UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित

UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित.

आदिकाल (वीरगाथा-काल)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित
UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वीरगाथा काल के काव्य की सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
वीरगाथा काल हिन्दी साहित्य का आरम्भिक काल है। प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के पश्चात् अब हिन्दी उत्तर भारत में सर्वसाधारण के व्यवहार की भाषा हो गयी थी । वीरगाथा काल का आरम्भ 10वीं शताब्दी ईसवी से माना जाता है। इस समय उत्तर भारत में राजपूत राजाओं के बहुत से छोटे-छोटे (UPBoardSolutions.com) राज्य थे। इन राज्यों में प्रभुत्व के लिए परस्पर युद्ध हुआ करते थे। मुसलमानों के आक्रमण भी आरम्भ हो गये थे। इस समय की काव्य रचनाओं में भी युद्धों के अनेक वर्णन हैं। काव्य-ग्रन्थों में वीररस को प्रधानता मिलती है। इसी कारण इस काल को वीरगाथा काल कहा गया है।

वीरगाथा काल के काव्य की सामान्य विशेषताएँ –

1. इस काल का काव्य राज्याश्रय में लिखा गया। कवि राज-दरबार में राजा के आश्रय में रहता था और युद्ध के समय राजा और उसकी सेना को प्रोत्साहित करने के लिए वीर रस की रचना करता था। वह सेना के साथ युद्ध भूमि में भी उपस्थित रहता था। शांति के समय वह राजकुमारियों के सौन्दर्य का वर्णन करके राजा का मनोरंजन भी करता था। ये कवि चारण (भाट) होते थे। इसी कारण इस काल को चारण-काल भी कहा गया है।

2. इस काल के कवियों ने प्रबन्धात्मक काव्य की रचना की। काव्य रचनाएँ प्रायः आश्रय देनेवाले शासक की जीवन गाथाएँ होती थीं, जिनमें शासक द्वारा किये गये युद्धों का वर्णन और (UPBoardSolutions.com) राजकुमारियों के अपहरण की कथाएँ होती थीं। इस काल का काव्य प्रशंसात्मक काव्य था। कुछ गाथाएँ ऐसी भी लिखी गयीं जिनको वीरगीतों के रूप में गाया जाता था। इस काल के काव्य-ग्रन्थों को ‘रासो’ कहा गया है।

3. इस काल के काव्य में वीर रस की प्रधानता रही। वीर के साथ रौद्र, भयानक और वीभत्स रस के प्रसंग भी मिलते हैं। गाथाओं में श्रृंगार भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। कवियों से राजकुमारियों का नख-शिख वर्णन सुनकर उनके अपहरण के लिए अभियान होते थे और स्वयंवर-स्थल युद्ध-स्थल में बदल जाते थे।

4. इस काल के काव्य में अलंकारों का भी प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता है। क्रवि अलंकार का प्रयोग केवल चमत्कारप्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि अपने भावों को प्रभावोत्पादक एवं उनकी अभिव्यक्ति को सुन्दर और स्पष्ट बनाने के लिए करते थे। इस काल के काव्य में विशेष रूप से उपमा, (UPBoardSolutions.com) उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति, यमक, श्लेष, संदेह आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है।

5. वीरगाथा काल का काव्य कवित्त, छप्पय, दूहा, भुजंगप्रयात तथा वीर छंदों में लिखा गया। इस काल के कवियों की छंद-योजना की विशेषता यह रही कि छंद वर्म्य-वस्तु के अनुकूल लिखे जाते थे।

6. वीरगाथा काल का काव्य वर्णन-प्रधान था। इसमें युद्धों के अनेक सजीव वर्णन मिलते हैं। युद्ध-वर्णन के साथ सेनाप्रयाण, अस्त्र-शस्त्र, युद्ध-भूमि, आखेट, (UPBoardSolutions.com) राजमहल, राजदरबार आदि के भी प्रभावशाली वर्णन हैं राजकुमारियों का नख-शिखवर्णन परम्परागत शैली में किया गया है। कहीं-कहीं पर ऋतु वर्णन और प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन भी प्रभावशाली शैली में किया गया है।

7. वीरगाथा काल से सम्बन्धित काव्य विशेषत: डिंगल भाषा में लिखा गया। यह हिन्दी का राजस्थानी रूप है। अपभ्रंश के शब्द इसमें प्रचुरता में मिलते हैं। यह भाषा वीररस के काव्य के लिए उपयुक्त है।

8. वीरगाथा काल के काव्य से ही हम समझ पाते हैं कि आरम्भ में हिन्दी भाषा का क्या रूप था। इस काव्य से हमें 10वीं से 12वीं । शताब्दी ईसवी में घटित होनेवाली अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी होती है।

UP Board Solutions 

प्रश्न 2.
भक्तिकालीन हिन्दी-काव्य की सामान्य विशेषताएँ लिखिए। अथवा भक्तिकाल को हिन्दी काव्य का स्वर्ण-काल क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
वीरगाथा काव्य के बाद हिन्दी में भक्ति-काव्य की रचना हुई। देश में मुसलमानों ने अपना राज्य स्थापित कर लिया था। वे हिन्दू धर्म, हिन्दू सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करके इस्लाम धर्म और उसी से सम्बन्धित सभ्यता और संस्कृति की स्थापना करना चाहते थे। ऐसी स्थिति में भारत की जनता की ओर से धर्म और सभ्यता की रक्षा का प्रयत्न स्वाभाविक था। उस युग में प्रचलित धर्म सम्प्रदायों का रूप भी विकृत हो गया था (UPBoardSolutions.com) और देश की जनता उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। अतः धर्म मुधार के जो आन्दोलन चले उनसे प्रभावित धार्मिक काव्य एवं साहित्य उस काल में लिखा गया। उसमें भक्ति-भावना की प्रधानता हो। इसी कारण इस काल को भक्ति-काल कहा गया। भक्तिकाल का आरम्भ सन् 1343 ई० से हुआ और सन् 1643 ई० तक भक्ति-प्रधान काव्य लिखा जाता रहा।

भक्ति-भावना के दो प्रमुख रूप थे—

  • निर्गुण भक्ति तथा
  • सगुण भक्ति।

निर्गुण भक्ति की धारा की भी दो शाखाएँ हो गयी थीं-

  • ज्ञानमार्गी तथा
  • प्रेममार्गी

इसी प्रकार सगुण भक्ति की भी दो शाखाएँ हुईं—

  • रामभक्ति शाखा और
  • कृष्णभक्ति शाखा।

सामान्य विशेषताएँ-

  1. इस काल में प्रमुख रूप से धार्मिक काव्य लिखा गया। कवि राज्याश्रय से मुक्त रहकर सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए लोक-मंगल की कामना करते थे। सब ईश्वर के भक्त थे और किसी-न-किसी रूप में उसी की उपासना में लगे रहते थे।

