UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit (लाभ) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit (लाभ).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 12
Chapter Name Profit (लाभ)
Number of Questions Solved 32
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit (लाभ)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
लाभ क्या है ? सकल लाभ एवं निवल लाभ की व्याख्या कीजिए।
या
लाभ को परिभाषित कीजिए तथा लाभ प्राप्त करने की विशेषताएँ लिखिए। कुल लाभ के विभिन्न अंग (अवयव) क्या हैं ? बताइए।
उत्तर:
लाभ का अर्थ एवं परिभाषाएँ
उत्पादन के पाँच उपादान हैं – भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन और उद्यम। इनमें उद्यम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उद्यमी (साहसी) ही उत्पादन के उपादानों को जुटाता है, उपादानों के स्वामियों को उनके प्रतिफल का भुगतान करता है और उत्पादन सम्बन्धी सभी प्रकार की जोखिम उठाता है। उत्पादन के सभी उपादानों का भुगतान करने के बाद जो कुछ भी शेष बचती है, वही उसको प्रतिफल या लाभ (Profit) होता है। अत: राष्ट्रीय आय का वह अंश, जो उद्यमी को प्राप्त होता है, ‘लाभ’ कहलाता है।

एस० ई० थॉमस के अनुसार, “लाभ उद्यमी का पुरस्कार है।”
प्रो० हेनरी ग्रेसन के अनुसार, “लाभ को नवप्रवर्तन करने का पुरस्कार, जोखिम उठाने का पुरस्कार तथा बाजार से अपूर्ण प्रतियोगिता के कारण उत्पन्न अनिश्चितताओं का परिणाम कहा जा सकता है। इसमें से कोई भी दशा अथवा दशाएँ आर्थिक लाभ को उत्पन्न कर सकती हैं।”
प्रो० वाकर के अनुसार, “लाभ योग्यता को लगान है।” क्लार्क के अनुसार, “लाभ आर्थिक उन्नति का प्रत्यक्ष फल है।’
प्रो० मार्शल के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश का वह भाग जो उद्यमी को व्यवसाय का जोखिम उठाने के उपलक्ष्य में प्राप्त होता है, लाभ कहलाता है।”

लाभ की विशेषताएँ

  1. लाभ एक अनिश्चित अवशिष्ट है। इसे किसी अनुबन्ध के रूप में निश्चित नहीं किया जा सकता।
  2.  लाभ ऋणात्मक भी हो सकता है। ऋणात्मक लाभ का अर्थ है-उद्यमी को हानि होना।
  3. उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा लाभ की दर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है।

लाभ के प्रकार
लाभ दो प्रकार का होता है
(अ) सकल लाभ या कुल लाभ तथा
(ब) निवल लाभ या शुद्ध लाभ।

(अ) कुल लाभ (Gross Profit) – साधारण बोलचाल की भाषा में जिसे हम लाभ कहते हैं, अर्थशास्त्र में उसे कुल लाभ कहा जाता है। एक उद्यमी को अपने व्यवसाय अथवा फर्म में प्राप्त होने वाली कुल आय (Total Revenue) में से उसके कुल व्यय को घटाकर जो शेष बचता है वह कुल लाभ होता है। अत: कुल लाभ किसी उद्यमी को अपनी कुल आय में से कुल व्यय को घटाने के पश्चात् प्राप्त अतिरेक होता है। कुल लाभ उद्यमी के केवल जोखिम उठाने का प्रतिफल ही नहीं, बल्कि उसमें उसकी अन्य सेवाओं का प्रतिफल भी सम्मिलित रहता है।

कुल आय में से उत्पत्ति के साधनों को दिये जाने वाले प्रतिफल (लगाने, मजदूरी, वेतन तथा ब्याज) तथा घिसावट व्यय को निकालने के पश्चात् जो शेष बचता है, उसे ही कुल लाभ कहते हैं।
कुल लाभ ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
कुल लाभ = कुल आय – स्पष्ट लागते
(Gross Profit) = (Total Revenue) – (Explicit Costs)
सरल शब्दों में, किसी वस्तु की कुल उत्पत्ति और कुल उत्पादन व्यय में जो अन्तर होता है, वही उद्यमी का ‘कुल लाभ’ कहा जाता है।

कुल लाभ के अंग (अवयव)
कुल लाभ के निम्नलिखित अंग है।

1. उत्पादक के निजी साधनों का पुरस्कार – उद्यमी उत्पादन-कार्य में अपने निजी साधन भी लगाता है जिन्हें अस्पष्ट लागत’ कहते हैं। कुल लाभ में निजी साधनों का पुरस्कार भी सम्मिलित रहता है। अत: शुद्ध लाभ ज्ञात करते समय उत्पादक के कुल लाभ में से निम्नलिखित निजी साधनों के व्यय घटा देने चाहिए

