UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड की ग्रामीण जनता खुले खेत की व्यवस्था को किस दृष्टि से देखती थी। संक्षेप में व्याख्या करें।
इस व्यवस्था को-

  1. एक संपन्न किसान,
  2. एक मजदूर,
  3. एक खेतिहर स्त्री।

की दृष्टि से देखने का प्रयास करें।
उत्तर:
(1) एक संपन्न किसान की दृष्टि में – 16वीं शताब्दी में जब ऊन की कीमतें बढ़ीं तो संपन्न किंसानों ने साझा भूमि की सबसे अच्छी चरागाहों की निजी पशुओं के बाड़बंदी शुरू कर दी। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था
कि भेड़ी को अच्छा चारा मिल सके। उन्होंने गरीब लोगों को भी बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया और उन्हें साझा भूमि पर पशु चराने से भी मना कर दिया। बाद में 18वीं सदी के मध्य (UPBoardSolutions.com) में इस बाड़बंदी को कानूनी मान्यता देने के लिए ब्रिटिश संसद ने 4,000 से अधिक अधिनियम पारित किए।

(2) एक मजदूर की दृष्टि में – गरीब मजदूरों के जीवित बने रहने के लिए साझा भूमि बहुत आवश्यक थी। यहाँ वे अपनी गायें, भेड़े आदि चराते थे और आग जलाने के लिए जलावन तथा खाने के लिए कंद-मूल एवं फल इकट्ठा करते थे। वे नदियों तथा तालाबों में मछलियाँ पकड़ते थे, और साझा वनों में खरगोश का शिकार करते थे।

(3) एक खेतिहर स्त्री की दृष्टि में – खेतिहर महिला प्रायः खुले खेतों पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ कार्य करती थी। साझी भूमि से वह घरेलू कार्यों के लिए ईंधन एकत्रित करती थी तथा चरागाहों में पशुओं को चराने में सहयोग करती थी। इस प्रकार खुले खेतों के अतिरिक्त साझी भूमि ही उसके आर्थिक विकास का एकमात्र साधन थी। वे अपने पशुओं को चराने, फल और जलावन एकत्र करने के लिए साझा भूमि का प्रयोग करते थे। यद्यपि खुले खेतों के गायब हो जाने से इन सभी क्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जब (UPBoardSolutions.com) खुली खेत प्रणाली समाप्त होना प्रारंभ हुई, वनों से जलाने के लिए जलावन एकत्र करना या साझा भूमि पर पशु चराना अब संभव नहीं था। वे कंद-मूल एवं फल इकट्ठा नहीं कर सकते थे या मांस के लिए छोटे जानवरों का शिकार नहीं कर सकते थे।

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प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड में हुए बाड़बंदी आंदोलन के कारणों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाले सभी कारण अंततः लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित थे।
इनमें से कुछ कारक इस प्रकार थे-

  1. पौष्टिक चारा फसलों की कृषि के लिए-ऊन के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए पौष्टिक चारा फसलों की तथा पशुओं की नस्ल सुधारने की आवश्यकता थी। इसलिए अपने पशुओं को गाँव के अन्य पशुओं से अलग रखने तथा पौष्टिक चारा फसलों के उत्पादन के लिए भी संपन्न किसानों ने अपने खेतों की बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।
  2. अनाज की माँग में वृद्धि-18वीं सदी के अंतिम दशकों में बाड़ाबंदी आंदोलन तेजी से सारे इंग्लैण्ड में फैल गया। इसका मूल कारण दुनिया के सभी भागों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अनाज की बढ़ती हुई माँग थी। किसानों ने अपनी भूमियों की बाड़ाबंदी आरंभ (UPBoardSolutions.com) कर दी जिससे उनमें अधिक-से-अधिक अनाज उगाना संभव हो सके।
  3. ऊन के मूल्यों में वृद्धि-16वीं सदी के आरंभ से ही ऊन के मूल्यों में होने वाली वृद्धि ने इंग्लैण्ड के किसानों को अधिक-से-अधिक भेड़ों को पालने के लिए प्रोत्साहित किया।
  4. साझा भूमि पर अधिकार संपन्न किसान अपनी भूमि का विस्तार करना चाहते थे जिससे वे अधिक निजी चरागाह बना सकें। इसके लिए उन्होंने साझा भूमियों को काटकर उस पर बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के गरीब किसान थेसिंग मशीन का विरोध क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के गरीब किसान श्रेसिंग मशीन का विरोध इसलिए कर रहे थे, क्योंकि-

  1. इसने फसल की कटाई के समय कामगारों के लिए रोजगार के अवसर कम कर दिए। इससे पहले मजदूर खेतो ंमें विभिन्न काम करते हुए जमींदार के साथ बने रहते थे। बाद में, उन्हें केवल फसल कटाई के समय ही काम पर रखा जाने लगा।
  2. अधिकतर मजदूर आजीविका के साधन गवाँ कर बेरोजगार हो गए। इसलिए वे औद्योगिक मशीनों का विरोध कर रहे थे।
  3. फ्रांस के विरुद्ध युद्ध समाप्त होने पर गाँवों में वापस लौटे सैनिकों के लिए रोजगार की आवश्यकता थी परन्तु मशीनीकरण ने रोजगार के अवसर सीमित कर दिए थे।

प्रश्न 4.
कैप्टन स्विंग कौन था? यह नाम किस बात का प्रतीक था और वह किन वर्गों का प्रतिनिधित्व करता था?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग एक मिथकीय नाम था जिसका प्रयोग धमकी भरे खतों में श्रेसिंग मशीनों और जमींदारों द्वारा मजदूरों को काम देने में आनाकानी के ग्रामीण अंग्रेज विरोध के दौरान किया जाता था। कैप्टन स्विंग के नाम ने जमींदारों को चौकन्ना कर दिया। उन्हें यह खतरा सताने लगा कि कहीं (UPBoardSolutions.com) हथियारबंद गिरोह रात में उन पर भी हमला न बोल दें और इस कारण बहुत सारे जमींदारों ने अपनी मशीनें खुद ही तोड़ डालीं। कैप्टन स्विंग, सम्पन्न किसानों के विरुद्ध मजदूरों तथा बेरोजगारों के उग्र विचारों का प्रतीक था। वह भूमिहीन मजदूरों तथा बेरोजगारों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करता था।

प्रश्न 5.
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार को क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के प्रभाव-

  1. वनों के कटाव तथा घास भूमियों के विनाश ने अमेरिका के पर्यावरण संतुलन को नष्ट कर दिया जिसके कारण देश के दक्षिण-पश्चिमी भागों में धूलभरी आँधियाँ चलने लगीं तथा वर्षा की मात्रा में कमी आने लगी।
  2. नए प्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के क्रम में बड़ी संख्या में वनों और घास भूमियों को कृषि क्षेत्रों में बदल दिया गया।
  3. इन क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासियों को (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों की ओर विस्थापित कर दिया गया।
  4. श्वेत आबादी तथा कृषि के पश्चिमी विस्तार के कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।

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प्रश्न 6.
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन के फायदे-नुकसान क्या-क्या थे?
उत्तर:
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीनों के लाभ-

  1. गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि संभव-फसल काटने की नई मशीनों के प्रयोग से ही गेहूं का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका जिसके कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।
  2. समय की बचत-सन् 1831 में अमेरिका में साइरस मैककार्मिक नामक व्यक्ति ने फसल काटने की एक मशीन बनाई जिससे 15 दिन में 500 एकड़ (UPBoardSolutions.com) भूमि पर कटाई संभव थी।
  3. बड़े फार्मों पर कृषि संभव–कटाई की नई-नई मशीनों के फलस्वरूप ही विशाल आकार के खेतों पर कृषि कार्य संभव हो सका। नई मशीनों की सहायता से 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि पर फसल का उत्पादन कर सकते थे।
    अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन से हानि-

    1. निर्धन किसानों के लिए अभिशाप-अनेक छोटे किसानों ने भी बैंकों के ऋण की सहायता से इन मशीनों को खरीदा परंतु अचानक गेहूँ की माँग में कमी ने इन किसानों को बर्बाद कर दिया।
    2. बेरोजगारी में वृद्धि–फसल कटाई की नई-नई मशीनों के कारण मजदूरों की माँग में तेजी से कमी आई जिसके कारण भूमिहीन मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।

प्रश्न 7.
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट से हम क्या सबक ले सकते हैं?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए तेज उछाल के चलते कृषि के अंतर्गत और अधिक क्षेत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर वन एवं घास भूमियों को साफ किया गया। एक व्यापक प्रयास के चलते अमेरिका शीघ्र ही विश्व का अग्रणी गेहूँ उत्पादक देश बन गया। लेकिन इसके (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप पश्चिम एवं दक्षिण अमेरिका में एक नया पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया जिससे सारा क्षेत्र धूल भरी आँधियों से ढंक गया और यह प्राकृतिक आपदा बड़ी संख्या में मनुष्य एवं पशुओं की मृत्यु का कारण बनी।

इस घटना से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें अपने आर्थिक हितों के लिए पर्यावरण का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हमें मानव विकास के ऐसे रास्ते तलाश ने चाहिए जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना मानव विकास को उच्च स्तर पर स्थापित किया जा सके।

प्रश्न 8.
अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर क्यों दबाव डाल रहे थे?
उत्तर:
अंग्रेज निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे-

  1. भारत के अनेक क्षेत्रों की जलवायु अफीम की खेती के लिए उपयुक्त थी।
  2. इंग्लैण्ड में चाय अत्यधिक लोकप्रिय हो गई। किन्तु इंग्लैण्ड के पास धन देने के अतिरिक्त ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जो वे चाय के बदले में चीन में बेच सकें। किन्तु ऐसा करने से इंग्लैण्ड अपने खजाने को हानि पहुँचा रहा था। यह देश के खजाने को हानि पहुँचा कर (UPBoardSolutions.com) इसकी संपत्ति को कम कर रहा था। इसलिए व्यापारियों ने इस घाटे को रोकने के तरीके सोचे। उन्होंने एक ऐसी वस्तु खोज निकाली जिसे वे चीन में बेच सकते थे और चीनियों को उसे खरीदने के लिए मना सकते थे।
  3. अफीम ऐसी वस्तु थी। इसलिए अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे।
  4. अंग्रेजों को चीन से चाय खरीदने के लिए उसको मूल्य चाँदी के सिक्कों में चुकाना पड़ता था परंतु अंग्रेज इस चाँदी को बचाने के लिए भारतीय अफीम को चीन में बेचते थे। अफीम से प्राप्त आय से ही वह वहाँ से चाय खरीदते थे और उसे यूरोप में बेचकर दोहरा लाभ कमाते थे।

प्रश्न 9.
भारतीय किसान अफीम की खेती के प्रति क्यों उदासीन थे?
उत्तर:
भारतीय किसान निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती करने के प्रति उदासीन थे-

  1. जिन किसानों के पास अपनी भूमि नहीं थी। वे जमींदारों से भूमि पट्टे पर लेकर खेती करते थे। इसके लिए उन्हें किराया देना पड़ता। गाँव के निकट स्थित अच्छी भूमि के लिए जमींदार बहुत अधिक किराया वसूल करते थे।
  2. अफीम की खेती गाँवों के निकट स्थित सबसे उपजाऊ भूमि पर उगानी पड़ती थी। भूमि में अत्यधिक खाद भी डालनी पड़ती थी। किसान ऐसी भूमि पर प्रायः दालें उगाया करते थे। यदि वे इस भूमि पर अफीम उगाते, तो दालों को घटिया भूमि पर उगाना पड़ता। परिणामस्वरूप दालों का उत्पादन बहुत ही कम होता।
  3. अफीम की खेती करना एक कठिन प्रक्रिया थी। इसका पौधा नाजुक होता था इसलिए फसल को अच्छी तरह पोषण करने के लिए बहुत अधिक (UPBoardSolutions.com) समय लग जाता था। परिणामस्वरूप उनके पास अन्य फसलों की देखभाल करने के लिए समय नहीं बच पाता था।
  4. सरकार किसानों को उनके द्वारा उगाई गई अफीम का बहुत ही कम मूल्य देती थी। इतनी कम कीमत पर अफीम की खेती करने में किसानों को लाभ की बजाय हानि उठानी पड़ती थी। अफीम को बेचने से होने वाला लाभ अंग्रेजों की जेब में जाता था।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अमेरिका के आदिम जनजातीय समुदाय के लोग किस तरह से जीवन-यापन करते थे?
उत्तर:
महान् खोजकर्ता कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज करने से पहले इस भू-भाग पर अनेक आदिम जनजातियाँ निवास करती थीं, जिन्हें भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता था। 15वीं शताब्दी में यूरोपीय लोगों के अमेरिका में आगमन पर मूल जनजातीय समुदाय अमेरिका के पश्चिमी (UPBoardSolutions.com) और दक्षिणी भागों में पीछे हटने लगी। जनजातीय समुदाय के लोग मक्का, फलियों, तंबाकू और कुम्हड़े की कृषि करते थे। इस समुदाय के कुछ लोग शिकार करके, खाद्य पदार्थों का संकलन करके तथा मछलियाँ पकड़कर अपना भरण-पोषण और जीवन-यापन करते थे।

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प्रश्न 2.
यूरोपीय लोग अमेरिका की तरफ क्यूँ आकृष्ट हुए?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को अमेरिका में अनेक संभावनाएँ नजर आती थीं। अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार, वन उत्पादों का निर्यात एवं खनिज संपदा को दोहन आदि के कारण यूरोपीय लोग अमेरिका की ओर आकर्षित हुए।

प्रश्न 3.
चीन में अफीम के व्यापार की शुरुआत किस देश ने की थी?
उत्तर:
पुर्तगाल ने चीन में अफीम व्यापार की शुरुआत की थी।

प्रश्न 4.
अंग्रेज व्यापारी चीन को चाय का मूल्य किस रूप में चुकाते थे?
उत्तर:
अंग्रेज व्यापारी चाय के बदले चाँदी के सिक्के (बुलियन) का भुगतान करते थे।

प्रश्न 5.
1750 से 1900 ई. के मध्य इंग्लैण्ड की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की जनसंख्या में 1750 से 1900 ई० की अवधि के बीच चार गुना की वृद्धि हुई।

प्रश्न 6.
वे दो फसलें कौन-सी हैं जिनसे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है?
उत्तर:
मृदा में नाइट्रोजन की वृद्धि करने वाली दो फसलें शलजम और तिपतिया घास है।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड के किस भाग में सघन कृषि की जाती थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के मध्य भाग में सघन कृषि की जाती थी।

प्रश्न 8.
निर्धन किसानों को साझा भूमि से प्राप्त होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. पशुओं के लिए चरागाह की प्राप्ति।
  2. जलावन के लिए लकड़ी की प्राप्ति।

प्रश्न 9.
खलिहान जलने की पहली घटना इंग्लैण्ड के किस भाग में घटित हुई?
उत्तर:
खलिहान जलने की प्रथम घटना इंग्लैण्ड के उत्तर-पश्चिम भाग में घटित हुई।

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प्रश्न 10.
विश्व के किस देश को ‘रोटी की टोकरी’ कहा जाता था?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका को रोटी की टोकरी’ कहा जाता था।

प्रश्न 11.
त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश कौन-से थे?
उत्तर:
भारत, चीन और इंग्लैण्ड त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश थे।

प्रश्न 12.
अंग्रेज सरकार के सरकारी आय का प्रमुख स्रोत क्या था?
उत्तर:
भू-राजस्व अंग्रेज सरकार के सरकारी आय को प्रमुख स्रोत था।

प्रश्न 13.
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका के कितने भू-भाग पर वन थे?
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका की 80 करोड़ एकड़ भूमि पर वन थे।

प्रश्न 14.
1830 ई. से पहले फसल की कटाई के लिए किस औजार का प्रयोग होता था?
उत्तर:
1830 ई. से पहले फसल काटने के लिए हंसिए का प्रयोग होता था।

प्रश्न 15.
प्लासी का युद्ध कब हुआ था?
उत्तर:
प्लासी का युद्ध 1757 ई. में हुआ था।

प्रश्न 16.
फसल काटने की पहली मशीन किसने बनायी थी?
उत्तर:
साइरस मैक्कॉर्मिक ने सन् 1831 ई. में प्रथम फसल काटने की मशीन बनाई थी।

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प्रश्न 17.
रेतीला तूफान या काला तूफान क्या है?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई. के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। 1930 ई. के दशक में दक्षिण अमेरिकी मैदानों में आने वाली तबाही फैलाने वाले भयानक रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान कहा गया।

प्रश्न 18.
रेतीले तूफानों के परिणाम बताइए।
उत्तर:
रेतीले तूफानों के आने से प्रभावित क्षेत्र में अँधेरा छा जाता था और ऊपर से रेत गिरता था जिससे लोग अन्धे हो जाते थे और लोगों का दम घुटने लगता था। पशु बड़ी संख्या में दम घुटने से मारे जाते थे। ट्रैक्टर और मशीने रेत के ढेरों में फंसकर इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत कर पाना संभव नहीं था।

प्रश्न 19.
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में अमेरिका में गेहूँ उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं शताब्दी में गेहूं उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-

  1. गेहूं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होना।
  2. अमेरिका की नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि।
  3. निर्यात बाजार को बढ़ावा देना।

प्रश्न 20.
इंग्लैण्ड के किसान 1660 ई. के दशक में किस फसल की खेती करने लगे थे?
उत्तर:
इस अवधि में इंग्लैण्ड के कई हिस्सों में किसान शलजम और तिपतिया घास की खेती करने लगे थे। उन्हें शीघ्र ही यह एहसास हो गया कि इन दोनों फसलों की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही शलजम को पशु बड़े चाव से खाते थे।

प्रश्न 21.
इंग्लैण्ड के ग्रामीण लोगों ने खुले खेतों और कॉमन्स जमीनों का प्रयोग किस प्रकार किया?
उत्तर:
ऐसी सामूहिक भूमि जिस पर सभी ग्रामीणों का अधिकार होता था। यहाँ वे अपने मवेशी और भेड़ बकरियाँ चराते थे। इस भू-भाग पर वे लकड़ियाँ और कंद-मूल फल एकत्रित करते थे। वे लोग जंगल में शिकार करते तथा नदियों एवं तालाबों से मछली पकड़ने का कार्य करते थे। निर्धन वर्ग के लिए यह (UPBoardSolutions.com) सामूहिक भूमि जीवन-यापन का आधारभूत साधन थी। इस भू-भाग के माध्यम से वे लोग अपनी आय बढ़ाते तथा पशुपालन करते थे।

प्रश्न 22.
खुले खेतों और कॉमन्स भूमि का आवंटन किस तरह किया जाता था?
उत्तर:
18वीं सदी के अंतिम वर्षों में इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत खुलापन पाया जाता था। जमीन भू-स्वामियों की निजी संपत्ति नहीं होती है और इस भूमि की बाड़ाबंदी भी नहीं की गयी थी। किसान अपने गाँवों के निकटवर्ती क्षेत्रों में कृषि कार्य करते थे। प्रत्येक वर्ष के आरंभ में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के प्रत्येक व्यक्ति की भूमि के टुकड़े बाँट दिए जाते थे।

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प्रश्न 23.
बंगाल और बिहार के किसानों के लिए औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ, की गयी पेशगी प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
बंगाल व बिहार को औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफीम की खेती करने के लिए अग्रिम धन की अदायगी की जाती थी, जिसे पेशगी कहते थे। इस पेशगी की एवज में उन्हें अफीम की खेती करने को विवश किया जाता था। इस तरह इस क्षेत्र के किसान फसल एजेंटों के अधीन हो गए।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम के व्यापार को चीन के लोगों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम का व्यापार विस्तार करने से चीन के लोग अफीम के आदी हो गए। यह अफीम की लत चीन के समाज के सभी वर्गों जैसे-दुकानदार, सरकारी कर्मचारी, सैनिक, उच्च वर्ग और भिखारियों तक में फैल गयी। 1839 ई० में कैंटन के विशेष आयुक्त लिन जेशू के अनुसार चीन (UPBoardSolutions.com) में 40 लाख लोग अफीम का सेवन कर रहे थे। कैंटन में रहने वाले एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार उस समय चीन में लगभग 1 करोड़ 20 लाख व्यक्ति अफीम के नशे के आदी थे।