  2. गुरु की महिमा का गान सभी काव्य-धाराओं में किया गया। कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्रदान किया है।
  3. इस काल के काव्य में हमें हर क्षेत्र में समन्वय की भावना मिलती है। पारस्परिक भेद-भाव को दूर करके एकरूपता की स्थापना ही इस समन्वय-सिद्धान्त का लक्ष्य बना। सात्विक जीवन पर ही अधिक बल दिया गया।
  4. इस काल में प्रबंध गीत और मुक्तक सभी प्रकार के काव्यों की रचना हुई। कवियों की इस योजना का क्षेत्र व्यापक रहा पर प्रमुख रूप से शान्त और श्रृंगार रस में काव्य लिखा गया। अनुभूतियों की अभिव्यक्ति में सच्चाई और ईमानदारी थी। भावों का आवेश स्वाभाविक एवं (UPBoardSolutions.com) सरल-सहज था। इसी कारण भक्तिकाल के काव्य ने तत्कालीन जन-जीवन को तो प्रभावित किया ही, साथ ही वह प्रभावशाली भी बना हुआ है।
  5. इस काल में प्रमुख रूप से ब्रज और अवधी भाषा में काव्य रचना हुई। संत कवियों ने सभी स्थानों की भाषाओं के एक मिले-जुले रूप का प्रयोग किया। निर्गुण-मार्गी, प्रेममार्गी, सूफी कवियों की भाषा अवधी थी। तुलसी ने अपना मानस’ अवधी में लिखा और उसको साहित्यिक बनाने का सफल प्रयत्न किया। रामभक्ति शाखा का काव्य ब्रजभाषा में भी लिखा गया। कृष्णकाव्य भी ब्रजभाषा में ही लिखा गया।

UP Board Solutions

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ, भाषा एवं विधा सहित, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 10
Chapter Name क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम्  (पद्य-पीयूषम्)

परिचय-कोरक और क्रिया के सम्बन्ध से वाक्य का निर्माण होता है। अतः कारक और क्रिया-पदों के भली-भाँति ज्ञान से ही वाक्य का ज्ञान सम्भव है। वाक्य-रचना के समुचित ज्ञान से ही किसी भाषा को समझने एवं बोलने की शक्ति मिलती है। संस्कृत भाषा के लिए तो इस ज्ञान का होना और भी आवश्यक है, क्योंकि इसमें परिस्थिति-विशेष में विभक्ति-विशेष के प्रयोग के अतिरिक्त नियम भी हैं। कारक और क्रिया के अतिरिक्त संस्कृत भाषा के ज्ञान के लिए क्रिया के कालों अर्थात् लकारों का ज्ञान होना भी आवश्यक है। । प्रस्तुत पाठ में सरल एवं मनोरम ढंग से सात विभक्तियों एवं पाँच लकारों का प्रयोग किया गया है। प्रारम्भ में ऐसे सात श्लोक हैं, जिनमें प्रथम, (UPBoardSolutions.com) द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों का अधिक प्रयोग किया गया है। बाद में पाँच श्लोक ऐसे हैं, जिनमें विभिन्न लकारों में क्रियाओं का प्रयोग है। संस्कृत में कुल दस लकार होते हैं, लेकिन लकारों से सम्बन्धित केवल पाँच श्लोक ही दिये गये हैं, क्योंकि पाठ्यक्रम में मात्र पाँच लकार ही निर्धारित हैं। इससे सातों विभक्तियों और पाँचों लकारों के प्रयोग का ज्ञान सरलता से हो जाएगा। प्रस्तुत पाठ के सभी श्लोक नीति-सम्बन्धी भी हैं।

UP Board Solutions

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या
विभक्ति-परिचयः

(1)
उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत् ॥

राख्दार्थ
उद्यमः = परिश्रम।
षडेते (षट् + एते) = ये छः।
वृर्तन्ते = रहते हैं।
देवः = ईश्वर।
सहायकृत् = सहायता करने वाला।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के क्रियाकारककुतूहलम्’ पाठ के अन्तर्गत ‘विभक्ति-परिचयः’ शीर्षक से उद्धृत है।

[संकेत-श्लोक संख्या 2 से 7 तक के छ: श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगी।]

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में मनुष्य के लिए आवश्यक छः गुणों का वर्णन तथा प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया गया है।

अन्वय
उद्यमः, साहस, धैर्य, बुद्धिः, शक्तिं, पराक्रमः एते षट् यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत् (भवति)।

व्याख्या
उद्योग, साहस, धीरज, बुद्धि, बल और पराक्रम-ये छः गुण जिस व्यक्ति में होते हैं, उसकी ईश्वर सहायता करने वाला होता है। तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति में ये छः गुण नहीं होते, उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं करता है।

(2)
विनयो वंशमाख्याति देशमाख्याति भाषितम्।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥

शब्दार्थ
वंशम् = वंश को, कुल को।
आख्याति = बतलाती है।
भाषितम् = बोली।
सम्भ्रमः = क्रियाशीलता, हड़बड़ी।
स्नेहम् = प्रेम को। वपुः = शरीर।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक किसी के बाह्य-व्यक्तित्व से उसके

अन्तः-
व्यक्तित्व का ज्ञान कराता है। तथा इसमें द्वितीया विभक्ति का सुन्दर प्रयोग किया गया है।

अन्वय
विनयः वंशम् आख्याति, भाषितं देशम् आख्याति, सम्भ्रमः स्नेहम् आख्याति, वपुः भोजनम् आख्याति।

व्याख्या
किसी व्यक्ति की विनयशीलता को देखकर यह पता लग जाता है कि वह कैसे वंश में उत्पन्न हुआ है। बोलने से उसके स्थान का ज्ञान हो जाता है। क्रियाशीलता (किसी के प्रति उसके) स्नेह को बता देती है तथा शरीर को देखकर पता लग जाता है कि मनुष्य कैसा भोजन करता है।

(3)
मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्ग।
मूर्खाश्च मूर्खः सुधियः सुधीभिः समानशील-व्यसनेषु सख्यम् ॥

शब्दार्थ
मृगाः = हिरन।
सङ्गम् = साथ।
अनुव्रजन्ति.= साथ-साथ चलते हैं।
गावः = गायें।
तुरगाः = घोड़े।
तुरङ्ग = घोड़ों के साथ।
सुधियः = बुद्धिमान्।
समानशीलव्यसनेषु = जिनके स्वभाव और रुचियाँ एक समान हों, उनमें
सख्यम् = मित्रता।

प्रसंग
तृतीया विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से प्रस्तुत श्लोक में समान स्वभाव, आदत वाले व्यक्तियों की मित्रता उदाहरण देकर बतायी गयी है।

अन्वय
मृगाः मृगैः (सङ्गम्) गावः (च) गोभिः (सङ्गम्), तुरगाः तुरङ्गैः (सङ्गम्) मूर्खाः (च) मूर्खः (सङ्गम्), सुधिय: सुधीभिः सङ्गम् अनुव्रजन्ति। समानशील-व्यसनेषु सख्यम् (भवति)।

व्याख्यो
हिरन हिरनों के साथ और गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ और मूर्ख मूर्खा के साथ, बुद्धिमान् बुद्धिमानों के साथ-साथ चलते हैं। समान अथवा एक जैसे स्वभाव और आदत वालों में मित्रता होती है।

UP Board Solutions

(4)
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

शब्दार्थ
विवादाय = झगड़े के लिए।
मदाय = घमण्ड करने के लिए।
परेषां = दूसरों को।
परिपीडनाये = सताने के लिए।
खलस्य = दुष्ट की।
साधोः = सज्जन।
विपरीतम् = उल्टा।
एतद् = इसके।
ज्ञानाय = ज्ञान के लिए।
दानाय = दान के लिए।
रक्षणाय = रक्षा के लिए।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में चतुर्थी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से दुष्ट और सज्जन पुरुष के अन्तर को बताया गया है।

अन्वय
खलस्य विद्या विवादाय (भवति), धनं मदाय (भवति), शक्ति परेषां परिपीडनाय (भवति)। एतद् विपरीतं साधोः (विद्या) ज्ञानाय (भवति),(धनं) दानाय (भवति), (शक्तिः ) परेषां रक्षणाय च (भवति)।

