UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 Public Finance

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 Public Finance (राजस्व) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 Public Finance (राजस्व).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 13
Chapter Name Public Finance (राजस्व)
Number of Questions Solved 20
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 Public Finance (राजस्व)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
राजस्व या लोकवित्त का अर्थ एवं परिभाषाएँ बताइए तथा लोकवित्त का अध्ययन-क्षेत्र स्पष्ट कीजिए। [2006, 08]
उत्तर:
राजस्व या लोकवित्त अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विभाग है, जिसका अभिप्राय “सरकारी प्रक्रिया में आयगत व्यय के चारों और जटिल समस्याओं के केन्द्रीकरण से है।” यह अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र की मध्य सीमा पर स्थित अर्थविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जो राज्यों के वित्तीय पक्ष का विधिवत् अध्ययन करता है।
राजस्व की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

प्रो० डाल्टन के अनुसार, “राजस्व के अन्तर्गत सार्वजनिक सत्ताओं से आय व व्यय एवं उनका एक-दूसरे से समायोजन एवं समन्वय का अध्ययन किया जाता है।”
एडम स्मिथ के अनुसार, “राज्य व्यय तथा आय के सिद्धान्त एवं स्वभाव के अनुसन्धान को राजस्व कहते हैं।”
फिण्डले शिराज के अनुसार, “राजस्व ऐसे सिद्धान्त का अध्ययन है जो कि सार्वजनिक सत्ताओं के व्यय एवं कोषों की प्राप्ति से सम्बन्धित है।”
लुट्ज के अनुसार, “राजस्व उन साधनों की प्राप्ति, संरक्षण और वितरण कर अध्ययन करता है। जो राजकीय या प्रशासन सम्बन्धी कार्यों को चलाने के लिए आवश्यक है।”

राजस्व या लोकवित्त का अध्ययन-क्षेत्र
राज्य द्वारा वित्तीय व्यवस्था से सम्बन्धित जो भी नीतियाँ एवं सिद्धान्त निर्मित किये जाते हैं वे सभी राजस्व की विषय-सामग्री के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। राजस्व के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं का अध्ययन किया जाता है

1. सार्वजनिक आय – राजस्व के अन्तर्गत सरकार की आय के विभिन्न स्रोतों, आय के स्रोतों के सिद्धान्तों, आय के साधनों का क्रियान्वयन एवं उनके पड़ने वाले प्रभावों आदि का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में, राजस्व के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि सरकार की आय के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं? इसमें कर, कर के सिद्धान्त एवं करों के प्रभावों आदि का अध्ययन किया जाता है।

2. सार्वजनिक व्यय – सार्वजनिक व्यय के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि सरकार द्वारा प्राप्त आय को जनता के कल्याण हेतु किस प्रकार व्यय किया जाए ? व्यय के सिद्धान्त क्या होने चाहिए, सार्वजनिक व्यय का समाज के उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा आय व रोजगार पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

3. सार्वजनिक ऋण – जब सरकार की आय, व्यय की अपेक्षा कम होती है तब सार्वजनिक व्ययों की पूर्ति हेतु सरकार को ऋण लेने पड़ते हैं। ये ऋण आन्तरिक एवं बाह्य दोनों साधनों से प्राप्त किये जा सकते हैं। सार्वजनिक ऋण कहाँ से प्राप्त किये जाएँ, ऋण लेने के उद्देश्य, ऋणों को किस प्रकार लौटाना है व ऋणों पर ब्याज की दरें क्या होनी चाहिए आदि बातों का अध्ययन सार्वजनिक ऋण के अन्तर्गत किया जाता है।

4. संघीय वित्त – भारत में संघात्मक वित्तीय प्रणाली को अपनाया गया है अर्थात् केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के बीच आय का बंटवारा किन सिद्धान्तों के आधार पर किया जाए तथा केन्द्र सरकार राज्यों को किस अनुपात में अनुदान आदि का वितरण करे आदि का अध्ययन संघात्मक वित्त-व्यवस्था के अन्तर्गत आता है।

5. वित्तीय प्रशासन – वित्तीय प्रशासन के अन्तर्गत सम्पूर्ण वित्तीय व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। बजट किस प्रकार बनाया जाए, बजट को पारित करना, करों का निर्धारण एवं करों का संग्रह करना, सार्वजनिक व्ययों का संचालन व नियन्त्रण तथा सार्वजनिक व्यय की अंकेक्षण (Audit) वित्तीय प्रशासन में सम्मिलित हैं।

6. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक सन्तुलन – राजकोषीय नीति के द्वारा अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थायित्व (Economic Stability) एवं आर्थिक विकास (Economic Development) से सम्बन्धित कार्यक्रम तैयार किया जाता है अर्थात् अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने के लिए देश के तीव्र आर्थिक विकास हेतु कर, आय, व्यय, ऋण एवं घाटे की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार क्रियान्वित किया जाये जिससे कि देश में आर्थिक स्थिरता बनी रहे तथा देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास हो सके। सुदृढ़ एवं संगठित वित्तीय नीति आर्थिक विकास व आर्थिक स्थिरता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

प्रश्न 2
राजस्व के महत्त्व का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [2010]
उत्तर:
वर्तमान समय में प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था में राजस्व की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गयी है और इस महत्त्व में निरन्तर वृद्धि हो रही है। वास्तविकता यह है कि ज्यों-ज्यों सरकार का कार्य-क्षेत्र बढ़ रहा है, राजस्व का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है।
राजस्व के महत्त्व का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

1. सरकार के बढ़ते हुए कार्यों की पूर्ति में सहायक – वर्तमान समय में लोकतान्त्रिक सरकार होने के कारण राज्य के कार्यों में तेजी से वृद्धि हुई है। सरकार को विकास सम्बन्धी बहुआयामी और अनेक कार्य सम्पादित करने पड़ते हैं। परिवहन ऊर्जा, स्वास्थ्य, बीमा, बैंकिंग आदि अनेक क्षेत्रों में सरकार के दायित्व दिन-प्रतिदिन बढ़े हैं जिसके कारण सरकार के खर्चे में भी वृद्धि हुई है। इसके लिए सरकार के आय-स्रोतों में वृद्धि करना आवश्यक हो गया है। सार्वजनिक व्यय और आय के बढ़ते क्षेत्र ने राजस्व के महत्त्व को बढ़ा दिया है।

2. आर्थिक नियोजन में महत्त्व – प्रत्येक देश अपने सन्तुलित एवं तीव्र आर्थिक विकास के नियोजन को अपना रहा है। आर्थिक नियोजन की सफलता बहुत कुछ राजस्व की उचित व्यवस्था पर निर्भर है।

3. आय एवं सम्पत्ति के वितरण में विषमताओं को कम करने में सहायक – वर्तमान समय में सामाजिक और आर्थिक समस्याओं में एक महत्त्वपूर्ण समस्या आय और सम्पत्ति के वितरण में विषमता है। इस समस्या के समाधान में राजस्व की विशिष्ट भूमिका है।

4. पुँजी-निर्माण में सहायक –  विकासशील देशों में आर्थिक विकास के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण समस्या पूँजी-निर्माण की धीमी गति ही रही है। इन देशों में आय और फलस्वरूप बचत का स्तर नीचा रहने के कारण पूँजी-निर्माण धीमी गति से हो पाता है। इस समस्या के समाधान के विभिन्न उपायों में राजस्व उपायों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

5. राष्ट्रीय आय में वृद्धि – विकासशील देशों में राष्ट्रीय आय बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है। इस दृष्टि से भी राजस्व का विशिष्ट महत्त्व है।

6. मूल्य-स्तर में स्थिरता या आर्थिक स्थिरता – अर्थव्यवस्था स्थायित्व के राजकीय हस्तक्षेप अर्थात् राजस्व-नीति की विशिष्ट भूमिका होती है। करारोपण, लोक-व्यय और लोक-ऋण की नीतियों के मध्य उचित समायोजन करके मूल्य स्तर में स्थिरता या आर्थिक स्थायित्व के उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है।

7. रोजगार में वृद्धि – प्रत्येक देश में अधिकतम रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य पर जोर दिया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति में भी राजस्व क्रियाएँ सहायक होती हैं। इनके द्वारा जब देश में उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तब रोजगार के अवसरों का सृजन होता है।

8. देश के संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग – आर्थिक संसाधनों का विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में उपयोग और इनका सर्वोत्तम प्रयोग सरकार की उचित और प्रभावशाली मौद्रिक एवं राजस्व नीतियों से ही सम्भव है। सरकार अपनी बजट नीति के द्वारा उपभोग, उत्पादन तथा वितरण को वांछित दिशा में प्रवाहित कर सकती है।