प्रश्न 25.
भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1767 ईo से पहले भारत से मात्र 500 पेटी अफीम निर्यात की जाती थी। अगले चार वर्ष के अंदर यह मात्रा बढ़कर 1,500 पेटी हो गयी। 1870 ई0 तक प्रतिवर्ष भारत से 50,000 पेटी अफीम निर्यात की जाने लगी। इस प्रकार जैसे-जैसे भारत से अफीम का निर्यात चीन में बढ़ता गया वैसे-वैसे, भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि होती गयी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि मशीनों के विकास को किसानों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. नवीन कृषि मशीनें कृषकों के लिए अभिशाप सिद्ध हुईं। अनेक किसानों ने इस आशा के साथ कृषि मशीनों को खरीदा कि गेहूँ के मूल्यों में तेजी बनी रहेगी। इन किसानों को बैंक सरलता पूर्वक ऋण दे देते थे। लेकिन इस ऋण को चुकाना उन किसानों के लिए कठिन होता था। बैंक ऋण समय पर न चुका पाने की स्थिति में किसान अपनी जमीनें गंवा बैठे। ऐसे में जीविकाविहीन किसानों को नए सिरे से रोजगार की तलाश करनी पड़ती थी।
  2. इस समयावधि में निर्धन किसानों को सरलता से रोजगार नहीं मिल पाता था। बिजली से चलने वाली मशीनों के प्रचलन में आने से मजदूरों की माँग (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक घट गयी थी।
  3. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की माँग घटने लगी, लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से बाजार गेहूँ से पट गया। फलस्वरूप गेहूं का मूल्य गिरने लगा। गेहूं का निर्यात लगभग बंद हो गया। ज्यादातर किसानों के सम्मुख ऋणग्रस्तता का संकट उपस्थित हो गया। इस मंदी का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर पड़ा। 1930 ई. की विश्वव्यापी मंदी के लिए कृषि मंदी को महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है।

प्रश्न 2.
चीन के लोगों को अफीम का आदी कैसे बनाया गया?
उत्तर:
चीन के लोग अफीम के आदी हो गए थे, इस बात से वहाँ के लोग चिंतित थे। चीन के शासकों ने औषधीय उपयोग के अतिरिक्त अफीम के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। किन्तु 18वीं सदी के मध्य में पश्चिम के व्यापारियों ने अफीम का अवैध व्यापार करना आरंभ कर दिया। चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम जहाजों से उतारी जाती थी, और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के माध्यम से देश के आंतरिक हिस्सों में इसे पहुँचाया जाता था। 1820 ई0 के दशक की शुरुआत में प्रतिवर्ष लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन (UPBoardSolutions.com) में मँगवाए जाते थे। 15 वर्ष बाद प्रतिवर्ष अफीम के लगभग 35,000 क्रेट उतारे जाने लगे थे। शीघ्र ही चीन के लगभग सभी वर्ग के लोग अफीम का सेवन करने लगे। संपन्न तो संपन्न भिखारी भी चीन में अफीम के बिना नहीं रह सकते थे। सन् 1839 तक चीन में अफीम का सेवन करने वालों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी।

प्रश्न 3.
विशाल मैदानों का पूरा क्षेत्र ‘रेत का कटोरा’ कैसे बन गया?
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं सदी की शुरुआत में गेहूं का उत्पादन अत्यधिक बढ़ गया था। ऐसे में किसानों ने लापरवाही से जमीन के यथासंभव हिस्से से समस्त वनस्पति को साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की मदद से इस जमीन की मिट्टी को पलट डाला गया और मिट्टी को धूल में बदल दिया। 1930 ई0 के दशक में यह समस्त क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में रूपान्तरित हो गया था। इसके पश्चात् अमेरिका के दक्षिणी मैदानों में (UPBoardSolutions.com) भयानक रेतीले तूफान आने लगे। ये तूफान 7,000 से 8,000 फुट की ऊँचाई तक के ऊपरी क्षेत्र आवृत करते हुए गतिशील होते थे। इस तरह अमेरिका का विशाल कृषि क्षेत्र के रूप में परिवर्तित होने का स्वप्न दुःस्वप्न में बदल गया।

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प्रश्न 4.
त्रिकोण व्यापार का अर्थ और विकास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में भारत, चीन और ब्रिटेन के बीच व्यापार को त्रिकोणीय व्यापार की संख्या दी गयी है। अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से चाय और रेशम खरीद कर उसे इंग्लैण्ड में बेचती थी। जैसे-जैसे चाय लोकप्रिय पदार्थ बन गयी, चाय का व्यापार और महत्त्वपूर्ण बन गया। इस समय तक इंग्लैण्ड कोई भी ऐसी वस्तु नहीं बनाता था जिसे चीन में बेचा जा सके। ऐसी स्थिति में पश्चिमी व्यापारी चाय का व्यापार करने के लिए पैसे का प्रबन्ध नहीं कर सकते थे। वे चाय की खरीद केवल चाँदी के सिक्के (बुलियन) देकर ही कर सकते थे। इसका आशय था कि इंग्लैण्ड का खजाना एक दिन रिक्त हो जाएगा। अंततः अंग्रेजों ने यह निश्चित किया कि अफीम भारत में उगायी जाए और इसे चीन में बेचकर लाभार्जन किया जाए।

प्रश्न 5.
फसल कटाई के यंत्रों में हुए क्रान्तिकारी परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फसल कटाई के यंत्रों में निम्नलिखित क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए-

  1. अमेरिका में 1830 ई0 के दशक से पूर्व फसल की कटाई के लिए हंसिए का प्रयोग किया जाता था।
  2. खेतों के बड़े आकार के कारण हंसिए की सहायता से फसलों को काटने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी। इस कार्य में (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक पूँजी एवं श्रम की आवश्यकता होती थी। इसलिए किसानों को फसल की कटाई के लिए मशीनों की आवश्यकता हुई।
  3. साइरस मैक्कॉर्मिक नामक व्यक्ति ने 1831 ई0 में एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जो एक साथ 16 मजदूरों के बराबर कटाई कर सकती थी।
  4. 20वीं शताब्दी के आरंभ में ज्यादातर किसान गेहूँ की कटाई के लिए कंबाइंड हार्वेस्टरों का प्रयोग करने लगे। इस मशीन से 15 दिन में 500 एकड़ भूमि पर गेहूं की कटाई की जा सकती थी।

प्रश्न 6.
भारत के अफीम व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत अंग्रेजों द्वारा चीन ले जाकर बेची जाने वाली अफीम का प्रमुख स्रोत था। बंगाल विजय के बाद अंग्रेजों ने अपने कब्जे वाली भूमि पर अफीम की खेती शुरू की। जैसे-जैसे चीन में अफीम की माँग बढ़ती गयी वैसे-वैसे बंगाल के बंदरगाहों से अफीम का निर्यात बढ़ता गया। 1767 ई० से पहले भारत से केवल 500 पेटी (लगभग 2 मन) अफीम का निर्यात होता था, लेकिन 1870 ई0 तक यह निर्यात बढ़कर प्रतिवर्ष 50,000 पेटी हो गया।

प्रश्न 7.
बंगाल के अफीम व्यापार को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्या किया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने 1773 ई0 तक बंगाल में अफीम के व्यापार पर अधिकार कर लिया। ब्रिटिश सरकार के अलावा किसी को अफीम का व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। ब्रिटिश सरकार अफीम को सस्ती दरों पर उत्पादित करके इसे कलकत्ता (कोलकाता) स्थित अफीम एजेंटों को ऊँचे दामों पर बेचना चाहती थी जो समुद्री जहाज के माध्यम से इसे चीन भेज सकें। अफीम पैदा करने वाले किसानों को दिया (UPBoardSolutions.com) जाने वाला मूल्य इतना कम होता था कि अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में किसान बेहतर कीमत की माँग करने लगे थे और पेशगी लेने से मना करने लगे थे।

बनारस के आस-पास के क्षेत्रों में अफीम पैदा करने वाले किसानों ने अफीम की खेती बंद करने का फैसला किया। इसकी अपेक्षा वे अब गन्ने और आलू की खेती करने लगे थे। बहुत से किसानों ने अपनी फसलों को घुमंतू व्यापारियों (पैकारों) को बेच डाला था जो किसानों को बेहतर दाम देते थे। इस स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने रियासतों में तैनात अपने एजेंटों को इन व्यापारियों की अफीम जब्त करने और फसलों को नष्ट करने के आदेश दिए। जब तक अफीम का उत्पादन जारी रहा तब तक ब्रिटिश सरकार, किसानों और स्थानीय व्यापारियों के मध्य यह टकराव चलता रहा।

प्रश्न 8.
भारतीय किसान अफीम की खेती करने को कैसे तैयार हो गए?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने भारतीय किसानों से अफीम की खेती करवाने के लिए उन्हें अग्रिम धन का भुगतान किया जिसे पेशगी कहते थे। इसका आशय यह है कि अंग्रेजों ने अग्रिम धन भुगतान का प्रलोभन देकर किसानों को अपने जाल में फैंसाया।
  2. उस समय बंगाल और बिहार में किसानों का एक बड़ा वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहा था, ऐसे में पेशगी में दिए धन ने उन्हें कमजोर बनाया।
  3. 1790 ई0 के दशक में सरकार ने गाँव के मुखिया के माध्यम से किसानों को अफीम उगाने के लिए अग्रिम धनराशि (एडवांस) देनी आरंभ कर दी। इससे किसानों की ऋणग्रस्तता में कमी आई परंतु अग्रिम धनराशि लेने के पश्चात् किसान किसी अन्य व्यापारी को अपनी (UPBoardSolutions.com) अफीम नहीं बेच सकते थे।
  4. एक बार फसल को बोने के उपरांत किसान का उसे फसल पर कोई अधिकार नहीं होता था। इस व्यवस्था का सबसे बुरा पक्ष यह था कि फसल के दाम भी एजेंटों द्वारा निर्धारित किए जाते थे जोकि सामान्यतः बाजार भाव से बहुत कम होते थे।

प्रश्न 9.
नवीन कृषि मशीनों से किसानों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों को निम्नलिखित लाभ हुए-

  1. नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों का काफी समय बचा। उदाहरण के लिए, 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि में फसल का उत्पादन करते थे।
  2. इन मशीनों से जमीन के बड़े टुकड़ों पर फसल काटने, ढूँठ निकालने, घाट हटाने और भूमि को दोबारा खेती के लिए तैयार करने का काम बहुत आसान हो गया था।
  3. मशीनों के उपयोग से गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिससे बड़े किसानों को बहुत अधिक लाभ हुआ।

प्रश्न 10.
कृषि में जुताई के यंत्रों ने क्या परिवर्तन किए?
उत्तर:
कृषि में जुताई के यंत्रों के प्रयोग से निम्नलिखित परिवर्तन आए-

  1. अमेरिकी किसान पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने के क्रम में जब पश्चिमी प्रेयरी के मध्य में पहुँचे तो उनके हल बेकार हो गए जिनका उपयोग वे पूर्वी तटीय प्रदेशों में करते आ रहे थे।
  2. प्रेयरी का प्रदेश घनी घासों से पूरी तरह ढंका हुआ था। इन घासों की जड़े अत्यन्त कठोर थीं। मिट्टी से इन घास की जड़ों को बाहर निकालने के लिए दूसरे प्रकार के हलों का विकास करना पड़ा। इनमें से कुछ हल 12 फुट तक लंबे थे। इन हलों का अग्रभाग छोटे-छोटे पहियों पर टिका हुआ था। इन हलों को खीचने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता थी, अतः इन्हें 6 (UPBoardSolutions.com) बैल या घोड़े खींचते थे।
  3. 20वीं शताब्दी के आगमन के साथ ही विशाल मैदानों के किसान अपने खेतों को तैयार करने के लिए ट्रैक्टरों तथा डिस्क हलों का प्रयोग करने लगे। इसके पश्चात् कृषि का पूरी तरह यंत्रीकरण हो गया।

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प्रश्न 11.
किस प्रकार अमेरिका में अप्रवासियों का पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इण्डियनों को पूरी तरह विनाश हो गया?
उत्तर:
सन् 1775 से 1783 ई0 तक अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम चला। संयुक्त राज्य अमेरिका के गठन के बाद पूर्वी तट से देखने पर अमेरिका पूरी तरह संभावनाओं से भरपूर दिखता था। 1783 ई० तक सात लाख के लगभग श्वेत पश्चिम की ओर दरों के रास्ते अपलेशियन पठारी क्षेत्र में जाकर बस चुके थे। अमेरिका में अप्रवासियों के पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इंडियनों का पूरी तरह विनाश हो गया जिन्हें पहले मिसीसिपी नदी के पार और बाद में और भी पश्चिम की ओर खदेड़ दिया गया।

उन्होंने वापसी के लिए संघर्ष किया किन्तु हरा दिए गए। बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनमें इंडियन लोगों की हत्या किया गया। उनके गाँवों को जला दिया गया और पशुओं को मार डाला गया। | उन्होंने जंगल साफ करके बनाई गई जगहों पर लकड़ी के केबिन बना लिए। फिर उन्होंने बड़े क्षेत्र में जंगलों को साफ करके खेतों के चारों ओर बाड़े लगा दीं इसके बाद इस जमीन की जुताई की और इस जमीन पर उन्होंने मक्का और गेहूँ बो दिया।

प्रश्न 12.
निर्धन लोग बाड़बंद आंदोलन से किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:
बाड़बंद आंदोलन निर्धन लोगों के लिए अभिशाप सिद्ध हुआ क्योंकि-

  1. गरीबों को जमीन से विस्थापित कर दिया गया।
  2. अब उन्हें प्रत्येक चीज को पाने के लिए उसका मूल्य चुकाना पड़ता था।
  3. उनके पारंपरिक अधिकार छीन लिए गए।
  4. उन्हें काम की खोज करनी पड़ी।
  5. गरीब अब न तो जंगल से जलावन की लकड़ी बटोर सकते थे और न ही साझा जमीन पर अपने पशुओं को चरा सकते थे।
  6. वे न तो सेब या कंद-मूल बीन सकते थे और न ही गोश्त के लिए छोटे जानवरों का शिकार कर सकते थे।

प्रश्न 13.
पाठ्य-पुस्तक की पृष्ठ संख्या 129 का ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए तथा इस चित्र के विश्लेषण पर आधारित निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार
(क) उपर्युक्त चित्र में किस दृश्य को प्रदर्शित किया गया है?
(ख) चित्र में प्रदर्शित घटना कब घटी और इसके क्या कारण थे?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त चित्र में काले रेतीले तूफान को दिखाया गया है। 1830 ई0 के दशक में दक्षिण अमेरिका के मैदानों में आने वाले रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान’ कहते थे।
(ख) अमेरिका में गेहूं की खेती के लिए वनों का अंधाधुंध विनाश 1930 ई० के दशक में रेतीले तूफानों के लिए उत्तरदायी थे। 19वीं सदी की शुरुआत में महत्त्वाकांक्षी किसानों ने लापरवाही से जमीन के हर संभव हिस्से से सारी वनस्पति साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की सहायता से इस जमीन की (UPBoardSolutions.com) मिट्टी को पलट डाला और मिट्टी को धूल में बदल दिया। परिणामतः 1930 के देशक में यह सारा क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में बदल गया था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बाड़बंदी से क्या आशय है? 18वीं सदी में इंग्लैण्ड में जमीन की बाड़बंदी क्यों की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी से 18वीं सदी में आशय उस भूमि से था जिसमें भूमि के एक टुकड़े को चारों ओर से बाड़ के माध्यम से घेरा गया हो और जिसके चारों ओर बाड़ लगाई गयी हो। ऐसा करने से एक की भूमि दूसरे से पृथक् हो जाती थी।
जमीन को अन्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए घेरा गया था ताकि इंग्लैण्ड की बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके जो कि 1750 और 1950 के बीच के समय में चार गुना बढ़कर 1750 में 70 लाख की जनसंख्या से बढ़कर 1850 में 2 करोड़ दस लाख एवं 1900 ई० में 3 करोड़ हो गई थी। इसने जनसंख्या का पेट भरने के लिए अनाज की माँग में वृद्धि कर दी।

ब्रिटेन में औद्योगीकरण के कारण शहरी जनसंख्या में वृद्धि हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग काम की खोज में शहरों में प्रवास कर गए। जिंदा रहने के लिए उन्हें बाजार से अनाज खरीदना पड़ता था जिससे बाजारों का विस्तार हुआ और अंततः अनाज की कीमतें बढ़ गईं।
अठारहवीं सदी के अंत तक फ्रांस का इंग्लैण्ड के साथ युद्ध छिड़ चुका था। इसने यूरोप से आयात किए जाने वाले अनाज एवं व्यापार में व्यवधान डाला। अनाज के दाम बढ़ गए जिसने जमींदारों को बाड़बंदी के लिए प्रोत्साहित किया। लंबे समय के लिए जमीन में निवेश करने एवं भूमि की उर्वरता (UPBoardSolutions.com) को बनाए रखने के लिए अदल-बदल कर फसल बोने की योजना बनाने के लिए बाड़बंद करना जरूरी था। इसलिए संसद ने बाड़बंदी अधिनियम पारित किया।

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प्रश्न 2.
चीन के अफीम व्यापार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक इंग्लैण्ड में चीन की चाय व रेशम की माँग में अत्यधिक वृद्धि हो गयी थी। इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से इन वस्तुओं को खरीदकर इंग्लैण्ड में बेचा करती थी। इंग्लैण्ड में चाय की लोकप्रियता बढ़ने के साथसाथ इंग्लैण्ड में इसकी माँग तेजी से बढ़ी। 1785 ई0 के आसपास इंग्लैण्ड में 1.5 करोड़ पौंड चाय का आयात किया जा रहा था।

1830 ई0 तक आते-आते यह आँकड़ा 3 करोड़ पौंड को पार कर चुका था। वास्तव में, इस समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे का एक बहुत बड़ा हिस्सा चाय के व्यापार से पैदा होने लगा था। ईस्ट इंडिया कंपनी की मुख्य समस्या यह थी कि उसके पास चाय के आयात के बदले (UPBoardSolutions.com) चीन को निर्यात करने के लिए कुछ नहीं था। अंग्रेजों को चीनी और चाय का मूल्य सोनेचाँदी में चुकाना पड़ता था। फलस्वरूप इंग्लैण्ड के सोने-चाँदी के भंडार समा; हो रहे थे। वे चाय के बदले में चीन को कोई चीज भेज कर अपने व्यापार को बनाए रखना चाहते थे। यह वस्तु अफीम के रूप में सामने आई।

चीन में सबसे पहले पुर्तगालियों ने अफीम भेजनी शुरू की थी। इसका प्रयोग मुख्यतः कुछ औषधियों में होता था। परंतु चीनी सरकार को भय था कि लोगों को धीरे-धीरे अफीम खाने की लत लग जाएगी। अतः चीनी सम्राट ने अफीम के उत्पादन तथा बिक्री पर रोक लगा दी थी। अब अंग्रेजों ने चीन में अफीम का अवैध व्यापार करने की योजना बनाई ताकि चाय पर खर्च होने वाली राशि को पूरा किया जा सके। अतः भारत में बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने वहाँ के किसानों को अफीम उगाने के लिए विवश किया। भारत में पैदा होने वाली अफीम को अंग्रेज अवैध रूप से चीन भेजने लगे।