व्याख्या
दुष्ट की विद्या विवाद के लिए होती है, धन घमण्ड करने के लिए होता है और शक्ति दूसरों को पीड़ित करने के लिए होती है। इसके विपरीत सज्जन की विद्या ज्ञाने के लिए होती है, धन दान देने के लिए होता है और शक्ति दूसरों की रक्षा करने के लिए होती है।

(5)
क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः।।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥

शब्दार्थ
क्रोधात् = क्रोध से।
सम्मोहः = अज्ञान।
स्मृतिविभ्रमः = स्मरण-शक्ति का नाश।
स्मृतिभ्रंशात् = स्मरण शक्ति के नाश से।
बुद्धिनाशः = बुद्धि का नाश।
प्रणश्यति = नष्ट हो जाता है।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में पंचमी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से क्रोध को नाश का मूल कारण बताया गया है।

अन्वय
क्रोधात् सम्मोहः भवति। सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः (भवति)। स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः (भवति)। बुद्धिनाशात् (जन:) प्रणश्यति।।

व्याख्या
क्रोध से व्यक्ति को अज्ञान होता है। अज्ञान से स्मरण-शक्ति का नाश होता है। स्मृति के नष्ट हो जाने से बुद्धि का नाश होता है। बुद्धि के नष्ट हो जाने से मनुष्य ही नष्ट हो जाता है।

(6)
अलसस्य कुतो विद्यो अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥ 

शब्दार्थ
अलसस्य = आलसी व्यक्ति के पास।
कुतः = कहाँ।
अविद्यस्य = विद्याहीन के पास।
अधनस्य = धनहीन के पास।
अमित्रस्य = मित्रहीन के पास।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में षष्ठी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से सुख की प्राप्ति न होने का मूल : कारण आलस्य को बताया गया है।

अन्वय
अलसस्य विद्या कुतः? अविद्यस्य धनं कुतः? अधनस्य मित्रं कुतः? अमित्रस्य सुखं 
कुतः?

व्यख्या
आलसी मनुष्य के पास विद्या कहाँ? विद्याहीन के पास धन कहाँ? धनहीन अर्थात् निर्धन के पास मित्र कहाँ? मित्रहीन को सुख कहाँ? तात्पर्य यह है कि आलसी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता। .

(7)
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकंन गजे गजे।।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥

शब्दार्थ
शैले शैले = प्रत्येक पर्वत पर।
माणिक्यं = माणिक्य नामक रत्न।
मौक्तिकम् = मोती।
गजे गजे = प्रत्येक हाथी के (मस्तक में)।
साधवः = सज्जन।
सर्वत्र = सभी स्थानों पर।
वने वने = प्रत्येक वन में।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में सप्तमी विभक्ति के प्रयोग के माध्यम से बताया गया है कि उत्तम वस्तुओं की प्राप्ति सभी जगह नहीं हो सकती।।

अन्वय
शैले शैले माणिक्यं न (भवति)। गजे गजे मौक्तिकं न (भवति)। साधवः सर्वत्र न (भवति)। चन्दनं वने वने न (भवति)।

व्याख्या
प्रत्येक पर्वत पर माणिक नहीं होता है। प्रत्येक हाथी के मस्तक में मोती नहीं होता है। सज्जन लोग सभी स्थानों पर नहीं होते हैं। चन्दन का वृक्ष प्रत्येक वन में नहीं होता है।

UP Board Solutions

लकार-परिचय

(1)
पापान्निवारयति योजयते हिताय गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च ने जहाति ददाति काले सन्मित्र-लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥

शब्दार्थ
पापात् = पाप से।
निवारयति = रोकता है।
योजयते = लगाता है।
हिताय = भलाई में।
गुह्यम् = छिपाने योग्य को।
निगूहति = छिपाता है।
प्रकटीकरोति = प्रकट करता है।
आपद्गतं = विपत्ति में पड़े हुए को।
जहाति = छोड़ता है।
काले = समय पर।
सन्मित्र- लक्षणम् = अच्छे मित्र के लक्षण।
प्रवदन्ति = कहते हैं।
सन्तः = सज्जन पुरुष।।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के क्रियाकारककुतूहलम्’ पाठ के अन्तर्गत ‘लकार-परिचयः’ शीर्षक से उद्धृत है।

[संकेत-श्लोक संख्या 2 से 5 तक के शेष चार श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में लट् लकार (वर्तमान काल) के प्रयोग से अच्छे मित्र के लक्षण बताये गये हैं।

अन्वय
पापात् निवारयति, हिताय योजयते, गुह्यं निगूहति, गुणान् प्रकटीकरोति, आपद्गतं न जहाँति, काले च ददाति सन्तः इदं सन्मित्र लणं अवदन्ति।

व्याख्या
(अच्छा मित्र अपने मित्र को) पाप करने से रोकता है, (उसको) कल्याण के लिए (कामों में) लगाता है, (उसकी) गोपनीय बात को (दूसरों से) छिपाता है, (उसके) गुणों को (दूसरों पर) प्रकट करता है। आपत्ति में पड़े हुए उसुको नहीं छोड़ता है तथा समय आने पर उसे बहुत कुछ (धनादि) देता है। सज्जन पुरुष इसे अच्छे मित्र का लक्षण कहते हैं।

(2)
निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वी मरणमस्तु युगान्तरे बा न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥

शब्दार्थ
निन्दन्तु = निन्दा करें।
नीलिनिपुणाः = नीति में कुशल व्यक्ति।
स्तुवन्तु = स्तुति या प्रशंसा करें।
समाविशतु = प्रवेश करे।
गच्छतु = जाए।
यथेष्टम् = इच्छानुसार।
अद्यैव = आज ही।।
मरणम् = मृत्यु।
युगान्तरे = दूसरे युग में, बहुत समय बाद।
न्याय्यात् पथः = न्याय के मार्ग से।
प्रविचलन्ति = विचलित नहीं होते हैं।
पदम् = पगभर भी।
धीराः = धैर्यवान् पुरुष।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में लोट् लकार (आज्ञासूचक) के प्रयोग के माध्यम से धीर पुरुषों की . विशेषता बतायी गयी है।

अन्वय
यदि नीतिनिपुणाः निन्दन्तु स्तुवन्तु वा, लक्ष्मी: (गृह) समाविशतु यथेष्टं वा (अन्यत्र) गच्छतु। अद्य एव मरणम् अस्तु, युगान्तरे वा (मरणम् अस्तु), (परञ्च) धीराः न्याय्यात् पथः पदं न प्रविचलन्ति।

व्याख्या
चाहे नीति में कुशल पुरुष निन्दा करें अथवा प्रशंसा, लक्ष्मी (घर में) प्रवेश करे अथवा इच्छानुसार दूसरी जगह चली जाए, आज ही मृत्यु हो जाए अथवा बहुत समय बाद हो, परन्तु धीर पुरुष न्याय के मार्ग से पगभर भी नहीं डिगते हैं; अर्थात् कितनी ही विपत्तियाँ क्यों न आ जाएँ धीर पुरुष न्याय मार्ग से कभी विचलित नहीं होते।

UP Board Solutions

(3)
अपठद्योऽखिला विद्याः कलाः सर्वा अशिक्षत।
अजानात् सकलं वेद्यं स वै योग्यतमो नरः ॥

