूर्वक कार्य करती है। धन व सत्ता का दुरुपयोग नहीं होने पाता।

4. विरोध करने का अधिकार- नागरिकों को सरकार का विरोध करने का भी अधिकार है। यदि सरकार अन्यायपूर्ण कानून बनाती है अथवा राष्ट्र-हित के विरुद्ध कार्य करती है तो उसका विरोध किया जाना चाहिए। ऐसे शासन के सामने झुकना आदर्श नागरिकता का लक्षण नहीं है। इसलिए नागरिकों को बुरी सरकार का विरोध करना चाहिए तथा उसे बदल देने का प्रयत्न करना चाहिए, परन्तु ऐसा संवैधानिक तरीकों के अन्तर्गत ही किया जाना चाहिए। यह भी ध्यान में रखना पड़ता है कि निजी स्वार्थ-सिद्धि के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता। नागरिक को सरकार का विरोध करने का तो अधिकार है, परन्तु राज्य का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं।

5. प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार- नागरिकों को अपने कष्टों का निवारण करने के लिए प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार है। प्रजातंत्र में संसद में जनता के प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को भी स्वतः याचिका भेजकर सरकार के सामने अपनी समस्याएँ रखने तथा उन्हें हल करने की माँग करने का अधिकार है। (UPBoardSolutions.com) सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार- सभी नागरिकों को उनकी योग्यतानुसार अपने राज्य में सरकारी पद या नौकरियाँ प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, वंश, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

भारत में ऐसा कोई भेदभाव नहीं रखा गया है। यहाँ कोई भी नागरिक राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। राजनीतिक दल बनाने का अधिकार- प्रजातंत्र में लोगों को दल बनाने का अधिकार होता है। समान राजनीतिक विचार रखने वाले लोग अपना दल बना लेते हैं। राजनीतिक दल ही उम्मीदवार खड़े करते हैं, चुनाव आंदोलन चलाते हैं तथा विजयी होने पर सरकार बनाते हैं। जो दल अल्पसंख्या में रह जाते हैं, वे विरोधी दल का कार्य करते हैं। इन राजनैतिक दलों के बिना प्रजातंत्र सरकार बनाना असंभव है।

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प्रश्न 6.
भारत में नागरिक के सामाजिक एवं नागरिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक जीवन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करने तथा कुटुम्ब बनाने का अधिकार है। परिवार के पवित्रता, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति की राज्य रक्षा करता है। प्रगतिशील देशों में पारिवारिक कलह दूर करने के लिए पतिपत्नी को एक-दूसरे को तलाक देने का भी अधिकार है। बहु-विवाह एवं बाल-विवाह की प्रथाओं पर भी प्रतिबंध लगाए जाते हैं।

शिक्षा का अधिकार- आधुनिक राज्य में नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। कई देशों में चौदह वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्ध किया गया है। शिक्षा प्रजातांत्रिक शासन की सफलता का आधार है। शिक्षित नागरिक ही अपने (UPBoardSolutions.com) अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान रखते हैं। शिक्षा अच्छे सामाजिक जीवन के लिए भी आवश्यक है, इसलिए राज्य स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, वाचनालय, पुस्तकालय आदि स्थापित करता है। नागरिकों को शिक्षा देना राज्य अपना परम कर्तव्य समझता है।

प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार- समाचार-पत्र प्रजातन्त्र के पहरेदार होते हैं। ये लोकमत तैयार करने के अच्छे साधन हैं। इनके माध्यम से जनता तथा सरकार एक-दूसरे की बातें समझ सकते हैं।  समाचार-पत्रों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। स्वतंत्र प्रेस द्वारा ही शासन की जनहित विरोधी कार्रवाई की आलोचना की जा सकती है। प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा देने से जनता का गला घोंट दिया जाता है। तानाशाही राज्यों में प्रेस को स्वतंत्र नहीं रहने दिया जाता, परन्तु प्रजातंत्रीय देशों में प्रेस को स्वतंत्रता का अधिकार होता है। समाचार-पत्रों को इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

सभा बुलाने तथा संगठित होने का अधिकार- मनुष्य में सामाजिक प्रवृत्ति होती है। वह सभा बुलाकर तथा संगठन बनाकर उसे पूर्ण करता है। जनता को शांतिपूर्वक सभाएँ करने तथा अपने हितों की रक्षा करने के लिए समुदाय बनाने का अधिकार होना चाहिए। आधुनिक राज्य लोगों को यह अधिकार प्रदान करता है। सार्वजनिक वाद-विवाद, मत-प्रकाशन तथा जोरदार आलोचना शासन के अत्याचारों तथा (UPBoardSolutions.com) अधिकारों की मनमानी क्रूरताओं के विरुद्ध जनता के शस्त्र हैं, परन्तु इन सभाओं, जलूसों तथा समुदायों का उद्देश्य सार्वजनिक हित की वृद्धि करना ही होना चाहिए। द्वेष या विद्रोह फैलाने, शांति भंग करने आदि के लिए इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता। राज्य ऐसे कार्यों को रोकने के लिए सभाओं आदि पर प्रतिबन्ध लगा देता है, परन्तु राज्य की सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता का दमन करना फासिस्टवाद है।

न्याय पाने का अधिकार- आधुनिक राज्य में सभी लोगों को पूर्ण न्याय प्राप्त करने का अधिकार है। अपराध करने पर सभी पर सामान्य अदालत में मुकद्दमा चलाया जाता है तथा सामान्य कानून के अन्तर्गत दण्ड दिया जाता है। गरीब तथा निर्बल व्यक्तियों को अमीरों के अत्याचारों से बचाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अदालत में जाने तथा न्याय पाने का अधिकार है। भारतीय संविधान में भी न्याय प्राप्त करने के लिए कानूनी उपचार की व्यवस्था की गयी है। कोई भी व्यक्ति न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक अपील कर सकता है।

स्वतन्त्र भ्रमण का अधिकार- सुखी तथा स्वस्थ जीवन के लिए भ्रमण करना भी जरूरी है। राज्य प्रत्येक व्यक्ति को आवागमन की स्वतन्त्रता का अधिकार देता है। वह देश भर में कहीं भी आ-जा सकता है। विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट भी मिल सकता है। शांतिपूर्ण ढंग से आजीविका (UPBoardSolutions.com) कमाने तथा सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सभी लोगों को घूमने-फिरने की स्वतंत्रता है, परन्तु विद्रोह फैलाने, तोड़-फोड़ की कार्रवाइयाँ करने वालों को यह अधिकार नहीं दिया जाता। युद्ध के समय विदेशियों के भ्रमण पर भी कठोर नियंत्रण लागू कर दिया जाता है।

विचार तथा भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार- प्रजातांत्रिक राज्यों में प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से विचार करने तथा बोलने अथवा भाषण देने का अधिकार दिया जाता है। विचारों के आदान-प्रदान से ही सत्य का पता लगता है। इससे जागृत लोकमत तैयार होता है जो सरकार की रचनात्मक आलोचना करके उसे जनहित में कार्य करते रहने के लिए बाध्य करता है। मंच जनता के दुःखों तथा अधिकारों को दबाने सम्बन्धी अत्याचारों को दूर करने का शक्तिशाली माध्यम है, परन्तु भाषण की स्वतंत्रता का अर्थ झूठी अफवाहें फैलाने, अपमान करने या गालियाँ देने का अधिकार नहीं है। मानहानि करना या राजद्रोह फैलाना अपराध है। युद्ध के समय राज्य की सुरक्षा के लिए इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध भी लगा दिए जाते हैं।

जीवन का अधिकार- प्रत्येक मनुष्य का यह मौलिक अधिकार है कि उसका जीवन सुरक्षित रखा जाए। राज्य बनाने का प्रथम उद्देश्य भी यही है। यदि लोग ही जीवित नहीं रहेंगे तो समाज व राज्य भी समाप्त हो जाएँगे। इसलिए राज्य अपनी प्रजा की बाहरी आक्रमणों तथा आन्तरिक उपद्रवों से रक्षा करने के लिए सेना और पुलिस का संगठन करता है। जीवन के अधिकार के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मरक्षा करने का (UPBoardSolutions.com) भी अधिकार है। मनुष्य का जीवन समाज की निधि है। उसकी रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है। इसलिए किसी व्यक्ति की हत्या करना राज्य के विरुद्ध घोर अपराध माना जाता है। यही नहीं, आत्महत्या का प्रयत्न करना भी अपराध माना जाता है, परन्तु राज्य उस व्यक्ति के जीवन के अधिकार को समाप्त कर देता है जो समाज का शत्रु बन जाती है तथा दूसरों की हत्या करता फिरता है।

सम्पत्ति का अधिकार- सम्पत्ति जीवन के विकास के लिए आवश्यक है। इसलिए व्यक्ति को निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया जाता है। कोई उसकी सम्पत्ति छीन नहीं सकता अन्यथा चोरी अथवा डाका डालने को अपराध माना जाता है। बिना कानूनी कार्रवाई किए तथा उचित मुआवजा दिए राज्य भी किसी व्यक्ति की सम्पत्ति जब्त नहीं करता। यद्यपि पूँजीवादी राज्य में निजी सम्पत्ति की कोई सीमा नहीं रखी जाती, फिर भी समाजवादी राज्य में व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने की एक सीमा है। अपनी शारीरिक मेहनत से प्राप्त धन रखने (UPBoardSolutions.com) का वहाँ अधिकार होता है, परन्तु लोगों का शोषण करके सम्पत्ति इकट्ठी नहीं की जा सकती। आधुनिक कल्याणकारी राज्य में यद्यपि सम्पत्ति रखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, परन्तु सरकार अधिक धन कमाने वालों पर अधिक-से-अधिक कर (Tax) लगाती है।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं से क्या आशय है? उनसे बचाव एवं उपचार के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं का अर्थ

सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं में उन दुर्घटनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो घर, पास-पड़ोस या कार्य-स्थल पर कभी भी घटित हो सकती हैं तथा उनके परिणामस्वरूप सम्बन्धित व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है। ये दुर्घटनाएँ मुख्य रूप से लापरवाही, असावधानी अथवा अज्ञानता के कारण घटित हुआ करती हैं। वास्तव में व्यक्ति का जीवन आज के युग में अत्यधिक व्यस्त है। इस स्थिति में हर व्यक्ति को सदैव शीघ्रता एवं जल्दबाजी रहती है। जल्दबाजी में लापरवाही या त्रुटि हो जाना स्वाभाविक ही है। जनसंख्या-वृद्धि, भीड़-भाड़, विभिन्न प्रकार के मानसिक दबाव एवं तनाव, निराशा, कुण्ठा, सामाजिक दबाव आदि कारणों से दुर्घटनाओं (UPBoardSolutions.com) की दर में वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार व्यक्ति के अशिक्षित होने के कारण अथवा भावनात्मक असन्तुलन के कारण कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है। कुछ दुर्घटनाएँ शरारतवश अथवा शत्रुता के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इस प्रकार की मुख्य दुर्घटनाएँ हैं-चोट लगना, फिसल कर गिरना, किसी वाहन से टकरा जाना, विषपान, पानी में डूबना तथा आग लगना आदि। कुछ दुर्घटनाएँ विभिन्न पशु-पक्षियों एवं कीट-पतंगों के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इन सभी दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

मुख्य सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ

दैनिक जीवन में किसी भी प्रकार की साधारण अथवा गम्भीर दुर्घटना घटित हो सकती है; अतः व्यक्ति को हर प्रकार की दुर्घटना का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। परन्तु कुछ दुर्घटनाएँ ऐसी होती हैं जो सामान्य रूप से घटित होती रहती हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटना माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि उसे सामान्य घरेलु दुर्घटनाओं की समुचित जानकारी हो। मुख्य (UPBoardSolutions.com) सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं-जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब जाना, साँप, बिच्छू या बर्से द्वारा डंक मार देना, कुत्ते, बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कोन आदि में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ जाना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

सामान्य दुर्घटनाओं से बचाव एवं उपचार

दुर्घटनाएँ आकस्मिक होती हैं तथा उनसे बचने के लिए व्यक्ति को अधिक-से-अधिक ध्यानपूर्वक कार्य करने चाहिए। लापरवाही नहीं करनी चाहिए तथा हर प्रकार की आवश्यक जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए। इन समस्त उपायों के बाद भी दुर्घटनाएँ घट सकती हैं। यदि कोई दुर्घटना (UPBoardSolutions.com) घटित हो जाती है । तो उसे देखकर घबराना नहीं चाहिए। घबराने या हाथ-पैर फुलाने से दुर्घटना की गम्भीरता बढ़ सकती है; अतः दुर्घटना का सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए तथा निम्नलिखित सामान्य उपाय किए जाने चाहिए

  1.  किसी भी दुर्घटना के घटित होते ही सर्वप्रथम उसके कारण को ज्ञात करना चाहिए तथा तुरन्त उस कारण का उन्मूलन करने का उपाय करना चाहिए।
  2.  दुर्घटना की गम्भीरता को बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  3.  दुर्घटना की प्रकृति को जानने का प्रयास करना चाहिए तथा उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित उपायों में से आवश्यक उपाय किया जाना चाहिए

