UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक अनूठा खेल है। इस बारे में चर्चा कीजिए कि यह किन-किन अर्थों में बाकी खेलों से भिन्न है। ऐतिहासिक रूप से एक ग्रामीण खेल के रूप में पैदा होने से टेस्ट क्रिकेट में किस तरह की विलक्षणताएँ पैदा हुई हैं?
उत्तर:
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक विलक्षण खेल है। अन्य खेलों से यह निम्न रूप में भिन्न है-

  1. क्रिकेट को ‘सभ्य लोगों का खेल’ (जेंटिलमैन गेम) कहा जाता है जबकि अन्य किसी खेल को यह उपाधि प्राप्त नहीं है।
  2. क्रिकेट का खेल मात्र अंग्रेज और राष्ट्रमण्डल देशों द्वारा खेला जाता है जबकि दूसरे खेल सम्पूर्ण विश्व में खेले जाते हैं।
  3. क्रिकेट विश्व का एकमात्र ऐसा खेल है जो दो देशों की टीम द्वारा 5 दिन तक खेला जाता है जबकि दूसरे खेलों में ऐसा नहीं है।
  4. क्रिकेट के खेल मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित नहीं होती जबकि अन्य खेलों के मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने के कारण क्रिकेट की विलक्षणताएँ-

  1. क्रिकेट की ग्रामीण जड़ों की पुष्टि टेस्ट मैच की अवधि से हो जाती है। शुरुआत में क्रिकेट मैच की समय सीमा नहीं होती थी। खेल तब तक चलता था, जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे।
  2. क्रिकेट मूलतः गाँव में कॉमन्स (ऐसे सार्वजनिक और खुले मैदान जिन पर पूरे समुदाय का सामुदायिक अधिकार होता था) में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार प्रत्येक गाँव में अलग-अलग होता था। इसलिए न तो सीमा रेखा निर्धारित थी और न ही चौके। जब सीमा-रेखा क्रिकेट की नियमावली का हिस्सा बनीं तब भी विकेट से उसकी दूरी निर्धारित नहीं की गयी। नियम के अंतर्गत केवल यह व्यवस्था की गयी थी कि अंपायर दोनों कप्तानों से परामर्श करके खेल के क्षेत्र की सीमा निर्धारित करेगा।
  3. क्रिकेट में प्रयुक्त वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि समय में आए परिवर्तन के बावजूद वह ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही जुड़ा रहा। बल्ला, स्टम्प व गिल्लियाँ लकड़ी (UPBoardSolutions.com) की बनी हुई हैं जबकि गेंद चमड़े, ट्वाइन और काग (कॉर्क) से बना हुआ है। आज भी क्रिकेट का बल्ला व गेंद हाथ से ही बनाए जाते हैं, मशीन से नहीं। बल्ले की निर्माण सामग्री में अवश्य कुछ परिवर्तन आया है।

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प्रश्न 2.
एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसके आधार पर आप कह सकें कि उन्नीसवीं सदी में तकनीक के कारण क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया। साथ ही ऐसे उपकरणों में से भी कोई एक उदाहरण दीजिए जिनमें कोई बदलाव नहीं आया।
उत्तर:
वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज के बाद 1848 ई० से क्रिकेट में पैड पहनने का प्रचलन शुरू हुआ। इसके शीघ्र बाद ही हाथों में पहनने के लिए दस्ताने अस्तित्व में आए। सिंथेटिक व हल्की सामग्री के बने हेलमेट के बिना तो आधुनिक क्रिकेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
उदाहरण-वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज, हाथों में पहनने के लिए दस्ताने और हल्के हेलमेट इससे क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया।
लेकिन समय की निरंतर बदलती प्रकृति के बावजूद क्रिकेट के महत्त्वपूर्ण उपकरण बल्ला, स्टम्प और वेल्स में कोई परिवर्तन नहीं आया ये पहले की भांति आज भी प्रकृति (UPBoardSolutions.com) पर ही आश्रित हैं। क्रिकेट की गेंद का निर्माण आज भी चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है।
उदाहरण-बल्ला, स्टम्प, वेल्स, गेंद। इन उपकरणों में कोई बदलाव नहीं आया है।

प्रश्न-3.
भारत और वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट क्यों इतना लोकप्रिय हुआ? क्या आप बता सकते हैं कि यह खेल दक्षिणी अमेरिका में इतना लोकप्रिय क्यों नहीं हुआ? उत्तर:
भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय होने के कारण इस प्रकार हैं-

  1. औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के कारण भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिशवादी कर्मचारियों ने क्रिकेट को नस्ली एवं सामाजिक उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किया।
  2. अंग्रेजों ने इस खेल को जनसामान्य के लिए लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि औपनिवेशिक लोगों के लिए क्रिकेट खेलना ब्रिटिश लोगों के साथ नस्ली समानता का परिचायक था। क्रिकेट में सफलता से नस्ली समानता एवं राजनीतिक प्रगति का अर्थ लिया जाने लगा।
  3. स्वाधीनता संघर्ष के काल में अनेक अभिजात्य वर्गीय नेताओं को क्रिकेट में आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की संभावनाएँ परिलक्षित होती थीं। दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट के लोकप्रिय न होने के कारण-दक्षिण अमेरिका में ब्रिटिश शासन नहीं था बल्कि वहाँ पर स्पेन, (UPBoardSolutions.com) पुर्तगाल आदि यूरोपीय देशों का शासन था। स्पेन और पुर्तगाल आदि देशों में क्रिकेट लोकप्रिय खेल नहीं था जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट उस लोकप्रियता को प्राप्त न कर सका जिसे भारत और वेस्टइंडीज ने प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए-

  1. भारत में पहला क्रिकेट क्लब पारसियों ने खोला।
  2. महात्मा गाँधी पेंटांग्युलर टूर्नामेंट के आलोचक थे।
  3. आईसीसी का नाम बदल कर इंपीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस के स्थान पर इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस कर दिया गया।
  4. आईसीसी का मुख्यालय लंदन की जगह दुबई में स्थानान्तरित कर दिया गया।

उत्तर:
(1) भारत में क्रिकेट का आरंभ करने का श्रेय बम्बई के छोटे से पारसी समुदाय को है। व्यापार के उद्देश्य से पारसी सबसे पहले अंग्रेजों के संपर्क में आए। इस तरह पश्चिम की संस्कृति से प्रभावित होने वाला भारत का पहला समुदाय पारसी था। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई (मुम्बई) में भारत का पहला क्रिकेट क्लब “ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ नाम से स्थापित किया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी (UPBoardSolutions.com) पारसी क्लबों के प्रायोजक व वित्त पोषक थे। अंग्रेजों ने उत्साही पारसियों की क्रिकेट के विकास में कोई सहायता नहीं की बल्कि बॉम्बे जिमखाना क्लब और पारसी क्रिकेटरों के बीच पार्क के इस्तेमाल को लेकर झगड़ा भी हुआ।

पारसियों ने इस बात की शिकायत की कि बॉम्बे जिमखाना के पोलो टीम के घोड़ों द्वारा रौंदे जाने के बाद मैदान क्रिकेट खेलने लायक नहीं रह गया है। जब यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज औपनिवेशिक अधिकारी अपने देशवासियों का पक्ष ले रहे हैं, तो पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए अपना खुद को जिमखाना ‘पारसी जिमखाना बनाया। पर पारसियों व नस्लवादी बॉम्बे जिमखाना के बीच की इस स्पर्धा का अंत अच्छा हुआ-पारसियों की एक टीम ने बॉम्बे जिमखाना को 1889 ई० में हरा दिया। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के चार साल बाद हुआ और दिलचस्प बात यह है कि इस संस्था के मूल नेताओं में से एक दादाभाई नौरोजी, जो अपने वक्त के महान राजनेता व बुद्धिजीवी थे, पारसी ही थे।

(2) महात्मा गांधी ने पेंटाग्युलर टूर्नामेंट को सांप्रदायिक भेद-भाव के आधार पर बाँटनेवाला बताकर इसकी निंदा की। उनका विचार था कि यह मुकाबला सांप्रदायिक रूप (UPBoardSolutions.com) से अशांतिकारक था जो कि ऐसे समय में देश के लिए हानिकारक था जब वे विभिन्न धर्मों के लोगों एवं क्षेत्रों को धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एकजुट करना चाह रहे थे।

(3) 1909 ई0 में इंग्लैण्ड में क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए “इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आई.सी.सी.) की स्थापना की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत धीरे-धीरे इंग्लैण्ड का साम्राज्यवादी स्वरूप नष्ट हो गया और उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गए परंतु क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन पर साम्राज्यवादी क्रिकेट कॉन्फ्रेंस का नियंत्रण बरकरार रहा।
आईसीसी पर, जिसका 1965 ई० में नाम बदलकर ‘इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस’ हो गया, इसके संस्थापक सदस्यों का वर्चस्व रहा, उन्हीं के हाथ में कार्यकलाप के वीटो अधिकार रहे। इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के विशेषाधिकार 1989 ई0 में जाकर खत्म हुए और वे अब सामान्य सदस्य रह गए।

(4) आईसीसी मुख्यालय लंदन से दुबई में इसलिए स्थानांतरित हुआ क्योंकि भारत दक्षिण एशिया में स्थित है। भारत में खेल के सबसे अधिक दर्शक थे और यह क्रिकेट खेलने वाले देशों में सबसे बड़ा बाजार था, इसलिए खेल का गुरुत्व औपनिवेशिक देशों से वि-औपनिवेशिक देशों (UPBoardSolutions.com) में स्थानांतरित हो गया। मुख्यालय का स्थानांतरण खेल में अंग्रेजी या साम्राज्यवादी प्रभुत्व के औपचारिक अंत का सूचक था।

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प्रश्न 5.
तकनीक के क्षेत्र में आए बदलावों, खासतौर से टेलीविजन तकनीक में आए परिवर्तनों से समकालीन क्रिकेट के विकास पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
समकालीन क्रिकेट के विकास एवं लोकप्रियता में वृद्धि करने में विकसित तकनीक विशेषकर उपग्रह टेलीविजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। रंग-बिरंगे परिधान, रक्षात्मक हेलमेट, क्षेत्र रक्षण सम्बन्धी प्रतिबन्ध, दूधिया प्रकाश की रोशनी में क्रिकेट, सीमित ओवर के क्रिकेट मैच आदि ने इस पूर्व औद्योगिक ग्रामीण खेल को आधुनिक परिवेश में रूपांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सेटेलाइट टेलीविजन के प्रचलन ने क्रिकेट को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा दिया है।
टेलीविजन तकनीक ने क्रिकेट के विकास को निम्न रूप में प्रभावित किया है-

  1. टेलीविजन प्रसारण ने क्रिकेट को एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है।
    टेलीविजन कंपनियों ने विज्ञापन-समय व्यावसायिक कंपनियों को बेचने आरंभ कर दिए। व्यावसायिक कंपनियों को भी इतना बड़ा दर्शक-समूह और कहाँ मिलता इसलिए विज्ञापनों से टी.वी. कंपनियों तथा क्रिकेट बोर्डो की आय बहुत बढ़ गई। निरंतर टी.वी. कवरेज के (UPBoardSolutions.com) बाद क्रिकेटर सेलेब्रिटी बन गए और उन्हें अपने क्रिकेट बोर्ड से तो ज्यादा वेतन मिलने ही लगा, लेकिन उससे भी बड़ी कमाई के साधन टायर से लेकर कोला तक के टी०वी० विज्ञापन हो गए।
  2. टी.वी. कैमरे के उपयोग ने क्रिकेट के स्वरूप को भी प्रभावित किया। अब टी.वी. में ‘स्लो-मोशन’ द्वारा खेल की बारीकियों पर नजर रखी जाने लगी है। तीसरे अंपायर का निर्णय पूरी तरह कैमरे के कुशलतापूर्वक उपयोग पर ही निर्भर होता है।
  3. टी.वी. द्वारा दिखाए जाने वाले ‘री-प्ले’ ने खेल की रोचकता को और भी बढ़ा दिया है।
  4. टी.वी. प्रसारण से क्रिकेट का स्वरूप बिल्कुल ही बदल गया। टेलीविजन तकनीक के द्वारा क्रिकेट की पहँच छोटे शहरों व गाँवों के दर्शकों तक हो गई। इससे क्रिकेट का सामाजिक आधार भी व्यापक हुआ है। महानगरों से दूर रहने वाले बच्चे जो कभी बड़े मैच नहीं देख पाते थे, अब अपने नायकों को देखकर क्रिकेट की तकनीकें सीख सकते हैं।
  5. उपग्रह (सैटेलाइट) टी.वी. की तकनीक और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया भर की पहुँच के चलते क्रिकेट का वैश्विक बाजार बन गया है। सिडनी में चल रहे मैच को अब सीधे सूरत में देखा जा सकता है।
  6. टेलीविजन दर्शकों को लुभाने के लिए (UPBoardSolutions.com) क्रिकेट में किए गए अनेक प्रयोग जैसे-रंगीन वर्दी, सीमित ओवर, रात-दिन का खेल, क्षेत्ररक्षण की पाबंदियाँ आदि, स्थायी सिद्ध हुए हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान सी.के.नायडू थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिशकालीन भारत के तीन प्रमुख क्रिकेटर कौन थे?
उत्तर:

  1. सी. के. नायडू,
  2. पावलंकर बालू,
  3. पालवंकर बिट्ठल।

प्रश्न 3.
पेंटांग्युलर टूर्नामेंट में शामिल होने वाली क्रिकेट टीमें किन समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं?
उत्तर:

  1. यूरोपीय समुदाय,
  2. हिन्दू समुदाय,
  3. पारसी समुदाय,
  4. मुस्लिम समुदाय,
  5. दरेस्ट (शेष भारतीय समुदाय)।

प्रश्न 4.
अंग्रेज बच्चों में क्रिकेट को किन गुणों को विकसित करने का माध्यम मानते थे?
उत्तर:

  1. अनुशासन,
  2. नेतृत्व क्षमता,
  3. ऊँच-नीच का बोध,
  4. स्वाभिमान।

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प्रश्न 5.
भारतीयों ने अंग्रेजों के बॉम्बे जिमखाना को पहली बार कब हराया था?
उत्तर:
अंग्रेजों के जिमखाना क्लब को भारतीयों ने पहली बार 1889 ई० में हराया था।

प्रश्न 6.
भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब कौन-सा था?
उत्तर:
भारत में भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ था।

प्रश्न 7.
वेस्टइंडीज में पहला गैर-गोरा क्लब कब बना?
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में वेस्टइंडीज का पहला गैर-गोरा क्लब था ।

प्रश्न 8.
वेस्टइंडीज को प्रथम अश्वेत कप्तान कौन था?
उत्तर:
फ्रैंक वॉरेल वेस्टइंडीज के प्रथम अश्वेत कप्तान थे।

प्रश्न 9.
क्रिकेट पिच की लंबाई कितनी होती है?
उत्तर:
क्रिकेट पिच की लम्बाई 22 गज होती है।

प्रश्न 10.
एम.सी.सी. की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
एम.सी.सी. की स्थापना 1787 ई० में हुई थी?