  1. उद्यमी की निजी भूमि का लगान।
  2. साहसी की अपनी पूंजी का ब्याज।
  3. उद्यमी के व्यवस्थापक अथवा निरीक्षक के रूप में पुरस्कार।

2. संरक्षण व्यय – इसके अन्तर्गत दो प्रकार के व्यय शामिल होते हैं।

  • मूल्य ह्रास व्यय – आजकल उत्पादन-कार्य हेतु विशाल मशीनों तथा यन्त्रों का सहारा लिया जाता है। इन मशीनों का धीरे-धीरे ह्रास (टूट-फूट) होता रहता है और निश्चित समय के पश्चात् इन्हें पूर्णतः बदलना पड़ता है। इन कार्यों के लिए उद्यमी को कुछ धनराशि अलग से संचित करनी पड़ती है। इसे ‘ह्रास निधि’ अथवा ‘अनुरक्षण निधि’ कहते हैं। अत: असल लाभ ज्ञात करने के लिए कुल लाभ में से अनुरक्षण निधि में डाले जाने वाले मूल्य के ह्रास प्रभार को घटा दिया जाना चाहिए।
  • बीमा व्यय – उद्यमी चल और अचल सम्पत्ति का आग, वर्षा, भूकम्प, चोरी, दंगे-फसाद आदि के विरुद्ध बीमा कराता है, ताकि उसे इन आपदाओं से हानि न उठानी पड़े। इस कार्य हेतु उद्यमी को प्रतिवर्ष प्रीमियम देना होता है। यह बीमा व्यय भी कुल लाभ में सम्मिलित रहता है। अतः शुद्ध लाभ को ज्ञात करते समय कुल लाभ में से बीमा व्यय को घटा दिया जाना चाहिए।

3. अव्यक्तिगत लाभ – उद्यमी को ऐसे लाभ भी प्राप्त होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध उद्यमी की स्वयं की योग्यता से नहीं होता। इसके अन्तर्गत दो प्रकार के लाभ शामिल होते हैं

  •  एकाधिकारी लाभ – जब उत्पादन के क्षेत्र में एकमात्र उत्पादक होता है तो उसको वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। ऐसी दशा में वह अतिरिक्त आय अर्जित करने में सफल हो जाता है। यह अतिरिक्त आय कुल लाभ में शामिल रहती है। इसे निकालकर शुद्ध लाभ ज्ञात किया जा सकता है।
    UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit 1
  •  आकस्मिक लाभ – प्राकृतिक संकट, युद्ध तथा फैशन एवं माँग की दशाओं में अचानक परिवर्तन हो जाने से कभी-कभी उत्पादकों को अप्रत्याशित लाभ होने लगता है। यह लाभ कुल लाभ में शामिल होता है।

4. शुद्ध लाभ – यह उद्यमी की योग्यता, चतुराई, जोखिम उठाने की शक्ति व सौदा करने की क्षमता का पारिश्रमिक है। अतः उद्यमी के पूर्वानुमान, जोखिम वहन करने की शक्ति तथा सौदा करने की शक्ति के फलस्वरूप जो धनराशि उसे प्राप्त होती है, उसे शुद्ध लाभ कहते हैं। यह कुल लाभ’ का ही अंग है। संक्षेप में कुल लाभ पिछले पृष्ठ पर दिखाया गया है।

कुल आगम में से स्पष्ट तथा अस्पष्ट लागतों को घटा देने के पश्चात् जो शेष बचता है, वही ‘शुद्ध लाभ है।

सूत्र रूप में,
शुद्ध लाभ = कुल लाभ-(स्पष्ट लागतें + अस्पष्ट लागते)

परिभाषाएँ – शुद्ध लाभ को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निम्नवत् परिभाषित किया है

  1.  जे० के० मेहता के अनुसार, “अनिश्चिता के कारण इस प्रकार प्रावैगिक संसार में उत्पादन कार्यों में चौथी श्रेणी का त्याग उत्पन्न हो जाता है। यह श्रेणी है-जोखिम उठाना अथवा अनिश्चितता वहन करना। लाभ इसी का पुरस्कार होता है।”
  2. थॉमस के अनुसार, “लाभ उद्यमी का पुरस्कार उस जोखिम के लिए है, जिसे वह दूसरों पर नहीं टाल सकता है।”
  3. फिशर के अनुसार, “शुद्ध लाभ सभी जोखिम उठाने का पुरस्कार नहीं, बल्कि अनिश्चितता की जोखिम को उठाने का पुरस्कार है।”