शब्दार्थ
अपठत् = पढ़ लिया।
यः = जिसने।
अखिलाः = समस्त।
अशिक्षत = सीखा है।
अजानात् = जान लिया है।
सकलम् = समस्त।
वेद्यम् = जानने योग्य को।
वै = निश्चय से।
योग्यतमः = सबसे योग्य।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में लङ् लकार (भूतकाल) के प्रयोग के माध्यम से योग्य व्यक्ति की विशेषताएँ बतायी गयी हैं। |

अन्वय
यः अखिलाः विद्याः अपठत् , सर्वाः कलाः अशिक्षत, सकलं वेद्यम् अजानात्, सः नरः योग्यतमः वै (अस्ति)। |

व्याख्या

जिसने समस्त विद्याएँ पढ़ी हैं, समस्त कलाओं को सीखा है, सब जानने योग्य को जान लिया है, वह निश्चय ही सबसे योग्य मनुष्य है। तात्पर्य यह है कि अध्ययन करने वाला, कलाकार और जानने योग्य को जानने वाला व्यक्ति ही योग्य होता है।

(4)
दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् ।
सत्यपूतां वदे वाचं मनःपूतं समाचरेत् ॥

शब्दार्थ
दृष्टिपूतम् = दृष्टि से भली-भाँति देखकर पवित्र किये गये (स्थान पर)।
न्यसेत् = रखनी चाहिए।
पादं = पैर को।
वस्त्रपूतम् = वस्त्र से (छानकर) शुद्ध किये गये।
सत्यपूताम् = सत्य के प्रयोग से पवित्र की गयी।
वदेत् = बोलना चाहिए।
वाचं = वाणी।
मनःपूतम् = मन से पवित्र किये गये (आचरण को)।
समाचरेत् = भली-भाँति व्यवहार करना चाहिए।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में विधिलिंग लकार के प्रयोग के माध्यम से विभिन्न दैनिक कार्यों को करने की विधि बतायी गयी है।

अन्वय
दृष्टिपूतं पादं न्यसेत्। वस्त्रपूतं जलं पिबेत्। सत्यपूतां वाचं वदेत्। मन:पूतं समाचरेत्। व्याख्या-दृष्टि से (भली-भाँति देखकर) पवित्र किये गये (स्थान पर) पैर को रखना चाहिए अर्थात् सोच-समझकर ही कदम रखना चाहिए। वस्त्र से (छानकर) पवित्र किये गये जेलं को पीना चाहिए। सत्य के (व्यवहार) से पवित्र की गयी वाणी को बोलना चाहिए तथा मन द्वारा भली-भाँति विचार करने के बाद जो आचरण पवित्र हो, उचित हो, उसका ही व्यवहार करना चाहिए।

(5)
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः।
“इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे हा हन्त हन्त नलिन गज उज्जहार ॥

शब्दार्थ
रात्रिः = रात्रि।
गमिष्यति = बीतेगी।
भविष्यति = होगा।
सुप्रभातम् = सुन्दर प्रात:काल।
भास्वान् = सूर्य।
उदेष्यति = उदित होंगे।
हसिष्यति = खिलेंगी, हँसेगी।
पङ्कजश्रीः = कमल की शोभा।
इत्थम् = इस प्रकार से।
विचिन्तयति = सोचते रहने पर।
कोशगते = कमल के मध्य भाग के बैठे हुए।
द्विरेफे= भ्रमर के।
नलिनीम् = कमलिनी को।
उज्ज़हार = उखाड़ दिया। ।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में लृट् लकार (भविष्यत्काल) के प्रयोग के माध्यम से ऐसे महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति के प्रति उक्ति कंही गयी है, जिसकी आशाओं पर एकाएक तुषारापात हो गया है।

अन्वय
रात्रिः गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति, भास्वान् उदेष्यति, पङ्कजश्री: हसिष्यतिकोशगते द्विरेफे इत्थं विचिन्तयति नलिनीं गजः उज्जहार। हो हन्त! हन्त!!

व्याख्या
“रात्रि बीतेगी, सुन्दर प्रभात होगा, सूर्य निकलेगा, कमल की शोभा खिलेगी-कमल के मध्य भाग में बैठे हुए भौरे के ऐसा सोचते रहने पर कमलिनी को हाथी ने उखाड़ डाला। हाय खेद है! खेद है!! तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को भविष्य (आने वाले कल) के बारे में अधिक नहीं।’ सोचना चाहिए। अन्यत्र कहा भी गया है–‘को वक्ता तारतम्यस्य तमेकं वेधसं विना।’

सूक्तिपरक वाक्य की व्याख्या


(1)
विनयो वंशमाख्याति देशमाख्याति भाषितम्।।

सन्दर्य :
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के क्रियाकारककुतूहलम्’ पाठ से ली गयी है।

[संकेत-इस पाठ की शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में विनय और भाषा के महत्त्व को समझाया गया है।

अर्थ
विनय वंश को बताती है और भाषा देश को।।

व्याख्या
प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने माता-पिता तथा कुल के लोगों के संस्कारों से अवश्य प्रभावित होता है। ऐसा देखने में आता है कि परिवार अथवा वंश के लोगों के अच्छे अथवा बुरे संस्कार बच्चे में अवश्य ही आते हैं। यदि माता-पिता तथा कुल के लोग सभ्य-सुसंस्कृत होते हैं तो व्यक्ति भी संस्कारवान होता है तथा इसके विपरीत होने पर बच्चे भी वैसा ही दुर्गुण ग्रहण कर लेते हैं। विशेष रूप से व्यक्ति को विनयशीलता तो कुल-परंम्परा से ही प्राप्त होती है। इसीलिए किसी व्यक्ति के आचार-व्यवहार तथा विनयशीलता को देखकर अनुमान (UPBoardSolutions.com) लगाया जा सकता है कि वह उच्च कुल से सम्बन्ध रखता है अथवा निम्न कुल से।। | इसी प्रकार से किसी व्यक्ति की भाषा से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति किस देश, प्रदेश अथवा स्थान-विशेष का रहने वाला है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक क्षेत्र-विशेष की भाषा में कुछ-न-कुछ परिवर्तन अवश्य देखने को मिलता है। इसीलिए लोक में एक उक्ति प्रचलित है-‘कोस-कोस पर बदले पानी, चारकोस पर बानी।।

UP Board Solutions

(2)
वपुराख्याति भोजनम्।

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में शरीर के लिए भोजन के महत्त्व को बताया गया है।

अर्थ
शरीर भोजन को बता देता है कि कौन कैसा भोजन करता है। |

व्याख्या
मनुष्य के शरीर की सुन्दरता, सुडौलता और हृष्ट-पुष्टता को देखकर उसके ग्रहण | किये गये भोजन की गुणवत्ता का पता लग जाता है। यदि किसी व्यक्ति का शरीर निस्तेज और निर्बल है, तो इसका अर्थ है कि वह अच्छा भोजन नहीं करता है। यदि किसी का शरीर हृष्ट-पुष्ट एवं तेजस्वी है। तो वह क्तम भोजन करता है, ऐसा उसके शरीर को देखकर ही अनुमान लग जाता है। खिलाड़ियों व पहलवानों के शरीर को देखकर ही पता लग जाता है कि वे कैसा भोजन करते हैं। तात्पर्य यह है कि शरीर की सर्वविध पुष्टता उत्तम भोजन पर ही निर्भर करती है।

(3)
समानशील-व्यसनेषु सख्यम्।

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में मित्रता के आधार पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि मित्रता कैसे लोगों में होती है।

