UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 2 आकाशदीप

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name आकाशदीप (जयशंकर प्रसाद)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 2 आकाशदीप (जयशंकर प्रसाद)

प्रश्न 1:
प्रसाद जी द्वारा रचित ‘आकाशदीप’ कहानी का सारांश या कथानक या कथावस्तु अपनी भाषा में लिखिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी की कथावस्तु लिखकर यह स्पष्ट कीजिए कि यह कहानी आपको क्यों अच्छी लगती है ?
या
‘आकाशदीप’ कहानी क़ी विषय-वस्तु संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
समुद्र में अपने गन्तव्य पर जा रहे पोत पर दो बन्दी, दस नाविक और कुछ प्रहरी हैं। आँधी-तूफान आने की सम्भावना है। एक बन्दी, दूसरे से पूछता है कि मुक्त होना चाहते हो। दूसरा पूछता है कि शस्त्र मिल जाएगा। एक बन्दी अपने को स्वतन्त्र कर दूसरे के बन्धन खोलता है और हर्ष से दूसरे को गले लगा लेता है। पता चलता है कि वह स्त्री है। वह आश्चर्य करता है। पूछने पर वह अपना नाम चम्पा बताती है और एक नाविक के शरीर से टकराकर वह उसका कृपाण निकाल लेती है। उसी समय भयंकर आँधी आती है। एक बन्दी पोत से जुड़ी नाव को अलग करता है। दोनों बन्दी, पोतं के कुछ नाविक और उनका नायक नाव पर आ जाते हैं और पोत अपने । अध्यक्ष मणिभद्र के साथ ही समुद्र में डूब जाता है।

प्रात: होने पर नायक देखता है कि बन्दी मुक्त हो चुके हैं। बन्दी का नाम बुद्धगुप्त है, जो कि एक जलदस्यु है। नायक बुद्धगुप्त को बन्दी बनाना चाहती है। दोनों में वर्चस्व के लिए युद्ध होता है, जिसमें बुद्धगुप्त विजयी होता है। नायक स्वयं को बुद्धगुप्त का अनुचर स्वीकार करता है। चम्पो बुद्धगुप्त को स्नेहिल दृष्टि से देखती है।

चलती हुई नौका बाली द्वीप से दूर एक नवीन द्वीप पर पहुँचती है। बुद्धगुप्त उस द्वीप का नाम चम्पा द्वीप रखता है। द्वीप के मार्ग में ही दोनों; चम्पा और बुद्धगुप्त; एक-दूसरे को अपना परिचय देते हैं। बुद्धगुप्त के मन में चम्पा के प्रति कोमलता उत्पन्न होती है। वह स्वयं में भी परिवर्तन अनुभव करता है।

धीरे-धीरे दोनों के पाँच वर्ष उसी द्वीप पर व्यतीत हो जाते हैं। बुद्धगुप्त का समीप के बाली, सुमात्रा, जावा द्वीपों पर वाणिज्य का अधिकार हो जाता है। चम्पा उसे महानाविक कहती है। एक शाम चम्पा द्वीप के किसी उच्च स्थान पर बैठकर आकाशदीप जला रही होती है कि बुद्धगुप्त आता है और आकाशदीप के लिए उसकी किंचित् हँसी उड़ा देता है। इस पर चम्पा नाराज होती है और उसे अपनी माता द्वारा पिता के लिए जलाये जाने वाले आकाशदीप का इतिहास बताती है तथा दस्युवृत्ति छोड़ देने के बाद भी ईश्वर की हँसी उड़ाने के लिए व्यंग्य-बाणों से प्रताड़ित करती है।