पश्चिम के व्यापारी चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम लाते थे और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के जरिए देश के आंतरिक हिस्सों में भेज देते थे। 1820 ई० के आस-पास अफीम के लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन में लाए जा रहे थे। 15 साल बाद गैरकानूनी ढंग से लाए जाने वाली इस अफीम की मात्रा 35,000 क्रेट का आँकड़ा पार कर चुकी थी। इस अवैध व्यापार के कारण शीघ्र ही चीनी जनता (UPBoardSolutions.com) अफीम की लत का शिकार होने लगी। चीन विश्व में अफीम का नशा करने वालों के देश के रूप में जाना जाने लगा। कैंटन शहर के निवासी एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार चीन के लगभग 1 करोड़, 20 लाख लोगों को अफीम के नशे ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका में गेहूं के उत्पादन में तेजी से हुई वृद्धि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका के गेहूँ उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई तथा इसका वैश्विक निर्यात भी बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विश्व बाजार में तेजी आई। रूसी गेहूँ की आपूर्ति बंद कर दी गई और अमेरिका को यूरोप के गेहूँ की आपूर्ति करनी पड़ी। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों को गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। 1910 ई० में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन (UPBoardSolutions.com) पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ वर्ष के बाद गेहूं उत्पाद का क्षेत्रफल लगभग 65 प्रतिशत से बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ हो गया था।

माँग बढ़ने के साथ गेहूँ के दामों में भी उछाल आ रहा था। इससे उत्साहित होकर किसान गेहूँ उगाने की तरफ झुकने लगे। रेलवे के प्रसार से खाद्यान्नों को गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों से निर्यात के लिए पूर्वी तट पर ले जाना आसान हो गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों से वक्त की पुकार सुनने का आह्वान किया‘खूब गेहूं उपजाओ। गेहूँ ही हमें जंग जिताएगा।”

1910 ई0 में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ साल बाद 1919 ई. में गेहूँ। उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ यानी लगभग 65 प्रतिशत ज्यादा हो गया था। इसमें से ज्यादातर वृद्धि विशाल मैदानों (ग्रेट प्लेस) में हुई थी।

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ की गयी पेशगी प्रणाली का निर्धन किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
बंगाल और बिहार में निर्धन किसानों की बहुत बड़ी जनसंख्या थी जिनके पास रोटी-कपड़ा खरीदने तथा जमींदार को लगान देने के लिए पैसों की कमी थी। 1780 ई० से ऐसे किसानों को यह जानकारी प्राप्त हुई कि गाँव का मुखिया किसानों को अफीम की खेती के लिए अग्रिम धन (पेशगी) देता है। (UPBoardSolutions.com) जब किसानों को ऋण देने की पेशकश की गयी तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योंकि इससे उनकी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरी करने के बाद ऋण चुका पाने की आशा बलवती हो गयी।
किसानों के सामने प्रस्तुत पेशगी प्रणाली के निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. उसके पास इस जमीन पर कोई दूसरी फसल उगाने का विकल्प भी नहीं था और इस फसल को सरकारी एजेंट को छोड़कर कहीं और बेचने की आजादी भी नहीं थी।
  2. उसे उसकी फसल की कम कीमत स्वीकार करनी पड़ती थी।
  3. ऋण वास्तव में किसानों को मुखिया के बंधुआ और उसके जरिए सरकार का बंधुआ बना देते थे।
  4. ऋण लेने के बाद किसान को निर्धारित क्षेत्र में अफीम बोनी पड़ती थी और पूरी फसल को एजेंटों के हवाले करना पड़ता था।

प्रश्न 5.
‘कैप्टन स्विंग आन्दोलन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग आन्दोलन – मजदूरों के बढ़ते असन्तोष ने धीरे-धीरे आंदोलन का रूप धारण कर लिया। शुरुआत में यह आन्दोलन रात में किसानों के बाड़ों तथा खलिहानों में आग लगाने तक सीमित था। ईस्ट कैण्ड के मजदूरों ने 28 अगस्त, 1830 ई0 को एक श्रेसिंग मशीन को तोड़ डाला। इस घटना के बाद इंग्लैण्ड के पूर्वी तथा दक्षिणी भागों में श्रेसिंग मशीनों को तोड़ने की घटनाएँ बढ़ने लगीं। इस आंदोलन में लगभग 387 श्रेसिंग मशीनों को तोड़ा गया। किसानों को धमकी भरे पत्र भेजे गए जिनमें उनसे कहा जाता था कि वे अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दें अन्यथा आंदोलनकारी उन्हें नष्ट कर देंगे। इन पत्रों पर प्रायः ‘कैप्टन स्विंग’ नामक व्यक्ति के हस्ताक्षर होते थे। आंदोलनकारियों के संभावित आक्रमण से बचने के लिए अनेक लोगों ने अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दिया।

आंदोलन का दमन-कैप्टन स्विंग आन्दोलन के बढ़ते प्रभाव से इंग्लैण्ड की सरकार चिंतित हो उठी। सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए सख्त कार्यवाही की। जिन लोगों पर भी सरकार को शक था उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार किए गए लोगों में से 1976 लोगों पर मुकदमा (UPBoardSolutions.com) चलाया गया जिनमें से 9 लोगों को फाँसी दी गई, 505 लोगों को देश निकाला दिया गया तथा अन्य लोगों को कठोर सजाएँ दी गईं परंतु ‘कैप्टन स्विंग’ सदा सरकार के लिए एक रहस्य ही बना रहा।

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प्रश्न 6.
पश्चिमी अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार और रेतीले तूफान का अन्तर्सम्बन्ध प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कृषि भूमियों के विस्तार से पूर्व अमेरिका का अधिकांश भाग वनों एवं घास भूमियों से ढका हुआ था। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन वनों एवं घास भूमियों को साफ करके गेहूं के खेतों में बदल दिया। इन क्षेत्रों में गेहूँ। के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिसके कारण अमेरिका के विशाल मैदानों को ‘रोटी का कटोरा’ कहा जाने लगा। गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई0 के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। अमेरिका के दक्षिणी मैदानों पर भयानक रेतीले तूफान आने लगे। इन्हें काले तूफान के नाम से (UPBoardSolutions.com) जाना जाने लगा। काले रेतीले तूफान 7,000 से 8,000 फुट ऊँचे होते थे। ये गंदे पानी की भीमकाय लहरों की तरह प्रकट होते थे। 1930 ई0 के दशक में ऐसे तूफान प्रतिदिन एवं प्रतिवर्ष आते थे।

जैसे ही आसमान में अंधेरा होता और रेत गिरता, रेत के कारण लोग अंधे हो जाते तथा उनका दम घुटने लगती। पशु दम घुटने के कारण मारे जाते, उनके फेफड़ों में रेत और कीचड़ भर जाता। रेत से खेतों की मेड़े (खेतों को एक-दूसरे खेत से अलग करने के लिए) गुम हो जातीं, खेत रेत से पट जाते तथा यह रेत नदी की सतह पर इस तरह जम जाती थी कि मछलियाँ साँस न ले पाने के कारण मर जाती थीं। मैदानों में चारों ओर पक्षियों और पशुओं की हड्डयाँ बिखरी दिखाई देती थीं। ट्रैक्टर और मशीनें अब रेत के ढेरों में फंस कर (UPBoardSolutions.com) इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत भी नहीं की जा सकती थी। वर्षा में प्रतिवर्ष कमी होती गयी और लोगों को सूखे का सामना करना पड़ा। इस तरह रोटी का कटोरा शीघ्र ही धूल के कटोरे में परिवर्तित हो गया।

ये समस्त मौसमी परिवर्तन वनस्पति आवरण के समाप्त होने का परिणाम थे। किसानों ने अधिक-से-अधिक कृषि-क्षेत्र प्राप्त करने के लालच में वनस्पति के आवरण को बुरी तरह नष्ट कर दिया था। मिट्टी को उलट-पुलट दिया गया था और उसमें फैंसी घास को जड़ों से उखाड़ दिया गया था।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तनों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं-
(1) कृषि क्षेत्र में नवीन तकनीक का प्रयोग – निजी भूमियों की बाड़ाबंदी ने उनके विस्तार की भावना को भी प्रोत्साहित किया। किसान अपनी भूमियों को अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते थे। इसका अन्य क्रारण यह भी था कि इस काल में जनसंख्या में वृद्धि के कारण गेहूँ की माँग भी तेजी से बढ़ रही थी। खेतों के आकार में वृद्धि के कारण मजदूरों की आवश्यकता भी बढ़ी। मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने नई-नई मशीनों का कृषि में उपयोग करना आरंभ कर दिया। इन मशीनों में ट्रैक्टरों तथा श्रेसिंग मशीनों की उल्लेखनीय भूमिका थी।

पहले गेहूं की खेती को काटने तथा उससे गेहूँ निकालने में बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी परंतु श्रेसिंग मशीनों के उपयोग ने मजदूरों की कमी की इस समस्या को दूर कर दिया। इन मशीनों के उपयोग से जहाँ किसान ज्यादा-से-ज्यादा भूमि पर खेती करने में सफल हुए वहीं (UPBoardSolutions.com) मजदूरों के रोजगार में कमी हुई। गरीब और मजदूर लोग काम की तलाश में गाँव-गाँव भटकने लगे। अनेक ीग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे जबकि कुछ लोगों ने मशीनों के उपयोग के विरुद्ध आवाज उठानी आरंभ कर दी।

(2) सरल उर्वरक तकनीकों का प्रयोग – इंग्लैण्ड में खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 19वीं सदी के मध्य तक शलजम तथा तिपतिया घास की कृषि की जाती थी। कृषि कार्य हेतु खेतों को निरंतर उपयोग में लाने से उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ती थी, इसीलिए भूमि नाइट्रोजन और उर्वरता बढ़ाने के लिए शलजम व तिपतिया घास का उपयोग किया गया। पशु भी इन्हें रुचिपूर्वक खाते थे। इस तरह किसानों को दोहरा लाभ होता था। एक ओर भूमि की उर्वरता बढ़ती साथ ही पशुओं को भी पोषण ५ मिलता था। बाड़ाबंदी आन्दोलन के उपरान्त किसान अपनी निजी भूमियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आसान तरीकों का इस्तेमाल करने लगे।

(3) कृषि का प्रारंभिक स्वरूप – 18वीं सदी के मध्य तक इंग्लैण्ड में कृषि का मूल स्वरूप पूर्ववत् बना रहा। भूमि पर भूस्वामियों का निजी स्वामित्व नहीं था और न ही खेतों की बाड़ाबंदी की गयी थी। किसान अपने गाँव के आसपास की जमीन पर फसल उगाते थे। साल की शुरुआत में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के हर व्यक्ति को जमीन के टुकड़े आबंटित कर दिए जाते थे। जमीन के ये टुकड़े (UPBoardSolutions.com) समान रूप से उपजाऊ नहीं होते थे और कई जगह बिखरे होते थे। कोशिश यह होती थी कि हर किसान को अच्छी और खराब, दोनों तरह की जमीन मिले।

खेती की इस जमीन के परे साझा जमीन होती थी। इस साझा जमीन पर सभी गाँव वालों का हक होता था। यहाँ वे अपने पशु चराते थे, जलावन की लकड़ियाँ और कंदमूल फल आदि । इकट्ठा करते थे। यह साझा भूमि गरीब व्यक्तियों की अनेक प्रकार से सहायता करती थी। किसी प्राकृतिक संकट के कारण फसल न होने की स्थिति में भी यह भूमि उन्हें तथा उनके पशुओं को जीवित रखने में सहायक होती थी।

(4) बाड़ाबंदी – इंग्लैण्ड के कुछ भागों में साझी भूमि की इस परंपरा में 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में परिवर्तन आरंभ हो । गए। इसे काल में विश्व बाजार में ऊन की माँग में वृद्धि आरंभ हुई जिससे उसकी कीमतें बहुत तेजी से बढ़ीं। ऊन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भेड़ों की गुणवत्ता में सुधार, उचित सफाई व्यवस्था तथा अच्छे चारे की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा। इन्हीं मूलभूत कारणों ने किसानों को निजी खेतों एवं चरागाहों की स्थापना के लिए प्रेरित किया।

किसानों ने साझी भूमि की संकल्पना को त्यागकर साझा भूमि को काट-छाँट कर घेरना आरंभ कर दिया और इस निजी भूमि को चारों ओर से बाड़ लगाकर सुरक्षित करने लगे। इस व्यवस्था को ‘बाड़ाबंदी’ के नाम से जाना जाता है। 1750 ई० के बाद खेतों के चारों ओर बाड़ लगाने की यह परंपरा बहुत तेजी से इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में फैलने लगी जिसके कारण इसे ‘बाड़ाबंदी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 1750 ई0 से 1850 ई० के मध्य लगभग 60 लाख एकड़ भूमि पर बाड़े लगाई गईं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

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( मासिक आन्तरिक मूल्यांकन एवं प्रोजेक्ट कार्य )

शिक्षार्थी भारत के गीत, नृत्य, पर्व और निश्चित मौसम में प्रमुख प्रकार के भोजन की पहचान, साथ ही क्या एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र से कुछ समानता है? इसकी पहचान करें। शिक्षार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशुजगत से पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना। इसमें उन (UPBoardSolutions.com) प्रजातियों की सूची बनाना, जिनका अस्तित्व खतरे में है एवं उनको सुरक्षित करने से सम्बन्धित प्रयासों की सूचना सूचीबद्ध करना।

पोस्टर

नदी-प्रदूषण।
वनों का क्षरण एवं पारिस्थितिकीय असंतुलन।
नोट-कोई समान गतिविधि भी चुनी जा सकती है।

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प्रोजेक्ट कार्य-1

विषय – भारत के राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रगान का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में योगदान। )
उद्देश्य – राष्ट्र-गीत और राष्ट्र-गान का उद्देश्य देशवासियों को देश के प्रति सम्मान, एकता, समर्पण के लिए तैयार करना राष्ट्रगान भारत के राष्ट्रीय गान के रचयिता विश्व (UPBoardSolutions.com) कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर हैं। यह गान 52 सेकेण्ड में गाया जाता है और जब तक गाया जाये सभी को सावधान की स्थिति में खड़े रहना चाहिये। यह राष्ट्रगान निम्न प्रकार है

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राष्ट्रीय गीत

बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रीय गीत है जिसे ‘जन-गण-मन’ के समान ही राष्ट्रीयगान का दर्जा प्राप्त है। इसका प्रथम पद निम्न प्रकार है

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

निष्कर्ष- इस प्रोजेक्ट में राष्ट्रगान के अंतर्गत् भारत के विशाल भू-भाग, विभिन्न जातियों, प्रदेशों, नदियों का वर्णन किया गया है जबकि राष्ट्रीय गीत में भारत माता का मनोरम वर्णन किया गया है।

प्रोजेक्ट कार्य-2

विषय – देशभक्ति के गीत का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में भूमिका।
उद्देश्य – देशभक्ति का गीत देशवासियों में देश-प्रेम व देश की एकता-अखण्डता को बनाए रखने की ऊर्जा का संचार करता है।

देशभक्ति गीत

सप्ताह में कम-से-कम दो बार प्रसिद्ध शायर इकबाल का निम्नलिखित गीत सामूहिक प्रार्थना-सभा में छात्रों द्वारा मिलकर गाया जाना चाहिये

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

निष्कर्ष- किसी भी व्यक्ति के लिए उसका देश सर्वोपरि स्थान रखता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मुहम्मद इकबाल ने भारत के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करने वाली ये कविता लिखी थी।

प्रोजेक्ट कार्य-3

विषय – भारत के प्रमुख लोक-नृत्यों का वर्णन कीजिए।
उद्देश्य – देश के विभिन्न भागों की संस्कृति की जानकारी हासिल करना।

भारत के लोक-नृत्य भारत के लोक-नृत्य निम्नलिखित हैं

  1. कालबेलिया-राजस्थान की कालेबिया जनजाति की महिलाओं का लोक-नृत्य है।
  2. बिदेशिया-भिखारी ठाकुर द्वारा रचित यह लोक-नृत्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार के भोजपुरी समाज में प्रचलित है।
  3.  छऊ-बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा (ओडिशा) के आदिवासियों द्वारा किये जाने वाला एक युद्धनृत्य है जो प्रमुखतः पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  4. भांगड़ा-पंजाब का यह उत्साह भरा लोक-नृत्य मुख्यतः पुरुषों द्वारा ढोल की ताल-लय पर किया जाता है।
  5. गरबा-गुजरात में नवरात्रि के पर्व पर किये जाने वाला यह लोक-नृत्य मिट्टी के घड़े के ऊपर दीपक रखकर उसके चारों ओर घेरा बनाकर किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) महिलाओं के सिर पर मिट्टी के पात्र में दीपक भी रखा जाता है।
  6. बिहु-असम का यह लोक-नृत्य कचारी तथा कछारी जनजातियों में प्रचलित है और वर्ष में तीन बार आयोजित किया जाता है।
  7.  घूमर-राजस्थान में महिलाओं द्वारा होली तथा नवरात्रि में किये जाने वाला विशिष्ट लोक-नृत्य है।
  8. रउफ-जम्मू-कश्मीर के इस ग्रामीण लोक-नृत्य में महिलाएँ पंक्तियों में एक-दूसरे के सामने खड़े होकर तथा गले में बाँहें डालकर नृत्य करती हैं।

निष्कर्ष- भारत के अलग-अलग भागों में उन भागों की सांस्कृतिक विशेषता के अनुरूप नृत्यों का प्रचलन है। इन नृत्यों की शैली में हमें पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है। इन नृत्यों के माध्यम से हमें लोक-संस्कृति को समझने में सहायता मिलती है तथा हम अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से भी जुड़े रहते हैं।

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प्रोजेक्ट कार्य-4

विषय- प्रकाश पर्व दीपावली की उपयोगिता।
उद्देश्य- इस पर्व का प्रमुख निहितार्थ क्या है?