अर्थ
समान स्वभाव और आदत वालों में मित्रता हो जाती है।

व्याख्या
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके बहुत कुछ कार्य दूसरों की सहायता से सम्पन्न होते हैं; अतः वह ऐसे व्यक्ति को अपना मित्र बनाता है, जो उससे मिल-जुलकर रह सके। देखा जाता है कि समान स्वभाव और समान आदत वालों में जल्दी मित्रता हो जाती है। पशु, पशुओं के साथ घूमते हैं; मूर्ख, (UPBoardSolutions.com) मूर्खा के साथ और बुद्धिमान, बुद्धिमानों के साथ रहते हैं; क्योंकि उनकी आदतें और स्वभाव आपस में समान होते हैं; अतः उनमें जल्दी मेल हो जाता है। इसी प्रकार उत्तम और आदर्श छात्र भी अपने समान छात्रों को तलाश कर मित्रता कर लेते हैं। विरोधी स्वभाव वालों में या तो मित्रता होती ही नहीं और यदि होती भी है तो अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती।

(4)
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में कहा गया है कि आलसी और विद्याहीन व्यक्ति निर्धन होता है।

अर्थ
आलसी व्यक्ति को विद्या कहाँ और विद्याहीन को धन कहाँ।

व्याख्या
कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्य में तभी सफल हो सकता है जब कि उसके मन में उस कार्य को करने की लगन हो तथा परिश्रम करने की क्षमता हो। बिना परिश्रम के व्यक्ति को इस संसार में कुछ भी नहीं मिलता। विद्या और धन तो अत्यधिक परिश्रम से ही प्राप्त होते हैं। आलसी

व्यक्ति में न तो किसी कार्य को करने की लगन होती है और न ही परिश्रम करने की क्षमता। इसलिए आलसी व्यक्ति को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और धन तो गुणी अर्थात् विद्या से सम्पन्न व्यक्ति को ही मिलता है। तात्पर्य यह है कि यदि व्यक्ति धनवान होना चाहता है तो उसे आलस्य का त्याग करना ही पड़ेगा। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि ‘न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखें मृगाः।

(5)
न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में धीर और न्यायप्रिय व्यक्तियों के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।

अर्थ
धीर पुरुष न्याय के रास्ते से अपने कदम को नहीं हटाते हैं।

व्याख्या
इस संसार में प्रत्येक मनुष्य सुख-दुःख व हानि-लाभ से प्रभावित होता रहता है, लेकिन जो धीर पुरुष होते हैं, वे सदा न्याय के मार्ग पर अग्रसर रहते हैं। उनकी कोई प्रशंसा करे या निन्दा, उनको धन प्राप्त हो या उनका धन नष्ट हो जाए, उनकी उम्र अधिक लम्बी हो, या उनकी उसी दिन मृत्यु हो जाए, वे कभी न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते। धीर पुरुष के ऊपर किसी प्रलोभन का भी प्रभाव नहीं होता।

(6)
सत्यपूतां वदेद्वाचं मनःपूतं समाचरेत्।

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में व्यक्ति के लिए श्रेष्ठ आचरण को बताया गया है।

अर्थ
सत्य से पवित्र वचन बोलना चाहिए और पवित्र मन से भली-भाँति आचरण करना चाहिए।

व्याख्या
मनुष्य को कोई बात कहने से पूर्व उसे सत्य की कसौटी पर जाँच लेना चाहिए। जो कोई बात सत्य जान पड़ती हो, उसे ही कहना चाहिए तथा जो बात सत्य प्रतीत न होती हो, उसे नहीं | बोलना चाहिए। मनुष्य को समाज में रहकर अपने कार्य करने होते हैं। कुछ कार्यों को वह मन से करता है तो कुछ को दिखावे के लिए; कुछ बातें वह दूसरों को प्रसन्न करने के लिए करता है तो कुछ अपने कार्य को सिद्ध करने (UPBoardSolutions.com) के लिए। इस प्रकार मनुष्य को सत्यपूर्ण वाणी और मन से पवित्र आचरण ही करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि हमारा अन्त:करण जिस बात को ठीक समझे, उसे ही करना चाहिए और मन जो बात करने की अनुमति नहीं देता, उसे नहीं करना चाहिए। अत: किसी कार्य के विषय में करने या करने का सन्देह होने पर अन्त:करण को प्रमाण मानना चाहिए। 

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) विद्या विवादाय •••••••••••• दानायचे रक्षणाय॥ (विभक्ति-परिचय, श्लोक 4)
संस्कृतार्थः
कविः खल-सज्जनयोः अन्तरं वर्णयति-दुर्जनस्य विद्या कलहाय भवति, तस्य धनं गर्वाय भोगाय च भवति, तस्य बलम् अन्येषां जनानां पीडनाये भवति, एतद् विपरीतं सज्जनस्य विद्या ज्ञानाय भवति, तस्य वित्तं दानाय भवति, तस्य बलं च अन्येषां रक्षणाय भवति।

UP Board Solutions

(2) अलसस्य कुतो•••••••••••••••••• कुतः सुखम्॥ (विभक्ति-परिचय, श्लोक 6)
संस्कृतार्थ-
श्रमहीनः जनः विद्यां प्राप्तुं न शक्नोति, विद्याहीनः जनः धनं प्राप्तुम् असमर्थः अस्ति, धनहीनः जनः मित्रं कर्तुं न क्षमोऽस्ति, मित्रहीनस्य सुखं न भवति।।

(3) शैले शैले ••••••••••••••••••••”चन्दनं न वने वने। (विभक्ति-परिचय, श्लोक 7)
संस्कृतार्थः-
प्रत्येकं पर्वते माणिक्यं न भवति, केषुचित् पर्वतेषु एव भवति। प्रत्येकं गजस्य मस्तके मौक्तिकं न भवति, केषाञ्चित् गजानां मस्तके एव भवति। साधुपुरुषाः सर्वेषु स्थानेषु न भवन्ति। प्रत्येकं वने चन्दनं वृक्षं न भवति। अल्पीयेषु वनेषु एव चन्दनं भवति।।

(4) पापान्निवारयति •••••••••••••••••••••”प्रवदन्ति सन्तः॥ (लकार-परिचय, श्लोक 1)
संस्कृतार्थः–
कविः श्रेष्ठस्य मित्रस्य लक्षणानि कथयति-श्रेष्ठमित्रं स्वसुहृदं दुष्कर्मणः दूरीकरोति, सः स्वमित्रं हितकार्येषु संलग्नं करोति, सः स्वमित्रस्य अप्रकाश्यान् दोषान् आच्छादयति, तस्य गुणान् च प्रकाशयति, सः विपत्तौ निमग्नं स्वसुहृदं न परित्यजति, सन्मित्रं स्वमित्रस्य अभावसमये व्ययपूर्त्यर्थं तस्मै धनं प्रयच्छति, सज्जनाः एतत् श्रेष्ठस्य मित्रस्य लक्षणं कथयन्ति। |

(5) निन्दन्तु नीतिनिपुणाः ••••••••••••••••••• पदं न धीराः॥ (लकार-परिचय, श्लोक 2)
संस्कृतार्थः-
कविः धीराणां पुरुषाणां न्यायप्रिंयत्वं वर्णयति। यत् नीतिकुशलाः पुरुषाः धीराणां पुरुषाणां निन्दां कुर्वन्तु ते तेषां प्रशंसां वा कुर्वन्तु, तेषां गृहे धनम् आगच्छेत् तेषां समीपात् वा धनं यथेच्छं गच्छतु, ते निर्धनतां प्राप्नुवन्तु, तेषां मृत्युः तस्मिन्नेव दिने भवतु, युगान्तरं यावत् जीवनं धारयन्तु वा परं धीराः पुरुषाः न्यायपूर्णात् मार्गात् किञ्चिदपि च्युताः न भवन्ति, ते त्यायमार्गम् एव अनुसरन्ति। ।

