UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 18 शिशु की देखभाल

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 18
Chapter Name शिशु की देखभाल
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 18 शिशु की देखभाल

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
शिशु के शारीरिक क्रिया का प्रथम परीक्षण है।
(a) वमन
(b) दस्त
(c) रुदन
(d) हँसना
उत्तर:
(c) रुदन

प्रश्न 2.
शिशु के जन्म के समय भार होता है।
(a) लगभग 5-7 पौण्ड
(b) लगभग 7-8 पौण्ड
(c) लगभग 2-3 पौण्ड
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) लगभग 5-7 पौण्ड

प्रश्न 3.
माँ का दूध शिशु के लिए उपयोगी है, क्योंकि (2018)
(a) इसमें रोग से लड़ने की क्षमता होती है
(b) इसमें सभी पोषक तत्त्व पाए जाते हैं
(c) यह शीघ्र पचता है
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
शिशु की किस अवस्था में स्तन त्याग करना चाहिए?
(a) 5 से 7 माह
(b) 6 से 9 माह
(c) 8 से 9 माह
(d) 4 से 5 माह
उत्तर:
(b) 6 से 9 माह

प्रश्न 5.
दूध के अतिरिक्त अन्य सम्पूरक आहार शिशु की किस आयु से शुरू होता है?
(a) 2 माह
(b) 6 माह
(c) 1 वर्ष
(d) 2 वर्ष
उत्तर:
(b) 6 माह

प्रश्न 6.
शिशु में अस्थायी दाँत (दूध के दाँत) की संख्या है।
(a) 20
(b) 22
(c) 24
(d) 30
उत्तर:
(a) 20

प्रश्न 7.
शिशु में लघु पाचक व्याधि है।
(a) अतिसार
(b) घेघा
(c) खसरा
(d) ज्वर
उत्तर:
(d) अतिसार

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक, 25 शब्द)

प्रश्न 1.
शिशु का भार क्यों ज्ञात करते रहना चाहिए?
उत्तर:
जन्म के तुरन्त बाद शिशु का भार लगभग 5-7 पौण्ड तक होता है, जो धीरे-धीरे कम होकर कुछ औंस में बदलता है। अत: एक महीने तक हर हफ्ते तथा 6 माह तक हर 15 दिन के पश्चात् भार ज्ञात करते रहने चाहिए, जिससे बच्चे की प्रगति ज्ञात होती रहती है।

प्रश्न 2.
स्तन त्याग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शिशु की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी शारीरिक वृद्धि भी तीव्र गति से बढ़ती है। इस वृद्धि के कारण उसकी भूख भी बढ़ती है, जिससे उसे अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। अतः अब उसे माँ के दूध के अतिरिक्त भी भोजन की आवश्यकता होगी। इस स्थिति में माँ को शिशु के लिए अतिरिक्त भोजन तथा ऊपरी दूध पिलाने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए उसे बच्चे को स्वयं का स्तनपान छुड़ाना होता है, इसे ही स्तन त्याग कहते हैं।

प्रश्न 3.
दूध के दाँत से आप क्या समझती हैं? |
उत्तर:
शिशुओं में दाँत निकलने का समय 6-7 माह के बाद का होता है। दाँत निकलने की यह प्रक्रिया 2 से [latex]2 \frac { 1 } { 2 }[/latex] वर्ष तक होती है, जिसमें 20 दाँत निकलते हैं।इन्हें दूध के दाँत कहते हैं।

प्रश्न 4.
दाँत आसानी से निकल आए इसके लिए क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
सुहागा को तवे पर भूनकर शहद मिलाकर मसूड़ों पर लगाने से दाँत जल्दी व आसानी से निकलते हैं।

प्रश्न 5.
शिशुओं में लघु पाचक व्याधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
कब्ज, पेट फूलना, दस्त आना, अतिसार, वमन (उल्टियाँ), पेट दर्द होना, चुनचुने लगना आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक, 50 शब्द)