दीपावली का त्यौहार भगवान राम के 14 वर्ष का वनवास काटकर अपने राज्य अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। राम के वापस लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। दीपावली को प्रकाश-उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर लक्ष्मी जी घर आती हैं। भगवान राम ने असुरों के राजा रावण को मारकर लोगों की असुरों से रक्षा (UPBoardSolutions.com) की थी। इसे बुराई पर अच्छाई का, असत्य पर सत्य की जीत भी कहते हैं। इस अवसर पर घर-द्वार आदि की सफाई की जाती है। ऐसा विश्वास है कि स्वच्छता रखने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। दीपावली के दिन सूर्यास्त के बाद धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेश की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

निष्कर्ष- यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय और धन की देवी लक्ष्मी के आगमन की कामना के साथ मनाई जाती है।

प्रोजेक्ट कार्य-5

विषय-मकर संक्रान्ति के धार्मिक और भौगोलिक महत्त्व को ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बच्चों को इस पर्व के धार्मिक एवं भौगोलिक महत्त्व को स्पष्ट करना है।

मकर संक्रान्ति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में शामिल है। यह त्यौहार सूर्य के उत्तरायण होने पर मनाया जाता है। प्रायः यह त्यौहार प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन कभी-कभार यह 13 और 15 जनवरी को भी मनाया जाती है। मकर संक्रान्ति का सीधा सम्बन्ध पृथ्वी और सूर्य की स्थिति से है। जब सूर्य मकर रेखा पर आता है तब मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। ज्योतिष की दृष्टि से इस दिन (UPBoardSolutions.com) सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति आरंभ होती है।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रान्ति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है, वहीं असम (असोम) में इसे बिहू के रूप में मनाया जाता है। इस तरह देश के प्रत्येक प्रांत में इसे मनाने का तरीका अलग-अलग है।
इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, किन्तु दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की पहचान बन गयी है। इसके अतिरिक्त तिल व गुड़ का भी इस मकर संक्रान्ति में विशेष महत्त्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान आदि देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। इस अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा रही है।

निष्कर्ष- मकर संक्रान्ति से दिन की अवधि बढ़ने लगती है। यह शीत ऋतु के क्रमिक समापन का आरंभ है। क्रमशः मौसम गर्म होता चला जाता है क्योंकि उत्तरायण होना शुरू हो जाता है। इस अवसर पर लोगों के खान-पान में भी परिवर्तन आता है।

प्रोजेक्ट कार्य-6

विषय-हम होली क्यों मनाते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उद्देश्य-होली के त्योहार से हमें क्या सीख मिलती है? इसे ज्ञात कीजिए।

बहुत साल पहले हिरण्यकश्यप नाम के दुष्ट भाई की एक दुष्ट बहन होलिका थी, जो अपने भाई के पुत्र प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर जलाना चाहती थी। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे जिन्होंने होलिका की आग से प्रहलाद को बचाया। होलिका उस आग में जलकर मर गयी। तभी से हिन्दू धर्म के लोग बुरी शक्तियों पर अच्छाई की जीत के रूप में होली का त्योहार हर्षोल्लासपूर्वक मनाते हैं। रंगों के इस उत्सव (UPBoardSolutions.com) में लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। प्रतिवर्ष यह त्योहार चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। होली का यह उत्सव फाल्गुन मास के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरू होता है।

निष्कर्ष- होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इससे यह सन्देश मिलता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है। बुरी शक्तियाँ कुछ समय के लिए हमें भले ही सबल लगें किन्तु अंततः उनकी पराजय होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-7

विषय- निश्चित मौसम के अनुसार भोजन की पहचान कीजिए।
उद्देश्य- इससे हमें यह ज्ञात होगा कि खाद्य-पदार्थों का मौसम के अनुरूप सेवन व्यक्ति को किस प्रकार स्वस्थ रखता है।

प्रायः भारतीय व्यंजन में चावल, दाल, रोटी, सब्जी सामान्य रूप से प्रचलित है, किन्तु फिर यदि हम मौसम के अनुरूप देखें तो सर्दी के मौसम में हमें हल्दी, अनार, तिल, दालचीनी, गाजर, हरी मिर्च, मीट-अण्डा-चिकन-मछली, शहद, खट्टे फल, बादाम, लहसुन, लौंग, प्याज, ड्राई फूट, मूंगफली, अमरूद, बाजरा, मेथी का साग, गुड़ आदि का सेवन करना चाहिए। इसके साथ मसालेदार और गरिष्ठ भोजन सर्दियों में (UPBoardSolutions.com) सरलता से पच जाता है।

गर्मी का मौसम आते ही कई तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें जैसे-डिहाडेशन, भूख न लगना, अत्यधिक पसीना आना आदि शुरू हो जाती है। इस कारण गर्मियों के मौसम में अपने आपको सन-स्ट्रोक (लू) से बचाना व शरीर के तापमान को नियंत्रित रखना एक चुनौती होती है। शरीर में नमी के स्तर को बनाए रखने के लिए हमें अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। गर्मी में हमें दही सेवन करना चाहिए। इसके अलावा खीरा, तरबूज, नारियल पानी, गन्ने का रस, फालूदा, लौकी, करेला, तोरी, कद्द, टिंडा, परमल, भिंडी, चौलाई का सेवन करना लाभकारी होता है। गर्मियों में मसालों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तैलीय पदार्थों का भी सेवन कम-से-कम (UPBoardSolutions.com) करना चाहिए क्योंकि अधिक तैलीय पदार्थ का सेवन शरीर में गर्मी पैदा करता है और कई तरह की शारीरिक समस्यायें उत्पन्न होती हैं। गर्मियों में जंक-फूड के सेवन से फूड-प्वाइजनिंग का खतरा रहता है अतः इससे बचना चाहिए। चाय और काफी का भी गर्मियों में सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति शरीर में गर्मी अनुभव करता है। पपीता, अनन्नास जैसे गर्म फलों का सेवन गर्मी में नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सर्दी के मौसम में ऐसे फल या भोजन लेने की सलाह दी जाती है जो शरीर को गर्म रखे जबकि गर्मी में अधिक पानी वाले फल तथा (UPBoardSolutions.com) शीतल तासीर वाले भोजन को करने की सलाह दी जाती

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प्रोजेक्ट कार्य-8

विषय-एक क्षेत्र के भोजन की दूसरे क्षेत्र के भोजन से समानता ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-विभिन्न क्षेत्रों की भोजन सम्बन्धी आदतों को ज्ञात करना और उसमें अंतर करना।

उत्तर भारत का खाना विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में दम-आलू, रोगन-जोश, आलू-पराठा, खीर, सरसों का साग, पराठा, फालुदा, लस्सी, छाछ, हलवा-पुरी, तंदूरी चिकन, चिकन रसा, चिकन मसाला, मटन मसाला, मटन रोस्ट, चिकन टिक्का, कबाब बिरयानी, मशरूम की सब्जी, दाल-मखानी, राजमा, छोले, कढ़ी, पकौड़ा, शाही-पनीर, खोया पनीर, फिरिनी, जलेबी, मालपुआ, समोसे आदि उत्तर (UPBoardSolutions.com) भारत में प्रचलित प्रमुख आहार व्यंजन हैं। दक्षिण भारत में प्रचलित भोजनों में पेरुगु पुरी, इडली, डोसा, सांभर, पोंगल, चावल, नारियल, इमली, मीन कोजहमनु, पोलि, इड्डीअपम, रस्म, पारुपु डोसा, पुटू, आपम, इडी आपम, अवीयल, पेड़ी, चिकन स्टू, पायसम, सादया, पेरूगु पुरी, पाचहि पुलुसु, बदाम हलवा, बिरयानी आदि दक्षिण भारत के प्रमुख व्यंजन हैं।

निष्कर्ष- उत्तर और दक्षिण भारतीय भोजन में समानता यह है कि दोनों क्षेत्रों में शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन प्रचलित हैं। क्षेत्रवार अंतर भी है जैसे-उत्तर भारत में चावल और गेहूं दोनों पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं अतः उत्तर भारतीय खाद्य पदार्थों में गेहूं और चावल दोनों से बने भोज्य पदार्थ पाए जाते हैं जबकि दक्षिण भारत में चावल का उत्पादन अधिक होने से चावल से बने भोज्य पदार्थों की बहुलता है। ऐसे में यदि नामों के अंतर को छोड़ दिया जाए | तो उत्तर और दक्षिण भारत के भोजन में काफी हद तक समानता है।

प्रोजेक्ट कार्य-9

विषय-विद्यार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशु जगत के पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य विद्यार्थी को अपने पर्यावरण, वनस्पति एवं पशु सम्बन्धी ज्ञान को परखना है।

मेरा विद्यालय ग्रामीण अंचल में स्थित है। विद्यालय के चतुर्दिक प्रकृति की मनोरम छटा विद्यमान है। विद्यालय परिसर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आम, जामुन, इमली, पपीता, नीम, पीपल, बरगद, शीशम, सागौन आदि के वृक्ष हैं।
हमारे परिवेश में मानव अधिवास वाले क्षेत्र में गाय, बैल, घोड़े, गधे, बकरी, सुअर, कुत्ते, बिल्ली, भैंस, नीलगाय, सियार, भेड़िया, लोमड़ी, खरगोश आदि पाए जाते हैं। हिंसक वन्य (UPBoardSolutions.com) जीव हमारे क्षेत्र में इसलिए नहीं पाए जाते क्योंकि इस क्षेत्र में वनों को अभाव है। वृक्षों एवं पशुओं का संरक्षण पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अतः हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए तथा उसमें भी फलदार वृक्ष अधिक लगाने चाहिए जिससे हमें आवश्यकता अनुसार लकड़ी एवं साथ-ही-साथ फल भी प्राप्त होंगे।

निष्कर्ष-विद्यार्थी को अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना चाहिए। उसे अपने आसपास पाए जाने वाली वनस्पतियों और पशु जगत का यथासंभव संरक्षण का प्रयास करना चाहिए। वनस्पतियाँ जहाँ हमारे भरण-पोषण के काम आती। हैं तथा इससे लकड़ियाँ भी प्राप्त होती हैं वहीं पालतू पशुओं से हमें दूध, मांस तथा खाल प्राप्त होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-10

विषय-ऐसी जैव और वनस्पतियों की सूची बनाना जिनका अस्तित्व खतरे में है।
उद्देश्य-विलुप्ति की कगार पर खड़ी प्रजातियों के विलुप्ति के कारण जानना और उनके संरक्षण का प्रयास करना।

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

निष्कर्ष- लुप्तप्राय वनस्पतियों एवं पशुओं की सूची बनाने से हमें यह ज्ञात होगा कि बदलते पर्यावरण एवं मानवीय क्रियाकलापों का वनस्पति एवं पशु-जगत के अस्तित्व पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। कोई भी प्रजाति तभी विलुप्त होती है जब जीवन या अस्तित्व सम्बन्धी परिस्थितियाँ उसके विपरीत हो जाती हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 वन्य-समाज और उपनिवेशवाद

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 वन्य-समाज और उपनिवेशवाद

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 वन्य-समाज और उपनिवेशवाद.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर 

प्रश्न-1.
औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया :

  1. झूम खेती करने वालों को।
  2. घुमन्तू और घरवाही समुदायों को।
  3. लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को।
  4. बागान मालिकों को।
  5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को।

उत्तर:
(1) झूम खेती करने वालों को झूम कृषि पद्धति में वनों के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा जाता है और जलाया जाता था। मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर तक फसल काटी जाती है। इन खेतों पर दो-एक वर्ष कृषि करने के बाद इन भूखण्डों को 12 से 18 वर्ष के लिए परती छोड़ दिया जाता था। इन भूखण्डों में मिश्रित फसलें उगायी जाती थीं जैसे मध्य भारत और अफ्रीका में ज्वार-बाजरा, ब्राजील में कसावा और लैटिन अमेरिका के अन्य भागों में मक्का व फलियाँ।

औपनिवेशिक काल में यूरोपीय वन रक्षकों की नजर में यह तरीका वनों के लिए नुकसानदेह था। उन्होंने महसूस किया कि जहाँ कुछेक सालों के अंतर पर खेती की जा रही हो ऐसी जमीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। साथ ही, वनों को जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों के भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता है। झूम खेती के कारण सरकार के लिए लगान (UPBoardSolutions.com) का हिसाब रखना भी मुश्किल था। इसलिए सरकार ने झूम खेती पर रोक लगाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया। कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ और ने छोटे-बड़े विद्रोहों के जरिए प्रतिरोध किया।

(2) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को उनके दैनिक जीवन पर नए वन कानूनों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोग वनों में पशु नहीं चरा सकते थे, कंदमूल व फल एकत्र नहीं कर सकते थे और शिकार तथा मछली नहीं पकड़ सकते थे। यह सब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। इसके फलस्वरूप उन्हें लकड़ी चोरी करने को मजबूर होना पड़ता और यदि पकड़े जाते तो उन्हें वन रक्षकों को घूस देनी पड़ती। इनमें से कुछ समुदायों को अपराधी कबीले भी कहा जाता था।

(3) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को-19वीं सदी की शुरुआत में इंग्लैण्ड के बलूत वन लुप्त होने लगे थे जिससे शाही नौ सेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में कमी आयी। 1820 ई. तक अंग्रेज खोजी दस्ते भारत की वन संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के भीतर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और अत्यधिक मात्रा में भारत से लकड़ी का निर्यात किया (UPBoardSolutions.com) गया। लकड़ी निर्यात व्यापार पूरी तरह से सरकारी अधिनियम के अंतर्गत संचालित किया जाता था। ब्रिटिश प्रशासन ने यूरोपीय कंपनियों को विशेष अधिकार दिए कि वे ही कुछ निश्चित क्षेत्रों में वन्य उत्पादों में व्यापार कर सकेंगे। लकड़ी/वन्य उत्पादों का व्यापार करने वाली कुछ कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ। वे अपने फायदे के लिए अंधाधुंध वन काटने में लग गए।

(4) बागान मालिकों को भारत में औपनिवेशिक काल में लागू की गयी विभिन्न वन नीतियों का बागान मालिकों पर उचित प्रभाव पड़ा। इस काल में वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ करके उस पर बागानी कृषि आरंभ की गयी। इन बागानों के मालिक अंग्रेज होते थे, जो भारत में चाय, कहवा, रबड़ आदि के बागानों को लगाते थे। इन बागानों में श्रमिकों की पूर्ति प्रायः वन क्षेत्रों को काटने से बेरोजगार हुए वन निवासियों द्वारा की जाती थी। बागान के मालिकों ने मजदूरों को लंबे समय तक और वह भी कम मजदूरी पर काम करवा कर बहुत लाभ कमाया। नए वन्य कानूनों के कारण मजदूर इसका विरोध भी नहीं कर सकते थे क्योंकि यही उनकी आजीविका कमाने का एकमात्र जरिया था।

(5) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को औपनिवेशिक भारत में बनाए गए वन कानूनों ने वनवासियों के जीवन पर व्यापक प्रभाव डाला। पहले जंगल के निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग हिरन, तीतर जैसे छोटे-मोटे शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे। किन्तु शिकार की यह प्रथा अब गैर कानूनी हो गयी थी। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर अवैध शिकार करने वालों को दण्डित किया जाने लगा। (UPBoardSolutions.com) जहाँ एक ओर वन कानूनों ने लोगों को शिकार के परंपरागत अधिकार से वंचित किया, वहीं बड़े जानवरों का आखेट एक खेल बन गया। औपनिवेशिक शासन के दौरान शिकार का चलन इस पैमाने तक बढ़ा कि कई प्रजातियाँ लगभग पूरी तरह लुप्त हो गईं। अंग्रेजों की नजर में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक-चिह्न थे।

उनका मानना था कि खतरनाक जानवरों को मार कर वे हिंदुस्तान को सभ्य बनाएँगे। बाघ, भेड़िए और दूसरे बड़े जानवरों के शिकार पर यह कह कर इनाम दिए गए कि इनसे किसानों को खतरा है। 1875 से 1925 ई० के बीच इनाम के लालच में 80,000 से ज्यादा बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िये मार गिराए गए। धीरे-धीरे बाघ के शिकार को एक खेल की ट्रॉफी के रूप में देखा जाने लगा। अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों की हत्या ? की थी। प्रारंभ में वन के कुछ इलाके शिकार के लिए ही आरक्षित थे। सरगुजा के महाराज ने सन् 1957 तक अकेले ही 1,157 बाघों और 2,000 तेंदुओं का शिकार किया था।

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प्रश्न 2.
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर:
बस्तर में वन प्रबन्धन का उत्तरदायित्व अंग्रेजों के और जावा में डचों के हाथ में था। लेकिन अंग्रेज व डच दोनों सरकारों के उद्देश्य समान थे।
दोनों ही सरकारें अपनी जरूरतों के लिए लकड़ी चाहती थीं और उन्होंने अपने एकाधिकार के लिए काम किया। दोनों ने ही ग्रामीणों को घुमंतू खेती करने से रोका। दोनों ही (UPBoardSolutions.com) औपनिवेशिक सरकारों ने स्थानीय समुदायों को विस्थापित करके वन्य उत्पादों का पूर्ण उपयोग कर उनको पारंपरिक आजीविका कमाने से रोका।

बस्तर के लोगों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया या कि वे लकड़ी का काम करने वाली कंपनियों के लिए काम मुफ्त में किया करेंगे। इसी प्रकार के काम की माँग जावा में बेल्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली के अंतर्गत पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए ग्रामीणों से की गई। जब दोनों स्थानों पर जंगली समुदायों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी तो विद्रोह हुआ जिन्हें अंततः कुचल दिया गया। जिस प्रकार 1770 ई० में आवा में कलंग विद्रोह को दबा दिया गया उसी प्रकार 1910 ई० में बस्तर का विद्रोह भी अंग्रेजों द्वारा कुचल दिया गया।

प्रश्न 3.
सन् 1880 से 1920 ई0 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 (UPBoardSolutions.com) करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ-

  1. रेलवे
  2. जहाज निर्माण
  3. कृषि-विस्तार
  4. व्यावसायिक खेती
  5. चाय-कॉफी के बागान
  6. आदिवासी और किसान

उत्तर:
(1) रेलवे – 1850 ई0 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नयी माँग को जन्म दिया। शाही सेना के आवागमन तथा औपनिवेशिक व्यापार हेतु रेलवे लाइनों की अनिवार्यता अनुभव की गयी। रेल इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए स्लीपरों के रूप में लकड़ी की बड़े पैमाने पर आवश्यकता थी। एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760 से 2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। भारत में 1860 ई0 के दशक में रेल लाइनों का जाल तेजी से (UPBoardSolutions.com) फैला। जैसे-जैसे रेलवे पटरियों का भारत में विस्तार हुआ, अधिकाधिक मात्रा में पेड़ काटे गए। 1850 ई0 के दशक में अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में स्लीपरों के लिए 35,000 पेड़ सालाना काटे जाते थे। आवश्यक संख्या में आपूर्ति के लिए सरकार ने निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया और रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।

(2) जहाज निर्माण – 19वीं सदी के प्रारंभ तक इग्लैण्ड में बलूत के जंगल समाप्त होने लगे थे। इससे इग्लैण्ड की शाही जलसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो गयी क्योंकि समुद्री जहाजों के अभाव में शाही सत्ता को बनाए रखना संभव नहीं था। इसलिए, 1820 ई0 तक अंग्रेजी खोजी दस्ते भारत की वन-संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के अंदर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी का भारत से निर्यात किया गया।

(3) कृषि विस्तार – 19वीं सदी की शुरुआत में औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अनुत्पादक समझा। उनकी दृष्टि में इस व्यर्थ के वियावान पर कृषि करके उससे राजस्व और कृषि उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है और इस तरह राज्य की अन्य की वृद्धि की जा सकती है। इसी सोच का परिणाम था कि 1880 से 1920 ई0 के बीच कृषि योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। उन्नीसवीं सदी में बढ़ती (UPBoardSolutions.com) शहरी जनसंख्या के लिए वाणिज्यिक फसलों जैसे-जूट, चीनी, गेहूं एवं कपास की माँग बढ़ गई और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत पड़ी। इसलिए अंग्रेजों ने सीधे तौर पर वाणिज्यिक फसलों को बढ़ावा दिया। इस प्रकार भूमि को जुताई के अंतर्गत लाने के लिए वनों को काट दिया गया।

(4) व्यावसायिक कृषि – 19वीं शताब्दी में यूरोप की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। इसलिए यूरोपीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय किसानों को व्यावसायिक कृषि फसलों यथा-गन्ना, पटसन, कपास आदि का उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहित किया। इस कार्य हेतु अतिरिक्त भूमि प्राप्त करने के लिए वनों को बड़े पैमाने पर साफ किया गया।

(5) चाय-कॉफी के बागान – औपनिवेशिक सरकार ने यूरोपीय बाजार में चाय-कॉफी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत में इनकी कृषि को प्रश्रय दिया। उत्तर-पूर्वी (UPBoardSolutions.com) और दक्षिणी भारत के ढलानों पर वनों को काटकर चाय और कॉफी के बागानों के लिए भूमि प्राप्त की गयी।

(6) आदिवासी और किसान – आदिवासी सामान्यतः घुमंतू खेती करते थे जिसमें वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा एवं जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद रखि में बीज बो दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया वनों के लिए हानिकारक थी। इसमें हमेशा जंगल की आग का खतरा बना रहता था।

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प्रश्न 4.
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर:
युद्ध से वनों पर निम्न प्रभाव पड़ता है-

  1. जावा में जापानियों के कब्जा करने से पहले, डचों ने ‘भस्म कर भागो नीति अपनाई जिसके तहत आरा-मशीनों और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लगें। इसके बाद जापानियों ने वन्य-ग्रामवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके वनों का अपने युद्ध कारखानों के लिए निर्ममता से दोहन किया। बहुत से गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ (UPBoardSolutions.com) उठाकर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया। युद्ध के बाद इंडोनेशियाई वन सेवा के लिए इन जमीनों को वापस हासिल कर पाना कठिन था।
  2. भारत में वन विभाग ने ब्रिटेन की लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंधा-धुंध वन काटे। इस अंधा धुंध विनाश एवं राष्ट्रीय लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई वनों को प्रभावित करती है क्योंकि वे बहुत तेजी से खत्म होते हैं जबकि ये दोबारा पैदा होने में बहुत समय लेते हैं।
  3. स्थल सेना को अनेक आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ियों की आवश्यकता होती है।
  4. नौसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति (UPBoardSolutions.com) के लिए बनने वाले जहाजों के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ी की आवश्यकता होती है जिसे जंगलों को काट कर पूरा किया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
डच लोगों ने जावा में कुछ गाँवों को इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने तथा लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कराने का काम निःशुल्क में किया करेंगे। इसी व्यवस्था को ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन व्यवस्था कहते थे।