एक दिन चम्पा और जया (चम्पा की एक सेविका) एक छोटी नौका में समुद्र में चल देती हैं। सूर्यास्त हो जाता है। पास ही एक बड़ी नौका पर स्थित बुद्धगुप्त चम्पा को उस पर चढ़ा लेता है और उसके पास बैठ छलछला आयी। आँखों से प्रेमपूर्ण निवेदन करता है। चम्पा रो पड़ती है और स्वीकार करती है कि वह भी उससे प्यार करती है। बुद्धगुप्त इस प्रेमपूर्ण क्षण की स्मृतिस्वरूप समुद्र में एक प्रकाश-गृह का निर्माण कराने के लिए कहता है।

चम्पा द्वीप के दूसरे भाग में एक पर्वत-श्रृंखला थी। सम्पूर्ण द्वीप को किसी देवी की भाँति सजाया गया था। पर्वत के ऊँचे शिखर पर एक दीप-स्तम्भ बनवाया गया था। उसी के समारोह में चम्पा वहीं समारोह-स्थल पर पालकी से जा रही थी। बुद्धगुप्त से अत्यधिक प्रेम करते हुए भी वह मानती थी कि वह ही उसके पिता का हत्यारा है। बुद्धगुप्त उसके सम्मुख स्वीकार करता है कि वह उसके पिता का हत्यारा नहीं, और उससे विवाह के लिए निवेदन करता है। वह कहता है कि इस द्वीप पर इन्द्र और शची की तरह पूजित वे दोनों आज भी अविवाहित हैं। वह उसे उस द्वीप को छोड़कर स्वदेश भारत चलने के लिए कहता है।

चम्पा उसे मना कर देती है और कहती है कि वह वहीं रहेगी। बुद्धगुप्त कहता है कि वह यहाँ रहकर अपने हृदय पर अधिकार नहीं रख सकता। उसकी साँसों में विकलती थी। चम्पा उससे इसी द्वीप में रहकर आकाशदीप की तरह स्वयं जलने के लिए कहती है।

एक दिन प्रात: बुद्धगुप्त अपनी नौकाओं को लेकर द्वीप छोड़कर चला जाता है। चम्पा की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। चम्पा उसी द्वीप-स्तम्भ में जीवनपर्यन्त दीपक जलाती रही। द्वीप के निवासी उसकी देवी सदृश पूजा करते थे।

प्रश्न 2:
कहानी-कला के तत्त्वों की दृष्टि से प्रसाद की ‘आकाशदीप’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘आकाशदीप कहानी का मूल्यांकन कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
या
भाषा और कथोपकथन की दृष्टि से ‘आकाशदीप’ कहानी का मूल्यांकन कीजिए।
या
श्रेष्ठ कहानी की विशेषताएँ बताते हुए ‘आकाशदीप’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
जयशंकर प्रसाद की संकलित कहानी की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
या
कहानी के प्रमुख तत्त्वों के आधार पर ‘आकाशदीप’ कहानी की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
भाषा और शैली की दृष्टि से ‘आकाशदीप’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी की संवाद-योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आकाशदीप’ कहानी ऐतिहासिक धरातल पर आधारित है। प्रसाद जी का कहानी-साहित्य भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से अद्वितीय है। इस कहानी की तात्त्विक समीक्षा निम्नवत् है

(1) शीर्षक – ‘आकाशदीप’ कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सरल और कौतूहलवर्द्धक है। ‘आकाशदीप’ शब्द में ही कहानी का कथानक समाया हुआ है। यह वस्तु-व्यंजक होने के साथ-साथ सांकेतिक भी है। इसका सीधा सम्बन्ध कहानी की मूल चेतना से है और इसमें कहानी का केन्द्रबिन्दु स्वयं सिमट आया है। कहानी की सभी मूल घटनाओं का केन्द्र चम्पा द्वारा प्रज्वलित ‘आकाशदीप’ ही हैं। कथा के अनेक वैशिष्ट्यों को अपने में समाविष्ट करने के कारण शीर्षक उपयुक्त एवं समीचीन है।