(क) यदि शरीर से रक्त बह रहा हो, तो सर्वप्रथम रक्त-स्राव को रोकने का हर सम्भव उपाय किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक रक्तस्राव हो जाना घातक सिद्ध हो सकता है।
(ख) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पानी में डूबा हो, तो सम्बन्धित व्यक्ति के फेफड़ों तथा पेट में से पानी को निकालने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ग) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को श्वसन में कठिनाई हो रही हो, तो सर्वप्रथम कृत्रिम श्वसन के उपाय किए जाने चाहिए।
(घ) यदि व्यक्ति ने विष-पान कर लिया हो, तो सर्वप्रथम विष को शरीर में से निकालने अथवा उसके प्रभाव को घटाने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ङ) यदि साँप या बिच्छ आदि ने डंक मार दिया हो तो सर्वप्रथम विष को शरीर में फैलने से रोकने । के उपाय किए जाने चाहिए।
(च) यदि व्यक्ति मूर्छित हो गया हो, तो सर्वप्रथम उसे होश में लाने के उपाय किए जाने चाहिए।
उपर्युक्त सामान्य उपायों के अतिरिक्त दुर्घटना की (UPBoardSolutions.com) प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूझ-बू द्वार यथाआवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। यदि दुर्घटना गम्भीर प्रतीत हो, तो प्राथमिक उपचार के साथ-साथ किसी योग्य चिकित्सक से भी यथाशीघ्र सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

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प्रश्न 2:
जलने व झुलसने में क्या अन्तर है?जलने के विभिन्न प्रकार एवं उनके उपचार बताइए।
उत्तर:
जलना एवं झुलसना-जलना एवं झुलसना प्राय: शरीर पर अधिक ताप का प्रभाव होते हैं। झुलसना; तरल पदार्थों; जैसे-गरम दूध, पानी, घी, तेल व चाय आदि के त्वचा पर गिर जाने से होता है। जलना; भाप, गरम तवा तथा अन्य प्रकार की शुष्क आग के सम्पर्क में त्वचा के आने पर होता है। जलने एवं अधिक झुलस जाने के गम्भीर परिणाम होते हैं। शरीर के 50 प्रतिशत अथवा अधिक जल जाने पर पीड़ित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) पर मृत्यु का संकट हो सकता है। गम्भीर रूप से जलने से शरीर में द्रव पदार्थों की कमी उत्पन्न हो जाती है, शरीर के आन्तरिक अवयव बुरी तरह से कुप्रभावित होते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात का शिकार हो सकता है।

जलने के प्रकार

जलने के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करने के दो आधार हैं
(क) शारीरिक लक्षणों को आधार तथा
(ख) जलने के स्रोतों का आधार।।

(क) शारीरिक लक्षणों के आधार पर जलने के प्रकार:
जलने पर मुख्यत: निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1.  त्वचा लाल रंग की हो जाती है, परन्तु नष्ट नहीं होती।
  2.  लालिमा के साथ-साथ शरीर पर फफोले भी पड़ जाते हैं।
  3.  प्रभावित भाग कम हो अथवा अधिक उसके स्नायु तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

(ख) विभिन्न स्रोतों से जलना:
यह निम्न प्रकार से हो सकता है

  1.  वस्त्रों में आग लग जाने से जलना।
  2. अम्लों से जलना।
  3. क्षार से जलना।
  4.  बिजली से जलना।

जल जाने पर उपचार

जल जाने की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार से प्राथमिक उपचार किए जाते हैं। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है

(1) वस्त्र में आग लग जाने पर उपचार:
यह एक सामान्य दुर्घटना है जो कि घरों में प्रायः खाना आदि पकाते समय घटित हुआ करती है। साधारणत: इसके उपचार निम्न प्रकार से करने चाहिए|

  1. रोगी को तुरन्त भूमि पर लिटाकर लुढ़काना चाहिए। रोगी का मुंह खुला छोड़कर उसकी शेष शरीर किसी कम्बल जैसे कपड़े से ढक देना चाहिए।
  2. जलते हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इससे घावों के और अधिक गम्भीर होने का भय रहता है।
  3. रोगी के कपड़े व जूते किसी प्रकार से उतार देने चाहिए।
  4. रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  5. रोगी के बिस्तर पर गरम पानी की बोतलें भी रख देनी चाहिए।
  6.  यदि त्वचा पर फफोले पड़ गए हों, तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए।
  7.  एक भाग अलसी का तेल व एक भाग चूने का पानी मिलाकर स्वच्छ रूई अथवा कपड़े के फाये द्वारा जले हुए भाग पर लगाना लाभप्रद रहता है।
  8. जले हुए स्थान पर से सावधानीपूर्वक वस्त्र हटाने का प्रयास करना चाहिए। यदि वस्त्र चिपक गए हैं, तो उस स्थान पर जैतून अथवा नारियल का तेल लगाना चाहिए।
  9.  जले हुए स्थान पर हल्के-हल्के बरनॉल या इसी प्रकार का कोई अन्य मरहम लगाना चाहिए।
  10.  मरहम उपलब्ध न होने पर नारियल का तेल प्रयोग में लाया जा सकता है।
  11.  यदि रोगी होश में है तो उसे सांत्वना एवं धैर्य बँधाना चाहिए।
  12. रोगी को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल ले जाना चाहिए।

(2) अम्लों से जल जाने पर उपचार:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्ल मानव त्वचा के लिए अत्यन्त घातक होते हैं। ये जिस स्थान पर गिरते हैं, उसे तत्काल अन्दर तक जला देते हैं। अम्लों से जलने पर निम्नलिखित उपाय तुरन्त करने चाहिए

  1.  प्रभावित स्थान पर तुरन्त पानी की धार डालें।
  2.  रोगी के वस्त्र उतारते समय पानी डालते रहें।
  3.  जले स्थान को स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4. जले स्थान पर खाने का सोड़ा पानी में घोलकर लगाएँ। इससे अम्ल का प्रभाव घटने लगता है।
  5.  अधिक जल जाने पर रोगी को इस प्रकार लिटाएँ कि उसका सिर शरीर के अन्य भागों से कुछ ऊँचा रहे।
  6.  यदि रोगी होश में है तो उसे ऐल्कोहॉल रहित पेय पदार्थ पीने के लिए दें।
  7.  शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक को बुलाएँ।

(3) क्षार से जलने पर उपचार:
चूना, कास्टिक सोड़ा तथा पोटाश आदि क्षार मानव त्वचा को गम्भीर रूप से जला देते हैं। इस प्रकारे जले रोगियों का उपचार निम्न प्रकार से करना चाहिए

  1. प्रभावित स्थान को पानी के तीव्र प्रवाह से धोना चाहिए।
  2. जले हुए भाग पर नींबू के रस अथवा सिरके में पानी मिलाकर लगाने से क्षार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  3.  जले हुए स्थान पर ऐल्कोहॉल लगाने से रोगी को आराम होता है।
  4. रोगी को मद्यरहित पेय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पीने के लिए देने चाहिए।
  5. यदि अधिक भाग जला हो, तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

(4) बिजली से जलने पर उपचार:
बिजली के सम्पर्क में आने पर व्यक्ति को घातक झटका लगता है तथा कभी-कभी वह बिजली से चिपक भी जाता है। इस प्रकार का पीड़ित व्यक्ति सदमे के साथ-साथ जलने का शिकार भी हो जाता है। उपयुक्त उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1.  सर्वप्रथम बिजली का मुख्य स्विच बन्द कर देना चाहिए।
  2.  एक लम्बी लकड़ी अथवा लकड़ी के तख्ते का उपयोग कर पीड़ित व्यक्ति को विद्युत तारों से मुक्त करना चाहिए।
  3. जिन स्थानों पर तार से चिपकने के कारण घाव हो गए हों, वहाँ पर बरनॉल या कोई अन्य ऐसा ही मरहम लगाना चाहिए।
  4. घावों को स्वच्छ कपड़े से ढक देना चाहिए।
  5. श्वास रुकने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  6.  रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  7. पीड़ित व्यक्ति के लिए दुर्घटना का सदमा घातक हो सकता है; अतः उसे धैर्य बँधाते रहना चाहिए।
  8.  तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।

प्रश्न 3:
रक्त-स्राव कितने प्रकार का होता है? रक्त-स्राव रोकने के लिए आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी?
उत्तर:
रक्त-साव के कारण एवं प्रकार

तीव्र धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, आरी आदि) से कट जाना अथवा खरोंच लग जाना रक्त-स्राव के सामान्य कारण हैं।
दुर्घटनाओं के कारण होने वाले गहरे घाव तीव्र, एवं अधिक (UPBoardSolutions.com) रक्तस्राव के कारण होते हैं। मानव शरीर में रक्त प्रवाह रक्त-वाहिनियों द्वारा होता है; अतः रक्त-प्रवाह का मूल कारण उपर्युक्त वर्णित दुर्घटनाओं के कारण रक्तवाहिनियों को फट या कट जाना होता है। रक्त-स्राव प्रायः दो प्रकार का होता है

(क) बाह्य अंगों से रक्तस्रावं,
(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव।

(क) बाह्य अंगों से रक्त-स्राव:

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार बाह्य अंगों में घाव बन जाते हैं। इन स्थानों पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से तीव्र रक्तस्राव होने लगता है। इसे भली प्रकार से समझने के लिए धमनी व शिरा के फटने से होने वाले रक्त-स्राव का अन्तर जानना आवश्यक है।

धमनी से होने वाला रक्तस्त्राव:
धमनी के कटने अथवा फटने पर अत्यन्त चमकीले लाल रंग का रक्त निकलता है। यदि प्रभावित धमनी हृदय के पास है, तो रक्त रुक-रुक कर हृदय के स्पन्दन के साथ-साथ झटके से बाहर निकलता है। अतः धमनी से होने वाला रक्तस्राव हृदय की ओर से होता है।

दबाव बिन्दु:
रक्त-स्राव को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को मानव शरीर में स्थित रक्त के अधिक दबाव के बिन्दुओं की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। ये संख्या में 6 होते हैं। पहला दबाव बिन्दु श्वास नलिका की बगल में तथा दूसरा कान के ठीक सामने की ओर होता है। तीसरा दबाव बिन्दु जबड़े से (UPBoardSolutions.com) लगभग 2.5 सेन्टीमीटर की दूरी पर होता है। चौथा बिन्दु हँसली की हड्डी के भीतरी भाग के पीछे की ओर, पाँचवाँ भुजाओं के अन्दर की ओर तथा छठा जाँध में मूत्राशय के निकट होता है। जब कभी धमनी अथवा शिरा से अधिक रक्तस्राव हो रहा हो, तो रक्तस्राव के निकट के दबाव बिन्दु पर उचित दबाव डालकर रक्तस्राव को कम किया जाता है।

धमनी से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने के उपाय

  1. घायल व्यक्ति को ठीक प्रकार से लिटा देने पर रक्तस्राव कम हो जाता है।
  2. यदि हड्डी नहीं टूटी है, तो घायल अंगों को ऊपर उठा देने से भी रक्तस्राव में कमी आ जाती है।
  3. घाव में जिस धमनी से रक्तस्राव हो रहा हो उसके दबाव बिन्दु को भली प्रकार से दबा देना चाहिए।
  4. यदि घाव छोटा है तो स्वच्छ अंगूठे से उसे दबाना चाहिए।
  5.  घाव को दबाने के तुरन्त बाद रुई रखकर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  6.  यदि घाव में गन्दगी हो, तो उसे चारों ओर से एन्टीसेप्टिक घोल (डिटॉल, सैवलोन व स्प्रिट आदि) द्वारा साफ कर देना चाहिए।
  7. रक्त-स्राव रोकने के लिए टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक क्लोराइड का घोल घाव पर छिड़कना चाहिए। फिटकरी को बारीक पीसकर घाव पर लगाने से भी रक्तस्राव को रोका जा सकता है।
  8.  घाव को स्वच्छ रुई, फलालेन अथवा अन्य कोमल वस्त्र से ढक देना चाहिए।
  9.  टूर्नाकेट का प्रयोग: यदि रक्तस्राव हाथ या टाँग जैसे अंगों से हो रहा है तो रक्तस्राव रोकने एवं प्रभावपूर्ण ढंग से धमनियों पर दबाव डालने के लिए टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है। टूर्नीकेट बाँधने के लिए कई मोटी तह वाला कपड़ा अधिक उपयुक्त रहता है। कपड़े की लम्बी परन्तु कम चौड़ी पट्टियों की तह कर लेनी चाहिए। एक मुलायम कपड़े के पैड को दबाव बिन्दु के ऊपर रखकर (UPBoardSolutions.com) पट्टी कसकर बाँध देनी चाहिए। टूर्नीकेट को प्रभावित अंग पर दो बार लपेटना चाहिए तथा गाँठ लगा देनी चाहिए। अब लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा गाँठ पर रखकर दोबारा बाँध दें। लकड़ी के टुकड़े को घुमाकर टूर्नीकेट को कसा जा सकता है जिससे धमनी पर दबाव बढ़ जाता है। टूर्नीकेट को बाँधने के लिए रबर की ट्यूब सर्वोत्तम रहती है।

सावधानियाँ:
टूर्नीकेट प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. टूर्नीकेट को आवश्यकतानुसार ही कसना चाहिए।
  2.  इसे प्रत्येक पन्द्रह मिनट के बाद ढीला करते रहना चाहिए, परन्तु पूर्णरूप से हटाना नहीं चाहिए।
  3. टूर्नीकेट ढीला करने पर रक्त-स्राव के कम होने का पता लगता है। यदि रक्त-स्राव कम न हो, तो टूर्नीकेट को फिर से कस देना चाहिए।
  4. इस बीच रोगी को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था का प्रयास करना चाहिए।

शिरा का रक्त-स्राव:
शिरा के कटने अथवा फटने पर रक्त-स्राव समान गति से होता है। शिराओं से बहने वाला रक्त अशुद्ध एवं नीलापन लिए हुए गहरे रंग का होता है।