शुद्ध लाभ में निम्नलिखित तत्त्व शामिल होते हैं

  1. जोखिम तथा अनिश्चितता उठाने का पुरस्कार। उत्पादक, उत्पादन की मात्रा का निर्धारण अर्थव्यवस्था की भावी माँग का अनुमान लगाकर करता है। यदि उसका अनुमान सही सिद्ध होता है, तो उसे लाभ होता है अन्यथा हानि। उद्यमी के अतिरिक्त उत्पादन के अन्य साधनों का प्रतिफल तो निश्चित होता है और उन्हें उनके प्रतिफल का भुगतान प्राय: उत्पादन के विक्रय से पूर्व ही कर दिया जाता है। केवल उद्यमी को प्रतिफल ही अनिश्चित रहता है।
  2. सौदा करने की मान्यता का पुरस्कार।
  3. नवप्रवर्तनों (innovations) का पुरस्कार।
  4. बाजार की अपूर्णताओं के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाला पुरस्कार।

प्रश्न 2
लाभ का निर्धारण किस प्रकार होता है ? सचित्र व्याख्या कीजिए।
या
लाभ के माँग व पूर्ति के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
लाभ का निर्धारण या लाभ का माँग व पूर्ति का सिद्धान्त
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लाभ का निर्धारण भी उद्यमियों की माँग एवं पूर्ति के द्वारा किया जा सकता है अर्थात् लाभ का निर्धारण उद्यमियों की माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर साहसी की माँग और पूर्ति एक-दूसरे के ठीक बराबर होती हैं, यही सन्तुलन बिन्दु होता है। इस सन्तुलन द्वारा जो लाभ की दर निश्चित होती है, इसे लाभ की सन्तुलन दर कहा जा सकता है।

उद्यम की पूर्ति – उद्यम की पूर्ति निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है|

1. देश में औद्योगिक विकास की स्थिति – देश में जितना औद्योगिक विकास होगा, उतनी ही अधिक उद्यमियों की पूर्ति होगी।
2. जनसंख्या का आकार, उसका चरित्र एवं मनोवृत्ति – यदि देश में जनसंख्या अधिक होगी तो उद्यमियों की पूर्ति अधिक होगी। यदि देश के लोगों की मनोवृत्ति जोखिम उठाने की है तब भी उद्यमियों की पूर्ति अधिक होगी।
3. आय का असमान वितरण – यदि राष्ट्रीय लाभांश का वितरण असमान है तब भी देश में उद्यमियों की पूर्ति अधिक होगी।
4. लाभ की आशा – लाभ की आशा उद्यमियों को जोखिम उठाने के लिए प्रेरित करती है। लाभ की दर जितनी अधिक ऊँची होगी साहसी की पूर्ति उतनी ही अधिक होगी।
5. समाज द्वारा सम्मान – यदि समाज में साहसी के कार्य का सम्मान किया जाता है और उन्हें राष्ट्रीय लाभांश में से अधिक भाग दिया जाता है, तब उद्यमियों की पूर्ति अधिक होगी।
6. उपयुक्त शिक्षा एवं ट्रेनिंग की व्यवस्था – विशेष वर्ग के साहसियों के विकास के लिए उपयुक्त शिक्षा एवं ट्रेनिंग की व्यवस्था भी उद्यमियों की पूर्ति में वृद्धि करती है।

उद्यम की माँग व पूर्ति का सन्तुलन या लाभ का निर्धारण
लाभ का निर्धारण उद्यमियों की माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर उद्यमी की माँग एवं पूर्ति एक-दूसरे के ठीक बराबर होती हैं अर्थात् लाभ की दर उस बिन्दु पर निर्धारित होगी जहाँ पर उद्यमी का सीमान्त आय उत्पादकता वक्र उद्यमी के पूर्ति वक्र को काटता है। यदि किसी समय-विशेष पर उद्यमी की माँग, पूर्ति की अपेक्षा अधिक हो जाती है तो उद्यमियों को अधिक लाभ मिलने लगता है। इसके विपरीत, यदि उद्यमी की पूर्ति उसकी माँग की अपेक्षा अधिक हो जाती है तब लाभ की दर कम हो जाती है। दीर्घकाल में लाभ की दर की प्रवृत्ति सन्तुलन बिन्दु पर रहने की होती है।

दिये गये चित्र में OX-अक्ष पर उद्यमी की माँग एवं पूर्ति तथा OY-अक्ष पर लाभ की दर दिखायी गयी है। चित्र में DD उद्यमी का माँग वक्र तथा SS उद्यमी का पूर्ति वक्र है। मॉग एवं पूर्ति वक्र परस्पर EE बिन्दु पर काटते हैं। E सन्तुलन बिन्दु है तथा N रेखा सामान्य लाभ 6 ME (Normal Proft) को दर्शाती है। OM लाभ की सन्तुलन दर है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit 2