प्रश्न 1.
स्तनपान छुड़ाने की विधि लिखिए। (2018)
उत्तर:
शिशु जैसे-जैसे बड़ा होता है उसका स्तनपान बन्द करके उसे पूरी तरह ठोस आहार पर निर्भर बनाना होता है, क्योंकि एक समय बाद शारीरिक और मानसिक विकास की जरूरत केवल स्तनपान से पूरी नहीं हो सकती है। अत: स्तनपान छोडना शिश के लिए जरूरी होता है। माँ शिशु को 6 महीने बाद स्तनपान कराना बन्द कर सकती है, क्योंकि इस उम्र के बाद बच्चे कुछ ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं। ऐसे में, आप धीरे-धीरे करके उसे अपना दूध पिलाना बन्द करें। हालाँकि जब आपका शिश ठोस आहार लेना शुरू कर देता है। तब वह आपकों ज्यादा दूध पीने की माँग नहीं करता है, क्योंकि इससे शिशु का पेट भरा रहता है, लेकिन बाहरी आहार देने के बाद इस बात की जाँच कर लें कि आपके बच्चे का पेट भर रहा है या नहीं।

धीरे-धीरे स्तनपान छुड़ाने का प्रयास करें, न की एक बार में अचानक से बच्चे को दूध पिलाना छोड़ दें। यदि आप अचानक से बच्चे को स्तनपान छुड़ाने की कोशिश करेंगी तो हो सकता है कि आपका बच्चा बीमार हो जाए। एक बार में स्तनपान छुड़ाना माँ और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

यदि आप शिशु को पहले पूरे दिन में 6 बार स्तनपान कराती थीं, तो अब उसे आप 2 से 3 बार दूध पिलाएँ, क्योंकि दिन के समय आप अपने बच्चे का दिमाग किसी और चीज़ों में लगा सकती हैं और ऐसे में शिशु धीरे-धीरे दूध स्तनपान करना बन्द कर देता है।

प्रश्न 2.
स्तन त्याग के पश्चात् शिशु को किस प्रकार का आहार देना चाहिए?
उत्तर:
स्तन त्याग के बाद शिशु का सर्वांगीण विकास हो सके, अत: उसके लिए भोजन में शरीर निर्माणक व रक्षक दोनों प्रकार के तत्त्व उचित मात्रा में मिले होने चाहिए। शिशु के भोजन में दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, आलू, गेहूँ, दालें सम्मिलित होनी चाहिए। इससे शिशु को शारीरिक व मानसिक विकास उचित रूप से होगा। अतः शिशु के आहार में निम्नलिखित तत्त्व होने चाहिए

1. प्रोटीन यह शरीर निर्माणक तत्त्व है। यह कोशिका निर्माण का प्रमुख पदार्थ है। प्रोटीन की कमी के लिए बच्चे के आहार में दूध, गोभी, गाजर, पनीर, मटर, शलजम और हरी पत्तेदार सब्जियाँ, दालें, बादाम, लेकिन मांसाहारी हैं तो गोश्त, अण्डे इत्यादि भी दिए जा सकते हैं।

2. वसा शिशु को वसा की प्राप्ति के लिए मक्खन, कॉड लीवर ऑयल देना चाहिए। वैसे तो शिशु को वसा अपनी आवश्यकतानुसार दूध से ही प्राप्त हो जाती है।

3. कार्बोहाइड्रेट 6 महीने में शिशु काफी क्रियाशील हो जाती है। उसे ऊर्जा की प्राप्ति की भी आवश्यकता होती है। अतः उसके आहार में दलिया, चावल, डबलरोटी, साबुदाना, शकरकन्दी इत्यादि देनी चाहिए।

4. विटामिन दूध, दही, मछली, टमाटर, पनीर, गाजर, अण्डे, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ इत्यादि शिशु के आहार में होनी चाहिए।