प्रश्न 2.
भारतीय वन अधिनियम कब लागू हुआ?
उत्तर:
1865 ई० में।

प्रश्न 3.
भारतीय वन सेवा की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारतीय वन सेवा की स्थापना सन् 1864 ई० में हुई।

प्रश्न 4.
बस्तर में निवास करने वाले प्रमुख आदिवासी समुदाय के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मरिया समुदाय,
  2. मुरिया, गोंड समुदाय,
  3. धुरवा समुदाय,
  4. भतरा समुदाय,
  5. हलबा समुदाय।

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प्रश्न 5.
मद्रास प्रेसीडेन्सी के किन्हीं तीन घुमन्तू समुदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. कोरावा समुदाय,
  2. कराचा समुदाय,
  3. मेरुकुला समुदाय।

प्रश्न 6.
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 ई० में देहरादून (उत्तराखण्ड) में हुई।

प्रश्न 7.
‘लेटेक्स’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
रबड़ के वृक्ष से प्राप्त तरल पदार्थ को लेटेक्स कहते हैं। इसका उपयोग प्राकृतिक रबड़ बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 8.
1890 ई0 तक भारत में रेल लाइनों का विस्तार कितना था?
उत्तर:
लगभग 25,500 किमी।

प्रश्न 9.
1948 ई० में भारत में रेल लाइनों की लंबाई क्या थी?
उत्तर:
7,65,000 किमी।

प्रश्न 10.
एक औसत कद के पेड़ से कितने स्लीपर बन सकते हैं?
उत्तर:
3 से 5 स्लीपर।

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प्रश्न 11.
भारत के प्रथम वन महानिदेशक का नाम बताइए।
उत्तर:
डायट्रिच बैंडिस।

प्रश्न 12.
सन् 1600 में भारत के कितने भाग पर खेती की जाती थी?
उत्तर:
छठे भाग पर।

प्रश्न 13.
1880 से 1920 ई० के मध्य कृषि भूमि के क्षेत्रफल में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
इस काल में कृषि भूमि में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।

प्रश्न 14.
एक मील लंबी पटरी बिछाने के लिए कितने स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
लगभग 1,760 से 2,000 स्लीपरों की।

प्रश्न 15.
गुंडा धूर कौन था?
उत्तर:
गुंडा धूर नेथानगर गाँव का एक आंदोलनकारी था जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत में सक्रिय भाग लिया। इस आंदोलन को दबाने में अंग्रेजों को तीन माह का समय लगा किन्तु गुंडा धूर अंग्रेजों की पकड़ में कभी नहीं आया।

प्रश्न 16.
वन ग्राम किसे कहते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने 1905 ई० में जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित कर दिया लेकिन कुछ गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन (UPBoardSolutions.com) विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। बाद में इन्हीं गाँवों को वन ग्राम कहा जाने लगा।

प्रश्न 17.
देवसारी या दांड किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह बस्तर के सीमावर्ती गाँव के लोगों द्वारा दिया जाने वाला एक शुल्क था। यदि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के जंगल से लकड़ी लेना चाहते थे तो उन्हें एक छोटा-सा शुल्क अदा करना पड़ता था। इसे ही देवसारी या दांड कहते थे।

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प्रश्न 18.
सुरोन्तिको सामिन ने कौन-सा आंदोलन चलाया?
उत्तर:
जावा द्वीप के निवासी सुरोन्तिको सामिन ने जैलों के राजकीय मालिकाने का विरोध किया। उसका तर्क था कि चूंकि हवा, पानी, जमीन और लकड़ी राज्य की बनायी हुई नहीं है इसलिए उन पर राज्य का अधिकार अनुचित है। शीघ्र ही यह विचार एक व्यापक आंदोलन में परिणत हो गया।

प्रश्न 19.
वन अधिनियम के प्रभावस्वरूप गाँव वालों को क्या दिक्कतें हुईं?
उत्तर:
वन अधिनियम के बाद घर के लिए लकड़ी काटनी, पशुओं को चराना, कंद-मूल, फल इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की गतिविधियाँ गैरकानूनी बन गई। जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं।

प्रश्न 20.
1700 से 1995 ई० के बीच कितने वनों की कटाई हुई?
उत्तर:
1700 से 1995 ई0 की अवधि में 139 लाख वर्ग किमी जंगल अर्थात् विश्व के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक उपयोग, कृषि, चरागाहों व ईंधन की लकड़ी के लिए साफ किया गया।

प्रश्न 21.
अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले वन विद्रोह के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत और विश्व में स्थित वन समुदायों ने वन कानूनों के माध्यम से अपने ऊपर थोपे गए कानूनों के विरुद्ध आवाज उठाई। संथाल परगना में सिद्ध और कानू, छोटा नागपुर में बिरसा मुंडा और आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू को आज भी लोकगीतों एवं कथाओं के माध्यम से स्मरण किया जाता है?

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बस्तर विद्रोह की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बस्तर विद्रोह की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. कांगेर वनों में रहने वाली धुरवा जनजाति ने इस विद्रोह का आरंभ किया। लेकिन यह एक संगठित विद्रोह नहीं था।
  2. इस विद्रोह का कोई मान्य नेता नहीं था परंतु इस विद्रोह पर सर्वाधिक प्रभाव नेथानगर गाँव के निवासी गुंडा धूर का था।
  3. 1910 में आंदोलनकारियों ने आम की टहनी, मिट्टी के ढेले, मिर्च तथा तीरों को गाँव-गाँव पहुँचा कर अपने विचारों का प्रसार आरंभ किया।
  4. इस आंदोलन पर हुए खर्चे में सभी गाँवों ने कुछ-न-कुछ मदद अवश्य की थी।
  5. आंदोलनकारियों ने जगदलपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में ब्रिटिश अफसरों और व्यापारियों के घरों, स्कूलों, पुलिस थानों तथा अन्य सरकारी भवनों को जला दिया। बाजारों को लूट लिया गया।

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प्रश्न 2.
भारतीय वन अधिनियम, 1865 पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
इस अधिनियम के लागू होने के बाद इसमें दो बार पहले 1878 और फिर 1927 ई० में संशोधन किए गए। 1878 ई० वाले अधिनियम में वनों को तीन श्रेणियों-आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण में बाँटा गया। सबसे अच्छे वनों को ‘आरक्षित वन कहा गया। गाँव वाले इन वनों से अपने (UPBoardSolutions.com) उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर बनाने या ईंधन के लिए सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे। वर्तमान में भारत के कुल वन क्षेत्र का 54.4% आरक्षित वन, 29.2% सुरक्षित वन तथा 16.4% ग्रामीण वन (अवर्गीकृत वन) हैं।

प्रश्न 3.
जावा के कलांग इतने बहुमूल्य क्यों थे?
उत्तर:
जावा के कलांग कुशल वन काटने वाले और भ्रमणशील कृषि करने वाले थे। उनकी दक्षता के बिना सागौन की कटाई करके राजाओं के महल बनाना कठिन होता था। जब अठारहवीं शताब्दी में डचों ने वनों पर नियंत्रण प्राप्त किया तो उन्होंने कलांगों को अपने अधीन करके उनसे काम लेने का प्रयास किया। 1770 ई० में कलांगों ने जोआना में एक डच किले पर आक्रमण करके विरोध जताने (UPBoardSolutions.com) की कोशिश की किन्तु इसे विद्रोह को दबा दिया गया। वे इतने बहुमूल्य थे कि जब 1755 ई० में जावा की माताराम रियासत का विभाजन हुआ तो 6,000 कलांग परिवारों को दोनों राज्यों ने आपस में आधा-आधा बाँट लिया।

प्रश्न 4.
वन निवासियों के लिए वनोत्पाद किस प्रकार लाभदायक थे?
उत्तर:
वनवासियों के लिए वनोत्पादों का महत्त्व निम्न प्रकार से है-

  1. सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग आसानी से ले जाए जा सकने वाली पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है।
  2. जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है—पत्तों को जोड़-जोड़ कर ‘खाओं-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं।
  3. सियादी की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती हैं।
  4. सेमूर (सूती रेशम) की काँटेदार छाल पर सब्जियाँ छीली जा सकती हैं।
  5. महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है।
  6. फल और कंद अत्यंत पोषक खाद्य हैं, विशेषकर मॉनसून के दौरान जबकि फसल कट कर घर नहीं पहुँची हो।
  7. जड़ी-बूटियों का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है।
  8. लकड़ी का प्रयोग हल और जूए जैसे खेती के औजार बनाने में किया जाता है।
  9. बाँस से बेहतरीन बाड़े बनायी जा सकती हैं और इसका उपयोग छतरी तथा टोकरी बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा घुमन्तू कृषि पर प्रतिबन्ध लगाने के क्या कारण थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा घुमंतू कृषि पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे-

  1. घुमंतू खेती में सरकार के लिए कर की गणना कर पाना कठिन था। इसलिए सरकार ने घुमंतू खेती को प्रतिबंधित कर दिया।
  2. औपनिवेशिक सरकार घुमंतू खेती को वनों के लिए हानिकारक मानती थी।
  3. वे भूमि को रेलवे के लिए लकड़ी पैदा करने के लिए तैयार करना चाहते थे न कि खेती के लिए।
  4. उन्हें डर था कि जलाने की प्रक्रिया खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि यह उनकी बहुमूल्य लकड़ी को भी जला सकती है।

प्रश्न 6.
‘अपराधी कबीले’ कौन थे?
उत्तर:
नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोगों को अपराधी कबीले कहा जाता था जिन्हें लकड़ी चुराते हुए पकड़ा जाता था। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय लकड़ी काटने, अपने पशुओं को चराने, कंद-मूल एकत्र करने, शिकार एवं मछली पकड़ने से (UPBoardSolutions.com) वंचित हो गए। ये सभी गैरकानूनी घोषित कर दिए गए। इसके परिणामस्वरूप अब ये लोग वनों से लकड़ी चुराने पर बाध्य हो गए। उन्हें शिकार करने, लकड़ी एकत्र करने और अपने पशु चराने देने के लिए वन-रक्षकों को घूस देनी पड़ती थी।

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प्रश्न 7.
वैज्ञानिक वानिकी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इसके अन्तर्गत विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया तथा इनके स्थान पर सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगा दिए गए। इसे बागान कहा गया। वन विभाग के अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण कर विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्रों का आकलन किया तथा वन प्रबन्धन की योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी निर्धारित किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाए तथा कटाई के बाद रिक्त हुई भूमि पर पुनः वृक्ष लगाए जाएँ जिससे कुछ वर्ष बाद उन्हें दोबारा काटा जा सके।

प्रश्न 8.
घुमंतू कृषि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घुमंतू (झूम) कृषि एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका की एक पारंपरिक कृषि पद्धति है। इस तरह की कृषि में वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा और जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर में फसल काट ली जाती है। इन भूखण्डों पर दो-एक साल खेती करने के बाद इन्हें 12 से 18 साल तक के लिए परती छोड़ दिया जाता है जिससे वहाँ फिर (UPBoardSolutions.com) से जंगल पनप जाएँ। इन भूखंडों में मिश्रित फसलें उगायी जाती हैं। इसके कई स्थानीय नाम हैं जैसे-दक्षिण-पूर्व एशिया में लादिंग, मध्य अमेरिका में मिलपा, अफ्रीका में चितमने या तावी व श्रीलंका में चेना। हिंदुस्तान में घुमंतू खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जावा ( इंडोनेशिया) में वनों पर नियंत्रण पाने के लिए डचों ने कौन-सी नीति अपनायी?
उत्तर:
वर्तमान में जावा (डोनेशिया) एक चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है। लेकिन पहले यह हरे-भरे जंगलों से आवृत्त था। डचों ने यहाँ वन प्रबन्धन व्यवस्था की शुरुआत की। अंग्रेजों की भाँति डचों को भी समुद्री जहाज बनाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता थी। सन् 1600 में जावा की अनुमानित जनसंख्या 34 लाख थी और जावा निवासी घुमंतू कृषि करते थे। जब अठारहवीं शताब्दी में डचों ने वनों (UPBoardSolutions.com) पर नियंत्रण प्राप्त किया तो उन्होंने कलांगों को अपने अधीन करके उनसे काम लेने का प्रयास किया। 1770 ई0 में कलांगों ने जोआना में एक डच किले पर आक्रमण करके विरोध जताने की कोशिश की किन्तु इस विद्रोह को दबा दिया गया।

उन्नीसवीं सदी में डचों ने जावा में वनं कानून लागू किया जिसने ग्रामीणों की वनों में पहुँच पर प्रतिबंध लगा दिया। अब वनों को केवल कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए ही काटा जा सकता था जैसे कि नदी के लिए नाव बनाने, घर बनाने और वह भी कुछ विशेष वनों से तथा वह भी कड़ी निगरानी में। ग्रामीणों को पशु चराने, बिना परमिट के लकड़ी ढोने, जंगल की सड़कों पर घोड़ा-गाड़ी या पशुओं पर यात्रा करने पर दंडित किया जाता था। 1882 ई0 में अकेले जावा से दो लाख अस्सी हजार रेलवे स्लीपरों का निर्यात किया गया (UPBoardSolutions.com) था। इचों ने पहले जंगलों में खेती की, जमीन पर कर लगा दिया और फिर कुछ गाँवों को इस कर से इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कराने का काम मुफ्त में किया करेंगे। इसे ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली के नाम से जाना जाता था।

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प्रश्न 2.
वन विनाश के प्रमुख कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वन का तेजी से काटा जाना या लुप्त होना वन विनाश कहलाता है। मानव प्राचीन काल से ही प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति हेतु वनों पर निर्भर रहा है। वनों से उसे लकड़ी, जलावन, पशुचारण, शिकार तथा दुर्लभ जड़ी-बूटियों की प्राप्ति होती है। औपनिवेशिक शासनकाल में भारत में तेजी से वनों की कटाई और लकड़ी का निर्यात आरंभ हुआ।
वन विनाश के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

(1) व्यावसायिक वानिकी का आरंभ-भारत में अंग्रेज शासक 19वीं शताब्दी के मध्य में यह बात अच्छी तरह समझ गए कि यदि व्यापारियों और स्थानीय निवासियों द्वारा इसी तरह पेड़ों को काटा जाता रहा तो वन शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे। वनों की अंधाधुंध कटाई के स्थान पर एक व्यवस्थित प्रणाली की आवश्यकता महसूस की। अतः ब्रिटिश सरकार ने डायट्रिच बैंडिस नामक एक जर्मन वन विशेषज्ञ को भारत का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया गया।

बैंडिस ने 1864 ई0 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की और 1865 ई० के भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध करने में सहयोग दिया। इम्पीरियल फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 ई0 में देहरादून में हुई। यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे वैज्ञानिक वानिकी’ (साइंटिफ़िक फ़ॉरेस्ट्री) कहा गया। आज पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति (UPBoardSolutions.com) कतई वैज्ञानिक नहीं है।
वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है। वन विभाग के अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र की नाप-जोख की और वन-प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा।

(2) बागानी कृषि को प्रोत्साहन-यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत ही सस्ती दरों पर यूरोपीय बागानी मालिकों को सौंप दिया। इन इलाकों की बाड़ाबंदी करके वनों को (UPBoardSolutions.com) साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी। पश्चिमी बंगाल, असोम, केरल, कर्नाटक में बड़े पैमाने पर वनों को काटा गया।

(3) कृषि भूमि का विस्तार–आधुनिक काल में भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की माँग में भी तीव्र वृद्धि हुई। जिसकी पूर्ति के लिए सीमावर्ती वनों को साफ करके कृषि क्षेत्रों का विस्तार किया गया।
औपनिवेशिक शासन काल में स्थिति और बिगड़ गई क्योंकि भारतीय कृषि को भारतीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ यूरोपीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी बाध्य होना पड़ा।

19वीं शताब्दी तक कृषि ही राजस्व का प्रमुख स्रोत थी तथा वनों का, महत्त्व मानव समाज के लिए गौण था अतः कृषि क्षेत्रों को बढ़ाने के अत्यधिक प्रयास किए गए। सन् 1880 से 1920 के मध्य मात्र 40 वर्षों में ही कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।
मध्यकाल में कृषि का स्वरूप खाद्यान फसलों के उत्पादन तक ही सीमित था परंतु ब्रिटिश शासन में यूरोपीय उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए व्यवसायिक कृषि का प्रचलन आरंभ हुआ। पटसन, नील, कपास तथा गन्ना जैसी फसलों के उत्पादन को अधिक प्रोत्साहित किया गया जिसके कारण कृषि क्षेत्रों की वृद्धि की आवश्यकता पड़ी और अधिक से अधिक पेड़ काट कर भूमि प्राप्त करने के प्रयास किए गए।

(4) सैन्य आवश्यकता की पूर्ति–औपनिवेशिक काल में देश के विभिन्न भागों में सैनिक क्षेत्रों की स्थापना की गयी जिनके निर्माण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया। 19वीं सदी के आरंभ तक ब्रिटेन में ओक के वन प्रायः लुप्त होने लगे थे जिसके कारण सेना के लिए समुद्री जहाजों का निर्माण कार्य बाधित होने लगा था। ब्रिटिश सेना जो मुख्यतः एक समुद्री सेना ही थी उसके सम्मुख अस्तित्व को प्रश्न (UPBoardSolutions.com) उपस्थित होने लगा। अतः ब्रिटिश नौसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में कीमती भारतीय लकड़ी का विदेशों में निर्यात किया गया।

(5) रेल लाइनों का विकास-भारत में 1860 ई0 के दशक में रेलवे का विकास आरंभ हुआ। भारतीय कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुँचाने के लिए तथा भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूती प्रदान करने के लिए सेना को देश के विभिन्न भागों में तेजी से पहुँचाने के लिए अंग्रेजों ने रेलवे के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मात्र 30 वर्षों में ही (1860-1890) भारत । में 25,500 किमी रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया। 1946 ई0 तक इन रेल लाइनों की लंबाई बढ़कर 7,65,000 किमी हो गई।

रेल की लाइन बिछाने के लिए रेल की दोनों पटरियों को जोड़ने के लिए उनके नीचे लकड़ी के स्लीपरों (लकड़ी के लगभग 10 फुट लंबे तथा 10 इंच x 5 इंच मोटे लट्टे) को बिछाया जाता था। एक मील लंबी रेल की पटरी बिछाने के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपर की जरूरत होती थी। एक (UPBoardSolutions.com) औसत कद के पेड़ से 3 से 5 स्लीपर तक बन सकते हैं। हिसाब लगाइए कि भारत में 7,65,000 किमी लंबी रेल लाइनों को बिछाने के लिए कितनी बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटा गया होगा।

प्रश्न 3.
वनों से मानव को क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
वनों से मनुष्य को होने वाले लाभों का विवरण इस प्रकार है-

  1. इनसे हमें इमारती लकड़ी, रंग, पशु-पक्षी, फल-फूल, मसाले, दवाइयाँ, औद्योगिक लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, चारा तथा अन्य अनेक उत्पाद प्राप्त होते हैं।
  2. वन वन्य जीवन को प्राकृतिक पर्यावरण प्रदान करते हैं।
  3. वन पर्यावरण को स्थिरता प्रदान करते हैं तथा पारितंत्र को संतुलित बनाने में सहायता करते हैं।
  4. वन स्थानीय जलवायु को सुधारते हैं।
  5. ये मृदा अपरदन को नियंत्रित करते हैं।
  6. ये नदी प्रवाह को नियमित करते हैं।
  7. ये विभिन्न उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करते हैं।
  8. कई समुदायों को ये वन आजीविका प्रदान करते हैं।
  9. ये मनोरंजन के अवसर प्रदान करते हैं?
  10. वायु की शक्ति को कम करते हैं और वायु के तापमान को प्रभावित करते हैं।
  11. वनों से भारी मात्रा में पत्तियाँ, कोपलें और शाखाएँ मिलती हैं जिनके विघटित होने पर मृदा को ह्युमस प्राप्त होती है जिससे वह उपजाऊ हो जाती है।