आलोचनाएँ

  1. उद्यमी की माँग और पूर्ति ब्याज की दर को प्रभावित कर सकती है, किन्तु उन्हें लाभ का निर्धारक नहीं कहा -X जा सकता। लाभ का वास्तविक निर्धारक उद्यमियों के द्वारा उद्यमी की माँग एवं पूर्ति । आकस्मिक जोखिम का सहन किया जाना है।
  2.  इस सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप में प्रयोग करना कठिन है, क्योंकि अन्य साधनों की माँग उद्यमी करता है, किन्तु उद्यमी की माँग कौन करता है ? प्रो० जे० के० मेहता ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि उत्पत्ति के अन्य साधन उद्यमी की माँग करते हैं।

यद्यपि यह सिद्धान्त दोषपूर्ण है, फिर भी सामान्य लाभ के निर्धारण का सबसे अच्छा सिद्धान्त माँग और पूर्ति का सिद्धान्त है। वर्तमान युग में अधिकांश अर्थशास्त्री इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
सकल लाभ तथा शुद्ध लाभ में अन्तर बताइए। [2013]
उत्तर:
सकल लाभ एवं शुद्ध लाभ में अन्त
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit 3
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit 4

प्रश्न 2
लाभ का लगान सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
लाभ का लगान सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रमुख अमेरिकन अर्थशास्त्री प्रो० वाकर (Walker) ने किया था। इनके अनुसार, लाभ एक प्रकार का लगान है। प्रो० वाकर ने लाभ को योग्यता का लगाने (Rent of Ability) माना है जो साहसियों की योग्यता में भिन्नता होने के कारण उन्हें प्राप्त होता है। योग्यता का लगान (लाभ) अधिसीमान्त और सीमान्त साहसियों की योग्यता के अन्तर के कारण उत्पन्न होता है। जिस प्रकार सीमान्त भूमि पर कोई लगान नहीं होता अर्थात् भूमि लगानरहित होती है, उसी प्रकार सीमान्त साहसी (Marginal Entrepreneur) भी होता है। इस सीमान्त साहसी से अधिक योग्य एवं श्रेष्ठ साहसी अधिसीमान्त साहसी होते हैं। इनकी योग्यता को प्रतिफल सीमान्त साहसी के द्वारा नापा जाता है। सीमान्त साहसी लाभ के रूप में किसी प्रकार का अतिरेक प्राप्त नहीं करता। प्रो० वाकर के शब्दों में, “लाभ योग्यता का लगीन है। जिस प्रकार बिना लगान की भूमि होती है जिसकी उपज केवल मूल्य को पूरा करती है, उसी प्रकार बिना लाभ की फर्म अथवा साहसी होता है जिसकी आय केवल उत्पादन को पूरा करती है। जिस प्रकार एक भूमि के टुकड़े का लगान बिना लगान की भूमि के ऊपर अतिरेक होता है और मूल्य में सम्मिलित नहीं होता, उसी प्रकार किसी फर्म का लाभ बिना मुनाफे की फर्म के ऊपर अतिरेक होता है। अधिक योग्यता वाले व्यवसायी सीमान्त व्यावसायियों के ऊपर लाभ प्राप्त करते हैं।

आलोचनाएँ

  1. यह सिद्धान्त लाभ की प्रकृति को ठीक नहीं बताता। व्यवसाय में अधिक लाभ सदैव साहसी की उत्तम योग्यता के कारण नहीं, बल्कि उद्यमी को आकस्मिक लाभ तथा एकाधिकारी लाभ भी प्राप्त हो सकते हैं।
  2.  प्रो० मार्शल के अनुसार, लाभ को लगाने की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। लगान सदैव धनात्मक होता है, जिन लाभ ऋणात्मक भी हो सकता है।
  3.  भूमि बिना लगान की हो सकती है, किन्तु साहसी बिना लाभ के नहीं हो सकता; क्योंकि साहसी की पूर्ति तभी होती है जब उसे लाभ मिलता है।
  4. मिश्रित पूँजी वाली कम्पनियों के हिस्सेदारों को बिना किसी विशेष योग्यता के ही लाभ प्राप्त । होता है।

प्रश्न 3
“लाभ जोखिम उठाने का पुरस्कार है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
लाभ के जोखिम सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। [2014, 16]
उत्तर:
‘लाभ जोखिम उठाने का पुरस्कार है’ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० हॉले ने किया था। उनके अनुसार लाभ व्यवसाय में जोखिम के कारण उत्पन्न होता है। प्रत्येक व्यवसाय में जोखिम होता है। जोखिम को उठाने के लिए उत्पत्ति का कोई भी अन्य साधन तैयार नहीं होता है। इसलिए प्रत्येकव्यवसाय में जोखिम उठाने वाला होना चाहिए और जोखिम वहन करने के लिए उचित प्रतिफल मिलना चाहिए। बिना इस प्रतिफल के कोई भी साधन व्यवसाय की जोखिम नहीं उठाएगा। जो साधन जोखिम उठाता है उसे साहसी (Entrepreneur) कहते हैं। साहसी व्यवसाय में जोखिम उठाकर महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।