5. खनिज लवण शिशु को कैल्शियम, फास्फोरस, खनिज लवण की अधिक आवश्यकता होती है। खनिज लवण की प्राप्ति के लिए शिशु के आहार में अण्डा, पनीर, दही, फलों का रस, हरी सब्जियों का सूप, केला, सेब इत्यादि देने चाहिए।

प्रश्न 3.
शिशु के दाँत निकलते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर:
शिशु के दाँत निकलते समय माता को निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए

  1. दाँत निकलते समय बच्चे के मसूड़े फूले हुए होते हैं, अतः मसूड़ों में मिस-मिसी-सी आती है तथा बच्चा कठोर वस्तु चबाने का प्रयत्न करता है। ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा किसी अस्वच्छ कठोर वस्तु को न चबाए, अन्यथा कीटाणु शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसे रोगी बना देंगे। इस समय डबलरोटी सेंककर, गाजर, खीरा इत्यादि बच्चे को देना चाहिए।
  2. सुहागा तवे पर भूनकर पीसकर उसे शहद में मिलाकर मसूड़ों पर लगाना | चाहिए। यह दाँत निकलने में सहायता करता है।
  3. बच्चा 6-7 माह के पश्चात् अन्न खाने लगता है। अत: बच्चे के दाँत साफ करने चाहिए। टूथ-ब्रुश से बच्चे के दाँत नहीं साफ करने चाहिए, इससे बच्चे के मसूड़े छिलने का भय रहता है, इसलिए हाथ की अँगुली में मंजन लगाकर धीरे-धीरे दाँत साफ करने चाहिए।
  4. बच्चों को विटामिन डी, कैल्शियम, फास्फोरस दवा या टॉनिक के रूप में दे देने चाहिए। होम्योपैथिक की 20 नं. या B21 नं, दवाई की गोलियाँ भी दाँतों के लिए अच्छी रहती हैं, बच्चों को दे देनी चाहिए।
  5. चूने का पानी पिलाना चाहिए, इससे कैल्शियम मिलता है।

प्रश्न 4.
शिशुओं के वस्त्र तैयार करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
टिप्पणी कीजिए- शिशु के वस्त्र का चुनाव (2018)
उत्तर:
छोटे शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सर्वप्रथम कपड़ा बच्चे के अनुकूल लेना चाहिए।
  2. ऐसे वस्त्र बनाए जाने या खरीदने चाहिए, जो आसानी से पहनाए जा सकें।
  3. शिशु के वस्त्र सामने या पीछे से खुले होने चाहिए।
  4. शिशु के वस्त्रों में अन्दर दबाव काफी रखना चाहिए। शिशु की लम्बाई तीव्र गति से बढ़ती है, इसलिए जरूरत पड़ने पर वस्त्र खोलकर बड़ा किया जा सकता है।
  5. घुटने चलने वाले बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए, ताकि घुटने में न अटके।
  6. शिशु के वस्त्रों में बटन, डोरी कम होनी चाहिए।
  7. बच्चों के ऊनी वस्त्र बारीक व मुलायम ऊन के होने चाहिए, मोटी ऊन के वस्त्र बच्चों को चुभते हैं। वस्त्र रोएँदार भी नहीं होने चाहिए, अन्यथा रोया बच्चे के मुँह में चला जाता है।
  8. शीतऋतु में बच्चे को स्वेटर प पजामी के साथ टोपी-मौजे पहनाने चाहिए, किन्तु टोपी-मौजे रात को पहनाकर कदापि नहीं सुलाना चाहिए।
  9. शिशु की बिब अवश्य बनानी चाहिए, ताकि खाना खाते समय कपड़े गन्दे न करें।
  10. शिशु के वस्त्र में कभी बटन टूट जाए, तो पिन लगाकर नहीं पहनाने चाहिए