9. सरकारी उद्योगों के संचालन में सुविधा – आज प्रत्येक देश में किसी-न-किसी मात्रा में लोक उद्यमों का संचालन किया जा रहा है। इन उद्योगों में विशाल मात्रा में पूँजी का विनियोजन करना पड़ता है। इस पूँजी की व्यवस्था करने तथा सामाजिक हित में हानि पर चलने वाले सरकारी उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से राजस्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

10. राजनैतिक क्षेत्र में महत्त्व – राजनैतिक क्षेत्र में भी राजस्व का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। सरकार अपनी राजनीतिक नीतियों को उचित प्रकार से क्रियान्वित तभी कर सकती है, जबकि उसके पास पर्याप्त वित्तीय साधन हों और उन साधनों का प्रयोग करने के लिए उसके पास उचित राजस्व नीति हो।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
सार्वजनिक आय के साधनों को समझाइए।
उत्तर:
सार्वजनिक आय के साधन
सार्वजनिक आय के अनेक साधन हैं, जिन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 Public Finance 1

कर से प्राप्त आय – सरकार को सर्वाधिक आय करों से प्राप्त होती है। सरकार दो प्रकार के कर लगाती है-प्रत्यक्ष कर एवं परोक्ष कर। प्रत्यक्ष करों के अन्तर्गत आयकर, उपहार कर, मनोरंजन कर, मालगुजारी, मृत्यु कर, सम्पत्ति कर तथा परोक्ष कर के अन्तर्गत उत्पादन कर, बिक्री कर, तट कर आदि आते हैं। प्रत्येक देश की सरकार अपनी अधिकांश आय करों से ही प्राप्त करती है।

गैर-कर आय – सरकार को करों के अतिरिक्त अन्य साधनों से भी आय प्राप्त होती है, जिन्हें गैर-कर आय कहते हैं। इस प्रकार की आय निम्नलिखित है

  1. शुल्क – सरकार व्यक्तियों से विभिन्न प्रकार के शुल्क प्राप्त करती है; जैसे-न्यायालय शुल्क, लाइसेन्स शुल्क, अनुज्ञापन बनवाने की फीस आदि।
  2. दरें – स्थानीय सरकारें; जैसे-नगर-निगम, नगर पंचायतें, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत आदि अपनी-अपनी सीमाओं के अन्तर्गत बनी अचल सम्पत्ति पर जो कर लगाती हैं, उन्हें दरें कहते हैं। इससे भी सरकार को आय प्राप्त होती है।
  3. दण्ड – सरकारी नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों पर सरकार दण्डं लगाती है, जिससे सरकार को आय प्राप्त होती है।
  4. उपहार – समय-समय पर आवश्यकता पड़ने पर देश की जनता द्वारा सरकार को उपहार प्रदान किये जाते हैं; जैसे – युद्ध के समय युद्ध कोष में दान, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दान, अकाल पीड़ितों के लिए सहायता, भूकम्प के समय सहायता आदि। इससे भी सरकार को आय प्राप्त होती है।
  5. पत्र-मुद्रा – आजकल प्रायः सभी सरकारों ने पत्र-मुद्रा को अपनाया हुआ है। पत्र-मुद्रा से भी सरकार को आय प्राप्त होती है।
  6. सार्वजनिक सम्पत्ति से आय – देश की विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों; जैसे-वन, खान इत्यादि पर सरकार को स्वामित्व होता है। इस प्रकार की सम्पत्ति को पट्टे पर या किराये पर देकर सरकार आय प्राप्त करती है।
  7.  मूल्य – सरकार कुछ व्यवसायों को संचालित करती है। सरकार अपने उद्योगों में निर्मित वस्तुओं और सेवाओं का विक्रय करके मूल्य प्राप्त करती है; जैसे- रेल, डाक-तार, सरकारी कारखानों में उत्पन्न वस्तुओं से आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 2
आर्थिक विकास हेतु साधन जुटाने में राजस्व के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास हेतु साधन जुटाने में राजस्व का महत्त्व

आर्थिक विकास हेतु साधन जुटाने में राजस्व के महत्त्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1. पूँजी निर्माण –  किसी देश के आर्थिक विकास में पूँजी निर्माण का अत्यधिक महत्त्व होता है। अत: राजस्व की कार्यवाहियों का उद्देश्य यह होना चाहिए कि उपभोग व अन्य गैर-विकास कार्यों की ओर से पूँजी निर्माण अर्थात् बचत व विनियोग की ओर साधनों का अन्तरण हो। सरकार पूँजी निर्माण में वृद्धि हेतु निम्नलिखित उपाय अपना सकती है