जोखिम उठाने का कार्य लोग पसन्द नहीं करते; क्योंकि भूमि, श्रम, पूँजी एवं प्रबन्ध का पुरस्कार निश्चित होता है, किन्तु साहसी का पुरस्कार अनिश्चित होता है। इस कारण साहसी को उसकी सेवाओं के बदले में प्रतिफल मिलना आवश्यक है। लाभ ही वह प्रतिफल हो सकता है जो साहसी को जोखिम उठाने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि लाभ जोखिम उठाने का प्रतिफल है। जिस व्यवसाय में जोखिम जितनी अधिक होती है, उतना ही अधिक लाभ उद्यमी को मिलना चाहिए।

आलोचना – यद्यपि सभी अर्थशास्त्री इस बात को स्वीकार करते हैं कि लाभ जोखिम उठाने का प्रतिफल है, फिर भी लाभ के जोखिम सिद्धान्त की आलोचनाएँ की गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. प्रो० नाईट के अनुसार, “सभी प्रकार के जोखिम से लाभ प्राप्त नहीं होता है। कुछ जोखिम का पूर्वानुमान के आधार पर बीमा आदि कराकर जोखिम से बचा जा सकता है। इस कारण इस प्रकार के जोखिम के लिए लाभ प्राप्त नहीं होता है। लाभ केवल अज्ञात जोखिम को सहन करने के कारण ही उत्पन्न होता है।”
  2. प्रो० कारवर का मत है कि, “लाभ इसलिए प्राप्त नहीं होता कि जोखिम उठायी जाती है, बल्कि इसलिए मिलती है कि जोखिम नहीं उठायी जाती। श्रेष्ठ साहसी जोखिम को कम कर देते हैं, इसलिए उन्हें लाभ मिलता है।”

प्रश्न 4
लाभ नवप्रवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
या
लाभ का नवप्रवर्तन सिद्धान्त क्या है ? समझाइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री शुम्पीटर का मत है कि लाभ नवप्रवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। शुम्पीटर ने ‘लाभ का नवप्रवर्तन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

प्रो० शुम्पीटर के अनुसार, “लाभ साहसी के कार्य का प्रतिफल है अथवा वह जोखिम, अनिश्चितता तथा नवप्रवर्तन के लिए भुगतान है।”
प्रो० हेनरी ग्रेसन के अनुसार, “लाभ को नवप्रवर्तन करने का पुरस्कार कह सकते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि एक उद्यमी को लाभ नवप्रवर्तन के कारण प्राप्त होता है। एक उद्यमी का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है, अत: वह उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तन करता रहता है। उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तन से अभिप्राय उत्पादन कार्य में नयी मशीनों का प्रयोग, उत्पादित वस्तुओं के प्रकार में परिवर्तन, कच्चे माल में परिवर्तन, वस्तु को विक्रय विधि एवं बाजार में परिवर्तन व नये-नये आविष्कार हो सकते हैं; अत: नवप्रवर्तन एकं विस्तृत अवधारणा है।

एक उद्यमी अधिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से नये-नये आविष्कार एवं नयी-नयी उत्पादन रीतियों का उपयोग करता रहता है, जिसका परिणाम उत्पादन लागत को कम करना तथा लागत और कीमत के अन्तर को बढ़ाना होता है, जिससे लाभ का जन्म होता है। लाभ की भावना से प्रेरित होकर उद्यमी नवप्रवर्तन का उपयोग करता है। इस प्रकार लाभ नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करता है तथा नवप्रवर्तन के कारण ही लाभ अर्जित होता है। अतः लाभ व नवप्रवर्तन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार लाभ नवप्रवर्तन का कारण एवं परिणाम दोनों है।

यदि एक उद्यमी लाभ अर्जित करने के लिए नवप्रवर्तन का उपयोग करता है और वह इस उद्देश्य में सफल हो जाता है, तब अन्य उद्यमी भी लाभ से आकर्षित होकर अपने उत्पादन कार्य में नवप्रवर्तन को उपयोग में लाते हैं। इस प्रकार नवप्रवर्तन के कारण लाभ प्राप्त होता रहता है।