प्रश्न 11.
एम.सी.सी. का पूरा नाम क्या हैं?
उत्तर:
एम.सी.सी. का पूरा नाम है- ‘मेरिलिबॉन क्रिकेट क्लब

प्रश्न 12.
क्रिकेट के नियमों को पहली बार कब लिखा गया?
उत्तर:
सन् 1774 ई० में क्रिकेट के नियमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया।

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प्रश्न 13.
क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1760-1770 ई0 के दशक में क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत हुई।

प्रश्न 14.
क्रिकेट के गेंद को हवा में लहराकर फेंकने के दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. गेंद की गति बढ़ गई थी।
  2. गेंद को स्पिन एवं स्विंग कराना संभव हो गया था।

प्रश्न 15.
क्रिकेट का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
क्रिकेट का प्रसार प्रायः उन देशों में हुआ जिनमें इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक शासन था। इन देशों में भारत, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, वेस्टइंडीज, केन्या आदि शामिल हैं। इन देशों में क्रिकेट का प्रसार अंग्रेजों द्वारा किया गया।

प्रश्न 16.
19वीं सदी में क्रिकेट में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. क्रिकेट की गेंदे का व्यास निश्चित किया गया।
  2. चोट लगने से बचाव के लिए पैड व दस्ताने पहनने का प्रचलन शुरू हुआ।
  3. वाइड बॉल का नियम प्रभावी हुआ।

प्रश्न 17.
1760 व 1770 ई0 के क्रिकेट में आए बदलाव को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस अवधि में क्रिकेट की गेंद को जमीन पर लुढ़काने की जगह हवा में लहराकर बल्लेबाज के आगे पटकने का चलने शुरू हुआ। क्रिकेट की गेंद का वजन अब साढ़े पाँच से पौने छः औंस तक हो गया और बल्ले की चौड़ाई चार इंच कर दी गयी है। यह तब हुआ जब एक बल्लेबाज ने अपनी पूरी पारी विकेट जितने चौड़े बल्ले से खेल डाली।

प्रश्न 18.
भारत में क्रिकेट की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मिलती है। भारत में क्रिकेट खेलने वाला प्रथम समुदाय पारसी था। पारसी समुदाय के ज्यादातर लोग व्यापारी या पूंजीपति थे। (UPBoardSolutions.com) ये लोग व्यापार हेतु जब अंग्रेजों के संपर्क में आए तो इनमें क्रिकेट के प्रति रुचि बढ़ी।

प्रश्न 19.
भारत में पहला क्रिकेट क्लब कब खुला? अठाहरवीं सदी में क्रिकेट किन लोगों के बीच खेला जाता था?
उत्तर:
भारत में पहला क्रिकेट क्लब 1792 ई० में कलकत्ता क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। अठारहवीं सदी में भारत में क्रिकेट ब्रिटिश सैनिक व सिविल सर्वेट्स द्वारा केवल गोरे क्लबों व जिम्मखानों में खेले जानेवाला खेल बना रहा।

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प्रश्न 20.
पालवंकर बालू कौन थे?
उत्तर:
पालवंकर बालू का जन्म 1875 ई0 में पूना में हुआ था। वे धीमी गति की गेंदबाजी में अपने समय के सर्वश्रेष्ठ भारतीय गेंदबाज थे। बालू औपनिवेशिक काल के सबसे बड़े भारतीय क्रिकेट मुकाबले क्वाईंग्यूलर में हिन्दू टीम की ओर से खेलते थे। उन्हें कभी हिंदू टीम का कप्तान नहीं बनाया गया क्योंकि वह दलित समुदाय से थे। प्रश्न 21. विश्व का सबसे पहला क्रिकेट क्लब कौन था? इस क्लब की क्या उपलब्धियाँ थीं? उत्तर- दुनिया का पहला क्रिकेट क्लब हैम्बलडन में 1760 ई0 के दशक में बना और मेरिलिबॉन क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) क्लब (एम. सी. सी.) की स्थापना 1787 ई० में हुई। इसके अगले साल ही एम. सी. सी. ने क्रिकेट के नियमों में सुधार किए और उनका अभिभावक बन बैठा। एम. सी. सी. के सुधारों से खेल के रंग-ढंग में ढेर सारे परिवर्तन हुए, जिन्हें 18वीं
सदी के दूसरे हिस्से में लागू किया गया।

प्रश्न 22.
सेटेलाइट टेलीविजन ने क्रिकेट के दर्शकों में किस प्रकार वृद्धि की?
उत्तर:
सेटेलाइट (उपग्रह) टेलीविजन ने दर्शकों में क्रिकेट के प्रति रुचि उत्पन्न की। लोगों को टेलीविजन पर मैच देखने से इस खेल के नियमों और बारीकियों की जानकारी हुई। यह संचार माध्यम लोगों को उसी प्रकार खेल का आनन्द देता था जैसे कि खेल के मैदान में दर्शकों को। टेलीविजन (UPBoardSolutions.com) के कम्प्युटराइज्ड सिस्टम ने इस खेल को और भी आकर्षक, बना दिया।

प्रश्न 23.
हॉकी खेल का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अनेक परंपरागत खेलों के सम्मिलित रूप से आधुनिक हॉकी खेल का विकास हुआ। स्कॉट के शिंटी, इंग्लैण्ड व वेल्स के वेंडी व आयरिश हॉर्लिग को हॉकी का पूर्व रूप माना जा सकता है। भारत में हॉकी का आरंभ औपनिवेशिर्क काल में अंग्रेज सैनिकों द्वारा किया गया। भारत में पहले परंपरागत हॉकी क्लब की स्थापना 1885-86 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में हॉकी को वर्ष 1928 ई० में पहली बार शामिल किया गया

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिकेट के शुरुआती दौर में बल्लेबाज को ही कप्तान क्यों बनाया जाता था?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल आरंम्भिक दौर में इंग्लैण्ड में अभिजात्य वर्ग द्वारा खेला जाता था। अभिजात्य वर्ग इस खेल पर अपनी श्रेष्ठता बनाए रखना चाहता था। अतः ये लोग बल्लेबाज बनना पसन्द करते थे। उनका ऐसा मानना था कि गेंद फेंकने, से शक्ति (ऊर्जा) का क्षय होता है। इसलिए वे गेंद फेंकने का कार्य अन्य लोगों को देते थे और इस कार्य के बदले में उन्हें धन का भुगतान किया जाता था। धन लेकर गेंदबाजी करने वालों (UPBoardSolutions.com) को प्रोफेशनल (व्यवसायी) कहा जाता था। इन प्रोफेशनल लोगों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बल्लेबाज को ही कप्तान बनाया जाता था। इसीलिए आरंम्भिक काल में क्रिकेट को बल्लेबाजों का खेल कहा जाता था।

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प्रश्न 2.
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्त्व को हम निम्न रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. अंग्रेज क्रिकेट के खेल को एक मैदानी खेल के अलावा खिलाड़ियों में अनुशासन, ऊँच-नीच की समझ, गुण, स्वाभिमान की रणनीति और नेतृत्व कौशल विकसित करने का एक माध्यम मानते थे।
  2. अंग्रेजों का मानना था कि क्रिकेट का खेल केवल विजय-पराजय की भावना से प्रेरित होकर नहीं खेला जाना चाहिए बल्कि इसे न्यायोचित खेल भावना से खेला जाना चाहिए।
  3. अंग्रेजों की मान्यता थी कि सभ्य लोगों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट से ही विद्यार्थियों में नैतिक चरित्र का विकास संभव है।

प्रश्न 3.
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा को हम इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं-

  1. वेस्टइंडीज भारत की ही तरह इंग्लैण्ड का उपनिवेश था।
  2. 19वीं शताब्दी के अंत में वेस्टइंडीज में पहले स्थानीय क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब के सभी सदस्य मुलेट्टो समुदाय के थे। मुलेटों समुदाय में मिश्रित यूरोपीय और अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे।
  3. वेस्टइंडीज के स्थानीय लोगों ने क्रिकेट के खेल को गोरी और काली प्रजाति, मध्य नस्ली समानता व राजनीतिक प्रगति के रूप में स्वीकार किया।
  4. वेस्टइंडीज के लोगों ने इस खेल को अपने आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न माना। इसी भावना की परिणति थी कि जब इन लोगों ने 1950 ई0 के दशक में इंग्लैण्ड के विरुद्ध पहली टेस्ट श्रृंखला जीती तो इस जीत को वहाँ राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया गया। फ्रैंक वारेलु 1960 ई0 में वेस्टइंडीज टीम के प्रथम अश्वेत कप्तान बने।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के पहले लिखित नियमों के बारे में बताइए।
उत्तर:
क्रिकेट के पहले लिखित नियम 1744 ई० में बनाए गए। इन नियमों का विवरण इस प्रकार है-

  1. बल्ले के रूप व आकार पर कोई पाबंदी नहीं थी। ऐसा लगता है कि 40 नॉच या रन का स्कोर काफी बड़ा होता था, शायद इसलिए कि गेंदबाज तेजी से बल्लेबाज के नंगी, पैडरहित पिंडलियों पर गेंद फेंकते थे।
  2. हाजिर शरीफों में से दोनों प्रिंसिपल (कप्तान) दो अंपायर चुनेंगे, जिन्हें किसी भी विवाद को निपटाने की अंतिम अधिकार होगा।
  3. स्टंप 22 इंच ऊँचे होंगे, उनके बीच की गिल्लियाँ 6 इंच लंबी होंगी।
  4. गेंद का वजन 5 से 6 औंस के बीच होगा और स्टंप के बीच की दूरी 22 गज होगी।

प्रश्न 5.
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-

पेशेवर क्रिकेटर

शौकिया क्रिकेटर

1. पेशेवरों को तेज गेंदबाजी का मेहनतकश काम दिया जाता था। 1. शौकिया बल्लेबाज टीम में रहने का प्रयास करते थे।
2. उन्हें हीन समझा जाता था। 2. उन्हें सामाजिक श्रेष्ठता हासिल थी।
3. पेशेवर गरीब थे जो पैसे के लिए खेलते थे। पेशेवर  खिलाड़ियों का मेहनताना संरक्षकों द्वारा, चंदे, या गेट पर इकट्ठा किए गए पैसे से दिया जाता था। 3. शौकिया वे अमीर लोग थे जो खाली समय बिताने। के लिए क्रिकेट खेलते थे न कि पैसे के लिए।
4. वे आजीविका कमाने के लिए खेलते थे। 4. वे मजे के लिए खेलते थे।
5. उन्हें खिलाड़ी कहा जाता था। 5. उन्हें भद्र पुरुष कहा जाता था।

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी के दौरान क्रिकेट के खेल में क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए?
उत्तर:
19वीं सदी के दौरान क्रिकेट के खेल में निम्नलिखित परिवर्तन घटित हुए.-

  1. चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग किए जाने लगे।
  2. बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था।
  3. ओवरआर्म बॉलिंग कानूनी ठहरायी गई।
  4. वाइड बॉल के लिए नियम लागू किया गया।
  5. गेंद का सटीक व्यास तय किया गया।

प्रश्न 7.
‘शौकिया खिलाड़ी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के समाज के ऐसे उच्चवर्गीय लोग जो अपना शौक पूरा करने के लिए क्रिकेट खेलते थे, उन्हें ‘शौकिया खिलाड़ी’ कहते थे।
शौकीनों की समाजिक श्रेष्ठता क्रिकेट की परंपरा का हिस्सा बन गई। शौकीनों को जहाँ ‘जेंटिलमैन’ की उपाधि दी गई तो वहीं पेशेवरों को ‘खिलाड़ी’ (प्लेयर्स) का अदना-सा नाम मिला। मैदान में घुसने के उनके प्रवेश-द्वार भी अलग-अलग थे। शौकीन जहाँ बल्लेबाज हुआ करते वहीं खेल में असली (UPBoardSolutions.com) मशक्कत और ऊर्जा वाले काम, जैसे तेज गेंदबाजी, पेशेवर खिलाड़ियों के हिस्से आते थे।

क्रिकेट में संदेह का लाभ (बेनेफिट ऑफ डाउट) हमेशा बल्लेबाज को ही मिलने की एक वजह यह भी है। क्रिकेट बल्लेबाजों का ही खेल इसीलिए बना क्योंकि नियम बनाते समय बल्लेबाजी करने वाले ‘जेंटिलमैन’ को तरजीह दी गई। शौकिया खिलाड़ियों की सामाजिक श्रेष्ठता का ही नतीजा था कि टीम की कप्तान पारंपरिक तौर पर बल्लेबाज ही होता था, इसलिए नहीं कि बल्लेबाज कुदरती तौर पर बेहतर कप्तान होते थे, बल्कि इसलिए कि बल्लेबाज तो आम तौर पर ‘जेंटिलमैन’ ही होते थे। चाहे क्लब की टीम हो या राष्ट्रीय टीम, कप्तान तो शौकिया खिलाड़ी ही होता था।