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प्रश्न 4.
वन-विनाश और औपनिवेशिक वन कानूनों का भारतीयों के जन-जीवन पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
वनों की तेजी से कटाई तथा औपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों ने वनों में रहने वाली जनजातियों एवं वनों के सीमान्त क्षेत्रों में बसे ग्रामीण लोगों के जीवन को निम्न रूप से प्रभावित किया-
(i) व्यवसाय परिवर्तन-भारत में प्राचीन काल से वन उत्पादों का व्यापार बड़े पैमाने पर होता रहा है। घुमंतू समुदायों द्वारा वन उत्पादों जैसे बाँस, मसाले, गोंद, राल, खाल, सींग, हाथी दांत और रेशम के कोर्म आदि की बिक्री एक सामान्य प्रक्रिया थी परंतु औपनिवेशिक शासन में यह व्यवसाय पूरी तरह अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया। इस कारण अधिकांश घुमंतू कबीले अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़ने (UPBoardSolutions.com) के लिए बाध्य हुए। अब ये लोग नवीन व्यवसायों जैसे फैक्ट्रियों, खदानों अथवा बागानों में कार्य करने लगे। इन क्षेत्रों में काम करने से उनका जीवन और अधिक कठिन हो गया। उनकी जिंदगी की तुलना पिंजरे में बंद पक्षी से की जा सकती थी।

(ii) शिकार पर प्रतिबन्ध–ब्रिटिश सरकार ने वनों और सीमांत क्षेत्रों में शिकार पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी और विभिन्न वन कानूनों के द्वारा इसे गैर कानूनी घोषित किया गया। प्राचीन काल से ही वनवासी अपने भोजन के लिए छोटे-मोटे वन्य जीवों पर आश्रित थे परंतु वन कानूनों ने उनकी पारंपरिक प्रथा को गैर कानूनी बना दिया। शिकार करने का हक केवल राजाओं और अंग्रेजों तक ही सीमित रहा। उन्होंने बड़े पैमाने पर वन्य जीवों का शिकार किया। केवल 1875 से 1925 ई0 के बीच के 50 सालों में ही लगभग 80,000 बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़ियों का शिकार किया गया। जॉर्ज मूल नामक एक अंग्रेज अफसर ने इस काल में 400 बाघों का शिकार किया था।

(iii) वनों का आरक्षण-नए वन कानूनों ने ग्रामवासियों की समस्याओं को बढ़ा दिया क्योंकि ग्रामवासी अपनी अधिकांश दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों पर आश्रित थे जबकि नए कानून के अनुसार आरक्षित वनों में लकड़ी काटना, कंदमूल, फल इकट्ठा करना तथा पशुचारण आदि गैर कानूनी घोषित किया गया।

(iv) स्थानान्तरित कृषि पर प्रतिबन्ध–स्थानान्तरित कृषि (घुमंतू कृषि) कृषि के सबसे पुराने स्वरूपों में से एक है। इस कृषि प्रणाली में जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा जाता है। यूरोपीय वन रक्षक स्थानान्तरित कृषि के विरुद्ध थे क्योंकि निरंतर खेतों को बदलने के कारण उस क्षेत्र में कीमती इमारती लकड़ी के पेड़ों (जो 20 से 30 वर्षों में कटने लायक होते हैं) को लगाना कठिन था क्योंकि वन साफ करने की प्रक्रिया में लगाई जाने वाली आग से वृक्षों के जलने का खतरा बना रहता था। खेतों के निरंतर (UPBoardSolutions.com) परिवर्तन से भू-राजस्व का निर्धारण एक दुष्कर कार्य था।
उपर्युक्त कारणों से सरकार ने लोगों को वनों से बाहर निकलने के लिए बाध्य किया जिसके कारण इन जनजातियों ने विद्रोह किए और उनमें असफल होने पर अपने मूल निवास से विस्थापित कर दिए गए अथवा व्यवसाय को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की वन नीतियों के प्रति बस्तर वासियों की प्रतिक्रिया और उसका परिणाम बताइए।
उत्तर:
1905 ई0 में औपनिवेशिक सरकार ने भारत के दो तिहाई वनों को आरक्षित करने और घुमंतू खेती, शिकार और वन्य उत्पादों के संग्रहण पर रोक लगा दी। मूलतः वनों पर जीवन-यापन करने वाले बस्तर-वासी सरकार के इस निर्णय से चिंतित हो उठे। काँगेर वन के धुरवा सम्प्रदाय के लोगों ने सबसे पहले सरकार की वन नीतियों का विरोध कर क्रान्ति की शुरुआत की।

1910 ई० में आम की टहनियाँ, मिट्टी का एक ढेला, लाल मिर्च और तीर गाँव-गाँव भेजे जाने लगे। प्रत्येक ग्रामीण ने क्रांति के खर्च में कुछ-न-कुछ योगदान दिया। बाजारों को लूटा गया, अधिकारियों व व्यापारियों के घरों, स्कूलों व पुलिस थानों को लूटा वे जलाया गया और अनाज का (UPBoardSolutions.com) पुनर्वितरण किया गया। जिन पर हमले हुए उनमें से अधिकतर लोग औपनिवेशिक राज्य और इसके दमनकारी कानूनों से किसी-न-किसी तरह जुड़े हुए थे। अंग्रेजों ने इसका कड़ा

प्रत्युत्तर दिया और विद्रोह को दबाने के लिए सैनिक टुकड़ियाँ भेजीं। अंग्रेज फौज ने आदिवासियों के तंबुओं को घेरकर उन पर गोलियाँ चला दीं। जिन लोगों ने बगावत में भाग लिया था उन्हें पीटा गया और सजा दी गई। अधिकांश गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग भाग कर जंगलों में चले गए थे। यद्यपि वे विद्रोह के मुखिया गुंडा धूर को कभी नहीं पकड़ सके। विद्रोहियों की सबसे बड़ी जीत यह रही कि आरक्षण का काम कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया और आरक्षित क्षेत्र को भी 1910 ई० से पहले की योजना से लगभग आधा कर दिया गया।

Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 9 English Grammar Chapter 17 Letter Writing/Application Writing

UP Board Solutions for Class 9 English Grammar Chapter 17 Letter Writing/Application Writing

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 English Grammar Chapter 17 Letter Writing/Application Writing

Kinds of Letters

मुख्यतया पत्र तीन प्रकार के होते हैं
(a) Personal or Private Letters : ये व्यक्तिगत पत्र भाई, बहन, मित्रों व सगे सम्बन्धियों को लिखे जाते हैं। इनमें निमन्त्रण पत्र भी आते हैं।
(b) Business Letters : ये पत्र दुकानदार, कम्पनियों या समाचार-पत्रों के पास लिखे जाते हैं।
(c) Official Letters : ये पत्र अधिकारियों के पास (UPBoardSolutions.com) लिखे जाते हैं। नौकरियों के लिये लिखी गयी applications इन्हीं पत्रों में आती हैं।
Question 1.
I. Parts of Letter
प्रत्येक पत्र में 6 भाग होते हैं
(1) Heading
(2) Salutation
(3) Body
(4) Subscription
(5) Signature
(6) Address

1. The Heading  (प्रेषक का पता और तारीख आदि) इसके दो भाग होते हैं
(a) पत्र लिखने वाले का पता और
(b) पत्र लिखने की तारीख

2. The Salutation or Greeting  (अभिवादन) Salutation बायें किनारे से बिना Indenting के ऊपर से थोड़ा space छोड़ कर लिखा जाता है। Salutation भिन्नभिन्न पत्रों में भिन्न-भिन्न होता है, जैसे

I. Personal Letters  में

(a) To relatives (सम्बन्धियों को)–My Dear Father, Dear Father, My Dear Mother, Dear Mother, Dear Uncle, Dear Aunt, etc.
(b) To Friends (मित्रों को)–My Dear Hemu, Dear Hemu, etc. (Dear Friend Hemu, Dear friend कभी न लिखें)
(c) To Acquaintances (परिचितों को)-Dear Mr. Agnihotri, Dear Miss Seema, Dear Mrs. Rai, Dear Madam, Dear Sir, etc. लिखें।
(d) To Strangers (अपरिचितों को)–Sir, Madam, etc.
(e) To School Teachers, Headmasters, Principals etc. इनके लिये Sir का प्रयोग किया जाता है।

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II. Business Letters में
Business letters में यदि किसी व्यक्ति जैसे General Manager/Technical Manager आदि व्यक्ति को सम्बोधृित कर के लिखना है तो Dear Sir लिखेंगे। यदि फर्म को लिखना है तो Dear Sirs या Dear Gentlemen लिखा जाता है।

III. Official Letters में

Official letters में प्रायः हम  sir  या  madam लिखते है। respected sir  या    honoured sir   आजकल  नही  लिख  जाता  है  किन्तु farewell address में   लिख  जाता   है। नहीं लिखा जाता है, किन्तु Farewell address  में लिखा जाता है।

3. The Body of the Letter (संदेश)
वास्तव में पत्र का प्राण है। यह बायीं ओर Salutation के दो space नीचे से शुरू होता है। पत्र का भाव सरल और स्पष्ट होना चाहिए। विषय और भाव के अनुसार पत्र को उचित paragraphs में बांटना चाहिए। ये paragraphs आपस में सम्बन्धित भी होने चाहिए। थोड़े से शब्दों में और सरल (UPBoardSolutions.com) भाषा में अपना मन्तव्य प्रकट करना चाहिए। विराम चिन्हों और grammar के नियमों का ध्यान रखिए। पत्र का आरम्भ रुचिकर होना चाहिए जैसे

(i)
I am glad to learn from you…………..
(ii) I am shocked to learn……..
(iii) I am in receipt of your letter
(iv) …….. It gives me pleasure to inform you.
(v) I got your letter yesterday ……………………..
(vi) It is long since I have heard from you …….

पत्र का अंत personal letters में विनम्र आकांक्षा पर समाप्त होना चाहिए। Official letters में यह कार्य पूर्ण होने की आशा और धन्यवाद के साथ समाप्त किया जाता है जैसे

(A)PERSONAL LETTERS

With best wishes
Your loving son/brother etc.
With kind regards Please convey my best respect to……
Hoping to hear/meet soon

(B)BUSINESS LETTERS

Bye now. Write soon.
Looking forward to….
Hoping to receive a favourable reply
Thanking you…… etc.
Assuring you of our co-operation……

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4. Subscription (अन्त)।
Subscription सदैव Salutation के अनुसार होता है। यह पत्र के बायीं ओर एक space नीचे लिखा जाता है, जैसे

(a)
To close relatives -Yours affectionately, Your affectionate son/daughter/nephew/cousin/ niece/brother/sister/your loving son, etc.
(b) To friends and Acquaintances-Yours sincerely, Sincerely yours.
(c) To strangers, officials and firms-Your truly, Yours faithfully, Truly yours, Sincerely yours.
(d) To teacher/headmaster/principal-Yours obediently, Yours faithfully प्रायः विद्यार्थी Yours के ऊपर Apostrophe (‘) लगा देते हैं। यह कदापि नहीं लगाना (UPBoardSolutions.com) चाहिये। Yours’ faithfully अशुद्ध हैं। Truly में ‘e’ नहीं आता।
(e) Application Sir, Madam Frei Tarot closing में Yours obediently या Yours faithfully आता है। Salutation यदि Sir है तो Yours faithfully या Yours obediently लिखना चाहिए , Yours truly नहीं

5. The Signature (हस्ताक्षर)
यह subscription के नीचे होता है और इसके बाद भी कोई Punctuation Mark नहीं लगाया जाता। Personal letters में पूरे हस्ताक्षर नहीं होते। या तो नाम का पहला हिस्सा लिखा जाता है या वह नाम लिखा जाता है जिस नाम से आप अपने सगे सम्बन्धियों में जाने जाते हैं, जैसे Vinay या Veenu Shailender या Sheelu Vinay Kumar Agarwal या Shailender Kumar Mishra कदापि न लिखें। परन्तु Business/official letters में हस्ताक्षर पूरे होते हैं तथा हस्ताक्षर के बाद लिखने वाले का नाम या पद लिखा जाता है, जैसे Sunil Kumar Arora Manager

6. Address (पता)
यह तीन या चार लाइनों में लिखा जाता है। यह लिफाफे के ऊपर आधे भाग से नीचे दायीं ओर जाता है। ऊपर का आधा भाग टिकट लगाने के लिए छोड़ दिया जाता है। पते की लाइनें लिफाफे के दायें कोने के समीप समाप्त होती है। प्रथम पंक्ति में जिसको पत्र भेजा जा रहा है, उसका नाम लिखा जाता है। दूसरी पंक्ति में गली या मोहल्ले का नाम और तीसरी पंक्ति में गाँव या शहर को नाम Block Letter में लिखा जाता है। District या State का नाम Brackets में लिखा जाता है। PIN CODE यदि याद है तो गाँव या शहर के नाम के साथ dash के बाद लिखा जाता है। जैसे
उदाहरण: Mr. K.R. Gupta,                            Mr. R.K. Srivastava,
115, Railway Station Road,                         15, Civil Lines,
Dehradun.                                                         Delhi

APPLICATIONS
Application for Leave

Question 1.
Write an application to the Principal of your college informing him about your illness

and requesting him to grant you leave of absence for three days. Or Write an application to the Principal of your college, requesting him to grant you leavefor five days as you have to look after your mother, who is suffering from fever.
Answer:
To
The principal ,
Arya Puttri Inter College,
Bareilly.
 Madam
Most respectfully, I beg to say that I have been suffering from fever since last night. So I am unable to attend the college I, therefore, request you to grant me leave of absence from 12th Oct., 20…. to 14th Oct., 20…
I shall be highly obliged to your act of kindness.
Dated : 12th October, 20….

Yours obediently, Km.
Reeta Rani
Class X-A

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Question 2.
Write an application to the Principal of your college, requesting him to grant you leave for six days as you have to look after your mother who is ill and your father has gone out of station. Or Write an application to the Principal of your college requesting him to grant you leavefor five days as you have to look after your mother, who is suffering from fever.
Answer:
To
The Principal,
Bareilly Inter College,
Bareilly.
Sir,
Most respectfully, I beg to say that my mother has been suffering from fever for two days. My Father has gone out of station. There is (UPBoardSolutions.com) nobody in the house to look after her. I, therefore, request you to grant me six days leave of absence from 16th Sep., 20…. to 21st Sep., ….
I shall be highly obliged to your act of kindness.
Dated : 16th September, 20….

Yours obediently,
Ram Avtar Khanna
Class X-B

Application for Transfer Certificate

Question 3.
Write an application to the Principal of your college requesting him to issue your transfer-certificate as your father has been transferred to Badaun.
Answer:
To .
The Principal,
S.V. Inter College,
Bareilly.
Sir,
Most respectfully, I beg to say that my father who has been working here as junior engineer since June, 20…., has been transferred to Badaun District. I, therefore, request you to issue my transfer certificate at an early date, so that I may join another college in Badaun.
I shall be highly obliged to your act of kindness.
Dated : 8th July, 20….

Yours obediently,
vijay
Class X-A

Question 4.
Write an application to the Principal, requesting him to grant you full concession in fee. Or Write an application to the Principal of your college, requesting him for concession in fee.
Answer:
To
The Principal,
D.A.V. Inter College,
Aligarh.
Sir,
Most respectfully, I beg to say that I am a student of class X-D. My father is a poor shopkeeper. So he is unable to pay the fee. Last year, I enjoyed free-ship. I got good marks in class IX-D. I, therefore, request you to grant me full fee concession.
I shall feel highly obliged to you.
Dated : 12th August, 20….

Yours obediently,
Harish Chandra
X-D.

image 1
Question 5.
Write an application to the Principal requesting him to make a regular arrangement for evening games.
Answer:
To
The Principal 
Islamia Inter College
Bareilly
Dated : 7th July, 20….
Sir,
Subject : Requesting for the arrangement of evening games. Most respectfully, I beg to say that most of the students of IX-B are eager to play (UPBoardSolutions.com) football and hockey. There is no arrangement in the college. I, therefore, request your good self to make arrangement for regular evening games for practice.
I shall be highly obliged.

Yours obediently,
Mukesh Rana
X-B

UP Board Solutions

Question 6.
Write an application to the Deputy Superintendent of Police to allow you to use loudspeaker on the occasion of marriage of your sister.
Answer:
To
The Deputy Superintendent of Police,
Bareilly.
Dated : March 18th, 20….
Sir,
Şubject : Request for use of Loudspeaker Permit. Most respectfully, I beg to say that the marriage ceremony of my younger sister Beena will be (UPBoardSolutions.com) performed on Nov. 24th, 20… So I need to use loudspeaker for the function. I, therefore, request you to grant permission for use of loudspeaker from 4 P.M. to 10 P.M. on Nov. 24th, 20….
I shall be highly obliged…..

Yours faithfully,
Satya Prakash Gupta
(Address………………)

Question 7.
Application for the post of steno-clerk. Or Write an application to the Manager, Everest Handloom Company, Noida for the post of Accountant. It is in response to the advertisement in the Hindustan Times of 20th of June.
Answer:
To,
The Manager,
Gupta and Co.
New Delhi.
Sir,
In reference to your advertisement for the post of a steno-clerk lying vacant under your kind control, in “Dainik Jagran”, I want to offer my candidature for the same. As regards my qualifications, I am a Second Class Commerce Graduate of year 20…., from Rohalkhand University with Advanced Accountancy. I can do English (UPBoardSolutions.com) typewriting at the speed of 35 words per minute and know shorthand as well. At present, I have been working as a stenoclerk in a local firm since July, 20……. I am a young man of twenty three years, with good physique, optimistic view and good moral character. Copies of three certificates are attached  herewith: Looking forward for your kind favour.

Yours faithfully,
ABC

Dated : 25th December, 20……
Enclosures : 3

Address :
ABC,
S/o Shri XYZ 23,
Subhash Road,
Bareilly-1, U.P.

From:
ABC S/o Shri XYZ
23, Subhash Road
Bareilly-1, U.P. Dated : 28th December, 20…..

To,
The Manager,
Gupta and Co.
New Delhi.

Sub. : Application for the Post of Steno-Clerk.

Dear Sir,
Please, take the reference to your advertisement in “Dainik Jagran” dated 27th Dec., 20…… for the post of a steno-clerk. I want to offer my services for the same. My short bio-data is here under
Name                                         : ABC
Father’s Name                        : XYZ
Age                                              : 23 yrs.
Qualification                           : B. Com. II, 20….. from M.J.P. Rohalkhand University.
Typing Speed                          : 35 words per minute, know shorthand.
Languages Known                 : Can write and speak English and Hindi fluently.
Characteristics                        : Young, good looking, optimistic-hard-working having a good moral
character and winning manner.
Experience                               : Have been working in a local firm as a steno-clerk since July, 20……
Enclosures                               :3
Looking forward for a favourable reply.
Thanking you.

Yours sincerely,
ABC

UP Board Solutions

Question 8.
Write an application to the District Magistrate for an action against the undesirable persons causing public nuisance in your locality.
Answer:
To,
THE DISTRICT MAGISTRATE,
Bareilly.
Sir,
We, the residents of Mohalla  Madinath, Nirankar  Dev Marg, respectfully want to state that some undesirable persons have recently come to stay in a nearby lodge. Sometimes, they sing vulgar songs and pass indecent remarks or comments on the girls. They stand on the Pan Khokas and talk loudly. Sometimes, they are found drunk also. (UPBoardSolutions.com) They fight with us, too, when objected. We, therefore, request your honour to do something for checking their activities to maintain 1aw and order in the locality. A quick action is required.
Thanking you.