शिराओं से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के उपाय

  1.  घायल अंग को नीचे की ओर झुका देने से रक्त-स्राव में कमी आती है।
  2.  यदि हड्डी नहीं टूटी है तो घाव को अँगूठे से दबाना चाहिए।
  3.  घाव की गन्दगी को ऐन्टीसेप्टिक घोल की सहायता से साफ कर घाव को किसी स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4.  घाव वाले भाग के ऊपर बर्फ की थैली अथवा ठण्डे पानी से भीगा कपड़ा रखने से रक्तस्राव में कमी आती है।
  5.  टिंचर आयोडीन एवं फैरिक क्लोराइड प्रयोग करके रक्त-स्राव को कम किया जा सकता है।
  6.  टूर्नीकेट को सावधानीपूर्वक उपयोग करें।
  7.  रक्तस्राव बन्द हो जाने के पश्चात् घायल व्यक्ति का कई घण्टे तक ध्यान रखें, क्योंकि थोड़े से झटके से पुन: रक्तस्राव हो सकता है।

(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार पीड़ित व्यक्तियों के आन्तरिक अंग (हड्डियों, फेफड़े, आँत, आमाशय व गुर्दे आदि) घायल हो जाते हैं। इस प्रकार के रोगियों के घाव बाहर से नहीं दिखाई पड़ते हैं। तथा रक्तस्राव प्राय: शरीर के अन्दर ही होता रहता है। ऐसे रोगियों के थूक व मलमूत्र के (UPBoardSolutions.com) साथ रक्त शरीर के बाहर निकलता है। इस प्रकार के रोगियों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. घायल व्यक्ति श्वास लेने में कठिनाई होने के कारण तड़पता रहता है।
  2. रोगी के होंठ व मुँह का रंग पीला अथवा नीला पड़ जाता है।
  3. पीड़ित व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव करता है।
  4.  पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो सकता है।
  5.  नाड़ी की गति धीमी होने लगती है।
  6.  रोगी को रक्तस्राव के कारण सदमा पहुँच सकता है।

आन्तरिक अंगों से होने वाले रक्तस्राव का उपचार

  1.  रोगी को तत्काल लिटा देना चाहिए तथा उसे पूर्ण विश्राम देना चाहिए।
  2. रोगी को खाने-पीने को कुछ नहीं देना चाहिए।
  3. प्यास लगने पर रोगी को चूसने के लिए बर्फ का टुकड़ा देना चाहिए।
  4.  रक्त निकलने वाले स्थान पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए।
  5.  रोगी को उसके वस्त्र ढीले कर हवादार स्थान पर लिटाना चाहिए।
  6. यदि फ़ैक्चर है तो रोगी के रक्त-स्राव को रोकने का तो प्रयास करना चाहिए, परन्तु उसे हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।
  7.  घायल व्यक्ति को सांत्वना एवं धैर्य बँधाना एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  8.  निकट के अस्पताल तक तत्काल सूचना भेजनी अथवा भिजवानी चाहिए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हिस्टीरिया एवं मिरगी रोगों के लक्षणों में क्या अन्तर है? इनके उपचार के उपाय सुझाइए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

प्रश्न 2:
दम घुटने से क्या अभिप्राय है?इस अवस्था में क्या प्राथमिक चिकित्सा करनी चाहिए?
उत्तर:
दम घुटना-बन्द स्थान तथा दूषित वायु में प्रायः व्यक्ति का दम घुटने लगता है तथा वह बेचैनी का अनुभव करता है। दम घुटने पर मरणान्तक स्थिति प्रायः धुएँ में उपस्थित कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के कारण होती है। दम घुटने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति सामान्यतः सिर दर्द, जी मिचलाना, धुंधला दिखाई देना तथा दुर्बलता का अनुभव करता है। समय पर उपयुक्त चिकित्सा सहायतान मिलने पर पीड़ित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) मूर्च्छित होकर मर भी सकता है। प्राथमिक उपचार-निम्नलिखित उपायों को अपनाकर दम घुटने जैसी घातक स्थिति पर एक सीमा तक नियन्त्रण किया जा सकता है

  1.  दम घुटने की स्थिति से बचने के लिए सोते समय कमरे की खिड़कियाँ व रोशनदान खुले रखें तथा कभी भी बन्द कमरे में अँगीठी अथवा धुआँ उत्पन्न करने वाली अन्य किसी सामग्री का उपयोग नकरें।
  2. पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त हवादार स्थान पर ले जाना चाहिए।
  3. यदि पीड़ित व्यक्ति की श्वास गति अवरुद्ध हो रही हो, तो तत्काल उसे कृत्रिम श्वास दें। शीघ्रातिशीघ्र पीड़ित व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन गैस की व्यवस्था करें।
  4.  यदि पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति रुक गइ हो, तो उसकी वक्ष अस्थि के मध्य भाग के ऊपर प्रति मिनट लगभग 60 बार कृत्रिम हृदय स्पन्दन की क्रिया करें।

प्रश्न 3:
नाक से रक्त-स्राव किन परिस्थितियों में हो सकता है? नाक से रक्त-स्राव रोकने के कुछ कारगर उपाय सुझाइए।
या
नाक के रक्त-स्राव को रोकने के लिए आप क्या उपाय करेंगी?
उत्तर:
नाक से रक्त-स्राव:
नाक अथवा खोपड़ी पर आघात लगने से अथवा अधिक गर्मी से नसीर फूट जाने पर नाक से रक्तस्राव हुआ करता है। कई बार उपयुक्त उपचार देर से उपलब्ध होने पर नाक से होने वाला रक्तस्रावे घातक सिद्ध होता है।

प्राथमिक उपचार:

  1.  रोगी को सीधा बैठाकर मुँह से श्वास दिलाना चाहिए।
  2. रोगी की नाक व गर्दन के पीछे बर्फ की थैली धीरे-धीरे फिराएँ तथा बर्फ चूसने को दें।
  3. रोगी के पैरों को कुछ समय तक गरम पानी में रखने से शरीर के निचले भागों में रक्त प्रवाह अधिक होता है, जिससे नाक से होने वाले रक्तस्राव में कुछ कमी आती है।
  4.  रोगी की नाक को अँगूठे एवं उँगली के बीच में दबा लें। इस प्रकार लगभग पाँच मिनट तक दबाए रखने से रक्त-स्राव प्रायः रुक जाता है।
  5.  यदि खोपड़ी के पास चोट हो अथवा रक्तस्राव न रुक रहा हो तो रोगी को तत्काल अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था करें।

प्रश्न 4:
घाव कितने प्रकार के होते हैं? इनका उपचार आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
घाव के प्रकार
साधारणत: घाव निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं

(क) कुचले हुए घावे:
हथौड़े, ईंट, पत्थर आदि वस्तुओं की चोट के कारण उँगलियाँ आदि कुचलकर नीली पड़ जाती हैं। इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव कम, परन्तु पीड़ा अधिक होती है।

(ख) कटे धाव:
तेज धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, छुरी व काँच आदि) से कई बार शरीर के विभिन्न भागों के कटने से इस प्रकार के घाव बनते हैं। अधिक गहरे होने पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव अधिक हुआ करता है।

(ग) फटे हुएघाव:
ये घाव सामान्यतः मशीनों, जानवरों के सींगों तथा पंजों आदि के द्वारा होते हैं। इनके किनारे कटे-फटे तथा टेढ़े-मेढ़े होते हैं। इनसे रक्त-स्राव अधिक नहीं होता, परन्तु शरीर में विष फैलने का भय अधिक रहता है।

(घ) गोली का घाव:
इस प्रकार के घाव प्रायः नुकीली वस्तुओं (सुई, काँटे, बल्लम व गोली आदि) के लगने से होते हैं। ऐसे घावों में टिटेनस होने की अधिक आशंका रहती है।

घावों के सामान्य उपचार
उपर्युक्त वर्णित घावों के प्राथमिक उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी सिद्ध होते हैं

  1. कुचले हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से धोकर बर्फ के पानी में भीगी हुई पट्टी बाँधने से लाभ होता है। पीने के लिए ग्लूकोज देने पर पीड़ित व्यक्ति राहत अनुभव करता है।
  2. कटे हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से साफ कर रक्तस्राव रोकने के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए टिंचर आयोडीन, पिसी हुई फिटकरी अथवा टूर्नीकेट का प्रयोग करना चाहिए।
  3.  फटे हुए घावों को नि:संक्रामक घोल से साफ करना चाहिए। अब इस पर सल्फोनेमाइड पाउडर छिड़क कर पट्टी बाँधनी चाहिए। रक्तस्राव होने की स्थिति में उसे रोकने के उपर्युक्त वर्णित उपाय करने चाहिए।
  4. गोली के घाव वाले व्यक्ति के घाव को नि:संक्रामक द्वारा साफ कर रक्तस्राव रोकने के उपाय करने चाहिए तथा रोगी को तत्काल अस्पताल भिजवाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

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प्रश्न 5:
विष खा लेने पर क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
विष खाए व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा-विष का सेवन किए व्यक्ति को तत्काल निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा मिलनी चाहिए.

  1.  रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष के प्रकार का पता चल सके तथा उसके अनुसार उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2.  रोगी को वमन कराना चाहिए, परन्तु क्षारक विष के रोगी को वमन कराना हानिकारक होता है, उसे क्षार प्रतिरोधक का सेवन कराना चाहिए।
  3.  यदि विष अम्लीय है तो रोगी को चूने का पानी, खड़िया मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना चाहिए।
  4. निद्राकारी विष के उपचार में रोगी को सोने नहीं देना चाहिए। इसके लिए उसे तेज चाय अथवा कॉफी पिलानी चाहिए।
  5.  रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना चाहिए।
  6.  रोगी को तत्काल चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए। चिकित्सालय ले जाते समय विष की खाली शीशी अथवा रोगी के वमन को शीशी में रखकर अवश्य ले जाना चाहिए ताकि विष की शीघ्र पहचान हो । सके तथा उपयुक्त विष प्रतिरोधक रोगी को दिया जा सके।
  7. विष से बचने के लिए घर में कभी भी अनावश्यक औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ नहीं रखने चाहिए तथा सभी औषधियों एवं रासायनिक पदार्थों को सावधानीपूर्वक नामांकित करके रखना चाहिए।
  8.  सभी औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ बच्चों की पहुँच से सदैव दूर रहने चाहिए।

प्रश्न 6:
धमनी व शिरा के रक्त-स्राव में क्या अन्तर है? या धमनी एवं शिरा में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

प्रश्न 7:
लू लगने के लक्षण एवं उपचार बताइए।
उत्तर:
लक्षण-ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज किरणों से गरम होकर बहने वाली वायु लू कहलाती है। इसके अधिक समय तक निरन्तर सम्पर्क में आने पर प्रायः व्यक्ति रोगी हो जाते हैं। इस स्थिति को ‘लू लगना’ कहा जाता है। लू से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्यत: रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं

  1. सिर में दर्द होता है तथा चक्कर आते हैं।
  2.  प्यास बहुत लगती है तथा सारे शरीर में खुश्की आ जाती है।
  3.  चेहरा लाल हो जाता है तथा नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है।
  4.  श्वास गति बढ़ जाती है।
  5. रक्तचाप कम हो जाता है।
  6.  तेज ज्वर हो जाता है तथा रोगी को मूच्र्छा आने लगती है।

उपचार:
यदि रोगी को समय पर निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हो जाएँ तो उसे रोग के घातक परिणामों से बचाया जा सकता है

  1.  रोगी को तत्काल छायादार ठण्डे स्थान पर ले जाना चाहिए।
  2. रोगी को बार-बार ठण्डे पानी से नहलाना चाहिए।
  3. रोगी के सिर पर बर्फ की टोपी रखनी चाहिए।
  4. यदि ज्वर पुनः चढ़ता है, तो ठण्डे पानी से स्पन्ज करना चाहिए।
  5.  रोगी के हाथ-पैर पर मेंहदी अथवा प्याज पीसकर लगाने से लाभ होता है।
  6. रोगी को बार-बार कच्चे आम का पन्ना पिलाने से अत्यधिक लाभ होता है।
  7.  गम्भीर अवस्था में रोगी को तत्काल किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

प्रश्न 8:
सदमा पहुँचने से आप क्या समझती हैं? सदमे के लक्षणों एवं प्राथमिक उपचार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
सदमा पहुँचना (shock) भी एक ऐसी दुर्घटना है जो आकस्मिक रूप से घटित हो सकती है। गम्भीर रूप से घायल हो जाने अथवा कोई शोक समाचार सुनते ही व्यक्ति सदमे का शिकार हो सकता है। सदमे की स्थिति में व्यक्ति अत्यधिक शिथिल हो जाता है तथा कभी-कभी मूर्च्छित भी हो, जाता है। व्यक्ति के शरीर की सामान्य क्रियाएँ या तो रुक जाती हैं या धीमी पड़ जाती हैं। ऐसा शरीर में रक्त-संचार के अनियमित हो जाने के कारण होता है।

सदमे के लक्षण:
सदमे के मुख्य सामान्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

  1. सदमाग्रस्त व्यक्ति के मुख पर भय, दुःख अथवा आश्चर्य के भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते
  2.  रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा आँखों की पतलियाँ फैल जाती हैं।
  3. रोगी का शरीर निष्क्रिय या शिथिल हो जाता है। इसके साथ ही शरीर कुछ ठण्डा भी हो जाती है।
  4.  सदमाग्रस्त व्यक्ति के माथे पर ठण्डा पसीना आने लगता है।
  5.  रोगी की नब्ज की गति कभी तेज तथा कभी मन्द होने लगती है अर्थात् नब्ज अनियमित हो जाती
  6.  व्यक्ति का जी मिचलाने लगता है, उल्टियाँ भी हो सकती हैं। प्यास अधिक लगती है।