प्रश्न 5.
शिशुओं में नियमित उत्सर्जन की आदत का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
शिशु में नियमित उत्सर्जन की आदत का निर्माण इस प्रकार किया जाता है

  1. शिशु में मल-मूत्र त्यागने की आदत का निर्माण शुरू से ही डालनी चाहिए। शिशु के जन्म से 6 माह तक मल त्याग का समय निश्चित नहीं होता। कुछ शिशु दिन में 5-6 बार तथा कुछ 2-3 बार मल त्याग करते हैं।
  2. जब शिशु भोजन ग्रहण करने लगता है, तो उसके मल त्याग का समय भी निश्चित हो जाता है। यह आदत भी शिशुओं में डाली जाती है, अन्यथा उनके पेट में कब्ज सहित अनेक बीमारियाँ होने लगती हैं।
  3. मल-मूत्र त्यागने के पश्चात् शिशु स्वयं तो सफाई नहीं कर सर्कता। अतः माता को चाहिए कि उसके अंगों को भली-भाँति साफ करें और पुनः सूखे पोतड़े या नए डायपर पहनाएँ।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक, 100 शब्द)

प्रश्न 1.
दाँत निकलते समय शिशु को कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है? दाँत निकलने के सन्दर्भ में संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:

दाँत निकलना
जन्म के समय शिशु के दाँत नहीं होते। दाँत निकलने का सही समय 6-7 महीने के बाद का होता है। कुछ शिशुओं को आठवें माह में दाँत निकलते हैं। दाँत निकलने की यह प्रक्रिया 2 से [latex]2 \frac { 1 } { 2 }[/latex] वर्ष तक चलती है, जिसमें लगभग शिशु को 20 दाँत निकलते हैं। इस अवस्था तक प्राय: प्रत्येक शिशु का आहार दूध ही होता है, अतः इन्हें दूध के दाँत कहते हैं।

दाँत निकलने के लक्षण
दाँत निकलते समय शिशु को कई परेशानियाँ होती हैं, जो निम्नलिखित हैं।

  1. मसूड़े सूजने लगते हैं तथा शिशु प्रत्येक वस्तु को अपने मसूड़ों से बल लगाकर दबाने की कोशिश करता है।
  2. दस्त आना, ज्वर आना, मुँह से लार बहना तथा सिर हमेशा गर्म रहता है।
  3. दाँत निकलते समय शिशुओं में चिड़चिड़ापन आता है तथा बार-बार दस्त आने की वजह से वह काफी कमजोर हो जाता है।

दाँत निकलते समय सावधानियाँ इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

दाँत निकलने का क्रम व स्वच्छता
सबसे पहले शिशु के नीचले दो दाँत निकलते हैं। किसी-किसी शिशु के कुछ ऊपरी दाँत पहले निकलते हैं। दाँतों के निकलने का क्रम इस प्रकार है।

  • कुतरने वाले दाँत (कृन्तक) 6 से 8 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 2 होती है।
  • पार्श्व कृन्तक 8 से 10 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।
  • पीसने वाले दाँत 12 से 16 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 6 होती है।
  • कीले 18-22 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।
  • दाढ़ 22-24 माह के अन्दर निकलती हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।

दाँत निकलने के पश्चात् इनकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। सुबह-शाम पेस्ट कराएँ। मीठी वस्तु कम खिलाएँ। समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

प्रश्न 2.
शिशुओं में होने वाली तीन लघु पाचक बीमारियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
शिशुओं में होने वाली तीन लघु पाचक बीमारियाँ निम्नलिखित हैं।

कब्ज
लक्षण

  1. शिशु शौच नियमित समय पर नहीं करता है।
  2. मेल बहुत कड़ा होता है व कठिनाई से होता है।
  3. मल 2-3 दिन में एक बार होता है।

कारण

  1. शिशु को दूध की सही मात्रा न मिलने पर (दूध की मात्रा अधिक हो या कम)
  2. भोजन सही न हो या पेट में कोई खराबी हो।
  3. माँ के भोजन में कुछ कमी होने पर।