Yours faithfully,
ABC 

Residence
Mohalla, Madinath Nirankar Marg,
Bareilly City.

Question 9.
Write an application to the D.S.O. to issue a permit for 75 kg. sugar for the marriage of your sister. Or Write an application to the District Supply Officer of your district requesting him to grant you a permit for ten litres of kerosene oil which will help you in your study as there is frequent powercut in your area.
Answer:
TO,
THE DISTRICT SUPPLY OFFICER,
Bareilly.
Sir,
Most respectfully, it is stated that I need 75 kg. of sugar for the marriage of my sister to be performed on May 12th, 20……. I, therefore, request you to issue me a permit for 75 kg. sugar and oblige.
Thanking you.

Yours faithfully,
ABC

Dated : May I st, 20…..
Address ……………..

Question 10.
Write a letter to the Engineer of the Electricity Department requesting him to arrange for proper lighting in your locality.

11, Bahadurshah Marg
Bareilly.
Dated : February 2nd, 20……

Answer:
To,
THE ENGINEER Electricity Department,
Municipal Corporation,
Bareilly.
Sir,

Sub : Request for proper lighting in the locality.

May I have the honour to bring the following facts to your kind notice for necessary action
(1) In our locality, there is no proper lighting arrangement.
(2) The people here are deprived of the facility of electric light.
(3) Street light is generally off.
I, therefore, request your goodself to look into the matter personally and take necessary action.
Thanking you.

Yours faithfully,
XYZ

EXERCISES FOR PRACTICE

1. Write an application to the Principal of your college, requesting him to arrange extra coaching for you in Mathematics as you are weak in the subject.
2. Write an application to the librarian of your college, informing him that you have lost the book issued to you last weak.
3. Write an application to your Principal, requesting him to allow a change in the subject offered by you.
4. Write an application to the District Magistrate of your district, requesting him to take action against some undesirable persons who are disturbing the public peace in your locality.
5. Write an application to the District Medical Officer of Health of your district, telling him of the outbreak of Cholera in your locality (UPBoardSolutions.com) and requesting him for immediate steps to control the epidemic.
6. Write an application to the Principal, D.A.V. Inter College, Kanpur to allow the cricket team of his college to play a friendly cricket match against your school team.
7. Write an application to your Games’ Superintendent requesting him to issue you two cricket balls.

LETTERS

Question 1.
Write a letter to your younger brother, advising him to work hard at his studies so that he may get a first class.
Answer:

210, Civil Lines :
Bareilly, 243001
Dated : June 22nd, 20….

Dear Sunny,
I hope this finds you in the best of your spirits. Yesterday I got a letter from Mahesh. He says that you are sure of your success. I am very happy to know this. But you should not be idle. As it is rightly said “Industry is rewarded and idleness punished.” Overconfidence sometimes leads to failure. I know that you are a bright and (UPBoardSolutions.com) intelligent student. But you are not diligent. So I advise you to work hard as the examinations are near. Revise your course again and again. Do hard work for the first divison. Nothing less than the first class will satisfy me. Wishing your success and good luck.

Yours loving,
Mukesh

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Question 2.
Write a letter to the editor of a newspaper about frequent breakdown of water supply in your locality.
Answer:
To
The Editor,
Indian Express
New Delhi
Sir,
Will you very kindly give a little place to my letter in your popular paper? I want to draw your attention towards the difficulties which the public has to face due to frequent breakdown of water supply in our locality “Friend’s Colony”. We are in a (UPBoardSolutions.com) difficult situation. In my opinion, the frequent breakdown of water supply is due to inefficient working of the water supply department. Will you very kindly publish my letter in your paper, so that the higher authorities may come to know of it and those who are responsible for it.

Yours loving,
Rakesh Ranjan

Dated : March 12th, 20….
Address : Rakesh Ranjan Verma 210,
Friends’ Colony Subhash Nagar,
Bareilly-243001

Question 3.
Write a letter to your father, asking him to send you four hundred rupees for books.
Answer:

J-8, Sarojini Nagar
Delhi, 100004,
Dated : June 10th, 20….

Respected Father,
Thanks for your kind letter that I received today. I am glad to know that you are quite well now. We, too, are happy here. Rani misses you very much. She becomes very sad in your absence. Mummy is also not well. She has been suffering from fever for a week. But there is no cause to worry. She is under the treatment of Dr. Keshav Agarwal. The doctor says that she will be well within two or three days. Papa, I have gone short of money. (UPBoardSolutions.com) Our college has opened. We have to deposit our college fees. Rani has been admitted in a new school. I have to buy some books. I, therefore, request you to send me four hundred rupees as soon as possible.
With regards.

Yours obediently,
Bobbey

Question 4.
Write a letter to your sister, telling her about your visit to a historical place.
Answer:

33-Rajendra Nagar
Bareilly-243002
Dated : May 17th, 20….

Dear Sister Reeta,
You will be glad to know that yesterday, I came back from Agra. I went there with my friends. Our History teacher Mrs. Usha Gupta was also with us. We reached Agra in late night. We passed the night in a hotel. Next day, we went to see the Taj. We found it very grand and beautiful. We liked it very much. Our teacher told us that Taj Mahal, one of the seven wonders of the world, was built by Shahjahan, a Mughal emperor, in the memory of his beloved wife Mumtaz Mahal, after her death. As it is built of white marble. Shahjahan used to (UPBoardSolutions.com) call it ‘a dream in white marble’. Luckily we saw it in the moon light too. It looked silver white. Its beauty cannot be described in words. Of course, it is beyond description. The rest is O.K. There is nothing more to write. With love to Kartik.

Yours loving brother,
Varun

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Question 5.
Write a letter to your friend, proposing him a trip to a hill station.
Answer:

Bara Bazaar
Bareilly-243003
Dated : April 15th, 20….

Dear Raju,
You will be pleased to know that my examinations are over today. I have done my papers well. Now it is time for us to enjoy and recover our health. I hope you have not made any arrangement as yet for these holidays. So I propose a trip to Musoori. Will it not be a good change? If you agree, I may arrange for it and you should reach here on April 28th, 20….. Bring your camera with you, if possible.

 Yours sincerely,
Rakesh

नोट-अनौपचारिक पत्र नीचे लिखे प्रारूप के अनुसार भी लिखे जा सकते हैं।

Question 6.
Write a letter to your friend, congratulating him on his success in the High School Examination.
Answer:

28, Cantt. Road
Bareilly
Dated : June 30th, 20….

Dear Mohan,
Please, accept my heartiest congratulations on our success in the examination. I am very happy to know that you got first division in High School Examination. Really, you have fulfilled the expectation of your parents by getting first division. I hope, you will maintain the same division in Intermediate Examination also. My good wishes are always with you. I am sure, you will earn a good name there. With regards to elders and best wishes to youngers.

Yours sincerely,
Ramesh Kumar

Question 7.
Write a letter to your mother, telling her that winter has set in and that you need a new coat.
Answer:

205, Civil Lines,
Bareilly-243001,
Dated : October 10th, 20….

Dear Mummy,
Thanks for your kind letter that I received yesterday. I am working hard, there is no cause to worry. Winter has set in. So I need a new coat. The old one will not do this year. I, therefore, request you to persuade respected Papa to arrange a new one (UPBoardSolutions.com) this year. I am coming to see you. I hope to be there on 10th Nov., as our college will be celebrating the founder’s week. With a lot of regards.

Yours obedient son,
Mohan

Question 8.
Write a letter to your younger brother who has started smoking cigarettes, advising him to give up this bad habit.

Charbagh,
Lucknow.
Dated : March 22nd, 20….

Dear Varun,
I hope, it finds you in the best of your health and spirit. We are fine here. I have come to know that you have started smoking cigarette. This has shocked me very much. Our father is retired. He is very old, weak and sick. You are his youngest son. You have been the apple of his eyes and so you should not make him worried. Cigarettes are injurious to health. Good and obedient boys do not smoke. Smoking is a bad habit. So I advise you to give up this bad habit. Wishing you all the best.

Yours loving sister,
Baby

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Question 9.
Write a letter to your friend, requesting him to attend the marriage party of your brother.

Or Write a letter to your friend inviting him to your marriage ceremony which is going to be held during the month of June.
Answer:

9-Stanley Road
Allahabad (U.P.)
Dated : January 2nd, 20….

My dearest friend Raghav,
I am very glad to inform you that the marriage of my younger brother Tarun has been settled. The marriage party will leave for Kanpur on 12th (UPBoardSolutions.com) of January at 8 a.m. I hope you will not disappoint me. Your presence in the marriage is a must. Your arrival is anxiously awaited.

Yours sincerely,
Ravi Ranjan

Question 10.
Write a letter to your friend, requesting him to come and spend the summer vacation with you.

Answer:

20th Mall Road,
Musoorie,
Dated : May 10th, 20….

Dear Sachin
I hope it finds you best in your spirits. Thanks for your kind letter. I am glad to know that you performed well in the annual examination and secured a good percentage of marks. Your summer vacations will begin on 20th May, 2005. I hope you will come here and enjoy the summer vacations with me. I am sure, you will enjoy your stay (UPBoardSolutions.com) here. The weather is charming. There is no dust, wind, smoke or heat like any other city. Here you will find nature in her brightest colour. Kempte Falls will definitely fascinate you. Please do come. Please convey my warm regards to uncle and aunt and love to dear Bunty. With a lot of love to you.

Yours sincerely,
Rajesh Kumar

Letter of Condolence

Question 11.
Write a letter to a friend who has recently lost his mother.

Answer:

Saharanpur,
Dated : April 25th, 20…

Dear Friend Rajan,
It was very sad to know about your mother’s death. I had no idea that she was so ill. The sad news of her death, therefore, came as an unexpected shock to me. So I offer my condolence to you. May the departed soul rest in peace! My heart felt (UPBoardSolutions.com) sympathy in the grief and it is always with you. Believe me, these words are  the expression of genuine sorrow. May God give you strength to bear this blow!

Yours in deepest sympathy,
Ram Kumar

EXERCISES FOR PRACTICE I

1. Write a letter to your father, explaining why you could not get good marks in Hindi.
2. Write a letter to the Post-Master, Bareilly, requesting him to let you know about the money-order, you sent to your friend about a month ago.
3. Write a letter to a bookseller, cancelling your order due to delay in executing your order.
4. Write a letter to your customer who has placed an order for some books, informing him that the books are not in stock.
5. Write a letter to your friend, telling him about your school. Give reasons for your liking or disliking it.
6. Write a letter to your younger brother, advising him to work hard at his studies so that he may get a first class.
7. Write a letter to your uncle, telling him about the discomforts of a railway journey in the second class.
8. Write a letter to your mother, telling her about your health or class-work.
9. Write a letter to the Education Minister of your state, requesting him to improve the educational facilities for girls in your area.
10. Write a letter to the Health Officer of your city, requesting him to arrange for cleanliness in your locality.
11. Write a letter to the Superintendent of Police of your city, requesting him to improve the law and order situation in your area.
12. Write a letter to the Chairman of your Municipal Board, requesting him to arrange for the cleanliness of your locality.
13. Write a letter to the Inspector Incharge, Kotwali to depute some constables to arrest the ‘goondas’ and other anti-social elements that are disturbing the peace of your locality.
14. Write a letter to your friend about a zoo, you have recently seen.
15. Write a letter to the Chairman of your Municipality, containing the following requests
(a) The improvement of water supply in your ward.
(b) Permission to use a public park for a football match in aid of a charitable purpose.

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SOME MORE FORMAL LETTERS FOR PRACTICE

1. Write a letter to the Engineer of the Electricity Department, requesting him to arrange for proper lighting in your locality.
2. You wish to go to Maharashtra on a tour. Write a letter of enquiry to a travel agent for details.
3. You wish to study a short English Speaking Course. Write to a school of languages and enquire about the course.
4. You wish to submit an article for a magazine. Write to the publishers and enquire about the same.

We hope the UP Board Solutions for Class 9 English Grammar Chapter 17 Letter Writing/Application Writing help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 English Grammar Chapter 17 Letter Writing/Application Writing , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 13 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (काव्य-खण्ड).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

1. हर क्यारी में पद-चिह्न ……………………………………………………………………….. मचल मचल इठलाती है।

शब्दार्थ-पद-चिह्न = पैरों के चिह्न कसक = पीड़ा। शबनम = ओस किसलय = कोपलें। आभा = सौन्दर्य

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में श्रमिक एवं कृषक वर्ग की महत्ता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या – सुमन जी श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि मैंने क्यारी-क्यारी यानी खेत-खेत में तुम्हारे पद-चिह्नों को देखा है। तुमने कठिन परिश्रम से जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल पर आज भी तुम्हारे श्रमयुक्त कदम परिलक्षित हो रहे हैं। फसलों की डालियाँ जो नये-नये पल्लवों से लद गई हैं, प्रतीत होता है कि तुम्हारी मुस्कान इन्हें मिल गयी है। विकास का यही नियम है, (UPBoardSolutions.com) जगह-जगह मुस्कान फैल जाती है। प्रत्येक काँटे का व्यक्तित्व भी बड़ा अजीब होता है। इसमें किसी न किसी का दुःख-दर्द कसकता ही है। ओस की बूंदों को देखकर जीवन में प्यास जग जाती है।

प्रत्येक नदी की उठती हुई लहरें मन को डस लेती हैं अर्थात् नदी से उठती हुई लहरें मन पर अपना प्रभाव डालती हैं। जो भी नया अंकुर फूटता है, वह भविष्य में आने वाली अपनी कलियों को अपने में समाहित किये रहता है। अंकुर की आँख विकास का प्रतिरूप है। हर किसलय में, हर पल्लव में जो लाली परिलक्षित होती है, वह और कुछ नहीं, तुम्हारे अधरों की लाली ही मालूम देती है। कलियों को अपना स्वभाव है कि हवा बहने पर वे हिलती-डुलती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सुमनजी ने समाज की प्रगति में श्रमिक-कृषक वर्ग के योगदान को रेखांकित किया है।
  • भाषा-सरल खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-शान्त
  • अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश।।

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2. अम्बर में उगती सोने-चाँदी ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।
अथवा क्या उम्र ढलेगी तो ……………………………………………………………………….. मौत कहीं बढ़ जाएगी।

शब्दार्थ-सिन्धु = समुद्र पावन = पवित्र संघर्ष = लड़ाई लाचारी = बेबशी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यावतरण में सुमनजी ने श्रमिक एवं कृषक वर्ग के परिश्रम से समाज में आयी सम्पन्नता का वर्णन किया है।

व्याख्या – सुमनजी कहते हैं कि आकाश में उगते सूरज, चाँद और सितारे ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे सोने और चाँदी की फसलें उग रही हैं। खेत में ज्वार और बाजरे की फसलें मस्ती में लहरा रही हैं। यह सुन्दर दृश्य मन को प्रभावित कर रहा है। ये मन को नये-नये बिम्ब प्रदान करते हैं। चाँद के उदय होने पर समुद्र में चाँदनी सैकड़ों ज्वार उठा देती है।

सुमनजी कहते हैं कि ऊपर बताये गये प्राकृतिक दृश्य इतने मोहक हैं कि हम अपने को इनसे अलग नहीं कर सकते ये इतने आकर्षक हैं कि मेरे मन को बाँध लेते हैं। फिर भी जीवन में अनगिनत क्रिया-कलाप करने पड़ते हैं। इन क्रिया-कलापों से हम दूर भी नहीं रह सकते प्राकृतिक सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) और जीवन के धन्धे को क्या साथ-साथ लेकर चलना संभव है। शरीर और मन का सम्बन्ध अत्यन्त पवित्र होता है। यह पवित्र सम्बन्ध कैसे टूट सकता है? प्रकृति मन को सुख प्रदान करती है और जीवन के धन्धे शरीर के लिए अत्यावश्यक हैं। अतः दोनों का सम्बन्ध बना रहना उचित है।

सुमनजी कुछ गम्भीर मुद्रा में हो जाते हैं और पूछते हैं क्या जब उम्र ढलने लगेगी तो यह सब कुछ, जो आज इतना आकर्षक लग रहा है, ओझल हो जायेगा? क्या उम्र ढलने के साथ-साथ सूरज और चाँद की कान्ति मन्द पड़ जायेगी? जिने सुन्दर दृश्यों को संजोये मैंने जीवन-मृत्यु का स्वर साध लिया है, क्या उनका आकर्षण साँसों को धोखा दे देगा?

सुमनजी पुन: कहते हैं कि मैं जिस दिन स्वप्नों एवं अपनी कल्पनाओं का मूल्यांकन करने बैठेंगा, उस दिन मेरे संघर्षों पर जाला चढ़ जायेगा, मेरा संघर्ष थक जायेगा और जिस दिन (UPBoardSolutions.com) विवशता मुझ पर तरस दिखाएगी अर्थात् जिस दिन मैं मजबूरी का गुलाम बन जाऊँगा, उस दिन जीवन की अपेक्षा मृत्यु का पलड़ा भारी होगा, उस दिन मृत्यु मुझे पकड़ लेगी।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सुमनजी ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता का चित्रण किया है।
  • भाषा-खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-शान्त
  • शैली-गीत

3. इन सबसे बढ़कर मूक ……………………………………………………………………….. प्रतिध्वनि बतलाते हो।

शब्दार्थ-पथ = रास्ता, मार्ग पथराई = पत्थर-सी। अकारथ = व्यर्थ मूक = गूंगा। बेबसी = लाचारी। आजादी = स्वतन्त्रता।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यावतरण शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता से उधृत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में सुमनजी ने निर्बल व्यक्तियों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मेरा मन प्राकृतिक सुन्दरता को देखने में नहीं लगा रह सकता। मैं दुःख से तड़पते हुए उन व्यक्तियों को अधिक महत्त्व देता हूँ जो कि अन्न के अभाव में भूख से व्याकुल होकर पथरा गये हैं। उनकी पथराई आँखें आनेजाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने पास बुलाती हैं। वही आँखें आज मुझे भी अपने नजदीक बुला रही हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी चिन्ता ईश्वर को भी नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि (UPBoardSolutions.com) इन्हें बनाने के बाद ईश्वर इन्हें उसी प्रकार भूल गया है, जैसे कि उसने इन्हें बनाया ही न हो। सचमुच धर्म की ध्वजा इन दीन-हीन प्राणियों की हड़ियों पर ही फहराती है क्योंकि ये लोग अन्याय और अनीति के विरुद्ध आवाज तक नहीं उठा पाते हैं।

सुमनजी का कहना है कि यदि मैं ऐसे व्यक्तियों को भुला देता हूँ तो मेरा मानव शरीर धारण करना बेकार है। ऐसी स्थिति में मेरा शरीर मिट्टी का लोथड़ा मात्र रह जायेगा। यदि मेरी आँखें इन लोगों के कष्टों को देखकर सहानुभूति से द्रवित नहीं होती हैं तो इन आँखों का कोई मूल्य नहीं है। आँसू तो दया और करुणा के प्रतीक हैं, अतः जब तक इन आँखों से करुणा का जल नहीं प्रवाहित होता है, तब तक इनका होना और न होना बराबर है। यदि मैं निर्बल वर्ग को भुला देता हूँ तो मेरा जन्म लेना व्यर्थ है और मेरा जीवित रहना भी मरे हुए व्यक्ति के समान ही है। अभिप्राय यह है कि मानव को मानव के प्रति सहानुभूति, दया, करुणा-जैसी मानवीय भावनाओं को अपने हृदय में रखना चाहिए।

सुमनजी कहते हैं कि मैं स्पष्ट रूप से अवलोकन कर रहा हूँ कि तुम श्रमिक वर्ग की उपेक्षा कर रहे हो। अब इन्हें मीठी-मीठी बातों द्वारा बहलाना छोड़ दो। अब तुम्हारा यह दर्शन (UPBoardSolutions.com) चलने वाला नहीं है। निर्धन श्रमिक के मृतप्राय बच्चों पर विवशता चीख-चीख पड़ती है और तुम इसे स्वतन्त्रता की प्रतिध्वनि के रूप में परिभाषित कर उधर से अपना ध्यान हटाना चाहते हो। तुम्हारी यह सोच उपयुक्त नहीं है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इन पंक्तियों में सुमनजी ने मानव के प्रति सहानुभूति, करुणा और प्रेम की भावना व्यक्त की है।
  • भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली,
  • गुण- प्रसाद।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
  • रस-करुण।

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4. यों खेल करोगे तुम कब ……………………………………………………………………….. का अम्बर में घेरा यदि।
अथवा विश्वास सर्वहारा ……………………………………………………………………….. दरार पड़ जायेगी।
अथवा सदियों की कुर्बानी ……………………………………………………………………….. अम्बर में घेरा यदि।

शब्दार्थ-असहाय = निर्धन। सर्वहारा = गरीब तबके के लोग। गोंस = फाँस, कील। कुर्बानी = बलिदान अम्बर = आकाश।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उधृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने दीन-दुखियों के प्रति शासन की उपेक्षा पर गहरी चोट की है।

व्याख्या – सुमनजी शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि तुम असहायों की मूल समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत लम्बा समय बीत गया, गरीब व्यक्ति को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर कब तक सुलाते (UPBoardSolutions.com) रहोगे। जरा याद रखना, मानवीय संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले बचोगे और संसार श्मशान घाट बन जायेगा। ऐसी स्थिति में तुम अकेले क्या करोगे?