उपचार:
सदमाग्रस्त व्यक्ति के निम्नलिखित प्राथमिक उपचार किए जाने चाहिए

  1.  सदमाग्रस्त व्यक्ति को बिना तकिया दिए आराम से लिटा दें ताकि मस्तिष्क की ओर रक्त का उचित संचार हो सके।
  2. यदि ठण्ड का मौसम हो, तो रोगी को अधिक ठण्ड से बचाना आवश्यक होता है। यदि मौसम गर्म हो, तो अधिक गर्मी से भी बचाने का उपाय करना चाहिए।
  3.  यदि व्यक्ति मूच्छित हो गया हो, तो उसकी मूच्र्छा को दूर करने के उपाय करने चाहिए। इसके लिए अमोनिया भी सुंघाया जा सकता है।
  4.  रोगी के कुछ सामान्य होने पर गर्म चाय या कॉफी पिलाई जा सकती है।
  5. यदि डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध हो तो उसे तुरन्त बुला लेना चाहिए।

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प्रश्न 9:
आँख में तिनका पड़ जाने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
नेत्र हमारे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी नियमित देखभाल एवं सुरक्षा बहुत आवश्यक है। आँख में यदि धूल के कण अथवा तिनका आदि गिर जाएँ तो निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. प्रभावित आँख को कभी नहीं मलना चाहिए, क्योंकि इससे आँख घायल हो सकती है।
  2. अप्रभावित अथवा दूसरी आँख को हल्के से मलने से लाभ होता है।
  3. नाक को जोर से साफ करने से आँसुओं के साथ धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  4. साफ एवं उबालकर ठण्डा किए हुए पानी को आँख धोने के गिलास में डालकर आँख साफ करें।
  5.  आँखों में एक बूंद रेंडी अथवा जैतून का तेल डालने से आँसुओं के साथ तिनका अथवा धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  6. यदि इतना करने पर आँख साफ न हो सके और पीड़ा बढ़ रही हो, तो तुरन्त नेत्र-चिकित्सक से सम्पर्क करें।

प्रश्न 10:
डूबे मनुष्य को क्या प्राथमिक चिकित्सा देनी चाहिए? या किसी व्यक्ति के पानी में डूबने पर आप क्या उपचार करेंगी? .
उत्तर:
प्रायः मनुष्य या तो तैरते समय अथवा आत्महत्या का प्रयास करने की स्थिति में पानी में डूबते हैं। डूबते हुए व्यक्ति को तत्काल पानी से बाहर निकालकर निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा सहायता देनी चाहिए

  1. पीड़ित व्यक्ति की नाक, कान, गले तथा मुँह इत्यादि से कीचड़ एवं बालू तत्काल साफ करें।
  2.  वस्त्र उतार कर रोगी को उल्टा लटकाएँ। ऐसा करने से उसके मुंह से कुछ पानी बाहर निकल जाएगा।
  3. अब रोगी को पेट के बल अपनी जाँघ पर लिटाओ। इस प्रकार पेट पर दबाव पड़ने से रोगी का । अधिकांश पानी बाहर निकल जाएगा।
  4. पानी बाहर निकलने के बाद रोगी को कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  5. होश में आने पर रोगी को सांत्वना एवं धैर्य बँधाएँ।
  6. यदि रोगी की अवस्था अधिक गम्भीर है तो रोगी को तुरन्त अस्पताल स्थानान्तरित करें।

प्रश्न 11:
साँप के काटने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी? या साँप के काटने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
साँप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा-यह निश्चित होने पर कि साँप ने काटा है, निम्नलिखित उपचार तुरन्त करने चाहिए

  1.  काटे हुए स्थान से विष निकालने के लिए किसी तेज धार वाले ब्लेड या चाकू से घाव को और काटना चाहिए और रक्तस्राव होने देना चाहिए।
  2. सर्पदंश वाले व्यक्ति को सोने नहीं देना चाहिए।
  3. कटे हुए भाग के ऊपर यदि सम्भव हो तो दो या तीन स्थानों पर टूर्नाकेट, कपड़े, सुतली अथवा अन्य किसी डोरी या टाई से कसकर बन्ध लगा देना चाहिए ताकि रुधिर का प्रवाह रुक जाए और विष शरीर में न फैल सके।
  4. दबाकर भी विष निकाला जा सकता है अथवा मुंह से चूसकर अथवा एक छोटे मुँह की बोतल को गर्म करके उस स्थान पर मुँह की ओर से दबाने और बोतल को ठण्डा होने देने से रक्त बोतल में आएगा।
  5.  कोई सर्प विष-रोधक दवा डॉक्टर की सलाह से देनी चाहिए। टिटेनस प्रतिरोधक इन्जेक्शन भी लगवाना चाहिए।

प्रश्न 12:
टिप्पणी लिखिए-बिच्छू द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
बिच्छू द्वारा डंक मारना एक सामान्य घरेलू दुर्घटना है। बिच्छू एक विषैला जन्तु है। वास्तव में बिच्छू काटता नहीं है, बल्कि उसकी पूँछ के सिरे पर डंक रहता है। पूँछ के इसी स्थान में एक थैली के अन्दर विष रहता है। जब किसी व्यक्ति के शरीर में यह अपने डंक को चुभोता है, तो साथ-ही-साथ शरीर में विष को भी प्रवेश करा देता है। बिच्छू के डंक मारने से व्यक्ति को बहुत अधिक पीड़ा होती है, परन्तु कुछ असामान्य दशाओं को छोड़कर सामान्य रूप से बिच्छू का डंक मारना घातक सिद्ध नहीं होता। बिच्छू के डंक मारने के कारण उत्पन्न होने वाले मुख्य लक्षण हैं–तीव्र पीड़ा होना, जी मिचलाना तथा उल्टी होना तथा शरीर में एक प्रकार की (UPBoardSolutions.com) झनझनाहट होना। विष के अधिक फैल जाने की स्थिति में रक्त परिसंचरण धीमा हो जाता है तथा श्वास-गति तेज हो जाती है। शरीर के जिस भाग में बिच्छू द्वारा डंक मारा जाता है, उसके आस-पास अत्यधिक जलन होती है। बिच्छू के डंक मारने की दशा में प्राथमिक उपचार के लिए विष को पूरे शरीर में फैलने से रोकने के लिए टूर्नीकेट बाँध देना चाहिए। डंक के स्थान पर बर्फ लगाने से पीड़ा कम हो सकती है। इसके साथ-साथ डॉक्टर के परामर्श से दवाओं एवं इंजेक्शन का भी प्रयोग करनी चाहिए।

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प्रश्न 13:
टिप्पणी लिखिए-पागल कुत्ते द्वारा काटना।
उत्तर:
कभी-कभी कुत्ते पागल हो जाते हैं। यह पागलपन रेबीज नामक विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है। पागल कुत्ते अकारण ही राह चलते व्यक्ति को काट लेते हैं। पागल कुत्ते द्वारा काटा जाना बहुत हानिकारक होता है। पागल कुत्ते की पहचान बड़ी सरलता से की जा सकती है। उसकी पूँछ हमेशा टाँगों के बीच में झुकी रहती है और उसके मुख की आकृति भयानक हो जाती है। पागल कुत्ते के मुँह से सफेद रंग की झाग निकलती रहती है तथा वह अकारण ही भौंकता रहता है। पागल कुत्ते की । लार में रेबीज नामक विषाणु (UPBoardSolutions.com) व्याप्त हो जाते हैं। जब यह कुत्ता किसी व्यक्ति को काट लेता है, तब कुत्ते की लार के माध्यम से ये विषाणु व्यक्ति के रक्त में मिल जाते हैं। ये विषाणु व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचकर व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देते हैं। रेबीज के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले रोग को हाइड्रोफोबिया कहते हैं। एक बार हाइड्रोफोबिया हो जाने पर उसका कोई उपचार नहीं है तथा रोगी की शीघ्र ही अनिवार्य रूप से मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 14:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी? हाइड्रोफोबिया के लक्षण भी लिखिए।
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक चिकित्सा-यदि किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता, बन्दर, गीदड़ या लोमड़ी आदि कोई भी पशु काट लेता है, तो उस दशा में हाइड्रोफोबिया नामक रोग के हो जाने की आशंका रहती है। इस स्थिति में निम्नलिखित प्राथमिक उपचार अवश्य किया जाना चाहिए.

  1.  पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर घाव को साबुन से पानी द्वारा खूब अच्छी तरह धोना चाहिए। भली-भाँति धोने के उपरान्त घाव पर कार्बोलिक एसिड लगाना चाहिए। इस घाव को खुला रखना चाहिए। अर्थात् पट्टी नहीं बाँधनी चाहिए।
  2.  कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्ति को टिटेनस से बचाव का टीका अवश्य लगवा देना चाहिए।
  3.  उपर्युक्त प्राथमिक उपचार के उपरान्त चिकित्सक के परामर्श के अनुसार व्यक्ति को हाइड्रोफोबिया से बचाव के टीके भी अवश्य लगाए जाने चाहिए। पारम्परिक रूप (UPBoardSolutions.com) से हाइड्रोफोबिया से बचाव के 14 टीके लगते थे, जो कि व्यक्ति के पेट में लगाए जाते थे तथा काफी कष्टदायक होते थे। अब हाइड्रोफोबिया से बचाव के कुछ आधुनिक टीके तैयार कर लिए गए हैं जो बाँह में लगते हैं तथा कम कष्टकारी होते हैं। ये केवल पाँच टीके ही लगाए जाते हैं।

हाइड्रोफोबिया के लक्षण:
रेबीज विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले हाइड्रोफोबिया नामक रोग के मुख्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

(i) हाइड्रोफोबिया की दशा में रोगी के गले में तीव्र पीड़ा होती है, गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय होने लगती हैं, कुछ भी खाने-पीने में कठिनाई होती है तथा किसी वस्तु को निगलना असम्भव हो जाता है।
(ii) रोगी व्यक्ति पानी भी नहीं पी पाता तथा कभी-कभी इस दशा में उसे पानी से भय भी लगने लगता है।

प्रश्न 15:
टिप्पणी लिखिए-कीट ( ब ) द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
शहद की मक्खी, बरें अथवा कुछ अन्य कीटों द्वारा डंक मारने पर व्यक्ति को असहनीय पीड़ा होती है। इन कीटों के शरीर के पिछले भाग में डंक तथा उससे पहले विष की थैली होती है। ये कीट जब व्यक्ति को डंक मारते हैं, तो प्रायः उनका डंक टूट कर व्यक्ति के शरीर में ही रह जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए डंक मारने के उपचार के लिए सर्वप्रथम डंक को निकालने का कार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए (UPBoardSolutions.com) किसी खोखली नली या चाबी से उस स्थान को दबाने अथवा रगड़ने पर डंक निकल जाता है। काटे गए स्थान पर स्प्रिट लगानी चाहिए। इसके उपरान्त खाने का सोडा गीला करके डंक के स्थान पर मलना चाहिए। इससे बरों का विष निष्क्रिय हो जाता है। यदि कीट अधिक विषैला हो तथा विष के फैलने के लक्षण दिखाई दें तो रक्त प्रवाह को बन्ध लगा कर रोकना चाहिए। यदि स्थिति गम्भीर प्रतीत हो तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण लापरवाही या असावधानी तथा अज्ञानता होते हैं।

प्रश्न 2:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं – जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब ज रा, साँप, बिच्छू या बरों द्वारा डंक मार देना, कुत्ते/बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कान में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

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प्रश्न 3:
लू के रोगी को पीने के लिए क्या देना हितकर रहता है?
उत्तर:
लु के रोगी को कच्चे आम का पन्ना पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 4:
लू लगने पर तुरन्त क्या उपचार किया जाना चाहिए?
उत्तर:
रोगी को ठण्डे पानी से नहलाकर प्याज का रस अथवा कच्चे आम का पन्ना पीने को देना चाहिए।

प्रश्न 5:
डबने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम क्या सहायता देनी चाहिए?
उत्तर:
सर्वप्रथम डूबने वाले व्यक्ति के पेट में भरी अतिरिक्त पानी बाहर निकालना चाहिए तथा फिर यदि आवश्यक हो, तो उसे कृत्रिम श्वसन दिलाना चाहिए।

प्रश्न 6:
बच्चे की नाक में कोई वस्तु फैंसने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
नसवार, मिर्च व तम्बाकू आदि सुंघाने पर छींक के साथ प्रायः नाक में फैंसी वस्तु बाहर निकल जाती है। ऐसा न होने पर चिकित्सक से सहायता प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 7:
कटे हुए घावों का क्या प्राथमिक उपचार करोगी?
उत्तर:
कटे हुए घावों को स्वच्छ रुई की सहायता से किसी नि:संक्रामक (एन्टीसेप्टिक) घोल द्वारा साफ कर पट्टी बाँध देनी चाहिए।

प्रश्न 8:
मूच्र्छा दूर करने के प्राथमिक उपाय क्या हैं?
उत्तर:
मूर्च्छित व्यक्ति को हवादार स्थान पर लिटाकर उसके मुंह पर ठण्डे पानी के छींटे लगाने चाहिए अथवा उसे अमोनिया हुँघानी चाहिए।

प्रश्न 9:
रक्त-स्राव होने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
प्रभावित धमनी के दबाव बिन्दु को भली प्रकार दबाना चाहिए। घाव पर पिसी हुई फिटकरी बुकने, टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक-क्लोराइड का घोल छिड़कने से रक्त-स्राव को रोका जा सकता है।

प्रश्न 10:
पागल कुत्ते की क्या पहचान है?
उत्तर:
पागल कुत्ते के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1.  यह अकारण भौंकती रहता है।
  2. उसके मुंह से झाग निकलते रहते हैं।
  3. उसकी पूँछ दोनों टाँगों के बीच झुकी होती है।