प्रश्न 8.
पेशेवर खिलाड़ी से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे खिलाड़ी जो अपने जीवन-यापन के लिए क्रिकेट का खेल खेलते थे, पेशेवर खिलाड़ी कहलाते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को वजीफा, चंदा अथवा मैदान के गेट पर इकट्ठा किए गए धन में से कुछ पैसा दिया जाता था। इंग्लैण्ड में क्रिकेट एक मौसमी खेल के रूप में खेला जाता है क्योंकि सर्दियों में तापमान बहुत कम होने के कारण क्रिकेट नहीं खेला जाता है। सर्दियों को क्रिकेट का ऑफ सीजन भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) ऑफ सीजन में पेशेवर खिलाड़ी प्रायः खदानों में अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को कभी भी कप्तान नहीं बनाया जाता था। पहली बार 1930 ई0 के दशक में यार्कशायर के एक पेशेवर खिलाड़ी लेन हटन ने अंग्रेजी टीम की कप्तानी की थी।

प्रश्न 9.
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल इसलिए माना जाता है क्योंकि इंग्लैण्ड के अलावा इस खेल का विस्तार उन्हीं देशों में हुआ जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश थे। क्रिकेट की पूर्व-औद्योगिक विषमताओं ने इसके अन्य देशों में गमन को कठिन बना दिया। इसलिए इसने उन्हीं देशों में अपनी जड़े जमाई जहाँ अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की और शासन किया। इन ब्रिटिश उपनिवेशों (जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज और कीनिया) में क्रिकेट इसलिए लोकप्रिय खेल बन पाया क्योंकि गोरे (UPBoardSolutions.com) बाशिंदों ने इसे अपनाया या फिर जहाँ स्थानीय अभिजात वर्ग ने अपने औपनिवेशिक मालिकों की आदतों की नकल करने की कोशिश की, जैसे कि भारत में।

प्रश्न 10.
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को हम निम्न रूप में स्पष्ट कर सकते हैं। इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों में ग्वालों व चरवाहों द्वारा खेले जाने वाले गेंद व डण्डे के खेल से क्रिकेट की उत्पत्ति हुई। ‘बैट’ अंग्रेजी का पुराना शब्द है, जिसका अर्थ है ‘डंडा’ या ‘कुंदा। 17वीं शताब्दी तक यह एक प्रचलित खेल के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। सन् 1706 में विलियम गोल्ड ने अपनी कविता में एक क्रिकेट मैच का वर्णन किया था। सन् 1709 में लंदन और कैंट की टीमों के बीच पहला क्रिकेट मैच खेला गया था।

सन् 1710 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय तथा सन् 1729 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी क्रिकेट खेला जाने लगा।
सन् 1760 में इंग्लैंड में प्रथम क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब का नाम ‘हैम्बलडन क्लब’ रखा गया। सन् 1787 में इंग्लैण्ड में ‘मेरिलीबोन क्रिकेट क्लब’ (एम.सी.सी) की स्थापना की गई। लार्ड्स के प्रसिद्ध मैदान पर प्रथम मैच 27 जून, 1788 में खेला गया था। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट की स्थापना सन् 1873 में हुई।

प्रश्न 11.
‘हॉकी’ का राष्ट्रीय खेल के रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक हॉकी खेल का विकास पूर्व काल में ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर खेले जाने वाले परंपरागत खेलों से हुआ। स्कॉटलैण्ड में खेले जाने वाले खेल शिंटी, इंग्लिश व वेल्श के खेल बेंडी व आयरिश हालिंग को आधुनिक हॉकी का आदिम रूप माना जाता है।
दूसरे अन्य खेलों की भाँति हमारे यहाँ भी हॉकी की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश सेना द्वारा ही की गई थी। पहले हॉकी क्लब की स्थापना 1885-1886 ई0 में कलकत्ता में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में भारत को पहली बार 1928 ई० में शामिल किया गया था। इस प्रतिस्पर्धा में ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विट्जरलैण्ड को हराते हुए भारत फाइनल तक जा पहुँचा। फाइनल में भारत ने इंग्लैण्ड को भी शून्य के मुकाबले तीन गोल से मात दे दी।

भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों के खेल-कौशल और तीक्ष्णता ने हमारे देश को ओलंपिक के कई स्वर्ण पदक द्वादिलाए। 1928 से 1956 ई0 के बीच भारतीय टीम ने लगातार छः ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। हॉकी की दुनिया में भारतीय वर्चस्व के इस (UPBoardSolutions.com) स्वर्ण युग में भारत ने ओलंपिक में कुल 24 मैच खेले और सभी में सफलता प्राप्त की। इन मैचों में भारतीय खिलाड़ियों ने 178 गोल (प्रति मैच औसतन 7.43 गोल) दागे और विपक्षी टीमें उनके खिलाफ केवल 7 ही गोल कर पाईं। हॉकी में भारत को दो स्वर्ण पदक 1964 ई० के टोकियो ओलंपिक और 1980 ई० के मास्को ओलंपिक में प्राप्त हुए थे।

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प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका को लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर क्यों रखा गया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम बहुत समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर रही क्योंकि वहाँ पर सत्तारूढ़ सरकार ने रंगभेद की नीति अपनायी हुई थी। वहाँ के बहुसंख्यक मूल निवासी काले लोगों को उनके मूलभूत नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया था। इन दक्षिण अफ्रीकी मूल निवासियों को क्रिकेट टीम में कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता था। लेकिन इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड ने दक्षिण अफ्रीका की टीम के साथ क्रिकेट खेलना जारी रखा। रंगभेद की नीति के कारण भारत, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) टीमों ने दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम का बहिष्कार किया। उस समय भारत-पाकिस्तान के पास आई.सी.सी. में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे दूसरे देशों को दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने से रोक सकें। यह तभी संभव हुआ जब आई.सी.सी. में एशियाई और अन्य अफ्रीकी देशों का प्रभावबढ़ा। किन्तु वर्तमान में वहाँ नेल्सन मण्डेला के दीर्घकालिक लोकतांत्रिक संघर्ष के फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार है और वहाँ रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। रंगभेद की नीति के समाप्ति के साथ अब आई.सी.सी. के सभी देशों के दक्षिण अफ्रीका के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय (UPBoardSolutions.com) ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे।

उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों (UPBoardSolutions.com) को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे।

औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई।

प्रश्न 2.
क्रिकेट के नियमों में समयानुसार परिवर्तन की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट के खेल का महत्त्व आज इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसमें निरन्तर परिवर्तन किए जाते रहे।
क्रिकेट के खेल में किए गए परिवर्तनों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) क्रिकेट का मैदान – क्रिकेट के खेल के मैदान का आकार निश्चित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रिकेट के खेल को नियंत्रित एवं संचालित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई.सी.सी. ने इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाया है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट कॉमन्स (गाँव की सामूहिक भूमि) पर खेला जाता था और प्रत्येक गाँव में इस मैदान का आकार पृथक्पृथक् होता था। इसलिए वर्तमान में भी क्रिकेट के (UPBoardSolutions.com) मैदान का आकार अलग-अलग होता है, जोकि स्टेडियम के आकार पर निर्भर करता है। इसमें विकेट से विकेट के बीच की दूरी (पिच) 22 गज (17.68 मी.) होती है।

(2) क्रिकेट की गेंद – क्रिकेट की गेंद का निर्माण चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है। पहले गेंद का वजन साढ़े पाँच औंस होता था जो बाद में बढ़ाकर पौने छः औंस हो गया। वर्तमान में इसका वजन 156 ग्राम तथा गेंद की परिधि 8 से 9 इंच होती है। गेंद का रंग दिन के मैच में लाल तथा रात के मैच में सफेद होता है।

(3) बल्ले का आकार – क्रिकेट के बल्ले की आकृति 18वीं सदी के मध्य तक हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी हुई होती थी। बल्ले को बाद में लकड़ी के एक साबुत टुकड़े से बनाया जाने लगा। वर्तमान में बल्ले के दो हिस्से होते हैं—ब्लेड या फट्टा जो विलों (बैद) नामके पेड़ की लकड़ी से बनता है और हत्था (हैंडल) बेंत से बनता है। नए नियमों के अनुसार बल्ले की चौड़ाई 44 इंच (10.8 सेमी) तथा इसकी लम्बाई 38 इंच (96.5 सेमी) निर्धारित की गई हैं।

(4) गेंद फेंकने का तरीका – शुरुआती दिनों में क्रिकेट की गेंद को पिच पर लुढ़काकर (अण्डर आर्म) फेंका जाता था। 1761-70 के दशक में गेंद को हवा में लहरा कर फेंकने का प्रज्वलन आरंभ हुआ। इससे गेंदबाजों को विभिन्न लंबाइयों की गेंद फेंकने के साथ-साथ गेंद को घुमाने में भी सहायता मिली। इसके कारण गेंदबाजी में गति, स्पिन तथा स्विंग जैसी तकनीकों का समावेश हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों ने ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’ के रूप में गेंदबाजी की नवीन तकनीकों का विकास किया है।

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प्रश्न 3.
‘वाटरलू का युद्ध ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।’ इस कथन का क्या निहितार्थ है?
उत्तर:
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की सैन्य सफलता का रहस्य उसके उत्कृष्ट पब्लिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षण के दौरान सिखाए गए नैतिक मूल्यों में निहित था। इन पब्लिक स्कूलों में ईटन सर्वाधिक प्रसिद्ध था। अंग्रेजी आवासीय विद्यालय में अंग्रेज लड़कों को शाही इंग्लैण्ड के तीन अहम् संस्थानों-सेना, प्रशासनिक सेवा व चर्च में कैरियर के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के शुरुआत (UPBoardSolutions.com) तक टॉमस आर्नल्ड-जो मशहूर रग्बी स्कूल के हेडमास्टर होने के साथ-साथ आधुनिक पब्लिक स्कूल प्रणाली के प्रणेता थे-रग्बी व क्रिकेट जैसे टीम खेलों को पढ़ाई का एक सुनियोजित तरीका मानते थे।

अंग्रेज लड़के अनुशासन, अनुक्रम का महत्त्व, कौशल, स्वाभिमान की रीति-नीति और नेतृत्व क्षमता सीखते थे जो उनकी ब्रिटिश साम्राज्य चलाने में सहायता करते थे। विक्टोरियाई साम्राज्य-निर्माता दुसरे देशों की जीत को यह कह कर सही ठहराते थे कि उन्हें जीतना निःस्वार्थ समाज सेवा थी जिससे पिछड़े समाज ब्रितानी कानून व पश्चिम ज्ञान के संपर्क में आकर सभ्यता का सबक सीख सकते थे।
क्रिकेट ने अभिजात अंग्रेजों की इस शौकिया आत्मछवि को पुष्ट करने में मदद की-जहाँ पर क्रिकेट फायदे या जीत के लिए न होकर केवल सीखने के लिए  और ‘स्पिरिट ऑफ फेयरप्ले’ (न्यायोचित खेल भावना) के लिए खेला जाता था।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के खेल को ग्रामीण पृष्ठभूमि से किस प्रकार जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल की प्रारंभिक पृष्ठभूमि ग्रामीण ही थी। शुरुआत में इसमें समय की कोई सीमा नहीं थी। ग्रामीण इंग्लैण्ड में यह खेल तब तक चलता था जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे। उल्लेखनीय है। कि ग्रामीण जीवन की गति मंद होती है और क्रिकेट के नियम औद्योगिक क्रान्ति से पहले बनाए गए थे। क्रिकेट के मैदान का आकार अनिश्चित होना भी उसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि को इंगित करता है। क्रिकेट मूलतः गाँव की शामिलात जमीन अर्थात् कॉमन्स में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार हरेक गाँव में अलग-अलग होता था, इसलिए न तो बाउंड्री तय थी और न ही चौके। जब गेंद भीड़ में घुस जाती तो लोग क्षेत्ररक्षक या फील्डर के लिए रास्ता बना देते थे, ताकि वह आकर गेंद वापस ले जाए। जब सीमा रेखा क्रिकेट की नियमावली का

हिस्सा बनी तब भी, विकेट से उसकी दूरी तय नहीं की गई। क्रिकेट के ग्रामीण पृष्ठभूमि व पूर्व औद्योगिक होने का संकेत इसमें प्रयोग होने वाले सामान से भी मिलता है। (UPBoardSolutions.com) आज भी बल्ला, स्टंप व गिल्लियाँ लकड़ी से बनी होती हैं जबकि गेंद चमड़े, सुतली (ट्वाइन) और कॉर्क से।
‘क्रिकेट के कानून’ बहत वर्षों पहले 1744 ई0 में औद्योगिक क्रांति से पहले लिखे गए थे। उस समय केवल टेस्ट क्रिकेट ही खेला जाता था और इस विशेष खेल की गति उस समय के गाँव के लोगों की सुस्त रफ्तार जिंदगी का सूचक है।

प्रश्न 5.
भारत में क्रिकेट के प्रसार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत औपनिवेशिक शासन काल में हुई। 1721 ई० में अंग्रेज जहाजियों ने कैम्बे में अपना प्रथम मैच भारत में खेला। भारत में पहला क्रिकेट क्लब कलकत्ता में 1792 ई० में स्थापित किया गया। शुरुआत में भारत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित था। यह खेल भारत में 18वीं शताब्दी में अंग्रेज सैनिकों और सिविल सर्वेट्स द्वारा उनके (गोरे लोगों के लिए अधिकृत) क्लबों और जिमखानों में खेला जाता था। भारतीयों द्वारा इस खेल की शुरुआत का श्रेय पारसी समुदाय को जाता है।

अंग्रेजों के संपर्क में आकर सबसे पहले पारसियों ने 1848 ई0 में प्रथम भारतीय क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटेल क्रिकेट क्लब’ की स्थापना बंबई में की। इस क्लब के प्रायोजक टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी थे। अंग्रेज प्रायः इनके पार्क को घोड़ों द्वारा रौंदकर खराब कर देते थे परंतु (UPBoardSolutions.com) प्रशासन ने इनकी कोई सहायता नहीं की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए ‘पारसी जिमखाना क्लब’ की स्थापना की। 1889 में पारसियों की एक टीम ने अंग्रेजों के बोम्बे जिमखाना को एक मैच में हरा कर भारतीय श्रेष्ठता सिद्ध की।

