UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 22
Chapter Name Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था)
Number of Questions Solved 51
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम पर एक लेख लिखिए। [2007, 08, 11]
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में बहुत ही पिछड़ी दशा में था। सत्तर के दशक के आरम्भ में भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा दिया गया। आज भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में विश्व के विकसित राष्ट्रों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है।

आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था
अपने वास्तविक रूप में भारत का अन्तरिक्ष युग में प्रवेश 19 अप्रैल, 1975 ई० को हुआ जब बियर्स लेक के समीप स्थित सोवियत कॉस्मॉड्रोम से सोवियत रॉकेट इण्टर कॉस्मॉस के माध्यम से स्वदेशी तकनीकी से निर्मित प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया, लेकिन इसकी आधारभूमि तैयार करने में लगभग 27 वर्षों को समय लग गया। 1948 ई० में ही डॉ० विक्रम अम्बालाल साराभाई द्वारा अहमदाबाद में भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला (PRIL) की स्थापना की गयी थी। यही प्रयोगशाला भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की वास्तविक जननी है और आज भी इसका महत्त्व पूर्ववत् है। 1962 ई० में भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा बाह्य अन्तरिक्ष के शान्तिपूर्ण उपयोग के लिए भारतीय राष्ट्रीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान समिति’ (INCOSPAR) का गठन किया गया और इसके एक वर्ष बाद ही केरल में तिरुवनन्तपुरम् के समीप थुम्बा में साउण्डिग रॉकेट प्रक्षेषण सुविधा केन्द्र की स्थापना की गयी। इसके साथ ही भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का शुभारम्भ अपने वास्तविक स्वरूप में प्रारम्भ हुआ।

इसी वर्ष अक्टूबर में भारत सरकार द्वारा डॉ० साराभाई के निर्देशन में अन्तरिक्ष गतिविधियों का प्रशासनिक कार्यभार भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला को सौंप दिया गया। इसके बाद 1969 ई० में इस दिशा में तब एक क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ जब बंगलौर (बंगलुरु) में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन’-इसरो (ISRO) का गठन किया गया। 1972 ई० में स्वतन्त्र रूप से ‘अन्तरिक्ष विभाग’ (DOS) एवं इसके सहयोग से भारत सरकार द्वारा अन्तरिक्ष आयोग की स्थापना की गयी। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अन्तरिक्ष कार्यक्रमों को संचालित करने की सम्पूर्ण उत्तरदायित्व अन्तरिक्ष विभाग का है, जबकि अन्तरिक्ष आयोग इसके अधीन इसके अनुसन्धान एवं विकास संगठन के रूप में कार्य करता है।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम की 1948 से 1972 ई० तक की यात्रा में गति प्रदान करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान डॉ० विक्रम साराभाई का है। यह इनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम था कि 20 नवम्बर, 1967 ई० को ही भारत ने मात्र 75 मिमी व्यास वाले अपने प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का प्रक्षेपण करके अन्तरिक्ष सम्बन्धी प्रयोगों की दुनिया में प्रवेश कर लिया। 29 दिसम्बर, 1971 ई० को डॉ० साराभाई का देहान्त हो गया, किन्तु उनकी महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी सलाह पर अमल करते हुए भारत ने 10 मई, 1972 ई० को सोवियत संघ के साथ समझौता किया, जिसके अनुसार सोवियत संघ भारत में निर्मित उपग्रहों को अपने प्रक्षेपण यान से अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित करने पर सहमत हो गया।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का मूल एवं सबसे प्रमुख उद्देश्य संचार, मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराना, अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रहों के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग करना और अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। इन मूलभूत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों एवं इनसे सम्बन्धित आधारभूत प्रणालियाँ विकसित करने के साथ ही इस सम्पूर्ण कार्यक्रम के माध्यम से उद्योगों को प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित सलाह प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया है।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के अन्तर्गत खगोल विज्ञान, ग्रहीय वायुमण्डल, सम्बन्धित अन्तरिक्ष भौतिकी, सौरमण्डलीय प्रणालियों, पृथ्वी से सम्बन्धित वैज्ञानिक जानकारियों एवं सैद्धान्तिक भौतिकी में प्रमुखता से अनुसन्धान कार्य किये जा रहे हैं और इनकी सम्पन्नती की जिम्मेदारी का वहन (इसरो’ के माध्यम से अन्तरिक्ष विभाग द्वारा किया जाता है। इन दोनों के ही मुख्यालय बंगलुरु में स्थित हैं और ये दोनों ही 4 केन्द्रों – अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (SAC) अहमदाबाद, ‘इसरो’ उपग्रह केन्द्र (ISAC) बंगलुरु, विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र (VSSC) तिरुवनन्तपुरम् तथा शार केन्द्र (SHAR Centre) श्रीहरिकोटा-को तकनीकी, वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक कार्यों का निर्देशन प्रदान करते हैं।

स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का थुम्बा से सफल प्रक्षेपण करके भारत ने अन्तरिक्ष युग में प्रवेश कर लिया था, किन्तु यह रॉकेट अमेरिकी कल-पुर्जा का एक संयोजन था। इसके बाद 1975 ई० में सोवियत संघ के सहयोग से देश का प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया जो कि अल्प समय में ही निष्क्रिय हो गया। इसके बाद ‘भास्कर’ श्रृंखला, आई० आर०एस० श्रृंखला, रोहिणी श्रृंखला, इन्सेट-1 तथा इन्सेट-2 श्रृंखलाएँ, विस्तृत रोहिणी उपग्रह श्रृंखला ‘स्रोस तक पहुँचते हुए भारत ने अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के जरिये विश्व में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। अब तो उपग्रह एवं उनको प्रक्षेपित करने वाले रॉकेटों के निर्माण में पूर्णतः स्वदेश में निर्मित कल-पुर्जा एवं तकनीकी का प्रयोग किया जाने लगा है। यह ध्यान देने योग्य है कि जहाँ भारतीय, राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सेट) की पहली पीढ़ी के सभी उपग्रह विदेशी डिजाइन एवं तकनीकी पर आधारित थे, वहीं उसकी दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों की डिजाइन एवं उनको निर्माण पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है।

अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के अन्तर्गत भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो’ इस समय इस दिशा में भी प्रयत्नशील है कि संचार के साथ-साथ अपने उपग्रहों के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों के विद्यार्थियों को दूरदर्शन द्वारा समुचित शिक्षा प्रदान करायी जाए और इसके लिए एक ‘ग्रामसेट उपग्रह विकास की प्रक्रिया में है। इस दिशा में देश के 6 जिलों में प्रयोग के तौर पर आई०आर०एस० 1-ए तथा 1-बी के माध्यम से इण्टीग्रेटेड मिशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेण्ट (IMSD) कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत के कदम भारत के आर्थिक विकास तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बड़े कारगर सिद्ध होंगे।

प्रश्न 2
अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्रों में भारत द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों का विवरण निम्नवत् है