(अ) प्रत्यक्ष भौतिक नियन्त्रण – प्रत्यक्ष भौतिक नियन्त्रण द्वारा विशिष्ट उपभोग व अनुत्पादक विनियोगों को कम किया जा सकता है।
(ब) वर्तमान करों की दरों में वृद्धि – इस दृष्टि से कर की संरचना इस प्रकार हो सकती है

  •  धनी वर्ग के उन साधनों को जो निष्क्रिय पड़े हों अथवा जिनका राष्ट्र की दृष्टि से लाभप्रद उपयोग न होता हो, आय-कर व सम्पत्ति-कर आदि लगाकर प्राप्त करना।
  •  ऐसी सरकारी वस्तुओं पर कर लगाना जिनकी माँग बेलोच है।
  • कृषक वर्ग की बढ़ती हुई आय पर कर लगाना।

(स) सार्वजनिक उद्योगों से बचत प्राप्त करना – सार्वजनिक उद्योगों को दक्षता व कुशलता से चलाया जाना चाहिए ताकि उनसे अतिरेक प्राप्त किया जा सके और उसका अधिक उत्पादन कार्यों में उपयोग किया जा सके।

(द) सार्वजनिक ऋण – सरकार ऐच्छिक बचतों को ऋण के रूप में प्राप्त कर सकती है। विशेष रूप से विकासशील देशों में लघु बचतों का विशेष महत्त्व होता है। वर्तमान समय में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ; जैसे – विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ आदि; विकासशील देशों को पर्याप्त ऋण प्रदान करती है।

(य) घाटे का बजट – जब सरकार के व्यय उसकी आय से अधिक हो जाते हैं, तो सरकार घाटे की व्यवस्था अपनाती है। सरकार को इस राशि का उपयोग अत्यधिक सतर्कता के साथ करना चाहिए, ताकि राजनीतिक स्थितियाँ उत्पन्न न हों।

2. उत्पादन के स्वरूप में परिवर्तन करके – सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार करके सरकार ऐसे उद्योगों का विस्तार कर सकती है, जिन्हें वह राष्ट्रीय हित की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समझती है। इसके अतिरिक्त, लोक वित्त कार्यवाहियों का उद्देश्य निजी निवेश को वांछित दिशाओं की ओर गतिशील करने के लिए भी किया जा सकता है।

3. बेरोजगारी दूर करना – विकासशील देशों में व्यापक बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी पाई जाती है। इसका समाधान दीर्घकालिक विकास नीति द्वारा ही किया जा सकता है। देश में करारोपण, सार्वजनिक व्यय व ऋण सम्बन्धी नीतियों के द्वारा निवेश में वृद्धि करके रोजगार के अवसरों का विस्तार किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
सार्वजनिक आय-व्यय एवं ऋण से आप क्या समझते हैं ? लिखिए।
उत्तर:

  • सार्वजनिक आय – सरकार को विभिन्न प्रकार के स्रोतों से जो आय प्राप्त होती है वह सार्वजनिक आय कहलाती है। सार्वजनिक आय के अन्तर्गत कर, शुल्क, कीमत, अर्थदण्ड, सार्वजनिक उपक्रमों से प्राप्त आय, सरकारी एवं गैर-सरकारी बचते आदि आते हैं।
  • सार्वजनिक व्यय – सरकार विभिन्न प्रकार के स्रोतों से जो आय प्राप्त करती है, वह जनता के हित में योजनानुसार व्यय करती है, इस व्यय को सार्वजनिक व्यय कहते हैं। सरकार अपनी आय को बजट बनाकर व्यय करती है।
  • सार्वजनिक ऋण – सरकार को अनेक मदों पर व्यय करना पड़ता है। जब सरकार की आय, व्यय से कम होती है तो अतिरिक्त सार्वजनिक व्ययों की पूर्ति हेतु सरकार द्वारा जो ऋण लिये जाते हैं, उन्हें सार्वजनिक ऋण कहते हैं।