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प्रश्न 11:
पागल कुत्ते द्वारा काटे गए रोगी के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर हाइड्रोफोबिया नामक रोग हो जाता है। इस रोग की स्थिति में

  1. रोगी को पानी से डर लगता है,
  2. भोजन अथवा पेय पदार्थ नहीं निगला जाता तथा
  3.  गले में दर्द होता है।

प्रश्न 12:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक उपचार क्या हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर-

  1.  घाव को स्प्रिट से धोकर तथा कार्बोलिक अम्ल से जलाकर विष समाप्त कर देना चाहिए,
  2. तत्काल अस्पताल जाकर विष निरोधक सुई लगवाएँ तथा
  3.  पागल कुत्ते की सूचना तुरन्त नगर के स्वास्थ्य अधिकारी को दें।

प्रश्न 13:
साँप के काटने पर बन्ध क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
साँप के काटने के स्थान से थोड़ा ऊपर कसकर बन्ध लगाया जाता है ताकि रक्त-प्रवाह रुक जाए तथा विष शरीर के अन्य अंगों तक न पहुंचे।

प्रश्न 14:
किन अम्लों से शरीर जल जाता है?
उत्तर:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्लों से शरीर जल जाता है।

प्रश्न 15:
खपच्चियों का प्रयोग कब किया जाना चाहिए?
उत्तर:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अस्थि-भंग वाले अंग के दोनों ओर खपच्चियाँ बाँधना लाभप्रद रहता है, परन्तु कोमल अंगों (पसलियाँ, गर्दन आदि) की अस्थि भंग होने पर खपच्चियाँ प्रयोग में नहीं
लाइ जाती हैं।

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प्रश्न 16:
टूर्नीकेट क्या है? इसका क्या काम है? या टूर्नीकेट से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
निरन्तर हो रहे रक्त-स्राव को रोकने के लिए कपड़ों की पट्टियों से बने पैड द्वारा सम्बन्धित धमनियों पर दबाव डाला जाता है। मुलायम कपड़े का यह पैड टूर्नीकट कहलाता है तथा इसे बाँधकर रक्त-स्राव को रोका जाता है।

प्रश्न 17:
जले हुए स्थान पर लगाने के लिए किन्हीं दो औषधियों के नाम बताओ जो घर पर उपलब्ध हों।
उत्तर:
ये औषधियाँ हैं-बरनॉल तथा नारियल का तेल।

प्रश्न 18:
बिजली का झटका लगने पर तुरन्त उपचार बताइए।
उत्तर:
बिजली की लाइन काटकर रोगी को लकड़ी की मेज या तख्ते पर लिटाना चाहिए।

प्रश्न 19:
एको गृहिणी के पैर में असावधानी के कारण एक सुई घुसकरटूट गइ हो, तो आप क्या व्यवस्था करेंगी?
उत्तर:
चोट लगे स्थान के ऊपर रुधिर प्रवाह रोकने के लिए पानी या बर्फ का भीगा कपड़ा कसकर बाँध देंगे तथा डॉक्टर को बुलाएँगे।

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प्रश्न 20:
यदि किसी व्यक्ति के कान में कीट घुस गया हो, तो उसे आप कैसे निकालेंगी?
उत्तर:
कान में किसी कीट के घुसे जाने पर हाइड्रोजन परॉक्साइड डालने से कीट निकल जाता है। तथा हल्का गर्म सरसों का तेल डालकर उल्टा करने से भी कीट निकल जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) सामान्य दुर्घटनाएँ घटित होती हैं
(क) दैवी कृपा से,
(ख) भाग्यवश,
(ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(घ) अज्ञात कारणों से।

(2) पागल कुत्ते के काटने से होने वाला रोग है
(क) हिस्टीरिया,
(ख) मिरगी,
(ग) रक्तस्राव,
(घ) हाइड्रोफोबिया।

(3) क्षार से जल जाने पर ज़ले हुए भाग पर लगाना चाहिए
(क) बरनॉल,
(ख) डिटॉल,
(ग) प्याज का रस,
(घ) नीबू का रस

(4) अम्ल से जल जाने पर लगाना चाहिए
(क) नींबू का रस,
(ख) सिरका,
(ग) खाने का सोडा,
(घ) कुछ भी नहीं।

(5) जले हुए व्यक्ति को पीने के लिए देना चाहिए
(क) मद्य,
(ख) मद्यरहित पेय,
(ग) दोनों ही,
(घ) दोनों ही नहीं।

(6) हाथ या टाँग के घाव से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है
(क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(ख) स्प्रिट का प्रयोग,
(ग) खपच्चियों का प्रयोग,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

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(7) आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए क्या प्राथमिक उपचार किया जाता है?
(क) बर्फ की थैली रखना,
(ख) गीले कपड़े में लपेटना,
(ग) टूर्नीकेट का प्रयोग करना।
(घ) कोई उपचार नहीं।

(8) जलने पर रोगी का उपचार है
(क) डिटॉल लगाना,
(ख) पिसी आलू लगाना,
(ग) पिसा नमक लगाना,
(घ) गर्म तेल।

(9) किस रक्त-नलिका के कट जाने से लगातार रक्त बहता है?
(क) शिरा,
(ख) नाड़ी,
(ग) तन्तु,
(घ) धमनी।

(10) सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर लगाते हैं
(क) बरनॉल,
(ख) लाल मिर्च,
(ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(घ) नौसादर।

(11) डिटॉल का मुख्य कार्य है
(क) जलन को दूर करना,
(ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(ग) मूच्र्छा दूर करना,
(घ) रक्त-स्राव बन्द करना।

(12) मिरगी या हिस्टीरिया के कारण मूच्र्छा आने पर प्रथम उपचार है
(क) रोगी के मानसिक कष्ट को दूर करना,
(ख) पुराना जूता सुंघाना,
(ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(घ) पीली मिट्टी हुँघाना।

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(13) नाक से रक्त-स्त्राव होने पर
(क) जूता सुंघाना चाहिए,
(ख) पीली मिट्टी सुंघा देनी चाहिए,
(ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए,
(घ) घायल को उल्टा लिटा देना चाहिए।

उत्तर:

(1) (ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(2) (घ) हाइड्रोफोबिया,
(3) (घ) नीबू का रस,
(4) (ग) खाने : का सोडा
(5) (ख) मद्यरहित पेय,
(6) (क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(7) (क) बर्फ की थैली रखना,
(8) (ख) पिसा आलू लगाना,
(9) (क) शिरा,
(10) (ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(11) (ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(12) (ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(13) (ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 पुण्यसलिलागङ्गा (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 पुण्यसलिलागङ्गा (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 पुण्यसलिलागङ्गा (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 14
Chapter Name पुण्यसलिलागङ्गा (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 पुण्यसलिलागङ्गा (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

गंगा का महत्त्व-गंगा का संसार की सभी नदियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह भारतीयों के लिए जीवनदायिनी है, सुख-शान्ति और समृद्धि प्रदान करने वाली है। इसमें स्नान करने, जल पीने अथवा इसका नाम लेने मात्र से भी मनुष्य धन्य हो जाता है। इसके सम्पर्क मात्र से मनुष्य के दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों ताप (कष्ट) नष्ट (समाप्त) हो जाते हैं।

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उद्गम-गंगा हिमालय के दो स्थानों से निकलती है। इसकी एक धारा उत्तरकाशी में गोमुख से उत्पन्न होकर भागीरथी कहलाती है और दूसरी धारा जो चमोली जिले के अलकापुरी में बर्फ पिघलने से निकलती है, ‘अलकनन्दा’ नाम से प्रसिद्ध हुई। देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनन्दा की धारा ने एक होकर ‘गंगा’ नाम धारण कर लिया। । पौराणिक स्वरूप-पुराणों के अनुसार स्वर्ग में ‘देवी गंगा ब्रह्मा के कमण्डल में द्रवीभूत रूप में स्थित थी। फिर भगीरथ के तप के प्रभाव से राजा सागर के साठ हजार भस्मीभूत पुत्रों का उद्धार करने हेतु (UPBoardSolutions.com) पृथ्वी पर आयी और ‘भागीरथी’ कहलाने लगी। भगवान् विष्णु के चरणों के नखों से उत्पन्न होने के कारण इसे ‘विष्णु-नदी’ कहते हैं। भगीरथ के मार्ग का अनुसरण करते हुए महामुनि जह्न की यज्ञस्थली को डुबोने के कारण कुपित जह्न ने गंगा के जल को पी लिया था, लेकिन देवताओं और ऋषियों द्वारा प्रसन्न किये जाने पर उन्होंने इसे कर्ण-विवर से भूमि पर गिरा दिया था; अत: ‘जाह्नवी नाम से प्रसिद्ध हुई।

नाम की सार्थकता-‘गम्’ धातु में गन् प्रत्यय और स्त्रीलिंग के ‘टाप् प्रत्यय के योग से ‘गंगा’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है–निरन्तर गतिशील रहना। निरन्तर बहते रहने के कारण ही इस नदी का ‘गंगा’ नाम सार्थक है।। | गंगा का उपकार-गंगा हिमालय की दुर्लंघ्य चट्टानों को चूर्ण करती हुई, सघन वनों की बाधाओं को पार कती हुई, गुफाओं में प्रवाहित होती हुई, पर्वत की तलहटियों में वेग से बहती हुई, ऊँचे-नीचे पर्वत प्रदेशों को लाँघती हुई हरिद्वार से समतल प्रदेश में आती है। भारतभूमि को धन-धान्यसम्पन्न बनाने के लिए गंगा का महान् उपकार है। गंगा कृषिप्रधान भारत देश में अन्नोत्पादन में जितनी सहायता करती हैं, उतनी सहायता अन्य कोई नदी नहीं करती। इसके तटीय प्रदेशों में उत्पन्न वनस्पतियों और ओषधियों के अवर्णनीय लाभ हैं। इस प्रकार गंगा हमारे लिए बहुत ही उपयोगी नदी है।

प्राकृतिक शोभा-गंगा की प्राकृतिक शोभा सबके चित्त को प्रसन्नता प्रदान करती है। इसके तटवर्ती देखने योग्य स्थानों को देखकर विदेशी पर्यटक भी इसकी प्रशंसा करते हैं। सूर्य की किरणों और चन्द्रमा की रश्मियों से इसके जल की शोभा अत्यधिक बढ़ जाती है। गंगा-तटों पर स्थित घाटों की निराली शोभा को देखकर अपरिमित सुख और शान्ति मिलती है।

तीर्थस्थल और गंगा की पवित्रता-गंगा के तट पर बदरीनाथ, पञ्चप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, पढ़मुक्तेश्वर, तीर्थराज प्रयाग, वाराणसी आदि तीर्थस्थान हैं। आदिकवि वाल्मीकि और ऋषि भरद्वाज के आश्रम भी गंगा के तट पर ही थे। गंगा-तट रामानुज, कबीर, तुलसी आदि महापुरुषों के प्रेरणा-स्थल रहे हैं। गुरु तेगबहादुर ने इसी के तट पर घोर तप किया था। श्रृंगेरी मठ में स्थित शिव-विग्रह पर गंगा का जल चढ़ाना (UPBoardSolutions.com) महान् पुण्य-कार्य समझा जाता है। । हिमालय से समुद्र तक गंगा के तट पर स्नान, देवाराधना, दान, यज्ञ आदि पुण्यप्रद कार्य होते हैं। हरिद्वार और प्रयाग में कुम्भ स्नान, वाराणसी में भगवान् विश्वनाथ के दर्शन का लाभ पुण्यात्मा ही प्राप्त करते हैं। इसके तीर्थों पर धर्मशास्त्र, वेद, पुराणादि का पठन-पाठन और व्याख्यान होता है। देश-देशान्तर से आये हुए धनी-निर्धन, साधारण-असाधारण भक्तजन एक ही घाट पर स्नान करते हैं-इस प्रकार यह गंगा भारत की एकता और अखण्डता को दृढ़ बनाती है।

ऐतिहासिक महत्त्व-गंगा के तट पर काशी में रघुवंशी राजाओं ने विश्व-विजय के बाद अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रयाग में इसी के तट पर आयोजित मेले में महाराज हर्षवर्धन अपने शरीर के वस्त्रों को छोड़कर याचकों को सर्वस्व दान दे देते थे। हस्तिनापुर, कन्नौज, प्रतिष्ठानपुर, पाटलिपुत्र (पटना), काशी आदि इसी के तटों पर स्थित नगर प्राचीनकाल में प्रसिद्ध राजाओं की राजधानी थे।

औद्योगिक महत्त्व-आधुनिक काल में गंगा के तट पर अनेक औद्योगिक संस्थान हैं जिनमें इसकी विशाल जलराशि का सदुपयोग होता है। इसके जल-प्रवाह की सहायता से विद्युत-निर्माण होता है। इसी के तट पर बुलन्दशहर जिले के नरौरा’ नामक स्थान पर अणुशक्ति से संचालित विद्युत्-गृह है।

