UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)

प्रश्न 1.
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।’ [2012, 13, 14, 16, 17, 18]
उत्तर
ध्रुवयात्रा’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी है। जैनेन्द्र जी मुंशी प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रणी कहानीकार हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर इन्होंने हिन्दी कहानी-कला के क्षेत्र में एक नवीन अध्याय को जोड़ा है। प्रस्तुत कहानी में इन्होंने मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन धारी को जन्म दिया और कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ की रचना की। इस कहानी का सारांश निम्नवत् है राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुवे को जीतकर अर्थात् उत्तरी ध्रुव की यात्रा करके यूरोप के नगरों से बधाइयाँ लेते हुए भारत आ रहे हैं इस खबर को सभी समाचार पत्रों ने मुखपृष्ठ पर मोटे अक्षरों में प्रकाशित किया। उर्मिला, जो राजा रिपुदमन की प्रेमिका है और जिसने उनसे विवाह किये बिना उनके बच्चे को जन्म दिया है, ने भी इस समाचार को पढ़ा। उसने यह भी पढ़ा कि वे अब बम्बई पहुँच चुके हैं, जहाँ उनके स्वागत की तैयारियाँ जोर-शोर से की जा रही हैं। ………. उन्हें अपने सम्बन्ध में इस प्रकार के प्रदर्शनों में तनिक भी उल्लास नहीं है। ……….” इसलिए वे बम्बई में न ठहरकर प्रात: होने के पूर्व ही दिल्ली पहुँच गये। ……….. उनके चाहने वाले उन्हें अवकाश नहीं दे रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे आराम के लिए कुछ दिन के लिए अन्यत्र जाएँगे।

राजा रिपुदमन को अपने से ही शिकायत है। उन्हें नींद नहीं आती है। वे अपने किये पर पश्चाताप कर रहे हैं। जब उर्मिला ने उनसे शादी के लिए कहा था तो उन्होंने परिवारीजनों के डर से मना कर दिया था। उनकी वही भूल आज उन्हें पीड़ा प्रदान कर रही है। वह उसके विषय में बहुत चिन्तित हैं।
दिल्ली में आकर वे आचार्य मारुति से मिलते हैं, जिनके बारे में उन्होंने यूरोप में भी बहुत सुन रखा था।

आचार्य मारुति तरह-तरह की चिकित्सकीय जाँच के परिणामों को ठीक बताते हुए उन्हें विवाह करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिपुदमन स्वयं को विवाह के अयोग्य बताते हुए इसे बन्धन में बँधना कहते हैं। आचार्य मारुति उन्हें प्रेम-बन्धन में बँधने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि प्रेम का इनकार स्वयं से इनकार है।

अगले दिन राजा रिपुदमन उर्मिला से मिलते हैं और अपने बच्चे का नामकरण करते हैं। वे उर्मिला से समाज के विपरीत अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हैं और अपने व उर्मिला के सम्बन्धों को एक परिणति देना चाहते हैं। लेकिन उर्मिला मना करती है और उनसे सतत आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है। वह पुत्र की ओर दिखाती हुई कहती है कि तुम मेरे ऋण से उऋण हो और मेरी ओर से आगामी गति के लिए मुक्त हो।

रिपुदमन उर्मिला को आचार्य मारुति के विषय में बताता है। वह उसे ढोंगी, महत्त्व को शत्रु और साधारणता का अनुचर बताती है। वह कहती है कि तुम्हारे लिए स्त्रियों की कमी नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारी प्रेमिका हूँ। और तुम्हें सिद्धि तक पहुँचाना चाहती हूँ, जो कि मृत्यु के भी पार है।।

रिपुदमन आचार्य मारुति से मिलता है तथा उसे बताता है कि वह उर्मिला के साथ विवाह करके साथ में रहने के लिए तैयार था, लेकिन उसने मुझे ध्रुवयात्रा के लिए प्रेरित किया और कुछ मेरी स्वयं की भी इच्छा थी। अब वह मुझे सिद्धि तक जाने के लिए प्रेरित कर रही है। आचार्य मारुति स्वीकार करते हैं कि उर्मिला उनकी ही पुत्री है। वे उसे विवाह के लिए समझाएँगे।

जब उर्मिला आचार्य के बुलवाने पर उनके पास जाती है तो वे उससे विवाह के लिए कहते हैं। वह कहती है। कि शास्त्र से स्त्री को नहीं जाना जा सकता उसे तो सिर्फ प्रेम से जाना जा सकता है। वे उसे रिपुदमन से विवाह के लिए समझाते हैं, लेकिन वह नहीं मानती। वह स्पष्ट कहती है कि मुक्ति का पथ अकेले का है। अन्त में आचार्य उर्मिला के ऊपर इस रहस्य को प्रकट कर देते हैं कि वे ही उसके पिता हैं। इस अभागिन को भूल जाइएगा’ यह कहती हुई वह उनके पास से चली जाती है।