  1. 1962 ई० में डॉ० विक्रम अम्बालाल साराभाई की अध्यक्षता में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया।
  2. 1964 ई० में डॉ० विक्रम साराभाई के नेतृत्व में भारत द्वारा फ्रांस से किये गये करार के अनुसार सेन्तोर नामक दो खण्डों वाले रॉकेटों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया गया।
  3. 1965-66 ई० में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति के तत्त्वावधान में प्रयोगात्मक उपग्रह संचार भू-केन्द्र की स्थापना की गयी।
  4. 20 नवम्बर, 1967 ई० को 75 मिलीमीटर व्यास वाले अपने प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  5. 1969 ई० में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति का पुनर्गठन कर भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन का गठन किया गया।
  6. 1972 ई० में अन्तरिक्ष आयोग की स्थापना की गयी और भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग का गठन किया गया।
  7. 19 अप्रैल, 1975 ई० को सोवियत कॉस्मॉड्रोम से इण्टरकॉस्मॉस रॉकेट द्वारा आर्यभट्ट नामक वैज्ञानिक प्रयोगात्मक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  8. 7 जून, 1979 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से भू-सर्वेक्षण उपग्रह ‘भास्कर-1′ का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  9. 18 जुलाई, 1980 ई० को श्रीहरिकोटा से भारतीय रॉकेट एस०एल०वी०-3 की सहायता से उपग्रह रोहिणी-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  10. 31 मई, 1981 ई० एस०एल०वी०-3 की सहायता से उपग्रह रोहिणी आर०एस०डी० का प्रक्षेपण किया गया, किन्तु सप्ताह-भर बाद ही यह उपग्रह गिरकर नष्ट हो गया।
  11. 19 जून, 1981 ई० को यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के एरियान रॉकेट द्वारा कोरू से प्रायोगिक दूरसंचार उपग्रह ‘एपल’ को प्रक्षेपित कर अन्तरिक्ष में स्थापित किया गया।
  12. 20 नवम्बर, 1981 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से भास्कर-2 का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  13. 10 अप्रैल, 1982 ई० को भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह श्रृंखला के प्रथम उपग्रह इन्सेट-1 ए की केप कैनवेरेल अन्तरिक्ष केन्द्र अमेरिका से डेल्टा रॉकेट द्वारा सफल प्रक्षेपण किया गया, किन्तु पाँच माह सक्रिय रहने के पश्चात् 8 सितम्बर, 1982 को नष्ट हो गया।
  14. 17 अप्रैल, 1983 ई० को भारतीय रॉकेट एस०एल०वी०-3 की चौथी एवं अन्तिम उड़ान हुई। इसके द्वारा रोहिणी-आर०एस०डी०-2 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  15. 30 अगस्त, 1983 ई० को अमेरिकी शटल यान चैलेन्जर ने इन्सेट-1 बी को वांछित कक्षा में स्थापित किया। वर्ष 1990 तक कार्यकारी अवधि के डेढ़ वर्ष बाद भी यह कार्यशील रहा है।
  16. 3-11 अप्रैल, 1984 ई० की अवधि में सोवियत कॉस्मॉनोट मैलिशेव एवं गेन्नाडी स्त्रेकालेव के साथ भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा सोयूज टी-11 द्वारा अन्तरिक्ष को रवाना हुए। 4 अप्रैल को सोयूज-टी-11 अन्तरिक्ष में पूर्व स्थापित सोवियत अन्तरिक्ष प्रयोगशाला सैत्यूत-7, से जुड़ा। सैत्यूत-7 में रहकर इन अन्तरिक्ष यात्रियों ने कई वैज्ञानिक परीक्षण किये। 11 अप्रैल को इन अन्तरिक्ष यात्रियों की पृथ्वी पर सकुशल वापसी हुई।
  17. 24 मार्च, 1987 ई० को श्रीहरिकोटा से देश के संवर्धित उपग्रह प्रमोचक यान ए०एस० एल०वी०डी०-1 की पहली उड़ान हुई। प्रक्षेपण के 163 सेकण्ड बाद ही ए०एस०एल०वी०डी०-1 बुरी तरह असफल हो गया।
  18. 17 मार्च, 1988 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से वोस्तोक रॉकेट द्वारा भारतीय दूर-संवेदन उपग्रह आई०आर०एस०-1 ए का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  19. 13 जुलाई, 1988 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी०डी०-2 की दूसरी असफल उड़ान हुई। प्रक्षेपण के 140 सेकण्ड पश्चात् ए०एस०एल०वी०डी०-2 भी नष्ट हो गया।
  20. 22 जुलाई, 1988 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के एरियान रॉकेट द्वारा इन्सेट-1 सी का प्रक्षेपण किया गया। सौर पैनेल न खुलने के कारण उपग्रह की कार्यक्षमता केवल 50% रह गयी। 25 नवम्बर, 1988 ई० को इन्सेट-1 सी को पृथ्वी से सम्पर्क टूट गया।
  21. 21 अक्टूबर, 1989 ई० को पी०एस०एल०वी० के प्रथम चरण के बूस्टर मोटर की सफल जाँच की गयी।
  22. 21 मार्च, 1990 ई० को पी०एस०एल०वी० के दूसरे चरण के बैटिलशीप खण्ड की सफल जॉच पूरी हुई।
  23. 12 जून, 1990 ई० को केप कैनवेरेल अन्तरिक्ष केन्द्र से डेल्टा रॉकेट की मदद से इन्सेट-1 डी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  24. 29 अगस्त, 1991 ई० को सोवियत रॉकेट की मदद से आई०आर०एस०-1 बी का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  25. 20 मई, 1992 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी० (रोहिणी) की तीसरी उड़ान हुई। यह मिशन ए०एस०एल०वी०डी०-2 पूर्णतया सफल रहा।
  26. 10 जुलाई, 1992 ई० को इन्सेट श्रृंखला की दूसरी पीढ़ी की शुरुआत की गयी। केप कैनवेरेल से डेल्टा रॉकेट की सहायता से इन्सेट-2 ए का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ।
  27. 23 जुलाई, 1993 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के रॉकेट एरियान-4 की मदद से इन्सेट-2 बी का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  28. 20 सितम्बर, 1993 ई० को श्रीहरिकोटा से देश के ध्रुवीय रॉकेट ने पहली उड़ान भरी। पी० एस०एल०वी०डी०-1 उड़ान के कुछ सेकण्ड बाद ही नष्ट हो गया। यह मिशन असफल रहा।
  29. 4 मई, 1994 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी० ने चौथी उड़ान भरी। इस मिशन (ए०एस०एल०वी०) को सफल माना गया।
  30. 15 अक्टूबर, 1994 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी० ने सफल उड़ान भरी। यह मिशन पी०एस०एल०वी०डी०-2 पूर्णतः सफल रहा। इसके द्वारा सुदूर संवेदन उपग्रह आई०आर०एस०-1 बीको अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।
  31. 7 दिसम्बर, 1995 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के रॉकेट एरियान की मदद से बहुउद्देश्यीय उपग्रह इन्सेट-2 सी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  32. 28 दिसम्बर, 1995 ई० को कजाकिस्तान स्थित बैंकानूर प्रक्षेपण स्थल से मोलनिया रॉकेट की सहायता से सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०-1 सी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  33. 21 मार्च, 1996 ई० को स्वदेशी तकनीक से निर्मित ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पी०एस०एल० वी०डी०-3 की मदद से सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०पी०-3 का श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।
  34. 4 जून, 1997 ई० को स्वेदशी तकनीक से निर्मित बहुउद्देशीय संचार उपग्रह इन्सेट-2 डी को फ्रेंच गुयाना स्थित कोरू प्रक्षेपण स्थल से एरियान प्रक्षेपण वाहन की 97वीं उड़ान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।
  35. 29 सितम्बर, 1997 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी०-1 सी ने सफल उड़ान भरी। इसके द्वारा सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०डी०-1 डी को पृथ्वी की निचली ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया।
  36. 3 अप्रैल, 1999 ई० को फ्रेंच गुयाना के कोर अन्तरिक्ष केन्द्र से इन्सेट-2 श्रृंखला के अन्तिम तथा पहले व्यावसायिक दूरसंचार सेवाओं के विश्व बाजार में प्रवेश किया।
  37. 26 मई, 1999 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी० सी०-2 द्वारा तीन उपग्रहों, भारत के आई०आर०एस०पी०-सी० 4 (ओशनसेट), दक्षिण कोरिया के ‘किटसेट’ और जर्मनी के ‘टबसेट’, को पोलर सन सिनक्रोनस कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने के साथ ही अन्तरिक्ष में व्यावसायिक प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारत का प्रवेश।
  38. 22 मार्च, 2000 ई० को फ्रेंच गुयाना के कोरू प्रक्षेपण केन्द्र से नवीनतम रॉकेट एरियान-5 द्वारा इन्सेट-3 श्रृंखला के पहले उपग्रह इन्सेट-3 बी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  39. 5 नवम्बर, 2000 ई० को इन्सेट-2 श्रेणी के भारत के दूसरे बहु-उद्देशीय उपग्रह इन्सेट-2 बी की ‘अर्थ-लॉक’ भंग हो जाने के कारण वाणिज्यिक सेवाएँ समाप्त घोषित कर दी गयीं।
  40. 28 मार्च, 2001 ई० को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) द्वारा भारत के प्रथम भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी०एस०एल०वी०) को प्रक्षेपित करने का प्रयास असफल हुआ।
  41. 18 अप्रैल, 2001 ई० को भारत के प्रथम भू-स्थेतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी०एस० एल०वी०डी०-1) का श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।
  42. 28 सितम्बर, 2003 ई० रविवार प्रात: 4 बजकर 44 मिनट पर भारत द्वारा अत्याधुनिक संचार उपग्रह इन्सेट-3 ई का फ्रेंच गुयाना के कोरू से सफल प्रक्षेपण किया।
    इन्सेट-3 ई से देश में दूरसंचार और टेलीविजन सेवाओं को उत्तम बनाने में अधिक सहयोग प्राप्त होगा।
  43. 17 अक्टूबर, 2003 ई० को रिसोर्स सेट-1 उपग्रह को PSLVC5 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह पृथ्वी की निगरानी करता है।
  44. 20 अक्टूबर, 2004 ई० को एजूसरे नामक उपग्रह को जी०एस०एल०वी०-FO1 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह शिक्षा से सम्बन्धित भारत का पहला उपग्रह है।
  45. 5 मई, 2005 ई० को हेमसेट नामक उपग्रह को PSLVc6 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्रों पर रेडियो संकेत भेजता है।
  46. 5 मई, 2005 ई० को काटोंसेट नामक एक और उपग्रह को PSLV-C6 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
  47. 22 दिसम्बर, 2005 ई० इनसेट 4A को एरियन 545 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह Dth प्रसारण के लिए भेजा गया।
  48. 10 जुलाई, 2006 ई० को इनसेट 4C को GSLV-FO2 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह कामयाब नहीं रहा।
  49. 10 फरवरी, 2007 ई० को PSLVC7 नामक रॉकेट के कार्टोसेट-2 तथा SRE-1 (Space Capsule Recovery Experiment) को प्रक्षेपित किया गया।
  50. 12 मार्च, 2007 ई० को इनसेट 4-B को एरिएन 5ECA नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह भी Dth प्रकरण से सम्बन्धित है।
  51. 2 सितम्बर, 2007 ई० को इनसेट 4CR को GSLV-FO5 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह भी Dth प्रसारण से सम्बन्धित है।
  52. 28 अप्रैल, 2008 ई० को कार्टोसेट 2-A तथा Ims-I को PSLV-C9 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह Cartoset-2 जैसा है।
  53. 22 अक्टूबर, 2008 ई० को चन्द्रयान-I को PSLV-C11 द्वारा प्रक्षेपित किया गया यह अंतरिक्ष में वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया था।
  54. 20 अप्रैल, 2009 ई० को राइसेट-2 तथा अनुसेट नामक उपग्रह PSLV-C12 में प्रक्षेपित किया गया। यह राडार से सम्बन्धित है जो भारतीय सीमा पर नजर रखता है।
  55. 25 सितम्बर, 2009 ई० को ओरियन सेट-2 के PSLV-C14 में प्रक्षेपित किया गया। यह समुद्री तटों व ओशियन देशों की जानकारी रखता है।
  56. 15 अप्रैल, 2010 ई० को GSAt-4 को GSLVD3 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह संचार उपग्रह है।
  57. 12 जुलाई, 2010 ई० को काटसेट-2-B नामक उपग्रह को PSLV-C15 नामक रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया।
  58. 25 दिसम्बर, 2010 ई० को GSAT5P/I, vSAT 4D उपग्रह को GSLV-FO6 से प्रक्षेपित किया गया। यह प्रयास असफल रहा।।
  59. 20 अप्रैल, 2011 ई० को रिसोर्ससेट-2 को PSLV-C16 में प्रक्षेपित किया गया।
  60. 21 मई, 2011 ई० को GSAT-8/INSAT-46 के Arione-5 से प्रक्षेपित किया गया यह एक संचार उपग्रह है।
  61. 15 जुलाई, 2011 ई० को GSAt-12 को PSLV-C17 में प्रक्षेपित किया गया। यह एक संचार उपग्रह है जो ISRO द्वारा निर्मित है।
  62. 12 अक्टूबर, 2011 ई० को मेगा-ट्रोपिक को PSLV-C18 से प्रक्षेपित किया गया। इसे इसरो व CNES संस्था (फ्रांस) द्वारा बनाया गया था।
  63. 26 अप्रैल, 2012 ई० को RISAT-1 को PSLV-C19 से प्रक्षेपित किया गया। यह विश्व का प्रथम राडार विश्लेषित उपग्रह है जो सभी प्रकार के मौसम में कार्य करता है।
  64. 29 सितम्बर, 2012 ई० को GSAT-2 को एरियन-5 द्वारा प्रक्षेपित किया गया। यह भारत का अतिआधुनिक संचार उपग्रह है।
  65. 25 फरवरी, 2013 ई० को सरल नामक उपग्रह PSLV-C20 को प्रक्षेपित किया गया। यह भारत व फ्रांस का संयुक्त उपग्रह है।
  66. 1 जुलाई, 2013 ई० को IRNSS-1A को PSLV-C22 में प्रक्षेपित किया गया। यह उपग्रह भारतीय परिवहन के लिए कार्य करता है।
  67. 4 अप्रैल, 2014 ई० को PSLV-C24 के द्वारा IRNSS-1B को प्रक्षेपित किया गया।
  68. 16 अक्टूबर, 2014 ई० को PSLV-C26 के द्वारा IRNSS-1C को प्रक्षेपित किया गया।
  69. 28 मार्च, 2015 ई० को PSLV-C27 के द्वारा IRNSS-1D को प्रक्षेपित किया गया।
  70. 20 जनवरी, 2016 ई० को PSLV-C31 को IRNSS-IE को प्रेक्षेपित किया गया।
  71. 10 मार्च, 2016 ई० को PSLV-C32 के द्वारा IRNSS-1F को प्रक्षेपित किया गया।
  72. 28 अप्रैल, 2016 ई० को PSLV-C33 के द्वारा IRNSS-1G को प्रक्षेपित किया गया।