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विशेषताएँ–गंगा का जल स्वच्छ, शीतल, प्यास बुझाने वाला, पीने में स्वादिष्ट और रुचिवर्द्धक, रोगनाशक और कभी खराब न होने वाला होता है। वैज्ञानिकों ने जल की परीक्षा करके सिद्ध कर दिया है कि गंगा-जल में रोग के जीवाणु स्वयं नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू लोग गंगा के पवित्र जल को घरों में रखते हैं और देवी-देवताओं के पूजन-कार्य में इसका उपयोग करते हैं। यह जल बहुत समय तक भी दूषित नहीं होता है। मरणासन्न व्यक्ति के गले में इसके जल को औषध के रूप में डाला जाता है। । जल-प्रदूषण की समस्या–भारत देश का दुर्भाग्य है कि लोग स्वार्थ के कारण गंगा के जल को प्रदूषित करते जा रहे हैं। बड़े उद्योगों के रासायनिक अपशिष्ट इसके (UPBoardSolutions.com) जल में घुलकर इसे दूषित कर रहे हैं। बड़े नगरों की समस्त गन्दगी को गंगा के जल में ही मिला दिया जाता है। मरे हुए पशु और मानवों के शव गंगा के जल में प्रवाहित कर दिये जाते हैं। गंगा के तट पर स्थित मन्दिरों और धर्मशालाओं में समाज-विरोधी तत्त्व प्रवेश कर अनैतिक कार्य करते हैं। लोग प्रमाद और अज्ञान के कारण लोक-कल्याणकारी गंगा के जल को दूषित कर अमृत में विष घोल रहे हैं। सबको पवित्र करने वाली गगा अब अपनी शुद्धि के लिए मानवे का मुंह ताक रही है।

प्रदूषण दूर करने का प्रयास–प्रदूषित गंगा के जल के प्रदूषण को दूर करने के लिए भारत सरकार ने केन्द्रीय विकास प्राधिकरण की स्थापना की है। सिनेमा, दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्र आदि संचार माध्यमों के माध्यम से गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए जनचेतना जाग्रत की जा रही है, परन्तु सरकार ही अकेले इस महान् कार्य को नहीं कर सकती। इसमें बालक, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी के सहयोग की परम आवश्यकता है।

यदि मन-वचन-काय और पूरी निष्ठा से गंगा के प्रदूषण को दूर करने का संकल्प करें तो गंगा की पावनता की रक्षा हो सकती है।

शोंगद्यां का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) गङ्गायाः न केवल भारतवर्षे, अपितु निखिलविश्वस्य नदीषु महत्त्वपूर्ण स्थानं क्र्तते। इयं खलु भारतीयप्राणिनां जीवनप्रदा सुखशान्तिसमृद्धिविधायिनी च नदीति नास्ति सन्देहकणिकावलेशः। यतो हि भारतीयानां मतानुसारमियं न केवलमैहिकानि सुखान्येव वितरति परञ्च -पारलौकिकं लक्ष्यमपि (UPBoardSolutions.com) पूरयति। सुरधुन्यामस्यामवगाहनेन जलस्पर्शेन अथ च नामसङ्कीर्तनमात्रेण मानवो धन्यो जायते। ‘गङ्गा तारयति वै पुंसां दृष्टा, पीताऽवगाहिता’ इति श्रद्धाभावनया मुमुक्षुः गङ्गातीरमाश्रित्य सर्वदास्याः कृपामीहते। सत्यम् , मनुजस्य दैहिकदैविक भौतिकतापत्रयमस्याः सम्पर्कमात्रेण विनश्यति। तथा चोक्तम्| गङ्गां पश्यति यः स्तौति स्नाति भक्त्या पिबेज्जलम् ।से स्वर्गज्ञानममलं योगं मोक्षं च विन्दति ॥

शब्दार्थ
निखिलविश्वस्य = सम्पूर्ण संसार की।
खलु = निश्चय ही।
जीवनप्रदा = जीवन प्रदान करने वाली।
विधायिनी = करने वाली।
कणिकावलेशः = कणभर भी।
यते हि = क्योंकि।
ऐहिकानि = सांसारिक।
पूरयति = पूरा करती है।
सुरधुन्याम् = गंगा में।
अगाहनेन = स्नान करने से।
सङ्कीर्तन = कथन, वर्णन।
मुमुक्षुः = मोक्ष-प्राप्त करने का इच्छुक।
ईहते = चाहता है।
विनश्यति = नष्ट हो जाता है।
अमलं = पवित्र
विन्दति = प्राप्त करता है।

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘पुण्यसलिला गङ्गा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।
[संकेत–इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा की महिमा का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
गंगा का केवल भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार की नदियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह निश्चय ही भारतीय प्राणियों को जीवन, सुख, शान्ति और समृद्धि को प्रदान करने वाली  
नदी है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है; क्योंकि भारतीयों के मत के अनुसार यह केवल ऐहिक (सांसारिक) सुखों को ही नहीं देती है, अपितु पारलौकिक लक्ष्य को भी पूर्ण करती है। इस गंगा नदी में स्नान करने से, जल का स्पर्श करने से और नाम का उच्चारण करनेमात्र से मनुष्य धन्य हो जाता है। | ‘निश्चय ही पुरुषों की देखी गयी, पान की गयी, स्नान की गयी गंगा (UPBoardSolutions.com) सांसारिक कष्टों से छुटकारा देकर मोक्ष प्रदान करती है। ऐसा श्रद्धा की भावना से मोक्ष-प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति गंगा के तट पर पहुँचकर सदा इसकी कृपा चाहता है। सत्य ही, मनुष्य के दैहिक (शारीरिक), दैविक और भौतिक तीनों ताप इसके समागम से नष्ट हो जाते हैं। जैसा कि कहा है–

जो (मनुष्य) भक्ति से गंगा को देखता है, स्तुति करता है, स्नान करता है और जल पीता है; वह निर्मल स्वर्ग, ज्ञान, योग और मोक्ष को प्राप्त करता है। |

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(2) सुरधुनीयम् आदौ हिमवतः स्थानद्वयात् निःसृता। धारैका भारतस्योत्तराखण्डे उत्तरकाशीजनपदे गोमुखात् प्रसूता भागीरथी। द्वितीया’चमोली’ जनपदे अलकापुर्या हिमप्रस्रवणात् निर्गतालकनन्देति विदिता। गङ्गोत्रीभागीरथ्योः उद्गमस्थले विस्तृता सुरम्या वनस्थली प्रथिता। देवप्रयागे भागीरथ्यलकनन्दयोः सङ्गमानन्तरं संयुक्तधारा ‘गङ्गा’ इति लोके प्रसिद्धा। वेदपुराणादीनां मतेन पुरा देवी’ रूपा गङ्गा स्वर्गे एव वसति स्म।द्रवीभूताचसा विधातुः कमण्डलौ संस्थिता। कपिलमुनिशापेन भस्मीभूतषष्टिसहस्रसगरपुत्रान् समुद्धर्तु (UPBoardSolutions.com) भगीरथस्य तपःप्रभावेण वसुन्धरामानीता लोके भागीरथी’ इति नाम्ना ख्याता। भगवतः विष्णोः पदनखोद्भूता अतः विष्णुनही इति ज्ञाता। भगीरथस्य वत्मनुसरतीयं गिरिगह्वरकोनननगरग्रामान्प्लावयन्ती महामुनेः जह्रोः यज्ञस्थली प्लवयितुमारभत। सञ्जातक्रोधः मुनिः निखिलं जलप्रवाहे क्षणमात्रेणापिबत्। भग्नमनोरथः नृपः रुष्टं महामुनिं प्रसादयितुं प्रायतत। देवानामृषीणां तस्या- राधनेन च विगतक्रोधो महात्मा कर्णरन्ध्राभ्यामशेषमुदकं निष्कास्य वसुन्धरायां पातयामास, अतएव जाह्नवीति प्रसिद्धा।

शब्दार्थ
सुरधुनी = गंगा का एक.नाम।
आदौ = प्रारम्भ में।
हिमवतः = हिमालय के।
धारैका = एक धार।
प्रसूता = उत्पन्न हुई।
प्रस्रवणात् = पिघलने से।
निर्गता = निकली।
प्रथिता = प्रसिद्ध
विधातुः = ब्रह्माजी के।
षष्टिसहस्र = साठ हजार।
वसुन्धराम् आनीता = धरती पर लायी गयी।
ख्याता = प्रसिद्ध हुई।
ज्ञाता = जानी गयी।
वत्र्मानुसरन्ती = मार्ग का अनुसरण करती हुई।
प्लावयन्ती = डुबोती हुई।
जह्रोः = जह्न की।
सञ्जतक्रोधः = क्रोधित हुए।
निखिलं = सम्पूर्ण को।
रुष्टम् = क्रोधित हुए।
प्रसादयितुम् = प्रसन्न करने के लिए।
प्रायुतत = प्रयत्न किया।
कर्णरन्ध्राभ्यामशेषमुदकं (कर्ण + रन्ध्राभ्याम् + अशेषम् + उदकम्) = कानों के दोनों क्षिद्रों से पूरे जल को।
निष्कास्य = निकालकर
पातयामास = गिरा दिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के उद्गम स्थान के साथ-साथ भागीरथी, अलकनन्दा, विष्णुनदी, जाह्नवी, आदि नामों के प्रसिद्ध होने का कारण बताया गया है।

अनुवाद
यह गंगा प्रारम्भ में हिमालय के दो स्थानों से निकली। एक धारा भारत के उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी जिले में गोमुख (स्थान का नाम) से उत्पन्न हुई ‘भागीरथी’ कहलायी। दूसरी (धारा) चमोली जिले में अलकापुरी में बर्फ के पिघलने से निकली ‘अलकनन्दा’ जानी गयी। गंगोत्री और भागीरथी के उद्गम स्थान पर फैली हुई सुन्दर वनस्थली प्रसिद्ध है। ‘देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनन्दा के मिलने के पश्चात् मिली हुई धारा ‘गंगा’ इस नाम से संसार में प्रसिद्ध है। वेद, पुराण

आदि के मतानुसार पहले देवी के रूप में गंगा स्वर्ग में ही रहती थी। पिघली हुई वह ब्रह्माजी के ‘कमण्डल में स्थित थी। कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए साठ हजार सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिए भागीरथ के तप के प्रभाव से पृथ्वी पर लायी हुई ‘भागीरथी’ इस नाम से संसार में प्रसिद्ध हुई। भगवान् विष्णु के पैरों के नाखूनों से उत्पन्न हुई, अतः ‘विष्णुनदी’ जानी गयी। भगीरथ के मार्ग का अनुसरण करती हुई, यह (UPBoardSolutions.com) पर्वतों, गुफाओं, वनों, नगरों और ग्रामों को डुबोती हुई इसने महामुनि जहू की यज्ञस्थली को डुबोना प्रारम्भ कर दिया। क्रोधित हुए मुनि ने सम्पूर्ण जल के प्रवाह को क्षणभर में ही पी लिया। मनोरथ नष्ट हुए राजा ने क्रुद्ध महामुनि को प्रसन्न करने का प्रयत्न किया। देवों और ऋषियों की उसकी (जह्न) आराधना से क्रोधरहित हुए महात्मा ने कानों के छिद्र से सम्पूर्ण जल को निकालकर पृथ्वी पर गिरा दिया। इसीलिए ‘जाह्नवी’ नाम से प्रसिद्ध हुई।।

(3) गङ्गेति नाम सहजं सार्थकञ्च। गम् धातोः औणादिकं गन् प्रत्यये सति स्त्रीत्वात् टापि ‘गङ्गा’ शब्दा निष्पद्यते। अतः सततगमशीलत्वात् ‘गङ्गा’ इति नाम सर्वथाऽन्वर्थम्।

शब्दार्थ
निष्पद्यते = निष्पन्न (पूर्ण) होता है, सिद्ध होता है।
सर्वथान्वर्थम् (सर्वथा + अनु +अर्थम्) = सभी प्रकार अर्थ के अनुसार।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा का व्युत्पत्तिपरक अर्थ दिया गया है।

अनुवाद
‘गंगा’ यह नाम स्वाभाविक और सार्थक है। ‘गम्’ धातु से औणादिक ‘गन्’ प्रत्यय लगाने पर स्त्रीलिंग होने से ‘टाप् प्रत्यय लगाने पर ‘गंगा’ शब्द निष्पन्न होता है। अतः निरन्तर | गमनशील होने के कारण ‘गंगा’ यह नाम अर्थ के अनुसार है। |

(4) इयञ्च गङ्गा हिमालयस्य दुर्लङ्घ्यप्रस्तरखण्डानि चूर्णयन्ती सघनवनानामवरोधं त्रोटयन्ती, गिरिगह्वरेषु प्रविशन्ति उपत्यकाधित्यकासु द्रुतगत्या विहरन्ती नतोन्नतपर्वत-प्रदेशान् लड्यन्ती हरिद्वारे समतलप्रदेशे निर्बाधतया प्रवहति। आर्यावर्तस्य धरित्रीं शस्य-श्यामलां निर्मातुं गङ्गायाः उपकारः अनिर्वचनीयः।।

शब्दार्थ
दुर्लङ्घ्य = कठिनाई से लाँघने योग्य।
प्रस्तरखण्डानि = पत्थर के टुकड़े।
चूर्णयन्ती = चूर-चूर करती हुई।
त्रोटयन्ती = तोड़ती हुई।
गिरिगह्वरेषु = पर्वत की गुफाओं में।
द्रुतगत्या = तेज चाल से।
नतोन्नतपर्वतप्रदेशान् = नीचे-ऊँचे पर्वत के भागों को।
लङ्घयन्ती = लाँघती हुई।
निर्माते = बनाने के लिए।
अनिर्वचनीयः = कहा न जा सकने वाला, अकथनीय

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दुर्लंघ्य पत्थरों को चूर्ण करके, रुकावटों को हटाकर बहती हुई गंगा के | उपकारों का वर्णन किया गया है

अनुवाद
और यह गंगा हिमालय के कठिनाई से लाँगने  योग्य पत्थरों के टुकड़ों को चूर्ण करती. – हुई, घने वनों की रुकावट को तोड़ती हुई, पर्वतों की गुफाओं में प्रवेश करती हुई, पर्वतों की निचली = और ऊपरी भूमि पर तीव्रगति से विहार करती हुई, नीचे-ऊँचे पर्वत के प्रदेशों को लाँघती हुई हरिद्वार में = समतल भाग में बाधारहित होकर बहती है। आर्यावर्त (भारतवर्ष) की भूमि को हरा-भरा बनाने में गंगा 
का उपकार कहा नहीं जा सकता। 