पारसी जिमखाना क्लब की स्थापना के पश्चात् अन्य भारतीय समुदायों ने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने की शुरुआत की। इससे भारत में सांप्रदायिक एवं नस्ली आधार पर क्लबों का प्रचलन आरंभ हुआ। शीघ्र ही भारत में एक क्वाड्रेग्युलर (चतुष्कोणीय) टूर्नामेंट आरंभ हुआ जिसमें धर्म के आधार पर चार टीमें (यूरोपीय, पारसी, हिंदू तथा मुस्लिम) खेलती थीं। कुछ समय पश्चात् इस टूर्नामेंट में ‘द रेस्ट’ के नाम से पाँचवीं टीम को शामिल किया गया जिसमें भारतीय ईसाई जैसे बचे-खुचे समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया। धर्म के (UPBoardSolutions.com) आधार पर होने वाले इस टूर्नामेंट के विरुद्ध महात्मा गाँधी सहित अनेक भारतीय नेताओं ने आवाज उठाई परंतु यह टूर्नामेंट 1947 ई० तक चलता रहा। 1947 ई0 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इस टूर्नामेंट के स्थान पर नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन शुरू हुआ जिसे वर्तमान में रणजी ट्राफी के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 6.
क्रिकेट के अतंर्राष्ट्रीय विस्तार का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार इस प्रकार है-
(क) इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच सन् 1871 में खेले गए क्रिकेट मैच में ऑस्ट्रेलिया की जीत हुई। इस पराजय के विरोध में कुछ अंग्रेज महिलाओं ने ‘वेल्स को जलाकर इंग्लिश क्रिकेट का दाह संस्कार सा कर दिया। वेल्स की उस राशि को ऑस्ट्रेलिया की टीम को सौंप दिया गया। तभी से ये दोनों टीमें एक-दूसरे के विरुद्ध एसेज के लिए खेलती हैं।

(ख) इंग्लैण्ड में 1909 ई0 में ‘इंपीरियल क्रिकेट कान्फ्रेंस’ (आई.सी.सी.) की स्थापना हुई तथा इसी के साथ क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली। इंग्लैण्ड के अलावा आस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य बने। सन् 1926 में भारत, वेस्टइंडीज एवं न्यूजीलैंड भी इसके सदस्य बन गए। सन् 1952 में पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। सन् 1971 में रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की (UPBoardSolutions.com) सदस्यता समाप्त कर दी गई। सन् 1965 में इस कांफ्रेंस का नाम बदलकर इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस’ (आई.सी.सी.) रख दिया गया। समय के साथ-साथ अन्य देश भी (राष्ट्रमंडल देशों के अतिरिक्त) इसके सदस्य बनते गए।

वर्तमान समय में इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्जेंटीना, कनाडा, डेनमार्क, कीनिया, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश, हॉलैंड, बरमूडा, फिजी, सिंगापुर, हांगकांग, इजराइल व मलेशिया आदि देश इसके सदस्य या सहसदस्य हैं। क्रिकेट के इतिहास का प्रथम एकदिवसीय मैच 5 जनवरी, 1971 ई० को इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इसमें 40 ओवर प्रति पारी रखे गए। एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन व विकास का श्रेय भी इंग्लैण्ड को जाता है। इंग्लैण्ड के प्रयासों के फलस्वरूप ही इंग्लैण्ड में प्रथम विश्वकप का आयोजन हुआ। इस विश्व कप क्रिकेट में आठ देशों की टीमों ने भाग लिया था। इस विश्व कप में क्रिकेट के फाइनल में वेस्टइंडीज ने आस्ट्रेलिया को 17 रनों से हराया था।

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UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

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(A) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
Why did Halku not buy a blanket?
हल्कू ने कम्बल क्यों नहीं खरीदा?
Answer:
Halku did not buy a blanket because he wanted to pay his debt first.
हल्कू ने कम्बल इसलिए नहीं खरीदा क्योंकि वह पहले अपना कर्ज चुकाना चाहता था।

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Question 2.
Why did Halku want to give the money to Sohana?
हल्कू सोहन के रुपये क्यों देना चाहता था?
Answer:
Halku wanted to give the money to Sohana because he did not like that Sohana should abusehim for debt.
हल्कू सोहन के रुपये इसलिए देना चाहता था क्योंकि (UPBoardSolutions.com) वह नहीं चाहता था कि सोहन उसे कर्ज के लिए गाली दे।

Question 3.
What did Halku’s wife want him to do after giving up farming?
हल्कू की पत्नी उससे खेती छोड़ने के बाद क्या करने को कह रही थी?
Answer:
Halku’s wife wanted him to work as labourer after giving up farming.
हल्कू की पत्नी चाहती थी कि वह खेती का काम छोड़कर मजदूर के रूप में काम करें।

Question 4.
Who enjoyed the fruits of labour of the farmers?
किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द कौन उठाता था?
Answer:
The rich land-owners enjoyed the fruits of labour of the farmers.
धनी जमींदार किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द उठात थे।

Question 5.
Name three things that Halku did to keep himself warm that night.
वे तीन कार्य बताइये जो हल्कू ने उस रात अपने को पं रखने के लिए किये थे।
Answer:
Halku did the following things to keep himself warın :
हल्कू ने अपने को गर्म रखने के लिए निम्नलिखित कार्य किये–
(i) He smoked his clay-pipe ten times.
उसने अपनी चिलम को दस बार पिया।
(ii) He kept Jhabra sleep next to him.
उसने झबरा को अपने बगल में सुलाया।
(iii) He lit fire in the orchard.
उसने बगीचे में आग जलायी।

Question 6.
Give one example to show that Jhabra loved Halku.
एक उदाहरण देकर बताइये कि झबरा हल्कू से प्यार करता था।
Answer:
Jhabra slept beside Halku and it barked at cattle when they entered his field. This shows that Jhabra loved Halku.
झबरा हल्कू के बगल में सोया और जब जानवर उसके खेत में घुसे थे तब वह उन पर भौंक रहा था। यह प्रदर्शित करता है कि झबरा हल्कू से प्रेम करता था।

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Question 7.
“I had severe stomach ache!” Why did Halku say this to his wife?
मेरे पेट में जोर का दर्द था।” हल्कू ने अपनी पत्नी से क्यों कहा?
Answer:
Halku said these words to his wife so that she might not be angry for not driving the cattle away.
हल्कू ने अपनी पत्नी से इसलिये कहे ताकि वह (UPBoardSolutions.com) जानवरों को न भगाने के लिए उससे नाराज न हो।

(B) MULTIPLE CHOICE QUESTIONS
1.Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए :
(i) Halku’s wife gave three rupees to Halku because :
(a) she wanted to invest them in the land
(b) she wanted to eat her bread in peace
(c) Halku wanted to buy some bread with them
(d) Halku was ill-treated by the money-lender
(ii) Halku’s wife wanted him to :
(a) pay all his debts
(b) give up farming
(c) invest money in the land
(d) work hard
(iii) Halku went out unwillingly because :
(a) he had no money to buy a blanket
(b) his wife had not treated him well
(c) he did not want to part with his savings
(d) he wanted to pay his debts
(iv) Halku could not sleep because :
(a) Jhabra lay under his cot
(b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with
(c) the dog was barking
(d) the cattle were eating his crop
Answers:
(i) (d) Halku was ill-treated by the money-lender.
(ii) (b) give up farming
(iii) (d) he wanted to pay bis debts.
(iv) (b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with.
(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’ :
बताइये कि निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य’ :
(i) Sohana, the money-lender, owed money to Halku.
(ii) Sohana demanded some money from his wife to buy a blanket.
(iii) Halku and his wife were very poor and were under heavy debt.
(iv) Halku’s wife did not want anyone to abuse her husband.
(v) Jhabra and Halku kept on sleeping while the cattle kept on eating his crop.
(vi) Halku could not sleep in the night because he had a stomachache.
(vii) Halku lit a fire in the orchard to frighten away the cattle.
(viii) Jhabra loved his master very much.
(ix) Halku was poor but not dishonest.
Answers:
(i) F, (ii) F, (iii) T,(iv) T, (v) F,(vi) F, (vii) F,(viii) T,(ix) T.

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ASSIGNMENT ( कार्य) :
(D) Fill in the blanks with missing letters to complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
sh-v-r; ab-s–; 1-mb; inst–d; rel–f
Answers:
shiver; abuses; numb; instead; relief

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

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( विस्तृत उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) 
जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर (UPBoardSolutions.com) के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?
(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?
(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस (UPBoardSolutions.com) डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।”
  3. लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “
  4. लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।
  5. लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।

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(2) साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था। इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेलो गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट (UPBoardSolutions.com) में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
  3. लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।

(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही (UPBoardSolutions.com) अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। (UPBoardSolutions.com) साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।”
  3. चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।

प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 3. श्रीराम शर्मा की साहित्यिक विशेषताओं को बताते हुए उनकी भाषा-शैली भी स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 4. श्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा श्रीराम शर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

श्रीराम शर्मा
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1892 ई० (1949 वि०)। मृत्यु-सन् 1967 ई० । जन्म-स्थान-किरथरा (मैनपुरी) उ० प्र० । शिक्षा-बी० ए० ।
साहित्य सेवा – सम्पादक (विशाल भारत), आत्मकथा लेखक, संस्मरण तथा शिकार साहित्य के लेखक।
भाषा – सरल, प्रवाहपूर्ण, सशक्त, उर्दू एवं ग्रामीण शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल।
शैली – वर्णनात्मक रोचक शैली।
रचनाएँ – सन् बयालीस के संस्मरण, सेवाग्राम की डायरी, शिकार साहित्य, प्राणों का सौदा, बोलती प्रतिमा, जंगल के जीव। |

  • जीवन-परिचय- हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् ये पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर आये। आपने ‘विशाल भारत’ नामक पत्र का (UPBoardSolutions.com) सम्पादन बहुत दिनों तक किया। इनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुख्यतः राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बराबर भाग लिया है जिसकी सजीव झाँकियाँ आपकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। आपकी मृत्यु एक लम्बी बीमारी के पश्चात् सन् 1967 ई० में हो गयी।
  • कृतियाँ –
    • संस्मरण-साहित्य- सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ में इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन और उस समय के समाज की झाँकी प्रस्तुत की है।
    • शिकार साहित्य- ‘जंगल के जीव’, ‘प्राणों का सौदा’, ‘बोलती प्रतिमा’, ‘शिकार’ में आपका शिकार-साहित्य संगृहीत है। इन सभी रचनाओं में रोमांचकारी घटनाओं का सजीव वर्णन हुआ है । इन कृतियों में घटना-विस्तार के साथसाथ पशुओं के मनोविज्ञान का भी सम्यक् परिचय दिया गया है।
    • जीवनी-‘नेताजी’ और ‘गंगा मैया ।’ । इन कृतियों के अतिरिक्त शर्मा जी के फुटकर लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
    • साहित्यिक परिचय– शर्मा जी हिन्दी में शिकार साहित्य प्रस्तुत करने में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनके शिकार साहित्य में घटना विस्तार के साथ-साथ पशु-मनोविज्ञान को सम्यक् परिचय भी मिलता है। शिकार साहित्य के अतिरिक्त शर्मा जी ने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तथा संस्मरणात्मक निबन्धों और शिकार सम्बन्धी कहानियों को लिखने (UPBoardSolutions.com) में शर्मा जी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिकार साहित्य को हिन्दी में प्रस्तुत करनेवाले शर्मा जी पहले साहित्यकार हैं।
    • भाषा-शैली- शर्मा जी की भाषा स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण है। भाषा की दृष्टि से ये प्रेमचन्द के अत्यन्त निकट माने जा सकते हैं, यद्यपि ये छायावादी युग के विशिष्ट साहित्यकार रहे हैं। आपकी भाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग से भाषा अत्यन्त सजीव एवं सम्प्रेषणीयता के गुण से सम्पन्न हो गयी है।
      इनकी शैली स्पष्ट एवं वर्णनात्मक है जिसमें स्थान-स्थान पर स्थितियों का विवेचन मार्मिक और संवेदनशील होता है। शर्मा जी की शिकार सम्बन्धी, संस्मरणात्मक कहानियों और निबन्धों में शैलीगत विशेषता है जो रोमांच और कौतूहल आद्योपान्त बनाये रखती है।

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. ‘स्मृति’ निबन्ध के आधार पर बाल-सुलभ वृत्तियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- बालमन अत्यन्त चंचल होता है। बाल्यावस्था में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है। बाल्यावस्था में कभी-कभी बड़े साहसिक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2. लेखक ने अपने डण्डे के विषय में क्या कहा है? |
उत्तर- लेखक ने अपने डण्डे के विषय में कहा है कि उस उम्र में बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं।

प्रश्न 3. लेखक के कुएँ में साँप से संघर्ष के समय उसके छोटे भाई की मनोदशा कैसी थी? |
उत्तर- लेखक ने कहा है कि ”जब मैं कुएँ के नीचे जा रहा था तो छोटा भाई रो रहा था। मैंने उसे ढाँढस दिलाया कि मैं कुएँ में पहुँचते ही साँप को मार दूंगा।”

प्रश्न 4. लेखक की तीन साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 5. ‘स्मृति ‘ पाठ से आपने क्या समझा? अपने शब्दों में लिखिए। |
उत्तर- ‘स्मृति’ पाठ से यह बात उभरकर सामने आती है कि बच्चे अत्यन्त साहसी होते हैं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता है। इस उम्र में वे बड़े-बड़े साहसिक कार्य कर बैठते हैं।

प्रश्न 6. ‘स्मृति’ पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- सन् 1908 ई० की बात है। जाड़े के दिन थे। हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी। हम दोनों उछलते-कूदते एक ही साँस में गाँव से चार फर्लाग दूर उस कुएँ के पास आ गये । कुआँ कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था। कुएँ की पाट पर बैठे (UPBoardSolutions.com) हम रो रहे थे। दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मुझे नीचे बुला रही है। छोटे भाई की आशंका बेजा थी, पर उस फैं और धमाके से मेरा साहस कुछ और बढ़ गया।

प्रश्न 7. चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की क्या मनोदशा हुई? |
उत्तर- चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की मनोदशा उसी प्रकार हुई जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली से हत होने पर निकल जाती है और वह तड़पता रह जाता है।

प्रश्न 8. ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ लेखक ने अपने साथी लड़के से क्यों कहा?
उत्तर- ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ ऐसा लेखक ने अपने साथी लड़के से घरवालों के भय से कहा था।