(2) कथानक – जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आकाशदीप’ शीर्षक कहानी का कथानक चम्पा और बुद्धगुप्त के जीवन और कार्य के इतिवृत्त पर आधारित है। चम्पा मणिभद्र के दिवंगत प्रहरी की क्षत्रिय कन्या है और बुद्धगुप्त ताम्रलिप्ति का क्षत्रिय कुमार। दोनों ही जलपोत पर बन्दी के रूप में रहते हैं। कहानीकार ने इस कहानी के कथानक को क्रमबद्धता देने के लिए एक, दो, तीन, चार जैसे उपविभागों में विभाजित किया है।

कहानी को आरम्भ चम्पा और बुद्धगुप्त; दोनों बन्दियों; के मुक्ति-सम्बन्धी संवादों से होता है। दूसरे उपविभाग में युद्ध में विजयी होकर बुद्धगुप्त चम्पा पर अपनी वीरता का प्रभाव छोड़ता है। तीसरे उपविभाग में चम्पा बुद्धगुप्त को अपनी व्यथा-कथा सुनाती है, जिससे यह पता चलता है कि वह वासना-लिप्त वणिक मणिभद्र के यहाँ बन्दी जीवन व्यतीत कर रही थी। इसी कथा-व्यापार में बुद्धगुप्त नये द्वीप पर पहुँचता है और उसका नाम चम्पा द्वीप रखता है। चम्पा के सान्निध्य में आने से जलदस्यु बुद्धगुप्त के हृदय में प्रेम और संवेदना का आविर्भाव होता है। धीरे-धीरे पाँच वर्ष बीत जाते हैं। चम्पा आकाशदीप जलाकर द्वीपवासी जनता का मार्ग आलोकित करती है। वह अपनी माँ द्वारा जलाये गये आकाश-दीपक की परम्परा का निर्वाह करती है। चम्पा और बुद्धगुप्त के परस्पर सान्निध्य से प्रेम के आविर्भाव के साथ-साथ बुद्धगुप्त की दस्युगंत नास्तिकता समाप्त होकर मानवता और मृदुलती के रूप में परिवर्तित होती है। उसका हृदय और मस्तिष्क दोनों ही परिवर्तित होकर संवेदनशील बन जाते हैं। बुद्धगुप्त के यह कहने पर कि वह उसके पिता का हत्यारा नहीं, चम्पा प्रेम और प्रतिशोध के अन्तर्द्वन्द्व से जन्मे संशय में बँध जाती है। अनास्तिक और अनास्थावादी बुद्धगुप्त द्रवित होकर चम्पा के साथ जीवनयापन के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होता है परन्तु प्रेम, आशा और उत्साह का संचार होते हुए भी चम्पा उसे द्वीप के मूल निवासियों को छोड़कर महानाविक के साथ भारत नहीं लौटती है। चम्पा आजीवन उस दीपस्तम्भ में आलोक जलाती रही और एक दिन काल कवलित हो गयी। इस कहानी का कथानक प्रतीकात्मक होते हुए भी सेवा, त्याग और प्रेम की भावना से कथानक को गतिशील बनाता है।

(3) पात्र और चरित्र-चित्रण – प्रसाद जी की पात्र-योजना बड़ी उदात्त होती है। उनके अधिकांश पात्रों को चयन भारत के उस प्राचीन गौरवमय अतीत से है, जिस पर वे आधुनिक समाज की नींव रखना चाहते हैं। प्रस्तुत कहानी में चम्पा और बुद्धगुप्त दो ही मुख्य पात्र हैं। अन्य सभी पात्र मात्र कथा-प्रसंग की समुचित पूर्ति के लिए ही सम्मिलित किये गये हैं। चम्पा के माध्यम से कहानीकार ने अन्तर्द्वन्द्व, कर्तव्यनिष्ठा एवं उत्सर्ग की उदात्त भावनाओं को चित्रित किया है। चम्पा के चरित्र का ताना-बाना मानवीयता के चतुर्दिक उच्च आदर्श के धागों से बुना हुआ है। उसके आन्तरिक द्वन्द्व का सजीव चित्रण कर कहानीकार ने कर्तव्यनिष्ठा एवं उत्सर्ग की उदात्त भावनाओं को उजागर किया है। बुद्धगुप्त भी वीर, साहसी, सौन्दर्य का उपासक, कर्मठ, संयमी एवं आदर्श प्रेमी है। प्रसाद जी की इस कहानी के पात्र भी स्वाभाविक, सजीव तथा मनोवैज्ञानिक आधार पर पूर्ण रूप से खरे उतरते हैं। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह कहानी एक सफल कहानी है।