इसी के साथ ग्लोबल पोजीशनिंग सेवाओं के अमेरिकी उपग्रहों पर भारत की निर्भरता के दिन समाप्त हो गए।

प्रश्न 3
इण्टरनेट क्या है? इस पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
इण्टरनेट अथवा नेट विश्व के कम्प्यूटरों का एक समूह है, जो कि सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इसमें कम्प्यूटर एक-दूसरे से इस तरह से जुड़े होते हैं कि वे एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। इस कम्प्यूटर नेटवर्क में पर्सनल कम्प्यूटर से लेकर विशाल कम्प्यूटर सिस्टम हो सकते हैं। कॉलेज, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, सरकारी संस्थान, वाणिज्य संस्थान और ऐसी ही अन्य व्यवस्थाएँ नेटवर्क का उदाहरण हैं जो कि इण्टरनेट का एक हिस्सा हैं। | इस प्रकार से इण्टरनेट विश्व भर में फैले हुए कम्प्यूटरों का एक विशाल जाल है जो कि आपस में संचार तकनीकी से जुड़ा हुआ है। इसकी सहायता से सम्बन्धित अधिकांश जानकारियाँ कुछ ही क्षणों में उस व्यक्ति को उपलब्ध हो सकती हैं, जिसके पास एक कम्प्यूटर, एक मॉडेम और एक टेलीफोन की सुविधा हो।

तकनीकी भाषा में सूचना राजपथ नामक व्यवस्था में कम्प्यूटर द्वारा सूचनाओं के आदान-प्रदान को इण्टरनेट या कम्प्यूटर का कम्प्यूटर से वार्तालाप भी कहते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मेल इण्टरनेट का ही एक घटक होता है।
वर्तमानकाल में इण्टरनेट एक संचार क्रान्ति के समान आया है जो कि विश्व के ढाई अरब से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच रखता है। इससे लगभग 6,000 से अधिक नेटवर्क जुड़े हुए हैं।
इण्टरनेट में कम्प्यूटरों के नेटवर्क को मेन कम्प्यूटर मॉडेम द्वारा टेलीफोन लाइन से जोड़ता है। मॉडेम पूरी व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जो कि कम्प्यूटर के सांख्यिकीय सन्देश को टेलीफोन के चुम्बकीय सन्देश तथा इसकी उल्टी प्रक्रिया में सक्रिय रखता है।

इण्टरनेट व्यवस्था का कोई मुख्य केन्द्र नहीं है। सारे कम्प्यूटर इसमें मुक्त रूप से संयोजित हैं। इण्टरनेट से जानकारी पाने के लिए पंजीकृत इण्टरनेट कनेक्शन आवश्यक हैं। पंजीकरण के उपरान्त संस्था-विशेष को एक आई०पी० ऐड्रेस या इण्टरनेट प्रोटोकॉल प्रदान कर दिया जाता है, जिसका एक पते की तरह प्रयोग किया जाता है। जब किसी कम्प्यूटर से सूचना लेनी होती है तो प्रयोगकर्ता अपने कम्प्यूटर पर अपना आई०पी० ऐड्रेस लिखकर दूसरे कम्प्यूटर का ऐड्रेस माँगेगा। इस प्रक्रिया में

पी०पी०पी० या प्वॉइण्ट टू प्वॉइण्ट प्रोटोकॉल सुविधा प्रयोग की जाती है। जैसे ही सम्बन्ध स्थापित होता है, सॉफ्टवेयर नेटस्केप नेवीगेटर की सहायता से आवश्यक सूचना प्रयोगकर्ता अपने कम्प्यूटर पर प्राप्त कर लेता है। ई-मेल, युजवेट न्यूजग्रुप टेलब्रेट, एफ०टी०पी०, आर्ची, गोफर, वेरोनिका, जगहेड, आई०आर०सी०वेस, वर्ल्ड वाइड वेब आदि इण्टरनेट से सम्बन्धित आवश्यक तकनीकी यन्त्र हैं, जिनकी आवश्यकता ज्ञान का स्रोत तलाशने और प्राप्ति में आवश्यक होती है।

इण्टरनेट का प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है। इण्टरनेट पर सूचनाएँ और इसकी उपयोगिता आश्चर्यजनक ढंग से दिनों-दिन बढ़ रही है। पिछले चार वर्षों में इण्टरनेट के क्षेत्र में क्रान्ति-सी हो गयी है। वर्ष 1994 के अन्त में लगभग 40 लाख कम्प्यूटर इससे जुड़े हुए थे। विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक तत्काल सन्देश भेजा जा सकता है। इसके द्वारा वीडियो कैसेट देखना, विश्व के पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता, शेयर खबरों तक पहुँच, मनपसन्द संगीत का सुनना, यहाँ तक कि फिल्म के किसी अभिनेता को हटाकर स्वयं अभिनय कर सकते हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में इण्टरनेट के द्वारा विश्वप्रसिद्ध चिकित्सकों व वैज्ञानिकों के विचार जाने जा सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इण्टरनेट महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। एक शोध छात्र के सामने पूरा विश्व खुला हुआ है, वह पुस्तकालय की मनचाही पुस्तक पढ़ सकता है। उसके प्रमुख भाग के प्रिण्ट आउट निकाल सकता है। इण्टरनेट के द्वारा सरकारी दस्तावेजों को प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक शोध हेतु आवश्यक सामग्री कुछ ही समय में एकत्र कर सकते हैं।
इण्टरनेट का व्यावसायिक गतिविधियों में अत्यधिक प्रयोग हो रहा है। व्यापारिक संस्थान विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रयोग कर रहे हैं। उत्पादों के लिए तकनीकी सहयोग, सॉफ्टवेयर वितरण, उपभोक्ता को उत्पाद के बारे में सूचना देना, तकनीकी और विपणन साहित्य का प्रकाशन, परियोजनाओं पर एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करना और सहयोग करना, उत्पादों का विपणन व बिक्री करना और कार्यालय से बाहर होने पर अपने व्यापारिक कार्यों तक पहुँचना इण्टरनेट से ही सम्भव है।