शुम्पीटर का यह मत कि लाभ नवप्रवर्तन के कारण उत्पन्न होता है, सत्य प्रतीत होता है।
आलोचनाएँ – लाभ के नवप्रवर्तन सिद्धान्त की यह कहकर आलोचना की जाती है कि शुम्पीटर के अनुसार लाभ जोखिम उठाने का पुरस्कार नहीं है, लाभ तो नवप्रवर्तन का परिणाम है, उचित प्रतीत नहीं होता; क्योंकि यदि हम ध्यानपूर्वक मनन करें तो पता लगता है कि नवप्रवर्तन भी जोखिम का अभिन्न अंग है। नवप्रवर्तन करने में भी उद्यमी को जोखिम रहती है। अतः लाभ निर्धारण में से जोखिम व अनिश्चितता को निकाल देने के पश्चात् लाभ का सिद्धान्त अधूरा रह जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
लाभ का मजदूरी सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
प्रो० टॉजिग और डेवनपोर्ट के अनुसार, “साहसी की सेवाएँ भी एक प्रकार का श्रम हैं; अतः साहसी को मजदूरी के रूप में लाभ प्राप्त होता है। अतः लाभ को एक प्रकार की मजदूरी समझना ही अधिक उपयुक्त होगा। प्रो० टॉजिग के अनुसार, “लाभ केवल अवसर के कारण उत्पन्न नहीं होता, बल्कि विशेष योग्यता के प्रयोग का परिणाम होता है जो एक प्रकार का मानसिक श्रम है और वकीलों तथा जजों के श्रम से अधिक भिन्न नहीं है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि लाभ । व्यवसायी के मानसिक श्रम की मजदूरी होती है।

आलोचनाएँ

  1.  यह सिद्धान्त लाभ और मजदूरी के मौलिक अन्तर को नहीं समझ पाया है। साहसी व्यवसाय में जोखिम उठाता है, किन्तु मजदूर को जोखिम नहीं उठानी पड़ती है।
  2. मजदूरी सर्वदा परिश्रम का प्रतिफल है, किन्तु लाभ बिना परिश्रम के भी मिल जाता है।
  3.  प्रो० कार्वर के अनुसार, “लाभ तथा मजदूरी का पृथक् रूप से अध्ययन करना एक वैज्ञानिक आवश्यकता है।”

प्रश्न 2
लाभ के सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
लाभ का सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त-जिस प्रकार उत्पादन के अन्य साधनों का प्रतिफल उनकी सीमान्त उत्पत्ति के द्वारा निश्चित होता है उसी प्रकार साहस का पुरस्कार (लाभ) भी साहसी की सीमान्त उत्पादन शक्ति के द्वारा निश्चित होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, साहसी का सीमान्त उत्पादन जितना अधिक होता है उसे उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होता है।

आलोचनाएँ

  1. व्यवसायी की सीमान्त उपज का पता लगाना कठिन होता है। एक फर्म में एक ही साहसी होता है; अतः सीमान्त साहसी की सीमान्त उत्पादिता ज्ञात करना असम्भव है।
  2. यह सिद्धान्त साहसी के माँग पक्ष पर ध्यान देता है, पूर्ति पक्ष पर नहीं; अत: यह एकपक्षीय है।
  3. यह सिद्धान्त आकस्मिक लाभ का विश्लेषण नहीं करता जो पूर्णतया संयोग पर निर्भर होता है। साहसी का सीमान्त उत्पादकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता।

प्रश्न 3
लाभ का समाजवादी सिद्धान्त क्या है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
लाभ का समाजवादी सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के जन्मदाता कार्ल माक्र्स हैं। उनके अनुसार लाभ इसलिए उत्पन्न होता है कि श्रमिकों को उचित मजदूरी नहीं दी जाती। इस प्रकार लाभ श्रमिकों का शोषण करके अर्जित किया जाता है। लाभ एक प्रकार के साहसी द्वारा श्रमिकों की छीनी हुई मजदूरी है। इस कारण कार्ल मार्क्स ने लाभ को कानूनी डाका (Legalised Robbery) कहा है।

आलोचनाएँ

  1.  आलोचकों का मत है कि लाभ उद्यमी की योग्यता तथा जोखिम सहन करने का प्रतिफल है, न कि श्रमिकों का शोषण। ।
  2. उत्पादन कार्य में श्रम के अतिरिक्त अन्य उपादान; जैसे-भूमि, पूँजी, प्रबन्ध वे साहस भी योगदान करते हैं; अत: लाभ को कानूनी डाका कहना उपयुक्त नहीं है।
  3.  समाजवादी अर्थव्यवस्था में भी लाभ का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। समाजवादी देशों में लाभ पूर्णतया समाप्त नहीं हो पाया है।

प्रश्न 4
लाभ के प्रावैगिक सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
लाभ का प्रावैगिक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जे० बी० क्लार्क ने किया है। उनके अनुसार, लाभ का एकमात्र कारण समाज का गतिशील परिवर्तन है। यदि समाज गतिशील है। अर्थात् जनसंख्या, पूँजी की मात्रा, रुचि, उत्पत्ति के तरीकों आदि में परिवर्तन होता रहता है तब समाज गतिशील माना जाता है और लाभ केवल गतिशील समाज में ही उत्पन्न होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि लाभ इसलिए प्राप्त होता है, क्योंकि समाज प्रावैगिक अवस्था में है।

