UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’

कवि का साहित्यिक परियाय और कृतियाँ

प्रश्न 1.
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ के जीवन एवं कृतियों (साहित्यिक योगदान) पर प्रकाश डालिए।
या
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जीवन-परिचय–सुकवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ आधुनिक ब्रजभाषा के अन्तिम प्रतिनिधि कवि थे। सुन्दर, सरस और प्रवाहयुक्त रचनाएँ प्रस्तुत करके रत्नाकर जी ने ब्रजभाषा की धूमिल ज्योति को देदीप्यमान कर दिया। रत्नाकर जी का जन्म भाद्रपद सुदी 5, संवत् 1923 वि० (सन् 1866 ई०) को काशी के एक प्रसिद्ध अग्रवाल कुल में हुआ। इनके पिता का नाम श्री पुरुषोत्तमदास था, जो अरबी-फारसी के अच्छे विद्वान् और हिन्दी-काव्य के प्रेमी थे। अपने पिता के माध्यम से रत्नाकर जी, भारतेन्दु जी के सम्पर्क में आये। रत्नाकर जी को बाल्यावस्था से ही कविता से प्रेम था। इनकी एक रचना से प्रसन्न होकर भारतेन्दु जी ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का एक दिन अच्छा कवि बनेगा’, जो अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई। रत्नाकर जी की शिक्षा काशी में हुई। प्रारम्भ में उन्हें फारसी पढ़ायी गयी, बाद में उन्होंने हिन्दी का अध्ययन किया। सन् 1891 ई० में उन्होंने क्वीन्स कॉलेज से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा एम० ए० (फारसी) का अध्ययन आरम्भ किया, किन्तु किसी कारणवश परीक्षा न दे सके। तत्पश्चात् इन्होंने दो वर्ष तक अवागढ़ में ‘कोषाध्यक्ष के पद पर कार्य किया, किन्तु वहाँ की जलवायु अनुकूल न पाकर ये काशी लौट आये। फिर ये अयोध्या-नरेश के प्राइवेट सेक्रेटरी हो गये। सन् 1903 ई० में अयोध्या-नरेश की मृत्यु के पश्चात् वहाँ की महारानी ने इन्हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बना लिया और अन्त तक ये योग्यतापूर्वक इसी पद पर कार्य करते रहे। 21 जून, 1932 ई० (संवत् 1989 वि०) को हरिद्वार में इनका देहान्त हो गया। साहित्यिक सेवाएँ-राजसेवा से मुक्ति पाकर रत्नाकंर जी ने अपना सारा समय साहित्य-सेवा में लगा दिया और ब्रजभाषा में रचना करना आरम्भ किया। रत्नाकर जी की सर्वप्रथम काव्यकृति ‘हिंडोला’ 1894 ई० में तथा ‘गंगावतरण’ सन् 1923 ई० में समाप्त हुई।

इसके अतिरिक्त रत्नाकर जी ने ‘साहित्य-सुधा-निधि’ नामक मासिक पत्र का सम्पादन प्रारम्भ किया था तथा अनेक ग्रन्थों का सम्पादन भी किया। नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यों में रत्नाकर जी का पूरा सहयोग रहता। ये सन् 1926 ई० में ओरियण्टल कॉन्फ्रेन्स के हिन्दी विभाग के सभापति हुए और सन् 1930 ई० में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के बीसवें अधिवेशन (कलकत्ता अधिवेशन) के सभापति चुने गये।

रचनाएँ—

  1. मौलिक रचनाएँ–गंगावतरण, हरिश्चन्द्र, उद्धव-शतक, समालोचनादर्श, श्रृंगार लहरी, विष्णु लहरी, रत्नाष्टक, वीराष्टक।
  2. सम्पादित रचनाएँ—हम्मीर हठ, तरंगिणी, कण्ठाभरण, बिहारी सतसई आदि।
  3. टीका ग्रन्थ-‘बिहारी सतसई’ पर आपने ‘बिहारी रत्नाकर’ नाम से विस्तृत टीका लिखी, जो काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुकी है।