इण्टरनेट को प्रयोग केवल वाणिज्य, चिकित्सा अथवा शोध में ही सम्भव नहीं है, इसका प्रयोग बहुआयामी है। घर से इसका प्रयोग कई क्षेत्रों में हो सकता है। अपने मित्रों से ई-मेल का आदान-प्रदान करना, सामूहिक वाद-विवाद में भाग लेना, एक विषय से दूसरे में प्रवेश कर आनन्द उठाना, बाजार का भ्रमण करना ऑर्डर देना आदि के लिए व्यापारिक इलेक्ट्रॉनिक स्टोर खुले हुए हैं। इसके अन्तर्गत इन सबके अतिरिक्त रुचिकर खेल और ऐसी ही घटनाओं के बारे में अध्ययन करना भी सम्मिलित है।

प्रश्न 4
ई-मेल क्या है? ई-मेल तथा ई-कॉमर्स में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007]
उत्तर:
ई-मेल द्वारा तीव्र गति से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। यह सन्देश भेजने की वन वे पद्धति है। इसका सर्वाधिक महत्त्व व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है।
[संकेत-ई-मेल तथा ई-कॉमर्स में अन्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 व 5 का अध्ययन करें।]

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारत के प्रमुख अन्तरिक्ष केन्द्रों एवं इकाइयों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
भारत के किन्हीं चार अन्तरिक्ष अनुसन्धान केन्द्रों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर:
अन्तरिक्ष कार्यक्रम के अन्तर्गत बंगलुरु स्थित भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और अन्तरिक्ष विभाग के विभिन्न केन्द्रों और इकाइयों में अनुसन्धान और विकास-कार्य प्रगति पर हैं। इसरो के तत्त्वावधान में कार्यरत प्रमुख अन्तरिक्ष केन्द्र एवं इकाइयाँ निम्नलिखित हैं।

1. विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र – यह केन्द्र तिरुवनन्तपुरम् (केरल) के निकट थुम्बा में स्थित है। मूलत: यह केन्द्र देश की रॉकेट अनुसन्धान तथा प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास । परियोजनाओं की योजनाएँ बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने वाला प्रमुख केन्द्र है। यहाँ ए०एस०एल० वी० पी०एस०एल०वी०, जी०एल०वी० एवं जी०एस०एल०वी० जैसी योजनाओं पर कार्य होता है। पी०एस०एल०वी० को सफल बनाने के लिए इसका एक केन्द्र वलीमाला में भी स्थापित किया गया है।

2. इसरो उपग्रह केन्द्र – यह केन्द्र बंगलुरु (कर्नाटक) में स्थित है और उपग्रह प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञ है। यह इसरो की उपग्रह परियोजनाओं को संचालित करता है। यहाँ देश के लगभग सभी उपग्रहों का निर्माण किया जाता है।

3. अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र – अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित है। यहाँ अन्तरिक्ष उपयोग हेतु अनुसन्धान एवं विकास-कार्य होता है। इस केन्द्र का कार्य उपग्रह संचार क्षेत्र, दूर-संवेदन क्षेत्र एवं माइक्रोवेव दूर-संवेदन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन भी है। इस केन्द्र से नई दिल्ली स्थित भू-केन्द्र का भी प्रवर्धन होता है।

4. शार केन्द्र – यह केन्द्र आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित है। इस केन्द्र से प्रक्षेपण यान एवं साउण्डिग रॉकेटों का प्रक्षेपण किया जाता है। इसी केन्द्र में इसरो का प्रक्षेपण परिसर एवं ठोस ईंधन अन्तरिक्ष बूस्टर संयंत्र भी स्थित है।

5. प्रधान नियन्त्रण सुविधा – हासन (कर्नाटक) में प्रधान नियन्त्रण सुविधा स्थित है। यह केन्द्र इन्सेट उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद की सभी गतिविधियों के लिए उत्तरदायी है। इसके अन्तर्गत उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना, केन्द्र से उसका सम्पर्क बनाये रखना आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं।

6. इसरो दूरमिति, अनुवर्तन एवं आदेश संचार नेटवर्क – बंगलुरु, लखनऊ, श्रीहरिकोटा, अण्डमान निकोबार, तिरुवनन्तपुरम् एवं मॉरीशस में इसके भू-केन्द्र हैं। इसरो का प्रक्षेपण यानों एवं उपग्रहों के मिशन को दूरमिति, अनुवर्तन एवं आदेश संचार मार्ग की सुविधाएँ प्रदान करता है। इसको मुख्यालय बंगलुरु में स्थित है।

7. द्रव नोदन प्रणाली केन्द्र – द्रव नोदन प्रणाली केन्द्र बंगलुरु, तिरुवनन्तपुरम् एवं महेन्द्रगिरि (तमिलनाडु) में स्थित है। इस केन्द्र द्वारा प्रक्षेपण यान एवं उपग्रह के प्रक्षेपण हेतु द्रव एवं क्रायोजनिक संचालन चरणों और ऑक्ज़िलरी नोदन प्रणाली का कार्यान्वयन किया जाता है।

8. इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई – यह केन्द्र तिरुवनन्तपुरम् में स्थित है। इस केन्द्र में उपग्रहों एवं प्रक्षेपण यानों के लिए जड़त्वीय उपकरणों एवं प्रणालियों का क्रियान्वयन किया जाता है।

9. विकास एवं शैक्षिक संचार इकाई – अहमदाबाद स्थित इस केन्द्र का कार्य विकास एवं शिक्षा संचार के विभिन्न शोध-क्षेत्रों-दूरदर्शन कार्यक्रम-निर्माण, नीति-अध्ययन, सामाजिक प्रौद्योगिकी क्रिया, समाज विज्ञान, शोध सर्वेक्षण आदि में अनुसन्धान करना है।

10. राष्ट्रीय सुदूर संवदेन अभिकरण – हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन अभिकरण अन्तरिक्ष विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। यहाँ सुदूर संवेदन उपग्रह आंकड़ों के अभिग्रहण, संसाधन एवं प्रकीर्णन का कार्य होता है।

प्रश्न 2
भारत में इण्टरनेट सुविधा पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए। [2009, 10]
या
इण्टरनेट पर क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं? [2011]
उत्तर:
भारत में इण्टरनेट का आरम्भ आठवें दशक के अन्तिम वर्षों में अनेट (शिक्षा और अनुसन्धान नेटवर्क) के रूप में हुआ था। इसके लिए भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी थी। इस परियोजना में पाँच प्रमुख संस्थान; जैसे-राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी केन्द्र, मुम्बई; भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु; छहों भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और इलेक्ट्रॉनिक निदेशालय सम्मिलित थे। अर्नेट का आज व्यापक प्रसार हो चुका है और वह शिक्षा और शोध समुदाय को देशव्यापी सेवा दे रहा है। निश्चित आचार-संहिता के परिणामस्वरूप आम जनता के लिए उसकी सेवाएँ प्रतिबन्धित हैं।

प्रश्न 3
भारत में पेजर-प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेडियो पेजिंग-प्रणाली रेडियो तकनीक पर आधारित है, जिसका सीधा प्रसारण केवल एक ही दिशा में होता है। इस प्रणाली से ठोस कंक्रीट की मोटी दीवारों से भी प्रसारित तरंगें सरलता से पार हो जाती हैं। इस प्रकार मोटी दीवारों या बड़ी इमारतों में भी सन्देश प्रसारण आसानी से सम्भव हो जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियो पेजिंग-प्रणाली की रेडियो क्षमता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है और इसका उपयोग एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा भी आसानी से किया जा सकता है। रेडियो पेजिग-प्रणाली के आगमन से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति आ गयी है।

रेडियो पेजिग दूरसंचार को एक आधुनिक तकनीक है जिसके द्वारा किसी पेजर धारक से किसी भी समय, चाहे वह पेजिंग सेवा में किसी भी स्थान पर क्यों न हो, सम्पर्क किया जा सकता है तथा उसे सन्देश दिया जा सकता है। इसके लिए पेजर कम्पनी को टेलीफोन पर सन्देश देना होता है, जो रेडियो तरंगों के माध्यम से सन्देश को प्रसारित करता है। जिस पेजर के लिए वह सन्देश होता है, उस पेजर में हल्की पी-पी की ध्वनि सुनाई देने लगती है जिससे पेजर धारक को पता चल जाता है और वह पेजर का बटन ऑन करके स्क्रीन पर सन्देश पढ़ लेता है। न्यूमेरिक पेजर में केवल संख्यात्मक सन्देश पढ़े जा सकते हैं, जबकि अल्फा न्यूमेरिक पेजर संख्याओं के साथ-साथ शब्दों में व्यक्त सन्देश भी ग्रहण करता है।