आलोचनाएँ

  1.  प्रो० नाइट ने इस सिद्धान्त की आलोचना इन शब्दों में की है-“प्रावैगिक परिवर्तन स्वयं लाभ को उत्पन्न नहीं करते, बल्कि लाभ वास्तविक दशाओं की उन दशाओं से, जिनके अनुसार व्यावसायिक प्रबन्ध किया जा चुका है, भिन्न हो जाने के कारण उत्पन्न होता है।”
  2.  टॉजिग के अनुसार, “पुराने तथा स्थायी व्यवसायों में प्रबन्ध सम्बन्धी दैनिक समस्याओं को सुलझाने के लिए निर्णय-शक्ति और कुशलता की आवश्यकता होती है। आधुनिक प्रगतिशील तथा शीघ्र परिवर्तनीय काल में इन गुणों के लाभपूर्ण उपयोग की अधिक आवश्यकता होती है।
    उपर्युक्त कारणों से यह कहना त्रुटिपूर्ण है कि लाभ का कारण प्रावैगिक अवस्था है।

प्रश्न 5:
‘लाभ अनिश्चितता उठाने का प्रतिफल है।’ समझाइए।
या
लाभ का अनिश्चितता सिद्धान्त क्या है ?
या
लाभ के अनिश्चितता वहन सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। [2014]
या
लाभ के अनिश्चितता वहन सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। [2014, 15, 16]
उत्तर:
लाभ का अनिश्चितता उठाने का सिद्धान्त–इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० नाइट ने किया है। उनके अनुसार, लाभ जोखिम उठाने का प्रतिफल नहीं, वरन् अनिश्चितता को सहन करने के प्रतिफल के रूप में प्राप्त होता है। प्रो० नाइट के अनुसार, व्यवसाय में कुछ जोखिम ऐसी होती है। जिनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा बीमा आदि कराकर उन जोखिमों से बचा जा सकता है। इन्हें निश्चित एवं ज्ञात जोखिम कहा जाता है। इन ज्ञात व निश्चित खतरों को उठाने के लिए लाभ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए लाभ को जोखिम का प्रतिफल नहीं कहा जा सकता । अन्य दूसरे प्रकार की जोखिम जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता और जिससे बचने के लिए भी कोई प्रबन्ध नहीं किया जा सकता, प्रो० नाइट ने इन्हें अनिश्चितता माना है। इस अनिश्चितता को उठाने के लिए साहसी को लाभ मिलता है। इस प्रकार लाभ अनिश्चितता सहन करने के लिए मिलने वाला पुरस्कार है।

आलोचनाएँ

  1. साहसी का कार्य केवले अनिश्चितता सहन करना ही नहीं, अपितु वह उत्पादन से सम्बन्धित अन्य कार्य; जैसे—प्रबन्ध, मोलभाव आदि भी करता है। अतः लाभ साहसी को इन सेवाओं के बदले में मिलता है।
  2. अनिश्चितता को उत्पत्ति का एक पृथक् साधन नहीं माना जा सकता।

प्रश्न 6
कुल लाभ में किन भुगतानों को सम्मिलित किया जाता है ?
उत्तर:
कुल लाभ के अन्तर्गत निम्नलिखित भुगतानों को सम्मिलित किया जाता है

  1. साहसी की अपनी भूमि को लगान।
  2. साहसी की पूँजी का ब्याज।
  3.  साहसी की प्रबन्ध तथा निरीक्षण सम्बन्धी सेवाओं की मजदूरी।
  4. साहसी की योग्यता का लगान।

प्रश्न 7
लाभ-निर्धारण के लाभ को लगान सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
इस सिद्धान्त के अनुसार लाभ एक प्रकार का लगान है। वाकर ने लाभ को व्यवसायियों की योग्यता का लगान माना है। जिस प्रकार सीमान्त भूमि अथवा बिना लगान भूमि होती है उसी प्रकार सीमान्त साहसी भी होता है। जिस प्रकार भूमि की उपजाऊ शक्ति में अन्तर होता है उसी प्रकार साहसियों की योग्यता में भी अन्तर पाया जाता है। जिस प्रकार भूमि के लगान का निर्धारण सीमान्त भूमि और अधिसीमान्त भूमि की उपज के अन्तर के द्वारा होता है, उसी प्रकार लाभ का निर्धारण सीमान्त साहसी और अधिसीमान्त साहसी के द्वारा होता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
शुद्ध लाभ किसे कहते हैं?
उत्तर:
शुद्ध लाभ वह लाभ होता है जो साहसी को जोखिम उठाने के लिए मिलता है । इसमें कोई अन्य प्रकार का भुगतान सम्मिलित नहीं होता।

प्रश्न 2
लाभ की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लाभ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. लाभ ऋणात्मक (Negative) भी हो सकता है।
  2.  लाभ की दर में पर्याप्त उतार-चढ़ाव पाये जाते हैं।
  3.  लाभ पहले से निश्चित नहीं होता। उसके सम्बन्ध में काफी अनिश्चितता पायी जाती है।