उपचार

  1. शिशु को उबला हुआ पानी पिलाना चाहिए।
  2. शिशु के दूध में देशी लाल रंग की चीनी ज्यादा डालनी चाहिए।
  3. मुनक्का या अंजीर दूध में पकाकर देना चाहिए।
  4. एक-दो बूंद जैतून का तेल देने से भी कब्ज दूर होता है।
  5. शिशु को हरी साग-सब्जी का सूप पिलाना चाहिए।

दस्त
शिशु को जहाँ कब्ज होता है, वहीं दस्त भी जल्दी हो जाते हैं। दस्त के लक्षण निम्नलिखित हैं।

लक्षण

  1. शिशु को शौच कई बार आती है।
  2. शौच झागदार, पतले होते हैं।
  3. इनका रंग अलग-अलग हो सकता है।

कारण

  1. दूध में चिकनाई ज्यादा होने पर।
  2. दूध के हजम न होने पर।
  3. निपिल व बोतल की स्वच्छता न होने पर।
  4. माता के दूध में कुछ कमी होने पर।
  5. दूध के बदल जाने पर अर्थात् माँ का दूध छुड़ाकर डिब्बे का दूध देते हैं।

उपचार

  1. यदि दस्त के समय गाय या भैंस का या डिब्बे का दूध दिया जा रहा है, तो उसे बन्द करके माँ का दूध ही पिलाना चाहिए। फिर धीरे-धीरे दूसरा दूध देना आरम्भ करना चाहिए।
  2. बाल जीवन घुट्टी ठण्डे पानी में घोलकर बच्चे को पिलानी चाहिए।
  3. पान व बादाम भी घिसकर देना चाहिए।
  4. अनार का छिलको घिसकर देने से भी दस्तों में आराम मिलता है।
  5. यदि कोई भी दूध हजम नहीं हो रहा हो तो दूध फाड़कर फटे दूध का पानी | पिलाना चाहिए।

पेट में दर्द होना
लक्षण

  1. पेट कड़ा होने लगता है।
  2. पेट फूल जाता है।.
  3. दर्द होने के कारण बच्चा बहुत रोता है।
  4. बच्चा दध नहीं पीता है।
  5. अपनी टाँगें पेट की ओर सिकोड़ने लगता है।

कारण

  1. दूध में प्रोटीन व शक्कर की मात्रा ज्यादा होने पर।
  2. पेट में वायु इकट्ठी होने पर।
  3. गाढ़ा दूध पिलाने पर।
  4. दस्त ज्यादा होने पर
  5. माता का ठण्डी वस्तुएँ खाने पर।

उपचार

  1. शिशु का पोतड़ा लेकर उसे प्रेस से गर्म करके सिकाई करनी चाहिए।
  2. नाभि के चारों ओर हींग-नमक को पानी में घोलकर रुई से लगा देनी चाहिए।
  3. हींग व काला नमक का घोल बनाकर एक-दो चम्मच पिला देना चाहिए।
  4. सरसों के तेल में लहसुन व अजवाइन पकाकर पेट, पर मल देना चाहिए।
  5. शिशु के दूध में चूने का पानी मिलाकर देना चाहिए।

प्रश्न 3.
टिप्पणी लिखिए-
(i) दूध हजम न होना
(ii) चुनचुने होना
(iii) अतिसार
(iv) वमन
उत्तर:

दूध हजम न होना
लक्षण

  1. दूध पीने के तुरन्त बाद बच्चा दूध निकालने लगता है।
  2. दूध फटा-फटा-सा होता है।

कारण

  1. कुछ बच्चों को ऊपर का दूध हजम नहीं होता है।
  2. दूध ज्यादा पीने पर भी हजम नहीं होता है।
  3. दूध में कुछ कमी हो जाने पर भी ऐसा होता है।
  4. बच्चे की तबीयत सही न होने पर।