(4) कथोपकथन या संवाद – इस कहानी का कथोपकथन संक्षिप्त, नाटकीय एवं अर्थ-गाम्भीर्य से परिपूर्ण होने के कारण सजीव, मार्मिक एवं प्रभावशाली है। कहानी के पात्र स्वयं के संवादों द्वारा अपना परिचय प्रस्तुत करते हैं। प्रसाद जी श्रेष्ठ नाटककार हैं, इसी कारण प्रस्तुत कहानी की संवाद-योजना नाटकीय है। इस कहानी के संवाद संक्षिप्त, सारगर्भित, कथानक को गति देने वाले, वातावरण की सृष्टि में सहायक तथा पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकट करने वाले हैं। इस कहानी के संवाद सार्थक, मार्मिक और प्रभावशाली हैं। एक उदाहरण द्रष्टव्य है
‘बन्दी ।’
‘क्या है? सोने दो।’
‘मुक्त होना चाहते हो।’
अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।
‘फिर अवसर न मिलेगा।’
‘बड़ी शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।’
‘आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है, आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।’
‘तो क्या तुम भी बन्दी हो?’

(5) भाषा-शैली – प्रसाद जी की भाषा कलात्मक, संस्कृतनिष्ठ और परिष्कृत है। प्रस्तुत कहानी की भाषा संस्कृत प्रधान है और उसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है। प्रसाद जी की शब्दावली समृद्ध और व्यापक तथा शैली अलंकृत है। कहानी की भाषा-शैली कथाक्स्तु की गरिमा और पात्रों की भाव-व्यंजना के अनुकूल है।

भाषा सरस और मार्मिक है। मोहक अलंकार-विधान और तत्समप्रधान ओजमयी भाषा के कारण ‘आकाशदीप को प्रसाद जी की प्रतिनिधि कहानी कहा जा सकता है। इस कहानी में नाटकीय शैली तो प्रधान है ही, चित्रात्मक, वर्णनात्मक और भावात्मक शैलियों का भी यथास्थान प्रयोग हुआ है। उदाहरण द्रष्टव्य है

चम्पा और बुद्धगुप्त के परस्पर सान्निध्य से सौन्दर्यजन्य प्रेम के आविर्भाव के साथ-साथ बुद्धगुप्त की दस्युगत नास्तिकता समाप्त होकर मानवता और मृदुलता के रूप में परिवर्तित होती है।
शरद के धवल नक्षत्र नील गगन में झिलमिला रहे थे। चन्द्रकी उज्ज्वल विजय पर अन्तरिक्ष में शरदलक्ष्मी ने आशीर्वाद के फूलों और खीलों को बिखेर दिया।

(6) देश-काल व वातावरण – प्रसाद जी ने अपनी कहानियों में देश-काल और वातावरण का यथोचित निर्वाह किया है। ‘आकाशदीप’ कहानी में वातावरण ऐतिहासिक तथा पात्र काल्पनिक हैं। द्वीप के आंचलिक वातावरण का सुन्दर चित्रण है। भाषा तथा घटनाएँ देश-काल के सर्वथा अनुरूप हैं। वातावरण को सजीव करने के लिए चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। दृश्य-वर्णन के साकार रूप का यह उदाहरण द्रष्टव्य है