(6) रात्रिर्गमिष्यति •••••••••••••••••••••••• गज उज्जहार॥ (लकार-परिचय, श्लोक 5) 
संस्कृतार्थः-
कविः मृत्योः समयस्य अनिश्चित्वं वर्णयति यत् रात्रौ कमलपुटे स्थितः एकः अलिः स्वमनसि इत्थं विचारयति स्म यत् इयं घोरा निशा समाप्ती भविष्यति, स्वर्णिमः सुखदः प्रभातकालः भविष्यति, सूर्य उद्गमिष्यति, कमलानां शोभायाः विकासो भविष्यति। सः भ्रमरः तत्र स्थितः विचारयन् एवासीत् यत् एतस्मिन्नेव काले तस्य दैवदुर्विपाकात् एकः गजः तत्र आगच्छत् तां कमलिनीं च उत्पाट्य अनयत् इति खेदस्य विषयः।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्) 
help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम्  (पद्य-पीयूषम्), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 9
Chapter Name पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम्  (पद्य-पीयूषम्)

परिचय-भारतीय वाङमय में वेदों के पश्चात् प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थों में वेदव्यास अथवा कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत का सर्वोच्च स्थान है। धार्मिक, राजनीतिक, व्यावहारिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यधिक गौरवपूर्ण है। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में महाकाव्यों में सर्वप्रथम इसी की गणना की जाती है। महत्त्व की दृष्टि से इसे पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) प्रस्तुत पाठ के श्लोक महाभारत से संगृहीत किये गये हैं। पाठ के प्रथम छः श्लोकों में पण्डित के और बाद के चार श्लोकों में मूर्ख के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-श्लोकों की ससन्दर्भ व्याख्या’ शीर्षक से सभी श्लोकों के अर्थ संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]

UP Board Solutions

(1)
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।
अनास्तिकः श्रद्दधानो ह्येतत्पण्डितलक्षणम् ॥

शब्दार्थ
निषेवते = आचरण करता है।
प्रशस्तानि = प्रशंसा करने योग्य।
निन्दितानि = निन्दित, बुरे कार्य।
सेवते = सेवन करता है।
अनास्तिकः = जो नास्तिक (वेद-निन्दक) न हो।
श्रद्दधानः = श्रद्धा रखता हुआ।
ह्येतत् (हि + एतत्) = यह ही।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘पण्डितमूढयोर्लक्षणम्’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में पण्डित (विद्वान्) के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-आगे के पाँच श्लोकों के लिए भी यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।

अन्वय
(य:) प्रशस्तानि निषेवते, निन्दितानि न सेवते (यः) अनास्तिकः श्रद्दधानः (अस्ति)। एतत् हि पण्डित लक्षणम् (अस्ति)।

व्याँख्या
जो शुभ आचरणों का सेवन करता है, निन्दित आचरणों का सेवन नहीं करता है, जो नास्तिक (वेद-निन्दक-ईश्वर को न मानने वाला) नहीं है और श्रद्धालु है, इन सब गुणों से युक्त (UPBoardSolutions.com) होना ही पण्डित का लक्षण है। तात्पर्य यह है कि उत्तम कर्मों को करने वाला, अशुभ कर्मों को न करने वाला, ईश्वर की सत्ता में विश्वास और उसमें श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति पण्डित होता है।

UP Board Solutions

(2)
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नापर्कषन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
दर्पः = अहंकार।
हीः = लज्जा।
स्तम्भः= जड़ता।
मान्यमानिता = स्वयं को सम्मान के योग्य मानना।
यम् = जिसको।
अर्थाः = लक्ष्य से।
अपकर्षन्ति = पीछे खींचते हैं।
वै = निश्चय से।
उच्यते = कहा जाता है।

अन्वय
(य:) क्रोधः, हर्षः, दर्पः, हीः, स्तम्भः, मान्यमानिता च यमर्थान् न अपकर्षन्ति, वै स पण्डितः उच्यते।

व्याख्या
जिसको क्रोध, हर्ष, अहंकार, लज्जा, जड़ता, अपने को सम्मान के योग्य मानने की .. भावना ये सब अपने लक्ष्य से पीछे की ओर नहीं खींचते हैं। निश्चय ही पण्डित’कहलाता है। तात्पर्य यह है। 
कि इन सभी मनोविकारों के होने के बावजूद जो अपने उद्देश्य को पूरा करने में पीछे नहीं रहता, वही पण्डित होता है।

(3)
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते । |
कामादर्थं वृणीते यः सवै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
यस्य = जिसकी।
संसारिणी = व्यावहारिक।
प्रज्ञा = बुद्धि।
धर्मार्थी = धर्म और अर्थ का।
अनुवर्तते = अनुसरण करती है।
कामादर्थं = कार्य की अपेक्षा से अर्थ को।
वृणीते = वरण करता है।

अन्वय
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थी अनुवर्तते, य: कामात् अर्थ वृणीते, वै सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जिसकी व्यावहारिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है, जो काम की अपेक्षा अर्थ का वरण करता है, निश्चय ही वह पण्डित कहा जाता है।

(4)
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ।
नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥

शब्दार्थ
क्षिप्रम् = शीघ्र।
विजानाति = विशेष रूप से जानता है।
चिरम् = देरी से।
शृणोति = सुनता है।
विज्ञाय = अच्छी तरह जानकर।
अर्थम् कार्य को, प्रयोजन को।
भजते = स्वीकार करता है।
कामात् = स्वार्थ से, इच्छा से।
असम्पृष्टः = बिना पूछा गया।
व्युपयुङ्क्ते = अपने को लगाता है।
परार्थे = परोपकार में।
प्रज्ञानम् = लक्षण।

अन्वय
क्षिप्रं विजानाति, चिरं शृणोति, अर्थ विज्ञाय च भजते, कामात् न (भजते) असम्पृष्टः परार्थे न व्युपयुङ्क्ते, तत् पण्डितस्य प्रथमं प्रज्ञानम् (अस्ति)।

व्याख्या
जो किसी बात को संकेतमात्र से शीघ्र समझ जाता है, प्रत्येक तथ्य को बहुत देर तक अर्थात् तब तक सुनता रहता है, जब तक कि अच्छी तरह समझ नहीं लेता है, कार्य को अच्छी तरह जानकर ही कार्य करता है, स्वार्थ से नहीं करता है। भली-भाँति न पूछा गया दूसरों के काम में स्वयं को नहीं लगाता है, पण्डित का यही प्रथम लक्षण है।

UP Board Solutions

(5)
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते ।।
गाङ्गो हृद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
हृष्यति = प्रसन्न होता है।
आत्मसम्माने = अपने सम्मान में।
अवमानेन = अपमान से।
तप्यते = दु:खी होता है।
गाङ्गः = गंगा का।
हृदः = कुण्ड।
अक्षोभ्यः = क्षुभित (व्याकुल) न होने वाला।

अन्वय
(यः) आत्मसम्माने न हृष्यति, अवमानेन न तप्यते, यः गङ्गाः हृदः इव अक्षोभ्यः भवति सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जो अपने सम्मान पर प्रसन्न नहीं होता है, अपने अपमान से दु:खी नहीं होता है, जो गंगा के निर्मल जलकुण्ड की तरह क्षुभित नहीं होता है, वह पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान् व्यक्ति को न तो अपने सम्मान पर प्रसन्न होना चाहिए और ही अपने अपमान पर दु:खी। उसे । तो गंगाजल की तरह शान्त रहना चाहिए।