प्रश्न 3
‘कुल लाभ’ व ‘शुद्ध लाभ में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
कुल लाभ में उद्यमी के केवल जोखिम उठाने का प्रतिफल ही नहीं, अपितु उसमें उसकी अन्य सेवाओं का प्रतिफल भी सम्मिलित रहता है। जबकि निवल लाभ कुल लाभ का एक छोटा अंश होता है। यह उद्यमी को जोखिम उठाने के लिए मिलता है। इसमें किसी अन्य प्रकार का भुगतान सम्मिलित नहीं होता है।

प्रश्न 4
लाभ के दो प्रकार लिखिए।
उत्तर:
(1) सकल लाभ या कुल लाभ तथा
(2) निवल लाभ या शुद्ध लाभ

प्रश्न 5
सामान्य लाभ क्या है? [2007, 15]
उत्तर:
वितरण की प्रक्रिया में राष्ट्रीय आय का वह भाग जो साहसी को प्राप्त होता है, सामान्य लाभ कहलाता है।

प्रश्न 6
लाभ का जोखिम सिद्धान्त किसका है ? [2006]
उत्तर:
लाभ का जोखिम सिद्धान्त प्रो० हॉले का है।

प्रश्न 7:
लाभ का लगान सिद्धान्त किस अर्थशास्त्री ने प्रतिपादित किया था?
उत्तर:
लाभ का लगान सिद्धान्त प्रो० वाकर ने प्रतिपादित किया था।

प्रश्न 8:
लाभ का मजदूरी सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं ?
उत्तर:
प्रो० टॉजिग।

प्रश्न 9
लाभ का अनिश्चितता का सिद्धान्त किसका है ? [2008]
या
लाभ का अनिश्चितता वहन करने सम्बन्धी सिद्धान्त किसने दिया था? [2013, 15, 16]
उत्तर:
प्रो० नाइट ने।

प्रश्न 10
लाभ का गतिशील (प्रावैगिक) सिद्धान्त किस अर्थशास्त्री का है ?
उत्तर:
जे० बी० क्लार्क का।

प्रश्न 11
लाभ किसे प्राप्त होता है? [2014]
उत्तर:
उद्यमी या साहसी को।

प्रश्न 12
लाभ को परिभाषित कीजिए। या लाभ क्या है? [2014]
उत्तर:
प्रो० वाकर के अनुसार, “लाभ योग्यता का लगान है।”

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
लाभ का लगान सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं
(क) प्रो० वाकर
(ख) प्रो० कीन्स
(ग) प्रो० हॉले
(घ) प्रो० टॉजिग
उत्तर:
(क) प्रो० वाकर।

प्रश्न 2
लाभ का मजदूरी सिद्धान्त के समर्थक हैं
(क) प्रो० वाकर
(ख) प्रो० टॉजिग और डेवनपोर्ट
(ग) प्रो० हॉले।
(घ) प्रो० नाइट
उत्तर:
(ख) प्रो० टॉजिग और डेवनपोर्ट।

प्रश्न 3
‘लाभ का जोखिम सिद्धान्त निम्न में से किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया ? [2007, 28, 11]
(क) प्रो० हॉले।
(ख) प्रो० वाकर
(ग) प्रो० टॉजिग
(घ) प्रो० नाईट
उत्तर:
(क) प्रो० हॉले।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में कौन-सा लाभ सिद्धान्त शुम्पीटर का है ? [2006, 09]
(क) लाभ का लगान सिद्धान्त
(ख) लाभ का नवप्रवर्तन सिद्धान्त
(ग) लाभ का अनिश्चितता सिद्धान्त
(घ) लाभ का जोखिम सिद्धान्त
उत्तर:
(ख) लाभ का नवप्रवर्तन सिद्धान्त।

प्रश्न 5
लाभ का समाजवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है
(क) कार्ल मार्क्स ने
(ख) प्रो० टॉजिग ने
(ग) प्रो० नाइट ने
(घ) प्रो० शुम्पीटर ने
उत्तर:
(क) कार्ल मार्क्स ने।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से किस लाभ के सिद्धान्त को प्रो० नाइट ने प्रतिपादित किया है ? [2015]
या
नाइट का लाभ का सिद्धान्त कहलाता है [2016]
(क) अनिश्चितता का सिद्धान्त
(ख) समाजवादी सिद्धान्त
(ग) जोखिम का सिद्धान्त
(घ) मजदूरी सिद्धान्त
उत्तर:
(क) अनिश्चितता का सिद्धान्त।

प्रश्न 7
वितरण में उद्यमी को हिस्सा प्राप्त होता है
(क) सबसे बाद में
(ख) सबसे पहले
(ग) बीच में
(घ) कभी नहीं
उत्तर:
(क) सबसे बाद में।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit (लाभ) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 Profit (लाभ), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Comment