समुद्र में हिलोरें उठने लगीं। दोनों बन्दी आपस में टकराने लगे। पहले बन्दी ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया। दूसरे का बन्धन खोलने का प्रयत्न करने लगा। लहरों के धक्के एक-दूसरे को स्पर्श से पुलकित कर रहे थे। मुक्ति की आशा-स्नेह का असम्भावित आलिंगन। दोनों ही अन्धकार में मुक्त हो गये।

वातावरण के निर्माण में प्रसाद जी कवित्वमयी, अलंकृत और साहित्यिक शैली से काम लेते हैं तथा प्रकृति के दृश्यों का वर्णन बड़ी कुशलता से करते हैं। अपनी बहुमुखी कल्पना के द्वारा प्रसाद जी सूक्ष्म-से- सूक्ष्म रेखाओं को पाठकों के सामने उपस्थित कर देते हैं। इस प्रकार यह कहानी देश-काल और वातावरण की दृष्टि से एक सफल कहानी है।

(7) उद्देश्य – प्रसाद जी का साहित्य आदर्शवादी है। प्रस्तुत कहानी में भावना की अपेक्षा कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत किया गया है। चम्पा एक आदर्श प्रेमिका है और इन सबसे ऊपर है उसका उत्सर्ग भाव। वह अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपने व्यक्तिगत प्रेम और जीवन को समर्पित कर देती है। उसका चरित्र एक आदर्श उदात्त नारी का चरित्र है। कहानीकार का उद्देश्य उसके चरित्र के माध्यम से समाज में प्रेम का आदर्श स्वरूप उपस्थित करना है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है।

इस प्रकार ‘आकाशदीप’ कहानी की कथावस्तु जीवन्त तथा मार्मिक है। चम्पा प्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति के प्रति सजग है। वह अपने प्रेम का बलिदान करती है तथा प्रेम के गौरव की रक्षा के लिए स्वयं का आत्मोत्सर्ग भी करती है। निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कहानी; कहानी-कला की कसौटी पर खरी उतरती है।

प्रश्न 3:
जयशंकर प्रसाद की ‘आकाशदीप’ कहानी के आधार पर चम्पा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
“प्रसाद जी की ‘आकाशदीप’ कहानी में कर्तव्य एवं प्रेम के द्वन्द्वपूर्ण केन्द्रबिन्दु को विकसित कर चम्पा का चरित्र-चित्रण किया गया है।” इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी की प्रमुख नारी पात्रा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी कथा-साहित्य की कुछ अमर कृतियों में से जयशंकर प्रसाद की आकाशदीप कहानी भी एक है। इस कहानी की नायिका चम्पा ही कहानी की मुख्य नारी पात्रा है। वह अपने वीर और बलिदानी पिता की एकमात्र सन्तान है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) सुन्दर बालिका – चम्पा अति सुन्दर बालिका है। वह सौन्दर्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति है। यह उसके अतीव सौन्दर्य का ही प्रभाव था कि बुद्धगुप्त जिसके नाम से बाली, जावा और चम्पा का आकाश पूँजता था, पवन थर्राता था, घुटनों के बल चम्पा के सामने; प्रणय-निवेदन करता, छलछलाई आँखों से बैठा था।

(2) निडर, स्वाभिमानी और साहसी – चम्पा निडर, स्वाभिमानी और साहसी है। उसकी निडरता का पता तब चलता है जब मणिभद्र उसके समक्ष घृणित प्रस्ताव रखता है और वह उसके आश्रय में रहते हुए भी उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। उसके स्वाभिमानी होने को प्रमाण उसके बन्दी बनाये जाने पर मिलता है। उसे बन्दी होना स्वीकार है, लेकिन घृणित प्रस्ताव स्वीकार नहीं। उसके साहस का परिचय अनजाने द्वीप पर सबसे पहले उतरने पर मिलता है।

