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Board | UP Board |
Textbook | SCERT, UP |
Class | Class 12 |
Subject | Sahityik Hindi |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | राजनीतिक निबन्ध |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi राजनीतिक निबन्ध
1. भारत में लोकतन्त्र का भविष्य
अन्य शीर्षक भारतीय लोकतन्त्र एवं राजनीति
संकेत बिन्दु प्रजातन्त्र का अर्थ, भारत में प्रजातन्त्र का गठन, प्रजातन्त्र के प्रकार, सरकार के अंग, प्रजातन्त्र के लाभ, प्रजातन्त्र से हानियां, उपसंहार।
प्रजातन्त्र का अर्थ ‘प्रजातन्त्र’ शब्द ग्रीक भाषा से अवतरित अंग्रेजी शब्द ‘Democracy’ का हिन्दी रूपान्तर है, जिसका अर्थ होता है-प्रजा अर्थात् जनता द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था। वैसे तो प्रजातन्त्र की कई परिभाषाएँ अब तक दी गई है, किन्तु उनमें अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई परिभाषा सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित है। उनके अनुसार, “प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है।”
इस तह, प्रजातन्त्र में जनता में ही प्रशासन की सम्पूर्ण शक्ति विद्यमान होती है, उसकी सहमति से ही शासन होता है एवं उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य होता है। हालाँकि सभ्यता की शुरूआत में शासन व्यवस्था के रूप में राजतन्त्र की ही प्रमुखता थी, किन्तु इस शासन व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह थी कि प्रायः इसमें आम जनता को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होता था।
भारत में प्रजातन्त्र का गठन आज प्रजातन्त्र एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में उभर चुका है और भारत विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यदि हम भारतीय इतिहास पर नजर डालें, तो तीसरी शताब्दी में भारत के सोलह जनपदों में वैशाली एक ऐसा जनपद था, जहाँ गणतान्त्रिक शासन व्यवस्था विद्यमान थी, किन्तु आधुनिक प्रजातन्त्र की उत्पत्ति का स्थल यूरोप को ही माना जा सकता है, क्योकि इसकी नींव मध्यकाल की बारहवीं एवं तेरहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न यूरोपीय देशों में राजतन्त्र के विरोध के साथ पड़ी। यूरोप में पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों ने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्तों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आन्दोलनों ने व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल दिया तथा राजा की शक्ति को सीमित करने के प्रयत्न किए।
प्रजातन्त्र के प्रकार सामान्यतः प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था दो प्रकार की मानी जाती है-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र एवं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र। वह शासन व्यवस्था जिसमें देश के समस्त नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्य कार्य में भाग लेते हैं, प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहा जाता है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।
व्यवस्था के दृष्टिकोण से प्रजातन्त्र के दो रूप होते हैं—संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक। संसदात्मक व्यवस्था में जनता एक निश्चित अवधि के लिए संसद सदस्यों का निर्वाचन करती हैं। संसद द्वारा मन्त्रिमण्डल का निर्माण होता है। मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति एवं संसद सदस्य जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संसदात्मक प्रजातन्त्र में राष्ट्रपति यद्यपि सर्वोच्च पद पर आसीन होता है, किन्तु वह नाममात्र का शासक होता है। भारत में शासन प्रणाली की संसदात्मक व्यवस्था है। अध्यक्षात्मक प्रजातन्त्र प्रणाली में राष्ट्रपति सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। अमेरिका जैसे देशों में ऐसी ही प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था है।
सरकार के अंग प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में सरकार के तीन अंग होते हैं—विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका। विधायिका का कार्य कानून का निर्माण करना, कार्यपालिका का कार्य उन कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन करना एवं न्यायपालिका का कार्य कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को दण्डित करना है। इस प्रकार सरकार के तीनों अंग प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था को सशक्त बनाते हैं।
प्रजातन्त्र के लाभ प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के अनेक लाभ हैं। प्रजातान्त्रिक शासन में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाता है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिए पूर्ण अवसर प्रदान कराता है। जिस तरह व्यक्ति और समाज को अलग करके दोनों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती, ठीक उसी प्रकार प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में प्रजा और सरकार को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता।
प्रजातन्त्र से हानियाँ प्रजातन्त्र के कई लाभ हैं, तो कई हानियां भी हैं। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता शिक्षित हो एवं अपना हित समझती हो। जनता के अशिक्षित होने की स्थिति में स्वार्थी लोग धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर लोगों को भ्रमित कर सत्ता में आ जाते हैं। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि धनी एवं भ्रष्टाचारी लोग गरीब जनता को धन का प्रलोभन देकर या अपने प्रभाव से सत्ता पाने में कामयाब रहते हैं। प्रौद्योगिकी में विकास के बाद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आम चुनाव में शामिल करने से यद्यपि चुनाव में होने वाले भ्रष्टाचार में कमी हुई है, किन्तु यदि जनता समझदार न हो तो अभी भी भ्रष्ट उम्मीदवार को निर्वाचित होने से नहीं रोका जा सकता। प्रजातन्त्र के बारे में मुहम्मद इकबाल ने लिखा है
जम्हूरियत वह तर्ज-ए-हुकूमत है कि जिसमें,
बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।”
अर्थात् प्रजातन्त्र ऐसी शासन व्यवस्था है, जिसमें बहुमत के आधार पर जन-प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता हैं न कि उम्मीदवारों की योग्यता के आधार पर। इस तरह यदि जनता शिक्षित एवं समझदार न हो तो इस बात की सम्भावना है कि वह ऐसे आदमी को बहुमत दे, जो योग्य न हो। प्रजातन्त्र की एक और कमी यह है कि जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं करती, बल्कि शासन के लिए प्रतिनिधि चुनती हैं। चुने गए प्रतिनिधि के जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में, देश एवं समाज का कभी भला नहीं हो सकता। इसलिए राजनीतिशास्त्र के विद्वान् प्लेटो ने प्रजातन्त्र को मुख का शासन कहा है। प्रजातन्त्र का एक और दोष यह है कि न्यायपालिका सरकार का मुख्य अंग होने के बावजूद समय पर न्याय नहीं कर पाती, क्योंकि न्यायपालिका पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं होता।
उपसंहार निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि यदि जनता अशिक्षित हो या अधिक समझदार न हो तब प्रजातन्त्र की कमियाँ अधिक बढ़ सकती हैं, किन्तु यदि जनता शिक्षित एवं समझदार हो तो इसे सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कहा जा सकता है, क्योंकि इस प्रणाली में ही जनता को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार होता है। निश्चय ही आज कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में प्रजातन्त्र का भविष्य दीर्घकालिक एवं सुखद है।
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