भारत में सर्वप्रथम यह सेवा कोलकाता में उपलब्ध करायी गयी थी। सरकार द्वारा इस प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से निजी क्षेत्र की कम्पनियों को 27 शहरी क्षेत्रों में रेडियो पेजिंग सेवा प्रदान करने का लाइसेन्स दिया गया है। ये शहरी क्षेत्र हैं – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद, कानपुर, लखनऊ, नागपुर, सूरत, जयपुर, अहमदाबाद, पुणे, एर्नाकुलम, कोयम्बटूर, बड़ोदरा, पटना, इन्दौर, मदुरै, भोपाल, वाराणसी, लुधियाना, विशाखापत्तनम, चण्डीगढ़, राजकोट, त्रिवेन्द्रम और अमृतसर। रेडियो पेजिंग-प्रणाली सेवा के आरम्भ हो जाने से आकाशवाणी विशिष्ट प्रकार की लोकसूचना सेवा उपलब्ध कराने वाली प्रथम जनप्रसारण सेवा बन गयी है।

प्रश्न 4
इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
या
ई-मेल के कोई दो आर्थिक लाभ लिखिए। [2012]
या
भारत में ‘ई-मेल’ के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा, कम्प्यूटर आधारित ‘स्टोर ऐण्ड फॉरवर्ड’ सन्देश प्रणाली है। इसमें प्रेषक और प्रेषित दोनों को एक साथ उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं होती। यह सेवा डेटा संचार नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पत्रों का संचारण करती है। इस सेवा के द्वारा कोई भी पत्र, स्मरण-पत्र, टेण्डर या विज्ञापन आदि टंकित कर उसे किसी भी व्यक्ति को उसके निर्धारित पते पर भेजा जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि पत्र भेजने तथा प्राप्त करने वाले दोनों नेटवर्क से जुड़े हों। इसके लिए उपयोगकर्ता को एक डाक (Mail) बॉक्स किराए पर लेना पड़ता है तभी वह डाक प्राप्त कर सकता है या भेज सकता है। स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (LAN) तथा विस्तृत क्षेत्र नेटवर्क (WAN) द्वारा भी डाक भेजी जा सकती है। डाक प्रेषण की इस तकनीकी की खोज अक्टूबर, 1971 ई० में अमेरिकी इंजीनियर रे टॉमलिंसन द्वारा की गयी थी।

ई-मेल वन-वे पद्धति है। यह टेलीफोन की तरह दोनों ओर से वार्तालापं नहीं करा सकती है, लेकिन उससे भी तीव्र गति से सूचना प्रदान करती है। ई-मेल की हार्ड व मुद्रित प्रति भी प्राप्त की जा सकती है। वास्तव में, यह सेवा बहुत व्यस्त व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। यदि डाक प्राप्तकर्ता का कम्प्यूटर बन्द हो तब भी यह डाक बॉक्स में संगृहीत होती रहती है और सुविधानुसार कम्प्यूटर ऑन करने पर प्राप्त हो जाती है तथा भेजने वाले व्यक्ति को भी सूचना-प्राप्ति की जानकारी हो जाती है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा विदेश संचार निगम लिमिटेड के द्वारा ‘HRMS-400′ नाम से 1990 के दशक के मध्य में शुरू की गयी थी, जिसका कार्य-क्षेत्र उस समय मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, बंगलुरु, पुणे, तिरुवनन्तपुरम् और भुवनेश्वर तक ही सीमित था और इस सेवा को कनाडा, अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान और इटली से जोड़ा जा रहा है। ई-मेल पर आधारित अनेक मूल्य वर्द्धित सेवाएँ लगभग पूरे देश में आरम्भ की जा चुकी हैं।

वर्तमान में ई-मेल सुविधा हिन्दी में भी उपलब्ध है। ‘वेब-दुनिया के नाम से हिन्दी का पोर्टल भी इण्टरनेट पर आ चुका है और ई-पत्र की सहायता से हिन्दी भाषा में डाक भेजी व प्राप्त की जा सकती है। ई-मेल के माध्यम से पत्र के अतिरिक्त चित्र व ग्राफिक्स आदि भी भेजे जा सकते हैं। अब कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी से हिन्दी में काम करने में कोई तकनीकी समस्या नहीं है। देश के चारों महानगरों में कुल मिलाकर 100 से भी अधिक ई-मेल’ सेवाएँ अब कार्यरत हैं। सरकारी नीतियों में उदारीकरण के कारण निजी कम्पनियों द्वारा विभिन्न प्रकार की ई-मेल सेवाएँ शुरू कर दी गयी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कम्पनियाँ भी इस सेवा-क्षेत्र से जुड़ रही हैं।

प्रश्न 5
ई-कॉमर्स सेवा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2008, 09, 10]
उत्तर:
ई-कॉमर्स-ई-कॉमर्स में ‘ई’ शब्द इलेक्ट्रॉनिक को संक्षिप्त रूप है तथा कॉमर्स से अभिप्राय व्यापारिक लेन-देनों से है, अत: ई-कॉमर्स से अभिप्राय ऐसे सौदे से है जिसके अन्तर्गत विक्रेता और क्रेता बिना कागजों की अदला-बदली किये अथवा बिना एक-दूसरे से मिले इण्टरनेट के माध्यम से लेन-देन करते हैं। यह व्यापार कम्प्यूटर द्वारा टेलीफोन लाइनों से किया जाता है।

इण्टरनेट की प्रगति की ही एक तार्किक परिणति है-ई-कॉमर्स। किसी भी प्रकार के व्यवसाय को संचालित करने के लिए इण्टरनेट पर की जाने वाली कार्यवाही को ई-कॉमर्स कहते हैं। वस्तुओं का क्रय-विक्रय विभिन्न व्यक्तियों अथवा कम्पनियों के मध्य सेवा या सूचना ई-कॉमर्स के अन्तर्गत आते हैं। आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने में इण्टरनेट की बढ़ती लोकप्रियता का ही एक प्रमाण सैकड़ों की संख्या में डॉट कॉम कम्पनियों का उदय है।
ई-कॉमर्स को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है–बिजनेस टु बिजनेस (B2B), बिजनेस टु कंज्यूमर (B2C) और कंज्यूमर टु कंज्यूमर (C2C)। इनमें अभी बी टु सी श्रेणी ही अधिक सक्रिय है। यह सेवा विशाल एमेजन कॉम और भारत में दूसरी कई कम्पनियों द्वारा संचालित है, जिसका उद्देश्य थोक और खुदरा व्यापार के बीच की परम्परागत विभाजन रेखा को मिटाकर व्यक्तिगत ग्राहकों के मध्य सीधा सम्पर्क कराना है। लेकिन इस क्षेत्र की सबसे लम्बी अवधि तक टिकने और सबसे बड़े कारोबार वाली श्रेणी बी टु बी ही होगी। इस श्रेणी के अन्तर्गत कम्पनी नेट के जरिए अपने ग्राहकों ओर वितरको से कारोबार के लिए सम्पर्क करती है।

बी टु बी श्रेणी के विशेष क्षेत्रों में ग्राहक सम्बन्ध प्रबन्धन और आपूर्ति प्रबन्धन मुख्य हैं। किसी कम्पनी को अपने ग्राहकों और वितरकों से जोड़ने वाले नेटवर्क की सबसे प्रमुख सेवाएँ यहीं होती हैं।
सी टु सी नामक तीसरी श्रेणी का दायरा अत्यधिक सीमित है। इसमें ग्राहक का किसी अन्य ग्राहक से सीधा सम्पर्क होता है। इसमें या तो नीलामी वाली साइट आती हैं अथवा किसी उत्पादन या सेवा का उपभोक्ता अपनी सूचना या शिकायत को आपस में बाँटने के लिए इण्टरनेट का उपयोग करता है।

बी टू सी नाम बुनियादी व्यावसायिक चक्र में ऑन लाइन स्टोर ( भण्डार) होता है, जो उत्पाद की विशेषताओं, मूल्य और उसके चित्रों के साथ पूरी सूची उपलब्ध कराता है। ग्राहक उस साइट पर लॉग लॉन (इण्टरनेट की शब्दावली) करते हैं और एक या अधिक उत्पादों को चुनने के बाद उन्हें इलेक्ट्रॉनिक ‘गाड़ी में रख देते हैं और फिर सत्यापन (चेक आउट) के लिए तैयार हो जाते हैं। सत्यापन में ग्राहक को बीजक भेजने का पता, माल भेजने के तरीके आदि की सारी जानकारी हासिल कर ली जाती है। क्रेडिट कार्ड सम्बन्धी सूचना की जाँच के बाद सही पाये जाने पर लेन-देन स्वीकार कर लिया जाता है।

कुछ देशों में ऐसी कानुनी व्यवस्था भी है कि ऑर्डर देने के बजाय उत्पाद को भेज दिये जाने के उपरान्त ही ग्राहक के क्रेडिट कार्ड से भुगतान हासिल किया जा सकता है। इस व्यवस्था में ऑर्डर का माल एक अन्य केन्द्र को भेज दिया जाता है और माल वहाँ पहुँच जाने पर वह केन्द्र वेब सर्वर के जरिए यह सन्देश प्रेषित कर देता है। इसके बाद क्रेडिट कार्ड से भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है।