(3) आदर्श प्रेमिका – चम्पा के हृदय में प्रेम का अथाह सागर हिलोरें लेता है, परन्तु वह इसे प्रेम-सागर की लहरों को नियन्त्रण में रखना जानती है। बुद्धगुप्त जब भी उसके पास आता है, वह उस पर न्योछावर हो जाती है। उसके प्रेम का वर्णन स्वयं कहानीकार ने इन शब्दों में किया है-”उस सौरभ से पागल चम्पा ने बुद्धगुप्त के दोनों हाथ पकड़ लिये। वहाँ एक आलिंगन हुआ, जैसे क्षितिज में आकाश और सिन्धु का।”

(4) आदर्श सन्तान – चम्पा अपने माता-पिता की आदर्श सन्तान है। उसे अपनी माता के द्वारा पिता के पथ-प्रदर्शन के प्रतीक रूप में आकाशदीप जलाना सदैव याद रहता है। उसके पिता की मृत्यु का कारण एक जलदस्यु था, यह वह कभी नहीं भूल पाती। वह बुद्धगुप्त से कहती है कि ये आकाशदीप मेरी माँ की पुण्य स्मृति हैं। वह बुद्धगुप्त को जलदस्यु से सम्बोधित कर अपने सामने से हट जाने के लिए भी कहती है।।

(5) अन्तर्द्वन्द्व – चम्पा का पूरा चरित्र अन्तर्द्वन्द्व की भावना से भरा हुआ है। द्वीपवासियों के प्रति उसका प्रेम और व्यक्तिगत प्रेम का सहज अन्तर्द्वन्द्व उसको घेरे रहता है। एक ओर वह कर्त्तव्य-निर्वाह के लिए अपने प्रेम को न्योछावर कर देती है तो दूसरी ओर व्यक्तिगत प्रेम के गौरव की रक्षा के लिए आत्मोत्सर्ग भी कर देती है। उसको अन्तर्द्वन्द्व इन शब्दों में व्यक्त हुआ है-

”बुद्धगुप्त! मेरे लिए सब भूमि मिट्टी है; सब जल तरल है; सब पवन शीतल है। कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं। सब मिलाकर मेरे लिए एक शून्य है। ……. और मुझे, छोड़ दो इन निरीह भोले-भाले प्राणियों के दुःख की सहानुभूति और सेवा के लिए।

इस प्रकार चम्पा के चरित्र का गौरवपूर्ण और सजीव चित्रण करते हुए प्रसाद जी ने उसको द्वीपवासियों के प्रेम और व्यक्तिगत प्रेम के अन्तर्द्वन्द्व में घिरा दिखाया है तथा व्यक्तिगत प्रेम के उत्सर्ग को चित्रित कर चम्पा के चरित्र को गरिमामय अभिव्यक्ति प्रदान की है।

(6) धैर्यशालिनी – चम्पा के जीवन में अनेक बाह्य तथा आन्तरिक संघर्ष आते हैं, परन्तु वह विचलित नहीं होती और धैर्यपूर्वक उनका सामना करती है। वह अनाथ है। माता की मृत्यु के बाद पिता के साथ जल- पोत पर रहती है। पिता की मृत्यु के बाद बन्दिनी हो जाती है। इसके बाद भी वह मुक्ति के लिए संघर्ष करती है। वह अपना धैर्य कभी नहीं छोड़ती।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि चम्पा का चरित्र ‘आकाशदीप’ कहानी का प्राण है। वह एक आदर्श नायिका है, एक आदर्श प्रेमिका है और साथ ही प्रसाद जी के अन्य नारी पात्रों के समान वन्दनीय है। स्वयं प्रसाद जी लिखते हैं, “चम्पा आजीवन उस दीप-स्तम्भ में आलोक जलाती रही। किन्तु उसके बाद भी बहुत दिन तक, द्वीप निवासी, उस माया-ममता और स्नेह-सेवा की देवी की समाधि सदृश पूजा करते थो।