प्रश्न 9. कुएँ में साहसपूर्वक उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाने के कार्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक पाँच धोतियाँ जोड़कर कुएँ के नीचे उतरा। नीचे कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम था, अत: साँप को डण्डे से मारना आसान नहीं थी। लेखक का कहना है कि डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

प्रश्न 10. लेखक और साँप के बीच संघर्ष के विषय में लिखिए।
उत्तर- जब लेखक चिट्ठियाँ लेने कुएँ में उतरा तो साँप ने वार किया और डण्डे से चिपट गया। डण्डा हाथ से छूटा तो नहीं, पर झिझक, सहम अथवा आतंक से अपनी ओर खिंच गया और गुंजल्क मारता हुआ साँप का पिछला भाग मेरे हाथों से छू गया। डण्डे को मैंने एक ओर पटक दिया । यदि (UPBoardSolutions.com) कहीं उसका दूसरा वार पहले होता, तो उछलकर मैं साँप पर गिरता और न बचता। डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. श्रीराम शर्मा किस युग के लेखक थे?
उत्तर- श्रीराम शर्मा शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

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प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था?
उत्तर- श्रीराम शर्मा ने ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया था।

प्रश्न 3. ‘स्मृति’ लेख किस शैली में लिखा गया है?
उत्तर- ‘स्मृति’ लेख वर्णनात्मक शैली में लिखा गया है।

प्रश्न 4. चिट्ठी किसने लिखी थी?
उत्तर- चिट्ठी श्रीराम शर्मा के बड़े भाई ने लिखी थी।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं।                             (√)
(ब) ‘स्मृति’ लेख ‘शिकार’ पुस्तक से लिया गया है।    (√)
(स) कुआँ पक्का और दस हाथ गहरा था।                (×)
(द) ‘स्मृति’ में सन् 1928 की बात है।                        (×)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम बताइए –
विषधर, चक्षुःश्रवा, प्रसन्नवदन, मृग-समूह, वानर-टोली।
उत्तर-
विषधर        –   विष को धारण करनेवाला (सर्प) – बहुब्रीहि समास
चक्षुःश्रवा     –   आँखों से सुननेवाला                    –   बहुब्रीहि समास
प्रसन्नवदन   –   प्रसन्न वदन वाला                       –    कर्मधारय समास
मृग-समूह    –   मृगों का समूह                          –    सम्बन्ध तत्पुरुष
वानर-टोली  –   वानरों की टोली                         –   सम्बन्ध तत्पुरुष

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प्रश्न 2. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य-प्रयोग कीजिए –
बेड़ियाँ कट जाना, बेहाल होना, आँखें चार होना, तोप के मुहरे पर खड़ा होना, टूट पड़ना, मोरचे पड़ना।
उत्तर-

  • बेड़ियाँ कट जाना- (मुक्त हो जाना)
    दासता की बेड़ियाँ कट जाने से देश आजाद हो गया।
  • बेहाल होना- (व्याकुल होना)
    राम के वन चले जाने पर दशरथ जी बेहाल हो गये।
  • आँखें चार होना- (प्रेम होना)
    आँखें चार होने पर प्रेम होता है।
  • तोप के मुहरे पर खड़ा होना- (मुकाबले पर डटना)
    हमारे देश के नौजवान तोप के मुहरे पर खड़े होने के लिए तैयार रहते हैं।
  • टूट पड़ना- (धावा बोल देना)
    हमारे देश के नौजवान जब पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े तो उसके छक्के छूट गये।
  • मोरचे पड़ना- (मुकाबला होना)
    कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोरचे पड़ गये।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 15
Chapter Name पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

पर्यावरण का स्वरूप-अन्य प्राणियों की भाँति मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। प्रकृति के तत्त्व उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों को पर्यावरण कहा जाता है। मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि जीवाणु पर्यावरण के अंग हैं।.विकास के लिए उतावलापन दिखाते हुए मानव ने पर्यावरण के प्रति जो अनाचार किया है, उससे पर्यावरण अत्यधिक असन्तुलित हो गया है। जिन कारणों से पर्यावरण का असन्तुलन हुआ है, वे कारण निम्नलिखित हैं

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वनस्पति का विनाश-वनों में वनस्पति का अमित भण्डार भरा हुआ है। वनों से मानव को लकड़ी, ओषधि, फल-फूल आदि बहुत-सी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वृक्ष सूर्य की गर्मी को रोकते हैं, वायु को शुद्ध करते हैं, भूमि के कटाव को रोकते हैं तथा वर्षा कराते हैं। इनकी पत्तियों से खाद बनती है। लकड़ी के लोभ से मनुष्य ने असंख्य वृक्षों को काट डाला है। वृक्षों के अभावु  में वनों की मिट्टी बह जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। भूस्खलन से खेत-के-खेत जमीन में धंस जाते हैं। नदियाँ उथली हो जाती हैं, जिसके कारण बाढ़ का संकट उपस्थित हो जाता है। |

वृक्षों के अनेक उपकार-प्राणवायु के उत्पादन में वृक्षों का महान् योगदान है। वृक्ष विषाक्त वायु के विष तत्त्व को पीकर स्वास्थ्य के लिए लाभदायक प्राणवायु को उत्पन्न करते हैं। हमारे पूर्व ऋषि-मुनियों ने वनों में योग और अध्यात्म की साधना की है। वृक्ष सूर्य की गर्मी को दूर करते हैं, वातावरण में आर्द्रता उत्पन्न करते हैं, अपने पत्तों को गिराकर खाद बनाते हैं, भूक्षरण को रोकते हैं। इस प्रकार वे मानव मन के लिए महान् उपकारी हैं। मनुष्य उनको काटकर अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारता है। एक वृक्ष अपने पचास वर्ष के जीवन में मनुष्य का पच्चीस लाख रुपये का उपकार करता है, लेकिन मानव सौ या हजार रुपये की लकड़ी प्राप्त करने के लिए उसे काटकर अपनी ही हानि करता है।

वायु का प्रदूषण-एक ओर तो मानव वायु-प्रदूषण के निवारक वृक्षों को काट रहा है, दूसरी ओर वायु-प्रदूषण के कारणों को उत्पन्न कर रहा है। फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकला हुआ धुआँ, खनिजों के अणु, रसायनों के अंश और दुर्गन्धयुक्त वायु वातावरण को दूषित करते हैं। तेल से चालित वाहनों के तेल मिले हुए धुएँ से वायु दूषित होती है। दूषित वायु में श्वास लेने से फेफड़ों का कार्यभार बढ़ जाता है और वायु को शुद्ध करने के लिए उन्हें अधिक कार्य करना पड़ता है। वायु-प्रदूषण को रोकने के लिए अधिकाधिकं वृक्ष लगाने चाहिए, लकड़ी के कोयलों का कम-से-कम प्रयोग, डीजल से चलने वाले वाहनों के स्थान पर विद्युत से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।

ध्वनि-प्रदूषण-रेलगाड़ियों, मोटरों, बड़ी-बड़ी मशीनों, लाउडस्पीकरों, तेज वाद्यों की आवाज से ध्वनि का प्रदूषण होता है। नगरों में ध्वनि-प्रदूषण की बड़ी समस्या है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरापन और कानों के अनेक दूसरे दोष उत्पन्न होते हैं। मस्तिष्क में अनेक दोष उत्पन्न होकर पागलपन तक हो जाता है। ध्वनि-प्रदूषण को रोकने के लिए लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग रोकना चाहिए तथा मशीनों में ध्वनिशामक यन्त्र (साइलेन्सर) का प्रयोग करना चाहिए। पेड़ों के लगाने और संवर्द्धन से भी ध्वनि की सघनता कम हो जाती है।

पशु-पक्षियों से पर्यावरण में सन्तुलने-सभी पशु-पक्षी पर्यावरण के सन्तुलन में सहायक होते हैं। सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक पशु हरिण आदि की वृद्धि को सीमित कर देते हैं; सर्प, अजगर आदि चूहों और खरगोशों को खाते हैं। पक्षी बीजों को इधर-उधर बिखेर देते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का स्वयमेव विकास होता रहता है। जीवो जीवस्य भोजनम्’ इस प्राकृतिक नियम के अनुसार हिंसक पशु, तृणभक्षी पशुओं को खाकर पर्यावरण का सन्तुलन बनाये रखते हैं।

जल-प्रदूषण-मनुष्य ने जीवन के लिए परमोपयोगी जल को अपने अविवेक से दूषित कर दिया है। गंगा-यमुना जैसी नदियों में बड़े नगरों का अपशिष्ट फेंका जाता है। पशुओं और मनुष्यों के शव तथा विषैला रासायनिक जल उनमें बहाया जाता है, जिससे जल विषाक्त और अपेय हो जाता है तथा अनेक रोगाणु जल में पलने लगते हैं। सरकार ने जल के प्रदूषण को दूर करने के लिए प्राधिकरण की स्थापना की है, लेकिन जनता के सहयोग के बिना इस कार्य में सफलता सम्भव नहीं है।

ताप का प्रदूषण-मानव की अनेक क्रियाओं से उत्पन्न ताप भी पर्यावरण दूषित करता है; जैसे-उद्योगशालाओं का ताप, वातावरण के ताप को बढ़ाता है। पक्की ईंटों के मकान, वर्कशॉप और, सड़कें ताप को स्वयं में संचित करती हैं और स्वयं से सम्बद्ध वातावरण को ताप प्रदान कर पर्यावरण को असन्तुलित करती हैं, जिसका मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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पर्यावरण के असन्तुलन को रोकने के उपाय-आज के युग में पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या समाज और सरकार दोनों के लिए ही चिन्तनीय सिद्ध होती जा रही है। इसके रोकने का एकमात्र साधन वृक्षारोपण ही है; क्योंकि वृक्षों की सघनता ताप को नियन्त्रित करती है। मनुष्य को प्राणवायु वृक्षों से ही प्राप्त होती है; अतः मानवों के कल्याण के लिए अधिकाधिक वृक्ष लगाये जाने चाहिए।

शोंगद्यां का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) यथान्ये प्राणिनस्तथैव मनुष्योऽपि प्रकृत्याः क्रोडे जनुरधत्तः। प्रकृत्या एव तत्त्वजातं सर्वमपि परितः आवृत्य संस्थितम्। अतः कारणात् तत्पर्यावरणमित्युच्यते। मनुष्येण स्वबुद्ध्याः प्रभावेण जीवनमुन्नेतुं प्रयतमानेन नानाविधा आविष्काराः कृताः। बहुविधं सौविध्यं सौ फर्यं चाधिगतं किन्तु विकासस्य प्रक्रियायां नैको उपलब्धीः प्राप्तवता तेन यद् हारितं तदपि अन्यूनम्। मृत्स्ना-जल-वायु-वनस्पति-खग-मृग-कीट-पतङ्ग-जीवाणव इति पर्यावरणस्य घटकाः विद्यन्ते। विकासहेतवे क्षिप्रकारिणा मानवेन तान् प्रति विहितेनातिचारेण प्राकृतिकपर्यावरणस्य सन्तुलनमेव नितरां दोलितम्।

शब्दार्थ
क्रोडे = गोद में।
जनुः = जन्म।
अधत्तः = धारण किया है।
परितः = चारों ओर।
आवृत्य = घेरकर।
उन्नेतुम् = उन्नत बनाने के लिए।
सौविध्यं = सुविधा।
सौर्यम् = सरलता।
अधिगतम् = प्राप्त किया।
नैका = अनेक।
हारितम् = खोया।
अन्युनम् = बहुत।
मृत्स्ना : मिट्टी।
घटकाः = इकाइयाँ।
क्षिप्रकारिणा = शीघ्रता करने वाले।
विहितेनातिचारेण = किये गये अत्याचार से।
नितराम् = अत्यधिक।
दोलितम् = विचलित कर दिया।

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ के ‘पर्यावरणशुद्धिः शीर्षक पाठ से उद्धृत है।
[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पर्यावरण का स्वरूप और मानव से उसके घनिष्ठ सम्बन्धों को बताते हुए मानव द्वारा पर्यावरण को असन्तुलित करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
जिस प्रकार दूसरे प्राणियों ने, उसी प्रकार मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म धारण किया। प्रकृति ही, जो तत्त्व समूह है, उसको भी चारों ओर से घेरकर स्थित है। इस कारण से इसे पर्यावरण कहा जाता है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि के प्रभाव से जीवन को उन्नत बनाने का प्रयत्न करते हुए नाना प्रकार के आविष्कार किये। बहुत तरह की सुविधा और सरलता प्राप्त की, किन्तु विकास की प्रक्रिया में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए उसने जो खोया है, वह भी कम नहीं है। मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति, पक्षी, पशु, कीड़े, पतंगे, जीवाणु ये पर्यावरण के अंग (इकाईयाँ) हैं। विकास के लिए शीघ्रता करने वाले मानव ने उनके प्रति किये गये अत्याचार से प्राकृतिक पर्यावरण के सन्तुलन को अत्यधिक हिला दिया। |

(2) सर्वाधिकोऽत्ययस्तु वनस्पतीनां जातः। एकपदे एव बहुलाभलोभी मानवो वनानि च क्रर्ति तथा प्रवृत्तो यदधुना वनानां सुमहान् भाग उच्छिन्नः। वनेभ्यो मनुष्यः काष्ठम्, ओषधीः, फलानि, पुष्पाणि एवंविधानि बहूनि वस्तूनि दैनन्दिनजीवनोपयोगीनि प्राप्नोति, किन्तु काष्ठस्य लोभाद् असङ्ख्या हरिता वृक्षा कर्तिताः। मन्ये पर्वतानां पक्षी एव छिन्नाः। येन तेषां मृत्स्ना वर्षाजलेन बलात् प्रबाह्यपनीयते। पर्वतप्रदेशीयभूप्रदेशानामुर्वरत्वं तु विनश्यत्येवं भूस्खलनेन केदाराः अपि लुप्ता भवन्ति, धनजनहानिर्भवति। ग्रामा अपि ध्वंस्यन्ते। वर्षाजलेन नीता मृत्स्ना नदीनां तलमुत्थलं करोति। येन जलप्लावनानि भवन्ति। जनया महांस्त्रास उत्पद्यते।।