(6)
तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्।।
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ॥ 

शब्दार्थ
तत्त्वज्ञः = वास्तविक रूप को जानने वाला।
सर्वभूतानाम् = सब प्राणियों के।
योगज्ञः = योग (समन्वय को जाननेवाला।
सर्व कर्मणाम् = सभी कर्मों के।
उपायज्ञः = हित के उपायों को जानने वाला।

अन्वय
(यः) सर्वभूतानां तत्त्वज्ञः, सर्वकर्मणां योगज्ञः, मनुष्याणाम् उपायज्ञः (भवति सः) नरः पण्डित उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक रूप को जानने वाला है, जो सभी कर्मों के समन्वय को जानने वाला है, मनुष्यों के हित के उपायों को जानने वाला होता है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक स्वरूप को, सभी कर्मों के समन्वय को और मनुष्यों के हित के उपायों को जानता है, वही बुद्धिमान होता है।

(7)
अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
अर्थाश्चाकर्मणी प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥
शब्दार्थ
अश्रुतः = वेद एवं शास्त्र के ज्ञान से रहित।
समुन्नद्धः = (शास्त्रज्ञ होने का) गर्व करने वाला।
महामनाः = उदार मन वाला, अधिक इच्छा रखने वाला।
अर्थान् = धनों को।
अकर्मणा = बिना कर्म किये।
प्रेप्सुः = प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला।
बुधैः = विद्वानों के द्वारा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में मूर्ख व्यक्ति के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत–आगे के तीन श्लोकों के लिए यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।]

अन्वय
(यः) अश्रुतः (भूत्वा) (अपि) समुन्नद्धः (भवति यः) दरिद्रः च ( भूत्वा) महामनाः (भवति) (य:) अर्थान् च अकर्मणा प्रेप्सुः (भवति सः) बुधैः मूढः इति उच्यते।

व्याख्या
जो शास्त्रवेत्ता न होते हुए भी, अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहता है, जो दरिद्र होकर भी उदार मन वाला (अधिक इच्छाओं वाला) होता है, जो धन को बिना कर्म किये (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करने की इच्छा रखता है, विद्वानों ने उसे मूढ़ (विवेकहीन) पुरुष कहा है। तात्पर्य यह है कि अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहने वाला, धनहीन होते हुए भी उदार मन वाला, बिना कर्म किये धन प्राप्ति की इच्छा करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

UP Board Solutions

(8)
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति ।।
मिथ्याचरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥

शब्दार्थ
स्वमर्थं = अपने कार्य को।
परित्यज्य = छोड़कर।
परार्थम् = दूसरे के कार्य को।
अनुतिष्ठति = करता है।
मिथ्याचरति = मिथ्या आचरण करता है।
मित्रार्थे = मित्र के साथ भी।

अन्वेय
यः स्वम् अर्थं परित्यज्य परार्थम् अनुतिष्ठति, यः च मित्रार्थे मिथ्या आचरति, सः मूढः उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य अपने काम को छोड़कर दूसरों के कार्य को करता है; अर्थात् जो अपने अधिकार से बाहर है उन कार्यों को करता है और जो मित्र के साथ भी मिथ्या आचरण करता है, वह मूढ़ कहलाता है। तात्पर्य यह है कि अपने काम को छोड़कर दूसरों के काम को करने वाला और मित्र के साथ मिथ्या आचरण करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

(9)

अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्॥

शब्दार्थ
अमित्रम् = शत्रु को।
कुरुते = करता है।
द्वेष्टि = द्वेष करता है।
हिनस्ति = नुकसान पहुँचाता है।
चारभते = आरम्भ करता है।
दुष्टम् = निन्दित।
आहुः = कहते हैं।
मूढचेतसम् = मूढ़ चित्त वाला।

अन्वय
(य:) अमित्रं मित्रं कुरुते, (यः) मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च (यः) दुष्टं कर्म आरभते, तं मूढचेतसम् आहुः।।

व्याख्या
जो शत्रु को मित्र बनाता है, जो मित्र से द्वेष करता है और हानि पहुँचाता है, जो निन्दित कर्म को आरम्भ करता है, उसे (विद्वान्) मूढ़ चित्त वाला (मूर्ख) कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जो व्यवहारहीन व्यक्ति शत्रु के साथ मित्रता का और मित्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है, उसे विद्वानों ने मूर्ख कहा है।

(10)

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।।
विश्वसिति प्रमत्तेषु मूढचेता नराधमः ॥

शब्दार्थ
अनाहूतः = बिना बुलाया गया।
प्रविशति = प्रवेश करता है।
अपृष्टः = बिना पूछा गया।
बहु भाषते = बहुत बोलता है।
विश्वसिति = विश्वास करता है।
प्रमत्तेषु = पागलों पर।
नराधमः = नीच मनुष्य।।

अन्वय
(यः) अनाहूतः (गृह) प्रविशति, (य:) अपृष्टः बहु भाषते, (य:) प्रमत्तेषु विश्वसिति, (स:) नराधमः मूढचेताः (भवति)।

व्याख्या
जो बिना बुलाये घर में प्रवेश करता है; अर्थात् अनाहूत ही सर्वत्र जाने का इच्छुक होता है, जो बिना पूछे बहुत बोलता है, जो पागलों पर विश्वास करता है, वह नीच मनुष्य मूढ़ चित्त वाला होता है। तात्पर्य यह है कि बिना बुलाये किसी के घर जाने वाला, बिना कुछ पूछे बोलने वाला। और पागल पर विश्वास करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) निषेवते प्रशस्तानि •••••••••••••••• ह्येतत्पण्डितलक्षणम्॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थ-
महर्षिव्यासः महाभारते पण्डितस्य लक्षणं कथयति-यः पुरुषः प्रशंसनीयानि कार्याणि कॅरोति, निन्दितानि कर्माणि न करोति, ईश्वरे विश्वसिति वेदानां निन्दकः वा न अस्ति, यश्च श्रद्धां करोति, सः पण्डितः भवति। 

UP Board Solutions

(2) तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां ••••••••••••• पण्डित उच्यते ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः-
य: नरः सर्वेषां प्राणिनां वास्तविकं रूपं जानाति, यः सर्वेषां कर्मणां योगं (समन्वय) जानाति, यः नराणां हितानाम् उपायान् जानाति, सः नरः पण्डितः कथ्यते।।

(3) स्वमर्थम् “••••••••••••••••••••••••••• मूढः स उच्यते ॥ (श्लोक 8 )
संस्कृतार्थः–
महर्षिः वेदव्यासः कथयति यत् यः जनः स्वकीयं कार्यम् उपेक्ष्य परकार्यं कर्तुम् इच्छति, करोति च, स्वमित्रेषु मिथ्याचरणं भजते सः मूर्खः भवति।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Hindi गद्य की अन्य विधाएँ

UP Board Solutions for Class 9 Hindi गद्य की अन्य विधाएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi गद्य की अन्य विधाएँ.