प्रश्न 4:
‘आकाशदीप’ कहानी के आधार पर बुद्धगुप्त का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्रांकन कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ कहानी के आधार पर उसके नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
‘आकाशदीप’ के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कहानी ‘आकाशदीप’ की मुख्य पात्री चम्पा ही है। कहानी के अन्य पात्रों का चित्रण चम्पा के चरित्र की विशेषताओं को ही स्पष्ट करने के लिए हुआ है। ऐसे ही एक पात्र के रूप में बुद्धगुप्त भी है। इस कहानी में बुद्धगुप्त के चरित्र की विशेषताएँ निम्नवत् दर्शायी गयी हैं.

(1) साहसी – बुद्धगुप्त ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय कुमार है। साहस उसमें कूट-कूटकर भरा हुआ है। नौका के स्वामित्व को लेकर नायक और बुद्धगुप्त में द्वन्द्वयुद्ध होता है। उस समय बुद्धगुप्त अपने साहस का परिचय देता है और द्वन्द्वयुद्ध में उसे हरा देता है।

(2) मानवतावादी – बुद्धगुप्त मानवतावादी है। उसमें मानवीयता के गुण विद्यमान हैं। इसी कारण चम्पा के प्रति उसके मन में दया की भावना उत्पन्न हो जाती है, जो बाद में प्रेम में परिवर्तित हो जाती है। चम्पा के सान्निध्य से उसकी दस्युगत मानसिकता और कठोरता समाप्त होकर मानवता और मृदुलता में परिवर्तित हो जाती है।

(3) संवेदनशील और प्रेमी व्यक्ति – बुद्धगुप्त एक संवेदनशील व्यक्ति है। जब चम्पा कहती है कि उसके पिता की मृत्यु एक जलदस्यु के हाथों हुई थी तब वह स्पष्ट रूप से कहता है कि, “मैं तुम्हारे पिता का घातक नहीं हूँ, चम्पा! वह एक दूसरे दस्यु के शस्त्र से मरे।” चम्पा के प्रति उसका प्रेम संवेदनशीलता की चरम सीमा पर पहुंचा हुआ है। वह चम्पा से कहता है, “इतना महत्त्व प्राप्त करने पर भी मैं कंगाल हूँ। मेरा पत्थर-सा हृदय एक दिन सहसा तुम्हारे स्पर्श से चन्द्रकान्तमणि की तरह द्रवित हुआ।”

(4) वीर – बुद्धगुप्त एक वीर युवक है। बन्धन मुक्त होने पर जब उससे पूछा जाता है कि तुम्हें किसने बन्धनमुक्त किया तो वह कृपाण दिखाकर नायक को बताता है इसने। नायक और बुद्धगुप्त के द्वन्द्वयुद्ध में विजयश्री बुद्धगुप्त को मिलती है। चम्पा भी उसकी वीरता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। स्वयं प्रसाद जी कहते हैं, “चम्पा ने युवक जलदस्यु के समीप आकर उसके क्षतों को अपनी स्निग्ध दृष्टि और कोमल करों से वेदना-विहीन कर दिया।”

(5) भारत के प्रति प्रेम – बुद्धगुप्त भारतभूमि के ही एक स्थल ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय कुमार है। भारतभूमि । के प्रति उसके मन में अगाध स्नेह है। वह चम्पा से कहता है, “स्मरण होता है वह दार्शनिकों का देश! वह महिमा की प्रतिमा! मुझे वह स्मृति नित्य आकर्षित करती है।” चम्पा के अस्वीकार कर देने पर वह स्वयं भारत लौट आता है।

निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि इस कहानी का नायक होते हुए भी बुद्धगुप्त चम्पा के चरित्र की विशेषता को उजागर करने वाला मात्र एक सहायक पात्र है, तथापि उसके चरित्र की उपर्युक्त विशेषताएँ उसकी एक अलग छवि प्रस्तुत करती हैं।