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(5) वस्तुतः देहः अन्नमयः कोषः कृषिश्चान्नस्य मूलम्। कृषिप्रधाने भारते देश गङ्गा – कृषिभूमिं सिञ्चन्ती अन्नोत्पादने यावत् साहाय्यं वितरति तावन्नान्या कापि सरित्। अस्याः क्षेत्रे  समुत्पन्नानां वनस्पतीनामुपकाराः ओषधीनां लाभाश्च अनिवर्चनीय।

शब्दार्थ
समुत्पन्नानां वनस्पतीनाम् = उत्पन्न हुई वनस्पतियों का।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा की कृषि-उपज में वृद्धि करने के गुण का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
वास्तव में शरीर अन्नमय कोष है और कृषि अन्न का मूल है। कृषिप्रधान भारत देश में = गंगा कृर्षि की भूमि को सींचती हुई अन्न के उत्पादन में जितनी सहायता देती है, उतनी दूसरी कोई नदी नहीं। इसके क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले वनस्पतियों के उपकार और ओषधियों के लाभ अकथनीय हैं। |

(6) गङ्गायाः प्रकृतिमनोहारिणी नैसर्गिकी च शोभा सर्वेषां चित्तमाह्लादयति। हृदयहरिणीमम्बुछटा दशैं दशैं मनः मुग्धं भवति। तटवर्तिनां दर्शनीयस्थानानां शोभां द्रष्टुं देशीयाः। विदेशीयाश्च पर्यटकाः नित्यमिमां सेवन्ते। दिवाकरकिरणैः निशाकररश्मिभिश्च जलस्य शोभा | नितरां वर्धते। गङ्गायाः कूले हरिद्वारे, प्रयागे काश्याञ्च घट्टेषु जलसौन्दर्यं मुहुर्मुहुः वीक्षमाणाः – जनाः अनिवर्चनीयं सुखं शान्ति चानुभवन्ति।

शब्दार्थ
नैसर्गिकी = स्वाभाविक, प्राकृतिक।
आह्लादयति = प्रसन्न करती है।
अम्बुच्छटाम् = जल की शोभा को।
रश्मिभिः = किरणों से।
नितराम् = अत्यधिक।
कूले = किनारे।
मुहुर्मुहुः = बार-बार।
वीक्षमाणाः = देखते हुए।
अनुभवन्ति = अनुभव करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा की शोभा का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
गंगा की प्रकृति से ही मनोहारिणी और स्वाभाविक शोभा सबके चित्त को प्रसन्न करती है। हृदय को आकृष्ट करने वाली जल की शोभा को देख-देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। तट पर | स्थित देखने योग्य स्थानों की शोभा को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक सदा इसके पास बने (UPBoardSolutions.com) रहते हैं (अर्थात् इसके तटीय स्थलों पर ही रहते हैं)। सूर्य की किरणों और चन्द्रमा की रश्मियों में जल 
की सुन्दरता बहुत अधिक बढ़ जाती है। गंगा के किनारे हरिद्वार, प्रयाग और काशी में घाटों पर जल के सौन्दर्य को बारम्बार देखते हुए लोग अकथनीय सुख और शान्ति का अनुभव करते हैं।

(7) गङ्गायाः पावने कूले नैकानि तीर्थस्थानानि वर्तन्ते। तत्र बदरीनाथः, विष्णुनन्दकर्णरुद्रदेवादिपञ्चप्रयागाः ऋषिकेशहरिद्वारगढमुक्तेश्वरतीर्थराजप्रयागवाराणसीत्यादीनि तपः पूतानि अनेकानि तीर्थस्थानानि चिरकालाद् अध्यात्मचिन्तकांनृषींश्च आकर्षयन्ति। आदिकवेः । वाल्मीकेः भरद्वाजर्वेश्चाश्रमौ अस्याः तीरे आस्ताम्। श्रद्धाभाजनानां रामानुज-वल्लभ-कबीरतुलसी-प्रभृति महापुरुषाणां गङ्गातटमेव प्रेरणास्थलम्। वन्दनीयो गुरुतेग-बहादुरः अस्याः पावने पुलिने घोर तपश्चचार। शङ्कराचार्यसंस्थापिते शृङ्गेरीमठे विघ्नेश्वरीय शिवाय गङ्गोदकार्पण महत्पुण्यमिति सर्वेऽपि श्रद्धया स्वीकुर्वन्ति। |

शब्दार्थ
नैकानि = अनेक।
तपःपूतानि = तपस्या से पवित्र।
अध्यात्मचिन्तकान् = आध्यात्मिक (ईश्वर से सम्बद्ध) चिन्तन करने वालों को।
आकर्षयन्ति = आकर्षित करते हैं।
आस्ताम् = थे।
पुलिने = किनारे पर।
विघ्नेश्वराय = विघ्न-बाधाओं के ईश्वर (शंकर) के लिए।
गङ्गोदकार्पणम् (गङ्गा + उदक + अर्पणम्) = गंगा-जल का अर्पण।
स्वीकुर्वन्ति = स्वीकार करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के किनारे पर स्थित तीर्थ-स्थानों और उसके माहात्म्य का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
गंगा के पवित्र किनारे पर अनेक तीर्थस्थान हैं। उनमें बद्रीनाथ, विष्णु-नन्द-कर्णरुद्र-देव आदि पाँच प्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, तीर्थराज प्रयाग, वाराणसी आदि तप से पवित्र अनेक तीर्थस्थान चिरकाल से अध्यात्म का चिन्तन करने वालों और ऋषियों को आकृष्ट करते हैं। आदिकवि वाल्मीकि और भरद्वाज ऋषि के आश्रम इसके किनारे पर थे। श्रद्धा के पात्र रामानुज, वल्लभाचार्य, कबीर, तुलसी आदि महापुरुषों का प्रेरणा का स्थान गंगा का तट ही रहा है। वन्दना के योग्य गुरु तेगबहादुर ने इसके पवित्र रेत के तट (टीले) पर घोर तप किया था। शंकराचार्य के द्वारा स्थापित शृंगेरी मठ में विघ्नों का नाश करने वाले शिव को गंगा का जल चढ़ाना महान् पुण्य है’, ऐसी सभी श्रद्धा से स्वीकार करते हैं। |

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(8) यद्यपि आहिमालयात् सागरपर्यन्तं गङ्गाजले सर्वत्रापि स्नानं तीरे च देवाराधनयज्ञदानादिकर्माणि श्रेयस्कराणि किन्तु तीर्थस्थानेषु सम्पादितं कृत्यं तु बहुपुण्यप्रदम्। हरिद्वारे, त्रिवेण्याः सङ्गमे च कुम्भस्नानं वाराणस्यां दशाश्वमेधघट्टे जलावगाहानन्तरं गङ्गचूडविश्वनाथस्य दर्शनं केचित् सुकृतिनः एव लभन्ते। तीर्थस्थानेषु प्रतिदिनं वेदपुराणशास्त्रादिमानवकल्याणकारिणां ग्रन्थानामध्ययनमध्यापनं व्याख्यानं च भवन्ति। धर्मशास्त्रविषयकालापेषु सद्विचारस्य सौहार्दस्य मानवैकतायाः च आदर्शः पदे पदे (UPBoardSolutions.com) दृश्यते। देशदेशान्तरागतः सधनः निर्धनः सामान्यो विशिष्टो वा सर्वे एकस्मिन्नेव घट्टे स्नानं कुर्वन्ति। एवंविधायाः भारतीयसंस्कृतेः सभ्यतायाश्च समाजवादं विलोक्य विदेशीयाः आश्चर्यान्विताः भवन्ति। गङ्गा समस्तं भारतं राष्ट्रियैक्यस्याखण्डतायाश्च सूत्रे बद्ध्वा राष्ट्रं सुदृढीकर्तुं महती भूमिका निर्वहति।।

शब्दार्थ
आहिमालयात् = हिमालय से लेकर।
श्रेयस्कराणि = कल्याण करने वाले।
कृत्यम् = कार्य।
बहुपुण्यप्रदम् = अत्यन्त पुण्य देने वाला।
जलावगाहानन्तरम् = जल में स्नान करने के बाद।
गङ्गचूड = जिसके मस्तक पर गंगा है (शिव)।
सुकृतिनः = पुण्यात्मा।
पदे-पदे दृश्यते = कदम-कदम पर दिखाई देता है।
घट्टे = घाट पर।
बद्ध्वा = बाँधकर।
सुदृढीकर्तुम् = सुदृढ़ करने के लिए।
निर्वहति = निभाती है।

प्रसंग
गंगा के तंटों और घाटों पर स्थित तीर्थों पर स्नान करना पुण्यप्रद है। गंगा भारत को एक सूत्र में बाँधने का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है, प्रस्तुत गद्यांश में इन्हीं तथ्यों को आलोकित किया गया है।

अनुवाद
यद्यपि हिमालय से समुद्र तक गंगा के जल में सभी जगह स्नान करना और किनारे पर देवों की आराधना, यज्ञ, दान आदि कार्य (सम्पन्न करना) कल्याणकारी हैं, किन्तु तीर्थस्थानों पर किया गया कार्य बहुत पुण्य देने वाला है। हरिद्वार में और त्रिवेणी के स्नान, वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर जल में स्नान करने के बाद भगवान् गंगचूड़ (गंगा है मस्तक पर जिसके) विश्वनाथ के दर्शन कुछ पुण्यात्मा ही प्राप्त करते हैं। तीर्थस्थानों पर प्रतिदिन वेद, पुराण, शास्त्र आदि मानवों का कल्याण करने वाले ग्रन्थों का पठन-पाठन और व्याख्यान होता है। (UPBoardSolutions.com) धर्मशास्त्र के विषयों में सद्विचार, सौहार्द और मानव की एकता को आदर्श पद-पद पर दिखाई देता है। देश-देशान्तरों से आये हुए धनी, निर्धन, साधारण या असाधारण संब एक ही घाट पर स्नान करते हैं। इस प्रकार की भारतीय संस्कृति और सभ्यता को समाजवाद देखकर विदेशी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। गंगा समस्त भारत को राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के सूत्र में बाँधकर राष्ट्र को सुदृढ़ करने के लिए बड़ी भूमिका निभाती है।

 (9) गङ्गायाः तटे नैकाः विशिष्टाः ऐतिहासिकस्मरणीयाश्च घटनाः सञ्जाताः। रघु-वंशीयाः नृपतयः निखिलविश्वविजयानन्तरं काश्यां दशाश्वमेधघट्टे अश्वमेधः यज्ञानकुर्वन्। तीर्थराजे प्रयागे आयोजिते मेलापके हर्षवर्धनः स्वपरिधानं व्यतिरिच्य सर्वसम्पदं याचकेभ्यः ददाति स्म।अस्या क्रोडे विविधानि राज्यानि उत्कर्षस्य पराकाष्ठां सम्प्राप्य ह्रासमुपगतानि, हस्तिनापुरकान्यकुब्ज-प्रतिष्ठानपुर-काशी-पाटलिपुत्रादीनि नगराणि राजधानीगौरवमावहन्ति स्म। ऐति- ।। हासिकनगराणां निर्माणे विशिष्टघटनानां सङ्टने च गङ्गाप्रवाहस्य भूमिको नाल्पीयसी।

शब्दार्थ
नैकाः = बहुत से।
स्मरणीयाः = स्मरण करने योग्य।
सञ्जाताः = हुई।
निखिलविश्वविजयानन्तरं = समस्त विश्व की विजय के पश्चात्।
मेलापके = मेले में।
स्वपरिधानम् = अपने वस्त्रों को।
व्यतिरिच्य = अतिरिक्त, छोड़कर।
क्रोडे = गोद में।
उत्कर्षस्य = उन्नति का।
पराकाष्ठां = अन्तिम सीमा को।
ह्रासम् = अवनति।
आवहन्ति स्म = धारण करते ते।
सङ्टने = घटने में।
नाल्पीयसी (न + अल्पीयसी) = कम नहीं है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के तट पर घटित ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
गंगा के तट पर अनेक विशिष्ट, ऐतिहासिक और स्मरण के योग्य घटनाएँ हुईं। रघुवंश के राजाओं ने सम्पूर्ण संसार की विजय के पश्चात् काशी में दशाश्वमेध घाट पर अश्वमेध यज्ञ किये। तीर्थराज प्रयाग में आयोजित मेले में हर्षवर्धन अपने वस्त्रों को छोड़कर सारी सम्पत्ति याचकों को दे देते थे। इसकी गोद में अनेक राज्य उन्नति की चरमसीमा को प्राप्त करके अवनति को प्राप्त हुए। हस्तिनापुर, कन्नौज, प्रतिष्ठानपुर, काशी, पाटलिपुत्र (पटना) आदि नगर राजधानी के गौरव को धारण करते थे। ऐतिहासिक नगरों के निर्माण में और विशेष घटनाओं के घटने में गंगा के प्रवाह की भूमिका कम नहीं है।

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(10) आधुनिककाले गङ्गातटे नानाविधानि औद्योगिककेन्द्राण्यपि वर्तन्ते। इयं विविधौद्योगिकविकासांयानुकूलमवसरं संयोजयति। रेलमोटरयानाविष्कारपूर्वं नदीमार्गाः गमनागमनसाधनान्यसासन्। अस्मिन् क्षेत्रेऽपि गङ्गायाः लब्धं सौविध्यमवर्णनीयम्। औद्योगिकप्रतिष्ठानानां कृते अस्याः (UPBoardSolutions.com) महान् जलराशिः नित्यं प्रयुज्यते। जलप्रवाहसाहाय्येन विद्युद्धारायाः प्रचुरमुत्पादनं सम्पाद्यते येन देशस्य नवनिर्माणं जायते। बुलन्दशहरनामके जनपदे ‘नरौरा’ नामस्थाने गङ्गातटे एतादृशमणुशक्तिसञ्चालितविद्युद्गृहं वर्तते यत्राणु-शक्त्याः समुपयोगः सुतरां क्रियते। ।