प्रश्न 1.
अच्छी जीवनी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :

  • प्रामाणिकता
  • तथ्यपूर्ण साहित्यिक विवरण
  • आत्मीयता
  • प्रेरणादायक स्थलों पर बल
  • रोचकता।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
जीवनी-साहित्य को समृद्ध बनाने वाले किन्हीं दो प्रसिद्ध लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • बाबू गुलाबराय
  • रामनाथ सुमन।

प्रश्न 3.
आत्मकथा से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो आत्मकथा लेखकों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
लेखक जब स्वयं अपने जीवन की कथा को पाठकों के समक्ष पूर्ण आत्मीयता के साथ प्रस्तुत करता है तो उसे आत्मकथा कहते हैं। गुलाबराय और पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हिन्दी के प्रसिद्ध आत्मकथा लेखक हैं और उनकी आत्मकथा का नाम क्रमशः ‘मेरी असफलताएँ’ और ‘अपनी खबर है।

प्रश्न 4.
आत्मकथा की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  • मार्गदर्शक और प्रेरक
  • अन्तरंग जीवन का पूर्ण आत्मीयता के साथ रोचक शैली में प्रस्तुतीकरण।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रमुख आत्मकथा लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
डॉ० श्यामसुन्दर दास, वियोगी हरि, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, बाबू गुलाबराय, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, डॉ० हरिवंशराय बच्चन आदि श्रेष्ठ आत्मकथा लेखक हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
हिन्दी की किसी प्रेरणाप्रद आत्मकथा का नाम लिखिए।
उत्तर :
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित आत्मकथा प्रेरणाप्रद आत्मकथा है।

प्रश्न 7.
‘क्या भूलें क्या याद करूं’ और ‘अपनी खबर’ आत्मकथाओं के लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
क्या भूलें क्या याद करूँ’-डॉ० हरिवंशराय बच्चन, ‘अपनी खबर’-पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’।।

प्रश्न 8.
हिंदी के प्रमुख संस्मरण लेखकों के नाम बताइए।
उत्तर :
बनारसीदास चतुर्वेदी, पद्मसिंह शर्मा, श्रीनारायण चतुर्वेदी आदि हिन्दी के प्रमुख संस्मरण लेखक हैं।

प्रश्न 9.
रेखाचित्र की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  • रेखाचित्र में शब्दों की कलात्मक रेखाओं द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना को आन्तरिक एवं बाह्य चित्र प्रस्तुत किया जाता है।
  • रेखाचित्र में चित्रकला तथा साहित्य का सामंजस्य होता है।

प्रश्न 10.
प्रमुख रेखाचित्र लेखकों के नाम लिखिए। (V. Imp.)
उत्तर :
श्रीमती महादेवी वर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी, डॉ० नागेन्द्र, विष्णु प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि प्रमुख रेखाचित्र-लेखक हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 11.
रेखाचित्र और संस्मरण विधाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रेखाचित्र में स्मृति-चित्र अधूरा भी हो सकता है, पर संस्मरण में वह पूर्ण होता है। रेखाचित्र में कल्पना का महत्त्व होता है, जबकि संस्मरण में यथार्थ का।

प्रश्न 12.
रेखाचित्र तथा संस्मरण के लिए प्रसिद्ध एक-एक रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर :
रेखाचित्र–श्रीमती महादेवी वर्मा, संस्मरण-कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’।

प्रश्न 13.
यात्रा-साहित्य का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
यात्रा-साहित्य का मुख्य उद्देश्य किसी यात्रा के अनुभव को सरल और रोचक ढंग से र्जीवन्त रूप में प्रस्तुत करना है।

प्रश्न 14.
यात्रा-साहित्य और रिपोर्ताज के एक-एक लेखक का नामोल्लेख कीजिए।
अथवा यात्रा-साहित्य के लेखकों में से किन्हीं दो के नाम लिखिए।
अथवा हिन्दी में यात्रा-साहित्य के किसी एक लेखक का नाम बताइए।
उत्तर :

  • यात्रा-साहित्य के लेखक – राहुल सांकृत्यायन तथा देवेन्द्र सत्यार्थी।
  • रिपोर्ताज के लेखक – विष्णु प्रभाकर तथा डॉ० प्रभाकर माचवे।

प्रश्न 15.
रिपोर्ताज की विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए और दो रिपोर्ताज-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
विशेषताएँ-

  • रिपोर्ताज आँखों-देखा वर्णन जैसा प्रतीत होता है।
  • इसमें समसामयिक घटनाओं को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  • इसमें निजी सूक्ष्म निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण होता है।
  • इसकी शैली विवरणात्मक तथा वर्णनात्मक होती है।
  • यह पत्रकारिता के गुणों से सम्पन्न होता है।

रिपोर्ताज-लेखक-

  • विष्णु प्रभाकर
  • डॉ० प्रभाकर माचवे।

UP Board Solutions

प्रश्न 16.
हिन्दी के शिकार साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर :
श्रीराम शर्मा।

प्रश्न 17.
शिकार साहित्य से सम्बद्ध एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर :
‘शिकारं’।’

प्रश्न 18.
गद्य काव्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए। अथवा गद्य कार्य की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  • गद्य काव्य, गद्य तथा काव्य के बीच की विधा है।
  • इसमें गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi गद्य की अन्य विधाएँ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi गद्य की अन्य विधाएँ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Hindi पत्र-पत्रिकाएँ

UP Board Solutions for Class 9 Hindi पत्र-पत्रिकाएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi पत्र-पत्रिकाएँ.

प्रश्न 1.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ और ‘कविवचन सुधा’ हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
भारतेन्दु युग की प्रमुख पत्रिकाओं के नाम लिखिए। अथवा प्रतापनारायण मिश्र ने किस प्रसिद्ध मासिक पत्र का सम्पादन किया?
उत्तर :

  • ब्राह्मण मासिक पत्र-प्रतापनारायण मिश्र द्वारा सम्पादित।
  • हिन्दी प्रदीप-बालकृष्ण भट्ट द्वारा सम्पादित
  • आनन्द कादम्बिनी-बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ द्वारा सम्पादित

प्रश्न 3.
द्विवेदी युग की प्रमुख पत्रिकाओं के नाम बताइए।
अथवा हिन्दी की उन पत्रिकाओं के नाम लिखिए, जिनसे हिन्दी-साहित्य के विकास में बहुत बड़ी सहायता मिली।
अथवा द्विवेदी युग की किन्हीं दो पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • सरस्वती
  • नागरी प्रचारिणी पत्रिका
  • इन्दु
  • माधुरी
  • मर्यादा
  • सुधा
  • जागरण
  • हंस
  • प्रभा
  • कर्मवीर
  • विशाल भारत

प्रश्न 4.
‘काशी’ नागरी प्रचारिणी पत्रिका के सम्पादक का नाम लिखिए।
उत्तर :
बाबू श्यामसुन्दर दास।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक का नाम बताइए।
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द ‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक थे।

प्रश्न 6.
रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा सम्पादित दो पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • तरुण भारत
  • कर्मवीर।

प्रश्न 7.
‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रथम सम्पादक का नाम लिखिए।
अथवा द्विवेदी युग की प्रमुख पत्रिका और उसके सम्पादक का नाम लिखिए।
अथवा हिन्दी की किसी साहित्यिक पत्रिका का नाम तथा उसके सम्पादक का नाम लिखिए।
उत्तर :
‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रथम सम्पादक बाबू श्यामसुन्दर दास थे (‘सरस्वती’ की स्थापना 1900 ई० में हुई थी, तब उसके सम्पादक बाबू श्यामसुन्दर दास थे। 1903 से 1920 ई० तक इसका सम्पादन आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने किया)

प्रश्न 8.
‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रमुख सम्पादक का नाम बताइए।
उत्तर :
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

UP Board Solutions

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi पत्र-पत्रिकाएँ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi पत्र-पत्रिकाएँ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.