रिपुदमन के पूछने पर उर्मिला बताती है कि वह आचार्य से मिल चुकी है। रिपुदमन उसके कहने पर दक्षिणी ध्रुव के शटलैण्ड द्वीप के लिए जहाज तय करते हैं। अब उर्मिला उनको रोकना चाहती है, लेकिन वे नहीं रुकते। वे चले जाते हैं। रिपुदमन की ध्रुव पर जाने की खबर पूरी दनिया को ज्ञात हो जाती है। उर्मिला को भी अखबारों के माध्यम से सारी खबर ज्ञात होती रहती है और वह इन्हीं कल्पनाओं में डूबी रहती है।

तीसरे दिन के अखबार में उर्मिला राजा रिपुदमन की आत्महत्या की खबर का एक-एक अंश पूरे ध्यान से पढ़ती है। अखबार वालों ने एक पत्र भी छापा था, जिसमें रिपुदमन ने स्वीकार किया था कि उनकी यह यात्रा नितान्त व्यक्तिगत थी, जिसे सार्वजनिक किया गया। मैं किसी से मिले आदेश और उसे दिये गये अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहा हूँ, इसलिए होशो हवाश में अपना काम-तमाम कर रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करे।’ यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2
‘धुवयात्रा’ कहानी की कथावस्तु का विवेचन कीजिए। या ध्रुवयात्रा कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए। [2018]
या
कथा-संगठन की दृष्टि से ‘धुवयात्रा’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [2013, 14, 15, 16, 18]
या
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जैनेन्द्र कुमार महान् कथाकार हैं। ये व्यक्तिवादी दृष्टि से पात्रों का मनोविश्लेषण करने में कुशल हैं। प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रगामी लेखक होते हुए भी इन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को नवीन शिल्प प्रदान किया। ‘ध्रुवयात्रा’ जैनेन्द्र कुमार की सामाजिक, मनोविश्लेषणात्मक, यथार्थवादी रचना है। कहानीकला के कतिपय प्रमुख तत्त्वों के आधार पर इस कहानी की समीक्षा निम्नवत् है-

(1) शीर्षक–कहानी का शीर्षक आकर्षक और जिज्ञासापूर्ण है। सार्थकता तथा सरलता इस शीर्षक की विशेषता है। कहानी का शीर्षक अपने में कहानी के सम्पूर्ण भाव को समेटे हुए है तथा प्रारम्भ से अन्त तक कहानी इसी ध्रुवयात्रा पर ही टिकी है। कहानी का प्रारम्भ नायक के ध्रुवयात्रा से आगमन पर होता है और कहानी का समापन भी ध्रुवयात्रा के प्रारम्भ के पूर्व ही नायक के समापन के साथ होता है। अत: कहानी का शीर्षक स्वयं में पूर्ण और समीचीन है।।

(2) कथानक-श्रेष्ठ कथाकार के रूप में स्थापित जैनेन्द्र कुमार जी ने अपनी कहानियों को कहानी- कला की दृष्टि से आधुनिक रूप प्रदान किया है। ये अपनी कहानियों में मानवीय गुणों; यथा-प्रेम, सत्य तथा करुणा; को आदर्श रूप में स्थापित करते हैं।

इस कहानी की कथावस्तु का आरम्भ राजा रिपुदमन की ध्रुवयात्रा से वापस लौटने से प्रारम्भ होता है। कथानक का विकास रिपुदमन और आचार्य मारुति के वार्तालाप, तत्पश्चात् रिपुदमन और उसकी अविवाहिता प्रेमिका उर्मिला के वार्तालाप और उर्मिला तथा आचार्य मारुति के मध्य हुए वार्तालाप से होता है। कहानी के मध्य में ही यह स्पष्ट होता है कि उर्मिला ही मारुति की पुत्री है। कहानी का अन्त और चरमोत्कर्ष राजा रिपुदमन द्वारा आत्मघात किये जाने से होता है।

प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कृष्ट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है तथा प्रेम को नारी से बिलकुल अलग और सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्तव्य के प्रति निष्ठा एवं नैतिकता के प्रति पूर्णरूपेण सतर्क दिखाई पड़ता है और जिसकी पूर्ण परिणति के लिए वह अपना जीवन अर्पण करने से भी नहीं डरता। कहानी मनौवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से भी ओत-प्रोत है और संवेदनाप्रधान होने के कारण पाठक के अन्तस्तल पर अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा एक अत्युत्कृष्ट कहानी है।

(3) उद्देश्य-प्रस्तुत कहानी में कहानीकार जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बन्धन है और विवाह एक सामाजिक बन्धन। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता। प्रेम की भावना व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करती है। उर्मिला कहती है, “हाँ, स्त्री रो रही है, प्रेमिका प्रसन्न है। स्त्री की मत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनँगी। दोनों जने प्रेम की सुनेंगे। प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता।”
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है।

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