प्रश्न 5:
‘आकाशदीप’ कहानी में सजीव ऐतिहासिक वातावरण की सृष्टि किस प्रकार की गयी है? भाषा और शैली के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
प्रसाद जी ने ‘आकाशदीप’ कहानी के वातावरण निर्माण में इतिहास और कल्पना का सहारा लेकर रचना को सजीव बना दिया है। इसको जीवन्त स्वरूप देने में उनकी कवित्वपूर्ण भाषा और नाटकीय शैली का अपूर्व सहयोग रहा है। इससे ऐतिहासिक वातावरण साकार हो उठा है। उन्होंने तत्कालीन वातावरण के अनुकूल ही संस्कृतबहुल शब्दावली का प्रयोग किया है। काव्यात्मक भाषा का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
“जाह्नवी के तट पर।चम्पानगरी की एक क्षत्रिय बालिका हूँ।पिता इसी मणिभद्र के यहाँ प्रहरी का काम करते थे।” ……….
“मैं भी ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय हूँ, चम्पा! परन्तु दुर्भाग्य से जलदस्यु बनकर जीवन बिताता हूँ।”
प्रस्तुत कहानी में प्रसाद जी की नाटकीय शैली ने वातावरण को स्वाभाविक और सरस बना दिया है; जैसे
‘बावली हो क्या? यहाँ बैठी हुई अभी तक दीप जला रही हो, तुम्हें यह काम करना है?’
‘क्षीरनिधिशायी अनंत की प्रसन्नता के लिए क्या दासियों से आकाशदीप जलवाऊँ?’
‘हँसी आती है। तुम किसको दीप जलाकर पथ दिखलाना चाहती हो? उसको, जिसको तुमने भगवान् मान लिया है?’
‘हाँ, वह कभी भटकते हैं, भूलते हैं; नहीं तो, बुद्धगुप्त को इतनी ऐश्वर्य क्यों देते?’
‘तो बुरा क्या हुआ, इस द्वीप की अधीश्वरी चम्पारानी!’
‘मुझे इस बन्दीगृह से मुक्त करो। अब तो बाली, जावा और सुमात्रा का वाणिज्य केवल तुम्हारे ही अधिकार में है महानाविक! परन्तु मुझे उन दिनों की स्मृति सुहावनी लगती है, जब तुम्हारे पास एक ही नाव थी और चम्पा के उपकूल में पण्य लादकर हम लोग सुखी जीवन बिताते थे।’

इस प्रकार प्रसाद जी ने कहानी में देश-काल के अनुकूल भाषा-शैली का प्रयोग करके ऐतिहासिक वातावरण को सहज ही साकार कर दिया है।

प्रश्न 6:
‘आकाशदीप’ कहानी के माध्यम से प्रसाद जी ने कौन-सा आदर्श रखना चाहा है?
उत्तर:
प्रसाद जी ने ‘आकाशदीप’ कहानी के माध्यम से प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा के समन्वय के आदर्श की स्थापना की है। उनके अनुसार देशप्रेम व्यक्तिगत प्रेम से अधिक महान् है। स्वदेश के लिए हमें अपने व्यक्तिगत प्रेम को न्योछावर कर देने में संकोच नहीं करनी चाहिए। चम्पा; चम्पा द्वीप जिसने उसको नया जीवन प्रदान किया था; के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपने व्यक्तिगत प्रेम की बलि चढ़ा देती है। साथ ही वह आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत होकर प्रेम के गौरव को भी बनाये रखती है। दूसरी ओर बुद्धगुप्त भी भारतभूमि के प्रति प्रेम के लिए अपने व्यक्तिगत प्रेम चम्पा को छोड़कर वापस आ जाता है। इस प्रकार चम्पा और बुद्धगुप्त दोनों ही देश और प्रियतम दोनों के प्रति अप्रतिम रीति से अपने कर्तव्य का पालन करते हैं।

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