शब्दार्थ
अत्ययः = हानि।
एकपदे एव = एक बार में ही।
च कर्तितुम् = अधिक मात्रा में ।
काटने के लिए।
तथा प्रवृत्तो = ऐसा लगा।
उच्छिन्नः = कट गया है।
दैनन्दिनजीवनोपयोगीनि = दैनिकें जीवन के लिए उपयोगी।
कर्तिताः = काटे,गये।
पक्षाः = पंख।
प्रवाह्य = बहाकर।
अपनीयते = दूर ले जायी जाती है।
उर्वरत्वं = उर्वरता, उपजाऊ शक्ति।
भूस्खलनेन = भूमि के खिसकने सै।
केदाराः = खेतों की क्यारियाँ।
ध्वंस्यन्ते = नष्ट कर दिये जाते हैं।
तलमुत्थलम् = तल को उथला।
जलप्लावनानि = बाढ़े।
महांस्त्रास = महान् भय।
उत्पद्यते = उत्पन्न होता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वनों से लाभ एवं उनके काटने से होने वाली हानियाँ बतायी गयी हैं।

अनुवाद
सबसे अधिक हानि तो वनस्पतियों की हुई है। एक बार में ही बहुत लाभ के लोभी मानवों ने वनों को ऐसा काटना शुरू किया कि आज वनों का बहुत बड़ा भाग कट चुका है। मनुष्य वनों से लकड़ी, ओषधियाँ, फल, फूल इसी प्रकार की बहुत-सी दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुएँ प्राप्त करता है, किन्तु लकड़ी के लोभ से असंख्य हरे वृक्ष काट डाले गये हैं। मैं समझता हूँ, पर्वतों के पंख ही काट डाले, जिससे उनकी मिट्टी को वर्षा का जल बलपूर्वक दूर बहाकर ले जाता है। पहाड़ी प्रदेशों के भू-भागों की उपजाऊ शक्ति तो नष्ट हो ही रही है, भूमि के खिसकने से खेत भी समाप्त हो जाते हैं ।

तथा धन और जन की हानि होती है। गाँव भी नष्ट हो रहे हैं। वर्षा के जल से बहाकर ले जायी गयी मिट्टी दियों के तल को उथला कर देती है, जिससे बाढ़ आ जाती हैं तथा मनुष्य के लिए भारी भय पैदा हो जाता है।

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(3) एततु सर्वे जानन्त्येव यत् प्राणवायु (ऑक्सीजनेति प्रसिद्धम् ) विना मनुष्यः कतिपयक्षणपर्यन्तमेव जीवितुं शक्नोति। प्राणवायोरुत्पादने वृक्षाणां महान् योगः केन विस्मर्यते। विषाक्तवायोर्विषतत्त्वं नीलकण्ठ इव स्वयं पायं पायं, मानवस्याकारणसुहृदो वृक्षास्तस्य कृते निर्मलं स्वास्थ्यकरं प्राणवायुं समुत्पाद्यन्ति। प्राणायामेन प्राणानां नियमनस्य योगमार्गः,आध्यात्मिकसाधना च वनानां मध्य एवास्माकं पूर्वजैर्महर्षिभिः यद् अनुत्रियते स्म तदस्मादेव कारणात्। प्रत्येकं वृक्षः एका महती प्रयोगशालेव भवति। एष सूर्यस्य तापं हरति, वायुमालिन्यमपनयति, वाष्पोत्सर्गेण वातावरणे आर्द्रतां जनयति, प्रतिवर्षं निजपत्राणि निपात्य उर्वरकमुत्पादयति भूक्षरणं निरुणद्धि, जलवर्षणे कारणं च भवति। एवं स मनुजस्य महानुपकारी भवति तथाविधमुयकारिणमपि मनुष्य उच्छिनत्ति, किन्नासी स्वपादे एवं कुठारं प्रयुनक्ति।

शब्दार्थ
प्राणवायु = ऑक्सीजन।
विस्मर्यते = भुलाया जाता है।
विषाक्तवायोर्विषतत्त्वं (विषाक्तवायोः + विषतत्त्वम्) = जहरीली वायु के विषैले तत्त्व को।
नीलकण्ठः = शिव।
पायंपायं = पी-पीकर।
प्राणायाम = देवगुणों का मन से पाठ करते हुए साँस रोकना।
नियमन = नियन्त्रण करना।
अनुस्रियते स्म = आश्रय (अनुसरण) किया जाता था।
अपनयति = दूर करता है।
वाष्पोत्सर्गेण = भाप निकालने के द्वारा।
आर्द्रताम् =-गीलापन।
निपात्य = गिराकर।
उर्वरकम् = खाद।
निरुणद्धि = रोकता है।
उच्छिनत्ति = नष्ट करता है।
स्वपादे एवं कुठारं प्रयुनक्ति = अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वृक्षों के महान् योगदान और उपकार का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यह सभी जानते ही हैं कि ऑक्सीजन (प्राणवायु) के बिना मनुष्य कुछ क्षणों तक ही जीवित रह सकता है। ऑक्सीजन के उत्पन्न करने में वृक्षों के महान् योग को कोई नहीं भूल सकता है। विषाक्त (विषैली) वायु के विष-तत्त्व को शिव के समान पी-पीकर मनुष्य के बिना कारण के मित्र वृक्ष उसके लिए साफ, स्वास्थ्यकारी प्राणवायु (ऑक्सीजन) को पैदा करते हैं। प्राणायम से प्राणों के नियमन का योगमार्ग और वनों के मध्य ही आध्यात्मिक साधना हमारे पूर्वज महर्षियों द्वारा जो अनुसरण की गयी थी, वह भी इसी कारण है। प्रत्येक वृक्ष एक बड़ी प्रयोगशाला के समान होता है। यह सूर्य की गर्मी का हरण करता है, हवा की गन्दगी को दूर करता है, भाप छोड़ने से वातावरण में नमी उत्पन्न करता है, प्रत्येक वर्ष अपने पत्ते गिराकर खाद उत्पन्न करता है, पृथ्वी के कटाव को रोकता है और जल बरसाने में कारण बनता है। इस प्रकार वह मनुष्य का बड़ा उपकारी होता है, इस तरह के उपकारी को भी मनुष्य काटता है। क्या वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी नहीं चलाता है? |

(4) एको वृक्षः स्वपञ्चाशद्वर्षजीवनकाले मानवजातेः पञ्चविंशतिलक्षरूप्यक- परिमाणाय लाभाय कल्पते, तस्मात्प्राप्तस्योर्वरकस्यैव मूल्यं पञ्चदशलक्षथरिमितं भवति, वायुशुद्धीकरणं पञ्चलक्षरूप्यकतुल्यं, प्रोटीनोत्पादन-माईताजननं वर्षासाहय्यमिति त्रितयमपि पञ्चलक्षरूप्यकार्तम्। एतत्सर्वमपि कलिकाताविश्वविद्यालयीयेन डॉ० टी० एम० दासाभिधानेन वैज्ञानिकेन सुतरां विवेच्य प्रतिपादितमास्ते। तथामहिमानं तरुं निपात्य लुब्धो मानवः किं प्राप्नोति? शतं सहस्त्रं वा रूप्यकाणाम्। सत्यम्, अल्पस्य हेतोर्बहातुमिच्छन्नसौ प्रथमश्रेणीको विचारमूढे एव। पर्यावरणरक्षणायापरपर्यायाय आत्मरक्षणाय मनुष्येणेयं मूढता यथा सत्वरं त्यक्ता स्यात् तथैव वरम्।

शब्दार्थ
पञ्चाशद् = पचास।
कल्पते = समर्थ होता है।
तुल्यम् = बराबर।
रूप्यकाम् = रुपये मूल्य के बराबर।
सुतराम् = अच्छी तरह से।
विवेच्य = विवेचन करके।
लुब्धो = लालची।
अल्पस्य हेतोर्बहुहातुमिच्छन् = थोड़े-से के लिए बहुत छोड़ने की इच्छा करता हुआ।
विचारमूढ = मूर्ख।
यथासत्वरम् = जितना जल्दी।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वृक्ष का उसके जीवनकाल में लाभ रुपयों में आँककर मनुष्य को. उसके महत्त्व का यथार्थ ज्ञान कराया गया है।

अनुवाद
एक वृक्ष अपने पचास वर्ष के जीवनकाल में मानव-जाति का पचीस लाख रुपयों के बराबर लाभ करने में समर्थ होता है। उससे प्राप्त खाद का मूल्य ही पन्द्रह लाख रुपयों के बराबर होता है। वायु को शुद्ध करना पाँच लाख रुपयों के बराबर, प्रोटीन उत्पन्न करना, नमी पैदा करना, वर्षा में 
सहायता करना तीनों ही पाँच लाख रुपयों के मूल्य के बराबर होता है। यह सब कलकता ‘ विश्वविद्यालय के डॉ० टी० एम० दास नाम के वैज्ञानिक ने अच्छी तरह विवेचन करके सिद्ध किया है। ऐसी महिमा वाले वृक्ष को गिराकर लालची मनुष्य क्या प्राप्त करता है? सौ यो हजार रुपये। वास्तव में थोड़े-से लाभ के लिए बहुत छोड़ने की इच्छा करता हुआ वह प्रथम श्रेणी का मूर्ख है, जो सोचने-समझने में असमर्थ है। पर्यावरण की रक्षा के लिए, दूसरे शब्दों में आत्मरक्षा के लिए, मनुष्य इस मूर्खता को जितना जल्दी छोड़ दे, उतना ही अच्छा है।

(5) एवमेकतो मनुष्यो वायुप्रदूषणनिवारकाणां वृक्षाणां हत्यां विदधाति अपरतश्च विविधैः प्रकारैः स्वयं वायुप्रदूषणस्य कारणान्युत्तरोत्तरमाविष्करोति। उद्योगशालाभ्यो निस्सृता धूमाः,खनिजाणवः, रासायनिकाः, लवाः, पूतिगन्धा वायवो वातावरणं दूषयन्तः प्राणवायुं विशेषतो विकारयन्ति। प्रत्यहं तैलतश्चालितवाहनानां सङ्ख्या सुरसाया मुखमिव परिवर्धते विषमयं तैलधूममुद्गिरभिस्तैरपि वायुरतिशयेन विक्रियते। दूषितवायौ श्वसनाद् अस्मत्फुस्फुसकार्यभारः प्रवर्धते, येन तत्रत्यरोगा हृदयरोगाश्च जायन्ते। अतिप्रदूषितवायोः शुद्धीकरणे पादपैरपि अत्यधिकं कार्यं करणीयं भवति तत्राक्षमत्वात्तेऽपि रुग्णा जायन्ते। एवं वायुप्रदूषणं दुष्चक्रं निरोधातीतं गच्छति। वृक्षाणां प्राचुर्येणारोपणं काष्ठेङ्गालानां न्यूनतमः प्रयोगः पेट्रोलडीजलादितैलवाहनानां स्थाने विद्युद्वाहनानामुपयोगः प्रदूषणरहितशक्तिसाधनानां विकासः, इत्येवं प्रायैरुपायैरिदमुपरोद्धं शक्यते।।

शब्दार्थ
एकतो = एक ओर।
विदधाति = करता है।
आविष्करोति = उत्पन्न करता है।
निस्सृताः = निकले हुए।
लवाः = अंश।
पूतिगन्धाः = दूषित गन्ध वाली।
विकारयन्ति = दूषित करती हैं।
प्रत्यहम् = प्रतिदिन।
सुरसायाः मुखमिव = सुरसा के मुख के समान।
परिवर्धते = बढ़ता है।
उद्गिरभिः = उगलने वाले।
विक्रियते = दूषित की जाती है।
फुफ्फुस कार्यभारः = फेफड़ों पर कार्य का भार।
दुष्चक्रम् = दूषित चक्र।
निरोधातीतम् = नियन्त्रण से बाहर।
आरोपणम् = जमाना, लगाना।
काष्ठेङ्गालानाम् = लकड़ी के कोयलों का।
उपरोधुं शक्यते = रोका जा सकता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वायु को प्रदूषित करने वाले कारणों, उनसे होने वाले रोगों और प्रदूषण को रोकने के उपायों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इस प्रकार एक ओर मनुष्य वायु के प्रदूषण को रोकने वाले वृक्षों की हत्या करता है, दूसरी ओर स्वयं अनेक प्रकार से वायु प्रदूषण के कारणों को लगातार उत्पन्न कर रहा है। फैक्ट्रियों से निकले धुएँ, खनिजों के अणु, रासायनिक अंश, दूषित गन्ध वाली हवाएँ वातावरण को दूषित करती हुई विशेष रूप से प्राणवायु (ऑक्सीजन) को दूषित करती हैं। प्रतिदिन तेल से चलने वाले वाहनों की संख्या सुरसा के मुख के समान बढ़ रही है। विषैले तेल के धुएँ को उगलते हुए उनसे भी वायु अत्यधिक रूप से दूषित की जा रही है। दूषित हवा में श्वास लेने से हमारे फेफड़ों पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है, जिससे वहाँ (फेफड़ों) के रोग और हृदय रोग उत्पन्न होते हैं। अत्यन्त दूषित वायु को शुद्ध करने में वृक्षों को भी अधिक काम करना पड़ता है, उसको करने में असमर्थ होने के कारण (वे भी) बीमार हो जाते हैं। इस प्रकार वायु के प्रदूषण का दुष्चक्र नियन्त्रण से बाहर हो जाता है। वृक्षों को अधिक मात्रा में लगाना, लकड़ी के कोयलों का कम-से-सम प्रयोग, पेट्रोल, डीजल आदि तेल से चलने वाले वाहनों की जगह बिजली से चलने वाले वाहनों का उपयोग, प्रदूषण के रहित शक्ति के साधनों का विकास। इस प्रकार के उपायों से इसे रोका जा सकता है।