साहित्य में स्थान–रत्नाकर जी के काव्य में सरसा, स्वाभाविकता और कलात्मकता का पूर्ण परिपाक हुआ है। यही कारण है कि समग्र आलोचकों ने इन्हें आधुनिक ब्रजभाषा का प्रतिनिधि कवि कहा है। वस्तुतः ये इस काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोवर

उद्धव-प्रसंग

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़करे उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

प्रश्न 1.
भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की
सुधि ब्रज-गावॅनि में पावन जबै लगीं ।
कहैं ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि
दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं ।।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं ।
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा
हमकौं लिख्यौ है कहा कहने सबै लगीं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसके आने का समाचार पाकर गोपियों के झुण्ड-के-झुण्ड दौड़-दौड़कर नन्द जी के द्वार पर आने लगे?
(iv) गोपियों के पास श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर कौन आए थे?
(v) ‘दौरि-दौरि कन्द-पौरि आवन तबै लगीं।’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- उद्धव-प्रसग।
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या—सभी गोपियाँ उत्सुकता और बेचैनीपूर्वक उद्धव से पूछने लगीं कि हमारे लिए प्राणप्रिय कृष्ण ने क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है, हमारे लिए क्या लिखा है। प्रत्येक.कौ यही उत्कण्ठा थी कि उसके लिए कृष्ण ने क्या सन्देश भेजा है।
(iii) श्रीकृष्ण द्वारा भेजे हुए उद्धव के आने का समाचार पाकर गोपियों के झुण्ड-के-झुण्ड दौड़-दौड़कर नन्द जी के द्वार पर आने लगे।
(iv) गोपियों के पास श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर उद्धव आए थे।
(v) पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 2.
कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म-दूत है पधारे आप
धारे प्रन फेरन कौ मति ब्रजबारी की ।।
कहैं ‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना ।
ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की ।।।
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम
तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की ।।
जैहैं बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि कौं |
बूंदता बिलैहैं बूंद बिबस बिचारी की ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गोपियाँ सन्देह प्रकट करते हुए उद्धव से क्या कहती हैं?
(iv) गोपियों ने उद्धव को अनाड़ी क्यों बताया है? ।
(v) किसमें मिल जाने से बूंद का अस्तित्व मिट जाएगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नार्म- उद्धव-प्रसग।
लेखक का नाम–जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! आप प्रेम की रीति को जाने बिना हमें ब्रह्म का उपदेश दिये चले जा रहे हैं। हम तो एकमात्र श्रीकृष्ण के प्रेम में ही अनुरक्त हैं, वही हमारे सब-कुछ हैं। वे उद्धव जी से व्यंग्यपूर्ण भाव में पूछती हैं कि आप ब्रजबालाओं की बुद्धि को बदलने का प्रण लेकर और श्रीकृष्ण के दूत बनकर यहाँ आये हैं अथवा ब्रह्म के दूत के रूप में आये हैं ? कहने को तो आप श्रीकृष्ण के दूत बनकर आये हैं, फिर भी आप निरन्तर केवल ब्रह्म की ही चर्चा किये . जा रहे हैं।
(iii) गोपियाँ सन्देह प्रकट करते हुए उद्धव से कहती हैं कि आप श्रीकृष्ण के दूत बनकर आए हैं या ब्रह्म ने तुम्हें दूत बनाकर भेजा है।
(iv) योग-मार्ग का सन्देश, जो पुरुषों को दिया जाने वाला है उसे स्त्रियों को देने के कारण, गोपियों ने उद्धव को अनाड़ी बताया है।
(v) समुद्र में मिल जाने से बूंद के अस्तित्व मिट जाएगा।