उपचार

  1. ऊपर का दूध हजम नहीं हो रहा हो तो माँ का दूध पिलाना चाहिए। यदि | माँ का दूध नहीं मिल पा रहा है तो फटे दूध का पानी देना चाहिए।
  2. दूध पिलाने के बाद डकार दिलानी चाहिए।
  3. सुहागा दूध में मिलाकर देना चाहिए।
  4. बाल जीवन घुट्टी देनी चाहिए।
  5. बच्चे को बिस्तर पर खुला छोड़ दीजिए, जिससे वह हाथ-पैर चला | सके, इससे उसका व्यायाम होता है।

चुनचुने होनी
लक्षण

  1. बच्चा रात में रोता है।
  2. मलद्वार लाल हो जाता है।
  3. सोते समय दाँत किट-किटाते हैं।
  4. बच्चे का रंग पीला पड़ने लगता है व कमजोर हो जाता है।
  5.  शिशु बार-बार मलद्वार को खुजाता है।

कारण

  1. पेट में बारीक-बारीक कीड़े हो जाते हैं।
  2. ये कीड़े मलद्वार में भी हो जाते हैं।
  3. दूध की अस्वच्छता के कारण।
  4. दूध में अधिक शक्करे होने पर।
  5. मलद्वार की सफाई ठीक से न होने पर।

उपचार

  1. मलद्वार की सफाई ढंग से करनी चाहिए।
  2. रात्रि के समय मलद्वार में सरसों का तेल लगा देना चाहिए।
  3. पोतड़े साफ पहनाने चाहिए।
  4. स्वच्छ बोतल में स्वच्छ दूध देना चाहिए।

अतिसार
लक्षण

  1. दस्तों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाती है।
  2. मल पतला, पीला या राख के रंग का फेनदार होता है।
  3. मल दुर्गन्धयुक्त होता है।
  4. बच्चे को ज्वर हो जाता है।

कारण

  1. दाँत निकलने के समय भी यह रोग हो जाता है।
  2. जीवाणुओं के संक्रमण के कारण।
  3. यकृत की खराबी के कारण।
  4. शक्कर की मात्रा अधिक हो जाने पर।
  5. सब्जी की ज्यादा मात्रा देने पर।

उपचार

  1. शिशु को दूध कम देना चाहिए।
  2. पानी उबालकर पिलाना चाहिए।
  3. दूध पिलाने वाली माँ को भी पानी अधिक पीना चाहिए।
  4. अंगूर का रस, सन्तरे का रस देना चाहिए।
  5. बच्चे के आहार में पूर्णरूपेण सफाई रखनी चाहिए।

वमन
लक्षण

  1. कई बार बच्चा उल्टी करता है।
  2. बच्चे को कब्ज, तेज बुखार हो जाता है।
  3. बच्चा जो कुछ खाता है, तुरन्त उल्टी कर देता है।

कारण

  1. जब बच्चा अधिक दूध पी लेता है।
  2. बीमार होने पर।
  3. बच्चे को दूध पिलाने के बाद उछाला जाए या डकार न दिलाई जाए।

उपचार

  1. दूध पिलाने के बाद डकार दिलानी चाहिए।
  2. सुपाच्य वस्तु खाने को देनी चाहिए।
  3. सुहागा शहद में मिलाकर चटाना चाहिए।
  4. दूध कुछ समय तक नहीं पिलाना चाहिए।

प्रश्न 4.
एक नवजात शिशु की देखभाल करते समय किन-किन बातों पर बल दिया जाना चाहिए? (2018)
उत्तर:
नवजात शिशु की देखभाल Care of New Born शिशु के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। बच्चे के जन्म के बाद बच्चे को माँ का दूध सही तरीके से और पर्याप्त मात्रा में कैसे मिले, उसके पहनने के कपड़े कैसे हों, उसका बार-बार रोना, बार-बार नेपी गन्दा करना आदि बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। नवजात शिशु की देखभाल का सबसे पहला और जरूरी हिस्सा है कि उसे जन्म के तुरन्त बाद बच्चों के डॉक्टर (Pediatrician) को दिखाकर निश्चित कर लेना चाहिए कि बच्चा बिल्ल ठीक है।