इस सेवा में सूई से लेकर हेलीकॉप्टर तक के क्रय-विक्रय के लिए वेब साइट उपलब्ध है। ई-मेल की तर्ज पर ई-कॉमर्स की शुरुआत हुई है। यह सेवा चौबीसों घण्टे उपलब्ध रहती है तथा इसमें किसी भी प्रतिनिधि से सम्पर्क की जरूरत नहीं पड़ती। ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले थोक व्यापार को मैक्रो ई-कॉमर्स तथा खुदरा व्यापारी को माइक्रो ई-कॉमर्स कहा जाता है। वर्ष 2000 में ई-कॉमर्स द्वारा विश्व में लगभग ₹45 खरब का व्यापार हुआ था।

व्यावसायिक पक्ष का एक नया घटनाक्रम एम-कॉमर्स या मोबाइल कॉमर्स है। एम-कॉमर्स के उपभोक्ता इण्टरनेट पर लेन-देन के लिए सचल उपकरणों यथा-सेल्युलर फोन और पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट का उपयोग करते हैं। हालाँकि इन उपकरणों के पर्दे के अत्यधिक छोटा होने, बैण्डविड्थ कम होने (वर्तमान में केवल 9.6 के०बी०पी०एस०) और वेब पृष्ठ पर सूचना पहुँचाने में असुविधा होती है। इसके बावजूद जी० पी० आर० एस०, श्री जी और ब्ल्यूटुथ जैसी अधिक बैण्डविड्थ और तत्काल जोड़ने वाली नई टेक्नोलॉजियों के प्रादुर्भाव के फलस्वरूप एम-कॉमर्स की प्रगति अवश्यम्भावी है।

प्रश्न 6
भारत में ई-कॉमर्स की प्रगति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
या
ई-कॉमर्स के कोई दो लाभ लिखिए। [2013]
उत्तर:
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था ‘नैसकाम’ ने ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भारत की क्षमता का सही तरीके से प्रयोग करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है। इन दोनों के सहयोग से ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं जिससे सॉफ्टवेयर क्षेत्र के अंग्रेजी के ‘ई’ अक्षर से शुरू होने वाले तीन क्षेत्रों – (i) एजुकेशन (शिक्षा), (ii) एण्टरप्रेन्योरशिप (उद्यमिता) तथा (iii) इम्प्लॉयमेण्ट (रोजगार) का अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग कर भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक, सामाजिक, मौद्रिक तथा शैक्षिक नींव को मजबूत करना है। कुल मिलाकर ई-कॉमर्स विशेषज्ञों के अनुसार अगले कुछ वर्षों में विश्व में ई-कॉमर्स से भारी परिवर्तन आएगा।

भारत में ई-कॉमर्स यद्यपि अभी नया है, उद्यमियों को इसकी क्षमता व लाभों का ज्ञान हो गया है। भारत में कम्प्यूटरों की घटती कीमतें तथा इण्टरनेट के बढ़ते उपयोग से ई-कॉमर्स के माध्यम से व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन मिला है।
उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स से निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो रहे हैं

  1. बाजार की वस्तुओं की पूरी जानकारी कम्प्यूटर पर मिल जाती है।
  2. वस्तु का चुनाव करने की सुविधा है।
  3. वस्तुओं के गुण-दोषों का वर्णन पर्दे पर मिलता है।
  4. खरीदारी में किफायत रहती है तथा भाग-दौड़ की बचत होती है।
  5. मोल-भाव करने की सुविधा रहती है।
  6. उत्पादक कम्पनी की पूरी जानकारी कम्प्यूटर पर ही प्राप्त हो जाती है।
  7. उत्पादों की विशेषताओं व कीमतों की तुलना करके चयन से पहले उसकी समीक्षा की जाती है।
  8. उत्पादक कम्पनी द्वारा खरीद्रा गया माल उपभोक्ता के घर तक पहुँचाने की सुविधा है।
  9. भुगतान एकाउण्ट से एकाउण्ट में ट्रान्सफर हो जाता है।

विशेष बात यह भी है कि ई-कॉमर्स व्यापार में भारी लागत वाले, महँगे फुटकर शो-रूमों की आवश्यकता नहीं होती है। एक छोटे से कक्ष में बैठकर सारा व्यापार होता है। इण्टरनेट के द्वारा क्रेता के बैंक खाते से माल का मूल्य विक्रेता के खाते में ट्रान्सफर हो जाता है। भुगतान के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता।

भारत में ई-कॉमर्स का भविष्य अत्यधिक उज्ज्वल है। भारत में ई-कॉमर्स से होने वाला व्यापार 2010 ई० में ₹10,000 करोड़ को पार कर चुका था।

प्रश्न 7
दूरसंचार व कम्प्यूटर क्रान्ति के लाभों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
सूचना क्रान्ति का महत्त्व बताइए। या आर्थिक विकास में दूरसंचार व्यवस्था के महत्त्व को समझाइए। [2013]
या
कम्प्यूटर के कोई दो लाभ लिखिए। [2012]
उत्तर:
दूरसंचार व कम्प्यूटर क्रान्ति के क्षेत्र में भारत की प्रगति आश्चर्यजनक मानी जाती है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं.

  1. इसका उपयोग उपग्रहों की कक्षा का निर्धारण तथा रॉकेट प्रक्षेपण में किया जाता है।
  2. प्रतिरक्षा विज्ञान में कम्प्यूटर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रक्षेपास्त्रों के प्रक्षेपण की प्रणाली कम्प्यूटर पर ही आधारित हैं।
  3. इंजीनियरिंग का प्रत्येक क्षेत्र कम्प्यूटर पर ही आश्रित है।
  4. प्रकाशन व छपाई के क्षेत्र की तो इसने काया ही पलट दी है।
  5. बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा परिवहन सेवाओं में इसकी बड़ी उपयोगिता है।
  6. इसमें मौसम सम्बन्धी पूर्व-जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
  7. चिकित्सा विज्ञान में शल्य चिकित्सा के क्षेत्रों में इसके उपयोग ने मनुष्य के जीवन को सुरक्षित बनाया है।
  8. शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक व परीक्षाफल विश्लेषण आदि में इसका उपयोग लाभ कर रहा है।
  9. उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में इसने गजब की सफलता पायी है।

28 मार्च, 1998 ई० को भारत ने एशिया के सबसे बड़े सुपर कम्प्यूटर का सफल निर्माण करके इस क्षेत्र में अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों के वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी है। कम्प्यूटर वास्तव में मानव के विकास का पर्यायवाची बन गया है।

एक अन्य प्रमुख नेटवर्क नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेन्टर (एन०आई०सी०) के रूप में सामने आया जिसने प्रायः सभी जनपद मुख्यालयों को राष्ट्रीय नेटवर्क से जोड़ दिया। एन०आई०सी० आज देश के विभिन्न भागों में 1,400 स्थलों को अपने नेटवर्क के जरिए जोड़े हुए है। एक नेटवर्क बहुत सूक्ष्म अपरचर टर्मिनल्स (बी०एम०ए०टी०) पर आधारित है। एन०आई०सी० का मुख्य उद्देश्य राजकीय कार्यक्रमों के लिए सूचना जारी करना है। लेकिन बहुत अधिक समय से एन०आई०सी० अर्द्धसरकारी संगठनों के लिए भी बैण्डविड्थ उपलब्ध करा रहा है।

आम आदमी के लिए इण्टरनेट का आगमन 15 अगस्त, 1995 ई० को हुआ, जब विदेश संचार निगम लिमिटेड ने देश में अपनी सेवाओं का आरम्भ किया। शुरू के कुछ वर्षों में इण्टरनेट की पहुँच अत्यधिक धीमी रही, लेकिन हाल के वर्षों में बी० एस०एन०एल० के उपभोक्ताओं की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। 1999 ई० में टेलीकॉम क्षेत्र को निजी कम्पनियों के लिए खोल दिये जाने के परिणामस्वरूप अनेक नये सेवा प्रदाता बेहद प्रतिस्पर्धा विकल्पों के साथ सामने आये। भारत में इण्टरनेट के अनुमानतः 5 लाख कनेक्शन हैं और उसके उपभोक्ताओं की संख्या नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐण्ड सर्विसेज कम्पनीज (नास्कोम) के अनुसार वर्ष 2011 तक 65 लाख के आँकड़े को पार कर चुकी थी और इसमें लगातार बढ़ोतरी जारी थी।

अनेक राज्य सरकारों ने सूचना प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने वाली नीतियाँ अपनायी हैं। इनमें ग्राम स्तर तक सम्पर्क और पहुँच बनाने के उद्देश्य पर मुख्य बल दिया गया है। यदि इन नीतियों का सही रूप में परिपालन हुआ तो सचमुच ये सभी मानव समुदाय से जुड़ जाएँगे। सरकारी एजेन्सियाँ आई०टी० के लाभ को सामान्य जन तक पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। भारतीय रेल द्वारा कम्प्यूटरीकृत आरक्षण, आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा शहरों के मध्य सूचना-प्रणाली की स्थापना तथा केरल सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा फास्ट रिलायबेल इन्सटेण्ट एफीशिएण्ट नेटवर्क फॉर डिस्बर्समेण्ट ऑफ सर्विसेज़ (फ्रेंड्स) जैसी पेशकशों ने इस दिशा में देश के आम नागरिकों की अपेक्षाओं को अत्यधिक बढ़ा दिया है।