सुमनजी आगे चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सर्वहारा (गरीब, निर्धन) वर्ग का विश्वास खो दिया तो पास आती मृत्यु की। गहरी फाँस तुम्हारे जीवन में गड़ जायेगी। बड़े मुश्किल के बाद गरीब जागा है, इसकी जागृति का स्वागत करना चाहिए। यदि बाँध बाँधने के पूर्व ही पानी सूख जाए, तब तो धरती की छाती में दरार पड़ जायेगी। बाँध इसलिए बाँधा जाता है ताकि उसमें पानी इकट्ठा रहे। यदि पानी सूख गया तो बाँध का क्या औचित्य? अतः समय रहते सजग हो जाओ और निर्धन व्यक्ति को उसका अधिकार सौंप दो।

सुमनजी आगे पुनः चेतावनी दे रहे हैं, यदि श्रमिक वर्ग के उत्थान के लिए सदियों से चले आ रहे विचार आन्दोलन का सम्मान न हुआ, उनकी कुर्बानी बेकार चली गयी तो ठीक नहीं होगा। सुबह के जागरण को जमुहाई ले-लेकर खो देना कहाँ की बुद्धिमानी है? पूर्णिमा का उत्सव मनाने की बात (UPBoardSolutions.com) सोचते-सोचते ही यदि आकाश में अमावस्या का अँधेरा छा गया तो इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। अत: अँधेरा दूर करके श्रमिक के जीवन में प्रकाश का उत्सव मनाने का प्रयास करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • सर्वहारा वर्ग के उत्थान की बात कही गयी है।
  • भाषा-खड़ी बोली।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा।
  • रस-रौद्र।
  • शैली-भावात्मक, गीत।
  • अलंकार-आशा की अफीम में रूपक।

5. इतिहास न तुमको माफ करेगा ……………………………………………………………………….. सब छन्दों की रानी है।
अथवा इतिहास न तुमको ……………………………………………………………………….. को मत मन्द करो।

शब्दार्थ-सैलाब = बाढ़, प्रवाह, जल-प्लावन भू = भूलोक। भुवः = भुवलोक। गायत्री = एक वैदिक छन्द। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से उद्धृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सुमनजी ने मानव समाज के कर्णधारों को समाज कल्याण हेतु प्रोत्साहित किया है।

व्याख्या – सुमनजी का कहना है कि समय परिवर्तनशील है। इसलिए हमें जो भी अवसर प्राप्त हुए हैं उनका सदुपयोग किया जाना चाहिए अन्यथा कीर्ति की जगह अपकीर्ति मिलेगी। यदि हमने समय का सही सदुपयोग नहीं किया तो आने वाला समाज हमारी अकर्मण्यता और कर्तव्यहीनता पर धिक्कारेगा। इस समय का जो भी इतिहास लिखा जायेगा, उसमें किसी भी व्यक्ति को उसकी अकर्मण्यता के लिए क्षमा नहीं किया जायेगा। सत्ता में बैठे लोगों को चेतावनी देते हुए सुमनजी कहते हैं कि तुम्हारी अकर्मण्यता से पूरब में उगने वाले सूरज (UPBoardSolutions.com) की लालिमा पर कालिख पुत जायेगी। उसकी महत्ता खत्म हो जायेगी और फिर शताब्दियों तक इस प्रकार की उन्नतिशील घड़ियाँ आयें अथवा न आयें, हमें यह भी मालूम नहीं है। इसलिए हमें अपने समय का उचित उपयोग करना चाहिए।

समय परिवर्तनशील है। अतः इसकी परिवर्तनशीलता को देखते हुए प्रगति के प्रवाह को रोकने का प्रयास मत करो। मालूम नहीं कि इस प्रकार की सुखद वायु में साँस लेने का अवसर मिले या न मिले। इसलिए तुम सभी खिड़की और दरवाजों को खोलकर रखो। जीवन की सुखदायी किरणों का प्रकाश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने दो। इस आनन्ददायक घड़ियों का उपयोग मात्र धनी वर्ग तक सीमित न रह जाय। तुम्हें ऐसा प्रयास करना चाहिए, जिससे उन किरणों का प्रकाश आमजन के आँगन तक पहुँच सके। नव-निर्माणरूपी महान यज्ञ की ज्वालाओं को मन्द करने का प्रयास मत करो, अपितु उसको अधिक तीव्र जलने दो।

सुमनजी का कहना है कि आज जो चेतना का प्रभात हुआ है, इसके लिए बहुत पुराने समय से संघर्ष होता रहा है। इस नये प्रभात की अरुणाई की पहचान बहुत पुरानी है। आज नवयुग की चेतना-गायत्री, भूलोक, भुवलोक और स्वर्गलोक की समता की प्रतिष्ठा करने का आह्वान कर रही है, इसका गर्मजोशी से स्वागत करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इन पंक्तियों में सुमनजी की प्रगतिवादी भावना की अभिव्यक्ति हुई है।
  • भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।
  • शैलीभावात्मक, गीत।
  • शब्द शक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना
  • रस-वीर एवं अद्भुत

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म – 5 अगस्त, सन् 1915 ई०
मृत्यु – 27 नवम्बर, सन् 2002 ई०
जन्म – स्थान-ग्राम-झगरपुर, जनपद-उन्नाव, उ०प्र०
अध्यापन कार्य – उज्जैन, मध्य प्रदेश
रचनाएँ – मिट्टी की बारात, हिल्लोल, जीवन के गान्
पुरस्कार – 1958 -(देव पुरस्कार), 1974-(सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार), 1974-(साहित्य अकादमी पुरस्कार), 1974–(पद्मश्री), 1993-(शिखर सम्मान), 1993-‘ भारत भारती’ पुरस्कार, 1999–पद्म भूषण।

प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के जीवन-वृत्त एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की साहित्यिक विशेषताएँ एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 5.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।

जीवन – परिचय – 
डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त, सन् 1915 ई० (संवत् 1972 श्रावण मास शुक्ल पक्ष नागपंचमी) को ग्राम झगरपुर, जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। परिहार वंश में जन्मे सुमन जी का विवर्द्धन गहरवाड़ वंशीय माता के दूध द्वारा हुआ। उनके पितामह ठाकुर बलराज सिंह जी स्वयं रीवा सेना में कर्नल थे तथा प्रपितामह ठाकुर चन्द्रिका सिंह जी को सन् 1857 ई० की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने एवं वीरगति प्राप्त होने का गौरव प्राप्त था।

सुमन जी ने अधिकांश रूप से रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों में रहकर आरम्भिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा प्राप्त की है। तत्पश्चात् सन् 1940 ई० में उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से परास्नातक (हिन्दी) की उपाधि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1942 ई० में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1948 ई० में माधव कॉलेज उज्जैन में हिन्दी विभागाध्यक्ष बने, (UPBoardSolutions.com) दो वर्षों के पश्चात् 1950 ई० में उनको ‘हिन्दी गीतिकाव्य का उद्भव-विकास और हिन्दी साहित्य में उसकी परम्परा’ शोध प्रबन्ध पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि प्रदान की। आपने सन् 1954-56 तक होल्कर कॉलेज इन्दौर में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर भी सुचारु रूप से कार्य किया। सन् 1956-61 ई० तक नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक और सूचना विभाग का कार्यभार आपको सौंपा गया।

सन् 1961-68 तक माधव कॉलेज उज्जैन में वे प्राचार्य के पद पर कार्य करते रहे। इन आठ वर्षों के बीच सन् 1964 ई० में वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कला संकाय के डीन तथा व्यावसायिक संगठन, शिक्षण समिति एवं प्रबन्धकारिणी सभा के सदस्य भी रहे। सन् 1968-70 ई० तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति के पद पर आसीन रहे।

डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को सन् 1958 ई० में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उनके काव्य संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ पर ‘देव’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई० में ‘पर आँखें नहीं भरीं’ काव्य संग्रह पर ‘नवीन’ पुरस्कार से सम्मानित किये गये। आपको सन् 1973 ई० में मध्य प्रदेश राजकीय उत्सव में सम्मानित किया गया। जनवरी, सन् 1974 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से विभूषित किया गया। भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार द्वारा 20 मई, सन् 1973 ई० को डी०लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। नवम्बर, सन् 1974 ई० को उन्हें ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुस्कार’ प्रदान किया गया। 26 फरवरी, 1973 ई० को ‘मिट्टी की बारात’ नामक काव्य संग्रह पर ‘सुमन जी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपने अक्टूबर, सन् 1974 ई० को नागपुर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र में दीक्षान्त भाषण दिया। पुन: 24 अप्रैल, 1977 ई० को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में पंचम (UPBoardSolutions.com) दिनकर स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत भाषण के लिए आपको आमंत्रित किया गया। सन् 1975 ई० में राष्ट्रकुल विश्वविद्यालय परिषद् के लन्दन विश्वविद्यालय स्थित मुख्यालय में कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति की गई। 17-18 जनवरी, सन् 1977 ई० को भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में हुए बावनवें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। पुनः 15-16 जनवरी, सन् 1978 ई० को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट में

भारतीय विश्वविद्यालय परिषद् के तिरपनवें अधिवेशन की अध्यक्षता की। 27 नवम्बर, 2002 ई० को शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का 87 वर्ष की अवस्था में जनपद उज्जैन (म०प्र०) में निधन हो गया।

रचनाएँ – सुमन जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(1) हिल्लोल – यह सुमन जी के प्रेम-गीतों का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं को चित्रित किया गया है।
(2) जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया – इन सभी संग्रहों की कविताओं में क्रान्तिकारी भावनाएँ व्याप्त हैं। इन कविताओं में पीड़ित मानवता के प्रति सहानुभूति तथा पूँजीवाद के प्रति आक्रोश है।
(3) विन्ध्य हिमालय – इसमें देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की कविताएँ हैं।
(4) पर आँखें नहीं भरीं – यह प्रेमगीतों का संग्रह है।
(5) मिट्टी की बारात – इस पर सुमन जी को अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

डॉ० ‘सुमन’ जी प्रगतिवादी कवि के रूप में हमारे समक्ष अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से उपस्थित होते हैं। आपकी कविताओं में दलित, पीड़ित, शोषित एवं वंचित श्रमिक वर्ग को समर्थन किया गया है, साथ ही सामान्य रूप से पूँजीपति वर्ग तथा उनके अत्याचारों का खण्डन भी अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है। सामयिक समस्याओं का विवेचन उनकी कविताओं का प्रमुख अंग रहा है। आपकी कविताओं में आस्था (UPBoardSolutions.com) और विश्वास का स्वर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। आपने समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं तथा वर्ण जातिगत विषमताओं एवं भाग्यवादी विचारधारा को खण्डन भी किया है।

भाषा – सुमन जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता, वयवीयता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है। जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है।

सुमन जी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-
(क) नवीन-सन्धि, शब्द,
(ख) सरल सामाजिक योजना तथा
(ग) देशज शब्द।

भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमन जी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।

शैली – सुमन जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में लाक्षणिकता का भी प्रयोग किया है। सुमन जी की कविताओं की अभिव्यक्ति सौन्दर्य की एक विशेषता काव्यवाद का निर्वहन भी है। इसके अन्तर्गत जीवन की वर्तमान समस्याओं का पौराणिक घटनाओं से साम्य स्थापित किया है। आपकी कविताओं में प्रतीक विधान भी दर्शनीय है। सुमन जी की कविताओं में अलंकारों की समास योजना नहीं है। अनायास ही जो अलंकार आपकी कविताओं में आ गये हैं, ये भावोत्कर्ष में सहायक हुए हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान – ‘सुमन’ जी भारतीय माटी की वह गन्ध हैं, जिसमें जीवन रस-आनन्द सर्वत्र महकता रहता है। जिस प्रकार पृथ्वी की अभिव्यक्ति वनस्पतियों द्वारा होती है उसी प्रकार वनस्पतियों के रस से जीवित मानव प्राणी की अभिव्यक्ति उसकी कलात्मकता और वैज्ञानिकता में होती है।’सुमन’ जी भारतीय संस्कृति के अभिव्यक्ता हैं। प्रकृति के रूप, रस, गन्ध आदि के चितेरे भी हैं। जीवन रस की (UPBoardSolutions.com) मादकता के गायक हैं। जनसामान्य के दुःख-दर्द से द्रवित होने वाले मानव और परम्परागत गौरव गरिमा के संरक्षक हैं। उनके इन्हीं विशिष्ट रूपों को काव्य में पहचाना गया है। एक युग विशेष की मानसिकता की झाँकी उनके काव्य के गुणों से परिपूर्ण एवं प्रभावशाली है।

अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ‘सुमन’ जी का हिन्दी साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। वे हिन्दी साहित्य को ऐसी निधि प्रदान कर गये हैं जो कभी भी नष्ट नहीं हो सकती। शरीर तो नश्वर है लेकिन वैचारिक शरीर शाश्वत रूप से जीवित रहता है। सुमन जी अपनी कृतियों के माध्यम से हिन्दी साहित्य के प्रेमियों के मानस पटल पर सदैव नित-नवीन रूप में मुस्कराते रहेंगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘युगवाणी’ कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने मानवता के कल्याण की कामना की है तथा यह आग्रह किया है कि राष्ट्र के विकास का कार्य अवरुद्ध नहीं होना चाहिए अर्थात् राष्ट्र के विकास के लिए हमें निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
‘युगवाणी’ कविता की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।’
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है। छायावादी रचनाओं की भाषा अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता आदि आपकी रचनाओं में नहीं है। इसके विपरीत स्पष्टता और सरलता है।‘युगवाणी’ कविता में जनसाधारण में प्रस्तुत होने वाली भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में (UPBoardSolutions.com) उर्दू शब्दों को पर्याप्त प्रश्रय मिला है। सुमनजी ने अनेक नये शब्दों का निर्माण भी किया है, जिन्हें हम तीन भागों में बाँट सकते हैं—

  • नवीन सन्धि शब्द
  • सरल सामाजिक योजना
  • देशज शब्द भाषा को प्रभविष्णु बनाने के लिए सुमनजी ने पुनरुक्ति को अपनाया है।

प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता का सारांश संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कवि श्रमिक एवं कृषक वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहता है कि मैंने क्यारी-क्यारी में तुम्हारे ही पदचिह्नों के दर्शन किये हैं। तुमने परिश्रमपूर्वक जो क्यारियाँ बोयी थीं, उन पर बढ़ती हुई फसल में आज भी तुम्हारे श्रमशील कदम झाँकते दिखाई दे रहे हैं । विकास का यही नियम है, जगह-जगह मुस्कान बिखर जाती है। इतना कठिन परिश्रम करने पर भी सर्वहारा वर्ग परेशान है। कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को (UPBoardSolutions.com) चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो तुम्हें समय कभी माफ नहीं करेगा। तुम्हारा अस्तित्व स्वयं खतरे में पड़ जायेगा।

प्रश्न 4.
कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से किन वास्तविकताओं के प्रति आगाह किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता के माध्यम से स्पष्ट किया है कि शासक वर्ग दीन-दुखियों की उपेक्षा कर रहा है और उन पर प्रहार कर रहा है। आज के युग में श्रमिक वर्ग शोषित एवं परेशान है।

प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता में कवि ने शासकों को क्या परामर्श दिया है?
उत्तर :
कवि शासक एवं पूँजीपति वर्ग को चेतावनी देता है कि यदि तुम असहायों की मूल समस्या का समाधान करने की अपेक्षा इनके साथ खिलवाड़ करोगे तो ठीक नहीं होगा। बहुत समय बीत गया, निर्धन को आशारूपी अफीम खिला-खिलाकर अब भी सुला देना चाहते हो । याद रखना, मानवीय (UPBoardSolutions.com) संवेदनाओं की जो फसल हमने बोयी-जोती है, यदि वह नष्ट हो गयी तो तुम अकेले रह जाओगे और यदि संसार श्मशान बन गया तो तुम उसमें रहकर अकेले गीत गाओगे?

प्रश्न 6.
“युगवाणी’ कविता में कवि ने किसके इतिहास को माफ न करने को कहा है?
उत्तर :
कवि ने शासक एवं पूँजीपति वर्ग के इतिहास को कभी न माफ करने की बात कही है क्योंकि शासक एवं पूँजीपति वर्ग श्रमिकों का शोषण करते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस काल के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ आधुनिक काल (प्रगतिवादी युग) के कवि हैं।

प्रश्न 2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस धारा के कवि हैं?
उत्तर :
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी धारा के कवि हैं।

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प्रश्न 3.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की चर्चित रचनाएँ हैं-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, विन्ध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरीं, मिट्टी की बारात आदि।

प्रश्न 4.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है।’सुमन’ जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है।

प्रश्न 5.
‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य बताइए।
उत्तर :
युगवाणी कविता का तात्पर्य है-समयाधारित विचार। समय की माँग है कि राष्ट्र का विकास अनवरत गति से किया जाये ताकि मानवता का कल्याण हो।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(क) तन का, मन को पावन नाता कैसे तोड़ें?
उत्तर :
कवि ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भाषा–खड़ी बोली, शब्द शक्तिलक्षणी, शैली-गीत एवं रस-शान्त

(ख)
इतिहास न तुमको माफ करेगी याद रहे।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, शैली-भावात्मक, गीत एवं रस-रौद्र

(ग)
नव-निर्माण की लपटों को मत मन्द करो।
उत्तर :
यहाँ कवि की प्रगतिवादी भावना व्यक्त हुई है। शब्दशक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना, शैली-भावात्मक, गीत अलंकारअनुप्रास एवं भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।

(घ)
विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो
आसन्न मौत की गहन गोंस गड़ जायेगी।
उत्तर :
श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, अलंकार-गहन गोंस गड़ में अनुप्रास अलंकार।।

2.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिए
विशेषण                                विशेष्य
पद                                          चिह्न
धर्म                                         ध्वजा
दुःख                                         दर्द
UP Board Solutions

1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को प्रगतिवादी कवि कहा जाता है, ऐसे प्रगतिवादी कवियों की सूची बनाइए।
उत्तर :
प्रगतिवादी कवि

  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  • बाबा नागार्जुन
  • शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
  • केदारनाथ अग्रवाल
  • नरेन्द्र शर्मा
  • भगवतीचरण वर्मा
  • रामविलास शर्मा

2.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के पुरस्कारों की सूची बनाइए।
पुरस्कार                                                         (वर्ष)
1. देव पुरस्कार                                                   (1958)
2. सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार                         (1974)
3. साहित्य अकादमी पुरस्कार                             (1974)
4. पद्मश्री                                                             (1974)
5. शिखर सम्मान                                                 (1993)
6. भारत भारती पुरस्कार                                     (1993)
7. पद्म भूषण                                                        (1999)

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