नवजात शिशु अपना अधिकतर समय सोने में व्यतीत करते हैं, परन्तु बच्चे को प्रत्येक कुछ घण्टों के बाद जगा देना चाहिए। और जागने पर उसे अच्छी तरह से आहार देना, चाहिए। आपको उसकी नियमित दिनचर्या में आने वाले परिवर्तन के बारे में विशेष रूप से सजग रहना चाहिए, क्योंकि यह किसी गम्भीर बिमारी के लक्षण हो सकते हैं। यदि वह बहुत अधिक थका हुआ अथवा उनींदा नज़र आए, बहुत कम सजग दिखाई दे और आहार लेने के लिए न जागे, तो आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

नवजात शिशु को साँस लेने के सामान्य तरीके पर स्थिर होने के लिए अर्थात् प्रति मिनट 20-40 साँस लेना शुरू करने के लिए सामान्य रूप से कुछ घण्टे का समय लगता है। अक्सर जब वह सो रहा होता है, तो वह सबसे अधिक नियमित रूप से साँस लेता है। कभी-कभी जब वह जागता है, तो बहुत थोड़ी देर के लिए तेजी से साँस ले सकता है और उसके बाद सामान्य तरीके पर लौट सकता है।

यदि आपको निम्नलिखित में से कुछ नजर आए, तो आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए

  1. लगातार तेज साँस लेना अर्थात् यदि उसकी आयु दो माह से कम है, तो प्रति मिनट साठ से अधिक साँस लेना अथवा यदि उसकी आयु 2-3 माह है, तो प्रति मिनट पचास से अधिक साँस लेना।
  2. साँस लेने के लिए प्रयास करना पड़ रहा हो और निगलने में कठिनाई हो रही हो।.
  3. साँस लेते समय नथुने चौड़े दिखाई देते हों।
  4. त्वचा और होंठों का रंग साँवला अथवा नीला दिखाई देता हो।

कई बार बच्चे को पेट निरन्तर फूला हुआ और कठोर महसूस हो रहा है और साथ ही उसने एक दिन अथवा अधिक समय से मल त्याग नहीं किया हो या पेट की गैस नहीं निकली है अथवा वह बार-बार उल्टी कर रहा हो, तो आपको उसे तत्काल डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि यह आँतों से सम्बन्धित गम्भीर समस्या हो सकती है। जब कभी भी आपको बच्चा असामान्य तौर पर चिड़चिड़ा अथवा गर्म महसूस हो, तो उसका तापमान मापें। कान का तापमान मापना ज्यादा सुरक्षित विकल्प है और 3 माह से कम आयु के बच्चों के लिए ऐसा करने की विशेष सलाह दी जाती हैं।

यदि कान का तापमान 37.3°C/99.1°F से अधिक है अथवा कान का तापमान 100.4°F से अधिक है, तो आपको उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण का लक्षण हो सकता है। जल्दी चिकित्सीय सहायता मुहैया करना आवश्यक है, क्योंकि छोटे बच्चों की स्थिति बहुत जल्दी खराब हो सकती है।

शिशुओं में आसानी से और जल्दी ही पानी की कमी हो जाती है। सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन कर रहा है, विशेषकर जब वह उल्टी कर रहा हो अथवा उसे दस्त लग गए हों। पिछले 24 घण्टों में उसके द्वारा पीए गए दूध की मात्रा की गणना करें और इसकी उसके सामान्य आहार से तुलना करें, जोकि पहले महीने के दौरान प्रतिदिन 10-20 आउंस (300-600 मिली) होती है।

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