शब्दार्थ
संयोजयति = प्राप्त कराती है।
सौविध्यम् अवर्णनीयम् = सुविधा अवर्णनीय है।
प्रयुज्यते = प्रयुक्त होती है।
प्रचुरम् उत्पादनम् = अधिक मात्रा में उत्पादन करना।
सम्पाद्यते = सम्पादित किया जाता है।
जनपदे = जिले में।
सुतरां = अच्छी तरह से।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के औद्योगिक महत्त्व को स्पष्ट किया गया है।

अनुवाद
आधुनिक समय में गंगा के तट पर विविध प्रकार के औद्योगिक केन्द्र भी हैं। यह विविध औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल अवसरों को जुटाते हैं। रेलों और मोटरों के आविष्कार से पूर्व नदी के मार्ग गमन और आगमन के साधन थे। इस क्षेत्र में भी गंगा से प्राप्त सुविधा वर्णन से परे है। औद्योगिक कारखानों के लिए इसकी महान् जलराशि नित्य प्रयोग की जाती है। जल के प्रवाह की सहायता से बिजली का प्रचुर उत्पादन (UPBoardSolutions.com) किया जाता है, जिससे देश का नवनिर्माण होता है। बुलन्दशहर नामक जिले में ‘नरौरा’ नामक स्थान पर गंगा के किनारे अणु-शक्तिचालित ऐसा बिजलीघर है, जहाँ अणु-शक्ति का समुचित उपयोग भली-भाँति होता है।

(11) गङ्गाजलस्य वैशिष्ट्यं वैज्ञानिकविश्लेषणेनापि प्रमाणीभूतम्। गङ्गोदकं स्वच्छ, शीतलं, तृषाशामकं, रुचिवर्धकं सुस्वादु रोगापहारि च भवति। तत्र रोगकारकाः जीवाणवः अनायासेन नश्यन्तीति, पाश्चात्यवैज्ञानिकैरपि गङ्गाजलपरीक्षणानिर्विवादतया समुद्घुष्टम्। गङ्गोदकं सर्वविधं पवित्रमिति मत्वा हिन्दुगृहे लघुपात्रे आनीय समादरधिया रक्ष्यते। इदं दीर्घकालेनापि विकृतिं न लभते। मुमूर्षोरपि कण्ठे ‘औषधं जाह्नवीतोयं वैद्यो नारायणो हरिः’ इति मत्वा । गङ्गाजलमेव दीयते। अस्याः महदुपकारमनुभवन्तः जना इमां ‘गङ्गामाता’ इति सम्बोधयन्ति सकलमनोरथसिद्ध्यर्थं पुष्पदीपवस्त्रादीनि समर्पयन्ति च।

शब्दार्थ
वैशिष्ट्यम् = विशिष्टता।
प्रमाणीतम् = प्रमाणित है, सिद्ध है।
तृषाशामकम् = प्यास बुझाने वाला।
रोगापहारि = रोग को दूर करने वाला।
अनायासेन = बिना प्रयत्न के।
निर्विवादतया = विवादरहित रूप से।
समुदघुष्टम् = घोषणा की है।
गङ्गोदकम् = गंगा का जल।
आनीय = लाकर।
समादरधिया = आदर के विचार से।
रक्ष्यते = रखा जाता है।
विकृतिम् = खराब।
मुमूर्षोंः = मरने वाले के।
जाह्नवीतोयम् = गंगा का जल।
दीयते = दिया जाता है।
सम्बोधयन्ति = पुकारते हैं।
समर्पयन्ति = अर्पित करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के जल की विशेषता और उपयोगिता बतायी गयी है।

अनुवाद
गंगा के जल की विशेषता वैज्ञानिक विश्लेषण से भी सिद्ध हो चुकी है। गंगा का जल स्वच्छ, शीतल, प्यास बुझाने वाला, रुचि बढ़ाने वाला, स्वादिष्ट और रोग को दूर करने वाला है। उसमें रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु बिना प्रयत्न किये नष्ट हो जाते हैं। ऐसा पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने भी गंगा, के जल की परीक्षा करके विवादरहित रूप से घोषणा की है। गंगा का जल सब प्रकार से पवित्र है, ऐसा मानकर हिन्दुओं के घर में छोटे बर्तन में लाकर आदर के विचार से रखा जाता है। यह बहुत समय तक भी खराब नहीं होती है। मरते हुए के भी कण्ठ (UPBoardSolutions.com) में गंगा का जल औषध, वैद्य, नारायण हरि हैं’ ऐसा मानकर गंगा का जल ही डाला जाता है। इसके महान् उपकार का अनुभव करते हुए लोग इसे ‘गंगामाता’ नाम से पुकारते हैं और सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने के लिए पुष्प, दीप, वस्त्र आदि चढ़ाते हैं।

(12) हन्त! दौर्भाग्यमिदं यत् साम्प्रतं मनुष्यादेव गङ्गाजलस्य पवित्रताया भयमुपस्थितम्। स्वार्थवशादस्यां तेन बहुविकारा उत्पाद्यन्ते। तटेषु संस्थापितानामौद्योगिकप्रतिष्ठानानां रासायनिकद्रवा अस्याः जले प्रवाह्यन्ते। विपुलजनसङ्ख्याभारतमुवहतां नगराणां मालिन्यं प्रणालिकाभिः गङ्गायाम् प्रक्षिप्यते। घातकरोगाक्रान्तानां मानवानां पशूनाञ्च शवाः वारिधारायां निलीयन्ते। कुलेषु पवित्रमनसा श्रद्धया च निर्मितेष्वैकान्तिकमन्दिरेषु धर्मशालायाञ्च समाजविरोधीनि तत्त्वानि सङ्गच्छन्ते। अज्ञानवशात् ‘प्रमादाच्च मानवः सर्वकल्याणकारिणीं गङ्ग प्रदूषयति, तस्याः जलं प्रदूषयति अमृते विषं मिश्रयति च। हन्त! कीदृशीयं विडम्बना या गङ्गा सर्वशुद्धिकरी प्रख्याता सा सम्प्रति स्वशुद्धये मानवमुखमपेक्षते। मानवस्यैवायं दोषो न गङ्गायाः।

शब्दार्थ
दर्भाग्यमिदम् = यह दुर्भाग्य है।
साम्प्रतम् = इस समय।
उत्पाद्यन्ते = उत्पन्न किये जा रहे हैं।
प्रवाह्यन्ते = बहाये जाते हैं।
मालिन्यम् = मैला, गन्दगी।
प्रणालिकाभिः = नालियों के द्वारा।
निलीयन्ते = डुबाये जाते हैं।
सङ्गच्छन्ते = पहुँचते हैं।
मिश्रयति = मिलाता है।
कीदृशीयं = कैसी यह।
विडम्बना = निन्दनीय बात।
प्रख्याता = प्रसिद्ध है।
मानवमुखमपेक्षते = मनुष्य का मुख देख रही है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में मनुष्यों द्वारा गंगा को प्रदूषित किये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
खेद है! यह दुर्भाग्य ही है कि अब मनुष्य से ही गंगा जल की पवित्रता का भय उपस्थित हो गया है। स्वार्थ के कारण वह इसमें बहुत-से-विकार उत्पन्न कर रहा है। तटों पर स्थापति औद्योगिक कारखानों के रासायनिक घोल इसके जल में प्रवाहित किये जाते हैं अधिक जनसंख्या के भार वाले नगरों का मैला नालियों द्वारा गंगा में डाला जाता है। घातक रोग से आक्रान्त मनुष्यों और पशुओं के शव जल की धारा में डुबोये जाते हैं। किनारों पर पवित्र मन और श्रद्धा से बनाये गये एकान्त मन्दिरों और धर्मशालाओं में समाज-विरोधी (UPBoardSolutions.com) तत्त्व मिल जाते हैं। अज्ञान के कारण और प्रमाद से मनुष्य सबका कल्याण करने वाली गंगा को प्रदूषित कर रहा है, उसके जल को प्रदूषित कर रहा है और अमृत में विष घोल रहा है। खेद! यह कैसी विडम्बना (निन्दित बात) है कि जो गंगा सबको पवित्र करने वाली प्रसिद्ध है, वह अब अपनी शुद्धता के लिए मानव का मुँह देख रही है। यह मानव का ही दोष है, गंगा का नहीं।।

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(13) सौभाग्यात् भारतीयशासेन गङ्गाप्रदूषणस्य विनाशाय महती योजना सञ्चालिता। केन्द्रीयुविकासप्राधिकरणेन प्रदूषणमपाकर्तुं शुचिताञ्च प्रतिष्ठापयितुं योजनाबद्ध (UPBoardSolutions.com) कार्यमारब्धम्। चलचित्रदूरदर्शनाकाशवाणीसमाचारपत्रादिसञ्चारमाध्यमैः गङ्गाप्रदूषणं निवारयितुं जनचेतना प्रबोध्यते। परं महानयं राष्ट्रियः कार्यक्रमः क्षेत्रञ्च विशालम्। स्वल्पैः जनैः शासनतन्त्रैर्वा तदनुष्ठातुं न शक्यते। तत्र आबालवृद्धानां स्त्रीपुरुषाणां सक्रियसहयोगस्य अहर्निशमावश्यकता वर्तते। यदा सर्वे जनाः मनसा वाचा कर्मणा निष्ठया च गङ्गायाः प्रदूषणमपसारयितुं कृतसङ्कल्पास्तदनुरूपेवाचरणशीलश्च भविष्यन्ति तदैवास्याः नैर्मल्यं रक्षिष्यते पुण्यसलिला गङ्गा जगद्धात्री भविष्यत्येव।

अपरञ्च अहो गङ्गा जगद्धात्री स्नानपानादिभिर्जगत्।
 पुनाति पावनीत्येषा न कथं सेव्यते नृभिः॥

शब्दार्थ
अपाकर्तुं = दूर करने के लिए।
शुचितां = पवित्रता को।
प्रतिष्ठापयितुम् = पुनः लाने के लिए।
योजनाबद्धम् = योजना बनाकर।
निवारयितुम् = मिटाने के लिए।
प्रबोध्यते = जाग्रत की ।जा रही है।
तदनुष्ठातुम् = वह पूरा करने के लिए।
आबालवृद्धानाम् = बच्चों से लेकर बूढ़ों तक का।
अहर्निशं = दिन-रात (चौबीस घण्टे)।
निष्ठया = श्रद्धा से।
अपसारयितुम् = दूर करने के लिए।
नैर्मल्यम् = पवित्रता को।
जगद्धात्री = संसार का पालन करने वाली।
पुनाति = पवित्र करती है।
नृभिः = मनुष्यों के द्वारा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारी प्रयत्नों और जनता के सहयोग की आवश्यकता का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
सौभाग्य से भारत की सरकार ने गंगा-प्रदूषण समाप्त करने के लिए बड़ी योजन चलायी है। केन्द्रीय विकास प्राधिकरण ने प्रदूषण को दूर करने और पवित्रता को पुनः लाने के लिए योजना बनाकर कार्य आरम्भ कर दिया है। सिनेमा, दूरदर्शन, आकाशवाणी, समाचार-पत्र आदि संचारमाध्यमों के द्वारा गंगा के प्रदूषण को दूर करने के लिए जनचेतना जगायी जा रही है, परन्तु यह राष्ट्रीय कार्यक्रम बड़ा है और क्षेत्र विशाल है। थोड़े लोगों अथवा शासनतन्त्र के द्वारा यह पूरा नहीं किया जा सकता है। उसमें बच्चों से लेकर बूढ़े, स्त्री-पुरुषों तक के (UPBoardSolutions.com) सक्रिय सहयोग की रात-दिन आवश्यकता है। जब सब मनुष्य मन से, वचन से, कार्य से और लगन से गंगा के प्रदूषण को दूर करने के लिए संकल्प (प्रतिज्ञा) करेंगे और उसके अनुसार आचरण करेंगे, तभी इसकी पवित्रता की रक्षा की जा सकेगी। पवित्र जल वाली गंगा संसार का पालन करने वाली होगी ही। और यह 
जगत् का पालन करने वाली गंगा स्नान, जलपान आदि द्वारा संसार को पवित्र करती है। इस प्रकार पवित्र करने वाली यह लोगों के द्वारा कैसे नहीं सेवन की जाती है; अर्थात् अवश्य ही सेवन की जाती है।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
गंगा किस प्रकार धरती पर आयी, इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षक ‘उद्गम’ और ‘पौराणिक स्वरूप की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।

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प्ररन 2
गंगा के प्रदूषित होने और प्रदूषण से मुक्ति पर प्रकाश डालिए
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षकों-‘जल-प्रदूषण की समस्या’ और ‘प्रदूषण दूर करने के प्रयास’–से सम्बन्धित सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]

प्ररन 3
गंगा के तट पर बसे नगरों, निवास करने वाले धर्माचार्यों तथा लगने वाले मेलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
गंगा के तट पर बदरीनाथ, पंचप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, तीर्थराज प्रयाग, वाराणसी आदि तीर्थस्थान (नगर) हैं। वाल्मीकि और भरद्वाज के आश्रम भी गंगा के तट पर ही थे। रामानुज, कबीर, तुलसी आदि महापुरुषों के प्रेरणास्थल भी गंगा के तट ही रहे हैं। प्रयाग में गंगा के तट पर लगने वाले मेले में ही हर्षवर्धन अपना सर्वस्व दान किया करते थे।

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