प्रश्न 8
भारत की नयी दूरसंचार नीति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2012]
उत्तर:
नयी राष्ट्रीय दूरसंचार नीति–दूरसंचार शब्द का प्रयोग किसी विद्युत संकेत का किसी दूरार्ध क्षेत्र तक संचारित या प्रेषित करने के अर्थ में होता है। 26 मार्च, 1999 ई० को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा नयी संचार नीति की घोषणा की गयी, जो 1 अप्रैल, 1999 ई० से लागू हो गयी। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. दूरसंचार क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ायी जायेगी। शर्तों का विस्तृत ब्योरा TRAS द्वारा किया जायेगा।
  2. सन् 2002 तक सभी को माँग पर फोन उपलब्ध करा दिया जायेगा। देश में टेलीफोन उपलब्धि को 7 प्रति हजार जनसंख्या तथा 2010 ई० तक 15 प्रति हजार जनसंख्या तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सभी गाँवों को 2000 ई० तक दूरसंचार के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया।
  3. घरेलू लम्बी दूरी की कालों (STD) को 1 मार्च, 2002 ई० तक तथा अन्तर्राष्ट्रीय कालों को 1 मार्च, 2004 ई० तक निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
  4. विदेश संचार निगम लि० (VSNL) के एकाधिकार को 21 वर्ष पूर्व ही समाप्त कर दिया। गया हैं।
  5. बुनियादी फोन सेवा के सन्दर्भ में प्राधिकार (दूरसंचार विभाग/महानगर टेलीफोन निगम लि० तथा एक निजी ऑपरेटर) की नीति के स्थान पर अधिक कम्पनियों के प्रवेश की बात स्वीकार कर ली गयी। इनको संख्या ड्रायर द्वारा निर्धारित किया जायेगा।
  6. नीति में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ट्राय के क्षेत्र सेवा प्रदान करने वालों तक सीमित रहेंगे।
  7. दूरसंचार ऑपरेशन विभाग द्वारा धीरे-धीरे मोबाइल सेवा का विस्तार किया जायेगा, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो जाये। उसी क्रिया के स्वरूप सरकारी तथा निजी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं।

प्रश्न 9
भारत में दूरसंचार प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
या
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोगों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2015]
उत्तर:
भारत में दूरसंचार का प्रारम्भ टेलीग्राफी तथा टेलीफोन की खोज के तुरन्त पश्चात् हुआ। प्रथम टेलीग्राफ सेवा का प्रारम्भ कलकत्ता (कोलकाता) और डायमण्ड हार्बर के बीच 1851 ई० में हुआ था। मार्च, 1884 ई० तक आगरा से कोलकाता तक टेलीग्राफ सन्देश भेजे जाने लगे थे। वर्ष 1990 ई० तक भारतीय रेलवे में टेलीग्राफ सेवाएँ शुरू हुईं। टेलीफोन सेवा को प्रारम्भ कोलकाता में वर्ष 1981-82 में हुआ। 700 लाइनों वाले प्रथम स्वचालित एक्सचेंज की स्थापना वर्ष 1913-14 में शिमला में हुई।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से दूरसंचार विभाग के स्तर और सेवाओं में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। एक्सचेंजों की संख्या बढ़कर मार्च, 2014 तक 36,023 हो गई। प्रारम्भ में अधिकांश एक्सचेंज मैनुअल प्रकार के थे, जिन्हें बाद में स्वचालित इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्सचेंजों में बदल दिया गया। गत 15 वर्षों में बड़ी संख्या में डिजिटल टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित हो जाने के बाद दूरसंचार प्रणाली में व्यापक सुधार हुआ है। आज के शत-प्रतिशत टेलीफोन एक्सचेंज इलेक्ट्रॉनिक प्रकार के हैं।

31 मार्च, 2014 ई० तक के आँकड़ों के अनुसार भारत का दूरसंचार नेटवर्क एशिया के विशालतम दूरसंचार नेटवर्कों में गिना जाता है। देश में 36,023 टेलीफोन एक्सचेंज हैं, जिनकी क्षमता 4 करोड़ 66 लाख 60 हजार लाइनें और 9.15 करोड़ टेलीफोन कनेक्शन हैं। लम्बी दूरी के ट्रांसमिशन नेटवर्क में लगभग 2,04,551 रूट किमी रेडियो प्रणाली तथा 3,26,271 रूट किमी ऑप्टिकल फाइबर प्रणाली है। लगभग सभी देशों के लिए आई०एस०डी० (International Subscriber Dialling) सेवा उपलब्ध है। एन०एस०डी० सेवा के साथ 29,362 स्टेशन जुड़े हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संचार क्षेत्र में उपग्रह संचार और जल के नीचे से स्थापित संचार सम्बन्धों द्वारा अपार प्रगति हुई है।

ध्वनि वाली और ध्वनिरहित दूरसंचार सेवाएँ, जिनमें आँकड़ा, प्रेषण फैसीमाइल, मोबाइल रेडियो, रेडियो पेजिंग तथा लीज्ड लाइन सेवाएँ शामिल हैं, जो आवासीय और व्यावसायिक उपभोक्ताओं की विभिन्न जरूरतों की पूर्ति करती हैं। आई०एस०डी०एन० सेवा कुछ शहरों में आरम्भ हो चुकी हैं। कम्प्यूटर संचार सेवाओं के विश्वव्यापी उपयोग के लिए डेडिकेटेड पैकेट स्विच्ड पब्लिक डेटा नेटवर्क भी उपलब्ध है। देश के लगभग 67 प्रतिशत से अधिक गाँवों में टेलीफोन सुविधा उपलब्ध है। वर्तमान में भारत के सभी महानगरों और शहरों, यहाँ तक की ग्रामीण क्षेत्रों में भी सेल्यूलर टेलीफोन सेवा कार्य कर रही है। वर्ष 2014 के आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 56 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
ई-कॉमर्स के प्रमुखता कितने क्षेत्र हैं?
उत्तर:
ई-कॉमर्स के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं

  • व्यापारिक संगठनों के बीच आपसी व्यवहार – इसमें आपूर्तिदाता कम हो जाते हैं और क्रय-विकय में समय तथा श्रम की बचत होती है।
  • अन्तर्सगठनात्मक व्यापारिक गतिविधियाँ – इसका उद्देश्य एक व्यापारिक संगठन के विभिन्न घटकों के बीच सर्वश्रेष्ठ तालमेल कर सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है।
  • फुटकर व्यापार – इसका सम्बन्ध व्यक्तिगत उपभोक्ताओं से है।

प्रश्न 2
इण्टरनेट सेवाओं से आप क्या समझते हैं? [2011]
उत्तर:
इण्टरनेट इण्टरनेशनल नेटवर्क का संक्षिप्त रूप है। यह विश्वव्यापी कम्प्यूटर नेटवर्क है। इसमें सम्पूर्ण विश्व की सूचना एकत्र की जाती है। इण्टरनेट का कनेक्शन रखने वाला व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी विषय पर तत्काल जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस पर आप इलेक्ट्रॉनिक समाचार-पत्र पढ़ सकते हैं, विभिन्न मण्डियों व शेयर बाजार पर नजर रख सकते हैं, अपने उत्पादन एवं सेवाओं का विज्ञापन कर सकते हैं, पुस्तकालयों से आवश्यक सूचना प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान में इण्टरनेट पर कई समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ भी उपलब्ध हैं।

प्रश्न 3
सेल्यूलर फोन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
सूचना वे दूरसंचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सेल्यूलर प्रणाली का विशेष योगदान है। इस प्रणाली द्वारा सन्देश भेजने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में इस प्रणाली में वैप (Wireless Application Protocal-WAP) नामक तकनीक का समायोजन कर इसे और भी सक्षम तथा प्रभावी बना दिया गया है। इस तकनीक से सेल्यूलर फोन के द्वारा इण्टरनेट से सम्बन्ध जुड़ जाता है तथा इससे फैक्स तथा ई-मेल की सुविधा प्राप्त की जा सकती है। भारत में भी कई कम्पनियाँ इस तकनीक से जुड़ चुकी हैं।

भारत में वर्तमान में जी०एस०एम० तकनीक का प्रयोग मुख्य रूप से हो रहा है। मई, 2000 ई० से जी०पी०आर०एस० नामक नयी तकनीक का प्रयोग शुरू हुआ है।

प्रश्न 4
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2010]
उत्तर:
(1) संचार, मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।
(2) अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रहों के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग किया गया है तथा अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई है।

प्रश्न 5
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के कोई दो मुख्य उद्देश्य लिखिए। [2013]
उत्तर:
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के दो मुख्य उद्देश्य निम्नवत् हैं

  1. संचार मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  2. अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रह के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग करना।