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(6) कोलाहलेनापि पर्यावरणे बहवो दोषी उत्पद्यन्ते, रेलयानानां, मोटरवाहनानां, उद्योगशालासु बृहतां यन्त्राणां, यत्र तत्र सर्वत्र अवसरेऽनवसरे ध्वनिविस्तारकयन्त्रण, उत्सवेषु अतिमुखरवाद्यानां च घोषः, जनसम्मर्दकलकलेन मिलितो महान् कोलाहलः सम्पद्यते। विशेषतो नगरेषु ध्वनिप्रदूषणं महती समस्या। अतिकोलाहलेन श्रवणदोषस्तदनं बाधिर्यं च सम्पद्यते। नैतावतैव मुक्तिः , मस्तिष्कदोषा अपि अनेन उत्पाद्यन्ते यच्चरमापरिणतिरुन्मादो भवति। रक्तचापरोगोऽपि पदं निदधाति येन हृदयं रुग्णं जायते। अस्याः समस्यायाः समाधानार्थं ध्वनिविस्तारकयन्त्राणामनावश्यकः प्रयोग रोधनीयः, यन्त्राणां कोलाहलो नव-नव साइलेन्सराणामाविष्कारेण उपलब्धानां च सम्यगनिवार्यप्रयोगेण परिहरणीयः। कोलाहलदोषान् जनसामान्यं सम्बोध्य तद्विरुद्धं जनाः प्रशिक्षणीया जनमतं च प्रवर्तितव्यम्। ,अत्रापि वनस्पतीनामारोपणेन, संवर्धनेन रक्षणेन च सुखकराः परिणामाः कलयितुं शक्याः । एवं खलु दृश्यते यद् वृक्षाणां द्वादशव्यामपरिणाहमिता राजयः कोलाहलस्य सघनतां प्रकामं न्यूनयन्ति। अतः सर्वत्रापि राजपथमभितः, मध्ये-मध्ये चोपनगराणां वनस्पतयः आरामश्च आरोपणीयाः।

शब्दार्थ
उत्पद्यन्ते = उत्पन्न होते हैं।
बृहताम् = बड़े।
अवसरेऽनवसरे = समय-बेसमय
अतिमुखर = तेज आवाज वाले।
घोषः = ध्वनि।
जनसम्पर्दकलकलेन = जन-समूह के कोलाहल से।
सम्पद्यते = उत्पन्न होता है।
महती = बड़ी।
तदनु = उसके बाद।
बाधिर्यम् = बहरापन।
नैतावतैव = इतने से ही नहीं।
चरमपरिणतिः = अन्तिम परिणाम।
उन्मादः = पागलपन।
रक्तचापरोगः = ब्लडे प्रेशर की बीमारी।
पदं निदधाति = स्थान बना लेता है।
रोधनीयः = रोकना चाहिए।
नव-नव साइलेन्सराणामाविष्कारेण = नये-नये ध्वनिशामक यन्त्रों के आविष्कार से।
परिहरणीयः = दूर करना चाहिए।
बोध्य = समझाकर।
प्रशिक्षणीया = प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
प्रवर्तितव्ययम् = प्रवर्तन करना चाहिए।
वनस्पतीनां आरोपणेन = वनस्पतियों के लगाने से।
कलयितुं शक्याः = प्राप्त किये जा सकते हैं।
द्वादशव्यामपरिणाहमिताः = बारह चौके अर्थात् अड़तालीस हाथ की लम्बाई के बराबर।
राजयः = पंक्तियाँ।
प्रकामम् = अधिक।
न्यूनयन्ति = कम करती हैं।
राजपथम् अभितः = राजमार्ग के दोनों ओर।
उपनगराणाम् = क्षेत्रों या मुहल्लों के।
आरामाः = बगीचे, उपवन।
आरोपणीयाः = लगाने चाहिए।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में ध्वनि-प्रदूषण के कारणों, उससे उत्पन्न रोगों और प्रदूषण की रोकथाम के उपायों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
शोर से ही पर्यावरण में बहुत-से दोष उत्पन्न होते हैं। रेलगाड़ियों, मोटर सवारियों, फैक्ट्रियों में बड़ी-बड़ी मशीनों का, जहाँ-तहाँ सब जगह समय-बेसमय पर लाउडस्पीकरों का और उत्सवों में अत्यन्त तेज बजने वाले बाजों का शब्द, लोगों की भीड़ के कोलाहल से मिला हुआ बहुत शोर उत्पन्न हो जाता है। विशेष रूप से नगरों में ध्वनि के प्रदूषण की अत्यधिक समस्या है। अत्यधिक शोर से सुनने में कमी और उसके बाद बहरापन उत्पन्न हो जाता है। इतने से ही छुटकारा नहीं है, मस्तिष्क की गड़बड़ियाँ भी इसके द्वारा पैदा कर दी जाती हैं, जिसका अन्तिम परिणाम पागलपन होता है। ब्लड प्रेशर की बीमारी भी घर कर लेती है, जिससे हृदय रुग्ण हो जाता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग रोका जाना चाहिए। मशीनों के शोर को भी नये-नये ध्वनिशामक यन्त्रों (साइलेन्सरों) के आविष्कारों से प्राप्त साधनों के उचित और अनिवार्य प्रयोग से रोकना चाहिए। जनसाधारण को शोर की खराबियों को समझाकर, उसके विरुद्ध लोगों को प्रशिक्षित करना चाहिए और जनमत जाग्रत करना चाहिए। इसमें भी वनस्पतियों के लगाने, बढ़ाने और रक्षा करने से सुखद परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। निश्चय ही ऐसा देखा जाता है कि अड़तालीस हाथ की लम्बाई के बराबर वृक्षों की पंक्तियाँ शोर के घनेपन को अत्यधिक कम कर देती हैं; अतः सभी जगह सड़क के दोनों ओर तथा मोहल्लों के बीच-बीच में वनस्पतियाँ और उपवन लगाये जाने चाहिए।

(7) खगमृगाणां मांसादिलोभिना मानवेन एतादृशी जाल्मता अङ्गीकृता यदधुना तेषां नैकाः प्रजातयो लुप्ता एव, वस्तुतः सर्वेऽपि पशुपक्षिणः पर्यावरणसन्तुलननिर्वाहे यथायोगमुपकारका भवन्ति। सिंहव्याघ्रादयो मांसभक्षका हरिणादीनां वृद्धि परिसमयन्ति। आशीविषाजगरादयो मूषकशशकादीनां भक्षणेन कृषिकराणां सुहृद् एव। पक्षिणो बीजानां विकिरणं कुर्वन्ति, कीटपतङ्गादयः पुष्पाणां प्रजननक्रियायां सहायका भवन्ति येन फलानि बीजानि चोत्पद्यन्ते। पशुपक्षिणां पुरीषेण भूमिरुर्वरा भवति येन वनस्पतीनां विकासो भवति।’जीवो जीवस्य भोजनम्’ इति प्रकृतिनियमस्यानुसारं पक्षिणः कीटपतङ्गान् , केऽपि हिंस्राः पशवश्च तृणचरान् भक्षयन्तः पर्यावरणसन्तुलनं स्वत एव विदधति, तत्रं मनुष्यकृतो लोभप्रवर्तितो हस्तक्षेपो विकारमेवोत्पादयति, स्वैर वधो विध्वंसमेव जनयति।

शब्दार्थ
खगमृगाणां = पक्षियों और पशुओं का।
जाल्मता = नीचता।
परिसीमयन्ति = सीमित कर देते हैं।
आशीविष = सर्प।
कृषिकराणां = किसानों के।
विकिरणम् = बिखेरना।
पुरीषेण = विष्ठा से।
विदधति = करते हैं।
स्वैरं = ब्रिना रोक-टोक के।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पर्यावरण के सन्तुलन में पशु-पक्षियों के योगदान का वर्णन किया गया

अनुवाद
पशु-पक्षियों के मांस आदि के लोभी मानव ने ऐसी नीचता स्वीकार कर रखी है कि आजकल उनकी अनेक प्रजातियाँ समाप्त प्राय ही हैं। वास्तव में सभी पशु-पक्षी पर्यावरण के सन्तुलन के निर्वाह में शक्ति के अनुसार उपकार करने वाले होते हैं। सिंह, व्याघ्र आदि,मांसभक्षी जीव हिरन 
आदि की वृद्धि को सीमित कर देते हैं। सर्प, अजगर आदि चूहे, खरगोश आदि को खाने के कारण किसानों के मित्र ही हैं। पक्षी बीजों को बिखेर देते हैं। कीड़े, पतंगे आदि फूलों की प्रजनन-क्रिया में ।

सहायक होते हैं, जिससे फल और बीज उत्पन्न होते हैं। पशु-पक्षियों के मल (विष्ठा) से भूमि उपजाऊ ‘होती है, जिससे वनस्पतियों का विकास होता है। ‘जीव, जीव का भोजन है, इस प्रकृति के नियम के अनुसार पक्षी, कीड़े और पतंगों को और कुछ हिंसक पशु घास खाने वाले पशुओं को खाते हुए पर्यावरण का सन्तुलन स्वयं ही करते हैं। उसमें मनुष्यों के द्वारा किया गया लोभ से प्रेरित हस्तक्षेप गड़बड़ी ही उत्पन्न करता है। बुद्धिहीन वध (बिना रोक-टोक के किया गया) विध्वंस को ही उत्पन्न करता है।

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(8) मनुजस्यातिचारो नैतावता परिसमाप्यते नास्ति।. जलं यद्धि जीवनयात्यावश्यकत्वज्जीवनमेव कथ्यते तदपि मनुजस्याविवेकेन दूषितम्। गङ्गायमुनासदृशीषु स्वादुपवित्रपेयसलिलासु नदीषु तटीयतटस्थनगराणां मलमूत्रादिकं सर्वप्रकारकं मालिन्यं नदीषु निंपात्यते। औद्योगिक विषमयरसायनदूषितजलं तासु निपात्यते। नराणां पशूनां च शवास्तत्र प्रवाह्यन्ते। सर्वमेतदतिभीतिकरं प्रदूषणं कुरुते। जलं तथा विषाक्तं जायते यन्मत्स्या अपि म्रियन्ते। तथाविधं जलं मानवानां स्नान-पानादिजनितं रोगमेव प्रकुरुते। यतस्तत्र रोगकारकस्तद्वाहकाश्च जीवाणवः परमं पोषमाप्नुवन्ति। सौभाग्येन सम्प्रति शासेन गङ्गाप्रदूषणनिवारकं प्राधिकरणं घटितं। एष खलु प्रारम्भ एव। अन्यासां नदीनां शोधनाय जलोपलब्धेरन्यान्यपि साधनानि विशोधयितुं च लोकस्य रुचिरुत्साहनीया। जनतायाः स्वयं साहाय्येन विना न अभीप्सितं प्राप्तुं शक्यते।

शब्दार्थ
मनुजस्यातिचारः = मनुष्य का अत्याचार।
नैतावती = इतने से नहीं।
परिसमाप्यते = समाप्त होना।
स्वादुपवित्रपेयसलिलासु = स्वादिष्ट, पवित्र और पीने योग्य जल वाली में।
मालिन्यं = मैला, गन्दगी।
निपात्यते. = गिराया जाता है।
प्रवाह्यन्ते = बहाये जाते हैं।
भीतिकरम् = भय उत्पन्न करने वाले।
विषाक्तम् = विषैला।
पोषम् आप्नुवन्ति = पोषण प्राप्त करते हैं।
सम्प्रति = इस समय।
घटितम् = बनाया गया है।
अभीप्सितम् = इच्छित लक्ष्य। |

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश’ में मानव द्वारा जल को दूषित करने एवं उससे उत्पन्न हानि का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
मनुष्य का अत्याचार यहीं तक समाप्त नहीं होता है। जल को जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक होने के कारण जीवन ही कहा जाता है, वह भी मनुष्य की मूर्खता से दूषित हो गया है। गंगा, यमुना जैसी स्वादिष्ट, पवित्र, पीने योग्य जल वाली नदियों में उनके किनारे पर स्थित नगरों की मल-मूत्र आदि सब प्रकार की गन्दगी डाल दी जाती है। उद्योगों का विषैले रसायनों से दूषित जल उनमें डाल दिया जाता है। मनुष्यों और पशुओं के शव उनमें बहा दिये जाते हैं। यह सब अत्यन्त भयानक प्रदूषण कर देता है। जल इतना विषैला हो जाता है कि मछलियाँ भी मर जाती हैं। इस प्रकार का जल मानवों के स्नान और पीने आदि के रोग को ही उत्पन्न करता है; क्योंकि उसमें रोग उत्पन्न करने वाले 
और उनको (रोग को) लाने वाले जीवाणु खूब पुष्ट हो जाते हैं। सौभाग्य से अब सरकार ने गंगा के प्रदूषण को रोकने वाला प्राधिकरण बनाया है। यह तो प्रारम्भ ही है। दूसरी नदियों को शुद्ध करने के लिए और जल-प्राप्ति के दूसरे भी साधनों को शुद्ध करने के लिए लोगों की रुचि को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। जनता की स्वयं सहायता के बिना इच्छित लक्ष्य प्राप्त होना असम्भव है।

(9) मानवस्य विविधक्रियाभिरुत्पन्नस्तापोऽपि पर्यावरणं दूषयति। परमाणुपरीक्षणैर्महती तापविकृतिर्निष्पाद्यतेऽन्ये च मानवप्राणहरा दोषा उत्पाद्यन्ते। उद्योगशालानां तापोऽपि वातावरणस्य तापं वर्धयति। ग्रीमष्काले पक्वेष्टिकासीमेण्टकङ्क्रीट-निर्मितानि भवनानि, कार्यशालाः, राजमार्गा एवंविधानि चान्यानि लौहनिर्माणानि तापमात्मसात्कृत्य संरक्षन्ति यस्य मानवजीवनेऽस्वास्थ्यकरः प्रभावो भवति। अत्रापि वनस्पतयो मानवस्य त्राणं चर्कर्तुं प्रभवः सन्ति। तेषां यथाप्रसरं सघनमारोपणं तापं नियमयत्येव। प्रतिव्यक्ति सार्धत्रयोदशकिलोपरिमितः प्राणवायुः स्वस्थजीवनयापेक्षते, तस्यैकमात्रं प्राकृतिक स्रोतस्तु वनस्पतिजातम्। अतएवमेव मुहुर्मुहुरनुरुध्यते यन्यानवेनात्मकल्यणाय अधिकाधिकं वृक्षा आरोपणीयाः। समयश्च कार्यों यत्प्रत्येक व्यक्तिरेकं वृक्षमवश्यमारोप्य वर्धयिष्यति, रक्षयिष्यत्यन्यांश्च तथाकर्तुं प्रवर्तयिष्यतीति।।