प्रश्न 3.
छावते कुटीर कहुँ रम्य जमुना कै तीर
गौन रौन-रेती सों कदापि करते नहीं ।
कहैं ‘रतनाकर’ बिहाइ प्रेम-गाथा गूढ़
स्रौंन रसना मै रस और भरते नहीं ।।
गोपी ग्वाल बालनि के उमड़ते आँसू देखि
लेखि प्रलयागम हूँ नैंकु डरते नहीं ।
होतौ चित चाब जौ न रावरे चितावन को
तजि ब्रज-गाँव इतै पाँव धरते नहीं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) उद्धव यमुना-तट पर बसकर अपने कानों और जीहा से किसे रस का पान और बखान करना चाहते हैं?
(iv) उद्धव ने गोपी-ग्वालबालों के अश्रुप्रवाह को किससे भयंकर बताया है?
(v) निम्नलिखित के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
(अ) यमुना,
(ब) आँसू।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ में संकलित ‘उद्धव-प्रसंग’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।
अथवा
पाठ का नाम- उद्धव-प्रसग
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-हे कृष्ण! यदि गोपियों की प्रेममयी दशा से अवगत कराकर आपको उनकी उपेक्षा न करके शीघ्र दर्शन देने की चेतावनी देने का विचार मेरे हृदय में न होता तो मैं ब्रजभूमि को छोड़कर इधर पैर नहीं रखता। वहीं कहीं यमुना के सुन्दर तट पर कुटिया डालकर निवास करने लगता और उस रमणीक रेती को छोड़कर अन्यत्र कहीं न जाता।
(iii) उद्धव यमुना-तट पर बसकर अपने कानों से प्रेम रस का पान और जीह्वा से उसी रस का बखान करना चाहते हैं।
(iv) उद्धव ने गोपी-ग्वालबालों के अश्रुप्रवाह को प्रलय से भी भयंकर बताया है।
(v) (अ) यमुना – कालिंदी, रवितनया।
(ब) आँसू — अश्रु, नेत्रवारि।

गंगावतरण

प्रश्न 1.
निकसि कमंडल तें उमंडि नभ-मंडल-खंडति ।
धाई धार अपार बेग सौं बायु बिहंडति ।।
भयी घोर अति शब्द धमक सों त्रिभुवन तरजे ।
महामेघ मिलि मनहु एक संगहि सब गरजे ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पद्यांश के अनुसार, गंगा जी कहाँ से निकली हैं?
(iv) किसकी धमक से तीनों लोक भयभीत हो गए?
(v) “महामेघ मिलि मनहु एक संगहि सब गरजे।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’ रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ । में संकलित ‘गंगावतरण’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- गंगावतरण
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-ब्रह्मा के कमण्डल से निकलकर गंगा की धारा उमड़कर आकाशमण्डल को भेदती तथा वायु को चीरती हुई प्रचण्ड वेग से नीचे को दौड़ पड़ी।
(iii) पद्यांश के अनुसार, गंगाजी ब्रह्म के कमण्डल से निकली हैं।
(iv) गंगाजी की प्रचण्ड धार की धमक से तीनों लोक भयभीत हो गए।
(v) अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 2.
कृपानिधान सुजान संभु हिय की गति जानी ।
दियौ सीस पर ठाम बाम करि कै मनमानी ।।
सकुचति ऐचति अंग गंग सुख संग लजानी।।
जटाजूट हिम कुट सघन बन सिमटि समानी ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसकी कोमल भावना को शिवजी जान गए?
(iv) शिवजी ने गंगाजी को कहाँ पर स्थान दिया?
(v) गंगाजी कहाँ पर सिमट कर छिप जाती हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद श्री जगन्नाथदास’रत्नाकर’ द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक’काव्यांजलि’ में संकलित ‘गंगावतरण’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- गंगावतरण।।
लेखक का नाम-जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’।
(ii) गंगा को पत्नी के रूप में स्वीकार करने पर गंगा को नारी-सुलभ संकोच की अनुभूति होती है और वह अपने शरीर को सिकोड़कर, सुख का अनुभव करती हुई लजाती है और शिव के जटाजूटरूपी हिमालय पर्वत के घने वन में सिमटकर छिप जाती है।
(iii) गंगाजी की कोमल भावना को शिवजी जान गए।
(iv) शिवजी ने गंगाजी को अपने सिर पर स्थान दिया।
(v) गंगाजी शिवजी के जटाजूट रूपी हिमालय पर्वत के घने वन में सिमटकर छिप जाती हैं।

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