प्रश्न 6
ई-कॉमर्स क्या है? [2008, 12, 14, 15, 16]
उत्तर:
ई-कॉमर्स में ‘ई’ शब्द इलेक्ट्रॉनिक का संक्षिप्त रूप है तथा कॉमर्स से अभिप्राय व्यापारिक लेन-देन से है। अत: ई-कॉमर्स से अभिप्राय ऐसे सौदे से है जिसके अन्तर्गत विक्रेता और क्रेता कागज की अदला-बदली किये अथवा बिना एक-दूसरे से मिले इण्टरनेट के माध्यम से लेन-देन करते हैं।

प्रश्न 7
भारत से पूर्व अन्तरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले राष्ट्र कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत से पूर्व अन्तरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले राष्ट्र हैं – संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, जर्मनी, चीन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान तथा इटली। इस प्रकार भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में विश्व का 11वाँ तथा विकासशील देशों में चीन के बाद दूसरा राष्ट्र है।

प्रश्न 8
शिक्षा-क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी के महत्त्व को समझाइए। [2009, 14]
उत्तर:
रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीफोन, टेलीविजन, इण्टरनेट आदि ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है। आज हम घर बैठे विश्व के किसी भी कोने में प्रकाशित सूचना देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं व उसकी प्रगति प्राप्त कर सकते हैं। विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रखी कोई भी पुस्तक, पत्रिका या समाचार-पत्र को देखा जा सकता है। यह सब आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी से ही सम्भव हुआ है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
दूरसंचार क्या है? [2011]
उत्तर:
दूरसंचार शब्द का प्रयोग किसी विद्युत संकेत का किसी दूरार्ध क्षेत्र तक संचरित या प्रेषित करने के अर्थ में होता है।

प्रश्न 2
ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले व्यापार को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले व्यापार को दो भागों में विभक्त किया गया है
(1) थोक व्यापार तथा
(2) खुदरा व्यापार।

  1. थोक व्यापार – इसे को-मैक्रो ई-कॉमर्स तथा
  2. खुदरा व्यापार – इसे माइक्रो ई-कॉमर्स कहा जाता है।

प्रश्न 3
डाक विभाग की नई ‘ई-पोस्ट’ क्या है?
उत्तर:
डाक विभाग ने ई-पोस्ट नाम से एक नई व अत्याधुनिक डाक सेवा 2 अगस्त, 2001 ई० से प्रारम्भ की है। इस सेवा के द्वारा प्रेषित सन्देशों को कुछ घण्टों में ही डाक विभाग द्वारा सम्बन्धित व्यक्ति तक पहुँचाया जा सकता है। इस सेवा में सन्देश किसी भी भाषा में प्रेषित किये जा सकते हैं।

प्रश्न 4
व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में ई-मेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ई-मेल का सर्वाधिक महत्त्व व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है। ई-मेल से तीव्र गति से सन्देश पहुँचाने वाली सेवा वर्तमान में कोई नहीं है। इसके प्रयोग से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। एक पृष्ठ के ई-मेल का व्यय ₹5 (लिफाफे के मूल्य) से भी कम आता है।

प्रश्न 5
भारत में इण्टरनेट की सुविधा कब प्रारम्भ हुई? [2007 ,12, 13, 14]
उत्तर:
भारत में इण्टरनेट की सुविधा 15 अगस्त, 1995 ई० को प्रारम्भ हुई।

प्रश्न 6
इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) क्या है? [2008, 14, 15, 16]
उत्तर:
ई-मेल द्वारा तीव्रगति से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। ई-मेल का सर्वाधिक महत्त्व व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है।

प्रश्न 7
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था का क्या नाम है?
उत्तर:
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था ‘नेस काम’ है।

प्रश्न 8
सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अंग्रेजी के ‘ई’ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले कौन-से तीन क्षेत्र हैं?
उत्तर:
ई अक्षर से प्रारम्भ होने वाले तीन क्षेत्र क्रमशः

  1. एजुकेशन (शिक्षक),
  2. एण्टरप्रेन्योरशिप (उद्यमिता),
  3. एम्प्लॉयमेण्ट (रोजगार) है।

प्रश्न 9
ई-क्षेत्रों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
ई से प्रारम्भ होने वाले तीन क्षेत्रों का अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग कर भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक, सामाजिक, मौद्रिक व शैक्षिक नींव को मजबूत करना है।

प्रश्न 10
इण्टरनेट क्या है? [2007, 09, 10]
उत्तर:
विश्व के विभिन्न स्थानों पर स्थापित टेलीफोन लाइनों अथवा उपग्रहों की सहायता से एक-दूसरे के साथ जुड़े कम्प्यूटरों का नेटवर्क ही इण्टरनेट कहलाता है। वास्तव में देखा जाए तो इण्टरनेट विभिन्न नेटवर्को का एकीकरण रूप ही है।

प्रश्न 11
इण्टरनेट के जन्मदाता कौन हैं? [2011]
उत्तर:
इण्टरनेट के जन्मदाता डॉ० विण्टन जी० सर्फ हैं।

प्रश्न 12
नयी राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की घोषणा कब की गयी? [2008]
उत्तर:
केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा 26 मार्च, 1999 ई० को अनुमोदित नयी दूरसंचार नीति (N.T.P, 1999) की घोषणा की गयी।

प्रश्न 13
ई-मेल सन्देश भेजने की कैसी पद्धति है?
उत्तर:
वन-वे पद्धति।

प्रश्न 14
प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट का प्रक्षेपण किस देश द्वारा किया गया था?
उत्तर:
रूस द्वारा।

प्रश्न 15
ई-मेल इण्टरनेट की कैसी सेवा है?
उत्तर:
डाक सेवा।

प्रश्न 16
ISRO का गठन कब किया गया था? [2008]
उत्तर:
1969 ई० में।

प्रश्न 17
भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम के जनक कौन माने जाते हैं? [2008]
उत्तर:
डॉ० विक्रम साराभाई।

प्रश्न 18
भारत में ‘पेजर सेवा’ सर्वप्रथम कहाँ प्रारम्भ की गई? [2010]
उत्तर:
भारत में ‘पेजर सेवा’ सर्वप्रथम कोलकाता में प्रारम्भ की गई।

प्रश्न 19
‘www’ क्या है? [2011]
उत्तर:
www’ का पूरा नाम world wide Web है। यह एक इण्टरनेट से सूचना प्राप्त करने का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध भाग है।

प्रश्न 20
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन का मुख्यालय कहाँ स्थित है? [2011, 12, 13]
उत्तर:
बंगलुरु में।

प्रश्न 21
TRAI को विस्तृत कीजिए।
उत्तर:
Telecom Regulatory Authority of India.

प्रश्न 22
सर्वप्रथम मनुष्य ने चन्द्रमा की धरती पर कब कदम रखा? [2013, 16]
उत्तर:
सर्वप्रथम मनुष्य ने चन्द्रमा की धरती पर कदम 20 जुलाई, 1969 को रखा।

प्रश्न 23
भारतीय दूरसंचार व्यवस्था के किन्हीं दो प्रमुख साधनों को लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) सेल्यूलर फोन तथा
(2) इण्टरनेट।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
किस सेवा से सामान एवं सेवाओं की ऑन लाइन खरीद-फरोख्त की जाती है? [2009]
(क) ई-मेल
(ख) ई-कॉमर्स
(ग) यूज़नेट
(घ) सेल्यूलर
उत्तर:
(ख) ई-कॉमर्स।

प्रश्न 2
विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र की स्थापना की गई [2008, 11]
(क) तिरुवनन्तपुरम् में
(ख) बंगलुरु में
(ग) मुम्बई में
(घ) अहमदाबाद में
उत्तर:
(क) तिरुवनन्तपुरम् में।

प्रश्न 3
ई-कॉमर्स की सुरक्षा का सम्बन्ध है [2007]
(क) हैकिंग से।
(ख) ब्राण्ड अपहरण से
(ग) वायरस से
(घ) इनमें से सभी से
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी से।

प्रश्न 4
भारत में नवीन दूरसंचार नीति की घोषणा की गई थी [2009, 13, 15]
(क) 26 मार्च, 2006 को
(ख) 20 जुलाई, 2007 को
(ग) 26 जनवरी, 2001 को
(घ) 26 मार्च, 1999 को
उत्तर:
(घ) 26 मार्च, 1999 को।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किसके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का ऑन लाइन क्रय-विक्रय किया जाता है? [2009]
(क) मोबाइल फोन
(ख) ई-कॉमर्स
(ग) फैक्स
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) ई-कॉमर्स।

प्रश्न 6
अन्तरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र स्थित है [2009]
(क) केरल में
(ख) आन्ध्र प्रदेश में
(ग) कर्नाटक में
(घ) गुजरात में
उत्तर:
(घ) गुजरात में।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(क) वर्ष 1995 में भारत में इण्टरनेट की सुविधा प्रारम्भ हुई।
(ख) भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 1969 में हुई।
(ग) वर्ष 1997 में भारत में वैप (WAP) तकनीक का प्रारम्भ हुआ।
(घ) मल्टीमीडिया आधुनिक कम्प्यूटर का आवश्यक अंग है।
उत्तर:
(ग) वर्ष 1997 में भारत में वैप (WAP) तकनीक का प्रारम्भ हुआ।

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