शब्दार्थ
दूषयति = दूषित करता है।
निष्पाद्यते = की जाती है।
पक्वेष्टिका = पक्की ईंट।
तापम् आत्मसात्कृत्य = गर्मी को अपने में मिलाकर।
त्राणम् = रक्षा।
चर्कर्तुम् = बार-बार करने के लिए।
प्रभवः = समर्थ।
नियमयत्येव = नियमित ही करता है।
अपेक्षते = आवश्यकता है।
वनस्पतिजातम् = वृक्षों का समूह।
अनुरुध्यते = अनुरोध किया जाता है।
आरोपणीयाः = लगाने |
चाहिए। समयः = निश्चय, प्रतिज्ञा।
प्रवर्तयिष्यति = प्रेरित करेगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में तोप के प्रदूषण, उससे उत्पन्न हानियों एवं उनको दूर करने के उपाय बताये गये हैं।

अनुवाद
मानव की विविध क्रियाओं से उत्पन्न ताप भी पर्यावरण को दूषित करता है। एएमाणु के परीक्षणों से ताप में बड़ा विकार उत्पन्न किया जाता है, जिससे मनुष्य के प्राणघातक अन्य दोष उत्पन्न होते हैं। उद्योगशालाओं का ताप भी वातावरण के ताप को बढ़ाता है। ग्रीष्म ऋतु में पक्की ईंटों, सीमेंट, कंक्रीट से बने हुए घर, कार्यशालाएँ, सड़कें और इस प्रकार के अन्य लोहे से निर्मित स्थान ताप को अपने में समेटकर रखते हैं, जिसका मानव के जीवन पर अस्वास्थ्यकारी प्रभाव होता है। इसमें भी वनस्पतियाँ मानव की बार-बार रक्षा करने में समर्थ हैं। उनका (वनस्पतियों का) उचित प्रसार और अधिक घनत्व में रोपना ताप को रोकता है। प्रत्येक व्यक्ति को साढ़े तेरह किलो भार के बराबर प्राणवायु की स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यकता होती है। उसका एकमात्र प्राकृतिक स्रोत तो वनस्पतियाँ हैं; अतः ऐसा बार-बार अनुरोध किया जाता है कि मानव को अपने कल्याण के लिए अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने चाहिए और प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति एक वृक्ष अवश्य लगाकर बढ़ाएगा, रक्षा करेगा और ऐसा करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करेगा।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1 
विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों और मनुष्य पर पड़ने वाले उनके दुष्परिणामों को समझाइए।।
उत्तर
विभिन्न प्रकार के प्रदूषण और मनुष्य पर पड़ने वाले उनके दुष्परिणामों का विवरण इस प्रकार है

(क) वायु-प्रदूषण-कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ, खनिजों के अणु, रसायनों के अंश, तेल-चालित वाहनों के तेल मिले धुएँ और दुर्गन्धयुक्त वायु वातावरण को दूषित करते हैं। दूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों पर कार्यभार बढ़ जाता है, जिससे मनुष्य सॉस सम्बन्धी बीमारियों का शिकार हो जाता है।

(ख) ध्वनि-प्रदूषण-रेलगाड़ियों, मोटरों, बड़ी-बड़ी मशीनों, तेज वाद्यों की आवाज से ध्वनि का प्रदूषण होता है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरापन और कानों के अनेक दोषों के साथ-साथ मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाता है, जिससे मनुष्य पागल हो सकता है।

(ग) जल-प्रदूषण-गंगा, यमुना आदि नदियों में महानगरों की गन्दगी, पशुओं-मनुष्यों के शव, रासायनिक जल आदि बहाये जाने के कारण जल विषाक्त और अपेय तो हो ही गया है, साथ ही इसमें अनेक रोगाणु भी पलने लगे हैं।

(घ) ताप-प्रदूषण-मानव की अनेक क्रियाओं; यथा-पारमाणविक; आदि के द्वारा वातावरण का ताप बढ़ता है। पक्की ईंटों-कंकरीट के आवासीय वे कार्य-परिसर, सड़कें आदि स्वयं में ताप को संचित करती हैं। इसका भी मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

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प्ररन 2 
‘पर्यावरणशुद्धिः पाठ के आधार पर निम्नलिखित पर प्रकाश डालिए
(क) पर्यावरण का आशय,(ख) पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार, (ग) प्रदूषण को रोकने के उपाय। |
उत्तर
(क) पर्यावरण का आशय-सभी जीवधारियों की भाँति मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। प्रकृति के तत्त्व-मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति आदि उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों को पर्यावरण कहा.जाता है।

(ख) पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुर-पर्यावरण प्रदूषण के निम्नलिखित चार प्रकार हैं(अ) वायु प्रदूषण (ब) ध्वनि-प्रदूषण(स) जल-प्रदूषण और (द) ताप-प्रदूषण।।
[संकेत-विस्तार के लिए प्रश्न सं० 1 देखिए।]

(ग) प्रदूषण को रोकने के उपाय—सभी प्रकार के प्रदूषणों को रोकने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपाय अधिकाधिक वृक्षारोपण है। वृक्ष विषाक्त वायु के विष-तत्त्व को पीकर स्वास्थ्य के लिए लाभदायक प्राणवायु को उत्पन्न करते हैं। वायु-प्रदूषण को दूर करने में वृक्षों का महान् योगदान है। वृक्षारोपण करने और उनका भली-भाँति संवर्द्धन करने से ध्वनि की सघनता अर्थात् ध्वनि-प्रदूषण कम होता है। जल-प्रदूषण को रोकने में भी अप्रत्यक्ष रूप से वृक्षारोपण का अत्यधिक योगदान है। वृक्ष वातावरण में आर्द्रता उत्पन्न करते हैं, अपने पत्तों को गिराकर खाद बनाते हैं तथा भू-क्षरण को रोकते . हैं। वृक्षों के माध्यम से ही पृथ्वी के गर्भ में जल का संचय होता है, जो मानव के लिए अत्यधिक उपयोगी है। वृक्ष सूर्य की गरमी को दूर करते हैं। अनेकानेक कारणों से वातावरण का जो ताप बढ़ता है, उसे वृक्षों की सघनता नियन्त्रित कर देती है।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एकमात्र वृक्षारोपण ही अनेक प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में सहायक है। सरकार के साथ-साथ सामान्य जनता का सक्रिय सहयोग इस कार्य में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगा।

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UP Board Solutions for Class 9 English Poetry Chapter 2 Sympathy (Charles Mackay)

UP Board Solutions for Class 9 English Poetry Chapter 2 Sympathy  (Charles Mackay)

Read the following stanzas given below and answer the questions that follow each:
निचे दिये हुए निम्नलिखित पद्यांशों को पढ़िये और उनके नीचे दिये हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(a) I lay in sorrow, deep distressed;
My grief a proud man heard;
His looks were cold, he gave me gold,
But not a kindly word.
My sorrow passed–I paid him back
The gold he gave to me;
Then stood erect and spoke my thanks
And blessed his charity.

Questions.
(i) Write name of the poem from which the above stanza has been selected. Who is the poet of the poem?
उस कविता का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त पद्यांश लिया गया है। कविता के रचयिता कौन है?
(ii) Which words rhyme with each other in the above stanza?
उपरोक्त पद्यांश में कौन से शब्द एक दूसरे के तुकान्त है?
(iii) How did a proud man help the poet?
एक घमण्डी व्यक्ति ने किस प्रकार कवि की सहायता की?
(iv) What did the poet do when his sorrow passed?
जब कवि को दुःख समाप्त हो गया तब उसने क्या किया?
Answers.
(i) The name of the poem is Sympathy’. Charles Mackay is the poet of the poem.
कविता का नाम ‘Sympathy’ है। कविता के रचयिता Charles Mackay है।
(ii) Heard rhyme with word.
Heard, word का तुकान्त है।
(iii) The proud man helped the poet by giving him gold (money).
घमण्डी आदमी ने सोना (धन) देकर कवि की सहायता की।
(iv) When his sorrow passed, he paid him back his money.
जब उसका दुःख समाप्त हो गया तब उसने उसका धन वापस कर दिया।

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(b) I lay in want, and grief, and pain;
A poor man passed my way;
He bound my head, he gave me bread,
He watched me night and day.
How shall I pay him back again
For all he did to me?
Oh, gold is great, but greater far
Is heavenly sympathy.

Questions.
(i) Name the poem from which the above stanza has been taken. Who is the poet of the poem?
उस कविता का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त पद्यांश लिया गया है। कविता के रचयिता कौन हैं?
(ii) Who passed by the poet?
कवि के पास से कौन गुजरा?
(iii) How did the poor man help the poet?
मंडी आदमी ने कवि की सहायता किस प्रकार की?
(iv) The poor man’s help is greater than gold. Why?
गरीब आदमी की सहायता सोना (धन) से महान है। क्यों?
Answers.
(i) The name of the poem is Sympathy’ and the poet is Charles Mackay.
कविता का नाम ‘Sympathy’ है और कवि Charles Mackay हैं।
(ii) A poor man passed by the poet.
एक गरीब आदमी कवि के पास से होकर गुजरा।
(iii) The poor man pressed his head. He gave him bread and looked after him day and night.
गरीब आदमी ने उसका सिर दबाया। उसने उसे रोटी दी और दिन रात उसकी देखभाल की।
(iv) The poor man’s help is greater than gold because gold can be repaid but words of sympathy
can not be paid back.
गरीब आदमी की सहायता सोना (धन) से महान है क्योंकि सोने (धन) को चुकाया जा सकता है किन्तु सहानुभूति
के शब्द चुकाये नहीं जा सकते।

(A) SOLVED QUESTIONS OF TEXT BOOK

Answer the following questions :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

Question 1.
Who lays in sorrow?
कष्ट में कौन था?
Answer:
The poet lay in sorrow.
कवि कष्ट में था।
Question 2.
Was the poet satisfied with his help? If not so, why?
क्या कवि उसकी सहायता से सन्तुष्ट था, यदि नहीं तो क्यों?
Answer:
The poet was not satisfied with his help because he did not express sympathy.
कवि उसकी सहायता से सन्तुष्ट नहीं था क्योंकि उसने सहानुभूति नहीं व्यक्त की थी।

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Question 3.
How did the poet repay the proud man when his sorrow had passed?
जब कवि का कष्ट समाप्त हो गया तो उसने घमण्डी आदमी को उसका ऋण किस प्रकार चुकाया?
Answer:
When the sorrow of the poet had passed, he went to the proud man and repaid his gold(money).
जब कवि का कष्ट समाप्त हो गया तो वह घमण्डी आदमी के पास गया और उसका धन वापस कर दिया।
Question 4.
How did a poor man help the poet when later on he lay in want and grief again?
जब कवि बाद में पुनः अभाव और पीड़ा में पड़ा हुआ (UPBoardSolutions.com) था तो एक गरीब आदमी ने उसकी सहायता किस प्रकार की?
Answer:
The poor man pressed the head of the poet. He gave him bread and looked after him day and
night.
गरीब आदमी ने कवि का सिर दबाया। उसने उसे रोटी दी और दिन-रात उसकी देखभाल की।
Question 5.
Why does the poet think that it is difficult to pay back the poor man?
कवि क्यों सोचता है कि उस गरीब आदमी को ऋण चुकाना कठिन है?
Answer:
They poet thinks that it is difficult to pay back the poor man because his service and words of
sympathy can not be paid back.
कवि सोचता है कि उस गरीब आदमी का ऋण चुकाना कठिन ह क्योंकि उसकी सेवा और सहानुभूति के शब्द वापस नहीं किये जा सकते।

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Question 6.
What difference do you find between the attitude of the proud man and the attitude
of the poor man?
आपको घमण्डी आदमी के दृष्टिकोण तथा गरीब आदमी के दृष्टिकोण में क्या अन्तर मिलता है?
Answer:
The attitude of the proud man was full of pride while the attitude of the poor man was full of
sympathy.
घमण्डी आदमी का दृष्टिकोण गर्व से भरा हुआ था तथा (UPBoardSolutions.com) गरीब आदमी का दृष्टिकोण सहानुभूति से पूर्ण था।
Question 7.
Why is sympathy described as heavenly’?
सहानुभूति को दिव्य क्यों कहा गया है?
Answer:
Sympathy is described as heavenly because it is not based on any selfish motive.
सहानुभूति को दिव्य कहा गया है क्योंकि यह स्वार्थपूर्ण उद्देश्य पर आधारित नहीं है।
Question 8.
Which of the following qualities would you describe as heavenly?
आप निम्नलिखित गुणों में से किन-किन को दिव्य कहेंगे?
pride (घमण्ड), selfishness (स्वार्थपरता), kindness (दयालुता), goodness (बहुत अच्छा), indifference
towards the poor (गरीबों के प्रति उदासीनता), loving care of the old and sick (बूढ़े तथा बीमार व्यक्तियों की
स्नेह युक्त देखभाल).
Answer:
The qualities of goodness, kindness and loving (UPBoardSolutions.com) care of the old and sick can be described as heavenly.
भलाई, दयालुता, बूढ़े तथा बीमार व्यक्तियों की स्नेह युक्त देखभाल को दिव्य गुण कहा जा सकता है।

(B) APPRECIATING THE POEM

Question 1.
Give the central idea of the poem.
कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
Answer:
Sympathy is a divine quality. It is greater than money. Money can be paid back while sympathy
cannot be paid back.
सहानुभूति एक दिव्य गुण है। यह धन से महान है। धन वापस किया जा सकता है जबकि सहानुभूति को वापस नहीं
किया जा सकता।

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Question 2.
Who is the poet of the poem?
कविता के रचयिता कौन हैं?
Answer:
The poet of the poem is Charles Mackay.
कविता के रचयिता चार्ल्स मैके हैं।
Question 3.
Bring out clearly the idea behind the words “His looks were cold.”
‘His looks were cold’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
Answer:
“His looks were cold” means that his sight was indifferent.
‘His looks were cold’ का तात्पर्य है कि उसकी अन्तर्दृष्टि में उदासीनता थी।
Question 4.
Mention, from the poem, any two words that rhyme together.
कविता में किन्हीं दो शब्दों को लिखिए जो आपस में तुकान्त हों।
Answer:
Way and day rhyme together.
Way और day आपस में तुकान्त है।