प्रश्न 2
लोक-वित्त के विषय-क्षेत्र (विषय-वस्तु) का वर्णन कीजिए। [2007]
या
लोक-वित्त की विषय-वस्तु के चार प्रमुख भागों का वर्णन कीजिए। [2015]
उत्तर:
राज्य द्वारा वित्तीय व्यवस्था से सम्बन्धित जो भी नीतियाँ एवं सिद्धान्त निर्मित किये जाते हैं। वे सभी राजस्व की विषय-सामग्री के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित का अध्ययन किया जाता है

  1.  सार्वजनिक आय,
  2. सार्वजनिक व्यय,
  3.  सार्वजनिक ऋण,
  4. संघीय वित्त,
  5.  वित्तीय प्रशासन,
  6. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक सन्तुलन।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राजस्व की परिभाषा लिखिए। [2009]
उत्तर:
प्रो० डाल्टन के अनुसार, “राजस्व के अन्तर्गत सार्वजनिक सत्ताओं से आय व व्यय एवं उनका एक-दूसरे से समायोजन एवं समन्वय का अध्ययन किया जाता है।”

प्रश्न 2
“राजस्व का सम्बन्ध सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा आय प्राप्त करने व व्यय करने के तरीके से है।” यह परिभाषा किस अर्थशास्त्री की है?
उत्तर:
प्रो० फिण्डले शिराज की।

प्रश्न 3
राज्य व्यय तथा आय के सिद्धान्त एवं स्वभाव के अनुसन्धान को राजस्व कहते हैं। यह परिभाषा किस अर्थशास्त्री की है?
उत्तर:
एडम स्मिथ की।

प्रश्न 4
सार्वजनिक आय के दो साधन बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक आय के दो साधन हैं

  1. कर तथा
  2.  सार्वजनिक सम्पत्ति से आय।

प्रश्न 5
संघीय वित्त क्या है?
उत्तर:
भारत में संघात्मक वित्तीय प्रणाली को अपनाया गया है। केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय साधनों के विभाजन के सिद्धान्त एवं आधारों से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6
सार्वजनिक व्यय से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय को सरकार जनता के हित में विभिन्न योजनान्तर्गत व्यय करती है। यह व्यय सार्वजनिक व्यय कहलाता है।

प्रश्न 7
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने राजस्व को कैसा विज्ञान माना है?
उत्तर:
व्यय तथा आय के सिद्धान्त एवं स्वभाव का विज्ञान।

प्रश्न 8
राजस्व की विषय-सामग्री के तत्त्वों को बताइए।
उत्त:
राजस्व की विषय-सामग्री के तत्त्व हैं

  1.  सार्वजनिक आय तथा
  2. सार्वजनिक व्यय।

प्रश्न 9
सरकार की आय के दो प्रमुख स्रोत लिखिए।
उत्तर:
सरकार की आय के दो स्रोत हैं

  1.  कर तथा
  2. सरकारी उपक्रमों से प्राप्त आय।

प्रश्न 10
सार्वजनिक ऋण कहाँ से प्राप्त किये जा सकते हैं ?
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण आन्तरिक एवं बाह्य दोनों साधनों से प्राप्त किये जा सकते हैं।

प्रश्न 11
वित्तीय प्रशासन में क्या अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
वित्तीय प्रशासन में बजटों के निर्माण व प्रशासन तथा लेखा परीक्षण के कार्यों का अध्ययन किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राजस्व उन साधनों की प्राप्ति, संरक्षण और वितरण का अध्ययन करता है, जो राजकीय या प्रशासन सम्बन्धी कार्यों को चलाने के लिए आवश्यक होते हैं।” यह परिभाषा है
(क) लुट्ज की।
(ख) प्रो० फिण्डले शिराज की
(ग) प्रो० बेस्टेबल की
(घ) श्रीमती हिक्स की
उत्तर:
(क) लुट्ज की।

प्रश्न 2
राजस्व की विषय-सामग्री में सम्मिलित है
(क) सार्वजनिक आय
(ख) सार्वजनिक व्यय
(ग) सार्वजनिक ऋण
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

प्रश्न 3
सार्वजनिक आय के साधन हैं
(क) कर
(ख) शुल्क
(ग) उपहार
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी।

प्रश्न 4
लोक वित्त की विषय-वस्तु सम्बन्धित है
(क) सरकार के व्यय से
(ख) सरकार की आय से
(ग) सरकार ने ऋण से
(घ) सरकार के व्यय, आय, ऋण तथा राजकोषीय नीति से
उत्तर:
(घ) सरकार के व्यय, आय, ऋण तथा राजकोषीय नीति से।

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